क वता सं ह
मेर आवाज -सीमा सचदे व ****************************************************** दो-श द भाषा भाव क वा हका होती है |अपनी का य पु तक "मेर आवाज़" म भाषा के मा यम से एक लघु कया है भाव को य खुशी
यास
करने का जो कभी हम
दान करते ह,तो कभी गम |कभी हम सोचने पर
मजबूर कर दे ते ह और हम अपने आप को असहाय सा महसूस करते ह |यह पु तक मेरे माता- पता को एक छोटा सा उपहार है ज ह ने मुझे आवाज द और "मेर आवाज" उभर कर आई |आशा करती हूँ पाठक को मेरा यह लघु
यास अव य पसंद आएगा | सीमा सचदे व
****************************** मेर आवाज अनु म:१.वंदना २.जीवन एक कैनवस
३.हर पल मरती ज दगी ४.परछाई ५.माँ (च द
णकाएँ)
६.आँख ७.जब तक रहे गा समोसे म आलू ८.हुआ
९.आँसू
या जो रात हुई
१०.आदशवाद ११.समाज के पहरे दार १२.एक सपना १३.वह सुंदर नह ं हो सकती १४.झ पड़ म सूयदे व १५.आज का दौर १६.र ा-बंधन १७.साइ कल १८.रे त का घर दा १९.आज़ाद भारत क सम याएँ २०. क मत का खेल २१.जमाना अब भी वह है २२.धरती माता २३.वह मु काता सुद ं र चेहरा २४.22वीं सद म...........? २५. करण या साया २६.चुनाव अिभयान २७.चलो हम भी चलते है २८.कु ो क सभा २९..ट स ३०. तो अ छा है ...........? ३१.कु ो का भोजन ३२. या खोया
या पाया
३३.म दर के
ार पर
३४. यार का उपहार
३५.अ ध का आइना ३६.हे क वते ३७.अगर हम गीतकार होते ३८.मुझे जीने दो ३९.कौन करता है खुदकुशी......? ४०.हे भगवान ४१.हे भगवान ४२.औरत ४३.च र ह न ४४.बूँद ४५.ऋतुओ क रानी ४६.आन बसो का हा ४७.
ितज के उस पार
४८. यार म तो शूल भी फूल ४९.क वता म िस धु ५०. या िलखू.ँ ...? ५१.जीवन के रा ते ५२.मृगतृ णा ५३.नार श ५४.अ यापक दवस ५५.कलम है क
कती नह ं
५६.सड़क ,आदमी और आसमान ५७.तीसर आँख ५८.होली ५९.आज़ाद क गुहार( ित बती लोग के िलए) ६०.मुसा फर ********************************* १.हमको ऐसा वर दो..... हमको ऐसा वर दो हे माँ वीणा वा दनी, हम रह करम म िनरत,भ काय िस
म म त;
त, गाएं जीवन क रािगनी|
हमको ऐसा.........................................| तू सरला, सुफला है माँ,माधुर मधु तेर वाणी, व ा का धन हमको भी दो, हे माँ व ा दाियिन | हमको ऐसा....................................................| हे शारदे , हँ सािसनी,वागीश वीणा वा दनी,तुम ान क भंडार हो,हे व
क सँचािलिन |
हमको ऐसा............................................| *************************** २.जीवन एक कैनवस दन -रात,सुख-दख ु ,खुशी -गम
िनर तर
भरते रहते अपने रं ग बनती - बगड़ती उभरती-िमटती त वीर म समय के साथ प रप व होती लक र म याह बाल म गहराई आँख म अनुभव से प रपूण वचार म बदलते व त के साथ कभी िनखरते जसमे समाए हो रं ग बर गे फूल कभी धुँधला जाते जस पर जमी हो हालात क धूल
यह उभरते -िमटते िच
का
व प
दे ता है स दे श क जीवन है एक कैनवस ************************************* ३.हर पल मरती ज दगी भूख से बेहाल फटे हाल नंगा तन सूने नयन सूखे हुए
माँस के अ दर झांकती खोखली ह डयाँ करती है यान अपने आप म भुखमर क दा तान ............... ............... कभी न नसीब हुआ
भरपेट खाना घास और प
म
खोजा खजाना दे खा केवल अभाव नह ं कसी से लगाव
न तो पाली कोई चाहत न ह मन म उठ कोई हसरत िमली केवल िध कार नह ं िमला कोई अिधकार नोच लेना चाहता है हर कोई उसको झपट लेना चाहता है माँस के लोथड़े को चील क भांित दे खता हर कोई भूखी िनगाह से और वो रह जाता है बस अपना सर पटक कर क मै कोई मर हुई
माँस क लोथ नह ं जस पर टक है लालची िनगाह उठती है मेरे मन म भी आह म हूँ
ज दा लाश ज दगी से हताश
करता हूँ
केवल एक रोट क ब दगी वो भी नह ं िमलती बस हर पल मरती है ज दगी
************************** ४.परछा घूरती हुई
ू र िनगाह
झपट लेने को लालाियत पसरा केवल
वाथ
द ु वचार, आड बर
नह ं बचा इससे कोई घर बोई थी यार क फसल िमला नफरत का फल स चाई क जमीन को र दता झूठ का हल िमठास म िछपा जानलेवा जहर भूखी िनगाह म लालच का कहर रह गया केवल अकेलापन कह भी तो नह ं अपनापन यह ल बा सफर काटना अकेले तंग डगर टे ढ़े-मेढ़े रा ते न जाने चलना है इनपर कनके वा ते इधर-उधर आजू-बाजू
कोई भी तो नह ं साथ त हाई, स नाटा सूनापन दन भी लगे काली रात छाया मन म त क पर घोर अंधकार िमट चुके सारे वचार पर अचानक स नाटे को चीरती एक
विन
जैसे बोल उठ हो अविन कहाँ हो अकेले.......? यहाँ तो हर कदम पर मले दे खो मेर गोद म और दे खो मेरे
यतम क छाया
जो बनी रहती है सब पर नह ं तो दे खो अपना ह साया जो सुख क शीतलता म भले ह नज़र न आए पर गम क तीखी धूप म कभी आगे तो कभी पीछे हर पल साथ िनभाए नह ं है केवल त हाई तु हारे पास है तु हार अपनी परछाई
********************************** ५.माँ (बारह णकाएँ) आजकल माँ बहुत बितयाती है
जब भी फोन करो आस-पड़ोस क भी बात सुनाती है
२. न जाने
य लगता है
माँ क आँख नम है उसे कह ं न कह ं कुछ खो दे ने का गम है ३. सुबह सबसे पहले उठ कर सारा काम िनपटाती है मेर काम वाली आई क नह ं इसक िच ता लगाती है ४. कहती है आजकल पेट खराब है और मेर आवाज़ को हाजमोला बताती है ५. लगता है अभी आएगी ले लेगी मुझे गोद म और फर यार से मेरे सर म उं गिलयाँ चलाएगी ६. कई बार चुप सी रहती है मुँह से कुछ नह ं कहती पर आँख बहुत कुछ बोलती है ७.
हर रोज मुझे फोन लगाती है खाना खाया क नह ं याद दलाती है ८. अपनी पीड़ा के आँसू
पलक म छुपा कर मेर पीड़ा मुझसे उगलवाती है ९. खुद तो सार उ न जाने कतना ह
याग कया
मेरे छोटे से समझौते को बिलदान बताती है १०. आजकल माँ सपनो म आकर मुझे लोर सुनाती है हर ज म को सहलाती है ११ सबसे यार सबसे अलग ममता क मूित माँ तुम ऐसी
य हो ?
१२. माँ आजकल तुम बहुत याद आती हो
जी चाहता है अभी पहुँच जाऊँ इतना
नेह जताती
य हो ?
************************* ६.आँखे(च द णकाएँ) १. यह नहाई हुई गीली पलक कराती है अहसास क इनके पीछे है वशाल िस धु खारा जल जो नह ं कर सकता तृ
नह ं बुझती इससे यास यह तो बस बहता है धार बन कर बे वाह २. आज तृ
है च ु
पघला कर उस च टान सर खी
थ को
जो न जाने कब से पड़ थी बोझ बन कर मन पर ३. आज जुबान ब द है बस बोलते है नयन सारे के सारे श द बह गए अ ु बन कर कर गए
दान अपार शा त
४. आज से पहले आँख म इतनी चमक न थी इससे पहले यह ऐसे नहाई न थी ५. आज पहली बार अपना
वाद बदला है
नमक न अ ज ु ल पीने क आदत थी इनको बहा कर अमृत रस चखा है ६. ने
म चमकते
सीप म मोती सर खे आँसू ओस क बूँद क भांित िगरते सूने आँचल म उ
जाते खुले गगन म
कर जाते कतना ह बोझ ह का
************************* ७.जब रहे गा समोसे म आलू रात को सोते हुए अजीब सा
याल क ध आया
और मने ................. िमनी
कट पहने ह र को रोते हुए पाया
मने पूछा ! यह अ ज ु ल
य है तु हार आँख म?
तुम तो एक हो लाख म तु ह यार तो दिु नया भर का िमला है तुम को तो यार क दिु नया म अ छा ख़ासा नाम भी िमला है
अमर हो तुम दोन सदा के िलए मरे इ कठे , जए इ कठे जए अब तुमको कोई अलग नह ं कर सकता है फर
य रोती हो तुम ?
तु हारा यार कभी नह ं मर सकता ह र बोली! बहन तुम स च कहती हो पर म पूछती हूँ तुमसे,
कस दिु नया म रहती हो ?
मने जब पूछा था रांझा से....... तु ह मुझसे यार है कतना? बोला था सर उठाकर गव से.... समोसे म आलू क उ
के जतना
मने कहा ! हाँ सुना तो है मने भी कुछ ऐसा ह गाना पर मुझे आता नह ं गुन-गुनाना उसका भी भाव तो कुछ ऐसा ह था और उसम भी आलू और समोसा ह था
ह र झ ला कर बोली........... सुना है तो पूछती
य हो?
दख ु ती रग पर हाथ रखती
य हो?
मेर समझ म कुछ ना आया और फर से ह मत करके मने ह र को बुलाया इस बार ह र को गु सा आया फर भी उसने मेर तरफ सर घुमाया मने कहा ! आलू और समोसे का गाने म केवल श द का सुमेल बनाया पर तु मेर समझ म अभी तक यह नह ं आया क तु हारे ने
म अ ज ु ल
य भर आया?
