Manas Ki Peeda - Hindi Kavitavali By Seema Sachdev

  • November 2019
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  • Words: 23,784
  • Pages: 145
ईबुक क वता सं ह सीमा सचदे व क मानस-क वताविल

मानस क पीड़ा सीमा सचदे व

मानस क पीड़ा भूिमका ी रामच रत मानस एक ऐसा पावन जसका एक -एक

थ है ,

श द भावुकता से ओत- ोत है

और एक-एक श द पर महा-का य िलखे जा सकते है | यह भाव का ऐसा अथाह समु

है जसमे कोई एक बार

डु बक लगाये तो डू बता ह चला जाता है | क ववर "मैिथलीशरण गु

जी ने िलखा था :-

"राम तु हारा वृत

वयं ह का य है ,

कोई क व बन जाये सहज स भा य है "| ी राम-च र

के बारे म

एक अित लघु

कुछ कहने के िलए कोई श द ह नह ं |

यास कया है -मानस क पीड़ा को कुछ प न म

समेटने का | इस पीड़ा का कोई अ त नह ं , जतना इसे महसूस करो उतनी ह बढ़ती जाती है |"मानस क पीड़ा" बीस भाग म वभ

है :-

१.तुलसीदास-वैरा य क रात २. ी राम

तुित

३.दशरथ क द ु वधा

४.राम ्-ल मण संवाद

५.उिमला- ल मण संवाद ६.वन-गमन ७.भरत- वलाप ८.श ुघन- संताप ९.कैकेई का प ाताप १०.कौश या क तड़प ११.सुिम ा का

याग

१२. वर हणी ऊिमला १३.िमिथलेश क पीड़ा १४.िच कूट म १५.राम वैदेह

यथा

१६.द ु वधा म

ी राम(भाग १)

१८.द ु वधा म

ी राम(भाग २)

१७.द ु वधा म रावण १९.हनुमान प का २०.जानक का दद

थम भाग "तु लसीदास वैरा य क रात" मे तुलसीदास के जीवन क उस रात को य

कया है जब वे पूण

प से

ी राम के

चरण म आए और रामच रत मानस , वनय-प का, क वतावली, दोहावली,जानक म गल ्,पावती म गल ्......जैसे पावन जब जब

थ रच डाले |

ी राम का नाम आयेगा, तुलसीदास का नाम साथ म आयेगा |

तुलसी को राम से अलग कया ह नह ं जा सकता |

"मानस क पीड़ा" तो अथाह है जसका कोई अ त नह ं | इसम कोई कथा कहने का का एक तु छ सा भी कोई भी

यास न करके उस पीड़ा को महसूस करने

यास कया है जो सब सुख -सु वधा के होते हुए

स निच

नह ं है ,हर पल

दय म अस

अपने कत य िनभाने को ववश है | पु

के वयोग म माताओं का अस

दद को समेटे हुए

दद, पित वयोग मे वर हणी प ी क

तड़प , पता समान भाई के वयोग म कत यिन अपनी भूल पर प ाताप क

भाई ,

वाला म जलती एक माँ क पीड़ा असहनीय है

जसको श द म यान नह ं कया जा सकता | "मानस म इतने दद समाए ह क हर भाव ने आँसू बहाए ह उस पीड़ा को कुछ श द म कैसे कह दे ? जसने युग से भावुक बस

दय

लाए ह"

दय म कुछ ऐसे भाव उमड़े जनको य

और यह मेर

भु

करना आव यक था

ी राम के चरण म एक तु छ

सी भट है | सध यवाद.......सीमा सचदे व *********************** 1.तु लसीदास - वैरा य क रात ी राम जय राम जय जय राम हर पल है जुबां पर यह नाम घनघोर है तम तूफां गहरा

ऊपर से हो रह थी वषा बादल गरजे बजली चमके पर उसके पैर अब कहाँ

के

कहाँ कब और कैसे जायेगा वह कसी को नह ं बतायेगा प ी ने द ऐसी िध कार िमट गया था सारा अहँ कार अब आया था उसको जीवन उसका केवल

यान ी राम

प ी के मोह म फँसा ऐसा उसे

मरण राम भी नह ं रहा

आज जब बोली थी र ा जो राम से

ेम करो इतना

तुम जग म अमर हो जाओगे भव-सागर भी तर जाओगे झूठे मोह म फँस कर तो तुम अपना यह जीवन गँवाओगे मुद पे बैठ के आये हो और साँप को र सी बनाए हो चोर क तरह घुस कर घर म तुम

या प रचय करवाए हो

तु ह जरा शम भी नह ं आई ऐसी भी यह

या थी त हाई

ेम राम से कया होता

तो आज न तू त हा होता उसे

ेम करो जो वधाता है

जो इस जीवन का दाता है

जस काम से तुमने िलया ज म अपना वह पूरा करो करम उलटे पाँव तुलसी था मुड़ा और तभी

ी राम से नाता जुड़ा

जब प ी ने िध कार दया भु राम ने आ के सँभाल िलया जा रहा था अब वह उस पथ पर बैठा था राम-नाम रथ पर अब छोड़ चला था वह उसको जीवन उसने समझा जसको मन अशा त औ सोच गहर तुलसी क

वह ठहर

जहाँ वह

ी राम को पाएगा

जीवन को सफल बनाएगा अब तक वह

य था रहा तम म

यह सोच रहा मन ह मन म यह सोच - सोच चलता जाता ी राम

ेम बढ़ता जाता

तुम कहाँ हो अब हे रघुनंदन आ कर काटो मेरे ब धन म दज ु न , मूख पातक

अपने ह िलये बन गया घातक य म भूला तुमको रघुवर य छोड़ दया मने वो दर

है तू बसता जसके अ दर य छोड़ा मने वो मन म दर य इस माग से भटक गया

और मोह माया म अटक गया य तब नह ं सूझा था मुझको जब छोड़ गया था म तु झको म उस रघुवर को भूल गया जसने है हर पल साथ दया जसके िलये छोड़ दया तु झको उसने ह ठु कराया मुझको यह दिु नया सार झूठ है

जहाँ हर पग-पग पर लूट है नह ं कोई कसी का हो सकता जीवन भर साथ िनभा सकता मने

या ऐसा गलत कया

उसके िलये सबकुछ छोड़ दया हर

वास पे नाम िलखा उसका

यह तुलसी हो गया था जसका मने बस उससे

ेम कया

अपण अपना िनत ्-नेम कया जसे

ेम कया सबसे

यादा

और कया था जससे यह वादा वह साथ न उसका छोड़े गा सारे ह ब धन तोड़े गा मने झूठ नह ं कभी कोई कहा हर पल उसका हूँ हो के रहा

मने वादा अपना िनभाया था और उसी को मन म बसाया था बन

ेम पुजार उसका म

उससे ह िमलने आया था



ेम को उसने नह ं जाना

और मुझको ह मूख माना उसे जरा समझ म नह ं आया तुलसी वहाँ पर है

य आया

इक पल म तोड़ दया नाता या ऐसे ह छोड़ दया जाता? बस इतना यार ह मुझसे था जसको म कभी नह ं समझा र ा ऐसा नह ं कर सकती मेरा साथ कभी नह ं तज सकती हर पल मेरे साथ बताती थी अपना हर फज़ िनभाती थी पर आज छोड़ गई मेरा साथ बाहर कतनी काली है रात सोचा नह ं कैसे म आया हूँ आ कर उसको बतलाया हूँ कतनी दे खी मने मु कल

तब जा कर कह हुआ सफल

य चली आई मुझसे बना कहे

तुलसी तु म बन अब कैसे रहे ? पर र ा ने कहाँ सुना बन समझे ह िध कार दया सोचते तुलसी यूँ िगर ह पड़े बहने लग आँसू बड़े -बड़े पीड़ा थी अब अ दर- बाहर न सूझ रह थी कोई डगर सुनसान म जाकर बैठ गया

रो-रो कर वह पे लेट गया बाहर वषा तूफां अ दर प ी का

ेम लगा ख डहर

वह टू ट के उस पर िगर गया था उसम तुलसी भी दब गया था उस ख डहर से िनकले कैसे शु

हो जाये उसका मन जैसे

बैठा तुलसी बस रो ह रहा मुख को आँसुओं से धो ह रहा रोते हुए भाव बहा रहा था अब

वयं को ह समझा रहा था

बह गई नफरत अ ु बन कर बन गया था कु दन वह जल कर नह ं बुरा भाव कोई मन म रहा खुश हो कर तुलसी बोला ! अहा ी राम ने यह अ छा ह

कया

मेरे दोष का द ड दया य दोष म र ा को दे रहा? य मने उसको बुरा कहा? वह तो दे वी सबसे पावन जसने शु

कया है मेरा मन

ेम तो बस उसका स चा म ह हूँ अ ल म बस क चा उसने ह तो समझाया है

ी राम का माग बताया है ध य है वह दे वी र ा जो आज न होती यह घटना

कैसे म उसको छोड़ दे ता ी राम से नाता जोड़ लेता मेरे िलये तो स भव नह ं था म तो भँवर म िघरा ह था र ा ने ह तो िनकाला है डू बते तुलसी को सँभाला है मुझे

मा कर दे ना हे रघुवर

दभ ु ाव आये मेरे अ दर

उस दे वी को भी बुरा कहा जसने मुझे माग दखा दया

अब नह ं तुलसी

क पायेगा

ी राम शरण म जायेगा उसको पाना है जीवन म नह ं कोई पछतावा अब मन म जो हुआ , अ छा ह हुआ तुलसी तो अब उसक मं जल

ी राम का हुआ

ी राम चरण

अब उ ह ं चरण म होगा मरण रच डाला रामच रत मानस ी राम क हो गई कथा अमर िलखते कभी प का म वनय सबके िलये राम हो मंगलमय बरवै रामायण िलख द फर वनय म िलख द दोहावली मन म शा त फर भी नह ं अपण क राम को क वतावली खुश हो जानक मंगल िलखते

िसया-राम भ

म रत रहते

पर नह ं भरा तुलसी का मन िलख द वैरा य स द पन हर एक श द म भरा भाव पर नह ं भरा

दय का घाव

वह घाव तो बढ़ता ह जाता तुलसी उसम घुलता जाता तुलसी िलखता जाता जतना गहरा होता वह घाव उतना भाव का उमड़ता वह तू फान जससे तु लसी भी था अनजान राम नाम ऐसा सागर पैठा उसम जो कोई अगर नह ं फर वह बाहर आ सकता उस अनुभव को न बता सकता दल पर थे उसके ऐसे ज म बस राम नाम उसका मरहम बन सोचे ह िलखता जाता या चाहता है उससे वधाता या िलख द उसने कथा अमर उस कथा से शोिभत हर म दर यह तुलसी क है अमर वाणी ी राम कथा जानी-मानी ी राम का नाम जब आयेगा तुलसी का नाम भी आयेगा िभ न नह ं हो सकते यह नाम राम तु लसी और तु लसी राम

जतना िलखता लगता वह कम सोच के आँख होती नम ी राम के दशन क इ छा यह तो तुलसी का करता हर पल

ेम स चा

ी राम जाप

धुल जाते जससे सारे पाप मन म िसया- राम क ह भ इस नाम म है अ ुत श

इससे भी मन जो नह ं भरता ी राम का बस वंदन करता ************************* 2. ी राम

तुित

जय राम राम

ी राम

जग म पावन इक तेरा नाम इससे तो तर जाते

तर

तेरे नाम से हो जाते है अमर हे जगत पता हे रघुनंदन काटो अब मेरे भी बंधन रघुकुल के सूय राजा राम ल जत तु ह दे ख करोड़ काम कौशल नंदन हे सीता पित तेरे नाम म है अ ुत श तू सुख समृ

का दाता

तुम जगत पता िसया जग माता तुझ संग शोिभत है िसया लखन अपण तुझ पर अब यह जीवन

इस जीवन का उ ार करो मुझे भव सागर से पार करो साथ म पवन पु

हनुमान

अनुपम झांक को मन म जान हम करते है तेरा वंदन आकर दशन दो रघुनंदन हे सरल शा त कौशल नंदन हम बाँस है और तू है चंदन हम पातक , तू पातक हता हे भा य वधाता सुख करता इस जीवन का उधार करो सब क हरो सब क हरो ................... .................. यूँ राम क करते हुए वनय

तुलसी तो हो ह गया राममय नह ं सूझे कुछ

ी राम बना

बन राम के जीना भी

या जीना

***********************************

मानस क पीड़ा भाग 3.द ु वधा म दशरथ

सारे महल म कतने खुश

पाये जो थे सब अनुपम सुख िश ा द

ा सब हुई पूर

इ छा नह ं रह थी अधूर चार ह सुत थे याहे गये दशरथ के सपने पूरे हुए

कतनी यार बहुएँ उनक

भोली है कतनी ह मन क ग वत कतना राजा दशरथ जसके चार ऐसे थे सुत एक से बढ़कर गुणी एक और सबम ह था ववेक सामने था भ व य का आइना और दशरथ का यह कहना अब मुझम श

हुई कम

बूढ़ ह डय म नह ं दम

जसमे हो अवध रा य का भला अब वह फैसला म लेने चला यह सोच के गु दशरथ ने गु

को बुलवाया को बतलाया

अब राम ह रा य सँभालेगा वह अवध का अब राजा बनेगा म और नह ं अब कर सकता काम मुझको भी चा हये अब आराम जतनी ज द हो शुभ मुहूत

दे खूँ राम म राजा क सूरत खुश होगी अवध क भी मेरे िसर से उतरे गा कजा

जा

शुभ मुहूत भी िनकलवाया

अगला दन शुभ यह बतलाया पर गु

तो डर गया था मन मे

य राम दखा मुझको वन मे मन ह मन वह था समझ गया पर राजा से कुछ नह ं कहा होगा वह , जो ई र इ छा इसम नह ं कसी का बस चलता पर कतना खुश था दशरथ अित उ म जो शुभ है मुहूत जा को भी था कहलवाया

रािनय को भी जा के बतलाया तीन रानी कतनी

स न

दे रह दआ ु एं मन ह मन

नह ं कसी के मन म कोई खुश था अवध का हर एक जन सबसे

यादा खुश कैकेई

दािसय को र

लुटा रह

अब अवध का राजा होगा राम सीता बैठेगी उसके वाम जोड़

कतनी है यह यार

सार दिु नया से यह

यार

पर जब दे खी दासी म थरा दे खा उसका चेहरा उतरा कैकेई यह नह ं सब सह पाई पूछे बन भी नह ं रह पाई बोली! यहाँ आओ मेरे पास



फरती हो इतनी उदास?

म थरा ने अब मुँह फेरा कुबु

ने उसको था घेरा

तु ह

या चा हये मुझसे बोलो

और अब तु म अपना मुँह खोलो ऐसे न मुँह फुलाये रहो सब खुश है तु म भी खुश रहो ह गे ह खुश सब , इस महल म पर म नह ं हुँ खुश दल म

तुमको नह ं बेशक कोई िगला पर म चाहती हँू तेरा भला

रोक दो तु म यह रा यािभषेक नह ं तो पछताओगी दन एक चुप रहो तुम यह

या कहती हो?

मन ह मन जलती रहती हो नह ं करो कोई ऐसी बात अशुभ कोई सुनेगा , मन म होगा दख ु तुम दासी क बात

य मानोगी?

बनोगी दासी , तब जानोगी राम बनेगा जो राजा कौश या होगी राज माता तुम बस दासी बन जाओगी फर रोओगी और पछताओगी कैकेई क थोड़ बु

फर

और दभ ु ावना म वह िघर

म थरा फर से बितयाने लगी उसको वह राज बताने लगी

दशरथ ने दये थे तु ह वचन माँगना जब तेरा चाहे मन उसके िलये अब अवसर अ छा और राजा है

ण का स चा

वह वचन से कभी न भागेगा बेशक उसको कुछ दख ु होगा यूँ कह के म थरा चली गई कैकेई क बु

मार गई

उसको न सूझी कोई और बात यूँ सोचते ह हो गई रात जा के बैठ वह कोप भवन कोई न समझ पाया कारन सोचा कसी बात से हुई नाराज़ कुछ मनवाना चाहती है आज

यह तो वह करती थी हर बार कुछ चाहती तो हो जाती नाराज़ यह दे ख के हँ सती थी कौश या उसने ऐसा ह

वभाव पाया

आज भी कुछ चाहती होगी तभी कोप भवन बैठ होगी दशरथ गये थे हर बार क तरहा बैठ थी वह गु से म जहां राजा जाके यूँ मनाने लगा कैकेई को गु सा आने लगा दए थे तुमने दो मुझे वचन आज उसे मांगने का मेरा मन भरत राजा यह पहला वचन

और दस ू रा राम को भेजो वन

वन म रहे गा वह चौदह साल छोड़े राजा बनने का

याल

राजा ने तो मज़ाक समझा और यार से कैकेई से बोला य कर रह हो तुम ऐसे हँ सी तेर जान तो राम म ह है बसी जब दे खा आँख म श ु-पन राजा का दहल गया था मन खुद पे व ास भी नह ं हुआ यह उससे रानी ने

या कहा?

ऐसे समय म यह

या मानेगा?

जब राम बनने वाला राजा यह सोच के िगर गया था दशरथ कैसे भेजूं राम को वन के पथ? राजा भरत , नह ं कोई हरज पर दस ू रा कैसा है वर ?

य राम बने अब वनवासी

जग म होगी कतनी ह हँ सी य कैकेई यह सब गई भूल उसक बु

पर पड़ धूल

या कर रह है ? यह नह ं जानती कोई बात भी तो अब नह ं मानती कतना कैकेई को समझाया पर उसक समझ म नह ं आया अपनी ह बात पे अड़ रह बबाद क राह पे खड़ रह

दशरथ के मन म बड़ द ु वधा कहने म नह ं हो रह सु वधा वह

या करे ? और

या न करे ?

