Kavyanjali Hindi Poem By Nandlalbharti

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  • Words: 10,811
  • Pages: 110
-

कायांजल (क वता

संह)

-

-नदलाल भारती

कायांजल

(क वता

संह)

*

नदलाल भारती *

सवाधकार-लेखकाधीन

* तकनीक सहायक आजाद कमार भारती ु अनराग कमार भारती ु ु

*

मनोरमा सा"ह#य सेवा आजाद द$प, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म + ! दरभाष -0731-4057553 चलतवाताू 09753081066 Email- [email protected]

http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com http://www.nandlalbharati.bolg.co.in

1-अजनवी अजनवी तो नह$ पर हो गया हंू वह$ं, जहा बसत खो रहा है जीवन का । शहर क तार$फ अधक भी कम लगती है

3य45क उं चा कद तो,इसी शहर का तो "दया है । दभा ु 7य नह$ तो और 3या ? जीवन 9नचोडकर जहां से कछ ु खनकते स3के पाता हंू, जहां पद क त9नक ना पहचान, वहां घाव पर घाव पाता हंू । यो7यता तड.प उठती है कद घायल हो जाता है वह$ । बढ$ ू ?े@ठता का मान रखने वाले परखते है अपनी तला ु पर और बना दे ते है 9नखरे कद को अजनवी । पद दौलत से बेदखल भले हंू सकन ू से जी रहा हंू शहर क पहचान क छांव मA यह$ मेरा सौभा7य है ।

अजनवी हो सकता हंू लकर खींचने वालA के लये पर ना यह शहर मA लये और ना मै इस शहर के लये अजनवी। नदलाल भारती

2-इंतजार तजार खाईय4 को दे खकर घबराने लगा हंू अपन4 क भीड. मA पराया हो गया हंू । दद से दबा गंगा सा एहसास नह$ पाता हंू आसमान छने ू क तमना पर, पर कतरा पाता हंू । ु पवा ू ह4 का +हार जार$ है , भयभीत हंू स"दय4 से इस जहां मA मेरा कल ह$ नह$ आज भी ठहर गया है , रोके गये 9नमल पानी क तरह सच मC घबरा गया हू वषधारा से ।

डबने के भय से बेचैन, ू बढ$ ू यवDथा के आईने मA हाशये पर पाता हंू । बार बार "दल पकारता है ु तोड. दो ऐसा आईना जो चेहरे को कGप ु "दखाता है पर बार-बार हार जाता हंू , हाशये के आदमी के जीवन मA जंग जो है । हर हार के बाद उठ जाता हंू , बढने लगता हंू पHरवतन क राह 3य45क मानवीय समानता चाहता हंू इसीलये अIछे कल क इतजार मA आज ह$ खश ु हो जाता हंू । नदलाल भारती

3-यादA ये म#ृ युलोक है Kयारे

माट$ के ये पतले अमर नह$ हमारे । ु हमसे पीछे Mबछडे ु हम भी Mबछड ु . जायेगे एक "दन सब पंचत#व मA खो जायेगे । यादA ना Mबसर पायेगी, अIछN या बर$ ु यह$ रह जायेगी । Mबछडने गम खाया करे गा ु "दल मौके-बेमौके Gलाया करे गा । जो यहां आये Mबछडते गये ु सगे या पराये छोड. गये यादA । यहां कोई नह$ रहा है अमर आदमयत ना कभी मर$ ना पायेगगी मर । रहे गा नाम अमर और4 के काम आये, छोड.ना है जहां नाम अमर कर जाये । जीया जो द$न-शो षत4 के लये, नेक नर से नारायण हो जायेगा, मर कर भी अमर हो जायेगा ।

नदलाल भारती

4-फHरयाद कर "दया फHरयाद मतलब भरे जहां मA आदमी को आदमी समझकर, दे "दया घाव मतलब के तराजू पर तौलकर । दद तो बहत मA यार4 ु ु है मतलबी द9नया जा9त-धम,मतलब कर रहा चट अरमान हजार4 । तभी तो पसीने मA नहाया, आंसू मA रोट$ गीला कर रहा कमजोर आदमी दसर$ ओर अभमान क शखा पर बैठा ू

आदमी का खन ू चस ू रहा दबंग आदमी । घाव सहलाते हए ु अपना मानने क लत मगर, ना मला सनने वाला पीते रह गये जहर । ु लोभय4 को नह$ रहा फज अब याद, मतलब भरे जहां मA ,शो षत कहां करे फHरयाद ? नदलाल भारती

5-अभलाषा अभलाषा का द$प जलाये तमको ढढ ु ू रहा हंू हे बQ ु द भगवान, परमाथ भल ू गया आज का इंसान । इंसा9नयत का चोला उतार चका है , ु छल-बल का अDR थाम चका है । ु जा9त-धम के नाम सब कछ जल रहा है वैसे, ु असाQय रोगी िजदगी के लये तड.प रहा हो जैसे ।

भगवान बT ु द,महावीर,ईसा एक बार साथ लौट आओ, समता क बझती Uयो9त जला जाओ । ु नदलाल भारती

6- िजदगी हे काल अब तो तू ह$ गाल बजा दे , कब आयेगी बहार अदने क िजदगी मA । आज अपने बेगाने हो रहे है , माया से HरVते-नाते जड ु . रहे है । अरमान वंचत-द$न के दफन हो रहे , मर रहे सपने "दल पर घाव बन रहे । भा7य दभा ु 7य मA बदल रहा, आदमी आदमी क तकद$र कैद कर रहा । कर बद तर3क के राDते आदमी ने आंसू "दये, अपराध खद ु का तकद$र के माथे मढ "दये ।

उWमीदो को हण थकता जा रहा "हDसे आया पसीना नयन बरस रहा । हे काल तू बता 3या से 3या हो गया, 9नचोड. रहा हाड. सपना तबाह हो गया । कैसी खता कमेर$ द9नया का आदमी बहार से ु Mबछड ु . गया, हे काल अब तो तू ह$ बता दे , कब आयेगी बहार द$न-वंचत क िजदगी मA । नदलाल भारती

7-तपती रे त +भु का अवतरण हआ कई बार जहां, ु Xे ष क तपन बढ रह$ वहां । मकमल खशयां नह$ ,खैर कब थी, ु ु 5क अब होगी शो षत के जीवन मA , तपती रे त का जीवन जी रहा द#ु कारा, उWमीद है सय ू के उगने से

होगा चमकेगा 5कDमत का तारा । धोखा रागXे ष उ#पीड.न कब तक बनेगा, तपती रे त का जीवन, कब तक लटता रहे गा कल, ू कब तक झरता रहे गा लट$ ू 5कDमत का पेवन । उ#पीYड.त भी चाहता है खशयां ु कब तक जीयेगा तपती रे त का जीवन, बीते कईय4 यग ु करते करते आंसूओं का सेवन । अब तो सपने परेू हो जाने दो, तपती रे त के जीवन से उबर जाने दो । नदलाल भारती

8-Uयो9त यो9त नVवर जीवन मA अंधकार पर वजय पाये शभ ु संकZप व3त के भाल अमर हो जाये । जीवन प वR Uयो9त से जग गमक जाये,

त@ृ णा क ना दरकार सदकम आकार पाये । मन क मैल धले ु आदमी को गले लगाये , गंज ू े मैRी का संदेश मानव-धम हषाये । शRता , ु के शोले ना मानवता सलगाये ु बहजन सखाय जीवन का उ[दे Vय बन जाये । ु ु करे +9त\ा मानव-कZयाण के काम आये, जीवन Uयो9त उपजे उिजयारा, धरा से अंधयारा मट जाये । नदलाल भारती

9-खदाई ु हे +भो तW ु हारे इंसान को 3या हो गया, संवेदना से बहत ु दरू पहंु च गया । बहा रहा खन ू आदमी का, कह रहा "हद ू तो कोई मसलमान का । ु झकझोर रहा आदमयत नफरत बो रहा,

व]ोह का ऐलान बेगुनाह तड.प रहा । अरे नफरत बोने वालो, बराईय4 के ^खलाफ आरपार क लडा.ई, ु हो जायेगा दे श धरती का Dवग, चमक उठे गी तW । ु हार$ खदाई ु नदलाल भारती

10-फHरDता आदमी के Gप मA फHरDत4 3य4 नह$ पहचान रहे खद ु को, 3य4 खन ू के आंसू दे रहे द$न को । तW ु हारा तन वतन है खदा ु का, 3य4 नह$ं Qयान नाम खदा ु का । 3य4 मटा रहे खद ु के 9नशान आज, संवार डालो िजनके Mबगड.◌े हC आज । तम ु सदा मD ु कराते रह जाओगे,

खद के बीच पाओगे । ु को द$न-द^खओं ु

11-आस वो "दन कब आयेगा जीवन मA आदमयत का द$वाना ^खल^खलायेगा । बसत 5कतने आये गये, द$वाने सIचे राह$ मरझाये रह गये । ु बगया मA पतझड. बारहमासी रहा, बसत जीवन मA दर$ ू बनाये रहा । बड.◌ी उWमीद से आस लगा बैठे है , आएगा जGर गांठ बांध बैठे हC । आस ना पHरहास बन जाये, उQदार क +9त\ा यौवन पा जाये । अफसोस कछ लोग4 का 9छनना आता है , ु द$वाने को फज पर मरना याद रह जाता है । द$वाना उसल ू पर है प3का,

स[कम वट-ब` ृ का आकार पायेगा, हर थाल मA सजे रोट$ सर हो छांव, सच द$वाना तब ये ^खल^खलायेगा । नदलाल भारती