अब ह र लगी फूट-फूट कर रोने और आँसू से अपने सु दर मुख को धोने अपने रोने का कारण उसने कुछ यह बताया बहन आज हमने एक रे टोरट म समोसा ख़ाया हलवाई ने समोसा बना आलू के बनाया और तब से रांझा मुझे नज़र नह ं आया कदम क आहट से हमने सर घुमाया मॉडल के साथ
ांडेड जींस पहने
रांझा को खड़ा पाया अब मुझे भी थोड़ा गु सा आया और रांझा को मने भी कह सुनाया ेिमका को
लाते हो
, तु ह शम नह ं आती एक को छोड़ कर दस ू र को घुमाते हो यह बात तु ह नह ं भाती
कैसी शम ? रांझा बोला ......... म आदमी नह ं हूँ चालू
मने कहा था ह र से........ म तब तक हूँ तेरा ,
जब तक है समोसे म आलू
जब आलू के बना समोसा है बन सकता तो म अपनी ह र
यूं नह ं बदल सकता ?
यह समोसे क नई तकनीक ने है कमाल दखाया और मुझे अपनी नई ह र से िमलाया इतने म बाहर के शोर ने मुझे जगाया और सामने सच म ऐसी ह र और रांझ को पाया -------------------------------------------------------------------------------------------------------पूछना है मुझे ऐसे यार के प रं द से कुछ ऐसे ह सामा जक द रं द से या यह रह गई है भारत क स यता? और
या यह है
यार क गाथा ?
******************************* ८. हुआ हुआ
या जो रात हुई
या जो रात हुई,
नई कौन सी बात हुई |
दन को ले गई सुख क आँधी,
दख क बरसात हुई | ु पर
या दख ु केवल दख ु है,
बरसात भी तो अनुपम सुख है | बढ़ जाती है ग रमा दख ु क,
जब सुख क चलती है आँधी | पर
या बरसात के आने पर,
कह ं टक पाती है आँधी| आँधी एक हवा का झ का, वषा िनमल जल दे ती | आँधी करती मैला आँगन,
तो वषा पावन कर दे ती | आँधी करती सब उथल-पुथल, वषा दे ती ह रयाला तल | दन है सुख तो दख ु है रात,
सुख आँधी तो दख ु है बरसात | दन रात यूँ ह चलते रहते ,
थक गये हम तो कहते-कहते | पर ख़ म नह ं ये बात हुई, हुआ
या जो रात हुई |
******************************* ९.आँसू आँसू इक धारा िनमल, बह जाता जसम सारा मल| धो दे ते ह आँसू मन, कर दे ते ह मन को पावन | हो जाते ह जब ने
सजल,
भर जाती इनम अजब चमक | बह जाएँ तो भाव बहाते ह, न बह तो वाणी बन जाते ह | उस वाणी का नह ं कोई मोल, दे ती
दय के भेद खोल |
उस भेद को जो न िछपाता है , वह कलाकार कहलाता है | उस कला को दे ख जो रोते ह , अरे , वह तो आँसू होते ह |
****************************
१०.आदशवाद अ स यू टव चेयर पर बैठे हुए जनाब ह उनके आदश का न कोई जवाब है ऐनक लगी आँख पर, ऊंचे -ऊंचे
वाब ह
ऊपर से मीठे पर अंदर से तेज़ाब ह बात उनको कसी क भी भाती नह ं शम उनको ज़रा सी भी आती नह ं दस ू र के िलए बनाते ह अनुशासन
वयं नह ं करते ह कभी भी पालन
इ छा से उनक बदल जाते ह िनयम बनाए होते ह उ ह ने जो
वयं
इ छा के आगे न चलती कसी क भले ह चली जाए जंदगी कसी क वाथ के लोभी ये लालच के मारे कर
या ये होते ह बेबस बेचारे
मार दे ते ह ये अपनी आ मा
वयं ह
यह बन जाते ह उनके जीवन करम ह िगरते ह ये रोज अपनी नज़र म हर रोज,हर पल,हर एक भंवर म आवाज़ मन क ये सुनते नह ं परवाह ये र ब क भी करते नह ं आदशवाद का ये ढोल पीटते ह जीवन म आदश को पीटते ह जीवन के मू य को करते ह घायल जनाब इन घायल के होते ह कायल
******************************* ११.समाज के पहरे दार समाज के पहरे दार ह , लूटते ह समाज को |
करते ह बदनाम फर , र ित रवाज को | कुर ितओं को यह लोग, दे ते ह द तक | हो जाते ह जसके आगे, सभी नतम तक | झूठ शानो शौकत का, करते ह दखावा | पहना दे ते ह फर उसको, रं गदार पहनावा | अधम बना दे ते ये फर, धरम के ठे केदार को | समाज के.................................................... लोग के बीच करते ह, बड़े बड़े भाषण | दस ू र को बता दे ते ह,
सामा जक अनुशासन | अपनी बार भूलते ह, सब क़ायदे क़ानून | इ ह ं म झूठ र म का , होता है जुनून | ताक पर रख दे ते ह, ये शम औ लाज को | समाज के............................................. लालची ह भे ड़ए ह, भूखे ह ताज के | कस बात के पहरे दार ह , ये कस समाज के | अंदर कुछ और बाहर कुछ, या यह सामा जक नीित है ? लानत है कुछ और नह ं, या रवाज
या र ित है |
या है क़ानून ?जो दे सज़ा, ऐसे दगाबाज़ को | समाज के................ ******************************* १२.एक सपना कल रात को मने एक सपना दे खा भीड़ भरे बाज़ार म नह ं कोई अपना दे खा मने दे खा एक घर क छत के नीचे कतनी अशांित कतना दख ु
और
कतनी सोच मने दे खा चेहरे पे चेहरा लगाते ह लोग ऊपर से हँ सते पर अंदर से रोते ह लोग भूख, लाचार , बीमार , बेकार यह
वषय है बात का
आँख खुली तो दे खा यह स य है सपना नह ं रात का वा तव म दे खो तो यह कहानी घर-घर म
दोहराई जाती है कोई बेट जलती है तो कोई बहु जलाई जाती है
कतन के सुहाग उजड़ते रोज
तो कई उजाड़े जाते है यह सब करके भी बतलाओ या लोग शांित पाते ह ? कतनी सुहािगन हुई
वधवा
कतने ब चे अनाथ हुए
कतना दख पाया जीवन ु
म
और ज़ु म सबके साथ हुए
******************************** १३.वह सुंदर नह ं हो सकती अपनी ह सोच म गुम एक म मय-वग य प रवार क लड़क सुशील गुणवती पढ़ -िलखी कमाऊ-घरे लू होिशयार सं कार ई र म आ था तीखा नाक नुक ली आँख चौड़ा माथा लंबा कद दब ु ली-पतली
गोरा-रं ग छोटा प रवार अ छा खानदान शोहरत इ ज़त जवानी सब कुछ............ सब कुछ तो है उसके पास परं तु परं तु, वह सुंदर नह ं हो सकती य? य क............ उसके चेहरे पर िनशान है व
और हालात के थपेड़ के
******************************* १४.झ पड़ म सूय-दे वता पुल के नीचे सड़क के बाजू म तील क झ पड़ के अंदर खेलते.............. दो बूढ़े ब चे एक न न और दज ू ा अध-न न
द न-दिु नया से बेख़बर ललचाई नज़र से दे खते......... फल वाले को आने-जाने वाले को हाथ फैलाते..... कुछ भी पाने को
फल,कपड़े ,जूठन,खाना कुछ भी......... सरकार नल उनका गु लखाना और रे लवे -लाइन.....पाखाना चेहरे पर उनके केवल अभाव सद -गम का उन पर नह ं कोई भाव अकेले ह ब कुल कुछ भी तो नह ं उनके अपने पास नह ं करते वे कसी से हँ स कर बात और झ पड़ से झाँकता सूय दे वता मानो दला रहा हो अहसास........ कोई हो न हो ले कन म तो हूँ
और हमेशा रहूँगा तु हारे साथ
तब तक............. जब तक है तु हारा जीवन यह झ पड़ और ग़र बी का नंगा नाच ***************************** १५.आज का दौर आजकल रहती है सबको ह टशन बी पी लो हो जाता है , लगते ह इं जे शन
कोई कहता लड़ना है मुझको इले शन कोई कहता लग जाएगी इस साल पशन कसी को है ख़याल चला है कौन सा फैशन ? कौन सी पहनूं
े स? लेते ह सजेशन
कोई कहता पहनूंगा म जूते ए शन कसी को है िचंता कैसे बन रए शन? कोई रह सोच म, कैसे बन रलेशन? कोई कहे कसको कतनी द जाए डोनेशन? कोई कहे इस वष कैसे होगा एडिमशन? और कोई कहे हमने तो पूरा करना है िमशन पर म कहूँ सब ठ क ह है ड ट मशन ************************ १६.र ा- बंधन एक बार र ा-बंधन के योहार म, बहन भाई से बोली बड़े यार म मेर र ा करना तु हारा फ़ज़ है य क तुम पर इस रे शम क डोर का क़ज़ है भाई भी मु कुरा कर बोला बहन के िसर पर हाथ रख कर तु हार इ ज़त क र ा क ँ गा म अपनी जान हथेली पर रखकर यह सुना बहन ने तो बोली थोड़ा सा सकुचा कर यह इ क सवीं सद का जमाना है भाई अपनी इ ज़त क र ा तो म खुद कर सकती हूँ मुझे तु हार जान नह ं
पैसा ह नज़राना है भाई अगर बहन क इ ज़त चा हए तो कलर ट . वी मेरे घर पहुंचा दे ना इस बार तो इतना ह काफ़ है फर कूटर तैयार रख लेना वी.सी.ड . भी दो तो चलेगा फर मेरे
म म
ए.सी. भी लगवाना पड़े गा अगर बहन क इ ज़त है यार तो मुझे
ज भी दे ना
टोव नह ं जलता मुझसे इस िलए गैस-चू हा भी दे ना डाइिनंग टे बल, सोफा-सेट,अलमार वग़ैरह तो छोटा सामान है वह तो खैर तुम दोगे ह इसी म ह तु हार शान है र ा-बंधन म ह तो झलकता है भाई बहन का यार यह योहार भाई -बहन का आता
य नह ं वष म चार बार
भाई बोला कुछ मुँह लटका कर यह है भाई-बहन के यार का उजाला एक ह र ा-बंधन (के योहार) ने मेरा िनकाल दया है द वाला म कहती हूँ हाथ जोड़ कर घायल न इसको क जए भाई बहन के पावन
योहार को
पावन ह रहने द जए पावन ह रहने द जए
***************************
१७.साइ कल
आज
मेरे पौने दो साल के
बेटे ने जब साइ कल क ज़
मार
तो याद आई मुझे वह अपनी यार
सी लार
दो प हय
क साइ कल पे
घूमना - घुमाना वो म ती मनाना न सुनना - सुनाना सड़क के बीच - बीच कॉलेज को जाना वो वाहन
का पीछे से
हॉन बजाना साइ कल चलाते हुए गुन - गुनाना स ती सी , अ छ
सी और
टकाउ सवार स च म साइ कल जैसी नह ं कोई लार फर आया हमारा वह मोपेड का ज़माना अपनी पॉकेट मनी को पे ोल म लुटाना और कोई
फर बनाना
अ छा सा बहाना पर साइ कल तो साइ कल है तब हम चलाते थे लोहे का साइ कल अब हम चलाते ह ज़ंदगी क साइ कल स च म सुख और दख ु
ज़ंदगी क दो प हय
साइ कल ह
वाली
तो है
ख़ुशी और ग़म इस साइ कल क ेक ह ................... दो प हय
क साइ कल तो
चलती ह
रहती
साइ कल जैसी नह ं कोई दज ू ी सवार
मुझे स च म साइ कल लगे
यार - यार
साइ कल से िगर कर चोट का मेर आँख पर अब भी िनशान है ले कन स च कहूँ तो साइ कल चलाना मेरा अब भी अरमान है
**********************
१८.रे त का घर दा दे खी त वीर तो मुझे याद आया अपना बचपन जो............ बन गया था साया हम भी रे त के घर दे बनाते थे कभी रे त पैर
पे अपने
थप - थापाते थे कभी आराम से
फर .....
