क वता सं ह
जबाला -सीमा सचदे व जबाला म
ी राधा -कृ ण के अमर
एक अित लघु क
ी कृ ण
यास है |जब
ेम को य
करने का
ी राधा जी को पता चलता है
ज छोड़ कर मथुरा जाने वाले है तो तो वह
याकुल हो उठती है | इसी का वणन इस क वता के मा यम से कया गया है |यह पाँच भाग म वभ
है :-
१. ाथना २ याकुल मन ३.श
व पणी राधा
४. दे व
तुित
५.राधा-कृ ण संवाद ********************************************** जबाला १. ाथना वािमनी मेर म
ी रािधका
जरानी क दास
पावन चरणन म
ीित रख
लेकर के अटल व ास ी बहार जी क और
ेरणा
या दशन क आस
करती हँू कर जो र के तु ह बार-बार मेरे
दय को तृ
णाम
करो
पावन है तु हारो नाम भव सागर से तर जाऊं म गाऊं म आठ याम तेरा नाम सुिमर पाऊं
ी रािधका
ी कृ ण पद धाम
यह आशा इस मन क है गुण-गान तेरा गाते-गाते जीवन को सफल बनाऊं म इस दिनया से जाते-जाते ु
म नह ं का बल ले कन फर भी चाहती हँू कुछ तो काम क ँ
है सोच-सोच कर दे ख िलया य न म तेरा
यान ध ं
ह श द नह ं ले कन फर भी म तेरा ह गुण-गान क ँ जो थाह िमले तेरे चरणन क फर
य म चार धाम क ँ
माँ मुझे इतनी स
बु
दे
तेरे नाम का म गुण-गान क ँ ये भाव
दय के बहा करके
इस जीवन का क याण क ं *************** २ याकुल मन स ख याकुल आज मेरा मन य चैन कह ं नह ं पाता है ? तड़प-तड़प कर
दय यह,
जैसे बाहर को आता है | ह फरक रहे दा हने अंग
य ?
अमंगल संकेत कराते ह | यह ने
मेरे अ ु जल से,
य बार-बार भर जाते ह ?
य ?
मेरा रोम-रोम
य काँप रहा ?
वाला
दय म धधक रह |
दशन क
यासी यह आँख,
य बार-बार य छलक रह ं ? कह ं फर न ह संकट म
यतम,
यह बार-बार दल गाता है | हे गौर माँ हो र क तुम , तू जाग-जननी श
माता है |
हे िशव शंकर तुम सदा िशव हो, कुछ मेरा भी क याण करो | का हा का बाल न बांका हो, चाहे मेरे ह तुम
ाण हरो |
हे
करता,
सुनो सृ
हे भा य वधाता दख ु हरता | अपना यह नाम साकार करो, मेरे
ाण- य का उधार करो |
हे गणपित बाबा जगनआनंदन, करती हँू तेरा अिभनंदन | दे खो यह मेरा क ण
दन,
ज द काटो हमरे बंधन | हे राम भ
बजरं ग बली,
दे खो अब मेर जान चली | दे दो तुम ऐसी संजीवन, हो जाए हमारा मधुर िमलन | लिलते, तुम भी
य खड़ मौन,
कहो लाई हो संदेस कौन ? कहो कौन सा दे व मनाऊं म? अपने
यतम को बचाऊं म |
मुख मंडल तेरा उदास लग रह है मुझे िनरास
य? य?
