Lawa Novel By Shankar Sonane

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  • Words: 102,858
  • Pages: 211
लावा ( ऐििहाििक उपनयाि ) कृ षणशंकर िोनाने बेटी िंगीिा

और वैशाली के िलए - कृ षणशंकर िोनाने िमा भोकयिनि पिृिवीं कुरशष े कलौ नप ृ ा:।

शबदानाम.

नम: शुकबह ृ सपििभयां चाणकय के बहुि िे नाम िमलिे है - पििलसवामी,िवषणुगुप,कुटल या

कौिटलय,चाणकय,वातिायन,िमललनाग,अंगुल ििा दािमल आिद । कुछ इनहे दििणीय

कोकणसि मानिे है और कहा जािा है िक वे दििण दे शीय बाहण पाय: कूटनीिि पटु हुआ करिे है । माना जािा है िक वे शयामवणीZ य ििा कुरप िे । जैिनयो के मिानुिार वे गोलल गाम के

वािी िे ििा जैन धमाव ा लमबी िे । विम ा ान मे गोलल जनपद की िसििि अजाि है । लेिकन यह माना जािा है िक गोलल जनपद िकिी िमय पििमोतर पदे श मे अविसिि िा । बौद उनहे

िििशला िनवािी बाहण बिलािे है । नम:शुकबह ृ सपििभयां के अनुिार वे वैिदको को नहीं मानिे िे कयोिक वे पाय:ईशर को नमसकार करिे िे िकनिु कामिूत मे वातिायन के नाम के अनुिार ``नमो धमाि ा क ा ामेभयो `` कहकर और कुछ ही कहिे है । हो िकिा है िक वे कूटनीििज होने के

कारण लेखनी मे भी कूटनीिि िे काया लेिे हो । कुछ भी हो िकिा है । इििलए ये िारी बािे वयिा पिीि होिी है । कुछ िववदानो ने उनहे पाटिलपुत (पटना )का िनवािी माना है । उललेख िमलिा है

िक उनके िपिा िशवगुप को अधयापन के िलए पाटिलपुत िे िििशला बुलवा िलया गया िा और वे आजीवन िििशला मे ही रहे । लेिकन उनकी जनमभूिम पाटिलपुत ही िी । आयाव ा िा(िमपूणा

भारि) मे पाटिलपुत उि िमय पधान नगरी िी । चाणकय को िपिाशी िशवगुप ने िििशला िे िशिा पाप करने के पिाि अधयापन के िलए पाटिलपुत भेज िदया िा , अनेक िथय िमलिे है ।

चाणकय का अपना िमय-काल ईिापूवा 321 माना जािा है । चाणकय के पूवा गौिमबुद का काल-िमय िा । गौिम बुद को चाणकय के िमय-काल मे भगवाल के अविार की मानयिा पाप नहीं हुई िी

शीमदागवि महापुराण वदादश सकनध के पिम अधयाय के किलयुग के राजवंशो

के वणन ा मे शोकांक 5 िे 13 मे कहा गया है िक -

िशशुनागसििो भावय: काकवणस ा िु ितिुि:।

िेमधमाा िसय िुि: िेतज: िेमधमज ा : ।।5।। िविधिार: िुिसिसयाजािशतुभिावषयिि ।

दभक ा सितिुिो भावी दभक ा सयाजय: समि ृ : ।।6।। िननदवधन ा आजेयो महािननद: िुिसिि:।

िशशुनागा दशैवि ै े षषठयुतरशितयम ् ।।7।। महािननदिुिो राजन ् शूदीगभोदवो बली ।।8।। महापदपिि: कििनननद: ितिवनाशकृ ि ् ।

ििो नप ृ ा भिवषयिनि शूदपायासतवधािमक ा ा :।।9।। ि एकचछतां पिृिवीमनुललििंिशािन: ।

शाििषयिि महापदो ििवदिीय इव भागव ा :।।10।। िसय चाषौ भिवषयिनि िुमालयपमुखा: िुिा : ।

य इमां भोकयिनि महीं राजान: सम शिंिंिं िमा : ।।11।। नव ननदान ् ििवदज: कििि ् पपननानुदिरषयिि ।

िेषामभावे जगिीं मौयाा भोकयिनि वै कलौ ।। 12।। ि एव चनदगुपं वै ििवदजो राजयेििे भषेकयिि ।

ितिुिो वािरिारसिु िििाशोकवधन ा : ।।13।।

``िशशुनाग नामका राजा होगा । िशशुनागका काकवणा,उिका िेमधमाा और िेमधमाा का पुत होगा िेतज । िेतज का िविधिार,उिका अजािशतु,ििर दभक ा और दभक ा का पुत अजय होगा । अजय िे िननदवधन ा और उििे महािननदका जनम होगा । िशशुनाग-वंश मे ये दि

राजा होगे । ये िब िमलकर किलयुगमे िीन िौ िाठ वषा िक पथ ृ वी पर राजय करे गे । महािननदकी शूदा पती के गभा िे ननद नामका पुत होगा । वह बड़ा बलवान होगा । महािननद ` महापद ` नामक िनिध का अिधपिि होगा । इििलए लोग उिे `महापद ` भी कहे गे । वह िितय राजाओं के िवनाश का कारण बनेगा । िभी िे राजालोग पाय: शूद और अधािमक ा हो जायेगे । महापद पथ ृ वी का

एकचछत शािक होगा । उिके शािन का उललंिन कोई भी नहीं कर िकेगा । िितयो के िवनाश मे हे िु होने की दिष िे िो उिे दि ू रा परशुराम ही िमझना चािहए । उिके िुमालय आिद आठ पुत

होगे । वे िभी राजा होगे और िौ वषा िक पथ ृ वी का भोग करे गे । कौिटलय, वातसयायन ििा चाणकय के नाम िे पििद एक बाहण िवशिवखयाि ननद और उिके िुमालय आिद आठ पुतो का नाश कर डालेगा । उनका नाश हो जाने पर किलयुग मे मौयव ा श ं नरपिि पथ ृ वीका राजय करे गे । वही बाहण पहले`पहल चनदगुप मौया को राजा के पद पर अिभिषक करे गा । चनदगुप का पुत वािरिार होगा और वािरिार का पुत अशोकवधन ा होगा ।। 5 िे 13 ।।

मगध (िबहार)िमाट महाननद ने 371 ईिापूवा ननदवंश की सिापना की िी ।

हालांिक शीमदागवि मे िमय-काल का उललेख नहींिमलिा । ननद वदारा मगध मे 364-324 ईिापूवा िक शािन िकए जाने का उललेख िमलिा है । 365 ईिापूवा ििकनदर अटक िक आ

पहुंिंचा िा ििा ििनधुनदी पार कर चुका िा। इिी िमय िििशला के राजा आमभी िे ििकनदर ने िमपका िकया । ििकनदर का पोरि के िाि भी युद हुआ िा । लेिकन 326-325 मे ििकनदर ने

चनदगुप िे भी िमपका िकया । इि िमय िक चनदगुप िकिी दे श के राजा नहीं हुए िे । ििकनदर , चनदररगुप िे मदद चाह रहे िे िकनिु चनदगुप ने िवदे िशयो को िकिी भी िरह की मदद दे ने िे इनकार कर िदया िा । पिरणामसवरप ििकनदर ईरान की ओर चल िदया । इि दरिमयान

चाणकय ने चनदगुप को मगध का िमाट बना िदया िा । चनदगुप मौये ने ईिापूवा 325 िे 300 िक मगध पर राजय िकया । वसिुि: यही काल चाणकय का उदय-काल माला जा िकिा है ।

ईिापूवा 317 मे चनदगुप ने पंजाब ििा 313 मे मालवा िवजय की । ईपू 305 मे िेलयूकि नेकेटोर ने ििनधुनदी पार की िकनिु िेलयूकि ने चनदगुप िे ििनध कर ली । चाणकय की िहायिा िे

चनदगुप मौया ने िमपूणा भारिवषा को एक िुदढ़ राष बना िदया िा। चाणकय के िमय भारि वषा मे अराजकिा िैली हुई िी। पिरणामसवरप दे श को एकत करने मे चनदगुप और चाणकय को

अनेको किठनाईयो का िामना करना पड़ा । भारि मे छोटे -मोटे राजयो िंमे अपनी िनाव और उिल-पुिल चल रहा िा और यवन िमाटो जैिी िवदे शी शिकयॉं भारि मे अपने पैर सिािपि

करना चाहिी िी । यवन ,भारिीय छोटे -बड़े राजयो को आपि मे लड़वाकर या मनमुटाव करनाकर

अपना पभुतप सिािपि करना चाहिे िे । कहीं वे ििल हुए िो कहीं वे अििल भी हुए । ऐिे िमय मे चाणकय िमपूणा भारिवषा के राजाओं को एकछि के नीचे खड़े कर दे श को शिकशानी बनाना

चाहिे िे । उनहोने िोचा िबना िंगिठि एवं शिकशाली राजय के भारि की िमिृद नहीं हो िकिी । इिके िलए कठोर अनुशािन,जनिा के िमग िवकाि पर आधािरि राजय एवं आििक ा वयवसिा चािहए । वयापार की िमिृद िे कोश को पूणक ा र,जनिा को नयाय दे कर ििा पुरानी पदिियो को िमाप कर िमनवय नीिि अपनाकर की शिकशानी राष का िनमाण ा िकया जा िकिा है ।

िमपूणा अधययन के पिाि यह िसििि िमि िचिति होिी है िक पििमोतर िे

यवनो का भारि मे अनािधकृ ि पवेश और ननद वदारा भरी िभा मे चाणकय को अपमािनि होने के पिरणामसवरप ही उनहे दढ़ कदम उठाना पड़ा । उनहोने चनदगुप को िशििि कर पूणा ििम

बनाया । यवनो िे भारी टकक ली । उनके पाि न िकिी िरह का राजय िा न िैनय शिक िी और न ही कोई धन िा । ििर भी अपनी महतवाकांिा की पूििा के िलए उनहोने अनेको गणराजयो िे िमपका िकया । अनेको िे िहयोग लेकर उनहोने चनदगुप को िेनानायक बनाकर िैनयशिक

िंगिहि की और अपनी कूटनीिि िे चलकर नंद वंश का नाश िकया । इिना ही नहीं उनहोने अपनी कूटनीिि का उपयोग यवनो को पददिलि करने मे भी िकया और वे अपने अिभयान मे ििल हुए। यही उनका पमुख उदे शय और सिान रहा है । मगध िामाजय को केवल मगध िक ही िीिमि नहीं रहने िदया बिलक उनहोने िमपूणा भारि के गणराजयो को िंगिठि कर एकछत राष की सिापना की । एकछत राष की सिापना का उनका उदे शय यही िा िक यिद िमपूणा भारिवषा के गणराजय

एक हो जाएंगे िो िकिी यवन या िवदे शी मे इिनी िहममि नहीं होगी िक वह भारि की ओर आँख उठाकर दे गे । और , चाणकय के रहिे हुए उनका िपना पूरा हुआ । लेिकन िसििि िदै व एक जैिी नहीं रहिी । उनके बाद , चनदगुप के बाद , िबनदि ु ार और अशोक के बाद ििर िसििि गंभीर हो गई और एकछत िामाजय का िविटन होिे गया जो 1858 की लड़ाई के बाद िे 1947 िक चलिे

रहा । शायद यह चाणकय की नीिियो का ही पिरणाम होगा िक 1947 मे भारि पुन: एकछत राष हो गया ।

चाणकय के जनम सिान के िंबंध मे िववाद है । कुछ गांधार(अिगािनसिान) िेत

िसिि िििशला ििा कुछ मगध अिाि ा ् विम ा ान िबहार मानिे है । पाटिलपुत अिाि ा ् पटना और

गया के मध एक सिान चणका है । यह जहानाबाद िे दो सटे शन उतर ििा नदोल सटे शन िे पूरब मे है । इिे बाहणो का गाम माना जािा है । यहां के िमीपसि अनेक गामो मे चणिकया बाहण िनवाि करिे है । वे अपना गोत कौटल या कौडल मानिे है ।

चणका शबद चाणकया का अपभंश है । इिी पकार कौिटल या कौिडल का अपभंश

कौटल है । चणका सिान पटना िे आठ-दि िकलोमीटर दििण मे है । चाणकय पििगाही बाहण िे। बाहणो मे दो वगा महाभारिकाल मे हो चुके िे, यिा-पििगाही ििा अपििगाही । महाभारि शािनिपवा अधयाय-199 मे पविृत ििा िनविृत बाहणो को उललेख िमलिा है ।

.उतर भारि मे बाहणो मे िारसवि और कानयकुंिंज दो मुखया शाखा है । िारसवि

यमुदा नदी के पििम और कानयकुंज यमुना के पूवा मे बंगाल िक िैले हुए है । कानयकुंज बाहणो

की पांच शाखाएं है ।उनमे िरयूपारी,धनाडय,जुझौििया,भूिमहार ििा मैििल । इिी िरह िारसविो की मुखय शाखाओं मे महीवाल अिाि ा अपििगाही बाहण है । चाणकय को अपििगाही बाहण यानी दान न लेनेवाला माना गया है ।

.कौिटलय को िबहार के भूिमहार लोग भूिमहार ििा मिहपाल लोग महीवाल के

वंशज मानिे है । कौिटलय चाहे िकिी बाहण वगा के रहे हो िकनिु वे महीवाल अयाचक बाहण ही िे ।

भगवान गौिम बुद के िचिकतिक जीवक हुआ करिे िे । उनहोने िििशला मे

िशिा पाप की िी। उि िमय िििशला भारिीय िभयिा ििा िंसकृ िि का पमुख केनद माना

जािा िा । िििशला मे दे श-िवदे श िे िवदािी िवदा पाप करने आिे िे । गांधार दे श मे िििशला भारिीय िभयिा और िंसकृ िि का गढ़ माना जािा िा । िििशला मे ही बौद दशन ा केनद भी िा ।

गांधार को आधुिनक कनधार भी कहा जािा है । कनधार को सकनधावार भी कहा जािा है जो िैिनक छावनी का अपभंि्रश शबद है । चाणकय के िदशा-िनदे शन मे चनदगुप मौया ने अपनी िैिनक

छावनी कनधार मे ही सिािपि की िी िािक िवदे िशयो को भारि मे पवेश करने के िलए रोका जा िके ििा यही िे ही उनकी िीमा मे पवेश न करने िदया जा िके। चनदगुप और चाणकय पमुखि: उतर-पििमी िेत को अिधक महतव िदया करिे िे।

शंभुक ( कुछ िववदान शंभुक नहीं िकनिु िुबध ं ु नाम का उललेख करिे है ) उनिे

िकिी िवषय को लेकर अतयनि रष िा । उिने अविर पाकर उनकी पणक ा ु िट मे आग लगवा दी िी । िजिमे चाणकय िभसमभूि हो गए । कुछ िटपपणीकारो ने उललेख िकया है िक वे पणक ा ु िट मे िभसमभूि नहींिं हुए बिलक इि िटना का लाभ उठाकर भूिमगसि हो गए िे । जो भी हो िकनि

यह अटल ितय है िक भारि के िमपूणा इििहाि मे चाणकय के िमान मेिावी कूटनीिि शास के महिषZ ििर कभी नहीं हुए ।

``लावा`` उपनयाि मुखय मुदे को लेकर िलखा गया है । कई िनदभा गंिो का

उपयोग भी िकया गया । इि उपनयाि का नाम लावा रखने के कई कारण हो िकिे है िकनिु मैने िोचा पििशोध की जवाला , जवालामुखी की जवाला िे कमिर नहीं होिी । दि ू रे जवालामुखी की जवाला ही नहीं अिपिु उिका लावा दरू-दरू िक िैलकर पािणयो को नष कर दे िा है । मनुषय के

हदय मे खदकिा लावा उिके पििशोध का िबमब है । िजि िरह िे वयिक पििशोध की जवाला मे

सवयं भी जलिे रहिा है उिी िरह वह इि पििशोध के लावा िे अपने शतुओ को भी जलाने मे पीछे नहीं हटिा । चाणकय के हदय मे खदखदािा लावा न केवल उिे जलािा रहा बिलक उि लावा ने

नंद वंश को भी नष कर िदया । यह वही लावा है िजिने न केवल पििशोध की जवाला बरकरार रखी अिपिु ििकनदर जैिे यवन आकानिा को भारिवषा िे वापि भगाने मे भी काम आई । आज िे दो

हज़ार वषा पूवा भी चाणकय ने यवनो को भारि िे भगाने के िलए भी चाणकय ने ..िनपजम पदकपं .जैिे शबदो का अपतयििौर पर उपयोग िकया िा । उनहोने भी भारि को एकछत राष बनाने का िपना दे खा िा । यह िपना मात छह दशक पुराना नहीं है बिलक दो हज़ार वषा पुराना है । इिी िपने को लेकर हमारे भारि के नविनमाि ा ाओं ने अंगेजो को भारि िे जाने के िलए.िनपजम

पदकपं .शबद का पयोग िकया िा । अनिर इिना है िक उि िमय भारि की अखणडिा खिणडि हो रही िी और इि िमय भारि की अखणडिा एकिा मे पिरवििि ा हो रही िी िं --शंकर िोनाने...

जी-111/46 िशवाजी नगर, भोपाल मप.

लावा

मै जब अपने हदय के कपाट खोलिा हूँ , अनेक समिृियो के िशलालेख मेरे अनिमन ा के पटल

पर ठीक उिी िरह िे चलायमान एवं दिषमान होिे िजि िरह चलिचत पटल पर होिे है । अनेक िसििियो मे कभी िवहं ििे हुए , कभी अिि-अवयविसिि पििकूल पिरिसििियो िे अवगुंिठि ,

अनमने िे िो कभी सवयं मुझ पर वयंगय करिे हुए िे । उन िचतो का िवहं िना कोई िामानय नहीं हो िकिा िकनिु हदय को िीकणिा िे बेधिे हुए रक िे , रं िजि करिे हुए िे िो कभी जबरजसि कुठारािाि करिे हुए िे । पिीि होने लगा जैिे मेरा अिीि मुझ पर िवहं ि रहा है । िंभवि: इििलए िक इिना िबकुछ होने पर भी मै िनिानि अकेला ही रह गया ,िबलकुल..........

और अतयनि अिंिदगध लगनेवाले मेरे वचन जैिे मुझे ही ललकार रहे हो । शायद

मेरे भीिर एक िवशाल वि ृ अब भी शीिलछाया पदान करने के िलए अकुला रहा हो िकनिु अब

वैिा कुछ भी नहीं रहा । मेरे अबोध बालक मन मे अनेक पश उपिसिि होने लगे िे िकनिु उनका उतर मुझे नहीं िमल पा रहा िा । लेिकन हाँ ,पिाि ् मे जीवन का रहसय आिहसिा-आिहसिा खुलिे रहा और जीवन पवाह िरीिा की िरह पवाहमान होिे रहा ।

गोलल जनपद मे एक छोटा िा गाम है ,चणका , वहीं मेरा जनम हुआ िा । यह जनपद उि

िमय मगध िामाजय के अधीन िा । मगध पर नंद वंश का शािन पभािवि िा । नंद वंश ने

मगध पर लगभग एक िौ बीि वषा िक शािन िकया । नंद वंश की परमपरा पौरािणक काल िे चली आ रही िी । िजि िरह िितयो को िमाप करने के िलए परशुराम ने अविार िलया िा

,िंभवि: उिी िरह नंद वंश को िमाप करने केिि महापद नंद के अविार को माना जािा है । नंद वंश भौििक िुख-िुिवधाओं को अिधक मानिे िे । िुरा-िुनदिरयाँ उनके आननद के िाधन हुआ

करिे िे । उनके पाि धन की कमी नहीं िी । िंभवि: इिी कारण उनहे धनाननद कहा जािा िा । शीमदगविपुराण के अनुिार उनहे धनाननद कहा जाना उपयुक पिीि होिा है । मगध ही एक

ऐिा राजय िा जो िमपूणा भारि मे िवािाधक धन ,वैभव ,िवलाि ििा िैनय शिक िे िमपनन िा । वैभव-िमपननिा का नंद वंश वदारा यिोिचि उपयोग नहीं िकया गया । अनुिचि उपयोग के पिरणामसवरप ही नंद वंश धीरे -धीरे िवनाश की ओर बढ़ रहा िा ।

िंभवि:वह िमय 300 वीं िदी का उतराधा होगा । जब मेरा जनम मगध िामाजय के एक

चणक गाम मे हुआ िा । मेरे जनम लेने के ितकाल बाद ही मेरे िपिाशी िशवगुप को िििशला मे अधयापक िनयुक िकया गया िा । मेरी आयु अभी पाँच वषा भी नहीं िी िक मेरी मािाशी का

दे हाविान हो गया । मािाशी िे िपिाशी बहुि पेि्रम करिे िे। मािाशी के दे हाविान के बाद

िपिाशी मुझे मगध िे िििशला ले गए । िपिाशी िििशला िवदापीठ मे राजनीिि के अधयापक हो गए िे । वही पर मेरी िशिा पूणा हुई ।

िििशला ,पूवी गांधार की राजधानी िी । िजिने िििशला नरे श वैभव िमपनन िे उिना

ही गांधार गणराजय िमपनन िा । राजपदािधकारी िे लेकर िाधारण कृ षक िक िभी अपने-अपने काया के पिि दि िे । जो िजि पद पर पदसि िा वह गांधार के पिि किवायिनष िे । पणय िे

लेकर नागिरको की दै िनक की पसिुएं िरलिा िे नागिरको िंको उपलबध हो जाया करिी िी । गांधार नरे श िववदानो का आदर करिे िे । िििशला िािहतय ,कला-िंसकृ िि का पमुख केनद िा । िििशला िवदालय की खयािि िमसि भारिवषा मे वयाप िी । िवदालय मे भारिवषा के नरे शो के पुत िवदाधययन के िलए आया करिे िे । यही एक ऐिा िवदालय िा जहाँ राजनीिि िे लेकर

पाकशास िक का अधययन कराया जािा िा । इि िवदालय िे िशिा पाप करनेवाला िवदािी िमसि भारिवषा मे गौरव पाप करिा िा ।

गांधार ,भारिवषा का पििमी वदार िा । इि वदार िे यवन भारिवषा मे पवेश करने के िलए

पूवा िे ही आिुर िे । ईिा पूवा 300 के िमय यवनो की िगद दिष भारिवषा पर लगी हुई िी । यवन

चाहिे िे िक वे भारिवषा को अपने अिधकार मे ले ले और यहाँ िे िजिना हो िके उिना शोषण करे । वे भारिवषा को दोहन करना चाहिे िे । ऐिा नहीं िक यवन इिी िमय िे भारिवषा पर िगद दिष

रखे हुए है बिलक वे इििे पहले भी कई बार पयत कर चुके है लेिकन कुिटल दिषकोण के कारण वह ििलिा पाप नहीं कर पाए । यवन आकानि बार-बार भारि पर आकमण करने का पयाि करिे रहे । िजिनी भी बार उनहोने यह पयाि िकया ,उिनी ही बार वे परािजि होिे गए । यवन उनका

अपना उदे शय पूरा नहीं कर पाए । हालांिक यवनो ने भारिीय नरे शो को बहुि बार िोड़ने का पयाि

िकया िकनिु वे िजि िकिी िरह िे अििल होिे रहे । मुझे लगिा है यवन भिवषय मे भी भारिवषा पर िगद दिष लगाए रखेगे ।

मेरा पालन-पोषण िििशला मे िपिाशी की छतछाया मे होना पारं भ हो गया । मािाशी की

समिृि आज भी मेरे मानि पटल पर उभरिी है िो आभाि होिा है , जैिे मािाशी मुझ बालक को अपने वि िे लगाकर सनेह िे पिरिप ृ कर रही है । मािाशी की कोमल बांहो मे जाकर मै िपिला

जािा और उििे िलपट जािा िा । समरण करिे ही आँखो िे अशध ु ाराएं बह िनकलिी है । मािाशी

की मतृयु के िाि नारी का सनेह और उिका िंसपशा मेरे िलए अतयनि दल ा हो गया । मानो मेरे ु भ जीवन का विनि पिझड़ के िमान िूख गया हो । जो पकाश बालयावसिा मे उदीयमान हो रहा

िा , वह िनशा के िनिोर अंधकार मे िवलीन हो गया । उिे समरण करिे हुए मै आज भी उििवदगन हो उठिा हूँ । िकिी बालक के िलए उिकी मािा की मतृयु कया हो िकिी है , यह मै आज भी अनुभूि कर रहा हूँ ।

मुझे समरण है िपिाशी ने ििवदिीय िववाह कभी नहीं िकया । इिना ही नहीं उनहोने कभी

अनय सी की ओर दिष उठाकर भी नहीं दे खा । पिीि होिा िा , िंभवि: उनके हदय के भीिर का

मानिरोवर जैिे िूख गया हो । वे िनरपेि भाव िे जीवन-यापन करने लगे िे । अब उनहोने दो ही

लकय िनधािारि कर िलए िे । पहला मेरे पालन -पोषण पर पूरा धयान केििनदि करना और दि ू रा

िवदाििय ा ो को उिचि िशिा दे ना । वे कभी राजपुरषो और शिेिषयो िे नहीं िमलिे िे । वे अतयनि

सवािभमानी िे और अपने किवाय के पिि एकिनष रहा करिे िे । उनहे अनय िशििको िे कम विृत पाप होिी िी और वे उनहीं मे पूणि ा :िंिुष रहा करिे िे । उनकी अपनी कोई महतवाकांिा शेष नहीं रही िी । िंभवि: यह मािाशी की मतृयु का दषुपिरणाम हो । हमारी एक छोटी िी कुिटया िी ।

उनही मे हम िपिा-पुत जीवन यापन िकया करिे िे । िपिाशी िवदाधययन के िमय मेरे गुर होिे िे िकनिु जैिे ही कुिटया मे आ जािे िे वे कभी मािा िो कभी िपिा बन पेि्रम करिे िे । िपिाशी का पेि्रम मेरे िलए िवोपिर िा । वे मुझे अपने हािो िे भोजन करािे िे और ििर पर सनेहाििक हो हाि िेरा करिे िे । मै बहुि वाचाल िा िकनिु मेरी वाचालिा िे उनहे िववोद हुआ करिा िा । वे िुनकर पिनन हो जाया करिे िे । राि को जब िक मै िो न जाऊँ िब िक वे मािे को िहलािे

रहिे । मुझे आभाि नहीं होिा िा िक मै कब िो गया । आँख खुलने पर िपिाशी को काया करिे हुए पािा िा । मुझे लगिा शायद िपिाशी िकिी राि भर भी िोये ही नहीं हो । िपिाशी की कमठ ा िा की पििचछाया मेरे अनिमन ा मे बैठ गई । िुमने दे खा होगा कमंिंद ! मै भी उिी िरह लगािार शष े

कमा करने मे िंलगन रहा करिा हूँ । यो ही िमय धीरे -धीरे अपनी गिि िे िरकिा जा रहा िा । मै कब युवा हुआ , पिा ही नहीं चला । िपिाशी अब भी उिी िरह मुझे पेमाििक रखा करिे िे । युवा

होने पर भी उनका सनेह कभी कम नहीं हुआ । वे मेरी पतयेक अिभलाषा पूणा करने के िलए किटबद रहा करिे िे । वे अब भी याद है । मेरे रठ जाने पर वे भोजन नहीं करिे िे ,जब िक िक मै हं िकर या मुसकराकर उनके गले मे अपनी दोनो बांहे न डाल दँ ू । जयो ही मैने उनके गले मे बांहे डाल दी

तयो ही वे मुसकराकर मुझे वि िे लगा िलया करिे िे और अपने हािो िे ठीक उिी िरह भोजन कराया करिे िे िजि िरह कोई मािा अपने बालक को लाड़-दल ु ार िे भोजन करािी है ।

मै िवदाधययन मे बड़ा िेजसवी िा । िपिाशी ने मुझे रिायन िवजान , राजनीिि,कूटनीिि,

,िचिकतिा िवजान और वेद-वेदांग की िशिा दी िी । िारे गांधार मे िििशला िवदापीठ की पशंिा िी । िििशला मे उि िमय आंिभ नामक राजकुमार के िपिा िििशला नरे श हुआ करिे िे ।

उनहोने दीि Z अविध िक िििशला मे शािन िकया । उनहीं की दे खरे ख मे िििशला िवदापीठ का

िंचालन हुआ करिा िा । उि िमय िििशला िवदापीठ पूरे आयाव ा िा मे एकमात ऐिा िवदापीठ िा जो राजनीिि , युदनीिि और कूटनीिि शास का केनद िा ।

िुम िोच रहे होिंगे, अब िक सी के पिि अनुरक हो पाया हूँ या नहीं , िो िुनो.

मेरी आयु लगभग बीि वषा रही होगी । अब िक मै शयामवणा ,िुगिठि शरीरवाला और िुदशन ा

ििा िेजसवी मुखमणडलवाला युवा हो गया िा । युवाओं के िमान मुझमे भी जोश हुआ करिा िा । वाचालिा और चंचलिा के कारण मै कभी एक सिान पर ठहरा नहीं करिा िा । कभी यहाँ कभी

वहाँ मचल रहा होिा िा । िपिाशी मेरी इि चंचलिा और वाचालिा पर मुगध होिे िे । उनहोने मेरी चंचलिा और वाचालिा का कभी िवरोध नहीं िकया । पाि: होिे ही मै िरोवर ,,वनो और उपवनो मे चला जािा और मचला करिा िा िकनिु िशिा के अविर पर िपिाशी मुझे अनुशाििि करिे िे । उि िमय वे मेरे गुर हुआ करि िे और मै उनका िशषय ।

हमारी कुिटया िे कुछ ही दरूी पर िशवालय हुआ करिा िा । वहाँ िाधु-िनयािियो के

अलावा भी अनेकानेक शदालु आया करिे िे । मै भी िशवालय जाया करिा िा । एकबार एक यवन युविि अपनी शोढषी पुती के िाि िशवालय आ पहुँची । वह शोढिी यवन िकशोरी की नीली-नीली और गहरी मदभरी आँखे , पिले और कमल पुषप के िमान गुलाबी-गुलाबी अधर , िवशाल और

दै िदपयमान कपोल ,दीि Z ,िुनहरे और िने-िने िे उिके कुनिल , नख-िशख िक गौरांग और छरहरी िी उिकी दे हयषी दे खिा ही रह गया । उिका शरीर लिा की िरह लचकिा िा । मै बड़ी दे र िक उिे िनहारिा रहा । िंभवि: उिे आभाि भी नहीं हुआ होगा िक मै उिे िनहार रहा हूँ ।

अनायाि उिकी दिष िे मेरी दिष टकरा गई । बार-बार और कई बार ऐिा ही होिा रहा । वह

पिििदन उिकी मािा के िाि िशवालय आने लगी । बार-बार दिषयो के एक होने पर वह एक बार मुसकरा दी । उिकी धवल दनि पंिकयाँ िबजली िी कौध गई। ऐिा पिीि हुआ जैिे नीलाकाश मे कबूिरो की शेि पंिकयाँ धनुषाकार मे वयाप हो गई हो । मै उिे मुसकरािे दे ख चंचल हो उठा और वह िखलिखलाकर हं ि पड़ी । मुझे लगा जैिे उिने मेरे हदय की मंशा जान ली हो लेिकन वह मुसकरािे हुए अपनी माँ के िाि चली गई।

बि ििर कया षोषो अब मै पिििदन िशवालय मे उिकी पिीिा करने लगा और वह भी

पिििदन अपनी माँ के िाि आने लगी । लेिकन उििे िमलना िंभव नहीं हो पा रहा िा ।

पिरणामि: िारी रािे मै करवटे लेने लगा । जैिे नेतो िे नीदा ही दरू हो गई हो । कई-कई राितयो मे िपिाशी ने मुझे करवटे बदलिे दे खा। िपिाशी बोले`` कया बाि है पुत षोषो``

`` कुछ नहीं िपिाशी । शायद कुछ भी नहीं।`` ििर िपिाशी ने दब ु ारा पश नहीं िकया । िपिाशी िे मैने पहली बार बाि छुपाई या

यो कहो मैने पहली बार अितय वचन कहे । हालांिक वे िमझ गए िे िकनिु उनहोने कुछ कहा नहीं । एक िदन वह यवन शोढषी िकशोरी अनायाि ही मेरे िामने आ गई। मैने पूछा -

`` कया नाम है िुमहारा षोषो`` `` हे मािद ! और िुमहारा षोषो

`` िवषणु..........िवषणुगुप.....िुम बहुि िुनदर हो ।``

`` और िुम....िुम भी िो िकिने िुशील हो...बहुि ही ।``

कहिे ही वह िखलिखलाकर इि िरह हं ि दी जैिे कहीं झरना बह रहा हो या विनि ने िारे पुषपो को एकिति कर पुषप-विृष की हो । वह िदन मेरे जीवन का िबिे अचछा िदन िा । मुझे अब िक समरण नहीं आ रहा िक उि िदन िे कहीं अिधक अचछा शुभ िदन मेरे िलए

कभी रहा हो । मै सपष कर दँ ू िक उि िदन के बाद िे आज िक उिना अचछा िदन मेरे जीवन मे कभी नहीं आया । चनदगुप के िमाट बनने के िदन िे भी जयादा पिननिा का िदवि िा वह । िशवालय मे िहमािद िे िंपका के बाद अब हम लोग पिििदन िकिी न िकिी बहाने िे

िमलिे रहे । वह इठलािी मुसकरािी और मनोहर िवनोद-पिरहाि के िाि िमलने आिी । हमारे िमलने के दौरान राजनीिि िे लेकर गीि-िंगीि-नतृय िक चचाा का िवषय हुआ करिा िा । वह यवन युविि होिे हुए भी भारिीय गीि-िंगीि और नतृय के पिि बहुि अनुरक िी । कभी वह

ठु मक-ठु मक कर चलिी िो कभी िविभनन मुदाओं मे नतृय करने लगिी । िरोवर िकनारे नतृय

करिे हुए कभी िुबह के िो कभी दोपहर के या िनधया के िमय के रागो मे गीि गाने लगिी । मै

उिके गीि-िंगीि और नतृय िे अिभभूि हो जाया करिा िा । यह उिका िनतय का जैिे काया हो गया हो । मै राजनीिि और अस-शस की चचाा करिा िो वह भारिीय िंगीि और नतृय की चचाा करिी ।मै पुरषािा की बाि छे ड़िा िो वह पणय और राग-अनुराग की चचाा करिी । मेरी अपनी अनुरिक इिनी जयादा िी िक मै उिकी रििकिा के िामने निमसिक हो जाया करिा िा ।

िहमािद के पिि अनुरिक का पवाह िीविा िे बहने लगा । मै उिकी बांहो मे न जाने कब िमा गया ,पिा भी नहीं लगा । मुझे उिका िाि बहुि लुभाया करिा िा।

जब उपवन मे पुषप िखलिा है िो उिकी िुगनध िे िमुचा वािारण िुगिनधि हो

जाया करिा । जैिे पुषप के िखलने की गनध का आभाि हो जािा है ठीक उिी िरह जब दो िकशोर और िकशोरी पणय-गािा का गान करने लग जािे है िब उिकी भनक भी उनके मािा-िपिा को हो जािी है । ठीक इिी िरह िपिाशी को िहमािद और मेरे बीच चल रहे राग-अनुराग का पिा चल ही गया । एक पाि: िपिाशी ने मुझे अपने पाि िबठाकर बहुि ही सनेह िे िमझाया-

`` पुत ! वह यवन िकशोरी िुमहारे योगय नहीं है । यवन िंसकारहीन हुआ करिे है ।

िुम उिके पिि अनुरक हुए हो।यह ठीक नहीं है ।``

मैने िपिाशी का पििकार नहीं िकया । लेिकन मेरे हदय मे पश उठा ,यवन िकशोरी

िंसकारहीन है या नहीं ,मुझे नहीं जाि िकनिु वह इिनी िमपनन और अिििुनदर है िक िंभवि: मै ही उिके योगय नहीं हूँ। िहमािद का िाि मुझे सवगा के िमान पिीि होने लगिा िा । िदवि रजक

के िमान िो राित सवणा के िमान पिीि होने लगी िी । िपिाशी ने दे खा उनके कहने पर भी मै िहमािद िे पुन:-पन: िमलिे ही रहिा हूँ, िब उनहोने ििर कभी मुझे उवदे िलि नहीं िकया और न ही कभी रोका-टोका । शायद इििलए िक मािाशी के बाद िजि सी का िंिगा िमला वह पहला िंिगा

िा जो िहमािद िे मुझे िमलिे रहा । इििलए मेरा िहिािद के पिि अनुरक होना सवाभािवक ही िा ।

लेिकन एक िदन िपिाशी ने अपने एक िमत की पुती यशोमिि को मेरे िलए पिनद

कर िलया। यह बाि हे मािद को जाि हुई । उिी िमय िे िहमािद का मुझिे िमलना अनायाि ही बनद हो गया । मैिं पिििदन िशवालय भी जािा रहा िकनिु न िो िहमािदआई और न उिकी

मािाशी । कई िदनो िक िहमािद िे िमपका नहीं हो पाया । मै वयाकुल और िववहल हो गया । हम दोनो जहाँ-जहाँ पिििदन िमला करिे िे ,वहाँ-वहाँ बैठकर िणटो िक उिकी पिीिा करिे रहा

लेिकन िहमािद नहीं आई। मै नहीं जानिा िा िक वह कहाँ रहिी िी । इििलए उिे खोजना आिान नहीं िा । मै िहमािद को खोजिा रहा । कई िदनो के पिाि जाि हुआ िक िहमािद का िववाह एक पििििषि िामंि के िाि हो गया है । मेरे कोमल हदय पर जैिे वजपाि हो गया हो । यह

कुठारािाि िहन करना मेरे वश मे नहीं िा । मै अनमना िा यहाँ िे वहाँ और वहाँ िे यहाँ िबना िकिी कारण के िवचरिा रहा िकनिु पिरणाम कुछ नहीं िनकला ।

िमय िकिी के रोके नहीं रकिा । वह िनरनिर चलिे रहिा । रकिा नहीं है । कई

वषोZिं िक िहमािद िे कोई िमपका नहीं रहा । समिृि मे िहमािद की छिव िदै व चलायमान िी होने लगिी िी । िवदाधययन मे िमय वयिीि होिे गया । अनिि: मेरी िशिा पूणा हो गई ।

िवदाधययन िमाप होने के बाद मै लगभग एक वषा िक िबलकुल ही सविंत हो गया िा । िििशला िवदापीठ मे मेरे िलए अिििरक िवदाधययन नहीं िा । िवदापीठ मे अधययन के िलए आए हुए

िवदािी और गणराजयो िे अधययन करने आए राजकुमार अपने-अपने राजयो ििा िरो के िलए पसिान कर गए िे । मेरा अनयत कहीं जाना नहीं िा , इििलए िपिाशी ने मुझे अधयापन हे िु पेि्रिरि िकया । वे चाहिे िे िक मै उनके गाम चरक जाऊँ और वहीं पर अधयापन काया करँ । िपिाशी ने मुझे िवदालय पारं िंभ कराने हे िु आदे श िदया और मगध के िलए

रवाना कर िदया । मै मगध आ िो गया िकनिु चणक गाम न जािे हुए पाटलीपुत चला आया । यही पर एक कुिटया मे मैने अधयापन पारं भ िकया । अधयापन के दौरान मैने पाटिलपुत का भमण भी पारं भ कर िदया । पाटिलपुत उि मगध िामाजय की राजधानी हुआ करिी िी । आए िदन

पाटिलपुत मे हो रही हलचल दे ख-िुनकर मेरा हदय कांपने लगा । मुझे अपनी अपेिा पाटिलपुत

की पजा की िामािजक और पािरवािरक जीवन मे अिधक रिच होने लगी । मै दे खने लगा िक िकि िरह मगध िामाजय की राजनीिि मे अमानवीयिा , िंसकारहीनिा ,कुिटलिा और अनाचार

िैलने लगा है । नागिरक उचछ ªिंखल होने लगे है । अराजकिा िैल रही है । लेिकन कोई पििकार करनेवाला नहीं है । मै पाटिलपुत की राजनीिि मे रिच लेने लगा िकनिु उिमे पवेश करना

ििलहाल उिचि नहीं लगा रहा िा । कारण यह रहा िक मै अधयापन के िलए मगध आया हूँ , राजनीिि मे ििकयिा के िलए नहीं । हदय मे ठीि िो होिी ही है ।

एक िदन मै अपनी कुिटया के िामने धयानसि बैठा िा । जाि नहीं िकिनी ही

िरह की िरं गे हदय मे उठ रही िी । मै इि कुिटया मे ही केििनदि िा। मेरी इि कुिटया रपी

आशम मे पि ृ क-पि ृ क िेतो और पिरिसििियो िे अनेक महतवाकांिी छात िशिा पाप करने आने लगे िे । िभी एक िशषय मेरे िामने अनायाि आ उपिसिि हुआ । मेरे चरण सपशा कर पणाम िकया और करबद हो बोला-

`` गुरदे व! एक यवन-युविि आपिे िमलने की अपेिा रखिी है ।``

``उनहीं मेरे िमि भेज दो । रोको नहीं। मुझिे िमलने आए पतयेक अिििि का िममान करो और उनका आदर करो।`` मैने कहा

मेरा िशषय उि यवन-युविि को िादर ले आया।मै उिे दे खकर चौक गया।मै

बोला-

`` िुम ! यहाँ षोषो`` `` हाँ िवषणु `` मेरे करीब आकर उि युविि ने कहा। `` लेिकन िुम यहाँ कैिे षोषो``

`` यही िविध का िवधान है ।`` उि युविि ने कहा

`` िुमहारा वह िवषणु िो जाने कब का मर चुका है । अब वह िवषणु न रहकर मात िवदापीठ का आचाया रह गया है ।``

मैने कहा और उिके आने का पयोजन जानना चाहा । मेरा एक िशषय रतेश उिे ले

आया िा । उिने बिाया िहमािद िकिी शिशगुप की पेि्रिमका रह चुकी िी। शिशगुप ने िकिी

अनय शोढषी िे पिरणय कर िलया िो िहमािद का हदय भी टू ट चुका । वह शिशगुप िे िण ृ ा करने लगी िी। उिे जब जाि हुआ िक मंिै राजनीिि िे जुड़ गया हूँ िो वह मेरा िाि दे ने के िलए

वयाकुल हो उठी । रतेश ने मुझे बिाया िक वह हर िरह िे मुझे िाि दे ना चाहिी है िो मैने उिे अनेक काया िौपे और वह अनि िक मेरे बिाए काया करिी रही ।

कालानिर मे मुझिे िहमािद को एक िनिान भी पाप हुई िकनिु इिना होिे हुए भी

हम िदै व पि ृ क-पि ृ क रहिे रहे । मुझे इि अवसिा िक िहमािद के िाि रहने का कभी पूरा अविर पाप नहीं हो िका । यह मेरा दभ ु ागाय कहे या िनयिि का कोई अनोखा खेल ।जीवन के उतराधा िक

िहमािद मेरी अनुिरण करिे रही लेिकन मेरा जीवन िमपूणा भारि को एकछत राष बनाने मे लगा रहा । मै नहीं चाहिा िा िक कोई िवदे शी यवन आकर भारि पर राजय करे और भारि के अनेक

राजा आपि मे मर िमटिे रहे । इििलए मैने पण कर िलया िा िक भारि को एक पभुतव िमपनन राष बनाए। वह मेरा िपना पूरा हो गया और आज भारि एक िमपूणा राष बन गया।

मेरे अधरो पर ििरक रहीं यह मुसकान दे खकर यह न िमझना िक मै पिनन हूँ ।

यह वयंगय बाण मेरे िलए अपनी ही ओर िे है । मै जानिा हूँ िुमहारे हदय मे अनेकानेक पश उठ रहे है िकनिु अब...............शेष ििर कभी ।

