उपासना अमत ृ चतुमास ा का माहातमय
'सकनद पुराण' के बह खणड के अनतगत ा 'चातुमास ा य माहातमय' मे आता है ः
सूया के कका रािि पर िसित रहते हुए आषाढ िुकल एकादिी से लेकर काितक ा िुकल
एकादिी तक वषाक ा ालीन इन चार महीनो मे भगवान िवषणु िेषियया पर ियन करते है । शी
हिर की आराधना के िलए यह पिवत समय है । सब तीिा, दे वसिान, दान और पुणय चतुमास ा आने पर भगवान िवषणु की िरण लेकर िसित होते है । जो मनुषय चतुमास ा मे नदी मे सनान करता है वह िसिि को पाप होता है । तीिा मे सनान करने पर पापो का नाि होता है ।
जो मनुषय जल मे ितल और आँवले का िमशण अिवा िबलवपत डाल कर उस जल से
सनान करता है , उसमे दोष का लेषमात भी नहीं रह जाता। चतुमास ा मे बालटी मे एक दो िबलवपत डालकर ॐ नमः ििवाय
का 4-5 बार जप करके सनान करे तो िविेष लाभ होता है । इससे
वायुपकोप दरू होता है और सवासथय की रका होती है ।
चतुमास ा मे भगवान नारायण जल मे ियन करते है , अतः जल मे भगवान िवषणु के तेज
का अंि वयाप रहता है । इसिलए उस तेज से युक जल का सनान समसत तीिो से भी अिधक
फल दे ता है । गहण के िसवाय के िदनो मे संधयाकाल मे और रात को सनान न करे । गमा जल से भी सनान नहीं करना चािहए।
चतुमास ा सब गुणो से युक उतकृ ष समय है , उसमे शिापूवक ा धमा का अनुषान करना
चािहए। यिद मनुषय चतुमास ा मे भिकपूवक ा योग के अभयास मे ततपर न हुआ तो िनःसंदेह उसके हाि से अमत ृ िगर गया। बुििमान मनुषय को सदै व मन को संयम मे रखने का पयत करना चािहए कयोिक मन के भलीभाँित वि मे होने से ही पूणत ा ः जान की पािप होती है ।
परदवय का अपहरण और परसीगमन आिद कमा सदा सब मनुषयो के िलए विजत ा है ।
चतुमास ा मे इनसे िविेषरप से बचना चािहए।
चतुमास ा मे जीवो पर दया करना िविेष धमा है तिा अनन जल व गौओं का दान,
पितिदन वेदपाठ और हवन – ये सब महान फल दे ने वाले है । अननदान सबसे उतम है । उसका न रात मे िनषेध है न िदन मे। ितुओं को भी अनन दे ना मना नहीं है ।
चतुमास ा मे धमा का पालन, सतपुरषो की सेवा, संतो के दिन ा , सतसंग-शवण, भगवान िवषणु
का पूजन और दान मे अनुराग दल ा माना गया है । ु भ
जो चतुमास ा मे भगवान की पीित के िलए अपने िपय भोग का पयतपूवक ा तयाग करता है , उसकी तयागी हुई वसतुएँ उसे अकयरप मे पाप होती है । जो मनुषय शिापूवक ा िपय वसतु का तयाग करता है वह अनंत फल का भागी होता है ।
धातु के पातो का तयाग करके पलाि के पतो पर भोजन करने वाला मनुषय बहभाव को
पाप होता है । चतुमास ा मे ताँबे के पात मे भोजन करना िविेष रप से तयाजय है । चतुमास ा मे
काला और नीला वस पहनना हािनकारक है । इन िदनो मे केिो को सँवारना(हजामत करवाना) तयाग दे तो वह मनुषय तीनो तापो से रिहत हो जाता है । इन चार महीनो मे भूिम पर ियन,
बहचया का पालन, पतल मे भोजन, उपवास, मौन, जप, धयान, दान-पुणय आिद िविेष लाभपद है । चतुमास ा मे परिनंदा का िविेषरप से तयाग करे । परिनंदा को सुनने वाला भी पापी होता है । परिननदा महापाप
ं परिन नदा म हाभयम।्
परिन नदा म हद द ु ःखं न त सय ाः पात कं परम।् ।
"परिननदा महान पाप है , परिनंदा महान भय है , परिनंदा महान दःुख है और परिनंदा से
बढकर दस ू रा कोई पातक नहीं है ।"
(सकं .पु .बा .चा .मा . 4.25)
वतो मे सबसे उतम वत है – बहचया का पालन। बहचया तपसया का सार है और महान फल दे ने वाला है । इसिलए समसत कमो मे बहचया बढाये। बहचया के पभाव से उग तपसया
होती है । बहचया से बढकर धमा का उतम साधन दस ा मे यह वत ू रा नहीं है । िविेषतः चतुमास संसार मे अिधक गुणकारक है , ऐसा जानो।
यिद धीर पुरष चतुमास ा मे िनतय पिरिमत अनन का भोजन करता है तो वह सब पातको
का नाि करके वैकुंठ धाम को पाता है । चतुमास ा मे केवल एक ही अनन का भोजन करने वाला मनुषय रोगी नहीं होता। जो मनुषय चतुमास ा मे पितिदन एक समय भोजन करता है उसे
'दादिाह यज' का फल िमलता है । जो मनुषय मे चतुमास ा मे केवल दध ू पीकर अिवा फल खाकर रहता है , उसके सहसो पाप ततकाल िवलीन हो जाते है ।
पंदह िदन मे एक िद संपूणा उपवास करे तो वह िरीर के दोषो को जला दे ता है और
चौदह िदनो मे भोजन का जो रस बना है उसे ओज मे बदल दे ता है । इसिलए एकादिी के
उपवास की मिहमा है । वैसे तो गह ृ सि को महीने मे केवल िुकलपक की एकादिी रखनी चािहए िकंतु चतुमास ा की तो दोनो पको की एकादिियाँ रखनी चािहए।
चतुमास ा मे भगवान नारायण योगिनदा मे ियन करते है इसिलए चार मास िादी-िववाह
और सकाम यज नहीं होते। ये चार मास तपसया करने के है ।
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