घर दे से पैर को िनकालना और यार से अपने घर को संवारना खेल ह
खेल म
कुछ ................. पता न चला और यार का घर दा एक बन ह
गया
वह रे त का घर दा तो टू ट ह पर
यार
गया सी याद
वह छोड़ गया वह तो एक रे त का घर दा ह
था
अपने पैर
से
जसे हमने र दा ह
था
पर दआ करती हूँ ु कभी ..........
यार का घर दा न टू टे मानवता से
यार का
र ता
कभी न छूटे घर दा रे त का तो फर भी कभी बन जाएगा पर
यार का घर दा
गर टू ट गया वह
फर न
कभी भी बन पाएगा
***************************** १९. आज़ाद भारत क सम याएँ भारत क आज़ाद को वीर , ने दया है लाल रं ग | वह लाल रं ग
य बन रहा है ,
मानवता का काल रं ग | आज़ाद हमने ली थी, सम याएँ िमटाने के िलए | सब ख़ुश रह जी भर जय, जीवन है जीने के िलए | पर आज सुरसा क तरह , मुँह खोले सम याएँ खड़ |
और हर तरफ़ च टान बन कर, माग म ह ये आड़ | अब कहाँ हनु श
,
जो इस सुरसा का मुँह बंद करे | और वीर क शह द , म नये वह रं ग भरे | भुखमर ,बीमार , बेकार , यहाँ घर कर रह | ये वह भारत भूिम है , जो िच ड़या सोने क रह | व ा क दे वी भारती, जो
ान का भंडार है |
अब उसी भारत धरा पर, अनपढ़ता का
सार है |
ान औ व ान जग म, भारत ने ह है दया | वेद क वाणी अमर वाणी, को लूटा हमने दया | वचन क खाितर जहाँ पर, रा य छोड़े जाते थे | ाण बेशक याग द, पर
ण न तोड़े जाते थे |
वह ं झूठ ,लालच , वाथ का है , रा य फैला जा रहा | और लालची बन आदमी , बस वहशी बनता जा रहा | थोड़े से पैसे के िलए, बहू को जलाया जाता है | माँ के
ारा आज सुत का,
मोल लगाया जाता है | जहाँ बे टय को दे वय के, स श पूजा जाता था |
पु ी धन पा कर मनुज , बस ध य -ध य हो जाता था | वह ं पु ी को अब ज म से, पहले ह मारा जाता है | माँ -बाप से बेट का वध, कैसे सहारा जाता है ? राजनीित भी जहाँ क , व
म आदश थी |
राम रा य म जहाँ जनता सदा ह हष थी | ऐसा राम रा य जसमे, सबसे उिचत यवहार था | न कोई छोटा न बड़ा , न कोई अ याचार था | न जाित -पांित न कसी, कु था का बोलबाला था, न चोर -लाचार , जहां पर, रात भी उजाला था | आज उसी भारत म , ाचार का बोलबाला है | रा
तो
या अब यहाँ पर,
दन भी काला काला है | हो गई वह राजनीित , भी
इस दे श म |
रा य था जसने कया , बस स य के ह वेश म | मज़हब ,धम के नाम पर, अब िसर भी फोड़े जाते ह | म जद कह ं टू ट ,कह ं, मं दर ह तोड़े जाते ह | अब धम के नाम पर, आतंक फैला दे श म |
वाथ कुछ त व ऐसे, घूमते हर वेश म| आदमी ह आदमी का, ख़ून पीता जा रहा | यार का बंधन यहाँ पर, तिनक भी तो न रहा | कुदरत क संपदा का भारत, वह अपार भंडार था | कण-कण म सुंदरता का , चाहूं ओर ह
सार था |
ब शा नह ं है उसको भी, हम न
उसको कर रहे |
वाथ वश हो आज हम, िनयम
कृ ित के तोड़ते |
कुदरत भी अपनी लीला अब, दखला रह ऐसा लगे
वनाश क | य धरती पर,
च र बछ हो लाश क | कह ं बाढ़ तो कह ं पानी को भी, तरसते फरते ह लोग | भूकंप, सूनामी कह ं वषा ह, मानवता के रोग | ये सम याएँ तो इतनी, क ख़ म होती नह ं | पर दख ु तो है इस बात का, इक आँख भी रोती नह ं | हम ढू ं ढते उस श
को,
जो भारत का उधार करे | ओर भारतीय ख़ुशहाल ह , भारत के बन कर ह रह |
**************************
२०. क मत का खेल क मत का खेल िनराला है , कहाँ कब
या होने वाला है ?
यह बात समझ म आ जाए, तम घोर भी फर उजाला है | क मत का धनी कहलाता है , जो सब कुछ ह पा जाता है | दौलत ,शोहरत ,पदवी औ खुशी, सचमुच जीवन म वह सुखी | हर कदम पे सफल जो होता है ,और चैन क नींद जो सोता है | जो चाहे वो सब कुछ पाता है , गम भी हँ स के अपनाता है | गैर के गम अपना लेना, हँ स-हँ स के जीवन जी लेना | नफ़रत क जगह नह ं होती, और यार जसे दिु नया करती | ऐसे लोग कभी भी नह ं मरते, मर कर भी जंदा ह रहते | सचमुच है वह क मत वाला, पया जसने अमृत का याला | बन कम के क मत सो जाती, गुमनामी म ह खो जाती | तदबीर चाबी, तकद र ताला ,
इसे खोले कोई क मत वाला |
*************************
२१. जमाना अब भी वह है वष से सुनते आ रहे ह दादा-दाद ,नाना-नानी,माँ-बाप और अब कहते ह अपने ब च से क जमाना बदल गया है बदल गई है वो त वीर, वो सोच, वो रहन-सहन, वो ख़ान-पान, वो दो त, वो स यता, वो सं कृ ित, वो र ित- रवाज़ सब कुछ............. सब कुछ वैसा नह ं , जैसा था............. जमाना बदल गया है | ले कन............... ले कन आज रा ते म चलते एक गली के अंदर
सरकार
ाइमर
कूल
क टू ट हुई इमारत इमारत के बाहर
वह छोट सी दक ु ान थोड़े से बेर,
बफ का गोला, थोड़ सी टॉ फयाँ वो नंगे पाँव अधन न ब चे और ब च का झगड़ा चीख-चीख कर कर गये बयान कुछ इस तरह अरे , पीछे मुड़कर दे खो कुछ भी तो नह ं बदला दे खो.................... वो ग़र बी वो बेकार वो दद वो झगड़े वो नफ़रत वो लालच वो भूख ------------------------------------------सब कुछ ब कुल वैसा ह और भी दे खो........... वो यार वो स यता वो सं कार वो माहौल वो माँ क ममता वो बाप का
नेह
वो र ित- रवाज़ वो दन- योहार वो खुशी-गम वो सुख-दख ु
सब कुछ ब कुल वैसा ह कुछ बदला..............? कुछ बदला है तो तुम केवल तुम.......... तु हारा रहन-सहन तु हारा माहौल तु हार सोच बस दरू हो गये हो हम सबसे केवल तुम............... तुम ह बढ़ गये आगे और नह ं दे खा कभी पीछे मुड़कर केवल तुम ह छोड़ चले वो गिलयाँ वो लोग वो माहौल दे खने लगे आगे और बढ़ते गये अपनी ह धुन म नह ं दे खा.............. नह ं दे खा कभी कोई पीछे है तु हारे और वो भी............... उसी पथ के राह है जहाँ से तुम गुज़रे हो कभी और तु हारे पीछे है
लंबी पं
..................
जसका कोई अंत नह ं दे खो कभी पीछे मुड़कर और दे खो...................... नज़र क गहराई से तो पाओगे सब कुछ ब कुल वैसा ह जैसा............ पीछे छोड़ गये हो तुम कुछ भी नह ं बदला जमाना अब भी वह है |
******************************
२२.. धरती माता धरती हमार माता है , माता को
णाम करो |
बनी रहे इसक सुंदरता, ऐसा भी कुछ काम करो | आओ हम सब िमलजुल कर, इस धरती को ह दे कर सुंदर
वग बना द |
प धरा को ,
कु पता को दरू भगा द |
नैितक ज़ मेदार समझ कर, नैितकता से काम कर | गंदगी फैला भूिम पर माँ को न बदनाम कर | माँ तो है हम सब क र क हम इसके
य बन रहे भ क
ज म भूिम है पावन भूिम, बन जाएँ इसके संर क | कुदरत ने जो दया धरा को उसका सब स मान करो | न छे ड़ो इन उपहार को, न कोई बुराई का काम करो | धरती हमार माता है , माता को
णाम करो |
बनी रहे इसक सुंदरता, ऐसा भी कुछ काम करो |
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२३. वह मु काता सुद ं र चेहरा वह मु काता सुंदर चेहरा मेर आँख म घूमता है जब याद सताती है दल को कोई गूँज़ बताती चुपके से तुम पा गई हो उस मं ज़ल को जहाँ तेरा-मेरा मेल नह ं
जीना मरना कोई खेल नह ं तब न जाने कस कोने से इक मधुर राग सा गूँजता है वह मु काता...................... जब िमलने क उ सुक आँख अ ु जल से भर जाती ह तब चीस िनकलती सीने से आँख से आँसू िगरते ह और दल भी रोने लगता है वह मु काता सुंदर चेहरा
मेर आँख म घूमता है
******************************* २४. 22वीं सद
म...........?
