पातः समरणीय परम पूजय संत शी आसारामजी बापू के सतसंग पवचन
मधुर वयवहार
मधुर व यवहार परमातमा परम आनंद और परम शािित के भंडार है | उनके साथ तुमहारा समबिध िजतना ही बढ़ता जाएगा उतने ही आनंद और शािित भी तुमहारे अंदर बढ़ते जायेगे | तुम जहाँ भी जाओगे, आनंद और शािित तुमहारे साथ जायेगे पािणयो को भी उससे शािित की पािि होगी
| जगत के
|
कहीं-कहीं महापुरषो को 'दादा' कहकर पुकारते है , 'दादा' का अथ थ है जो दे … और िनतय दे ता रहे
| जो हमे जान, पेम, करणा, पसिनता, शािित आिद िनतय दे ता ही रहे
उसे 'दादा' कहते है | ऐसे महापुरषो से हमे जीवन जीने की कला, बातचीत करने का िशषाचार तथा लोक-वयवहार का आदशथ भी िसखने को िमलता है
|
पितधविन धविन का अनुसरण करती है और ठीक उसीके अनुरप होती है | इसी पकार दस ू रो से हमे वही िमलता है और वैसा ही िमलता है जैसा हम उनको दे ते है अवशय ही वह बीज-फल ियाय के अनुसार कई गुना बढ़कर िमलता है
|
| सुख चाहते हो,
दस ू रो को सुख दो | मान चाहते हो, औरो को मान पदान करो करो और बुराई चाहते हो तो बुराई करो
| िहत चाहते हो तो िहत
| जैसा बीज बोओगे वैसा ही फल पाओगे
|
यह समझ लो िक मीठी और िहतभरी वाणी दस ू रो को आनंद, शािित और पेम का दान करती है और सवयं आनंद, शािित और पेम को खींचकर बुलाती है
| मीठी और
िहतभरी वाणी से सदगुणो का पोषण होता है , मन को पिवत शिि पाि होती है और बुिि िनमल थ बनती है | वैसी वाणी मे भगवान का आशीवाद थ उतरता है और उससे अपना, दस ू रो का, सबका कलयाण होता है है
| उससे सतय की रका होती है और उसीमे सतय की शोभा
| मुँह से ऐसा शबद कभी मत िनकालो जो िकसीका िदल दख ु ावे और अिहत करे |
कडवी और अिहतकारी वाणी सतय को बचा नहीं सकती और उसमे रहनेवाले आंिशक सतय का सवरप भी बडा कुितसत और भयानक हो जाता है जो िकसीको पयारा और सवीकायथ नहीं लग सकता | िजसकी जबान गिदी होती है उसका मन भी गिदा होता है | महामना पंिडत मदनमोहन मालवीयजी से िकसी िविशष िवदान ् ने कहा: "आप मुझे सौ गाली दे कर दे िखये, मुझे गुससा नहीं आएगा
|"
महामना ने जो उतर िदया वह उनकी महानता को पकट करता है
| वह बोले:
"आपके कोध की परीका तो बाद मे होगी, मेरा मुह ँ तो पहले ही गिदा हो जाएगा
|"
ऐसी गिदी बातो को पसािरत करने मे न तो अपना मुँह गिदा बनाओ और न औरो की वैसी बाते गहण ही करो | दस ू रा कोई कडवा बोले, गाली दे तो तुम पर तो तभी उसका पभाव होता है जब तुम उसे गहण करते हो रजजब रोष
| रजजब ने कहा है :
न कीिज ये कोई कह े कयो ही |
हँसकर उतर दीिज
ये हा ँ बाबाजी
ढं ग से कही हुई बात िपय और मधुर लगती है
! यो ही || | माँ के भाई को 'मामा' कहकर
पुकारे तो अचछा लगता है िकंतु 'िपता का साला' कहकर पुकारे तो बुरा लगता है
|
दस ू री बात है की िबना अवसर की बात भी अलग पितभाव खडा करती है | भोजन के समय कई लोग कबजी, शौच या और हलकी बाते करने लग जाते है
| इससे िचत की
िनमन दशा होने से तन-मन पर बुरा असर पडता है | अतः भोजन के समय पिवतता, शािित और पसिनता बढानेवाला ही िचंतन होना चािहए | भोजन मे तला हुआ, भुना हुआ और अनेक पकार के वयंजन, यह सब सवासथय और आयु की तो हािन करते ही है , मन की शािित को भी भंग करते है
|
सही बात भी असामियक होने से िपय नहीं लगती | भगवान शीरामचंदजी अपने वयवहार मे, बोल-चाल मे इस बात कर बडा धयान रखते थे की अवसरोचिरत भाषण ही हो
| वे िवरिभाषी नहीं थे | इससे से उनके दारा िकसीके िदल को दःुख पहुचाने का
पसंग उपिसथत नहीं होता था |
वे
अवसरोचािरत
बात
को
भी
युिि-पयुिि
से
पितपािदत करते थे तभी उनकी बात का कोई िवरोध नहीं करता था और न तो उनकी बात से िकसीका बुरा ही होता था
|
बात करने मे दस ू रो को मान दे ना, आप अमानी रहना यह सफलता की कूँजी है | शीराम की बात से िकसी को उदे ग नहीं होता था | जो बात-बात मे दस ू रो को उिदगन करता है वह पािपयो के लोक मे जाता है | बात मुँह से बाहर िनकलने से पहले ही उसके पितभाव की कलपना करे तािक बात मे पछताना न पडे
| िकसी किव ने कहा है : िनकी प ै फीकी लग े िबन अ वसर की बात जैस े िबरन के य ुि मे रस िस ंगार न स ु हात
