संत शी आसारा मजी बाप ू क ा जीवन पिरचय
िकसी भी दे श की सचची संपिि संतजन ही होते है । िवश के कलयाण हे तु िजस
समय िजस धमम की आवशयकता होती है उसका आदशम सथािपत करने के ििए सवयं भगवान ही ततकािीन संतो के रप मे अवतार िेकर पगट होते है ।
वतम म ान युग मे संत शी आसाराम जी बापू एक ऐसे ही संत है , िजनकी जीवनिीिा
हमारे ििए मागद म शन म रप है ।
जन मः िवकम संवत 1998, चैत वद षषी (गुजराती माह अनुसार), (िहनदी माह
अनुसार वैशाख कृ षणपक छः)। जन मसथानः माताः
िसंध दे श के नवाब िजिे का बेराणी गाँव।
महँ गीबा।
िपता ः थाउमि जी। बचपन ः जनम से ही चमतकािरक घटनाओं के साथ तेजसवी बािक के रप मे
िवदाथी जीवन।
युवावसथाः
तीव वैरागय, साधना और िववाह-बंधन।
पतीः िकमीदे वी जी। साधनाकािः
मे पिरभमण।
गह ृ तयाग, ईशरपािि के ििए जंगि, िगिर-गुफाओं और अनेक तीथो
गुरजीः परम पूजय शी िीिाशाहजी महाराज। साकातकार
िदनः
िवकम संवत 2021, आिशन शुकि ििितया। आसुमि मे से
संत शी आसारामजी महाराज बने। िोक -कलयाण के उ देशयः
संसार के िोगो को पाप-ताप, रोग, शोक, दःुख से
मु््ककर उनमे आधयाितमक पसाद िुटाने संसार-जीवन मे पुनरागमन। पुत ः शी नारायण साँई। पुतीः भारती दे वी।
पव ृ ििया ँ - कमम, जान और भिकयोग िारा परमातम-पसाद का अनुभव कराने हे तु दे श-िवदे शो मे करीब 130 से अिधक आशम एवं 1100 शी योग वेदानत सेवा सिमतयो िारा समाज मे रचनातमक एवं आधयाितमक सेवाकाय।म
पस ताव ना
मनुषय के भावी जीवन का आधार उसके बालयकाि के संसकार एवं चािरतयिनमाण म
पर िनभरम करता है । बािक आगे चिकर नेता जी सुभाषचनद बोस जैसे वीरो, एकनाथजी जैसे संत-महापुरषो एवं शवण कुमार जैसे मातृ-िपतभ ृ को के जीवन का अनुसरण करके
सवाग ा ीण उननित कर सके इस हे तु बािको मे उिम संसकार का िसंचन बहुत आवशयक
है । बचपन मे दे खे हुए हिरशनद नाटक की महातमा गाँधी के िचि पर बहुत अचछी असर पडी, यह दिुनया जानती है ।
हँ सते-खेिते बािको मे शुभ संसकारो का िसंचन िकया जा सकता है । ननहा बािक
कोमि पौधे की तरह होता है , उसे िजस ओर मोडना चाहे , मोड सकते है । बचचो मे अगर बचपन से ही शुभ संसकारो का िसंचन िकया जाए तो आगे चिकर वे बािक िवशाि
वटवक ृ के समान िवकिसत होकर भारतीय संसकृ ित के गौरव की रका करने मे समथम हो सकते है ।
िवदाथी भारत का भिवषय, िवश का गौरव एवं अपने माता-िपता की शान है ।
उसके अंदर सामथयम का असीम भंडार छुपा हुआ है । उसे पगट करने हे तु आवशयक है
सुसंसकारो का िसंचन, उिम चािरतय-िनमाण म और भारतीय संसकृ ित के गौरव का पिरचय। पूजयपाद संत शी आसारामजी महाराज िारा समय-समय पर इनहीं िवषयो पर पकाश
डािा गया है । उनहीं के आधार पर सरि, सुबौध शैिी मे बािापयोगी सामगी का संकिन करके बाि संसकार नाम िदया गया है । यह पुसतक पतयेक माता-िपता एवं बािको के ििए उपयोगी िसद होगी, ऐसी आशा है ।
िवनीत
-
शी योग वेदानत सेवा सिमित।
बाि स ंसका र केनद मान े कय ा ? जानत े ह ो? बाः बापू के पयारे बाि क जहाँ पढते है वह सथान। िः िकयभ ेदी बनाने वािा। सं- संसकृित के रकक
बनाने वािा।
स ्- सवाधया यी और सवाशयी
काः काय म कुश ि बनाने वािा।
बनानेवािा।
रः रचनातमक श ै िी िारा मानव-रत तराशनेवािा। केः केसरी िसंह के स मान िनभ म य न ्- नयायिपय
बनाने वािा।
बनाने वािा।
दः हदय को दवीभ ू त , और जीवन को दढ मनोब िवािा
वािा सथान।
बनाने की िशका दे ने
पा थम ना
गुरब म हा ग ुर िव म षणुः ग ुरद ेवो मह ेशर ः। गुरसा म कात परब ह तसम ै श ी ग ुरव े नम ः।।
अथम ः गुर ही बहा है , गुर ही िवषणु है । गुरदे व ही िशव है तथा गुरदे व ही साकात ्
साकार सवरप आिदबह है । मै उनहीं गुरदे व के नमसकार करता हूँ।
धयानम ूि ं ग ुरोम ूम ित म ः प ूजाम िं ग ुरोः पद म।् मंतम ूि ं ग ुरोवा म क यं मोकम ू िं ग ुरोः क ृपा।।
अथम ः धयान का आधार गुर की मूरत है , पूजा का आधार गुर के शीचरण है , गुरदे व के शीमुख से िनकिे हुए वचन मंत के आधार है तथा गुर की कृ पा ही मोक का िार है ।
अख णडम णडिाकार ं वया िं य ेन चरा चरम।्
ततपद ं द िश म तं य ेन तसम ै श ीगुरव े नम ः।।
अथम ः जो सारे बहाणड मे जड और चेतन सबमे वयाि है , उन परम िपता के शी चरणो को दे खकर मै उनको नमसकार करता हूँ। तवम ेव माता च
िपता तवम ेव तवम ेव ब नधु श सखा तवम ेव।
तवम ेव िवदा द िवण ं तवम ेव तवम ेव स वा मम द ेव द ेव।।
अथम ः तुम ही माता हो, तुम ही िपता हो, तुम ही बनधु हो, तुम ही सखा हो, तुम ही िवदा हो, तुम ही धन हो। हे दे वताओं के दे व! सदगुरदे व! तुम ही मेरा सब कुछ हो। बहाननद ं परमस ुख दं केवि ं जानम ूित ा
िनिातीत ं ग गनसदश ं ततव मसयािदिकयम। ् एकं िनतय ं िवम िमच िं सव म धीसािकभ ू तं
भावातीत ं ित गुणरिहत ं स दगुरं त ं नमा िम।। अथम ः जो बहाननद सवरप है , परम सुख दे ने वािे है , जो केवि जानसवरप है , (सुख-दःुख, शीत-उषण आिद) िं िो से रिहत है , आकाश के समान सूकम और सववमयापक है , ततवम िस आिद महावाकयो के िकयाथम है , एक है , िनतय है , मिरिहत है , अचि है , सवम
बुिदयो के साकी है , सतव, रज, और तम तीनो गुणो के रिहत है – ऐसे शी सदगुरदे व को मै नमसकार करता हूँ।
सरसवती -वंदना
माँ सरसवती िवदा की दे वी है । गुरवंदना के पशात बचचो को सरसवती वंदना करनी चािहए।
या कु नदेनद ु तषारहा रधव िा य ा श ु भवसाव ृ ता
या वीणाव रदण डम िणडत करा या शेतपदासना।
या ब हाचय ुतश ंकरपभ ृ ितिभ देव ै ः सदा विनद ता
सा मा ं पात ु सरसवती भग वती िनःश ेष जाङय ापहा।।
अथम ः जो कुंद के फूि , चनदमा, बफम और हार के समान शेत है , जो शुभ वस पहनती है , िजनके हाथ उिम वीणा से सुशोिभत है , जो शेत कमि के आसन पर बैठती है ,
बहा, िवषणु, महे श आिद दे व िजनकी सदा सतुित करते है और जो सब पकार की जडता हर िेती है , वे भगवती सरसवती मेरा पािन करे ।
शुकि ां बह िवचारसारपरमामादा
ं ज गदवय ािपन ीं
वीणाप ुसतक धािरणीमभयदा ं जाङयान धकारापहाम। ्
हसते सफािटक माििक ां च द धत ीं पदासन े स ं िसथत ां वनदे ता ं परम ेशरी ं भ गवती ब ुिदपद ां शारदाम। ् ।
अथम ः िजनका रप शेत है , जो बहिवचार की परमततव है , जो सब संसार मे वयाि रही है , जो हाथो मे वीणा और पुसतक धारण िकये रहती है , अभय दे ती है , मूखत म ारपी
अंधकार को दरू करती है , हाथ मे सफिटक मिण की मािा ििये रहती है , कमि के आसन पर िवराजमान है और बुिद दे नेवािी है , उन आदा परमेशरी भगवती सरसवती की मै वंदना करता हूँ।
सद ु गुर मिहमा
शी रामचिरतमानस मे आता है ः
गुर िबन भविन िध तरिह ं न कोई। जौ
िबर ंिध संकर सम होई।।
भिे ही कोई भगवान शंकर या बहा जी के समान ही कयो न हो िकनतु गुर के िबना भवसागर नहीं तर सकता।
सदगुर का अथम िशकक या आचायम नहीं है । िशकक अथवा आचायम हमे थोडा बहुत
एिहक जान दे ते है िेिकन सदगुर तो हमे िनजसवरप का जान दे दे ते है । िजस जान की पािि के मोह पैदा न हो, दःुख का पभाव न पडे एवं परबह की पािि हो जाय ऐसा जान
गुरकृ पा से ही िमिता है । उसे पाि करने की भूख जगानी चािहए। इसीििए कहा गया है ः गुरगोिव ंद दोनो
खड े , िकसको िा गूँ पाय।
बििहारी ग ुर आपकी , जो गोिव ंद िदयो िदखाय।।
गुर और सदगुर मे भी बडा अंतर है । सदगुर अथात म ् िजनके दशन म और सािननधय
मात से हमे भूिे हुए िशवसवरप परमातमा की याद आ जाय, िजनकी आँखो मे हमे
करणा, पेम एवं िनिशंतता छिकती िदखे, िजनकी वाणी हमारे हदय मे उतर जाय, िजनकी उपिसथित मे हमारा जीवतव िमटने िगे और हमारे भीतर सोई हुई िवराट संभावना जग
उठे , िजनकी शरण मे जाकर हम अपना अहं िमटाने को तैयार हो जाये, ऐसे सदगुर हममे िहममत और साहस भर दे ते है , आतमिवशास जगा दे ते है और िफर मागम बताते है िजससे हम उस मागम पर चिने मे सफि हो जाये, अंतमुख म होकर अनंत की याता करने चि पडे और शाशत शांित के, परम िनभय म ता के माििक बन जाये।
िजन सद गुर िम ि जाय , ितन भगवान िम
िो न िमिो।
िजन सदगर की प
ू जा िकयो , ितन औरो
की प ूजा िकयो न िकयो।
िजन सदग ुर की स ेवा िकयो , ितन ितरथ -वत िकयो न
िजन सद गुर को पयार िकयो , ितन पभ ु को पयार
िकयो।
िकयो न िकयो।
िदनचया म 1.
बािको को पातः सूयोदय से पहिे ही उठ जाना चािहए। उठकर भगवान को मनोमन पणाम करके दोनो हाथो की हथेिियो को दे खकर
इस शोक का उचचारण करना चािहएः कराग े वसत े िक मीः करमधय ै सरसवती। करम ूि े त ु ग ोिव नदः प भात े करद शम नम।् ।
अथम ः हाथ के अगभाग मे िकमी का िनवास है , मधय भाग मे िवदादे वी सरसवती का िनवास है एवं मूि भाग मे भगवान गोिवनद का िनवास है । अतः पभात मे करदशन म करना चािहए। 2.
शौच-सनानािद से िनवि ृ होकर पाणायाम, जप, धयान, ताटक, भगवदगीता का पाठ करना चािहए।
3.
माता-िपता एवं गुरजनो को पणाम करना चािहए।
4.
िनयिमत रप से योगासन करना चािहए।
5.
अधययन से पहिे थोडी दे र धयान मे बैठे। इससे पढा हुआ सरिता से याद रह जाएगा। जो भी िवषय पढो वह पूणम एकागता से पढो।
6.
भोजन करने से पूवम हाथ-पैर धो िे। भगवान के नाम का इस पकार
समरण करे - बहाप म णं बह ह िवब हाग नौ ब हणा ह ु तम।् बह ैव त ेन गन तवय ं ब हकम म स मािधना।।
पसननिचि होकर भोजन करना चािहए। बाजार चीज नहीं खानी चािहए। भोजन मे हरी सबजी का उपयोग करना चािहए। 7.
बचचो को सकूि मे िनयिमत रप से जाना चािहए। अभयाम मे पूणम रप से धयान दे ना चािहए। सकूि मे रोज-का-रोज कायम कर िेना चािहए।
8.
शाम को संधया के समय पाणायाम, जप, धयान एवं सतसािहतय का पठन करना चािहए।
9.
राित के दे र तक नहीं जागना चािहए। पूवम और दिकण िदशा की ओर िसर रखकर सोने से आयु बढती है । भगवननाम का समरण करते-करते सोना चािहए।
पा तः प ानी पयोग
पातः सूयोदय से पूवम उठकर, मुह ँ धोये िबना, मंजन या दातुन करने से पूवम हर रोज करीब सवा िीटर (चार बडे िगिास) राित का रखा हुआ पानी पीये। उसके बाद 45
िमनट तक कुछ भी खाये-पीये नहीं। पानी पीने के बाद मुह ँ धो सकते है , दातुन कर सकते है । जब यह पयोग चिता हो उन िदनो मे नाशता या भोजन के दो घणटे के बाद ही पानी पीये।
पातः पानी पयोग करने से हदय, िीवर, पेट, आँत के रोग एवं िसरददम , पथरी,
मोटापा, वात-िपि-कफ आिद अनेक रोग दरू होते है । मानिसक दब म ता दरू होती है और ु ि बुिद तेजसवी बनती है । शरीर मे कांित एवं सफूितम बढती है । नोटः बचचे एक-दो िगिास पानी पी सकते है ।
सम रण शिक बढान े के उपाय बचचो की समरण शिक बढाने के कई उपाय है , उसमे कुछ मुखय उपाय इस पकार है -
1. भामरी पाणा यामः
िव िधः सवप म थम दोनो हाथो की उँ गिियो को कनधो के पास ऊँचा िे जाये। दोनो हाथो की उँ गिियाँ कान के पास रखे। गहरा शास िेकर तजन म ी उँ गिी से दोनो कानो को
इस पकार बंद करे िक बाहर का कुछ सुनाई न दे । अब होठ बंद करके भँवरे जैसा गुज ं न करे । शास खािी होने पर उँ गिियाँ बाहर िनकािे।
िाभ ः वैजािनको ने िसद िकया है िक भामरी पाणायाम करते समय भँवरे की तरह गुंजन करने से छोटे मिसतषक मे सपंदन पैदा होते है । इससे एसीटाईिकोिीन,
डोपामीन और पोटीन के बीच होने वािी रासायिनक पिकया को उिेजना िमिती है । इससे समिृतशिक का िवकास होता है । यह पाणायाम करने से मिसतषक के रोग िनमूि म होते है । अतः हर रोज सुबह 8-10 पाणायाम करने चािहए। 2. सारसवतय
मंतदीकाः
समथम सदगुरदे व से सारसवतयमंत की दीका िेकर मंत
का िनयिमत रप से जप करने से और उसका अनुषान करने से बािक की समरणशिक चमतकािरक ढं ग से बढती है ।
3. सूय म को अघय म ः सूयोदय के कुछ समय बाद जि से भरा ताँबे का किश हाथ मे िेकर सूयम की ओर मुख करके िकसी सवचछ सथान पर खडे हो।
किश को छाती के समक बीचोबीच िाकर किश मे भरे जि की धारा धीरे धीरे पवािहत करे । इस समय किश के धारा वािे िकनारे पर दििपात करे गे
तो हमे हमे सूयम का पितिबमब एक छोटे से िबंद ु के रप मे िदखेगा। उस िबंद ु पर दिि एकाग करने से हमे सिरं गो का विय िदखेगा। इस तरह सूयम के पितिबमब (िबंद ु) पर दिि एकाग करे । सूयम बुिदशिक के सवामी है । अतः सूयोदय के समय सूयम को अघयम दे ने से बुिद तीव बनती है ।
4. सूयोदय के बाद तुिसी के पाँच-सात पिे चबा-चबाकर खाने एवं एक गिास पानी पीने से भी बचचो की समिृतशिक बढती है । तुिसी खाकर तुरंत दध ू न पीये। यिद दध ू पीना हो तो तुिसी पिे खाने के एक घणटे के बाद पीय़े।
5. रात को दे र रात तक पढने के बजाय सुबह जलदी उठकर, पाँच िमनट धयान मे बैठने के बाद पढने से बािक जो पढता है वह तुरंत याद हो जाता है ।
पाणायाम पाणायाम शबद का अथम है ः पाण+आयाम। पाण अथात म ् जीवनशिक और आयाम अथात म िनयमन। शासोचछवास की पिकया का
िनयमन करने का काय़म पाणायाम करता है ।
िजस पकार एिौपैथी मे बीमािरयो का कारण जीवाणु, पाकृ ितक िचिकतसा मे
िवजातीय ततव एवं आयुवद े मे आम रस (आहार न पचने पर नस-नािडयो मे जमा कचचा रस) माना गया है उसी पकार पाण िचिकतसा मे रोगो का कारण िनबि म पाण माना गया है । पाण के िनबि म हो जाने से शरीर के अंग-पतयंग ढीिे पड जाने के कारण ठीक से
कायम नहीं कर पाते। शरीर मे रक का संचार पाणो के िारा ही होता है । अतः पाण िनबि म होने से रक संचार मंद पड जाता है । पयाि म रक न िमिने पर कोिशकाएँ कमशः कमजोर
और मत ृ हो जाती है तथा रक ठीक तरह से हदय मे न पहुँचने के कारण उसमे
िवजातीय दवय अिधक हो जाते है । इन सबके पिरणामसवरप िविभनन रोग उतपनन होते है ।
यह वयवहािरक जगत मे दे खा जाता है िक उचच पाणबिवािे वयिक को रोग
उतना परे शान नहीं करते िजतना कमजोर पाणबिवािे को। पाणायाम के िारा भारत के योगी हजारो वषो तक िनरोगी जीवन जीते थे, यह बात तो सनातन धमम के अनेक गनथो मे है । योग िचिकतसा मे दवाओं को बाहरी उपचार माना गया है जबिक पाणायाम को
आनतिरक उपचार एवं मूि औषिध बताया गया है । जाबालय ोपिनषद म े पाणा याम को समस त रोगो
का नाशकता म बताया गया
है।
शरीर के िकसी भाग मे पाण जयादा होता है तो िकसी भाग मे कम। जहाँ जयादा
है वहाँ से पाणो को हटाकर जहाँ उसका अभाव या कमी है वहाँ पाण भर दे ने से शरीर के रोग दरू हो जाते है । सुषुि शिकयो को जगाकर जीवनशिक के िवकास मे पाणायाम का बडा महतव है ।
पाणा याम के िाभ ः 1.
पाणायाम मे गहरे शास िेने से फेफडो के बंद िछद खुि जाते है तथा रोग पितकारक शिक बढती है । इससे रक, नािडयो एवं मन भी शुद होता है ।
2.
ितकाि संधया के समय सतत चािीस िदन तक 10-10 पाणायाम करने से पसननता, आरोगयता बढती है एवं समरणशिक का भी िवकास होता है ।
3.
पाणायाम करने से पाप कटते है । जैसे मेहनत करने से कंगािी नहीं रहती है , ऐसे ही पाणायाम करने से पाप नहीं रहते है ।
पाणायाम मे शास को िेने का, अंदर रोकने का, छोडने का और बाहर रोकने के समय का पमाण कमशः इस पकार है ः 1-4-2-2 अथात म यिद 5 सैकेणड शास िेने मे िगाये तो 20 सैकेणड रोके और 10 सैकेणड उसे छोडने मे िगाएं तथा 10 सैकेणड बाहर रोके यह
आदशम अनुपात है । धीरे -धीरे िनयिमत अभयास िारा इस िसथित को पाि िकया जा सकता है ।
पाणायाम के कुछ पमुख अंगः
1. रेचक ः अथात म शास को बाहर छोडना। 2. पूरकः अथात म शास को भीतर िेना।
3. कुंभक ः अथात म शास को रोकना। शास को भीतर रोकने िक िकया को आंतर कुंभक तथा बाहर रोकने की िकया को बिहकुाभक कहते है ।
िवदा िथ म यो के ििए अ नय उ पयोगी पाणायाम 1. अनिोम -िव िोम पाणा यामः इस पाणायाम मे सवप म थम दोनो नथुनो से पूरा शास बाहर िनकाि दे । इसके बाद दािहने हाथ के अँगूठे से नाक के दािहने
नथुने को बनद करके बाँए नथुने से सुखपूवक म दीघम शास िे। अब यथाशिक
शास को रोके रखे। िफर बाँए नथुने को मधयमा अँगि ु ी से बनद करके शास को दािहने नथुने से धीरे -धीरे छोडे । इस पकार शास के पूरा बाहर िनकाि दे और िफर दोनो नथुनो को बनद करके शास को बाहर ही सुखपूवक म कुछ दे र
तक रोके रखे। अब पुनः दािहने नथुने से शास िे और िफर थोडे समय तक रोककर बाँए नथुने से शास धीरे -धीरे छोडे । पूरा शास बाहर िनकि जाने के बाद कुछ समय तक रोके रखे। यह एक पाणायाम हुआ।
2. ऊजा म यी पाणायामः
इसको करने से हमे िवशेष ऊजाम (शिक) िमिती है ,
इसििए इसे ऊजाय म ी पाणायाम कहते है । इसकी िविध है ः
पदासन या सुखासन मे बैठ कर गुदा का संकोचन करके मूिबंध िगाएं। िफर नथुनो, कंठ और छाती पर शास िेने का पभाव पडे उस रीित से जलदी शास िे। अब
नथुनो को खुिा रखकर संभव हो सके उतने गहरे शास िेकर नािभ तक के पदे श को शास से भर दे । इसके बाद एकाध िमनट कुंभक करके बाँये नथुने से शास धीरे -धीरे छोडे । ऐसे दस ऊजाय म ी पाणायाम करे । इससे पेट का शूि, वीयिमवकार, सवपनदोष, पदर रोग जैसे धातु संबंधी रोग िमटते है ।
धयान -ताटक -जप -मौन -संधया त था म ंत -मिहमा धया न मिहमा
नािसत ध या नसम ं ती थम म।् नािसत ध या नसम ं दानम। ् नािसत ध या नसम ं यजम।् नािसत ध या नसम ं त पम।्
तसमात ् धयान ं समाचर ेत।्
धयान के समान कोई तीथम नहीं। धयान के समान कोई दान नहीं। धयान के समान कोई यज नहीं। धयान के समान कोई तप नहीं। अतः हर रोज धयान करना चािहए।
सुबह सूयोदय से पहिे उठकर, िनतयकमम करके गरम कंबि अथवा टाट का आसन
िबछाकर पदासन मे बैठे। अपने सामने भगवान अथवा गुरदे व का िचत रखे। धूप-दीप-
अगरबिी जिाये। िफर दोनो हाथो को जानमुदा मे घुटनो पर रखे। थोडी दे र तक िचत को दे खते-दे खते ताटक करे । पहिे खुिी आँख आजाचक मे धयान करे । िफर आँखे
बंद करके धयान करे । बाद मे गहरा शास िेकर थोडी दे र अंदर रोक रखे, िफर हिर
ú.....
