786kektus Ke Phool

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  • Words: 57,999
  • Pages: 102
केक टस के फूल रचनाकाल 1999 केकटस के फूल उपनयास

सी-पुरष के िरषतो का यथाथथ आखयान --------------------------------------------------------------नारी अवषय ही पूजनीय है । मै उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजसने सवयं के साथ-साथ पािरवािरक,सामािजक,राषीय मयाद थ ाओं को महतव िदया है । मै उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजसने अपने

अहं कार को तयाग कर मानवता के िलए मानवीय कतवथयो का िनवह थ न िकया है ।मै उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजसने पिरवार,समाज और दे ष को कुछ िदया है । मै उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजनहोने अपने अिसततव को ऊंचाइयो तक पहूंंंचाया है ।मै उन नािरयो को नमन ् करता हं िजसने पुरष के कांधे से कांधा िमलाकर चलने की कोिषष की हो । मै उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजनके समक सवयं ही पुरषो का मसतक नत हो जाता है ।

-- कृ षणशंकर `` औरत जीती-जागती मूखत थ ा है ।औरत इनतजार नहीं कर सकती।अपनी इचछा पूरी होने पर िफर बेचैन हो जाती है ।औरत समिपत थ होना चाहती है , होती है , लेिकन इसका दोष पुरष पर लगाती है ।बाद मे

नम बनने के िलए ,औरत पहले पुरष के साथ दष ु ता करती है ।बाद मे दष ु ता का आननद लेने के िलए,पहले पुरष के साथ नमता से पेश आती है ।औरत पितत है और अपनी दिष मे पूरी िदवयता के साथ

िनमल थ है ।वह ईशर से ,पुरषो से ,अपने से झूठ बोलती है ।वह जीवन मे उलझती नहीं, उससे खेलती है ,जी वन को उसी तरह अपने पोज दे ती है -जैसे दपण थ को।सी चेहरे बनाती है ,हाव-भाव बदलती है ,तो िसफथ यह महसूस करने के िलए िक उसका अिसततव है । इसके िवपरीत पुरष का नैरंतय थ उसकी वासतिवकता

का पमाण है ।नारी अपने सवतव को अपने पिरवतन थ से पकट करना चाहती है , पुरष सथाियतव से। पुरष एक होना चाहता है ,औरत ``बहुत-सी``। पुरष अपने समसत गुण-दोषो की चेतना से ऊजा थ हािसल करता

है ,औरत अपनी पूण थ अनिभजता से। पुरष एक पूण थ सुवयविसथत संसार है तो औरत एक अराजक दिुनया¡ ,वह कुछ भी कर सकती है पुरष को औरत से दरू भागना चािहए या िफर उस पर षासन करने की इचछा तयाग दे ना चािहए। ``

-- दोसतोवसकी की जीवनी : ठणडा जवालामुखी से साभार (``साकातकार ``327 माचथ 2007 मे उदरत ्) --------------------------------------------------------------केकटस के फूल

ऊंचे पहाड़ो से उतरती हुई निदया का मनोहारी दषय िजतना आ¡खो को सुहाता है

उससे कहीं अिधक वह हदय को मोिहत कर दे ता है । षवेत दगुध की तरह जलधारा दरू से ऐसी पतीत होती जैसे ऊ¡चे आसमान से भागीरथी ग¡गा दे वो के दे व महादे व की जटा मे समाने के िलए तेजी से

उतरती चली आ रही हो । िकनारो पर हरे -भरे ऊंचे-ऊंचे वक ृ ऐसे पतीत होते है जैसे वे पहाड़ो की रका के

िलए सीना तान के खड़े हो और वसुनधरा के वक को षीतलता पदान कर रहे हो ।नजरो से जहा¡ तक दिष जाती वहा¡ तक घने जंगल की हरी चादर िबछी िदखाई दे ती है । आह ! कया वासतव मे यह धरा इतनी सुनदर है िक कोई भी वयिि अपार सुख-षािनत के साथ इस धरा पर अपना जीवन जी सकता है ।

यह पकृ ित और उसकी अपार समपदा मनुषयमात के िलए कम पड़ जाएगी ! नहीं पाकृ ितक समपदा मनुषय के िलए ईषवर का वरदान है तब ही तो यह वसुनधरा मनुषयो के िलए मा¡ के समान है । जो िजतना अिधक धरती मां के करीब रहे गा उसे अपार सुख पाप होगा ही लेिकन िजस िकसी ने भी पकृ ित के

पितकूल काय थ िकया उसे पकृ ित ने उसके पिरणामसवप वह ही िदया िजसका वह पितभागी था । पकृ ित, माता सवरपा है िजतना अिधक वह सनेह करती है उतना ही अिधकारसवरप पिरणाम भी दे ती है और यही जीवन जीने का आधार भूत मंत है ।

बहती हुई सिरता के समान जीवन लगातार िबना रके बहते रहने का नाम है । छोटे

छोटे नाले-गडडे ,पतथर-पहाड़,उमड़-खाबड़ रासते,कहीं िबलकुल सीधे ,कहीं बहुत ही टे डें़-मेढें़ ,कहीं शानतगंभीर बहाव तो कहीं तीव गित और कहीं-कहीं ंं¡चाई से नीचे की ओर िगरती हुई धाराएं भी एक समान

नहीं बहती नदी ठीक इसी तरह जीवन भी एक समान नहीं चलता । कहा गया है जीवन जीना किठन नही तो आसान भी नहीं है । िकसी ने हं स-हं स कर तो िकसी ने रो-रोकर जीवन जीया । जीया िजस िकसी

तरह जीया । कहीं ढ़े र सारी सफलताएं ,कहीं असफलताओं का अमबार । कोई भरे पेट सोता है ,कोई खाली पेट सारी रात जाग-जाग कर काट दे ता है । कोई जीया तो िबना िकसी उदे दषय के और कोई जीया तो उदे दषय को लेकर तािजनदगी उहापोह मे लगा रहा । दिुनयादारी हर िकसी के वष मे नहीं होती । िजस

िकसी ने भी दिुनयादारी को आतमसात कर िलया वह दिुनया के मायाजाल को आसानी से काट कर बाहर िनकल आया । वही जीत पाया और वासतव मे जी पाया है । केवल िसदानतो को अपनाकर जीना सरल

नहीं है बिलक जीने के िलए िसदानतो को एक तरफ रखना भी बहुत जररी हो जाता है । वासतिवकता वह

चीज है जो िसदानतो को टका सा जवाब दे कर पथ ृ क कर दे ती है । यथाथ थ का जीवन िसदानतो पर नहीं जीया जा सकता बिलक िसदानतो की आड़ मे िनज िहत के िलए जो भी संभव हो वही िकया जाता है ।यह

सतय है िक कानून अंधा होता है वहां िसदानत िबलकुल अपािहज की तरह होते है वहा¡ सतय सही सािबत नहीं हो पाता बिलक सतय की तूती बोलने लग जाती है ।

हिर सुबह दस बजे भोपाल से रवाना हुए । तभी से हदय के िकसी कोने मे अतीत

के िचत िचतपट के समान मानसाकाष मे तीरने लगे थे। मन मे कई कई तरह के पश उठ रहे थे । खणडवामे इन पैतीस सालो मे िकतना कुछ बदल गया होगा ।

वे लोग , वह

मौसम , वे साथी , वो सकूल

, वे खेत-खिलहान , वो बैलगाड़ी मे बैठकर खेतो मे जाना ,वह तािप नदी का तट िजसके िकनारे बैठकर

अकेले मे धयानाभयास िकया करते थे ,ऊंचे पेड़ो पर बैठे मोर-मोरनी की जोड़ी दे खना .न जाने िकतने

िवचार ,िकतने दषय मन के आंगन मे उतर रहे थे । कमपाटथ मेट मे सामने की सीट पर बैठा सहयाती यिद यह नहीं पूछता िक कया यही नमद थ ा है तो षायद मुझे महसूस ही नहीं होता िक होशगाबाद आ गया ।

उनहोने सहयाती को बताया िक हॉ ं यही नमद थ ा है और उसके साथ-साथ उनहोने भी कुछ िसकके नमद थ ा को समिपत थ कर िदये । सहयाती ‘शायद खणडवा से आगे पूना जा रहा था । उनहोने बताया िक मै आगे नहीं जाऊंगा बिलक उसके पहने

खणडवा सटे शन उतर जाऊंगा ।

खणडवा का नाम सुनते ही

वह चौक पड़ा ,

बोला, `` खणडवा िजले मे ही एिषया का सबसे बड़ा अखबारी पेपर िमल है !´´ उनहोने´´ हॉं´´ मे अपना िसर िहला िदया था । िफर तो वह लगातार बोले जा रहा था । हालांिक वह कया बोले जा रहा था इसका उनहे िबलकुल भी अहसास नहीं था कयोिक भोपाल से चलते समय ही हदयाकाश मे

खणडवा की भौगोिलक

िसथित , वहां के लोग और वे सारा अतीत तैरने लगा था । सोचने लगा ,`` न जाने कब

खणडवा आता

और जलदी ही सटे शन से बाहर िनकलता । सटे षन से बाहर िनकलते ही बहुत से पिरिचत और िरषतेदार िमल ही जाऐंगे ।´´ भोपाल से पैतीस साल बाद के

खणडवा का छ: घणटे का समय काटना हिर के िलए असह हो रहा था ।

खणडवा की िसथित जानने की उतसुकता और उतावलापन दे खने नही बनता था ।

बार-बार िखड़की से बाहर झांकना । बार -बार िरसट वॉच दे खना , बारन ्-बार सीट से उठकर गेट तक जाना बैचेिनयां अजीब सी बैचेनी महसूस हो रही थी ।

सामने वाली सीट पर बैठा सहयाती अकेला नहीं था । उसके साथ

एक बीस-बाईस साल की लड़की थी ।

पता नहीं वह उस सहयाती की कया लगती होगी , पता नहीं । हां, वे आपस मे बहुत बितया रहे थे और

बार-बार एक दस ू रे के का¡धो पर अपना िसर रख िदया करते थे । कभी-कभी वह लड़की पैर लमबे कर लड़के की गोद मे िसर रख दे ती थी और आंखे मूद ं लेती थी िफर

उस लड़के को दे खकर मुसकरा दे ती थी

। लड़की सुनदर थी । एक हद तक उसे सुनदर ही कहा जा सकता थी कयोिक वह लड़की है और लड़िकयॉं चाहे कैसी भी हो सुनदर ही होती है । पकृ ित ने लड़िकयो को सुनदरता पदान की है । यिद लड़िकयॉ ं सुनदर नहीं होती तो सारे जमाने की लड़िकयॉ ं न जाने कहॉ ं होती और यह जमाना न जाने िकस ओर जा रहा होता या यह दिुनया ही नहीं होती । लड़की ‘शबद का मतलब सामानय नहीं हो सकता । पकृ ित से बहुत

ही िनकट का िरषता होता है लड़िकयो या यो कहा जा सकता है िक लड़िकयॉ ं पकृ ित का ही दस ू रा रप होती है । पकृ ित माने लड़की और लड़की माने पकृ ित । अब तक न तो िकसी ने पकृ ित को जाना है और

न ही लड़की को दोनो एक दस ू रे का पूरक होती है ,ऐसी मेरी मानयता है । पता नहीं सारी दिुनया इस बारे मे कया

सोचती है । कहा गया है िक लड़की या औरत नहीं होती तो सारी दिुनया रौनकहीन होती ।

नूर ही नहीं होता इस जहां मे । जीवन का होना न होना लड़की या औरत पर

िनभरथ करता है । यह

मानना जररी नहीं है िक आप इसे मानते हो ,लेिकन यिद आप इसे नहीं मानते हो तो आप बहुत बड़ी भूल कर रहे होगे । मानने के िलए केई िववश नहीं कर रहा है लेिकन जरा लड़की या औरत के िबना जी

कर दे िखया सारा माजरा साफ साफ िदखाई दे ने लगेगा और आप मानने के िलए सवयं ही िववष हो जाएंगे ।

सारे दिुनया के लोगो की कहानी मात तीन वसतुओं के आसपास घुमती रहती है ।

चाहे िजस भी काल के इितहास को उठाकर दे खे, सारा माजरा साफ-साफ िदखाई दे ने लगेगा । वह तीन वसतुएं

है जर जोर जमीन सारा इितहास और सारा िवषव सािहतय इनही िचजो के इदथ -िगदथ घुमता हुआ िदखाई दे ता है । हालांिक

ये सारे सनदभ थ िगनाने की आवशयकता नहीं होनी चािहए। लेिकन इसिलए िगनना पड़

रहा है िक ये सारी वसतुएं मानव के आसपास होने वाली घटनाओं के पात है । कोई भी घटना इन तीन वसतुओं से अछूती नहीं है । इसीिलए

खणडवा या भोपाल के

वातावरण मे जो घटनाएं लगातार घिटत

होते रही है । वे सारी ऑख ं ो के सामने पतयक होते रही है ।मै इसिलए कुछ नहीं कर सका िक मै भी इन घटनाओं का एक बहुत अहं एवं जिटल पात हूं या रहा हूं।

सामने वाले जोड़ी अपनी िठढोिलयो मे वयसत थी चाहे उतना कोई भी िरषता हो । सी और पुरष के जोड़ो के कारण ही तो सारी घटनाएं घटते चली आ रही है और आगे भी अननत काल

तक घिटत होते रहे गी । इसे न तो मै रोक सकता और न ही आप या आनेवाला समय । इनही के िलए ही तो सारा सािहतय िलखा गया िलखा जा रहा और िलखा जाता रहे गा । एक वह टीस जो इन िरषतो के बीच हुआ करती है । कहीं न कहीं वयिि को कचोटते रहती है । यही टीस

िलखने के िलए िववष करती

है । हमारे जैसे लोग टीस को उखाड़ फेकने के िलए या हदय को हलका करने के िलए या तो िकसी को बता दे ते है या ढ़े र सारे सफेद कागजो को काला-नीला कर दे ते है , मै भी कर रहा हूं।

हिर के भी अपने कुछ सपने थे,कुछ अपेकाएं थी ,कुछ आकांकाएं रही।सपनो को गुनना,अपेकाओं

का तलाशना और आकांकाओं को ढालने की

कोिषष रही।इनसान की सभी कामनाएं पूणथ नहीं होती।अपूणथ

कामनाओं की पूित थ के िलए वयिि आजीवन भटकते रहता है ।कुछ भी करने के िलए ततपर रहता है ।तब वह यह नहीं जानता िक वह जो कर रहा है

वह सही है अथवा गलत ।उसे दोनो ही सही महसूस होते है ।

इसिलए वह िजतना सही काय थ करते रहता है उतना गलत भी करते रहता है ।उसे तब पता चलता है जब उसके पिरणाम पिरलिकत होने लगते है ।

हिर भी अछूते नहीं रहे जो भी काय थ िकये ,सफलता कम ,असफलता अिधक िमली ।जाने-अनजाने

बहुत से कायथ अचछे भी हुए और उससे अिधक काय थ गलत भी हुए। यह अतीत की बात है ।जबिक अतीत

को याद करना उिचत नहीं होता िकनतु यिद अतीत के अनुभव को दे ख कर चले तो भिवषय मे होनेवाली गलितयो से बचा जा सकता है ।

एक टीस आज भी हदय मे चुभ रही है ।अब तक िकये गये सारे काय थ हािसये पर पड़े है या तो

उन कायो की अहिमयत नहीं है या वे सारे के सारे कायथ एवं पयास िनरथक थ लग रहे है ।

जीवन बहुत सुनदर है ।उसे आशावादी नजिरये से दे खते रहे । िफर भी िनराशाएं ही िहससे मे आ

सकी।इसके िलए या तो काय थ करने का तरीका सही नहीं था या हिर कुछ करना नहीं जानते थे। संभवत:अब भी नहीं जानते । 00

हिर जयादा पढ़े -िलखे नहीं है ।लेिकन उनकी भी अपनी महतवाकांकाएं है ।जैसे , पतयेक काय थ मे सफल होना ।चाहे कोई भी काय थ हो ,वह चूक नहीं जाना चािहए।यिद चूक गये तो यह समझना होगा िक

कहीं न कहीं अवशय ही कोई बड़ी गलती रही होगी। मानव का सवभाव ही है िक वह अकसर चूकते रहता है यानी िक इनसान गलती करते रहता है ।यिद वह गलती

न करे तो वह मानव नहीं हो सकता।तब वह

या तो दे वता हो सकता है या दानव ।हिर दोनो मे से कुछ भी नहीं है ।एक मानव होने के कारण कहीं तो गलती हो ही जाती है ।मनोिवजान का िनयम है िक मानव सवयं गलती की मूरत है ।वह अपूण थ है ।पूव थ तो

वह कभी हो नहीं सकता।िजस िदन वह पूण थ हो जाएगा उस िदन वह मानव नहीं कहलायेगा।महामानव हो सकता है वह ।महामानव दे वतुलय होता है । मानव जब दे वतुलय हो जाता है तब वह पिरवार और समाज

से दरू हो जाता है ।उसकी अपेकाएं धूल-धूसिरत होने लगती है ।उसका अपना कुछ भी नहीं होता।वह

पूजनीय हो जाता है ।उसे घर के िकसी कोने मे पितसथािपत कर िदया जाता है । उसे कहा जाता है ,` तुम

तो महामानव हो ,तुमहारी कया आवशयकताएं हो सकती।तुम तो सवयं ही पूणक थ ाम हो।`` यह पूणक थ ाम होने के बाद वह महामानव अपने हदय पर पतथर रखकर खामौश हो जाता है । हिर न तो महामानव बनना चाहता है , न दे वता

और न दानव।उनकी िनयती मानव तक ही

सीिमत रहे तो बेहतर है ।

हिर की भी अपनी अपेकाएं है ।वह भी पिरवार के साथ रहना चाहता है ।वह चाहता है िक समाज मे

उसे भी वह सथान िमले जो एक पािरवािरक मानव को िमलता है । पिरवार , समाज की इकाई होती है ।वह पिरवार के साथ रहकर सामािजक बनना चाहता रहा।

लेिकन समय ने उसे अवसर नहीं िदया। वह अवसर की तलाश मे भटकते रहा।एक दर से दस ू रे

पर आते-जाता रहा ।िकसी भी दर पर

ठौर नहीं िमली।कहा गया िक तुमहारी ठौर यहा¡ नहीं है , आगे

जाओ।वह आगे चल िदया।इसी तरह अनेको दरो पर गये।आगे चला िदए गए।आज भी उनहे न तो कोई दर िमला और न ही कोई ठौर िमली। न मंिजल िमली न िठकाना ।

उसी िदन दे िखए।रमेश के घर पाटी पर उसे आमंितत नहीं िकया गया।वह राह दे खता रहा िक कोई

तो उसे बुलाने आएगा।लेिकन कोई नहीं आया।पता लगाया।जात हुआ िक उसे न बुलाने का कारण पिरवार

रिहत होना है ।यािन िक जब तक पिरवार न हो तब तक िकसी पािरवािरक और सामिजक कायक थ मो मे

उनहे आमंितत नहीं िकया जाएगा । उस िदन उनहे वासतव मे बहुत द ु :ख हुआ।लेिकन इस द ु:ख को िकसके सामने पगट करे । वे

कहते है ,`वह

अकेला है उसे

िकस बात की िचनता।आ जाएगा ,बस, एक

पत डाल दो।उनका भेजा गया पत उसे तब पाप होता है जब कायक थ म हो रहा होता है या हो चुका होता है । यह िसथित उपिसथत की जाती है ।इससे उनको यह बहाना िमल जाता है िक यह सब गया था ।इसिलए ऐसा

हो गया है ।वगैरह , वगैरह।

अचानक हो

उनकी पीड़ा है िक वे अपने जीवन मे अकेले है ।उनकी अकांका है िक कोई तो हो जो उनको

समझे।उनहे आदर-सममान दे ।सनेह के दो बोल बोले। उनसे आकर कोई यह पूछे िक वे कैसे है ।उनहोने

भोजन िकया है या नहीं।कोई उनको एकानत मे कहे िक वे भी उनका खयाल रखते है ।बस ,इनही इचछाओं की पूितथ के िलए वे अपना सवस थ व समिपत थ होने के िलए तैयार हो जाते है । उनहोने जाना ही नहीं िक सुख

कया होता है । वे लोगो के मुख से अवषय सुनते िक उनके जीवन मे सुख -ही-सुख है ।लेिकन वे नहीं जानते उन लोगो को सुख कैसे िमलता है ।

िववाह तो उनका हुआ था ।उनहोने उनकी पती को बहुत पें्रम िदया था।वे अपनी पती की छोटी

सी छोटी इचछा को तुरनत

पूरा करने की

कोिषष करते रहे ।उनहोने पती पर िवषवास िकया।पूरा िवषवास

िकया।लेिकन वे सी के मन की बात नहीं जान पाये।िसयां कया चाहती है ?,यह जानना उनके िलए किठन

था।हालांिक वे बहुत संवेदनषील थे। ममज थ थे।जरा सा इषारा जान जाते थे िकनतु पती के मन की बात नहीं जान पाते थे।वासतव मे उनकी

पती ने उनको कभी चाहा ही नहीं।उनकी पती उनसे कहीं अिधक

चतुर-सुजान थी।वह चलते हुए वयिि की आ¡ख का कागज चुरा लेती थी।वह उड़ते पंछी के पर कतर लेती थी।वह आ¡ख बचाकर वो सब कुछ कर लेती थी िजसकी िकसी सामानय वयिि को जरा भी संभावना नहीं

होती थी।उनकी पती चाणकय के सूत के अनुसार कुछ और ही थी, ,िजसे उनकी जैसी सी ही जानती थी या िसयो का कोई जानकार ही जान पाता था। बहुत िदनो तक वे

पती के पीछे दीवाने बने रहे ।पती ने उनको घास तक नहीं डाली।उसमे संवेदना

नहीं थी।ममता का तो उसमे थोड़ा भी वास नहीं था।बचचो के पित बहुत लापरवाह हुआ करती थी।अनत मे कया हुआ।होता वही है जो िविध का िवधान चाहता है ।

उनहोने सपने मे भी नहीं सोचा था िक वे उस दोराहे पर खड़े बांट जोएंगे जहा¡ से आगे बढ़ने के िलए उनहे कई बार सोचना होगा।एक वह राह है जहां से वे

वहीं वापस जा सकते

है जहां

अब उनहे जाना संभव नहीं,,कयोिक वहा¡ पहु¡चने पर उनहे अपने नहीं बिलक औरो के मतानुसार चलना

होगा और औरंो के म तानुसार समझौता करना होगा।दस ू रा रासता उस ओर जाता है ,िजस ओर न तो कोई साथी है न कोई सहारा है और न मंिजल ।उनहोने यह दस ू रा रासता चुनना उिचत समझा।भले ही इस दस ू रे रासते पर अकेले जलना हो िकनतु इस दस ू रे रासते अकेलेपन मे भी षािनत है ।

00 पतयेक माता-िपता चाहते है िक उनके पुत-पुितयो का िववाह हो और वे अपना जीवन संवार ले।

भारतीय संसकृ ित मे िवदाधययन के बाद िववाह की परमपरा है िजसे िकया जाना अित आवषयक माना जाता है । मनुसमिृत के अनुसार िववाह एक संसथा है िजसके माधयम से वयिि पािरवािरक और सामिजक

जीवन मे पवेष करता है ।जब तक िववाह नहीं होता तब तक वयिि का पािरवािरक जीवन पारमभ नहीं होता ,ऐसा माना जाता है ।यह सच है लेिकन यह मानना था िक अभी हिर की िशका पूण थ नहीं हो पाई है ,उनहे आगे की पढ़ाई जारी रखनी है तािक वे पढ़ाई पूण थ करने के बाद

भिवषय के बारे िवचार कर सके।

लेिकन माताजी-एवं-िपताजी को पथमत:हिर के िववाह संसकार की जयादा िचनता थी। जब हिर

खणडवाके पावर हाउस मे दै िनक वेतन पर कायरथत थे।उसी वि उनकी सगाई की बात चल पड़ी

थी।िफलहाल वे िववाह के पक मे िबलकुल नहीं थे।उनके हदय मे िववाह की कोई धारणा नहीं थी। बावजूद इसके उनके अगज और उनके षवसुर उनहे बहला-फुसलाकर लड़की िदखाने ले गये । वे कहने लगे िक बेटे पहले लड़की दे ख लो ।यिद लड़की पसनद नहीं आये तो मना कर दे ना ।वे

बोले िक कोई भी लड़की

खराब या अचछी से अथ थ नहीं है िववाह तो लड़का-लड़की मे ही होता ही है लेिकन उनका अपना हदय िववाह के िलए अभी सवीकाित नहीं दे ता। िफर भी हॉं-ना के दौरान अगज तथा उनके षवसुर लड़की

िदखाने ले गए। आपको पहले ही बता दे िक हिर हदय बहुत ही संवेदनषील है । कभी ना कहना सीखा ही नहीं, यह सभी जानते है ।

एक िदन िनिित करके हिर को लेकर लड़की के िपता के घर जा पहुंचे।संभवत:लड़कीवाले पहले से ही तैयार थे और इनतजार मे थे। रात का समय था। लगभग आठ-या-नौ बज रहे होगे।लड़की को सामने

लाया गया ।एक पनदह-सोलह आयु की लड़की ,सामानय कद-काठी ,गोरा रं ग,बड़ी-बड़ी ऑख ं े ।बलब के हलके-हलके पकाष मे उसे नख से िषख तक दे खा। हिर बाले

, लड़की ,लड़की होती है इसमे िदखाने से

कया होगा।रहा पसनद या नापसनद का सवाल तो सामानयत:लड़िकयॉ ं एक जैसी होती है ।यह अलग बात है िक कोई गोरी होती है कोई काली होती है ।कोई लूली-लंगडी या कानी होती है । हिर ने अपने अगज से पूछा,-

``िकतनी पढ़ी िलखी है ।``

``िनषा अभी पढ़ रही है ।`` ``यह तो उसके पढ़ने की उम है ।उसे पढ़ाना-िलखना चािहए उसके बाद दे खा जाएगा।``

लेिकन हिर के अगज और उनके षवसुर कहने लगे -

``,पहले बात तो हो जाय ।यिद तुम कहो तो उसे आगे भी पढ़ायेगे।``

``यिद उसे आगे पढ़ने दोगे तो ठीक है । अनयथा कया मतलब।हमारे समाज मे वैसे ही िषका की बहुत

जररत है ।``

लड़की के माता-िपता ने भी लड़की को आगे पढ़ाने के िलए हामी भर दी। लड़की अभी िववाह योगय नहीं

थी। उसकी आयु बमुिशकल से पनदह-सोलह के आसपास होगी।हिर सोचने लगे िक मुझसे उसकी उम छुपाई जा रही है ।कहा जा रहा है िक लड़की बहुत अचछी है ।जोड़ी अचछी जंचेगी।दोनो ही नख से िषख तक गौर वणथ Z।िबलकुल भूरे जैसे िबफथले सथानो मे रहने वाले होते है , ठीक उसी तरह।

हिर जब सकूल पढा करते थे।वे बहुत गोरे हुआ करते थे।वह गौर वण थ इस समय भी उनके अंगो पर झलक रहा था ।उनहे पिरवार के सभी सदसय गोयाथ कहकर पुकारा करते थे।

िनषा भी बहुत गोरी ही है ।इसिलए जोड़ी जमने या न जमने का पषन ही नहीं उठता था।घर-आंगन मे खुिषया¡ ही खुिषया¡ छाने लगी ।

जयोही हिर ने ``हा¡ `` कह िदया ,सभी ने पसननता वयि की। हिरमोहन ने राहत की सांस ली।वे चाहते ही थे िक िजतनी जलदी हिर का िववाह हो जाए उतना ही अचछा है । दोनो पिरवार के सदसयो ने िबना समय

गंवाये सगाई की िरसम षीघ िनपटने मे अपना भला समझा।इस िवषवास के साथ बात आगे बढ़ी और कुछ ही िदन के बाद समाज के सदसयो के सामने िनशा के साथ हिर की सगाई हो गई थी। बधाईयो का तांता लग गया।

अभी सगाई हुए अिधक समय नहीं हुआ। दो िदन बाद ही भोपाल से हिर के चाचाजी ने तार भेजा

िक हिर को मंतालय के नौकरी के आदे ष आये है ।वह आकर नौकरी जवाइन कर ले। सिवस थ की चचाथ षीघ ही समाज मे फैल गई।समाज के लोग कहने लगे िक िनशा साकात ् लकमी बन कर आई है , दे खो सगाई होते ही दस ू रे िदन हिर को नौकरी लग गई।

पिरवार और समाज के अनय बुजुगथ इसे या तो

िकसमत मान रहे थे या िनशा के आगमन को बहुत षुभ

मान रहे थे। सब लोग िनशा को षुभािषष और उसकी बलैया दे ने लगे । एक बारगी हिर को भी लगा िक िनशा उनके िलए बहुत षुभ है । िनशा के पित हिर के हदय मे बहुत पयार उमड़ आया। वे भाभी से बोले-

,मै िनशा से िमलना चाहता हूं।``

भाभी ने तुरनत ही िनशा से िमलने की अनुमित दे दी।हिर गदगद हो गए। वे िनशा से जा िमले ।उस िदन पहली बार उनहोने िनशा को गहरी नजर से दे खा।वह गौर वण थ की उनहोने सहसा उसके माथे पर अपने अधर रख िदये।वह लजा गई।

बोले-

बहुत सुनदर िदख रही थी ।

,तुम वासतव मे बहुत षुभ हो ,दे खो सगाई होने के दो िदन बाद ही मुझे नौकरी िमल गई ।अब

तुमहारी और मेरी पढ़ाई के िलए कोई बाधा उतपनन नहीं होगी । ``

उस िदन षाम वे िनशा को खणडवा के सटे षन से लेकर वन िवभाग की नसरथी तक घुमाने ले गये।उस िदन उनका मन अतयनत पसनन था।वे सोचने लगे,-

यह मेरे अहोभागय है िक ऐसी लड़की के साथ मेरा िववाह हो रहा है िजसके चरण षुभ है

,संभवत:वह लकमी बनकर मेरे पास आई हो । मै धनय धनय हो गया ।``

दस ू रे िदन हिर भोपाल चले आये और मंतालय मे नौकरी जवाइन कर ली। नौकरी मे आने के बाद हिर यदा`-कदा

खणडवाआ जाया करते रहे तािक इस दौरान िनशा से मुलाकात भी हो सके। िनशा के माता-

िपता भी उसे भेज दे ते थे। हालांिक उस समय समाज मे सगाई के बाद लड़के-लडकी का िमलना अचछा नहीं माना जाता था ।लेिकन सब जानते थे िक हिर सबसे अलग िकसम का लड़का है और िकसी को कोई आपिि नहीं होनी चािहए । िनशा ,उनके भाभी की चचेरी बहन होती है ।भाभी कहती थी -

``,हिर तुम िनशा को अपनी बहन जैसी रखना । उसे कभी कोई कष मत होने दे ना ।``

वे भाभी को कहते ,-

`` भाभी जैसे आप चाहोगी मै वैसा ही करंगा ।``

भाभी अकसर मजाक करते रहती थी।उनहोने कहा -

`` कोई वयिि अपनी पती को बहन जैसे कैसे रखेगा।``

भाभी जी हं स दे ती थी। समय धीरे -धीरे सरकने लगा और ठीक सगाई के दो वष थ बाद हिर और

िनशा

का िववाह िकया जाना तय हुआ।

िववाह के आमंतण पत िरषतेदारो को िवतिरत िकये गये । िजस समय िववाह का आमंतण पत हिर के

सामने आया।वे पढ़ कर दं ग रह गए कयोिक उसमे उनका नाम बदलकर चनदकानत रखा गया था। पहले

तो उनहोने सोचा िकसी और के िववाह का काडथ होगा लेिकन जलदी ही पता चला िक यह िववाह का िनमंतणपत उनके ही िववाह का था।माता-िपता से पूछने पर बताया गया िक हिर नाम से िववाह का मुहुतथ िनकल नहीं रहा था इसिलए घर नाम बदलना पड़ा।उनहे यह जानकर बहुत द ु:ख हुआ ।

िववाह मे दरू दरू से मेहमान आये। िपताजी ने घर-आंगन मे तरह-तरह की सजावट की।गाने-बजाने

होने लगे।मिहलाएं मंगलगान गाने लगी।सामािजक पथ ृ ा के अनुसार जो जो भी संसकार और िविधयॉ ं होनी होती वे सब होने लगे। चारो तरफ हलदी और उबटन की सुगनध से वातावरण महक उठा। लगन मणडप मे आम के तोरण लगाये गये।कुल दे वता की पूजा और कुल दे वी की पूजा िविध अनुसार बाहमण के वदारा कराई गई। घर मे पहले से ही पीर की भी पूजा होती चली आ रही है ।अत: हलदी लगने के

पहले रोजा

रखा जाता है और िमसजद से मौलाना आकर नमाज अदा करवाता है । पीरबाबा को बाटी का चुरमा चढ़ाया

जाता है । कुल दे वी की पूजा मे एक छोटे बकरे की बली दी जाती है । जब बकरे के बिल की रसम की बात

उठी ।उनहोने कहा ,बकरे की बिल न दी जाय बिलक उसके बदले आटे से बकरे की पितमा बनाकर दे वी के सामने उस पितमा की बिल दी जाय कयोिक वेदो मे बिल का अथ थ िकसी जीव की हतया नहीं कहा

गया है बिलक जीव के सथान पर जौ या गेहूंंं के आटे की पितमा बना कर बिल दी जाने का पावधान है ।

हिर के समझाने

पर िपताजी-माताजी मान गये थे। इस मानने का एक बहुत बड़ा कारण यह भी था

िक कनाट थ क से समाज के जंगम आये हुए थे और उसको हिर की बात बहुत सही लगी।उनहोने भी हिर के

तथय को सवीकार िकया । इस तरह बकरे की बिल टल गई। समाज के रीित-नीित के अनुसार पूजा के कायक थ म िबना िकसी रकावट के समपनन हो गए।पिरवार के पारमपिरक पूजारी जंगम सवामी भी बहुत पसनन हो गए। पूजा-पाठ के बाद सुबह दस बजे हलदी का कायक थ म था। मिहलावग थ दल ु हे को लकड़ी के पीठे पर बैठाकर मंगलगान करते हुए हलदी लगाती है ।

सातवे-आंठवे दषक तक दल ु हे को तीन-िदन तक हलदी लगाती थी।दल ु हे को हलदी लगने के बाद

बची हुई हलदी दल ु हन के िलए भेज दी जाती है । हिर के

अगज के िववाह के समय सात िदन तक दल ु हा-

दल ु हन को हलदी लगाने का रीित-रीवाज था।हिर के िववाह तक यह रीवाज तीन-िदन तक िसमट कर रह गया।

नौवे और दसवे दषक के बाद अब मात एक िदन दल ु हा-दल ु हन को हलदी लगाई जाने लगी । इसका

बहुत बड़ा कारण यह हो सकता है िक इस भागमभाग जीवनषैली मे अब िकसी के पास इतना समय नहीं रहा िक वे तीन िदन या सात िदन तक िववाह का उतसव मानये । सांतवे दषक

के पूव थ समाज मे लोग

िमलजुल कर रहा करते थे।एक ही कुटु मब होता था ।सबलोग िमलजुलकर िववाह का उतसव मनाया करते

थे।अब पिरवार िसमट गए है ।नौकरी-पेषे के िलए दरू-दरू के षहरो मे जा बसे है पिरणामसवरप ् जैसे षरीरो के फसाले बढ़ गए उसी तरह िदलो के फासले भी बढ़ गए। लोग अब समय पर जयादा धयान दे ने लगे है । तीसरे िदन सनधया के समय बारात घर से रवाना हुई थी।दल ु हन का मणडप मात

डे ढ़ िकलोमीटर

की दरूी पर था। पिरवार और समाज के लोग बाराती थे। बारात मे न घोडी थी और ही अनय कोई साधन

,अत: िपताजी ने बैलगाड़ी मे िबठाकर बारात िनकाली।नाचते-गाते-बजाते बारात समय पर दल ु हन के मणडप पहुंंंची। हिर का मन दल ु हन रप मे िनशा को दे खने का बहुत

हो रहा था। संगाई के दो साल बाद

दल ु हन के रप मे िनशा वासतव मे िबलकुल चॉदं ही लग रही थी। िनशा का हलदी से और अिधक रप िखल गया था।गोरी लड़िकयॉ ं हलदी लग जाने के बाद और अिधक िखली-िखली िदखाई दे ती है यिद वह सुनदर है तो वह और अिधक सुनदर िदखाई दे ती है । इसी तरह िनशा हलदी लगे तन और दल ु हन के जोड़े

मे बहुत ही सुनदर लग रही थी। हालांिक उस समय बयूटीपालर का जमाना नहीं था ,दल ु हनो का वैसे ही सामानयत: सजाया सवारा जाता था। ितस पर भी िनशा बहुत सुनदर लग रही थी।

जंगम िववाह के संसकार के मंत पढ़ रहे थे और हिर कनिखयो से िनशा के रप को िनहार रहे थे।वह

भी पसनन वदना पूणम थ ासी के चॉदं के समाज दमक रही थी। जयोही जंगम ने मंत पूरे िकये एक दस ू रे के गले मे वरमाला डाल दी। बाजे बजने लगे।षहनाई गूज ं उठी । गामोफोन वाले ने िफलमी गीत बजाया।

बाराितयो ने फूल बरसाये और मिहलाएं मंगलगान गाने लगी।लगन मणडप मे पसननता की लहर दौड़

पड़ी।हिर के अगज दोनो अनुजो ने खूब आितषबाजी की।नवयुवक नाचने लगे। दरू दरू से बाराती आये हुए थे।लगन मणडप से बाहर भी बाराितयो की भीं़ड़ लगी हुई थी।वद ृ एक दस ू रे के गले िमल रहे थे।

जंगम वदारा पुन:मंगलाचरण पारमभ हो गया और अिगन के सात फेरे डलवाये गये।हिर सोचने लगे

िक ये सात फेरे कया होते थे। जंगम ने सात फेरो के बाद दल ु हा-दल ु हन को सात वचनो को दह ु राने का कहा और कहा िक कहो ,हम दोनो कभी एक दस ू रे का साथ नहीं छोडे ं़गे।सुख-द ु:ख मे एक दस ू रे की सेवा

करे गे। आिद ।इसके बाद बुजुगो के चरण सपष कराये गये।बडो ने आिशवाद थ िदया और हमउमवालो ने बधाइयॉ दी ।

हिर के समाज मे दहे ज की पथ ृ ा कभी नहीं रही। िपछले दो सौ वषो का इितहास रहा है िक दल ु हन

पक से दहे ज की मांग नहीं की जाती और न ही दहे ज के िलए दबाव डाला जाता है । आज समाज पूणत थ : तो नहीं िफर भी कुछ कुछ िषिकत जरर है लेिकन इस िषका के बावजूद कोई न तो दहे ज मांगता है और न कोई दहे ज दे ता है ।

पिरणय संसकार पूणथ होने के बाद पथ ृ ानुसार दल ु हन को िवदा िकया गया।हिर का हदय पुलिकत हो

रहा था।उसे लग रहा था िक वह दिुनया मे सबसे जयादा भागयषाली है । िजसे इतनी सुनदर दल ु हन िमली । िववाह के समय हिर की आयु बाईस वष थ तथा िनशा की

आयु मात सोलह-सं़तह वष थ की रही होगी।

उनहे अब तक िनशा की आयु के बारे मे बताया नहीं गया था।आज भी वे िनशा की आयु से पूणत थ :अनिभज ही

है ।

खैर, दल ु हल की िवदाई हो गई।हिर के हदय मे लडडू फूट रहे थे ।वे बार-बार िनशा का शीमुख दे खते

जाते और उसे दे ख मुसकराते जाते।िनषा दल ु हल के पिरधान मे खूबसूरत लग रही थी।वह बार-बार दे खती जाती और मन ही मन मुसकराती जाती।उसकी सहे िलया¡ गाली भरे गीत गा रही थी। उनकी गािलया¡ बहुत अचछी लग रही थी।िववाह समारोह मे गािलया¡ बतौर गाये जा रहे थे।

बधाई के गाई जाती है । इस समय वो ही गीत

िजतनी गोरी िनशा थी उसी के मुकाबले हिर भी उतने ही गोरे और सवसथय था।दोनो की जोड़ी दे खते

ही बनती थी।बाराती मिहलाएं बार-बार बलैया ले रही थी। दल ु हन लेकर बारात जब घर पहुंंंची , उनका मन बहुत पसनन था। घर आई हुई दल ु हन की आरती उतारी गई ।उसे दे हरी पार करने को कहा गया। मंगलगीतो के साथ दल ृ पवेष िकया। ु हन ने गह

िववाह मे आए हुए मेहमानो से घर-आंगन भरा हुआ था।गाने-बजाने होने लगे।दस ू रे िदन दल ु हन के

आने की खुशी मे दल ु हे की ओर से सामुिहक भोज रखा जाता है जैसा िक आज

िरसेपषन मे सभी को

आमंितत िकया जाता है । दल ु हन के पक के बाराितयो को भी आमंितत िकया गया । मणडप भरा हुआ था।मिहलाएं मंगलगान गा रही थी । मदम मदम षहनाई

बज रही थी। मणडप के बाहर काफी भीड़ एकत

हो गई ।

िजस िदन िरसेपषन का िदन था उस िदन घर -आंगन मे बहुत चहल पहल थी।मेहमानो का तांता

लगा हुआ था।आंगन मे मेहमान पंगत िजम रहे थे।हिर के सास-ससुर और उनकी तरफ के लोग और आसपास के गांव के लोग भी आये हुए थे।उस िदन सतयनारायण की पूजा का कायक थ म भी था । िदन मे

ही पूजा-हवन आिद समपनन हो गए थे। हिर अपने िमतो के साथ िठठौली मे वयसत थे । तभी न जाने हिर

को कया सुझी वे दल ु हल

िनषा को

दे खने उठ खड़े हुए।

वे दल ु हन को खोजते-खोजते पूजा घर मे अचानक जा पहुंंंचे ।पूजा घर का दषय दे खकर वे

िसतमभत हो गया ।वे दे खते

है िक उनका

अनुज िकशन और िनशा आिलंगनबद है । दो युवा तन-मन

एकाकार हो गए।युवावसथा का नषा वयिि को मदहोष कर दे ता है ।यह उस समय और अिधक पगाढ़ हो जाता है जब दो तन दो मन अपने िनजतव को खोकर िकसी औरो के होने लगते है या हो जाते है ।तब वे

दो तन-दो-मन एक दस थ त नहीं कर पाते।दोनो का लावा फूट पड़ता है ।िबना ू रे से िवलग होने की पीड़ा बदास

सोचे-समझे कुछ भी करने को तैयार हो जाते है ।ऐसी िसथित मे वे कयो न एक दस ू रे मे खो जाएं ! िकसी भी तरह का आकषण थ ठीक उसी तरह अंधा होता है िजस तरह कानून को अंधा माना गया है ।दो तन-मन का आकषण थ भी अंधा ही होता है ।इस अंधेपन मे सही-गलत का अनदाजा लगाना किठन हो जाता है । इस समय वे दोनो एक दस ृ पान करने मे मसत है ।िनषा के वस िबखर रहे थे।वह ू रे के अधरो का रसामत

दिुलहन पिरधांान मे सजीधजी हुई थी।िकषन से िबछोह का द ु:ख भी उसे हो रहा था।उसी तरह की पीड़ा िकषन के हदय मे भी वयाप थी िकनतु िनशा का िववाह हो जाने से अब कुछ भी संभव नहीं था।ऐसे मे

कया िकया जाय उनहे पता नहीं था।इसी िवछोह की पीड़ा मे आज वे दोनो आिलंगनबद हो एक दस ू रे मे खो गए थे।उनहे महसूस ही नहीं हो पाया िक हिर आए हुए है । संभवत:उनहे अनुमान नहीं होगा िक हिर अनायास इस तरह आ जाएंगे।

हिर को दे खते ही दोनो सकुचा गये और उनकी ओर दे खने लगे।चंूंिं क िकशन ,हिर के अनुज है । उसे

वे िकस तरह कहे और िनशा अभी अभी आई हुई नई दल ु हन है ,उसे िकस तरह समझाए। यह उनके िलए

बहुत किठन समय था। हिर के हदय मे तरह तरह के िवचार उठने लगे। सोचने लगे , षायद यह िववाह गलत जगह हुआ या दल ु हे के चयन मे या दल ु हन के चयन मे कहीं कोई गलती हो गई है । उनहोने समझदारी से काम लेना उिचत समझा।ततकण जाकर माताजी-िपताजी ,भैया-भाभी

और िरषतेदारो को

जाकर िसथित की जानकारी दी और कहा-

`` यह िदन िदखाने की अपेका आप लोग इसी कण िकशन और िनशा का िववाह कर दो । मुझे

कोई आपिि नहीं है ।आगे कोई बात न उठे इसिलए यह करना उिचत होगा। मैने पहले ही कहा था िक

मुझे िववाह नहीं करना है । अब ऐसी िसथित उतपनन हो गई है तो बदनामी न हो इससे बेहतर है िक आप लोग इन दोनो का िववाह इसी समय कर दो।ताकी घर की बात घर मे ही दबी रहे । ``

िकशन को िववाह के सपने पल भर मे िमटटी मे िमलते िदखाई दे ने लगे। उनहे ऐसा लगने लगा

यह मेरा िववाह नहीं और कुछ हो रहा है । उनका मन घबराने लगा ।अब कया िकया जा सकता है । यह

ऐसी िसथित िनिणZ त हो गई िजसे न तो सवीकारा जा सकता और न ही नकारा जा सकता।यानी िक न िनगलते बने और न उगलते बने।

उस वि बुजुगो ने ऐन-केन पकरे ण समझा बुझाकर मामला शानत कर िदया । लेिकन उनका मन

अषानत था।िववाह की रसमे पूरी करने के कुछ िदन बाद िनशा ,भैया-भाभी और हिर भोपाल चले आये । भोपाल आने के बाद

हिर के मन मे सकारातमक िवचारो की लहर उठी ।वे सोचने लगे-

,नहीं , वह एक सपना था िजसे मैने संभवत:गलत दे खा हो।``

हिर उस घटना को भुला जाना चाहते थे। भैया-भाभी ने एक ही कमरे मे नये

दोनो के िलए एक अलग कमरा ले िलया कयोिक

िववािहत जोड़े के साथ कैसे रह सकते थे।

भोपाल मे िनशा के साथ हिर की यह

पहली रात थी। वह टु कुर-टु कुर उनहे दे खा करती रही ।वे सोचने लगे``िनशा को ऐसा न लगे िक मै उसे पयार नहीं करता ।``

णवे सारी रात िनशा को अपने सीने लगाकर उसका चनदमुख दे खते रहे ।मन मे तरह-तरह के तुफान उठ रहे थे।िववाह की पहली रात सुहागरात कहलाती है लेिकन यह कैसी रात िक यहॉ ं मन के िकसी कोने मे उस िरसेपषनवाला दषय चुभने लगा। मन मे िवचार उठते रहे िक िकसी ने अपनी बेटी मुझे दे दी यह कया कम है । अब फज थ बनता है िक िकसी की बेटी

दल ु हल बनकर आई तो उसे खुष रखना चािहए।

सुहागरात के अनुभव सवपन से लगने लगे। यह कैसी सुहागरात जहॉ ं खुषी होनी चािहए वहॉ ं इस तरह द ु:ख के बादल मंडराने लगे। िदन तो िकसी तरह गुजर जाता था िकनतु जयोिह रात होती िनशा गुमसुम

हो जाया करती और अब तो वह रोने भी लगी । िववाह के बाद सी-पुरष के समबनध न केवल एक दस ू रे

के पित ईमानदार होते बिलक पूणत थ :समिपत थ भी होते है । उनहे लगने लगा संभवत:िनशा की आयु अब भी िववाह योगय नहीं है ।लेिकन जैसा िक िववाह योगय आयु होना चािहए था वह आयु िनशा की थी ही िफर यह िसथित कयो उपिसथत हो रही है ।

अभी एक सपाह भी नहीं हुआ था िक िनशा ने मायके जाने की िजद कर ली ।उसे बहुत समझाया -

``,बचचो की तरह ऐसे िजद नहीं करनी चािहए।आज तो तुम चली जाओंगी लेिकन बार-बार ऐसा

नहीं हो सकता।िजस लड़की का िववाह हो जाता है ,उसे तािजनदगी अपने पित के घर ही रहना होता है । यह शाशत सतय है ।``

इतना समझाने के बाद भी वह अपनी िजद पकड़े रही।वे उसे तुरनत

खणडवा पहुंचा कर आये। लौटकर वे

द ु:खी भी बहुत हुए।आिखर िकया कया सकता है ।संवेदनशील हदय हिर अपने पाण नयौछावर करने के

िलए आतुर है ।उधर है िक िनशा एक पल भी हिर के साथ िबताने के िलए तैयार नहीं।मायके मे भी उसे समझाईश दी गई।एक बार लड़की का िववाह हो जाय तो पित का घर उसका अपना घर होता है ।वह वहा¡ चाहे जैसे रह सकती है ।वह अपने मन की मालिकन है । िनशा के मायके मे सभी जानते है िक हिर ,िनशा के उपयुि ही है िकनतु िनशा को वे फूटी आंख नहीं सुहाते।ऐसे कैसे िजनदगी चल पड़े गी।अब सब कुछ हो गया है ।िकसी तरह भी ऐसे िरशतो को ठु कराने के पिरणाम सुखद नहीं हो सकते।यह बात िनशा की समझ

से परे थे।वह यह सब नहीं जानना चाहती।वह केवल इतना जानती है िक उनहे हिर अचछे नहीं लगते। उसने िववाह के पहले ही बता िदया होता यह सब लेिकन अब तो सब कुछ हो गया है ।िववाह कोई बचचो का खेल नहीं है ।चाहे जब खेल िलया और चाहे जब िमटा िदया। हजार बार िनशा को समझाने के बाद अनतत: िनशा के मायके वाले उसे भोपाल ले आए। इस तरह

वह माह मे तीन बार मायके जाती और मायके वाले उसे माह मे तीन बार भोपाल

पहु¡चाने चले आते।यह कम लगातार चलते रहा।

दोनो के माता-िपता ने बहुत कोिशश की िक िजस िकसी तरह िनशा ससुराल मे ही रहे िकनतु वह

मानने को तैयार नहीं थी । बहुत िदनो तक

उसने रोने के अलावा कुछ नहीं कहा ।

एक सनधया ,दोनो पिरवार के सदसयो ने िवचार िकया िक इन दोनो को आमने-सामने िबठाकर इस किठनाई की सुलह की जाए।िनशा और हिर को बुलाया गया।आमने-सामने िबठाया गधया।पूछा गया ,हिर को कया किठनाई है ।िनशा को कया किठनाई है ।हिर बोले-

``िववाह को िववाह की तरह िनवह थ न िकया जाना बहुत जररी है ।यिद कोई पती या पित िववाह का

िनवह थ न नहीं करते तो बीच का कोई रासता िनकाला जाना चािहए। बस ,मुझे इसके अलावा कुछ नहीं कहना है ।``

अनतत: िनशा ने कह ही िदया िक इनका मुह ं बनदर की तरह िदखता है ।ये मुझे अचछे नहीं लगते । पूछने पर वह बताती रही िक नहीं इनकी कोई गलती नहीं लेिकन ये मुझे अचछे नहीं लगते । िनशा की इस

समसया का िनदान िकसी के पास नहीं था। सारे लोग उसे इतना ही समझाते रहे िक अब तुमहारा िववाह हिर से हो गया है ।िववाह के बाद पित का घर

लड़की का अपना घर होता है ।उसे हर िकसी तरह

समझाया गया ।इतना समझाने के बाद भी उसने अपने मुख से एक शबद नहीं िनकाला।पिरवार के

सदसयो ने समझा ,संभवत:िनशा अब सब समझ गई है ।वह अब पहले से जयादा बेहतर रहे गी।उन सबको ऐसा पतीत होने लगा। 0 इसी बीच