रहे ज दा या जीते जी ह मरे राम तो उसका जीवन है या उसके भा य म वन है ? नह ं भेजूं तो जायेगा कुल का मान भेजूं तो जायेगी मेर जान पर राम से बड़ा न कोई मान सह लूँगा म यह भी अपमान पर राम को वन न भेजूंगा ऐसा

ण न पूरा क ँ गा

रघुकुल र ित भी जायेगी मयादा नह ं रह पाएगी होना पड़े गा मुझे शिम दा नह ं ऐसे म रह पाऊंगा ज दा मर जाऊँ मुझे कोई नह ं परवाह नह ं राम को भेजूंगा वन क राह पर इससे नह ं कोई हत होगा ण तोड़ना भी अनुिचत होगा पूरे कुल को बदनाम क ँ म तो दोन ह तरफ म ँ नह ं राम वयोग भी जर सकता कुल को बदनाम न कर सकता समझ सोच सार खोई आज राजा क आँख रोई जीवन भर नह ं झुका था जो

आज जमी पर पड़ा था वो बेसुध होकर िगरा हुआ

और द ु वधा म िघरा हुआ

नह ं सोच सका वह हत क बात ऐसे ह बीत गई थी रात ी राम को अब था बुलवाया रानी का

ण भी बतलाया

तु ह कहता है यह पता तेरा तुम आज वरोध करो मेरा तेरे साथ रहे गी सब सेना मुझे रा य से बाहर कर दे ना पर नह ं जाना यूँ तुम वन बताना यहाँ पे सुखी जीवन कसी क आ ा नह ं ज र मानना भी नह ं तेर मजबूर म तुमको आज बताता हूँ

तु ह कूटनीित िसखलाता हूँ यह

जा को जाकर कह दो

और अपने पता का वरोध कर दो म यह सब तो सह जाऊंगा पर, बन दे खे तु ह मर जाऊंगा तु ह ं म बसती है मेर जान तुम ह तो मेरे हो अरमान तुम बन ज दा न रहूंगा म सारे अपमान सहूंगा म

नह ं, नह ं ऐसा नह ं बोलो आप नह ं कुल का बन सकता म

ाप

नह ं कहो ऐसा करने को पाप जो कुल के िलये बने अिभशाप नह ं सीखनी मुझे कूटनीित म तो जानता रघुकुल र ित म अपनी जान भी दे सकता नह ं माँ को

सवा कर सकता

माँ क आ ा तो सव म यह तो मेरा भा य उ म म माँ क आ ा मानूंगा और अब जा के वन म रहूंगा

मुझे जरा भी मन म नह ं मलाल नह ं करो अपना ऐसे बुरा हाल इससे बड़ा

या उ म भा य

माँ से बढ़कर मुझे नह ं रा य नह ं टू टने दं ग ू ा आपका वचन बना सोचे अब जाऊंगा वन

नह ं रखो कोई मन म द ु वधा

और खुशी से मुझको करो वदा यूँ कह के राम ने ठान िलया वन म रहने का वचन दया ी राम ने ख म कर द द ु वधा

पर राजा को नह ं हुई सु वधा रोते हुए पता को छोड़ गए

ी राम तो वहाँ से चले गए

साथ म ले के िसया औ लखन ी राम तो चले गए थे वन पर हुआ था पता-सुत का वयोग

या बुरा बना था वह संयोग राजा दशरथ नह ं जी पाए कुछ दन म ह

ाण

बस राम राम

याग दए

ी राम राम

अ तम समय म बस यह नाम कतने ह

दल म दद िलए

राजा ने अपने

ाण दए

**************************

मानस क पीड़ा भाग 4.राम-ल मण संवाद जय गणपित जय सूयदे व जय व णु

ा औ महे श

कर रहे पूजा आज उिम-लखन खुश था महल का हर एक जन आज होगा राम का रा यािभषेक

वष से दे खा था सपना एक माता- पता का अरमान था

जब उनका आँगन वीरान था सोचते थे उनका भी होगा सुत सूयवंश का सूय दे खेगा अवध आज वो दन तो आ ह गया कौशल सुत बनेगा अब राजा

खुशी नह ं छुप रह थी छुपाने से लख -उिम उ सुक बताने म

भूप राम िसया महारानी अित सु दर जोड़ जानी-मानी राम के िसर राजा का ताज दे खने को है उ सुक लखन आज साथ म िसया भी वराजेगी उिम क बहन कैसी दखेगी? दोन यूँ बाँट रहे खुिशयां रा यािभषेक पे लगी अं खयां खुश हो रहे दोन मन ह मन कर रहे बात यूँ उिम लखन तैयार हुए पहले सबसे

खले हो कोई कमल जैसे

दे खी

य सूय क पहली करण

राम के पास आया था लखन भैया अब तु म होगे राजा और म हूँगा ते र

जा

तुम मेरे भाई हो तब तक नह ं बन जाते राजा जब तक जी भर के दे खूँ बड़ा भाई बस यूँ ह मन म आई फर तो तुम

जा को दे खोगे

फर मेरे भैया कहाँ रहोगे ऐसे लखन यूँ ह बोलता जाता मन क खुशी राम को जतलाता पर यह अभी तक

या? तुम यूँ ह खड़े हुए य नह ं तै यार हुए

ी राम जो सुख-दख ु से है परे

सुन रहे लखन को खड़े -खड़े नह ं दखला रहे कोई खुशी औ गम यह दे ख के

के लखन के कदम

या बात है भैया बतलायो? यूँ खड़े हो

य ? मुझे समझायो

दे खती होगी तु मको

जा

बनना है अब तु मको राजा फर

य तेर है यह हालत?

या मुझसे कुछ हुआ गलत?

भाभी तुम भी

य खड़ मौन

या हुआ मुझे बतलायेगा कौन ?

कसी ने तुमसे कुछ गलत कहा? ल मण का धैय तो जाता रहा बना सुने वह बोल रहा ी राम ने शा त रहने को कहा ी राम थे बोले धैय से बता रहे ल मण

य से

पूरा करने को पता का वचन म जाऊंगा सीता के संग वन अब रा यािभषेक नह ं होगा राजा

य भाई भरत बनेगा

माँ कैकेई ने यह िलया वचन मुझे दया है चौदह वष का वन सीता मेर अधािगनी है वह मेर जीवन संिगनी है मुझ बन नह ं रहे गी वो महल म मेरे संग जायेगी जंगल म

नह ं, नह ं अब नह ं यह हो सकता हुआ है तुमको कोई धोखा

ऐसा नह ं कर सकती माता तेरा भी तो सुत का है नाता गर स च है , सुनो फर मेरा कथन म दे ता हूँ तुमको वचन

तुमको नह ं वन जाने दं ग ू ा

तेरे िलये पता से भी लडू ँ गा शा त रहो तुम भैया लखन अपना नह ं मैला करो तुम मन यह तो है मेरा उ म भाग मेर

क मत तो गई जाग

पता के िलए म वन जाऊंगा उनका दया वचन िनभाऊंगा पहला मौका है जीवन का मेरा सपना ह था मन का कभी पता ने कुछ भी कहा नह ं आव यक भी तो रहा नह ं म

वयं को ध य मानूंगा

जो पता का

ण पूरा क ँ गा

रघुकुल र ित म सुनो लखन मर कर भी पूरा कर वचन म रघुकुल र ित िनभाऊंगा िसया के संग वन को जाऊंगा यूँ बीत जायगे चौदह वष नह ं दख ु कोई , मन म स च म हष तुम यहाँ ह षत रहना

माता- पता क सेवा करना नह ं नह ं भैया म न रहंू गा

तुम बन भला म कैसे जऊंगा जस भाई ने साथ दया हर



वह जायेगा नह ं अकेला वन म भी अब साथ म जाऊंगा इक भाई का फज िनभाऊंगा यह मेरा भी पहला अवसर भाई संग जाऊंगा वन क डगर तुम भाभी का

यान रखना

मुझे एक दास ह समझ लेना रो-रो कर कह रहा था ल मण और पकड़ िलए थे राम-चरण ल मण ने दे द अपनी कसम नह ं ले गए तो हो जाऊंगा ख म इस भाई से नह ं िमल पाओगे फर कैसा वचन िनभाओगे ? ी राम के पास न श द रहे उनके अ ु भी बह गए जसका भाई इतना यारा उसे

या करना बन के राजा

वह बनगे अब वन के राजा और ल मण ह उसक

जा

बनेगी सीता वन क रानी और होगी यह अमर वाणी ल मण भी वन म जायेगा और भाई का साथ िनभाएगा

ी राम ने भी अनुमित दे द और भाई क चाह पूर कर द ************************** मानस क पीड़ा भाग5. ऊिमला- ल मण संवाद

ल मण-ऊिमला संवाद म वन गमन पूव का िच ण कया है | ल मण - ऊिमला तब नव - ववा हत थे |बहुत क ठन होता है कसी के िलये भी ऐसे हालात म रहना , ले कन ऊिमला और

लखन रहे जसके बारे म हमने कभी सोचा ह नह ं | कैसे रह होगी एक नव- ववा हता चौदह वष तक पित से अलग | इसके िलए " वर हणी ऊिमला" एक भाग अलग से िलखा है | ************************** ह षत था अब ल मण का मन िमल गया था जैसे नव जीवन माँ का आशीष लेने को चला ऐसा भाई होगा कसका भला? माँ ने भी खुश हो कहा लखन ी राम क सेवा म जाओ वन नह ं तुम केवल बेटे ह लखन तुमसे है जुड़ा इक और जीवन प ी क अनुमित भी ले लो फर जा के करम पूरा कर दो

मुझे गव है तु म जैसे सुत पर हो जाएगा मेरा नाम अमर यह अित उ म, था माँ से कहा अब मुझे जाने क दो आ ा उिम है सव गुण स प न माँ नह ं टालेगी मेरा कहना जाओ तु म अब खुशी से रहना राम क

दल से सेवा करना

मुझ पर नह ं आए कोई उलाहना सीता का मानना हर कहना अब सीता को ह माँ समझो उस दे वी क सेवा म लगो दे खो, कभी न उनको तंग करना उनका बेटा बनकर रहना हाँ माँ , म अब यह क ँ गा सेवा म नह ं पीछे हटू ँ गा नह ं परे शानी दं ग ू ा उनको

नह ं िमलेगा उलाहना तु मको अब चलता हँू मुझे आ ा दो

हँ स के इस सुत को वदा कर दो खुश रहो भाई क सेवा म रहना

ी राम के चरण म

माँ से तो िमल गई वदा कैसे होगा प ी से जुदा कैसे उसको बतलाएगा उसे छोड़ के वन को जाएगा यूँ सोचते हुए मन ह मन

आ गया उिम के पास लखन नह ं श द है कुछ भी कहने को कैसे कहे अकेली रहने को? बस झुका हुआ िसर िलए हुए आँख था नीची कए हुए

चुप-चाप खड़ा था लखन वहां खुश थी प ी ऊिमला जहां दे खा उिम ने ऐसा लखन और सोच यह मन ह मन है कोई शरारत फर सूझी जसको ऊिमला नह ं बूझी बोली !

या सूझा अब तु झको

कभी समझ नह ं आया मुझको अब फर प रहास बनाओगे और फर से मुझे सताओगे अब ज द से बोलो भी पया य उदास है ते रा जया ऊिमला यूँ लखन से पूछ रह मन क बात को बूझ रह जब लखन नह ं कुछ भी बोला ऊिमला का

दय भी डोला

या अनथ हुआ? आया मन म

साधा है मौन

य ल मण ने?

यह सोच के वह घबराने लगी ल मण को फर से बुलाने लगी या हुआ मुझे भी बतलाओ

यूँ ऐसे न मुझको तड़पाओ

अब ल मण धीरे से बोला मु कल से उसने मुँह खोला तुम रहो अकेली महल म अब म जाऊंगा जंगल म भैया भाभी क सेवा म रहूंगा उनके संग ह वन म

माँ कैकेई ने है वचन िलया ी राम को है वनवास दया यूँ ल मण थे बता रहे वनवास क बात सुना रहे सुन कर उिम तो रोने लगी और मुख आँसुओं से धोने लगी तुम जाओ यह उ म होगा इससे अ छा

या करम होगा?

दख ु उनका है वन म रहने का वन के क

को सहने का

गए नह ं है घर से बाहर कभी पाई सुख सु वधा घर म सभी वन म तो कुछ भी नह ं होगा ऐसे म तु हारा साथ होगा बाँटना उनका अब सारा दद अब यह तु हारा है बस फज चाहती हूँ तेरे संग जाऊँ

वन म भी साथ ते रा पाऊँ पर पूरा करना है करम तु ह चाहे कतने भी क

सहे

इस करम से नह ं पीछे हटना

दल से अब सेवा म जुटना नह ं करम म बनूंगी म बाधा इस िलए मने िनणय साधा म तेरा साथ िनभाऊंगी जाओ तु म म रह जाऊंगी माँ क सेवा म यहाँ रह कर वरह के क

को सहकर

म चौदह वष बताऊंगी ण है ! म नह ं घबराऊंगी अब छोड़ो तुम िच ता मेर हर इ छा पूर होगी तेर म साथ के िलए भी नह ं कहंू गी तुम बन म अब यहाँ रहंू गी

सुन लखन के आँसू बहने लगे प ी से ऐसे कहने लगे तुम महान हो ! हे ऊिमला पावन

वभाव म हो सरला

बस मुझको इक दे दो वचन भरगे नह ं कभी तेरे नयन तुम रोओगी, मुझको होगा दद नह ं पूरा कर पाऊंगा फज ऊिमला ने आँसू प छ दए और बोली , अब सुनो मेरे यार म इतनी है श मने क है ते र भ उस भ

को अपनाऊंगी

वादा नह ं आँसू बहाऊंगी



दोन ह हो रहे थे भावुक कतने ह पल वो थे नाज़ुक? मौन हुए थे दोन अब

जाने फर वो िमलगे कब भर गए थे दोन के

दय

फर भी मुख पर मुसकान िलए ल मण ने कहा अब करो वदा दल से नह ं म कभी तु मसे जुदा माँ क सेवा म रहना तुम हर सुख दख ु माँ से कहना तु म जा रहा तो हँू तुमको छोड़ के

पर नह ं जा रहा नाता तोड़ के हम एक है एक रहगे सदा दल से नह ं ह गे कभी जुदा म इ तज़ार म तेर पया समझाऊंगी यह पगला जया माँ के ह पास रहूंगी म पूरा हर फज क ं गी म

ल मण उिम को छोड़ चले महल से नाता तोड़ चले अब है तैयार वन जाने को साथ राम का पाने को ऊिमला थी दे ख रह ऐसे चंदा को चकोर दे खे जैसे पया नाम पुकारती हर धड़कन पर नह ं वचिलत हुआ उसका मन ध य थी वो नार ऊिमला

जसको जीवन म सब था िमला पर आज वर हणी बन रह थी फर भी वह फज िनभा रह थी दे खते ह चले गए थे लखन मन म जल रह थी वरह अगन फर मन को वह समझाती है खुद को अहसास कराती है चौदह ह वष के बाद लखन आएँगे हमारा होगा िमलन

तब तक म राह म बैठूँगी पया को सपने म दे खूँगी

************************

मानस क पीड़ा भाग6. वन गमन िसया राम के साथ लखन

तैयार है अब जाने को वन होना था आज रा यािभषेक खुश भी था अवधवासी हर एक पर हुई थी यह अनहोनी बात छा गई थी जैसे काली रात राजा नह ं बनगे अब

ी राम

और छोड़ जाएँ गे अवध धाम हर अवधवासी था सोच रहा नह ं कसी को कोई होश रहा

सबक आँख थी भर हुई

कसी अनहोनी से डर हुई

बस स नाटा था फैला हुआ

नह ं कोई भी मुख था खला हुआ सबके ह मन म थी हलचल

पर राम का वचन तो था अटल रोक रह जनता उनको हम छोड़ नह ं जाओ वन को सार जनता तेर सेना चाहो जो तुम वरोध करना हम तेरे िलए िमट जाएँ गे और तुमको ह राजा बनाएँगे नह ं , नह ं ऐसा नह ं सोचना कभी मुझको ऐसे नह ं रोकना कभी करता माँ का आ ा पालन ध य है उस सुत का जीवन मेरा तो जीवन भी सफल तभी पूरा क ँ गा म वचन जभी नह ं लाना ऐसा वचार भारत का नह ं यह स याचार माता- पता तो सबसे बढ़कर वह तो दखलाते है हम डगर सब कुछ तो िसखलाती है माँ बनकर के ब च क छाया पता ह तो चलना िसखलाता जब पहला कदम भी नह ं आता माँ ह तो है पहली ई र

उसके बना तो जीवन न र वह माता- पता है पूजनीय हर पल है वे तो वँदनीय माँ - पता क उ म वाणी यह बात सदा जानी मानी उसे बना वचारे मान ह लो शुभ होगा सदा यह जान ह लो चुप हो गए सारे अवध के जन पर राम जाएँ , नह ं मानता मन अित उ म ! हम जाएँगे साथ हम भी भोगगे यह वनवास हम भी अब वन म जाएँगे वह पर हम अवध बनाएँ गे तुम ह होगे वन के राजा और हम ह गे ते र

जा

तुमको न अकेला छोड़गे बेशक हम भूखे रह लगे पहनगे हम व कल तन पे नह ं करगे कोई इ छा मन म हम पर भी तो करो व ास नाखून से अलग न होगा माँस मछली न रहे



बना नीर

वैसे ह तुम सबक तकद र तुम बसते हो हर धड़कन म तुमको ह पाना जीवन म बस यह इक इ छा है मन म और तु ह ं चले हो अब वन म

हमको अब तु म रोकना नह ं साथ जाने से भी टोकना नह ं हम नह ं रहगे अवध तुम बन सूना ह लगेगा यह हर िछन खड़े माग म जैसे प थर ी राम के पास नह ं उ र सीता संग

ी राम लखन

रथ पर जा रहे थे वन जैसे ह रथ था बढ़ा आगे सारे ह जन पीछे भागे आँख म बस अ ु बहते और मुख से राम राम कहते जा रहे थे वे पीछे रथ के जाते न दन जहां दशरथ के जा पहुँचे थे इक वन म

ी राम ने सोचा अब मन म

यह नह ं उ म वे साथ चले अपना वह घर वीरान करे जहां बूढ़ माँ ब चे छोटे यह उिचत है वे घर को लौटे ी राम ने माया फैलाई सबको ह नींद गहर आई वे छोड़ चले उ ह सोते हुए

