Swasthya Amrit Trifla Rpaugust2008

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  • Words: 624
  • Pages: 3
सवासथय अम ृ त आयु वे द का अ नमोल उपहार "िि फला " आयुषय को िसिर रखने वाला आँवला, मातव ृ त रका करने वाली हरे व शरीर को िनमल म

करने वाला बहे डा – इन तीन शष े औषिियो के संयोग से बना ििफला आयुवद े के पाचीन मुिनयो दारा मानव-जाित को पदत एक अनमोल उपहार है । यह शरीर मे िसित िवकृ त कफ, आमदोष व मल का पाचन एवं शोिन करके

शरीर को िनमल म तिा समिम बनाता है । बुिि व इििियो

(िवशेषतः नेिो) का जडतव नष करके उिहे कुशाग बनाता है । यह वािक म य व वयािियो को रोकने वाला शष े रसायन, उतकृ ष जंतुनाशक (एिििबायोििक व एिििसेिििक), नेिजयोितविक म , मल

िनससारक, जठराििन – पदीपक व कफ िपत नाशक है । संयिमत आहार-िवहार के साि ििफला

का सेवन करने वाले वयिियो को हदय रोग, उचच रिचाप, मिुमेह, नेिरोग, पेि के िवकार, मोिापा आिद होने की संभावना नहीं होती। यह 20 पकार के पमेह, िविवि कुषरोग, िवषमजवर व सूजन को नष करता है । अिसि, केश दाँत व पाचन-संसिान को बलवान बनाता है । इसका िनयिमत सेवन शरीर को िनरामय, सकम व फुतीला बनाता है ।

पूजय बापू जी भी पितिदन इसका सेवन करते है ।

अनु कम नेि पकालन। गणडू ष-िारण। मािा साविानी ििदोषशामक एवं पकोपक

चूण म बनान े की िविि ः सूखा दे शी आँवला, बडी हरड (हरे ) व बहे डा लेकर गुठली िनकाल दे । तीनो समभाग िमलाकर महीन पीस ले। कपडछान कर काँच की शीशी मे भरकर रखे। औष िी -पयोग

नेि -पकालनः

एक चममच ििफला चूणम रात को एक किोरी पानी मे िभगोकर रखे। सुबह कपडे से छान कर उस पानी से आँखे िो ले। यह पयोग आँखो के िलए अतयित िहतकर है । इससे आँखे सवचछ व दिष सूकम होती है । आँखो की जलन, लािलमा, आँखो से पानी आना तिा आँख आने पर नेिपकालन से खूब फायदा होता है ।

गणडू ष -िारण (कुलल े करना ) ििफला रात

को पानी मे िभगोकर रखे। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुह ँ मे भर

कर रखे। िोडी दे र बाद िनकाल दे । इससे दाँत व मसूडे वि ृ ावसिा तक मजबूत रहते है । कभी-

कभी ििफला चूणम से मंजन करना भी लाभदायी है । गणडू ष-िारण से अरिच, मुख की दग म ि व ु ि मुँह के छाले नष हो जाते है ।

घी (गाय का) शहद के िविमशण (घी अििक व शहद कम) के साि ििफला चूणम का सेवन

आँखो के िलए वरदानसवरप है । संयिमत आहार-िवहार के साि इसका िनयिमत पयोग करने से मोितयािबंद, काँचिबंद ु, दिषदोष आिद नेिरोग होने की संभावना नहीं होती। वि ृ ावसिा तक आँखो की रोशनी अचल रहती है ।

ििफला के काढे से घाव िोने से एलोपैििक एिििसैिििक की आवशयकता नहीं रहती। घाव जलदी भर जाता है ।

ििफला के गुनगुने काढे मे शहद िमलाकर पीने से मोिापा कम होता है । मूिसंबंिी सभी िवकारो व मिुमेह (डायिबििज) मे ििफला का सेवन बहुत लाभदायी है । रात को गुनगुने पानी के साि ििफला लेने से कििजयत नहीं रहती। मािाः

2 से 4 गाम चूणम दोपहर को भोजन के बाद अिवा रात को गुनगुने पानी के साि

ले। रात को न ले सके तो सुबह जलदी भी ले सकते है । साविानीः

दब म , कृ श वयिि तिा गभव म ती सी को एवं नवजवर (नये बुखार) मे ििफला ु ल

यिद दि ू

का सेवन करना हो तो दि ू व ििफला के सेवन के बीच 2 घंिे का अितर रखे।

का सेवन नहीं करना चािहए।

िि दोषशामक एव ं पकोपक

फलो मे खजूर, आँवला, हरड (हरे ), पका दे शी आम, मीठा अनार, मीठे अंगूर, पका पपीता,

पकी इमली ििदोषशामक है । कचचा आम व खटिे अनार ििदोषपकोपक है । (अनुकम) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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