Bal Sanskar Kendra Kaise Chalayain

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  • Words: 46,404
  • Pages: 138
1

2

परम पू जय बाप ू जी क ा पावन स ंदेश बचचे कचचे घडे के समान होते है । बालयावसथा मे ही बचचे के अंदर भिि, धयान,

संयम के संसकार पड जाये तो वह भौितक उननित के साथ-साथ मानव-जीवन का परम

लकय ईशरपािि भी शीघ ही कर सकता है । बचचे ने अपना िवदाथी-जीवन काल सँभाल िलया तो उसका भावी जीवन भी सँभल जाता है कयोिक बालयकाल के संसकार ही बचचे के जीवन की आधारिशला है ।

कहाँ तो पूवक व ाल के भि पहाद, बालक धुव, आरणी, एकलवय, शवण कुमार जैसे

परम गुरभि, मातृ-िपतभ ृ ि बालक और कहाँ आज के अनुशासनहीन, उदणड एवं उचछृंखल बचचे! उनकी तुलना आज के नादान बचचो से कैसे करे ?

पाचीन युग के माता-िपता अपने बचचो को वेद, उपिनषद एवं गीता के कलयाण

कारी शोक िसखाकर उनहे सुसंसकृ त बनाते थे। वहीं आजकल के माता-िपता अपने बचचो को गंदी एवं िवनाशकारी ििलमो के गीत िसखलाने मे बडा गवव महसूस करते है । यही

कारण है िक पाचीन युग मे शवणकुमार जैसे मातृ-िपतभ ृ ि पैदा हुए जो अंत समय तक

माता-िपता की सेवा-शुशष ु ा करके अपना जीवन धनय कर दे ते है और आज की संताने तो पती आयी िक बस माता-िपता से कह दे ते है िक तुम-तुमहारे हम हमारे । कई तो ऐसी

कुसंताने िनकल जाती है िक बेचारे माँ-बाप को ही धकका दे कर घर से बाहर िनकाल दे ती है ।

पाचीन काल की गुरकुल िशका-पदित िशका की एक सवोतम वयवसथा थी।

गुरकुल मे बालक िनषकाम सेवापरायण, िवदान एवं आतमिवदा-समपनन गुरओं की

िनगरानी मे रहने के पशात ् दे श व समाज का गौरव बढाये, ऐसे युवक बनकर ही िनकलते थे।

दभ ु ागवय से आजकल के िवदालयो मे तो मैकाले-िशका-पणाली के दारा बालको को

ऐसी दिूषत िशका दी जा रही है िक उनमे संयम-सदाचार का िनतांत अभाव है । बेचारे बेटे-बेिटयाँ इस मैकाले िशका-पदित से उदणड होते जा रहे है ।

पाशातय सभयता का अंधानुकरण करने वाले िवदािथय व ो को आज उिचत मागद व शन व

की बहुत आवशयकता है और इस आवशयकता को आप बाल संसकार केनद के माधयम से पूरा कर सकते है ।

आप अपने घर या अडोस-पडोस मे बाल संसकार केनद खोले। केनद के माधयम से

आप बचचो मे ऋिष-मुिनयो एवं संतो के जान-पसाद को िैलाये, उनहे शारीिरक एवं

मानिसक रप से सुदढ बनाये, उनको समरणशिि बढाने, बुिद को कुशाग एवं तेजसवी

बनाने की युिियाँ िसखाये। जप-धयान, ताटक, पाणायाम आिद बचचो को िसखाये तािक

3

उनकी सुषुि शिियाँ जगे, वे औजसवी-तेजसवी बने और परीका मे भी अचछे अंको से उतीणव हो। माता-िपता का आशीवाद व पाि करने व सुखी, सवसथ और सममािनत जीवन जीने की कला बचचो को िसखाये। िजससे वे मातृ-िपतभ ृ ि बने और बडे होकर दे श व

समाज की सेवा कर सके। एक-एक बालक ईशर की अननत शिकतयो का पुंज है । िकसी मे बुद छुपा है तो िकसी मे महावीर, िकसी मे िववेकाननद छुपा है तो िकसी मे

पधानमनती की योगयता छुपी है । आवशयकता है केवल उनहे सही िदशा दे ने की।

हम चाहते है िक बाल संसकार केनद मे बचचो को ऐसा तेजसवी बनाये िक

दे शवािसयो के आँसू पोछने के काम करे ये लाल और दे श को ििर से िवशगुर के पद पर पहुँचाये।

4

पसतावना बाल संसकार सेवा से जुडे सभी साधक भाई-बहनो के सपेम हिर ú !

आपके हाथो मे यह पुसतक सौपते हुए हमे अपार हषव का अनुभव हो रहा है ।

आशा है आप भी इसे पाकर कम आनंिदत नहीं होगे कयोिक इसमे बाल संसकार केनद

कैसे चलाये? - इस िवषय मे िवशेष मागद व शन व िदया गया है , साथ ही बचचो को िसखाने के िलये आपको इसमे हर सिाह नई िवषय-सामगी भी िमलेगी। तािक बचचो की केनद मे िनयिमत आने की रिच बढे और कम समय मे वे अिधकािधक सीख सके।

बाल संसकार केनद के शुभारं भ से लेकर पथम 4 माह मे कया िसखाना है - इसका

पूरा िववरण इस पुसतक मे िदया गया है । इस पुसतक की सहायता से नये केनद संचालक आसानी से केनद चला सकेगे, साथ ही जो साधक पहले से केनद चला रहे है वे भी इससे लाभािनवत होगे, ऐसा हमे पूणव िवशवास है । हम आशा रखते है िक इस पुसतक के अवलोकन के पशात आप अपना सुझाव भेजेगे तािक हम और बेहतर कर सके। शी योग व ेदा ंत स िम ित , अमदावाद

- िवनीत आ शम।

5

अनुकम -

बाल संसकार केनद की

-

शुरआत कैसे करे ? पष ृ ः 7 -

बाल संसकार केनद संचालन

करे ? पष ृ ः 8 -

सूची पष ृ ः 9 -

शी गणेष सतुित, सरसवती

पाठयकम का उपयोग कैसे सभी सतो मे लेने योगय आवशयक िवषय पष ृ 10

-

गुर-पाथन व ा पष ृ ः 11 दस ू रा सिाह 19

वनदना पष ृ ः 10 -

पहला सिाह पष ृ 13

-

-

तीसरा सिाह 22

-

चौथा सिाह 27

-

पाँचवाँ सिाह 33

-

छठा सिाह 37

-

सातवाँ सिाह 40

-

आठवाँ सिाह 45

-

नौवाँ सिाह 46

-

दसवाँ सिाह 53

-

गयारहवाँ सिाह 55

-

बारहवाँ सिाह 59

-

तेरहवाँ सिाह 64

-

चौदहवाँ सिाह 70

-

पंदहवाँ सिाह 74

-

सोलहवाँ सिाह 80

-

यौिगक पयोग 86

-

योगासन 91

-

पाणायाम 99

-

बुिदशिि-मेधाशिि पयोग 102

-

पाणशििवधक व पयोग 103

-

टं क िवदा 103

-

सूयोपासना 104

-

मुदािवजान 107

-

कीतन व 110

-

भजन 112

-

आरती 117

-

शी आसारामायण की कुछ

-

नाटक 119

-

मैदानी खेल 123

-

दे व-मानव-हासय पयोग 125

-

बाल संसकार सेवा संबध ं ी

बाल संसकार केनद की

-

-

किठन पंिियो के अथव 118

कुछ महतवपूणव जानकारी 127 संकलप-पत 132

िदमािसक िरपोटव 129

6

बाल स ंसका र केनद क ी श ु रआत कैस े क रे ? •शु भ स ंकलप ः बाल संसकार केनद की सेवा मे जुडने हे तु सवप व थम पूजय गुरदे व के

पावन शीचरणो मे पाथन व ा व संकलप करे (दे खे, संकलप पत)। •पचारः

केनद के शुभारं भ का िदन व समय िनिशत कर आस-पास के केतो मे रहने

वाले बचचो के माता-िपता एवं अिभभावको से िमलने जाये तथा उनहे बाल संसकार केनद

का महतव, उदे शय व कायप व णाली बताये। ििर बाल संसकार, संसकार िसंचन, संसकार दशन व आिद पुसतको के बारे मे संकेप मे बताते हुए बाल संसकार केनद मे आने से होने वाले

लाभ बचचो के अनुभव सिहत बताये व बचचो को बाल संसकार केनद मे भेजने हे तु पेिरत करे ।

•केनद सथल के बाहर बाल स ंसकार

का बैनर लगाये।

•आस-पास के िवदालयो से सूचना पटट (नोिटस बोडव ) पर भी बाल स ंसकार केनद शुर होने की सूचना दे सकते है । •काय व कम का िदनः

केनद सिाह मे दो िदन चलाये, यिद दो िदन संभव न हो तो

एक िदन भी चला सकते है । •सथानः

केनद संचालक या अनय िकसी साधक का घर, मंिदर का पिरसर, सकूल

अथवा कोई सावज व िनक सथल हो सकता है ।

•समय ः सामानय रप से डे ढ से दो घंटे लगते है । ििर भी जैसी वयवसथा, पिरिसथित

हो उसके अनुरप समय की अविध तय कर लेनी चािहए। •बच चो की उ मः 6 से 15 वष।व •बैठक वयवसथाः

बालक एवं बािलकाओं को अलग-अलग िबठाये तथा उनके

अिभभावको और अनय साधको को पीछे िबठाये।

पूजयशी, इषदे व आिद के िचतो के समक धूप-दीप, अगरबती आिद करके वातावरण

को साितवक बनाये एवं िूल-माला आिद से सजावट कर कायक व म की शुरआत करे ।

7

पा ठयकम क ा उपयोग क ैस े कर े ? 1. पित सिाह के पाठयकम को दो सतो मे िवभािजत िकया गया है । पथम सत गुरवार एवं िदितय सत रिववार को चलाये।

नोटः िकसी कारणवश यिद इन िदनो मे सत न चला सकते हो तो अनय िकसी िदन चलाये।

2. गुरवार के पित सत मे शी आसारामायण पाठ (पूरा पाठ अथवा कुछ पष ृ ो का पाठ) अवशय कराये।

3. कीतन व करवाते समय कैसेट चलाये अथवा बचचो के साथ सवयं िमलकर गाये। एक ही कीतन व दो से चार सतो तक कराये िजससे बचचो को कंठसथ हो जाये।

4. हर सत के कायक व म के सभी िवषयो का पहले से ही अचछी तरह अधययन िकया करे । खाली समय मे उन बातो को अपने बचचो या िमतो का बताये

तथा उन पर चचाव करे , इससे उस सत के कायक व म के सभी िवषय आपको अचछी तरह याद हो जायेगे, िजससे आप बचचो को अचछी तरह समझा पायेगे।

5. कायक व म मे बचचो को जो-जो बाते िसखानी है , उनका एक संिकि नोट पहले ही बना ले। इससे आपको सभी बाते आसानी से याद रहे गी तथा कोई िवषय छूटने की समसया भी नहीं रहे गी।

6. बचचो को एक नोटबुक बनाने को कहे , िजसमे वे गह ृ कायव करे गे और हर सिाह बतायी जानेवाली महतवपूणव बाते िलखेगे।

7. हर सिाह िदये गये गहृकायव के बारे मे अगले सिाह बचचो से पूछे।

8. पित सत मे िसखाये जाने वाले यौिगक पयोगो की िवसतत ृ जानकारी हे तु पढे यौिगक िकया पष ृ



9. िनधािवरत समय मे सभी िवषयो को पूरा करने का पयास करे ।

1.सू चन ाः यह चार माह का पाठयकम है िजसकी शुरआत वषव के िकसी भी माह

मे कर सकते है । चार महीनो मे आने वाले पवो एवं ऋतुओं की जानकारी बालक-

बािलकाओँ को दे ने हे तु आशम से पकािशत मािसक पितका ऋिष पसाद व मािसक समाचार पत लोक कलयाण सेतु एवं सतसािहतय आरोगयिनिध-भाग 1 व 2 आिद पुसतके सहायक होगी।

8

बाल संसकार केनद स ंचालन िवषय स ू िच 2.वाताल व ाप।

3.पाथन व ा, सतुित आिद। 4.धयान-जप-मौन-ताटक। 5.जानचचा।व 6.कथा-पसंग, साखी, शोक, पाणवान पंिियाँ, संकलप। 7.भजन, कीतन व , बालगीत, दे शभिि गीत आिद। 8.िदनचया।व

9.सवासथय-सुरका, ऋतुचयाव व पवव मिहमा। 10.हँ सते-खेलते पाये जानः जानवधक व खेल, मैदानी खेल, जान के चुटकुले,

पहे लयाँ, िविडयो सतसंग आिद तथा वयिितव िवकास के पयोग (िनबंध, पितयोिगता, विृ तव सपधाव, िचतकला सपधाव आिद।)

11.यौिगक पयोगः वयायाम, योगासन, पाणायाम, सूयन व मसकार आिद। 12.मुदाजान व अनय यौिगक िकयाएँ।

13.शी आसारामायण पाठ व पूजयशी की जीवनलीला पर आधािरत कथा-पसंग। 14.पशोतरी। 15.शशक आसन, आरती व पसाद िवतरण। िटपपणीः ले।

बीच-बीच मे कूदना, हासय पयोग करवाये और अंत मे गह ृ पाठ झलिकयाँ आिद

9

सभी सतो

मे ल ेन े योगय िवषय

वाता व लापः

पतयेक सत की शुरआत वाताल व ाप व पाथन व ा सतुित आिद िवषय से करे । वाताल व ाप

उस िदन िसखाये जाने वाले िकसी िवषय पर आधािरत हो सकते है । पाथ व ना स तुित आ िद ः

1) सवप व थम बचचो आिद को पदासन अथवा सुखासन मे िबठाये और कमर सीधी रखने को कहे ।

2) 7 या 11 बार हिर ú का उचचारण कराये। 3) दो बार टं क िवदा का पयोग (दे खे पष ृ ः

) कराये।

भूमधय मे ितलक अथवा हाथ की तीसरी उँ गली से घषण व करते हुए ú गं

गणपत ये नमः

मंत का जाप कराये।

ििर बचचो को हाथ जोडने को कहे और मंतोचचारण करवाये। i. ú शी सरसवतय ै नमः।

(ब) ú शी गुरभयो नम ः।

इसके बाद गणपित वनदना, सरसवती वनदना और गुर-पाथन व ा करवाये। हर सिाह

सरसवती वनदना और गुर पाथन व ा की दो-दो पंिियाँ कंठसथ कराये एवं अथव भी बताये।

भगवा न गणप ित जी की सतु ित वकत ु णड महाकाय स ूय व कोिट समपभ ः।

िनिव व घनं कुर मे द ेव सव व काय े षु सव व दा।। कोिट सूयो के समान महातेजसवी, िवशालकाय और टे ढी सूँडवाले गणपित दे व!

आप सदा मेरे सब कायो मे िवघनो का िनवारण करे ।

िवदा की देवी मा ँ सरसव ती की वन दना या कु नदेनद ु तुषारहा रधव ला य ा श ु भवसाव ृ ता

या वीणाव रदण डम िणडत करा या शेतपदासना। या ब हाचय ुतश ंकरपभ ृ ितिभ देव ेः स दा विनद ता

सा मा ं पात ु सरसवती भग वती िनःश ेष जाङय ापहा।। जो कुंद के िूल , चनदमा, बिव और हार के समान शेत है , जो शुभ वस पहनती है ,

िजनके हाथ उतम वीणा से सुशोिभत है , जो शेत कमल के आसन पर बैठती है , बहा,

िवषणु, महे श आिद दे व िजनकी सदा सतुित करते है और जो सब पकार की जडता हर लेती है , वे भगवती सरसवती मेरा पालन करे ।

शुकल ां बह िवचारसारपरमामादा

ं ज गदवय ािपन ीं

10

वीणाप ुसतक धािरणीमभयदा ं जाङयान धकारापहाम। ्

हसते सिािटक मािलक ां च द धत ीं पदासन े स ं िसथत ां वनदे ता ं परम ेशरी ं भ गवती ं ब ुिदपदा ं श ारदाम।् ।

िजनका रप शेत है , जो बहिवचार का परम ततव है , जो समपूणव संसार मे वयाप

रही है , जो हाथो मे वीणा और पुसतक धारण िकये रहती है , अभय दे ती है , मूखत व ारपी

अंधकार को दरू करती है , हाथ मे सििटक मिण की माला िलये रहती है , कमल के आसन पर िवराजमान है और बुिद दे ने वाली है , उन आदा परमेशरी भगवती सरसवती की मै वनदना करता हूँ।

गुर -पाथ व ना गुरब व हा ग ुर िव व षणुः ग ुरद ेवो मह ेशर ः। गुरसा व कात परब ह तसम ै श ी ग ुरव े नम ः।।

गुर ही बहा है , गुर ही िवषणु है । गुरदे व ही िशव है तथा गुरदे व ही साकात साकार सवरप आिदबह है । मै उनहीं गुरदे व को नमसकार करता हूँ।

धयानम ूल ं ग ुरोम ूव ित व ः प ूजाम ू लं ग ुरोः पद म।् मंतम ूल ं ग ुरोवा व क यं मोकम ू लं ग ुरोः क ृपा ः।।

धयान का आधार गुर की मूितव है , पूजा का आधार गुर के शीचरण है , गुरदे व के शीमुख से िनकले हुए वचन मंत के आधार है तथा गुर की कृ पा ही मोक का दार है । अख णडम णडलाकार ं वया िं य ेन चरा चरम।्

ततपद ं द िश व तं य ेन तसम ै श ीगुरव े नम ः।।

जो सारे बहाणड मे, जड और चेतन सब मे वयाि है , उन परम िपता के शीचरणो को दे खकर मै उनको नमसकार करता हूँ। तवम ेव माता च

िपता तवम ेव तवम ेव ब नधु श सखा तवम ेव।

तवम ेव िवदा द िवण ं तवम ेव तवम ेव स वव मम द ेव द ेव।।

तुम ही माता हो, तुम ही िपता हो, तुम ही बनधु हो, तुम ही सखा हो, तुम ही िवदा हो, तुम ही धन हो। हे दे वताओं के दे व! सदगुरदे व! तुम ही मेरे सब कुछ हो। बहाननद ं परमस ुख दं केवल ं जानम ूित व

दनदातीत ं ग गनसदश ं ततव मसयािदलकयम। ् एकं िनतय ं िवम लमच लं सव व धीसािकभ ू तं

भावातीत ं ित गुणरिहत ं स दगुरं त ं नमा िम।।

जो बहाननदसवरप है , परम सुख दे ने वाले है , जो केवल जानसवरप है , (सुख-दःुख,

शीत-उषण आिद) दं दो से रिहत है , आकाश के समान सूकम और सवववयापक है , ततवम िस

11

आिद महावाकयो के लकयाथव है , एक है , िनतय है , मल रिहत है , अचल है , सवव बुिदयो के साकी है , भावना से परे है , सतव, रज और तम तीनो गुणो से रिहत है - ऐसे सदगुरदे व को मै नमसकार करता हूँ।

िकसी भी कायव को पारमभ करने से पूवव भगवान गणपित जी, माँ सरसवतीजी और

सदगुरदे व की पाथन व ा, धयान एवं िनमन मंतोचचारण से ईशरीय पेरणा-सहायता िमलती है , िजससे सिलता पाि होती है ।

ú गं गणप तये नम ः। ú शी सरसवतय ै नमः।

ú शी गुरभयो नम ः।

धयान 1. धयान के समय यथासंभव पूजयशी की धयान की कैसेट लगाये। 2. आजाचक पर इष या सदगुरदे व का धयान कराये। 3. धयान सहज मे हो, चेहरे पर कोई तनाव न हो।

4. धयान करते हुए मन शांत हो रहा है , ईशर मे डू ब रहा है , पभुपीित बढ रही है ,

गुरभिि बढ रही है , जीवन िवकास के पथ पर आगे बढ रहा है , योगयता िखल रही है आिद पंिियो का धीरे -धीरे उचचारण करते हुए बचचो की रिच धयान के पित बढाये।

नोटः जब धयान की कैसेट चल रही हो तब मौन रहे ।

5. धयान के समय नेत अधोनमीिलत (आधे खुले, आधे बंद) हो। 6. कभी-कभी िकसी वैिदक मंत (ú नमो भ गवत े वास ु देवाय आिद) का धीरे -

धीरे उचचारण करवाये। ििर कमशः होठो मे, कंठ मे, हदय मे मौनपूवक व जप करते हुए शांत होने को कहे ।

7. धयान करते समय बचचे पदासन अथवा सुखासन मे बैठे। 8. कभी-कभी धयान के पहले िनमन तरह का शुभ संकलप करा सकते है -

1.मै शांतसवरप, आनंदसवरप, सुखसवरप आतमा हूँ। रोग, शोक, िचंता, भय, दःुख,

ददव तो शरीर को होते है , मै तो पेमसवरप आतमा हूँ।

2.मै अजर हूँ.... अमर हूँ... मेरा जनम नहीं.... मेरी मतृयु नहीं... मै यह शरीर

नहीं.... मै िनिलि व आतमा हूँ... ú....ú.....

3.मै शरीर नहीं हूँ। इन सब कीट-पतंग आिद पािणयो मे मेरा ही आतमा िवलास

कर रहा है । उनके रप मे मै ही िवलास कर रहा हूँ। 1.ित लक पयोगः

बचचो से दािहने हाथ की अनािमका उँ गली (छोटी उँ गली के

पास वाली) दारा भूमधय मे हलका सा दबाव दे ते हुए ú गं गणपत ये नमः। उचचारण करवाये।

मंत का

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2.शासोचछवास की िगनती

ः शासो की गित सामानय रखे और नासाग (नाक

के अगभाग पर) दिष रखे। शास अंदर जाये तो ú बाहर आये (1) िगनती, अंदर जाये

िवदा बाहर आये 2, अंदर जाये आनंद बाहर आये 3, ऐसी मानिसक िगनती करे । 20 से 108 तक िगनती करवा सकते है । यिद िगनती बीच मे भूल जाये तो पुनः शुर करे ।

3.देव मानव हासय पयोगः 4.कूदनाः

दे खे पष ृ क.

दे खे पष ृ क.

.

(वयायाम कमांक-1)

5.पशोतर ीः कायक व म के बीच-बीच मे अथवा अंत मे पशोतरी करे । पशोतरी उस

िदन बताये गये िवषय पर अथवा पूवव मे िसखाये गये िवषय पर आधािरत हो। दे ।

6.झल िकया ँ - अगले कायक व म के िवषय के संदभव मे बचचो को संकेप मे पिरचय 7.शश कासनः

कायक व म के अंत मे, आरती से पहले बचचो को शशकासन िक

िसथित मे कुछ समय िबठाये रखे। (दे खे पष ृ क. 8.आरती व पसाद िव

)

तरण।

पहला सिाह सिाह क े दोनो

1.यौिगक पयोगः वय ायामः

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

कूदना।

ताडासन।

योगासनः

पाणा यामः भामरी। मुदाजानः

जानमुदा।

2.कीत व नः नार ायण की तव न

नोटः इनके साथ सभी सतो मे लेने योगय आवशयक िवषय भी ले (दे खे पष ृ कमांक

) पहला सत

1. शु भार ंभः बाल संसकार केनद के शुभारं भ पर िकसी बचचे के माता-िपता अथवा अनय िकसी आमंितत वयिि दारा दीपक पजविलत करवाये।

2. वाता व लाप - बाल स ंसकार केनद का पिर चयः

केनद मे बचचो के साथ

अपनतव जगाये। बचचो से उनका नाम पूछे और लकय पूछे तथा बाल

संसकार केनद की मिहमा बताये, ििर आशम-पिरचय दे ते हुए िनमन पश पूछे-

13

1. कया आप अपनी समरणशिि मे चमतकािरक पिरवतन व लाना चाहते है ? 2. कया आप अचछे अंको से उतीणव होना चाहते है ?

3. कया आप अपने मन को पसनन व शरीर को चुसत, शििशाली और तंदरसत बनाना चाहते है ?

4. कया आप हँ सते-खेलते जान पाि कर जीवन मे महान बनना चाहते है ? आपके भीतर अनंत शिितयाँ छुपी हुई है । यिद आप उनका सदप ु योग करने की

कला सीख ले तो अवशय महान बन सकते है । यह कला आपको परम पूजय संत शी

आसारामजी बापू की कृ पा-पसादी बाल संसकार केनद मे सीखने को िमलेगी। बाल संसकार केनद मे आपको माता-िपता का आजापालन जैसे उचच संसकार, बाल-कथाएँ, दे शभिो व

संत महापूरषो के िदवय जीवन चिरत जानने को िमलेगे। खेल, कहानी, चुटकुले आिद के दारा हँ सते-खेलते आपको जानपद बाते िसखायी जायेगी। एक वषव पूरा होने पर आपको पमाणपत भी िदया जायेगा।

1.तीन दे वो की उ पासना

(भगवान गणप ित , मां सरसवती और

सदग ुरद ेव का म हतवः

1.भगवान गणप ितः िवघनहताव है , कोई भी शुभ कायव करने से पहले भगवान गणपित की सतुित करने से उस कायव मे सिलता िमलती है । 2.माँ सरसवतीः

माँ सरसवती िवदा की दे वी है । उनकी उपासना करने कुशाग बुिद

की पािि होती है व पढाई मे सिलता िमलती है ।

3.सदग ुरद ेव ः सदगुर के िबना कोई भवसागर से नहीं तर सकता, चाहे वह बहा जी

और शंकरजी के समान ही कयो न हो! सदगुर हमे वह जान दे ते है , िजससे हम जनम

मरण के दःुखो से सदा के िलए छूट जाते है और परम सुख, परम शाँित पाि कर लेते है ।

शी आसारामायण

पाठ (पथम कायक व म मे पूरा पाठ अवशय कराये)

कथा -पसंग आ िद दारा

सद गुणो का िवकास ः

मात ृ -िपत ृ भि प ु णड िलक

शासो मे आता है िक िजसने माता-िपता तथा गुर का आदर कर िलया उसके

दारा संपूणव लोको का आदर हो गया और िजसने इनका अनादर कर िदया उसके संपूणव शुभ कमव िनषिल हो गये। वे बडे ही भागयशाली है , िजनहोने माता-िपता और गुर की

सेवा के महतव को समझा तथा उनकी सेवा मे अपना जीवन सिल िकया। ऐसा ही एक भागयशाली सपूत था - पुणडिलक।

पुणडिलक अपनी युवावसथा मे तीथय व ाता करने के िलए िनकला। याता करते-करते

काशी पहुँचा। काशी मे भगवान िवशनाथ के दशन व करने के बाद उसने लोगो से पूछाः 14

कया यहाँ कोई पहुँचे हुए महातमा है , िजनके दशन व करने से हदय को शांित िमले और जान पाि हो?

लोगो ने कहाः हाँ है । गंगापर कुककुर मुिन का आशम है । वे पहुँचे हुए आतमजान

संत है । वे सदा परोपकार मे लगे रहते है । वे इतनी उँ ची कमाई के धनी है िक साकात

माँ गंगा, माँ यमुना और माँ सरसवती उनके आशम मे रसोईघर की सेवा के िलए पसतुत हो जाती है । पुणडिलक के मन मे कुककुर मुिन से िमलने की िजजासा तीव हो उठी। पता पूछते-पूछते वह पहुँच गया कुककुर मुिन के आशम मे। मुिन के दे खकर पुणडिलक ने मन ही मन पणाम िकया और सतसंग वचन सुने। इसके पशात पुणडिलक मौका पाकर एकांत मे मुिन से िमलने गया। मुिन ने पूछाः वतस! तुम कहाँ से आ रहे हो? पुणडिलकः मै पंढरपुर (महाराष) से आया हूँ। तुमहारे माता-िपता जीिवत है ? हाँ है ।

तुमहारे गुर है ? हाँ, हमारे गुर बहजानी है ।

कुककुर मुिन रष होकर बोलेः पुणडिलक! तू बडा मूखव है । माता-िपता िवदमान है , बहजानी गुर है ििर भी तीथव करने के िलए भटक रहा है ? अरे पुणडिलक! मैने जो कथा सुनी थी उससे तो मेरा जीवन बदल गया। मै तुझे वही कथा सुनाता हूँ। तू धयान से सुन।

एक बार भगवान शंकर के यहाँ उनके दोनो पुतो मे होड लगी िक, कौन बडा? िनणय व लेने के िलए दोनो गय़े िशव-पावत व ी के पास। िशव-पावत व ी ने कहाः जो

संपूणव पथ ृ वी की पिरकमा करके पहले पहुँचेगा, उसी का बडपपन माना जाएगा।

काितक व े य तुरनत अपने वाहन मयूर पर िनकल गये पथृवी की पिरकमा करने।

गणपित जी चुपके-से एकांत मे चले गये। थोडी दे र शांत होकर उपाय खोजा तो झट से उनहे उपाय िमल गया। जो धयान करते है , शांत बैठते है उनहे अंतयाम व ी परमातमा

सतपेरणा दे ते है । अतः िकसी किठनाई के समय घबराना नहीं चािहए बिलक भगवान का धयान करके थोडी दे र शांत बैठो तो आपको जलद ही उस समसया का समाधान िमल जायेगा।

ििर गणपित जी आये िशव-पावत व ी के पास। माता-िपता का हाथ पकड कर दोनो

को ऊँचे आसन पर िबठाया, पत-पुषप से उनके शीचरणो की पूजा की और पदिकणा करने लगे। एक चककर पूरा हुआ तो पणाम िकया.... दस ू रा चककर लगाकर पणाम िकया.... इस पकार माता-िपता की सात पदिकणा कर ली।

िशव-पावत व ी ने पूछाः वतस! ये पदिकणाएँ कयो की? 15

गणपितजीः सवव तीथ व मयी माता ... सवव देवमयो िपता ... सारी पथ ृ वी की पदिकणा करने से जो पुणय होता है , वही पुणय माता की पदिकणा करने से हो जाता है , यह शासवचन है । िपता का पूजन करने से सब दे वताओं का पूजन हो जाता है । िपता

दे वसवरप है । अतः आपकी पिरकमा करके मैने संपूणव पथ ृ वी की सात पिरकमाएँ कर लीं है । तब से गणपित जी पथम पूजय हो गये।

िशव-पुराण मे आता है ः जो पुत माता-िपता की पूजा करके उनकी पदिकणा करता

है , उसे पथ ृ वी-पिरकमाजिनत िल सुलभ हो जाता है । जो माता-िपता को घर पर छोड कर तीथय व ाता के िलए जाता है , वह माता-िपता की हतया से िमलने वाले पाप का भागी होता है कयोिक पुत के िलए माता-िपता के चरण-सरोज ही महान तीथव है । अनय तीथव तो दरू

जाने पर पाि होते है परं तु धमव का साधनभूत यह तीथव तो पास मे ही सुलभ है । पुत के िलए (माता-िपता) और सी के िलए (पित) सुंदर तीथव घर मे ही िवदमान है ।

(िश व प ुराण , रद स ं .. कु ख ं .. - 20)

पुणडिलक मैने यह कथा सुनी और अपने माता-िपता की आजा का पालन िकया।

यिद मेरे माता-िपता मे कभी कोई कमी िदखती थी तो मै उस कमी को अपने जीवन मे नहीं लाता था और अपनी शदा को भी कम नहीं होने दे ता था। मेरे माता-िपता पसनन

हुए। उनका आशीवाद व मुझ पर बरसा। ििर मुझ पर मेरे गुरदे व की कृ पा बरसी इसीिलए

मेरी बहजा मे िसथित हुई और मुझे योग मे भी सिलता िमली। माता-िपता की सेवा के कारण मेरा हदय भििभाव से भरा है । मुझे िकसी अनय इषदे व की भिि करने की कोई मेहनत नहीं करनी पडी।

मात ृ देवो भव।

िपत ृ देवो भ व। आचाय व दवो भव।

मंिदर मे तो पतथर की मूितव मे भगवान की कामना की जाती है जबिक मातािपता तथा गुरदे व मे तो सचमुच परमातमदे व है , ऐसा मानकर मैने उनकी पसननता पाि

की। ििर तो मुझे न वषो तक तप करना पडा, न ही अनय िविध-िवधानो की कोई मेहनत करनी पडी। तुझे भी पता है िक यहाँ के रसोईघर मे सवयं गंगा-यमुना-सरसवती आती है । तीथव भी बहजानी के दार पर पावन होने के िलए आते है । ऐसा बहजान माता-िपता की सेवा और बहजानी गुर की कृ पा से मुझे िमला है ।

पुणडिलक तेरे माता-िपता जीिवत है और तू तीथो मे भटक रहा है ? पुणडिलक को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने कुककुर मुिन को पणाम िकया

और पंढरपुर आकर माता-िपता की सेवा मे लग गया।

माता-िपता की सेवा ही उसने पभु की सेवा मान ली। माता-िपता के पित उसकी

सेवािनषा दे खकर भगवान नारायण बडे पसनन हुए और सवयं उसके समक पकट हुए।

16

पुणडिलक उस समय माता-िपता की सेवा मे वयसत था। उसने भगवान को बैठने के िलए एक ईट दी।

अभी भी पंढरपुर मे पुणडिलक की दी हुई ईट पर भगवान िवषणु खडे है और

पुणडिलक की मातृ-िपतभ ृ िि की खबर दे रहा है पंढरपुर तीथ।व

यह भी दे खा गया है िक िजनहोने अपने माता-िपता तथा बहजानी गुर को िरझा

िलया है , वे भगवान के तुलय पूजे जाते है । उनको िरझाने के िलए पूरी दिुनया लालाियत रहती है । वे मातृ-िपतभ ृ िि से और गुरभिि से इतने महान हो जाते है ।

संकलप ः हम भी पुणडिलक की तरह अपने माता-िपता को िनतय पणाम करे गे।

उनकी आजा पालन करे गे और उनकी सेवा करे ग। - ऐसा संकलप बचचो से करवाये।

अनुभवः जुलाई 2000 मे गणपित उतसव के दौरान सांताकुज (मुंबई) के

साधको दारा संचािलत बाल संसकार केनद मे एक सांसकृ ितक कायक व म आयोिजत

िकया गया था। कायक व म को दे खने के िलए मै अपने भाँजे गणेष ितिवकम नायक को भी साथ लेकर गया।

कायक व म मे बाल संसकार केनद के बचचो ने भगवान गणेष जी के जीवन पर एक लघु नाटक पसतुत िकया। नाटक मे िदखाया गया िक िकस पकार गणेष जी मातृिपतभ ृ िि एवं बुिदमता के कारण समसत दे वताओं मे पथम पूजय बन गये।

इस नाटक का एक-एक दशय मेरे भाँजे के बालमानस मे बैठ गया। दस ू रे िदन वह

सुबह जलदी उठा तथा मेरी बहन व जीजाजी के साथ मे िबठाकर उनकी पदिकणा करने लगा। उसके माता-िपता उसकी इस िकया को दे खकर है रान रह गये। जब उनहोने अपने पुत गणेष से पूछा िक यह कया कर रहे हो? तब उसने बाल संसकार केनद मे आयोिजत

नाटक का िववरण सुनाते हुए कहा िक मुझे भी गणेषजी की भाँित बुिदमान और महान

बनना है । गत एक वषव से सुबह माता-िपता की पदिकणा करके ही अपनी िदनचयाव पारं भ करना उसका पकका िनयम बन गया है । यिद बचपन से ही बालको को अचछे संसकार िदये जाये तो वे िनशय ही भारतीय संसकृ ित के उननायक एवं रकक बन सकते है ।

- अशोक भटट , सांताकृज (पिशम ) मुंबई।

गृ हपाठ ः बचचो को पितिदन माता-िपता को पणाम करने को कहे और

उनके माता-िपता को कैसा लगा इस बारे मे बचचे अगले सिाह बताये। बचचो को गह ृ पाठ के िलए एक नोटबुक बनाने को कहे , िजसमे वे हर कायक व म मे िदया गया गह ृ पाठ करे गे।

द ू सरा स त 17

जानचचा व ः स दगुर -मिहमा - सदगुर का अथव मात िशकक या आचायव नहीं है । िशकक तो केवल ऐिहक जान दे ते है लेिकन सदगुर तो िनजसवरप का

जान दे ते है , िजस जान की पािि के बाद वयिि सुख-दःुख के पभाव से सदा के िलए छूट जाता है और उसे परमानंद की पािि होती है ।

जब भगवान शीराम, भगवान शीकृ षण आिद अवतार पथृवी पर आये, तब वे मुिन विसष जी तथा सांदीपिन ऋिष जैसे संतो की शरण मे गये।

राम क ृषण स े कौन ब डा , ित नह न े भी ग ुर कीनह। तीन लो क के ह ै धनी , गुर आ गे अधीन।।

पू जय बाप ू जी का ज ीवन -पिरचय परम पूजय बापू जी का जनम िसंध पांत के नवाबशाह िजले मे िसंधु नदी के तट

पर बसे बेराणी नामक गाँव मे नगर सेठ शी थाऊमलजी िसरमलानी के घर िदनांक 17 अपैल 1941 के िदन हुआ। उनकी पूजनीया माता का नाम महँ गीबा था। नामकरण

संसकार के दौरान उनका नाम आसुमल रखा गया। आसुमल बचपन से ही धयान-भजन मे तललीन रहते थे। वे लौिकक िवदा मे भी बडे तेजसवी थे परनतु उनहोने लौिकक िवदा से

अिधक धयान-भजन, साधना और ईशरपािि को ही महतव िदया। वे सदा पसननमुख रहते थे, इसिलए िशकक उनहे हँ समुखभाई कहकर बुलाते थे। उनहोने युवावसथा मे जंगलो,

गुिाओं मे कठोर तपसया की। नैनीताल मे उनहे परम पूजय संत शी लीलाशाह जी बापू के दशन व हुए। सवामी शी लीलाशाहजी बापू को सदगुर मान के आसुमल उनके आशम मे रहकर सेवा और साधना करने लगे। अंततः सदगुर की कृ पा से उनहे साकातकार हुआ

और वे आसुमल मे से संत शी आसारामजी बापू बने, िजनको सदगुर के रप मे पाकर आज करोडो लोग अपना जीवन धनय बना रहे है ।

किव ताः मा ँ बाप को भ ूलना नही ं

खेलः बचचो को गोलाकार मे िबठाये। अब उनको एक गेद दे ते हुए बताये

िक बालक अपने बगलवाले को तुरंत गेद दे दे । मधुर कीतन व अथवा कीतन व की कोई अनय कैसेट चलाये। बचचो के साथ-साथ ताली बजाकर कीतन व भी करे ।

बीच-बीच मे कैसेट बंद करे , कैसेट बंद होने पर िजसके हाथ मे गेद होगी वह बचचा बाहर (आऊट) हो जाएगा। अंत मे तीन बचचो को िवजेता घोिषत करे । पशोतर ीः इस सत मे िसखाये गये िवषयो पर आधािरत पश पूछे जैसे-

1.भगवान गणेषजी के बडे भाई का कया नाम था?

2.भगवान गणेषजी ने माता-िपता की िकतनी पदिकणाएँ कीं?

3.भगवान गणेषजी सभी दे वताओं के पथम पूजनीय कैसे बने?

18

4.हासय पयोग के लाभ बताओ? 5.कौन सा पाणायाम करने से समरणशिि बढती है ?

सिाह क े दोनो

द ू स रा सिाह

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

यौिगक पयोगः * वयाय ाम क मांक - 2 (पैरो की उ ँगिलयो क े वयाय ाम ः

ताडासन * पाणायामः

भामरी * मुदाजा नः जानमुदा।

* योगाभ यास ः

कीत व नः नार ायण की तव न। धयानः हिर

ú मंत का सात अथवा गयारह बार उचचारण के साथ धयान।

नोटः इनके साथ सभी सतो म े ल े ने यो गय आवशयक पहला सत

िवषय भी ले।

* जानच चाव ः

(क) िशषा चार के िनयम ः * अपने से बडो के आने पर खडे होकर पणाम करके

उनहे मान दे ना चािहए। उनके बैठ जाने पर ही सवयं बैठना चािहए।

* भोजन, सनान, शौच, दातुन आिद सवयं करते हो तब अथवा िजनहे पणाम करना

है , वे ऐसा करते हो तो उस समय उनहे पणाम नहीं करना चािहए। अपने और उनके इन कायो से िनवत ृ होने पर ही उनहे पणाम नहीं करना चािहए।

* चुटकुला ः लडकाः िपता जी ! मुझे कालेज जाने के िलए कार ला दो न!

िपता जीः तुमहारा कालेज तो घर से बहुत नजदीक है । भगवान ने तुमहे पैर कयो

िदये है ?

लडकाः एक पैर बेक पर रखने के िलए और दस ू रा एकसेलरे टर दबाने के िलए।

सीखः पिरिसथितवश अगर माता-िपता आपकी िकसी वसतु की माँग पूरी न कर

सके तो उस वसतु के िलए हठ न करे । माता-िपता को कभी उलटकर उतर न दे । (ख) शोक

अिभ वादनशीलसय िनतय चतवािर तसय व

ं व ृ दोपस े िवनः।

धव नते आय ु िव व दा यशो बल म।् ।

भावाथ व ः िनतय बडो की सेवा और पणाम करने वाले पुरष की आयु, िवदा, यश और बल - ये चारो बढते है ।

(मनुसम ृ ितः 2.121)

बचचो को यह शोक कणठसथ कराये और अथव बताये।

19

(ग) किव ताः मा ँ बाप को भ ूलना नही ं पहला और दस ू रा अंतरा (मुख का

िनवाला दे अरे ! ....... बात यह भूलना नहीं।।) का अथव बता कर उनहे कंठसथ कराये। (दे खे पष ृ पसंग।

)।

शी आसारामायण

पाठ व प ूजयशी की जीवनलीला पर आधािर

त कथा -

आदश व िदनचया व ः जीवन िवकास और सवव सिलताओं की कुंजी है एक सही

िदन चया।व सही िदनचयाव दारा समय का सदप ु योग करके तन को तंदरसत, मन को

पसनन एवं बुिद को कुशाग बनाकर बुिद को बुिददाता ईशर की ओर लगा सकते है । सूयोदय से पूवव बहमुहूतव मे उठे ।

शौच, सनान आिद के बाद धयान, पाणायाम, जप, सदगनथो एवं शासो का पठन

करना चािहए।

सूयव को अघयव दे ना, योगासन व वयायाम करना चािहए।

भोजन के पहले भगवान को पाथन व ा करनी चािहए। भोजन सवासथयकारक, सुपाचय व साितवक करे ।

अचछा संग, खेलकूद व अधययन (सकूली पढाई) करनी चािहए। राित को भोजन के बाद थोडा टहले।

सोने से पूवव सदकगुरदे व, इषदे व का धयान करे , सतसंग की पुसतक पढे अथवा कैसेट सुने। पूवव अथवा दिकण की िसर रखकर शासोचछवास की िगनती करते हुए सीधा (पीठ के बल) सोये। ििर जैसी आवशयकता होगी सवाभािवक करवट ले ली जाएगी। कथा -पसंग आ िद दारा (1)

पेरक -पसंग ः

द ू सरा सत

सद गुणो का िवकास ः साहसी बालक

एक लडका काशी मे हिरशनद हाईसकूल मे पढता था। उसका गाँव काशी से आठ

मील दरू था। वह रोजाना वहाँ से पैदल चलकर आता, बीच मे गंगा नदी बहती है उसे पार करता और िवदालय पहुँचता।

गंगा को पार कराने के िलए नाववाले उस जमाने मे दो पैसे लेते थे। आने जाने

के महीने के करीब 2 रपये, आजकल के िहसाब से पाँच-पचीस रपये हो जायेगे। अपने

माँ-बाप पर अितिरि बोझा न पडे इसिलए उसने तैरना सीख िलया। गमी हो, बािरश हो िक ठं डी हो वह हर रोज गंगा पार करके सकूल मे जाता।

एक बार पौष मास की ठं डी मे वह लडका सुबह सकूल पहुँचने के िलए गंगा मे

कूदा। तैरते-तैरते मझधार मे आया। एक नाव मे कुछ याती नदी पार कर रहे थे। उनहोने 20

दे खा िक छोटा-सा लडका अभी डू ब मरे गा। वे नाव को उसके पास ले गये और हाथ पकडकर उसे नाव मे खींच िलया। लडके के मुँह पर घबराहट या िचंता का कोई िचह नहीं था। सब लोग दं ग रह गये िक इतना छोटा और इतना साहसी! वे बोलेः तू अभी डू ब मरता तो? ऐसा साहस नहीं करना चािहए।

तब लडका बोलाः साहस तो होना ही चािहए। जीवन मे िवघन-बाधाएँ आयेगी, उनहे

कुचलने के िलए साहस तो चािहए ही। अगर अभी से साहस न जुटाया तो जीवन मे बडे बडे कायव कैसे कर पाऊँगा?

