February 2007 Rp Article Health Section Page No. 29

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  • Words: 552
  • Pages: 2
सव ासथय स ंजीव नी वसनत ऋत ु म े ध यान द े। •

वसनत ऋतु मे भारी, अमलीय, िसनगध और मधुर आहार का सेवन व िदन मे शयन विजत ि है ।



वस नते भमण े पथ । वसनत ऋतु मे खूब पैदल चलना चािहए। वयायाम कसरत िवशेष रप से करना चािहए।



इन िदनो मे तेल-मािलश, उबटन लगाना व नाक मे तेल(नसय) डालना िवशेष लाभदायी है । नसय व मािलश के िलए ितल तेल सवोतम है ।



अनय ऋतुओं की अपेका वसनत ऋतु मे गौमूत का सेवन िवशेष लाभदाय़ी है ।



सुबह 3 गाम हरड चूणि मे शहद िमलाकर लेने से भूख खुलकर लगेगी। कफ का भी शमन हो जाएगा।



इन िदनो मे हलके, रखे, कडवे, कसैले पदाथि, लोहासव, अशगंधािरष अथवा दशमूलािरष का सेवन िहतकर है ।



हरड चूणि को गौमूत मे धीमी आँच पर सेक ले। जलीय भाग जल जाने पर उतार ले। इसे गौमूत हिरतकी कहते है । रात को 3 गाम चूणि गुनगुने पानी के साथ ले। इससे गौमूत व हरड दोनो के गुणो का लाभ िमलता है ।

कड वा र सः सवासथ य-रक क उपहार

वसनत ऋतु मे कडवे रस के सेवन का िवशेष लाभदाय़ी है । इस ऋतु मे नीम की 15-20 कोपले व तुलसी की 5-10 कोमल पितयाँ 2-3 काली िमचि के साथ

चबा-चबाकर खानी चािहए। बहलीन सवामी शी लीलाशाह जी यह पयोग करते थे। पूजय बापू जी कभी-कभी यह पयोग करते है । इसे 15-20 िदन करने से वषि भर

चमि रोग, रकिवकार और जवर आिद रोगो से रका करने की पितरोधक शिक पैदा होती है । इसके अलावा नीम के फूलो का रस 7 से 15 िदन तक पीने से तवचा के रोग और मलेिरया जैसे जवर से भी बचाव होता है । इस ऋतु मे सुबह खाली पेट हरड का चूणि शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है ।

19 माचि को चैती नूतन वषारिंभ अथात ि ् गुडी पडवा (वषि पितपदा) है । इस

िदन सवासथय-सुरका तथा चंचल मन की िसथरता के िलए नीम की पितयो को

िमशी, काली िमचि, अजवायन आिद के साथ पसाद के रप मे लेने का िवधान है । आजकल अलग-अलग पकार के बुखार, मलेिरया, टायफायड, आंतो के रोग, मधुमेह,

मेदविृि, कोलसटे रोल का बढना, रकचाप जैसी बीमािरयाँ बढ गयी है । इसका पमुख कारण भोजन मे कडवे रस का अभाव है । भगवान आतेय ने चरक संिहता मे कहा है ः

ितको रस ः सवमरो िचषण ुरप यरोचकघनो िवष घनः क ृ िमघनो

मूचछा ि दाहक णडू कुषत ृ षणापश मनसतवङ मा ं सयोः िसथ लीकरणो जवरघनोदीप नः पा चनः सत नयशोधनो

लेखनः

कलेदम ेदोवसामजज लसीकाप ूयसव ेदम ूतप ुरीष िपतश ेषमोशोषणो लघुश।

रक ः शीतो

कडवा रस सवयं अरिचकर होता है िकंतु सेवन करने पर अरिच को दरू

करता है । यह शरीर के िवष व कृ िम को नष करता है , मूचछाि (बेहोशी), जलन,

खुजली, कोढ और पयास को नष करता है , चमडे व मांसपेिशयो मे िसथरता उतपनन करता है (उनकी िशिथलता को नष करता है )। यह जवरशामक, अिगनदीपक,

आहारपाचक, दगुध का शोधक और लेखन (सथूलता घटाने वाला) है । शरीर का

कलेद, मेद, चबी, मजजा, लसीका (lymph), पीब, पसीना, मल, मूत, िपत और कफ को सुखाता है । इसके गुण रक, शीत और लघु है ।

सोतः ऋ िष पसाद फरवरी

(सूतसथान, अधयाय-26)

2007, पृ ष स ंखय ा 29.

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