| ||
और … फीकी प ै िनकी ल गे किह ये स मय िवचा िर सबके मन हिष थ त कर े जय ो िव वाह म े गािर
| ||
कोई वयिि िकसी िदन दफतर मे दे र से आता है | दे र से आने का कारण पूछने के बजाये उससे यिद ऐसा कहा जाए िक: "रोज आप दफतर मे समय से आ जाते थे | आज कया हो गया जो समय पर नहीं आ सके?" …तो उसे बात बुरी न लगेगी और दे र से आने का सही कारण भी वह िनःसंकोच बता दे गा | कुटु मब-पिरवार मे भी वाणी का पयोग करते समय यह अवशय खयाल रखा जाए िक मै िजससे बात करता हूँ वह कोई मशीन नहीं है , रोबोट नहीं है , लोहे का पुतला नहीं है , मनुषय है | उसके पास िदल है | हर िदल को सनेह, सहानुभूित, पेम और आदर िक आवशयकता होती है | अतः अपने से बडो के साथ िवनययुि वयवहार, बराबरी वालो से पेम और छोटो के पित दया तथा सहानुभूित-समपिन तुमहारा वयवहार जादई ु असर करता है
| िकसी के दक ु ान-मकान, धन-दौलत छीन लेना कोई बडा जुलम नहीं है | उसके िदल
को मत तोडना कयोिक उस िदल मे िदलबर खुद रहता है | बातचीत के तौर पर आपसी सनेह को याद रखकर सुझाव िदये जाये तो कुटु मब मै वैमनसय खडा नहीं होगा | िकसी एक पित ने अपनी पती से कहा िक आज भोजन अचछा नहीं बना | इस पर पती ने झुंझलाकर कहा: "िकसी और जगह, होटल मे जाकर खा लो या कोई दस ू री मेम साहब बुला लो
|" पित को यह बात बुरी लगी
| उसने भोजन की थाली दरू
िखसका दी | पती अगर आपसी सनेह को धयान मे रखकर यह कहती िक: "कल से मे िवशेष धयान रखकर भोजन बनाऊँगी … आपको िशकायत करने का मौका नहीं िमलेगा …" … तो ऐसी नौबत नहीं आती और सनेह का पतला तंतु टू टने न पाता भी न होता
| अिन का अनादर
|
वैसे ही अगर बाप अपने बेटे को कहता है िक: "परीका मे तुमहारे नमबर ठीक नहीं आए, तुम नालायक हो …" … तो बचचे के मानस पर उसका पितकूल पभाव पडे गा | इसके बदले अगर बाप यह कहे िक: "बेटा ! मेहनत िकया करो | एकाग होने के िलए थोडा धयान िकया करो | इससे तुम अवशय अचछे नमबर ला सकोगे |" इस पकार कहने
पर बचचे का उतसाह बढे गा | िपता के िलए आदर भी बना रहे गा और वह आगे चलकर मेहनत करके अचछे नमबर से पास होने का पयत करे गा | दक ु ानदार के पास कोई गाहक आकर कहे िक: "यह चीज़ आपके पास से ले गया था, अचछी नहीं है | वापस ले लो |" … तो उस समय दक ु ानदार को उसके साथ तीखा वयवहार नहीं करना चािहए | उसे कहना चािहए िक: "अगर आपको यह चीज़ पसंद नहीं है तो कोई बात नहीं | मेरे पास इसकी और भी कई िकसमे है , िदखता हूँ | शायद आपको पसंद आ जाए |" इस पकार गाहक की पसिनता का खयाल रखकर सनेह और सहानुभिू त का वयवहार करना चािहए | इससे वह दक ु ानदार का पकका गाहक हो जाएगा | "तुमहे यह काम करना ही पडे गा |" नौकर से ऐसा कहने की बजाये यह कहो िक: "कया यह काम कर दोगे?" ...तो वह नौकर उतसाह से आपकी पसिनता के िलए वह काम कर दे गा | अियथा, उसे वह काम बोझ पतीत होगा और वह उससे छुटकारा पाने के िलए िववश होकर करे गा िजसमे उसकी पसिनता लुि हो जायेगी और काम भी ऐसा ही होगा | कहने के ढं ग मे मामूली फकथ कर दे ने से कायद थ कता पर बहुत पभाव पडता है | अगर िकसीसे काम करवाना हो तो उससे कहे िक अगर आपके िलए अनुकूल हो तो यह काम करने की कृ पा करे | बातचीत
के िसल िसल े मे महता द ू सरो को देनी चा िहए , न िक अपन े आपको |
ढंग से कही हुए बात पभाव रखती िवपरीत पिरणाम ला द ू सरो
है और अिवव ेकप ूव थ क कही हुई वही बात
ती है |
से िम लजुल कर काम वही
द ू सरो पर नह ीं लादता
कर सकता
है जो अपने अहंकार
को
| ऐसा अधयक अपने अधीनसथ कमच थ ािरयो से कोई गलती हो
जाए तो वह गलती को सवयं अपने ऊपर ले लेता है और कोई अचछा काम होता है तो उसका शय े दस ू रो को दे ता है | अपने सािथयो की वयििगत या घरे लू समसयाओं के पित सहानुभिू त रखकर, यथाशिि उनकी सहायता करना दक नेततृव का िचह है | कोई अगर अचछा काम कर
