Childs Stories

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  • Words: 21,216
  • Pages: 58
मान-अपमान बहुपुराने समय की बात है । िकसी

शहर मे हिरहर नाम का एक कृ षण भक रहा करता था । वह

पितििन भोर मे शहर के तालाब के िकनारे िनिमत ि कृ षण िमनिर मे जाकर िीपक लगाया करता था ।

हिरहर बड़ा ही भिकवान ,सतयवािी

तथा िवनम सवभाव का वयिक था । वह िकसी पर कोिित नहीं

होता था बििक कोिित वयिक को भी बड़े पे््रम और उिारता से पेश आता था । हिरहर की उिारता को िे खकर उसके घरवाले उससे नाराज रहने लगे कयोिक वह उिारमना हर िकसी की

सहायता िकया करता था । उसके घरवालो ने उसे बहुत समझाया िकनतु हिरहर ही उिारता कम नहीं हुई। पिरणामसवरप हिरहर के घरवालो ने उसे घर से िनकाल ििया ।

संसार मे भिक भावना का जीवन

कुछ लोगो के िलए शदा का िवषय है तो कुछ के िलए आलोचना

तथा मजाक का हुआ करता है । इितहास बताता है िक शदालओ ु ं के पित लोगो की मनोभावना ठीक नहीं रही है । इसके बावजूि हिरहर लोगो विारा िकये गये उपहास ,

आलोचना और मजाक

पर धयान नहीं िे ता था और न कभी वह बुरा मानता था । कोई

कुछ भी कहे वह उसी तरह अपनी राह पर चलता था जैसे हाथी िकसी की परवाह िकये िबना अपनी राह पर चलता रहता है ।

हिरहर जब भी िमनिर से लौट रहा होता या िकसी रासते से आ जा रहा होता ,मजािकया और बुरी पविृिवाले लोग उसका

उपहास िकया करते । उस पर बफितयां कसते।यहां तक िक कोई

कोई उसे गाली-गलौच कर पतथर-गोबर आिि फेक कर मार ििया करते । बावजूि इसके हिरहर िकसी को िबना कुछ कहे `` हरे कृ षण ,

हरे कृ षण ´´

करते हुए अपनी राह िनकल जाया

करता । जब बड़े लोग इसी तरह की हरकत करते तो उनहे िे ख बचचे हिरहर के पीछे पड़ जाते । उसे िचड़ाते आ्ौर उस पर

पतथर फेकने लगते । बचचो को बड़ा मज़ा आता था और लोग इस मज़ाक का आननि उठाया करते ।

सीमा से अििक ितरसकार होने पर

भी हिरहर तिलीनता से ``हरे कृ षण , हरे कृ षण ´´ करते हुए ऐसे चलने लगता जैसे कुछ हुआ ही न हो ।

शहर मे एक

कृ षण भक कपड़ा वयापारी शीिर की िक ु ान चौक पर हुआ करती

थी । वे पितििन हिरहर पर होनेवाले इस मज़ाक और उपहास को चुपचाप िे ख िलया करते । वे समझ नहीं पा रह थे िक हिरहर

इतना अपमान होते हुए भी सहते चले जा रहे थे । शीिर , हिरहर की सहनशीलता की चरमसीमा तक पहुं्ंचकर भी हिरहर को

समझ नहीं पा रहे थे । एक ििन शीिर िक ु ान के बाहर चौक पर

खड़े रहे तािक जब भी हिरहर इस रासते से गुजरे और कोई उनका अपमान करे तो अपमान करनेवालो को रोक सके । िरू से

हिरहर को आता िे ख मनचले लोग और बचचे शोर मचाने लगे। हिरहर `` हरे कृ षण , हरे कृ षण ´´ करते हुए जब करीब आये तो मनचले युवको और बचचो ने हिरहर को अपमािनत करना शुर कर ििया । शीघर से िे खा नहीं गया और उनहोने उन मनचले

युवको और बचचो को डांटा । शीिर ने हिरहर को पणाम िकया । हिरहर ,शीिर के पास आकर खड़े हो गए । शीिर अब भी

मनचले युवको और बचचो को डांट रहे थे । मनचले युवक और

बचचे शानत हो गये । युवको और बचचो के जाने के बाि शीिर ने हिरहर से पूछा।

`` महाराज ! आप इन लोगो को कुछ

कहते कयो नहीं । वे बराबर आपको अपमािनत और लििजत िकये जा रहे है िफर भी आप इतने शानत और चुपचाप है ।``

`` मझ ु े एक बड़ा सा कपड़ा िीिजए ्ं ´´ शीिर ने अपनी िक ु ान से हिरहर को कपड़े का एक बड़ा टु कड़ा

ििया । हरहर ने उस कपड़़््े के िो टु कड़े िकये । शीिर बोले । `` महाराज !आपने यह कया िकया ! ´´ `` अब तुम यह िोनो टु कड़े मेरे िोनो

कांिो पर एक -एक कर के डाल िो ।´

`` लेिकन महाराज .......´´ ``

मेरे लौटने की पतीका करना ।

इसका आपको समिुचत जवाब िमल जाएगा ।´´

शीिर ने कपड़े के िो टु कड़े िकये और हिरहर के िोनो कांिो ्ंपर एक-एक टु कड़ा रख ििया । हिरहर पुन: `` हरे कृ षण, हरे कृ षण ´´

करते हुए अपनी राहचल ििये । हिरहर की चचाि िजतनी

मनचलो मे थी उतनी ही सिजनो मे भी थी । वे शीिर की िक ु ान से शीकृ षण िमनिर तक चलते गए और शीकृ षण िमनिर मे पूजा कर उसी रासते से लौट चले । जब केई शदापूवक ि उनका

अिभवािन करता , तो वे कांिे पर रखे कपड़े मे गांठ बांि िलया करते । इसी तरह जब कोई उनका उपहास या मजाक करता तो वे िस ू रे कांिे पर रखे कपड़े मे गांठ बांि िलया करते । शीिर की

िक ु ान तक लौटते-लौटते िोनो कांिो के कपड़े मे ढे र सारी गठाने बंि चुकी ्ं।हिरहर को आते िे ख शीिर ने उनकी अगुवानी की ।

हिरहर ने अपने कांिे पर रखे कपड़े के गंठान बंिे टु कड़े शीिर के हाथो मे िे ते हुए कहा ।

`` इन िोनो टु कड़ो को अलग -अलग

तोलो ।´´

शीिर ने िोनो टु कडो को अलग-अलग तोला । हिरहर ने शीिर से पूछा। ``

कया िोनो कपड़ो और उनकी

गठानो के वजन मे कोई फकि है कया!´´ ``

महाराज !

िोनो का वज़न एक

समान है । ´´शीिर बोला ।

`` शायि अब तुमको तुमहारे पश का

उिर िमल गया होगा ।´´हिरहर बोले । ``

मै समझा नहीं महाराज !

हम

िनबल ि बुिदयो को ये सब समझ मे नहीं आता ।´´ शीिर ने कहा ``

हे शीिर !