12-वाणी धम क वाणी आदमी क दVु मन, अशाित का करती बीजारोपण , धमस"हत सोधेपन का एहसास, सख ु शाित के उपवन का रोपण । सच भाई मीठे वचन बेशीमती र#न समाना, नर से बने नारायण कई मीठN वाणी वंशीकरण के मR समाना । धम क वाणी बने अटल, यह$ बनाये महान, कथनी करनी मA अतर, अQू◌ारे जीवन का मतर, धम क वाणी नर से नारायण का मतर ।

नदलाल भारती

13-दोष अहं कार और aोध का वसजन उनत जीवन का 5कया है सजन । ृ जग माना aोध जीवन राख 5कया, धोखा aोध का ब"ह@कार महान बना "दया । लोभ क 9तजोर$ जीवन मA भरे असतोष, माया का कोप माथे मढा रहा दोष । व3त करवट बदला, द9नया क मट गयी दर$ ु ू , खद ु बदले,अहं कार$ बने रहने क 3या है मजबर$ ू ?नदलाल भारती

14-?Qदा

दHर]नारायण क सेवा म#ृ युलोक अमर कर दे ता, स#संग का गमन जीवन मA हर गण ु भर दे ता । ईVवर का वतन हर बद Xार खोल दे ता, समभाव आदमी को दे वता का मान दे दे ता ।

वषमता क बयार से सख ु -सWविृ Qद थम जाती, जग मA बढता कलह "दल मA वष भर जाती । मद मA बेखबर आदमी भौ9तक सख ु खोज रहा, साधन4 के सख ु क अभलाषा दख ु भोग रहा । 3या खोये 3या पाये करना है चतन, भौ9तक सख ु साधन जग मे छट ू है जाता दHर]नारायण क सेवा पन जाता । ु जम सधर ु नदलाल भारती

15-भावना भावना है सIची तो जीवन मA जUबा और जोश मरते भावनाये हआ मदा ु मानो खो गया होश । ु

#यागी यि3त जहां मA सव-समथ माना जाता, तभी तो परमाथ क राह पग पग बढता जाता । नेक काम आगे दे वता सर है झकाते , ु मद ु b जैसी अकड. से बनते काम Mबगड. जाते । नcता का भाव आदमी को महान बनाता, मलन मन खद ु क आ#मा का दVु मन बन जाता ।

16-मैRी अनरोध हमारा कछ है पाने क चाह ु ु मैRी का थाम दामन `मा क चलना राह । जग जाने कटता Mबखराव का कारण है बनता ु मान पर dरहार जीवन जंग को वफल है करता । मैRी का सदाचार जीवन मA रं ग है भरता, जड ु . जाये `मा तो आदमी आदश है बनता । नदलाल भारती

17-परोपकार 3य4 ना बांट दे ता लया जो जहां से, कछ नह$ ले जा पाओगे रह जायेगा जहां मA । ु साथ कछ ु जायेगा तो वह है नेक,ईमानदार$, Dवग का सफर दौलत क सीढ$ िजद तW ु हार$ । ना रौद4 ना रहो मदमDत कनक क खनक, ना करो उ#पीड.न ना डालो Hरसते घाव पर नमक । ना Mबगाड.◌ो खद ु का कल बांटो 9नVछल Kयार दे खो क@ क दोDती अमर सदाबहार । ु ृ ण सदामा छोड गमान नेक क राह 3य4 न पकड. लेता, ु

कर बराईयो का 9तरDकार , ु परोपकार का दामन 3य4 ना थाम लेता । नदलाल भारती

18-गीत समझो आंख के पानी का मोल, खदा ु के +9त9नध,मन क गहराई से तोल । आसू जो पोछा सIचा इंसान है वो, जगायी उWमीदA दे वता क जबान है वो । ु मट जायेगे पीछे भी तो यह$ हआ , ु 5कया काम कZयाण का वह$ खदा । ु हआ ु माया के हV ु न मA तरब#तर कमजोर को सताया, व3त क गत मA खोया जबान पर नाम ना आया । आदमी खदा ु का Gप जग का उिजयारा, उठे हर हाथ चराग मट जाये अंधयारा । ना तड.पे भ व@य ना रोये आंखे,

लख दो काल के गाल गीत अमर जग वाले व3त के आरपार गाएं ।

19- वVवास पल दो पल का जीवन,पल दो पल का है साथ, कौन है जाने 5कस मोड. पर छट ू जाये साथ । जमाना पराया व3त 5कसी का ना हआ , ु कनक क दमक आदमी बेगाना है हआ । ु

वVवास डबोया दबंग-दWभ क झंकार, ु उबरे गा वVवास से यह जो है संसार । कल भी हए ु थे हमले बार बार, हो रहे आज भी पर है वVवास, है वVवास हर हाल हारे गा +हार । नेककम संग दआ जड ु ु . जाये, है वVवास आदमी दे वता बन जाये । नदलाल भारती

20-परवाह

बादल4 क कोख मA तमनाओं का डेरा, ना संवर रह$ तकद$र न "टक रहा बसेरा । खल$ ु आंख4 के सपने कम क कटार$, ना छं ट रह$ मिV । ु कले घाव हो रह$ दधार$ ु 3या है 5कDमत बहक जाता अंधयारे मA , पसीने क कमत 3या धंस जाता उिजयारे मA । Wे◌ाहनकश पर ठोकरे भी करती है अeठहास, तकद$र कैद करने वाला कर लेता है पHरहास । भींगी पलक4 पर अब होती है वाह वाह, ठगी तकद$र का जमाने को कहा है परवाह । नदलाल भारती

21-झलक हलक से 9नकल तZख Dवर, कर बरछN का घाव उड.◌ेलता जहर । द$न कGणा क धार आंख4 का नीर, भल ू गया आदमी एहसास परायी पीर ।

मन क चंचल लहरे उठती बार-बार, खो जाती ना हआ द$न का उQदार । ु दWभ ने लख "दया है खfड खfड बंट जाना, जा9त-नDल भेद का रौ] Gप ना बदला जमाना । मानव सब एक समान मानवता क आन, मानव-धम क झलक एकता के दत ू समान । नदलाल भारती

22-बाधा 5कया उWमीद िजसे उसी के खंजर ने "दल चीरा, लालसा उं ची उड.◌ान अफसोस अपनो के बीच मल$ पीड.◌ा । ना मल$ मराद ु A भरे जहां मA उWमीदे जgमी पर है टटा ू , 5कसक 5कससे कGं शकायत अपन4 ने है लटा ू ।

टट$ उWमीद4 के तार जोड. जीवन का साज है ू बजाना, जमाना बने भले बाधा,नेक मतय क ओर है जाना । नदलाल भारती

23-नाता ये आवेश मA बढने वाले, 3य4 ना दे खा मड ु .के 3या गनाह था रौद "दये िजसको, ु तम ु तौल रहे थे दौलत क तला ु पर तW ु हार$ शान मA उसका भी बहा है पसीना न मल$ दौलत उसे भले उसे, वह तो आदमयत का सपाह$ है आदमयत क कसम दे कर तमने ु , उची सोहरत पायी है । छोड. दे गे साथ ये िजहे समझ रहे 9तनके,

ढह जायेगा शान का 5कला तW ु हारा मला Gतबा िजसक बदौलत, उसे रौद रहे हो, अरे नीचे या पीछे मड ु .कर दे ख लया होता, पल भर ठहर गया होता दद भरे "दल का हाल जान लया होता, अफसोस तW ु हे मड ु .कर कहां दे खने क आदत रहे याद आंसू दे ने वाले, उचाई से िजस "दन गरोगो रोओगे 9नहार-9नहार 5फर 9तनको क छांव पाकर मतलब को सब कछ समझने वाले, ु याद रख HरVता हमारा सIचा आदमी है अगर तो आदमयत को, गले लगाना धम है तW ु हारा भारती

24-आंसू

नदलाल

ना पीर परायी को समझा ना आदमी को जाना भल ू गया सब कछ ु याद रह$ Dवाथ क उमंग। ये कैसी होड. है चढ रहा सर वैर$पन का रं ग है । द$न क चौखट दHर]ता का है आतंक, अमीर क तो दौलत दHरया, दौलतमद का जमाना द$न के "दल पर कf ु डल$ मारे है जGरत4 का आतंक। उठ रह$ अरमान क "हलोरे मिV ु कल4 से दबा द$न बेचैन हो रहा महल4 से उठ रहे ठहाके हाशये का आदमी आंसू से कल सींच रहा । नदलाल भारती

25- वलाप Dयाह रात मA Vवान का वलाप, डरावना हो जाता है, सयाHरन करने लगे वलाप तो रात का अधयारा और भयावह हो◌े जाता है । ये संकेत है मिV ु कलो के िजसे आदमी जानता और पहचानता है खल$ ु आंख, खले ु कान रgता है, 5कले क नाकेबद$ संग पर$ ू सावधानी बरतता है ता5क हर सWभा वत खतर4 से बचा रहे शो षत द$न क छाती पर मंूग दलता रहे । नजर नह$ जाती उस ओर हर रातA Dयाह रहती है िजसक

चौखट पर मिV ु कलA नाच करती है िजनक द$न-द^खय4 क कौन सनता है , ु ु वे रोज मर-मर कर जीते है खाते है गम आसंू पीते है । Dयाह को हौशले से जीतते है 3य45क पास उनके नह$ होता मिV ु कल4 से लड.ने का इंतजाम ना सनने वाला होता कोई वलाप, ु उनक चौखट पर भख ू पसरे या अभाव चाहे

Vवान

चाहे

सयाHरन

करे

वलाप

नदलाल भारती

26-सWबध सWबध +Vन चिहत हो गगया है, hट प#थर4 के 5कले मA रहने वाल4 के बीच । भीड. मA आदमी का नयन बरसता है, व3त क धार पर सब कछ चलता है । ु