दै िनक कायो के िनपटने के बाद एक िदन दोपहर के िमय मेरे एक िशषय कमंद ने

मेरे िमि अपने हदय मे उठी मंशाओं को जानने की उतिुकिा िे पूछा।

``गुरदे व ! शुभ ं क का आचरण मुझे िंदेहासपद लग रहा है । ऐिा कयो षोषो

आप िवसिार िे बिाएंगे ।``

`` िुनो कमंद ! यह बहुि बड़ी िटना है । इिे िमझने के िलए मुझे िुमहे अपने

जीवन की िारी िटनाएं िुनानी होगी िब ही िुम जान पाओगे ।``

`` मै जानने का उतिुक हूँ गुरदे व । आपके जनम िे लेकर अब िक का िमपूणा

वि ृ ानि िुनना चाहिा हूँ ।``

`` वति ! िुनो । मेरे िपिा आचाया िशवगुप ही मेरे गुर रहे । िििशला मे

आचाया िशवगुप की छतछाया मे मैने राजनीिि,धमा और वेदो का अधययन िकया िा । िहमािद का िकिी िामंि के िाि िववाह के बाद मेरा हदय वयाकुल हो गया िा । िवषाद ने मुझे आ िेर िलया िा िकनिु िपिाशी के आिशवाद ा और िशिा ने मुझे नई राह िदखाई । उनहोने मुझे न केवल

राजनीिि की िशिा दी बिलक दे श पेि्रम के अंकुर भी मेरे अनि:सिली मे उतपनन करा िदए। मेरा हदय और मिसिषक अब पूणा राष पेि्रम और भिक के िलए िमिपि ा हो गया । िपिाशी के िाि

िमलकर मै भी आशम मे िशषयो को पढ़ाने लगा िा । कुछ वषोZिं िक िपिाशी के िाि अधयापन िकया । वह िमय न केवल राजनीिि का िा बिलक दे श के पिि अपनी िनषा का भी िा । िवदे शी

यवनो की नज़र भारि मे हो रही आपिी उिल-पुिल की ओर िी। यवन यह अचछी िरह िे जान

गए िे िक भारि मे छोटे -छोटे राजय है । ये छोटे -छोटे राजय आपि मे ही टकरािे है और एक दि ू रे की मारकाट करिे है । इनहे आिानी िे हराया जा िकिा है । इिना ही नहीं इन छोटे -छाटे राजयो को हराकर और इनहे आपि मे लड़वाकर िमूचे भारि पर यवन एकछत राजय सिािपि करना चाहिे िे । उनहोने भारि के छोटे -छोटे राजयो को िोड़ने के िलए एक-दि ू रे को भड़काना पारं भ

िकया । यह मुझिे दे खा नहीं गया । मै इि पीड़ा िे वयाकुल हो उठा । लेिकन मै कया कर िकिा िा । िपिाशी ने दे खा िक मै इि पीड़ा िे आहि हुआ जा रहा हूँ िो उनहोने मुझे दे शाटन करने के िलए पेि्रिरि िकया और कहा, पुत िुम दे शाटन कर जान अिजि ा करो । इििे िुमहारे हदय मे पड़ा

िवषाद भी शानि हो जाएगा और िुम धीरे -धीरे िारी िसििि िे अवगि होकर िटसि हो जाओगे । लेिकन मेरा हदय इिनी आिानी िे िमझनेवाला नहीं िा ।

िपिाशी के िनदे शानुिार मै दे शाटन के िलए िनकल पड़ा । चँिू क िििशला िे मै िीधे पाटिलपुत आना चाहिा िा कयोिक पाटिलपुत मे मेरे कुछ िमत और सनेही भी िनवाि

करिे है । इििलए पाटिलपुत आना मुझे िवशेष रिचकर लगा और मै एक िशषय के िाि पाटिलपुत चला आया । 00 अपने एक िशषय के िाि मै मगध राजय के पाटिलपुत मे चला आया । मुझे िशषय नगर के िबिे बड़े बाज़ार मे ले आया । िड़क के दोनो ओर ऊँचे-ऊँचे भवन और उनके

ठीक नीचे बड़ी-बड़ी दक ु ाने िजी हुई । चारो ओर यहाँ िे वहाँ िक जन िैलाब ही जन िैलाब िदखाई दे ने लगा। दक ु ानो के िामने छकड़े खड़े िे िजनमे नवानन भरा हुआ िा । वाहनो मे अनन लाया जा रहा िा । राजभवन के पुरषो और महतवपूणा वयिकयो के रिो का आवागमन हो रहा िा । लेिकन बाज़ारो मे पाि: और िायं काल अिधक भीड़ और कलरव होिे रहिा । पाय: दोपहर मे नागिरक

बाज़ार मे कम ही िदखाई दे िे िे। बाज़ार मे िविभनन िरह के वसो की दक ा ु ाने िजी हुई िी । िनधन वयिक िे लेकर धनाडय वयिक िक के िलए रे शमी,ऊनी और िूिी वस दक ु ानो मे िवदमान िे।

िसयो और बचचो के िलए िविभनन िरह के रं गीन और आकषक ा पिरधान यहाँ-वहाँ लटके हुए िे।

हाटो मे भोजनालयो मे िरह-िरह के भोजनो की िुगनध आ रही िी । िमठाइयो और नमकीन की दक ु ाने िजी हुई िी । वयापािरयो ने अपनी दक ु ानो के िामने अनन और िरे लू िामनो की ढे िरयाँ लगाए रखी िी और उनके चाकर ऊँची आवाज़ लगाकर वसिुएं बेच रहे िे । सवणक ा ारो ने

सवणाभ ा ूषणो और मािणकय-मोिियो की अनेक वसिुएं बनाकर शीशे के पदशन ा कारी कपाटो मे िजा रखे िे । नागिरक और वयापारी सवािदष भोजन और िमषानो का आननद ले रहे िे । मै और मेरा िशषय पतयेक दक ु ानो मे झांक-झांक कर दे खने लगे । नगर भमण िे ऐिा पिीि होिा िा मानो मगध के नागिरको िंकी िामािजक-आििक ा -धािमक ा और राजनीििक िसििि िुदढ़ है ।

नागिरकगण अपनी आििक ा िसििि के अनुकूल पिरधान पहने हुए िे । यह िारा दे ख कर पिीि

होिा िा मगध राजय कािी िमपनन है । मै और मेरा िशषय दक ु ानो और नागिरको को कौिुहल िे

दे ख रहे िे िकनिु हमे जाि नहीं िा िक मगध के नागिरक भी हम दोनो को कौिुहल िे दे ख रहे है िै। एक ओर बहुि भीड़ िी और नागिरकगण वयिकयो की बोली लगा रहे िे । िजन

वयिकयो और िसयो की बोली लगाई जा रही िी ,शायद वे दाि-दािियाँ होगी और उनहीं के कयिवकय का काया चल रहा होगा । हालांिक यह मेरे िलए नया नहीं िा । मैने अनय राजयो मे भी दािदािियो का कय-िवकय दे खा िा । लेिकन यहाँ की िसििि िबलकुल िवपरीि लग रही िी । कुछ अजीब िरक िे उन दाि-दािियो के िाि वयवहार िकया जा रहा िा । हम आगे बढ़े ।

मुझे पयाि लग आई । नगर मे यहाँ-वहाँ बाविड़याँ बनी हुई िी । पानी के िलए मैने

एक बावड़ी मे झांका िकनिु उिमे पानी नहीं िा । मेरे िशषय ने भी दो-िीन बाविड़यो मे झांक कर दे खा िकनिु िकिी मे भी पानी नहीं िा । सवलपाहार गह ृ ो मे िििा गाहको को ही जल पदाय की

वयवसिा िी । िबना कुछ वसिु कय िकये सवलपाहार गि ृ ृह के सवामी जल नहीं िदया करिे। मै और मेरा िशषय िक-हारकर हाट की एक ओर खड़े हो गए । हमे िजि िमत के िर जाना िा ,हालांिक

उिका पिा हमे जाि िा िकनिु नवीन सिान और नगर होने िे इिनी आिानी िे िर िक पहुँचना िरल नहीं िा । हम दोनो ने िोचा , ििनक िवशाम करके िमत का िर जाि िकया जाय। अि: हम दोनो हाट मे जाने-जानेवाले नागिरको को दे ख रहे िे । िहिा िरिा और भाला िलए एक हष-पुष

युवक िेजी िे हमारी ओर लपका और मेरी वि पर नोकदार भाला अड़ा िदया और रौबदार सवर मे बोला-

``ए ! िुमहारे पाि की गठरी इधर दो ।``

अनायाि इि िरह उि युवक का वयवहार दे ख मै और मेरा िशषय हिपभ हो गया । मै ििनक िण उिकी ओर दे खिा रहा । उिके िाि एक और युवक िा । उिके हाि मे नंगी

िलवार िी । मै और मेरा िशषय िबरा गए । अनिभज नगर मे इि िरह सवागि होिा दे ख हम अिमंजसय मे पड़ गए । वह युवक और अिधक रौब िे डपट कर बोला``िुना नहीं िुमने, यह गठरी इधर दो ।``

उिका इि िरह िे रौब और डपट के िाि बोलिे ही मैने मेरे कांधे पर रखी भारी

गठरी ,िजिमे कुछ अनन भी भरा हुआ िा ,बड़ी सिूििा और िेजी िे उिके ििर पर दे मारी । इि िरह मेरे वदारा गठरी उिके ििर पर पड़िे ही वह िकपका कर धरा पर िगरा और उिके हाि िे

भाला और ििरा छुट गया । मै िेजी िे लपका और भाला उठाया िबना िमय गंवाये उिके वि पर अड़ा िदया और शीघिा िे िरिा उठा िलया । उिका दि ू रा िािी शायद िलवार चलाना नहीं

जानिा िा । ििर भी उिने भयभीि करने के िलए िलवार लेकर जूझना चाहा िकनिु वह िरिे के एक ही पहार िे भाग खड़ा हुआ । यह इिनी शीघिा िे हुआ िक वह युवक िबरा गया । दे खिे ही दे खिे मगध के नागिरको की भीड़ एकत हो गई। आवाज़े आने लगी `` वाह कया सिूििा है इि नवांिुक मे ``

`` लगिा है इि राजय मे नया-नया ही आया है ।`` `` िकनिु दे खो िो िकिना िनभय ा है ।``

`` और िकिना बलशाली । िकिना गठा हुआ शरीर है उिका ।`` `` िकनिु है शयामवणा और कुरप ।``

``शयामवणा है िो कया हुआ िकनिु चिुर जान पड़िा है ।``

`` हम लोग िो िंग आ गए पिििदन की इि लूटमार िे ...``

`` ऐिा जोिशला और वीर युवक ही इन लुटेरो को ठीक कर िकिा है ।`` ``ऐिे ही िनिभZ क युवक हमारे राजय मे होना चािहए । िब ही इन लुटेरो को

कुचला जा िकिा है । ``

िाि मे आया मेरा िशषय रोमांिचि हो गया।वह बोला-

``आया! आपने अपनी िनिभZ किा का पिरचय दे कर मगधवािियो को चमकृ ि कर िदया । मैने िो ऐिा िोचा ही नहीं िा िक आप इिना िाहि िदखाएंगे ।``

`` लगिा है ,मगध की इि राजधानी मे आगंिक ु ो का सवागि इिी िरह होिा होगा

, है न िशषय षोषो अिििियो का सवागि भी ऐिे ही होिा होिेगा ।``

`` हमे मगध की राजधानी िे ऐिी आशा नहीं िी । असिु,आया ! अब हमे कहाँ

चलना है । यहाँ अिधक िमय िक ठहरना उिचि पिीि नहीं होिा । आिखर हम मगध के नहीं है । कुछ भी अिपय ििटि हो िकिा है ।``

`` िुम ठीक कहिे हो वति । यहाँ िे शीघ चल दे ना चािहए । यहाँ पाटलीपुत मे मेरा

िमत रिचकुमार रहिे है । हमे उनहीं के िर चलना है । वह िरयू िकनारे रहिे है ।`` `` आया ! िरयू िकनारे कृ षण िमनदर के िनकट ही होगा ।`` `` िंभवि: वति ! ``

हम दोनो अपनी राह चल िदए । नागिरक आियच ा िकि हो हमे दे खने लगे िकनिु

िकिी ने कुछ नहीं कहा । िकिी ने हमे रोका-टोका भी नहीं । मगध के नागिरको की बािे िुनकर ऐिा जान पड़ रहा िा मानो मगध मे िाधारण नागिरको की िुरिा का कोई पबंध नहीं है । चारो ओर अराजकिा िैली हुई है । िजि िरह िुनदर-िुनदर हाट-बाज़ार िजे हुए िे, ठीक उिी िरह

यहाँ-वहाँ मिदरालय और नगरवधुओं ने वैशयालय खोल रहे िे । नगरवधुएं वदार पर गाहको को अििशल हाव-भावो के इशारे िे आमंिति कर रही है और मनचले युवक और नागिरक आननद लाभ उठा रहे है । हमने दे खा राजय के िैिनक भी मदपान कर नगरवधुओं के वदार के आिपाि

टहलिे रोमांिचि हो रहे है । िुगिनधि मालाओं और इत लगाएं रििकगण नगरवधुओं की कमर मे हाि डाले यहाँि-ं वहाँ डोल रहे है । िभी हाट की ओर िे कई नागिरको के िचललाने की आवाज़े होने लगी। । शायद वयापारी और कृ षको के बीच कोई बहि हो रही हो लेिकन यह कया षोषो वहाँ िो

लड़ाई-झगड़ा होने लगा । कुछ िैिनक कृ षको को मारपीट रहे है । कुछ नागिरक दक ु ानो को लूट रहे है । हाट मे हाहाकार मच गया । जाने िकिने िैिनको को खबर दी ,िुड़िवार िैिनक हाट मे आ

पहुँचे । शीघ ही दक ु ाने बनद हो गई । कृ षको और कुछ वयविाइयो को धर दबोचा और िैिनक उनहे पीटने लगे । यह िब दे खकर मेरा हदय कांप गया । िोचने लगा ,यह कैिा राजय है । यह कैिी

पजा है और यहाँ के िमाट भी कैिे होगे । यह दे खकर मेरा हदय वयाकुल हो उठा । मुझिे यह िब दे खा नहीं जा रहा िा िकनिु मै िववश िा । िििशला िे पाटिलपुत आया हूँ। अनय राजय का

नागिरक हूँ । ितकाल ही कुछ कर नहीं िकिा और न ही पििरोध कर िकिा । मेरा िशषय भय के

कारण कांपने लगा । उिने िििशला मे ऐिा िाणडव नहीं दे खा िा । िििशला और पाटिलपुत की शािन वयवसिा मे मूलभूि अनिर िदखाई दे रहा िा । हम दोनो िकिी िरह का पििवाद िकए िरयू की ओर चल िदए । िनधया हो रही िी । हाट मे भीड़ कम हो गई िी । नगर मे पकाश की

िमुिचि वयवसिा नहीं होने के कारण अिधकांश िेतो मे अंधकार छाना पारं भ हो रहा िा । हमे

शीघ ही रिचकुमार के िर पहुँच जाना चािहए िा। भूख भी लग चुकी िी। दो िदनो िे उदर मे अनन का एक दाना भी पहुँचा नहीं िा । गठरी भी हाट मे उि लुटेरे पर िेक मारी िी । वह भी हाट मे ही

कहीं लुप हो गई। इििलए हमने चुपचाप िरयू की ओर जाना ही उिचि िमझा । िरयू जयादा दरू नहीं िी िकनिु जैिे-जैिे अंधेरा िना होिे गया , राह िदखना भी किठन हो रहा िा । नगर मे

पकाश की वयवसिा केवल शिेिषयो के भवनो के पाि ही िदखाई दे रही िी कयोिक वे ही नगर के िमपनन और महतवपूणा वयिक है । िाधारण नागिरको के आवाि के पाि पकाश की वयवसिा िदखाई नहीं दे रही िी। िशषय और मै केवल समिृि के िहारे िरयू की ओर बढ़ रहे िे ।

िरयू के िकनारे ही कृ षण िमनदर के िमीप रिचकुमार का एक छोटा िा भवन

िनिमि ा िा । िबलकुल िादगी और शालीनिा िदखाई दे रही िी । वदार की ओट िे भीिर का पकाश बाहर की ओर पड़ रहा िा । राती का पि ृ म पहर हो रहा िा और आंगन मे िुलिी के िबरवे के पाि दीपक पजजविलि हो रहा िा। रिचकुमार के गह ृ का वदार लगभग आधा बनद और आधा खुला

हुआ िा। मैने वदार धीरे िे खटखटाया । भीिर िे बहुि ही पिला और मधुर नारी सवर िुनाई िदया ।

`` कौन पििक है षोषो``

`` रिचकुमार गह ृ मे होगे षोषो``मैने पश िकया । ििनक ही िण मे रिचकुमार वदार खोल बाहर आए । मुझे दे खिे ही पिनन हो गए

। हम दोनो िमत लगभग पाँच वषोZिं के उपरानि िमल रहे िे । रिच मेरे िाि िििशला मे

िवदाधययन कर चुके है । बुिद िे कुशाग और उिने ही उदार मनिा रिचकुमार िजि िरह आशम मे िे ठीक वैिे ही अब भी िदखाई दे रहे िे । वही पहनावा ,शेि धोिी और

कांधे पर शेि अंगोछा डला हुआ । कांधे पर जनेऊ, ऊँचे मािे पर दीि Z ििलक,बड़ी-बड़ी आँखे ,

गौर वणा ,िामानय कदकाठी िकनिु गठा हुआ शरीर....िहिा उनहे दे खने पर जाि नहीं होिा िा िक वे शिेिष भी है या नहीं । हाँ , वे शिेिष भी हो िो कोई िवशेष अनिर पड़नेवाला नहीं कयोिक उनका पहनावा और आचार-िवचार िबलकुल ही िादा िे । मुझे दे खिे ही गले िे लग गए । बोले`` अभी आ ही रहे हो कया षोषो``

`` हाँ ,,रिच..बि चला ही आ रहा हूँ।``

`` याता कैिी रही षोषो हमे िूिचि कर दे िे,हम सवयं ही आपको लेने आ जािे।``

`` कोई आवशयकिा पिीि नहीं हो रही िी । िोचा, सवयं ही चलकर लाऊँ ।`` `` यह िुमने अिि-उतम िकया ।``

रिचकुमार मुझिे आयु मे बड़े िे । आयु मे बड़े होने के िाि वयवहार मे भी बड़े िे । हाि पकड़कर भीिर ले गए। भीिर िे आवाज़ आई। `` कौन है जी षोषो``

`` मेरे आशम के िमत आए है शयामा..आओ दे खो िो...``

भीिर िे एक नारी पात मे जल और कुछ िमषानन लेकर आई। उिके ििर पर आंचल डला हुआ िा । मािे पर ििनदरू और पैरो मे नुपूर पहने हुए िे । इििलए भीिर िे बारबार नुपूर के सवर झनझना रहे िे। रिच बोले-

`` मेरे िमत है । िििशला िे आये है ....``

`` पणाम भाभी...मै िििशला िे आया हूँ। मेरा नाम चाणकय है ।`` `` पणाम.....``शयामा ने मेरा अिभवादन िकया।

`` मािा-िपिा कहाँ है षोषो मै ििनक उनके चरण सपशा कर लूँ।``मै बोला `` वे अपने िमधी के िाि गए है । अभी दो माह पिहले हमारा िववाह हुआ है ।

शयामा के िपिा आए हुए िे ।`` रिचकुमार ने बिाया ।

`` आया ! आप जल लेकर मुख पिालन कर ले । आप िके हुए होगे । ििनक

िवशाम कर ले ििर भोजन िलिजएगा ।``शयामा बोली

`` लेिकन भाभी ! िारे िदन की िकान िे भूख जैिे चली ही गई है । मुझे आप िोड़ा

िा दध ू और िल ही दे दीिजएगा ।``

`` जैिी आपकी इचछा आया!`` शयामा बोली

`` भाभी ! मै आयु मे भले ही आपिे बड़ा होऊँगा िकनिु रिचकुमार का मुझिे बड़ा होने के कारण आप भी मुझिे बडी ही हुई न..इििलए आप मुझे आया न कहे िो उतम होगा । आप मुझे िवषणु या चाणकय ही कह िकिी है ।``मैने शयामा िे कहा

`` नहीं आया ! आप न केवल मुझिे आयु मे बड़े है अिपिु आप मुझिे िशिा और

जान मे बहुि बड़े है । इििलए मेरा यह अिधकार आप न छीने ।``

`` नहीं भाभी । आप,आप है और मै रहा आप दोनो िे छोटा । इििलए मेरा

अिधकार मेरे ही पाि रहने दे िो उतम होगा ।``

`` िकनिु मै िमझिा हूँ िक आप दोनो दे वर-भाभी बहि के अिििरक यिद भोजन

ही कर ले िो उतम होगा । वैिे भी चाणकय बहुि िके हुए हो ।``

िदन भर की िकान और पाटिलपुत के हाट के िनाव ने मुझे बहुि पभािवि कर

िदया िा । मै रासिे भर मगध राजय की िसििि को लेकर िचिनिि हो रहा िा । रिचकुमार के

भवन आकर ििनक िवशाम िमल रहा िा । रिचकुमार पात मे जल भर आंगन मे रख आए िो मैने हसि-मुख पिालन िकया। आिन पर शानििचत होकर बैठा । भाभी शयामा

दध ू और कुछ िल ले आई और मेरे िमि पर ऊँचे आिन पर रख िदया । वैशाख की गरमी चुभ

रही िी । शयामा भाभी हाि के पंखे िे हवा करने लगी । रिचकुमार भोजन करने लगे िो मैने िल और दध ू ले िलया । भोजन करने के बाद रिचकुमार बोले-

``िंभवि: िपिाशी ने िुमहारे िलए कोई कनया दे खी होगी । अब िक िुमहारा

िववाह हो गया होगा । उिे भी िाि ले आिे ।``

रिचकुमार के पश ने मेरे अनिि को अनायाि झकझोर िदया। मै उनकी ओर दे खने लगा िो वे बोले-

``मै ितय कह रहा हूँ । अचछा होिा िुम भाभी को भी िाि ले आिे ।``

मै अब भी चुप िा । मुझे चुप और शानि दे ख शयामा हं ि पड़ी और बोली-

`` आया! ये िंभवि: िंकोच कर रहे है । इनका मुख दे खो लाज के कारण कैिे लाल हुआ जा रहा है । पश ही ऐिा िकया गया िक इि आयु मे सवयं ही िंकोच और लाज आने लगिी है कयो आया षोषो``

`` ऐिी बाि नहीं है भाभी । वसिुि:..........``

मै कुछ कहूँ इिके पहले ही रिचकुमार िखलिखलाकर हं ि पड़े ।बोले-

`` यिद िपिाशी ने अब िक कोई कनया न दे खी हो िो हम ही दे ख लेिे है । मेरे िमत

की एक बिहन है । िुम दोनो की जोड़ी अचछी लगेगी कयो शयामा षोषो``

`` यिद यह िंभव हो िो बहुि ही उतम होगा । हम िपिाशी को िंदेश पहुँचा दे गे िक

वे पिरशम न करे । हमने पाटिलपुत मे ही एक िुिशल कनया िवषणु के िलए खोज िनकाली है । ``शयाम मुसकराकर बोली।

`` ऐिी बाि नहीं है भाभी ! वसिुि: मेरे जीवन मे एक कनया आई िी । उिकी

माँ यवन सी िी और वह बहुि िुनदर िी । बड़ी-बड़ी आँखे,िुनहरे केश ,गौरवणा और लिा

के िमान लचीली उिकी दे ह...। वह पिििदन िशविमनदर मे आया करिी िी । हम दोनो मे पेम भी बहुि हो गया िा । वह मेरे िबना नहीं रहिी िी । लेिकन एक िदन अनायाि उिका िववाह एक

िमपनन वयिक िे हो गया और वह अपने पिि के िाि चली गई। बि,उि िदन के बाद िे मैने सी के िवषय मे कुछ िोचा भी नहीं । अब िुम ही बिाओ मै िकिी अनय सी के िवषय मे कैिे िोच िकिा हूँ ।``

मैने शयामा भाभी को िमझाने का पयत िकया । रिचकुमार ने दे खा िक मुझे कुछ

आिमंजसय िा अनुभव हो रहा है िब उनहोने चचाा का िवषय बदलिे हुए मुसकराकर अनय िवषय पर पूछा-

`` अचछा,यह बिाओ ,,िशिा पूणा करने के बाद अब िुम कया करना चाहिे हो ।

यहाँ पाटिलपुत मे िुमहे कैिा लग रहा है । िििशला और पाटिलपुत मे कया-कया िमानिा और अिमानिा है । िििशला िे पाटिलपुत आने िक िुमने कया-कया दे खा षोषो िकिी िरह का वयवधान उतपनन िो नहीं हुआ होगा ।``

इिने पश एक िाि िुनकर शयामा िखलिखलाकर हं ि पड़ी और बोली`` आया ! आपने िो पशो की ऐिी झड़ी लगा दी िक िबचारे मेरे दे वर िारी राि पशो

का उतर दे िे िक जाएंगे ।``

`` भाभी ! रिच ने िमयक पश ही िकया है कयोिक िशिा पूणा करने के उपरानि पतयेक युवक का भिवषय िामने पड़ा होिा है । उिे अपनी राह सवयं ही खोजनी होिी ह िै। उिकी

अपनी योजनाएं होिी है । उिके अपने सवपन होिे है और अिधक कया कहे भाभी, पतयेक युवक का अपना िनजी जीवन होिा है । वह उिी के अनुरप अपने भिवषय की योजनाएं बनािा है । मुझे भी िपिाशी ने अपना भिवषय और सवपन को िाकार करने का पूरा अविर िदया है । इिीिलए मै िििशला िे चलकर इिनी दरू मगध आया हूँ ।``

`` हाँ शयामा ! िवषणु ठीक कह रहे है । ये मेरे िहपाठी ही नहीं अिपिु मेरे अनुज ही

िमझो । ये आशम मे उचच िशिा पाप कर आए है िो अवशय ही कुछ िो करे गे ही ।``रिचकुमार बोले।

`` मुझे पाटिलपुत मे अधयापक िनयुक कर भेजा गया है । मै राजनीिि का छात

रहा हूँ और यहाँ पाटिलपुत मे न केवल अधयापन करने अिपिु राजनीिि का अभयाि करना भी

चाहिा हूँ । आज िमपूणा भारि की जो िसििि बनी हुई है वह बड़ी ही िचनिासपद िसििि है भाभी

। भारिवषा के छोटे -छोटे गणराजय के राजा आपि मे लड़ रहे है और इिका लाभ पििमवाले उठाने मे कोई कमी नहीं कर रहे है । िििशला की ओर जो छोटे -छोटे राजय है वहाँ यवन राजय के राजा और अिधपिि इन छोटे -छोटे राजयो को आपि मे लड़ािे रहिे है और जब वे शिकहीन हो जािे है

िब यवन अिधपिि उनहे दिमि कर उन पर अपना आिधपतय सिािपि करने का पयाि करिे है । इि िरह िे यवन पििम-उतर िे भारि मे पवेश करिे जा रहे है । धीरे -धीरे यवन िामाजय भारि मे िैलाने का षढ़यंत रचा जा रहा है । मै चाहिा हूँ िक मै अधयापन के माधयम िे राषपेि्रम की

जवाला जागि करँ और यवन िामाजय को भारि मे आने िे रोकने का पयाि करिे रहूँ । यह काया एक अकेले राजय िे नहीं होगा िकनिु िमपूणा राजयो को िमलने िे होगा । कोई राजय यह नहीं चाहिा िक वह िकिी अनय राजय के अधीन हो अिपिु हर राजय के अिधपिि अनय राजयो पर अपना आिधपतय पििषािपि करना चाहिे है । हमे ऐिा होने िे रोकना होगा । जब मुझे यहाँ अधयापक िनयुक िकया है िो मै राजनीिि मे भी कुछ काया करँ । हालांिक मुझे राजय की

अिभलाषा नहीं है िकनिु िमपूणा भारि को यवनो के चंगुल िे बचाना है । िििशला मे िसििि

िंिोषजनक नहीं है । िििशला के जनपदो मे अिंिोष और िनाव की िसििि बनी हुई है । गुरकुल मे एकिा और आपिी िंगठन की कमी ह िै। राजनीििक अखाड़ा चारो ओर बनिा जा रहा है और इिका लाभ पििमोतर िे यवन िमाट लेना चाहिे है । यह िसििि िवकट है और शीघ ही कोई उपाय िकया जाना चािहए ।``

`` आया िमत िवषणु ! लगभग यही िसििि पाटिलपुत की भी हो रही है । यिद िुमने

मगध मे पवेश करिे िमय िे मेरे िनवाि िक आने मे कुछ अनोखा दे खा होगा िो यह आिया नहीं है । यहॉं यह िब हो रहा है ।`` रिचकुमार िहमिि मे मगध की िसििि को सपष करिे हुए बोले।

`` हॉं ,मैने दे खा । हाट मे दो दसयुओं ने हमे भाला और िरिा अड़ा कर लुटना चाहा िकनिु िुमहारा यह िमत उनके िामने िीण नहीं पड़ा । दे खो , वह दे खो हमारी गठरी । उिमे रखे अनन की पोटली िट गई है । धन िो हमारे पाि िवशेष िा नहीं जो उनहे दे दे िे िकनिु यह भारी

गठरी उनके ििर पर दे मारी । वे हमारे वदारा िकए जानेवाले हमले की कलपना भी नहीं कर िके

होगे । वे इि िरह भयभीि हुए िक उनके वि पर हमने भाला अड़ा िदया और िरिे िे उनके िािी की िलवार को िछनन-िभनन कर िदया । पाटिलपुत के नागिरक दे खिे ही रह गए ।``

``यह िब दे खकर अब िुमने कया िोचा आया िमत षोषो कया िुम अब भी

पाटिलपुत मे रहना चाहोगे षोषो``

``िमत रिचकुमार ! पिम िो मै यहाँ अधयापन करने आया हूँ िकनिु मुझे ििका

रहना पड़े गा । पाटिलपुत के शिेिषयो एवं पमुखो िे िमपका रखा जाना आवशयक होगा िािक यहाँ की राजनीिि का अधययन भी हो िके।`` मैने अपने िवचार रिचकुमार को बिाए। ने पूछा।

`` वैिे िुमहारी िकि पमुख िे िमलने की अिभलाषा है आया िमत षोषो``रिचकुमार ``अमातय कंदपा । वे यहाँ के शिेिषयो मे भी शष े है । वे मेरे िपिा के िमत रहे है ।

उनिे िमपका करने के बाद ही आगे की िसििि पर िवचार िकया जा िकिा है । पाटिलपुत मे

अधयापन के िमय िंभवि: अमातय कंदपा के िहयोग की आवशयकिा पिीि हो िकिी है ।`` `` कब चलना है अमातय कंदपा के पाि षोषो``

`` कया िुम उनहे जानिे हो षोषो मेरा मिलब कया वे िुमहे जानिे है षोषो``

`` अचछी िरह िे िो नहीं िकनिु जब पाटिलपुत के शिेिषयो मे िगने जािे है िो इिका िातपया िंभवि: वे मुझे भी जानिे ही होगे िकनिु यह जररी भी नहीं है । लेिकन मै िुमहे अमातय कंदपा के यहाँ अवशय ले चलूग ँ ा । कब चलना होगा षोषो``

`` कल.....कल पाि: दि ू री िड़ी के आिपाि, उि िमय वे िर िमल भी जाएंगे ।``. पाि:िरयू मे सनान और कृ षण िमनदर मे धयान के बाद रिचकुमार और मैिेने सवलपाहार मे गौदगुध , िल और िमषानन िलए और दि ू री िड़ी मे अमातय कंदपा की िर की ओर

चल िदए । हाट िे कुछ ही दरूी पर किारबद िसििि मे िमनदर िदखाई िदए । भगवान महावीर का

गगनचुमबी िमनदर दे खकर मै दं ग रह गया । इिना िवशाल िमनदर मैने कभी नहीं दे खा । भगवान महावीर के िमनदर िे चलकर कुछ ही दरूी पर िशवालय िदखाई िदया । यहॉं िाधु-िनिो की अपार भीड़ िदखाई दी । िमनदर मे शदालु पूजन िामगी चढ़ाकर पिाद गहण कर रहे िे । मैने भी

िशवालय मे दशन ा कर पणाम िकया । यहाँ का दशय बड़ा मनोरम पिीि हो रहा िा । िंभवि: िमनदर के आिपाि पििकूल िसििि िदखाई नहीं दे रही िी िक िहिा एक िाधु एक मिहला को

ििीटिे हुए उिे अििशल गािलयाँ दे रहा िा । मै वहीं िठठककर खड़ा हो गया । मुझे इि िरह अचानक िठठककर खड़ा होिे दे ख रिचकुमार बोले-

`` भद ! यहाँ यह िब होना एक आम बाि है । िुम ििनक भी िवििसमि मि हो ।

उि ओर दे खे िबना िुम चलिे रहो ।``

`` मुझे यह िब दे खकर बहुि पीड़ा होिी है । हालांिक िििशला मे ऐिा नहीं होिा

जैिा यहाँ िदख रहा है । वहाँ िो िाधु और िनयािी अनुशािन मे होिे है ।`` मैने िचनिा वयक की । यही नहीं अमातय कंदपा के िर िक पहुँचिे-पहुँचिे िकिने ही िरह के उपदव होिे

दे खिा रह गया । यह िब रोकना , एक अपिरिचि राजय मे मै नहीं कर िकिा िा । इििलए िबना कुछ कहे रिचकुमार के िाि चलिे रहा ।

हम अमातय कंदपा के िर के िामने आ पहुँचे । वदार पर एक िैिनक भाला और

िलवार धारण िकए खड़ा िा । शायद रिचकुमार को पहचानिा हो या हो िकिा है िक मगध राजय का शिेिष होने के कारण जानिा हो । उनहे दे ख िैिनक ने पणाम िकया । रिचकुमार ने अमातय कंदपा के िवषय मे पूछा । िैिनक बोला-

`` आया! ििनक रिकए मै अमातय को िूचना दे आिा हूँ ।``

िैिनक सिूििा िे भीिर गया और कुछ ही िण बाद वापि आया । बोला `` आप कि मे िवरािजए । अमातय शीघ ही आपिे िमलेगे ।``

उिने कि की ओर िंकेि िकया । मै और रिचकुमार कि मे पवेश कर आिन पर बैठ गए । कि िुरिचपूणा ढं ग िे िजाया गया िा । िशा पर बहुि ही िुनदर कालीने िबछी हुई िी । कि के कोनो मे िविभनन पकार की मूििय ा ाँ रखी हुई िी । पिीि हो रहा िा, मगध मे िशलपकला

पर बहुि अचछा काम हो रहा है । िजि आिन पर हम बैठे िे वह मखमल और रे शम िे िनिमि ा िा । उि पर बेल-बूटे और पिियो की िुनदर-िुनदर आकृ िियाँ बनी हुई िी । िंभवि: िखड़की के पाि िुगिनधि पुषप का वि ृ लगा हो ,वहाँ िे भीनी-भीनी िुगनध आ रही िी । कि मे मदम-मदम

पकाश पड़ रहा िा । हालांिक िदन का िमय िा ििर भी िवशेष पकार के पकाश की वयवसिा की गई िी । कुछ िण बाद एक दािी आई । पात मे जल और कुछ सवलपाहार िा । हमारे िामने रख कर बोली-

`` अमातय ने कहा है , आप जब िक सवलपाहार गहण कर ले । वे कुछ ही िमय मे

आपिे िमलेगे ।``

हम दोनो ने सवलपाहार गहण िकया । हालांिक िर िे िनकलिे िमय सवलपाहार हो चुका

िा िकनिु आगह को ठु कराया नहीं जा िकिा िा । िभी िवराट मिसिषक के एक वयोवद ृ ने कि मे पवेश िकया । िाि मे मेरा िशषय दतकुमार भी िा , जो िििशला िे पाटिलपुत िक मेरे िाि रहा । वह बोला-

`` िपिाशी ! िििशला गुरकुल के मेरे गुर एवं राजनीिि के आधयापक आचाया चाणकय िे कृ पया िमिलए ।``

`` अमातय शिेिषवर ! आपके दशन ा का अिभलाषी आया चाणकय आपको पणाम

करिा है ।``

मै पणाम की मुदा के िाि करबद हो िोड़ा िा आगे की ओर झुका । वे मुझे दे खिे

ही रह गए । िंभवि: मुझे पहली बार दे ख रहे हो । मुिुझे नख िे िशख िक दे खा ििर बोले `` आचाया चाणकय ! मगध मे िुमहारा सवागि है ।``

`` धनयवाद अमातय । मुझे आपिे यही अपेिा िी । मै आपका अिभवादन करिा

हूँ ।`` मै िवनीि हो बोला

`` मुझे आशा है । मगध आपको रिचकर लगा होगा ।`` अमातय कंदपा बोले

`` यिद आपका अनुगह रहा िो अवशय ही मगध रिचकर लगेगा । अभी मै इिे दे ख-िुन रहा हूँ । जब रिचकर लगेगा , आपको अवशय िूिचि करना चाहूँगा ।`` मैिेने कहा।

`` मै आपका अिभपाय िमझा नहीं आचाया .....आप कहना कया चाहिे हो षोषो`` `` मुझे लगिा है अनय राजयो की िरह मगध भी आतममुगध है ।`` `` आतममुगध है षोषो आचाया आप कहना कया चाहिे हो षोषो``

`` मैने िििशला मे िुना िा िक मगध के िमाट भी आतममुगध है । धन की

लोलुपिा िे आकंठ डू बे हुए है । िंभवि: इिीिलए उनहे धनननद भी कहा जािा है । कया यह िच नहीं है षोषो``

`` आचाया चाणकय षोषो कया िुमहे भय नहीं िक िुम राजय के एक अमातय के

िममुख यह कह रहे हो षोषो``

`` वासििवकिा और यिािा िे मुख िेरना उिचि नहीं है अमातय । ितय कटु

अवशय होिा है िकनिु लकय का भेद करिा हुआ होिा है । वह कभी िरक नहीं जािा शष े वर । मगध आने पर मेरा जो सवागि पाटिलपुतवािियो ने िकया , वह िकिी िे छुपा नहीं है ।``

`` ऐिा पिीि होिा है आचाया ,जैिे िुम अधयापन करने नहीं अिपिु राजनीिि मे

दखल दे ने मगध मे आए हो ।कया यह ितय नहीं है षोषो``

`` अमातयवर ! मुझे राजनीिि की अपेिा अधयापन मे अिधक रिच है िकनिु

राजय का एक नागिरक होने जा रहा हूँ िो मुझे यह भी जानना आवशयक है िक िजि राजय मे मै अधयापक िनयुक िकया गया हूँ ,उि राजय की िसििि कैिी है कयोिक उिी के अनुरप मै

िवदाििय ा ो को िशिा दे िकूँ। राजय के अनुकूल ही िशिा दी जाना शष े होिा है शिेिषवर । इििे राजय की पििषा बनी रहे गी ।``

`` मै िुमहारे िवचारो िे पूणि ा : िहमि हूँ िकनिु अधयापक को राजनीिि पढ़ािे

िमय यह नहीं भूलना चािहए िक वह मगध राजय मे महाराजा ननद के पशािन मे रह रहा है और उिी राजय का नमक िेवन कर रहा है ।``

`` मुझे भिलभांिि यह जाि है अमातय शिेिषवर िकनिु एक अधयापक का अपने

राजय के पिि कुछ किवाय भी होिा है िजिे उिे िनबहाना अतयनि आवशयक है । मैिे वही किवाय िनबहाने का पयाि करँगा ।``

`` आचाया अभी िो आप आया रिचकर के आििथय मे है । मै आपिे पुन: ििर

कभी चचाा करना चाहूँगा । अभी मुझे िकिी महतवपूणा काया िे पसिान करना है । आप दो िदवि के उपरानि िीिरे पहर मेरे आननद िदन मे आइएगा । हम वहीं चचाा करे गे ।``

िंभवि: अमातय कंदपा भी आतममुगध होगे िभी वे िबना पिीिा िकए कि िे चले

गए । मै कभी रिचकुमार की ओर िो कभी िशषय दतकुमार की ओर दे खने लगा । मुझे लगा ,

शायद मेरा सपषवादी होना उनको भारी पड़ गया हो इििलए वे िबना पिीिा िकए ही चले गए । रिचकुमार बोले-

`` िमत आया ! अमातय कंदपा अिहं िावादी है । वे ऐिी बािो पर धयान नहीं दे िे ।

िुमको ििनक भी िचिनिि होना नहीं चािहए ।``

`` आचायव ा र ! वसिुि: आपने िपिाशी को बहुि ही कटु ितय कहा । इििलए वे

ििलिमला गए िकनिु आप यह िवशाि रिखए िक िपिाशी ििनक भी िवचिलि नहीं हुए । बिलक वे आपके किन पर िवचार अवशय करे गे ।`

`िशषय दतकुमार ने बड़ी आतमीयिा िे कहा िो मुझे लगा ,इिनी शीघिा िे अपने

िवचार पगट नहीं करना चािहए िा । लेिकन अब कह ही िदया है िो जो होगा दे खा जाएगा । जो

ितय है ,वह अटल ितय है । उिे िमटाया नहीं जा िकिा । आज नहीिे िो कभी यह पश उपिसिि होगा ,िब कया िकया जा िकिा है । अभी िो मै पाटिलपुत आया हूँ । धीरे -धीरे िब ठीक हो जाएगा

। अमातय कंदपा ने आननद-िदन मे चचाा के िलए आमंिति िकया है । वहाँ पहुँचना अिि-आवशयक होगा । िंभवि: कोई िनणय ा हो िकिा है । रिचकुमार और मै वापि चले आए।

शयामा भाभी ने अब िक सवािदष वयंजन बना रखे िे । वह हम दोनो की पिीिा कर रही िी । आंगन मे पवेश करिे ही शयामा भाभी पाद-पिालन के िलए पात मे जल रख बोली`` पिीि होिा है आया आज िकिी शष े ी िे िमल आए है । यह िमिमाया हुआ

शीमुख दे खकर मुझे आभाि हो रहा है । कया यह ितय है षोषो``

`` िुमहारी भाभी का आभाि गलि नहीं हो िकिा । वह िवदष ु ी है िुमको जाि

होगा । वह वेद-तयी की अधयेिा है । उिके िपिाशी भी वेद-तयी के अधयेिा है । इिी कारण उिे भूि-भिवषय का भी आभाि हो जािा है ।``

`` आया ! इनकी बािो मे न आइए । पिमि: आप मुख-पिालन कर लेिे । भोजन आपकी पिीिा कर रहा है ।``

`` भाभी ! रिच ठीक कह रहे है । वेद-तयी के अधयेिा अनिमुZ खी होिे है । वे

आतम ितव िे भिलभांिि पिरिचि होिे है । उनहे कोई माि नहीं दे िकिा । वसिुि: वेद-जान के

बाद जानने के िलए कुछ शेष नहीं रह जािा िकनिु मै िो मात राजनीिि का िवदािी रहा और अब अधयापक हूँ । केवल िकिी वसिु या चचाा का पूवाम ा ान लगा िकिा हँ िू िकनिु मै अधयेिा नहीं हूँ । ``मैिेने अपनी बाि रखी

`` आया ! हम यहाँ वेद-तयी या राजनीिि की चचाा करने के िलए उपिसिि हुए है

या भोजन करने के िलए पसिुि हुए है । मुझे पिीि हो रहा है आप चचाा करने मे भोजन को शीिल कर दे गे ििर कहे गे भाभी भोजन िो शीिल हो गया है । पिम िो आप उषण भोजन गहण करे पिाि जो भी चचाा करनी हो करिे रिहए । आपके िलए िारी राि और िारा िदन पड़ा है ।``

शयामा की सनेिहल पिाड़ना ने हदय पर शीिल लेप लगा िदया । रिचकुमार

िखलिखलाकर हं ि पड़े । मुख पिालन के बाद भोजन करने बैठे िो शयामा भाभी ने ििर पिरणयिंसकार की बाि छे ड़ दी ।

`` मेरी मानो िो आया , अब िुम िववाह कर ही लो । कब िक यो ही यहाँ-वहाँ

भटकिे रहोगे । िुम चाहो िो यहाँ मगध मे कोई रपिी िमल िकिी है । िुमहारे भैया इि हे िु मदद अवशय करे गे । आप इनकी मदद करे गे न सवामी मुझे िो इन पर बड़ा िरि आ रहा है । कया ऐिा

नहीं हो िकिा िक िुम उि यवन कनया को िवसमि ृ कर पुन: नवीन िवचारो िे िंयुक होकर हमारी बाि सवीकार करो ।``

शयामा भाभी के इि दीि Z िवचार ने मुझे िववदिलि कर िदया । मै चुपचाप

भोजन करिे रहा । रिचकुमार बार-बार मुसकरा रहे िे । मै पाटिलपुत मे िववाह के िलए नहीं अिपिु अधयापन के िलए आया हूँ, यह उनहे बिला चुका हूँ िकनिु भाभी है िक पुन:-पुन: िववाह के िलए