जीवन मे सतय मागि

चलने पर मान और अपमान िोनो बराबर िमलता ही है । इनका

अनुभव तो होता है । पतयक भी िे खने मे आता है िकनतु वासतव मे मान और अपमान का अिसततव ही नहीं होता । यिि इस

सतय को समझ िलया जाय तो मन पर इन चीजो का कोई पभाव नहीं पड़ता ।इसिलय मान और अपमान को समान समझने पर

कोई कष भी नहीं होता।मन सवयं ही आननि मे मगन रहता है । 00 मान अपमान

बहुत पुराने समय की बात है एिकसी शहर मे हिरहर नाम का

एक कृ ष‍ण भक‍त रहा करता था । वह पितििन भोर मे शहर के

तालाब के िकनारे िनिमत ि कृ ष‍ण मिनिर मे जाकर िीपक जलाया करता था ।

हिरहर बडा ही भकएसत‍यिनष‍ठ तथा िवनम स‍वभाव का

व‍यिक था । वह िकसी पर कोिित नहीं होता था बििक कोिित

व‍यिक से भी बडे पेम और उिारता से पेश आता था । हिरहर की उिारता को िे खकर उनके पिरजन उससे नाराज रहने लगे

क‍योिक वह उिारमना हर िकसी की सहायता िकया करता था । उसके पिरजनो ने उसे बहुत समझाया िकन‍तु हिरहर की उिारता कम नहीं हुई । पिरणामस‍वरप हिरहर के पिरजनो ने उसे घर से िनकाल ििया । संसार मे भिक भावना कुछ लोगो के िलए शदा का िवषय है तो कुछ के िलए आलोचना तथा मजाक का हुआ करता है । इितहास बताता है िक शदालओ ु ं के पित लोगो की

मानिसकता ठीक नहीं रही है । इसके बावजूि लोगो व‍िारा िकए गए उपहासएआलोचना और मजाक पर हिरहर ध‍यान नहीं िे ता

था और न कभी वह बुरा मानता था । कोई कुछ भी कहे वह उसी तरह अपनी राह पर चलता था जैसे हाथी िकसी की परवाह िकए िबना अपनी राह पर चलता रहता है । हिरहर जब भी मिनिर से लौट रहा होता या िकसी रास‍ते से आ जा रहा होताएमजािकया

और बुरे संस‍कार वाले लोग उसका उपहास िकया करते । यहॉं तक क‍ि् कोई उसे गाली िे कर कर पत‍थर गोबर आिि फेक कर

मार ििया करते । बावजूि इसके हिरहर िकसी को िबना कुछ कहे शहरे कृ ष‍णए हरे कृ ष‍ण श ् करते हुए हुए अपनी राह िनकल जाया करता । जब बडे लोग इसी तरह की हरकत करते तो उन‍हे िे ख

बच‍चे हिरहर के पीछे पडते । उस पर पत‍थर फेकने लगते । बच‍चो को बडा मजा आता था और लोग इस मजाक का आनन‍ि उठाया करते । सीमा से अििक ितरस‍कार होने पर भी हिरहर एकागता

से हरे कृ ष‍ण करते हुए ऐसे चलने लगता जैसे कुछ हुआ ही न हो । शहर मे एक कृ ष‍ण भक‍त वस‍त व‍यापारी शीिर की िक ु ान चौक

पर हुआ करती थी । वे पितििन हिरहर पर होनेवाले इस मजाक और उपहास को चुपचाप िे ख िलया करते थे । वे समझ नहीं पा

रहे थे िक हिरहर इतना अपमान होने पर भी सहते चले जा रहे थे । शीिरएहिरहर की सहनशीलता की हि तक पहुँचकर भी

हिरहर को समझ नहीं पा रहे थे । एक ििन शीिर िक ु ान के बाहर चौक पर खड़े रहे तािक जब भी हिरहर इस रास‍ते से गुजरे और

कोई उनका अपमान करे तो अपमान करनेवालो को रोक सके । िरू से हिरहर को आता िे ख मनचले लोग लोग और बच‍चे शोर बचाने लगे । हिरहर हरे कृ ष‍ण करते हुए जब करीब आये तो

मनचले युवको और बच‍चो ने हिरहर को अपमािनत करना शुर कर ििया । शीिर से िे खा नहीं गया और उन‍होने उन मनचले

युवको और बच‍चो को डांटा । शीिर ने हिरहर को पणाम िकया । हिरहर एशीिर के पास आकर खड़े हो गए । शीिर अब भी

मनचले युवको और बच‍चो को डांट रहे थे । मनचले युवक और बच‍चे शान‍त हो गए । युवको और बच‍चो के जाने के बाि शीिर ने हिरहर से पूछा –

‘शमहाराजएआप इन लोगो को कुछ कहते क‍यो नहीं ।ये बराबर आपको अपमािनत और लििजत िकए जा रहे है िफर भी आप इतने शान‍त और चुपचाप है ।‘श ्

‘शमझ ु े एक वस‍त िीिजए ।‘श ्

शीिर ने अपनी िक ु ान से वस‍त का एक बड़ा टु कड़ा ििया । हिरहर ने उस वस‍त के िो भाग िकए । शीिर बोले. एआपने यह क‍या िकया ।‘श ्

‘शअ ् ब तुम यह िोनो टु कड़े मेरे

कांिो पर एक एक करके डाल िो ।‘श ् यययययययययययशश ्

‘शमहाराज

‘श ् लेिकन महाराज

‘श ् मेरे लौटने की पतीका करना ।

इसका आपको समिुचत जवाब िमलेगा ।‘श ्

शीिर ने लोगो मे

थी उतनी ही सि‍जनो मे भी थी । वे शीिर की िक ु ान से शीकृ ष‍ण मिनिर तक चलते गए और उसी रास‍ते से लौट चले । जब कोई

शदा पूवक ि उनका अिभवािन करता तो वे कांिे पर रखे वस‍त मे गांठ बांि ििया करते । इसी तरह जब कोई उनका अपमान या

उपहास करता तो वे िस ू रे कांिे पर रखे वस‍त मे गांठ बांि ििया

करते । शीिर की िक ु ान तक लौटते लौटते िोनो कांिो पर वस‍त

मे ढे र सारी गठांने बंि चुकी थी । हिरहर को आता िे ख शीिर ने उनकी अगुवानी की । हिरहर ने अपने कांिे पर रखे वस‍त की गठाने बंिे टु कड़े शीिर के हाथो मे िे ते हुए कहा .

‘श ् इन िोनो टु कड़ो को अलग अलग तोलो ।‘श ् शीिर ने

िोनो टु कड़ो को अलग अलग तोला । हिरहर ने शीिर ने पूछा .

‘श ् क‍या िोनो वस‍तो और उनकी गठानो मे कोई फकि पडा ।‘श ् ‘श ् महाराज एिोनो का वजन एक समान है ।‘श ्

‘श ् शायि

अब तुमको तुम‍हारे पश‍न का उत‍तर िमल गया होगा ।‘श ्

‘श ्

मै समझा नहीं महाराज एहम िनबल ि बुिदयो को ये सब समझ मे नहीं आता ।‘श ्

‘श ् हे शीिर ए जीवन मे सत‍य मागि पर मान

और सम‍मान िोनो बराबर िमलता ही है । इनका अनुभव तो

होता है िकन‍तु वास‍तव मे मान और सम ्‍मान का कोई अिसतत‍व ही नहीं होता । यिि इस सत‍य को समझ िलया जाय तो

