Mohan Rakesh Ki Kahaniyan - Vivechana By Dr. Virendra Singh Yadav

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  • Words: 50,710
  • Pages: 90
रचनाकार http://rachanakar.blogspot.com क  त त ु

मोहन राकेश क कहा नय म पारवारक सबध क ासद का अंकन डॉ. वीरे ! "संह यादव

[यवा ु साहयकार के प म यात ात डाँ वीरे  संह यादव ने दलत वमश" के #े$ म ‘दलत वकासवाद ' क% अवधारणा को *था पत कर उनके सामािजक,आ0थ"क वकास का माग" श*त 2कया है । आपके दो सौ पचास से अ0धक लेख8 का काशन रा9:र;य एवं अंतरा"9=;य *तर क% *तर;य प>$काओं म हो चका है । दलत वमश", *$ी वमश", रा9=भाषा हद; म अनेक प* ु ु तक8 क% रचना कर चक ु े डाँ वीरे  ने वBव क% Cवलंत सम*या पया"वरण को शोधपरक ढं ग से *तुत 2कया है । रा9=भाषा महासंघ मF ु बई, राजमहल चौक कवधा" Iवारा *व0 Jी हKर ठाकर ु कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव अFबेडकर ु *मृ त पर* फेलोशप सFमान 2006, साहय वाKर0ध मानदोपा0ध एवं नराला सFमान 2008 सहत अनेक सFमानो से उह अलंकृ त 2कया जा चका है । वत"मान म आप भारतीय उOच श#ा अPययन सं*थान रा9=पत नवास, ु शमला (ह00) म नई आ0थ"क नीत एवं दलत8 के सम# चनौतयाँ (2008-11) वषय पर तीन वष" के लए ु एसोसयेट हS।]

#थम अ%याय वघटन का व प एवं कारण मोहन राकेश का कथा-लेखन हद कहानी के उस नये दौर का सचक है जहाँ कहानी के के म केवल ू यि त क" #$त%ठा ह नहं, अ)पतु सामािजक शि तय, का समाहार भी .कया गया है । यह कारण है .क इनक" कहा$नय, का धरातल न तो जैन े , अ4ेय के समान $नतांत यि%ट 6चंतन से #े7रत है और न ह यशपाल के समान समि%ट 6चंतन से। राकेश के कथा-सा ह9य का संबंध समकालन समय के जी)वत यथाथ; से है। लेखक के मन म बोध को लेकर कहं भी .कसी #कार का पवा; ू <ह नहं है । उनके

अ6धकांश अनभव सदभ; पा लेने के बाद सामािजक ु -संदभ; $नतांत वैयि तक होने के बावजद ू यगीन ु बनते गये ह।= मोहन राकेश ने यह >वयं >वीकार .कया है .क ‘‘उनक" रचना-?ि%ट का सीधा संबंध आस-पास िजये जा रहे जीवन के साथ तथा इस जीवन क" )वडBबनाओं और )वDम, को झेलते हए ु यि त के साथ है। उनका लेखक यि त को भी आस-पास के #भाव, से अलग एक कट हई ु इकाई के Hप म नहं दे खता, बिIक सBपण; ू मानJसक सामािजक-राजनी$तक प7रवेश को उसका अJभभाKय अंग समझता है । यि त और उसके प7रवेश के अंदर से ह संवेदना और यंLय के सM ू उठाकर वह उह कथा खंड, म बन ु दे ता है।'' मोहन राकेश क" यह वैयि तक सोच उनके लेखन का के-Nबद ु शH ु से लेकर अत तक रह 1

है । लेखक के इस ब$नयाद सरोकार के उ9स को उनके यि तगत जीवन के प7र#ेOय म जाना व ु पहचाना जा सकता है जो #ायः उनके यि तगत अनभव बने ह।= बचपन से ह उनक" आँख आस-पास ु क" िजदगी के #$त सतक; थीं अपने से बाहर घर को और घर से बाहर सामािजक बंधन, को #Rना9मक ?ि%ट से दे खने लगी थीं। अपने आस-पास का माहौल उह क"चड़ भरा लगता। प7रचय-T्◌ोM के बहत ु से लोग, हर गजरते

दन के साथ पहले से छोटे जान पड़ते थे। ...... >नेह, सहानभ$त ु ु ू , साहस और उ9साह क" XझिIलय, के नीचे उनके चेहरे बहत ु डरपोक, मजबरू और हतो9साह दखायी दे ते थे। यह सब दे खकर उनके मन म हलचल होती। इसJलए छोट सी उY के जीवन म अि>थरता व अ$तवा दता का समावेश हआ ु और मन आZोश से भर गया। बाद म इसी यथाथ; क" अJभयि त उह,ने अपने सा ह9य म क"। मोहन राकेश कहानी पर )वचार #कट करते हए ु ू का सीधा संबंध मेरे ु Jलखते ह=-‘‘मेरे Jलए अनभ$त यथाथ; से है और यथाथ; है मेरा समय और प7रवेश ......... यि%ट से प7रवार, प7रवार से रा%[ और रा%[ से मानव समाज तक का परा ू प7रवेश। म= इनम से .कसी एक से कटकर शेष से जड़े ु नहं रह सकता ........ अपने आस-पास के सदभ; से आँख हटाकर दरू के सदभ; म जी नहं सकता।'' उह,ने यि त 2

को काल के प7र#ेOय म रखकर 6चNMत .कया है। केवल दे श क" ि>थ$त म यि त का 6चMण उनका अभी%ट नहं, य,.क कहानी यि त क" नहं, उसके परेू समय क" है । कहानी का #9यT कैनवस बहत ु छोटा और साधारण हो सकता है पर िजस परोT क" ओर उसका संकेत है वह छोटा और साधारण नहं है । उह,ने हमेशा एक नयी ?ि%ट और सह कथा पर जोर दया। एक और िजंदगी (भJमका ) कहानीू सं<ह क" भJमका म राकेश ने इसी सदभ; का >प%टकरण करते हए ू ु Jलखा है .क ‘‘बात नई जगह जाकर नई तरह के यि त क" कहानी Jलखने क" नहं, उसी जगह रहकर, उसी इंसान के उहं अंत]व;]व, को जीवन के नये संदभ; म दे खने क" है ।'' मोहन राकेश ने यि त और समाज का कभी कोई )वभाजन नहं 3

.कया और न ह यथाथ; से )वमख ु होकर ह कहं यि त के >व9व क" #$त%ठा क" है । वे यह मानते ह= .क ‘‘यि त का जीवन एक इकाई का जीवन नहं होता, एक समाज और एक समय के जीवन क" #$त^व$न भी उसम सनी ‘‘यथाथ; क" #$त.Zया ह व>ततः ु जा सकती है ।'' मोहन राकेश के अनसार ु ु अनभ$त ु ू को 4

जम दे ती है, जब.क अनभ$त ु ू क" यापकता और गहराई यथाथ; क" यापक और गहर पकड़ पर ह $नभ;र करती है ''। कोई भी सचेत और संवेदनशील रचनाकार समय के आतंक से उदासीन या अलग नहं 5

रह सकता। िजन #भाव, म वह जीता है उनसे मु त रहकर सजनशील हो पाना संभव ह नहं है । लेखक ृ

का वा>त)वक कJमटमट  .कसी )वशेष )वचारधारा से न होकर अपने से, अपने समय से और समय के जीवन से होता है। य द वह अपने अंदर से कJमटे ड है तो वह अंधे क" तरह लकड़ी लेकर अंधेरे म अपने अके◌ेले के Jलए रा>ता नहं टटोलता, अंधेरे और आतंक को पैदा करने वाल शि तय, के साथ अपने समचे ू अि>त9व से लड़ जाना चाहता है और अकेला नहं, अनेकानेक लड़ने वाल, के साथ Jमलकर। यह साम हक #य9न ह उसके संघष; को साथ;कता दे ता है, वरना वह िजंदगी भर एक अपा हज क" तरह ू आवाज लगाये जाने और याचना करते रहने के Jलए अJभश`त है। मोहन राकेश क" यह )वशेषता है .क उह,ने .कसी टटे ू )वaंख ृ Jलत, आरो)पत, अ)वRवसनीय स9य क" उपलिbध म अपनी ग7रमा को कभी नहं झठलाया , वरन एक यापक सामािजक स9य एवं यथाथ; के ु ं ु अवेषण म अपनी शि त लगाई। वे >वीकारते ह= .क ‘‘लेखक का अपना एक अलग अि>त9व है । .कत वह अि>त9व भी सामािजक संदभ; म ह >वHप लेता है । य,.क इकाई के Hप म अपने को जानना भी उसके ‘परेू ' के अंदर जीने का ह प7रणाम है । चेतना के >तर पर वह .कसी भी तरह ‘एक' या अकेला नहं है । बोध म वह #भाव, को समेटता है और #भाव, क" शHआत से ह उसम एक होने क" ि>थ$त समा`त ु होती है ।'' इसJलए कcय कैसा भी हो .कसी एक अकेले यि त का न होकर, उसके प7रवेश का होता है । 6

यह कारण है .क राकेश हमेशा सामािजक संदभd को मायता दे ते रहे । इनक" कहानी क" मeय धारा म ु नये संदभd क" खोज सामािजक चेतना से संचाJलत है और इसम सांके$तकता का )वकास समि%ट स9य एवं यापक प7रवेश के धरातल पर हआ सामािजक यथाथ; और व>त-ु स9य तथा ु ु है । उह,ने यगीन बदलते )वRवास को नयी ?ि%ट द, मन%य ु के पा7रवा7रक सBबध, को उसके प7रवेश म दे खने क" यथाथ;-?ि%ट भी द है । मोहन राकेश के कथा-सा ह9य म पा7रवा7रक )वघटन के नये-नये ऐसे कोण उभर कर आते ह= जो JशIप के साथ गंु.फत होकर संवेदना के >तर पर कोई बहत ु ह बेलाग बात कह दे ने क" सामcय; रखते ह।= उस Nबंद ु से कहानी के ये कोण शH ु होते ह= िजस Nबद ु पर #ेमच अपनी कथा-याMा समा`त कर चक ु े थे। ‘कफन' और ‘पस ू क" रात' तक आकर जो परBपरा अवHh हो गयी थी, उसी को ग$त दे ने का #यास मोहन राकेश ने अपने ढं ग से .कया। मोहन राकेश क" कहा$नयां प7रवत;न क" एक पर ू #.Zया का साTा9कार कराती ह।= यह #.Zया सा हि9यक मIय, क" भी है और सामािजक-सा हि9यक मया;दा क" भी। मोहन राकेश ने सजना9मक ू ृ धरातल पर संZांित यग ु के सम>त दबाव, को अपने ऊपर झेला है और इस दबाव से जमे तनाव और संMास को भोगा है । )वभाजन के साथ िजस ‘ZाइJसस' का आरBभ हआ ु था वह उ9तरो9तर बढ़ता चला गया। सामािजक एवं नै$तक मायताएँ टटने लगीं। िजंदगी का सारा अंदHनी ढ़◌ाचा भरभर ँ ू ु ु Jमlट क" तरह झड़ने लगा। नयी जमीन पर नयी मायताएँ उभर रह थीं, .कतु पाँव अभी टक नहं पा रहे थे। अतः लेखक ने इस नये पा7रवा7रक वातावरण म एक )वशेष #कार क" घटन और आ9मपीड़न क" ि>थ$त ु को अनभव .कया। यग ु ु क" सmचाइय, से जड़ने ु क" तीn लालसा और यग ु क" आ9मा को #$त^व$नत करने क" कामना ने उसके कहानीकार -यि त9व को एक )वकासशील च7रM #दान .कया, जो

सामािजक-वैयि तक धरातल पर बदलते पा7रवा7रक जीवन के बदलते यथाथ; को आंकता चलता है और सा हि9यक धरातल पर सैhाितक आ<ह, के >थान पर अनभव क" सmचाइय, को अपना संबल बनाता ु है । राकेश का कथा-सा ह9य यग ु क" सम<ता को अपने प7रवेश म समेटकर यि त और प7रवेश के तथा यि त और समाज के अनेक >तरय सBबध, को अJभयि त दे ने का #य9न करता है । राकेश क" मनोरचना म^यवगoय चेतना से सBबh है । उनके जीवन म आई ि>थ$तय,-प7रि>थ$तय, क" टकराहट अनभव और अनभ$तया◌ॅ सबक" सब म^यवगoय सं>कार, को $नH)पत करती ह।= उनक" ु ु ू कहा$नय, म अनभव क" $नजता है , .कतु वह प7रवेशबh होकर $नरं तर सामािजक भJमका पर उतरती ु ू गई ह।= आध$नक कहानीकार, म राकेश ह एक ऐसे कहानीकार ह=, िजह,ने जीवन के वा>तव को अपने ु >तर पर भोगकर कहा$नय, के JशIप म ढाल दया है । जीवन का यथाथ; शरबत नहं कने ु न क" वह गोल है िजसे अनभव क" जबान पर रख तो वह तो कड़वी हो ह जाती है, उसे अJभयि त दे ने वाल श◌ौल ् ु ु भी उससे अ#भा)वत नहं रह सकती है। यथाथ; क" यह कड़वाहट कभी #9यT और कभी अ#9यT Hप से राकेश क" कहा$नय, म Jमल ह जाती है। कछ ु आलोचक, एवं समीTक, क" मायता है .क राकेश के लेखन म वैयि तक अनभव भले ह .कतना गहरा हो, .कतु वह यापक नहं है । यह उनके #ग$तशील ु 6चंतन क" मह9वपण; ू सीमा है - यायावर जीवन को जीकर भी उह,ने एक ‘ठहरा हआ ु चाकू' जैसी एकाध कहा$नय, को छोड़कर जीवन को यापक संदभd म नहं उठाया अपने मताNबक कछ ु ु नु ते उठाये ह= जो मन%यो6चत सामcय; का #$त$न6ध9व नहं करते ह।= जीवन के यापक संदभd के अभाव क" Jशकायत ु राकेश क" कहा$नय, के सदभ; म डा◌ॅ0 नामवर को भी रह है । इसी कारण उह,ने Jलखा है .क ‘‘अपने आस-पास के वातावरण म उड़ती हई ु कहा$नय, को पकड़कर $न>सदे ह मोहन राकेश ने उह उतनी ह तेजी के साथ य त .कया है । जो मन म एक qलैश क" तरह कrध जाती है । लगता है उह,ने अभी Nबजल क" कrध ह पकड़ी है, Nबजल .क वह शि त नहं िजसका उपयोग हम अपनी सीमा म उ%णता तथा आलोक के Jलए कर सक जो .क मन%यो6चत सामcय; का #तीक है ।'' यह तो ठsक है .क राकेश क" ु 7

कहा$नय, म उनके आस-पास का प7रवेश #$तNबिBबत है, .कतु यह मानना पड़ता है .क अनभव का ु #9येक Tण जीवन म हर बार कछ ु नया जोड़ दे ता है तो जो कलाकार अपने प7रवेश के हर प7रव$त;त Tण के महाने पर सतक; हो, उसके लेखन म यापकता के◌े अभाव क" Jशकायत हठधJम;ता के ु अ$त7र त और कछ ु नहं है ? य, भी Nबजल क" कrध म य द प7रवेश को तीnता से उजागर करने क" Tमता है तो .फर उसके अभाव क" Jशकायत उस कहानीकार क" कहा$नय, म कैसे क" जा सकती है जो हर अनभ$त ु ू Tण म एक कहानी कसमसाती हई ु दे खता हो। राकेश क" कहा$नय, म प7रव$त;त प7रि>थ$तय,, बदले हए ु प7रवेश म सांस लेते यि त के सBबध,, एक )वशेष यव>था से बंधे रहने क" अ$नवाय;ता को ढोते जाने क" )वडBबना और महानगरय संMास क" सश त अJभय त हई ु है । उनक" कहा$नयां उनके कहानी लेखन के #ारं िBभक वषd से लेखन के चरमो9कष; तक के प7रवेश को कला9मक अिव$त के साथ काल सापेT भी ह।= इस ?ि%ट को मोहन राकेश ने >वयं >वीकार .कया है - ‘‘मेरे Jलए नयी कहानी क" ?ि%ट अपने संदभd म रहकर उनके अंदर से

अपने समय और प7रवेश को आंकने क" ?ि%ट है जो हर बार नये #योग म यथाथ; को उसक" सजीवता म य त करने क" एक नयी कोJशश करती है ।''

8

राजे यादव के अनसार - ‘‘)वJभन ि>थ$तय, और )व)वध मनो)व4ान, म उतर सकने क" (राकेश क") ु अंत?;ि%ट - आ◌ॅbजेि ट)वट या $नवtयि तता- यथाथ; के तक;संगत, साथ;क संदभd क" पकड़ ...... मंद का बढा नार क" [े िजडी हो या ‘उसक" रोट' क" ू हो या ‘मवाल' का बmचा ‘आXखर सामान' क" आध$नक ु डायवर प9नी क" मजबर बेलKजत' का नपंुसक हो या ‘परमा9मा का क9ता ' का, यमला (धाकड़) ू , ‘गनाह ु ु जाट - कहं भी राकेश क" कलम डगमगाती नहं है ....... एक ओर जहाँ आपने दे ◌ेश के )वभाजन पर ‘मलवे का माJलक' जैसी सश त कहा$नयां द ह= तो दसर ओर घटन और उमस के बीच ‘नये बादल,' को ू ु रे खां.कत करने क" कोJशश क" है । कभी वह पहाड़ी >कल ' क" समानांतर ु ू म अ^यापन करती ‘सहा6गन, िजंदगी के बीच रहता है तो कभी सजल मात9व ृ क" कHण और आ; छाया के नीचे, कभी वह अपने भोलेभाले बmचे क" $न%कपट आंख, से कहासे म डबी ू ‘एक और िजंदगी' को दे खता है तो कभी Jमसपाल के ु बहाने छटे = ?) म लौट जाता है।'' मोहन ू हए ृ बानो (Lलास-टक, ु को छोड़ नह◌े◌ं पाता या शीशे को अमत राकेश के कहानी-सा ह9य क" )वषय व>तु सBबधी )व)वधता के सदभ; म राजे यादव के उपरो त 9

कथन को उhत करने का एक माM आशय यह है .क मोहन राकेश क" कहा$नय, म पा7रवा7रक )वघटन का >वHप कैसा है एवम इसके #मख ु कारण या ह= ? इसम इसक" प%ठभJम ू को उजागर करने म ृ मह9वपण; रहे गी। ू भJमका ू राकेश क" अ6धकांश कहा$नय, म म^यवगoय चेतना है िजसका मल ू के यि त है, अतः इनम यि%ट 6चंतन एवं समि%ट 6चंतन दोन, इस #कार )वलय हो गये ह= .क एक को दसरे करना क ठन है। ू से पथक ृ यह कारण है .क उनक" कहा$नय, म यि त-स9य और समाज-स9य पर समान आ<ह है । ‘‘यि त चेतना और समाज चेतना के बीच .कसी कNMम ]व]व का प7रहार कर राकेश क" कहा$नयां संवेदना ृ और बोध के उस धरातल से शH ु होती है िजसे यि त और समाज क" आं6गक सापेuTता का धरातल कहा जा सकता है।'' इनम लेखक यि त के मा^यम से $नरतर कलबलाते और संघष; करते ु ु 10

सामािजक पाRव; को उभारना चाहता है , य,.क वह अपने सामािजक दा$य9व के #$त सचेत है। औ]योगीकरण एवं )व4ान के )वकास के बढ़ते #भाव से महानगरय या क>बाई जीवन ह नहं भारतीय सं>क$त का #Rन पिRचमी T्◌ोM, क" सvयता ु ृ क" आ9मा गाँव भी इसक" चपेट म आ गये। आध$नकता एवं सं>क$त भारतीय आध$नकता के समानातर ु ु ृ के अ$त $नकट ह=, .फर भी ‘‘राकेश क" आध$नकता है ।'' अतः यहां पर मोहन राकेश क" कहा$नय, म पा7रवा7रक )वघटन का >वHप आध$नकता के ु 11

प7र#ेOय म दे खना ह उ6चत रहेगा, य,.क उनक" आध$नकता केय पाM, म है जो यथाथ; म रहकर ु भी एक अवेषी-?ि%ट बोध रखते ह।= आज का मन%य ु अपने आस-पास पैदा हए ु सवाल, से टकराता है , टटता है और $नवा;Jसत हो रहा है। वह अपने जीवन म वै4ा$नक उपलिbधय, को जाने अनजाने >वीकार ू कर रहा है और वै4ा$नक )वचारधारा ह आध$नकता क" धारणा बन गई है । अतः आध$नकता ने ु ु वाता;लाप के दायरे को $नतांत सीJमत एवं संकु 6चत कर दया है । इसी कारण यि त अकेलेपन से

$नकलने और प7रवेश से जड़ने ु के Jलए याकल ु हो रहा है । इसान अपनी इmछाओं के सहारे जीना चाहता है पर हालात (प7रि>थ$त) उसे वैसे जीने नहं दे ती।

सबध क ासद और जड़े ु रहने क छटपटाहट के कारण पा रवा रक वघटन आध$नक"करण तथा >वतMता से भारतीय प7रवेश और जनमानस म एक उ9Zाित आई है। आदश; ु और मया;दाआं◌े◌ं के मलवे पर यथाथ; और नये मानव मIय, को >था)पत .कया गया है। जीवन क" ू सपाटता और Jसधाई म असंग$तयां, )वषमताय और अनेक )वडBबनाओं ने अwडा जमा Jलया है । मन%य और Nबखरने म वह $नतांत अकेला छटता गया हैु समाज से कटा है और अपने इस कटने-टटने ू ू ‘‘सहज मानवीय सBबध, क" गमo एक ठxडी उदासीनता का Hप लेती जा रह है । आपाधापी क" इस द$नया म एकाक"पन और परायापन आज के जीवन क" अ$नवाय;ता सी बन गई है । जीवन क" यह ु अ$नवाय;ता वैयि तक, पा7रवा7रक और सामािजक जीवन म सव;M या`त है । य,.क वैयि तक सBबध, को ध.कयाकर $नतात $नवtयि तक सBबध >था)पत होते जा रहे ह।= ि>थ$त यह है .क >Mीपyष ु , प$त-प9नी, माता-)पता, भाई-बहन, #ेमी-#ेJमका आ द के सBबध मह9वहन हो गये ह।= मन%य ु का सचेतन, सहज और रचना9मक काय; )विmछन होता जा रहा है और वह अपनी $नजता खोता जा रहा है । धीरे -धीरे संवेदन शयता (>वपैथी) $नसंगता और जड़ता बढ़ गई है।'' गा◌ॅव के उजड़ने और ू 12

नगर, के आबाद होने से यि त-यि त के सBबध बदले ह।= पहले का वह दाBप9य जीवन जो कभी )वRवास के पग, चलता और समप;ण के मैदान म खेलता था आज वह संदेह और अ)वRवास क" वैसाXखय, के सहारे चल रहा है । जहाँ दल के अतल म कभी `यार जगमगाता था, वहं, अब अहं के गbबारे म भर हई ु ु नफरत क" हवा डोलती है । प7रणाम यह .क मानवीय सBबध माM औपचा7रकता, )ववशता, अJभश`त जीवन और ऊब व अकेलेपन के पया;य बनकर रह गये ह।= मोहन राकेश ने >वयं ह कहा है- ‘‘यि त और समाज को परBपरा )वरोधी एक दसरे ू से Jभन और आपस म कट हई ु इकाइयाँ न मानकर यहाँ उहं ◌े◌ं एक ऐसी अJभनता म दे खने का #य9न है जहाँ यि त समाज क" )वडBबनाओं का और समाज यि त क" यMणाओं का आइना है ।'' य, तो राकेश ने 13

यि त Zाित के सBबध, को )वशदता से अपनी कहा$नय, म 6चNMत .कया है, .कतु उनका ^यान अ6धकतर प$त-प9नी के सBबध, तक ह केित रहा है , आज >Mी पyष ु के साथ रहना तो चाहती है ले.कन कौन सा पा7रवा7रक, सामािजक और साव;ज$नक >तर पाकर, अभी तक $नण;य नहं कर पाई है । पyष करता है , .कतु .कतनी और कैसी वह भी $निRचत नहं कर ु भी नार क" आवRयकता तो अनभव ु पाया है। मोहन राकेश क" अ6धकांश कहा$नयां सBबध, के )वघटन और इससे जड़े ु रहने क" समकालन छटपटाहट को य त करती ह=, जो इस #कार ह= - एक और िजंदगी, अप7र6चत, आा;, Lलास टक = , फौलाद का आकाश, गंुझल, पहचान, सहा6गन , वाट; र आ द। ु

एक और िजदगी

‘एक और िजदगी' दो यि तय, के अहं के पर>पर टकराव और टकराकर Nबखर जाने क" कहानी है । इसके प$त और प9नी, दोन, ह अपने-अपने अहं और अ6धकार, क" रTा के Jलए सतत जागHक रहते ह=, इसी कारण उनम टकराव होता है और दोन, हमेशा के Jलए अलग हो जाते ह।= इसम टटते सBबध और ू फालतू होती िजदगी का यथाथ; वण;न है । यव>था के साथ सतलन न कर सकने क" #काश क" ु कमजोर ह हर छोर से उसे तोड़ती है और दसरे ू गलत कोने से उसे बांधती है िजतनी तेजी से वीना और #काश का पर>पर )वरोध तलाक म प7रणत हो गया था, उतनी ह तेजी से उzदाम रोग से <>त $नम;ला से )ववाह भी उसके Jलए नरक बन गया। #काश और बीना प$त-प9नी ह= उनका एक छोटा बेटा #काश भी है । दोन, का #ेम )ववाह हआ ु है । दोन, ह समान >तर के ह= - सामािजक और मानJसक, दोन, एक दसरे ू को अmछs तरह से समझने का #य9न भी करते ह= और न ह समझ पाते ह= इसJलए छोटे -छोटे तनाव, को लेकर टटते रहते ह= और .फर टटते ह चले जाते ह= उह लगता है .क शायद शHआत ह गलत ू ू ु हो गई है, उनका प$त-प9नी बन जाना ह शायद गलत था। तभी बीना एक दन #काश से कह बैठती है ‘‘मने शाद करके एक अपराध .कया ह।='' दोन, अत`त = तमसे ू से असत%ट ु रहने लगते ह= ु ृ और एक दसरे 14

और तलाक ले लेते ह।= दसरे ू $नण;य म #काश एक और िजदगी क" तलाश म एक JमM क" बहन से शाद कर लेता है जो हि>ट7रक है। परतु #काश के Jलए नये )ववाह का यह सBबध और भी घातक और तोड़ने वाला Jसh होता है। $नम;ला नाम क" यह >Mी हि>ट7रक और हपोZे टक दोन, है। उसे

ह>ट7रया के दौरे तो पड़ते ह ह=, साथ ह वह इस Dम म भी <Jसत रहती है .क उसम दे वी का अंश है। कभी >वयं को रोगी समझती है दौरा पड़ने पर #काश से कहती है - ‘‘तम मत ....... मझम  ु मझे ु छओ ु ु दे वी का अंश है ।'' #काश इस सबको सहन नहं कर पाता और उससे छटकारा पाने क" कोJशश करने ु 15

लगता है । वह दोन, क" तलना कर (बीना-$नम;ला) पनः पाने क" कोJशश म टट ु ु छटकारा ु ू जाता है । प$त-प9नी का यह अहं वाद ?ि%टकोण भारतीय सं>कार, को एक नई दशा एवं दशा #दान करता है, य,.क #काश और बीना का पर>पर #ेम, )ववाह और अत म तलाक हमारे )ववाह-सBबधी परBपरागत )वचार, और परBपराओं का उIलंघन करते ह= और उIलंघन करके भी दोन, सखी ु और सत%ट मIय जा रहे ह=, परतु उनके >थान पर ु नहं रह पाते। इसका कारण यह है .क पराने ु ू तो टटते ू नवीन, >व>थ मIय, क" >थापना नहं हो पा रह है । संZाित-कालनयग ू ु म #ायः ऐसी ह )वषमताएं जम लेती रहती ह= और धीरे -धीरे उनका $नराकरण होता रहता है । डा◌ॅ0 नरे  मोहन के शbदो◌े◌ं म ‘‘एक और िजदगी मे◌े◌ं यि त क" संZाित मनः ि>थ$त का 6चMण है । उसे लगता है जैसे वह जी न रहा है । या यह वह िजदगी थी िजसे पाने के Jलए उसने वष,र् तक अपने से संघष; .कया था ? यह 6चMण यहा◌ॅ, दाBप9य-सBबध, क" ज टल ि>थ$तय, के )ववरण, के सहारे है । ये )ववरण फालतू नहं ह=, बिIक मनः ि>थ$त को गहराते ह।=''

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मोहन राकेश ने यि तगत जीवन म इस पीड़ा को महसस ू .कया था। उह,ने >वीकार .कया है .क ‘‘आस-पास खड़ी होती हई ू रहा है। चाहते ह= उसे ु लगातार टट ु ऊंची-ऊंची इमारत, के बीच हमारे अंदर कछ टटने से बचा सक, मगर न जाने या मजबर ू ू है .क केवल गवाह क" तरह खड़े उस ढहने क" #.Zया को चपचाप दे ख रहे ह।= तट>थ और उदासीन भाव से कभी कध◌ो ् हला दे ते ह= बस। )वRवास .कये ह= .क ु

उस सBबध म कछ ु भी नहं .कया जा सकता। कम से कम अपना #य9न उसम $नरथ;क है । अगर कछ ु के इस ^वंश म यि त कर ह होगा, तो बाहर होगा। वरना जो ढह रहा है, उसे ढहना तो है ह।'' मIय, ू 17

या सकता है उसे तो आने वाले समय का ह इतजार रहता है .क हो सकता है .क आगे कछ ु अmछा ह हो। डा◌ॅ0 बmचन Jसंह ‘एक और िजदगी' क" )वJश%टता को रे खां.कत करते हए ु Jलखते ह= .क ‘‘आज के टे र्िजक तनाव को पर ू गहराई म आंकती है, जहाँ मन%य ु न तो छट ू हई ु िजदगी को छोड़ पाता है और न चनी ु हई ु िजंदगी को अपना सकता है । दोन, ओर खींचा जाकर वह Tत-)वTत हो जाता है ।'' ले.कन 18

राकेश के Jलए कहानी केवल ि>थ$त क" पहचान माM नहं, इसके आगे .कहं भ)व%यत संकेत, क" तलाश भी है, इसJलए कहानी के अत म #काश का रात के अंधेरे म बा7रस म भीगते हए ु एक (भीगे हए ु ) क9ते के साथ-साथ चलना एक ऐसा संकेत है जो इस सारे तनाव को ढला करता है, िजससे यह कहानी ु आज के पा7रवा7रक )वघटन क" ज टलताओं म से गजरते हए ु ु यि त को बेहतर िजंदगी क" खोज म आगे बढ़ते रहने का यि त$न%ठ संकेत भी दे ती है, एक खामोश और अंतम;ख ु संकेत।

अप र%चत ‘अप7र6चत' कहानी का कथा-नायक और म हला दोन, एक सीधी ि>थ$त म एकाक" जीवन जीने को )ववश ह।= अप7र6चत ‘का म=' अपनी प9नी क" मह9वांकाTाओं को प◌ू ू रा न करने के कारण दोन, के पर>पर सBबध टटते ह।= दोन, एक दसरे ू ू क" उपि>थ$त म अजनबी बन जाते ह= और कहानी क" प9नी और दशी भी एक दसरे और H6च वैJभय ू म न होने का बोध करते ह।= दोन, दBपि9तय, के गलत चनाव ु के कारण आई Mासद ि>थ$तय, का $नRचल अJभयंजन है। ‘अप7र6चत' म अप7रचय म प7रचय क" तलाश साफ झलकती है। सहयाNMणी >Mी अपने परेू भोलेपन से दाBप9य सBबध, के बीच आई कटता ु , $त तता और 7र तता का बोध कराती है । वह गलत $नण;य और H6चय, के अतराल के बोझ को ढो रह है । वह ‘Jमस.फट' है , .कतु उसम $नम;मता Kयादा है तभी तो गहने बेचकर भी प$त क" कई इmछाएं एक साथ अपने से पर ू होते दे ख सतोष करना चाहती है । यह एक ऐसी >Mी है जो बहत ु से प7र6चत लोग, के बीच अपने को अप7र6चत, बेगाना और अनमेल अनभव करती है, .कतु यह >Mी कथानायक ु से खल ु कर बात करती है । कारण दोन, के बीच एक सी H6चय, का आभास सा है । वह पहाड़ी लोग, के बीच बmच, म अपनापन खोजती है तो कथानायक भी आ दम सं>कार वाले यि तय, के बीच अmछा महसस ू करता है । कहानी म .कतनी भार )वडBबना है .क जो नार अप7र6चत है वह >वभावनकल ु ू होने पर प7र6चत लगने लगती है और जो प7र6चत है वह >वभाव के )वपरत होने के कारण अप7र6चत। प7रणाम >वHप कहानी के दोन, ह पाM एकाक" जीवन जीने को )ववश ह।= )ववा हत होकर भी वे दोन, दाBप9य सख ु न भोगकर वैवा हक सं>था क" मया;दा को ह $नभा रह ह।= याMा साथ-साथ करते समय एवं समान H6चय, क" पी ठका पाकर कछ ह।= य]य)प यह खलापन >Mी क" ओर से है । वह अपनी जैसी H6च का ु ु ु और खलते

सहयाMी पाकर भीतर कहं द)षत है । अतः कथानायक से पानी मंगाती है । चलती गाड़ी पर जब ू कथानायक पानी का 6गलास लेकर चढ़ता है तो उसक" साँस फल ू जाती है । वह अपने आप को 6ध कारती है .क ‘‘ य, भ◌ोजा पानी के Jलए, कछ ् ु हो जाता तो ........ आप न चढ़ पाते तो ........'' यहाँ 19

जो सBबध )वकJसत हए ु ह= वे अप7रचत म आकि>मक Hप से उगे प7रचय और कहं भीतर ह )वत मनोभाव, के संकेतक ह।= .फर >Mी का कथानायक को ब9ती बझाकर सला ु ु दे ना और रजाई उड़ा दे ना अप7रचय म प7रचय क" तलाश को अितम Hप दे दे ते ह।= दाBप9य जीवन क" कटता ु और नीरसता को यहाँ नया प7रचय भला ु दे ता है, .कतु पा7रि>थ$तक )व6चMता दोन, को अलग कर दे ती है यह सBबध, क" जड़ है, यथाथ; धरातल है जो िजस Hप म है का सह गवाह है । कथानायक भी द)षत है तभी तो उसके ू अचानक .कसी >टे शन पर उतर जाने से 7र तता का अनभव करता है । ‘‘इसी >टे शन पर न उतर हो यह ु सोच कर मने = Xखड़क" का शीशा उठा दया और बाहर दे खा। ........ Nब>तर म नीचे को सरकते हए = ु मने दे खा क" कBबल के अलावा रजाई भी Jलये हूँ िजसे अmछs तरह कBबल के साथ Jमला दया गया है । गमo क" कई एक Jसहरनं◌े एक साथ शरर म भर गई।''

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असल म यह कहानी बेमेल H6चय, के कारण जीवन म आई 7र तता, कटता ु और बासीपन क" अJभयि त है। H6च वैJभय >Mी-पyष ु को .कस सीमा तक और .कस तरह अलगाव के Nबदओं ु क" ओर ले जाता है तथा उसम नार अपने को .कतनी 7र त, )ववश और टटा करती है, पyष ू हआ ु ु ु अनभव .कस तरह .कसी भी बहाने उससे अलग होकर नयी मIयव9ता खोजता है व ि>थ$त क" ज टलता .कस ू तरह अप7रचय और अजनबीपन के बीच एक नये प7रचय क" अगरब9ती जला कर बझा ु दे ती है आ द सब कछ पर ू ू ज टलता के साथ यहाँ है ु इस कहानी का कcय है । एक ओर मानवीय सBबध, क" सOमता और दसर ओर मानवीय वि9त क" सहज $नRचलता से #े7रत अप7रचय म प7रचय क" तलाश। यह ू ृ ि>थ$त उसे बदलते मIयां ◌े के साये म )वकJसत नये मानव सBबध, क" कहानी #माXणत करती है । ू इनाथ मदान इसे )ववे6चत करते हए ु Jलखते ह= .क ‘‘राकेश क" यह कहानी उन कहा$नय, म से है िजसके मल ू म चेतना सामािजक क" अपेTा वैयि तक >तर पर है । ''

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आ)ा* ‘आा;' कहानी म जीवन क" यथ;ता एवं◌ं सBबध, का तनाव 6चNMत है । इस कहानी मं◌ं◌े भाई-भाई के बीच का >नेह सBबध का टट ू कर तनाव म प7रव$त;त होना तथा उसके अतराल म छटपटाती माँ का 6चMण .कया गया है । बड़ा भाई छोटे भाई से अलग सख सBपन जीवन यतीत करता है तो ु -स)वधा ु छोटा भाई अभाव, से <>त जीवन यापन करता है उन दोन, के बीच माँ क" तनावपण; ू र ् िजदगी चलती है । एक तरफ माँ छोटे बेटे क" अभाव<>त िजदगी से छटपटाती है , उसके Jलए ‘‘वह सोचती है और करवट बदलती है ।'' और दसर तरफ बड़े बेटे के पास जाकर अजनबी और मेहमान सा अनभव करने ू ु 22

लगती है । उसे ‘‘आज इस बात क" उलझन हो रह थी .क उसका भजन म मन य, नहं लगता। अब जबक" भजन के Jलए पर , परा ू स)वधा ु ू समय, उसके पास था, तो आसन पर बैठने से ह वह य, जी चराती थी।'' बहू कसम ु ु ु उससे इतनी Jश%टता और कोमलता से बात करती थी, ‘‘उससे वचन को लगता 23

था क" वह उस घर म मेहमान है । '' वचन जब भी कोई काम या अय लोग, क" यव>था म कछ ु 24

उपचार करती है तो उसका पM ु लाल भी कहता है -‘‘माँ, तू काम करे गी, तो घर म दो-दो नौकर .कसJलए है ।'' वह बहू बेटे और बmच, के बीच अपने को एक फालतू सामान सा महसस ू करती है । संवाद )वहन 25

घर म रह कर वह एक दो दन म ह ऊब जाती है । इस तरह पा7रवा7रक )वघटन सBबध, क" $नरथ;कता म और अपने ह घर म मेहमान होने क" यथा म अJभयि त है । $न%कष; Hप म यह कहा जा सकता है .क ‘आा;' कहानी महानगर प7रवेश से जड़ी ु है । नगर प7रवेश म यथ; होते सBबध, और तनाव क" िजदगी का यथाथ; उदघाटन कहानी का लOय है । इस कहानी क" )वJश%टता को रे खां.कत करते हए अ<वाल Jलखती ह= .क ‘‘ आा; म दो अलग-अलग रह रहे ु ु डा◌ॅ0 सषमा पM, ु के बीच ममतालु माँ क" पीड़ा #$तNबिBबत हई ु है । माँ दोन, के बीच )वभािजत होकर जीती है । यह उसक" पीड़ा और दाHण यंMणा का कारण है ।‘‘

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+लास टक ‘Lलास टक = ' एक ऐसे प7रवार क" कहानी है िजसका #9ये◌े◌ेक सद>य जीवन के #$त अपनी मायताएं रखता है । वह दसरे ू के साथ सहमत न होते हए ु भी उसक" भावना क" क करता चलता है । इसम बड़ी सOमता के साथ एक पा7रवा7रक [े जेडी क" अJभयि त Jमलती है । $नरतर कNMम होती जा रह ू ृ िजदगी और उसम समाती जाती ऊब व उदासी को $नH)पत .कया गया है। ‘मछल' व Lलास टक = #तीकाथ; रखते ह।= ये #तीकाथ; पर ू तरह {दय<ाह #तीत नहं होते ह।= मछल का #तीक तो .फर भी संवे]य #तीत होता है , .कतु ‘Lलास टक = ' का #तीक आरो)पत होता है । उपे नाथ अRक के अनसार ु ‘‘Lलास टक = का #तीक आरो)पत लगता है । य द ‘Lलास टक = ' के बारे म कह गयी सभी बात कहानी से काट द जाय यानी कहानी के पहले चार प%ठ ृ और चौथे प%ृ ठ क" केवल अितम चार पंि तय, को छोड़कर काट दये जाय और कहानी दसरे ू प7रmछे द से शH ु क" जाये तो #भाव म कछ ु भी फक; नहं पड़ेगा।'' मछJलयाँ आ9मकेित और अपने म डबी ू िजदगी क" ऊब और नीरसता को य त करती 27

ह।= कहानी क" नीH का सोचना भी इसी से सBबh है .क ‘‘NबIलोर पानी म तैरती सनहर मछJलयाँ ु अmछs लगती थीं, मगर हर बार दे खकर मन म उदासी भर जाती थी। सोचती, कैसे रह पाती ह= ये ? खले ु पानी के Jलए कभी इनका जी नहं तरसता? कभी इह महसस ू नहं होता .क ये सब एक-एक और अकेल ह= ? एक-दसरे ू से कछ ू ु कहना चाहती ह= ? या कभी शीश◌े् ◌ा से इसJलए टकराती ह= .क शीशा टट जाये ? शीशे के और आपस के बधन से ये मु त हो जायं।''

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नीH और मBमी के अ$त7र त प7रवार म डैडी और बीरे का ह अ6धक मह9व है, .कतु इस प7रवार पर हावी उदासी क" परत, का $नरं तर घनीभत के कारण है । नीH और ू होते जाना एक तीसरे यि त सभाष ु मBमी दोन, उसक" ओर झक" म सहानभ$त ु हई ु ु ू और कHणा का गहरा दद; भरा भाव ु ह।= मBमी के झकने है , तो नीH के झकने म दद; भरे `यार का। नीH का मछJलय, क" ‘इमोशनल लाइफ' के बारे म िज4ासु ु होना भी उसक" भावा9मक मनः ि>थ$त को ह रे खां.कत करता है । ‘Lलास टक = ' प7रवेश क" सीJमतता

और उसक" हद, को य त करता है । ‘Lलास टक और अपनी = ' म मछJलय, का इधर से उधर घमना ू हदबंद पर शीशे से उनक" टकराहट म उनक" मिु त का #यास झलकता है वैसे ह नीH व मBमी भी अपनी सीमाओं म रहकर भी उनसे ह टकराती रहती ह।= बाहर आना वे भी चाहती ह=, .कतु वे अपनी )ववशता और उदासी पर दःखी तो हो सकती ह=, उसे काटकर मन मताNबक जी नहं सकती ह।= ममा क" ु ु कHणापण; ू #ेJमल ?ि%ट का आभाश इन पंि तय, म है । ‘‘नाता 7रRता नहं है , .फर भी म= सोचती थी .क ........।'' वे सभाष क" 6चlठs के Jलए य< रहती थीं - भीतर से $छल सी रहती थीं। उसके आगमन पर ु 29

उनका बराबर दे खते जाना नीH क" ?ि%ट म ऐसा है । ‘‘म= दे ख रह थी .क ममा एक टक उसे ताक रह है, जैसे आँख, से ह उसके माथे के जeम को सहला दे ना चाहती ह,।''

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ममा अतीत क" िजदगी के डा◌ॅ टर शBभनाथ से तो नहं जड़ से अवRय ू ु पायी .कतु उसके बेटे सभाष ु जड़ी क" बात सनते काम करना भल को दे खकर उसके ु हई ु ु -सनते ु ू जाती थीं।'' सभाष ु ु ह।= ‘‘ममा सभाष 31

)पता शBभनाथ क" >म$त सह लेती है। ले.कन प$त के डर से #ेम को ू ु ृ एवं अ$नण;य के दद; को चपचाप जबान पर आने नहं दे ती। दसर तरफ नीH के मन म सभाष के #$त आकष;ण रहता है । सभाष अपनी ू ु ु $नरहता और दनता म भी नीH के Jलए मह9वपण; ू है। बचपन म उसे ‘|ाउन कैट' ह कहता है, तो नीH क" #$त.Zया है । ‘‘यह भी लगता है .क म= आँख, से कह रह हंू .क िजसे तम ु सहला रहे हो, वह ‘|ाउन कैट' नहं है । ‘|ाउन कैट' म= ह।ूँ म= यहाँ से दरू अंधेरे म खड़ी ह।ूँ चाह रह हूँ .क कोई आकर मझे ु दे ख ले और गोद म उठा ले।'' नीH मान, अंधेरे म खड़ी होकर $नRचय नहं कर पा रह है। उसका चनाव ु 32

अवसाद बनकर {दय के अंदर घमड़ कर रह जाता है । ममा भी सभाष को दे खकर अपने अतीत क" ु -घमड़ ु ु पीड़ी से झलस जाती ह= और उसी भावकता म नीH से कहती ह= - ‘‘नीH, और जैसी भी होना ....... अपनी ु ु ममा जैसी कभी न होना।'' यह स9य है .क ममा सखी ु है ले.कन मन का सख ु नीH के डैडी के साथ उसे 33

कहाँ Jमल सकता है ? पर आज उसके Jलए आ9मपीड़ा से #ा`त होने वाला सख ु ह शेष रह गया है । इस कहानी म नीH और ममा के अ$नण;य के दद; के साथ पा7रवा7रक सBबध, म )वघटन के बीज $छपे हए ु ह।= ‘Lलास टक = क" )वJश%टता को रे खां.कत करते हए = ु डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa Jलखतीं ह= .क ‘‘Lलास टक चनाव के $नण;य और अ$नण;य के दद; क" कहानी है । इसJलए यह सभाष के $नण;य से उ9पन घटन और ु ु ु अकेलेपन के साथ नीH और उसक" ममा के अ$नण;य से उ9पन अवसाद और घटनपण; ु ू िजदगी क" कहानी है ।''