पाणवा न प ं ििया ँ - यहाँ पर कहानी रोककर साहस-सदगुण की चचाव करते हुए

बचचो को िनमन पाणवान पंिियाँ पककी करवाये-

जहाजो को ड ूबा द े उस े त ूिान कहत े ह ै।

तू िा नो स े जो टककर ल े , उसे इ नसान कहत े ह ै।। लोगो ने पूछाः इस समय तैरने कयो आया? दोपहर को नहाने आता।

लडका बोलाः मै नदी मे नहाने के िलए नहीं आया हूँ, मै तो सकूल जा रहा हूँ। ििर नाव मे बैठकर जाता?

आने-जाने के रोज के चार पैसे लगते है । मेरे गरीब माँ-बाप पर मुझे बोझ नहीं बनना है । मुझे तो अपने पैरो पर खडे होना है । मेरा खचव बढे गा तो मेरे माँ-बाप की िचंता बढे गी, उनहे घर चलाना मुिशकल हो जाएगा।

वही साहसी लडका आगे चलकर भारत का पधानमंती बना।

बचचो से पूछे िक कया आप जानते है िक वह साहसी बालक कौन था? वे थे - शी लाल बहादरु शासी। (2)

सदग ुण च चाव ः

साहस ः जैसे - लाल बहादरु शासी बचपन से ही साहसी थे तो जीवन मे

मुिशकलो के िसर पर पैर रखकर आगे बढते गये और अंततः पधानमंती पद पर पहुँच गये।

आतमिन भव रताः माता-िपता का वयथव का खचाव न बढाकर आतमिनभरव बनना

चािहए, जैसे लाल बहादरु शासी थे।

पुरषाथ व ः िवदाथी को पुरषाथी बनना चािहए। पुरषाथी बालक ही जीवन मे

महान बनता है ।

राषभिि व मा तृ -िप तृ भिि ः जो वयिि अपने माता-िपता और सदगुर की

सेवा करता है , वही राष की सेवा कर सकता है ।

संकलप ः बचचो से संकलप करवाये िक हम भी अपने जीवन मे इन सदगुणो

को अपनायेगे। ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ 21

(ग) भजनः क दम अप ने आग े बढाता चला जा

(दे खे पष ृ

)

पहला अंतरा बचचो को याद कराये और उनके साथ-साथ गाये।

सवासथय स ंजीवनीः

(1)तुल सी से वनः जहाँ तुलसी के पौधे अिधक माता मे होते है वहाँ की हवा शुद और

पिवत होती है । सुबह उठकर अचछी तरह कुलला करके तुलसी के पाँच-सात पते चबाचबाकर खाये। ििर एक िगलास पानी िपये।

लाभ ः * समरणशिि का िवकास होता है । * पेट की कृ िम की िशकायत नहीं

होती। सदी-खाँसी जलदी नहीं होती । सावधानीः

तुलसी और दध ू के सेवन के बीच एक घंटे का अंतर होना चािहए।

िटपपणीः

रिववार, दादशी, पूिणम व ा और अमावसया को तुलसी दल तोडना मना है ।

अनुभवः परम पूजय सदगुरदे व की कृ पा से मेरे पुत समीर ने िरवरी मे 2004

मे 12 वीँ कका की बौडव की परीका मे 91.05 % अंक पाि कर थाने शहर मे पथम और महाराष राजय की वरीयता सूची मे 15 वाँ सथान पाि िकया। 10 वी ककी की बोडव की परीका मे भी वह थाने शहर मे पथम पाि कर चुका है ।

व मुबई िवभाग की वरीयता सूची मे तिृतय सथान

समीर पूजय गुरदे व के बताये अनुसार रोज सुबह तुलसी के 5-7 पते चबाकर पानी

पीता है , 10 पाणायाम एवं शी आसारामायण पाठ करता है । मािसक पितका ऋिष पसाद

हमारे घर मे आती है । यह उसे भी जरर पढता है । सिलता की आकांका रखने वाले सभी िवदािथय व ो को यह पितका अवशय दे नी चािहए।

- सुलभा तलवेडकर, थाने (महा.)

पशोतर ीः बचचो से इस सत मे िसखाये गये िवषयो पर आधािरत पश पूछे। जैसे1.लाल बहादरु शासी ने तैरना कयो सीखा? जीवन मे साहस कयो चािहए?

कौन सा आसन करने से लंबाई बढती है ? हासय-पयोग के 2 लाभ बताओ? गृ हपाठ ः

बचचे कापी पर सिाह के सात िदन िलखे। िजस िदन तुलसी के पते खाने

है उस के आगे ॐ िलखे और िजस िदन नहीं खाने है उसके आगे × का िनशान लगाये। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

तीस रा सिाह यौिगक पयोगः

सिाह क े दोनो

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

22

वय ायामः

कमांक नं 2 और 3 (पैरो की उं गिलयो के वयायाम)

योगासनः

पदासन * पाणायामः

कीत व नः नार ायण की तव न

भामरी * मुदाजानः

अपानवायु मुदा।

मंतजाप व ध या नः ॐ नमो भ गवत े वास ुदेवाय मंत के उचचारण के साथ धयान।

नोटः इनके साथ सभी सतो मे लेने योगय आवशयक िवषय भी ले। पहला सत

जानचचा व ः

ित लक म िहमा ः ितलक भारतीय संसकृ ित का पतीक है । वैजािनक तथयः

ललाट पर दोनो भौहो के बीच आजाचक (िशवनेत) और उसी के पीछे

के भाग मे दो महतवपूणव अंतःसावी गंिथयाँ िसथत है (पीिनयल गंिथ और पीयूष गिनथ।

ितलक लगाने से दोनो गंिथयो का पोषण होता है और िवचारशिि िवकिसत होती है ।

ॐ गं गणपतये नमः मंत का जप करके जहाँ चोटी रखते है वहाँ दाये हाथ की उं गिलयो से सपशव करे और संकलप करे िक हमारे मसतक का यह िहससा िवशेष संवेदनशील हो,

िवकिसत हो। इससे जानतंतु सुिवकिसत है , बुिदशिि व संयमशिि का िवकास होता है ।

अनुभवः राजसथान के जयपुर िजले मे िसथत दे वीनगर मे गजेनदिसहं खींची नाम का

एक लडका रहता है । वह िनयिमत रप से बाल संसकार केनद मे जाता था। केनद मे जब उसे ितलक करने से होने वाले लाभो के बारे मे पता चला, तबसे वह िनयिमत रप से सकूल मे ितलक लगाकर जाने लगा।

पिशमी संसकृ ित से पभािवत उसकी िशिकका ने उसे ितलक लगाने से मना िकया

परं तु जब उस बचचे ने िशिकका को ितलक लगाने के िायदे बताये तब िशिकका ने

ितलक लगाने की मंजूरी दे दी। ितलक की मिहमा जानकर अनय बचचे भी ितलक लगाने लगे।

संकलप ः हम भी रोज ितलक करे गे। बचचो से यह संकलप कराये। भजनः क दम अप ने आग े बढाता चला जा। िश षाचार क े िनयमः

मागव मे जब गुरजनो के साथ चलना हो तो उनके आगे या

बराबर मे न चले, उनके पीछे चले।

किव ताः मा ँ बाप को भ ूलना नही ं। िदनचया व ः बाहम ु हूतव मे जागरण

- बाहमुहूतव मे उठने वाले िवदाथी की बुिद

तेजसवी, शरीर सवसथ और मन पसनन रहता है । इसिलए वह पढाई मे सदा आगे रहता है ।

सुबह उठकर सवप व थम लेटे-लेटे गुरदे व को, इषदे व को मानिसक पणाम करे । शरीर को

दाये-बाये, ऊपर-नीचे खींचे। बैठकर सदगुरदे व या इषदे व का धयान करे । 23

करदश व नः कराग े वसत े ल कमीः कर मधय े स रसवती।

करम ू ले त ु गोिव नदः प भात े करदश व नम।् ।

हाथ के अगभाग मे लकमी का िनवास है , मधयभाग मे िवदादाती सरसवती का िनवास

है और मूलभाग मे भगवान गोिवनद का िनवास है । अतः पभात मे करदशन व करना चािहए।

शश कासन। देव -मानव हासय

पयोग।

भू िमवनदन ः धरती माता को वनदन करे और िनमन शोक बोले। समुद वसन े द ेिव पव व त सतनमिणड ते।

िवषण ुप ित नमसत ुभय ं पादसपश व क मसव म े।। शी आसारामायण

पसंग।

पाठ व प ूजयशी की जीवनलीला पर आधािर

त कथा

गृ हपाठ ः िच तकला सप धाव - भगवान शीगणेष के िचत अपनी नोटबुक मे बनाकर

लाये, साथ मे मंत भी िलख कर लाये।

द ू सरा सत

कथा प संग आ िद दार ा सद गुणो का िवकास। बालभि ध ुव

राजा उतानपाद की दो रािनयाँ थीं - सुरिच और सुनीित। दोनो रािनयो मे सुरिच राजा को जयादा िपय थी। सुरिच को उतम और सुनीित को धुव नामक पुत था।

एक िदन राजा उतानपाद सुरिच के पुत उतम को गोद मे िबठाकर पयार कर रहे थे।

उसी समय धुव ने भी गोद मे बैठना चाहा लेिकन राजा ने उसको अपनी गोद मे नहीं

िलया। धुव की सौतेली माँ सुरिच ने उसे महाराज की गोद मे आने का यत करते दे ख वयंगयपूणव शबदो मे कहाः बचचे! तू राजिसंहासन पर बैठने का अिधकारी नहीं है । तू भी

राजा का ही बेटा है तो कया हुआ, तुझको तो मैने अपनी कोख मे धारण नहीं िकया। तू

अभी नादान है , तुझे पता नहीं है िक तूने िकसी दस ू री सी के गभव से जनम िलया है , तभी तो ऐसे दल व िवषय की इचछा कर रहा है । यिद तुझे राजिसंहासन की इचछा है तो ु भ

तपसया करके परम पुरष शी नारायण की आराधना कर और उनकी कृ पा से मेरे गभव मे

जनम ले। सौतेली माता की बात सुनकर धुव बहुत दःुखी हुआ। धुव रोता-रोता अपनी माँ के पास गया। सुनीित को दस ू रे लोगो ने बताया िक तुमहारे बेटे से सुरिच ने ऐसा-ऐसा

कहा है । सुनकर बेचारी वह भी रोने लगी। सौत की बात िदल मे तीर की तरह चुभ गयी। ििर भी उसने धैयव धारण करके धुव को समझायाः बेटा! तूने मुझ अभािगन के गभव से 24

जनम िलया है । सुरिच ने तेरी सौतेली माँ होने पर भी सचची बात ही कही है । अतः यिद राजकुमार उतम के समान राजिसंहासन पर बैठना चाहता है तो दे षभाव छोडकर बस,

भगवान नारायण के चरणकमलो की आराधना मे लग जा। धुव को माँ की सीख अचछी लगी और तुरंत ही दढिनशय करके तप करने के िलये वह िपता के नगर से िनकल पडा। यह सब समाचार सुनकर और धुव कया करना चाहता है , इस बात को जानकर

नारदजी वहाँ आये। उनहोने धुव के मसतक पर अपना पापनाशक करकमल िेरते हुए

उसको समझायाः बेटा! अभी तो तू बचचा है , खेलकूद मे ही मसत रहता है , तेरे िलए मानसममान कया है ? संसार मे भलाई-बुराई बहुत है , केवल मोह के कारण ही मनुषय दःुखी

होता है । जो िमलता है उसी मे मनुषय को संतुष रहना चािहए। सब जगह भगवान की लीला दे खो, सब मे भगवान का हाथ दे खो। अपनी माता के उपदे श से तू योगसाधना दारा िजन भगवान की पािि करने चला है - मेरे िवचार से साधारण पुरषो के िलए उनहे पसनन करना बहुत ही किठन है । योगी लोग अनेको जनमो तक अनासि रहकर

समािधयोग दारा बडी-बडी कठोर साधनाएँ करते रहते है परनतु भगवान के मागव का पता नहीं पाते। इसिलए तू वयथव का हठ छोड दे और घर लौट जा, बडा होने पर जब परमाथव साधन का समय आये, तब उसके िलए पयत कर लेना। परं तु धुव दढिनशयी था। उसने

कहाः बहन! मै उस पद पर अिधकार करना चाहता हूँ, जो ितलोकी मे सबसे शष े है तथा िजस पर मेरे बाप-दादे और दस ू रे कोई भी आरढ नहीं हो सके है । आप मुझे उसी की पािि का कोई अचछा सा मागव बतलाइये।

धुव की बात सुनकर नारदजी बडे पसनन हुए और उसे भगवान के धयानपूजन की

िविध बतायी। इसके बाद नारद जी ने धुव को ॐ नमो भगवत े वास ु देवाय मंत दे कर

आशीवाद व िदयाः बेटा! तू शदा से इस मंत का जप करना। भगवान जरर तुझ पर पसनन होगे। धुव कठोर तपसया मे लग गया। एक पैर पर खडे होकर, ठं डी-गमी, बरसात सब सहन करते-करते नारद जी के दारा िदये गये मंत का जप करने लगा।

उसकी िनभय व ता, दढता और कठोर तपसया से भगवान नारायण उसके समक पकट हो

गये। भगवान ने धुव से कहाः उतम वत का पालन करने वाले राजकुमार! मै तेरे हदय

का संकलप जानता हूँ। यदिप उस पद का पाि होना बहुत किठन है तो भी मै तुझे वह दे ता हूँ। िजस तेजोमय अिवनाशी लोक को आज तक िकसी ने पाि नहीं िकया, िजसके चारो ओर गह, नकत और तारागण जयोितचक चककर काटता रहता है । अवानतर

कलपपयन व त रहने वाले धमव, अिगन, कशयप और शुक आिद नकत एवं सिऋिषगण िजसकी पदिकणा िकया करते है , वह धुवलोक मै तुझे दे ता हूँ। ततपशात धुव ने भगवान की पूजा की। बालक धुव से इस पकार पूिजत हो भगवान शी गरडधवज उसके दे खते-दे खते अपने लोक को चले गये। 25

पाँच वषव के धुव को भगवान िमल सकते है तो हमे कयो नहीं िमल सकते? जररत है भिि मे िनषा की और दढ िवशास की। इसिलए बचचो को हररोज शदा और िनषा पूवक व पेम से भगवननाम का जप करना चािहए।

जानचचा व ः म ंतदीका -मिहमा व सारसवतय म

ंत -मिह माः सदगुर से जब दीका ली

जाती है तब वे िशषय को मंत के साथ-साथ अपनी शिि भी दे ते है , िजससे मंत जप करने वाले की शीघ उननित होती है ।

बहजानी सदगुर से सारसवतय म ंत की दीका लेकर जप करने वाले बचचो के जीवन

मे एकागता, अनुमानशिि, िनणय व शिि एवं समरणशिि चमतकािरक रप से बढती है और बुिद तेजसवी बनती है ।

पूजय बाप ू जी स े म ंतदीिक त बचचो क े जीवन म े हो ने वाल े लाभ ः ऐसे बचचो

के जीवन से हताशा, िनराशा, िचंता, भय आिद दरू हो जाते है , वे उतसाही, आशावादी,

िनिशंत, िनडर तथा बुिदमान बनते है । सवसथ एवं पसननमुख रहते है और पढाई-िलखाई मे सदा आगे रहते है ।

अनुभवः स ारसवतय

मं त स े ह ु ए अद भुत लाभ ः मैने 1998 मे िवदाथी तेजसवी

उतथान िशिवर सोनीपत मे परम पूजय बापूजी से सारसवतय मंत की दीका ली। दीका के बाद िनयिमत मंतजप करने से मै इतना कुशाग बुिदवाला और सवावलंबी हो गया िक

मैने एक महीने मे टयूशन छोड दी और सवयं खूब मेहनत करने लगा। मै सकूल मे भी पैदल जाने लगा, िजससे सकूल बस का िकराया भी बच गया। मंत जप के पभाव से मुझे 9 वीं. 10 वीं, 11 वीं की परीकाओं मे पथम सथान पाि हुआ।

संकलप ः बचचो से यह संकलप कराये। हम भी परमातमा मे दढ िवशास रखकर

िनषापूवक व पेम से मंतजप करे गे और ईशर के मागव पर कदम आगे बढायेगे। सवासथय स ुरकाः अ ं गजी दवाईयो

से हािन ः बचचो को अंगजी दवाईयो (एलोपैथी)

की हािनयाँ बताये। उनहे बताये िक इन दवाईयो के रप मे, शििवधक व टॉिनको के रप मे हमे पािणयो के मांस, रि आिद िखलाये जा रहे है , िजसके कारण मन मिलन और संकलपशिि कम हो जाती है तथा साधना मे बरकत नहीं

आती। साईड इिैकटस का

िशकार हो जाते है वह अलग। अंगजी दवाईयाँ दीघक व ाल तक गुदे, यकृ त और आँतो पर हािनकारक असर करती है । इन जहरीली दवाइयो के बजाय आयुविै दक औषिधयाँ अपनाये।

पहेलीः जन -जन के रोगो

को हर ने , वे प ृ थवी पर आ ये।

बोलो आय ुव े द के जान को , कौन धरा पर लाय

े?

उतरः भगवान धनव नतरी। 26

चुटकु लाः

अिधक खाने से पुत बीमार हो गया, तब िपता ने दवाई (टे बलेट) दे नी चाही

पर पुत ने इनकार कर िदया। िपता ने तरकीब खोजकर लडडू के बीच मे टे बलेट डाल दी। थोडी दे र बाद िपता ने पूछाः बेटा! लडडू कैसा था?

बेटे ने कहाः लडडू तो बिढया था पर गुठली खराब थी, इसिलए मैने िैक दी। ऑिडयो , िव डी यो सतस ं गः पूजयशी के सतसंग की, िवदाथी िशिवर की ऑिडयो या

िविडयो सी.डी. कैसेट 20-25 िमनट चलाये। ततपशात बचचो से उस पर आधािरत पश पूछे।

पशोतर ीः सत मे िसखाये गये िवषयो पर आधािरत पश पूछे। जैसे1.पदासन से कया लाभ होता है ?

2.ितलक करने से कया लाभ होता है ? 3.धुव की माता का नाम कया था?

4.नारदजी ने धुव को कौन सा मंत िदया? 5.सारसवतय मंत जप से कया लाभ होता है ? 6.अंगजी दवाइयाँ कयो नहीं खानी चािहए? 7.अपानवायु मुदा से कया लाभ होता है ?

गृ हपाठ ः बचचो को िनतय माता-िपता को पणाम करने को कहे । बचचे नोटबुक मे सिाह के सात िदन िलखे। िजस िदन पणाम िकया, उस िदन के सामने ॐ िलखे और िजस िदन नहीं िकया, उस िदन के आगे नहीं (×) का िनशान लगाये। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

चौथा सिाह यौिगक पयोगः वय ायामः

योगासनः

सिाह क े दोनो

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

पूवव मे िसखाये हुए वयायाम एवं कमांक नं 4 (पैरो के पंजो का वयायाम)

पदासन पाणायामः

भामरी, बुिद एवं मेधा शििवधक व मुदाजानः

अपानवायु

मुदा

कीत व न ए वं धया नः ॐ ॐ पभ ुजी ॐ नोटः इनके साथ सभी सतो म े ल े ने यो गय आवशयक पहला सत

जानचचा व ः

गुर -िश षय पर ंपराः सवा मी श ी लीलाशाहजी बाप

िवषय भी ले।



27

कया आप जानते है िक सवामी शी लीलाशाहजी बापू कौन थे? वे थे हमारे गुरदे व परम पूजय संत शी आसारामजी बापू के सदगुर। उनकी कृ पा से

ही हमारे पूजय सदगुरदे व को आतमसाकातकार हुआ। गुर -िशषय पर ंपराः

परम पूजय बापू जी अपने साधनाकाल मे तीथाट व न करते हुए

और जंगलो गुिाओं मे घूमते हुए अंततः नैनीताल पहुँचे। तब उनका नाम आसुमल था। वहाँ उनहे शी लीलाशाहजी बापू िमले, उनहे सदगुर मानकर आसुमल उनके चरणो मे रहकर सेवा साधना करने लगे।

70 िदन तक आसुमल को कठोर ितितकाएँ सहनी पडीं। वे केवल चार िुट की कोठरी

मे रहते थे, िजसमे ठीक से आसन भी नहीं कर पाते थे। भोजन मे केवल मूग ँ का पानी अथवा उबले हुए मूग ँ लेते थे। गुरदे व के नाम आये हुए पत पढते एवं उनके बताये

अनुसार उनका जवाब दे ते। आशम के पौधो को पानी िपलाते और आशम मे आने वाले अितिथयो को भोजन कराते। बतन व माँजते समय नैनीताल की पथरीली िमटटी से हाथ मे चीरे पड जाते थे तो वे हाथ मे कपडा बाँध कर बतन व माँजते। उनकी यह दशा दे खकर लोगो को उन पर दया आती थी लेिकन यह सब कष सहन करते हुए जब उन पर

सदगुर की कृ पा बरसी और उनहोने गुरकृ पा पचायी तो साधक मे से िसद बन गये, आसुमल से आसाराम बन गये और पाचीनकाल से ही हमारे भारत मे चली आ रही गुरिशषय परं परा मे गुर-िशषय की एक और महान कडी जुड गयी।

सीखः सदगुर की सेवा मे चाहे िकतने भी कष सहने न पडे , वे अंततः कलयाणकारी

और सब दःुखो से छुडाने वाले होते है ।

ऐसे दःुख को सहन करने वाला संसार के सब कषो से छूट जाता है । इसिलए हमे

सदै व सदगुर की सेवा मे ततपर रहना चािहए।

संकलप ः ‘गुरसेवा मे चाहे िकतने ही कष सहने पडे , हम गुरसेवा मे सदै व

ततपरतापूवक व लगे रहे गे।’ बचचो से यह संकलप करवाये। किव ताः ‘म ाँ -बाप को भ ू लना नह ीं’ िदनचया व ः (क) शौच -िवजानः

शौच के समय िसर व कान ढककर जाये। पूवव या

उतर की ओर मुख करके मौनपूवक व मलमूत का तयाग करे । इस समय दाँत भींच कर

रखने से दाँत मजबूत होते है और लकवे की बीमारी नहीं होती। भोजन के बाद पेशाब करने से भी पथरी होने का डर नहीं रहता। (2)दंत धावनः

शौच के बाद नीम या बबूल की ताजी या भीगी हुई दातुन से अथवा

आयुवैिदक मंजन से दाँत अचछी तरह साि करने चािहए। दाँतो को इस तरह से साि

करे िक उन पर मैल न रहे और मुख से दग व ध न आये। मंजन कभी तजन व (अंगूठे के ु न

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पासवाली उँ गली) से न करे कयोिक तजन व ी उँ गली मे एक पकार का िवदुत-पवाह होता है , जो दाँतो को शीघ ही कमजोर कर दे ता है ।

इनस े सावधान !

बाजार टू थपेसट स े साव धा नः बाजार मे िबकने वाले अिधकाँश टू थपेसटो मे

फलोराइड नामक रसायन का पयोग िकया जाता है । यह रसायन सीसे और आसिेनक जैसा िवषैला होता है । अमेिरका के ‘नैशनल कैसर इनसटीटयूट’ के पमुश रसायनशासी

दारा िकये गये एक शोध के अनुसार अमेिरका मे पितवषव दस हजार से भी जयादा लोग फलोराइड से उतपनन कैसर के कारण मौत का िशकार होते है । टू थपेसट बनाने मे पशुओं की हिडडयो के चूरे का पयोग होता है । इसिलए जहाँ तक संभव हो टू थपेसटो का पयोग

नहीं करना चािहए। टू थबश से दाँतो पर लगे िझललीनुमा पाकृ ितक आवरण नष हो जाते है , िजससे दाँतो की पाकृ ितक चमक चली जाती है और उनमे कीडे लगने लगते है । सवासथय स ुरकाः द ाँतो की स ुरका क े उपायः

80 से 90 % बालक िवशेषकर

दाँतो के रोगो से, उनमे भी जयादातर बचचे दं तकृ िम से पीिडत होते है । खूब ठं डा पानी पीकर गमव पानी िपया जाय अथवा ठं डा पदाथव खाकर गमव पदाथव खाया जाय तो दाँत

जलदी िगरते है । भोजन करने के बाद दाँत साि करके कुलले करने चािहए। अनन के कण दाँतो मे िँसे रहे , इसका िवशेष धयान रखना चािहए। माह मे एकाध बार राित को सोने से पूवव नमक और सरसो का तेल िमला कर उससे दाँत साि करने चािहए। ऐसा करने से

वद ृ ावसथा मे भी दाँत नहीं सडे गे। आइसकीम, िबसकुट, चॉकलेट, ठं डा पानी, ििज के ठं डे और बासी पदाथव, चाय-कािी आिद के सेवन से बचने से भी दाँतो की सुरका होती है ।

शी आसारामायण

पसंग

पाठ व प ूजयशी की जीवन लीला पर आधािर

त कथा -

पूजय बाप ूजी िवदाथी काल म े

पूजय बापू जी के बचपन का नाम आसुमल था। बालक आसुमल अमदावाद मे मिणनगर के जयिहनद हाईसकूल मे पढते थे। उनकी समरणशिि िवलकण थी। अपनी

िवलकण समरणशिि के पभाव से ही उनहोने िशकक दारा सुनायी गयी एक लंबी किवता को एक ही बार सुनकर तुरंत पूरी-की-पूरी सुना दी तो सभी िवदाथी व अधयापक चिकत रह गये

िचत की एकागता, बुिद की तीवता, नमता, सहनशीलता आिद के कारण आसुमल पूरे

िवदालय मे सबके िपये बन गये। जब वे पाठशाला जाते तो उनके िपता जाते समय

उनकी जेब मे िपसता, बादाम, काजू, अखरोट भर दे ते। बालक आसुमल सवयं तो खाते,

अपने िमतो को भी िखलाते। पढने मे भी वे बडे मेधावी थे। पितवषव शण े ी मे उतीणव होते थे, ििर भी इस सामानय िवदा का आकषण व उनहे नहीं रहा। सकूल के अनय बचचे जब 29

खेलकूद रहे होते तो बालक आसुमल िकसी वक ृ के नीचे ईशर के धयान मे तललीन हो जाते थे। बालयकाल से ही उनका मन लौिकक िवदा मे नहीं अिपतु ईशर की भिि मे

लगता था, इसिलए वे जयादा समय धयान भजन मे ही लगे रहते। धीरे -धीरे उनहे धयान का ऐसा सवाद लगा िक जैसे मछली पानी के िबना नहीं रह सकती, उसी पकार वे भी

धयान िकये िबना नहीं रह पाते थे। इस पकार वे बहिवदा से समपनन होने लगे। उनका मानना था िक ‘िवदा वही है जो मुिि िदलाये।’ आसुमल दे र रात तक िपता जी के पैर

दबाते, उनकी सेवा से पसनन होकर िपता जी ने आशीवाद व िदया िक ‘बेटा! इस संसार मे सदा तेरा नाम रहे गा और तुमहारे दारा लोगो की मनोकामनाएँ पूणव होगीं।’

ििर बचचो को नीचे िदया गया शोक कणठसथ कराये और बताये िक जैसे पूजय बापू

जी के जीवन मे ये दै वी गुण बचपन से ही थे तो वे िकतने महान बन गये, ऐसे ही अगर आप भी इन दै वी गुणो को अपने जीवन मे लाओ तो आप भी अवशय महान बन सकते है ।

अभय ं सतवस ं शुिदजा व नय ोगवयव िसथित ः। दान ं द मश यजश सवाधयायसतप

आ जव वम।् ।

‘भय का सवथ व ा अभाव, अंतःकरण की पूणव िनमल व ता, ततवजान के िलए धयानयोग मे िनरं तर दढ िसथित तथा साितवक दान, इिनदयो का दमन, भगवान, दे वता औ गुरजनो की पूजा एवं अिगनहोत आिद उतम कमो का आचरण, वेद-शासो का पठन-पाठन तथा

भगवान के नाम और गुणो का संकीतन व , सवधमप व ालन के िलए कष सहन व शरीर तथा

इिनदयो के सिहत अंतःकरण की सरलता - ये सब दै वी संपदा को लेकर उतपनन हुए पुरष के लकण है ।

(शीमद भग वदगीताः

16.1)

गृ हपाठ ः बचचो को कोई भी पाँच सदगुरओं और उनके िशषयो के नाम घर से िलख

कर लाने के िलए कहे ।

कथा -पसंग आ िद दारा

द ू सरा सत

सद गुणो का िवकास गुरभि एक लवय

दापर युग की बात है । एकलवय नाम का भील जाित का एक लडका था। एक बार वह धनुिवद व ा सीखने के उदे शय से कौरवो एवं पांडवो के गुर दोणाचायव के पास गया परं तु दोणाचायव ने कहा िक वे राजकुमारो के अलावा और िकसी को धनुिवद व ा नहीं िसखा

सकते। एकलवय ने मन-ही-मन दोणाचायव को अपना गुर मान िलया था। इसिलए उनके मना करने पर भी उसके मन मे गुर के पित िशकायत या िछदानवेषण (दोष दे खने) की विृत नहीं आयी, न ही गुर के पित उसकी शदा कम हुई। 30

वह वहाँ से घर न जाकर सीधे जंगल मे चला गया। वहाँ जाकर उसने दोणाचायव की िमटटी की मूितव बनायी। वह हररोज गुरमूितव की पूजा करता, ििर उसकी तरि एकटक

दे खते-दे खते धयान करता और उससे पेरणा लेकर धनुिवद व ा सीखने लगा। एकटक दे खने से एकागता आती है । एकागता आने से गुरभिि, अपनी सचचाई और ततपरता के कारण

एकलवय को पेरणा िमलने लगी। इस पकार अभयास करते-करते वह धनुिवद व ा मे बहुत आगे बढ गया।

(यहाँ पर कहानी रोक कर बचचो को बताये िक गुरमूितव, इषमूितव को एकटक दे खकर

धयान करने से सतपेरणा िमलती है और िवदाथी पढाई मे तो सिल होता ही है अनय मुिशकलो को सुलझाने मे भी सिल हो जाता है ।)

एक बार दोणाचायव धनुिवद व ा के अभयास के िलए पांडवो और कौरवो को जंगल मे ले

गये। उनके साथ एक कुता भी था, वह दौडते-दौडते आगे िनकल गया। जहाँ एकलवय धनुिवद व ा का अभयास कर रहा था, वहाँ वह कुता पहुँचा। एकलवय के िविचत वेष को दे खकर कुता भौकने लगा।

कुते को चोट न लगे और उसका भौकना भी बंद हो जाए इस पकार उसके मुँह मे

सात बाण एकलवय ने भर िदये। जब कुता इस दशा मे दोणाचायव के पास पहुँचा तो कुते की यह हालत दे खकर अजुन व को िवचार आयाः ‘कुते के मुह ँ मे चोट न लगे इस पकार बाण मारने की िवदा तो मै भी नहीं जानता!’

अजुन व ने गुर दोणाचायव से कहाः "गुरदे व! आपने तो कहा था िक तेरी बराबरी कर

सके ऐसा कोई भी धनुधारवी नहीं होगा परं तु ऐसी िवदा तो मै भी नहीं जानता।"

दोणाचायव भी िवचार मे पड गये। इस जंगल मे ऐसा कुशल धनुधरव कौन होगा? आगे

जाकर दे खा तो उनहे िहरणयधनु का पुत गुरभि एकलवय िदखायी पडा। दोणाचायव ने पूछाः "बेटा! तुमने यह िवदा कहाँ से सीखी?" एकलवय ने कहाः "गुरदे व! आपकी कृ पा से ही सीखी है ।"

दोणाचायव तो अजुन व को वचन दे चुके थे िक उसके जैसा कोई दस ू रा धनुधरव नहीं होगा

िकंतु एकलवय तो अजुन व से भी आगे बढ गया। एकलवय से दोणाचायव ने कहाः "मेरी मूितव को सामने रखकर तुमने धनुिवद व ा तो सीखी परं तु गुरदिकणा....?" एकलवय ने कहाः "आप जो माँगे।"

दोणाचायव ने कहाः "तुमहारे दािहने हाथ का अँगूठा।"

एकलवय ने एक पल भी िवचार िकये िबना अपने दािहने हाथ का अँगूठा काट कर गुरदे व के चरणो मे अिपत व कर िदया।

31

दोणाचायव ने कहाः "बेटा! अजुन व भले ही धनुिवद व ा मे सबसे आगे रहे कयोिक मै उसको वचन दे चुका हूँ परनतु जब तक सूयव, चाँद और नकत रहे गे, तुमहारा यशोगान होता रहे गा।"

एकलवय की गुरभिि और एकागता ने उसे धनुिवद व ा मे तो सिलता िदलायी ही, संतो

के हदय मे भी उसके िलए आदर पकट कर िदया। धनय है एकलवय! िजसने गुर की

मूितव से पेरणा लेकर धनुिवद व ा मे सिलता पाि की तथा अदभुत गुरदिकणा दे कर साहस, तयाग और समपण व का आदशव पसतुत िकया।

सीखः एकलवय की कथा से हमे यह सीख िमलती है िक गुरभिि, शदा और

लगनपूवक व कोई भी कायव करने से अवशय सिलता िमलती है । सु िवचारः

मन की एकागता से मनुषय पतयेक कायव मे सिल होता है ।

सुष ुि श ििया ँ ज गान े के यौिगक पयोग ः ताटकः

बचचो को ताटक का महतव और िविध बताये व करवाये।

महतव ः सब तपो मे एकागता परम तप है । जीवन को सिल बनाने का यिद कोई मुखय साधन है तो वह है एकागिचत होना। एकागता के िलए ताटक बहुत मदद करता है । िव िधः िकसी शांत वातावरण मे भूिम पर सवचछ, िवदुत का कुचालक आसन अथवा

कंबल िबछाकर उस पर सुखासन, पदासन अथवा िसदासन मे कमर सीधी कर के बैठ

जाये। िजस वसतु पर आपको ताटक करना हो, उसे अपने से एक हाथ दरूी (2 से 3 िुट)

पर आँखो की सीध मे रखे। अपनी कमता के अनुसार िजतने समय तक आप िबना पलके झपकाये उसकी ओर एकटक दे ख सके, दे खते रहे । नेत अधोनमीिलत (आधे बंद, आधे खुले) हो, पारं भ मे आँखो मे जलन का एहसास होगा, आँखो से पानी टपकेगा लेिकन

घबराये नहीं। धीरे -धीरे समय बढाकर आधे घंटे तक बैठने का अभयास करे तो अिधक लाभ होगा।

लाभ ः ताटक करने से एकागता बढती है , बुिद का िवकास होता है तथा मनुषय भीतर

से िनभीक हो जाता है । ििर आप जो कुछ भी पढे गे वह याद रह जायेगा। इष या सदगुर के िचत का ताटक कर सकते है । इषदे व या गुरदे व के िचत पर ताटक करने से िवशेष लाभ होता है । चुटकु लाः

िशकक ने कहाः "बचचो परीका नजदीक आ रही है । कमर कस के पढाई

करो।" यह सुनकर एक लडका घर गया और रससी से कमर कस कर पढने लगा। उसके िपता जी ने पूछाः "यह कया कर रहे हो?"

लडके ने कहाः "िशकक ने कहा है िक परीका के िदन नजदीक आ रहे है , कमर कस

के पढाई करो।"

32

सीखः िकसी भी बात को या कायव को करने से पहले अचछी तरह से समझ लेना चािहए।

संसकृ ित जानः सूयोपासनाः

भगवान सूयव को िनयिमत अघयव दे ने से आजाचक का िवकास होता है ।

शरीर सवसथ और मन पसनन रहता है तथा बुिद तेजसवी बनती है ।

िव िधः ताँबे का कलश िसर से थोडा ऊपर लाकर जल की धारा धीरे -धीरे पवािहत

करते हुए सूयव गायतीमंत का पाठ करे "आिदतयाय

िवदमह े भास करा य धीम िह त ननो भान ु पचोदयात। ् "

पशोतर ीः सत मे िसखाये गये िवषयो पर आधािरत पश पूछे। जैसे (1)एकलवय के गुर का नाम कया था?

(2)गुरदिकणा मे एकलवय ने कया िदया? (3)परम पूजय बापू जी के सदगुर का नाम कया था? (4)ताटक से कया लाभ होता है ?

(5)बाहमुहूतव मे उठने के कया लाभ है ?

गृ हपाठ ः िचतकला सपधा।व

िवषय ः सूयव को अघयव दे ते हुए बालक या बािलका का िचत बनाये। उसी मे सूयव

गायती मंत भी िलखे।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पाँचव ाँ स िाह यौिगक पयोगः वय ायामः

योगासनः

सिाह क े दोनो

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

पूवव मे िसखाये हुए वयायाम एवं कमांक- 5 (टखनो का वयायाम)

जानमुदा, पाणमुदा।

कीत व नः ‘श िि , भिि म ुिि .....’

नोटः इनके साथ ‘सभी स तो मे ल ेन े योगय जानचचा व ः पढाई मे मन कैसे लगे? (1)

आवशयक िव षय ’ भी ले।

पहला सत

पढाई करते समय मुख ईशान कोण (पूवव-उतर के बीच का कोना) मे रखे।

(2)

हाथ-पैर धोकर कुलला करके शांत और िनिशंत होकर पढने बैठे।

(3)

जीभ को तालू मे लगाकर पढने से पढा हुआ जलदी याद हो जाता है ।

(4)

अधययन के बीच-बीच मे एवं अंत मे शांत हो और पढे ़़ हुए का मनन करे ।

33

िश षाचार क े िनयमः

पुसतक खुली छोडकर मत जाओ। अशील पुसतके न पढ कर

जानवधक व पुसतके ही पढे । चुटकु लाः

िपता ने बेटे से कहाः "िेल कयो हुआ? पढाई नहीं की थी?