मन

पर इन चीजो का कोई पभाव नहीं पडता । इसिलए मान और अपमान को समान समझने पर कोई कष‍ट भी नहीं होता । मन स‍वयं ही आनन‍ि मे मगन रहता है । eku&vieku cgqiqjkus le; dh ckr gSA fdlh 'kgj esa gfjgj uke dk ,d d`".k HkDr jgk djrk Fkk A og izfrfnu Hkksj esa 'kgj ds rkykc ds fdukjs fufeZr d`".k efUnj esa tkdj nhid yxk;k djrk Fkk A gfjgj cM+k gh HkfDroku ]lR;oknh rFkk fouez LoHkko dk O;fDr Fkk A og fdlh ij dzksf/kr ugha gksrk Fkk cfYd dzksf/kr O;fDr dks Hkh cM+s isze vkSj mnkjrk ls is'k vkrk Fkk A gfjgj dh mnkjrk dks ns[kdj mlds ?kjokys mlls ukjkt jgus yxs D;ksafd og mnkjeuk gj fdlh dh lgk;rk fd;k djrk Fkk A mlds ?kjokyksa us mls cgqr le>k;k fdUrq gfjgj gh mnkjrk de ugha gqbZA ifj.kkeLo:i gfjgj ds ?kjokyksa us mls ? kj ls fudky fn;k A lalkj esa HkfDr Hkkouk dk thou dqN yksxksa ds fy, J)k dk fo"k; gS rks dqN ds fy, vkykspuk rFkk etkd dk gqvk djrk gSA bfrgkl crkrk gS fd J)kyqvksa ds izfr yksxksa dh euksHkkouk Bhd ugha jgh gS A blds ckotwn gfjgj yksxksa Onkjk fd;s x;s migkl ] vkykspuk vkSj etkd ij /;ku ugha nsrk Fkk vkSj u dHkh og cqjk ekurk Fkk A dksbZ dqN Hkh dgs og mlh rjg viuh jkg ij pyrk Fkk tSls gkFkh fdlh dh ijokg fd;s fcuk viuh jkg ij pyrk jgrk gSA gfjgj tc Hkh efUnj ls ykSV jgk gksrk ;k fdlh jkLrs ls vk tk jgk gksrk ]etkfd;k vkSj cqjh izo`fRrokys yksx mldk migkl fd;k djrs A ml ij cQfr;ka dlrsA;gka rd fd dksbZ dksbZ mls xkyh&xykSp dj iRFkj&xkscj vkfn Qsad dj ekj fn;k djrs A ckotwn blds gfjgj fdlh dks fcuk dqN dgs ^^ gjs d`".k ] gjs d`".k ** djrs gq, viuh jkg fudy tk;k djrk A tc cM+s yksx blh rjg dh gjdr djrs rks mUgsa ns[k cPps gfjgj ds ihNs iM+ tkrs A mls fpM+krs vkkSj ml ij iRFkj Qsadus yxrs A cPpksa dks cM+k et+k vkrk Fkk vkSj yksx bl et+kd dk vkuUn mBk;k djrs A lhek ls vf/kd frjLdkj gksus ij Hkh gfjgj rYyhurk ls ^^gjs d`".k ] gjs d`".k ** djrs gq, ,sls pyus yxrk tSls dqN gqvk gh u gks A 'kgj esa ,d d`".k HkDr diM+k O;kikjh Jh/kj dh nqdku pkSd ij gqvk djrh Fkh A os izfrfnu gfjgj ij gksusokys bl et+kd vkSj migkl dks pqipki ns[k fy;k djrs A os le> ugha ik jg Fks fd gfjgj bruk vieku gksrs gq, Hkh lgrs pys tk jgs Fks A Jh/kj ] gfjgj dh lgu'khyrk dh pjelhek

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बहुत पुराने समय की बात है ,िकसी शहर मे हिरहर नाम का एक कृ ष ्‍ण भक् ‍त रहा करता था ।

वह पितििन भोर मे शहर के तालाब के िकनारे िनिमत ि कृ ष ्‍ण मिनिर मे जाकर िीपक जलाया करता था ।

हिरहर बडा ही भक,सत ्‍यिनष ्‍ठ तथा िवनम स ‍व ् भाव का व ्‍यिक था । वह िकसी पर कोिित

नहीं होता था बििक कोिित व ्‍यिक से भी बडे पेम और उिारता से पेश आता था । हिरहर की

उिारता को िे खकर उनके पिरजन उससे नाराज रहने लगे क् ‍योिक वह उिारमना हर िकसी की

सहायता िकया करता था । उसके पिरजनो ने उसे बहुत समझाया िकन ‍त ् ु हिरहर की उिारता कम नहीं हुई । पिरणामस ्‍वरप हिरहर के पिरजनो ने उसे घर से िनकाल ििया । संसार मे भिक

भावना कुछ लोगो के िलए शदा का िवषय है तो कुछ के िलए आलोचना तथा मजाक का हुआ करता है । इितहास बताता है िक शदालुओं के पित लोगो की मानिसकता ठीक नहीं रही है ।

इसके बावजूि लोगो व ्‍िारा िकए गए उपहास,आलोचना और मजाक पर हिरहर ि ‍य ् ान नहीं िे ता था और न कभी वह बुरा मानता था । कोई कुछ भी कहे वह उसी तरह अपनी राह पर चलता था

जैसे हाथी िकसी की परवाह िकए िबना अपनी राह पर चलता रहता है । हिरहर जब भी मिनिर से लौट रहा होता या िकसी रास ्‍ते से आ जा रहा होता,मजािकया और बुरे संस ्‍कार वाले लोग उसका उपहास िकया करते । यहॉं तक क‍ि् कोई उसे गाली िे कर कर पत ्‍थर गोबर आिि फेक कर मार

ििया करते । बावजूि इसके हिरहर िकसी को िबना कुछ कहे 'हरे कृ ष ‍ण ् , हरे कृ ष ्‍ण ' करते हुए हुए अपनी राह िनकल जाया करता । जब बडे लोग इसी तरह की हरकत करते तो उन ्‍हे िे ख बच ्‍चे हिरहर के पीछे पडते । उस पर पत ्‍थर फेकने लगते । बच ्‍चो को बडा मजा आता था और लोग

इस मजाक का आनन ्‍ि उठाया करते । सीमा से अििक ितरस ्‍कार होने पर भी हिरहर एकागता से हरे कृ ष ्‍ण करते हुए ऐसे चलने लगता जैसे कुछ हुआ ही न हो । शहर मे एक कृ ष ‍ण ् भक् ‍त

वस ्‍त व ्‍यापारी शीिर की िक ु ान चौक पर हुआ करती थी । वे पितििन हिरहर पर होनेवाले इस मजाक और उपहास को चुपचाप िे ख िलया करते थे । वे समझ नहीं पा रहे थे िक हिरहर इतना

अपमान होने पर भी सहते चले जा रहे थे । शीिर,हिरहर की सहनशीलता की हि तक पहुँचकर

भी हिरहर को समझ नहीं पा रहे थे । एक ििन शीिर िक ु ान के बाहर चौक पर खड़े रहे तािक जब

भी हिरहर इस रास ‍त ् े से गुजरे और कोई उनका अपमान करे तो अपमान करनेवालो को रोक सके । िरू से हिरहर को आता िे ख मनचले लोग लोग और बच ्‍चे शोर बचाने लगे । हिरहर हरे कृ ष ्‍ण

करते हुए जब करीब आये तो मनचले युवको और बच ्‍चो ने हिरहर को अपमािनत करना शुर कर ििया । शीिर से िे खा नहीं गया और उन ्‍होने उन मनचले युवको और बच ्‍चो को डांटा । शीिर ने हिरहर को पणाम िकया । हिरहर ,शीिर के पास आकर खड़े हो गए । शीिर अब भी मनचले

युवको और बच ्‍चो को डांट रहे थे । मनचले युवक और बच ्‍चे शान ्‍त हो गए । युवको और बच ्‍चो के जाने के बाि शीिर ने हिरहर से पूछा –

‘’महाराज,आप इन लोगो को कुछ कहते क् ‍यो नहीं ।ये बराबर आपको अपमािनत और लििजत िकए जा रहे है िफर भी आप इतने शान ‍त ् और चुपचाप है ।‘’ ‘’मुझे एक वस ्‍त िीिजए ।‘’

शीिर ने अपनी िक ् का एक बड़ा टु कड़ा ििया । हिरहर ने उस वस ्‍त के िो भाग िकए । ु ान से वस ‍त शीिर बोले-

‘’महाराज ,आपने यह क् ‍या िकया ।‘’

‘’अब तुम यह िोनो टु कड़े मेरे कांिो पर एक एक करके डाल िो ।‘’ ‘’ लेिकन महाराज ;;;;;;;;;;;’’

‘’ मेरे लौटने की पतीका करना । इसका आपको समुिचत जवाब िमलेगा ।‘’ शीिर ने लोगो मे थी उतनी ही सज ्‍जनो मे भी थी । वे शीिर की िक ु ान से शीकृ ष ्‍ण मिनिर

तक चलते गए और उसी रास ्‍ते से लौट चले । जब कोई शदा पूवक ि उनका अिभवािन करता तो वे कांिे पर रखे वस ‍त ् मे गांठ बांि ििया करते । इसी तरह जब कोई उनका अपमान या उपहास करता तो वे िस ू रे कांिे पर रखे वस ्‍त मे गांठ बांि ििया करते । शीिर की िक ु ान तक लौटते