3या सWबध है 5कसी से 5फर भी उWमीद है हर 5कसी से । मानवता मA जीवन क साथकता है स[+ेम स[भावना क मादकता है । जानकर अनजान बनते है, कह$ं जा9त तो कह$ धम के नाम पर, आदमी को आदमी से अलग करते है ।

वरोधय4 के मGद$प मA फंसा पछता है ू 3या मानव जा9त और मानवता धम नह$, 3या इतना सWबध काफ नह$ है आदमी को आदमी बने रहने के लये नदलाल भारती

27-छाया दख ु -सख ु धप ू -छांव क अनभ9त ु ू समान, एक सोन क दजी लोहे क जंजीर मान । ू दरू रहे दख ु ना हो सख ु क अभलाषा,



हो धरा पर शाित क अभलाशा । धोवे मन क मैल फैलेगा उिजयारा, सWपूण शाित भाव हो उ[दे Vय हमारा । द9नया सIचे स#य क सIची छाया, ु मान लो Kयारे अमट है पर"हत क छाया। नदलाल भारती

28-तलाश क वता क तलाश मA 5फरता हंू खेत,खलहान,बरगाद क छांव पोखर,तालाब

बढे ू

कय ु ,A सWपन

शहर,साधन वह$न गांव सामािजक पतन,भय,भख ू बेरोजगार$ मA झाकता हंू मन क दर$ ू आदमी क मजबर$ ू मA ताकता हंू खाक और खाद$ मA तलाशता हंू दहे ज क जलन, अधबदन,अ#याचार आतंक

चZ ू हे क आग रोट$ क गोलाई को मापता हंू, मक के a ू पशओं ु ु दन आदमी के मद न उ◌ूचे पहाड. नीचे मैदान मA उतरता हंू बैलगाडी क चाल जहाज क रफतार दे खता हंू , गांव के टे ढे-मेढे राDते पर चलता हंू , शहर

क

सीमेfट-कारaट ्

क

सड.क4

मA

तलाशता हंू क वता को हर कह$ तलाशता हंू कह$ भी नह$ पाता हंू , खद ु के अदर गहराई मA उतरात हंू क वता को अनेको Gप मA पाता हंू सच यह$ तो है वह गहराई जहां से उपतजी है क वता आ#मा क उ◌ू◌च ं ाई और "दल क गहराई से । नदलाल भारती

29-पहचान

अj क कj पर बैठा आदमी आदमयत का क#ल कर रहा है आज, दखती नkज को कkज बgश रहा, ु पसीजते घाव क बन रहा है खाज मन क मजबत ू गांठे मतलब टओल रहा सकन ू से परे संदेह मA जी रहा बहकाने का जाम का बहाना था काफ, आज खद ु बहक रहा है आदमी HरVते को आंच दे रहा आदमी जेहन मA जहर बेपरदा हो रहा है आदमी छल का आद$ हो गया आदमी जीवन मZ ू य से Mबछड ु . गय आदमी, मानवता के राह$ को दं श दे रहा आदमी होगा जहां रोशन, मानवता को धम मान ले आदमी । नदलाल भारती ।

30-लकर खल$ Kयारे ु आंखे सपने आते सनहरे ु

वषाद क आंधी उड.◌ा ले जाते सारे । कहां उWमीद थमे ,अपने पराये बनते अवसर क ता◌ाक अिDतन मA सांप रखते । भरे जहां मA खो गया सकन ू उजडी उजास, मोह का तफान घायल हो रह$ आस । ू आंख4 के नीर से मतलब सींचने लगे है लोग, हक 9छन उ◌ू◌ंचे आसन क आड. करते है उपभोग । आहत मन चढे तराजू हरदम दबंग क शान, ईमान पाये हलाहल ?म होता परे शान । बूढ$ यवDथा बढ$ ू हई ु श"दयां रौनक न आयी, अटल लकरे वषैल$ 3या खब ू यौवन है पायी । फज क ओट सह रहा चोट वंचत इंसान,

मटा दो भेद क लकरA िजसे संवारा है इंसान । नदलाल भारती

31-लkज मेरे लkज ह$ मेर$ गहार है ु और उपिDथ9त भी, दे ना चाहते है दDतक पाषाण "दल4 पर चाहते है मानवीय एकता का वादा भी । मेरे लkज ह$ मेर$ पहचान है मांगते है जो समानत का अधकार मानवीय भेद भाव का करते है ब"ह@कार Mबखराव को स[भाव मA बदलने क है ललक कद क उ◌ूचाई का भी यह$ है रहDय । मानवता के काम आये महापGष4 के, ु अमर है 9नशान, उनके एक-एक लkज जी वत है , समानता,शाित और स[भावना के लkज

मझे ु भी दे ते है हौशला,शि3त सामlय भी । तभी तो मानवीय भेद से लहलहान ू ु , कर$9तय4 के #याग क बात कर रहा हंू ु

वषमता के धरातल पर वष पीकर भी समानता के लkज जोड. रहा हंू । नदलाल भारती

32-बदलते व3त मA बदलते व3त मA खद हई ु क तDवीर टटती ू ु पाता हंू, रहनमाओ क भीड. "दल पर दद का बोझ पाता ु हंू । बहार भरे जहां मA कांटो क छांव पाता हंू , हंसी के बीच आदमी को उखड.◌ा उखड.◌ा पाता हंू । 3या gवाब थे ,बदले व3त मA भी उजड.◌ा पाता हंू, Kयासा मन Kयास के आगे सांझ पाता हंू ।

3या उमस है बंजर "दलो क ळं सते घाव बहते आसंू पाता हंू , हवा भी कर रह$ ^खलाफत, बदला तेवर पाता हंू । नै9तकता अYडग अथाह पर जड. "हलती पाता हंू , ना मल$ समानता पग-पग पर द$वार पाता हंू । 3या कहंू "दल क बात, शkद4 क तपन से ह4ठ सलगता पाता हंू ु ना बदला जमाना, हर ओर टटती तDवीर पाता ू हंू । नदलाल भारती

33-पHरवतन nदय द$प मेरा पHरवतन का आगाज है द$प को लहू दे रहा है उजा तन तपकर दे रहा है रोशनी मन कर रहा सIचे वचारो का आoवाहन

मानवीय समानता के लये । भख ू से कराह रहा समानता क Kयास है आथक उ#थान क अभलाषा है कायनात के संग चलने क सफर मA बड.◌ी मिV ु कले है , पग -पग पर बंटवारे के शल ू खड.◌े है हम तो पHरवतन के लये चल पड.◌े है कर रहे है हवन जीवन के बसत को बस मानवीय समानता के लये । बQ ु द ने यह$ कहा है बहज का मR "दया है ु ु न सखाय जGर$ है मानवीय एकता के लये बराईयो पर हो गया काबू िजस "दन ु धरती से मट जायेगा, शोषण,उ#पीड.न और वंचत का दमन भी आओ पHरवतन क मशाल

nदय द$प से जलाये मानवीय समानता के लये । नद लाल भारती

34-मतय ना जाने लोग 3य4 दबे हुए को दबाना चाहते है नकाब तो ओढते है चोट खतरनाक करते है वह$ लोग #याग क बात करते है । गांठ रखने वालो का कैसा भरोसा ये तो मतय को तरासते है गर$ब का शोषण शौक, हक पर डाका अधकार समझते है । बं"दश4 क तपन नह$ तो और 3या कहे ? शो षत आज भी ससक रहे हर कोई उWमीद पर खरा चाहता है,

कर दर5कनार सस5कयां, दोहन चाहता है । दबे हए ु को दबाने का आतंक जार$ है , यह$ तो बदनसीबी है , आंसू मA बह रह$ यो7यता सार$ 3या दबे को दबाना खदाई है ु तफान का डर आदमयत से जदाई है ू ु अगर ?े@ठ बनने क लालसा है "दल मA दबे कचल4 का करे उQदार सIचे मन से ु मल जायेगा ?े@ठता का गतय मन मA बसेगा जब गंगा सा मतय ।

35-साथ जीवन 3या ? जो जी लया वह$ अपना लोग पराये द9नया पराई सच है कहना । ु जीवन मA कैसे-कैसे धोखे मोह ने लटे ू , मतलब बस संग डग भरते लोग खोटे ।

मतलबी और4 को बबाद कर शौक से जीते , आदमय क छाती मA नDतर घ4प दे ते है । आदमयत के राह$ समता के लये जीते है भेद के पजार$ चोट गहरा कर दे ते हC । ु गर$ब के भा7य का ना हआ उदय सतारा ु गैर4 क 3या ? अपन4 ने हक है मारा । बदनेक पर नेक क चादर डाल दे ते है Dवाथ मA 3या मरना?सब साथ हो लेते है । नदलाल भारती

36-मौत जमीन पर अवतHरत होते ह$ बद म"e ु ठयां भी भींच जाती है , Gदन के साथ गंूज उठता है संगीत जमीन पर अवतHरत होते ह$ । आंख खलते ु ,होश मे आते, मौत का डर बैठ जाता है

वह भी ढ$ठ जट ु जाती है मकसद मA । जीवन भर रखती है डर मA , Dवपन मA भी भय भार$ रहता है हर मोढ पर बाये खड.◌ी रहती है मौके क तलाश मA । ढ$ठ पीछा करती है भागे भागे, आदमी चाहता है 9नकलना आगे भल ू जाता है पीछे लगी है मौत अभमान सर होता है दौलत का Gतबे क आग मA कमजोर को भDम करने क िजद भी । अततः खुले हाथ समा जाता है मौत के मंह ु मA छोड. जाता है नफरत से सना खद ु का नाम । कछ ु लोग जीवन-मरन के पार उतर जाते है आदमी से दे वता बन जाते है