सारथी जा रहा था रोते हुए दरू वन को चले गए

और सारथी से श द कहे जाकर सबको समझा दे ना

और यह भी तु म बतला दे ना वनवास काट हम आएँगे तब सबसे हम िमल पाएँ गे कोई भी पीछे नह ं आए उ म यह वे घर को जाएँ सीता स हत

ी राम लखन

पहुँच गए थे सघन वन

वहाँ चौदह वष बताएँ गे

तब ह घर वा पस आएँगे **********************

मानस क पीड़ा भाग 7. भरत वलाप ी राम जय राम जय जय राम मन म केवल

ी राम का नाम

अब था भरत नाना क घर

पर हर

ण बसा राम अ दर

श ु न भी था भरत के साथ अब कर रहे थे आपस म बात जाने



याकुल हो रहा मन

वहाँ खुश हो भैया राम लखन आँख म आँसू भी आ रहे दोन ह द ु खत हुए जा रहे मन म बेचैनी समा रह

पर समझ नह ं कुछ आ रह

समा रह मन म भावुकता और घर जाने क उ सुकता अब नह ं रहगे नाना के यहाँ कल ह जाएँगे अयो या िनकल पड़े अगले ह

दन

भार पड़ रहा था हर पल िछन कुछ शकुन नह ं अ छे हो रहे दोन ह यह थे कह रहे कसी तरह से पहुँचे दोन अवध

मन म वचार का चल रहा यु दोन को अवध लगा सूना लगा जैसे नह ं यह दे श अपना बस स नाटा ह पसरा था नह ं रोशन कोई घर था न वहाँ पे थी कोई चहल-पहल

यह दे ख के मन भी गया दहल रहे लोग भरत से मुँह फेर समझने म न लगी कोई दे र लोग का उससे यूँ हटना हुई अव य कोई दघ ु टना पर

या यह नह ं समझ पाए

ज द से राज महल आए जैसे ह उनके कदम पड़े दशरथ ने अपने

ाण छोड़े

नह ं पता से हो पाई थी बात दल पर लगा था ऐसा आघात कुछ दे र ह पहले पहँु च जाते

तो पता से बात कर पाते जस पता ने चलना िसखलाया वह अब दिु नया म नह ं रहा जो गोद

बठा के खलाता था

वह मृ यु क छै या पे लेटा था दोन भाई िगरे बेसुध हो के आँसू न कते थे रोके पकड़े हुए थे पता के चरण पता क बात कर रहे

मरण

पर कहाँ है भैया लखन राम जब वधाता भी हुआ वाम

य नह ं दख रहे दोन भाई

अब भरत के मन म यह आई माताओं से बोले ! हे मैया कहाँ है राम लखन भैया सीता भाभी भी नह ं यहाँ कह बाहर गए है तीन

या?

ज द से उनको बुलवा ले और यह स दे श भी िभजवा दे अब नह ं रहे है हमारे पता वा पस आएँ राम लखन सीता सुिम ा कौश या नह ं बोली दख ु से जुबान भी नह ं खोली

और अब बोली थी भरत क माँ तुम

यान से मेरा सुनो कहना

राम को मने वन भेजा तुम बनोगे अयो या के राजा

तेरा रसता है साफ कया और तेरे साथ इ साफ कया िसया लखन गए है

वे छा से

नह ं गए है मेर इ छा से मने तो राम के िलए कहा उसे चौदह वष वनवास दया राम न तेर बने बाधा इसिलए था यह िनणय साधा नगर म भी वह नह ं रहे गा राजा बनने को नह ं कहे गा अब साफ है ते रा हर रसता बेशक नह ं था सौदा ससता पित खो दया इसका दख ु है

पर सुत राजा अनुपम सुख है कुछ पाने के िलए खोना पड़ता पर भ व य म नह ं रोना पड़ता अब मन म नह ं रखो कोई दख ु राजा बन रा य का भोगो सुख

बस ्, बस माँ भरत था िच लाया तेरे मन म जरा भी नह ं आया

तूने कतना बड़ा कर दया पाप बोलो

या करना है मुझको राज

तुम रा य क केवल थी भूखी या सुहािगन हो कर नह ं थी सुखी तुमम नह ं जरा सी भी ममता या ऐसी होती है माता अब तुम ह जा रा य करना

पर मुझको सुत अब नह ं कहना या ऐसी है जननी मेर ? म नह ं समझा स चाई तेर वो यार था तेरा बस झूठा जसने मेरा सबकुछ लूटा अरे ! राम तो मेर

ज दगी है

वह तो मेर ब दगी है नह ं चा हए मुझे कुछ राम के बना उसके बना

या जीवन जीना

तुम नह ं समझी

या है

ी राम

तु ह तो बस रा य से काम आज मुझ सा नह ं कोई अभागा जसके माथे पे कलंक लागा रा य के िलए भाई को भेजा वन नह ं तुझम है इक माँ का मन अपने सुत पे ह लगाया कलंक मुझसा नह ं कोई दिु नया म रं क दख ु है मुझे तुमने ज म दया ल जत हँू

या उपहार दया

अब कसी को मुँह न दखा सकता नह ं पता को वा पस ला सकता कैसे ह गे दोने भाई या करती होगी िसया भाभी वह तीन ह सोचते ह गे दोषी ह मुझे कहते ह गे लालची ह मुझे वे समझगे मुझे कभी

मा भी नह ं करगे

मुझसे तोडगे हर नाता कैसी है मेर यह माता उस भाई से दरू कया मुझको ई र समझे हर कोई जसको को ट रा य कुबान वहाँ ी राम सा भाई हो जहाँ पर मेरा भा य कतना

ूर

वह भाई मुझसे हुआ दरू

तुम जननी यह नाता अपना पर नह ं दे खो सुत का सपना तेरे सामने नह ं आऊंगा तु ह अपना मुँह न दखाऊंगा मुझको अब पु

नह ं कहना

अ छा यह मुझसे दरू रहना

जननी तुम कुछ नह ं कह सकता कया भाई को दरू नह ं सह सकता

ऐसे वलाप कर रहा भरत

खुद से भी होने लगी नफरत मुझे जीने का अिधकार नह ं बन राम क रहना

वीकार नह ं

िगरा भरत राम क माँ के पास बोला माँ ! मुझपे करो व ास मुझे नह ं रा य का लालच माँ नह ं कह सकता मुझे करो नह ं केवल दरू हुआ बेटा

मा

मेरे कारण ह तु म हुई वधवा आज तो म हो गया अनाथ

न माँ न पता कोई भी साथ तुमसे

या कहँु हे मँझली माँ

तेरे जैसी कोई माँ कहाँ

य नह ं दया तुमने मुझे ज म कतना भा यशाली है लखन खुशी से सुत को दया भेज जहां पर है बछ काँट क सेज जसके िलए तो अवसर अ छा ी राम का वह सेवक स चा म तो जीते ई मर गया न वन का न घर का ह रहा भाई औ पता का छूटा साथ म तो आज हो गया अनाथ जो म निनहाल नह ं जाता ऐसा न करती यह माता न खोते हम पता का साया रहती भाई क भी छाया सब गलती ह थी मेर बु

ह फेर गई मेर

म ह था भाई को छोड़ चला उसी का ह फल मुझे आज िमला कभी नह ं बछुडे चार भाई पर कैसी अब आँधी आई इक दज ू े के बना जो नह ं जए वह भाई आज है बछुड़ गए अब कैकेई को आई सुध और खो द उसने सुध-बुध

िगर गई वहाँ हो के बेहोश और ख म हो गया सारा जोश फर नह ं कसी से वह बोली सुत ने उसक आँख खोली पर बीता व

नह ं आता हाथ

बस रह जाता है प ाताप ****************************

मानस क पीड़ा

भाग8. श ु न स ताप

गये वन राम लखन सीता और छोड़ गए है

यारे पता

यह दे ख के द ु खत है श ु न पीड़ा से भरा था उसका मन सर रख के वह माँ क गोद और सुध-बुध सार ह खो द आँख से तो आँसू बह रहे िच ला िच ला कर यह कह रहे भाई के बन म न रहंू गा

दख पता का भी कैसे सहंू गा ु

म नह ं यह सब सह सकता माँ भाई को वा पस बुला लो ना म पता वयोग भूल जाऊंगा जो राम सा भाई पाऊंगा मुझे यार पता के समान दया नह ं दल से कभी जुदा कया

जो म नह ं जाता भरत के साथ तो नह ं आती यह काली रात या राम ने मुझको याद कया जब वन जाने का वचन दया जाना था तो िमलकर जाते हम को भी तो कुछ बतलाते य

कसी ने हम बताया नह ं

और उनके मन म भी आया नह ं नह ं है हम दोन ह घर और वो घर से हो रहे बेघर काश ! हम वे िमल लेते उ ह कभी न यूँ जाने दे ते वाम हुआ

य यूँ वधाता

ऐसी तो न थी भरत-माता या उसका यार सब झूठा था स च म उसका मन खोटा था भाभी ऊिमला नह ं दे खी जाती वो भी कसी से नह ं बितयाती बड़ माँ के आँसू नह ं सूखते लगातार है बहते ह रहते दोन भाई तो रहते है वन पर बैठा ये महल म श ु न यह महल भी खाने को आते है अब नह ं ये मन को भाते है माँ मने भी सोचा मन म म भी अब जाऊंगा वन म जा के भैया के संग रहंू गा

और उन सबक सेवा क ँ गा सारे क

को सह जाऊंगा

उनके ह संग म खुश रहंू गा मुझको भी माँ दे दो आ ा

और खुशी से मुझे भी दो वदा नह ं पु

नह ं तु म जाओगे

तुम यह पर महल म रहोगे रा य क पूर

ज मेदार

आ गई तेरे िसर पर भार राम लखन अब है वन म कतना द ु खत है भरत मन म

राज काज म नह ं मन लगता वह तो बस रोता ह रहता राम क सेवा म है लखन भरत के िलए है श ु न नह ं अकेला रहे गा भरत सेवा म रहगे दोन ह सुत तुम अपना फज िनभाओगे भरत क सेवा म जाओगे दे खो टू ट न जाए भरत आज उसको तेर ज रत यूँ माँ ने सुत को समझाया

रपुदमन को समझ म अब आया वह घर म सबको सँभालेगा इन क

से वह न डोलेगा

मन ह मन म रोता रहता और सारे फज पूरे करता

दे खता सारा रा य का काम नह ं तिनक भी था मन म व ाम पाल रहा माँ का आदे श इ छा नह ं थी कोई मन म शेष बस माँ क आ ा का पालन करने म ह हो गया म न राम के पास दत ू िभजवाता उनका हाल-चाल पुछवाता

भाई भरत को दे ता धीरज म तक पे लगाता राम चरण रज माताओं के पास भी जाता उनको यह अहसास कराता नह ं अकेली है माताएँ बैठे है उनके सुत जाए कतना बन गया वो ज मेदार द अपनी सार खुशी मार घर म रह प ी से दरू

कतना था श ु न मजबूर दय म िलए हरदम पीड़ा

उठाया था सबका बीड़ा कहती थी उससे यह ऊिमला भा य से तुझसा भाई िमला नह ं तुमको कोई अपनी सुध-बुध कतना सरल और कतना ह शु आयु छोट बु

म बड़ा

रघुकुल का एक है थ ब खड़ा सबसे छोटा रघुकुल वीर

नह ं होना तुम कभी अधीर बचेगी तुझसे ह मयादा मन म यह रखना इरादा तुम जैसे जहां कुल के र क वहां नह ं बन सकता कोई भ क चौदह वष तो बहुत कम है

कुल के िलए अपण जीवन है नह ं तुम मन म कभी घबराना द ु वधा हो तो मुझको बतलाना

तेरे भाई क जगह नह ं ले सकती पर सहायता अव य कर सकती समझाती कभी माँ कभी भाभी वह नह ं ब चा रहा है अभी श ु न सब समझे बात न दे खे वो दन न रात अपना उसने हर फज िनभाया और हर जन को यह बतलाया भाई से बड़ा नह ं कोई राज माता - पता है सव म ताज क

से कभी नह ं डरना

करम के िलए बेशक मरना मन म चाहे कतना स ताप पर

क जाना भी है पाप

सब के िलए है चलते रहना जैसे भी क

को सहना

करम क गित बड़ बलवान चलो पथ पर उसको पहचान

*************************** मानस क पीड़ा भाग9. कैकेई का प ाताप

प थर आँख और मूक जुबां नह ं कोई रहा दल म अरमां आँख नह ं पलक झपकती है इक टक ह दे खती रहती है आँसू भी अब तो नह ं बहते थक गई आँख रोते -रोते पर मन तो हर

ण रोता है

इक पल भी चैन न िमलता है कड़वी याद नह ं जाती है मन तो

या

तब

फर गई मेर बु





लाती है

और म बन गई थी ज य

वाथ मुझम समाया था

जब दासी ने भरमाया था य माँग मने ऐसे वचन बगड गया सबका जीवन तब मने

य नह ं सोचा

भा य दे जाएगा धोखा य दासी क बात म आई और इतना

य ललचाई

नह ं सोचा राम भी मेरा सुत य भर गई थी मन म नफरत

जो राम मेर गोद खेला उसी को मने वन भेजा वह मेरे पास ह रहता था मुझे माँ से बढ़ के समझता था जब खेलते थे चार भाई

वह मेरे पास तो छुपता था खाना मेरे हाथ खाता था और मेरे पास ह सोता था कभी कुछ

ण म न दखी उसको

तो वह कतना रोता था मुझे याद है भरत औ राम का यार दोन के ह

कतने सद वचार

रपुदमन लखन छोटे भाई दोन ने ह जोड़ बनाई ल मण तो राम के संग रहता रपुदमन भरत को भाई कहता दोन इक दज ू े का प

लेते

बस ऐसे ह खेलते रहते राम मेर गोद रहता मुझको ह अपनी माँ कहता और मेरे सुत का यह कहना माँ कौश या है मेर माँ कभी कसी के मन म आया नह ं सुत पे अिधकार जताया नह ं कभी फक नह ं समझा मन म चार भाई तीन क धड़कन म य भूल गई जब याह आई

महल म सुख सु वधा पाई बड़ बहनो ने यार दया ऐसे कोई माँ दे बेट को जैसे मा क मेर हर एक भूल य म बनी उनके िलए शूल अब भी कसी को कोई िगला नह ं मुझे नफरत से कोई िमला नह ं य कोई मुझसे नह ं कहता हर कोई मन म घुटता रहता अपना सुत दरू कया मने

य आएगा अब मेरे कहने

कभी सामने भी तो आता नह ं अपना दख ु ह तो बताता नह ं कु टया म बैठा रहता है

जाने कतने दख ु सहता है

म कुछ भी तो नह ं कह सकती मुझम नह ं वो माँ क श म सार ह मयादा भूली और चढा दया दख ु क शूली कतना अपराध कया मने

सबको ह क

दया मने

वो बहुएँ न दे खी जाती है

जो जोगन बन कर रहती है सीता तो पित संग पर वन म ऊिमला वरह क अगनी म सब कुछ होते ह भरत प ी कर रह है वो तप या कतनी

पित पास है फर भी दरू है भा य भी कतना

ू र है

कभी पित को हँ सते नह ं दे खा या बन गई उसक भा य रे खा उनके स मुख भी जाऊँ कैसे इक माँ का फज िनभाऊँ कैसे कोई श द नह ं है मेरे पास अभी भी नह ं होता व ास स च म अपराध कया मने सबको ह क

दया मने

यह मेर करनी का फल है अब नह ं इसका कोई हल है कैकेई यूँ ह बैठ रहती महल से बाहर नह ं आती खुद म शिम दा होती है और हर

ण ह रोती है

कभी सामने कसी के नह ं आती अपनी पीड़ा नह ं बतलाती कभी िमलने जाए कोई उससे नह ं श द बोलती कोई मुख से बस फूट फूट कर रोती है और मुख आँसुओं से धोती है वह नह ं कर सकती कोई बात ऐसा लगा है मन पे आघात बस सोचो म गुमसुम रहती है गम खाती औ आँसू पीती है ल मण क माँ समझाती है

उसे यार से गले लगाती है यह भा य है ऐसा जान लो नह ं दोषी तुम यह मान लो वधाता को यह मंजूर था नह ं तेरा कोई कसूर था तुम तो बस मा यम बनी इसका इसम बस चलता है कसका अब छोड़ दो तुम ये सब बात कभी बीतेगी काली रात यहाँ पर भी उ जयाला होगा सब कुछ पहले जैसा होगा पर कैकेई का मन नह ं माने अपराधी ह खुद को जाने कहाँ से आएगा वह सुहाग? कैसे क मत जाएगी जाग ? मेरे कारण तो पित भी छोड़ चला म कैसे भूल जाऊँ ये भला या यह कहुँ राम क माता से

क कया है सब वधाता ने मने नह ं राम को भेजा वन

नह ं िलया था मने कोई वचन नह ं कसी को भी समझा सकती अपनी पीड़ा न बता सकती जो

ह को मेर जलाती है

और खून के आँसू पलाती है कतनी यार है बहु ऊिमला

जो नह ं करती कभी कोई िगला

हर सुबह यहाँ पर आती है मेरे पाँव छू के जाती है

चेहरे पे तो रहती है उदासी लगती है कोई वनवासी आँख म उसक

कतने

जसे दे ख के भर जाता है मन इधर वो दे खो भरत प ी भोली सी मेर बहु अपनी

जैसे मन म कोई खुशी नह ं होठ पे कभी हँ सी नह ं दे खो छोटा सुत श ु न उसने भी मार िलया है मन सार

ज मेदार उस पर

नह ं प ी पर उसक नज़र सबसे छोटा पर सबसे बड़ा उस पर ह तो यह रा य खड़ा ज मेदार

कतनी उस पर

अभी तो छोट सी है उमर दे खते ह हो गया कतना बड़ा सर पर कतना ह बोझ पड़ा कैसे उसे आई इतनी समझ उठा िलया सारा ह बोझ उसक प ी भी कतनी भली वो यार सी न ह ं सी कली कहाँ खो गई उसक चँचलता सहमी रहती