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फौलाद का आकाश ‘फौलाद का आकाश' कहानी प$त-प9नी एवं तीसरे यि त के सBबध को लेकर Jलखी गयी है। दा9प9य सBबध, म सांवे6गक एकाक"पन तथा मनोवै4ा$नक कारण, के सदभ; म जो )वघटन होता है । वह ‘फौलाद का आकाश' म मोहन राकेश ने दखलाने क" कोJशश क" है । र)व अपनी प9नी मीरा के साथ दन म एक औपचा7रक िजदगी जीता है य,.क मीरा क" भावकता उसे पसद नहं .कतु रात म मीरा से ु ह अपनी कामवासना त`त ृ करता है । उनके पर>पर के यवहार म एक उदासीनता रहती है । सBबध, के अजनबीपन म मीरा और र)व एक जीवन जी रहे है । र)व अब }ड<ी कालेज म साधारण ले चरर न

होकर ->टल `लांट म लेबर एडवाइजर है । मीरा को परा ू समय घर पर ह यतीत करना होता है। पर ू सख म रहते हए ु स)वधाओं ु ु भी ये लोग अपने से तथा प7रवेश से कटे -कटे से रहते ह= और अदर ह अदर एक अनाम लड़ाई लड़ते रहते ह।= ‘‘दस साल साथ रहकर मीरा जान चक" ु थी .क इस तरह बात उसक" मजo पर नहं छोड़ी जाती, Jसफ; आदे श को तकIलफ ु का जामा पहना दया जाता है ।'' मीरा जब ु 35

कोई काम करती रहती है । और बीच म र)व को कोई व>तु क" आवRयकता होती है तो वह #9यT Hप से मीरा से न कहकर नौकर शंकर के Hप म मीरा से ह कहता है .क दे खो मीरा- ‘‘शंकर से कहोगी चाय दे जाए'' मीरा को अभी तक ऐसा #तीत होता है .क हम लोग एक दसरे ू को सह तरह से समझ नहं सके 36

ह◌ं = ◌ं। र)व एक य>त अ6धकार है सबह ु से शाम तक वह अपने काया;लय म य>त रहता है ले.कन रात को उसको मीरा क" आवRयकता है । मीरा को अपनी बाह, के कसाव म◌ं  भींचने का #य9न करते हए ु वह उससे पछने लगता है। ‘‘मेरे साथ, अपनी िजदगी तBह ू ु  बहत ु बोलने से पहले ु Hखी लगती है न ?'' कछ 37

वह उसके होठ, को अपने होठ, से भींच दे ता और मंिजल दर मंिजल शार7रक $नकटता क" हद पार होती जाती ह।= आXखर जब पसीना होकर वह उससे अलग होता तो भी मीरा को यह लगता है ‘‘जैसे अब भी Jलखते-Jलखते हाथ थक जाने से उसने कागज परे हटा दये ह, '' मीरा अंतरं ग से अंतरं ग Tण, म भी 38

अपने को र)व से अलग, NबIकल ु अलग पाती है । कभी उसे लगता है .क ऐसा उY के बढ़ते सालो◌े◌ं क" वजह से है पर इससे आगे के साल,◌ं क" बात सोचकर मन म और टस जागती, कभी उसे लगता .क ‘‘सारा दोष र)व का है। कभी लगता है .क दोषी र)व नहं, वह >वयं है ।'' मीरा मन ह मन र)व क" बाते 39

सोचकर उसके कई अथा;◌े◌ं म उलझी रहती है और यह उलझना उसे रात दन के फैसले म इतनी दरू करता जाता है .क सBबध, के )वखराव क" $नणा;यक ि>थ$त म पहच ु ँ जाती है। ‘फौलाद का आकाश' म प$त र)व, प9नी मीरा और उसके पव; का NMकोण तथा इसके ू -#ेमी राजक%ण ृ अंतग;त ना$यका मीरा क" अपने प$त के साथ रहते जीवन क" एकरसता से ऊबकर अचानक राजक%ण ृ का आकर तोड़ना िजस कला9मक #भावशीलता के साथ मोहन राकेश ने अं.कत .कया है। वह च7रM, के अंतस म उनक" गहर पैठ और मनो)वकार, क" सOम पकड़ का ह #माण है । राजक%ण मीरा का ू ृ सहपाठs था और यनीवJस; ट क" }डबेट, एवं चाय क" कैटन तक इन लोग, के साथ रहा था, और दो>ती ू म जो अतरं गता होनी चा हए थी, वह सब यनीवJस; ट के समय म इन दोन, म )वकJसत हो गई थी, ू परतु आज क" ि>थ$त Jभन है । राजक%ण अब एक मMी है । और एक मलाकात म राजक%ण मीरा का ु ृ ृ सBबध दे ह के >तर पर ह समान Hप से महसस ू होता है इसJलए मीरा अपने प$त और JमM दोन, के Jलए ‘7रलै स' होने का मा^यम होकर रह जाती है । ‘‘बौ)hक भावना शय ू पyष ु को प$त के Hप म वरण कर भावक ु नार को लगता है । वह फौलाद के आकाश के नीचे रह रह है, जहाँ `यार क" गमo और वा9सIय क" आ; ता और सरसता क" सBभावना ह नहं है (इसJलए बौ)hक ?ि%ट से अ>वीकार कर भी) #ेमी क" `यार भर बाह, क" उ%णता का )वरोध नहं कर पाती।''

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कहानी म सBबध, क" यथ;ता के अदर टट ू रह मीरा क" िजदगी $नरथ;क दखाई पड़ती है । र)व भी कहं कभी .कसी भी >तर पर सBबध बनाने का बोध नहं करता है । य>त िजदगी ने सBबध, का लोपकर, यि त को माM पजा; ु बना दया है । मीरा भी प$त और JमM के Jलए माM ‘7रलै स' करने का पजा; ु बनकर रह गई है । कहानी म सBबध, के )वघटन तथा इससे जड़े ु रहने क" )ववशता है ।

गंुझल ़ गंुझल कहानी म पा7रवा7रक सBबध, के )वघटन और इससे जडे ु रहने क" छटपटाहट य त हई ु है। लेखक कहानी के अदर सBबध, को नहं उzघा टत करता, .फर भी कारण >प%ट है । चदन और कतल प$त-प9नी होकर भी आपसी तनाव के कारण एक दसरे और चदन अपनी ू से दरू ह।= कतल ु ु वि9तक आवRयकताओं हे तु एक दसरे होती है , दोन, ू से दरू रहते ह।= अलग रहने क" पीड़ा बड़ी दःखदायी ु ृ लोग, म सBबध, को बनाये रखने के Jलए कोई )वशेष उ9सकता नहं दखाई दे ती है। सBबध, म ु इतना फैसला बढ़ता जाता है .क दोनां◌े एक ह बस म एक सीट पर बैठकर याMा करते समय {दय क" द7रय, से काफ" दरू ह= यहाँ तक .क अब उह एक दसरे ू ू के >पश; तक से भी घणा ृ हो गयी है - ‘‘|ेक लगी, तो एक बार प$त-प9नी के शरर आपस म छू गये कतल ने अपनी बाहं ◌े Jसकोड़ ल और पहले से थोड़ा ु Jसमटकर बैठ गई।'' सBबध, क" चटखन क" इससे बढ़कर और Mासद या हो सकती है, सहज Hप से 41

अंदाजा लगाया जा सकता है । चंदन बात-चीत के मा^यम से मामला सलझाना चाहता है और कतल से ु ु कछ अब और कछ ु अपने मन म या चाहती ु जानना चाहता है और कतल ु ु कहना नहं चाहती है । ‘‘तम हो, य,.क तBहारे मन क" बात का मझे >प%ट करते हए ु ु अभी तक पता नहं चल सका।'' कतल ु ु 42

कहती है .क ‘‘हम अपने Jलए न तो कछ ु चाहते है, और न ह इस )वषय म हम कोई बात करनी है ।''

43

चदन सलाह के Hप म एक #>ताव कतल के सामने रखता है .क कतल के )पता के सामने य द सभी ु ु बात रखी जाय तो शायद मामला कछ इस )वषय पर अपनी #$त.Zया य त ु $नपट सके, परतु कतल ु करती हई ु कहती है .क ‘‘हम .कसी के सामने कोई बात नहं करनी है .......। हम लोग बmचे तो ह= नहं जो .कसी तीसरे आदमी के सामने बैठकर बात करगे  .......। और )पता जी के सामने तो हम कभी भी कोई बात नहं करगं  ◌े।'' दोन, लोग, क" इस हठधJम;ता क" वजह से एक ]व]व सा चलता रहता है । 44

)वशेषकर कतल क" यह हठधमoता चदन क" बेकार क" ओर )वशेष ^यान आक)ष;त करती है, इसके ु पीछे कतल क" )वRव)व]यालय के समय क" मह9वाकांTाएं मeय बाधा बनती ह= य,.क उसक" ु ु मह9वाकांTाएँ चदन को पचा नहं पाती ह= चदन यह बात नहं सोच पाता है। वह सोचता है .क ‘‘ या एक लड़क" का सोचने का ढं ◌़ग और उसके अदर का हठ ह उसके जीवन क" हर चीज को तोड़ने के Jलए कछ ु भी नहं कर सकता था।''

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अपनी मानJसक सोच म चदन )वचार, के ]व]व म उलझ सा गया है और )वचार, के इसी गंुझल से $नकलने क" वह भरपरू कोJशश करता है उसे यह भल भां$त मालम ू है .क कंु तल अब उससे सBबध बनाना नहं चाहती है .फर भी चदन सBबध, क" तलाश म कोJशश जार रखता है अपनी याMा के पड़ाव म चंदन ने कतल क" हरकत, को झेलते हए उसके भख ू े ु ु ु काफ" क%ट सहा, परतु जब कतल

रहने के बावजद जबाब दे दे ता है - ‘‘उसके मन क" ् ू खद ु खाना खाकर आ जाती है तब उसका ध◌ौय; हलचल पहले से कहं बढ़ गई थी और उसे महसस ू हो रहा था जैसे वह उसी समय कछ ु करना चाहता हो◌े, उसक" उ9तेजना उसक" बाह, और )पंडJलय, म सरसरा रह थीं और मन हो रहा था .क और कछ ु नहं तो वह Nब>तर को ह ठोकर लगाता कछ ु दरू तक ले जाय।'' और यह वह Tण था जब उसने सोच 46

Jलया था .क या और इस तरह से जीवन जीया जा सकता है । इसी समय चदन अपने को कतल से ु अलग रहने का $नण;य कर लेता है । मोहन राकेश इस बात को >वीकार करते हए ु Jलखते है .क ‘‘यह अलगाव जहाँ एक लेखक के अपने >वतंM और $नजी यि त9व को #भा)वत करता है , वहाँ वह उसके अदर उस अि>थरता को भी जम दे ता है जो उसे अपने आस-पास के परेू रचना प7रवेश के #$त तट>थ और उदासीन नहं रहने दे ती। इस तरह ‘‘अलग होने के साथ-साथ सहभागी (पा ट; Jसपट  ) होना भी उसके Jलए अ$नवाय; हो जाता है । ''

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चदन सब कछ चाहता है जब.क कतल नार जय अहं के कारण ू से जड़ना ु ु जानते हए ु ु एक दसरे अलगाव क" ि>थ$त म जाने का $नण;य लेती है । डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa इस कहानी को सBबध, के )वघटन को इस Hप म मIयां .कत करती हई ू ू से न चाहकर भी कछ ु चाहते ु Jलखती हं ◌ै .क ‘‘दोन, एक-एक दसरे ह।= दोन, एक दसरे ू के साथ रहकर भी नहं रहना चाहते और दोन, एक दसरे ू से मु त होना चाहकर भी नहं मु त हो पाते ह।= दोन, के बीच एक अबझ नहं पाने के कारण दोन, टट ू पहेल है िजसको सलझा ु ू -टट ू कर Nबखर रहे ह।= दोन, क" खामोशी एक दसरे ू क" िजदगी को बोXझल और असय बनाये हए ु है । $घसटती-छटपटाती िजदगी कतल तथा चदन को अपने से काट कर रख दे ती है चदन बेकार और ु अभाव, क" Jमल-जल ु अनभ$त ु ू के कारण घट ु रहा है ।'' लेखक दोन, क" तनावपण; ू एवं अवसाद <>त 48

िजदगी के सBबध म कछ ु भी अJभय त करने म संकोच करता है .फर भी कहानी म दोन, के सBबध अतःसंघष; से मखर ह।= ‘गंुझल' के अंदर ‘$नण;य' का #Rन अनवरत प$त-प9नी के अदर ु चलता है िजसका उ9तर चाहकर भी पाM नहं दे पाते।

पहचान यि त समह ू एवं भीड़ म अपना प7रचय खोता जा रहा है यहाँ तक .क यि त प7रवार के बीच ‘पहचान' क" तलाश म खोया हआ ु है । ‘पहचान' कहानी म Jशवजीत अपनी पहचान क" तलाश म खाल, अजनबी और प7र6चत लोगां◌े के बीच भी मेहमान सा अनभव करता है सBबध, के एक-एक रे शे टटे ु ू हए ु ह।= पर सBबध, क" तलाश और नई िजदगी क" शHआत म बmचा अकेला और फालतू हो जाता है । Jमसेज ु महे  सचदे व >वतM और मनचाह िजदगी जीने के Jलए Jमसेज सचदे व से Jमसेज अबरोल बन जाती है। वह पव; ू प$त (महे  सचदे व) क" हर व>तु से नफरत करती है । उसक" धारणा प$त-प9नी के 7रRते के )वपरत है । वह अपने ढं ग से जीने के Jलए मन चाहे साथी का चनाव करती है पर दोन, ु सBबध, के बीच Jमसेज सचदे व का बmचा Jशवजीत अपने बारे म मBमी से सनता है .क - ‘‘म= उस ु आदमी को इसे .कसी भी हालत म नहं ले जाने दगी। कानन ँू ू -आनन ू म= कछ ु भी नहं जानती। Lयारह साल मने = इसे पाला है .......।''

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माता-)पता का अ#$तबhतापण; ू जीवन Jशवजीत के अहं को आहत करता है । )पता महे  सचदे व से माँ के सBबध टट ू जाने पर अब उसक" ‘रोलकाल' म (माँ के अबरोल अंकल के साथ रहने लगने के कारण) Jशवजीत सचदे व क" जगह Jशवजीत अबरोल बोला जाता है । ऐसी ि>थ$त म उसे उसक" <िथ कंु ठत कर दे ती है और ‘‘उस व त उसे कछ ु ऐसा लगा था जैसे भर लास म उसक" नेकर उतार कर उसे नंगा कर दया गया हो।'' ऐसी ि>थ$त म Jशवजीत को अपना )पत9व ृ अ$नणoत लगता है । पापा उसे ले जाना 50

चाहते ह= उसे यह भी पता नहं है .क >कल ू म उसका ‘सरनेम' बदल दया गया है । वह सोचता है .क वह असल म या है सचदे व या अबरोल? या इनम से दोन, नहं? कौन पापा है महे  सचदे व या डा◌ॅ0 हरदे व अबरोल। Jशवजीत का यह अत]व;]व उसे मन ह मन तोड़ता रहता है य,.क लास म जब दबे >वर म उसे सनने को Jमलता है .क लोग आपस म उसी के बारे म ह काना फसी ँू कर रहे ह= तो अंदर ु ह अंदर )वोह पर उताH होकर >कल ू से भाग आता है और अपने नये घर (अबरोल अंकल) के सद>य, के साथ एक मेहमान क" तरह अजनबीपन महसस ू करता है मां कहती है - ‘‘तू उनके बmच, के साथ घलता Jमलता य, नहं ? वे तझे ु ु इतना `यार करते ह= ........। सखदे ु व अबरोल उससे तीन साल बड़ा है ........ जब भी उसे अकेला पाता है। उसे घरकर दे खता है◌ै। बाक" तीन, ....... नीना, मीना और बसत ू उससे अलग-थलग बड़े भाई से खंस ह= जैसे .कसी ु र-पसर ु बात करते ह।= साथ खेलने के Jलए बलाते ु मेहमान को साथ खाना खाने के Jलए कह रहे ह,। वह चाहे भी तो उनके साथ नहं घल ु -Jमल सकता और वह चाहता भी नहं।'' Lयारह वष; का Jशवजीत अपने माता-)पता क" मनोवै4ा$नक सम>याओं के बीच 51

.कतना अलग एवम ् कंु ठत हो गया है .क वह अभी से अपने माता-)पता के मल ू प7रवार से )वघ टत हो गया है, और उसे नये प7रवेश म तालमेल बैठाने क" जzदोजहद करनी पड़ रह है। साथ ह वह भ)व%य के बारे म सोचकर भी परे शानी महसस ू करता रहता है । $न%कष; Hप म यह कहा जा सकता है , ‘पहचान' कहानी म मोहन राकेश ने बालक Jशवजीत के मा^यम से प$त-प9नी के आपसी तनाव और अलगाव के उपरात प9नी ]वारा .कये गये दसरे ू )ववाह के प7रणाम >वHप Jशवजीत के नाम से आये प7रवत;न के बहाने सतान क" अपनी वा>त)वक पहचान का #Rन उठाया है।'' Jशवजीत अबरोल को समाज क" वा>त)वकता >वीकार कर उसके अनसार चलना ु 52

पड़ेगा य,.क भौ$तकता क" दौड़ म यि त बहत ु #ा`त कर ु आगे बढ़ना चाह रहा है और वह सब कछ लेना चाहता है जो उसके दमागी जेहन म भरा हआ ु है । उसका अवचेतन मन समाज क" परवाह नहं करता तथा वह केवल यि तगत >वाथ; म इतना तIलन हो जाता है .क अपने प7रवार के अि>त9व को भल ू सा जाता है और ऐसे Jशवजीत, को केवल सोचने और जीने के Jलए छोड़ जाता है इस वा>त)वकता और )वभाजन क" Mासद म वह केवल सहानभ$त ु ू ह जता सकता है कर कछ ु नहं सकता ? डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa के शbद, म - ‘‘Jशवजीत के मन म जो पहचान और प7रचय अपनी माँ और अबरोल अंकन क" थी अब एक साथ और एक घर म रहकर भी वह अप7रचय के धध ु म अपने अंदर शय करता है लास म उसे सनसान और अकेला लगने लगता है, घर म माँ अवरोल लगने ू अनभव ु ु लगती है और वह अवरोल अंकल तथा उनके बmच, के बीच >वयं को मेहमान सा अनभव करता है। इस ु तरह आध$नकता टटते सBबध, के तनाव म अJभय त होती है।'' ु ू

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सहा%गन 2 ु ‘सहा6गन ' कहानी सBबध, के )वघटन और जड़े ु ु रहने क" छटपटाहट क" सम>या को लेकर Jलखी गयी है । कहानी के अदर सभी सBबध $छन-Jभन हो गये ह= पर कहं न कहं से अवचेतन Hप से सBबध, का बोध बना रहता है । कहानी म सBबध, क" तलाश जार नहं है । मनोरमा सशील (प$त) से ु कछ ु कहना चाहती है और वह अपने खालपन का बोध उसे कराना चाहती है ले.कन वह चाह कर भी कछ बोध होता है । ‘सहा6गन ' क" दोन, ु ु ु कह नहं पाती। अतः कहानी म अ$नण;य क" ि>थ$त म आध$नक ना$यकाएँ मनोरमा और काशी आ9म$नभ;र ह।= मनोरमा सचदे व गIज; हाई >कल ू क" हेड Jम>[े स होते हए से अलग रहकर नौकर करती है प$त बाहर ु ु भी भीतर से बहत ु अकेल है वह अपने प$त सशील नौकर पर है और शायद उसे प9नी क" इतनी जHरत नहं िजतनी उसके पैसे क"। यह हालत उसक" नौकरानी काशी क" है ‘‘सशील नहं चाहता था .क वह नौकर छोड़कर घर-गह>थी के लायक ह हो रहे । ु ृ साल-छः महने म सशील को अपनी बहन उBमी का bयाह करना था। उसके दो भाइर; ् कालेज म पढ़ रहे ु थे। उन दन, उनके Jलए एक-एक पैसे क" अपनी क"मत थी। कम से कम चार-पाँच साल एह$तयात से वाले और प$त समझते ह= .क उसे चलना चाहता था। ‘‘ )ववा हता नार य द नौकर करती है तो ससराल ु 54

नौकर क" इजाजत दे कर बहत ु बड़ा अहसान .कया है अतः उसक" आय पर पहला अ6धकार उनका है। मनोरमा इस पा7रवा7रक दा$य9व को $नभाने के Jलए सशील से अलग रहने के Jलए $नण;य कर लेती है। ु मनोरमा को #ारBभ म इस $नण;य से काफ" क%ट हआ ु , परतु शी€ ह उसे एहसास हो गया .क हमारा और सशील का 7रRता केवल पैस, पर टका है वह सोचती है भला ऐसा कौन सा प$त होगा जो अपनी ु प9नी को इतने-इतने दन, तक अकेला छोड़ दे गा। मनोरमा सशील को पM भी नहं Jलखती है - ‘‘ य,.क ु कई दन, से वह सोच रह थी .क सशील को दसर 6चlठs Jलखे, मगर >वाJभमान उसे रोकता था । या ु ू सशील को इतनी फस; से .कतना ु ु त भी नहं थी .क उसे कछ ु ु पंि तयाँ ह Jलख दे ।'' मनोरमा को सशील 55

कछ ु कहना है और .कतना कछ ु >वयं से Jशकायत है परतु मन ह मन के अत]व;]व तथा >वाJभमान को दबाये वह जी रह है । प$त ]वारा शो)षत मनोरमा अपने से अ6धक सौभाLयशाल उस काशी को समझती है जो प$त क" मार खाकर भी परदे श से आने वाले प$त के Jलए aंग गभ;वती बनती है । मात9व ु ु ृ सख ृ ार करती है और दबारा से वं6चत हो मनोरमा काशी के बmच, को >नेह दे ती है और प$त को आ6थ;क सहायता दे ते हए ु अपना रस सखाती है । मनोरमा के यहाँ नौकरानी काशी अपने तीन बmच, स हत Hखी सखी ु ू खाकर जी रह है परतु काशी क" लड़क" कती को दे खकर मनोरमा के मन म एक ललक सी उ9पन होती है । इस ललक को ु सशील परा ु ू नह◌े◌ं होने दे ता है - ‘‘वह नहं चाहता था .क अभी कछ ु साल वे एक बmचे को घर म आने द , उससे एक तो उसका .फगर खराब होने का डर था, .फर उसक" नौकर का भी सवाल था। सशील नहं ु चाहता था .क वह नौकर छोड़कर बस घर-गह>थी के लायक ह हो रहे ।'' ृ

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दसरे ू >तर पर पा7रवा7रक सदभ,र् क" Mासद मनोरमा क" पह Hपये माJसक आमदनी पर रखी गयी काशी नौकरानी झेलती है .फर भी वह प$त$न%ठ है। उसका प$त अज^या शहर म एक दसर औरत के ु ू साथ रहता है और दो-तीन साल के बाद एक बार काशी के पास आकर उसको मारपीट कर सारा धन छsनकर #सवाव>था म छोड़ कर चला जाता है। काशी .कतनी )वपनाव>था म अपना व बmच, का पालन करती है , इसका उसके प$त को अहसास तक नहं। इस #कार मनोरमा और काशी दोन, को )ववाह का कोई सख होने क" )वडBबना ढो रह ह=- ‘‘हमार असमान ु नहं। वे तो केवल सहा6गन ु यव>था अपने सोच एवं यवहार म .कस हद तक Zर ू , अमानवीय और >Mी )वरोधी हो सकती है। जैसी ि>थ$तयां ह= उनम आ6थ;क ?ि%ट से >Mी के आ9म$नभ;र होने से भी कोई बड़ा फक; पड़ने वाला नहं है , पyष प7रवत;न के Nबना >Mी सब कहं एक सी बेबस और ु वच;>व वाले इस सामािजक ढांचे म ब$नयाद ु लाचार है ।''

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मनोरमा और काशी दे खने म तो समाज के Jलए सहा6गन  ह= परतु उनका मन अकेलापन, खालपन ु और घटन क" संवेदना से सBबध, को अजनबीपन क" ओर ले जाता है ‘‘ य,.क वैयि तक >तर पर ु काशी और मनोरमा िजस सामािजक दा$य9व को $नभा रह ह= उसम लेखक का समि%टबोध झलकता है। नार >वातMय केवल एक नारा माM है , व>ततः ु पyष ु ]वारा शाJसत समाज म नार अभी तक )ववश जीवन जीने को मजबरू है ।'' नार क" यह ि>थ$त उसे इतनी )ववश कर दे ती है .क ‘‘सभी तरह से 58

कोJशश करने पर वह अपने को दसर, के बीच Jमस.फट पाती है मनोरमा भी घर और बाहर के बीच दनू रात सतलन >था)पत करने के Jलए दन-रात खटती रहती है .फर भी .कसी से जड़ ु ु नहं पाती।''

59

लोकाचार क" ?ि%ट से सBबध, का यह $नवा;ह तो चलता ह रहता है और नार का सं>कार मन एक वा^यता के Hप म जड़ा ु भी रहना चाहता है परतु इस जड़े ु रहने क" )ववशता ह उसे खोखला एवम जड़हन बना दे ता है। $न%कष; Hप म ओम #भाकर क" ट`पणी इस #कार है - ‘‘सहा6गन  , िजसम ु मनोरमा और काशी दो )ववा हत ि>Mय, के मा^यम से प9नी Hप नार क" )ववशता (ले.कन साथ ह 9याग और मम9व भी) तथा सशील और अज^या नामक दो पyष, के ]वारा प$त-Hप पyष ु ु ु ु क" $नम;मता और >वाथ;परता को उभारकर दाBप9य जीवन के उसी भयावह Hप को ह अं.कत .कया गया है । सं>कार <>त नार का प9नी-Hप म क%ट झेलना और पyष ु का प$त-Hप म जाने-अनजाने आततायी हो उठना ह जैसे दाBप9य जीवन क" वा>त)वकता है ।''

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3वाट* र ‘ वाट; र' कहानी $नBन म^यवगoय प7रवार के आपसी कलह तथा दाBप9य सBबध, म आयी कटता ु को रे खां.कत करती है जो महानगरय जीवन बोध क" वत;मान म एक Mासद भी है । शंकर राजवंशी और उसक" प9नी राधा दIल म कनाट पैलेस से कल ू पर पा◌ॅच कमरे का qलैट लेकर ु आधा मील क" दर रहते ह।= वेतन एवं वाट; र से वे दोन, सत%ट ु से दखत ह= परतु इसम शंकर के )पता, दो बहन, दो भतीजे, बड़े भइया; नाथ तथा अत म म◌ु ु कु द के आ जाने से ‘ वाट; र' काफ" य>त सा हो गया है

इसJलए तो प9नी राधा कहती है .क ‘‘िजतने िजतने लोग आकर पड़े रहते ह=, उससे मसा.फर खाने से ु कछ ु ।'' शंकर को पहले इसी qलैट को लेकर .कतना गव; था, परतु संबिधय, ु कम भी नहं लगता मझे 61

क" इस भीड़ म वह उसे काटने को दौड़ता है य,.क प9नी राधा के साथ-साथ उसे बmची क" दे खभाल जो करनी है । पा7रवा7रक सBबिधय, का यह जमावड़ा अथ; के >तर के साथ-साथ सभी सद>य, के )वचार, म सतलन भी नहं >था)पत कर पाता है य,.क शंकर के बढ़े ु ू )पता को ऐसा #तीत होता है .क शंकर उनक" दे खभाल उ6चत ढं ग से नहं करता है और पैस, को अनावRयक पानी क" तरह बहा रहा है । वहं शंकर को अपने )पता का अनावRयक ह>तT्◌ोप पसद नहं ह= शंकर के दो>त, के ऊपर होने वाला खच; दे खकर )पता जी कढ़ते रहते ह=- ‘‘कहं इस तरह भी घर चला करते ह= ? कमाना बाद म और खच; पहले ु कर दे ना। म= कहता हूँ सारे अरमान एक ह बार परेू कर लोगे तो बाक" उY काटने को बचेगा या ?''

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)पताजी परानी पीढ़ क" सोच रखते हए ु ु भी वत;मान क" ि>थ$त को शंकर से इसJलए िजZ करते रहते है , य,.क यह अनावRयक खच; एक दन उह परे शानी म डाल सकता है , परतु ‘‘ वाट; र के पापा का अि>त9व अपने बेटे शंकर राजवंशी क" ?ि%ट म नगxय है । )पता को पM ु क" आदत पसद नहं और पM ु को )पता क" इसJलए दोन, पी ढ़याँ तनाव झेलती ह= .......। पापा )वरोध चाहे .कतना ह कर , पM ु के साथ रहना उनक" मजबर करते हए ू है वह अपने को फलतू अनभव ु ु पहाड़ जैसे दन Nबता रहे ह।='' प9नी राधा 63

को शंकर से Jशकायत रहती है .क उसने इस भीड़ म डालकर उसके साथ Kयादती क" है । शंकर क" बहन, क" Xझड़क" तो एक हद तक वह सन ु सकती थी, परतु राधा को यह कतई गवारा नहं है .क उसक" बगल वाल पड़ोसन Jमसेज शमा; घर आये और उसके प$त को काफ" )पलाकर चल जाये। राधा को शंकर क" म हला JमM, Jमसेज शमा; और लIला से 6चढ़ है इसJलए वह शंकर के #$त शक करने लगती है । यह शक क" ि>थ$त उसे अपने पैतक ृ घर जाने को )ववश कर दे ती है। परतु शंकर के गलतफहमी दरू करने म उIटे राधा ग>से म शंकर से कहती है- ‘‘नाम लेने क" भी जHरत है या? मेरे सामने बैठे हए ु ु ु तBहार आँख bलाउज के अंदर घसी ु रहती ह।='' और आँख, क" गलत फहJमयां दोन, के जीवन म एक ऐसी दरार 64

पैदा कर दे ती ह= जो #यास करने पर भी नहं पट पाती है । छोटा भाई मकद जो शाद के बाद अपनी ु ु ससराल म रह रहा था वह भी लड़कर भाग आया है और उसने तय कर Jलया है .क एक-दो दन म वह ु प9नी को भी यहं ले आयेगा। वाट; र मे◌े◌ं प7रवार के लोग केवल कछ ु दन, के Jलए, अ>थाई Hप से साथ रहने को एकNMत हए ु ह=, पर वे उस थोड़े समय के Jलए भी सहज नहं हो पाते। )पता-पM ु , भाई-बहन, भाई-भाई और यहाँ तक .क प$त-प9नी के सBबध तक वाट;र म इस सीमा तक )वघ टत हो चक ु े ह= .क वे एक दसरे ू पर केवल अपना ?ि%टकोण लादना चाहते ह= तथा एक दसरे ू के ?ि%टकोण को समझने क" चे%टा ह नहं करते ह।= बाप-बेटे, बहू, भाई-भाई सभी सBबध, क" $नरथ;कता म एक दसरे ू से कटे , अजनबी और फालतू हो चक ु े ह= .कसी को .कसी के Jलए .कसी भी तरह क" छटपटाहट नहं है । बाप वhाव>था और बेकार से टट ू रहा ृ है । िजसके कारण वह अपने बहू-बेटे के साथ रहकर भी मेहमान हो गया है । भाई-भाई साथ रहकर भी एक दसरे ू के Jलए कोइ◌्रर् >नेह नहं रखते। प$त-प9नी अलग ह।= राधा बेबी को लेकर अलग ह टट ू रह

है । सभी एक दसरे तरफ शंकर सभी #कार के सBबध, ू के Jलए अजनबी और बेगाने से लगते ह।= दसर ू से $घरकर भी अकेला और खाल महसस वाट; र भी मन के ू करता है - ‘‘ढ़े र सार जगह बाय स)वधापण; ु ू मेल के अभाव म यातनादायी बन जाता है ।''

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‘ वाट; र' कहानी म प7रवार के प7रपण; ू NबBब के खिxडत हो जाने क" #.Zया उपि>थत है । वा>तव म आध$नक"करण के सदभ; म आज प7रवार का ढांचा टट ु ू रहा है। कहानी म सBबध, क" यथ;ता और अकेलेपन क" यMणा >प%ट तौर पर दखती है । डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa के शbद, म - ‘‘ वाट; र कहानी म टट ू रहे प7रवार का यथाथ; 6चMण हआ ू से ु है । प7रवार के सभी सद>य >वयं म Jसमटे हए ु और एक दसरे अलग और कटे हए = , खीजते ह= और Zो6धत होते ह।= एक वाट; र म सभी ू को दोष दे ते ह◌ं ु ह।= वे एक दसरे रहकर भी न रहने क" तरह ह=, एक दसरे भी जड़े ू से न जड़कर ु ु रहने का असफल #यास करते है ।''

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आ%थ*क ववशता और िजदगी के दहरे ु पन के कारण पा रवा रक वघटन आध$नक"करण के ]वारा )वकास को ग$त Jमल। )वकास एवं #ग$त क" दौड़ म अभी ‘और आगे' क" ु भावना नहं, साथ ह मन%य ने प7रवार Hपी सं>था म एक ऐसे ‘bलैक होल' का ु के Jलए आध$नकता ु $नमा;ण .कया है, िजसम >वयं वह घुट रहा है। वै4ा$नक आ>था ने आध$नक समाज के सBमख ु ु दो ?Rय ़ खडे कर दये है । एक ?Rय है, प क" सड़कं◌े, बि>तयां, ऊंचे-ऊंचे मकान, बाजार, मनोरं जन के साधन, Nबजल के उपकरण, JशTा के, राजनी$तक ग$त)व6धय, के के, तेज चलने वाले वाहन, अय शहर या दे श, से सBपक; साधन, सख क" द$नयां , आ द यह आध$नक नगर, क" दे न है । तो दसरा ु -स)वधाओं ु ु ु ू ?Rय है, गद बि>तयाँ, मंह , बीमार, असमान ु तोड महगांई, बेकार, संयु त प7रवार म दरार, भखमर ु )वतरण, गरबी का नक;, मानJसक तनाव,न सलझने वाल सम>याएं, असरTा , अपराध-बोध, ु ु अकेलापन, आ9मघाती ि>थ$तयाँ और आ9मपरायापन भी दया है । वत;मान समय क" बेकार और धन-)वतरण क" अयव>था यि त को यथ;, $नःसहाय और अजनबी बना चक" ु है , िजससे पा7रवा7रक, सामािजक और यि तगत सBबध $छन Jभन हो रहे ह।= आध$नक ु मन%य ु पैसे क" अ$नवाय;ता से बंध गया है । उसके जीवन से सारे सBबध $नम;ल ू हो गये हं ◌ै। अथ; पर आधत आ6थ;क कारण, ु ृ समाज क" संरचना बन गयी है। .कसी भी समाज का प7र?Rय मeयतः से ह संचाJलत होता है । अथ; एवं अथ;यव>था आज वह धर ु बन गयी है, िजसके ]वारा समाज के यवहार, सBबध, 7रRते आ द सभी $नधा;7रत होते ह।= मन%य ु क" ?ि%ट अथमख ु और अथ;केित होने का प7रणाम ह है .क संयु त प7रवार, म दरार पड़कर अलग-अलग छोटे -छोटे प7रवार बन गये ह।= माता-)पता, भाई-बहन, चाचा-भतीजे, प$त-प9नी आ द के सBबध ढ़ोये जा रहे ह।= इन सबम अथ; का )वषधर कं◌ुडल मारकर बैठ गया है । फलतः वत;मान समय बेकार और अथ;-)वतरण क" अयव>था आदमी को यथ;, असहाय और अजनबी बना चक" ु है । राकेश जी क" कहा$नय, म आ6थ;क तनाव और अथा;6aत )ववशताओं का 6चMण Jमलता है । अथ; के संकट के कारण िजदगी का दोहरापन उनक"

कहा$नय, म #खरता से Jमलता है- ‘खाल‘, ‘भख ू े,' ‘हकहलाल,' ‘जानवर और जानवर', ‘पांचवे माले का qलैट', मंद, वा7रस, ‘उसक" रोट', इ9या द।

खाल ‘खाल' कहानी प$त-प9नी के ऊब भरे जीवन क" कहानी है । #9येक पाM अपने दै $नक काय;Zम से बहत ु बोXझल और रोचकता )वहन ग$त )व6ध से उदास दखाई दे ता है। इसम अकेलेपन क" गहन अनभ$त ु ू है । यह अकेलापन कछ ु )वJश%ट ि>थ$तय, क" उपज है जो यि त के बाहर और भीतर दोन, जगह )व]यमान है । ये ि>थ$तयाँ उसक" अपनी चनी के Tण, म यह मनः ु हई ु ु ह।= और इसJलए चनाव ि>थ$तयाँ, अ$नRचय और अ$नण;य क" ह।= )वदरप ू ् और यंLय क" है । असंग$त और )वसंग$त क" है । इस ऊब और एकाक"पन ने इस कहानी के पाM, को इतना नीरस बना दया है .क सब आस-पास का वातावरण तथा सगे सBबधी उनके जीवन के ‚ोतां◌े को सखा ु से दे ते ह।= तोषी और जगल म^य $नBन वगoय दBपि9त ह।= जगल एक दqतर म साधारण कम;चार है , तोषी पढ़ ु ु Jलखी है .कतु घर के कायो◌ेर◌ं होता है। ् को दे खते हए ु ु दन भर उसे खालपन तथा 7र तता का अनभव इससे सBबध, म Nबखराव पैदा होने लगता है । तोषी और जगल नामक दBपि9त के मा^यम से प$तु प9नी के असंगत जीवन-सBबध, को उकेरा गया है । तोषी को जीवन क" एकरस $नरंतरता और अकेलेपन से इतनी ऊब हो गयी है .क उसका मन>त9व असंतJलत हो उठा है । वह इस सने ु ू घर म एक )व6चM मनः ि>थ$त का एहसास करती है । ‘‘दहलज क" तरफ जाते हए ु उसे लग रहा था .क गमo उसे परे शान कर रह है । उधर से लौटते हए ु लगने लगा क" गमƒ नहं, एक गध है , जो उसे ठsक से साँस नहं लेने दे रह। वह गध हर चीज से आ रह थी। पलंग से खंट ू  पर टं ग कपड़, से फश; से अपने आपसे ।''

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सBबध, तथा अकेलापन क" इस प$त; से कछ ू के Jलए तोषी प$त जगल ु ु बात करना चाहती है तो ऐसे समय म वह अपने को और खालपन तथा खोखल महसस ू करती है य द कोई व>तु क" फरमाइश या Jशकायत उसे जगल से रहती है तो जगल क" आंख, क" बेबसी तथा असहाय चेहरा उसे बड़ा भयानक सा ु ु लगने लगता है - ‘‘तोषी को .फर वह 6चढ़ हो रह थी। वह समझ नहं पा रह थी- .कस चीज से। अपने से ? कमरे के कोने-कोने म लदे सामान से? Xखड़क" से कमरे म फैल आयी धप ू से।''

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तोषी को दे खने से ऐसा लगता है .क सीJमत प7रवार के कारण उ9पन अकेलेपन ने तोषी को न केवल घर गह>थी अ)पतु बाहर प7रवेश (धप ू ) और यहाँ तक .क >वयं से भी )वरि त बना Jलया है । वह इस ृ सार ऊब और तनाव भरे जीवन के Jलए अपने प$त जगल को िजBमेदार मानती है तथा उसे छोड़कर ु चल जाना चाहती है य,.क उसे ऐसा #तीत होता है .क जगल के साथ वह बाहर क" द$नया से ु ु उ9तरो9तर कट सी गयी है िजBमेदार जगल ह है , य,.क ‘‘जगल को उसके मायके के लोग, से 6चढ़ थी, ु ु अपने घर के लोग, से 6चढ़ थी, पास पड़ोस के लोग, से 6चढ़ थी, हर आने-जाने वाले से 6चढ़ थी, कभीकभी तो लगता था .क उस आदमी को Jसवाय अपने, हर एक से 6चढ़ है, बिIक अपने आप से भी 6चढ़ है । वह सबह ु दqतर जाता था तो दqतर के लोग, पर बड़बड़ाता हआ ु शाम को घर आता था, तो घर के

लोग, पर बड़बड़ाता हआ। िजदगी क" हर चीज उसक" नजर से .कसी वजह से गलत थी और वह ु अकेला हर गलत चीज को ठsक करने के Jलए या कर सकता था?'' अि>त9वाद दश;न का एक माJम;क 69

पहलू होता है .क यि त अपने Jसवाय .कसी को कछ कट एवं ु ु समझता ह नहं है उसे सार द$नया खाल सी महसस ू होती नजर आती है उसे सब सगे सBबधी बेगाने से लगते ह= इसJलए तो तोषी से जगल कहता है .क ‘‘कोई .कसी का कछ ु ु नहं लगता .......। ऐसा ह वहम होता है कछ ु दन, का, इन दोतीन लोग, के साथ भी वहम ह बना हआ ु है जब ख9म हो जाएगा, तब .कसी को याद भी नहं आएगी .कसी क" ......।'' यह खालपन तथा अलगाव वातावरण से उपजने के साथ ह साथ लेखक क" 70

यि तगत ि>थ$त को भी य त करता है। ''यह अलगाव जहां एक लेखक के अपने >वतM और $नजी यि त9व को #भा)वत करता है, वहाँ वह उसके अदर उस अि>थरता को भी जम दे ता है जो अपने आस-पास के परेू रचना प7रवेश के #$त तट>थ नहं रहने दे ती। इस तरह ‘अलग' होने के साथ-साथ सहभागी (पा ट; Jसपट  ) होना भी उसके Jलए अ$नवाय; हो जाता है'' यह अलगाव या खालपन जगल ु 71

तोषी को परेू )वोह तथा असतोष के बावजद ू साथ रहने के Jलए मजबरू करता है य,.क वत;मान जीवन क" सबसे बड़ी )वसंग$त भी यह है । $न%कष;तः इस कहानी म भी ‘‘प$त-प9नी साथ रहकर कछ ू से भी खाल ु भी नहं पाते, बिIक एक दसरे होते जाने क" िजदगी क" ओर बढ़ते रहते ह।= प$त-प9नी के सBबध, के ठं डप े न के पीछे कोई सामािजक दबाव नहं, अ)पतु $नजी >वभावगत कारण ह=, अतः यह कहानी यि%ट-बोध क" है ।''

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भूखे ‘भख ू े' कहानी म आ6थ;क )ववशता एवम दाBप9य जीवन क" पारBप7रक सं>क$त ृ का परBपरागत Hप मानवीय सBबध, के आधार पर उकेरा गया है। यह कहानी उस सदर और आकष;क यवती एवलन क" ु ु कथा है िजसे प7रि>थ$तय, के Zर ू थपेड़, ने $नरतर #हार करके जज;7रत कर दया है । सड़क चलते नवयवक ु , होटल का मैनेजर, ढाबेवाला सभी उसक" )ववशता से लाभ उठाना चाहते ह।= वह आ6थ;क अभाव म भी अपना >वाJभमान बनाए रखती है या अपने और अपने बmचे के Jलए .कसी क" दया नहं चाहती। एवलन ने अंगेर् ज होते हए से #ेम )ववाह .कया है । स9यपाल अmछा ु ु भी स9यपाल नामक पंजाबी यवक 6चMकार होते हए ु भी धन कमाने म सफल नहं हो सका। 6चंता एवम संघष; के कारण उसे ट0 वी0 हो जाती है एवलन अपना सब कछ ु बेचकर उसे >वा>cय लाभ हे तु Jशमला ले आई है और तन-मन से उसक" दे खभाल करती है प>तु बचा नहं पाती है। वह प$त ]वारा बनाये गये 6चM बेचना चाहती है , पर उनका खरददार नहं Jमलता। प$त क" म9य ु ह तोड़ ृ ु, आ6थ;क संकट और बmचे का दा$य9व उसे NबIकल कर रख दे ते ह= - ‘‘एवJलन आ6थ;क संकट के तनाव म जीती है अथ; के अभाव म एवJलन अपने नवजात Jशशु को अxडे न दे कर ट.कया खाने के Jलए मजबरू करती है । माल हालत ठsक न रहने के कारण एवJलन को नै$तक और सामािजक संकट भी झेलना पड़ता है ।'' जहाँ कहं भी जाती है लोग उसके 74

यौवन और सौदय; पर छsंटाकशी करते ह।= उसके यौवन का सौदा करना चाहते ह=-लोग त>वीर, को न खरद कर कछ बात ह करते है । तभी तो होटल मैनेजर कहता है - ‘‘बात करने के Jलए तो पचास ू ु दसर आदमी जाते ह=, मगर उनका बात करने का मकसद त>वीर खरदना थोड़े ह होता है ? वे तो इसJलए जाते ह= .क दस Jमनट का ल9फ ु ले ल .....। तम ु भी हो आओ।'' एवलन िजस जगह भी जाती है सभी 75

लोग उसे भख ू े आदमी क" तरह घरू-घरू कर दे खते रहते ह=- ‘‘लोग, क" आंख, नाJसकाएं और ह,ठ मसकरा रहे थे। जो बात कह नहं जा सकती थीं उनका चटखारा लोग इशार, म ले रहे थे'' परतु ु 76