दHर]नारायण क सेवा कर । मौत सIचाई है ,अगर अमर है होना ये जग वालो नेक के बीज बोना । नदलाल भारती

37- आसमान पीछे डर आगे वरान है ◌ै वंचत का कैद आसमान है जातीय भेद द$वार4 मA कैद होकर सच ये द$वारे जो खड.◌ी है आदमयत से बड.◌ी है । कमजोर आदमी RDत है गले मA आवाज फंस रह$ है मेहनत और यो7यता दफन हो रह$ है वणवाद का शोर मच रहा है ये कैसा कचa चल रहा । ु सािजशे रच रहा आदमी

फंसा रहे qम मA दबा रहे दHर]ता और जातीय 9नWनता के दलदल बना रहे ?े@ठता का साcाUय, अeठहास करती रहे उ◌ू◌ंचता । जा9तवाद सािजश4 का खेल है यहां आदमयत फेल है , जमींदार कोई साहकार बन गया है ू शो षत शोषण का शकार है यवDथा मA दमन क छट ू है कमजोर के हक क लट ू है कोई पजा का तो कोई , ू नफरत का पाR है कोई प वR कोई अछत ू है यह$ तो जा9तवाद का भत ू है । ये भत ू है जहां मA जब तक खैर नह$ शो षत4 क ।

आजाद$ जो अभी दरू है , अगर उसके Xार पहंु चना है पाना है छटकारा जीना है , ु सWमानजनक जीवन बढना है तर3क क राह गाड.ना है आदमयत क पताका तो तलाशना होगा और आसमान कोई ।नदलाल भारती

3838-आदमी बदल रहा है दे खो आदमी बदल रहा है आज खद ु को छल रहा है , अपन4 से बेगाना हो रहा है मतलब को गले लगा रहा है दे खो आदमी बदल रहा है और के सख रहा है ु से सलग ु गैर के आंसू पर हं स रहा है ,

आदमी आदमयत से दरू जा रहा है दे खो आदमी बदल रहा है आदमी आदमी का नह$ हो रहा है आदमी पैसे के पीछे भाग रहा है HरVते को रrद रहा है दे खो आदमी बदल रहा है इंसान क बDती मA भय पसर रहा है नाक पर Dवाथ का सरज उग रहा है ू मतलब बस छाती पर मंग ू दल रहा है दे खो आदमी बदल रहा है खन ू का HरVता घायल हो गया है आदमी सािजश रच रहा है आदमी मखौटा बदल रहा है ु दे खो आदमी बदल रहा है दोप खद ु का समय के माथे मढ रहा है मयादा का सौदा कर रहा है

Dवाथ क छर$ ु तेज कर रहा है दे खो आदमी बदल रहा है भारती 39& rqyk

नागफनी सर$खे उग आये है कांटे द षत माहौल मA ू इIछायA मर रह$ है 9नत चभन से दखने लगा है रोम रोम। ु ु दद आदमी का "दया हआ है ु चभन क ु ु यवDथाओ क Hरसता जgम बन गया है अब भीतर ह$ भीतर । हककत जीने नह$ दे ती सपन4 क उडान मA जी रहा हंू उWमीद का +सन ू ^खल जाये कह$ं अपने ह$ भीतर से ।

नदलाल

डबती हई ू ु नांव मA सवार होकर भी

वVवास है हादसे से उबर जाने का उWमीद टटे ू गी नह$ 3य45क मन मA वVवास है फौलाद सा टट ू जायेगे आडWबर सारे ^खल^खला उठे गी कायनात नह$ चभे ु गे नागफनी सर$खे कांटे नह$ं कराहे गे रोम रोम जब होगा अंधेरे से लडने का सामlय पद और दौलत क तला ु पर, भले ह$ द9नया कहे यथ ु भारती

नदलाल

4040-तDवीर वीर ये कैसी तDवीर उभर रह$ है , आंख4 का सकन ू , "दल का चैन 9छन रह$ है । अWबर घायल हो रहा है , अव9न ससक रह$ है । ये कैसी तDवीर उभर रह$ है चहंु ओर तर3क क दौड है , भ@sाचार,महं गाई मलावट का दौर है । पानी बोतल मA कैद हो रहा है , जनता तकल$फ4 का बोझ ढो रह$ है । ये कैसी तDवीर उभर रह$ है बदले हालात मA ,

सांस लेना मिV ु कल हो रहा है , जहर$ला वातावरण बवfडर उठ रहा है। जंगल और जीव तDवीर मA जी रहे है , hट प#थर4 के जंगल क बाढ आ रह$ है । ये कैसी तDवीर उभर रह$ है आवाम शराफत क चादर , ओढ सो रहा है। समाज, भेदभाव और गर$बी का, अभशाप ढो रहा है । एकता के वरोधी, खंजर पर धार दे रहे है , कह$ जा9त कह$ धम क तती ू बोल रह$ है। ये कैसी तDवीर उभर रह$ है नदलाल भारती

4141- वषबीज

चaयह ू मA फंसा,सोचता हंू आ^खरकार वह कौन सी यो7यता है मझम A नह$ है जो, ु उ◌ू◌ंची उ◌ू◌ंची Yडयां है मेरे पास, सWमान पR4 क सवास भी तो हC ु अयो7य हंू 5फर भी, 3यंू

?

शायद अथ क तला ु पर यथ हंू नह$ं नह$ं पद क दौलत मेरे पास नह$ं है बडी दौलत तो है , कद क सार$ दौलत उसके सामने छोट$ हC 5फर भी अिDत#व पर हमला,जZ ु म शोषण, अपमान का जहर,भेद क Mबसात ये कैसे लोग है ? भेद के बीज बोते हC, बडा होने का दWभ भरते हC

अयो7य होकर कमजोर क यो7यता को नकारते हC आदमी को छोटा मानकर द#ु कारते◌े है सफ जम के आधार पर कम का कोई Dवाभमान नह$ं ये कैसा दWभ है बडा होने◌े का ? पैमाइस मA छोटा हो जाता है, उ◌ू◌ंचा कम उ◌ू◌ंचा कद और मान सWमान भी कोई तर$का है ,

वषबीज को न@ट करने का आपके पास य"द हां तो ?ीमानजी ् अवVय अपनायA गर$ब,वंचत उIचकम और कदवान को, कभी न सताने क कसम खाये । सIची मानवता है यह$ और

आदमी

का

फज

भी

नदलाल

भारती

4242- सWभावना भावना के फल ू जgम पर जgम अपने ह$ जहां मA , साथ चलने वाला ना मला । रोट$ का बदोबDत सर क छांव का इतजाम पसीने के भरोसे,

वभािजत जहां मA सWमान ना मला । सवससमानता के नारे कान तो गदगदाते , ु ु जgम के अलावा कछ ु न मला । qमबस माना तकद$र के ^खल गये फल ू हककत मA टटा आईना मला । ू हआ ु घाव और गहरा हो गया, जब आदमी के चेहरे पर, मखौटा ह$ मखौटा मला । ु ु कथनी और करनी को खंगला जब

आदमयत का लहलहान चेहरा मला । ू ु आंखे◌ा मA सपने,"दल घायल मगर अपन4 क मह5फल मA मीठा जहर मला । बडी मनते थी चखA आजाद$ का Dवाद असल$ Mबखर गयी उWमींदे, मानवीय एकता को ना अवसर मला । छायेगी समता चौखट चौखट होगी सWपनता सWभावना ^खला

का

है

भारती

फल ू

नदलाल भारती

43- मखौटा ु बेकसरू चोट खाये◌े है बहत ु राह चलते चलते । बेगाने जहां मे◌े◌ं जीते रहे मरते मरते जहर पीये भेद भर$ द9नया मA गम से दबे डबे ु ू रहे आतंक अपन4 अमानवीय दरार4 क धप ू छलते रहे

आदमी Xारा खींची लकर4 पर मरते रहे ना मल$ छांव रह गये दWभ मA भटकते भटकते बेकसरू चोट खाये◌े है राह चलते चलते उWमीद क जमीं पर वVवास क बनी है परतA

वरोध क बयार मA भी "दन गजरते रहे ु Dयाह रात से बेखबर उजास ढढते रहे ू घाव के बोझ फूं क फूं क कदम रखते रहे Mबछड ु गये कई लकर पर फकर रहते रहते बेकसूर चोट खाये◌े है बहत ु राह चलते चलते "दल मA जवां मौसमी बहारे गजर रह$ यकन ु पर रातA ना जाने कौन से न`R व3त ने फैलायी थी बाहA कोरा मन था जो, बेबस है अब भरने को आहA

आदमी क भीड मA थक रहे अपना ढढते ढढते ू ू बेकसरू चोट खाये◌े है बहत ु राह चलते चलते नह$ अIछा बंटवारा धम के नाम पर, जZ ु म रो5कये खदा ु के बदे है सIचे, छोटे हो या बडे बदे को गले लगाइये◌े समता शाित के नाम मखौटे को न4च द$िजये ु कारवां गजर गया ना मला सकन ु ू लकर पीटते पीटते◌े बेकसरू चोट खाये◌े है बहत ु राह चलते चलते नदलाल भारती

4444- अिDत# त#व चता क चता पर सलगते हए ु ु अिDत#व संवारने मA जट ु गया हंू , बाधायA भी 9नमत कर द$ जाती है ,

थकने लगा हंू बार बार के +हार से मC डरता नह$ हार से 3य45क, बनी रहती है सWभावनायA जीत क । अतमन मA उपजे स[ वचार4 मA अिDत#व तलाशने लगा हंू , मेर$ दौलत क गठर$ मA है, कल$नता ,कतय,9न@ठा,आदमयत ु बहजन सखाय के Uवलत वचार । ु ु जानता हंू पीछे मडकर दे खता हंू ु