बेटे ने कहाः "िपता जी! कया करता? मेरे पास जो िवदाथी बैठा था उसे कुछ भी नहीं

आता था, इसिलए मै भी िेल हो गया।"

सीख ः जौ बचचे पढाई मे धयान नहीं दे ते, िेल हो जाते है और ऊपर से माता-िपता

को उलटा जवाब दे ते है , तकव दे ते है वे जीवन मे कभी महान नहीं बन पाते है । जो िनतय सतसंग-शवण, शास व संत सममत बातो को अपने जीवन मे अपनाकर आगे बढते है , वे अवशय महान बनते है । ॐॐॐॐॐ........... िदनचया व ः

सनान िविध ः 1. ताजा पानी बालटी मे लेकर पहले िसर पर पानी डालते हुए आगे

िदया गया मंत बोले- ॐ ही ं ग ंगाय ै , ॐ ह ीं सवाहा।

ििर पूरे शरीर पर पानी डाले

तािक िसर आिद ऊपर के भागो की गमी पैरो से िनकल जाये।

2.सनान से पहले मुह ँ मे पानी भरकर आँखो को पानी से भरे पात मे डु बाये एवं

उसी मे थोडी दे र पलके झपकाये अथवा आँखो पर पानी के छींटे मारे । इससे आँखो की शिि बढती है ।

3.शरीर को रगड-रगड कर नहाये तािक रोमकूपो का सारा मैल बाहर िनकल जाये

और रोमकूप खुल जाये।

4.सनान के पशात ् सदै व धुले हुए सवचछ वस ही पहने।

सना न के पकारः

समयानुसार तीन पकार के होते है -

1.ऋिष सनान (बाहमुहूतव मे) 2. मानव सनान (सूयोदय से पूवव) 3. दानव सनान (सूयोदय

के बाद चाय-नाशता लेकर 8-9 बजे)।

भजनः भारत क े नौजवान ो ...... ! इनस े साव धानः टी .वी . - ििलमो का क ुप भाव

- िसनेमा, टी.वी. का अिधक

उपयोग बचचो के िलए अिभशापरप है । चोरी, शराब, भषाचार, िहं सा, बलातकार, िनलज व जता जैसे कुसंसकारो से बाल-मिसतषक को बचाना चािहए। टी.वी. दे खने से बचचो की आँखो की पर भी बुरा असर पडता है । इसिलए टी.वी के िविवध चैनलो का उपयोग आधयाितमक उननित के िलए, जानवधक व कायक व म, सांसकृ ितक कायक व म तथा िशका से संबिं धत कायक व म दे खने तक ही मयािवदत करना चािहए।

एक सवे के अनुसार 3 वषव का बचचा जब टी.वी. दे खना शुर करता है और उस घर मे

केबल कनैकशन पर 12-13 चैनल आते हो तो हर रोज पाँच घँटे के िहसाब से बालक 20 वषव का हो तब तक उसकी आँखे 33000 बार हतया, 72000 बार अशील दशय दे ख चुकी 34

होगी। मोहनदास करमचंद गाँधी नाम के छोटे बालक ने हिरशंद नाटक दे खकर सतय बोलने का संकलप िलया और वही बालक आज महातमा गाँधी के नाम से पूजा जा रहा है तो जो बालक 33000 बार हतया और 72000 बार अशील दशय दे खेगा वह कया बनेगा? इस पकार बचचो को टी.वी. दे खने से होने वाली हािनयो के बारे मे बताये। संकलपः

‘हम टी.वी. पर गलत कायक व म दे खकर अपना समय नष नहीं करे गे।’ बचचो

से ऐसा संकलप करवाये। साखीः

दे ध या न प ूरा काय व मे , मत द ू सरे मे धया न द े।

कर त ू िनयम स े काय व सब , खाली स मय मत जान द े।। अथव ः अपने कायव पर पूरा धयान दो, बेकार बातो पर धयान मत दो। अपने सभी कायव

िनयत समय पर करो। अपना कीमती समय िालतू बातो मे, गपशप मे बबाद व नहीं करना चािहए।

शी आ सारामा यण पाठ व प ूजयशी की जीवनलीला

पसंग।

गृ हपाठः

पर आ धािरत क था -

बचचे अपने घर के आस पास तुलसी का पौधा लगाये एवं िनयिमत तुलसी

के 5 पते खाये।

द ू सरा सत

कथा -पसंग आ िद दारा सदग ुणो का िव कास

सवामी िवव ेकान ंदजी की एकाग ता

एक बार सवामी िववेकानंद मेरठ मे ठहरे हुए थे। उनको दशन व शास की पुसतके

पढने का खूब शौक था। इसिलए वे अपने िशषय अखंडानंद दारा पुसतकालय मे से पुसतके पढने के िलए मँगवाते थे। केवल एक ही िदन मे पुसतक पढकर दस ू रे िदन वापस करने के कारण गनथपाल कोिधत हो गया। उसने कहा िक रोज-रोज पुसतके बदलने मे मुझे

बहुत तकलीि होती है । आप ये पुसतके पढते है िक केवल पनने ही बदलते है ? अखंडानंद

ने यह बात सवामी िववेकानंद जी को बताई तो वे सवयं पुसतकालय मे गये और गंथपाल से कहाः

ये सब पुसतके मैने मँगवाई थीं, ये सब पुसतके मैने पढीं है । आप मुझसे इन

पुसतको मे के कोई भी पश पूछ सकते है । गंथपाल को शंका थी िक पुसतके पढने के

िलए, समझने के िलए तो समय चािहए, इसिलए अपनी शंका के समाधान के िलए सवामी िववेकानंद जी से बहुत सारे पश पूछे। िववेकानंद जी ने पतयेक पश का जवाब तो ठीक िदया ही, पर ये पश पुसतक के कौन से पनने पर है , वह भी तुरनत बता िदया। तब

35

िववेकानंदजी की मेधावी समरणशिि दे खकर गंथपाल आशयच व िकत हो गया और ऐसी समरणशिि का रहसय पूछा।

सवामी िववेकानंद ने कहाः पढने के िलए जररी है एकागता और एकागता के िलए

जररी है धयान, इिनदयो का संयम।

(यहाँ पर कहानी रोककर बचचो को संयम का अथव बताये। संयम का अथव है –

िजतनी आवशयकता हो उससे जयादा कोई भी चीज न करना। जैसे िजतना जररी हो

उतना ही बोलना, िजहा का संयम है । िजतना जररी हो उतना ही सुनना – ििलमी गाने, गािलयाँ, िकसी की िनंदा न सुनना कानो का संयम है । िजतना जररी हो उतना ही दे खना – टी.वी. पर अनावशयक कायक व म, ििलमे न दे खना आँखो का संयम है आिद।

यहाँ पर बचचो से समरणशिि बढाने मे एकागता का महतव और एकागता बढाने के

िवषय पर चचाव करे तथा बचचो को बताये िक एकाग मन से जो कुछ पढा जाता है , वह जलदी याद रह जाता है । बचचो को अपनी सुषुि शिियाँ जागत करने के िलए पितिदन धयान और ताटक का अभयास करना चािहए।)

शोक ः तप ः स ु सव े षु ए कागता पर ं तपः ।

तमाम पकार के धमो का अनुषान करने से भी एकागतारपी धमव, एकागतारपी तप बडा होता है ।

संकलपः ‘ हम भी िनयिमत धयान और ताटक का अभयास करे गे। कोई भी कायव

एकागतापूवक व करे गे।’ बचचो से संकलप करवाये।

सुिव चारः एकागता व अनासिि सिलता की कुंजी है । सवास थय -सुरकाः

सौदय व

खुली हवा मे घूमने से, कचची हलदी का सेवन करने से तथा सिाह मे एक बार 2 से 5

गाम ितिला चूणव को गमव पानी के साथ लेने से सौदयव बढता है ।

नींबू का रस एवं छाछ समान माता मे िमलाकर चेहरे पर लगाने से धूप के कारण

काला हुआ चेहरा िनखर उठता है ।

मुलतानी िमटटी से सनान करने से शारीिरक गमी तथा िपतदोष दरू होते है । पातः पानी

प योग

सूयोदय से पूवव उठकर, कुलला करके, मंजन या दातुन करने से पूवव हररोज राित का

रखा हुआ करीब सवा िलटर (चार बडे िगलास) पानी िपये (बचचे एक-दो िगलास पानी

पीये)। उसके बाद 45 िमनट तक कुछ भी खाये िपये नहीं। पानी पीने के बाद मुह ँ धो

सकते है , दातुन कर सकते है । यह पयोग करने वाले को नाशते या भोजन के दो घणटे के बाद ही पानी पीना चािहए। 36

ला भः पातः पानी-पयोग करने से हदय, लीवर, पेट, आँत आिद के रोग तथा िसरददव , पथरी, मोटापा, वात-िपत-कि आिद अनेक रोग दरू होते है । मानिसक दब व ता दरू होकर ु ल बुिद तेजसवी बनती है । शरीर मे कांित एवं सिूितव बढती है ।

अनुभव ः िदलली िनवासी सुदशन व कुमारी के पैर पानी की कमी से जुड गये थे, पैरो मे

ददव रहता था। अंगेजी दवा खाने से उनकी आँखो को बहुत नुकसान हुआ। पानी-पयोग करने से उनके पैर ठीक हो गये।

िसरदद व ः िसरददव मे लौग का तेल िसर पर लगाने से या लौग को पीसकर ललाट पर

लेप करने से राहत िमलती है । हँसत े -खेलत े पाय े जानः

हिरॐ दश व न ख ेल – जब संचालक ‘हिर’ उचचारण करे तो बचचे अपने दोनो हाथो

की हथेिलयाँ सीधी करे एवं जब संचालक ‘ॐ’ बोले तो हाथो की हथेिलयाँ उलटी करे ।

जलदी-जलदी ‘हिर’, ‘ॐ’ बोलते-बोलते ही संचालक अचानक ‘ॐ’ के बाद ििर ‘ॐ’ बोल

दे । िजन बचचो ने एकागिचत होकर सुना वे हथेिलयाँ उलटी ही रखेगे और िजन बचचो ने एकागिचत होकर नहीं सुना वे हथेिलयाँ सीधी कर दे गे। हथेिलयाँ सीधी करने वाले सभी बचचे बाहर (आउट) हो जाएंगे। इस तरह खेल चलता रहे गा और अंत मे बचे एक बचचे को िवजेता घोिषत करे । ला भः एकागता बढती है । पाणायाम

प संग ः पाणायाम से जीवनशिि, बौिदक शिि और समरणशिि का

िवकास होता है । सवामी रामतीथव पातःकाल जलदी उठकर थोडे पाणायाम करते और ििर वातावरण मे घूमने जाते। इससे उनमे आतमिवशास बढ गया।

सवामी रामतीथव बडे कुशाग बुिद के िवदाथी थे। गिणत उनका िपय िवषय था। जब वे

पढते थे, तब उनका नाम तीथरवाम था। एक बार परीका मे 13 पश िदये गये थे, िजनमे से केवल 9 पश हल करने थे। तीथरवाम ने तेरह-के-तेरह पश हल कर िदये और नीचे एक

िटपपणी (नोट) िलख दीः ‘तेरह-के-तेरह पश सही है । इनमे से कोई भी 9 पश जाँच लो।’ इतना दढ था उनका आतमिवशास। पशोतरीः

सत मे िसखाये गये िवषयो पर आधािरत पश पूछे। जैसेः –

(1)दे धयान...........(बचचे पूरा बताये) (2)पाणायाम के लाभ बताओ?

(3)बुिदशिि व मेधाशििवधक व पयोग के लाभ बताओ? (4)पूजय बापू जी के बचपन का नाम कया था? (5)एकागता पाि करने के िलए कया जररी है ?

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

37

छठा सिाह इस सिाह मे िपछले पाँच सिाहो मे बचचो को बताये गये िवषय पुनारावतन व

कराये, िजससे बतायी गयी सामगी उनहे पककी हो जाए। सिाह क े दोनो

यौिगक पयोगः

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

िपछले पाँच सिाहो मे करवाये गये वयायाम, आसन, मुदाएँ आिद

बचचे ही करके िदखाये।

कीत व नः एक बचचा आगे आकर पहले करवाये गये कीतन व मे से कोई कीतन व

कराये।

नोटः इनके साथ ‘सभी स तो मे ल ेन े योगय

आवशयक िव षय ’ भी ले।

पहला सत

सुष ुि श िियो को ज गान े के पयोगः ज प , धयान , ताटक। इस िवषय पर सामूिहक चचाव करे । इसके िलए बचचो की संखया के अनुसार बचचो

और बिचचयो के अलग-अलग दो या तीन या इससे अिधक समूह बनाये। पतयेक समूह के सभी सदसय अपना एक नेता चुनेगा, जो उस समूह का पितिनिधतव करे गा। पतयेक

समूह के सभी सदसय िदये गये िवषयो (जप, धयान, ताटक) पर अपने िवचार अपने समूह के नेता को बतायेगे और वह उनहे नोट करके उस पर 4-5 िमनट का विृ तव पेश करे गा। िजस समूह का नेता सबसे अचछा विृ तव पेश करे गा, उस समूह को िवजेता घोिषत िकया जायेगा।

साखीः

िपछले सिाहो मे कणठसथ करायी गयी सािखयो को बचचे-बिचचयो को

सुनाने के िलए पेिरत करे और सभी बचचे िमलकर उसका सामूिहक गान करे ।

अनुभवः जप, धयान या ताटक करने से िकसी बचचे के जीवन मे िवशेष पिरवतन व

आया हो तो वह आगे आकर अपना अनुभव बताये - ऐसा कहकर बचचो को अनुभव बताने के िलए पेिरत करे ।

इस सिाह सवयं केनद न चला कर बचचो को मोका दे । आप केवल बचचो को

केनद चलाने का मागद व शन व दे और कायक व म मे अनुशासन बना रहे , इसका धयान रखे। िदनचया व ः ई शर उपासना िटपपणीः

संचालक िदनचयाव और सवासथय-सुरका के िवषय मे बचचो को बताये।

सवेरे उठते ही िनतयकमव के बाद परम िपता परमेशर की उपासना से अपने िदन

की शुरआत करे ।

िवदाएँ तीन पकार की होती है 1.एिह क िवदाः

सकूल और कालेजो मे पढाई जाती है ।

38

2.योगिवदाः

योगिनष महापुरषो के सािननधय मे जाकर योग की कुंिजयाँ पाि

करके उनका अभयास करने से पाि होती है । 3.आतम िवदाः

आतमवेता बहजानी सदगुर का सतसंग-सािननधय पाि करके उनके

उपदे शो के अनुसार अपना जीवन ढालने से पाि होती है । यह िवदा सवोपिर िवदा है , िजससे अंतरातमा-परमातमा मे िवशांित िमलती है और कोई कतववय शेष नहीं रहता।

योगिवदा एवं आतमिवदा की उपासना से आतमबल बढता है , दै वी गुण िवकिसत होते

है , सवभाव संयमी बनता है और बडी-बडी मुसीबतो के िसर पर पैर रखकर उननित के पथ पर आगे बढने की शिि पाि होती है ।

हमे यह अनमोल जीवन ईशर की कृ पा से िमला है । अतः हमे रोज के 24 घंटो मे

से कम-से-कम एक घंटा ईशर-उपासना के िलए अवशय दे ना चािहए। पातः शौच-सनानािद

से िनवत ृ होकर सवप व थम भूमधय मे ितलक करे । ततपशात पाथन व ा, पाणायाम, जप, धयान, सरसवती-उपासना, ताटक, शूभ संकलप, आरती आिद करे ।

िजस िवदाथी के जीवन मे एिहक (सकूली) िवदा के साथ उपासना भी है , वह

सुनदर सूझबूझवाला, सबसे पेमपूणव वयवहार करने वाला, तेजसवी-ओजसवी, साहसी और यशसवी बन जाता है ।

वाता व लापः बचचो को आज की अलग कायप व णाली के बारे मे बताते हुए उनहे

केनद चलाने मे सहभागी होने के िलए पोतसािहत करे ।

िकसी बचचे को पाथन व ा करवाने तो िकसी को धयान, िकसी को कहानी सुनाने तो

िकसी को सवासथय-सुरका के उपाय, योगासन, पाणायाम आिद करवाने को कहे । इस बात का धयान रखे िक एक बचचा केवल एक ही िवषय बताये, िजससे सभी बचचो को मौक िमल सके।

शी आसारामायण

पाठ ः बचचे िमलकर पाठ करे और कोई बचचा आगे आकर

पूजय बापू जी का कोई जीवन-पसंग बताये। अनुभवः

दो िदन मे ही पानी िम ला !

हमारे गाँव मे अकाल पडा हुआ था। मैने नािसक आशम मे पूजय गुरदे व से

पाथन व ा की और अपने खेत मे ‘शी आसारामायण’ का पाठ िकया। उसके बाद बोिरं ग का काम आरं भ करवाया।

पानी के िलए बहुत पयास करने के बाद भी लोगो को सिलता नहीं िमल रही थी

िकंतु मेरे यहाँ बोिरं ग करवाने के दस ू रे ही िदन पानी िनकल आया! आठ घंटे तक लगातार मोटर चलने के बाद भी पानी कम नहीं हुआ! ‘शी आसारामायण’ मे आता है ः एक स ौ

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आठ जो पाठ

कर े गे , उनके सार े काज सर ेग े।

इस पंिि की सतयता का हजारो को

अनुभव है , अब हम भी उसमे आ गये।

- रत न बाब ूरा व प गा , ना िसक (मह ाराष )

भजनः ‘ भारत क े नौजवान ो ....!’

द ू सरा सत

जानचचा व ः परीका मे सिलता कैसे पाये? - इस िवषय पर बचचो से चचाव करे ।

ििर उनहे नीचे िदये गये कुछ पयोग बताये-

परीका म े सि लता क ैस े पाय े ?

िवदाथी को अधययन के साथ-साथ जप, धयान, आसन एवं पाणायाम का िनयिमत अभयास करना चािहए। इससे एकागता तथा बुिदशिि बढती है ।

सूयव को अघयव दे ना, तुलसी-सेवन, भामरी पाणायाम, बुिदशिि एवं मेधाशिि पयोग

व सारसवतय मंत का जप - ऐसे बुिदशिि और समरणशिि बढाने के पयोगो का िनयिमत अभयास करना चािहए।

पसननिचत होकर पढे , तनावगसत होकर नहीं।

सुबह बहमुहूतव मे उठकर 5-7 िमनट धयान करने के पशात पढने से पढा हुआ

जलदी याद होता है ।

दे र रात तक चाय पीते हुए पढने से बुिदशिि का कय होता है । टी.वी. दे खना, वयथव गपशप लगाना इसमे समय न गंवाये।

पशपत िमलने से पूवव अपने इषदे व या गुरदे व को पाथन व ा करे । सवप व थम पूरे पशपत को एकागिचत होकर पढे । सरल पशो के उतर पहले िलखे।

उतर सुनदर व सपष अकरो मे िलखे।

मुखय बात है िक िकसी भी कीमत पर धैयव न खोये। िनभय व ता बनाये रखे एवं दढ पुरषाथव करत रहे ।

इन बातो को समझकर इन पर अमल िकया जाय तो केवल लौिकक िशका की ही

नहीं वरन ् जीवन की हर परीका मे िवदाथी सिल हो जाएगा।

(परीका के िदनो मे इस िवषय पर बचचो से चचाव अवशय करे ।) कथा -पसंग आ िद दारा

सद गुणो का िवकास ः एक बचचा कहानी सुनाये।

हँसत े -खेलत े पा ये जा नः ग ोल -गो ल-गोल , जान के पट खोल। (दे खे पष ृ

) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

40

सातवा ँ सिाह सिाह क े दोनो

स तो म े िसखा ये जान ेवाल े िवषय

यौिगक पयोगः वय ायामः

योगासनः

पूवव मे िसखाये हुए वयायाम एवं कमांक - 6 (टखनो का वयायाम)

पूवव मे िसखाये हुए सभी आसनो का अभयास कराये। सूय व नमसकार

पाणा यामः भामरी, बुिद एवं मेधा शििवधक व मुदाजा नः पथ ृ वीमुदा, िलंगमुदा। कीत व नः ‘श िि , भिि , मुिि .....’

नोटः इनके साथ ‘सभी स तो मे ल ेन े योगय

आवशयक िव षय ’ भी ले।

पहला सत

िदनचया व ः

पात ः कालीन

भ मण

पातः काल के खुले वातावरण मे जाकर जीवनशिि पदायक शुद, तरोताजगी से

भरपूर वायु का सेवन करने से सवासथय लाभ होता है ।

पातः काल वायुमंडल मे ओजोन वायु अिधक माता मे होने के काऱण इस समय

खुली हवा मे टहलने से बुिदशिि शीघता से िवकिसत होगी।

सुबह-सुबह ओसयुि घास पर नंगे पैर चलना आँखो के िलए िवशेष लाभकारी है ।

अतः पातः काल मे सैर अवशय करनी चािहए। चुटकु लाः

एक बूढा मतृयुशैया पर पडा था। वह भगवान का नाम नहीं लेता था।

लोगो ने बहुत कोिशश की िक अंितम समय मे तो उसके मुख से भगवान का नाम

िनकले पर वे सिल न हुए। ििर उनहोने सोचा िक बूढे के सामने उसके जमाई को खडा करे , उसका नाम ‘सीताराम’ है । उसका नाम बोलने से भी भगवान के नाम का उचचारण हो जायेगा। जब सीताराम को उस बूढे के सामने खडा करके उससे पूछा गया िक ‘यह कौन है ?’ तो बूढा वयिि बोलाः ‘यह तो मेरी बेटी का पित है ।’

सीखः भगवान का नाम लेना तो भागयशाली वयिि का काम है । पाप जोर मारते

है तो मरते समय भी भगवान का नाम मुख से नहीं िनकलता। हम और आप िकतने

भागयशाली है िक सदगुरदे व का सतसंग सुनते है , भगवननाम का जप कीतन व करते है । िश षाचार क े िनयमः

पढते समय इन बातो का धयान रखे-

जब िशकक पढा रहे हो तो उनकी बाते धयान से सुने।

जो सहपाठी पढाई मे कमजोर हो, उनका मजाक न उडाये बिलक उनहे यथासंभव सहयोग दे कर उनकी कमजोरी दरू करे ।

41

िकसी िवषय पर मतभेद होने पर आपस मे झगडे नहीं अिपतु िशकक से उसका िनणय व करवा लेना चािहए।

भजनः ‘ भारत क े नौजवान ो .....’ इनस े सावधानः

चाय -कॉिी स े हािनः

पातः काल खाली पेट चाय पीने से सवासथय का नाश

होता है । चाय-कॉिी मे अनेक पकार के जहर पाये जाते है - केििन, टे िनन, थीन,

सायनोजन, एरोिमक ओईल आिद। इसिलए चाय-कॉिी पीने से पेट मे छाले तथा गैसा पैदा होती है । िसर मे भारीपन, िकडनी की कमजोरी, एिसिडटी, पाचनशिि की कमजोरी, अिनदा तथा लकवा जैसी भयंकर बीमािरयाँ उतपनन होती है । अनुभवः

‘बाल स ंसकार केनद’ म ुझस े क भी न छूटे

!

पहले मै जब बाल संसकार केनद मे नहीं जाता था, तब चाय-कॉिी पीता था। केनद

मे जाने से मुझे पता चला िक चाय-कॉिी से बहुत हािन होती है , तबसे मैने चाय-कॉिी

पीना छोड िदया। पहले मै रोज िदन मे दो बार चाय पीता था। िबना चाय िपये मेरे िसर

मे ददव होता था परं तु जब से मैने चाय छोडी, तब से न िसर मे ददव हुआ और न ही चाय पीने की इचछा हुई। चाय छोडने के बाद मेरी यादशिि और आतमिवशास बढा, इससे अब मै उतसाह एवं लगन पूवक व पढाई मे लगा हूँ।

धनय है बापू जी ! िजनकी पेरणा से बचचो का सवाग व ीण उतथान करने के िलए

बाल संसकार केनद चलाये जा रहे है । यह मेरा सौभागय है िक मुझे ‘बाल संसकार केनद’ मे जाने का अवसर िमला, िजसके कारण मेरी बुरी आदते छूट पायीं और मेरे जीवन मे

नवचेतना का संचार हुआ। मेरी भगवान से यही पाथन व ा है िक बाल संसकार केनद मुझसे कभी न छूटे !

पसंग।

शी आसारामायण

- चेतन दौलत , नािसक पाठ व प ूजयशी की जीवनलीला पर आधािर

(महा .)

त कथा -

गृ हपाठ ः िच तकला सप धाव - बचचे सूयन व मसकार की दसो िसथितयो का िचत एवं

िविध िलखकर लाये। जानचचा व ः

द ू सरा सत गुर -िशषय स ंब ं ध

संसार मे माता-िपता, भाई-बहन, पित-पती आिद संबंधो की तरह गुर-िशषय का संबध ं भी एक संबंध ही है परनतु दस ू रे सारे संबंध जीव के बंधन बढानेवाले है जबिक 42

गुर-िशषय का संबंध सब बंधनो से मुि करता है । इसिलए संसार मे यिद कोई साथक व संबध ं है तो वह है गुर-िशषय का संबंध। यही एकमात ऐसा संबंध है जो दस ू रे सब बंधनो

से मुिि िदलाकर अंत मे सवयं भी हट जाता है । जीव को िशवसवरप का अनुभव कराकर मुि कर दे ता है ।

हमार े जीवन

मे ग ुर की महता ः चौरासी लाख योिनयो मे मनुषय-योिन ही

ऐसी है , िजसमे सब दःुखो, कषो और जनम-मरण के चककर से छूटने का पुरषाथव साधा

जा सकता है । वयिि चाहे िकतना ही जप-तप करे , यम-िनयमो का पालन करे परं तु िबना गुरकृ पा के वह जनम-मरण के चककर से नहीं छूट सकता। इसिलए हमारे जीवन मे गुर की िनतांत आवशयकता है ।

कथा -पसंग आ िद दारा

सद गुणो का िवकास ः

सवप व थम बचचो से िनमन पहे ली पूछे, ििर मीराबाई की कथा सुनाये। कृषण भ िि म े थी मगन , वह प ेम दीवानी।

बोलो िक सने गाया , मै िगर धर की दीवानी।। मीराबाई की ग ुर भिि

- मीराबाई

मीराबाई की दढ भिि को कौन नहीं जानता? एक बार संत रै दासजी िचतौड पधारे

थे। रै दासजी रघु चमार के यहाँ जनमे थे और उस समय जात-पाँत का बडा बोलबाला था। वे नगर से दरू चमारो की बसती मे रहते थे। राजरानी मीरा को पता चला िक संत रै दासजी पधारे है परं तु राजरानी के वेश मे वह उनके पास जाय कैसे?

अतः मीरा एक साधारण मिहला का वेश बनाकर चुपचाप रै दासजी के पास चली

जाती, उनका सतसंग सुनती, उनके कीतन व और धयान मे मगन हो जाती।

ऐसा करते-करते मीरा का सतवगुण दढ हुआ। उसने सोचा ‘ईशर के रासते जाये

और चोरी िछपे जाये, आिखर ऐसा कब तक? ििर मीरा अपने ही वेश मे उन चमारो की बसती मे जाने लगी।

मीरा को चमारो की बसती मे जाते दे खकर पूरे मेवाड मे कुहराम मच गया िक

‘ऊँची जाित की, ऊँचे कुल की, राजघराने की मीरा नीची जाित के चमारो की बसती मे जाकर साधुओं के यहाँ बैठती है , मीरा ऐसी है .... मीरा वैसी है ....’

ननद उदा ने उसे बहुत समझायाः "भाभी ! लोग कया बोलेगे? तुम राजकुल की

रानी और गंदी बसती मे, चमारो की बसती मे जाती हो, चमडे का काम करने वाले चमार जाित के एक वयिि को गुर मानती हो, उसको मतथा टे कती हो, उसके हाथ से पसाद लेती हो, उसको एकटक दे खते-दे खते आँख बंद करके न जाने कया-कया सोचती और करती हो,

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यह ठीक नहीं है । भाभी ! तुम सुधर जाओ।" सास नाराज, ससुर नाराज, दे वर नाराज, ननद नाराज, कुटु ं बीजन नाराज.... ििर भी मीरा भिि मे दढ रही।

उदा ने कहाः "मीरा! अब तो मान जा। तुझे मै समझा रही हूँ, सिखयाँ समझा रही

है , राणा भी कह रहा है , रानी भी कह रही है , सारा पिरवार कह रहा है ... ििर भी तू कयो नहीं समझती है ? इन संतो के साथ बैठ कर तू कुल की सारी लाज गँवा रही है ।"

तब मीरा ने उतर िदयाः "मै संतो के पास गयी तो मैने पीहर का कुल तारा,

ससुराल का कुल तारा और निनहाल का कुल भी तारा है ।"

उदा ने मीरा को बहुत समझाया परं तु मीरा की शदा और भिि अिडग ही रही।

मीरा कहती ह िक "अब मेरी बात सुन, मीरा की बात अब जगत से िछपी नहीं है । साधु ही मेरे माता-िपता है , मेरे सवजन है , मेरे सनेही है । अब मै केवल उनकी ही शरण हूँ।

ननद उदा आिद सब समझा-समझाकर थक गये िक ‘मीरा! तेरे कारण हमारी

इजजत गयी........ अब तो हमारी बात मान ले।’ लेिकन मीरा भिि मे दढ रही। लोग

समझते है िक इजजत गयी िकंतु ईशर की भिि करने पर आज तक िकसी की लाज नहीं गयी है । संत नरिसंह मेहता ने कहा है भी है ः ‘मूखव लोग समझते है िक भजन करने से इजजत चली जाती है । वासतव मे ऐसा नहीं है ।’

मीरा की िकतनी बदनामी हुई, उसके िलए िकतने षडयंत िकये गये परं तु मीरा

अिडग रही तो उसका यश बढता गया। आज भी लोग बडे पेम से मीरा को याद करते है , उसके भजनो को गाकर-सुनकर अपना हदय पावन करते है । साखीः

ईशकृपा िबन गुर नही ं , गुर िबना नही ं जान। जान िबना आतमा नह ीं , गाविह ं व ेद प ुरान।।

अथव ः ईशर की कृ पा के िबना सदगुर नहीं िमलते और सदगुर के िबना जान नहीं

िमलता। जान के िबना आतमा के सवरप का पता ही नहीं चलता कयोिक आतमा जानसवरप है । यही वेद-पुराण भी गा रहे है ।

संकलप ः बचचो से यह संकलप करवाये िक ‘समय िनकालकर संतो का संग करके

अपने जीवन का उदे शय – ईशरपािि िसद करके ही रहे गे।’

सवासथय -सुरकाः गौद ु ग धः दे शी गाय की रीढ मे सूयक व े तु नामक एक िवशेष

नाडी होती है , जो सूयिवकरणो से सवणव के सूकम कण बनाती है । इसिलए गाय के दध ू मे

सवणव-कण पाये जाते है । गौदगुध मे 21 पकार के उतम कोिट के अमाइनो एिसडस होते है । इसमे िसथत सेरीबोसाइडस मिसतषक को तरोताजा रखता है । गाय का दध व , ू बुिदवधक बलवधक व , खून बढाने वाला, ओज-शिि बढाने वाला है ।

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संकलप ः ‘सवासथय की सुरका के िलए हम सदै व गाय का दध ू , मकखन व घी का

उपयोग करे गे और चाय-कॉिी जैसे नशीले पदाथव से दरू ही रहे गे तथा दस ू रो को भी ऐसा करने के िलए पेिरत करे गे।’ बचचो से यह संकलप करवाये। हँसत े -खेलत े पा ये जा नः पह े िलया ँ

(1)काला घोडा गोरी सवारी एक के बाद एक की बारी।

-तवा और रोटी।

(2)ऐसा कौन-सा िदन है , िजस िदन चंदमा की िकरणे पथ ृ वी पर सीधी पडती है

और उस िदन धयान-भजन करने से िवशेष लाभ होता है ।

- पूिण व मा।

(3)िदन के सोये, रात को रोये, िजतना रोये उतना खोये। - मोमबती। खेलः ‘ शिि ... भिि .... और म ुिि ....।’

इसमे जब संचालक शिि बोलेगे तो बचचे दोनो हाथ की मुटठी बाँधेगे और शिि

का पदशन व करे गे। ििर भिि बोलने पर बचचे नमसकार की मुदा मे हाथ जोडे गे और

मुिि बोलने पर दोनो हाथ ऊपर करे गे। इस पकार संचालक कम से शिि, भिि, मुिि

बोले तो िजन बचचो ने एकागतापूवक व नहीं सुना वे बचचे गलत िकया करे गे और खेल से बाहर (आउट) हो जाएंगे। इस पकार अंत मे बचे तीन बचचो को िवजेता घोिषत करे । पशोतर ीः सत मे िसखाये गये िवषयो पर आधािरत पश पूछे। जैसे-

दे ता है ?

(1)ऐसा कौन-सा संबंध है , जो जीव को िशवसवरप का अनुभव कराकर मुि कर (2)चाय-कॉिी मे िकतने पकार के जहर पाये जाते है ?

(3)दे शी गाय की रीढ मे कौन-सी िवशेष नाडी है , जो सूयिवकरणो से सवणव के सूकम कण बनाती है ?

(4)मीराबाई के सदगुर कौन थे? गृ हपाठ ः इस सत मे आपने जो कुछ बचचो को बताया, उससे संबंिधत पश और

उतर िलखकर ले आने को कहे ।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

आठवा ँ सिाह सिाह क े दोनो

यौिगक पयोगः

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

अब तक िसखाये गये सभी योिगक पयोगो (आसन, पाणायाम,

सूयन व मसकार आिद) का अभयास कराये तथा जो बचचे अचछी तरह से पदशन व करे उनका

दसवे सिाह मे होने वाले सांसकृ ितक कायक व म मे ‘यौिगक पयोग पदशन व ’ हे तु चयन करे । कीत व नः ‘श िि भ िि म ुिि ...’

नोटः इनके साथ ‘सभी स तो मे ल ेन े योगय

आवशयक िव षय ’ भी ले।

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पसंग। कराय े।

शी आसारामायण

पहला व द ू सरा सत

पाठ व प ूजयशी की जीवनलीला पर आधािर

नौ वे सिाह क े द ू सरे स त म े हो ने वाली िल िखत परीका

त कथा -

की त ैय ारी

दसव े सिाह म े हो ने वाल े सा ंसकृित क काय व कम का पिश कण द े। दसव े सिाह क े स ांसकृ ितक काय व कम का पारप

1.अिभ भावको का सवागत

ः बचचो दारा अिभभावको का सवागत कराये और

बाल संसकार केनद का महतव बताकर कायक व म का शुभारं भ करे । 2.नाटकः बचचो को दे ।

अब तक बतायी गयी िकसी कहानी पर आधािरत नाटक का पिशकण

3.पाणा याम एव ं योगासन पदश व नः जो बचचे पाणायाम एवं आसन करने मे

कुशल हो, वे बचचे पाणायाम एवं आसन करके िदखाये।

4.शोक , साखी आ िद ः केनद मे िसखाये गये शोक, सािखयाँ, पाणवान पंिियाँ आिद

का उचचारण, गायन एवं अथव कुछ बचचे पसतुत करे ।

5.भजन , बालगीत आ िदः ‘ कदम अ पने आ गे बढाता

बचचे सामूिहक रप से पसतुत करे । 6.बच चो के अन ु भवः

च ला जा’

भजन कुछ

बाल संसकार केनद मे आने से िजन बचचो के जीवन मे

कुछ िवशेष पिरवतन व हुए है , वे अपना अनुभव बताये। इसके िलए संचालक पहले से ही कुछ बचचो के अनुभव जानकर उनके नाम चुन ले। 7.सवासथय स ुरकाः

अब तक सवासथय सुरका के िवषय मे केनद मे बतायी गयीं

बातो को कुछ बचचे थोडा-थोडा बताये।

धयान दे - इस आठवे सिाह के दस ू रे सत मे भी पथम सत की तरह िलिखत

परीका व सांसकृ ितक कायक व म की तैयारी करवाये।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

नौव ाँ स िाह सिाह क े दोनो

पसंग।

स तो म े िसखा ये जान ेवाल े िवषय

नोटः ‘स भी सतो

म े ल े ने यो गय आवशयक

शी आसारामायण

पाठ व प ूजयशी की जीवनलीला पर आधािर

पहला सत

िवषय’

ले। त कथा -

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जीवन -चिरत ः माँ म ँहगीबाजी का सवावल

ंबन एव ं परद ु ःखकातरता

माँ मँहगीबाजी पूजय बापूजी की माता जी थीं। वे सवावलंबी और दयालु सवभाव की थीं। वे पातः काल सूयोदय से पूवव 4-5 बजे उठ जातीं थीं और िनतयकमव से िनवत ृ

होकर पहले अपना िनयम करतीं। िकतना भी कायव हो पर एक घणटा तो जप करती ही थीं। यह बात तब की है , जब तक उनके शरीर ने उनका साथ िदया। जब शरीर वद ृ ावसथा के कारण थोडा अशि होने लगा, ििर तो वे िदन भर जप करती रहतीं थीं।

82 वषव की अवसथा तक तो अममा अपना भोजन सवयं बनाकर खाया करती थीं।

आशम के अनय सेवाकायव करतीं, रसोईघर की दे खरे ख करतीं, बगीचे मे पानी िपलातीं,

सबजी आिद तोडकर लातीं, बीमार का हालचाल पूछ आतीं एवं राित मे एक-दो बजे आशम का चककर लगाने िनकल पडतीं। यिद शीतकाल का मौसम होता, कोई ठं ड से िठठु र रहा होता तो चुपचाप उसे कंबल ओढा आतीं। उसे पता भी नहीं चलता और शांित से सो

जाता। उसे शांित से सोते दे खकर अममा का मातह ृ दय संतोष की साँस लेता। इसी पकार गरीबो मे भी ऊनी वसो एवं कंबलो का िवतरण पूजनीया अममा करतीं – करवातीं।

उनके िलए तो कोई भी पराया न था। चाहे आशमवासी बचचे हो या सडक पर

रहने वाले दिरदनारायण, सबके िलए उनके वातसालय का झरना सदै व बहता ही रहता था।

िकसी को कोई कष न हो, दःुख न हो, पीडा न हो इसके िलए सवयं को कष उठाना पडे तो उनहे मंजूर था पर दस ू रे की पीडा, दस ू रे का कष उनसे न दे खा जाता था।

उनमे सवावलंबन एवं परदःुखकातरता का अदभुत सिममशण था। वह भी इस तरह

िक उसका कोई अहं

नहीं, कोई गवव नहीं। ‘सबमे परमातमा है , अतः िकसी को दःुख कयो

पहुँचाना?’ यह सूत उनके पूरे जीवन मे ओतपोत नजर आता था। वयवहार तो ठीक, वाणी के दारा भी िकसी का िदल अममा ने दख ु ाया हो, ऐसा दे खने मे नहीं आया।

सचमुच, पूजनीया माँ मँहगीबाजी के ये सदगुण आतमसात ् करके पतयेक मानव

अपने जीवन को िदवय बना सकता है ।

भजनः बचचो के साथ िमलकर नीचे िदया गया भजन गाये- हे मा ँ म ँह गीबा

(दे खे पष ृ

)

दसव े सिाह क े स ांसकृ ितक काय व कम की त ैयारी। िल िखत परीका का आयोज िटपपणीः



द ू सरा सत

आपकी सुिवधा के िलए पशपत का पारप आगे िदया गया है । परीका

के िलए इसके आधार पर सवयं पशपत बना ले। इसमे दो वगव है ।

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पशपत अ –

8 से 11 वषव और पशप त ब – 12 से 15 वषव के बचचो के िलए है ।

परीका पूरी होने पर उतरपत इकटठे कर ले। सभी उतरपत अगले सिाह से पहले चेक कर ले और दोनो वगो मे कमशः पथम, िदितय तथा तिृतय आने वाले बचचो व उनके अिभभावको को सूिचत कर दे ।

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पशप त – अ पश संखयाः 40

समयः 20 िमनट

कुल अंकः 50 िदनांकः.........

उमः 8 से 11 वषव

कुल पािांक........

नामः..............................................................................................

शण े ीः.................................... संचालक के हसताकरः ........................... िटपपणीः

3 अंक के है ।

पश 1 से 35 पित पश 1 अंक और पश नं 36, 37, 38, 39, और 40 ये 3-

सभी वैकिलपक पशो के चार िवकलप िदये गये है । सही िवकलप सामने िदये गये

बॉकस मे भरे । -----------------------------------------------------------------------------1.सभी कायो की िनिवघ व न सिलता के िलए िकस दे वता की पूजा सबसे पहले की जाती है ?

(अ) इनद (ब) गणेष (स) महादे व (द) पवनदे व। 2.िवदा की दे वी है ? (अ) माँ लकमी (ब) माँ दग ु ाव (स) माँ सरसवती (द) माँ काली। 3.कौन सा आसन करने से लमबाई बढती है ?

(1)वजासन (ब) मतसयासन (स) मयूरासन (द) ताडासन। 4. पूजय बापू जी के िपता जी का नाम कया था? (1)

थाऊमल जी (ब) परशुरामजी (स) जेठानंद जी (द) शी लीलाशाह बापूजी

5.लाल बहादरुशासी आगे चलकर दे श के कया बने?

(1)उपपधानमंती (ब) राषपित (स) पधानमंती (द) उपराषपित। 6.दे विषव नारद ने धुव को कौन सा मंत िदया?

(1)ॐ नमः िशवाय (ब) ॐ नमो भगवते वासुदेवाय (स) ॐ शी सरसवतयै नमः (द) ॐ गुर

7.टं क िवदा का पयोग करने से कौन-से लाभ होते है ?

(1)मन एकाग होता है व चंचलता दरू होती है । (ब) िवशुदाखय केनद सिकय होता है और थायराइड रोग नष होता है । (स) मिणपुर केनद जागत ृ होता है । (द) अ, ब दोनो।

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8.हाथ के मधय भाग मे कौन िनवास करता है ? (1)माँ सरसवती (ब) गणेष जी (स) भगवनान गोिवंद (द) बहा जी।

9.कौन सा सवर चालू हो तब भोजन करना चािहए?

(1)दायाँ (ब) बायाँ (स) अ, ब दोनो (द) कोई भी नहीं। 10.पातः पानी पयोग करने से कया होता है ?

(1)हदय, लीवर, पेट, आँत आिद के रोग तथा मोटाप दरू होता है । (ब)

मानिसक दब व ता दरू होती है और बुिद तेजसवी बनती है । (स) आँखो ु ल के रोग दरू होते है । (द) अ, ब, स तीनो।

11. नायलोन आिद कृ ितम तंतओ ु ं से बने हुए कपडे सवासथय के िलए हािनकारक है । ऐसे कपडे पहनने से-

(अ) एलजी, खुजली, कैसर आिद रोग होते है । (ब) जीवनीशिि कीण होती है । (स) सवासथय लाभ होता है । (द) अ, ब दोनो।

12. आजकल बाजार मे िबकनेवाले अिधकाँश टू थपेसटो मे ‘फलोराइड’ नामक रसायन का पयोग िकया जाता है , जो –

(अ) सीसे और आसिेनक जैसा िवषैला होता है । (ब) कैसर

उतपनन करता है । (स) सवासथय के िलए िायदे मनद है । (द) अ, ब दोनो।

13. िकस िदशा की ओर िसर रखकर सोना चािहए? (अ) पूवव अथवा उतर िदशा। (ब) दिकण अथवा पिशम (स) पूवव अथवा दिकण (द) दिकण अथवा उतर।

14. िजस िवदाथी के एिहक (सकूली) िवदा के साथ उपासना भी है , वह –

(अ) सुनदर सूझबूझवाला बन जाता है । (ब) तेजसवी-ओजसवी, साहसी और यशसवी बन जाता है । (स) परीका मे हमेशा अचछे अंको से पास होता है । (द) अ, ब, स तीनो।

(उपरोि पशो

की तर ह ही 35 वैकिलप क पश बनाय े )

नीचे िदये गये पशो के उतर केवल पाँच वाकयो मे दे ।

36. बाल संसकार केनद मे आने से आपके जीवन मे कया पिरवतन व हुए?

37. ऋिष-परं परा के अनुसार माता-िपता को पणाम करने के िायदे बताइये। 38. तुलसी सेवन के लाभ बताइये।

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39. गौदगुध के िायदे बताइये।

40. मानव-जीवन मे सदगुर का कया महतव है ?

(उपरोि पशो के अनुसार 5 लघु उतरीय पश बनाये।) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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पशप त – ब पश संखयाः 40

समयः 20 िमनट

कुल अंकः 50 िदनांकः.........

उमः 12 से 15 वषव कुल पािांक........

नामः..............................................................................................

शण े ीः.................................... संचालक के हसताकरः ........................... िटपपणीः

3 अंक के है ।

पश 1 से 35 पित पश 1 अंक और पश नं 36, 37, 38, 39, और 40 ये 3-

सभी वैकिलपक पशो के चार िवकलप िदये गये है । सही िवकलप सामने िदये गये

बॉकस मे भरे । -----------------------------------------------------------------------------1. सदगुर हमे िकसका जान दे ते है ?

(अ) शरीर का (ब) रोजी-रोटी वयापार का (स) िनजसवरप का (द) अ, ब, स तीनो।

2. सनान करते समय िसर पर पानी डालते हुए कौन-सा मंत बोला जाता है ? (अ) हिर ॐ (ब) ॐ हीं गंगायै, ॐ ही सवाहा (स) ॐ नमः िशवाय (द) ॐ गुर। 3. ‘जान मुदा’ मे कौन सी उं गली अँगूठे के नीचे रहती है ? (अ) अनािमका (ब) मधयमा (स) तजन व ी (द) किनिषका

4. पूजय बापूजी का जनम चैत वद (कृ षणपक) की िकस ितिथ को हुआ था? (अ) पंचमी (ब) षषी (स) सिमी (द) नवमी

5. ‘भामरी पाणायाम’ करने से समरणशिि पर कया असर पडता है ? (अ) घटती है (ब) बढती है (स) समाि हो जाती है (द) कुछ असर नहीं पडता

6. हदयाघात आने पर तुरंत ही कौन-सी मुदा की जाये, िजससे हदयाघात को रोका जा सकता है ?

(अ) वरण मुदा (ब) जान मुदा (स) अपानवायु मुदा (द) पाण मुदा। 7. हाथ के मूल भाग मे कौन िनवास करते है ?

(अ) भगवान शंकर (ब) भगवान गोिवंद (स) माँ सरसवती (द) बहा जी।

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8. पातः काल वायुमंडल मे िकस वायु की उपिसथित अिधक माता मे होने के कारण उस समय खुली हवा मे टहलने से बुिदशिि बढाने मे ततकाल मदद िमलती है ?