या उसक खता

याग क दे वी ल मण माँ

उसक

ह मत का

या कहना

न रोती न मुसकाती है पर हर कसी को समझाती है या घर रा य या

जा

सबम ह है ऊँचा दजा सबको ह उसने सँभाला है रघुकुल का वह उजाला है दे खी वह यार बहु जानक

अब तो रानी है वह वन क वह महल म नाज़ से पली और यार सी नाज़ुक सी कली आँख म कतने िलए सपने आएगी कभी महल अपने मन म नह ं उसके कोई हलचल पया संग यारा उसको जंगल और मेरा यारा सा ल मण कर दया उसने खुद को अपण अभी तो छोटा सा ब चा था कतना ह

ोध वह करता था

कुछ दन म ह बड़ा हुआ कतना नह ं सयाना कोई उसके जतना य न हो ? सुिम ा ने जाया ध य माँ जसने यह सुत पाया और राम तो दया क है मूरत उसम तो है ई र क सूरत वह सा ात नारायण है

नह ं वह कोई जन साधारण है बस मने ह नह ं समझा सबको दे दया धोखा मने खुद को कतनी खुश थी म सुन के बात क राम सँभालेगा अब राज हम तो अब बूढे हो गए पहले जैसे नह ं

ाण रहे

पित को चा हए था अब आराम वृ

आयु म नारायण का नाम

पर भा य ने बु

फेर मेर

भरमा गई मुझको इक चेर मने तो कभी सोचा ह नह ं ऐसी भावना कभी रह नह ं क राजा कौन बनेगा अब सोचा म थरा ने कहा जब उलटा वचार भरमा ह गया मेरे भी मन म आ ह गया और माँग िलया राजा से वचन तब नह ं डोला मेरा भी मन पित को रोते हुए दे खती रह पर कोई बात भी सुनी नह ं

कतना ह कहा मुझसे उसने थोड़ा तो सोचो अब मन म नह ं सुखद तु हारा दस ू रा वचन जसमे तु म राम को भेजो वन

म भरत को राजा बना दं ग ू ा जा को भी समझा दं ग ू ा

पर राम को वन म भेजने से या पाओगी जरा सोचो मन म पर तब नह ं मुझको समझ आया सारा ह कुछ तो गँवा दया यह मेरे ह करम का फल है आज सूना सा जो यह महल है पछतावे क आग म जलते हुए हर पल ह आह भरते हुए चौदह वष तो बीत गए

और फर से सारे िमल गए पर ख म नह ं हुआ पछतावा य

रसता हो हर दम लावा

थी फर से फट

वालामुखी

कैकेई कभी नह ं रह सुखी जब फर से सीता गई वन कैकेई के मन म फर से अगन न म ह माँगती कोई वचन न लगता सीता पर लाँछन उस दे वी पे उँ गली न उठती जो म ह तब जद न करती मने ह सीता के भा य म िलख दया है जा के रहो वन म उस एक वचन क ऐसी सज़ा गलत म िसया क

या खता

इससे अ छे थे चौदह साल नह ं सीता के मन म था मलाल चाहे रहती थी जंगल म

पर रहती तो थी पित संग म वन के क

को सहती रह

फर भी पित के संग खुश रह पर अब वह कैसे सहे गी सब वन म अकेली जाएगी जब ऊपर से है वह गभवती कैसे समझे सीता का पित म चाह कर कुछ नह ं कर सकती न ज दा हूँ न ह मर सकती

अब म कुछ और न सह सकती अब दिु नया म नह ं रह सकती इस तरह से वह सोचती रहती बस प ाताप करती रहती गम का रसता रहता लावा नह ं ख म हुआ कभी पछतावा ************************ मानस क पीड़ा भाग10. कौश या क पीड़ा रा य क जगह वनवास िमला फर भी नह ं माँ को कोई िगला राम को बनना था राजा खुश हो जाती जससे

जा

शुभ मुहूत भी िनकलवाया था राम राजा बनने वाला था

माँ कौश या खुश थी ऐसे िमल गया हो

भुवन ह जैसे

पर भा य नह ं यह सह पाया राम घर म भी नह ं रह पाया अवध का राम राजा तो वह तो वहाँ क

या

जा भी न रहा

गए वन को िसया ,लखन औ राम इक रात म यह सब हो गया काम माँ क कहाँ थी िनयत खोट कैकेई को समझा बहन छोट राम भी तो उसका दल ु ारा था कैकेई क आँख का तारा था कतना करती थी

नेह उसे

वह सब भाइय से यारा था फर कैकेई ने सोचा यह राम को

या

य वनवास दया

वह कसी को तो बतला दे ती अपना प

समझा दे ती

राम बने या भरत राजा कसी को कोई फक नह ं पड़ता य मांगा उसने ऐसा वर यह सोच के आँख जाती भर माँ कौश या यूँ सोच रह और

वयं से ह कुछ बोल रह

वह भरत को राजा बना दे ती पर राम को वन म नह ं भेजती कहाँ लखन िसया औ राम ह गे

वन म कैसे रहते ह गे कोमल सी नाज़ुक कली सीता जसको था राम ने ह जीता हाथ क मेहंद भी उतर नह ं अभी तो मेरे पास भी रह नह ं कैसे पथ पर चलती होगी कतने ह दख ु झेलती होगी

मने दया था उसक माँ को वचन जब कया राम ने िसया का वरण मेर बेट होगी जानक र ा क ँ गी उसके मान क कैसे बोले थे तब िमिथलेश मेरे पास तो कुछ भी नह ं शेष सीता ह मेर स प इसको नह ं हो कोई आप हाथ जोड़ कर िगर गए थे मेरे पैरो म पड़ गए थे यह ज मेदार आपक है नह ं बेट यह अब इस बाप क है मेर

वनती इक मान लेना

सीता को बेट जान लेना यह फूल सी नाज़ुक है मन कोमल और च चल है यह अभी तो ब ची ह है उ

भी तो क ची ह है

हर बात इसे समझा दे ना जैसी है इसे अपना लेना

सीता तो है कतनी यार सार दिु नया से है

यार

मेरे पास वो बेट बन के रह कभी कोई गलती क नह ं या कहूंगी म िसया क माँ से

और दे वता समान उसके पता से ध य है वे माता पता जनक ऐसी बेट सीता कतनी छोट अभी उ पर कतनी

म है

ढ़ िन य है

वह तो है स ची पित ता उसके आगे राम भी

या करता

वह ल मण कतना बड़ा हो गया और राम के यार म यूँ खो गया नव वधु को छोड़ के गया वन म या नह ं इ छा कोई जीवन म कल हे क बात वे लड़ते थे ब चे थे झगडा करते थे आज , इतने बडे हो गए कैसे अब भी लगे वैसे के वैसे भाई क सेवा क इतनी लगन और चला गया उसके संग वन मुझे याद है जब वो ब चा था तब तो वह समझ म क चा था जब राम था मेरे पास आता ल मण को गु सा आ जाता राम को उठा के गोद से

वयं गोद म बैठ जाता नह ं जाता था अपनी माँ के पास बस राम पे ह उसे था व ास हर बात पे

ोिधत हो जाता था

फर राम ह उसे मनाता था राम के संग ह खाता था उसी से गु सा हो जाता था गर राम नह ं कभी बात करे तो वह भी नह ं सह पाता था और सदा सरल

वभाव राम

बस अपने ह काम से काम सब भाइय म समझदार कतने उ म उसके वचार मुझे याद है जब वह छोटा था तब भी तो नह ं रोता था मेर हर बात समझता था जो कहती ,वह तो करता था जब खेलते थे चार भाई

कैकेई के पास जा छुपता था जब ढू ँ ढ लेते तीन िमलकर फर उसक गोद चढ़ता था कैकेई भी नह ं रह पाती थी राम को पास सुलाती थी अपने हाथ से खलाती थी और मीठ लोर सुनाती थी राम को लेकर गोद म वह

वयं को ध य समझती थी

राम कभी उसे नह ं दखे मछली क तरह तड़पती थी मने बस राम को ज म दया कैकेई ने उसका पालन कया कतनी सरल ल मण माता उसने तो जीवन

त साधा

बेट को समझाती रहती बस उनको यह कहती रहती भाइय का मानना सदा कहना तुम दोन उनके संग रहना नह ं लखन राम को कभी छोड़ता छोटा तो भरत के संग रहता न जाने अब कैसे ह गे या खाते कहाँ सोते ह गे वन भी तो कभी नह ं दे खा कैसी है यह भा य रे खा बेटा घर छोड़ के वन को गया और सुहाग भी उजड़ गया सबकुछ होते हुए कुछ भी नह ं अब जीने क कोई चाह नह ं

न पित के साथ थी मर सकती न बेटे को घर म रख सकती हे

भु यह कैसी है द ु वधा

कतनी बड़ आ गई यह बाधा बेटे नर है ,वे रह लगे वन के क

को सह लगे

कैसे रहे गी सीता लाड़ली

जो है सदा नाज़ म पली सघन वन भयानक जानवर जसे सोच के हम जाते है डर सीता कतना डरती होगी मन ह मन वह रोती होगी कतने ह क पर कसी से

सहती होगी या कहती होगी

डरती हूँ कह अनजान म

सीता को अकेली उस वन म कभी छोड़ गए गर राम लखन रोएगी उसका कोमल है मन कहाँ वह खाना खाते ह गे बस भूखे ह सोते ह गे नह ं आती होगी नींद उ ह बस क मत को रोते ह गे राम के संग है वन म िसया पर उसके संग है उसका पया पर

या करे वह यार ऊिमला

जो जल रह है वरह

वाला

सीता को पित का सुख तो िमला पित के संग उसका जीवन खला सौभा यवती यहाँ पर ऊिमला दख ु सहती है नह ं करती है िगला उसके सामने म जाऊँ कैसे वह धैय धरे समझाऊँ कैसे कतनी ऊँची है लखन क माँ पु

को वन जाने को कहा

छोट हूँ म उसके स मुख

उसे दे ख के मन म आता है दख ु

खुशी से सुत को भेजा वन

पर नह ं लाई कभी कोई िशकन कैकेई भी कतनी दख ु ी मन म

जल रह पछतावे क अगन म मेरे सामने कभी नह ं आती पीड़ा कसी को नह ं बतलाती अ दर ह जलती रहती है आँसू ह पीती रहती है बस बोलती न ह हँ सती है बस

वयं को दोषी समझती है

कैसे उसको समझाएँ हम उसको अहसास कराएँ हम यह लीला तो वधाता ने रची बस वह तो इक मा यम ह बनी यूँ ह सोचते हुए राम क माँ काट रह थी समय अपना

पीड़ा ह समाई थी मन म बस सोच ह रह गई जीवन म पित का भी साथ नह ं था रहा सुत वयोग औ वैध य सहा िसर पर ज मेदार भार नह ं भूली मयादा सार मन म बस दख ु ह दख ु सहकर महल म ह योगी बन कर सारे कत य िनभाती है

सुत िमलन क आस लगाती है सचमुच ध य है ऐसी माँ सब कुछ था वार दया अपना फर भी नह ं कोई िगला कया नार को यह स दे श दया भारत क नार है ऐसी सीता औ कौश या के जैसी ण क खाितर है मर सकती पर फज से पीछे न हट सकती ************************

मानस क पीड़ा

भाग 11. सुिम ा का

याग

भरत को राज राम को वन मांगे कैकेई ने दो वचन मजबूर था अब राजा दशरथ वन म राम और राजा भरत पर

या करता रघुकुल र ित

ण के िलए मरो यह नीित ी राम को भी बता दया माँ का आदे श सुना दया राम तो खुश था मन ह मन खुशी से जायेगा वह वन

पर ऐसे म नह ं रहा लखन उसका तो भर आया था मन बोला म भी वन जाऊंगा भैया के बना म न रहंू गा

माँ ने सुत से खुश हो के कहा यह मेरा अित सौभा य रहा तुझ सा बेटा जाया मने जीवन म सब पाया मने जाओ भाई के संग रहना वन म उसक सेवा करना नह ं क

राम को दे ना कभी

उसके दख ु तू ह सहना सभी सीता को माँ समझ लेना

कोई उलाहना कभी न दे ना मेरे दध ू क लाज बचा लेना सारे क

को सह लेना

पर सेवा से नह ं मुँह मोड़ना ी राम का साथ नह ं छोड़ना आज मुझे दो एक वचन तेरा नह ं मैला हो कभी मन जो बीच म छोड़ के आओगे ज दा न मुझे फर पाओगे मुझे सोच है अब तेर प ी जलेगी वरह क अ न पर वह भारत क नार है और मेर बहु यार है उसे क

नह ं होने दँ ग ू ी

माँ बन उसक र ा क ँ गी दे खो ! तुम कभी नह ं सोचना यहाँ खुश रहे गी तेर माँ दख ु तो है वन को जाने का और चौदह वष बताने का पर

ण है उसे पूरा करना

जाओ तु म नह ं पीछे हटना स च कहती हूँ मुझे बड़ खुशी मुझ सी कौन माता है सुखी

जसका सुत राम का यारा है वह कहाँ कसी से हारा है ऐसे सुत नह ं होते सबके मेरे तो भा य है अ छे मेरा िसर गव से ऊँचा आज इससे बढ़ कर नह ं कोई ताज मेरा सफल हो गया माँ बनना अब तुम

ी राम के ह रहना

अब मर जाऊँ परवाह नह ं इससे बढ़कर कोई चाह नह ं मेरे सुत ने चुना सह माग नह ं उसके मन म कोई लालच सेवा म लगे है दोन सुत इक राम क और दज ू ा भरत

यह खुशी म नह ं बता सकती कसी को भी नह ं समझा सकती मेरे तो मन म आता है कतना यारा यह नाता है

जाओ तु म सदा सुखी रहना भाई भाभी को हर खुशी दे ना दे खो अब गु सा नह ं करना भाभी के गु से से डरना इक डर तु म गु सा करते हो फर कहाँ कसी क सुनते हो पर जानती हूँ राम है तेरे साथ तु ह समझायेगा यार से बात भाई क बात समझ लेना अपने गु से को हर लेना यूँ लखन को माँ समझाती है और

वयं को ध य बताती है

ल मण तो चला गया था वन ध य है सुिम ा का जीवन श ु न से भी कहा उसने समझना है भरत को अब तु मने वह यिथत है राम वयोग म नह ं बात करे अपनी माँ से हर

ण पीड़ा म रहता है

और सर को झुकाए रखता है खुद म शिम दा होता है और मन ह मन म रोता है वयं को ह दोषी माने नह ं आता कसी के भी सामने ऐसे म तुम ह हो सहाई तुम हो उसके छोटे भाई जाओ उसक सेवा म रहो

और मेर िच ता नह ं करो उस माँ के

याग के

या कहने

नह ं दे गी कसी को दख ु सहने वह सबक पीड़ा समझती है और

वयं को अपण करती है

कौश या कैकेई को उसने समझा ह था ऐसे समय म जब दोन ह सह रह थी पीड़ा ऐसे म उठाया था बीड़ा वह घर को नह ं टू टने दे गी नह ं रघुकुल को िमटने दे गी वह

वयं भले िमट जाएगी

पर जीने क राह दखायेगी वह भी तो वधवा हुई थी

और खून के आँसू रोई थी पर छोड़ नह ं थी ह मत यह तो उसक थी क मत कभी कौश या के पास जाती उसको धीरज दे कर आती कैकेई के पास कभी जाती और यार से उसको समझाती तीन बहुओं को सँभाला था रघुकुल का वह उजाला था स प दए दोन ह सुत न जरा सी भी थी मन म नफरत बहु क पीड़ा भी जानती थी और उसके

याग को मानती थी

दत ू को भी कभी भेजती वन

कैसे है िसया राम औ लखन जब दत ू ने आ के बताया था

िसया हरण का क सा सुनाया था तब सुिम ा ने कहलवाया था सुत को स दे श िभजवाया था सीता का मान नह ं जाए भले तेर जान चली जाए िसया को ढू ँ ढ के ले आना फर ह अपना मुँह दखलाना जब सुना था रावण का क सा सुिम ा को आ गया था गु सा रपुदमन से बोली थी यूँ माँ मानो सुत यह मेरा कहना सेना संग तुम तै यार रहना होगा रावण से यु

करना

फर राम को भी कहलवाया था उसको भी सब समझाया था मेरा सुत सेना संग खड़े यहाँ आ ा दो जा के लड़े वहाँ तुम कहो तो म भी आ जाऊँ अपना यु

कौशल दखलाऊँ

ाणी हूँ म भी लड़ सकती

बहु के िलए

रावण संग यु

वयं भी मर सकती लड़ना होगा

आज़ाद िसया को करना होगा रोकते नह ं राम तो लखन क माँ

आ जाती लेकर के सेना राम ने दत ू को भेजा था

मँझली माँ से वह बोला था इक वह है रघुकुल क आशा उसके िलए नह ं कोई भाषा मु कल के समय म डट रह और फज से पीछे हट नह ं दोन मांओं को सँभाला है कोई और न समझने वाला है दोन ह सुत है स प दए जाने कतने है

याग कए

मँझली माँ जो यह नह ं करती दोन माँ घुट -घुट कर मरती कभी बड़ तो कभी बन गई छोट अकेले म ह बैठ रह रोती दे खती है नव-वधु क पीड़ा फर भी उठाया कुल का बीड़ा उस

याग को कोई नह ं जानता

उस ममता को कोई नह ं पहचानता रखती है मन म सदा ह मत दस ू र क सेवा म रहती है रत ध य श ु न और लखन