स ख रािधके न हो तू अधीर, कर सकते ह
या हम अह र |
सुनती हँू म यह दरू -दरू,
मथुरा से आया है अ ू र | का हा को ले जाने मथुरा, बहाना उसका है साफ सुथरा | जसुदा का सुत नह ं है िगरधर, कहा रख कर जान हथेली पर | वासुदेव छोड़ गये थे का हा, ले गये उठा नंद क क या | अब कंस कृ ण को बुलाता है , वह धनुष य वहाँ द ु
करवाता है |
रपु ललकारे गा,
धोखे से कृ ण को मारे गा | नह ं,नह ं करती हई ु कान बंद, बोली राधा हो कर उ ं ड | का हा जो मथुरा जाएगा, सृ
म
लय मच जाएगा
************** ३.श व पणी राधा सुनो
ा व णु औ महे श
गंधव मुिन क नर औ शेष हे गौर च ड काली श
,
क मैने जो जीवन म भ उस बल पर म पुकारती हँू
रपु कंस को म ललकारती हँू
का हा से
ेम कया है तो
जीवन भर उसे िनभाऊंगी ण करती हँू यह कंस को म
मा ं गी या मार जाऊंगी
का हा जो नह रह पाएगा सृ
म न कोई बच पाएगा
म भयंकर
लय मचा दँ ग ू ी
दिनया को कर ु
वाह दँ ग ू ी
राधा ने ये जो श द बोले िशवजी ने तीन ने सृ
खोले
म हाहाकार हआ ु
भयभीत सारा संसार हआ ु तूफान उठे बजली कड़क
जलधारा उ ट बह िनकली लोक म हआ कंपन ु
भयभीत हए ु सब दे वगन
िशवजी से करने लगे पुकार सृ
का कह ं न हो संहार
हे
पता सृ
र ा करो सृ
पालक क मिलक
हे व णु जग पालन करता हे क णा िनिध हे दख ु हरता अपना यह
प साकार करो
लोक का उ ार करो सब लगे सोचने दे वगन गंधव मुिन नर औ क नर साधारण नह ं है ये नार सृ
जसके स मुख हार
इस सृ
का वनाश होगा
ा के सृजन का नाश होगा कोई भी नह ं बच पाएगा केवल शू य रह जाएगा रोका नह ं तो अनुिचत होगा संहार रोकना उिचत होगा कसक
ह मत जो जा के कहे
माँ धैय धरे और शांत रहे ह कृ ण नह ं साधारण जन फर
य अ थर है माँ का मन
माँ से ह तो जग पलता है
उसको वनाश कब फलता है िगरधर तो सब का यारा है वह कहाँ कसी से हारा है या कंस कृ ण का बगाड़े गा िन य ह अहम वश हारे गा या भूल गई ह
जरानी
ी कृ ण क इतनी कुबानी मुरली क सुन के मधुर धुन हो जाते ह
ेलोक मगन
िग रराज उठा जो सकता है कौन उसके स मुख टकता है सेवा म जसक शेषनाग पी थी जसने दो बार आग वष का जस पर न उ टे द ु
भाव हआ ु
का उ ार कया
जसने इतने दानव तारे
भेजे जो कंस ने वो सब मारे म
ज वाल का दरू कया
अिभमान इं दर का चूर कया नाथ कर के शेषनाग काला वष मु
यमुना को कर डाला
गया माया का
भाव फैल
ू ताले खुल गई जेल टटे
मथुरा से आ गये गोकुल हई ु न ज़रा सी भी हलचल नारायण ह वे
ी कृ ण
जागपालक ह वे दख ु हरते ह वे
सुख करते ह वे िशव,
ी कृ ण ी कृ ण ी कृ ण
ा, व णु वचार कर
ी कृ ण क
य न पुकार कर
यह लीला उनक वह जान
ी कृ ण से ह राधा माने जगजननी माँ
ी राधा को
ी कृ ण ह सबसे यारे ह लीलाधार क लीला के खेल अदभुत और
यारे ह
सब दे वता याम
तुित गाते
कर के पद कमल क सेवा ी कृ ण गो वंद हारे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ******************** ४.दे व
तुित
जय कृ ण कृ ण जय जय गोपाल जय िगरधार जय नंदलाल जय कृ ण
है या मुरलीधर
जय राधा व लभ जय नटवर जै बंसी बजैया मन मोहन हम आए ह तेर शरणम जय जय गो वंद जय जय गोपाल जै रास रचैया द ं दयाल जय जय माधव जय मुरलीधर हम आए तेरे दर नटवर जय रिसके र जै जै घन याम हे मन भावन हे सुंदर याम जय
जे र जय जय िगरधर
करपा करो वृंदावने र जय जय माधव जय मधुसूदन जय दामोदर जय पु षो म जय नारायण जय वासुदेव जय व
प जय जय केशव
जय स य हर जय नारायण जय व णु केशव जनादन
जय कृ ण क है या द ं दयाल जय मुरली मनोहर जय गोपाल जन जीवन का उ ार करो सब क
हरो सब क
हरो
धरती को पाप मु
करने
आए द ु खय के क
हरने
कर हाथ जो र कर िनवेदन राधा का कोप न बने व न **************** ५.राधा-कृ ण स वा राधा-कृ ण संवाद सुनी दे व क जो क ण पुकार हई ु कृ ण क जब दे खी उ
भी अपार प राधा
का हा ने यह िनणय साधा कसी तरह राधा को मनाऊँ म अपना
व प बताऊं म
का हा ने मन म वचार कया चतुभुज
प साकार कया
राधा ने दे खा जो स मुख का हा को दे ख के हई ु च कत िगर कर के राधा चरण पर रो-रो कर कहती, हे नटवर राधा क सौगंध है तुमको मथुरा न जाओ तजकर हमको बन तेरे जी न पाएँगे तु ह बन दे खे मार जाएँगे अधूर है तुम बन यह राधा इस िलए मैने िनणय साधा जो मधुपुर को तुम जाओगे
जंदा न मुझे फर पाओगे म
ाण याग दँ ग ू ी का हा
रहे गा तुम पर यह उलाहना इक कहो िगरा
ेम द वानी मौन हई ु
ेम म ग़लती कौन हई ु ? जरानी का अ ज ु ल
धुल गये का हा के चरण-कमल हाथ से उसे उठाते ह फर यार से गले लगाते ह राधा के प छते हए ु नयन
बोले का हा यह मधुर वचन तुम
य अधीर हो रह
अब
यान से मेर सुनो वनय
तुम
ेम क दे वी हो राधे
सब
ेम से ह कारज साध
फर
ठ है
य मेर
य
या
कहो,तुम बन मैने कया है राधे तुम मेर श तुम ह मेर भ
या?