(अ) है लोजन (ब) हाइडोजन (स) ओजोन (द) नाइटोजन

9. अिधकांश टू थपेसटो मे कौन सा रसायन पाया जाता है , िजसके कारण कैसर होता है ? (अ) कलोराइड (ब) फलोिरन (स) फलोराइड (द) आयोडाइड 10. पूजय बापूजी के सदगुर कौन थे? (अ) परशुराम (ब) शी लीलाशाह जी बापू (स) घाटवाले बाबा (द) केशवानंद 11. सवामी िववेकानंद की चमतकािरक समरणशिि का कया रहसय था? (अ) चंचलता (ब) असंयम (स) एकागता (द) वयायाम

12. िकस मुदा मे अँगूठे के पासवाली पहली उँ गली (तजन व ी) को अँगूठे के मूल मे

लगाकर अँगूठे के अगभाग को बीच की दोनो उँ गिलयो के अगभाम के साथ िमला कर सबसे छोटी उँ गली (किनिषका) को अलग से सीधा रखा जाता है ? (अ) वायु मुदा (ब) शूनय मुदा (स) पाण मुदा (द) अपानवायु मुदा। (उपरोि पशो

की तर ह ही 35 वैकिलप क पश बनाय े। )

नीचे िदये गये पशो के उतर केवल 5 वाकयो मे दे ।

36. बाल संसकार केनद मे आने से आपको कया िायदे हुए?

37. बडे होकर आप समाज एवं दे श का नैितक सतर ऊँचा उठाने के िलए कया करे गे?

38. आप अपनी संसकृ ित एवं धमव के अिधकािधक पचार-पसार के िलए कया करे गे? 40. मानव-जीवन मे सदगुर का कया महतव है ? (उपरोि पशो

के अन ुसार

5 लघु उतरीय

प श बनाय े। )

नोटः दसवे सिाह मे आयोिजत सांसकृ ितक कायक व म के साथ बचचो के

अिभभावको की एक िवशेष बैठक का आयोजन करे । इस हे तु बचचो दारा उनहे आमंतण भेजे। यिद संभव हो तो पतयेक बचचे के माता-िपता से वयििगत रप से संपकव कर उनहे कायक व म मे आने का िनमंतण दे ।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ॐॐॐॐॐॐ

53

दसवा ँ स िाह सिाह क े दोनो

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

नोटः ‘स भी सतो म े ल े ने यो गय आवशयक शी आसारामायण

िवषय’ ले।

पहला सत

पाठ व प ूजय शी की जीवनलीला पर आधािऱ

त कथा -

पसंग।

कथा -पसंगः िवश का स वव शे ष ग ंथ ः ‘गीता’ आधयाितमक जगत मे अदभुत कांितकारी, महापुरषो के महापुरष और गुरओं के

गुर भगवान शी कृ षण की ‘गीता’ मानवमात के जीवन को जान से, आनंद से, समता के सौदयव से सजाने मे सकम है ।

दिुनया के दो पुसतकालय पिसद है । एक तो चेननई (मदास), दस ू रा अमेिरका के

िशकागो मे है ।

रिवनदनाथ टै गोर अमेिरका गये तब िशकागो के िवशपिसद पुसतकालय मे भी

गये। उनहोने वहाँ के मुखय अिधकारी से कहाः "लाखो-लाखो िकताबे है , शास है , मै सब

नहीं पढ पाऊँगा, इतना समय नहीं है । सारी पुसतको मे, सारे शासो से आपको जो सबसे जयादा महतवपूणव गंथ लगता हो, मुझे वह बता दो। मै वह पढना चाहता हूँ।"

मुखय अिधकारी टै गोर जी को एक अलग, सुंदर, सुहावने खंड मे ले गया। बडे

आदर से रखी गयी तमाम पुसतको मे भी एक अलग ऊँचे सथान मे बडे कीमती वस मे

एक गंथ सुशोिभत था। वस खोला तो टै गोर जी ने दे खा िक गंथ की िजलद पर रतजिडत सजावट थी।

टै गोरजी दे खकर दं ग रह गये िक ऐसा कौन-सा महान गंथ है ! ििर सोचा िक

इनका कोई धमग व ंथ बाइिबल आिद होगा लेिकन टै गोर जी को जयादा इं तजार नहीं करना पडा। जयो ही उस सवािवधक आदरपूवक व रखे गये गंथ को खोला गया तो मुखय पष ृ पर िलखा हुआ था- शीमद भ गवद गीता ।

अमेिरका मे भी इतनी ऊँची समझ के लोग रहते है , िजनहोने ‘गीता’ का माहातमय

जाना है ! कैसा है ‘गीता’ का िदवय जान! मानवमात का सवाग व ी िवकास करने वाला, मरने के बाद िकसी की कृ पा से सवगव मे ले जाने वाली कपोल किलपत कहािनयाँ नहीं अिपतु जीते-जी अपने सनातन सुख को पाने की कुँिजयाँ पदान करने वाला गंथ है – ‘शीमद भगवद गीता’। िजसके आगे सवगव का भोग-सुख भी तुचछ हो जाता है । शोकः

गीतायाः शोकपाठ ेन गो िवन द सम ृ ित कीत व नात।्

54

साध ुद शव नमात ेण तीथ व कोिट िलं लभ े त।् ।

अथव ः ‘गीता’ के शोक के पाठ से, शी कृ षण के समरण और कीतन व से तथा संत

के दशन व मात से करोडो तीथो का िल पाि होता है ।

संकलप ः बचचो से संकलप करवाये की ‘हम भी ‘गीता’ के कम-से-कम एक शोक

का िनतय पठन अवशय करे गे और दस ू रो को भी ‘गीता’ की मिहमा बतायेगे। गीता’

गृ हपाठ ः बचचो को इस सिाह बताया गया पसंग ‘िवश का सव व शे ष ग ं थः

कम से कम 5 लोगो को अवशय बताने का िनयम पकका करवाये तािक दस ू रो को

भी ‘गीता’ की मिहमा का पता चले। बचचो को ‘गीता’ के कम-से-कम एक शोक का पाठ िनतय करने और उसे कंठसथ करने को कहे । साँसकृित क काय व कम की त ैयार ी।

द ू सरा सत

अिभ भावको की िव शेष ब ैठकः सवप व थम बचचो के साथ आये हुए अिभभावको

के साथ बैठक करे । बालक के जीवन मे शारीिरक, मानिसक, बौिदक, नैितक व

आधयाितमक िवकास िकतना आवशयक है एवं बाल संसकार केनद मे िकतना सहज मे हो रहा है , इस पर चचाव करे एवं अिभभावको के सुझाव भी ले।

कुछ अिभभावको से कहे िक केनद मे आने के बाद उनहोने अपने बचचो के जीवन

मे जो पिरवतन व अनुभव िकया है , वह बताये। सांसकृित क काय व कमः

कायक व म करे ।

आठवे सिाह मे िदये गये पारप के अनुसार सांसकृ ितक

िटपपणीः

आठवे सिाह मे िदये गये िवषयो के अलावा आप अनय िवषयो पर भी

पुरसकार

िवतरणः

कायक व म कर सकते है , जो केनद के िनयमो एवं आदशो के अनुरप तथा बचचो के िहत मे हो।

िपछले सिाह ली गयी परीका मे दोनो वगो के कमशः पथम,

िदितय और तिृतय आने वाले तीन-तीन बचचो के नाम घोिषत करे । उसके बाद पूजय

बापूजी की िवदाथीयो से संबंिधत कोई ऑिडयो कैसेट, सतसािहतय, नोटबुक आिद पुरसकार रप मे िकसी पितिषत या वद ृ अिभभावक के हाथो उन बचचो को पदान करवाये।

नोटः कायक व म मे जो भी अिभभावक आये, आप उनहे ‘ऋिष पसाद’ की मिहमा

बता कर सदसय बनने के िलए पेिरत करे । (इसके िलए आप पहले से ही अपने पा स ‘ऋिष पसाद’ पितका एवं रसीद बुक रखे।)

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

55

गयारहवा ँ सिाह सिाह क े दोनो

यौिगक पयोगः वय ायामः

सूय व नमसकार

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

पूवव मे िसखाये हुए सभी वयायाम योगासनः

प ाण ायामः

पादपिशमोतानासन

भामरी, बुिद एवं मेधा शििवधक व , अनुलोम-िवलोम मुदाजानः

वायु मुदा, शूनय मुदा।

कीत व नः ‘म धुर कीत व न’ भजनः ‘ जोड के हा थ झ ुका के मसत क .....’ नोटः इनके साथ ‘सभी स तो मे ल ेन े योगय इनस े सावधानः

आवशयक िव षय ’ भी ले।

पहला सत वयसन का शौ क, कुत े की मौ त !

वयसन हमारे शरीर को बीमािरयो का घर बनाकर उसे खोखला कर दे ते है । अनेक सवक े णो से यह िनषकषव िनकला है िक हमारे दे श मे कैसर से गसत रोिगयो की संखया

एक ितहाई (1/3) भाग तमबाकू, बीडी, िसगरे ट, गुटखे आिद का सेवन करने वाले लोगो का है । डॉकटरो दारा िकये गये पयोगो से यह िसद हो चुका है िक पितिदन 1 बीडी या

िसगरे ट पीने से 6 िमनट आयु कम होती है अथात व वयिि अगर िदन मे 10 बीडी यो िसगरे ट पीता है तो उसके जीवन का एक घंटा कम हो जाता है ।

तमबाकू मे बहुत से हािनकारक एवं जहरीले रसायन है । िजनमे से अतयंत घातक

रसायन ‘िनकोिटन’ तमबाकू खाने अथवा धूमपान करने के 20 िमनट के अंदर ही रि मे िमल जाता है । यह रसायन हदय तथा मिसतषक के िलए अतयंत घातक है ।

गुटखा- घुनयुि सुपािरयो को पीस कर उसमे िछपकली का पाउडर, सुअर के मांस

का पाउडर व तेजाब िमलाकर पानमसाला-गुटखा बनाया जाता है । गुटखा खाने वाले

वयिि के मुख से अतयिधक दग व ध आने लगती है । चूने के कारण उसके मसूडे िूलने ु न लगते है ।

(उपलबध हो तो ‘वयसनमुिि’ कैलेणडर, ‘वयसनो से सावधान’ वी.सी.डी. बचचो को

िदखाये।)

अनुभवः ए क पल म े छूट गयी ग ंदी आद त

मुझे िपछले 4 वषो से जदाव गुटखा खाने की गंदी आदत पड गयी थी। इससे छुटकारा पाने की कई बार कोिशश की परं तु हर बार नाकामयाब रहा। एक िदन मैने दक ु ान का िहसाब करने के िलए ‘संत शी आसारामजी आश

म’ की सटॉल से एक

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रिजसटर खरीदा। उसमे हम नौजवानो के िलए, िजनहे जदाव गुटखा खाने की लत लगी है , पूजय बापू जी का पावन संदेश छपा हुआ था। साथ ही इनहे खाने से होने वाले दषुपिरणामो के बारे मे भी जानकािरयाँ दी गयी थीं। मैने कई बार उसे पढा।

खुदा कसम! उसी िदन से न जाने कैसे मेरी वह बुरी आदत हमेशा-हमेशा के िलए

छूट गयी। मै आशयव मे पड गया िक यह कैसा किरशमा है ! िजस आदत से छुटकारा पाने के िलए मै वषो से परे शान था, वह एक ही पल मे छूट गयी। अब तो मैने उस गंदी आदत से िजनदगी भर के िलए तौबा कर ली है । -

अबद ु ल नईम खान , िपपिरया , िज . हो शंगाबाद

(म.प.)

संकलप ः ‘गुटखा, तंबाकू आिद वयसनो के चंगल ु मे िँसे िबना भगवान की इस अनमोल दे न मनुषय जीवन को परोपकार, सेवा, संयम, साधना दारा उननत बनायेगे। हिर ॐ... हिर ॐ.... बचचो से ऐसा संकलप करवाये।

वाता व लापः बचचो से कुछ भारतीय परं पराओं के नाम पूछे ििर उनहे कुछ के नाम

बताये। जैसे गुर-िशषय, बडो को पणाम करना, आभूषण पहनना, ितलक लगाना आिद।

िदनचया व ः भो जन -िविध ः हाथ, पैल, मुह ँ धोकर पूवव या उतर की ओर मुख करके

मौनपूवक व भोजन करे । साितवक, तंदरसती बढाने वाला पसननता दे ने वाला भोजन करे । बाजार चीज-वसतुएँ न खाये। ‘शीमद भगवद गीता’ के 15 वे अधयाय का पाठ अवशय करे । भोजन के समय िनमन शोक का उचचारण करे ।

हिरदा व ता ह िरभोिा हिररनन

ं पजाप ितः।

हिरः स वव शरीरसथो भ ुङिे भोजयत े हिर ः।। अथव ः अनन परोसनेवाला, भोजन करने वाला एवं अनन पदाथव – ये सब पजा का

पालन करने वाले परमेशर के रप है । सभी शरीरो मे परमेशर का िनवास है । भोजन करनेवाला व कराने वाला परमेशररप ही है ।

भोजन कम-से-कम 20-25 िमनट तक खूब चबा-चबाकर करना चािहए।

पसंग।

शी आसारामायण

पाठ व प ूजयशी की जीवनलीला पर आधािर

त कथा -

िव िडयो स तसंग ः यिद वयवसथा हो तो ‘चेतना के सवर’ वी.सी.डी. बचचो को

आधा घंटा िदखाये।

गृ हपाठ ः सूयन व मसकार के सभी मंत बचचे पकका करके आये। सुष ुि श ििया ँ ज गान े के पयोगः

द ू सरा सत मौन

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(1)मौन की म िह माः मौन सवोतम भूषण है । मौन का अथव है अपनी वाकशिि का वयय न करना। मनुषय वाणी के संयम से अपनी आंतिरक शिियो को िवकिसत कर सकता है । महातमा गाँधी हर सोमवार को मौन रखते थे। उस िदन वे अिधक कायव कर पाते थे।

(2)मौन के लाभः

न बोलने मे नौ गुण है - 1. िकसी की िनंदा नहीं होगी। 2.

असतय बोलने से बचेगे। 3. िकसी से वैर नहीं होगा। 4. िकसी से कमा नहीं माँगनी पडे गी।

5. बाद मे पछताना नहीं पडे गा। 6. समय का दर ु पयोग नहीं होगा। 7. िकसी कायव का बंधन नहीं रहे गा। 8. जान गुि रहे गा। अजान ढँ का रहे गा। 9. अंतःकरण की शांित बनी रहे गी। सीखः कब बोलना, िकतना बोलना, कैसे बोलना यह कला सीख लेनी चािहए। साखीः

ऐसी वाणी बोिल ये , मन का आपा खोय़। औरन को शीतल कर

े , आप हूँ श ीतल होय।।

यह साखी बचचो को कंठसथ कराये और अथव भी बताये।

संकलप ः ‘हम भी पितिदन कुछ समय मौन अवशय रखेगे। हिरॐ.... हिरॐ...’

बचचो से यह संकलप करवाये। चुटकु लाः

चार लडको

ने कुछ समय मौन रखने का पकका िनशय िकया। एक

बार जब वे घर से बाहर िनकले तो उनके मौन का समय शुर हो गया। रासते मे चलतेचलते अचानक एक लडका बोलाः "मै तो घर की चािबयाँ ही लाना भूल गया।" दस ू रा

लडका बोलाः "चािबयाँ तो भूल गया पर तू बोला कयो?" इस पर तीसरा बोला, "अरे , वह बोला तो बोला लेिकन तू कयो बोला?" चौथा लडका बोला, "मै नहीं बोला, मै नहीं बोला।" सीखः मौन रखने पर सावधान रहना चािहए िक मौन के िलए िनधािवरत समय

तक हमे कुछ नहीं बोलना है ।

कथा -पसंग आ िद दारा

सद गुणो का िवकास। मौन की म िहमा

‘महाभारत’ का लेखन कायव चालू था। महिषव वेदवयासजी शोक बोलते जाते और गणेषजी मौनपूवक व िलखते जाते। जब ‘महाभारत’ का अंितम महिषव वेदवयास जी के मुख से िनःसत ृ होकर गणेष जी के सुपाठय अकरो मे भोजपत पर अंिकत हो गया, तब

गणेषजी से महिषव ने कहाः "िवघनिवनाशक! धनय है आपकी लेखनी! ‘महाभारत’ का सज ृ न तो वसतुतः तो आपने ही िकया है परनतु एक वसतु तो आपकी लेखनी से भी अिधक

िवसमयकारी है और वह है आपका मौन। लंबे समय से आपका-हमारा साथ रहा। इतने

समय मे मैने तो 15-20 लाख शबद बोल िदये परं तु आपके मुख से मैने एक भी शबद नहीं सुना।" 58

तब गणेषजी ने मौन की मिहमा बताते हुए कहाः "बादरायणजी! िकसी दीपक मे

अिधक तेल होता है िकसी मे कम परं तु तेल का अकय भंडार िकसी भी दीपक मे नहीं होता। उसी पकार दे व, दानव और मानव आिद िजतने भी तनधारी है , सबकी पाणशिि

सीिमत है । िकसी की कम है , िकसी की अिधक परं तु असीम िकसी की भी नहीं है । इस पाणशिि का पूणत व म लाभ वही पा सकता है , जो संयम से इसका उपयोग करता है ।

संयम ही समसत िसिदयो का आधार है ओर सयंम की पहली सीढी है – वाकसंयम अथात व मौन। जो वाणी का संयम नहीं करता, उसकी िजहा अनावशयक शबद बोलती रहती है और

अनावशयक शबद पायः िवगह एवं वैमनसय उतपनन करते है जो हमारी पाणशिि को सोख लेते है ।"

वाणी का िनमाण व अिगन के सथूल भाग, हडडी के मधय भाग तथा ओज के सूकम

भाग से होता है । मौन रहने से या िमतभाषी होने से इन तीनो की रका होती है । मौन पाणशिि की सुरका करता है , शष े िवचारक व दीघज व ीवी बनाता है । सवासथय स ुरकाः

20 िम.ली. अदरक के रस मे 1 चममच शहद िमला कर िदन मे

दो-तीन बार लेने से सदी मे लाभ होता है । नींबू का रस गमव पानी मे िमला कर रात को सोते समय पीने से सदी िमटती है । हलदी-नमक िमिशत भुनी हुई अजवायन भोजन के पशात ् मुखवास के रप मे िनतय सेवन करने से सदी-खाँसी िमट जाती है ।

हँसत े -खेलत े पा ये जा नः इ शार े स े सम झान ाः एक िचटठी पर केनद की

िसखायी गयी कोई आधयाितमक बात िलखकर िकसी बचचे को दे तथा बचचा इशारा करके अनय बचचो के समझाने का पयास करे । िजस बचचे को इशारा समझ आ जाये वह खडा होकर बतायेगा। यिद गलत बताया तो ििर दस ू रे बचचे की बारी आयेगी। उदाहरणः

एकलवय की कथा अथवा साखीः मै बालक तेरा.........(पूरा बताये।)

पशोतर ीः सत मे िसखाये गये िवषयो पर आधािरत पश पूछे। जैसेः (1)मौन रखने के कया लाभ होते है ?

(2)डॉकटरो के अनुसार पितिदन 1 बीडी या िसगरे ट पीने से िकतने िमनट आयु

कम होती है ?

गृ हपाठ ः मौन मे गुणो का वणन व िलखकर लाये। पितिदन कम-से-कम आधा घंटा

एक िनधािवरत समय पर मौन रखे। सात िदनो का िववरण िलखकर लाये। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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बारहवा ँ सिाह सिाह क े दोनो

यौिगक पयोग वय ायामः

सूय व नमसकार

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

पूवव मे िसखाये हुए सभी वयायाम योगासनः

प ाण ायामः

पादपिशमोतानासन

भामरी, बुिद एवं मेधा शििवधक व , अनुलोम-िवलोम मुदाजानः

वरणमुदा, जानमुदा।

धयानः ॐ .... ॐ.... पभुजी ॐ .... कीत व नः ‘म धुर कीत व न’

भजनः ‘ जोड के हा थ , झुका के मसत क ....’ नोटः इनके साथ ‘सभी स तो मे ल ेन े योगय

पहला सत

आवशयक िव षय ’ भी ले।

िदनचया व ः

ित काल स ंधयाः स ंधया के स मय िक ये ह ु ए पाणायाम

, जप और धयान

से

– जीवनीशिि का िवकास होता है । ओज, तेज और बुिदशिि बढती है । कुंडिलनी शिि के जागरण मे सहयोग िमलता है । िनयिमत रप से ितकाल संधया करनेवाले को कभी रोजीरोटी की िचंता नहीं करनी पडती।

ित काल स ंधया का समयः पातः सूयोदय से दस िमनट पूवव व दस िमनट बाद तक।

मधयाह 12 बजे से 10 िमनट पहले से 10 िमनट बाद तक। सांयकाल सूयास व त से 10 िमनट पहले से 10 िमनट बाद तक।

यिद संधया का समय बीत जाय तो भी संधया करनी चािहए, वह भी िहतकारी है । बचचो! तुम भी अपने जीवन को महान बनाने हे तु अपनी सोयी हुई शिियो को जगाओ। पितिदन जप, धयान, ताटक, मौन का अभयास करो। ितकाल संधया की अमत ृ मयी घिडयो का लाभ लो।

चुटकु लाः

एक बार एक आदमी एक डॉकटर के पास गया। उसने डॉकटर से कहाः

" डॉकटर साहब! मेरे पेट मे बहुत पीडा हो रही है ।" डॉकटरः "कब से?" "कल से।"

"आपने कल भोजन मे कया खाया था?" "कल मैने एक शादी मे गाजर का हलवा, गुलाब जामुन और चाट खायी थी।" "अचछा याद करो, कुछ और तो नहीं खाया था?"

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"हाँ साहब! ऊपर से आईस कीम खायी थी।" "ििर रात को आपने कुछ दवाई या गोली नहीं ली थी?"

"अगर दवाई खाने की जगह पेट मे होती तो एक गुलाब जामुन और न खा लेता?"

सीखः जीने के िलए खाओ न िक खाने के िलए जीयो। इनस े सावधानः िासट

िूड –

िासटिूड जैसे – पीजा, बगरव आिद हािनकारक

पदाथव मैदा, यीसट आिद से बनते है , जो पचने मे भारी होते है तथा आँतो के रोग पैदा

करते है । िासटिूड मे चबी और काबोहाइडे टस आवशयकता से बहुत अिधक होते है तथा पोटीन नहीं के बराबर होती है । उनमे िवटािमन तथा खिनज ततव तो होते ही नहीं है ।

महीन मैदे से बनायी जाने वाली बेड रे शा न होने से आँतो मे जम जाती है तथा कबज, बदहजमी, गैस, पाचनतंत की कमजोरी आिद बीमािरयाँ हमे जकड लेती है । पसंग।

शी आसारामायण

पाठ व प ूजयशी की जीवन लीला पर आधािर

त कथा -

िव डी यो सतस ं गः यिद वयवसथा हो तो ‘चेतना के सवर’ वी.सी.डी. आधा घंटा

बचचो को िदखाये।

कथा -पसंग दारा

आ िद दारा

द ू सरा सत

स दगुणो का िवका सः

सवप व थम बचचो को नीचे िदया गया शोक कंठसथ कराये। ििर दे शभि केशवराव

हे डगेवार के कथा पसंग का वणन व करते हुए बचचो को जीवन मे अपने दे श व संसकृ ित के पित लगाव और दे शभिि की भावना दढ करने की पेरणा भी दे ।

उदम ः साहस ं ब ुिद श िि ः पराकम ः।

षडेत े यत व तव नते त त द ेवः स हायकृत।।

‘उदम, साहस, धीरज, बुिद, शिि और पराकम – ये छः गुण िजस वयिि के जीवन मे है , उसे दे वता (परबह परमातमा) सहायता करते है ।’

धमव िनष द े शभि क े शवराव ह ेडग ेवार

िवदालय मे बचचो िमठाई बाँटी जा रही थी। जब एक 11 वषव के बालक केशव को

िमठाई का टु कडा िदया गया तो उसने पूछाः "यह िमठाई िकस बात की है ?"

कैसा बुिदमान रहा होगा वह बालक! सवाद का लंपट नहीं वरन ् िववेकिवचार का

धनी रहा होगा।

बालक को बताया गयाः "महारानी िवकटोिरया का जनमिदन है , इसिलए इस खुशी

मनायी जा रही है ।

61

बालक ने तुरंत िमठाई के टु कडे को नाली मे िैक िदया और कहाः "रानी िवकटोिरया अंगेजो की रानी है और उन अंगेजो ने हमको गुलाम बनाया है । गुलाम बनाने वालो के जनमिदन की खुिशयाँ हम कयो मनाये? हम तो खुिशयाँ तब मनायेगे जब हमे अपने दे श भारत को आजाद करा लेगे।"

वही साहसी और दे शभि आगे चलकर महान संसकितरकक और समाजसेवक डॉ.

केशवराव हे डगेवार के रप मे पिसद हुआ, िजनहोने ‘रािषय सवयं सेवक संघ’ की सथापना की। अपने दे श और संसकृ ित के पित िनषा रखने वाला वयिि ही महान बनता है ।

आज हम अपनी संसकृ ित को भूलकर िवदे शी संसकृ ित को अपनाने जा रहे है ।

जनमिदन भारतीय संसकृ ित के अनुसार नहीं अिपतु पिशमी संसकृ ित के अनुसार मनाते है । नमसकार करने के बजाय हाथ िमलाते है तथा िवदे शी सामान को ही जयादा महतव दे ते है , िजससे हमारा दे श पितत और गरीब होता जा रहा है । इसिलए हमे अपने

सांसकृ ितक रीित-िरवाजो का सममान करना चािहए और जहाँ तक संभव हो सवदे शी वसतुओं का ही उपयोग करना चािहए। पाणवा न प ं ििया ँ -

मै छुई म ु ई का पौधा नही मै वो माई का ला

ं , जो छून े स े म ुरझा जाऊ ँ।

ल नही ं , जो हौवा स े डर जाउ ँ।।

बचचो को ये पंिियाँ कंठसथ करवाये और अथव भी बताये। सवासथय स ुरकाः

जलपान िवषयक म

हतवप ूण व बात े -

भोजन के एक दो घंटे बाद पानी पीना लाभदायक है कयोिक यह पाचन के दौरान

पौिषक ततवो को नष नहीं होने दे ता, िजससे शरीर बलवान बनता है ।

खेलकूद, वयायाम व पिरशम के कायव करने से शरीर मे पानी की कमी हो जाती है ,

अतएव पिरशम करने से पहले तथा पिरशम करने के उपरांत लगभग आधा घंटा िवशाम करके थोडा बहुत पानी अवशय पीना चािहए।

जलपान िनष ेध कब ? भोजन के तुरंत बाद (िवशेषकर घी, तेल, मकखन, िल आिद

तथा गमव वसतुओं अथवा अित ठं डी वसतुओं को खाने के ततकाल बाद), अित भूख लगने

पर, शौचिकया के तुरनत बाद, पेशाब करने के तुरंत बाद या पहले, धूप मे तपकर आने के बाद, जब पसीना आ रहा हो तब तथा वयायाम या खेलकूद के ततकाल बाद पानी नहीं पीना चािहए, अनयथा जुकाम आिद कई िशकायते हो सकती है । जानचचा व ः

हम ज नम िदन कैस े मना रह े है ?

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हम पाशातय संसकृ ित से पभािवत होकर पकाश, आनंद व जान की ओर ले जाने वाली अपनी सनातन संसकृ ित का अनादर करके अपना जनमिदन अंधकार व अजान की छाया मे मना रहे है । केक पर मोमबितयाँ जलाकर उनहे िूँककर बुझा दे ते है , पकाश के सथान पर अँधेरा कर दे ते है ।

पानी का िगलास होठो से लगाने मात से उस पानी मे लाखो कीटाणु पवेश कर

जाते है तो ििर मोमबितयो के बार-बार िूँकने पर थूक के माधयम से केक मे िकतने कीटाणु पवेश करते होगे? अतः हमे पाशातय संसकृ ित के अंधानुकरण का तयाग कर भारतीय संसकृ ित के अनुसार ही मनाना चािहए।

भारतीय स ंसकृ ित के अन ुसार जन मिदन ऐस े मनाओ ...

यह शरीर िजसका जनमिदन मनाना है , पंचभूतो से बना है िजनके अलग-अलग

रं ग है । पथ ृ वी का पीला, जल का सिेद, अिगन का लाल, वायु का हरा व आकाश का नीला। थोडे से चावल हलदी, कुंकुम आिद उपरोि पाँच रं ग के दवयो से रं ग ले। ििर उनसे

सविसतक बनाये और िजतने वषव पूरे हो, मान लो 11, उतने छोटे दीये सवािसतक पर रख

दे तथा 12 वे वषव की शुरआत के पतीक के रप मे एक बडा दीया सवािसतक के मधय मे रखे।

ििर घर के सदसयो से सब दीये जलवाये तथा बडा दीया कुटु मब के शष े , ऊँची

सूझवाले, भििभाव वाले वयिि से जलवाये। इसके बाद िजसका जनमिदन है , उसे सभी उपिसथत लोग शुभकामनाएँ दे । ििर आरती व पाथन व ा करे ।

इस पकार साितवक ढं ग से शुभकामनाएँ दे ते हुए पिवतता, िदवयता व उललास

सिहत पकाशमय जनमिदन मनाना चािहए। आज के िदन अचछे कमव पभुचरणो मे अपण व करे एवं बुरे कमव न दोहराने का शुभ संकलप ले।

संकलप ः ‘अब हम अपना जनमिदन भारतीय संसकृ ित के अनुसार मनायेगे और

दस ू रो को भी ऐसा करने के िलए पेिरत करे गे।’ – बचचो से यह संकलप करवाये। पेरक प संग ः

सवामी िवव ेकान ंद जी का स ंयम

सवप व थम बचचो को संयम माने मन, इिनदयो व वाणी पर संयम संबंधी जानकारी

दे ते हुए बताये िक सवामी िववेकानंद जी िकस पकार अपने जीवन मे संयम के बल से

महान बने। उनकी सिलता का रहसय भी संयम ही था। अतः बचचो को अपने जीवन मे भी संयम लाने की पेरणा दे और उनसे सवामी िववेकानंद जी की तरह जीवन मे संयम अपना कर महान बनने का संकलप करवाये।

पसंग ः बचपन से अगर जीवन मे संयम आ जाये तो शरीर मे जो ऊजाव िवदमान

है , वह बडा चमतकार करती है । 15 साल मे संत जानेशर ने ‘जानेशरी गीता’ िलख दी। 9 63

साल की उम मे नानक जी ने अपने िशकक को अपनी िवलकण बुिद से चिकत कर िदया और 16 साल की उम मे तोरण का िकला जीतने वाले िशवाजी को कौन नहीं जानता?

सवामी िववेकानंदजी के िवदाथीकाल की यह घटना है । एक बार वे अपनी छत पर

पाठयपुसतक पढ रहे थे। पडोस की छत पर कोई लडकी आयी, जरा नखरे वाली थी, बार-

बार दे खती थी। नरे नद की की नजर भी उस पर पड गयी। दस ू री बार ििर से नजर गयी ते दे खा िक मन मे बुरे िवचार आ रहे है । िववेकी नरे नद मन को सावधान करने लगे िक ‘ऐ मन! ििर से बुरी नजर से दे खा तो तेरी खबर लूँगा।’

उस चंचला की िहलचाल से उनका मन भी उसको दे खने को होने लगा तो वे तुरंत

रसोईघर मे गये और लाल िमचव लेकर आँखो मे झोक दी तथा मन को कहने लगेः

‘िवकारी दिष से दे खते-दे खते िवकारो की खाई मे िगरे गा, कहीं का नहीं रहे गा। सारे िवकारो की खाई असंयम है ।’ ऐसा करने से उनका मन िवकारो मे िगरने से बच गया और वे

िकतने महान बन गये! यौवन की सुरका ने उनहे धमध व ुरंधर पद पर पितिषत कर िदया। वे एक बार पढते तो याद रह जाता।

दे श का गौरव बढाने वाले युवक सवामी िववेकानंद बहचयव-पालन और सदगुर की

कृ पा से लाखो करोडो के िपय एवं पूजय हुए। यौवन की सुरका से वे पभुपािि की सिल याता कर पाये।

अपने जीवन मे िनिवक व ािरता, पसननता, आतमा-परमातमा मे िसथित कराने वाला

जान और धयान होना चािहए। इसी को बढाओ। अनुभवः

‘यौव न स ुरका’ पुसतक नही ं , अिप तु एक िश का -गं थ ह ै। यह "यौव न स ुरका " एक पुसतक नहीं अिपतु एक िशका गंथ है िजससे हम

िवदाथीयो को संयमी जीवन जीने की पेरणा िमलती है । सचमुच इस अनमोल गंथ को पढकर एक अदभुत पेरणा तथा उतसाह िमलता है । मैने इस पुसतक मे कई ऐसी बाते

पढीं जो शायद ही कोई हम बालको को बता व समझा सके। ऐसी िशका मुझे आज तक िकसी दस ू री पुसतक से नहीं िमली। मै इस पुसतक को जनसाधारण तक पहुँचाने वालो को पणाम करता हूँ तथा उन महापुरष-महामानव को शत-शत पणाम करता हूँ िजनकी पेरणा तथा आशीवाद व से इस पुसतक की रचना हुई।

हर पीत िसंह अव तार िसंह , कका -9, राजकीय

हाई सकूल चण डीग ढ।

ॐ अय व माय ै नम ः मंत का 21 बार जप कराये और राित मे शयन के पहले 21

बार जप करके सोने को कहे तथा यौवन-सुरका की मिहमा बताकर जीवन मे संयमी बनने की पेरणा भी दे ।

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संकलप ः ‘ हम भी सवामी िववेकानंदजी की तरह संयमी बनेगे।’ बचचो से यह संकलप करवाये।

पशोतर ीः सत मे िसखाये गये िवषयो पर आधािरत पश पूछे। जैसे1.बालक केशव ने िमठाई कयो िैक दी? 2.ितकाल संधया कयो करनी चािहए?

3.हमारा शरीर िकतने भूतो से बना है ?

4.सवामी िववेकानंद जी महान कैसे बने? गृ हपाठ ः कका 7 से ऊपर के बचचो को पितिदन ‘युवाधन स ुरका ’ पुसतक के दो

पनने पढने को कहे व जीवन मे संयम लाकर महान बनने की पेरणा दे ।

ते रहव ाँ स िाह सिाह क े दोनो यौिगक पयोगः वय ायामः

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

कमांक 7-9 योगासनः

पादपिशमोतानासन सूय व नमसकार

भामरी, बुिद एवं मेधाशिि वधक व , पाणशििवधक व पयोग मुदाजानः कीत व नः ‘म धुर कीत व न’

भजनः ‘ जोड के हा थ झ ुका के मसत क ...’ नोटः इनके साथ ‘सभी स तो मे ल ेन े योगय

प ाण ायामः

वायुमुदा, शूनय मुदा।

आवशयक िव षय ’ भी ले।

पहला सत

अनुभवः बाल संसकार केनद, बटाला मे िनयिमत आनेवाली नेहा शमाव अपना अनुभव बताते हुए कहती है ः बटाला मे जबसे बाल संसकार केनद खुला है , तबसे मै यहाँ पर हर रिववार को िनयिमत आती हूँ। केनद का समय तो 2 से 4 बजे का है परं तु हम

बचचे यहाँ एक बजे ही पहुँच जाते है । मै पूरे सिाह रिववार आने की पतीका करती रहती

हूँ। पहले कोई भी चीज जलदी मेरी समझ मे नहीं आती थी, मुझे कुछ भी शीघता से याद नहीं होता था परं तु अब मुझे अचछी तरह याद हो जाता है । मै घर पर िनयिमत जप-

धयान करती हूँ और मेरी दे खा-दे खी मेरी छोटी बहन भी जप-धयान करने लगी है । मेरे

माता-िपता मुझे पहले जप धयान करने को तो कहते थे परं तु बाल संसकार केनद मे आने

से ही जप-धयान मे मेरी रिच हुई। शुर-शुर मे जब मै बाल संसकार केनद की बाते अपनी

सहपािठनो को बताती थी तो वे मेरा मजाक उडाती थीं िक ‘तुमहारी कोई उम है राम-राम, हिर-हिर करने की’ परं तु मेरी दे खा-दे खी वे भी बाल संसकार केनद मे आने लगीं। अब तो उनहे और मुझे जो आनंद पाि होता है , उसका बयान करने के िलए मेरे पास शबद नहीं है ।

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नेहा श माव , कका -8, बाल सं स कार केन द , बटा ला (पंजाब )

िदनचया व ः मा ता -िपता एव ं ग ुरजनो को पणामः

हमारी भारतीय संसकृ ित मं

माता-िपता व गुरजनो को िनतय पणाम करने की कथा पचिलत है ।

जब हम अपनी ऋिष-परं परा के अनुसार अपने हाथो से चौकडी (×) का िनशान

बनाते हुए माता-िपता एवं गुरजनो को पणाम करते है तो उनकी ऊँची व शुभ भावनाएँ िवदुत तरँ गो के माधयम से हमारे मिसतषक तक पहुँचती है । मिसतषक उनहे अपनी

गहणशील पकृ ित के अनुसार संसकारो के रप मे संिचत कर लेता है । महापुरषो की आधयाितमक शिियाँ समसत शरीर के नोकवाले अंगो दारा अिधक बढती है और साधक

के गोल अंगो दारा तेजी से गहण होती है । इसिलए गुर िशषय के िसर पर हाथ रखते है तािक हाथ की उँ गिलयो दारा वे आधयाितमक शिियाँ िशषय के शरीर मे पवािहत हो

जाये। इसी पकार िशषय जब गुरचरणो मे मसतक रखता है , तब गुरचरणो की उँ गिलयो दारा जो आधयाितमक शिियाँ पवािहत होती है , उनहे मसतक दारा अनायास ही गहण करके वह आधयाितमक शिियो का अिधकारी बन जाता है ।

इनस े सावधानः स पशव दोष स े ब चे - हाथ िमलाने से रोगाणुओं का और उनके

माधयाम से संकामक बीमािरयो का आदान पदान होता है । हाथ िमलाने से अपने शरीर मे संिचत शिि दस ू रे वयिि के शरीर मे पवेश करती है , इससे जीवन शिि का हास होता है । अिधक से अिधक वयिियो से हाथ िमलाने से थकान भी महसूस होती है । भारतीय

परमपराः नमसकार

- नमसकार भारतीय संसकृ ित की एक सुंदर परं परा

है । जब हम िकसी बुजुगव, माता-िपता या संतो-महापुरषो के सामने हाथ जोड कर मसतक

झुकाते है तो हमारा अहं कार िपघलता है , अंतः करण िनमल व होता है व समपण व भाव पकट होता है ।

दोनो हाथो को जोडने से जीवनीशिि और तेजोवलय का कय रोकने वाला एक

चक बन जाता है । इसिलए हाथ िमलाकर ‘है लो’ कहने के बजाय हाथ जोडकर हिरॐ अथवा भगवान को कोई भी नाम लेकर अिभवादन करना चािहए।

संकलप ः ‘हम आज से िकसी से हाथ नहीं िमलायेगे बिलक हाथ जोडकर ‘हिरॐ’

कहे गे। बचचो से यह संकलप करवाये। शी आसारामायण

पसंग।

पाठ व प ूजयशी की जीवनलीला पर आधािर

त कथा -

िव िडयो स तसंग ः यिद वयवसथा हो तो ‘चेतना के सवर’ वी.सी.डी. आधा घंटा

बचचो के िदखाये।

गृ हपाठ ः बचचो को माता-िपता की सेवा का महतव बताकर माता-िपता की सेवा

करने को कहे और सिाह के सात िदन के कॉलम नोटबुक मे बनाने को कहे । िजस िदन

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माता-िपता के सेवा की, उस िदन के सामने ॐ िलखे और िजस िदन नहीं की, उस िदन के सामने नहीं (×) का िनशान लगाये। सेवा का वणन व भी िलख कर लाये।

नोटः बचचो को आने वाले सत मे आयोिजत िनबनध पितयोिगत के बारे मे

बताये एवं उनहे तैयारी हे तु िवषय दे दे । जैसे – बालयकाल से पाि अचछे संसकारो से महान कैसे बना जा सकता है ? जीवन मे सदगुरदे व की दीका का महतव आिद। कथा -पसंग आ िद दारा

द ू सरा सत

सद गुणो का िवकास ः जीवन -िवकास का म ू ल स ंयम

एक बडे महापुरष थे। हजारो-लाखो लोग उनकी पूजा करते थे, जय-जयकार करते थे। लाखो लोग उनके िशषय थे, करोडो लोग उनहे शदा-भिि से नमन करते थे। उन

महापुरष से िकसी वयिि ने पूछाः "राजा-महाराजा, राषपित जैसे लोगो को भी लोग केवल सलामी मारते है या हाथ जोड लेते है िकंतु उनकी पूजा नहीं करते, जबिक आपकी लोग पूजा करते है । पणाम करते है तो बडी शदा-भिि से। ऐसा नहीं िक केवल हाथ जोड िदये। लाखो लोग आपकी िोटो के आगे भोग रखते है । आप इतने महान कैसे बने?

दिुनया मे मान करने योगय तो बहुत से लोग है , बहुतो को धनयवाद और पशंसा

िमलती है लेिकन शदा-भिि से ऐसी पूजा न तो सेठो की होती है , न साहबो की, न

पेसीडे ट की होती है , न सेना के अिसर की, न राजा की और न महाराजा की। अरे ! शी कृ षण के साथ रहने वाले लोग भीम, अजुन व , युिधषर आिद की भी पूजा नहीं होती, जबिक

शी कृ षण की पूजा करोडो लोग करते है । भगवान राम को करोडो लोग मानते है । आपकी पूजा भी भगवान जैसी ही होती है । आप इतने महान कैसे बने?

उन महापुरष ने जवाब मे केवल एक ही शबद कहा और वह शबद था ‘संयम’। तब उस वयिि ने पुनः पूछाः ‘हे गुरवर! कया आप बता सकते है िक आपके

जीवन मे संयम का पाठ कब से शुर हुआ?"

महापुरष बोलेः "मेरे जीवन मे संयम की शुरआत पाँच वषव की आयु से ही शुर हो

गई। मै पाँच वषव का था तब मेरे िपताजी ने मुझसे कहाः

‘बेटा! कल हम तुम गुरकुल भेजेगे। गुरकुल जाते समय तेरी माँ तेरे साथ नहीं

होगी, भाई भी साथ नहीं जायेगा और मै भी साथ नहीं आऊँगा। कल सुबह नौकर तुझे सनान, नाशता करा के, घोडे पर िबठाकर गुरकुल ले जाएगा। हम सामने होगे तो तेरा मोह हम मे हो सकता है , इसिलए हम दस ू रे के घर मे िछप जाएँगे, िजससे तू हमे नहीं दे ख

सकेगा पर हम ऐसी वयवसथा करे गे िक हम तुझे दे ख सकेगे। हमे दे खना है िक तू रोतेरोते जाता है या हमारे कुल के बालक को िजस पकार जाना चािहए वैसे जाता है । घोडे

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पर जब जाएगा और गली मे मुडेगा, तब भी यिद तू पीछे मुड कर दे खेगा तो हम समझेगे िक तू हमारे कुल पर कलंक है ।’

पीछे मुडकर दे खने से भी मना कर िदया! पाँच वषव का बेटा गुरकुल जाए, जाते

वि माता-िपता भी सामने न हो और गली मे मुडते वि घर की दे खने का भी मना हो! िकतना संयम! िकतना कडा अनुशासन!!!