एवJलन कभी प7रि>थ$त से समझौता नहं करती। उसक" आशा और )वRवास उसे हर संघष; का सामना करने क" शि त दे ते ह।= ‘भख ू े' कहानी म मोहन राकेश ने #तीका9मक Hप से सBबध, के Tरण होने क" #.Zया को 6चM, के मा^यम से उभारा है। एवलन ]वारा बेचे जाने वाले 6चM, का शीष;क ‘6गh' एवम ‘दाता' से यह त>वीर उभर कर सामने आती है - ‘‘एक 6चM का शीष;क था ‘6गh'। उसम 6गh, क" आंख कछ ु ऐसी थीं जैसे वह द$नया क" हर चीज का मजाक उड़ा रह ह, और च,च कछ ु ु थी जैसे हर चीज को $नगल ु इस तरह खलं जाना चाहती ह,। च,च, और पजां◌े◌े पर पराने जम हए ु ु लहू के $नशान थे। वह एक ऐसा 6चM था िजसे दे ख लेने को मन होता था और आ◌ॅख हटा दे ने पर .फर दे खने क" कामना होती थी।'' । इसी तरह दसरा ू 77

6चM भी वत;मान हक"कत को #दJश;त करता था। 6चM का शीष;क था ‘दाता'। ‘‘उसम एक ह}wडय, का ढाँचा एक ठठ ू के नीचे बैठा हाथ का खाल कटोरा शय ू क" ओर उठाए था। वे ऐसे 6चM थे जो डरावनी छायाओं क" तरह दमाग म घर कर जाते थे।'' कहानी म भख ू े #तीक ऐसा सजीव 6चM खींचता है जो 78

मानवीय सBबध, को दोन, >तर पर जीते एवं मरते चैन से नहं रहने दे ता। ‘भख ू े' कहानी म पा7रवा7रक )वघटन क" दा>तान एवJलन क" $नवा;Jसत और तनावपण; ू िजदगी म जाकर उभरता है । और एवJलन क" यथ;ता म जाकर >प%ट होता है । भख ं न करते हए ू े का मIयाक ू ु डा◌ॅ0 ओम#भाकर Jलखते ह=- ‘‘भख ू े मोहन राकेश क" एक कहानी है िजसम एवलन बाक;र नामक )वदे शी म हला के मा^यम से एक ऐसी $न%ठावान प9नी का च7रM अं.कत .कया गया है जो अपने प$त के बीमार और बेकार हो जाने पर उसके (और अपने भी) पM ु के पोषण तथा प$त क" तीमारदार के Jलए अथक संघष; कर अपने #ेमी और प$त (एवलन ने #ेम )ववाह .कया था) के #$त अपने भि त के >तर तक पहचे ु ँ हए ु #ेम और कत;य दोन, का एक साथ $नवा;ह करती है । मोहन राकेश ]वारा उकेरा गया दाBप9य जीवन का एक 6चM यह भी है जो न केवल हमार पारं प7रक सं>क$त है अ)पतु ु ृ से ह अनमो दत >वयं म भी पया;`त आकष;क वा>त)वक अतः >पहणीय है ।'' ृ

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हकहलाल ‘हकहलाल' आ6थ;क )ववशता और जीवन के दहरे ु पन के कारण जीने वाले दBपि9तय, के पा7रवा7रक द>तान को यह कहानी रे खां.कत करती है । ‘हकहलाल' म पहाड़ी बि>तओं के उस परBपराबh #ेम का $नHपण है िजसके अतग;त नार अय उपभोग व>तओं ु क" भां$त Zय )वZय क" व>तु मानी जाती है ।

भारत एक धम; $नरपेT रा%[ है यहां पर सभी धम,र् के अपने-अपने र$त-7रवाज ह= जो यि त िजस समाज से सBबध रखता है उसे उसी के अनसार अपनी र$तय, एवं परBपराओं का $नवह;न करना ु आवRयक होता है य द वह समाज क" परBपराओं या कम;काxड, का उIलंघन करता है तो उसे सव;#थम प7रवार दxड दे ता है य द प7रवार इसे $नयंNMत नहं कर पाता है तो सामािजक सं>थाय या सरकार उसे दिxडत करती ह।= पहाड़ी र$त 7रवाज, के अनसार शाद के व त वधू क" क"मत वर को चकानी रहती है। ु ु बड़ढ़ा अपनी जवान और खबसरत है । वह आ6थ;क  ु ू ू लड़.कय, को बh ृ अखबार वाले पिxडत के हाथ बचता )ववशता के कारण अपनी लड़.कय, क" शाद नहं कर सकता पर उह बेचकर अथ; का उपाज;न करता है। अनमेल )ववाह और उY का अतर अखबार वाले पिxडत को अपनी जवान बीबी से सामंज>य >था)पत नहं करने दे ता है और एक दन उसक" बीबी घर से भाग जाती है । अपनी यथा को कथावाचक से पिxडत कहता है .क ‘‘आज इस औरत ने पJलस वाल, के जते ु ू भी संघ ु ा दये। यह काम भी तकदर म Jलखा था।'' अपनी इस )ववशता एवं संवेग को लेकर वह कथावाचक से यह भी कहता है .क कोई बात 79

नहं, म= इसके >थान पर उसक" दसर बहन को ले आऊँगा। और दावे के मताNबक वh ू ु ु क" ृ पिxडत बडढ़े दसर जवान लड़क" को ले आता है य,.क ढ़ाई सौ का खच; वह बडढ़ा पं}डत को दे नहं सकता था, ू ु फलतः उसने लड़क" दे ना ह उ6चत समझा। कछ प9नी पJलस के हाथ लग जाती ू ु ु दन बाद उसक" दसर है और पनः >Mी को भी पं}ड़त बh ु बh ू ृ पं}ड़त को सrप द जाती है ऐसी ि>थ$त म दसर ृ को नहं सrपता, य,.क पं}ड़त कथानायक से यह कहता है .क ‘‘मने = आपसे कहा था, इसका बाप बहत ु गरब आदमी है । उसके पास इसे Xखलाने के Jलए एक पैसा भी नहं है । उसको इसका सौ-सवा सौ चा हए सो म= उसे दे दगा। इतने दन, से घर म रह है, सो अब छोड़ने का मन नहं करता, आदमी को आदमी से मोह हो जाता ँू है और या पता कल को बड़ी भाग जाय। ऐसी का कोई भरोसा थोड़े है ।'' आज मानवीय मIय, का पतन ू 80

एवं नार जीवन क" )ववशता तथा सBबध, का )वखरना इतना ती| है .क उसे यि त रोक नहं पा रहा है और $नरतर )वघ टत होता जा रहा है । मोहन राकेश इस तcय को >वीकार करते हए ु Jलखते है .क इसम ‘‘लेखक का वा>त)वक कJमटमेट .कसी )वशेष )वचारधारा से न हो कर अपने से, अपने समय से और समय के जीवन से होता है ।''

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$न%कष; Hप म यह कहानी वत;मान के यथाथ;, पा7रवा7रक मIय, के पतन होने क" दम भरती है य,.क ू ‘‘कहानी म आ6थ;क )वपनता के कारण एक तरफ बw तरफ उसक" बेट बh ु ढ़ा कराह रहा है और दसर ू ृ पं}डत के साथ रहकर ऊब और घटन से $नवा;Jसत सी हो गयी है । वे दोन, ब हन बh भी ु ु ृ पं}डत से जड़कर नहं जड़ बw और दोन, लड़.कय, क" मजबर ु पा रहं। इसम आध$नकता ु ु ढ़े क" घटन ु ू म आकर >प%ट होती है । कहानी म पाM यथ;ता के बोध से कराहते ह=, छटपटाते ह= पर मक ू ह।=''

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जानवर और जानवर आ6थ;क )वषमता ने .कस सीमा तक $नBन म^यवग; को तोड़ दया है , Xझंझोड दया है और टटकर ू मन%य असंग$तय, को )ववशभाव से सहता हआ ु .कस तरह जीवन क" )वडBबनाओं व यातना मलक ू ु भी

जीने क" ललक Jलये हए ु है यह सब ‘जानवर और जानवर' कहानी म अJभय त हआ ु है । ‘जानवर और जानवर' म यि त के जीवन क" )वडBबनाएं और त9सBब6धंत घटन को गहन सOमता के साथ उरे हा ु ू गया है। इस कहानी म मानवीय सBबध, के )वघटन का समकालन प7रपेT म यथाथ; का कड़वा और तीखा >वर है। कहानी के सभी पाM अपनी )ववशता के कारण पादर से जड़े ु हए ु ह।= उनम आ6थ;क अभाव, से उ9पन पीड़ा गहरे मानवीय सBबध, का बोध कराती है। िजस वग; के ये पाM ह=, उस वग; क" सम>त यातना गाथा और )वडBबनाएं पीटर, पाल, आट सैल और अनीता के मा^यम से य त हई ु है । अपनी )वडBबनाओं◌ं को सहते हए ु भी इन पाM, म अभी भी कहं न कहं जीवन का >पदन है िजसका >वर पाल क" वाणी म सना ु जा सकता है । िजस समय पाल के 6गरजाघर न जाने पर पादर उससे #Rन करता हआ ु जानते हो जो अmछा भला हो कर भी सबह ु 6गरजे म नहं आता उसे यहाँ रहने ु यह कहता है ‘‘तम का कोई अ6धकार नहं है।'' मानवीय सBबध, के #$त पादर क" #$त.Zया वाय एवं आत7रक दोन, 83

>तर पर तोड़कर रख दे ती है । यह राकेश क" अनभ$त ु ू क" #वणता ह कह जायेगी। राकेश यथाथ;चेता कलाकार थे, य,.क उह,ने यह सब अनभ$त ु ू के >तर पर झेला था। ‘जानवर और जानवर' कहानी के मा^यम से पहाड़ी >कल ू क" )वJश%ट प7रि>थ$त म जीते, भोगते और झेलते मा>टर और मे[न, क" जीवन-यापी )ववशता परा6aत भावना अरuTत ि>थ$तय, क" ओर संकेत .कया है । फादर ‘.फशर' का च7रM काल >याह से Jलखा गया है । अनीता और मXण नानावट को वासनाप$त; ू का मा^यम बनाया गया है, अ6धकार, क" शि त का #योग करते हए ु पादर िजस तरह अनाचार, अनी$त और D%ट तरक, को अपनाता है इससे मानवीय सBबध, के प$तत एवं )वघटन क" यथाथ; त>वीर >प%ट Hप से गवाह दे ती है। ‘‘तम ु तीन दन से 6गरजे म नहं आये, उ9तेजना म पादर का हाथ पीठ के पीछे चला गया। वह बहुत क ठनाई से अपने >वर को वश म कर पाया था।'' पाल के #$त यह पादर का 84

हटलर जैसा बता;व एवं >कल ू से $नकाल दया जाना, अय JशTक, के Jलए दहशत का Hप धारण कर लेता है तभी तो जा◌ॅन कहता है .क ‘‘मझे ु लगता है .क इसके बाद अब मेर बार आएगी। मझे ु पता है .क उसक" आंख, म कौन-कौन खटकता है । सैल का कसरू यह था .क वह रोज उसक" हािजर नहं दे ती थी और न ह वह ......'' पादर के पास अ6धकार, क" यह असीJमत शि त दसर, के Jलए यव>था ू 85

)वरोधी हो जाती है। ‘जानवर और जानवर' म क9त, के मा^यम से इंसान और इंसान के अंतर को गहराया गया है। Jमशन ु >कल ू क" )वशेष प7रि>थ$त म जीते, भोगते, झेलते टचस; और मे[न, क" जीवन क" यापक )ववशता, पराधीनता और असरTा क" ओर .कये गये संकेत लेखक के समि%टबोध को #कट करते ह।= पादर क" ु .क◌ुतया और पाल का क9ता छोटे और बड़े के अंतर को >प%ट करता है - ‘‘हर जानवर एक सा नहं ु होता। जानवर और जानवर म फक; होता है ।'' जानवर, म यह अतर >वीकत ृ है । बड़ी मछल, छोट 86

मछल को खा सकती है। इसी $नयम के अनसार फादर .फशर ने Jमराशी, पाल, पीटर और आंट सैल को ु जब चाहा नौकर से बरखा>त कर दया। Jमशन के इस >कल भरा है .क ि>थ$त ु ू का प7रवेश इतना घटन कभी भी )व>फोटक हो सकती है , .कतु .फर भी सभी चप के मा^यम = । केय पाM अ$नता मखजo ु ह◌ं ु से तनाव रचा गया है िजससे Jमशन >कल ू खोखल सतह, नकल िजदगी बेनकाब हो ू क" सBपण;

उठती है । ऊपर से भलामानस ु दखने वाला फादर .फशर अंदर से काल शि तय, को #aय दे ने वाला एक शोषक है वान है , मन%य ु के वेश म जी)वत जानवर है, िजससे लड़ना शेष है । डा◌ॅ0 इनाथ मदान इस पर ट`पड़ी करते हए ु यह याeया करते ह= .क ‘‘इस कहानी क" रचना #.Zया यंLय के >तर पर है। यंLय के छsट इस रचना म जान डाल दे त ह= और जानवर का #तीक इसके अंश, को Nबखरने नहं दे ता है । अत म 6गरजे क" घं टय, का }डंगडांग Jमशन के अहाते क" सतह नकल और खोखल िजदगी को मख7रत करता है।'' कहानी म अमानवीयता यंLय के >तर पर अयाय सहते हए ु ु पाM, के भीतर 87

कसमसाहट को य त करती ह= तभी तो दधनाथ Jसंह इस पर अपनी #$त.Zया इस #कार य त करते ू ह=- ‘‘राकेश झं◌ॅझोड़ दे ने वाले $तलJमला दे ने वाले यंLय से काम लेते ह= ।''

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$न%कष; Hप म यह कहा जा सकता है .क जानवर और जानवर कहानी म खोखल िजदगी के #$त उभरता हआ ू ) पर #काश डालता ह है , ु आZोश लेखक के समि%टबोध पर पा7रवा7रक 7रRत, (>कल सामािजक याय के अभाव को भी रे खां.कत करता है । ‘जानवर और जानवर' एक )वशेष प7रि>थ$त म जीते, उसे भोगने और झेलते मा>टर और मै[न, के जीवन क" यापक )ववशता और अरTा क" कहानी है । ले.कन यह )ववशता, पराधीनता और अरTा आज उन सभी के Jलए है जो नौकरशाह के Jशकार ह।=

पा◌ॅ◌ंचव2 माले का ;लैट ‘पा◌ॅ◌च ं व माले का qलैट' म आ6थ;क संकट को झेल रहे आध$नक यि त को दखाया है जो अथ; के ु अभाव म अपनी #ेJमका के साथ दोहर िजदगी जीता है एवं अपने साथ दसर िजदगी जीता है । ‘‘यहाँ ू अभावपण; ू अ)वनाश क" िजदगी है । वह समाज म >थान <हण करने के Jलए लोग, से अपेuTत न होने के Jलए अपनी जेब म एक-दो चारमीनार Jसगरे ट रखता है और उसके Jलए पट = का Z"ज ठsक रखना अ$नवाय; है । वह पैसे के अभाव म सरला और #Jमला से भी नहं बंध पाता और यहाँ तक .क वह >वयं से भी नहं जड़ ु पाता। अथ; के अभाव ने उसे ‘पाँचव माले के qलैट' से अवRय जोड़ दया है । कहानी का नायक अ)वनाश पैसे के अभाव म अपनी #ेयसी #Jमला से सBबध नहं जोड़ पाता है और उसे झठ ू भी बोलना पड़ता है य,.क #Jमला एक आध$नक लड़क" है और वह अ)वनाश से कछ ु ु न कछ ु फरमाइश करती रहती है-‘‘वह )प चर दे खना चाहती थी हैमलेट। एक दन पहले म= उनसे यह कहकर आया था। खद ु ह उसने है मलेट क" तारफ क" थी। पचासेक Hपये एक दो>त से उधार ले Jलए थे। मगर चालस से Kयादा उनके यहां ताश म हार गया था- उनके भाई के पास जो .क इस समय स9ती से सतीश हो गया था। शमा; के यहाँ वे लोग ठहरे थे। उसी ने उनसे प7रचय कराया था। वह उस व त घर नहं था। शाम क" wयट ू पर गया था। वह होता तो और दस-बीस उधार ले लेता। जब उन दोन, को साथ लेकर $नकला, जेब म कल ू शान शौकत दखाकर पेर् Jमका ु छः Hपये बाक" थे।'' अ)वनाश क" यह )ववशता है .क वह झठs 89

एवं उसक" बड़ी बहन सरला के साथ जड़ा ु रहना चाहता है परतु इस जड़ने ु म आ6थ;क सम>या उसे जड़ने ु नहं दे ती है । आध$नक पा7रवा7रक )वघटन म महानगर, क" एक अहम भJमका रहती है । यि त अथ; ु ू क" तलाश म ठोकर खाता .फरता रहता है और समय से उ6चत काम न Jमलने से अभाव<>त जीवन जीने पर मजबरू होता है अ)वनाश क" ि>थ$त यह है .क वह पैस, के अभाव म एक ऐसे ग ह;त >थान म

पा◌ॅचवीं मंिजल म रहता है जहाँ हर कोई रहना पसद नहं करता )वशेष कर #Jमला और सरला तो कतई इसे पसद नहं करती ह= - ‘‘सोचा, घर ह चलना चा हए, पर कदम ह नहं उठे , अंधेरे जीने का eयाल आया। एक के बाद एक-पाँच माले। पहले माले पर सार NबिIडंग क" सडं◌ाध। दसरे ू पर खोपड़े क" बास। तीसरे पर कठ औष6धय, क" गंध। पांचव माले क" बू ु „ ु और अनारदाने क" ब।ू चौथे पर आयव दक का ठsक पता नहं चलता था। #Jमला ने तब कहा था .क सबसे तेज बू वह है सरला इससे सहमत नहं थी। उसका कहना था .क सबसे तेज गध आयव दक औष6धय, क" ह।='' कहं न कहं कछ ु „ ु तो कमी थी 90

ह इस qलैट म नहं इतनी यंLय भर बात उसके सBबधी नहं कहते। अ)वनाश क" इस जगह रहने के पीछे उसक" अपनी )ववशताय थीं तो दसर ओर इस >थान पर आना या न आना #Jमला और सरला के ू Jलए कोई मह9वपण; ू बात नहं थी, .फर भी अ)वनाश के #$त लगाव के कारण #Jमला यहाँ दो बार आयी थी शायद उसने सोचा हो .क अ)वनाश हो सकता है .क अब इस >थान को बदल चका ु हो इसJलए उसने इतने दन, क" मलाकात म बह #Rन .कया .क वहं पाँचव माले म अभी रह रहे हो शायद इसके पीछे ु #Jमला के दमागी जेहन म वह गध रह हो जो सबसे Kयादा सबसे तीखी थी। डा◌ॅ0 इनाथ मदान के अनसार ु - ‘‘कहानी म महानगर बोध .कस तरह इंसान को प7रवेश से काटकर अकेले छोड़ दे ता है इसका वण;न .कया गया है ।''

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इस #कार सBबध, के )वघटन क" यह Mासद अथ; क" सम>या को लेकर #मख ु Hप से उ9पन हई ु है । उJम;ला Jमa के शbद, म कह तो यह ‘‘Nबखर हई ु िजदगी अभाव <>तता के कारण है । यहाँ प7रवेश से कटकर जीने म आध$नकता >प%ट होती गई है। इस तरह क" आध$नकता नगरबोध से जड़कर भी ु ु ु उभरती है।''

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मंद ‘मंद' आ6थ;क )वषमता से <>त पहाड़ी जीवन के लोग, क" अभाव<>त जीवन क" दा>ता बया करती है य,.क यहाँ का जीवन मैदानी लोग, क" कपा ु )वषमताय ृ से ह चलता है । पहाड़ी जीवन क" अपनी कछ एवं )वडBबनाय होती ह= जो )वशेष वग; क" कपा ु हई ृ से जड़ी ु होती ह।= इस कहानी के सभी पाM न9था Jसंह, बसते, हलवाई, रे >तरां का पाजामा कमीज वाला यि त, पहाड़ी कोयले वाल नवयवती तथा उसका ु छोटा बेरोजगार भाई तथा बw ु ढा सभी लोग आ6थ;क संकट झेल रहे हं ◌।ै , ये लोग अपने Jलए नहं दसर, ू के Jलए अवRय जी रहे ह= ये सब >वयं से न जड़कर घमने आये ‘'म=' से अवRय जड़ ु ू ु जाते ह= य,.क ये अपने Jलए नहं पर ‘म=' के Jलए मगा; ु बनाया था, ु बनाने क" $नय$त म जी रहे ह= ‘‘खास आपके Jलए मगा; न9था Jसंह ने कहा, हमने सोचा था .क भाई साहब दे ख ल, हम कैसा खाना बनाते ह।= खयाल था दो एक `लेट और लग जायगी। पर न आप आए और न .कसी और ने ह मग  ु ु „ क" `लेट ल। हम अब तीन, खद खाने बैठे ह।= मने = मगा; ु इतने चाव से, इतने #ेम से बनाया था .क या कह।ूँ या पता था .क खद ु ह खाना पड़ेगा। िजदगी म ऐसे भी दन दे खने थे। वे भी दन थे .क जब अपने Jलए मगे ु ◌ेर ् का शोरबा तक नहं बचता और एक दन यह है भर हई ु पतील सामने रखकर बैठे ह= गांठ से साढ़े तीन लग गए जो अब पेट म जाकर खनकते भी नहं।'' यह )ववशता अकेले न9था Jसंह क" ह नहं है इस दं श Hपी मंद से यहाँ 93

सभी पहाड़ी <Jसत ह= य,.क कोयले वाल लड़क" अपने छोटे भाई को ‘म=' के पास रखना चाहती है ‘‘आपको खाना बनाने के Jलए नौकर चा हए? मेरा छोटा भाई है सब काम जानता है। पानी भी भरे गा। बरतन भी मलेगा। आठ Hपये महने म सभी काम कर दे गा। पहले एक डा◌ॅ टर के घर म काम करता था। डा◌ॅ टर अब यहाँ से चला गया है .......। म= कल इसी व त उसे लेकर आउं गी लड़क" ने .फर भी चलते-चलते मड़कर कह दया।'' ु

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आ6थ;क )वषमता से मानवीयता का लोप होता है बw ु ढा जो कभी एक कोठs एवं बाग का माJलक था, आज को एक `याल क" तलाश म बबा;द कर दे ना चाहता है - ‘‘उसी समय वह आदमी, जो कछ ु घंटे पहले मझे ु चेय7रंग Zास पर Jमला था, मेरे पास आकर खड़ा हो गया। अंधेरे म उसने मझ ु े नहं पहचाना औ◌ार छड़ी पर भार दे कर न9था Jसंह से पछा था, आया था? कौन <ाहक? न9था ् ू , न9था Jसंह एक <ाहक भ◌ोजा Jसंह 6चढ़े - मरझाए हए ु ु >वर म बोला। घंुघराले बाल, वाला नौजवान थाः मोटे शीशे का चRमा लगाए ....... ? उसने मझे ु लOय करके कहा और .फर न9था Jसंह क" तरफ दे खकर बोला, तो ला न9था Jसंह चाय क" `याल )पला'' बw ु ढे क" यह Mासद और उसक" यह ि>थ$त असंग$त और फालतू होते जाने के 95

बोध को अJभयि त दे ती है । पा7रवा7रक एवं मानवीय सBबध, का )वघटन जार है , साथ ह ‘‘भख ू बेबसी, बीमार बढ़ती जा रह है और मन%य ु केवल पैसा कमाने वाल एक कलमाM बनकर रह गया है और उधर ‘मंद' ने अmछे खाते-पीते यि तय, को कमीना बना दया है ।''

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उसक रोट ‘उसक" रोट' कहानी सBबध, के )वघटन और जड़े ु रहने क" छटपटाहट को य त करती है। इसम प$तप9नी .कसी भी >तर पर एक दसरे Jसंह के आने क" #तीTा म उसक" प9नी टट ू से बंधे ह।= सmचा ु ू रह है । बालो और उसका प$त …ाइवर सmचाJसं ह के टटते ु ू -जड़ते ु सBबध, क" कहानी है एक गा◌ॅ◌ंव म बालो अपनी छोट ब हन िजंदा के साथ रहती है और स`ताह म छह दन उसे सmचा के Jलए एक मील पैदल ु चलकर खाना दे ने जाना होता है । घर के काय,र् म थोड़ा लेट हो जाने पर उसे सmचाJसं ह क" Xझड़क भी ु सननी पड़ती है सmचा कहता है .क ‘‘वह सरकार नौकर है, उसके बाप का नौकर नहं .क उसके इतजार ु ु म बस खड़ी रखा करे वह चपचाप उसक" डांट सन ु ु लेती और रोट दे दे ती''

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बालो पराने सं>कार, से बंधी एक भारतीय प$तnता >Mी है उसक" )ववशता है .क वह प$त सmचा से ु ु खलकर बात नहं कर सकती है । प$त स`ताह म चाहे एक दन आये या न आये वह उससे कछ ु ू नहं ु पछ सकती है य,.क उसे 6चता है .क ऐसा करने से उसका प$त उसे पैसे दे ना छोड़ दे गा और प$त #ेम से वह वं6चत भी हो सकती है । बालो को प$त से बहत ु सी Jशकायत एवं आकांTाय ह=, जो उसे अंदर ह अंदर तोड़ती रहती ह।= उसे यह भी मालम ने एक रख◌ौल छोड़ रखी है । और अपने ् ू पड़ा है .क शहर म सmचा ु वेतन का तीन चौथाई भाग वह उस पर खच; भी करता है । इसी तरह बालो ने एक दन सmचा से कहा था ु .क उसे शहर म घमने जाना है । तब सmचा ने कहा .क ‘‘ य, तेरे पर $नकल रहे ह=? घर म चैन नहं ू ु पड़ता? सmचा Jसंह वह मरद नहं है .क औरत क" बांह पकड़कर उसे सड़क, पर घमाता .फरे । घमने का ु ु ू

ऐसा ह शौक है तो दसरा खसम कर ले मेर तरफ से तझे ू ु खल ु छl ु ट है ।'' डा◌ॅ ओम #भाकर इस पर 98

ट`पणी करते हए ु Jलखते ह= .क यहाँ ‘‘ना$यका बालो का अपने बस …ाइवर प$त के #$त एक सामाय भारतीय <ामीण नार का एक$न%ठ #ेम है।'' सmचा Jसंह से बालो अपनी यथ;ता एवं क%ट को बताना ु 99

नहं चाहती। इसके पीछे उसके परातन सं>कार हावी हो जाते ह= यह कारण है .क िजंदा बहन को गांव का ु एक Jसर.फरा जंगी छे ड़ दे ता है .फर भी बालो प$त क" भलाई के Jलए इसक" चचा; नहं करती है य,.क इसम उसके प$त का हत जड़ा ु हआ ु है । ओम #भाकर क" ट`पड़ी है .क यहाँ बालो जैसी नार का प9नी Hप म क%ट झेलना और पyष ु का प$त-Hप म जाने-अनजाने आततायी हो उठना ह जैसे दाBप9य जीवन क" वा>त)वकता है ।''

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नार क" यह )ववशता ह उसको महान बनाती है य,.क बालो यह भलभां$त जानती है .क उसका प$त दसर >Mी रखे हए ू ु है और उसे स`ताह म जब कब ह Jमलने का अवसर दे ता है परतु .फर भी वह समझौतावाद ?ि%टकोण अपनाती है य,.क इसी म उसक" अभी%ट Jसh है भ)व%य क" सखद कIपना ु म बालो सmचा के #$त पण; ु ू आ>थावान भी नजर आती है । यह वत;मान जीवन क" $नय$त को रे खां.कत करती है । डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa इस कहानी के मIयां कन म अपनी #$त.Zया य त करते हए = .क ‘‘अपने ू ु कहती ह◌ं ‘लोकल टच' के कारण #ेमचंद क" परBपरा क" कहानी बन जाती है । सBबध, क" यथ;ता ह माM कहानी को आध$नक बना दे ती है । इस कहानी म अनपढ़ और आ6aत नार के आदश; का उदघाटन ु संवेदन ढं ग से .कया गया है जो यथाथ; परक, वा>त)वक और )वRवसनीय है ''

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?बलगाव और खि@डत होने क BCDया के कारण पा रवा रक सबध म2 ासद आध$नक"करण और 4ान )व4ान के #भाव के कारण मन%य ु ु माM पजा; ु बनकर जी)वत है। प7रवेश के दबाव और वा>त)वकता के Mासद बोध से उसके अंदर यापक संZां$त उ9पन हई ु है। राकेश क" कहा$नय, म भारतीय प7रवेश म $नरतर खिxडत होते हए ु आदमी का 6चMण #खरता से दखाई दे ता है । वत;मान समय म यि त क" मानJसकता के >तर म बदलाव आया है । वह आपसी 7रRत, म◌ं  केित और संकु 6चत हो गया है । और $नरतर अकेले होने क" यंMणा से पी}ड़त है । अकेलापन मन%य ु के जीवन म सामािजक ि>थ$त बन गयी है । एकात क" कामना और अकेलेपन क" द$न; ु वार अनभ$त ु ू ह यि त म Nबलगाव क" ि>थ$त लाती है । वह भीड़ म भी अकेला अनभव करता है । इसका प7रणाम है .क यि त ु सबसे कटकर जीने के Jलए )ववश है । यह ि>थ$त आ9म$नवा;सन को उ9पन करती है। दसर तरफ ू आध$नक भाव-बोध क" ि>थ$त ने मन%य ु ु को >था)पत मायताओं और सामािजक र$त-7रवाज, से काट

दया है । आध$नक"करण ने ह आदमी-आदमी के जीवन म औपचा7रकता का भाव घोल कर रख दया है ु इसJलए वत;मान म यि त िजदगी के सारे चZ, म◌ं  फसने के Jलए अJभश`त है । ँ

मोहन राकेश क" कहा$नय, के अनेक पाM दLDJमत, $नवा;Jसत और अदर के तनाव म टटते ह=- जeम, ू Jमसपाल, वा7रस, भख ू ,े मद इ9या द Kवलंत उदाहरण ह।=

ज़Gम ‘ज़eम' कहानी यि त के अलगाव एवं आ9म खिxडत होने क" कहानी है। राकेश कत ृ ‘जeम' केवल जeमी आदमी क" ह कहानी नहं है बिIक आज के उन लोग, क" कहानी है जो मानव-$नय$त क" भयंकर #वंचना म सांस ले रहे ह।= इस कहानी म जeमी आदमी का संMास उसका केवल अपना नहं है , साव;देJशक है । ‘जeम' का वह Nबखरा हआ ु , भटका हआ ु और बदचलन दखाई दे सकता है .कतु िजन कारण, के ददा; ु त यथाथ; ने उसे तोड़ा है और यव>था )वरोधी बनाया है उसक" >प%ट छाया पर ू कहानी के प7रवेश मे◌े◌ं है । कहानी का नायक ‘वह' #बल अहं वाद यि त है । यह झकना नहं जानता धीरे -धीरे ु टटता जाता है इस टटन क" खनक भी कोई सने ू ू ु , यह उसे गवारा नहं है । वह पीकर घायल एवं परे शानी म JमM के साथ कहं जाना चाहता है । वह अ6धक पीकर बहत ु होता है । वह कहं जाकर दो>त को ु खश Jसफ; यह बताना चाहता है .क वे दोन, अब दो>त नहं है । वह दो>त से भी इस तरह क" बात करता है जैसे उससे उसक" परानी दRमनी ु ु है ......। ‘‘तBहार बशट; पर ये दाग कैसे ह=? मने = पछा ु ु ू उसने भी एक नजर उन दाग, पर डाल-ऐसे जैसे उह पहल बार दे ख रहा हो। कैसे ह=? उसने ऐसे कहा जैसे मने = उस पर कोई इIजाम लगाया हो। ‘हाथ कट गया था, उसी के दाग ह,गे।' हाथ कैसे कट गया? उसका चेहरा कस गया। कैसे कट गया? वह बोला, कैसे भी कटा हो, तBह ु  इससे या है ।''

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नायक वह अनेक बार अmछs सी लड़क" दे खकर शाद करने का $नRचय करता है य,.क अपना अकेलापन उसके Jलए असय हो गया है । वह छोट-छोट बात, म लोग, से झगड़ जाता है । वह Nबना .कसी लाग लपेट के सब बात कहने क" Tमता रखता था। उसका अ6धकतर #ेम, )ववा हत ि>Mय, के साथ ह होता था। वह िजदगी के )वषय म बड़े-बड़े मनसबे ू बाँधता था। वह कभी नौकर लगी होने पर कहता- ‘‘नहं, म= तम ु लोग, क" तरह नहं जी सकता ...... म= अपने व त का ह>सा नहं, उसका $नगहवान ह।ूँ‘‘ लBबी बेकार के दौरान वह कहता है ‘‘मझे ु समझ आता है .क म= NबIकल ु कट गया हूँ 103

...... हर चीज से बहत ु दरू हो गया ह।ूँ'' इस तरह उसका बेकार के दौरान सबसे कट जाना बहत ु 104

>वाभा)वक है । राकेश को मालम ू था .क बेरोजगार मन%य ु को या से या बना दे ती है । अतः अनभ$त ु ू स9य को उह,ने जeम के मा^यम से सश तता #दान क" है। नौकर छटने पर यि त अपने को ू अश त मानते हए नहं दे ता है। डा◌ॅ0 उJम;ला ु ु भी >वीकार करना नहं चाहता। उसका अहं उसे झकने Jमa के अनसार - ‘‘जeम का नायक अमानवीय दौड़ धप ु ू के बावजद ू जीवन म कोई $नण;य नहं ले पाता, जीने के Jलए कोई $निRचत धरातल नहं ढढ़ होकर भी िजदा है ।'' ू ँ पाता। वह बाहर भीतर से लहलहान ू ु

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जeम कहानी का कथा-नायक आ9मकेित है । वह अपने प7रवेश से कटकर $नतांत एकाक" जीवन जी रहा है, NबIकल ु अपनी ह तरह का जीवन। कभी वह नौकर पर जाता है तो कभी बेकार है। यवि>थत

िजंदगी से शी€ ह ऊब जाता है । नायक वह अपने ढं ग से जीने का कायल है। .कतु प7रवेश म अकेलेपन के बोझ से दबा हआ ु है। कभी वह नौकर करता है तो कभी बेकार भोगता है । जीवन म आये अकेलेपन को वह शाद से भरना चाहता है। वह जीने के Jलए जीवन म ऐसी लड़क" का चनाव करना चाहता है जो ु उसके बेकार होने पर ‘‘अपना भार खद ु संभाल सकती हो'' वह )ववाह करने का फैसला करता है ले.कन 106

जीवन म उस फैसले को दहराता है, करता नहं है । य,.क वह ‘‘जैसा बेकार कल था वैसा ह आज भी ु है '' उसक" भटकन व अकेल ि>थ$त जीवन क" यव>था के कारण है । वह टटा ू हआ ु और Nबखरा हआ ु 107

तो है .कतु इस सबके पीछे यव>था िजBमेदार है य,.क जeम के नायक का 6चतन साधारण न होकर असाधारण है सामािजक यव>था से टटा ू हआ ु और अकेला यह नायक व त का $नगहवान है । ‘‘वह जीता नहं है , दे खता है ः य,.क जीना अपने म घ टया चीज है । जीने के नाम पर तो पेड़-पौधे भी जीते ह= पशु पTी भी जीते ह।='' नायक वह का यि त9व आि>ति9वक संदभd म भी दे खा-परखा जा 108

सकता है । भयावह प7रवेश म $घरकर और अकेलेपन से दबकर टटता हआ ू ु वह िजजी)वषा से मु त है । उसका यह चाहना और कहना .क ‘‘पर तBह ु  इतना बता दँ ू .क मझे ु कम से कम बीस साल और जीना है । म= तBहारे या दसरे ु ू लोग, के बारे म नहं कह सकता पर अपने बारे म कह सकता हूँ .क मझे ु जHर जीना है ।'' यह कथन उसक" आि>ति9वक दौड़ को >प%ट करता है । ऐसा लगता है .क ज़eम यहाँ हाथ म नहं 109

है अ)पतु उसके मल ू अि>त9व Hप म भी है िजससे कचोट और पीड़ा बाहर जeम को महसस ू ह नहं होने दे ती असल म बाहर जeम तो उतना नहं है िजतना .क भीतर । यह कारण है .क बड़े शहर, क" भीड़ म इस यि त का चेहरा यह इशारा करता है .क आज सBबध .कतने जड़ $नि%Zय हो गये ह= और यि त अथ;हन और अकेलेपन से भर गया है । डा◌ॅ0 इनाथ मदान समीTा9मक Hप से इस कहानी क" )ववेचना करते हए ु Jलखते ह= .क - ‘‘यह कहानी एक ऐसे यि त क" कहानी है िजसक" मल ू सम>या है जीवन को अपने तौर-तरके से जीने क" सम>या, ले.कन लेखक"य #>ततीकरण नायक के च7रM और उसक" सम>या दोन, को ह जीवन-जगत ु क" सहजता से जड़ा ु नहं रहने दे ता। अपने दे शकाल म नायक क" अकेले होने क" अनभ$त ु ू के साथ अपनी शत,र् पर िजदगी जीने का )वRवास पर>पर एक-दसरे ू को काटते ह।= ऐसा #तीत होता है .क नायक के आचार-)वचार भो ता के नहं, व ता के आचार-)वचार ह=, ....... कथानायक क" आ>था कहानी के भीतर से उभरने के बजाय बाहर से आरो)पत लगती है ।'' मदान जी क" ट`पणी उ6चत है परतु यह 110

भी सच है .क यह टटे ू हए ु एवम Nबखरे यि त क" कहानी है जो अकेलापन झेल रहा है अ>तु .फर भी अपने अि>त9व के #$त सजग एवं जागHक है।

Hमसपाल ‘Jमसपाल' कहानी एक ऐसी अ)ववा हत नार के पा7रवा7रक )वघटन क" अJभयि त है जो परBपरावाद प7रवार म अपने ह माता-)पता तथा भाई-बहन, के >नेह से वं6चत होकर अपना घर नहं बसा पाती, नौकर तथा शरर क" >थलता से समाज उसे >वीकार नहं करता और वह Nबलगाव तथा खिxडत हो ू जाती है।

अपने बाय प7रवेश तथा अंतज;गत म कोई सामंज>य न बैठा पाने के कारण ‘Jमसपाल' का जीवन एक कंु ठत नार का जीवन बनकर रह गया है । लेखक ने इसका 6चMण वैयि तक >तर पर .कया है । ‘Jमसपाल' दIल म सचना )वभाग म काय;रत है । दqतर के वातावरण म अपने-आप को Jमस.फट ू महसस ू करते हए ू मनाल चल जाती है यह ु ु ‘Jमसपाल' बेहतर जीवन जीने के Jलए नौकर छोड़कर कIल सब $नण;य वह इसJलए करती है य,.क दqतर म उसके )वभाग के सहयोगी उस पर यंLय करते ह=‘‘ या बात है Jमसपाल आज रं ग बहत ओर से दसरा सहयोगी कहता है .क ू ू ु $नखर रहा है ।'' ....... दसर ‘‘आजकल Jमसपाल पहले से ि>लम भी तो हो रह ह।='' Jमसपाल भी अपने >थल ू शरर के #$त 111

असहजता महसस = इसJलए ू करती है । इसJलए अपने एक सहयोगी JमM रणजीत से कहती है .क मने 9याग पM दया है .क ‘‘यहाँ ऐसे लोग, के बीच और रहगी ु खोखला हो जायेगा। ू ँ तो मेरा दमाग NबIकल तम Jलए सबह ु नहं जानते .क म= तBहारे ु ु दध ू और सिbजयाँ लेकर जाती रह हूँ, उसे लेकर भी ये लोग या या बात करते रहे ह।= ये लोग अmछे - से अmछे काम का ऐसा कमीना मतलब लेते ह, उनके बीच आदमी रह ह कैसे सकता है ।'' ऐसे लोग, से बचने के Jलए ऐसे >थान क" तलाश करती है । ‘‘जहाँ यहाँ 112

क" सी गदगी न हो, और लोग इस तरह क" छोट हरकत न करते ह,।'' ‘Jमसपाल' को ‘‘लोग, से 113

अपना )पंक" Kयादा अmछा लगता है।'' उसको सहसा दे खकर यह $नण;य कर पाना मिRकल हो जाता है ु 114

.क वह औरत है या मद;। यहाँ तक .क उसके बनाये हए ु 6चM, से भी इसका आभास Jमलता है । य,.क वह हमेशा अपने 6चM, के Jलए मोट भzद और )वकलांग आक$तयाँ ह चनती है। ु ृ Jमसपाल कहानी मं◌ं◌े एक ऐसे नार च7रM क" याeया हई ु है , जो बहत ु अ6धक च6च;त उपेuTत, $निदत होते हए ु है और नहं चाहती ु भी हद से Kयादा इसान ह= वह अपने वातावरण से अब ऊब चक" .क उसका कोई प7र6चत उसे याद करे । Jमसपाल इसJलए रणजीत से Jमलने पर जो उसका कIल ू ु मनाल म सहयोगी के साथ-साथ इस समय अ$त6थ भी है , वह उससे अपने पव; ू सहयो6गय, के #$त अना>था य त करती है साथ ह रणजीत के #$त )वशेष अनराग ु , य,.क ‘‘अब जब.क वह .कसी भी पyष सन ु को >वीकार कर लेने के Jलए #>तत ु है, कोई भी तो नहं है जो उसके अतर क" पकार ु ु सके। इस ि>थ$त म वह य द असामाय यवहार कर बैठे तो सहानभ$त के >थान पर अनेक शbद और ु आT्◌ोप उस पर 6चपका दये जाते ह।='' कIल ू #वास के समय रणजीत भी Jमसपाल से कट रहा है ु 115

य,.क एक रात Jमसपाल के यहाँ यतीत करने पर Jमसपाल का खलापन रणजीत पचा नहं पाता है ु और इसे वह मजाक क" ?ि%ट ह समझता है । Jमसपाल ने रणजीत को अपने यहाँ जानबझकर इसJलए ू ठहराया है .क वह उससे #णय $नवेदन कर सके परतु किxठत एवं अनाम डर से वह ऐसा नहं कर पाती ु है । रात म सोते समय उसने पर ू कोJशश क" .क रणजीत का ^यान अपनी ओर आक)ष;त कर सके, रणजीत ने भी महसस ू .कया .क उसके ‘‘आस-पास एक बहत ु तेज सांस चल रह है जो धीरे -धीरे दबे पैर,, सारे वातावरण पर अ6धकार करती जा रह है ।'' इन ि>थ$तय, के #$त ऐसा नहं था .क रणजीत पहले 116

से अवगत न हो? वह इस भय से भलभां$त प7र6चत था और यह अनकहा #णय $नवेदन वह >वीकार नहं कर सका। सरेु श धींगड़ा इस पर ट`पड़ी करते हए ु Jलखते ह= .क ‘‘कालातर म भी ‘से स' उसे आbसेस करता रहा। यहाँ तक .क वह जीवन म कभी भी इतना साहस नहं जटा ु पाई .क मद; क" पशु-

शि त का सामना कर सके। प7रणामतः वह नौकर से 9यागपM दे कर एकात पहाड़ी <ाम म एकाक" जीवन यतीत करने लगती है , .कतु अनभ$त ु ू उसे नहं 9यागती .क वह एकदम अकेले अन`यार पाई >Mी है ।''

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Jमसपाल जीवन के T्◌ोM म ऐसी असफल आध$नका नार है जो अपने भीतर क" घटन और अवसाद से ु ु टट चीज क" जगह काम म लायी जा रह थी, ू रह है उसक" िजदगी )वखर सी गई है । ‘‘हर चीज दसर ू एक कसo पर कछ ू ु ऊपर से नीचे तक मैले कपड़, से लद थी। दसर ु रं ग Nबखरे थे और एक `लेट रखी थी। िजसम बहत ु सी क"ल पड़ी थीं।'' यह 6चM Jमसपाल के Nबखराव को य त करते ह= यह अ>त-य>त 118

िजदगी उसे अजनबी और अकेला बना दे ती है। डा◌ॅ0 इ नाथ मदान Jमसपाल कहानी का मIयां कन ू करते हए वह .फर अपने म बंद हो जाती है, ु ु Jलखते ह= .क- ‘‘एक बार अपने अ$त6थ से थोड़ा खलकर उसका खलना बेकार है, ले.कन उसका बंद होना उसके भीतर को खोलता है । एकाएक थोड़ा प7र6चत ु होकर वह अप7र6चत होने लगती है प7र6चत होना बेकार है । वह इंसान, और चह, ू से तंग है ।''

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वा रस ‘वा7रस' कहानी आ6थ;क )ववशता म जीते हए ु तथा पढ़े Jलखे उस वग; क" कहानी है जो रोजगार क" तलाश म lयशन तक करने पर )ववश होता है और इस पीड़ा म वह लगातार टटता तथा )वघ टत होता ू ू जाता है। वा7रस के अं<ेजी मा>टर बी0 एल0 पास ह= और अथ; क" सम>या के कारण वह दो छोटे बmच, को lयशन पढ़ाने पर )ववश ह=, इस )ववशता के बीच उह,ने Jसhात, एवम उसल, ू ू से समझौता नहं .कया है । वह एक वेतन मा>टर नहं अ)पतु एक कम;ठ >नेहशील, सा हि9यक #$तभा सBपन यि त भी ह=- ‘‘एक दन अचानक ह वे )पताजी के पास बैठक म आ पहचे ु ँ थे। उह,ने कहा था .क एक भी पैसा पास न होने से वे बहत नहं लेना चाहते, काम करके रोट खाना ् ु तंगी म है । मगर वे .कसी से ख◌ौरात चाहते ह।='' lयशन मा>टर क" यह आ6थ;क )ववशता इतनी $नरय एवं दयनीय है .क वह ऐसी ग ह;त ू 120