आज मने इक बड़े शहर को और लोग क खूब भीड़ को पानी के िलए तरसते पाया इक-दज ू े पे बरसते पाया आज हम पानी का भरते पैसा मोल है उसका दध ू के जैसा उसम िभ न-िभ न
कार
चा हए तु ह जैसा आकार न जाने
य
याल ये आया?
कैसा होगा भ व य का साया? सौ साल आगे दमाग़ घुमाया तो कुछ इस तरह का पाया हम सब दखे कुली के जैसे चलते फरते मर ज जैसे पीठ पे रखे हरदम भार आ सीजन का भरा िसलडर ले रहे थे हम हवा भी मोल दे ता दक ु ानदार था तोल
उसम भी कुछ थी वैरायट िभ न-िभ न जैसे है माट
आया से पूछते ब चे ऐसे मेरे माता- पता ह कैसे? या वो इस फोटो के जैसे? या आंट -अंकल के जैस?े भीड़ म हम सब थे अकेले त हाइय के लगे थे मले नह ं ये सब थे घर के झमेले जहाँ पे चाहा वह ं वहाँ पे रहले शाद तो इितहास ह लगा र ता भी बकवास ह लगा कौन है भाई ,कौन है बहना? कसको माता- पता है कहना? पैदल हम नह ं चल रहे थे भीड़ म ह हम खो गये थे वायुयान म ह करते सवार नह ं
दखी कोई छोट लार
चाँद पे करते सुबह क सैर वहाँ पे रख सक हम पैर वहाँ पर भी तो भीड़ ह दे खी और ऐसी गंदगी भी दे खी पशु भी दे खे बैठे चाँद पर नह ं उनक थी जगह ज़मीं पर प रं द ने ढू ँ ढा नया ठकाना चाँद से सूय पे आना-जाना कोई भी अपना नह ं दखा था या भारत भी ऐसा होगा? तब हम यहाँ से न दे खगे ऊपर से द दार करगे
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२५. करण या साया आज पहली बार मने दे खा
यान से
अपने आगे चलती परछाई को तो मन म सोचा ये काला साया य मेरे रा ते म आया ? या ये अंधेरे क भाँित, सदा रहे गा मेरे स मुख? कभी नह ं बदलेगा , यह अपना
ख़ ?
पीछे से सूय क तेज़ करण पड़ मेरे िसर पर और लगा दला रह है अहसास मुझे मेरे िसर पर हाथ रख कर दे खो................. मेर तरफ दे खो म काला साया नह ं करण हूँ रोशनी क
म सदा साफ रखूँगी तु हारा माग अगर दे खोगी तुम मेर तरफ़ मेरे वामी.....सूय क तरफ ................................ .................................. सूय तो तु हारे सामने
रोशनी ले आएगा पर ये साया.......... ये साया तु ह केवल अंधेरा ह
दखाएगा
अगर दे खोगी तुम साए को तो................... रोशनी और अपने बीच इस अंधेरे को पाओगी और............... रोशनी तक कभी नह ं पहुँच पाओगी ले कन.............. अगर मेर तरफ अपना मुँह घुमाओगी तो इसी साए को अपने पीछे भागता पाओगी अब यह तुम सोचो क तुम कु े क तरह साया चाटोगी या फर.................... मेरा साथ चाहोगी म तोड़ा सा हच कचाई सोचा???????????? तो समझदार मुझे रोशनी क
करण म नज़र आई
बस............ मने उसी तरफ अपना िसर घुमाया और तब उस काले साए को अपने पीछे आते पाया
************************************
२६.चुनाव अिभयान जैसे ह चुनाव आयोग ने चुनाव आचार स हता का बगुल बजाया तो नेता जी के शैतानी दमाग ने अपना अलग रा ता बनाया और नेता जी को समझाया अब छोड़ो मेरा साथ ,मेरा कहना और कुछ दन केवल दल के अधीन ह रहना नेता जी जो कभी-कभी क वता िलखने का शौक फमाते ह और कभी-कभी अपने दमाग के कारण समी क भी कहलाते ह वह
दमाग अब नेता जी को समझाता है
अरे चुनाव अिभयान म समी क नह ं क व ह काम आता है क व हो तो उसका फायदा कुछ ऐसे नारे
य नह ं उठाते ?
य नह ं बनाते
जसमे हो कुछ झूठे वादे , कसम और नारे जसमे फंस जाये भोले-भाले लोग बेचारे बस कुछ दन म तो चुनाव खतम हो जायेगी और तेर -मेर
फर से मुलाकात हो जायेगी
फर हम दोन िमलकर करगे राज और करगे इन दल के मर ज को नजर दाज नेता जी घबराये और बोले तेरे बना म यो ह
या कर पाऊँगा?
दल के हाथ मर जाऊंगा
अरे ! मेरे होते तू
य घबराता है ?
नेता का दल भी तो उसका दमाग ह चलाता है
बस फरक िसफ इतना है क दल को थोड़े दन रखना है दमाग से आगे और दे खना लोग आएंगे तु हारे पीछे भागे-भागे बस उनको दल क बात से बस म है करना और दमाग से है नामांकन भरना होगा तो वह जो तुम चाहोगे पहले भी लोग को मूरख बनाया आगे भी बनाओगे जीतोगे और तु ह स मान भी िमल जायेगा
और लोग क मूखता का माण िमल जायेगा ______________________________ _________________________________ ___________________________________ ले कन इस बार तो नेता जी के दमाग ने धोखा खाया लोग ने अपना दमाग चलाया और
नेता जी को बाहर का रा ता दखाया नेता जी, जो
वयम ् को समझते थे
समाज का आईना अब
वयम को समाज के आईने म पाया
***************************** २७..कु कु
क सभा
ने इक सभा बुलाई
सबने अपनी सम या सुनाई सुन रहा कु
का सरदार
हर सम या पे होगा वचार सम या अपनी िलख कर दे दो कोई एक फर उसको पढ़ दो हर सम या का हल ढू ं ढगे जो भी होगा सब करगे आई सम याएँ कुछ ऐसी चलते फरते मानव जैसी सम या आई न बर वन भ क के बीत गया यह जीवन भ कने म थे बड़ िमसाल पर नेता ने समझ ली चाल भौ कता है वो हमसे
यादा
हम फेल करने का इरादा सम या न बर आई दो सुनाई कु े ने रो-रो अब तो कोई करो इ साफ कर दो मेर गलती माफ मने इक ह ड थी उठाई गली म लावा रस थी पाई उठा कर
या गलती क मने
अब तक मुझको िमलते ताने पानी म दख गई परछाई मने समझा मेरा भाई भाई समझ कर म था भ का लोग को बस िमल गया मौका लालची कहकर लगे िचढ़ाने ब च को िश ा के बहाने सबने मुझको लालची कह दया मने मुकदमा दायर कर दया तब तो था मुझम भी जोश पर अब उड़ गए मेरे होश
नह ं और म लड़ सकता हूँ न समझौता कर सकता हूँ
लालची सुनकर पक गया हूँ
अब म सचमुच थक गया हूँ दख गई मेर एक ह ह ड
पर खाते जो रोज स सड उनको कोई लालची नह ं कहता उनका चेहरा कभी न दखता कहते-कहते भर आया मन कु े के िगर गए अ ु कण पानी पलाकर चुप कराया अब तीसर सम या को लाया उठते मेर दम ु पे कैसे है लोग के
वाल याल
बोले कभी सीधी नह ं होती बारह साल दबाओ धरती जो मेर दम ु सीधी होगी तो
या जगह को साफ करे गी
बताओ फर यह कैसे हलेगी ? हलाए बना न रोट िमलेगी मेर दम ु के पीछे पड़े ह क से करते बडे बडे ह
पर नह ं सीधे होते आप टे ढ़े हर दम करते पाप अब सुनो सम या फोर कहते मुझको पकड़ो चोर बताओ म कस- कस को पकडू ँ कस- कस को दाँत म जकडू ँ मुझे तो दखते सारे ह चोर कहाँ-कहाँ मचाऊँ म शोर
सम या न बर आई फाईव दे खो समाचार यह लाईव हुई है नई क पनी लाँच
बाँध के रखे है कु े पाँच कहते है कु े ह वफादार बाँधो इ ह ब ड ग के
ार
अ दर बैठे धोखेबाज कैसे -कैसे है जालसाज भौ के जब उन दगाबाज पे तो बन जाए उनक जान पे अब आई है सम या िस स कैसे हो जाएँ सबम िम स बस करो ! सरदार िच लाया गु से म फरमान सुनाया पीले से म हो गया काला लगा न तेरे मुँह पे ताला झट से अपना बुलाया सहायक यह सारे तो है नालायक तुम एक सॉ टवेयर बनवाओ सारा डाटा फ ड कराओ फर हम उसम सच करगे सम याओं का हल ढू ँ ढगे मेरे पास कभी न आना पर जब चाहो मेल लगाना िमनट म हल होगी सम या नह ं करोगे कोई तप या इक सी.सी.ट .वी. लगवाओ मेरे के बन म फट कराओ नज़र म अब हर पल रखूँगा सबसे ह इ साफ क ँ गा जो हुआ ! उसको जाने दो
मा अब नादान को करदो पर आगे से रहे कु
यान
का न हो अपमान
ऐसी कोई गलती न करना मेरे स मुख कभी न रोना ************************ २८.चलो हम भी चलते है .......? जीवन
पी
रथ के प हए हालात से ज मी , लहू से
लथपथ नंगे पैर
चलते है संसार
पी सागर के कनारे
हालात के बछे बालू पर छोड़ते ह अपने कदम के िनशान और एक ह लहर िमटा दे ती है उन िनशान को जो धंस गए थे गहरे उस सीली रे त म रह जाती है बस याद सागर तट पर कुलबुलाती मछिलय क भा त सैकड अनुभव और ज म खाए पैर बन कर रह गए इितहास ब द कताब म
और यह ब दर क औलाद पढ़ती तो है पर समझती नह ं आ खर है तो ब दर क औलाद ह ना जब तक प थर ना खाएगी नह ं समझेगी चलगे उसी बालू पर बटोरगे अनुभव पीटगे माथा नई पीढ़ को समझाने के िलए पर यह नह ं समझगे क जब खुद ह अपने अनुभव से सब समझा तो यह नए जमाने के लोग य समझगे दस ू र से
अपनी राह बनाएँगे फर से वह
म दोहराएँगे
बार - बार यह दो पैर आते है ,चले जाते है और फर इितहास बन कताब म ब द हो जाते है चलो हम भी चलते है **************************************** २९..ट स दयासागर पर भावनाओं के च वात को चीरती िनकलती है वनाशकार लहर बह जाती अनजान पथ पर