दीघम उचचारण करते हुए शास को धीरे -धीरे बाहर छोडे । शास को भीतर िेते
समय मन मे भावना करे - मै सदगुण, भिक, िनरोगता, माधुयम, आनंद को अपने भीतर भर रहा हूँ। और शास को बाहर छोडते समय ऐसी भावना करे - मै दःुख, िचंता, रोग, भय को अपने भीतर से बाहर िनकाि रहा हूँ। इस पकार सात बार
करे । धयान करने के बाद
पाँच-सात िमनट शाँत भाव से बैठे रहे ।
िाभ ः इससे मन शाँत रहता है , एकागता व समरणशिक बढती है , बुिद सूकम
होती है , शरीर िनरोग रहता है , सभी दःुख दरू होते है , परम शाँित का अनुभव होता है और परमातमा के साथ संबंध सथािपत िकया जा सकता है ।
ताटक एकागता बढाने के ििए ताटक बहुत मदद करता है । ताटक अथात म दिि के जरा
सा भी िहिाए िबना एक ही सथान पर िसथत करना। बचचो की समिृतशिक बढाने मे ताटक उपयोगी है । ताटक की िविध इस पकार है ।
एक फुट के चौरस गिे पर एक सफेद कागज िगा दे । उसके केनद मे एक रपये
का िसकके के बराबर का एक गोिाकार िचनह बनाये। इस गोिाकार िचह के केद मे एक ितिभर िबनद ु छोडकर बाकी के भाग मे कािा कर दे । बीचवािे िबनद ु मे पीिा रं ग भर
दे । अब उस गिे को दीवार पर ऐसे रखो िक गोिाकार िचह आँखो की सीधी रे खा मे रहे । िनतय एक ही सथान मे तथा एक िनिशत समय मे गिे के सामने बैठ जाये। आँख और
गिे के बीच का अंतर तीन फीट का रखे। पिके िगराये िबना अपनी दिि उस गोिाकार िचह के पीि केनद पर िटकाये।
पहिे 5-10 िमनट तक बैठे। पारमभ मे आँखे जिती हुई मािूम पडे गी िेिकन
घबराये नहीं। धीरे -धीरे अभयास िारा आधा घणटा तक बैठने से एकागता मे बहुत मदद
िमिती है । िफर जो कुछ भी पढे गे वह याद रह जाएगा। इसके अिावा चनदमा, भगवान या गुरदे व जी के िचत पर, सविसतक, ú या दीपक की जयोत पर भी ताटक कर सकते है । इिदे व या गुरदे व के िचत पर ताटक करने से िवशेष िाभ िमिता है ।
जप-मिहमा
भगवान शीकृ षण ने गीता मे कहा है , यजा नाम ् जपयजो अ िसम। यजो मे
जपयज मै हूँ। शी राम चिरत मानस मे भी आता है ः कििय ु ग केवि नाम आधारा
, जप त नर उतर े िसंध ु पार ा।
इस कियुग मे भगवान का नाम ही आधार है । जो िोग भगवान के नाम का जप करते है , वे इस संसार सागर से तर जाते है ।
जप अथात म कया? ज = जनम का नाश, प = पापो का नाश। पापो का नाश करके जनम-मरण करके चककर से छुडा दे उसे जप कहते है ।
परमातमा के साथ संबंध जोडने की एक किा का नाम है जप। एक िवचार पूरा हुआ और दस ू रा अभी उठने को है उसके बीच के अवकाश मे परम शांित का अनुभव होता है । ऐसी िसथित िाने के ििए जप बहुत उपयोगी साधन है । इसीििए कहा जाता है ः अिध कम ् जपं अिध कं फ िम।्
मौनः शिकस ंचय का महान सोत मौन शबद की संिध िवचछे द की जाय तो म+उ+न होता है । म = मन, उ =
उतकृ ि और न = नकार। मन को संसार की ओर उतकृ ि न होने दे ना और परमातमा के सवरप मे िीन करना ही वासतिवक अथम मे मौन कहा जाता है ।
वाणी के संयम हे तु मौन अिनवायम साधन है । मनु््षय अनय इिनदयो के उपयोग
से जैसे अपनी शिक खचम करता है ऐसे ही बोिकर भी वह अपनी शिक का बहुत वयय करता है ।
मनुषय वाणी के संयम िारा अपनी शिकयो को िवकिसत कर सकता है । मौन से
आंतिरक शिकयो का बहुत िवकास होता है । अपनी शिक को अपने भीतर संिचत करने के ििए मौन धारण करने की आवशयकता है । कहावत है िक न बोि ने म े नौ गुण।
ये नौ गुण इस पकार है । 1. िकसी की िनंदा नहीं होगी। 2. असतय बोिने से
बचेगे। 3. िकसी से वैर नहीं होगा। 4. िकसी से कमा नहीं माँगनी पडे गी। 5. बाद मे
आपको पछताना नहीं पडे गा। 6. समय का दर ु पयोग नहीं होगा। 7. िकसी कायम का बंधन
नहीं रहे गा। 8. अपने वासतिवक जान की रका होगी। अपना अजान िमटे गा। 9. अंतःकरण की शाँित भंग नहीं होगी।
मौन के िवषय म े म हाप ुरष क हते ह ै।
सुषुि शिकयो को िवकिसत करने का अमोघ साधन है मौन। योगयता िवकिसत करने के ििए मौन जैसा सुगम साधन मैने दस ू रा कोई नहीं दे खा। -
परम प ूजय स ंत श ी आ सारामजी
बाप ू
जािनयो की सभा मे अजािनयो का भूषण मौन है । - भतमृ हिर
बोिना एक सुंदर किा है । मौन उससे भी ऊँची किा है । कभी-कभी मौन िकतने ही अनथो को रोकने का उपाय बन जाता है । कोध को जीतने मे मौन िजतना मददरप है उतना मददरप और कोई उपाय नहीं। अतः हो सके तब तक मौन ही रहना चािहए।
-
महातमा ग ाँधी
ितकाि स ंधया पातः सूयोदय के 10 िमनट पहिे से 10 िमनट बाद तक, दोपहर के 12 बजे से 10 िमनट पहिे से 10 िमनट बाद तक एवं शाम को सूयास म त के 10 िमनट पहिे से 10 िमनट बाद तक का समय संिधकाि कहिाता है । इडा और िपंगिा नाडी के बीच मे जो सुषुमना नाडी है , उसे अधयातम की नाडी भी कहा जाता है । उसका मुख संिधकाि मे उधवग म ामी होने से इस समय पाणायाम, जप, धयान करने से सहज मे जयादा िाभ होता है ।
अतः सुबह, दोपहर एवं सांय- इन तीनो समय संधया करनी चािहए। ितकाि संधया
करने वािो को अिमट पुणयपुंज पाि होता है । ितकाि संधया मे पाणायाम, जप, धयान का समावेश होता है । इस समय महापुरषो के सतसंग की कैसेट भी सुन सकते है ।
आधयाितमक उननित के ििए ितकाि संधया का िनयम बहुत उपयोगी है । ितकाि संधया करने वािे को कभी रोजी-रोटी की िचंता नहीं करनी पडती। ितकाि संधया करने से
असाधय रोग भी िमट जाते है । ओज, तेज, बुिद एवं जीवनशिक का िवकास होता है । हमारे ऋिष-मुिन एवं शीराम तथा शीकृ षण आिद भी ितकाि संधया करते थे। इसििए हमे भी ितकाि संधया करने का िनयम िेना चािहए।
मंत -मिहमा मन की मनन करने की शिक अथात म एकागता पदान करके जप िारा सभी भयो का िवनाश करके, पूणम रप से रका करनेवािे शबदो को मंत कहा जाता है । ऐसे कुछ मंत और उनकी शिक िनमन पकार है ः
ú
1. हिर
हीं शबद बोिने से यकृ त पर गहरा पभाव पडता है और हिर के साथ यिद
ú
िमिा कर उचचारण िकया जाए तो हमारी पाँचो जानेिनदयो पर अचछी असर पडती है । सात बार हिर
ú का
गुज ं न करने से मूिाधार केनद पर सपंदन होते है और कई रोगो को
कीटाणु भाग जाते है । 2. रामः
रमनत े योगीनः यिसमन
् स राम ः। िजसमे योगी िोग रमण करते है वह है
राम। रोम रोम मे जो चैतनय आतमा है वह है राम।
ú राम... ú राम... का
हररोज एक
घणटे तक जप करने से रोग पितकारक शिक बढती है , मन पिवत होता है , िनराशा, हताशा और मानिसक दब म ता दरू होने से शारीिरक सवासथय पाि होता है । ु ि 3. सूय म मंत ः
ú
सूय ाम य नमः।
इस मँत के जप से सवासथय, दीघाय म ु, वीयम एवं ओज की पािि होती है । यह मंत शरीर एवं चकु के सारे रोग दरू करता है । इस मंत के जप करने से जापक के शतु उसका कुछ भी नहीं िबगाड सकते। 4. सारसवतय
ú
मंतः
सारसवतय ै नम ः।
इस मंत के जप से जान और तीव बुिद पाि होती है ।
ú
5. िकमी म ंतः
शी महा िकमय ै नम ः।
इस मंत के जप से धन की पािि होती है और िनधन म ता का िनवारण होता है । 6. गणेष म ंत ः
ú
ú
शी गण ेषाय नमः।
गं गणप तये नम ः।
इन मंतो के जप से कोई भी कायम पूणम करने मे आने वािे िवघनो का नाश होता है । 7. हनुमान मंतः
ú
शी हन ुमत े नम ः।
इस मंत के जप से िवजय और बि की पािि होती है । 8. सुबह णयम ंत ः
ú
शी श रणभवाय
नम ः।
इस मंत के जप से कायो मे सफिता िमिती है । यह मंत पेतातमा के दषुपभाव
को दरू करता है ।
9. सगुण म ंतः
ú
िश वाय।
शी रामाय
नम ः।
ú
नमो भग वते वास ुदेवाय।
ú नमः
ये सगुण मंत है , जो िक पहिे सगुण साकातकार कराते है और अंत मे िनगुण म
साकातकार।
10. मोक मंत ः
ú,
सो s हम ् , िश वो s हम् , अहं ब हािसम।
ये मोक मंत है , जो आतम-साकातकार मे मदद करते है ।
सू यम न मसकार महतव ः हमारे ऋिषयो ने मंत और वयायामसिहत एक ऐसी पणािी िवकिसत की है िजसमे सूयोपासना का समनवय हो जाता है । इसे सूयन म मसकार कहते है । इसमे कुि
10 आसनो का समावेश है । हमारी शारीिरक शिक की उतपिि, िसथित एव विृद सूयम पर आधािरत है । जो िोग सूयस म नान करते है , सूयोपासना करते है वे सदै व सवसथ रहते है । सूयन म मसकार से शरीर की रकसंचरण पणािी, शास-पशास की कायप म णािी और पाचन-
पणािी आिद पर असरकारक पभाव पडता है । यह अनेक पकार के रोगो के कारणो को दरू करने मे मदद करता है । सूयन म मसकार के िनयिमत अभयास के शारीिरक एवं मानिसक सफूितम के साथ िवचारशिक और समरणशिक तीव होती है ।
पिशमी वैजािनक गाडम नर रॉनी ने कहाः सूयम शष ै औषध है । उससे सदी, खाँसी, नयुमोिनया और कोढ जैसे रोग भी दरू हो जाते है ।
डॉकटर सोिे ने कहाः सूयम मे िजतनी रोगनाशक शिक है उतनी संसार की अनय
िकसी चीज मे नहीं।
पातःकाि शौच सनानािद से िनवत ृ होकर कंबि या टाट (कंतान) का आसन
िबछाकर पूवािमभमुख खडे हो जाये। िचत के अनुसार िसद िसथित मे हाथ जोड कर, आँखे बनद करके, हदय मे भिकभाव भरकर भगवान आिदनारायण का धयान करे -
धयेय ः सदा स िवत ृ म णडि मधयवती
नाराय णः स रिस जासनसिनन िविः।
केय ूरवा न ् मकरकु णडिवान ् िकरीटी हारी
िहरणमयवपध मृ तशंख चकः।।
सिवतम ृ णडि के भीतर रहने वािे, पदासन मे बैठे हुए, केयूर, मकर कुणडि
िकरीटधारी तथा हार पहने हुए, शंख-चकधारी, सवणम के सदश दे दीपयमान शरीर वािे भगवान नारायण का सदा धयान करना चािहए। - (आिदतय हदयः आिद देव नमसत ुभय ं पसीद मम
भासकर। िदवाकर नमसत
938) ुभय ं पभाकर
नमो s सतु त े।।
हे आिददे व सूयन म ारायण! मै आपको नमसकार करता हूँ। हे पकाश पदान करने वािे
दे व! आप मुझ पर पसनन हो। हे िदवाकर दे व! मै आपको नमसकार करता हूँ। हे तेजोमय दे व! आपको मेरा नमसकार है ।
यह पाथन म ा करने के बाद सूयम के तेरह मंतो मे से पथम मंत
ú िम ताय
नम ः।
के सपि उचचारण के साथ हाथ जोड कर, िसर झुका कर सूयम को नमसकार करे । िफर िचतो के िनिदम ि 10 िसथितयो का कमशः आवतन म करे । यह एक सूयम नमसकार हुआ।
इस मंत िारा पाथन म ा करने के बाद िनमनांिकत मंत मे से एक-एक मंत का सपि
उचचारण करते हुए सूयन म मसकार की दसो िसथितयो का कमबद अनुसरण करे ।
1.
ú िमताय नमः। 2. ú रवय े नम ः। 3. ú सूय ाम य नमः। 4. ú भानव े नमः। 5. ú खगाय नम ः। 6. ú पूषण े नमः। 7. ú िहरणयगभा म य नमः। 8. ú मरीच ये नमः। 9. ú आिदतयाय नम ः। 10. ú सिवत े नमः। 11. ú अकामय नमः। 12. ú भास करा य नमः। 13. ú शीसिव तृ -सूय म ना रायण ाय नमः। िसद िसथ ितः
दोनो पैरो की एिडयो और अंगूठे
परसपर िगे हुए,संपूणम शरीर तना हुआ, दिि नािसकाग, दोनोहथेिियाँ नमसकार की मुदा मे,
िसद
अंगूठे सीने से िगे हुए।
िसथ ित
पहिी िसथ ितः
नमसकार की िसथित मे ही दोनो भुजाएँ िसर के ऊपर, हाथ सीधे, कोहिनयाँ तनी हुई, िसर
और कमर से ऊपर का शरीर पीछे की झुका हुआ, दिि करमूि मे, पैर सीधे, घुटने तने
हुए, इस िसथित मे आते हुए शास भीतर भरे ।
मोडते
द ू सरी िसथ ित ः
हाथ को कोहिनयो से न
पहिी िसथत ि्
हुए सामने से नीचे की ओर झुके, दोनो हाथ-पैर सीधे, दोनो
घुटनेऔर कोहिनयाँतनी हुई, दोनो हथेिियाँ दोनो पैरो के पास
द ू सरी
जमीन के पासिगी हुई,ििाट घुटनो से िगा हुआ, ठोडी उरोिसथ से िगी हुई, इस िसथितमे शास को बाहर छोडे । तीसरी
िसथ ित ः बायाँ पैर पीछे , उसका पंजा और
िसथ ित
घुटना
धरतीसे िगा हुआ, दायाँ घुटना मुडा हुआ, दोनो हथेिियाँ
पूवव म त ्, भुजाएँ सीधी-कोहिनयाँ तनी हुई, कनधे और मसतक पीछे खींचेहुए, दिि ऊपर, बाएँ पैर को पीछे िे जाते समय
तीसरी
िसथ ित
शास को भीतर खींचे। हाथ
चौथी िसथ ितः दािहना पैर पीछे िेकर बाएँ पैर के पास, दोनो पैर सीधे, एिडयाँ जमीन से िगी हुई, दोनो घुटने और कोहिनयाँ तनी हुई, कमर ऊपर उठी हुई, िसर घुटनो की ओर खींचा हुआ,
चौथी िसथ ित
ठोडी छाती से िगी हुई, किट और किाईयाँ इनमे ितकोण, दिि घुटनो की ओर, कमर को ऊपर उठाते समय शास को छोडे । पाँ चवी ं िसथ ितः सािांग नमसकार, ििाट, छाती, दोनो
हथेिियाँ, दोनो घुटने, दोनो पैरो के पंजे, ये आठ अंग धरती
पर िटके हुए, कमर ऊपर उठाई हुई, कोहिनयाँ एक दस ू रे की
पाँ चवी ं िसथ ित
ओर खींची हुई, चौथी िसथित मे शास बाहर ही छोड कर रखे।
छठी िसथ ित ः घुटने और जाँघे धरती से सटी हुई, हाथ सीधे, कोहिनयाँ तनी हुई, शरीर कमर से ऊपर उठा हुआ मसतक पीछे की ओर झुका हुआ, दिि ऊपर, कमर
हथेिियो की ओर खींची हुई, पैरो के पंजे िसथर, मेरदं ड
छठी िसथ ित
धनुषाकार, शरीर को ऊपर उठाते समय शास भीतर िे।
सातव ीं िसथ ित ः यह िसथित चौथी िसथित की पुनराविृि है । कमर ऊपर उठाई हुई, दोनो हाथ पैर सीधे, दोनो घुटने
और कोहिनयाँ तनी हुई, दोनो एिडयाँ धरती पर िटकी हुई, मसतक घुटनो की ओर खींचा हुआ, ठोडी उरोिसथ से िगी हुई, एिडयाँ, किट और किाईयाँ – इनमे ितकोण, शास को बाहर छोडे ।
सातव ीं िसथ ित
आठवी ं िसथ ितः बायाँ पैर आगे िाकर पैर का पंजा दोनो हथेिियो के बीच पूवम सथान पर, दािहने पैर का पंजा और
घुटना धरती पर िटका हुआ, दिि ऊपर की ओर, इस िसथित मे आते समय शास भीतर को िे। (तीसरी और आठवीं
िसथित मे पीछे -आगे जाने वािा पैर पतयेक सूयन म मसकार
आठवी ं िसथ ित
मे बदिे।)
नौवी ं िसथ ित ः यह िसथित दस ू री की पुनराविृि है , दािहना पैर आगे िाकर बाएँ के पास पूवम सथान पर रखे, दोनो
हथेिियाँ दोनो पैरो के पास धरती पर िटकी हुई, ििाट
घुटनो से िगा हुआ, ठोडी उरोिसथ से िगी हुई, दोनो हाथ
पैर सीधे, दोनो घुटने और कोहिनयाँ तनी हुई, इस िसथित मे आते समय शास को बाहर छोडे ।
दसव ीं िसथ ित ः पारिमभक िसद िसथित के अनुसार
नौवी ं
िसथ ित
समपूणम
दसव ीं िसथ ित
शरीर तना हुआ, दोनो पैरो की एिडयाँ और अँगूठे परसपर
िगे हुए, दिि नािसकाग, दोनो हथेिियाँ नमसकार की मुदा
मे, अँगूठे छाती से िगे हुए, शास को भीतर भरे , इस पकार
दस िसथतयो मे एक सूयन म मसकार पूणम होता है । (यह दसवीं िसथित ही आगामी सूयन म मसकार की िसद िसथित बनती है ।)
यौ िगक चक चक ः चक आधयाितमक शिकयो के केनद है । सथूि शरीर मे ये चक चमच म कुओं से
नहीं िदखते है । कयोिक ये चक हमारे सूकम शरीर मे होते है । िफर भी सथूि शरीर के
जानतंतुओं-सनायुकेनदो के साथ समानता सथािपत करके उनका िनदे श िकया जाता है ।
हमारे शरीर मे सात चक है और उनके सथान िनमनांिकत है 1.मूिा धार च कः गुदा के नजदीक मेरदणड के आिखरी िबनद ु के पास यह चक
होता है । 2. सवािध षान च कः नािभ से नीचे के भाग मे यह चक होता है । 3. मिणप ुर चक ः यह चक नािभ केनद पर िसथत होता है । 4. अनाहत च कः इस चक का सथान
हदय मे होता है ।5. िवश ुदाखय च कः कंठकूप मे होता है । 6. आजा चकः यह चक दोनो भौहो (भवो) के बीच मे होता है । 7. सह सार च कः िसर के ऊपर के भाग मे जहाँ िशखा रखी जाती है वहाँ यह चक होता है ।
कुछ उपयो गी म ुदाए ँ पातः सनान आिद के बाद आसन िबछा कर हो सके तो पदासन मे अथवा सुखासन मे बैठे। पाँच-दस गहरे साँस िे और धीरे -धीरे छोडे । उसके बाद शांतिचि होकर िनमन मुदाओं को दोनो हाथो से करे । िवशेष पिरिसथित मे इनहे कभी भी कर सकते है ।
ििंग म ुदा ः दोनो हाथो की उँ गिियाँ परसपर भींचकर अनदर की ओर रहते हुए अँगूठे को ऊपर की ओर सीधा खडा करे ।
िाभ ः शरीर मे ऊषणता बढती है , खाँसी िमटती है और कफ का नाश करती है ।
शू नय मुदाः सबसे िमबी उँ गिी (मधयमा) को
ििंग म ुदा
अंदपर की ओर मोडकर उसके नख के ऊपर वािे भाग पर अँगूठे का गदीवािा भाग सपशम कराये। शेष तीनो उँ गिियाँ सीधी रहे ।
िाभ ः कान का ददम िमट जाता है । कान मे से पस
िनकिता हो अथवा बहरापन हो तो यह मुदा 4 से 5 िमनट तक करनी चािहए।
शू नय मुदा
पृ थवी म ुदा ः किनिषका यािन सबसे छोटी उँ गिी को अँगूठे के नुकीिे भाग से सपशम कराये। शेष तीनो उँ गिियाँ सीधी रहे ।
िाभ ः शारीिरक दब म ता दरू करने के ििए, ताजगी ु ि व सफूितम के ििए यह मुदा अतयंत िाभदायक है । इससे तेज बढता है ।
पृ थवी म ुदा
सूय म मुदाः अनािमका अथात म सबसे छोटी उँ गिी के पास वािी उँ गिी को मोडकर उसके नख के ऊपर वािे भाग को अँगूठे से सपशम कराये। शेष तीनो उँ गिियाँ सीधी रहे ।
िाभ ः शरीर मे एकितत अनावशयक चबी एवं सथूिता को दरू करने के ििए यह एक उिम मुदा है ।
जान मुदा ः तजन म ी अथात म पथम उँ गिी को अँगूठे के
सूय म मुदा
नुकीिे भाग से सपशम कराये। शेष तीनो उँ गिियाँ सीधी रहे ।
िाभ ः मानिसक रोग जैसे िक अिनदा अथवा अित िनदा, कमजोर यादशिक, कोधी सवभाव आिद हो तो यह मुदा अतयंत िाभदायक िसद होगी। यह मुदा
करने से पूजा पाठ, धयान-भजन मे मन िगता है ।
जान मुदा
इस मुदा का पितिदन 30 िमनठ तक अभयास करना चािहए।
वरण म ुदाः मधयमा अथात म सबसे बडी उँ गिी के मोड कर उसके नुकीिे भाग को अँगूठे के नुकीिे भाग पर सपशम कराये। शेष तीनो उँ गिियाँ सीधी रहे ।
िाभ ः यह मुदा करने से जि ततव की कमी के कारण
वरण म ुदा
होने
वािे रोग जैसे िक रकिवकार और उसके फिसवरप होने वािे चमरमोग व पाणडु रोग (एनीिमया) आिद दरू होते है ।
पाण मुदाः किनिषका, अनािमका और अँगूठे के ऊपरी भाग को परसपर एक साथ सपशम कराये। शेष दो उँ गिियाँ सीधी रहे ।
िाभ ः यह मुदा पाण शिक का केद है । इससे शरीर िनरोगी रहता है । आँखो के रोग िमटाने के ििए व चशमे का नंबर घटाने के ििए यह मुदा अतयंत िाभदायक है । वाय ु मुदाः तजन म ी अथात म पथम उँ गिी को मोडकर ऊपर से उसके पथम पोर पर अँगूठे की गदी
पाण मुदाः
सपशम कराओ। शेष तीनो उँ गिियाँ सीधी रहे ।
िाभ ः हाथ-पैर के जोडो मे ददम , िकवा, पकाघात, िहसटीिरया आिद रोगो मे िाभ होता है । इस मुदा
के साथ पाण मुदा करने से शीघ िाभ िमिता है । अपानवा यु म ुदा ः अँगूठे के पास वािी पहिी उँ गिी को अँगूठे के मूि मे िगाकर अँगूठे के अगभाग की
बीच की दोनो उँ गिियो के अगभाग के साथ िमिाकर
वाय ु मुदाः
सबसे छोटी उँ गिी (किनिषका) को अिग से सीधी
रखे। इस िसथित को अपानवायु मुदा कहते है । अगर िकसी को हदयघात आये या हदय मे अचानक
पीडा होने िगे तब तुरनत ही यह मुदा करने से हदयघात को भी रोका जा सकता है ।
िाभ ः हदयरोगो जैसे िक हदय की घबराहट,
हदय की तीव या मंद गित, हदय का धीरे -धीरे बैठ जाना आिद मे थोडे समय मे िाभ होता है ।
अपानवा यु मुदा
पेट की गैस, मेद की विृद एवं हदय तथा पूरे शरीर की बेचैनी इस मुदा के अभयास से दरू होती है । आवशयकतानुसार हर रोज 20 से 30 िमनट तक इस मुदा का अभयास िकया जा सकता है ।
यो गासन योगासन के िनयिमत अभयास से शरीर तंदरसत और मन पसनन रहता है । कुछ पमुख आसन इस पकार है 1 पदासनः
इस आसन से पैरो का आकार पद
अथात म कमि जैसा बनने से इसको पदासन या कमिासन कहा जाता है । पदासन के अभयास
से उतसाह मे विृद होती है , सवभाव मे पसननता
पदासन
बढती है , मुख तेजसवी बनता है , बुिद का अिौिकक िवकास होता है तथा सथूिता घटती है । 2. उगासन
(पादप िशमोिानासन )- सब आसनो मे यह
सवश म ष े है । इस आसन से शरीर का कद बढता है । शरीर मे अिधक सथूिता हो तो कम होती है ।
उगासन
दब म ता दरू होती है , शरीर के सब तंत बराबर ु ि
(पादपिश मोिा नास
कायश म ीि होते है और रोगो का नाश होता है ।
न)
इस आसन से बहचयम की रका होती है । 3. सवा ा गासनः
भूिम पर सोकर समसत शरीर
को ऊपर उठाया जाता है इसििए इसे
सवाग ा ासन कहते है । सवाग ा ासन के िनतय अभयास से जठरािगन तेज होती है । शरीर की तवचा ढीिी नहीं होती। बाि सफेद होकर िगरते नहीं है ।
मेधाशिक बढती है । नेत और मसतक के रोग दरू होते है ।
4. हिासन ः इस आसन मे शरीर का आकार हि
सवा ा गास न
जैसा बनता है इसििए इसको हिासन कहा जाता है । इस आसन से िीवर ठीक हो जाता है । छाती
का िवकास होता है । शसनिकया तेज होकर अिधक आकसीजन िमिने से रक शुद बनता है । गिे के
हिासन
ददम , पेट की बीमारी, संिधवात आिद दरू होते है ।पेट की चबी कम होती है । िसरददम दरू होता है । रीढ िचीिी बनती है ।
5. चकासन ः इस आसन मे शरीर की िसथित चक जैसी बनती है इसििए इसे चकासन कहते है । मेरदणड तथा शरीर की समसत नािडयो का शुिदकरण होकर यौिगक चक जागत होते है ।
िकवा तथा शरीर की कमजोिरयाँ दरू होती है ।
चकासन
इस आसन से मसतक, गदम न, पेट, कमर, हाथ,
पैर, घुटने आिद सब अंग बनते है । संिधसथानोमे ददम नहीं होता। पाचन शिक बढती है । पेट कीअनावशयक चबी दरू होती है । शरीर सीधा बना रहता है ।
6. मतसयासनः
मतसय का अथम है मछिी। इस
आसन मे शरीर का आकार मछिी जैसा बनता है । अतः मतसयासन कहिाता है । पिािवनी
पाणायाम के साथ इस आसन की िसथित मे
मत सय ासन
िमबे समय तक पानी मे तैर सकते है । मतसयासनसे पूरा शरीर मजबूत बनता है । गिा, छाती, पेट की तमाम बीमािरयाँ दरू होती है । आँखो की रोशनी बढती है । पेट के रोग नहीं होते। दमा और खाँसी दरू होती है । पेट की चबी कम होती है । 7. पवनम ुकासनः
यह आसन करने से शरीर मे िसथत
पवन (वायु) मुक होता है । इससे इसे पवन मुकासन
कहा जाता है । पवनमुकासन के िनयिमत अभयास से पेट की चबी कम हो जाती है । पेट की वायु नि होकर पेट िवकार रिहत बनता है । कबज दरू होती है । इस
पवनम ुकासन
आसन से समरणशिक बढती है । बौिदक कायम करने वािे डॉकटर, वकीि,
सािहतयकार, िवदाथी तथा बैठकर पविृि करने वािे मुनीम, वयापारी, किकम आिद िोगो को िनयिमत पवनमुकासन अवशय करना चािहए। 8. वजासनः
वजासन का अथम है बिवान िसथित। पाचनशिक, वीयम शिक तथा
सनायुशिक दे ने वािा होने के कारण यह आसन
वजासन कहिाता है । भोजन के बाद इस आसन मे बैठने से पाचनशिक तेज होती है । भोजन जलदी हजम होता है । कबजी दरू होकर पेट के तमाम रोग
नि होते है । कमर और पैर का वायुरोग दरू होता है ।
वजा सन
समरणशिक मे विृद होती है । वजनाडी अथात म वीयध म ारा मजबूत होती है । 9. धनुरासनः
इस आसन मे शरीर की आकृ ित खींचे
हुए धनुष जैसी बनती है , अतः इसको धनुरासन कहा
जाता है । धनुरासन से छाती का ददम दरू होता है । हदय मजबूत बनता है । गिे के तमाम रोग नि होते है ।
धनुरासन
आवाज मधुर बनती है । मुखाकृ ित सुनदर बनती है ।
आँखो की रोशनी बढती है । पाचन शिक बढती है । भूख खुिती है । पेट की चबी कम होती है ।
10. शवासन ः शवासन की पूणाव म सथा मे शरीर के
तमाम अंग एवं मिसतषक पूणत म या चेिारिहत िकए जाते है । यह अवसथा शव (मुदे) के समान होने से इस आसन को शवासन कहा जाता है । अनय
शवासन
आसन करने के बाद अंगो मे जो तनाव पैदा होता
है उसको दरू करने के ििए अंत मे 3 से 5 िमनट तक शवासन करना चािहए। इस आसन से रकवािहिनयो मे, िशराओं मे रकपवाह तीव होने से सारी थकान उतर जाती है । नाडीतंत को बि िमिता है । मानिसक शिक मे विृद होती है । 11. शशांकासनः
शशांकआसन शोणी पदे श की पेिशयो
के ििए अतयनत िाभदायक है । सायिटका की तंितका तथा एििनि गनथी के कायम िनयिमत होते है , कोष-
शश ांकासन
बदता और सायिटका से राहत िमिती है तथा कोध
पर िनयनतण आता है , बिसत पदे श का सवसथ िवकास होता है तथा यौन समसयाएँ दरू होती है । 12 ताडासनः
वीयस म ाव कयो होता है ? जब पेट मे दबाव ( Intro-abdominal
Pressure) बढता है तब वीयस म ाव होता है । इस पेशर के बढने के कारण इस पकार है - 1. ठू ँ स-ठू ँ स कर खाना 2. बार-बार खाना 3. किबजयत 4. गैस होने पर (वायु करे ऐसी आिू, गवार फिी, भींडी, तिी हुई चीजो
का सेवन एवं अिधक भोजन करने के कारण) 5.