पेि्रिरि कर रही है । कया मुझे अपना भिवषय िदखलाई नहीं दे रहा है षोषो मै िवचिलि नहीं हो िकिा । अपना लकय मुझे जाि है । मै पतयिि: बोला-

`` भाभी ! मुझे यहाँ मगध मे अधयापन के िलए िनयुक िकया गया है । िपिाशी ने

बहुि किठनाई िे पाटिलपुत मे आने की अनुमिि दी । मै चाहिा हूँ िक पाटिलपुत मे

अधयापन भी करिा रहूँ और राजनीिि का अधययन भी करिा रहूँ । यिद आपका और रिचकुमार

भैया का िहयोग रहा िो यह काया मै शीघ करना चाहिा हूँ । पिम िो मै अमातय कंदपा िे िमलना चाहिा हूँ । िंभवि: उनके िमपका मे आने िे राजनीिि के अधययन के रासिे सवयं ही खुल जाएंगे ।``

`` यह िो िववाह के बाद भी हो िकिा है आया ! कया िुम मुझे एक दे वरानी ला कर

नहीं दे िकिे षोषो``

`` नहीं भाभी , ऐिी बाि नहीं । मेरा उदे शय जब िक पूरा नहीं होिा िब िक मै इि िवषय मे िकंिचि िोच भी नहीं िकिा । हाँ , मुझे आपकी और रिचकुमार भैया के िहयोग की आवशयकिा है ।``

`` िुमहे अमातय कंदपा िे िमलने कब जािना है षोषो``

`` िीिरे पहर , उनके आननद-भवन मे आमंिति िकया है । रिच भैया भी मेरे िाि चलेगे । कयो रिच षोषो``

``हाँ , अवशय । आया ! मै िो आपका अनुगहीि हूँ । आपका िहयोग नहीं िमलिा

िो मै गुरकुल िे िशिा पाप नहीं कर िकिा िा ।``

`` आया! आप अनुिुगहीि होने की बाि न करे । यह िो एक दि ू रे का िंयोग ही

वयिक को खींच ले आिा है । यह बिाओं यिद आप यहाँ पाटिलपुत मे नही होिे िो मै यहाँ कदािप आने की नहीं िोचिा । मै जानिा िा िक मगध राजय की राजधानी पाटिलपुत मे आपके िमान

कोई अनय िववदान नहीं होगा । इििलए मुझे पाटिलपुत ही चयन करना पड़ और िपिाशी ने िुरनि ही यहाँ आने कही अनुमिि दे दी ।``

भोजन के बाद शयामा भाभी ने नरम-नरम िबछौना िबछा िदया । मै िबछौने पर

लेटा ही िा िक नींद आ गई । िनधया हो रही िी । रिचकुमार को िाि लेकर िरयू की ओर टहलने िनकल पड़े । िाट पर नर-नािरयो और बचचो की भीड़ लगी हुई िी । िमनदरो मे शदालुओं और

दशन ा ाििय ा ो का आना-जाना चल रहा िा । मैने िरयू मे सनान िकया िब िक रिचकुमार पुषप ले आए । सनान के बाद िशवालय मे दशन ा लाभ पाया और हाट की ओर टहलने िनकल पड़े ।

िनधया के िमय हाट मे िवशेष भीड़ रहिी है । चहल-पहल िी । वयापारी और

गाहको के बीच लेन-दे न हो रहा िा । कृ षक िाि मे लाये अनन और खाद िामगी वयापािरयो को

बेच रहे िे । कुछ दरूी पर एकत भीड़ िदखाई दी । िंभवि: वहाँ कोई अिपय िटना िटी हो । हम उि ओर चल िदए । एक िकशोर बालक रक िे लिपि धरा पर िायल पड़ा िा और नागिरक उिे दे ख

रहे िे । िभी एक वयोवद ृ शीघिा िे आया और बालक को िंभालने की कोिशश करने लगा । मैने पूछा -

` कया हो गया है इिे षोषो `` ``इिको कुछ लोगोने िायल कर िदया और इिकी बहन को उठा ले गए ।``

`` नहीं िवपवर ! वसिुि:वह मेरी बहन नहीं िी । वहाँ उि ओर दे ख रहे है न आप, वहाँ एक नारी बैठा करिी िी और उिके पाि एक कनया िी......`` बालक बोलने लगा।

`` कया वह सी िो िुमहारी माँ है और वह कनया िुमहारी बहन.....!``एक नागिरक

ने पूछा ।

`` नहीं ... वह सी मेरी माँ नहीं है । वह िो िकशोर युविियो का वयापार करिी है ।

एक बहुि अचछी और िुशील िकशोरी को बचाने के पयाि मे उि सी और उिके िािियो ने मुझे

िायल कर िदया । मुझे द ु:ख है िक मै उि िकशोरी को उि काली-कलुटी सी के चंगुल िे बचा नहीं पाया ।``

`` कया नाम है िुमहारा षोषो कहाँ रहिे हो षोषो`` मैने पूछा `` मेरा नाम िुदाम है । मेरा अपना कोई िनवाि नहीं है । अब िे पहले उि काली-

कलुटी सी के िाि रहा करिा िा िकनिु वह अवैध काया करिी है , यह मुझे आज जाि हुआ । अब मै और कहीं अपने िलए सिान ढू ढू ँ गा ।``

`` मेरे िाि चलोगे । मै िििशला के िवदापीठ मे अधयापक हूँ । िुम चाहो िो मेरे

िाि िििशला चल िकिे हो । वहाँ िुमहारे रहने और िवदाधययन की वयवसिा करवा दँग ू ा । िुम बहादरु हो और बहादरुो की कद करना चाणकय अचछी िरह िे जानिा है ।``

एक वयोवद ृ डोली लेकर आ रहा िा । िंभवि: वह इिी बालक के िलए लाया हो ।

जब उिने मेरे मुख िे िुना िक मै आचाया चाणकय हूँ िो वह बोला-

`` आप िििशला के बाहण आचाया चाणकय है षोषो अहो भागय मेरा जो आपके

दशन ा अनायाि हो गए । दल ा को िुलभ करना िवधािा ही जाने ।`` ु भ

उि वयोवद ृ ने उिे िहारा िदया । वह िाि मे एक डोली ले आया िा । िुदामा को

उठाकर उिमे िलटा िदया । मै बोला-

`` बाबा ! आप इि बालक को मेरे िाि भेज िदिजए ।``

`` आचाया ! यह बालक होनहार है और वैिे भी मेरा अपना कोई नहीं है । यह बालक मेरा और मेरी पती का िहारा बन जाएगा । मेरी पती इिे पाकर पिनन होगी ।``

`` ठीक है बाबा िकनिु इिके सवासथय लाभ होिे ही मुझे अवशय िूिचि करे । मै

इिे गुरकुल मे िशििक करँगा और यह भी िक यह बालक आपका ही रहे गा और आपका ििा

आपकी पती का िहारा बनेगा । मै यह वचन दे िा हूँ । इिे बहुि अिधक िाव लगे है । रक बहा जा रहा है । इिे शीघ ही िचिकतिा की आवशयकिा है ।``

`` मै सवयं िचिकतिक हूँ आचाया ! मै इिकी िचिकतिा कर ठीक कर दँग ू ा।

आपका िहयोग मेरे िलए िचरसमरणीय रहे गा ।``

`` कया मै भी आपके िाि आपके िदन िक चल िकिा हूँ षोषो`` `` अवशय....!``

मै और रिचकुमार डोली के िाि उि वयोवद ृ के िाि उिके िदन िक गए । बालक की िचिकतिा मे वयोवद ृ ने अपनी पूरी शिक लगा दी । लौटिे िमय रिचकुमार ने पश िकया।

`` आया! आप इि बालक का कया करोगे षोषो``

`` यह बालक वीर है । िनिभZ क है । यह इि राजय का िनिभZ क नागिरक है । आपने दे खा होगा , िकिने ही नागिरक हाट मे आ जा रहे िे । िकिी ने भी उि काली-कलुटी सी

और उिके िािियो िे उि अभागी िकशोरी की रिा करने का पयाि नहीं िकया िकनिु इि िनिभZ क बालक ने अपनी कम िे कम शिक िे उिे बचाने का पूरा पयाि िकया । यह बाि अलग है िक यह बाल उिे बचा नहीं पाया िकनिु इि बालक मे िवरोिचि गुण है और यह इि िरह के

अनुशािनहीन राजय का िवरोध भी कर रहा है । इििे बड़ी िनिभZ किा और िकिमे दे खने को िमली आपको....िकिी मे नहीं न....इिीिलए मैने ितकाल ही िनणय ा िलया िक इि बालक को

िशििि कर एक िनिभZ क नायक बनाना होगा िािक यह बालक िकिी अनुशािनहीन शािक को पाठ पढ़ा िके ।``

`` आया िवषणु ! आप दरूदशीZ है । आप िनकट िे ही दरू की बाि िोच लेिे है ।

िकिनी शीघिा िे आपने भिवषय की योजना बना ली ।``

`` यह राजनीिि का पहला पाठ हो िकिा है ।``

`` आप ठीक कहिे है आया ! लगिा है हमे कािी िमय हो गया है । राि गहरा रही है । हमे लौटना चािहए । हमे अमातय कंदपा के आननद-भवन चलना है ।` िरयू िे लगभग दो कोि की दरूी पर उपवन के मधय मे अमातय कंदपा का आननद

भवन दरू िे ही अपनी भवयिा िबखेरिा हुआ िदखाई दे िा है िा । उपवन मे

आम,जामुन,शहिूि,िंिरे ,मौिमबी ,अनार,कदमब,जूही ,चमपा, ,कचनार और िरह-िरह के वि ृ लगे हुए िे । माली कयािरयो मे कुढ़ाई कर पौधो को जल दे रहा िा । िौववरो िे जल-कण वायु मे

उड़कर दरू-दरू िक िबखर रहे िे । पुषपो पर भंवरे गुंजायमान हो रहे िे । िमपूणा उपवन िविभनन

िरह की िुगनध िे िुवाििि हो रहा िा । उपवन मे दाि-दािियाँ आ जा रहे िे । उपवन और भवन की भवयिा दे खकर पिीि हो रहा िा अमातय कंदपा पर मगध के िमाट की िवशेष कृ पा बनी हुई है

। आननद-भवन के वदार पर पहुँचिे ही िेवक निमसिक हो गया । िंभवि: उिे अमातय ने बिाया होगा िक मै उनिे िमलने आ रहा हूँ । िेवक शीघ भीिर जाकर वापि आया और िादर मुझे भीिर ले गया । अमातय कंदपा रे शम और मखमल के बने आिन पर बैठे िे और एक दािी उनहे सवणा

पात मे दाि-िुरा भर कर दे रही िी । मुझे दे खकर वे जैिे अचानक ही िावधान हो िामानय होकर बैठे रहे । बोले-

`` सवागि है आचाया ! यहाँ इि आिन पर िवराजमान होइए ।`` `` िाधुवाद अमातय `` कहकर मै आिन पर बैठ गया `` दाि-िुरा लीिजए ``

दािी ने एक चाँदी के पात मे दाि-िुरा डाली और मेरे िमि रख दी । वह सवािदष

िी । िंभवि: दाि-िुरा अमातय के िलए िवशेषिौर पर बनाई जािी होगी । इिीिलए यह दाि-िुरा अनय िुरा िे अिधक ही सवािदष और िुगिनधि िी । मै धीर-धीरे दाि-िुरा पीने लगा । अमातय कंदपा कुछ िण चुप रहने के बाद बोले-

`` आचाया ! मुझे िुमिे िलाह चािहए । आशा है सवीकार करोगे ।`` `` मै िौभागयशाली होऊँगा अमातय िकनिु एक िवशाल राजय के अमातय को मुझ

जैिा िाधारण अधयापक कया िलाह दे िकिा है । अिधक िे अिधक िशिा िमबनधी िलाह मेरे िलए उपयुक हो िकिी है ।``

`` मुझे पूरा िवशाि है आचाया, िुमहारी िलाह मेरे िलए लाभकारी होगी और एक

आचाया होने के नािे िुम अवशय ही िलाह दोगे ।``

`` यिद आप यही उिचि िमझिे है िो आप शंका िमाधान पा िकिे है ।`` `` मै िोचिा हूँ आचाया ,मगध राजय का िवसिार िकया जाना चािहए । पूरब मे

बहुि कुछ कर िलया है पििम मे मे िवसिार करने का िवचार है हमारा । यािन मगध िे लेकर

गांधार और वािहक िक के राजयो पर आकमण कर उनहे मगध मे शािमल िकया जाए । आपके कया िवचार है आचाय।ा`` अमातय ।``

`` यह कहाँ िक उिचि या अनुिचि होिेगी यह वयवहार पर िनभरा करिा है `` मगध की िेना वयवहार कुशलिा मे िमपूणा िामिा है । उिकी कोई िानी नहीं

है आचाया । िमपूणा आयाव ा िा मे मगधवािहनी िेना का डं का बजिा है ।``

`` अवशय अमातय , मगध की िेना मे वयवहार कुशलिा की पूणा िामिा है िकनिु

कया मगध के नेितृव मे इिनी िामिा है िक वह इिमे ििल हो पाएगा षोषो इिमे मुझे िंदेश है । `` ``मै िुमहारा मंिवय नहीं िमझा आचाया । सपष कहे िो उिचि होगा ।`` `` कया मै आशा कर िकिा हूँ िक मगध का अमातय कटु -ितय को सवीकार कर

पाएंगे या िहन कर पाएंगे ।``

`` आचाया ! आपकी बािे रहसयमय है । जो भी सपष कहना हो कह दो । हममे

इिनी िामिा है िक कटु -ितय को भी िरलिा िे सवीकार कर लेगे ।`` `` अनयिा न ले िो सपष करना चाहूँगा ।``

`` नहीं , अनयिा का पश ही उपिसिि नहीं होिा ।``

`` िुनो अमातय । मुझे जाि हुआ है िक मगध के िमाट अतयनि लोभी ,लमपट

और िवलािी है । इिना ही नहीं अनय अमातय भी आकामक पविृत के है । मै दे ख रहा हूँ िक यह न केवल अनय राजयो को जाि है बिलक मगध की पजा भी िमाट के कायो िे आिंिकि है ।

अिधकांश नागिरक िमाट के पदिचनहो पर चल रहे है । उन पर कोई अंकुश भी नहीं है । ऐिी िसििि मे राजय िवसिार पर कैिे िवचार िकया जा िकिा है ,अमातयवर !``

मेरे वदारा सपष और कटु -ितय कहिे ही अमातय कंदपा उतेिजि हो उठे और रिकम

नेतो िे मेरी ओर िीकण दिष िे दे खिे हुए बोले-

`` आचाया ! आपकी अपनी िीमा का उललंिन िकया है ।`` `` अमातयवर ! मैने िो िैदािनिक िथय पसिुि िकया ह िै। िबना िदढ़ नेितृव के

कुछ भी िकया जाना उिचि पिीि नहीं होिा । केवल आकामण वयवहार, कुशलिा की शण े ी मे नहीं आिा।``

मेरी िहजिा और सपषवािदिा के िमि अमातय कंदपा िण मे ही िामानय हो

गए । वे िवचिलि होिे-होिे बच गए । उनहे िामानय होिे हुआ दे ख मै पुन: बोला-

`` आपको जाि होगा िक कैकेय और गांधार के मधय िमतिा है । इिना ही नहीं कैकेय के

राजा पुर युद कौशल मे आपको भारी पड़ जाएंगे । ऐिे मे िबना कुशल वयवहार और नेितृव के उतर-पििम की ओर राजय िवसिार िकया जाना िरल नहीं होगा अमातय ।``

`` लेिकन आचाया ! यह िो हो िकिा है िक हम कैकेय और गांधार राजय के बीच

वैमनयसििा के बीज डाल दे और िकिी एक राजय िे कूटनीिि िे ििनध कर ले । यिद वे सवीकार नहीं करिे है िो बाद मे आकमण करे ।``

`` नहीं अमातय कंदपा ! यह िरल नहीं होगा । गांधार और कैकेय राजय गणो को

िोड़ना िरल नहीं होगा । वे लौह सिमभ के िमान अिडग है और मगध राजय को वे दांिो िले लोहे के चने चबवा दे ने मे ििम है ।``

`` अगर मै सवयं नेितृव िंभाली िो कया यह िंभव होगा षोषो``

`` यह आपकी िामिा पर िनभरा करिा है । लेिकन कया आप यह िब कर पाएंगे षोषो``

मेरी िलाह अमातय कंदपा के कणठ के नीचे उिर नहीं पा रही िी । जब उनहोने

दे खा िक वे मुझे इिनी िरलिा िे अपने चंगुल मे नहीं ले पा रहे िब उनहोने अनायाि ही चचाा का िवषय बदल िदया और अिि िौमय होकर बोले-

`` मुझे पिननिा होगी ,यिद आचाया चाणकय िक िमाट ननद के मंितमणडल मे

अपना सिान गहण करे ।``

`` िकनिु अमातयवर मै इि योगय नहीं हूँ । वैिे भी मुझे शीघ ही िििशला वापि

लौटना भी है । िपिाशी ने मुझे अिधक िमय िक रहने की अनुमिि नहीं दी है ।``

`` जैिी आपकी मंशा लेिकन मुझे पूरी आशा है आप भिवषय मे हमारे िलए

अतयनि उपयोगी होगे । मंितमणडल मे आपका सिान िरक रहे गा ।``

`` यह मेरा िौभागय होगा । मुझे अब जाने की आजा दीिजए ।``

`` जैिी आपकी इचछा । हो िके िो आप िमाट नंद और महामातय शकटार िे िमल ले िो अिि-उतम होगा।``

`` िंभवि: मुझे इिकी आवशयकिा नहीं होगी ििर भी अपने सिान पर मेरे

िववदान िमत रिचकुमार को अगर मंितमणडल मे सिान िमल िकेिे िो उतम होगा।``

`` हम आपकी अनुशंिा को पाििमकिा दे ना अपना पिम किवाय िमझिे है । िैिनक आपको छोड़ने के िलए रि िैयार कर पिीिा मे है ।``

`` िाधुवाद अमातय ! मै मगध िूमने आया हूँ । अि: मेरी अिभलाषा है िक पैदल

ही चलिा रहूँ । बहुि कुछ दे खने िमझने को िमलेगा ।``

मैने अमातय कंदपा के रि के िलए उनहे धनयवाद दे सवयं ही पैदल चल पड़ा । कुछ

ही दरूी पर रिचकुमार मेरी पिीिा कर रहे िे । हम दोनो हाट िे होिे हुए िरयू िट की ओर चल िदए । 00

िनधया होने को िी । अमातय कंदपा के आननद-िदन िे लौटने मे िमय लग गया

िा । शयामा भाभी वदार पर खड़े पिीिा कर रही िी। हम दोनो को आिे दे ख भाभी ने शीघ पात मे जल भर आंगन के कोने मे रख िदया । आिे ही हमने पद-पिालन िकया और आंगन मे ही िबछे आिन पर िवराजमान हो गए । िब िक शयामा भाभी जलपान का पबंध कर ले आई । मेरी इि

िमय जलपान का अिभलाषा नहीं िी। अमातय कंदपा की बािे मेरे मिसिषक मे बार-बार कौध रही िी । अमातय कंदपा ,अमातय कम वयविायी अिधक लग रहे िे । ऐिा पिीि होिा िा वे अमातय

पद का दर ु पयोग करने मे कदािचि िंकोच नहीं करिे होगे । मगध की िसििि उनके िमि बखान

करने के उपरानि भी वे िचिनिि दिषगोचर नहीं हो रहे िे । ऐिा लग रहा िा उनहे िे इिकी िबलकुल भी िचनिा नहीं है । हाँ , वे ननद को पिनन करने मे अिधक योगय लग रहे ि िे। िंभवि: वे ननद की हाँ मे हाँ िमला होगे । इिीिलए वे अिधक िंिुष िदखाई दे िे िे।

कािी िमय पर मुझे शानि एवं चुपचाप दे ख शयामा भाभी को कौिुहल हुआ िक मै

इि िरह इिने िमय िे इि िरह गुमिुम कयो हूँ । रिचकुमार िकिी आवशयक काया के कारण

पाटिलपुत के िकिी िमत के िनवाि चले गए िे । मुझे इि िरह की िसििि मे दे ख शयामा भाभी को शरारि िी िूझी । भाभी ने पूछा -

`` िकि िचनिा मे डू बे हुए हो आया िवषणु षोषो`` `` बि यो ही....कोई िवशेष कारण नहीं है ।``

`` कहीं िहमािद का समरण हो रहा होगा । आपके मुखमणडल पर िचनिा की रे खाएं

पतयि दे ख रही हूँ । कम िे कम मुझे अपनी पीड़ा िे अवगि नहीं कराएंगे आया षोषो``

`` ऐिी कोई बाि नहीं भाभी । यिद होिी िो आपके िमि अवशय पसिुि करिा ।

भला आपिे कोई बाि छुपी हो िकिी है , जो मै छुपा िकूँ ।``

`` आया ! यिद उिचि िमझो िो मुझे िहमािद के िवषय मे िवसिार िे बिाने का

कष करे । मुझे बारमबार िहमािद का समरण हो रहा ह िै। हो िकिा है िकिी िववशिा मे िहमािद का िववाह उि िामंि िे कर िदया गया हो ।``

`` भाभी ! मै िहमािद को इि िमय समरण नहीं कर रहा हूँ बिलक मुझे

मगध और इि पाटिलपुत की अवयवसिा भीिर िे कुरे द रही है ।``

`` आया ! यह िो राजकीय वयवसिा के अनिगि ा आिा है िकनिु मै आपिे आपके

वयिकगि जीवन के िमबनध मे जानना चाहिी हूँ मै िहमािद के िवषय मे अिधक िचिनिि हूँ । िहमािद के िाि िुमहारा वयवहार कैिा िा और िहमािद का िुमहारे िाि कैिा वयवहार िा । िंभवि: यह जानने के बाद मै िकिी िनणय ा पर पहुँच िकूँ ।``

`` भाभी ! आपको यह िब िचनिा करना वयिा पिीि होगा कयोिक िहमािद का

िववाह िकिी िामंि िे हो गया । इििलए उि िवषय पर चचाा करना िनरिक ा ही होगा ।``

`` नहीं आया ! मै ििर भी जानने की अिभलाषी हूँ । कृ पया मुझे िवसिार के िाि

बिाएं। वह िुमिे पेम िो करिी ही होगी िजिना िुम उििे पेम करिे िे................``

`` भाभी ! जब आप इिनी अिधक उतिुक है िो मुझे अवशय ही िहमािद के िाि

बीिाए गए िणो के िवषय मे बिाना होगा......................िुनो...िहमािद उिकी मािा के िाि

िशवालय पिििदन पाि:-िायं आया करिी िी । वहीं उिे दे खने का अविर िमला । उिे जाि हो गया िा िक मै उिे आिे-जािे दे खा करिा हूँ । उिका गौर वणा ,रे शमी दीि Z केशपाश और नीलीनीली गहरी आँखे दे ख मै अनायाि ही उिकी ओर आकिषZ ि हो गया । कुछ िदनो िक इिी िरह

एक दि ू रे को दे खने का ििलििला चलिे रहा िकनिु एक िदन जब वह िशवालय िे अकेली आ रही

िी वह अनायाि मेरे िमि आ गई । हम एक दि ू रे को िनिनZ मेष दे खिे रहे । जाने कब हम दोनो िीिढ़यो पर बैठकर एक दि ू रे को दे खिे रहे ,जाि ही नहीं हुआ । इिना ही नहीं हमे िमय का भान

ही नहीं रहा । मुझे ऐिा पिीि हो रहा िा ,मानो मेरे िमपूणा अंग-अंग मे िवदुि चपला िी िरं गे उठ रही हो और अंग-पतयंग रोमांिचि हो रहा हो । हदय मे सनेह का जवार-भाटा उठने-िगरने लगा । उिने अनायाि मेरे दोनो हाि अपने हािो मे ले िलए। मै मूििव ा ि उिे दे खिा रहा ,दे खिा रहा । िनदा िो िब टू टी, जब वह िखलिखलाकर हं ि पड़ी । दे खिा हूँ मेिेरे दोनो हाि उिके हािो मे है

और वह धवल दनि पंिकयो की छटा िबखराऐ िखलिखलाकर हं ि रही है । मुझे ििनक िंकोच हो आया । मेरी पलके नीचे झुक गई िो वह बोली-

`` ऐिे शरमा रहे हो जैिे नई-नवेली दल ु हन हो ।`` `` ओि् िमा कीिजए । हमिे गलिी हो गई।``

`

` अचछा ! आप इिे गलिी कहिे है । यह िो दो पिवत हदयो का िंगम है शीमान ् ।

जो िुम और मै एक दि ू रे की ओर आकिषZ ि हो गए ।``

उिने शीमान कहा िो मेरा हदय दोनो िे िसपनदि होने लगा । मुझे लगा जैिे मेरे

अंग-पतयंगो मे शीिल लहर दौड़ रही हो । मै िबलकुल जड़वि हो गया िकनिु वह िनरनिर मुसकराये जा रही िी मैने लड़खड़ािे हुए उििे पूछा``कया नाम है िुमहारा षोषो``

`` िहमािद और िुमहारा ..............`` `` िवषणु......िवषणुगुप.......िुम बहुि िुनदर लग रही हो ।``

`` और िुम भी , िुम बहुि िंकोची हो । हो लेिकन िुशील.....ये िशखा कयो बनाकर

रखी िुमने षोषो अचछी लग रही है ।``

`` वह , आप िे िुम पर आ गई । मुझे लगा , वह ितय मे पेम करने लगी है । मैने

उिके हािो को िाम िलया और धीरे िे उिकी हिेली चूम ली । वह िखलिखलाकर हं ि दी । वह इि िरह िे हं िी , मानो कहीं झरना झर रहा हो ।``

`` बिाओगे नहीं , ये िशखा कयोिं बनाकर रखी है षोषो``

उिके इि पश िे मै िकपका गया । िोचा नहीं िा वह िशखा के िवषय मे भी पूछेगी । मै कुछ िण िक चुप रहा । ििर बोला-

`` हमारे िवदालय मे िवदाििय ा ो को िशखा रखनी पड़िी है । इििलए हमे भी रखनी

पड़ी । िुमहे अचछी नहीं लग रही हो िो बिाओ । कल िे नहीं रखूँगा ।``

`` नहीं , ऐिी बाि नहीं । िुमहारी िशखा अचछी लग रही है । उिने मेरी िशखा पर हाि रखा और िहलाने लगी । मुझे ििनक िंकोच हो रहा िा

। मेरा शयाम वणा और लमबी िशखा दे ख वह न जाने कया िोच रही िी पिा नहीं िकनिु वह िशखा पर हाि िेरिे हुए लगािार मुसकरािे रही ििर बोली-

`` यहाँ पिििदन आिे हो िवषणु.........षोषो`` `` जी हाँ, पिििदन आिा हूँ । हमारा आशम िनकट ही है या यो कहे िक यह

िशवालय हमारे आशम के पिरिर मे ही है ।`` है न िवषणु ...!``

`` ओह! मै िो िमझूँ िक िुम मुझे दे खने पिििदन यहाँ आिे हो । लेिकन ऐिा नहीं `` नहीं ऐिा नहीं है िहमािद जी ! वसिुि: मै िुमको ही िनहारने के बहाने आशम िे

िनकल आया करिा हूँ। िजि िदन िुमहे न दे खूँ उि िदन हमे अनुकून पिीि नहीं होिा । ऐिा

लगिा जैिे कुछ रह गया हो । कुछ कमी का आभाि होिे रहिा है इििलए केवल िुमको दे खने के िलए ही आया करिा हूँ।``

भाभी मेरी ओर दे खिे हुए गंभीर हो िहमािद िे िमबिनधि वि ृ ानि िुनने मे

िललीन हो गई । मै कहने लगा -

`` भाभी ! िहमािद िे िंपका के बाद अब हम लोग पिििदन िशवालय के पष ृ भाग मे

एक बड़ी िशला के उि ओर िमलिे रहे । उि िशला के पाशव मे बैठने के िलए उिचि सिान िा । वह मेरी गोद मे अपना ििर रख दे िी िी और नेत बनद कर इठलािी मुसकरािी और मनोहर िवनोद-

पिरहाि करने लगिी िी । वह यवन युविि िी इििलए वह िजिनी पििमी िभयिा की पिधर िी उिनी ही भारिीय िभयिा की पूजारी भी । उिे इि िरह िमलना अनुिचि नहीं लगिा िा । भाभी !

कहिे हुए िंकोच होने लग रहा है िकनिु भाभी वह िी बहुि िुनदर...उिके गुलाबी रिीले अधर मुझे आकिषZ ि कर िलया करिे िे । अनायाि ही उिके अधरो पर मेरे अधर...........िमा करे भाभी

िकनिु जो वासििवकिा है उिे ही मै आपकेिे िमि पसिुि कर रहा हूँ । वह इिनी अिधक पसिुि

होगी ,इिका मुझे िवशाि ही नहीं िा । वह वासिव मे सनेह िे पिरपूणा िी । उिकी झील िी गहरी नीली-नीली आँखो मे दे ख हदय उनमािदि हुए िबना रही रह पािा िा । उिके िुनहरे केशपाश मेरे

वि पर मखमली अहिाि िा िदलािे िे । उिकी लचीली दे हयिष इिनी कमनीय िी िक बार-बार उिके कमलीनी िे कोमल अंगो पर मेरे हाि पहुँच जािे िे । िब मैने जाना िक नारी का सनेह

िकिनी अनमोल धरोहर है । पुरष इििलए नारी के िमि िमिपि ा हो जािा है और नािरयाँ पुरषो

को अपने मोहपाश मे पाकर िकिनी पिननिचि हो उठिी है । मै जान पाया िक पकृ िि ने सी-पुरष को एक दि ू रे के िलए ही बनाया है । दोनो एक दि ू रे के िबना अधूरे है । एक दि ू रे के िबना िकिी का कोई अिसितव नहीं है । िमाज मे एक अकेले पुरष का िजिना महतव नहीं है उिी िरह एक

अकेली नारी का भी महतव नहीं है । अभी दे खो न आपने ही बार-बार कहा िक पाटिलपुत मे एक

कनया दे खी हुई है । या आपकी िहे ली है या आपकी कोई.....अचछा छोड़ो....भाभी िहमािद के आने

के बाद मेरे जीवन मे विंि िखल आया िा । िदन हो या राि , िुबह हो या िनधया ,िवत ा विनि ही विनि का आभाि हो रहा िा। वह िदन अब नहीं रहे िकनिु वे िदन अिधकिर उि िमय समरण मे आिे है जब मै एकानि मे होिा हूंिँ।

हमारे िमलने के दौरान राजनीिि िे लेकर गीि-िंगीि-नतृय िक चचाा का िवषय

हुआ करिा िा । वह यवन युविि होिे हुए भी भारिीय गीि-िंगीि और नतृय के पिि अनुरक िी

। वह ठु मक-ठु मक कर चलिी िो कभी िविभनन मुदाओं मे नतृय करने लगिी। जाने कहाँ िे उिने भारिीय नतृय िीख िलया िा। उिे नतृय की मुदाओं का भिलभांिि जान िा । इिना ही नहीं वह

वाक चिुर भी िी । िरोवर िकनारे नतृय करिे हुए कभी िुबह के िो कभी दोपहर के या िनधया के

िमय के रागो मे गीि गाने लगिी । मै उिके गीि-िंगीि और नतृय िे अिभभूि हो जाया करिा । यह उिका िनतय का जैिे काया हो गया हो । मै राजनीिि और शस-शास की चचाा करिा िो वह

िंगीि और नतृय की चचाा करिी । मै पुरषािा की बाि छे ड़िा िो वह पणय और राग-अनुराग की चचाा करिी । वह पणय मे चिुर िी । उिकी बािो िे रिीकिा टपका करिी िी । मानो उिकी

िजवहा मे मधु-िमशी िुनी हुई हो । मेरी अपनी अनुरिक इिनी जयादा िी िक मै उिकी रििकिा के िामने निमसिक हो जाया करिा िा । िहमािद के पिि अनुरिक का पवाह िीविा िे बहने लगिा

और मै उिकी बांहो मे न जाने कब िमा जाया करिा िा । मुझे उिका िाि बहुि लुभाया करिा िा । लेिकन भाभी अब िहमािद का समरण करना अनुिचि ही होगा। उिका इि िरह िे चला जाना मुझे बहुि पीड़ादायक लगा । िििशला मे रहिे और िशवालय जािे िमय उिकी समिृि हदय-

मिसिषक को कचोटा करिी िी । िपिाशी ने यह बहुि अचछा िकया ,जो उनहोने मुझे पाटिलपुत मे

अधयापक िनयुक करवा िदया । इििेिे िहमािद की समिृि बार-बार नहीं आएगी और मै ठीक िरह िे अपने किवाय का पालन करने मे ििल हो पाऊँगा ।

िपिाशी को हमारा इि िरह िे िकिी यवन सी िे िमलना-जुलना अचछा नहीं

लगा । उनहोने मुझे अपतयििौर पर िमझाने का पयाि िकया । उनहोने दे खा िक उनके िमझाने का मुझ पर िकिी िरह का अनुकूल पभाव नहीं पड़ा । िब उनहोने एक िदन अपने एक िमत की पुती यशोमिि को मेरे िलए पिनद िलया। िपिाशी ने यह बाि मुझे िहमािद के िमि बिाई । िंभवि: िपिाशी ने िब िहमािद को जिलाने के िलए कहा हो िािक उि पर उनकी बाि का पििकूल पभाव पड़े । िपिाशी की योजना ििल हो ।

उिी िमय िे िहमािद ने मुझिे िमलना अनायाि ही बनद कर िदया । मैिं

पिििदन िशवालय भी जािा रहा िकनिु िहमािद नहीं आई। कई िदनो िक िहमािद का पिा नहीं

चला। मै वयाकुल और िववहल हो गया । हम दोनो जहाँ पिििदन िमला करिे िे, वहाँ बैठकर िणटो िक उिकी पिीिा करिे रहा लेिकन िहमािद ििर लौटकर नहीं आई । मै नहीं जानिा िा िक वह

कहाँ चली गई। इििलए उिे खोजना आिान नहीं िा । मै कई िदनो िक िहमािद को खोजिा रहा । कई िदनो के पिाि जाि हुआ िक िहमािद का िववाह एक पििििषि िामंि के िाि िमपनन हो गया है । मेरे कोमल हदय पर अनायाि जैिे वजपाि हो गया हो । यह कुठारािाि िहन करना

मेरी शिक िे बाहर िा। मै अनमना िा यहाँ िे वहाँ और वहाँ िे यहाँ िबना िकिी कारण के िवचरिा रहा िकनिु पिरणाम िििर रहे ।

िमय बलवान होिा है वह िकिी के रोके नहीं रकिा । वह िनरनिर चलिे रहिा ।

रकिा नहीं है । कई वषोZिं िक िहमािद के िमचार नहीं िमले। िशिा पूणा होने के उपरानि

िपिाशी ने मुझे यहाँ पाटलीपुत भेज िदया । अब मुझे यहाँ पाटिलपुत मे ही रहकर अधयापन करना है । इिना ही नहीं राजनीिि का अधययन भी करना है ।``

`` हाँ आया िवषणु ! िुम यहाँ िरलिा िे जीवन-यापन कर िकिे हो । िुमहारे िमत

और मैने िुमहारे िलए एक िुशील कनया भी दे खी है । मेरे िवचार िे अब िुमहे िववाह बनधन मे बंध जाना चािहए। मै िुमहारे िमत िे इि िवषय मे बाि करँगी ।``

अभी शयामा भाभी िे बाि िहमािद के िवषय मे बाि हो ही रही िी िक रिचकुमार

आ गए । भाभी ने उि िमय मेरे िमि रिचकुमार िे इि िमबनध मे कोई बाि नहीं की । मैने महामातय शकटार िे िमलने की अपनी अिभलाषा रिचकुमार के िमि रख दी और कहा-

`` आयव ा र ! अमातय कंदपा ने मुझे ननद के मंितमणडल मे शािमल होने के िलए

आमंिति िकया है िकनिु मै अभी यह िब नहीं चाहिा । इििलए मैने िुमहारा नाम पसिािवि कर िदया ह िै। यह िुमहारे िलए उिचि भी होगा । िुम अमातय कंदपा िे िमलकर अपना पदभार गहण कर लो ।``

`` लेिकन िमत िवषणु ! मुझे िो इि िमबनध मे कुछ भी अनुभव नहीं है । कया यह मै कर पाऊँगा षोषो``

`` आयव ा र ! पहले िो आप पदभार गहण कर लीिजए । यह आपके और मेरे िलए

,दोनो के िलए शुभ होगा । इिी बहाने हम कुछ नया कर िदखाने के िलए ििम हो िकेगे । इिके िबना कुछ भी िंभव नहीं हो पाएगा ।``

`` मै आपका आशय नहीं िमझा िमत !``

`` इििे अचछा अविर ििर कभी नहीं आएगा आयव ा र । अविर िनकल जाने के पिाि केवल पिािाप ही हाि मे रह जािा है । उिचि यही है िक आप शीघ ही पदभार गहण कर लीिजए । अमातय कंदपा िंभवि: कल िक आदे श जारी कर चुके होगे । मै िुमहे अििगम शुभकामनाएं दे िा हूँ । ``

`` यिद िुम यही उिचि िमझिे हो िो ठीक है िकनिु िबना िुमहारे मागद ा शन ा के

कुछ भी कर नहीं पाऊँगा । मैने िो कभी इि िमबनध मे िोचा भी नहीं िा ।``

`` आयव ा र ! मै हर िण आपकी छाया के िमान िाि रहूँगा । इिमे ििनक भी

िंदेह की गुज ँ ाइश नहीं है आयव ा र ।``

`` ठीक है । कल जब हम महामातय शकटार िे िमलने जाएंगे ,िब िारी िसििि

सवयं ही सपष हो जाएगी ।``

`` असिु ! अब हमे कल की िैयारी करनी होगी आयव ा र रिच.....!``

00 रिचकुमार को लेकर मै महामातय शकटार िे िमलने के िलए चल पड़ा । पहले

इचछा हुई िक िुदामा को दे ख लूँ िकनिु महामातय शकटार िे िमलना अतयावशयक िा । इििलए उनके भवन की ओर ही चल पड़े । वदारपाल ने दे खिे ही झुककर पणाम िकया और बिाया `` महामातय आपकी ही पिीिा कर रहे है । आप शीघ चिलए ।``

रिचकुमार बाहर िे ही वापि चले गए । वदारपाल मुझे लेकर बैठक मे ले गया ।

बैठक मे िबलकुल िामानय िाज-िजजा िी । बैठने के िलए लकड़ी के कुछ पीठे और उि पर िूि िे िनिमि ा दिरयाँ । बैठक के एक कोने मे शीकृ षण की पििमा । अलमारी मे गंिो के अलावा और कुछ दिषगोचर नहीं हो रहा िा । महामातय का पीठा भी िामानय ही िा । मुझे बैठक दे खकर िकंिचि

िंकोच हुआ िक मै िकि पीठे पर बैठूं । ििनक िोचिे ही रहा । िभी एक वयोवद ृ िबलकुल िामानय

वेशभूषा मे बैठक मे पवेश कर आए । उनके मुखमणडल पर अतयनि िेजिसविा िलए हुए िा । मुझे दे खिे ही वे करबद हो बोले-

`` मगध िामाजय का महामातय शकटार ििशीला िवदापीठ के आचाया चाणकय को निमसिक हो पणाम करिा है ।``

`` िमा करे महाशय ! मै मगध िामाजय के महामातय िे िमलने का ििलहाल

आकांिी नहीं हूँ ।``

`` आचाया चाणकय ! आप यह कया कह रहे है । कया आप मुझिे िमलने नहीं आए

है िो ििर िकििे िमलने आए है । इि िनदभा मे मै आपकी कया िहायिा कर िकिा षोषो`` `` वसिुि मै ििशीला के ितकालीन सनािक और राजनीिि के महािववदान

महामना शकटार िे िमलने का आकांिी हूँ । कया आप मुझे उनिे िमलने की अनुमिि पदान नहीं करे गे ।``

महामातय शकटार आचंिभि हो गए । उनहे यह किई पूवाभ ा ाि नहीं हुआ िक मै

कया कहना चाहिा हूँ लेिकन जब उनहोने मेरे मुख िे यह िुना िक मै िििशला िे राजनीिि मे

सनािक पाप आचाया शकटार िे िमलना चाहिा हूँ िो वे िण भर के िलए िवििसमि हो गए । मेरे करीब आए और पुन: निमसिक होकर पणाम की मुदा मे बोले-

`` ििशीला िे राजनीिि मे िशिा पाप आचाया शकटार ,आचाया चाणकय काि्रे

पणाम करिा है । आप ििनक िवशाम के िाि पीठािीन होइए आचाया । मुझे इि बाि िे पिननिा हुई िक आपकी योगयिा आया चणक के िमिुलय ही है । ``

`` ऐिा कहकर आप मुझे लिजजि मि कीिजए शीमान । वसिुि: मै अब िक

िवदािी ही हूँ । कयोिक िवदापीठ मे पढ़ना और पढ़ाना ििा उिे वयवहार मे ला कर उिको उिचि-

अनुिचि िमझने मे बहुि ही अनिर है शीमान । मै इिी उदे शय िे आपके िमि उपिसिि हुआ हूँ । `` `` मै आपकी मंशा िमझ नहीं पाया आचाया चाणकय । एक आचाया को मै भला कया िशिा दे िकिा ।``

`` लेिकन मुझे िवशाि है िक आप मुझे िनराश नहीं करे गे शीमान।् मै जानना

चाहिा हूँ िक राजनीिि का मूल ििदानि कया है षोषो

मेरा पश िुनकर पहले िो महामातय शकटार िण भर के िलए गंभीर और चुप हो

गए । मेरी ओर दे खकर कुछ िोचने लगे । िंभवि: मैने ििदानि को वयवहार के बीच मे कयो

उपिसिि िकया । ििदानि और वयवहार दोनो पि ृ क-पि ृ क वसिु है । ििदानि को जि का िि

वयवहार मे उिार पाना आिान नहीं है । वयवहारवाद और ििदानिवाद के दोनो पलड़ो मे हालांिक भार िमान है िकनिु कहीं-कहीं ििदानि को पि ृ क रखकर वयवहारवाद िे काया लेना पड़िा है ।

हालांिक मगध मे वयवहारवाद का पलड़ा भारी है िकनिु आचाया शकटार जैिे िववदान का मगध मे होना अलग ही मायने रखिा है । इिी कारण िंभवि: अब िक मगध िंकट िे उबरिा चला आ

रहा है अनयिा यह कब का िंकट के महािागर मे डू ब कर िवलीन हो चुका होिा । आचाया शकटार मुसकराए और बोले-

`` यह ितय है िक राजनीिि के ििदानि को वयवहार मे लाना किठन है लेिकन

यिद हम राजनीिि मे रहकर अपना उदे शय िनधािारि कर ले िो मुझे लगिा है िक मागा पशसि हो

जािा है । उदे शय इिना सपष होना चािहए के जन-गण और िंत को जाि हो िके िक हमारे उदे शय के पीछे जनिहि और राजिहि िुिनििि है । िजिना उदे शय सपष होगा उिना हम जनिहि और राजिहि मे ििकय होकर ििलिा के िाि काया कर िकिे है िै। मान लो हमने यह उदे शय बना

िलया िक हमे राजकोष िे िनकाली गई रािश का उपयोग जनिहि मे ही करना है ,िो उि रािश का उपयोग िनििििौर िे जनिहि मे ही करना होगा । अनयिा जनिा का िवशाि टू ट जाएगा और

भिवषय मे होनेवाली योजनाओं का िकयानवयन ििल नहीं हो पाएगा । जैिे चकवयूह को िोड़ने का उदे शय िो बना िलया िकनिु योजनाबद उपाय िे नहीं िोड़ा गया िो वह टू टे गा कैिे और ििलिा कैिे पाई जा िकिी है ।

`` शीमान उदे शय का िनधाराण कैिे िकया जाना चािहए षोषो`` `` कोई भी उदिेदशय सपष होना चािहए । जब िक उदे शय सपष नहीं होगा उिका