ऐसी माँ ने जनको दया ज म जो सबका ह पर

हत करती है

वयं नह ं कुछ चाहती है

कोई श द नह ं माँ तेरे िलए कभी बोलो

या आ ा मेरे िलए

नह ं तेरा कज़ चुका सकता तेरा

याग और नह ं जर सकता

तेरे चरण म झुका हँू माँ यह बसता है सारा जहाँ

यह जीवन कम ऐसी माँ के िलए जो जाती है बस उपकार कए को ट नमन तुझको हे माँ पर

मा करो यहां ना आना

जैसे अब तक तुमने दे खा उन माओं को ज दा रखा जनका दल व

से टू ट गया

और पित का साथ भी छूट गया दख ु तो , हे माँ! तुमने भी सहा पर तेरा धैय बना रहा

जो तुम म धैय नह ं होता रघुकुल का ना जाने या राज काज और

या होता या

जा

अब तक तु मने है सब दे खा सबको ह मत है द तुमने और सबको ह समझा तुमने जैसे अब तक समझा तुमने वैसे ह दे खना अब आगे तुम बस अवध म ह रहना हालात को अब भी समझ लेना घर म ना पता चले कसी को रावण ने हर िलया है िसया को हम जब घर वा पस आएँगे

आकर ह सबको बताएँ गे वादा है िसया को लाऊंगा नह ं तो यह मुँह न दखाऊंगा दत ू से सुन के ऐसी बात

सुिम ा को कुछ तो िमली राहत फर जुट गई वह काम खास और बन गई ऐसा इितहास भारत क नार ऐसी है ल मण क माँ के जैसी है जो

याग के पथ पर चलती है

दस ू र के िलए ह मरती है

कोई मन म इ छा न करती है सबके क

को हरती है

इसिलए महान है वह नार वपदा उसके स मुख हार हर चुनौती को हँ स के क उस

वीकार कया

को पार कया

याग को समझा कोई नह ं

वह इक माँ थी जो रोई नह ं दस ू र का हत करने के िलए कभी रात म भी सोई नह ं

सबकुछ जसने था स प दया णाम है ऐसी माता को उस स चे

याग के आगे तो

झुकना ह पड़ा वधाता को *************************

मानस क पीड़ा भाग12. वर हणी ऊिमला "मानस क पीड़ा" के इस भाग म ल मण प ी ऊिमला क

वरह यथा का

वणन करने का एक अित लघु

यास कया है | जो नव- ववा हता हो कर भी

चौदह वष तक अपने पित से अलग रह | वनवास तो माता सीता भी भुगत रह थी ले कन फर भी वह तो खुश क मत थी

य क वह पित के साथ तो थी ,ले कन

ऊिमला महल म ह वनवासी बन कर रह गई | ऊिमला क

वरह यथा को श द

म बयान नह ं कया जा सकता , उसको महसूस करने का एक अित लघु ******************************************* भाग12. वर हणी ऊिमला सीता स हत

ी राम लखन

रहने लगे थे जाकर वन पर, ऊिमला ल मण प ी बेचैन थी महल म कतनी हर जगह ह

दखता सूनापन

नह ं लगता कह अपनापन हर

वास लखन को पुकारती थी

कैसे वह समय गुजारती थी ? भार था उसका हर इक पल

यास है |

मन िनराश दल म हलचल वह फूल सी नाज़ुक कली चल रह थी अब वरह क गली वह यार सी कोमल काया कैसा यह उस पर दन आया उतर नह ं मेहंद हाथ क और खो गई नींद भी रात क कतने ह

दल म अरमाँ िलए

ल मण के संग म फेरे िलए क मत ने

या उपहार दए

जए, तो अब वह कैसे जए वह महल क शहजाद फूल पर चलने क आद झ कार थी हँ सी म वीणा क महल का उ म नगीना थी र

से सदा लद रहती य गहन क गंगा बहती

कोमल से मुख म डल पर मीठ मु कान सदा रहती पर अब वह बन गई थी जोगन वरह म बन गई थी रोगन न

वयं को अब वह सजाती है

न हार शृंगार लगाती है बोझ लगे कपड़े तन के कहाँ अ छे लगे उसे अब गहने रोती नह ं पया को दया वचन सोचती रहती बस मन ह मन

परवाह नह ं है खाने क सोचती है कभी वन जाने क कभी याद करे बीती बात सुनहरे दन औ शीतल रात हर पल उसे याद सताती है पर नह ं कसी को बताती है बस पित का चेहरा ह आँख म रख कर वह समय बताती है वह याद कर रह पहला िमलन जब उसको दे ख रहा था लखन आँख थी उसक झुक हुई पया के पैरो पर

क हुई

या ह था वह मधुर िमलन जब ह षत था दोन का मन वधाता ने उ ह िमलवाया था सु दर संयोग बनाया था दोन म बना ऐसा बंधन य नाता खु बू और च दन था साथ लखन का सुखदाई पर कैसी आँधी यह आई ? एक दज ू े से हुए दरू

वधाता भी बन गया था

ूर

य नह ं खुशी से रह पाई जस खुशी से याह कर वह आई कतनी मन म चाह होती थी पया क खाितर सजती थी पया खुश ह गे उसको दे खकर

कतना शृंगार वह करती थी पर अब तो मन भी नह ं मानता या हाल है ? कोई भी नह ं जानता अ दर ह घुटती रहती है आँसुओं को पीती रहती है पया बसते है उसके दल म यह सोच-सोच के डरती है कह िनकल न जाएँ हलचल से इस डर से आह न भरती है कभी जाती है घर के उपवन वह भी तो अब लगता है वन वहाँ पर इक कु टया बनाती है फर यार से उसे सजाती है पया रहते है ऐसी ह कु टया म और सोते है घास क ख टया पे बस वह पे समय गुजारती है पया क सूरत को िनहारती है उसे फूल नह ं लगते सु दर काँटे दखते उसके अ दर काँट को दे खती रहती है हर पल अहसास यह करती है कस तरह से वह चलते ह गे काँटे भी तो चुभते ह गे तीन ह

कतने नाज़ुक है

कैसे यह दद सहते ह गे? यह सोच के नह ं रह पाती है कभी वह त वीर बनाती है

सीता के पैर लगा काँटा ी राम ने उसको है थामा ल मण वह काँटा िनकाल रहा भाभी का पैर सहला ह रहा पैरो म पड़े हुए छाले

कोई लाल तो कोई है काले उस दद को कभी वह िलखती है वरह क वीणा बजती है महल नह ं भाता उसको बिगया क कु टया म रहती है कहाँ भाते अब पकवान उसे खाने क थी परवाह कसे गम खाती औ आँसू पीती है बस इक मकसद से जीती है पया िमलगे उसको कभी न कभी यह सोच के ज दा रहती है फर से सुहाग सुख भोगेगी यह सोच के माँग भी भरती है पया क त वीर बनाती है वन म उसको दखाती है कैसे रहते है वन म पया फर

वयं उसे अपनाती है

खाती है बस फल औ प े वो पके है या फर है क चे इस बात क उसे परवाह नह ं इस

ेम क भी कोई थाह नह ं

कभी याद करे बचपन अपना

चार बहनो का था सपना वे रहे सदा ह साथ-साथ चाहे दन या चाहे हो रात वह सपना भी पूरा हुआ

एक ह सबको ससुराल िमला पर कहाँ साथ द द सीता जसके संग था हर पल बीता जब कभी वा टका म जाती फूल िसया को दखलाती काँटे न हाथ म चुभ जाएँ यह सोच के पीछे हट जाती चल रह होगी शूल पे िसया जसने जीवन महल म जया जसके आगे पीछे दासी बन गई है आज वह वनवासी जो पहनती रे शमी व आज पहनती केवल व कल दे ख के िच

म जानवर

मन ह मन जो जाती थी डर वह जंगल म अब रहती है जाने वह कैसे सहती है जो मखमल पर सोती थी जमी पर कदम न धरती थी वह चलती है अब शूल पर और सोती है तील पर क मत का खेल िनराला है कहाँ कोई समझने वाला है

ऊिमला क सोच गहरा ह रह सुध-बुध अपनी वह खो ह रह कभी सोचती है मन म वह भी चली जाए अब वन म जाकर वह पया से िमल आए वरह क पीड़ा बतलाए जी भर के दे खेगी पया को तभी समझा पाएगी जया को दज ू े ह और

ण यह सोचती है वयं को रोकती है

पया तो करम म अब रत है य मुझम आया

वाथ है

नह ं करम म बाधा बन सकती पया को वचिलत नह ं कर सकती केवल अपने

वाथ के िलए

पया पथ का प थर न बन सकती फर सोचती है वन म जाऊँ पया को बस दे ख के आ जाऊँ दरू से दे खूँगी पया को

समझा लूँगी इस जया को पया जाएँ गे जस पथ पर

वह पर बैठूँगी म छुपकर

उस धूल को म उठा लूँगी और माँग म अपनी सजा लूँगी माथे पे लगा के चरण रज द ु हन क सी म जाऊंगी सज कभी सोचती है वहाँ पर जाए

उस पथ के काँटे चुन लाए जस पथ से पया गुजरते है नंगे ह पाँव चलते है उस पथ पे फूल बछा आए पया के दशन भी कर आए जा के द द क सेवा करे उसका भी कुछ दख ु दरू करे

रहकर वह भी पया के साथ सेवा म बँटाएगी उसका हाथ नह ं वह कुछ कसी से बोलेगी इक कोने म बैठ रहे गी वह दासी बनकर ह रहे गी और सबक सेवा करे गी पया के भी चरण दबाएगी तभी तो खुश रह पाएगी सारे क

को सह लूंगी

पर , पया के साथ रहूंगी

कभी सखी को अपनी बताती है वरह क पीड़ा सुनाती है आँख म तो आँसू नह ं आते बेसुध हो कर िगर जाती है वयं को समझाती है कभी ऊिमला नह ं डोलेगी अभी पया के िलए वह रहे गी ज दा नह ं वरह बन सकता फ दा कभी न कभी तो िमलगे हम तब तक तो म रखूँगी दम

म पया क राह िनहा ँ गी उसके िलए खुद को सँवा ं गी कभी दल म धड़कन बढ़ जाती यह सोच सोच के घबराती कैसे बीतगे चौदह वष या कभी होगा जीवन म हष कभी सपने म ह डर जाती भावुकता से भर जाती पर वह तो कुछ नह ं कर सकती न ज दा है न ह मर सकती नह ं बीते समय बताने से यूँ हर पल घबराने से लगता व

जैसे थम सा गया

सूय का रथ जैसे

क सा गया

रात म चंदा को दे खती और कभी उससे यह पूछती तुम मेरे पया को दे ख रहे तो बोलो ! वह

या कर रहे ?

कभी याद मुझे वे करते है मेरे िलए आह भरते है या वह भी तु मको दे खते है ? कभी मेरे िलए भी पूछते है ? मेरे पया को यह बता दे ना और अ छे से समझा दे ना ज दा है अभी उसक ऊिमला मुझे नह ं है उससे कोई िगला म जैसी भी हँू रह लूँगी

वरह क पीड़ा सह लूँगी पर अपना करम तुम छोड़ना नह ं ण िलया जो तुमने वह तोड़ना नह ं मेर परवाह नह ं करना सेवा क राह नह ं तजना नह ं बीच पथ म घबरा जाना नह ं छोड़ के उनको आ जाना ी राम िसया को ते रा साथ चा हए ! बनो उनका दज ू ा हाथ कभी मन म मैल नह ं लाना न दलवाना कोई उलाहना कभी बोलती उिम तार से जाओ तुम सब वन म जाओ जंगल क काली रात म पया के पथ पर तुम बछ जाओ िसया राम तो सो ह रहे होगे पया बाहर ह बैठे होगे वह मेरे िलए सोचते होगे मन म बात करते होगे जा के तुम उनको समझा दो और मेर तरफ से बतला दो कभी बीत जाएँगे चौदह साल नह ं लाएँ मन म कोई मलाल हर सुबह दे खती सूय करण

मेर तरफ से छू दो पया के चरण कभी प

य से करती बात

न दन ह न बीते रात

कहती प

य से! हे प ीगण

उड़ कर जाओ तु म उस वन जहां पर रहते है पया लखन जाओ उ ह न हो कोई उलझन मेरा स दे स बता दे ना कोई यार का गीत सुना दे ना जो सुन कर वह खुश हो जाएँ कुछ समय तो मन को बहलाएँ कभी आता है उसके मन म पया रहते हुए ह यूँ वन म

मुझको तो भूल गए होगे

कभी याद भी नह ं करते होगे दज ू े ह और

ण यह वचार करे वयं का ह ब ह कार करे

ऐसा तो कभी नह ं हो सकता मुझको नह ं कभी भुला सकता वह फज के हाथ बँधा है अभी पर िमलगे मुझसे कभी न कभी कभी तो हो जाएगा िमलन मन म थी इक आशा क िलखती है कभी

करन

ेम पाती

फर खुद ह उसे जला दे ती कभी दत ू को वह बुलाती है उसको स दे श सुनाती है फर

वयं ह उसे रोक दे ती

और कभी उस से पूछती तुम तो उसे िमलते रहते हो

सारे स दे श जा कहते हो बोलो कभी पया ने क है बात कैसे कटते है दन औ रात कभी मेरा नाम वो लेते है या कोई स दे श वो दे ते है ? सोचो म रहती थी गुम - सुम आँख म बसे थे पया हरदम मन म दर म पया को बसाए हुए उसी क याद म समाए हुए रह काट समय जैसे तै से बस वरह म रहती ऐसे ध य वह भारत क नार जसने अपनी ह खुशी वार कहे कैसे उस नार क तड़प कहने के िलए नह ं कोई श द बस वह वरह म जलती रह इ तजार पया का करती रह *********************** मानस क पीड़ा भाग13. िमिथलेश क पीड़ा

जनक दल ु ार सीता यार

फरे वन म मार मार नह ं रहे है राजा दशरथ िलया

या रानी ने यह



या हो गया है यह रघुकुल म उस जैसा न कोई कुल भूतल पे केवल माँ का ह रखने को मन गए वन को िसया राम औ लखन सुन कर जनक अवध म आए सीता क माँ को साथ म लाए कैसे सहे बेट का दख ु

जसने पाए ह थे अनुपम सुख कतने ह चाव से याहा उसे

डोली म वदा कया था जसे जसको नाज़ से है पाला उसके भा य यह दन काला य मुझे यह दन दखलाया

भु

य वाम हुआ हे िशव - श भु

जानता हूँ सीता करती है श

वयं श

क भ

है धरती सी वशाल

दया

मन म केवल है उसके दया हर पल मुझे उसने द खुशी उसे पाकर म था कतना सुखी जस दन से िमली थी मुझे िसया तब से लगा मने भी जीवन जया खेलती थी मेरे आँगन म और बसती है सबके मन म

माँ क सयानी बेट सीता उसको बस राम ने ह जीता वह तो िशव धनुष उठा सकती जो बनी अब रघुवर क श जब िमली थी मुझको धरती म सो रह थी पड़ थी मटक म पाकर ऐसा उपहार अनुपम खल गया था मेरा रोम रोम नह ं यार म कोई कमी छोड़ उसक हर खुशी लगी थोड़ सीता तो धरती क बेट अब माँ क बाँह म लेट खेलती इक ठ चार बहने सु दर से पहनती थी गहने कभी गु डया और खलौन के संग कभी त वीर म भरती रँ ग कभी बजाती थी िसतार हँ सी म वीणा सी झँकार इन चार का होता था अरमान बनाएँ वे अ छे से पकवान कागज़ के कभी फूल बनाती और रं ग से उ ह सजाती कभी बनाती वँदनवार मँगल करती घर का

ार

कभी पु पवा टका म जाती पूजा के िलए फूल ले आती म दर को तो

वयं सजाती

और पूजा क थाली लाती पर अब कैसा भा य हो गया य िसया का सब सुख खो गया वह मेरे ह पास आ जाती पर यूँ नह ं वो वन को जाती दख ु ी हो रहे िसया के पता

और समझाती िसया क माता वन भा य िसया का , यह दख ु है

फर भी िसया को अनुपम सुख है

नार हर दख ु सह जाती है

जो पित का साथ वह पाती है बेशक नार म श

है

पर पित ह असली भ

है

पित बना न अ छा लगे कोई सुख पित वयोग ह सबसे बड़ा दख ु सीता तो फर भी खुश वन म

पित संग है तस ली है मन म पर सोचो वह बेट ऊिमला उसको कैसा भा य है िमला वरह अ न जलती रहती दख ु भी तो कसी से नह ं कहती ध य है मेर बेट सीता

जसने है सबका दल जीता ऊिमला का कतना बड़ा बिलदान दोन कुल का है रखा मान वरह का इक - इक पल भार तज द उसने खुिशयाँ सार

मुझे गव है

यार सी ब ची

कतनी सं कार क स ची नह ं भूली वह कोई मयादा पूरा कर रह है वो वादा जो उसने ल मण से कया और साथ दे ने का वचन दया यूँ कह तो रह थी सीता क माँ पर भर गई थी उसक अं खयाँ आँख से अ ु लगे बहने और लगी थी फूट-फूट रोने कौन यहाँ कसे समझाए? यह बात समझ म नह ं आए नह ं मन से िमटता स ताप जाने कया है कौन सा पाप बेशक नह ं िसया के ज मदाता वह तो है

वयं श

माता

जस दन आई अपनी गोद झोली ह खुिशय से भर द या पावन ह वह पल था जब मने पकड़ा हल था पड़ा था िमिथला म अकाल भूख से सबका बुरा हाल तब मने मन म सोचा था खेत म हल को जोता था िनकला था भूिम से मटका मेरा हल वहाँ पे था अटका दे खी उसम यार क या

यह थी वह धरती क त या ऐसी यार सी सुता पाकर खुश कतना था महल म आकर धन -धा य क ऐसी वषा हुई नह ं कसी को कोई कमी रह

हुआ था अपना रा य खुशहाल जहां था भूख से बुरा हाल पड़े िसया के चरण पावन पावन हो गया राजा का भवन सुनते िसया क तुतली बात उसे दे खते ह कटती रात वह समय बीता कतनी ज द इक दन िसया पया के घर चल द अब वह यार सी जनक न दनी रघुकुल क थी बहु बनी

याद करे िसया का बचपन खो गया राजा रानी का मन िशव धनुष िसया ने उठाया था तब मेरे मन म आया था िसया का उसी से याह होगा जो इतना श