िकशन के गले के नासूर की तकलीफ बढ़ गई ।

खणडवा मे िचिकतसको ने बताया िक

तुरनत ही गले के नासूर का ऑपरे षन करवाना आवशयक है अनयथा यह नासूर बहुत बढ़ सकता है । उसे भोपाल लाया गया।हिमिदया असपताल मे गले के नासूर का ऑपरे षन हुआ।ऑपरे षन के दौरान वह बेहोष था।कुछ िदन तक उसकी िचिकतसा असपताल मे ही चलती रही । बाद मे असपताल से छुटटी दे दी गई। असपताल से िडसचाज थ के बाद िकशन को घर लाया गया।

रोषनपुरा मे एक कमरे का मकान था

जो हिर और िनशा के िलए पयाप थ था।तीसरे सदसय के िलए इस एक कमरे के मकान मे रहने की कोई गुंजाइश नहीं थी िकनतु िकशन के ऑपरे शन के बाद उसे िचिकतसाथथ और दे ख-रे ख के िलए भोपाल मे हिर

के अलावा अनय कोई िवकलप नहीं था।हालांिक बड़े भैया-भाभी भोपाल मे थे िकनतु वे नहीं चाहते थे िक उनके साथ कोई भाई मुं्फत मे रहे ।

अकटू बर का मिहना था।िकषन को असपताल से घर लाया गया था।उसके गले मे अभी घाव ताजा

थे।उसे पूरी तरह से िचिकलसा और आराम की आवषयकता थी।िकषन को मेिडिसन दे कर सुला िदया था।

हिर और िनशा भी फष Z पर िबसतर िबछा कर लेट गए । हिर,बड़े भैया-भाभी से अलग रहने लगे थे। भाभी जी और वे चाहते थे िक वे उनहे अपना पूरा वेतन पितमाह दे िदया करे ।वे कहा करते थे िक तुम हमे पूरा वेतन दे िदया करो हम तुम दोनो का मिहने भर का खच थ उठा लेगे ।पूरे मिहने के िलए दस

रपया जेब खच थ के िलए िदया करे गे। पूरा वेतन उनहे दे ना गंवारा नहीं हुआ। उनहोने कहा ,तुम दोनो का खच थ हम लोगो की अपेका जयादा है ।पांच िकलो दाल और पचास िकलो गेहू तुम लोगो का एक माह का खच थ है ।हिर समझ गये थे िक अब बड़े भैया उनका षोषण करना चाहते है । जो

उनहे गंवारा नहीं था।

ऐसी िसथित मे उनहे अपना िहसाब िकताब अलग रखना ही पसनद आया।तब से उनहोने अपना सबकुछ अलग ही कर िलया था।

उस रात िकषन की तबीयत जयादा नाषाद थी।वह मेिडिसन लेकर सो गया था।हिर सोने के उपकम

मे थे ।डाकटर से दवाइयां िलखवाई थी।डाकटर ने सारी दवाएं बदल कर िलखी थी।सारा िदन यहॉं -वहॉं भागमभाम मे हिर बहुत थक गए थे।इसिलए लेटते ही उनहे

लगभग नींद लग चुकी थी।आधी रात के

बाद कुछ खटका सा हुआ ।हिर उठ बैठे।कमरे मे मदम मदम दीये की रोषनी थी । िनशा

िबसतर पर

नहीं थी।उनहोने िनशा को इधर उधर दे खा।वह िकषन के पास लेटी हुई थी।िकशन गहरी नींद मे सो रहे थे।िनशा को इस तरह िकशन के पास लेटे दे ख हिर बोले-

,यह कया ,यह अचछी बात नहीं है चलो आओ नीचे आ जाओ।´´

वह चुपचाप िबना कोई पितकार कर िकषन के पास से उतर िबसतर मे आकर लेट गई। दस ू री

ओर करवट बदलकर िनशा भी लेट गई।थोड़ी ही दे र मे हिर को नींदामगन हो गए।

सुबह नींद खुली । कमरे का दरवाजा खुला था।िनषा पहले जाग चुकी थी। लेिकन िनशा कमरे मे

नहीं थभ।्हिर ने सोचा षायद वह नल पर पानी भरने गई होगी ।सुबह का समयथा

नल का पानी सुबह

सात बजे आ जाता है ।पानी के िलए लाइन लगानी होती है ।यह सोचकर वे िफर िबसतर मे

लेट गयो।

लगभग आठ बजे तक वे िबसतर मे ही लेटे रहे ।सूरज ऊपर चढ़ आ गया था। काफी दे र के बाद भी िनशा नहीं

लौटी ।

हिर उठकर पानी के िलए नल पर गये।नल पर कोई नहीं था। उनहोने सोचा िनशा संभवत: िनतयिकया के

िलए गई होगी।अत: अब तक भी वे सामानय रहे लेिकन जब दे खा िक वह दो घणटे के बाद भी नहीं लौटी तब िचनता बढ़ गई। हिर उसे खोजने बाणगंगा गये।रोशनपुरा के िनवासी पितिदन िनतयिकया और

सनानािद के िलए बाणगंगा ही जाते थे।इसीिलए उनहोने सोचा िनशा बाणगंगा पर होगी।मकान मािलक षंकर भैया और भाभी से पूछा । कहीं िनशा का पता नहीं िमल रहा था। सुबह के दस बजे थे।उनहोने बड़े भैया-भाभी जी को बताया।उनहोने कोई धयान नहीं िदया।चाचाजी के घर जाकर दे खा।वह वहां

भी नहीं

िनशा नहीं थी। वे लौटकर घर आये। िकषन को बहुत तेज जवर चढ़ा हुआ था। लेिकन अब िकया जा

सकता है । िकशन उनके अपने भाई है ।छोटा होने के कारण वह उनहे िपय था । इसिलए उसे कुछ कहना उिचत नहीं

समझा ।बस इतना ही बताया िक

न जाने तुमहारी भाभी कहॉ ं चली गई।

वे िनशा को ढू ं ढने नयू माकेट गये । रे लवे सटे षन गये। रे ल के िडबबे-िडबबे मे तलाष की ली ।

बगीचो मे गये । कहीं वह िदखाई नहीं दी। वे हताष होकर छोटे तालाब िकनारे

जा बैठे। बहुत दे र तक

तालाब िकनारे िचनतातुर बैठे रहे ।कोई रासता सूझ नहीं रहा था।जाने उनहे कया सूझी वे चलकर

जहांिगराबाद थाने पहुंचे । टी आई को अपनी कह सुनाई । िनशा की तसवीर िदखाई। जात हुआ िक िनशा बुधवारा थाने मे है । वे तुरनत ही बुधवारा थाने जा पहुंचा।थाने मे िनशा को दे खकर सुकून िमला।टी आई

से िमले। उनहोने बताया ,यह लड़की धोबी घाट पर आतमहतया करने के िलए जा रही थी।वहां से उसे पकड कर लाया है । तुम उसके पित हो , चलो अनदर चलो।तुम पर इस लडकी ने इलजाम लगाया है िक इसको तुमने बहुत मारा है और उसे आतमहतया करने के िलए उकसाया है । पुिलस ने हिर को के पीछे डाल िदया ।

सलाको

उनहोने पुिलस से िनवेदन िकया िक इस घटना की जानकारी उनके चाचाजी और बड़े भाई को दे नी है ।उनहोने सवीकृ ित दे दी।चाचाजी के आिफस मे फोन कर िदया।खबर पाते ही वे दौड़े चले आये। हिर थाने

के लॉक ं -अप मे बनद कर िदए गए् और िनशा को टीआई के कमरे मे ही िबठा िदया गया।चाचाजी के आने पर उनको पूरी घटना सुनादी। पुिलस का कहना था िक लड़की ने िरपोटथ िलखवाई है ,इसिलए अब हिर को मिजसटे ट के सामने खड़ा करना ही होगा । अब काय थ आज नहीं कल होगा।तब तक के िलए वे

चाहे तो िनशा को अपने साथ घर ले जा सकते है ।चाचाजी और बड़े भैया ने िनशा को साथ मे घर ले जाने से इनकार कर िदया। चाचाजी का कहना था िक िनशा को घर ले जाने पर कहीं ऐसा न हो िक ये

लड़की िबजली के बोडथ मे हाथ या अंगुली डाल कर आतमहतया करने की कोिषष करे । अत:चाचाजी और बड़े भैया वापस घर लौट गये ।

बुधवार का िदन था। रात हो चली थी।अब तक

के कमरे मे

हिर पुिलस लॉक-अप मे बनद थे। िनशा को टीआई

िबठा िदया गया। पुिलस किमय थ ो का जमावड़ा बढ़ता जा रहा था।हर कोई पुिलसकमीZ

ऊलजूलूल पषन करता।बदले मे एक भदी सी गाली दे दे ता। ऐसा लगने लगा जैसे यह पुिलस

थाना नहीं

है , गुणडो का लायसेनसषुदा अडडा है ।यहा¡ हर पुिलसवाला िकसी गुणडे से कम गुणो को नहीं दशात थ ा बिलक वह गुणडे से जयादा अििल और हरामी हो जाता है ।लगता है पुिलस मे भरती होने के बाद वयिि का वयिितव मानवीय न होकर पाषिवक हो जाता है ।यह िसथित दे ख

रह कांप गई।

आधी रात से जयादा का समय हो रहा होगा।थाने मे आने -जानेवालो कभ ् आगत थम गई।रोड़ पर

आवागमन भी लगभग बनद हो गया था।टी आई भी चले गये थे। िदन की िशफटवाले पुिलस कमच थ ािरयो

के जाने के बाद रात की िशफटवाले पुिलस कमच थ ारी थाने मे आने लगे।दो पुिलस रात मे गषत लगाने के

िलए पुरानी िसटी की ओर चल िदए।केवल चार-छ:पुिलस जवान थाने मे रक गए। हिर घबरा रहे थे।इस तरह की पितकूल िसथित उनके जीवन मे पहली बार आई।हालांिक उनहोने ऐसी कोई गलती नहीं की थी। िजससे उनहे लॉक-अप मे बनद कर िदया जाय।लेिकन पुिलस से उलझने का मतलब है िक और अिधक

मुिसबत मे फंस जाना।वे बेचैन होते जा रहे थे। लॉक-अप मे बहुत गरमी हो रही थी और पेषाब की बहुत

बदबू आ रही थी।लॉक-अप मे दो अपराधी भी बनद थे।वहॉ ं बैठने या सोने के िलए कोई समुिचत वयवसथा नहीं थी। लॉक-अप कालकोठरी जैसा लग रहा थी।।मचछर िभनिभना रहे थे।छत पर पंखा नहीं था।उनके

पास ऐसी कोई चीज नहीं थी िजससे िक हवा ली जा सके।एक तो गरमी-अंधेरा-सीलनयुि लॉक-अप ,पेशाब की बदबू और

मचछरो के आतंक के कारण काफी तकलीफ हो रही थी । उनकी बेचैनी बढ़ती जा

रही थी। कया िकया जा सकता था ऐसी मुिसबत मे, उनकी समझ मे कुछ नहीं आ रहा था। रात करीब दो-तीन बजे पुिलस कमच थ ािरयो के इरादे कुछ बदले-बदले से लगे।एक बोला-

``यार!आज तो थाने मे बहुत अचछा माल आया हुआ है ।चखकर दे खना चािहए।`` ``ये उस हरामी की बीवी है ।जो लॉक-अप मे बनद है ।``

``तो उसे लॉक-अप मे ही बनद रहने दो।वह यहा¡ आने से रहा।`` ``कहते तो तुम बहुत ठीक।अचछा,एक-एक करके िनपटते है ।पहरा दे ना भी जररी है न!``

``ठीक है ।पहले मै िनपटता हू¡।तुम पहरा दे ते रहना।ससाला कुछ बोला तो डपट दे ना।कुछ नहीं कर सकता वो हरामी।``

णसबने िमलकर जोरो से ठहाका लगाय।एक बोला``चलो ‘षुर हो जावो।जब तक हम पहरा दे ते है ।``

एक पुिलस का जवान ठसके के साथ िनषा के पास गया।उसे नीचे से ऊपर तक घूर-घूर कर दे खने लगा। िनषा को नींद लग चुकी थी।वह फश थ पर ही लेट कर सो रही थी।पुिलस के जवाब ने कपड़े उतारे और िनषा को दबोच िलया।अनायास इस तरह के सपशथ से िनषा हड़बड़ा गई।वह चीख उठी।पुिलस जवान से उसे जोरदार एक थपपड़ मारा। वह बड़बड़ाया-

``ससाली हरामजादी! िचललाती है ।चोप नही तो बोटी-बोटी चबा डालूंगा। चोप मादर चो-----` िनशा रोने लगी ।पुिलस जवान ने िनषा को बुरी तरह से अपनी मजबूत बाहो मे जकड़ िलया।उसकी साड़ी उतार कर अलग फेक दी।बलाउस मे हाथ डालकर जमकर मसक िदया।िनशा चीख पड़ी और रोने लगी। ``नहीं ````नहीं

छोड़ दो

नहीं `नहीं ऐसा मत करो नहीं नहीं मुझे छोड़ दो नहीं नहीं ।``

पुिलस जवान पर है वािनयत सवार थी।उसने िनशा की बोटी-बोटी नोच डाली।जब वह सखिलत हो गया िनशा को रोता-िबलखता छोड़ िदया।हिर ने िनशा की रोने की आवाज सुनी।वे िचिनतत हो गए।थाने मे इस तरह िकसी नारी को रात मेंं रोकना उिचत नहीं है ।भैया और चाचा यिद िनशा को साथ ले जाते तो उसे

इस तरह की तकलीफ नहीं होती।उनहोने आवाज दे कर पुिलस जवान को बुलाया।पुिलस जवान उन पर डपट पड़ा। वे बोले- ,

`` भई उसे तकलीफ हो रही होगी । उसे मेरे सामने ले आओ ।´´

लेिकन पुिलस जवान नहीं माना । डपट पड़ा । बोला-

`` इतनी िचनता है तो कयो मारा उसको हरामखोर ´´ पुिलस जवान के असभय वयवहार और उसके डपटने पर वे चुप हो गये। पुिलस जवान ने एक भददी सी अििल गाली दी। िनशा उस रात थाने मे रात भर रोते रही। वह ``नहींन हीं छोड़ दो``करती रही और पुिलस वाले उसके साथ जोर-जबरदसती करते रहे ।यह पुिलसवालो की है वािनयत थी।हिर को भी जानबूझकर लॉक-अप मे रखा गया।िजससे िक पुिलसकिमय थ ो को मनमानी का पूरा अवसर िमल जाय।

चाचाजी यिद िनशा को साथ मे ले जाते तो पुिलस के जवानो को कभी ऐसा दषुकृ तय करने का अवसर

नहीं िमलता।

पुिलस के कुछ बदचलन कमच थ ारी दे ष सेवा के नाम पर पुिलस को गनदा करने से नहीं

चुकते। रात िजस

िकसी तरह से

बीत गई। हिर को पुिलसवालो से इतनी सखत नफरत और घण ृ ा हो

गई है िक अब िकसी पुिलस जवान का चेहरा दे खना भी पसनद नहीं करते।

सुबह दस बजे चाचाजी और बड़े भैया आये। पुिलस उस िदन गुरवार को उनहे मिजसटे ट के समक

खड़ा करनेवाली थी।चाचाजी ने हिर की जमानत की वयवसथा की ।उनहे हथकड़ी पहना दी गई।हिर बुरी तरह से रो पड़े 7

, हाय िनशा ,तुमने यह कया िकया।आज तुमहारी खाितर मुझे पुिलस की हथकड़ी मे जकड़ िलया

गया। ``

उनहे रोता दे ख चाचाजी ने टीआई से कहा -,

``कृ पया मेरे भितजे को थाने से कचहरी तक िबना हथकड़ी के ही ले चलो।जब मिजसटे ट के सामने खड़ा करोगे तब ही उसे हथकड़ी पहना दे ना।``

पुिलस ने नहीं माना ।वे हिर को थाने से कचहरी तक हथकड़ी पहना कर ले चलेंे। उनके दािहने

हाथ मे हथकड़ी और उसकी जंजीर एक िसपाही के हाथ मे पकड़ी हुई।मानो िकसी खास अपराधी को सजा

दी जा रही हो।हाथ मे पुिलस की हथकड़ी पड़ना ही उनके िलए िकसी सजा से कम नहीं लग रहा था। मिजसटे ट तो बाद मे सजा सुनाता है लेिकन पुिलस वयिि को सजा सुनाने से पहले ही हथकड़ी पहनाकर

जब सरे आम जनता के बीच से हथकड़ी पहनाये ले जाती है तो अपने -आप सजा िमल ही जाती है ।हिर जैसे अपराध बोध से गड़ा जा रहे थे।रासते भर लोग उनहे हथकड़ी मे जकड़े दे खने लगे। सुबह दस बजे से षाम चार बजे तक हिर केहाथो मे हथकड़ी डली रही। वे सोचने लगे ,-

``इससे बेहतर मुझे मतृयु आ जाती तो अचछा होता ।कम से कम ऐसे िदन तो िदखने को नहीं

िमलते।``

लगभग षाम चार बजे उनहे मिजसटे ट के सामने हथकड़ी पहनाकर खड़ा कर िदया।हिर िफर रोने लगे।िनषा पतथर सी टु कुर टु कुर दे खे जा रही थी। उसका चेहरा िबलकुल खींच गया था। हिर जानते थे िनशा के साथ पुिलस जवानो ने जयादती की है ।वह कह भी नहीं सकती ।सी चाहे िकतनी भी कठोर कयो न हो वह

अपना मुंह नहीं खोलती।िनषा के साथ भी यही हुआ। ठीक चार बजे पुिलस ने हिर को मिजसटे ट के

सामने खड़ा िकया ।वकील ने अजी पेश की और चाचाजी ने जमानत बतौर अपनी जमीनके कागजात पेष िकये।मिजसटे ट ने हिर की ओर दे खा।उनहे पसीना आ गया। मिजसटे ट ने कहा- ,

``अब ऐसा अपराध नहीं होना चािहए अनयथा हम आपकी जमानत सवीकार नहीं करे गे।´´

सवीकृ ित मे हिर ने िसर िहला िदया।हिर की जमानत सवीकृ त हो गई ।पुिलस ने हाथ मे हथकड़ी खोल दी।

चाचाजी और बड़े भैया हिर और िनशा को घर ले आये।चाचाजी ने िनशा के िपता को फोन पर इस

घटना की सारी जानकारी कह सुनाई।खबर पाते ही दस ू रे िदन िनशा के िपता भोपाल आए।दस ू रे िदन िनशा के मामा भउ्से अपने साथ

खणडवा ले गये ।

िनयित का कानून सबसे अलग होता है ।इनसान वदारा बनाये गए कानून

िलिखत मे होते है ।

लेिकन िनयित का कानून अिलिखत होता है ।उसे कोई बांच नहीं सकता।कोई जान नहीं सकता। िनयित का िवधान सबसे अलग होता है ।िजस तरह िविध के िवधान उसके अपने होते है ।पिरवतन थ शील नहीं होते।ठीक उसी तरह पिरवार और समाज के अिलिखत िवधान भी अपिरवतन थ शील होते है ।

अब वे िफर अकेला रह गये।उनहोने रोषनपुरा का कचचा कमरा खाली कर िदया और

टीलाजमालुपरा मे एक पकका कमरा िकराये से ले िलया। एक वष थ तक मॉ ं हिर के साथ रही।

खणडवा से मेरी माताजी भोपाल चली आई।पूरे

कुछ लोगो ने िमलकर भोपाल िजला नयायालय मे िनशा के िवरद

केस दायर करवा िदया।हिर इस केस के पक मे नहीं थे।यिद भागय मे यही सफल िववाह नहीं होगा तो कोई कया कर सकता अथवा यिद हम िनशा को पसनद नहीं थे तो यह न तो हिर दोष है और न ही िनशा का ।िनशा को उसके मजी और उसकी पसनद का पित नहीं िमला तो उसने पितकूल कदम उठाये और हिर से छुटकारा पाने का पयास िकया। लगभग दस माह तक िजला नयायालय मे पेशी होती रही।

हिर इस केस के बहुत दरू रहना चाहते थे िकनतु

कुछ लोगो के दबाव के कारण वे कुछ भी करने मे

असमथ थ थे। अनतत: दोनो पको मे समझौता हो गया िक हिर और िनशा का िववाह िवचछे द कर िदया

जाय। िजला नयायालय ने दोनो पक के इस िनणय थ को सवीकार कर िलया और िजला नयायालय मे पकरण नसतीबद हो गया। मामला रफा-दफा हो गया। अभी साल भर भी नहीं हुआ था िक खबर आई िनशा को बेटी हुई है । इसी दौरान

खणडवा से

िपताजी का माताजी के िलए खबर आई िक वह तुरनत खणडवा वापस आ जाय।इधर िपताजी का सवासथय िबगड़ने लगा है । माताजी , िपताजी की खबर िमलते ही पेम जाग गया।उसे लगा षीघ ही

खणडवाचली गई। हिर के हदय मे बेटी के पित

खणडवा जाकर बेटी को दे ख िलया जाय।भले ही िनशा से िरषता टू ट

गया लेिकन बेटी से अब िरशता जुड़ गया है तो हो सकता है िक िनशा मे भी कुछ न कुछ पिरवतन थ आया ही होगा।पूरे दो माह तक उनके हदय मे अनतवदनद चलता रहा।आिखर उनहोने िनणय थ ले िलया िक तुरनत ही

खणडवा जाकर बेटी के साथ िनशा को भोपाल वापस लाया जाय।

हालांिक

एक िदन हिर खणडवा मे

अमत ृ सर दादर एकसपें्रस से

सीधे िनशा के िपता के घर खणडवा जा पहुंंंचे ।

उनके माता-िपता भी रहते है लेिकन उनहे हिर के

खणडवा आने की कोई खबर नहीं

दी।हिर को आया दे ख उनके सास और षवसुर जी को बहुत अचछा लगा। िविध िवधान से सवागत सतकार िकया । उनके आने का कारण पूछा। उनहोने बताया िक

वे िनशा और साथ मे अपनी बचची को लेने

आये है । षवसुर जी ने सहमित दे दी तो सास भी पसनन हो गई। भोपाल के िलए सुबह आठ बजे दादर अमत ृ सर एकसपें्रस आता है इसिलए उस रात ससुराल मे ही रके रहे और सुबह बचची और िनशा को तांगे मे िबठाकर

खणडवा रे लवे सटे षन आ गए ।

िबना िकसी ओर धयान िदये दोनो दादर अमत ृ सर एकसपें्रस से भोपाल चले आये।उनहे पता नहीं िक िकसी ने उनहे रासते मे जाते हुए दे ख िलया हो लेिकन संभवत: दस ू रे खणडवा आकर िनशा को भोपाल ले जाने की खबर िमल गई।

िदन उनके माता-िपता को हिर के

भोपाल आकर बुधवारा मे एक दो कमरे का मकान िकराये से ले िलया।

एक वष थ तक हिर-िनशा

साथ-साथ रहे । समाज और दिुनया मे रहना है तो सकारातमक िवचारो के साथ रहना चािहए।कभी भी

अनुिचत आचार-िवचारो को संरकण नहीं दे ना चािहए।इससे वयिि,पिरवार और समाज पर पितकूल पभाव पड़ता है । इस दौरान उनका एक पबंध कावय ``पकािशत हुआ।

वयिि समाज मे रहता है तो सब के साथ िमलजुल कर रहता है । िजस मनुषय समाज मे वयिि

को रहना होता है वहॉ ं पें्रम और िवषवास रखना बहुत लाजमी हो जाता है तािक वह समाज मे इजजत

के साथ जी सके और उसे सबका सहयोग िमल सके ।जब तक पित-पती मे आपस मे िवषवास न हो तब तक दोनो मे सामंजसय नहीं बैठ पाता। चंिू क िनशा से एक बेटी हुई है इसिलए पेम और िवषवास की नींव पर पिरवार

को िबठाया जाना उनके िलए बहुत जररी हो गया ।

उनहोने िनशा पर िवषवास और पें्रम

की गंगा बहा दी । बेटी को पा कर मन पफुिंललत हो गया।पितिदन बेटी के साथ घणटो खेलना ।उसे पाको मे घुमाने ले जाना चलते रहा।

समय िकस तरह से वयतीत होने लगा पता ही नहीं चला।

नािरयो के हदय की गहराई अब तक कोई भी पुरष माप नहीं पाया।वह एक माया है ।उस पर िवषवास िकया जाय अथवा नहीं ,इस पर िवचार िकया जाना अतयनत पासंिगक है ।िजतना अिधक िवषवास िकया जाय ,यिद उसका पितफल सकारातमक िमलता है तो उसमे सफलता िनिंषचत समझी जानी चािहए । लेिकन पितफल नकारातमक िमलता है तो जीवन की सफलता खतरे मे पड़ जाती है । नारी के अथाह मन की थाप पाना बहुत किठन होता है ।बहुत से

ऋिष-मुिन और जानी भी नारी के समझ हारे से

हुए है ।यिद ऐसा नहीं होता तो आज इस पथ ृ वी पर ऋिष-मुिन नहीं होते बिलक सफल जीवन जीनेवाले मानव समुदाय होते।

हुआ कुछ इस तरह िक बुधवारा मे रहने आने पर िनषा की िमतता आसपास की मिहलाओं से हो

गई।इतना ही नहीं िनषा की िमतता उन मिहलाओं के पितयो से भी हो गई। यह िमतता आिहसताआिहसता िनकटता मे पिरवितत थ होने लगी।यह िनकटता घिनषता मे पिरवितत थ होने लगी।और िसलिसला चल पड़ा मनमानी का। बात समझते दे र न लगी। बुधवारा मे अिधकतर उस ही समुदाय के लोग रहते है

िजनसे दस ू रे समुदाय के लोग भयभीत होते रहते है ।उनकी कटटता अनय समुदायो की अपेका अिधक होती है ।इस कटटता के चलते समुदायो मे न जाने िकतनी सिदयो से तनतनी होते आ रही है ।

ऐसे ही

वातावरण मे िनषा ने िघरवा िदया।वह अकसर उसी समुदाय के लोगो से मेल-िमलाप करते रहती।उसी समुदाय के पुरषो से िमतता उसे अिधक अचछी लगने लगी। कहना उिचत नहीं लगता िकनतु यह सतय है

िक दस ू रे समुदाय के लोग कुछ भी अनयाय करने मे पीछे नहीं रहते।चाहे वे िकसी भी समुदाय के पुरष कयो न हो।

गलती वहा¡ अिधक होती है जहा¡ नारी सवयं ही अनय समुदायो के पुरषो से िमतता बढ़ती है ।

बावजूद इसके उसे समझाने पर वह अपने ही पिरवार के

लोगो को असभय और िपछड़ा कहने लगती है ।

वह कहती है , आपको कुछ नहीं पता , हम सब जानती है ।आपसे जयादा अचछा चिरत हमारा है ।हम िकसी से कम नहीं

है ।कोई गलती हम नहीं करती।हमारे िवचार शष े है ।तुमहारे िवचार संकुिचत है ।तुम छोटे िदमाग के लोग हो।हमारी बराबरी नहीं कर सकते।

ऐसी िसथित मे नािरया¡ पिरवार के लोगो को उपेिकत कर अनानय लोगो का पक लेकर अनुिचत

पथ पर चल पड़ती है ।बस ,यही गलती अब िनषा ने करनी पारं भ कर दी । 00

जब घर मेंे बेटे का जनम हुआ तो ऐसा लगा िक अब िनषा मे अवषय ही वैचािरक पिरवतन थ हुआ

होगा ।वह पहले की अपेका अिधक उिरदाियतव का वहन करे गी।पिरवार के पतयेक सदसय का धयान

रखेगी।यह िवचार हिर के भीतर िकसी कोने मे उछाले मार रहा था। वे छोटा पिरवार सुखी पिरवार की अवधारणा से अचछी तरह पिरिचत था।इसिलए बेटे के पैदा होने के दो माह बाद उनहोने भोपाल के जयपकाष असपताल मे नसबनदी करवा ली।

चार माह तक िनशा मायके मे

रहकर

भोपाल चली आई। बेटा गोद मे था। अब एक बेटी और

एक बेटा होने से पिरवार की िजममेदारी बढ़ना सवाभािवक ही है । घर िमतो का आना-जाना लगा रहता था ।पता नहीं कुछ लगभग एक साल बाद मकान मािलक को जाने कया आपिि हो गई । उनहोने हिर से मकान खाली करवा िलया।

अबकी बार हिर ने इतवारा मे एक कमरा िकराये से ले िलया ।इतवासरा मे 6-7 माह

रहे ।लेिकन वहॉं

से भी मकान मािलक ने िनशा के बारे मे उजूल िफजूल बाते कह कर मकान खाली करवा िलया । अब की बार उनहे मकान ढू ं ढने मे परे षानी का सामना करना पड़ा लेिकन जलदी ही

रे लवेसटे षन के

पीछे की कॉलोनी मे एक बड़ा सा कमरा ,दालान और बाकी सब सुिवधायुि मकान िमल गया। उनहे लगा ,इस मकान मे अब िकसी तरह की अवयवसथा नहीं होगी। िनयित मे कया िलखा है , कौन जाने। 0

रे लवे सटे षन पीछे की कॉलोनी मे एक सुमन नाम की सी से िनशा का पिरचय हो गया। सुमन

अपने पित को छोड़कर मायके मे रहा करती थी। सुनने मे आया िक सुमन बदचलन होने के कारण उसके पित ने उसे तयाग िदया।अब वह पित के पास रहने जाना नहीं चाहती।वह सारा-सारा िदन भोपाल की गिलयो मे घुमा करती।जहा¡ चाहती वहा¡ जाती।जो जी मे आया वह करती।अब वह िबलकुल आजाद हो गई

है ।उसे कोई रोक-टोक नहीं है ।वह अपनी मरजी की मािलक है ।मोहलले मे आते ही कुछ ही िदनो मे िनषा

और उसमे िमतता हो गई।हिर िजस मोहलले मे रहते है ।वहा¡ उनके पड़ौस मे एक पंिडतजी रहा करते है । उनकी पती पंिडताइन कहा करती िक िनशा इस

सुमन के साथ मत रहा करो। वह औरत ठीक नहीं है ।

वह औरत इस इलाके मे बदलाम है । इसी बदनामी के कारण उसके पित ने उसे छोड़ रखा है ।लेिकन िनशा ने पंिडताइन की बात को अनसुना कर िदया और सुमन से िमतता करना अचछा मान िलया।

एक िदन षायद षुकवार का िदन होगा, पितिदन की भांित आिफस जाने के समय हिर तैयार होकर आिफस के िलए घर से िनकले।िजस कालोनी मे हिर रहते थे।वह कालोनी रे लवे सटे षन के पूवी केत मे है ।

आिफस के िलए राजय पिरवहन की बस रलवे सटे षन के िपषचमी केत मे िमला करती थी।अत: रे लवे कॉिसंग करने उस ओर जाना होता था।यह पितिदन यानी रिटन था। घर से िनकलने के बाद िक बेटा पपपू

पता नहीं

पीछे -पीछे कब चल िदया। हिर संभवत: काफी दरू िनकल चुके थे।ऑिफस के समय पर

कमच थ िरयो को सबसे पहले बस पकड़ने की जलदी पड़ी रहती है कयोिक मंतालय के िलए रे लवे सटे षन से

एक ही बस चलती है ।उसके बाद कोई बस नहीं जाती ।यिद बस िमस हो जाय तो िफर लोकल बस से पहले नयू माकेट जाना होता था और वहॉ ं से दो िकलोमीटर मंतालय तक या तो पैदल जाओ अथवा दोतीन लोग आटोिरका करके मंतालय पहुंंंचो।इसिलए समय पर बस पकड़ना बहुत जररी हो जाता है । हॉं िकसी एक िदन बस िमस हो जाय अथवा िकसी काम से घर रककर दे री से आिफस गये तो इतना लमबा

सफर करना ही मजबूरी हो जाती लेिकन पितिदन लेट होने का अथथ है ।पितिदन पचास रपये मंतालय जाने के िलए खचथ करना जो किठन हो जाता है ।

हिर दफतर के िलए रवाना हो चुके थे। उस वि पपपू की उम लगभग दो वष थ दो माह रही होगी। वह धीरे -धीरे पैरो चलना सीख गया था। पपपू उनके

िपछे आ चुका था, इस बात का उनहे कतई एहसास

नहीं था। वे राह चलते समय कभी पलटकर नहीं दे खते थे। यह उनकी आदत मे शुमार था .

उस समय की यह आदत उनके िलए उस समय मुिसबत बन गई जब वे षाम को घर लौटे । घर

मे ताला लगा हुआ था। पंिडताईन से पूछा िक िनशा कहॉ ं गई है ।उसने बताया िक िनशा तो सुमन के

साथ कहीं गई हुई है ।पंिडताइन से चाभी लेकर उनहोने कमरे का दरवाजा खोला। लगभग एक घणटे बाद िनशा और सुमन आई। िनशा बोली ।

`` पपपू को आप आिफस ले गए थे कया !´´

´´नहीं तो ! बचचो को कोई आिफस ले जाता है कया लेिकन तुम कहॉ ं गई थी ।´´ मैने कहा और पूछा ।

`` हम लोग यो ही कहीं गये थे।´´ `` तो पपपू कहॉ है ।´´

`` मुझे नहीं मालूम । मैने सोचा आप ले गऐ होगे ´´ िनशा ने कहा हिर का माथा ठनका । िनशा सारा िदन घर मे रही और िफर िदन मे सुमन के साथ कहीं गई भी लेिकन उसने पपपू पर जरा भी धयान नहीं रखा।वे घबरा गये।उठे और पपपू को खोजने िनकल पड़े ।रे लवे । पपपू का

सटे षन का पूरा इलाका ढं ंंंूढा

कहीं पता नहीं।पूरा बजिरया खोज िलया।पपपू का कहीं पता नहीं।वे बजिरया थाने पहुंंंचे।थाने

मे बताया।पुिलस ने कहा, यिद बचचा कल सुबह तक नहीं िमलता है तो आप िरपोटथ िलखवा सकते है ।

रात हो चुकी थी।सड़क पर सटीट लाइट की रोषनी थी।गमी के िदन थे इसिलए बजिरया मे जयादा

चहल पहल भी थी।सटे षन से याितयो का आवागमन हो रहा था।जैसे ही वे थाने बाहर

आये। एक

चािलस-पचास की आयु की मिहला की गोद मे पपपू था।पपपू उनहे दे खते ही तुतलाने लगा।मिहला ने उनहे आवाज दे कर रोका

। टयूब लाइट की रोषनी मे पपपू उनहे पहचान गया था।उनहे

दे खते ही पपपू

गोद

मे आ गया। मिहला बोली।

`` ये आपका बेटा है ।´´ `` जी हॉ ं ´´

`` ये सुबह दस बजे रे ल की पटरी पर बैठा िमला ।डीजल एंिजन वाले ने एंिजन रोक

िलया । भीड़

जमा हो गई थी। जरा सी भी असावधानी हो जाती तो बचचा आपके हाथ से िनकल जाता ।वह तो षुक करो एंिजनवाले का िक उसने बचचे को दे खकर एंिजन रोक िलया ।´´

उनकी ऑख ं ो मे ऑस ं ू छलक आये।पपपू उनके सीने से लग गया। उसके हाथ मे िबसकुट थे जो उसके हाथो से िगर गए । उनहोने उस मिहला का षिकया अदा िकया और उस मिहला के चरण सपशथ कर पणाम िकया ।बोले ।

`` बिहन जी !मै आपका एहसान िजनदगी भर नहीं भूलूंगा ।यह संभवत:मेरे िकसी जनम के अचछे कमथ होगे जो पपपू मुझे िमल गया अनयथा न जाने कया होता। ´´ `` भाई साहब ! बचचो पर धयान रखना चािहए।´´

´´ लगता है यह षायद मेरे पीछे पीछे चल िदया हो ।सुबह दस बजे के पहले जब मै आिफस के

िलए रवाना हो गया।´´

`` बचचे की मॉ ं तो धयान दे ती ! ´´ मिहला ने कहा।

`` ‘शायद उसका धयान हट गया हो। अचछा चलता हूं´´उनहोने मिहला से कहा और दब ु ारा हाथ

जोड़कर नमसकार िकया ।वे पपपू को घर ले आये । अब भी सुमन और,िनशा िकसी िफलम की कहानी पर

िठठोली कर रही थी । उनकी गोद मे पपपू को दे ख कर दोनो चुप हो गई। हिर हदय पर जैसे पतथर का पहाड़ आ िगरा िक िनशा को इस बात की जरा सी भी परवाह नहीं ।उसका बेटा सुबह से गुम है और वह

सुमन के साथ हं सी-मजाक मे मषगूल है ।ऐसी कया बात है िजससे िनशा ने पपपू का जरा भी खयाल नहीं रखा ।

पतयेक नारी को अपनी सनतान पयारी होती है ।लेिकन उस िदन उनहोने दे खा िक िनशा के मुख पर

िचनता की रे खाएं िबलकुल नहीं है । पपपू को दे खकर वह उसी तरह सहज थी िजस तरह कहीं कुछ हुआ ही नहीं हो। हिर ने चुप रहने मे ही भलाई समझी । 00 दस ू रे िदन उनहोने िनशा को समझाईश दी िक वह जरा अिमत तरफ खयाल रिखयेगा ,अभी छोटा है ,बचचा है ।तुमहे पता ही नहीं चलेगा िक बचचा खेलते -खेलते कहीं दरू चला जाएगा । समझाईष के बाद वे आिफस चले गये।

षाम को आिफस से लौटे ।मोहलले मे आते ही वहॉ ं रहनेवाला एक वयिि जो मुगे लड़ाने का षौक

रखता वह उनके साथ घर तक आया । उसके और हिर के बीच मुगो की चचा थ चलती रही िक वह िकस

तरह मुगो को पिषिकत करता है और मुगो लड़ाई मे कैसे जीत हािसल करता है ।वह शखस खासा उतसािहत लग रहा था।मोहलले मे रहने के कारण संभवत: वह हिर को जानता था।जानने का कारण यह भी था िक हिर की

रचनाएं पत-िपं़तकाओं मे पकािषत हुआ करती रही। रचनाओं के साथ नाम तो होता

ही है कभी-कभी तसवीर भी छप जाती ।इस तरह रचनाकोरो को अिधकतर लोग िजस िकसी तरह

पहचानते ही है ।वैसे ही रचनाकारो को अपनी पहचान बताने की आवषयकता नही रहती।जो लोग जागरक होते है वे अपने समय को पहचानते है । िनषा पानी के दो िगलास भर लाई और दे कर भीतर चली गई । उनहोने चाय के िलए मना कर िदया। मुगव े ाला और वे बातो मे मषगूल थे।सनधया का समय था। पािरवािरक लोग सनधया के समय जयादा वयसत नहीं रहते । िजस कमरे मे वे

रहते थे उसके िबलकुल

पीछे एक नया बना हुआ बड़ा मकान था उसमे रहनेवाले सारे पिरवार मुिसलम थे।उस मकान मे रहनेवाले

पिरवार की कुछ मुिसलम मिहलाएं छत पर बैठी बितया रही थी। पड़ौसी पंिडत जी घर पर नहीं थे लेिकन उनकी पती पंिडताईन घर मे िकसी काम मे वयसत थी। जून

का मिहना रहा होगा।

बहुत दे र तक मुगे वाले वयिि की और उनकी बात चलती रही ।तभी अचानक िनशा के िचललाने

की आवाज सुनाई दी । बचाओं णणणबचाओं । मुगव े ाला वयिि हिर की

ओर मुख िकये हुए था जो भीतर

तक दे ख सकता था।वह भी िचललाया ,भाई साब घर मे आग लग गई।वे तुरनत

दौड़ पड़ा दे खा िनशा

बुरी तरह से आग से झुलस रही ।उनहे एकदम से कुछ भी सूझा नहीं। आग की लपटे बहुत तेज थी।उसे

बुझाया जाना किठन लग रहा था।वे हाथो से आग बुझाने का पयास करने लगे।तभी पंिडताईन भी िचललाते दौड़ी चली आई ।पंिडताईन और इनके कमरे का िपछला आंगन एक ही था और आनेजाने मे कोई रकावट नहीं थी।पंिडताईन ने पास मे रखा पानी का छोटा घड़ा िनशा पर उढ़े ल िदया।आग कम हो

गई।वे जलदी से कमरे मे गये एक कमबल ले आये। अब भी आग जल रही थी। िनषापर कमबल डाल

िदया।आग बुझ गई लेिकन िनशा बहुत जल चुकी।वह चीख-चीख कर रोने लगी। िनशा बहुत जयादा झुलस गई।उसकी पीड़ा इतनी जयादा थी िक उनका िदल दहल गया।वे समझ नहीं पा हो गया ,कया हो गया।उनके तो संभाला।संजू उस वि फैल गई।पपपू

रहे थे ,यह अचानक कैसे

होष उड़ से गए।बेटा पपपू भी रोने लग गया।पंिडलाईन ने पपपू को

खणडवा मे मेरे माता-िपता के पास थी। िनशा के सारे बदन मे आग की जलन

जोरो से रोने लगा। िनषा के बदन पर िलपटी

पूरी साड़ी जल गई।उसके बदन पर केवल

बलाउस और पेटीकोट था।साड़ी िसथेिटक होने से आग भड़क उठी। दे खते ही दे खते मोहलले के लोग दौड़े

चले आये। िनषाका रो-रो कर बुरा हाल था। मोहलले के लोगो की आवाजे उठने लगे ये कैसे हुआ ये कैसे

हुआ । मुगव े ाला बोला ,मैने आग दे खी और िचललाया।भाई साहब और मै बात करे रहे थे िक अचानक मेडम की आवाज सुनाई दी बचाओ बचाओ िपछले आंगन की मिहलाएं कहने लगी िक इस औरत ने पहने अपने बदन पर केरोिसन डाला और मािचस से आग लगाली ।वे कहने लगी िक वे छत से इतनी जलदी

आकर उसे बचा नहीं सकती थी और हमारी आवाज वहॉ ं तक जा नहीं पा रही थी। इस औरत ने अपने हाथ से आग लगा ली। िनशा अब भी रो -रो रही थी । मुझे बचाओ नहीं तो मर जाऊ¡गी । िनषाका बदन झुलस जाने से बुरी तरह जलन कर रहा था।हिर पाटथ टाइम मे िंकलिनक का संचालन िकया करते थे।

उनहोने िकलिनक के िलए लाई हुई िसपिरट थी,,जो उसके सारे जखमो पर डाल दी।मुहललेवालो ने आटो की वयवसथा की।हिर और

साथ दो वयिि भी साथ हो िलए । िनषा को वे हिमिदया असपताल ले गये।

िनशा को हिमिदया असपताल मे िचिकतसा के िलए भरती कराया गया। डाकटस थ ने तुरनत ही

जलने के केस मे बजिरया थाने को सूचना दे दी तािक पुिलस आकर केस दे ख ले।आग के झुलसने से िनशा के जले हुए सथानो पर फफोले उभर आये।िजसमे जलन होने लगी।जलन की पीड़ा िनशा के बदाषथत

से जयादा थी।हिर बस मे कुछ नहीं था जो कुछ करना था िचिकतसको वदारा िकया जाना था।िचिकतसको ने तुरनत ही िनशा की िचिकतसा की वयवसथा की।

भोपाल मे िजतने समाज के सदसय थे ,चाचाजी-चाचीजी,,भैया-भाभीजी और जो भी थे सभी को

खबर की दी। िनशा के माता-िपता को भी खबर की दी । िचिकतसको ने कहा मरीज को

खून की जररत

है ,। मरीज का बहुत सारा बलड जल गया।िकसी का भी खून िनशा के खून से िमल नहीं पाता था।डाकटर

ने हिर से कहा ,खुन नहीं िमल पा रहा है मरीज को बचाना किठन है । हिर ने सवयं के रि की जांच के िलए डाकटसथ ने कहा।डाकटसथ ने समझाईष दी ।

``तुम बहुत कमजोर हो तुमहारा खून कैसे िलया जा सकता है । ´´ `` आप कोिषष तो कर के दे ख सकते है डाकटर साहब ´´

डाकटस थ ने उनके रि की जांच की ।उनका रि

िनशा के रि स िमल पाया।तुरनत ही हिर के िजसम से

रि िनकालकर िनशा को चढ़ा िदया। उनके िजसम से रि िनकालने के बाद दो घणटे तक उनकी चेतना

कमजोर पड़ गई ।लेिकन डाकटस थ ने डे कटोस सेलाइन चढ़ा दी िजससे दो-तीन घणटे के बाद चेतना आ गई।

िनशा को खून चढ़ाने के बाद उसके बदन की जलन कम हो पाई। दस ू रे िदन सुबह पुिलस आई।

पुिलस ने िनशा के बयान के िलए उनहे वाडथ से बाहर जाने को कह िदया तािक िनशा सही -सही बयान दे

सके। उनहे भय था िक िनशा गलत बयान दे कर उनहे बनद न करा दे ।लेिकन आग से झुलसने के बाद िनशा ने यह दे खा िक इतना होने के बावजूद हिर उसकी सेवा करने मे कोई कमी नहीं रखने दे रहे ।

इसिलए संभवत: वह ऐसा नहीं करे गी।पुलिस िनशा का बयान लेकर चली गई। जाते-जाते पुिलस ने हिर से कहा ,आप कल सुबह थाने आ जाना।

दस ू रे िदन हिर िनिंषचनत समय पर थाने पहुंचे।टी आई ने उनहे अपने पास िबठाया और िनशा

की मेिडकल िरपोटथ िदखाई और कहा।

`` आपकी पती ने बयान िदये िक सटोव फट जाने से वह जल गई।हम लोग आपके मोहलले के

लोगो के भी बयान

िलये।उनहोने बताया िक उस सी ने अपने हाथो से अपने बदन पर केरोिसन डाला

और मािचस से आग लगा ली।उस वि आप कहॉ ं थे।´´

`` उस वि मै कमरे के बाहर मोहलले के एक मुगव े ाले से बात कर रहा था िक वे मुगे की लड़ाई

कैसे करवाते है ।´´

`` हमने उस मुगे वाले के भी बयान िलये।उसने भी वहीं कहा जो इस वि आप कह रहे हो। आप

जा सकते है । आपकी कोई गलती नही है ।हमने िनशा का िरकाडथ भी दे खा।मोहललेवालो ने भी बताया।षायद वह

मेरा कहना आप समझ रहे है नण ् ´´टीआई चुप हो गया

`` जी´´ उनहोने संकेप मे जवाब िदया और उटकर थाने से बाहर आ गये 0 डाकटस थ ने कहा ,मरीज के पास लेिडस ही रह सकती है आप नहीं रह सकते ।आप िकसी लेिडस की वयवसथा करे ।लेिकन भोपाल के रहनेवाली समाज की कोई भी मिहला िनशा के पास रहने को तैयार नहीं थी।एक रोिगणी सी के पास एक सी का होना बहुत जररी है ।सी वाडथ मे मदो का पवेष वैसे की िनिषद होता है ।जब दे खा िक कोई सी िनशा के पास रहने को तैयार नहीं है तो डाकटस थ ने हिर को िनशा

के पास वाडथ मे रहने की अनुमित दे दी। इस समय िनशा के िलए यह बहुत जररी था िक उसकी दे ख रे ख की जाय।उसे समय पर दवाई ,हलका भोजन,पानी के अलावा उसके षौच आिद कराना भी करना होता था।

िनशा ने दे खा िक वे िदन-रात उसके पास ही रह रहे है । उसकी दे ख-रे ख कर रहा हं ंूं।तब वह

कहने लगी।

`` तुम मेरा िकतना खयाल रखते हो । मैने तुमको बहुत द ु:ख िदया है न ´´

`` जो होना होता है वही होता । यह सारा िकसी के बस मे नहीं होता। इसे अपने भागय का लेखा ही समझ लो।´ उसे ढांढस ली । उनसे जो भी संभव हो वह वयवसथा करने वयवसथा दस ू री सी करती है वह

लगे िकनतु एक सी की जो

हिर से कैसे हो सकती है ।जैसे िनशा को उठा कर िबठाना।उसकी कंधी

करना।यूिरन करवाना,षौच करवाना,मुं ं ंंंह धुलवाना ,कपड़े बदलवाना आिद सारी दे खभाल हिर नहीं हो पा रही थी और समाज की कोई सी िनशा के पास रहने को तैयार नहीं हो पा रही थी। पपपू को

कुछ िदनो तक पड़ौस की पंिडताईन ने संभाला । हिर ने िनशा से कहा ।

`` खणडवा से तुमहारे माता-िपता को बुला लेते है । कुछ तो वयवसथा हो जाएगी।´´ िनशा ने सहमित

दे दी ।उनहोने

हालत दे खी और उसे

तुरनत

खणडवा खबर की । िनषा के िपताजी भोपाल आये। िनषा की

खणडवा ले जाने के िलए तैयार हो गए।डाकटस थ ने अनुमित दे दी ।उसी िदन

अमत ृ सर-दादर एकसपें्रस से िनशा के िपता उसे

िचिकतसा के िलए भरती करवा िदया।हिर कुछ िदन आया। िनशा का छ:माह तक वषथ लग गया। 0

िनशा

खणडवाले गये। उसे

खणडवा िचिकतसालय मे

खणडवा मे रहे और नौकरी संभालने भोपाल चले

खणडवा िचिकतसालय मे िचिकतसा चलते रही।उसे ठीक होने मे पूरा एक

खणडवा से सवसथय होकर भोपाल

पास लौट आई ।रे लवे सटे षन के िजस मकान मे

हिर रहा करते थे। उस मकान मािलक ने उनहे अचानक मकान खाली करने के िलए कहा । लेिकन

संयोगवष उनहे उसी मोहलले मे एक मुिसलम पिरवार के मकान मे एक बड़ा सा कमरा िकराये से िमल गया।इस मकान मे बाहर से आना-जाना था।कमरे

मे दो दरवाजें़ थे िजसमे से एक दरवाजा भीतर की

ओर खुलता था।भीतर की ओर एक छोटा सा आंगन था िजसमे मकान मािलक के पिरवार के लोग भी उठते बैठते थे। मकान मािलक

सागर िजले के रहनेवाले थे।सागर िजले के लगभग सभी मुिसलमो का

रहन-सहन, बोल-चाल जयादातर िहनदओ ु ं के समान ही हुआ करती है । आज भी आप सागर के मुिसलमो

को दे खकर नहीं कह सकते िक मुिसलम है । वे भी दे वी-दे िवताओं को मानते है । इनके घर मे भी दे वीदे वताओं की तसवीरे थी। उनके पिरवार मे मकान मािलक ,उनकी पती,,एक बूढ़ी माताजी और एक लड़का जो लगभग चौबीस-पचचीस वषथ का था, बस इतने ही सदसय थे। हिर को इस बात का पूरा भरोसा था िक इस पिरवार मे रहकर िनशा बहुत कुछ अचछा सीख जाएगी। सुमन का अब भी आना-जाना लगा रहा।

नये मकान मे दो दरवाजे थे।एक आगे की और खुलता था।दस ू रा पीछे के आंगन मे खुलता था।

पीछे के आंगन मे मकान मािलक के मकान का दरवाजा भी खलता था।पिरवारो के सदसयो के िनतयिकया

आिद के िलए पीछे आंगन मे ही सनानागार और षौचालय बने हुए थे। सनानागार और शौचालय के बीच

की दीवार अिधक ऊ¡ची नहीं थी।इस और िकसी ने भी गौर नहीं िकया िक सनानागार और षौचालय के बीच की दीवार को पाट िदया जाए।इस तरह की वयवसथा पर िनषा की िनगाह चली गई।

मकान मािलक के पिरवार मे कुल चार सदसय थे।उनमे एक सदसय िजनकी आयु लगभग पचचीस

बरस की होगी। जाने कब िनषा और उस सदसय के बीच आकषण थ बढ़ा। होता यह था िक जब वह सदसय षौच के िलए शौचालय मे जाया करता था उसी समय िनषा भी सनान के सनानागार मे जाया करती थी।

लगभग तीस-चालीस मीनट के बाद िनषा सनानागार से बाहर िनकलती।ठीक उसी तरह उसी समय

वह

सदसय भी षौचालय से बाहर िनकलता। बहुत समय तक िकसी ने भी इस पिरिसथित की ओर धयान नहीं िदया।मकान मालिकन एक सुबह िनषा से बोली-

``बहन जी!तुमको नहाने मे इतनी दे र कयो लग जाती।कया तुम बाथरम मे सोती हो।आवाज भी

नहीं आती।कया बात है । कया बदन को रगड़-रगड़ के नहाती हो।`` िणनषा हं स के रह जाती।कहती-

`` दीदी!िसर पर पानी डालने से नहाना नहीं होता।सनान करना हो तो अचछी तरह से करना

चािहए।षरीर पर मैल नहीं होना चािहए।तब ही तो नहाना ,नहाना कहलाता है ।``

णमकान मालिकन सुन कर चुप रह जाती।इसी तरह एक बार मकान मालिकन ने उनके पिरवार के उसी

सदसय से पश िकया-

``दे वर जी!तुमको ‘शौच मे आधे घणटे से भी जयादा समय लग जाता है । हां,मै दे ख रही हू¡ िक

जब भी िनषा भाभी नहाने के िलए बाथरम मे जाती है उसी समय तुम भी षौच के िलए जाते हो।कया तुम दोनो ने एक ही समय बना रखा है ।``

`` ऐसी बात नहीं भाभी जी! मुझमे और उनमे िकतना अनतर है ।मुझे कया पड़ी ऐसी?``

णमकान मालिकन दे वर की बात सुनकर रह गई। दो-तीन मिहने इसी तरह वयतीत हो गए।उस िदन िनशा जयो ही सनान के सनानागार मे गई,ठीक उसी समय वह युवक भी शौच के िलए शौचालय मे गया।

मकान मालिकन वसतुिसथित पर गौर िकए हुए थी।लगभग बीस िमनट हुआ होगा।दोनो मे से कोई भी

बाहर नहीं िनकले।मकान मालिकन को कुछ आषंका हुई।उसने चुपचाप सीढ़ी लगाई ।आिहसता-आिहसता सीढ़ी चढ़ गई।सनानागार और शौचालय मे झांककर दे खती है । सनानागर का दषय दे खकर पह दं ग रह गई।िनशा और उनका दे वर सनानागर मे िबलकुल नगनावसथा मे एक दस ू रे से आिलंगनबद।रित और कामदे व का पूण थ िमलन हो रहा था।वस िबखरे पड़े थे।िनशा के केश खूले थे।वह आंखे मूंदे रितिमलन के आननद मे मगन थी।मकान मालिकन के रोगटे खड़े हो गए। वह जोरो से दहाड़ी`` दे वर जी !``

अनायास हुए इस तरह के आकमण से िनशा और वह युवक िबलकुल अनिभज थे।भाभी को सनानागर के ऊपर से झांकते हुए दे ख िनषा के होष उड़ गए।दे वर जी नत मसतक हो गए।भाभी जी आग बबूला हो गई।अंगारे बरसने लगे। िनषा को समबोिधत करते हुए बोलीिक.......