लौटते िोनो कांिो पर वस ‍त ् मे ढे र सारी गठांने बंि चुकी थी । हिरहर को आता िे ख शीिर ने

उनकी अगुवानी की । हिरहर ने अपने कांिे पर रखे वस ‍त ् की गठाने बंिे टु कड़े शीिर के हाथो मे िे ते हुए कहा -

‘’ इन िोनो टु कड़ो को अलग अलग तोलो ।‘’

शीिर ने िोनो टु कड़ो को अलग अलग तोला । हिरहर ने शीिर ने पूछा ‘’ क् ‍या िोनो वस ‍त ् ो और उनकी गठानो मे कोई फकि पडा ।‘’ ‘’ महाराज ,िोनो का वजन एक समान है ।‘’

‘’ शायि अब तुमको तुम ्‍हारे पश ्‍न का उत ्‍तर िमल गया होगा ।‘’

‘’ मै समझा नहीं महाराज ,हम िनबल ि बुिदयो को ये सब समझ मे नहीं आता ।‘’

‘’ हे शीिर , जीवन मे सत ्‍य मागि पर मान और सम ्‍मान िोनो बराबर िमलता ही है । इनका

अनुभव तो होता है िकन ‍त ् ु वास ्‍तव मे मान और सम ्‍मान का कोई अिसतत ्‍व ही नहीं होता । यिि इस सत ्‍य को समझ िलया जाय तो

मन पर इन चीजो का कोई पभाव नहीं पडता ।

इसिलए मान और अपमान को समान समझने पर कोई कष ्‍ट भी नहीं होता । मन स ्‍वयं ही आनन ्‍ि मे मगन रहता है ।

इस कहानी का अंगेजी अनुवाि --

Value insult Time is very old, a city of Harihar is the name of a Krishna devotee. Every morning in the city's Krishna temple built by the side of the pond went into a lamp burned it. Harihar the major devout, humble and solemn nature of man. It was not an angry man angry but also presents big love and generosity comes from. Harihar generosity to see their families lived angered him because he has the support of everyone, liberal. His family has explained it very Harihar but not the generosity. Consequently, family members Harihar him out of the house. Some people in the world, devotional spirit of reverence for the subject, for some of the criticism and used to joke. History suggests that the devotees of the people's mentality is not right. Yet people were by ridicule, mockery and criticism does not focus on Harihar and was not ever think it was bad. A few also made their way to say it was like the elephant walks without a care what goes on their way day. Harihar when returning from the temple also been a way of coming or going, humorous and bad impression to the people who ridicule him. Insomuch any abuse by giving him a stone to throw away the dung, etc. killed. Yet some say without any Harihar 'Hare Krishna, Hare Krishna', to go out of their way. When the big people similar to the Harkat, he would see the child behind have Harihar. He sounded on the stone throwing. Children, and people had come to the major fun fun fun of raising them. Over the border on contempt of Harihar concentration of Hare Krishna, it seems like such a run was not certain. The city has a textile merchant Sridhar Krishna devotee shop on the square. Harihar on this day, he jokes and ridicule of being quietly watching. They can not understand such a humiliation to Harihar were also tired of being moved. Sridhar, Harihar tolerance to the extent of the arrival of Harihar not understand. Sridhar outside the shop one day stand on the square so that when Harihar also passed this way and if any insult to insult her to stop them. Harihar away from people to people coming to see stray noise and protect children. Harihar Hare Krishna, while nearly come to stray youths and children abused Harihar begun. Sridhar was not seen from them and they stray youths and children rebuked. Sridhar Harihar has to bow. Harihar, Sridhar came to stand out. Sridhar children and young people still stray reproof. Vagabond children and youth have been quiet. Youth and children after the Harihar Sridhar asked -Maharaj'', you say, why not some of these people. These are equal, you are being abused and humiliated you so quiet and still quietly .'''' Give me a textile.'' Sridhar in his shop from a large piece of textile. Harihar said the two textiles. Sridhar said -''Maharaj, it is what you've done.'' ''Now you both pieces one by one put on my shoulders two.'' ''But Maharaj ;;;;;;;;;;;'' '' Waiting for my return. You will find it appropriate response '' Sridhar was in the people in the same gentlemen. Sridhar they shop at Srikrishna temple and walk up the same way back from them. When a salute to his faith, he was successfully placed on the shoulders of the textile lump the dam. Similarly, when someone insults or ridicule to his shoulders, he placed second in the textile lump the dam. Sridhar's return to the shop until both return on the shoulders of a lot of textile bundle bond had been. Harihar his welcome to come see Sridhar. Harihar has placed on their shoulders textile pieces of the bundle tied up in the hands of Sridhar said -The two piece ''with different weight. ' Sridhar, both with different piece of Tola. Harihar Sridhar has asked - both textiles and''What a difference in their lumps.''

''Maharaj, both of a similar weight. ''Thee''may now find an answer to your question.'' '' I do not understand Maharaj, we do not understand all these wise to come.'' ''O Sridhar, life on the road of truth in both value and equal respect is there. Their experience, but it is really value and respect of a non-existent does not. If understood the truth of these things in mind, having not voices. So insult to the same value and also does not understand any trouble. Anand himself in the heart is always happy.''

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The nature of justice A matter of time. Kalia, a village in Uttar Pradesh name of an angry man by nature is it. He also talked about any of it was anger. Without any further behind than it was a drunkard. The rural village of Kalia was very upset. Not only that the rural village of Kalia very scared. That which is also unfair, he made it. His value to everything the

villagers had to take. He angered when the fight comes down to. Kalia of the nature of angry discussion was spread far away. Kalia also fears the village sarpanch account. Several measures for the villagers but no change in the nature of the Kalia is able to be. Someone has said, he explained in love with it. Having talked to love him. He says there was an evil spirit on the saya had happened. But taking care of all the villagers failed. At the intersection of the village asked for begging was a beggar. Kalia on the day of the beggar asked for money. Kalia with money from the beggar to deny it. Kalia came to a great anger. Down to the beggar, he struck down so that the life out of the beggar. Kalia, the beggar to take all the money. Beggar's body to kick Mari and fled laughing. Beggar found out that the family has its Kalia killed. Kalia looking for the families to come out. Kalia learnt that the beggar families are looking for her. Fear of death, he fled from the village. Kalia a killer pee pee be reached by the side of the pond. He thought the tree by having a little rest. Then it appeared Sher. Kalia to avoid killer lion of the banyan tree at the edge of the pond went up. He appeared on the big tree bears heavy. गुराराया The bear hooted to see it. And the killer was afraid to save their lives, had to jump in the pond. In a heavy large crocodile swimming pool. Kalia of the killer crocodile attacked him killed. Ultimately, the nature of the beggar's murder to justice the killers convicted. 00

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कहानी –ज् ‍यािा चतुराई June 17, 2008 िवन‍ध‍याचल पवत ि की पहािड़यो मे एक सुन‍िर िहरण रहा करता था । उसका शरीर स‍वण ि के समान चमकता रहता था ।

उसकी बड़ी बड़ी

आंखो मे काजल लगे रहने का आभास होता था

। उसका मुख आकषण ि ििखाई िे ता था । उसकी गिि न पर बहुत सुन‍िर िनशान बना हुआ था । िजस पर िहरण को बहुत गवि होता था । वह अपनी सुन‍िर गिि न और आकषक ि शरीर के

कारण जंगल मे इतराता हुआ िवचरण करता था और जंगल के सारे िहरण-िहरिणयो पर रौब

जमाता था । सारे जंगल मे उस सुन‍िर िहरण की बहुत चचाि हुआ करती थी । िवन‍ध‍याचल पवत ि का वह केत एक राि‍य के अन‍तगत ि आता था ।

एक ििन उस राि‍य का राजकुमार िवन‍ध‍याचल पवत ि की पहािड़यो मे अपने सैिनको के साथ िशकार के िलए गया । पहाड़ी की तलहटी मे राजकुमार ने उस सुन‍िर िहरण को चरते हुए िे खा और वह बहुत चिकत हो गए ,वह बोला—