लाये तो उसकी पशंसा करना और जहाँ उसकी किमयाँ हो वहाँ उसका मागद थ शन थ करना भी दक नेततृव की पहचान है | अपने साथ काम करनेवालो के साथ मैती और अपनतव का समबिध काय थ मे दकता लाता है | जहाँ परायेपन की भावना होगी वहाँ नेततृव मे एकसूतता नहीं होगी और काम करनेवाले तथा काम लेनेवाले के बीच समिवय न होने के कारण कायथ मे हास होगा | कई खेलो मे जुट भावना से िमलजुलकर खेलने से पायः खेल मे दकता पाि होती है और जुट को िवजय िमलती है | जुट मे जहाँ आपस मे मेलजोल नहीं है , समिवय नहीं है और परसपर वैमनसय है वहाँ अचछे िखलािडयो के होते हुए भी वह जुट असफल होता िदखाई दे ता है | जुट का मुिखया सब िखलािडयो के पित समान वयवहार एवं सममान की भावना न रखकर ऊँच-नीच का भाव रखता है तो ऐसे जुट मे िवषमता पनपती है और उसको असफलता ही हाथ लगती है | दस ू रो से काम लेने का ढं ग भी उिहीं लोगो को आता है जो पसिनिचत रहते है | पसिनिचत वह रह सकते है जो धयान करते है और संतसमागम करते है | उनके कहे अनुसार दस ु रे लोग काम करते है
|
कुछ लोगो के सवाभाव मे उिदगनता भरी रहती है , जैसे वह हमेशा इमली खाए हुए है , िमसरी कभी खाई ही नहीं है | यिद वे िकसीको कुछ काम करने के िलए कहते है तो सामनेवाले वयिि के हदय मे पितकूल पितिकया उतपिन होती है | इससे काम करनेवाला पसिनिचत से उसमे भाग नहीं लेता, न अपनी िजममेदारी सवीकार करता है | पितकूल पित भाव के कारण कहनेवाल े की जीवनश िि भी कीण होती है और काम िबगड जाता है | इसके िवपरीत यिद शािित एवं पसिन िचत से िकसीको काम करने के िलए कहते है तो वह पसिनतापूवक थ उस काय थ को संपिन करता है | काम लेने का यही सही ढं ग है और इसके िवपरीत सब ढं ग गलत है | यह िवचार छोड दो िक िबना डांट-डपट के, िबना डराने-धमकाने के और िबना छल-कपट के तुमहारे िमत-साथी, सी-बचचे या नौकर-चाकर िबगड जायेगे | सचची बात तो
यह है की डर, डांट और छल-कपट से तो तुम उनको पराया बना दे ते हो और सदा के िलए उिहे अपने से दरू कर दे ते हो | पेम, सहानुभिू त, सममान, मधुर वचन, सिकय िहत, तयाग-भावना आिद से हर िकसीको सदा के िलए अपना बना सकते हो | तुमहारा ऐसा वयवहार होगा तो लोग तुमहारे िलए बडे -से-बडे तयाग के िलए तैयार हो जायेगे | तुमहारी लोकिपयता मौिखक नहीं रहे गी | लोगो के हदय मे बडा मधुर और िपय सथान तुमहारे िलए सुरिकत हो जाएगा | तुम भी सुखी हो जाओगे और तुमहारे समपकथ मे आनेवाले को भी सुख-शािित िमलेगी | कोई वयिि हमारे कथन अथवा िनदे श पर िकस रप मे अमल करे गा यह हमारे कहने के ढं ग पर िनभरथ करता है और सही तरीका वही है जो काम करनेवाले के िचत मे अनुकूल पिरणाम उतपिन करे | िकसीको वयंग या कटाकयुि वचन कहे तो उसकी िचत मे कोभ पैदा होता है | हमे भी हािन होती है | "आप तो भगतडे हो ...बुिू हो ...कुछ जानते नहीं ..." इस पकार बात करने के ढं ग से बात िबगड जाती है | बात कहने के ढं ग पर बात बनती या िबगडती है | िजनकी वाणी मे िवनय-िववेक है वे थोडे ही शबदो मे अपने हदय के भाव पकट कर दे ते है | वे ऐसी बात नहीं बोलते िजससे िकसीको ठे स पहुंचती हो | सबके सा थ सहान ुभ ू ित और नमता
से युि िमत ता का बताथ व करो
|
संसार मे सबसे जयादा मनुषय ऐसे ही िमलेगे िजनकी किठनाईयाँ और कष तुमहारी कलपना से कहीं अिधक है | तुम इस बात को समझ लो और िक सीके भी साथ अनादर और द ेष का वयवहार न
करके िवश ेष प ेम का वयवहार करो
|
तुमसे कोई बुरा बताव थ करे तो उसके साथ भी अचछा बताव थ करो और ऐसा करके अिभमान न करो | द ू सरो की भलाई मे तुम िज तना ही अप ने अहं कार को और सवाथ थ को भ ू लोग े उतना
ही त ुमहारा
वासत िवक िहत अ िधक हो गा |
अचछा बताव थ और िनशछल पेम का वयवहार करके सबमे पेम और भलाई का िवतरण करो | यही सचची सहायता और सचचा आशासन है | तुम जगत से जैसा वयवहार करोगे वैसा ही तुम पाओगे भी | सवामी रामतीथथ ने ठीक ही कहा है : कलजुग नह ीं करज ुग ह ै यह , यहा ँ िदन को द े अ र रात ले | कया ख ूब सौदा
नकद ह ै , इस हाथ द े उ स हा थ ल े ||
द ु िनया अ जब बाज़ार नेकी का बदला न
है , कुछ िज िस
1
यां की सा थ ल े |
ेक ह ै , बाद स े बडी की बात ल
े ||
मेवा िखला , मेवा िमल े , फल फूल द े , फल पात ल े | आराम द े , आराम ल े , द ु ःख दद थ दे , आफत
2
ले ||