`` कुितया ! तुझको मेरा ही घर िमला था कया।हरामजादी ,िछनाल िनकल बाहर ऐसी खबर लेती हूं

भाभी चीखती रही।दे वर जी शमस थ ार हो सनानागार से बाहर िनकल आए। सीधे अपने मकान मे जाकर दब ु क गए।िनषा वस पहनकर बाहर िनकली।भाभी जी ने िनषा के केष पकड़े ।दो-चार झटके िदए।थपपड़ मारी।िनषा पर थूका।बोली-

`` िछनाल िनकल जा मेरे घर से।आने दे तेरे पित को ।िफर दे खती हूं।``

िनशा ने भाभी जी के चरण पकड़ िलए।बहुत िगडिगड़ाई।आंसू बहाये।बोली-

`` अबकी बार माफ कर दो दीदी । अब िफर ऐसी गलती नहीं होगी।``

`` मै तेरी चाल-ढाल दे ख रहीं हूं।बहुत िदनो से मेरे दे वर के साथ गुल िखला रही है ।अपने आदमी

को धोखा दे रही है िछनाल ।िनकल जा अभी िनकल जा इस घर से ।मकान खाली कर दे ।``

`` भाभी जी! अब की बार माफ कर दो।हम लोग मकान खाली करके चले जाएंगे।माफ कर दो

भाभी जी।``

िनशा के आंसुओं के आगे मकान मालिकन भाभी जी चुप हो गई।वह जानती है नारी की बदनामी अचछी नहीं होती।वह यह भी जानती है िक इस तरह की औरते पितयो को धोखा दे कर औरो से अपना मुह ं काला करती है ।रं गरिलयां मनाती है ।समाज को गनदा करती है । मकान मालिकन भाभी जी ने चुपपी ले ली।

मकान मालिकन भाभी जी ने चुपपी ले लमबे समय तक दो पिरवारो के बीच वाताल थ ाव बनद रहा। हिर

को इस घटना की भनक भी हो न पाई।हिर अपने कायथ मे वयसत रहे ।मकान मािलक और मालिकन

,हिर के वयवहार से अिभभूत थे।उनके चिरत का मकान मालिकन पर गहरा असर था। उनहे मोहलले मे भी पसनद िकया जाता है ।यह सोचकर मकान मािलक और मालिकन कुछ नहीं कह पाए।समय गुजरता गया। ‘

एक िदन अचानक िनशा के पेट मे ददथ उठा।मकान मालिकन को बुलवाया लेिकन उनहोने जयादा

तवजजो नहीं िदया।वह जानती थी िक मामला कया है ।वह दे खकर समझ गई थी।बावजूद वह चुप रही। िनशा को उिलटयॉ ं भी होने लगी। उसके पेट की पीड़ा शानत नहीं हो रही थी। हिर को िनशा का इस तरह तड़पना दे खा नहीं गया। वे बोले `` चलो असपताल चलते है ।´´ िनशा नहीं मानी बोली, ,

``वह खुद चली जाएगी सुमन को लेकर । ``

दोपहर को िनशा और सुमन दोनो भोपाल के मशहूर िचिकतसक डाकटरशाहनी की बहन के पास गई। डॉणशीमती साहनी ने कुछ दवाइयॉ ं िलखी और कहा अपने पित को साथ ले आओ । दस ू रे िदन वे िनशा के साथ डॉ शीमती साहनी के पास गये। डॉणशीमती साहनी के कहा । `` भई आपको इनका एबारशन करवाना पड़े गा । ´´ वे सुनकर दं ग रह गया। बोले- ,

`` डाकटर साहब लेिकन मेरा पिरवार िनयोजन का ऑपरे शन `` िफर यह सब कैसे ´ शीमती डॉणसाहनी ने

पश िकया।

हो चुका है ।यह कैसे संभव होगा ´´

िनशा रोने लगी। वह उनके सीने से लग गई। बहुत रोई। `` अब मै कया करं ´´ िनशा रोते हुए बोली।

`` गलती तुम करो और भुगतना मुझको पड़े ।मेरे पास एबॉरशन के िलए इतनी रकम नहीं है । मै

कहॉ से लाऊ¡।´´

`` कुछ भी करो । यिद तुम मुझको पयार करते हो तो´´िनशा रोते हुए बोलने लगी । हिर ने उसे

गले से लगा िलया।

दस ू रे िदन कहीं से रपये की वयवसथा की और डॉणशीमती साहनी वदारा िनशा का एबारशन करवाया । यह बात मकान मािलिकन को पता लग ही गई। उनहोने कहा-

,``आप यहॉ ं से मकान खाली कर दो। हमारा भी पिरवार है लेिकन इस तरह से नहीं है । आप जा

सकते हो।´´

हिर िकस तरह अपना चेहरा उठाकर बात करे ।वे है रान थे।उनहोने कतई नहीं सोचा था िक िनशा अब की बार इतना बड़ा काणड कर लेगी। 0000 ऐसी िसथित मे इतनी शीघता से मकान तलाशना आसान नहीं था। मंतालय मे एक पिरिचत थे बमन थ जी वे रे लवे सटे षन कॉलोनी के पीछे महामाई बाग मे रहते थे । उनहाने उनके मकान मे पास एक

कमरा िकराये का िदलवा िदया।बमन थ जी के पड़ौस मे वन िवभाग के एक कमच थ ारी मालवीय जी रहते थे। उनकी महामाई के बाग मे बहुत सी जमीन थी।वे उस समय उनकी जमीन के आवासीय पलाट काट-काट कर बेच रहे थे।हिर से कहा गया िक आप भी एक पलाट कय कर लो। हालांिक उनकी है िसयत इतनी नहीं थी िक वे आवासीय पलाट कय करने के िलए इतनी बड़ी रकम दे सके।िफर भी उनहोने िकसी बैक से

फायनेनस करवाकर उनकी जमीन का 20 बाई 20 का पलाट हमे दे िदया। इतना ही नहीं उनहोने पलाट पर मकान बनवाने के िलए भी सहायता करना पारमभ कर िदया।

इसी दौरान िनशा का ममेरा भाई हुकूम उफथ उिम का हिर के

घर आना -जाना पारं भ हो गया।

हुकूम अकेला नहीं आता था उनके साथ एक ईसाई युवक भी आया करता था। हुकूम सांवला रं ग,सामानय

शारीिरक गठन,ऊंचा माथा,अचछी तरह से काढे गए िसर के बाल,ऊंची एड़ी के जूत,सफेद झक् दं त पंिियॉं,सामानय तरह के लोगो की तरह पेट,शटथ षिटि ग करने का आदत,एक हाथ से बड़े किरने से िसगरे ट

पकड़कर पीना वयिि था।इसी तरह वह ईसाई लड़का साढ़े पांच फीट से जयादा ऊंचाई,सामानय कदकाठी,टू टी-फूटी िहनदी बोलता था लेिकन उसे अंगेजी का अचछा जान था।वह भी शिटि ग करता था लेिकन िसगरे ट नहीं पीता था। हुकूम के पास कोई

नौकरी-धंधा नहीं था ।वह िदन भर आवारा घुमता रहता।

बहन है । िनषाके माता-िपता या भाईयो ने

कभी नहीं बताया था िक हुकूम उनके िरशते का है , वह तो

जयादा समय िनशा के साथ रहता था।वह उसे िनशा कहकर ही बुलाता था।कहता था िनशा उसकी ममेरी

केवल िनशा ने ही बताया था। दो-एक बार िनशा उनहे उसके ममेरे भाई के घर भी ले गई थी ।वह

हिमिदया असपताल के पास की एक कॉलोनी मे रहते थे।संभवत:उनका मकान होगा।उनके कुछ िरशतेदार िटलाजमालपुरा मे रहते है ।जात हुआ िक हुकूम के िपता िकसी समय नामी-िगरामी डाकू थे। िजनहोने िकसी समय सरकार के सामने आतमसमपण थ कर िदया था।उनहोने हुकूम के िपता को कभी नहीं दे खा।उनहे

इसमे खास रिच भी नही थी।वे इतना ही जानते और चाहते थे जैसे लोग मेरे साथ वयवहार करते है मुझे उनके साथ वैसा वयवहार कयो नहीं करने दे ते। । वह ईसाई युवक इिमपिरयर होटल मे काम करता था ।

वह बहुत कुछ अचछा वयवहार करता था।उनहे कई बार इिंमपिरयर होटल ले गया था। इस होटल मे

केवल रईस लोग ही जाया करते थे।िफलम हिसतयॉ ं इिमपिरयर होटल मे ठहरा करती थी। एक बार मषहूर अिभनेती हे मामािलनी होटल इिमपिरयर मे ठहरी हुई थी।ईसाई युवक उनहे भी गया था। हे माजी से उनहोने

एक ही पषन पूछा था ,

हे मामािलनी से िमलने ले

`` आप इतनी खुबसूरत कैसे िदखती हो।´´ कयोिक हम कलाकार लोग मेकअप करते है इसिलए इतने सुनदर िदखाई दे ते है ।वासतव मे इतने

सुनदर होते नहीं है ।´´ हे माजी ने कहा था। `` केिमपयन सकूल मे मेरा डानस कायक थ म है आप जरर आइयेगा ।´´

`` जी हॉ ं मुझे िफलम लेखन मे रिच है ।´´ `` बहुत अचछा अचछा नमसते ´´

इसके बाद

उस ईसाई युवक ने हे मामािलनी के डानस कायक थ म के चार

पास लाकर िदये थे ।हे माजी के

डानस कायक थ म को दे खने के िलए हिर, िनशा को साथ मे लेकर गये थे।पपपू तब गोद मे था।वह हे माजी

के नतृय को दे ख-दे ख कर ताली बजाता था। आपको यह भी बता दे ना उिचत लगता है िक िक घर से कायक थ म के सथल तक आनेजाने के िलए हे माजी ने उनहे एक कार उपलबध कराई थी। बस हे माजी से यह उनकी पहली और आखरी मुलाकात थी। लेिकन

वह ईसाई युवक हुकूम के साथ उनके घर

आया-जाया करता था।

हिर बहुत संवेदनषील तो है ही

साथ-ही-साथ भावुक भी है । जरा-जरा सी बात पर मै कुछ नहीं कहा करते।एक बुिदजीवी को

अनगल थ वाताल थ ाप नहीं करनी चािहए । उनके आिफस जाने के बाद वे दोनो सारा िदन

घर पर ही रहा

करते थे।उस समय उनके पास पपपू भी था जो अब लगभग तीन साल का हुआ होगा। धीरे -धीरे घर का मािसक खचथ बढ़ गया।इतना ही नहीं अब हुकूम और वह ईसाई युवक उनके घर पर डे रा डाल िदया। िनशा को समझाया िक भई यह ठीक नहीं। एक तो सवयं िकराये के एक कमरे के मकान मे रहते और उस पर इन लोगो का साथ रहना उिचत नहीं है । िनषा कहा करती थी हुकूम उसका ममेरा भाई है और वह युवक

हुकूम का िमत है , आप िबलावजह शक करते हो। उनहे समझ नहीं आ रहा था िक एक कमरे के मकान मे

िबना पूव थ पिरचय के दो अनजाने लोगो का साथ मे रहना िकतना गलत और बेमानी है । उनहोने इसके पूव थ न कभी हुकूम तो और न कभी उस ईसाई को दे खा था।बचपन से लेकर भोपाल मे आने तक और इतने

लमबे समय तक हिर के अकेले रहने तक भी ये लोग कभी हिर के पास दो पें्रम के लबज भी

बोलने नहीं आये। तब ये लोग कहॉ ं थे और अब अचानक िरशतेदार कैसे हो गए ।

बुजुगो का कहना है िक पिरवार मे रहने पर पित-पती को एक दस ू रे पर शक नहीं करना चािहए।

मेरा इतना मंतवय है िक षक करना तब ही लाजमी होता है जब कोई वयिि अनजाना होता है और

आपके घर मे आपकी पती के कहने पर डे रा डाल रहा होता है । नािरयॉ ं कहती है उनके पित उन पर शक करते

है । िपतयॉ ं गैर मदो से दोसती करती है तो उसे वह जायज मानती है औ गैर मदथ को इतनी

सुिवधाएं दे ती

है िक उसका पित अलग-थलग हो जाता है । लेिकन यिद कोई

मदथ िकसी औरत से दोसती

करे तो उसकी पती पित को आड़े हाथ ले ही लेती है ।यह कहॉ ं का नयाय। यह सरासर गलत है । यिद पती गैर मदो से दोसती करके मनमाना कर सकती है तो पित िकसी गैर औरत से दोसती करके मनमाना कयो नहीं कर सकता ।इसमे षक की गुंजाइश ही नहीं है ।

िववाह के बाद से िनशा ने अनेको पुरषिमत बदले यथा-वह इलाहाबादी ,िकसन ,वह खान भाई,वह

िमयॉ ं भाई,वह सुरेश,वह सुमन के मदथ िमत, वह मुिसलम पिरवार का एक कुंआरा बेटा और अब हुकूम और

उसका ईसाई िमत । यह सब लोग हिर अकेलेपन मे कहॉ ं थे ।जब िनशा ने हिर को

हथकड़ी पहनवाई थी

तब एक पुिलसवाले ने कहा था ।

`` गलती आपकी है ।अरे भई । जमाने के िहसाब से चला करो। आपकी बीवी ने िकसी से दोसती

की है तो कौन सी बुरी बात है ।´´

`` दे िखएं सर । मेरे सथान पर यिद आपकी बीवी होती तो आप कया करे ंेगे ।उनहोने पुिलस वाले

से कहा।

बस िफर कया वह पुिलसवाला इतना कोिधत हो गया िक

इतनी जोरो से थपपड़ रसीद दी िक पूरे दो माह

तक हिर के कान मे ददथ बना रहा ।बस यही बात है िक जमान कहता तो है दस ू रो के बारे मे लेिकन जब उनकी आप पर बात आती है तो तुरनत ही दस ू रा रख हो जाता है । यही िसथित यहॉ ं उतपनन हो गई थी। उनहोने हुकूम से कहा तो वह भी कहने लगा ,आप िबलावजह शक करते है लेिकन

ठीक है तुम यहॉ ं रहो मै तुमहारी बहन के पास रहना चाहता हूं तो वह कहने लगा

जब उनहोने कहा िक

मेरी बहन आपको

अपने पास कयो रहने दे गी। हिर ने कहा तो िनशा तुमको अपने पास कयो रहने दे रही है । तुमको तो मैने कभी दे खा भी नहीं है । इसका उसके पास कोई जवाब नहीं था।

महामाई के बाग मे जो पलाट खरीदा था वहॉ ं एक कमरा बनवा िलया। कुऑ ं खोदने के िलए िकसी

अनय को

दे िदया था।कुंऐ मे पानी आना पारं भ हो गया था। वे पितिदन एक सपाह तक कुंएं के भीतर

उतर कर उसके पानी की सतह का पता लगाते रहे तथा और अिधक गहरा खुदवाने के िलए कामगारो को कहते रहे ।

एक ओर वे नौकरी भी कर रहे है ।दस ू री ओर महामाई के बाग मे मकान भी बनवा रहे है । िनशा

बेगम अपने दरू के िरषते के ममेरे भाई

हुकूम और उस ईसाई युवक के साथ महामाई बाग के खेतो मे

सारा-सारा िदन रं गरे िलयॉ ं मनाने लगी।सनधया को जब वे आिफस से लौटते और मोहलले के लोगो के साथ

बैठते है । सारे िदन की जानकारी िमल जाती। दो-चार बार अनायास घर लौटने पर िनशा बेगम को उन दोनो के साथ महामाई बाग के खेतो मे रं गरे िलयॉ ं मनाते हुए पकड़ा गया

लेिकन वह और उसका ममेरा

भाई हुकूम कहता रहा िक आप तो खामखह हम पर शक कर रहे हो । हिर ने कहा

भाई तुम मुझे

अपनी बहनो के साथ ऐसी रं गरे िलयॉ ं करने दो।हिर के कहने पर िनशा भड़कक जाती। पूरे चार-छ:माह तक यह चलता रहा ।

एक िदन सनधया को आिफस से लौटने पर महामाई बाग के मोहलले के लोगो ने कहा-

``भाई , आप लोग इस मुहलले से चले

जाओं। िफर कभी इस मोहलले मे नहीं आना। आप लोगो के यहॉं

रहने से हमारे पिरवारो के सदसयो पर बुरा पभाव पड़ रहा है । हमारे बीवी-बचचो पर इनका कैसा पभाव पड़

सकता यह आप ही बता सकते है । आपकी औरत के चालसलन सही नही है और हम लोग इजजतदार-घरपिरवार के लोग है ।यह आवारगी यहॉ ं नहीं चलेगी ।इससे बेहतर है िक आप लोग िबना कुछ कहे इस

मुहलले को खाली कर दो।अनयथा हमे ही कुछ करना होगा।आपतो आिफस चले जाते हो।यहॉ ं सारा-सारा िदन कया-कया होते रहता है आपको कया पता।हमे मोहलले मे कोई तबायफखाना नहीं खोलना है ।``

मोहलले के लोगो की बाते सुनकर हिर का िसर शम थ से झुक गया। महामाई बाग के लोग कहने लगे-

,हमे आपसे कोई िशकायत नहीं है लेिकन आप घर तो

नहीं रहते ।आप के नौकरी

पर जाने के बाद ही

यहॉ ं तमाशा होता है ।अचछा खासा खेल पारमभ हो जाता है ।``

अब उनके पास दस ू रा िवकलप भी नहीं था।इनसान का जीवन कांटो भरा होगा ,यह उनहे नहीं पता

लेिकन जब और लोगो के भरे -पूरे हं सते-खेलते पिरवार और उस पिरवार की औरतो को दे खते है तो उनका

हदय फट-फट जाता है िक लोगो के घरो की औरते िकतने अचछी तरह से पािरवािरक और सामािजक जीवन िनवाह थ करती है लेिकन िनशा कयो नहीं करती।आिखर वह चाहती कया है । गैर मदो की संगत

िकतना बदनाम करती है ।घर-पिरवार टू टते है ।सारा सब कुछ तबाह हो जाता है । पिरवार का नामो-िनशान समाप हो जाता है । ऐसा कयो ।

अनतत: मे महामाई बाग का वह बना बनाया एक कमरा ,कुंआ और पलाट सिहत मात चार हजार

रपये मे बेच िदया।अब तक कज थ भी बहुत हो गया था।अत: सारी रकम कजद थ ारो को बांट दी । िनशा ने कुछ नहीं कहा।वह केवल दे खती रही ।

महामाई-बाग के दस ू रे मोहलले मे उनहोने एक दस ू रा कमरा िकराये पर ले िलया ।कमरा काफी बड़ा

था।एक आंगन भी था।उस वि महामाई के बाग मे जयादा मकान नहीं बने थे। जो कमरा िकराये पर िलया था वह रासते पर ही था। िनशा का ममेरा भाई हुकूम और वह ईसाई युवक लगभग एक माह तक

नहीं आये। षायद िनशा की बेचैनी बढ़ गई थी।एक िदन षाम को जब हिर आिफस से घर लौटे ,हुकूम ,ईसाई युवक और साथ मे एक गोरािचटटा लगभग पचचीस वष थ की आयु का एक मुिसलम यवुक तथा िनशा पपपू को गोद मे िलए कहीं से आ रहे थे। कहा।

हिर को दे खकर हुकूम और िनशा हं स दी थी। िनशा ने

`` आज बहुत मजा आया। है न हुकूम । ´´ `` कैसे भई जरा मुझे भी सुनाओं ।´´

`` आज हम लोग िफलम दे खने गये थे।बहुत अचछी िफलम थी।´´ िनशा ने बताया। `` चलो अचछी बात है । तुम खुश तो हो ।´´

`` हॉ ,मुझे कया हआ है । ´´िनशा ने हं स िदया आज िनशा को हं सते दे ख उनहे बहुत अचछा लगा । वे सोचने लगे , चलो कोई बात नहीं।िकसी के साथ िफलम दे खना बुरी बात नहीं ।खाना-घुमना,मौज-मसती करना अचछी बात है ।सब कुछ करो लेिकन वह न करो जो मानवीयता के पक मे नहीं है । उनका िसदानत भी यही है ।वे सभी को यही कहते है िक सब कुछ करो लेिकन वह न करो जो मानवीयता के पक मे नहीं है । इनसान को

हमेषा बहुत अचछे से रहना

चािहए। वह काम कभी न करो िजससे अवगुण उतपनन होते हो और उसका पितकूल पभाव पिरवार और समाज पर पड़ता हो।अिपतु वह कायथ सदै व करो जो इनसान,पिरवार,समाज और दे ष के िहत मे हो । यह नया युवक उसी मकान के मािलक का बेटा था जो

िकराये से िलया था। उस समय उनकी

आिथक थ िसथित बहुत खराब चल रही थी। िदन मे ऑिफस मे काम करने के बाद पाटथ टाइम मे मंतालय की केिनटन के िहसाब का कायथ शी धमरथाज िसह साहब ने िदलवाया था जो वे पाटथ टाइम मे िकया करते

थे।यह काम बहुत ही कम समय मे पूरा हो गया था ।अब उनके पास पाटथ टाइम का काम नहीं था आिथक थ िसथित बहुत खराब थी। तभी उस गोरे िचटटे

मुिसलम युवक ने उनहे एक लकड़ी के आरे पर

िहसाब-िकताब का काम पाटथ टाइम मे लगवा िदया था । महामाई के बाग से वह लकड़ी की आरा-मशीन जयादा दरू नहीं थी।पुलबोगदा के पास ही थी।हिर वहॉ ं जाया करते थे। एक माह तक उनहोने उस आरामशीन पर काम िकया ।

एक षाम आरा- मशीन के मािलक ने

`` आज कोई काम नहीं है । आज छुटटी है ।``

कहा-

वे घर लौट आये। घर का दरवाजा आधा लुढ़का हुआ था। हिर ने दरवाज ढकेला।कमरे का दषय दे खकर

हिर आषचयच थ िकत हो गऐ।

कमरे मे िनशा और वह मुिसलम लड़का था ।मुिसलम लड़मका पूरी तरह से

िनशा पर झुका हुआ था। िनशा के अधोवस अलग थे। वह िनषा के होठो पर िचपका हुआ था।िनशा िनषचेष और खामौश थी ।कमरे की िसथित दे खते ही

उनहे इतना जयादा गुससा आया िक आव दे खा न

ताव उस मुिसलम युवक को िपटाई षुर कर दी । उसे पता नहीं था िक यह अचानक ऐसा हो जाएगा ।

वह अचकचाया । िनशा अपराधी सी हाथ बांधे खड़ी रही । उसका सारा बदन बुरी तरह से कांप रहा था। वह हिर िलपट पड़ी । वे समझ गए िक संभवत: यह युवक अपनी ओर से जयादती कर रहा था। िफर भी वह बोला।

`` मेरी कया गलती । ये ही कह रही थी ।´´

हिर उस युवक को पीट रहे थे ।वह युवक भाग खड़ा हुआ । उस मुिसलम युवक ने उनहे अब आरा-मशीन के काम से हटवा िदया। एक माह का मेहनताना भी नहीं िदया। अब तक हिर की

आिथक थ िसथित बहुत िबगड़ गई थी। हालांिक पिरवार मे

दो सदसय यानी हिर

सवयं ,िनशा और पपपू जो अभी चार वष थ की आयु का ही होगा लेिकन नौकरी से पाप वेतन कम पड़ता

था। जो वेतन आता था उससे पूरा मिहना खच थ चलाना होता था।वेतन पूरा नहीं पड़ता था। पाटथ टाइम जॉब भी बनद हो गया था। अब हिर के सामने कोई दस ू रा िवकलप नहीं था । एक िदन घर मे आटा नहीं था या यो कहे

िक भोजन बनाने के िलए कुछ भी नहीं था।पपपू के

दध ू के िलए भी जेब मे एक रपया भी नहीं था। सुबह िनशा ने कहा ‘

`` घर मे बनाने के िलए कुछ भी नहीं है , बचचा भूखा कैसे रहे गा ।´´

उनकी ऑख ं ो मे ऑस ं ू भर आए । बोले-।

`` आज मै आिफस नहीं जाऊ¡गा बिलक कोई पाइवेट काम दे खूंंंगा।भगवान ने चाहा तो ‘शाम को

कुछ न कुछ वयवसथा हो ही जाएगी ।´´

िनशा ने िडबबे मे दे खा,उसमे रात की कुछ रोिटयॉ ं रखी थी। वे। `` यह तुमहारे िलए अभी के िलए हो जाएगा।शाम तक वयवसथा करके ही रहूंगा।´´

िनशा ने दो रोिटयॉ ं कागज मे बांध दी और दो रोिटयॉ ं अपने िलए रख ली । पड़ौस मे गाय बंधती थी। पड़ौसी ने आधा लीटर दध ू अिमत के िलए दे िदया।उनहोने रोिटयो अपनी जेब मे रख ली और घर से िनकल पड़े पायवेट काम की तलाष मे ।

घर से िनकले समय कुछ पुराने कपड़े पहन िलए तािक बहुत ही सामानय सा लगू।ऐसा न िदखे

िक हिर िकसी ऑिंफस मे नौकरी कर रहे होगे।घर मे कुछ पुराने फटे से कपड़े थे । वे ही पहन िलए । रासते मे दो-चार मजदरू िदखाई िदये । उनसे पूछा।

`` इधर मजदरूीवाला काम कहॉ ं िमल सकता है । ´´ `` तुम मजदरूी करोगे ´´ एक ने पूछा । `` हॉ ं मै मजदरूी करंगा ।´´ `` कया काम करोगे तुम ´´

:: कुछ भी जो मजदरूी मे िमल जाएगा ।´´ `` ठीक है चलो हमारे साथ ।´´

उन मजदरू लोगो के साथ हिर बुधवारा माकेट पहुंचे। बुधवरा माकेट मे सुबह-सुबह बहुत से मजदरू काम की तलाष मे आते है । वहॉ ं बहुत से मजदरूो को दे खकर लगा िक यहॉ ं से काम िमल ही जाएगा। हिर भी

उन मजदरूो के साथ एक जगह बैठ गये।हिर इस कशमकश थे िक उनहे दे खकर कोई काम नहीं दे गा कयोिक उनकी शकल-सूरत मजदरू जैसा नहीं लग रही थी।

एक ने पूछ ही िलया ।

`` कहॉ ं तक पढ़े -िलखे हो ।´´हिर के िलए इस पषन का उिर िदया जाना बहुत किठन लग रहा था

।यिद इस पषन का उिर दे िदया तो कोई मजदरूी का काम दे गा नहीं और यिद काम नहीं िमला तो ‘शाम को घर मे कुछ पकेगा नहीं।यिद कुछ पकेगा नही तो िनशा ,उनहे और अिमत को भूखा सोना पड़े गा। हिर

की ऑख ं ो के सामने रोटी के दशय उभरते िदखाई दे रहे थे। माता-िपता के राज मे कभी भूखे नहीं रहे और न कभी इस तरह की मजदरूी की ।इस वि सरकारी नौकरी होकर भी मजदरूी करना िववषता हो रही है । ऐसे समय मे सच उदािटत कर िदया तो काम िमलने से रहा । भूखा सुलाना और सोना तय है । उनहोने अपनी िषका की बात छुपाना जररी समझा और कहा।

`` मै तो केवल तीसरी तक पढ़ा हूं।आगे पढ़ नहीं पाया।´´ `` कहॉ ं के रहनेवाले हो ।´´ `` खणडवा िजले खणडवा´´

वे हकलाते हुए बोले ।

मजदरू समझ गए िक अवषय ही कोई बात है । एक बोला -

``लगता है तुम िकसी अचछे पिरवार से आये हो ´´हिर ने हॉ ं मे िसर िहला िदया।षायद उन

मजदरूो को हिर पर तरस आ गया । एक बोला । `` तुमको काम िमल ही जाएगा ।´´

तभी एक ठे केदारनुमा वयिि आया । उसे मजदरूो की आवयषयकता थी। बोला ।

`` मकान बनाने का काम है ।मजदरू चािहए । कौन कौन काम करे गा ।´´

णहिर उठ खड़ा हुआ । ठे केदार ने उनकी ओर दे खा ।बोला । `` तुम भी काम करोगे।´´ `` जी हॉ ं ´´ मै बोला ।

`` पांच रपये िमलेगे । मकान बनाने का काम है । करना होगा ।´´ `` जी हॉ ं कर लूंगा ।´´ हिर ने िसर िहलाकर कहा । मजदरूी की बात पककी हो गई। ठे केदार ने दो

िमसी और दो मजदरूो को चलने को कहा ,िजसमे एक

मजदरू हिर भी था। भोपाल के िगननोरी मे िकसी के दस थ काय थ चल रहा था। उनसे ू री मंिजल पर िनमाण

कहा गया , तुम सीमेट और रे त िमलाकर माल तैयार करोगे और तगाड़ी से उठाकर ऊपर पहुंचाओगे । वे

ठे केदार के कथनानुसार िमसी के मागद थ शन थ मे सीमेट और रे त िमलाया करते। भरकर ऊपर पहुंचाया करते। यह काम

माल तैयार कर तगाड़ी मे

उनहोने कभी िकया नहीं था लेिकन उनहे यह अनुभव था कयोिक

खणडवा पावर हाउस मे कोयला बॉयलर मे वे कोयला डालते और उसकी राख िनकालते थे।सो यह काम किठन तो नहीं लगा लेिकन तब से अब तक का अनतराल बहुत लमबा हो गया था और आिफस मे काम

करने के अलावा अनय काम करने की आदत छूट गई थी ,इसिलए थोड़ी थोड़ी दे र मे थक जाया करते थे । थोड़ा सुसताते िफर काम करने लग जाते थे। ठे केदार िमसी को काम समझाकर चला गया था । अब सारा िदन िमसी के अधीन उसके मागद थ शन थ मे काम करना था। मकान मािलक बीच-बीच मे आ जाता था ।मकान मािलक ने हिर को रक-रक कर काम करते दे खा ।कई बार दे खा ।संभवत: वह समझ गया होगा िक इनहे काम करने का आदत नहीं है । मकान मािलक हिर के काम को दे खकर भी अनदे खा करते रहा । लेिकन पता नहीं उसे कैसा आभास हुआ । बोला।

`` लगता है आपको मजदरूी का काम करते नहीं आता ।´´ `` जी नहीं । ऐसी तो कोई बात नहीं ।´´

णहिर थोड़ा अचकचाये तािक जािहर न हो पाये िक वे आिफस मे काम करने के आदी है और मजदरूी मे

कोई बाधा उतपनन न हो । मकान मािलक की नजरो से बचना उनके िलए किठन था । वह बोला । `` और कुछ काम करते हो कया । नहीं नहीं नहीं मुझे ऐसा लग रहा है ।´´

वह संभािवत

सा हो कह रहा था। हिर कीऑख ं ो मे ऑसू आ गये । मै बोले-

`` सर जी ! वैसे मै मंतालय मे कलकथ हूं लेिकन वि ने ऐसे हालात िदखाना ‘शुर िकया िक...´´

वे अिधक बोल नहीं पाये । मकान मािलक समझ गये। बोले-

`` मैने तुमहे बुधवारा मे कई बार दे खा है । तुम वहीं रहते थे। सही है न ´´

हिर ने हॉ ं मे िसर िहलाया । िफर वह मकान मािलक िबना कुछ बोले चला गया ।षाम को जब काम खतम हुआ।ठे केदार ने हिर को उस रोज की मजदरूी पॉच ं रपये दी । मकान मािलक वहीं उपिसथत थे ।वे बोले-

`` इस वयिि को एक रपया जयादा दे दो।´´ `` कयो ´´ ठे केदार ने पूछा

`` मेरी ओर से इनको इनाम है ये ´´ मकान मािलक ने कहा । ठे केदार ने हिर को एक रपया अिधक िदया । उनहोने मकान मािलक और ठे केदार को धनयवाद िदया ।

आज यह पांच रपये हिर के िलए बहुत ही मूलयवान थे।वे शाम को घर गये। िनषा,हिर का इनतजार कर

रही थी।वेतन दस ू रे िदन िमलनेवाला था ,इसिलए अिधक िचनता की आवषयकता नहीं थी। सरकारी नौकारी करते हुए वह मजदरूी वाला िदन उनहे आज भी याद है ।

अब हिर ने तय कर िलया िक वे यहॉ ं से भी मकान खाली करे गे अनयथा कुछ भी घिटत हो

सकता है । वह मकान खाली करने की उस रात िनशा सारी रात हिर के वक से लगी रोती रही । पता नहीं िनशा को कया कमी थी जो वह गैर मदो के पित आसि होती रही । जब उससे पूछा जाता िक

बताओ हिर मे कया कमी है ।वह इस पषन का उिर केवल इतना दे ती उनमे कोई कमी नहीं है ।उनकी

कोई गलती नहीं है । बावजूद वह पथभष कयो हो रही है । पिरवार और समाज की अनय मिहलाओं की तरह पािरवािरक और सामािजक जीवन कयो नहीं अपनाती । 00 हिर ने अपने बड़े भैया और भाभी को सारी बात बता दी । उनहोने सलाह दी िक तुम लोग जवाहर चौक के बाण गंगा मे बने एलआईजी कवाटथ स थ मे कोई मकान लेकर यही हमारे पास रहो। भैया-भाभी की सलाह पर हिर ने महामाई बाग का वह मकान खाली कर जवाहर चौक,बाणगंगा मे शी वमा थ जी एलआईजी मकान का एक कमरा िकराये से

के

ले िलया।यह मकान बड़े -भैया के मकान से मात पचास गज

की दरूी पर होगा।जहॉ ं से भैया-भाभी या उनके पिरवार के सदसय

आकर नजर रख सके । शीवमाथ जी का

मकान काफी छोटा था।उनहोने एक कमरा उनहे िकराये पर दे िदया ।उनका पिरवार दस ू रे कमरे मे रहने

लगा ।वमा थ पिरवार उसी एक कमरे मे गुजारा करने लगे।उनके पिरवार मे वमाज थ ी,उनकी पती और दो बेिटयॉ ं थी।वे लोग बहुत सजजन थे।बडा कमरा उनहे दे कर वे एक छोटे से कीचननुमा कमरे मे रह रहे थे।

संभवत:उनहे िकरायादार िववषता मे रखना पड़ा हो।उनहोने बताया िक उनको कम वेतन िमलता है और इतने कम वेतन मे उनके पिरवार का पूरा नहीं होता ।इसिलए कमरा िकराये से दे ना पड़ा ।

अभी जवाहर चौक के पास एक िनजी मकान िकराये से लेते हुए अिधक समय नहीं हुआ था।हुकुम और उस इसाई युवक ने मकान का पता लगा िलया।वे दोनो उस समय आते जब हिर अपने घर पर नहीं

होते।ऐसे समय मे हिर हालांिक बहुत िनििनत हो गए थे िकनतु उनहे यह जात नहीं हो पाता िक उनके घर से िनकलने के बाद िनषा सवचछनद हो जाया करती।यहा¡ भी धीरे -धीरे िनषा के िमतो की संखया बढ़ने लगी।कुछ ही िदनो मे िनषा के नये िमत बन गए।उनमे से एक िमत ``शी`` भी है ।

``शी``के िपता वन िवभाग के िकसी उचच अिधकारी के पद से सेवािनवि ृ हुए थे।शी के पिरवार मे

उनके अलावा उनकी बहुत सुनदर पती और दो छोटे -छोटे बचचे थे । शी

रे िडमेट गारमेनसट का िबजनेस

िकया करते थे। उनकी नयू माकेट मे एक रे िडमेट गारमेनसट की दक ु ान है ।उनका वयवसाय बहुत अचछा

चलता था। शी का कद लगभग साढ़े पांच फीट,नाक-नक तीखे,गौर वण थ और भूरी सी ऑख ं े ,हं स-मुख सवभाव,िमलनसार और धीरे -धीरे बात करनेवाला युवक ।उम ,जयादा से जयादा 35 वषथ के आसपास होंागी । वह हमेषा हं स कर बात करता था। हिर को अब तक यह जात नहीं िक िनशा ने शी से िमतता कैसे

कर ली।वह शी की दक ु ान पर भी जाने लगी।शी की दक ु ान मे रे िडमेट कपड़ो की िसलाई का काम होता

था।शी पितिदन कुछ कपड़े िनशा को िसलने के िलए दे ता था। िनषा को एक अचछा काम करते दे खकर सबको अचछा लगा , हिर को भी अचछा लगा िक चलो कम से कम िनशा अब अचछा काम करने लगी ।

अब हिर पितिदन शी की दक ु ान पर जाते कपड़े ले आते। िनशा उन कपड़ो की िसलाई करती दस ू रे िदन िसले कपड़े

शी की दक ु ान पर

दे ने के िलए हिर ही जाते। िनषा को अचछे कायो मे संलगन दे ख हिर उसे

िसलाई मषीन खरीद दी। िनशा के काम को दे खते हुए खुषी होती रही िक अब वह अचछे काम मे मन लगाने लगी।

इसी दौरान बेटी संजू को

खणडवा से िपताजी के घर से अपने पास बुलवा िलया। पपपू और संजू

को जवाहर चौक पर चलने वाले एक िनजी सकूल मे भरती करवा िदया। दोनो बचचे अब सकूल जाने लगे थे और सब कुछ वयविसथत होने लगा । माचथ-अपरे ल के िदन थे।

िनशा और शी के बीच ऐसा कया होने लगा िजससे शी की पती ने

बगावत कर दी। मकान मािलक शी वमाथ ने बस इतना ही कहा- ,

``भाई साहब, माफ करना ,अब साथ मे गुजर-बसर नहीं होगा।हमे नहीं चािहए आपके जैसे िकरायेदार । आप कृ पया मकान खाली कर दे ।`` शीमती शी ने

कोई िषकायत नहीं की।बस वह रोये जा रही थी िक उसके टू टते पिरवार को िजस िकसी

तरह बचा िलया जाय।शीमती वमा थ ने सारी दासतान कह सुनाई।शीमती वमा थ ने बताया िक हिर जाने के

बाद िनशा ,शी को बुलवा लेती थी और दो-तीन घंणटे तक कमरे का दरवाजा बनद रहता । इतना ही नहीं न जाने और िकतने-िकतने लोग आते है । वह ईसाई लड़का दो चार लोगो को लेकर आता है । उसका

ममेरा भाई भी लड़को ंंके साथ आता है और घर मे हुडदं ग चालू हो जाती है । धीरे -धीरे सारे मोहलले मे बात फैल गई। बचचे लोग सुबह दस बजे सकूल चले जाते थे और दो बजे तक घर आ जाते थे ।इस दरिमयान जो कुछ भी होना होता वह सारा हो जाता है । इसका उनके पिरवार पर बुरा असर हो सकता है । मोहलले के लोगो ने भी मकान खाली कराने का िनवेदन िकया।

बचचो की परीका के बाद हिर ने जवाहर चौक बाणगंगा का वह एलआईजी का कमरा खाली कर

िदया और नेहर नगर मे ई डबलयू एस का एक मकान िकराये से िलया । नेहर नगर मे उस वि

हाउिसंग बोडथ वदारा कालोनी बसाई जा रही थी। मकान जयादा नहीं बने थे।कुछ लोगो ने अपनी जमीन पर

िनमाण थ काय थ पूरा कर या तो सवयं रहने लगे या िकराये से दे िदया।हिर ने एक पूरा मकान िकराये

से ले िलया। उसी समय हिर को दै िनक सतपुड़ावाणी मे सहायक समपादक का पाटथ टाइम जॉब िमल गया था।

पता नहीं कया िसथित रही होगी ।हिर को अब तक जात नहीं ।हॉं, लेिकन आज भी िनशा और शी

की िमतता बरकरार है ।

आज इनसान आधुिनकता की दौड़ मे दौड़ तो रहा है लेिकन वह िकस िदषा मे दौड़ रहा है । ,कयो

दौड़ रहा है वह इस दौड़ मे कयो षािमल होना चाहतता है । यह पड़ताल बहुत जररी है अनयथा इनसान को

पता हीं नहीं चलेगा िक वह िकस िदषा मे िकस उददे षय को लेकर दौड़ रहा है । उस दौड़ की साथक थ ता मानव-पिरवार और समाज के िहत मे है तो हुत जररी है यह दौड़ अनयथा जीवन के उिराधथ मे पछताने के अलावा कुछ भी हािसल नहीं होगा । यिद जीवन मे उिराध थ मे भी पछतवा नहीं हुआ तो समझो

आपका जीवन िनरथक थ ही गया। लेिकन िनशा आज तक हिर के इस पेम को समझ नहीं पाई है । कहा गया है िक इनसान िकसी से पहली बार पेम करता है तो वह जीवन भर तक भूलता नहीं है । हिर ने भी पहली बार सगाई के पहले िनशा को पेम के िलए चुन िलया था िफर कयो न उससे पेम करे यिद उससे पेम नहीं होता 00 ण्

तो संभवत: हिर िकसी से पेम नहीं कर पाते । पेम. पेम सीखाता है और कुछ नहीं ।

यत न ायथ सतु प ूजयनत े रमनत े त त द ेव ता : हमारे ऋिषयो ने कहा है िक जहॉ ं नािरयो की पूजा होती हौ , वहां दे वता िनवास करते है । अथात थ ् जहॉ ं नािरयो का आदर सतकार होता है ,वहां दे वता िनवास करते है और वह सथान आननददायी सुख समविृद समपनन हो जाता है । लेिकन यह नहीं कहा गया है िक िकस शण े ी ,िकस योगयता की नारी का होना जररी है ।कया वह नारी जो चाणकय की पिरभाषा के अनुसार तीसरे शण े ी की यानी िनमनसतर

की है उसके आदर सतकार की भी बात कही गई है ।कया चिरत से पितत नारी को भी पिरवार के सदसय वो ही सममान दे जो पथमशण े ी अथवा िितीयशण े ी की सदाचारी है ।इस िवषय पर संभवत:अब तक िकसी िववदान ने कुछ नहीं कहा है । िजस तरह नारी के िबना घर,पिरवार और समाज की कलपना नहीं की जा

सकती उसी तरह पुरष के िबना भी नहीं की जा सकती । सुसंसकृ त घर,पिरवार और समाज के िलए पिरवार,समाज और दे ष को वयविसथत बनाये रखने के िलए सुसंसकृ त नारी का होना अितआवषयक है ।एक

अकेले पुरष के यह संभव नहीं है और न ही एक नारी के िलए संभव है । घर-पिरवार और समाज नािरयो के सुसंसकृ त होने पर ही सभय कहलाता है ।यिद घर -पिरवार और समाज की नािरयॉ ं सुंसंसकृ त नहीं होगी तो घर-पिरवार और समाज को बचाये जाना बहुत किठन है ।यह कहा जाता है िक सािहतय समाज का

दपण थ है इसिलए जो सािहतय मे कहा जाता है वह समाज का आईना है ।हमारे सािहतयकारो ने उस पदथ ण के समक नारी का वह रप नहीं रखा है जो िवभतस ,कूर,आततायी , सामािजक एवं मानवीय मयाद थ ाओं

तथा संवेदनाओं के पितकूल है । यह सवीकाय थ है िक नारी अवषय ही पूजनीय है ।मै उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजसने सवयं के साथ-साथ पािरवािरक,सामािजक,राषीय मयाद थ ाओं को महतव िदया है । मै उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजसने अपने अहं कार को तयाग कर मानवता के िलए मानवीय कततयो का

िनवह थ न िकया है ।मै उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजसने पिरवार,समाज और दे ष को कुछ िदया है । मै

उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजनहोने अपने अिसततव को ऊचाइयो तक पहूंचाया है ।मै उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजसने पुरश के कांधे से कांधा िमलाकर चलने की कोिशश की हो । मै उन नािरयो को नमन ् करता हूं िजनके समक् सवयं ही पुरषो का मसतक नत हो जाता है । तब ही उन नािरयो की पूजा यानी सतकार िकया जाना साथक थ होगा।

जब नारी घर से बाहर की आबो-हवा की षौिकन हो जाती है तब वह पािरवािरक अनुशासन मे

रहना पसनद नही करती । वह पिरवार मे कम िकनतु पिरवार के बाहर जयादा रिच लेने लगती है । नािरयो के बारे मे एक मनोवैजािनक तथय यह

कहा जाता है िक वह अपने िदमाग से काम नही लेती या लेना

नहीं चाहती। वह अकसर अपने हदय मे उठे िवचारो को जयादा अहिमयत दे ने लगती है । कुछ मामलो मे वह अपने िदमाग से िनणय थ लेने मे या तो लापरवाही करती है अथवा समुिचत िनणय थ नहीं ले पाती ।

अकसर माना जाता है िक वह अपने िदमाग से िनणय थ नही ले पाती । वह अकसर उन लोगो को जयादा

पसनद करती है जो उसके हदय के मुतािबक या तो बात करते है अथवा उसी के मन मुतािबक वयवहार

करते है । जयादातर मदथ औरतो को लुभानेवाली बाते करते है । इस तरह के मदथ औरतो को अपनी ओर आिकषत थ करने मे िनपुण होते है । िजसमे नारी को कोई लाभ नही िमलता बिलक नारी की मनोदषा

उसके िवचारो के पितकूल हो जाती है । मदथ यिद औरतो की हा¡ मे हा¡ िमलाये तो वे आसानी से मदथ का अनुसरण करने लगती है । पिरणामत: वह वही करना उिचत समझती है जो उसे घर-पिरवार के सदसय के अलावा कोई गैर वयिि समझाइश दे ता है ।उसके सामने पिरवार के सदसय की समझाइष कोई मायने नहीं

रखता । यह तथय उन नािरयो पर जयादा सतय सािबत होते है जो सामानय अथवा िनमन शण े ी की मानिसकता और बौिदकता रखती है । वह यह समझने लगती है िक उसकी िवचारधारा और उसकी बुिद िबलकुल सही और बेहतर िसथित मे है और उसके िवचारो की अहिमयत पिरवारवाले नहीं बिलक बाहरवाले

जयादा रखते है । तब वह घर मे नहीं बाहर जयादा रिच लेने लगती है । उचच मानिसकता और बौिदकता वाली नािरयो की बात सामानय और िनमन शण े ी की नािरयो से िभनन होती है । वे जयादा चतुर और समझदार होती है । चाणकय ने नािरयो का मानिसकता और बौिदकता के आधार पर वगीकरण िकया है

जो आज के नये पिरवेष मे िबलकुल उिचत पतीत होता है । िजसमे उचच शण े ी मधयम शण े ी और िनमन

शण े ी की नािरयो का उललेख िमलता है । जािनयो ने यह जो वगीकरण िकया है वह वयवहार मे दे खने मे भी

आता है । अब ये दे िखए , सुनदर और गौरांगी िनशा जो उचच शण े ी की मानिसकता और बौिदकता

वाली नहीं है , वह मात साधारण सी युवित है और उसका मुझ जैसे एक िशिकत युवक के साथ िजसका िववाह कर िदया गया है । नये शहरी माहौल मे नये पिरवेष मे और आज के छोटे कहे जाने वाले पिरवार मे िनशा रह रही थी उस पर

िकस तरह उस पर बाहर की हवा का नषा छा जाता है िकस तरह वह

पिरवार को नजर अनदाज कर जीवन को दोजख बना िदया है । उसकी मानिसकता और बौिदकता िवलािसता और रोमांिटक िकसम की

है और वह केवल अपने सुख को ही अहिमयत दे ने लगी थी।

भोपाल के जवाहर चौक का िकराया का मकान भी इसी कारण से खाली करवाकर षहर से दरू एकानत नेहर नगर मे िकराये का मकान लेना पड़ा था।

यह उस समय की बात है जब भोपाल षहर के नेहर नगर मे बसाहट चल रही थी िकनतु मकानो मे रहनेवाले िनवािसयो की संखया अंगुली पर िगनने के समान थी। नेहर नगर मे

चनद ू नाम का एक इलेिकटिशयन रहा करता था।वहां उसकी एक

इलेिकटक की दक ु ान थी। हिर को पता नहीं चला िक िनशा ने िकस तरह से

छोटी सी

चनद ू से दोसती कर ली।

षायद वह धीरे -धीरे मेरी अनुपिसथित मे घर आने जाने लगा था। सब कुछ िमला कर कहा जाय तो

कहना होगा िक इस िखचडी मे कब कया और कौन पकाता था जात नहीं होता था। चनद ू के साथ मे दोएक युवक भी रहा करते थे।हॉं,साथ मे एक नौकर भी रहा करता था।वह अकसर खबर

चनद ू की कोई न कोई

िनशा के पास पहुंचा िदया करता था। वह नौकर हिर के घर सुबह दध ू दे ने आया करता था।

इसिलए भी हिर को

िवषेष एहसास नहीं हो पा रहा था िक इन लोगो के बीच मे कया िखचड़ी पक रही

है । नौकर उम मे बड़ा तो नहीं था िकनतु िकषोर अवसथा का तो था ही।उसके साथ कभी कभी िनशा मजाक भी कर िलया करती थी िजस पर धयान िदया जाना हिर जैसे िषिकत वयिि के िलए उिचत जान नहीं पड़ता था।

`` मेम साब , तुमहारा जवाब नहीं । कहा¡ आपके जैसी रपवित मेम और कहा¡ आपके वो कया कहते ´´ कहते कहते नौकर हं स पड़ा । झोले मे लाये िखलौने बचचो को दे ते हुए िफर बोला ।

`` ये िखलोने मैने खासतौर पर िदलली से मंगाये है ंै बचचो के िलए । लो बचचो

िखलौने । और

ये आपके िलए पुसतके ´´

`` पुसतके ! िकस तरह की है

! ´´

`` पढ़ के दे ख ले तो पता चल जाएगा । आपको अचछी लगेगी ।´´ `` मै दे ख रही हूं तुम आजकल मेरा खूब खयाल रखने लगे हो ।´´