िकयानवयन िंभव नहीं हो पाएगा । यह नहीं हो िकिा िक हमने उदे शय ही नहीं बनाया । पिम उदे शय और उिके पिाि उदे श की पूििा के िलए लकय का िनधाराण आवशयक है । दोणाचाया का

उदे शय िा िक अजुन ा धनुिवद ा ा मे पारं गि हो जाए िो अजुन ा ने अपना लकय िनधािारि कर िलया िक वे अवशय ही धनुिवद ा ा मे पारं गि होकर रहे गे और वे होकर रहे । यिद हमारे िामने कोई उदे शय है । िाि ही उदे शय की पािप के िलए लकय नहीं है िो हम कया कर पाएंगे । दोनो सपष होना चािहए । कोई भी उदे श या लकय मूिर ा प मे हो ,अमूिा उदे शय या लकय राजनीििज को भटका िकिा है ।

यिद दोनो ही अमूिा या असपष है िो ििलिा के सिान पर अििलिा को ही वरण करना होगा ।`` आचाया शकटार की िववदिा आिया चिकि कर दे नेवाली पिीि हो रही िी । लग

रहा िा वे ििदानि को वयवहार मे पिरवििि ा करने मे ििदहसि है । उनिे पाप िशिा का उपयोग जनिहि और राजिहि मे होना चािहए । मै और अिधक जानने का उतिुक हूँ । अि:मैिेने पूछा -

`` यिद हमारा उदे शय और उिे पािप का लकय वयिकगि हो िो राजनीिि मे कया

करना होगा ।`` राजिहि

`` यही पर आकर राजनीििज परासि होिा है । राजनीििज को जनिहि और के अिििरक िकिी वयिक िवशेष ,कोई अनय लाभ के िलए नहीं करना चािहए ।

राजपुरष को चािहए िक वह जनिहि और राजिहि मे अनय िकिी भी िरह की बेिड़यो िे

बंध कर न रहे । वह िन:सवािा होकर राजकाया मे िंलगन रहे िब ही ििलिा की पािप िंभव हो

िकिी है ।``

मुझे िंिोष हुआ िक कम िे कम महामातय जैिे आचाया मगध मे है िो जनिहि

और राजिहि िे िमबिनधि भी कुछ शंकाओं का िमाधान कर लेना चािहए । िििशला िे मगध

आने पर इन दो-चार िदनो मे जो िसििि मगध मे दे खने को िमली ,उिे दे खिे हुए यह नहीं लगिा

िक महामातय यहाँ रहकर कुछ कर पा रहे होगे । यिद वे अपने आचायताव का उपयोग कर पाए होिे िो जो िसििि मै अब िक दे खिा आ रहा हूँ । वह नहीं होिी बिलक मगध मे शािनि ,िदाव और

शौया के सवर गूँज रहे होिे । यह अविर उिचि जानकर मेरे हदय मे उठ रही आशंकाएं मुझे बारबार पेि्रिरि कर रही है । यह िोचकर मैने पूछा-

`` िििशला के उतर-पििम की ओर िे आकमणकािरयो वदारा भारि मे िकये जा

रहे उपदव को कुचलने मे मगध िामाजय की ओर िे पयाि िकया जाना कया उिचि हो िकिा है षोषो``

मेरी आशंका और पश िुनकर आचाया शकटार ििनक िवचिलि हो गए । मेरे मुख

पर पशातमक भाव िे दे खने लगे । िंभवि: मैने अनुिचि पश कर िलया हो ,िजिका उतर उनके पाि न हो या हो िकिा है िक मैने मगध िामाजय को िावधान करने के िलए यह कहा हो िक

उतर-पििम िे मगध मे भी उपदव हो िकिा है । यह भी हो िकिा है िक आचाया शकटार इिे मेरी चेिावनी मान रहे हो । वे कुछ िण िक बैठक मे टहलिे रहे । बार-बार मेरे मुख की ओर दे खिे रहे

। मुझे अपराधबोध िा पिीि हो रहा िा िकनिु मेरा यह पश िटीक िा। वे अनायाि मेरे िबलकुल करीब आकर बैठे और शानि भाव मे बोले-

`` आचाया ! िुमहारी शंका िनमूल ा नहीं हो िकिी । मगध िामाजय मे इिना िाहि

िो अवशय है िकनिु गोपनीय िौर पर मै कहना चाहूँगा िक मगध के िमाट मे िाहि की कमी है ।`` `` मगध िामाजय के महामातय के मुख िे यह िुनकर मुझे ििनक भी िवशाि

नहीं हो रहा िा । कया यह आप कह रहे है आचाया शकटार षोषो कया ििदानि यहाँ िनमूल ा हो गया है या पंगु षोषो``

`` ऐिी बाि नहीं है आचाया चाणकय ! मगध के िमाट मे सवािा ,धन लोलुपिा

और िवलािििा के कारण उनकी महतवाकांिा िवचिलि ही है । लेिकन आचाया, आपकी यह शंका मुझे भी शंिकि कर रही है । कहीं आप िकिी िरह का...................``

मुझे लगा आचाया शकटार मुझ पर ही शंका करने लगेगे । इििलए मैने बीच मे ही

उनकी बाि काट दी और करबद हो बोला-

`` नहीं शीमान ् ....चाणकय राजनीिि का िवदािी है और कुछ नहीं । यिद वह

राजनीिि मे होिा िो अवशय ही िचिनिि होिा िकनिु यह मेरी िजजािा है ,आया !``

`` मुझे िो आपने भयभीि ही कर िदया िा िकनिु मेरे गुरवर का पुत कदािचि

अनुिचि पयाि नहीं कर िकिा । इिका मुझे िवशाि है आचाया चाणकय !`` `` गुरवर.......अिाि ा ् मेरे िपिा......``

`` हाँ आचाया ! वे मेरे न केवल गुर रह चुके है अिपिु पिमि: वे मेरे िमत रहे है । उनके पाि रहकर मै िनििनि ही िा िक ििशीला िवदापीठ मे रहिे हुए मेरी िशिा मे वे िहयोग दे िंगे ।``

`` अिाि ा ्...आप मेरे िपिाशी के िमत.......!`` `` हाँ आचाया...यह ितय है ।``

`` िपिाशी ने कभी आपके िवषय मे चचाा नहीं की । हाँ आपके पत मैने अवशय दे खे

है िकनिु कई िमतो और िशषयो के पतो को िपिाशी ने िंवार के रखा है इििलए िंभवि: मै उन पर अिधक एकाग नहीं हो िका । अनि मे मै अनुरोध करना चाहूँगा।`` `` अनुरोध नहीं आचाया, आदे श.....``

`` अमातय कंदपा ने मुझे मंितमणडल मे पदभार गहण करने का िनवेदन िकया िा

िकनिु मै िो रहा एक अधयापक और उि पर भी अभी भी राजनीिि का िवदािी ,इििलए मैने मेरे िमत रिचकुमार का नाम उनके िमि पसिुि िकया है ।``

`` मुझे इिकी जानकारी पाप हो चुकी है । िमाट िे आदे श पाप हो चुका है । वे

चाहे िो आज ही अपना कायभ ा ार गहणकर िकिे है ।`` `` मै आभारी हूँ आपका.....``

मुझे यह जानकर आिया हुआ िक अमातय कंदपा ने िीधे िमाट के िमि

रिचकुमार को मंितमणडल मे शािमल करने के िलए अनुशंिा भेज दी और उनहोने िबना िकिी िरह के वयवधान के सवीकार भी कर िलया । इिका िातपया यह हुआ िक िजिना अिधक पभाव अमातय कंदपा का िमाट पर पड़िा है उिना अिधक आचाया शकटार का नहीं। इििलए िो अमातय कंदपा

की अनुशंिा को िमाट ने सवीकार कर आदे श जारी कर िदए । मै िवििसमि हुआ । मै पुन: बोला`` मै आपका पुन: आभारी हूँ िक आपके अंगरिक और वदारपाल ने एक अनाि

बालक की रिा कर उिके पालन-पोषण का भार सवयं पर ले िलया।`` `` कौन बालक...........षोषो``

`` िुदामा नाम है उिका । कुछ राजिैिनक उिकी बिहन को उठा ले गए । उिे

बचाने मे वह बालक िायल हो गया ।``

`` अचछा..अचछा....यह िब अमातय कंदपा के िदशा-िनदे शन मे होिा है । उि

बालक की बिहन अवशय ही िमाट की भेट चढ़ चुकी होगी । वह अवशय ही राजभवन के िवलाि भवन मे होगी।``

`` कया ....षोषो`` `` हाँ आचाया ! अमातय कंदपा का िमाट पर बहुि पभाव है । कंदपा वयविायी दिष

का है । वह वयविाय करना जानिा है ।``

`` और आप कुछ नहीं कर िकिे...षोषो``

मेरा पश आचाया शकटार के हदय को भेद गया । वे चुप हो गए और शूनय मे दे खने लगे। मुझे इि िरह उनहे कुदे रना नहीं चािहए िा िकनिु िववश हूँ । अपनी िजजािाओं को शानि

नहीं कर पा रहा हूँ । इिना ही नहीं मगध मे जो भी पििकूल हो रहा है । राजिैिनक और राजपुरष जो भी अनुिचि पजा के िाि कर रहे है ,वह शोचनीय है और यह िोच-िोचकर हदय अवकुंिठि हुआ जािा है ।

`` लेिकन शीमान ्......यह िो िोर अनयाय है ....``

महामातय के मुखमणडल पर लजजा के भाव िैरिे दे ख मै भी चुप हो गया। 00 मुझे आिया हो रहा िा िक महामातय शकटार की राजनीििक िसििि िंिोषजनक

नहीं है । िजि उचच पद पर उनहे आिीन िकया गया है ,उि पद की गिरमा के अनुकूल उनके पाि शिकयाँ नहीं है अिपिु उनिे िनमन पद पर रहिे हुए अमातय कंदपा के अिधकार मेिे अिीिमि शिकयाँ है । मगध िमाट ननद अमातय कंदपा के अनुकूल है और अमातय कंदपा की िारी

अनुशंिाओं ििा िलाहो को िशरोधाया करिे है । कया िमाट ननद अपनी िुमिि िे काया नहीं लेिे या उनहे आचाया शकटार जैिे महामातय के पिि िबलकुल भी िवशाि नहीं है । िंभवि: महामातय शकटार का पभाव ननद पर नहीं है । इििलए िारे िनणय ा अमातय कंदपा के अनुकूल ही हो रहे है । अमातय कंदपा वयविाियक दिषकोणवाले अमातय है । उनकी िवचारधारा िन:सवािा न होकर

सवािि ा िहि है । िजि काया मे वे िनजिहि िमझिे है ,उि काया को वे पाििमकिा दे िे है । ऐिा

पिीि होिा है ,मगध मे जो पििकूल िसििियाँ उतपनन हुई है और अराजकिा िैल रही है उिके

पीछे अमातय कंदपा का हाि होना चािहए । मेरा िोचना कदािचि अनुिचि नहीं हो िकिा । िजि

िरह िे िििशला मे िवदाििय ा ो को राजनीिि का पाठ पढ़ाया जािा है । िजि िरह िे राजनीिि के ििदानिो को अनुपयोग मे लाने की िलाह दी जािी है और िजि िरह िे िवशुद राजनीिि की

शपि ली जािी है , वैिा कुछ भी मगध मे वयवािहरिौर पर िदखाई नहीं दे िा । महामातय शकटार की िववदिा का

मगध िमुिचि उपयोग नहीं कर पा रही है अिपिु उनको पवंिचि कर अवमानना का िशकार होना पड़ रहा है । मै यह िचनिन करिे हुए पाटिलपुत के राजमागा िे जा ही रहा िा िक दे खिा हूँ कुछ

िैिनक एक नवयौवना को लगभग ििीटिे हुए ले जा रहे िे । नवयौवना चीख रही िी और उिके िाि जो वद ृ ा है वह उन िैिनको िे दह ु ाई मांग रही िी । वह िचंिाड़-िचंिाड़ कर बोले जा रही िी-

`` छोड़ दो , मेरी बेटी को छोड़ दो । कयो अपनी ही पजा को पिािड़ि करिे हो । कया

इि राजय के िमाट लमपट है षोषो कया मगध िमाटो के िर मे बीिवयाँ नहीं है षोषो कया पजा की बेिटयो के िाि इि िरह वयवहार िकया जािा है षोषो छोड़ दो मेरी बेटी को छोड़ दो।``

``चल हट बुिढ़या , कयो अपनी जान आिि मे डालिी है । दे खिी नहीं, हम राजकाया ही िो कर रहे है । िमाट की आजा का पालन ही िो कर रहे है ।``

िैिनक ने उि वद ृ ा को इिने ज़ोरो िे धकका िदया िक वह दीवार िे जा टकराई ।

उिके ििर िे रक की धारा िूट पड़ी । वह िण भर मे ही अचेि हो गई । िैिनको ने नवयौवना को उठाकर डोली मे डाल िदया । वह रो-रोकर िचललाए जा रही िी । `` कोई मुझे बचाओ ! कोई मुझे बचाओ !!``

मै कुछ िण िक िैिनको वदारा िकए जा रहे कृ तय को दे खिे रहा । लेिकन जब वह वद ृ ा दीवार जा टकराई, रक पवाह िूट पड़ा और िैिनको ने नवयौवना को जबरदसिी उठाकर डोली मे डाल िदया, िो मेरा िंयम टू ट गया । मेरे नेतो मे कोधािगन

धधक उठी । मेरे भीिर का लावा खदक उठा । मै लगभग चीख पड़ा `` रको िैिनको ! रको......``

मेरी िेज गंभीर वाणी िुनकर िैिनक ििनक िठठक गए । उनहोने डोली नीचे रखी

। मै उनके िबलकुल करीब जा पहुँचा । डोली मे डाली गई नवयौवना का हाि पकड़ बाहर िनकाला । िैिनक बोला-

`` आप यह कया कर रहे है षोषो `` `` वही कर रहा हूँ जो एक दे शभक को करना चािहए । लेिकन कया आपका दे शभक

नहीं है षोषो आपको इि िरह का आचरण करिे हुए लजजा नहीं आिी है षोषो``

`` लेिकन हे िाधु ! हम केवल राजाजा का पालन कर रहे है । हमे इििे कोई

िरोकार नहीं िक हमे कया करना चािहए और कया नहीं । राजाजा का पालन ही हमारी दे श भिक है ।``

`` िुम लोग कदािचि यह भूल रहे हो िक िुम दे शभिक नहीं अिपिु दे शदोह कर रहे

हो । पजा पर अतयाचार करना महािोर दे शदोह की शण े ी मे आिा है और िुम लोग वही कर रहे हो । इिके अिििरक कुछ नहीं ।``

`` ऐ िाधु ! हमे दे श भिक का पाठ मि पढ़ा । िमाट की आजा का पालन करना ही

हमारा परमकिवाय है और हमारी यही दे शभिक है ।``

`` इिका िातपया यह िक आपके िमाट भी दे शदोही है षोषो``

मेरे इिना कहिे ही वे िैिनक कोिधि हो मुझ पर टू ट पड़े । िबना िमय गंवाए मैने बड़ी सिूििा िे एक िैिनक पर अपने दणड का भरपूर वार कर उिके हाि िे भाला और िरिा

हाििल कर िलया । मेरी अदि ु सिूििा दे ख िैिनक ििनक िसिमभि हो गए िकनिु एक िेजिरारा िैिनक अपना भला मेरे वि पर अड़ािे हुए बोला-

`` लगिा है आप अवशय ही युदकौशल िे पिरिचि है लेिकन अब आप जीिवि नहीं

रह िकिे।``

िैिनक का हौिला दे खिे ही बनिा िा लेिकन वह िंभलिा उिके पहले मैने दल ु ती

दे कर पछाड़ िदया और अपना भाला उिकी गदा न पर और पैर उिके वि पर रख िदया । वह भौचकका हो गया । मै बोला-

`` हे िैिनक ! हो िो िुम बहादरु लेिकन चिुराई की अभी बहुि कमी है । लगिा है

िुमने युदनीिि का पाठ भी अधूरा ही पढ़ा है । जाओ पहले युदनीिि का पाठ पढ़ आओ ििर मुझ पर वार करना । हाँ, जािे-जािे इि नवयौवना को मुक कर दो अनयिा कुछ भी अनिा हो िकिा है । `` वह िैिनक िावधान हो गया । िंभवि:वह िमझ गया िक अब यिद िकिी िरह की होिशयारी की िो उिके पाण िंकट मे पड़ िकिे है । मैने उिके अस-शस छीन िलए । वह उठ खड़ा हुआ । बोला-

``हे िाधु ! आप अवशय ही कोई महापुरष होगे । कया मै आपका पिरचय जान

िकिा हूँ । यिद आपकी मुझ पर कृ पा दिष हो िो बिाइए । मै आपका सवागि करँगा ।``

`` ठीक है । मै िििशला िवदापीठ के पधानाधयपक आचाया चणक का पुत ििा

अधयापक आचाया चाणकय हूँ।``

मेरा पिरचय िुनकर वह एकदम करबद हो गया और निमसिक हो पणाम की

मुदा मे शािनििचत हो बोला-

`` िमा करे आचाया ! मै अमातय रािि मगध मे आपका सवागि करिा हूँ ।

वसिुि: हमने आपको पहचन नहीं पाया । मुझे आपका पूवा पिरचय अमातय कंदपा िे पाप हो चुका िा िकनिु दशन ा आज हो पा रहे है ।``

`` यह िो उिचि ही है िकनिु यह सपष करो िक मगध िामाजय मे यही िब

अतयाचार दे खने के िलए िििशला िे पाटिलपुत िक हज़ारो मील पैदल चलकर आया हूँ ।

िििशला मे कया मै यही िब बिाऊँगा िक मगध मे पजा पर अतयाचार होिा है और िजममेदार अमातय हाि पर हाि धरे बैठे िमाशा दे खिे रहिे है इि िरह अतयाचार कयो हो रहा है षोषो`` ``आचाया ! यह जो भी हो रहा है वह िब िमाट की आजा िे हो रहा है । `` `` अब इि नवयौवना को मुक करो ।``

मेरे आदे श पर रािि ने ितिण ही नवयौवना को मुक कर िदया । वद ृ ा अब िक होश मे आ चुकी िी । मैने उिे अपने दोनो हािो िे उठाया । उिे िानतवना दी । वह अपनी बेटी को पाकर पिनन हुई । बोली -

`` आया ! मै पिनन हुई िकनिु यह िो बिाओ, िुम कौन हो षोषो``

``मािे ! मै आचाया चणक का पुत आचाया चाणकय हूँ । िििशला िे मगध भमण के िलए

आया हूँ ।``

`` िुमहारा कलयाण को आचाया ! िकनिु आचाया मगध मे पिििदन यह िब होिे रहिा है । िुम कब िक पजाजनो को बचािे रहोगे । कया कभी इि अतयाचार का अनि नहीं होगा । `` `` मािे ! मै िो एक िाधारण िा अधयापक हूँ । भला मेरा मगध के राजय मे हसििेप कैिे हो िकिा है षोषो``

वद ृ ा के नेतो मे आँिू भर आए। मैने उिे गले लगा िलया और आशािन िदया`` मािे ! मुझिे जो भी िंभव होगा, अवशय करँगा ।``

वह आशसि हुई और अपनी बेटी को लेकर चल दी । रािि अब िक यह िब दे ख

रहा िा । उिने दे खा िक मै चाणकय न केवल अधयापक हूँ बिलक एक अचछा नागिरक भी हूँ । मेरे नयायोिचि पकृ िि को दे ख रािि िविनि हो उठे । बोले -

`` आचाया ! मै कृ िज होऊँगा यिद आप मुझे िेवा का अविर पदान करे गे । इि

बहाने कम िे कम आपिे िदाचार की दो-चार बािे हो जाएगी ।``

`` शीमान रािि ! कहा िो िुमने उिचि ही िकनिु कया मै उि िेवा की बाि कर

िकिा हूँ जो राजय की ओर िे पजा को िमलनी चािहए । मै िििशला िे मगध अधयपन के िलए आया हूँ । यिद मुझे उिचि लगा िो पाटिलपुत मे ही ठहर जाऊँगा, अनयिा मुझे अनयमनसक होकर िििशला लौटना होगा ।``

`` आचाया ! जहाँ िक राजय की ओर िे पजा की िेवा का पश है ,वह केवल मुझ

वयिकगि रिच के अनुिार नहीं हो िकिा । हाँ , मेरी ओर िे आपकी िेवा अवशय ही आदरपूणा िंभव हो िकेगी ।``

`` ठीक है । पि मे िकिी िरह की चचाा करना उिचि नहीं है । हमे िकिी िवशेष

सिान पर बैठकर िंगोषी करनी होगी ।``

`` मै आपको अपनी कुिटया मे आमंिति करिा हूँ । कया आप मेरा आििथय

सवीकार करे गे षोषो मै अनुगहीि होऊँगा ।``

`` मुझे सवीकार है । चिलए ।`` रािि का वयवहार मुझे कुछ िमिशि िा लग रहा िा । लग रहा िा वह िगरिगट

की िरह हर िमय रं ग बदलने मे मािहर है । जहाँ उिे आभाि होिा है िक कुछ पििकूल होनेवाला है वहाँ वह िुरनि ही रं ग बदल लेिा है । दे खो न, िकि िरह नवयौवना को उठा ले जाने को आिुर और अब िकि िरह अिििि ितकार के िलए भी आिुर ! यह िो िबलकुल पूरा राजनीििज है । जहाँ लाभ दिषि्रगोचर हुआ वहीं पर रं ग बदल िलया । ठीक है , दे खिे है शीमान रािि का अिििि सवागि

िकि िरह का है । हम दोनो िाि-िाि िबना िकिी िरह का वािाल ा ाप िकए चलिे रहे । कुछ ही दरू चलकर एक िुििजजि भवन के िामने रक गए । उनहोने भवन का दरवाज़ा खटखटाया । िण

भर मे ही दरवाज़ा खुल गया । बैठक अिधक िुििजजि नहीं िा िकनिु उिमे िवलािििा की िमाम

िामगी अवशय िदखाई दे रही िी । रािि ने पीठािन की ओर इं िगि िकया । मै एक पीठािन पर िवराजमान हो गया । िेवक िुराही मे जल और कुछ िल रख गया । रािि ने मुझे जल पदान िकया और बोलाहोगा। ``

`` पिीि होिा है आचाया बहुि िके हुए है । ििनक िवशाम कर ले ििर भोजन `` शीमान रािि ! िवशाम होिे रहे गा िकनिु यह िो मात जल है । कया दािारि

नहीं िमलेगा षोषो``

`` आचायव ा र ! मै दािारि नहीं लेिा और न ही अिििियो को इिे लेने के िलए

पेि्रिरि करिा । आप हमारे अिििि है इििलए आपके सवासथय का धयान रखना हमारा परम किवाय है ।`` नहीं करिे ।``

`` लेिकन शीमान रािि ! अमातय कंदपा दािािव के िबना िकिी िरह की चचाा ही `` आयव ा र ! यह रािि िकिी अनय की बराबरी नहीं करिा । पिमि: मै राजिेवक

हूँ । राजाजा का पालन ििा उिके िहि का िंरिण करना मेरा किवाय है । ििवदिीय मै एक िाधारण अमातय हूँ ।``

`` लेिकन शीमान ! मगध मे जो हो रहा है वह उिचि पिीि नहीिे होिा । कया

िमाजय ननद मद मे इिने चूर हो गए है िक उनहे अपनी पजा का िहि िंरिण का भी धयान नहीं षोषो``

`` आचाया.................................`` रािि िहिा रष होकर चीख पड़े ।

`` शीमान ! ितय िदै व कटु होिा है । कटु ितय िे बचा नहीं जा िकिा । यिद यही िसििि बनी रही िो उतर-पििम िे यवनो वदारा भारिीय राजयो को जीि िलया जा िकिा है । ``

`` लेिकन आप यह भूल रहे है िक मगध िामाजय की िवशाल िेना के िामने यवन

िटक नहीं िकिे। उनहे मुह ँ की खानी पड़े गी ।``

`` अमातय रािि ! मुझे मगध िामाजय की िवशाल िेना पर पूरा िवशाि है िकनिु

यह िो बिाओ िक कया मगध िमाट इि िवशाल िेवा का नेितृव कर पाएंगे षोषो``

मेरे इि पश िे रािि िवचिलि हो गए । वे कभी मुझे और कभी बाहर की ओर

दे खने लगा । बाहर िे िैिनको की आवाज़े आ रही िी -

`` इनहे कोड़े लगाओ । मारो इनहे । इनके पाि का िारा धन छीन लो ।``

कुछ िकिानो की िगड़ि़िगड़ाने की आवाज़े आ रही िी । रािि उठकर िखड़की िे बाहर दे खने लगे । कुछ िण िक वे इिी िरह बाहर हो रही गिििविध को दे खिे रहे ििर आकर बैठ गए । बोले-

`` आचाया ! आप ठीक कहिे हो । मगध की िवशाल िेना ििम िो है िकनिु इिका नेितृव िही नहीं है । इििलए मै आपकी बािो िे िहमि हूँ । िमय आने पर कुछ पिरविन ा के िलए मै भी िवचार-िवमशा करना चाहूँगा । यिद िमय अनुकूल रहा िो अवशय ही कुछ उिचि हो िकेगा ।``

`` मुझे शीमान रािि िे यही आशा िी । अचछा मै चलिा हूँ । `` `` एक िनवेदन करना चाहूँगा । यिद आप उिचि िमझे िो.... `` किहए ! मै िवचार करँगा ...``

`` आचाया चाणकय , आप िमाट ननद िे एक बार अवशय िमल ले ।`` `` अवशय...............मै उि िमय की पिीिा करँगा ।`` 00 मै आिमंजसय मे पड़ गया । िोचा िा ,मगध आकर मुझे राजनीििक िशिा पाने

के िलए आधार िमल जाएगा । कुछ वयवाहािरक जान की उपलिबध हो जाएगी । अचछा जनिंपका

होगा और िवचार ििा बुिद को िवसिार िमलेगा । िििशला मे िुना िा , मगध िामाजय की शिक और उिका िामंजसय राजनीििक अधययन के िलए उपयुक होगा िकनिु दे खिा हूँ,यहाँ ििदानिो

का हनन हो रहा है । अनुशािनिहनिा , धन लोलुपिा और िवलािििा का िामाजय िबखरा पड़ा है । िमाट ननद को िवलािििा और धन के पिि अिाह आकषण ा के अिििरक और कुछ िदखाई नहीं दे िा। ननद अिधकािधक धन िंजय मे रिच ले रहे है । पजािहि या यो कहे िक जनिहि की उनहे

ििनक भी िचनिा नहीं है । िंभवि: इिी कारण ननद को धनाननद कहा जािा है । कया पिा इि उपािध िे वे िभज है भी या नहीं। उनकी पजा उनहे धनाननद कहिी है । धन मे ही आननद उठाने के िलए उनहे धनाननद कहा जा रहा है । िसयो के पिि अपार मोह और िवलािी आचार-िवचार के

कारण उनके िवलाि-भवन मे िुरा-िुनदिरयो का जमिट लगा रहिा ह िै। धनाननद के आदे श पर िैिनक पजाजनो की कुमारी कनयाओं और िुनदर रमिणयो को जबरदसिी उठाकर िवलाि-भवन ले आिे है । िवलाि-भवन मे आने के बाद कोई भी कनया अिवा रमणी अछूिी रह नहीं पािी । पिाि ् ििर कोई लौटकर नहीं जािी । वह या िो दािी बनकर रह जािी है या उिका अनि हो

जािा है । अमातयगण चापलुि और अपनी िजममेदािरयो िे जी चुराने लगिे है । िजिना अिधक िवलािी और धन लोलुप िमाट है उिने ही अिधक उनके अमातय भी धन लोलुप ,िवलािी और चापलूि हो गए है । इनिे इनहे बचा पाना किठन नहीं िो आिान भी नही है । िामािाजयवादी िवचारधारा और लोलुपिा के चलिे कुछ भी िकया जाना आिान नहीं है । िकिी के भी आचारिवचार लोकिहिकारी नहीं है ।

शयािाम भाभी मेरी वयाकुलिा दे खकर ितिण की िमझ गई । भोजन

िमाप होने िक वह कुछ नहीं बोली । रिचकुमार ने बहुि कुछ कह िदया िकनिु मै अब भी जि का

िि गुमिुम भोजन करिा रहा और उठकर िखि पर िबछे िबछौने पर जा लेटा । जाने कब रिचकुमार और भाभी मेरे िनकट आ बैठे ,पिा भी नहीं चला । शयामा भाभी बोली-

`` जब जान की िपपािा अिधक हो जािी है िो लगिा है िक जो कुछ हम अपनी

इन बाहरी आँखो िे दे ख रहे है िे वह वासििवकिा िकिनी ितय है या उिका आधार कया है षोषो

कभी-कभी हम ितयिनषा को भी शंकालु दिष िे दे खने लगिे हे । अितय के पैर नही िंहोिे और ितय की कमी नहीं है । ितय की जीि अवशय होिी है । उिकी जीि िवलमबिे होिी है बिलक

अितय की जीि ितकाल हो जािी है िकनिु अनि मे वह टू ट कर काँच की िरह िबखर जािा है ििर कभी जुड़ नहीं पािा । कया मै िमझ िकिी हूँ िक िुम

अितय की इि ििणक जीि िे िवचिलि िो नहीं हो रहे हो । मुझे ऐिा ही पिीि हो रहा है । अितय कब िक अपना राग अलाप िकिा है और ितय कब िक चुपपी िाधेरह िकिा है षोषो आया चाणकय !``

`` आया चाणकय ! िुमहारा िवचिलि होना सवाभािवक है । मै िमझ िकिा हूँ िक

िजि मंशा िे िुम मगध आए हो , िुमहारी वह मंशा पूरी नहीं हो पा रही है । यह भी कहा जा िकिा है िक िजि किौटी पर िुम मगध को परखने का पयाि कर रहे हो उि किौटी पर वह खरा नहीं उिर पा रहा है । यह जररी नहीं िक िजि िरह का िुमहारा-हमारा दिषकोण है , उिी िरह का

मगध मे िभी का हो िकिा है । मगध के अलावा भी अनयत ऐिा भी हो िकिा है , यह भी िंभव हो । लेिकन आया ! िजि मंशा िे िुम मगध आए हो उिे िुम पूरा नहीं करोगे िो िुमहारा िंकलप

,यिद िुमने कोई िंकलप िोचा हो िो, अिवकििि ही रह जाएगा । कया ऐिा नहीं हो िमिा िक िुम उिी दिष िे दे खो िजि दिष िे अमातय कंदपा दे खिे है । िजि िरह िे रािि दे खिे है या िजि िरह िे िमाट धनाननद दे ख रहे है षोषो``

शयामा और रिचकुमार के इन ठोि िवचारो ने मुझे एक बार जैिे जागि कर िदया

। रिचकुमार िजिने िववदान है , शयामा भाभी भी उिनी ही िवदष ु ी है । वे सनािक होने के िाि-िाि मुझिे अिधक वयवहािरक अनुभव रखिे है । यह भी हो िकिा है िक ये दोनो मगध की राजनीिि

को अिधक अचछी िरह िे िमझ रहे हो । अनयिा वे इि िरह िे अपने िवचार रखिे नहीं । वे यह िमझ गए होगे िक मगध आने के बाद मै अवशय ही िवचिलि हो गया हूँ । मै जैिे नींद िे जाग गया हूँ । मै उठ बैठा । बोला-

`` आयव ा र रिच ! आप मुझिे बड़े भी है और अनुभव मे भी आप शष े है िै। अपने िे

छोटो के िवचारो को आप भिलभांिि जान जािे हो । मै अब िक यह िमझ नहीं पा रहा िक मगध

मे जो कुछ भी पििकूल िट रहा है । पजा िजि दौर िे गुजर रही है । िजन पिाड़नाओं का िशकार हो रही है । कनयाएं और िुनदिरयो का िजि िरह िे दर े जनो का ु पयोग िकया जा रहा है । शष

िनरादर िकया जाकर अनुशािनिहनिा बरिी जा रही है । वह कया िकिी िामाजय या राजय के िहि मे है षोषो िैदाििक िथयो को दरिकनार िकया जाकर मनमाना िकया जा रहा है कया वह

िकिी राष के िहि मे है । राजनीििजो की यिोिचि िलाह को असवीकार कर अिहिकर िलाहोिे का सवीकार िकया जाना कहाँ िक उिचि है षोषो एक ओर रािि और अमातय कंदपा को ििरमौर बनाया जा रहा है िो दि ू री ओर महामातय जैिे राजनीििज को दरुदरुाया जािा है षोषो यह िब

कया है षोषो मेरी िमझ िे परे है आयव ा र ! लगिा है , मगध मेिं अधयापक की िनयुिक पाकर मुझे ििनक भी िंिोष नहीं हो रहा है । ऐिे मे मुझे कया करना उिचि होगा और कया न करना अनुिचि होगा षोषो``

`` िुमहारा िवचारना अनुिचि नही है आया चाणकय । िजि िवचारधारा की िुम

बाि कर रहे हो वह िवचारधारा मगध िे िवलुप हो गई है । िजि िमाजय की अवधारणा िुमहारे हदय मे िवदमान है वह इन आििािययो के हदयाकाश मे नहीं है । आचायो और

अनुभवशीलजनोिे के िलए यहाँ कोई सिान नहीं है । िब ऐिी अवधारणा का िचनिा करना उिचि पिीि नही होिा ।``

`` वसिुि: उतर-पििम िे हो रहे यवनो के आकमण भारि के छोटे -छोटे राजयो को

परािजि कर उनहे अपने अिधकार मे लेकर वे मनमाना आचरण िकए जा रहे है । भारि के छोटे -

छोटे राजय िमलकर एक हो जाए िो यवन सवयं ही भयभीि होकर इि ओर पवेश करने का िाहि नहीं कर पाएंगे । मैने िििशला िवदापीठ मे अधययन की अविध मे िोचा िा िक मगध आने पर

यिद मगध िमाट का िहयोग िमल जािा िो िभी शिकयाँ िमलकर महान शिक का िवकाि होगा

। हमारी महान शिक के िमि यवन िो कया कोई भी उतर-पििम की शिक हमे कमजोर नहीं कर िकिी । मै इिी उधेड़बुन मे छोटी-छोटी बािो की ओर भी अिधक धयान दे रहा हूँ । मेरी िचनिा

छोटी िी नहीं है बिलक मै छोटी बािो िे होकर वहाँ िक पहुँचना चाहिा हूँ । महामातय शकटार ने

मुझे एक बार िमाट ननद िे िमल लेने के िलए भी कहा है । लेिकन मुझे लगिा है ,वह िमय अभी आया नहीं है । जब ऐिा िमय आएगा मै अवशय ही िमाट नंद िे िमलने के िलए पयाि करँगा । ``िं `` आया चाणकय ! यिद िुम िमाट नंद िे िमलना चाहिे हो िो उनिे िमलना ही िही होगा । याद है अमातय कंदपा ने िुमहे मंितमणडल मे शािमल करने के िलए आमंिति िकया िा और िुमने मेरा नाम पसिािवि िकया िा । मुझे िमाट नंद के मंितमणडल मे अमातय के पद पर

पद-भार गहण करना है । उिके बाद हम सवयं भी िुमहारे िाि िमाट नंद िे िमलने अवशय चलेगे ।``

`` आयव ा र रिच ! शायद यह ठीक होगा । हमे िमाट नंद िे िमल लेना चािहए ।

दे खिे है , उनिे िमलने के बाद कया िामने आिा षोषो``

मेरे हदय मे जल रहे जवालामुखी मे खदकिा लावा मुझे बार-बार उकिा रहा िा ।

जाने वह कब िूट पड़े , मुझे जाि नहीं है और इिके िबना काम नहीं चलेगा । मै िमाट नंद िे िमलने की पिीिा करँगा ।

00 मगध िमाट िे िमलने की पिीिा और योजना बन ही रही िी िक इि बीच िििशला िे अनायाि ही दतकुमार का आना हुआ । दतकुमार ने मुझे खोजने मे िारा मगध छान

िलया िब कहीं वह मुझिे िमल पाया । दतकुमार ने िपिाशी के बहुि बीमार होने की िूचना दी और शीघ ही िििशला लौटने आने के िलए िपिाशी का िंदेश कह िुनाया । मै अिवलमब के िाि

िििशला के िलए चल पड़ा । पाटिलपुत मगध िे िििशला की िैकड़ो मील की दरूी िय करने मे

लगभग दो माह का िमय लगा । िििशला पहुँचने मे अिधक िवलमब हो गया । िब िक िपिाशी

का दे हाविान हो चुका िा । मेरा हदय वेदना और पीड़ा िे भर आया । मुझे भारी पिािाप हुआ । दो िपाह िक मै आशम िे बाहर नहीं िनकला । यिद मै मगध गया नहीं होिा िो कम िे कम बीमारी िे पीिड़ि िपिाशी की िेवा िो कर पािा । लेिकन अब िकया भी कया जा िकिा िा । पिािाप िे

उबरना इिना आिान नहीं िा । िपिाशी मेरे िलए मात िपिा ही नहीं िे । वे मेरे िपिा के िाि-िाि गुर भी िे िो मेरी मािा भी िे । वे मेरे िब कुछ िे । मािा का दल ु ार हो या िपिाशी का आशय हो

या गुरवर की िशिा हो ,वे हर िमय मेरे पूणि ा : आशयदािा िे । उनके अनुपिसििि मे मै िबलकुल

अिहाय और अकेला महिूि करने लगा । उनके दे हाविान के पिाि मेरा अपना कोई भी नहीं रहा । मािाशी का सनेह भी नहीं पाया िा िक उनका भी अिमय मे दे हाविान हो चुका िा । अब िब

कुछ िमाप िा पिीि हो रहा िा । िपिाशी के होिे हुए यवन युविि िहमािद िे पिरचय हो गया िा। लग रहा िा एक नारी का मधुर सनेह पाप होगा िकनिु वह भी

िवधािा के िविध के अनुिार ििणक रहा और एक िदवा-सवपन िा बन कर रह गया । अब केवल मै ही िा मेरा अपना िजिे मै अपना कह िकिा िा । शेष जीवन िबलकुल िरक हो गया । एक

नवयुवक की बहुि िी अपेिाएं होिी ह िै। वह चाहिा है िक उिका भी कोई अपना हो ,मािाशी-

िपिाशी , भाई-बहन और इिके अलावा एक िुयोगय िुशील िुनदर पती हो ,उिका अपना िंिार हो । उिके अपने सवपन होिे है । उिकी अपनी अिभलाषाएं होिी है । कोमलांगी नारी का मधुर सपशा

हदय को शिक पदान करिा है िकनिु यह िपना ही बन कर रह गया । आज िमझ रहा हूँ , ये िारा जगि एक सवपन ही िो है । िजनहे अपना कहा जाय वह अपना नहीं होिा । मािा-िपिा के आशय िे बढ़कर िकिी का आशय पाना कोरी भावुकिा और कोरी-कलपना ही है । यह िदवासवपन है जो

सवपन टू टिे ही िबखर जािा है । मैने सवपन के इन िकरचो को दीि Z अविध िक वि िे लगा कर रखा ।

आशम मे िपिाशी के और भी िशषय िे, जो िवदाधययन करिे िे और कुछ

अधयापक भी िे जो िनयिमि आशम मे पिननिा िबखेरने की कोिशश करिे िे िकनिु मेरा हदय कहीं भी िटक नहीं पा रहा िा । मै अब आशम िे बाहर िनकलकर िशवालय िक जाने लगा िा ।

कुछ िशषय िाि हो िलया करिे िे । कहिे है िाव िकिने की बड़े कयो न हो वे कभी न कभी भर ही

जािे है । रह जािी है केवल िटि वह िो हदय के िकिी कोने मे दबी पड़ी रहिी है और िमय-दरिमय कभी-कभी उभरिे रहिी है । िाव भरना पारं भ हो गए िे । एक िदन िंभवि: पाि:का िमय होगा । एक नवयुवक िोड़े पर िंवार , हाि मे िलवार और भाला िलए हुए हांििा हुआ आशम आ पहुँचा । वह कुछ िायल िा । उिके

मुखमणडल पर िेज चमक रहा िा । वसो पर रक की बूँदे िदखाई दे रही िी । केश असि-वयसि िे । बड़ी-बड़ी आँखे और िवशाल भाल उिदयमान हो रहा िा । लग रहा िा िदन मे ही िूया िनकल आया

हो । उिके वस िकिी राजकुमार िे लग रहे िे । रे शमी पिरधान मे वह बहुि आकषक ा लग रहा िा

। वह िीधे आशम मे पवेश कर आया । मै कुछ िशषयो को राजनीिि िवषय पर वयाखयान दे रहा िा । उिने आिे ही लगभग आधा झुककर पणाम िकया और एक ओर खड़ा हो गया । कुछ िण िक वह िठठका खड़ा रहा । उिके मुख पर िनिभZ किा झलक रही िी । उि नवयुवक ने मेरे चरण सपशा और पणाम कर बोला-

`` आचाया के शीचरणो मे िपपपलीवन के गणमुखय महाराज िूयग ा ुप मौया का पुत

चनदगुप मौया पणाम करिा है ।`` चुका है ।``

`` लेिकन वति ! िपपपली वन गणराजय िो मगध िमाट वदारा हसिगि िकया जा `` आचायव ा र ! आपके वचन उपयुक ही है । विम ा ान मे िपपपलीवन मगध िमाट के

अधीन है । यह इििहाि मेरे जनम के पूवा का है । िंभवि: उि िमय मै मािाशी के उदर मे िा । मै उि िमय होिा िो िपपपलीवन का इििहाि ही कुछ और होिा ।``

`` कैिा होिा षोषो और िुम करिे भी कया षोषो मगध की िेना िो अपार है िं।`` `` आचाया ! उि िमय मै होिा और मेरी यह िलवार होिी ।``

`` लेिकन वति ! िपपपलीवन के पमुख को बनदी बनाने के बाद मगध िेना ने िमसि राजकुल को भी बनदी बना िलया िा । ििर िुम कैिे बच पाये हो षोषो``

`` आचायव ा र ! उि िमय मेरा जनम नहीं हुआ िा । मेरी मािा भी मगध राजय की

बनदी िी । इििलए मेरा जनम भी बनदीगहृ मे ही हुआ है । मगध का अंि:पुर िकिी बनदीगहृ िे कम नहीं है ।``

`` वति ! िुम यह कया कह रहे हो। अिाि ा ् िुमहारी मािा को अनि:पुर की दािी

बना िलया गया है । िुमहारी मािा कौन है और इि िमय वह कैिी है षोषो``

उि युवक ने मेरे इि पश का कोई उतर नहीं िदया । वह ििर झुकाये बड़ी दे र िक

यो ही खड़ा रहा । मै यह िमझ गया िक युवक लजजा के कारण कुछ कह पाने मे िंकोच कर रहा है । मै बोला-

`` वति ! लेिकन िुमहे और िुमहारी मािा को मगध के अनि:पुर िे मुिक कैिे िमल पाई और यहाँ िक कैिे पहुँच पाये षोषो कया िुमहे यहाँ िक आने मे भारी िवपितयो का

िामना नहीं करना पड़ा षोषो मै जानना चाहिा हूँ िािक िुम िजि उदे शय िे भी यहाँ आये हो , िुमहारी िहायिा िजि िकिी िरह िे कर िकूँ । िििशला िवदालय के आशय मे आने वाला कभी भी िनराश नहीं होिा।``

`` आचायव ा र ! जब मै आपके िमि पूणि ा : िमिपि ा भाव िे आया ही हूँ िो िकिी

भी िरह की गोपनीय िे गोपनीय िवषय को आपके िमि िवसिार िे कहने मे मुझे िकंिचि भी

िंकोच नहीं होगा । मै िपिाशी,मािाशी और मेरे िवषय मे िमपूणा जानकारी आपके िमि खुले गंि्रि की िरह पष ृ -दर-पष ृ सपष करना उिचि िमझिा हूँ ।``

`` वति ! यिद िुम पिवत िंकलप लेकर आए हो िो वह िब सपष करो जो िुमहारे

िलए उिचि हो ।``

मेरे आशम मे आया हुआ युवक चनदगुप मौया पििभाशाली पिीि हो रहा िा । मै

चनदगुप मौया के िवषय मे िमपूणा जानकारी का आकांिी िा । मुझे लगा यह युवक चनदगुप मौया अवशय ही िकिी बहुि बड़ी महतवाकांिा का आकांिी है । चनदगुप मौया ने बिाया --