कलज ु ग नही ं ० काँटा िक सीको म त लगा , गो िमसल े -गुल वह त ेरे हक
4
3
फूला ह ै त ू |
मे तीर ह ै , िकस बात पर झ ू ला है त ू ||
मत आग म े डा ल और को , कया घ ास का प ू ला है त ू | सुन रख यह नकता
5
बेखबर , िकस बात पर भ ू ला है त ू || कलज ु ग नही ं ०
शोखी शरारत म करो -फन जो जो िदखाया
6
सबका बस ेखा 7 है यहा ँ |
और को , वह ख ुद भी द ेखा ह ै यहा ँ ||
खोटी खरी जो क ुछ कही , ित सका पर ेखा
8
है यहा ँ |
जौ जौ पडा त ु लता ह ै म ोल , ित ल ित ल का ल ेखा है यह ाँ ||
कलज ु ग नही ं ० जो और की बसती जो और को
9
रखे , उसका भी ब सता ह ै प ूरा |
म ारे चुरी , उसको भी ल गता ह ै छुरा
जो और की तोड े घडी , उसका भी ट ूटे ह ै घडा जो और की च ेत े 10 बदी , उसका भी होता ह
|| |
ै ब ुरा ||
कलज ु ग नही ं ० जो और को फल द ेव ेगा , वह भी सदा फल पाव
ेगा |
गे हूं से ग ेहूं , जौ स े जौ , चावल स े चावल पाव ेगा || जो आज द ेव ेगा यहा ँ , वैसा ही वह क ल पाव ेगा | कल द ेव े गा , कल पाव ेगा , ििर द ेव ेगा ििर पाव ेगा || कलज ु ग नही ं ० जो चाह े ल े च ल इ स घडी , सब िजि स यहा ँ त ैयार है | आराम म े आराम ह ै , आजार मे आ जार द ु िनया न जान
11
है ||
इ सको िमय ाँ , दरया की यह म झधार ह ै |
औरो का ब ेडा पर
कर , तेरा भी ब ेडा पार
है ||
कलज ु ग नही ं ० तू और की तारीफ
कर , तुझको सनाखवा नी 12 िमल े |
कर म ुिशक ल आसान औरो
की , तुझको भी आ सा नी िम ले ||
तू और को म ेहमान कर , तु झको भ ी म ेहमानी
िमल े |
रोटी िख ला रोट ी िम ले , पान ी िप ला पान ी िम ले || कलज ु ग नही ं ० जो ग ु ल 13 िखलाव े और का उ सका ही ग ु ल िखलता भी ह ै | जो और का
िकल े 14 है म ुँह , उसका ही म ुँह िकलता भी ह ै ||
जो और का छील े िजगर , उसका िज गर िछल ता भी ह ै | जो और को
देव े क पट , उसको कपट
िमलता भी ह ै ||
कलज ु ग नही ं ० कर च ुक जो करना ह ै अ ब , यह दम तो कोई आन
15
है |
नुकसान म े न ुकसान ह ै , एहसान मे ए हसान ह ै || तोह मत म े यहा ँ तो हमत िमल े , तू िा न म े त ूिान ह ै | रैहमान
16
को रहमान
17
है , शैतान को श ैतान है ||
कलज ु ग नही ं ० यहा ँ ज हर दे तो ज हर ल े , शककर म े श ककर द ेख ल े | नेको म े न ेकी का म ज़ा , मूजी 18 को टककर द ेख ल े || मोती िदए मो ती िमल े , पत थर मे पतथर द ेख ल े | गर त ुझको यह बावर
19
नह ीं तो त ू भी करक े द ेख ल े ||
कलज ु ग नही ं ० गिलत की यह ज गह नही ं , तू सािह बे -इदराक 20 रह | िद लशाद
21
रख िद ल शाह रह , गमनाक रख गमनाक रह
||
अप ने नफे के वासत े , मत और का न ुकसान कर
|
तेरा भी न ुकसान होव ेगा , इस बात पर त ू ध यान कर || कलज ु ग नही ं ० खान ा जो खा याँ पावो को
सो द ेखकर , पान ी िप ए सो छानकर
|
रख फ ूँक कर , और खौफ स े ग ु जरा न कर ||
हर हा ल म े भी त ू नजीर
22
अब हर कद म की खाक रह
यह वह म कां ह ै ओ िमय ाँ ! याँ पाक
23
रह ब ेबाक
24
|
रह ||
कलज ु ग नही ं ० १. वसतु, २. मुसीबत, ३. पुषप की तरह, ४. तेरे िलए, ५. रहसय, ६. दगा-धोखा, ७. घर, ८. परखना, ९. नगरी, १०. िवचार करे , ११. दःुख, १२. तारीफ-सतुित, १३. फूल, १४. िकसीको बोलने न दे , १५. घडी, पल, १६. दयालु, भगवान ,् १७. सतानेवाला, १८. िवशास, २०. तीव दषा, तेज समझवाला पुरष, २१. पसिनिचत, २२. किव का नाम है , २३. शुि, पिवत, २४. िनभय थ |
सबको पेम की मधुरता और सहानुभिू त भरी आंखो से दे खो | सुखी जीवन के िलए िवशुि िनःसवाथ थ पेम ही असली खुराक है | संसार इसीकी भूख से मर रहा है अतः पेम का िवतरण करो | अपने हदय के आितमक पेम को हदय मे ही मत िछपा रखो | उदारता के साथ पेम बाँटो | जगत का बहुत-सा दःुख दरू हो जाएगा | िजसके बताव थ मे पेमयुि सहानुभूित नहीं है वह मनुषय जगत मे भाररप है और िजसके हदय मे दे ष है वह तो जगत के िलए अिभशापरप है | हदय मे िवशुि पेम को जगाओ | उसे बढाओ | सब और उसका पवाह बहा दो | तुमहे अलौिकक सुख-शािित िमलेगी और तुमहारे िनिमत से जगत मे भी सुख-शािित का पवाह बहने लगेगा | अँधा वह नहीं िजसके आंखे फुट गई है | अँधा वह है जो अपने दोषो को ढाँकता है | दोष ढँके नह ीं जा सकत े , सदग ुणो के िवकास