िपता ने कहाः ‘ििर जब तुम गुरकुल मे पहुँचोगे और गुरजी तुमहारी परीका के

िलए तुमसे कहे गे िक बाहर बैठो तो तुमहे बाहर बैठना पडे गा। गुरजी जब तक बाहर से अनदर आने की आजा न दे , तब तक तुमहे वहाँ रककर संयम का पिरचय दे ना पडे गा। ििर गुरजी ने तुमहे पवेश िदया, पास िकया तो तू हमारे घर का बालक कहलायेगा,

अनयथा तू खानदान का नाम बढाने वाला नहीं, नाम डु बानेवाला सािबत होगा। इसिलए कुल पर कलंक मत लगाना वरन ् सिलतापूवक व गुरकुल मे पवेश पाना।’

मेरे िपता जी ने मुझे समझाया और मै गुरकुल पहुँचा। मेरे नौकर ने आकर

गुरजी से आजा माँगी िक ‘वह बालक गुरकुल मे आना चाहता है ।’ गुरजी बोलेः ‘उसको बाहर बैठा दो।’

थोडी दे र बाद गुरजी बाहर आये और बोलेः ‘बेटा! दे ख, इधर बैठ जा। आँखे बंद कर ले। जब तक मै नहीं आऊँ और जब तक तू मेरी आवाज नहीं सुने, तब तक तुझे

आँखे नहीं खोलनी है । अपने शरीर पर, मन पर और अपने आप पर तेरा िकतना संयम है इसकी कसौटी होगी। अगर अपने-आप पर तेरा संयम होगा तो ही तुझे गुरकुल मे पवेश िमल सकेगा। यिद संयम नहीं है तो ििर तू कभी महापुरष नहीं बन सकता, अचछा िवदाथी भी नहीं बन सकेगा।’

संयम ही जीवन की नीँ व है । संयम से ही एकागता आिद गुण िवकिसत होते है ।

यिद संयम नहीं है तो एकागता नहीं आती, तेजिसवता नहीं आती, याद शिि नहीं बढती। अतः जीवन मे संयम चािहए, चािहए और चािहए।

कब हँ सना और कब एकागिचत होकर सतसंग सुनना, इसके िलए भी संयम

चािहए। कया खाना कया नहीं खाना? कया करना कया नहीं करना? िकसका संग करना िकसका नहीं करना? इसमे भी िववेक चािहए, संयम चािहए। संयम ही सिलता का सोपान है । भगवान को पाना है तो भी संयम जररी है । िसिद पानी है तो भी संयम चािहए और

पिसद पानी है तो भी संयम चािहए। संयम तो सबका मूल है । जैसे सब वयंजनो का मूल पानी है , ऐसे ही जीवन के िवकास का मूल संयम है ।

गुरजी तो कहकर चले गये िक ‘जब तक मै न आऊँ तब तक आँखे न खोलना।’

थोडी दे र बाद गुरकुल की ‘रीसेस’ हुई। सब बचचे आये। मन हुआ िक दे खूँ- ‘कौन है ?’ ििर

याद आया िक संयम! थोडी दे र बाद पुनः कुछ बचचो को मेरे पास भेजा गया। वे लोग मेरे 68

आस-पास खेलने लगे, कबडडी-कबडडी की आवाज भी सुनी। मेरी दे खने की बहुत इचछा हुई परनतु मुझे याद आया िक संयम!!

मेरे मन की शिि के बढाने का पहला पयोग हो गया – मेरी समरणशिि बढाने

की पहली कुंजी िमल गयी – संयम ! मेरे जीवन को महान बनाने की पथम कृ पा गुरजी

दारा हुई – संयम! ऐसे महान गुर की कसौटी मे उस पाँच वषव की छोटी सी वय मे उतीणव होना था। अगर मै अनुतीणव हो जाता तो ििर मेरे घर मेरे िपता जी मुझे बहुत छोटी दिष से दे खते।

सब बचचे खेल कर चले गये लेिकन मैने आँखे नहीं खोलीं। थोडी दे र के बाद गुड

और शककर की चासनी बना कर मेरे आस-पास उडे ल दी गई। मेरे घुटने पर, मेरी जाँघ पर भी कुछ बूँदे चासनी की डाल दी गयीं। जी चाहता था िक आँखे खोल कर दे खूँ िक

अब कया होता है । ििर गुरजी की आजा याद आयी, ‘आँखे मत खोलना।’ अपनी आँख पर, अपने मन पर संयम रखा। शरीर पर चींिटयाँ चलने लगीं लेिकन याद था िक उतीणव होने के िलए ‘संयम’ जररी है ।

तीन घंटे बीत गये, तब गुरजी आये और बडे पेम से बोलेः ‘पुत ! उठो...उठो। तुम

इस परीका मे उतीणव रहे । शाबाश है तुमहे ।’

ऐसा कहकर गुरजी ने सवयं अपने हाथो से मुझे उठाया। गुरकुल मे पवेश िमल

गया। गुर के आशम मे पवेश अथात व ् भगवान के राजय मे पवेश िमल गया।

इस पकार मुझे महान बनाने मे मुखय भूिमका संयम की ही रही है । यिद

बालयकाल से ही िपता जी की आजा को न मानकर संयम का पालन न करता तो आज न जाने मै कहाँ होता? सचमुच, संयम मे अदभुत सामथयव है । संयम के बल पर दिुनया के सारे कायव संभव है । िजतने भी महापुरष, संतपुरष इस दिुनया मे हो चुके है या है , उनकी महानता के मूल मे उनका संयम ही है ।

वीणा के तार संयत है इसी से मधुर सवर गूँजता है । अगर वीणा के तार ढीले कर

िदये जाये तो वे मधुर सवर नहीं आलापेगे।

रे ल के इं जन मे वाषप संयत है तो हजारो याितयो को दरू-सदरू की याता कराने मे

वह सिल होती है । अगर वाषप का संयम टू ट जाये, वह इधर-उधर िबखर जाए तो रे लगाडी दौड नहीं सकती।

ऐसे ही हे िवदाथी! अपने जीवन मे संयम का पाठ याद रख। महान बनने की यही

शतव है ः संयम और सदाचार। हजार बार असिल होने पर भी ििर से पुरषाथव कर, अवशय सिलता िमलेगी। िहममत न हार। छोटा-छोटा िनयम, छोटा-छोटा संयम का वत जीवन मे लाते हुए आगे बढ और महान हो जा। पाणवा न प ं ििया ँ -

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तु झसे ह ै सारा

ज ग रोशन , ओ भारत क े नौजवान

संयम सदाचार को मत छोडना

!

, भले आ ये लाखो त ूिान।।

बचचो को यह साखी कंठसथ करवाये एवं अथव भी बताये।

संकलप ः ‘हम भी अपने जीवन मे संयम सदाचार अपनाकर अपना भिवषय

उजजवल बनायेगे।’ बचचो से यह संकलप करवाये। सवासथय स ुरकाः

चयवनपाश

चयवनपाश के लाभ तथा आशम दारा िनिमत व चयवनपाश के बारे मे भी बचचो को

जानकारी दे । ‘चरक संिहता’ मे महिषव चरक ने चयवनपाश को ‘रसायन’ कहा है । आयुवद े मे रसायन शबद का अथव है ः यौवन और दीघाय व ु पदान करने वाला, िजसमे जीवनीय ततव और सिधातुओं (रस, रि, मांस, मेद, अिसथ, मजजा और वीयव) को पुष करने वाले ततव भरपूर हो।

लाभ ः चयवनपाश शरीर की पाचन-पिकया को सुधार शरीर के कोषो का

नवीनीकरण करता है । इसके लगातार सेवन से वयिि दीघाय व ु, बिढया यादाशत, अदभुत पितभाशिि, रोगो से मुिि, िचरयौवन और बल पाि करता है । ‘संत शी आसाराम जी

औषध िनमाण व िवभाग’ साितवक व पिवत वातावरण मे चयवनपाश बनाता है , िजसमे होते है – वीयव व ान आँवले, पवालिपषी, शुद दे सी घी, िमशी और अनय कुल िमला कर 56 दवय। चयवनपाश शीत ऋतु मे ही खाया जाता है , यह िबलकुल िनराधार और भानत

मानयता है । इसका िविधपूवक व सेवन वषव भर सभी ऋतुओं मे िकया जा सकता है । इसे सवसथ या रोगी, बालक, युवक व वद ृ सभी ले सकते है । इसका पयोग िवशेषकर पुरानी खाँसी, रोगजिनत दब व ता, राजयकमा (कयरोग), िेिडो और मूताशय के रोगो मे िकया ु ल जाता है । इससे शरीर पुष एवं कांित से युि होता है , मेधा तथा समिृतशिि बढती है । िव शेषः रिववार, शुकवार और अषमी को आँवला नहीं खाना चािहए तथा

चयवनपाश का सेवन भी नहीं करना चािहए। जीवनोप योगी िनयमः

कोई भी पेय पदाथव जब चनद (बायाँ) सवर चालू हो तभी

ले। यिद दािहना सवर चालू हो तो कोई पेय पदाथव पीना आवशयक हो तो दािहना नथुना

बंद करके बाये नथुने से शास लेते हुए ही पीये। दािहना सवर चालू हो तब भोजन करना चािहए। यिद दािहना सवर चालू न हो तो भोजन से पहले चालू कर लो।

िव िधः बायीं करवट लेट जाने से थोडी दे र मे दािहना सवर चालू हो जाता है । िनब ंध प ितयोिग ताः सत मे िसखाये गये िवषयो पर आधािरत पश पूछे। जैसे1.जीवन-िवकास का मूल कया है ?

2.चयवनपाश से कया-कया लाभ होते है ? 70

3.कौन-सा सवर चालू हो तब कोई पेय पदाथव लेना चािहए? ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

चौदहवा ँ सिाह सिाह क े दोनो

यौिगक पयोग वया

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

यामः कमांक 8-10 योगासनः

सवाग व ासन, ताडासन। सूय व नमसकार

प ाण ायामः

पादपशमोतानासन,

भामरी, बुिद एवं मेधा शििवधक व ,

पाणशििवधक व पयोग। मुदाजा नः पूवव मे िसखायी हुई सभी मुदाओं का अभयास कराये। कीत व नः प ूव व मे िसखाय े ह ु ए सभी कीत व न एक -एक करक े करा ये। भजनः ‘ जोड के हा थ झ ुका के मसत क ....’ नोटः इनके साथ ‘सभी स तो मे ल ेन े योगय

पहला सत

आवशयक िव षय ’ भी ले।

जानचचा व ः भो जन के प कारः -

साितवक भो जनः आयु, बुिद, बल, आरोगय, सुख व पीित को बढाने वाले, रसयुि, िचकने और िसथर रहने वाले तथा सवभाव से ही मन को िपय पदाथव साितवक भोजन मे आते है । जैसे- दध ू , दही, घी, िल, हरी सिबजयाँ आिद।

राजसी भ ोजनः कडवे, खटटे , नमकीन, बहुत गमव, तीखे, रखे, दाहकारक और दःुख,

िचंता तथा रोगो को उतपनन करने वाले भोजय पदाथव राजसी होते है । तामसी भोजनः

जो भोजन अधपका, रसरिहत, दग व धयुि, बासी, उिचछष और ु न

अपिवत है उसे तामसी भोजन कहते है । सवासथय स ुरका क े िनयमः

भोजन मे पालक, मेथी, हरी सिबजयाँ, दध ू , घी, छाछ,

मकखन, पके हुए िल आिद िवशेषरप से ले। इससे साितवकता बढे गी, उतसाह और

पसननता बनी रहे गी। पेट को साि रखे। कभी-कभी ितिला चूणव या संतकृ पा चूणव पानी के साथ िलया करे । कभी-कभी उपवास करे । उपवास से पाचन शिि बढती है , भगवद

भजन और आतमिचंतन मे मदद िमलती है ठू ँ स-ठू ँ स कर न खाये। कया खाये, कब खाये, कैसे खाये, िकतना खाये इसका िववेक रखना चािहए।

िदनचया व ः वयायाम , योगासन एव ं ख ेलकूद का म हतवः

सवसथ शरीर मे

सवसथ मन का िनवास होता है । अंगजी मे कहते है – A healthy mind resides in a healthy body. िजसका शरीर सवसथ नहीं रहता, उसका मन अिधक िवकारगसत होता है । इसिलए रोज पातः वयायाम एवं आसन करना चािहए।

71

वय ायामः

‘वयायाम’ का अथव पहलवानो की तरह मांसपेिशयाँ बढाना नहीं है ।

शरीर को योगय कसरत िमल जाये तािक उसमे रोग पवेश न करे और शरीर तथा मन सवसथ रहे – इतना ही इसमे हे तु है ।

वयायाम करने से शरीर की सभी मांसपेिशयाँ िकयाशील हो जाती है , शरीर के सभी

अंगो मे रि संचरण होता है । वयायाम करने से मांसपेिशयाँ सशि बनती है । आसन करने से पहले वयायाम करने से आसन करते समय मांसपेिशयो और संिधसथानो पर जयादा

जोर नहीं पडता। दं ड-बैठक, पुल-अपस आिद उतम वयायाम है । रोज पातःकाल 3-4 िमनट दौडने और तेजी से टहलने से भी शरीर को अचछा वयायाम िमल जाता है । योगासनः

आसन शरीर के समुिचत िवकास एवं बहचयव-साधना के िलए अतयंत

उपयोगी िसद होते है । वयायाम से भी अिधक उपयोगी आसन है । योगासन शरीर का

सहज-सवाभािवक िवकास करते है । इनसे शरीर की मांसपेिशयो व अिसथयो को ही नहीं बिलक एक-एक कोिशका, एक-एक उतक और एक-एक नस को लाभ िमलता है । साथ ही शरीर के िविभनन तंतो और संसथानो, जैसे – शसनतंत, पाचन तंत, नाडी-संसथान, रिसंचरण इतयािद का भी सामथयव बढता है तथा उनके िवकार दरू होते है ।

योगासन मन मिसतषक को भी पिुिललत, आनंिदत तथा पमाद रिहत रखता है ।

मानिसक एकागता और शांित बढाने मे भी सहयोगी होते है । रोगो का िनवारण कर शरीर की रोगपितरोधक कमता बढाते है ।

आसन केवल शारीिरक िकयामात नहीं है , उनमे आधयाितमक पगित के बीज िछपे

है । आसन के दारा शरीर की चंचलता (रजोगुण), अिसथरता और आलसय-पमाद (तमोगुण) दरू होकर शरीर मे सतवगुण का पकाश होता है तथा िदवयता आती है । िकसी एक आसन को अभयास दारा िसद कर लेने पर सामथयव बढता है । बचचो को पितिदन शशकासन, सवाग व ासन, ताडासन, पादपिशमोतानासन अवशय ही करने चािहए।

खेलकूद ः खेलो के दारा बचचो की मानिसक, बौदक शिियो का सहज ही िवकास

होता है । सिूितव, चपलता, अनुशासन, िनभय व ता, सहयोग की भावना, साहस, मैती आिद सदगुण िवकिसत होने लगते है ।

इनस े सावधानः आ इसकीम स े हािन –

आइसकीम के िनमाण व मे कचची

सामगी के तौर पर अिधकांशतः हवा भरी रहती है । साथ ही उसमे 30% िबना उबला और िबना छना पानी, 6% पशुओं की चबी तथा 7 से 8% शककर होती है । इसके अितिरि

आइसकीम मे रोगजनक जहरीले रासायिनक पदाथव भी िमलाये जाते है जो िकसी जहर से कम नहीं होते। जैसे – इथाईल एिसटे ट के पयोग से आइसकीम मे अनानास जैसा सवाद आता है परनतु इसके वाषप से िेिडे , गुदे और िदल की भयंकर बीमािरयाँ उतपनन होती है । 72

संकलप ः ‘अब हम यह जहर अपने मुँह मे नहीं डालेगे। सवासथय के इस घातक शतु को अब हम अपने घर नहीं लायेगे।’ बचचो से यह संकलप करवाये। शी आसारामायण

पसंग।

पाठ व प ूजयशी की जीवन लीला पर आधािर

त कथा -

िव िडयो स तसंग ः यिद वयवसथा हो तो ‘चेतना के सवर’ वी.सी.डी. आधा घंटा

बचचो को िदखाये।

गृ हपाठ ः बचचे भोजन के पशात अपनी जूठी थाली साि करने के िलए िकसी

दस ू रे को न दे कर सवयं साि करने का िनयम ले। कथा -पसंग आ िद दारा

द ू सरा सत

सद गुणो का िवकास ः

ितलक जी की सतयिनषा

‘सतय की मिहमा’ िवषय पर चचाव करते हुए सवप व थम इस िवषय मे बचचो की

राय ले। ततपशात ‘हमारे जीवन मे सतय की कया मिहमा है ?’ – इसके बारे मे बचचो को बताये िक सतय-आचरण करने वाला िनभय व रहता है , उसका आतमबल बढता है । जो झूठ बोलता है उसकी बात मे कोई दम नहीं होता है और न ही उसकी बात कोई मानता है । सतय-आचरण करने वाला सदै व सबका िपय हो जाता है ।

इस पकार की चचाव करते हुए अपने दे श की महान िवभूित लोकमानय ितलक जी

के बालयकाल का िनमन पसंग सुनाकर बचचो को जीवन मे सतय बोलने की आदत डालने की पेरणा दे ।

एक बार अधव व ािषक व परीका मे ितलकजी ने पशपत के सभी पशो के जवाब सही

िलख डाले। परीकािल घोिषत करते समय पथम, िदितय व तिृतय सथान पाि करने वाले िवदाथीयो को पोतसाहन रप मे इनाम िदये जा रहे थे। ितलक जी की कका मे उनहोने ही पथम सथान पाि िकया था। अतः इनाम के िलए उनका नाम घोिषत िकया गया। जयो

ही अधयापक ने उनहे आगे बुलाकर इनाम दे ने के िलए हाथ बढाया, तयो ही बालक ितलक रोने लगे।

यह दे खकर सभी को बडा आशयव हुआ! जब अधयापक ने ितलक जी से रोने का

कारण पूछा तो वे बोलेः "अधयापक जी! सच बात तो यह है िक सभी पशो के जवाब मैने नहीं िलखे है । आप सारे पशो के सही जवाब िलखने पर यह इनाम मुझे दे रहे है िकंतु एक पश का जवाब मैने अपने िमत से पूछकर िलखा था। अतः इनाम का वासतिवक हकदार मै नहीं हूँ।"

73

अधयापक पसनन होकर ितलक को गले लगा कर बोलेः "बेटा! भले पहले नंबर के िलए इनाम पाने का तुमहारा हक नहीं बनता िकंतु यह इनाम अब तुमहे तुमहारी सचचाई के िलए दे ता हूँ। पाते है ।

ऐसे सतयिनष, नयायिपय और ईमानदार बालक ही आगे चलकर महान कायव कर पयारे बचचो! तुम ही भावी भारत के भागय िवधाता हो। अतः अभी से अपने जीवन

मे सतयपालन, ईमानदारी, संयम, सदाचार, नयायिपयता आिद गुणो को अपनाकर अपना

जीवन महान बनाओ। तुमहीं मे से कोई लोकमानय ितलक तो कोई सरदार वललभभाई

पटे ल, कोई िशवाजी तो कोई महाराणा पताप जैसा बन सकता है । तुमहीं मे से कोई धुव, पहाद, मीरा, मदालसा का आदशव पुनः सथािपत कर सकता है । साखीः

सांच बराबर

त प नही ं , झूठ बराबर

पाप।

जाके िहरद े सा ंच ह ै , ताके िहरद े आ प।।

यह साखी बचचो को कंठसथ करवाये और अथव भी बताये।

संकलप ः हम भी जीवन मे सतयपालन, ईमानदारी, संयम, सदाचार आिद सदगुणो को अपना कर अपना जीवन महान बनायेगे। भगवद-कृ पा और संत-महापुरषो के आशीवाद व हमारे साथ है । हिरॐ... हिरॐ... बचचो से यह संकलप करवाये। सवासथय स ुरकाः बािलय ाँ य ा झ ुम केः

आभूषण िच िकत सा कानो मे सोने की बािलयाँ अथवा झुमके आिद पहनने से

िहसटीिरया रोग मे लाभ िमलता है तथा आँत उतरने अथात व ् हिनय व ा का रोग नहीं होता। नथनीः

नाक मे नथनी धारण करने से नािसका-संबंधी रोग नहीं होते तथा सदी-

खाँसी मे राहत िमलती है । िब िछयाः

पैरो की उँ गिलयो चाँदी की िबिछया पहनने से साइिटक रोग एवं

चुटकु लाः

एक िशकक ने सभी बचचो से कहाः "बचचो सब काम भाईचारे से

िदमागी-िवकार दरू होकर समरण शिि मे विृद होती है । िमलजुल कर िकया करो।"

एक िवदाथी ने कहाः "सर! अगर ऐसा है तो आप हमे परीका के िदनो मे अलग-

अलग कयो िबठाते हो?"

जानः हमे बात का सही अथव समझना चािहए और परीका के समय ईमानदारी से

पेपर दे ना चािहए।

हँसत े ख ेलत े पाय े जानः 74

‘हिरॐ स कूटर खेल’ –

बचचो को बताये िक हमारे जीवन मे यिद संकलप और

साधना ये दो बाते आ जाये तो हम सब बापू जी की धाम मे पहुँच सकते है । िकतने बचचे बापूजी के धाम मे जाना चाहते है ? (सभी बचचे हाथ ऊपर खडा करे गे।)

संचालकः कयो न हम सब सकूटर पर ही जाये बापू जी के धाम। हमारे सकूटर का

नाम है , ‘हिरॐ सकूटर’। हाथो से एकसेलरे टर घुमाने की िकया करते हुए बचचो से कहे िक अपने-अपने सकूटर पकड लो और िकक मारो। हमारा सकूटर शुर होने पर आवाज कैसी आयेगी? भुम, भुम...

नहीं, हमारा हिरनाम का सकूटर है तो उसमे से ‘हिर, हिर..’ आवाज िनकलती है ।

चलो, सब साथ मे चलते है । हिरॐ, हिरॐ... (कभी धीमी, कभी ऊँची आवाज मे जलदीजलदी बोलना है । अचानक बचचो से कहे संयम!)

एक बडा पतथर रासते के बीच आ गया तो कया करोगे? यिद बेक नहीं लगाते हो

तो टककर खाकर िगर जाओगे। कया करोगे? बेक लगाकर गाडी थोडी धीमी करो और गाडी का मुख मोड दो। बगल से अपनी गाडी िनकाल लो। ििर से गाडी सीधे रासते पर चलने दो। हमारी िजनदगी मे यिद कुसंग या काम, कोध, लोभ मोह, अहं कार आिद िवकारपी

पतथर आ जाये तो हमे संयम की बेक का उपयोग करके उन िवषय-िवकारो से न टकरा कर दस व ) अपना कर, जान की ू रा सही रासता (सतसंग-सतशासो का अधययन, भजन, कीतन बती जला के साधना के एकसेलरे टर से ईशर के रासते पर आगे बढना चािहए तो हमारी गाडी की बेक कौन सी होगी? संयम की। एकसेलरे टर कौन सा होगा? साधना का। बती कौन सी होगी? जान की।

अब तो हमारी गाडी तेज रफतार से बापूजी के धाम अवशय पहुँच जायेगी। तो

दबाओ साधना के एकसेलरे टर (हाथ की िकया करे ) हिरॐ! हिरॐ! हिरॐ!

गाडी बापू जी के धाम पहुँच गयी। ‘हिर हिर बोल’ कहते हुए हाथ ऊपर करके

हँ सना है ।

पशोतर ीः िवषय से संबिं धत पश पूछे।

गृ हपाठ ः बचचे पितिदन आसन का अभयास करे । सात िदनो मे कौन से आसन िकये, उनका पितिदन का वणन व िलखकर लाये।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पनदहवा ँ सिाह सिाह क े दोनो

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

यौिगक पयोगः

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वय ायामः सूय व नमसकार।

कमांक 8-11. योगासनः प ाण ायामः

अनुलोम-िवलोम। मुदाजानः

पादपिशमोतानासन, हलासन, ताडासन।

भामरी, बुिद एवं मेधा शििवधक व , पाणशििवधक व पयोग, पूवव मे िसखायी हुई सभी मुदाओं का अभयास करे ।

कीत व नः प ूव व मे िसखाय े ह ु ए सभी कीत व न एक -एक करक े कर े। भजनः ‘ आओ श ोता तुमह े सुनाय े .....’ नोटः इनके साथ ‘सभी स तो मे ल ेन े योगय

पहला सत

आवशयक िव षय ’ भी ले।

िदनचया व ः अ धयय न

पढने से पूवव थोडा धयानसथ हो जाये, पढने का बाद भी थोडी दे र शांत हो जाये। यह पगित की कुंजी है ।

पतयेक पाठ धयानपूवक व पढे और पढने के बाद उसका मनन अवशय करे । सकूल मे अगले िदन जो पाठ पढाये जाने वाला हो उनहे पहले ही पढकर जाये।

ऐसा करने से जब अधयापक पाठ िसखायेगे तब आपको तुरनत समझ आ जायेगा और आप उनके पशो के उतर तुरंत व उतम पकार से दे पायेगे। बाद मे समय पाकर उनका

पठन-मनन करते रहे तािक वे पाठ पकके हो जाये और आप परीका के समय आसानी से िलख सके।

एक समय ऐसा िनिशत करे िजस समय केवल अपना अधययन-कायव (सकूली

पढाई) ही िकया जाये। अधययन करते समय यथासंभव मौन रखे। इससे पढाई मे भी िवकेप नहीं होगा एवं मौन का भी अभयास हो जायेगा।

जो िवषय किठन लगे, उनहे पितिदन पढे । पढने मे मन लगाये। िवदापािि के िलए

पूरा यत करे ।

आल स कबह ूँ न की िजय े , आल स अिर सम

जािन।

आल स स े िवदा घट े , बल ब ुिद की हािन।।

इनस े सावधानः श ीतल प ेयो से हािनः

शीतल पेयो का उपयोग आजकल दे श

मे िजतने धडलले से हो रहा है , उससे जनता के सवासथय को गंभीर कित पहुँची है । शीतल पेय (कोलडिडनकस) वासतव मे एक पकार का धीमा जहर है । अमदावाद के ‘कनजयूमर

एजयूकेशन एंड िरसचव सैटर’ की पयोगशाला मे की गयी जांच के अनुसार कोलडिडं कस मे अतयनत जहरीले और घातक ततव पाये गये है । इनमे डी.डी.टी., िलंडेन व कलोरपायिरिोस होता है , िजससे कैसर होता है व रोगपितकारक शिि का भी हास होता है । इसके

अितिरि इनमे िमथाइल बेिजन, पोटै िशयम सलिेट, सोिडयम बेजोएट, काबन व डाईआकसाईड,

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कैििन तथा िासिोिरक अमल आिद भी पाये जाते है , जो हिडडयो और दाँतो को गला दे ते है ।

एक अनय पयोग के दौरान एक टू टे हुए दाँत को ऐसे ही पेय पदाथव की एक

बोतल मे डाल कर बंद िकया गया। दस िदन बाद उस दाँत को िनिरकण हे तु बाहर

िनकालना था परं तु वह दाँत उसमे था ही नहीं अथात व ् वह उसमे घुल गया था। जरा

सोिचये िक इतने मजबूत दाँत भी ऐसे हािनकारक पेय पदाथव दषुपभाव से गलाकर नष हो जाते है तो हमारे पेट की नमव आँतो का कया हाल होता होगा, जहाँ ये पदाथव घंटो पडे रहते है ।

संकलप ः ‘अब हम यह जहर अपने मुँह मे नहीं डालेगे। सवासथय के इस घातक

शतु को अब अपने घर मे नहीं लायेगे।’ बचचो से यह संकलप करवाये। सवासथय स ुरकाः पायलः

आभूषण िच िकत सा

पायल पहनने से पीठ, एडी एवं घुटनो के ददव मे राहत िमलती है ।

िहसटीिरया के दौरे नहीं पडते तथा शास रोग की संभावना दरू होती है । रिशुिद होती है तथा मूतरोग िक िशकायत नहीं रहती।

अँग ूठीः हाथ की सबसे छोटी उँ गली मे अँगूठी पहनने से छाती के ददव व घबराहट

से रका होती है तथा कि, दमा, जवर आिद के पकोपो से बचाव होता है । पसंग।

शी आसारामायण

पाठ व प ूजयशी की जीवनलीला पर आधािर

त कथा -

िव िडयो स तसंग ः यिद वयवसथा हो तो ‘चेतना के सवर’ वी.सी.डी. आधा घंटा

बचचो को िदखाये।

द ू सरा सत

वाता व लापः बचचो से पूछे की सुबह उठकर वे सबसे पहले कया करते है ? ििर उनहे बताये िक सुबह उठकर शशकासन करते हुए भगवान से पाथन व ा करनी चािहएः ‘हे

भगवान 33 मै आपकी शरण मे हूँ। आज के िदन मेरी पूरी सँभाल करना। मै िनषकाम सेवा और तुझसे पेम करँ, सदै व पसनन रहूँ।’

ििर दढ भावना करे िक ‘मेरे अंदर नया उतसाह आ रहा है , सिूितव आ रही है ।

आज मेरे अंदर कल से भी जयादा शिि है , पभु की पीित है । हिरॐ... हिरॐ... हिरॐ...।’

जानचचा व ः पा थव ना – बचचो को पाथन व ा की मिहमा बताये िक परमातमा से सीधा

संबध ं जोडने का एक सरल साधन है – पाथन व ा। पाथन व ा से हमे आधयाितमक िसिदयाँ पाि होती है , ईशर के पित िवशास बढता है , हमारी आतमशदा, दै वी शिियाँ, शील, गुण अिभविृद को पाि होते है । हमारी इचछाशिि सही िदशा मे िवकिसत होने लगती है । 77

ििर यह पसंग बताये- महातमा गाँधी हररोज पाथन व ा करके सोते थे। एक राित को सोने पहले वे पाथन व ा करना भूल गये। आधी रात को जब उनकी नीँ द खुली तो वे बहुत रोये िक ‘पभु! मै तेरा समरण करना भूल गया।’

संकलप ः ‘हम भी रोज सुबह और शाम पाथन व ा अवशय करे गे।’ बचचो से ऐसा

संकलप करवाये।

कथा -पसंग आ िद दारा

सद गुणो का िवकास ः

सवामी शी लीलाशाहजीबापू के बालयकाल का पसंग बचचो को बताये। पाथ व ना का प भाव

शी लीलारामजी का जनम िजस गाँव मे हुआ था, वह महराब चांडाई नामक गाँव

बहुत छोटा था। उस जमाने मे दक ु ान मे बेचने के िलए सामान टँ गेबाग से ताँगे दारा लाना पडता था। भाई लखुमल वसतुओं की सूिच एवं पैसे दे कर शी लीलाराम जी को खरीदारी करने के िलए भेजते थे।

एक समय की बात है ः उस वषव मारवाड एवं थर मे बडा भारी अकाल पडा था।

लखुमल ने पैसे दे कर शी लीलारामजी को दक ु ान के िलए खरीदारी करने को भेजा। शी

लीलारामजी खरीदारी करके माल-सामान की दो बैलगािडयाँ भर अपने गाँव लौट रहे थे। गािडयो मे आटा, दाल, चावल, गुड, घी आिद था। रासते मे एक जगह पर गरीब, अकालपीिडत, अनाथ एवं भूखे लोगो ने शी लीलाराम जी को घेर िलया। दब व एवं भूख से ु ल

वयाकुल लोग अनाज के िलए िगडिगडाने लगे तो शी लीलारामजी का हदय िपघल उठा।

वे सोचने लगे, ‘इस माल को मै भाई की दक ु ान पर ले जाऊँगा। वहाँ से इसे खरीदकर भी

मनुषय ही खायेगे न...? ये सब भी तो मनुषय ही है । बाकी बची पैसे के लेन-दे न की बात.. तो पभु के नाम पर भले ये लोग ही खा ले।’

शी लीलारामजी ने बैलगािडयाँ खडी करवायीं और उन कुधापीिडत लोगो से कहाः

"यह रहा सब सामान। तुम लोग इसमे से भोजन बनाकर खा लो।

भूख से कुलबुलाते लोगो ने तो तुरंत ही दोनो बैलगािडयो को खाली कर िदया। शी

लीलारामजी भय से काँपते, थरथराते गाँव मे पहुँचे। खाली बोरो को गोदाम मे रख िदया। कुंिजयाँ लखुमल के दे दीं। लखुमल ने पूछाः "माल लाया?" "हाँ।"

"कहाँ है ?" "गोदाम मे।"

"अचछा बेटा! जा, तू थक गया होगा। सामान का िहसाब कल दे ख लेगे।"

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दस ू रे िदन शी लीलारामजी दक ू ान पर गये ही नहीं। उनहे तो पता था िक गोदाम

मे कया माल रखा है । वे घबराये काँपने लगे। उनको काँपते दे खकर लखुमल ने कहाः "अरे ! तुझे तो बुखार आ गया? आज घर पर ही आराम कर।"

एक िदन... दो िदन... तीन िदन... शी लीलारामजी बुखार के बहाने िदन िबता रहे है

और भगवान से पाथन व ा कर रहे है - "हे भगवान! अब तो तू ही जान। मै कुछ नहीं जानता। हे करन-करावनहार सवामी! तू ही सब कराता है । तूने ही भूखे लोगो को िखलाने की पेरणा दी। अब सब तेरे ही हाथ मे है , पभु! तू मेरी लाज रखना। मै कुछ नहीं, तू ही सब कुछ है ..... "

एक िदन शाम को लखुमल अचानक शी लीलारामजी के पास आये और बोलेः

"लीला....लीला! तू िकतना अचछा माल लेकर आया है ।"

शी लीलारामजी घबराये। काँप उठे िक ‘अचछा माल.... अचछा माल.... कहकर अभी

मेरा कान पकडकर मारे गे।’ वे हाथ जोड कर बोलेः "मेरे से गलती हो गयी।"

"नहीं बेटा! गलती नहीं हुई। मुझे लगता था िक वयापारी तुझे कहीं ठग न ले।

जयादा कीमत पर घिटया माल न पकडा दे िकंतु सभी चीजे बिढया है । पैसे तो नहीं खूटे न?"

"नहीं पैसे तो पूरे हो गये और माल भी पूरा हो गया।" "माल िकस तरह से पूरा हो गया?"

शी लीलारामजी जवाब दे ने मे घबराने लगे तो लखुमल ने कहाः "नहीं बेटा! सब ठीक है । चल तुझे िदखाऊँ।"

ऐसा कहकर लखुमल शी लीलारामजी का हाथ पकडकर गोदाम मे ले गये। शी

लीलाराम जी ने वहाँ जाकर दे खा तो सभी बोरे माल-सामान से भरे हुए िमले! वे

भाविवभोर हो उठे और गदगद होते हुए उनहोने परमातमा को धनयवाद िदयाः ‘पभु! तू िकतना दयालु है ... िकतना कृ पालु है !’

परोपकारी वयिि का परमातमा अवशय मदद करते है । िनदोष भाव से हदयपूवक व

की गयी पाथन व ा से असंभव कायव भी संभव हो जाते है , िबगडे काम भी सँवर जाते है ।

संकलप ः ‘हम िनतय सुबह-शाम पाथन व ा करे गे।’ यह संकलप बचचो से करवाये। चुटकु लाः

एक अनपढ वयिि मुकदमे के कागजात लेकर वकील के पास गया।

वकील िबना चशमे के नहीं पढ पाता था।

वकील ने नौकर से कहाः "रामू! मेरा पढने वाला चशमा तो लाना।" रामू दौडकर

चशमा ले आया और वकील कागजात पढने लगा। अनपढ को लगा िक यिद वह भी पढने

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वाला चशमा खरीद ले तो वह सब कुछ पढ सकेगा। अनपढ वयिि एक चशमे की दक ु ान पर जाकर बोलाः "मुझे पढने वाला चशमा दो।"

दक ु ानदारः "कौन-से नंबर का चशमा दँ ू?" "पढने वाला चशमा दो।"

दक ु ानदार ने उसे अंगजी अखबार दे कर कई चशमे बदल-बदलकर िदये लेिकन

िकसी भी चशमे से वह पढ नहीं पा रहा था। दक ु ानदार ने पूछाः "अरे ! पढना जानता भी है िक नहीं?"

"पढना नहीं जानता इसीिलए तो कहता हूँ, पढने वाला चशमा दो।"

सीखः यिद पढना चाहते हो तो पढाई सीखनी पढे गी, ऐसे ही जीवन मे सिलता पाि करना चाहते हो तो अनुषान, सारसवतय मंत का जप करना चािहए, धयान करना चािहए। इससे आपकी योगयता बढे गी और आपका सवाग व ीन िवकास होगा। जानचचा व ः सारसवतय

मंतः यिद िवदाथाव अपने जीवन को ओजसवी, तेजसवी, िदवय और हर

केत मे सिल बनाना चाहे तो सदगुर से पाि सारसवतय मंत का अनुषान अवशय करे ।

यह अनुषान सात िदन का होता है । इसमे पितिदन 170 माला करने का िवधान है । सात िदन तक केवल शेत वस पहनने चािहए। इन िदनो भोजन भी िबना नमक का करे ।

चावल की खीर खाये। शेत पुषपो से दे वी सरसवती की पूजा करने के बाद जप करे । दे वी को भोग भी खीर का ही लगाये। माँ सरसवती से शुद, तीकण बुिद के पाथन व ा करे । भूिम

पर चटाई, कमबल आिद िबछाकर शयन करे एवं यथासंभव मौन रखे। सििटक की माला से जप करना जयादा लाभदायक है । सथान, शयन, पिवतता से संबंिधत अनय िनयम सामानय मंतानुषान जैसे ही है ।

सारसवतय म ंत के ज प व अन ुषान का च मतकार

मैने पाँच वषव पूवव पूजयबापूजी से सारसवतय मंत की दीका ली थी। तभी से मै पितिदन जप करता था, साथ ही बाल संसकार केनद मे भी जाया करता था। केनद मे

जाने से मै अवारा दोसतो के साथ घूमने, होटल जाने, िपकचरे दे खने इन वयसनो से बच गया जो पायः इस उम मे होने लगते है । इन वयसनो से बचने का ही पभाव है िक मै

अपने भीतर चािरितक सौनदयव का अनुभव करने लगा हूँ। मंतजप करन से धीरे -धीरे मेरी

बुिदशिि और समरणशिि बढी, िजससे मै परीका मे 70-80% के सथान पर 90% अंको से पास होने लगा।

मेरी माता जी मुझसे नवरातो मे सारसवतय मंत का अनुषान करातीं और मुझे व

मेरे छोटे भाई को पूजय बापू के धयानयोग िशिवर मे भी ले जाया करती थीं। यह

सारसवतय मंत के जप के अनुषान का ही पभाव है िक दसवीं कका मे 84.6% अंक पाि 80

कर मै सहारनपुर िजले मे पथम सथान पाि कर पाया। पूजय बापू के सतसंग से मैने अपने जीवन का ऊँचा उदे शय पाया है िक ‘मुझे राजा जनक की तरह जीवन जीना है ।’ बचचो को जीवन जीने की कला िसखाने वाले पूजय बापू जी को कोिट-कोिट वंदन। हँसत े ख ेलत े पाय े जानः साखी

अपूव व बजाज , कका – 11, रेन बो स कूल , सह ारनप ुर ।

, शोक पह चान ोः बचचो को जो सािखयाँ एवं

शोक िसखाये गये है , उन पर आधािरत खेल खेलना है । पहले संचालक साखी अथवा शोक का एक शबद बचचो को बताये। अब िजस साखी या शोक मे यह शबद आता है वही

साखी या शोक बचचे पूरा बोलेगे। िजस बचचे को वह साखी या शोक आता हो, वह हाथ ऊपर कर करे , ििर उसे बोलने का मौका िदया जाये। बाकी सब उसके पीछे दोहराये। पशोतर ीः सत मे िसखाये गये िवषयो पर आधािरत पश पूछे। जैसेअँगूठी पहनने से कया लाभ होता है ?

पाणशििवधक व पाणायाम के लाभ बताये?

सारसवतय मंतानुषान मे पितिदन िकतनी माला करने का िवधान है ? ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सो लहव ाँ स िाह सिाह क े दोनो

यौिगक पयोगः वय ायामः

स तो म े िसखा ये जान े वाल े िवषय

कमांक 10-13 योगासनः

पादपिशमतोनासन, ताडासन। सूय व नमसकार।

पाणा यामः भामरी, बुिद एवं मेधा शििवधक व , पाणशििवधक व पयोग। मुदाजा नः पूवव मे िसखायी हुई सभी मुदाओं का अभयास करे ।

कीत व नः िकसी बालक या बािलका को आगे बुला कर पहले कराये हुए कीतन व ो मे

कोई भी कीतन व उसके दारा करवाये।

भजनः ‘ आओ श ोता तुमह े सुनाय े ....’ नोटः इनके साथ ‘सभी स तो मे ल ेन े योगय

पहला सत

आवशयक िव षय ’ भी ले।

िदनचया व ः सो ने के िनयम ः

सोने से पहले दातुन से दाँत साि करे , हाथ पैर धोये, कुलला करे । ििर हाथ पैर अचछी तरह से पौछ ले हाथ-पैर गीले रखकर सोने से हािन होती है ।

सोने से पूवव सदगुरदे व, इषदे व का धयान करे , सतसंग की कोई पुसतक पढे अथवा

कैसेट सुने। पूवव या दिकण की ओर िसर रखकर शासोचछवास की िगनती करते हुए सीधा (पीठ के बल) सोये। ििर जैसी आवशयकता होगी वैसी सवाभािवक करवट ले ली जायेगी।

81

दस ू रे के िबसतर, कमबल, तिकये आिद का पयोग न करे ।

एक ही बार चादर या कमबल ओढकर दो लोग न सोये कयोिक इससे एक दस ू रे के

शासोचछोवास के िनरं तर आदान-पदान से रोग उतपनन होते है ।

कमरे की िखडिकयाँ दरवाजे बनद करके अथवा उसमे अँगीठी या रम हीटर

चलाकर सोना सवासथय के िलए हािनकारक है ।

मुँह ढककर सोने से अशुद वायु (काबन व डाइआकसाइड) िेिडो मे िनरं तर जाती

रहती है , िजससे आगे चलकर रोग आ घेरते है तथा मनुषय िनषचय ही अलपायु होता है । जीवनोप योगी िनयमः

हमेशा सडक के बायीं ओर चले। मागव मे खडे होकर बात

न करे । बात करनी हो तो िकनारे पर चले जाये। चुटकु लाः

एक लडका सडक के बीचो बीच चल रहा था िकसी ने उससे कहाः "अरे

सडक के बीचो बीच कयो चल रहे हो? सडक के िकनारे चलो।"

लडके ने कहाः "िकनारे चलने मे मुझे डर लगता है , कहीं अचानक भूकंप आया

और कोई इमारत टू टकर मुझ पर िगर पडी तो?"