`` मेरे िपिा िूयग ा ुप मौया िपपपली वन के पमुखगण िे । मािा का नाम मुरादे वी

िा । िूयग ा ुप मौया िपपपली वन पर राजय िकया करिे िे । िपपपलीवन मे चारो ओर िुख-शािनि

का िामाजय िा । राजय मे कलह ,कलेश ,िण ृ ा ,ईषया की बाि उठिी न िी । पजा अनुशाििि और िुरििि िी । राजय मे अिधकांश लोगो की आजीिवका कृ िष और िशकार हुआ करिी िी ।

गणराजय मे पजाजन िादा जीवन और उचच िवचार के िे । वे शिकशाली और बिलष भी िे । पमुखगण अपनी पजा के पिि िजिने ििहषणु िे उिने ही उनकी पजा भी पमुखगण के पिि ििहषणु िी । वे एक दि ू रे पर पाण िनछावर के िलए िदै व ितपर रहिे िे । िकिी भी िमय

पमुखगण िूयग ा ुप मौया पजाजन के िलए उपिसिि हो जािे िे । राजय मे िकिी भी पकार के

तयौहार हो ,वे िमलकर मानिे िे । इि कारण पजा और राजा मे आपिी िंिल ु न बना हुआ िा ।

िपपपलीवन की पजा िूयग ा ुप मौया को अपना राजा मानिी िी और राजा पजा को अपनी िंिान

मानिी िी । आिपाि के िभी राजयो मे िपपपलीवन राजय की िुख-शािनि की बयार बहा करिी िी । अनय राजयो की िुलना मे िपपपलीवन िमपूणा रप िे िमपनन िा । पिरणामसवरप आिपाि के राजय के गण िूयग ा ुप मौया की इि शािनि और ििहषणुिा िे ईषया करने लगे िे । इन िभी राजाअिे मे मगध के िमाट नंद को ििनक भी िुहािी नहीं िी । िूयग ा ुप के शौया के िमि

आिपाि के राजा िीके पड़िे िे । इि कारण छोटे -छोटे राजय उनकी शिक के िमि निमसिक हो जािे िे िकनिु िूयग ा ुप मौया छोटे -छोटे राजयो के पिि भी ििहषणु रहा करिे िे । लेिकन नंद अपने िामाजय को अिधक िवसिार दे ने के उदे शय िे िपपपलीवन को भी अपने राजय मे शािमल करने के उतिुक िे । उनकी दिष िपपपलीवन पर भी जा पड़ी । नंद केवल िमय की पिीिा कर रहा िा िक

वह ऐिे िमय पर िपपपलीवन पर आकमण करे जब िूयग ा ुप मौया राजय मे उपिसिि न हो । ऐिा ही एक िमय आया ।

एक िदन गणपमुख िूयग ा ुप अपने मंितवरो के िाि िशकार के िलए गए हुए िे । गुपचरो ने

ितिण नंद को िूिचि िकया िक िूयग ा ुप राजय मे नहीं है बिलक िशकार के िलए वनो मे गए हुए है । शुभ अविर पाकर नंद ने िपपपलीवन पर आकमण कर िदया । महल को िेर िलया गया। अनिभज मािा मुरादे वी आिया चिकि हो मगध िैिनको की इि अनोखी कायव ा ाही को दे खने के िलए िववश हो गई। िेनानायक ने िोषणा करिे हुए कहा-

``िावधान िैिनको ! िकिी भी िैिनक ने हमारी कायव ा ाही मे वयवधान डाला िो

उिका ििर िे धड़ अलग कर िदया जाएगा और हाँ िकिी भी िैिनक ने चालाकी की िो िारे महल को आग लगा दी जाएगी।``

चारो ओर मगध के िैिनको के िोड़े दौड़ने लगे । दे खिे ही दे खिे महल छावनी मे

पिरवििि ा हो गया । िेनानायक मािा मुरादे वी के पाि आकर बोला-

``िमाट महानंद का आदे श है िक अब िपपपलीवन मे िकिी भी गणपमुख का

शािन नहीं चलेगा । आज िे इि राजय का पशािन मगध िामाजय के अधीन होगा ।``

इिना कहकर िेनापिि चला गया । िैिनको ने महल की िेराबनदी कर अपने

अिधकार मे ले िलया । िपपपलीवन के िैिनक पमुख बलभद ने मुरादे वी िे आजा पाकर िूयग ा ुप को िूिचि करने के िलए जाने की आजा चाही । मुरादे वी बोली-

`` वति बलभद! मौया कुल के पिि िुमहारी और िैिनको की िनषा अवशय ही

पशंिनीय है लेिकन ऐिे किठन िमय मे अपने िनषावान िैिनको को मतृयु के मुख मे डालना अनुिचि पिीि होिा है । इि दग ा िेरे को िोड़कर िुम जाओगे कैिे षोषो चारो ओर िैिनको ने ु म िेराबनदी की है ।`

`` मािे ! वह वीर िैिनक िकि काम का जो किठन िमय मे अपने सवामी को

िंकट मे पड़ा दे खिा रहे । वीर िैिनक वह होिा है जो किठन िे किठन िमय मे भी अपने सवामी और राजय की रिा करने के िलए अपने पाणो की बाजी लगा दे िा है । मािे ! बि ,आपकी आजा की पिीिा है । मै शीघ ही गणपमुख को िूिचि करने के िलए पसिान कर दँग ू ा ।`` सविंत हो ।``

`` ठीक है ,जाओ । शतुओं के िाि िजि िकिी भी िरह िे िुम युद करने के िलए मािा मुरादे वी की आजा पाकर बलभद अपने िवशिनीय िैिनको की छोटी िी

टु कड़ी को लेकर िजि िकिी िरह िे महल िे बाहर िनकलने मे ििल हो पाया िकनिु ििर भी

िैिनको ने उिका पीछा िकया । बलभद के कुछ िैिनक वीरगिि को पाप हो गए बलभद बुरी िरह

िे िायल हो गया । िायल होने के पिाि भी वह बच-बचाकर भाग िनकलने मे भी ििल हो पाया । उिके शरीर पर िाव िे उठनेवाली पीड़ा भी उिे रोक न िकी । वह िबना िकिी पिरणाम के वनो

मे गणपमुख िूयग ा ुप मौया को ढू ँ ढने िरपट भागा जा रहा िा । उिे लगा िनकट ही िे िोड़ो के िहनिहनाहट और उनके टापो की आवाज़ आ रही है । उिे आशंका हुई िक कहीं यह नंद िमाट के िैिनको के िोड़ो की आवाज़े ही हो । वह िावधान होकर रक गया । सिान का अचछी िरह िे

परीिण िकया । उिने झािड़यो मे छुपकर आहट ली िो िामने िे िूयग ा ुप मौया वनराज ििंह का

िशकार कर उिका ििर अपने हािो मे लटकाए चले आ रहे है । ऐिा लग रहा िा मानो िािाि ् िूया अपनी िकरणे िमेटे हुए बड़ी शान िे आकाश गमन कर रहा हो । िूयग ा ुप को दे ख बलभद पूणि ा : आशसि हुआ । उिने शीघ ही अपने िोड़े को ऐड़ लगाई और िवदुि की िरह िणभर मे ही

गणपमुख िूयग ा ुप मौया के िमि. उपिसिि हो गया । बलभद को इि िरह अनायाि िामने दे ख पल भर के िलए िूयग ा ुप सिबध हो गए । उिके शरीर िे रक की धाराएं बह रही िी और वह बुरी

िरह िे िायल हो गया िा । उिका शरीर िि-िविि हो गया िा । उिे दे खिे ही गणपमुख िूयग ा ुप िठठक गए। बलभद बोला-

`` महाराज की जय हो ।``...................

`` वीर बलभद ! िुमहारी यह अवसिा ....कया िकिी शतु ने िुमहे अकेले पाकर आकमण िकया षोषो ``

`` महाराज ! िमा करे । िमाचार िुखद नहीं है । मै िजि िकिी िरह पयाि कर

आप िक पहुँचने मे ििल हो पाया । बि ,यही मेरी ििलिा है ।``

`` सपष करो बलभद ! कया बाि है ,जो िुम बुरी िरह िे िायल होकर भी मुझे

खोजिे हुए इि दग ा वन मे चल आए । िब कुशल िो है न वीर िैिनक षोषो`` ु म

`` नहीं महाराज ! कुछ भी कुशल नहीं है । िजिनी शीघिा िे हो िके ,उिनी

शीघिा िे आपको अवगि कराना मेरा किवाय िा । इििलए मै िबना िकिी पिरणाम की िचनिा िकए उि िमर-िेत िे िनकल आपको खोजिे हुए आ पहुँचा ।``

`` िमर-िेत ! कैिा िमर-िेत बलभद षोषो ििनक सपष करने की कोिशश करो ।` `` महाराज ! हमारे राजय पर आकमण िकया गया ।`` बलभद िे यह िुनिे ही िूयग ा ुप के हाि िे वनराज ििंह का कटा ििर छुट कर

नीचे िगर गया । मानो िवजयी वीर अनायाि ही परािजि हो गया हो । वनराज का िशकार जैिे

उनके िलए महतवपूणा नहीं रहा और वे इिके बदले मे द ु:खद िमाचार िुनकर िवििप हो गए हो । िूयग ा ुप िशकार को िवसमि ृ हो गए । उनके मुख पर आकोश की िबजली कौध गई। दे गे ।``

`` आकमण ! हमारे राजय पर ! िकिने िकया यह दस ु िाहि । हम उनहे मतृयुदणड

`` महाराज ! मगध िेना ने हमारे राजय पर आकमण कर महल की िेराबनदी कर ली । महारानी के आदे श पर मै अपने कुछ िैिनको के िाि आपको खाजने िनकल आया िािक आप अपनी रिा कर िके ।``

िपपपलीवन पर इि िरह अनायाि मगध िैिनको के आकमण की ििनक भी शंका

नहीं िी । भय अवशय िा िक मगध िमाट महापद िपपपलीवन की िुख-शािनि कभी भी भंग कर

िकिा है और वह भय आज िाकार हुआ । वह भी िब जब िपपपलीवन के गणपमुख िूयग ा ुप मौया अपने िनषावान ,वीर िैिनक और िािियो के िाि िशकार के िलए िने वनो की ओर दरू िक चले गए । इि अविर का लाभ उठाकर मगध िमाट नंद ने आकमण कर िबना िकिी िरह का युद िकए उि पर अपना आिधपतय सिािपि करना चाहा । िपपपलीवन के गणपमुख िूयग ा ुप मौया ििलिमला गए बोले-

`` महापद नंद की नीिि-कुनीिि का शाकय ,भाग ,कोिलय जैिे गणराजय भी

िशकार हुए है और उनकी कुदिष िपपपलीवन की शािनि भंग कर उिको अपने अधीन करने के िलए पड़ चुकी है । यह िोर अनयाय है । इि अनयाय का हम डटकर िामना करे गे ।``

`` महाराज ! ऐिा पिीि होिा है , महापद नंद की िामाजयवादी िपपािा मानवीय

िंहार को बढ़ावा दे रही है । अमन-शािनि के सिान पर शिक के मद मे चूर नंद अनयाय का पिधर हो गया है । यह हम बदाशाि नहीं करे गे ।``

`` वति बलभद ! हम िबना युद िकये पराजय कैिे सवीकार कर ले । हम जानिे है

िक मगध की अपार िेना के िमि हमारी िेना कुछ भी नहीं है िकनिु आया नीिि हमे इि िरह

पराजय सवीकार करने नहीं दे िी । हम शतु के पाण ही लेगे या अपने पाण िपपपलीवन पर िनछावर कर दे गे । शतुओं िे हमारा युद अवशयंभावी होगा ।``

`` महाराज ! युद के पहले हमे महारानी के पाणो की रिा करनी होगी । ऐिा न हो

िक हम युद के िलए मगध िेना को ललकारे और मगध िेना महारानी को मोहरा बनाकर हमे िबना युद िकए ही परािजि कर ले ।`` िेनानायक बोले

`` यह भी िंभव है िेनापिि ! िुमहारी िलाह सवीकार करने योगय है ििर भी हमे

िावधानी िे काया लेना होगा । चलो ।``

उनहोने िोड़े को ऐड़ लगाई । मयान िे िलवार खींच ली और िीविा िे पवन-वेग

िे िोड़ा दौड़ाने लगा । िेना-नायक और िाि मे आए महाराज िूयग ा ुप के िािी उनके पीछे िीविा िे चल िदए । बलभद अब भी उिनी ही सिूििा िे िूयग ा ुप का मागद ा शन ा करिे आगे-आगे चलिे रहा ।

महल के िनकट आिे ही उनहोने दे खा मगध की िवशाल िेना ने िेराबनदी कर रखी है । मगध की िवशाल िेना दे ख पलभर के िलए िूयग ा ुप मौया िठठके िकनिु अपने मुटठी भर िैिनको के िाहि को दे खिे हुए वे मगध की िेना पर ििंह की िरह टू ट पड़े ।

िूयग ा ुप मौया के िाहि और शौया के िमि मगध िेना िछनन-िभनन होने लगी । वे िूयग ा ुप के

जोिशले पहार को िहन नहीं कर पा रहे िे । मगध िेना के छोटे -छोटे िेनानायक उनकी िलवार की िीविा को झेल नहीं पा रहे िे । िैकड़ो मगध िैिनक मारे गए िकनिु आिया िब होिा िा जब एक मगध िैिनक मतृयु को पाप होिे ही दि मगध िैिनक िामने युद के िलए उपिसिि हो जािे िे ।

चारो ओर िे उमड़िी आ रही मगध िेना िमुद की िरह चली आ रही िी । िूयग ा ुप मौया के िैिनक दि ु Z षा वीर िैिनक िे उनके िामने मगध िेना के िैिनक िटक नहीं पा रहे िे। मगध िेना के

िेनापिि, िपपपलीवन के गणपमुख और उनकी छोटी िी िेना की टु कड़ी को परािजि करने मे

किठनाई महिूि कर रहे िे । उनहे लग रहा िा ,मगध िेना अवशय ही परािजि हो जाएगी और उनहे खाली हाि वापि जाना पड़ िकिा है ।

िमुद के िमान िवशाल मगध िेना के िमि िपपपलीवन के मुटठी भर िैिनक

कब िक िटक पािे। शिकशाली िैिनक अिधक िे अिधक िकिने िैिनको के िाि युद कर िकिे ।

िाहि की भी िीमा होिी है और िाहि िदखािे-िदखािे िपपपलीवन के कई वीर िैिनक वीरगिि को पाप हो गए । एक-एक िैिनक वीरगिि पाप होिे-होिे शेष िैिनक बनदी बना िलए गए । अकेले

िपपपलीवन गणपमुख के िाहि ने भी जवाब दे िदया । िूयग ा ुप मौया को बनदी बना िलए गए । नंद के आदे श पर उनहे मगध िैिनको ने जंजीरो मे जकड़कर िपंजरे मे डाल िदया और दे खिे-ही-दे खिे िूयग ा ुप मौया के िामने ही िपपपलीवन के गणराजय पर मगध िेना का िवजयी धवज िहरा िदया गया ।

दष ा ुप मौया को अंधकूप मे डालने के आदे श जारी कर िदए । ु महापद नंद ने िूयग

िेनानायक ने आकर उनिे उनकी अिनिम अिभलाषा पगट करने को कहा -

`` मगध िमाट ने जानना चाहा िक अंधकूप मे जाने के पहले आपकी अिनिम

अिभलाषा कया है षोषो``

`` वीर िेनापिि ! अनय वीर नायक को बनदी कैिे बना िकिा है । कया िेनापिि

केवल अपने नायक की ही आजा का पालन करिा है । उिकी अपनी कोई मिि नहीं होिी । कया मगध िेनापिि मानवीय नयाय के पि मे नहीं है षोषो``

`` मगध िेनापिि केवल अपने सवामी के आदे श का पालन करिा है । इिमे नयाय

अिवा अनयाय का पश उपिसिि नहीं होिा । यिद आपकी कोई अिनिम अिभलाषा नहीं है िो हम आपको अंधकूप मे डालने के िलए िववश है ।``

`` ठीक है । यिद िुम यही चाहिे हो िो मुझे महारानी मुरादे वी िे िमलने की

अनुमिि दी जाय ।``

मुरादे वी, जो िकिी िमय िपपपलीवन की गणराजय की महारानी िी ,िूयग ा ुप को बनदी बनाने और िपपपलीवन को अपने अधीन लेने के बाद अब मात मगध िमाट नंद के

अनि:पुर की एक िामानय दािी बन कर रह गई िी । िूयग ा ुप मौया की अिनिम अिभलाषा सवरप उनहे मुरा दे वी िे िमलने की अनुमिि पदान की गई । मुरादे वी को ,िूयग ा ुप िे िमलाने के िलए कारागार मे लाया गया ।

िूयग ा ुप मौया को हिकिड़यो और बेिड़यो मे जकड़ा दे ख मुरादे वी का हदय िवचिलि

हो उठा । िपिड़ि हदय के भाव मुखमणडल पर आ ही जािे है । मुरादे वी अपने-आपको िनयंिति कर िूयग ा ुप के िमि ििर झुकाए आ खड़ी रही । उिने नेतो के आँिूओं को िछपा िलया । भीिर ही

भीिर वह रो पड़ी िकनिु ऐिे िमय मे यिद वह दढ़िा िे काम न ले िो महाराज िूयग ा ुप उिे दे ख टू टकर िबखर िकिे है । अिमय आई हुई किठनाई को िजि िकिी िरह पार लगाना ही होगा ।

िूयग ा ुप के नेतो मे गहन गंभीरिा और हदय मे दढ़िा दे ख मुरादे वी अपने सिान पर अिडग रही । मुरादे वी िंिुिलि हो बोली -

`` आया ! िमय बड़ा बलवान होिा है । िमय कब और कैिे अपना पलड़ा बदल दे

जाि नहीं होिा । इि िंकट की िड़ी मे आपको बेिड़यो मे जकड़ा दे ख हालांिक हदय िवचिलि हुआ जा रहा है िकनिु यिद हमारे पैर लड़खड़ा गए िो और अिधक अनिा हो िकिा है ।`` `` हाँ दे वी मुरा ! िुम िपपपलीवन की महारानी...........................``

अभी िूयग ा ुप अपनी बाि पूरी भी नहीं कर पाए िे िक उनके शबद मुरादे वी के हदय को शूल की भांिि चुभ गए । उिने अपने नेतो के कोरो िे बहिे आँिुओं को आंचल िे पोछिे हुए कहा-

`` सवामी ! अब मै महारानी नहीं रही बिलक िमाट नंद के अनि:पुर की एक

िाधारण िी दािी हूँ । इििे अिधककुछ नहीं । यह िमय की पवंचना है ।``

`` महारानी मुरादे वी ! इि जड़-चेिनावसि मे पाणी की पकृ िि नहीं बदलिी बिलक

भागय की िवडमबना मनुषय की शारीिरक अवसिा को अवशय ही पिरवििि ा कर दे िी है । वनराज ििंह वन मे रहिे हुए यिद उिे भोजन नहीं िमलिा िो वह भूखा ही रह जािा है िकनिु वह कभी िाि नहीं खािा । इिना होिे हुए भी वह वनराज ही कहलािा है । उिे

भूखा दे खकर लोग यही कहिे है िक यह भूख वनराज है । कोई यह नहीं कहिा िक यह भूख वनराज , अब भूखा खरगोश बन गया है । उिकी पकृ िि जि की िि बनी रहिी है । वही िसििि आपकी हमारी है महारानी ।``

िूयग ा ुप की बाि िे महारानी ििनक िवचिलि हो गई िकनिु शीघ ही सवयं को

िनयंिति कर बोली-

`` महाराज ! आपका किन यिोिचि है िकनिु मेरी जो मनोदशा हो गई है उिे कैिे

िमझा िकूँ । िजि िरह मनुषय अपनी पकृ िि नहीं बदल िकिा उिी िरह वह अपना कुछ भी

बदल नहीं िकिा । यही िो भागय की िवडमबना है । आप लाख चाहे मुझे िानतवना दे िकनिु हदय है िक मानिा ही नहीं । ``मुरादे वी की मनोदशा दे ख िूयग ा ुप ििनक चुप रहे । िोचने लगे ऐिे िमय मे यिद महारानी िाहि खो दे गी िो िबकुछ नष-पाय: हो जाएगा । अब िंयम ही वह हिियार है िजििे िमय को वश मे िकया जा िकिा है या िंयम के वदारा िमय पिरविन ा की पिीिा की जाना होगी ।

`` यिद यह भागय की िवडमबना है िो इिे धैया और िाहि के िाि िंयिमि करना

ही होगा । पििकूल पिरिसििियो मे िंयम बनाए रखकर ही अनुकूल िसििियो की पिीिा करनी होगी और इिना ही नहीं इन पििकूल िसििियो को अनुकूल बनाने के िलए िंिषा करना होगा । यिद हमने िंयम नहीं रखा िो यह पििकूल िसििियाँ िवकराल रप धारणकर िकिी है । ``

हिकिड़यो और बेिड़यो िे जकड़े हुए िूयग ा ुप के वि पर अपना ििर रखिे हुए

महारानी मुरादे वी के नेतो िे आँिुओं की अिवरल धाराएं पवािहि होने लगी । उिके आँिू

ििििकयो मे बदल गए और वह िूट-िूटकर रोने लगी । महाराज िूयग ा ुप के कनदन के सवर भी आिहसिा-आिहसिा कारागार मे दिवि होने लगे िकनिु पतिरो की दीवारे अपने सवामी के आदे श

का पालन करना किवाय िमझिी है , अनयिा अब िक दीवार चटक जानी चािहए िी िकनिु ऐिा िंभव नहीं हो िकिा । आँिुओं को पोछिे हुए मुरादे वी बोली-

`` सवामी ! मै पूरा पयाि करँगी ,आपके इि राजिी शरीर पर पड़ी बेिड़याँ िजिनी

शीघिा िे हो िके कट जाएं । मै िंिषा करँगी । जब िक मेरे इि िन मे पाण है । आिखरी शाि िक िंिषा करँगी ।``

`` महारानी मुरे ! यह जान लो हर काली राि के बाद िूरज उगिा है । हर अमावि

के बाद पूििणम ा ा होिी है । हर द ु:ख के बाद िुख आिा है । पतयेक पििकूल पिरिसििियो के बाद अनुकूल िसििि आिी है । हर िूयास ा ि के बाद भी िूयोदय होिा है । हर िंकट के बाद उिका

िवमोचन होिा है । यह भी जान लो िक उगिा हुआ िूया भी डू बिा है िो िमपूणा कलाओं िे वयाप

चनदमा भी काली अंधेरी रािो मे गुम हो जािा है । िुम यह िमझ लो िक हमारे िाि ऐिा ही कुछ हो रहा है । बि ,ििनक धैया और िंयम की आवशयकिा है । कोई भी पयाि अििल नहीं होिा । मुझे पूरा िवशाि है , िुम जो भी िंिषा करोगी उिके अनुकूल एवं शुभ पिरणाम अवशय ही लाभकारी और िुखद होगे ।``

`` महाराज !आपका कहना यिोिचि है िकनिु सवामी ! मेरा िुहाग अंधकूप की

अंधेरी कोठी मे बनद होने जा रहा है आप अंधकूप की िवडमबना बनने जा रहे है िकनिु मै अनि:पुर मे रहकर सवयं अंधकूप बनने जा रही हूँ । ऐिे मे धैया धारण करना मेरी शिक िे बाहर है सवामी ।`` िूयग ा ुप ने मुरादे वी को आशसि करिे हुए पुन: बोले-

`` महारानी ! यह जान लो काली अंधेरी राि के बाद िूयोदय होकर रहिा है । इि अटल ितय को जान लो िो कभी द ु:ख नहीं होगा । िुख-दख ु , अनुकूल-पििकूल, अंधेरा-पकाश यह िब पकृ ििबद है । इनहे अपना काम करने दो और हम अपना काया करिे है ।``

`` सवामी ! आपकी बािो ने मेरे हदय मे एक बार ििर अपने किवाय पि पर चलने

के िलए पेि्रिरि कर िदया । मै वह कर िदखाऊँगी जो एक राजय की महारानी को करना चािहए । मै िंकलप लेिी हूँ िक एक िदन वह अवशय आएगा।``

मगध िमाट नंद ने िूयग ा ुप और मुरादे वी को अिधक िमय िक िमलने नहीं िदया

। िैिनको ने आकर बिाया िक िमलने का िमय पूरा हो गया है । िूयग ा ुप को शीघ ही अंधकूप मे डालने के आदे श िदए है । िुनकर मुरादे वी िवििप िी हो गई । उिने िवििप होने िे पहले कहा -

`` महाराज ! एक िदन िूयग ा ुप मौया वंश का िूयाि ा ेदय अवशय होगा । जब िक मेरे

िन मे पाण है इि िूया को मै डू बने नहीं दँग ा श ं की रिा ू ी । मेरी कोख मे पल रहा यह गभा मौयव अवशय करे गा चाहे वह कनया हो या पुत। मै वचन दे िी हूँ । मेरा िंकलप अवशय पूरा होगा ।``

महाराज िूयग ा ुप को मगध िमाट के आदे श पर अंधकूप मे डाल मुरादे वी को नंद

के अनि:पुर मे भेज िदया गया ।

िमय वयिीि होिा गया और मुरादे वी ने एक पुत को जनम िदया । पुत पाकर

मुरादे वी अिि पिनन हो गई। वह अपने पुत का मुख दे ख-दे ख भिवषय की पिरकलपना करने लगी । वह िोचने लगी ,कब यह बालक बड़ा होगा और उिके िपिा को अंधकूप िे बाहर िनकालेगा ।

चंूिंिक मगध िमाट नंद अतयनि कूर और दष ु पकृ िि का है । ऐिे मे उिे िकिी िरह की शंकाओं

िे दरू ही रखा जाना उिचि िमझा गया । मुरादे वी अपने पुत को गोद मे लेकर अिीि मे खो जािी । िोचने लगिी ,यिद िपपपलीवन मे बालक का जनम होिा िो अवशय ही िमपूणा राजय मे पिननिा

की लहर वयाप हो जािी । िारा महल िजाया जािा और गरीबो ििा िाधुओं को दान िदया जािा । महाराज िूयग ा ुप बालक को गोद मे लेकर पिनन होिे । आननदोतिव िे िारा िपपपलीवन झूम उठिा ।

मुरादे वी बार-बार बालक को चूमिी और भिवषय की योजनाओं मे खो जािी । वह

िोचने लगिी ,जब बालक बड़ा हो जाएगा, वह अवशय ही उिके िपिा को अंधकूप िे मुिक िदलाएगा । वह एकानि मे बड़बड़ाने लगिी -

`` दे खना महाराज िूयग ा ुप मौया का यह पुत िजिे मै आज िे चनदगुप नाम दे रही

हूँ , िपपपलीवन के गणपमुख का पुत चनदगुप मौया के नाम िे जाना जाएगा ।``

मुरादे वी को इि िरह एकानि मे बड़बड़ािे दे ख-िुन अंि:पुर की दािी िुमिि हं ि के मुसकरा दी -

`` यह िुम कया बड़बड़ा रही हो मुरा षोषो अंधकूप मे पड़ा कैदी उिी का ही रहकर रह जािा है और........और यह िुमहारा पुत चनदगुप...................अचछा िो यह िपपपलीवन गणपमुख का पुत चनदगुप मौया कहलाएगा षोषो``

`` हाँ िुमिि ! मै अपने भागय को कोिकर उन पर िवचार कर रही हूँ । अचछा,

बिाओ , कया िुम मेरा िाि दोगी। मेरे हदय मे बहुि िारी अकांिाएं है षोषो``

`` हाँ मुरा ! मैने आज िक हर िकिी की िहायिा की है । कभी िकिी को मना नहीं

िकया है । कहो कया बाि है । मै िुमहारी कया मदद कर िकिी हूँ षोषो``

िुमिि िे बाि करिे हुए मुरादे वी को लगा , यह िुमिि अवशय ही उिकी िहायिा

करे गी और उिकी अकांिाओं को पूरा करने मे िहयोग करे गी । वह बोली-

`` महाराज िूयग ा ुप ,मेरे पिि को जब अंधकूप मे डाला जा रहा िा िब उनहोने कहा

िा िक यिद कनया हुई िो कुछ भी नाम रख दे ना िकनिु यिद बालक हुआ िो उिका नाम चनद रखना । यह उनही का िदया हुआ नाम है । मेरी अकांिा है िक मेरा पुत िपपपलीवन राजय के

िंसकारो िे िंपनन हो । िजििे उिके रक मे िपपपलीवन राजय की िभयिा-िंसकृ िि और िंसकार उजजविलि हो । वह चनदमा की िोलह कलाओं के िाि पूणम ा ािी के चनद के िमान जगमगािा रहे ।``

`` महारानी मुरा ! मै िुमहारी भावनाओं की कद करिी हूँ । मै मानिी हूँ िक िुमहारे

हदय मे िपपपलीवन गणराजय और महाराज िूयग ा ुप के पिि अपार शदा और िवशाि है िकनिु नंद के अंि:पुर मे िपपपलीवन गणराजय की परमपराओं और िंसकृ िि के िंसकार िकि िरह िमपनन हो िकिे है । यह अतयनि किठन है । ``

`` मै अचछी िरह िे जानिी हूँ िुमिि िक यह िब बहुि दषुकर काया है िकनिु िुम

मेरी एक अचछी िहे ली हो और मेरी मनोभूिम को अचछी िरह िे िमझ िकिी हो । इििलए मै

अपने हदय की बाि िुझको ही बिािी हूँ । िुन िुमिि, जैिा िेरा नाम है मुझे लगिा है िक वैिा ही िेरे िवचार भी है ,इििलए मै यह िब िेरी ही िहायिा िे करना चाहिी हूँ । िू मुझे िनराश नहीं

करे गी । राजकुमार चनद के िभी िंसकार िपपपलीवन गणराजय के अनुकूल ही िमपनन िकया जाना है ।``

`` महारानी मुरादे वी ! यिद िुम चाहिी ही हो िो ठीक है िकनिु िबना मेरे मागद ा शन ा के कुछ

मि करना । मै सवयं राजकुमार चनद के िारे िंसकार िपपपलीवन गणराजय के अनुकूल करँगी । हालांिक यह काया अतयनि किठन है िकनिु मै िुमहारे िलए यह िब करने की कोिशश करँगी ।

िमाट नंद को जाि हो गया िो अनिा हो िकिा है िक मगध िामाजय मे िपपपलीवन के िंसकार दे श-दोह िे कम नहीं है ।``

`` ठीक है िुमिि ! मै िेरी काया-पणाली के अनुिार ही चनद के िंसकार को मूिर ा प

दे ना चाहिी हूँ।``

गहन िवचार-िवमशा के बाद महारानी मुरादे वी ने नंद के अंि:पुर की दािी िुमिि के िहयोग िे िपपपलीवन गणराजय के अनुकूल चनद के िंसकार िमपनन कराने मे िंलगन हो गई।

मगध िमाट नंद के महल मे िपपपलीवन के गणपमुख िूयग ा ुप का पुत चनदगुप

चौदहवीं के चनदमा की कलाओं के िमान आिहसिा-आिहसिा बढ़ने लगा । चनद को इि िरह

बढ़िे दे ख मुरादे वी का हदय आननद के महािागर मे उमड़ने-िुमड़ने लगा । उिे यह आभाि िा

होिा िक वह अब भी िपपपलीवन गणराजय के गणपमुख िूयग ा ुप मौया की महारानी मुरादे वी मौया है । वह ििणक ही िही सवयं को महारानी िे कम अनुभव नहीं करिी । उिकी इि पिननिा को दे ख कई-कई बार िुमिि िे आगाह भी िकया िकनिु मुरादे वी अपने मे ही पिनन रहने लगी ।

िुमिि ,चनदगुप के िंसकारो मे उतरोतर बढोतरी करने मे अपना पूणा योगदान

दे ने लगी । िजि िकिी भी िरह िे जो-जो भी िंसकार चनद को ििखाए जािे ,उिे वह आतमिाि करने मे िनपुण हो जाया करिा । इि िरह धीरे -धीरे चनद की बुिद िवकििि होने लगी । चनद मे अटू ट िाहि ,शीलिा , धैयि ा ा ,िंयम और िववेक के गुण कूट-कूट कर भरे जाने लगे । मात पाँच-

छह वषा की आयु मे चनद की बुिद का िवकाि एक िकशोर की िरह होने लगा । उिकी बुिद-चािुया

के िमि अंि:पुर मे आनेवाले िववदान भी आिया चिकि होने लगे । एक दािी-पुत होकर भी उिमे इिनी िवनयशीलिा ,िहदयिा ,वाक-पटु िा और बुिद-चािुया ! पंिडि-िववदान िभी वाह-वाह करने लगे । लेिकन नंद को चनद के बौिदक िवकाि की ििनक भी भनक न लग िकी । छोटी-छोटी बािे नंद के िनकट नहीं पहुँचिी िी । दि ू रा कारण यह भी िा िक नंद िवलािििा मे इिना अिधक वयसि िा िक वह अनय िभी बािो को िनरिक ा ही िमझिा िा । इििलए भी उिने इि ओर ििनक भी धयान नहीं िदया ।

मुरादे वी ने चनदको ितय-अितय,धमा-अधमा,नीिि-अनीिि, नैििकिा

´-अनैििकिा जान-िवजान ,िदाचार-दरुाचार ,शािन-पशािन ,ििनध और मैितिा आिद िजिने

भी राजनीििक ,धािमक ा , िामािजक और पशािकीय िंत की गूढ़ बािे होिी उििे उिे अचछी िरह िे पिरिचि करवा िदया । िकशोर ,चनद अब िमझदारी की बािे करने लगा ।

मगध िमाट नंद के अंि:पुर मे रहिे हुए मुरादे वी अपने पुत चनदगुप के िभी

िंसकार-काया िमपनन िकए जा रही िी । जबिक नंद के अंि:पुर मे दािी पुतो के िकिी भी िरह के

िंसकार िकए जाने विजि ा िे िकनिु चनद पर िंभवि: िकिी वजन ा ा का पभाव ही नहीं पड़ रहा िा । वह िनिवध ा न हो िवदाधययन करने लगा िा । इि कारण नंदराज की िपय रानी चनद की पििभाओं िे बहुि पिनन िी । चनद के पििभावान होने के कारण अनि:पुर मे मुरादे वी को भी आदर की नज़र िे दे खा जाने लगा िा ।

अनिि: अंि:पुर मे चनद की िारी िशिाएं गोपनीयिौर पर पूणा हो गई । आचाया

भग ृ ुरायण ने मुरादे वी को एकानि मे बुलाकर कहा -

`` महारानी ! बालक चनद की िशिा पूणा हो गई है । अंि:पुर मे रहिे हुए िजिनी

िशिा दी जाना िंभव िी , वे िारी पूणा हो गई है । अि: उचच िशिा के िलए चनद को िििशला

भेजना होगा । िििशला मे आचाया चणक के पुत आचाया चाणकय के िशषयतव मे चनद को भेज िदया जाना चािहए ।``

`` लेिकन गुरवर ! यह िो अतयनि किठन काया है । इि अंि:पुर िे बालक चनद

को िििशला िभजवाना दषुकर है । आपकी कृ पा रही िो िंभवि: यह भी िकिी न िकिी िरह हो ही जाएगा ।``

``िजिनी शीघिा िे हो िके चनद को िििशला िभजवाना अिनवाया है दे वी ! ``

`` गुरवर ! यिद आप मुझे शष े ी लकमीपिि िे िमपका करवा दे िो कुछ रासिा

िनकल ही जाएगा । शष े ी लकमीपिि िपपपलीवन का िनवािी है । वह धनी और िमिृदशाली है ।

उनका वयापार दरू-दरू के राजयो िक िैला हुआ है । वे महाराज का अचछा िमत रह चुके है । वे इि काया मे अवशय ही हमारी िहायिा करे गे । हमे पूरी आशा है ।``

मुरादे वी और गुर भग ृ ुरायण इिी िचनिा मे कुछ िमय िक िचिनिि रहे िकनिु

िमय िदै व एक िमान नहीं रहिा । एक बार जब मुरादे वी नंद पती का शग ं ृ ार कर रही िी । उिी िमय नंद पती ने अपने िलए आभूषण कय करने की मंशा मुरादे वी के िमि रखी । मुरादे वी

िंभवि: इिी िमय की पिीिा मे िी । वह चाहिी भी िी िक लकमीपिि शष े ी अंि:पुर मे आए ।

उनहोने नंदरानी के आभूषण कय की मंशा की भूरी-भूरी पशंिा की । बि ,ििर कया षोषो नंदरानी ने मुरादे वी की िलाह पर शष े ी लकमीपिि को आभूषण िदखलाने के िलए बुलावा भेजा । शष े ी

लकमीपिि दरबार िे होकर अंि:पुर मे भी अवशय आएगा । मुरादे वी ने शष े ी लकमीपिि के अंि:पुर मे आने की िूचना गुरवर भग ृ ुरायण को दे दी । वे भी इििे पिनन हो गए ।

कुछ ही िदन बाद शष े ी लकमीपिि िनधािारि िमय मे दरबार मे आए । महाराज

नंद िे चचाा की । ितपिाि वे िीधे अंि:पुर मे आ गए । मुरादे वी , शष े ी को दे खकर िंकेिो मे कुछ

कहा जो वे िमझ गए । शष े ी ने नंदरानी को उनकी इचछानुिार बहुि िे रत-पननो िे जड़े आभूषण िदए । इिना ही नहीं शष े ी ने अपनी ओर िे कुछ आभूषण भी उपहार मे िदए । महारानी ने पिनन होकर शष े ी को मुह ँ मांगी धनरािश पदान की । नंदरानी पिननिा िे िूली न िमाई । बहुमूलय

आभूषण उपहार सवरप पाकर नंदरानी शष े ी के पिि कृ िज हो गई। अविर पाकर मुरादे वी ने शष े ी को अपनी मंशा वयक कर दी ।

`` राजकुमार चनद ने अंि:पुर मे रहिे हुए पारं िभक िशिा पूणा कर ली है । अब

चनद को िििशला मे आचाया चाणकय िे िवदाधययन कराना है । कया िुम चनद को आचाया चाणकय के आशम मे पहुँचाने की कोई युिक िनकाल िकिे हो षोषो``

`` महारानी ! मै मौया वंश का िदा ऋणी रहा हूँ । यिद ऐिे िमय मै आपके िकिी काया

आया िो यह मेरा िौभागय होगा । मैिे यह काया आवशय कर िकूँगा ।``

`` ठीक है ! यह काया अतयनि िावधानी िे होना चािहए ।`` शष े ी महारानी मुरादे वी की मंशा पूणा करने के िलए कृ ि-िंकलप हो गए । उनहोने

महारानी िे िकए िंकलप के अनुिार चनद को मगध के अंि:पुर िे बाहर िनकाल ही िलया । शष े ी

लकमीपिि , चनदगुप को लेकर िििशला के िलए पसिान कर चुका । चनदगुप अब पनदह वषा की आयु के ही िे । मािा मुरादे वी के मागद ा शन ा मे उनहे िशिा पाप करने के िलए िििशला मे आचाया चाणकय का िशषयतव पाप करना िा । चनदगुप ,िििशला पहुँचने के िलए अतयनि पिनन िे । उनहे लग रहा िा वे िजिनी शीघिा िे हो िके िििशला पहुँच जाए । िििशला , गांधार की

राजधानी िी । िििशला मे भारि वषा के जान-िवजान ,राजनीिि और दं डनीिि का पमुख केनद िा । िििशला िवदापीठ के नाम िे जाना जानेवाला िशिा का यह िवशाल ििा भवय सिान गांधार मे ही िसिि िा ।

लकमीपिि शष े ी एक वयापारी िे । वे वयापार के िलए अपने िहयोिगयो के िाि

याता िकया करिे िे । उनके िैकड़ो िहयोगी िे। जो रि और िोड़ो के िाि एक राजय िे दि ू रे

राजय आया जाया करिे िे । िाि मे बहुमूलय िामगी भी रहा करिी िी । यो िमिझए िक शष े ी

लकमीपिि अपने िाि जन-धन-बल लेकर चला करिा िा । एक राजय िे दि ू रे राजय मे जाने पर वह राह मे पड़नेवाले राजयो के कोषाधयिो को बहुमूलय उपहार भी िदया करिा िा ।

पिरणामसवरप उिे एक राजय िे दि े ी को ू रे राजय मे आने जाने मे वयवधान नहीं होिा िा । शष वयापार के िलए पयाप ा िाधन-िुिवधाएं िमल जाया करि िी । वह अिधकािधक लाभ पाप कर िलया करिा िा ।

लकमीपिि शष े ी अपने धन-जन-बल के िाि गांधार राजय की ओर बढ़ रहा िा ।

िैकड़ो मील की लमबी याता िी और िुनिान मागा पर लुटेरो और दसयुओं का भय वयाप रहा करिा िा । इि याता मे दसयुओं के एक दल ने लकमीपिि शष े ी के दल को िेर िलया । बहुि िंिषा हुआ िकनिु अनिि: शष े ी लकमीपिि बुरी िरह िे िायल हो गया । दसयुओं ने बहुि िा धन और

बहुमूलय िामगी लूट ली । िजि िकिी िरह िे चनदगुप दसयुअिोिं के चंगुल िे भाग िनकला और

िीधे िििशला िवदालय के आशम मे आ पहुँचा । चनदगुप वदारा िमपूणा वि ृ ानि िुनाने के बाद मै उििे अतयनि पभािवि हुआ और उिे आिशवाद ा दे कर बोला-

`` वति चनद ! िुम िाहिी ,वीर ,चिु ,,धैयव ा ान और योगय नवयुवक हो । िुमहे

अपना िशषय बनाने मे मुझे अतयनि पिननिा होगी । िुम चाहो िो िवदालय के आशम मे ही रहकर िवदाधययन पारं भ कर िकिे हो ।``

`` आचायव ा र ! आपने मुझे अपना िशषय सवीकार िकया है । मै आजीवन आपका

आभारी रहूँगा । मुझे पूणा िवशाि िा आप िनराश नही करे गे । मै आपकी हर आजा का पालन करँगा।``

`` वति चनद ! िुम िैकड़ो मील दरू िे आए हो । अब िक िुम बहुि िक गए

होगेिे । िुमहे िवशाम और िचिकतिा की आवशयकिा है । िुम िायल भी हो । जाओ । दतकुमार

िुमहारी िारी वयवसिाएं कर दे गे । वति दत ! चनद को ले जाओ और इनकी िारी वयवसिाएं कर दो ।`` िििशला िवदालय मे आकर चनद की िारी आकांिाएं पूणा हो गई । 0000 इन िदनो गांधार मे िविभनन िरह की हलचल हो रही िी । गांधार दो भागो मे

िवभक िा । पूवी गांधार और पििमी गांधार । पूवी गांधार की राजधानी िििशला िी और उिका सवामी आंिभ िा , जबिक पििमी गांधार की राजधानी पुषकराविी िी और उिका सवामी नेरश हसिी िा । गांधार का िीमाविी राजय केकय िा । केकयराज पुर महतवाकांिी और वीर िे ।

हसिी बड़ा वीर और पिापी नरे श िा । यवनो वदारा पुषकराविी पर आकमण का उिने डट कर मुकाबला िकया । पाणानि िक वह लड़िे रहा िकनिु उिने न िो पुषकराविी पर यवनो को

आिधपतय िदया और न सवयं ही बनदी बना । उनकी अिभलाषा की िक वे अपने िीमाविी राजयो

को जीिकर अपने अधीन कर शिक और िामिा बढ़ाए । केकय राज ने अपनी कूटनीिि िे गांधार राज को हराकर अपने अधीन कर िलया िकनिु गांधारराज के पुत आंिभ को केकयराज की यह

िमतिा उिचि पिीि नहीं हुई । आंिभ अपने हदय मे केकयराज और अपने िपिा गांधारराज के पिि पििशोध उतपनन हो गया ।

उतर-पििम िे यवनराज ििकनदर अनेक राजयो पर िवजय पाप कर िमस, िारि

,गांधार ,िीसिान और बैिकटª या के राजाओं को परासि कर अपने अधीन करने का पयाि करने लगा । यह मेरे िलए बहुि द ु:खद िसििि िी ।