`` मेम साहब ! आपको दे खकर तो कोई भी अचछा जाने भी दो ।´´ `` नहीं नहीं कहो कया बात है । ´´ `` आप बुरा मान जाएगी ।´´

`` नहीं रे । तुम कह कर तो दे खो । मै भी सुनना चाहती हूं। ´´ `` ऐसा है न मेम साहब ! आपको दे खकर मन मे बहुत अचछा लगता है । मै बहुत सी मेमसाहबो

को जानता हू¡ लेिकन वो सब

आपके तलुवो के बराबर भी नहीं होगी । उनकी चमड़ी जरर गोरी है लेिकन आपका तो िदल भी

बहुत ही दयावान है ।

इसिलए मेम साहब´´

`` अचछा ! बहुत मसका लगा रहे हो । ´´

`` नहीं मेम साब ! सब आपकी कृ पा है । ´´

बचचे िखलौने पाकर खुष हुए । िनशा मुसकरा दी ।

`` अचछा , इन िखलौनो नो की कया जररत थी । दो-चार िदन मे बचचे तोड़फोड़ के फेक दे गे ।

उसके बाद िफर´´

`` और आ जाएंगे । ´´

`` ऐसे कह रहे हो जैसे तुमहारे पास िखलौनो का खजाना ही है ।´´ `` अचछा ,अब मै चलता हूं । बाबूजी

जाएगे ।´´

के आने का समय हो चला है

। मुझे दे खकर नाराज हो

`` जैसे तुमहारी मरजी । ´´

`` मन तो नहीं करता िक जाऊं िकनतु जाना तो होगा न मेम साब ।´´ `` अचछा ! तुम जा सकते हो । साहब के आने का समय भी हो रहा है ।´´ हिर के दो बचचे कमष: एक बेटी संजू और दस ू रा बेटा पपपू । बचचे अभी छोटे थे । नसरथी मे पढ़ा करते थे । सुबह दस बजे हिर कस कायाल थ य लगता है और षाम पा¡च बजे कायाल थ य छट जाता है । घर आते-आते छ: बज जाया करते।बचचे दोपहर मे सकूल चले जाया करते थे । वे भी पा¡च बजे

तक ही घर आ पाते

थे । िनशा बचचो को लंच के िलए साथ मे िटिफन भर कर दे िदया करती थी । िनशा सारा िदन घर मे

रहा करती थी । षहरो मे अकसर छोटे पिरवार अिधक होते है । हिर पनदह साल पहले जब षहर मे आये थे अकेले ही रहा करते थे। षहर मे छोटे पिरवारो मे मिहलाएं या तो नौकरी करती है अथवा वे घर पर ही

रहती है । िनशा घर ही रहा करती थी । घर मे कोई जयादा काम नहीं था । सास-ससुर या अनय िरषतेदारो का आना-जाना भी नहीं था । सो िनशा घर मे अकेले ही रहा करती थी । हिर अकसर कायाल थ य से दे र से

घर लौटते थे।

एक शाम हिरजलदी आिफस से लौटा। बचचे आंगन मे खेल रहे थे । बचचो के पास नये -नये

िखलौने थे । नये िखलौने दे ख िकषन ने बचचो से पूछ िलया



-`` यह िखलौने कहा¡ से लाये है बचचो । ´´

-`` चनद ू अंकल ने िदए । बहुत अचछे है चनद ू अंकल । ´´ संजू ने बताया । -`` चनद ू अंकल ! कौन चनद ू अंकल ! ´´ -`` वो जो अपने घर आते है ।´´ -`` अपने घर आते है ।´´ -`` हां पापा । ´´

णहिर को जात नहीं था िक उनके घर कौन आया करता है । हिर के पिरिचतो और िमतो को यह नया घर

मालूम नहीं था । इसिलए िकसी िमत का आना आषाजनक नहीं हो सकता । यिद कोई िमत आया भी होगा तो एक-दो बार आकर पूछ कर चला गया होगा लेिकन बचचे कह रहे है िक वे जो अपने घर आते है ।ऐसा भला कौन हो सकता । बहुत सोचा िक कौन हो सकता परनतु ऐसे िकसी िमत का इस घर मे आना याद नहीं आ रहा था । बचचे नहीं जानते थे चनद ू अंकल कौन

है । वे केवल इतना जानते थे िक

चनद ू अंकल उनके िलए िखलौने , टॉफी और छोटी-मोटी िचजे लाकर दे ते है । `` कयो जी ! ये चनद ू अंकल कौन है जो बचचो को´´

`` एक िखलौने वाला आया था । वह बचचो को िखलौने दे गया है । कह रहा था । बचचे बहुत

पयारे है । ´´

`` बचचे कह रहे थे चनद ू अंकल अपने घर आते है । ´´

`` नहीं जी । वह िखलौनेवाला एक-दो बार इस ओर आया था । बचचो को कभी खेलते हुए दे खा

होगा । वही िखलौनेवाला आज बचचो को िखलोने दे गया । ´´

िनशा बात बनाते हुए हं सती रही । वे िनशा का हं सता हुआ मुखड़ा दे खते रह गये।सारे संसार मे पता

लगाया जाय तो जात होता है िक नािरयां पुरषो से जयादा झूठ बोलने मे मािहर होती है । पूछने पर बताती है िक वह नहीं जानती । वह िकसी वयिि को जानती ।

। ´´

वहइनकार करने मे भी संकोच नहीं करती

`` तुमहारी आदत है । िकसी ने बात की या नहीं की और तुम बात का बतंगड बनाने लग जाते हो `` ऐसा नहीं है िनषा। बात यह है िक मेरे घर मे रहते समय कोई आता जाता नहीं । मेरे दफतर

जाते ही कोई न कोई आता जाता रहता

है । ´´

`` मै कया करं । जब तुम घर मे रहते हो तुमहारा कोई िमलनेवाला या िरषतेदार आता-जाता नहीं । हा¡ जयादातर यही होता है िक तुम घर मे नहीं और कोई न कोई आ ही जाता है । इसमे मेरा तो कोई दोष नहीं है । मै तो नहीं बुलाती िकसी को ।

खुद ही कोई आ जाय तो मै कया कर सकती । ´´

हिर सुन कर रह गया । िनशा ने हं स कर अपने हदय की बात छुपा ली । वह हदय की बातो को छुपाना अचछी तरह से जानती है । यह सव थ िविदत है िक नािरया¡ ऐसा तो करती है िकनतु कुछ संभानत नािरया अपनी गिरमा की रका भी करती है । ऐसा अकसर होते ही रहता है । चंिू क हिर षािनतिपय वयिि है ।

िकसी भी बात का बतंगड़ बनाना पसनद नहीं करते। वह बात आई-गई हो जाती । वे तैयार होकर अखबार के कायाल थ य चले गये।हिर उस वि याने सतपुड़ावाणी मे सहायक समपादक के पद पर पाटथ टाइम जवॉब िकया करते थे।

सा

उस रोज चनद ू ने हीरा के हाथ एक बहुत सुनदर बुके के साथ एक संदेषा भेजा । हीरा ने एक बड़ा

बुके िनषा को दे कर कहा ।

हीरा

-`` चनद ू भैया ने यह बुके आपके िलए भेजा है ।

´´

बुके दे कर चला गया । बुके बहुत सुनदर था । उसमे गुलाब,केवड़ा,सेवनती,चमपा-चमेली,नीलकमल

आिद तरह-तरह के फूल और रं गीन पेड़ो की पििया¡ सजाई हुई थी । केवड़े की हलकी-हलकी सी सुगनध महक रही थी । बुके के बीच मे एक कागज का पचाथ फंसा हुआ था । िनशा ने पचाथ िनकाल िलया । एक

बहुरंगीन कागज के पनने पर सकेच पेन से िलखा हुआ था । िनशा हालांिक पढ़ना-िलखना अचछी तरह से नहीं जानती िफर भी उसने शबदो को जोड़-जोड़कर पचाथ पढ़ा । िलखा था -`` रं गमहल टाकीज मे एक बहुत अचछी िफलम लगी हुई है यिद आप भी साथ चलोगी तो अचछा लगेगा दोपहर मेटनीषो का समय है । ´´ िनशा

को िसनेमा का बहुत शौक है ।वह और हिर मिहने मे पा¡च-सात बार कोई न कोई िसनेमा

जरर दे ख िलया करते थे । इसके अलावा जब भी इचछा होती उठकर िसनेमा दे खने चल दे ते है । चनद ू से

मेटनीषो चलने का आफर पाकर वह जलदी से तैयार होकर ठीक बारह बजे िनशानयू माके Z ट रं गमहल िसनेमा जा पहु¡ची । चनद ू पहले से ही इनतजार कर रहा था । उसने मात दो िटकट ले रखे थे । दोपहर मेटनीषो मे जयादा भीड़ नहीं रहती । बालकनी मे चाहे जैसे आराम से बैठा जा सकता है । बालकनी मे

बैठे दशक थ ो मे पता नहीं चलता िक कौन फैिमलीवाले है कौन बेचलर है । साथ मे कोई सी है तो समझा जाता है िक फेिमलीवाले है । इसिलए कोई रोक टोक नहीं रहती । दोनो बालकनी मे आखरी सीट पर बैठ गए ।

`` यहा¡ ठीक रहे गा । कोई दे खेगा भी नहीं ।´´ िनशा मुसकराते हुए बोली । ` िमलने के िलए िसनेमा िथयेटर से अचछी कोई जगह नहीं होती िनशा

।´´

का हाथ अपने हाथ मे लेने का पयास करते हुए चनद ू ने कहा । उसने ´´ तुम सही कहते हो । यहा¡ िकसी तरह का डर नहीं `` मेरा भी नहीं ।´´

। ´´

इनकार नहीं िकया ।

`` तुमसे कैसा डर चनद ू । तुम तो´´ चनद ू के का¡धे पर अपना िसर रखते हुए िनशा मुसकरा दी ।

`` बस यू¡ ही तुमहारा साथ रहे ।´´ `` कया यह सपना है ´´

-` सपना नहीं है चनद ू यह । तुम चाहो तो´´

परदे पर िसनेमा चलता रहा । लेिकन वे दोनो केवल अपने मे ही खोये रहे । उनहे पता भी नहीं चला िक कब ‘षो खतम हुआ । जब हॉल की लाइट जल उठी । वे संभल कर उठे और िसनेमा हॉल से बाहर

िनकल आये । नयू माकेट के काफी हाउस मे लंच िलया । पांच बज रहे थे । कायाल थ य छूटने का समय हो गया था ।

दोपहर मे बचचो की सकूल का लंच हो गया था । सकूल मे अनय कोई कायक थ म होने के कारण

बचचे लंच मे घर आ गये थे । घर मे ताला लगा हुआ था । इसीिलए षाम तक बचचे बाहर ही खेलते रहे

। िनशा बचचो के िलए ढे ं़र सारी िमठाइयां और फल लेकर घर पहुची । बचचे कपड़े ,िमठाइयां और फल पाकर खुशी से उछल पड़े । ‘शाम छ:बजे हिर आिफस से घर पहुंचे।बचचो के पास नये कपड़े और िमठाइया¡ दे ख आियथ का िठकाना नहीं रहा ।

` अरे भई ! इतने कपड़े -िमठाइया¡ कहा¡ से लाये ´´ `` मेरा भाई

आया था न वह दे गया । ´´ िनशा मुसकराते हुए बोली

` तुमहारा भाई आया था और हमसे िबना िमले ही चला गया । यह तो अचछी बात नहीं है । ´´ ` तुमको तो कोई भी बात अचछी नहीं लगती । ´´ िनशा तमतमाई ।

`` कयो नहीं लगेगी । भई तुमहारा भाई आया । तुमसे िमला और हमसे िबना िमले ही चले गया । इसमे बुरा तो लगेगा ही न । जब तुमहारा भाई आया था तो हमसे िमलने मे कोई हजथ थी कया । यो चुपचाप आना और चले जाना उनहे षोभा नहीं दे ता है । ´´ -`` उसे कोई जररी काम था । वह जलदी चला गया । ´´

िनशा ने सफाई पेश की ।

। िनषा बाते बनाने मे बहुत चतुर है । वह बात बनाना अचछी तरह से

जानती है । कोई भी बात अिधक दे र तक छुप नहीं सकती । दभ ु ागथयवश उसी रात को िकसना की खबर आई िक वह िकसी जररी काम से कल शहर आनेवाला है और उसे

हिर की मदद की आवशयकता है ।

तब सपष हो गया िक िकसना आया ही नहीं । वह कल दोपहर को आनेवाला है । हिर का माथा ठनका । आिखर कौन आया था । इतनी सारी िमठाइयां, फल और कपड़े जरर कोई राज की बात होगी।

यह

जानना जररी है िक आिखर कौन है जो इतना सब कर रहा है और कयो कर रहा है । वह आनेवाला उसके िपछे ही कयो घर आता है । ऐसी कया बात है िजसके िलए िनशा झूठ बोलकर उस वयिि को शै दे

रही है । िबना षै के कोई वयिि िकसी औरत की ओर हाथ कैसे बढ़ा सकता । कोई राज जयादा समय तक राज बना नहीं रहता । कभी न कभी राज की बात का पदाफ थ ाश हो ही जाता है ।

उस रात हिर सोने का पयास करने लगे लेिकन उसे नींद नहीं आ रही थी। कमरे मे मदम-मदम

बलब िटमिटमा रहा था । िनशा बचचो के साथ सो रही थी। हिर आंखो से जैस नींद गायब हो गई



अभी उसे नींद लगी ही नहीं थी िक अचानक दरवाजे का खटका हुआ । हिर की नींद खुल गई ।बलब

बुझा हुआ था और िनशा िबसतर पर नहीं थी । दरवाजा आधा खुला हुआ था । बाहर आंगन मे अंधेरा हो रहा था ।

सड़क पर भी अंधेरा पसरा पड़ा था । आसमान मे तारे िझलिमला रहे थे । दरू से कुिो के रोने

की आवाज सुनाई दे रही थी । हिर आिहसता से िबसतर से उठा । दरवाजे के बाहर झा¡क कर दे खा । कहीं िनशा िदखाई नहीं दे रही थी।

अगले रोज िनशा के भाई िकसना आये । दो-तीन िदनो तक सामानय िसथित बनी रही। हिर ने न

तो िकसी बात का िजक िकया और न िनशा ने कोई हरकत की । शहर मे अपना काम िनपटाकर िकसना वापस अपने गांव चला गया । सरकारी कमच थ ािरयो की हड़ताल के कारण हिर एक सपाह तक घर मे ही

रहे । इस दौरान कोई भी ऐसा वाकया नहीं हुआ िजससे तनाव बढ़ सके । िसथित सामानय ही बनी रही ।

कमच थ ािरयो की हड़ताल चल रही थी । कमच थ ारी नेताओं ने शहर मे एक महारै ली का आयोजन िकया था । हिर

भी महारै ली मे शािमल हो गए ।

िनशा िसलाई मषीन पर बचचो के कपड़ो मे िसलाई करने मे वयसत थी । बाहर से

दरवाजें़ पर चनद ू ने दसतक दी । आज वह बहुत पसनन नजर आ रहा था । वह पॉलीिथन पैक मे

िमठाइयां और कुछ चॉकलेट ले आया था । दरवाजे पर दसतक की आवाज सुनकर िनशा ने दरवाजा खोला ।

` अरे चनद ू तुम । बहुत िदन के बाद िदखाई दे रहे हो । आओ भीतर आओ । और ये हाथ मे कया लाये हो । ´´

`` ये बचचो के िलए । कहा¡ है बचचे । ´´ `` सकूल गए है । आओ भीतर आओ । अचछा हुआ तुम खुद ही चले आये । मै खुद आने का सोच रही थी । तुमहारे ही बारे मे सोच रही थी । बहुत बड़ी उम है तुमहारी । आओ भीतर आओ ।´´

`` नहीं जी । डर लगता है

। ´´

`` चनद ू तुम अपनी मेम साहब का कहना मानते हो न ।´´ `` हा¡ मानता हू¡ । आप हुकुम तो िकिजए । ´´ `` तो िफर मै कहती हू¡ भीतर आ जाओ ।´´

चनद ू भीतर आ गया । िनशा दरवाजा बनद कर मुसकराने लगी । वह कई िदनो से इस एकानत की पतीका कर रही थी ।

`` मेम साहब आपने दरवाजा कयो बनद िकया । ´´

। ´´

`` कयो डर लगता है । अपनी मेम साहब से डर लगा है । मै हू¡ न तुमहारे साथ

िफर डर कयो भला

िणनषा ने अपनी साड़ी उतार के कुसी पर डाल दी। चनद ू बोला`` आप यह कया कर रही हो ?``

`` बस दे खत जाओ चनद।ूबस जैसा मै करती जाती हू¡ तुम भी वैसे ही करो।``

णकहते हुए िनषा ने अपना बलाउस उतार कर पलंग पर फेक िदया।बें्रजरी उतार के चनद के हाथ पर रख दी। वह मुसकरा उठी।बोली-

`` चनद ू ! जरा पेटीकोट का नाड़ा तो खोल दो।``

णअ ् ब चनद ू को भी कुछ कुछ होने लगा।उसने वैस ही िकया जैसे िनषा कहते गई।दो यौवन आमने -सामने िन:वस खड़े हो गए।अजनता और एरोरा की गुफाओं के िभिी िचतो

की भांित दो युगम युिंगमत हो गए।

वको से वक टकराएं।भूकमप आ गया।समनदर मे जवार-भाटे की तरह तुफान आ गया।कभी समनदर धरती

से टकराता तो कभी धरती समनदर से टकराती।जब तक जवार भाटा षानत नहीं होता।तब तक यह उपकम चलते रहता है ।

जब कोई फूल सवयं ही भौरे को आमंितत करे तो भौरा अवषय ही गुनगुनाते हुए मंडराने लगता है

। भौरे की अिभलाषा फूल पर मंडराकर उसका रस चूसने की होती है ंे । भौरा गुनगुनाता रहा और फूल

िखलता गया । गम थ सांसो की िससिकया¡ ,षवासो की महक और दो दे हो की गंध से कमरा इस तरह भर गया मानो दो दे ह दो पाण न जाने िकतने लमबे समय से पयासे हो । दे हो के िमलने से आदमी की

इचछाएं भले ही पूण थ न हो लेिकन दे ह की आग लगने से आग और जयादा भभकने लगती है । िनशा की दे हािगन िनत-िनत भभका करती । दे हािगन भभकने पर उसे षानत करना भी बहुत जररी हो जाता है ।

नारी की दे ह हो या नर की दे ह का महतव बहुत जयादा है लेिकन इसके बावजूद जब तक दे हािगन

भभकती रहे गी उसे षानत करने के उपाय होते रहे गे । येन -केन-पकरे ण । उसे जरा भी संकोच नहीं होता ।

जहा¡ िकसी ने जरा सा भी इषारा िकया , वह िबना सोचे समझे उस इषारे की िदषा की ओर चल दे ती है । चाहे पिरणाम कुछ भी हो ।

`` मेम साहब ! बाबू साहब के आने का समय हो गया है । बचचे भी आनेवाले होगे । अब मुझे

जाने की इजाजत दे दे । ´´

`` तुम इसी तरह आया करो तो मेरा भी जी लगा रहे गा । बाबू साहब अकसर बाहर ही रहा करते

है ।मै घर मे अकेली बोर हो जाती हूं । ´´

पपपू जो अभी केवल पांच वषथ का था और संजू जो अभी मात आठ वषथ की थी ,सकूल से घर आ चुके थे लेिकन भीतर चनद ू और

िनशा दोनो के होने से दोनो बचचे मकान के िपछले आंगन मे छोटे -छोटे बचचो

के साथ खेल रहे थे । उस िदन सरकारी कायाल थ य मे हड़ताल चल रही थी । लंच के बाद सरकारी कायाल थ य बनद हो गये थे। िजससे हिर उस िदन जलदी घर लौट आये ।घर बनद था।सामने ताला लगा

हुआ था। हिर को पता था िक िपछले दरवाजे को खोला जा सकता है ।अत: वे िपछवाड़े गया ।दोनो बचचे और मोहलले के दो-एक बचचे खेल रहे थे। हिर ने संजू से पूछा- , ``मममी कहॉ ं है ।`` संजू ने बताया-,

``मममी और चनद ू अंकल कमरे मे है ।``

सुनते ही हिर के हदय पर पहाड़ टू ट पड़ा।यह कया,सारे आम इस तरह की हरकत। हिर कुछ समय तक कमरा खुलने की पतीका करते रहे । लेिकन लगभग आधे घणटे तक दरवाजा नहीं खुला। कोई पुरष अथवा

मनुषय अपनी पती को िकसी गैर पुरष या औरत को इस तरह सरे आम एक कमरे मे बनद दे ख सहन

नहीं कर पायेगा।हिर को कोध आ गया।हिर ने पूरी षिि से दरवाजे को धकका िदया। एक ही धकके मे दरवाजा खुल गया।चनद ू के बदन पर कपड़े नहीं थे। िनशा और चनद ू दोनो आपििजनक िसथित मे दे ख

हिर के तन-मन मे आग सुलग गयी ।हिर को इस तरह अचानक आया दे ख िनशा और चनद ू सकते मे आ गए । िनषा कहने लगी- ।

`` आप इस तरह कयो गुससा होते हो । मै तो चनद ू के कमीज मे बटन लगा रही थी। खामखाम

गलत समझ रहे है ।´´

`` मै आधे घणटे जयादा समय मे बाहर खड़ा हूंंं कोई पराई औरत िकसी पराये मदथ के कमीज मे

बनद कमरे मे गुमसुम होकर आधे घणटे तक बटन कयो लगायेगी । वह भी इस आपििजनक िसथित मे´´ हिर

इतना कहना ही था िक चनद ू ,हिर पर टू ट पड़ा। हिर के पास कुछ नहीं था।चनद ू तेजी से बाहर

िनकला । एक लोहे की राड़ लेकर आ गया और हिर पर राड़ बरसाना चालू कर िदया। चंिू क हिर की

हालत भी इस तरह नहीं थी िक चनद ू की मार खा सके।उन दोनो मे बहुत दे र तक झुमाझटकी होने लगी। िनशा हिर पर कोिधत हो अििल गािलयॉ ं दे ने पर उतार हो गई । िचलला िचललाकर सारे मोहलले को

इकटठा कर िलया । मोहलले के लोग तमाशा दे खने लगे। हिर को इतनी शम थ आई िक उसी कण वहॉ ं से चले गये। िनशा की मानिसकता और बौिदकता

कुछ इस तरह से हो गई िक वह घर-पिरवार मे कम

और घर-पिरवार से बाहर जयादा रिच लेना पसनद करती रही । वह अपने वैवािहक जीवन को जयादा तवजजो नहीं दे ती रही। पिरवार की मयाद थ ाओं,रीित िरवाजो,सभयता और सदसयो के पित वह अपना कततवय मानने को तैयार नहीं ।

वह अपने आसपास के मदो के पित जयादा आिकषत थ होती रहती।

एक षाम िनशा का ममेरा भाई उिम उफथ हुकूम एक सुिषिकत और अचछे पिरवार की लड़की राधा

को अपने साथ ले आया । वे दोनो आय थ समाज िमनदर मे अनतजात थ ीय िववाह करना चाहते थे।राधा भी

उिम से िववाह करने के िलए तैयार थी । उसमे उसकी अपनी मरजी है । वह बािलग थी और अपने जीवन का अचछा-बुरा खूब अचछी तरह से समझती है । उिम , राधा के साथ लगभग दो िदन तक हिर के

घर डे रा डाले रहा । इस दौरान िनशा बार-बार पसनन-िचि हो ढे र सारी बाते करती रही । उनहे हर तरह से खुष रखने की कोिषष करती रही ।उसके हदय मे भी तरह-तरह के िवचारो का जवार-भाटा उठने लगा । उसने सोचा जब एक वयसक लड़की उसके ममेरे भाई हुकुम के साथ इस तरह घर से भाग कर आ सकती है तो वह भी ऐसा कुछ कयो नहीं कर सकती। राधा बािलग है । अपनी इचछा से सब कुछ कर सकती है ।

िनशा सोचने लगी वह सवयं भी तो बािलग है वह भी चनद ू के साथ अपनी मरजी से षादी करके रह

सकती है । िसयो के हदय मे पिरिसथितयो का बहुत पभाव पड़ता है । यिद उसे उसके अनुकूल पिरिसथित िमल जाय तो वह चाहे जो करने को तैयार हो जाय । पिरणाम चाहे जो हो िकनतु तातकािलक िसथित मे

उसे संतुिष िमल जानी चािहए । िसयां¡ भिवषय के पिरणामो से िबलकुल अनिभज होती है । यह िसथित िनमन या मधयम शण े ी की िसयो की होती है ।

`` चनद ू ! मेरा ममेरा भाई राधा नाम की एक लड़की को साथ ले आया है । वे दोनो आयथ

िमनदर मे शादी करने जा रहे है । ´´

`` यह तो बहुत अचछी बात है । ´´ चनद ू ने पसननता वयि की ।

समाज

` तुम नहीं समझोगे चनद ू । कया हम भी कहीं भाग कर षादी नहीं कर सकते । ´´ `` यह आप कया कह रही है मेम साहब ! ´´

`` कयो तुमहे यकीन नहीं हो रहा है । जब मै सवयं तुमहारे साथ जाने को तैयार हूं तो तुमहे डर

कयो लग रहा है । ``

`` जैसी आपकी इचछा मेम साहब ।लेिकन यह सब होंेगा कैसे । ´´ `` दे खो , मै बािलग हूं और अपनी मरजी से तुमहारे साथ षादी करने को तैयार हू¡ । बस तुम हां

बोल दो । बाकी मै संभाल लूंगी । ´´

समझाईश दे ती हुए िनशा चहचहाई। चनद ू यही चाहता था । वह इसी आज उसका पयास साथक थ हो रहा

वि की पतीका कर रहा था ।

था।आज वह कुछ भी करने को तैयार हो गया । लेिकन उसे कोई

जलदी नहीं है । वह सोच-समझ कर कदम उठाना चाहता है । वह जानता है ,औरतो को आसानी से िपंजरे मे नहीं फंसाया जा सकता । ऐसे कायोZ मे बहुत होिषयारी और अययारी की जररत होती है ।

उस िदन हिर सुबह दस बजे घर से आिफस के िलए िनकल गए । सरकारी कायाल थ यो मे काम

करनेवाले

लोगो का समय सुबह दस से पांच बजे तक का होता है । इस दरिमयान हिर कभी कभार ही

घर आया करते अनयथा वह षाम को ही घर लौट पाते है । जब तक हिर घर मे होते तब तक चनद ू िनशा से िमलने नहीं आता था। जयो ही हिर आिफस के िलए रवाना हो जाते तयोही चनद ू आ जाता था । इस बात का हिर को जरा भी आभास न होता था ।

जब से िनशा का ममेरा भाई हुकुम उफथ उिम एक लड़की को साथ हमेषा के िलए ले आया । तब

से िनशा के हदय मे कई योजनाओं ने घर बनाना पारमभ हो गये

। उन िदनो हिर सरकारी नौकरी के

अलावा पाटथ टाइम मे िकसी अखबार मे भी सहायक समपादक का काय थ िकया करते थे । षाम को आिफस से आने के बाद वे अखबार के दफत चले जाते और रात को दस गयारह बजे ही लौटते । हिर का नाम

षहर के जाने मानेलेखको-सािहतयकारो मे हुआ करता है । लेखक और किव होने के नाते खुले आचारिवचार के होने से उनके हदय मे कोई कलुषता नहीं थी । वे कोई पितवाद नही करते थे िकनतु पिरवार मे

अमन-षािनत बनी रहे इसके िलए सदै व िचंितत रहा करते थे। वे िनशा के सवभाव से जयादा पिरिचत होने के कारण अिधकतर िचनता मे पड़ जाया करते । उिम और राधा के आने के बाद उनकी िचनता कुछ जयादा ही

बढ़ गई

। कुछ िदन तक दोनो उनके ही घर रके रहे ।

जब दस ू रे िदन के अखबार का समपादकीय िलखकर हिर रात गयारह बजे घर लौटे ।

दरवाजा खुला था।िनशा घर मे नहीं िदखी ।बचचे सो रहे थे । हुकुम और राधा एक दस ू रे से िचपके

बलगईयां डाले िबसतर मे पड़े थे।हिर को आया दे ख झट उठ बैठे।हिर के पूछने पर उिम ने बताया िक वह यहीं कहीं आसपास होगी । हिर,िनशा की पतीका करने आंगन मे बड़ी दे र तक टहलते रहे ।गई रात तक िनशा घर नहीं लौटी । उनहे बहुत थकावट हो रही थी।अब उनहे जगना किठन महसूस हो रहा था।वे

भीतर आए।हुकुम और राधा अब भी आिलंगनबद हो पड़े थे।संभवत:उन दोनो को नींद आ गई होगी।ऐसे मे हिर उस एक ही कमरे मे कैसे सो सकते।सामने जवान दो िजसम आिलगनबद िचनतामुि एक दस ू रे मे

खोये-खोये सो रहे थे।हिर के हदय मे उन दोनो के पणय को दे खकर बार-बार चोट लग रही थी।आिखर करे तो कया करे ।नींद आ भी रही थी और पिरिसथितवश उचट भी रही थी।वे सारी रात इसी तरह करवट

बदलते रहे ।कभी उन आिलंगनबद जोड़े को दे खते कभी करवट बदलते।यो ही सारी इस तरह दे खते करवट बदलते बीत गई।उनहे आशंका हुई िक कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हुई । इसके पहले भी िनषा ने इसी तरह की हरकत की थी ।

रात भर िनशा के इनतजार मे गुजर गए । रात िजस तरह बीत गई । िनशा अब सुबह तक घर

नहीं आई । सुबह तक िनशा का कहीं पता नहीं िमला । हिर बेचैन हो गए वे सोचने लगे , िनशा के लापता होने की िरपोटथ करीब के पुिलस थाने मे िलखवा दी जाना उिम होगा । यह िनणय थ लेकर वे सवयं ही नयू माकेट पुिलस थाने जा पहु¡चे । वे थाने मे िरपोटं थाने मे िरपोटथ िलखवाना चाह रहे थे ।

`` अचछा आप ही हिर है । अचछा हुआ आप सवयं ही थाने आ गए । दो कानसटे बल आपको लेने

आपके घर गए हुए है ।´´

हिर पहले ही थाने पहु¡च चुके थे। उनहे थाने मे दे ख पुिलस सवयं आषचय थ मे पड़ गई िक िजनके िवरद िरपोटथ िलखाई गई वे सवयं ही चलकर थाने आ पहु ¡चे । उनहोने टी आई को सारी घटना िवसतार से बताई ।

`` लेिकन िनशा िकसी चनद ू नामक वयिि के साथ अपने मरजी से आपको छोड़ के चली गई है ।

वह बािलग है और अपनी मरजी से िकसी भी वयिि के साथ जा सकती है । जाते जाते वह िरपोटथ िलखा

गई िक वह अपनी मरजी से पित से तलाक चाहती है और बचचो को उनके हवाले छोड़कर चनद ू के साथ जा रही हू¡ । अब वह लौटकर नहीं आएगी। ´´

िरपोटथ दे ख-पढ़कर हिर आसमंजसय मे पड़ गए । उनहे

िनशा से ऐसी उममीद नहीं थी । लेिकन अब कया

िकया जा सकता है ।

` लेिकन यह अपहरण का मामला लगता है ।´ `` नहीं ,िनशा बािलग है और बािलग लड़िकया¡ अपने मरजी से कुछ भी कर सकती है । ´´ `` नहीं , कहीं कुछ गड़बड़ी है ।´´

`` आप पुिलस पर इलजाम लगा रहे है । इसकी सजा आपको िमल सकती है ।´´

`` दे िखए ! मै एक समपादक हूं और कुछ जानकारी भी रखता हू¡ । आपको मालूम होगा िक वे

लोग कहां गए हुए है ।´´

`` आप पुिलस को धमकी दे रहे है ।´´ `` जी नहीं । लेिकन पुिलस सवयं जानती है ।´´ पुिल स वा लो ने कुछ भी बतान े से इन कार कर िदया ।वे हता श हो लौट आये। उनका

हदय जोरो से धड़ कने लगा ।उनह े कुछ समझ नही ं आ रहा था िक वे ऐसी िसथ ित मे कया करे । एक औरत अपनी

मरजी

से िक सी भी वयिि

के साथ पलाय न कर सकती

है । यह

कान ू न को इस िलए भी मंज ूर है िक वह बािल ग है और अपनी मरजी से िकसी के भी सा थ जा सकती है भले ही वह शादीश ुदा कयो न हो । कान ू न उसे रोकेगा नही ं कयोिक

िक सी भी

बािल ग को रोका नही ं जा सकता । िनशा अपनी मरजी से चनद ू के साथ चली गई । उिम चुप रहा कयोिक वह समझ रहा था िक वह जब एक लड़की को अपने साथ ला सकता है तो वह कयो न चनद ू के साथ जा सकती

। हिर कुछ समझ नहीं पा रहे । उनहोने सोचा,यिद िनषा का पता नहीं लगाया गया

तो अनथ थ हो जाएगा । बचचे लावािरस हो जाएंगे । उनहोने उसी कण िनणय थ िलया िक चाहे कुछ भी हो

िनषा का पता आज ही एक िदन मे लगाना होगा। उस िदन षहर मे कफथयू लगा हुआ होने से सड़के दरूदरू तक िवरान िदखाई दे रही थी । कोई भी वयिि सड़को पर िदखाई नहीं दे रहा था । चारो ओर षहर मे चपपे-चपपे पर पुिलस तैनात की गई थी । बाहर िनकलते दे खते ही अरे सट कर सलाखो के पीछे बनद करने के सरकारी आदे ष लागू िकया गया था । कफयू थ के बावजूद हिर तलाष के िलए िनकल पड़े ।

हिर टी आई के पास गये-

बेखौफ होकर अकेले ही िनशा की

`` मै जानता हू¡ िक आपको पता है िक मेरी िपत िनशा कहा¡ है । अगर आप नहीं बताएंगे तो कल के अखबार मे पुिलस की लापरवाही की िरपोटथ पढ़ने को िमलेगी ।´´

`` आपको पुिलस के साथ इस तरह से जयादती करने पर सजा भी हो सकती है ।´´ `` और पुिलस की लापरवाही के िलए कौन िजममेदार है । आप बता सकते है । ´´ बड़ी मुिंषकल से पुिलस ने जानकारी दी िक चनद ू नामक वयिि एक बड़ी बहन के घर ले गया है जो

िनशा नाम की औरत को अपनी

घणटे वाले के आसपास रहती है । िबना िकसी तरह का िवलमब िकये हिर

घणटे वाले की गली मे पहु¡च गये ।पुिलस वदारा दी गई जानकारी के अनुसार िनशा उस चनद ू नामक वयिि के साथ ठहरी हुई िमल गई । आवाज लगाने पर एक मिहला बाहर आई । बोली `` आप कौन हे ंेंेंैंं े े । ´´

`` मै िनशा का पित हिर। िनशा को साथ लेने आया हू¡ ।´´

``अचछा आप उसके पित है । आप वापस जाइए ।वह आपके साथ आना नहीं चाहती ।´´

`` कयो नहीं चलना चाहती ।´´ `` वह चनद ू से

षादी करना चाहती है ंैंैंै ।´´

`` चनद ू से षादी !´´ `` लेिकन कयो !´´

` वह आपके पषन का जवाब दे ना नहीं चाहती ।´´ है ।´´

`` ठीक है ंैंैंै । यिद ऐसा है तो हमे कोई हज थ नहींंं । हम आज ही दोनो का िववाह करवा दे ते

उनहोने धं्ौय थ रखते हुए काम िनकालने मे अपनी समझदारी समझी । यह सोचकर िक चलो आिखर िनशा का पता लग ही गया और वह वापस चलने को राजी हो जाएगी ।

`` लेिकन वह आपके साथ नहीं जाएगी । उसने कहा है िक वह चनद ू के साथ षादी कर रही है ।´´

उस औरत ने गंभीरता से कहा । `` ठीक है

है ंैंैंैंे । ´´

। हम तैयार है । हम सवयं ही िनषा का िववाह चनद ू से आज ही करवाने को

अचछा , आप पहु¡िचये चनद ू भैया के िपता के घर । हम लोग वहीं आ रहे है ंे ंं। ´´

तैयार

`` ठीक है । आप आइयेगा । हम षादी की तैयारी आज ही उसकी मरजी से करा दे गे।´´ हिर सोचते रहे िक अगर ऐसा हो गया तब

अनथ थ हो जाएगा । लेिकन इस तरह समझदारी से

काम िलया तो िनषा को छुड़ाया जा सकता है अनयथा वे लोग िनषा

के साथ न जाने िकस तरह का

बताव थ करे गे । एक भारतीय नारी जो अपने पिरवार ,समाज के िलए अपना जीवन समपण थ करती हे ंैंेंे

कया इतना अपने चिरत को िगराने के िलए तैयार हो सकती है । िजन बचचो को उसने पैदा िकया वह मासूम बचचो को िनज के हवस की खाितर अपनी ममता से वंिचत करने के िलए तैयार है । यह कैसा

नारी का रप िदखाई दे रहा है ंे। कया यही हमारे दे ष की नारी का गौरवगान है ! उसके अपने बचचे है । पिरवार है । पित है । वह ऐसा कयो करना चाहती है ंैंैंे। कया वह इतनी कठोर हो गई है िक उसे अपने

मासूम बचचो की भी परवाह नहीं है । जरर यह उन लोगो की कोई चाल है िजससे वे एक औरत को बरगलाकर अनुिचत काय थ करवाना चाहते होगे। रासते भर हिर के हदय आकाष मे कई पषन कौधते रहे । घर पहु¡चकर उनहोने िनषा के ममेरे भाई हुकुम उफथ उिम को सारी घटना सुना दी । बाद मे वे उिम को

साथ लेंे चनद ू के िपता के घर पहु¡चे । िनशा भी चनद ू के साथ आ अब तक आ गई थी । उिम ने उसे समझाने की

बहुत कोिषष की ।

`` बहन , घर पर बचचे तुमहारा इनतजार कर रहे है वापस चलो । ´´

`` नहीं । मै चनद ू के साथ षादी कर रही हू¡ । अब मेरे कोई बचचे - पित और घर नहीं है । ´´

िनशा कठोर हो गई । उसकी वाणी मे िनभय थ ता झलकने लगी। उसके चेहरे से मासूिमयत फना हो

गई । कोमल और ममतामयी कहलानेवाली नारी का हदय वज सा कठोर हो गया । आ¡खे सुख थ और कोिधत मानो आ¡खो से अंगारे बरस रहे हो । कहा जाता है िक जब इनसान की बुिंद मारी जाती है तब

उसे अपना अचछा-बुरा कुछ भी समझ नहीं आता । वह सोचता है वह जो कुछ कर रहा है वह ही बेहतर है । वह भिवषय के पिरणाम से बेखबर होता है । उसे वह हर बात गलत महसूस होती है जो उसके अनुकूल नहीं होती । वह सदै व गलत पिरणामो की ओर अगसर होता रहता है ंे ।हिर के हदय मे तुफान उठ रहे थे । हिर जानते है िक िनशा और चनद ू का िववाह संभव है ही नहीं । लेिकन िनशा को चनद ू के िगरफत

से छुड़ाने के िलए कुछ तो उपाय करना ही होगा । उनहोने वे सभी कायथ करने के िलए सवीकृ ित दे दी जो िनषा के भले के िलए हो सकता है ंे । बहुत सोच समझकर हिर बोले-

``तो ठीक है ।हम तुमहारा िववाह आज ही के िदन चनद ू से करवा दे ने के िलए तेंैयार है । ´´

चनद ू पास ही बैठा सुन रहा था । उसके चेहरे की हवाइया¡ उड़ गई थी । उसके िपता अपने चेहरे पर

गंभीरता का जामा पहने हुए बार-बार चीलम िपये जा रहे थे । बोले ।

`` मेरे बेटे चनद ू का िववाह पहले ही हो चुका है ंे । उसकी बीवी अनदर घर मे है । वह

िववाह कयो करे गा । ऐसा हरिगज नहीं हो सकता । ´´

तुम से

`` नहीं । नहीं । ऐसा नहीं चनद ू ने मुझसे षादी करने का वादा िकया है । कयो चनद ू तुमने कहा

है न िक हम षादी करे गे ंंंं। ´´

चनद ू के िपता के होठो पर कड़वीं हं सी तैर गई । चनद ू आ¡खे ततेरने लगा । उसकी बीवी भी अब

तक आ गई । चनद ू बीवी की ओर दे खते हुए बोला ।

`` नहीं । नहीं । मैने ऐसा कहा ही नहीं । मै इससे िववाह कयो करं गा । मेरी अपनी इससे जयादा सुनदर हे ंैंैंै ।ं़ असल मे तो िनशा को बहला-फुसला कर इसिलए गाहक से इसका सौदा तय िकया था । लेिकन आज षहर मे

बीवी है ंे ।

लाया था िक हमने एक

कफयू थ होने के कारण से खरीददार नहीं आ

पाया और हम लोग पकड़ा गए । ´´

अब की बार िनषा सकते मे आ गई । िनषा के चेहरे की हवाइया¡ उड़ गई। वह रोने लगी । अपने

बैग से दो कागज की िपZ चया¡ िनकाली और सामने रखते हुए बोली ।

``और यह पेगोड़ा होटल के कमरे की िकराये की रसीदे । चनद ू हम लोग रात भर पेगोड़ा होटल मे

एक साथ ठहरे हुए थे ।रात भर मेरे शरीर के साथ खेलते रहे । तुमने ही तो सारा पलान बनाया था िक षादी करे गे । तुम रात भर मेरे साथ रहे । अब णणणणणअ ् ब तुम वादा नहीं िनभा रहे हो । ´´ चनद ू के मुख पर

कड़वाहट छा गई ।

`` औरत का िजसम िसफथ आम की तरह चखने के िलए होता हे ंैंे । चखकर फेद िदया

। बेचने के पहले माल का सवाद चखना भी जररी हो जाता है ंैंै तािक खरीददार

जाता है ंे

को माल की सही

जानकारी दी जा सके ।ंं इसीिलए तो तेरे िजसम को रात भर चखना पड़ा।समझी´´

`` सुन िलया िनशा । अब कया करोगी । बोलो ।``हिर षािनतपूणथ लहजे मे बोले । ` मै आपसे बात नहीं कर रही हू¡ । हुकूम चलो । मै तुमहारे साथ चलू¡गी ।´´

अब की बार िनशा के बेरौब चेहरे पर षिमनथदगी तो नहीं लेिकन भय सा वयाप हो रहा था । उसने चुपचाप अपना बैग उठाया और हुकुम के साथ चल दी ।

घर मे बचचे लोग िनषा का इनतजार कर रहे थे । मममी को वापस आया दे ख बचचे उससे िलपट

पड़े और रोने लगे । िनशा के मुखमणडल पर अब तक गंभीरता बरकरार थी । उसने बचचो से बोला नहीं । उसने बचचो को अपने से अलग छींट िदया । बचचे रोने लगे । हिर ने बचचो को `` मममी को कया हो गया पापा। मममी हमे पयार कयो नहीं करती ´´

गले से लगा िलया ।

संजू फफक फफक की रो पड़ी । संजू को रोते दे ख पपपू भी रो पड़ा । -`` पापा णणणणणणणपापाणणणणणण ्

दोनो बचचो को सीने से लगाकर हिर की अशध ु ाराएंंं फूट पड़ी । उनहोने यह कभी सोचा भी नहीं था िक िनशा ऐसे िदन भी िदखाएगी ।िकसी औरत का चेहरा इतना कूर हो सकता

यह उनहोने सोचा नहीं था ।

औरत चाहे पिरवार को सवगथ बना दे चाहे तो नकथ मे बदल सकती है । औरत ही पिरवार का आधार होती है ंे । चिरत इनसान का अनमोल गहना है ंे । कहा गया है िक धन गया तो कुछ नहीं

गया

णणणसवासथय गया तो थोड़ा बहुत गया लेिकन यिद चिरत गया तो सब कुछ चला गया। धन और सवासथय

दब ु ारा पाप िकया जा सकता है लेिकन चिरत रपी धन जाने से उसे दब ु ारा पाप करना आसान नहीं है ंे । चिरत के जाने से इनसान की इजजत चली जाती है ंेंै।ंं इजजत का जाना मौत से भी बदिर होता है ।

इस तरह के वयिि की कहीं भी ईजजत नहीं होती । जीता हुआ भी वह मरे के समान ही होता है । घटना की जानकारी जब िनशा के मायके मे गई तो दस ू रे ही िदन िनशा का भाई िकसना भोपाल आया ।

हुकूम यानी िनशा के ममेरे भाई हुकुम ने िकसना को सारी घटना सुनाई।िकसना उसी िदन िनशा को खणडवा ले गया।

िनशा कुछ हर समय तक मायके मे रही ।िजस औरत को घाट-घाट का पानी पीने की आदत होती

है वह िकसी एक ही घाट पर पानी पीना पसनद नही करती । उसे दस ू रे घाट की तलप लगी रहती है । वह लालाियत रहती है । उसकी तड़प बढ़ती जाती है । एक नषेलची के समान

वयाकुल होते रहती है । जब

तक नषा नहीं िकया जाता तब तक नषलची को चैन नहीं आता । बस यही िसथित िनशा की हो गई थी।

मायके मे रहना उसे नागवार नहीं लगा । वह वहा¡ से भी छुटकारा पाने का मौका तलाषते रही । अवसर की तलाष मे वह भटकते रही। माता-िपता भाई-बहन बहुत परे षान हुए ।

उसके चेहरे पर बहुत पसननता

झलक रही थी । उसके माता-िपता ने फैसला िकया िक उसे िजस िकसी तरह उसके पित के पास पहु ¡चा िदया जाय । लेिकन इसके पहले ही वह एक रात पपपू को ले भोपाल चली आई ।

िनशा को आया दे ख

हो

सकारातमक

पहले तो हिर है रान हो गये िक िनशा िफर कोई न कोई नाटक तमाषा करे गी । िकस समय कया घिटत सकता

है

कौन

जाने



घटना

का

कया

पहलू

हो

सकता

है ंेंै

अथवा

नकारातमकणणणणबताना किठन है ंैंे । सकारातमक पहलू मे सब कुछ सही िदषा मे बहते रहता है । यिद पहलू नकारातम रहा तो सब कुछ पितकूल िदषा मे पवािहत होते जाता है । साथ मे चलनेवाले को

पितकूल पवाह मे बहा ले जाता है । फलत: पिरणाम पितकूल ही िनकलते है । िनशा पितकूल िदषा की ओर चल पड़ी ।

मायके से लौट आने के बाद वह दो िदन तक हिर पास रही । उनहोने िनशा के मायके

मे खबर दी िक िनशा पपपू को लेकर भोपाल आई है ।दस ू रे ही िदन िकसना भोपाल आया और िनशा को वापस

खणडवाले गया।

िनशा के

खणडवाजाने के बाद उसने बचचो को हिर के माता-िपता के पास छोड़ िदया। बचचे अभी

छोटे ही थे ।उनका मन नहीं माना ।वे भी

खणडवा ,माता-िपता के पास गये । बचचो को िमले।छोटे भाई

िवशु और उसकी पती मंजू ने पपपू-संजू की दे ख-भाल का िजममा उठा िलया। बचचो की वयवसथा कर वे पुन:भोपाल चले आये। 0

सरला िनषा और बचचो का इस तरह से चले जाने के बाद उनहोने नेहर नगर के िकराये के बड़े मकान को

छोड़कर नेहर नगर मे ही एक कमरे का मकान दस ू रे सथान पर ले िलया। हिर बहुत टू ट चुके। घटना सथानीय समाचार पतो मे पकािषत हो जाने के कारण जबान पर

मंतालय के साथी और नेहर नगर के लोगो के

कहानी चढ़ गई। वे खणडवा मे भी समाज मे चचा थ का केनद िबनद ु बन गये। इस अविध मे

उनहे अकेले रहना पड़ा। हालांिक भोपाल मे उनके अगज रहा करते है िकनतु वे अपने माता-िपता और

भाईयो के पित संवेदनषील नहीं है ,पिरणामत: िवपरीत पिरिसथित मे उनका सहयोग नहीं िमला।दो वषथ तक अकेले रहने के कारण एक सामािजक और पािरवािरक वयिि को घुटन होना सवाभािवक ही है । हिर

जैसे

संवेदनषील युवक पर हर िकसी की नजर पड़ने लगी । आसपास के लोग कुछ मंतालय मे कायरथत सहकमीZ, और मोहलले के ,खासतौर पर िसयो के आकषण थ का केनद बन गये।हिर के सुगिठत षरीर

,संवेदनषील वयिितव और िचिकतसकीय पितभा दे ख आसपास की पुरष तथा मिहलाओं ने उनके आसपास मंडराना पारं भ कर िदया। होमयोपैिथक और आयुवद े िचिकतसक होने के कारण उनहोने अपने अकेलेपन को दरू करने के िलए घर मे ही िनजी मेिडकल पें्िरकटस पारं भ कर दी

। ।आसपास की पुरष और मिहलाएं

िचिकतसा के िलए आया करते । चाहे िदन हो चाहे आधी रात वे सबकी िचिकतसा सेवा के िलए सदै व

उपिसथत हो जाया करते।बचपन से लेखन मे रिच होने के कारण सथानीय पत/पितकाओं और आकाषवाणी से रचनाओं का पकाषन/पसारण होने के कारण से भी आसपास के लोग और खासतौर पर मिहलावग थ के आकषण थ का केनद बन गये।आकषक थ षरीर और गौर वण थ के कारण िसयॉंे को एक िखलौना सा िमल

गया था। इस वि यह कहने मे कतई संकोच नहीं हो रहा िक उनका वयिितव अतयनत संवेदनषील है । िकसी

की पीड़ा और ऑस ं ू हिर दे खे नहीं पाते।िकसी की जरा सी भी तकलीफ के िनवारण के िलए वे

ततकण तैयार हो जाया करते।हालंंािक यह भी बाता दे िक भले ही तकलीफ िनवारण के िलए उनमे

सामथथ न हो लेिकन अपना सवस थ व समपण थ करने के िलए वे तैयार रहते। उनहोने सोचा यह जमाना बहुत ही बेददथ है ।इससे अब बचना चािहए।पता नहीं िकस समय कौन सी घटना घिटत हो जाए। यही कारण है

िक आज की िसथित मे वे इतने सकम नहीं है िक िकसी के बहते हुए ऑस ं ू पोछ सके। यह सच है िक िकसी की पीड़ा पर संवेदना का मरहम लगाकर पीड़ा षानत की जा सकती है लेिकन जहॉ ं धन और बल की आवषयकता हो वहांंंंं वे िबलकुल असहाय हो गये है । खैर,चिलए मुखय चचाथ पर आते है ।

नेहर नगर के एक कमरे के मकान मेंे उनहोने एक छोटा सा िंकलिनक पारं भ कर िदया। कमरे

की फष Z कचची है ,यहॉ ं तक िक िलपा-पुता भी नहीं है ,अथाZ त मकान मािलक ने केवल िमटटी-िगटटंीअलंगे डालकर ठोका-पीटा हुआ फष Z है ।िजस पर वे पितिदन एक बालटी पानी डालकर झाडू लगा िदया

करते।कमरे मे बड़े -बड़े गडडंे होने से िजसमे िबलली के बराकर के जंगली चूहे धींगामसती िकया करते । छुछं दर भागदौड़ िकया करते ।िछपकिलयो की कमी नहीं थी।नेहर नगर के आसपास बहुत सारा जंगल

होने के कारण जंगली जीव-जनतुओं की संखया भी जयादा है ।एक कोने मे सटो-खाने पकाने का सामान और दस ू रे कोने मे लोहे का पलंग और एक साधारण सा िबसतर।तीसरे कोने मे िंकलिनक का सामान ,एक टे बल , तीन-चार कुिसय थ ॉ ं और चौथे कोने मे अनदर-बाहर आने-जाने का दरवाजा । दो दरवाजे आगे खुलता

। एक

और दस ू रा पीछे खुलता ।िपछले दरवाजे का तीसरा कोने थोड़ा छोड़ िदया गया था तािक

िपछे नहाने-धोने आिद का काय थ िकया जा सके। िपछड़ा दरवाजा खुलने पर पीछे जो पिरवार रहा करते है ,उनसे बोल-चाल हो जाया करती थी और इस दरवाजे से भी