वVवास प3का हो जाता है 5क, मC भी Dथायी नह$ परतु Dवाथt नह$ हंू । मC दौलत संचय के लये नह$, अिDत#व के लये संघषरत ् हंू । टटा ू नह$ है मेरा वVवास हादस4 से 9नखर$ नह$ है मेर$ आस जानता हंू सWभावनाओं के पर नह$ टटे ू हC

भले ह$ दौलत क तला ु पर 9नबल हंू । कलम का सपाह$ हंू , Mबखर$ आस को जोडने मA लगा हंू चता क चता पर सलगते हए ु ु भी कलम पर धार दे रहा हंू । अभी तक टटा ू नह$ हंू मै। "दल क◌े गहराई मA पड.◌े हC Uवलत स[ वचार4 के Uवालामखी जो, ु अिDत#व को िजदा रखने के लये काफ हC नदलाल भारती

4545- 9नशान चाहता हंू स[भाववना क उजल$ तDवीर बना दं ू जमाना मड ु . मड ु .कर दे खे और इतरायA कोशश और मेहनत भी करता हंू "दन रात पर ये 3या तDवीर उभर नह$ पाती रं ग धर नह$ं पाती है परछाईय4 के घाव से ।

मC भयभीत रहने लगा हंू सपने टटने उWमीदA Mबखरने लगी है ू ?म के गारे क द$वार ढहने लगी है, आंसओं के रं ग को परछाईय4 का कहरा ढं कने ू ु लगा है सWभावना पर कब तक जी पाउ◌ू◌ंगा सोच सोच कर आतं5कत रहने लगा हंू । संवेदना श ू य बना "दया हC लोग4 को मानवीय HरVते मA दरार डाल "दया है आज भी परछाईयां संवर रह$ हC चैन से जीने भी नह$ दे ती हC ये परछाईयां । Mबखर गया है भ व@य और सपने भी यो7यता हारने लगी हC परछाईय4 के आगे,

वषबाण सर$खे बेधने लगी हC भ व@य को सWभावनाओं मA ढढ ू रहा हंू चौपट तो हो गये है सपने मेरे

पर डर भी अभी बाक है कह$ं परछाhय4 के आतंक से , 9नशान ना मट जाये , पसीने और आंसूओं के मेरे◌े

4646- अधकार उठो वंचत,शो षत मजदर4 ू , कब तक जीवन का सार गंवाओगे कब तक ढोआगे Hरसते जgम का बोझ कब तक यथ आंसू बहाओगे तम ु तो अब जान गये हो सपने मार "दये गये है तW ु हारे सािजश रचकर तW ु हारे पसीने ने सWभावनाओं को सींचे रखा है ललचायी आंख4 से राह ताकना छोड. दो अब तो तनकर अधकार क मांग कर दो◌े बद नह$ खल$ ु आंख4 से दे खो सपने

कब तक बद 5कये रहोगे आंखे भय से बद आख4 के टट ू जाते है सपने, तम ु यह भी जानते हो बद आंख4 का टट ू जाता है ◌ा सपना याद है आंधय4 से "टकोरे का गरना शो षत हो अब सबल कर दो मांग +बल सब खोया वापस तम ु पा सकते हो अब तो तनकर अधकार क मांग कर दो◌े बेदखल हए ु तो 3या है तो अपना मांग पर अटल हो जाओ दे खो रोकता है राह कौन ? अधकार क जंग मA शह$द हए ु तो अमर हए ु अपन4 के काम आये बहत ु पीये गम,सWमान का मौका मत गंवाओ अब तो तनकर अधकार क मांग कर दो◌े

गजरे दख के "दन पर शोक मनाने से 3या ु ु होगा ? भय भख मA जीने वालो, कर दो यौछावर ू जीवन को व3त आ गया "हसाब मांगने सWमान से जीने का अधकार मत मरने दो अब तो तनकर अधकार क मांग कर दो◌े गम के आंसू मA जीये, अनगनत बार चZ ू हे से नह$ Gठा धंआ ु अ#याचार क उc बढाने वाल4 दद का जहर पीने वाल4 हर पल चौखट पर तW ु हार$ गरजता पतझड. उ#पीड.न,जZ ु म,शोषण के वरान मA तपने वाल4 अब तो तनकर अधकार क मांग कर दो◌े लटा ू गया हक तW ु हारा जानता जहान सारा 5फजां मA हक क गंध अभी बाक है

अ#याचार क तफान4 ने 5कया तW ू ु हारा मद न अ#याचार शोषण के दलदल से बाहर आओ लटा हक वापस लेने क "हWमत कर लो ू हआ ु बदले व3त मA समानता का नारा बल ु द कर दो अब तो तनकर अधकार क मांग कर दो◌े नफरत का बीज बोने वाल4 ने, दद के सवाय और 3या "दया है ? अंगूठा काटने,धल ू झ4कने के सवाय 5कया 3या है ? चेतो खल$ आंख से सपने दे खो ु बहत ु ढोया अ#याचार का बोझ सं वधान क छांव उपर उठ जाओ

वषमता का कर बि@हकार,मानवीय समानता का हक ले लो अब

तो

तनकर

अधकार

दो◌े

नदलाल भारती

क

मांग

कर

4747- द$वार को ढहा दो Dू◌ाना सना ू अंगना उदास है खलहान, Kयासी Kयासी 9नगाहA ,करे वषपान राह मA Mबछे कांटे, उखड.◌ा उखड.◌ा Dवाभमान कल से उWमीदA आज हर द$वारA ढहा दो तर3क से पड.◌ा दरू है आदमी, तम ु भी हो आदमी को मान दो Hरसते जgम का भार उतार दो◌े उजड.◌े हए ु कल को आज संवार दA माट$ क काया माट$ मA मल जायेगी आज आसमान पर कल जमीं पर आना है होगे वदा होओगे जहां से बहत ु याद आओगे बद हाथ आये खले ु हाथ जाना है थम गया जो उसे ग9तमान कर दो

आदमी हो द$न वंचत को उबार दो िजदगी बस पानी का है बलबला ु ु पल मA जीवन पल मA मरन कभी "दन तो कभी डरावनी रात है त9नक छांव तो दसरे पल चलचलाती धप ू ू है ढो रहा बोझ जो मिV ु कल4 का, बोझ उतार दो आदमी को बराबर$ का अधकार दो बराईय4 के दलदल फंसे आदमी क सांस है ु उखड. रह$, उखड.ती सांस को Kयार क बयार दो जड ु . सके तर3क क राह,अवसर क बहार दो संवर जाये द$न वंचत का कल आज तो दलार ु दो बवfडर4 के चaयूह मA हआ कंगाल ु सWमान से हाथ धोया , जgम पर लगा भेदभाव का मच लाल

टटे ू पतवार से जीवन नइया खे रहे , आदमी के हाथ मजबत ू कटार दो छोड.कर ?े@ठता का Dवांग आदमी को गले लगा लो आदमी हो आदमयत क आरती उतार लो नीर से भरे नेR क बाढ. थम जायेगी आदमी क घोर Dयाह रात कट जायेगी पीयेगा आंसू,कब तक कायम रहे गा अंगने का सनापन ू मजदरू वंचत को संभलने का हर औजार दो आदमयत क कसम उठो पीYड.त वंचत को भरपरू Kयार दो

वहस उठे गा कोना कोना

वकास क बयार Xार जब पहंु च जायेगी धनधाय हो उठे गा उसका अंगना वंचत भलकर सारे दखड ू ु A झम ू उठे गा

आदमी क पीर को समझो Kयारे उ◌ू◌ंच-नीच अमीर-गर$ब क द$वार को ढहा दो उठो आदमी हो,आदमी क ओर हाथ बढा दो

नदलाल भारती

4848-शनाgत शनाgत कर ल$ है मने C , का9तल4 क, वह$ है वे जो चाहते है , दरू रहंू ,आंख उठाकर भी न दे खू मेर$ आंखे◌ा◌ं क बाढ और टटते हए ू ु सपने, अIछे लगते है उनको । धन ु का प3का हंू मC भी बदले का भाव मेरे मन मA नह$ है , ना 5कसी तरह का कोई बैर भी । 9नखर$ छाप छोड.ना चाहता हंू का9तल4 के हमले थम नह$ रहे हC चाहते हC कैद$ बना रहंू ।

वकास क दौड. मA बहत ू गया हंू ु पीछे छट का9तल है 5क पीछे ह$ खींचने मA जटेु है , मC आगे जाना चाहता हंू श"दय4 क खींचातानी मA पर उखड गये हC तर3क से वंचत हो गया हंू । खींचातानी मA पांव नह$ जमा पा रहा हंू धैय मजबत ू होता जा रहा है

वकास क बयार चौखट तक नह$ पहंु च रह$ है कछ ु लोग धम-जा9त का जहर बो रहे है । सच यह$ वकास के दVु मन है, समाज को Mबखिfडत करने के बहाने है , नफरत के तराने है उवाद के पोषक है ,वंचत4 के शोषक है । शनाgत तो हो गयी है का9तल4 क खद ु को खंगाल ले,मानवता का दामन थाम ले, कर दे का9तल4 को अपने से बहत ु दरू

3य45क ये का9तल वकास मA बाधक है और कायनात के दVु मन भी

नदलाल

भारती

4949-नयन बरस पडे. नयनो क याचना से नयन बरस पडे. Mबगड.◌ी तकद$र दे ख भrहे तन उठN दद नाक पल हर माथे मसीबत4 का बोझ ु वंचत4 क बDती मA जgम क टोह चहंु ओर धआं ु धुआं द$नता के पांव जमA नयनो क याचना से नयन बरस पडे. अप वR बDती के कय ु A का पानी जgम Hरस रह$ आज भी परानी ु लकरो का जाल वंचत जी रहा बेहाल गलामी के दलदल भख ु ू दे रह$ ताल आजाद दे श मA वंचत पराने हाल पर खडे. ु नयनो क याचना से नयन बरस पडे.

