ऋतुराज न े टी .वी . देख कर घटना को अ ंज ाम िदयाः
पुििस
ििं दवाडा (पेस की ताकत) – अमदावाद मे हुई दो बचचो की मतृयु के बाद गुरकुि बंद हो
जाने की खबर को टी.वी. पर दे खकर 14 वषीय ऋतुराज ने ििं दवाडा मे दो बचचो – रामकृ षण तथा वेदानत की हतया को अंजाम िदया – यह कहना है ििं दवाडा पुििस का।
ििं दवाडा पुििस का कहना है िक ऋतुराज का मन आशम के गुरकुि मे नहीं िग रहा
था। आशम के अनुसार धयान, पाणायाम, पढाई, साििवक खाना उसे अचिा नहीं िग रहा था। वह आशम से भाग जाना चाहता था। परनतु उसे कोई तरीका नहीं सूझ रहा था। ऋतुराज िकसी भी
तरीके से आशम के इस गुरकुि से िुटकारा पाना चाहता था। उसका ििं दवाडा के इस गुरकुि मे पवेश भी 3 जुिाई को अमदावाद के पकरण के एक सपाह बाद 10 जुिाई 2008 को हुआ था। पुििस का मानना है िक ऋतुराज की जब आशम के गुरकुि से बाहर जाने की कोई
जुगत न िडी तो उसके मन मे आया िक अमदावाद के दो बचचो की मतृयु के बाद गुरकुि बंद कर िदया गया था। यहाँ भी इस तरीके से गुरकुि बंद करवाया जाये। यही सोचकर उसने 29 जुिाई 2008 को 4 वषीय रामकृ षण को मार िदया। (10 अपैि को गुरकुि मे पवेश ििया और
उसके मात 19 िदन बाद घटना को अंजाम िदया।) पारमभ मे ययह घटना इस पकार िग रही थी िक उसकी मतृयु आकििमक हो। पुििस सूतो के अनुसार ऋतुराज ने पुििस को बताया िक जब गुरकुि बंद नहीं हुआ तो उसने 31 जुिाई 2008 को दस ू रे बचचे वेदानत की मौत को अंजाम िदया।
यहाँ पर यह बात िवशेष वणन ण योगय है िक इस पकार की घटना पहिी बार नहीं हुई –
िः वषण पूवण भी मधयपदे श के िशवपुरी से 35 िकं.मी. की दरूी पर ििथत आरोग गाँव की एक
घिटत घटना है ः- आजकि खुिेआम िदखायी जाने वािी टी.वी. ििलमो से पेरणा पा कर 16 वषीय
मनोज और 13 वषीय रामिनवास ने अपने माििक के पुत शानु का अपहरण करके उसके िपता से धन की माँग की और शानु की हतया कर दी। 17 जनवरी 2002 को शानु का मत ृ शरीर िमिा।
दोनो िकशोरो ने पुििस को आतमसमपण ण िकया और अपराध कबूि िकया। उनहोने यह िवीकार िकया िक यह पेरणा उनहे ििलम दे ख कर िमिी थी।
ऐसी ही एक और घटना 22 अपैि को आगरा से पकािशत समाचार पत दै िनक जागरण मे
िदनांक 21 अपैि 1999 को वािशंगटन (अमेिरका) मे घटी एक घटना पकािशत हुई थी। इस घटना के अनुसार िकशोर उम के दो िकूिी िवदािथय ण ो ने डे नवर (कॉिरे डो) मे दोपहर को भोजन की
आधी िुटटी के समय मे कोिंबाइन हाई िकूि की पुितकािय मे घुसकर अंधाधंध ु गोिीबारी की, िजससे कम-से-कम 25 िवदािथय ण ो की मतृयु हुई, 20 घायि हुए। िवदािथय ण ो की हतया के बाद
गोिीबारी करने वािे िकशोरो ने िवयं को भी गोिियाँ मारकर अपने को भी मौत के घाट उतार
िदया। हॉिीवुड की मारा-मारीवािी ििलमी ढं ग से हुए इस अभूतपूवण कांड के पीिे भी चििचत ही