लोग आया-जाया करते थे। पीछे रहनेवाले

पिरवारो मे दो इं जीिनयर एक आफीसर का पिरवार था।दोनो इं जीिनयर िववािहत थे।एक की पती पागल

थी लेिकन परे षान नहीं करती थी लेिकन वह िबना सोचे -समझे कुछ भी िकया करती थी।वह िबलकुल

गोरी थी।सथूल षरीर और हमेषा मुसकराया करती थी।उसे सपाह मे दो बार इं जेकन लगा करते थे।जब भी उसे इनजेकन लगाने के िलए हिर को बुलाया जाता ।वह दरवाजे की ओट से दे ख कर मुसकराती और

धीरे -धीरे हं सती रहती ।जयोही उसे इं जेकन लगाने के िलए हाथ बढ़ाया िक वह अपना बलाउस और बें्रजरी िनकाल कर फेक दे ती , ,लो डाकटर साहब अचछी तरह से इं जेकन लगाइयो।उसे इस तरह अपना

वक िबलकुल खोलकर िखलिखलाकर हं सकर बोलने मे जरा भी हया नहीं लगती थी कयोिक वह कांषसनेस सी थी लेिकन उस पगली की हरकत पर अनय सवसथय मिहलाएं गौर िकया करती थी और ठीक उसी तरह की हरकत हिर कमरे नुमा िंकलिनक मे आकर िकया करती तब पीछले करती -,

। एक बंगाली मिहला चाहे

दरवाजे को खोलकर आ जाया करती और आकर सीधे िबसतर पर लेट जाया करती ।वह कहा

``आपके पास सी िचिकतसा की पुसतके तो होगी ही।`` `` है । आपको पढ़नी है ंै कया?``

`` नहीं नहीं । उसमेंे िचत होगे ही।कैसे होते है सी समबनधी िचत? वो सब होते होंुंगे?`` `` वो सब यानी मै समझा नहीं।`` `` िफर तो आप बुदू हो जी ।``

`` मै बुदू हू¡ जी ! अथाZ त ् ! अचछा , अब समझ मे आ गया ।``

`` बड़ी दे र के बाद समझ मे आया।`` कहते-कहते वह िखलिखलाकर हं स पड़ी और िबसतर मे लेट गई।

बोली-

`` इधर आओ डाकटर साहब ।``

``अरे भई!इस घर मे और कोई नहीं है ।ऐसे मे मेरे िबसतर पर िकसी ने आपको दे ख िलया तो?`` वह िफर िखलिखलाकर हं स पड़ी और हिर को अपनी ओर खींच िलया।हिर िबसतर मे जा िगरे ।हिर पर लगभग पूरा झुकते हुए आिहसता से बोली-

``आप इस तरह कब तक अकेले रहोगे । आपको अकेले मे अटपटा नहीं लगता ।आपको खाना पकाते

दे खकर मुझे द :ु ख होता है ।´´

उसके िसर के बाल खुल जाने से हिर का चेहरा बालो से ढक गया।बड़ी दे र तक वे एक दस ू रे को दे खते

रहे ।जाने कया सुझा उस बंगाली युवित को िक

वह झट दौड़कर अपने घर गइ।,पलेट मे भोजन परोसकर

ले आई। बोली-

`` लो खाना आ गया।हम दोनो िमलकर खाएंगे।आज मेरे पित के पसनद का खाना बना है ।``

उसके चेहरे पर मुसकान िबखर गई।उसने भोजन का एक िनवाला उठाया और हिर के मु ¡ह मे ठू ¡स िदया। हिर अिभभूत हो उठे ।उनकी आ¡खो मे आ¡सू भर आए।युवित बोली,

`` अरे ! आप तो रो रहे है । आपकी पती ने शासद को आपको सचचा पयार नहीं िकया होगा।है

न?कोई बात नहीं।जब तक आप इस मकान मे रहे गे मै आपके पास आती रहू ¡गी।सचचे पयार से बढ़कर कुछ भी नहीं है ।`` हिर को अपने गले लगाते हुए वह युवित समझाने का पयास करने लगी।

उस बंगाली मिहला को भोजन परोसकर हिर के पास आते दे ख आसपास की मिहलाओं और पुरषो

ने दे ख िलया । बस िफर कयाणणणणणसारे मोहलले की मिहलाएं आये िदन कोई न कोई भोजन की थाली परोसकर हिर के कमरे पर लाती रही।इस तरह हिर की भोजन की समसया का िनराकरण अपने आप हो

गया।पड़ोस मे एक िसंह पिरवार रहा करता है ।उनका बेटा धमन े द और एक दस-बारह वष थ की बेटी गुिडया

अकसर उनके कमरे पर रहा करते।िसंह पिरवार से कुछ ही िदनो मे अपनापन हो गया।मात िसंह पिरवार ही नहीं ,मोहलले मे मात आठ-दस मकान थे , उन सबका चहे ता बन गए। इसी तरह एक िदन

अचानक खणडवा से

साथ एक सी भी थी।वे सवतंतता राजनीित मे उतर आये थे।

उनके िपता के एक पुराने िमत िघसाजी

आ गए।उनके

संगाम सेनानी थे और पेंेषन पा रहे थे।वे अब समाज सेवा और

।कहने लगे।

, अरे बेटा , तुमहारे िपताजी ने भेजा है तो तुमहे ढू ं ंंढता हुआ यहॉ ं तक आ पहुंंंचा ।´´

णहिर ने उनका सवागत सतकार िकया। उस िदन संभवत:सरकारी अवकाष रहा होगा।षाम तक िघसाजी जी और वह सी

मेहमान रहे ।षाम को भीखाजी

ने कहा।

, बेटे,हिर मै िकसी काम से जबलपुर जा रहा हूंंं । मेरे लौटने तक इसे यहीं रहने दो।´´

णहिर आसमंजसय मे पड़ गये। एक अंजान सी इस तरह उनके एक कमरे नुमा मकान मे कैसे रहे गी ।

कमरा एक,सोने के िलए िबसतर भी नहीं है । एक सी के लायक कोई वयवसथा भी नहीं है । बोले-

``लेिकन चाचाजी।आप इनहे लेकर जाइये न।यहां वयवसथा नहीं है िक एक सी इस तरह से रह सके । ´´ `` अरे बेटा । सब वयवसथा हो जाएगी । मै परसो सुबह तक लौट आऊ¡गा ।´´ `` ठीक है लेिकन जलदी लौट आइयेगा ।´´

िघसाजी जबलपुर के िलए रवाना हो गए। उनके जाने के बाद वे बहुत पेषोपेष मे पड़ गये। रात के समय यह सी कहॉ ं सोयेगी ।एक ही कमरा । एक ही िबसतर । एक सी लायक यहॉ ं कोई वयवसथा नहीं ।

मेहमानो के लायक तो एक कमरे मे कुछ भी नहीं है । िघसाजी को अकेला जाते हुए मोहलले के पिरवारो

ले दे ख िलया।उनके जाने के बाद कुछ मिहलाएं , बंगाली सी, इं जीिनयर की पती,,िसह साहब की पती ,हिर के कमरे नुमा मकान पर आये।वे सब उस सी को दे ख-दे ख मुसकराती रही और उस सी से बात करती रही ।

``कया नाम है तुमहारा ´´ ``सरलाणणणण ्´´

`` कहॉ ं से आई हो णण ्´´

`` िसवनी से आई हूंंं और अब यही रहूंंंगी ।इनके साथ।´´

यह सुनकर हिर के होष ही उड़ गये । सोचने लगे िघसाजी चाचा ने

तो कहा था िक मेहमान है और

परसो सुबह तक वापस लौट जायेगी ।लेिकन यह तो और ही कुछ लग रहा है ।मोहलले की मुसकराती रही ।

मिहलाएं

`` डाकटर साहब । अब आप अकेले नहीं ।यह सरला भी आपके साथ रहे गी।´

वे षमथ के मारे पानी-पानी हो गये। वेउठकर बाहर टहहने चले गए।उनका माथा चकराने लगा। अनेक पषन मिसतषक मे कौधते रहे । उनकी समझ मे कुछ नहीं आ रहा िक अनायास उतपनन इस समसया का िनराकरण कैसे िकया जाए। कहीं ऐसा तो नहीं िक िघसाजी चाचा ने कोई नाटक रचा हो।

दो िदन िजस िकसी तरह से वयतीत हो गए । दो रात हिर कचची फष Z पर चटाई िबछाकर सोये। सारी रात नींद नहीं आ पाई। वसतुत: उनकी समझ मे नहीं आ रहा था िक यह सब कया हो रहा है । उनहोने सरला जी कहा ।

`` िघसाजी चाचा अब तक लौटे नहीं ।´´

`` नहीं ।चाचा जी नहीं आयेगे।असल मे वे मुझको यहॉ ं छोड़ने आये थे।´´ `` िकसके कहने पर ।कयो । िकसिलए । ´´

`` अरे अरे अरे ! आप तो ऐसे पषन कर रहे जैसे कोई पुिलस वाला करता हो। मेरे रहने से आपको कोई परे षानी नहीं हो सकती। मै आपकीणणणणणणणण ्´´ `` हॉ ं हॉ ं बोलो भाई । आपकी कयाणणण ्´´

`` रात को बताऊ¡गी ´´

णवे उस िदन सारा िदन िचंितत रहे । आिखर सरला जी कया बताना चाहती है , वह भी रात को । िदन सामानयत: बीत गया।रात का इनतजार था। माचथ का मिहना था।रात गयारह बजे हिर ने कचची जमीन पर चटाई िबछाई ।

`` आप नीचे नही सोयेगे ´´ ``िफर मै कहॉ ं सोऊ¡गा ।´´ `` इधर पलंग पर ´´

`` आप तुम कहॉ ं णणणणणण ´्

`` मै भी पलंग परणणणणण ´् ´

`` याने हम दोनो एक ही पलंग परणणणणणणन बाबा नणणणण ् ये मुझसे नहीं हो सकेगा।´´

`` कयो आपको कोई परे षानी है कयाणणणणणण ्´´हिर के हजार बार ना-नुकुर करने पर भी सरला नहीं

मानी । उस रात एक ही िबसतर पर हिर सो नहीं पा रहे थे।वह बोली-

``इस तरह करोगे तो काम नहीं चलेगा।आओ,इधर मेरे करीब आंाओ।``

कहकर सरला,हिर

के वक से िलपट गई। उसका आवेष हिर की पौरषता को ललकारने लगा। उसकी नमथ

बाहो के घेरे मे असहाय हिर आिहसता-आिहसता जकड़ाने लगे।सरला ने अपने बाल खोल िदये। सरला के

बड़े -बड़े रसभरे अधर अब तक हिर के अधरो पर कबजा कर चुके । उसके सा¡ची के सतूपनुमा वक की मखमली गरमाहट हिर के सीने मे तूफान मचाने लगी।हिर जैसा संवेदनषील मनुषय एक साधारण मनुषय

ही है ।कोई योगी -महातमा या भगवान नहीं हो सकता।नारी के समक बड़े -बड़े ऋिष-मुिन परासत हो गए िफर हिर जैसे साधारण मनुषय की कया िबसात । एक ही िबसतर पर एक नारी के साथ रात के अकेले मे िकसी पुरष को जो होता है ,बस हिर को भी वही होने लगा।सरला की गम थ सांसे और उसकी मांसल गमथ दे ह रपी आग उसके भीतर के हिर को िपघलाने मे पयाप थ थी। वह बोली,``

``मदथ कुषती के मैदान मे भले ही बड़े से बड़े पहलवान को पछाड़ दे ।लेिकन सचचा मदथ वह जो औरत

के साथ िबसतर मे कुषती लड़कर औरत को परासत कर दे ।तुममे तो िबसतर मे कुषती लड़ने की ताकत है

िफर तुमहारी बीवी तुमको छोड़कर िकसी और के साथ पलायन कर गई।खैर मेरे साथ कुषती लड़ते रहो। मुझे हारना भी अचछा लगता है ।``

िकसी भी पुरष को नारी का संसग थ कभी बुरा नहीं लगता। जब रात के एकानत मे नारी िन:वस दे ह की गमारथट िबखेरती है तो अचछे से अचछा पुरष अपने होष खो दे ता है ।बस हिर के साथ भी यही हुआ।वे सरला रपी नारी के आगोष मे

िहमालय के बफथ की तरह बहते रहे और सरला सारी रात उस बहाव मे

सनान करती रही।

पितरात सपाह भर तक सरला नदी की तरह हिर पर बहती रही और सावन की बरसात की तरह

बरसती रही।।पुरष जलदी ही षानत हो जाता है लेिकन नारी की आग बड़ी दे र तक धधकती रहती है ।नारी अपनी धधकती आग को एक तरफ

बुझाने के िलए लालाियत रहती है । हिर के िलए एक तरफ नारी का संसग थ तो

अपना वयिितव दांव पर लगा दे ख आसमंजसय की िसथित पैदा हो गई। कोई भी पुरष नारी

का संसग थ छोड़ना नहीं चाहे गा ।लेिकन यहॉ ं िसथित िवपरीत थी िक वे असहमत थे।हिर को

अपनी पती

को छोड़कर िकसी और नारी के साथ संबंध बनाना किठन लगा रहा था। िनषा चाहे जैसी भी हो उनकी

अपनी पती थी।भले ही वह उनको छोड़कर चली गई।अब दस थ ाओं का ू री नारी के बारे मे सामािजक मयाद उललंघन करना अनुिचत लग रहा था। एक िदन सरला ने कहा । `` चलो , हम िमनदर चलते है ।´´

वे दोनो भोपाल के िबड़ला िमनदर गये।सनधया का समय था।आरती हो रही थी। लोग आ जा रहे थे।

सरला ने बाहर दक ु ान से पसाद ,फूलमाला ली। आरती के बाद जब लोग पसाद लेकर अलग हट गए ,सरला ने भगवान को पणाम िकया । पूजारी ने पसाद दे ते हुए कहा। `` सौभागयवती भव ् ´´

सरला हिर की ओर दे ख मुसकरा दी । वह पूजारी से बोली । `` ये मेरे पित है , हिर।``

और वह मुसकरा दी। सरला ने पूजारी की उपिसथित मे भगवान सपष Z िकये । पूजारी ने कहा-

की मूरत के सामने हिर के चरण

``अरे भई , इसकी मांग मे िसनदरू भरो ।´´

हिर ठगे से दे खते रहे । िबना िकसी ना नुकूर के सरला के मांग मे िसनदरू भर िदया। सरला मुसकरा दी और पूजारी ने

सरला और हिर को आिषवाद थ िदया। वे िमनदर से बाहर िनकल आये।

`` तुमने यह कया िकया ´´

`` गलत कया िकया णणण ्´´ पती हूंंं

पती हूंणणणणणण ्´´

तुमहारी । पहली पती चली गई तो कया हुंआ मै तुमहारी दस ू री

िबना कोई पितवाद िकये वे दोनो घर लौट आये ।

``अब तो आप मुझे पती मानोगे ही । मै मोहलले के सब लोगो से कह दं ू ूंगी ´´

उस रात सारी रात सरला ने अपना अिधकार जमाये रखी। कहने लगी-

`` अब तक यो ही चलता रहा लेिकन आज हमारी असली सुहागरात है ।´´

उस रात उसने कचचे पसनन थी।

कमरे को सजाया । मोहलले की औरतो को िमठाई बांटी । वह उस रात बहुत

उसने सुहागरात की पूरी तैयारी कर रखी थी। हालांिक िववाह जैसा कुछ भी नहीं था।सुहागरात का पूरा आननद लेने मे सरला ने कोई कमी नहीं छोड़ी ।

हिर को बहुत तकलीफ सी महसूस होने लगी। उनका अनतमन थ उनहे ललकारनेलगा।जो सी िजस तरह

से अपना अिधकार जता रही है उसके बारे मे कोई जानकारी नहीं है ।आिखर िघसाजी

चाचा उसे यहॉं

लेकर आए ही कयो । कया चाचा को मालूम नहीं िक हिर इस तरह का वयिि नहीं िक िबना िकसी िवचार-िवमष Z के िकसी अंजान सी के साथ जीवन जीने के िलए तैयार हो जाए।

सुबह िमसेज िसंह की तबीयत िबगड़ जाने से हिर को बुलाया गया।िमसेज िसंह को मामूली सा जवर

था।रात को भोजनािद मे गड़बड़ी के कारण उनको जवर आ गया था।उनको मेिडिसन दी ।िमसटर िसंह ने चाय बनाकर पेष की । िमसेस िसंह कहने लगी। `` ये

जो सी आई है न कह रही थी यिद डॉकटर साहब मुझे नहीं रखेगे तो जहांिगराबाद मे एक

पंजाबी रहते है उनके पास रहने चली जाऊ¡गी ।´ डाक् साहब संभल कर रहना।´´ यह सुनते ही हिर का

माथा ठनका । मोहलले के अनय मिहलाओं ने भी िमसेज िसंह के कथन की पुिष

की। हिर का हदय जोरो से धड़कने लगा ।अब कया िकया जाय । उनहोने तुरनत ही उपाय खोज िलया । सरला से कहा786786 `` तुमहारा पहले भी कभी िववाह हुआ हुआ है कया ´´

`` हॉ ं हुआ है परनतु वे आदमी मुझे अचछा नहीं लगा इसिलए उसको छोड िदया।´´ `` बेटा-बेटी तो होगे नहींणणण ् `` हॉ ं है न ! एक बेटी है ´´

`` बेटी है

णणणणअ ् रे हमारी भी एक बेटी है ण ´् ´

`` िफर तो दो-दो बेिटया¡ हो गई।´´

वे सोचने लगे, कयो न सरला को कहा जाय

िक वह अपनी बेटी को ले आए और जब वह बेटी को लेने

जाएगी तो उसे पत िलखकर कर दे ंे िक अब लौट कर मत आना । वे बोले। `` अरे भई! अपनी िबिटया

को भी यही बुला लो ।´´

`` उसे लेने के िलए मुझे जाना पड़े गा ।´´

णहिर इसी पतीका मे थे । बोले `` िकसी

िरषतेदार को संदेष भेजकर िबिटया को बुलवा लो ।´´

`` नहीं कोई नहीं आयेगा ।मुझ ही जाना होगा।´´

खैर,सरला िसवनी जाने को

तैयार हो गई। हिर उसे बससटे ड पर पहुंंंचाने गये। उसे िटकट लेकर बस

मे िबठाया।बस जाने तक सरला केंे आवभगत मे लगे रहे ।सरला ने िसवनी का पता िलख कर दे िदया।

दोपहर तीन बजे राजय पिरवहन की बस िसवनी के िलए रवरना हो गई। उसी कण वे

जहांिगराबाद पोसट आिफस पहु¡चे। सरला के नाम अब लौट कर नहीं आना ।´´

िसवनी के पते पर तार कर िदया । िलखा --`` कृ पया

इस घटना के बाद सरला कभी लौट कर नहीं आई। इस तरह हिर एक औरत से ठगे जाने से बच गये। नस थ और बंगाली युवित सिहत मोहलले की तमाम िसयो को जब पता चला िक हिर ने उस सरला नामक सी को उसके मायके वापस भेज िदया तो वे सारी की सारी बहुत पसनन हो गई।

बंगाली युवती के मकान के सामने एक नस थ रहा करती थी। नस थ और उस बंगाली मिहला की आयु

लगभग पचचीस के आसपास होगी।दोनो का समान सांवरा वण।थबड़ी-बड़ी आ¡खे।बड़े -बड़े होंंठ।लमबी सुराही सी गदथ न।लमबे-लमबे केश।समान ऊ¡चाई।हं समुख चेहरा।दोनो के पित बहुत ही हं समुख िमजाज के।जब चाहे तब हिर के पास चले आते।वे हिर के सवभाव से अचछी तरह वािकफ हो गए।एक िदन नस थ ने हिर के कमरे का सारा सामान उठाकर अपने दो मंिजला मकान के नीचे का िहससे मे जमा िदया,बोली``आज से आप यही रहोगे ।´´ उनहोने ने चुपचाप सवीकार कर िलया।

सामानय जीवन मे परे रम बहुत बहुमूलय चीज है । िनषकपट पें्रम वयिि को परमाननद की अनुभिू त

दे ता है । िनशा के चले जाने के बाद

इस मोहलले मे पािरवािरक लोगो ने इतना अिधक पें्रम िदया िक

वे अपना सारा ग़म भूलने लगे।

कहते है सुख और द ु:ख निदया के पानी की तरह है , कभी ठहर कर नहीं रहता ।वह िनरनतर

पवाहमान रहता है ।जब वह ठहर जाता है तो सड़ान होने लगती है ।यिद बहते रहे तो वह सदा ताजा और

महकदार होता है ।लेिकन यिद कोई पवाह मोड़ दे तो वह कहीं भी जाकर िगर सकता है ।थम सकता है । िनरथक थ बह सकता है ।

जब हिर दीपावली के अवसर पर माताजी-िपताजी से िमलने खणडवा गये। उनहे ंे पूरा िकससा सुनाया ।

पता चला , सरला और िघसाजी िमलकर इसी तरह अपना वयवसाय करते है । मॉ ं ने हिर को गले से लगा िलया िपताजी ने िसर पर हाथ फेरते हुए ढांढस बांधी । 000 बेघर िनशा के पलायन के बाद जीवन के अथाह संसार मे हिर की नाव िबन मा¡झी के झ¡झावातो के थपेड़ो मे यततत भटकने लगीं । सरला की ठगी का िषकार होते होते बच गये।कहीं से भी िकनारा नजर नहीं आ

रहा था । दरू दरू तक िवशाल बाहे पसारे संसार -सागर के िकनारे का कहीं पता चल नही रहा था ।उस

वीरान तुफानी संसार-सागर मे हिर उलझ गए और खो गए संसार सागर की अथाह गहराई मे। िकनारा पाने के िलए वे चारो ओर दे खने लगे ।

िकनतु दरू दरू तक कोई भी िदखाई नहीं दे रहा ।

संसार सागर

की िवकराल लहरे उठी ।लहरे चारो ओर हाहाकार मचाने लगी । कुछ भी समझ नहीं पा रहा था।हिर इस बार बहुत छटपटाने लगे । वे इस कोिशश मे थे िक कोई तो आकर उनका हाथ थाम ले। उनकी कमजोर

नैया तुफानो के चपेट मे जाने की तैयार खड़ी ।नैया डगमगाई । समपूण थ पीड़ा नाव मे समा गई और अिधक तीव गित से डगमगाने लगी । वे संसार सागर की अथाह गहराई मे गोते खाने लगे । हिर

भयाकानत हो चीख उठे । बहुत चीखे। सहारे के िलए आवाज लगाने लगे। हाथो को उठाकर बचाने की

गुहार करने लगे । ऊ¡ची-ऊ¡ची बड़ी बड़ी लहरो ने चारो ओर से घेरना पारं भ कर िदया । आ¡खो के आगे अ¡धेरा छाने लगा । ऐसा लगने लगा ,मानो वे थोड़ी ही दे र मे इस अथाह संसार रपी सागर मे डू ब जाएंगे । वे आकणठ डू बने लगे । महसूस होने लगा अब थोड़ी ही दे र मे उनकी इहलीला समाप हो जाएगी िफर कुछ शेष नहीं बचेगा । िबना िकसी अपराध की सजा पा रहे होगे । होठो की थरथराहट बनद हो गई ।

आ¡खो की रोशनी बूझने लगी । हदय तंती मानो अवसािदत हो रही हो और हदय की धड़कन जैसे बनद ही होने वाली हो । वे छटपटाने लगे।

सच ही मे समय बलवान होता है ।पता नहीं िकस वि वह करवट बदले ।कब इनसान रोते -रोते हं सने

लग जाए।कब हं सते-हं सते रोने लग जाए।यह भी कहना किठन है िक समय रोते हुए को और अिधक

रलाएगा या रोते हुए को हं सायेगा।यह भी दे खा गया है िक वि कभी-कभी मुसकराने वाले को और अिधक मुसकान दे दे ता है ।हिर के साथ समय कुछ अजब ही खेल खेलने लगा।वह िपछले कई सालो से लगातार रोते चले आ रहे है ।मुसकराना उनके नसीब मे नहीं िलखा होगा। वि ने िफर करवट बदली और अपने षढयंत का पासा खेला। वि अपने वदारा रचाये गए खेल को दे खने मे तललीन हो गया।

इसी बीच हिर के चचेरे भाई उिम भोपाल आए। कहने लगे ,िपताजी ने उनका जबरजसती िववाह

कर िदया है ।अभी उनको अपना केिरयर बनाना है । िबना नौकरी के कैसे िनबाह होगा।

अपने चचेरे भाई

को मुिसबत मे दे ख हिर उिम की सहायता करने के िलए तैयार हो गए। वे सोचने लगे िक अब वे िफर एक से

दो हो गए।

वे सुबह आिफस के िलए चले जाते और षाम को ही घर लौटते। नेहर नगर के एक कमरे के

मकान मे दोनो भाई रहने लगे । नस थ ने अपने मकान का नीचे का िहससा रहने

को दे िदया था ।दोनो

भाई मजे से रहने लगे । िफलहाल कोई अषािनत नहीं थी। उिम नौकरी के िलए अखबार पढ़ते और यहॉं वहॉ ं एपलाय करते रहते । उिम सारे िदन नौकरी की तलाष मे षहर भर मे दफतो के चककर लगाते रहते ।इसी दौरान उनकी दोसती

िकसी

सी से हो गई। वे रात को दे र से आने लगे ।हिर के पूछने पर कहते

,एक दोसत के यहॉ ं रक गये थे इसिलए दे र हो गई। उनहे नहीं पता था िक वह दोसत एक सकती है ।

सी हो

एक िदन उिम के साथ एक सुनदर सी सी घर आई। उस सी का हिर से पिरचय

करवाया। उिम ने बताया, यह मेडम मेरी पिरिचत है ।इनहीं के यहॉ ं जाया करता था।बेचारी बहुत परे षान है ।िजस तरह आप अकेले है न भैया उसी तरह यह मेडम भी अकेली ही है ।इनका पित इसे छोड़कर चला गया।मेडम के तीन बेिटयां और दो बेटे है । लेिकन उस सी को पहली ही बार दे खकर कोई यह नहीं कर

सकता था िक उस सी की पांच सनतान है ।वह बहुत सुनदर सवसथय,सुडौल,चंचल और चपल लग रही थी ।उसकी बड़ी-बड़ी झील सी गहरी नीली-नीली ऑख ं े ,मोितयो के समान सवचछ एवं धवल दनत पंिियॉं ,लगता था जैसे दरू आकाष मे उड़ते हुए सफेद कबूतरो की कतार हो जो अंगेजी का यू आकार ले लेती है ।

वषाZ कालीन बादलो के समान घने-घने काले केषपाष,िहमालय के समान ऊ¡चा ललाट,छोटी सी सुराहीनुमा गदथ न,बड़े -बड़े वक सथल जैसे सॉच ं ी के सतुभ हो नख से िषख तक गौरवण थ जैसे िकसी संगतराष ने उसे

तराष-तराष के बनाया हो ,िबना िबंिदया का बड़ा और ऊ¡चा माथा और उस पर भी उसकी महमोिहनी सी

मधुर मुसकान जैसे अभी िबजली िगरनेवाली हो।पहली बार उसे दे खकर कोई भी वयिि मोिहत हुए िबना

नहीं रह सकता।उसके सवासथय को दे खकर उसकी आयु और पांच सनतानो के होने पर कोई िवषवास नहीं कर सकता था। खैर,जब कोई ममतामयी सी और वह भी अभािगन ,तो हदय सहसा दिवत हो जाता है । हिर और वह सी दोनो बात करते रहे ।सनेह और संवेदना मे डू ब गये ।पता ही नहीं लगा िक इतने कम

समय मे वह सी इतने जलदी हदय मे सथान पा लेगी। जब हिर की ऑख ं ो मे ऑस ं ू भर आये,उस सी ने िबना िकसी संकोच के उनहे वक से लगा िलया । हिर को महसूस होने लगा जैसे िकसी ने मेरी नाव की पतवार थाम ली । वे बहुत आशसत हो गए । वे उस सी के आंचल मे ऐसा लगने लगा जैसे उनहे आज सारे संसार की खुिषया¡ िमल गई हो।उनहोने सी से पूछा``तुम कौन हो । ´´

``मै मंजू हूंंं ।यिद तुम चाहो तो तुमहारे जीवन रपी नाव की ``मेरे जीवन रपी नाव की िखवैया णणणण ्´´

िखवैया बन सकती हूंंं ´´

``हा¡ , तुमहारे जीवन रपी नाव की िखवैया णण ्´´ ``कया तुम

मेरी जीवन नैया को पार लगाने आई हो ।´´

`` सच ही मेणणणणहा¡ , मै तुमहारी जीवनरपी नाव िकनारे लगाने आई हू¡ । णणणणण ्

`` मेरी पती िकसी के साथ पलायन कर गई।वैसे षायद उसके लौट के आने की उममीद नहीं है । उसने थाने मे िलखकर मुझको तलाक िदया है ।लेिकन यिद लौटकर आ गई तो णणणण ्´´ `` कया वह वापस आ सकती है ।´´

``षायद नहीं।वह सवयं पुिलस थाने मे िरपोटथ िलखा कर गई है िक उसका पित और बचचो से कोई संबध ं नहीं है ।´´

``यिद वह लौट कर नहीं आई तो हम साथ मे ही रहे गे । हा¡ िफर भी वह दोनो बहनो के समान रहे गे ।´´

यिद लौटकर आती है तो हम

``िफर कया िकया जाए´´

``हा¡, यिद तुम चाहो तो जीवन रपी अथाह संसार-सागरमे तुमहारी नाव की पतवार भी सभालू¡गी ।´´ ``मेरे जीवन मे अलावा िवरह और पीड़ा के कुछ भी नहीं है ।`` ``है । तुम हो । और तुमहारे साथ मै हू¡ ।´´

णहिर िनिंनम थ ेष मंजू की ओर िनहारते रहे । उनके मन मे िवचारो का समूह उमड़ने लगा ।डू बते को ितनके

का सहारा चािहए।वह इससे अिधक वह कया चाहता है । इस िनतानत अकेलेपन से कम से कम छुटकारा िमल तो जाएगा । इससे पीड़ा और मानिसक बीमारी का इलाज हो जाएगा । यिद मंजू जीवन रपी नाव

की पतवार सं¡भालने को उतसुक है तो िफर इससे अिधक कया अचछा हो सकता । हिर ने मन ही मन संकलप कर िलया िक मंजू को जीवन की नैया सौप दे ना चािहए ।एक से भले दो हो जाएंगे और सफर आसानी से कट जाएगा । उनहोने ततकाल िनणय थ ले िलया ।

``यिद तुमहारा साथ जीवन भर रहे गा तो मुझे कोई हजथ नहीं है ।´´

``मुझे सवीकार है । साथ -साथ चलने से सफर आसान हो जाता है । आपके पास रपया-पैसा है ।नौकरी है । मकान बनवाने के िलए जमीन है ।´´

`` हॉ ं ! है णणणण ´् ´

`` बस मेरी रोजी-रोटी की वयवसथा और एक नहीं रहे गी ।´´

खुद का मकान बन जाय िफर मुझे िकसी पकार की िचनता

`` मै सोच रहा हूंंं हमे साथ रहने से पहले माता-िपताजी, भैया-भाभी और बड़े बुजुगोZंं से अनुमित लेनी चािहए।तािक भिवषय मे िकसी तरह का वयवधान उतपनन न हो ।´´

`` मै भी चलूंंंगी भैया-भाभी और माताजी-िपताजी के पास । ठीक रहे गा ।´´ `` हॉणंणणहॉणणणणणण ् आपका चलना तो बहुत जररी है ।´´ हिर बोले ।

उन दोनो ने िवचार-िवमष Z िकया और एक िदन समय िनकालकर बांणगंगा गये।बांगगंगा मे हिर के

अगज यानी बड़े भैया रहा करते थे। उनहोने भाभी जी और भैया को सारी िसथित बता दी। मंजू और हिर ने कहा-

`` हम लोग साथ रहना चाहते है । यिद आप लोग उिचत समझे तो ठीक है अनयथा नहीं ।´´ भैया-भाभी जी ने कोई एतराज नहीं िकया । भैया -भाभी जींे से अनुमित िमलने के बाद हिर, मंजू को माता-िपताजी से िमलाने

खणडवा ले गये। माताजी-िपताजी को भी सारी िसथित सपष कर दी । उनहोने

भी मंजू को सवीकार कर िलया । उनहे बड़ो से आिषवाद थ और अनुमित िमल गई ।

णहिर यह कतई नहीं चाहते थे और आज भी नहीं चाहते है िक अपने संसकार और अपनी

संसकृ ित के िवपिरत चले ।इसिलए माता-िपता और अपने से बड़ो से अनुमित लेना उिचत समझा ।

अपनी सभयता और संसकृ ंृित का उललंघन करना , पिरवार और समाज से अलग हटकर चलना ,अभी

हमारे भारत मे यह लाज बची हुई है । अभी भी हम हमारी जड़ो से जुड़े हुए है । िजस िदन हम भारतीय

हमारी जड़ो से कट जाऐंगे उस िदन भारत मे पिरवार और समािजक संसथाएं समाप हो जाएगी । अत: यह जानते हुए िक उनहे साथ रहने के िलए बड़ो की अनुमित की आवषयकता है ,सो उनहोने बड़ो से आिषवाद थ और अनुमित ले ली

तािक

भिवषय मे पषन उठने पर उन पर गलती का आरोप न लगे।

बड़ो से आिषवाद थ और अनुमित िमलने के बाद हिर ने अपने जीवन की नाव मंजू के हाथो मे सौप दी।

उनहे अब पूरा िवषवास हो गया िक िनषा

अब कभी नहीं लौटे गी।अब मंजू के हवाले उनका सारा जीवन

हो गया।मंजू अपने बचचो को ले आई।उनके बचचे आने के बाद संजू और पपपू भी पास आ गए । नाव

िकनारे की ओर चल दी । संसार-सागर को दे खते हुए मंजू ने हिर को अपने अंक मे छुपा िलया। हिर का रोम-रोम पुलिकत हो गया । हदय मे आननद और उललास की लहरे उठने लगी । हिर की सारी पीड़ा पल भर मे जैसे ितरोिहत हो गई।

``लगता है ईषवर ने हम दोनो का िमलन तय िकया होगा´´ `` यह तो वो ही जाने ´´

``ऐसा भी होता है ईषवर की यह मरजी होगी णण ् वह मुसकाई । लेिकन हिर िविंसमत से हो गए । सोचने लगे अगर पिरया¡ एक सथान पर रहने वाली नहीं है तो यह िकस तरह से जीवन भर पतवार संभालेगी । िफर यह कयो कहा िक उसे सुहागरात का

जोड़ा चािहए । इस दर ु ह संसार-सागर को पार करने के िलए इतनी बड़ी शत थ कया उपयुि है । हिर के

कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था । यह सोचकर िक कोई तो सहारा चािहए जीवन जीने के िलए ।इतने बड़े संसार-सागर को कैसे पार लगाया जा सकता है ।यह उनके अकेले वयिि की शिि से परे चाहे कण भर के िलए ही सही ।चाहे झूठा ही सही । सहारा तो चािहए ही।

का है ।

पीड़ा और अकेलेपन से मुिि पाने का इससे अिधक सुगम और कया हो सकता है ।इसे शतरं ज

का दाव ही समझो जीत गए तो जीत गए अथवा हार ही सवीकार करनी होगीं।यिद जीवन मे िकंिचत पिरवतन थ हो रहा है तो होने दो ।इसे ही बेहतर मान िलया जाना होगा । उनहोने दब ु ारा पश िकया उससे । ``तुम चाहो तोणणणणणणणण ्´´

``मुझे सचीकार है । कल हम िमनदर चलेगे ´´ िबना कुछ जाने ही मंजू ने

बात काट कर बीच मे ही जवाब िदया ।

सनधया का खुषनुमा मौसम था।गमीZ की सुहानी षाम के आगोष मे पूरा आकाश िसनदरूी हो रहा था।

िपषचम मे सूयास थ त मनोहरी दषय भोपाल के बड़े ताल के िकनारे दे खने लायक होता है । सनधया का िसनदरूी पकाष बड़े ताल के षानत जल को भी िसनदरूी बना रहा था ।ऐसा पतीत हो रहा था मानो सनधया

ने िपय िमलन के बहाने अपनी मा¡ग मे िसनदरू भर रखा हो । प¡छी कलरव कर रहे थं्ो और तालाब के िकनारे जलिकड़ा कर रहे थे । नावो मे कई जोड़े अपने -अपने साथी के साथ मगन नजर आ रहे थे । दरू

तालाब के बीच मे पीरबाबा की मजार से लोहबान का उठता हुआ धु¡आ ऐसे लग नहा था मानो िकसी सनयासी की भभूत ऊ¡चे आसमान मे उड़ रही हो । हिर अपने दोनो पैर पानी मे डाल बोट कलब के िकनारे बैठ गए ।मंजू उनके का¡धो पर अपना िसर िटकाये गुनगुनाने । हिर आज बहुत पसनन और रोमांिचत होने लगे।अपने एकाकी जीवन को हरा-भरा दे खकर मन मे लडडू फूटने लगे। ``तुमने पीरबाबा से कया मा¡गा ।´´

``साथ तुमहारा ।जीवन भर के िलए ।´´

वह मुसकरा भर दी ।

``लो मै आज से तुमहारी हो गई ।मैने आज पीरबाबा से कुछ मा¡गा है और जो मैने चाहा मुझे िमल

गया ।´´

``तो कया तुमने मुझे सच ही मे अपना िलया है ।´´

``हा¡णणणणणसच ही कर रही हू¡ ।´´ मंजू की मोिहनी मुसकान िबखर गई।

``अहो भागय मेरे णणणणणणण ्´´

उनहोने मंजू की पेशनी पर अपने अधर रख िदये । उसने अपने बाहो का हार हिर को पहना िदया । उनका हदय आननद और उललास से भर गया । हिर सोचने लगे उनकी

नैया को सच ही मे सहारा िमल

गया ।अब तक नहीं लग रहा था ।लेिकन अब जब मंजू ने पीरबाबा से जो मा¡गा वह िमल ही गया है । उनहोने भी पीरबाबा से मंजू का साथ मा¡गा था । वह

मा¡ग भी पूरी हो गई है ।

जीवन रपी नाव अब की बार आिहसता आिहसता आननदमयी गित से चल पड़ी ।राह मे

सनेह और सुमधुर बयार । िविभनन िसवपनल रं गो के बाग िखलने लगे । समपूण थ पीड़ा सनेिहल दल ु ार से

ितरोिहत हो गई । हदय मयूर नतृय करने लगा । मन मग ृ खुशी से कुला¡चे लेने लगा ।पमुिदत अधरो

पर उषा की पथम िकरण के समान मुसकान िथरकने लगी । हदय के िसतार बजने लगे ।नाद बहम ् िननािदत होने लगा । मानो बसनत िखल गया हो । सवपनो के इनदधनुषी रं गो की छटा छाने लगी ।

िबन िववाह के सुहागरात मनाई गई।।उस रात मंजू बहुत पसनन िदखाई दे ने लगी।उसने सुहाग का सारा शग ं ृ ार पहन िलया।सारी रात मंजू,हिर के वक से लगी सपनो की दिुनया मे खोते रही।हिर की भी यही

िसथित थी।वह कभी मंजू के शीमुख को िनहारते तो कभी नयनो मे खो जाते।मंजू के रसभरे मदमाते अधरो पर अधर

धर दे ते और अधरामत ृ पीने मे मगन हो जाते।वे सोचते रहते ,िनषा

छोड़कर चली

गई,सरला ठगना चाहती थी लेिकन लगता है िक मंजू जीवन नैया अवषय ही पार लगाएगी।इस सुहागरात

के पुिनत अवसर पर बड़ी ही सभयता के साथ मंजू पेष आई।संभवत:िसया¡ जो बहुत अचछी होती है इसी

तरह होती होगी।वे मन ही मन पफुिंललत होते रहे ।वे अपने आपको धनय मानने लगे।मंजू की सदाषयता और सभयता के समक हिर नतमसतक हो गए।वे जान गए िक वासतिवक सुहागरात कया होती है ।कैसी होती है ।िकतना अपनापन रहता है ।िकतना समपण थ होता है ।िकतना आननद िमलता है ।इसीिलए तो कहा गया है िक पहली सुहागरात पें्रम की रात होती है जो अनत तक याद रहती है ।उनको यह सुहागरात सदै व के िलए याद रहे गी।

समय बहुत की मादकता और कोमल संसगोZंं मे वयतीत होने लगा । िकस तरह िदन

बीत जाता ।िकस तरह मदभरी रात बीत जाती । िदन और रात छोटे लगने लगे । महसूस होने लगा , यह जीवन भी बहुत कम है । काश ! िदन और राते और ये जीवन इतने बड़े होने चािहए िक हदय की

सारी आका¡काएं पूरी हो जाए । पें्रमालाप के िलए समय की कमी महसूस न हो । सारे सवपन साकार हो उठने का अवसर था।

मनुषय जीवन बहुत ही छोटा और िविभनन इचछा - तषृणाओं से भरा हुआ होता है । पकृ ित

का भी िनयम है यिद इस िनयम का उललंघन हो गया तो सिृष का संतुलन डगमगाया जाएगा ।

आकाकाएं और तषृणाएं मनुषय को मोहजाल मे बा¡धे रखती है ।जो इस मोहजाल मे उलझ गया वह कहीं का रहा ।

सवग थ के समान आननददायी जीवन मे मंजू के अितिरि ननहे -ननहे फूलो का बागान भी

धीरे -धीरे बस गया । मंजू के आ¡गन मे पहले से ही कुछ फूल िखले हुए है । मंजू के आननदोललास को दे ख-दे ख हिर का मन हषाZंेललािसत होने लगा ।अरणोदय होते ही उनके आननद उतसव के िदन का शुभारमभ हो जाता ।

आज से हिर मंजू के पहले ही जागने लगे। मंजू को गहरी नींद मेंं दे ख आिननदत होते। वह

गहरी नींद मे और भी अिधक सुनदर लगती । उसके गोरे से मुखमणडल पर वह तेजोमय पसननता ।बड़े बड़े रतनारे अधर । माथे पर िबखरा-िबखरा कुमकुम । असत-वयसत पिरधान । िबखरे और उलझे से केशपाश । मन मोिहत हो जाता ।उनको भीतर ही भीतर लगता जैसे वे इसी तरह िनत िनत मंजू को

दे खते रहे । उसके जाग जाने पर फूलो के समान िखला-िखला मुखमणडल अभी अभी पमुिदत कमल-दल सा पितभािसत होता ।िजस पर भंवरा रपी मन-बावरा अधरामत ृ के िलए उनमािदत हो उठता । मंजू के आतमीय दल ु ार के समक हिर िहम-िगरी से िपघलकर बह जाते। िजस तरह बहती हुई सरीता सागर मे

िमलकर अपना अिसततव समाप कर सागर के साथ एकाकार हो जाती , हिर भी ठीक उसी तरह मंजू के पें्रमपाश मे बंधकर एकाकार हो जाते।

पात:-सायं ,पल-पहर ,िदन-रात , सपाह-मिहने वयतीत होते गए । वे एक दस ू रे मे खोये-खोये

सारे िवश को िवसमत ृ कर बावरे हुए जाते

। शीत-गीषम-वषाZ , बसनत ,हे मनत ,शरद आिद ऋतुएं आती-

जाती रही । न जाने कब समय पंख लगा कर उं़ड़ गया , पता ही नहीं चला । जब तक बसनत महकता

है , तब तक चारो ओर आननदोललास और मदनोतसव मनाया जाता है ।भंवरे फूलो पर मंडरा मंडरा कर मधुपान करने मे मदमसत हो जाते है ंं।पलाश बौरा जाता है अपने िपय को अपने रं ग मे रं गने के िलए ।किलया¡-फूल आमंितत करते है अपने िपय को मधुपान गहण करने के िलए और भंवरे गुनगुनाने लगते

है । ठीक उसी तरह सावन आते ही सारी धरा हरी-भरी हो जाती है और पकृ ित अपने पूरे शबाब पर आ जाती है । धरा हिरयाली का घु¡घट ओढ़ अपने िपय गगन को मोिहत करने मे कोई कमी नहीं होने दे ती

।जयो ही गगन धरा पर झुक जाता वषाZ रानी झूम झूम कर बरसने लगती और अपने पें्रम का इजहार करने लगती है ।ऋतुएं पिरवितत थ होती जाती । तकरीब सारे ऋतु पिरवतन थ के बाद पतझड़ की ऋतु आ जाती है और सबकुछ िबछड़ने लगता है । िनशा के पलायन

जानकारी िमल गई

िक हिर

काणड के बाद उनका भाई उनहे

खणडवा मायके ले गया था। िनशा को

आजकल मंजू के साथ रहने लगे है । वह भी भोपाल चली आई। हिर के बड़े

भैया ने िनशा को हिर का वह िनवास सवयं आकर बता िदया जहॉ ं मंजू और वे बचचो के साथ रहते है ।

िजस िदन िनशा भोपाल चली आई,हिर को उसके आने की कोई उममीद िदखाई दे रही थी। िनशा के भोपाल आने के बाद वही हुआ िजसका हिर

और मंजू को भय था। हालांिक हिर और मंजू

ने

माताजी-

िपताजी, भैया-भाभीजी से मंजू के साथ रहने की अनुमित ले ली थी।बावजूद हिर के बडे ं़ भाई ने िनशा को हिर के मकान तक आकर छोड़ िदया। िनशा ने आते ही हं गामा खड़ा करना पारं भ कर िदया।

कानून मे िसयो के िलए बहुत छूट है ।वह चाहे िजसके साथ पलायन कर सकती है ।चाहे जब

लौट कर आ सकती है । चाहे िजस के साथ िदन-रात रह सकती है ।चाहे िजस भी पुरष पर िकसी भी पकार का आरोप लगा सलाखो के पीछे डलवा सकती है । हमारे कानून मे पिरवार और समाज को बचाने

के िलए अब तक कोई कानून नहीं बना ह।ंै िजसमे यह होना चािहए िक कोई भी िववािहत सी िबना तलाक के िकसी अनय के साथ पलायन नही कर सकती या िकसी अनय के साथ िदन-रात एक साथ एक छत के नीचे नहीं रह सकती।हमारे भारतीय कानून मे सी को वह सब करने के अिधकार दे रखे है जो

उसके िहत मे भी नहीं है और िजससे उसे नुकसान उठाना पड़ता हो। िनषा अपनी मरजी से िकसी अनय के साथ पलायन कर गई और कुछ िदन-रात साथ मे रहकर िफर लौट आई। कोई भी पथम शण े ी की उचच शण े ी और िंवदतीय शण े ी की मधयमवगीयसतर की समझदार नारी तीसरे शण े ी की सी के समान

अपने चिरत का पतन नहीं होने दे ती । तीसरे शण े ी की िसयॉ ं ऐसा कम थ करती है और संभवत: िनशा तीसरे शण े ी की िसयो

मे आती है ।

कई लोग िदवासवपन दे ख-दे खकर पसनन होते है और मन के लडडू खाते रहते है ।उनहे

वासतिवक िसथित का जरा सा भी जान या अहसास नहीं होता । वे नहीं जानते िक िदवासवपन के अितिरि वासतिवक जीवन भी होता है िजससे होकर गुजरा बहुत आवशयक है अनयथा कुछ भी घिटत हो

सकता है । संभवत:हिर के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है । लेिकन मोहपाष मे फंस जाने के कारण सारी पितकूल िसथितयॉ ं अनुकूल महसूस होने लगी थी।जैसे सब कुछ अपने अनुकूल हो रहा हो। लेिकन अब अनुकूल िसथितयॉ ं पितकूल होने लगी । िनशा आये िदन कोई न कोई घमासान करने लगी। इस घमासान

का हिर और मंजू के बीच वयवहार मे बाधाएं उतपनन होने लगी। िनशा कहती ,ये मेरे पित है और मंंंजू कहती, ,अब हम दोनो बहने साथ मे िमलकर रहे गी। दोनो अपने अपने

अिधकार जताने लगी। मंजू के िलए उनके नाम से

दग ु ाZ चौराहे पर

एक आयुविेदक औषिध भणडार खोला ।जहां मंजूजी बैठने लगी ।सुबह-षाम और अवकाष के िदनो हिर सवयं बैठ जाया करते। एक षाम हिर औषिध भणडार मे बैठे

िक िनशा ने दग ु ाZ चौक मे हं गामा मचाना

षुर िकया।वह अपने पुरष िमतो को भी साथ ले आई।भणडार मे रखी आयुविेदक दवाइयो की िषिषयॉं

फेकने लगी।दे खते ही दे खते सड़क पर दवाइयो की िषिषयॉ ं टू टने लगी । औषिध भणडार के सामने भीड़ एकत हो गई। भणडार से थोडी ही दरूी पर पुिलस थाना था।पुिलस वाले आये और सब लोगो को थाने ले

गई। बहुत ही हुजजत के बाद जब पुिलस ने िसथित समझी ,दोनो को समझाईष दी और अलग-अलग रहने की िहदायत दे दी ।ण ्

िदन तो िजस िकसी तरह बीत जाता रहा लेिकन जैसे ही रात होती िनशा और मंजू के बीच

अिधकार की बात होने लगती।िनषा कहती,ये मेरे पित है ये मेरे साथ सोयेगे।मंजू कहती ,मैने इनके साथ सुहागरात मनाई है तो ये मेरे पित है ।ये मेरे पास सोयेगे। इस खीचा-तानी मे हिर िववष हो जाते।बोलते``अचछा अब बताओ आज िकसके पास सोना होगा।``

``ऐसा करो आज आप मेरे पास सो जाओ।``िनषा बोलती ``नहीं मेरे पास।``मंजू खीज पड़ती।

``लड़ो मत।ऐसा करते है एक इस तरफ और दस ू री इस तरफ और दोनो के बीच मे मै ,ठीक है ।``

णदोनो सहमत हो जाती है ।िबसतर पर लेटते है ही िनषा अपनी साड़ी उतार कर अलग रख दे ती है ।उसे दे ख मंजू भी अपनी साड़ी उतारकर अलग रख दे ती है ।हिर िविंसमत हो जाते है । बोलते-

`` यह कया!दोनो ने ही साड़ी उतार दी।तुम लोगो को षम थ लगती भी है या नहीं?दो वसहीन िसयो के

बीच मे मेरी िसथित कया हो जाएगी? जानती हो।``

णदोनो कोिधत तो हो जाती है लेिकन इस अवसथा मे न जाने कयो दोनो के मुख पर गंभीरता छा जाती।

दोनो अपने अिधकार रात की इस काली छाया मे िदखानेंे लगती।एक ओर से िनषा आिलंगनबद हो

जाती है तो दस ू री ओर से मंजू आिलंगनबद हो जाती है ।दो िन:वस िसयो के बीच हिर असहाय हो जाते। दो िन:वस नारी दे ह एक पुरष दे ह पर अिधकार जमाने लग जाती है ।एक ओर

मंजू खीचती है ।दस ू री ओर

से िनषा खीचती है ।यह नगन खेल तब तक चलते रहता है जब हिर िनषा के सामने मंजू को संतुष करते है और मंजू के सामने िनषा को संतुष करते है ।

णए्क ही िबसतर पर दो िसयो के साथ सोना एक मदथ के िलए चुनौतीपूणथ तो है ही साथ ही मयाद थ ा

का पषन भी है । हदय इस किठन िसथित मे कुछ भी सवीकारने के िलए तैयार नहीं होता था।िदमाग की

नसे फट जाना चाहती । कया ऐसा भी होता है या ऐसा कभी हुआ है । िनशा िकसी के साथ पलायन करके भी अपना अिधकार जता रही है तो मंजू पािरवािरक सहमित से साथ मे रहने के कारण अपना अिधकार

जता रही है ।कानून मे नािरयो को िजतने अिधकार िदये गए है उतने अिधकार पुरष को नहीं िदये गये है । नारी चाहे अपनी मरजी के साथ िकसी भी पुरष के साथ रह सकती है लेिकन पुरषो को इस तरह के अिधकार कम से कम हमारे भारत दे ष मे ंंनहीं िदये गये है । इसीिलए पुरषो की दयनीय िसथित नािरयो