सैकस समबनधी िवचार, चििचत एवं पितकाओं से। इस पेशर के बढने से पाण नीचे के केनदो मे, नािभ से नीचे मूिाधार केनद मे आ जाता है िजसकी
वजह से वीयस म ाव हो जाता है । इस पकार के पेशर ताडास न
के कारण हिनय म ा की बीमारी भी हो जाती है । ताडासन करने से पाण ऊपर के केनदो मे चिे जाते है
िजससे तुरंत ही पुरषो के वीयस म ाव व िसयो के पदर रोग की तकिीफ मे िाभ होता है ।
(आसन तथा पाणायाम की िवसतत ृ जानकारी के ििए आशम िारा पकािशत योगासन पुसतक को अवशय पढे ।)
पाणवान प ंिकया ँ बच चो के जीवन म े स ुष ुि अ वसथा म े छुप े ह ु ए उत साह , ततपरता , िनभ म यता और पाणशिक को ज
गान े के ििए उपयोगी पाणवान
सू िकया ँ
जहाजो से जो टकराये, उसे तूफान कहते है ।
तूफानो से जो टकराये, उसे इनसान कहते है ।।1।। हमे रोक सके, ये जमाने मे दम नहीं।
हमसे है जमाना, जमाने से हम नहीं।।2।। िजनदगी के बोझ को, हँ सकर उठाना चािहए। राह की दश ु ािरयो पे, मुसकुराना चािहए।।3।।
बाधाएँ कब रोक सकी है , आगे बढने वािो को।
िवपदाएँ कब रोक सकी है , पथ पे बढने वािो को।।4।। मै छुई मुई का पौधा नहीं, जो छूने से मुरझा जाऊँ।
मै वो माई का िाि नहीं, जो हौवा से डर जाऊँ।।5।। जो बीत गयी सो बीत गयी, तकदीर का िशकवा कौन करे ।
जो तीर कमान से िनकि गयी, उस तीर का पीछा कौन करे ।।6।। अपने दःुख मे रोने वािे, मुसकुराना सीख िे।
दस ू रो के दःुख ददम मे आँसू बहाना सीख िे।।7।। जो िखिाने मे मजा, वो आप खाने मे नहीं।
िजनदगी मे तू िकसी के, काम आना सीख िे।।8।। खून पसीना बहाता जा, तान के चादर सोता जा।
यह नाव तो िहिती जाएगी, तू हँ सता जा या रोता जा।।9।। खुदी को कर बुिनद इतना िक हर तकदीर से पहिे। खुदा बनदे से यह पूछे बता तेरी रजा कया है ।।10।।
एक -दो की स ंखया िारा एक स े द स की िगनती सब याद रखन
जान ा आप ,
जीवन म े उतरना , तो महान बन ेग े आ प।।
1. एक , परमातमा ह
ै एकः
जैसे सोने के आभूषण अिग-अिग होते है , िफर भी
मूि मे सोना तो एक ही है । इसी तरह परमातमा का नाम और रप अिग-अिग है । जैसे राम, शयाम, िशव परनतु ततवरप मे तो एक ही परमातमा है और वह अपना आतमा है । ऐसा एक हमे समझाता है ।
2. दो मन क े पकार
है दो ः मन दो पकार का है ः 1 शुद मन 2. अशुद मन।
शुद मन के िवचार है सुबह जलदी उठना, जप-धयान-कीतन म करना, हमेशा सच बोिना, चोरी न करना आिद जबिक अशुद मन के िवचार है दे र से उठना, झूठ बोिना, बडो का अपमान करना आिद। बचचो को सदा शुद मन के िवचारो को ही अमि मे िाना चािहए। ऐसा दो हमे कहता है ।
3. तीन , संधया
करनी तीनः
हररोज तीन संधया अथात म सुबह, दोपहर और
शाम तीनो समय संधया करनी चािहए। संधया मे हिर
ú
का उचचारण, पाणायाम, जप,
धयान आिद िकया जाता है । भगवान राम तथा शी कृ षण भी संधया करते थे। बचचो को रोज संधया करनी चािहए। ऐसा तीन हमे समझाता है ।
4.
चार , योग के ििए हो जाओ त ैयारः
84 से भी अिधक आसन है ,
परनतु उन मे से थोडे आसनो को भी जो िनयिमत रप से करता है तो उसको शारीिरक एवं मानिसक सवासथय के ििए खूब िाभदायी होता है । योगासन करने से डॉकटर की गुिामी नहीं करनी पडती है । इसििए हररोज योगासन करना चािहए। ऐसा चार हमे समझाता है ।
5.
पाँ च , पकृ ित के ततव ह ै पा ँ चः
हमारा यह शरीर पकृ ित का है जो पाँच
ततवो आकाश, तेज, वायु, जि और पथृवी का बना हुआ है । जब मतृयु होती है , तब यह
शरीर पाँच ततवो मे िमि जाता है , तब भी इसमे रहने वािा आतमा कभी मरता नहीं है । वसतुतः हम चैतनय आतमा है शरीर नहीं है । ऐसा पाँच हमे याद िदिाता है ।
6. छः बनो िनभ
म य ः िनभय म ता ही जीवन है , भयभीत होना मतृयु है । बचचो को
हमेशा िनभय म बनना चािहए। भूत-पेत से, अंधेरे से, मौत से डरना नहीं चािहए। िनभय म बनने के ििए रोज सुबह
ú
शबद का दीघम सवर से जप करना चािहए। डराने वािे सपने
आते हो तो शदापूवक म भगवदगीता का पाठ करके उसमे मोर का एक पंख रख िसरहाने के नीचे रखकर सो जाने से िाभ होगा। ऐसा हमे छः कहता है ।
7. सात , दुगुम णो
को मारो िात ः बचचो को अपने जीवन मे से दग म ो को ु ुण
जैसे िक झूठ बोिना, चोरी करना, िनंदा करना, पान-मसािा खाना, अपनी बुिद िबगाडे
ऐसी िफलमे टी.वी. सीिरयि दे खना तथा उनहे दे खकर, उसके िवजापन दे खकर फैशन का कचरा घर मे िाना आिद दग म ो को जीवन मे से दरू करना चािहए। ऐसा सात हमे ु ुण कहता है ।
8. आठ , रोज करो गीता
-पाठः िहं दध ू मम का पिवत गंथ शीमदभगवदगीता का
बचचो को रोज पाठ करना चािहए कयोिक भगवदगीता भगवान के शीमुख से िनकिी हुई जानगंगा है । उसे पढने से आतमिवशास बढता है । हमारे पाप नाश होते है । जीवन के
पशो के सभी जवाब हमे गीता से िमि जाते है । इसििए भगवदगीता का पाठ रोज करना चािहए। ऐसा आठ हमे समझाता है ।
9.
नौ , करो आत मान ुभवः हम अपने जीवन मे सुख-दःुख, मान-अपमान,
िाभ-हािन आिद बहुत से अनुभव करते है , परनतु मनुषय-जनम का उदे शय साथक म करने के ििए मै शरीर नहीं परनतु चैतनय आतमा हूँ, ऐसा अनुभव कर िो। यही सार है । ऐसा नौ हमे याद िदिाता है ।
10.
दस , रहो आ तमान ंद मे मसत ः भगवान आनंदसवरप है , दःुख, िचंता
या गिािनसवरप नहीं। इसििए सदा आनंद मे रहना चािहए। सदा स म और पस नन रहना ई शर की स वोपिर भ िक ह ै - पूजय बापू के इस उपदे श के अनुसार कैसी भी
िवकट पिरिसथित या दःुख आ पडे तो भी हदय की शांित या आननद गँवाना (खोना) नहीं चािहए परं तु समिचि और पसनन रहना चािहए। ऐसा दस का अंक हमे समझाता है ।
आदश म बािक की पह चान बचचा सहज, सरि, िनदोष और भगवान का पयारा होता है । बचचो मे महान होने के िकतने ही गुण बचपन मे ही नजर आते है । िजससे बचचे को आदशम बािक कहा जा सकता है । ये गुण िनमनिििखत है 1. वह श ांत सव भाव होता
है ः जब सारी बाते उसके पितकूि हो जाती है या
सभी िनणय म उसके िवपक मे हो जाते है , तब भी वह कोिधत नहीं होता।
2. वह उत साही होता ह ै ः जो कुछ वह करता है , उसे अपनी योगयता के
अनुसार उिम से उिम रप मे करता है । असफिता का भय उसे नहीं सताता। 3. वह सतयिनष होता ह
ै ः सतय बोिने मे वह कभी भय नहीं करता।
उदारतावश कटु व अिपय सतय भी नहीं कहता।
4. वह ध ैय म शीि होता ह ैः वह अपने सतकमम मे दढ रहता है । अपने सतकमो का फि दे खने के ििए भिे उसे िमबे समय तक पतीका करनी पडे , िफर भी वह धैयम नहीं छोडता, िनरतसािहत नहीं होता है । अपने कमम मे डटा रहता है ।
5. वह स हनशीि होता ह ैः सहन करे वह संत इस कहावत के अनुसार वह
सभी दःुखो को सहन करता है । परं तु कभी इस िवषय मे िशकायत नहीं करता है ।
6. वह अधयव सा यी होता ह ैः वह अपने कायम मे कभी िापरवाही नहीं करता।
इस कारण उसको वह कायम भिे ही िमबे समय तक जारी रखना पडे तो भी वह पीछे नहीं हटता।
7. वह स मिचि हो ता है ः वह सफिता और िवफिता दोनो अवसथाओं मे
समता बनाये रखता है ।
8. वह साह सी हो ता है ः सनमागम पर चिने मे, िोक-कलयाण के कायम करने मे,
धमम का अनुसरण व पािन करने मे, माता-िपता व गुरजनो की सेवा करने व आजा
मानने मे िकतनी भी िवघन-बाधाएँ कयो न आये, वह जरा-सा भी हताश नहीं होता, वरन ् दढता व साहस से आगे बढता है । 9. वह आननदी होता ह
है ।
10. वह िवनयी
ैः वह अनुकूि-पितकूि पिरिसथितयो मे पसनन रहता
होता ह ै ः वह अपनी शारीिरक-मानिसक शष े ता एवं िकसी
पकार की उतकृ ि सफिता पर कभी गवम नहीं करता और न दस ू रो को अपने से हीन या तुचछ समझता है । िवदा ददा ित िवनयम। ् 11. वह सवाधया यी होता
है ः वह संयम, सेवा, सदाचार व जान पदान करने
वािे उतकृ ि सदगनथो तथा अपनी कका के पाठयपुसतको का अधययन करने मे ही रिच रखता है और उसी मे अपना उिचत समय िगाता है , न िक वयथम की पुसतको मे जो िक उसे इन सदगुणो से हीन करने वािे हो। 12. वह उदार
हो ता है ः वह दस ू रो के गुणो की पशंसा करता है , दस ू रो को
सफिता पाि करने मे यथाशिक सहायता दे ने के ििए बराबर ततपर रहता है तथा उनकी सफिता मे खुिशयाँ मनाता है । वह दस ू रो की किमयो को नजरं दाज करता है ।
13. वह ग ुणगाही होता ह ैः वह मधुमकखी की तरह मधुसच ं य की विृिवािा
होता है । जैसे मधुमकखी िविभनन पकार के फूिो के रस को िेकर अमत ृ तुलय शहद का िनमाण म करती है , वैसे ही आदशम बािक शष े पुरषो, शष े गनथो व अचछे िमतो से उनके अचछे गुणो को चुरा िेता है और उनके दोषो को छोड दे ता है । 14. वह ईमानदार
और आजाकारी
होता ह ै ः वह जानता है िक ईमानदारी ही
सवोिम नीित है । माता-िपता और गुर के सव-परकलयाणकारी उपदे शो को वह मानता है ।
वह जानता है िक बडो के आजापािन से आशीवाद म िमिता है और आशीवाद म से जीवन मे बि िमिता है । धयान रह ेः दस म व शुभकामनाएँ सदै व हमारे साथ रहते ू रो के आशीवाद है ।
15. वह एक सच चा िम त होता ह ैः वह िवशसनीय, सवाथरमिहत पेम दे नेवािा,
अपने िमतो को सही रासता िदखाने वािा तथा मुिशकिो मे िमतो का पूरा साथ दे ने वािा िमत होता है ।
कपटी िम त न कीिजए , पेट प ैिठ ब ु िध ि े त। आगे राह िदखाय के , पीछे ध कका द ेत।। गुर स ंग क पट , िमत स ंग चोरी। या हो िनध म न , या हो कोढी।।
याद रख े जीवना का समझ िो सार - वयसन से करो नहीं पयार। हिरनाम की िे िो घुटटी - गुटके को दे दो छुटटी।।
सतसंग की िमठास नयारी - िकसििए िे तमबाकू सुपारी। पान-मसािे से संबंध छोडो - हिरनाम से संबंध जोडो।।
शास के अन ुसा र शोको का पा
ठ
िनमनिििखत शोको को जीवन मे चिरताथम करने से मनुषय-जीवन का िकय पाि कर सकते है । इसििए बचचो को इन शोको को कंठसथ करके जीवन मे चिरताथम करना चािहए।
गीताया ं शोकपाठ ेन गोिव ंदस मृ ित की तम न ात।् साध ुद शम नमात ेण तीथ म कोिट फिं िभ े त।् ।
भावाथ म ः गीता के शोक के पाठ से, भगवान शी कृ षण के समरण करने से, कीतन म
से और संतो के दशन म मात से करोडो तीथो का फि पाि होता है ।
उद मः साह सं ध ैय ा बुिद ः श िकः पराकम ः। षडेत ै यत वत म नते तत द ेव स हायकृत।् ।
भावाथ म ः उदम, साहस, धीरज, बुिद, शिक और पराकम ये छः गुण िजस वयिक के
जीवन मे है उनहे दे वता (परबह परमातमा) सहायता करते है धन या माता िपता धनयो गोत
ं ध नयं कुिोदभ वः।
धन या च वस ुधा द े िव यत सयाद
गुरभकता।।
भावाथ म ः िजसके अनदर गुरभिक है उसकी माता धनय है , उसके िपता धनय है , उसका गोत धनय है , उसके वंश मे जनम िेने वािे धनय है और समग धरती माता धनय है ।
अजानम ूि हरण ं ज नमक मम िनवारकम। ्
जानव ै रागय िसद धयथ ा गुरपादोदक ं िपब ेत।् । भावाथ म ः अजान के मूि को हरने वािे, अनेक जनमो के कमो का िनवारण करने
वािे, जान और वैरागय को िसद करने वािे गुरचरणामत ृ का पान करना चािहए। अभय ं सतवस ं शुिदजा म नय ोगवयव िसथित ः। दान ं द मश सवाधयायसतप आज
म वम।् ।
भावाथ म ः िनभय म ता, अंतःकरण की शुिद, जान और योग मे िनषा, दान, इिनदयो पर
काबू, यज और सवाधयाय, तप, अंतःकरण की सरिता का भाव ये दै वी समपिि वािे मनुषय के िकण है ।
अिभ वादनशीिसय िनतय चतवािर तसय व
ं व ृ दोपस े िवनः।
धम नते आय ु िव म दा यशो बि म।् ।
भावाथ म ः िनतय बडो की सेवा और पणाम करने वािे पुरष की आयु, िवदा, यश और बि ये चार बढते है ।
सािखया ँ बच चो को जीवन म े सद गुणो का स ंचार करन े के ििए उपयोगी
सािखया ँ -
हाथ जोड वनदन करँ, धरँ चरण मे शीश।
जान भिक मोहे दीिजए, परम पुरष जगदीश।। मै बािक तेरा पभु, जानूँ योग न धयान। गुरकृ पा िमिती रहे , दे दो यह वरदान।।
भयनाशन दम ु िमत हरण, किि मे हिर का नाम।
िनशिदन नानक जो जपे, सफि होविहं सब काम।। आिस कबहुँ न कीिजए, आिस अिर सम जािन। आिस से िवदा घटे , बि बुिद की हािन।।
तुिसी साथी िवपिि के, िवदा िवनय िववेक। साहस, सुकृत, सतयवत, राम भरोसो एक।। धैयम धरो आगे बढो, पूरन हो सब काम।
उसी िदन ही फिते नहीं, िजस िदन बोते आम।।
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हदय सांच है , ताके हदय आप।।
बहुत पसारा मत करो, कर थोडे की आस।
बहुत पसारा िजन िकया, वे भी गये िनराश।।
यह तन िवष की बेिरी, गुर अमत ृ की खान। िसर दीजे सदगुर िमिे, तो भी ससता जान।।
तुिसी जग मे यूँ रहो, जयो रसना मुख माँही। खाती घी और तेि िनत, तो भी िचकनी नाँही।। जब आए हम जगत मे, जग हँ सा हम रोए। ऐसी करनी कर चिो, हम हँ से जग रोए।। मेरी चाही मत करो, मै मूरख अनजान। तेरी चाही मे पभु, है मेरा कलयाण।।
तुिसी मीठे वचन से, सुख उपजत चहुँ ओर। वशीकरण यह मंत है , तज दे वचन कठोर।।
गोधन, गजधन, वािज धन, और रतन धन खान। जब आवे सनतोष धन, सभ धन धूिर समान।।
िकय न ओझि होने पाय, कदम िमिाकर चि। सफिता तेरे चरण चूमेगी, आज नहीं तो कि।।
भारतीय स ं सकृित की परमपराओ
ं का महतव
िकसी भी दे श की संसकृ ित उसकी आतमा होती है । भारतीय संसकृ ित की गिरमा
अपार है । इस संसकृ ित मे आिदकाि से ऐसी परमपराएँ चिी आ रही है , िजनके पीछे ताितवक महतव एवं वैजािनक रहसय िछपा हुआ है । उनमे से मुखय िनमन पकार है -
नमस का रः िदव य ज ीव न का पवे शिा र
हे िवदाथी! नमसकार भारतीय़ संसकृ ित का अनमोि रत है । नमसकार अथात म नमन, वंदन या पणाम। भारतीय संसकृ ित मे नमसकार का अपना एक अिग ही सथान और महतव है । िजस
पकार पिशम की संसकृ ित मे शेकहै णड (हाथ िमिाना) िकया जाता
है , वैसे भारतीय संसकृ ित मे दो हाथ जोडकर,िसर झुका कर पणाम करने का पाचीन िरवाज है । नमसकार के अिग-अिग भाव और अथम है ।
नमसकार एक शष े संसकार है । जब तुम िकसी बुजुगम, माता-िपता, संत-जानी-
महापुरष के समक हाथ जोडकर मसतक झुकाते हो तब तुमहारा अहं कार िपघिता है और
अंतःकरण िनमि म होता है । तुमहारा आडमबर िमट जाता है और तुम सरि एवं साितवक हो जाते हो। साथ ही साथ नमसकार िारा योग मुदा भी हो जाती है ।
तुम दोनो हाथ जोडकर उँ गिियो को ििाट पर रखते हो। आँखे अधोिनमिित
रहती है , दोनो हाथ जुडे रहते है एवं हदय पर रहते है । यह मुदा तुमहारे िवचारो पर संयम,
विृियो पर अंकुश एवं अिभमान पर िनयनतण िाती है । तुम अपने वयिकतव एवं अिसततव को िवशास के आशय पर छोड दे ते हो और िवशास पाते भी हो। नमसकार की मुदा के िारा एकागता एवं तदाकारता का अनुभव होता है । सब िं ि िमट जाते है ।
िवनयी पुरष सभी को िपय होता है । वंदन तो चंदन के समान शीति होता है ।
वंदन िारा दोनो वयिक को शांित, सुख एवं संतोष पाि होता है । वायु से भी पतिे एवं हवा से भी हिके होने पर ही शष े ता के सममुख पहुँचा जा सकता है और यह अनुभव मानो, नमसकार की मुदा के िारा िसद होता है ।
जब नमसकार िारा अपना अहं िकसी योगय के सामने झुक जाता है , तब
शरणागित एवं समपण म -भाव भी पगट होता है ।
सभी धमो मे नमसकार को सवीकार िकया गया है । िखसती िोग छाती पर हाथ
रखकर शीश झुकाते है । बौद भी मसतक झुकाते है । जैन धमम मे भी मसतक नवा कर
वंदना की जाती है परनतु अपने वैिदक धमम की नमसकार करने की यह पदित अित उिम है । दोनो हाथो को जोडने से एक संकुि बनता है , िजससे जीवनशिक एवं तेजोविय का
कय रोकने वािा एक चक बन जाता है । इस पकार का पणाम िवशेष िाभकारी है जबिक
एक-दस ू रे से हाथ िमिाने मे जीवनशिक का हास होता है तथा एक के संकिमत रोगी होने की दशा मे दस ू रे को भी उस रोग का संकमण हो सकता है ।
ितिकः ब ुिदबि व सतवबिवद म क
ििाट पर दो भौहो के बीच िवचारशिक का केनद है िजसे योगी िोग आजाशिक
का केनद कहते है । इसे िशवने अथात म कलयाणकारी िवचारो का केद भी कहते है । वहाँ पर चनदन का ितिक या िसंदरू आिद का ितिक िवचारशिक को, आजाशिक को िवकिसत
करता है । इसििए िहं द ू धमम मे कोई भी शुभ कमम करते समय ििाट पर ितिक िकया
जाता है । पूजयपाद संत शी आसारामजी बापू को चंदन का ितिक िगाकर सतसंग करते हुए िाखो करोडो िोगो ने दे खा है । ऋिषयो ने भाव पधान, शदा-पधान केनदो मे रहने
वािी मिहिाओं की समझदारी बढाने के उदे शय से ितिक की परं परा शुर की। अिधकांश
मिहिाओं का मन सवािधषान और मिणपुर केद मे रहता है । इन केनदो मे भय, भाव और कलपनाओं की अिधकता रहती है । इन भावनाओं तथा कलपनाओं मे मिहिाएँ बह न जाएँ, उनका िशवनेत, िवचारशिक का केद िवकिसत हो इस उदे शय से ऋिषयो ने मिहिाओं के
ििए सतत ितिक करने की वयवसथा की है िजससे उनको ये िाभ िमिे। गागी, शािणडिी, अनसूया तथा और भी कई महान नािरयाँ इस िहनदध ू मम मे पकट हुई। महान वीरो को,
महान पुरषो को महान िवचारको को तथा परमातमा का दशन म करवाने का सामथयम रखने वािे संतो को जनम दे ने वािी मातश ृ िक को आज िहनदस ु तान के कुछ सकूिो मे ितिक करने पर टोका जाता है । इस पकार के जुलम िहनदस ु तानी कब तक सहते रहे गे? इस पकार के षडयंतो के िशकार िहनदस ु तानी कब तक बनते रहे गे?