शाली होगा

इस धनुष को तोड़ सकेगा जो िसया को भी तो वरे गा वो यह भी सीता क श मन म

ी राम क भ

जब धनुष य यह उस श

थी थी

था करवाया क थी माया

राम ह तोड़े िशव धनुष इसी म सीता भी थी हष नह ं िसया को और कोई भाया

तभी तो कोई धनुष न छू पाया िसया राम का ज म का नाता वह जगत पता , वह जग माता यह उन दोन क थी लीला था परशुराम भी पड़ा ढ ला मुझे गव है मेर सुता जानक रखी है लाज कुल के मान क पर कैसे रहे गी वह वन म यह सोच के चैन नह ं मन म कैसे सह जाऊँ बेट का दख ु

माना उसको पया के संग सुख पर म भी यह कैसे भूलूँ और इतना स

कैसे कर लूँ

मेर वह बेट वन म फरती जो ऊँची आवाज़ से भी डरती और वह जंगल कतना भयानक पर

या करे अब यह राजा जनक

चाह कर भी कुछ नह ं कर सकता न जीता हूँ न ह मर सकता माना श

बेट सीता

पर मेरे िलए वह मेर सुता कोई इ छा नह ं अब जीवन म बस एक सोच है इस मन म इक बार िसया हम िमल जाए

तो जीवन सफल ह हो जाए ************************

मानस क पीड़ा भाग14. िच कूट म नह ं िमटता है स ताप कभी करते रहते है वलाप सभी दशरथ का दख ु सब भूल जाते जो राम को महल म पाते कौन सा दख ु दोन म बड़ा क

नह ं

का भी भरा हुआ था घड़ा

वयं को कोई समझा सकता

नह ं दद कोई बतला सकता महल म तो हर जन था दख ु ी नह ं अवध क

जा भी थी सुखी

नह ं कोई रौशन करता था घर घुट घुट कर ह सारे रहे मर

अब सोचता था भरत मन मे य न वह भी जाए वन मे वह भी रहे गा अब राम के संग वरह क नह ं लड़ जाती जंग वन जाने को तैयार हुआ बेगाना था घर-बार हुआ

बोली उससे थी कौश या मेरा नह ं लगे यहां पे जया

म भी तेरे संग जाऊंगी तभी म सुत से िमल पाऊंगी दे खी माँ सुिम ा क आँख वह भी तो भरत से यह माँगे छुपी खड़ थी लखन प ी

उसके मन म आशा कतनी बोला यूँ भरत से श ु न हम चलगे, हमारा भी होगा िमलन कैकेई ने नह ं जुबां खोली सब चले तो सबके साथ हो ली िनकले जब महल से बाहर चला साथ म पूरा ह अवध नगर जा रहे सब वन के पथ पर पर नह ं बैठा था भरत रथ पर जस पथ पर राम के चरण पड़े उस पथ के तो है भा य बडे केवट भी िमला वन क राह म वह चला सत दशन चाह म हुआ साथ जो र ते म आया वन का माग भी बतलाया

माता पता थे िसया के भी साथ चल रहे बेशक वन म थी रात जा रहे

ी राम को याद करते

पीड़ा म सभी आह भरते पहुँचे सब उस वन क कु टया

जहां पर थी घास क पड़ ख टया लखन बना रहा धनुष वाण

पूजा म य त थे तब

ी राम

िसया फुलवार से फूल चुनती पित के चरण पर आ धरती या

वग बनी थी वह कु टया

जहां जनक क

यार सी ब टया

िच कूट क वह घाट पावन हो गई उसक माट जहां रहते है िसया राम लखन पावन हो गया कतना वह वन जैसे ह दखा था वह पवत धरती पे हो जैसे कोई

वग

जहां जनक दल ु ार है बसती वहां तो

कृ ित भी हँ सती

दे खी कतनी वहाँ चहल पहल उस जंगल म भी था मंगल उस पवत क शोभा के स मुख फ के थे सारे ह राजमहल चार ह तरफ फैली थी सुग ध और समीर चलती म द म द वृ लगे

क ऐसी घनी छाया वग है चल के यहाँ आया

प ी थे चहक रहे ऐसे गीत सुनाते हो कोई जैसे कृ ित ने छे ड़ा था साज़ ध य थी पवत घाट आज दरू से दखे भाई राम लखन

जा भरत ने पकड़े राम चरण

आँख से बह रहा अ ुजल धुल गए थे राम के चरण कमल यह दे ख के भावुक राम का मन रो रहे दे ख के उ ह लखन सीता तो सबसे लगी िमलने सबके ह नैना लगे रोने माताओं का दे खा वधवा



हम छोड़ के चले गए है भूप आँख उनक पथराई हुई

और मन म भी घबराई हुई

यह दे ख के राम लखन रोए उ होने अपने है पता खोए हुए या वे दोन घर से दरू वधाता भी हो गया

ूर

नह ं बोलने को रहे कोई श द कृ ित भी दे ख के हुई

त ध

थम गई थी सार च चलता क गया सूय का रथ चलता फर राम ने सबको समझाया िनयम

कृ ित का बतलाया

जो आया है वो जायेगा यहाँ कोई भी नह ं रह पाएगा इक दन तो जाना है सबको अब समझाना होगा मन को यह कुदरत का िनयम अटल मृ यु आएगी हम इक पल कैकेई खड़ िसर को झुकाए हुए

हाथ से मुँह को छुपाए हुए दय म था बस पछतावा

और पीड़ा का रसता लावा आँख म आँसू नह ं रहे पछतावे म सारे ह बहे और जुबां भी हुई मूक हुई

य उसी से ऐसी चूक

राम ने दे खी छोट माँ प थर सी खड़ थी वह भी वहाँ आँख सूखी उतरा चेहरा दल पर िलए घाव गहरा दख ु से दोन जोड़े हाथ जुबां नह ं दे रह साथ

िलए पकड़ राम ने माँ के चरण नह ं करो वो बीती बात

मरण

तुम वह हो छोट माँ मेर मुझे आज भी चा हए गोद तेर स च कहता हूँ , म खुश हूँ वन म नह ं रखो कोई तु म दख ु मन म पर गोद म तेर नह ं भूला

फर से माँ मुझे वैसे ह सुला म सब कुछ छोड़ के रह सकता पर तेरा यह

प न सह सकता

जो माँ सदा हँ सती रहती और घर म सबसे कहती जीना है तो हँ सते हुए जीना उपहार म सबको हँ सी दे ना

कतना ह रोई है वह माँ रो रो कर सूख गई अं खयाँ अब इसके बाद नह ं रोना रो रो के न

खो दे ना

अब धीरे से कैकेई बोली और मु कल से जुबान खोली मने तु म पर है कया जु म नह ं इन ज म का कोई मरहम मा के तो म नह ं का बल पर कहती हूँ आज भर मह फल वा पस लेती हँू अपना वचन

चलो महल म छोड़ के अब यह वन नह ं म वयोग अब सह सकती तु ह बन दे खे नह ं रह सकती सबका दख ु नह ं दे खा जाता

कर जो र तु ह यह कहे माता सदा माना , अब भी मानो मेरा कहना स चा जानो मने जो कया जीवन म पाप हो सकता वह तभी माफ जो तुम घर वा पस आओगे और अवध रा य अपनाओगे नह ं ,नह ं माँ यह नह ं हो सकता अब राम तो यह नह ं कर सकता दया मने पू य पता को वचन चौदह वष तक रहूंगा वन

उस वचन को अब न तोड़ सकता

नह ं रघुकुल र ित छोड़ सकता बताने ह गे मुझे चौदह वष तभी पता क आ मा होगी खुश वादा जब वा पस आऊंगा तो अवध रा य अपनाऊंगा यह दे ख के बोला भरत भाई नह ं मेर

ललचाई

नह ं राजा बनने क कोई इ छा समझो इस भाई को स चा म नज़र भी नह ं िमला सकता नह ं कसी के सामने आ सकता कुछ नह ं चा हए तुम से बढ़कर तुम आओ घर यह अित सु दर पता का वचन िनभाना है कसी को वन म रहना है म भी तो उनका बेटा हूँ

तेर जगह म वन म रहता हूँ यहाँ पूर अविध बताऊंगा

नह ं बीच म वा पस आऊंगा तुम जाओ लखन िसया भाभी के संग भर दो अवध म खुशी के रं ग म अकेला यहाँ रह जाऊंगा स च कहता हूँ वचन िनभाऊंगा पर राम कहाँ मानने वाले वह तो बस

ण पालने वाले

नह ं मानी कोई भरत क बात रहे गी चौदह वष यह रात

बोली कौशल इक काम करो मुझे भी अपने साथ रख लो नह ं जानते तु म , या सुत वयोग माँ के िलए सबसे बड़ा रोग तेरे साथ तो म खुश रह लूँगी वन के क

को सह लूँगी

ी राम से बोला श ु न मुझे भी तु म संग रहना है वन जाओ वा पस तु म भाई लखन मेरा वहाँ पर नह ं लगता मन सुिम ा बोली ,बेट सीता तुमने तो सबका मन जीता तुम चलो वा पस यह होगा उिचत ल मण यहाँ राम क सेवा म रत जानक से बोला जनकराज अब आ के रहो तु म मेरे पास पर नह ं माने िसया राम लखन अब उन तीन को

य है वन

वहाँ सारे ह बितयाने लगे ी राम के दशन पाने लगे सब जन

तीत करे ऐसे

िसया राम है उनके साथ जैसे कोई बेटा िम

कोई भाई

जैसी जसक भावना आई ी राम का दखा वह य लगता था जैसा

प उ ह प ज ह

सीता ने दे खी बहन ऊिमला

जल रह जो वरह क

वाला

चेहरे पे िलए थी बस उदासी लग रह थी वह भी वनवासी वह

प तो उसने बनाया था

जो

प पया ने अपनाया था

दे ख के यह उिम का यार हुआ सीता को गव अपार

ले गई उसे पास अपनी कु टया जहां पर थी घास क बनी ख टया साथ म

त ु क ित , मा डवी

तीन बहने िसया क लाड़ली िसया यार से गले लगाती है और तीन को समझाती है पित

ेम से बढ़कर कुछ भी नह ं

इस सा कोई जग म स च भी नह ं रहना जीवन म तु म वैसे पया रखगे तुमको जैसे जानती हूँ कतना यिथत भरत श ु न भाई क सेवा म रत ऐसे म बरतना समझदार पित क तुम पर ज मेदार पित क हालत को समझ लेना नह ं दे ना कोई उलाहना पित के दख ु म साथी बनकर

दे ना साथ सदा संग म चलकर वह होती है स ची अधािगनी जो बनी रहे पया क संिगनी

सुख दख ु म जो साथ िनभाती है वह तो प ी कहलाती है और

या कहँू म तुमसे ऊिमला

तु ह तो भा य म वरह िमला म पित संग नह ं कोई दख ु है

पित स मुख यह अनुपम सुख है नह ं तुमसा दख ु ी है आज कोई उसे दे ख के सीता भी रोई

पर तुम हो जानक क बहन और तुमसे मेरा है यह वचन इक दन िमलेगी तु ह खुशी अन त तेरे क

का होगा अ त

तब तक जैसे भी सह लेना पया क याद म रह लेना वरह से नह ं डोले यह मन तेरा है , तेरा रहे गा लखन िमली लखन से ऊिमला जब वन म कतने दोन

याकुल मन म

फर भी ऊिमला ने कहा



नह ं छोड़ना यह उ म काय कहा लखन ने, उिम न घबराना इक दन िमलन होगा अपना मन म यह अब व ास रखना और आँख म रखना सपना यूँ ह समझते -समझाते कतने ह

दन वन म बीते

ी राम ने सोचा अब मन म

ऐसे नह ं जाएँ गे सब वन से भरत को राम ने समझाया और यह आदे श भी सुनाया जा कर के रहो अब राज महल दे खो अवध राज जो नह ं जंगल बन राजा के रा य कैसा बन पानी मछली जैसा समझो तुम वह ज मेदार जहाँ रहती है

जा सार

घर जाने क नह ं थी इ छा शेष या करे ? भाई का था आदे श बोला ! म वा पस जाऊंगा पर राजा नह ं बन पाऊंगा मुझे यह चरण पादक ु ा दे दो

मुझ पर इतना उपकार कर दो रा य म यह

वराजेगी

राजा क जगह पर साजेगी पहनाई केवट ने राम चरण जब आया था

ी राम शरण

वह चरण पादक ु ा िलए िसर पर

जा रहा था भरत अयो या नगर रो रो कर सारे वदा लेते अ छा होता वह पर रहते पर

या करे ? राम नह ं माने

दख ु ी मन से वा पस लगे जाने

जैसे सब जन थे अवध को चले िसया राम लखन वन से िनकले

छोड़ वह िच कूट घाट हो गई पावन वहाँ क माट उस घाट ने दे खे कतने दद ध य उस िच कूट क धरती उस माट ने कतने ह आँसू पए जो एक इितहास बन के रह गए गवाह दे ता उसका कण -कण यहाँ पड़े थे िसया राम के चरण दे खा यहाँ भरत राम सँयोग फर हमने सहा

ी राम वयोग

हम वह है उस घाट क धूल िसया राम चरण नह ं सकते भूल कतना पावन है वह पवत जहां लखन,राम सेवा म रत ऐसी भूिम को को ट नमन जहाँ बसते है िसया राम लखन इसक रज जो म तक पे लगे तो सोए हुए भा य भी जगे ******************************** मानस क पीड़ा भाग15.

ी राम वैदेह

यथा

वन म काट रहे वनवास नह ं हुए थे कभी उदास

लगता उनको वन भी यारा यह पे था कुदरत का नज़ारा

पशु प ी जी ज तु सारे लगने लगे थे यारे - यारे या त

लता औ

या जल झरने

लगने लगे थे सारे ह अपने राम लखन िसया रहे जहाँ पर वन भी

वग था हुआ वहाँ पर

घर सा यारा लगता था वन

खुश था उन तीन ह का मन पर होनी कुछ और िलखी थी अनहोनी कोई कहाँ दखी थी भा य म तो क

िलखा था

वधाता ने जो िलख रखा था दे खा था सोन मृग िसया ने चाहा उसके भोले जया ने कतना यारा मृग यह सु दर ला दो रखूंगी कु टया के अ दर सुनी राम ने िसया क बात िमली हो जैसे कोई सौगात पूर करे गा िसया क चाह धनुष उठा के चला उस राह भाग रहा था मृग जस राह पर लखन िसया बैठे थे घर पर मृग नह ं,वह तो

वयं काल था

लंके र का बछा जाल था मृग भागा जहां वन था सघन मरते हुए बोला ! हे लखन

समझा लखन यह भाई िच लाया

उस पर है कोई संकट आया लगाई लखन ने ल मण रे खा िसया ने उस रे खा को दे खा इस रे खा को पार न करना और कसी से न तुम डरना रावण साधु वेष बना कर आया िसया बैठ थी जहां पर बोला! कुछ खाने को दे दो भूखे साधु का पेट तो भर दो ार से खाली कोई जाए जानक यह कैसे सह पाए ल मण रे खा को जब तोड़ा भा य ने भी साथ था छोड़ा हर िलया िसया को अब धोखे से राम लखन थे नह ं मौके पे सीता को जब गायब पाया राम लखन का मन घबराया हे खग मृग हे भँवरे बोलो कहाँ है सीता भेद तो खोलो रो रो कर यूँ राम पुकारे फरे वन म मारे मारे आया िसया पे कैसा संकट बहे अ ु

य कोई पनघट

य छोड़ मने िसया अकेली अब जो बन गई एक पहे ली र ा उसक न कर पाया य महल से वन म लाया?