दार ा उिहे फीका
िकया
जा
सकता ह ै | िजतना दग थ ो की कँटीली झाडी का फैलना सरल है उतना ही सदगुणो के िवकास ु ुण का माग थ भी सरल है | थोडा सा संयत िवचार हमारी पविृतयो को दग थ ो से सदगुणो की ु ुण ओर उिमुख करता है | कटु वाणी का पयोग इतना भयंकर है की वह मनुषय के हदय को छे द दे ता है | जहाँ सजगतापूवक थ वाणी का पयोग िकया जाता है वहाँ वाणी मे िववेक होता है | िकसी पकार का अपशबद जो घातक िसि हो, दस ू रे के हदय को ठे स पहुँचाये उसका पयोग नहीं करना चािहए | वाणी मे िववेकपूण थ मधुरता, िपयता ओर सतयता का सामंजसय होने के कारण जीवन मे दकता आती है | गोसवामी तुलसीदासजी का वचन हमेशा याद रखने जैसा है : तुल सी मी ठे वचन त े , सुख उ पजत च हुँ ओर | वशीकरण यह म ंत ह ै , तज द े वचन कठोर
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अपनेको शष े ओर सतपुरष बनने का पयट थ न करो | यहाँ िजन धन-ऐशयथ, पदअिधकार, यश-कीित थ ओर मान-बडाई के िलए तुम पागल हो रहे हो, उनमे से कोई भी, कभी भी तुमको तिृि नहीं दे सकेगे | उनके अधूरेपन मे कभी पूणत थ ा आएगी ही नहीं और तुमहारी कमी कभी भी पूरी होगी ही नहीं | भवय भवन और सुंदर सदन बनने मे अपनी शिि मत खचो | अपने िवचार नष मत करो | बहुतेरे गह ृ बडे ऊँचे और आलीशान है , पर उनमे रहनेवाले मनुषय िबिलकल िठं गने और कुद है | बडे -बडे मकान बनाने और उनमे चमकदार चीजो को सजाने मे अपनी शिि का नाश करके अपनेको, अपनी पती और अपने िमतो को बडा बनने का यत मत करो | यिद तुम इस दै वी िवचार को गहण कर लोगे , हदयंगम कर लोगे, जान लोगे, समझ लोगे की मानव जीवन का एकमात आदश थ और उदे शय शिि का दर ु पयोग और धन का संचय या भवन का िनमाण थ करना नहीं है वरन ् भीतरी शिियो का िवकास करना, आितमक बल को जगाना, ईशरतव और मोकपिि के िलए आतमोिनित करना है , तो पािरवािरक, समािजक या जागितक बिधन आपके िलए कभी भी िवघनरप न होगे | मेरे पयारे ! सदा यह खयाल रखो की तुम अपने िलए जीते हो, न की दस ू रो के िलए | अपने जीवन मे दस ू रो को हसतकेप करने के िलए कोई गुंजाइश ही न रखो | अपना भोजन करते समय तुम भोजन करते हो िक कोई और ? अपना भोजन तुम सवयं पचाते हो िक कोई और ? दे खते समय तुमहारी अपनी आंखो की पुतिलयाँ तुमहे साथ दे ती है िक उन दस ू रो की, िजनसे तुम नाहक पभािवत हो रहे हो? अपने गुरतवाकषण थ का केिद तुम आप बनो | सवाशयी बनो | अपने भीतर के आधार और अिधषान को पा लो | मेहमानो के मत और आलोचना की परवाह मत करो | चटपटे भोजन, फनीचर और गदी-तिकये को अितिथ-सतकार का मूल-मंत न बनाओ | लोग समझते है िक मेहमानो को सवािदष भोजन और सुंदर पलंग नहीं दे गे तो हम पूरे आितथय-भावना से युि न होगे | यह समझ अधूरी और ओछी है |
तुमहे तो यह करना चािहए को जब तुमहारा अितिथ तुमहारे घर से अपने घर जाने लगे तब वह सवचछिचत, उिदत और समुिनत होकर जाए | वह अपने घर से जैसा आया था उससे अिधक बुििमान, पसिन और सहज, सरल, सादा जीवन जीने की पेरणा लेकर जाए | अपने सवजनो के पित यही अपना कतवथय समझो | अपने पिरवार को सुखी करने का यही माग थ है | इसी तरीके से गहसथ अपने कुटु मब को िवघन-बाधा के सथान पर उिनित का सोपान बना सकता है | तुमहे अपने अितिथ के खान-पान या शयन-सजावट की अिधक परवाह करने की आवशयकता नहीं है | यिद वह सवावलमबी, पसिन और अिधक बुििमान होकर लौटा है तो आपने उसकी बहुत सारी सेवा कर ली | अगर चमक-दमकवाली वसतुओं से, कपटयुि वयवहार से आप उसको पभािवत करना चाहते हो तो आपने अपनी और उसकी हािन कर दी | तुमहारे ऊँचे महल और वसतुओं को दे खकर अितिथ के भीतर और ईषया की आग लगी तो उसका दोष तुमहे और उसको, दोनो को लगता है | अतः सादा, सचचा, सरल और सनेहयुि वयवहार अपना और अितिथ का मंगल करता है | उसे कुछ शष े तर चीज दो, उसे जान और पेम दो | उसे आपके िनदोष पेम का आनंद लूटने दो | यिद मै तुमहे एक कौडी भी न दँ ू, कुछ भी शारीिरक सेवा न करँ, केवल पयार से, सचचे और साफ िदल से तुमहारे पित पसिनता भरी मुसकान से हँ स दँ ू, तो तुमहारा पफुिललत होना, समुिनत होना और ऊपर उठना अिनवाय थ है | इतने से तुमहारी बडी सेवा हो जाती है | तुमहे पिवत मुसकान दे ना, मोितयो का कोष दे ने से कहीं बढ़कर है | िकसी मनुषय को धन दे कर तुम उससे पातकी का-सा आचरण करते हो | तुम उसे धोखा दे कर ईशरीय पेम, जान, आनंद से भुलाना चाहते हो ? उसे पेम और जान दो | उसे सवचछ िचत और समुिनत बनाओ | यह मानव जात की भारी सेवा है | असतय, िनंदा, चुगलखोरी और कठोरता - यह वाणी के पाप है | संभाषण के चार दोष है :