वदारा की जानेवाली जयादितयो से उतपनन हो जाती है । हिर के िलए ऐसी िसथित बहुत द ु:खदायी हो गई ।जहांंं मानिसक तौर पर मानवीयता की हदे पार करना गुनाह है ।वहीं संबंधो के तौर पर िनभाना भी

लाजमी हो जाता है ।एक मदथ दो िसयो के साथ कैसे सोये ,एक के सामने दस ू री को संतुष करना न मानवता है न ही सभयता ,ऐसे मे एक लाचार की तरह हिर को

वह सब कुछ करना पड़ रहा है जो

उसकी मानवीय संवेदना के अनुकूल नहीं है । लगभग दो माह तक यह िसलिसला चलता रहा ।

अकटू बर के मिहने से मंजू के वयवहार मे आिहसता-आिहसता पिरवतन थ होने लगे । हिर

समझ नहीं पा रहे िक यह सब कया हो रहा है । मिसतषक की सनायुितंतकाओं मे िवदुत पवाह का पतीत

होने लगा जैसे कुछ घट रहा है ।लेिकन कया घट रहा है सपष पतीत नहीं हो रहा ।महसूस होने लगा जैसे वे सवपन के संसार मे बह रहे है ।हिर मुिछZ त से होने लगे। अथवा सममोिहत हो मात िकसी िखलौने के

समान नतृय कर रहे है ।अिनिित । भटकाव सा पतीत होने लगा है । उनहे लग रहा है िक वे सममोिहत हो रहे है ।ऐसे कहीं अनुिचत कदम न उठ जाय।यह सोचकर वे वयाकुल हो जाते। िनशा के आ जाने के बाद उनहे ंे आभास होने लगा है िक मंजू दरू कहीं दरू उड़ कर जा रही है ।वे उसे छूने का पयास कर रहे है िकनतु

वह दरू-दरू उड़ी जा रही है । वे िननदा मे है या जाग रहे है उनहे पतीत नहीं हो रहा है ।

अरे !यह कया हदय मे बार-बार यह िकस पकार का वहम ् उठ रहा है ।नहीं, ऐसा नहीं हो

सकता । उनका अनतमन थ गवाही दे रहा है मंजू उनहे छोड़कर नहीं जा सकती । जब तक उनके शरीर मे

पाण है ।वह उनके करीब ही रहे गी। िनशा भले ही चली जाय,कयोिक िनशा ने अब तक उनके पें्रम,िवषवास और आषाओं को ठु करा चुकी है ।इसिलए िनशा से िकसी तरह की उममीद की जाना उिचत नहीं लग रहा । मंजू के वचन हिर के मन- मिसतषक मे कौधने लगे-

`` नहीं , ऐसा नहीं हो सकता । मै तुमहारी हू¡ और सदा तुमहारी रहू¡गी ।मै अपने वचन पर अिडग हू¡ । मुझे संसार का कोई भय भयभीत नहीं कर सकता ।

लेिकनणणणणलेिकन मै अपने िवचारो की सवतंत हू¡ ।

मेरे कायथ वयापार मे िकसी का भी हसतकेप पसनद नहीं करती ।मै अपने-आप की सवयं मालिकन हू¡ ।मुझ पर िकसी का कोई अिधकार नहीं है और न ही मैने िकसी को कोई अिधकार िदया है । मै चाहे जो कर सकती हू¡ मेरी अपनी मरजी ।मुझ पर कोई अपनी मरजी नही थोप सकता । मै पसनद नहीं करती ।´´ शीघ ही हिर का वहम ् डाल से टू टे पिो की तरह िबखर गया ।उनहोने अभी सोचा भी नही

था िक यिद उनहोने कोई अिधकार जताया हो शायद मंजू सवीकार नहीं करे गी । मंजू पूवथ मे ही सपष कर

चुकी है िक उसने िकसी को कोई अिधकार नहीं िदया है । खैर , हिर इस पश को लेकर परे शान होना नहीं चाहते । वे यह सोचते रहे िक िजसका िजतना साथ िमला है उसके िलए उनहे धनयवाद िदया जाना चािहए । कोई िकसी के साथ पैदा नहीं हुआ और न ही कोई मरने के बाद साथ चलेगा ।कयो हदय को

उहापोह के घेरे मे डाला जाय। उनहोने अपने आप को आशसत करने का पयास िकया ।अपने हदय की

शििहीन गंथी को ढांढस लेने का कोिशश करने लगे िक यह सब मोह माया है ।िजतना इसमे उलझते जाओगे उतना ही इसमे अपने आप को खोये हुए पाओगे ।

अकटू बर की एक रात । िनशा कमरे मे सो रही थी। िदन के कारोबार से थके हुए रात के लगभग दस

बजे हिर घर लौटे । बचचे सोने की तैयारी कर रहे थे । पपपू टे बल लेमप की रोशनी मे पढ़ रहा था । ``तुमहारी मममी कहा¡ है बेटे ।´´ ``कौन सी मममीणणण ´् ´ `` मंजू मममीणणण ्

``शायद मममी छत पर टहल रही है ।´´

``अचछा , तुम पढ़ो।मै मममी को दे खता हू¡ ।´´

पपपू पढ़ने मे वयसत हो गया । उनहोने िसगरे ट जलाई और बरामदे मे रखी आराम कुसी मे बैठकर कश

लेने लगे । िसगरे ट का छललं्ेदार धु¡आ धीरे -धीरे ऊपर उठने लगा और कमरे की वायु मे िवलीन होने लगा ।उनके मिसतषक मे मंजू के वे शबद बार गू¡जने लगे-

``मेरे काय वयापार मे िकसी का हसतकेप करना मै पसनद नहीं करती ।´´ हिर का हदय जोरो से धक् घक् ं़करने लगा । शबद बार-बार हदय पर चोट करने लगे । मन मे तरह तरह की शंकाएं उठने लगी । मंजू इस तरह से कयो कह रही है ।कया उनसे उसका मन उब गया है ंै । उसी ने कहा िक पिरया¡ एक सथान पर नहीं रहती इसिलए पिरयो का कोई नाम भी नहीं होता ।कया मंजू अब जाना चाहती है ।ंंलेिकन मंजू ने जीवन भर उनकी नैया की पतवार थामने का वचन िदया है । आिखर मंजू के वचन का कया होगा ।कयो मंजू रात रात भर जागती रहती ।

रात का पथम पहर बीत गया ।मंजू छत पर टहल रही है या सो रही है ।अकटू बर की आधी

रात के करीब-करीब मदम मदम-शीतल पवन चलने लगी। हदय मे िवरह का जवार रह रह कर उठ रहा

है । आ¡खे जल रही है । सारा बदन वयाकुलता की आग मे तप रहा है । न जाने छत पर मंजू कया कर रही होगी । इतनी रात को अकेले ही छत परणणणणणण।्उनका साहस नहीं हुआ । कैसे मंजू को कहे िक

बहुत रात हो चली है ंं। वह चल कर कमरे मे सो ले णणणणजयादा दे र तक जागना अचछा नहीं होता ।

लेिकन कैसे कहे ।वह तो अपने आप की मालिकन है और हिरणणणणणणणणइ्ससे अिधक नहीं हो सकता । उसने जैसा चाहा वैसा ही िकया जाना उिचत होगा , हिर यह सोचने लगे ।

जात नहीं , कब जीवन रपी नाव मे सूराख हो गया । पतवार मंजू के हाथ मे अब भी तन

कर कसी हुंुई है और नाव मे आिहसता-आिहसता डू बने के आसान नजर आने लगे । हिर सोचते

रहे णण ्``शायद मेरे पास का धन अब समाप होने लगा और मंजू को मुझसे जयादा धन की आवशकता है । जीवन के िलए आवशयकता की पूितथ धन से ही होती है ।जहा¡ धन है वहा¡ पसननता है ।पें्रम है ।अपनापन

है ंै। जहा¡ धन नहीं वहा¡ कुछ भी शेष नहीं बचता । कया मै अब पूवाव थ सथा मे पहु¡च गया हू¡ ।``सोचतेसोचते हिर का मिसतषक चकराने लगा ।उनहोने गदथ न को एक हलका का झटका िदया । िसगरे ट सुलगाई

ंं। आसमान मे चनदमा¡ अपनी सभी सोलह कलाओं के साथ रजनी के मसतक पर शोभायमान हो रहा था

।िंझलिमल करते तारे आकाश मे जयोितषमान हो रहे थे। गगन मणडप मे आकाश गंंंगाएं पूण थ यौवनता िलए पमुिदत हो रही थी । कुल िमलाकर शुलक पक की मधयराती मे वसुनधरा का सारा वैभव नवयौवना

नारी के समान लहलहा उठा । हिर का हदय रजनी के यौवनता रपी वैभव को दे खा दे ख वयाकुल हुआ जा रहा है । वयाकुल और भावुक वयिि के िलए आननददायी राती हदयवािसनी पें्रयसी के पास न होने पर

अतयनत कषदायी होती है । यिद कहे िक वणन थ ातीत कषदायी होती है तो अितशयोिि नहीं होगी । मंजू के पेमाभाव मे पूिरत होते ही सहसा उनका हदय छत की ओर दत ु गित से पहु ¡चने के िलए लालाियत हो उठा

।शायद मंजू अब तक छत पर ही सो चुकी होगी । अथवा अब कोंैन सा महतवपूण थ काय थ करना है , िकतना धन कैसे और कहा¡ खचथ करना है , सोच रही होगी ।उनहोने िसगरे ट का अिनतम कश खींचा और बचा हुआ टु कड़ा पैर से रौद िदया

। उनका पैर िसगरे ट मे शेष रही िचंगारी से छू गया । लेिकन उनहे

तिनक भी एहसास नहीं हुआ । संभवत: मन की समपूण थ एकागता मंजू मे िवलीन हो चुकी होगी । एकागता ही एक ऐसा ततव है िजसमे ंंमनुषय अपने

अिसततव को भी भूल जाता है । मिसतषक की

तंितकाओं मे एक पकार का पूणाभ थ ाव उतपनन हो जाता है । यह

पराभाव की िसथित भी होती है ।

लेिकन यहा¡ जो िसथित उतपनन हुई है वह िवयोग की िसथित है ।अत: यह एकागता पथ ृ क तरह की हो सकती है । मन की पूणथ एकागता मे अनतमन थ िबलकुल सचेत और एक ही सथान पर

एकाग हो जाता है

। मनुषय िवषय वसतु मे तदाकार हो जाता है । सहसा हिर की तनदा भंग हो गई।जब छत की पहली सीढी की ठोकर लगी ।

छत पर मंजू की आवाज नहीं आ रही थी। हिर आिहसता-आिहसता छत पर पहु¡चे। छत पर

मंजू फश थ पर लेटी हुई है ।शायद सो रही होगी । वे मंजू के करीब बैठ गये। आ¡खे खुली । मंजू आसमान की ओर िनिंनम थ ेष िनहारे जा रही है । आकाश मे िवचरते गहो को िनहार रही होगी । हिर की ओर िबना दे खे आिहसता बोली -

``तुम अभी तक जाग रहे हो´´ ``और तुम भी , तुम भी तो अभी तक जाग रही हो ।´´ ``सो जाते ।´´

``तुम जो अकेली छत परणणणण ्´´ ``मेरे करीब बैठो ।´´

``नहीं, मै यहा¡ ठीक हू¡ ।´´

शरद की चा¡दनी रात मे मंजू का सौदय थ पूणम थ ासी के चनदमा¡ के समान िनखर रहा था।मन मे िकसी किवता के शबद याद आये ।

``सवचछ चा¡दनी िबछी हुई है अविन और अमबर तल मे `` उनका हदय पुलिकत हो

उठा । सहसा उनके दोनो हाथ बढ़े और मंजू के चेहरे को अपनी दोनो हथेिलयो

मे भर िलया ।वह एक कण तक हिर की ओर िनहारते रही िफर न जाने कया सोचकर अपनी आ¡खे बनद कर ली ।बोली-

``ऐसे कया दे ख रहे हो ।´´ ``तुमहे ,चनदमा की दध ू सी चा¡दनी मे।िकतनी महनमोिहनी सी लग रही हो´´ ``पहले कभी नहीं दे खा था मुझे´´

``दे खा कई बार दे खा । मगर इस तरह से तुम पहली बार िदखाई दे रही हो।´´

``िफर आजणणणण ्´´

`कहा रहा हूंंं न िक आज तुम चा¡दनी मे नहाइं Z सी धवल धवल कमल सी कोमल कोमलणणण ्´´ ``किवता करने लगे हो तुम णणणण ्´´ ``नहीं , यह हकीकत है ।´´

``कहीं मै सवपन तो नहीं दे ख रही हू¡ ।´´

´´नहीं णणणसवपन नहीं है यह णणणणणयह तुम हो णणयह मै हू¡णणण ्´´ ``सदा के िलए !´´

``हा¡ , अगर तुम चाहोतोणण ्´´

``मेरे चाहने से ंंकया होगा ।´´ ``तुमने ही कहा था अगर तुम चाहो तोणणण ्´´ ``हा¡णणणमैने कहा था ।´´

मंजू ने उनके वक मे अपना िसर छुपा िलया । गहरी सांस ली



``मै एक अचछा िमत चाहती हू¡ जो जीवन के अिनतम सांस तक मेरा साथ दे सके। तुम एक अचछे पित हो सकते हो लेिकन एक अचछे िमत नहींणणणण ्´´

``िकनतु तुमने मेरे जीवन की पतवार थामने का वचन िदया है ंं।´´ ``तुम बहुत भावुक हो । किव हो न । लेखक भी । लेिकन मेरा उदे ं्दशय मेरी भावना , मेरी कामना णण ् मेरी अपनी भी कई अिभलाषाएं है ।उनका कया होगा । आपकी तो पती आ गई।आपने मुझे धोखे मे ंं रखा।´´

``यह सही नहीं है । लेिकन मै तुमहारे उदे षय को नहीं जानता । हां¡ , मै तुमहारी भावनाओं की कद करता हू¡ और कामना पूित थ के िलए पयत करता रहू¡गा णणणणसदै व जब तक इस शरीर मे पाण है तब तकणणणणणपाण जाई पर वचन न जाई ।´´

``मैने पहले भी कहा था मेरे िकसी भी कायथ मे हसतकेप नहीं करना लेिकन तुमने मेरी बातो को अनसुना

कर िदया

था ।मैने साफ कहा था

मै कहीं ब¡धकर रहना

पसनद नहीं करती । तुमने मुझे जानने या

समझने की कोिशश नहीं की । पिरया¡ कभी ब¡धकर रह नहीं सकती ।´´

मंजू के सवतंत िवचार ने हिर के मानस के तारो को एक ही पहार मे तोड़कर रख िदया ।उनका साहस िबखर गया ।जब गुफाओं मे िहमालय के िहमिशखर पर कठोर तपसया करनेवाले ऋिष मुिन भी नारी को जान नहीं पाये िफर हिर जैसे एक साधारण वयिि नारी के चिरत और पुरष के भागय को

भला कैसे जान सकते ।िकसी ने सच ही कहा है िक

दे वता भी नहीं जान सकते । हिर ने साहस बटोरना चाहा लेिकन

वे िबखरा हुआ साहस समेट न पाये ।वे कहना चाह रहा थे -कहा¡ गई

वह पितजाएं जब तुमने कहा था

,``मेरे नाव मे भरा धन मुझे दे दे मै तुमहारी नैया िकनारे लगा द ू¡गी । केवल इतना ही नहीं बिलक तुंूमहारी नाव की िखवैया बनकर नाव खेते रहू¡गी ।`` परनतु हिर की िजवहा को जैस लकवा मार गया हो। शबद अधरो तक आ न सके ।उनहे ंे वह िदन सथान और समय अचछी तरह से याद है जब मंजू ने

सुहागरात मनाने के िलए सुहागरात का जोड़ाणणणमंगलसूत ,पायजेब ,नाक की लौग,कणफ थ ू ल,महावर ,िसनदरू

, मेहदी खरीदी ।उनहोने अपने हाथो से परी के पैरो मे महावर और हाथो मे मेहदी रचाई थी । मा¡ग मे

िसनदरू लगाकर और गले मे मंगलसूत पहनाया था। सुहागरात की सेज अपने हाथो से सजाकर कमरे मे तरह तरह के फूलो की सजावट की थी।चारो ओर केवड़ा और गुलाब का इत िछड़का था । वह नई नवेली दल ु हल के समान सुगाह सेज पर शरमाकर हिर के गले का हार बन गई थी । यह

अिभलाषा भी उसी

की थी कयो थी । यह वे नहीं जानते । कभी कभी भावना मे बहकर वह उनहे ` मेरे पित ! मेरे पित ´ कह कर समबोिधत िकया करती थी । जब वह उसके पूव थ पित के बचचे लाने दस ू रे शहर जाने के िलए तैयार हो गई ।तब जाने के पूव थ उसने हिर के चरण सपश थ िकये थे । उनहोने भावाितरे त मे मंजू के िसर पर

आिशवाद थ सवरप अपना दािहना हाथ रख िदया था । तब उनका रोम-रोम िहषत थ हो उठा था। मंजू अपनी समपूणथ पितजाएं ताक पर रख अनिभज हो गई जैसे उसने उनहे कभी कोई पितजा ही न की हो । ``एक बात कहू¡ अगर तुम बुरा न मानो तो ।´´

हिर के हाथो को अपने हाथो मे भरते हुए मंजू ने पश िकया । मंजू के मुख मणडल पर गंभीरता उभर आई ।अदाZ वसथा मे लेटे हुए उसने हिर की गोद मे अपना िसर धर िदया और

हिर का मुख की ओर

िनहारने लगी । हिर के हाथ अपने हाथो मे लेकर मंजू ने अपने घनकेशपाश हिर के वक पर िबखेर गए । उसके केशो की भीनी भीनी गंध

उनहे उनमािदत िकए जाने लगी । चनदमा की दध ू सी धवल और शीतल

िकरणो मे मंजू की झील सी मदमसत गहरी आ¡खे, माथे पर िंझलिमलाता िसतारा ,पतली सी सुगिठत नाक मे रत िजड़त लौग का िंझलिमलाना और उस पर भी मिदरा से

रसभरे बड़े -बड़े अधरो ने हिर के

मन रपी भंवरे को अपनी ओर आिकषत थ कर िलया । जाने उनहे ंे कया सुझी अनायास उनहोने अपने अधर मंजूंू के अधरो पर रख िदए । मंजू ने कोई पितकार नहीं िकया । जैसे सारे पश उिर और बहस कहीं

खो गए । बड़ी दे र तक िखले हुए पुषप पर मन रपी भंवरा मंडरा मंडरा कर अधरामत ृ का पान करते रहा । वह बड़ी दे र तक िनिल भाव मे भीगी भीगी रही । रस बरसते रहा बड़ी दे र तकणणणणणलगातार । िफर मंजू ने अपने दोनो हाथो की हथेिलया¡ उनके गालो पर रख अपने अधर पथ ृ क िकये। ``तुमने मेरे पश का उिर नहीं िदया ।´´ ``कैसा पषन !कैसा उिर ।´´

``मेरे जाने का समय आ गया है आपकी पती िनशा आ गई है ।और अब मेरा वि णणणणणण ्´´ हिर के मुख से शबद

फूट नहीं पाए। उसने िफर कुरे दा ।

``कया बात है । सोचने लगे । बड़े भोले हो तुम णणणणण ्´´ `कया

यह

जररी

है



तुम

जानती

हो

िक

मै

तुमहारे

बग़ैर

णणणणणणमै

अकेलािणणणनतानत

अकेलाणणणणणणणअ ् थाह जीवन रपी महासागरणणणणणपहाड़ सािणणणणवशालन जीवनणणणणण ´् ´ ``वो णणणणवो सामने दे खो । अभी कुछ घणटे पहले चा¡द और चा¡दनी िबलकुल

पास पास थे तब भी दोनो

अपनी पूणक थ लाओं मे थे और अब दे खोणणणणणअ ् ब चा¡द और चा¡दनी एक दस ू रे से िकतनी दरूी पर है । अब िकतने फासले है िफर भी दोनो की मुसकरा रहे है ।´´

रोशनी मे कोई फकथ नहीं पड़ रहा । दोनो अब भी उसी तरह

``वे दोनो िफरणणणणपुन: कल एक होगे णणयह मेरे पश का जवाब नहीं है ंं। तुम और तुम कुछ कहना चाहती हो नणण ्``

``हा¡ , मै कह रही थी । हमे भी इसी तरह एक दस ू रे से दरू हो जाना चािहए ।मै पहले ही कह चुकी हू ¡ िक पिरया¡ कभी भी एक सथान पर नहीं रह सकती ।´´

``तुम यह कया कह रही हो । जब मैने तुमहे अपना सवस थ व अपण थ कर िदया और अब मेरे पास का धन भी समाप हो गया है और ऐसे मे तुमणणणण ´् ´ ``ठीक है । यिद तुमने सब कुछ अपण थ कर िदया है तो मैने भी तुमहे अपनी बहुमूलय वसतु दी है

। तुमहारे धन धन से कहीं जयादा अमूलय । तुमहारा धन तो वापस िकया जा सकता है िकनतु मैने तुमहे जो िदया है उसे कया तुम मुझे वापस लौटा सकते हो ।´´ ``मै नहीं जानता था तुम पें्रम के िरशतो का कोई सौदा तुमहारे साथ तय नहीं िकया ।´´

वयापार

भी करती हो ।लेिकन णणण ् लेिकन मैने ऐसा

``मैने तुमहे कभी अंधेर मे नहीं रखा ।लेिकन आपने मुझे अंधेरे मे रखा ।आपने कहा था आपकी पती

तलाक दे कर गई है । मै पहले भी कई बार कह चुकी हू ¡ िक पिरया¡ कभी भी एक सथान पर रह नहीं सकती । और अब तुमहारी पती भी आ गई है ।´´ ``लेिकनणण ´् ´

वे चुप हो गए । हिर को महसूस होने लगा िक शायद वे मंजू

के सामने हार गए है । मंजू ने एक बार

हिर की ओर दे खा िफर आसमान मे दरू उड़ते हुए िकसी पकी को दे खने लगी जो रात मे भी आसमान मे उड़ना जानता है । उसे लगा अब मंजू कुछ कहना नहीं चाहती ।अलावा इसके िक उसने हिर को सुहागरात पर अपनी अमूलय वसतु दी है ।वह वसतु जो एक पती अपने पित को ततपरता से दे दे ती है और उसने उस वसतु के बदले मे हिर के

पास का सारा सबकुछ ले िलया,तन-मन-धन-सुख-षािनत । उनका मिसतषक

जानशूनय सा हो गया । कुछ भी िनणय थ लेना उनकी िवचारशिि से बाहर हो गया ।वे बोले-

``मेरा भी अपना एक सपना था ।जब मै िनतानत अकेला था । मेरी पती मुझे छोड़कर चली गई थी और तुमसा कोई साथी नहीं था । मै अपने आपको बहुत िबखरा िबखरा सा महसूस करता था ।

आिफस से

लौटने के बाद मै अपने आपको कमरे मे बनद कर पुसतके पढ़ते हुए खालीपन भरने की कोिशश िकया करता था । यह तुम भी अचछी तरह से जानती हो । मेरे अकेलेपन के एकमात साथी पुसतके करती थी । िफर अचानक िविध

के िवधान के अनुसार

हुआ

तुमसे मुलाकात हो गई ।तुम मेरे जीवन की िखवैया बनी और धीरे धीरे मै अपने आपको सहज महसूस करने लगा था लेिकन अब तुमणणणणणणणण ्´´ ``बसणणणबसणणणणलेिकन णणणणअ ् ब´´

लगभग आधी रात के बाद हलकी हलकी शीतल पवन बहने लगी । शहर की सटीट लाइट जल रही थी उनहोने एक शीतल आह भरी और उठ खड़ा हो गए। छत की मुड ं े र से नीचे झांक कर दे खा ।शहर की टे ड़ी मेड़ी लमबी सड़कोंं पर सननाटा छाया हुआ था । रात को गशत लगाती

िसपािहयो की सीटी

सुनाई दे

रही थी। छत के िबलकुल नीचे कोई वयिि नशे मे धुत ् पड़ा िदखाई िदया । शायद उसे ठणड लग रही होगी । उसने अपने घुटनो को पेट की ओर मोड़कर

लगा िलया ।

``बेचारा अभागा ´´ ``जी सुनो´ ´´कया है ´´

``कुछ नही यो ही´´

शायद मंजू कुछ कहना चहा रही थी लेिकन कुछ कह न सकी । वह अब तक लेटी थीं। उठ खड़ी हुई । अंगड़ाई ली ।मंजू की वह अंगड़ाई मनमोहक लगी । हिर के जी मे आया उसे एक बार अपनी बाहो मे भर ले। सहसा वक मे िवराजमान मन ने ललकारा ।

``बेवकूफ !इस िजसमानी सुनदरता पर तूने कया समझकर अपना सबकुछ िनछावर कर

िदया । अरे , कभी िकसी औरत का हदय टटोलकर दे खा है

।´´

उनका हदय जोरो से घक् धक् कर धड़कने लगा । शरीर की धमनी और िशराअंो मे शीतल लहर सी का¡प उठी । पलको के पीछे अं¡धेरा छाने लगा ।

लग रहा इस अ¡धेरे मे मानो वे डू बा जा रहे है । उनका

हदय डू ब सा जाने लगा । जी मे आया बहुत जोरो से चीखे``नहीं नहीं नहीं यह सब फरे ब है रम का वयापारीकरण है उनके

णणसौदा है मेरी िजनदगी के साथ। ``

माथे पर पसीना छूट आया ।सारे शरीर मे जवर की लहर िवदुत सी गमक उठी । ऐसा लगने लगा

मानो चेहरे पर नुकीली झािंड़या¡ उग आई हो और चेहरे 7898897897 उनहोने छोटा सा जवाब िदया,-

के रोम रोम

बेटा मेरे पास नहीं रहता ।मै नहीं चाहता िक िकसी िपता की बेटी िनशा जैसी औरत की बहू बने

। िनषा के पास िकसी बहू के रहने की गेरेणटी मै नहीं दे सकता ।``

हिर के पैतक ृ समाज मे पुत पपपू के िववाह की जब बात उठी । लेिकन िसथितयॉ ं पितकूल होने के कारण उनहोने िकसी तरह की िजममेदारी लेने से इनकार कर िदया ।इतना ही नहीं समाज का कोई भी वयिि िनशा के पास अपनी बेटी को बहू के रप मे बयाहने को तैयार नहीं हो पा रहे ।ऐसे मे सारे िवकलप

धाराषाही हो गए।सभी लोग िनशा के आचार-िवचार और उसकी असामािजक गितिविधयो से भिलभांित पिरिचत है ।ऐसे मे िकसी भी तरह की िजममेदारी या िरसक लेना कोई पसनद नहीं करे गा । रका बंधन के

अवसर पर संजू और दामाद अलोक ने बताया िक

पपपू ने कोटथ मे िववाह कर

िलया । जब हिर ने यह बात जात करने के िलए िनशा को फोन िकया तब उसने बताया िक यह सब गलत है ,पपपू ने कोई षादी-वादी नहीं की है । िनशा कोध मे हिर के घर जाकर मॉज ं ी को गािलयॉ ं दे ने लगी

िक मॉज ं ी,पपपू को बदनाम कर रही है ।जबिक िसथत यह रही िक िनशा और पपपू,लाई गई बहू को िकसी

न िकसी तरह से तसत करते रहते है ।लाई गई बहू मॉ-बेटे से बहुत तसत है ,ऐसी जानकारी संजू ने अपने िपता हिर को दी।

एक िदन संजू ने फोन पर हिर को बताया िक पपपू ने िजस लड़की से षादी की है ।उसे मममी ने

इतना सताया िक वह मायके चली गई। पपपू अकसर ,िपता होने के नाते वह हिर के पास आते रहते है

लेिकन पपपू ने कभी शादी िकये जाने की बात नहीं की।

बताई।यहॉ तक िक इस संबंध मे कोई चचाथ भी नहीं

दामाद अलोक कहते रहे िक कोटथ के एक वकील ने पपपू

के िववाह की पुिष की है । अब पषन यह

उठ रहा है िक यह बात कयो छुपाई जा रही । एक ओर िनशा ,पपपू के िववाह की बात करती है िक पपपू की षादी करना है ।दस ू री ओर संजू-अलोक बताते है िक पपपू ने कोटथ मे िववाह कर िलया है । तब यह बाते छुपाना िकतना गलत सािबत हो रहा है । पपपू को िरषतेदारो ने केरवा डे म

जैसे पयट थ न सथल पर एक

लड़की के साथ दे खा।एक बार नहीं अनेको बार दे खा गया।इतना ही नहीं उसे पड़ौिसयो ंंने कई बार दे खा िकनतु न तो पपपू अपने िववाह की बात बताते है न उनकी मममी िनशा इसे सवीकार करती है ।

पपपू का िववाह समाज मे करवाने की घोषणा िनशा करती रही ।जब उनहे पता है िक पपपू अिमत

ने कोटथ मेिरज कर ली है तब ऐसी बाते की जाना बेमानी लगता है लेिकन कोई भी वयिि या िववाह मे षािमल कोई भी बाराती िनशा से खुल कर बात नहीं कर पा रहा था। उसे न बुलाने के बावजूद वह

इस

िववाह समारोह मे षािमल हो गई। उसी रोज लगभग रात आठ बजे के लगभग हिर ने पपपू के मोबाइल पर कॉल िकया । बहुत दे र

तक बेल बजती रही ।बहुत दे र के बाद मोबाइल फोन `` हलो ! पपपू से बात करा दीिजए ``

िकसी लड़की ने उठाया । हिर बोले-

`` वे घर नहीं है ।`` दस ू री ओर से आवाज आई। ``आप कौन बोल रही है ।``

`` मै उनकी बीवी बोल रही हूंंंंं।`` दस ू री ओर से आवाज आई।

यह वाकय ,यह आवाज सुनकर हिर की ऑख ं े चौिधया गई। `` कया कहा आपने ``

`` मै पपपू की बीवी बोल रही हूंंं। और आप कौन बोल रहे है ।``दस ू री ओर से। `` मै पपपू

का पापा बोल रहा हूंंं बेटे ।`` अपने आपको संयिमत करते हुए हिर ने बताया तािक

दस ू री ओर से आ रही आवाज मे घबराहट न हो ।

`` अचछा , आप उनके पापा बोल रहे ंे है ।``दस ू री ओर से। `` जी हॉ बेटे ! हमे पपपू से बात करनी है ।``

``आपको मालूम नहीं हमने षादी कर ली ।`` दस ू री ओर से

`` नहीं बेटे ,हमे अभी तक नहीं बताया ।बेटे आपका नाम कया है ।`` उनहोने संयिमत होकर कहा । `` हमारा नाम सुिमरन है ।`` दस ू री ओर से। `` बेटे तो हम आपके ससुर हुए न `` `` जी हॉ ं ंं`` दस ू री ओर से।

सुिमरन से दस िमलट तक मोबाइल पर बाते होते रही । `` आप आइये न हमारे घर ।``

`` जी पापा हम जरर आयेगे । आप घर पर कब िमल सकते है ।``दस ू री ओर से।

`` हम छुटटंी के िदन घर मे ही रहते है ।`` `` तो िफर एतवार के िदन परसो को दोपहर मे जरर आयेगे। हमारा पता िलख िलिजएगा``

हिर ने अपने िनवास का पता सुिमरन को नोट करवा िदया ।

`` ठीक है । हम आपका इनतजार करे गे और हॉ ं आप हमारी बहू हो गई हो इसिलए हम आपको

िदखाई जरर दे गे ।``हिर ने पपोज िकया । `` इसकी

जररत नहीं ।`` दस ू री ओर से

`` अचछा आप एतवार को आइयेगा िफर यहीं पर आपकी पसनद की मुंंंंंह िदखाई दे दी जाएगी। `` `` जी हॉ ं । खुदा हािफज ।`` दस ू री ओर से आवां़ज।

जब दस ू री ओर से

`` खुदा हािफज `` कहा गया तो हिर समझ गये िक पपपू ने मुिसलम लड़की से साल

भर पहले ही षादी कर ली है । लेिकन साल के बाद भी पपपू या उसकी मममी िनशा यह मानने से तैयार नहीं है िक पपपू ने षादी कर ली ।

िचनता इस बात की नहीं है िक पपपू ने मुिसलम लड़की से िववाह कर िलया ।िचनता इस बात की

है िक िकसी की भी बेटी हो ,बेटी ही होती है ।कहीं ऐसा न हो िक िकसी की बेटी के साथ ईषवर न करे कुछ गलत हो जाए।कयोिक िनशा और

पपपू की सोसायटी,आचार-िवचार और पिरवेष असामािजक है ।ऐसी

िसथित मे िकसी की बेटी को पूरी सही-सही जानकारी के िबना उसे अंधेरे मे रखा जाने के बाराबर है ।

हिर के हदय पर पपपू के वयवहार का बहुत बड़ा आघात लगा । वे सोचने लगे ,उनका पुत होकर

वह उनसे अपनी पतयेक बाते गोपनीय रखने लगा। जो बाते सामािजक और पािरवािरक है ,उसे भी बताना उससे गंवारा नहीं समझा। उस लड़की ने कया सोचा होगा। िववाह करते समय उस लड़की ने पपपू से अपने बाप के बारे मे जरर पषन िकया होगा और होगा िक

पपपू तथा उसकी मममी िनशा ने यह अवषय कहा

पपपू के पापा नहीं है । हिर के हदय पर यह भारी आघात था ।वे मन मसोस कर रह गए।

रिववार के िदन सुिमरन ने घर आने का वादा िकया था।पता नहीं

पपपू उसे आने दे ता है या नहीं।

रिववार के िदन हिर सारा िदन सुिमरन का इनतजार करते रहे िकनतु षाम के छ:बजे तक सुिमरन

नहीं आई। पपपू के मोबाइल पर सारे िदन कॉल करते रहे लेिकन पपपू का मोबाइन िसवच सटॉप रहा।अब सुिमरन के आने की गुज ं ाईष खतम हो गई।इससे सपष हो गया िक पपपू नहींंं चाहते िक उसने िजस

लड़की से िववाह िकया है ,उसे पापा के समक ले लाएं।उनहे ऐसा पतीत होने लगा, संभवत:सुिमरन पर यहॉं घर न आने दे ने के िलए पपपू ने दबाव डाला होगा ।आिखर चाहते है ।हालांिक इसमे हिरका

पपपू और उसकी मममी िनशा न जाने कया

कोई नुकसान नहीं है अिपतु उस बचची का,सुिमरन का नुकसान ये दोनो

मॉं-बेटे कर सकते है ।सुिमरन को अंधेरे मे कयो रखा जा रहा है ।उसे सारे िरषतेदारो से दरू कयो रखा जा

रहा है । इस घटना का कोई िनदान कानून मे पावधािनत नहीं है ।हिर सोचने लगे,संभवत:यही पकृ ित का िवधान होगा। 00 णण ्

पराईयॉण ं ्

उस िदन मानसी का मन हुआ वह िकषन के वक से लग कर मन का सारा बोझ उतार ले।कभी

वह सोचती कया वह इसी तरह िकसन को अपनी ओर खींच कर रख पाएगी।उसने सोहनी से सुना था िक िकषन को अपनी ओर खींचकर रखना बड़ा आसान है तो कया सोहनी भी िकषन को अपने आंचल से बांधने की कोिषष की होगी।उसे याद आया वह िकषन को जब चाहे तब अपने पास बुला लेती चाहे िदन हो या रात ,चाहे सुबह हो या षाम ,चाहे तेज बािरष हो या

जून की तपती दोपहरी ,िकषन ने कभी

एतराज नहीं िकया।िपछले साल सोहनी िकषन के साथ सारा-सारा िदन माकेZ िटं ग करती रही।षाम को सूरज की नारं गी रोषनी मे बीच तालाब मे वह मदमसत होकर िकषन के वक से लग गई थी।मानसी

समझ नहीं पाई िक आिखर िकषन है िकस िमटटंी का बना।मानसी को,आषा को,संजू को,राधा को ,सोनू कोिणणणणणणकसी के भी एक इषारे पर िकषन कुछ भी करने को तैयार हो जाता।

``िकषन ,बहुत अचछा इनसान है ।दे खो न,उनहे चाहे जैसा मोड़ दो ,चाहे जैसा कह दो।है न िकतना

सरल और आसान !´´

``मै तो कहती हूंंं िक वे पराये लगते ही नहीं है ।´´

मानसी,दीपक के िलए िकषन एक आकषण थ केनद थे।िकषन को बार-बार बुलाना न तो मालती को बुरा लगता ।था न ही मालती के पित को दीपक को।

यह एक कहानी पढ़ते समय हिर को कुछ बेचैनी होने लगी।हिर के मिसतषक मे एक पकार की

हलचल होने लगी।सोचने लगे,कया नािरयॉ ं इसी तरह पुरषो को बहला-फुसलाकर उनसे मनचाही इचछाओं की पूित थ करने लगती है ।आिखर ये नािरयॉ ं चाहती कया है । माना िक नािरयॉ ं ममता और पें्रम की मूितथ

होती है ।उनमे वह साहस होता है ,जो सामानयत:पुरषो मे नही पाया जाता ।वह हर िकसी भी तरह की कायथ

बड़ी आसानी और समझदारी से करती है ।वह जानती है ,उसे िकससे िकस तरह का कायथ कब,कहॉ ं और कैसे िलया जाए।यिद उनके अनुकूल कायथ समपनन हो गया तो समझो वह अपने मंतवय मे सफल हो गई।अपने मंतवय को पूरा करने के िलए नािरयॉ ं िकसी तरह का षढ़यंत रचने मे संकोच नहीं करती।जबिक पुरषो को

िकसी तरह का षढ़यंत रचने के िलए बार-बार और कई बार सोचना होता है ।या पुरष सवयं िकसी कायथ को मूत थ रप न दे ने की िसथित मे िकसी अनय पुरष की सहायता लेता है ।िकनतु नािरयॉ ं िकसी भी काय थ को

रप दे ने के िलए अकेले ही साहस कर लेती है ।वह समझती है िक उसमे उसकी सफलता िनिित है । असतु,उस नारी की अपार शिि को जानना सामानय पुरष के बूते मे नहीं है । 00

एक िदन एक िबलडर का फोन आया िक यिद आप को मकान खरीदना हो तो हम आपको पूरी

िरयायत दे ने के िलए तैयार है ।हिर ने सोचा, ऐसा कौन िबलडर होगा जो पूरी िरयायत दे ने के िलए तैयार है ।िबलडर ने आवास कालोनी दे ख आने को भी िनवेदन िकया ।

समय िनकालकर एक िदन हिर और उनके एक िमत िनगम िबलडर वदारा बताई कॉलोनी दे खने जा

पहुंंंचे।कॉलोनी मे िनमाण थ काय थ चल रहा था । जो िलए आ चुके थे।

मकान पहले बन चुके थे उनमे कई लोग रहने के

दोपहर का समय।दोनो िमतो ने पूरी

कॉलोनी के पतयेक भवन का िनरीकण िकया।वहीं पर िसथत

िबलडर के असथायी कायाल थ य मे जाकर बातचीत की। अचछा लगा।िबलडर आसान िकषतो पर मकान दे ने को तैयार हो गये।िनगम बोले-ंं

`` इससे अचछा अवसर िफर नहीं िमल सकता।`` दोनो िमतो ने आवासीय पिरसर मे जाकर पिरवारो से समपकथ कर के आवासो के भीतर की िसथित दे खने की मंशा बना ली। उनहोने एक पिरवार के घर का दरवाजा खटखटाया । भीतर से बहुत ही मिहन सुरीली आवाज आई।

`` कौन है ।´´

`` हम लोग है ।यह है मेरे िमत िमसटर ‘हिर और मै िनगम , ।´´िनगम के जवाब िदया। उस युवित ने दरवाजे की चौखट पर आकर दे खा और कुछ सोचकर ``आइये भीतर आइये। कैसे आना हुआ।´´

भीतर आने को कहा।

`` मै यहॉ ं एक मकान खरीदना चाहता हूंंं सोचा पहले मकानो का जायजा ले िलया जाय। ´´ हिर

ने जवाब िदया ।

वह युवित मुसकराई।हिर उस युवित का चेहरा दे खने लगे।उसका गदराया सा बदन ,गोल-मटोल,उसकी बड़ीबड़ी ऑख ं े।उननत माथा,बड़े -बड़े से उसके सांवले से रतनारे अधर।सफेद-काली उबड़-खाबड़ दनत पंिियॉं ,सामानय सी ठु डडंी।गोल चेहरा और असत-वयसत िलबास ।इतना होते हुए भी न जाने उसमे ऐसा कया आकषण थ था िक वे उसे दे खते ही रह गये। वह

कुछ कहे जा रही थी और हिर उसका मुख िनहराते जा

रहे थे। िनगम जी बाते बनाने मे बहुत मािहर है ।वे उस युवित से खूब बाते करने लगे।वह युवित भी खूब िदल खोल हं स-हं स कर बाते करने लगी। दोनो िमतो को उस युवती की बातो मे रस आने लगा।उस युवित

ने चाय बनाई ।अब चाय पीने मे कुल तीन लोग थे।उस युवित का मुसकराना और पतली सी सुरीली आवाज

मन को मोिहत िकये जा रही थी।लगभग एक घणटे तक दोनो िमत उस युवित से दिुनया भर की

बाते कर बैठे।वह बार-बार िदल खोलकर हं सती थी और हिर का मन बार-बार उसके हं सने पर मुगध हो जाया करता था।

उसने बताया ।उसके दो बेटे है । अभी छोटे -छोटे है ।उसका पित सरकारी नौकरी करते है ।उनकी गॉव ं ो

मे जमीने है ।ससुराल िविदषा की ओर है और मायका पास के गॉव ं मे है । वह बोले जा रही थी।दोनो िमत उस युवती की रसभरी बाते सुनते जा रहे थे।उनका िदल ही नहीं चाहता था िक उस युवित के सामने से उठकर चले जाए िकनतु समय बहुत हो गया

। िनगम जी ने अब उस युवित से जाने की अनुमित

मॉग ं ी। युवित ने पूछा।

`` तो िफर कया इरादा है आपका । आप यहॉ ं मकान ले रहे है न ´´ `` जब आप जैसी दोसत िमल जाएगी तो कौन आपके आसपास मकान मकान लेना नहीं चाहे गा।´´

उनहोने मुसकराकर कहा।

वह जोरो से हं स दी ।उसकी दनत पंिियॉ ं िबखर गई ।उसकी िखलिखलाहट एक झरने के समान झरने लगी।वे दे खते ही रह गये।उनहे इस तरह अपनी ओर दे खते हुए वह बोली-

``कया दे ख रहे है आप !´´ इस पश का उिर हिर पास नही था िफर भी उनहोने साहस िकया ।बोले-

``मुझे ऐसा लगता है आपको बहुत पहले से जानता हू¡ लेिकन कैसे, मुझे जात नहीं ।´´

वह युवित मुसकरा दी बरसात हो आई हो ।

।उनहे उस युवित

के मुसकराने से लगा जैसे सावन के मिहने मे फूलो की सुखद

`` अचछा जी ! जाने की आजा िदिजए ! नमसते !!´´ `` नमसते । िफर कभी आइयेगा ।´´

वह युवित पसनन हो मुसकरा दी । मोटरसाइिकल पर सवार होते समय िनगम िविंसमत थे िक आज हिर इतने पसनन कयो है !´

िनगम जी उनके हदय की मनोभावनाओं को समझने का पयास करने लगे । ``बीएस, जानते हो इस सुनदरी को मै कब से जानता हू¡।´´ ``युगो-युगो से, है न !´´

`` तुम कटाक कर रहे हो लेिकन यह अटल सतय है िक मुझे ऐसा लगता है िक मै इनको युगो से जानता हू¡ । संभवत:अब तक मुझे इनकी ही तलाश थी ।एक बात

कहू¡ ।``

``किहए ´´ हिर िनगम को बीएस कहा करता था । कयोिक बहमसवरप बहुत अटपटा नाम

लगता था । बीएस का पश सपाट था िकनतु उनके हदय मे आननद की िहलोरे उठने ।

``अब हमारी हािंदथ क अिभलाषा है िक हम इनके िनकट आकर अपना समपूणथ जीवन इनके

आ¡चल मे वयतीत कर दे ।´´ हिर नेकहा।

न जाने उनहे कयो लग रहा था िक वे संभवत: अनजाने मे ही उस युवित की ओर खींचे चले जा

रहे है ।उसका मुसकराना , उसका िखलिखलाना और हं सकर बात करना उनहे मोिहत कर रहा था। वह

युवित रह रह कर अचानक ठु मका लगा लेती थी।वह भी ऐसा िक उसे पता भी नहीं लगता था िक उसने ठु मका लगा िलया।षायद उसका कद उनके कान के बराबर तक रहा होगा। हिर सोचने लगे यह अवसर

बहुत अचछा है ।यिद कॉलोनी मे ही मकान ले िलया गया और इनके आसपास ही िमल गया तब तो हदय की मुराद पूरी हो जाएगी।

उनहाने ऐसा ही िकया ।िजस िकसी तरह से कॉलोनी मे ठीक उस युवित के पड़ौस मे

सौभागयवष िबलडर ने िबना चाहे ही जयूएमआईजी आवंिटत कर िदया। हिर का रोम-रोम पफुिंललत हो गया।उनहे लगने लगा, ईषवर ने उनकी मुराद

पूरी करने के िलए ही यह सब कुछ खेल रचा होगा।

िजस िदन हिर अपने माता-िपता और बचचो के साथ कॉलोनी के नये आवास मे अपना

सामान िशफट िकया उस िदन वह युवित बहुत पसनन नजर आ रही थी।वह बार-बार हिर और उनके पिरवार के िलए दौड़-दौड़ कर काम करने लगी।वह बहुत हं समुख सवभाव की होने के कारण सभी को आिननदत िकये जा रही थी। कुछ ही िदनो मे हिर के घर का सामान वयविसथत तरीके से जम गया।

कहा जाता है ,पडोिसयो का धम थ सबसे बड़ा धम थ होता है ।सभी िरशतेदार तो बहुत दरू रहते है ।

लेिकन सबसे करीब का िरशतेदार पड़ौसी ही होता है ।आज यह सब जता िदया उस युवित ने।

दोनो पिरवारो का एक दस ू रे के घर आना-जाना पारं भ हो गया।सुबह से लेकर शाम तक ``आप-

आप``, ``तुम-तुम`` का िसलिसला चलते रहा।कुछ ही िदनो मे दोनो पिरवारो मे घिनषता बढ़ गई।

सुबह का समय रहा होगा।वह युवित और उसके पित,हिर के घर अनायास आ गए।युवित बोली`` मेरा नाम पें्रमा है ।ये मेरे पित है ।``

`` और मेरा नाम हिर ।लेिकन इतने िदन हुए हम लोगो ने एक दस ू रे का नाम जानने की कोिशश

ही नहीं की।`:`

``कोई बात नहीं। आज इसी बहाने हम लोगो ने एक दस ू रे का नाम भी जान िलया।``

``हम लोग बड़े भागयशाली है िक आप जैसे पड़ौसी िमले।वनाथ आजकल तो अचछे पड़ौसी िमलते ही

कहॉ ं है ।``

`` हम भी बहुत भागयशाली है ।आप लोगो का पड़ौस पाकर लगता है हमने िपछले जनम मे कोई

महान पुणय िकया होगा।`` `` यह

संभवत: भागय की बात है ।``

`` और अचछे कमो का पिरणाम है ।`` माता जी चाय बनाने लगी तो पें्रमा बोली-

`` माताजी , आप रहने दे ।चलो मै चाय बनाती हूंंं।``

उस िदन पहली बार पें्रमा ने अपने पड़ौसी धमथ के साथ हिर के घर चाय बनाकर सबको िपलाई।

समय वयतीत होते हुए पता नहीं लगा । आिहसता-आिहसता हिर के हदय मे युगो से छुपी

अिभलांाषाओं को वे उस युवित पर िनछावर करने लगे। लेिकन उनहोने उस पर अपने हदय मे लुके छुपे पें्रम को उजागर नहीं होने िदया । उनहे भय

था िक उनके समक हदय की भावनाओं को उजागर कर

दे ने से उनका सािंननधय िविछनन हो जायेगा । समय के साथ साथ वे उनके बहुत िनकट जा पहुंंंचे ।वे

उसकी हर बातो को सहष थ मान जाते। उसके कहे अनुसार ही उसके मन पसनद का काय थ करते। एक बार उस युवित ने पूछा-

`` आप मेरा इतना अिधक खयाल कयो रखते हो ! ´´ ´´ पता नहीं ,लेिकन मुझे आप बहुत अचछी लगती है । जी चाहता है सारा िदन सारे समय

मे मै आपके साथ-साथ ही रहूंंं।´´उनहोने कहा-

`` तुमहारी पती से भी तुम ऐसा ही पें्रम करते होगे।´´ पेमा ने अनायास पषन िकया।

हिर ने सोचा पें्रमा को सारी बाते बता दी जानी चािहए। यह सोचकर उनहोने अपनी सारी राम कहानी पें्रमा को सुनी दी। िनषा से िववाह से लेकर उससे िवलग होने की िसथित।सरला का आना और उसकी

ठगी के िवचार और उसे वापस भेजना ।इसके बाद मंजू का जीवन मे आना और िफर िवलग हो जाना,यह सारा पेमा को कह सुनाया।पेमा आसमंजसय मे पड़ गई। इतना ही नहीं ,हिर ने मंजूजी की मुलाकात पेमा

भी करा दी।पें्रमा ने मंजूज से कहा-

``वासतव मे इनको सचचा पें्रम करनेवाली कोई िमली ही नहीं।षायद मंजू दीदी आपने भी इनको

समझा नहीं।लेिकन अब वे मेरे पास है ।दे खो आगे कया होता। मै पें्रमा तो ये मेरे पें्रमाली।``पें्रमा जोरो से हं स दी।उसकी दं त पंिियॉ ं िबखर गई।

पेमा सारी बाते जानकर अब कुछ जयादा ही हिर का

खयाल रखने लगी । सुबह-शाम वह हिर के घर

आती।ढ़े र सारे बाते करती।हिर भी चाहे िजस िकसी भी समय पें्रमा के घर जाते।ढ़े र सारी बाते करते।

कभी-कभी घणटो तक दोनो तरह-तरह की बाते करते।खुश होते। पें्रमा के पित भी बहुत हं स-मुख सवभाव के वयिि है ।दोनो गॉव ं के रहने वाले है ।इसिलए कुछ जयादा ही अचछी तरह के लोग है ।कभी िकसी बात का न तो बुरा मानते। न कभी िकसी बात का िवपरीत अथथ िनकालते।

संजू और पपपू के कारण बीच-बीच मे िनशा भी आने जाने लगी।उसने भी दे खा िक हिर के पड़ौिसयो

से उनका बहुत िमलना जुलना है ।पें्रमा और हिर अपना जयादा से जयादा समय एक दस ू रे को दे ने लगे है ।िनशा को महसूस होने लगा िक इन दोनो मे कुछ चल रहा है । यह सोचकर िनषा बीच हसतकेप करने

लगी । िनशा नहीं चाहती थी िक हिर की िजनदगी मे और कोई सी आये ।लेिकन िनशा सवयं ही अनेको के साथ बदल-बदल कर रहने की आिद रही है ।

है ।इस समय वह ऐषबाग कॉलोनी मे िकसी इसाई के साथ रह

वासतव मे दे खा जाय तो कानून सदै व नािरयो के पक मे होता है ।नािरयॉ ं जब चाहे तब और िजस

भी तरह से चाहे उस तरह से िकसी भी मदथ के साथ या िकतने ही मदो के साथ रहती है । कानून नािरयो को बािलग करार दे कर रह जाता है िक वह अब बािलग है ।वह अपनी मरजी से चाहे जो कर सकती है ।यह कानून मदो के िलए कयो नहीं है । इस पर िवचार िकया जाना चािहए । भारतीय दं णड

संिहता मे नािरयो के रकाथथ जो धाराएं बनाई गई है उसमे पिरवार इकाई को धयान मे नहीं रखा गया है । जबिक नारी को गलत राह पर चलने की पूरी आजादी है ।

