Kavyaboth Kavita Sangraha By Nandlal Bharti

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  • Words: 14,755
  • Pages: 107
– रचनाकार http://rachanakar.blogspot.com ई-बक ु



तत ु . पाठ को वचालत फ़ॉट परवतत कया गया है , अतः वतनी क अश'(याँ ु संभा'वत ह-.

का.यबोध यबोध ( क'वतासं0ह )

1

नदलाल भारती

का.यबोध यबोध ( क'वतासं0ह )

नदलाल भारती अतरजाल तरजाल सं करण करणरण-2009

तकनीक सहयोग आजादकमार भारती ु 2

अनराग कमार भारती ु ु

स6पक पक

- आजाद द7प, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म ! दरभाष -0731-4057553 चलतवाता ू 09753081066 Email- [email protected]

http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com http://www.nandlalbharati.bolg.co.in

तथा तु वर ?या मांग,ू ?या ना मांग,ू मेर7 दशा तो दे ख ह7 रहे हो भु ॥ मांगने का 'वचार जगाया ह- तो, मांग लेता हंू ,दे दो भु !! उ6मीदD के ना कटे पर, आदमयत का जनन ू हर हाल रहे !! जीवन को ना घेरे तम, 3

समानता का सदा भाव रहे !!

वाथ का तमर ना मतFGट करे , हरदम Hदल मI,परमाथ का द7प जले !! वाणी मI सवास , ु धडकन मI कKयाण का वास रहे !! गर7ब क चौखट पर छाये रौनक, हरदम खशहाल7 क छांव रहे !! ु उदासी के बंजर मI ना भटके मन, सदाचार सदसाHहMय का साथ रहे !! 'वहस उठे कायनात, तन क माट7 मI ऐसा भाव भर दो !! भारती ?या मांगू भु तम ु से, अतयामी हो तम ु , बनी रहे समझ पर7 ू मझ ु मI, तथा तु कह दो !! नदलाल भारती 00

!! नरापद !! रात सो चक थी, ु मेर7 आंखD से नींद दरू थी !! रह रह कर करवटI बदल रहा था , हर तरफ से सगा भत ू कोई, 4

आंखे◌ा◌ं मI उतर रहा था !! म- आतंक से भयभीत था, लहू से रं गा खंजर हाथ मI था, गैर नह7 कोई अपना ह7 था !! Hदल मI लक रD का ताना बाना था, अब घरRदा उजाडने मI लगा था !! चहंु तरफा घेराव था, रSते से लहू रस रहा था !! भयभीत म-,वह म ु करा रहा था, मै◌ाजद ू तबाह7 का परा ू साजो समान था!! म- सलग रहा था, ु खद ु के तन के ताप से , 'वजयी मTा ु मI , वह तर बतर था जाम से !! बबाHदयD का शंख फूं क चका था, ु म- नरापद जाल मI फंस चका था !! ु रात चप ु थी,म- बेचैन था, कल से उ6मीद थी आज से डर था !! लहू का Gयास ताल ठDक रहा था, उ6मीदD के बंजर को भारती, आंसओं से सींच रहा था !! नदलाल भारती ू 5

00 कससे कहंू Hदल क बात यहां कांटD का जाल, 'वपमाद क Vबसात जहां !! बेआबW सXजनता, दज ु नD क महफल मI !! द7नताका ताYडव, आSवासनD क कायनात मI !! मानपD भांती नह7 !! ु को अमानपता ु मतलबी दनया को, ु मानवता रास आती नह7ं !! ?या कWं कससे कहंू भारती, पMथरD के सामने,नतम तक हो लेता हंू !! नदलाल भारती 000 जमाने ने Hदये ह- घाव बहत ु , रस रहा अभी भी खब ू !! Hदल चाहता ह-, तोड लंू तर?क के हर तारे !! 'वहस उठे माट7, हर तर?क गजरे होकर, ु द7न के Zारे !! 6

कम क लाठ[ हौशला साथ हहर द7न क तर?क अपना तो, यह7 \वाब है !! यक न ह- भारती मलेगी मराद ु I, जब माथे, दे वतK ु य इंसाना◌े◌ं का हाथ है !! नदलाल भारती

!! ]येय !! भरे जहां मI परायेपन क बेवफाई , मतलब का 'वप डंसती भेद क परछाई !! सामािजक Zे प क , आज के जग मI हौशला अफजाई आहत मन उMपीडन क ना सनवाई !! ु समता का द7वाना, समझौतावाद7 झक ु जाता बार बार उसलो ू का प?का, ईमान ना झका एक बार !! ु बेबस भेद भरे जहां मI, आशा ह7 जीवन का आधार बडे दद ढोये, 'वपमता ने छोपा है खार !! जीवन बना पतझड, ना `खला तकद7र का तारा 7

गम क राहI Vबछे आंस,ू बैर7 हआ जग सारा !! ु बंट गयी कायनात, भारती तडपे बेसहारा न घेरे भेद अब मानव उMथान रहे aयेय हमारा !! नदलाल भारती 000 कागा भी आज राग अलापने लगे ह- ! अस पर आंकने वाले, मसीहा बनने लगे है !! कैसे कैसे चेहरे ह- जमाने क भीड मI ! उसल ू क तो बाते, खेलते ह- गर7ब क भख ू से !! उसलD ू के मायने बदल गये ह- आज, तर?क बरसे खद ु के Zारे , सलामत रहे राज !! मय क मदहोशयां,मयखाने मI थाप दे रहे ! खदा ु क कसम भारती, यह7 तो तबाह कर रहे !! नदलाल भारती 00 आरजू है खदा ु तमसे ु काटD को भी भर दे रहनमाई से !! ु 8

ना धंसे वे उस पांव मI बढ रहे हो जा जन कKयाण मI !! कांटो ने तो फलD को संवार रखा है ू समाज के कांटD ने तो तबाह कर रखा है !! मश'वरा है , हमार7 समाज के कांटो को साज दो आदमयत क सरbा का भार, ु उन पर डाल दो !!

नदलाल भारती

00 हS ु न के सौदागरD ने, मयादाओं को रौद रखा है ! वे भी है ,एक औरत क दे न, 'वसार रखा ह- ! बेपरदा बदमजािजयां करता सौदागर! दबा कज तले िजसके, सौदा करता उसी का सौदागर ! 00 नार7 मि? ु त को \ु◌ाला सलाम, चहंु ओर तर?क यह7 है पैगाम !! नार7 अि मता पर, 9

नदलाल भारती

आज खतरा मडराया है आधनकता का Vबगडा Wप ु नखर आया है !! तन के व d कम होने लगे है कह7 अ(बदन तो, कह7 तंग होने लगे है !! मि? ु त का मतलब, अSल7लता ?यो हो रहा है आधनकता .यभचार ?यD बन रहा है !! ु अरे करो 'वचार कैसी है ए लाचार7 पिSचमी सeयता का जाल, बेबसी नह7 हमार7 !! नदलाल भारती 00 जीवन मI सखद उजास बांटते रHहये ना ु जाने कस मोड पर सांस साथ छोड दI !! नदलाल भारती 00

नमन कर लो खौफजदा कह रहे है , कौन है वो, रोशनी पर कारा पोत रहा है जो !! 10

आवाज आती ह- मंद सी, होगा कोई अमन शाित का 'वTोह7, या वाथf फरे बी होगा कोई या कोई उमाद7 अमानप ु आदमयत के माथे, गारा छोप रहा है जो !! आवाज पन ु गंज ू ती है, अरे अमन शाित के दSु मनD, 'वTोह से फटे ू गी gचंगार7 जब राख कर दे गी सारे वजद ू तब , फरे ब से खडी इमारत को भी !! Mयाग दो अमानवीय कM ृ य, जमाने को सखद एहसास करा दो, ु सच हर लब पर होगा एक वर, वो कौन है दे वता भारती, रोशन जहां करने वाला, नमन कर लो ! नदलाल भारती

'वष 'व क खेती नेक पर कहर बरस गया है सगा आज बैर7 हो गया है !! हक पर जोर अजमाइश होने लगा है 11

लहू से खद ु का आज संवारने लगा है !! कभी कहता दे दो,नह7 तो छन लंूगा कहता कभी सपने मत दे खो, वरना आंखे फोड दं ग ू ा !! मय क हाला मI डबा ू , कहा उसको पता Vबन आंखD के भी मन के तWवर पर, सपनD के भी पर लगते ह- !! हआ बैर7 अपना, ु िजसको लेकर बोया था सपना !! धन के ढे र बौराया मद चढा अब माथ सकन का यौवन ु कंस का अभमान हआ साथ !! ु Vबसर गयी नेक दौलत का भार7 द6भ

वाथ के दाव नेक घायल, छाती पर गम !! नेक क गंगा मI ना घोलो जहर ना करो रSते के संग हादसे दे वता भी तरसे मानव जीवन को भारती, मतलब बस ना करो 'वष क खेती 12

डरा करो खदा ु से !! नदलाल भारती

!!लोक !!लोक मैdी!! ी!! ले◌ाकमैdी क बहारे ,Vबती कार7 रातI Vबहसा जन जन,छायी जग मI उिजयार7 नया सबेरा नई उमंग,े जी'वत मन के पात, फेलने लगा अब लोकमैdी का काश! सदभावना का उदय,मन हआ चेतन ु जातधम क बात नह7, जग सारा हआ नकेतन ! ु माय नह7 जातधम का समर जयगान सदभावना का, Vबहस उठे गा जीवन सफर ! 'वSवबधुMव क राह, नह7 होगा अब मन `खन ! ना होगा भेदभाव,ना होगा आदमी भन ! भारती लोकमैdी का भाव 'वSव एकता जोडेगा ना गैर ना बैर हर वर, सदभावना क जय बोलेगा ! नदलाल भारती 13

॥काम॥ उ]दार का काम कWंगा । बेबस क ललकार बनंग ू ा ॥ ना मजहब के नाम लडंू गा । ना कसी से रार ठानंूगा ॥ अMयाचार के `खलाफ चलंग ू ा । हर आतंक का 'वरोध कWंगा ॥ gगरD को उठाने का काम कWंगा । द7न द`खयD क आवाज बनंूगा ॥ ु जK ु मD सतम से ना डWंगा । दबे कचलD के साथ हर हाल चलंग ू ा ॥ ु सािजशD का पदाफाश कWंगा । हर बैर को मटाने का काम कWंगा ॥ आदमी हंू आदमी के लये जीउ◌ू◌ंगा । द7न क आस भारती हर ऐसा काम कWंगा ॥ नदलाल भारती

!! माट7 का घर !! एक एक टोकर7 माट7 को जोडकर खडा था एक घर ! जला करता था, 14

नहा सा द7या जहां डयोढ7 पर ! िजसे सब पहचानते थे छोटा बडा अमीर गर7ब भी ! मां क तप या और, Mयाग के बलबते ू खडा था यह घर ! घर के सकन ू मI Sशामल था बाप का पWपाथ और, ु रSते का सोधापन भी ! दनया क चकाचौध से दरू ु पहचा जा सकता था जहां ु कiची सडको या पगडिYडयD से होकर ! जहां उगता ह- सरज पहले आज भी ! ू उतरा करती थी, खशी ु के झोके क हवा ! तंगी मI भी जहां होता था मां का हाथ दवा ! मां क तप या और , बाप के पWपाथ से खडे घर पर ! ु कागा jिGट पड गयी, टकडे टकडे हो गया ु ु माट7 के ढे ले◌ा◌ं पर भी कkजा हो गया! रSते के ह7 लोगो ने आतंक मचा Hदया ! 15

रोट7 रोजी को तलाशता मै भी, पहंु च गया गावं से दरू बहत ु दरू इंट पMथरD के Sशहर मI ! एक आशयना मैने भी खडा कर लय ! अपनी साठ साल तक क उl को बेचकर ! आसपास जहां लोग तो बसते ह-, पर िजदा लाश होकर ! बेचैन हो जाता हंू रह रह कर ! ढढता हंू , ू मानवीय रSतो क सग ु ध और, अपनेपन का एहसास भी ! नह7 मलता ह- कह7ं माट7 के घर सी छांव नह7 सोधेपन का भाव पराने गांव सा! ु mट पMथरD के Sशहर मI भारती कैद हो गया हंू जैसे, बडी बडी इमारतो से घरे परnम के mट पसीने के गारे क नींव पर ट7के अपने ह7 घर मI !! नदलाल भारती

16

!! जSन !! म ु कराने क लालसा लये दर दर भटक रहा हंू ! हाल ए Hदल बयान करने को तरस रहा हंू ! दद आंकने वाला नह7 मल रहा कोई ! दद नाशक के बहाने, रची जाती सािजशI कोई ना कोई ! यहां रात के अंधIरे मI अटटहास करता डर ह- ! Hदन के उजाले मI बसा खौफ ह- ! र?त रं िजत दनया के आद7 हो रहे ! ु कह7 आदमी, तो कह7 आदमयत के कMल हो रहे ! दद के पहाड तले दबा, \वाHहशD को हवा दे रहा ! आतंक से सहमा भारती, सद कोहरे से छन रह7, धप ू का जSन मनाने से डर रहा !! नदलाल भारती