जगह म रहते ह= जहाँ >वा>cय ठsक रह ह नहं सकता है । कथानायक जब उनक" बीमार म उनके कमरे म गया तो ठठक गया- ‘‘कोठर $नहायत बोसीदा थी और उसम चार, तरफ से परानी सीलन क" गंध ु आती थी। दवार, का पल>तर जगह-जगह से उखड़ गया था और कछ ु जगह उखड़ने क" तैयार म ‡ट, से आगे को उभर आया था। पल>तर का कोई टकड़ा खप से नीचे आ 6गरता, तो म= ऐसे चrक जाता जैसे मेर ु आंख, के सामने .कसी मद ु ा; चीज म जान आ गई हो। ...... Xखड़क" म सलाख, क" जगह बांस के टकड़े ु लगे थे। गल से उठती हई ु ध से दमाग फटने लगता। वह गल जैसे शहर का कड़ा ू -घर ु भयानक दग; थी। एक मगा; ु गल के कड़े ू को अपने पैर, से )वखेरता रहता और हर आठ-दस Jमनट के बाद जोर से बांग दे दे ता।'' मा>टर जी क" यह )ववशता उनक" अपनी यि तगत )ववशता ह नहं है वरन ऐसे .कतने 121

लोग और भी ह= जो इस तंगहाल बेरोजगार क" मार झेल रहे ह।= lयशन मा>टर के पास कल ँू उनका Jलखा हआ ू ु जमा पजी ु सा ह9य है जो वे बmच, को दे ना चाहते ह= परतु समाज क" )वडBबना दे Xखए .क िजस यि त ने जीवन के कटु यथाथ; को भोगा और उसे अपनी

लेखनी से अनभव स9य को Jलखा, उसक" क करने वाले उसे नहं Jमलते य द Jमलते ह= तो उन कागज, ु से एक खेल खेला जाता है - ‘‘मा>टर ह से कागज लेते हए ू क" तरफ दे खते ु हम चोर आंख से एक-दसरे और मिु Rकल से अपनी म>कराहट दबाते। मा>टर जी .कसी-.कसी दन अपने पराने कागज, के पJलं ु ु ु ु द साथ ले आते थे और वहं बैठकर उनम से हमारे Jलए कछ ु ह>से नकल करने लगते थे। इधर मा>टर जी वे पJलं ु दे हमारे हाथ, म दे कर सी ढ़य, से उतरते उधर हमार आपस म छsना झपट आरBभ हो जाती और हम एक-दसरे ू के कागज को मसलने और नोचने लगते। अ सर इस बात पर हमार लड़ाई हो जाती .क मा>टर जी एक को अठारह और दसरे ू को चौदह पने य, दे गए ह।='' ये है मा>टर जी क" जीवन 122

पंूजी जो आज बmच, क" $नगाह म Jसफ; कागज का रzद ढे र या पJलं ु दा माM है और इसक" क"मत Jसफ; इतनी ह है .क माM ये 6गनती म केवल चौदह और अठारह ह य, है ? ‘‘कैसा Zर ू यंLय है ? #क$त ृ का .क सा ह9य क" अमIय ू रचनाओं क" बmचे नाव बनाकर खेलते रह और वह सा ह9यकार संसार म उपेuTत और अनजान ह रह गया। )ववश, पी}ड़त, टटे ू हए ु और अकेलेपन के बोध को गहराने वाल यह राकेश क" अmछs कहा$नय, म एक है।'' 123

$न%कष; Hप म यह कहा जा सकता है .क वा7रस के lयशन मा>टर इसJलए ह एकात पहाड़ क" खोज ू म जाना चाहते ह= .क अब शायद इससे Kयादा सहने क" )ववशता अब उनम शेष नहं बची है । डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa इसका मIयां कन करते हए ू ु Jलखती ह= .क - ‘‘वा7रस कहानी का मा>टर अपने अकेलेपन और बेकार के संMास को झेलता है और तंग आकर एकांत क" तलाश म घने पहाड़, के बीच जाने क" कामना करता है।''

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मानवीयता और नये मIय क खोज के कारण प रवा रक वघटन ू यि त परातन मायताओं, H ढ़य, और परBपराओं को अ>वीकार कर रहा है। वह अपनी तरह से और ु अपने ढ़ं ग से जीना चाहता है । आज #ाचीन मायताओं के ]वारा जीवन क" आवRयकताओं क" प$त; ू आदमी अपने जीने के Jलए नै$तकता का चनाव >वतM यि त9व और )ववेक के साथ करता है ◌ै। ु आज इसका >वHप आध$नकता के बदलते >वHप, के साथ )वकJसत हो रहा है- ‘‘आज का यवक .कसी ु ु क" परवाह .कये बगैर ह )वRवास के साथ अपना चनाव खद ु ु करता है । उसके चयन म एक मानवीयता क" गंध है।''

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मोहन राकेश क" ‘जंगला' और ‘चांद और >याह दाग' इन दोन, कहा$नय, म )वकIप क" >वतMता क" सम>या को उठाया गया है । जंगला पा7रवा7रक संघष; क" कहानी के साथ-साथ वत;मान जीवन म यि त के बदलते प7रवेश एवं जीवन मIय ू क" कहानी है जो अपने सं>कार, से )वोह कर मानवीयता के धरातल पर बने नये सBबध, को वरयता दे ता है। कहानी का नायक Nबशना परBपरा से 6चपके माता)पता क" परवाह .कये बगैर एक )वRवास के साथ प7र9य ता राधा का चनाव करता है । सBबध, को ु मानवीयता के प7र#ेOय म दे खकर मा◌ॅ-बाप को 9यागकर राधा का वरण करना उ6चत समझता है। इसी तरह से ‘चाँदनी और >याह दाग' म नायक #ाचीन H ढ़य, को वैयि तक मIय ू के समT तोड़ता है यह

कहानी वैयि तक $नण;य के अतःसंघष; क" कहानी है िजसम समदू (नायक) अत म कवाइJलय, ]वारा लट ू जा चक" ु अपनी #ेJमका मेहर को >वीकार कर परBपराओं के #$त गहर चोट करता है।

जंगला ‘जंगला' कहानी म )वकIप चनने तथा बदलते मIय, के कारण पा7रवा7रक )वघटन घ टत होता है। ु ू मा◌ॅ-बाप क" धाJम;क आ>था से समझौता न कर पाने के कारण Nबसने घर छोड़ दे ता है । फलकौर और ू बनवार दBपि9त प$त-प9नी के Hप म जी रहे ह= परतु प7रवार से अ6धक `यार बनवार को अपनी परBपरा तथा भ तई से है । इसJलए तो फलकौर ‘‘भगत के शरर को वह हाथ से नहं छती। छने ू ू ू से शरर गदा हो जाता है । भगत को उतनी रात म ह कपड़े बदल कर नहाना पड़ता है।'' प$त-प9नी म 126

]व]व इस बात को लेकर है .क उनके बेटा Nबसने ने एक ऐसी औरत से शाद कर ल है जो प$त ]वारा प7र9य त थी। मानवीय सBबध, क" इKजत करते हए ु Nबसने ने घर छोड़ना ह उ6चत समझा और दो>त राधे के साथ रहने लगा था। इसी को के बनाकर बनवार पर फलकौर हावी रहती है - ‘‘हाय-हाय ू करते थे .क दसरे ओर ू क" bयाह कर छोड़ी हई ू ु औरत घर म बहू बनकर कैसे आ सकती है ।'' दसर बनवार भगत प9नी पर आरोप लगाता है .क इसी क" रोज-रोज क" रोक टोक ने Nबसने को घर छोड़ने 127

पर )ववश .कया है, य,.क जब राधा #थमबार आई थी तभी फलकौर ने कहा था- ‘‘बाप क" बेट है तो ू इसके बाद न कभी खद ु इस घर म कदम रखे, न उसे रखने दे ।'' यहाँ पा7रवा7रक सं>कार दोन, लोग, 128

को अपनी गलती >वीकार करने म अवरोधक बनते ह= और वे अदर ह अंदर खोखले होते जाते ह।= यह सच है .क जीवन और लेखन के सBबध म एक आत7रक ?ि%ट उसी यि त म )वकJसत होती है जो .क जीवन से संवेदना के >तर के साथ ह साथ केवल समप;ण के >तर से भी जड़ा ु हो। इस कहानी म मोहन राकेश ने यथाथ; को #ेमच यगीन परBपरा से जोड़ने का #यास .कया है । #ेमचद के ु आदश,म;ख ु यथाथ;वाद को ‘जंगला' म राकेश जी नहं $नभा सके ह।= पा7रवा7रक )वघटन म पाM बनवार भगत अपने Jसhात, से समझौता नहं करता है जब.क #ेमचंद के पाM सभी तरह का समझौता करने को तैयार हो जाते ह=, इसJलए बनवार भगत अत म कहता है .क य द Nबसने घर पर लौटकर आ जाये तो ‘‘मझे या फक; पड़ता है ........ ठाकर ु ु जी क" सेवा के Jलए म= कएं ु से .करJमच के होल म पानी ले आया कHगा। '' राकेश जी क" शायद यह सीमा है .क वे अपने Jसhात, एवं उसल, ँ ू के नीचे जाकर 129

समझौता नहं करते, य,.क बनवार से यह कहलाकर .क य द Nबसने को सह संगत या अmछे JमM Jमले होते तो वह कभी प7रवार से )वोह नहं कर सकता था, म राकेश ने अपनी परBपरा के #$त आ>था य त क" है वहं दसर ओर Nबसने से )वोह कराके आध$नक जीवन ?ि%ट का भी आरोपण .कया है । ू ु डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa के अनसार कहानी है । ु - ‘‘जंगला पा7रवा7रक संघष; क" कहानी होते हए ु ु भी आध$नक जंगला कहानी का नायक Nबशने परBपरा से 6चपके माता-)पता क" परवाह .कये बगैर एक )वRवास के साथ प7र9य ता राधा का चनाव करता है । वह अपनी मानवीयता क" रTा के Jलए माँ-बाप को 9यागकर ु राधा का वरण करता है।''

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चाँदनी और याह दाग ‘चाँदनी और >याह दाग' कहानी पा7रवा7रक सBबध, के )वघटन म एक नये मI ू य क" तलाश का बोध कराती है य,.क इसम मानवीय H ढ़य, और परBपराओं के #$त )वोह कर एक यि त ऐसी लड़क" का चनाव करता है िजसके साथ कई कबाइJलय, ने बला9कार .कया है । इस कहानी म दो >तर, पर मानवीय ु सBबध, के पतन का ]व]व चलता है- एक समि%टगत ?ि%ट से तथा दसरा >तर समद ू एवं मेहर के ू एक दसरे ू से जड़ने ु एवं >वीकार करने का ]व]व। #थम #कार का ]व]व है सामािजक यव>था के ढ़ांचे को लेकर बदलने का िजसम यि त दसरे ू यि त को आपसी #$त]वि]वता तथा वैयि तक >वाथ; के Jलए उसका सBपण; ू जीवन चौपट कर दे ता है । यह हादसा समद ू के गा◌ॅव का हआ ु है जो मेहर को #ा`त करना चाहता है और उससे जी जान से #ेम करने के कारण पैसे क" खोज म तीन वष; बाहर रहता है । ता.क अपनी होने वाल प9नी को सख ु एवं वैभव दे सके। जब समद ू लौटता है तो ?Rय कछ , खालका और का दरा ु ु इस #कार का होता है- ‘‘जBमन मांझा से का>तकार हो गये थे। का दरा .फरन क" बजाय सलवार-कमीज पहनने लगा था। गाँव के एक ओर के सब घर जल गए थे। उनके साथ दोन, 6चनार भी जल गए थे। महBमद यार लंगड़ाकर चलने ु लगा था।''

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य,.क समद ू के बाहर जाने पर गांव पर कबाइJलय, का आZमण हआ ु था और ‘‘गाँव के

कई घर, म कबाइल चार-चार, पाँच-पाँच दन तक टके रहे थे। उन घर, क" लड़.कय, क" आंख बदल गई थीं। उनम एक अ>वाभा)वक पीलापन आ गया था। वे उसी तरह लक}ड़यां काटती थीं, जेहलम से पानी भरती थीं और Jसंघाड़े बीनने के Jलए जाती थीं, मगर ........। उन लड़.कय, म उसक" महबबा ू मेहर भी थी। उसके घर म सात-आठ कबाइJलय, का एक 6गरोह कई दन, तक रहा था।'' समय ने पलटा 132

खाया और सभी परानी >म$तयां और लोग, को कटु >म$तय, से छटकारा Jमला एकाएक समद ू क" ु ु ृ ृ )वचारधारा बदल गयी और उसने सोचा .क ‘‘कछ ु भी हआ ु जो, वह मेहर से शाद जHर करे गा। समय के दाग समय के साथ Jमट जाएंगे। कबाइJलय, के वहाँ रह जाने से मेहर क" मासJमयत म या अतर ू आया था? पीलेपन के बावजद ू उसक" आँख, म वह कोमलता थी और उसके नह -नह दांत उसी तरह चमकते थे। मेहर आज भी गांव क" सबसे हसीन लड़क" थी।'' नायक समद ू #ाचीन परBपराओं और 133

H ढ़य, को 9याग कर मेहर क" तरफ अपना हाथ बढ़ाता है, मेहर इस पर एतराज करते हए ु कहती है .क‘‘तू समझता य, नहं है , समद? नहं हूँ ....... मेरे होठ, म सांप से कम जहर ू म= तेर जान क" दRमन ु नहं है।'' इसके साथ ह मेहर यह भी >प%ट समद ू को )वRवास दलाना चाहती है .क ‘‘म= वह मेहर नहं 134

हूँ, िजसे तू पाना चाहता है , इस िजदगी म। अब म= वह मेहर हो भी नहं सकती म= एक गला हआ ु बीमार िज>म हूँ और कछ ु नहं, िजसम अब जहर ह जहर है ........।'' सBबध, के समझने का )वRवास मेहर 135

के अदर है । समद ू का )वRवास ह मेहर को चाँदनी क" तरह पाक और हसीन बना दे ता है । उसका $नण;य मेहर के जहर भरे ह,ठ को चमने म संकोच नहं करता और उसक" आ9मीयता मेहर के >याह दाग को ू चाँदनी क" तरह पाक और हसीन बना दे ती है । कहानी का अत मेहर और समद ू के एक"करण के साथ होता है ।

इस कहानी के प7र#ेOय म दे खा जाय तो समद ू म #ाचीन सां>क$तक त9व, का लोप पाया जाता है और ृ नायक अ9यत आध$नक जीवन ?ि%ट को लेकर चलने वाला है उसक" लड़ाई, उसका $नण;य >वयं ु उसका ह है । मोहन राकेश समद ू जैसे अनेक नवयवक, ]वारा मेहर जैसी अनेक मजबरू लड़.कय, को ु >वीकार करने का आवाहन करते ह।= डा◌ॅ0 सषमा अ<वाल इस कहानी क" )वJश%टता को रे खां.कत करते ु हए ू के समT ु कहती ह= .क - ‘‘चाँदनी और >याह दाग का नायक #ाचीन H ढ़य, को वैयि तक मIय तोड़ता है । यह कहानी वैयि तक $नण;य के अतःसंघष; क" कहानी है । कहानी का नायक समद ू सामािजक H ढ़यां◌े को छोड़कर कबाइJलय, ]वारा लट ु #ेJमका मेहर को >वीकार करने म संकोच नहं करता।''

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समकालन KLटाचार और उससे उMपन अमानवीयता के कारण पा रवा रक सबध क ासद पाRचा9य दे श, के साथ ह जनवाद दे श, म मन%य ु का नवीनीकरण हआ ु ु है । हमारे दे श क" 6चता, चनने क" #.Zया क" 6चता रह है । ‘नई-सBभावनाओं क"' शीष;कातग;त मोहन राकेश जी Jलखते ह=, टटने ू वाल इमारत, म एक इमारत उन )वRवास, क" थी, िजह,ने बहत को ृ ु दन, तक हमारे सा हि9यक सजन #े7रत .कया था। )वभाजन हआ। ..... रोजमरा; के जीवन का यवहार बदला, मायताएँ बदल, आपस के ु सBबध बदले। पर िजदगी के पराने ढांचे म रची-बसी आंख परे शान होकर दे खती रहं और कोई ु #$त.Zया उनम नहं हई। ु सवाल जगने लगे, वे आँख NबIकल ु नई थीं। ु इसJलए िजन आंख, म कछ सा ह9य म एक नये यग तब तक नहं होती जब तक .क उस यग ु क" शHआत ु ु क" चेतना .कहं )वRवास, या अ)वRवास, मे◌े◌ं प7रणत नहं होती। इस $नवा;ण क" सतह के नीचे से इसान का जो Hप सामने आया, वह बहत ृ था, हालां.क अप7र6चत वह नहं था। लगा .क आस-पास के बड़े-बड़े ु ह )वकत प7रवत;न, के साये म हम लोग $नरतर पहले से छोटे और कमीने होते जा रहे ह=, हमार नै$तकता क" जो भी तथाक6थत मया;दाएँ थी, वे टट ू रह ह।= ‘‘िजदगी का सारा अदHनी ढाँचा भरभर ु ु Jमlट क" तरह झड़ता ढ़हता जा रहा है ''

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भारत क" सामािजक एवं राजनी$तक दशा इस कदर बदतर है .क बहसं ु eयक गरब लोग िजदा लाश क" तरह हो गये ह।= वत;मान समय म असंग$त इतनी भर गई है .क यि त Jसफ; यथ; जीवन ह <हण करने के Jलए मजबरू है। आज जहाँ दे खो वहाँ संघष;, )व<ह )वTोभ, संMास, अशां$त ह फैल हई ु है । सभी जीवन म असत%ट करने लगे ह।= इस बर ु एवं अभाव का अनभव ु ु #.Zया को दे खते हए ु राकेश ने >वातMयो9तर राजनीतक संघष; और यव>था से उ9पन ि>थ$तय, का 6चMण कहा$नय, म .कया है । वत;मान म ऐसे भी यि त ह= जो पदोन$त के Jलए प9नी को मगo ु क" तरह इ>तेमाल करने म

हच.कचाते नहं। यहाँ तक .क नौकर के Jलए जमीर तक 6गरवी रख छोड़ते ह।= उपभोग के Jलए अनै$तक राह चनना आज क" $नय$त बन चक" ओर राजनीतक यव>था क" कचौट िजसने ु ु है । दसर ू यि त को असहाय और अपंग बना दया है । इस तरह D%टाचार ऊपर से नीचे तक फैला हआ ु है िजसम म^यवगoय यि त पीसा जा रहा है। वह JशuTत होकर तथा अय योLयताएँ रखते हए ु भी ऊंची

Jसफा7रश के अभाव म बेकार झेल रहा है - परमा9मा का क9ता , फौलाद का आकाश, आXखर सामान, ु एक ठहरा हुआ चाकू समकालन D%टाचार को )वRले)षत करने वाल कहा$नयां ह।=

परमाMमा का कMता ु ‘परमा9मा का क9ता ' कहानी म समकालन D%टाचार एवं सरकार काया;लय, क" $नि%Zयता व कायरता ु का वण;न है । िजसने मानवीय सBबध, को खोखला कर दया है । ‘परमा9मा का क9ता ' म आदमी के ु क9ते और परमा9मा के क9ते का )वरोध उभारते हए ु ु ु राकेश ने सरकार यव>था के खोखलेपन, $नि%Zयता, 7रRवत खोर और अयाय से <>त प7रवेश को तोड़ने के Jलए बेचैन संत`त, )ववश और उपेuTत यि त का 6चMण यथाथ; श◌ौल म .कया है । लोकतांिMक यव>था के अंदर .कस #कार ् अफसर लोग काम न कर , पाइप सलगाकर , रडर डाइजे>ट पढ़ते रहते ह= और बाबू चाय का मजा लेते ह= ु या दqतर कागज, पर Jलखी गजल सनाते ह।= ऐसे म य द अधेड़ आदमी क" अजo न पास कर तो इसम ु आRचय; नहं है लोग .कस #कार कामचोर हो गये ह= और काया;लय, म केवल औपचा7रकाय ह बरती जाती ह= इसी कटु यथाथ; को मानवीय सBबध, के T7रत होने को ‘परमा9मा का क9ता ' म दखाया गया ु है । एक अधेड़ आदमी सम>या<>त होकर काया;लय म आता है िजसक" ि>थ$त पा.क>तान के बटवारे से पैदा हई ु है । जमीन क" जगह उस अधेड़ यि त को गwढा एलाट कर कर दया है । वह गwढे क" जगह कम जमीन लेने के Jलए भी तैयार है। इसJलए उसने अजo द थी, परतु दो साल से अजo पास नहं हई ु है । वह अपनी भाभी, भाई क" बेट व बेटे को लेकर काया;लय के बाहर बैठ जाता है तथा अफसर, को खब ू गाल सनाता है । इन सब परे शा$नय, म उसे केवल अजo क" संeया याद है । ‘बारह सौ छbबीस बटा सात' ु वह कहता है ‘‘एक तBह नहं यहाँ तम हो वह आदमी कहता रहा, तम हो, और म= भी ु ु सबके सब क9ते ु सब भी क9ते ु ु क9ता ह◌ू हो- हम लोग, क" ह}wडयाँ चसते हो और ु लोग सरकार के क9ते ू ु ु ू ◌ँ। फक; Jसफ; इतना है .क तम सरकार क" तरफ से भrकते हो म= ‘परमा9मा का क9ता ' ह।ूँ उसक" द हई ु ु दवा को खाकर जीता हूँ और उसक" तरफ से भrकता हूँ'' अधेड़ ने भrक-भrक कर नौकरशाह, को अपने #$त याय करने के Jलए 138

मजबरू कर दया चह, ू क" तरह Nबटर-Nबटर दे खने म कछ ु नहं होता। ‘‘भrक,, भrको, सबके-सब भrको। अपने-आप साल, के कान फट जाएंग । भrको, क9त, भrको ........'' इस #कार भगवान के क9ते ने ु ु 139

सरकार क9त, पर भrककर ग$तहन ि>थ$त को ग$तशील बना दया। ‘‘परमा9मा का क9ता सरकार ु ु क9ते पर इस तरह भrकता है िजससे याय का दरवाजा जबरद>ती खलवा लेता है ।'' ु ु

140

मोहन राकेश ने अयाय अ9याचार शोषण और ऐसे ह अमान)षक क9य, और त9व, के #$त अपनी ु ृ झझलाहट य त क" है। इतना ह नहं इस अJभयि त म लेखक ने अ9यत साफ जबान म सरकार ँु ु यव>था के खोखलेपन $नि%Zयता, घसखोर और अयाय से <>त वातावरण म उपेuTत म द; त ू आदमी का यंLया9मक ढं ग से 6चMण .कया है । याय पाने के Jलए भrकने वाले सामाय यि त के भrकने को $नय$त के >तर पर ह नहं छोड़ दया है उसम )वोह का अथ; एक और उपलिbध भी #ा`त

करता है । भrकने से यव>था क" जड़ता टटती है , कान म तेल डालकर सोये हए ू ू ु अफसर, क" $ना टट जाती है। यंLय बोध क" पी ठका पर यथाथ; का 6चMण मानवीय सBबध, का पतन अ6धक सहज, अ6धक )वRव>त और #भावी #तीत होता है। यथाथ; के $नHपण म राकेश भावकता का वरण करते हए ु ु कहं भी )वत नहं होते ह।=

आNखर सामान ‘आXखर सामान' कहानी म एक संDांत प7रवार के अवसान का 6चM एलबम ]वारा अं.कत .कया गया है िजसका सारा सामान नीलाम हो चका ु है एलबम का आXखर पना खाल है । इस घर का आXखर सामान JमJसज बेला भxडार है िजसे कभी भी नीलाम .कया जा सकता है । लेखक इस कहानी म सामािजक मIय, के ˆास क" ओर संकेत करना चाहता है। आज द$नया म वह आदमी सफल है िजसके ू ु पास पैसा है, पदवी है । कहानी म बेला भंडार क" मानJसकता का जो संवेदना9मक 6चM खींचा गया है उसके पीछे लेखक का समि%ट बोध ह झलकता है । ‘आXखर सामान' एक ऐसी आकष;क यवती क" कथा ु है िजसे समाज म पया;`त #शंसा और सBमान Jमलता है । Jमसेज भxडार जहाँ भी जाती ह= लोग उसके Hप गण ु पर मLध ु हो जाते ह।= उसके प$त को उस पर गव; है, ले.कन वह अपने प$त क" महा9वाकांTा प$त; ू के Jलए उसके अ6धकार क" वासना-प$त; ू का साधन बनने को तैयार नहं है । प7रणामतः अ6धकार के H%ट होने पर जब प$त जेल चले जाते ह।= तो घर क" हर व>तु नीलाम जो जाती है । आXखर उसे नीचे बलाया जाता है तो वह अनभव करती है ◌ः ‘‘सी ढ़याँ उतरते हए ु ु ु उह लगा, जैसे वे आप नहं उतर रहं, घर का अXखर सामान नीचे पहचाया जा रहा है '' वा>तव म Jमसेज बेला भxडार का यह Hप एक ुँ 141

Nबखर हई ु नार का Hप है जो अपने प7रवेश के वहशीपन से संM>त तो है .कतु अपने अि>त9व-रTण के Jलए #9य9नशील भी बनी रहती है वह अपने इस #य9न म अकेला अनभव करती ह।= य, न कर ? ु जब उसका भाLय ह ऐसा है और तो और उसका प$त भी वह अकेले Tण, म कलबलाती है, य6थत ु ु रहती है, .कतु 6गरती नहं है । उसका अकेलापन बढ़ता जाता है । ‘‘सबह ु ना>ते के समय भी उनम बात-चीत नहं होती। .कसी चाय-पाट‰ पर उह साथ जाना पड़ता तो भी सारा समय वह Xखंचाव बना रहता। Jम>टर भxडार का बारह सौ क" नौकर पाने का मंसबा ू परा ू नहं हआ ु था। वे सोचती .क या इसक" वजह वह ह।='' Jमसेज भxडार का पीड़ाबोध और अकेलापन प$त क" 6गरqतार, एक-एक सामान क" नीलामी और आड़े व त म उनके सहपाठs सधीर क" उपेTा से और ु 142

गहरा जाता है । ‘‘यह जानते हए ु भी .क आज उनके सामान का नीलाम होगा, वह पहले नहं आया था। अब आया था जब। पहले उह,ने सधीर से .कतनी आशा क" थी। मगर सधीर क" आंख अब और हो गई ु ु थीं। उनक" आंख, म◌ं  जो हIका हIका आभास होता था, वह कहं गहरा हो गया था। वे दे र तक उसक" एकटक ?ि%ट का सामना नहं कर पाती थीं।''

143

आज के इस आ6थ;क भौ$तक यग ु म यि त इतना लालची एवं अमानवीय हो गया है .क उसने सBबध, को ताक पर रख दया है । आXखर सामान का Jम>टर भxडार बंगला और …ाइंग Hम को ससिKजत करने के Jलए अनै$तक ढं ग से घस ु ू लेने का अपराध करता है यहाँ तक .क पदोन$त के Jलए अपनी प9नी को उmचा6धकार के पास मगo ु क" तरह स`लाई करने म संकोच नहं करता। यह माM Jम>टर भxडार क" कहानी नहं इस तरह के अनेक Jम>टर भxडार हमारे दे श म है । जो उपभोग के Jलए अनै$तक काय,र् म फंसते ह।=

एक ठहरा हआ ु चाकू ‘एक ठहरा हआ ु चाकू' समकालन जीवन म फैले अ9याचार तथा मानवीय सBबध, के )वघटन पर

यंLय है य,.क आज साव;ज$नक Hप से यि त क" सरTा ख9म होती जा रह है। वह सM>त और ु आरuTत िजदगी Nबताने के Jलए मजबरू है । ‘एक ठहरा हआ ु चाकू' आदमी-आदमी के बीच उ9पन अमानवीयता क" कहानी है । आज यि त-यि त से डरने लगा है। य,.क आज गxडागद‰ क" घटनाय ु पहले से पौने तीन गना ु Kयादा हो गयी ह।= यानी पहले से एक सौ )पचह9तर फ"सद Kयादा। आज दन दहाड़े सड़क पर आदमी पर वार होता है। इस कहानी म दादा लोग, के आतंक का यथाथ; प7र#ेOय म वण;न Jमलता है । एक बेरोजगार यवक अपनी #ेयसी से Jमलकर घर लौटते समय रा>त म बफ; खरदने ु के Jलए >कटर रोककर उतरता है तो एक न9था Jसंह नामक गxडा उसम बैठ जाता है तथा बाशी को एक ु ू झापड़ जड़ दे ता है। यवक ]वारा )वरोध जताने पर वह चाकू $नकाल लेता है । खले ु ु चाकू को दे खकर यवक ु क" हालत खराब हो जाती है और वह भागता हआ दे ता है । ू ु अपने साथी महे  को इस घटना क" सचना महे  पJलस म 7रपोट; Jलखवाता है तथा हर #कार से उस गxडे ु ु के )वHh काय;वाह करने को त9पर होता है उसका एक 7रपोट; र JमM भी उसके साथ होता है । घटना >थल का कोई यि त सरकार के Xखलाफ गवाह दे ने को तैयार नहं। सभी गxड, से डरते ह= य,.क उनसे पJलस मंMी अ6धकार कोई ु ु उसक" रTा नहं करते। िजस समय न9था Jसंह को Jशनाeत के Jलए लाया जाता है उस समय यवक क" ु मनःि>थ$त अmछs नहं रहती है । वह बहत ु -बझा ु रहता है JमM के आRवासन से भी उसम .कसी ु बझा #कार के उ9साह का संचार नहं होता‘‘उसने पJसल हाथ से रख द और हथेल पर बने शbद, को अंगूठे से मल दया। तब तक न जाने .कतने  शbद और वहां Jलखे गए थे जो पढ़े भी नहं जाते थे। सब Jमला-कर आड़ी-$तरछs लक"र, का एक गंुझल था जो मल दए जाने पर भी पर ू तरह Jमटा नहं था। हथेल सामने .कये वह कछ ु ु दे र उस अधबझे गं◌ुझल को दे खता रहा। हर लक"र का नोक-नु ता कहं से बाक" था। उसने सोचा .क वहां कहं एक वाश-बेJशन होता, तो वह दोन, हाथ, को अmछs तरह मलकर धो लेता'' यह मनःि>थ$त यवक के ु 144

अकेलेपन और महानगरय जीवन म या`त संMास, भयावहता और असरTा को भी >प%ट कर दे ती है । ु बड़े शहर, क" िजदगी िजतनी तनाव भर और दहशत भर होती जा रह है इसका जीवत उदाहरण न9था Jसंह जैसे लोग ह।= कहानी म आये संदभ; और )ववरण महानगरय संMास और T7रत मानव सBबध, क" भयावहता को #माXणत करते ह=- ‘‘खले ु चाकू क" चमक से उसक" जवान और छाती सहसा

जकड़ गई। उसके हाथ से पैसे वहं 6गर गए और वह वहां से भाग खड़ा हआ। '' गxड, के Xखलाफ गवाह ु ु 145

दे ने वाला इन महानगर, म कोई नहं होता है। सारा प7रवेश और जीवन इनसे आतं.कत रहता है । मेडीकल >टोर के इंचाज; का यह कथन महानगरय भयावहता और संMासमय सBबध, को संके$तत करता है- ‘‘न9था Jसंह को यहाँ कौन नहं जानता ? अभी कछ ु ह दन पहले उसके आदJमय, ने )पछल गल म एक पान वाले का क9ल .कया है ....... ख◌ौ7रयत समXझये .क आपक" जान बच गई वरना हम तो .कसी को इसक" उBमीद नहं रह थी। ् अब बेहतर इसी म है .क आप चपचाप मामले को पी जाय। यहाँ आपको एक भी आदमी ऐसा नहं ु Jमलेगा जो उसके Xखलाफ गवाह दे ने को तैयार हो।'' यह अमानवीयता आज के प7रवेश क" है । िजसम 146

‘‘लेखक ने पJलस -अ6धकार, कानन , समाज, सरकार सबका भंडा फोड़ .कया है । ‘चीफ Zाइम ु ू , सरTा ु 7रपोट; र' क" बाशी को 7रपोट; वापस ले लेने क" सलाह $नRचय ह चrका दे ने वाल है । 7रपोट; र, थानेदार, एस0 पी0, डी0 एस0 पी0- सभी न9था Jसंह क" गंु◌ंडागद‰ जानते ह=, .कतु कोई उसको सजा नहं दे पाता। सार यव>था, िजसके हाथ म जनता क" सरTा का बीड़ा है नपंुशक हो उठs है। गं◌ड ु ,े बदमाश, ु पJलस अ6धकार-सभी आपस मे◌े◌ं Jमले होते ह=, .फर कौन .कसका याय करे ? सबके सब एक-से-एक ु ह थ◌ौल के चlटे बlटे है ।'' ्

147

यवक बाशी अनवरत एक भय और असरTा का अनभव करता है। लगता है .क उसने 7रपोट; Jलखाकर ु ु ु अmछा नह◌े◌ं .कया। गxडे ु समय आने पर उससे अवRय बदला लगे और यह भय उसे सोने नहं दे ता‘‘महे  के सो जाने के बाद वह काफ" दे र तक साथ के कमरे से आती साँस, क" आवाज सनता रहा थाु उस आवाज म उतनी सरTा का अहसास उसे पहले कभी नहं हआ ु ु था। वह आवाज एक जी)वत आवाज उसके बहत ु पास थी और लगातार चल रह थी। िजतनी जी)वत वह आवाज थी, उतना ह जी)वत था उसे सन ु सकना-चप ु चाप लेटे हए ु सकना। ........ Xखड़क" से ु , Nबना .कसी कोJशश के अपने कान, से सन कभी-कभी हवा का झrका आता िजससे र,गटे Jसहर जाते ...... शायद रोगट, म अपने अि>त9व क" अनभ$त। ु ू '' >प%ट ह इसम महानगरय जीवनगत सBबध, क" भयावहता और तKज$नत संMास पर ू 148

सफाई के साथ अJभयंिजत हआ और अि>त9व का संकट आज के मानव क" सबसे ु ु है य,.क सरTा बड़ी सम>या है । डा◌ॅ0 सरेु श धींगड़ा इस कहानी के प7रणाम क" ओर इशारा करते हए ु Jलखते ह=- ''बाशी का भय एक अकेले यि त का भय नहं, बिIक सBपण; के ू समाज का भय है , जो प7रवेशगत असरTा ु कारण उ9पन हआ ु है । वह भय यि त के बाय जीवन म ह नहं, उसके आंत7रक पT, तक या`त है, य,.क वह अपने भीतर तक >वंय को असरuTत और भयभीत पाता है। वह जानता है .क सरTा #दान ु ु करने वाल सामािजक सं>था भी उसे सरuTत नहं रख सकती'' बाशी जैसे लोग, को अपनी सरTा >वयं ु ु 149

करनी होगी, भले ह चाहे इसके Jलए उह अपना इलाका और मकान ह य, न छोड़ना पड़े ?

वभाजन क ासद के कारण पा रवा रक वघटन दे श को एक ओर आजाद Jमलती है तो दसर ओर )वभाजन का ताप और दाह भी उसे झेलना पड़ा। ू )वHh, के इस सामंज>य से .कतने ह लोग घर से बेघर हो गये और .कतन, को अपने भरे -परेू प7रवार म

न केवल साजो सामान से हाथ धोना पड़ा वरन ् अपनी संत$त को भी छोड़कर इस ओर से उस ओर जाना पड़ा। )वभाजन तो दे श का हआ ु पर साथ ह घर भी )वभािजत हो गये और लोग, के दल, के बीच एक )वभाजक रे खा ि◌ख◌ं् ◌ाच गई। यह दाHण और Mासद ि>थ$त थी, िजसे सभी भोगने के इmछक ु न होते हए ु भी )ववश थे। सभी ने इसे सहा और सहने से Kयादा झेला। दे श म एक नया प7रवेश बना-एक नई लहर दौड़ी और इसे गहरे तक अनभव .कया कलाकार, ने कथाकार, ने प7रणामतः त9#भावी सा ह9य ु क" सज;ना हई। ु राकेश इसके एक खास अंग बने और इस सmचाई को अपने कथा सा ह9य के मा^यम से ़ 6चNMत करने म भी अ<णी रहे । इस )वभाजन ने अपने #भाव तो अनेक Hप, म छोडे .कतु सश त #भाव दो Hप, म ह सामने आये। मानव-सBबध, म प7रवत;न हआ ु और यि त को अपेuTत सहायता और सहयोग नहं Jमलने के कारण वे )वकत ृ , )वघ टत व Š>टे र् टे ड होकर रह गये। )वभाजन के नाम पर राजनै$तक हाथकxड, के बीच मन%य ु क" बब;रता और अमानवीयता क" >प%ट रे खा राकेश ने ‘मलवे का माJलक', ‘कBबल' और ‘ लेम' कहानी म खींची है । ‘‘राकेश ने इन कहा$नय, म भारत का यह Hप #>तत ु .कया है िजसको इ$तहास अपने पन, म दबाकर हमेशा-हमेशा के Jलए Jससकता रहे गा'' मोहन 150

राकेश इन कहा$नय, म कछ ु पाते ह।= पर पाM, का मक ू ु कहना चाहते ह= परतु कहने का साहस नहं जटा Zदन सब कछ कर दे ता है । ु ु मख7रत

मलवे का माHलक ‘मलवे का माJलक' एक ऐसे यि त क" भावनाओं को अJभय त करती है िजसका घर प7रवार हद ू मि>लम दं ग, क" भ◌ो◌ं का $नHपण ् ट चढ़ चका ु ु है । कहानी म सामािजक यथाथ; क" खोज, उसके मIय, ू और संZमणशील ?ि%ट Jमलती है । कहानी केवल ‘र ख◌ो ् पहलवान' या बw ु ढे गनी क" नहं, बिIक )वभाजन क" )वभी)षका से बचे उस मलवे क" है जो हमारे सामने आज भी Kय, का 9य, पड़ा है और िजसक" चौखट क" सड़ी लकड़ी के रे शे झर रहे ह।= यहाँ मलबे का भी एक >वतM यि त9व उभरता है और हमार चेतना उस जड़ से सBप ृ त होती हई हई ु ु , उस सारे अतीत से गजरती ु बार-बार वहं लौट जाती है । मलवा भारत-पा.क>तान के )वभाजन के प7रणाम तथा उजड़े हए हए का ू ू ु जीवन व टटते ु मIय, #तीक है । )वभाजन के साढ़े सात साल बाद मसलमान, क" एक टोल अमतसर आती है और #9येक ु ृ >थान का उ9सकता से $नरTण करती है बहत ु ू रहे थे। इन सवाल, म ु से लोग उनसे बहत ु से सवाल पछ इतनी आ9मीयता झलकती थी .क लगता लाहौर एक शहर ह नहं है , हजार, लोग, का सगा संबध ं ी है िजसके हाल जानने के Jलए सभी अमतसर के लोग उ9सक गनी भी है ु ह= आने वाल, म बढ़ा ू मसलमान ु ृ जो पहले अमतसर म अपने पM ु और पMबध ु ू के साथ रहता था। उसका पM ु और प7रवार हद ू पहलवान ृ र ख◌ो ् ]वारा पहले ह मारे जा चक ु े ह।= गनी खां एक नजर अपने मकान को दे खना चाहता है तो पता चलता है .क वह मकान एक मलबे का ढे र बन कर रह गया है । र खा पहलवान ने इस मकान के लालच मे◌े◌ं ह उस मकान के रहने वाले प7रवार को मारा था, .कतु .कसी ने उसे जलाकर खाक कर दया है। बढ़ा होता है और दरवाजे क" ू गनी यह सब नहं जानता। वह मकान के अवशेष को दे खकर बहत ु ु दःखी टट ू चौखट से लगकर )वलाप करने लगता है । र खा पहलवान मलवे को ह अपनी जायदाद समझता

ं था। बूढ़ा गनी र ख◌ो य)वमढ़ ् पहलवान को बाह फैलाकर आवाज दे ता है । अपराधी र खा .ककत; ू सा रह जाता है । गनी उससे पछता है ू ‘‘तू बता र ख◌ो ् , यह सब हआ ु लोग उसके ु .कस तरह? गनी .कसी तरह अपने आंसू रोक-कर बोला। तम पास थे। सबम भाई-भाई क" सी महbबत थी। अगर वह चाहता तो तम ु ु मे◌े◌ं से .कसी के घर म नहं $छप सकता था ? उसम◌ं  इतनी भी समझदार नहं थी'' तो र खा केवल ऐसे ह है कहकर रह जाता है। 151

गनी क" बात, से उसक" नस, म एक तनाव आ जाता है । माJम;क संवेदना का 6चMण राकेश जी ने .कतना यथाथ; ढं ग से .कया है । ‘‘र ख◌ो ् ने सीधा होने क" चे%टा क" य,.क उसक" रढ़ क" हwडी बहत ु दद; कर रह थी। अपनी कमर और जांघ, के जोड़ पर उसे सeत दबाव महसस ू हो रहा था। पेट क" अंत}ड़य, के पास से जैसे कोई चीज उसक" सांस को रोक रह थी। उसका सारा िज>म पसीने से भीग गया था और उसके तलओं - सी ऊपर से उतरती ु म चनच ु ुनाहट हो रह थी। बीच-बीच म नील फलझ}ड़यां ु और तैरती हई ु उसक" आंख, के सामने से $नकल जातीं। उसे अपनी जबान और होठ, के बीच एक फासला-सा महसस ू हो रहा था।''

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यह मलवा ह टटते और टटे क" सार कहानी सना ् पहलवान क" तरह हमारा एक ू ू मIय, ू ु दे ता है । र ख◌ो वग; आज भी इन टटे के मलवे पर, उसे ह अपनी जागीर समझे हए ू मIय, ू ु बैठा है जब.क यह मलबा न तो उसका है , न गनी का, वह तो इ$तहास हो चका ु है, अब उसे हटना ह चा हए, य,.क यह इ$तहास और यगजीवन क" #$त.Zया है। कहने क" आवRयकता नहं .क ‘मलवे का माJलक' )वभाजन के ु प7रणाम >वHप )वघ टत प7रवार, क" ह कहानी नहं है , बिIक इसम बदलते प7र#ेOय म मIय, क" ू टटन भी य त हई के ^वंश और $नमा;ण के बीच क" यह कहानी संकेत दे ती है .क कछ ू ू ु इमारत ु है मIय, तो नई बन गई ह=, .कतु पराने मकान, के मलवे का ढे र अभी भी जहाँ-तहाँ पड़ा दखाई दे ता है और इस ु ‘‘अमानवीय )वभी)षकाओं म रrदे हए मलवे के भीतर ु दा, .कRवर और सIताना ु ु गनी का बेटा 6चराग, जबे से चीख रहे उनका मौन )वलाप कहानी म आ द से अत तक काHXणक ढं ग से छाया हआ ु है।'' 153

$न%कष; Hप म यह कहा जा सकता है .क यह कहानी केवल मलबे पर उन तमाम नवयव$तय, , नवयवक, ु ु और बजग,र पा.क>तान के नाम पर टकड़े कर दये गये ह=, िजह ् क" कहानी है जो हद>तान ु ु ु ु -टकड़े ु बेइKजत होते और क9ल करते समय लोग, ने बद Xखड़.कय, के भीतर से दे खा था।

कबल ‘कBबल' भारत )वभाजन के बाद कैBप, म रहने वाले एक प7रवार क" कहानी है। )वभाजन ने पा7रवा7रक सBबध, को .कस #कार #भा)वत .कया है यह कहानी उसक" Kवलंत त>वीर पेश करती है । रात क" ठं डक म यह प7रवार कैBप म पड़ा सद‰ से ठठर ु रहा है इनके पास गम; कपड़े नहं ह=, बेट जवान है कBबल बांटने वाले भी उहं लोग, को कBबल दे ते ह= िजनसे उह कछ ु लाभ हो सके, तभी तो अधसोई वनारसी पर कBबल क" कपा ू ल। जतलाना चाहा .क सो रह है । पर सोए ृ हई ु है-‘‘बनारसी ने आंख मंद

यि त क" तरह )वखर नहं सक"। पैर, क" आहट का ठsक अनभव हआ। पास आकर कोई झका ु ु .कसी ु ने छा$तय, को छआ। ........ बनारसी कंपकंपाई। तभी सखद Jसहरन फैलगई। शरर कBबल से ढक ु ु गया। शीत का रोमांच बैठने लगा। नींद के अJभनय म जांधो-छा$तय, पर .कसी के >पश; क" उपेTा कर द।'' मानवीय सBबध, के पतन क" यह #.Zया बनारसी बाहर लोग, के साथ तो झेलती ह है अपन, 154

से भी वह शो)षत होती है , य,.क माँ राजू को साथ Jलटा लेती है िजससे उसे सद‰ नहं लगती है और अपने प$त क" उपेTा भी करती है। कंबल जब बनारसी पर पड़ता है तो वह गंगादे ई छsन लेती है-‘‘आधा कBबल शरर से Xखंच गया था। खामोश रात म◌ं  वषा; का ती| >वर फैल रहा था। बनारसी ने कBबल को समेटने क" चे%ठा क"। झटके से कBबल थोड़ा और हट गया। गंगादे ई का >वर नींद म भी कक;श था, डायन को अपने ह शरर से मोह है। बmचा पास पड़ा ठठर ु रहा है, उसे ढकने क" 6चंता नहं। थोड़ा और छोड़ कBबल, बmचे को भी दो घड़ी सोने दे ।‘‘ बनारसी ने आवेश म परा  दया। कहा ले ले ू कBबल फक कBबल। अपने ऊपर भी ले ले। मझे ु ठxड खाकर मौत नहं आएगी।'' सBबध, क" यह )वडBबना इतनी 155