मै यह सोच कर रह जाता हूंंं।मै समाज मे दे ख रहा हूं िक सारी िवषमताएं नारी की

उचछ ªंंखलता के पिरणामरप फैली हुई है । खैर,

पेमा ने उस िदन अनासाय ही हिर को समझाईश दी-

``पड़ौिसयो को जयादा गले नहीं लगाना चािहहए।आप जो यह कर रहो हो,यह िबलकुल अचछा नहींे है ।इनसान को हमेशा अपने दायरे मे रहना चािहए।``

हिर चुप रहे ।वे मन ही मन सोचने लगे, यिद इनके समक हदय के उदार पकंट कर िदये तो भय है िक इन कोमल िरशतो को वह दतुकार दे । वे संिकप सा उिर दे कर रह गए-

`` मैने तुमसे सलाह नहीं मॉगी।तुम अपना-अपना दे खो।मै तुमको िकसी काम के िलए नहीं रोकता।

तुम भी हमारे बीच मे न आओ तो अचछा है ।``

हिर के इस जवाब का िनशा पर कोई पितकूल पभाव नहीं पड़ा।वह िबना कुछ कहे चली गई। 00 शायद इतवार का िदन होगा।रात को दे र तक एक बहुत पुरानी िफलम दे खने के कारण सुबह से ही

पेमा के िसर मे ददथ हो रहा था।वह अपने िसर को दप ु टटे से बांधे हुई थी।सुबह-सुबह हिर चाय का पयाला हाथ िलए चाय पीते हुए पें्रमा के पास गए। बोले`` ये िसर मे दप ु टटंा कयो बांंंधे रखा है ।`` `` बहुत ददथ हो रहा है ।``

`` लाओ मै आपका िसर दबा दंं ू ं। ``

`` नहीं थोड़ी ही दे र मे ठीक हो जाएगा।पेनिकलर भी िलया है ।``

`` तो कया हुआ।थोड़ा सा िसर दबा दंं ू ं और िसर मे मािलश करने से बहुत आराम हो जाएगा।`` ``लेिकन आपणणणणणणणणमेरा मतलब णणण ्``

``नहींणणणणणनहींणणणमुझे आपकी सेवा करना अचछा लगता है ।मेरा अपना है ही कौन

िजनकी सेवा कर मै अपने हदय का भार कम कर सकू¡ ।´´

उनके पित भी बहुत भले वयिि है ।वे जान गये थे िक हिर उनकी पती को बहुत सनेह करने लगे है ।

लेिकन उनहोने कभी पितकार नहीं िकया।कयो नहीं िकया।पता नहीं। सुबह हो ,षाम हो,रात हो या सारा िदन हिर और पें्रमा दोनो अिधकतर साथ-साथ ही उठते बैठते और ढ़े र सारी बाते िकया करते। कभी

हिर उनके पास चले जाते।उनके मुख को दे खते रहते।वह मुसकराती और हिर झुक कर उनके पैर चूम लेते।पता नहीं यह सब कहॉ ं तक उिचत था। यह जानते हुए भी िक वह िकसी और की पती है ।िकसी

और की पती के पित इस तरह का पें्रम रखना अनुिचत है ,लेिकन यह सोच कर हिर खामौष हो जाते िक यिद हदय मे सकारातमक िवचार हो तो िकसी से िमतता करना अथवा िकसी से पेम करना अपराध

नहीं हो सकता।जब तक मन कलुष नहीं होता तब तक कुछ भी अपराध नहीं है । लेिकन जहॉ ं हदय की िनमल थ ता समाप हो जाती है ,वहॉ ं अपराध पकट हो जाता है ।वयिि सवयं ही जान लेता है िक कहीं न कहीं

कुछ गलत हो रहा है और यिद नहीं हो रहा है तो होना भी नहीं चािहए। हिर के साथ भी यही िसथित उतपनन हो गई। अकसर उनके पित कहते-

`` पेमा ,हिर तुमको िकतना पयार करते है ।´´

वह हं स दे ती और इठलाकर हिर के गोदी मे अपने पैर रख दे ती।हिर

उनके पैर सहलाने लग जाते ।

उनके पित हं सकर रह जाते। कहते-

`` इतना िनषचल पें्रम मैने कहीं नहीं दे ता।´´

हिर का हदय पसननता से भर जाता।वासतव मे पें्रम मे िजतनी िनषचलता होगी उतना ही आननद आयेगा।जरा सी गलती दोनो पक के िलए घातक होती है ।इसिलए यिद िकसी से पें्रम हो जाय तो उसमे

इतना पयास िकया जाना चािहए िक कहीं अनजाने मे मन कोई भी िवकार घर न कर ले और बाद मे पछताना न पड़े ।

पें्रमा अलसुबह वह हिर के कमरे मे आ जाती।कभी-कभी हिर सोते हुए

िसर मे हाथ फेरती और जगाने का पयास करती।हिर

िमल जाते।वह उनके

,पें्रमा के कोमल-कोमल हाथो के सपष Z से जाग

कर उठ बैठते और बढ़कर पें्रमा के होठो को चूम लेते।वह हं स दे ती।हिर उठकर पें्रमा के गले मे बांह डाल दे ते।वह कहती-

`` बस , बहुत हो गया पयार।अब उठो । आिफस नहीं जाना है कया।´´

उनका रोम रोम पुलिकत हो जाता। सोचने लगते -

यह कैसा पयार है ।इतना अपनतव कभी दे खने को नहीं िमला। इस युवित मे गॉव ं का वह भोलापन

है जो गॉव ं की पिवत माटी मे पाया जाता है । इतना ही नहीं उसके पित मे भी गॉव ं की माटी की गंध

रची-बसी हुई है ।तभी तो वे अपनी पती और

मुझ पर इतना िवषवास करने लगे िक वे उनके पीछे नहीं

आते।``

कभी-कभी हिर का मन षरारत करने पर उतर आता और वे पें्रमा को बांहो मे भरने की कोिषष करते। पें्रमा `` हटो भीं् ´´ करते हुए हं ंंसती और दौड़ पड़ती ।हिर उसे पकड़ लेते और जबरन अपनी बांहो मे भरने का पयास करते।वह िखलिखलाकर हं सती और भाग जाती। हिर कहते-

`` पेमा! पयार भगवान का रप होता है ।इसिलए मेरे िलए तुम आज से भगवान के समान हो।´´

वह िखलिखलना खूब जानती।बात-बात पर िखलिखलाकर हं स दे ती। कहती`` हम आज से आपके भगवान हो गए।´´

`` इसमे बुरा कया है । हर वयिि मे भगवान की मूरत होती है ।यिद इनसान सवयं को जान जाये िक उसके अनतमन थ मे बसा हुंआ भगवान ही है तो वह सवयं भगवान का पितरप नही हुआ कया।´´ `` आप तो सचमच मे िफलासफर हो गए है ।´´ वह कहती

`` नहीं िफलासफर नहीं । वे तो किव भी हो गए।´´ उनके पित कहते । `` भैया तो किवताएं भी िलखते है ।´´ माताजी कहती हिर िपछले कुछ िदनो दरूदष Z न

के िलए एक संगीत अनताकरी के कायक थ म का िनमाण थ करने मे जुटे

हुए थे। िजस िदन कायक थ म िरकाडथ िकया जाने वाला था उस िदन हिर ने पेमा और उसके पित को पिरवार

सिहत कायक थ म मे आमंितत िकया। जब िरकािडि ग

अनुपिसथत था । हिर ने पेमा से कहा -

का समय आया। उस समय एक पितभागी

`` आप इस कायक थ म मे भाग लोगी । आपको कुछ करना नहीं है । लेिकन जब संगीत बजेगा और

आपका पाटथ नर गाने लगेगा आप केवल होठ िहलाते रहना िजससे लगेगा िक आप भी गा रही है ।´´

हिर ने उस संगीत कायक थ म के िरकािडि ग मे पेमा को भी षािमल कर िलया ।िरकािडि ग पारं भ हुई सभी

कलाकार मंच पर आ गए।पें्रमा को भी मंच पर खड़ा कर िदया।पािटथ िसपेटस मे पें्रमा को आगे की ओर

गीत

खड़ा कर िदया।कैमरा,लाइटस,साउणड के बाद जैसे ही हिर ने एकशन बोला िरकािडि ग शुर हो गई।

बजने लगा।पें्रमा पहली बार कैमरे के सामने खड़ी थी।गीत की आवाज पीछे से आने लगी।पें्रमा

ने होठो को गीत के अनुसार ही गित दी।पूरे दो गीतो ंंका िरकािडं Z ग समपनन हो गई।बहुंत अचछी िरकािडि ग हुई।सफलता पूण।थ

कायक थ म िनमाण थ के बाद जब पेमा ने

बहुत िखलिखलाकर हं सी पड़ी। बोली-

अपने आपको दरूदष Z न की सकीन पर गाते हुए दे खा तो

`` यह तो पूरी पगली है ।``

`` पागल लोग ही वह सब कुछ करते है जो सामानय लोग नहीं कर पाते।``हिर बोले `` यािन कीणणणणण `् `

`` यह तो अपनी-अपनी समझ की बात है ।``हिर बोले। `` धतणणणणणणकुछ भी कहते है आपणणणणण ्`` `` गुंनाह तो नहीं िकया।``हिर ने पूछा

`` गुनाह ! बहुत बड़ा गुनाह िकया है जनाब ने।हमे कैमरे मे कैद कर िलया है ।``

`` बस कैमरे मे ही या और कही भीणणणण ्``हिर ने शरारत करते हुए पश िकया। `` कुछ भी समझोणणणणणणआ ् प तो बड़े वो हो।``

पें्रमा लजा कर कीचन मे चली ।

बस , िफर िसलिसला षुर हो गया एक अनोखे पयार का । बड़ा अचछा लगने लगा था यह नाम।उनके पित हं स िदया करते । हिर उनके पित के पित अिधक झुक गये।इसका एक कारण यही है िक पें्रमा के पित हिर को एक भावनातमक पेम हो गया ।दस ू रा यह िक वे पेमा के पित है िफर कयो न आदर सतकार की भावना

उतपनन होगी।

उनके पित जब कभी िकसी गांव मे जाते हिर को

अपने साथ ले जाते।वे पषु िचिकतसा िकया

करते है । हिर भी उनके साथ हो लेते ।हिर ने पषु िचिकतसा पर एक पुसतक िलखी उनहोने पें्रमा के पित को दे दी।इस पुसतक को दे ख

है ।यह पुसतक

वे हिर के पित िवषेष पें्रम रखने लगे । हिर ने

अपनी िलखी हुई िचिकतसा की चार-छ: पुसतके उनके पित को दी।वे अितपसनन हुए िक उनको पड़ौसी बहुत अचछे िमले है ।एक तो हिर िचिकतसक ,दस ू रे तौर पर

िचिकतसा पुसतको का लेखक । तीसरे तौर

पर कहानी-किवता िलखनेवाले,आिद होने के कारण पें्रमा ,उनके पित,उनके बचचे,उनके माता-िपता और िरषतेदार भी हिर के पित िवषेष पें्रम रखने लगे।

अब तक के िपछले जो भी कटु अनुभव थे ,उन सबको अपने मन मे रखकर कोई गलती न होने

दे ने की आषा के साथ हिर पें्रमा

के पित अितिनषचलता से पें्रम बरकरार रखने का पयास करने

लगे।इसका एक कारण यह भी रहा िक अब उनहे तािजनदगी इनके पड़ौस मे रहना है । एक अकेले पुरष

के िलए एक िनषचल नारी के आंचल का सहारा अित आवषयक है । यह हिर को महसूस होने लगा। अब वे पें्रमा से अपतयकतौर पर पाप इस पें्रम के साथ को उपनयास अंश

केकटस के फूल

upanyas ansh kektas ke fool rachanakal 1999 kektas ke fool upanyasan

--------------------------------------------------------------stree-puroosh ke rishton ka yatharth aakhyan --------------------------------------------------------------nari avashy hi poojaniy hai . main un nariyon ko naman karata hoon jisane svayan ke sath-sath parivarik,samajik,rashtriy maryadaon ko mahatv diya hai. main un nariyon ko naman karata hoon jisane apane ahankar ko tyag kar manavata ke lie manaviy kartavyon ka nirvahan kiya hai.main un nariyon ko naman karata hoon jisane parivar,samaj aur desh ko kuchh diya hai.

main un nariyon ko naman karata hoon jinhone apane astitv ko oonchaiyon tak pahoonnchaya hai.main un nariyon ko naman karata han jisane puroosh ke kandhe se kandha milakar chalane kee koshish kee ho . main un nariyon ko naman karata hoon jinake samaksh svayan hi purooshon ka mastak nat ho jata hai. -- krishnnashankar `` aurat jiti-jagati moorkhata hai.aurat intazar nahin kar sakati.apani ichchha poori hone par fir bechain ho jati hai.aurat samarpit hona chahati hai , hoti hai , lekin isaka dosh puroosh par lagati hai.bad men namr banane ke lie ,aurat pahale puroosh ke sath dushtata karati hai.bad men dushtata ka aanand lene ke lie,pahale puroosh ke sath namrata se pesh aati hai.aurat patit hai aur apani drishti men poori divyata ke sath nirmal hai.vah eeshvar se ,purooshon se ,apane se jhooth bolati hai.vah jivan men ulajhati nahin, usase khelati hai ,jivan ko usi tarah apane poz deti hai -jaise darpan ko.stree chehare banati hai ,hav-bhav badalati hai ,to sirf yah mahasoos karane ke lie ki usaka astitv hai. isake viparit puroosh ka nairantary usakee vastavikata ka praman hai.nari apane svatv ko apane parivartan se prakat karana chahati hai , puroosh sthayitv se. puroosh ek hona chahata hai ,aurat ``bahut-si``. puroosh apane samast gunn-doshon kee chetana se oorja hasil karata hai,aurat apani poorn anabhigyata se. puroosh ek poorn suvyavasthit sansar hai to aurat ek arajak duniya¡ ,vah kuchh bhi kar sakati hai puroosh ko aurat se door bhagana chahie ya fir us par shasan karane kee ichchha tyag dena chahie. `` -- dostovaskee kee jivani : thanda jvalamukhi se sabhar (``sakshatkar ``327 march 2007 men uddharat) --------------------------------------------------------------kektas ke fool oonche pahadon se utarati huee nadiya ka manohari drishy jitana aa¡khon ko suhata hai usase kahin adhik vah hriday ko mohit kar deta hai. shvet dugdh kee tarah jaladhara door se aisi pratit hoti jaise oo¡che aasaman se bhagirathi ga¡ga devo ke dev mahadev kee jata men samane ke lie teji se utarati chali aa rahi ho . kinaron par hare-bhare oonche-oonche vriksh aise pratit hote hai jaise ve pahadon kee raksha ke lie sina tan ke khade ho aur vasundhara ke vaksh ko shitalata pradan kar rahe ho .nazaron se jaha¡ tak drishti jati vaha¡ tak ghane jangal kee hari chadar bichhi dikhaee deti hai. aah ! kya vastav men yah dhara itani sundar hai ki koee bhi vyakti apar sukh-shanti ke sath is dhara par apana jivan ji sakata hai. yah prakriti aur usakee apar sampada manushyamatr ke lie kam pad jaegi ! nahin prakritik sampada manushy ke lie eeshvar ka varadan hai tab hi to yah vasundhara manushyon ke lie ma¡ ke saman hai . jo jitana adhik dharati man ke karib rahega use apar sukh prapt hoega hi lekin jis kisi ne bhi prakriti ke pratikool kary kiya use prakriti ne usake parinamasvap vah hi diya jisaka vah pratibhagi tha . prakriti, mata svarupa hai jitana adhik vah sneh karati hai utana hi adhikarasvaroop parinam bhi deti hai aur yahi jivan jine ka aadhar bhoot mantr hai. bahati huee sarita ke saman jivan lagatar bina ruke bahate rahane ka nam hai. chhote chhote nale-gadade,patthar-pahad,umad-khabad raste,kahin bilkul sidhe ,kahin bahut hi tede-medhe ,kahin shant-ganbhir bahav to kahin tivr gati aur kahin-kahin n¡chaee se niche kee or girati huee dharaen bhi ek saman nahin bahati nadi thik isi tarah jivan bhi ek saman nahin chalata . kaha gaya hai jivan jina kathin nahi to aasan bhi nahin hai. kisi ne hans-hans kar to kisi ne ro-rokar jivan jiya . jiya jis kisi tarah jiya . kahin dher sari safalataen ,kahin asafalataon ka ambar . koee bhare pet sota hai,koee khali pet sari rat jag-jag kar kat deta hai. koee jiya to bina kisi udedshy ke aur koee jiya to udedshy ko lekar tajindagi uhapoh men laga raha . duniyadari har kisi ke vash men nahin hoti . jis kisi ne bhi duniyadari ko aatmasat kar liya vah duniya ke mayajal ko aasani

se kat kar bahar nikal aaya . vahi jit paya aur vastav men ji paya hai. keval siddhanton ko apanakar jina saral nahin hai balki jine ke lie siddhanton ko ek taraf rakhana bhi bahut jaruri ho jata hai. vastavikata vah chij hai jo siddhanton ko taka sa javab dekar prithak kar deti hai. yatharth ka jivan siddhanton par nahin jiya ja sakata balki siddhanton kee aad men nij hit ke lie jo bhi sanbhav ho vahi kiya jata hai.yah saty hai ki kanoon andha hota hai vaha¡ siddhant bilkul apahij kee tarah hote hai vaha¡ saty sahi sabit nahin ho pata balki saty kee tooti bolane lag jati hai. hari subah das baje bhopal se ravana hue .tabhi se hriday ke kisi kone men atit ke chitr chitrapat ke saman manasakash men tirane lage the. man men kaee kaee tarah ke prashn uth rahe the . khandavamen in paitis salon men kitana kuchh badal gaya hoga . ve log , vah mausam , ve sathi , vo skool , ve khet-khalihan , vo bailagadi men baithakar kheton men jana ,vah tapti nadi ka tat jisake kinare baithakar akele men dhyanabhyas kiya karate the ,oonche pedon par baithe mormorani kee jodi dekhana .n jane kitane vichar ,kitane drishy man ke aangan men utar rahe then . kampartamet men samane kee sit par baitha sahayatree yadi yah nahin poochhata ki kya yahi narmada hai to shayad mujhe mahasoos hi nahin hota ki hoshangabad aa gaya . unhone sahayatree ko bataya ki hon yahi narmada hai aur usake sath-sath unhonne bhi kuchh sikke narmada ko samarpit kar diye . sahayatree ‘shayad khandava se aage poona ja raha tha . unhone bataya ki main aage nahin jaoo¡ga balki usake pahane khandava steshan utar jaoonga . khandava ka nam sunate hi vah chaunk pada , bola, `` khandava jile men hi eshiya ka sabase bada akhabari pepar mil hai !´´ unhone´´ hon´´ men apana sir hila diya tha . fir to vah lagatar bole ja raha tha . halanki vah kya bole ja raha tha isaka unhen bilkul bhi ahasas nahin tha kyonki bhopal se chalate samay hi hridayakash men khandava kee bhaugolik sthiti , vahan ke log aur ve sara atit tairane laga tha . sochane laga ,`` n jane kab khandava aata aur jaldi hi steshan se bahar nikalata . steshan se bahar nikalate hi bahut se parichit aur rishtedar mil hi jaainge .´´ bhopal se khandava ka chh: ghante ka samay katana hari ke lie asahy ho raha tha . paitis sal bad ke khandavakee sthiti janane kee utsukata aur utavalapan dekhane nahi banata tha . bar-bar khidkee se bahar jhankana . bar -bar rist voch dekhana , baran-bar sit se uthakar get tak jana baicheniyan ajib si baicheni mahasoos ho rahi thi . samane vali sit par baitha sahayatree akela nahin tha . usake sath ek bis-baees sal kee ladkee thi . pata nahin vah us sahayatree kee kya lagati hogi , pata nahin . han, ve aapas men bahut batiya rahe the aur bar-bar ek doosare ke ka¡dhon par apana sir rakh diya karate the . kabhi-kabhi vah ladkee pair lambe kar ladke kee god men sir rakh deti thi aur aankhe moond leti thi fir us ladke ko dekhakar muskara deti thi . ladkee sundar thi . ek had tak use sundar hi kaha ja sakata thi kyoki vah ladkee hai aur ladkiyon chahe kaisi bhi ho sundar hi hoti hai. prakriti ne ladkiyon ko sundarata pradan kee hai . yadi ladkiyon sundar nahin hoti to sare jamane kee ladkiyon n jane kahon hoti aur yah jamana n jane kis or ja raha hota ya yah duniya hi nahin hoti . ladkee ‘shabd ka matalab samany nahin ho sakata . prakriti se bahut hi nikat ka rishta hota hai ladkiyon ya yon kaha ja sakata hai ki ladkiyon prakriti ka hi doosara rup hoti hai. prakriti mane ladkee aur ladkee mane prakriti . ab tak n to kisi ne prakriti ko jana hai aur n hi ladkee ko donon ek doosare ka poorak hoti hai ,aisi meri manyata hai . pata nahin sari duniya is bare me kya sochati hai. kaha gaya hai ki ladkee ya aurat nahin hoti to sari duniya raunakahin hoti . noor hi nahin hota is jahan men . jivan ka hona n hona ladkee ya aurat par nirbhar karata hai. yah manana jaruri nahin hai ki aap ise manate ho ,lekin yadi aap ise nahin manate ho to aap bahut badi bhool kar rahe hoge . manane ke lie keee vivash nahin kar raha hai lekin zara ladkee ya aurat ke bina ji kar dekhiya sara majara saf saf dikhaee dene lagega aur aap manane ke lie svayan hi vivash ho jaenge . sare duniya ke logon kee kahani matr tin vastuon ke aasapas ghumati rahati hai. chahe jis bhi kal ke itihas ko uthakar dekhen, sara majara saf-saf dikhaee dene lagega . vah tin vastuen hai zar joru jamin sara itihas aur sara vishv sahity inhi chijon ke ird-gird ghumata huaa dikhaee deta hai. halanki ye sare sandarbh ginane kee aavashyakata nahin honi chahie. lekin isalie

ginana pad raha hai ki ye sari vastuen manav ke aasapas hone vali ghatanaon ke patr hai. koee bhi ghatana in tin vastuon se achhooti nahin hai. isilie khandava ya bhopal ke vatavaran men jo ghatanaen lagatar ghatit hote rahi hai. ve sari aonkhon ke samane pratyaksh hote rahi hai .main isalie kuchh nahin kar saka ki main bhi in ghatanaon ka ek bahut ahan evan jatil patr hoon ya raha hoon. samane vale jodi apani thidholiyon men vyast thi chahe utana koee bhi rishta ho . stree aur purush ke jodon ke karan hi to sari ghatanaen ghatate chali aa rahi hai aur aage bhi anant kal tak ghatit hote rahegi . ise n to main rok sakata aur n hi aap ya aanevala samay . inhi ke lie hi to sara sahity likha gaya likha ja raha aur likha jata rahega . ek vah tis jo in rishton ke bich huaa karati hai. kahin n kahin vyakti ko kachotate rahati hai . yahi tis likhane ke lie vivash karati hai . hamare jaise log tis ko ukhad fenkane ke lie ya hriday ko halaka karane ke lie ya to kisi ko bata dete hai ya dher sare safed kagajon ko kala-nila kar dete hai , main bhi kar raha hoon. hari ke bhi apane kuchh sapane the,kuchh apekshaen thi ,kuchh aakankshaen rahi.sapanon ko gunana,apekshaon ka talashana aur aakankshaon ko dhalane kee koshish rahi.insan kee sabhi kamanaen poorn nahin hoti.apoorn kamanaon kee poorti ke lie vyakti aajivan bhatakate rahata hai.kuchh bhi karane ke lie tatpar rahata hai.tab vah yah nahin janata ki vah jo kar raha hai vah sahi hai athava galat .use donon hi sahi mahasoos hote hai.isalie vah jitana sahi kary karate rahata hai utana galat bhi karate rahata hai.use tab pata chalata hai jab usake parinam parilakshit hone lagate hai. hari bhi achhoote nahin rahe jo bhi kary kiye ,safalata kam ,asafalata adhik mili .jane-anajane bahut se kary achchhe bhi hue aur usase adhik kary galat bhi hue. yah atit kee bat hai .jabaki atit ko yad karana uchit nahin hota kintu yadi atit ke anubhav ko dekh kar chalen to bhavishy men honevali galatiyon se bacha ja sakata hai. ek tis aaj bhi hriday men chubh rahi hai .ab tak kiye gaye sare kary hasiye par pade hai ya to un karyon kee ahamiyat nahin hai ya ve sare ke sare kary evan prayas nirarthak lag rahe hai. jivan bahut sundar hai.use aashavadi nazariye se dekhate rahe. fir bhi nirashaen hi hisse men aa sakee.isake lie ya to kary karane ka tarika sahi nahin tha ya hari kuchh karana nahin janate the.sanbhavat:ab bhi nahin janate . 00 hari jyada padhe-likhe nahin hai.lekin unakee bhi apani mahatvakankshaen hai.jaise , pratyek kary men safal hona .chahe koee bhi kary ho ,vah chook nahin jana chahie.yadi chook gaye to yah samajhana hoga ki kahin n kahin avashy hi koee badi galati rahi hogi. manav ka svabhav hi hai ki vah aksar chookate rahata hai yani ki insan galati karate rahata hai.yadi vah galati n karen to vah manav nahin ho sakata.tab vah ya to devata ho sakata hai ya danav .hari donon men se kuchh bhi nahin hai.ek manav hone ke karan kahin to galati ho hi jati hai.manovigyan ka niyam hai ki manav svayan galati kee moorat hai.vah apoorn hai.poorv to vah kabhi ho nahin sakata.jis din vah poorn ho jaega us din vah manav nahin kahalayega.mahamanav ho sakata hai vah .mahamanav devatuly hota hai. manav jab devatuly ho jata hai tab vah parivar aur samaj se door ho jata hai.usakee apekshaen dhool-dhoosarit hone lagati hai.usaka apana kuchh bhi nahin hota.vah poojaniy ho jata hai.use ghar ke kisi kone men pratisthapit kar diya jata hai. use kaha jata hai ,` tum to mahamanav ho ,tumhari kya aavashyakataen ho sakati.tum to svayan hi poornnakam ho.`` yah poornnakam hone ke bad vah mahamanav apane hriday par patthar rakhakar khamaush ho jata hai. hari n to mahamanav banana chahata hai, n devata aur n danav.unakee niyati manav tak hi simit rahe to behatar hai. hari kee bhi apani apekshaen hai.vah bhi parivar ke sath rahana chahata hai.vah chahata hai ki samaj men use bhi vah sthan mile jo ek parivarik manav ko milata hai. parivar , samaj kee ikaee hoti hai.vah parivar ke sath rahakar samajik banana chahata raha.

lekin samay ne use avasar nahin diya. vah avasar kee talash men bhatakate raha.ek dar se doosare par aate-jata raha .kisi bhi dar par thaur nahin mili.kaha gaya ki tumhari thaur yaha¡ nahin hai , aage jao.vah aage chal diya.isi tarah anekon daron par gaye.aage chala die gae.aaj bhi unhe n to koee dar mila aur n hi koee thaur mili. n manzil mili n thikana . usi din dekhie.ramesh ke ghar parti par use aamantrit nahin kiya gaya.vah rah dekhata raha ki koee to use bulane aaega.lekin koee nahin aaya.pata lagaya.gyat huaa ki use n bulane ka karan parivar rahit hona hai.yani ki jab tak parivar n ho tab tak kisi parivarik aur samajik karyakramon men unhen aamantrit nahin kiya jaega . us din unhen vastav men bahut du:kh huaa.lekin is du:kh ko kisake samane pragat karen. ve kahate hai ,`vah akela hai use kis bat kee chinta.aa jaega ,bas, ek patr dal do.unaka bheja gaya patr use tab prapt hota hai jab karyakram ho raha hota hai ya ho chuka hota hai. yah sthiti upasthit kee jati hai.isase unako yah bahana mil jata hai ki yah sab achanak ho gaya tha .isalie aisa ho gaya hai .vagairah , vagairah. unakee pida hai ki ve apane jivan men akele hain.unakee akanksha hai ki koee to ho jo unako samajhe.unhen aadar-samman den.sneh ke do bol bolen. unase aakar koee yah poochhe ki ve kaise hai.unhone bhojan kiya hai ya nahin.koee unako ekant men kahen ki ve bhi unaka khayal rakhate hai.bas ,inhi ichchhaon kee poorti ke lie ve apana sarvasv samarpit hone ke lie taiyar ho jate hai. unhone jana hi nahin ki sukh kya hota hai. ve logon ke mukh se avashy sunate ki unake jivan men sukh-hi-sukh hai.lekin ve nahin janate un logon ko sukh kaise milata hai. vivah to unaka huaa tha .unhone unakee patni ko bahut peram diya tha.ve apani patni kee chhoti si chhoti ichchha ko turant poora karane kee koshish karate rahe.unhone patni par vishvas kiya.poora vishvas kiya.lekin ve stree ke man kee bat nahin jan paye.striyan kya chahati hai?,yah janana unake lie kathin tha.halanki ve bahut sanvedanashil the. marmagy the.zara sa ishara jan jate the kintu patni ke man kee bat nahin jan pate the.vastav men unakee patni ne unako kabhi chaha hi nahin.unakee patni unase kahin adhik chatur-sujan thi.vah chalate hue vyakti kee aa¡kh ka kagaj chura leti thi.vah udte panchhi ke par katar leti thi.vah aa¡kh bachakar vo sab kuchh kar leti thi jisakee kisi samany vyakti ko zara bhi sanbhavana nahin hoti thi.unakee patni channaky ke sootr ke anusar kuchh aur hi thi, ,jise unakee jaisi stree hi janati thi ya striyon ka koee janakar hi jan pata tha. bahut dinon tak ve patni ke pichhe divane bane rahe.patni ne unako ghas tak nahin dali.usamen sanvedana nahin thi.mamata ka to usamen thoda bhi vas nahin tha.bachchon ke prati bahut laparavah huaa karati thi.ant men kya huaa.hota vahi hai jo vidhi ka vidhan chahata hai. unhone sapane men bhi nahin socha tha ki ve us dorahe par khade bant joenge jaha¡ se aage badhane ke lie unhen kaee bar sochana hoga.ek vah rah hai jahan se ve vahin vapas ja sakate hain jahan ab unhen jana sanbhav nahin,,kyonki vaha¡ pahu¡chane par unhen apane nahin balki auron ke matanusar chalana hoga aur aunron ke m tanusar samajhauta karana hoga.doosara rasta us or jata hai ,jis or n to koee sathi hai n koee sahara hai aur n manzil .unhone yah doosara rasta chunana uchit samajha.bhale hi is doosare raste par akele jalana ho kintu is doosare raste akelepan men bhi shanti hai.

00 pratyek mata-pita chahate hain ki unake putra-putriyon ka vivah ho aur ve apana jivan sanvar le.bharatiy sanskriti men vidyadhyayan ke bad vivah kee parampara hai jise kiya jana ati aavashyak mana jata hai. manusmriti ke anusar vivah ek sanstha hai jisake madhyam se vyakti parivarik aur samajik jivan men pravesh karata hai.jab tak vivah nahin hota tab tak vyakti ka parivarik jivan prarambh nahin hota ,aisa mana jata hai.yah sach hai lekin yah manana tha ki abhi hari kee shiksha poorn nahin ho paee hai ,unhen aage kee padhaee jari rakhani hai taki ve

padhaee poorn karane ke bad bhavishy ke bare vichar kar saken. lekin mataji-evan-pitaji ko prathamat:hari ke vivah sanskar kee jyada chinta thi. jab hari khandavake pavar haus men dainik vetan par karyarat the.usi vakt unakee sagaee kee bat chal padi thi.filahal ve vivah ke paksh men bilkul nahin the.unake hriday men vivah kee koee dharana nahin thi. bavajood isake unake agraj aur unake shvasur unhen bahala-fusalakar ladkee dikhane le gaye . ve kahane lage ki bete pahale ladkee dekh lo .yadi ladkee pasand nahin aaye to mana kar dena .ve bole ki koee bhi ladkee kharab ya achchhi se arth nahin hai vivah to ladkaladkee men hi hota hi hai lekin unaka apana hriday vivah ke lie abhi svikati nahin deta. fir bhi hon-na ke dauran agraj tatha unake shvasur ladkee dikhane le gae. aapako pahale hi bata den ki hari hriday bahut hi sanvedanashil hai. kabhi na kahana sikha hi nahin, yah sabhi janate hai . ek din nishchit karake hari ko lekar ladkee ke pita ke ghar ja pahunche.sanbhavat:ladkeevale pahale se hi taiyar the aur intazar men the. rat ka samay tha. lagabhag aath-ya-nau baj rahe honge.ladkee ko samane laya gaya .ek pandrah-solah aayu kee ladkee ,samany kad-kathi ,gora rang,badi-badi aonkhe .balb ke halke-halke prakash men use nakh se shikh tak dekha. hari bale , ladkee ,ladkee hoti hai isamen dikhane se kya hoga.raha pasand ya napasand ka saval to samanyat:ladkiyon ek jaisi hoti hai.yah alag bat hai ki koee gori hoti hai koee kali hoti hai.koee looli-langadi ya kani hoti hai . hari ne apane agraj se poochha,``kitani padhi likhi hai.`` ``nisha abhi padh rahi hai.`` ``yah to usake padhane kee umr hai.use padhana-likhana chahie usake bad dekha jaega.`` lekin hari ke agraj aur unake shvasur kahane lage ``,pahale bat to ho jay .yadi tum kaho to use aage bhi padhayenge.`` ``yadi use aage padhane doge to thik hai. anyatha kya matalab.hamare samaj men vaise hi shiksha kee bahut jaroorat hai.`` ladkee ke mata-pita ne bhi ladkee ko aage padhane ke lie hami bhar di. ladkee abhi vivah yogy nahin thi. usakee aayu bamushkil se pandrah-solah ke aasapas hogi.hari sochane lage ki mujhase usakee umr chhupaee ja rahi hai.kaha ja raha hai ki ladkee bahut achchhi hai.jodi achchhi janchegi.donon hi nakh se shikh tak gaur varnnaZ.bilkul bhoore jaise birfale sthanon men rahane vale hote hai , thik usi tarah. hari jab skool padha karate the.ve bahut gore huaa karate the.vah gaur varn is samay bhi unake angon par jhalak raha tha .unhe parivar ke sabhi sadasy gorya kahakar pukara karate the. nisha bhi bahut gori hi hai.isalie jodi jamane ya n jamane ka prashn hi nahin uthata tha.gharaangan men khushiya¡ hi khushiya¡ chhane lagi . jyohi hari ne ``ha¡ `` kah diya ,sabhi ne prasannata vyakt kee. harimohan ne rahat kee sans li.ve chahate hi the ki jitani jaldi hari ka vivah ho jae utana hi achchha hai. donon parivar ke sadasyon ne bina samay ganvaye sagaee kee rism shighr nipatane men apana bhala samajha.is vishvas ke sath bat aage badhi aur kuchh hi din ke bad samaj ke sadasyon ke samane nisha ke sath hari kee sagaee ho gaee thi. badhaeeyon ka tanta lag gaya. abhi sagaee hue adhik samay nahin huaa. do din bad hi bhopal se hari ke chachaji ne tar bheja ki hari ko mantralay ke naukari ke aadesh aaye hai .vah aakar naukari jvain kar len. sarvis kee charcha shighr hi samaj men fail gaee.samaj ke log kahane lage ki nisha sakshat lakshmi ban kar aaee hai , dekho sagaee hote hi doosare din hari ko naukari lag gaee. parivar aur samaj ke any bujurg ise ya to kismat man rahe the ya nisha ke aagaman ko bahut shubh man rahe the. sab log nisha ko shubhashish aur usakee balaiya dene lage . ek baragi hari ko bhi laga ki nisha unake lie bahut shubh hai . nisha ke prati hari ke hriday men bahut pyar umad aaya. ve bhabhi se bole,main nisha se milana chahata hoon.`` bhabhi ne turant hi nisha se milane kee anumati de di.hari gadagad ho gae. ve nisha se ja mile .us din pahali bar unhone nisha ko gahari nazar se dekha.vah gaur varn kee bahut sundar dikh

rahi thi .unhone sahasa usake mathe par apane adhar rakh diye.vah laja gaee. bole,tum vastav men bahut shubh ho ,dekho sagaee hone ke do din bad hi mujhe naukari mil gaee .ab tumhari aur meri padhaee ke lie koee badha utpann nahin hogi . `` us din sham ve nisha ko khandava ke steshan se lekar van vibhag kee narsari tak ghumane le gaye.us din unaka man atyant prasann tha.ve sochane lage,yah mere ahobhagy hai ki aisi ladkee ke sath mera vivah ho raha hai jisake charan shubh hai ,sanbhavat:vah lakshmi banakar mere pas aaee ho . main dhany dhany ho gaya .`` doosare din hari bhopal chale aaye aur mantralay men naukari jvain kar li. naukari men aane ke bad hari yada`-kada khandavaaa jaya karate rahe taki is dauran nisha se mulakat bhi ho sake. nisha ke mata-pita bhi use bhej dete the. halanki us samay samaj men sagaee ke bad ladkeladakee ka milana achchha nahin mana jata tha .lekin sab janate the ki hari sabase alag kism ka ladka hai aur kisi ko koee aapatti nahin honi chahie . nisha ,unake bhabhi kee chacheri bahan hoti hai.bhabhi kahati thi ``,hari tum nisha ko apani bahan jaisi rakhana . use kabhi koee kasht mat hone dena .`` ve bhabhi ko kahate ,`` bhabhi jaise aap chahogi main vaisa hi karoonga .`` bhabhi aksar majak karate rahati thi.unhone kaha `` koee vyakti apani patni ko bahan jaise kaise rakhega.`` bhabhi ji hans deti thi. samay dhire-dhire sarakane laga aur thik sagaee ke do varsh bad hari aur nisha ka vivah kiya jana tay huaa. vivah ke aamantran patr rishtedaron ko vitarit kiye gaye . jis samay vivah ka aamantran patr hari ke samane aaya.ve padh kar dang rah gae kyoki usamen unaka nam badalakar chandakant rakha gaya tha. pahale to unhone socha kisi aur ke vivah ka kard hoga lekin jaldi hi pata chala ki yah vivah ka nimantrannapatr unake hi vivah ka tha.mata-pita se poochhane par bataya gaya ki hari nam se vivah ka muhurt nikal nahin raha tha isalie ghar nam badalana pada.unhe yah janakar bahut du:kh huaa . vivah men door door se mehaman aaye. pitaji ne ghar-aangan men tarah-tarah kee sajavat kee.gane-bajane hone lage.mahilaen mangalagan gane lagi.samajik pritha ke anusar jo jo bhi sanskar aur vidhiyon honi hoti ve sab hone lage. charon taraf haldi aur ubatan kee sugandh se vatavaran mahak utha. lagn mandap men aam ke toran lagaye gaye.kul devata kee pooja aur kul devi kee pooja vidhi anusar brahamn ke vdara karaee gaee. ghar men pahale se hi pir kee bhi pooja hoti chali aa rahi hai .at: haldi lagane ke pahale roza rakha jata hai aur misjad se maulana aakar namaj ada karavata hai. pirababa ko bati ka churama chadhaya jata hai. kul devi kee pooja men ek chhote bakare kee bali di jati hai. jab bakare ke bali kee rasm kee bat uthi .unhone kaha ,bakare kee bali n di jay balki usake badale aate se bakare kee pratima banakar devi ke samane us pratima kee bali di jay kyonki vedon men bali ka arth kisi jiv kee hatya nahin kaha gaya hai balki jiv ke sthan par jau ya gehoonn ke aate kee pratima bana kar bali di jane ka pravadhan hai. hari ke samajhane par pitaji-mataji man gaye the. is manane ka ek bahut bada karan yah bhi tha ki karnatak se samaj ke jangam aaye hue the aur usako hari kee bat bahut sahi lagi.unhone bhi hari ke tathy ko svikar kiya . is tarah bakare kee bali tal gaee. samaj ke riti-niti ke anusar pooja ke karyakram bina kisi rookavat ke sampann ho gae.parivar ke paramparik poojari jangam svami bhi bahut prasann ho gae. pooja-path ke bad subah das baje haldi ka karyakram tha. mahilavarg dulhe ko lakadi ke pithe par baithakar mangalagan karate hue haldi lagati hai. sataven-aanthave dashak tak dulhe ko tin-din tak haldi lagati thi.dulhe ko haldi lagane ke bad bachi huee haldi dulhan ke lie bhej di jati hai. hari ke agraj ke vivah ke samay sat din tak dulhadulhan ko haldi lagane ka riti-rivaj tha.hari ke vivah tak yah rivaj tin-din tak simat kar rah gaya. nauve aur dasave dashak ke bad ab matr ek din dulha-dulhan ko haldi lagaee jane lagi . isaka bahut bada karan yah ho sakata hai ki is bhagamabhag jivanashaili men ab kisi ke pas itana samay nahin raha ki ve tin din ya sat din tak vivah ka utsav manaye . santave dashak ke poorv samaj men log milajul kar raha karate the.ek hi kutumb hota tha .sabalog milajulakar vivah ka

utsav manaya karate the.ab parivar simat gae hai.naukari-peshe ke lie door-door ke shaharon men ja base hai parinamasvaroop jaise shariron ke fasale badh gae usi tarah dilon ke fasale bhi badh gae. log ab samay par jyada dhyan dene lage hai. tisare din sandhya ke samay barat ghar se ravana huee thi.dulhan ka mandap matr dedh kilomitar kee doori par tha. parivar aur samaj ke log barati the. barat men n ghodi thi aur hi any koee sadhan ,at: pitaji ne bailagadi men bithakar barat nikali.nachate-gate-bajate barat samay par dulhan ke mandap pahunnchi. hari ka man dulhan roop men nisha ko dekhane ka bahut ho raha tha. sangaee ke do sal bad dulhan ke roop men nisha vastav men bilkul chond hi lag rahi thi. nisha ka haldi se aur adhik roop khil gaya tha.gori ladkiyon haldi lag jane ke bad aur adhik khili-khili dikhaee deti hai yadi vah sundar hai to vah aur adhik sundar dikhaee deti hai. isi tarah nisha haldi lage tan aur dulhan ke jode men bahut hi sundar lag rahi thi. halanki us samay byootipalar ka jamana nahin tha ,dulhanon ka vaise hi samanyat: sajaya savara jata tha. tis par bhi nisha bahut sundar lag rahi thi. jangam vivah ke sanskar ke mantr padh rahe the aur hari kanakhiyon se nisha ke roop ko nihar rahe the.vah bhi prasann vadana poornnamasi ke chond ke samaj damak rahi thi. jyonhi jangam ne mantr poore kiye ek doosare ke gale men varamala dal di. baje bajane lage.shahanaee goonj uthi . gramofon vale ne filmi git bajaya.baratiyon ne fool barasaye aur mahilaen mangalagan gane lagi.lagn mandap men prasannata kee lahar daud padi.hari ke agraj donon anujon ne khoob aatishabaji kee.navayuvak nachane lage. door door se barati aaye hue the.lagn mandap se bahar bhi baratiyon kee bhid lagi huee thi.vriddh ek doosare ke gale mil rahe the. jangam vdara pun:mangalacharan prarambh ho gaya aur agni ke sat fere dalavaye gaye.hari sochane lage ki ye sat fere kya hote the. jangam ne sat feron ke bad dulha-dulhan ko sat vachanon ko duharane ka kaha aur kaha ki kaho ,ham donon kabhi ek doosare ka sath nahin chhodege.sukh-du:kh men ek doosare kee seva karenge. aadi .isake bad bujugo ke charan spasht karaye gaye.badon ne aashirvad diya aur hamaumravalon ne badhaiyo di . hari ke samaj men dahej kee pritha kabhi nahin rahi. pichhale do sau varshon ka itihas raha hai ki dulhan paksh se dahej kee mang nahin kee jati aur n hi dahej ke lie dabav dala jata hai. aaj samaj poornnat: to nahin fir bhi kuchh kuchh shikshit jaroor hai lekin is shiksha ke bavajood koee n to dahej mangata hai aur n koee dahej deta hai. parinnay sanskar poorn hone ke bad prithanusar dulhan ko vida kiya gaya.hari ka hriday pulakit ho raha tha.use lag raha tha ki vah duniya men sabase jyada bhagyashali hai. jise itani sundar dulhan mili . vivah ke samay hari kee aayu baees varsh tatha nisha kee aayu matr solah-satrah varsh kee rahi hogi.unhe ab tak nisha kee aayu ke bare men bataya nahin gaya tha.aaj bhi ve nisha kee aayu se poornnat:anabhigy hi hain. khair, dulhal kee vidaee ho gaee.hari ke hriday me laddoo foot rahe the .ve bar-bar nisha ka shreemukh dekhate jate aur use dekh muskarate jate.nisha dulhal ke paridhan men khoobasoorat lag rahi thi.vah bar-bar dekhati jati aur man hi man muskarati jati.usakee saheliya¡ gali bhare git ga rahi thi. unakee galiya¡ bahut achchhi lag rahi thi.vivah samaroh men galiya¡ bataur badhaee ke gaee jati hai. is samay vo hi git gaye ja rahe the. jitani gori nisha thi usi ke mukabale hari bhi utane hi gore aur svasthy tha.donon kee jodi dekhate hi banati thi.barati mahilaen bar-bar balaiya le rahi thi. dulhan lekar barat jab ghar pahunnchi , unaka man bahut prasann tha. ghar aaee huee dulhan kee aarati utari gaee .use dehari par karane ko kaha gaya.mangalagiton ke sath dulhan ne grih pravesh kiya. vivah men aae hue mehamanon se ghar-aangan bhara huaa tha.gane-bajane hone lage.doosare din dulhan ke aane kee khushi men dulhen kee or se samuhik bhoj rakha jata hai jaisa ki aaj risepshan men sabhi ko aamantrit kiya jata hai . dulhan ke paksh ke baratiyon ko bhi aamantrit kiya gaya . mandap bhara huaa tha.mahilaen mangalagan ga rahi thi . maddham maddham shahanaee baj rahi thi. mandap ke bahar kafi bhid ekatr ho gaee . jis din risepshan ka din tha us din ghar -aangan men bahut chahal pahal thi.mehamanon ka tanta laga huaa tha.aangan men mehaman pangat jim rahe the.hari ke sas-sasur aur unakee

taraf ke log aur aasapas ke ganv ke log bhi aaye hue the.us din satyanarayan kee pooja ka karyakram bhi tha . din me hi pooja-havan aadi sampann ho gae the. hari apane mitron ke sath thithauli men vyast the . tabhi n jane hari ko kya sujhee ve dulhal nisha ko dekhane uth khade hue. ve dulhan ko khojate-khojate pooja ghar men achanak ja pahunnche .pooja ghar ka drishy dekhakar ve stimbhat ho gaya .ve dekhate hain ki unaka anuj kishan aur nisha aalinganabaddh hai. do yuva tan-man ekakar ho gae.yuvavastha ka nasha vyakti ko madahosh kar deta hai.yah us samay aur adhik pragadh ho jata hai jab do tan do man apane nijatv ko khokar kisi auron ke hone lagate hai ya ho jate hai.tab ve do tan-do-man ek doosare se vilag hone kee pida bardast nahin kar pate.donon ka lava foot padta hai.bina soche-samajhe kuchh bhi karane ko taiyar ho jate hai.aisi sthiti men ve kyon n ek doosare men kho jaen! kisi bhi tarah ka aakarshan thik usi tarah andha hota hai jis tarah kanoon ko andha mana gaya hai.do tan-man ka aakarshan bhi andha hi hota hai.is andhepan men sahi-galat ka andaza lagana kathin ho jata hai. is samay ve donon ek doosare ke adharon ka rasamrit pan karane men mast hai.nisha ke vastr bikhar rahe the.vah dulihan paridhaaan men sajidhaji huee thi.kishan se bichhoh ka du:kh bhi use ho raha tha.usi tarah kee pida kishan ke hriday me bhi vyapt thi kintu nisha ka vivah ho jane se ab kuchh bhi sanbhav nahin tha.aise men kya kiya jay unhen pata nahin tha.isi vichhoh kee pida men aaj ve donon aalinganabaddh ho ek doosare men kho gae the.unhen mahasoos hi nahin ho paya ki hari aae hue hai. sanbhavat:unhen anuman nahin hoga ki hari anayas is tarah aa jaenge. hari ko dekhate hi donon sakucha gaye aur unakee or dekhane lage.choonnki kishan ,hari ke anuj hai. use ve kis tarah kahe aur nisha abhi abhi aaee huee naee dulhan hai ,use kis tarah samajhae. yah unake lie bahut kathin samay tha. hari ke hriday men tarah tarah ke vichar uthane lage. sochane lage , shayad yah vivah galat jagah huaa ya dulhe ke chayan men ya dulhan ke chayan men kahin koee galati ho gaee hai. unhone samajhadari se kam lena uchit samajha.tatkshan jakar mataji-pitaji ,bhaiya-bhabhi aur rishtedaron ko jakar sthiti kee janakari di aur kaha`` yah din dikhane kee apeksha aap log isi kshan kishan aur nisha ka vivah kar do . mujhe koee aapatti nahin hai.aage koee bat n uthe isalie yah karana uchit hoga. mainne pahale hi kaha tha ki mujhe vivah nahin karana hai . ab aisi sthiti utpann ho gaee hai to badanami n ho isase behatar hai ki aap log in donon ka vivah isi samay kar do.takee ghar kee bat ghar men hi dabi rahe. `` kishan ko vivah ke sapane pal bhar men mitti men milate dikhaee dene lage. unhen aisa lagane laga yah mera vivah nahin aur kuchh ho raha hai. unaka man ghabarane laga .ab kya kiya ja sakata hai. yah aisi sthiti niniZt ho gaee jise n to svikara ja sakata aur n hi nakara ja sakata.yani ki n nigalate bane aur n ugalate bane. us vakt bujugo ne ain-ken prakaren samajha bujhakar mamala shant kar diya . lekin unaka man ashant tha.vivah kee rasme poori karane ke kuchh din bad nisha ,bhaiya-bhabhi aur hari bhopal chale aaye . bhopal aane ke bad hari ke man men sakaratmak vicharon kee lahar uthi .ve sochane lage,nahin , vah ek sapana tha jise mainne sanbhavat:galat dekha ho.`` hari us ghatana ko bhula jana chahate the. bhaiya-bhabhi ne donon ke lie ek alag kamara le liya kyonki ek hi kamare men naye vivahit jode ke sath kaise rah sakate the. bhopal men nisha ke sath hari kee yah pahali rat thi. vah tukur-tukur unhen dekha karati rahi .ve sochane lage``nisha ko aisa n lage ki main use pyar nahin karata .`` nve sari rat nisha ko apane sine lagakar usaka chandramukh dekhate rahe.man men tarah-tarah ke tufan uth rahe the.vivah kee pahali rat suhagarat kahalati hai lekin yah kaisi rat ki yahon man ke kisi kone men us risepshanavala drishy chubhane laga. man men vichar uthate rahe ki kisi ne apani beti mujhe de di yah kya kam hai . ab farj banata hai ki kisi kee beti dulhal banakar aaee to use khush rakhana chahie. suhagarat ke anubhav svapn se lagane lage. yah kaisi suhagarat jahon khushi honi chahie vahon is tarah du:kh ke badal mandarane lage. din to kisi tarah gujar jata tha kintu jyonhi rat hoti nisha gumasum ho jaya karati aur ab to vah rone bhi lagi . vivah ke bad