हो हो
अधूरा है तेरे बना कृ ण तुम बन नह ं माने मेरा मन दो शर र और एक
ाण
करते हए ु ऐसा आिलंगन
िगर रहे राधा के अ क ु न भावुक हो गया का हा का मन कहने को नह ं कोई श द रहे कोई
या कहे ? और कैसे कहे ?
या- यतम दोनो हए ु मौन
दोन को समझाएगा कौन?
फर का हा ने तोड़ते हए ु मौन
लेकर राधा का मधुर चुंबन मैने तेर हर बात मानी
श
हो तुम मेर आ ा दनी
राधा और कृ ण कहाँ ह िभ न मोहन राधा,राधा मोहन दखने म तो हम दो ह तन पर एक है हम दोनो का मन या- यतम िमलकर हए ु एक
कहो कसक है ऐसी भा य रे ख? वो जगत- पता,वो जग-माता क णा से
दय भर जाता
दोनो कोमल दोन सुंदर बस समझे उसको मन-मं दर इक पीत वरण ,इक याम-गात छ व दे ख के मनुजनमा लजात एक टे क दोन रहे दे ख कुदरत ने भी खोया ववेक थम गई सार चंचलता क गया सूय का रथ चलता दोन ह बस आिलंगनब कृ ित भी हो गई वो क ण
त ध
दय,वो भावुक मन
नयन म भरे हए ु न ु अ क
नह ं अलग हो रहे उनके तन जल रहे बस
वाला म शीट बदन
ेम है उनके नयन म
उनके तन म,उनके मन म दय क हर धड़कन म और बार-बार आिलंगन म सब कहने क है उनक आशा पर यार क होती है कब भाषा भाषा है यार क आँख म बस
ेमी ह समझ लाख म
मूक है आँख क भाषा
कह दे ती मन क अिभलाषा यार क भाषा के अ क ु न पढ़ सकते जसको
ेमीजन
दे ख के उन आँख क चमक हो जाते उनम म न
यतम
बस आँसू उनको ख़टकते ह िनस दन जो बरसते रहते ह मुँह से बोला नह ं श द एक य- या फर भी हो गये एक कह द उ ह ने बात अनेक कोई भी समझ पाया न नेक घायल हो जाते ह दो दल बन बोले कैसे जाएँ िमल? बन बोले हो न सके अपने लेकर के आँख म सपने या- यतम फर अलग हए ु
और यार से ह कुछ श द कहे हो गये दोन के ने
सजल
जैसे खले ह कोई नील कमल नह ं यार के उनके कोई सीमा हो रहे भावुक
य- यतमा
राधा फर धीरे से बोली और यार भार अँ खयाँ खोली का हा,राधा हो न जाए ख़ म न जाओ मधुपुर , तु ह मेर कसम जो तुम चले जाओगे मथुरा कैसे जी पाएगी राधा? जीवन भर साथ िनभाने का कया था तुमने मुझसे वादा छू कर राधा िगरधर के चरण न भूलो अपना दया वचन दखा कर मुझको सुंदर सपने
या भूलोगे वायदे अपने? जब पकड़ा तुमने मेरा हाथ अब छोड़ चले
य मेरा साथ
मुझे याद है तेरा पहला
पश
भर दया था मन मेरे म हष तुम भूल भी जाओ पर नटवर म भूल न पाऊँगी मरकर यह यार था तु ह ं ने शु
कया
जब पहली बार तूने मुझे छुआ तेर
यार िचंगार अब िगरधर
बन गई
वाला मेरे अंदर
दन-रात ये मुझे जलाती है आँख से नीर पलाती है जब फर
ेम िनभा ह नह ं सकते ेम दखाते हो
य मोहन?
जब यार भरा दल नह ं रखते करते हो फर
य आिलंगन?