पूवी गांधार को ििकनदर के अधीन होने की िूचना पाप होिे ही मेरे हदय मे

जवालामुखी धधक उठा िकनिु मै ठहरा राजनीिि का एक िाधारण िा िशिक , मै कर भी कया िकिा िा । गांधारराज भी ििकनदर िे ििनध कर उिके अधीन हो चुका िा । वे ििकनदर के

िवरद ििर उठा नहीं िकिे िे । गांधारराज को जाि िा िक ििकनदर ििर उठानेवाले राजाओं को िनमूल ा कर दे िे है ।

गांधारराज के पुत आंिभ के हदय मे यह छटपटाहट जवार-भाटे की िरह उछाल

भर रही िी । वह चाहिा िा िक िजि िकिी िरह वह ििकनदर िे िमतिा कर गांधार अपने अधीन

कर ले । इि उदे शय की पूििा के िलए ििकनदर िे ििनध करने के िलए भी िैयार हो गया । जब यह बाि गांधारराज को जाि हुई , उनहोने अपने पुत आंिभ को बहुि िमझाया िकनिु आंिभ कुछ भी िुनने को िैयार नहीं हुआ । गांधारराज वद ृ हो चुके िे और शारीिरक कमजोरी के चलिे वे अब

पििकार भी नहीं कर िकिे िे । अतयनि द ु:खी हो गांधरराज ने अपने वि मे कटार भौककर पाणांि कर िलए । िपिा की मतृयु के बाद आंिंिभ अब सविंत हो गया ।

मेरे मिसिषक मे आंिभ का गांधार के पिि रखे रवैये के कारण अतयनि िोभ

उतपनन हो गया । राजनीिि का एक आचाया होने और अपने दे श के पिि पगाढ़ पेम के कारण मुझे आंिभ का यह कृ तय अनुिचि लग रहा िा । दि ू रे यह भी िक यवनराज के भारि की ओर बढ़िे

कदम दे खकर यह पिीि हो रहा िा िक वे धीरे -धीरे भारि के छोटे -छोटे राजयो को इिी िरह परासि कर अपने अधीन करिे जाएंगे । यवनराज ििकनदर भारि के छोटे राजयो की नीिि को िोड़ना

अचछी िरह िे जान गए िे । इिी का लाभ उठाकर वे भारि मे अपने कदम बढ़ा रहे िे । मेरे िमि यह िमसया िी िक इि िसििि को कैिे िनयंिति िकया जाए । छोटे -छोटे राजयो को िंगिठि

करना आिान नहीं जान पड़िा िा । चनदगुप मेरी मनोभावनाओं को अचछी िरह िे िमझ रहे िे िकनिु वयवहािरक जान की कमी के कारण उिचि-अनुिचि िमझ नहीं पा रहे िे ििर भी चनद ने मुझे िचिनिि दे ख पूछा-

`` आचायव ा र ! कया मै आपकी िचनिा का कारण जानने की उदणडिा कर िकिा हूँ

। यिद आप उिचि िमझे िो मुझे बिाइए ।``

`` वति चनद ! िुमहारा पश उिचि ही है । यह उदणडिा नहीं है । िुमने िुन ही

िलया होगा िक ििकनदर ने गांधार राजय पर अिधकार कर िलया है और गांधारराज आंिभ ने उनकी अधीनिा भी सवीकार कर ली है । गांधारराज के पुत की उदणडिा के कारण उनहोने आतमहतया कर ली है । अब िसििि िबलकुल िवपिरि हो गई है । गांधाराज के पुत आंिभ ने यवनराज ििकनदर िे िमतिा कर ली । इि िरह िे िो ििकनदर भारि पर राज करने लग जाएगा ।``

`` िकनिु आचायव ा र ! ििकनदर बहादरु ,िाहिी और राजनीिि मे कुशल है । यह

िो उिके िलए उिचि ही है । ििकनदर यिद िमि्ूपणा भारि वषा पर एकछत राजय करिा भी है िो बहुि अचछी बाि है । कम िे कम छोटे -छोटे राजय आपि मे शतुिा िो नहीं करे गे ।``

`` वति चनदगुप ! यवनराज ििकनदर िवदे शी आकानि है । िवदे शी आकानि कभी

नहीं चाहे गेिे िक भारि मे भारि की िभयिा-िंसकृ िि बनी रहे । वे िवदे शी िभयिा और िंसकृ िि का पचार भारि मे करे गे और िमपूणा भारिवषा को शूद राष बना डालेगे । इि िरह भारि का अिसितव खिरे मे पड़ जाएगा । ``

`` आचायव ा र ! यह बहुि ही िवनाशकारी कृ तय हो जाएगा । हमे इि कृ तय िे

भारिवषा को बचाना होगा । हमारा अिसितव िमाप हो जाएगा िो हमारी िभयिा-िंसकृ िि भी

िवलुप हो जाएगी । हमे ििकनदर को रोकना होगा । लेिकन यह किठन िाधय काया होगा गुरवर !`` `` हाँ वति ! यह दषुकर काया िो है ही िकनिु भारिवषा के िछनन-िभनन हो चुके

राजयो की शिक को एकिा के िूत मे िंगिठि कर इिे बचाया जा िकिा है ।``

`` यह काया िो ििकनदर को रोकने िे भी जयादा किठन काया है । इिके िलए छोटे छोटे राजयो और बड़े राजयो को परासि कर एक िंगिठि राजय की सिापना की आवशयकिा होगी

। यह िरल भी नहीं होगा आयव ा र । लेिकन जब िक िमपूणा भारि के गणराजय एक नहीं होिे िब िक यवनो का आना चलिे रहे गा और भारिवषा को िंगिठि कर बचाना अतयनि दषुकर हो जाएगा ।``

`` भारिवषा के राजयो के झगड़े िरे लू पकार के झगड़े है । जो अपने राजय के

िवसिार के िलए होिेिे रहिे है िकनिु यिद िभी राजय िमलकर यवनो को रोकने मे िमिा हो गए िो बाहर के आकाि यवन हमे लड़वाने मे ििल नहीं हो पाएंगे और अपने ही दे श मे िुरिा कवच बनाने मे ििल हो जाएंगे ।`

अपने िवदाििय ा ो के िाि िवचार-िवमशा कर मै इि िनणय ा पर पहुँचा िक हमे

भारिवषा के राजयो का भमण कर िसििि का जायजा लेना होगा और राजाओं िे िमलकर उनके चचाा करनी होगी । इि बहाने िििशला के िवदाििय ा ो को वयवहािरक पिशिण भी आिानी िे

िदया जा िकेगा । चनदगुप की उचच िशिा भी अब िक िमाप हो चुकी िी और उिे भी वयवहािरक पिशिण की अतयनि आवशयकिा होगी ।

िििशला िवदापीठ मे हालांिक भारि के दरूविी राजयो िे िवदािी अधययन के

िलए आया करिे िे । वे िविभनन राजकूलो िे हुआ करिे िे । उनहे िे िैदािनिक िौर पर राजनीिि और अनय िवषयो का अधययन कराया जािा िा िकनिु िबिे बड़ी दिुवधा यह िी िक उनहे

वयवहािरक राजनीिि की िशिा दी जाना अतयनि किठन हो रहा िा । वयवहािरक िशिा दे ने के िलए िवदालय को अिििरक िाधनो की आवशयकिा िी ,जो िवदालय के पाि नहीं िी । इि

आवशयकिा की पूििा के िलए मुझे अनेक राजयो िे िमपका करना पड़ा िकनिु ििलिा पाप नहीं हो रही िी । इि िमबनध मे मैने गांधार के राजयाधयि महाराज आंिभ िे िमपका करने की िोची । मै चल पड़ा गांधार नरे श आंिभ िे िमलने ।

िवशाल राजभवन के पमुख वदार पर पहरी पहले िे ही िवदमान िे । मैने पहरी के

माधयम िे गांधार नरे श आंिभ िे िमलने की अिभलाषा वयक की । पहरी महाराज आंिभ िे शीघ ही अनुमिि ले आया और मुझे दरबार मे बुला िलया गया। वह बोला-

``आचाया चाणकय का गांधार राजिभा मे सवागि है । `` ``आयुषमान भव राजन !``

`` आचायव ा र ! आपके िवदापीठ के कया िमाचार है । िुना है िवदापीठ मे दे श के

कोने-कोने िे राजपुत और िामंिपुत िवदापािप के िलए आने लगे है ।``

`` राजन ! अभी िक आपकी कृ पादिष िे िबकुछ ठीक चल रहा है । ििर भी मै

आपिे िमलने के िलए उतिुक िा । िोचा आपिे िमल लेना चािहए ।``

`` यह आपने उिचि ही िकया आयव ा र । हाँ ,मेरे अनुकूल कोई िेवा हो िो कृ पया मुझे किहए । मै यिायोगय िेवा के िलए पसिुि हो जाऊँगा ।``

जब गांधार नरे श आंिभ सवयं ही िवदापािीठ की िेवा के िलए पसिुि होना चाहिे

है िो मैने िोचा कयो न मै मुखय चचाा पर आ जाऊँ । इििे दो काया एक िाि हो जाएंगे । िवदापीठ की वयवसिा िशिा अधययन िक िो ठीक चल रही िी िकनिु अिििरक वयवहािरक जान का

अधययन भी आवशयक है । यह िोचकर मैने अपना मनिवय गांधार नरे श आंिभ के िमि पसिुि करिे हुए बोला-

`` आयव ा र नप ृ िि ! िििशला िवदापीठ मे िवदाििय ा ोिं की िंखया बहुि अिधक है ।

भारिवषा के राजयो िे िवदािी अधययन के िलए आिे है । उनहे मै राजनीिि िे लेकर युदनीिि िक की िशिा दे िा हूँ । लेिकन यह िभी िशिाएं केवल ििदानि िक ही िीिमि है । मेरी अिभलाषा है िक मै जो भी िशिा िवदाििय ा ो को दे रहा हूँ , वह वयवहािरक भी हो । इििलए राजनीिि और

युदनीिि के अभयाि के िलए अनय भौििक िाधनो की आवशयकिा महिूि की जा रही है । यिद गांधार नरे श िवदापीठ के िलए यह वयवसिा करवा दे िो अिि-उतम होगा ।``

`` आचाया ! आपका किन उिचि ही है िकनिु वयवहािरक िशिा की आवशयकिा

उिचि पिीि नहीं होिी । इििे िवदालय िचनिा का िवषय हो जाएगा ।``

`` िवदालय िचनिा का िवषय कैिे हो िकिा है राजन षोषो``

`` आचाया ! िििशला िवदापीठ मे िवदाधययन करनेवाले िारे िवदािी अनय राजयो िे आए हुए है । ऐिी िसििि मे अनय राजयो के िवदाििय ा ो को वयवहािरक िशिा दे ने िे गांधार पर पििकूल पभाव पड़ िकिा है ।``

`` आयव ा र राजन ! िवदालय का मनिवय िवदाििय ा ो को िैदािनिक और

वयवहािरक जान दे ना है । यह िो हमारे िवदालय और राजय के िलए गौरव की बाि होगी ।`` `` लेिकन आचाया ! वह गौरव िनिक ा ििद हो िकिा है जब गांधार पर िकिी िरह

के अिसितव के खिरे की आशंका उतपनन हो जाए । कया आप इि िमय गांधार राजय पर छाए हुए िंकट के बादलो िे पिरिचि है आचाया !``

`` गांधार नरे श ! आचाया िवदाििय ा ो को केवल िावभ ा ौिमक िशिा दे िा है । जो

िवक ा ािलक हो िकनिु आचाया का िवदापीठ गांधार राजय की िकिी भी गिििविध की िशिा नहीं दे िा । िवदालय की िशिा िवक ा ािलक और िावभ ा ौिमक है । इििलए इि िवषय पर िचनिा की

आवशयकिा नहीं है राजन ! ििर भी आपकी आशंका िे पिरिचि होना मेरे िलए अतयनि आवशयक है ।``

`` आपको जाि होगा िक ििकनदर ने अशकायन,हिसिनायन और पशुZ पुरी पर

भी अिधकार कर िलया है । वे िेना एकत कर और अिधक राजयो को परासि करने की मंशा िलए हुए है । ऐिे मे गांधार की िसििि िचनिाजनक हुई जािी है । ``

`` आपकी िचनिा अवशय ही शोचनीय है लेिकन महाराज िििशला िवदापीठ का कोई िवदािी गांधार के िवपि मे नहीं जाएगा । यह मेरा वयिकगि उतरदाियतव है । हाँ ,यिद आप

गांधार को िुरििि रखना चाहिे है िो हमे उतर-पििम के मागो को पििबंिधि और अभेद बनना होगा । इि काया हे िु िनकटसि गणराजयो की िेनाएं िामुिहकरप िे खड़ी हो िकिी है ।``

`` नहीं , हमे केवल अपनी ही शिक बढ़ानी होगी िािक हम िमय पर शतु का

मुकाबला कर िके ।``

`` ऐिा करने िे हमे अपने िैिनको को खोना पड़ िकिा है । हमारी िेना पयाप ा

नहीं हो िकिी । एक ओर केकयराज पुर का भय है िो दि ू री ओर ििकनदर का भय, ऐिे मे हम कया कर िकिे है षोषो

`` आचाया ! आप मुझे मानििकसिर पर िनबल ा बनना चाहिे है या िनबल ा िमझ

रहे है । खैर ,यह बिाओ ,िििशला िवदालय के िलए इि काया के अिििरक गांधार राजय कया िहयोग कर िकिा है षोषो ``

`` राजन ! मेरे अनुरोध पर िवचार कर िवदाििय ा ो को वयवहािरक जानाजन ा के िलए

िहयोग की अपेिा है ।``

`` आचाया ! िमा करे , मै आपके िवचारो िे िहमि नहीं हूँ । आपिे िनवेदन है िक आप

अनय राजयो के िवदाििय ा ो को वयवहािरक जान के पिशिण के िवषय मे मि िोिचए ।``

गांधार नरे श आंिभ ने मेरे िनवेदन को असवीकार कर िदया । ऐिा पिीि हो रहा िा

िक ििकनदर अभी वापि जानेवाला नहीं है कयोिक दारि अब िक युद कर रहा िा । आंिभ अपनी अजानिा और हठधिमि ा ा के चलिे मेरी िकिी िलाह को सवीकारने के िलए िैयार ही नहीं हो रहा िा । मै चाहिा िा िक िििशला िवदापीठ मे अधययनरि िवदाििय ा ो को पिशििि करिे िमय

चनदगुप को भी उन िारी िवदाओं िे भिलभांिि पिरिचि करवा दँ ू िजिकी उिे आवशयकिा है । महारानी मुरादे वी ने िजि उदिेदशय के िलए चनदगुप को मेरे पाि उचच िशिा के िलए भेजा है ,

उि उदे शय की यिािंभव पूििा हो िके । लेिकन जब गांधार नरे श आिभ कुछ भी करने को िैयार नहीं हुए िो मुझे बलाि पीछे हट जाना पड़ा ।

मेरे भीिर बहुि िे िवचार उमड़-िुमड़ रहे िे । मै आशसि नहीं हो पा रहा िा । एक ओर

यवनो का भारि मे पवेश कर राजयो को आपि मे लड़वाना ,ििर हारे हुए राजयो को अपनी ओर

ििममिलि करना , एक ओर सवदे शी राजयो का मानोमािलनय और अपने िहि-िंरिण पर ज़ोर दे ना िो अनय दि ा ो को वयवहािरक पिशिण दे ना । केवल ू री ओर िििशला िवदापीठ के िवदाििय

इिना ही नहीं गांधार राजय पर आए िंकट के बादलो को िविछनन करना भी मेरा िचनिा का िवषय िा । िीिरी ओर जब िे जाि हुआ है िक आचाया शकटार को मगध िमाट ने अंधकूप मे डाल िदया है , वे एक कुशल राजनीििक आचाया होने के िाि-िाि दे श के पिि उदार मनिा है । ऐिे जानी

वयिक को अंधकूप मे डालना मानवीयिा के पिि िोर अनयाय है । मगध िे दतकुमार के आगमन

पर जाि हुआ िक अमातय कंदपा ने राजनीिि और राजभोग का पिरतयाग कर जैन मुिनतव पाप

कर िलया है । अमातय रािि ने नंद को अपनी बािो मे लाकर सवयं ही महामातय बन बैठा है िो

िसििि अतयनि िचनिाजनक हो गई है । िारी िचनिाएं मिसिषक को भीिर िे कचोटने लगी िी । पििमोतर की िसििि गंभीर हो रही िी । केकय राज िचिनिि हुए जा रहे िे । िेिै

केकयराज पुर ने अपने मंितमणडल मे िवचार-िवमशा कर मुझिे िलाह लेने का िनणय ा िलया । उनहोने महामातय अननि शमाा िििशला िवदापीठ के मेरे आशम मे अकसमाि िमलने चले आए । अनंि शमाा ,मेरे िवदालय के िहपाठी िमत रहे है । वे िजिने उदार िे उिने ही वयवहार

कुशल भी िे । उनका इि िरह अनायाि गांधार की राजधानी िििशला मे आना मुझे कौिुहल मे डाल िदया । हालांिक उनकी मंशा िामानय ही कयो न हो । एक राजनीििज का एक राजय िे दि ू रे राजय मे आने का कोई उिचि कारण भी हो िकिा है । राजनीििजो को अनेक राजयो की याताएं करना पड़िी है । इििे उनहे अपने ििा अनय राजयो की गिििविधयो की जानकारी के िाि उिचि-अनुिचि राजनीिि की खबरे भी पाप हो जाया करिी है , जो एक राजनीििज के िलए

आवशयक होिेिी है । उनका आदर-ितकार कर मै उनहे आशम के िवशाम-गह ृ ले गया । वहीं पर उनके िाि चचाा हुई । वे बोले-

`` कई दीि Z अविध िे हदय के िकिी कोने मे कुछ उमड़-िुमड़ रहा िा । एक

िविचत िरह की िवचलिा मन को िेरे हुए िी । लगिा िा ,इि िवचलन को िुमहारे िाि ििनक

बाँटू । िंभवि: इििे मेरे हदय को ििनक शिक िमलेगी और िजजािाओं को शानि करने के िलए आतमबल भी िमलेगा ।`` `` यह िुमने उिचि ही िकया अनंि । अिधकिर राजनीििक कायो मे अिधक उिल-पुिल के कारण हदय अिधक िक जािा है । लगिा है िक कहीं कुछ शेष रह गया है । कया रह गया है , यह कह पाना बहुि ही किठन होिा है । जैिे िबकुछ िविचत हो रहा हो , जो कभी िो

उिचि पिीि होिा है और कभी अनुिचि । ऐिी िसििि मे शंकाओं का िमाधान होना बहुि ही

आवशयक है । िमतिा ही वह िंबल है जो एक दि ू रे को शिक पदान करिा है । कहो , गांधार याता

और िवशेषि: िििशला की याता का पयोजन कया है षोषो िंभवि: मै िुमहारी कुछ िहायिा कर िकूँ ।``

`` िवदापीठ मे आकर हदय पर जैिे मरहम लग जािा हो । िंभवि: चनद और

िुदामा अब िक िशििि और योगय हो गए होगे ।`` चुका है । ``

`` हाँ िमत । िुदामा अपने अिभयान मे वयसि है और चनद अभी िशिा पूणा कर `` यह पिननिा का िवषय है । यिद िुम चनद को केकयराज भेज दो िो महाराज

पुर अिि पिनन होगे । उनहे योगय युवको की अतयनि आवशयकिा है ।``

`` लेिकन अनंि ,चनद को अभी बहुि कुछ िशिा पाप करनी है । वह राजनीिि िे

लेकर युदिवदा िक िनपुण होना चाहिा है । िैदािनिक राजनीिि और वयवहािरक राजनीिि मे

बहुि अनिर है । युद-िवदा के िबना चनद अभी भी पूणा नहीं िमझा जा िकिा । वह िाहिी अवशय है िकनिु िाहि के िाि जान का होना भी आवशयक है । केवल िाहिी होना पयाप ा नहीं है बिलक िाहि का उिचि-अनुिचि उपयोग भी जान लेना उपयोगी होिा है ।``

मुझे ऐिा पिीि हो रहा िा जैिे महाराज पुर ने अनंि को इिी उदे शय िे िििशला

िवदापीठ भेजा हो । वे िंभवि: मुझिे चनद के माधयम िे कोई िहायिा चाहिे हो िकनिु चनद की

िैदािनिक और वयवहािरक िशिा पूणा िकए िबना मै िकिी िरह का िनणय ा नहीं ले िकिा । इिना ही पयाप ा नहीं है , चनद की िहमिि-अिहमिि पाप करना भी उिचि है । उिे मै िकिी अनय

उदे शय मे नहीं लगा िकिा जब िक िक महारानी मुरादे वी की अिभलाषा पूणा नहीं होिी चनदगुप को अनय कायो मे वयसि रखना उिचि नहीं है । खैर, अनंि शमाा ने आगे ििर चनद के िवषय मे बाि नहीं की । बािो ही बािो मे िवषय पिरवििि ा हुआ और हम ििकनदर की राजनीिि पर जा पहुँचे । मैने पूछा-

`` िुमको जाि ही होगा अनंि िक यवन िमाट ििकनदर ने दारि को परािजि

िकया है । वह अनय राजयो पर भी आकमण कर उनहे परािजि कर िकिा है । केकयराज ििकनदर िे आशंिकि िो होगे ही ।``

`` हाँ ,केकयराज अवशय ही आशंिकि है । उनकी आशंका िनमूल ा नहीं है िमत

कयोिक ििकनदर लगािार भारि की ओर बढ़ रहा है । यिद गांधार नरे श आंिभ िहयोग दे िो गांधार और केकेय दोनो िमलकर ििकनदर पर भारी पड़ िकिे है । हमे कुछ करना होगा ।``

`` िुमहारे िवचार अनुकूल है िमत अनंि । लेिकन गांधार नरे श आंिभ ,ििकनदर

की अधीनिा सवीकार कर ली है और वह िकिी भी िरह िे िैयार नहीं होगे । इििलए हमे ऐिा कुछ करना होगा िजििे यवनराज ििकनदर भारि की ओर न बढ़े िकनिु इिके िलए हमे उनका मागा रोकना पड़ िकिा है । कया यह िंभव हो िकिा है अनंि षोषो``

`` इिका एक ही उपाय हो िकिा है िमत चाणकय ।`` `` वह कया िमत अनंि षोषो``

`` उतर-पििम मे कुभा िे मधयदे श िक के राजय िमलकर एक हो जाए िो शिक

बढ़ िकिी है िै। लेिकन कया यह िंभव हो िकेगा िमत चाणकय षोषो``

`` िमत अनंि , िुमहारे िवचार शष े है । यिद इि उदे शय की पूििा हो िकेिे िो उिे

अवशय करने का पयाि करो । हाँ , एक मुखय िवचार यह िक िेना को टु किड़यो मे बांटकर िविछनन मि करो । इििे शतु िेना अिधक शिकशाली हो जािी है ।``

अनंि ,ििकनदर को भारि की ओर पवेश करने िे रोकने की पिरकलपना बहुि ही

अचछी है िकनिु िवकट िसििि यह है िक छोटे -छोटे राजय एक होना सवीकार नहीं करे गे । एक दि ू रे

की िहायिा करना नहीं चाहे गे । आपि मे ििनध कर नहीं रह िकेगे । ऐिे मे यवन अवशय ही इनको टकराकर सवयं िवजयी होना चाहे गे ।

`` मुझे िुमिे बहुि अपेिा है िमत चाणकय । िुम यिद िहायिा कर िको िो

गांधार नरे श ,दारि नरे श और केकयराज िमलकर बहुि कुछ कर िकिे है । दारि राज ने

केकयराज िे िहायिा की याचना भी की है । यिद गांधार नरे श िहायिा के िलए िैयार हो जाए िो.......``

अनंि का उदे शय अब सपष हो गया । उिने केकयराज का पत भी िाि मे लाया है ।

मै उिे िकि िरह की िहायिा कर िकिा ,यह उिका सपष मि िा । मैने उिे कहा-

`` मेरी भी अिभलाषा यही है िक केकयराज , दारिराज और गांधारराज िमलकर

इि अिभयान को पारं भ करे । यह अिि-उतम उपाय है । ििकनदर भारि की ओर नहीं बढ़ पाएगा । `` `` यिद िुम गांधारराज िे िमलकर गांधार का नेितृव करो िो बहुि कुछ हो िकिा है िमत चाणकय। मुझे िुमिे बहुि िारी अपेिाएं है ।``

`` िुमहारे िवचारो िे मै िहमि हूँ अनंि िकनिु मै िो राजनीिि का मात एक

अधयापक हूँ । मै िवदाििय ा ो को वयवहािरक िशिा के उदे शय िे गांधारराज आंिभ के पाि गया िा िकनिु उनहोने मेरे पसिाव को अनुिचि कह कर असवीकार कर िदया । उनके िवचार है िक

िवदापीठ मे अनय राजयो के युवक भी िशिा पाप कर रहे है । इि पसिाव का गांधार पर पििकूल पभाव पड़ िकिा है । मै केवल राजनीिि और युदिवदा का अधयापक हूँ । गांधार नरे श िंभवि िकिी अनय के कहने पर ही मुझिे िहमि नहीं है । कैिे कुछ हो िकिा है षोषो``

`` यह िो िुम ही जानो िमत चाणकय ,कयोिक हमारी दिष िुम पर ही िटकी हुई है ।

हम जानिे है िक िुम उतर-पििम के राजयो को अचछी िरह िे िनयंिति कर िकिे हो । िुम

सविंत िवचारधारा के हो और िकिी एक राजय िे िमबद नहीं हो । िुमहारे िवचार िावभ ा ौिमक है इििलए िुम ििल भी हो िकिे हो ।``

`` मै िहमि हूँ िमत अनंि िकनिु शुभ कायो के िलए शुभ िवचार भी होना चािहए

जो गांधारराज आंिभ के पाि नहीं है । ``

`` कया िुम सविंतरप िे कुछ नहीं कर िकिे षोषो`` `` मेरी अपनी धारणा है । मै चनदरर को लेकर सविंत रप िे एक इकाई बनाने की

योजना पर िवचार कर रहा हूँ । मुझे चनद िे बहुि िारी अपेिाएं है ।``

`` यह िो अिि उतम िवचार है । लेिकन इिके िलए पयाप ा धैया और धन की

आवशयकिा होगी । यह भी हो िकिा है िक कुछ अवरोध भी उतपनन हो ,उनिे कैिे िनपट पाओगे ।``

``शुभ िंकलप के िलए शुभ कमा की भी आवशयकिा है । मुझे िुमिे भी कुछ अपेिा है अनंि...``

`` िकि िरह की अपेिा करिे है आप मुझिे षोषो``

जाएगा ।``

`` यिद िुम धन की पूििा कर िकिे हो िो मुझे आगे बढ़ने के िलए िंबल िमल `` मै इिके िलए पसिुि हूँ । मुझिे यिािंभव जो भी हो िकेगा मै आपके िलए

िैयार हूँ । आचाया चाणकय , इन िदनो यिद िुम मगध की याता कर ले िो बहुि उतम होगा । मेरे िवचार िे िुमहारे िवचारो को िवसिार िमल जाएगा।``

`` यह पयाि मैने दि वषा पूवा भी िकया िा । ििल हो रहा िा िकनिु िपिाशी के

दे हाविान की िूचना िमलिे ही मै वापि चला आया । यहाँ आने के बाद मुझे ििर िूचना िमली िक महामातय शकटार को मगध िमाट नंद ने अंधकूप मे डाल िदया । यह िूचना बहुि ही कषदायी ििद हुई । शकटार जैिे िववदान आचाया को ,जो न केवल आचाया िे बिलक एक बहुि ही अचछे

राजनीििज भी है , को अंधकूप मे डालना उिचि पिीि नहीं होिा । यिद िुम शकटार को अंधकूप िे मुिक िदलाने मे िहयोग कर िको िो उपकार होगा ।`` यह ितय है िक महामातय शकटार को मगध िमाट ने अंधकूप मे डालकर उिचि नहीं िकया । उनहे चािहए िा िक वे उनहे मुक करे और

उनकी िववदिा िे लाभ उठाए िकनिु िमाट नंद ने ऐिा नहीं िकया । केकयराज के अमातय अनंि

शमाा िे शकटार को अंधकूप िे मुिक िदलाने की िहायिा मांगकर पिा नहीं मैने उिचि िकया है या नहीं लेिकन िहायिा मांगना गलि नहीं हो िकिा । राजनीिि मे िबना िहायिा और िहयोग के अगिर होना आिान नहीं है । यिद कोई िकिी की िहायिा करिा भी है िो िबना िकिी सवािा के नहीं करिा । यही बाि अनंि के िामने भी उठ आई । शकटार को मुक कराने के िहयोग के पीछे उनिे अपना िहििंरिण भी िोचा । बोला-

`` महामातय शकटार को अंधकूप िे मुक कराने मे मुझे कया लाभ िमल िकिा है

। कया महामातय शकटार मुझे उिचि िहयोग दे गे । राजनीिि मे यह िब चलिा रहिा है । यिद कोई उिचि िहयोग दे िो हमे भी िहयोग करने मे कष नहीं होना चािहए ।``

चचाा बहुि लमबी हो गई िी । लेिकन पिरणाम िुखद पिीि नहीं हो रहा िा ।

केकयराज पुर सवयं गांधार और दारि िे अपेिा रख रहे है िक वे चलकर उनके पाि आए । अनंि ने अपरोिरप िे िंकेि भी िकया िक मै चलकर केकयराज पुर के पाि जाऊँ िकनिु पुर को यिद

अपेिा है िो वे भी चलकर मेरे पाि आ िकिे है । मै ठहरा िनरपेि , िकिी भी राजय िे मुझे अपेिा नहीं है । एक अधयापक िावभ ा ौिमक और किवायिनष होकर काया करे िो उिे िकिी िे भी सवि:

अपेिा नहीं होनी चािहए । यह पि ृ क है िक अधयापक का मागद ा शन ा पाने के िलए सवयं को चलकर चलना होिा है ,जो न िो दारि करना चाहिे है और न ही केकयराज पुर । जहाँ िक गांधारराज

आंिभ की बाि है वे मुझिे िंिुष नहीं है । यिद वे िंिुष होिे िो अवशय ही मेरे पसिाव को सवीकार

कर गांधार राजय का गौरव बढ़ाने मे पीछे नहीं हटिे । वैिे भी मुझे िकिी भी राजय की शिक का दर ु पयोग नहीं करना है । मेरी अपेिा है िक केकय,दारि और गांधार िीनो िमलकर एक शिक बन

जाए । इििे िबिे बड़ा लाभ यह होगा िक िीनो की शिकयो को दे खकर ििकनदर भारि मेिे पवेश का िाहि नहीं कर पाएगा । अभी िक ििकनदर ने गांधार और दारि को जीिकर अपनी पिाका िहरा दी ।

केकयराज पुर के अमातय अनंि शमाा ने धन की िहायिा पदान करने आशािन

दे कर मुझे इिना िो आशसि कर िदया िक वह मेरे िवचारो िे अब भी िहमि है , भले ही मै िनरपेि होकर िवदालय के पिि िमिपि ा हूँ िकनिु िकिी एक राजय के पिि न होकर िमपूणा राजयो के पिि......।

बार-बार एक ही बाि हदय मे उठने लगी िक अपने िशषयो के िहयोग िे भारि के

िविभनन राजयो मे भमण िकया जाय । राजाओं िे भेटकर एकजुट होकर यवनो को भारि मे पवेश करने िे रोका जाय । यह अिभयान शीघ ही पारं भ िकया जाना उिचि होगा । अपने अिभयान को

मूिर ा प दे ने के िलए चनदगुप िे बढ़कर कोई अनय िशषय िदखाई नहीं दे िा । जािे-जािे अनंि शमाा धन के रप मे मुझे कुछ सवणम ा ुदाएं भेट की और कुशल-िेम की िूचना दे िे रहने के िलए अनुरोध भी िकया ।..... 00

िििशला िवदापीठ मे िवदाििय ा ो को पढ़ािे-पढ़ािे न जाने िकिना िमय वयिीि

हो गया ,पिा ही नहीं चला । िमय अपनी गिि िे िनरनिर चलिे रहिा है ,वह कभी िकिी के िलए नहीं रकिा । चाहे कोई अपने मंिवय ,अपने उदे शय को पूणा करे या न करे । चाहे िकिी का जीवन

िािक ा हो या न हो । मै उिचि िमय की पिीिा करने मे अिधक िवशाि रखिा हूँ । जाने कब वह उिचि िमय आए और मै अपने लकय की पूििा ितिण कर िकूँ । िवदापीठ के िवदाििय ा ो को

राजनीिि,दशन ा ,युद-िवदा और अनय शासो को पढ़ािे हुए मै सवयं को िनजीव िा महिूि करने

लग गया । जाने कयो अकुलाहट हुई जा रही िी । लग रहा िा जैिे िबकुछ ठहर गया है और उि

ठहराव के िाि मेरी शाि की गिि भी अवरद हो गई है । िपिाशी और िहमादी के बाद ,इिने िारे िशषय होिे हुए भी अकेलेपन का िामना करना पड़ रहा है । मेरे हदय पर मानो पवि ा आ बैठा हो ।

पिििदन िुबह और िनधया के िमय धयानावसिा मे भी मन िवचिलि हो उठिा है

। गहरा धयान अचानक टू ट जािा है । उि िदन ऐिा ही कुछ हुआ । मै बार-बार मन को केििनदि

कर धयान करने का पयाि कर रहा िा । अनेको बार मन को केििनदि करने पर भी केििनदि नहीं हो पा रहा िा । लग रहा िा ,कुछ अवशय ही हदय को कचोट रहा है । िभी एक िशषय ने आकर पणाम िकया और करबद हो बोला-

`` आचाया ! आपिे कोई नारी िमलना चाहिी है ।``

``नारी``शबद िुनिे ही मेरे अंग-पतयंग मे जैिे जवाला िी धधक उठी । िशषय मेरे उतर की पिीिा कर रहा िा । मैने ििनक िशषय की ओर पशातमक दिष िे दे खा ,कुछ िोचा । बोला-

`` कौन है षोषो कहाँ िे आई है षोषो उिका िमलने का उदे शय कया है षोषो िाि मे

कौन-कौन है षोषो``

िशषय वापि गया और पूछ कर आया।बोला-

`` कह रही है , मै िब कुछ आपके अधयापक को बिाऊँगी ।:`` `` ठीक है , उिे भेज दो ।``

कुछ ही िणो मे वह मेरे िनकट आ खड़ी हुई । उिे दे खिे ही मै आिया चिकि हो गया । उिे

दे खिे ही रह गया । मै ििलक िठठक गया । उठ खड़ा हुआ । बोला`` िहमािद िुम !``

`` हाँ िवषणु ! मै िुमहारी िहमािद ।``

`` लेिकन मै अब वह िवषणु नहीं हूँ । मै िििशला िवदापीठ का एक अधयापक हूँ

,आचाया चाणकय । कहो ,िुमहारा इि िरह अनायाि िवदालय मे आने का कारण कया है षोषो`` `` पिीि होिा है , िुम मुझिे िवमुख हो गए हो ।``

`` यिद आप यह बिाएगी िक आप िििशला िवदालय मे िकि उदे शय िे आई हो

िो मै आपकी कोई िहायिा कर िकूँ। ``

`` िवषणु ! मै केवल िुमिे ही िमलने आई हूँ । मुझे िुदामा िे जाि हुआ है िक िुम

िििशला िवदालय के आचाया हो गए हो िो मै रह न िकी और शीघ चली आई।``

`` िहमािद ! अब िब कुछ िमाप हो गया है । कुछ भी शेष न बचा । इििलए ऐिी

कोई चचाा न करो । जो अिीि िा उिे अिीि ही रहने दो,विम ा ान न बनाओ। ``

`` लेिकन हमारे िामने भिवषय पड़ा है । यिद िुम चाहो िो.....``

`` मै भिवषय की बाि नहीं कर रहा हूँ । िजि मंिवय िे आई हो, बिाओ िािक

िुमहारा काया शीघिा िे पूणा िकया जा िके ।``

`` मेरा मंिवय िुम ही हो िवषणु , और कोई नहीं ।`` `` अचछा , यह बिाओ , िुदामािे िकि िरह पिरचय हुआ षोषो िुदामा को कब िे

जानिी हो । वह िो आयु मे िुमिे कािी छाटा है ििर यह िब..!`` करिी हूँ ।``

`` िुदामा सवयं मुझे खोजकर अपने िाि ले आया । मै अब िुदामा के िाि काम `` िुदामा ,िुमहे सवयं खोज ले आया षोषो मुझे िवशाि नहीं हो रहा है । वह ऐिा

नहीं कर िकिा। वह मुझे अचछी िरह िे जानिा है । मेरा िशषय है वह और कभी गलि नहीं हो िकिा ।``

`` यह िुमहारा भम है िवषणु ! उिने मुझे खोज िनकाला और िुमहारी िारी पीड़ा मुझे बिाई । मै नहीं जानिी िी िक िुम कहाँ हो, कैिे हो षोषो िकन पिरिसििियो मे हो षोषो जैिे ही मुझे िुदामा ने बिाया िबना िकिी िवलमब के मै िुमहारे पाि चली आई।``

`` िुदामा ने बिाया ! मेरी पीड़ा !! िकि िरह की पीड़ा षोषो मै िमझा नहीं । मैने

िुदामा को कभी कुछ नहीं बिाया । िो उिे कैिे जाि हुआ िक मै पीिड़ि हूँ ।``

`` िुदामा बिा रहा िा िक िुमहारा कोई िमत आया िा । िकिी एकानि मे िुमने

अपने िमत िे िनज पीड़ा का िवसिार िे वणन ा िकया होगा। उिी िमय िुदामा ने िुमहारे मुख िे

यह िब िुन िलया िा । िुनने के बाद िुदामा मुझे कई िदनो िक खोजिा रहा । एक िदन अनायाि उििे मुलाकाि हो गई। िब िक मै िवधवा हो चुकी िी । मेरा पिि बहुि ही लमपट और शाििर िा

। वह िकिी आतमिािी वदारा मारा गया । गुपचरो की मतृयु इिी िरह िे होिी है । उिकी मतृयु के बाद मै भी गुपचर हो गई हूँ और अब िुदमा के िाि िमलकर गुपचर-काया करिी हूँ ।`` `` कया यह िच है । मुझे िवशाि कर लेना चािहए षोषो``

`` यह मै नहीं जानिी केवल इिना जानिी हूँ िक जैिे ही मुझे िुमहारी खबर िमली

मै िबना िकिी िवलमब के िुमहारे िाि चली आई।``

`` िुदामा कहाँ है षोषो मै उििे भी बाि करना चाहूँगा ।``

अब मुझे आभाि हो रहा िा िक िहमािद ने आकर एक िरह िे अचछा ही िकया

िकनिु कया उिका इि िरह िे अचानक चला जाना उिचि िा षोषो कया इिने वषोZिं िक मुझिे िमलने की उिकी अिभलाषा नहीं िी षोषो यह िच है िक िपिाशी जी ने अपने िमत की कनया

पिनद की िी िकनिु मैने िो िहमािद को ही पहलीबार दे खा िा और उिके सपशा ,उिके आिितमक लगाव और सनेह िे मै ििक हो रहा िा, वह अनुिचि िो नहीं िा । दो आतमाओं के िमलन को हे य

दिष िे दे खकर िपिाशी ने कुछ और करने का िोचा होगा । शायद यह िक मेरे युवा होने पर उनहोने मेरे िववाह के पिि जागरकिा नहीं िदखाई हो । इििलए िहमािद के आिे ही मुझे भारिीय िंसकारो को याद िदलाने के िलए उनहोने िहमािद िे अलग धयान भटकाने के िलए ही कोई उपकम िकया

होगा िकनिु िहमािद ने उिे अनयिा ले िलया िा । इििलए उिकी यवन माँ ने िहमािद का िववाह िकिी िामंि िे करवा िदया िा । आज वह इिनी दीि Z अविध बाद वापि आई है । शायद उिे

मेरी आवशयकिा होगी । लेिकन इि दै नयिा के िाि िक वह अब िवधवा हो गई है और िवधवा होने के बाद उिे मेरी आवशयकिा का आभाि हो रहा है । यह भी हो िकिा है िक िुदामा ने मेरे एकाकी जीवन को ििर िे हरा-भरा करने के िलए िहमािद िे िनवेदन िकया हो । जो भी हो ,अब अगर

िहमािद आ ही गई है िो कम िे कम मेरी आँखो के िामने िो रहे गी । यही मेरे िलए पयाप ा होगा । हाँ, िुदामा िे इि िवषय पर चचाा करना आवशयक है ।

िहमािद ने जाकर िुदामा को मेरा िंदेश दे िदया िा । वह िीधे मेरे पाि आ पहुँचा

। िुदामा और चनद दोनो मेरे पाि िाि-िाि रहे और िििशला मे िवदाधययन िकया है । दोनो

युवा हो गए है िै । िुगिठि शरीर और मािे पर जगर-मगर करिा उनका िेज िहज ही िामानय जन को आकिषZ ि िकए िबना न रहिा । िुदामा ने आिे ही मुझे पणाम िकया । नि-मसिक हो खड़ा रहा । बोला-

`` आचाया ! आपने मुझे समरण िकया है । आजा दीिजए ।``

`` िुदामा ! िुम जान गए होगे िक मैने िुमहे कयो समरण िकया है षोषो`` `` आचायव ा र ! सपष िो जाि नहीं िकनिु असपषिौर पर िंभवि: यह जो सी है

उिके िमबनध मे आप कुछ जाि करना चाहिे होगे ।``

`` वैिे िो िुम सवयं िब-कुछ जानिे हो िकनिु यह िो बिाओ िक िुमहे िहमािद

कहाँ िमली षोषो कैिे िमली षोषो उििे िमलने का िुमहारा कया उदे शय िा षोषो``

`` आचायव ा र ! आपको समरण होगा िक केकयराज के अमातयवर अनंि जब हमारे

आशम मे आए िे िब आपिे उनकी इि सी के िवषय मे चचाा हो रही िी । मैने उि चचाा के अंश िुने िे । मुझे आभाि हुआ िक....िमा करे आचायव ा र....उि िटना के बाद मैने इि सी का पिा लगाना पारं भ िकया । बहुि कड़ी मेहनि के बाद इनका पिा जाि हुआ । इनिे िमलने पर मैने िारी िटनाएं जो मैने िुनी िी इनको शबदश: बिा दी । बि...``

`` यह िुमने ठीक नहीं िकया िुदामा । यह ठीक है िक िुमने पयाि िकया

िकनिु.......अचछा , यह बिाओ अब िुमहारी मंशा कया है षोषो`` `` िकि िवषय मे आचायव ा र षोषो`` `` िहमािद के िवषय मे .....``

`` आचायव ा र ! मेरा आपिे अनुरोध है िकनिु यिद आप अनयिा न ले िो कुछ....`` `` हाँ कहो । कया कहना चाहिे हो षोषो``

`` यह सी यिद पुन: आपके जीवन मे आ जाए िो......मुझे लगिा है िक उदान मे िुगनध आ जाएगी।``

`` पुत िुदामा ! मै िुमहारी भावनाओं-िंवेदनाओं का सवागि करिा हूँ िकनिु अब मेरा

उदे शय कुछ और ही है । यिद िुम िहमािद का उपयोग कहीं और करना चाहिे हो िो कर िकिे हो । `` `` आचायव ा र ! यह सी गुपचर-चयाा मे िनपुण है । भारिीय भाषा के अलावा िवदे शी भाषाओं का इनहे अचछा जान है । यह सी होने के कारण गुपचर-चयाा मे आपके िलए उपयुक होगी । यह आपकी पूणि ा : िहयोगी हो िकिी है ।``

`` ठीक है । यह उिचि रहे गा । िुम िहमािद को गुपचर-चयाा के िलए िनयुक करो ।

इनके पाि धन भी पयाप ा है । यह आपकी िहायिा करे गी । पिमि: िुम िहमािद को आयाव ा िा की िूचनाएं िंगिहि करने के िलए िनयुक करो । आगे भी जो काया होगा दे खा जाएगा ।``

`` आचायव ा र ! मुझे जाि हुआ है िक उतर-पििम िे यवन िमाट ििकनदर भारि

मे पवेश कर चुका है । उिने गांधार और दारि को परासि कर उन पर आिधपतय सिािपि कर

िलया है । केकय पर उिका कािनि लाने का िवचार हो िकिा है । केकय पर िंकट के बादल मणडरा िकिे है । ``