Zर ू हो जाती है .क इसने बनारसी के {दय म , माँ के एवम समाज के #$त एक आZोश को जम दया और अंदर ह अंदर वह घटती रह वह सोचती है .क आXखर माँ गंगादे ई ने उससे इतनी सद‰ म कBबल ु छsनकर कैसा मात9व ृ $नभाया है ? यह मात9व ृ बनारसी क" ओर से $छल गया। ‘‘यह $छलन कहां है? यहां .क वह मां होने से पहले प9नी है । प$त >व>थ नहं। सद‰ से ठठर $छलन और भी है । ु रहा है । दसर ू मात9व ृ का उफनता यंLय जो बोल पड़ता है । बनारसी क" हर करवट बोलती है , ताना दे ती है '' मां का 156

पM ु के #$त यह मात9व ृ बनारसी एवम ् प$त रामसरन क" आत7रक वेदना म अजनबीपन एवं अकेलापन का बोध कराता है । गंगादे ई कंBबल का 9याग नहं कर पाती और प$त रामसरन जीवन का प7रणाम >वHप असहाय माँ बेट रोती ह= अपनी )ववश $नय$त पर। डा◌ॅ0 सषमा अ<वाल के शbद, म ु ‘‘अभाव जीवन मIय, को .कस तरह #भा)वत करते ह= यह तcय इस कहानी म बखबी ू ू 6चNMत है । कहानीकार क" संवेदना यथाथ; से Jमलकर यहाँ {दय ावक हो उठs है ।''

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3लेम ‘ लेम' भारत-पाक )वभाजन म बरबाद हए ु लोग, क" कहानी है । लोग, का सरकार से अपनी न%ट हई ु सBपि9त का लेम है, वे .कसी न .कसी तरह उसक" लट ू हई ू कर अपने )वघ टत ु सBपि9त क" प$त; प7रवार बसाना चाहते ह।= लेम म शरणा6थ;य, को द जाने वाल सरकार सहायता के बटवारे को लेकर कशमकश चलती रहती है िजह,ने अपनी वा>त)वक जायदाद से अ6धक लेम माँगे उह तो एक लBबी चौड़ी रकम मंजरू हो गई िजह,ने स9य का आaय Jलया वे घाटे म रहे । एक >Mी का अठारह हजार का ‘ लेम' मंजरू होता है य,.क वह )वधवा है ‘‘पीछे बैठs >Mी रो रह थी .क बेड़ा गक; हो ‘ लेम' मंजरू करने वाल, का जो उसका Jसफ; अटठारह हजार का ‘ लेम' मंजरू .कया गया है । गजरां वाला म उनके चार ु मकान थे और एक साढ़े तीन कनाल का बगीचा था। बगीचा चार कनाल का होता, तो उह Kयादा Hपया Jमलता। अगर उह पहले पता होता तो वे आधा कनाल Kयादा Jलख दे ते ........ वे अपनी सmचाई म मारे गए'' )वधवा क" यह चाह बगल वाला बैठा पyष ु यह कहकर तोड़ दे ता है .क भाई तBह ु  तो कछ ु Jमल भी 158

गया है ‘‘यहाँ हम जैसे भी ह= िजह आज तक एक पाई नहं Jमल। हमारा कसरू यह है .क Jमयां-बीबी दोन, सलामत ह।= म= अगर मर-खप गया होता, तो मे◌ेरे बmच, को भी अब तक दो रो टयाँ नसीब हो जाती। आख मेर अंधी हो रह है, जोड़ मेरे दद; करते ह= .क लोग इसान क" जHरत को नहं दे खते, बस जीते और मरे हए ु आज ये एक हजार दे द तो म= कोई छोट-मोट दकान ु ु का हसाब करते है । मझे डालकर बैठ जाऊं। मेरे बmच, के पास तो एक-एक फट हई ु कमीज भी नहं है '' एक अय यि त 159

अपनी जायदाद का कई गना ु ‘ लेम' भरता है और उसे साठ हजार Hपया मंजरू हो जाता है इस पर उस >Mी क" जो #$त.Zया हई ु वह इस #कार है -‘‘म= कहती रह .क िजतना छोड़ आये हो, उससे Kयादा का लेम भरो। मगर ये ऐसे मरख थे .क हठ पकड़े रहे .क िजतना था उतने का ह लेम भरे ग पहले ह ू इतने दःख .क बताओ ु उठाए ह=, अब और बेइमानी य, कर ? आज ये मेरे सामने होते, तो म= पछती ू बेइमा;नी करने वाले सखी -$तगना ु ह= या हम लोग सखी ु ह= ? लोग, ने िजतना छोड़ा था, उसका दगना ु ु वसल ू कर Jलया, और म= बैठs हूँ छः हजार लेकर ! हाय, इन लोग, ने तो मेरे बmच, को भख, ू मार दया''

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साधJसं ु ह का ‘ लेम' सरकार से नहं है य,.क उसक" लट ू हई ु सरकार ृ पनः ु प9नी और आम का वT ़ वा)पस नहं कर सकती। साधJसं ् मनाता है । ु ह का ‘ लेम' जानवर (घोडे) से है जो उसके जान को ख◌ौर साधJसं ु ह ने भी शाद क" थी। और बड़े अरमान, के साथ घर म आम का पेड़ लगाया था .क आम खायेगा परतु Zर ू $नय$त ने बलवा के Hप म उसे अपनी बीबी और मकान से हाथ धोने पर मजबरू कर दया। परतु साधJसं ु ह अय लोग, क" भां$त ‘ लेम' म )वRवास न करके मेहनत को मह9व दे ता है - ‘‘तेर बरकत रह अफसरा, तो अपने पराने

दन .फर आयग   ! खाले, अmछs तरह पेट भर ले। अपने सब ‘ लेम' ु तझी ् .......'' ु को परेू करने है, तेर जान क" ख◌ौर

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‘ लेम' कहानी )वभाजन क" Mासद झेलते हए ू हारे एवमं Nबखरे लोग, क" दा>तान कहती है ु उन ठटे िजह,◌ेने अथ; के साथ-साथ अपनी संतान, को भी खो दया है .फर भी अभी साधJसं ु ह जैसे साहसी लोग ह= जो सरकार ‘ लेम' म )वRवास न कर खद ु मेहनत क" कमाई कर अपना घर प7रवार बसाना चाह रहे है । डा◌ॅ सषमा अ<वाल ‘ लेम' क" )वJश%टता को रे खां.कत करते हए ु ु Jलखती ह= - ‘‘प7रवेश से अलगाव ह इस कथा क" मल ू संवेदना है। इसम ‘ लेम' को आधार बनाकर न केवल त9कालन ि>थ$त को उभारा गया है, बिIक यह भी संके$तत है .क )वभाजन के कारण यि त टटा ू है, प7रवार )वघ टत हए ु ह= और जीवन )वडBबना बन कर रह गया है । मानव-मIय, म प7रवत;न हआ ू ु है । प7रणामतः मानव-सBबध भी अ#भा)वत नहं रहे ह।=''

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सदभ 1. बकलमखद ु -मोहन राकेश, प.ृ सं. 118 2. नये बादल (भJमका ), मोहन राकेश, प.ृ 1974 ू 3. एक और िजदगी (भJमका ), प.ृ 13 ू

4. एक और िजदगी (भJमका ), प.ृ 14 ू 5. मोहन राकेश, प7रवेश, प.ृ 121 6. मोहन राकेश, प7रवेश, प.ृ 198 7. कहानीः नयी कहानी - डा◌ॅ0 नामवर Jसं◌ंह, प.ृ 36 8. मोहन राकेश, प7रवेश, प.ृ 203 9. मोहन राकेश ◌ः aे%ठ कहा$नयां - सBपादक ◌ःराजे यादव, भJमका , प.ृ 6, 7 ू 10. धनंजय, हद कहानी का समकालन सफर (लेख), सा7रका, अग>त, 74 11. आध$नकता और मोहन राकेश - डा0 उJम;ला Jमa, प.ृ 56 ु 12. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 56 ु 13. मेर )#य कहा$नयां - मोहन राकेश, प.ृ 11 14. एक और िजंदगी, प.ृ 278 15. एक और िजदगी, प.ृ 280 16. आध$नकता और समकालन रचना सदभ;-डा◌ॅ◌0ं नरे  मोहन, प.ृ 79 ु 17. बकलम खद ु -मोहन राकेश, प.ृ 66 18. परBपरा का नया मोड़ः रोमां टक यथाथ; (लेख), आलोचना, 1965 19. अप7र6चत, प.ृ 95 20. अप7र6चत, प.ृ 96 21. आलोचना और सा ह9य - डा◌ॅ0 इनाथ मदान, प.ृ 153 22. आा;, प.ृ 48 23. आा;, प.ृ 48 24. आा;, प.ृ 47

25. आा;, प.ृ 47 26. कहानीकार मोहन राकेश, प.ृ 54 27. हद कहानी एक अतरं ग प7रचय-उपे नाथ अRक, प.ृ 253 28. Lलास टक = , प.ृ 52-53 29. Lलास टक = , प.ृ 55 30. Lलास टक = , प.ृ 59 31. Lलास टक = , प.ृ 53 32. Lलास टक = , प.ृ 60 33. Lलास टक = , प.ृ 63 34. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 62-63 ु 35. फौलाद का आकाश, प.ृ 113 36. फौलाद का आकाश, प.ृ 115 37. फौलाद का आकाश, प.ृ 114 38. फौलाद का आकाश, प.ृ 114 39. फौलाद का आकाश, प.ृ 117 40. हद क" नयी कहानी का मनोवै4ा$नक अ^ययन-Jम6थलेश रोहतगी, प.ृ 180 41. गंुझल, प.ृ 380 42. गं◌ुझल, प.ृ 382 43. गंुझल, प.ृ 382 44. गंुझल, प.ृ 382 45. गंुझल, प.ृ 383

46. गंुझल, प.ृ 388 47. बकलम खद ु , प.ृ 125 48. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 58 ु 49. पहचान, प.ृ 273 50. पहचान, प.ृ 270 51. पहचान, प.ृ 273 52. कथाक$त ृ मोहन राकेश - ओम #भाकर, प.ृ 242 53. आध$नकता और मोहन राकेश, प.ृ 61 ु 54. सहा6गन , प.ृ 154 ु 55. सहा6गन , प.ृ 115 ु 56. सहा6गन , प.ृ 154 ु 57. हद कहानी का )वकास-मधरेु श, प.ृ 82 58. हद कहानी का मIयां कन-काता (अरोड़ा) महदर9ता  ,प.ृ 152 ू 59. आध$नकता और हद कहानी-जगन Jसंह, प.ृ 48 ु 60. कथाक$त ृ मोहन राकेश, प.ृ 242 61. वाट; र, प.ृ 138 62. वाट; र, प.ृ 126 63. आध$नकता और हद कहानी - जगन Jसंह, प.ृ 44-45 ु 64. वाट; र, प.ृ 138 65. हद कहानी का )वकास - मधरेु श, प.ृ 81 66. आध$नकता और मोहन राकेश, प.ृ 62 ु

67. खाल, प.ृ 28 68. खाल, प.ृ 27 69. खाल, प.ृ 30 70. खाल, प.ृ 31 71. बकलम खद ु -मोहन राकेश, प.ृ 125 72. हद कहानी का मIयां कन-काता (अरोड़ा) महदर9ता , प.ृ 153  ू 73. कथाक$त ृ -मोहन राकेश, प.ृ 241 74. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ◌0 ं उJम;ला Jमa, प.ृ 66 ु 75. भख ू े, प.ृ 105 76. भख ू े, प.ृ 105 77. भख ू े प.ृ 104 78. भख ू े प.ृ 104 80. हकहलाल, प.ृ 365 81. बकलमखद ु , पश ्0 112 82. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 70 ु 83. जानवर और जानवर, प.ृ 371 84. जानवर और जानवर, प.ृ 371 85. जानवर और जानवर, प.ृ 372 86. जानवर और जानवर, प.ृ 371 87. हद कहानी अपनी जबानी - डा◌ॅ0 इ नाथ मदान, प.ृ 116 88. )ववेक के रं ग, प.ृ 374

89. पाँचवे माले का qलैट, प.ृ 267 90. पाँचव माले का qलैट, प.ृ 267 91. हद कहानी अपनी जबानी, प.ृ 232 92. आध$नकता और मोहन राकेश, प.ृ 68 ु 93. मद, प.ृ 321 94. मद, प.ृ 321 95. मद, प.ृ 321 96. हद कहानी का मIयां कन - काता (अरोड़ा) महदर9ता , प.ृ 149  ू 97. उसक" रोट, प.ृ 232 98. उसक" रोट, प.ृ 234 99. कथाक$त ृ मोहन राकेश - ओम #भाकर, प.ृ 238 100. कथाक$त ृ मोहन राकेश, प.ृ 242 101. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 65 ु 102. जeम, प.ृ 413 103. जeम, प.ृ 415 104. जeम, प.ृ 415 105. आध$नकता और मोहन राकेश, प.ृ 73-74 ु 106. जeम, प.ृ 416 107. जeम, प.ृ 417 108. जeम, प.ृ 415 109. जeम, प.ृ 418

110. हद कहानी, प.ृ 117 111. Jमसपाल, प.ृ 11 112. Jमसपाल, प.ृ 12 113. Jमसपाल, प.ृ 12 114. Jमसपाल, प.ृ 13 115. हद कहानी दो दशक क" याMा-डा◌ॅ0 रामदरश Jमa, प.ृ 105 116. Jमसपाल, प.ृ 24 117. हद कहानी दो दशक, प.ृ 54-55 118. Jमसपाल, प.ृ 14 119. हद कहानी अपनी जबानी, प.ृ 117 120. वा7रस, प.ृ 420 121. वा7रस, प.ृ 421 122. वा7रस, प.ृ 423 123. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 88 ु 124. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 74 ु 125. मोहन राकेश क" कहा$नय, म आध$नकता - एम0 एस0 मजावर , प.ृ 73 ु ु 126. जंगला, प.ृ 88-89 127. जंगला, प.ृ 187 128. जंगला, प.ृ 187 129. जंगला, प.ृ 192 130. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 77 ु

131. चाँदनी और >याह दाग, प.ृ 445 132. चाँदनी और >याह दाग, प.ृ 445 133. चाँदनी और >याह दाग, प.ृ 446 134. चाँदनी और >याह दाग, प.ृ 446 135. चाँदनी और >याह दाग, प.ृ 47 136. कहानीकार मोहन राकेश - डा◌ॅ0 सषमा अ<वाल, प.ृ 77 ु 137. बलकमखद ु - मोहन राकेश, प.ृ 85 138. परमा9मा का क9ता , प.ृ 324 ु 139. परमा9मा का क9ता , प.ृ 326 ु 140. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 79 ु 141. आXखर सामान, प.ृ 179 142. आXखर सामान, प.ृ 177 143. आXखर सामान, प.ृ 178 144. एक ठहरा हआ ु चाकू, प.ृ 145. गए ठहरा हआ ु चाकू, प.ृ 143 146. एक ठहरा हआ ु चाकू, प.ृ 145-46 147. हद कहानी का मIयां कन- काता (अरोड़ा) महदर9ता , प.ृ 48-49  ू 148. एक ठहरा हआ ु चाकू, प.ृ 147 149. हद कहानी दो दशक - डा◌ॅ0 रामदरश Jमa, 1974, प.ृ 140 150. आध$नकता और मोहन राकेश-डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 80 ु 151. मलबे का माJलक, प.ृ 229

152. मलवे का माJलक, प.ृ 230 153. आध$नकता और मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 80-81 ु 154. कBबल, प.ृ 334 155. कBबल, प.ृ 334-35 156. कBबल, प.ृ 335 157. कहानीकार मोहन राकेश - डा◌ॅ0 उJम;ला Jमa, प.ृ 100 158. लेम, प.ृ 109 159. लेम, प.ृ 110 160. लेम, प.ृ 110 161. लेम, प.ृ 112-13 162. कहानीकार मोहन राकेश - डा◌ॅ0 सषमा अ<वाल, प.ृ 98 ु

ि'वतीय अ%याय मोहन राकेश के उपयास म पारवारक सबध क ासद के बीज मोहन राकेश के उपयास,-‘अंधेरे बद कमरे ' (1961), ‘न आने वाला कल' (1968) तथा ‘अंतराल' (1972) का काल >वातMयो9तर भारत का काल है और यह यग ु भौ$तक यग ु तथा #ग$त का काल माना जाता है िजसने जीवन को आत7रक एवं बाय दोन, तरफ से #भा)वत .कया है । भौ$तक )वकास के साथ हमारे जीवन म मानJसक #.Zया म , H6चय, म और सBबध, म , ज टलता आ गई है । आज यि त का बाय .Zया कलाप और आत7रक अनभ$तय, क" एक सMता #ायः समा`त सी हो गयी है । ु ू ू आध$नक मन%य नहं रख पा रहा है । य,.क यि त अपने अंदर क" ु ु अपने को बाहर से सतलन ु अकलाहट , छटपटाहट, कसमसाहट आ द से पी}ड़त है । ु डा◌ॅ. दे वराज के कथनानसार यग उपयास, ु -‘‘आध$नक ु ु म शायद ह कोई उपयास Jमले, िजसम पराने ु क" तरह कथा एक पंि त क" सीध म )वकJसत होती हई ु दखलाई पड़े।''

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य,.क आध$नक यि त के ु

.Zयाकलाप और आत7रक अनभ$तय, क" एक सMता न%ट होती जा रह है । औ]यो6गक सvयता ने ु ू ू आज के आदमी को बहत ु अ6धक औपचा7रक आवरण म जीने के Jलये बा^य कर दया है िजससे वत;मान यि त अपने भाव, को सहज ह $छपाने के Jलये )ववश हो गया है । आध$नक"करण के सदभ; ु म आदमी क" मानJसक #.Zया, H6चयां और जीवन क" ज टलता बढ़ती जा रह है । इसJलये आज का लेखक वा>त)वकता के इस पहलू को और मानव के आत7रक जगत ् को अपनी रचनाओं म म$त; ू मान करता है । मानव जीवन के अतत;म Hप को मत; ू कर दे ना ह आज के उपयास को अय सा हि9यक Hप )वधान, से #थक करता है । मोहन राकेश के उपयास, म नायक क" धारणा या च7रM और JसलJसलेवार कथा का मोह नहं है । वे एक मeय मनः ि>थ$त से जड़े ु ु हये ु करते ह= िजससे ु अनेक #संग, को #>तत बाय प7रवेश भी भीतर संदभ; म प7रव$त;त हो गये ह।= बाहर क" हलचल उनके भीतर क" हलचल बन गई है । िजससे राकेश जी का सा ह9य कथा के रचाव क" ?ि%ट से च7रM के Jमथ को तोड़ सका है और उनक" रचना नये Hप म प7रकिIपत हई ु है। #ाचीन औपयाJसक )वधान म रzदोबदल का संकेत उनके उपयास, के मा^यम से Jमलता है। राकेश क" रचनाओं म (कहानी, उपयास और नाटक) परेू दौर को िजसम मानवीय सBबध, और उनके संकट, को पकड़ने का #यास .कया गया है, )वशेषकर बदलते हये ु या टटते हये के सदभ; म यि त के $नजी सBबध, क", >Mी-पyष, के 7रRत, क" ू ू ु ु सामािजक मIय, दरार, को उह,ने बार-बार कई तरह से पहचानने क" कोJशश क" है । उIलेखनीय है .क ये सBबध या

उनके )वघ टत हये को प7रभा)षत करते ह= उनक" रचनाओं म >Mी ु ु Hप आज के ह आदमी के अनभव अ सर नौकर करने वाल है । जैसे कहा$नय, म ‘सहा6गन  क" मनोरमा', ‘एक और िजदगी' क" बीना, ु ‘पहचान' क" Jमसेज सचदे व, नाटक, म ‘आधे अधरेू ' क" ‘सा)वMी' और उपयास, म ‘अतराल' क" Rयामा और ‘अध◌ोरे ् बद कमरे ' क" नीJलमा आ द अनेक ऐसी ना7रयां ह= जो .कसी न .कसी Hप म अपने >वतM जीवन क" तलाश करती ह= ले.कन बदल हई ु ु प7रि>थ$तय, म #ाचीन सामतवाद पyष क" मानJसकता से जझकर अकेल पड़ जाती ह= या उनम टट ू ू कर जड़े ु रहने क" छटपटाहट बनी रहती है। मोहन राकेश एक >थान पर Jलखते ह= .क ‘‘मेर रचनाय सBबध, क" यMणा को अपने अकेलेपन म झेलते लोग, क" कहा$नयां ह= ..... उनक" प7रण$त .कसी तरह के Jस$नJसKम म नहं, झेलने क" $न%ठा म है।'' इसी स9यता को उजागर करते हये ु मोहन राकेश के उपयास, पर )वचार #कट करते हये ु डा◌ॅ. 2

4ान अ>थाना Jलखते है .क ‘‘मोहन राकेश के तीन, उपयास, ‘अंधेरे बद कमरे ', ‘न आने वाला कल', ‘अतराल' म आध$नक जीवन क" )वसंग$तय, म संग$त न ढंू ढ पाने क" )ववशता है। कम से कम ‘अंधेरे ु बंद कमरे ' म जीवन अपनी सं>कार बhता के कारण )ववश है । ‘न आने वाला कल' म )ववशता क" यह जकड़ कछ ु छट ू Jमल है सBबध, को खोजने के Jलये और इस ु ढल पड़ी है । ‘अतराल' म इसे खल खोज का प7रणाम है ‘अतराल' - जीवन म कभी न पटने वाल खाई।'' $न%कष; Hप म यह कहा जा 3

सकता है .क राकेश के उपयास मल ू Hप म >Mी-पyष ु के ]व]व को लेकर चलते रहते ह= और इस ]व]व म प7रवार Hपी सं>था क" धर ु प$त-प9नी ह के म रहते ह।=

मोहन राकेश के उपयास म2 पा रवा रक ासद का व प मोहन राकेश के उपयास, का मल इस अथ; म .क उनके तीन, ू ाधार दाBप9य-जीवन है । मलाधार ू उपयास, क" तमाम अवातर कथाएं और लगभग सभी #Rन दाBप9य जीवन के ह .कसी न .कसी Hप या पT से उzभत , उन$त अहं , आ9म केित, ब)hजीवी , महानगर-$नवासी >Mी-पyष ू है । आध$नक ु ु ु जो परBपरा से चले आये सBबध, म आबh ह।= मोहन राकेश के उपयास, म उन सBबध, क" जांचपड़ताल या छानबीन करते अथवा उन सBबध, के संदभ; म $नजी यि त जीवन क" साथ;कता तलाशते या $नजी-यि त जीवन के संदभ; म उन सBबध, क" अथ;व9ता खोजते हये ु दखाई दे ते ह= इसJलये उह,ने इन पारBप7रक मानवीय सBबध, म सव;#थम प$त-प9नी सBबध का ह अपने उपयास, क" आधा7रक )वषय-व>तु बनाया है; शायद वह इसJलये .क मानव-समाज का यह सBबध सबसे अ6धक गहन यापक और #मख ु है .क अय सBबध उपसBबध इसी से जम लेते ह= इसके अ$त7र त दाBप9य जीवन को ह अपने उपयास, क" )वषयव>तु चनने के पीछे राकेश जी के सामने आध$नक ु ु मानव-समाज का वह साB#$तक Hप भी हो सकता है िजसम )वJभन सBबध, से भरे पराने ु , बड़े और सिBमJलत प7रवार टटते जा रहे ह= तथा प7रवार नाम क" सं>था प$त-प9नी (और एक या दो बmचे) तक ू ह सीJमत होती जा रह है । इस तरह प$त-प9नी के जीवन-सBबध, को अपनी औपयाJसक-क$तय, ृ क" आधारभत ू )वषय-व>तु बनाकर मोहन राकेश मान, आज के मानव-समाज के मल ू सBबध, उसक" मल ू सं>था को उzघा टत और )वRले)षत करना चाहते ह।=

मोहन राकेश ने ‘अंधेरे बंद कमरे ' क" भJमका म रचना के कcय क" ओर संकेत करते हये ू ु हरबंश और नीJलमा के अंत]व;]व क" कहानी (भी) कहा है । #Rन यह उठता है .क अंत]व;]व य, ? और कैसा ? चल आयी भारतीय समाज यव>था के अनसार तो ‘अधा‹6गनी' और ‘जीवन सं6गनी' ‘प9नी तथा भता;' ु और परमेRवर प$त के म^य .कसी ]व]व का >थान ह नहं है । ‘प$त क" अनया$यनी ' प9नी-प$त के ु #$त तथा ‘यो)षता और पो)षता' प9नी के #$त भला ]व]व क" ि>थ$त म कैसे हो सकता है ? पारं प7रक समाज और उसके दप;ण पहले के सा ह9य म ऐसा होता भी नहं था। या होते हये ु भी हमार पारं प7रक ?ि%ट उसे >वीकार नहं करती थी; कहं-कहं आज भी नहं करती। ले.कन, जोर दे कर कहने क" आवRयकता नहं .क यह ?ि%ट अधर ू और नकारा9मक थी। यह ?ि%ट प$त और प9नी को एक ‘यि त' न मानकर उनक" अि>मता को नकारती हई थी। ऐसी ि>थ$त म ु ु उनक" वा>त)वकता को भी झठलाती जब आज का कथाकार प$त और प9नी के म^य जैसे ह ]व]व क" दशा को >वीकार करता है, उसी Tण वह पारं प7रक समाज तथा परानी ?ि%ट को एक झटके से $नर>त कर केवल समाज के बदले हये ु ु आध$नक Hप को ह >वीकार नहं करता अ)पतु प$त और प9नी के #थक-#थक >वतM अि>त9व को ु भी >वीक$त ृ #दान करता है। आज प$त और प9नी एक साथ रहते हये ु भी, आसंगबh होते हये ु भी एकदसरे ू के Jलये अपने-अपने अहं के )वलयन हे तु तैयार नहं है। इसका एक माM कारण है अहं का घो)षत >वीकार तथा यि त क" >वतंM स9ता क" >थापना। अपने अहं क" रTा और >वतंM यि त क" इस >थापना क" धारणा ह प$त और प9नी के म^य ]व]व को जम दे ती है। ‘अंधेरे बद कमरे ' क" ‘‘नीJलमा इbसन के ‘ए डा◌ॅIस हाउस' क" नोरा क" तरह अपने Jलये प$त को सोचने का सम>त अ6धकार दे कर छl ु ट पा लेना नहं चाहती।'' जब.क उसका प$त ‘‘हरबंश ...... उसम 4

वह आ दम (पारं प7रक) भावना काय; कर रह है .क वह प$त होने के नाते नीJलमा का रTक, $नदशक „ और $नयंता है । वह चाहता है .क नीJलमा आ6थ;क या शार7रक कारण, से ह नहं, अपनी यि तगत पण; ू ता और साथ;कता के Jलये भी उसी पर आ6aत रहे-न सह उस पर, उसके मIय ू -दश;न पर ह।'' बस, 5

मल ू ]व]व यह है । मोहन राकेश के ‘अंधेरे बंद कमरे ' म हरबंश और नीJलमा नामक प$त-प9नी के दाBप9य जीवन के बहाने आध$नक समाज के ‘‘उस औसत दाBप9य जीवन क" कहानी है जो ऊपर से तो ु इ%या; क" हद तक सखी

दखता है, ले.कन िजसके भीतर एक अजब कहासा , घटन और ु और संतJलत ु ु ु ‘कआस ' बसा हआ ॅ ु है।'' इसम सदे ह नहं .क मोहन राकेश ने अपने इस उपयास म )ववाह क" सं>था 6

और उसके दोन, कता;ओ-ं प$त और प9नी-क" आंत7रक पतd को उधेड़कर दाBप9य-सBबध, के जो बारक-से-बारक रोय-रे शे #>तत ु .कये ह= वे कथाकार क" अपनी Tमता के तो #माण ह= ह साथ ह, इस #ाचीन सामािजक सं>था के #$त कछ ू #Rन भी उठाते ह= .क मानव-समाज के भावी Hप के ु मह9वपण;

हत म िजनका समाधान भी अपेuTत है । परेू उपयास म प%ठ ृ दर प%ठ ृ फैले हरबंश और नीJलमा के आपसी )ववाद, #ायः $न9य ह उनका छोट-छोट बात, पर आपस म उलझ जाना, दोन, का ह >वयं को सह Jसh कर पाने क" मानJसक ति`त के Jलये मधसदन ु ू जैसे .कसी तीसरे साTी क" शरण म जाना, ृ रोज के चाहे-अनचाहे )ववाद, के कारण दोन, को >वयं और जीवन म बढ़ती हई ु अy6च, ऊपर के तमाम )ववाद, और तान,-झगड़, के बावजद ू दोन, क" यह #mछन कोJशश .क सBबध, का आंत7रक सM ू

अनटटा ू बना रहे, बार-बार एक दसरे ू से भागना और .फर लौट कर Jमलना आ द ि>थ$तयां और उनका )वशद 6चMण अंततः पाठक को )ववश कर दे ता है .क वह दाBप9य जीवन क" इन भीतर असंग$तय, से दो-चार होने पर यग ु यग, ु से चल आयी )ववाह नाम क" इन सामािजक सं>था क" साथ;कता के बारे म एक बार .फर नये Jसरे से सोचे। यह स9य है .क हरबंश और नीJलमा के दाBप9य जीवन से साTा9कार करता पाठक एक बार तो प$त-प9नी अJभधानक समान-यव>था के इन मलाधार, के #$त न केवल ू शंकाकल ु हो उठता है, अ)पतु घबरा उठता है। समाज के इस आधा7रक सBबध के #$त सहसा उसका पारं प7रक )वRवास )वचJलत हो उठता है और इस ?ि%ट से लगता है .क मोहन राकेश ने अपना रचनाहे तु पण; ू सफलता के साथ #ा`त .कया है । ले.कन, थोड़ी और गहर तट>थ ?ि%ट से दे खने पर अथा;त लेखक ]वारा आयोिजत ि>थ$त-प7रि>थ$तय, का सOम )वRलेषण करने पर सहसा ह ऐसा ह #तीत होता है .क हरबंश और नीJलमा का यह )ववाद ू वा>त)वक नहं, बिIक जान बझकर अकारण खड़ा .कया हआ ू ु )ववाद है । $नरपेT )वRलेषण से >प%ट होता है .क दाBप9य जीवन के संबंध म #>तत ु हरबंश और नीJलमा (अथा;त लेखक) क" ये सार #Rन वाचक माएं सतह और वायवीय ह।= इस दाBपि9त के तमाम )ववाद,, समचे ु ू तनाव और सBपण; ू ]व]व के पीछे कोई भी ठोस और उ6चत कारण खोज पाना पाठक के Jलये संभव #तीत नहं होता। ..... हरबंश और नीJलमा के ]व]व म से कोई शार7रक Hप से अTम है ? नहं। या उनके पार>प7रक दाBप9य सBबध, म .कसी अय यि त के कारण कोई दरार है ? नहं। ...... आशय यह .क आ6थ;क, शार7रक, सामािजक, नै$तक मानJसक आ द .कसी भी ?ि%ट से कोई भी $निRचत कारण नहं है िजसे उनके ]व]व के Jलये मलतः रे खां.कत .कया जा सके। तब .फर ]व]व य, है ? बार-बार पर>पर ू )वरोधी बात और हरकत करते समय इस दं प$त के ]व]व का कोई भी यथाथ;, $निRचत और औ6च9यपण; त उपयास म मोहन राकेश नहं दे सके ह।= ू कारण अपने इस वहत ृ और बहच6च; ु 4ानोदय ‘खले ु और रोशन कमरे के सवाल' नामक शीष;क के अतग;त सधा ु अरोड़ा ने मोहन राकेश से ‘अंधेरे बद कमरे ' उपयास के बारे म कछ ू थे। हरबंश का च7रM एक )व6चM या कहा जाय ु #Rन पछे अटपटा च7रM है । सामायतः पाठक उसे िजतना .Zयाशील-हर ि>थ$त पर #$त.Zया करने वाला पाता है व>ततः ु वह उतना स.Zय है नहं। और उसक" यह ?Rय स.Zयता तब यथ; #तीत होने लगती है जब पाठक सोचता है ‘‘हरबंश के टटने का >प%ट कारण या है ? नीJलमा ? या नीJलमा क" उसक" प9नी ू होना ? या वैवा हक बंधन ? या नीJलमा को न समझने क" असमथ;ता या अपनी दब; ु लता या .फर शु ला के #$त एक अ>प%ट-सा आकष;ण।'' और यह स9य भी है .क य, तो हरबंश लंदन जाता है; य द 7

‘नीJलमा से बचने के Jलये तो .फर य, वहाँ से पM पर पM Jलखकर नीJलमा को बलाता है ? जब वह ु नहं चाहता .क नीJलमा अपने न9य ृ का साव;ज$नक #दश;न करे तो य,-ऊपर ह सह वह उसको सहयोग दे ता है ? जब नीJलमा उसका घर छोड़कर चल जाती है तो एक ‘अंधेरे बंद कमरे ' म अकेले शराब पीने के अ$त7र त वह या ठोस काय;वाह करता है ? और जब नीJलमा लौट आती है तब या करता है ? वह य, नहं >प%ट करता .क शु ला के #$त उसका या >टड = है ? ऐसे अनेक #Rन जो

हरबंश के च7रM को अ)वRवसनीयता #दान करते ह= उपयास म अन9त7रत ह रह गये ह= .क िजनके ु कारण हरबंश भी मलतः एक आरो)पत $नJम;त च7रM #माXणत होता है । ू याय नहं होगा य द हरबंश के च7रM के सBबध म उठाये गये इन #Rन, के समाधान हे तु उपयासकार मोहन राकेश के शbद (जब उपलbध ह= तो) उhत न .कये जाय। ‘4ानोदय' के जलाई 65 ु अंक म सधा ु अरोड़ा के #Rन, के उ9तर म राकेश Jलखते ह=, ‘‘हरबंश ...... उसका अंत]व;]व .कहं मIय, को लेकर है जब.क नीJलमा का अंत]व;]व मeय Hप से उपलिbध क" खोज पर आ6aत है। ....... ू ु वह टटता है य,.क वह नीJलमा को उपलिbध से हटकर मIय, के >तर पर जीना Jसखाना चाहता है और ू ू नहं Jसखा पाता। ..... वह टटने से बचने के Jलये नीJलमा से दरू भागता है, मगर अंदर के रे श, से वह इस ू तरह उससे जड़ा ु हआ ु नहं कर ु है .क उससे अलग होकर वह .कसी भी तरह नये Jसरे से िजंदगी शH पाता। ...... हरबंश को नीJलमा के ‘बनने' से 6चढ़ नहं है (जैसा .क नीJलमा भी कई बार कहती है), बिIक उस रा>ते के ‘बनने' से 6चढ़ है िजसे वह अपनी िजंदगी म अपना रह है।'' सधा ु अरोड़ा ]वारा और कछ ु 8

#Rन, का उ9तर दे ते हये ु >वयं मोहन राकेश ने Jलखा है ...... ‘‘उपयास का सBबध आज के यथाथ; से है । यह यथाथ; एक ग$तरोध है -म^यवग; के दाBप9य सBबध, म आया एक ग$तरोध। हरबंश और नीJलमा इस ग$तरोध म रहकर छटपटाते ह= पर इससे उबर नहं पाते। ........ आरBभ से अत तक वे तनाव और $न%फल संघष; क" ि>थ$त म जीते ह।= सार कोJशश, के बावजद ू जहाँ के तहाँ बने रहना उनक" अ$नवाय; ि>थ$त है -ि>थ$त, $नय$त नहं।''

9

मोहन राकेश के दसरे ू उपयास ‘न आने वाला कल' का मल ू कcय तो कछ ु और ह है , ले.कन उसम भी मनोज और शोभा के दाBप9य जीवन का काफ" संuT`त ले.कन बहत ु ु ह संिRल%ट 6चM लेखक ने #>तत .कया है । सात साल )ववा हत रहने के बाद शोभा क" दसर शाद मनोज से होती है , और मनोज ने अपनी ू िजंदगी के पतीस लंबे वष; अकेले रहकर गजारने के बाद यह पहल बार शाद क" है और अब उन दोन, क" = ु ि>थ$त या है (मनोज के शbद, म )-....‘‘उसक" (शोभा क") नजर म म= अब भी एक अकेला आदमी था, िजसका घर उसे संभालना पड़ रहा था जब.क मेरे Jलये वह .कसी दसरे ू क" प9नी थी, िजसके घर म म= एक बेतुके मेहमान क" तरह टका था।'' न केवल इतना, बिIक यह भी .क,‘‘..... एक दसरे ू क" बढ़ती 10

पहचान हमारे अंदर एक औपचा7रकता म ढलती गयी थी। यह जान लेने के बाद .क न तो हम अपनीअपनी हद तोड़ सकते ह= और न ह एक-दसरे ू क" हदबद को पार कर सकते ह=, हमने एक यh ु -)वराम म जीना शH ु कर दया था।''

11

‘न आने वाला कल' म च.क ँ ू लेखक ने रचना के मल ू कcय के Hप म मनोज ]वारा अपनी नौकर से 9यागपM दे ने तथा उस पर उसके सहयो6गय, क" #$त.Zया को मeय #$तपा]य बनाया है अतः मनोज ु और शोभा का दाBप9य-जीवन गौण ि>थ$त म चला गया है। .फर भी इस उपयास म मोहन राकेश ने दो वय>क >Mी-पyष, के $नजी प$त-प9नी सBबध, को बहत ु ु .कया ु >प%ट और संिRल%ट Hप म #>तत है । पतीस वष; क" वय तक के अकेलेपन से ऊब कर मनोज ने शोभा से शाद तो कर ल ले.कन अब = ि>थ$त है .क (मनोज के शbद, म ) ‘‘अपनी ह इmछा और िजBमेदार से हम लोग, ने अपने Jलये एक

प7रि>थ$त खड़ी कर ल थी, िजससे उबरने का उपाय दोन, को नहं आता था। इसके बाद साथ रह सकना लगभग असBभव था, पर सBबध )वmछे द क" बात दोन, अपने-अपने कारण, से जबान पर नहं ला पाते थे। शोभा के Jलये #Rन था )वरोधी प7रि>थ$तय, म Jलये गये अपने $नण;य का मान रखने का, मेरे Jलये पहले क" बनी अपनी गलत त>वीर को सह साNबत न होने दे ने का।''

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आशय यह है .क मनोज और शोभा भी ‘अंधेरे बंद कमरे ' के हरबंश और नीJलमा क" भाँ$त अकारण के संकट से <>त ह।= अपने-अपने अहं क" मीनार म कैद दोन, उसे सरuTत बनाये रखने के #य9न, म ु अपने जीवन क" सख का बJलदान कर रहे ह।= .कसी अय पyष ु -स)वधाओं ु ु के साथ सात-वष; दाBप9य जीवन यतीत कर चकने वाल शोभा मनोज नाम के इस दसरे ु ू पyष ु क" प9नी बनकर >वयं को इसके अनHप ओर मनोज है , जो पyष ु बदलने के Jलये कतई तैयार नहं है और दसर ू ु होने के नाते यह कतई गवारा नहं करता .क वह एक >Mी के Jलये >वयं को बदले। अपने-अपने अहं के चौखट, म कैद दोन, )विmछन भी नहं होते; य,.क )वmछे द के Jलये #वत;न करने वाले को अपना अहं टटता #तीत होता है । ू ऐसी ि>थ$त म मानJसक पीड़ा और ]व]व सहते रहने के अ$त7र त दोन, के सामने कोई अय रा>ता नहं है। ले.कन .फर वह #Rन उठता है .क या इन दोन, क" यह ि>थ$त और इसका कारण यथाथा;धा7रत है ? या ये दोन, सखी ु दाBप9य जीवन यतीत करना चाहते ह= ? $निRचत Hप से नहं य द वे ऐसा चाहते तो दोन, या दोन, म से कोई एक >वयम ् को दसरे ू के अनकल ु ू बदल या ढाल सकता है । ले.कन चं.ू क ये दोन, च7रM ह लेखक क" मानJसक क$तयां ह=, इसJलये इनका जीवन और ]व]व ृ भी मानJसक ह है, वा>त)वक नहं। वा>त)वक जीवन जीते यथाथ; जगत के दBपि9त एक-दसरे ू के अनHप ु जीवन म न जाने .कतने समायोजन करते रहते ह।= इस #कार दे खा जाये तो ‘न आने वाला कल' म अनेक पाM-थोड़ी-थोड़ी दे र के Jलये आते ह= और जीवन के #$त असतोष और ऊब य त करते ह।= शारदा-कोहल, टोनी िहसलर, चेर लारा, Jमसेज KयाŠे, रोज |ाइट, Jमसेज दाHवाला पादर, माल Zाउन, बा◌ॅनी, फक"र , काशनी और पादर ये सारे पाM एक पहाड़ी >कल ू क" िजदगी के साथ जीते हये ु भी इतने अकेले ह= .क अपने Jसवा और .कसी के अकेलेपन को महसस ू तक नहं कर पाते। अपने-अपने काम से अपने प7रवेश से वे बेजार ह= ले.कन वे अपने प7रवेश से इस #कार अंधे ह= .क उससे $छटककर दरू भी नहं हो पाते अथा;त वे अपने आप म )ववश हो जाते ह।= नायक मनोज आ द से अत क" अ$नRया9मक ि>थ$त म रहता है । वह छटकारा पाना चाहता था परतु .कससे ? नौकर से प9नी से ? ु .कसी चीज से ? वह >वयं नहं जानता .क उसने 9यागपM य,

दया ? मोहन राकेश के #थम दो उपयास, क" भां$त ह तीसरे उपयास ‘अतराल' म भी सम>या <>त दाBप9य जीवन का 6चMण है , बिIक कछ ु Kयादा ह है ले.कन यहां भी सम>या का उ9स वह मानJसक है , वा>त)वक जीवन जगत से परे । ‘अंधेरे बंद कमरे ' के हरबंश और नीJलमा म अहं और )वचार, भावनाओं का टकराव है , ‘न आने वाला कल' क" शोभा मनोज को अपने अनHप ु नहं ढाल पाती तो ‘अंतराल क" Rयामा को भी अपने प$त से यह Jशकायत है .क वह उसके अहं क" लगातार उपेTा करता

हआ ु , अपने यि त9व को उस पर बलात आरो)पत करता हआ ु डेढ़ वष; तक दाBप9य जीवन Nबताकर अचानक संसार से चला गया। Rयामा-कमार के सBपक; म जब आती है तब उसके प$त के मरे हये गये ह= ऐसी ु ु ु तीन वष; गजर प7रि>थ$तय, म एक बार .फर उसके भीतर क" नार, पyष ु #ाि`त क" आकांTा से भर उठती है। Rयामा ने दे व को प$त Hप म #ा`त कर अपने नार-जीवन को सवा‹शतः उसी एक पyष ु म )वसिज;त कर दे ना चाहा था, ले.कन दो-एक जाग$तक तथा अ6धसंeय मानJसक असंग$तय, के कारण ऐसा नहं हो सका। दे व के Rयामा के #$त लगातार के )वरि त पण; ू यवहार ने Rयामा को उसके #$त एक )वोह भरे Tोभ से भर

दया। अचानक दे व के दे हांत ने जैसे उससे Rयामा के सBबध, को वहं ‘ि>थर' कर दया है । Rयामा अब न तो अपने Tोभ को ह य त कर सकती है और न दे व क" आंत7रक भावनाओं को ह जान सकती है और अब शेष जीवन उसे उसी Tोभ क" मनः ि>थ$त को ढोते हये ु यतीत करना है। यह कारण है .क Rयामा अब भी दे व के यि त9व के #भाव से मु त नहं है । उसे लगता है .क दे व जी)वत अव>था म तो उसके साथ रहकर लगातार उसक" अपेTा करता रहा है और अब अचानक मरकर तो जैसे उसने Rयामा को आXखर बार भी एक बड़ा धोखा दे कर परािजत कर दया। अब तो उससे अपने )वोह को #कट करने क" भी कोई सBभावना नहं रह। ‘अंतराल' के तीन, खxड, म )व)वध #संग, म उिIलXखत Rयामा के )वचार उसक" उपय;ु त बामांत7रक दशा को ह य त करते ह।= सां>का7रक असंग$त और अहं के टकराव से उ9पन असामंज>य से भरे दे व और Rयामा के दाBप9यजीवन के अ$त7र त ‘अंतराल' म दाBप9य जीवन के दो अय Hप भी अं.कत .कये गये है। पहला है ‘Rयामा के जीजा #ो. मIहोMा का जो अपनी प9नी-बmच, के साथ रहते हए ु भी लगातार अय ि>Mय, और लड़.कय, से यौन-ति`त करने क" घात म बने रहते है ।'' और दसरा है कमार का जो बंबई आकर ू ु ृ 13

लगातार के अकेलेपन से ऊबकर .कसी प7र6चत ]वारा बताई गयी एक >Mी से )ववाह तो कर लेता है ले.कन ‘‘छः माह से अ6धक उसका )ववा हत जीवन नहं चल पाता। प7रि>थ$त )वशेष से )ववश हई ु वह >Mी कमार से )ववाह तो कर लेती है, ले.कन जैसे ह ि>थ$तयां उसके अनकल ु ू होती ह=, वह उसे छोड़कर ु चल जाती है।'' दाBप9य जीवन के ये दोन, ह Hप )वशेष उIलेeय नहं ह।= उपयासकार ने भी इह 14