तेज नुक ली धार बन कर मापती अन त गहराई बना कनारे और मं जल के चलती बे वाह कह भी तो नह ं िमलती थाह या फर चीरती है काँटे क भा त मन-म
य के सीने को
िनकलती है बस आह भर चीस भर जाती
दय म ट स
*********************************** ३०.तो अ छा है ................ ऊपर दे खो मगर , पाँव ज़मीं पर ह रखो ,तो अ छा है बोलो अव य मगर, वचार शु रखो तो अ छा है आगे बढ़ो मगर कसी को र दो नह ं तो अ छा है सोचो उँ चा मगर जीवन म सादगी रखो तो अ छा है कहो सब कुछ मगर बात म स चाई रखो तो अ छा है जीवन जओ मगर और को जीने दो तो अ छा है नफ़रत करो मगर उसम करम क बुराई को रखो तो अ छा है
यार करो मगर उसम खुदाई को रखो तो अ छा है कम करो मगर उसम कम क अ छाई को रखो तो अ छा है दे खो सब कुछ मगर नज़र म गहराई को रखो तो अ छा है सपने दे खो मगर इरादे नेक ह तो अ छा है ******************************** ३१.कु
का भोजन
आज फर हुआ
गंदे नाले के पास एक अ वकिसत क या का दाह सं कार जसे कह रहे थे कुछ तमाशबीन कसी बन याह माँ का पाप और कुछ ने कहा लड़क को
ाप
बना रहे थे बात बना कसी
योजन
और आज फर िमल गया था कु को भोजन ********************* ३२. या खोया ?, या पाया? हर रोज क कहानी पढ़ते ह सुनते ह समझते है
फर भी उसे दोहराते ह .......................... ......................... बस बढ़ता ह जाता है ??????????????????????/ बहुओं का जलना दहे ज क बिल चढ़ना इ ज़त लूटना मारना -पीटना ज़ु म करना अ याचार दे ह- यापार बुरा- यवहार र त का टू टना लालच और अहं कार पित-प ी का तलाक़ ब च संग दरु ाचार हर जगह
ाचार
रखना हाथ म हिथयार आपस म तकरार
युवा फरते ह बेकार गिलय म.......... बूढ़े और बीमार ब चे............. माँ -बाप से शमसार दखाना................ खुद को इ ज़तदार झूठ शानो -शौकत बहन भाई क नफ़रत िसर पर कज़ आ मह या का दख ु ी जीवन
यास
हर पल तनाव _______________ ________________ कुछ कम हुआ ??????????????? तो वह है ........ तन पर कपड़े आपस का यार खून के र तेदार सादा जीवन उ च वचार स चाई का यापार यार का यवहार एकजुट प रवार पा रवा रक स याचार चेहरे पे हँ सी जीने क चाहत सुखी जीवन इ ज़त क रोट ई र म आ था
स चाई से वा ता ___________________ _____________________ और खो गया है ???????????????? ब च का बचपन सुखमय जीवन शु
वातावरण
अंधेरे म इं सान जवानी म नौजवान शु
पकवान
नव-वधू का अरमान अपनी असली पहचान स ची मु कान
अपने दे श का यार सं कृ ित औ स याचार अ छा यवहार बुराई का ितर कार आँख क शम बड़ क इ ज़त छोट से यार बाप का
नेह
माँ का दल ु ार
खून का लाल रं ग जीवन म उमंग मानवता का अहसास आपस का व ास _________________ ____________________ दे खो अपनी अंदर क आँख से बात करो अपने दल से यह जीवन हम कहाँ से कहाँ ले आया और हमने
या खोया ?, या पाया?
***************************** ३३.मं दर के ार पर मं दर के अंदर वण मूित म वराजमान भगवान र ज ड़त आभूषण अंग-अंग पर गहने और रे शमी व पहने ........................... ......................... आँगन म बैठे कुछ जन पं
लगाए
अपना पूरा पेट फैलाए खाते
वा द
पकवान
समझ
वयं को भगवान
लेते द
णा म माया
न जाने कसने क़ानून बनाया .................................. ............................. बाहर उसी मं दर के ार बैठ बु ढ़या एक बीमार चलने- फरने को लाचार कहती सबको ह पालनहार माँगे रोट और आचार ..................................... ..................................... दे खो लोग का यवहार कैसे-कैसे अ याचार करते उसको खबरदार करो कुछ तो तुम वचार करोगी तुम सबको बीमार छोड़ो इस मं दर का ार ************************* ३४. यार का उपहार आज यार के पित को
योहार पर
या उपहार दं ू |
मेरे पास तो ऐसा कुछ भी नह ं कुछ श द का ह
यार दं ू | जब से आए हो मेर , ज़ंदगी म तुम | तभी से समाए हो , मेर बंदगी म तुम |
मेर हर
वास पर
तेरा ह अिधकार है तुझ से ह तो बसा मेरा संसार है तेरे यार से बढ़कर तो कुछ भी नह ं तेरे जैसा यारा और कोई स च भी नह ं तुमने हर पल दल से साथ दया है मेरा य न दो ?आ ख़र तू ह तो पया है मेरा तेरे यार के िलए तो कोई श द भी नह ं कुछ गाऊँ तेरे िलए कोई तज़ भी नह ं बस इतना सा ह म तो कह सकती तेरे बना अब पया म नह ं रह सकती यार करती हूँ तुमसे
म इतना सनम
कर दया तेरे नाम मने अपना जीवन यह जीवन तो अब तेर सौगात है जसमे बस तेरे यार क ह बरसात है माँग के दे ख लो पया तेरे िलए
मेर जान है हा ज़र तेर ख़ुशी के िलए आज करती हूँ म पया वादा तुझे
साथ तेरा तो कुछ नह ं चा हए मुझे माफ़ कर दे ना पया मेर हर एक ख़ता साथ दे ना सदा चाहे दे लो सज़ा तेरे बना मेरा जीवन है अधूरा सनम तुम िमले मुझको यह मेरा अ छा कम एक वादा करो कभी छोड़ना नह ं बंधन यार का पया कभी तोड़ना नह ं ********************************** ३५.अ धो का आइना अ धेरे म रहना तो अ ध का
वभाव है
दिु नया के
झूठे आइन से नह ं कोई लगाव है नह ं दे ख सकते झूठ कपट का आइना
नह ं जानते वो कसी के पद िच ह पर चलना माना नज़र वाले होते है बहुत महान पर
अ धे भी नह ं होते इतने नादान माना नह ं कर सकते वे कसी क पहचान पर ब द नह ं होते उनके कान और जुबान उठा सकते है वो भी उस पर जसे कहकर नज़र वाले मनाते है ज आपने कुछ कहा वो तो बात हो गई दया उ र कोई तो वो खता हो गई आपने कहा कुछ भी और मु
हो गए
उठाई जसने आवाज़
वो अ धे हो गए य दे खे ऐसा आइना जसमे कसी का अहम ह नज़र आए इससे तो अ छा है ई र अ धा ह बनाए ***************************** ३६.हे क वते हे क वते या पावन प है तु हारा भावुक
दय का
तु ह ं तो हो सहारा व छ द
वा हत िन ल
य सूय क पहली करण से खलता हुआ कमल
सा ह याकाश पर
सूय क भा त दै द यमान कोमल सु दर िन कपट , ब धन र हत भाव का अरमान हुआ
ो च प ी का वध
िनकले मुँह से ऐसे श द बहने लगी भाव क ऐसी स रता हो गई अमर क वता बदले
युग -युगा तर म न जाने तुमने कतने
प
फर भी हे क वते नह ं बदला तेरा सु प वह बनी रह नाजुकता , कोमलता , भावुकता रहा हर युग म क व इसम बहता हे क वते नह ं ब ध सकती तुम कसी ब धन म तुम तो बसती हो हर भावुक मन म ************************ ३७.अगर हम गीतकार होते कहते है कुछ दोसत ! अबे सुन या है तु हार क वता म गेयता के गुण? तुम इसे गा सकती हो
या ?
क वता का कौन सा
प है ?
बता सकती हो
या?
कसने दया तु ह यह अिधकार?
क िलखो क वता बना सोच- वचार िलखना है तो िलखो दोहा , छ द या चौपाई तु हार का य वधा हमार समझ म नह ं आई कुछ तो शम करो और क वता पर रहम करो बोलो अब तक तुमने
या पढ़ा?
जो क वता िलखने का भूत सर चढ़ा ....................... ....................... आपका कहना सोलह आना स चा पर मेरा ह वचार है क चा नह ं परोना आता मुझे श द को सू
म
और नह ं बहना आता छ द अलंकार क धार म नह ं है
मुझम इतनी सोच वचार पर या क ँ ? नह ं कर सकती भावनाओ का ितर कार इनको बहाना मजबूर है उसके िलए िलखना ज र है स च जानो , इसके अलावा नह ं कोई
योजन
फर य करते हो ? मुझसे ऐसे जनके मेरे पास कोई उ र नह ं होते दिु नया क
भीड़ म यूँ ह नह ं खोते हम िलख कर
या
गा कर सुना दे ते ए दो त ! अगर हम गीतकार होते
******************** ३८.मुझे जीने दो मुझे जीना है
मुझे जीने दो हे जननी तुम तो समझो मुझे दिु नया म आने तो दो तुम
जननी हो माँ केवल एक बार तो मान लो मेरा भी कहना नह ं सह सकती म और बार-बार अब और नह ं मर सकती म कोई तो मुझे दे दो घर म शरण अपावन नह ं ह मेरे चरण य हर बार मुझे ितर कार ह िमलता है ? मेरा आना सबको ह खलता है हे जनक म तु हारा ह तो बोया हुआ बीज हूँ
नह ं कोई अनोखी चीज़ हूँ बोलो मेर
या ग़लती है ?
य केवल मुझे ह तु हार ग़लती क सज़ा िमलती है ? कब तक आ ख़र कब तक म यह सब सहूंगी?
दिु नया म आने को तड़पती रहूंगी?
या माँ का गभ ह है मेरा सदा का ठकाना? बस वह ं तक होगा मेरा आना जाना? या नह ं खोलूँगी म आँख दिु नया म कभी?
य िनदयी बन गये ह माँ बाप भी?
कहाँ तक चलेगी यह दिु नया
बना बेट के आने से?
बेट बन कर मने
या पाया जमाने से?