दीपक
मनुषय के जीवन मे िचहो और संकेतो का बहुत उपयोग है । भारतीय संसकृ ित मे
िमटटी के िदये मे पजजविित जयोत का बहुत महतव है । दीपक हमे अजान को दरू करके पूणम जान पाि
करने का संदेश दे ता है । दीपक अंधकार दरू करता है । िमटटी का दीया िमटटी से बने हुए मनुषय शरीर का पतीक है और उसमे रहने वािा तेि
अपनी जीवनशिक का पतीक है । मनुषय अपनी
जीवनशिक से मेहनत करके संसार से अंधकार दरू करके जान का पकाश फैिाये
ऐसा संदेश दीपक हमे दे ता है । मंिदर मे आरती करते समय दीया जिाने के पीछे यही भाव रहा है िक भगवान हमारे मन से अजान रपी अंधकार दरू करके जानरप पकाश फैिाये। गहरे अंधकार से पभु! परम पकाश की ओर िे चि।
दीपाविी के पवम के िनिमि िकमीपूजन मे अमावसया की अनधेरी रात मे दीपक
जिाने के पीछे भी यही उदे शय िछपा हुआ है । घर मे तुिसी के कयारे के पास भी दीपक जिाये जाते है । िकसी भी नये कायम की शुरआत भी दीपक जिाने से ही होती है । अचछे संसकारी पुत को भी कुि-दीपक कहा जाता है । अपने वेद और शास भी हमे यही िशका
दे ते है - हे परमातमा! अंधकार से पकाश की ओर, मतृयु से अमरता की ओर हमे िे चिो। जयोत से जयोत जगाओ इस आरती के पीछे भी यही भाव रहा है । यह है भारतीय संसकृ ित की गिरमा।
किश भारतीय संसकृ ित की पतयेक पणािी और पतीक के पीछे कोई-ना-कोई रहसय िछपा हुआ है , जो मनुषय जीवन के ििए िाभदायक होता है । ऐसा ही पतीक है किश। िववाह और शुभ पसंगो पर
उतसवो मे घर मे किश अथवा घडे वगैरह पर आम के पिे रखकर उसके ऊपर नािरयि रखा जाता है । यह
किश कभी खािी नहीं होता बिलक दध ू , घी, पानी
अथवा अनाज से भरा हुआ होता है । पूजा मे भी भरा
हुआ किश ही रखने मे आता है । किश की पूजा भी की जाती है ।
किश अपना संसकृ ित का महतवपूणम पतीक है । अपना शरीर भी िमटटी के किश
अथवा घडे के जैसा ही है । इसमे जीवन होता है । जीवन का अथम जि भी होता है । िजस शरीर मे जीवन न हो तो मुदाम शरीर अशुभ माना जाता है । इसी तरह खािी किश भी
अशुभ है । शरीर मे मात शास चिते है , उसका नाम जीवन नहीं है , परनतु जीवन मे जान, पेम, उतसाह, तयाग, उदम, उचच चिरत, साहस आिद हो तो ही जीवन सचचा जीवन कहिाता है । इसी तरह किश भी अगर दध ू , पानी, घी अथवा अनाज से भरा हुआ हो तो ही वह कलयाणकारी कहिाता है । भरा हुआ किश मांगििकता का पतीक है ।
भारतीय संसकृ ित जान, पेम, उतसाह, शिक, तयाग, ईशरभिक, दे शपेम आिद से जीवन
को भरने का संदेश दे ने के ििए किश को मंगिकारी पतीक मानती है । भारतीय नारी की मंगिमय भावना का मूितम म त ं पतीक यािन सविसतक।
सविसतक सविसतक शबद मूिभूत सु+अस धातु से बना हुआ है ।
सु का अथम है अचछा, कलयाणकारी, मंगिमय और अस का
अथम है अिसततव, सिा अथात म कलयाण की सिा और उसका पतीक है सविसतक। िकसी भी मंगिकायम के पारमभ मे
सविसतमंत बोिकर कायम की शुभ शुरआत की जाती है । सविसत न इंदो व ृ दशवा : सव िसत नः प ूषा िवशव ेदा :।
सविसत नसताकय ो अिरि नेिम ः सव िसत नो
ब ृ हसपित दम धात ु।।
महान कीितम वािे इनद हमारा कलयाण करो, िवश के जानसवरप पूषादे व हमारा
कलयाण करो। िजसका हिथयार अटू ट है ऐसे गरड भगवान हमारा मंगि करो। बह ृ सपित हमारा मंगि करो।
यह आकृ ित हमारे ऋिष-मुिनयो ने हजारो वषम पूवम िनिमत म की है । एकमेव और
अिितीय बह िवशरप मे फैिा, यह बात सविसतक की खडी और आडी रे खा सपि रप से समझाती है । सविसतक की खडी रे खा जयोितििग ा का सूचन करती है और आडी रे खा
िवश का िवसतार बताती है । सविसतक की चार भुजाएँ यािन भगवान िवषणु के चार हाथ। भगवान शीिवषणु अपने चारो हाथो से िदशाओं का पािन करते है ।
सविसतक अपना पाचीन धमप म तीक है । दे वताओं की शिक और मनुषय की मंगिमय कामनाएँ इन दोनो के संयुक सामथयम का पतीक यािन सविसतक। सविसतक यह सवाग ा ी मंगिमय भावना का पतीक है ।
जमन म ी मे िहटिर की नाजी पाटी का िनशान सविसतक था। कूर िहटिर ने िाखो
यहूिदयो को मार डािा। वह जब हार गया तब िजन यहूिदयो की हतया की जाने वािी थी वे सब मुक हो गये। तमाम यहूिदयो का िदि िहटिर और उसकी नाजी पाटी के ििए
तीव घण ृ ा से युक रहे यह सवाभािवक है । उन दि ु ो का िनशान दे खते ही उनकी कूरता के दशय हदय को कुरे दने िगे यह सवाभािवक है । सविसतक को दे खते ही भय के कारण
यहूदी की जीवनशिक कीण होनी चािहए। इस मनोवैजािनक तथय के बावजूद भी डायमणड के पयोगो ने बता िदया िक सविसतक का दशन म यहूदी की भी जीवनशिक को बढाता है । सविसतक का शिकवधक म पभाव इतना पगाढ है ।
अपनी भारतीय संसकृ ित की परमपरा के अनुसार िववाह-पसंगो, नवजात िशशु की
छठठी के िदन, दीपाविी के िदन, पुसतक-पूजन मे, घर के पवेश-िार पर, मंिदरो के पवेशदार पर तथा अचछे शुभ पसंगो मे सविसतक का िचह कुमकुस से बनाया जाता है एवं
भावपूवक म ईशर से पाथन म ा की जाती है िक हे पभु! मेरा कायम िनिवघमन सफि हो और हमारे घर मे जो अनन, वस, वैभव आिद आये वह पिवत बने।
शंख शंख दो पकार के होते है - दिकणावतम और वामवत।म दिकणावतम शंख दै वयोग से ही
िमिता है । यह िजसके पास होता है उसके पास िकमीजी िनवास करती है । यह ितदोषनाशक, शुद और नविनिधयो मे एक है । गह और गरीबी की पीडा, कय, िवष, कृ शता और नेतरोग
का नाश करता है । जो शंख शेत चंदकांत मिण जैसा
होता है वह उिम माना जाता है । अशुद शंख गुणकारी नहीं है । उसे शुद करके ही दवा के उपयोग मे िाया जा सकता है ।
भारत के महान वैजािनक शी जगदीशचनद बसु ने िसद करके िदखाया िक शंख बजाने से जहाँ तक उसकी धविन पहुँचती है वहाँ तक रोग उतपनन करने वािे हािनकारक
जीवाणु (बैकटीिरया) नि हो जाते है । इसी कारण अनािद काि से पातःकाि और संधया के समय मंिदरो मे शंख बजाने का िरवाज चिा आ रहा है ।
संधया के समय शंख बजाने से भूत-पेत-राकस आिद भाग जाते है । संधया के
समय हािनकारक जीवाणु पकट होकर रोग उतपनन करते है । उस समय शंख बजाना आरोगय के ििए फायदे मंद है ।
गूँगेपन मे शंख बजाने से एवं तुतिेपन, मुख की कांित के ििए, बि के ििए, पाचनशिक के ििए और भूख बढाने के ििए, शास-खाँसी, जीणज म वर और िहचकी मे शंखभसम का औषिध की तरह उपयोग करने से िाभ होता है ।
ú कार का अ थम एव ं महतव ú = अ+उ+म+(्ँ) अधम तनमाता। ú का अ कार सथूि जगत
का आधार है ।
उ कार सूकम जगत का आधार है । म कार कारण जगत का आधार है । अधम तनमाता (्ँ) जो इन तीनो जगत से पभािवत नहीं होता बिलक तीनो जगत िजससे सिा-सफूितम िेते है िफर भी िजसमे ितिभर भी फकम नहीं पडता, उस परमातमा का दोतक है ।
ú
आितमक बि दे ता है ।
ú
के उचचारण से
जीवनशिक उधवग म ामी होती है । इसके सात बार के उचचारण से शरीर के रोग को कीटाणु दरू होने
िगते है एवं िचि से हताशा-िनराशा भी दरू होती
है । यही कारण है िक ऋिष-मुिनयो ने सभी मंतो के आगे
ú
जोडा है । शासो मे भी
शंकर का मंत हो तो
ú
नमः िशवाय।
नमः। भगवान राम का मंत हो तो भगवत े वा सुदेवाय।
ú
ú
की बडी भारी मिहमा गायी गयी है । भगवान
भगवान गणपित का मंत हो तो रामा य नमः।
माँ गायती का मंत हो तो
भगोद ेवसय धी मिह िधयो यो जुडा ही है ।
नः प चोदयात। ्
ú
शी कृ षण मंत हो तो
गणेषाय
ú
नमो
भूभ ुम वः स वः। तत सिवत ुव म रेणयं
इस पकार सब मंतो के आगे
पतंजिि महाराज ने कहा है ः तसय वाचक ः पणवः।
वाचक है , उसकी सवाभािवक धविन है ।
ú
ú
ú
ú
तो
(पणव) परमातमा का
के रहसय को जानने के ििए कुछ पयोग करने के बाद रस के वैजािनक भी
आशयच म िकत हो उठे । उनहोने पयोग करके दे खा िक जब वयिक बाहर एक शबद बोिे एवं अपने भीतर दस ू रे शबद का िवचार करे तब उनकी सूकम मशीन मे दोनो शबद अंिकत हो
जाते थे। उदाहरणाथम, बाहर के क कहा गया हो एवं भीतर से िवचार ग का िकया गया हो तो क और ग दोनो छप जाते थे। यिद बाहर कोई शबद न बोिे, केवि भीतर िवचार करे तो िवचारा गया शबद भी अंिकत हो जाता था। िकनतु एकमात
ú
ही ऐसा शबद था िक वयिक केवि बाहर से
अंदर दस ू रा कोई भी शबद िवचारे िफर भी दोनो ओर का
ú
ú
बोिे और
ही अंिकत होता था। अथवा
अंदर
ú
का िवचार करे और बाहर कुछ भी बोिे तब भी अंदर-बाहर का
था।
ú
समसत नामो मे
ú
ही छपता
का पथम सथान है । मुसिमान िोग भी अलिा हो ssssss
अकबर ........ कहकर नमाज पढते है िजसमे
ú
की धविन का िहससा है ।
िसख धमम मे भी एको ओ ंकार सितनाम ु ...... कहकर उसका िाभ उठाया जाता
है । िसख धमम का पहिा गनथ है , जपुजी और जपुजी का पहिा वचन है ः सितनाम ु .........
एको ओ ं कार
ितर ं गा -झंड ा अपना राषीय झंडा राषीय एकता-अखंडता और गौरव का पतीक है । भारत के िोग इस झंडे को पाणो से भी जयादा चाहते है । इस झंडे के मान और गौरव
की रका के ििए व कोई भी बििदान दे सकते है । यह झंडा तयाग, बििदान और
उतसाह का इितहास है ।
अपने राषीय धवज मे तीन रं ग है । सबसे ऊपर का रं ग केसरी है जो साहस, तयाग
और बििदान का पतीक है । यह रं ग हमे इस बात की पेरणा दे ता है िक हम भी अपने जीवन मे साहस, तयाग और बििदान की भावना को िाएँ। बीच का रं ग सफेद है , जो
िनषकामता, सतय और पिवतता का पतीक है । यह रं ग हमे सचचा तथा साहसी बनने और अशुभ से िोहा िेने की पेरणा दे ता है । सबसे नीचे हरा रं ग है , जो दे श की समिृद और
जीवन का पतीक है । यह रं ग हमे खेती और उदोग-धंधे का िवकास करके दे श से गरीबी हटाने की पेरणा दे ता है ।
परीका म े सफ िता कैस े पा ये ? जैसे-जैसे परीकाएँ नजदीक आने िगती है , वैसे-वैसे िवदाथी िचंितत व तनावगसत
होते जाते है , िेिकन िवदािथय म ो को कभी भी िचंितत नहीं होना चािहए। अपनी मेहनत व भगवतकृ पा पर पूणम िवशास रखकर पसननिचि से परीका की तैयारी करनी चािहए। सफिता अवशय िमिेगी, ऐसा दढ िवशास रखना चािहए। 1.
िवदाथी-जीवन मे िवदािथय म ो को अपने अधययन के साथ-साथ िनयिमत जप-धयान का अभयास करना चािहए। परीका के िदनो मे तो दढ आतमिवशास के साथ सतकमता से जप-धयान करना चािहए।
2.
परीका के िदनो मे पसननिचि होकर पढे , न िक िचंितत रहकर।
3.
रोज सुबह सूयोदय के समय खािी पेट तुिसी के 5-7 पिे चबाकर एक िगिास पानी पीने से यादशिक बढती है ।
4.
सूयद म े व को मंतसिहत अघयम दे ने से यादशिक बढती है ।
5.
परीका मे पशपत (पेपर) हि करने से पूवम िवदाथी को अपने इिदे व, भगवान या गुरदे व का समरण अवशय कर िेना चािहए।
6.
सवप म थम पूरे पशपत को एकागिचि होकर पढना चािहए।
7.
िफर सबसे पहिे सरि पशो का उिर ििखना चािहए।
8.
पशो के उिर सुंदर व सपि अकरो मे ििखने चािहए।
9.
यिद िकसी पश का उिर न आये तो घबराए िबना शांतिचि होकर पभु से गुरदे व से पाथन म ा करे व अंदर दढ िवशास रखे िक मुझे इस पश का उिर भी आ जाएगा। अंदर से िनभय म रहे एवं भगवदसमरण करके
एकाध िमनट शांत हो जाएं। िफर ििखना शुर करे । धीरे -धीरे उन पशो के उिर भी आ जाएंगे। 10.
दे र रात तक न पढे । सुबह जलदी उठकर, सनान करके धयान करने के पशात पढने से जलदी याद होगा।
11.
सारसवतय मंत का िनयिमत जप करने से यादशिक मे चमतकािरक िाभ होता है ।
12.
भामरी पाणायाम तथा ताटक करने से भी एकागता और यादशिक
बढती है । भामरी पाणायाम एवं सारसवतय मंत के ििए िवदाथीयो को आशम के िारा आयोिजत िवदाथी तेजसवी तािीम िशिवर मे शािमि होना चािहए।
िवदाथी छ ुिटट याँ कैस े मनाय े ? एक वषम की कडी मेहनत के बाद िवदािथय म ो को डे ढ माह की छुिटटयो का समय िमिता है िजसमे कुछ करने व सोचने-समझने का अचछा-खासा अवसर िमि जाता है । िेिकन पायः ऐसा दे खा गया है िक िवदाथी इस कीमती समय को टी.वी., िसनेमा आिद
दे खने मे तथा गनदी व फाितू पुसतके पढने मे बरबाद कर दे ते है । जो अपने समय को
बरबाद करता है उसका जीवन बरबाद हो जाता है । जो अपने समय का सदप ु योग करता है उसका जीवन आबाद हो जाता है । अतः िमिी हुई योगयता एवं िमिे हुए समय का सदप ु योग उिम-से-उिम कायो के संपादन मे करना चािहए। बडे धनभागी होते है वे िवदाथी जो समय का सदप ु योग कर अपने जीवन को उननत बना िेते है ।
1.
अपने से छोटी कका वािे िवदािथय म ो को पढाना चािहए। बािको को अचछी-अचछी िशकापद कहािनयाँ सुनानी चािहए। बािको को
शीमदभागवत मे विणत म भक धुव की कथा व दासीपुत नारद के पूवज म नम की कथा एवं पहाद की कथा अपने साथी-िमतो के साथ सुनने व सुनाने से परमातमपािि मे मदद िमिती है । सा िवदा या िव मुकय े। असिी िवदा वही है जो मुिक पदान करे । 2.
अपने सािथयो के साथ अपने गिी-मोहलिे मे सफाई अिभयान चिाना चािहए।
3.
िपछडे हुए केतो मे जाकर वहाँ के िोगो को िशका दे ना तथा संतो के पित जागरक करना चािहए।
4.
असपतािो मे जाकर मरीजो की सेवा करनी चािहए। करो स ेवा , िमि े मेवा।
5.
अपने से अिधक योगयता व िशकावािे िवदािथय म ो के साथ रहकर िवनोद िशका समबंधी चचाम करनी चािहए।
6.
अपनी िदवय सनातन संसकृ ित के िवकास हे तु भरपूर पयास करना चािहए।
7.
पाचीन ऐितहािसक धािमक म सथिो मे जाकर अपने िववेक-िवचार को बढाना चािहए।
8.
अपनी पढाई को छुटटी के दौरान एकदम नहीं छोडना चािहए। रोज थोडा-थोडा अधययन करते ही रहना चािहए।
जनमिद न कैस े मनाय े ? बचचो को अपना जनमिदन मनाने का बडा शौक होता है और उनमे उस िदन बडा
उतसाह होता है िेिकन अपनी परतंत मानिसकता के कारण हम उस िदन भी बचचे के
िदमाग पर अंगिजयत की छाप छोडकर अपने साथ, उनके साथ व दे श तथा संसकृ ित के साथ बडा अनयाय कर रहे है .
बचचो के जनमिदन पर हम केक बनवाते है तथा बचचे को िजतने वषम हुए हो
उतनी मोमबिियाँ केक पर िगवाते है । उनको जिाकर िफर फूँक मारकर बुझा दे ते है । जरा िवचार तो कीिजए के हम कैसी उलटी गंगा बहा रहे है ! जहाँ दीये जिाने
चािहए वहाँ बुझा रहे है । जहाँ शुद चीज खानी चािहए वहीं फूँक मारकर उडे हुए थूक से
जूठे बने हुए केक को हम बडे चाव से खाते है ! जहाँ हमे गरीबो को अनन िखिाना चािहए
वहीं हम बडी पािटम यो का आयोजन कर वयथम पैसा उडा रहे है ! कैसा िविचत है आज का हमारा समाज?
हमे चािहए िक हम बचचो को उनके जनमिदन पर भारतीय संसकार व पदित के
अनुसार ही कायम करना िसखाएँ तािक इन मासूम को हम अंगेज न बनाकर सममाननीय भारतीय नागिरक बनाये।
1. मान िो, िकसी बचचे का 11 वाँ जनमिदन है तो थोडे -से अकत ् (चावि) िेकर उनहे हलदी, कुंकुम , गुिाि, िसंदरू आिद मांगििक दवयो से रं ग िे एवं उनसे
सविसतक बना िे। उस सविसतक पर 11 छोटे -छोटे दीये रख दे और 12 वे वषम की शुरआत के पतीकरप एक बडा दीया रख दे । िफर घर के बडे सदसयो से सब दीये जिवाये एवं बडो को पणाम करके उनका आशीवाद म गहण करे ।
2. पािटम यो मे फाितू का खचम करने के बजाए बचचो के हाथो से गरीबो मे,
अनाथाियो मे भोजन, वसािद का िवतरण करवाकर अपने धन को सतकम म मे िगाने के सुसंसकार सुदढ करे ।
3. िोगो के पास से चीज-वसतुएँ िेने के बजाए हम अपने बचचो के हाथो दान
करवाना िसखाएँ तािक उनमे िेने की विृि नहीं अिपतु दे ने की विृि को बि िमिे।
4. हमे बचचो से नये कायम करवाकर उनमे दे शिहत की भावना का संचार करना चािहए। जैसे, पेड-पौधे िगवाना इतयािद।
5. बचचो को इस िदन अपने गत वषम का िहसाब करना चािहए यािन िक उनहोने वषम भर मे कया-कया अचछे काम िकये? कया-कया बुरे काम िकये? जो अचछे
कायम िकये उनहे भगवान के चरणो मे अपण म करना चािहए एवं जो बुरे कायम हुए उनको भूिकर आगे उसे न दोहराने व सनमागम पर चिने का संकलप करना चािहए।
6. उनसे संकलप करवाना चािहए िक वे नए वषम मे पढाई, साधना, सतकमम, सचचाई
तथा ईमानदारी मे आगे बढकर अपने माता-िपता व दे श के गौरव को बढायेगे।
उपरोक िसदानतो के अनुसार अगर हम बचचो के जनमिदन को मनाते है तो जरर
समझ िे िक हम कदािचत ् उनहे भौितक रप से भिे ही कुछ न दे पाये िेिकन इन
संसकारो से ही हम उनहे महान बना सकते है । उनहे ऐसे महकते फूि बना सकते है िक अपनी सुवास से वे केवि अपना घर, पडोस, शहर, राजय व दे श ही नहीं बिलक पूरे िवश को सुवािसत कर सकेगे।
िशि ाचा र व जीव नोप योगी िन यम
िशिाचार क े िनयम अपने ऋिष-मुिनयो ने मनुषय जीवन मे धमम-दशन म और मनोिवजान के आधार पर
िशिाचार के कई िनयम बनाये है । इन िनयमो के पािन से मनुषय का जीवन उजजवि
बनता है । इसििए इन िनयमो का पािन करना यह पतयेक बािक का किव म य बनता है । 1.