म थी जब जल भरने आई तूने लेते हए ु अंगड़ाई
पूछा था मुझे इशारे से कब बजेगी तेर शहनाई? मैने भी कहा इशारे से तू माँग मेर को अभी भर दे तब तूने अपनी माँ से कहा माँ मेर भी शाद करदे िलखी फर तूने
ेम-पाती
हम भी ह गे जीवन-साथी नह ं िमलगे फर हम िछप-िछपकर हो जाएँगे एक,अित सुंदर फर जब म जाने लगी घर ले गये तुम मुझको पकड़ भीतर ले जा के मुझे इक कोने म
मेरे नयना थे रोने म कहे थे तुमने बस इतने श द तुम रोयोगी मुझको होगा दद िलए झट से मैने आँसू प छ सुध-बुध भूली, नह ं रहा होश मुझे जब भी तूने द आवाज़ म भूल गई सब काम-काज और चली आई तज लोक-लाज़ फर छोड़ चले तुम मुझको आज य तुमने मुझे सताया था? स खय के म य बुलाया था ले-ले कर तुमने मेरा नाम कर दया मुझको सब म बदनाम म रोक सक न चाह कर भी तुम छे ड़ते थे मुझे राह पर भी म लोग म थी सकुचाती पर मन ह मन खुश हो जाती जब िमले थे मुझको कुंज गली म दिध क मटक ले के चली साथ थी मेरे सब स खयाँ फर भी न
क ं तेर अ खयाँ
आँख से मुझे बुला ह िलया नयन से तीर चला ह
दया
वह तीर लगा मेरे सीने म फर कहाँ थी राधा जीने म? सुध-बुध खोकर म िगर ह गई सब स खय से म िघर ह गई फर आए थे तुम ज द -ज द और उठा िलया अपनी गोद दय म
वाला रह धधक
इक टे क बाँध गई अपनी पलक उस भावना म हम बह ह गये
इक दजे ू के बस हो ह गये
तब भूल गई हमको स खयाँ मु का रह ं थी उनक अँ खयाँ तुम यमुना तट पर आ करके और वंशी मधुर बजा करके जब तुमने पुकारा था राधा तब तोड़ द मैने सब बाधा म आई थी तब भाग-भाग और लगा था क मत गई जाग तुम मीठ -मीठ बात से सताते थे मुझको रात म बस साथ है तेरा सुखदाई हर रात म तुझे िमलने आई मुझसे िलपट मानस पीड़ा जब कर रहे थे हम जल
ड़ा
जल रहे थे हम यमुना जल म और आग थी पानी क हलचल म कृ ित ने छे ड़ा था संगीत थी गीत बन गई अपनी
ीत
बस-बस राधे न हो भावुक न छे ड़ो वह बात नाज़ुक य भूल रह हो तुम राधा? का हा है तेरे बन आधा नार नह ं हो तुम साधारण फर
य
वचिलत है तेरा मन
राधा से िभ न कहाँ का हा फर कैसा तेरा उलाहना? दो दे ह मगर इक
ाण ह हम
य क भू पर इं सान ह हम करने पुर कुछ स य कम िलया है हमने यह मानव ज म उस कम को पूरा करना है
फर
य कंस से डरना है
ऐसा नह ं कर सकती राधा नह ं कम म बन सकती बाधा तुम याद वह अपना
प करो
और धैय धरो बस धैय धरो मेरा वादा है यह तुमसे तुम िभ न नह ं होगी मुझसे पहले तुम श
वयम को पहचानो
हो मेर यह मानो
बन श
के
या यार को
या म लड़ सकता? सवा कर सकता?
सुन राधा ने ने
कए बंद
दे खा तो पाया वह आनंद राधा तो कृ ण म समा ह गई परछाई अपनी छोड़ चली छाया भी न रह सक
बन का हा
दया उसने भी एक उलाहना वचिलत है छाया का भी मन ले िलया उसने भी एक वचन जो मुझे छोड़ कर जाओगे तुम मुरली नह ं बजाओगे मुझको अपनी मुरली दे दो तुम जाके कम पूरा करदो अब मुरली तुम जो बजाओगे मुझे नह ं अलग कर पाओगे मुरली सुन म आ जाऊंगी और कम म बाधा बन जाऊंगी अब तुम बन म
ज म रहकर
मुरली से हर सुख-दख ु कहकर मानव का कम िनभाऊंगी जाओ तुम म रह जाऊंगी मुरली को स प गये का हा
या लीला हई ु ? कोई न जाना
का हा का खेल िनराला है
कहाँ कोई समझने वाला है उसका यह पर श
प िनराला है
तो
जबाला है
************************************** संपक: सीमा सचदे व 7ए, 3रा
ास
रामाज या लेआउट माराथ ली बगलोर-37 e-mail:-
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ारा