अ6धक मह9व नहं दया है तथा य, भी ये दोन, ह Hप सामाय जीवन-जगत म आये दन होने वाल घटनाओं और रहने वाले यि तय, के उदाहरण माM ह है । हाँ इतना अवRय है .क इनम से कमार वाले ु #संग के ]वारा कमार के दाBप9य जीवन के बारे म )वचार, का प7रचय अवRय Jमल जाता है। Rयामा ु जब पछती है .क उस >Mी के साथ उसने कैसा अनभव .कया तो कमार #कारांतर से )ववा हत जीवन के ू ु ु बारे म ह अपने )वचार #कट करता है, मझे केवल ु ‘‘Jसवाय शरर के कछ ु ु नहं Jमला। उसे भी मझसे इतना ह Jमला होगा। ......... और जो था, वह था केवल एक डर। बात अपने तक रहे .कसी को पता न चले। िजतना सड़ना है, अंदर ह अंदर सड़ो। उसी सड़ांध और जहर से बmचे पैदा करो और उह भी उसी ढं ग से जीने क" JशTा दो। अपनी >वाभा)वकता के साथ )वRवासघात करो और ऐसा करने क" परBपरा को बनाये रखो।''

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कमार अि>त9ववाद दश;न से #भा)वत लगता है उसे अपने अहं के Jसवाय कछ ु ु नजर ह नहं आता है वह दसर, क" भावनाओं का कछ के ये ू ु eयाल ह नहं करता है य,.क )ववा हत जीवन के बारे म कमार ु )वचार >वयं ह >प%ट कर दे ते ह= .क दाBप9य जीवन केवल शरर सख ु और संतानो9पि9त का ह नाम नहं है, उसम मानJसक सामंज>य और भावा9मक #ेम भी जHर है। यहाँ आकर जैसे कमार और Rयामा ु के )वचार एक Nबद ु पर Jमल जाते है । Rयामा क" पीड़ा और सम>या भी यह है .क दे व से न तो उसक" मानJसक संग$त ह बैठ सक" और न वह उससे हा द; क >नेह ह पा सक"। शोभा और मनोज के )वmछे द के पीछे भी उनका मानJसक आसामांज>य ह है और यह आत7रक असंग$त हरबंश और नीJलमा के दाBप9य-जीवन क" #मख ु सम>या है । आशय यह .क मोहन राकेश के उपयास, म वXण;त दाBप9य जीवन सम>या <>त दाBप9य-जीवन है और उसक" एक माM सम>या है प$त-प9नी का मानJसक असामांज>य, ऐसा मानJसक असामंज>य िजसके पीछे कोई यथाथ; भौ$तक कारण नहं है । ‘अंधेरे

बद कमरे '

‘अंधेरे बद कमरे ' कालZम क" ?ि%ट से मोहन राकेश का #थम उपयास है। ‘अंधेरे बद कमरे ' क" कथाव>तु के )वशद )ववेचन से पव; ू यह समीचीन होगा .क उसके संuT`त कथानक से प7रचय #ा`त कर Jलया जाय। इस उपयास क" सBपण; ू कथा चार शीष;कहन खxड, म )वभािजत है । #थम खxड का आरBभ उपयास के वाचक ‘म=' - जो .क कथा का सMधार और नायक भी है तथा िजसका नाम मधुसदन ू ू है क" इस सचना से होता है .क वह नौ साल बाद लखनऊ से दIल लौटा है और अपने JमM हरबंश के ू साथ कनाट-`लेस के काफ" हाउस म काफ" पीता हआ ू दि`त पh$त के ]वारा उस काल खxड को ु पव; #>तत ु करता है जब नौ साल पहले वह बBबई म रहता था और उस महानगर के ऊब भरे जीवन को छोड़कर कहं चला जाना चाहता था। कथा के अय #मख ु पाM और मधसदन ु ू के JमM हरबंश से उसका प7रचय बंबई म ह हआ के ु ू दIल चला आया था और क>साबपरा ु म ठकराइन ु ु था। बBबई से मधसदन यहाँ अपने एक अय JमM अरNबंद के साथ रहता हआ ु ‘इरावती' पNMका म 160 H. माJसक नौकर म लगा था। बीच-बीच म क>साबपरा ु के $नBन )व9तीय जीवन के आ◌ॅचJलक #संग, Jसतारबादक बw ु ढे इबादत अल और उसक" लड़क" खरशीद का कथांश, कनाट-`लेस के रे >तराओं-बरांड, म यतीत होते ु हरबंश, नीJलमा, शु ला, जीवन भाग;व, Jशवमोहन, सरजी त आ द के आध$नक बौ)hक जीवन के कथा ु ु 6चM ‘इरावती' नामक पNMका के माJलक सBपादक के शोषक जीवन यवहार का वण;न, हरबंश और नीJलमा के दाBप9य जीवन म वैचा7रक असंग$त से उ9पन तनाव के फल>वHप हरबंश का शोध करने ं ु नीJलमा का भरतनाlयम के बहाने लंदन चले जाना वहां से पM Jलखकर नीJलमा को बलाना .कत ु सीखने के Jलए मैसरू जाने का संकIप आ द कथा #संग, के वण;न के अ$त7र त वाचक मधसदन ु ू के ]वारा ‘इरावती' क" नौकर से 9यागपM दे कर लखनऊ चले जाने क" कथा का Zमानकल ु ू #>ततीकरण ु .कया गया है। उपयास का #थम खxड यहं समा`त हो जाता है ।

मोहन राकेश ने दसरे ू खxड क" कथा को .फर उसी Nबंद ु से उठाया है जहाँ उसने #थम खxड के आरBभ म उसे >थ6गत कर पव; ू दि`त के ]वारा नौ साल पहले क" दIल क" उपय;ु त कथा को #>तत ु .कया था। अथा;त वह ि>थ$त .क मधसदन ु ू अपने JमM हरबंश के साथ का◌ॅफ" हाउस म का◌ॅफ" पी रहा है । नौ साल पहले दIल से लखनऊ जाकर वह छः महने गाँव म रहा .फर चार साल एक #काशक के यहाँ तथा चार साल एक अं<ेजी दै $नक पM म सहायक संपादक क" नौकर करके अब दIल के ‘यू हे रIड' म नगर संवाददाता होकर आ गया है । इस खxड के आरं भ तथा बीच म लेखक पMकार, के वैयि तक तथा सामािजक जीवन क" थोड़े Nब>तार के साथ चचा; करता हआ कथा को )वकास दे ता है। ु ु .फर मeय मधसदन पर हरबंश अपने लंदन-#वास के जीवन का स)व>तार वण;न करता है .क ु ू के एकाध बार पछने ू .कस #कार एक वष; बाद भरतनाlयम का #JशTण लेकर नीJलमा भी लंदन पहच ु ँ गयी। लंदन म नीJलमा का उमाद9त के Œप के साथ यरोप का दौरा करना Œप के एक वमo कलाकार ऊबानू के साथ ू नीJलमा का )वJश%ट आसि त #संग, हरबंश और ए.बी.सी. (अमत ृ बाला चावला) का भी ऐसा ह #संग दौरे से लौटकर हरबंश और नीJलमा के बीच भ◌ोद और तनाव का और अ6धक बढ़ जाना, दIल वापस ् साथ-साथ लौटना, इधर सरजीत का शु ला से शाद कर लेना, हरबंश और नीJलमा दोन, का ह बेहद ु मानJसक तनाव म दन यतीत करना, एक बार नीJलमा ]वारा भी मधसदन ु ू को अपने लंदन-#वास के कछ आ द वण;न, के साथ यह खxड हरबंश और नीJलमा को असंग$त, तनाव और )ववाद ु ु #संग सनाना भरे वातावरण म ह छोड़ता हआ ु समा`त हो जाता है । ततीय खxड म कथा के )वकास और )व>तार क" ?ि%ट से दIल के महानगरय जीवन के यौर, के साथ ृ हरबंश-नीJलमा क" तनाव भर गह>थ िजंदगी का वण;न, उनके बार-बार के )ववाद-झगड़े, दIल का ृ कला जगत, का◌ॅफ" हाउस, म 6चM संगीत नाटक, राजनी$त, कटनी$त तथा आध$नक जीवन पर होती ु ू बौ)hक बहस, )वदे शी दतावास , उनके अJभजा9य समारोह, बीच म थोड़ा सा क>साबपरा और ू ु , ठकराइन ु उसक" जवान हो गयी बेट $नBमा का #>तत ु 6चMण, मधसदन ु ू क" $नजी नौकर का )व>तत ृ वण;न आ द )वJभन #संग, को #>तत ु करते हए ू कथा-खxड क" भाँ$त हरबंश और ु यह कथा-खxड भी दसरे नीJलमा के $न9य-नैJमि9तक )ववाद के साथ समा`त होता है । चतथ; ु खxड उपयास का अितम कथांश है िजसके आरBभ म रचना के शH ु से चला आया हरबंश और नीJलमा के दाBप9य-तनाव का सM ू )व]यमान है नीJलमा कला-$नकेतन क" ओर से अपने न9य ृ का एक साव;ज$नक #दश;न करना चाहती है । हरबंश ऊपर तौर पर उसे सहयोग करता हआ ु भी नहं चाहता .क नीJलमा अपनी ‘>थापना' हे तु इस #कार के तm क" एक ु छ यावसा$यक #य9न कर ; बीच म दतावास ू कम;चार सषमा aीवा>तव और मधसदन ु ु ू का #णय-#संग आता है जो दोन, के )ववाह क" ि>थ$त तक जाकर इसJलए टट .कसी )वदे शी सरकार क" ऐजट  है ; कथा #संग, के अय योर, के ू जाता है .क सषमा ु साथ ठकराइन तथा शु ला क" भी चचा; है - .क ठकराइन अपनी बेट $नBमा का मधसदन ु ू से )ववाह ु ु करना चाहती है िजसे मधसदन ु ू अ>वीकार कर दे ता है और >वयं भीतर ह भीतर एक टस का अनभव ु करता है .क शु ला से शाद नहं कर पाया, नीJलमा के न9य ृ #दश;न क" सफलता के बाद उसका और हरबंश का )ववाद और उ< Hप धारण कर लेता है और नीJलमा हरबंश का घर छोड़कर चल जाती है और

अंततः एक सबह ु अचानक >वयं लौट आती है । इधर मधसदन ु ू मान, चार, ओर से मु त होकर अचानक (अनायास ह) क>बाबपरा ु चलने के Jलये टै सी-…ाइवर से कहता है और इस तरह एक अचानक-सी ि>थ$त म उपयास समा`त हो जाता है । ‘अं◌ंधेरे बद कमरे ' क" यह कथाव>तु अपनी )वJभन ि>थ$तय, के बारे म य]य)प अनेक #Rन, शंकाएँ पाठक के मन म उ9पन करती है; ले.कन कहने क" आवRयकता नहं .क इन शंकाओं का एक माM कारण लेखक क" इस नयी र$त, कथा के इस नये $नवा;ह से पाठक का अप7रचय ह है और इस #कार यह >प%ट है .क ‘अंधेरे बद कमरे ' क" कथाव>तु आरBभ, )वकास तथा अवसाना द के त9व, से सव;था मु त अपने नये HपJशIप से सBपन है । साठो9तर उपयास, म यथाथ; के अनेक आयामी 6चMण ने उपयास के परBप7रत JशIप और Hपबध को $छन-Jभन कर उपयास के ढाँचे को चरमरा दया। हद उपयास का ढाँचा बहत ु Nबखरा-Nबखरा सा है । #9येक दशा म खिxडत मया;दाएँ ह= और )विmछन मIय, क" अ>त-य>त परBपरा है । इसका ू ता9काJलक प7रणाम एक ओर सामािजक एवं वैयि तक सीमाओं का टटना तथा दसर ओर नै$तक ू ू मायताओं क" )वक$त क" ऊँची मीनार ु ृ है । इन दोन, के म^य मानव जीवन म अना>था एवं कxठाओं उठ रह ह= तथा मानव-मIय क" मया;दा शंकालु बनती जा रह है । इस तcय क" ओर संकेत करते हये ू ु डा◌ॅ. 6ग7रजाराय कहती है .क - ‘‘आध$नक उपयास, का नयापन मलतः जीवन के #$त ?ि%टकोण का ु ू नयापन है , मानवीय अि>त9व क" सम>याओं, सामािजक जीवन क" )वडBबना9मक )वसंग$तय,, सBबध, के खोखलेपन और अजनबीपन को अJभयि त दे ने के Jलये रचनाकार स.Zय हआ। ु

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उपय;ु त )वसंग$तय, क" यह #वि9त बहत ु )व^वंसा9मक है और ऐसी प7रि>थ$त से उपयासकार ृ ु कछ का दा$य9व बढ़ जाता है । मोहन राकेश के उपयास ‘अंधेरे बंद कमरे ' (1961) म आध$नक जीवन क" )वसंग$तयाँ और )वक$तयाँ , ु ृ भयावहता म Hपा$यत हई संवेदना दाBप9य जीवन क" अJभश`त और तनावपण; ु ू ु ह।= इसम आध$नक ि>थ$तय, को उठाने म है। महानगरय जीवन म मानवीय सBबध, के टटने क" ि>थ$त और अकेलेपन ू म आध$नकता -बोध को आँका गया है। डा◌ॅ. इनाथ मदान इस उपयास को ‘‘क$त ु ृ के Hप म न आंककर एक संभावना के Hप म आंकते ह।= उह,ने पहले इसे कथाकार के अनसार ह आज क" दIल ु के रे खा6चM, पMकार मधसदन ु ू क" आ9म कथा और हरबंश और नीJलमा के अत]व;]व क" कहानीतीन, म आंका है , पनः क" नयी चेतना को पकड़ने ु उपयास म या`त एक महानगर के JशuTत समदाय ु और उसक" परत-परत को उघाड़ने तथा उनके अकेलेपन क" अनभ$त ु ू क" अJभयि त को क$त ृ क" संभावना माना है।'' इसम सदे ह नहं .क राकेश ने यहाँ .कस तरह महानगर म अकेलेपन क" उस 17

गहर अनभ$त ु ू को अJभयि त दे ना चाह है , िजनके मल ू म >नेह हनता है , मानवीय सBबध, क" अथ;हनता है, ले.कन Jसफ; इसी >तर पर उपयास म क$त ृ क" सBभावनाओं को आंकना उसी तरह एकोमखी ु होना है , िजस तरह उपयास को Jसफ; पMकार मधसदन ु ू क" आ9म कथा मानना या आज क"

दIल का रे खा6चM मानना, या .फर हरबंश नीJलमा के अत]व;]व क" कहानी कहना।

डा◌ॅ. अतलवीर अरोरा के अनसार ‘‘इस उपयास म छाये हये ु ु ु महानगर के जीवन के रे श-े रे शे को उकेरना होगा, िजसके मल का भु त सदभ; है, िजसके कारण हमार िजंदगी के अपने-अपने ू म एक धरहनता ु घ◌ोर, म , अपनी-अपनी प7र6धय, म अंधेरे बंद कमर, का $नमा;ण हो रहा है। यह $नमा;ण महज हो रहा ् है । हमार अपनी वजह से हो रहा है, हम चाहते ह= .क यह सब न हो, ले.कन कछ ु Tण ह= जो हम अपने अT से दरू फक  दे ते ह= और वह $नय$त सांप के फन क" तरह हम डस लेती है और हम $नRचे%ट हो जाते ह।='' यह ‘अंधेरे बंद कमरे ' हमारे $नण;य, को $नण;य के Tण, को नकारा9मक Dमजाल, क" ओर आक%ट ृ 18

करते ह= िजसक" कोई सकारा9मक दशा नहं होती है । $नय$त का यह DमजाJलक संदभ; आध$नकता क" ु #क$त ँू है यह )वसंग$त पा7रवा7रक )वघटन को जम दे ती है । ृ क" पजी ‘अंधेरे बंद कमरे ' म कथा का आधार मeय Hप से - हरबंश नीJलमा (सा)वMी) के पार>प7रक ु अत]व;]व, जीवन भाग;व, शु ला के Nबगड़ते सBबध तथा शु ला सरजीत के बनते सBबध, ु मधसदन के #णय सBबध, का टटना तथा क>साबपरा ु ू -सषमा ु ू ु म इबादत अल क" हबेल म बेट खरशीद को अपने )पता के #$त )वोह और चार, तरफ के $नBनम^यम वगoय )वशेषकर ठकराइन तथा ु ु उसक" लड़क" $नBमा क" बद कोठर म टटते अरमान, एवं अकलाहट का अंकन मानवतावाद के आधार ू ु पर .कया गया है । डा◌ॅ. अतलवीर अरोरा ‘अंधेरे बंद कमरे ' को ‘‘कcय-#क$त ु ृ के सदभ; म तनाव, का उपयास मानते ह= और तनाव, क" ि>थ$त #ायः #9येक पाM म दे खते ह।='' तनाव क" ि>थ$त म सभी पाM ह= जो दIल के 19

परेू सां>क$तक जीवन म छाया हआ ू Jसंह ृ ु है और उसक" ग$त इतनी तीn है .क वह मलन ब>ती हरफल को भी नहं छोड़ता है। नीJलमा का लोग, से अ6धक Jमलना जलना हरबंश एक #कार क" वेRयावि9त ु ृ समझता है । उसके इस )वचार का कारण नीJलमा यह समझती है .क वह इस हन भावना का Jशकार है .क प9नी को प$त से अ6धक लोग जानते ह= हरबंश को सषमा aीवा>तव NबIकल ु ु पसद नहं थी। मधसदन कछ ु ू उसके साथ )ववाह $नRचय कर चका ु था। ले.कन हरबंश उसे बताता है .क सषमा ु ु दन उसके साथ भी घमती रह है । उहं दन, उसने करनाल म अपने )पता को नया मकान बनवा दया था। ू उसके )पता क" आ6थ;क हालत या थी, कछ से सनाटे म रह जाता है । ु ू इस सचना ू ु भी नहं। मधसदन वह आRचय; से हरबंश का हाथ दबाकर पछता है .क वे लोग अचानक इतने अमीर कैसे हो गये, तो वह ू उ9तर दे ता है .क इस तरह के सवाल .कसी से नहं पंूछने चा हये। और वह सषमा aीवा>तव के यहाँ न ु जाकर क>साबपरा और $नBमा उसक" #तीTा कर रह थी, िजनके साथ वह ु जाता है , जहाँ ठकराइन ु कभी रहता था। डा◌ॅ. सरेु श Jसहा के अनसार ‘‘इस उपयास म >वतMता पRचात दे श म बड़ी ु सां>क$तक ग$त)व6धय, और राजनी$तक दाँव के साथ पा7रवा7रक जीवन के अध◌ोरे ् बद कोन, का ृ मोहन राकेश ने बड़ी कशलता से पदा;फाश .कया है ।'' रचनाधJम;ता क" ?ि%ट से अंधेरे बद कमरे म ु 20

उपय;ु त )वसंग$तयाँ तथा वहाँ के जनजीवन, सां>क$तक जीवन एवं वातावरण के आडBबर, के ऊपर ृ नकाब, का पदा; उधेड़ते हये ु इसम यह स9य #$तपा दत करने का #य9न .कया है .क आज .कतनी कNMम प7रि>थ$तय, म यि त अपना जीवन जी रहा है, िजससे वह कोई समझौता कहं चाहते हये ृ ु भी नहं कर सकता हर यि त असBपृ त सा है । हर यि त अदर से एक 7र तता का अनभव करता है , ु

अपने को टटा है , एक ू हआ ू करता है । उससे और प9नी के म^य भी दराव ु ु ; परािजत सा थका हारा महसस दसरे ू के #$त हसाब है और असम)प;त होने के साथ ह अ)वRवास है, तथाक6थत उmच>तर के जीये जाने वाले जीवन म वासना का Kवार है , #दश;न क" भावना है , अपनी स9ता Jसh करने क" चे%टा है । सां>क$तक जीवन तो पण; ू तया आडBबरपण; ू है । )वदे शी सरकार, क" आ6थ;क सहायता से चलने वाल ृ अनेक सां>क$तक सं>थाएं दIल म है, िजनक" अपनी अलग दशाएं ह।= दतावास, म बी. आई. पी. ू ृ लोग, ]वारा जीये जाने वाले जीवन क" अपनी Jभन ि>थ$त है । काफ" हाउस, ग`प, का दसर, पर क"चड़ ू उछालने और अपनी महानता Jसh करने का दौर दसरा है । सा हि9यक, कलाकार, का अपना माहौल है , ू िजसम बनावट क" आXखर सीमा है । आज क" इस तथाक6थत #ग$तशीलता म नार का मह9व अ6धक बढ़ गया है । प$त अपनी मनोवां$छत भावना क" प$त; ू के Jलये उसे Xखलौना बना सकता है। प9नी के Jलये कोई प$त से JमMता जोड़ सकता है , अपना 7रकाड; `लेयर घर म जगह न होने का बहाना करके छोड़ सकता है , .फर प$त क" अनपि>थ$त म प9नी और साल का संरTक बन सकता है , .फर एक दन घम ु ू .फर कर ऐसी ि>थ$त उ9पन कर दे ता है .क साल से उसका )ववाह हो जाता है >Mी चाहे तो वह अपने कंगाल )पता को अmछा सा मकान बनवाकर दे सकती है , रात,-रात अमीर बन सकती है जब.क उसक" योLयता वाला पyष ु अपने कै7रयर के Jलये संघष; ह करते रह जाते ह।= प9नी के Jलये ह प$त का मह9व बढ़ जाता है , उसक" पंूछ होने लगती है। पा ट; य, म बलाया जाता है , डाँस के Jलये आमंNMत .कया जाता है ु और .फर कIचरल सेZेटर का पद #दान .कया जाता है । ऐसा ह हो गया है यह जीवन आज का, जहाँ लोग खोखल हसी ह=, बनावट के आँसू 6गराते ह=, जहाँ हर चीज फामJलट क" बाँह, पर टक" हई „ ँ हसते ँ ु है । ‘अंधेरे बंद कमरे म' ‘‘म= मोहन राकेश मानवीय )वJश%टता क" अथ;पूण; >वतMता >वीकारते ह।= वे .कसी #कार के बंधन को उ6चत नहं मानते य,.क उससे मानव यि त9व का )वघटन होता है और वह अपनी सह अथ;व9ता #ा`त करने म असमथ; रहता है ।'' #ग$तशीलता क" भं6गमा से अवलोकन कर तो 21

यह बात समझ म आती है .क मन%य ु को अपनी सह अथ;व9ता #ा`त करनी चा हये ले.कन मोहन राकेश यह कहं >प%ट नहं कर पाते .क पजीवाद सvयता ने मानव सvयता को ^वंसोमखता के िजस ँू ु कगार पर लाकर खड़ा कर दया है, वहाँ पण; ू >वतMता माM ह मन%य ु को कैसे सम<ता #दान कर सकेगी ? मोहन राकेश आध$नकता के #$त अ$त7र त Hप से मोह <>त ह= इसJलये वे .कसी भी ु परBपरागत आदशd को >वीकारना परानापन समझते ह= - उनके Jलये उनक" उपयो6गता अब उपयो6गता ु का #Rन ह नहं उठता। मोहन राकेश च.क ँू मन%य ु को उसके यथाथ; प7रवेश म 6चNMत करने पर बल दे ते ह=, इसJलये वे मानते ह= .क जब तक यह यथाथ; प7रवेश नहं सधरे को #ा`त नहं .कया ु गा, मानव-मIय, ू जा सकता। हरबंश नीJलमा (सा)वMी) प$त-प9नी ह=। दोन, को एक दसरे ू के #$त पया;`त आकांTाय ह।= ये पया;`त आकांTाय जब पर ू नहं होती ह= तो उनके यि त9व और अहं म टकराहट होती है । हरबंश अपनी प9नी नीJलमा को लेकर सहसा बहत ु मह9वाकांTी बन जाता है और कला के T्◌ोM म उसे चरम सीमा तक जाने के Jलये #ेरणा दे ता रहता है। पहले तो वह तैयार नहं होती, ‘‘म= पट  नहं, Jसर करती ह।ूँ नीJलमा ने

िजस >वर म यह कहा, उसम दखावटपन नहं था, यह मेरे पीछे पड़ा रहता है .क म= पट  कHँ, इसJलये म= पट  करती हूँ वरना मझे ु न तो कछ ु आता-जाता है और न ह इसम H6च ह है । हाँ अब तक इतना पता चल गया है .क .कस तरह के >[ो स के Jलये कौन सा |श इ>तेमाल करना चा हये।'' ले.कन हरबंश के 22

इस उकसावे म वह िजस T्◌ोM को चनती है उसम #Jसh भी #ा`त कर लेती है। अब उसका अपना ु अलग यि त9व बन जाता है और वह सदै व अपने $नज9व के Jलये #य9नशील रहती है। यह )व>फोटक ि>थ$त बन जाती है, िजसे हरबंश सहन नहं कर पाता। ‘‘हरबंश और नीJलमा आध$नक ह= - वैयि तक चेतना दोन, क" अ9यत #खर है । हरबंश के भीतर का ु पyष क" नकाब के नीचे उसी परBप7रत सामंती मानJसकता वाला है जो बात तो ु आध$नकता ु आध$नकता और नर-नार समानता क" करता है ले.कन उसके सं>कार सामंती और मनोवि9तयाँ ु ृ आ दम ह।= वह औरत को गलाम बना कर रखना चाहता है है अपने संकेत, पर कठपतJलय, क" तरह उसे ु ु नचाना चाहते ह।= पर नीJलमा का आध$नक मानस और उसक" #बल वैयि तक चेतना अपनी $नय$त ु >वयं $नJम;त करना चाहती है और उसके इस चाहने म हरबंश के अहं को खर,च लगती है तथा वह झींकने चीखने-6चIलाने लगता है । अपनी असफलताओं का दोष नीJलमा के ऊपर मढ़कर बर हो जाता है ।'' सामंती मानJसकता वाला पyष ु सब कछ ु कर सकता है, नार का >वतM यि त9व नहं बनने दे 23

सकता है इसके साथ ह उसके $नज9व को भी सहन नहं कर सकता है। उmच वग; या उmचतम म^यवग; क" यह $नय$त है .क पyष ु ि>Mय, को छट ू तो दे ता है , उह )वJश%ट तो दे खना चाहता है .कतु एक सीमा तक इस सीमा को वह >वयं $नधा;7रत करना चाहता है .कतु भीतर-भीतर वह चाहकर भी >Mी से कह नहं पाता और भीतर ह भीतर कछ ु ु Zोध, कछ ु अनमनापन, कछ ु इ%या;, कछ ु अजनबीपन अनभव करता है । हरबंश और नीJलमा म बराबर .कसी न .कसी बात को लेकर झगड़ा बना ह रहता है और वे कभी सख ु -शाित से जीवन नहं यतीत कर पाते। यह #क$त ृ स9य है .क जब तक ना7रय, को मानवीय भाव से दे खा-समझा और <हण नहं .कया जायेगा, तब तक यह सख ु -चैन और उIलास #ा`त नहं हो सकता है । तीन साल के वैवा हक जीवन के बाद भी वह हरबंश को नहं समझ सक" है और हरबंश का आरोप है .क वह कभी उसे नहं समझ सकेगी। सBबध, म यह Nबखराव दरू तक सालता रहता है । इस कमी को दोन, महसस अलग रहना चाहती थी। तम ू करते ह= - ‘‘ य,.क म= तमसे ु ु जानते हो .क हम दोन, के बीच कहं कोई है जो हम दोन, को खटकती रहती है । हम दोन, चे%टा करके भी उसे अपने बीच से $नकाल नहं पाते।'' नीJलमा और हरबंश का यह एकाक"पन उ9तरो9तर बढ़ता जाता है और उसका सारा यि त9व 24

अि>त9ववाद दश;न क" बJल चढ़ जाता है । आि>त9ववाद क" मायता है .क यि त अपने अ$त7र त और .कसी को जान नहं सकता, वह और, को इसJलये जान पाता है य,.क वह अपने को जानता है। ‘अि>त9ववाद और मानववाद' नामक स#Jसh ु याeयान म ‘साM;' कहते ह= - ‘‘मन%य ु अपनी योजना से Jभन कछ ु और नहं है उसका अि>त9व उसी सीमा तक है जहाँ तक वह अपने आपको परा ू करता है । इसJलये वह अपने कायd के एक"कत ू से ृ समह

Jभन कछ ु भी नहं है । यि त अपने जीवन के अ$त7र त कछ ु नहं है । बहधा ु अपनी बद.क>मती और $नकBमेपन को $छपाने के Jलये लोग, के पास एक माM माग; यह सोचना रहता है .क प7रि>थ$तयां हमारे #$तकल ु हूँ और कर चका ु हूँ - मेरे सह मIय ू को नहं #कट करते। यह ू रह ह।= जो म= रह चका $निRचत है .क मझे ु कोई महान #ेम या महान JमMता नहं Jमल है ले.कन यह इसJलये है .क मझे ु कोई अि>त9ववाद इस तरह क" बकवास, को पyष ु या >Mी इस योLय नहं Jमल सक"।'' साM; के अनसार ु 25

मह9व न दे कर घोषणा करता है .क तम ु अपने जीवन के अलावा और कछ ु कायd क" एक ु नहं हो मन%य परBपरा से अलग दसर चीज नहं है यानी वह उन सBबध, के योगफल का एक"करण है जो इन कायd ू का $नमा;ण करता है। अि>त9ववाद मानस संसार क" अपेTा दसरे ू .कसी संसार का अि>त9व नहं मानता। यि त के अलावा $नयम, को बनाने वाला दसरा कोई नहं है। अि>त9ववाद घोषणा करता है ू .क य द परमा9मा का जीवन हो भी तो वह कछ ु के ु प7रवत;न नहं करे गा। इस तरह अि>त9ववाद मन%य इद; -6गद; फैले अंध)वRवास, और अ4ान के झंूठे जाल, को काटकर यि त को $नतांत एकाक" कर दे ता है । इस एकाक"पन के बोध से यि त म अत]व;]व तथा पा7रवा7रक )वघटन के बीज पनपने लगते ह= इस बोध से हरबंश और नीJलमा दोन, गजर रह ह= - ‘‘हरबंश सोचता है मझे ु ु कछ ु समझ म नहं आता .क म= या चाहता ह।ूँ कोई चीज है िजसे म= बहत ू करता हूँ ..... । एक अजीब सी ु JशŽत के साथ महसस वेबसी महसस ू होती है , जैसे म= एक कवच म जकड़ा हआ ू नहं ु हूँ, जो मेरे लाख कोJशश करने पर भी टट पाता।'' इसी मनः ि>थ$त म नीJलमा जीती है , वह सब कछ ु करना चाहती है जो उसे अvयास और (20)

अ6धकार से Jमल सके इसके अलावा और भी कछ ू नाम कमाना चाहती ु - ‘‘म= मरने से पहले एक बार खब ह।ूँ म= चाहती हूँ .क लोग मझे ु जाने और ......... मगर यह नहं है .क म= Jसफ; eया$त चाहती ह।ूँ म= जानती हूँ मेरे अंदर वह चीज है जो मझे ु इस T्◌ोM म आगे ला सकती है ........। दरअसल ............. तम ु नहं जानते .क मेरे शरर म उन दन, .कतनी लोच और लचक थी। म= अब भी ठsक से अvयास कHँ, तो .........। म= eया$त क" भखी ू नहं, मगर मेरे अंदर वह चीज है, तो म= य, न ........। मेरे गH ु भी कहते थे .क मेर जैसी भावपण; ू आँख और हाथ उनक" .कसी Jश%या के नहं है। म= वह चीज पाना चाहती हूँ जो मेरा अ6धकार है ।'' नीJलमा का यह अि>त9व और सारे मIय ू अतम;ख ु ी ह=, अथा;त ् वे मIय ू ह नहं 27

बिIक उसक" #$तM ट ु ह होते ह=, उसक" #$तबhता ह होते ह=, और उसका #9येक वरण सामाय कम; न होकर एक नै$तक कम; बनता जा रहा है य,.क वह उसको बनाता है । इस Hप म अि>त9ववाद कम; #धान )वचारधारा है। पर यह कम; .कसी परोT स9ता ]वारा पव; ू $नयत कम; न होकर नीJलमा के वरण से उदभत ू कम; है । य,.क #9येक कम; का #भाव केवल नीJलमा पर नहं सम>त मानवता पर पड़ता है अतः वह मानवता है और उसका अपने #$त दा$य9व एक #कार से सम>त मानवता के #$त दा$य9व ह है । इस सदभ; म डा◌ॅ. इनाथ मदान का यह कथन #ासं6गक है ◌ः ‘‘इनके पास एक दसरे ू को च,च मारने या काटने के Jसवाय और चारा ह या है । इस तरह शायद पहल बार हद उपयास म )ववा हत जीवन क" अथ;हनता का सजीव 6चMण हआ ु है।''

28

हरबंश अपने ह घर और मन के अकेलेपन से ऊबकर )वदे श जाता है - ‘‘म= इतना ह जानता हूँ .क म= िजस तरह अकेला रहना चाहता था, उसी तरह इस समय हूँ और नहं चाहता .क कोई चीज मेरे इस

अकेलेपन म बाधा डाले।'' कछ ु दन, बाद ह वह सामाय को ट के ‘होम Jसक नेस' से पी}ड़त होता है 29

और एक $छछले भावक है । वह अपने को बहत ् ु क" तरह बार-बार नीJलमा को बला ु भ◌ोजता ु अकेलापन महसस ू करता है उसका यह अकेलापन पाँच हजार मील क" दर ू के कारण नहं है और शायद न ह शार7रक #ाि`त के अभाव के कारण। हरबंश का यह अकेलापन उसके अंदर वषd से पनप रहा है जो उसे अंदर ह अंदर क"ड़े क" तरह खा रहा है , और भ)व%य म शायद इसक" प$त; ू भी न हो सके परतु य द नीJलमा उसक" सmची JमM बन सके तो यह सम>या हल हो सकती है - ‘‘मेरे अंदर कहं एक खालपन है जो धीरे -धीरे इतना बढ़ता जा रहा है .क मेरे जैसा खाल आदमी भ)व%य के सपने बनकर नहं जी ु सकता। शायद वह मेरे ह यि त9व का अकेलापन और खालपन है जो तBह ु  भी मेरे साथ बाँटना पड़ रहा है । मगर तम ु इसे मजबर ू म न बाँटकर उ9साह के साथ बाँट सको, तो सब कछ ु बदल सकता है । म= .कसी क" ऐसी ह तो JमMता चाहता हूँ जो मेर सब आशाओं और $नराशाओं को, इmछाओं और आशंकाओं, उ9साह और चाह के साथ बाँट ले। म= यह तो चाहता हूँ .क मेरे यि त9व के साथ .कसी का अि>त9व Jमलकर दो परमाणओं ु क" तरह एकाकार हो जाये।'' हरबंश ने जीवन म कछ ु आदश; पाले ह=, 30

वह आदशd को न%ट होते दे खता है , परतु इनक" रखवाल करने म भी वह सTम नजर नहं आता तो उसक" उदासी और अकेलापन एक मानJसक बीमार के Hप म >थाई घर बना लेता है। इस संदभ; म मोहन राकेश )वचार य त करते हए ु बात मान ल जाती ह=, मगर ु कहते ह।= ‘‘मजJलसी तौर पर कछ लगता है .क मानना भी गलत है । मानने के पीछे जो )वRवास होना चा हए, वह )वRवास नहं Jमलता। हर चीज पर सदे ह होता है । हर बात पर सदे ह होता है । हर यि त पर सदे ह होता है। उन सब शbद, पर सदे ह होता है िजनके अथ; नकारा9मक नहं ह।=''

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प$त-प9नी के बीच एक साहचय; तथा )वRवास का होना अ$त आवRयक है और इन दोन, क" कमी वैवा हक जीवन क" कटता ु बढ़ा दे ते ह=, लंदन जाने पर जब हरबंश अकेलेपन एवं उदासी से नहं उबर पाता तो वह नीJलमा को वहाँ बला है । नीJलमा मैसरू के Jलए आयोिजत अपनी न9य ् ु भ◌ोजता ृ कला छोड़कर लंदन पहचती है । वहाँ पहचने पर .फर दोन, क" आपसी ऊब का, इ%या; और खीज का वह ुँ ुँ पराना दौर शH ु ु होता है नीJलमा कहती है - ‘‘दे खो, म= कहती हूँ म= यहाँ से वापस जा रह हूँ .....। मझसे ु इस तरह क" िजदगी नहं जी जाती। या यह िजदगी जीने के Jलए तमने मझे था ? यह ु ु यहाँ बलाया ु तBहारा वह ‘)वजन' है िजसक" तम ु ु लBबी-चौड़ी बात Jलखा करते थे।'' जब हरबंश नीJलमा को अपनी 32

तरफ से कोई सफाई दे ना चाहता था .क वह भी तो उसी के साथ उसी िजदगी को जी रहा है तब नीJलमा और दगने ग>से से 6चIला उठती - ‘‘मगर मेर वजह से तो नहं जी रहे । म= यह िजंदगी तBहार वजह से ु ु ु जी रह हूँ। म= इसJलए पहले साल भर वहाँ से नहं आयी थी। म= जानती थी .क यहाँ हम लोग, क" या दग; झठे बेबी -Jस टंग ु $त होगी। मगर पहले तो तमने ु ू )वRवास दे कर मझे ु यहाँ बला ु Jलया और अब मझसे ु कराते हो और खद ु Xखड़क" के पास बैठे आसमान को घरते ू रहते हो। म= ऐसी िजदगी बदा;>त नहं कर सकती।'' इस )वषय म ट`पणी करते हए मेघ कहते ह= - ‘‘प9नी क" उदासीनता और ु ु डा◌ॅ. रमेश कतल 33

)वRवासघात दाBप9य जीवन के समंजन को बबा;द कर दे ते है ।'' उपय;ु त सदभ; जब हरबंश के चाहने 34

पर भी नीJलमा एक भारतीय न9य ृ -मxडल के साथ चल जाती है , पर भी लागू होता है जो दाBप9य

जीवन म )वघटन को #ो9सा हत करता है जो शेष कमी थी, वह उसने उबानू नामक एक भोले-भाले वमo कलाकार के साथ पाँच राते पाँच दन काटकर ताबत ू म आXखर क"ल का काम .कया। परतु नीJलमा ऐसे ह यि त को पसद करती है, जो सीधा साधा और उसके आगे पीछे चलने वाला हो और इसJलए उबानू नामक यह कलाकार उसे तब तक सह लगता है जब तक उसक" बात मानता है जब वह नीJलमा से उसक" प9नी के बारे म असहनीय बात सनता है िजसे वह (उबान)ू सनना नहं चाहता तो वह Nबफर ु ु पड़ता है तब नीJलमा कहती है - ‘‘उसे उसका वह Hप अmछा लगता है, सीधा, सादा, पालत,ू मख; ू तापण; ू ।'' वमo कलाकार ऊबानू से नीJलमा सBबध नहं जोड़ पाती य,.क वह >वयं भी हरबंश के 35

Nबना नहं रह सकती। थोड़े समय के पे7रस-#वास से ह आभास हो जाता है .क वह उससे अलग रहकर भी उससे मु त नहं हो सकती। आध$नक भारतीय जीवन क" यह )ववशता सबसे बड़ा अJभशाप है । यह ु मन%य ु को एक दसरे ू से, यहाँ तक .क इस संसार से भी अजनबी बनाता है। हरबंश और नीJलमा के दाBप9य जीवन म 7रसती हई ु )ववशता आपसी संबंध, म कड़वाहट घोलती है और तनाव, के बीच अजनबीपन को )वकJसत करती है ।

दIल लौटने पर नीJलमा दIल वाJसय, के सामने अपने न9य ृ #दश;न क" योजना बनाती है । हरबंश भी टकट बेचने का काम संभाल कर इस योजना को सफल बनाना चाहता है और उसका दो>त पMकार मधसदन ु ु #चार म सहायक बनता है .कतु इतना सब कछ ू न9य ु होने के बावजद ृ -समारोह असफल होता है । पM, म 7रपोट; अmछs नहं आती। नीJलमा समझती है .क हरबंश के कारण ह उसे असफलता Jमल परतु हरबंश यह सोचता है .क ऐसा कोई काम म= य, कHँ िजसे करने म मेरा मन कढ़ता है और मेर ु आ9मा को Lला$न होती है ? ‘‘तम ु अपना #दश;न करो, नाम कमाओं और जो चाहे करो, मगर मेर तमसे ु इतनी ह #ाथ;ना है .क मझे ु तम ु इसम एक औजार बनाकर इ>तेमाल न करो। मझे ु 6चढ़ है तो इसी बात से .क म= एक ऐसी चीज के Jलए इ>तेमाल .कया जा रहा हूँ िजसके Jलए मेरे मन म कोई उ9साह नहं है और उ9साह न होने क" ह बात नहं है , मझे और नीJलमा सोचती है .क ु उस चीज से नफरत है।'' दसर ू 36

यह आदमी .कतना जलल करता है , अपना काम आने पर बहला-फसलाकर तो करवा लेता है परतु ु हमारे कायd म सहयोग नहं करता। जब वह हरबंश क" तरफ से यह बात सनती है तो ग>से म कहती है ु ु - ‘‘तBह य, आयेगी ? तम ु  शम; नहं आती, तो मझे ु ु भी अmछs तरह जानते हो .क कौन .कसे इ>तेमाल कर रहा है । कछ ु लोग, के साथ अपना सBपक; और प7रचय बढ़ाने के Jलए उनसे अपने छोटे -छोटे काम $नकालने के Jलए, आज तक तम ु .कसे आगे करते आये हो ? अपने )वदे शी JमM, से य, बार-बार मेर चचा; .कया करते हो ? य, बार-बार मझे ु उनसे Jमलाने के Jलए ले जाते हो ? .कसी को भारतीय न9य, के सBबध म जानकार चा हए तो कहते हो .क नीJलमा तBह ु  यह सब ृ बता सकती है। .कसी को कोई भारतीय पोशाक चा हए तो कहते हो .क नीJलमा तBह ु  बनवाकर दे सकती है । य, ? या यह इसJलए नहं .क तम पर ु उन सब लोग, से अपने Jलए मायता चाहते हो और दसर, ू इस बात का #भाव डालना चाहते हो .क तBहारे प7रचय के T्◌ोM म कैसे-कैसे लोग ह।= जहाँ नीJलमा ु तBहारे काम आ सकती है , वहाँ वह तBहार प9नी है और तBह ु ु ु  उसे इ>तेमाल करने का परा ू हक है, मगर आज मेर वजह से तBह आ9मा )वोह कर रह है .क म= ु  कछ ु ु लोग, क" दावत करनी पड़ी है, तो तBहार

तBह आ9मा को क"चड़ नहं लगता, दसरे ु  क"चड़ म घसीट रह ह।ूँ अपने >वाथ; म तBहार ु ू के काम म वह एकदम महान होकर क"चड़ से ऊपर उठ जाती है । आदमी के पास ऐसी रं ग बदल लेने वाल आ9मा हो तो उसे और या चा हए।'' मनो)व4ान भी यह कहता है .क यि त क" सफलता असफलता उसक" अपनी 37

नहं होती है वह दसरे ू ]वारा आरो)पत कर द जाती है । हरबंश और नीJलमा एक दसरे ू के #$त झIलाते, खीजते और कं◌ु ठत होते रहते ह।= डा◌ॅ. अतलवीर अरोरा के अनसार - ‘‘प$त प9नी के इन सBबध, क" ु ु उ त भJमका >Mी-पHष के सBबध, के म^य आंक" गयी है। प$त-प9नी क" भJमका म >Mी पHष का ू ु ू ु आपसी सBबध यहाँ नीJलमा और हरबंश के बीच ]व]व क" भं6गमा Jलए हए ु है । इस >तर मैMी भाव का सदभ; उतना मह9व नहं रखता, िजतना एक-दसरे ू को समझ पाने का। यह समझ पाने का सदभ; उपयास का एक मह9वपण; ू पT है । हरबंश बार-बार 6चIलाता है .क उसे समझा नहं जा रहा। शायद वह खद ु भी अपने को ठsक तरह समझ नहं पाता। शायद कोई भी अपने को समझ नहं पाता।''

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पH ु ष और म हला दोन, को ये लगता .क ‘‘)ववाह या प7रवार के बंधन ने उनक" >वतंMता का अ$तZमण कर दया है , वे अब Jसफ; एक ऐसी >Mी या पHष से ह सBबध बनाने के Jलए बा^य ह।= उह लगता है ु .क उनक" अपनी पहचान 6गरती जा रह है । उह एक जैसे काय; ह करने पड़ रहे ह= उनम कछ ु नया न कर पाने क" टस होती है।'' नीJलमा और हरबंश इसी पीड़ा से गजर रहे है और एक-दसरे ु ू से mयत ु हो 39

जाते ह।= .फर भी साथ रहने क" ऐसी मजबर ू थी िजससे वे $नकल नहं पाते थे इसJलए मधसदन ु ू के पछने पर नीJलमा अंत म इतना ह संuT`त उ9तर दे ती है - ‘‘म= आना नहं चाहती थी, मगर .फर मने = ँू सोचा .क ........ सोचा नहं, मझे ु लगा .क .......... शायद अब यह ठsक है।'' मानव सBबध, के 40