!! तलाश !! क'वता क तलाश मI फरता हंू खेत ि\लहान बरगद क छांव 17

पोखर तालाब बढे ू कंु एं सामािजक

पतन भख ू बेरोजगार7 मI झांकता हंू ! मन क दर7 आदमी क क मजबर7 ू ू मI ताकता हंू ! तलाशाता हंू क'वता खाद7 और खाक मI ! दहे ज क जलन अ6बर अ]द बदन, अMयाचार के आतंक मI ! मक के o ू पशओं ु ु दन आदमी के मरदन मI ! उ◌ुचे पहाडD नीचे सममतल मैदानD मI ! कहां कहां नह7 तलाशता क'वता को ! खद ु के अदर गहराई मI

उतरता हंू क'वता को `खल`खलाता हआ पाता हंू ! ु सच भारती यह7 तो ह- वह गहराई, जहां से उपतजी ह- क'वता Hदल क गहराई आMमा क उ◌ुचाई से नदलाल भारती

!! नया साल !! नया साल तेरा आना मंगलकार7 हो,

वागत मI Vबछ[ ह- आंखे अभनदन है त6 ु हारा ! नव भात नव मास पहल7 जनवर7 है साज मौसम क गनगनाहट का यह7 है राज ! ु ु 18

मेरा भी, फक ह- मेरे तेरे मI तू हर साल नया रहता ह- ! म- हाडफोडता, रोट7 कपडा मकान ह7 नह7, दहे ज उMपीडन,महं गाई,रSवतखोर7 टयशनखोर7 से ू जझता ! ू gचताओं क gचता मI सलगते हए ु ु , मेर7 उl एक और बरस कम होजाती है ! माट7 क काया थकने लगी है , अरमान डबते सरज क भांत होने लगे है ! ू ू बेबस नहारता जमाने क भीड मI, मिS ु कलD के पहाड तले◌े दबा ! अब तो उपासनाओं का भी असर नह7 होता , कोई दे वता गट नह7 होता ! पापाण पजते पजते पापाण हो गये है , ू ू आदमी आदमयत का चोला छोड रहे है ! gचताओ क आंधी का Sशोर है , आदमी आज का बडा कमजोर है ! से◌ाचता हंू , म- भी जSन मनाउ◌ु परतु सोचा कहां होता ह- ! 19

धम समाज और अथ क य] पर, ु दभम ू रसते ज\म को सहलाता, बढा ू हो जाता हंू एक साल और हर नये साल पर ! म- तो आदमी हंू ना भारती, तू कैसे बढा ू हो सकता है तू तो समय है ! तेरा आना मंगलकार7 हो, अभनदन बधाईयां नया साल

नदलाल भारती

पMथर थर के घर भान नह7 कौन ?या गन ु रहा

होगा,

उKलास क बयार से Hदल 'वहस रहा होगा ! खदा ु क पौध के फल ू ह- सब, पर हर को

खशब ु ू नह7 दे ता !

जमाने क भीड मे◌े◌ं , कभी कभी कोई दे वता Wप धर लेता ! खोजती आंखI , कोई महद7 सा रं ग नह7 छोडता ! I उMसवी बाजार तो ह- पर अपनापन नह7 होता ! उ6मीद का दरया खद लगा ह- ! ु मI डबने ू आदमी क भीड मI , आदमी अकेला लगने लगा है ! 20

ढह रहे दरख हर ओर छांव कहां होगी ! बाजारवाद क र मD मI, सोधेपन क बात कहां होगी ! बदलते व?त मI नेक का भाव gगर रहा ! आदमी आज खद ु को \ु◌ादा बन रहा ! Vबकाउ◌ू ह- सब कछ ु , पर सतोप नह7 Vबक रहा ! बढ7 ू होती सांस को, उl का इतजाम नह7 हो रहा ! महकती रहे कायनात दआ है हमार7 ! ु ना चभे ु कांटे कोई वग सी हो धरा हमार7 ! भारती धल ! ू क ना उठे आंधी, महक उठे फलवार7 ू पMथरD के घर से, उठे बसत कामना ह- हमार7 ! 000 मिS ु कल के HदनD मI, कसी दो त ने मदद कया ह- ! यह मदद, कज मान ल7िजये ! दान नह7 यह कज है, कज सम`झये ! वापस करना धम मान ल7िजये ! 21

नदलाल भारती

भारती दो ती है कायम रखना अगर, दो ती के फज पर खरा उतरये ! नदलाल भारती 00 मबारक हो, ु यंू फल ू सा `खल`खला जाना ! ठहर7 रहे ए, जडता रहे नत नया तराना ! ु सन ू सा जीवन नाचता रहे भौरा ! आहट से, `खल`खला उठे घरRदा ! मबारक हो, ु हर रात सहानी बन जाये ! ु जीवन क सग ु ध स भारती◌े, व?त गमकता रह जाये ! नदलाल भारती 00 पीर क महफल मI ,ज\म खद ु का , खद ु ह7 सहला लेता हंू । पल पल रं ग बदलती रगो का,◌े कागज पर उतार लेता हंू ॥ नदलाल भारती 00 उl गजर जायेगी यDHह ,उ6मीद के सहारे । ु 22

मरझायी िजदगी को , ब( ु ु क तरह छांव Hदया करो Gयारे ॥ नदलाल भारती 00 िजदगी के सफर मI नशान छोडते जाइये, ताक आने वाला मसाफर पदgचह पर चल सके ! ु नदलाल भारती 00 आज म ु कराने को जी चाहता है मबारक हआ Hदन आज का ु ु गगन है मगन साथ आपका फलD का संग सभी को सहाता है ू ु आज म ु कराने को जी चाहता है

नदलाल

भारती 000 माट7 क काया हमार7 त6 ु हार7 फज का बोझ है भार7 औरD के भी हक है नह7 कोई Sशक है ! कसी को आना कसी को जाना है कम क डगर पर याद छोड जाना है ! नदलाल भारती 000 23

स6भावनाये दरू दरू तक राह Hदखाती है सच काम भी औरD के बहत ु आती है , संवेदनाये वेदना बन जाती है तब महफल मI घाव पाती है जब सरे आम 'वपपान कराया जाता है जाम क थाप पर बदनाम कया जाता है ?या नाम द ू ऐसे अफसानD को खदा ु समझ दे

बेगानD को

मेरा ?या भारती शkदD क धार, जीवन जहर पी जाउ◌ू◌ंगा बेगानD के बंजर को अपनेपन का नाम दे जाउ◌ू◌ंगा

नदलाल भारती

00 खौफ खा जाता हंू ,काल7 परछाईयां दे खकर । खदा ु खैर करे ,जी लेता हंू ,औरD क खशयां ु दे खकर ॥ नदलाल भारती 00 खाक \वाHहशD के जंगल को, नीर भर7 आंखD से सींचा करो, 24

एक मसाफर है हम, ु सदभाव के बोल तो बोल Hदया करो ॥ नदलाल भारती 00 कायनात को भान है ! आदमी वह7 होता महान है ! जड से ! ु जाये जो गैरD के दखदद ु नहा उठे समानता के भाव से ! ईसा ब] ु द याद है जी'वत िजनक फरयाद है ! भारती सदकम क राह आदमी महान होता है ! सच खन ू से बडा रSता दद का होता है ! नदलाल भारती 000 बgगया के फल ू सभी अiछे , फलेफू ले भरपरू महके, बसत क लय,कोकला क सरताल , ु म से लाल ु कराते रहो गलाब ु सखद कल हो त6 ु ु हारा तर?क से त6 ु हार7 'वहस उठे ,जग सारा ! भारती स ु दर बgगया के तम ु ,फल ू हो अiछे अiछे , 25

द◌ु ु आ आज, सलाम त6 ु हारे कल को ये बiचे॥ नदलाल भारती 00 हर आखD का पढा है हमने दा तान नह7 जानना चाहा कसी ने !! नगाहD को पढकर जो बीज बोये ह-, टटे ू अरमान सच हमने बहत ु रोये ह- !! नदलाल भारती 00 क मत एक कKपना तो हपरतु आMमक शाित का मलम d भी ह- ! ू नदलाल भारती 00 कम उ◌ुचाईयां तो दे सकते ह- बशतp शोषण का िSशकार ना हो ! नदलाल भारती 00 दद कतना ?यो ना हो भार7, पलको को नम ना क िजये ! रात चाहे िजतनी भी हो कार7,, उ6मीद के उजास से बसर कर ल7िजये ! नदलाल भारती 26

00 आप योHह म ु कराते रहे ,अभलापा

है हमार7 ,

दआ क िजये,कलम थामI,िजदगी कट जाये ु हमार7 ॥ नदलाल भारती 00 00 'वष क दरया मI रहकर भी जी लेता हंू यादD के झरोखो मI दद , आज भी पी लेता हंू । नदलाल भारती ।!

गहार !! ु

जानता हंू पहचानता हंू, नेक नयत,दनया बदलने का जXबात, ु फज पर कबा ु न होने क ताकत, एक बाप क ! बाप ह7 तो है ,मेहनत क कमाई से जो, सनहरा कल दे सकता है , ु खद ु के परवार और दे श को ! अफसो◌ेस यह7 बाप,जब बहक जाता है, सरा ु क धार मI बह जाता है ! खद ु इतना नीचे gगर जाता है , 27

पMनी को आंस,ू औलाद को खौफनाक कल, खद ु धरती का बोझ बन जाता है ! थकते है लोग सराखोर7 पर, ू ु कसते ह- .यंग ,परवार क मजबर7 ू पर !

ु◌ाराखोरो से ह- गहार भारती ु हाथ ना लगा◌ाओ नाgगन को, डंस लेगी पीHढयD क बहार

नदलाल

भारती

॥खदाई॥ ु हे भो त6 ु हारे इंसान को ?या हो गया । संवेदना से दरू बहत ु दरू चला गया ॥ बहाने लगा ह- उमाद मI डबा ू खन ू आदमी का। कोई कह रहा Hहद ू तो कोई मसलमान का ॥ ु आदमी कर ]वस अमन नफरत बो रहा । घोल रहा जहर एकता क डोर तोड रहा ॥ मददे तो बहत ु ु है छे ड दो लडाई । भखमर7 बेरोजगार7 क बेवफाई ॥ ू ना हे ◌ा आदमी क `खलाफत ना हो लडाई । अशbा गर7बी क थाओ क डंस रह7 बराई ॥ ु ु होगा धरती का वग चमन हमारा । जब आदमी बराईयो से पा जायेगा छटकारा ॥ ु ु 28

भारती करे दहाई छे ड दो आर पार क लडाई । ु भख के `खलाफ चमक उठे गी त6 ू बराई ु ु हार7 खदाई ु ॥ नदलाल भारती

॥ पैगाम॥ िजदा हंू तो रोशन gचराग है । गमे Hदल पल पल सलगती आग है ॥ ु िजदगी दे ने वाले तेर7 करामात का ?या राज है । कह7ं मेला कह7 झमेला कह7 उदास आज

है ॥

कह7 रोना कह7ं गंूज रहा गाना कह7 अंधेरा ह7 अंधेरा । कह7 बदनसीब के भाqय का नह7 हो रहा सबेरा ॥ ससक रहा बीच बाजार ना बन रहा सहारा कोई मेरा । हे िजदगी दे ने वाले ?या दोष हो गया मेरा ॥ िजदगी एक \वाब, ह- 'वSवास मेरा । तडपना,ठोकरे खाना ?या यह7 नसीब है मेरा ॥ बस जी रहा हंू अरे सन । ु ले मेर7 पकार ु ते◌ेरे Vबछाये जाल मI नह7 गंज ॥ ू रह7 गहार ु ?या इसीलये ब\शा िजदगी बेहाल रहंू । तेरे बदD के बीच तडपता हर हाल रहंू ॥ सन वाला है मेरा । ु लो तम ु यहां नह7 कोई सनने ु 29

िजदगी है तेर7 ब\शीश तमको पैगाम है मेरा ॥ ु नदलाल भारती

॥याद॥ आ`खर मेर7 याद फर ना आयी । परत दर परत \वाHहशे Wप ना पायी ॥ ?या भल नसीब दर7 ू हई ु ू बनायी। ु मझसे पल पल पर छल पग पग पर Wसवाई । ु अरे कोई बता दे , ये आग कब बझाई ॥ ु Hदल टटा । ू रSते का धागा कर रहा दहाई ु बांटा दनया वालो ने,?यो ऐसी महर लगायी ॥ ु ु कोरे मन से झांका दनया लगी परायी । ु आज फर Hदल ने नयी घाव है पायी ॥ भटका दर दर बहारो ने भी ज\मे बरसाई । ना हआ भाqय का सबेरा काल7 रात छायी ॥ ु ना आसंूओ का मोल दनया लगी परायी । ु द7न कराहे नखर उठे दर7 ू क परछायी ॥ दद क दरया मI डबा ू द7न कैसी तकद7र पायी । आ`खर मेर7 याद फर ना आयी ॥ नदलाल भारती