1. हुकम चलाते हो ऐसा बोलना 2. िचललाते हुए बोलना 3. अशील शबद बोलना और 4. कटु बोलना | िहत, िमट, शांत, मधुर और िपय भाषण - यह पाँच वाणी के गुण है | आप अमानी रहो | औरो को मान दो | जो वयिि धमान थ ुसार आचरण करता हो और लोक-कलयाण के कायो मे रत हो, उसके यदिप दशन थ न िकए हुए हो तब भी केवल नाम सुन-सुनकर भी लोग उसे हदय से पेम करने लग जाते है | बातचीत के दौरान कूरतापूवक थ बात नहीं करनी चािहए | िकसीको नीचा दे खना पडे ऐसे शबद भी नहीं बोलने चािहए | िजस कथन से िकसीको उदे ग हो ऐसी रखी बात पािपयो के लोक मे ले जानेवाली होती है | अतः ऐसी बात नहीं करनी चािहए | वचनरपी बाण मुह ँ से िनकलते है और उससे िबंधकर मनुषय रात-िदन शोकमगन रहता है | इसिलए जो वचन सामने वाले को उदे ग पहुँचाते हो, उिहे कदािप नहीं बोलना चािहए | बाणो से बंधा हुआ और कुलहाडी से कटा हुआ वन तो ििर से अंकुिरत हो जाता है िकंतु कटु वचनरपी शस से िकया हुआ भयंकर घाव कभी भी भरता नहीं | नाना पकार के बाण दे ह मे गहरे उतर गये हो तो भी िचिकतसक उिहे बाहर िनकल सकता है िकंतु वचनरपी बाण िनकालना किठन है कयोिक वह हदय के अंदर लगा होता है | तप, इििदयसंयम, सतय भाषण और मनोिनगह के दारा हदय की गंिथ खोलकर िपय और अिपय के िलए हषथ-शोक नहीं करना चािहए | सुनने से उदे ग पैदा कर दे ऐसे नरक मे ले जानेवाले िनषु र वचन कदािप नहीं बोलने चािहए | कोई असभय वयिि यिद कटु वचनरपी बाणो की वषा थ करे तो भी िवदान मनुषय को शांत रहना चािहए | जो सामनेवाले के कोिधत हो जाने पर भी सवयं पसिन ही रहता है वह कोिधत वयिि के पुणय गहण कर लेता है | जगत मे िनिदनीय और
आवेश उतपिन करने के कारण अिपय लगनेवाले कोध को जो िनयंितत कर लेता है , िचत मे कोई िवकार या दोष आने नहीं दे ता, सदै व पसिन ही रहता है और दस ू रो के दोष नहीं दे खता वह मनुषय उसकी तरि शतुभाव रखनेवाले के पुणय ले लेता है | दस ू रो के दारा कटु वचन कहे गये हो तो भी उनके िलए कठोर या अिपय कुछ भी नहीं बोलता, सदा समतव मे िसथत रहता है और सामनेवाले का बुरा भी नहीं चाहता ऐसे महातमा के दशन थ के िलए दे वतागण भी लालाियत रहते है | वेदाधययन का सार है सतय भाषण | सतय भाषण का सार है इििदयसंयम | इििदयसंयम का सार है मोक | जो मन, वाणी, कोध, तषृणा, कुधा और जननेििदय के आवेगो को थाम लेता है वही पुरष बहपिी का अिधकारी है | िजसके मन और वाणी समपूण थ रप से परमातमा मे ही लग जाते है वह वेदाधययन, तप और तयाग का फल पाि कर लेता है | िवदान ् मनुषय को अपमािनत होने पर भी अमत ृ पान की तरह संतुष रहना चािहए कयोिक अपमािनत वयिि तो सुख से सोता है पर अपमान करनेवाले का नाश होता है | यमराज कोधी मनुषय के यज, दान, तप, हवनादी कमो के फल कर लेते है | कोध करनेवाले का सारा पिरशम वयथथ जाता है | िजस मनुषय के उदर, उपसथ, दोनो हाथ व वाणी, यह चार अंग सुरिकत है वही वासतव मे धमज थ है अथात थ ् जो वयिि भोजन मे संयम, काम-िवकार मे संयम, हाथो मे पिवत व परोपकार के कायथ और वाणी मे मधुरता रखता है वही वासतिवक धमज थ है | जैसे जहाज समुद को पार करने के िलए साधन है वैसे ही सतय ऊधवल थ ोक मे जाने के िलए सीढ़ी है | वयथथ बोलने की उपेका मौन रहना बेहतर है | वाणी की यह पथम िवशेषता है | सतय बोलना दस ू री िवशेषता है | िपय बोलना तीसरी िवशेषता है | धमस थ ममत बोलना यह चौथी िवशेषता है | शतकतु इिद ने दे वगुर बह ृ सपित से पूछा: "हे बहन ् ! ऐसी कौन-सी वसतु है िजसका अचछे ढं ग से आचरण करनेवाला मनुषय समसत पािणयो का िपय बनकर महान यश का भागी होता है ?"