पुत िुदामा राजनीिि और युदनीिि के िवषय मे बहुि कुछ वयवहािरक जान पाप

कर रहा िा । िहमािद को लेकर वह मेरे पिि अिधक िंवेदनशील हो रहा िा । उिे वसिुिसििि िे जाि कराने के बाद वह िहमािद के िाि िमलकर गुप िूचनाएं एकत करने लग गया िा ।

उधर चनदगुप की िशिा िमाप होने के बाद वह मगध के पिि अिधक लालाियि

हो रहा िा । िपपपलीवन के गणपधान िूयग ा ुप को अंधकूप िे मुक कराना उिका मुखय उदे शय िा िकनिु वह अभी इिना िशक नहीं िा िक अकेला जाकर मगध मे कािनि उतपनन कर िके । उिे अपनी शिक बढ़ाने के िलए उिचि िमय और िहयोग की आवशयकिा िी । मैने चनद को कहाहै ।``

`` वति चनद ! िुम अब कया करना चाहिे हो षोषो िुमहारी िशिा िमाप हो चुकी `` आचायव ा र ! अब िक जो भी िशिा पाप की है वह िैदािनिक िशिा िी िकनिु

मुझे राजनीिि ,कूटनीिि और युदनीिि की वयवहािरक िशिा भी पाप करना होगा । िब ही मेरी िशिा िमाप हो िकेगी ।``

`` राजनीिि की वयवहािरक िशिा के िलए िवदालय मे िाधनो की कमी है पुत

चनद । िाधनो के अभाव मे यह किठन है ।``

`` िकनिु आचायव ा र ! इिके िलए कोई िवकलप िो होगा ही । कया आप मुझे कोई

िवकलप िुलझा िकिे है षोषो

`` हाँ वति ! िुम अपने उदे शय की पूििा के िलए िकिी भी गण या जनपद के राज

की िेना मे पवेश पा लो िो रासिे सवयं ही खुलने पारं भ हो िकिे है िकनिु वे िारे रासिे दषुकर भी हो िकिे है । दि ू रा उपाय होगा िक िुम सवयं अपनी एक िेना िैयार करो । जो िुमहारे मंशा की पूििा कर िकने मे िमिा हो िकनिु यह काया िरल नहीं है । इिके िलए धन और जन बल जैिे िाधनो की आवशयकिा होगी ।``

`` यह कैिे िंभव होगा आचायव ा र षोषो``

`` इि काया हे िु िुमहे गणो और राजयो की याता करनी होगी । िमपका बढ़ाने होगे । िुमहारे उदे शय सपष होने चािहए । िबना उदे शय के िेना एकत करने पर िुमहे भारी ििि उठानी पड़ िकिी है । उिचि होगा िक िुम मगध मे जाकर कुछ पयाि करो । महारानी मुरादे वी िुमहे दे खकर पिनन भी होगी िकनिु इि िरह जाने पर िुमहे ििि भी हो िकिी है ।``

चनद के िलए यह काया चुनैिी भरा हुआ िा । यह काया इिना आिान नहीं िा । िबना

िाधनो के िेना एकत करना और उिे िंगिठि करना बहुि ही दषुकर काया िा । बहुि िचनिन

मनन के बाद चनद और िुदामा ने िनणय ा िलया िक उनहे िैनय िंगिठि की जाना है । उनहे पूवा ही सपष कर िदया गया िा िक गांधार राज के गणनायक आंिभ राजनीिि और युदनीिि की िशिा के िलए िाधन पदान करने के पि मे नहीं है । अब उनहे अपने बल पर िैनय िंगठन जुटाना होगे । िििशला िवदालय िे िनकले चनद और िुदामा के िलए अपने मंिवय को पूरा

करने मे अिधक किठनाइयो का िामना करना पडा । मैने भी िनणय ा ले िलया िक मुझे गणो

,पिरषदो और जनपदो ििा अनय राजयो िे होिे हुए मगध िामाजय की ओर बढ़ना है । यिद गणो ,पिरषदो ,जनपदो और मगध िमाट ने िहयोग िदया िो उतर-पििम िे भारि मे पवेश कर रहे यवनो को रोकने मे किठनाई नहीं होगी ।

चनद और िुदामा ने िमतो की िहायिा ले धन एकत िकया । िििशला

,पुषकराविी और केकय मे िूम-िूम कर विृत पर िैिनको को एकत करना पारं भ िकया । चार माह मे चनद अपनी िनजी िैनय-शिक िंगिठि करने मे ििल हो गया । िुदामा ,शंभुक ,अशोक के

िाि िमलकर चनद ने िेिनको के िाि युद-अभयाि पारं भ कर िदया । युदाभयाि के िलए उनहोने

िविसिा नदी के पठार को चुना । इि पठार िे कुछ ही दरूी पर पयाप ा वन िमपदा िैली होने िे यहाँ हो रहे युदाभयाि की जानकारी िामानय नागिरको को नहीं हो पािी िी । यह सिान चनद के िलए

िुरििि िा । िििशला िवदापीठ मे िकिी पकार की गिििविधयाँ िंचािलि न हो , इि पर धयान िदया गया ।

बहुि िदनो िक युद-अभयाि होिा दे ख मुझे िवशाि हो गया िक अब चनद ,गंधार

के अलावा केकय ,दारि ििहि आयाव ा िा के राजयो मे याता कर गणो और पिरषदो िे िमपका करने का िनणय ा ले िलया । मै चाहिा हूंिं िक भारि के इन गणो और पिरषदो िे िमलकर एक िंयुक

अिभयान पारं भ िकया जाए िािक उतर-पििम िे यवन ,भारि मे पवेश न कर िके और भारिवषा मे पििमीवािदयो का वचस ा व बढ़ न पाए । मेरी यह याता दीि Z अविध की भी हो िकिी । जब यह िमाचार िहमािद को जाि हुए वह िबना िमय गंवाए आशम चली आई । मै याता की पूवा िैयारी मे िा । आिे ही िहमािद ने चरण-सपशा िकए । वह करबद होकर िविनि भाव िे बोली-

`` िवषणु ! िुमहारा इि िरह अनायाि भारि भमण पर दीि Z अविध के िलए

जाना मेरे िलए बहुि द ु:खदायी होगा । जानिो हो , मै बड़ी आशाएं िलए िुमहारे पाि आई हूँ । कया

िुम यह याता सििगि नहीं कर िकिे हो षोषो मै हदय िे बहुि िकी हुई िी । मेरी अिभलाषा है िक कुछ िमय िक िुमहारे आशय मे रहकर हदय को िवशाम दे िकूंिं ।``

`` शुभे ! िुम जानिी हो मेरा पररिम किवाय भारि की पििषा को पििसिािपि

करना है । जब िक यवनो का आकमण उतर-पििम िे होिे रहे गे आयाव ा िा पर िंकट के बादल छािे रहे गे और भारि की अिुणणिा खिरे मे पड़ी रहे गी ।``

`` जानिी हूँ आचाया ! िकनिु मेरा िुमहारे पिि जो पेम है उिका कया होगा षोषो मै

नहीं जानिी मुझे कया करना है िकनिु यह अवशय िक मै िुमहारे और िुमहारे दे श के िकिी काम आ

िकूँ । मेरे पेम िजिना िुमिे है उिना ही िुमहारे दे श िे भी है । मै मानिी हूँ मै यवन सी हूँ िकनिु पेि्रम भी कोई वसिु होिी है ।``

मेरी धारणाएं अब बदल चुकी िी । िकशोरावसिा मे अनायाि िहमािद िे आििक

हो जाना िहज है िकनिु जब िकिी किवाय की बाि आिी है िब पेि्रेम बाद मे आिा है और

किवाय पहले । मेरा मगध जाना अतयावशयक है । नंद मद मे चूर है । उिे इि िथय का आभाि नहीं है िक िवदे शी आकानिा पििमोतर िे भारि मे पवेश कर धीरे -धीरे बढ़िे हुए मगध िक पहुँच िकिे है । वह चाहे िो अपनी िवराट िेना के िाि पििमोतर के रासिे को रोककर ििकनदर जैिे

यवन को कुचल िकिा है । लेिकन उिकी महतवाकांिा अनय राजयो िे न होकर अपने िनज सवािा िे है । वह यह नहीं जानिा िक ििकनदर यिद आयाव ा िा को जीिकर मगध मे पवेश करे गा िो

मगध को िहि-नहि कर िकिा है । वह शिकशाली िमाट है िकनिु वह अपने बावलेपन के कारण अपने किवाय िे िवमुख हो गया है । यह िब बािे िहमािद को िमझाना आिान नहीं है िकनिु यिद उिे पेम के बहाने गुपचर िवभाग का काया िौप िदया जाय िो वह इि काया को गिि दे ने मे िहायिा अवशय कर िकेगी ।

`` शुभे ! मै िुमहे अपने िाि कहीं ले नहीं जा िकिा । अनेको राजयो की याताएं

मुझे अकेले ही करनी होगी । मागा मे अनेको िंकट आएंगे और िुम उन िंकटो का िामना नहीं कर पाओगी । वैिे भी मुझे यह काया गोपनीयसिर पर करना है । िुमहारे होिे हुए िंभवि: मै कुछ न

कर पाऊँ , िब कया होगा । मुझे कूटनीिि भी अपनानी पड़ िकिी है । ऐिे मे शुभे , िुमहारा िाि मे रहना उिचि नहीं है । ``

`` मुझे अनय कोई आदे श , िुमहारे न रहिे हुए मै िनिानि अकेली हो जाऊँगी । मेरे

पाि अिििरक धन है , इिके अलावा िेवक भी है ।``

`` ठीक है । िुम िुदामा और चनद के िाि िमलकर गुप िूचनाएं िंगिहि करिे

रहे और हर िण की िूचनाओं िे मुझे िूिचि करने का पयाि करिे रहो । िुना है िुम भारिीय

भाषाओं के अिििरक िवदे शी भाषाओं को भी जानिी हो ,अचछी िरह िे बोल लेिी हो । इििलए िुमहारे िलए उिचि होगा िक िुम मेरे इि काया को ििल बनाने के िलए ििि ् ििका रहिे हुए

िूचनाओं िे मुझे अवगि करािे रहो । बि, यही मेरा िुमहे आदे श है । िुम वयसि भी रहोगी ।`` िपिाशी के बाद मुझे िकिी सी का सनेह पाप नहीं हुआ िा । मािाशी को िो मैने दे खा ही

नहीं िा । मै जब छोटा ही िा ,मेरी मािाशी का दे हाविान हो गया िा । िहमािद का िंिगा मेरे िलए अमि ृ के िमान पिीि हो रहा िा िकनिु दे श की पििकूल िसििियो को दे खिे हुए हदय िवदगध

हुआ जा रहा िा । वह मेरे िामने मूििव ा ि खड़ी िी । उिका गौर वणा , बड़ी-बड़ी आँखे ,रिकम अधर पंिकयाँ जैिे मुझे आमंिति कर रहे िे । उिके िुनहरे केश और लमबी िुराहीनुमा गीवा मनमोिहि

कर रही िी । दोपहर का िमय होगा । इि दोपहरी मे मेरे आशम मे मेरे अलावा केवल िहमािद िी । उिके अधर िरिरा रहे िे । िंभवि: वह याचनावि िी । मैने अपने दोनो हाि उिकी ओर बढ़ाएं ।

वह िििक उठी । आकर मेरे वि िे लग गई । लगा , भीिर का जवार-भाटा उिल-पुिल मचा रहा है । िंिािे िेज िकनिु शीिल चल रही िी और िहमािद मेरे अंग-पतयंिंग मे िमाई जा रही िी ।

बहुि दे र िक हम दोनो आिलंगबद खड़े रहे । अशध ु ाराएं अिवरल बह रही िी उिकी भी और मेरी

भी । जाने कया हदय मे कुछ िरक िा िजिकी पूििा इि िण हो रही िी । पूरे पनदह वषा बाद लगा यह ही जीवन है । नारी के िबना पुरष का और पुरष के िबना नारी का जीवन आिदकाल िे अधूरा

रहा है और अननिकाल िक अधूरा रहे गा । दोनो एक दि ू रे की पूििा करिे रहे गे िकनिु ििर भी यह अधूरापन िमाप नहीं होगा । िजि िदन नारी-पुरष के बीच का अधूरापन िमाप हो जाएगा ,यह

ििृष िमाप हो जाएगी । पकृ िि और पुरष का यह खेल िमाप हो जाएगा । मुझे लगिा , यह जो

कुछ भी पिरवार ,िमाज और दे श मे हो रहा है वह मात सी और पुरष के िमबनधो को लेकर ही हो रहा है । यिद ऐिा नहीं होिा िो इिने वषोZिं िक मेरे और िहमािद के हदय मे पेि्रम िुषुपावसिा मे कैिे पड़ा रहा । इिने वषोZिं बाद वह पेि्रम ििर जाग कर उमड़ पड़ा । इिका िातपया यही हो िकिा है िक सी-पुरष का पेि्रम शाशि है । वे एक दि ू रे के िबना नहीं रह िकिे ।

हदय की जवाला शानि हुई । िहमािद की ढोड़ी पकड़कर जब मैने उठाई उिके नेतो

मे कृ िजिा के भाव िैर रहे िे । वह हदय िे िजिनी पयािी िी उिना ही मै भी पयािा िा । उिने

झुककर मेरे चरण-सपशा िकए । आिन पर बैठी । मै िड़े िे पानी ले आया । मेरे हाि िे पानी लेकर वह गदगद हो उठी । बोली -

`` िवषणु ! िुम मेरे िलए आज भी वही िवषणु हो । चाहे िुम िििशला िवदापीठ के

िकिने भी बड़े आचाया बन जाओ मेरे िलए वही बचपन के िवषणु बने रहोगे । िुम जहाँ भी रहोगे ,मेरे अपने रहोगे ।``

िहमािद भले ही यवन सी रही हो िकनिु जब उिका िववाह भारिीय िामंि िे हुआ

िा िब िे ही उिमे भारिीयिा के गुण रच-बिने लगे िे । लगािार बीि-पचचीि वषोZिं िक

भारि मे िनवाि करने के कारण अब उिमे वे िारे िंसकार आ गए िे जो एक भारिीय िंसकृ िि और िभयिा िे िंमपक ृ नारी मे होने चािहए । मुझे लगा ,िहमािद को वापि लाकर िुदामा ने उिचि ही िकया है । कम िे कम नारी की िरकिा हदय को नहीं िलेगी । वह कहा करिी -

`` िवषणु ! पेम की शाशििा पर पशिचनह नहीं लग िकिा । िन की दीवारे चाहे

िकिनी भी हो िकनिु मन का िमलन िो िनििि ही होिेिा है । यह आवशयक नहीं िक दोनो िन

आमने-िामने हो । दरू रहकर भी मन की दिूरयाँ नहीं रहिी । यही िो पेि्रम का मूल ििदानि है ।

दो िनो का िववाह नहीं हो िका िो कया हुआ , मन के िववाह उिी िण हो चुके िे जब िुमिे पहली मुलाकाि हुई िी । समरण करो उन िणो को , िकिने िुखद िण िे वे । मै आज भी उिे समरण करिे हुए रोमांिचि हो उठिी हूँ ।``

िच ही कहा िहमािद ने , उि िकशोरावसिा मे जब िहमािद िे पिम पिरचय हुआ

िा ,हदय रोमांिचि हो उठा िा । िदन-राि िकि िरह वयिीि हो जाया करिे िे ,जाि ही नहीं होिा

िा । पिििदन पाि: और िनधयाकाल मे िशवालय के पीछे उि िशला की आड़ मे लुक-छुपकर िमलना िकिना मनोहारी लगिा िा । पाण , पाणो मे िमािहि हो जाया करिे िे । शािो की

िरगम एकाकार हो जाया करिी िी । िरयू िकनारे वह नतृय-िंगीि की लय-िान , िहमािद का ठु मक-ठु मककर नतृय करना , कभी मेरे गले मे अपनी गोरी-गोरी बांहे डालकर झूलना ,इिराना ,मुसकराना , िरह-िरह के पिियो की आवाज़ेिे िनकालना और अमराइयो मे एक दि ू रे के पीछे

दौड़ना , िब समरण हो आिा है । जब इिना िमय िहमािद के िाि िुख के िणो मे िबिाया है िब ...और अब, ऐिा कौन िा अनुिचि काया िकया िहमािद ने जो उिे मै अब दरुदरुा दँ ू , नहीं.....जब वे

िुख के िण िाि मे िबिाए है िो ये द ु:ख के िण भी िाि मे ही िबिाना होगा । िोचिे-िोचिे मैने उिे पुन: आिलंगनबद कर िलया । वह ििमटी िी मेरे वि िे लगी रही । बड़ी दे र िक िंिंवेदना के

यह िण हम दोनो के बीच िबना शबदो के आदान-पदान होिे रहे । कभी हं िकर , कभी मुसकराकर ,

कभी नयनो ही नयनो मे िो कभी अनायाि एक दि ू रे मे आबद होकर । िच कहँ िो अब िहमािद िे िवलग होने का मन नहीं करिा िकनिु िामने वे किवाय है उििे िवमुख हुआ नहीं जा िकिा । पेम िजिना शाशि है उिना शाशि किवाय भी है । यिद किवाय मे ििलिा पाप कर ली िो पेि्रम भी िजिवि रहे गा । अनयिा किवाय पर पेि्रम की बिल चढ़ जाएगी । पेि्रम रोिा रह जाएगा । िजिना मै िबखर जाऊँगा उिनी ही िहमािद भी िबखर जाएगी ।

जब िे उिे जाि हुआ िक मै भारि की अखणडिा की मशाल जलाने के िलए

दे शाटन करने जा रहा हूँ िब िे उिने भी कुछ-कुछ िोचना पारं भ कर िदया है । अब वह कभी िवलग नहीं हो िकिी । मैने कहा-

`` शुभे !िुम िुदामा के िाि काम करो और िारी गोपनीय िूचनाओं िे मुझे

अवगि कराने का पयाि करिे रहो । कहीं ऐिा न हो िक िवदे शी आकानि भारि मे अपने पैर पिार दे और हम दे खिे ही रह जाए । उन पर गूढ़ दिष रखो । उनके हर िण की िूचना पाप करो और जहाँ आवशयक हो वहाँ ितकाल मुझे िूिचि करो । ``

िहमािद का हदय दिवि हो गया । वह अपने पेम के िलए िमिपि ा भाव िे काया

करने के िलए िैयार हो गई । शायद वह भी नहीं चाहिी िक मुझिे िवलग हो । वह बोली-

`` िवषणु ! जब िक इि िन मे पाण है िब िक आखरी शांि िक मेरा यह जीवन

िुमहारे िलए िमिपि ा रहे गा ।``

उिने पुन: मेरे चरण सपशा िकए और िेजी िे चली गई।

00 ििकनदर का दमनचक छोटे राजयो पर पभाव डाल रहा िा और वे छोटे -छोटे नरे श

उिके दबाव मे आकर िमिपि ा हो रहे िे। यह दमनचक धीरे -धीरे िििशला ,पुषकराविी , ,केकय , दारि और कुर की ओर बढ़ रहा िा । इि िथय िे चनद अनिभज नहीं िा । वह िुदामा को िाि

लेकर अपनी िेना का िंगठन कर चुका िा । गांधार और आि पाि के िेतो मे वह युदाभयाि पारं भ कर चुका िा । िहमािद का िहयोग िुदामा के िलए लाभकारी ििद हो रहा िा । चनद का दढ़ िंकलप दे ख मुझे पूणा आभाि हो गया िा िक वह गांधार की िसििि िंभाल िकिा है । एक पाि: मैने चनद और िुदामा को बुलाया । उिे वसिुिसििि िमझािे हुए कहा-

`` चनद ! मुझे शीघ ही दे शाटन के िलए पसिान करना है । चनद के िाि िुबाहु

,इनद ,िवजय शंभुक ,अशोक ििा िौभूिि ठहर जाए । शेष अपने-अपने राजय के िलए पसिान करे

। चनद अपने िेना का िवसिार कर शिक िंिचि करे । ििनक भी िशििलिा िािक हो िकिी है ।`` ``आचायव ा र ! और अिधक िेना िंगठन और शिक िंवधन ा के िलए धन की

आवशयकिा होगी । जो हमारे पाि नहीं है । धन के अभाव मे िेना-िंगठन को िुदढ़ िकया जाना किठन होगा ।``

`` वति ! यह िमझ लो चनद िक गांधार मे दे श-भको की कमी नहीं है । यिद कोई

दे श-भक अपना रक नहीं बहा िकिा िो वह कम िे कम धन की वयवसिा िो अवशय कर िकिा है । ``

`` मै पयाि करँगा िकनिु आचायव ा र आपको दे शाटन िे लौटने मे िमय लग

िकिा है । िब िक मुझे कया आदे श है षोषो िेना-िंगठन के बाद उिका उपयोग भी आवशयक है ।``

`` िुमने दे ख ही िलया है चनद िक गांधार नरे श को इि बाि की ििनक भी िचनिा

नहीं है िक ििकनदर और अनय यवन उतर-पििम िे भारि की अखणडिा को खिणडि करने के

पयाि मे है । हमे गांधार नरे श की ओर धयान न दे कर केकेय , दारि और अनय राजयो को िहयोग दे कर यवनो के आकमण को रोकना होगा । इििे भी अिधक उतम होगा िक यवनो को भारि मे

पवेश ही नहीं करने िदया जाय । उनके मागा अवरद कर दे ना उिचि होगा । िुम अपने इन िािियो के िाि िहयोगी राजयो को िहयोग पदान कर अपनी िाख सिािपि कर िकिे हो ।``

चनद और िुदामा को िमझाइश दे कर मैने दे शाटन के उदे शय का काया गांधार िे

ही पारं भ करने का िवचार िकया । िशषयोिे को मागद ा शन ा दे ने के बाद मै िििशला िवदापीठ िे दे शाटन के िलए याता पारं भ कर दी ।

िबिे पहले अपने ही राजय के राजा आंिभ िे एक बार ििर िमलना उिचि िमझा

। िीधे आंिभ के पाि जा पहुँचा । आंिभ िुनदिरयो िे ििरा हुआ िा । हं िी-िठठोली हो रही िी। वह बहुि पिनन िदखाई दे रहा िा। िंिंभवि: वह इि पिननिा मे मुंिँहमांगी अिभलाषाएं पूणा कर दे गा । मुझे दे ख आंिभ मुसकरा पड़ा । बोला-

`` आओ आचाया चाणकय ! िििशला िवदापीठ मे िुमहारा अधयापन काया कैिे

चल रहा षोषो िब कुशल िो है न ।``

`` िवदापीठ के िवदाििय ा ो का अधययन िमाप हो गया है । अब मै िवशेष कायो को मूिा रप दे ने के उदे शय िे िवदापीठ िे िनकला हूँ । आपके पाि आने का मेरा उदे शय कुछ इिी िरह का है । ``

`` िकिी भी काया के िमपादन के िलए पिमि: धन की आवशयकिा होिी है ।

िंभवि: आप धन के िलए मेरे पाि आए हो आचाया !``

`` नहीं राजन ! मुझे धन की आवशयकिा नहीं है । मै धन के िबना ही अपने कायो

का िमपादन करिा हूँ । यिद आप मुझे िबना धन के िहयोग कर िकिे हो िो यह आपकी महानिा होगी ।``

`` ऐिा कौन का काया है जो धन के अभाव मेिे िमपनन हो िकिा है । यिद ऐिा

कोई काया है िो मै उिे पूरा करने का पयाि अवशय करँगा ।``

`` राजन ! ऐिे कई काया है जो धन के अभाव मे भी पूरे िकए जा िकिे है ि,ं जैिे

उतर-पििम मे गांधार राजय भारि का पहरी है । यहाँ िे िमपूणा भारि के नरे शो की दिष आप पर

िटकी हुई है । यिद आप िकारातमक पहल करे िो इिका अनुकूल पिरणाम आपको ििा गांधार को अवशय िमलेगा ।``

`` आचाया चाणकय ! मै आपकी इि िरह की वाणी को िमझ नहीं पा रहा हूँ । यिद

आप सपष करे िो िंभवि: मै कुछ कह िकूँ ।``

आंिभ ने दािी को पात मे िुरा डालने का िंकेि िकया । दािी ने शीघ ही आंिभ के

पात मे िुरा डाल दी । उिने पात को अधरो िे लगाया और िुरा गटक ली । उिके नेत मद मे रिक हो रहे िे । पलके ऊपर-नीचे िगर रही िी । कभी-कभी मद मे उिके अधर कांप जािे िे । वसिुिसििि दे ख मै बोला -

`` िमा कीिजए राजन ! िंभवि: आप ......!`` उिने मेरी बाि काट दी । बोला-

`` आचाया ! मै भिलभांिि िमझ रहा हूँ । आप किहए !``

`` राजन !उतर-पििम मे गांधार राजय को यह अविर पाप हो रहा है िक वह

यवनो को रोककर अपनी िभयिा-िंसकृ िि की रिा करे । केवल इिना ही नहीं यवनो का अवरोध हो जाने िे वे भारि मे पवेश करने की गलिी नहीं कर िकेगे । इि िमय िारे भारि के नरे शो की दिष आप पर िटकी हुई है । यिद आप यह काया ितपरिा िे कर लेिे है िो आप गौरव के पात कहलाएंगे ।``

`` आचाया चाणकय ! दो िवपिरि िभयिा-िंसकृ िियो के िमलने िे िीिरी िंसकृ िि

का अभयुदय होिा है , यह िो आप भिलभांिि जानिे है । जैिे दो वयिकयो के िववाह के िमय दो पिरवारो की िंसकृ िि िमलिी है । उिी िरह यिद यवन हमारी िंसकृ िि और िभयिा का िवकाि

करिे है िो इिमे हमे कया आपित हो िकिी है । हमे िो पिनन होना चािहए िक यवन हमे िमद ृ

कर रहा है । मेरे शरीर पर यह वस दे ख रहे हो न और यह िाज-िामान ,यह िविभनन कला-कृ िियाँ । यवनो की िभयिा और िंसकृ िि िे हम भी िो बहुि कुछ िीख िकिे है ििर कयो आप इिने लालाियि हो रहे है । आपको िो उनका हािदZ क सवागि करना चािहए । जो आप करे ।``

`` राजन !यवन िभयिा और िंसकृ िि हमारी भारिीय परमपरा के अनुकूल नहीं है

। यह आप नहीं कह रहे है राजन बिलक आपके मुख िे मिदरा कह रही है । मद मे आकर िकया गया काया या कहे गए वचन िनरिक ा है । ``

`` आचाया................! िुम मयाद ा ा का उललंिन कर रहे हो । िुम यह भूल रहे हो

िक िुम िकिके िामने बोल रहे हो । गांधार नरे श को अपनी अवसिा का पूरा जान है । अपनी मयाद ा ा मे आकर बोले ।``

`` मयाद ा ा का उललंिन िब होिा है राजन ,जब मै गांधार के पिि िचेि नहीं होिा

। लेिकन राजन िुम यह भूल रहे हो िक गांधार भी िब ही िुरििि रह िकिा है जब भारि के अनय राजय िुरििि रहे गे । कया आप यह भूल रहे है िक भारि की िुरिा गांधार और आपकी िुरिा है । `` `` इिका िातपया यह है िक मै केकयराज और अनय छोटे कमजोर राजाओं का िपछलगगु बन जाऊँ । नहीं आचाया चाणकय , िुम मुझे आज भी वही पाठ पढ़ाने आए हो जो िुम पहले पढ़ाना चाहिे िे ।`` । ``

`` नहीं राजन ! मै मात भारिवषा की िुरिािा िहयोग के िलए आपके पाि आया हूँ `` िुम िबलकुल मूढ़मिि हो चाणकय । िुम भूल रहे हो िक िुमहारी िीिमि िशिा

के आगे मेरा वयवहािरक जान िुमिे कहीं शष े है । िुम कदािचि अपने अिभमान के दपा मे डू बे जा रहे हो चाणकय ।``

`` गांधार नरे श आंिभ ! िुम चाणकय की िशिा को चुनौिी दे रहे हो । `` `` चाणकय ! िुम िनरा बेवकूि ही नहीं बिलक मूढ़मिि हो । िनकल जाओ दरबार

िे कहीं ऐिा न हो िक मुझे िुमहारा वध करना पड़ि़िे । चलो जाओ यहाँ िे दे खिे कया हो ।``

गांधार नरे श आंिभ िुरा-िुनदिरयो के मद मे इिना चूर िा िक उिे ििनक भी इिना जान

नहीं िा िक वह कया कह रहा है । वह अपने पाखणड और राजमद मे भी इिना चूर िा िक उिे

उिचि-अनुिचि पिीि नहीं हो रहा िा । उिने जब मेरा इि िरह िे ििरसकार िकया , िब मै भी कोिधि हो उठा । बोला-

`` दष ु आंिभ ! िू िो इिना अिधक मूढ़मिि है िक अपने पिन को भी नहीं दे ख रहा

। ििकनदर और िेरा िपना टू टकर चूर-चूर हो जाएगा ।``

मेरी आँखो िे अंगारे बरिने लगे । मुझे िदखने लगा िक आंिभ का अजान उिे

अवशय ले डू बेगा । वह यवन-राज का अनुिरण कर सवयं को िुरििि िमझ रहा है िकनिु वह यह

नहीं जानिा िक इिके दषुपिरणाम भी हो िकिे है । मै िनराश िो नहीं हुआ िकनिु ििकनदर की

िूटनीिि िमझ मे आ गई । आंिभ के दरबार िे िनकलकर मै पैदल ही िििशला िे िनकल पड़ा । िििशला िे चलिे हुए मै केकयराजय की िीमा पार कर आगे बढ़ गया । उतर-

पििम के राजयो िे होिे हुए मै कठ,मद,विािी ििा अिभिार िे होिे हुए आयाव ा िा की ओर बढ़

गया । पाटिलपुत के पहले बह ृ दहटट जा पहुँचा । बह ृ दहटट मे िुदामा िे भेट हुई । िमलिे ही िुदामा बोला-

``आचायव ा र ! आपको अपने िशषय िुदामा का पणाम । मुझे आशा िी िक आप

दे शाटन करिे हुए इि ओर भी आगमन करे गे । मैने अपने कुछ िािियो को पूवा मे ही िचेि कर िदया िा िक आपके आने की िूचना शीघ मुझे दी जाए ।``

`` पिनन रहो वति ! मुझे यह जानकर पिननिा हुई िक िुम अपने उदे शय और

किवाय के पिि जागरक होकर काया कर रहे हो िकनिु यह िो बिाओ िक चनद कैिा है और उिका युदाभयाि ििल िो हो हरा है न !``

`` आयव ा र ! चनद ने अपने िैनय-िंगठन को और अिधक िुदढ़ बना िलया है । अब

चनद के पाि दि िहस िेना है और वीर युवको को टु किड़यो मे िवभक कर कुछ िेना-नायक भी िैयार कर िलए है जो िमय-िमय पर चनद के मागद ा शन ा और आदे श पर काया करे गे ।``

`` मुझे यह जानकर पिननिा हुई है । जब िक िििशला मे चनदगुप िवराजमान

है िब िक गांधार िुरििि ही िमझा जाएगा िकनिु भय है िक गांधार नरे श आंिभ कोई ऐिी गलिी न कर बैठे िजिका दषुपिरणाम गांधार राजय को भुगिना पड़े ।``

`` आचायव ा र ! ऐिी िसििि मे चनद कुछ नहीं कर पाएगा जब िक िक

आंिभ का अिभमान आड़े खड़ा है िब िक गांधार को बचाया जाना किठन होगा ििर भी हमे आशा की जानी चािहए ।``

`` वति ! बह ृ दहटट मे िुम यहाँ िकि उदे शय िे आए हो षोषो``

`` आचायव ा र ! मेरा उदे शय अवशय ही गहन है िकनिु िजिके पिि ऋिण िा उनका ऋण चुकाने की मेरी अिभलाषा हदय मे दब कर रह गई है । उिी ऋण को चुका कर मैिं आज पिनन हूँ ।``

`` वति ! मै िुमहारा अिभपाय िमझा नहीं । मै नहीं जानिा िुम िकि

ऋण की बाि कह रहे हो ।``

`` आयव ा र ! आपको समरण होगा ,मगध के हाट मे आपने मुझे िायल

अवसिा मे िहयोग िदया िा । इिना ही नहीं वयाड़ी नामक वद ृ ने मुझे आशय िदया िा । वयाड़ी मगध के महामातय शकटार की िेवा मे िे । वयाड़ी और आपके छतछाया मे महामातय शकटार के पशय मे मै िििशला िवदापीठ मे िशिा पाप कर आज ििल वयिक हो गया हूँ । उिी का एक ि़

ऋण मुझ पर शेष िा । उि ऋण को चुकाने के िलए कड़ी मेहनि कर महामातय शकटार को अंधकप िे मुक कर पाया हूँ ।``

`` कया कहिे हो वति ! इिने जिटल काया को िुमने कर डाला । यह िो

अििहषा का िवषय है । मुझे िुम पर गवा है वतय । अब मुझे पूणा िवशाि हो गया है िक मेरी दी हुई

िशिा िविल नहीं हुई है । जब िुमने इिना जिटल काया इिनी िरलिा िे कर िलया है िो चनद भी जिटल कायो को िुगमिा िे कर लेगा । मेरा वि वासिव मे आज िूल कर कुपपा हुआ जा रहा है । आओ वति ! ििनक मेरे पाि आओ ।``

िुदामा ने झुककर चरण सपशा िकए िो मैने उिे अपने वि िे लगा िलया । मुझे

पूणा िवशाि हो गया िक मेरे कोई भी िशषय ने अधूरी िशिा पाप नहीं की बिलक मेरी िशिा का पूरापूरा िदपयोग िकया जा रहा है । मैने िुदामा को शुभाशीष दे कर कहा-

`` वति ! इिी िरह िुम उतरोतर ििलिा की िीढी चढ़िे चले । अचछा ,अब मुझे

शकटार िे नहीं िमलाओगे । वे मुझे दे खकर पिनन होगे । िुमने शकटार को नया जीवन दे कर कृ िािा कर िदया । अब शीघ ही मुझे शकटार िे भेट करा दो ।``

िुदामा ने मुझे एक िवशाल भवन िदखकर बिाया िक इि भवन मे मगध के

ितकालीन महामातय शकटार िे भेट होगी । मेरी पिननिा का िठकाना नहीं रहा । मुझे लग रहा िा , मै िजिनी शीघिा िे हो िके शकटार िे भेट कर लूँ ।

िंभवि: शकटार को मेरे आने की िूचना पाप हो गई िी । वे भवन के वदार पर

मेरी पिीिा कर रहे िे । मुझे दे खिे ही वि िे लगा िलया । शकटार के नेतो िे अशओ ु ं की अिवरल धाराएं बह िनकली । पूरे दि-बारह वषोZिं के बाद शकटार िे भेट िंभव हो पाई िी । शकटार को अंधकूप िे बाहर दे खकर मेरा हदय गदगद हो रहा िा ।

`` बह ृ दहटट मे आचायव ा र चाणकय का सवागि है ।`` `` पणाम आचाया शकटार । मुझे िुदामा ने जैिे ही आपकी िूचना दी मेरा हदय

आननदोललाि िे गदगद हो गया । मै शीिुघ ही आपिे िमलने चला आया ।``

`` आचाया चाणकय ! यह िब आपकी कृ पा का पिाद है । आपके िशषय िजिने

िवदा के धनी है उिने ही वीर भी है । आपने िशषयो को न केवल ििदानि का ही जान कराया बिलक उनहे वयवहािरक िशिा भी अचछी िरह िे दी है । मैिे शकटार आपका और आपके िशषयो का ऋणी हूँ । मै अपने इि पुनजन ा म को कभी िवसमि ृ नहीं कर िकिा ।``

`` नहीं आयव ा र ! िुदामा और वयाड़ी की आपके पिि अपार शदा है । इिना ही नहीं

िंकट के िमय आपने ही उनहे िहयोग पदान िकया िा । उिी ऋण का यह शुभ पिरणाम आपके हमारे िमि है । ``

`` आचाया ! आइए बािे िो होिी रहे गी । पिमि जलपान भोजन आिद कर िलया जाय उिके बाद िवशाम के िमय चचाा होगी ।`` सनान धयान के एवं जलपान-भोजन के बाद आचाया शकटार और मै अिीि की समिृियो मे खो गए । यवनो िे लेकर मगध िमाट की जयादिियो िक चचाा होने के बाद हम मुखय मुदे पर आए । मै बोला -

`` आचाया शकटार ! मै यह जानना चाहिा हूँ िक यह िब हुआ कैिे षोषो यिद आप

मुझे िारा वि ृ ानि िुनाएं िो अिि कृ पा होगी ।``

आचाया शकटार कुछ िण िक चुपचाप रहे ििर वे आप बीिी िुनाने लगे-

`` आचायव ा र ! िुमने मगध मे मेरी रिा की िी । अमातय कंदपा और रािि की िवचारधारा मेरे अनुकूल नहीं िी । अमातय कंदपा की वयविाियक दिष और रािि की कुिटल दिष िदै व मगध के िवरद चलिी है । उनके वदारा जो भी उिचि-अनुिचि िलाह दी जािी उिे नंद

वदारा िहजिा िे सवीकार कर िलया जािा । नंद अपनी बुिद िे िवचार करने के बजाय कंदपा और

रािि िे िलाह-मशिवरा िकया करिे । यह आवशयक नहीं िक नंद उनकी िलाह पर िवचार करे या अपनी बुिद िे िोचे । नहीं , वे अपनी बुिद िे कभी िनणय ा नहीं लेिे । उनके िलए कंदपा और रािि के िनणय ा ही िवाि ा ेतम हुआ करिे है । कंदपा ने िमाट नंद की बुिद पर अपनी गोलमटोल बािो का ऐिा पदाा डाल रखा िा िक उनहे मै आँख की िकरिकरी लगने लगा । दोनो ने मुझे राजदोही ििद

करने के पयाि िकए और उिमे ििल भी हो गए । उनकी कुिटलिा ने मुझे राजदोही िोिषि करने के िलए पूणा वयवसिा कर ली िी । एक िदन भरी िभा मे मुझे बुलाकर अपमािनि िकया गया और अपने मुँह लगे मंितयो िे हाँ मे हाँ करवा कर मुझे अंकधूप मे डालने का िनणय ा ले िलया । िबना

िकिी बचाव के मुझे ितिण ही बनदी करवा िलया गया और मेरे िाि मेरे पुतो ििहि हमे अंधकूप मे डलवा िदया गया । यह एक पकार का षड़यंत िा जो कंदपा और रािि िे िमलकर खेला और वे उिमे ििल हो गए। मेरे अंधकूप मे डलने के बाद कंदपा महामातय बन बैठा । अंधकूप की उि पीड़ादायक अवसिा मे मेरे चारो पुत मेरे नेतो के िमि एक-एक कालगििि हो गए । मुझे और

अपने पुतो को अकाल मतृयु के मुख मे दे खना मेरी पती की शिक िे बाहर िा । वह इि पीड़ा को

झेल नहीं पाई और वह भी एक िदन मुझे अकेला छोड़कर इि िंिार िे िवदा हो गई। मै अंधकूप मे पीड़ा के िदन वयिीि कर रहा िा । िनराशा ने िेर िलया िा । भूख और पयाि के कारण मेरे अंग-

अंग टू टने लगे िे । शरीर जजरा होने लगा िा । िन अिसिपंजर िदखाई लगने लगा िा । नेत भीिर की ओर धंिने लगे िे । नेतजयोिि िशििल पड़ने लगी िी । दे खने िे यह कंकाल मात रह गया िा । ऐिे िवकट िमय मे दै व ने िाि िदया । अंधकूप मे िदन और राि का पिा नहीं चलिा । बाहर के

िंिार िे वयिक का िमपका टू ट जािा है । जाने कब िूयोदय होिा होगा और िूयास ा ि होिा होगा। िमय की गिि कया होगी । पथ ृ वी जल अिगन वायु और आकाश का आभाि नहीं होिा । सवयं के

अंगो का पिा नहीं चलिा । िकिी िरह की आवाज़ िुनाई नहीं दे िी । पिियो का कलरव , िमनदरो की ििणटयाँ ,पशुओं के रं भाने की आवाजंि़िे ,पेड़-पौधो का हहराना यहाँ िक िक िबकुछ मात

शूनय पिीि होिा िा । ऐिे मे मात पाणी की शांि के चलने का अनुभव होिा है । लगिा है िबकुछ िनजीव हो गया है । सवयं के जीवन का अंदेशा नहीं रहिा । आशा और िवशाि की जयोििपुंज

िवलीन हो जािी है । जीवन की िनधया पायिाने पर खड़ी रहिी िदखाई दे ने लगिी है । लगिा है मतृयु अब आई िब आई । बि, वयिक को अपना अिनिम काल ही समरण रहिा है । यह िमय िोर िनराशा का होिा है । उि अंधकूप के अंधकार मे न जाने कब कैिे कहीं िे िन और हिोि़िेड़े चलने की आवाज़े िुनाई दी । आवाज़े िुन हदय भयभीि हो उठा । हदय मे अनेको शंकाएं उतपनन होने लगी । लगा , शायद अंधकूप िकिी गिा मे डू बा जा रहा है । हो िकिा ,अंधकूप को िोप िे उड़ाने

की योजना बनाई जा रही है । लग रहा िा , कोई िुरंग बनाकर अंधकूप मे डले हम लोगो की मतृयु लेकर आ रहा है । आवाज़े िुन हदय िीव गिि िे धड़कने लगा । लग रहा िा ,शीघ ही यमराज

िामने उपिसिि हो जाएगा या इि जजरा शरीर के िचिड़े उड़ जाएंगे । आशंकाएं वयिक को जीिा जी गि लेिी है । बि , वही िसििि मेरी उि िमय हो रही िी । अनायाि अंधकूप की दीवार िे

हलका का पकाश भीिर की ओर आया । अब िो हदय और अिधक िीविा िे धड़कने लगा । िभी दे खा एक बड़ा भारी पतिर अंधकूप की दीवार िे पि ृ क हो गया है । अंधकूप मे पकाश हो आया ।

बाहर िे ििनक आवाज़ आई , आचाया शकटार `` मै हूँ आपका िहििचनिक `` , मुझे समरण नहीं हो रहा िा िक यह आवाज़ कहीं िुनी हुई है या नहीं । िोचा ,िहििचनिक के बहाने कोई हमारी

हतया करने आ गया हो िकनिु एक शीला और हटाई गई । मै िो भयभीि हो रहा िा िकनिु जब

दे खा िक एक सवसथय युवक मुझे अंधकूप िे बाहर िनकालने के उदे शय िे पयाि कर रहा है िो मुझे िवशाि हो गया िक अवशय ही यह युवक मेरे पाण बचाने आया । मुझे बाहर िनकलने का िंकेि

िमला िबना िकिी आवाज़ के । मै िबरािे हुए अंधकूप िे बाहर िनकलने का पयाि करने लगा ।

उि युवक ने िहारा दे कर बाहर िनकाला । िाि मे मेरा औरि-पुत भी िा । वह भी जीणा-शीणा हो

गया िा । हम दोनो को बाहर िनकालने के बाद उि युवक ने कहा- `` इि िुरंग िे बाहर िनकलिे चले ,अिधक नहीं चलना होगा । हम शीघ ही बाहर िनकल जाएंगे `` और ऐिा ही हुआ । वह युवक हमे िुरंग िे होिे हुए बह ृ दहटट के एक कि मे ले आया । अब िक हमारा हदय भय िे वयाकुल हो रहा िा । कि मे आने के बाद वह युवक बोला-

`` महामातय शकटार के चरणो मेिे िुदाम का पणाम `` िुदामा का नाम िुनिे ही मेरा भय जािा रहा । इि िरह िे िुदामा का आना हुआ

। िुदामा मेरे िलए दे वदि ा ह ृ िक का रासिा ू बन कर आया । उि अंधकूप िे इि महल के गभग िुदामा ने िंभवि: मेरे िलए ही िैयार करवाया होगा । ``

`` लेिकन मानयवर ! कहीं रािि और नंद को आपके जीिवि होने की खबर िमल

गई िो ! िब कुछ अनिा हो जाएगा ।``

`` ऐिा नहीं हो िकिा कयोिक अंधकूप िे पाए गए दो शव अतयनि जजरा वयिकयो के िमले िे। िजनहे शकटार और मेरे औरि-पुत का िमझकर अनतयेिष कर दी गई। अब नंद , रािि और कंदपा की दिष मे शकटार और उिका औरि-पुत मतृय है । इििलए इि िरह के िवचार आना भी उनके िलए किठन है ।``