अपने से उम मे बडे वयिक को आप कहकर तथा अपने बराबर तथा अपने से छोटी उम के वयिक को तुम कहकर बोिना चािहए।
2.
हमारे शासो मे उलिेख है िक गुरजनो को िनतय पणाम करने से तथा उनकी सेवा करने से आयु, बि, िवदा और यश की विृद होती है । इसििए दोनो हाथ जोडकर, मसतक झुका कर इनहे पणाम करना
चािहए। भोजन, सनान, शौच, दातुन आिद करते समय एवं शव िे जाते समय नमसकार नहीं करना चािहए। सवयं इन िसथितयो मे हो तो
पणाम न करे और िजनको पणाम करना है वे इन िसथितयो मे हो तो भी पणाम न करे । इसके अितिरक सािांग दणडवत पणाम करना यह अिभवादन की सवश म ष े पदित है । 3.
अपने से बडो के आने पर खडे होकर पणाम करके उनहे मान दे ना चािहए। उनके बैठ जाने पर ही सवयं बैठना चािहए।
4.
पिरिसथितवश अगर माता-िपता आपकी कोई वसतु की माँग पूरी न कर सके तो उस वसतु के ििए या उस बात के ििए हठ नहीं करना चािहए। उनके सामने कभी भी उिटकर उिर न दे ।
सदग ुणो के फ ायद े सदग ु ण
फाय दे
1.पातःकाि बहमुहूतम मे शुभ िचनतन तथा
हम जैसा सोचते है , वैसा होने िगता है ।
2. पाथन म ा करने से ....
हदय पिवत बनता है , परोपकार की भावना
शुभ संकलप करने से .....
का िवकास होता है । 3. ú कार का दीघम उचचारण करने से...
चंचि मन शांत रहता है और आतमबि
4. धयान करने से.....
एकागता की शिक की बढती है ।
5. भामरी पाणायाम करने से.....
समरणशिक बढती है ।
6. मौन रखने से....
आंतिरक शिकयो का िवकास होता है और
बढता है ।
मनोबि मजबूत होता है । 7. बाि-संसकार केनद मे िनयिमत जाने से.....
अनेक दोष-दग मु दरू होकर वयिकतव का ु ण िवकास होता है ।
जी वन म े उपयो गी िनयम 1. जहाँ रहते हो उस सथान को तथा आस-पास की जगह को साफ रखो। 2. हाथ पैर के नाखून बढने पर काटते रहो। नख बढे हुए एवं मैि भरे हुए मत रखो।
3. अपने कलयाण के इचछुक वयिक को बुधवार व शुकवार के अितिरक अनय
िदनो मे बाि नहीं कटवाना चािहए। सोमवार को बाि कटवाने से िशवभिक की हािन होती है । पुतवान को इस िदन बाि नहीं कटवाना चािहए। मंगिवार को बाि कटवाना सवथ म ा अनुपयुक है , मतृयु का कारण भी हो सकता है । बुधवार धन की पािि कराने वािा है । गुरवार को बाि कटवाने से िकमी और मान
की हािन होती है । शुकवार िाभ और यश की पािि कराने वािा है । शिनवार मतृयु का कारण होता है । रिववार तो सूयद म े व का िदन है । इस िदन कौर कराने से धन, बुिद और धमम की कित होती है ।
4. सोमवार, बुधवार और शिनवार शरीर मे तेि िगाने हे तु उिम िदन है । यिद तुमहे गहो के अिनिकर पभाव से बचना है तो इनहीं िदनो मे तेि िगाना चािहए।
5. शरीर मे तेि िगाते समय पहिे नािभ एवं हाथ-पैर की उँ गिियो के नखो मे भिी पकार तेि िगा दे ना चािहए।
6. पैरो को यथासंभव खुिा रखो। पातःकाि कुछ समय तक हरी घास पर नंगे पैर टहिो। गिमय म ो मे मोजे आिद से पैरो को मत ढँ को।
7. ऊँची एडी के या तंग पंजो के जूते सवासथय को हािन पहुँचाते है ।
8. पाउडर, सनो आिद तवचा के सवाभािवक सौदयम को नि करके उसे रखा एवं कुरप बना दे ते है ।
9. बहुत कसे हुए एवं नायिोन आिद कृ ितम तंतओ ु ं से बने हुए कपडे एवं
चटकीिे भडकीिे गहरे रं ग से कपडे तन-मन के सवासथय के हािनकारक होते है । तंग कपडो से रोमकूपो को शुद हवा नहीं िमि पाती तथा रक-संचरण मे भी बाधा पडती है । बैलट से कमर को जयादा कसने से पेट मे गैस बनने िगती है । ढीिे-ढािे सूती वस सवासथय के ििए अित उिम होते है ।
10. कहीं से चिकर आने पर तुरंत जि मत िपयो, हाथ पैर मत धोओ और न ही सनान करो। इससे बडी हािन होती है । पसीना सूख जाने दो। कम-से-कम 15 िमनट िवशाम कर िो। िफर हाथ-पैर धोकर, कुलिा करके पानी पीयो। तेज गमी मे थोडा गुड या िमशी खाकर पानी पीयो तािक िू न िग सके।
11. अशीि पुसतक आिद न पढकर जानवधम पुसतको का अधययन करना चािहए। 12. चोरी कभी न करो।
13. िकसी की भी वसतु िे तो उसे सँभाि कर रखो। कायम पूरा हो िफर तुरनत ही वािपस दे दो।
14. समय का महतव समझो। वयथम बाते, वयथम काम मे समय न गँवाओ। िनयिमत तथा समय पर काम करो।
15. सवाविंबी बनो। इससे मनोबि बढता है । 16. हमेशा सच बोिो। िकसी की िािच या धमकी मे आकर झूठ का आशय न िो।
17. अपने से छोटे दब म बािको को अथवा िकसी को भी कभी सताओ मत। हो ु ि सके उतनी सबकी मदद करो।
18. अपने मन के गुिाम नहीं परनतु मन के सवामी बनो। तुचछ इचछाओं की पूितम के ििए कभी सवाथी न बनो।
19. िकसी का ितरसकार, उपेका, हँ सी-मजाक कभी न करो। िकसी की िनंदा न करो और न सुनो।
20. िकसी भी वयिक, पिरिसथित या मुिशकि से कभी न डरो परनतु िहममत से उसका सामना करो।
21. समाज मे बातचीत के अितिरक वस का बडा महतव है । शौकीनी तथा फैशन
के वस, तीव सुगध ं के तेि या सेट का उपयोग करने वािो को सदा सजे-धजे फैशन रहने वािो को सजजन िोग आवारा या िमपट आिद समझते है । अतः तुमहे अपना रहन सहन, वेश-भूषा सादगी से युक रखना चािहए। वस सवचछ
और सादे होने चािहए। िसनेमा की अिभनेितयो तथा अिभनेताओं के िचत छपे हुए अथवा उनके नाम के वस को कभी मत पहनो। इससे बुरे संसकारो से बचोगे।
22. फटे हुए वस िसि कर भी उपयोग मे िाये जा सकते है , पर वे सवचछ अवशय होने चािहए।
23. तुम जैसे िोगो के साथ उठना-बैठना, घूमना-िफरना आिद रखोगे, िोग तुमहे भी वैसा ही समझेगे। अतः बुरे िोगो का साथ सदा के ििए छोडकर अचछे िोगो
के साथ ही रहो। जो िोग बुरे कहे जाते है , उनमे तुमहे दोष न भी िदखे, तो भी उनका साथ मत करो।
24. पतयेक काम पूरी सावधानी से करो। िकसी भी काम को छोटा समझकर उसकी उपेका न करो। पतयेक काम ठीक समय पर करो। आगे के काम को छोडकर
दस ू रे काम मे सत िगो। िनयत समय पर काम करने का सवभाव हो जाने पर किठन काम भी सरि बन जाएँगे। पढने मे मन िगाओ। केवि परीका मे उिीणम होने के ििए नहीं, अिपतु जानविृद के ििए पूरी पढाई करो। उिम
भारतीय सदगंथो का िनतय पाठ करो। जो कुछ पढो, उसे समझने की चेिा करो। जो तुमसे शष े है , उनसे पूछने मे संकोच मत करो।
25. अंधे, काने-कुबडे , िूिे-िँगडे आिद को कभी िचढाओ मत, बिलक उनके साथ और जयादा सहानुभिू तपूवक म बताव म करो।
26. भटके हुए राही को, यिद जानते हो तो, उिचत मागम बतिा दे ना चािहए। 27. िकसी के नाम आया हुआ पत मत पढो।
28. िकसी के घर जाओ तो उसकी वसतुओं को मत छुओ। यिद आवशयक हो तो पूछकर ही छुओ। काम हो जाने पर उस वसतु को िफर यथासथान रख दो।
29. बस मे रे ि के िडबबे मे, धमश म ािा व मंिदर मे तथा सावज म िनक भवनो मे
अथवा सथिो मे न तो थूको, न िघुशक ं ा आिद करो और न वहाँ फिो के िछिके या कागज आिद डािो। वहाँ िकसी भी पकार की गंदगी मत करो। वहाँ के िनयमो का पूरा पािन करो।
30. हमेशा सडक की बायीं ओर से चिो। मागम मे चिते समय अपने दािहनी ओर मत थूको, बाई ओर थूको। मागम मे खडे होकर बाते मत करो। बात करना हो
तो एक िकनारे हो जाएं। एक दस ू रे के कंधे पर हाथ रखकर मत चिो। सामने से .या पीछे से अपने से बडे -बुजुगो के आने पर बगि हो जाओ। मागम मे काँटे, काँच के टु कडे या कंकड पडे हो तो उनहे हटा दो।
31. दीन-हीन तथा असहायो व जररतमंदो की जैसी भी सहायता व सेवा कर सकते हो, उसे अवशय करो, पर दस ू रो से तब तक कोई सेवा न िो जब तक तुम सकम हो। िकसी की उपेका मत करो।
32. िकसी भी दे श या जाित के झंडे, राषगीत, धमग म नथ तथा महापुरषो का अपमान कभी मत करो। उनके पित आदर रखो। िकसी धमम पर आकेप मत करो।
33. कोई अपना पिरिचत, पडोसी, िमत आिद बीमार हो अथवा िकसी मुसीबत मे
पडा हो तो उसके पास कई बार जाना चािहए और यथाशिक उसकी सहायता करनी चािहए एवं तसलिी दे नी चािहए।
34. यिद िकसी के यहाँ अितिथ बनो तो उस घर के िोगो को तुमहारे ििए कोई िवशेष पबनध न करना पडे , ऐसा धयान रखो। उनके यहाँ जो भोजनािद िमिे, उसे पशंसा करके खाओ।
35. पानी वयथम मे मत िगराओ। पानी का नि और िबजिी की रोशनी अनावशयक खुिा मत रहने दो।
36. चाकू से मेज मत खरोचो। पेिनसि या पेन से इधर-उधर दाग मत करो। दीवार पर मत ििखो।
37. पुसतके खुिी छोडकर मत जाओ। पुसतको पर पैर मत रखो और न उनसे
तिकए का काम िो। धमग म नथो को िवशेष आदर करते हुए सवयं शुद, पिवत व
सवचछ होने पर ही उनहे सपशम करना चािहए। उँ गिी मे थूक िगा कर पुसतको के पष ृ मत पिटो।
38. हाथ-पैर से भूिम कुरे दना, ितनके तोडना, बार-बार िसर पर हाथ फेरना, बटन
टटोिते रहना, वस के छोर उमेठते रहना, झूमना, उँ गिियाँ चटखाते रहना- ये बुरे सवभाव के िचह है । अतः ये सवथ म ा तयाजय है ।
39. मुख मे उँ गिी, पेिनसि, चाकू, िपन, सुई, चाबी या वस का छोर दे ना, नाक मे उँ गिी डािना, हाथ से या दाँत से ितनके नोचते रहना, दाँत से नख काटना, भौहो को नोचते रहना- ये गंदी आदते है । इनहे यथाशीघ छोड दे ना चािहए। 40. पीने के पानी या दध ू आिद मे उँ गिी मत डु बाओ।
41. अपने से शष े , अपने से नीचे वयिकयो की शयया-आसन पर न बैठो। 42. दे वता, वेद, ििज, साधु, सचचे महातमा, गुर, पितवता, यजकिाम, तपसवी आिद की िनंदा-पिरहास न करो और न सुनो।
43. अशुभ वेश न धारण करो और न ही मुख से अमांगििक वचन बोिो।
44. कोई बात िबना समझे मत बोिो। जब तुमहे िकसी बात की सचचाई का पूरा पता हो, तभी उसे करो। अपनी बात के पकके रहो। िजसे जो वचन दो, उसे पूरा करो। िकसी से िजस समय िमिने का या जो कुछ काम करने का वादा िकया हो वह वादा समय पर पूरा करो। उसमे िविंब मत करो।
45. िनयिमत रप से भगवान की पाथन म ा करो। पाथन म ा से िजतना मनोबि पाि होता है उतना और िकसी उपाय से नहीं होता।
46. सदा संतुि और पसनन रहो। दस ू रो की वसतुओं को दे खकर ििचाओ मत।
47. नेतो की रका के ििए न बहुत तेज पकाश मे पढो, न बहुत मंद पकाश मे।
दोनो हािनकारक है । इस पकार भी नहीं पढना चािहए िक पकाश सीधे पुसतक के पष ृ ो पर पडे । िेटकर, झुककर या पुसतक को नेतो के बहुत नजदीक िाकर
नहीं पढना चािहए। जिनेित से चशमा नहीं िगता और यिद चशमा हो तो उतर जाता है ।
48. िजतना सादा भोजन, सादा रहन-सहन रखोगे, उतने ही सवसथ रहोगे। फैशन की वसतुओं का िजतना उपयोग करोगे या िजहा के सवाद मे िजतना फँसोगे, सवासथय उतना ही दब म होता जाएगा। ु ि
यिद िवदाथी उिचत िदनचयाम एवं उपरोक िनयमो के अनुसार जीवन िजयेगा तो
िनशय ही महान बनता जाएगा।
बाि -कहा िनया ँ
गुर -आजापािन का चमतकार शीमदआदशंकराचायज म ी जब काशी मे िनवास करते थे, तब पितिदन पातःकाि गंगा िकनारे घूमने जाते थे। एक सुबह गंगा के दस ू रे िकनारे से िकसी युवक ने दे खा िक कोई
सनयासी सामने वािे िकनारे से जा रहे है । उसने वहीं से शंकराचायम जी को पणाम िकया। युवक को दे खकर शंकराचायम जी ने इशारे से कहा िक इस तरफ आ जा। इस युवक ने
िवचार िकया िक मैने साधु को पणाम िकया है , इसििए मै इनका िशषय हो गया हूँ। मेरे अब वहाँ जाना गुर आजा पािन है परनतु यहाँ कोई नाव नहीं और मुझे तैरना भी नहीं
आता तो मुझे कया करना चािहए? तभी उसके मन मे िवचार आया िक ऐसे भी हजार बार मर चुका हूँ, एक बार गुर के दशन म के ििए जाते-जाते मर जाऊँ तो भी कया बात है ? मेरे ििए गुर आजापािन ही किवमय है । ऐसा सोचकर वह युवक तो गंगाजी मे कूद पडा
परनतु गुर जी की अपार करणा और िशषय की गुरआजापािन की दढता ने चमतकार
सजन म कर िदया। वह युवक जहाँ पैर रखता वहाँ कमि िखि जाता और ऐसा करते-करते वह युवक गंगा के पार जहाँ गुर शंकराचायम खडे थे पहुँच गया। गुर-आजापािन की दढता के कारण इस युवक का नाम पदपादाचायम पड गया।
इस कहानी से िशका िमिती है िक िशषय अगर दढता, ततपरता और ईमानदारी से
गुरआजापािन मे िग जाए तो पकृ ित भी उसके ििए अनुकूि बन जाती है , इसििए बचचो को माता-िपता और गुरजनो की आजा का पािन करना चािहए।
एका गता का पभाव
एक बार सवामी िववेकानंदजी मेरठ आये। उनको पढने का खूब शौक था। इसििए
वे अपने िशषय अखंडानंद िारा पुसतकािय मे से पुसतके पढने के ििए मँगवाते थे। केवि एक ही िदन मे पुसतक पढकर दस ू रे िदन वापस करने के कारण गनथपाि कोिधत हो
गया। उसने कहा िक रोज-रोज पुसतके बदिने मे मुझे बहुत तकिीफ होती है । आप ये पुसतके पढते है िक केवि पनने ही बदिते है ? अखंडानंद ने यह बात सवामी िववेकानंद जी को बताई तो वे सवयं पुसतकािय मे गये और गंथपाि से कहाः
ये सब पुसतके मैने मँगवाई थीं, ये सब पुसतके मैने पढीं है । आप मुझसे इन
पुसतको मे के कोई भी पश पूछ सकते है । गंथपाि को शंका थी िक पुसतके पढने के ििए, समझने के ििए तो समय चािहए, इसििए अपनी शंका के समाधान के ििए सवामी िववेकानंद जी से बहुत सारे पश पूछे। िववेकानंद जी ने पतयेक पश का जवाब तो ठीक िदया ही, पर ये पश पुसतक के कौन से पनने पर है , वह भी तुरनत बता िदया। तब
िववेकानंदजी की मेधावी समरणशिक दे खकर गंथपाि आशयच म िकत हो गया और ऐसी समरणशिक का रहसय पूछा।
सवामी िववेकानंद ने कहाः पढने के ििए जररी है एकागता और एकागता के ििए
जररी है धयान, इिनदयो का संयम। बचचो को िकसी भी केत मे आगे बढने के ििए रोज धयान और ताटक का अभयास करना चािहये।
असंभव कुछ भी नही ं Nothing is impossible. Everything is possible. असंभव कुछ भी नहीं है - यह वाकय है फाँस के नेपोिियन बोनापाटम का, जो एक गरीब कुटु ं ब मे जनमा था, परनतु पबि
पुरषाथम और दढ संकलप के कारण एक सैिनक की नौकरी मे से फाँस का शहं शाह बन गया। ऐसी ही संकलपशिक का दस ू रा उदाहरण है संत िवनोबा भावे।
बचपन मे िवनोबा गिी मे सब बचचो के साथ खेि रहे थे। वहाँ बाते चिी िक
अपनी पीढी मे कौन-कौन संत बन गये। पतयेक बािक ने अपनी पीढी मे िकसी न िकसी
पूवज म का नाम संत के रप मे बताया। अंत मे िवनोबा जी की बारी आयी। िवनोबा ने तब तक कुछ नहीं कहा परनतु उनहोने मन-ही-मन दढ संकलप करके जािहर िकया िक, अगर मेरी पीढी मे कोई संत नहीं बना तो मै सवयं संत बनकर िदखाऊँगा। अपने इस संकलप
की िसिद के ििए उनहोने पखर पुरषाथम शुर कर िदया। िग गये इसकी िसिद मे और अंत मे, एक महान संत के रप मे पिसद हुए।
यह है दढसंकलपशिक और पबि पुरथाथम का पिरणाम। इसििए दब म नकारातमक ु ि
िवचार छोडकर उचच संकलप करके पबि पुरषाथम मे िग जाओ, सामथयम का खजाना तुमहारे पास ही है । सफिता अवशय तुमहारे कदम चूमेगी।
बािक शीराम
हमारे दे श मे भगवान शी राम के हजारो
मंिदर है । उन भगवान शी राम का बालयकाि कैसा था, यह जानते हो?