भटक मेरे साथ वो वन म इक व ास िलए थी मन म पित के होते कैसा डर जहां पित वहां वन भी घर कतना उसका अटल व ास इसी पे काट िलया वनवास कया था मने िसया से वादा अपना दख ु सुख आधा आधा सारे ह बंधन तोड़गे

पर न कभी साथ छोड़गे य नह ं आया मुझे मृग नह ं , वह

याल

वयं है काल

छूट गया सीता का साथ हुई

य यह अनहोनी बात

कस मुँह से म घर जाऊंगा

और कैसे यह बतलाऊंगा खो द मने अपनी प ी जो बनी थी मेर अधािगनी रह िसया बस मेर हर पल मेरे ह िलए छोड़ा था महल बस इक मेरे साथ क चाह चुनी िसया ने काँट क राह उसका कतना स चा यार तज दया था सारा घर बार वन म भी तो खुश रहती थी कभी िशकायत न करती थी मार िलया उसने अपना मन

पित

ेम अनमोल र

धन

सहती रह उफ् तक भी न क यार क खाितर सब सुख तज द पर म

य बन गया अनजान

य नह ं िसया का रखा

यान

न करता म कोई भूल न चुभते यह वरह के शूल राम मन म पछताते रहते भाई से अ ु छुपाते रहते आँख बस राह पे रहती नैन से जल धारा बहती दल म उठते दद अपार दख का भरा हुआ भ डार ु

नह ं जाती वो मन से याद कए थे इक दज ू े से वादे

बेशक उनके भा य म जंगल पर रहते थे खुशी से हर पल रहा िसया का मुख मु काता अब यह वयोग नह ं सहा जाता खान पान न मन म भाता दख ु इक पल भी दरू न जाता हर धड़कन म िसया का नाम

नह ं है मन म तिनक व ाम कहाँ से िसया को ढू ँ ढ के लाए है कोई , जो उसका पता बताए वरह दद हर पल तड़पाता मन इक पल भी चैन न पाता

प ाताप और वरह

वाला

कहाँ था कोई समझने वाला मन म राम घुलते ह रहते वरह

वाला म जलते ह रहते

ढू ँ ढे सारे जंगल जंगल जहां लगे कोई भी हलचल पूछे हे पशु प ी बोलो कहाँ िसया कुछ तो मुँह खोलो इक दन राम भी सफल हो गया य जानक का पता चल गया बताया जब हनुमान ने आकर दे खी िसया लंका म जाकर वरह

वाला जलती रहती

राम राम ह जपती रहती न बोलती वो न खाती है सारा दन रोती रहती है राम ह हर धड़कन म उसके पर अब है रावण के बस म िस धु पार सोने क लंका बजता वहाँ रावण का डं का भूखी यासी िसया रहती है अकेले ह दख ु को सहती है रा सी वहाँ पे दे ती पहरा

सीता माता का दख ु गहरा करती रहती है प ाताप

मन से नह ं जाता वलाप य तोड़ थी ल मण रे खा

य मने ह सोन मृग दे खा य नह ं रावण को प हचाना य न लखन का कहना माना य इ छा क मने मन म य भूली , क हम है वन म न खाती न कुछ पीती है इक व ास पे ह जीती है राम वहाँ पर आएगा उसको वा पस ले जाएगा जब म जा के माता से िमला तभी जाके उसका

दय खला

बोली! अब मुझको

ढ़ व ास

ी राम है मेरे आस पास नह ं हुए कभी वो दल से दरू हुआ

या जो आज भा य

ूर

एक दन तो होगा उ जयाला िमट जाएगा यह तूफां काला ी राम से जाकर कह दे ना मेरा स दे शा दे दे ना जो मुझ पर उनको व ास तो बैठ है िसया लगा के आस जो मुझ पर जरा सा भी स दे ह तो अभी

याग दँ ग ू ी यह दे ह

िसया राम क है ,राम क रहे गी पित के िलए हर दख ु को सहे गी जो उनको मुझपे दया आए तो ज द लंका आ जाएँ

म राम के साथ ह जाऊंगी नह ं तो अब जी न पाऊंगी अस

है िसया राम क

यथा

नह ं कह जाती है उसक कथा पर दोन का व ास अटल वरह म काट रहे हर पल होगा कभी उन दोन का मेल यह भी तो िसया राम का खेल उनक लीला तो वह जाने पर अपना नह ं जया माने बेबस हो भाव भी बहते है और िलख दे ने को कहते है बस द है भाव को वाणी नह ं कह कोई कहानी न कहने का कोई

योजन

बन कहे भी नह ं मानता मन मानस म भरा हुआ अमृत वयं का य ी राम वृत

***********************

मानस क पीड़ा भाग16. द ु वधा म

ी राम(भाग 1)

ी राम जय राम जय जय राम करती क प सेना िसंह नाद

करने को चढ़ाई लंका पर आ पहँु चे ह सागर तट पर

वानर भालू औ जा बवान

अंगद नल नील औ हनुमान सु ीव लखन के म य राम नह ं है उनके मन म व ाम दे खते हुए िसंधु अपार

कैसे उतर सागर के पार यह है अिधक िचंता का वषय फर करने लगे सागर क

वनय हे र ाकर तुम बनो सहाय लंका जाने का करो उपाय कर जो र राम बोले स वनय हे िसंधु, तुम हो सदा अजय

अपना नर धम बचाने को सीता को मु

कराने को

लंका जाना मजबूर है उसके िलए माग ज़ र है तुमको हम पार कर कैसे? उस ओर पहँु च जाएँ जैसे

हो उिचत अगर माग दे दो उस के िलए चाहो जो वार ले लो पर सागर ने नह ं सुनी वनय और राम का भर आया

दय

आँख म भर आए अ ुकण यह दे ख के कु पत हुए ल मण

भैया नह ं वनय कोई माने

ताक़त को ह सब प हचाने यह कह कर उठा िलया धनुष दर गये दे व मुिन औ मनुष हो



लखन बोले ये वचन

िगर गया

भु का जो अ ु कण

म भैया के इक आँसू पर सूखा दं ग ू ा तु मको जलधर

इक बाण से तु ह सूखा दं ग ू ा पल भर म कर

वाह दं ग ू ा

यह सुन कर िसंधु

कट हुए

कर जो र के करने लगे वनय मा, मा हो अब सृ

मा नाथ

मा करो मेरा अपराध का िनयम है अटल

नह ं माग दे सकता है जल हाँ एक उपाय बता दं ग ू ा

उस ओर तु ह पहुँचा दं ग ू ा काय भी िस सृ

हो जाएगा

का िनयम बच जाएगा

नह ं होगा कोई भी उ लंघन ख़ुश ह गे दे व मुिन औ जान नल नील यहाँ ह दो वीर सकते ह जल का सीना चीर प थर से पुल िनमाण कर वशाल िसंधु को पार कर म दे ता हूँ दोन को वचन नह ं डू बगे जल म पाहन

जल म प थर तर जाएँ गे फर आप पार जा पाएँगे राम नाम अं कत प थर सेतु बन जाएँ गे जल पर यह सुन कर िसंधु से राम लखन ख़ुश हो गये दोन मन ह मन िसंधु बोला ; अब िशव शंकर को मना लो तुम हे

ी रघुवर

यहाँ िलंग बना कर िशवजी का और जाप से उनक करो पूजा िसंधु पर सेतु बाँधने के िलए िशव शंकर क तुम करो वनय हे राम ;तुम िशव को मनाते रहो ल मण तु म सेतु बांधते रहो यह अित उ म ,बोले रघुवर यह होगा ,िसंधु को दया उ र सेना संग लखन गये अ वल ब राम ने

था पत कया िशव िलंग

वानर भालू प थर लाते और राम -राम िलखते जाते नाम क श

से

तर

तर गये ह दे खो पानी पर रखते प थर

य नील नल

लगता फट गया िसंधु का जल करते हुए राम राम जयघोष

नह ं सेना को रहा कोई होश न जाने कैसी श

आई

जो िसंधु पर भी वजय पाई ी राम ने कया अखंड जाप तो

कट हो गये िशवजी आप

बन गया वहाँ िशव भ

का घर

बोले माँगो कोई मुझसे वर रघुवर ने जो दे खे िशव शंकर बोले, आप हो मेरे ई र 'रामे र' उनका हुआ नाम कर जो र के बोले फर

ी राम यु

लड़ना है रखने को धम

पर नर संहार नह ं मेरा कम यु

से होगा कतना वनाश

कतन क

बछ जाएगी लाश

कतने घर हो जाएँगे सूने वधवा बन जाएँ गी सुहािगन भाइय को तरसगी बहन कुरलाएँगे ब चे न हे होगा कतना ह नर संहार कतने जीव का मुझ पर भार आएगा यह है अटल िनयम कैसे जी पाऊंगा म जीवन प ी के िलए क ँ अ याचार नह ं, नह ं मेरा ऐसा वचार वनाश नह ं है मेरा कम नह ं लड़ू ं तो जाता है नर धम हुआ नार जाती पर अ याचार सह जाऊं नह ं उ म वचार

म यु

वनाश नह ं कर सकता

नह ं अ याचार भी जर सकता द ु वधा म फँसा है मेरा मन

करपा करो मुझ पर हे भगवन

बंद हो जाए जससे अ याचार न हो जससे कोई नर संहार न रोए बेटे को कोई माँ न दख ु ी हो भाई के िलए बहना न रोएँ कोई ब चे न हे

न वधवा होये सुहािगन यह सुन कर के शंकर बोले तुम स य हो स य िनभाओगे जानता हँू तुम स य के िलए मरोगे या मार जाओगे

नर वध िन य अनुिचत होगा पीछे हटना

या उिचत होगा?

पापी का जो साथ िनभाता है वह भी पापी कहलाता है नारायण हो नर वेश म तु म सीता भी नह ं साधारण जन वह श

है माता सीता

जसको केवल तुमने जीता जसने तु ह सब कुछ स प दया और जीवन तेरे नाम कया तुम उसे छोड़ दोगे रघुवर फर कया रावण का वध तो ज़ र है

य तुमने उसको वरन

नर वध बस इक मजबूर है फर उनका तो अ छा कम होगा नारायण जब स मुख होगा जस नाम से क

कट जाते ह

सब पाप दरू हो जाते ह वह

वयं जब सामने ह होगा

इससे अ छा अब तो

या कम होगा

ी राम ने ठान िलया

कहना िशवजी का मान िलया तैयार हुए लड़ने को यु

कर दया िशवजी ने मन को शु नह ं रह मन म अब कोई द ु वधा यु लड़ने म हो गई सु वधा

अब

वयं यु

को जाएँगे

और पाप को मार भगाएँगे ***************************************

मानस क पीड़ा भाग17. द ु वधा म रावण

मन उदास है सोच गहर दशमुख क

कह ं ठहर

अब जा कर अपने सोन महल चेहरे पे उदासी, रहे टहल य बु

मेर गई मार ?

भूली

य मयादा सार ?

बस एक बात से कु पत हो कर य ले आए सीता को हर कर? य सोच-समझ अपनी खोई? जब बहन आ के स मुख रोई सोचा ह नह ं था

या मसला?

बस मन म भर गया था बदला कहाँ रहा रावण अब

ानवान

द ु कम तो करते ह अनजान सीता है जग-जननी माता और मेरा उससे है यह भूल गया

या नाता?

य दश-आनन?

मयादा का कर बैठा हनन राजा का करम नह ं मने कया जनता को

या संदेश दया?

य बुरा करम म कर बैठा? माता सीता को हर बैठा या क ँ ? नह ं आ रहा मन म बस िचंता है हर धड़कन म कहाँ रखूं? िसया को नह ं जानता छोड़ दं ू ऐसे, मन भी नह ं मानता मने ग़लत कया ,इसका दख ु है पर दे खूं, जनता का

या

ख़ है ?

म ग़लत हूँ यह नह ं कह सकता ऐसा संदेश नह ं दे सकता

दखा दं ू कैसे यह कमज़ोर ? क क है मने कोई चोर

जनता

या सोचेगी मुझपर?

इक राजा का होगा कैसा असर? जनता को दख ु न दखाऊंगा पछतावे म मर जाऊंगा

मुझे मौत क अपनी नह ं िचंता पर

या करे गी अब सीता?

मेरे कारण वह अनाथ हुई

हरा उसको, नह ं छोट बात हुई

अब राम के स मुख जाऊं कैसे? राजा हूँ म झुक जाऊं कैसे? नारायण राम ह नह ं हज़

पर मुझ पर है जनता का क़ज़ म

या संदेश दं ग ू ा जन को?

यह अ छा है प का क ँ मन को चाहता हूँ िसया को पहुंचा दं ू

राघव से जा कर के िमला दं ू

या यह करना भी उिचत होगा?

नह ं, राजा के िलए अनुिचत होगा अब सोच,सोच बस रह सोच य आया नह ं तब मुझको होश? जाित से तो हँू म फर हुआ

ा न

य मुझसे ऐसा कम?

कहाँ गई सार

व ा मेर ?

दभ ु ा य ने जब बु

फेर

जानता था राम तो ह ई र वह ह जानक के स चे वर फर यह

मरण मुझे

य न रहा?

और अपने कम से िगर ह गया सोचते हुए बस गई बीत रात

नह ं इक पल को भी लगी आँख नह ं चैन रहा उसके मन म रह

वाला धधक जैसे तन म

इक पल को तो यह ठान िलया रावण ने भी यह मान िलया म सीता को छोड़ के आऊंगा रघुवर के आगे झुक जाऊंगा दज ू े ह पल यह वचार कर अब थोड़ा सा इं तज़ार करे

जो होना था वह हो ह गया और सोच म फर खो ह गया या राम और

मा दे गा मुझको?

या अपना लेगा िसया को?

राजा होकर झुक जाऊंगा या खुद को राम

मा कर पाऊंगा?

मा मुझे कर भी द

तो म कायर कहलाऊंगा कायर राजा बन करके

या?

म सच म रा य कर पाऊंगा? मने नार से कया धोखा य पहले मने नह ं सोचा? अब नार ह पार लगाएगी वह ह कोई माग बताएगी यह सोच औ मन म ले व ास आ गया रावण प ी के पास

अपनी द ु वधा को बता ह

दया

और दल का हाल सुना ह दया सुन कर मंदोदर हुई

स न

और खुश हो गई वह मन ह मन रावण ने ग़लती मान ह ली मंदोदर ने भी ठान ह ली वह पित का साथ िनभाएगी, नह ं उसको कह ं झुकाएगी ग़लती का तो रावण को िमले दं ड पर टू टे न इक राजा का घमंड राजा का घमंड जो टू टे गा फर उसको हर कोई लूटेगा नह ं टू टे गा राजा का मान चाहे चली जाए उसक जान साधारण नह ं है रावण नर जनता का बोझ भी कंध पर इक राजा ह तो उठाता है पूरे रा य को चलाता है पर राम जब भी यहाँ आएगा िन य ह यु यु

मच जाएगा

से तबाह मच जाएगी

सोने क लंका जल जाएगी वह रह सोच मन ह मन म नारायण ह हर धड़कन म जानती है राम ह नारायण और दोषी है उसका पित रावण वह राम से कभी न जीते गा

िन य रावण का वध होगा और वह वधवा हो जाएगी फर

या जीवन जी पाएगी?

कुछ भी हो अब पीछे हटना नह ं होगी यह छोट घटना इक राजा को म बचाऊं कैसे? नार पे ज़ु म जर जाऊं कैसे? फर राम तो नारायण है

वयं

रावण ने कया है बुरा कम फर भी उसका अ छा भा य या करना है उसको रा य? जी कर भी तो पाप कमाएगा फर वह नक म जाएगा और राम के हाथ मरे गा तो भाव-सागर से तर जाएगा रावण के िलए अवसर अ छा बेशक नह ं वह इ सां स चा अब पीछे हट गया जो रावण और चला गया जो राम-शरण जा भी नह ं उसे मानगी कायर रावण को जानेगी राजा का रहे गा कैसा मान? जो नह ं होगा उसका स मान अ छा है राम के हाथ मरे और खुशी से भाव-सागर से तरे हार के जीते गा रावण जो राम के हाथ होगा मरण

रावण के जंदा रहते हुए

नह ं लंका राम आ पाएगा पर राम तो धरती पर होगा रावण उसके घर जाएगा यह अ छा है मन म ठान िलया और भला-बुरा पहचान िलया रावण का तो हत हो जाएगा पर क ले आम हो जाएगा कैसी िचंता? ह र के रहते हम कुछ भी तो

वयं नह ं करते

यह इ छा ई र क है और िचंता भी रघुवर क है जो होगा वह अ छा होगा और यु

भी तो स चा होगा

यह एक इितहास बन जाएगा राम, रावण से जुड़ जाएगा मंदोदर ने समझा ह

दया

और रावण को बतला ह

दया

अब पीछे तु ह नह ं हटना है और यु

भूिम म डटना है

बाक िचंता छोड़ो उस पर वह

दखलाएगा तु ह डगर

जी कर तो कुछ न पाओगे मर कर के अमर हो जाओगे अब तो रावण ने ठान िलया कहना प ी का मान िलया

तैयार हुआ लड़ने को यु

कर दया प ी ने मन को शु अब नह ं है मन म कोई द ु वधा

यु

लड़ने म हो गई सु वधा

अब तो वह यु

म जाएगा

और भव-सागर तर जाएगा

***************************

मानस क पीड़ा

भाग18. द ु वधा म

ी राम(भाग 2)

चार तरफ द पमाला ी राम अवध आने वाला िसया राम का जय जयकार हुआ रौशन अवध का हर

ार हुआ

चौदह वष नह ं दया जला

बन तेल बाती हर दल जला पर बीत गई थी काली रात अब अवध म भी होगी

भात

माग म टक थी सबक नज़र िसया राम आएँ गे इसी डगर दरू से आया था वमान

दे खे उसम िसया लखन राम पु प क वषा होने लगी कृ ित भी धैय खोने लगी

चलता हुआ समय भी थम सा गया रमा -राम म हर कोई रम ह गया दे खी तीन क शोभा अपार माताओं के

दय म भरा दल ु ार

कतने ह सुहाने थे वे पल

बह रहा नयन से िनमल जल दख ु के अ ु तो ख म हुए

खुशी के आँसू सब िलए हुए सबके ह ने

थे हुए सजल

वष बाद आया था पल

ी राम तो सबसे गले िमले नह ं कोई मन म है िशकवे िगले आज कैकेई भी बाहर आई होगी चौदह वष क भरपाई ी राम को गले लगाया था आज ह उसने सुख पाया था आते ह उसने यूँ बोला अब राम का रा यािभषेक होगा खुश हुई सुन के सार परजा

कैकेई का उतरे गा अब करजा रा यािभषेक हो गया स प न अब खुश ह कैकेई का मन पर होती है इक पल क गलती उसक

कतनी है सज़ा िमलती

फर से उस दोराहे आ खड़े जहां कांप ह जाएँ बडे - बडे घुमा के व त फर लाया वहां

पहले ह खड़े हुए थे जहां

अब उससे भी भयानक म जर चला फर से सीने पर ख जर जब कह रहा प ी से धोबी सीता नह ं अब पावन रह वह रावण के महल म रह या कहे आज जो नह ं कह बेशक उसका अपहरण हुआ

पर स च रावण ने उसे छुआ सुन कर यह राम तो काँप गया भावना धोबी क भाप गया ऐसा ह सोचती है

जा

क अवध का है ऐसा राजा जसक प ी का हरण हुआ कसी बेगाने ने उसे छुआ अ न पर

ा भी द थी

िसया ने पावनता िस

क थी

कतना मु कल नार के िलए वह इस पीड़ा के साथ जए नह ं लाँछन कोई सहा जाता सीता तो जग जननी माता उसको नह ं ब श रहे है लोग कतना भयानक सामा जक रोग म जानता हूँ िसया क पावनता पर कैसे समझे यह जनता पर

ा कतनी दे गी सीता

जीवन जसका दख ु म बीता

पित हँू , उसका नह ं सह सकता नह ं दख ु उसे और म दे सकता ऊपर से सीता है गभवती

या करे अब यह मजबूर पित और अब म हूँ इक राजा चाहती है

या मुझसे

जा

पित हूँ म साथ रखूँ प ी यह मेर इ छा है अपनी या राजा बन कर

याग क ँ

और प ी वयोग म पीड़ा ज ँ द ु वधा म फँसा है राम का मन मन म रहती हर

ण उलझन

फर से द ु वधा ने घेरा है

मन म उलझन का डे रा है या क ँ ? अब िसया कहाँ जाएगी या मेरे बन वह रह पाएगी? माना रह जाएगी अकेली िसया सोचता हँू उस ब चे का