stree-puroosh ke sambandh n keval ek doosare ke prati eemanadar hote balki poornnat:samarpit bhi hote hai. unhe lagane laga sanbhavat:nisha kee aayu ab bhi vivah yogy nahin hai.lekin jaisa ki vivah yogy aayu hona chahie tha vah aayu nisha kee thi hi fir yah sthiti kyon upasthit ho rahi hai. abhi ek saptah bhi nahin huaa tha ki nisha ne mayake jane kee jid kar li .use bahut samajhaya ``,bachchon kee tarah aise jid nahin karani chahie.aaj to tum chali jaongi lekin bar-bar aisa nahin ho sakata.jis ladkee ka vivah ho jata hai ,use tajindagi apane pati ke ghar hi rahana hota hai.yah shashvat saty hai.`` itana samajhane ke bad bhi vah apani jid pakade rahi.ve use turant khandava pahuncha kar aaye. lautakar ve du:khi bhi bahut hue.aakhir kiya kya sakata hai.sanvedanashil hriday hari apane pran nyauchhavar karane ke lie aatur hai.udhar hai ki nisha ek pal bhi hari ke sath bitane ke lie taiyar nahin.mayake men bhi use samajhaeesh di gaee.ek bar ladkee ka vivah ho jay to pati ka ghar usaka apana ghar hota hai.vah vaha¡ chahe jaise rah sakati hai.vah apane man kee malakin hai. nisha ke mayake men sabhi janate hain ki hari ,nisha ke upayukt hi hai kintu nisha ko ve footi aankh nahin suhate.aise kaise jindagi chal padegi.ab sab kuchh ho gaya hai.kisi tarah bhi aise rishto ko thukarane ke parinam sukhad nahin ho sakate.yah bat nisha kee samajh se pare the.vah yah sab nahin janana chahati.vah keval itana janati hai ki unhen hari achchhe nahin lagate.usane vivah ke pahale hi bata diya hota yah sab lekin ab to sab kuchh ho gaya hai.vivah koee bachchon ka khel nahin hai.chahe jab khel liya aur chahe jab mita diya. hazar bar nisha ko samajhane ke bad antat: nisha ke mayake vale use bhopal le aae. is tarah vah mah men tin bar mayake jati aur mayake vale use mah men tin bar bhopal pahu¡chane chale aate.yah kram lagatar chalate raha. donon ke mata-pita ne bahut koshish kee ki jis kisi tarah nisha sasural men hi rahe kintu vah manane ko taiyar nahin thi . bahut dinon tak usane rone ke alava kuchh nahin kaha . ek sandhya ,donon parivar ke sadasyon ne vichar kiya ki in donon ko aamane-samane bithakar is kathinaee kee sulah kee jae.nisha aur hari ko bulaya gaya.aamane-samane bithaya gadhya.poochha gaya ,hari ko kya kathinaee hai.nisha ko kya kathinaee hai.hari bole``vivah ko vivah kee tarah nirvahan kiya jana bahut jaroori hai.yadi koee patni ya pati vivah ka nirvahan nahin karate to bich ka koee rasta nikala jana chahie. bas ,mujhe isake alava kuchh nahin kahana hai.`` antat: nisha ne kah hi diya ki inaka munh bandar kee tarah dikhata hai.ye mujhe achchhe nahin lagate . poochhane par vah batati rahi ki nahin inakee koee galati nahin lekin ye mujhe achchhe nahin lagate . nisha kee is samasya ka nidan kisi ke pas nahin tha. sare log use itana hi samajhate rahe ki ab tumhara vivah hari se ho gaya hai.vivah ke bad pati ka ghar ladkee ka apana ghar hota hai.use har kisi tarah samajhaya gaya .itana samajhane ke bad bhi usane apane mukh se ek shabd nahin nikala.parivar ke sadasyon ne samajha ,sanbhavat:nisha ab sab samajh gaee hai.vah ab pahale se jyada behatar rahegi.un sabako aisa pratit hone laga. 0 isi bich kishan ke gale ke nasoor kee takalif badh gaee . khandava men chikitsakon ne bataya ki turant hi gale ke nasoor ka aopareshan karavana aavashyak hai anyatha yah nasoor bahut badh sakata hai. use bhopal laya gaya.hamidiya aspatal men gale ke nasoor ka aopareshan huaa.aopareshan ke dauran vah behosh tha.kuchh din tak usakee chikitsa aspatal men hi chalati rahi . bad men aspatal se chhutti de di gaee. aspatal se discharj ke bad kishan ko ghar laya gaya. roshanapura men ek kamare ka makan tha jo hari aur nisha ke lie paryapt tha.tisare sadasy ke lie is ek kamare ke makan men rahane kee koee gunjaish nahin thi kintu kishan ke aopareshan ke bad use chikitsarth aur dekh-rekh ke lie bhopal men hari ke alava any koee vikalp nahin tha.halanki bade bhaiya-bhabhi bhopal men the

kintu ve nahin chahate the ki unake sath koee bhaee muft men rahen. aktoobar ka mahina tha.kishan ko aspatal se ghar laya gaya tha.usake gale men abhi ghav taja the.use poori tarah se chikilsa aur aaram kee aavashyakata thi.kishan ko medisin de kar sula diya tha. hari aur nisha bhi fashaZ par bistar bichha kar let gae . hari,bade bhaiya-bhabhi se alag rahane lage the. bhabhi ji aur ve chahate the ki ve unhen apana poora vetan pratimah de diya kare.ve kaha karate the ki tum hamen poora vetan de diya karo ham tum donon ka mahine bhar ka kharch utha legen .poore mahine ke lie das roopaya jeb kharch ke lie diya karenge. poora vetan unhen dena ganvara nahin huaa. unhone kaha ,tum donon ka kharch ham logo kee apeksha jyada hai.panch kilo dal aur pachas kilo gehoo tum logon ka ek mah ka kharch hai.hari samajh gaye the ki ab bade bhaiya unaka shoshan karana chahate hai. jo unhen ganvara nahin tha. aisi sthiti men unhen apana hisab kitab alag rakhana hi pasand aaya.tab se unhone apana sabakuchh alag hi kar liya tha. us rat kishan kee tabiyat jyada nashad thi.vah medisin lekar so gaya tha.hari sone ke upakram men the .daktar se davaiyan likhavaee thi.daktar ne sari davaen badal kar likhi thi.sara din yahon-vahon bhagamabham men hari bahut thak gae the.isalie letate hi unhen lagabhag nind lag chukee thi.aadhi rat ke bad kuchh khataka sa huaa .hari uth baithe.kamare men maddham maddham diye kee roshani thi . nisha bistar par nahin thi.unhone nisha ko idhar udhar dekha.vah kishan ke pas leti huee thi.kishan gahari nind men so rahe the.nisha ko is tarah kishan ke pas lete dekh hari bole,yah kya ,yah achchhi bat nahin hai chalo aao niche aa jao.´´ vah chupachap bina koee pratikar kar kishan ke pas se utar bistar men aakar let gaee. doosari or karavat badalakar nisha bhi let gaee.thodi hi der men hari ko nindramagn ho gae. subah nind khuli . kamare ka daravaza khula tha.nisha pahale jag chukee thi. lekin nisha kamare men nahin thabh.hari ne socha shayad vah nal par pani bharane gaee hogi .subah ka samayatha nal ka pani subah sat baje aa jata hai.pani ke lie lain lagani hoti hai.yah sochakar ve fir bistar men let gayo.lagabhag aath baje tak ve bistar men hi lete rahe.sooraj oopar chadh aa gaya tha. kafi der ke bad bhi nisha nahin lauti . hari uthakar pani ke lie nal par gaye.nal par koee nahin tha. unhone socha nisha sanbhavat: nityakriya ke lie gaee hogi.at: ab tak bhi ve samany rahe lekin jab dekha ki vah do ghante ke bad bhi nahin lauti tab chinta badh gaee. hari use khojane bannaganga gaye.roshanapura ke nivasi pratidin nityakriya aur snanadi ke lie bannaganga hi jate the.isilie unhone socha nisha bannaganga par hogi.makan malik shankar bhaiya aur bhabhi se poochha . kahin nisha ka pata nahin mil raha tha. subah ke das baje the.unhone bade bhaiya-bhabhi ji ko bataya.unhone koee dhyan nahin diya.chachaji ke ghar jakar dekha.vah vahan bhi nahin nisha nahin thi. ve lautakar ghar aaye. kishan ko bahut tej jvar chadha huaa tha. lekin ab kiya ja sakata hai. kishan unake apane bhaee hai.chhota hone ke karan vah unhen priy tha . isalie use kuchh kahana uchit nahin samajha .bas itana hi bataya ki n jane tumhari bhabhi kahon chali gaee. ve nisha ko dhoondhane nyoo market gaye . relve steshan gaye. rel ke dibbe-dibbe men talash kee li . bagichon me gaye . kahin vah dikhaee nahin di. ve hatash hokar chhote talab kinare ja baithe. bahut der tak talab kinare chintatur baithe rahe.koee rasta soojh nahin raha tha.jane unhen kya soojhee ve chalakar jahangirabad thane pahunche . ti aaee ko apani kah sunaee . nisha kee tasvir dikhaee. gyat huaa ki nisha budhavara thane men hai. ve turant hi budhavara thane ja pahuncha.thane men nisha ko dekhakar sukoon mila.ti aaee se mile. unhone bataya ,yah ladkee dhobi ghat par aatmahatya karane ke lie ja rahi thi.vahan se use pakad kar laya hai. tum usake pati ho , chalo andar chalo.tum par is ladakee ne iljam lagaya hai ki isako tumane bahut mara hai aur use aatmahatya karane ke lie ukasaya hai. pulis ne hari ko salakon ke pichhe dal diya . unhone pulis se nivedan kiya ki is ghatana kee janakari unake chachaji aur bade bhaee ko deni hai.unhone svikriti de di.chachaji ke aafis men fon kar diya.khabar pate hi ve daude chale aaye. hari thane ke lonk-ap men band kar die ge aur nisha ko tiaaee ke kamare men hi bitha diya

gaya.chachaji ke aane par unako poori ghatana sunadi. pulis ka kahana tha ki ladkee ne riport likhavaee hai ,isalie ab hari ko majistret ke samane khada karana hi hoga . ab kary aaj nahin kal hoga.tab tak ke lie ve chahe to nisha ko apane sath ghar le ja sakate hai.chachaji aur bade bhaiya ne nisha ko sath men ghar le jane se inkar kar diya. chachaji ka kahana tha ki nisha ko ghar le jane par kahin aisa n ho ki ye ladkee bijali ke bord men hath ya anguli dal kar aatmahatya karane kee koshish karen. at:chachaji aur bade bhaiya vapas ghar laut gaye . budhavar ka din tha. rat ho chali thi.ab tak hari pulis lok-ap men band the. nisha ko tiaaee ke kamare men bitha diya gaya. pulis karmiyon ka jamavada badhata ja raha tha.har koee pulisakamiZ oolajoolool prashn karata.badale men ek bhaddi si gali de deta. aisa lagane laga jaise yah pulis thana nahin hai, gundon ka layasensashuda adada hai.yaha¡ har pulisavala kisi gunde se kam gunon ko nahin darshata balki vah gunde se jyada ashlil aur harami ho jata hai.lagata hai pulis men bharati hone ke bad vyakti ka vyaktitv manaviy n hokar pashavik ho jata hai.yah sthiti dekh rooh kanp gaee. aadhi rat se jyada ka samay ho raha hoga.thane men aane-janevalon kabh aagat tham gaee.rod par aavagaman bhi lagabhag band ho gaya tha.ti aaee bhi chale gaye the. din kee shiftavale pulis karmachariyon ke jane ke bad rat kee shiftavale pulis karmachari thane men aane lage.do pulis rat men gasht lagane ke lie purani siti kee or chal die.keval char-chh:pulis javan thane men rook gae. hari ghabara rahe the.is tarah kee pratikool sthiti unake jivan men pahali bar aaee.halanki unhone aisi koee galati nahin kee thi.jisase unhe lok-ap men band kar diya jay.lekin pulis se ulajhane ka matalab hai ki aur adhik musibat men fans jana.ve bechain hote ja rahe the. lok-ap men bahut garami ho rahi thi aur peshab kee bahut badaboo aa rahi thi.lok-ap men do aparadhi bhi band the.vahon baithane ya sone ke lie koee samuchit vyavastha nahin thi. lok-ap kalakothari jaisa lag raha thi..machchhar bhinabhina rahe the.chhat par pankha nahin tha.unake pas aisi koee chij nahin thi jisase ki hava li ja saken.ek to garami-andhera-silanayukt lok-ap ,peshab kee badaboo aur machchharon ke aatank ke karan kafi takalif ho rahi thi . unakee bechaini badhati ja rahi thi. kya kiya ja sakata tha aisi musibat men, unakee samajh men kuchh nahin aa raha tha. rat karib do-tin baje pulis karmachariyon ke irade kuchh badale-badale se lage.ek bola``yar!aaj to thane men bahut achchha mal aaya huaa hai.chakhakar dekhana chahie.`` ``ye us harami kee bivi hai.jo lok-ap men band hai.`` ``to use lok-ap men hi band rahane do.vah yaha¡ aane se raha.`` ``kahate to tum bahut thik.achchha,ek-ek karake nipatate hai.pahara dena bhi jaroori hai n!`` ``thik hai.pahale main nipatata hoo¡.tum pahara dete rahana.ssala kuchh bola to dapat dena.kuchh nahin kar sakata vo harami.`` nsabane milakar zoron se thahaka lagay.ek bola``chalo ‘shuroo ho javo.jab tak ham pahara dete hai.`` ek pulis ka javan thasake ke sath nisha ke pas gaya.use niche se oopar tak ghoor-ghoor kar dekhane laga.nisha ko nind lag chukee thi.vah farsh par hi let kar so rahi thi.pulis ke javab ne kapade utare aur nisha ko daboch liya.anayas is tarah ke sparsh se nisha hadbada gaee.vah chikh uthi.pulis javan se use zoradar ek thappad mara. vah badbadaya``ssali haramajadi! chillati hai.chop nahi to boti-boti chaba daloonga. chop madar cho-----` nisha rone lagi .pulis javan ne nisha ko buri tarah se apani majaboot bahon men jakad liya.usakee sadi utar kar alag fenk di.blaus men hath dalakar jamakar masak diya.nisha chikh padi aur rone lagi. ``nahin ````nahin chhod do nahin `nahin aisa mat karo nahin nahin mujhe chhod do nahin nahin .`` pulis javan par haivaniyat savar thi.usane nisha kee boti-boti noch dali.jab vah skhalit ho gaya nisha ko rota-bilakhata chhod diya.hari ne nisha kee rone kee aavaj suni.ve chintit ho gae.thane men is tarah kisi nari ko rat menn rokana uchit nahin hai.bhaiya aur chacha yadi nisha ko sath le jate to use is tarah kee takalif nahin hoti.unhone aavaz dekar pulis javan ko bulaya.pulis javan

un par dapat pada. ve bole- , `` bhaee use takalif ho rahi hogi . use mere samane le aao .´´ lekin pulis javan nahin mana . dapat pada . bola`` itani chinta hai to kyon mara usako haramakhor ´´ pulis javan ke asabhy vyavahar aur usake dapatane par ve chup ho gaye. pulis javan ne ek bhadadi si ashlil gali di. nisha us rat thane men rat bhar rote rahi. vah ``nahinn hin chhod do``karati rahi aur pulis vale usake sath jor-jabaradasti karate rahe.yah pulisavalon kee haivaniyat thi.hari ko bhi janaboojhakar lok-ap men rakha gaya.jisase ki pulisakarmiyon ko manamani ka poora avasar mil jay. chachaji yadi nisha ko sath men le jate to pulis ke javanon ko kabhi aisa dushkrity karane ka avasar nahin milata. pulis ke kuchh badachalan karmachari desh seva ke nam par pulis ko ganda karane se nahin chukate. rat jis kisi tarah se bit gaee. hari ko pulisavalon se itani sakht nafarat aur ghrina ho gaee hai ki ab kisi pulis javan ka chehara dekhana bhi pasand nahin karate. subah das baje chachaji aur bade bhaiya aaye. pulis us din guroovar ko unhen majistret ke samaksh khada karanevali thi.chachaji ne hari kee jamanat kee vyavastha kee .unhen hathakadi pahana di gaee.hari buri tarah se ro pade 7 , hay nisha ,tumane yah kya kiya.aaj tumhari khatir mujhe pulis kee hathakadi men jakad liya gaya. `` unhe rota dekh chachaji ne tiaaee se kaha -, ``kripaya mere bhatije ko thane se kachahari tak bina hathakadi ke hi le chalo.jab majistret ke samane khada karoge tab hi use hathakadi pahana dena.`` pulis ne nahin mana .ve hari ko thane se kachahari tak hathakadi pahana kar le chalee. unake dahine hath men hathakadi aur usakee janjir ek sipahi ke hath men pakadi huee.mano kisi khas aparadhi ko saja di ja rahi ho.hath men pulis kee hathakadi padna hi unake lie kisi saja se kam nahin lag raha tha.majistret to bad men saja sunata hai lekin pulis vyakti ko saja sunane se pahale hi hathakadi pahanakar jab sare aam janata ke bich se hathakadi pahanaye le jati hai to apane-aap saza mil hi jati hai.hari jaise aparadh bodh se gada ja rahe the.raste bhar log unhen hathakadi men jakade dekhane lage. subah das baje se sham char baje tak hari kehathon men hathakadi dali rahi. ve sochane lage ,``isase behatar mujhe mrityu aa jati to achchha hota .kam se kam aise din to dikhane ko nahin milate.`` lagabhag sham char baje unhe majistret ke samane hathakadi pahanakar khada kar diya.hari fir rone lage.nisha patthar si tukur tukur dekhe ja rahi thi. usaka chehara bilkul khinch gaya tha. hari janate the nisha ke sath pulis javanon ne jyadati kee hai.vah kah bhi nahin sakati .stree chahe kitani bhi kathor kyon n ho vah apana munh nahin kholati.nisha ke sath bhi yahi huaa. thik char baje pulis ne hari ko majistret ke samane khada kiya .vakeel ne arji pesh kee aur chachaji ne jamanat bataur apani jaminake kagazat pesh kiye.majistret ne hari kee or dekha.unhen pasina aa gaya. majistret ne kaha- , ``ab aisa aparadh nahin hona chahie anyatha ham aapakee jamanat svikar nahin karenge.´´ svikriti men hari ne sir hila diya.hari kee jamanat svikrit ho gaee .pulis ne hath men hathakadi khol di. chachaji aur bade bhaiya hari aur nisha ko ghar le aaye.chachaji ne nisha ke pita ko fon par is ghatana kee sari janakari kah sunaee.khabar pate hi doosare din nisha ke pita bhopal aae.doosare din nisha ke mama bhuse apane sath khandava le gaye . niyati ka kanoon sabase alag hota hai.insan vdara banaye gae kanoon likhit men hote hai.lekin niyati ka kanoon alikhit hota hai.use koee banch nahin sakata.koee jan nahin sakata. niyati ka vidhan sabase alag hota hai.jis tarah vidhi ke vidhan usake apane hote hain.parivartanashil nahin hote.thik usi tarah parivar aur samaj ke alikhit vidhan bhi aparivartanashil hote hai. ab ve fir akela rah gaye.unhonne roshanapura ka kachcha kamara khali kar diya aur

tilajamalupara men ek pakka kamara kiraye se le liya. khandava se meri mataji bhopal chali aaee.poore ek varsh tak mon hari ke sath rahi. kuchh logon ne milakar bhopal jila nyayalay men nisha ke virooddh kes dayar karava diya.hari is kes ke paksh men nahin the.yadi bhagy men yahi safal vivah nahin hoga to koee kya kar sakata athava yadi ham nisha ko pasand nahin the to yah n to hari dosh hai aur n hi nisha ka .nisha ko usake marji aur usakee pasand ka pati nahin mila to usane pratikool kadam uthaye aur hari se chhutakara pane ka prayas kiya. lagabhag das mah tak jila nyayalay men peshi hoti rahi. hari is kes ke bahut door rahana chahate the kintu kuchh logon ke dabav ke karan ve kuchh bhi karane men asamarth the. antat: donon pakshon me samajhauta ho gaya ki hari aur nisha ka vivah vichchhed kar diya jay. jila nyayalay ne donon paksh ke is nirnnay ko svikar kar liya aur jila nyayalay men prakaran nastibaddh ho gaya. mamala rafa-dafa ho gaya. abhi sal bhar bhi nahin huaa tha ki khabar aaee nisha ko beti huee hai. isi dauran khandava se pitaji ka mataji ke lie khabar aaee ki vah turant khandava vapas aa jay.idhar pitaji ka svasthy bigadne laga hai. mataji , pitaji kee khabar milate hi khandavachali gaee. hari ke hriday men beti ke prati prem jag gaya.use laga shighr hi khandava jakar beti ko dekh liya jay.bhale hi nisha se rishta toot gaya lekin beti se ab rishta jud gaya hai to ho sakata hai ki nisha men bhi kuchh n kuchh parivartan aaya hi hoga.poore do mah tak unake hriday men antavrdand chalata raha.aakhir unhone nirnnay le liya ki turant hi khandava jakar beti ke sath nisha ko bhopal vapas laya jay. ek din hari amritasar dadar eksaperas se sidhe nisha ke pita ke ghar khandava ja pahunnche . halanki khandava men unake mata-pita bhi rahate hai lekin unhen hari ke khandava aane kee koee khabar nahin di.hari ko aaya dekh unake sas aur shvasur ji ko bahut achchha laga. vidhi vidhan se svagat satkar kiya . unake aane ka karan poochha. unhone bataya ki ve nisha aur sath men apani bachchi ko lene aaye hain. shvasur ji ne sahamati de di to sas bhi prasann ho gaee. bhopal ke lie subah aath baje dadar amritasar eksaperas aata hai isalie us rat sasural men hi rooke rahe aur subah bachchi aur nisha ko tange men bithakar khandava relve steshan aa gae . bina kisi or dhyan diye donon dadar amritasar eksaperas se bhopal chale aaye.unhen pata nahin ki kisi ne unhen raste men jate hue dekh liya ho lekin sanbhavat: doosare din unake mata-pita ko hari ke khandava aakar nisha ko bhopal le jane kee khabar mil gaee. bhopal aakar budhavara men ek do kamare ka makan kiraye se le liya. ek varsh tak hari-nisha sath-sath rahe. samaj aur duniya men rahana hai to sakaratmak vicharon ke sath rahana chahie.kabhi bhi anuchit aachar-vicharon ko sanrakshan nahin dena chahie.isase vyakti,parivar aur samaj par pratikool prabhav padta hai. is dauran unaka ek prabandh kavy ``prakashit huaa. vyakti samaj men rahata hai to sab ke sath milajul kar rahata hai. jis manushy samaj men vyakti ko rahana hota hai vahon peram aur vishvas rakhana bahut lajami ho jata hai taki vah samaj men ijjat ke sath ji sake aur use sabaka sahayog mil saken .jab tak pati-patni men aapas men vishvas n ho tab tak donnon men samanjasy nahin baith pata. choonki nisha se ek beti huee hai isalie prem aur vishvas kee ninv par parivar ko bithaya jana unake lie bahut jaroori ho gaya . unhonne nisha par vishvas aur peram kee ganga baha di . beti ko pa kar man prafuillat ho gaya.pratidin beti ke sath ghanton khelana .use parko men ghumane le jana chalate raha. samay kis tarah se vyatit hone laga pata hi nahin chala. nariyon ke hriday kee gaharaee ab tak koee bhi puroosh map nahin paya.vah ek maya hai.us par vishvas kiya jay athava nahin ,is par vichar kiya jana atyant prasangik hai.jitana adhik vishvas kiya jay ,yadi usaka pratifal sakaratmak milata hai to usamen safalata niishchat samajhee jani chahie . lekin pratifal nakaratmak milata hai to jivan kee safalata khatare men pad jati hai. nari ke athah man kee thap pana bahut kathin hota hai.bahut se rishi-muni aur gyani bhi nari ke samajh hare se hue hai.yadi aisa nahin hota to aaj is prithvi par rishi-muni nahin hote balki safal jivan jinevale manav samuday hote. huaa kuchh is tarah ki budhavara men rahane aane par nisha kee mitrata aasapas kee mahilaon

se ho gaee.itana hi nahin nisha kee mitrata un mahilaon ke patiyon se bhi ho gaee. yah mitrata aahista-aahista nikatata men parivartit hone lagi.yah nikatata ghanishthata men parivartit hone lagi.aur silasila chal pada manamani ka. bat samajhate der n lagi. budhavara men adhikatar us hi samuday ke log rahate hai jinase doosare samuday ke log bhayabhit hote rahate hai.unakee katatrata any samudayon kee apeksha adhik hoti hai.is katatrata ke chalate samudayon men n jane kitani sadiyon se tanatani hote aa rahi hai. aise hi vatavaran men nisha ne ghirava diya.vah aksar usi samuday ke logon se mel-milap karate rahati.usi samuday ke purooshon se mitrata use adhik achchhi lagane lagi. kahana uchit nahin lagata kintu yah saty hai ki doosare samuday ke log kuchh bhi anyay karane men pichhe nahin rahate.chahe ve kisi bhi samuday ke puroosh kyon n ho. galati vaha¡ adhik hoti hai jaha¡ nari svayan hi any samudayon ke purooshon se mitrata badhati hai.bavajood isake use samajhane par vah apane hi parivar ke logon ko asabhy aur pichhada kahane lagati hai. vah kahati hai, aapako kuchh nahin pata , ham sab janati hai.aapase jyada achchha charitr hamara hai.ham kisi se kam nahin hai.koee galati ham nahin karati.hamare vichar shreshth hai.tumhare vichar sankuchit hai.tum chhote dimag ke log ho.hamari barabari nahin kar sakate. aisi sthiti men nariya¡ parivar ke logon ko upekshit kar anany logon ka paksh lekar anuchit path par chal padti hai.bas ,yahi galati ab nisha ne karani praranbh kar di . 00

jab ghar mene bete ka janm huaa to aisa laga ki ab nisha men avashy hi vaicharik parivartan huaa hoga .vah pahale kee apeksha adhik uttaradayitv ka vahan karegi.parivar ke pratyek sadasy ka dhyan rakhegi.yah vichar hari ke bhitar kisi kone men uchhale mar raha tha. ve chhota parivar sukhi parivar kee avadharana se achchhi tarah parichit tha.isalie bete ke paida hone ke do mah bad unhone bhopal ke jayaprakash aspatal men nasabandi karava li. char mah tak nisha mayake men rahakar bhopal chali aaee. beta god men tha. ab ek beti aur ek beta hone se parivar kee jimmedari badhana svabhavik hi hai. ghar mitron ka aana-jana laga rahata tha .pata nahin kuchh lagabhag ek sal bad makan malik ko jane kya aapatti ho gaee . unhone hari se makan khali karava liya. abakee bar hari ne itavara men ek kamara kiraye se le liya .itavasara men 6-7 mah rahe.lekin vahon se bhi makan malik ne nisha ke bare men ujool fijool bate kah kar makan khali karava liya . ab kee bar unhen makan dhoondhane men pareshani ka samana karana pada lekin jaldi hi relvesteshan ke pichhe kee koloni men ek bada sa kamara ,dalan aur bakee sab suvidhayukt makan mil gaya. unhen laga ,is makan men ab kisi tarah kee avyavastha nahin hogi. niyati men kya likha hai, kaun jane. 0 relve steshan pichhe kee koloni men ek suman nam kee stree se nisha ka parichay ho gaya. suman apane pati ko chhodkar mayake men raha karati thi. sunane men aaya ki suman badachalan hone ke karan usake pati ne use tyag diya.ab vah pati ke pas rahane jana nahin chahati.vah sara-sara din bhopal kee galiyon men ghuma karati.jaha¡ chahati vaha¡ jati.jo ji men aaya vah karati.ab vah bilkul aazad ho gaee hai.use koee rok-tok nahin hai.vah apani maraji kee malik hai.mohalle men aate hi kuchh hi dinon men nisha aur usamen mitrata ho gaee.hari jis mohalle men rahate hai.vaha¡ unake padaus men ek panditaji raha karate hain.unakee patni panditain kaha karati ki nisha is suman ke sath mat raha karo. vah aurat thik nahin hai. vah aurat is ilake men badalam hai. isi badanami ke karan usake pati ne use chhod rakha hai.lekin nisha ne panditain kee bat ko anasuna kar diya aur suman se mitrata karana achchha man liya.

ek din shayad shukravar ka din hoga, pratidin kee bhanti aafis jane ke samay hari taiyar hokar aafis ke lie ghar se nikale.jis kaloni men hari rahate the.vah kaloni relve steshan ke poorvi kshetr men hai. aafis ke lie rajy parivahan kee bas ralve steshan ke pishchami kshetr men mila karati thi.at: relve krosing karane us or jana hota tha.yah pratidin yani rootin tha. ghar se nikalane ke bad pata nahin ki beta pappoo pichhe-pichhe kab chal diya. hari sanbhavat: kafi door nikal chuke the.aofis ke samay par karmachariyon ko sabase pahale bas pakadne kee jaldi padi rahati hai kyonki mantralay ke lie relve steshan se ek hi bas chalati hai.usake bad koee bas nahin jati .yadi bas mis ho jay to fir lokal bas se pahale nyoo maket jana hota tha aur vahon se do kilomitar mantralay tak ya to paidal jao athava do-tin log aatoriksha karake mantralay pahunncho.isalie samay par bas pakadna bahut jaroori ho jata hai. hon kisi ek din bas mis ho jay athava kisi kam se ghar rookakar deri se aafis gaye to itana lamba safar karana hi majaboori ho jati lekin pratidin let hone ka arth hai.pratidin pachas roopaye mantralay jane ke lie kharch karana jo kathin ho jata hai. hari daftar ke lie ravana ho chuke the. us vakt pappoo kee umr lagabhag do varsh do mah rahi hogi.vah dhire-dhire pairon chalana sikh gaya tha. pappoo unake pichhe aa chuka tha, is bat ka unhen kataee ehasas nahin tha. ve rah chalate samay kabhi palatakar nahin dekhate the. yah unakee aadat men shumar tha .

us samay kee yah aadat unake lie us samay musibat ban gaee jab ve sham ko ghar laute . ghar men tala laga huaa tha. panditaeen se poochha ki nisha kahon gaee hai.usane bataya ki nisha to suman ke sath kahin gaee huee hai.panditain se chabhi lekar unhone kamare ka daravaza khola. lagabhag ek ghante bad nisha aur suman aaee. nisha boli . `` pappoo ko aap aafis le gae the kya !´´ ´´nahin to ! bachchon ko koee aafis le jata hai kya lekin tum kahon gaee thi .´´ mainne kaha aur poochha . `` ham log yon hi kahin gaye the.´´ `` to pappoo kaho hai.´´ `` mujhe nahin maloom . maine socha aap le gaai honge ´´ nisha ne kaha hari ka matha thanaka . nisha sara din ghar men rahi aur fir din men suman ke sath kahin gaee bhi lekin usane pappoo par zara bhi dhyan nahin rakha.ve ghabara gaye.uthe aur pappoo ko khojane nikal pade.relve steshan ka poora ilaka dhannoodha . pappoo ka kahin pata nahin.poora bajariya khoj liya.pappoo ka kahin pata nahin.ve bajariya thane pahunnche.thane men bataya.pulis ne kaha, yadi bachcha kal subah tak nahin milata hai to aap riport likhava sakate hai. rat ho chukee thi.sadk par strit lait kee roshani thi.garmi ke din the isalie bajariya men jyada chahal pahal bhi thi.steshan se yatriyon ka aavagaman ho raha tha.jaise hi ve thane bahar aaye. ek chalis-pachas kee aayu kee mahila kee god men pappoo tha.pappoo unhe dekhate hi tutalane laga.mahila ne unhen aavaz dekar roka . tyoob lait kee roshani men pappoo unhen pahachan gaya tha.unhe dekhate hi pappoo god men aa gaya. mahila boli. `` ye aapaka beta hai.´´ `` ji hon ´´ `` ye subah das baje rel kee patari par baitha mila .dijal enjin vale ne enjin rok liya . bhid jama ho gaee thi. zara si bhi asavadhani ho jati to bachcha aapake hath se nikal jata .vah to shukr karo enjinavale ka ki usane bachche ko dekhakar enjin rok liya .´´ unakee aonkhon men aonsoo chhalak aaye.pappoo unake sine se lag gaya. usake hath men biskut the jo usake hathon se gir gae . unhone us mahila ka shakriya ada kiya aur us mahila ke charan sparsh kar pranam kiya .bole .

`` bahin ji !main aapaka ehasan jindagi bhar nahin bhooloonga .yah sanbhavat:mere kisi janm ke achchhe karm hoge jo pappoo mujhe mil gaya anyatha n jane kya hota. ´´ `` bhaee sahab ! bachchon par dhyan rakhana chahie.´´ ´´ lagata hai yah shayad mere pichhe pichhe chal diya ho .subah das baje ke pahale jab main aafis ke lie ravana ho gaya.´´ `` bachche kee mon to dhyan deti ! ´´ mahila ne kaha. `` ‘shayad usaka dhyan hat gaya ho. achchha chalata hoon´´unhone mahila se kaha aur dubara hath jodkar namaskar kiya .ve pappoo ko ghar le aaye . ab bhi suman aur,nisha kisi film kee kahani par thitholi kar rahi thi . unakee god men pappoo ko dekh kar donon chup ho gaee. hari hriday par jaise patthar ka pahad aa gira ki nisha ko is bat kee zara si bhi paravah nahin .usaka beta subah se gum hai aur vah suman ke sath hansi-majak men mashagool hai.aisi kya bat hai jisase nisha ne pappoo ka zara bhi khayal nahin rakha . pratyek nari ko apani santan pyari hoti hai.lekin us din unhone dekha ki nisha ke mukh par chinta kee rekhaen bilkul nahin hai. pappoo ko dekhakar vah usi tarah sahaj thi jis tarah kahin kuchh huaa hi nahin ho. hari ne chup rahane men hi bhalaee samajhee . 00 doosare din unhone nisha ko samajhaeesh di ki vah zara amit taraf khyal rakhiyega ,abhi chhota hai ,bachcha hai.tumhen pata hi nahin chalega ki bachcha khelate-khelate kahin door chala jaega . samajhaeesh ke bad ve aafis chale gaye. sham ko aafis se laute.mohalle men aate hi vahon rahanevala ek vyakti jo murge ladane ka shauk rakhata vah unake sath ghar tak aaya . usake aur hari ke bich murgon kee charcha chalati rahi ki vah kis tarah murgon ko prashikshit karata hai aur murgon ladaee men kaise jit hasil karata hai.vah shakhs khasa utsahit lag raha tha.mohalle men rahane ke karan sanbhavat: vah hari ko janata tha.janane ka karan yah bhi tha ki hari kee rachanaen patra-pitrakaon men prakashit huaa karati rahi. rachanaon ke sath nam to hota hi hai kabhi-kabhi tasvir bhi chhap jati .is tarah rachanakoron ko adhikatar log jis kisi tarah pahachanate hi hai.vaise hi rachanakaron ko apani pahachan batane kee aavashyakata nahi rahati.jo log jagarook hote hai ve apane samay ko pahachanate hai. nisha pani ke do gilas bhar laee aur dekar bhitar chali gaee . unhone chay ke lie mana kar diya. mugeZvala aur ve baton men mashagool the.sandhya ka samay tha.parivarik log sandhya ke samay jyada vyast nahin rahate . jis kamare men ve rahate the usake bilkul pichhe ek naya bana huaa bada makan tha usamen rahanevale sare parivar muslim the.us makan men rahanevale parivar kee kuchh muslim mahilaen chhat par baithi batiya rahi thi. padausi pandit ji ghar par nahin the lekin unakee patni panditaeen ghar men kisi kam men vyast thi. joon ka mahina raha hoga. bahut der tak murge vale vyakti kee aur unakee bat chalati rahi .tabhi achanak nisha ke chillane kee aavaz sunaee di . bachaon nnnbachaon . murgevala vyakti hari kee or mukh kiye hue tha jo bhitar tak dekh sakata tha.vah bhi chillaya ,bhaee sab ghar men aag lag gaee.ve turant daud pada dekha nisha buri tarah se aag se jhulas rahi .unhen ekadam se kuchh bhi soojha nahin. aag kee lapaten bahut tej thi.use bujhaya jana kathin lag raha tha.ve hathon se aag bujhane ka prayas karane lage.tabhi panditaeen bhi chillate daudi chali aaee .panditaeen aur inake kamare ka pichhala aangan ek hi tha aur aanejane men koee rookavat nahin thi.panditaeen ne pas men rakha pani ka chhota ghada nisha par udhel diya.aag kam ho gaee.ve jaldi se kamare men gaye ek kambal le aaye. ab bhi aag jal rahi thi. nishapar kambal dal diya.aag bujh gaee lekin nisha bahut jal chukee.vah chikh-chikh kar rone lagi. nisha bahut jyada jhulas gaee.usakee pida itani jyada thi ki unaka dil dahal gaya.ve samajh nahin pa rahe the ,yah achanak kaise ho gaya ,kya ho gaya.unake to hosh ud se gae.beta pappoo bhi rone lag gaya.pandilaeen ne pappoo ko sanbhala.sanjoo us vakt khandava men mere mata-pita ke pas thi. nisha ke sare badan men aag kee jalan fail gaee.pappoo zoro se rone laga. nisha ke badan par lipati poori sadi jal gaee.usake badan par keval blaus aur petikot tha.sadi sithentik hone se aag bhadk uthi. dekhate hi dekha

te mohalle ke log daude chale aaye. nishaka ro-ro kar bura hal tha. mohalle ke logon kee aavaze uthane lage ye kaise huaa ye kaise huaa . murgevala bola ,mainne aag dekhi aur chillaya.bhaee sahab aur main bat kare rahe the ki achanak medam kee aavaz sunaee di bachao bachao pichhale aangan kee mahilaen kahane lagi ki is aurat ne pahane apane badan par kerosin dala aur machis se aag lagali .ve kahane lagi ki ve chhat se itani jaldi aakar use bacha nahin sakati thi aur hamari aavaz vahon tak ja nahin pa rahi thi. is aurat ne apane hath se aag laga li. nisha ab bhi ro -ro rahi thi . mujhe bachao nahin to mar jaoo¡gi . nishaka badan jhulas jane se buri tarah jalan kar raha tha.hari part taim men iklanik ka sanchalan kiya karate the.unhone klinik ke lie laee huee spirit thi,,jo usake sare jakhmon par dal di.muhallevalo ne aato kee vyavastha kee.hari aur sath do vyakti bhi sath ho lie . nisha ko ve hamidiya aspatal le gaye. nisha ko hamidiya aspatal men chikitsa ke lie bharati karaya gaya. daktars ne turant hi jalane ke kes men bajariya thane ko soochana de di taki pulis aakar kes dekh len.aag ke jhulasane se nisha ke jale hue sthanon par fafole ubhar aaye.jisamen jalan hone lagi.jalan kee pida nisha ke bardasht se jyada thi.hari bas men kuchh nahin tha jo kuchh karana tha chikitsakon vdara kiya jana tha.chikitsakon ne turant hi nisha kee chikitsa kee vyavastha kee. bhopal men jitane samaj ke sadasy the ,chachaji-chachiji,,bhaiya-bhabhiji aur jo bhi the sabhi ko khabar kee di. nisha ke mata-pita ko bhi khabar kee di . chikitsakon ne kaha marij ko khoon kee jaroorat hai,. marij ka bahut sara blad jal gaya.kisi ka bhi khoon nisha ke khoon se mil nahin pata tha.daktar ne hari se kaha ,khun nahin mil pa raha hai marij ko bachana kathin hai. hari ne svayan ke rakt kee janch ke lie daktars ne kaha.daktars ne samajhaeesh di . ``tum bahut kamajor ho tumhara khoon kaise liya ja sakata hai. ´´ `` aap koshish to kar ke dekh sakate hai daktar sahab ´´ daktars ne unake rakt kee janch kee .unaka rakt nisha ke rakt s mil paya.turant hi hari ke jism se rakt nikalakar nisha ko chadha diya. unake jism se rakt nikalane ke bad do ghante tak unakee chetana kamazor pad gaee .lekin daktars ne dektros selain chadha di jisase do-tin ghante ke bad chetana aa gaee. nisha ko khoon chadhane ke bad usake badan kee jalan kam ho paee. doosare din subah pulis aaee.pulis ne nisha ke bayan ke lie unhen vard se bahar jane ko kah diya taki nisha sahi -sahi bayan de saken. unhen bhay tha ki nisha galat bayan dekar unhen band n kara de.lekin aag se jhulasane ke bad nisha ne yah dekha ki itana hone ke bavajood hari usakee seva karane men koee kami nahin rakhane de rahe .isalie sanbhavat: vah aisa nahin karegi.pulasi nisha ka bayan lekar chali gaee. jate-jate pulis ne hari se kaha ,aap kal subah thane aa jana. doosare din hari niishchant samay par thane pahunche.ti aaee ne unhen apane pas bithaya aur nisha kee medikal riport dikhaee aur kaha. `` aapakee patni ne bayan diye ki stov fat jane se vah jal gaee.ham log aapake mohalle ke logon ke bhi bayan liye.unhone bataya ki us stree ne apane hathon se apane badan par kerosin dala aur machis se aag laga li.us vakt aap kahon the.´´ `` us vakt main kamare ke bahar mohalle ke ek mugevale se bat kar raha tha ki ve mugeZ kee ladaee kaise karavate hai.´´ `` hamane us mugeZvale ke bhi bayan liye.usane bhi vahin kaha jo is vakt aap kah rahe ho. aap ja sakate hai. aapakee koee galati nahi hai.hamane nisha ka rikard bhi dekha.mohallevalon ne bhi bataya.shayad vah mera kahana aap samajh rahe hai nan ´´tiaaee chup ho gaya `` ji´´ unhone sankshept men javab diya aur utakar thane se bahar aa gaye 0 daktars ne kaha ,marij ke pas ledis hi rah sakati hai aap nahin rah sakate .aap kisi ledis kee vyavastha karen .lekin bhopal ke rahanevali samaj kee koee bhi mahila nisha ke pas rahane ko taiyar nahin thi.ek rogini stree ke pas ek stree ka hona bahut jaroori hai.stree vard men mardon ka pravesh vaise kee nishiddh hota hai.jab dekha ki koee stree nisha ke pas rahane ko taiyar nahin hai to daktars ne hari ko nisha ke pas vard men rahane kee anumati de di. is samay nisha

ke lie yah bahut jaroori tha ki usakee dekh-rekh kee jay.use samay par davaee ,halka bhojan,pani ke alava usake shauch aadi karana bhi karana hota tha. nisha ne dekha ki ve din-rat usake pas hi rah rahe hai. usakee dekh-rekh kar raha hanoon.tab vah kahane lagi. `` tum mera kitana khayal rakhate ho . maine tumako bahut du:kh diya hai n ´´ `` jo hona hota hai vahi hota . yah sara kisi ke bas men nahin hota. ise apane bhagy ka lekha hi samajh lo.´ use dhandhas li . unase jo bhi sanbhav ho vah vyavastha karane lage kintu ek stree kee jo vyavastha doosari stree karati hai vah hari se kaise ho sakati hai.jaise nisha ko utha kar bithana.usakee kandhi karana.yoorin karavana,shauch karavana,munnnh dhulavana ,kapade badalavana aadi sari dekhabhal hari nahin ho pa rahi thi aur samaj kee koee stree nisha ke pas rahane ko taiyar nahin ho pa rahi thi. pappoo ko kuchh dinon tak padaus kee panditaeen ne sanbhala . hari ne nisha se kaha . `` khandava se tumhare mata-pita ko bula lete hai. kuchh to vyavastha ho jaegi.´´ nisha ne sahamati de di .unhone turant khandava khabar kee . nisha ke pitaji bhopal aaye. nisha kee halat dekhi aur use khandava le jane ke lie taiyar ho gae.daktars ne anumati de di .usi din amritasar-dadar eksaperas se nisha ke pita use khandavale gaye. use khandava chikitsalay men chikitsa ke lie bharati karava diya.hari kuchh din khandava men rahe aur naukari sanbhalane bhopal chale aaya. nisha ka chh:mah tak khandava chikitsalay men chikitsa chalate rahi.use thik hone men poora ek varsh lag gaya. 0 nisha khandava se svasthy hokar bhopal pas laut aaee .relve steshan ke jis makan men hari raha karate the. us makan malik ne unhen achanak makan khali karane ke lie kaha . lekin sanyogavash unhen usi mohalle men ek muslim parivar ke makan men ek bada sa kamara kiraye se mil gaya.is makan men bahar se aana-jana tha.kamare men do daravaje the jisamen se ek daravaza bhitar kee or khulata tha.bhitar kee or ek chhota sa aangan tha jisamen makan malik ke parivar ke log bhi uthate baithate the. makan malik sagar jile ke rahanevale the.sagar jile ke lagabhag sabhi muslimon ka rahan-sahan, bol-chal jyadatar hinduon ke saman hi huaa karati hai. aaj bhi aap sagar ke muslimon ko dekhakar nahin kah sakate ki muslim hai. ve bhi devidevitaon ko manate hai. inake ghar men bhi devi-devataon kee tasviren thi. unake parivar men makan malik ,unakee patni,,ek boodhi mataji aur ek ladka jo lagabhag chaubis-pachchis varsh ka tha, bas itane hi sadasy the. hari ko is bat ka poora bharosa tha ki is parivar men rahakar nisha bahut kuchh achchha sikh jaegi. suman ka ab bhi aana-jana laga raha. naye makan men do daravaze the.ek aage kee aur khulata tha.doosara pichhe ke aangan men khulata tha.pichhe ke aangan men makan malik ke makan ka daravaza bhi khalata tha.parivaron ke sadasyon ke nityakriya aadi ke lie pichhe aangan men hi snanagar aur shauchalay bane hue the. snanagar aur shauchalay ke bich kee divar adhik oo¡chi nahin thi.is aur kisi ne bhi gaur nahin kiya ki snanagar aur shauchalay ke bich kee divar ko pat diya jae.is tarah kee vyavastha par nisha kee nigah chali gaee. makan malik ke parivar men kul char sadasy the.unamen ek sadasy jinakee aayu lagabhag pachchis baras kee hogi. jane kab nisha aur us sadasy ke bich aakarshan badha. hota yah tha ki jab vah sadasy shauch ke lie shauchalay men jaya karata tha usi samay nisha bhi snan ke snanagar men jaya karati thi.lagabhag tis-chalis minat ke bad nisha snanagar se bahar nikalati.thik usi tarah usi samay vah sadasy bhi shauchalay se bahar nikalata. bahut samay tak kisi ne bhi is paristhiti kee or dhyan nahin diya.makan malakin ek subah nisha se boli``bahan ji!tumako nahane men itani der kyon lag jati.kya tum batharoom men soti ho.aavaz bhi nahin aati.kya bat hai. kya badan ko ragad-ragad ke nahati ho.`` nnisha hans ke rah jati.kahati`` didi!sir par pani dalane se nahana nahin hota.snan karana ho to achchhi tarah se karana chahie.sharir par mail nahin hona chahie.tab hi to nahana ,nahana kahalata hai.``

nmakan malakin sun kar chup rah jati.isi tarah ek bar makan malakin ne unake parivar ke usi sadasy se prashn kiya``devar ji!tumako ‘shauch men aadhe ghante se bhi jyada samay lag jata hai. ha¡,main dekh rahi hoo¡ ki jab bhi nisha bhabhi nahane ke lie batharoom men jati hai usi samay tum bhi shauch ke lie jate ho.kya tum donon ne ek hi samay bana rakha hai.`` `` aisi bat nahin bhabhi ji! mujhamen aur unamen kitana antar hai.mujhe kya padi aisi?`` nmakan malakin devar kee bat sunakar rah gaee. do-tin mahine isi tarah vyatit ho gae.us din nisha jyon hi snan ke snanagar men gaee,thik usi samay vah yuvak bhi shauch ke lie shauchalay men gaya. makan malakin vastusthiti par gaur kie hue thi.lagabhag bis minat huaa hoga.donon men se koee bhi bahar nahin nikale.makan malakin ko kuchh aashanka huee.usane chupachap sidhi lagaee .aahista-aahista sidhi chadh gaee.snanagar aur shauchalay men jhankakar dekhati hai. snanagar ka drishy dekhakar pah dang rah gaee.nisha aur unaka devar snanagar men bilkul nagnavastha men ek doosare se aalinganabaddh.rati aur kamadev ka poorn milan ho raha tha.vastr bikhare pade the.nisha ke kesh khoole the.vah aa¡khen moo¡de ratimilan ke aanand men magn thi.makan malakin ke rongate khade ho gae. vah zoron se dahadi`` devar ji !`` anayas hue is tarah ke aakraman se nisha aur vah yuvak bilkul anabhigy the.bhabhi ko snanagar ke oopar se jha¡kate hue dekh nisha ke hosh ud gae.devar ji nat mastak ho gae.bhabhi ji aag baboola ho gaee.angare barasane lage. nisha ko sambodhit karate hue boli`` kutiya ! tujhako mera hi ghar mila tha kya.haramazadi ,chhinal nikal bahar aisi khabar leti hoon ki` bhabhi chikhati rahi.devar ji sharmasar ho snanagar se bahar nikal aae. sidhe apane makan men jakar dubak gae.nisha vastr pahanakar bahar nikali.bhabhi ji ne nisha ke kesh pakade .do-char jhatake die.thappad mari.nisha par thooka.boli`` chhinal nikal ja mere ghar se.aane de tere pati ko .fir dekhati hoo¡.`` nnisha ne bhabhi ji ke charan pakad lie.bahut gidagidaee.aa¡soo bahaye.boli`` abakee bar maf kar do didi . ab fir aisi galati nahin hogi.`` `` main teri chal-dhal dekh rahin hoo¡.bahut dinon se mere devar ke sath gul khila rahi hai.apane aadami ko dhokha de rahi hai chhinal .nikal ja abhi nikal ja is ghar se .makan khali kar de.`` `` bhabhi ji! ab kee bar maf kar do.ham log makan khali karake chale jaenge.maf kar do bhabhi ji.`` nnisha ke aa¡suon ke aage makan malakin bhabhi ji chup ho gaee.vah janati hai nari kee badanami achchhi nahin hoti.vah yah bhi janati hai ki is tarah kee auraten patiyon ko dhokha dekar auron se apana mu¡h kala karati hai.rangaraliya¡ manati hai.samaj ko ganda karati hai. nmakan malakin bhabhi ji ne chuppi le li. nmakan malakin bhabhi ji ne chuppi le lambe samay tak do parivaron ke bich vartalav band raha.hari ko is ghatana kee bhanak bhi ho n paee.hari apane kary men vyast rahe.makan malik aur malakin ,hari ke vyavahar se abhibhoot the.unake charitr ka makan malakin par gahara asar tha. unhen mohalle men bhi pasand kiya jata hai.yah sochakar makan malik aur malakin kuchh nahin kah pae.samay gujarata gaya. ‘ ek din achanak nisha ke pet men dard utha.makan malakin ko bulavaya lekin unhone jyada tavajjon nahin diya.vah janati thi ki mamala kya hai.vah dekhakar samajh gaee thi.bavajood vah chup rahi.nisha ko uiltayon bhi hone lagi. usake pet kee pida shant nahin ho rahi thi. hari ko nisha ka is tarah tadpana dekha nahin gaya. ve bole `` chalo aspatal chalate hai.´´ nisha nahin mani boli, , ``vah khud chali jaegi suman ko lekar . `` dopahar ko nisha aur suman donon bhopal ke mashahoor chikitsak donsahani kee bahan ke pas

gaee. donshreemati sahani ne kuchh davaiyon likhi aur kaha apane pati ko sath le aao . doosare din ve nisha ke sath do shreemati sahani ke pas gaye. donshreemati sahani ke kaha . `` bhaee aapako inaka ebashaZn karavana padega . ´´ ve sunakar dang rah gaya. bole- , `` daktar sahab lekin mera parivar niyojan ka aopareshan ho chuka hai.yah kaise sanbhav hoga ´´ `` fir yah sab kaise nnn´´ shreemati donsahani ne prashn kiya. nisha rone lagi. vah unake sine se lag gaee. bahut roee. `` ab main kya karoon ´´ nisha rote hue boli. `` galati tum karo aur bhugatana mujhako pade .mere pas eborashan ke lie itani rakam nahin hai. main kaho se laoo¡.´´ `` kuchh bhi karo . yadi tum mujhako pyar karate ho tonnnn´´nisha rote hue bolane lagi . hari ne use gale se laga liya. doosare din kahin se roopaye kee vyavastha kee aur donshreemati sahani vdara nisha ka ebarashan karavaya . yah bat makan malikin ko pata lag hi gaee. unhone kaha,``aap yahon se makan khali kar do. hamara bhi parivar hai lekin is tarah se nahin hai. aap ja sakate ho.´´ hari kis tarah apana chehara uthakar bat karen.ve hairan the.unhone kataee nahin socha tha ki nisha ab kee bar itana bada kand kar legi.

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