म दखाऊंगी नई राह दँ ग ू ी नई सोच जमाने को
मुझे दिु नया म आने तो दो म
जीना चाहती हूँ
मुझे जीने तो दो ****************** ३९.कौन करता है खुदकुशी.... ? नव-वष के जशन म लोग का नाच पूरा था आवेश,दे रहे थे शुभ-कामना संदेश साथ म गा रहे थे गीत:आओ ना खुशी से खुदकुशी कर सुन कर कान खड़े हो गये नह ं व ास हुआ आँख और कान पर पर यह तो था सबक ज़ुबान पर
कुछ अजीब लगा-ऐसी शुभ-कामना या सबक यह है भावना
गा रहे थे खुशी से बना डरे अरे , आओ ना खुशी से खुदकुशी कर ................................................... हम कोई समाज सुधारक नह ं कसी समाज सुधार सभा के परचारक भी नह ं अ छे वचारक भी नह ं पर, ऐसी बात पर अमल
य कर?
क आओ ना खुदकुशी कर मुझे नह ं जानना इसम य और
या है मकसद
जो भी हो अ छे नह ं लगे श द हम नह ं चा हए ऐसी खुशी जसम करने को कहा जाए खुदकुशी कुछ दे ना चाहते हो तो ए दो त कोई गम भले ह दे दो पर जीने का कोई संदेश सुना दो सब के िलए अ छा यह ना बाँटो ऐसी खुशी अरे ! कौन करता है खुशी से खुदकुशी ?
**************************** ४०.हे भगवान...... हे भगवान आओ और न
करदो
वो यार जसक नींव नफरत पर टक हो वो व ास जो अँहकार पर पलता हो
वो सु दरता जसके अ दर कु पता हो वो पु य जो केवल
व हत के िलए कमाए हो
वो अ छाई जो तु छ वचार को ज म दे वो चेहरे जो झूठ का नकाब ओढे हो वो सँ कार जसमे केवल अ हत छुपा हो वो आज़ाद जो बस जड़ ह बनाती हो वो आदश जसमे जीवन मू य का मोल लगाय जाए वो पहरे दार जो पर हत के भ क बन जाएँ वो र ित रवाज़ जो भेद भाव ह बताएँ वो आशाएँ जो म जल तक न पहुँचाएं वो अमीर
जो गर ब का लहु पलाए वो
जो मूक बिधर बनाए वो जीण वचार जो वकास म बाधा बन जाएँ वो सुख सु वधा जो िन ठला , िनक मा ,आलसी बनाए आओ वनाश कर दो यह सब न कर दो भगवान ---------------------------------
और नव सृजन करो करो नव िनमाण वह नफरत जसमे यार के अंकुर फूटे वह अहँ कार जसमे आ म- व ास भरा हो वह कु पता जसमे वचार क सु दरता हो वह पाप जो पर हत खाितर कए जाएँ वह बुराई जो तु छ वचार को िमटाए वह चेहरे जो झूठ का नकाब हटाएँ वे सँ कार जसमे सामा जक हत सामने आए वह ब धन जो वकास क राह पर चलना िसखाएँ वे आदश जो जीवन मू य को अमू य बनाएँ वह जो
ाचार आचार को दरू भगाएँ
वह र ित रवाज़
जो भेद-भाव को िमटाएँ वह िनराशा जो मं जल तक पंहुचाए वह गर बी
जो सर उठा कर जीना िसखाए वह वचार जो कांट को भी फूल बनाएँ वह क जो नई सोच और जाग कता लाएँ
वह आवाज़ जो दस ू र क
बन जाए
हे भगवान कर दो नव िनमाण ऐसी सृ जसमे स यम , िशवम , सु दरम का बोलबाला हो ********************************************** ४१.हे भगवान हे भगवान पा चाली का तन ढं कने के िलए साड का िनमाण कया तुमने अब भी करो..... जससे अधन न तन ढक जाएँ तुमने जेल के ताले तोड़ कर आज़ाद हािसल क अब भी तोड़ो ब धन के ताले जससे सु दर भाव को आज़ाद िमल जाए तुमने माखन चुराया अब भी चुरा लो जससे कोई कसी को माखन लगा न पाए तुमने िशव धनुष तोड़ा अब भी तोड़ो परमाणु हिथयार जससे दिु नया का वनाश न हो पाए
तुमने गो पय को नचाया अब वाल को नचायो
जससे दिु नया हम नचा न पाए
तुमने रा स का वध कया अब भी करो जससे दभ ु ाव
पी रा स हम खा न पाएँ
********************************
४२.औरत सोते-जागते,उठते-बैठते खाते-पीते,चलते- फरते कई बार अनायास ह कौ ध जात है मन म एक अजीब सा सवाल न जाने
य आता है ऐसा
याल
हर रोज सुनते है औरत पर जु म क दा ताँ जु म भी इतने जनक नह ं कोई सीमा य .........? औरत ह जलती है दहे ज क बली चढ़ती है औरत ह
पटती है
औरत ह िमटती है औरत ह सहती है औरत ह चुप रहती है औरत ह रोती है औरत ह खोती है औरत ह मरती है औरत ह डरती है -----------------------कभी कभी भर जाता है मन आ खर कौन है औरत का द ु मन
सोचती हूँ
तो लगता है ............. औरत ह जलाती है दहे ज क बली चढ़ाती है औरत ह
पटवाती है
औरत ह मरवाती है औरत ह सहन करवाती है औरत ह
लाती है
औरत ह चुप करवाती है औरत ह डराती है ---------------------------------न जाने कतने प बनाती है कभी माँ बन कर समझाती है बहन बन कर हँ साती है सास बन कर जलाती है तो कभी............. सौत बन कर सताती है ------------------------------एक ह ज दगी म औरत जीती है कतने ह जीवन यान से सोचो तो लगेगा............ औरत ह है औरत क द ु मन ************************ ४३.च र ह न
माँ बाप ब चा तो कभी भाई क क म खा-खा कर कब तक दे ती रहे गी वह सफाई क वह है ब कुल बेगुनाह बस केवल इसिलए..... क चा हए उसे एक घर म पनाह माँ -बाप ,भाई का घर तो होता ह है पराया और जीवनसाथी ने जीवन म साथ नह ं िनभाया कभी नह ं कया उस पर भरोसा हर बात पे उसके बेशम होने का इ जाम ठोसा वयम ् तो बाहर जाकर
गुल छरे उड़ाते है
और इ जतदार प ी को च र ह न बताते है
********************************************* ४४.बूँद वाित न क एक बूँद से सीप भी मोती बन जाता है एक ओस क बूँद कर दे ती है व छ सुमन एक ह
बूँद दे दे ती है नव जीवन एक बूँद न
होकर भी
नह ं िमटता जसका अ त व समा जाती है बादल म धुआँ बनकर और एक एक बूँद िमलकर बरसती है वषा बनकर फर से वह म दोहराना आना और फर न
हो जाना
भरती खुिशय से हर आँचल धरा को दे ती ह रयाला तल दे ना ह जसका नह ं उस पर कोई
वभाव भाव
बस िन काम भाव से होना सम पत और पर हत म कर दे ना वयम ् को अ पत
यह वह बूँद है हर ब धन को तोड़ने क श
है जसमे
भले ह न ह ं सी है पर नह ं उस जैसा कोई महान नह ं समझते यह बात लोग अनजान क बूँद से ह तो पलता है जीवन और खलता है मन ****************************** ४५.ऋतुओ क रानी
धरा पे छाई है ह रयाली खल गई हर इक डाली डाली नव प लव नव क पल फूटती मानो कुदरत भी है हँ स द छाई ह रयाली उपवन म और छाई म ती भी पवन म उड़ते प ी नीलगगन म नई उमंग छाई हर मन म लाल गुलाबी पीले फूल खले शीतल न दया के कूल हँ स द है न ह ं सी किलयाँ भर गई है ब च से गिलयाँ दे खो नभ म उड़ते पतंग भरते नीलगगन म रं ग
दे खो यह बस त म तानी आ गई है ऋतुओं क रानी ********************************* ४६.आन बसो का हा
कृ ण क है या धीरे - धीरे और यमुना के तीरे तीरे मुरली क धुन आज सुना दो यार का फर स दे श सुना दो दे खो तेर इस यमुना म कु ज गिलन म और मधुवन म गली गली म वृ दावन म और
ज के हर इक आँगन म
कहाँ वो पहला यार रहा है ? बोलो! का हा अब तू कहाँ है ? य तेर पावन धरती पर लालच ने डाला अपना घर? कहा है माँ जसुदा क र सी? और वो ख ट -मीठ ल सी कहाँ वो छाछ ,दिध और दध ू ? अब तो जैसे मची है लूट
कहाँ है वो वाले और गोपी? अब तो सारे बन गए लोभी कहाँ है वो मीठ सी लोर ? कहाँ गई वो माखन चोर ? कहाँ गया वो रास रचाना? मुरली बजा गाय को बुलाना यमुना तट पर रास रचाना और छुप-छुप कर िम ट खाना कहाँ गया यारा सा उलाहना?
गो पय का जो माँ को सुनाना कहाँ है वो भोली सी बात? कहाँ गई पूनम क रात? कहाँ गया िनमल यमुना जल? जहाँ पे प ी करते कलकल कहाँ गए सावन के झूल?े का हा !अब यह सब कहाँ है कद ब वृ
य भूल?े
क छाया?
जस पर तुमने खेल खलाया कहाँ गए होली के वो रं ग? जो खेले तुमने राधा स ग कहाँ है न द बाबा का यार? कहाँ है माँ जसुदा का दल ु ार? कहाँ गई मुरली क वो धुन? कहाँ गई पायल क
नझुन?