।। बौनी कसम॥ I 30

गर7बो क ब ती मI द7या जगन ु ू होता है । वहां अंgधयारे कनक का उिजयारा होता है ॥ माथे gचता रोम रोम gचता मI सलगते है । ु Hदल मे गंज ू ती आह बेवस सांस भरते है ॥ नह7 मला मसीहा,माया क दौड मI सब भागे । बेबसो क आंखे ललचाई,कोई जा रहा आगे ॥ झोपrडयD को कहां दे खता महलो मI रहने वाला । माना मसीहा पर कहां वो तो शोपण करने वाला ॥ थक गया गर7ब जोह जोह कर बांटे । ना पलट7 क मत कटती 'वपदा क रातI ॥ बै◌ानी हई ु कसमे भारती 'वसर जाते सारे वादे । तज नज मोह गढ काल के गाल सनहर7 यादI ॥ ु नदलाल भारती

॥मWभम ू ॥ बनी िजदगी मWभम क सेज अ?स बांट रह7 ू दनया । ु kे◌ाकरार Hदल खSु बू के फांक बरसने लगी है अं`खया ॥ कैसी चकाचौध डंसने लगी ह- जमाने क खाईयां । मWभम क सेज सजने लगी है तहाईयां ॥ ू 31

व?त के समदर उमडने लगी है आंgधयां । सजने लगी है काम oोध क दसवारयां ॥ ु ु बंट गये अ?स िजदगी के,चभती Wसवाईयां । ु ु संवरे थे कछ सपने अब उजाडने लगी ह- आंgधयां ॥ ु उl भागे द7या सा \वाब बसा Hदल क गहराईयां । खाक िजदगी,राख मI जोडता जीने क लrडयां ॥ जेहनो मI भरा करार गढता उिजयारे क कलयां । कायनाते \वाब चले साथ छं ट जाये आंgधया ॥ नदलाल भारती

॥मर रहा आदमी॥ मर तो रहा आदमी यहां रSते नाते कहां मरते है । रSते तो अजर अमर है । जीवन का Hठकाना bण कर का नह7 है । रSता है तो आदमयत िजदा है । आदमयत िजदा है तो आदमी सeय वाशदा है । रSता जब टूट जाता ह-,आदमी आदमयत से Vबछड ु जाता है । रSते ह7 तो आदमी को सामािजक ाणी बनाते है । 32

अiछे बरेु क पहचान करवाते ह- । आदमी और आदमयत का sान करवाते है । रSते तो आज भी अमर है । शर7र ह7 तो नSवर है । सच मर रहा आदमी रSते नाते नह7 मरते है । आओ अनSवर रSते को सदGयार क महक दे दे । ?यDक रSते नह7 मरते भारती, 6रता ह- तो बस आदमी । !! नरापद !! रात सो चक थी, ु मेर7 आंखD से नींद दरू थी !! रह रह कर करवटI बदल रहा था , हर तरफ से सगा भत ू कोई, आंखे◌ा◌ं मI उतर रहा था !! म- आतंक से भयभीत था, लहू से रं गा खंजर हाथ मI था, गैर नह7 कोई अपना ह7 था !! Hदल मI लक रD का ताना बाना था, अब घरRदा उजाडने मI लगा था !! चहंु तरफा घेराव था, रSते से लहू रस रहा था !! 33

नदलाल भारती

भयभीत म-,वह म ु करा रहा था, मै◌ाजद ू तबाह7 का परा ू साजो समान था!! म- सलग रहा था, ु खद ु के तन के ताप से , 'वजयी मTा ु मI , वह तर बतर था जाम से !! बबाHदयD का शंख फूं क चका था, ु म- नरापद जाल मI फंस चका था !! ु रात चप ु थी,म- बेचैन था, कल से उ6मीद थी आज से डर था !! लहू का Gयास ताल ठDक रहा था, उ6मीदD के बंजर को भारती, आंसओं से सींच रहा था ! नदलाल भारती ू

!! कैसा धम !! आजकल शहर खौफ मI जीने लगा है , कह7 Hदल तो , कह7 आशयाना जलने लगा है ! आग उगलने वालD को भय लगने लगा है , तभी तो Sशहर का चैन खोने लगा है ! धम के नाम पर लहू का खेल होने लगा है , ससकयां थमती नह7, 34

तब तक नया घाव होने लगा है ! कह7 भरे बाजार , तो कह7 चलती tे न मI धमाका होने लगा है , आ था के नाम पर , लहू कतरा कतरा होने लगा है ! कैसा धम,धम के नाम आतंक होने लगा है , लहलहान कायनात धम बदनाम होने लगा है ! ू ु आसंओ का दरया, कराहने का शोर पसरने लगा है ू , धम के नाम बांटने वालो का, जहां रोशन होने लगा है ! आसंओ को पDछ भारती , ू आतंकयD को ललकारने लगा है भारती धम सदभाव बरसाता , कMल ?यD होने लगा है ! आजकल शहर ,खौफ मI जीने लगा है भारती 00

आज जैसा पहले तो न था , हं स रोकर भी बेखौफ सो लेता था । मौज मI सब का Gयार , 35

नदलाल

सब मI बांट दे ता था शायद तब बचपन था । उl ?या बढ7, फज के पहाड के नीचे आ गया हंू, । तमाम मिS ु कलD से नपटने के लये, उl का बसत

बेच चका हंू । ु

उl बच I कर भी, टटे ू \वाब मI बसर कर रहा हंू , रोट7 आंसओं से गील7 कर रहा हंू । ू अभाव क gचता पर भी जी लेता हंू, जK ु म का जहर पी लेता हंू । उ6मीदD के दम,दम भर लेता हंू । अस क धार पर चल लेता हंू । पेट क बात है , तभी तो हर दं श झेल लेता हंू । सच मानो भारती,

वग सी दनया मI रहकर भी, ु नरक भोग लेता

हंू ।

नदलाल भारती

00 बात क बात ना होती, म- कौन हंू , 36

भान न होता । भान न होता तो,मान न होता, सच मान न होता तो, तालकात न होता । नदलाल भारती ु 00 पीर क महफल मI ,ज\म खद ु का , खद ु ह7 सहला लेता हंू । पल पल रं ग बदलती रगो का,◌े कागज पर उतार लेता हंू ॥ नदलाल भारती 00 उl गजर जायेगी यDHह , ु उ6मीद के सहारे । मरझायी िजदगी को , ु ब( ु ,महावीर क तरह छांव Hदया करो Gयारे ॥ नदलाल भारती 00 आप योHह म ु कराते रहे , अभलापा

है हमार7 ,

दआ ु क िजये,कलम थामI, िजदगी कट जाये हमार7 ॥ 00 37

नदलाल भारती

॥ i◌ाभन ु◌ाभन ॥ 6े◌ार7 तकद7र का समन ना `खला ु कम के दामन घाव ?या मला । ये तमने ?या कर Hदया, ु भर7 महफल मI एक और नया घाव दे Hदया । हम इतने बदनाम ना थे कभी, पसीने से Gयास बझाने क आदत है मेर7, ु आज भी कायम हंू , सीने मI ह- घाव द7 हई ु तेर7 । म- घाव के बदले घाव नह7 दे ता, नफरत बोना मझे ु आता नह7 चला था समन क आस मI भारती, ु अब तो चभन मI भी म ु ु करा लेता

नदलाल

भारती

॥ द7न ॥ मेर7 क मत को ?यो दोप दे रहा जमाना, याद नह7 जमाने को हक हजम कर जाना । सािजश क Hह सा है मेर7 मजबरयां , ू पी लेता हू ये 'वप कस लेता हंू तहाईयां । रार नह7 ठानता म-, खैरात चाहता ह7 नह7, 38

हाड को नचोडकर दम भर लेता हंू तभी । हाड खद ु का नचोडना आता नह7, सच तब ये दनया वाले जीने दे ते नह7 । ु सारे आम सौदा होता जहां चाहते बेचते वह7 । खदा मजदरू हो कर रह गये । ु क शuर ु खद ु ना Vबके nम बेचकर जी गये । जमाने से रं ज नह7 तो फo कैसा, जमाने क चकाचौध मI भारती, जी लेता हंू द7न होकर भी द7नदयाल जैसा नदलाल भारती 00 हसरतD के दामन घाव मला,म- कसरवार नह7, ू हमने लहू को पानी बनाकर सींचा, कम क ?यार7 ?यार7,छल मले, तफल क जगह, मझे ु हकदार दि6भयD ने माना ह7 नह7 ॥ नदलाल भारती 00

॥गांव क ओर ॥ आओ चले गांव क ओर, 39

जहां बसता ह- माट7 मI सोधापन, जन समन रचता अपनापन । ु मयादा के माथे पKलू सजता, रSतो मI नेह बरसता । गांव जहा पहले सरज उगता, ू अgधयारे मI जगन ु ू गरजता । पानी मI मठास पवन मI सग ु ध बहता, गांव वह7 जग िजसे वग कहता । शहर मI बह चल7 आंधी पछवाई ु वहां बसती आज भी ह- परवाई । ु भारती मयादा मI लपटा गांव वग ह- अपना , वहां झरता सोधापन झराझर, गांव का ?या कहना

नदलाल भारती

00 गमD के दौर ह-,मेरा ?या कसरू, हालात के सताये हो गये मजबरू ॥ छांव क आस, धप ू मI बहत ु तपे हजरू , बदक मती हमार7 काटI मले भरपरू ॥ 'वपवाण का सफर,मान बैठा द तरू , आसओ का पलकD से खेलना, ू तकद7र बन गया हजरू ॥ 40

टटे ू हए ु \वाब संग भारती उ6मीद से खडा हंू बहत ु दरू , गमD के दौर ह-,मेरा ?या कसरू

नदलाल

भारती 00 मेर7 गल7 मI कभी कभी आया करो द7न क डयोढ7 पर पांव पखारा करो । पसीने से नहाया आशयाना हमारा, मिS ु कलD के दौरा जाले जग सारा । परnम क रोट7 से◌ाधापन खब ू सारा, भारती अतgथ दे वोः पर यक न हमारा । मेर7 गल7 मे◌े कभी कभी आया करो नदलाल भारती 00 ?या कभी खSु बू पहचान पाती, गर द7वाने◌ा का Gयार ना होता । सच हम कहां पहचान पाते, गर आपका Gयार ना होता । नदलाल भारती

दरकार आज दौर सामने जो खडा है । 41

गलत बयानबािजयD ने जोर पकडा है ॥ दद क बयार है ,खदा ु भी गवाह है । घायल म- भी, Hदल मI भर7 आह है ॥ आज अपनD क आंखD मे परायापन है । दौर है कातल,सब ओर सनापन है ॥ ू गजर रहा िजस बरेु दौर से । ु शलो ू का सफर सींच रहा अnु से ॥ दगाबाजी से मकदर कांपने लगा है । ु खिYडत आज का आदमी बेवफा हो गया है ॥ जानता है हर श\स कछ नह7 ले जाने को । ु स6भाल बैठा है ,अभ◌ान के खजाने को ॥ नफरत जवां,लक रो पर हो रह7 तकरारे । दद का बढता दरया,नत बढ रह7 रारे ॥ शराफत क चादर मI ढं का घायल घराने मI । बढ रहा खौफ,भरे जहां के 'वराने मI ॥ थक रहा कर कर जमाने से गजारस यारो । ु जग उठो, ढहाने बांटने वाल7 हर द7वरI ॥ kै◌ार मI खैर नह7,भारती मोहkबत क दरकारे । मला लो हाथ भारती ना सगन ु लाई है रारे ॥ नदलाल भारती

42

॥दो ती ॥ सiची दो ती को कोHट कोHट णाम । खशयD का ह- तू पैगाम ॥ ु भावनाओ का दपण ।

iची आ थाओ का अपण ॥ एहसास सखद सरvbत छाया । ु ु दद के रSते का दरयर पाया ॥ अiछ[ दो ती प'वd आMमाओं का मलन । दो ती मI शक क गजाईस तोडे मन ॥ ु दो ती का आधार सiचाई और समझदार7 । अपनापन आMम 'वSवास और ईमादार7 ॥ अभावो का सखद सहारा गलाबी रSता । ु ु अनराग अलौकक आजाद म ु ु कराता ॥ भारती दो ती सीखाये सोधेपन मI रहना ।

iची दो ती को खदा ु समझना ॥ नदलाल भारती

॥नारायण॥ गर7ब के दामन दद ,चभता नशान छोड जाता है । ु दद के बोझ जवां बढा ू होकर रह जाता है ॥ दद मI झोकने वाला म ु कराता है कनारे होकर । बदनसीब थक जाता ह- दद का बोझ ढोकर ॥ 43

शोपण वंgचत का,जK ु म आदमयत पर । दद का ज\म रस रहा उ◌ू◌च ं नीच के ना◌ाम पर ॥ मातमी हो जाता है ,गर7ब का जीवन सफर । सांस भरता गर7ब अभावD के बोझ पर ॥ जंग अभावो से,हाफ हाफ करता बसर । चबाता रोट7,आंसओ मI भीगोकर ॥ ू उMपीrडत नह7 कर पाता पार, दद का दरया जीवन भर । Hदया है दद जमाने ने द7न जानकर ॥ गर7ब का दामन रह गया ज\म का ढे र हाकर । दद भरा जीवन कटते ल6हे कांटD क सेज पर ॥ अब तो हाथ बढाओ भारती,डबते क ओर । ू वंgचत ह-,उठ जाओगे,नर से नारायण होकर ॥ नदलाल भारती 00 काVबलयत पर 0हण लगा दोधार7, योqयता पर छा गयी अब महामार7 !! फज और भख ू ने कैद7 बना रखा है मिS ु कलD के समर ने राहे रोक रखा है !! चदस?को क बदौलत उl Vबक रह7 है 44

nम क बाजार मI

तकद7र छन गयी है !!