‘’ सेनापित ,िे खो , वह िहरण िकतना सुन‍िर ििखाई िे रहा है ।‘’ ‘’ हॉ ं ,राजकुमार । कहो तो अभी उसका िशकार कर के लाया जाय ।‘’ ‘’ नहीं सेनापित ,हमे वह िहरण िजन‍िा चािहए । हम उसे अपने राजभवन के िचिड़या

-घर मे रखेगे ।‘’ ‘’लेिकन राजकुमार ,उसे िजन‍िा पकड़ना

आसान नहीं है । शायि यह वही िहरण होगा

िजसकी चचाि सारे राि‍य मे उसकी सुन‍िरता के िलए की जाती है ।‘’ ‘’िफर तो यह हमारे िलए गौरव की बात होगी । कहीं ऐसा न हो िक िकसी अन‍य राि‍य के राि‍यकिमय ि ो की िनगाह उस पर जाए और उसे

पकड़कर;;;;;;;;;’’

‘’ नहीं राजकुमार ,हम इस सुन‍िर िहरण को िजन‍िा ही पकड़ने की कोिशश करते है ।‘’ ‘’यिि ऐसा हो सकता है तो अित उत‍तम होगा ।‘’ ‘’ जी राजकुमार ।‘’ राजकुमार का आिे श पाते ही सेनापित अपने सैिनको के साथ उस सुन‍िर िहरण को िजन‍िा पकड़ने के िलए उसकी पीछा करना शुर कर ििया । वह सुन‍िर अपनी जान बचाकर लम‍बी लम‍बी छलांग लगाकर तेजी से िौड़ने लगा । वह बहुत चतुर ििखाई िे रहा था । वह

अचानक कहीं छुप जाता और िफर अचानक पगट हो जाता । बहुत िे र तक वह लुका-िछपी का खेल चलता रहा । िहरण का पीछा करते करते िोपहर हो गई । सेनापित और उसके सैिनक थक गए । िहरण ने सोचा, चलो अच‍छा है मेरी चतुराई के आगे सैिनक शायि हार गए। िहरण िौड़ते िौड़ते एक हरे -भरे बगीचे के पास पहुँचा । वह अंगरु का बगीचा था । उसे

िे ख िहरण का मन ललचाया । िहरण अंगुर के बगीचे मे गया । अंगरू की बेले बहुत घनी

थी

। िहरण ने सोचा, यहॉ ं छुपना आसान है । इन घनी बेलो मे वह ििखाई भी नहीं िे गा । िहरण बहुत चतुराई से अंगूर के बगीचे मे पवेश कर गया । अब तक िहरण बहुत थक गया था ।

उसने सोचा,यहीं आराम कर लेना चािहए । इससे अच‍छी जगह कहीं नहीं िमल सकती । िहरण ने बगीचे मे शीतल जल पीया और अंगूर की घनी

झािड़यो मे जाकर िछप गया ।

राजकुमार, सेनापित और सैिनक िवशाम के बाि िहरण को खोजने के िलए चल पड़े । सारा जंगल खोज िलया लेिकन िहरण का कहीं पता नहीं चला क‍योिक िहरण जंगल के बजाय अंगरू के बगीचे मे िछपा हुआ था। इसिलए िकसी ने भी बगीचे की ओर ध‍यान नहीं ििया ।

शाम हो गई । िीरे िीरे अंिेरा छाने लगा । राजकुमार के आिे श पर सेनापित और सैिनको ने जंगल मे ही पड़ाव

डाला और रात मे डे रे मे ही रहे ।

सुबह-सबेरे राजकुमार, सेनापित के साथ जि‍िी ही नींि से जाग गये । अभी सूरज की पथम िकरणे िरती पर फैल रही थी । पड़ाव

के पास ही अंगूर का बगीचा िे ख सेनापित ने

कहा – ‘’ राजकुमार , लगता है यह अंगूर का बगीचा है । चलो,बगीचे मे ही सुबर की सैर का आनन‍ि उठाया जाय । मौसम भी बहुत सुहाना लग रहा है ।यिि आपको कोई आपिि न हो तो बगीचे मे सैर करने चले ।‘’

‘’ अवश‍य , यह तो हमारा सौभाग‍य ही है िक जंगल मे भी इतना

मंगल मनाया जा रहा है ।‘’ राजकुमार अपने सेनापित के साथ अंगरू के बगीचे मे सुबह की सैर के िलए चल पड़े ।

सारा ििन और सारी राज िहरण उस घनी अंगूर की बेल मे ही िछपा रहा । उसे बहुत

भूख लग रही थी । उसने सोचा,क‍यो न हरी बेल खाना शुर कर ििया । बड़ी ली । िहरण तो अंगरू की

अंगरू की घनी बेल खाई जाय । िहरण ने अंगूर की

तेज भूख के कारण िहरण ने सारी अंगूर की घनी बेल खा झाड़ी चरने मे व‍यस‍त था । इतने मे राजकुमार और

सेनापित की िनगाह अंगूर की ‘’ राजकुमार , वह रहा िहरण ।‘’

झाड़ी चरते हुए िहरण पर गई । सेनापित िचि‍लाया –

सेनापित ने सैिनको को बुलवा िलया और अंगूर चरती हुई िहरण को जाल डालकर पकड़ िलया । सेनापित हं सते हुए बोला–

‘’ यिि िहरण ने अंगूर की झाड़ी न चरी होती तो वह हमे ििखाई भी नहीं िे ता ।‘’ िहरण अपनी चतुराई और मुखत ि ा पर पछताने लगी । अनेको बार व‍यिक अपनी

मूखत ि ापूणि चतुराई मे मात खा जाता है । वह िजसके आशय मे रहता है उसकी ही जड़े काटना शुर करता है । जब आशिाता ही नहीं रहे गा तो व‍यिक अपने-आपको बचायेगा कैसे । िहरण ने जान बचाने के िलए अंगूर की झाड़ी का आशय िलया और िफर उसे ही खा गया । यिि वह अंगरू

की झाड़ी को चट नहीं कर जाता तो वह पकड़ा

ही नहीं जाता । जो लोग इस पकार

चतुराई लेकर चलते है वे जीवन मे बहुत ही बड़ा िोखा खाते है ।

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कहानी –सज ् ‍जनो का आभू षण June 17, 2008 बहुत पुराने समय की बात है । िकसी राि‍य मे हिरहर शास‍ती नाम के एक न‍यायािीश

हुआ करते थे । वे उस राि‍य के राजगुर के पि पर भी आसीन थे । उनके न‍याय और

न‍यायिपयता की चचाि िरू िरू के राि‍यो तक हुआ करती थी । शास‍ती जी अत‍यन‍त सरल स‍वभाव के थे । उनका िसदान‍त सािा जीवन उच‍च िवचार हुआ करता था । उनमे आडम‍बर कतई नहीं था ।

उस राि‍य मे िीपावली का पवि पितवषि बडे उि‍लास से मनाया जाता था । एक ििन उस राि‍य की रानी ने राजगुर हिरहर शास‍ती की पत‍नी को अपने राजमहल मे आमंितत िकया । शास‍ती की पत‍नी गुरमाता रक‍मणी को सािे पिरिान मे िे ख रिनवास की मिहलाओं को बडा आश‍चयि हुआ । गुरमाता रक‍मणी के शरीर पर सािारण सूती की साडी के अलावा कोई आभूषण नहीं थे । गुरमाता रक‍मणी भी राजगुर हिरहर शास‍ती की तरह सरल स‍वभाव और मि ृ भ ु ाषी थी । रिनवास मे गुरमाता रक‍मणी की बहुत आवभगत हुई ।

राजरानी ने गुरमाता की िबिाई के समय सोचा िक यिि गुरमाता को इसी तरह खाली हाथ

िबिा िकया तो हो सकता है िक राजगुर शास‍ती जी राजा पर कोई िोष लगाएंगे । हिरहर शास‍ती वैसे ही राजघराने के गुरओं मे विरष‍ठ माने जाते थे । राजगुर की पत‍नी गुरमाता होती है इसिलए गुरमाता होने के नाते रक‍मणी की िबिाई मे कोई