)वघटन क" जो कहानी जो मानJसक यथाथ; क" सतह पर बहती रह वह सतह के ह एक सखद Nबद ु पर ु ठहर जाती है । हरबंश और नीJलमा क" िजदगी एक ि>थ$त है , िजसे बहते ु रे लेकर जी रहे ह= वे छटपटाकर रह जाते ह=, इससे उबर नहं पाते। हरबंश और नीJलमा के इस अत]व;]व के बीच कई कथाओं के बीच कई कथाय समानातर चलती ह=, िजसम हरबंश का एक पMकार JमM मधसदन ु ू है िजसके बारे म लेखक संकेत करता है .क वह सजग तथा सचेत है , वह िजदगी से टटा ू हआ ु है, उसका जीवन अJभश`त है , वह जीवन म संग$त खोजना चाहता है , उसे िजंदगी के टकड़े Jमलते ह=, हर टकड़ा कहं से टटा ु ु ू हआ ु है या जंग खाया हआ ु है। वह अंदर और बाहर से पथराया हआ ु है । वह जीवन के खिxडत Hप को >वीकार नहं करता तट>थ नहं हो पाता, इसJलए वह लगातार भटकता और छटपटाता है। #ारिBभक ि>थ$त म मधसदन ु ू शु ला के #$त आक)ष;त होता है परतु यह 7रRता नहं हो पाता है शायद उसक" अपनी कमी या अगर हरबंश बीच म अड़चन न डाल दे ता तो या अ6धक सBभव यह नहं था .....। .क स द;य, तक शु ला का उससे bयाह हो जाता और उस साल वह पहाड़ से हनीमन परतु मधसदन ् ू क" त>वीर भ◌ोजता। ु ू इसम अपने को कम उ9तरदायी नहं समझता - ‘‘दसर तरफ म= था जो लोग, क" उपि>थ$त म चेहरे पर एक खोल चढ़ाये ू रखता था, एक झठs था, एक झठs ँू हं सी हसता ँ ँू उपेTा #कट करता था और इस तरह हर समय अपने को एक यMणा म रखता था या इस झठ ँू को म= अपनी स ह%णता ु कह सकता था।'' यह तथाक6थत 41

स ह%णता है और .फर एक बार संभलने क" ु मधसदन ु ू के आदश; को खिxडत कर दे ती है, वह टटता ू

कोJशश करता है , मगर पMकार सष ु मा aीवा>तव क" पहचान ने तथा उसके बारे म लोग, ]वारा सने ु और लगाये गये आरोप और #9यारोप, क" उसने परवाह नहं क" वह सोचता है - ‘‘लोग कहते ह= .क सषमा ु लोग, के घर तोड़ती है , ‘होम |ेकर' है मगर म= जानता था .क वह घर तोड़ना नहं घर बनाना चाहती है। अपने Jलये घर बनाने और उसम रहने क" उसे .कतनी चाह है, यह बात उसके शbद, से नहं, सारे हावके >नेह एवं आकष;ण ने मधसदन भाव से #कट होती थी।'' सषमा ु ु ू को एक >थाई आधार दे ना चाहा 42

तथा उसक" ब)h क" कह बात उसे ु तथा )ववेक ने तो मानो मधसदन ु ू के ऊपर जाद ू कर दया हो सषमा ु भल भां$त याद है - ‘‘लोग िजदगी म एक तरह का धोखा बनाये रखना चाहते है। और म= अपने को उस धोखे से मु त रखना चाहती ह।ूँ हमारे आस-पास जो लोग बहत ु ु -बहत ु Jसhात, क" बात बघारते ह=, तम उनम से .कसी को भी दे ख लो। यह बहत ु साफ नजर नहं आता .क उसक" सैhाितक िजदगी और यि तगत िजदगी म एक बहत का यह जीवन दश;न य द उसके वैयि तक ु ु बड़ी खाई है।'' सषमा 43

जीवन म सच है तो मधसदन ु ू .फर इस सmचाई से भागकर ब>ती हरफल ू Jसंह अथा;त क>साबपरा ु म ठकराइन और उसक" लड़क" क" ओर य, आक)ष;त होता है । यह शायद मधसदन सं>कार तथा ु ू के पराने ु ु घर बसाने के सपन, को साकार करने क" बात हो सकती है दसरा लेखक का आदश;वाद ?ि%टकोण भी हो ू सकता है । ‘अंधेरे बंद कमरे ' म समानातर कथा के Hप म शु ला और जीवन भाग;व का #करण आता है परतु संरTक हरबंश क" मानJसकता िजसे अतलवीर अरोड़ा के शbद, म ‘आदमी क" आ दम भख ु ू ' ने जड़ने ु नहं दया। हरबंश शु ला का बहनोई है और मन ह मन शु ला उसे जHरत से Kयादा मानती है तभी तो इसके बारे म नीJलमा कहती है - ‘‘मझे ु इस लड़क" के दमाग क" कछ ु समझ नहं आती ......., कई बार तो सचमच न होकर इस लड़क" से ह होना चा हये।'' यह ु म= सोचती हूँ .क हरबंश का bयाह मझसे ु 44

आकष;ण हरबंश क" तरफ से भी उ9पन होता है नीJलमा के घर छोड़ने के पRचात )ववा हत शु ला हरबंश क" दे खभाल करती है और वह महसस ू करता है .क उसे पहल बार ऐसा #तीत होता है .क जो वह नीJलमा से चाहता है वह सब कछ म उसे Jमल रहा है और इसJलये सब कछ ु ु उसक" अनपि>थ$त ु होते हये ु भी उसके मन म खालपन अभी Kय, का 9य, है। हरबंश म यह म^यकालनबोध है, ले.कन वह आदमी क" आ दम भख क" चनौती म >वीकारता है , िजसे बहत ू को आध$नकता ु ु ु कम लोग अJभय त कर पाते ह।= वह उसे अपनी लड़क" समझता है, ले.कन इसके परे अपनी आ दम भख ू को वह मधसदन ु ू क" साTी म >वीकार कर लेता है । शु ला गभा;व>था म भी उसका घर संभाले हए ु है और उसे (हरबंश) डर लगता है । हरबंश को अपने से यह डर है ? शरर क" आ दम भख ू उसम वत;मान है , िजसे उसने एक संकेत म >वीकारा है .क ‘‘यह लड़क" कल से िजस तरह का यवहार कर रह है ........... अगर म= अकेला घर म रहा और यह सब कछ ु इसी तरह करती रह तो न जाने .....।'' और यह न जाने का डर 45

म^यकालन बोध क" ह #क$त ृ क" उपज है, िजसे वह केवल अधरेू म ह संके$तक करता है , ले.कन अपने को समझ पाने क" आध$नकता क" #क$त के समT वह इस संकेत माM म ह सह हो ु ु ृ और चनौती उठता है । उ त भं6गमाओं म सBबध, के )वघटन क" मलभत ू ू भJम ू क" त>वीर उभरती है और सBबध, के अन6गनत आयाम खोलती है जहाँ जीवन भाग;व ह नहं मधसदन ु ू तथा हरबंश का भी सBबध है ।

क>साबपरेु म इबादत अल क" हवेल और चार, तरफ के $नBन म^यमवगoय प7रवार, म )वशेषकर ठकराइन और $नBमा तथा इबादत अल क" बेट को लेकर कानाफसी ँू उपयास म सBबध, को >प%ट ु नहं कर पायी है , एक प7रवार को प7रवेश के आधार पर खरशीद को घर से अपने #ेमी के साथ भाग जाने ु भर का संकेत दे कर लेखक #योगशीलता वाद पट जीवन के खोखलेपन को ु से बर हो जाता है । आध$नक ु कला और सं>क$त के खोखले समारोह, म , काफ" ू ृ क" बहस, म राजनै$तक मसल, म , )वदे शी दतावास, हाउस के वातावरण म , )वदे श याMाओं के )ववरण पM, क" िजदगी को बहत ु #भा)वत नहं कर सके उनके अदर जो अंतहन झIलाहट थी उसम कोई कमी नहं आ सक"। ‘अंधेरे बद कमरे ' म मानव सBबध, क" ब$नयाद  इतनी कमजोर ह= .क उसके अंदर का ढाँचा भरभर ु ु ु Jमlट क" तरह झड़ता-ढ़हता जा रहा है साथ ह यह सब पाM चाहते ह= उसे टटने से बचा सकं◌े, मगर न ू जाने या मजबर अवलो.कत करते ू है .क केवल गवाह क" तरह खड़े उस ढहने क" #.Zया को चपचाप ु रहते ह।= तट>थ और उदासीन भाव से कभी-कभी वे कध◌ो ् हला दे ते ह= बस। वे सभी अपने-अपने #य9न, को $नरथ;क मानते ह= और सोचते ह= .क कछ ु होगा तो बाहर से होगा। वरना जो ढह रहा है उसे ढहना तो है ह। यह सब ?Rय यहाँ के परेू प7रवेश म होटल,-कहवाघर, म मजJलस, म , सब जगह ये पाM एक $नजी िजदगी क" जHरत, से शH सवाल, तक अपना दामन फैलाए रहते ह= ु होकर कछ ु ु ब$नयाद और जHरत, को परा ू करने म सवाल धंध ु लाने लगते ह=, और सवाल, क" न,क पर अपने को टांग द , तो सभी को ज़◌ाeम, के अलावा और कछ ् ू >वर ु हाJसल नहं होता है । इस तरह से इस उपयास का मल पा7रवा7रक सBबध, के )वघटन का है िजसे मोहन राकेश ने महानगरय प7रवेश के सदभ; म याeया$यत .कया है ।

न आने वाला कल ‘न आने वाला कल' (1968) उपयास के मल ू कcय म नायक वाचक मनोज स सेना जो .क फादर बट; न >कल

हद टचर है, कछ ू ू म ज$नयर ु वैयि तक कारण, से अपनी नौकर से 9यागपM दे ना चाहता है - दे दे ता है और उसके इस $नणा;यक क9य पर होने वाल उसके सा6थय,-सहयो6गय, क" )वJभन ृ #$त.Zयाएँ तथा उन पर मनोज क" वैचा7रक #$त.Zयाएँ अं.कत क" गयी ह।= सBपण; ू उपयास सात छोटे -छोटे कथा^याय, म )वभािजत है। पहले कथांश ‘9यागपM' म मनोज स सेना, ज$नयर

हद टचर, फादर बट; न >कल ू ू म अपनी प9नी शोभा के साथ >कल ू के ह वाट; र म रहता है। $नःसंतान शोभा क" मनोज से यह दसर शाद है । मनोज और शोभा दोन, ह आपस म ू वैचा7रक संग$त नहं बैठा पा रहे ह= और उनका दाBप9य जीवन एक नीरस ऊब से भरा हआ ु है । मनोज अपनी नौकर से भी संत%ट खरजा चल जाती है । वहाँ से ु नहं है। शोभा ऊबकर अपनी पहल ससराल ु ु पM Jलखकर कछ है । अकेला रहता मनोज इस कथांश म शोभा के पM ु ु दन, के Jलए मनोज को बलाती का उ9तर Jलखना चाहता है और अपनी नौकर से 9यागपM भी दे ना चाहता है, ले.कन दमागी

कशमकश म कुछ भी नहं कर पाता और कथांश के अंत म मानो उस कशमकश से मिु त पाकर 9यागपM Jलखने बैठ जाता है । उपयास के दसरे , हे ड लक; पाक;र, एकाउं टट  ू कथांश ‘डर' म मनोज के 9यागपM पर बस;र बधबानी ु 6गरधारलाल, बा◌ॅनी हा◌ॅल, कोहल, जेBस, Jमसेज पाक;र आ द >कल ू के )वJभन JशTक, कम;चा7रय, के )वचार मनाज से उनक" बातचीत वXण;त क" गयी है । >कल और हेड मा>टर ु ू के अ9यंत HT अनशासन टोनी िहसलर के बेहद सeत >वभाव के कारण उ त सभी लोग मनोज से उसके 9यागपM के सBबध म बात करते डरते ह= और दसरा एक हIका डर मनोज को भी है .क नौकर छट ू ू जाने के बाद या होगा ? .फर भी इस खxड का शीष;क ‘डर' अपेuTत पण; ू तया और >प%टता के साथ च7रताथ; नहं हो पाया है। तीसरा कथा^याय है ‘कसo ु हे ड मा>टर क" #तीक है । इस कथांश म मनोज के 9यागपM ु '। ‘कसo ु ' व>ततः पर )वJभन लोग, क" #$त.Zयाएँ य त क" गयी है । आरBभ म मनोज और हेड मा>टर क" इसी सBबध म बातचीत है । मनोज जो .क अपनी आंत7रक ऊब प7रवेशगत जड़ता से मिु त पाने के Jलए, या महज एक परवत;न के Jलए या जीवन के .कसी एक नये अनभव के Jलए 9यागपM दे ता है। जब.क ु टोनी िहसलर (कसo ँ ू मनोज क" $नयिु त डी. पी. आई. क" ओर से हई ु ) समझता है .क च.क ु है । इसJलये वह शायद उसे (टोनी िहसलर को) आतं.कत करने के Jलये 9यागपM दे रहा है और इस तरह >कल ू के बाहर टोनी के Xखलाफ जो एक षडयM है, मनोज भी उसम शाJमल है। जेBस समझता है .क मनोज सी$नयर <ेड पाने के Jलये यह 9यागपM अथवा धमक" दे रहा है। यह कथांश यहं समा`त हो जाता है । चौथे कथांश ‘सहयोगी' म ि>टवड; चाIट; न के आमंMण पर मनोज शाम को उसके यहाँ }…ंक पाट‰ म पहचता है । पाट‰ एक अय सहयोगी चैर के वाट; र पर आयोिजत होती है । पाट‰ का उzदे Rय मनोज के ुँ 9यागपM से उ9पन नयी ि>थ$त पर )वचार करना है । ले.कन वहाँ इस सBबध म बातचीत न होकर चैर और लेर दोन, अपने-अपने >वाथd और अहं को लेकर )ववाद क" ि>थ$त म बने रहते है । मनोज इन लोग, के साथ रहते हये ु तरह ऊबता है । उसका जी Jमचलाने लगता है और पाट‰ क" समाि`त पर वह ु बर चैर के वाट; र से बाहर आकर लेर के जाते ह सड़क पर कै कर दे ता है और अपनी छाती के कसाव को ढला हआ करता है । ु ु अनभव पाँचव कथा खxड ‘नाटक' म >कल ु टयां ू म #$तवष; होने वाले सMांत के नाटक का वण;न है । मनोज छ l होने तक >कल ू म ह समय यतीत करने के Jलये )ववश है । )वJभन कथा-ि>थ$तय, और पाM, क" संग$त म इसी समयाव6ध का वण;न करते हये करता है .क मनोज >कल ू ू के काम के साथु लेखक स6चत साथ .कसी के पM (शायद शोभा के) क" #तीTा भी करता है । )#फे ट जसवंत को जब सी$नयर मा>टर िजमी |ाइट बेत, क" सजा दे ता है तो $नतांत यांNMक Hप से मनोज उसक" साTी दे दे ता है रात के >कल ू के हाल म वह नाटक दे खने जाता है जहां नौकर फक"रे क" >Mी काशनी से उसका हIका यौने9तेजक सं>पश; होता है । यह सं>पश; उसे नाटक के बाद }डनर लेते समय वा◌ॅनी हा◌ॅल के ]वारा Jमलता है । मनोज को लगता है .क यह >कल ू यहाँ के सारे लोग और सभी ग$त)व6धयाँ एक नाटक ह है।

छठे कथांश ‘सड़क' मनोज के च7रM क" उस ग$त अथा;त चलते जाने अथा;त .कसी से न जड़ने ु क" वि9त ृ का #तीक है िजसके चलते वह अपनी प9नी, अपने प7रवेश, अपनी आजी)वका, अपने >नेह-सा6थय, और >वयं तक से कटा हआ ू म अपने आXखर ु अकेला रहता है । इस कथा^याय म वाचक मनोज >कल

दन क" ग$त)व6धय, का वण;न करता है । शोभा के एक और पM के आ जाने से उसक" 6चंता शोभा क" ओर मड़ ु जाती है॥ बा◌ॅनी हा◌ॅल, )#फे ट जसवंत आ द के बारे म सोचता हआ ू म अपनी ु मनोज >कल अं$तम ‘wयट ू '-आज का }डनर-भी परा ू करता है । .फर बाहर आकर Jमसेज दाHवाला से थोड़ी बातचीत करता हआ बा◌ॅनी हा◌ॅल के साथ घमने के Jलये माल रोड क" तरफ ू $निRचत काय;Zम के अनसार ु ू ु पव; रवाना हो जाता है । मनोज बा◌ॅनी के साथ दे र रात तक NMसल रहता है ले.कन दोन, ह ू रोड पर घमता ू अपने )वJश%ट और आ9मलन >वभाव के कारण अपेuTत और संभा)वत यौन-सख ु उपलbध न कर ऊबे हये ू ु अपने-अपने घर लौट आते ह= इस अ^याय म मनोज लगातार चलता रहता है। अपने घर से, >कल से, माल रोड NMसल ू और हवाघर और .फर लौटकर अपने घर तक, ले.कन मनोज .कसी के साथ नहं रहता। यह लगातार चलता रहता है और उसका लगातार चलते जाना ह दरअसल ‘सड़क' है । ‘न आने वाला कल' उपयास का अितम खxड ‘दरवाजे' है । इसम मनोज >कल ू से जाने क" अितम तैयार करता हआ ु सामान छाँटता है .क या साथ ले जाना है , या 6गरधारलाल के यहाँ छोड़ जाना है और या य, ह बाँट दे ना है। मकान के दसर ओर रहते कोहल और उसक" प9नी शारदा के वण;न का ू आeयान है । इसम यह भी 4ात होता है .क शारदा भी कोहल को छोड़कर जा रह है य,.क कोहल ‘आदमी' नहं है । मनोज का >कल ू से अपने शेष वेतन का चैक #ा`त करना फालतू सामान लेने आयी काशनी से उसका अधरा ू यौन-संसग; और प7रवेश क" ऊब से मिु त के एक हड़बड़ाहट भरे एहसास के साथ मनोज का बस >टड , .कतु वहाँ जाकर दे खना .क अभी तो उसक" गाड़ी आने म काफ" दे र = पहचना ुँ है । कथाZम तो यहं समा`त हो गया है ले.कन मनोज अभी भी उस दे शकाल से बाहर नहं हो सका है िजसके Jलये वह कथारं भ से ह #य9नशील है, उसक" गाड़ी अभी भी नहं आयी है । ‘दरवाजे' या ‘दरवाजा' जो मनोज के बाहर जा सकने का मा^यम है मान, अभी नहं खला। ु ‘न आने वाला कल' मानव सBबध, )वशेषकर >Mी-पyष ु के )वघटन का उपयास है िजसम अि>त9व क" सम>या #मख ु है । हेडमा>टर Jम>टर िहसलर से लेकर चपरासी फक"रे क" प9नी काशनी तक जो एक पहाड़ी >कल ू म एक ह िजदगी के सहभागी होकर जी रहे थे, साथ-साथ जीते हये ु भी वे सब इतने अकेले थे .क Jसवाय अपने और .कसी के अकेलेपन को महसस ू नहं कर सकते थे। अपनी-अपनी चौहzद म बंद वे लोग अपनी-अपनी जगह एक ह चीज को खोज रहे थे - अपने आने वाले कल को, परतु उस कल क" $निRचत Hपरे खा उनम से .कसी के सामने >प%ट नहं थी। नायक मनोज स सेना के 9यागपM से हरचौहzद के अदर एक खलबल सी मच जाती है । हर आदमी संM>त हो जाता है .क िजस खतरे से वह बचना चाहता है। वह शायद अब NबIकल ु ह सामने है । मनोज का 9यागपM सबको अपने-अपने भ)व%य के #$त आशं.कत कर दे ता है। इस #कार इस उपयास म आज के टटते ू ,

बिIक टटकर भी न टट का अंकन अि>त9ववाद ू ू पाते - मानव सBबध, के बीच यि त क" अकलाहट ु मानवतावाद के आधार पर .कया गया है । अि>त9ववाद )वचारधारा का आरBभ व>ततः इस सB#दाय का उzगमु दश;न के ह T्◌ोM म हआ। ु ‚ोत जम;न दाश;$नक ‘हसरे ल' तथा ‘हेडग े र' और डे$नश 6चंतक क"क;गाड; क" )वचार-पh$तय, म दे खा जा सकता है । इन )वJभन 6चंतक, के मतवाद, का संघटन वत;मान यग ु म Šांस म हआ ु , जहाँ अि>त9ववाद को सा हि9यक eया$त जांपाल साM; के मा^यम से 1946 ई. के आसपास Jमल। यरोप म ि]वतीय )वRव ू यh हई ु क" )वभी)षका के कारण जो भीषण संMास एवं अि>थरता क" सि%ट ृ ु उसी ने इस )वचारधारा को पी ठका #दान क" तथा)प उसका दाश;$नक पT अनेक वषd पव; ू ह उ दत हो चका ु था और शनैः शनैः #चा7रत हो रहा था। अि>त9ववाद मानव जम और मानव जीवन को एक अJभनव Hप म <हण करता है । वग;सां ने िजस 6चरं तन #वाहमान एवं प7रवत;नशील मानव चेतना म आ>था #कट क" थी, अि>त9वाद उसी का अगला चरण है। यह उस यग ु का वैचा7रक )व<ह है , जब पंूजीवाद फाJसKम का Hप ले चका वग;राKय का। बाम संघष; के कारण इन दोन, के ु है और साBयवाद शि तशाल ससिKजत ु दश;न क" नींव हल जाती है और मन%य ु उस सं◌ंघष; म आबh )ववश एवं $नHपाय होकर अपने अि>त9व के सBबध म #Rन उठाता है । तो पाता है .क उसका अि>त9व अनेक शि तय, से अनशाJसत ु है , िजन पर उसका कोई बस नहं है । पहल शि त है म9य ृ ु। उसके जम के Tण से ह उसक" म9य ृ ु इतनी अ$नवाय; और व ु $निRचत है .क उस सBबध म उसे कोई )वकIप अथवा वरण क" >वतंMता #ा`त नहं है । य,.क सम< Hप म उसका अि>त9व तो अत पर ह उजागर होगा। इसी दश;न के कारण अि>त9ववाद म वरण क" >वतंMता का अयतम मह9व है । मानव अि>त9व पहले से ह अपनी $नय$त से बंधा है अतः उसम कोई भी अ$त7र त बधन मन%य य, >वीकार करे गा ? ु इसJलए अि>त9ववाद यि त ऐसी ि>थ$त का )वरोध करता है जो उसे वरण क" यह >वतंMता नहं दे ना चाहती। वरण क" यह >वतंMता मानव-जीवन म #$तTण और #9येक ि>थ$त म उपि>थ$त रहती है और यि त पर एक ऐसा दा$य9व लाद दे ती है िजससे वह बच नहं सकता। अि>त9ववाद क" मायता है .क यि त अपने अ$त7र त और .कसी को नहं जान सकता वह और, को इसJलए जान पाता है य,.क वह अपने को जानता है । अतएव सारे मIय ू अतम;ख ु ी होते ह= अथा;त ् वे मIय ू होते ह नहं, वे यि त क" #$त>त$त ु ह होते ह=, उनक" #$तबhता ह होते ह= और उसका #9येक वरण सामाय कम; न होकर एक नै$तक कम; होता है , य,.क वह उसको बनाता है । इस Hप म अि>त9ववाद कम; #धान )वचारधारा है पर यह कम; .कसी परोT स9ता ]वारा पव; ू -$नयत कम; न होकर यि त के वरण से उzभत ू कम; है और य,.क उसके #9येक कम; का #भाव केवल उसी पर नहं सम>त मानवता पर पड़ता है, अतः वह मानवतावाद है और उसका अपने #$त दा$य9व एक #कार से सम>त मानवता के #$त दा$य9व ह है । अतः यि त को #$तTण अपने वरण म अपने आपको #$तफJलत करते चलना होता है , तभी उसक" मिु त साथ;क होती है। यह कह सकते ह= .क मन%य ु को वरण क" >वतंMता तो #ा`त है, पर वरण न करने क" >वतंMता नहं है , य,.क वरण न करना भी तो )वकIप ह

है । च.क ँ ू हम अपने कमd से ह अपना $नमा;ण करते ह= अतः हम >वयं $नमा;ता ह।= ‘न आने वाला कल' उपयास म सभी पाM इसी दश;न क" अनभ$त रहे ह।= ु ू से गजर ु मनोज स सेना क" सम>या इतनी ह थी .क वह मिु त चाहता था। परतु .कससे ? सBबध, के इस Nबखराव म या नौकर से ? या .फर प9नी से ? या .कसी और चीज से, िजसे .क वह >वयं भी नहं जानता था ? मनोज सदै व ह अपने अि>त9व के #$त 6चितत रहता है । कन;ल वMा के कहने पर .क ‘‘तBह ु  बीमार असल म कछ ु अपने को बीमार माने रहना ु नहं है। अगर है तो Jसफ; इतनी ह .क तम लगती है । इसी से चाहते हो।'' और यह बात मनोज को अपने सBबध, के अि>त9व के #$त चनौती ु (46)

Jमलती-जलती ि>थ$त >कल ु ू जो एक प7रवार क" तरह है .क एक पाM बा◌ॅनीहा◌ॅल क" है वह ‘चीज' नहं बनना चाहती है और इस साठ सद>य, के >टा◌ॅफ तथा तीन सौ )व]या6थ;य, के समह ू से यि तगत Hप से जड़ ु चक" ु है और .कसी के साथ >थायी सBबध नहं बनाती है य,.क अि>त9ववाद दश;न ने उसे $नHŽेRय तथा भटकाव के मोड़ पर लाकर खड़ा कर दया है। जब मनोज के Jलए बा◌ॅनीहा◌ॅल ‘चीज' नहं बनती तो उसके अहं को चोट पहचती है और उसे लगता है .क ‘‘एक चेहरा और चेहरे म जड़ी दो ुँ आँख जो एक चनौती Jलए मझे ु ु दे ख रह थी।'' इस #$त.Zया के कारण उसका अवचेतन मन बा◌ॅनी से 47

सचेत हो जाता है और सBबध, म >था$य9व नहं हो पाता। सBबध, के )वघटन क" यह सम>या नायक मनोज को अपनी प9नी शोभा के सामने सालती रहती है । य,.क शोभा के सामने Jसगरे ट पीते हए ु दे ख ह नहं रह, मन ह मन उस ु , वह सहज नहं रह पाता था। उसे ऐसा #तीत होता है .क ‘‘वह मझे दसरे कर रह है िजसके साथ )ववा हत जीवन के सात साल उसने Nबताये थे।'' ू के साथ, मेर तलना ु 48

मानव सBबध, क" यह कNMमता अि>त9ववाद 6चतन क" प%ठभJम ू म )वशेष Hप से ?%टय ह।= प$तृ ृ प9नी दोन, ह एक दसरे ू के $नकट आने या आ9मीय बनने क" चे%टा नहं करते, य,.क इसे वे अपने ऊपर दबाव अनभव करते ह= - यह ि>थ$त शोभा मनोज के साथ घ टत होती है। मनोज सोचता है ु ‘‘उसक" नजर म म= अब भी एक अकेला आदमी था िजसका घर उसे संभालना पड़ रहा था जब .क मेरे Jलए वह .कसी दसरे ू क" प9नी थी िजसके घर म म= एक बेतुके मेहमान क" तरह टका था। म= कोJशश करता था .क िजतना Kयादा व त घर से बाहर रह सकँू रहूँ, पर मजबरन ू घर म Hकना पड़ जाता, तो वह काफ" दे र के Jलए साथ के पोश;न म शारदा के पास चल जाती थी।'' साथ-साथ रहते हए ु ये दोन, इतने 49

अvय>त हो गये थे .क एक दसरे ू के मामल, म दखल दे ना छोड़ दया था, य द दोन, म .कसी को ग>सा ु आता भी था तो बाहर आने पर इसक" कोमल अJभयि त हो जाती थी और यह बढ़ती ग>सा साथ ह ु पहचान दोन, को औपचा7रकता के बंधन म बाँधे हए ु )वराम क" दोन, क" अपनीु थी य,.क - ‘‘उस यh अपनी शत‘ थीं - अपने-अपने तक सीJमत। दोन, को एक-दसरे ू से कछ ु आशा नहं थी, इसJलए हदबंद टटने क" नौबत बहत ू ु कम आती थी।''

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शारदा और कोहल दBप$त म सBबध, का )वघटन भी अि>त9ववाद ?ि%टकोण के तहत चलता रहता है - ‘‘मेरा इस आदमी के साथ गजारा नहं है । मेरे माँ-बाप ने पता नहं या दे खकर मझे ु ु इसके साथ bयाह दया। यह कोई आदमी है िजसके साथ एक लड़क" िजदगी काट सके .........। पर मने = सोच Jलया है , मझे ु चाहे, सार उY कंु वार रहना पड़े, म= इस आदमी के साथ और एक दन भी नहं रहगी। ूँ '' यहाँ 51

शारदा का मानवीय अि>त9व वैयि तक सदभ; म >वअि>त9व भय से $नः>Mत होकर पनः ु उसी ओर उमख ु होता है । वैयि तक अि>त9व सBभावनापरक है , अतः उसक" अितम Hप से याeया नहं क" जा सकती। चेतना के >तर पर उ9पन >वतंMता वैयि तक $नण;य और काय;Hप, म शारदा को अतभ;त ू करती है और वह काय;कार Tण, म अनभवा9मक धरातल पर यि त-मानव अनभव ु ु -सारणी के मा^यम से अपनी चेतना के )वJभन Hप, को गहण करती हयी ृ ु आगे बढ़ती जाती है िजसे वह दबाव या प7रि>थ$तय, म खिxडत नहं करना चाहती है । तीसरा, प7रवार जो आपसी अत]व;]व से गजर रहा है िजमी और रोजी का है , रोजी जबसे इस प7रवार ु Hपी सं>था म आयी है बहत ू करती है और यूँ कहा जाय .क उसे यहाँ क" िजदगी रास ु थक" सी महसस ह नहं आई और उसक" अपनी थकान बढ़ने के साथ ह प$त रोजी के #$त भी सBबध, म थकान बढ़ती >प%ट नजर आने लगी है , उसे िजमी क" फरमाइश, से 6चढ़ है वह अपना >वतंM वजद ू रखना चाहती है इसJलए इस >कल का वह व ह%कार सी करती #तीत होती है । ् ु जीवन श◌ौल ू क" नपी-तल ‘‘वह बोल .क मेर वजह से आप सब लोग आज भख ू े रह गये ह।= पर यह दोष मेरा नहं, मेरे प$त का है मने = इससे कहा था .क मझे ु घर पर अकेल छोड़ दो। पर इसका eयाल था .क म= पाट‰ म शाJमल न हई ु , तो लोग जाने या सोच गे। िजमी का सबसे बड़ा दोष यह है .क यह बहत ु भला आदमी है । लोग, क" बहत ु 6चता करता है मेर भी बहत ु 6चता करता है । कोई चाहे .कतनी कोJशश कर ले इसका 6चता करना नहं छड़ा ु सकता। यह वजह है जो आप सब लोग, को आज आधा खाना-खाकर उठ जाना पड़ा है । पर म= समझती हूँ इसके बाद कभी आपको ऐसी ि>थ$त का सामना नहं करना पड़ेगा, य,.क आज के बाद कम से कम आज के बाद ......... मेरा eयाल है िजमी 6चता करना छोड़ दे गा।'' रोजी क" यह 52

वैयि तक चेतनाना9मक ?ि%ट अपनी सBपण; ू >वतंMता के साथ क टबh है इसJलए वह अलग रहकर अपनी पहचान बनाना चाहती है । मनोज स सेना अि>त9ववाद दश;न म म9यभय के कारण संMास झेलता रहता है और समाज से तथा ृ ु >वयं से कटा-कटा महसस ू करता है - एक >थान पर मनोज कहता है .क ‘‘मन को म= आ9मह9या क" पटर पर नहं चलने दे ना चाहता। इसJलए .क उसका कछ ु अथ; नहं था। म= जानता था .क म= .कसी भी ि>थ$त म आ9मह9या नहं कर सकता। म= हर ि>थ$त के प7रणाम को >वयं दे खना चाहता था - और िजसम दे खना न हो, उस प7रणाम क" कIपना ह मझे ु झठ ू लगती थी।'' यह तीn अि>त9वबोध एवं 53

पण; ू >वतंMता क" भावना मनोज को शोभा से बाँनी या अपनी पव; ू प9नी से नहं जोड़ पाती है और वह

दLDJमत होकर उसके 9यागपM क" सम>या पर )वचार करना चाहते ह= और उससे सहानभ$त ु ू #कट कर सहायता करना चाहते ह= तो वहाँ भी यह सम>या #मख ु हो जाती है और यह >प%ट होता है .क कोई .कसी का JमM नहं है सब अपनी-अपनी प7र6ध म कैद ह=, इन सब बात, से मनोज सदै व भयाZांत रहता है । एक >थान पर अपने अनभव, को >प%ट करते हए ु ु वह कहता है । ‘‘उसी तरह बैठे हए ु और अपनी साँस के आने-जाने को महसस ू करते हए ु एक Tण आया जब म= जैसे .कसी चीज से डरकर सहसा उठ खड़ा हआ। वह डर .कस चीज का था ? उस खामोशी का ? अपने अकेलेपन का ? अपनी साँस म Hकावट आ ु

जाने के खतरे का ? या वहाँ होते हए के एहसास का।'' म9य ु ृ ु का यह भय जगहु भी न होने, बीत चकने 54

जगह पर छाया रहता है , जो मनोज को संMास उ9पन .कए रहता है और बहत ु कोJशश, के बाद अपने )वभाजन को नहं रोक पाता है । अि>त9व क" इस चटपटाहट म शोभा भी कई बार चटक-चटक कर टटती है .फर भी स.Zय #$तरोध के ू साथ >वतंMता बनाये रखना चाहती है । शोभा भी नायक मनोज क" तरह म9य ृ ु से डरती है और #9येक मIय ू पर अपनी >वतंMता को अTुxय बनाए रखना चाहती है। शोभा बार-बार मनोज से इसी बात क" Jशकायत महसस ू करती है .क उसने ऐसी प7रि>थ$तयाँ $नJम;त कर दं, जो उस पर $नरंतर दबाव डालती गई ह= और वह अपने अि>त9व एवं >वतंMता को सरuTत नहं रख पा रह है - ‘‘एक ऐसे आदमी के साथ ु मने = अपनी िजदगी को उलझ जाने दया िजसके पास मझे ु दे सकने के Jलए कछ ु नहं था, .कसी को भी दे सकने के Jलए कछ सोचा है .क तम ु ु अपनी जगह .कतने >वाथo, .कतने दBभी ु नहं था। कभी तमने और .कतने हठs आदमी हो ? या तBहारे जैसे आदमी को कभी .कसी क" लड़क" क" िजंदगी को अपने ु साथ उलझाना चा हए था ? या इतने साल अकेले रहकर तBह ु  यह पता नहं चला था .क अकेलेपन क" िजंदगी ह तBहारे Jलए एक माM िजदगी हो सकती है ।'' इन प7रि>थ$तय, के के Nबद ु म मनोज तो ु 55

था ह साथ उसक" अपनी कछ ू प$त का घर ु यि तगत सम>याय भी थीं वह सोचती भी है , य द वह पव; छोड़कर )पताजी के घर न गयी होती और .फर मनोज के साथ शाद न करती तो हो सकता है .क ि>थ$तयाँ कछ = हर चीज से अपने को वं6चत कर ु ू रहती परतु मनोज से ‘‘अपने को जोड़कर मने ु अनकल Jलया।''

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बा◌ॅनीहा◌ॅल एक >वतंM यि त9व क" नार है इसJलए प7रवार से अ6धक वह >वतंMता को मह9व दे ती है शायद यह कारण है .क उसका प7रवार बस नहं पाया बा◌ॅनीहा◌ॅल अपने बारे म अवगत कराते हए ु मनोज से कहती है .क - ‘‘जहाँ तक शरर क" नै$तकता का सBबध है , उसे लेकर मेरे मन म कभी कxठा ु नहं रह जब सMह साल क" थी, तभी से म= तBहारे सामने यह भी >वीकार कर सकती हूँ .क कई - एक ु लोग, के साथ मेरा शार7रक सBबध रहा ह है , हालां.क हर एक के साथ एक-सा नहं।'' वह वह कछ ु 57

करना चाहती है िजससे उसक" आ9मा को सति%ट Jमले और कlटरपंथी )वचारधारा तो उसम है ह ु नहं, वह जो कछ ू ु अmछा गलत करती है उसे ह प)वM मानती है। इससे उसे मानJसक >वतंMता महसस होती है । बा◌ॅनीहा◌ॅल ‘अतराल' क" Rयामा क" तरह है Rयामा भी मानJसक ि>थ$तय, को प)वM मानती है - ‘‘भावना साथ दे तो म= .कसी भी तरह के आचरण को हन नहं समझती।'' इहं भावनाओं के साथ 58

#Rन उठता है .क >वतMता क" एक सीमा होती है और इसे बा◌ॅनी mयत ु नहं करना चाहती - ‘‘म= नहं चाहती .क .कसी भी आदमी का मझ ँू '' शोभा ु पर इतना अ6धकार हो .क म= उसके Nबना जी ह न सक। 59

और बा◌ॅनी दोन, ह नहं चाहतीं .क कोई उह ‘इ>तेमाल' कर सके। उनका चेतना बोध बराबर इस बात के Jलये स.Zय रहता है .क वे मन%य ु ह=, पदाथ; नहं, िजसको िजस Hप म कोई चाहे, #योग कर सके। इसJलये ये टटती )वघ टत होती रहती ह= और प7रवार से मानJसक Hप से जड़ ू ु नहं पाती ह।=

नायक मनोज का भय और आंतक इस सीमा तक उसके अदर गहन हो जाता है .क वह बफ; के $नशान, को दे खकर भी संM>त हो जाता है - ‘‘थोड़ी दे र म वे सब $नशान )पघल जायगे  , यह सोचकर मझे ु Jसहरन हई। ु '' यह डर उसक" वा>त)वक मनः ि>थ$त का #तीक है । वह अपने JमM,, शोभा तथा बा◌ॅनी - .कसी से भी घणा ृ नहं कर पाता और न चाहता है .क कोई उससे घणा ृ करे , य,.क वह एक कलं.कत भावना है 60

और इसका एकमाM उzदे Rय एक दसरे ू क" >वतMता का अपहरण करना है, यि त9व को )वभािजत करना है । मनोज न तो >वयं कोई $नण;य ले पाता है और न .कसी दसरे ू के ऊपर कोई $नण;य ले पाता है। वह बस असहाय अव>था म इन सBबध, से मिु त के Jलये छटपटाता रहता है। उसे लगता है .क कोई उसका अपना नहं है। उसक" मनोयथा को कोई नहं समझ सकता। मानव सBबध, के )वघटन म यहाँ .फर वह #Rन उठता है .क अि>त9ववाद मानवतावाद क" जो दहाई बार-बार द गई है , या उसे मनोज, ु शोभा, शारदा, बा◌ॅनी या दसरे रह पाये ह= ? ू लोग, के अि>त9व सचमच ु सरuTत ु सBबध, को बनाये रखने के Jलये एक सीमा क" आवRयकता होती है , जो यि त को एक बंधन म बांधे रखना चाहती है , य द .कसी भी यि त को उसके घर क" दवार, के अदर दे खा जाये तो वह .कसी न .कसी Hप म जHर उन दवार, क" अपेTाओं से बंधा होगा। अगर वह अपने से बाहर उमड़ता या हाथ पैर पटकता है, तो भी उन सीमाओं से जकड़कर ह य,.क दवार, क" अपनी एक नै$तकता होती है । उनके बीच रहकर आदमी या तो चपचाप उस नै$तकता का पालन करता है, या उसके #$त एक खामोश )वोह ु और )वोह क" खामोशी भी उस नै$तकता के दबाव क" >वीक$त ृ ह मानी जाती है। उस दबाव से आदमी अपने को मु त अनभव कर सकता है केवल वहां जहां .कसी भी तरह क" दवार न ह, .कसी भी दवार, ु के न होने और >वतMता क" सांस लेने क" जो आकलता इन पाM, म है , उससे या सख ु ु Jमला ? म9ृ यु का भय, >वतMता, अि>त9व क" चेतना, अकेलापन और सBबध, के )वघटन का संMास ये #Rन और सदभ; सब कNMम जान पड़ते ह= और इनम अि>त9ववाद मानवतावाद क" )वक$तयाँ भी ृ ृ >प%ट उभरती ह=, जो मानव क" अतरा;9मा क" रTा करने के बजाय उसे ^वांसोमख ु बनाती है । ‘न आने वाला कल' उपयास पा7रवा7रक )वघटन के >वHप को तथा इनक" )वसंग$तय, को >प%ट नहं कर पाया है इसके पाM अपनी $नजी उलझन, म इतने य>त रहते ह= .क एक दसरे ू के #$त उनके मन म या- या अपेTाय रहती ह= >प%ट Hप से य त नहं कर पाते, उनका $नजी अनभव साथ;क #तीत नहं ु होता तो वे अ>व>थ मनोवि9त के Jशकार हो जाते ह= या छोट-छोट Tुताओं एवं संक"ण;ताओं के ृ नज7रये से वे एक-दसरे ू को हनता <िथ के कारण समझ नहं पाते और अपना आZोश अपने प7रवेश अपने लोग, से $नकालने म जIदबाजी कर बैठते ह।= कल ु Jमलाकर मनोज जैसा .क उपयास म इसके .Zया-कलाप, और )वचार, से #कट होता है लेखक के मानस से उ9पन कNMम च7रM है । सामाय ृ जीवन का सहज ग$तमय Hप उसक" .कसी भी हरकत से #कट नहं होता। वह ‘‘सब कछ ु को छोड़कर या अ>वीकार करके एक $नष◌ोधा9मक ि>थ$त म जा पहचता है, पर यह अ>वीकार उसे कहं भी ले जाने म ् ुँ असमथ; है ।''

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अतराल

मोहन राकेश का तीसरा उपयास ‘अंतराल' कथा-JशIप क" ?ि%ट से #योगशील है । ‘अंतराल' उपयास को लेखक ने तीन खxड, म )वभािजत .कया है अंतराल-1 और अंतराल-2 और अंतराल-3 के म^य कई छोटे -छोटे कथांश ह।= िजनम कहं ZJमक ग$त से, कहं पव; ू -दि`त पh$त से, कहं चेतना-#वाह और कहं )ववरण तथा कहं डायर श◌ौल से कथा का #>ततीकरण हआ ् ु ु है। अंतराल-1 ◌ः सं#$त नायक कमार बBबई के .कसी )व4ापन-#$त%ठान म काय; करता है । उसे आज ु शाम साढ़े पाँच बजे ट-सटर दqतर से  पर Rयामा से Jमलने जाना है ◌ः उसका फोन आया था। कमार ु $नकलता है , बंबई के भीड़ भरे रा>त, म Jमलते लोग, के वण;न के साथ जब वह ट-सटर है तो  पहचता ुँ Rयामा उसे वहाँ नहं Jमलती। पौन घंटा #तीTा कर कमार लौट आता है। लौटते ह चच; गेट से फा>ट [े न ु म वापसी के bयौरे के साथ कहानी अतीत क" ओर घम .कसी क>बे म #ा^यापक ू जाती है। ........ कमार ु है । वहं एक पाट‰ म उसके सहकमo #ोफेसर मIहोMा उससे अपनी साल Rयामा का प7रचय कराते ह= .क वह मंडी के एक >कल ु ट लेकर ू म #धाना^या)पका है और दश;नशा>M म एम. ए. करने के Jलये छl आयी है और यह भी .क कमार उसे गाइड कर द दसरे के घर पढ़ने आने लगती है। ू दन से Rयामा कमार ु ु Rयामा क" पढ़ाई के दौरान दोन, म जो अय बहत ू भी जम लेते ु सी बात होती ह= उनसे कई कथासM जाते ह।= Rयामा )वधवा है शाद के दो साल बाद उसका प$त (दे व) एक बmची छोड़कर मर गया। कमार ु का इससे पव; ू लता नाम क" लड़क" से #ेम यवहार था, िजसे समा`त हये ु ु दो साल बीत गये और कमार को इस जगह से कहं और चले जाने क" सोचते-सोचते भी दो साल बीत गये। एक बरसाती शाम Rयामाकमार के साथ खेत, क" ओर घमने जाती है । रा>ते म इष;त ् #ेम-#संग Rयामा बताती है .क जीजा जी ू ु उसके #$त द)षत यौन-भाव रखते ह= और अब शायद वह जIद ह मंडी लौट जाये। कथा सM ू ू यहाँ से .फर पीछे को मड़कर कमार के चच;गेट से फा>ट [े न म वापस लौटने के Nबंद ु से जाकर जड़ ु ु जाता है । ु कमार बांा पर उतरता है और घर के Jलये बस म सवार होता है और कथा .फर वहं क>बे के प7रवेश म ु पहच और Rयामा क" कथा खेत, क" सैर से छट ू थी। ..... एक खेत के रहट पर ु ु ँ जाती है। जहाँ कमार Rयामा-कुमार को #ो. मIहोMा के ]वारा .कये गये इष;त ् बला9कार के बारे म बताती है । बीच म लता क" चचा; आती है। कछ और Rयामा लौट पड़ते ह= लौटते म Rयामा-कमार के ु दे र उस रहट पर Hककर कमार ु ु आJलंगन के #$त )वरि त #दJश;त करती है । .फर दो दन तक Rयामा कुमार के यहाँ नहं आती। तीसरे

दन जब वह आती है और उस आJलंगन #करण पर जब दोन, म बात होती ह= तो जा हर होता है .क Rयामा अभी भी अपने >वगoय प$त के #भाव से मु त नहं है। अगले दन Rयामा मंडी चल जाती है । कमार उसे क>बे से अगले >टे शन पर )वदा करने पहुँचता है और कमार के घर वापस लौटने के वण;न के ु ु साथ #थम कथा-खxड समा`त हो जाता है । ‘अतराल-2' का कथा-सM  वाले उस आरिBभक Nबद ु से जोड़ा है जहाँ ू लेखक ने ‘अंतराल-1' के ट-सटर से कमार Rयामा से Nबना Jमले अपने घर लौट जाता है। इस खंड क" कथा बंबई के उ त >थल-#संग से ु Rयामा के शbद, से शH म )वलंNबत हो जाने के कारण वह कमार से नहं Jमल  पहचने ु होती है । ट-सटर ु ुँ पाती और लौट आती है । Rयामा क" वापसी के रा>ते और सम ु -तट के लेखक"य दाश;$नक वण;न के साथ कथा मंडी म Rयामा के घर क" ओर मड़ ु जाती है। अकेल रहती मानJसक Hप से अशांत और Tुbध