बािक शी राम के िपता का नाम राजा दशरथ तथा माता का नाम कौशलया था।
राम जी के भाइयो के नाम िकमण, भरत और शतुघन था। बािक शीराम बचपन से ही
शांत, धीर, गंभीर सवभाव के और तेजसवी थे। वे हर-रोज माता-िपता को पणाम करते थे। माता-िपता की आजा का उलिंघन कभी भी नहीं करते थे। बचपन से ही गुर विशष के आशम मे सेवा करते थे। शीराम तथा िकमण गुर जी के पास आतमजान का सतसंग
सुनते थे। गुरजी की आजा का पािन करके िनयिमत ितकाि संधया करते थे। संधया मे पाणायाम, जप-धयान आिद िनयिमत रीित से करते थे। गुर जी की आजा मे रहने से,
उनकी सेवा करने से शी विशषजी खूब पसनन रहते थे। इसििए गुर जी ने आतमजान, बहजानरपी सतसंग अमत ृ का पान उनहे कराया था।
गुर विशष और बािक शीराम का जो संवाद-सतसंग हुआ था, वह आज भी िवश
मे महान गंथ की तरह पूजनीय माना जाता है । उस महान गंथ का नाम है , शी योगवािशष महारामायण।
बचपन से ही बहजानरपी सतसंग का अमत ृ पान करने के कारण बािक शीराम
िनभय म रहते थे। इसी कारण महिषम िवशािमत शीराम तथा िकमण को छोटी उम होने पर भी अपने साथ िे गये। ये दोनो वीर बािक ऋिष-मुिनयो के परे शान करने वािे बडे -बडे राकसो का वध करके ऋिषयो-मुिनयो की रका करते। शी राम आजापािन मे पकके थे।
एक बार िपताशी की आजा िमिते ही आजानुसार राजगदी छोडकर 14 वषम वनवास मे रहे
थे। इसीििए तो कहा जाता है । रघुकुि रीत
स दा च िी आई। प ाण जाई पर व चन
न जा ई।
शी राम भगवान की तरह पूजे जा रहे है कयोिक उनमे बालयकाि मे ऐसे सदगुण
थे और गुर जी की कृ पा उनके साथ थी।
बािक ध ुव राजा उिानपाद की दो रािनयाँ थीं। िपय रानी का नाम सुऱची और अिपय रानी
का नाम सुमित था। दोनो रािनयो को एक-एक पुत था। एक बार रानी सुमित का पुत धुव खेिता-खेिता अपने िपता की गोद मे बैठ गया। रानी ने तुरंत ही उसे िपता की गोद से नीचे उतार कर कहाः
िपता की गोद मे बैठने के ििए पहिे मेरी कोख से जनम िे। धुव रोता-रोता
अपना माँ के पास गया और सब बात माँ से कही। माँ ने धुव को समझायाः बेटा! यह राजगदी तो नशर है परं तु तू भगवान का दशन म करके शाशत गदी पाि कर। धुव को माँ
की सीख बहुत अचछी िगी। और तुरंत ही दढ िनशय करके तप करने के ििए जंगि मे चिा गया। रासते मे िहं सक पशु िमिे िफर भी भयभीत नहीं हुआ। इतने मे उसे दे विषम नारद िमिे। ऐसे घनघोर जंगि मे मात 5 वषम को बािक को दे खकर नारद जी ने वहाँ
आने का कारण पूछा। धुव ने घर मे हुई सब बाते नारद जी को बता दीं और भगवान को पाने की तीव इचछा पकट की।
नारद जी ने धुव को समझायाः “तू इतना छोटा है और भयानक जंगि मे ठणडी-
गमी सहन करके तपसया नहीं कर सकता इसििए तू घर वापस चिा जा।“ परनतु धुव
दढिनशयी था। उसकी दढिनषा और भगवान को पाने की तीव इचछा दे खकर नारदजी ने धुव को ‘ú नमो भ गवत े वास ु देवाय ’ का मंत दे कर आशीवाद म िदयाः “ बेटा! तू शदा
से इस मंत का जप करना। भगवान जरर तुझ पर पसनन होगे।“ धुव तो कठोर तपसया
मे िग गया। एक पैर पर खडे होकर, ठं डी-गमी, बरसात सब सहन करते-करते नारदजी के िारा िदए हुए मंत का जप करने िगा।
उसकी िनभय म ता, दढता और कठोर तपसया से भगवान नारायण सवयं पकठ हो
गये। भगवान ने धुव से कहाः “ कुछ माँग, माँग बेटा! तुझे कया चािहए। मै तेरी तपसया से पसनन हुआ हूँ। तुझे जो चािहए वर माँग िे।“ धुव भगवान को दे खकर आनंदिवभोर हो गया। भगवान को पणाम करके कहाः “हे भगवन ्! मुझे दस ू रा कुछ भी नहीं चािहए। मुझे अपनी दढ भिक दो।“ भगवान और अिधक पसनन हो गए और बोिेः तथासत ु।
मेरी भिक के साथ-साथ तुझे एक वरदान और भी दे ता हूँ िक आकाश मे एक तारा ‘धुव’ तारा के नाम से जाना जाएगा और दिुनया दढ िनशय के ििए तुझे सदा याद करे गी।“
आज भी आकाश मे हमे यह तारा दे खने को िमिता है । ऐसा था बािक धुव, ऐसी थी भिक मे उसकी दढ िनषा। पाँच वषम के धुव को भगवान िमि सकते है तो हमे भी कयो नहीं िमि सकते? जररत है भिक मे िनषा की और दढ िवशास की। इसििए बचचो को हर रोज िनषापूवक म पेम से मंत का जप करना चािहए।
गुर गोिव ंद िस ंह के वीर सप ूत फतेह िसंह तथा जोरावर िसंह िसख धमम के दसवे गुर गोिवंदिसंह जी के सुपुत थे।
आनंदपुर के युद मे गुर जी का पिरवार िबखर गया था। उनके दो पुत अजीतिसंह एवं जुझारिसंह की तो उनसे भेट हो गयी, परनतु दो छोटे पुत गुरगोिवंद िसहं की माता गुजरीदे वी के साथ अनयत िबछुड गये।
आनंदपुर छोडने के बाद फतेह िसंह एवं जोरावर िसंह अपनी दादी के साथ जंगिो,
पहाडो को पार करके एक नगर मे पहुँचे। उस समय जोरावरिसंह की उम मात सात वषम गयारह माह एवं फतेहिसंह की उम पाँच वषम दस माह थी।
इस नगर मे उनहे गंगू नामक बाहण िमिा, जो बीस वषो तक गुरगोिवंद िसंह के
पास रसोईये का काम करता था। उसकी जब माता गुजरीदे वी से भेट हुई तो उसने उनहे अपने घर िे जाने का आगह िकया। पुराना सेवक होने के नाते माता जी दोनो ननहे बािको के साथ गंगू बाहण के घर चिने को तैयार हो गयी।
माता गुजरीदे वी के सामान मे कुछ सोने की मुहरे थी िजसे दे खकर गंगू िोभवश
अपना ईमान बेच बैठा। उसने राित को मुहरे चुरा िीं परनतु िािच बडी बुरी बिा होती है । वासना का पेट कभी नहीं भरता अिपतु वह तो बढती ही रहती है । गंगू बाहण की
वासना और अिधक भडक उठी। वह ईनाम पाने के िािच मे मुिरं ज थाना पहुँचा और वहाँ के कोतवाि को बता िदया िक गुरगोिवंद िसंह के दो पुत एवं माता उसके घर मे िछपी है ।
कोतवाि ने गंगू के साथ िसपािहयो को भेजा तथा दोनो बािको सिहत माता
गुजरीदे वी को बंदी बना ििया। एक रात उनहे मुिरं डा की जेि मे रखकर दस ू रे िदन
सरिहं द के नवाब के पास िे जाया गया। इस बीच माता गुजरीदे वी दोनो बािको को उनके दादा गुर तेग बहादरु एवं िपता गुरगोिवंदिसंह की वीरतापूणम कथाएँ सुनाती रहीं। सरिहं द पहुँचने पर उनहे िकिे के एक हवादार बुजम मे भूखा पयासा रखा गया।
माता गुजरीदे वी उनहे रात भर वीरता एवं अपने धमम मे अिडग रहने के ििए पेिरत करती
रहीं। वे जानती थीं िक मुगि सवप म थम बचचो से धमप म िरवतन म करने के ििए कहे गे। दोनो बािको ने अपनी दादी को भरोसा िदिाया िक वे अपने िपता एवं कुि की शान पर दाग नहीं िगने दे गे तथा अपने धमम मे अिडग रहे गे।
सुबह सैिनक बचचो को िेने पहुँच गये। दोनो बािको ने दादी के चरणसपशम िकये
एवं सफिता का आशीवाद म िेकर चिे गए। दोनो बािक नवाब वजीरखान के सामने पहुँचे तथा िसंह की तरह गजन म ा करते बोिेः “वाहे गुर जी का खािसा, वाहे गुर जी की फतेह।“
चारो ओर से शतुओं से िघरे होने पर भी इन ननहे शेरो की िनभीकता को दे खकर
सभी दरबारी दाँतो तिे उँ गिी दबाने िगे। शरीर पर केसरी वस एवं पगडी तथा कृ पाण धारण िकए इन ननहे योदाओं को दे खकर एक बार तो नवाब का भी हदय भी िपघि गया।
उसने बचचो से कहाः “इनशाह अलिाह! तुम बडे सुनदर िदखाई दे रहे हो। तुमहे
सजा दे ने की इचछा नहीं होती। बचचो! हम तु््महे नवाबो के बचचो की तरह रखना चाहते है । एक छोटी सी शतम है िक तुम अपना धमम छोडकर मुसिमान बन जाओ।“
नवाब ने िािच एवं पिोभन दे कर अपना पहिा पाँसा फैका। वह समझता था िक
इन बचचो को मनाना जयादा किठन नहीं है परनतु वह यह भूि बैठा था िक भिे ही वे
बािक है परनतु कोई साधारण नहीं अिपत गुर गोिवंदिसंह के सपूत है । वह भूि बैठा था िक इनकी रगो मे उस वीर महापुरष का रक दौड रहा है िजसने अपने िपता को धमम के
ििए शहीद होने की पेरणा दी तथा अपना समसत जीवन धमम की रका मे िगा िदया था। नवाब की बात सुनकर दोनो भाई िनभीकतापूवक म बोिेः “हमे अपना धमम पाणो से
भी पयारा है । िजस धमम के ििए हमारे पूवज म ो ने अपने पाणो की बिि दे दी उसे हम तुमहारी िािचभरी बातो मे आकर छोड दे , यह कभी नहीं हो सकता।“
नवाब की पहिी चाि बेकार गयी। बचचे नवाब की मीठी बातो एवं िािच मे नहीं
फँसे। अब उसने दस ू री चाि खेिी। नवाब ने सोचा ये दोनो बचचे ही तो है , इनहे डराया धमकाया जाय तो अपना काम बन सकता है ।
उसने बचचो से कहाः “तुमने हमारे दरबार का अपमान िकया है । हम चाहे तो
तुमहे कडी सजा दे सकते है परनतु तु््महे एक अवसर िफर से दे ते है । अभी भी समय है यिद िजंदगी चाहते हो तो मुसिमान बन जाओ वनाम....”
नवाब अपनी बात पूरी करे इससे पहिे ही ये ननहे वीर गरज कर बोि उठे ः
“नवाब! हम उन गुरतेगबहादरुजी के पोते है जो धमम की रका के ििए कुबान म हो गये। हम उन गुरगोिवंदिसंह जी के पुत है िजनका नारा है ः िच िडयो से म ै बाज िडाऊ ँ , सवा िाख स े एक ि डाऊँ।
िजनका एक-एक िसपाही तेरे सवा िाख गुिामो को धूि चटा
दे ता है , िजनका नाम सुनते ही तेरी सलतनत थर-थर काँपने िगती है । तू हमे मतृयु का भय िदखाता है । हम िफर से कहते है िक हमारा धमम हमे पाणो से भी पयारा है । हम पाम तयाग सकते है परनतु अपना धमम नहीं तयाग सकते।“
इतने मे दीवान सुचचानंद ने बािको से पूछाः “अचछा! यिद हम तुमहे छोड दे तो तुम कया करोगे?”
बािक जोरावर िसंह ने कहाः “हम सेना इकटठी करे गे और अतयाचारी मुगिो को
इस दे श से खदे डने के ििए युद करे गे।“
दीवानः “यिद तुम हार गये तो?” जोरावर िसंहः (दढतापूवक म ) “हार शबद हमारे जीवन मे नहीं है । हम हारे गे नहीं। या
तो िवजयी होगे या शहीद होगे।“
बािको की वीरतापूणम बाते सुनकर नवाब आग बबूिा हो उठा। उसने काजी से
कहाः “इन बचचो ने हमारे दरबार का अपमान िकया है तथा भिवषय मे मुगि शासन के िवरद िवदोह की घोषणा की है । अतः इनके ििए कया दणड िनिशत िकया जाये?”
काजीः “ये बािक मुगि शासन के दशुमन है और इसिाम को सवीकार करने को
भी तैयार नहीं है । अतः, इनहे िजनदा दीवार मे चुनवा िदया जाये।“
शैतान नवाब तथा काजी के कूर फैसिे के बाद दोनो बािको को उनकी दादी के
पास भेज िदया गया। बािको ने उतसाहपूवक म दादी को पूरी घटना सुनाई। बािको की
वीरता को दे खकर दादी गदगद हो उठी और उनहे हदय से िगाकर बोिीः “मेरे बचचो! तुमने अपने िपता की िाज रख िी।“
दस ू रे िदन दोनो वीर बािको को िदलिी के सरकारी जलिाद िशशाि बेग और
िवशाि बेग को सुपुदम कर िदया गया। बािको को िनिशत सथान पर िे जाकर उनके
चारो ओर दीवार बननी पारमभ हो गयी। धीरे -धीरे दीवार उनके कानो तक ऊँची उठ गयी। इतने मे बडे भाई जोरावरिसंह ने अंितम बार अपने छोटे भाई फतेहिसंह की ओर दे खा और उसकी आँखो से आँसू छिक उठे ।
जोरावर िसंह की इस अवसथा को दे खकर वहाँ खडा काजी बडा पसनन हुआ। उसने
समझा िक ये बचचे मतृयु को सामने दे खकर डर गये है । उसने अचछा मौका दे खकर जोरावरिसंह से कहाः “बचचो! अभी भी समय है । यिद तुम मुसिमान बन जाओ तो तुमहारी सजा माफ कर दी जाएगी।“
जोरावर िसंह ने गरजकर कहाः “मूखम काजी! मै मौत से नहीं डर रहा हूँ। मेरा भाई
मेरे बाद इस संसार मे आया परनतु मुझसे पहिे धमम के ििए शहीद हो रहा है । मुझे बडा भाई होने पर भी यह सौभागय नहीं िमिा, इसििए मुझे रोना आता है ।“
सात वषम के इस ननहे से बािक के मुख से ऐसी बात सुनकर सभी दं ग रह गये।
थोडी दे र मे दीवार पूरी हुई और वे दोनो ननहे धमव म ीर उसमे समा गये।
कुछ समय पशात दीवार को िगरा िदया गया। दोनो बािक बेहोश पडे थे, परनतु
अतयाचािरयो ने उसी िसथित मे उनकी हतया कर दी।
िवश के िकसी भी अनय दे श के इितहास मे इस पकार की घटना नहीं है , िजसमे सात एवं पाँच वषम के दो ननहे िसंहो की अमर वीरगाथा का वणन म हो।
जोरावर िसंह एवं फतेहिसंह िपता से िबछुड कर शतओं की कैद मे पहुँच चुके थे।
छोटी सी उम मे ही उनहे इतने बडे संकट का सामना करना पडा। धमम छोडने के ििए
पहिे िािच और कठोर यातनाएँ दी गई परनतु ये दोनो वीर अपने धमम पर अिडग रहे । धनय है ऐसे धमिमनष बािक!
सवधम े िनधन ं श े यः पतयेक मनुषय को अपने धमम के पित शदा एवं आदर होना चािहए। भगवान शी
कृ षण ने कहा है ः
शे यानसव धमो िव गुणः परध माम तसवन ुिितात। ् सव धमे िन धनं शे यः
भयावहः।।
“अचछी पकार आचरण िकये हुए दस ू रे के धमम से परािजत गुणरिहत भी अपना
धमम अित उिम है । अपने धमम मे तो मरना भी कलयाणकारक है और दस ू रे का धमम भय को दे ने वािा है ।“
(गीताः 3.35)
जब भारत पर शाहजहाँ का शासन था, तब की यह घटना घिटत है ः तेरह वषीय हकीकत राय सयािकोट के एक छोटे से मदरसे मे पढता था। एक
िदन कुछ बचचो ने िमि कर हकीकत राय को गािियाँ दीं। पहिे तो वह चुप रहा। वैसे भी सहनशीिता हो िहनदओ ु ं का गुण है ही.... िकनतु जब उन उदणड बचचो ने िहं दओ ु ं के नाम की और दे वी-दे वताओं के नाम की गािियाँ दे नी शुर की तब उस वीर बािक से अपने धमम का अपमान सहा नहीं गया।
हकीकत राय ने कहाः “अब तो हद हो गयी! अपने ििये तो मैने सहनशिक का
उपयोग िकया िेिकन मेरे धमम, गुर और भगवान के ििए एक भी शबद बोिोगे ते यह
मेरी सहनशिक से बाहर की बात है । मेरे पास भी जुबान है । मै भी तुमहे बोि सकता हूँ।“ उदणड बचचो ने कहाः “बोिकर तो िदखा! हम तेरी खबर िेगे।‘
हकीकत राय ने भी उनको दो-चार कटु शबद सुना िदये। बस, उनहीं दो-चार शबदो को सुनकर मुलिा-मौििवयो का खून उबि पडा। वे हकीकत राय को ठीक करने का मौका ढू ँ ढने िगे। सब िोग एक तरफ और हकीकत राय अकेिा दस ू री तरफ। उस समय मुगिो का शासन था। इसििए हकीकत राय को जेि मे कैद कर िदया गया।
मुगि शासको की ओर से हकीकत राय को यह फरमान भेजा गयाः “अगर तुम किमा पढ िो और मुसिमान बन जाओ तो तुमहे अभी माफ कर िदया जाएगा और यिद तुम मुसिमान नहीं बनोगे तो तु््महारा िसर धड से अिग कर िदया जायेगा।“
हकीकत राय के माता-िपता जेि के बाहर आँसू बहा रहे थेः “बेटा! तू मुसिमान
बन जा। कम से कम हम तुझे जीिवत तो दे ख सकेगे! “… िेिकन उस वीर हकीकत राय ने कहाः
“ कया मुसिमान बन जाने का बाद मेरी मतृयु नहीं होगी ? ” माता-िपताः “म् ृ ्तयु तो होगी।“
हकीकत रायः ”तो िफर मै अपने धमम मे ही मरना पसनद करँगा। मै जीते-जी दस ू रो के धमम मे नहीं जाऊँगा।“
कूर शासको ने हकीकत राय की दढता दे खकर अनेको धमिकयाँ दीं िेिकन उस
बहादरु िकशोर पर उनकी धमिकयो का जोर न चि सका। उसके दढ िनशय को पूरा राजय-शासन भी न िडगा सका।
अंत मे मुगि शासक ने पिोभन दे कर अपनी ओर खींचना चाहा िेिकन वह
बुिदमान व वीर िकशोर पिोभनो मे भी नहीं फँसा।
आिखर कूर मुसिमान शासको ने आदे श िदयाः “अमुक िदन बीच मैदान मे
हकीकत राय का िशरोचछे द िकया जाएगा।“
वह तेरह वषीय िकशोर जलिाद के हाथ मे चमचमाती हुई तिवार दे खकर जरा-भी
भयभीत न हुआ वरन ् वह अपने गुर के िदए हुए जान को याद करने िगाः “यह तिवार िकसको मारे गी? मार-मार इस पंचभौितक शरीर को ही मारे गी और ऐसे पंचभौितक शरीर
तो कई बार िमिे और कई बार मर गये।..... तो कया यह तिवार मुझे मारे गी? नहीं मै तो अमर आतमा हूँ.... परमातमा का सनातन अंश हूँ। मुझे यह कैसे मार सकती है ? ú...
ú.... ú
हकीकत राय गुर के इस जान का िचंतन कर रहा था, तभी कूर कािजयो ने
जलिाद को तिवार चिाने का आदे श िदया। जलिाद ने तिवार उठाई िेिकन उस िनदोष बािक को दे खकर उसकी अंतरातमा थरथरा उठी। उसके हाथो से तिवार िगर पडी और हाथ काँपने िगे।
काजी बोिेः “तुझे नौकरी करनी िक नहीं? यह तू कया कर रहा है ?”
तब हकीकत राय ने अपने हाथो से तिवार उठाई और जलिाद के हाथ मे थमा दी। िफर वह िकशोर हकीकत राय आँखे बंद करके परमातमा का िचंतन करने िगाः ‘हे
अकाि पुरष! मुझे तेरे चरणो की पीित दे ना तािक मै तेरे चरणो मे पहुँच जाऊँ.... िफर से
मुझे वासना का पुतिा बनाकर इधर-उधर न भटकना पडे । अब तू मुझे अपनी ही शरण मे रखना... मै तेरा हूँ.... तू मेरा है .... हे मेरे अकाि पुरष!’
इतने मे जलिाद ने तिवार चिाई और हकीकत राय का िसर धड से अिग हो
गया।
हकीकत राय ने 13 वषम की ननहीं सी उम मे धमम के ििए अपनी कुबान म ी दे दी।
उसने शरीर छोड िदया िेिकन धमम न छोडा।
गुर त ेग बहाद ु र बो ििया , सुनो िसखो ! बडभा िगया , धड दीज े धरम छो िडय े .... हकीकत राय ने अपने जीवन मे यह चिरताथम करके िदखा िदया।
हकीकत राय ने तो धमम के ििए बििवेदी पर चढ गया िेिकन उसकी कुबान म ी ने भारत के हजारो-िाखो जवानो मे एक जोश भर िदया िक ‘धमम की खाितर पाण दे ना पडे तो दे गे िेिकन िवधिमय म ो के आगे नहीं झुकेगे। भिे ही अपने धमम मे भूखे पयासे मरना पडे तो सवीकार है िेिकन पर धमम को कभी सवीकार नहीं करे गे।‘
ऐसे वीरो के बििदान के फिसवरप ही हमे आजादी पाि हुई है और ऐसे िाखो-
िाखो पाणो की आहूित िारा पाि की गयी इस आजादी को हम कहीं वयसन, फैशन एवं चििचतो से पभािवत होकर गँवा न दे ! अतः दे शवािसयो को सावधान रहना होगा।
पेय
दाँतो और ह ििडयो क े द ु शमनः बाजार शीति कया आप जानते है िक िजन बाजार पेय पदाथो को आप बडे शौक से पीते है , वे
आपके दाँतो तथा हििडयो को गिाने के साधन है ? इन पेय पदाथो का ‘पीएच’ (सानदता) सामानयतः 3.4 होता है , जो िक दाँतो तथा हििडयो को गिाने के ििये पयाि म है ।
िगभग 30 वषम की आयु पूरी करने के बाद हमारे शरीर मे हििडयो के िनमाण म की
पिकया बंद हो जाती है । इसके पशात ् खाद पदाथो मे एिसिडटी (अमिता) की माता के अनुसार हििडयाँ घुिनी पारं भ हो जाती है ।
यिद सवासथय की दिि से दे खा जाये तो इन पेय पदाथो मे िवटािमन अथवा
खिनज ततवो का नामोिनशान ही नहीं है । इनमे शककर, काबोििक अमि तथा अनय रसायनो की ही पचुर माता होती है । हमारे शरीर का सामानय तापमान 37 िडगी सेिलसयस होता है जबिक िकसी शीति पेय पदाथम का तापमान इससे बहुत कम, यहाँ तक िक शूनय
िडगी सेिलसयस तक भी होता है । शरीर के तापमान तथा पेय पदाथो के तापमान के बीच इतनी अिधक िवषमता वयिक के पाचन-तंत पर बहुत बुरा पभाव डािती है ।
पिरणामसवरप वयिक िारा खाया गया भोजन अपचा ही रह जाता है िजससे गैस व बदबू उतपनन होकर दाँतो मे फैि जाती है और अनेक बीमािरयो को जनम दे ती है ।
एक पयोग के दौरान एक टू टे हुए दाँत को ऐसे ही पेय पदाथम की एक बोति मे
डािकर बंद कर िदया गया। दस िदन बाद उस दाँत को िनरीकण हे तु िनकािना था
परनतु वह दाँत बोति के अनदर था ही नहीं अथात म ् वह उसमे घुि गया था। जरा सोिचये िक इतने मजबूत दाँत भी ऐसे हािनकारक पेय पदाथो के दषुपभाव से गि-सडकर नि हो जाते है तो िफर उन कोमि तथा नमम आँतो का कया हाि होता होगा िजनमे ये पेय पदाथम पाचन-िकया के ििए घंटो पडे रहते है ।
चाय -का फी म े दस पकार क े ज हर 1. टे िनन नाम का जहर 18 % होता है , जो पेट मे छािे तथा पैदा करता है ।
2. िथन नामक जहर 3 % होता है , िजससे खुशकी चढती है तथा यह फेफडो और िसर मे भारीपन पैदा करता है ।
3. कैफीन नामक जहर 2.75 % होता है , जो शरीर मे एिसड बनाता है तथा िकडनी को कमजोर करता है ।
4. वॉिाटाइि नामक जहर आँतो के ऊपर हािनकारक पभाव डािता है । 5. काबोिनक अमि से एिसिडटी होती है ।
6. पैिमन से पाचनशिक कमजोर होती है । 7. एरोमोिीक आँतिडयो के ऊपर हािनकारक पभाव डािता है ।
8. साइनोजन अिनदा तथा िकवा जैसी भयंकर बीमािरयाँ पैदा करती है । 9. ऑकसेििक अमि शरीर के ििए अतयंत हािनकारक है । 10. िसटनॉयि रकिवहार तथा नपुंसकता पैदा करता है ।
इसििए चाय अथवा कॉफी कभी नहीं पीनी चािहए और अगर पीनी ही पडे तो
आयुवैिदक चाय पीनी चािहए।
आधुिनक खान -पान स े छो टे हो रह े है बचचो क े जबड े आज समाज मे आधुिनक खान-पान (फासटफूड) का बोिबािा बढता जा रहा है ।
वयसत जीवन अथवा आिसय के कारण िकतने ही घरो मे फासटफूड का उपयोग िकया
जाता है । पहिे भी बहुत से शोधकिाओ म ं ने अपने सवक े ण के आधार पर फासटफूड तथा
ठणडे पेय, चॉकिेट आिद को अखाद िगनकर सवासथय के ििए खतरनाक सािबत िकया है । नई िदलिी
िसथत ‘भारतीय आयुिवज म ान कचहरी’ के शोधकिाओ म ं ने बािको के
सवासथय पर फासटफूड के कारण पडने वािे पितकूि पभाव पर सवक े ण िकया। संसथा के दं तिचिकतसक िवभाग के पमुख डॉ. हिरपकाश बताते है िक बचचो के खान-पान मे िजस
पकार फासटफूड, चॉकिेट तथा ठं डे पेय आिद तेजी से समािवि होते जा रहे है इसकी असर बचचो के दाँतो पर पड रही है । भोजन को चबाने से उनके आँतो और जबडो को जो कसरत िमिती थी, वह अब कम होती जा रही है । इसका दषुपिरणाम यह आया है िक
दाँत पंिकबद नहीं रहते, उबड-खाबड तथा एक-दस ू रे के ऊपर चढ जाते है एवं उनके जबडे का आकार भी छोटा होता जा रहा है ।
एक सवक े ण के अनुसार िगभग 60 से 80 पितशत सकूि के बचचे तथा 14 से 18
पितशत बुजुगम दाँत की तकिीफ के िशकार है .