कमी न रने पाये । यह सोचकर

राजरानी ने गुरमाता रक‍मणी को बहुमूि‍य आभूषणो से सजाया और हाथी की पालकी मे िबठाकर िबिा िकया ।

पालकी के आगे पीछे हिथयार सिहत सैिनक चल रहे थे । शहर के रास‍ते चौराहो से पालकी आते ही नागिरक रास‍ता िे कर हट जाया करते थे । राज वैभव को िे खकर नागिरक नतमस‍तक हो जाते थे ।

गुरमाता रक‍मणी की पालकी हिरहर शास‍ती के मकान के सामने आकर रक गई । व‍िार पर राज घराने की पालकी िे खकर हिरहर शास‍ती को समझते िे र न लगी । उन‍होने अपने मकान का व‍िार बन‍ि कर ििया । एक सैिनक ने िरवाजा खटखटाया और आवाज िी – ‘’ राजगुर शास‍ती जी , व‍िार खोिलए । गुरमाता रक‍मणी पिारी है ।‘’ भीतर से शास‍ती जी उची आवाज मे कहा – ‘’ लेिकन इस पालकी मे सोलह शग ं ृ ार िकए

बैठी नारी कौन है । आपकी

गुरमाता

रक‍मणी तो कभी राज वैभव सा शग ं ृ ार नहीं करती ।‘’ गुरमाता रक‍मणी,हिरहर शास‍ती के स‍वभाव को जानती थी । वे तत‍कण समझ गई । उन‍होने सैिनको को व‍िारा िकया गया

राजभवन वापस चलने के आिे श ििए । राजभवन जाकर राजरानी शग ं ृ ार उतरवा ििया । राजरानी ने पूछा –

‘’ गुरमता , यह सब क‍या है ।‘’ ‘’ हे राजरानी , इन कीमती

आभूषणो से मेरे पित के घर के िरवाजे से पसन‍नता

और जान की िे वी वापस चली जाएगी । इसिलए इन कीमती वस‍तो और आभूषणो की आवश‍यकता नहीं है ।‘’ गुरमाता रक‍मणी ने सूती साडी और पैरो मे

खडाउ

पहनकर पैिल ही

घर पहुँची ।

हिरहर शास‍ती िरवाजे पर खडे गुरमाता रक‍मणी की पतीका कर रहे थे । शास‍ती जी ने रक‍मणी का अिभवािन िकया और कहा– ‘’ हे िे वी , सि‍जनो का आभूषण सिा

जीवन उच‍च िवचार होते है ।‘’

गुरमाता रक‍मणी ने शास‍ती जी के चरण स‍पशि िकए और घर मे पवेश िकया । 00

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कहानी –कमता June 17, 2008 माहे श‍वरी एण‍ड कम‍पनी के कायाल ि य मे हिर और िशवा नाम के िो कमच ि ारी कई वषो से कायरित थे । हिर बहुत तेज,उत‍साही व अपने कायि मे िनपुण था । िशवा थोड़ा सुस‍त और औसतन

कमच ि ारी था । कम‍पनी का मािलक पणव माहे श‍वरी,हिर से बहुत खुश थे िकन‍तु िशवा को सिै व

डाटते रहते थे तथा हिर की तरह तेज,उत‍साही और चतुर बनने के िलए सलाह ििया करते थे । पणय को यह परे शानी थी िक िशवा के सुस‍त और औसतन होने,उसे बार बार डाटने

की जररत

पड़ा करती थी लेिकन तेज,उत‍साही हिर को और अििक कायि ििया जाता था तािक कायि शीघ और अच‍छी तरह से हो सके । िशवा मे यह गुण न होने के कारण उसे अििक कायि नहीं ििया जाता था । कम‍पनी का मािलक पणव माहे श‍वरी,हिर को अििक पसन‍ि करने लगे िकन‍तु िशवा को नहीं । हिर ने िे खा िक कम‍पनी का मािलक पणव माहे शव ‍ री उससे बहुत पसन‍ि करते है तो

वह इसी पयास मे रहता िक वह ि‍यािा से ि‍यािा मािलक के आिे श का पालन कर उन‍हे पसन‍न करने और िशवा को और अििक कमतर ििखाने की कोिशश करे । इसिलए हिर ि‍यािा से ि‍यािा कायि करने लगा । एक ििन िशवा ने स‍वि‍पाहार के िौरान हिर से अपने मन की बात कही -

‘’ हिर

,कम‍पनी मे हम केवल िो कमच ि ारी है । पितस‍पिाि अच‍छी बात तो है लेिकन मुझे इस तरह

कमतर सािबत करके ििखाना ठीक नहीं लगता । इससे बेहतर होगा िक हम िोनो िमलकर कायि करे तािक िोनो का स‍तर समान हो ।‘’ िशवा की बात सुनकर हिर और अििक उत‍सािहत हो गया । हिर मुस‍करा ििया उसने कम‍पनी मािलक के पास बोला-



जाकर कम‍पनी का सारा कायि स‍वयं करने के िलए

‘’ सर, मै आपके कायि का बोझ कम करना चाहता हूँ । यिि आप उिचत समझे

तो क‍या मै;;;;;;;;’’

कम‍पनी मािलक,हिर की बात सुनकर बहुत पसन‍न हो गया । िस ू रे ििन अपने पास का

बहुत सारा कायि हिर को सौप ििया । हिर अपनी पूरी शिक से कायि करने लगा । हिर को

इस

तरह अििक कायि करते िे ख कम‍पनी मािलक बहुत पसन‍न हुआ और हिर का वेतन भी बढा

ििया । अत: अब कम‍पनी मािलक,िशवा को और अििक पतािड़त करने लगा । पितििन यही कम चलते रहता था । हिर पितििन और अििक शिक के साथ कायि करता िकन‍तु सारी शिक लगाने के बाि भी िशवा समय पर कायि नहीं कर पाता । बहुत ििनो तक िशवा की सुस‍ती से कायि करने की गित और हिर की तेजी से कायि की

गित िे खते हुए कम‍पनी मािलक ने िशवा का वेतन आिा कर ििया । हिर अपनी कायि कमता का पिरचय िे ने तथा कम‍पनी मािलक को पसन‍न करने के िलए अििक से अििक कायि करने लगा । पिरणामस‍वरप हिर पर कायि का बोझ बहुत अििक बढ गया । कम‍पनी मािलक की

आशाएं हिर से बहुत ि‍यािा थी,िजससे कम‍पनी मािलक,हिर से अििक कायक ि मता की उम‍मीि

रखने लगा । हिर ने कुछ समय तक तो कायक ि मता बनाए रखी लेिकन अििक कायि होने की वजह से उसकी कायि कमता िीरे िीरे कम होने लगी । हिर की कायि कमता कम होते रहने के कारण कम‍पनी के कायि मे रकावटे पैिा होने लगी और कायि की गित िशिथल होने लगी । कम‍पनी के मािलक

पणव माहे शव ‍ री ने िे खा िक

कायि के िशिथल होने से कम‍पनी पर िवपरीत पभाव पड़ने लगा ।

पणव माहे शव ‍ री,हिर पर बहुत

कोिित हो गए और कायि गित बढने के िलए िबाव डालने लगे । पितििन कायि का िबाव बढने लगा । बार बार डांट फटकार के कारण हिर का जोश मािलक ने िे खा िक हिर अब पहले जैसा कायि नहीं कर

ठण‍डा पड़ने लगा । कम‍पनी पा रहा है । उन‍होने हिर को बहुत डांटा

और उसकी तनख‍वाह आिी कर िशवा के साथ कम‍पनी के कारखाने मे मजिरूी पर भेज ििया । कमता से अििक कायि करने के पिरणाम सुखि नहीं होते ।

