सव ासथय स ंजीव नी वसनत ऋत ु म े ध यान द े। •
वसनत ऋतु मे भारी, अमलीय, िसनगध और मधुर आहार का सेवन व िदन मे शयन विजत ि है ।
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वस नते भमण े पथ । वसनत ऋतु मे खूब पैदल चलना चािहए। वयायाम कसरत िवशेष रप से करना चािहए।
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इन िदनो मे तेल-मािलश, उबटन लगाना व नाक मे तेल(नसय) डालना िवशेष लाभदायी है । नसय व मािलश के िलए ितल तेल सवोतम है ।
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अनय ऋतुओं की अपेका वसनत ऋतु मे गौमूत का सेवन िवशेष लाभदाय़ी है ।
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सुबह 3 गाम हरड चूणि मे शहद िमलाकर लेने से भूख खुलकर लगेगी। कफ का भी शमन हो जाएगा।
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इन िदनो मे हलके, रखे, कडवे, कसैले पदाथि, लोहासव, अशगंधािरष अथवा दशमूलािरष का सेवन िहतकर है ।
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हरड चूणि को गौमूत मे धीमी आँच पर सेक ले। जलीय भाग जल जाने पर उतार ले। इसे गौमूत हिरतकी कहते है । रात को 3 गाम चूणि गुनगुने पानी के साथ ले। इससे गौमूत व हरड दोनो के गुणो का लाभ िमलता है ।
कड वा र सः सवासथ य-रक क उपहार
वसनत ऋतु मे कडवे रस के सेवन का िवशेष लाभदाय़ी है । इस ऋतु मे नीम की 15-20 कोपले व तुलसी की 5-10 कोमल पितयाँ 2-3 काली िमचि के साथ
चबा-चबाकर खानी चािहए। बहलीन सवामी शी लीलाशाह जी यह पयोग करते थे। पूजय बापू जी कभी-कभी यह पयोग करते है । इसे 15-20 िदन करने से वषि भर
चमि रोग, रकिवकार और जवर आिद रोगो से रका करने की पितरोधक शिक पैदा होती है । इसके अलावा नीम के फूलो का रस 7 से 15 िदन तक पीने से तवचा के रोग और मलेिरया जैसे जवर से भी बचाव होता है । इस ऋतु मे सुबह खाली पेट हरड का चूणि शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है ।
19 माचि को चैती नूतन वषारिंभ अथात ि ् गुडी पडवा (वषि पितपदा) है । इस
िदन सवासथय-सुरका तथा चंचल मन की िसथरता के िलए नीम की पितयो को
िमशी, काली िमचि, अजवायन आिद के साथ पसाद के रप मे लेने का िवधान है । आजकल अलग-अलग पकार के बुखार, मलेिरया, टायफायड, आंतो के रोग, मधुमेह,
मेदविृि, कोलसटे रोल का बढना, रकचाप जैसी बीमािरयाँ बढ गयी है । इसका पमुख कारण भोजन मे कडवे रस का अभाव है । भगवान आतेय ने चरक संिहता मे कहा है ः
ितको रस ः सवमरो िचषण ुरप यरोचकघनो िवष घनः क ृ िमघनो
मूचछा ि दाहक णडू कुषत ृ षणापश मनसतवङ मा ं सयोः िसथ लीकरणो जवरघनोदीप नः पा चनः सत नयशोधनो
लेखनः
कलेदम ेदोवसामजज लसीकाप ूयसव ेदम ूतप ुरीष िपतश ेषमोशोषणो लघुश।
रक ः शीतो
कडवा रस सवयं अरिचकर होता है िकंतु सेवन करने पर अरिच को दरू
करता है । यह शरीर के िवष व कृ िम को नष करता है , मूचछाि (बेहोशी), जलन,
खुजली, कोढ और पयास को नष करता है , चमडे व मांसपेिशयो मे िसथरता उतपनन करता है (उनकी िशिथलता को नष करता है )। यह जवरशामक, अिगनदीपक,
आहारपाचक, दगुध का शोधक और लेखन (सथूलता घटाने वाला) है । शरीर का
कलेद, मेद, चबी, मजजा, लसीका (lymph), पीब, पसीना, मल, मूत, िपत और कफ को सुखाता है । इसके गुण रक, शीत और लघु है ।
सोतः ऋ िष पसाद फरवरी
(सूतसथान, अधयाय-26)
2007, पृ ष स ंखय ा 29.