बह ृ सपित बोले: " हे इिद ! वह वसतु है सांतवना, मधुर वचन, मधुर वयवहार | इसका अचछे ढं ग से आचरण करनेवाला मनुषय समसत पािणयो का िपय पात बनकर महान यश को उपलबध होता है | यह एक ही वसतु समपूणथ जगत के िलए सुखदायक है | इसे आचरण मे लानेवाला मनुषय सभी पािणयो को िपय हो जाता है |" िजस वयिि की भोहे सदा चढीं हुई हो, िकसीसे भी मीठी बाते नहीं करता, वह अशांत वयिि सभी के दे ष का पात बनकर रह जाता है | लोगो से िमलते वि जो सवयं ही बात का आरं भ करता है और सबके साथ पसिनता से बोलता है उस पर सब पसिन रहते है | जैसे रखा भोजन मनुषय को तिृि पदान नहीं कर सकता वैसे ही मधुर वचनो के िबना िदया हुआ दान भी पसिनता नहीं उपजाता | मधुर वचनो से युि गहीता िकसीकी वसतु लेकर भी सवयं की मधुर वाणी दारा इस समपूणथ जगत को वश मे कर लेता है | िकसीको दं ड दे ने की इचछावाले को भी सांतवनापूण थ वचन ही बोलने चािहए | इस पकार वह अपना पयोजन तो िसि कर ही लेता है और उससे कोई मनुषय उिदगन भी नहीं होता | यिद सुद ं र रीित से, सांतवनापूणथ, मधुर एवं सनेह संयुि वचन सदै व बोले जाएं तो इसके जैसा वशीकरण का साधन संसार मे और कोई नहीं है | परितु यह सदा समरण रखना चािहए िक अपने दारा िकसीका शोषण न हो | मधुर वाणी उसीकी साथक थ है जो पाणीमात का िहतिचितक है | िकसीकी नासमझी का गैर-फायदा उठाकर गरीब, अनपढ़, अबोध लोगो का शोषण करनेवाले शुरआत मे तो सफल होते िदखते है िकंतु उनका अंत अतयित खराब होता है | सचचाई, सनेह और मधुर वयवहार करनेवाला कुछ गवां रहा है ऐसा िकसीको बाहर से शुरआत मे लग सकता है िकंतु उसका अंत अनंत बहांडनायक इशर की पािि मे पिरणत होता है | खुदीराम मधुरता और सचचाई पर अिडग थे | लोग उनको भोला-भाला और मूखथ मानते थे | पेम और सचचाई से जीनेवाले, हुगली िजले के डे रे गाँव के यह खुदीराम आगे
चलकर शी रामकृ षण परमहं स जैसा पुतरत पाि कर सके | सचचाई और मधुर वयवहार का फल शुर मे भले न िदखे िकंतु वह अवशयमेव उिनितकारक होता है | [महाभारत के 'अनुशासन पवथ' व 'शांितपवथ' पर आधािरत]
धयान दे ने यो गय बह ु त आवश यक बात े 1. सबसे िवनयपूवक थ मीठी वाणी से बोलना | 2. िकसीकी चुगली या िनंदा नहीं करना | 3. िकसीके सामने िकसी भी दस ु रे की कही हुई ऐसी बात को न कहना, िजससे सुननेवाले के मन मे उसके पित दे ष या दभ थ पैदा हो या बडे | ु ाव 4. िजससे िकसीके पित सदभाव तथा पेम बढ़े , दे ष हो तो िमट जाये या घट जाये, ऐसी ही उसकी बात िकसीके सामने कहना | 5. िकसीको ऐसी बात कभी न कहना िजससे उसका जी दःुखे | 6. िबना काय थ जयादा न बोलना, िकसीके बीच मे न बोलना, िबना पूछे अिभमानपूवक थ सलाह न दे ना, ताना न मरना, शाप न दे ना | अपनेको भी बुरा-भाला न कहना, गुससे मे आ कर अपनेको भी शाप न दे ना, न िसर पीटना | 7. जहाँ तक हो परचचाथ न करना, जगचचाथ न करना | आए हुए का आदर-सतकार करना, िवनय-सममान के साथ हँ सते हुए बोलना | 8. िकसीके दःुख के समय सहानुभिू तपूण थ वाणी से बोलना | हँ सना नहीं | िकसीको कभी िचढ़ाना नहीं |
अिभमानवश घरवालो को या कभी िकसीको मूख,थ मंदबुिि, नीच
विृतवाला तथा अपने से नीचा न मानना, सचचे हदय से सबका सममान व िहत करना | मन मे अिभमान तथा दभ थ न रखना, वाणी से कभी कठोर तथा िनंदनीय शबदो ु ाव का उचचारण न करना | सदा मधुर िवनामतायुि वचन बोलना | मूख थ को भी मूखथ कहकर उसे दःुख न दे ना |
9. िकसीका अिहत हो ऐसी बात न सोचना, न कहना और न कभी करना | ऐसी ही बात सोचना, कहना और करना िजससे िकसीका िहत हो | 10. धन, जन, िवदा, जाित, उम, रप, सवासथय, बुिि आिद का कभी अिभमान न करना | 11. भाव से, वाणी से, इशारे से भी कभी िकसीका अपमान न करना, िकसीकी िखलली न उडना | 12. िदललगी न करना, मुँह से गिदी तथा कडवी जबान कभी न िनकालना | आपस मे दे ष बढ़े , ऐसी सलाह कभी िकसीको भी न दे ना | दे ष की आग मे आहुित न दे कर पेम बढे ऐसा अमत ृ ही सींचना | 13. फैशन के वश मे न होना | कपडे साफ-सुथरे पहनना परितु फैशन के िलए नहीं | 14. घर की चीजो को संभालकर रखना | इधर-उधर न फेकना | घर की चीजो की िगनती रखना | अपना काम जहाँ तक हो सके सवयं ही करना | अपना काम आप करने मे तो कभी लजजाना ही, बिलक जो काम नौकरो से या दस ू रो से कराये िबना अपने करने से हो सकता है उस काम को सवयं ही करना | काम करने मे उतसाही रहना | काम करने की आदत न छोडना | 15. िकसी भी नौकर का कभी अपमान न करना | ितरसकारयुि बोली न बोलना | 16. िसयो को न तो पुरषो मे बैठना, न िबना काम िमलना-जुलना, न हँ सी-मजाक करना | इसी पकार पुरषो को िसयो मे न बैठना, न िबना काम िमलना-जुलना, न हँ सी-मजाक करना | 17. दस ू रो की सेवा करने का अवसर िमलने पर सौभागय मानना और िवनमभाव से िनदोष सेवा करना | 18. खच थ न बढ़ाना, खचीली आदत न डालना, अनावशयक चीज़े न खरीदना | अनावशयक वसतुओं का संगह न करना, दस ू रो की दे खा-दे खी रहन-सहन मे बाबुिगरी, खच थ बढ़ाने का काम, िदखाने का काम न करना | बुरी नकल िकसीकी न करना |