मयसी ू के बादल उखडने लगे है पर तार तार अरमानD को भारती ताग ताग कर रहा बसर !! नदलाल भारती 00 धनखाओं क ब ती मI दौलत का बसेरा ! गर7बD क ब ती मI भख ू अभाव का डेरा !! वह7 मसी ु बतो क कलां ु चे, gचथडD मI लपटे Sशर7र ! हर चौखट पर लाचार7 कोस रहे तकद7र !! गर7बो क तकद7रD पर पडते ह- डाके यहां भख ू पर र साकसी मतलब सधते है वहां !! मजबर7 ू के जाल उl बेचा जाता है ! धनखाओं क दकान पर , ु पर7 ू दाम नह7 मल पाता है !! बदहाल7 मI जीना मरना भारती नसीब बन गया हअमीर क तर?क ,गर7ब,गर7ब ह7 रह गया है !! नदलाल भारती

!! से◌ाचता हंू !! सोचता हंू बार बार 45

Vबहस पडे मेरा भी मन एक बार ! .यवधान खडा हो जाता है के◌ाई उमंगे रौद दे ती ह- अडचने कोई ना कोई ! चहंु ओर मौत के सामान Vबकने लगे है रोजमरा क चीजD मI जहर मलने लगे है ! महगाई है भख है ू ह- हवा द'पत ू भागदौड भय जल भी द'पत है ! ू शासन है शासन हफर भी रSवतखोर7 है समता स6पता के वादे तो बस मंह ु जोर7 ह- ! याय मHदर ह- दYड के 'वधान ह-, फर भी अMयाचार ह- ! kु◌ा]द भावे क ललकार, फर भी अनाचार है ! चहंु ओर मिS ु कलD का घेरा, कहां से आये म ु कान मोह मद का बाजार हावी सब है परे शान ! खश ु रहने के उपाय 'वफल हो जाते हमखौटाधार7 मतलब का, ु दरया पार कर जाते ह- ! 46

सच भारती म- भी सोचता हंू बार बार 'वहस पडे मरा I भी मन एक बार !! नदलाल भारती

॥◌ंबढा ू बरगद॥ गं◌ाव से थे◌ाडी ह7 खडा बढे ू बरगद का पेड। जहां चला करती थी कभी रहटI । बरस बहत ु Vबत गये बस यादे है बाक । बढा ू बरगद खडा अभी द7न ह7न । आकार तो बढा पर हो गया बहत ु द7न । चलती थी रहटI पेड भी था भार7 । नमल छाया हई । ु ु बात परानी रहा ?या होगा रहट का पानी । बैल क चाल झरता था पानी । ना रह7 रहटे अब व?त बदल गया । अधपटा कआं मक ू कहानी कह रहा । ु भारती लोग अब भी थक हार कर बढे ू बरगद क छांव जाते। खडी द7न सा बढा । ू बरगद लोग कहानी सनाते ु नदलाल भारती 47

!! मंगल कामना !! बंटवारे मI 'वषमता मल7 मझे ु , सोचता हंू , 'वरासत मI त6 ु हI ?या दं ू ! 'वधान सं'वधान के पwु प से, के◌ाई सग ु ध फेल जाये ! xदय द7प को Xयोतपज ुं मल जाये ! आशा क कल7 को , समानता का मले उजास ! धन धरती से बेदखल दे ने को बस , सदभावना का नैवेदय ह- मेरे पास ! 0हण करD, ब] ु द जीवन वीणा के बने रहे सहारे ! चाहता हंू, जग को नई Xयोत दो नयन तारे ! 48

त6 ु ह7 बताओ भारती, शोपण उMपीडन का 'वष पीकर, साधनारत,जीवन को आधार ?या दं ू ! बंटवारे मI मल7 'वपमता मझे ु , त6 ु हे मंगलकामना के अतर?त, और ?या दं ू ! नदलाल भारती

॥सझता नह7 ॥ ू कछ सझता ह7 नह7 अभमान के अलावा । ू ु ढं क लेता हंू चेहरा उजाले मI बद कर लेता हंू कान भी । ना सन । ु सकंू भंवर7 जैसी औरतो क चीखपकार ु बद कर लेता हंू आंखे, ना दे ख सकंू गोहना और बेलखेड सर7खा र?तपात । मेरा ?या,रSता ?या है मेरा । मै तो नकाबपोश सहांसन पर बैठा । ?या लेना दे ना कसी कमजोर के जलते घर, लटती आबW और दम तोडती मानवता से । ू सचमच ु म- गगे ू बहरे अंधे◌ा के बीच, गगा ू बहरा और अंधा हो गया हंू भारती 49

तभी तो कछ सझता ह7 नह7 अभमान के अलावा ू ु । नदलाल भारती

!! .े◌ादना ◌ादना के फल ू !! वेदना के फल ू ,n]दा क थाल7 मे भर लाया हंू ! संवेदना का गंगाजल, लकD पर उतार लाया हंू ! कल क आशा मI,चे◌ाटबहत ु खाया हंू ! संवर जाये कल,ऐसा गण आया हंू ! ु ढढने ू सख ू क आशा मI,छलकते आंसू पाया हंू ! ठगा गया जीवन,शाित के Zार आया हंू ! ना रसे घाव अब,ऐसा मरहम खोजने आया हंू ! लोग खींचे खींचे,म- सदभावना का भाव मांगने आया हंू ! नफरत ने जलाया,म- सद ेम क छांव ढढने आया हंू ू ! ना जात धम का 'वप बोने,म- तो मानवता क बात करने आया हंू ! पलके नम Hदल रोता ज\म गहरा पाया हंू ! तकद7र कैद, म- तो फरयाद करने आया हंू ! लक रD ने कया फक र,म- तो एकता का संदेश लाया हंू !

50

फले फले ू कायनात 6ै◌ा◌ं परHहत का वरदान लेने आया हंू ! भारती वेदना के फल ू ,n]दा क थाल7 मI भर लाया हंू

! नदलाल भारती

॥nमक ॥ nमक बडा महान है । उनत क उजल7 पहचान है ॥ ना होता तू तो जग होता 'वरान । दभा ु qय त6 ु हारा द7नता बनी पहचान ॥ तम ु मे ह7 बसती जग क जान है । नराशा के चभते ू ◌े शल ू पर रMनो क खान है ॥ सतोपी तू तो जग क आन । माया क चमक से ना दमका पर तू बडा महान है ॥ तू ह7 सरज तू ह7 छांव क राखे मान है । ू जीवन धारा तम ु पर करती अभमान है ॥ Hदल क दरया मI गंगा सा थान है । भजाओ मे दम Sशहद बसी जबान है ॥ ु Mे◌ारे Vबन कैसा 'वकास भारती पसरा रहता 'वरान । 51

तेरे पसीने से सींचा 'वकास छे डे तान है ॥ नदलाल भारती nमक बडा महान है

।जीवन धारा धारा ॥ मजदरू जग क है जीवन धरा । छाती पर खडा िजसके 'वकास सारा ॥ घटने तक धोती कमीज का फटा कनारा । ु पीठ मI gचपका पेट माथे से झरे पसीने क घारा । कल से खाये भय आज हआ कारा । ु फटे तन सारा ॥ ू करम नचोड नचोड हाड सखा ू ना बह7 सखद बयार छाया रहता अgधयारा । ु कब होगी सबह कब उगेगा का क मत का तारा ॥ ु खेत खलहान चाहे फै?टर7 बोझ कंधे पर सारा । Vबन मजदरू ना हे ◌ावे जग का उपकारा ॥ माथे gचता खद ु के कमयोगी बोये उिजयारा । सपने होते धधले पसीना बहा बहा कर हारा ॥ ु नीव दे श और तर?क माने जग सारा । रोट7 क आस ताकता क मता का मारा ॥ दे खो ददु शा मजदरू क भारती,कत.य कछ ु हारा ु त6 । 52

करो कKयाण का काम,मजदरू पX ू य दे वता हमारा ॥ नदलाल भारती

।◌ं अभनदन॥ दन॥ उदासी के बादल गरजती gचता क बौझार । nमक के घर ना ठहर7 स6बिृ ]द क बयार ॥ Hदल मे

आस आंखो मI बसी रहे Gयास ।

बार बार के Sशोपण से जीये उदास ॥ मन मे भडके शोल बार बार गंज ू े कराह । हाडफोड मेहनत जीवन बना शल ू भर7 राह ॥ nमक के मन नत नया सपना उतरता । qवाह मान खदा ु को हर गम सहता ॥ nमक जीवन उ6मीदो का संसार । Vबन पानी क बीन सा तडपे माया क बाजार ॥ कम पजा पर ना पाये भरपरू मान । ू Wखी सखी क छांव चाहे स6मान ॥ ू nमक दे व समान भारती करे उसका वदन । हे ◌े पX ू य nमक तेरा अभनदन ॥ नदलाल भारती

। गांव के नवासयD ॥

53

6े◌ारे अपने गांव के नवासयD गांव क धरती अथात जमीन का वग , जहां जम लेने का का गौरव मला हमको । जहां सरज पहले लेकर आता है रोशनी ू चाहे िजतनी गर7बी रह7 हो,सोधापन समाया रहा जमीन मI यहां । बराईया अब गांव क राह पकडने लगी है ु घर घर मI फट ू बढने लगी है । काम धंधा का टोटा पडने लगा है जातd के जमाने मI Sवेत खोटा लगने लगा है । गांव अब टट ू रहा है ,दे श क आMमा ठगा ठगा लग रहा है आजमगढ ?या दे ◌श े 'वदे श के रोजनामचे परछपती रहती ह- गांव क खबरे । वह7ं गांव जहां से चला, मोटा धन उ◌ू◌च ं ा ओहदा हवा क राह तक चला । गांव क ददु शा 0ामीणD के पलायन, रोजगार क कमी,भमह7नता भेद का चलन ू ये काफ है चेहरे पर कालख पोतने के लये । समाज सेवको दे श भ?तD से गजारस है मेर7 ु

54

कछ तो क िजये तर?क से दरू राह जोह रहे गांव ु के लये । ?या गांव के लये भार7 नय? ु त नह7 कया जा सकता माप सके जो 'वकास को कर सके `खलाफत क. ु यव थाओ जातपांत क बराईयD का । ु गांव के सामािजक आgथक 'वकास का ढढ ू सके उपाय बची रहे अि मता रोजगार का हो सजन । ृ 0ामीण 'वकास के लये ढHढये कोई दागरHहत ू सयोग भार7 महान ु भले ह7 ना रहा हो नाता गांव से भारती ढHढये गांव क बराई के दमन और कKयाण के ू ु लये मखVबर क भांत गांव क सेवा के लये ु आजीवन म- उपलkध रहंू गा nीमान नदलाल भारती

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॥ सपनो क बारात ॥ 6ु◌ाझे भी सपने आते ह- भले ह7 तर?क से वंgचत हंू । 6ै◌ा◌ं सोता हंू सपनो क बारात मI , नीद क गालयां खाकर नह7 । थककर सो जाता हंू । Wखी सखी रोट7 खाकर ू भर पेट पानी पीकर बसर कर लेता हंू सपनो मI भी भर नींद सो लेता हंू । महं गाई,उMपीडन के संग गर7बी ने भी घेरा है qै◌ारो से ?या शकायत अपनो ने भी पेरा है । 6ु◌ाझे रोने से परहे ज नह7,एकात मI रो लेता हंू । कहते ह- उगता वह7 ह- जो बोया जाता हना तो मैने ना ह7 मेरे परखो ने कोई 'वषवb ु ृ लगाया ना जाने कतनी पीHढयD से 'वपपान कर रहा हंू । मै थकता नह7 ?योक तन से बहता पसीना है म- वंgचत अभावD मI भी मझे ु आता जीना है । उ6मीद ह- मेरा पgnम बेकार नह7 जायेगा मलेगा हक कल जWर म ु करायेगा । म- यक न पर कायम हंू जीतंग ू ा जंग 56