आजाद हवा वंचत4 का नह$ हआ उQदार ु Gढ.◌ीवाद$ समाज ठकराया जाना संसार ु 9छन गया मान 5कDमत पर बैठा नाग बेदखल जड. से दोषी बना है भा7य आज भी अरमान के पर है उखड.◌े नयनो क याचना से नयन बरस पडे. भेद,भख ू बीमार$ से जा रहे नभ के पार छोड. वाHरस के सर कज का भार ?े@ठ बनाये दर$◌े वंचत के जनाजे से भरपरू ू मानवता तड.पे दे ख आदमी क ?े@ठता का कसरू वंचत4 क बDती म◌ं A द$नता और 9नWनता के खंूट है गड.◌े नयनो क याचना से नयन बरस पडे. Gढ.◌ीवाद$ समाज ?े@ठता क पीटे नगाड.◌ा ?े@ठ छोटा मान वंचत को हरदम है दहाड.◌ा

अथ क तला पर यथ शो षत समानता न ु पाया कहने को आजाद$ आंसू पीया, गम है खाया तर3क और समानता के आंकडे. कागजो मA भरे पड.◌े नयनो क याचना से नयन बरस पडे. बDती मA कब आयेगी शो षत बांट जोह रहा पेट क भख ू खा9तर हाड. 9नचोड. रहा समाज और सता के पहरे दार4 सन ु लो पकार ु वंचत करे सामािजक समानता क गहार ु आaे◌ाश बने बवfडर उससे पहले समानता का ले झfडा 9नकल पडे. नयनो पडे.

क

याचना

से

नयन

बरस

नदलाल भारती

5050- ?मवीर अपनी ह$ जहां मA घाव डंस रह$ परानी ु शो षत सं◌ं◌ं◌ंग द#ु कार भरपरू हई ु मनमानी

लपट4 क नह$ Gक है शैतानी शो षत भी खंूटा गाड. खड.◌ा हो जायेगा । ढह जायगी द$वारे Gक जायेगी मनमानी 9तल9तल जलता जैसे तवा पर पानी अंगार4 मे जलता,कंचन हो गया है राख हाड.फोड. 9नत 9नत पेट क बझाता आग ु रोट$ और जGरते नह$ वह चाहे सWमान जीवन मA झरता पतझर 9नरतर उसके बढे ू अWबर को ताकता कहता बVखो पानी मेरे अंगना अब कब बसत आएगा । शो षत जग को ग9त दे ता वंचत क ग9त को वषमतावाद$ करता बाधत खेत खलहान या कोई हो 9नमाण का काम पसीने के गारे पर थमता शो षत के Xार दहाड.ता मातमी गीत हरदम

भख ू ,अश`ा,भेदभाव क बीमार$ बेरोजगार$ और भमह$नता ू ढकेलती रहती दलदल मA सदा मसीबतो का बोझ ढोता,तथाकथत ?े@ठ समाज ु को खशी ु दे ता ना चता उसक ना कोई सध है लेता ु ?े@ठता का दम भरने वाल4 हाथ बढाओ शो षत क चौखट सावन आ जायेगा । ऋतओ क तकद$र संवारता,खद ु ु जीता वरान4 मA "दल पर वंचत के घाव होता 9नत हरा नई घाव से नह$ं घबराता 3य45क चeटान उसके सीने को कहते हC थाम लया समता क मशाल डंटकर तो शोषक घबरा जायेगा । शो षत दलत ?मवीर उसके कंधे पर द9नया ु का भार

तकद$र मA लख "दया आदमी अंधयारे का आतंक थम गये हाथ अगर तो ह4ठ पर नाचेगी Dयाह समानता के Xार खोलो,ना दो शे षत?मवीर को कराह मटा दो लकरA वरना व3त ध3कारता जायेगा ।नदलाल भारती

51- मशाल समता का पथ ना हो वरान कभी मानव है सIचे समता क राह चल सभी

वषमता क कj पर समता के पांव बढे 9नरतर ना Gके कभी इसलये 5क मसीहा थक गये कई जहां वे Gके वह$ं से तम ु चलो "दल पर चोट है शीश पर आसमान जा9तभेद क राह मA समता क छांव चल रहा रात"दन जा9तभेद का षणयR

मौन धरती पर समता का रं ग पोत दो कराह रहे दद से जो उहे साथ ले लो ना ताको पीछे , वहां भयावह 9नशान है समता क राह 9नत जा चलता कब मलेगी बराबर$ नह$ं थाह आ^खर$ सांस तक चलते रहA थमती है सांस तो थमने दो,

वषमता क गोद ना मन बहलाओ मD ु कराओगे मौन धरती पर एक "दन 3य45क समता क राह थे चले जीवन प@ु प झरे उससे पहले और प@ु प ^खलने का अवसर दो तमने जो जहर पीया आने वाले◌ा तक मत ु पहंु चने दो कमवीर vरमवीर,शरवीर समता क राह बढे ◌े ू चलो ना 5कया समता Dवर उ◌ु◌ंचा तो

रह जायेगी कराहती शो षत4 क बDती समता का प@ु Kप नह$ ^खला तो

वषमता का झलकता रहे गा जाम सं वधान से सWभावना है समता क राह सIची स[भावना है भेद का पशाच अधकार4 को न डंसे थामकर हक क लाठN 9नकल पड.◌ो आदमी हो आदमी का हक तो मांग लो समता का नह$ मला मान तो वंचत का जीवन रह जाएगा Vमशान मरकर जीना आदमयत का है अपमान Dवाभमान से जीना है ,"दन Mबते या बरस ढले समता क राह पर बढे चलो छल कर 5कसी यग ु आदमी अंधयारा "दया संघषरत ् जल रहा जीवन का द$या कांट4 क न4क पग पग पर जला

इंसा9नयत का दVु मन पल पल छला वंचत का रो रोकर ह$या जहर पीया ना पीओ भेद का जहर ना पीने दो हे समता के पथक बढे चलो जाग चका है जUबा Dवाभमान से जीने का ु अंधयारे के आगे उिजयारा हारे गा नह$ आंधी कोई स[भावना को रौद नह$ पायेगी समता का पथक धwतारा क तरह चमकेगा ु चले थे बQ ु द समता क राह तम ु भी चलो जले थे अWबेडकर द$ये क तरह मानवता का उ◌ु◌ंचा रहे भाल तम ु भी जलो समता क राह न हो वरान व3त है पकारता , तम ु ु भी चलो भेद क तफान 9नत कर रहा अ#याचार ू तड.प रहा आदमी समता क Kयास से जा9तपां9त का बवfडर थम जाये

जZ ु म झेल रहा आदमी वहस जाये समता क जंग को मत Gकने दो जलती रहे समता क मशाल लगे थका थम रहा कोई सपाह$, समता क मशाल थाम बढे चलो नदलाल भारती

5252-"दल से बाहर करके तो दे खो जातीय नफरत का बाGद ना सलगाओ ु समता का गंगाजल अब Xार-Xार पहचाओ ु जा9तभेद शीतयQ ु द है ,इस यQ ु द को अबबद करो जा9तभेद तोड.◌ो मानवता को Dवछद करो । ना डंसे भेद समभाव क बयार बह जाने दो नफरत नह$ Dनेह का Dपश दे दो भारतभम ना बने जा9तभेद क मरघट अब ू ते◌ाड. बंधन सारे समता का द$या जला दो ।

धरती स[भाव से होगी पावन शाित भेद से नह$ं एकता मA बरसता है आदमी जा9त से नह$ कम से ?े@ठ बनता हC उ◌ू◌ंचनीच से नह$ स[भाव से स[Kयार फेलता है । जा9त के नाम पर ना अ#याचार करो अब आगे बढ शो षत वंचत को गले लगाओ पतवार समता क बन बQ ु द क राह हो जाओ दं श ढो रहे जो उहे समता का अमत ृ चखाओ । िजसके nदय मA मानवता बसी है वह$ जातीय भेदभाव को ध3कारता है िजसके सीने मA दद है वंचत के +9त तोड.बाधाये सार$ वंचत से हाथ मलाता है । घाव है शो षत के nदय पर वकराल वह समानता क छांव मA हर दद भल ू सकता है

कम और फज पर मटने वाला उ#पीड.न झेल रहा Hरसते जgम4 का एहसास उQदार का सकता है । जा9तपां9त का 5कला मजबत ू अब तोड.ना होगा

वषमता जब समता का Gप धर लेगा जातीयभेद का अंधयारा ख#म हो जायेगा भारतभम पर समता का द$प जल जायेगा । ू हाथ जोड.कर बार बार कहता हंू जहां गरजे भेद वहां Dनेह लटाओ ु जब जब हो भेद का वार तम ु पर फल ू चढाओ बोये भेद के बीज जो स[भाव सीखाओ । नफरत से सखशाि त नह$ आ सकती धरा पर ु जा9तभेद का सIचे मन से #याग करके दे खो आदमी हए दे व कई बहजन"हताय क राह ु ु चलकर सच मानो वषमता हारे गी वजय होगी तW ु हार$