Rयामा सोचती रहती है , उसे ब>ती के अगले >टे शन से कमार क" )वदाई क" याद आती है। अकेलेपन क" ु पीड़ा से मिु त के Jलये एक मदz ु त बाद Rयामा ने अब .फर से डायर Jलखना शH ु .कया है । डायर म वह आ9म, #ेमभाव, दे व, गह>थ जीवन तथा कमार आ द के बारे म अपने )वचारभाव य त करती है । ु ृ अपने )व]यालय क" रं जु नामक एक अ^या)पका क" शाद के Jलये दे खने के बहाने वह कमार को पM ु Jलखकर बलाती है। यहाँ से ये कथा .फर बBबई के उसी कथा Zम से जड़ ु ु जाती है जहाँ से Rयामा टसटर  से घर वापस लौट रह थी। नरमन`वाइंट, मै7रन-…ाइव चच;गेट >टे शन तथा अंधेर आ द के रा>ते से [े न का सफर करने के बाद Rयामा घर पहचती है । घर पर बीजी (माँ), सीमा (छोट बहन) तथा बेबी ुँ (पMी ु ) के सBबध म आ9मीय-अना9मीय )वचार करती हई ु वह थककर सो जाती है । इसके आगे कथा .फर मंडी के उसी छटे के आने क" #तीTा कर रह है। आज ू हये ू से जड़ ु जाती है जहां वह कमार ु ु सM श$नवार है और कमार को आना है। दै नं दन के कायd के दौरान Rयामा अपने अंतर म लगातार कमार के ु ु आ पहचने और उसके बाद के सारे यवहार क" कIपना म जी लेती है ले.कन कमार आXखर बस से भी ु ुँ नहं आता। अब .फर कथा बंबई-अंधेरे म तब से शH  से घर आकर सो गयी थी। बेबी को ु होती है जब Rयामा ट-सटर लेकर Rयामा और बीजी म )ववाद हो जाता है। Rयामा और बीजी के बीच पM यवहार से तय हआ ु था .क पना ू का घर बेचकर य द बBबई म रहा जाये तो वह भी मंडी छोड़कर उनके साथ रह सकती है। और इसी हे तु Rयामा लंबी छl ु ट लेकर इस समय बBबई आयी है । ले.कन यहाँ आकर वह पाती है .क बीजी और सीमा से ‘एडज>ट' करना बहत ु क ठन है । ..... वह 6चितत रहती है। दे व क" याद करती है शाद के तरंु त बाद से ह दे व ने उसे कभी भी आ9मीय >तर पर <हण नहं .कया। एक दन दे र रात को जब सीमा शराब पीकर लौटती है तो Rयामा से उसका )ववाद हो जाता है । बेबी भी यहाँ आकर उससे कट गयी है। सीमाबीजी और Rयामा म तनाव बढ़ता ह जाता है। ‘अंतराल-3' क" कथा बंबई म कमार के दqतर से शH ु होती है । जहाँ एक दन अचानक ह Rयामा पहच ु ुँ जाती है। दोन, दqतर से बाहर आते ह=, ट-सटर  म चाय पीकर चच;-गेट >टे शन से दोन, गाड़ी पकड़ते ह= बांा पर उतरकर Rयामा अपने ह आ<ह से कमार के घर जाती है । कमार का अ>त-य>त और गंदा ु ु कमरा। वहाँ चाय पर दोन, म आ9मीय वाता;लाप होता है िजससे Rयामा को जानकार Jमलती है .क इस बीच कमार ने )ववाह .कया था, ले.कन छः माह से अ6धक सBबध न रह सके। काफ" दे र तक बात ु करने के बाद जब Rयामा चलने को होती है तो कमार उसे बलात ् #ा`त करने का #य9न करता है और ु Rयामा बलात ् ह अपने को बचा लेती है। रात भर के उनींदेपन के बाद अगल सबह सोकर उठता है तो उसक" पव; ु जब कमार ू >म$त ु ृ म कथा वहाँ से आगे बढ़ती है जब Rयामा उसे धकेल कर चल गयी थी। पव; आ9मLला$न म ू कथा सदभ; म कमार ु डब ू जाता है और .फर >टे शन तक छोड़ आने के Jलये Rयामा से कहता है Rयामा इनकार कर दे ती है। और कल क" घटना क" कछ को ऊपर Tमा और सां9वना दे कर चल जाती ु दाश;$नक-सी याeया कर कमार ु है । कमार चाय बनाने म य>त हो जाता है और कथा अंततः समा`त हो जाती है । ु

मोहन राकेश के उपयास ‘अंतराल' म #ाचीन आदशd के #$त कोई मम9व नहं है । ऐसा #तीत होता है .क दLDJमत मानव अपनी मतोनकल ु ू पगदxडी खोजने म य>त है । एक नगर के चौराहे से भटकता हआ ु छोटे क>बे तक का माग; बहत ु ह ज टल बन गया है। मानव सBबध, के )वघटन क" अनेक सम>याय मनोवै4ा$नक, आ6थ;क तथा आ9मकेितता के वजह से अतराल म Nबखर हई ु ह।= अतराल म यथाथ; Hप म आध$नक मानव सBबध, के )वघटन क" कहानी 6चNMत है। मeय Hप से ु ु ‘सै स' तथा मानवीय सBबध, के टटने क" कहानी है जो सBबध केवल दे खने म सहने भर के Jलये ह ू ह=। >Mी-पyष, का सBबध एक Kवलत सम>या है । इसके )वषय म 7रवेल इ. मेजेज अपना मत दे ते है ु - ष◌ै् मगनंस मतउपे◌ेपअमदमे◌े पे हववक पद जीमवतलए इनज पज पे कवनइजमक पद तंबजपबमष ् परतु हव चमतबमदज जीपदोए पाRचा9य #भाव के सBपक; म आये लोग ‘सै स' को ठsक मानते ह।= वअमत ् जींज ◌ेमगनंस चमतउपे◌ेपअमदमे◌े पे दवज ◌ूतवदह ◌ू◌ीपसम 65 चमतबमदज ◌ंतम वचचवेमक जव पजए जीम तमेज ◌ंतम कपमतमदजष ् ; ससनेजतंजमक ◌ूममासल व दकपंण ् ।नजीवतण ् $%ट$''ण ् $ड$छ*म◌ै् 62

+नदम 16ए ◌ैनदकंल 1974,

‘अतराल' के सदभ; म कछ ु सदभ; ऐसे ह= जो #ाचीन नै$तक धारणाओं को तोड़ते नजर आते ह= य,.क >वतMता के बाद दे श का कायापलट हो रहा है । जब दे श म औ]यो6गक Zाित ग$तशील है तो उसका #भाव दे श के सां>क$तक मानव-मIय, पर पड़ना >वाभा)वक है । जीवन म भौ$तकता का #वेश दन ू ृ #$त दन बढ़ता जा रहा है। इससे हमारे जीवन के पराने मIय, के #$त जो आ>था अब तक बनी हई ु ू ु थी। वह बदलती हई के आपसी सBबध, के सBबध म ु ु प7रि>थ$तय, म )वघ टत हो रह है । >Mी-पyष, नै$तक आ>थाओं का लोप होता जा रहा है , भौ$तक समh ृ जनमानस का लOय होती जा रह है, वग;, जा$त या सB#दाय के आधार पर यि त को ऐ$तहाJसक सदभd के आधार पर अ6धकार #ा`त था उनम प7रवत;न होता जा रहा है । ऐसी ि>थ$त म मानव म )वघटन होना (आ>थाओं म प7रवत;न) >वाभा)वक ह था। ‘अतराल' क" कथा म पा7रवा7रक )वघटन का >वHप दो को टय, म रखा जा सकता है । 1. पा7रवा7रक मानव सBबध, के )वघटन का >वHप। 2. वैयि तक मानव सBबध, के )वघटन का >वHप। समाज म प7रवत;न आने के साथ ह साथ पा7रवा7रक मानवीय सBबध, के )वघटन का >वHप भी बदल रहा है । मानवीय सBबध, के मIय ू बदलते जा रहे ह।= समाज म प7रवार, क" इकाइयाँ बदलती जा रह ह।= प7रवार म आपसी सBबध भी अपनी नै$तकता को छोड़ गये ह।= वह सBबध केवल सहने के सBबध रह गये ह।= इनम वह आपसी `यार नहं रहा है दखावे के सBबध जो अदर ह अदर घटते ु टटते से नजर आ रहे ह।= ू

‘अतराल' म पा7रवा7रक )वघटन के सदभ; म पहले Rयामा और राजीव का #ेम Jलया जा सकता है । राजीव अ सर Rयामा के घर आता है। Rयामा क" शाद क" बात राजीव के साथ चलती है । Rयामा मन ह मन उसे अपना प$त मान चक" ु थी य,.क राजनी$त से सBबिधत बात, म उसक" बहत ु जानकार थी, और Rयामा उसके मह हई ँु से $नकले एक-एक शbद को आदर के साथ सनती ु ु सोचा करती थी ‘‘राजनी$तक जीवन क" धाँधJलय, के कारण उस T्◌ोM म कछ ु करने का अवसर न भी Jमला तो केवल अपने )वचार, से ह एक दन वह यि त सारे संसार को चम9कत ृ कर दे गा। इसJलये )ववाह का #>ताव .कये जाने पर जब राजीव ने यह कहकर मना कर दया .क उसने जीवन भर अ)ववा हत रहकर राजनी$तक काय; करने का संकIप ले रखा है तो उसके Jलये उसके मन म आदर और भी बढ़ गया।'' पर 63

एक दन उसे अपनी चचेर बहन से मालम ू पड़ा .क राजीव क" शाद संसद सद>य क" छोट बहन से हो गयी तब Rयामा >तbध रह जाती है। राजीव के साथ Rयामा के सBबध, का )वघटन आकष;ण के अ$त7र त और कोई नाम नहं दया जा सकता य,.क यह प7रवार के सBपक; से बना और उसी से टटा। ू Rयामा और उसक" ससराल वाल, के )वघटन का सBबध भी पा7रवा7रक दायरे म आता है । दे व के साथ ु तो .कसी तरह से Rयामा ने काट Jलया और दे व क" ओर से उसने कभी कोई Jशकायत भी नहं क"। परतु शाद क" #थम रात को ह ‘‘वह अध◌ोरे ् का सBबध था जो .क अध◌ोरे ् म भी ठsक से नहं जड़ ु पाता था, कोJशश दोन, तरफ से होती थी।'' Rयामा और दे व म तनाव दोन, लोग, के आपसी मेल 64

Jमलाप म कमी के कारण भी हो सकता है य,.क दे व ने एक बार Rयामा से कहा था ‘‘हम िजह सBबध कहते ह= वे केवल मंच पर अJभनेताओं के आपसी सBबध ह= और कछ ु नहं।'' दे व क" म9य ृ ु ने 65

इस सBबध को Rयामा के भ)व%य म रा>ता #श>त कर दया। बीजी और सीमा के साथ Rयामा का सBबध आ6थ;क कारण, से जड़ा ु हआ ु था। यह य>तता सीमा और बीजी के साथ थी। Rयामा भी यहाँ घटन महसस ु ू करती रहती है ‘‘ य,.क उस घर म रहना भी लगातार एक तीन तरफा दबाव म जीने क" तरह था .......। उस दबाव को कोह$नय, क" भार से अपने से परे नहं .कया जा सकता था, और न ह आशा क" जा सकती थी।'' जब कमार से वह मxडी लौट जाने क" बात कहती है तो कमार कहता है .क ु ु 66

या इसका कारण घर के लोग है ।, कमार , Rयामा से कहता है .क तम ु मन म इस $न%कष; तक पहंु च गई ु हो .क तBहा ु रा अब उन लोग, के साथ कछ ु भी साझा नहं है ...... .क .कसी तरह साझेदार बना रखने क" चे%टा अपने म एक धोखा है। पर इतने दन उस धोखे म काट लेने के बाद तBहारा >वाJभमान ह इसे ु >वीकार करने से तBह Rयामा से कहता है .क मxडी जाने का इरादा तBहार ु ु  रोकता है ।'' और कमार ु 67

कोJशश यहाँ से दरू जाकर .फर .कसी तरह उस धोखे को बनाये रखने क" नहं है । Rयामा इस पा7रवा7रक सBबध को बनाये रखने के Jलये हर सBभव #य9न करती है, यहाँ तक .क बीजी के साझे म qलैट भी खरदती है, ले.कन सफल नहं होती। अत म Rयामा का प7रवार से सBबध टट ू जाता है । ‘वैयि तक मानव सBबध, के )वघटन' का >वHप दो Hप, म ‘अतराल' म आया है 1. भौ$तक आवRयकता के कारण पा7रवा7रक )वघटन।

2. मनोवै4ा$नकता के आधार पर पा7रवा7रक )वघटन। पा7रवा7रक सBबध, के अ$त7र त मन%य ु के $नजी सBबध भी होते ह।= बदलते यग ु के साथ इन सBबध, के मIय ू बदलते जा रहे ह।= मानव को भौ$तक सBबध, क" आवRयकता महसस ू हो रह है । हमारे समाज म भौ$तकता के आधार पर जो सBबध >था)पत हये ु ह= वे जरा सी भी जमीनी हक"कत नहं रखते ह=, और कछ ु सBबध तो ऐसे ह= िजह कोई नाम नहं दया जा सकता इसJलये इन सBबध, के टटने से यि त को क%ट भी नहं होता। हमारे समाज म ‘पyषJमM, ' क" संeया बहधा ू ु ु Jमलती है । िजन ि>Mय, के बा◌ॅय-Šैxड नहं होते ह=, वह गंवार समझी जाती ह।= य]य)प भारतीय समाज म बा◌ॅयŠैxड का फैशन अभी श◌ौशवाव>था म ह है । आध$नक भारतीय समाज म >Mी आ9म$नभ;र रहना ् ु पसद करती है। उसके अपने वैयि तक सBबध होते ह= और यह वैयि तक सBबध लोग, को अपने मल ू प7रवार से काट दे ते ह= इसJलये एकल प7रवार का जोर चल रहा है । ‘अतराल' भौ$तक आवRयकता के आधार पर )वघ टत प7रवार, क" सश त वकालत करना है । कमार ु का पील लड़क" लता के साथ वैयि तक भौ$तक सBबध है , िजससे वह घर बसाने क" चे%टा करता है। य,.क कमार जब लता से अितम बार Jमलता है , उस समय लता क" शाद हो जाती है और लता ु अितम बार उससे Jमलने आती है और कुमार को वह अJभसार के Jलये कहती है - ‘‘कछ ु पल उसे दे खती रहकर बोल ‘‘एक बात कहूँ ? और वह .फर एक बार उसके पास आ गई। यह भी तो हो सकता है .क Nबना bयाह के तम के साथ सBबध केवल शार7रक Hप से उसके जेहन म ु मझे ु .......।'' लता का कमार ु 68

था और जब वह परा ू नहं होता है तब वह सBबध समा`त हो जाता है । कमार का भौ$तक सBबध Rयामा के साथ भी होता है , य,.क लता ]वारा 7र त को%ठ वह Rयामा से ु भरना चाहता है और Rयामा के {दय म दे व का >थान उसक" म9य ृ ु के कारण 7र त हआ ु है और भौ$तकता क" अधी दौड़ म जब दोन, यि त शार7रक सBपक; करते ह= तो वा>त)वक Hप म उसे सहन न करने क" ि>थ$त म )वघ टत हो जाता है, - कमार और Rयामा ने वासनामय ि>थ$त के समय इस ु तcय को >वीकार .कया है ‘‘कमार क" साँस तेज हो रह थी और चेहरा एक >Mी को पा लेने के पyष ु भाव ु से जड़ होता जा रहा था। Rयामा के शरर म एक-साथ सहानभ$त क" झरझर ु ू और )वत%णा ु ु दौड़ गई ृ .....। ‘‘दे खो अब मझे ु चलना चा हये'' इन भौ$तक सBबध, क" आड़ म जब ये लोग असफल हो जाते है 69

तब अपना सBबध mयत ु कर लेते ह।= शh ु भौ$तक सBबध, को >खJलत होने का एक >वHप सीमा म दे खने को Jमलता है जो अ)ववा हत होने पर भी पyष ु JमM, से सBबध रखती है और #ेJमय, को कपड़, क" तरह बदलती है और वह >वीकार भी करती है - ‘‘मेरे दो-एक बा◌ॅय Šैxड ह= िजनके साथ म= शाम को बाहर जाती ह।ूँ म= जानती हूँ ममी उनम से .कसी को भी पसद नहं करती। खास तौर से अeतर को, वह बहत ु कIचड; लड़का है, ममी से बहत ु मीठा बोलता है , पर वह उह इसJलये नहं भाता .क उसका नाम सरेु श या रमेश नहं, अeतर है और वह नम>ते क" जगह आदाब अज; कहता है ।'' सीमा के च7रM का )वRलेषण करने से इस बात क" 70

कIपना होती है .क वह ‘सोसाइटगल;' है और जब उसक" भौ$तक आवRयकताएँ समा`त हो जाती ह= तब अपने Jलये पराना साथी (बा◌ॅय Šैxड) के >थान पर नया (बा◌ॅय Šैxड) चन ु ु लेती है। Rयामा और गोपाल जी का सBबध भी भौ$तकता के कारण >था$य9व नहं पा पाता है य,.क वासना के कारण Rयामा उनसे जड़ ु नहं पाती। #ारBभ म #ो. गोपाल जी के सा$न^य म आने पर वह उनका आदर करती है । साथ ह उनके #$त एक आकष;ण भी बनाये रखती है । गोपाल जी का >नेह Rयामा के #$त वासनामय है यह कारण है .क एक दन उसने घर के सभी सद>य, को बाहर भ◌ोज कर, Rयामा के आने ् क" #तीTा करता रहा, और उसके आने पर -‘‘Xखड़.कयाँ दरवाजे बद करके उह,ने अध◌ोरा कर रखा ् था। उसके अदर पहचते ह उह,ने Nबना .कसी भJमका के उसे बाह, म लेकर अपने ह,ठ उसके होठ, पर ू ुँ रख दए। उसके साथ ह उह,ने चे%टा क" उसे अदर के कमरे म ले जाने क"।'' इस घटना ने Rयामा को 71

गोपाल जी से )वलग कर दया। ‘मनोवै4ा$नकता के आधार पर' ‘अतराल' म कई प7रवार टटते ह=, जड़कर भी एक दसरे ू ु ू के #$त आपस म घटते )पसते रहते है। य]य)प इन सBबध, को कोई नाम नहं दया जाता ले.कन यह सOम ु ू अ$तसूOम होते ह।= मानव केवल वासना ह नहं चाहता, वासना के अ$त7र त भी उह िजदगी म कई अहम चीज, क" आवRयकता होती है और ऐसे सBबध, के अभाव म जो मनोवै4ा$नक होते है न जड़ ु पाने से यि त अदर ह अदर टटता रहता है । ू कमार िजसका यवहार कई अवसर, पर वासनामय हो उठता है , इसके अ$त7र त उससे कछ ु ु और भी क" अJभलाषा रहती है और जब ‘यह कछ ु ' यि त #ा`त नहं कर पाता तो उसक" यि तगत िजदगी Nबखर जाती है और यह #>फटन $नरतर चलता रहता है -‘‘शार7रक आकष;ण से हटकर एक और ु आकष;ण होता है, यि त का चBब ु क"य आकष;ण जो शार7रक आकष;ण से ह कहं अ6धक मन को खींचता है।'' स>ते दाम, पर Jमलने वाले >Mी सBबध, से उसे )वत%णा हो गई थी। कमार अपने को ु ृ 72

कभी धोखे म नहं रखना चाहता और ऐसे सBबध, से अलग हो जाना वह उ6चत समझता है-‘‘पर यह िजदगी जानवर, से बदतर नहं .क िजसे आदमी नफरत करे , उसके साथ रात- दन एक घर म Hधा रहे ? िजसके शरर क" गध तक से जी Jमतलाए, उसके साथ एक Nब>तर म सोने का नाटक करे ।'' इसी 73

तरह Rयामा भी जो कछ से पाना चाहती है। इसी खोज म ु दे व से पाने म असमथ; रहती है वह कमार ु भटकती .फरती है। वह >वयं सोचती है -‘‘कमार से वह या चाहती थी ? उस रात क" #तीTा म जो चाह ु मन म थी, या सचमच ु बस उतना ह ? उतना तो दे व ने भी उसे दया था। चाहती तो दे व के अ$त7र त .कसी से भी उसे Jमल सकता था। #ोफेसर मलहोMा ने .कतनी याचना के साथ वह चाहा था और कमार ु ने भी एक बार उससे झपट लेने क" कोJशश क" थी, तब वह दोन, म से .कसी के साथ भी अपने को उस सBबध म दे खने के Jलए तैयार नहं हो सक" थी। कछ ु था जो उसे उसके अ$त7र त भी चा हए था और िजसे दे ने का #>ताव उन दोन, म से .कसी ने नहं .कया था।'' ये टूटे -Nबखरे सBबध इतने सOम ह= .क ू 74

मानव इह कोई नाम नहं दे सकता है और इनको पाने म $नरतर लगा रहता है यह सच है आदमी भी

सBबध, से कोरा नहं होता। .फर भी कछ ु )वघ टत सBबध, को सBबध मानने से डरता जHर रहता है । मानव जीवन म अनेक दब; भर पड़ी ह।= भख है ु लताएं एवं )वक$तयां ू के समान भोग भी एक मल ू #वि9त ृ ृ और ऊपर से अ9य6धक सरल सKजन एवं सदाचार दखलाई पड़ने वाले यि त के भीतर भी नार Hप के #$त बड़ी उ9कxठा होती है । >Mी-पHष का आकष;ण 6चरं तन है और यह एक दसरे ु ू क" सबसे बड़ी दब; ु लता है जो पा7रवा7रक )वघटन का Hप लेती है , ‘अतराल' म इसी अनाम सBबध, के Nबखराव को मनोवै4ा$नक ढं ग से मोहन राकेश जी ने 6चMण .कया है । मानव सBबध, म पया;`त प7रवत;न समाज क" Hपरे खा बदल रहा है । ‘अतराल'

म2 आधPनक सामािजक प रBेQय म2 ु

बदलते ी-प ष सबध ु आज का समाज #ग$त कर रहा है या पाRचा9य #भाव म आया है , #ग$तशील हो रहा है पराने मIय, और ु ू H ढ़य, का खxडन हो रहा है , और समाज म नये मIय ू टक रहे ह।= समाज $छन-Jभन हो रहा है । समाज और यि त Jभन-Jभन हो गए ह।= मानव ने समाज को छोड़ दया। समाज म आज नार पदा;नशीं नार नहं है, वह पHष के साथ कदम से कदम Jमलाकर काम करती है य,.क वह #ेमचंद ु यगीन >Mी नहं है जो अपनी चारदवार म बद हो बिIक यह आ9म$नभ;र रहने वाल नार है , और ु अपने बारे म सोचने तथा $नण;य लेने म पण; मIय टकरा रहे ह= और ू Hप से >वतंM है, इसJलए नये-पराने ु ू नार पHष के सBबध नवीन Hप म #>तत ु ु हो रहे ह= तथा सBबध, के )वघटन म आ6थ;क पी ठका मeय भJमका Jलए हए ु ू ु है । आध$नक समाज का गठन ह इस #कार का हो गया है .क #ाचीन एवं नवीन मIय, म अतराल पैदा ु ू होने से प7रवार, का )वघटन हो रहा है । #ाचीन लोग अपने धम; का ढोल पीट रहे ह= और नई पीढ़ उनके #$त )वोह कर रह है नई पीढ़ धम;, समाज, H ढ़ का )वोह कर रह है । और परानी पीढ़ नए लोग, क" ु Zाित को दबाना चाहती है । यह कारण है .क ळमदमतंजपवद ळं च क" एक )वशाल सम>या खड़ी हो गई है । ज◌ीम वसकमत हमदमतंजपवदे हतमंजमेज बवदबमउ पद ◌ंसस पजे कवउहे पे जव ◌ंअवपक ◌ेबद ं कंसण ् ् ज◌ी◌ं ् ज पे कवदम इल चतमेमदजपदह ◌ं तमेचमबजंइसम .बं◌ंकमण ् ठनज जीम लवनदहमत हमदमतंजपवद पे 0तंदाए ◌ंदक वनज ◌ेचवामदण ् द .बंज जीमतम पे ◌ं जमदकमदबल जव हसवतपल ◌ू◌ी◌ंजे पे बवदबमतदमक ◌ूतवदह इल जीम मेजंइसपे◌ीउमदज1ष ् यवक, का अपने बजगd ु ु ु के #$त कोई मान नहं रहा है समाज के 75

$नयम, का पालन नहं होता है । वह एक तरह से समाज से कट गया है । मानव के यवहार आचरण और नै$तकता म प7रवत;न आ गया है । अ<ज अपने छोट, पर आ6aत ह=, अतः उसका सहमा सा रहना >वाभा)वक है । समाज म आमल ू प7रवत;न हआ ू प7रवत;न क" ओर ु है। य द समाज के इस आमल

$न%पT ?ि%ट से दे खा जाए तो यह $न%कष; $नकलता है .क समाज का यह प7रवत;न )वकास क" कड़ी के कारण हआ ु है । ‘अतराल' उपयास म #ाचीन और नवीन मIय, के टकराव के कारण सBबध )वघ टत हए ू ु ह।= सीमा के सदभ; को दे ख तो - वह एक आध$नक शोख $ततल है , वह ‘सोसाइट गल;' है । ‘सोसाइट गल;' का ु फैशन समाज म नया नहं है । यह #ाचीन वेRयाओं का नया नाम है । #ाचीन समय म इह नगर बधुओं क" भी सं4ा द जाती थी। सीमा अपनी माँ का पोषण करती है उसके कई ‘बा◌ॅयŠैxड' ह= जो केवल मनोरं जन माM के Jलए ह।= सीमा उन ि>Mय, का #$त$न6ध9व करती है जो आ9म$नभ;र ह= और बा◌ॅयŠैxड रखना गव; मानती ह।= सीमा उन ि>Mय, का #तीक है जो अपने अ<ज, के #$त कोई )वशेष मान नहं रखती ह= इससे सBबध, म फटन हो रह है - इस बात क" पि%ट >वयं सीमा के कथन से होती ू ु है । वह माँ के बारे म कहती ह= ‘‘पहले वे बड़बड़ाया करती थीं, अब समझ गई ह= .क मझे ु Kयादा तंग करे गी, तो म= उनके साथ नहं रहगी। यह चीज है िजससे वह डरती है । म= रात व रात दे र सबेर जब भी ूँ आऊं, िजसके साथ भी जाऊं, अब उनक" नींद नहं टटती। '' सीमा उस अ9याध$नक वग; क" नार है जो ू ु 76

वज;नाओं को >वीकार नहं करती और Šकल माँ भाभी के सामने शराब आ द नशील चीज, का यसन = करने म नहं हचकती इस बता;व ने उसे भाभी से अलग भी कर दया। ‘अतराल' म Rयामा के च7रM को दे खकर भी कह सकते ह= .क इन नै$तक मIय, के बदलने से उसके ू प7रवार का >खलन हआ है और आ9म$नभ;र है । अगर #ाचीन समाज क" ु ु है। Rयामा )वधवा यवती )वधवा Rयामा होती, तो उसे घXणत ?ि%ट से दे खा जाता, घमने .फरने क" >वmछं दता नहं होती। उसक" ू ृ ओर कोई सहानभ$त ु ू क" ?ि%ट से नहं दे खता कोई `यार का #>ताव रखता, यह तो दरू क" कौड़ी थी। इसके )वपरत प7रवार से अलग रहने पर तथा नौकर एवं आ9म$नभ;रता ने उसे समाज म एक नया सBमान दलाया। अगर वह कमार से शाद भी करती तो समाज क" ओर से कोई Hकावट नहं होती। ु समाज के इन कई नै$तक मIय, के )वकास ने प7रवार, को सफलता का नया Hप दया है । अब )वधवा ू )ववाह पर कोई रोकथाम नहं है । इसके अ$त7र त एक और पाM है, वह है कमार क" प9नी। वह कमार के साथ समझौते के तौर पर शाद ु ु करती है न $नभने पर वह अपने घर वापस लौट जाती है । #ाचीन समाज म िजस यि त से नार शाद करती थी, उसी के साथ बंधी रहती थी, चाहे उसक" इmछा हो या अ$नmछा। परं तु आज क" नार >वतंM है । वह अपना माग; >वयं ढढ ूँ लेती है । इसJलये ‘अंधेरे बद कमरे ' क" नीJलमा ठsक ह कहती है। उसके अनसार - ‘‘.कसी भी यि त के साथ बंधकर उसके शासन म रहना मझे ु ु बहत ु ु गलत लगता था और तम मझे ु जानते हो .क हर पyष ु .कसी न .कसी yप म >Mी पर शासन करना चाहता है । म= सोचती हूँ .क म= एक अपवाद बन सकती ह।ूँ पyष, के शासन से बचकर उह अपने शासन म रख सकती हूँ ...... म= ु आ6थ;क Hप से .कसी पर $नभ;र नहं रहना चाहती थी। इसJलये मने = आ6थ;क >वतMता #ा`त क", अकेल रहना और खद ु अपने के Jलये कमाना सीखा।'' अब नार अपने अ6धकार, के #$त सचेत हो गई 77

है । नै$तकता के सBबध म धारणाय बदलती जा रह ह।= इसके अ$त7र त ‘अतराल' #ो. मIहोMा और

Rयामा Jमस रोहतगी तथा #ो. मलहोMा एवं लेडी डा◌ॅ. वMा तथा डा◌ॅ. दबे ू के नै$तक सBबध, के Nबखराव क" भी दा>तान कहता है य,.क यहाँ पराने और नये मIय ु ू नै$तकता के बारे म बदलते जा रहे ह= इनके पीछे मIय, के प7रवत;न, का )वकास है । य द कहं कछ आयी ह= तो इसके पीछे आध$नक JशTा ू ु ु ु बराइयाँ #णाल का दोष है । ‘पyष म प7रवत;न के कारण प7रवार, म ु और नार के यौन सBबधी' नै$तक मIय, ू )वलगाव हो रहा है । समाज #ग$त कर रहा है मानव JशuTत होने के साथ-साथ अ9याध$नक बनता जा ु रहा है । यौन सम>या िजसका केवल )ववा हत वग; ह )वRलेषण कर सकते थे, आज जनसाधारण क" सम>या बन गई है । आज यौन नै$तकता पढ़े Jलखे समाज म Hढ़ नहं रह है । पहले )ववाह एक ऐसी यव>था थी जो एक नार-पyष ु से सBबध रखती थी। ले.कन आज ‘सै स मौरे Jलट' का उIलघंन हो रहा है । आज च.क ँ ू यि त का समाज से सBबध कट गया है इसJलये यि त >वतM है । यह कारण है .क यौन सBबध, म H ढ़ नहं रह है। यहाँ तक .क बहत जीवन भर कमार रहकर अपने ु ु ु सी यव$तयां यौन सBबध, म >वतंM रहती ह।= यह >वतMता भल समझी जाये या बर ु , इस )ववाद के बारे म अ6धक 6चंतन नहं हआ ु है। न ह इस )वषय म अ6धक सोचने क" आवRयकता है, य,.क प7रवार और यि त का सBबध भी टट ू रहा है । यहाँ तक .क प$त-प9नी के सBबध, म दरार पैदा हो गई है , इसके अनेक मनोवै4ा$नक कारण हो सकते ह= ले.कन तcय सदै व यह रहा है .क यौन-सBबध शार7रक आवRयकता पर टके हये यग ु ु म #ाचीन यव>था के )वHh Zांित और )वोह के >वर ु ह।= आध$नक सनाई दे ते ह= इसम आध$नक #कार क" JशTा का भी बड़ा हाथ है । ु ु डवतम ◌ंदक उवतम लवनदह चमवचसम ◌ंतम तमइमससपदह ◌ंहंपदे ज ◌ंहम वसक अंसनमेए ◌ेमग कतनहेए ◌ंदक दवद तमसमहपवद ◌ंतम जीम 2 छश ् जीपदहे जीमल इमसपअम जीमल ◌ंतम पह4जपदह ◌ंहंपदे ज जीम म◌े् जंइसपे◌ीउमदज तपककसमक ◌ूपजी ◌ीलचवबतपेल ◌ंदक बवततनचजपवद1ष ्

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ज टल जीवन होने के साथ-साथ जीवन के मIय, के साथ संगत वहं >था)पत हो पाती है । )वशेषकर ू >वतMता के पRचात दो दशक, म िजस पीढ़ ने जम Jलया है । उसने चत द; ु क प7रवेश म खोखला जीवन, झठs ू आ>था, धम; का पाखxड, अनाचार और D%टाचार राजनी$तक नेता तथा D%टाचार और त>कर के वातावरण को खल ु आँख, से दे खा है उसक" अं<ेज, के #$त ahा डांवाडोल हो उठs है । गHजन, के झठ के #$त )वत%णा ँू और पापाचार पण; ु ू जीवन को नंगे Hप म दे खने के कारण #ाचीन मIय, ू ृ हो गई है । यह कारण है .क यौन सBबध, म भी औ6च9य अनौ6च9य, )ववेक और अनेक आदशd का अभाव खटकता है। परानी पीढ़ के उपदे श दे ने का अ6धकार $छन गया है। प7रणामतः अनशासनहनता ु ु पनपने लगी है । ‘अतराल' म यौन सBबधी सम>त आध$नक )वचार धाराय >प%ट क" गई ह= िजसके कारण प$त-प9नी ु या >Mी पyष, म तनाव उभरता है । या यूँ कहा जाये .क सम>त उपयास ह यौन सम>या पर ह ु आधा7रत है । सBबध, के )वघटन क" #मख को िजस चीज क" #ाि`त लता से ु सम>या यह है । कमार ु नहं हई वह Rयामा से करना चाहता है , य]य)प लता ने उसके समT एक खला ु पना रखा ृ ु उसक" ति`त था। और Rयामा एक )वधवा >Mी है वह जवान है उसका )ववा हत जीवन सखी ु नहं था। Rयामा के

अनसार वह कछ कर चला गया। मनो)व4ान के अनसार यह ु ु ु ु साल रहने के Jलये उसके साथ गजार >वाभा)वक है .क वह पर पyष ु क" ओर आक%ट ृ हो जाये। जो चीज वह अपने प$तदे व से नहं पा सक" उसको पाने क" अJभलाषा वह कमार से करती है। मxडी म जब वह कमार को दशहरे क" छ l ु टयाँ एक ु ु साथ Nबताने का $नमMण Jलखती है उस समय उसके संयम और सं>क$त ू चका ु था, जो ृ का बं◌ाध टट वह >वयं कमार से इस #कार कहती है ु ‘‘मने = तBह = उन दन, तBह ु  बताया था, मने ु  पM Jलखा था अपने यहाँ आने के Jलये। तब मेरे मन म कोई Hकावट नहं थी उस दन तम = अपने को बचाने का कछ ु आये होते तो सBभव था कछ ु भी हो जाता। मने ु भी #य9न न .कया होता .......। जो सं>कार मन को रोकता था, वह तब तक टट ू चका ु था।'' यौन 79

सBबध, क" ति%ट शरर तक रहने से यि तय, म और भी एक अनाम आकष;ण क" जHरत रहती है ु और जब वह #ा`त नहं हो पाता तब सBबध )वघ टत हो जाते ह= - कमार का अपनी अनाम प9नी के ु #$त संबंध इसीJलये टटे केवल इतना ह ू । ‘‘मझे ु उससे Jसवाय शरर के कछ ु ु नहं Jमला। उसे भी मझसे Jमला होगा। केवल भरोसे के साथ-साथ जीवन वह शायद ढो सकती थी। मझसे नहं ढोया गया।'' ु

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सम>त उपयास म Rयामा के शार7रक आकांTाओं के टटने क" कहानी ह दखाई पड़ती है, और यौन ू सBबधी ?ि%टकोण, म वह अ सर दोहर मनःि>थ$त म पाई जाती है । यह सामािजक और सां>क$तक ृ #था आज यM यव>था का Jशकार बन गई है, िजस समाज म यह परBपरा यग ु से चल आ रह थी, आज खिxडत हो रह है। ‘आ6थ;क आधार पर आ6aत रहने' से जो सBबध ि>थर थे। वह आज के यग ँ ू मानव ु म टट ू रहे ह=, च.क समाज से कट गया है यि त और प7रवार का सBबध कट गया है यह कारण है .क प7रवार, का ढाँचा $छन-Jभन हो गया है । समाज क" यह सम>या बहत ु ज टल है । समाज म यि तवाद का बोलबाला है । अ<ज और अनज, ु म आपस का `यार केवल पैसे पर टका है । समाज म अलगाव क" सम>या या है ? इसका उ9तर य, होगा - ‘मIय, ' क" )वसंग$त' क" सम>या। आज के सBबध केवल आ6थ;क आधार ू पर बने हये ु ह।= माँ-बेटे का सBबध, भाई-बहन का सBबध पैस, पर ह टका है । ‘अतराल' उपयास म आ6थ;क सBबध अ9यंत ह गौण मह9व Jलये ह= तथा)प यह दे व के सBपण; ू प7रवार का 6चM #>तत ु करता है। ‘अंतराल' म Rयामा और दे व के प7रवार का सBबध केवल पैस, पर ह

टका है। दे व क" म9य ु ) Rयामा, सीमा और बीजी का उ9तरदा$य9व लेती ृ ु के पRचात (दे व क" इmछानसार है । उनका सBबध केवल पैस, का ह सBबध है । बीजी जो हमेशा Rयामा से घणा ृ करती है। उसके Jसर पर सवार रहती है ले.कन ‘‘qलैट और उसक" नौकर ये दो बात थीं िजह लेकर बीजी उसके सामने छोट पड़ जाती थी।'' पैस, के अ$त7र त न ह सीमा और बीजी को Rयामा से लगाव था और न ह Rयामा को 81

उनसे। Rयामा एक उ9तरदा$य9व $नभा रह थी। आ6थ;क आधार पर टका दसरा सBबध सीमा और बीजी का है । यह सच है .क बीजी को सीमा के पैस, ू क" आवRयकता न होती तो सBभवतः सीमा कभी का बीजी को छोड़कर गIज; हो>टल म चल गई होती

और न ह बीजी सीमा से इस #कार दबती। सीमा और Rयामा का बीजी से सBबध केवल पैस, का सBबध है , िजसे सीमा >वयं >वीकार करती है ‘‘जHरत पड़ने पर म= यहाँ से छोड़कर गIज; हो>टल म जा सकती हूँ ले.कन सवाल ममी का है । न तम ु तो अकेल उह सपोट; कर सकती हो, न म= ह। इसJलये बेहतर सबके साथ रहने म है ।''

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Rयामा को दे व के प7रवार के साथ कोई >नेह या लगाव नहं है अगर पैस, क" बात न होती तो $नRचय ह उनके सBबध टट है .क Rयामा को .कतनी परे शानी उठानी पड़ती है ता.क वह ू गये होते यह बात दसर ू सीमा और बीजी को पैसे भ◌ोज सके। अपनी ओर से वह हर कोJशश करती है .क वह उनसे सBबध ् बढ़ाये अपना 7रRता पैस, तक ह सीJमत न रखे यह कारण है .क वह बीजी क" साझेदार म qलैट बBबई म खरदती है उस साझेदार म वह अपनी तमाम पजी ँू लटा ु दे ती है ले.कन दभा; ु Lयवश बीजी और सीमा उसका 7रRता पैस, से बढ़कर नहं मानती। फल>वHप Rयामा को पनः ु मxडी लौट आने क" बात सोचनी पड़ती है । धन आज के समाज क" धर ु बन गया। इस धर ु का आकष;ण इतना #भावशाल है .क कोई भी इससे #भाव मु त नहं रह सकता। मानव के सभी सBबध इसी धर ु के आधार पर बने हये ु ह= यहाँ तक .क #ेम जैसा प)वM भाव भी इसके #भाव से मु त नहं रह पाता है। ‘अतराल' भी इसका अपवाद नहं है । आज समाज म मeय सा^य अथ; क" #ाि`त है चाहे साधन .कतने ह $नBन य, न अपनाने पड़, यह ु कारण है .क नै$तकता धीरे -धीरे ल`त ु होती जा रह है और धन पर टके सBबध केवल सहने के सBबध बन जाते ह=, िजह )ववशता के साथ फैलना पड़ता है य,.क सBबध अ सर भावना से जड़े ु होते ह= और जब भावनाओं क" आ6थ;क सBबध, से टकराहट होती है तो पा7रवा7रक यव>था $छन Jभन हो जाते ह।= ‘जीवन म दरार पड़ने' से भी सBबध, का )वभाजन हो जाता है । आज के जीवन क" यव>था कछ ु इस #कार क" हो गई है .क न चाहते हये ु भी उसके सBबध, म दरार पड़ जाती है , य,.क वह यि तवाद हो गया है। उसके Jलये समाज का कोई मह9व नहं है । वैयि तकता के कारण ह वह अतम;ख ु ी बनता जाता है। उसके यि त9व का प7रवेश उस तक ह सीJमत रहता है , दे खा जाये तो वह एक #कार से समाज से कट चका ु है। उसके Jलये समाज नाम माM क" व>तु है , जो प$त-प9नी के सBबध )वmछे द,, बाप-बेटे का Nबछड़ना तथा सBबध, म कटता ु ु के Hप म आती है । जब सBबध, म Jश6थलता होती है तो उसे जीवन का समHप माना जा सकता है , ले.कन जब सतह दरक जाती है तो दरार, के पड़ने के कारण उसे )वषम जीवन क" सं4ा द जा सकती है । दरार दो कारण, से यि त को अलग-अलग कर दे ती है । दरार पड़ने का कारण $नतात वैयि तक ह होता है । यि त का समाज से सBबध टट ू जाने के बाद वह अपने प7रवेश तक सीJमत रह जाता है और प7रवेश से टटने ू के पRचात $नतांत अपने वैयि तक Hप म रह जाता है। ऐसे यि त अतम;ख ु ी बन जाते ह=, और उनका

अहं समायोजन करने म बाधक Jसh होता है । सBबध, म दरार पड़ना यह Jसh करता है .क मनोवै4ा$नक Hप म कहं पर कोई कxठा काम करती है यह कxठा दो Hप, म #कट होती है ु ु 1. काम मलक कxठा। ू ु 2. अथ; मलक कxठा। ू ु ‘अतराल' म Rयामा और दे व के बीच क" दरार काम मलक कxठा के आधार पर है, य,.क दे व का ू ु आचार, यवहार Rयामा के #$त दो #ेJमय, का यवहार नहं माना जा सकता। दे व Rयामा को एक व>तु के Hप म #ा`त करता है और शार7रक भख ू Jमटाने का साधन समझता है, उसे Rयामा क" भावना समझने क" 6चता नहं है । Rयामा के #$त उसका यवहार तट>थता Jलये हये ु है। शाद क" #थम राNM से ह उसका यह मनोभाव Rयामा और दे व के बीच दरार पैदा करता है। Rयामा ‘सै स' के Hप म अत`त ृ रहती है। वह दे व से वह सब कछ का {दय >पिदत होता है। ु ु न पा सक", िजन भावनाओं से एक यवती दे व ने Rयामा को #ेम नहं दया और न ह Rयामा ने शरर के साथ-साथ आ9मा का समप;ण ह .कया है इस #कार प$त-प9नी के बीच पहले दरार पैदा क" और .फर बहत ु बड़ा अतराल पैदा कर दया। यह अतराल इतना )वकराल Hप धारण कर लेता है .क दे व क" म9य ृ ु के पRचात भी Rयामा को उससे Jशकायत रहती है। अपनी िजदगी क" तबाह के Jलये वह दे व को ह दोषी ठहराती है , जब.क सBबध, म दरार पड़ने का कारण >वयं Rयामा भी है । ‘अतराल' म दसरा सBबध जो काम मलक कxठा पर टका हआ और उसक" प9नी ू ू ु ु ु है , वह है कमार का। कमार के जीवन म लता एक काम मलक कxठा के बीज बो दे ती है । बाद म कमार एक अय >Mी से ू ु ु ु )ववाह भी करता है , ले.कन कमार को अपनी प9नी से वह `यार नहं Jमलता है , िजसक" उसने कामना ु क" थी। इसी कारण प$त-प9नी म दरार पड़ जाती है और वह अलग रहने के Jलये )ववश हो जाते ह।= अपने सBबध, म दरार पड़ने का कारण कमार >वयं इस #कार य त करता है ‘‘और जो था, वह था ु केवल एक डर। बात अपने तक रहे .कसी को पता न चले। िजतना सड़ना है , अदर ह अदर सड़ो। जो जहर चखना है अदर ह अदर चखो उसी सड़ांध और जहर से बmचे पैदा करो और उह भी उसी ढं ग से जीने क" JशTा दो। अपनी >वाभा)वकता के साथ )वRवासघात करो और ऐसा करने क" परBपरा को बनाये रखो। िजनसे $नभना है, $नभ जाता है , मझसे नहं $नभ सका।'' इसी न $नभने के कारण उनके ु 83

सBबध, म दरार पड़ गई। कमार क" प9नी ने भी शाद केवल उसी उzदे Rय से क" थी ता.क वह अपने ु #ेमी को (िजसने उसे ठकराया था) नीचा दखा सके। दे खने से तो ऐसा ह #तीत होता है .क उनके ु सBबध, म #ेम लेश माM नहं था। केवल एक कNMमता थी जो उनके सBबध, म )वभाजन ()वघ टत) ृ होने का कारण बनी।

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