सीखः हमे भयभीत होकर नहीं जीना चािहए। इनस े सावधानः

सौनदय व -पसाधन

आजकल तो ऐसे कैिमकल और जहरीले पदाथो से शग ं ृ ार के पसाधन बनाये जाते है , िजनसे शरीर मे जहरील कण पवेश कर जाते है और तवचा की बीमािरयाँ होती है । लंगूर जाित के लोरीस नामक छोटे बंदर की आँखो और िजगर को पीसकर सौनदयव-

पसाधनो मे डाला जाता है । काजल, कीम, िलपिसटक, पाउडर आिद पसाधनो मे पशुओं की चबी, अनेक पेटोकैिमकलस, कृ ितम सुगंध, इथाइल, अलकोहल, ििनाइल, िसटोलनेलस,

हाइडॉकसीटोन आिद पयोग िकये जाते है । िजनसे चमरवोग, जैसे – एलजी, दाद, सिेद दाग

आिद होने की आशंका रहती है । इन पसाधनो से तवचा की पाकृ ितक सुंदरता व कोमलता नष हो जाती है । साथ ही बौदक और वैचािरक संतुलन भी िबगडता है ।

संकलप ः ‘हम बाजार सौनदयव-पसाधनो की अपेका सौनदयव व धक व घरे लू नुसखो को

ही अपनायेगे।’ बचचो से यह संकलप करवाये।

सौ नदय व वधव क घर ेल ू न ुसख े

चेहरे पर झुिरव याँ हो तो दो चममच िगलसरीन मे आधा चममच गुलाब जल एवं

नींबू के रस की कुछ बूँदे िमलाकर राित को चेहरे पर लगाये। सुबह ठणडे पानी से मुह ँ धो ले, तवचा का रं ग िनखरकर झुिरव याँ कम हो जायेगी।

तुलसी के पतो को पीस कर लुगदी बना कर चेहरे पर लगाने से मुँहासे के दाग

धीरे -धीरे दरू हो जाते है । 82

साबुन की जगह खीरा, ककडी और नींबू का रस समान माता मे िमलाकर सनान से पहले चेहरे पर मले। इससे तवचा रे शम जैसी कोमल हो जाएगी तथा कांित भी बढे गी। शी आसारामायण

पसंग।

पाठ व प ूजयशी की जीवनलीला पर आधािर

त कथा -

अनुभवः पूजयशी की क ृपा स े सि लता

परम पूजय बापूजी से मुझे िसतमबर 18 मे ‘पुषकर धयान योग िशिवर’ मे सारसवतय मंत की दीका िमली।

ं ी मै िनतय सुबह जलदी उठकर सनानािद करके पाणायाम, ‘शी गुरगीता’ एव ‘श

आसारामायण’ का पाठ तथा सारसवतय मंत का जप करता हूँ। िजसके िलसवरप तथा पूजय गुरदे व की असीम कृ पा से मैने 10 वीं कका मे 93.33% अंक पाि कर राजसथान बोडव की वरीयता सूची मे 11 वाँ सथान पाि िकया है ।

िनतय पाणायाम करने से मेरी एकागता मे विृद हुई है व आतमबल बढा है । मुझे

8 वीं कका से सकूल दारा छातविृत पाि हो रही है ।

चेतन कुमार मौय व

बालनगर , करतारप ुरा , जयप ुर (राज .)

िव िडयो स तसंग ः यिद वयवसथा हो तो ‘चेतना के सवर’ वी.सी.डी. आधा घंटा बचचो को िदखाये।

पशोतर ीः बचचो को िदनचयाव मे सोने के जो 5 िनयम बताये गये है , उनमे से

बचचो से पश पूछे। कथा -पसंग आ िद दारा

द ू सरा सत

गुणो का िव कासः

सवप व थम नीचे दी गयी पहली बचचो से पूछे। ििर पहाद की कथा सुनाये। बोलो िकसके पाण बचा ये , परम ेशर न े न ृ िसंह रप धर।

बोलो िकसके द ु ष िपता को , ईशर ने मारा द ेहरी पर।। पहाद की भ िि म े दढता

भि पहाद।

भि पहाद दै तयराज िहरणयकिशपु के पुत थे। पहाद बचपन से ही भगवदभि थे।

वे सवयं तो कीतन व भजन करते ही थे, अपने िमतो को भी करने के िलए पेिरत करते थे। पाठशाला मे अधययन के दौरान उनहे ऐसा करने पर िपता दारा दं िडत िकया गया।

ततपशात उनहे गुरकुल ले जाकर कडे अनुशासन मे रखा गया। आचायव उनहे िकसी भी तरह िवषणुभिि से िवमुख करना चाहते थे। इसिलए उनहोने छल कपट का सहारा िलया। 83

वे पहाद को पलोभन दे ने के साथ दं ड का भय भी िदखलाते थे। पहाद भी अपने गुरवरो का और माता-िपता का िचत नहीं दख ु ाना चाहते थे। अतः वे इस बात की सावधानी

बरतने लगे िक मेरी हिरभिि के बारे मे गुरओं और माता-िपता को पता न चले इसिलए अब वे गुरओं की अनुपिसथित मे ही हिर का भजन और धयान करने लगे परनतु कभी-

कभी वे अपनी भिि की मसती को संभाल न पाते और आचायो के सामने ही भगवान के धयान मे तललीन हो जाते, कभी जोर-जोर से कीतन व करने लगते। (यहाँ पर कथा रोक दे । बचचो मे िकसी एक बचचे को आगे आकर सबको कीतन व करवाने को कहे ।)

पहाद सवयं तो हिरभिि करते ही, साथ ही अपने सहपाठी असुर बालको को भी

भगवदभिि की िशका दे ने लगे। जब वे कीतन व करते तो उनके सहपाठी भी उनके सवर मे सवर िमलाकर गाने लगते। आचायो को जब इस बात का पता चला तो वे पहाद पर कोिधत हुए। उनहोने पूछा िक "पहाद! कया यह सतय है िक तुम सवयं हिरभिि व

हिरकीतन व करते हो और अपने सहपािठयो को भी हिर भिि का उपदे श दे उनसे भी हिरकीतन व कराते हो?"

पहादः "गुरजी! आपने जो कुछ सुना है वह सवथ व ा सतय है । आपका िचत दःुखी न

हो इसिलए हम लोग आपकी अनुपिसथित मे ही सदै व हिर कीतन व और हिर का धयान िकया करते है ।"

आचायःव "हे दष ु राजकुमार! अपने िपता के वचनो की अवहे लना करके कया तू

संसार मे जीिवत रह सकता है ? गुर की अवजा का पाप कया तुझे नहीं मालूम?"

पहाद ने कहाः "आप िनशय ही माने िक मै आज से आपकी आजा पालन इतना

तो अवशय करगा िक मै आपके या अपने िपता जी के समक अपनी हिरभिि को

जानबूझ कर पकट करके आप लोगो को कुद या दःुखी करने की चेषा नहीं करँगा परनतु उसे छोडना तो असंभव है ।"

आचायःव "बेटा पहाद! वैषणव धमव मे सबसे अिधक महतव गुर का ही माना गया

है । िजस िशषय की रका का भार सदगुर अपने ऊपर समझते है और जो िशषय सदगुर

को अपना रकक, मोकपदाता समझता है , वे दोनो ही िशषय अननय भिि के िनयमानुसार मोक को पाि होते है । इसिलए हे राजकुमार! तुम हम गुरओं को ही अपना रकक मानो।" यह सुनकर पहाद ने बहुत सुनदर उतर िदया। जो बचचे िकसी के बहकावे मे

आकर अथवा डाँट-डपट से डरकर भगवदभिि और सतसंग छोड दे ते है , उनहे भि पहाद की बात को अंतः करण मे उतार लेनी चािहए।

पहादः "पूजय आचायव! िनःसंदेह आपने हमे शासजान िदया है । आप लोग हमारे

िवदागुर है और िपता के पद से भी अिधक पूजय है िकंतु सदगुर नहीं है । वैषणव धमव मे सदगुर की आपने जो मिहमा कही है उसके अनुसार आप भी सदगुर-पद को योगय हो 84

जाये तो मेरे हषव का पारावार न रहे । इसी अिभपाय से तो मै आप लोगो से बार-बार कहता हूँ िक आप लोग भी हिरभि होकर एक बार कहे – हरेना व मैव न ामैव म म जीवनम।्

‘हिर नाम ही, हिर नाम ही, हिर नाम ही मेरा जीवन है ।’

ििर दे खे हम लोग आपको अपना िवदागुर ही नहीं, सदगुर भी मानने लगेगे और ििर आपकी यह पाठशाला वैषणवशाला बन संसार के न जाने िकतने पितत, पामर पािणयो की उदारशाला बन जायेगी।"

पहाद के इन शाससममत एवं नीितयुि वचनो को सुनकर आचायव िनरतर हो गये

और मन-ही-मन बोलेः "इस दढ भगवदभि को कोई भििपथ से िवमुख नहीं कर सकता।"

पाणवा न प ं ििया ँ बा धाए ँ कब रोक सकी ह

िवपदा एँ कब रोक

ै , आगे बढ ने वालो को।

स की ह ै , पथ प े च लने वा लो को।।

बचचो को यह साकी पककी कराये और अथव भी बताये।

संकलप ः ‘हम भी भि पहाद की तरह िवघन-बाधाओं के बीच मे भगवदभिि के पथ पर अिडग रहे गे।’ ऐसा संकलप बचचो से करवाये। िद मागी ता कत बढान े के उ पा यः

एक गाजर और एक पतागोभी के लगभग 50-60 गाम या 10-12 पते काट कर

उसमे हरा धिनया डाल दे । ििर उसमे सेधा नमक, काली िमचव का पाउडर और नींबू का रस िमलाकर खूब चबाकर नाशते के रप मे खाया करे ।

लाभ ः इससे मिसतषक की कमजोरी दरू होती है और समरणशिि बढती है । पहला पयोगः

पढने के बाद भी याद न रहता हो तो सुबह एवं राित को दो-तीन

द ू सरा पयोगः

दस गाम सौि को अधकुटी करके 100 गाम पानी मे उबाले। 25

महीने तक 1 से 2 गाम बाही तथा शंखपुषपी लेने से लाभ होता है ।

गाम पानी शेष रहने पर उसमे 100 गाम दध ू , 1 चममच शककर एवं एक चममच घी

िमलाकर सुबह-शाम िपये। घी न हो तो एक बादाम पीसकर डाले। इससे िदमागी शिि बढती है ।

हँसत े ख ेलत े पाय े जानः

पहे िलया ँ

एक बचचा एक दक ु ानदार से 7 िकलो शककर माँगता है । दक ु ानदार के पास एक

माप 5 िकलो का और दस ू रा माप 3 िकलो का है तो दक ु ानदार कैसे दे गा?

85

उतरः पहले दक ु ानदार माप से दो बार शककर दे गा ििर 3 िकलो वाले माप से

उसमे से 3 िकलो शककर िनकाल लेगा।

बुंदेली धरती का वह था वीर अनोखा लाल। वह अपनी जनता का िपय था, तेजसवी भूपाल।। चंपतराय िपता थे उसके, वह सवराजय का पेमी।

िकसके साहस के सममुख, मुगलो की ताकत सहमी?

छतसाल

वे थे एक तपसवी राजा जो िवदे ह कहलाये।

पभु िववाह मे बोलो िकसके घर दशरथजी आये? राजा जनक।

गृ हपाठ ः बचचो को कोई भी जानवधक व आधयाितमक चाटव (जान की बाते िचत सिहत) बनाकर लाने को कहे ।

ॐॐॐ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

86

यौिगक पयो ग कूदनाः

वया या म 1.

इसमे दोनो हाथ ऊपर करके पंजो के बाल कूदना है । लाभ ः मन पिुिललत रहता है । शरीर सवसथ रहता है ।

72 हजार नािडयो मे से मुखय नाडी सुषुमना का मुख खुल जाता है । िजससे धयान

भजन मे मन लगता है ।

पैरो की उ ँग िलयो क े वय ायामः

2.

पाथ िमक िसथ ितः बैठकर हाथो को शरीर से थोडा पीछे जमीन पर रखे और शरीर को भी थोडा पीछे झुका दे । दोनो पैरो

को सामने की ओर जमीन पर सीधा िैला दे । दोनो पैरो के बीच थोडा अंतर रखे।

पा थिम क िसथ ित

िव िधः 1. पाथिमक िसथित मे बैठे, ििर दोनो पैरो की उं गिलयो को सामने की ओर िजतना संभव हो मोडे , ििर उसी पकार (अपनी ओर) पीछे की ओर मोडे । पंजा और टखना िहलाए िबना 10 बार ऐसा करे ।

िव िधः 2. पाथिमक िसथित मे बैठे। ििर दोनो पैरो की

िविध ः 1

उं गिलयो को एक-दस ू रे से िजतना दरू संभव हो तािनये

तािक उनमे तनाव अनुभव होने लगे। अब उं गिलयो को पूवव िसथित मे लाकर आराम दे । ऐसा धीरे -धीरे 10 बार

करे । यिद उं गिलयो को तानने मे किठनाई हो तो इसमे हाथो की सहायता ले।

लाभ ः सायिटका रोग मे व घुटने के िलए लाभपद है ।

िविध ः 2.

87

पैरो के प ं जो के वयायाम

़ः 3.

पारिमभक िसथित मे बैठकर दोनो पैरो के पंजो को

िजतना हो सके धीरे -धीरे सामने की ओर ताने, ििर उनको पीछे की ओर मो़़डे। ऐसा 10 बार करे ।

टखनो के वयाय ाम ः 4. िव िधः 1. पारिमभक िसथित मे बैठे। अब अपने दाये पैर के पंजे को एडी (टखनो) से घडी की सुईयो की

िदशा मे एवं उसकी िवपरीत िदशा मे घुमाये। ििर दस ू रे पैर से भी इसी पकार करे । इस समय धयान एडी पर केिनदत रखे और ऐसा अनुभव करे िक

िविध ः 1.

आपके अँगूठे और उं गली के बीच एक पैिसल रखी है , उससे आप एक गोल घेरा बना रहे है ।

िव िधः 2. पारिमभक िसथित मे बैठे ििर बाये पैर को घुटनो से मोड कर टखने को दािहने पैर की

जंघा पर रखे और बायां हाथ बाये घुटने पर रखे। अब दाये हाथ से बाये पैर की उं गिलयो को पकड

कर बाये पैर को टखने से घडी के काँटो की िदशा मे एवं िवपरीत िदशा मे 10 बार गोलाकार घुमाये। बाये पैर के टखने पर मन को एकाग करे । यही

िविध ः 2.

िकया दस ू रे पैर से भी करे । घुटन ो के वया यामः

5.

िव िधः 1. पारिमभक िसथित मे बैठे तथा घुटने पर

धयान केिनदत करे । बाये घुटने के नीचे दोनो हाथो की उं गिलयाँ आपस मे िँसा कर रखे, ििर बाये

पैर को घुटने से मोड कर जंघा को छाती से सटा ले। सीना तना हुआ रखे। अब घुटने के नीचे के

पैर के िहससे को घडी के काँटो की िदशा मे तथा िवपरीत िदशा मे 10-10 बार गोलाकार घुमाये।

अब पारिमभक िसथित मे वािपस आ जाये और

िव िधः 1.

88

दस ू रे पैर से भी यही िकया करे ।

िव िधः 2. पारिमभक िसथित मे बैठे तथा कूलहे (िनतंब) और घुटने पर धयान केिनदत करे ।

दािहने घुटने के नीचे दोनो हाथो की उं गिलयो को आपस मे िँसाकर रखे ििर दाये पैर को

घुटने से मोडकर छाती से सटा ले, एडी कूलहो के करीब आ जाये। सीना तानकर रखे। अब दािहने पैर को आगे िैलाये और मोडे , ऐसा

िविध ः2.

10 बार करे । पैर को जमीन से सपशव न होने दे । ििर बाये पैर से भी ऐसा ही 10 बार कीिजए।

िव िधः 3. सवप व थम पूवव अथवा पिशम िदशा की ओर मुख करके खडे रहे । दोनो पैर

अतयंत पास भी न रखे और अतयंत दरू भी

न रखे। अब दोनो पैरो के पंजो को उतर-दिकण की ओर रखे। हाथ ऊपर आकाश की सीधे रखे

और धीरे -धीरे बैठते जाये। अतयंत ददव होता हो ििर भी नीचे बैठना िजतना संभव हो उतना

बैठने का पयत जरर करे िकंतु एकदम नीचे

िविध ः3

न बैठ जाये। ििर धीरे -धीरे खडे हो। इस पकार

सात-आठ बार नीचे बैठने और ििर खडे होने का पयत करे ।

िव िधः 3

लाभ ः जोडो के वात मे िजसे अंगजी मे ‘आिसटयो-आथरवाइिटस कहते है उसमे यह

कसरत लाभदायक है । रे ती का सेक, गरम कपडे का सेक, हॉट-वाटर बैग का सेक इसमे लाभपद है ।

सावधानीः

जोडो के ददव वाले मरीज को कभी भी िकसी योगय वैद की सलाह के

िबना तेल की मािलश नहीं करनी-करवानी चािहए कयोिक यिद जठरािगन िबगडी हुई हो, कचचा आम शरीर के िकसी भाग मे जमा हो, ऐसी िसथित मे तेल की मािलश करने से हािन होती है ।

हाथो की उ ंगिलयो क े वयाय ाम ः

6.

सुखासन मे बैठकर दोनो हाथो को कंधे की सीध मे सामने की ओर िैला दे । अब दोनो 89

हाथो की उं गिलयो को यथासंभव तािनये, िैलाइये, िजससे उनमे इतना तनाव उतपनन

हो जाये िक आप आसानी से सह सके। इसके बाद हाथो को िशिथल कर सबसे पहले अँगूठो

को अंदर की तरि मोडे , ििर उं गिलयो को भी मोडकर मुटठी भीँ च लीिजए और पुनः हाथो को िशिथल कर मुटठी खोल कर उं गिलयो को अचछी तरह िैलाये। ऐसा 10 बार करे । कलाई क े वयाय ाम ः 7.

सुखासन मे बैठे। ििर दोनो हाथो को कंधे की सीध मे िैला दे । अब अँगूठे अंदर की

ओर रखते हुए मुटठी बाँधकर कलाई से आगे के भाग को परसपर िवपरीत िदशा मे अंदर की ओर व बाहर की ओर 10-10 बार

गोलाकार घुमाये। इस बात का धयान रखे िक केवल कलाई मे हलचल हो। हाथो मे अनावशयक हलचल न हो।

कोहनी का वयाय ाम ः 8.

सुखासन मे बैठे। ििर दोनो हाथो को सामने की ओर कंधे की सीध मे िैला दे । हथेिलयाँ

ऊपर की ओर रहे , अब दोनो हाथो को कोहनी से मोडकर उँ गिलयो से कंधे को सपशव करे , ििर सीधा िैला दे । (इस समय कोहनी छाती की सीध मे और दिष कोहनी पर केिनदत रखे)।

ऐसा 10 बार करे । हाथ मोडने और िैलाने की िकया आरामपूवक व करे , अनावशयक खींचातानी न करे ।

कंधो का वयाय ाम ः 9.

सुखासन या पारिमभक िसथित मे बैठे। अब दोनो हाथो को कोहनी से मोडकर कंधो के

समकक इस पकार रखे िक उँ गिलयाँ कंधो को सपशव करे । अब दोनो हाथो की कोहिनयो को 90

आगे की ओर िमलाते हुए परसपर िवपरीत िदशा मे अंदर की ओर व बाहर की ओर

वत ृ ाकार घुमाये। दोनो ओर से 10-10 बार करे ।

लाभ ः यह वयायाम उनके िलए लाभदायक है , जो जयादा िलखने, टाईिपंग, डाईग आिद का काम करते है । यिद वे कुछ दे र तक यह

वयायाम करे तो उनके हाथो का तनाव व ददव दरू हो जाता है ।

पैरो के वयायामः

10.

सवप व थम शवासन मे लेट जाये ििर दाये पैर को जमीन से थोडा ऊपर उठाये और घडी के काँटे की िदशा मे तथा उसकी िवपरीत िदशा मे 10-10 बार गोलाकार

घुमाये (घुमाते समय पैर सीधे तने रहे )। अब दस ू रे पैर को भी इसी पकार 10-10 बार घुमाये। ििर दोनो पैरो को सटाकर

रखते हुए करे । इस दौरान धड और िसर जमीन से सटे रहे ।

लाभ ः िनतंब की मांसपेिशयो और कमर के सनायुओं की मािलश हो जाती है ।

मोटापा कम होता है । िटपपणीः

बािलकाओं को वयायाम क. 5, 10 केनद मे नहीं कराये। उनहे केनद मे

सीख कर घर पर इसका अभयास करने को कहे ।

ॐॐॐ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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यो गासन योगासन

कया ह ै ?

योगासन िविभनन शारीिरक िकयाओं और मुदाओं के माधयम से तन को सवसथ, मन को पसनन एवं सुषुि शिियो को जागत ृ करने हे तु हमारे पूजय ऋिष-मुिनयो दारा खोजी गयी एक िदवय पणाली है ।

बचचो को आसन की महता समझाये, िजससे वे िनयिमत आसन करने को पेिरत

हो। उनहे इस पकार संबोिधत करे - बचचो! आपमे असीम योगयताएँ छुपी हुई है । आप

अपनी योगयताओं को िवकिसत कर जीवन के हर केत मे सिलता पाि कर सकते है । इसके िलए आवशयक है – सवसथ व बलवान शरीर, कुशाग बुिद, उतम समरणशिि,

एकागता, सवभाव मे शीलता, िवकिसत मनोबल एवं आतमबल। िनयिमत योगासन एवं पाणायाम के िविधवत अभयास से इन सभी की पािि मे बहुत मदद िमलती है । योगासन िसखाने से पूवव िनमन बाते बचचो को अवशय बतायेसथानः

आसनो का अभयास सवचछ, हवादार कमरे मे करना चािहए। बाहर खुले

वातावरण मे भी अभयास कर सकते है परनतु आसपास का वातावरण शुद होना चािहए। समय ः पातः काल खाली पेट आसन करना अित उतम है । भोजन के छः घंटे

बाद व दध ू पीने के दो घंटे बाद भी आसन कर सकते है । आवशयक साधनः

गमव कंबल, चटाई अथवा टाट आिद को िबछाकर ही आसन

करवाये। (केनद संचालक आसन करवाने हे तु गमव कंबल, चटाई अथवा टाट आिद की वयवसथा करे गे।)

सवचछता ः शौच और सनान से िनवत ृ होकर आसन करे तो अचछा है ।

धयान दे - शास मुँह से न लेकर नाक से ही लेना चािहए। आसन करते समय शरीर के साथ जबरदसती न करे । धैयप व ूवक व अभयास बढाते जाये। िटपपणीः

8 वषव से कम उम वाले बचचो को कोई भी आसन या पाणायाम नहीं

करना चािहए। 5 से 8 वषव के बचचो को वयायाम करा सकते है । आसन करवाने के पशात बचचो को आसन की िविध नोटबुक मे िलखवा दे ।

िव शेषः बािलकाओं को सवाग व ासन, चकासन और हलासन केनद मे नहीं कराये।

बािलकाएँ केनद मे ये आसन सीख कर घर पर इनका अभयास करे । िटपपणीः

कोई भी आसन करवाने से पहले बचचो से आसन के बारे मे चचाव करे ,

उसके लाभ बताये। आसन की िविध बताते हुए सवयं करके या िकसी बचचे दारा करवा के सभी बचचो को िदखाये, ििर सभी बचचो से करवाये। पदासन

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सवप व थम बचचो से पश करते हुए आसन से होने वाले लाभो की चचाव करे । जैसे-

बचचो! कया आप सदै व पसनन रहना चाहते है ? अपना मनोबल व आतमबल बढाना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय पदासन का अभयास कीिजये। ििर बचचो को इस आसन का पिरचय दे ।

पिर चयः इस आसन मे पैरो का आकार पद अथात व कमल जैसा बनने से इसको

पदासन या कमलासन कहा जाता है ।

लाभ ः इस आसन से मन िसथर और एकाग होता है । पदासन के िनतय अभयास

से सवभाव मे पसननता बढती है , मुख तेजसवी बनता है व जीवनशिि का िवकास होता है । इससे आतमबल व मनोबल भी खूब बढता है । इस आसन से पेट व पीठ के सनायु मजबूत बनते है व बुिद तीव होती है ।

िव िधः िबछे हुए आसन पर बैठ जाएँ व पैर खुले छोड दे । शास छोडते हुए दािहने पैर को मोडकर बायीं जंघा पर ऐसे रखे िक एडी नािभ के नीचे

आये। इसी पकार बाये पैर को मोडकर दायीं जंघा पर रखे। पैरो का कम बदल भी सकते है । दोनो हाथ दोनो घुटनो पर जान मुदा मे रहे व दोनो

घुटने जमीन से लगे रहे । अब गहरा शास भीतर भरे । कुछ समय तक शास रोके, ििर धीरे -धीर

छोडे । धयान आजाचक मे हो, आँखे अधोनमीिलत हो अथात व ् आधी खुली, आधी बंद। िसर, गदव न,

छाती, मेरदं ड आिद पूरा भाग सीधा और तना हुआ हो।

पारिमभक स मयः 5 से 10 िमनट। धीरे -धीरे इसका समय बढा सकते है । धयान,

जप, पाणायाम आिद करने के िलए यह मुखय आसन है । इस आसन मे बैठकर आजाचक पर गुर अथवा इष का धयान करने से बहुत लाभ होता है ।

रोगो मे ल ाभः यह आसन मंदािगन, पेट के कृ िम व मोटापा दरू करने मे

लाभदाय़क है । इसका िनयिमत अभयास दमा, अिनदा, िहसटीिरया आिद रोगो को दरू करने मे सहायक है ।

सावधानीः

आसन मे न बैठे।

कमजोर घुटनोवाले, अशि या रोगी वयिि जबरदसती हठपूवक व इस ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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सवाव गासन सवप व थम बचचो से पशोतरी दारा इस आसन से होने वाले लाभो की चचाव करे ।

जैसे – बचचो! कया आप अपने नेतो और मिसतषक की शिि बढाना चाहते है ? कया आप अपनी शिि को ऊधवग व ामी बनाना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय सवाग व ासन का अभयास कीिजये। ििर बचचो को इस आसन का पिरचय दे ।

पिर चयः इस आसन मे समग शरीर को ऊपर उठाया जाता है । उस समय शरीर

के सभी अंग सिकय रहते है । इसीिलए इसे सवाग व ासन कहते है ।

लाभ ः यह आसन मेधाशिि को बढाने वाला व िचरयौवन की पािि कराने वाला

है । िवदािथय व ो को तथा मानिसक, बौिदक कायव करने वाले लोगो को यह आसन अवशय करना चािहए। इससे नेतो और मिसतषक की शिि बढती है । इस आसन को करने से

बहचयव की रका होती है व सवपनदोष जैसे रोगो का नाश होता है । सवाग व ासन के िनतय अभयास से जठरािगन तीव होती है , तवचा लटकती नहीं तथा झुिरव याँ नहीं पडतीं। िव िधः िबछे हुए आसन पर लेट जाये। शास लेकर भीतर रोके व कमर से दोनो पैरो तक का भाग

ऊपर उठाये। दोनो हाथो से कमर को आधार दे ते हुए पीठ का भाग भी ऊपर उठाये। अब सामानय

शास-पशास करे । हाथ की कोहिनयाँ भूिम से लगी रहे व ठोढी छाती के साथ िचपकी रहे । गदव न और कंधे के बल पूरा शरीर ऊपर की ओर सीधा खडा कर दे । दिष पैर के दोनो अँगूठो पर हो। गहरा

शास ले, ििर शास बाहर िनकाल दे । शास बाहर रोक कर गुदा व नािभ के सथान को अंदर िसकोड

ले व ‘ॐ अय व माय ै नम ः’ मंत का मानिसक जप करे । अब गुदा को पूवव िसथित मे लाये। ििर से

ऐसा करे , 3 से 5 बार ऐसा करने के बाद गहरा शास ले। शास भीतर भरते हुए ऐसा भाव करे िक ‘मेरी ऊजाश व िि ऊधवग व ामी होकर सहसार चक मे पवािहत हो रही है । मेरे जीवन मे संयम बढ रहा है । ििर शास बाहर छोडते हुए उपयुि व िविध को दोहराये। ऐसा 5 बार कर सकते है । सवाग व ासन की िसथित मे दोनो पैरो को जांघो पर लगाकर पदासन िकया जा सकता है ।

समय ः सामानयतः एक से पाँच िमनट तक यह आसन करे । कमशः 15 िमनट

तक बढा सकते है ।

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रोगो मे ल ाभः थायराइड नामक अंतः गंिथ मे रि संचार तीव गित से होने लगता है , िजससे थायराइड के अलप िवकासवाले रोगी के लाभ होता है । सावधानीः

थायराइड के अित िवकास वाले, उचच रिचाप, खूब कमजोर हदयवाले

और अतयिधक चबीवाले लोग यह आसन न करे ।

ॐॐॐॐॐॐॐ हलासन

सवप व थम बचचो से पशोतरी दारा इस आसन से होने वाले लाभो की चचाव करे । जैसे – बचचो ! कया आप अपने शरीर को िुतीला बनाना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय हलासन का अभयास कीिजए। ििर बचचो को इस आसन का पिरचय दे ।

पिर चयः इस आसन मे शरीर का आकार हल जैसा बन जाता है , इसिलए इसे

हलासन कहते है । यह आसन करते समय धयान िवशुदाखय चक मे रखे।

लाभ ः युवावसथा जैसी सिूितव बनाये रखने वाला व पेट की चबी कम करने वाला

यह अदभुत आसन है । इस आसन के िनयिमत अभयास से शरीर बलवान व तेजसवी बनता है और रि की शुिद होती है ।

िव िधः सीधे लेट जाये, शास लेकर भीतर रोके। अब दोनो पैरो को एक साथ धीरे -धीरे ऊपर ले जाये। पैर िबलकुल सीधे, तने हुए रखकर पीछे

िसर की तरि झुकाये व पंजे जमीन पर लगाये। ठोढी छाती से लगी रहे । ििर सामानय शास-

पशास करे । शास लेकर रोके व धीरे -धीरे मूल िसथित मे आ जाये।

समय ः एक से तीन िमनट।

रोगो मे ल ाभः इस आसन के अभयास से लीवर की कमजोरी दरू होती है ।

मधुमेह अथात व ् डायिबटीज, दमा, संिधवात, अजीणव, कबज आिद रोगो मे यह अतयंत

लाभदायक है । पीठ, कमर की कमजोरी दरू होती है , िसर एवं गले का ददव तथा पेट की बीमािरयाँ दरू होती है ।

ॐॐॐॐॐॐॐ

वजासन सवप व थम बचचो से पशोतरी दारा इस आसन के होनेवाले लाभो की चचाव करे । जैसे- बचचो! कया आप अपनी समरणशिि और रोगपितकारक शिि बढाना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय वजासन का अभयास कीिजये। ििर बचचो को इस आसन का पिरचय दे ।

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पिर चयः इस आसन का िनयिमत अभयास करने से शरीर वज के समान शििशाली हो जाता है । इसीिलये इसे वजासन कहते है । यह आसन करते समय धयान मूलाधार चक मे िसथत करे ।

लाभ ः पाचनशिि व समरणशिि मे विृद होती है एवं आँखो की जयोित तीव होती है । रि के शेतकणो की संखया मे विृद होती है , िजससे रोगपितकारक शिि बढती है ।

िव िधः दोनो पैरो को घुटनो से मोडकर दोनो एिडयो पर बैठ जाये। पैरो के तलवो के ऊपर िनतमब रहे व दोनो अँगूठे परसपर लगे रहे । कमर और पीठ िबलकुल सीधी रहे ।

दोनो बाजुओं को कोहिनयो से मोडे िबना हाथ घुटनो पर रख दे । हथेिलयाँ नीचे की ओर रहे व दिष सामने िसथर कर दे ।

िव शेषः भोजन करने के बाद इस आसन मे बैठने से भोजन जलदी पच जाता है ।

रोगो मे ल ाभः मानिसक अवसाद (िडपेशन) से पीिडत वयिि अगर इस आसन मे

पितिदन बैठे तो उसके जीवन मे पसननता व शारीिरक सिूितव आती है । ॐॐॐॐॐॐ

शशका सन सवप व थम बचचो से पशोतरी दारा इस आसन से होने वाले लाभो की चचाव करे । जैसे- बचचो! कया आप अपने िजदी और कोधी सवभाव पर िनयंतण पाना चाहते है ? अपनी िनणय व शिि बढाना चाहते है ? आजाचक का िवकास कर आप हर केत मे सिल होना

चाहते है ? हाँ तो आप िनतय शशकासन का अभयास कीिजये। ििर बचचो को इस आसन का पिरचय दे ।

लाभ ः यह आसन किट पदे श की मांसपेिशयो के िलए अतयंत लाभदायक है ।

इसके अभयास से सायिटका की तंितका व एिडनल गंिथ के कायव संतिु लत होते है ।

आजाचक का िवकास होता है , िनणय व शिि बढती है । िजदी व कोधी सवभाव पर भी िनयंतण होता है ।

िव िधः पकार 1. वजासन मे बैठ जाये। शास लेते हुए बाजुओं को ऊपर उठाये व हाथो को नमसकार की

िसथित मे जोड दे । शास छोडते हुए धीरे -धीरे आगे

झुककर मसतक जमीन पर लगा दे । जोडे हुए हाथो

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को शरीर के सामने जमीन पर रखे व सामानय शास-पशास करे । धीरे -धीरे शास लेते हुए हाथ, िसर उठाते हुए मूल िसथित मे आ जाये। पकार -2. इसमे कमर के पीछे दािहनी कलाई

को बाये हाथ से पकड ले। अँगूठा अनदर रखते

हुए दािहने हाथ की मुटठी बाँध ले। बाकी पिकया पकार 1 के अनुसार करे ।

पकार -3. इसमे दोनो हाथो की मुिटठयाँ जंघामूल पर पेडू से सटाकर रखे। दोनो हाथो की किनषकाएँ जांघो पर तथा अँगूठा ऊपर रहे । बाकी पिकया पकार 1 के अनुसार करे ।

नोटः दोनो हाथो को जमीन पर िैलाकर भी यह आसन कर सकते है ।

िव शेषः ‘ ॐ ग ं गणप तये नम ः’ मंत का मानिसक जप व गुरदे व, इषदे व की

पाथन व ा-धयान करते हुए शरणागित भाव से इस िसथित मे पडे रहने से भगवान और

सदगुर के चरणो मे पीित बढती है व जीवन उननत होता है । रोज सोने से पहले व सवेरे उठने के तुरंत बाद 5 से 10 िमनट तक ऐसा करे ।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पादपिशमोतानासन सवप व थम बचचो से पशोतरी दारा इस आसन से होने वाले लाभो की चचाव करे । जैसेबचचो! कया आप अपनी लमबाई बढाना चाहते है ? िवकारी, कोधी सवभाव पर िनयंतण पाकर संयमी, धैयव व ान और साहसी बनना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय पादपिशमोतानासन का अभयास कीिजये। ििर बचचो को आसन का पिरचय दे ।

पिर चयः यह आसन भगवान िशव को अतयंत िपय है । भगवान िशव ने मुिकंठ से

इस आसन की पशंसा करते हुए कहा है ः ‘यह आसन सवश व ष े है ।’ इसे करते समय धयान मिणपुर चक मे िसथत हो।

लाभ ः िचंता एवं उतेजना शांत करने के िलए यह आसन उतम है । इस आसन से

उदर, छाती और मेरदणड की कायक व मता बढती है । संिधसथान मजबूत बनते है और जठरािगन पदीि होती है । पेट के कीडे अनायास ही मर जाते है । िव िधः बैठकर दोनो पैरो को सामने लंबा िैला दे ।

शास भीतर भरते हुए दोनो हाथो को ऊपर की ओर

लंबा करे । शास रोके हुए दािहने हाथ की तजन व ी और

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अँगूठे से दािहने पैर का अँगूठा और बाये हाथ की तजन व ी और अँगूठे से बाये पैर का अँगूठा पकडे । शास छोडते हुए नीचे झुके और िसर

दोनो घुटनो के मधय मे रखे। ललाट घुटने को सपशव करे और घुटने जमीन से लगे रहे । हाथ की दोनो कोहिनयाँ घुटनो के पास जमीन से लगी रहे । सामानय शास-पशास करते

हुए इस िसथित मे यथाशिि पडे रहे । धीरे -धीरे शास भीतर भरते हुए मूल िसथित मे आ जाये।

समय ः पारमभ मे आधा िमनट इस आसन को करते हुए धीरे -धीरे 15 िमनट तक

बढा सकते है ।

धयान दे - आप अवशय इस आसन का लाभ लेना। पारं भ के चार-पाँच िदन जरा

किठन लगेगा लेिकन थोडे िदनो के िनयिमत अभयास के पशात आप सहजता से यह आसन कर सकेगे। यह िनिशत ही सवासथय का सामाजय सथािपत कर दे गा।

रोगो मे ल ाभः मन को गंदे िवचारो से बचाकर संयिमत करने हे तु इस आसन का

िनयिमत अभयास करना चािहए। इसके अभयास से सवपनदोष, वीयिववकार व रििवकार रोग दरू होते है ।

मंदािगन, अजीणव, पेट के रोग, सदी, खाँसी, कमर का ददव , िहचकी, अिनदा, जानतंतुओँ की

दब व ता, नल की सूजन आिद बहुत से रोग इसके अभयास से दरू होते है । मधुपमेह, ु ल

आंतपुचछ शोथ (अपेिनडसाइिटस), दमा, बवासीर आिद रोगो मे भी यह अित लाभदायक है । ॐॐॐॐॐॐॐ

ताडासन सवप व थम बचचो से पशोतरी दारा इस आसन से होने वाले लाभो की चचाव करे । जैसे-

बचचो! कया आप अपनी लमबाई बढाना चाहते है ? अपनी ऊजाश व िि को ऊधवग व ामी बनाना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय ताडासन का अभयास कीिजए। ििर बचचो को इस आसन का पिरचय दे ।

पिर चयः इस आसन मे शरीर की िसथित ताड या खजूर के वक ृ के समान लमबी

होती है , अतः इसे ताडासन कहते है ।

लाभ ः इस आसन से सिूितव, पसननता, जागरकता व नेतजयोित मे विृद होती है ।

बचचे व युवा यिद ताडासन और पादपिशमोतानासन का पितिदन अभयास करे तो शऱीर का कद बढाने मे मदद िमलती है ।

िव िधः दोनो पैरो के बीच मे 4 से 6 इं च का िासला रखकर सीधे खडे हो जाये। हाथो

को शरीर से सटा कर रखे। एिडयाँ ऊपर उठाते समय शास अंदर भरते हुए दोनो हाथ िसर से ऊपर उठाये। पैरो के पंजो पर खडे रहकर शरीर को पूरी तरह ऊपर की ओर

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खींचे। िसर सीधा व दिष आकाश की ओर रहे । हथेिलयाँ आमने-सामने हो। शास भीतर रोके हुए यथाशिि इसी िसथित मे खडे रहे । शास

छोडते हुए एिडयाँ जमीन पर वािपस लाये। हाथ नीचे लाकर मूल िसथित मे आ जाये।

समय ः आधा-आधा िमनट तक तीन बार करे । इसकी समयाविध बढाकर एक साथ एक से तीन तक भी कर सकते है । (एक साथ तीन िमनट तक करना हो तो यथाशिि शास रोके ििर धीरे -धीरे छोडे । पुनः शास लेकर रोके)।

रोगो मे ल ाभः इसके िनयिमत अभयास से

सवपनदोष, वीयिववकार, धातुकय जैसी बीमािरयो मे लाभ होता है । दमे के रोिगयो के िलए यह आसन बडा ही लाभपद है ।

ताडासन

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

शवासन सवप व थम बचचो से पशोतरी दारा इस आसन से होने वाले लाभो की चचाव करे । जैसे-

बचचो! कया आप अपनी मनःशिि को बढाना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय शवासन का अभयास कीिजए। ििर बचचो को इस आसन का पिरचय दे ।

पिर चयः इस आसन की पूणाव व सथा मे शरीर की िसथित मत ृ क वयिि जैसी हो जाती

है , अतः इसे शवासन कहते है ।

लाभ ः अनय आसन करने के बाद मे जो तनाव होता है , उसको दरू करने के िलए अंत

मे तीन से पाँच िमनट तक शवासन करना चािहए। अनय समय मे भी इसे कर सकते है । इससे रिवािहिनयो मे रिपवाह तीव होने से शारीिरक, मानिसक थकान उतर जाती है ।

इस आसन के दारा सनायु एवं मांसपेिशयो का िशिथलीकरण होता है , िजससे उनकी शिि बढती है ।

िव िधः सीधे लेट जाये, दोनो पैरो को एक दस ू रे से थोडा अलग कर दे व दोनो हाथ भी शरीर से अलग रहे । पूरे शरीर को मत ृ क वयिि के शरीर की तरह ढीला छोड दे । िसर सीधा रहे व आँखे बंद। हाथ की

हथेिलयाँ आकाश की तरि खुली रखे।

मानिसक दिष से शरीर को पैर से िसर

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तक दे खते जाये। बारी-बारी से एक-एक अंग पर मानिसक दिष एकाग करते हुए भावना

करे िक वह अंग अब आराम पा रहा है । ऐसा करने से मानिसक शिि मे विृद होती है ।

धयान रहे िक शरीर के िकसी भी अंग मे कहीं भी तनाव न रहे । िशिथलीकरण की पिकया मे पैर से पारं भ कर के िसर तक जाये अथवा िसर से पारं भ कर के पैर तक भी जा सकते है । जहाँ से आरमभ िकया हो वहीं पुनः पहुँचना चािहए।

धयान दे - शवासन करते समय िनिदत न होकर जागत रहना आवशयक है । ििर

शासोचछवास पर धयान दे ना है । शवासन की यह मुखय पिकया है । शास और उचछवास दीघव व सम रहे ।

रोगो मे ल ाभः नाडीतंत की दब व ता दरू होती है । इस आसन को करने से हदय ु ल

की तकलीिो व मानिसक रोगो मे शीघ आराम पाि होता है ।

समय ः 2-3 आसन के बाद 1 िमनट तक शवासन करना चािहए। सभी आसनो के

अंत मे 10 से 15 िमनट तक करे ।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पाणायाम -पिरचय सवप व थम बचचो को पाण और पाणायाम के बारे मे बताये। पथ ृ वी, जल, तेज, वायु, आकाश – इन पाँच ततवो से यह शरीर बना है । इसका संचालन वायुततव से िवशेष होता है । वायु की अंतरं ग शिि (जीवनशिि का नाम है – पाण। आयाम अथात व िनयमन। इस

पकार पाणायाम का अथव है होता है ‘पाणो का िनयमन।’ पाणायाम केवल शास-पशास की िकया नहीं है बिलक यह पाणशिि को वश मे करने की ऋिष िनिदवष एक शासीय पदित है । ‘जाबालोविनषद’ मे पाणायाम को समसत रोगो का नाशकताव बताया गया है । मनुषय

