Rp Health Article June 2007

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शरी र सवासथय जा मु न वषाा ऋतु के आरमभ मे अथात ा जून-जुलाई मे जामुन के फल पिरपकव होते है ।

जामुन सवाििष फल तथा गुणकारी औषधी भी है । इसके फल, गुठली, छाल, पते सभी

औषधीय गुणो से समपनन है । जामुन मे कैििशयम, फॉसफोरस, व िवटािमन सी पचुर माता मे पाये जाते है ।

यह कफ व िपत का शमन करता है परं तु पबल वायुवधक ा है । इसके सेवन से िपत

के कारण होने वाली कंठ की शुषकता, जलन व आंतिरक गमी िरू होती है । िाँत व मसूडे मजबूत बनते है , िाँतो के कृ िम नष होते है । यह उतम कृ िमनाशक व थकावट िरू करनेवाला है । अिधक सेवन से मलावरोध करता है ।

यह यकृ त (Liver) व ितिली (Spleen) की कायक ा मता बढाता है िजससे पाचनशिि

मे विृि होकर नवीन रि की उतपित मे सहायता िमलती है ।

जामुन के बीजो का उपयोग िवशेषतः मधुमेह मे िकया जाता है । इनमे िसथत

जमबोिलन नामक गलुकोज सटाचा के शकारा मे होने वाले िवकृ त रपांतरण को रोकता है । छाया मे सुखाये गये गुठिलयो का चूणा छः-छः गाम ििन मे िो-तीन बार लेना मधुमेह मे लाभिायी है ।

जामुन के कोमल पतो का रस िपतशामक होने के कारण उलटी तथा रििपत मे

बहुत लाभिायी है ।

मिहलाओं के अतयिधक मािसक साव मे जामुन के कोमल पतो का 20 िम.ली। रस

िमशी मे िमलाकर सुबह-शाम लेना चािहए।

अिधक व बार-बार पेशाब होने पर जामुन-बीज का चूणा व िपसे हुए काले ितल

समभाग िमलाकर 3-3 गाम िमशण ििन मे 2 बार ले। अनय औषधी-पयोगो से थके-हारे रगणो को भी इस पयोग से राहत िमलती है । बचचो के िबसतर मे पेशाब करने की आित मे 2 गाम िमशण 2 बार पानी के साथ िे ।

जामुन के पतो को जलाकर बनाए हुए भसम का मंजन करने से मसूडो के रोग

नष होते है ।

सावधानीः

जामुन का सेवन भोजन के आधा एक घंटे बाि सीिमत माता मे

करना चािहए। खाली पेट जामुन खाने से अफरा हो जाता है । सेधा नमक, धिनया और काली िमचा का चूणा िछडक कर खाना अिधक िहतावह है । जामुन के अिधक सेवन से फेफडो मे कफ जमा हो जाता है ।

सम ृ ितवध ा क , कैसर िनवारक

, ित िोषन ाशक

तुलसी अका धमश ा ासो मे तुलसी को अतयंत पिवत व माता के समान माना गया है । तुलसी एक उतकृ ष रसायन है । आज के िवजािनयो ने इसे एक अिभुत औषधी (Wonder Drug) कहा है ।

माताः

10 से 20 िम.ली. अका मे उतना ही पानी िमलाकर खाली पेट ले सकते है ।

रिववार को न ले। तुलसी अका लेने के पूवा व बाि के डे ढ-िो घंटे तक िध ू न ले।

लाभ ः यह सिी जुकाम, खाँसी, एिसिडटी, जवर, िसत, उलटी, िहचकी, मुख की िग ग , ु ध

मंिािगन, पेिचस मे लाभिायी व हिय के िलए िहतकर है । यह रि मे से अितिरि

िसनगधांश को हटाकर रि को शुि करता है । यह सौिया, बल, बहचया एवं समिृत वधक ा व कीटाणु, ितिोष और िवष नाशक है ।

शरीर को प ुन ः न यापन िेन े वाला

पुनन ा वा अक ा पुननव ा ा शरीर के कोशो को नया जीवन पिान करने वाली शष े रसायन औषधी है ।

यह कोिशकाओं मे से सूकम मलो को हटाकर संपूणा शरीर की शुिि करती है , िजससे

िकडनी, लीवर, हिय आिि अंग-पतयंग की कायश ा ीलता व मजबूती बढती है तथा युवावसथा िीघक ा ाल तक बनी रहती है ।

लाभ ः यह अका िकडनी व लीवर के रोग, उिररोग, सवाग ा शोथ (सूजन), शास,

पीिलया, जलोिर (Ascitis), पांडु (रिािपता), बवासीर, भगंिर, हाथीपाँव, खाँसी तथा जोडो के ििा मे िवशेष लाभिायी है । यह हियसथ रिवािहिनयो को साफ कर हिय को मजबूत बनाता है । आँखो के िलए भी िहतकारी है । माताः

20 से 50 िम.ली. अका आधी कटोरी पानी मे िमलाकर ििन मे एक या िो

बार ले। इसके सेवन के बाि एक घंटे तक कुछ न ले।

केवल सा धक पिरवार क े िल ए स ंत श ी आसारामजी आश

पर उपलब ध।

मो व स ेवाकेनदो

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