`खलेगा मेरे nम का रं ग । म- हाWंगा नह7 भारती ?योक मझे ु जीतना है । नदलाल भारती

॥ पतझड ॥ \वाब टटने िजदगी Vबखरने लगी है । ू आजकल धडकने भी बहकने लगी है ॥ आHह ता आHह ता दद बढने लगा है । उिजयारे मI अgधयारा पसरने लगा है ॥ तकद7र क बात पर भरम उभरने लगा है । gग]दjिGट से खौफ बढने लगा है ॥ परछाईयो से डर लगने लगा है । सपने वाथ के पतझड मI gगरने लगे है ॥ आशा नराशा क दरया मI डब ू मरने लगी है । ससकयां सनने क अब फस ु ु त नह7 है ॥ उ6मीदो के जंगल मI भारती पतझड उतरने लगा है । \वाब टटने िजदगी Vबखरने लगी है ॥ नदलाल ू भारती ॥नयी सबह ॥ ु सोचता हंू ,कल सबह सकन ु ु ग ू ा ू से सनं पvbयD के चहकने का सGत सरु । 57

पोखरो मI वनमgग ु यD का कलरव, बंस के झरमठो ु ु से महोखो का वर । Xंगल क हरयाल7 घास पर ओस, भरे तालाब पोखरे आंख भर दे खूंगा । 'वपमताओं नारह उMपीडन o ु दन संघपरत आम आदमी का पीडा, कल नह7 VबKकुल नह7 होगी । ?योक कल पY ् ा समानता का साlाXय होगा । ू र◌ जंगल होगा आबाद, जीव जतओ का संगीत नशा होगी । ु एकता समानता का आलम होगा , eू◌ाखमर7 गर7बी कल नह7 होगी 6ै◌ा◌ं बहत ु होउ◌ू◌ंगा सफलता पर । ु खश कल बढे ू बरगद क छांव, खSु समजाज gचतनशील बैठू गा । वो सबह कब आयेगी भारती आज मै डरा सहमा, ु बम क भभी'पका क आशंका मI, लोगD के पवा ू 0हो से घरा भारती, अपने ह7 लोगो के बने ु मकड जाल मI , दभा ु qयबस संघपरत,

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कल क नयी सबह क इतजार मI । नदलाल ु भारती

॥परम'पता ॥ हे परम'पता तम ु उनके अभमान को और मत संवारो । दोपी तो ह- पर माया क चमक मI खो जाते है , आपा मI कत.य आदमयत और सब कछ ु । िजनमे ना भापा ना सदभाव का भार है । वे नदक अभमानी तो है , वे शर7र और स?को के बल पर यक न करते है । और क मयादा से ?या लेना दे ना उनको । अभमान करता ह- गमराह िजनको । ु वे स6मान को कहां जानते ह- । सब जानकर भी म-, कामना करता हंू उनके कKयाYस क । हे परम'पता चेतना का संचार कर दो उनमI । आमजन ेम और बधुMव क राह चल सके वे । अभमान के बल ना परा त कर सके वे । gचत पर sान क लगाम दो उनको । कसाई सा xदय,ना चेहरे पर आंखे ह- िजनके । हे परम'पता सय ू सा तेज वायु से वेग, 59

गंगा सी नमल sान का सागर दान करो । हे परम'पता 'वरोgधयो को परा त करने क कोई, कामना नह7 है मेर7 । शि?त दो परम'पता ताक 'वरोgधयो के बीच नभय चल सकंू । जहां वाभमान आजाद अनराग का अनभव करता ु ु हआ ु , 'वरोध क परवाह कये Vबना भारती, नभय नरतर सदकम के पथ बढता रहंू । हे परम'पता इतनी Sशि?त दो नदलाल भारती

॥दद ॥ थक रहा हंू आवाज दे दे कर न मल रहा कोई साथ चलने वाला zफजां मI भर चक ह- जैसे हाला । ु ?हां सन ु रहा है कोई मेर7 आवाज टं ग गये ह- HदलD पर ताले, कानो क `खडकयां हो चक ह- बद । ु भरे जहां मI उफनते दद क , दरया को कोई रोकने वाला ना मला । दद भर7 िजदगी को क मत मान बैठा । 60

कहां और कससे कWं gगला शकवा इस जहां मI दद]]]्र के सवाय और ?या मला । नदलाल भारती

॥ आहत ॥ ु भ'वGय से हई सपाह7 हो गया ु जंग का हारा हआ ु हंू । जनाजा नकल चका है मेरे सपनो का बचा भी ?या ु है , 6े◌ारे पास कछ नह7 बस कछ मीठा दद कछ यादI ु ु ु और SशkदD का भरापरा ू संसार । शkदD क नइया मI बैठकर , पार कर लेता हंू बडी बडी तफानी राते । ू कछ 'वचलत सा हो गया हंू नकाबपोशो क भीड ु मI । कह7 और न छल ले कसी अमानप ु का वाथ अथवा कोई और मानवता 'वरोधी सािजस । मन आहत हो गया है,भ'वGय bत 'वbत भी । खौफजदा रहने लगा हंू , भ'वGय के आईने मI झांक कर । चहता हंू ,कसी गर7ब का सपना ना उजडे । 61

आओ भारती पMथरो के Sशहर मI बत ू बने लोगो पर, संवेदना के फहार क डाले आहत ु ु , ताक संवर सके द7नह7न का भ'वGय । नदलाल भारती

।◌ं। सवधम ॥ सवधम सदभाव क अलख जगाने दो Zे प 'वTोह अब मट जाने दो परमाथ क Xयोत जलाने दो ।

सवधम के गीत

गाने दो Hदल मे◌े नव एहसास घर कर जाने दो परेू दे श को एक हो जाने दो नैतकता के राह जाने दो । सवधम के गीत गाने दो भेद क सार7 द7वारे ढह जाने दो मन भेद क खाई पट जाने दो सदभाव के फल ू `खल जाने दो।

सवधम के गीत

गाने दो सख ु दख ु धप ू छांव को एक हो जाने दो शाित का सख ु बरस जाने दो 62

सवकKयाण क ीत नभाने दो । सवधम के गीत गाने दो हर Hदल मI सद ेम क आग लग जाने दो मन गंगा जमना ु सा हो जाने दो राGtधम क बात बढ जाने दो ।

सवधम के गीत

गाने दो हर दे वालय से दे शHहत का आगाज हो जाने दो सवशाित सवसख ु क लहर दौड गाने दो बसधै ु व कट6 ु ु बकम क Xयोत जलाने दो । सवधम के गीत गाने दो भेद तोड द7वार मानवता को 'वहस जाने दो gगरजाघर सी◌े हर7क तन क धन ु उठ जाने दो भारती मंHदर से अजान मि जद से ईSवर अKलाह तेरे नाम का उदघोप हो जाने। सवधम के गीत गाने दो

नदलाल भारती

॥ रसाव॥ रसाव॥ रSतो का अथाह दरया रस रहा , अफसोस कछ भी नजर नह7 आ रहा । ु धीरे धी◌ेर दरया भी खल7 हो जाता है, शेप बेकार रह जाता है । धरती मI दरार पड जाती है, 63

Hदलो मI गांठे भी हो जाती है । जाने लोगअनजान हो रहे ह-, रSते मोम क तरह 'पघल रहे है । आकाश क बांहो मI सरज रोज टं ग जाता है , ू चांद भी खद ु के वसल ू पर खरा नजर आता है । कछ तो नह7 बदल रहा, ु ये आदमी जWर बदल रहा । आदमी ये ढे र चक ू कर गया है , भनक तक जैसे नह7 पाया है । आधनकता के जाल मI फंस गया है , ु अकेलेपन के दलदल मI धंस गया है । बहत चक ू रहा आज भी, ु ु कछ भल ू गया रSतो का वाद भी । रSतो का आशयाना रस रहा , कोई उपाय नह7 सझ ू रहा भारती कौन सा गम रोक सकेगा रSते के रसाव को । नदलाल भारती

॥सलगते रSते॥ ु घात तघात वाथ का 'वपैला रोग, व?त क बेवफाई स6पत का बढता मोह । 64

आंसओ क गवाह7 ना रहती अब याद ू ?या कम ?या फज वाथ का गहराता दरया ।

मता का उपहास परnम का परहास, रSते क सकडन ु , स6बधो का तलाक, ना थी कभी ऐसी आस । और ◌े हक से नजद7क नाक नोचने क बात, वाह रे जमाना ऐसे रSते◌ा◌ं क नत झरती बरसात । चo.यह t का तादात , ू वाथ का बढती धतराG ृ अंध गगा ू बहरा व?त अनगंज ु फरयाद । यादD के जंगल मI नत बढता हादसा ,

वाथ बस आशयाना रSतो का सलगता । ु भारती वाह रे रSतो का करSमा, नदलाल भारती न तेल ना बाती सदा जला रहता ।

॥ बेगाना ॥ झोल7 भर दे ?यो हआ बेगाना । ु दहकता पापाण से मन ना माना । कत.य दरू कोसो वाथ सवार हो गया तम ु से उ6मीद औरो से ना उ6मीद हो गया । उ◌ू◌च ं ी मंिजले ना खजाने क चाह, 65

नेक अरमानो का परन समता क आस । ू योHह Hदन Vबतता म- 'पछडता गया यादD क बरात संग ससकता रह गया । था ?या दोप आ`खर मI रखा गया कमवीर सरवीर अgधकार वंgचत रह गया । ू उ6मीद तमसे ना Vबसार पाओगे, ु ब] ु द के वेप मI

तम ु जWर आओगे ।

भेद भर7 दनया मI समता बस जायेगी ु जमाना बैकु Yठ सा फलत हो जायेगा । भारती रोये नहार नहार भेद भरा जमाना, अब तो झोल7 भर दो ?यD हआ बेगाना । नदलाल ु भारती ॥अमर गीत ॥ गंगाजल सर7खे आंखो के पानी का मोल, आदमी Wप खदा ु का मन क गहराई से तोल । बहते आंसू को पDछ कमजोर के काम आया जो, जगाया जXबात नेक दे वतK ु य सiचा इंसान है वो । मर मट जायेगे सब पीछे भी तो यह7 हआ , ु कया काम कKयाण का आदमी वह7 खदा । ु हआ ु माया के हS ु न तरबMतर द7न को सताया, व?त ने दMु कारा ना कभी जमाने को याद आया । 66

व?त ने Vबन पानी क मीन सा तडपाया, तानाशाहो ने भी कफन तक नह7 पाया । आदमी खदा ु का WG उिजयारा, उठे हर हाथ gचराग मटे हर अंgधयारा । कG तम, ु ृ ण कये उ]दार राम हए ु पWपोM महावीर अंHहसा,ब] ु द ने जलायी समता क Xयोत सव{तम । कबीर र'वदास के Sशkद ललकार रहे , गंज रहे । ू रह7 मीरा क धने ु वाहे गW ु अनराग ु धतराG t को जग gध?कार रहा, ृ ईसा ब] ु द के आदश{ को जग मान रहा । ना तडपे भ'वGया ना आंखे अब रोय, लख दो अमर गीत भारती , समय के आरपार जगवाले गाएं । ॥जनत-ए-धरती॥, सDधी मांट7 क सग ु ध मनती तन मन झरती पहल7 करण जहां वह अपना गांव । खेत से नहाकर आती सोधी बयार, पेड क कोयल क कक ू ू उडेलती रसधार । गेहूं क ?या मौज म ती,सरसो का खेत नराला बसती रं ग, 67

ततलयD का झY ु ड द7 द7वाल7 होल7 का रं ग । गने का घलता रस मnी हआ संसार , ु ु पानी मI खडा धान करे ललकार । हर खेत उगले सोना ऐसा अपना गांव, नर से नर का ेम नSछल,मीठ[ वाणी महवे ु क छावं । उ◌ुसर ?यां बंजर खेत ना कोई परती, सच गांव अपना जनत-ए-धरती । हाडफोड मेहनता का नतीजा धय वो महान, चीर धरररती न◌ाकले सोना कसान भगवान । अफसोस खोती 0ामीणकला सपना हआ परवे का ु ु पानी , बढती जनसं\या घटता रोजगार कसक बेइमानी । ना खोये गांव ना हो पराने साधनो का लोप भारती, ु 'वहसे सदा मांट7 का सोधापन, बना रहे अपना गांव जनत-ए-धरती । नदलाल भारती

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॥फक र ॥ मानता हंू अपनो क भीड मI अजनवी हो गया हंू । दर दर क ठोकरे ,बद गल7 का आदमी हो गया हंू ॥ वाद क भीड मI तर?क के दरवाजे अदनD के लये बद है । माया क बाजार मI आदमी आदमी मI अतZद है । धोखा फरे ब आदमी को बांटने वाला आदमी अ?लमद है ॥ माया क बाजार मे हार मेर7 हार नह7 है । आदमी के बीच रार ह7 सच मायने मI मेर7 हार है ॥ मझे ु गम नह7 ह- अपनी तार तार नसीब का । सकन ू से जीने नह7 दे ता गम दरार का ॥ खेलकर खन ू तोडकर यक न नह7 चाहता तरि?कयां । मेरा