(ििलम) मूि पेरक तिव है , यह बहुत ही शमन ण ाक बात है । भारतवािसयो को ऐसे सुधरे हुए राष और आधुिनक कहिाये जाने वािे िोगो से सावधान रहना चािहए।
िसनेमा-टे िििवजन का दर ु पयोग बचचो के ििए अिभशाप रप है । चोरी, दार, भषाचार,
िहं सा, बिातकार, िनिज ण जता जैसे कुसंिकारो से बाि-मिितषक को बचाना चािहए। िोटे बचचो की आँखो की ऱका करनी जररी है । इसििए टे िििवजन, िविवध चैनिो का उपयोग जानवधक ण
कायक ण म, आधयाितमक उननित के ििए कायक ण म, पढाई के ििए कायक ण म तथा पाकृ ितक सौनदयण िदखाने वािे कायक ण मो तक ही मयािणदत करना चािहए।
पिसद िवदान डॉ. कीनो िेिरयानी ने ििखा है िक िनरं तर 20 वषण तक मैने अपराध,
मनोिवजान तथा बाि मनोिवजान का अधययन िकया है और हजारो बार मुझे इस कष भरे सतय को िवीकार करने के ििए मजबूर होना पडा है िक 80 पितशत बचचो को अपराधी मनोविृिवािा बनने से बचाया जा सकता था यिद उनके माँ बाप समय रहते उनहे अचिी िशका, जान, ऊँची
िवचारधारा से पिरचय करवाकर उनहे वीरता, दे शभिि, मानव-कलयाण का पाठ पढाते। इस पकार उनके जीवन का समूचा रप बदि सकता था।
एक सवे के अनुसार तीन वषण का बचचा जब टी.वी. दे खना शुर करता है और उस घर मे
केबि कनैकशन पर 12-13 चैनि आती हो तो, हर रोज पाँच घंटे के िहसाब से बािक 20 वषण का हो तब तक इसकी आँखे 33000 हतया और 72000 बार अशीिता और बिातकार के दशय दे ख चुकी होगी।
यहाँ एक बात गंभीरता से िवचार करने की है िक मोहनदास करमचंद गाँधी नाम का एक
िोटा सा बािक एक या दो बार हिरशनद का नाटक दे खकर सतयवादी बन गया और वही बािक महातमा गाँधी के नाम से आज भी पूजा जा रहा है । हिरशनद का नाटक जब िदमाग पर इतनी असर करता है िक उस वयिि को िजंदगी भर सतय और अिहं सा का पािन करने वािा बना
िदया, तो जो बािक 33 हजार बार हतया और 72 हजार बार बिातकार का दशय दे खेगा तो वह कया बनेगा? आप भिे झूठी आशा रखो िक आपका बचचा इनजीिनयर बनेगा, वैजािनक बनेगा,
योगय सजजन बनेगा, महापुरष बनेगा परनतु इतनी बार बिातकार और इतनी हतयाएँ दे खने वािा कया खाक बनेगा? आप ही दब ु ारा िवचारे ।
याद रखे, बचचे दे श की संपिि है । उनहे ऐसा वातावरण उपिबध कराये िजससे वे भिवषय
मे आपके ििए व दे श के ििए उपयोगी िसद हो। कहीं ऐसा न हो िक आपके बचचे आपके ििए व समाज के ििए मुसीबत बन जाये। माता-िपता, सरकार व दे श के कणध ण ारो का यह नैितक
दाियतव है िक वे युवा पीढी को कुपवितयो से बचाने के ििए उिचत कदम उठाये। गित बाते सोचकर तथा िसनेमा के कुपभाव का िशकार होकर युवा पीढी जीते-जी नरक का दःुख भोगने पर िववश हो रही है , कया यह ठीक है ?
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