डॉ. हिरपकाश के बताये अनुसार बचचो के भोजन मे ऐसे पदाथम तथा फि होने
चािहए िजनको वे चबा सके। आधुिनक खान-पान की बदिती शैिी, फैशन-परसती और बेपरवाही सवासथय के ििए भयसूचक घंटी है ।
हमारे शासो ने भी कहा है ः जै सा अ नन व ैसा मन।
इसििए अपिवत वसतुओं से
तथा अपिवत वातावरण मे बननेवािे फासटफूड आिद से अपने पिरवार को बचाओ।
सौनदय म -पसाधनो म े िछपी ह ै अ नेक पािणयो की मू क च ीखे और हतय ा
सौनदयम-पसाधन एक ऐसा नाम है िजससे पतयेक वयिक पिरिचत है । सौनदयम पसाधनो का पयोग करके अपने को खूबसूरत तथा िवशेष िदखने होड मे आज िसफम नारी ही नहीं, वरन ् पुरष भी पीछे नहीं है ।
हमे िविभनन पकार के तेि, कीम, शैमपू एवं इत आिद जो आकषक म िडबबे एवं
बोतिो मे पैक िकये हुए िमिते है , उनमे हजारो-हजारो िनरपराध बेजुबान पािणयो की मूक चीखे िछपी हुई होती है । मनुषय की चमडी को खूबसूरत बनाने के ििए कई िनदोष पािणयो की हतया........ यही इन पसाधनो की सचचाई है ।
सेट के उतपादन मे िबलिी के आकार के िबजजू नाम के पाणी को बेतो से पीटा
जाता है । अतयिधक मार से उििगन होकर िबजजू की यौन-गंिथ से एक सुगिं धत पदाथम सािवत होता है । िजसको धारदार चाकू से िनमम म तापूवक म खरोच ििया जाता है िजसमे अनय रसायन िमिाकर िविभनन पकार के इत बनाये जाते है ।
पुरषो की दाढी को सजाने मे िजन िोशनो का उपयोग होता है उसकी
संवेदनशीिता की परीका के ििए चूहे की जाित वािे िगनी िपग है , िजनकी जान िी जाती है ।
िेमूर जाित के िोिरस नामक छोटे बंदर की भी सुनदर आँखो और िजगर को
पीसकर सौनदयम पसाधन बनाये जाते है । इसी तरह केसटोिरयम नाम की गनध पाि करने
के ििए चूहे के आकार के बीबर नाम के एक पाणी को 15-20 िदन तक भूखा रखकर, तडपा-तडपाकर तकिीफ दे कर हतया की जाती है ।
मनुषय की पाणेिनदय की पिरतिृि के ििए िबलिी की जाित के सीवेट नाम के
पाणी को इतना कोिधत िकया जाता है िक अंत मे वह अपने पाण गंवा दे ता है । तब
उसका पेट चीरकर एक गंिथ िनकािकर, आकषक म िडजाईनो मे पैक करके सौनदयम पसाधन की दक ु ानो मे रख दे ते है ।
अनेक पकार के रसायनो से बने हुए शैमपू की कवाििटी को जाँच करने के ििए
इसे िनदोष खरगोश की सुंदर, कोमि आंखो मे डािा जाता है । िजससे उसकी आँखो से खून िनकिता है और अंत मे वह तडप-तडपकर पाण छोड दे ता है ।
इसके अितिरक काजि, कीम, ििपिसटक, पावडर आिद तथा अनय पसाधनो मे
पशुओं की चबी, अनेक पैटोकैिमकलस, कृ ितम सुगध ं , इथाइि, िजरनाइन, अलकोहि, िफनाइि, िसटोनेलस, हाइिाकसीिसटोन आिद उपयोग िकये जाते है । िजनसे चमरमोग जैसे िक एिजी, दाद, सफेद दाग आिद होने की आशंका रहती है ।
ये तो मात एक झिक है , पूरा अधयाय नहीं है । पूरा अधयाय तो ऐसा है िक आप
कलपना भी नहीं कर सकते।
बाजार आइसकीम
-िकतनी खतरनाक
, िकतन ी
अखाद ? आइसकीम के िनमाण म मे जो भी सामगीयाँ पयुक की जाती है उनमे एक भी वसतु
ऐसी नहीं है जो हमारे सवासथय पर पितकूि पभाव न डािती हो। इसमे कचची सामगी के तौर पर अिधकांशतः हवा भरी रहती है । शेष 30 पितशत िबना उबिा हुआ और िबना
छाना हुआ पानी, 6 पितशत पशुओं की चबी तथा 7 से 8 पितशत शककर होती है । ये सब पदाथम हमारे तन-मन को दिूषत करने वािे शतु ही तो है ।
इसके अितिरक आइसकीम मे ऐसे अनेक रासायिनक पदाथम भी िमिाये जाते है
जो िकसी जहर से कम नहीं होते। जैसे पेपरोिनि, इथाइि एिसटे ट, बुटािडहाइड, एिमि
एिसटे ट, नाइटे ट आिद। उलिेखनीय है िक इनमे से पेपरोिनि नामक रसायन कीडे मारने की दवा के रप मे भी पयोग िकया जाता है । इथाइि एिसटे ट के पयोग से आइसकीम मे अनानास जैसा सवाद आता है परनतु इसके वाषप के पभाव से फेफडे , गुदे एवं िदि की भयंकर बीमािरयाँ उतपनन होती है । ऐसे ही शेष रसायिनक पदाथो के भी अिग-अिग दषुपभाव पडते है ।
आइसकीम का िनमाण म एक अित शीति कमरे मे िकया जाता है । सवप म थम चबी
को सखत करके रबर की तरह िचीिा बनाया जाता है तािक जब हवा भरी जाये तो वह
उसमे समा सके। िफर चबीयुक इस िमशण को आइसकीम का रप दे ने के ििए इसमे ढे र सारी अनय हािनकारक वसतुएँ भी िमिाई जाती है । इनमे एक पकार का गोद भी होता है जो चबी से िमिने पर आइसकीम को िचपिचपा तथा धीरे -धीरे िपघिनेवािा बनाता है । यह गोद जानवरो के पूँछ, नाक, थन आिद अंगो को उबाि कर बनाया जाता है ।
इस पकार अनेक अखाद पदाथो के िमशण को फेिनि बफम िगाकर एक दस ू रे
शीतकक मे िे जाया जाता है । वहाँ इसे अिग-अिग आकार के आकषक म पैकेटो मे भरा जाता है ।
एक कमरे से दस ू रे तक िे जाने की पिकया मे कुछ आइसकीम फशम पर भी िगर
जाती है । मजदरूो के जूतो तिे रौदे जाने से कुछ समय बाद उनमे से दग म ध आने िगती ु न है । अतः उसे िछपाने के ििये चाकिेट आइसकीम तैयार की जाती है ।
कया आपका पेट कोई गटर या कचरापेटी है , िजसमे आप ऐसे पदाथम डािते है ।
जरा सोिचए तो?
मां साह ार ः ग ं भीर बीमा िरयो को आम ंतण माउनट िजओन यूिन. ऑफ केििफोिनय म ा मे हुए शोध के अनुसार मांसाहार मे जो
एिसड होता है , उसे पचाने के ििए बेज की जररत होती है । िीवर के पास पयाि म बेज न हो तो वह बेज हििडयो से िेता है , कयोिक हििडयाँ बेज और कैिलशयम से बनी होती है ।
इसका मतिब िीवर मांस पचाने के ििए पयाि म बेज पैदा नहीं कर सकता है तो हििडयो मे से वह िमिने िगता है और अंत मे हििडयाँ िपसती जाती है . छोटी भी बनती जाती है
और कमजोर भी होती जाती है । इसििए हििडयो का फैकचर भी अिधक मांस खाने वािो को होता है । इसििए इस शोध मे शाकाहार को ही जयादा महतव िदया गया है ।
मांसाहार पर िकये गये परीकणो के आधार पर तो यहाँ तक कहा है िक मांसाहार
करना मतिब भयंकर बीमािरयो को आमंतण दे ना है . मांसाहार से कैसर, हदय रोग,
चमरमोग, कुिरोग, पथरी और िकडनी संबंधी ऐसी अनेक बीमािरयाँ िबना बुिाये आ जाती है ।
डॉ. बेज ने अपने अनेक पयोगो के आधार पर तो यहाँ तक कहा है ः “ मनुषय मे
कोध, उदं डता, आवेग, अिववेक, अमानुषता, अपरािधक पविृि तथा कामुकता जैसे दि ु कमो को भडकाने मे मांसाहार का अतयंत महतवपूणम हाथ होता है कयोिक मांस िेने के ििए
जब पशुओं की हतया की जाती है उस समय उनमे आये हुए भय, कोध, िचंता, िखननता आिद का पभाव मांसाहार करने वािे वयिकयो पर अवशय पडता है । “
अमेिरका की सटे ट यूिन. ऑफ नयूयाकम, बफैिो मे िकये हुए अनेक शोध के
पिरणामसवरप वहाँ के िवशेषजो ने कहा है ः “ अमेिरका मे हर साि 47000 से भी जयादा
ऐसे बािक जनम िेते है , िजनके माता-िपता के मांसाहारी होने के कारण बािको को जनमजात अनेक घातक बीमािरयाँ िगी हुई होती है । “
मांसाहार से होने वािे घातक पिरणामो के िवषय मे पतयेक धमग म थ ं मे बताया
गया है । मांसाहार का िवरोध आयद म िा ऋिषयो ने, संतो-कथाकारो ने सतसंग मे भी िकया
है , यही िवरोध अभी िवजान के केत मे भी हुआ है । िफर भी, अगर आपको मांसाहार करना हो, अपनी आने वािी पीढी को कैनसरगसत करना हो, अपने को बीमािरयो का िशकार
बनाना हो तो आपकी इचछा। अगर आपको अशांत, िखनन, तामसी होकर जलदी मरना हो तो करो मांसाहार! नहीं तो आज ही िहममत करके संकलप करो और मांसाहार छोड दो।
आप चा किे ट खा रह े है या िनदोष
मां स ?
बछ डो का
चाकिेट का नाम सुनते ही बचचो मे गुदगुदी न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। बचचो को खुश करने का पचिित साधन है चाकिेट। बचचो मे ही नहीं, वरन ् िकशोरो तथा युवा वगम मे भी चाकिेट ने अपना िवशेष सथान बना रखा है । िपछिे कुछ समय से टॉिफयो तथा चाकिेटो का िनमाण म करने वािी अनेक कंपिनयो िारा अपने उतपादो मे
आपििजनक अखाद पदाथम िमिाये जाने की खबरे सामने आ रही है । कई कंपिनयो के उतपादो मे तो हािनकारक रसायनो के साथ-साथ गायो की चबी िमिाने तक की बात का रहसयोदघाटन हुआ है ।
गुजरात के समाचार पत गुजरात समाचार मे पकािशत एक समाचार के अनुसार
नेसिे यू.के.िििमटे ड िारा िनिमत म िकटकेट नामक चाकिेट मे कोमि बछडो के रे नेट
(मांस) का उपयोग िकया जाता है । यह बात िकसी से िछपी नहीं है िक िकटकेट बचचो मे खूब िोकिपय है । अिधकतर शाकाहारी पिरवारो मे भी इसे खाया जाता है । नेसिे
यू.के.िििमटे ड की नयूिटशन आिफसर शीमित वाि एनडसन म ने अपने एक पत मे बतायाः “ िकटकेट के िनमाण म मे कोमि बछडो के रे नेट का उपयोग िकया जाता है । फितः
िकटकेट शाकाहािरयो के खाने योगय नहीं है । “ इस पत को अनतराि म ीय पितका यंग जैनस मे पकािशत िकया गया था। सावधान रहो, ऐसी कंपिनयो के कुचको से! टे िििवजन पर
अपने उतपादो को शुद दध ू से बनते हुए िदखाने वािी नेसिे िििमटे ड के इस उतपाद मे दध ू तो नहीं परनतु दध ू पीने वािे अनेक कोमि बछडो के मांस की पचुर माता अवशय
होती है । हमारे धन को अपने दे शो मे िे जाने वािी ऐसी अनेक िवदे शी कंपिनयाँ हमारे िसदानतो तथा परमपराओं को तोडने मे भी कोई कसर नहीं छोड रही है । वयापार तथा उदारीकरण की आड मे भारतवािसयो की भावनाओं के साथ िखिवाड हो रहा है ।
हािैणड की एक कंपनी वैनेमैिी पूरे दे श मे धडलिे से फूटे िा टॉफी बेच रही। इस टॉफी मे गाय की हििडयो का चूरा िमिा होता है , जो िक इस टॉफी के िडबबे पर सपि
रप से अंिकत होता है । इस टॉफी मे हििडयो के चूणम के अिावा डािडा, गोद, एिसिटक एिसड तथा चीनी का िमशण है , ऐसा िडबबे पर फामूि म े (सूत) के रप मे अंिकत है । फूटे िा टॉफी बाजीि मे बनाई जा रही है तथा इस कंपनी का मुखयािय हािैणड के जुिडआई
शहर मे है । आपििजनक पदाथो से िनिमत म यह टॉफी भारत सिहत संसार के अनेक अनय दे शो मे भी धडलिे से बेची जा रही है ।
चीनी की अिधक माता होने के कारण इन टॉिफयो को खाने से बचपन मे ही दाँतो
का सडना पारं भ हो जाता है तथा डायिबटीज एवं गिे की अनय बीमािरयो के पैदा होने
की संभावना रहती है । हििडयो के िमशण एवं एिसिटक एिसड से कैसर जैसे भयानक रोग भी हो सकते है ।
सन ् 1847 मे अंगजो ने कारतूसो मे गायो की चबी का पयोग करके सनातन
संसकृ ित को खिणडत करने की सािजश की थी, परनतु मंगि पाणडे य जैसे वीरो ने अपनी जान पर खेिकर उनकी इस चाि को असफि कर िदया। अभी िफर यह नेसिे कंपनी
चािे चि रही है । अभी मंगि पाणडे य जैसे वीरो की जररत है । ऐसे वीरो को आगे आना चािहए। िेखको, पतकारो को सामने आना चािहए। दे शभको को सामने आना चािहए। दे श
को खणड-खणड करने के मििन मुरादे वािो और हमारी संसकृ ित पर कुठाराघात करने वािो के सबक िसखाना चािहए। दे व संसकृ ित भारतीय समाज की सेवा मे सजजनो को साहसी बनना चािहए। इस ओर सरकार का भी धयान िखंचना चािहए।
ऐसे हािनकारक उतपादो के उपभोग को बंद करके ही हम अपनी संसकृ ित की रका
कर सकते है । इसििए हमारी संसकृ ित को तोडनेवािी ऐसी कंपिनयो के उतपादो के
बिहषकार का संकलप िेकर आज और अभी से भारतीय संसकृ ित की रका मे हम सबको कंधे-से-कंधा िमिाकर आगे आना चािहए।
अिधका ंश ट ू थपेसटो मे पाया ज ाने वािा
फिोराइड क ैसर को आम ंतण दे ता ह ै ....... आजकि बाजार मे िबकने वािे अिधकांश टू थपेसटो मे फिोराइड नामक रसायन
का पयोग िकया जाता है । यह रसायन शीशे तथा आरसेिनक जैसा िवषैिा होता है । इसकी थोडी-सी माता भी यिद पेट मे पहुँच जाए तो कैसर जैसे रोग पैदा हो सकते है ।
अमेिरका के खाद एवं सवासथय िवभाग ने फिोराइड का दवाओं मे पयोग
पितबंिधत िकया है । फिोराइड से होने वािी हािनयो से संबिं धत कई मामिे अदाित तक भी पहुँचे है । इसेकस (इं गिैणड) के 10 वषीय बािक के माता-िपता को कोिगेट पामोििव
कंपनी िारा 264 डॉिर का भुगतान िकया गया कयोिक उनके पुत को कोिगेट के पयोग से फिोरोिसस नामक दाँतो की बीमारी िग गयी थी।
अमेिरका के नेशनि कैसर इनसटीचयूट के पमुख रसायनशासी िारा िकये गये एक
शोध के अनुसार अमेिरका मे पितवषम 10 हजार से भी जयादा िोग फिोराइड से उतपनन कैसर के कारण मतृयु को पाि होते है ।
टू थपेसटो मे फिोराइड की उपिसथित िचंताजनक है , कयोिक यह मसूडो के अंदर
चिा जाता है तथा अनेक खतरनाक रोग पैदा करता है । छोटे बचचे तो टू थपेसट को
िनगि भी िेते है । फितः उनके ििए तो यह अतयंत घातक हो जाता है । टू थपेसट बनाने मे पशुओं की हिडी के चूरे का पयोग िकया जाता है ।
हमारे पूवज म पाचीन समय से ही नीम तथा बबूि की दातुन का उपयोग करते रहे
है । दातुन करने से अपने-आप मुह ँ मे िार बनती है जो भोजन को पचाने मे सहायक है एवं आरोगय की रका करती है ।
दाँत ो की स ुरका पर
ध यान द े
जहाँ तक संभव हो, दाँत साफ करने के ििए बाजार टू थबशो तथा टू थपेसटो का
उपयोग नहीं करना चािहए। टू थबशो के कडे , छोटे -बडे तथा नुकीिे रोम दाँतो पर िगे
िझलिीनुमा पाकृ ितक आवरण को नि कर दे ते है , िजससे दाँतो की पाकृ ितक चमक चिी जाती है और उनमे कीडे िगने िगते है ।
अिधकतर टू थपेसट भी दाँतो के ििए िाभदायक नहीं होते। कुछ टू थपेसटो मे
हििडयो का पावडर िमिाये जाने की बातो का रहसयोदघाटन हुआ है । कई िवदे शी
कंपिनयाँ तो धन बटोरने के ििए न िसफम उपभोकाओं के सवासथय के साथ िखिवाड कर
रही है वरन ् कानून का भी उलिंघन करती जा रही है । पाञचजनय नामक समाचार पत मे िदनांक 17 जनवरी 1999 को पकािशत एक समाचार के अनुसार भारतीय खाद एवं दवा
पािधकरण ने िहनदस ु तान िीवर, पोकटर एणड गैमबि और कोिगेट पामोििव को नोिटस भेजकर पूछा िक, “ उनहोने अपने टू थपेसट तथा शैमपू के बारे मे िचिकतसा संबंधी दावे
कयो िकये जबिक उनहे तो िसफम सौनदयम-पसाधन संबध ं ी दावे करने की ही अनुमित है । “ इस पकार के टू थपेसट अथवा टू थबश मँहगे होने के साथ-साथ हािनपद भी होते
है । इनहीं उतपादो िारा िवदे शी कंपिनयाँ भारत से अरबो की समपिि को िूटकर अपने
दे शो मे िे जा रही है । अतः सुरिकत तथा ससते साधनो का ही उपयोग करना चािहए।
अणड ा जहर ह ै भारतीय जनता की संसकृ ित और सवासथय को हािन पहुँचाने का यह एक िवराट
षडयंत है । अंडे के भामक पचार से आज से दो-तीन दशक पहिे िजन पिरवारो को रासते
पर पडे अणडे के खोि के पित भी गिािन का भाव था, इसके िवपरीत उन पिरवारो मे आज अंडे का इसतेमाि सामानय बात हो गयी है ।
अंडे अपने अवगुणो से हमारे शरीर के िजतने जयादा हािनकारक और िवषैिे है
उनहे पचार माधयमो िारा उतना ही अिधक फायदे मंद बताकर इस जहर को आपका भोजन बनानो की सािजश की जा रही है ।
अणडा शाकाहारी नहीं होता िेिकन कूर वयावसाियकता के कारण उसे शाकाहारी
िसद िकया जा रहा है । िमिशगन यूिनविसट म ी के वैजािनको ने पकके तौर पर सािबत कर िदया है िक दिुनया मे कोई भी अणडा चाहे वह सेया गया हो या िबना सेया हुआ हो,
िनजीव नहीं होता। अफिित अणडे की सतह पर पाि इिैिकटक एिकटिवटी को पोिीगाफ पर अंिकत कर वैजािनको ने यह सािबत कर िदया है िक अफिित अणडा भी सजीव होता है । अणडा शाकाहार नहीं, बिलक मुगी का दै िनक (रज) साव है ।
यह सरासर गित व झूठ है िक अणडे मे पोटीन, खिनज, िवटािमन और शरीर के
ििए जररी सभी एिमनो एिसडस भरपूर है और बीमारो के ििए पचने मे आसान है ।
शरीर की रचना और सनायुओं के िनमाण म के ििए पोटीन की जररत होती है ।
उसकी रोजाना आवशयकता पित िक.गा. वजन पर 1 गाम होती है यािन 60 िकिोगाम
वजन वािे वयिक को पितिदन 60 गाम पोटीन की जररत होती है जो 100 गाम अणडे से मात 13.3 गाम ही िमिता है । इसकी तुिना मे पित 100 गाम सोयाबीन से 43.2 गाम,
मूँगफिी से 31.5 गाम, मूग ँ और उडद से 24, 24 गाम तथा मसूर से 25.1 गाम पोटीन पाि होता है । शाकाहार मे अणडा व मांसाहार से कहीं अिधक पोटीन होते है । इस बात को अनेक पाशातय वैजािनको ने पमािणत िकया है ।
केििफोिनय म ा के िडयरपाकम मे सेट हे िेना हॉिसपटि के िाईफ सटाइि एणड
नयूिटशन पोगाम के िनदे शक डॉ. जोन ए. मेकडू गि का दावा है िक शाकाहार मे जररत से भी जयादा पोटीन होते है ।
1972 मे हावड म म यूिनविसट म ी के ही डॉ. एफ. सटे र ने पोटीन के बारे मे अधययन करते
हुए पितपािदत िकया िक शाकाहारी मनुषयो मे से अिधकांश को हर रोज की जररत से
दग ु ना पोटीन अपने आहार से िमिता है । 200 अणडे खाने से िजतना िवटािमन सी िमिता है उतना िवटािमन सी एक नारं गी (संतरा) खाने से िमि जाता है । िजतना पोटीन तथा कैिलशयम अणडे मे है उसकी अपेका चने, मूग ँ , मटर मे जयादा है ।
िबिटश हे लथ िमिनसटर िमसेज एडवीना कयूरी ने चेतावनी दी िक अणडो से मौत
संभािवत है कयोिक अणडो मे सािमोनेिा िवष होता है जो िक सवासथय की हािन करता
है । अणडो से हाटम अटै क की बीमारी होने की चेतावनी नोबेि पुरसकार िवजेता अमेिरकन डॉ. बाउन व डॉ. गोलडसटीन ने दी है कयोिक अणडो मे कोिेसटाि भी बहुत पाया जाता है .
डॉ. पी.सी. सेन, सवासथय मंतािय, भारत सरकार ने चेतावनी दी है िक अणडो से कैसर होता है कयोिक अणडो मे भोजन तंतु नहीं पाये जाते है तथा इनमे डी.डी.टी. िवष पाया जाता है ।
जानिेवा रोगो की जड है ः अणडा। अणडे व दस ू रे मांसाहारी खुराक मे अतयंत जररी
रे शाततव (फाईबसम) जरा भी नहीं होते है । जबिक हरी साग, सबजी, गेहूँ, बाजरा, मकई, जौ, मूँग, चना, मटर, िति, सोयाबीन, मूग ँ फिी वगैरह मे ये काफी माता मे होते है ।
अमेिरका के डॉ. राबटम गास की मानयता के अनुसार अणडे से टी.बी. और पेिचश की
बीमारी भी हो जाती है । इसी तरह डॉ. जे. एम. िवनकीनस कहते है िक अणडे से अलसर होता है ।
मुगी के अणडो का उतपादन बढे इसके ििये उसे जो हामोनस िदये जाते है उनमे
सटीि बेसटे रोि नामक दवा महतवपूणम है । इस दवावािी मुगी के अणडे खाने से िसयो को सतन का कैसर, हाई बिडपैशर, पीििया जैसे रोग होने की समभावना रहती है । यह दवा
पुरष के पौरषतव को एक िनिशत अंश मे नि करती है । वैजािनक गास के िनषकषम के अनुसार अणडे से खुजिी जैसे तवचा के िाइिाज रोग और िकवा भी होने की संभावना होती है ।
अणडे के गुण-अवगुण का इतना सारा िववरण पढने के बाद बुिदमानो को उिचत है
िक अनजानो को इस िवष के सेवन से बचाने का पयत करे । उनहे भामक पचार से
बचाये। संतिु ित शाकाहारी भोजन िेने वािे को अणडा या अनय मांसाहारी आहार िेने की कोई जररत नहीं है । शाकाहारी भोजन ससता, पचने मे आसान और आरोगय की दिि से
दोषरिहत होता है । कुछ दशक पहिे जब भोजन मे अणडे का कोई सथान नहीं था तब भी हमारे बुजुगम तंदरसत रहकर िमबी उम तक जीते थे। अतः अणडे के उतपादको और
भामक पचार की चपेट मे न आकर हमे उक तथयो को धयान मे रखकर ही अपनी इस शाकाहारी आहार संसकृ ित की रका करनी होगी।
आहार शुदौ सतव श ुिद ः।
1981 मे जामा पितका मे एक खबर छपी थी। उसमे कहा गया था िक शाकाहारी भोजन 60 से 67 पितशत हदयरोग को रोक सकता है । उसका कारण यह है िक अणडे और दस ू रे मांसाहारी भोजन मे चबी ( कोिेसटाि) की माता बहुत जयादा होती है ।
केििफोिनय म ा की डॉ. केथरीन िनममो ने अपनी पुसतक हाऊ हे लदीयर आर एगज मे
भी अणडे के दषुपभाव का वणन म िकया गया है ।
वैजािनको की इन िरपोटो से िसद होता है िक अणडे के िारा हम जहर का ही
सेवन कर रहे है । अतः हमको अपने-आपको सवसथ रखने व फैि रही जानिेवा बीमारीयो
से बचने के ििए ऐसे आहार से दरू रहने का संकलप करना चािहए व दस ू रो को भी इससे बचाना चािहए।
मौत का द ू सरा नाम ग ुटखा पान मसा
िा
कया आपको िछपकिी, तेजाब जैसी गंदी तथा जिाने वािी वसतुएँ मुँह मे डािनी
अचछी िगती है ? नहीं ना? कयोिक गुटका, पान-मसािा मे ऐसी वसतुएँ डािी जाती है ।
अनेक अनुसंधानो से पता चिा है िक हमारे दे श मे कैसर से गसत रोिगयो की
संखया का एक ितहाई भाग तमबाकू तथा गुटखे आिद का सेवन करने वािे िोगो का है । गुटखा खाने वािे वयिक की साँसो मे अतयिधक दग म ध आने िगती है तथा चूने के ु न
कारण मसूढो के फूिने से पायिरया तथा दं तकय आिद रोग उतपनन होते है । इसके सेवन से हदय रोग, रकचाप, नेतरोग तथा िकवा, टी.बी जैसे भयंकर रोग उतपनन हो जाते है ।
तमबाकू मे िनकोिटन नाम का एक अित िवषैिा ततव होता है जो हदय, नेत तथा
मिसतषक के ििए अतयनत घातक होता है । इसके भयानक दषुपभाव से अचानक आँखो की जयोित भी चिी जाती है । मिसतषक मे नशे के पभाव के कारण तनाव रहने से रकचाप उचच हो जाता है ।
वयसन हमारे जीवन को खोखिा कर हमारे शरीर को बीमािरयो का घर बना दे ते
है । पारं भ मे झूठा मजा िदिाने वािे ये मादक पदाथम वयिक के िववेक को हर िेते है
तथा बाद मे अपना गुिाम बना िेते है और अनत मे वयिक को दीन-हीन, कीण करके मौत की कगार तक पहुँचा दे ते है .