जा9तपां9त को "दल से बाहर करके तो दे खो। नदलाल भारती

5353-एक बरस और मां क गोद पता के कंध4 गांव क मांट$ और टे ढ$मेढ.◌ी पगडfडी से होकर उतर पड.◌ा कमभम मA सपन4 क बारात ू लेकर । जीवन जंग के Hरसते घाव है सबत ू भावनाओं पर वार घाव मल रहे बहत ु सWभावनाओं के रथ पर दद से कराहता भर रहा उड.◌ान, । उWमीद4 को मल$ ढाठN Mबखरे ◌े सपने ले5कन सWभावनाओं मA जी वत है पहचान नये जgम से "दल बहलाता पराने के Hरस रहे ु 9नशान । जा9तवाद धमवाद उमाद क धार,

वनाश क लकर खींच रह$ है लकर4 पर चलना क"ठन हो गया है उखड.◌ेपांव बंटवारे क लकर4 पर, स[भावना क तDवीर बना रहा हंू । लकर4 के आxरोश मA िजदगयां हई ु तबाह कईय4 का आज उजड. गया कल बबाद हो गया ना भभके Uवाला ना बहA आंसू सWभावना मA स[भावना के शkद बो रहा हंू । अभशा पत बंटवारे का दद पी रहा जा9तवाद धमवाद क धधकती लू मA Mबत रहा जीवन का "दन हर नये साल पर , एक साल का और बढा ू हो जाता हंू अंधयारे मA सWभावना का द$प जलाये बो रहा हंू स[भावना के बीज । सWभावना है दद क खाद और आंसू से सीचA बीज

वराट व` ृ बनेगे एक "दन प3क सWभावना है व`4 पर लगेगे ृ समानता सदाचार सामजDय और आदमयत के फल ख#म हो जायेगा धरा से भेद और नफरत । स[भावना के महाय\ मA दे रहा हंू आह9त जीवन के पल पल का सWभावना बस ु स[भावना होगी धरा पर जब, तब ना भेद गरजेगा ना शोला बरसेगा और ना टटे ू गे सपने स[भावना से कसमत हो जाये ये धरा ु ु सWभावना बस उखड.◌ेपांव भर रहा उड.◌ान सवकZयाण क कामना के लये नह$ 9नहारता पीछे छटा भयावह वरान । ू मां क तपDया पता का #याग,धरती का गौरव रहे अमर,

वहसते रहे स[कमy के 9नशान

सWभावना क उड.◌ान मA कट जाता है मेर$ िजदगी का एक और बरस पहल$ जनवर$ को

नदलाल भारती

54- मe ु ठN भर आग मe द$ है ु ठN भर आग ने सलगा ु अरमान4 क बDती लड. रहा है आदमी अभमान के तेग से आग से उठे धय ु A मA दब रह$ है चीखA हाथ नह$ बढ रहा है कमजोर क ओर मe ु ठN भर आग अिDत#व मA आते से ह$ । मe रहा ु ठN भर आग मA सलग ु अमानष ु मान लया गया है पसीने के साथ धोखा हा रहा है और हक का चीरहरण भी मe ु ठN भर आग अिDत#व मA आते से ह$ ।

मe ु ठN मA आग भरने वाले तकद$र का लखा कहते हC मरते सपने ढोने वाले छल कहते हC दं श दे ने वाले तकद$र बनाने वाले बनते हC मe रहा आदमी ु ठN भर आग मA सलह ु वंचत हो गया है समानता और आथक सWपनता से भी मe ु ठN भर आग अिDत#व मA आते से ह$ । मe ु ठN भर आग ने बांट "दया है आदमी को खfड खfड मe कर रहे है ु ठN मA आग भरने वाले गमान ु पीYड.त

के

मरते

सपने

और

Mबखराव

दे खकर मe रहे आदमी को ु ठN भर आग मA सलग ु छोटा मान अ#याचार कर रहे है मe ु ठN भर आग अिDत#व मA आते से ह$ ।

को

मe ु ठN भर आग से उपजा धआ ु चीरकर पीYड.त4 क छाती द9नया क नाक के आरपार होने लगा है ु आग मA जल रहा शीतलता क बांट जोह रहा मe ु ठN भर आग ऐसा गहरा और बदनमा ु दाग छोड. चक है , ु धलने के सारे +यास kयथ हो जा रहे है ु अ#याचार बढ जाता है सर उठते ह$ मe ु ठN भर आग अिDत#व मA आते से ह$ । मe रह$ है ु ठN भर आग मA सलग ु मानवता और बढ. रहा है उ#पीड.न मe ु ठN भर आग अथात जा9तवाद से मe ु ठN

भर

आग

से

उपजी

पीड.◌ा

आaे◌ाश बने, उससे पहले चल पडA समानता क राह 3यो5कं आग 9छन रह$ है सकन ू ,स[भावना

कह$ं

बांट रह$ है नफरत मe ु ठN भर आग अिDत#व मA आते से ह$ ।नदलाल भारती

55- फना मC वदना करता हंू ऐसे इंसान क बोता है बीज जो स[भावना का रखता है हौशला #याग का । मेरा 3या मC तो द$वाना हंू इंसा9नयत का, भले ह$ कोई इZजाम मढ. दे या कहे ◌े पाखfडी या दे दे दहकता कोई घाव नया। 9नजDवाथ से दरू पर-पीड.◌ा से बेचैन इंसान मA भगवान को दे खता हंू , दसरो के काम आने वाल4 क, ू

वदना करता हंू । सािजश4 से बेखबर, सIचा इंसान खोजता हंू जानता हंू हो जाउ◌ू◌ंगा फना 5फर भी डबता हंू ू तलाशने पाक सीप हो िजसमA संवेदना, उसे माथे चढाना चाहता हंू । सच ऐसे लोग परमाथ के य\ मA होकर फना दे वता बन जाते है , ऐसे दे वताओ क वदना करता हंू ।नदलाल भारती

56& t;dkj बंजर हो गये नसीब अपनी जहां मA

Mबखरने लगी है आस तफान मA । ू आग के समदर डबने का डर है , ू उWमीद क लौ के बझने का डर है । ु िजदा रहने के लये जGर$ है हौशला, कैद तकद$र का अधर मA है फैसला । खद ु को आगे रखने क 5फकर है , आम आदमी क नह$ िजकर है । आंखे पथराने उWमीदे थमने लगी है मतलMबय4 को कराहे भी भाने◌े लगी है । कैद तकद$र Hरहा नह$ हो पा रह$ है गनाह आदमी का सजा 5कDमत पा रह$ है । ु बंजर तकद$र को सफल है बनाना कैद तकद$र क◌े मि3 ु त का होगा बीड.◌ा उठाना । अगर हो गया ऐसा तो ,

वहस पड.◌ेगा हर आशयाना

काल के भाल होगे 9नशान, जयकार करे गा जमाना । नदलाल भारती 57&nfjnzukjk;.k

मै ऐसे गांव क माट$ मA खेला हंू जहां खे9तहर मजदरो ू क चौखट पर नाचती है भय और दHर]ता आज भी वंचत4 क बDती अभशा पत है बिDतय4 के कये ु का पानी अप वR है आज भी भख ू नंगा मजदरू ना जाने कब से हाड फोड रहा है न मट रह$ भख ू ना ह$ तन ढं क पा रहा है कहने को आजाद$ है पर वो बहत ु दरू पडा है भमह$नता के दलदल मे खडा है ू

भय से आतं5कत कल के बारे मA कछ नह$ जानता ु आंसंू पोछता आजाद$ कैसी वह यह भी नह$ जानता वह जानता है खेत मालक4 के खेत मA खन ू पानी करना मजबर$ ू है उसक भख ू भय और पीडा मे मरना कब सख ु क बयार बह$ है उसक बDती मA इ9तहास भी नह$ बता सकता सह$ सह$ पीYडत जन भयभीत बंटवारे क आग से वह भी सपने दे खता है द9नया के और लोगो क तरह ु गांव क धप ू मA पक कर उसके सपनो को पंख नह$ लग पाते

उसे भी पता लगने लगा हC द9नया क तर3क का ु आदमी के चांद पर उतर जाने का भी वह नह$ लांघ पर रहा है मजबर$ ू क मजबत ू द$वारA वह द$नता को ढे ◌ाते ढोते आसू बोता हआ ु कंू च कर जा रहा है अनजाने लोक को

वरासत मA भय भख कज छोडकर ू और कछ ु अगला जम सखी हो ु डाल दे ते हC पHरजन मंह ु मA गंगाजल मि3 ु त क आस मA दHर]नारायण को गहारकर ु मै◌ै◌ं भी माथा ठोक लेता हंू पछता हंू 3या यह$ तेर$ खदाई है ? ू ु 3या इनका कभी इनका उQदार होगा ? सच भारती

मC ऐसे गांव क माट$ मA खेला हंू जहां अनक4 आंसू पीकर बसर कर रहे है A आज भी

नदलाल भारती

5858- जहर खले ु हC पर हाथ बंधे लग रहे हC, खल$ पर ताले जडे लग रहे ह।C ु जबान ु चाहत4 के समदर कंकड4 से भर रहे है , खल$ ु आंख4 को अंधेरे डंस रहे है । लट ू गयी तकद$र डर मे जी रहे है , कोरे सपने आसंू बरस रहे ह।C फेले हाथ नयन Vशरमा रहे है , चमचमाती मतलब क खंजर, बेमौत मर रहे है । समझता अIछN तरह 3या कह रहे हC, बंधे हाथ खले ु कान सन ु रहे हC ।

