शरी र सवासथय जा मु न वषाा ऋतु के आरमभ मे अथात ा जून-जुलाई मे जामुन के फल पिरपकव होते है ।
जामुन सवाििष फल तथा गुणकारी औषधी भी है । इसके फल, गुठली, छाल, पते सभी
औषधीय गुणो से समपनन है । जामुन मे कैििशयम, फॉसफोरस, व िवटािमन सी पचुर माता मे पाये जाते है ।
यह कफ व िपत का शमन करता है परं तु पबल वायुवधक ा है । इसके सेवन से िपत
के कारण होने वाली कंठ की शुषकता, जलन व आंतिरक गमी िरू होती है । िाँत व मसूडे मजबूत बनते है , िाँतो के कृ िम नष होते है । यह उतम कृ िमनाशक व थकावट िरू करनेवाला है । अिधक सेवन से मलावरोध करता है ।
यह यकृ त (Liver) व ितिली (Spleen) की कायक ा मता बढाता है िजससे पाचनशिि
मे विृि होकर नवीन रि की उतपित मे सहायता िमलती है ।
जामुन के बीजो का उपयोग िवशेषतः मधुमेह मे िकया जाता है । इनमे िसथत
जमबोिलन नामक गलुकोज सटाचा के शकारा मे होने वाले िवकृ त रपांतरण को रोकता है । छाया मे सुखाये गये गुठिलयो का चूणा छः-छः गाम ििन मे िो-तीन बार लेना मधुमेह मे लाभिायी है ।
जामुन के कोमल पतो का रस िपतशामक होने के कारण उलटी तथा रििपत मे
बहुत लाभिायी है ।
मिहलाओं के अतयिधक मािसक साव मे जामुन के कोमल पतो का 20 िम.ली। रस
िमशी मे िमलाकर सुबह-शाम लेना चािहए।
अिधक व बार-बार पेशाब होने पर जामुन-बीज का चूणा व िपसे हुए काले ितल
समभाग िमलाकर 3-3 गाम िमशण ििन मे 2 बार ले। अनय औषधी-पयोगो से थके-हारे रगणो को भी इस पयोग से राहत िमलती है । बचचो के िबसतर मे पेशाब करने की आित मे 2 गाम िमशण 2 बार पानी के साथ िे ।
जामुन के पतो को जलाकर बनाए हुए भसम का मंजन करने से मसूडो के रोग
नष होते है ।
सावधानीः
जामुन का सेवन भोजन के आधा एक घंटे बाि सीिमत माता मे
करना चािहए। खाली पेट जामुन खाने से अफरा हो जाता है । सेधा नमक, धिनया और काली िमचा का चूणा िछडक कर खाना अिधक िहतावह है । जामुन के अिधक सेवन से फेफडो मे कफ जमा हो जाता है ।
सम ृ ितवध ा क , कैसर िनवारक
, ित िोषन ाशक
तुलसी अका धमश ा ासो मे तुलसी को अतयंत पिवत व माता के समान माना गया है । तुलसी एक उतकृ ष रसायन है । आज के िवजािनयो ने इसे एक अिभुत औषधी (Wonder Drug) कहा है ।
माताः
10 से 20 िम.ली. अका मे उतना ही पानी िमलाकर खाली पेट ले सकते है ।
रिववार को न ले। तुलसी अका लेने के पूवा व बाि के डे ढ-िो घंटे तक िध ू न ले।
लाभ ः यह सिी जुकाम, खाँसी, एिसिडटी, जवर, िसत, उलटी, िहचकी, मुख की िग ग , ु ध
मंिािगन, पेिचस मे लाभिायी व हिय के िलए िहतकर है । यह रि मे से अितिरि
िसनगधांश को हटाकर रि को शुि करता है । यह सौिया, बल, बहचया एवं समिृत वधक ा व कीटाणु, ितिोष और िवष नाशक है ।
शरीर को प ुन ः न यापन िेन े वाला
पुनन ा वा अक ा पुननव ा ा शरीर के कोशो को नया जीवन पिान करने वाली शष े रसायन औषधी है ।
यह कोिशकाओं मे से सूकम मलो को हटाकर संपूणा शरीर की शुिि करती है , िजससे
िकडनी, लीवर, हिय आिि अंग-पतयंग की कायश ा ीलता व मजबूती बढती है तथा युवावसथा िीघक ा ाल तक बनी रहती है ।
लाभ ः यह अका िकडनी व लीवर के रोग, उिररोग, सवाग ा शोथ (सूजन), शास,
पीिलया, जलोिर (Ascitis), पांडु (रिािपता), बवासीर, भगंिर, हाथीपाँव, खाँसी तथा जोडो के ििा मे िवशेष लाभिायी है । यह हियसथ रिवािहिनयो को साफ कर हिय को मजबूत बनाता है । आँखो के िलए भी िहतकारी है । माताः
20 से 50 िम.ली. अका आधी कटोरी पानी मे िमलाकर ििन मे एक या िो
बार ले। इसके सेवन के बाि एक घंटे तक कुछ न ले।
केवल सा धक पिरवार क े िल ए स ंत श ी आसारामजी आश
पर उपलब ध।
मो व स ेवाकेनदो