19. संतो के गुण लेना, दोष नहीं | 20. मन मे सदा पसिन रहना, चेहरे को पसिन रखना, रोनी सूरत तथा रोनी जबान न बोलना | 21. जीवन से कभी िनराश न होना | िनराशा के िवचार ही न करना | दस ू रो को उतसाह िदलाना, िकसीकी िहममत न तोडना, उसे िनराश न करना | िकसीको बार-बार दोषी बताकर उस दोष को उसके पलले न बांधना | 22. आपस मे कलह बढ़े ऐसा काम शरीर-मन-वचन से न करना | 23. दस ू रो की चीज़ पर कभी मन न चलाना | शौिकनी की चीजो से जहाँ तक हो सके दरू ही रहना | 24. सदा उतसाहपूणथ, सविथहतकर, सुखपूणथ, शांितमय, पिवत िवचार करना | िनराशा, उदे ग, अिहतकर, िवषादयुि और गंदे िवचार कभी न करना | 25. दस ू रे को नीचा िदखाने का न कोई काम करना, न सोचना और न िकसीको अपमािनत होते दे खकर ज़रा भी पसिन होना | सदै व सभीको सममान दे ना तथा ऊँचे उठते दे खकर पसिन होना | 26. बुरा कमथ करनेवाले के पित उपेका करना, उसका संग न करना और उसका बुरा भी न चाहना | बुरे काम से घण ृ ा करना, बुरा करनेवाले से नहीं | उसको दया का पात समझना | 27. गरीब तथा अभावगसत को चुपचाप, अपने से िजतना भी हो सके हर समभव उतनी सहायता करना, पर न उस पर कभी एहसान करना, न बदला चाहना और न उस सहायता को पकट करना | दस ू रे से सेवा कराना नहीं, दस ू रो की सेवा करना | दस ू रो से आशा रखना नहीं, दस ू रा कोई आशा रखता हो तो भरसक उसे पूरी करना | 28. दस थ ा अमानी रहकर दस ू रे से मान चाहना नहीं, सवथ ू रो को मान दे ना | 29. दस ू रे के हक की कभी चोरी करने की बात ही न सोचना | करना तो नहीं है |
30. िकसीसे दे ष न करना, पर बेमतलब मोह-ममता भी न जोडना | 31. कम बोलना, कम खाना, कम सोना, कम िचंता करना, कम िमलना-जुलना, कम सुनना | 32. बिढ़या खाने-पहनने से यथासाधय परहे ज़ रखना, सादा खान-पान, सादा पहनावा रखना | 33. धन की साथक थ ता साििवक दान मे, शरीर की सेवा मे, वाणी की भगविनाम-गुणगान मे, मन की भगविचचितन मे, जीवन की भगवतपािि मे, िकया की परदःुखहरण तथा परोपकार मे, समय की साथक थ ता भगवतसमरण तथा सेवा मे समझना | 34. कपट का वयवहार न करना | िकसी को ठगना नहीं | 35. आमदनी से कम खच थ करना, कम खच थ करने तथा सादगी से रहने मे अपमान न समझना बिलक गौरव समझना | अपनी आवशयकता न बढाना | 36. िकसी भी पकार के वयसन की आदत न डालना | 37. अतयित िवनयपूवक थ िनदोष होकर अितिथ का यथासाधय सतकार करना | 38. गरीब पिरवार के भाई-बंधुओं के साथ िवशेष नमता तथा पेम का वयवहार करना | िकसीको अपनी िकसी पकार की शान कभी न िदखाना | 39. 'हम कमाते है ... और तो सब खानेवाले है ...' यह न कभी कहना, न मानना ही | 40. िवकार पैदा करनेवाला अशील सािहतय न पडना, िचत न दे खना, बातचीत न करना | 41. आज का काम कल पर और अभी का पीछे पर न छोडना | 42. बहुओं को चािहए की वह दे वरानी-जेठानी का सममान करे , उनके बचचो को अपने बचचो से अिधक आदर-सनेह दे | पित को ऐसी सलाह दे ना चािहए िजससे घर मे कभी कलह न हो तथा परसपर पेम बढे | सास की सेवा-सममान करना चािहए | अपनी बहु को पुती से बढ़कर पयार करना चािहए | ऐंठ न रखना, अिभमान न करना, अपने को िकसी भी कारण से बडा न समझना | सबसे नम तथा िवनय होकर रहना |
भाभी को ननद से तथा ननद को भाभी से सममान तथा पेम का बताव थ करना चािहए | 43. यथासाधय िकसीकी िनंदा, बुराई, दोषचचा थ न सुनना | अपनी बडाई तथा भगवििनिदा न सुनना | ऐसी बातो मे साथ तो दे ना ही नहीं | 44. पितिदन कुछ समय गीता, रामायण, अियािय सदगंथो के सवाधयाय, सतोत-पाठ, मंत और भगविनाम-जप, भगवतपेम तथा भगवतपूजन मे लगाना | बडो को यथायोगय पणाम करना | 45. जीभ से सदा-सवथ थ ा भगविनाम-जप का अभयास करना |
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