शीतक ाल मे बल संवध ध ना थध ः मािल श शीतकाल अथात ध हे मंत व िशिशर ऋतुएँ (23 अकूबर 2007 से 18 फरवरी 2008 तक)
बलसंवधन ध का काल है । काितक ध से लेकर माघ तक के चार महीनो मे संपूणध वषध के िलए
शरीर मे शिक का संचय िकया जाता है । शिक के िलए पौििक, बलवधक ध पदाथो का सेवन ही पयाप ध नहीं है अिपतु मािलश (अभयंग), आसन, वयायाम भी आवशयक है । शीत काल मे मािलश िवशेष सेवनीय है ।
आयुवद े के शष े मुिन शी सुशत ु ाचायध जी कहते है पाणाश सन ेह भूियषाः स नेह साधयाश भ विित ।
मनुषय का जीवन (बल) सनेह पर आधािरत है उसकी रका भी सनेह दारा ही होती है ।
दारा।
(सुश ु त िच िकतसासथानः
31.3)
सनेह (तेल, घी आिद) का उपयोग दो पकार से िकया जाता है - सेवन व मािलश के सवासथय संिहता के अनुसार घी का सेवन से भी आठ गुनी शिक उतनी ही माता
मे तैल-मदध न अथात ध मािलश से िमलती है । तेल से िनयिमत की गयी मािलश सतत
कायरधत शरीर मे दढता, आघात सहने की कमता व पितकण होने वाली शरीर की कित
की पूितध करती है । सनायुओं व अिसथयो को पुि कर शरीर को मजबूत ब सुडौल बनाती है । मािलश से तवचा िसनगध, मुलायम, सुकुमार व कांितयुक बनती है , तवचा पर झुिरध याँ
जलदी नहीं आतीं। जानेिियाँ व कमिेिियाँ दीघक ध ाल तक कायक ध म रहती है । वद ृ ावसथा दे र से आती है । मािलश एक शष े वायुशामक िचिकतसा भी है । पैर के तलुओं की मािलश
करने से नेतजयोित बढती है , मिसतषक शांत हो जाता है व नींद गहरी आती है । मािलश से शारीिरक व मानिसक शम से उतपिन थकान िमट जाती है । मन पसिन व उतसािहत रहता है । िनयिमत मािलश आकषक ध वयिकतव पदान करती है ।
मािल श के िलए ितल त ेल स वध शे ष म ान ा गया ह ै।
यह उषण व हलका होने
से शरीर मे शीघता से फैलकर सोतसो की शुिद करता है । यह उतम वाय ुन ाश क व
बलव धध क भी ह ै। दे श, ऋतु, पकृ ित के अनुसार सरसो, नािरयल अथवा औषधिसद तेलो (आशम मे उपलबध आँवला तेल) का भी उपयोग िकया जा सकता है । िसर के िलए ठं डे व अिय अवयवो के िलए गुनगुने तेल का उपयोग करे ।
तेल का अ ंत ः पव ेश काल ः तवचा पर लगाया हुआ तेल रोमकूपो से अंदर पवेश
कर छः िमनट मे बालो के मूल तक पहुँचता है । साढे सात िमनट मे रक, नौ िमनट मे मांस, साढे दस िमनट मे मेद, बारह िमनट मे हडडी व साढे तेरह िमनट मे मजजा धातु
तक पहुँचता है । सामाियतः हाथ, पैर, िसर, पेट व छाती की पाँच-पाँच िमनट तथा पीठ व कमर की कुल दस-पंिह िमनट तक मािलश करनी चािहए।
मािल श काल ः मािलश काल पातःकाल मे करनी चािहए। धूप की तीवता बढने
पर व भोजन के पशात न करे ।
मािल श िविध ः पातः शौचािद से िनवत ृ हो चटाई अथवा पलंग पर सीधे लेट
जाये।
शरीर को ढीला छोड दे । सवप ध थम िसर के तालु मे खूब तेल डाल दे , साथ ही नािभ मे भी तेल डाल कर रखे। िफर तालु, संपूणध िसर, ललाट, नाक व आँखो की हलके हाथ से
मािलश करे । तेल की 4-5 बूँदे नाक व कान मे भी डाल दे । िफर नािभ मे उँ गली से धीरे धीरे मािलश करे । नािभ रकवाहक िशराओं का मूलसथान है । नािभ पर डाला हुआ तेल
िशराओं के दारा संपूणध शरीर मे फैल जाता है । जठरािगन के सनेहरप इं धन िमलने से उसकी कायक ध मता मे विृद होती है । इसके बाद िचत मे दशाय ध ा है उसके अनुसार पैर के तलुओं से लेकर छाती तक सभी अंगो की नीचे से ऊपर की ओर मािलश करे । हदयसथान, पेट तथा संिधयो पर गोलाकार मािलश करे ।
हदय एक अवयाहत कायरधत अवयव है । इसकी रका के िलए मािलश आवशयक है । मािलश हदय के सोतसो का मुख खोल कर उिहे पसािरत कर दे ती है िजससे रकवािहिनयो मे अवरोध (Coronary artery disease) की संभावना नहीं रहती.
पितिदन सावद ध ै िहक अभयंग संभव न हो तो िनयिमत िसर व पैर की मािलश तथा
कान, नािभ मे तेल डालना चािहए। सावधानीः
मािलश के बाद ठं डी हवा मे न घूमे। 15-20 िमनट बाद बेसन अथवा
मुलतानी िमटटी लगाकर गुनगुने पानी से सनान करे । नवजवर, अजीणध व कफपधान
वयािधयो मे मािलश न करे । सथूल वयिकयो मे अनुलोम गित से अथात ध ऊपर से नीचे की ओर मािलश करे ।
मािलश शीघता से न करे । अियथा थकान पैदा करती है । तिमयता व पसिनता
से की गयी मािलश नवचैतिय व सफू््ितध पदान करती है ।
सोतः अकूबर
2007 ऋिष पसाद , पृ ष 28, 29.