अब वहाँ कपट ने डाला डे रा लालच ने सबको ह घेरा आओ का हा फर से आओ आ कर मुरली मधुर बजाओ फर से वो
ज वा पस लादो
फर से धुन मुरली क सुना दो आन बसो तुम फर से का हा और फर वा पस कभी न जाना ***************************** ४७. ितज के उस पार आओ चलो हम भी ितज के उस पार चले जहाँ सारे ब धन तोड़ धरती और गगन िमले
जहाँ पर हो खुशी से भरे बादल और न हो कोई दिु नयादार क हलचल बे फ
ज दगी जहाँ खेले बचपन सी सुहानी जहाँ पर नह ं हो खोखली बात जुबानी खुले आकाश म पतंग क भांित उड़े और लाएँ एक नई
ा त
जो मेहनत को बनाएँ सफलता क सीढ़ तभी आसमान छुएगी हमार नई पीढ़ दरू
खड़ा वृ दलाता है मानो अहसास अकेला है तो
या है
कभी मत होना उदास म भी तो
अकेला खड़ा हूँ यहाँ थक
जाओगे जब तो म तु ह दँ ग ू ा छाया उठो
हम भी चले यह धरती आ माँ एक जहाँ और पाएँ अपा.....र शा त नह ं कोई िभ नता वहाँ चलो हम भी चले ितज के उस पार वहाँ चलो हम भी चले ितज के उस पार वहाँ और पाएँ अपा.....र शा त नह ं कोई िभ नता वहाँ उठो हम भी चले यह धरती आ माँ एक जहाँ थक जाओगे जब तो म तु ह दँ ग ू ा छाया म
भी तो अकेला खड़ा हूँ यहाँ अकेला है
तो
या है
कभी मत होना उदास दरू
खड़ा वृ दलाता है मानो अहसास तभी आसमान छुएगी हमार नई पीढ़ जो मेहनत को बनाएँ सफलता क सीढ़ उड़े और लाएँ एक नई
ा त
खुले आकाश म पतंग क भांित जहाँ पर नह ं हो खोखली बात जुबानी बे फ ज दगी जहाँ खेले बचपन सी सुहानी और न हो कोई दिु नयादार क हलचल
जहाँ पर हो खुशी से भरे बादल जहाँ सारे ब धन तोड़ धरती और गगन िमले आओ चलो हम भी ितज के उस पार चले *********************************************** ४८. यार म तो शूल भी फूल यार से तो शूल भी फूल बन जाते है कभी कसी को दल म बसा के तो दे ख सार दिु नया अपनी सी लगने लगती है कभी कसी को अपना बना के तो दे ख लोग तो प थर म अहम
कट कर लेते है भगवान को
याग के कभी सर को झुका के तो दे ख
जीवन क राह म नह ं चलना पड़े गा त हा कभी कसी के साथ कदम को िमला के तो दे ख गम का पहाड़ भी ह का हो जाएगा कभी कसी के गम को उठा के तो दे ख तदबीर से बदल जाती है क मत क लक र भी कभी कसी से अपना हाथ िमला के तो दे ख ******************************************** ४९.क वता म िस धु क व क वता नह ं िलखता िलखती है क वता क व को अकसर
आ जाती यह जब भी चाहे न दे खे यह कोई अवसर न दख ु सुख दे खे यह क वता न दे खे यह खुशी य गम
यह तो आ जाती है वहाँ पर जहाँ पे दे खे आँख नम बह जाती मन म धारा सी चलती है फर बे वाह तोड़े हर ब धन मयादा भाव िस धु म पाती थाह श द औ सोच है दो कनारे तोड़े क वता सारे के सारे रचना क धारा म बहकर सागर हुई सागर म िमलकर
जसका रहा न कोई कनारा
समाया क वता म िस धु सारा *************************************** ५०. या िलखू.ँ ..........? या िलखूँ और कैसे िलखू?ँ कुछ भी समझ म आए ना सोच समझ के िलखने बैठूँ सोच भी वाणी पाए ना जाने ये श द कहाँ जाते है ? सोचने पर भी नह ं आते है कसी अ धेरे कोने म ये जाकर कह पे िछप जाते है पर जब नह ं िलखने क सोचूँ उमड़ घुमड़ कर िघर आते है गरजते है फर
दयाकाश पर
ढँ ढते ह कोई ऐसा पवत जससे बरसे ये टकरा कर
मु
हो ये जलधार बहा कर
राहत िमलती है तब जाकर तृ
हो जब ये वाणी पाकर
जाने कहाँ कहाँ से आते बरस के ह बस मु
पाते
***************************************** ५१.जीवन के रा ते वो चेहरे क झु रयाँ वो धवल बाल गहराई आँख द त वह न वो काँपती आवाज़ दल म ममता अनुभव से प रप व माँ ,दाद या कसी क नानी करती है यान अपने आप म एक जीवन क कहानी जसने दे खे न जाने कतने उतार चढ़ाव और अब आ गया उ
का वो पड़ाव
जहां पर फर से जीने क चाहत लेती है अँगड़ाई ----------------वो ब च सी ज तरसती आँख छोट सी
वा हश
ठना ,मनाना जी का ललचाना साथ क चाहत सोच म भोलापन चाहना बस अपनापन दलाता है अहसास क लौट आया है फर से वह मासूम सा बचपन --------------------------जीवन भर न जाने कये कतने ह
याग
लगाई न जाने कतने ह अरमान को आग सबको खला कर खाना छुप -छुप कर आँसू बहाना जीना बस दस ू र के िलए
िन: वाथ ह उपकार कए वह कतनी मजबूर , लाचार और बेबस है आज कहाँ रहा उसका अपना कोई अ दाज बलखती है, रोती है बस अकेले ह सोती है छोड़ चले जवानी काले बाल, मुँह म दांत अपने साथ
कहाँ गए वो अनुभव जो हािसल कए थे वयम ् को गला कर --------------------------चेहरे क झु रय के बीच फैलती एक़ मु कान कहती है मानो िच ला कर मेरे दल म भी है अरमान दे खो मेर वा त वक सु दरता जो
दान क है मुझे
उस हर पल ने ज ह ने कभी खुशी और कभी गम का लेप कया आसुँओं ने धोया व
ने पीटा
हालात ने कभी हँ साया तो कभी
लाया
और सबने िमलकर मेरा यह
प बनाया
यह लक र उसी क दे न है जनम िलखी है ल बी दा तान कभी यह भी थी नादान पर जब पाया इ ह ने
प
तो ढल गई थी जवानी क धूप सा
य बेला ,आगे अ धकार
रह गए बस वचार ----------------
---------------ज मेदा रय का बोझ िनभाते िनभाते िनकल आए इतनी दरू
क छूट गए सब जीवन के रा ते
वो भी छोड़ गए खुद को छोड़ा जनके वा ते ********************************************
५2.मृगतृ णा एक दन पड़ थी माँ क कोख म अँधेरे म िसमट सोई चाह कर भी कभी न रोई एक आशा थी मन म क आगे उजाला है जीवन म एक दन िमटे गा तम काला
होगा जीवन म उजाला िमल गई एक दन म जल धड़का उसका भी दिु नया म दल फर हुआ
दिु नया से सामना
पड़ा फर से
वयम ् को थामना
तरसी वा द
खाने को भी
मज से इधर-उधर जाने को भी िमला पीने को केवल दध ू िमटाई उसी से अपनी भूख सोचा , एक दन वो भी दाँत दखाएगी और मज से खाएगी जहाँ चाहे गी वह पर जाएगी दाँत भी आए और पैरो पर भी हुई खड़ पर यह दिु नया
चाबुक लेकर बढ़ लड़क हो तो समझो अपनी सीमाएँ नह ं
खुली है तु हारे िलए सब राह फर भी बढ़ती गई आगे यह सोचकर क भव य म रहे गी
वयम ् को खोज कर
आगे भी बढ़ सीढ़ पे सीढ़ भी चढ़ पर लड़क पे ह नह ं होता कसी को व ास प ी बनकर लेगी सुख क साँस एक दन बन भी गई प ी कसी के हाथ
सप द
ज दगी अपनी
पर प ी बनकर भी सुख तो नह ं पाया ज मेदा रय के बोझ ने पहरा लगाया फर भी मन म यह आया
माँ बनकर पायेगी स मान और पूरे ह गे उसके भी अरमान माँ बनी और खुद को भूली अपनी हर इ छा क दे ह द बिल पाली बस एक ह चाहत मन म क ब चे सुख दगे जीवन म बढ़ती गई आगे ह आगे व त और हालात भी साथ ह भागे सबने चुन िलए अपने-अपने रा ते वे भी छोड़ गए साथ वयम ् को छोड़ा जनके वा ते
और अब आ गया वह पड़ाव जब फर से हुआ
वयम ् से लगाव
पूर
ज दगी
उ मीद के सहारे आगे ह आगे रह चलती वयम को खोजने क िचंगार अ दर ह अ दर रह जलती भागती रह फर भी रह
यासी
व त ने बना दया हालात क दासी उ मीद से
कभी न िमली राहत और न ह पूर हुई कभी चाहत यह चाहत मन म पाले इक दन दिु नया छूट केवल एक
मृग-तृ णा ने सार ह
ज दगी लूट
********************************* ५३.नार श हे व
क सँचािलनी
कोमल पर श
शािलनी
णाम तु ह नार श या अ त ु है तेर भ
तू सहनशील और सद वचार चुपचाप ह सह जाती
हार
तुझसे ह तो जग है िनिमत पर हत के िलए तुम हो अ पत तुमने कतने ह
कए
याग
द अपने अरमान को आग ज दा रह ब दस ू र के िलए
िन: वाथ ह उपकार कए खुिशयाँ बाँट बेट बनकर माँ-बाप हुए ध य जनकर अधा गनी बनकर कए
याग
समझा उसको भी अ छा भाग माँ बन काली रात काट ब चे को िचपका कर छाती जीवन भर करती रह संघष चाहा बस इक यारा सा घर नह ं पता चला बीता जीवन हर बार ह मारा अपना मन .................... .................... ऐसी ह होती है नार वह दे सकती ज दगी सार उस नार के नाम इक नार
दवस
खुश हो जाती है इसी म बस नह ं उसका दया जाता कोई पल नार तुम हो दिु नया का बल तुझम ह है अ त ु ह मत
तेर श के आगे झुका म तक ************************** ५४.अ यापक दवस हम भारत के वासी है गु
पर परा के अनुगामी
नत ् म तक हो गु
चरण म
हम बना ले अपनी ज दगानी कु भकार गु गु
,िश य है घड़ा
तो ई र से भी है बड़ा
झुक कर गु
के
ी चरण म
िश य पैरो पर होता खड़ा गु
तो वह द पक है जलकर
जो
वयम ् भ म हो जाता है
िमटते-िमटते भी और को जो
कािशत कर जाता है
ी राम कृ ण औ हनुमान भी गु गु
के आगे झुकते थे
के ह एक इशारे पर
न कदम कसी के गु
कते थे
वाणी तो अमृत वाणी
जो शुभ ह शुभ फल दे ती है और क
