सवासथयकारक न ुसख े •
रोज हरी अथवा सूखी मेथी का सेवन करने से शरीर के 80 पकार के वायुरोगो मे लाभ होता है ।
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नूतन जवर मे तेज वायु का सेवन, ििन मे अििक समय तक शयन, सनान, मािलश, मैथुन, कोि और पिरशम करना हािनकारक है ।
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पुराने जवर मे रोगी को घी और िि ू अवशय िे ना चािहए। सव व जवाराणा ं जीणा वना ं क ीरं भैषजयम ुतमम ् । इस वचन से पुराने जवर मे िि ू को
उतम औषि माना है । नये जवर मे िि ू को सांप के जहर जैसा हािनकारक कहा गया है । •
जवर चले जाने के पशात ् जब तक शरीर मे शिि न आये तब तक मैथुन, वयायाम, याता करना, िे र से पचने वाला भोजन, सूयव के ताप या वायु का अित सेवन और ठं डे जल से सनान करना िहतकर नहीं है ।
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सब पकार के उिर रोगो मे मटठे और गौमूत का सेवन अित लाभिायक है ।
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सवपनिोष मे राित को मिुर पिाथव का सेवन, राित को भात खाना, अजीणव मे भोजन, वातल पिाथो का अित सेवन, खटटा पिाथव खाना, तमबाकू, चाय आिि हािनकारक है । पातः, सांय सवचछ वायु मे घूमना, िीघव शास लेना,
साििवक भोजन, ईशर-समरण, राित को भोजन के बिले केवल िि ू पीना – ये सब लाभिायक है । •
नेतरोग मे गुड, िमचव, तेल, शुषक अनन, कबजकारक पिाथव और राित जागरण – इन सबका ियाग करना चािहए। ितफला रसायन का उपयोग करना चािहए।
कान के रोग मे रस आिि औषिि पातः और तेल आिि औषिि सूयास व त के बाि डालनी चािहए।
शीतकाल म े स ेवनी य़ः बबूल व पलाश की गोि, शतावरी, अशगंिा, काली मूसली, सफेि मूसली,
यििमिु व तालमखाना के बीज पियेक 20-20 गाम व िमशी 160 गाम पीसकर चूणव बना कर रखे। 8-10 गाम चूणव सुबह-शाम गरम िि ू के साथ लेने से वीयव की विृि व शरीर की पुिि होती है । शीत काल मे इसका सेवन िवशेषतः िातुकीणता िरू करने के िलए िकया जाता है ।
शरीरप ुिि के पयो ग •
1 से 2 गाम सोठ एवं उतनी ही िशलाजीत खाने से अथवा 2 से 5 गाम शहि के साथ उतना ही अिरक लेने से शरीर पुि होता है ।
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3 से 5 अंजीर को िि ू मे उबालकर या अंजीर खाकर िि ू पीने से शिि बढती है ।
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1 से 2 गाम अशगंिा चूणव को आँवले के 10 से 40 िम.ली. रस के साथ 15 ििन लेने से शरीर मे शिि आती है ।
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राित मे एक िगलास पानी मे एक नींबू िनचोडकर उसमे िो िकशिमश
िभगो िे । सुबह पानी छानकर पी जाये एवं िकशिमश चबाकर खा ले। यह अिभुत शिििायक पयोग है ।
सोतः ऋिष पसाि
न वमब र 2007, पृ ष 30.