इतना सा \वाब है खल7 ु रहे मन क

`खरकयां ॥ जी'वत भीड मI गहार गहार कर थकने लगा ु ु

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हंू ।

आंख खल7 ु तभी से कांटो क नक ु पर चल रहा हंू ॥ एक चाह ह- भारती,पMथर HदलD पर एक लक र खींच दं ू । दरारो क Zद से दरू भले ह7 फक र रहंू ॥ नदलाल भारती ॥ तराना॥ ये Hदशाये भी कर रह7 शकायत धल ू के अंधेरो मे । घटने लगा है दम बेखौफ सांस लेने मI ॥ ु बराईयD का बेशम दौर है आज जमाने मI । ु मयादा थर थरा रह7 जैसे गाय कट रह7 कसाईखाने मI ॥ कमजोर क लट ू रह7 आबW आज जमाने मI । डर डर के Hदन काट रहा पडा हो कMलखाने मI ॥ मंग रहा भीख जो लगा था कल बनाने मे । नीत का नकल रहा जनाजा वाथ के आशयाने मI ॥

ूरज तडप चांद तरस रहा आज के मयखाने मI । सदबि] ु द का यs,व?त लगा मंह ु छपाने मI ॥ 70

'व]वस का Xवर अमानपता क हवस हाईटे क ु जमाने मे । जकड दो बराईयो को भारती, ु गंज ू उठे खशी ु के तराने हर आशयाने मI ॥ नदलाल भारती ॥दे खा है ॥ इसी Sशहर मI बेगनाह क अथf उठते हए ु ु दे खा है । उमाद क आग मI आशयाना जलते हए ु दे खा है ॥ आदमी को आदमी का खन ू बहाते हए ु दे खा है । इसी शहर मे दे वालय के Zार कMल होते हए ु दे खा है ॥ बेरोजगार7 क उमस मI हडताल होते हए ु दे खा है । याय क पकार मI अयाय होते हए ु ु हमने दे खा है ॥ अपनD माया क ओट बैर लेते दे खा है । इसी शहर मI रSतो के◌ा तडपते हए ु दे खा है ॥ द7न के आसू पर लोगो को म ु कराते हए ु दे खा है ।

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मद क Xवाला मI गर7ब को तबाह करते हए ु दे खा है ॥ इसी शहर मI कमजोर को Vबलखते हए ु दे खा है । nम क मYडी मI भेद क आग लगते हए ु दे खा है ॥ भेदभाव क खंजर से आदमयत का कMल होते हए ु दे खा है । दि6भयD को द7न के अरमानो को रRदते हए ु दे खा है ॥ सफेद क छांव बहत काला होते हए ु ु कछ ु हमने दे खा है । शहर क चकाचRध मI द7नD के घर उजडते हए ु दे खा है ॥ शलो ू क राह जीवन होता तबाह भारती हमने दे खा है । इसी शहर मI हर जK ु म जैसे खद ु पर होते हए ु दे खा है ॥ नदलाल भारती

॥अज॥ खदा ु अज है इतनी समझ और दे दे ते । 72

बदलते पल क नkज हम पढ लेते ॥ कोशशI नजर भी पर धोखा चर जाता । हादसे के छल मI बार बार फंस जाता ॥ पDछते हए चीरना चाहता । ू ु आसंू तफान भरे बाजार मI खद ु को घायल पाता ॥ बहते हए ु लहू पर हं सता ह- अब जमाना । फतरत अब म ु कराकर हrडडयां चबाना ॥ आदमी आसंओ को तरासना जान गया । ू

वHहत आदमी आदमयत भल ू गया ॥ हालात के सताये हए ु इतना जान ल7िजये । दआये बडे काम क , ु Vबगडे हालात मI हाथ बढाया क िजये ॥ नदलाल भारती

॥ परवतन ॥ कैसी दहकते Sशोलो क दग ु ध । हआ दाग समापन क सौगध ॥ ु तsा अमीर गर7ब का भेद मटायI । सलगते भेद क दरया नेह से बझाये ॥ ु ु बडी बडी मंिजले पर कैसा इतबारर । 73

भेद भर7 दनया मI जीना दसवार ॥ ु ु ु Vबछड ु गये लोग ना खMम हई ु कहानी । लोगो ने कये धोखे खब ू गढ7 कहानी ॥ पग पग पर भय नखर जाता । द6भ का अहम उभर जाता ॥ ये कैसा संoामक लग गया। वेदना कराह भाqय बन गया । नव चेतना दे श धम िजनको Gयारा हो । आओ बल ु द करे परवतन िजनका नारा हो ॥ नदलाल भारती ॥ हाथ जोडता हंू ॥ 6ै◌ा◌ं हाथ जोडकर णाम करता हंू ,

े◌ावाभावी जनो का िजहोने दरTो का उ]दार कया । ि6हलाओ बiचD वंत◌ो पर उपकार कया । 6े◌ारा सलाम है उन औलादो को, िजहोने अपने मां बाप को भगवान मान लया । शGयD को

िजहोने गWदे ु वो का स6मान कया ।

म- नतम तक हंू उनके आगे, िजहोने अपाHहजो का कKयाण , जात धम के नाम बराईयD का बHहGकार कया । ु 74

म- यग मानता हंू उनको, ु पWG ु िजहोने उiच चरd से नैतकता का बढा Hदया , अHह◌े◌ंसा मैती सHहGणुता का गमन कया । म- सiचा धम ेमी मानता हंू उनको, िजहोने मानव धम को अपना लया । म- सiचा धम उसी को मानता हंू , िजसने तन मन वाणी क श] ु दता पर जोर Hदया । मै◌े◌ं उन oाितकारयD का ऋणी हंू, िजहोने 'वपमता का दमन कया । म- आदश मानता हंू उनको, िजहो◌ेने परमाथ का काम और राGtHहत मI जान Hदया । म- हाथ जोडता हंू उनको, िजहोने हर अधम पर घाव कया । म- पनः ु सलाम करता हंू भारती उनको, िजहोने जनHहत राGtHहत मI काम कया । नदलाल भारती

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॥ स6भावना भावना ॥ स6भावनायI कम होती जा रह7 है पाखYड मI लोगो के◌ा घरा दे खकर । उपेvbतो Sशो'पतो के लये तर?क क हवा नह7 बह रह7 । गर7ब आंसू से रोट7 gगला कर रहा । उपेvbत बराईयD का दं श झेल रहा । ु कहां कहां नह7 पटका माथा,धम कानन ू और राजनीत क चौखट पर भी । उ6मीदो को पर पर नह7 लगे । समभाव से दरू Sशो'पत उपेvbत ह7 रह गये । दायMव नैतक मK ू यD का दहन होता रहा । मानवीय रSतो को सोधापन घायल हो गया । लोभ मो◌ी और भेद का रोग लग गया । नजHहत क चाह परHहत का \याल ह7 नह7 । भेद क धार समभाव से सरोकार नह7 । ळारने लगा समभावनाओं क डगर । सेचा था जीत का जSन मनाउ◌ू◌ंगा,खींच गयीं तलवारे मगर ।

6भावनाये कम हो सकती ह-,उ6मीदे कम नह7 ।

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बच जायेगा सं कार और समभाव ?यDक यादI अभी तो है । राम का आदश ब] ु द का समतावाद और महावीर का अHहंसावाद7 उपदे श भी । सच स6भावनाये ह- और उ6मीदे भी । जWरत ह- नज वाथ से परे सेवा और Mयाग क । नदलाल भारती

॥ वाथ वाथ का कड ू .◌ा॥

वाथ का कड ू जब िजदगी मI घर कर जाता है ना, आखो से सझता ह7 नह7, Hदल भी मानो मर जाता ू है । आदमी 'पशाच होकर क\ ु यात हो जाता है तानाशाह वाथf के नाम से । आज भी कई नर 'पशाच जडखोद रहे ह- इंसानयत क गर7ब जनता क Sशो'पत पीrडत जनो क । नभय FGटाचार का आतंक मचा रहे है । नकाब ओढे बढ रहे ह- तर?क क ओर, 77

जब नकाब छं ट जायेगा ना तब `खताब मलेगा आदमखोर वाथ तानाशाह का । सचमच ु वाथ के कडे ू मI दबे लोग,

टालन,पोलपे◌ाट Hहटलर ह7 तो कहे जाते है । अरे नकाबपोशो उतर जायेगा एक Hदन नकाब जब ना खद ु दाग लेकर मंह ु छपाओगे, या कर लोगे आMमदाह Hहटलर क तरह । त6 ु हार7 पीHढयां नह7 ढो पायेगी `खताब को । सच मानो वाथ का कडा जब सर चढ जाता है ू ना । आदमी को आदमखोर बना दे ता है ।

वाथ के दाग को धोते धोते कई पीHढयां शमसार हो जाती है । अभी तक तो◌े ऐसा ह7 हआ है , टालन,Hहटलर और ु पोलपे◌ाट के साथ । नदलाल भारती

॥ वसल॥ ू

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Xमाने क भीड मI हम ना खो जाये,नह7 इसका गम मझे ु । गम ह- यह7 क वसलD ू का जनाजा ना नकले जाये । सींचे ह- लहंू पसीने से जो कया है Mयाग 'वपपान कर । zजदा रखने के लये आदमयत का सोधापन । थाती तो यह7 ह- मेर7 िजदगी भर क । पराई दनया मI वसलD ु ू के दम िजदा रहा । खौफ लगने लगा है । वसलD ू को रौदने का पणयd होने लगा है । नह7 बझी ह- Gयास भेद भरे जहां मI । ु आसंओ से Gयास बझाने लगा हंू । ू ु सजग रहता हंू हर दम भारती, कह7 मर ना जाये मेरे वसल ू कसी फरे ब मI फंसकर । नदलाल भारती

॥धरोहर॥ माट7 के लोदे लोद पर Hटका आशयाना, mट पMथर या हो खपरै ल का । 79

नःसदे ह साझे परवार क अमट मशाल रहा । जहां कई पीHढया करती रह7 एक साथ नवास । जहां हर एहसास एक सा था हआ करता । ु छांव,धप ू चांदनी या रह7 हो काल7 रात । ठYडी गमf क तपन या सोधी बयार । ले◌ाग जहां होते थे कलह द6भ से बेखबर । सब का सब होती थी एक नजर । उपजता था जहां सiचा 'वSवास । अहं कार जहां सर नह7 उठा पाता था । ती~ आवेश भी मयादा मI ढल जाता था । सच यह7 तो सख ु और पारवार7क आनद है । साझे परवार का खपरै ल क छांव का । माट7 के चK ू हे का सDधापन,कई पीHढया एक घर । जहां घर मंHदर और नार7 गहल मी थी । ृ यह7 तो पारवार7क स6पदा और 'वरासत है, साझे परवार के थायीपन का भी



अफसोस बहत टट ू रहा ह- । ु ु कछ आधनकता का 'वपधर ु अपनMव साझेपन और पीHढयD के कनबे को डंस ु रहा है । संवार लो भारती परखD क धरोहर, ु 80

संय? ु त परवार और उसके नSछल सोधेपन को भी । नदलाल भारती

॥ कताब ॥ म- एक खल7 ु कताब पर ना बांचा गया । अरमानD के पनो को बार बार मोडा गया ॥ कातलD के बीच बार बार जांचा । छलके जाम के बीच 'वप कहा गया ॥ बहकते हए ु मजाज अयोqय माना गया । कतलD क ब ती मI जनाजा नकाला गया ॥ ठहाके◌ा के बीच दफनाया गया । कलम का चमMकार आ`खरकार साHहMयकार माना गया । भारती योqयतां के कMल पर जाम टकराया गया ॥ म- एक खल7 ु कताब पर ना बांचा गया नदलाल भारती

॥ चTहार Tहार ॥ मढे एकता के भाल चTहार । 'वपमता से 'वछोह समभाव क मनहार ॥ ु नया खन । ू नया जोश तज दे बात परानी ु 81



आजाद7 के रखवालो एकता क अमर कहानी ॥ कण कण मI एकता का भाव नSछल बह रहा । उर मI कल कल करता गंगा जल बह रहा ॥ एकता क अमर गाथा है Hहद ु तानी । उजल7 पहचान दनया ने है मानी ॥ ु जातधम का उमाद एकता का करे खYडन । भेद क धमल छाया समता मजबत ू ू है बधन ॥ शाित का सरु बसत हो बारहो मास । मटे मन क दरारे भारती, कायम रहे एकता का इतहास ॥

नदलाल

भारती

॥ सौदामनी ॥ हे भगवान ये ?या से ?या हो गया । कमजोर रोता परे शान रह गया ॥ दखती नkज दखाये कैसा हो गया इंसान । ु ु खद ु का Hहत खद ु क रखे उ◌ु◌ंची Sशान ॥ कतना मतलबी हो गया आज इंसान । कमजोर का रोता मन कांपती म ु कान ॥ कतना जK ु म ढाह रहा इंसान पर इंसान । कमजोर पर gगरती सौदामनी आफत मI जान॥ 82

वाथ का चख लहंू मतलबी बन गया इंसान । बगला ु भ?त कागा चरd रोशन करने लगा इंसान ॥ रसता घाव खरचे आह मI वाह वाह करे इंसान । ु बदल दे Wख भारती सदाचार संग जीये हर इंसान ॥ नदलाल भारती ॥ नया रं ग॥ हसरतD का चाहता नया रं ग दे ना । टकडD मे ह7 सह7 पर चाहता स◌ारे सजा दे ना ॥ ु यादगार हो जाये जमाने को । आज दरू ?यो ना,राह बन जाये शखर जाने को ॥ हं सरते भी ?या बला ह-, इनके पीछे