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कहानी –िन का अिभ मान June 17, 2008 एक नगर मे िो भाई रहा करते थे ्ा बडे भाई का नाम पूरनचन‍ि था और छोटे भाई का नाम जयचन‍ि ्ा पूरनचन‍ि चॉिंी सोने का व‍यापारी था ्ा उसकी िक ू ान मे कई नौकर काम करते थे ्ा िरू िरू तक पूरनचन‍ि की ख‍याित फैली थी ्ा जयचन‍ि कपड़े का व‍यापार िकया

करता था ्ा वह भी अपने भाई पूरनचन‍ि की तरह ख‍याित पाप‍त व‍यिक था ्ा पूरनचन‍ि बहुत ही ठाट बाट से रहा करता था ्ा लम‍बी शेरवानी िजसमे स‍वणि की जंजीर और स‍वण ि के ही

बटन लगे रहते थे ्ा वे गले मे मोितयो की माला,अंगुिलयो मे हीरे की अंगुठी और पगड़ी मे तरह तरह की मीनाकारी की हुई होती थी ्ा जयचन‍ि बहुत ही सीिा सािा और सािे िलबास मे

रहा करता था ्ा िोती कुरता और िसर पर सफेि रं ग की पगड़ी ,बस इसके अितिरक‍त कुछ नहीं पहनते थे ्ा पूरनचन‍ि ठाट बाट से रहने के कारण अपने िन पर बहुत अिभमान करता

था और अपने छोटे भाई जयचन‍ि को घण ृ ा की नजर से िे खा करता था ्ा जबिक जयचन‍ि को अपने िन पर िकसी तरह का अिभमान नहीं था ्ा एक बार िोनो भाई व‍यापार के िसलिसले मे जंगल के रास‍ते से िस ू रे शहर जा रहे थे

्ा चलते चलते वे नगर से काफी िरू िनकल गए ्ा चलते चलते पूरनचन‍ि को प‍यास लगी ्ा पास मे जो पानी लाया हुआ था ,वह समाप‍त हो गया था ्ा वे िोनो भाई पानी की तलाश

करते हुए िरू तक िनकल गए ्ा संयोगवश जंगल के रास‍ते मे कुछ डाकू छुपे बैठे थे ्ा थोड़ी

िरू से िोनो भाईयो को आता िे खते ही डाकुओं ने उन‍हे घेर िलया ्ा पूरनचन‍ि अपने ठाट बाट

के कारण अििक सम‍पन‍न ििखाई िे रहा था जबिक जयचन‍ि सािारण िलबास के कारण िनिन ि ििखाई िे रहा था ्ा पूरनचन‍ि से बोले—‘

्ा’’

‘’काफी तगड़े आसामी ििखाई िे ते हो ्ा तुम‍हारे पास बहुत ि‍यािा िन होना चािहए

िफर जयचन‍ि के पास जाकर बोले– ‘’ लगता है तुम इनके नौकर होगे ्ा’’ जयचन‍ि को सीिा सािा एक नौकर समझकर डाकुओं ने उसे जाने ििया ्ा पूरनचन‍ि का ठाट बांट िे खकर उसे रोक िलया ्ा डाकुओं ने पूरनचन‍ि का सारा िन और उसके पहने हुए सभी

आभूषण छीन लेना चाहे ्ा पूरनचन‍ि ने अपने आभूषण िे ने से इन‍कार कर ििया तो डाकुओं ने उसे खूब पीटा ्ा पीटाई खाकर पूरनचन‍ि की हालत बहुत खराब हो गई थी ्ा अन‍तत: पूरनचन‍ि ने

अपने पास का सारा िन डाकुओं को िे ििया ्ा डाकू भाग गए ्ा

पूरनचन‍ि की ऐसी हालत िे खकर जयचन‍ि से उसे समझाया– ‘’ बड़े भैया ,िन पर कभी घमण‍ड नहीं करना चािहए क‍योिक िन तो स‍वयं संकट की जड़ होती है ्ा अत: िन पर घमण‍ड करना बेवकूफी की िनशानी है ्ा

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कहानी –ईष ि ् ‍या June 17, 2008 कौशल िे श के राजा चन‍दसेन का नाम िरू िरू के राि‍यो तक फैला हुआ था । वे बडे

पतापी ,बहािरु और िवव‍िान राजा थे । छोटे छोटे राि‍य के राजा उनके अिीन रहा करते थे । चन‍दसेन िजतने बहािरु थे ,उतने सहिय भी थे । वे कभी िकसी को अकारण सजा नहीं िे ते थे । उनकी न‍याय िपयता की चचाि सारे राि‍य मे हुआ करती थी ।

राजा चन‍दसेन के िो िमत हुआ करते थे । एक िमत का नाम बहािरु था और िस ू रे िमत

का नाम डोमा । बहािरु वास‍तव मे बहािरु ही था । वह हर िसथित का मुकाबला करने के िलए तत‍पर रहा करता था ।

राजा को अपने िोनो िमतो पर बहुत िवश‍वास िकया करते थे । इतना

ही वे िोनो िमतो से स‍नेह भी करते थे ।

राजा चन‍दसेन,बहािरु से िवकट िसथित मे सलाह भी िलया करते थे । उनका िस ू रा िमत

डोमा भी बहुत बहािरु और ताकतवर था । चन‍दसेन ने उसे अपने राि‍य के अस‍तबल मे बंिे सैकड़ो घोड़ो की िे खरे ख का काम सौपा था ।

डोमा को अस‍तबल मे काम करना अच‍छा नहीं

लगता था िकन‍तु राि‍य का काय ि है इसीिलए वह नहीं चाहने पर भी अस‍तबल मे अपनी पूरी मुस‍तेिी से कायि करता था । अस‍तबल के काम से वह बहुत कोिित होता था । उसने िे खा िक

राजा चन‍दसेन उसकी अपेका बहािरु से राि‍य के सम‍बन‍ि मे सलाह मशवरा भी करते थे ।

बहािरु को िरबार मे भी अपने साथ िबठाते थे । इससे डोमा को बहािरु से ईष‍या ि होने लगी । उसे लगता था िक राजा चन‍दसेन उससे ि‍यािा भरोसा बहािरु पर िकया करते है । वह हमेशा बहािरु को नीचा ििखाने की कोिशश मे लगा रहता था ।

उन‍हीं ििनो राजा को गुप‍तचरो से सूचना िमली िक पड़ौसी शतु िे श उनके राि‍य पर

आकमण करनेवाले है । यह सोचकर चन‍दसेन को बहुत िचन‍ता होने लगी ,क‍योिक चन‍दसेन नहीं चाहता था िक िकसी तरह का युद हो और जानमान की हािन हो । वे शािनतिपय राजा थे और उनकी

जनता उन पर बहुत िवश‍वास िकया करती थी ।

राजा चन‍दसेन को िचिनतत होते िे ख िोनो िमतो ने अलग अलग समय पर राजा से िमलकर िवचा िवमशि िकया । डोमा ने राजा को युद की सलाह िी लेिकन बहािरु राजा चन‍दसेन की तरह युद के पक मे नहीं था ।

डोमा की सलाह से राजा ने भी सोचा िक कम से कम युद की तैयारी तो कर लेनी ही चािहए । अत: राजा चन‍दसेन ने बहािरु को इस युद मे चलने के िलए तैयार होने को कहा । बहािरु को इस युद के पिरणामो की िचन‍ता होने लगी । यिि युद हुआ और हार गए तो सारा राि‍य तहस नहस हो जाएगा और िन जन की भी हािन होगी ।

राजा चन‍दसेन व‍िारा युद की तैयारी िे ख डोमा बहुत पसन‍न हुआ । क‍योिक वह जानता था िक राजा की अनुपिसथित मे अब उसे इस िवशाल अस‍तबल का काम नहीं करना पड़े गा । यह सोचकर डोमा उस िवशाल युद मे राजा के साथ जानेवाले िमत बहािरु का मजाक उड़ाने लगा ।