या

जसने नह ं अभी आँख खोली

नह ं जानता दिु नया क बोली

उसको कस बात क िमले सज़ा कतना मजबूर है यह राजा ब चे को छोड़ दे एक पता कैसे सँभालेगी उसे सीता? कतना अभागा है आज राजा ऐसे ब चे को दे सज़ा

जसने अभी ज म भी िलया नह ं दिु नया म आ के जया नह ं

और सीता को भी कहाँ भेजूं उससे म यह कैसे कह दँ ू

अब छोड़ के तु म चली जाओ मुझे नह ं संग म रख सकता म तु झे जस प ी ने दया है हर पल साथ चौदह वष वन म काली रात सब क

सहे पर नह ं बोली

वन के दख से नह ं डोली ु ऊपर से अपहरण का दख ु

नह ं दे खा उसने कोई सुख अब यह दख ु उससे भी भार

नह ं लाँछन सह सकती नार पर म सबको समझाऊँ कैसे पावन है िसया यह बताऊँ कैसे जनता नह ं मानेगी मेर बात राम सोचते ह रहते सार रात रात को नींद नह ं आती दल से यह बात नह ं जाती या करे और

या न करे राम

नह ं राम के मन म है व ाम कसी को भी पीड़ा बताते नह ं और दल का दद सुनाते नह ं द ु वधा ने राम को भरमाया

कुछ भी तो समझ म नह ं आया दे खो अब कुदरत क लीला

और राम को भी इक मौका िमला िमलने आए कुछ वनवासी और सीता करने लगी हँ सी मुझे याद आते है वो वन फर से वन जाने को है मन मुझे फर से वन दखला लाओ फर से इक बार घुमा लाओ वह हँ सी भी कतनी पड़ भार फर से वन म गई वह नार ल मण को राम ने समझाया जनता का भाव भी बतलाया िसया को फर जाना होगा वन उसे छोड़ के आएगा भाई लखन जन महल म डोली म आई उ ह ं महल ने दे द

वदाई

हर नार का होता अरमाँ प ी बनकर दे खती सपना अथ भी उस घर से जाए जस घर म वह याह कर आए पर जानक तो हो गई अनाथ छूट गया था सबका साथ

मजबूर सभी कोई न बोला आँसुओं को नह ं जाता तोला चुपचाप सभी बस रोते रहे िसया को जाते हुए दे खते रहे

िसया तो फर से वन चली गई पर राम को िसया कभी भूली नह ं

नह ं राम क पीड़ा का कोई अ त राजा को भी है दख ु अन त द ु वधा तो बेशक हुई ख म पर

दय म बैठ गया था गम

वह गम फर कभी भी िमटा नह ं दख ु का बादल कभी छटा नह ं

नह ं सुख क कभी हुई बरसात नह ं जीवन म हुई

भात

*****************************

मानस क पीड़ा

भाग19. हनुमान प का

िसया का फर वन को चले जाना और राम का हर

ण पछताना

नह ं गम के तूफां थमते राम तो बस गुम सुम रहते जानते है िसया पर जु म हुआ बन दोष के उसको दं ड दया

नह ं ऐसा कर सकता राजा िनद ष को नह ं दे सकता सजा पर

या करे यह

जा क चाह

सीता को दखा द वन क राह पर कसे दखाए

दय स ताप

नह ं गा सकता वरह अलाप बेशक कुछ राम नह ं कहते अ दर ह है घुटते रहते पर राम भ

महाबली हनुमान

जसक बसती

ी राम म जान

नह ं उससे कुछ भी छुपा सकते उसके तो राम दल म बसते ी राम पता माता सीता उनके िलए िस धु को जीता भला वह कैसे यह दे ख सकता माँ को अकेले नह ं छोड़ सकता

इस िलए जाता वह माँ (िसया) के पास और दे क आता था व ास नह ं कहे राम से , माँ का आदे श क रहती है वह वन म कस वेष बताता था िसया को राम क दशा हनुमान को बस िसया राम का नशा दे खता वह सबक आँख नम कतना है समाया दल म गम पर राम से जाकर कौन कहे कोई

या कहे और कैसे कहे ?

नह ं पवन पु

यह सह सकता

बन कहे भी अब नह ं रह सकता पर है कसम इतनी ह मत राजा से कहे कुछ सह गलत

हनुमान तो बस अब बोलेगा बेशक वह मुँह न खोलेगा क राम है दो पु

का पता

कस हाल म जीती है माता(सीता) माँ का आदे श भी पालेगा बन जतलाए भी न रहे गा िलखी हनुमान ने राम को वनय ी राम भी भर गया

दय

मा करो हे रघुन दन करता हूँ तु हारा म व दन इस दास क भूल

मा करना

पर नह ं दे खा जाता रोना तुमसे तो कोई कुछ नह ं कहता मन म हर कोई घु ता रहता कहना चाहते है अवध वासी य माता हुई है वनवासी

वह तो बस इक मानव था नीच जसको प ी पर आई खीझ उसके ह छोटे थे वचार और हो गया िसया पर अ याचार नह ं चाहते थे यह अयो या के जन नह ं जानते थे िसया जा रह वन दख ु ी है कतने ह अवधवासी नह ं सीता कोई थी दासी

जसे ऐसे ह वन म छोड़ दया ज म का नाता तोड़ दया वह सीता तो है जगत माता

हम सबका उससे है नाता माना यह इक राजा का करम न खुद के िलए भी हो सकता नरम दे खो अवध के हर घर म रहती प

याँ है इस डर म

कह गलती से कोई उठ गई उं गली तो वह भी जाएगी वन क गली पित उसका साथ नह ं दे गा राजा बन घर से िनकाल दे गा त हा होगी उस नाज़ुक घड़ जस दख ु म न वह रह सकती खड़

यह तो बन जाएगा उदाहरण

नार के िलए तो बस दख ु म मरण पित को न होगा प ी पे व ास या प ी है पैरो क दास? नर दासी ह प ी को मानेगा जो चाहे गा मनमानी करे गा कैसे नार का होगा उ ार जो ब द ह गे घर के भी

ार

पित प ी का जो यह र ता केवल व ास पे पल सकता व ास टू ट जब जाता है फर यह र ता नह ं रहता है पित प ी सा न कोई और नाता बस यार से इसे समझा जाता सामने है भ व य का आईना नह ं अनुिचत है मेरा कहना

नर करे गा अपनी मनमानी दे गा उदाहरण जानी मानी जब राम ने ह छोड़ द प ी फर प ी कैसी अधािगनी नह ं िमलेगा नार को अिधकार नर के न रहगे उ म वचार बस

याग क दे वी है नार

उस से तो बनी सृ

सार

और माँ जानक तो जगत माता कतना बेबस है जगत पता हे

भु मेर भी वनती सुनो

अब तो माँ के दख ु दरू करो

कस हाल म रहती होगी वन

कैसा भयानक है वह कानन कहाँ वन म वह अकेली होगी मातृ व पीड़ा झेली होगी कैसे स भव यह सब वन म भु कुछ तो सोचो अब मन म माँ िसया का मन तो बस स चा क उसने जब भी कोई इ छा तब तब बस उसको िमला दख ु कसने है कब पाया कोई सुख

जब माँ ने मृग को चाहा तो उसका अपहरण हुआ

और जब घूमने को कया मन तो िमल गया उसको भयानक वन यह कैसी लीला तेर

भु सुनो आज वनती मेर अब नह ं यह दे खा जाता है दल को जो दद सताता है इक मेर भी इ छा मानो जो मुझको िनज सेवक जानो माँ को पर

ा से मु

करो

उसके जीवन म खुशी भरो चाहो तुम तो यह कर सकते िनज जीवन म रं ग भर सकते रघुकुल द पक को लाओ यहाँ फरे वन म न जाने कहाँ कहाँ इक पता का फज भी करो पूरा बन बाप के जीवन भी अधूरा जस ब चे के पता वयं

ी राम

और नह ं िमले उसे पता का नाम कहाँ उिचत यह नीित है यह तो नह ं रघुकुल र ित है कस पाप क सजा िमले उसको नह ं अपना पता दखा जसको नह ं वन , उसका घर तो है महल य उसके भा य िलखा जंगल बन दोष के भुगती माँ ने सजा अब चाहती है राजा से

जा

दे दो अवध को महारानी और ख म करो वो कहानी हनुमान ने क जब ऐसी वनय ी राम का भर आया

दय

यह सब तो है भा य का खेल क मत से ह अब होगा मेल यह व

न दे खे जात पात

कभी उ जयाला कभी काली रात न व

के हाथ कोई बचा

होता है वह जो कुदरत ने रचा यह सबको नाच नचाता है जाने

या

या करवाता है

*****************************

मानस क पीड़ा भाग20. जानक का दद

ी राम क जय , राजा राम क जय हर तरफ यह जय जयकार हुए ी राम का हुआ रा यािभषेक

खुश है अवध का जन हर एक सबसे खुश तो माता सीता आधा जीवन वन म बीता वह आज बनी है महारानी दे कर कतनी ह कुबानी मु कल कतना वन म रहना वनवासी बन कर ह जीना खाए केवल प े और फल पर राम

ेम था उसका बल

महल क राजकुमार का िमिथला क जनक दल ु ार का नंगे पैर वन म चलना

और घास के ऊपर ह सोना आसान नह ं यह कसी के िलए फर भी जाती थी जीवन जए जहां काँटे ह थे हर पग पर वह खुशी से चली थी उस पथ पर हर पल खतरा मँडराता था पर उसको न भय सताता था पित क खाितर वह वन को गई और खुशी से उसके साथ रह है राजकुमार नह ं था मन म बस खुश रह छोटे से आँगन म छोट सी घास क थी कु टया तीलो से बनाई थी ख टया खाने के नाम पे फल प े कभी पके तो कभी खाए क चे प े ह पहने थे तन पर पर जरा िशकन न थी मन पर वह महल क रहने वाली और मखमल पर सोने वाली फूल खले जब हँ सती थी सबके ह मन म बसती थी जो चलती थी बस फूल पर वन म थी चली वह शूल पर भूख है

या जो नह ं जानती

वह कई कई दन भी रह भूखी कई बार तो पानी भी न िमला फर भी उसका मुख रहा खला या दद है ? कभी जताया नह ं कसी पीड़ा को भी बताया नह ं न राम कभी सोचे मन म सीता को रखा है वन म हर पल यह सोच हँ सती रहती अपना दख ु मन म ह रखती राम को कभी जताया नह ं

खुद का अहसास कराया नह ं मार उसने वह हर इ छा जो छोड़ नह ं सकती पीछा इ छा औ खुशी बस राम ह था हर

वास म उसका नाम ह था

पित क खाितर

या

याग कया

पित ता का एक इितहास बना अपहरण का दद सहा उसने कभी सोचा भी न था जसने उसका भा य ऐसा होगा रावण उसको कभी हर लेगा भा य का च कर था सारा था राम फरा मारा- मारा वानर भालू क ले सेना और रावण के संग यु

करना

पर अब था उसका अ छा भाग उसक

क मत भी गई जाग

वनवासी से बन गई रानी यह स य है , न िम या कहानी रा यािभषेक तो हो ह गया और राम भी राजा बन गया जा भी सार खुश तो थी खुशी भी तो यह स ची थी पर भा य ने फर ली अंगड़ाई सीता फर वन म ह आई केवल धोबी क बात से नह ं सोए राम थे रात म उस प ी का

याग कया

जसने था हर पल साथ दया जो रह

ज दा बस पित के िलए

और कतने ह दद सहे अ न पर



या कम थी

सोचती सीता आँख नम थी वह कैसे कहे ? वह है पावन जब राम का ह नह ं मानता मन वन के असह क

थे सहे

बस पित का साथ पाने के िलए उसी पित ने उसको

याग दया

कहा फर से वन जाने के िलए वह गभवती यह नह ं सोचा दे दया था भा य ने धोखा कतनी मजबूर थी उसक न मृ यु न ज दगी थी उसक फँस गई थी वो दोराहे पर

मर जाए, मन म चाहे मगर या करे जो ब चा गभ म है यह ज मेदार उस पर है मरकर उसको भी मारे गी ऐसा अपराध वह न करे गी जीना होगा ब चे के िलए सह दद जो भा य ने है दए बेबस कतनी थी वह नार जसे िमली थी सुख-सु वधा सार वह भटक रह थी अब वन म हलचल थी बस उसके मन म वह नार

य हुई बेचार

कभी थी जो राम क श

सार

राम अब भी उसका क त ह था दभ ु ा य का कोई अ त न था

महल म भी सब जन बेबस थे ी राम के आगे वो

या करते

उस माँ क आँख भी दे खी जो कहती थी सीता को बेट रोता दे खा वह भाई उसने भाभी को कहा बहना जसने बेबस थी उसक वे बहने सीता को कहा था माँ ज ह ने वह बेटा भी रोता दे खा जो उसके िलए लंका था गया स दे स सुनाया था जसने मु का दखाई थी उसने

पर अब वह

या कर सकती है

न ज दा न वह मर सकती है जाए तो अब वह कहाँ जाए दद अपना कसे दखलाए िमल गए थे उसे ऋ ष वा मी क सीता के िलए थी जगह सट क ऋ ष आ म वह रह पाएगी अब वह ं पे जीवन बताएगी ऋ ष के आ म म रहते हुए

मानिसक पीड़ा को झेलते हुए

दया दो ब च को उसने ज म

वह बन गया था सीता का करम ब च के िलए मान ह िलया अपना हर दद छुपा ह िलया ब च क खाितर न रोई सहा दद को कभी भी न सोई नह ं दद िमटा सक वह दल से और ज दा रह अपने बल से जसक ऐसी ह

क मत थी

या उस नार क

ह मत थी

णाम उस नार क श पित

ेम औ उसक भ

को को

जो सहती रह उफ् तक न क कभी भी कोई िशकायत न क हर पल पीड़ा तो सताती थी दय

या



लाती थी

दे खो उस नार का साहस

न दद कसी को बताती थी दे खते ह ब चे हुए बडे

माँ क छाया म पले बढ़े लव कुश था उनको नाम दया माँ - बाप का फज था पूरा कया ऐसे सं कार दए उनको पूर दिु नया तरसे जनको या उन दोन म थी श

यह माँ सीता क थी भ माँ बन कर ऐसा करम कया हर नार को स दे श दया नार ह जीवन श

है

नह ं उसके बना कह मु

है

माँ दे ती है गुण ब च को नह ं िमलते जो अ छे अ छ को लव कुश म ऐसी श

थी

य न हो ? माँ जो सीता थी हनुमान को बांधा था उ होने सागर था पार कया जसने यु

म ल मण को हरा दया

उसक सेना को डरा दया या अ ुत वह माँ के जाए

माँ के गुण उनम थे आए ऐसे ब च से यु ी राम थे यु

करने म

वयं आए

वह भी तो उनको हरा न सके श

का भेद भी पा न सके

अरे ! कौन है दोन यह बालक अब सोच रहा था जग पालक यह राम के है , ऋ ष था बोला ब च का भेद उसने खोला सीता ह इनक माता है पता-सुत का तु हारा नाता है अब राम को था अहसास हुआ य सीता को वनवास दया

कहने लगे जाकर के िसया को अब

मा करो अपने पया को

यह होगा उिचत अब साथ चलो मुझे

मा करो , मुझे

मा करो

माता सीता कुछ न बोली उस दद से नह ं जुबां खोली जो दद था उसे भा य ने दया नह ं उसके साथ इ साफ कया उसे कोई िगला नह ं राम से है जीवन ह राम के नाम से है वह दद और नह ं सह सकती नह ं अब वह ज दा रह सकती ब च को राम को स प दया और

वयं को फज से मु

कया

वह पावन है करे गी सा बत नह ं करे गी वह कसी को आहत तब सीता ने ललकारा था धरती माता को पुकारा था हे माँ ! जो तु मम श

है

मेरे मन म राम क भ

है

जो म रह राम क सदा केवल नह ं कभी हुई मन म हलचल तो हे माँ अब तुम आ जाओ

मुझे अपनी गोद म ले जाओ वह अ न पर

ा भी कम थी

शायद अ न म नह ं दम थी आज फर से पर

ा म दँ ग ू ी

और अब यह सा बत कर दँ ग ू ी नार कमजोर नह ं होती उस सी कोई श

नह ं होती

यह सुन कर हाहाकार हुआ भयभीत सारा संसार हुआ तूफान उठे बजली कड़क

जलधारा उलट बह िनकली ैलोक भी लगी काँपने धरती लगी अपनी जगह मापने उसके िलए गोद भी छोट है वह नार क असली कसौट है बेट पे गव धरती माँ को िलए गोद म जो सारे जहाँ को उस धरती पे िसया क जगह नह ं कभी चैन से जीवन जया ह नह ं वह माँ के गभ म आएगी वह पर वह शा त पाएगी पलट

फर से िसया क

क मत

दे खते ह फट गई थी धरत

सीता तो उसम समा ह गई जा माँ के गभ म लेट गई राम तो बस दे खता ह रहा कहने को कुछ भी नह ं रहा कतने ह दद समेटे हुए

धरती के गभ म लेटे हुए

सीता माँ यहाँ से चली गई कतने

को छोड़ गई

जनका नह ं िमला कोई उ र नार रह गई बनकर प थर य नार ह सब सहती है बेशक वह नर क श

है

णाम तु ह सीता माता तेरे दद क जाने न कोई गाथा तुमने था कतना उस

याग कया

याग को कोई नह ं जानता

नह ं ख म हुआ नार का

याग

न जाने कैसी लगी है आग जो नह ं बुझ रह है बुझाने से पीछे नह ं कोई भड़काने से माँ बोलो कभी तुम आओगी आकर यह आग बुझाओगी इस अहम क दिु नया म हे माँ सबको इनसाफ़ दलाओगी

इनसाफ़ तो सीता को भी न िमला कब तक चलेगा यह िसलिसला भारत क पावन भूिम पर

नर-नार म रहे गा कब तक फासला

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संपक: सीमा सचदे व

एम.ए. ह द ,एम.एड.,पी.जी.ड .सी.ट .ट .एस., ानी 7ए , 3रा

ास

रामज य लेआउट मरथाह ली बगलोर -560037(भारत)

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तुित : रचनाकार http://rachanakar.blogspot.com ारा

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