िजदगी खप जाती है ।

हसरते◌ा क सफर बाधायI शल ू सी गड जाती है ॥ हसरतD के जंगल मI आदमी नह7 अकेला । भीड भर7 राहे मसीबतD का झमेला ॥ ु संवारने का को पल पल ढढता । ू जमाने क कHठन राहो और दभा ॥ ु qय से जझता ू लेग 'वरोध क मीनार रच दे ते । कgथत nेGठता से हौसले रौद दे ते ॥ 83

बाधाओ से बेखबर द7वाना हसरतD क रं गत का । भारती मान लया 'वरोध को मा]यम, हं सरतD को नया रं ग दे ने का । नदलाल भारती

॥ आओ एक द7प जलाये ॥ आओ एक द7प जलाये

जो gचर सके अंgधयारा

हो यग ु परवतन का उKलास महक उठे जग सारा छं ट जाये कपैलापन ना रहे कह7ं धरा पर अंgधयारा आओ एक द7प जलाये

जो gचर सके अंgधयारा

बसत सी धप ू चांदनी से फेले उिजयारा सरज का ताप सनहरा चमक उठे गर7ब सतारा ू ु मन के वन मI झम ू I मोर होठो पर कोकला क सरधारा ु आओ एक द7प जलाये

जो gचर सके अंgधयारा

शीतलता क छांव फले फले ू आदमयत का तराना शोपण वाथ डबने क राह दजी को ना मला ू ू ,डबते ू कनारा ना सह जाता छल पंच ना ह7 भेद का अंगारा 84

आओ एक द7प जलाये

जो gचर सके अंgधयारा

रचे परवतन का इतहास मंगलकार7 सबसे यारा झम ू उठे मानवता जन जना को होवे Gयारा आओ एक द7प जलाये

जो gचर सके अंgधयारा

ज\म पर बरसे नेह का मKहम,छं ट जाये मन का सब खारा जीवन जंग मI फटे ू परमाथ क धारा रजत से हो सपने सोने सा हो उिजयारा आओ एक द7प जलाये

जो gचर सके अंgधयारा

ना राह रोके अडचने ना मला अमानपता को ु कनारा बना रहे धरती का nंग ृ ार संघे Sशि?त का हो सहारा

वाथ क ना गंूजे धन ु ,'वSव बधुMव का गंज ू उठे नारा आओ एक द7प जलाये

जो gचर सके अंgधयारा

राGtभाव समभाव उदे Sय हो जीवन का हमारा नव Xयोत जले नफरत ना पनपे दोबारा उर मI हो गंगा सी नमल धारा 85

आओ एक द7प जलाये

जो gचर सके अंgधयारा

गोहाना और बेलखेउ सर7खे ना बहे कभी लहू क धारा ब] के वाशदो थाम लो समतावाद7 'वचार ु दभम ू धारा द7वाल7 के द7प जले बारहो मास हर अgधयारे पर छाये उिजयारा आओ एक द7प जलाये

जो gचर सके अंgधयारा

यश गान करे गा जग Hद.य अभनद हे दे वपत ु त6 ु हारा सकल बसधा ु पर लोटे सोधापन,बसधै ु व कट6 ु ु बकम का हो भाव हमारा यग करे गा जग सारा ु यग ु गणगान ु आओ एक द7प जलाये

जो gचर सके अंgधयारा

नदलाल भारती ॥एक और Hदन॥ अरमानD के जंगल मI बढने लगे है हादसे सोच पर नह7 लगा है कोई 0हण लेकन बार बार करता ह- हर 0हण छांट दं ू सामािजक,आgथक चाहे हो अय कोई । 86

मन क गहराई मI दबी लालसाओ को परा ू कर लंू हर सवाल का जबाब ढढ ू लंू । कर लंू तमाम मीठ[ कडवी बाते, ना कर सका जो अब तक समाज क वेदना संवेदना क बातI अटक जाती ह- कYठ मI सार7 वे बातI बेWखी को दे खकर । तरासता रहता हंू अभ.यि?त का रा ता तोड सकंू सारा मौन,खोल सकंू चहमं ु ी तर?क के ु ख रा ते Vबना कसी Wकावट के । इह7 सोचD मI डबा ू कट जाता ह- भारती िजदगी का एक और Hदन

नदलाल

भारती

॥ वजद॥ ू सब कछ भल ू जाना चाहता हंू ु रसते घाव छलके आंसंू पेट क भख ू और भेद का दं श भी । अफसोस भेद क द7वार को मजबत ू करने वाले लोग 87

कछ भलना ह7 नह7 चाहते ू ु करे घाव । ु ु दते रहते ह- पराने मै। हंू क सब कछ eू◌ाल जाना चाहता हंू ु Hदल मI दफन Gयास के लये । मेरा यास नरथक लगने लगा है जैसे हर तरफ धंुआं पसरने लगा है । अथक यास के बाद भी नह7 जीत पा रहा हंू भेद का समर । आहत हो गया ह- मेरा सब कछ ू भ'वGय और ु ,भत वतमान भी । मौन संघपरत हंू फर भी भारती उजले वजद ू के लये नदलाल भारती ॥ मां॥ मां त6 के दम बढा कदम कदम । ु हार7 अंगलयD ु आंचल क छांव मI हरत कंु ज फलता फलता रहा । ू साथ साया सदा सच है कहा,रात क चांदनी भोर का तारा । त6 ु हारा आशfवाद ह7 तो बना है सहारा । खद ु हलाहल पीया मझे ु अमत ू Hदया । ृ का घंट म- कहां समथ होता, त6 ु हार7 छाया ना होती तो । 88

लमी Sशारदा मां पX ू य हमार7 तेरे चरणD मI जगह हमार7 । जमाने क Sशल ू भर7 राहो पर बो`झल जब होता । मां तेर7 ममता का आसरा होता । मां हम ना होगे उऋण तमसे कभी ु भारती मेरा शीश तेरे चरणो मI मां सदा झका होगा ु ।

नदलाल भारती

॥बचपन॥ से◌ाचा था बडे मन से बच जायेगा बचपन अपना । न बचा ना हआ परा ू सपना । ु भावनाओ के साथ आकाश छने ू क लालसा िजदगी चीज ?या बस खेल खा सो जाना । आMमीयजनD का Gयार तहे Hदल से खश ु हो जाना । सबका नेह सब मI बांट दे ना । अनजाने मI बचपन सरक गया । बचपन पर हो सवार जवान हो गया जवानी के साथ सा]य क राह चल पडे । सोचा था ?या,?या से ?या हो गये । यादD मI खोये रह गये । बचपन गया जवानी गयी बढे ू हो गये। 89

से◌ाचा था बडे मन से होगा बचपन का साथ से◌ाचा धरा का धरा रह गये बचपन छोड गया हाथ ।

नदलाल भारती

॥गवाह7॥ हे ◌े Hदशाओ तम ु मेर7 गवाह7 कर दे ना । उठ गया यक न मरा I मेर7 फरयाद कर दे ना ॥ खदा बयान कर दे ना । ु पछे ू अगर,सब कछ ु मेर7 तबाह7 का राज तम ु सना ु दे ना ॥ आदमी आदमी ना रहा कसी से भी पछ ू लेना । मेर7 सलगती आह का बयान खदा ु ु से कर दे ना ॥ ?या बयान कWं मI याद ससकना । टं ग रहा नत शल ू पर मेर7 गवाह7 कर दे ना ॥ नकलता नत जनाजा,हो सके तो कफन दे दे ना । मेर7 आसंू पर यक न कर लेना ॥ हे Hदशाओ खदा ु क अदालत मI मेर7 गवाह7 कर दे ना । आदमी का आदमी कर रहा शकार कसी मोढ पर दे ख लेना । भारती द7न के साथ कछ कदम चल लेना । ु

90

हे ◌े Hदशाओ तम ु मेर7 गवाह7 कर दे ना ॥ नदलाल भारती ॥ उ€दे Sय ॥ 6ै◌ा◌ं म ु करा म ु करा नह7 थकता । पास होती कनक क मादकता ॥ बंHदशो मI जकडा सच म ु करा पाता नह7 । 'वपमता क गंध सांस भर पाता नह7 ॥ कHठन मेहनत तरि?कयD से दरू पटका गया । Hदल पर दहकते घाव का नशान बन गया ॥ मन भेद क खाई संवारते दे खे गये

लोग ।

शािजसे रचते नत नयी नयी ह- लोग ॥ भीड भर7 दनया मI WसवाइयD को झेला । ु ु पराई दनया यहां तो लगा है वाथ का मेला ॥ ु चांद सतारे तोडने क ललक सदा लगी रह7 । खले ु Zारा तरि?कयD बस जवां मकसद यह7 ॥ नासरू सा ज\म एकता का भाव मन मI । कचल गयी आशा तबाह भ'वGय इस जहां मI ॥ ु अiछे HदनD क आस बढती उl क बढा ू सांस । दया धम सदभाव क पर7 ू हो जाती आस ॥ नःसंदेह मेरे जीवन का उदे Sय सफल हो जाता । 91

पराई दनया पराये लोगो के बीच म- म ु ु करा जाता ॥ नदलाल भारती

॥ मानव धम॥ ते◌ाड तोड व?त तपा रहा खद ु को । नचोडन हाड संवारना जो ह- भ'वGय के◌ा ॥ कैद नसीब क नह7 हो रह7 रहाई आज । इKजाम पर इKजाम ससकना हर सांझ ॥ आसंओ के रं ग परnम क कंू ची । ू खींचना कल का खाका आज तो नसीब Wठ[ ॥ अखरता साथ पग साथ भरना भाता नह7 । कचोटती परछायीं वसल ू रास आता नह7 ॥ आदमी परा ू तालम पर7 ू पर खोटा कहा गया । पैमाइस पर आदमी क छोटा हो गया ॥ बांझ नगाहे उजड गया आज मेरा । Vबखरे \वाब के मोती ना हआ कोई मेरा ॥ ु नफरतD क बाढ कद को उधार कहा गया । झरते झराझर मवाद पर खार छोपा गया ॥ 'ववस तडपने को उदे Sय मानव धम हमारा । दर दर क ठोकरे बबाद हआ भ'वGय हमारा ॥ ु चाहत बडी,धडकता Hदल फडकती आंखे । 92

उफनता 'वरोध का दरया हर कोई छोटा आंके ॥ क मत बना हाड फोडना Hह से पल पल रोना । जमाना दे दे ज\म भले,हमे जहर नह7 है बोना ॥ िजतनी चाहे अिqन पर7bा ले ले जमाना मेरा । भारती मानव धम जीवन का सार बन गया है मेरा ॥ नदलाल भारती

॥ दौर॥ Hहंसा का दौर अHहंसा का बहाना । धम के नाम पर खन ू कैसा जमाना ॥ मकसद बस याद आदमी को Wलाना । दौर बरा जमाना ॥ ु खYड खYड हआ ु छायी ेत छाया सर उठाता दरदा । भय भख ू आदमी मारा जाता जैसे परदा ॥ आदमी क भीड आदमी हआ बेगाना । ु तबाHहयD का दौर कैसे गंूजे खशी ु का तराना ॥ नदलाल भारती परायी दनया के मुसाफर भारती मोड दे धारा । ु अमन क बहे गंगा दमक उठे चमन हमारा ॥ नदलाल भारती

93

॥झरोखे से॥ दरारD ने जK से संवार रखा है । ु म को आंसओ ू आशा क परतो को जमने से रोक रखा है ॥ कराहटो का आहटD मI धआं धंुआ सा लग रहा है । ु परदD मI o ु दन लक रो पर आदमी मर रहा है ॥ आंखD मI सैलाब Hदल मI दद उभरने लगा है । आदमी के बीच सीमाओ का Zद बढने लगा है ॥ Hदल पर नई नई परानी खरDचे के नशान बाक है ु । खन ू से नहाई लक रे ,लक रD क ?या झांक है ॥ जK ु म के आतंक के साये मन रहा ह- नत मातम । बि तयD से उठ रह7 चींखे आदमी ढाह रहा सतम ॥ सहमा सहमा सा कमजोर,चहंु ओर धआं धंुआ है ु छाया । आदमी आदमी क नkज को

नह7 पढ पाया ॥

भर गयी होती घावे Hदल क दरारे अगर । आदमी खYड खYड ना होता,ना हआ ऐसा मगर ॥ ु चल रहा खले ु आम जोर का जंग आज भी । लक रD के नखार नफरत का यह7 राज भी ॥ HदलD को जोड दे ते भारती नेह के झोको से । 94

छं ट जाती आgधयां,बह जाता सोधापन Hदल के झरोखो से ॥

नदलाल भारती

॥ सबत॥ ू चाहा था बहारो को कांटो ने ज\म दे डाला । गलत बयानबाजी के आगे सबत ू नोच डाला ॥ लहू के सौदागरो ने दखता पल दे डाला । ु हसीन \वाब थे अपने जालमD ने तोड डाला ॥ बसत सी आस को पतझड कर डाला । अरमान के माथे इKजाम मढ डाला ॥ द7न जानकर उभरती त वीर तोड डाला । बेरहमो क महफलD मI कहा रहम Xयोत बझा ु डाला ॥ नाज था नसीब पर,लोगो ने बदनसीब बना डाला । नदलाल भारती भारती चाहा था बहारो को कांटो ने ज\म दे डाला ॥