कुछ समय के बाि राजा को गुप‍तचरो से सूचना िमली िक िोनो िे शो के बीच होनेवाला

संभािवत युद अब टल गया है । अब िोनो पड़ौसी राजाओं मे आपस मे समझौता कर िलया । इससे िोनो राि‍य आपस मे िमत राि‍य कहलाएंगे । यह सूचना

सुनते ही बहािरु को पसन‍नता हुई । लेिकन राजा का िस ू रा िमत डोमा

ि ु:खी हो गया । भिवष‍य मे युद की िकसी भी पकार की संभावना को िे खते हुए राजा चन‍दसेन ने अपने अस‍तबल मे और अििक घोड़े मंगवा िलए । अब डोमा को पहले की अपेका और अििक कायि करना पड़ता था । अत: कभी िकसी को ि ु:ख मे िे खकर पसन‍न नहीं होना चािहए । क‍योिक कभी भी समय

तथा िसथित बिल सकती है ।

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कहानी -मान अपमान June 17, 2008 मान अपमान बहुत पुराने समय की बात है ,िकसी शहर मे हिरहर नाम का एक कृ ष‍ण भक‍त रहा करता

था । वह पितििन भोर मे शहर के तालाब के िकनारे िनिमत ि कृ ष‍ण मिनिर मे जाकर िीपक जलाया करता था ।

हिरहर बडा ही भक,सत‍यिनष‍ठ तथा िवनम स‍वभाव का व‍यिक था । वह िकसी पर कोिित नहीं होता था बििक कोिित व‍यिक से भी बडे पेम और उिारता से पेश आता था । हिरहर की उिारता को िे खकर उनके पिरजन उससे नाराज रहने लगे क‍योिक वह उिारमना हर िकसी की सहायता िकया करता था । उसके पिरजनो ने उसे बहुत समझाया िकन‍तु हिरहर की उिारता

कम नहीं हुई । पिरणामस‍वरप हिरहर के पिरजनो ने उसे घर से िनकाल ििया । संसार मे भिक भावना कुछ लोगो के िलए शदा का िवषय है तो कुछ के िलए आलोचना तथा मजाक का हुआ

करता है । इितहास बताता है िक शदालुओं के पित लोगो की मानिसकता ठीक नहीं रही है । इसके बावजूि लोगो व‍िारा िकए गए उपहास,आलोचना और मजाक पर हिरहर ध‍यान नहीं िे ता था और न कभी वह बुरा मानता था । कोई कुछ भी कहे वह उसी तरह अपनी राह पर चलता था जैसे हाथी िकसी की परवाह िकए िबना अपनी राह पर चलता रहता है । हिरहर जब भी मिनिर से लौट रहा होता या िकसी रास‍ते से आ जा रहा होता,मजािकया और बुरे संस‍कार वाले लोग उसका उपहास िकया करते ।

यहॉ ं तक क‍ि् कोई उसे गाली िे कर कर पत‍थर गोबर आिि

फेक कर मार ििया करते । बावजूि इसके हिरहर िकसी को िबना कुछ कहे ‘हरे कृ ष‍ण, हरे कृ ष‍ण ‘ करते हुए हुए अपनी राह िनकल जाया करता । जब बडे लोग इसी तरह की हरकत करते तो

उन‍हे िे ख बच‍चे हिरहर के पीछे पडते । उस पर पत‍थर फेकने लगते । बच‍चो को बडा मजा आता था और लोग इस मजाक का आनन‍ि उठाया करते । सीमा से अििक ितरस‍कार होने पर भी हिरहर एकागता से हरे कृ ष‍ण करते हुए ऐसे चलने लगता जैसे कुछ हुआ ही न हो । शहर मे

एक कृ ष‍ण भक‍त वस‍त व‍यापारी शीिर की िक ु ान चौक पर हुआ करती थी । वे पितििन हिरहर पर होनेवाले इस मजाक और उपहास को चप ु चाप िे ख िलया करते थे । वे समझ नहीं पा रहे थे िक हिरहर इतना अपमान होने पर भी सहते चले जा रहे थे । शीिर,हिरहर

की सहनशीलता

की हि तक पहुँचकर भी हिरहर को समझ नहीं पा रहे थे । एक ििन शीिर िक ु ान के बाहर

चौक पर खड़े रहे तािक जब भी हिरहर इस रास‍ते से गुजरे और कोई उनका अपमान करे तो अपमान करनेवालो को रोक सके । िरू से हिरहर को आता िे ख मनचले लोग लोग और बच‍चे शोर बचाने लगे । हिरहर हरे कृ ष‍ण करते हुए जब करीब आये तो मनचले युवको और बच‍चो ने

हिरहर को अपमािनत करना शुर कर ििया । शीिर से िे खा नहीं गया और उन‍होने उन मनचले युवको और बच‍चो को डांटा । शीिर ने हिरहर को पणाम िकया । हिरहर ,शीिर के पास आकर खड़े हो गए । शीिर अब भी मनचले युवको और बच‍चो को डांट रहे थे । मनचले युवक और बच‍चे शान‍त हो गए ।

युवको और बच‍चो के जाने के बाि शीिर ने हिरहर से पूछा –

‘’महाराज,आप इन लोगो को कुछ कहते क‍यो नहीं ।ये बराबर आपको अपमािनत और लििजत िकए जा रहे है िफर भी आप इतने शान‍त और चप ु चाप है ।‘’ ‘’मुझे एक वस‍त िीिजए ।‘ शीिर ने अपनी िक ु ान से वस‍त का एक बड़ा टु कड़ा ििया । हिरहर ने उस वस‍त के िो भाग िकए । शीिर बोले-

‘’महाराज ,आपने यह क‍या िकया ।‘’ ‘’अब तुम यह िोनो टु कड़े मेरे कांिो पर एक एक करके डाल िो ।‘’ ‘’ लेिकन महाराज ;;;;;;;;;;;’’ ‘’ मेरे लौटने की पतीका करना । इसका आपको समुिचत जवाब िमलेगा ।‘’

शीिर ने लोगो मे थी उतनी ही सि‍जनो मे भी थी । वे शीिर की िक ु ान से शीकृ ष‍ण मिनिर

तक चलते गए और उसी रास‍ते से लौट चले । जब कोई शदा पूवक ि उनका अिभवािन करता तो वे कांिे पर रखे वस‍त मे गांठ बांि ििया करते । इसी तरह जब कोई उनका अपमान या उपहास करता तो वे िस ू रे कांिे पर रखे वस‍त मे गांठ बांि ििया करते । शीिर की िक ु ान तक लौटते लौटते िोनो कांिो पर वस‍त मे ढे र सारी

गठांने बंि चक ु ी थी । हिरहर को आता िे ख

शीिर ने उनकी अगुवानी की । हिरहर ने अपने कांिे पर रखे वस‍त की गठाने बंिे टु कड़े शीिर के हाथो मे िे ते हुए कहा -

‘’ इन िोनो टु कड़ो को अलग अलग तोलो ।‘’

शीिर ने िोनो टु कड़ो को अलग अलग तोला । हिरहर ने शीिर ने पूछा ‘’ क‍या िोनो वस‍तो और उनकी गठानो मे कोई फकि पडा ।‘’ ‘’ महाराज ,िोनो का वजन एक समान है ।‘’ ‘’ शायि अब तुमको

तुम‍हारे पश‍न का उत‍तर िमल गया होगा ।‘’

‘’ मै समझा नहीं महाराज ,हम िनबल ि बुिदयो को ये सब समझ मे नहीं आता ।‘’ ‘’ हे शीिर , जीवन मे सत‍य मागि पर मान और सम‍मान िोनो बराबर

िमलता ही है ।

इनका अनुभव तो होता है िकन‍तु वास‍तव मे मान और सम‍मान का कोई अिसतत‍व ही नहीं होता । यिि इस सत‍य को समझ िलया जाय तो

मन पर इन चीजो का कोई पभाव नहीं पडता ।

इसिलए मान और अपमान को समान समझने पर कोई कष‍ट भी नहीं होता । मन स‍वयं ही आनन‍ि मे मगन रहता है ।

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