बं"दश4 से◌े◌ं 9घरे वंचत,ताक रहे हC, 9छन गया सपना कल को दे ख रहे है । भीड भर$ द9नया मA अकेले लग रहे है , ु अपन4 का भीड मA पराये हो गये हC । झराझर आंसंओ को कछ तकद$र कह रहे हC, ू ु आगे बढने वाले , प#थर पर लकर खींच रहे हC । 3या कहA कछ लोग, ु खद पर वहस रहे हC , ु क खदाई ु कैद तकद$र कर जाम टकरा रहे ह।C द$वाने धन ु के भारती,जहां आंसू से सींच रहे हC, उभर जाये कायनात उWमीद मA ,जहर पी रहे हC

नदलाल भारती

59- +9तकार याद है वो बीते लWहे मझे ु भख ू से उठती वो चीखे भी

िजसको रौद दे ती थी वो सामती यवDथा डर जाती थी Kू◌ार$ मजदर4 ू क बDती खौफ मA जीता था हर वंचत दHर]ता बैठ जाती चौखट पर काफ अतराल के बाद सयyदय हआ ू ु द$न ब"हKकृत भी, सपन4 का बीज बोने लगा व3त ने तमाचा जड "दया हैवा9नयत के गाल4 पर द$न का मौन टट ू गया है द$नता का "हसाब मांगने लगा है , आजाद हवा के साथ कल संवारने क सोच रहा है आज भी गQद आंखे ताक रह$ है

तभी तो द$न द$नता से, उबर नह$ पा रहा है बराईय4 का जाल टट ु ू नह$ रहा है । आओ करA +9तकार बेबस भखी आंख4 मA झांक कर, ू कर दे सWबृ ध का बीजारोपण भारती

6060- तला ु नागफनी सर$खे उग आये है कांटे द षत माहौल मA ू इIछायA मर रह$ है 9नत चभन से दखने लगा है रोम रोम। ु ु दद आदमी का "दया हआ है ु चभन क ु ु यवDथाओ क Hरसता जgम बन गया है अब भीतर ह$ भीतर ।

नदलाल

हककत जीने नह$ दे ती सपन4 क उडान मA जी रहा हंू उWमीद का +सन ू ^खल जाये कह$ं अपने ह$ भीतर से । डबती हई ू ु नांव मA सवार होकर भी

वVवास है हादसे से उबर जाने का उWमीद टूटे गी नह$ 3य45क मन मA वVवास है फौलाद सा

टट ू जायेगे आडWबर सारे ^खल^खला उठे गी कायनात

नह$ चभे ु गे नागफनी सर$खे कांटे नह$ं कराहे गे रोम रोम जब होगा अंधेरे से लडने का सामlय पद और दौलत क तला ु पर भले ह$ द9नया ु कहे यथ

नदलाल भारती

6161-डर आसपास दे खकर डर जाता हंू कह$ं से कराह कह$ं से चीख , धमाको क उठती लपटA दे खकर । इंसान4 क बDती को जंगल कहना, जंगल का अपमान होगा अब इंट प#थर4 के महल4 मA भी इंसा9नयत नह$ बसती। मानवता को न4चने ,इUजत से खे◌े◌ेलने लगे है◌ै हर मोड मोड पर हादसा बढने लगा है ।

आदमी आदमखोर लगने लगा है , सच कह रहा हंू hट प#थर4 के जंगल मA बस गया हंू । मC अकेला इस मंजर का सा`ी नह$ हंू , और भी लोग है , कछ तो अंधा बहरा गंूगा बन बैठे है ु नह$ जमींर जाग रहा है आदमयत को कराहता हआ दे खकर । ु यह$ हाल रहा तो वे खनी ू पंजे हर गले क नाप ले लेगे धीरे धीरे ◌े । खनी ू पंजे हमार$ ओर बढे उससे पहले, शैतान4 क शनाgत कर ब"हKकृत कर दे "दल से घर पHरवार समाज और दे श से । ऐसा ना हआ तो खनी ू पंजे बढते रहे गे, ु धमाके होते रहे गे, इंसानी काया के चथडे उडते रहे गे तबाह$ के बादल गरजते रहे गे

इंसा9नयत तडपती रहे गी नयन बरसते रहे गA शैता9नयत के आतंक से नह$ बच पायेगे 9छनता रहे गा चैन कांपती रहे गी Gंह 3य45क मरने से नह$ डर लगता डर लगता है तो मौत के तर$क4 से

नदलाल भारती

62- मखौटा ु बेकसरू चोट खाये◌े है बहत ु राह चलते चलते । बेगाने जहां मे◌े◌ं जीते रहे मरते मरते जहर पीये भेद भर$ द9नया मA गम से दबे डबे ु ू रहे आतंक अपन4 अमानवीय दरार4 क धप ू छलते रहे आदमी Xारा खींची लकर4 पर मरते रहे

ना मल$ छांव रह गये दWभ मA भटकते भटकते बेकसरू चोट खाये◌े है राह चलते चलते उWमीद क जमीं पर वVवास क बनी है परतA

वरोध क बयार मA भी "दन गजरते रहे ु Dयाह रात से बेखबर उजास ढढते रहे ू घाव के बोझ फूं क फूं क कदम रखते रहे Mबछड ु गये कई लकर पर फकर रहते रहते बेकसरू चोट खाये◌े है बहत ु राह चलते चलते "दल मA जवां मौसमी बहारे गजर रह$ यकन ु पर रातA ना जाने कौन से न`R व3त ने फैलायी थी बाहA कोरा मन था जो, बेबस है अब भरने को आहA आदमी क भीड मA थक रहे अपना ढढते ढढते ू ू

बेकसरू चोट खाये◌े है बहत ु राह चलते चलते नह$ अIछा बंटवारा धम के नाम पर, जZ ु म रो5कये खदा ु के बदे है सIचे, छोटे हो या बडे बदे को गले लगाइये◌े समता शाित के नाम मखौटे को न4च द$िजये ु कारवां गजर गया ना मला सकन ु ू लकर पीटते पीटते◌े बेकसरू चोट खाये◌े है बहत ु राह चलते चलते नदलाल भारती

6363-मां तW ु हे सलाम

मां तW ु हार$ दे ह २७ अ3टबर २००१ को ू पंचत#व मA खो गयी थी मं◌ा मझे ु याद हो तम ु

तW ु हार$ याद "दल मA बसी है । आज भी तW ु हारा एहसास साथ साथ चलता है मेरे MबZकुल बरगद के छांव क तरह । दख ु क Mबजड ु .◌ी जब कड.कती है ओढा दे ती हो आंचल मेर$ मां अदाजा लग जाता है मझे ु , तW ु हारे न होकर भी होने का । सख ु -दख ु मA तW ु ह$ तो याद आती हो तW ु हार$ कमी कभी कभी बहत ु Gलाती है , जब ओसार$ मA गौरै या, जठे A े पानी से ू बतन के फक

Uू◌ाठन चन ू कर अपने, बIचो के मंह ु मA बार$-बार$ से डालती है । तब तम ु और तW ु हारा संघष बहत ु याद आता है

उभर आता है , धधल$ याद4 मA बसा मेरा बचपन भी ु मां तम ु भी उतर आती हो परछाई DवGप मेरे सामने और रख दे ती हो सर पर हाथ । क"ठन फैसले क जब घड.◌ी आती है तब तW ु हार$ तDवीर उभर आती है जी वत हो जाती हो जैसे तम ु nदय क गहराईय4 मA राह बदल लेती है हर मिV ु कले ।

मां तW ु हारे आशीश क छांव फलफल ू रहे है तW ु हारे अपने सींच रहे हC तW ु हारे सपने और रं ग बदलतt द9नया मे, "टका हंू मC भी । ु मां ते◌ेरे +9त ?Qदा ह$ जीवन का उ#थान है यह$ ?Qदा दे ती रहे गी हमA तW ु हार$ थप5कय4 का एहसास भी । मां तम ु तो नह$ हो, दे ह Gप मA

वVवास है , तम ु मेर$ धड.कन मA बसी हो हर माताओ के लये ,

गव का "दन है मात"दवस ृ आराधना का "दन है आज का, मेर$ द9नया है मेर$ मां Dवगtय समार$, ु करते है वदना तW ु हार$ जीवनदा9यनी पल पल याद आती है तW ु हार$ मरकर भी अमर है तेरा नाम हे मां तW ु हे सलाम सलाम

हे मां तW ु हे

नदलाल भारती

-----शाित

शाित

शाित---------

लेखकक-पHरचय

नदलाल दलाल भारती क व,कहानीकार,उपयासकार

श`ा

- एम ए । समाजशाDR । एल एल बी । आनस । पोDट ेजएट YडKलोमा इन oयमन Hरसyस ु ू

डेवलपमेfट (PGDHRD) जम Dथान-

ाम-चौक ।खैरा।पो नरसंहपरु िजला-आजमगढ

।उ +। +काशत पD ु तकA



उपयास-अमानत,9नमाड क माट$ मालवा क छाव।+9त9नध काय संह। +9त9नध लघकथा संह- काल$ मांट$ एवं अय । ु

उपयास-दमन,चांद$ क हं सल$ ु एवं अभशाप । वमश।आलेख संह।

पD ु तकA

मe संह-उखड.◌े पांव / कतरा-कतरा ु ठN भर आग ।कहानी संह। लघकथा ु क वतावल /कायबोध ।कायसंह। एवं अय

सWमान

वVव

"हद$

सा"ह#य

अलंकरण,इलाहाबाद।उ + ।लेखक

मR

।म

उपाध।दे हरादन।उ# तराखfड। ू भारती प@ु प। मानद उपाध।इलाहाबाद,

भाषा र#न, पानीपत । डां

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एवं अय आकाशवाणी से कायपाठ का +सारण ।कहानी, लघु कहानी,क वता और आलेख4 का दे श के समाचार पRो/पMRकओं मA एवं

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एवं अय ई-पR पMRकाओं मA रचनाये +काशत ।

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