के िेिडो मे तीन हजार छोटे -छोटे िछद होते है । साधारण शास लेने वाले मनुषय के तीन सौ से पाँच सौ से िछद काम करते है । िजससे शरीर की रोग पितकारक शिि कम हो जाती है और हम जलदी बीमार हो जाते है । रोज पाणायाम करने से ये बंद िछद खुल जाते है , िजससे कायव करने की कमता बढती है व रोगो से बचाव होता है ।

भोजन करने से आधा घंटा पूवव व भोजन करने के चार घंटे बाद पाणायाम िकये

जा सकते है ।

8 वषव से अिधक उम वाले बचचो को ही पाणायाम कराये, वह भी उनकी शिि के

अनुसार ही। भामरी पाणायाम 3 वषव से अिधक उम वाले बचचे कर सकते है ।

कोई भी पाणायाम करवाने से पहले सवप व थम बचचो को उस पाणायाम का पिरचय

दे । ििर करने की िविध बताते हुए सवयं करके या िकसी बचचे दारा करवा के सभी बचचो को िदखाये। ििर सभी बचचो से करवाये।

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भा मरी प ाणायाम सवप व थम बचचो से पशोतरी दारा इस पाणायाम से होने वाले लाभो की चचाव करे ।

जैसे - बचचो! कया आप अपनी समरणशिि और बौिदक शिि बढाना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय भामरी पाणायाम का अभयास कीिजए।

पिर चयः िवदाथीयो की समरणशिि तथा बौिदक शिियो को िवकिसत करने के

िलए यह सवस व ल ु भ व बहु-उपयोगी पाणायाम है । इस पाणायाम मे भमर अथात व भँवरे की तरह गुंजन करना होता है इसीिलए इसका नाम भामरी पाणायाम रखा गया है ।

लाभ ः समिृतशिि का िवकास होता है , जानतंतुओं को पोषण िमलता है , मिसतषक

की नािडयो का शोधन होता है ।

िव िधः पदासन मे सीधे बैठ जाये। खूब गहरा

शास लेकर दोनो हाथो की तजन व ी (अँगूठे के पासवाली) उँ गली से अपने दोनो कानो के िछद बंद कर ले। कुछ

समय शास रोके रखे। शास छोडते हुए होठ बंद रखकर भौरे (भमर) की तरह ‘ॐ’ का दीघव गुंजन करे ।

धयान दे - आँखे और होठ बंद रहे । ऊपर व नीचे के दाँतो

भामरी पाणायाम

के बीच आधे से एक सैटीमीटर का िासला रहे ।

िव शेषः इसके िनयिमत अभयास दारा अनिगनत िवदाथीयो ने अपनी यादशिि व

बुिदशिि का िवकास िकया है । जो िवदाथी पहले 60 से 65% अंक पाि करते थे, अब वे 80 से 85% अंक पाि कर रहे है । यह पाणायाम पितिदन पाँच से दस बार करे । ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनलोम -िवलोम पाणायाम सवप व थम बचचो से पशोतरी दारा इस पाणायाम से होने वाले लाभो की चचाव करे ।

जैसे – बचचो! कया आप अपना पाणबल, मनोबल व आतमबल िवकिसत करना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय अनुलोम-िवलोम पाणायाम कीिजये।

पिर चयः पाणबल, मनोबल व आतमबल िवकिसत करने का अनुपम खजाना है –

अनुलोम-िवलोम पाणायाम। यह पाणायाम करने मे सरल एवं सभी के िलए अतयंत लाभदायक है ।

लाभ ः इस पाणायाम से शास लयबद तथा सूकम हो जाते है और सवासथय के

साथ-साथ आधयाितमकता मे भी लाभ होता है । पाणशिि का िनयमन होता है , िजससे

धयान-भजन मे मन लगता है । मानिसक तनाव दरू होता है । आनंद, उतसाह व िनभय व ता

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की पािि होती है । एकागता मे भी विृद होती है । तन-मन मे ताजगी व सिूितव भरने के िलए यह पाणायाम रामबाण औषिध िसद होता है ।

िव िधः पदासन मे बैठकर दोनो नथुनो से पूरा शास बाहर िनकाल दे । अब दािहने

हाथ की तजन व ी (पहली उँ गली) व मधयमा

(बडी उँ गली) को अंदर की ओर मोडकर उसके अँगूठे से दाये नथुने को बंद करके बाये नथुने से भीतर लंबा शास ले। शास भीतर लेने की

िकया को ‘पूरक’ कहते है । दोनो नथुनो को बंद करके िनिशत समय तक शास भीतर ही रोके

अनलोम -िवलोम

रखे। यह हुआ ‘आभयांतर कुंभक।’ कुंभक की

अवसथा मे ‘ॐ’ अथवा िकसी भी भगवननाम का जप अतयंत लाभदायी है । ििर बाये नथुने को दािहने हाथ की किनिषका (सबसे छोटी उँ गली) व

अनािमका (उसके पासवाली उँ गली) से बंद करके दाये नथुने से धीरे -धीरे शास बाहर छोडते हुए पूरा बाहर िनकाल दे । शास बाहर छोडने की िकया को ‘रे चक’ कहते है । दोनो नथुनो को बंद कर शास को बाहर ही सुखपूवक व रोके। इसे ‘बाहा कुंभक’ कहते है । अब दाये

नथुने से शास ले। ििर िनिशत समय तक शास भीतर ही रोके रखे। बाये नथुने से शास धीरे -धीरे छोडे । पूरा शास बाहर िनकल जाने के बाद उसे बाहर ही रोके। यह एक पाणायाम हुआ। इसमे समय का अनुपात इस पकार है । पूरक 1

आभयांतर कुंभक 4

रे चक 2

बिहकुवभक 2

अथात व ् शास लेने मे यिद 10 सैकेड लगाये तो 40 सैकेड शास रोक कर रखे। 20

सैकेड शास छोडने मे लगाये तथा 20 सैकेड बाहर रोके। धीरे -धीरे िनयिमत अभयास दारा इस िसथित को पाि िकया जा सकता है ।

धयान दे - िवशेष धयान दे ने की बात है िक मूलबंध (गुदा का संकोचन करना),

उडडीयानबंध (पेट को अंदर की ओर िसकोडकर ऊपर की ओर खींचना) एवं जालंधरबंध

(ठोढी को कंठकूप से लगाना) – इस तरह से ितबंध करके यह पाणायाम करने से अिधक लाभदायक िसद होता है ।

पातःकाल ऐसे 5 से 10 पाणायाम करने का पितिदन अभयास करना चािहए। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

102

बुिदशिि -मेधाशििवध व क पयो ग सवप व थम बचचो से पशोतरी दारा इस पयोग से होने वाले लाभो की चचाव करे ।

जैसे- बचचो! कया आप अपनी बुिदशिि, धारणाशिि और मेधाशिि बढाना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय बुिदशिि – मेधाशििवधक व पयोग कीिजये।

पिर चयः यह एक उतम यौिगक पयोग है , िजसका िनयिमत अभयास करने से

बचचे िनिशत ही बुिदशिि, धारणाशिि और मेधाशिि के धनी हो सकते है । बुिद शिि वधव क पयोग

लाभ ः इसके िनयिमत अभयास से जानतंतु

पुष होते है । चोटी के सथान के नीचे गाय के खुर

के आकार वाला बुिदमंडल है , िजस पर इस पयोग

का िवशेष पभाव पडता है और बुिद व धारणा शिि का िवकास होता है ।

िव िधः सीधे खडे हो जाये। दोनो हाथो की मुिटठयाँ

बंद करके हाथो को शरीर से सटाकर रखे। िसर पीछे की तरि ले जाये। दिष आसमान की ओर हो। इस िसथित मे 25 बार गहरा शास ले और छोडे । मूल िसथित मे आ जाये।

मेधाशििवध व क पयो ग लाभ ः इसके िनयिमत अभयास से मेधाशिि बढती है । िव िधः सीधे खडे हो जाये। दोनो हाथो की मुिटठयाँ

बंद करके हाथो को शरीर से सटाकर रखे। आँखे बंद करके िसर नीचे की तरि इस तरह झुकाये िक ठोढी

कंठकूप से लगे रहे और कंठकूप पर हलका सा दबाव पडे । इस िसथित मे 25 बार गहरा शास ले और छोडे । मूल िसथित मे आ जाये।

िव शेषः शास लेते समय ‘ॐ’ मंत का मानिसक जप करे व छोडते समय उसकी िगनती करे ।

धयान दे - यह पयोग सुबह खाली पेट करे । दोनो पयोग पारमभ मे 15 बार करते है । ििर धीरे -धीरे संखया 25 तक बढा सकते है , ऐसा बचचो को बताये।

ॐॐॐॐॐॐॐॐ 103

पाणशििवध व क पयो ग बचचो से पशोतरी दारा इस पयोग से होने वाले लाभो की चचाव करे । जैसे- बचचो!

कया आप अपनी पाणशिि को बढाना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय पाणशििवधक व पयोग कीिजए।

पिर चयः इससे पाणशिि का अदभुत िवकास होता है । अतः इसे पाणशििवधक व

पयोग कहते है ।

लाभ ः इससे हमारी नािभ के नीचे जो सवािधषान केनद है , उसे जागत ृ होने मे खूब

मदद िमलती है । सवािधषान केनद िजतना सिकय होगा, उतना पाणशिि के साथ-साथ रोग-पितकारक शिि एवं मनःशिि बढने मे मदद िमलेगी।

वैजािनको ने इस केनद की शिियो का वणन व करते हुए कहा है ः It is the mind of

the stomach. यह पेट का मसतक है ।

िव िधः धरती पर कंबल अथवा चटाई िबछा कर सीधे लेट जाये, शरीर को ढीला

छोड दे , जैसे शवासन मे करते है । दोनो हाथो की उँ गिलयाँ नािभ के आमने सामने पेट पर रखे। हाथ की कोहिनयाँ धरती पर लगी रहे ।

जैसे होठो से सीटी बजाते है वैसी मुखमुदा बनाकर नाक के दोनो नथुनो से खूब

गहरा शास ले। मुह ँ बंद रहे । होठो की ऐसी िसथित बनाने से दोनो नथुनो से समान रप मे शास भीतर जाता है

10-15 सैकेड तक शास को रोके रखे। इस िसथित मे पेट को अनदर बाहर करे ,

अनदर जयादा बाहर कम। यह भावना करे िक मेरी नािभ के नीचे का सवािधषान केनद जागत ृ हो रहा है ।

ििर होठो से सीटी बजाने की मुदा मे मुह ँ से धीरे -धीरे शास बाहर छोडते हुए यह

भावना करे िक ‘मेरे शरीर मे जो दब व पाण है अथवा रोग के कण है उनको मै बाहर ु ल िैक रहा हूँ।’

इससे हमारी नािभ के नीचे जो सवािधषान केनद है उसे जागत ृ होने मे खूब मदद

िमलती है ।

िटपपणीः

यह पयोग 2 से 3 बार करे ।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

टंक िवदा पिर चयः आजकल अिधकांश लोगो की यह समसया है िक धयान-भजन मे बैठते है पर मन नहीं लगता। मन को एकाग करने वाला, मन की चंचलता दरू करने वाला एक अनुपम पयोग है – टं क िवदा।

104

लाभ ः पितिदन इसे करने से मन ईशर मे लगने लगेगा व धयान-भजन का पभाव कई गुणा बढ जाएगा। यह पयोग करके जप-धयान करोगे तो इडा व िपंगला नाडी का दार खुलेगा, सुषुमना नाडी जागत ृ होगी। िवशुदाखय केनद भी जागत ृ होगा। िेिडो की शिि व रोगपितकारक शिि का अदभुत िवकास होता है । थायराइड के रोग नष होने लगते है ।

िव िधः पदासन अथवा सुखासन मे बैठ जाये। हाथो को घुटनो पर जान मुदा मे

रखे। कमर सीधी रहे । दोनो नथुनो से खूब गहरा शास भीतर भरे । कुछ समय तक शास सुखपूवक व भीतर ही रोके। मुह ँ बंद रखकर कंठ से ‘ॐ’ की धविन करते हुए कंठकूप पर थोडा दबाव पडे , इस पकार शास पूरा होने तक िसर को धीरे -धीरे ऊपर-नीचे करे । यही िकया दो-तीन बार दोहराये। िटपपणीः

सुबह-शाम दोनो समय खाली पेट इसे करे । ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सू योपासना सूयव बुिदशिि के सवामी है । पातःकाल सूयव को अघयव दे ना, 8-10 िमनट तक सूयस व नान करना व सूयन व मसकार करना – ये नीरोगी व सवसथ जीवन की सवस व ुलभ

कुंिजयाँ है । हमारे ऋिषयो ने मंत और वयायाम को िमलाकर एक ऐसी पणाली िवकिसत की है , िजसमे सूयोपासना का भी समनवय है । इसे सूयन व मसकार कहते है ।

सूयन व मसकार से शरीर की रि-संचरण पणाली, शसन-पणाली, पाचन-पणाली आिद

पर अनुकूल पभाव पडता है । नेतजयोित मे विृद होती।

सूयन व मसकार से सौर केनद िवकिसत होता है । भावनाएँ िनयंितत होती है और

आतमबल बढता है । सूयन व मसकार के िनयिमत अभयास से शारीिरक और मानिसक सिूितव के साथ िवचारशिि व समरणशिि तीव होती है ।

पातःकाल शौच-सनानािद से िनवत ृ होकर कंबल या टाट (कंतान) का आसन

िबछाकर पूवािवभमुख खडे हो जाये। िचत के अनुसार िसदिसथित मे हाथ जोडकर, आँखे बंद करके, हदय मे भििभाव भरकर भगवान सूयन व ारायण को पाथन व ा करे आिद देव नमसत ुभय ं पसीद मम

भासकर।

िदवाकर नमसत ुभय ं पभाकर नमो s सतु त े।।

‘हे आिददे व सूयन व ारायण! मै आपको नमसकार करता हूँ। हे पकाश पदान करने

वाले दे व! आप मुझ पर पसनन हो। हे िदवाकर दे व! मै आपको नमसकार करता हूँ। हे तेजोमुख दे व! आपको मेरा नमसकार है ।’

यह पाथन व ा करने के बाद सूयव के तेरह मंतो मे से पथम मंत ‘ॐ िमताय

नमः।’ के सपष उचचारण के साथ दोनो हाथ जोडे हुए िसर झुका कर सूयद व े व को

105

नमसकार करे । ििर िचतो मे िनिदव ष दस िसथितयो का कमशः आवतन व करे । यह एक सूयन व मसकार हुआ।

िसद िसथ ितः दोनो पैरो की एिडयो और अंगूठे

परसपर लगे हुए,संपूणव शरीर तना हुआ, दिष नािसकाग, दोनोहथेिलयाँ नमसकार की मुदा मे,

िसद

अंगूठे सीने से लगे हुए।

िसथ ित

पहली िसथ ितः

नमसकार की िसथित मे ही दोनो भुजाएँ िसर के ऊपर, हाथ सीधे, कोहिनयाँ तनी हुई, िसर

और कमर से ऊपर का शरीर पीछे की झुका हुआ, दिष करमूल मे, पैर सीधे, घुटने तने

हुए, इस िसथित मे आते हुए शास भीतर भरे ।

मोडते

द ू सरी िसथ ित ः

हाथ को कोहिनयो से न

पहली िसथत ि़

हुए सामने से नीचे की ओर झुके, दोनो हाथ-पैर सीधे, दोनो घुटनेऔर

कोहिनयाँतनी हुई, दोनो हथेिलयाँ दोनो पैरो के पास जमीन के पासलगी हुई,ललाट घुटनो से लगा हुआ, ठोडी उरोिसथ से लगी हुई, इस िसथितमे शास को बाहर छोडे । तीसरी

िसथ ित ः बायाँ पैर पीछे , उसका पंजा और

द ू सरी

िसथ ित

घुटना

धरतीसे लगा हुआ, दायाँ घुटना मुडा हुआ, दोनो हथेिलयाँ

पूवव व त ्, भुजाएँ सीधी-कोहिनयाँ तनी हुई, कनधे और मसतक पीछे खींचेहुए, दिष ऊपर, बाएँ पैर को पीछे ले जाते समय

तीसरी

िसथ ित

शास को भीतर खींचे। हाथ

चौथी िसथ ितः दािहना पैर पीछे लेकर बाएँ पैर के पास, दोनो पैर सीधे, एिडयाँ जमीन से लगी हुई, दोनो घुटने और कोहिनयाँ तनी हुई, कमर ऊपर उठी हुई, िसर घुटनो की ओर खींचा हुआ,

चौथी िसथ ित

ठोडी छाती से लगी हुई, किट और कलाईयाँ इनमे ितकोण, दिष घुटनो की ओर, कमर को ऊपर उठाते समय शास को छोडे ।

106

पाँ चवी ं िसथ ितः साषांग नमसकार, ललाट, छाती, दोनो हथेिलयाँ, दोनो घुटने, दोनो पैरो के पंजे, ये आठ अंग धरती

पर िटके हुए, कमर ऊपर उठाई हुई, कोहिनयाँ एक दस ू रे की

पाँ चवी ं िसथ ित

ओर खींची हुई, चौथी िसथित मे शास बाहर ही छोड कर रखे।

छठी िसथ ित ः घुटने और जाँघे धरती से सटी हुई, हाथ सीधे, कोहिनयाँ तनी हुई, शरीर कमर से ऊपर उठा हुआ मसतक पीछे की ओर झुका हुआ, दिष ऊपर, कमर

हथेिलयो की ओर खींची हुई, पैरो के पंजे िसथर, मेरदं ड

छठी िसथ ित

धनुषाकार, शरीर को ऊपर उठाते समय शास भीतर ले।

सातव ीं िसथ ित ः यह िसथित चौथी िसथित की पुनराविृत है । कमर ऊपर उठाई हुई, दोनो हाथ पैर सीधे, दोनो घुटने

और कोहिनयाँ तनी हुई, दोनो एिडयाँ धरती पर िटकी हुई, मसतक घुटनो की ओर खींचा हुआ, ठोडी उरोिसथ से लगी हुई, एिडयाँ, किट और कलाईयाँ – इनमे ितकोण, शास को बाहर छोडे ।

सातव ीं िसथ ित

आठवी ं िसथ ितः बायाँ पैर आगे लाकर पैर का पंजा दोनो हथेिलयो के बीच पूवव सथान पर, दािहने पैर का पंजा और

घुटना धरती पर िटका हुआ, दिष ऊपर की ओर, इस िसथित मे आते समय शास भीतर को ले। (तीसरी और आठवीं

िसथित मे पीछे -आगे जाने वाला पैर पतयेक सूयन व मसकार

आठवी ं िसथ ित

मे बदले।)

नौवी ं िसथ ित ः यह िसथित दस ू री की पुनराविृत है , दािहना पैर आगे लाकर बाएँ के पास पूवव सथान पर रखे, दोनो

हथेिलयाँ दोनो पैरो के पास धरती पर िटकी हुई, ललाट

घुटनो से लगा हुआ, ठोडी उरोिसथ से लगी हुई, दोनो हाथ

पैर सीधे, दोनो घुटने और कोहिनयाँ तनी हुई, इस िसथित मे आते समय शास को बाहर छोडे ।

दसव ीं िसथ ित ः पारिमभक िसद िसथित के अनुसार

नौवी ं

िसथ ित

समपूणव

शरीर तना हुआ, दोनो पैरो की एिडयाँ और अँगूठे परसपर

लगे हुए, दिष नािसकाग, दोनो हथेिलयाँ नमसकार की मुदा दसव ीं

िसथ ित

107

मे, अँगूठे छाती से लगे हुए, शास को भीतर भरे , इस पकार

दस िसथतयो मे एक सूयन व मसकार पूणव होता है । (यह दसवीं िसथित ही आगामी सूयन व मसकार की िसद िसथित बनती है ।)

तीसरी और आठवीं िसथित मे पीछे -आगे िकया जाने वाला पैर पतयेक सूयन व मसकार मे बदले।

ú ú

ú सूय ाव य नमः। 4. ú भानव े नम ः। 5. खगाय नमः। नम ः। 7. ú िहर णयगभा व य नम ः। 8. ú मरी चये नमः। 9. ú आिदतयाय नम ः। 10. ú सिवत े नमः। 11. ú अकावय नमः। 12. ú भास करा य नमः। 13. ú शीसिव तृ -सूय व ना रायण ाय नमः। िमताय नमः।

ú रवय े 6. ú पूषण े 2.

नम ः। 3.

इस तरह से इन 13 मंतो मे से एक-एक मंत का उचचारण करके सूयन व मसकार की

दसो िसथितयो का कमबद अनुसरण करते हुए पितिदन 13 सूयन व मसकार करना अित उतम है ।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

मु दाजान पातः सनान आिद के बाद आसन िबछा कर हो सके तो पदासन मे अथवा

सुखासन मे बैठे। पाँच-दस गहरे साँस ले और धीरे -धीरे छोडे । उसके बाद शांतिचत होकर िनमन मुदाओं को दोनो हाथो से करे । िवशेष पिरिसथित मे इनहे कभी भी कर सकते है ।

बचचो से सवप व थम पशोतरी दारा इस मुदा से होने वाले लाभो की चचाव करे । जैसे-

बचचो! कया आप अपनी एकागता व समरणशिि बढाना चाहते है ? हाँ तो आप िनतय जान मुदा का अभयास कीिजए।

लाभ ः इस मुदा के अभयास से जानतंतुओं को पोषण िमलता है । एकागता व

समरणशिि बढती है । इस मुदा मे बैठकर धयान, पाणायाम आिद करने से िवशेष लाभ होता है । यह िवदािथय व ो के िलए अतयंत उपयोगी व लाभदायक मुदा है । ििर मुदा की िविध बताते हुए सवयं करके सभी बचचो को िदखाये। ततपशात बचचो से करवाये। जान मुदा ः तजन व ी अथात व पथम उँ गली को अँगूठे के नुकीले भाग से सपशव कराये। शेष तीनो उँ गिलयाँ सीधी रहे ।

लाभ ः मानिसक रोग जैसे िक अिनदा अथवा अित िनदा, कमजोर यादशिि, कोधी सवभाव आिद हो तो

जान मुदा 108

यह मुदा अतयंत लाभदायक िसद होगी। यह मुदा करने से पूजा पाठ, धयान-भजन मे मन लगता है । िलंग म ुदा ः दोनो हाथो की उँ गिलयाँ परसपर भींचकर अनदर की ओर रहते हुए अँगूठे को ऊपर की ओर सीधा खडा करे ।

लाभ ः शरीर मे ऊषणता बढती है , खाँसी िमटती है और कि का नाश करती है ।

िलंग म ुदा

शू नय मुदाः सबसे लमबी उँ गली (मधयमा) को

अंदपर की ओर मोडकर उसके नख के ऊपर वाले भाग पर अँगूठे का गदीवाला भाग सपशव कराये। शेष तीनो उँ गिलयाँ सीधी रहे ।

लाभ ः कान का ददव िमट जाता है । कान मे से पस

िनकलता हो अथवा बहरापन हो तो यह मुदा 4 से 5 िमनट तक करनी चािहए।

शू नय मुदा

पृ थवी म ुदा ः किनिषका यािन सबसे छोटी उँ गली को अँगूठे के नुकीले भाग से सपशव कराये। शेष तीनो उँ गिलयाँ सीधी रहे ।

लाभ ः शारीिरक दब व ता दरू करने के िलए, ताजगी ु ल व सिूितव के िलए यह मुदा अतयंत लाभदायक है । इससे तेज बढता है ।

पृ थवी म ुदा

सूय व मुदाः अनािमका अथात व सबसे छोटी उँ गली के पास वाली उँ गली को मोडकर उसके नख के ऊपर वाले भाग को अँगूठे से सपशव कराये। शेष तीनो उँ गिलयाँ सीधी रहे ।

लाभ ः शरीर मे एकितत अनावशयक चबी एवं सथूलता को दरू करने के िलए यह एक उतम मुदा है । वरण म ुदाः मधयमा अथात व सबसे बडी

सूय व मुदा

उँ गली के मोड कर उसके नुकीले भाग को अँगूठे के नुकीले भाग पर सपशव कराये। शेष तीनो उँ गिलयाँ सीधी रहे । वरण म ुदा 109

लाभ ः यह मुदा करने से जल ततव की कमी के कारण होने वाले रोग जैसे िक रििवकार और उसके िलसवरप होने वाले चमरवोग व पाणडु रोग (एनीिमया) आिद दरू होते है ।

पाण मुदाः किनिषका, अनािमका और अँगूठे के ऊपरी भाग को परसपर एक साथ सपशव कराये। शेष दो उँ गिलयाँ सीधी रहे ।

लाभ ः यह मुदा पाण शिि का केद है । इससे शरीर िनरोगी रहता है । आँखो के रोग िमटाने के िलए व चशमे का नंबर घटाने के िलए यह मुदा अतयंत लाभदायक है । वाय ु मुदाः तजन व ी अथात व पथम उँ गली को मोडकर ऊपर से उसके पथम पोर पर अँगूठे की गदी

पाण मुदाः

सपशव कराओ। शेष तीनो उँ गिलयाँ सीधी रहे ।

लाभ ः हाथ-पैर के जोडो मे ददव , लकवा, पकाघात, िहसटीिरया आिद रोगो मे लाभ होता है । इस मुदा

के साथ पाण मुदा करने से शीघ लाभ िमलता है । अपानवा यु म ुदा ः अँगूठे के पास वाली पहली उँ गली को अँगूठे के मूल मे लगाकर अँगूठे के अगभाग की

बीच की दोनो उँ गिलयो के अगभाग के साथ िमलाकर

वाय ु मुदाः

सबसे छोटी उँ गली (किनिषका) को अलग से सीधी

रखे। इस िसथित को अपानवायु मुदा कहते है । अगर िकसी को हदयघात आये या हदय मे अचानक

पीडा होने लगे तब तुरनत ही यह मुदा करने से हदयघात को भी रोका जा सकता है ।

लाभ ः हदयरोगो जैसे िक हदय की घबराहट,

हदय की तीव या मंद गित, हदय का धीरे -धीरे बैठ जाना आिद मे थोडे समय मे लाभ होता है । पेट की गैस, मेद की विृद एवं हदय तथा पूरे

शरीर की बेचैनी इस मुदा के अभयास से दरू होती है ।

अपानवा यु मुदा

आवशयकतानुसार हर रोज 20 से 30 िमनट तक इस मुदा का अभयास िकया जा सकता है ।

ॐॐॐॐॐॐॐॐ

110

की तव न शिि ......... भिि .......... मु िि .......... ! ॐॐॐ हिर ॐॐॐ.....

शिि.... भिि.... और मुिि !....

ॐॐॐ मेरा बोले रोम रोम,

हिर ॐॐॐ मेरा झूमे रोम रोम।

हिर ॐॐॐ मेरा गूज ँ े रोम रोम,

हिर ॐॐॐ मेरा नाचे रोम रोम।

शिि.... भिि... और मुिि!....

गुर ॐॐॐ पभु ॐॐॐ....

राम ॐॐॐ, शयाम ॐॐॐ.... िशव ॐॐॐ, अमबे ॐॐॐ.... शिि.... भिि.... और मुिि!...

हिर ॐॐॐ मेरा बोले रोम रोम, हिरॐॐॐ मेरा नाचे रोम रोम।

हिर ॐॐॐ मेरा गूज ँ े रोम रोम, हिरॐॐॐ मेरा झूमे रोम रोम।

शिि... भिि... और मुिि!....

ॐॐॐॐॐॐॐ ना रायण कीत व न

शीमननारायण नारायण नारायण – 2 शीमननारायण भवतारायण – 2

शीमननारायण नारायण नारायण

बहा नारायण, िवषणु नारायण

िशव नारायण, नारायण, नारायण। माता नारायण िपता नारायण,

गुर नारायण नारायण नारायण। सूयव नारायण चंद नारायण,

पथ ृ वी नारायण नारायण नारायण। मुझमे नारायण तुझमे नारायण,

सबमे नारायण नारायण नारायण।

111

शीमननारायण नारायण नारायण। सोते नारायण जगते नारायण,

धयाते नारायण नारायण नारायण। खाते नारायण पीते नारायण,

कहते नारायण नारायण नारायण। शीमननारायण नारायण नारायण शीमननारायण भवतारायण

शीमननारायण नारायण नारायण।

आते नारायण जाते नारायण,

कहते नारायण नारायण नारायण।

लेते नारायण दे ते नारायण,

कहते नारायण नारायण नारायण।

शीमननारायण नारायण नारायम।

यहाँ नारायण वहाँ नारायण – 2 जहाँ दे खूँ वहाँ नारायण नारायण

शीमननारायण नारायण नारायण – 2 शीमननारायण भवतारायण – 2

शीमननारायण नारायण नारायण।

ॐॐॐॐॐॐॐ मधुर कीत व न

हिर ॐ... हिरॐ.... हिरॐ..... पावन पावन नाम हिर हिरॐ, मंगल मंगल नाम हिर हिर ॐ।

िदलो का दल ु ारा नाम हिर हिर ॐ, किल का िकनारा नाम हिर हिर ॐ।। हिर ॐ... हिरॐ.... हिरॐ.....

पावन पावन नाम हिर हिरॐ, मंगल मंगल नाम हिर हिर ॐ। मुिन मन रं जन भव भय भंजन हिर हिर ॐ, मोहिनवारक सब सुखकारक हिर हिर ॐ । जो कोई गाये भिि पाये हिर हिर ॐ,

जो कोई गाये शिि पाये हिर हिर ॐ । आनंद आनंद नाम हिर हिर ॐ, मधुर मधुर नाम हिर हिर ॐ ।। हिर ॐ... हिरॐ.... हिरॐ.....

मेवाड मे मीरा बोले हिर हिर ॐ, बंगाल मे गौरांग गाये हिर हिर ॐ। 112

महाराष मे नामदे व बोले हिर हिर ॐ, सौराष मे नरसी गाये हिर हिर ॐ। पंजाब मे नानक बोले हिर हिर ॐ, मंगल मंगल नाम हिर हिर ॐ।। हिर ॐ... हिरॐ.... हिरॐ.....

जो कोई धयाये भिि पाये हिर हिर ॐ,

जो कोई धयाये मुिि पाये हिर हिर ॐ। पेम से बोलो पयारा नाम हिर हिर ॐ, िदल से कहो दल ु ारा नाम हिर हिरॐ। किल का िकनारा नाम हिर हिर ॐ, नानक का िपयारा नाम हिर हिर ॐ।

संतो का सहारा नाम हिर हिर ॐ, भारत भर मे गूँजा नाम हिर हिर ॐ।। हिर ॐ... हिरॐ.... हिरॐ.....

पावन पावन नाम हिर हिरॐ, मंगल मंगल नाम हिर हिर ॐ।

िदलो का दल ु ारा नाम हिर हिर ॐ, किल का िकनारा नाम हिर हिर ॐ।

पापो का िवनाशक नाम हिर हिर ॐ, भारत भर मे गूज ँ ा नाम हिर हिर ॐ।। हिर ॐ... हिरॐ.... हिरॐ..... ॐॐॐॐॐॐ

भजन जोड के हा थ झ ुका के म सतक

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । - 2 हरे कृ षणा हरे कृ षणा, कृ षणा कृ षणा हरे हरे ।। - 2

जोड के हाथ झुका के मसतक, माँगे ये वरदान पभु। दे ष िमटाये पेम बढाये, नेक बने इनसान पभु।। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।

हरे कृ षणा हरे कृ षणा कृ षणा कृ षणा हरे हरे ।। भेदभाव सब िमटे हमारा, सबको मन से पयार करे । जाये नजर िजस ओर हमारी, तेरा ही दीदार करे ।।

पल-पल कण-कण करे हमेशा, तेरा ही गुणगान पभु। जोड के हाथ झुका के मसतक, माँगे ये वरदान पभु।। दःुख मे कभी दःुखी ना होवे, सुख मे सुख की चाह न हो। जीवन के इस किठन सिर मे, काँटो की परवाह न हो।। रोक सके न पाँव हमारे , िवघनो के तूिान पभु।

जोडे के हाथ झुका के मसतक, माँगे ये वरदान पभु।। 113

दीन दःुखी और रोगी सबके, दख ु डे िनशिदन दरू करे । पोछ के आँसू रोते नैना, हँ सने पर मजबूर करे ।।

गुरचरणो की सेवा करते, िनकले तन से पाण पभु। जोड के हाथ झुका के मसतक, माँगे ये वरदान पभु।। गुरजान से इस दिुनया का, दरू अँधेरा कर दे हम।

सतय-पेम के मीठे रस से, सबका जीवन भर दे हम।। वीर धीर बन जीना सीखे, तेरी ये संतान पभु।

जोड के हाथ झुका के मसतक, माँगे ये वरदान पभु।। ॐॐॐॐॐॐ

भारत क े नौजवानो !

भारत के नौजवानो! भारत को िदवय बनाना। तुमहे पयार करे जग सारा, तुम ऐसा बन िदखलाना।। केवल इचछा न बढाना, संयम जीवन मे लाना।

सादा जीवन तुम जीना, पर ताने रहना सीना।।

भारत के नौजवानो!............

जो िलखा है सदगनथो मे, जो कुछ भी कहा संतो ने। उसको जीवन मे लाना, वैसा ही बन िदखलाना।।

भारत के नौजवानो!..............

सारे जहाँ से अचछा, िहं दोसताँ हमारा।

हम बुलबुले है इसकी, ये गुलिसताँ हमारा। सारे जहाँ से अचछा िहं दोसताँ हमारा।

तुम पुरषाथव तो करना, पर नेक राह पर चलना।

सजजन का संग ही करना, दज व से बच के रहना।। ु न

भारत के नौजवानो!..............

जीवन अनमोल िमला है , तुम मौके को मत खोना।

यिद भटक गये इस जग मे, जनमो तक पडे गा रोना।। भारत के नौजवानो! भारत को िदवय बनाना।

भारत को िदवय बनाना, भारत को िदवय बनाना। ॐॐॐॐॐॐ

हे म ाँ म ँहगीबा ........

114

हे माँ मँहगीबा बडभागी तू जो ऐसो लाल जनायो! – 2 ऐसो लाल जनायो, खुद बह तेरे घर आयो।। हे माँ मँहगीबा.... जो भूिम का भार उठाये – 2

उसे तूने गोद िखलायो, रे माँ बह तेरे घर आयो।। हे माँ मँहगीबा.... जो सिृष का पालनहारो – 2

उसे तूने दध ू िपलायो, रे माँ बह तेरे घर आयो।। हे माँ मँहगीबा.... योगी िजनको पकड न पाये – 2

तूने उँ गली पकड चलायो, रे माँ बह तेरे घर आयो।। हे माँ मँहगीबा.... िजसका न कोई नाम रप है – 2

बापू आसाराम कहायो, रे माँ बह तेरे घर आयो।। हे माँ मँहगीबा.... शास-शास मे वेद है िजनके – 2

लीलाशाह गुर बनायो, रे माँ बह तेरे घर आयो।। हे माँ मँहगीबा.... भारत का ये संत दल ु ारा – 2

हम सबका है सदगुर है पयारा

तूने पुत रप मे पायो, रे माँ बह तेरे घर आयो।। हे माँ मँहगीबा.... ॐॐॐॐॐॐॐ

मेरे सा ँ ई त ेरे ब चचे ह म ........ मेरे साँई तेरे बचचे हम, तूने सचचा िसखाया धरम।

हम संयमी बने, सदाचारी बने, और चािरतयवान बने।। मेरे साँई.... ये धरम जो िबखरता रहा, तेरा बालक िबगडता रहा।

तूने दीका जो थी, तूने िशका जो दी, नया जीवन उसी से िमला।। है तेरे पयार मे वो दम, ये जीवन िखल जाये जयो पूनम।

हम संयमी बने, सदाचारी बने, और चािरतयवान बने।। मेरे साँई.... जब भी जीवन मे तूिान आये, तेरा बालक घबरा जाये।

तू ही शिि दे ना, तू ही भिि दे ना, तािक उठकर चले आगे हम।। है तेरी करणा मे वो दम, िमट जायेगे हम सबके गम।

हम संयमी बने, सदाचारी बने और चािरतयवान बने।। मेरे साँई.... ॐॐॐॐॐॐ

मिह मा ली लाशाह की आओ शोता तुमहे सुनाऊँ, मिहमा लीलाशाह की।

िसंध दे श के संत िशरोमिण, बाबा बेपरवाह की।। जय जय लीलाशाह, जय जय लीलाशाह।। -2 115

बचपन मे ही घर को छोडा, गुरचरण मे आन पडा। तन मन धन सब अपण व करके, बहजान मे दढ खडा। - 2

नदी पलट सागर मे आयी, व़ ृ ्ित अगम अथाह की।। िसंध दे श के..... योग की जवाला भडक उठी, और भोग भरम को भसम िकया।

तन को जीता मन को जीता, जनम मरण को खतम िकया। - 2 नदी पलट सागर मे आयी, विृत अगम अथाह की।। िसंध दे श के..... सुख को भरते दःुख को हरते, करते जान की बात जी। जग की सेवा लाला नारायण, करते िदन रात जी। - 2

जीवनमुि िवचरते है ये िदल है शहं शाह की।। िसंध दे श के.... ॐॐॐॐॐॐ

माँ -बाप को भ ू लना नह ीं भूलो सभी को मगर, माँ-बाप को भूलना नहीं।

उपकार अगिणत है उनके, इस बात को भूलना नहीं।। पतथर पूजे कई तुमहारे , जनम के खाितर अरे ।

पतथर बन माँ-बाप का, िदल कभी कुचलना नहीं।। मुख का िनवाला दे अरे , िजनने तुमहे बडा िकया।

अमत ृ िपलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।। िकतने लडाए लाड सब, अरमान भी पूरे िकये।

पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूलना नहीं।। लाखो कमाते हो भले, माँ-बाप से जयादा नहीं।

सेवा िबना सब राख है , मद मे कभी िूलना नहीं।। सनतान से सेवा चाहो, सनतान बन सेवा करो।

जैसी करनी वैसी भरनी, नयाय यह भूलना नहीं।। सोकर सवयं गीले मे, सुलाया तुमहे सूखी जगह।

माँ की अमीमय आँखो को, भूलकर कभी िभगोना नहीं।। िजसने िबछाये िूल थे, हर दम तुमहारी राहो मे। उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।।

धन तो िमल जायेगा मगर, माँ-बाप कया िमल पायेगे?

पल पल पावन उन चरण की, चाह कभी भूलना नहीं।। ॐॐॐॐॐॐ

मात िपता ग ुर प भु चरणो म े .... मात िपता गुर पभु चरणो मे पणवत बारमबार। 116

हम पर िकया बडा उपकार, हम पर िकया बडा उपकार।। टे क।। माता ने जो कष उठाया, वह ऋण कभी न जाये चुकाया।

अँगुली पकडकर चलना िसखाया, ममता की दी शीतल छाया। िजनकी गोदी मे पलकर हम, कहलाते होिशयार।

हम पर िकया....... मात-िपता...........।। टे क।।

िपता ने हमको योगय बनाया, कमा कमाकर अनन िखलाया। पढा िलखा गुणवान बनाया, जीवन पथ पर चलना िसखाया। जोड-जोड अपनी संपित का, बना िदया हकदार।

हम पर िकया....... मात-िपता...........।। टे क।।

ततवजान गुर ने दरशाया, अंधकार सब दरू हटाया।

हदय मे भिि दीप जलाकर, हिरदशन व का मागव बताया। िबन सवारथ ही कृ पा करे वे, िकतने बडे है उदार।

हम पर िकया....... मात-िपता...........।। टे क।।

पभु िकरपा से नर तन पाया, संत िमलन का साज सजाया। बल, बुिद और िवदा दे कर, सब जीवो मे शष े बनाया। जो भी इनकी शरण मे आता, कर दे ते उदार।

हम पर िकया....... मात-िपता...........।। टे क।।

कद म अपना

ॐॐॐॐॐॐ

आ गे बढाता चला जा

......

कदम अपना आगे बढाता चले जा। सदा पेम के गीत गाता चला जा।। तेरे मागव मे वीर! काँटे बडे है । िलए तीर हाथो मे वैरी खडे है ।

बहादरु सबको िमटाता चला जा। कदम अपना आगे बढाता चला जा।। तू है आयव व ंशी ऋिषकुल का बालक। पतापी यशसवी सदा दीनपालक।

तू संदेश सुख का सुनाता चला जा। कदम अपना आगे बढाता चला जा।। भले आज तूिान उठकर के आये। बला पर चली आ रही हो बलाएँ।

युवा वीर है दनदनाता चला जा। कदम अपना आगे बढाता चला जा।।

जो िबछुडे हुए है उनहे तू िमला जा। जो सोये पडे है उनहे तू जगा जा। तू आनंद डं का बजाता चला जा। कदम अपना आगे बढाता चला जा।। ॐॐॐॐॐॐ

आरती

117

दीपक जलाने के पशात सवप व थम िनमन शोक बोलते हुए दीपक को पणाम करे ,

ििर आरती करे ।

दीपो जयोित ः पर ं बह दीपो जयोितज दीपो हरत ु म े पाप ं दीपो जयोितन

व नाद व नः।

व मो s सतु त े।।

‘हे दीपजयोित! तू परबहसवरपा है , िवषणुसवरपा है । तू मेरे पापो को हर ले। हे दीप जयोित! तुझे नमसकार है ।’

जयोत स े जयोत

ज गाओ

जयोत से जयोत जगाओ सदगुर! मेरा अनतर ितिमर िमटाओ सदगुर!

जयोत से जयोत जगाओ।। हे योगेशर! हे परमेशर! हे जानेशर! हे सवश े र! िनज िकरपा बरसाओ सदगुर! जयोत से.......

हम बालक तेरे दार पे आये, मंगल दरस िदखाओ सदगुर! जयोत से जयोत... शीश झुकाये करे तेरी आरती, पेमसुधा बरसाओ सदगुर! जयोत से जयोत....

साँची जयोत जगे जो हदय मे सोs हं नाद जगाओ सदगुर! जयोत से जयोत..... अनतर मे युग युग से सोई, िचितशिि को जगाओ सदगुर! जयोत से जयोत..... जीवन मे शीराम अिवनाशी, चरनन शरण लगाओ सदगुर! जयोत से जयोत..... हाथ जोड वनदन करँ, धरँ चरण मे शीश।

जान भिि मोहे दीिजए, परम पुरष जगदीश।। सवामी मोहे न िबसािरयो, चाहे लाख लोग िमल जाये। हम सम तुमको बहुत है , तुम सम हमको नाहीं।। दीनदयाल को िबनती, सुनहुँ गरीब नवाज।

जो हम सब कपूत है , तो है िपता तेरी लाज।। ॐ स ह नाववत ु। सह नौ भ ुनिु। सह वीय व करवावह े। तेजिसव न ाव धीतमसत ु। मा िवदषावह ै। ॐ श ां ितः ! शांित ः!! शां ितः !!!

ॐ प ूण व मदः प ूण व िमद ं प ूणा व त ् पूण व मुदचयत े।। पूण व सय प ूण व मादाय प ूण व मेवाविशषयत े।। ॐ श ां ितः ! शांित ः!! शां ितः !!!