जीवन के उन अंितम कणो मे जब वयिक को इन भयानकताओं का खयाि आता
है तब बहुत दे र हो चुकी होती है । इसििए हे बािको! गुटका और पान-मसािे के
मायाजाि मे फँसे िबना भगवान की इस अनमोि दे न मनुषय-जीवन को परोपकार, सेवा, संयम, साधना िारा उननत बनाओ।
टी .वी .-िफल मो का पभाव 22 अपैि को आगरा से पकािशत समाचार पत दै िनक जागरण मे िदनांक 21 अपैि
1999 को वािशंगटन (अमेिरका) मे घटी एक घटना पकािशत हुई थी। इस घटना के
अनुसार िकशोर उम के दो सकूिी िवदािथय म ो ने डे नवर (कॉिरे डो) मे दोपहर को भोजन की आधी छुटटी के समय मे कोिंबाइन हाई सकूि की पुसतकािय मे घुसकर अंधाधंध ु
गोिीबारी की, िजससे कम-से-कम 25 िवदािथय म ो की मतृयु हुई, 20 घायि हुए। िवदािथय म ो
की हतया के बाद गोिीबारी करने वािे िकशोरो ने सवयं को भी गोिियाँ मारकर अपने को भी मौत के घाट उतार िदया। हॉिीवुड की मारा-मारीवािी िफलमी ढं ग से हुए इस
अभूतपूवम कांड के पीछे भी चििचत ही (िफलम) मूि पेरक ततव है , यह बहुत ही शमन म ाक
बात है । भारतवािसयो को ऐसे सुधरे हुए राष और आधुिनक कहिाये जाने वािे िोगो से सावधान रहना चािहए।
िसनेमा-टे िििवजन का दर ु पयोग बचचो के ििए अिभशाप रप है । चोरी, दार,
भिाचार, िहं सा, बिातकार, िनिज म जता जैसे कुसंसकारो से बाि-मिसतषक को बचाना चािहए। छोटे बचचो की आँखो की ऱका करनी जररी है । इसििए टे िििवजन, िविवध चैनिो का उपयोग जानवधक म कायक म म, आधयाितमक उननित के ििए कायक म म, पढाई के ििए
कायक म म तथा पाकृ ितक सौनदयम िदखाने वािे कायक म मो तक ही मयािमदत करना चािहए। एक सवे के अनुसार तीन वषम का बचचा जब टी.वी. दे खना शुर करता है और उस
घर मे केबि कनैकशन पर 12-13 चैनि आती हो तो, हर रोज पाँच घंटे के िहसाब से
बािक 20 वषम का हो तब तक इसकी आँखे 33000 हतया और 72000 बार अशीिता और बिातकार के दशय दे ख चुकी होगी।
यहाँ एक बात गंभीरता से िवचार करने की है िक मोहनदास करमचंद गाँधी नाम
का एक छोटा सा बािक एक या दो बार हिरशनद का नाटक दे खकर सतयवादी बन गया और वही बािक महातमा गाँधी के नाम से आज भी पूजा जा रहा है । हिरशनद का नाटक जब िदमाग पर इतनी असर करता है िक उस वयिक को िजंदगी भर सतय और अिहं सा का पािन करने वािा बना िदया, तो जो बािक 33 हजार बार हतया और 72 हजार बार बिातकार का दशय दे खेगा तो वह कया बनेगा? आप भिे झूठी आशा रखो िक आपका
बचचा इनजीिनयर बनेगा, वैजािनक बनेगा, योगय सजजन बनेगा, महापुरष बनेगा परनतु
इतनी बार बिातकार और इतनी हतयाएँ दे खने वािा कया खाक बनेगा? आप ही दब ु ारा िवचारे ।
बचच ो के सोन े के आठ ढ ं ग 1.कुछ बचचे पीठ के बि सीधे सोते है । अपने दोनो हाथ ढीिे छोडकर या पेट पर
रख िेते है । यह सोने का सबसे अचछा और आदशम तरीका है । पायः इस पकार सोने वािे बचचे अचछे सवासथय के सवामी होते है । न कोई रोग न कोई मानिसक िचंता। इन बचचो का िवकास अिधकतर राित मे होता ही है ।
2.कुछ बचचे सोते वक अपने दोनो हाथ उठाकर िसर पर ऱख िेते है । इस पकार
शांित और आराम पदिशत म करने वािा बचचा अपने वातावरण से संतोष, शांित चाहता है । अतः बडा होने पर उसे िकसी िजममेदारी का काम एकदम न सौप दे , कयोिक ऐसे बचचे पायः कमजोर संकलपशिकवािे होते है । उसे बचपन से ही अपना काम सवयं
करने का अभयास करवाये तािक धीरे -धीरे उसके अंदर संकलपशिक और आतमिवशास पैदा हो जाए।
3.कुछ बचचे पेट के बि िेटकर अपना मुँह तिकये पर इस पकार रख िेते है मानो तिकये को चुमबन कर रहे हो। यह सनेह का पतीक है । उनकी यह चेिा बताती है िक बचचा सनेह का भूखा है । वह पयार चाहता है । उससे खूब पयार करे , पयारभरी
बातो से उसका मन बहिाये। उसको पयार की दौित िमि गयी तो उसकी इस पकार सोने की आदत अपने-आप दरू हो जाएगी।
4.कुछ बचचे तिकये से ििपटकर या तिकये को िसर के ऊपर रखकर सोते है । यह
बताता है िक बचचे के मिसतषक मे कोई गहरा भय बैठा हुआ है । बडे पयार से छुपा
हुआ भय जानने और उसे दरू करने का शीघाितशीघ पयत करे तािक बचचे का उिचत िवकास हो। िकसी सदगुर से पणव का मंत िदिवाकर जाप करावे तािक उसका भािव जीवन िकसी भय से पभािवत न हो।
5.कुछ बचचे करवट िेकर दोनो पाँव मोडकर सोते है । ऐसे बचचे अपने बडो से
सहानुभिू त और सुरका के अिभिाषी होते है । सवसथ और शिकशािी बचचे भी इस पकार सोते है । उन बचचो को बडो से अिधक सनेह और पयार िमिना चािहए।
6.कुछ बचचे तिकये या िबसतर की चादर मे छुपकर सोते है । यह इस बात का
संकेत है िक वे ििजजत है । अपने वातावरण से पसनन नहीं है । घर मे या बाहर उनके िमतो के साथ ऐसी बाते हो रहीं है , िजनसे वे संति ु या पसनन नहीं है । उनसे ऐसा कोई शारीिरक दोष, कुकमम या कोई ऐसी छोटी-मोटी गिती हो गयी है िजसके कारण वे मुह ँ
िदखाने के कािबि नहीं है । उनको उस गिािन से मुक कीिजए। उनको चािरतयवान और साहसी बनाइये.
7.कुछ बचचे तिकय, चादर और िबसतर तक रौद डािते है । कैसी भी ठं डी या गमी
हो, वे बडी किठनाई से रजाई या चादर आिद ओढना सहन करते है । वे एक जगह
जमकर नहीं सोते, पूरे िबसतर पर िोट-पोट होते है । माता-िपता और अनय िोगो पर
अपना हुकुम चिाने का पयत करते है । ऐसे बचचे दबाव या जबरदसती कोई काम नहीं करे गे। बहुत ही सनेह से, युिक से उनका सुधार होना चािहए।
8.कुछ बचचे तिकये या चादर से अपना पूरा शरीर ढं ककर सोते है । केवि एक
हाथ बाहर िनकािते है । यह इस बात का पतीक है िक बचचा घर के ही िकसी वयिक
या िमत आिद से सखत नाराज रहता है । वह िकसी भीतरी दिुवधा का िशकार है । ऐसे बचचो का गहरा मन चाहता है िक कोई उनकी बाते और िशकायते बैठकर सहानुभूित से सुने, उनकी िचंताओं का िनराकरण करे ।
ऐसे बचचो के गुससे का भेद पयार से मािूम कर िेना चािहए, उनको समझा-
बुझाकर उनकी रिता दरू करने का पयत करना चािहए। अनयथा ऐसे बचचे आगे चिकर बहुत भावुक और कोधी हो जाते है , जरा-जरा सी बात पर भडक उठते है ।
ऐसे बचचे चबा-चबाकर भोजन करे , ऐसा धयान रखना चािहए। गुससा आये तब हाथ की मुिटठयाँ इस पकार भीँ च दे नी चािहए तािक नाखूनो का बि हाथ की गदी पर पडे .... ऐसा अभयास बचचो मे डािना चािहए।
ú
शांितः शांितः... का पावन जप करके
पानी मे दिि डािे और वह पानी उनहे िपिाये। बचचे सवयं यह करे तो अचछा है , नहीं तो आप करे ।
संसार के सभी बचचे इन आठ तरीको से सोते है । हर तरीका उनकी मानिसक
िसथित और आनतिरक अवसथा पकट करता है । माता-िपता उनकी अवसथा को पहचान कर यथोिचत उनका समाधान कर दे तो आगे चिकर ये ही बचचे सफि जीवन िबता सकते है ।
िवदाथीयो, माता-िपता-अिभभावको व राष के कणध म ारो के नाम
बहिनष स ंत श ी आसारा म जी बाप ू क ा स ंदे श आतमीय जन, हमारे दे श का भिवषय हमारी युवा पीढी पर िनभरम है िकनतु उिचत मागद म शन म के
अभाव मे वह आज गुमराह हो रही है । पाशातय भोगवादी सभयता के दषुपभाव से उसके यौवन का हास होता जा रहा है । दरूदशन म , िवदे शी चैनि, चििचत, अशीि सािहतय आिद
पचार माधयमो के िारा युवक-युवितयो को गुमराह िकया जा रहा है । िविभनन सामियको और समाचार पतो मे भी तथाकिथत पाशातय मनोिवजान से पभािवत मनोिचिकतसक
और सेकसोिॉिजसट युवा छात-छाताओं को चिरत, संयम और नैितकता से भि करने पर तुिे हुए है ।
िबतानी औपिनवेशक संसकृ ित की दे न विम म ान िशका-पणािी मे जीवना के नैितक
मूलयो के पित उदासीनता बरती गयी है । फितः आज के िवदाथी का जीवन कौमायाव म सथा से ही िविासी और असंयमी हो जाता है ।
पाशातय आचार-वयवहार के अंधानुकरण से युवानो मे जो फैशनपरसती, अशुद
आहार िवहार के सेवन की पविृि, कुसंग, अभदता, चििचत-पेम आिद बढ रहे है उससे िदनो िदन उनका पतन होता जा रहा है । वे िनबि म और कामी बनते जा रहे है । उनकी इस अवदशा को दे खकर ऐसा िगता है िक वे बहचयम की मिहमा से सवथ म ा अनिभज है ।
िाखो नहीं, करोडो-करोडो छात-छाताएँ अजानतावश अपने तन मन के मूि ऊजाम-सोत का वयथम मे अपकय कर पूरा जीवन दीनता-हीनता-दब म ता मे तबाह कर दे ते है और ु ि
सामािजक अपयश के भय से मन ही मन कि झेिते रहते है । इससे उनका शारीिरक-
मानिसक सवासथय चौपट हो जाता है , सामानय शारीिरक-मानिसक िवकास भी नहीं हो पाता। ऐसे युवान रकालपता, िवसमरण तथा दब म ता से पीिडत होते है । ु ि
यही वजह है िक हमारे दे श मे औषधाियो, िचकतसाियो, हजारो पकार की
एिोपैिथक दवाइयो, इं जैकशनो आिद की िगातार विृद होती जा रही है । असंखय डॉकटरो ने अपनी-अपनी दक ु ाने खोि रखी है , िफर भी रोग एवं रोिगयो की संखया बढती ही जा रही है । इसका मूि कारण कया है ? दवुयस म न तथा अनैितक, अपाकृ ितक एवं अमयािमदत मैथुन
िारा वीयम की कित ही इसका मूि कारण है । इसकी कमी से रोग-पितकारक शिक घटती है , जीवन शिक का हास होता है ।
इस दे श को यिद जगदगुर के पद आसीन होना है , िवश-सभयता एवं िवश-संसकृ ित
का िसरमौर बनना है , उननत सथान िफर से पाि करना है तो यहाँ की सनतानो को
चािहए िक वे बहचयम के महतव को समझे और सतत ् सावधान रहकर सखती से इसका पािन करे ।
बहचयम के िारा ही हमारी युवा पीढी अपने वयिकतव का संतिु ित एवं शष े तर
िवकास कर सकती है । बहचयम के पािन से बुिद कुशाग बनती है , रोग-पितकारक शिक
बढती है तथा महान-से-महान िकय िनधािमरत करने एवं उसे समपािदत करने का उतसाह उभरता है , संकलप मे दढता आती है , मनोबि पुि होता है ।
आधयाितमक िवकास का मूि भी बहचयम ही है । हमारा दे श औदोिगक, तकनीकी
और आिथक म केत मे चाहे िकतना भी िवकास कर िे, समिृद पाि कर िे िफर भी यिद
युवाधन की सुरका न हो पायी तो यह भी भौितक िवकास अंत मे महािवनाश की ओर ही िे जाएगा। कयोिक संयम, सदाचार आिद के पिरपािन से ही कोई भी सामािजक वयवसथा सुचार रप से चि सकती है । अतः भारत का सवाग ा ीण िवकास सचचिरत एवं संयमी युवाधन पर ही आधािरत है ।
अतः हमारे युवाधन छात-छाताओं को बहचयम मे पिशिकत करने के ििए उनहे
यौन-सवासथय, आरोगयशास, दीघाय म ु-पािि के उपाय तथा कामवासना िनयंितत करने की
िविध का सपि जान पदान करना हम सबका अिनवायम किवमय है । इसकी अवहे िना हमारे दे श व समाज के िहत मे नहीं है । यौवन सुरका से ही सुदढ राष का िनमाण म हो सकता है ।
िजन िवदािथय म ो को यौवन सुरका पुसतक पढने से कुछ िाभ हुआ है उनके ही
कुछ उदगारः
मेरी वासना उपासना
मे बदिी
“ आशम िारा पकािशत यौव न स ुरका पुसतक पढने से मेरी दिि अमीदिि हो गयी। पहिे परसी को एवं हमउम की िडिकयो को दे खकर मेरे मन मे वासना और
कुदिि का भाव पैदा होता था िेिकन यह पुसतक पढकर मुझे जानने को िमिा िक सी एक वासनापूितम की वसतु नहीं है , परनतु शुद पेम और शुद भावपूवक म जीवनभर साथ रहने वािी एक शिक है । सचमुच इस यौवन सुरका पुसतक को पढकर मेरे अनदर की वासना उपासना मे बदि गयी है । “
- रवीनद र ितभाई म कवाणा एम . के . जमोह हाईसक ू ि , भावनगर
(गुज .).
यौवन स ु रका पुसत क नही ं , अिपत ु एक िशका गंथ ह ै
“ यह यौवन सुरका एक पुसतक नहीं अिपतु एक िशका गंथ है , िजससे हम िवदािथय म ो को संयमी जीवन जीने की पेरणा िमिती है । सचमुच, इस अनमोि गंथ को पढकर एक अदभुत पेरणा तथा उतसाह िमिता है । मैने इस पुसतक मे कई ऐसी बाते
पढीं जो शायद ही कोई हम बािको को बता व समझा सके। ऐसी िशका मुझे आज तक
िकसी दस ू री पुसतक से नहीं िमिी। मै इस पुसतक को जनसाधारण तक पहुँचाने वािो को धनयवाद दे ता हूँ तथा उन महापुरष महामानव को शत ्-शत ् पणाम करता हूँ िजनकी पेरणा तथा आशीवाद म से इस पुसतक की रचना हुई। “ कका –
- हरपीत िसंह अ वतार िसंह
9, राजकी य हाईसक ू ि , सेकटर –
माँ -बाप को भ ू िना न हीं भूिो सभी को मगर, माँ-बाप को भूिना नहीं। उपकार अगिणत है उनके, इस बात को भूिना नहीं।। पतथर पूजे कई तुमहारे , जनम के खाितर अरे ।
पतथर बन माँ-बाप का, िदि कभी कुचिना नहीं।। मुख का िनवािा दे अरे , िजनने तुमहे बडा िकया।
अमत ृ िपिाया तुमको जहर, उनको उगिना नहीं।। िकतने िडाए िाड सब, अरमान भी पूरे िकये।
पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूिना नहीं।। िाखो कमाते हो भिे, माँ-बाप से जयादा नहीं।
25, चण डीगढ।
सेवा िबना सब राख है , मद मे कभी फूिना नहीं।। सनतान से सेवा चाहो, सनतान बन सेवा करो।
जैसी करनी वैसी भरनी, नयाय यह भूिना नहीं।। सोकर सवयं गीिे मे, सुिाया तुमहे सूखी जगह।
माँ की अमीमय आँखो को, भूिकर कभी िभगोना नहीं।। िजसने िबछाये फूि थे, हर दम तुमहारी राहो मे। उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।।
धन तो िमि जायेगा मगर, माँ-बाप कया िमि पायेगे?
पि पि पावन उन चरण की, चाह कभी भूिना नहीं।।
बाि -गीत रोज सुबह उठकर सनान कर िो, रोज सुबह जलदी उठकर िनयम कर िो.... रोज सुबह उठकर धयान कर िो, रोज सुबह जलदी उठकर वयायाम कर िो..... माता-िपता को पणाम करो, गुर जी की बातो को याद करो....(2)
भगवदगीता का पाठ करो, सतकमम करने का संकलप करो... रोज सुबह...(2) वयसन मे कोई दम नहीं, वयसनो के काऱण घर मे सुख नहीं, (2)
वयसन को घर से दरू करो, सुख-शांित का सामाजय सथािपत करो... रोज सुबह.. दीन-दिुखयो की सेवा करो, िजतना हो सके मदद करो। (2)
उनका हदय संतुि होगा, तुमको पभु का दशन म होगा.... रोज सुबह.... (2) सरस-सरि है गुरजी हमारे , अचछी बाते िसखवाते है बाि-संसकार केनद िारा... ऐसे गुरजी की जय-जयकार करो... जप-तप-धयान की मिहमा समझाये
सेवा और भिक की मिहमा समझाये, बचपन से ही हमे सचचा जान दे ते, कीतन म िारा सबको झुमाते.. जय हो... सरस सरि है ....
एकागता के पयोग कराये, तन-मन सवासथय के पयोग कराये हँ सते-खेिते जान हमे दे ते, जान के साथ खेि िखिाते..जय हो..सरस सरि है .. (3) छोटे है हम बचचे, बाि-संसकार केनद के, बोिो हमारे साथ, हिर ú हिर ú हिर ú
अकि के हम है कचचे, तो भी हम हदय के सचचे, बोिो हमारे साथ, हिर ú हिर ú हिर ú...
हम पभु जी के है पयारे , हम गुर जी के दि ु ारे , बोिो हमारे साथ, हिर ú हिर ú हिर ú...बोिो
हम दःुखो से नहीं डरने वािे, हम सतय की राह पर चिने वािे बोिो हमारे साथ, हिर ú हिर ú हिर ú...बोिो
हम होगे दे श के िनमात म ा, हम होगे दे श के ििए िडने वािे, बोिो हमारे साथ, हिर ú हिर ú हिर ú...बोिो
हम गुर जी का जान पचायेगे, हम गुर जी का जान फैिायेग, बोिो हमारे साथ, हिर ú हिर ú हिर ú...बोिो (4)
हम भारत द ेश के वासी ह ै ...... हम भारत दे श के वासी है , हम ऋिषयो की संतान है ।
हम जगदगुर के बािक है , हम परम गुर के बचचे है ।। हम दे वभूिम के वासी है , हम सोs हं नाद जगायेग।
हम िशवोs हं -िशवोs हं गायेगे, हम नयी चेतना िायेगे।। हम संयमी जीवन िबतायेगे, हम भारत महान बनायेगे। हम पभु के गीत गायेगे, हम िदवय शिक बढायेगे।।
हम भारत.......
हम भारत.........
हम भारत भर मे घूमेगे, हम गुर-संदेश सुनायेगे।
हम आतम-जागिृत पायेगे, हम नयी रोशनी िायेगे।। हम गुर का जान पचायेगे, हम बडभागी हो जायेगे। हम जीवनमुिक पायेगे, हम गुर की शान बढायेगे।।
हम भारत.........
हम भारत.........
शौय म -गीत हो जाओ त ैयार हो जाओ तैयार सािथयो............ हो जाओ तैयार दे श हमारा िबक रहा है िवदे िशयो के हाथ।
धमम के नाम पर िूट चिी है , िवधमोयो के हाथ। हो जाओ... धमम की रका करने को हो जाओ तैयार,
धमम रका मे नहीं िगे तो जीवन है बेकार। हो जाओ... हम सबको वे िसखा रहे है आतमबि हिथयार,
जप-तप-धयान की मिहमा जानो, हाथ मे िो हिथयार। हो जाओ...
दब म िवचार कुचि डािो करो उचच िवचार, ु ि
अपनी संसकृ ित पहचानो, हम ऋिषयो की संतान। हो जाओ.... आओ हम सब िमि कर गाये हिर हिर ú
हिर हिर ú सािथयो, हिर हिर ú । हो जाओ...
कदम अपना आग े बढा ता चिा जा ...... कदम अपना आगे बढाता चिे जा। सदा पेम के गीत गाता चिा जा।। तेरे मागम मे वीर! काँटे बडे है । ििए तीर हाथो मे वैरी खडे है ।
बहादरु सबको िमटाता चिा जा। कदम अपना आगे बढाता चिा जा।। तू है आयव म ंशी ऋिषकुि का बािक। पतापी यशसवी सदा दीनपािक।
तू संदेश सुख का सुनाता चिा जा। कदम अपना आगे बढाता चिा जा।। भिे आज तूफान उठकर के आये। बिा पर चिी आ रही हो बिाएँ।
युवा वीर है दनदनाता चिा जा। कदम अपना आगे बढाता चिा जा।।
जो िबछुडे हुए है उनहे तू िमिा जा। जो सोये पडे है उनहे तू जगा जा। तू आनंद डं का बजाता चिा जा। कदम अपना आगे बढाता चिा जा।।
बचच ो की प ुकार मेरे साँई तेरे बचचे हम, तूने सचचा िसखाया धरम,
हम संयमी बने, सदाचारी बने और चािरतयवान बने, मेरे साँई... ये धरम जो िबखरता रहा, तेरा बािक िबगडता रहा
तूने दीका जो दी, तूने िशका जो दी, नया जीवन उसी से िमिा, है तेरे पयार मे वो दम, ये जीवन िखि जाय जयो पूनम,
हम संयमी बने, सदाचारी बने, और चािरतयवान बने, मेरे साँई... जब भी जीवन मे तूफान आये, तेरा बािक घबरा जाय,
तू ही शिक दे ना, तू ही भिक दे ना, तािक उठकर चिे आगे हम, है तेरी करणा मे वो दम, िमट जायेगे हम सबके गम,
हम संयमी बने, सदाचारी बने और चािरतयवान बने, मेरे साँई...
आरती आनंद मंगि करँ आरती, हिर गुर संतानी सेवा।। पेम धरीने मारे मंिदरये पधारो, सुद ं र सुखडां िेवा..
वहािा...............(2)
जेने आँगणे तुिसीनो कयारो, शाििगामनी सेवा......(2)
वहािा.................... अडसठ तीरथ संतोना चरणे, गंगा-यमुना रे वा.......(2)
वहािा...................
संत मळे तो महासुख पामुं गुरजी मळे तो मेवा.....(2)
वहािा...................
कहे पीतम जैने हिर छे वहािा, हिरना जन हिर जेवा....(2)
वहािा...................
* सवामी मोहे ना िवसािरयो चाहे िाख िोग िमि जाय। हम सम तुमको बहुत है , तुम सम हमको नाँही।। दीनदयाि को िवनती सुनो गरीब नवाज।
जो हम पूत कपूत है , तो है िपता तेरी िाज।।
* ú सहनाववतु सहनौभुनकु सहवीया करवावहै । तेजिसवनावधीतमसतु मा िवििषावहै ।। ú शांितः शांितः शांितः।।
ú पूणम म दः पूणिममदं पूणात म ् पूणम म ुदचयते पूणस म य पूणम म ादाय पूणम म ेवाविशषयते। ú शांितः शांितः शांितः।।