िमटा कर जीवन के
भा य को उदय कर दे ती है गु
तो सदै व है पूजनीय
गु
क िन दा है िन दनीय
जीवन क जो राह दखाता है वह गु
सदै व है व दनीय
गु
िश य नाता है अटू ट
नह ं डाले इसम कोई फूट यह स यता थी भारत क कुछ द ु ो ने जो ली है लूट
दख ु तो है यह पावन नाता
य रास कसी को नह ं आता
न गु
तो न िश य है वह
स यता भारत क कहाँ गई पैसे के ब धन म ब ध गए गु
िश य दोनो आपस म
न
ेम यार का स ब ध है
न कोई भावुकता मन म बस एक दवस अ यापक दवस बस यह गु
िश य पर परा
िनभानी है हम उस भारत म जसके बल पर यह दे श खडा वह गु
कहाँ ? जो दखला दे
माग स य का िश य को जल कर के उ
वयम द पक क तरह
वल कर दे जो भ व य को
माना जीवन यापन के िलए पैसा भी बहुत ज र है पर भूल जाएँ गु ऐसी भी
के िनयम
या मजबूर है
स य का माग अ यापक है जो अपना ह नह ं सकता इस रा
का िनमाता वह
अ यापक हो ह नह ं सकता नह ं कोई हक कहलाने का अ यापक उस इ सान को जो केवल पैसे क खाितर बेचे अपने ईमान को
मा चाहती हूँ फर भी
कड़वा स च मुझको है कहना लालची ,अयो य तो छोड़ ह दे अ यापक बनने का सपना ************************* ५५.कलम है क
कती नह ं
उमड़ते घुमड़ते जजबात टकराते बरस जाते होते फनाह उठते िघर जाते न र हो कर भी अन र हर बार नया
प
अ प बरसे तो सुखद न बरसे तो दख ु द बरसते
वयम को िमटाने के िलए मु
पाने के िलए
मु
होकर होते अमर
हर
ण जवाँ ,अजर
बह जाते अ ु बनकर िमट जाते पर पा जाते वाणी कह जाते हर बार नई कहानी कब , कहाँ , कैसे आ जाएँ ? कोई भी इनको समझ न पाए
हर बार नई
ा त
नई तृ णा ऐसी यास जो कभी बुझती नह ं पकड़े रखती कलाकार क कलम जो कभी
कती नह ं
************************ ५६.सड़क आदमी और आसमान खुली सड़क बनाती ह अपना माग करती है सार बाधाओं को पार टू टती है , िमटती है ले कन बता दे ती है डगर चलता है आदमी उस र ते पर छोड़ता है अपने कदम के िनशान टका कर पैर जमी पर दे खता है ऊँचा आसमान आसमान... जहां पलते ह हजार सपने सपने...... जनम रहते ह अपने अपने ..... जनसे खून का र ता र ता .... जसमे भरा है
वाथ
वाथ...... जसमे पलती है नफरत नफरत...... जसमे िछपा है लालच
लालच जसम िगरते ह इ सान इ सान.... जो बन जाते ह है वान है वान...... जसमे नह ं कोई भावनाएँ वो भावनाएँ..... जो इ सान को इ सािनयत िसखाएँ इ सािनयत...... जसम हो केवल अ छाई अ छाई..... जसमे बसती हो स चाई स चाई..... जससे होता हो क याण क याण..... जो बन जाए सु दरता सु दरता...... जसमे िछपे हो ऊँचे वचार वचार..... जो छू ले आसमान और सड़क पर चलता आदमी छू कर ऊँचाई पूरे करे अरमान **************************** ५७.तीसर आँख सृ संहार करता महादे व िशव का खुला रहता है तीसरा ने
मानव भी कहाँ है पीछे छू िलया हर
े
ईज़ाद कर ली तीसर आँख बना ली दिु नया भर म अपनी साख रखती है
यह नज़र अपलक हर आने जाने वाले क दखती इसम झलक दे खो वह रे लवे
टे शन का
ढू ँ ढती है ....... माँ ठे हुए बेटे को
प ी
ज मेदा रय से भागे पित को बाप पगड़ रौ द कर घर से भागी बेट को िभखार दाता को , लुटेरा जेब को ट ट महाशय बना टकट पैसजर को लोह पथ गािमनी सब क
वािमनी
य
आई ,और आ के चली गई और यह तीसर आँख चुपचाप दे खती रह इधर दे खो मनाया जा रहा है कसी योहार का ज सर से सरकता है दप ु टा फटती है चोली सभी के सभी मूक दशक और कुछ ह
ण म
लुटती है िन बत वणन करती है आँख दे खा
य तीसर आँख
और फर सबूत तलाशती पुिलस दे खती है सरे बाज़ार कटती है जेब कसी जाती है राह चलती लड़ कय पर फ तयाँ दे ख कर अनदे खा करते लोग
दे खती है यह तीसर आँख सारा नजारा बयाँ करती है हाल सारा बताती है अपराध पर अपराधी है गायब वो बक म दे खती है खुलते लॉकर तनती कमचा रय पर प तौल दखाई दे ती है लुटेर क पीठ पीठ पर घुपते छुरे चेहरे पर नह ं दखते पीछे से द गई है चेतावनी चेहरा न दखाना नह ं तो लगेगी ज दगी भी डरावनी अरे यह तीसर आँख दे खती है गु कुल म भी घूमते िश यगण हाथ म थामे हुए गन
िनशाना लगाती प तौल ढे र होती लाश दखते मु त के तमाशे तो या है नाबािलग है बेचारे मा करो उनके अपराध सारे ब चे है सुधर जाएँगे एक दन यह तो दे श चलाएँगे वो दे खा उठता धुँआँ और फर भभकती आग शायद कसी क बेट नह ं बहु चढ़ है दहे ज क बिल बिल का दे वता भी तो भूखा था पकाया है उसके िलये खाना बहुत
अस से िमला जो नह ं था खजाना अब दे खो सरकार अ पताल म मर ज कुरलाते है कस हाल म डॉ टर साहब आते है मर ज को हाथ लगाते है मोबाईल पर बितयाते हुए
अपने कारनामे बताते हुए
मर ज़ क नस को छुआ और आगे िनकल गए वो दे खो माँ बनने वाली है कोई न ह ं जान दिु नया म आने वाली है
डॉ टर साहब पीटते है माथा इसको भी अभी आना था जब मुझे एक पाट म जाना था यहाँ बेरोजगार क हड़ताल करते बहुत से सवाल चुनाव
समीप है इसी िलए सब नेता चुप है वरोधी प मरण
का नेता आता है
तधा रय को जूस पलाता है
और अपनी पाट म शािमल होने का दे ता है
यौता
समय का करता है सदप ु योग य क स
य है चुनाव आयोग
अब बे फ
पाँच साल
पाँच साल बाद ह होगी हडताल तब तक काम चलाते है अपनी सरकार बनाते है
यह तीसर आँख दे खती - दखाती है सबकुछ पर नह ं है इसक जुबान आवाज उठाना नह ं इसका काम इसके पीछे है बी. पी. के न हे हाथ ( बी.पी.= भारतीय पुिलस) जो नह ं का बल अभी क पकड़ ले इतनी बड़ सौगात केवल दो आँख है दे खने को दो कान है सुनने को न हे से हाथ म नह ं है इतनी श बस यह तो करते है कसी और आँख क भ ****************************************** ५८.होली होली आई , खुिशयाँ लाई खेले राधा सँग क हाई
फके इक दज ू े पे गुलाल हरे , गुलाबी ,पीले गाल
यार का यह योहार िनराला खुश है का हा सँग चढ़ा
जबाला
ेम का ऐसा रँ ग
म ती म झूम अंग-अंग आओ हम भी खेले होली नह ं दगे कोई मीठ गोली हम खेले श द के सँग भाव के फकगे रं ग रं ग- बरं गे भाव दखगे आज हम होली पे िलखगे चलो होिलका सब िमल के जलाएँ एक नया इितहास बनाएँ जलाएँ उसम बुरे वचार कटु -भाव का करे ितर कार नफरत क दे दे आहुित आज लगाएँ
ेम भभूित
ेम के रं ग म सब रं ग डाले नफरत नह ं कोई मन म पाले सब इक दज ू े के हो जाएँ
आओ हम सब होली मनाएँ ************************ ५९.आजाद क गुहार
ये तरसती आँख हालात क झु रयाँ व त के थपेड़ से जजर ह डयाँ बूढ़
वा हश
कंपकंपाती आवाज़ करते ह यान अपने आप म एक दा तान क , मरे है हर पल पीकर गुलामी का जहर जए ह दे खकर अ याचा रय का कहर हर
ण
खौफ समाया रहा मन म नह ं िमला
हष कभी जीवन म अ तमन म बैठ रह कोई न कोई अनहोनी क अभी पड़े गी कसी न कसी अपने क
ज दगी खोनी
खौफ ने डाला मन म ऐसा डे रा क नह ं महसूस हुआ
कभी खुिशय का फेरा कभी हँ सी न आई चेहरे पर यह सोचकर क न जाने कस घड़ सूना हो जाए घर और िमल जाए सदा का रोना नह ं चाहते थे उस अ
य हँ सी को खोना
इसी िलए रखा छुपाकर अ दर ह अ दर दबाकर लग जाए न कसी क बुर नज़र बस ऐसे ह काट िलया ज दगी का सफर
सारा जीवन तो मर मर के बताया और अब जब अ त समय आया जी लेना चाहते है जी भर मरे तो है ताउ अब तो हम दे दो खुल कर जीने क आजाद लौटा दो वो हँ सी जसक अनजाने खौफ ने क जीवन भर बबाद अब तो
ब द करो अ याचार पनपने दो सद वचार ता क हम भी जी सके जीवन रस पी सके ले लेने दो हम भी वा त वक ज दगी का रसा वाद अब तो करदो हम आज़ाद
गुलामी से ,अ याचार से ,खौफ से और गहराई तक समाई अ य त हाई से दे दो आज़ाद हम अब तो दे दो ************************* ६०.मुसा फर जीवन पथ का पिथक थक हार के बैठा त
क छाया, सु ताया
ब द आँख ने सपना सजाया मोह ने भरमाया ,ललचाया खुली आँख तो कड़वा स च नज़र आया क.............. सामने कुछ न बचा था केवल खालीपन सपन म ह बता दया जीवन तय कर डाली ल बी डगर............. िगरते सँभलते चलता रहा आँख नह ं खोली मगर न ह तृ
कए नयन
न िलया कभी दो पल भी चैन
दे ख कर भी कया अनदे खा नह ं बदली भा य क रे खा चाह कर भी न खोली जुबान दबा िलए अपने अरमान रह गया एक ऐसा मुसा फर बनकर जो चलते-चलते पहुँचा हो उस मोड़ पर जहाँ
ख म हो जाती है हर जीवन डगर
*************************************** संपक: सीमा सचदे व एम. ए. ह द , एम.एड., पीजीड सीट ट एस,
7ए, 3रा
ास
ानी
रामाज या लेआउट मारताह ली
बगलोर - 560037
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