॥सै◌ादामनी ॥

95

हे सौदामनी तू राम रह7म ब] ु द ईसा क राह चलना । करान ,बाइVबल वेद पराण का पाठ करना ॥ ु ु ब] थ का बखान ु दम शरणम गiछाम गीता गW0 ु करना । बहत संहार अब उ]दार के राह चलना ॥ ु हआ ु Hदल क मैल को कर साफ सेवा का भाव रखना । ना हार जीत बस सदGयार क बात करना ॥ गीत गाए जमाना त6 ु हार7 नेक के \वाब हमारा । बहत संकKप हो त6 ु हारा ृ ु कया 'व]वस अब सजन ॥ सब धरती मां के दलारे ना रखना बैर भाव मन मI ु । नेक कम क मधरु धन ु छोड दो धरती गगन मI ॥ हे सौदामनी कKयाण बसत बहार लेकर आना । सवएकता क चले बयार तम ु नव चेतना का Vबगल ु बजाना ॥ हे सौदामनी कर दे उपकार ढ7ठ बराईया हो राख । ु बह उठे तर?क बयार नराल7 मट जाये हर भख ू क आग ॥

96

पकारता भारती सौदामनी त6 ु ु हे आओ एकता क मीनार बनाये । बयारो मI सजे धन ु ऐसी हर इंसान खशी ु के बीत गाए ॥

नदलाल भारती

॥ लख दे ना चाहता हंू ॥ 6ै◌ा वो सब लख दे ना चाहता हंू । अbरो के लाल जाड दे ना चाहता हंू ॥ कोरे पने◌ा पर क'वता के रह य असरदार, बात मददे क जोड दे ना चाहता हंू । ु सा6य oाित जो ला सके, सब कछ वो जोड दे ना चाहता हंू ॥ ु क'वता के चजनदार Wप मI, करे जो तानाशाहो पर वार,भेद करने वाले को दे दMु कार । नफाखोरो को gध?कार नशाखोरो का करे बHहGकार ॥ ऐसा कछ लख दे ना चाहता हंू , ु द7न असहायो के काम आ सके,मानवता क पहचान बन सके। लेखनी को वेग दे ना चाहता हू, 97

तमनाओ को कनारा मल सके भ'वGय खबसरत ू ू नसीब हो सके ॥ भारती समता क लक र खींच दे ना चाहता हंू । जहां गर7बी क रे खा पहंु च ना सके, 6ै◌ा वो सब लख दे ना चाहता हंू ॥ नदलाल भारती

॥ सजन क Xयोत ॥ ृ म- लखता नह7 वो लखवा जाती ह- । डबती सोच मI नव सोच भर जाती ह॥ ू थक जाता जब आंचल से हवा कर जाती ह।- । हारती आस मI नव सांस भर जाती ह- ॥ ठहरते पावं को चलना सींखा जाती ह- । थमती लेखनी मI रोशनाई डाल जाती ह- ॥ द◌ु ु खते घाव को

सहलाकर बहला जाती है ।

द7न द`खयD के काम आने क कसम दोहरवा जाती ु है । अgधयारे मI वो उ6मीद क रोशनी जगा जाती है ॥ मसीबतो को छांट बंजर भम मI सरसो उगा जाती ु ू ह- ।

98

'वरानगी मI अपनी मौजदगी का एहसास करा जाती ू है ॥ तपन के दौर मI भरपरू चैन दे जाती है । वह7 तो ह- सजन क Xयोत मेर7 मां, ृ भारती जो लखवा जाती ह- ॥ नदलाल भारती

॥ इतहास॥ हम बंट गये उनको एहसास ना हआ । ु उजडा कोई बौ]द,इसाई स?ख कोई मसलमान हआ ु ु ॥ 'वपमता क आग राख कर गयी पर एहसास ना हआ । ु अपनो क थी भीड खेद,अपना ह7 अपना ना हआ ॥ ु कछ लोग परHहत मI खद करते है । ु को करबान ु ु वाह रे लोग अपनD को दMु कार Hदया करते है ॥ झठे लोग । ू Sशान क मान बढाना चाहते ह- कछ ु छोटा मान रै ◌ा◌ंद आगे बढ जाते ह- कछ लोग ॥ ु नहार भेद का दहता दं श ससक जाता । गम का एहसास पराना घाव रस जाता ॥ ु बार बार ढढता पर वे बहक जाते । ू 99

'वपमता का एक और तरकस छाती पर छोड जाते ॥ हाय Sशरमाती

आदमयत गम Hदया Hदया कतने

। पड जाती gगनती मान लया सतारD िजतने ॥ हौसला ह- अनकेता मI एकता भारती, बल ु द इरादे से कहते ह- । बढे सवकKयाण क राह समता का नया इतहास रचते है ॥

नदलाल भारती

॥जी लेते है ॥ द7वाने आंसूओ से Gयास बझा लेते ह- । ु चाहत भले ना हो पर7 ू \वाबD मI जी लेते ह- ॥ नींद बनाये भले ह7 दर7 लेते है ू ,करवटो राते गजार ु । भखे ू हो या Gयासे मल बांटकर जी लेते ह- ॥ अमीर7 ना हो परा ू सपना, गर7बी मI भी◌े मान से जी लेते ह- । नफरत मI भी नेह का बीज बो दे ते ह- । क मत करे बेवफाई चाहे पसीने क रोट7 तोड लेते ह- ॥ 100

ऐसे ह- हम द7वाने

तफानD के◌ा भी gचर दे ते ह- । ू

जीवन जंग ह- भारती हारकर भी हम जीत लेते ह॥ नदलाल भारती

॥आदमी के Wप॥ कतना स ु दर होता गहरा अथाह, छोर ना होता नSपb नSछल भाव का । एक कोरे मन का समभाव समता मI नहाये, सवासत \यालात होता नेक अगर । ु मिS ु कलरI मI कमजोर के काम ना आया मगर, ?या कछ पास ना था त6 का ु हारे दसरे ू ु सै◌ाभाqयबस मालकाना हक हाथ लग गया था त6 ु हारे । दरयाHदल7 साथ उनके वाथबस जो थे तमसे ु gचपके । तवायफो सा आकपण तम ु ना समझ सके । झलकते हए ु आसंू कमयोगी नेक का ना Hदखायी Hदया । भगवान को धोखा फज को ठगते रहे । खबरदार अंधेरा उतर रहा धीरे धीरे , 101

छन जायेगा सब कछ ु , ओहदा चमकते स?को क झाड भी । नेक सiचे पर होती छांव खदा ु क । खदा ु खद ु नहार रहा होता,खद ु क नगाहो से। जK ु म कर चाहे िजतना भी सहने क ताकत दे ता खदा ु ह7 । याद रखे अत बरा ु होगा, 'वदा लेगा हाथ भी Hहलेगा पर वो बात ना होगी । ?यDक ठगता रहा हक द7न का जाम के सरD ु मI, ?ुछ छल7 कपट7जनD से घरा । ना सध ु लया कभी कमयोगी द7न का कभी । ना चढा कत.य ना ह7 आदमयता का रं ग, डबा ू रहा जाम क दरया, सदा कपHटयD के संग । जHहर है तहक कात भी कया हे ◌ागा,त6 ु हे भी होगा भान, कया है राज रहा सरताज समानता का पजार7 , ु भगवान सा इंसान ह7 । नदलाल भारती

102

॥ तप॥ 6ु◌ाकदर का कMल कभी सोचा ना होगा । 'वSवास के बसत मI

पतझड ना होगा ॥

भर7 महफल मI जनाजा नकलता रहा । प?क धन ु का राह7 अnु पीता रहा ॥ कठोर nम लहलहान अरमान लख गया । ू ु सदकम,नेक इरादे का सपना Vबखर गया ॥ कहते ह- ोMसाहन हौसला बढाता है । अरे यहां तो कMल कया जाता है ॥ बार बार के कMल क कहां करI फरयाद । उफनता 'वप का दरया रसे पल पल मवाद ॥ कहता भारती भले इरादे से भोगा कGट .यथ ना जायेगा । पिG ु पत ह- 'वSवास तो कल तप बन जायेगा ॥ नदलाल भारती ॥ फाग॥ 6ु◌ाडेरो पर बैठने से कतराने लगे थे काग । `खचI `खचI लोग थे जैसे दहक रह7 हो आग ॥ साथ के लोग अनजान बन रहे थे । ना उठ रहे थे हाथ मंह ु लटकाये चल रहे थे ॥ 103

बढे परानी यादD को ताजा कर रहे थे । ू कछ ु ु परदे सयD के आने क दा तान कह रहे थे ॥ यक न ह7 नह7 हो रहा था वह7 गांव । कौन सी आंधी कचल गयी शीतलता क छांव ॥ ु इतनी दर7 ू लोग रSते तक भल ू गये । वह7 माट7 लोग वह7 पर ?या से ?या हो गये ॥ सोधी माट7 मI बेइमानी 'वTोह का जाल Vबछ चका ु था । खन था ॥ ू क कसम जXबात घायल पड चका ु दादा दाद7 क बात परानी ,नये `खल`खला रहे थे । ु आपसी बैर क सध I घर टट ू लोग फट ू चक ु े थे ॥ रSते से बेखबर वाथ क gचता मI जल रहे थे । हडपने क होड कह7 हक तो कह7 दहे ज पर अडे थे ॥ भख ू बेरोजगार7 का ताYडव लोग VबलVबला रहे थे । जवानो क भीड मI बढे ू नशे मI गम भला ू रहे थे ॥ भला चाहने वाले यवक gचितत लग रहे थे । ु जाम क टकराहट से भयभीत लग रहे थे ॥ कछ पछ ू रहे थे भारती कब शात आंधी, ु कब बैठेगे मंड ु रे ो पर काग ।

104

कैसे बचेगा गांव का सोधापन कब गंज ू ेगा फाग ॥ नदलाल भारती ॥gचराग॥ आओ एक gचराग जलाये । अब ना कोई अंधेरा रास नचाये ॥ भय भख ू गर7बी ना इस धरती पर छाये । एकाMमकता क ऐसी मशाल जलाये ॥ संवेदनशीलता का सiचा एहसास करोयं । धामक कटटरता ना फन फेलाने पाये ॥ शाित का संदेश जन जन तक पहंु चाये । 'व]वस ना तर?क अमन क बात बताये ॥ बधुMव,सामािजक परवतन का पाठ पढाये । ना उगले शोले शाित का संदेश फैलाये ॥ बढते रहो भारती, एकता ब]ु◌ाMव क राह कदम ना डगमगाये । ना छाये अंgधयारा आओ एक gचराग लाये ॥ नदलाल भारती

लेखकक-परचय

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नदलाल दलाल भारती क'व,कहानीकार,उपयासकार

शbा

- एम ए । समाजशा d । एल एल बी ।

आनस । पो ट 0ेजएट rडGलोमा इन यमन ु ू रस{स डेवलपमेYट (PGDHRD) जम थान-

0ाम-चौक ।खैरा।पो नरसंहपरु िजला-आजमगढ

।उ । काशत

उपयास-अमानत,नमाड क माट7 मालवा क छाव। तनgध का.य

प ु तकI

तनgध लघकथा सं0ह- काल7 मांट7 एवं अय । ु



उपयास-दमन,चांद7 क हं सल7 ु एवं अभशाप । 'वमश।आलेख सं0ह।

प ु तकI

म‚ सं0ह-उखड.◌े पांव / कतराु ठ[ भर आग ।कहानी सं0ह। लघकथा ु क'वतावल /का.यबोध ।का.यसं0ह। एवं अय

स6मान

'वSव

Hहद7

साHहMय

अलंकरण,इलाहाबाद।उ ।लेखक

म

उपाgध।दे हरादन।उM तराखYड। ू भारती पwु प। मानद उपाgध।इलाहाबाद,

भाषा रMन, पानीपत ।

फेलोशप स6मान,

HदKल7, का.य साधना,भसावल , महाराwt, Xयोतबा फले ु ु शbा'व€,इंद

डां बाबा साहे ब अ6बेडकर 'वशेष समाज सेवा,इंदौर 'व€यावाच पत,प कलम कलाधर ।मानद उपाgध। उदयपरु ।राज थान। उपाgध। 106

साHहMयकला

कशीनगर ।उ ।साHहMय ु जायसी,रायबरे ल7 ।उ ।

तभा,इंदौर।म ।

सफ ू

स

एवं अय आकाशवाणी से का.यपाठ का सारण ।कहानी, लघु कहानी,क'वता और आलेखD का दे श के समाचार पdो/पVdकओं मI एवं अय ई-पd पVdकाओं मI रचनाये काशत ।

थायी

आजाद द7प, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म !

पता

दरभाष -0731-4057553 चलतवाता-09753081066 ू Email- [email protected] http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com http://www.nandlalbharati.bolg.co.in

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