March 2007 Rp Article Health Section Page No. 30

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  • Words: 578
  • Pages: 3
शरी र सवासथय सवासथय क े ििए िित कर -अिित कर पाचीन काि मे भगवान पुनवस व ु आतेय ने मनुषयो के ििए सवभाव से िी िितकर

व अिितकर बातो का वणन व करते िुए भारदाज, ििरणयाक, कांकायन आिि मिििय व ो से किाः

िि तकर भाव आरोगयकर भावो मे समय पर भोजन, सुखपूवक व पचनेवािो मे एक समय भोजन,

आयुवधन व मे बहचयव पािन, शरीर की पुिि मे मन की शािित, िनदा िाने वािो मे शरीर का पुि िोना तथा भैस का िध ू , थकावट िरू करने मे सनान व शरीर मे दढता उतपिन करने वािो मे वयायाम सवश व ष े िै ।

वात और िपत को शांत करने वािो मे घी, कफ व िपत को शांत करने वािो मे

शिि तथा वात और कफ को शांत करने मे िति का तेि शष े िै ।

वायुशामक व बिवधक व पिाथो मे बिा, जठरािगन को पिीप कर पेट की वायु को

शांत करने वािो मे पीपरामूि, िोिो को बािर िनकािने वािे, अिगनिीपक व वायुिनससारक पिाथो मे िींग, कृ िमनाशको मे वायिवडं ग, मूतिवकारो मे गोखर, िाि िरू करने वािो मे

चंिन का िेप, संगिणी व अशव (बवासीर) को शांत करने मे पितििन तक (मटठा) सेवन सवश व ष े िै । अिि तकर भाव रोग उतपािक कारणो मे मि-मूत आिि के वेगो को रोकना, आयु घटाने मे अित

मैथुन, जीवनशिि घटाने वािो मे बि से अिधक कायव करना, बुिि समिृत व धैयव को नि करने मे अजीणव भोजन (पििे सेवन िकये िुए आिार के ठीक से पचने से पूवव िी पुनः

अिन सेवन करना), आम िोि उतपिन करने मे अिधक भोजन तथा रोगो को बढाने वािे कारणो मे िविाि (िःुख) पधान िै ।

शरीर को सुखा िे ने वािो मे शोक, पुंसतवशिि नष करने वािो मे कार, शरीर के

सोतो मे अवरोध उतपिन करने वािे पिाथो मे मंिक ििी (पूणव रप से न जमा िुआ ििी) तथा वायु उतपिन करने वािो मे जामुन मुखयतम िै ।

सवासथयनाशक काि मे शरद ऋतु, सवासथय के ििए िािनकारक जि मे विाव ऋतु

की निी का जि, वायु मे पििम ििशा की िवा, गीषम ऋतु की धूप व भूिम मे आनूप िे श (जिाँ वक ृ और विाव अिधक िो, धूप कम िो, कविचत सूय-व िशन व भी िि व िो) मुखयतम िै । ु भ

सवासथय व िीघाय व ुषय की कामना करने वािे वयिि को चाििए िक िितकर पिाथो के सेवन के साथ अिितकर पिाथो का तयाग करे ।

(चरक स ं ििता , सूतसथानम ् , यजजःप ुरिीयाध याय 25)

सुि भ पसव क े ििएः

मूिब ंध

सगभाव व सथा मे पसवकाि तक मूिबंध का िनयिमत अभयास करने से पसव सुिभता से िो जाता िै । मूिबंध माना गुिा (मिदार) को िसकोड कर रखना जैसे घोडा

संकोचन करता िै । इससे योिन की पेिशयो मे िचीिापन बना रिता िै , िजससे पीडारिित पसव मे सिायता िमिती िै । पसूित के बाि भी माताओं को मूिबंध एवं अििनी मुदा का अभयास करना चाििए। अििनी मुदा अथात व ् जैसे घोडा िीि छोडते समय गुिा का

आकुंचन -पसरण करता िै , वैसे गुिादार का आकुंचन -पसरण करना। िेटे-िेटे 50-60 बार यि मुदा करने से वात-िपत-कफ इन ितिोिो का शमन िोता िै , भूख खुि कर िगती िै तथा

सगभाव व सथा की अविध मे तने िुए सनायुओं को पुनसवास व थय पाने मे सिायता िमिती िै । िेत पिर (लयूकोिरया), योिनभंश (पोिॅपस) व अिनयंितत मूतपविृत के उपचार मे मूिबंध का अभयास अतयुतम िसि िुआ िै ।

सोतः ऋ िि पसा ि माच व 2007, पृ ष 30

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