तं नमािम ह िरं परम।् तं नमा िम ग ुरं परम।् । ॐॐॐॐॐॐ

शी आसारामाय ण की क ुछ किठन प ंिियो क े अथ व 118

संत स ेवा औ’ श ु ित श वण , मात िप ता उ पकारी। धमव पुरष ज नमा कोई , पु णयो का ि ल भारी।।

भावाथ व ः आसुमल के माता-िपता संतसेवा, शास व सतसंग शवण करते थे। वे परोपकारी सवभाव के थे, अतः दीन-दःुिखयो की मदद करते थे। इन महान पुणयो का ही

िल था िक उनके घर परम पूजय संत शी आसारामजी बापू जैसे धमव के मूितम व ान सवरप बालक का जनम हुआ।

पंिड त कहा ग ुर स मथव को , रामदास साव धान। शादी ि ेरे ििरत े ह ु ए , भाग े छुडाकर जान।।

भावाथ व ः समथव रामदास सवामी की शादी का समय था। िेरे लेने की तैयारी हो रही थी, तभी पंिडत ने ‘सावधान’ शबद का तीन बार उचचारण िकया, उसे सुनकर समथव ने सोचा िक ‘मै हमेशा सावधान रहता हूँ ििर भी मुझे पंिडत सावधान रहने के िलए कह

रहे है तो इसमे जरर कोई रहसय होगा। उनहे खयाल आया िक मेरा लकय तो ईशरपािि

का है । मै कयो इस सांसािरक बंधन मे पडू ँ ? वे उठे और सीधे जंगल की ओर भागे। पंिडत और घरवाले दे खते ही रह गये।

इसी तरह जब घरवालो ने पूजयबापू जी को शादी करने के िलए कहा तो वे िववाह

को ईशरपािि के मागव मे बाधा समझकर िबना िकसी को बताये घर छोडकर चले गये। अनशर म ै ह ूँ म ै जानता , सत िचत ह ूँ आन नद। िसथ ित म े जीन े ल गूँ , होव े परमाननद।।

भावाथ व ः मै जानता हूँ िक मै अनशर तथा सत ्, िचत व आननद सवरप हूँ। अपने

आतमसवरप मे िसथत होकर जीने लगूँ तभी परमानंद पाि होगा। भाव ही कारण ईश

है , न स वण व काठ पाषाण।

सत िचत आन ंदरप ह ै , वय ापक ह े भग वान।। बहोशान जनाद व न, सारद स े स गण ेश। िनराकार

साकार ह ै , है स वव त भव ेश।।

भावाथ व ः भावना के कारण ही ईशर है न िक सवणव, काठ या पतथर की पितमा। अथात व चाहे पितमा सोने, लकडी या पतथर की हो परं तु उसमे ईशर की भावना न हो तो वयिि के िलए वह केवल जड पितमा है , न िक ईशर।

भगवान सत ्-िचत अथात व ् सतय, चेतन और आनंद सवरप है , सवववयापक अथात व ्

सभी सथानो मे वयाि है । बहा, िवषणु, महे श (महादे व), शारदा (माँ सरसवती), शेष, गणेष

आिद का भी अिधषान (उदगम सथान) वही िनराकार परमातमा है । ये सभी उसी िनराकार परमातमा की सता से ही साकार रप धारण करते है । वह परमातमा सवत व वयाि है । आसोज स ुद दो िद वस , संवत ् बीस इ ककीस। 119

मधयाह ढाई बज े , िमला ई स स े ईस।। भावाथ व ः संवत 2011 की आिसवन मास की शुकलपक की िदितया के िदन ढाई

बजे ईशर से ईशर का िमलन हुआ अथात व ् गुर की कृ पादिष और संकलपमात से आसुमल (आज बापूजी) अपने िनज सवरप मे जगे।

एक िदन मन उ कता गया , िकया डी सा से कूच। आई मौज िकीर की

, िदया झौपडा ि ूँक।।

भावाथ व ः बात उस समय की है जब पूजय बापू जी डीसा की कुटीर मे साधना करते थे और उस दौरान शाम को िनयिमत रप से सतसंग भी करते थे। एक िदन सतसंग समाि होने के बाद पूजयशी ने सरल हदय से िवनोद मे लोगो से पूछाः "कयो भाई! संत भी अनय संसारी लोगो की तरह ही होते है न?"

पूजयशी के कथन का भावाथव कोई ठीक-से समझ नहीं पाया। एक उदणड वयिि ने कहाः

"हाँ, कया अंतर है ? कुछ भी नहीं। दोनो एक ही... एक ही... " जवाब सुनकर पूजयशी कंधे पर से चादर उतार कर मात चडडी (जाँिघया) पहने ही

उसी समय अपनी अवधूती मसती मे वहाँ से चल िदये। संतो-महापुरषो को िकसी वयििवसतु या सथान का मोह नहीं होता।

ॐॐॐॐॐॐ

नाटक मात ृ -िपत ृ -गुरभि पु णडिल क पहला दशय सवप व थम कोई बचचा ‘ॐ ग ं गणपत ये नमः’

ततपशात ् िनमन शोक का उचचारण करे गा।

मंत का उचचारण करे गा।

वकत ु णड महाकाय स ूय व कोिट समपभ।

िन िव व घनं कुर म े द ेव सव व काय े षु सव व दा।। सूतधारः िकसी भी शुभ कायव को शुर करने से पहले गणेशजी की पूजा की जाती

है , िजससे वह कायव िनिवघवन सिल हो।

द ू सरा दशय

सूतधारः शासो मे आता है िक िजसने माता-िपता और गुर का आदर कर िलया उसके दारा समपूणव लोको का आदर हो गया और िजसने इनका अनादर कर िदया उसके

समपूणव शुभ कमव िनषिल हो गये। वे बडे ही भागयशाली है , िजनहोने माता-िपता और गुर

120

की सेवा के महतव को समझा तथा उनकी सेवा मे अपना जीवन सिल िकया। ऐसे ही एक सौभागयशाली सपूत थे पुणडिलक।

पुणडिलक अपनी युवावसथा मे तीथय व ाता करने के िलए िनकला। याता करते-करते

काशी पहुँचा। काशी मे भगवान िवशनाथ के दशन व करने के बाद उसने लोगो से पूछाः

कया यहाँ कोई पहुँचे हुए महातमा है , िजनके दशन व करने से हदय को शांित िमले और जान पाि हो?

लोगो ने कहाः हाँ है । गंगापर कुककुर मुिन का आशम है । वे पहुँचे हुए आतमजान

संत है । वे सदा परोपकार मे लगे रहते है । वे इतनी उँ ची कमाई के धनी है िक साकात

माँ गंगा, माँ यमुना और माँ सरसवती उनके आशम मे रसोईघर की सेवा के िलए पसतुत हो जाती है । पुणडिलक के मन मे कुककुर मुिन से िमलने की िजजासा तीव हो उठी। पता पूछते-पूछते वह पहुँच गया कुककुर मुिन के आशम मे। मुिन के दे खकर पुणडिलक ने मन ही मन पणाम िकया और सतसंग वचन सुने। इसके पशात पुणडिलक मौका पाकर एकांत मे मुिन से िमलने गया। मुिन ने पूछाः वतस! तुम कहाँ से आ रहे हो? पुणडिलकः मै पंढरपुर (महाराष) से आया हूँ। तुमहारे माता-िपता जीिवत है ? हाँ है ।

तुमहारे गुर है ? हाँ, हमारे गुर बहजानी है ।

कुककुर मुिन रष होकर बोलेः "पुणडिलक! तू बडा मूखव है । माता-िपता िवदमान है , बहजानी गुर है ििर भी तीथव करने के िलए भटक रहा है ? माता-िपता की सेवा ही तीथस व ेवन है ।"

पुणडिलकः "कैसे पभु?"

मुिनः "सुनो! शासो मे कहा है - मात ृ देवो भव , िप तृ देवो भ व ! अथात व माता और िपता दे वता तुलय है । पुत के िलए माता-िपता के चरण ही महान तीथव है ।" पुणडिलकः "जी मुिनवर!"

अरे पुणडिलक! मैने जो कथा सुनी थी उससे तो मेरा जीवन बदल गया। मै तुझे

वही कथा सुनाता हूँ। तू धयान से सुन।

एक बार भगवान शंकर के यहाँ उनके दोनो पुतो मे होड लगी िक, कौन बडा? तीसरा दशय

(शांत, सुरमय, पवत व ीय पदे श, आस-पास सुद ं र मनोरम वातावरण) काितक व ः "गणपित! मै तुमसे बडा हूँ।"

121

गणपितः "आप भले ही उम मे बडे है लेिकन गुणो से भी बढपपन होता है ।" सूतधारः दोनो मे कौन बडा है इस बात का िनणय व लेने के िलए दोनो िशव-पावत व ी

के पास गये। दोनो ने माता-िपता के सामने अपनी बात रखी।

िशव-पावत व ी ने कहाः जो संपूणव पथ ृ वी की पिरकमा करके पहले पहुँचेगा, उसी का

बडपपन माना जाएगा।

काितक व े य तुरनत अपने वाहन मयूर पर िनकल गये पथृवी की पिरकमा करने।

गणपित जी चुपके-से एकांत मे चले गये। थोडी दे र शांत होकर उपाय खोजा तो झट से उनहे उपाय िमल गया। जो धयान करते है , शांत बैठते है उनहे अंतयाम व ी परमातमा

सतपेरणा दे ते है । अतः िकसी किठनाई के समय घबराना नहीं चािहए बिलक भगवान का धयान करके थोडी दे र शांत बैठो तो आपको जलद ही उस समसया का समाधान िमल जायेगा।

ििर गणपित जी आये िशव-पावत व ी के पास। माता-िपता का हाथ पकड कर दोनो

को ऊँचे आसन पर िबठाया, पत-पुषप से उनके शीचरणो की पूजा की और पदिकणा करने लगे। एक चककर पूरा हुआ तो पणाम िकया.... दस ू रा चककर लगाकर पणाम िकया.... इस पकार माता-िपता की सात पदिकणा कर ली।

िशव-पावत व ी ने पूछाः वतस! ये पदिकणाएँ कयो की?

गणपितजीः सवव तीथ व मयी माता ... सवव देवमयो िपता ... सारी पथ ृ वी की पदिकणा करने से जो पुणय होता है , वही पुणय माता की पदिकणा करने से हो जाता है , यह शासवचन है । िपता का पूजन करने से सब दे वताओं का पूजन हो जाता है । िपता

दे वसवरप है । अतः आपकी पिरकमा करके मैने संपूणव पथ ृ वी की सात पिरकमाएँ कर लीं है । तब से गणपित जी पथम पूजय हो गये।

िशव-पुराण मे आता है ः जो पुत माता-िपता की पूजा करके उनकी पदिकणा करता

है , उसे पथ ृ वी-पिरकमाजिनत िल सुलभ हो जाता है । जो माता-िपता को घर पर छोड कर तीथय व ाता के िलए जाता है , वह माता-िपता की हतया से िमलने वाले पाप का भागी होता है कयोिक पुत के िलए माता-िपता के चरण-सरोज ही महान तीथव है । अनय तीथव तो दरू

जाने पर पाि होते है परं तु धमव का साधनभूत यह तीथव तो पास मे ही सुलभ है । पुत के िलए (माता-िपता) और सी के िलए (पित) सुंदर तीथव घर मे ही िवदमान है ।

(िश व प ुराण , रद स ं .. कु ख ं .. - 20) दशय -3 कुककुर मुिनः "पुणडिलक मैने यह कथा सुनी और अपने माता-िपता की आजा का

पालन िकया। यिद मेरे माता-िपता मे कभी कोई कमी िदखती थी तो मै उस कमी को

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अपने जीवन मे नहीं लाता था और अपनी शदा को भी कम नहीं होने दे ता था। मेरे माता-िपता पसनन हुए। उनका आशीवाद व मुझ पर बरसा। ििर मुझ पर मेरे गुरदे व की कृ पा बरसी इसीिलए मेरी बहजा मे िसथित हुई और मुझे योग मे भी सिलता िमली।

माता-िपता की सेवा के कारण मेरा हदय भििभाव से भरा है । मुझे िकसी अनय इषदे व की भिि करने की कोई मेहनत नहीं करनी पडी।" मात ृ देवो भव।

िपत ृ देवो भ व। आचाय व दवो भव।

मंिदर मे तो पतथर की मूितव मे भगवान की कामना की जाती है जबिक मातािपता तथा गुरदे व मे तो सचमुच परमातमदे व है , ऐसा मानकर मैने उनकी पसननता पाि

की। ििर तो मुझे न वषो तक तप करना पडा, न ही अनय िविध-िवधानो की कोई मेहनत करनी पडी। तुझे भी पता है िक यहाँ के रसोईघर मे सवयं गंगा-यमुना-सरसवती आती है । तीथव भी बहजानी के दार पर पावन होने के िलए आते है । ऐसा बहजान माता-िपता की सेवा और बहजानी गुर की कृ पा से मुझे िमला है ।

पुणडिलक तेरे माता-िपता जीिवत है और तू तीथो मे भटक रहा है ? सूतधारः पुणडिलक को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने कुककुर मुिन को

पणाम िकया और पंढरपुर आकर माता-िपता की सेवा मे लग गया। दशय चौ था

सूतधारः माता-िपता की सेवा ही उसने पभु की सेवा मान ली। माता-िपता के पित उसकी सेवािनषा दे खकर भगवान नारायण बडे पसनन हुए और सवयं उसके समक पकट

हुए। पुणडिलक उस समय माता-िपता की सेवा मे वयसत था। उसने भगवान को बैठने के िलए एक ईट दी।

(यहाँ पर पुणडिलक को वद ृ माता-िपता की सेवा मे रत और भगवान नारायण को

पकट होते हुए िदखायेगे। ििर पुणडिलक भगवान नारायण को बैठने के िलए ईट दे ते हुए और उसके बाद भगवान नारायण को उस ईट पर खडे हुए िदखायेगे।)

सूतधारः अभी भी पंढरपुर मे पुणडिलक की दी हुई ईट पर भगवान िवषणु खडे है

और पुणडिलक की मातृ-िपतभ ृ िि की खबर दे रहा है पंढरपुर तीथ।व

यह भी दे खा गया है िक िजनहोने अपने माता-िपता तथा बहजानी गुर को िरझा

िलया है , वे भगवान के तुलय पूजे जाते है । उनको िरझाने के िलए पूरी दिुनया लालाियत रहती है । वे मातृ-िपतभ ृ िि से और गुरभिि से इतने महान हो जाते है ।

भजनः इसके पशात कुछ बचचे-बिचचयाँ ‘मात -िपता ग ुर पभ ु चरणो म े ....’

इस भजन का सामूिहक गान (अिभनय के साथ) करे । समाि

123

नोटः इस तरह िकसी भी कथा-पसंग को लेकर नाटक रचा जा सकता है । सूतधार के संवाद पदे के पीछे -से बोले जाये। समय-समय पर ऐसे नाटको का आयोजन कर सकते है । वेशभूषा आिद पर कोई िवशेष खचव न हो इसका धयान रखे। ॐॐॐॐॐॐ

मैदानी ख ेल संगठन की श िि अ नेक स े ए क

(इस खेल को संचालक अपनी सुिवधानुसार जब भी चाहे बचचो को िखला सकता है ।) नोटः बचचे-बिचचयाँ अलग-अलग खेले।

पिर चयः बचचो! चार पकार के बल होते है । बताओ कौन-कौन से? बचचो को

उदाहरण के साथ समझाये िक एक होता है - शरीर बल, जैसे जंगल के सभी जानवरो मे हाथी मे सबसे अिधक शारीिरक बल होता है । दस ू रा होता है - मनोबल। अगर वयिि का

मनोबल दढ होगा तो अचछे -से-अचछे शारीिरक बलवालो को भी हरा सकता है । जैसे- एक

िसंह दजन व ो हािथयो को अकेले अपने दढ मनोबल से पछाड सकता है । हाथी मे शारीिरक बल बहुत होता है लेिकन िसंह मे मनोबल अिधक होता है िजसके कारण वह जंगल का राजा कहलाता है । इससे भी बडा होता है बुिदबल। अनय पािणयो की अपेका मनुषय मे इसकी अिधकता होती है , िजसके बल पर वह मनोबल वाले िसंह को भी िपंजरे मे कैद कर लेता है तो ऐसा बुिदबल डॉकटर, इं जीिनयर, वकील, अिसर के पास योगयतानुसार खूब िवकिसत होता है लेिकन अगर कोई बडा नेता आये, पधानमंती आये तो बुिदबल

वाले भी इनके सममान मे आदरपूवक व खडे हो जाते है कयोिक इनके पास संगठनबल है , जो िक बुिदबल से भी बढकर है । ऐसे कई नेता और पधानमंती भी संतो के चरणो मे मतथा टे ककर अपना भागय बनाते है कयोिक उनके पास सवोपिर बल होता है परनतु

हमारे वयवहािरक जीवन मे संगठनबल बहुत जररी है । जैसे एक पतली सी लकडी को आप अकेले टु कडे -टु कडे कर सकते हो पर बहुत सारी लकिडयो को साथ मे नहीं तोड

सकते। इसिलए हमे हमेशा संगिठत होकर रहना चािहए। तािक पडोसी राष अथवा अनय

कोई भी हम पर बुरी नजर डालने की िहममत न कर सके। हम अगर कुटु मब मे िमलकर रहे गे तो कुटु मब मजबूत होगा। अडोस-पडोस से िमलकर रहे गे तो मोहलला बलवान होगा।

मोहलले आपस मे एक दस ू रे का िहत दे खे तो गाँव बलवान होगा। हर गाँव दस ू रे गाँव का

कष समझे तो राजय बलवान होगा। अगर राजय एक दस ू रे को मदद करे तो राष बलवान

होगा और राष आपस का वैर भुलाकर सबका मंगल व िहत सोचे तो समपूणव मानव-जाित का कलयाण होगा।

124

तो बचचो! िमलकर, संगिठत होकर रहने मे बहुत शिि होती है । हम सब िमलकर

साथ रहे तो हम पर कुदिष रखनेवाला हमारा कुछ नहीं िबगाड सकते। आज हम इस खेल के दारा संगठन की शिि व अनेकता मे एकता की सीख लेगे। जैसे हमारी भाषाएँ अनेक, वयिि अनेक, राजय अनेक लेिकन राष एक, ऐसे ही हमारी पूजा की पदितयाँ अनेक, मूितव की आकृ ितयाँ अनेक लेिकन ईशर एक-का-एक। (ऐसा बताते हुए ईशर के पित पेमभाव

िवकिसत हो, इसिलए थोडा समय धयान कराये। ििर बचचो को केनदसथल से बाहर मैदान मे ले जाकर िखलाये।)

िव िधः सभी बचचे गोलाकार मे खडे हो जाये और गोल चककर मे एक के पीछे

एक दौडे । संचालक गोले के पीछे खडा रहे गा और िनमन पकार की घोषणा करे गा िजससे बचचो मे उमंग व उतसाह आ जाये। आगे दशाय व ी जाने वाली घोषणा को संचालक पहले

से ही बचचो को पकका करा दे । जैसे संचालक बोलेः ‘ॐॐ’ बचचे बोले- ‘हिरॐ’। संचालक कहे गा- ‘भारत दे श’ बचचे कहे गेः ‘महान है ।’ सं चालक

बचच े

ॐॐ

हिर ॐ

भारत दे श

महान है ।

हम ऋिषयो की

संतान है ।

हम बचचे दे श की

शान है ।

हम जीवन

िदवय बनायेगे।

हम नयी

चेतना जगायेगे।

हम गुर संदेश

सुनायेगे।

संगठन मे

शिि है ।

भारत को

िवशगुर बनायेगे।

जैसे ही बचचे भारत को ‘िवशगुर बनायेगे’ बोलेगे उसके तुरंत बाद संचालक एक संखया बोलेगा। इसी संखया के आधार पर बचचो को आपस मे हाथ पकड के अपनी टोली बनानी होगी। जैसे – संचालक 5 कहता है तो 5-5 बचचे आपस मे हाथ पकड के गोलाकार खडे हो जायेगे और जो बचचे िकसी टोली मे नहीं आ पाये अितिरि है , वे बाहर हो

जायेगे, जैसे 24 बचचे है और संचालक ने 5 कहा तो 5-5 बचचो के 4 गुप बन जायेगे, शेष रहे गे 4 बचचे जो िकसी टोली के रप मे न आ पाने के कारण बाहर हो जाएंगे और इस तरह बचचो की संखया कम करते जाये, आिखर मे दो बचचे शेष रह जायेगे। िटपपणीः

बचचे टोली बनाकर भागे नहीं वरन ् खडे रहे । संचालक दारा हर बार

घोषणा दोहराई जाए।

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लाभ ः बचचो को संगठन का महतव पता चलता है । खेल के अंत मे अनेक मे एक छुपा है , इसका रहसय बताकर ईशर की सवववयापकता व एकरपता का वणन व कर उनहे समझाये।

गोल -गो ल-गोल , जान के पट खोल

सवप व थम बालक और बािलकाओं के दो समूह बनाये। पहले समूह के सभी बचचे गोलाकार मे खडे हो जायेगे। उन सबके बीच मे एक बचचा खडा रहे गा िजसकी आँखो पर पटटी बँधी रहे गी और उसका एक हाथ सामने िैला रहे गा व उस हाथ की पहली उँ गली सीधी रहे गी। सभी िमलकर कीतन व करे गे, इस दौरान बीचवाला बचचा उपरोि िसथित मे

गोल-गोल घूमता रहे गा। बीच-बीच मे कीतन व बंद होगा और बीचवाला लडका जहाँ होगा वहाँ रक जायेगा। िजस ओर उसकी उँ गली रहे गी उसी सीध मे जाकर सामने खडे बचचे को छुएगा। वह िजस बचचे को छु दे गा, उससे दस ू रा समूह पश पूछेगा। (पश केनद मे

िसखायी गयी पविृतयो पर आधािरत हो) पश के सही उतर के आधार पर उस समूह को

10 अंक िमलेगे और गलत उतर पर 5 अंक कटे गे। पुनः कीतन व शुर होगा। इस पकार खेल चलता रहे गा। एक समूह 15-20 िमनट तक खेलेगा। सबसे जयादा अंक पाने वाले समूह को िवजेता घोिषत िकया जायेगा।

दे व -मानव ह ासय पयोग पहले सिाह मे हासय पयोग के िवषय मे संकेप मे बताये। ििर हर सिाह इस िवषय मे थोडा-थोडा बताये व इसके कुछ लाभ बताकर यह पयोग करवाये।

हासय के अनेक शारीिरक व मानिसक लाभ है , िजनहे पूणर व प से पाने एवं साथ मे

आधयाितमक लाभ भी पाि करने का सरल, सवस व ल ु भ व अतयुतम साधन है िवशवंदनीय संत शी आसाराम जी बापू दारा बताया गया ‘देव -मानव हासय पयोग’

। यह वतम व ान

युग की िचंता, तनाव, अनारोगय आिद असंखया समसयाओं से िनजात पाने हे तु एक पभावशाली, अनुभविसद पयोग के रप मे लोकिपय हो रहा है ।

इसमे सवप व थम एकाध िमनट तक तेज गित से तािलयाँ बजाते हुए भगवननाम का

तेजी से आवतन व िकया जाता है और भगवदभाव को उभारा जाता है । ििर दोनो हाथो को ऊपर की उठाकर िदल को भगवतपेम से भरते हुए भगवतसमपण व की मुदा मे िदल खोलकर हँ सा जाता है ।

पयोग की शुरआत के िदनो मे हँ सी न भी आये तो भी भगवान की, अपने इष की

िकसी लीला को याद करके थोडा यतपूवक व हँ से। जैसे- यिद आप भगवान शी कृ षण के

भि है तो उनकी माखन चोरी की लीला, गोपी की चोटी और उसके पित की दाढी बाँध

दे ने की लीला का समरण करे । कुछ ही समय के अभयास से आप दे खेगे िक भगवदभाव,

126

भगवतपेम, भगवतसमपण व आपको एक ऐसी मधुर, सवाभािवक हँ सी पदान करे गा िक आप इस पयोग के पेमी बन जायेगे। ततपशात बचचो को बताये िक ‘एक हाथ आपका और

दस ू रा हाथ भगवान का है , भगवान और अपना हाथ िमलाओ तो भगवान के साथ आपकी दोसती पककी हो जायेगी।’ अब बचचे राम, राम या हिर ॐ अथवा भगवान को कोई भी नाम लेते हुए तेजी से ताली बजाये, ििर दोनो हाथ ऊपर उठाकर जोर से हँ से।

लाभ ः हासय पयोग करने से िेिडो का वयायाम हो जाता है । शरीर के अनेक रोग

और मन के दोष दरू होते है । शरीर की 72 हजार नािडयो की शुिद होती है । जब हम

ताली बजाते हुए अहोभाव से ‘हिर ॐ’ कहते हु़े हाथो को आकाश की ओर उठाते है तो

हमारी जीवनीशिि बढती है और मानिसक तनाव, िखंचाव, दःुख-शोक सब दरू हो जाते है । जब भी जीवन मे मानिसक तनाव, िखंचाव, दःुख शोक आये तो उस समय यह पयोग

करने से हदय मे आनंद और शांित का संचार होने लगता है । इसिलए पितिदन िदन मे एक बार हासय पयोग तो अवशय करना चािहए।

िदल खोलकर हँ सना िनरथक व , दःुखदायक िवचारो की शख ं ृ ला को तोडने की उतम

एवं सवस व ुलभ कुंजी है । हँ समुख एवं पसनन लोगो के पास रोग व दःुख जयादा दे र नहीं

िटक पाते और वे िचंितत मनुषयो की अपेका अपने सभी कायो को अिधक सिलतापूवक व करते है । पसनन वयिि अिधक आयु तक युवा व सुनदर बना रहता है । आनंदमयी हँ सी हमारे हदय के पट खोल दे ती है , मन का सारा बोझ कणमात मे िमटाकर उसे िूल सा हलका बना दे ती है । हँ सता हुआ वयिि सवयं तो लाभ उठाता ही है , साथ ही अपने

सािथयो को भी लाभ पहुँचाता है । हँ सने वाले का साथ सारा संसार दे ता है और उदास-

िनराश का कोई नहीं। पितिदन हँ सने का थोडा अभयास करके अपनी आयु को बढाया जा

सकता है । िकसी की कटु , अपमानजनक या कुितसत बात पर मायूस होकर दःुखी होने की बजाय उसे हँ सी-हँ सी मे टाला जा सकता है । इसी पकार आपसी मनमुटाव भी हँ सकर ततकाल िमटाया जा सकता है । हँ सना हमारे शरीर के सुरकातंत की िकयाशीलता और

गुणवता को बढाता है । िदल से खुलकर हँ सना जीवन मे संघषो से जूझने की शिि पदान करता है । इससे कायव करने की कमता बढती है और माहौल खुशुनमा बना रहता है । अनुसंधानकताओ व ं

के अनुसार हँ सने से हदय की धमिनयाँ जयादा पभावी रप से

कायव करती है । इससे हदय की बीमािरयाँ पास नहीं िटक पातीं परनतु िजनहे हदयरोग हो चुका है उनहे बहुत बल लगाकह नहीं हँ सना चािहए। हासय ह मार े शरीर

मे ‘ एण डोििव न’ की मा ता ब ढाता है , जो पाक ृित क दद व

िनवारक ह ै। यह रिचाप को िनयंितत रखता है और तनाव को दरू भगाता है । खुलकर हँ सने से वयगता, कोध, िचडिचडापन – इन सबसे छुटकारा पाया जा सकता है । जब हम

हँ सते है तो पहले की अपेका जयादा साँस अंदर लेते है , इससे अिधक माता मे ऑकसीजन 127

िेिडो मे जाती है और आप सवयं को तरोताजा महसूस करते है । हँ सना उन लोगो के िलए और भी अिधक लाभकारी है , जो बैठे रहने का कायव करते है और जो कािी समय िबसतर व पिहयेवाली कुसी पर बैठे रहकर िबताते है ।

हँ सने से माँसपेिशयो मे िखंचाव कम हो जाता है िजससे आराम िमलता है ।

िनयिमत हँ सने से िसरददव , दमा, जोडो की सूजन एवं रीढ के जोडो से संबिं धत तकलीिो मे कमी पायी जाती है । हँ सने से रोगपितकारक शिि भी बढती है ।

नोटः हर सिाह कीतन व करवाने के पशात हासय पयोग करवाये। इसके अितिरि

जब आपको लगे िक बचचे उबान का अनुभव कर रहे है या आपको अनुकूल लगे तब भी यह पयोग करवा सकते है ।

ॐॐॐॐॐॐ

बाल स ंसका र स ंब ंधी क ुछ महतवप ूण व ज ानकारी संकलप -पत

आपके केत मे रहने वाले जो साधक ‘बाल स ंसकार क ेन द ’ खोलने के इचछुक हो, उनसे यह ‘संकलप -पत’ भरवाये। ‘संकलप पत’ का पारप आगे िदया गया है । आप िदये गये पारप की िोटोकॉपी का भी उपयोग कर सकते है । िनयमावली

बाल संसकार केनद खोलने एवं संचािलत करने के िलए िनमनिलिखत िनयमो का पालन करना अिनवायव है ः

1.बाल संसकार केनद मे बालक-बािलकाओं को पूणत व ः िनशुलक पवेश िदया

जायेगा। केनद की ओर से िकसी भी पकार की िीस, चंदा आिद एकितत नहीं िकया जायेगा और न ही केनद के नाम कोई रसीद बुक छपायी जायेगी।

2.बाल संसकार केनद का आिथक व पबनधन सथानीय शी योग वेदानत सेवा सिमित

सवयं करे गी। केनद को आिथक व सहायता पदान करने के इचछुक वयिि सथानीय सेवा

सिमित से संपकव कर सकते है । बाल संसकार केनद चलाने वाले िशकक-िशिकका अगर

यातायात और धन के अभाव के कारण बाल संसकार केनद चलाने वाले िशकक-िशिकका अगर यातायात और धन के अभाव के कारण बाल संसकार केनद नहीं चला पाते हो तो

सथानीय सिमित अथवा बालको के अिभभावक और िनकटवती आशम आपस मे िमल कर सलाह-मशिवरा करके उनके मािसक खचव की सुिवधा कर दे ।

3.मुखयालय के उपरोि िनयमो के अितिरि समय-समय पर संशोिधत व

नविनिमत व अनय नीित-िनयम भी केनद व इससे जुडी सिमितयो के िलए बाधय होगे।

128

4.बाल संसकार केनद की अपनी कोई मुहर नहीं होगी। आवशयकता पडने पर सथानीय सिमित के ‘लेटर पैड’ व मुहर का उपयोग िकया जा सकता है ।

5.सथानीय संचालन सिमित/केनद संचालक ऐसे कोई कदम नहीं उठायेगे, जो

आशम के आदशो के िवपरीत पडते हो अथवा िजनके संबंध मे मुखयालय दारा कोई सपष िनदे श न िदया गया हो। मुखयालय दारा सपष रप से िनदे िशत नीित-िनयमो के अनुसार

ही केनद का संचालन िकया जाना अिनवायव है । अगर िनयमावली से िकसी मुदे पर सपष िनदे श न िमले तो उस िवषय मे मुखयालय से सपषीकरण पाि कर ले।

पस तािवत क े नद स ंचा लक ह ेत ु अिनवाय व योगयताए ँ

(1) पसतािवत केनद संचालक पूजय गुरदे व से दीिकत हो तथा दीका लेने के बाद उसने कम से कम तीन िशिवर भरे हो। यिद िशिवर न भरे हो तो िनकट भिवषय मे आयोिजत िशिवरो का लाभ ले।

(2) वह वयसनमुि, चिरतवान तथा भगवतपीतयथव कायो मे रिचवाला हो।

(3) वह िदवािलया, कोढी अथवा अनय िकसी असाधय संकामक रोग से पीिडत न हो।

(4) वह सवेचछापूवक व िनयिमत रप से कायक व म चलाने की िसथित मे हो। (5) उसे भारतीय धमव, दशन व व संसकृ ित का अचछा जान होना चािहए। भारतीय

संसकृ ित का जान पाि करने हे तु आशम से पकािशत मािसक पितका ‘ऋिष पसाद’ और समाचार पत ‘लोक कलयाण सेतु’ का अवलोकन तथा शी कृ षण दशन व , पवो का पुंजः दीपावली, जीवन िवकास, युवाधन सुरका आिद पुसतको का सुचार रप से अधययन आवशयक है ।

(6) उसे संसकृ त भाषा का इतना जान अवशय होना चािहए िक वह ठीक ढं ग से

संसकृ त शोको का उचचारण कर सके।

पंजीकरण

बाल संसकार केनद के शुभारमभ के पशात केनद संचालक शीघ ही आवेदन पत

भरकर अमदावाद मुखयालय भेजे। तािक जलद से जलद उनके केनद को मुखयालय दारा मानयता हे तु पंजीकरण कमांक (कोड नं.) पाि हो सके। पंजीकरण हे तु आप िदये गये आवेदन-पत का उपयोग करे ।

नोटः अगर आप एक से अिधक केनद चला रहे है तो आवेदन पत एक बार ही

भेजे। सवयं आपके दारा चलाये जा रहे अनय केनदो का िववरण (पता आिद) ‘बाल संसकार मुखयालय’ (अमदावाद) भेजे। आपको हर केनद का अलग-अलग पंजीकरण कमांक (कोड नं.) पाि होगा। आवेदन पत सपष अकरो मे भरे ।

129

बाल संसकार केनद की िद मािसक िरपोट व बाल संसकार केनद पंजीकृ त होने के बाद संचालक हर दो माह बाद केनद की

पगित िरपोटव एक पोसटकाडव पर िलखकर अमदावाद मुखयालय भेजे। िजसमे केनद का कोड नं., संचालक का नाम व पूरा पता, दो माह मे संचािलत केनद की तारीख एवं पित

कायक व म मे उपिसथत बचचो की संखया िलखे। पोसटकाडव दारा भेजी जाने वाली िदमािसक िरपोटव का पारप नीचे िदया जा रहा है ।

130

केनद का कोडः ...................................................................... केनद का नाम व पताः ........................................................... ........................................................................................... ........................................................................................... महीना

वषव

कायक व म िदनांक

कुल

बचचो की संखया महीना

वषव

कायक व म िदनांक

कुल

बचचो की संखया अनय महतवपूणव जानकारी ................................. .................................. ................................... .................................... ..................................... .................................... ....................................... ........................................ ........................................ ........................................ ........................................ िदनांक...........हसताकर............

To

‘बाल स ंसकार क ेन द’ िवभाग

अिखल भारतीय शी योग व

ेदानत

सेवा स िमित ,

संत श ी आ साराम जी

संत शी आसाराम जी बाप

आ शम ,

ू आश म

माग व ,

अमदावाद (गुजरात ) PIN

131

3 8 0 0 0 5

132

िद मािसक अित आवशयक

िरपोट व मे अमदावाद म ुखयालय

दारा पाि

को ड न ं . िलखना

है।

नोटः यिद आपके केत मे ऐसा कोई केनदीय सथान हो जहाँ सभी बाल संसकार

संचालको की िरपोटव जमा करवाकर एक साथ अमदावाद मुखयालय भेजी जा सकती हो तो संचालक इस पारप के अनुसार सादे कागज मे िरपोटव वहाँ जमा करा सकते है । ॐॐॐॐॐॐ अिध क ज ानक ारी के िल ए संपकव कर े -

बा ल स ंस कार िवभ ाग

अिख ल भारतीय

श ी योग व ेदानत स े वा स िम ित

संत शी आसाराम जी आशम, संत शी आसारामजी बापू आशम मागव, अमदावाद- 380005, िोनः (071) 27505010-11

मुखयालय से सीधे संपकव हे तःु 39877749, 66115749. e-mail: [email protected] or [email protected]

133

बाल संसका र के नद सदग ुर -चरणो मे म े रा सं कलप

"मै पूजय बापूजी के शीचरणो मे पाथन व ा तथा संकलप करता/करती हूँ िक कम-से-कम

(संखया िलखे).................... बाल संसकार केनद सवयं चलाऊँगा/चलाऊँगी तथा मेरे संपकव मे आने वाले (संखया िलखे) ................... साधक भाई-बहनो को केनद चलाने हे तु पेिरत करँगा/करँगी। यह संकलप मै पूजय गुरदे व की कृ पा से आगामी (महीना िलखे)

.................. माह तक पूरा करँगा/करँगी। पूजय बापूजी के इस दै वी कायव मे सहभागी बनने का मुझे जो सौभागय पाि हो रहा है , उसे मै िजममेदारीपूवक व िनभाऊँगा/िनभाऊँगी। मुझे अवशय सिलता िमलेगी। भगवतकृ पा और गुरकृ पा मेरे साथ है । मुझे समिृत है मेरे गुरदे वशी ने अनेक बार बुलंद सवर मे कहा है ः

लकय न ओझ ल होन े पाय े क दम िमलाकर चल । सि लता तेरे कद म च ूम े गी आज नही ं तो क ल।।

सूचनाः संकलप पत के इस भाग को अपने िनयम-पूजा के सथान पर रखे तथा पितिदन इसे दोहराये। नोटः ऊपर का भाग साधक को दे तथा नीचे का भाग बाल संसकार पभारी के पास जमा करे । िकतने केनद सवयं चलायेगे?................................................................................... िकतने साधको को पेिरत करे गे?.............................................................................. संकलप कब तक पूरा करे गे?................................................................................... नामः................................................................................................................. पताः................................................................................................................. ....................................................................................िपन कोड....................... िोन नं. ........................................................................................................... शैकिणक योगयताः................................................................................................ दीका कब व कहाँ ली?.......................................................................................... िदनांक............................................................................ हसताकर.......................

134

संत श ी आ सा राम जी आ शम दा रा िन देिश त िन ःशुलक ‘ब ाल संसक ार

केनद ’ ख ोलने ह ेत ु

सिम ित सम मत पतक पित,

पभारी शी, बाल संसकार केनद िवभाग, शी अिखल भारतीय योग वेदानत सेवा सिमित, संत शी आसारामजी आशम, साबरमती, अमदावाद- 380005

(नोटः कृ पया बाल संसकार केनद संचालन हे तु आशम दारा पकािशत िनयमावली का पूणव अधययन करके ही सिमित सवयं यह आवेदन-पत भरे ।)

1.शी योग वेदानत सिमित,.................... कोड नं. ................. गठन का

वषव...........

2.पूरा पताः ................................................................................................................. ................................................................................................................. ................................................................................................................. ................................................................................................................. ...... 3.आपके केत मे दीिकत साधको की संखयाः............................................. 4.सिमित के पमुख सेवाकायःव............................................................... 5.केनद का आिथक व पबनधन िकस तरह से करे गे? आय के सोत व अनुमािनत

खचव सिहत सपष उललेख करे । (इस हे तु अितिरि पनने का पयोग करे ।)

6.उपरोि तथयो के अितिरि अनय कोई जानकारी हो तो उसका भी उललेख

करे ............................................................................................................. ................................................................................................................. ... [नोटः िवसतत ृ िववरण के िलए अितिरि पनने का पयोग करे ।]

घोषणा व सतयापन यह सिमित यह घोषणा करती है िक उपरोि सभी सूचनाएँ सतय व पमािणक है ।

सिमित यह भी सतयािपत करती है िक पसतािवत केनद संचालक/संचािलका का चिरत और वयवहार अचछा है । सथानीय समाज मे आपकी छिव साि सुथरी है । सिमित की दिष मे

135

आप बचचो मे सुसंसकार-िसंचन हे तु एक सुयोगय पात है । सिमित को िवशास है िक आप बाल संसकार केनद को सिलता पूवक व संचािलत कर सकेगे/सकेगी। पसतािवत केनद

संचालक के िववरण-पतक मे दी गयी सारी सूचनाएँ सिमित की जानकारी मे सतय है । पद

पूरा नाम

हसताकर

िदनांक

सिमित के पदािधकारी हसताकर कर सकते है । सिमित की मुहर

नोटः अगर आपके केत मे शी योग वेदानत सेवा सिमित नहीं है तो आप इस सममित पतक को िबना भरे भेज दे ।

ॐॐॐॐॐॐ

136

आवेदन पत नं......

(इसे पसत ािवत केनद स ंच ालक /संच ािलक ा सवय ं भर े। ) कोड 1.आवेदक का पूरा नामः....................................... 2.िपता/पित का नामः..........................................

यहाँ अपना

3.वयवसायः.......................................................

िोटो अवशय

4.वतम व ान पता (सपष अकरो मे

िलखे)........................................................................................गाम/शहर.......

लगाये

........................................तहसील/तालुका.................िजला.............................. ...राजय.............................िपनकोड............................. 5. िोन नं. (S.T.D. कोड सिहत)................................................... 6.मोबाइल.......................................... 7.ई-मेल............................................ 8.जनम-ितिथ.................................... 9.आयु (वषव).................................... 10.शैकिणक िववरणः अंितम परीका का िववरण िलखे। कका

वषव

िवदालय/महािवदाल य

बोडव /िवशिवदाल य

पमुख

िवषय

पािांक

पितशत

शण े ी

मे 11.इसके अितिरि यिद आपके पास कोई िवशेष योगयता हो तो उसका उललेख करे ।............................................................................................

12.िशका का माधयम.........................मातभ ृ ाषा....................... 13.आपने पूजयशी से दीका कब ली?........................कहाँ?.................

14.कया आप पूनम वतधारी है ? (हाँ/नहीं) यिद हाँ तो पूनम कहाँ भरते है ? आशम मे/पूजयशी के सािननधय मे............................................................

15.अब तक िकतने िशिवर भरे है ?............... िकतने मौन मंिदर

िकये?.................िकतने मंतानुषान िकये?................................

16.कया आप िकसी असाधय संकामक रोग से पीिडत है ?...................... 17.पसतािवत केनद सथल का िववरण (पूरा पता िपन कोड सिहत

िलखे।)..................................................................................................................................... 137

............................................................................................................................................... ............................................................................................................................................... ............................ 18.केनद संचालन का समय और िदनः...................................................... 19.कया आप िशकक है ? (हाँ/नहीं) अगर हाँ तो िवदालय का नाम व पता

िलखे।...................................................................................................................................... ............................................................................................................................................... ............................................................................................................................................... ............................. नोटः अगर आप एक से अिधक केनद चला रहे है तो आवेदन पत एक ही बार भेजे। सवयं आपके दारा चलाये जा रहे अनय केनदो का िववरण (पता आिद) हमे भेजे। आपको हर केनद का अलग-अलग पंजीकरण कमांक (कोड नं.) पाि होगा।

अगर आपने अनय साधको को ‘बाल संसकार केनद’ खोलने के िलए पेिरत िकया है

और उनके केनद भी शुर हो गये है तो उनसे भी आवेदन पत भरवाकर अमदावाद मुखयालय को िभजवाये।

मैने िदनांक................... को पूजय बापू जी की कृ पा से बाल संसकार केनद शुर कर

िदया है । पहले कायक व म मे .................. (संखया िलखे) बचचे उपिसथत थे।

मै घोषणा करता/करती हूँ िक मेरे दारा पसतुत सारे तथय सही है । यिद उनमे कहीं

कोई तुिट पायी जाती है तो उसके िलए मै सवयं िजममेदार हूँ।

िदनांकः................................................. हसताकर......................... ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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