`` िुना है , अमातय कंदपा मुिन हो गए है ।`` `` आचायव ा र चाणकय , मुझे कंदपा के िवषय मे अब कोई जानकारी नहीं है ।``

`` आयव ा र ! अब आप आगे कया करना चाहिे है षोषो मै ,िुदमा और मेरा चनद आपके िाि है । ``

`` िजि िरह नंद ने मुझे रािि और कंदपा िे िमलकर अंधकूप मे डलवा िदया िा

। ठीक उिी िरह मै नंद को उि अंधकूप मे डलवाना चाहिा हूँ । यह काया अतयनि दषुकर है ।

इिमे धैया और िाहि की आवशयकिा होगी । अचछा , यह बिाओ िििशला की िसििि कया है । चनद और गांधार के बारे मे बािाओ ।``

`` आयव ा र ! िििशला मे िवदापीठ की िसििि ठीक नहीं है । गांधार नरे श नहीं

चाहिे िक मै िवदापीठ मे िवदाििय ा ो को राजनीिि के ििदानि के अिििरक वयवहािरक जान और

युद-िवदा की िशिा दँ ू । दि ू री िरह पििमोतर की ओर िे यवनो का भारि मे पवेश पारं भ हो गया है । गांधार नरे श आंिभ यवनो के पि ले रहे है । दारि की िसििि ठीक नहीं है । ििकनदर अपनी

िवशाल िेना के िाि पििमोतर के राजयो को परािजि कर उनके महलो पर अपने धयज लहरा रहा है । गांधार नरे श आंिभ ,ििकनदर िे भयभीि िो नहीं है िकनिु उिकी िमतिा का वह आकांिी है । यिद ऐिा हुआ िो यवन पििमोतर िे पूरे आयाव ा िा पर धीरे -धीरे अपना आिधपतय सिािपि कर लेगे । यिद ऐिा होिा है िो मगध भी िुरििि नहीं हो पाएगा । बह ृ दहटट भी इि चपेट मे आ

जाएगा । इन िारी िसििियो को दे खिे हुए मैने िनणय ा िलया िक मुझे िमपूणा आयाव ा िा मे भमण

कर िारे राजयो का एक िवशाल िंगठन िैयार करना होगा । यह िंगठन एकछत के नीचे िंगिठि होकर पििमोतर िे हो रहे आकमण को रोके । अनयिा वह िमय दरू नहीं जब िारा आयाव ा िा यवनो के अधीन हो जाएगा और हम हाि पर हाि धरे बैठे रहे गे ।``

`` िुमहारे िवचार अवशय की िचनिनीय है । इि पर अमल करना होगा । चनद

गांधार मे रहकर िेना-िंगिठि करे और िेना की शिक बढ़ाने का पयाि करे । ``

`` यह िब करने के िलए चनद के पाि पयाप ा धन नहीं है । मै राजयो िे िमलकर

िंगठन मजबूि करना चाहिा हूँ । यिद आवशयकिा पड़ी िो नंद िे भी िमलना होगा ।``

`` मेरे पाि कुछ धन है । मैने वह धन गंगा िकनारे एक खणडहर मे छुपाया है जो

िंकट के िमय िनकाला जा िकिा है । इिके अििरिक बह ृ दहटट मे कुछ शिेिष है उनिे िमलकर भी धन की वयवसिा की जा िकिी है । मै िुमहारे िाि उन शिेिषयो िे िमलने चलूँगा । उनिे भी धन की िहायिा अवशय ही िमलेगी ।``

`` आपका इिना िहयोग मेरे िलए पयाप ा है । अविर िमलिे ही मै गंगा िकनारे के खणडहर का पिा लगाकर उि धन को िनकालने का पयाि करँगा । अब मुझे आगे की याता करने की अनुमिि पदान करे ।``

`` कहाँ जाओगे षोषो आचाया चाणकय ! ``

`` मुझे शीघ ही िििशला वापि जाना होगा िकनिु लौटने के पहले मगध की राजधानी पाटिलपुत जाना अभी शेष है । कयो न वापि लौटने के पूवा एकबार नंद िे िमल िलया

जाय । िंभवि: पििमोतर िे होनेवाले आकमण के िलए महाराज नंद का िहयोग पाप हो िके ।`` `` उिचि ही है िकनिु नंद िे िमलने के पूवा अमातय रािि िे िमलना न भूले । हो

िकिा है िक वे िुमको और अिधक िहयोग कर िकेगे । वैिे रािि िे आशा की जाना वयिा है िकनिु राजनीिि कहिी है ऐिे िमय मे शतु िे भी िलाह ली जाना उिचि होगा ।``

`` जैिी आपकी आजा आयव ा र ! नंद िे िमलने के पूवा रािि िे िवचार-िवमशा भी

हो जाएगा ।``

आचाया शकटार िे िमलकर बहुि िारा िवचार-िवमशा हुआ । वे राजनीिि के

पकाणड िववदान माने जािे है । उनकी दिष िवसिि ृ है । वे दरू िक की िोचिे है । उनिे िवदा होकर मै पयट ा न करिे हुए पाटिलपुत जा पहुँचा ।

पाटिलपुत आना मुझे शष े िो नहीं लग रहा िा िकनिु किवाय के िनवह ा न के िलए

यह अतयावशयक पिीि हो रहा िा । यिद आंिभ ििनध नहीं करिा िो ििकनदर का गांधार िक

पहुँचना इिना आिान नहीं िा । लेिकन केकय िक पहुँचने मे अभी और अिधक िमय लगेगा िब

िक िंभवि: मै मगध िमाट नंद िे िमलकर उनिे िहायिा मांग िकिा हूँ । यिद नंद ने िहायिा की िो ििकनदर का भारि मे पवेश अिंभव हो जाएगा । वह नंद की िेना की शिक को झेल नहीं पाएगा और शीघ ही उिे िुटने टे कना होगे । मगध की िवशाल िेना को दे खकर बड़े -बड़े शूरवीर

राजाओं के हौिले पसि हो जािे है । यह िोचिे हुए मै पाटिलपुत के हाटो मे िनिवध ा न िवचरण कर रहा िा । िोचा ,पहले रिचकुमार िे भेट कर ली जाए । भोजन और िवशाम के बाद ही रािि िे

िमलना उिचि होगा । िीधे रिचकुमार के भवन पहुँचा । रिचकुमार की अब पहले जैिी कुिटया नहीं िी बिलक उिके सिान पर एक आिलशान भवन िा जो पाटिलपुत के अमातय का िा ।

रिचकुमार को पाटिलपुत का अमातय बने हुए लगभग दि-बारि वषा वयिीि हो गए िे । मेरा

,पाटिलपुत िे िििशला लौटिे िमय रिचकुमार को अमातय कंदपा और आचाया शकटार के कारण ही अमातय का पद पाप हो चुका िा । मुझे आया दे ख भाभी शयामा उललाििि हो गदगद हो उठी । मुझे दे खिे ही उठ खड़ी हुई । मेरे अिभवादन को सवीकारिे हुए आशीष दे ने लगी । `` दे वर जी आचाया चाणकय ! दीिाZ यु होवो ।``

`` भाभी ! ऐिा पिीि हो रहा है जैिे मै कल ही यहाँ आया िा और आज ििर आ गया हूँ । कया मेरा यहाँ आना आपको अरिचकर िो नहीं लगिा षोषो``

`` इि दि-बारह वषोZिं को िुम िबिा हुआ कल कह रहे हो । दे वर जी ,

यह दि-बारह बरि कम नहीं होिे । वैिे भी िुम बार-बार कहाँ आिे हो । आकर जब जािे हो िो

लौटने मे वषोZिं वयिीि हो जािे । लेिकन िुम िो अब भी िनरा अकेले ही आए हो । दे वरानी को िाि नहीं लाए हो । कहाँ है हमारी दे वरानी षोषो ``

`` भाभी ! मैने िोचा , चलो इन दि-बारह वषोZिं मे भाभी जी ने अपने दे वर के

िलए दे वरानी दे खी ही ली होगी । लगे हाि यह भी काम हो जाएगा । कया कहने ! ``

`` बहुि वाचाल हो गए हो चाणकय ! कहो इिने वषोZिं बाद कैिे समरण िकया

इि अभािगन भाभी को षोषो इि बीच कभी अपनी भाभी का समरण हो आया या नहीं षोषो``

`` न...न..........भाभी जी , केवल भाभी जी को ही नहीं अिपिु भैया को भी

समरण िकया है िुमहारे इि लाडले दे वर ने । कहाँ है हमारे आदरणीय भैया जी षोषो``

`` जब िे िुमने उनहे मंती बनवा िदया है िब िे वे कभी िमय पर िमलिे ही नहीं ।

जाने इि िमय वे कहाँ भटक रहे होगे । अचछा , अब िवशाम करो । भोजन करो । िुमहारे भैया आिे ही होगे । ``

दािी ने भोजन परोि िदया िो शयामा भाभी पंखे िे धीरे -धीरे हवा झोलने लगी ।

दि वषोZ के बाद मुझे पुन: भाभी का माितृव िुख पाप हुआ । मुझे पिीि नहीं हो रहा िा िक नारी का सनेिहल वदरहसि मेरे ििर िे उठ गया । मै भोजन करिे रहा और वह हवा झोलिी रही । भोजन के बाद सीयोिचि गुणो के कारण भाभी ने ििर कुरे दा -

`` वो िुमहारी िहमािद आजकल कहाँ है षोषो उिके पिि बड़े िामंि है न .!

धनाडय वयिक है । बड़े िुख-चैन िे रह रही होगी । ``

`` भाभी ! उिका पिि मारा गया । वह अब िवधवा जीवन यापन कर रही है ।

उिका िुख-चैन िब-कुछ िमाप हो गया । अब वह िामंि की पती नहीं रही ।``

`` दे वर जी ! मेरी मानो िो िुम उिके िामने िववाह का पसिाव रख दो । यिद यह

काम िुम नहीं कर िकिे हो िो उिे मेरे पाि भेज दो । मै उिे िमझाऊँगी । वह मेरा पसिाव असवीकार नहीं करे गी ।``

`` भाभी ! अब यह िंभव न होगा । िुम िो जानिी हो िक जब िक मेरा

उदे शय पूणा नहीं हो जािा िब िक मै िकिी एक सिान पर ठहर नहीं िकिा और न ही सिािपि हो िकिा हूँ । दि ू रे यह िक पेम िे बढ़कर किवाय होिा है । मै और िहमािद अपने पेम को दे श पर बिलदान कर अपने किवाय को िनभाने चले है । वह भी अब मेरे िाि कांधा िे कांधा िमलाकर

भारि को एकछत िामाजय सिािपि करने का िंकलप ले चुकी है । जब िक हमारे भीिर का यह जवालामुखी धधकिे रहे गा िब िक हम अपने िंकलप को पूरा करने का पूरा पयाि करिे रहे गे ।``

शयामा भाभी मेरे मुख की ओर दे खिे रही । िोचिे रही ,पेम िो एक दि ू रे

िे करिे हो िकनिु दे श की खाििर अपने पेम का बिलदान करने मे भी पीछे नहीं हट रहे है । वासिव मे पेम कुछ नहीं चाहिा यिद वह चाहिा है िो िमपण ा , तयाग,बिलदान और िनछावर होना ।

िहमािद का पेम मेरे िलए महतवपूणा है िकनिु िमपूणा भारि के पिि मेरा किवाय पेम िे भी बढ़कर है । यिद मेरा और िहमािद का पेम दे श के काम आिा है िो इििे बढ़कर पेि्रम का उपहार कया होगा ।

भोजन िे िनवत ृ होकर मै िवशाम गह ृ मे चला गया । दोपहर िक िवशाम िकया ।

रिचकुमार अब िक नहीं लौटे । मैने शयामा भाभी िे पसिान की अनुमिि ली और पाटिलपुत के अमातय रािि के भवन की ओर चल पड़ा ।

ठीक दोपहर के िमय मै रािि की िवशाल अटटािलका के िामने जा पहुँचा । जाि हुआ

िक रािि अब मगध िामाजय का महामातय बन चुका है । िभी महामातयो िे मै िीधे ही िमलिा रहा हूँ । इििलए अिधक पिरशम की आवशयकिा नहीं हुई । वदारपाल ने मेरे आने की िूचना रािि को दे दी । मुझे िादर भवन मे ले जाया गया ।

रािि का यह महल पूवा मे महामातय आचाया शकटार के पाि िा । उनके बाद

िंभवि: अमातय कंदपा को िमला और अब महामातय रािि को िमला है । अनिर इिना ही है िक आचाया शकटार के िमय भवन की गिरमा कुछ और िी । वह गिरमामय वािावरण मे पमुिदि हो रहा िा । आननद और शािनि की रिधारा पवािहि हुआ करिी िी । आज महामातय रािि के

िमय भवन के चारो ओर रिको ,गुपचरो और िेना के कुछ नायक पहरे मे उपिसिि िदखाई दे रहे है । ऐिा पिीि हो रहा िा मानो महामातय रािि ,अमातय न होकर सवयं ही मगध िमाट हो । पूछा -

आगंिक ु कि मे मै अकेला जा बैठा । महामातय रािि ने कि मे पवेश करिे ही `` आचाया चाणकय ! कहो कैिे आना हुआ षोषो``

`` पिमि: महामातय बनने की पिननिा मे मै आपका अिभननदन करिा हूँ ।`` `` धनयवाद ! आचाया आपको िकिने धन की आवशयकिा है षोषो शीघ बिाइए

। यह काया मै आपके िलए शीध कर िकिा हूँ ।``

`` महामातय ! मै धन के िलए नहीं आया हूँ । मेरे आने का कारण िनज सवािा न

होकर परिहि का काया है ।``

`` जो भी काया हो उिके पीछे अंशि: िनिहि सवािा भी छुपा होिा है । परिहि का

उदे शय बिाइए । मै आपका कया िहयोग कर िकिा हूँ ।``

`` अमातयवर ! िंभवि: आपको िविदि ही होगा िक पििमोतर िे ििकनदर अपनी िवशाल िेना लेकर भारिवषा मे पवेश की िैयारी कर चुका है । शुदक ,आगेय ,विांिि ,

पुषकराविी ,दारि और अनानय राजयो को परािजि कर आयाव ा िा की ओर बढ़ रहा है । मै इिी उदे शय को लेकर आपके पाि आया हूँ ।``

`` अिाि ा ् िुम हमे ििकनदर का भय िदखा रहे हो ।``

`` नहीं अमातय रािि ! वह बड़ा शूरवीर है और वह भारि के िनकटविी राजाओं

को परािजि कर अपने अधीन ले रहा है । इि िरह उिकी िेना और िामाजय का िवसिार हो रहा है । कहीं ऐिा न हो िक वह कहीं मगध की ओर भी कूच करे ।``

`` ऐिा नहीं हो िकिा । उिे पहले िनकटविी राजयो को परासि करना होगा ।

उनहे परािजि करिे करिे वह मगध िक नहीं आ िकिा । उिमे मगध िे टककर लेने का िाहि ही नहीं होगा ।``

`` वह िो कर ही रहा है । मै वही िो बिा रहा हूँ । वह अपनी शिक बढ़ािे हुए

आयाव ा िा पर अपना धवज िहराने का पयाि कर रहा है । ``

`` ठीक है । उिकी छोटी िी िेना मगध िेना का िामना नहीं कर िकिी । उिे

मगध िेना की शिक का आभाि नहीं है । वह यहाँ िक आएगा , यह भी िंभव नहीं है । ``

`` िंभव है रािि ! वह िनकटविी राजाओं को परासि कर अपनी िैिनक शिक

बढ़ा रहा है । इि िरह मगध िक पहुंिंचिे-पहुंिंचिे उिकी िैनय शिक मगध की शिक िे कहीं

अिधक िवराट हो िकिी है । वह यवन है और यवनो को भारिवषा मेिे सिािपि होने िे रोकना है । भारि भूिम यवनो के िलए नहीं है । यह भूिम हमारी आपकी है ।``

`` आचाया चाणकय ! यह िुम कयो कह रहे हो । यह काया राजयो और िमाटो का

है । िुम इिकी िचनिा कयो करिे हो । िुमहे इन बािो िे कया लेना दे ना । जाओ िुम अपना काम करो ।``

`` एक भारिीय होने के कारण ही मै यह कह रहा हूँ । मै चाहिा हूँ िक यिद आप

िमाट िे कहे िक वे केकयराज,कठ और उनके आिपाि के राजयो को िहयोग करे िो ििकनदर

का भारि दे श की ओर बढ़ना किठन हो जाएगा और परािजि होकर लौट जाएगा । वह भारिवषा की शिक को दे ख भयभीि हो जाएगा और आगे बढ़ने का िाहि नहीं कर पाएगा । वह अभी उिावला है और िििशला नरे श को परािजि कर अपने अधीन ले िलया है । इििे उिका िाहि बढ़िे जा रहा है ।``

`` कहीं ऐिा िो नहीं िक आप उन राजयो के िहि िंरिण के िलए अिधक आिुर हो

रहे हो । उन िुद राजयो िे हमे कया लेना-दे ना है । वे अपनी रिा सवयं करे ।``

`` मेरी आिुरिा िमपूणा भारि के पिि है । िकिी एक राजय के पिि नहीं । यवन िमाट भारिवषा के नरे शो को आपि मे लड़वा रहा है । वह हममे िूट डालने का पयाि कर रहा है । एकिा ही हमारी शिक है ।``

`` आचाया चाणकय ! मै आपके िवचार िे िहमि हूँ िकनिु कया िमाट िहमि

होगे षोषो ििनक इि िवषय पर िवचार कर लीिजए । यिद िमाट ने असवीकार िकया िो षोषो`` `` िमाट नंद वसिुि: इि िवराट मगध िामाजय के िमाट है । उनिे िमलकर

िवचार-िवमशा िकया जाना होगा । िंभवि: वे अवशय ही िहमि होगे । मुझे िवशाि है ।``

`` ठीक है । कल राजय-िभा मे आप पधािरए । िमाट नंद के महल मे राजय-भोज

के बाद उनिे िमलना िंभव हो िकेगा । िभािदो की उपिसििि मे इि गहन िवषय पर िवचारिवमशा होगा । आप पधािरए ।`` महामातय रािि मुझे िमाट नंद िे िमलवाने के िलए िैयार हो गए। मुझे महामातय रािि िे पूणा अपेिा िी । मै उतिािहि हुआ । अगले िदन िमय पर मै महामातय

रािि के भवन पहुँचा । वे राजमहल जाने के िलए िैयार हो रहे िे । मुझे दे खिे ही अिभवादन िकया -

`` आचाया चाणकय ! मेरा अिभवादन सवीकार करे । मै शीघ ही राजमहल जाने के

िलए उतिुक हूँ । राज-भोज का िमय होने के पूवा हमे राजभवन पहुँचना है । आज िमाट नंद वदारा िकिी पयोजन िे यह भोज आमंिति िकया है । यिद आप भी उि भोज मे शािमल होगे िो हमे पिननिा होगी ।`` बाि होगी ।``

`` मै पसिुि हूँ महामातय रािि । चिलए आपके िाि होना मेरे िलए गौरव की महामातय रािि का राजिी रि िैयार िा । हम दोनो उि पर िवार हो गए । ठीक

िमय पर हम राजभवन पहुँचे । िमाट नंद अपने िवशिनीय दरबािरयो के िाि बैठे हुए िे । नि ृ िकयाँ िविभनन हाव-भाव के िाि नतृय कर रही िी । िारं गी के सवर िे िमुचा वािावरण

आननदमयी हो रहा िा । िरह-िरह के इत की िुगनध दरू-दरू िक महक रही िी । कुछ िुनदिरयाँ पातो मे दािारि भर-भर दरबािरयो को िरझािा-िरझािाकर अपने हािो िे िपला रही िी । िमाट नंद एक अिि िुनदर युविि को अपनी िबलकुल पाि िबठाये हुए हं िी-मज़ाक कर रहे िे । वह

िुनदरी िमाट नंद की रिीली बािो िे कुछ-कुछ लजा रही िी । बीच-बीच मे वह पात मे दािारि भर कर िमाट नंद के अधरो पर लगा दे िी । िमाट िुनदरी के हािोिे को पकड़कर पात मे भरे

दािारि का हौले-हौले पान करिे जािे और रिीली बािो की चुटिकयाँ िलया करिे । महामातय रािि दरबािरयो के बीच जा बैठे । उनके िमि एक िुनदरी ने पात मे दािारि भर कर पसिुि

िकया िकनिु उनहोने दािारि िलया नहीं । रािि ने मेरी ओर िंकेि िकया िकनिु मुझे इि िमय िमाट और राज दरबािरयो की िसििि अचछी नहीं लग रही िी । इििलए मै िबलकुल पि ृ क ही शानि एवं चुपचाप बैठा रहा ।

भोजन का िमय हो गया िा । राजभवन के भोजन कि मे िमाट और

राजदरबािरयो ने अपना-अपना सिान गहण िकया । िरह-िरह की िठठोिलयाँ होने लगी । िमाट नंद ििहि लगभग िभी राजदरबारी दािारि के मद मे चूर िे । िुनदिरयो को िेरे हुए वे िब के

िब उचछ ªिंखल हो अििशल हं िी-मज़ाक करने लगे िे । उनहे इिना भी आभाि नहीं िा िक उनके िाि मेरे जैिा एक अपिरिचि बाहण भी उपिसिि है ।

राजभवन के रिोिियो वदारा भोजन परोिा जा रहा िा । भोजन मे िभी िरह के

वयंजन िे िकनिु िमाट ििहि राजदरबारी िनरािमष भोजन करने मे मगन हो गए । िुनदिरयाँ

अपने हािो िे उनहे भोजन कराने लगी । भोजन के दौरान भी वे िभी िुनदिरयो के िाि अििशल हरकिे करिे जािे । मै भी भोजन कर रहा िा । दािारि लेने का मेरा भी मन कर रहा िा िकनिु

उिचि िमय और उिचि सिान नहीं होने के कारण मै चुपचाप भोजन करने लगा । िभी अनायाि िमाट नंद की दिष मुझ पर िगरी । वे कुछ िण िक मेरी ओर दे खिे रहे । वे बार-बार नेतो को मिलिे और नेतो को िवसिािरि करिे हुए मेरी ओर दे खिे जािे । उनहे मै अपिरिचि लगा । उनहोने अपने िवशिनीय िेवको िे िंकेि िे पूछा -

`` ये हम लोगो के बीच मे काला-कलूटा , बेढंगा , बदिूरि , बड़ी िी चोटीवाला ,

काले-काले दाँि और लाल-लाल नेतोवाला भयानक कुरप पुरष कौन है षोषो इिे इि राजमहल मे िकिने आमंिति िकया षोषो कया यह िबना आमंिति िकए ही राजकीय भोजय मे आ गया । इिे भोजन के िलए िकिने िबठाया षोषो ``

`` हम इि अपिरिचि िे अनिभज है िमाट.... हम नहीं जानिे यह कैिे इि

राजकीय भोज िभा मे चला आया ।`` बोले-

उि िमय मै भोजन करने मे वयसि िा । िमाट नंद मद मे चूर भोजन करिे हुए `` ये काले-कलूटे अपिरिचि ,िुम कौन हो षोषो`` िुनिे ही मै िण भर के िलए िोच मे पड़ गया । मै िोचने लगा ,िंभवि: िमाट

िठठोली कर रहे होगे । मैने कोई उतर नहीं िदया और भोजन करने मे वयसि हो गया । िमाट दब ु ारा ऊँचे सवर मे बोले -

`` अरे ओ बेढंगे , बदिूरि और बड़ी भारी चोटीवाले । िुम यहाँ यह कया कर रहे हो

षोषो``

`` मै भोजन कर रहा हूँ िमाट ।``

`` यह िो मै भी दे ख रहा हूँ । मै अंधा नहीं हूँ जो िदखाई न दे िकनिु िुमहे यहाँ

िकिने आमंिति िकया है षोषो यह राजकीय भोजिभा है । इिमे केवल राज-दरबार के अिधकारी ही भोजन कर िकिे है । ``

`` मै सवयं चलकर नहीं आया िमाट । मुझे आमंिति िकया गया है ।`` `` अरे ओ कुरप चाणडल । उठ यहाँ िे और भाग जा ।``

मै अब भी इिे िमाट की िठठोली िमझ रहा िा । मुझे नहीं जाि िा िक यह

िठठोली नहीं है बिलक िमाट का कोध है । मैिेने चुप रहना उिचि िमझा । िमाट उठ खड़े हुए । उनहोने िेवकोिे को बुलाया और आदे श िदया -

`` अरे यह इि िरह नहीं मानेगा । इिकी बड़ी भारी चोटी खींचकर बाहर करो ।`` िभी महामातय रािि ने बीच मे आकर िमाट नंद को रोकिे हुए कहा -

`` राजन ! यह बाहण िििशला िवदालय का अधयापक आचाया चाणकय है । मै इनहे यहाँ सवयं ले आया ।``

`` कौन चाणकय षोषो इिमे िो बाहण जैिे गुण िदखाई ही नहीं दे िे । यह बाहण

कैिे हुआ षोषो यह िो चाणडाल लगिा है ।``

`` हाँ राजन ! यह बाहण है । आचाया चाणकय .....आचाया चणक के पुत ..आपिे

भेट करने की आकांिा िे आपके दरबार मे आए है । इिना ही नहीं इनहे हम िाि लेकर आएं है । `` `` नहीं , नहीं, नहीं । ििर िो यह कदािप आचाया हो नहीं िकिा । इिना बदिूरि

काला-कलूटा और भदा वयिक आचाया नहीं हो िकिा । इिको भगाओ यहाँ िे । अनुचर ! कहाँ गए िब षोषो ``

िमाट की आवाज िुनकर अनुचर दौड़े चले आए । िमाट बोले -

`` इि बदिूिूरि आदमी को शीघ ही हमारे नेतो िे दरू करो । िनकालो इिको बाहर

। यह इि राजकीय भोज मे िदखना नहीं चािहए ।``

िमाट नंद का अभद वयवहार दे खकर मै ििलिमला गया । अनुचर दौड़े चले आए

और मुझे पकड़ कर बाहर ले जाने लगे । इिने पर भी िमाट पिनन नहीं हुए िो बोले` ऐिे नहीं । इिकी िशखा खींचकर बाहर िनकाल दो ।`` मै चीख पड़ा -

`` अरे दष ु ! अधम !! िमाट होकर इिना अधम कमा करिा है । एक बाहण को

अपमािनि करके िुझने उिचि नहीं िकया है । िूने मेरी िशखा पकड़वाकर बाहर करवा रहा है । अब यह िशखा िब ही बंधेगी जब मै िेरे नंद वंश िवन ा ाश करँगा ।``

मै चीखिा रहा और िमाट नंद ठहाके लगाकर मेरी िठठोली करिा रहा । उिे

ठहाके लगाकर हं ििे दे ख उिके अनुनायी मंती भी ठहाके लगाकर मेरी िठठोली करने लगे । अनुचरो ने मेरी िशखा पकड़ी और खींचिे हुए बाहर कर िदया ।

नंद के दवुयवहार िे आहि हो मै दरबार िे ितकाल ही िनकल आया । िमाट नंद

ने मुझे पकड़वाने के िलए अपने अनुचरो और िैिनको को दौड़ाया । मै पूवा िे ही िारी वयवसिा के िाि चल िदया िा । जाने कब िकि िसििि मे कुछ पिरविन ा िकया जा िके । मै शीघ ही एक

पुिलया के नीचे दब ा का िारा िामान पूवा िे ही िैयार िा । मैने ु क गया । पोटली मे रप पिरविन

ितिण ही िडिबया खोली और एक पकार का चूणा लेकर अपने मुखमणडल और िारे शरीर पर लेप िदया और शीशी मे लाया गया िरल रिायन िनकालकर िशखा मे लगा िलया । मुखमणडल और िारे शरीर का वणा िबलकुल कृ षणीय हो गया । िशखा का वणा शेि हो गया । नये वस उिारकर पुराने वस धारण कर िलए । अब मुझे कोई पहचान नहीं पा िकिा िा । पुिलया िे िनकलकर

मुखय मागा पर आ गया । नंद के अनुचर और िैिनक मुझे खोज रहे िे । मेरे पाि भी आए िकनिु वे मुझे पहचान नहीं पाए । मै िनििनि हो एक ओर चल िदया । मुखय हाट िे होिे हुए मै िरयू की ओर चल िदया । पैदल चलिे हुए मै िरयू िकनारे िशवालय आ पहुँचा । आिया वहीं िशवालय मे पूजा अचन ा ा करिे हुए िुदामा के अिभभावक वयािड़ िे मुलाकाि हो गई। वयािड़ ने मुझे नख िे िशख िक िनहारा और मुसकरा िदए । बोले -

`` लगिा है िकिी अिभयान िे आ रहे हो । अचछा हुआ आपिे भेट हो गई।

वषोZिं िे आपिे भि्ोट की अिभलाषा िी । चलो िर चलिे है ।``

`` मुझे यह आिया हुआ िक इिनी दीि Z अविध के उपरानि और इि िरह रप

पिरविन ा के बाद भी वयािड़ िुम मुझे पहचान गए । चलो पहले िर चलिे है । वहीं चचाा होगी । इि िमय यहाँ ठहरना उिचि नहीं है ।``

वयािड़ िे इि िरह अनायाि भेट हो जाएगी ,नहीं िोचा िा िकनिु िौभागयवश भेट

हो गई है िो बहुि अचछा हुआ । िंभवि: ईशर की यही इचछा होगी । वयािड़ की आयु बहुि अिधक हो गई िी । केश शेि हो गए िे । शरीर िशििल िदखाई दे रहा िा । नेत भीिर चले गए िे । उिी

िरह वयािड़ की धमप ा ती भी वद ृ ावसिा मे पहुँग गई है । उिने पिमि:मुझे पहचाना ही नहीं लेिकन जब वयािड़ ने बिाया िक यह आचाया चाणकय है िो उिने ििर झुकाकर पणाम िकया । मैने

ििलहाल सनान करने के मुड़ मे नहीं िा । हालांिक भाभी ने सनान कर भोजन करने का आगह

िकया िा । मै िुबह ही सनान-धयान िे िनवत ृ हो चुका िा । अि: सनान करना आवशयक नहीं िा । भोजन करने के बाद वयािड़ और मै एकानि कि मे बैठ गए । वयािड़ बोले -

`` आपके हम पर बहुि उपकार है आचाया ! आपने हमारे िुदामा को िंभाले रखा ।

शायद िुदामा अब िक बहुि बड़ा हो गया होगा । अचछा िदखिा होगा । कैिा है हमारा िुदामा

षोषो उििे कब भेट होगी । हम अपने पुत को दे खने के िलए वयाकुल हो रहे है । वह कुशल िो होगा न षोषो ``

`` आप िनििनि रहे वयािड़ । आपका पुत िुदामा कुशल है । अब वह एक पूणा िशििि युवा हो गया है । राजनीिि,दशन ा ,िकाशास,अिश ा ास और युद-िवदा मे वह पवीण हो गया है । आजकल िुदामा और चनद िाि-िाि िमलकर दे श-िेवा के अिभयान मे िंलगन है । आप िुदामा की िचनिा न करे । िमय आने पर उििे आपकी भेट अवशय होगी ।`` `` िुदामा के िाि ये चनद कौन है आचायव ा र षोषो``

`` चलो अचछा समरण हो आया । महारानी मुरादे वी आजकल कहाँ है षोषो कैिी है

षोषो उनके िमाचार कया है षोषो ``

`` िुना है महारानी मुरादे वी अब िक अपने पुत की पिीिा कर रही है िक कब

उनका पुत चनदगुप आएगा और उिके िपिा महाराज िूयग ा ुप मौया को अंधकूप िे बाहर िनकालेगा षोषो महाराज िूयग ा ुप की िसििि िंिोषजनक नहीं है ।``

`` उनका पुत चनदगुप अब युवा हो गया है । वह भी िुदामा के िमान शूरवीर हो

गया है । मुझे िुदामा और चनदगुप िे बहुि अपेिा है । मेरे हदय मे जवालामुखी पजजविलि हो रहा है उिका लावा मेरे मन मे खदबदा रहा है । जब िक मेरे हदय का लावा नंद को भसम नहीं करिा िब िक मुझे शािनि नहीं िमलेगी ।``

`` मै िमझा नहीं आचायव ा र ! नंद को भसम करने का औिचतय कया है षोषो`` `` मै उिके पाि िहयोग मांगने के िलए गया िा । पििमोतर िे यवन िमाट

ििकनदर भारि मे पवेश करने का पयाि कर रहा है । यिद मगध िमाट नंद अपनी िवशाल िेना का िहयोग करिा है िो पििमोतर के राजय िमलकर यवनो को भारि मे पवेश होने िे रोक िकिे

है । मै नंद के पाि इिी उदे शय िे गया िा िकनिु उि मूढ़ ने राजदरबार मे ही नहीं बिलक राजमहल के राजकीय भोज मे मेरा िोर अपमान िकया । मेरी िशखा पकड़वाकर राजकीय भोज िे बाहर िनकाल ििकवा िदया ।``

`` अब आगे कया मंशा है षोषो मै आपकी िहायिा िकि िरह िे कर िकिा हूँ ।

यिद यह वद ृ आपके िकिी काया मे िहभागी हो िके िो मै कृ िािा होऊँगा ।``

`` जब िक मेरे अपने भीिर खदबदा रहा लावा नंद को जलाकर राख नहीं करिा

िब िक मेरे वि मे धधक रहा जवालामुखी शानि नहीं हो िकिा । पिमि: मुझे चनद की शिक

बढ़ाने का उपाय करना होगा । मै नंद को नष कर चनद को मगध का िमाट बनाना चाहूँगा । अब मेरा यही उदे शय होगा । लेिकन इिके िलए मुझे धन की आवशयकिा है । धन की वयवसिा भी है िकनिु इिके िलए मुझे िुमहारे िहयोग की अपेिा है ।`` `` धन कहाँ िे आएगा आचाया षोषो``

`` यहाँ िे िरयू िकनारे कुछ दरूी पर एक खणडहर है । उि खणडहर मे उिरने पर

लगभग िािवीं िीढ़ी के नीचे कुछ धन गड़ा हुआ है । यिद िुम इिनी िी िहायिा कर िको िो मै उि धन को िनकालना चाहूँगा ।``

`` यहाँ िे िरयू िकनारे .......अिाि ा लगभग कुछ कोि की दरूी पर.........खणडहर मे

............!.................लेिकन आपको कैिे पिा........षोषो``

`` मुझे मगध के ितकालीन महामातय शकटार ने बिाया है । वह धन हमारे काम

आ िकिा है । उिी धन िे चनद की िेना-िंगठन को बढ़ाया जा िकिा है ।`` `` लेिकन वह धन िंभवि: शकटार का है ।``

`` हाँ शकटार का है । लेिकन िुमहे कैिे पिा षोषो`` `` यािन................!``

`` िुम ठीक कह रहे हो वयािड़....मुझे िुमहारी िहायिा की आवशयकिा है । उिी

खणडहर मे उिरिे िमय....................``

मेरी बाि पूणा भी नहीं हुई िी िक वयािड़ बीच मे ही बोल पड़े -

`` पाँचवी-छठवीं िीढ़ी के नीचे एक िमटटिी के िड़े मे धन रखा है । वह धन मैने ही रखा िा । शकटार मेरे सवामी है ििा उनहोने वह धन मुझिे ही गडवाया िा ।``

`` िुम चाहिे िो उि धन िे अपनी वद ृ ावसिा आराम िे िबिा िकिे िे । िुमने

ऐिा कयो नहीं िकया षोषो``

`` अपने सवामी का धन मेरे िलए उिचि नहीं है । लेिकन अब वही धन िुमहारे और

इि दे श के काम आ रहा है । इििे अिधक उिचि और कया हो िकिा है । मुझे िो पिनन होना चािहए ।``

`` मुझे िुमहारी सवामी भिक पर अिभमान है वयािड़ि़ । चलो , उिचि िमय पर

हम उि खणडहर मे चलिे है । राित के पिम पहर मे ठीक होगा ।`` `` मै िैयार रहूँगा ``

राित होने मे अभी िमय िा । मैने शीघ ही पिरधान बदल िलया । शरीर पर धारण करनेवाली कुछ बंिडया बना ली । वयािड़ को भी िैयार कर िलया । राि का ििवदिीय पहर पारं भ हो गया िा । आकाश मे शीिल िचनदकाएं िबखर कर पकाशमान हो रही िी । िंिंभवि: शुकल पि की िि ृ ीया या चिुिी की िििि होगी । चनदमा का पकाश पयाप ा नहीं िा ििर भी मै और वयािड़

िरयू िकनारे चलिे-चलिे लगभग दो-िीि कोि िक िनकल गए । िामने पुराना खणडहर िदखाई िदया । मैने वयािड़ िे कहा -

`` िंभवि: यही खणडहर है । जैिा शकटार ने बिाया उिी अनुिार मेरा यही

अनुमान है ।``

`` यह िो वही खणडहर है । जहाँ महामातय शकटार मुझे लेकर आए िे । इिी

खणडहर की ऊपरवाली िीढ़ी िे पांचवी-छटवीं िीढ़ी के नीचे एक माटी के मटके मे रत-मंजूषा गाडी गई िी ।``

`` चलो वयािड़ , िुमने ठीक सिान की पहचान करवा दी ।`` हम दोनो खणडहर के भीिर उिर कर उिी िीढ़ी के पाि गए जहाँ शकटार ने रत-

मंजूषा गड़वाई िी । वयािड़ ने धीरे -धीरे खोदना पारं भ िकया । कुछ ही िमय मे िीिढ़याँ उखड़ गई । नीचे एक माटी की मटकी िी । उिे खोलकर दे खा । बहुमूलय रत की एक रत-मंजूषा िी । अिधक िो नहीं िे िकनिु इिने अवशय िे िक इििे चनद के िेना-िंगठन के िलए पयाप ा हो िके । मैने

बिणडयो मे वे रत भर िलए । हम दोनो उि चाँदनी राि मे खणडहर िे चल िदए । हदय मे िंिोष

हुआ । इि रािश िे चनद की िेना िुचार रप िे िंगिठि हो िकेगी और कुछ वषोZिं िक िनििनि रहा जा िकिा है । मै वयिड़ और शकटार का आभारी हुआ । जो लावा मेरे भीिर खदक रहा िा उिमे नंद ने और अिधक आग िुलगा दी । अब इि जवालामुखी का लावा अवशय ही नंद को जलाकर राख कर दे गा । मेरे हदय मे अब और अिधक पििशोध का लावा खदबदाने लगा ।

वयािड़ के िर आकर बड़े आननद के िाि भोजन िकया । ििनक िवशाम िकया ।

राित का िीिरा पहर चल रहा िा । िारा पाटिलपुत िनदादे वी के आचल मे िो रहा िा । यह पहर ऐिा होिा है जब पतयेक पाणी गहरी िनदा मे िो रहा होिा । िनशाचरो को छोड़ कोई भी पाणी जागिा नहीं है । चारो ओर दिष दौड़ाकर िसििि का अवलोकन िकया । िनििनि और उिचि िसििि दे ख मैने अगली याता के िलए पसिान िकया ।...........

मेरा हदय अिि वयाकुल हो रहा िा । हदय मे खदबदा रहा लावा मुझे िवचिलि

िकए जा रहा िा । मन मे िविभनन पकार के िवचारो का मंिन चल रहा िा । मुझे लग रहा िा

शीघाििशीघ मगध िमाट नंद को पदचयुि कर अंधकूप मे डाल दँ ू या उिका अिसितव िमाप कर दँ ू । एक ओर यवन भारि मेिे पवेश कर िसििि को िबगाड़ने मे िंलगन है िो दि ू री ओर नंद धन और िुरा-िुनदिरयो के मद मे आकंठ डू बा हुआ है । िसििि जब िक िनयंिति नहीं होिी िब िक चुपचाप बैठा नहीं जा िकिा । शकटार की रत-मंजूषा मेरे िलए बहुपयोगी ििद होगी । यह रत-

मंजूषा भी उिचि िमय पर पाप हो गई । हदय को ििनक िवशाि हो आया । इिी के बल पर चनद की िेना का िंगठन दढ़ करने का िुअविर िमला है । इिे यो ही गंवाया नहीं जाना चािहए । मै हदय मे बहुि िारी आशाएं िलए िििशला के िलए पसिान कर िदया ।

पाटिलपुत िे िििशला िक पहुँचने मे मुझे बहुि िमय लगेगा । लेिकन मै चल पड़ा । दो माह की पैदल याता के बाद मै िििशला पहुँचा ।

िििशला िवदालय आशम अब िक भूिमगि हो चुका िा । उिका अिसितव ही

िमाप हो चुका िा । िििशला नरे श आंिभ को ििकनदर ने पदचयुि कर उनके सिान पर शिशगुप को िििशला की बागडोर िौप दी । अब िििशला पूणि ा : ििकनदर के अधीन हो गयी िी ।

शिशगुप का पशािन ििकनदर के आदे श के पर चल रहा िा । ििकनदर जैिे चाहे वैिे िििशलाको

चला रहा िा । केकय राज पर ििकनदर का दबाव बढ़ गया िा । चनद ,शुभ ं क और िुदामा का कहीं पिा नहीं चल पा रहा िा । मुझे कहीं रासिा िदखाई नहीं दे रहा िा । यह जाि करना किठन हो रहा

िा िक चनदरर शुभ ं क और िुदामा की िसििि कया है षोषो उनका अिसितव है या नहीं । मै िचिनिि हो गया । िोचने लगा यिद चनद और िुदामा का कहीं पिा नहीं चला िो महारानी मुरादे वी और वयािड़ को कया मुह ँ िदखाऊँगा ।

यवन िमाट ििकनदर वदारा गांधार ,केकेय और िमीपसि राजयो पर दबाव बढ़

रहा िा । मै अब भी भूिमगि होकर यहाँ-वहाँ अपने िशषयो की खोज करने लगा । अनायाि मेरे

एक िशषय अशोक िे बहुि ही िवचिलि िसििि मे भेट हुई । मुझे दे खिे ही वह नि-मसिक हुआ । मेरे शरीर मे मानो पाण आ गए । मैने उििे चनद और अनय िशषयो के बारे मे पूछा । अशोक ने बिाया -

`` आचायव ा र ! यवन िमाट ििकनदर कुछ िमय िे गांधार मे ही है । वे िििशला ििहि

अनय गणो और राजयो पर दिष रखे हुए है । िििशला नरे श आंिभ को पदचयुि कर उनके सिान

पर शिशगुप को िबठाया गया है िकनिु राजय की िारी बागडोर ििकनदर के हाि मे है । यवन िेना ने िििशला िवदालय और आशम को नेसिनामूद कर िदया । चनद ,िुदामा और अनय िभी

िािियो को िमय रहिे यिद िहमािद िचेि नहीं कर रही होिी िो वे िारे के िारे ििकनदर के िशकार हो गए होिे िकनिु िौभागय िे ऐिा होने िे बच गए । इि िमय चनद और िभी िािी

अिभिार के िने वनो मे छुपे युदाभयाि कर रहे है । वे िब आपकी पिीिा मे है । यह अचछा ही हुआ िक आप उिचि िमय पर िििशला आ गए । अनयिा चनद ििहि िारे िािी पिा नहीं कब िक यो ही वनो मे भटकिे रहिे ।``

एक ओर िििशला पर ििकनदर का आिधपतय हो गया । उिने आयाव ा िा

के अनय राजयो के नरे शो को चेिावनी दे दी । केकय नरे श पुर का आकोश बढ़ रहा िा । उनहोने

ििकनदर के िाि युद की िैयािरयाँ पारं भ कर दी िकनिु केकय के पाि न िो पबल िैनयबल िा

और न इिना िाहि िक ििकनदर जैिे िवराट वयिक को परािजि कर िकेिेिं िकनिु केकयराज ने अपना िाहि बनाए रखा । िारा केकयराजय आतमबिलदान के िलए िैयार हो गया । हर कहीं युद की िैयारी हो रही िी । केकयराजय के नागिरक उतिािहि होकर िेना का िाहि बढ़ाने के िलए

काया करने लग गए । अस-शसो का िनमाण ा , रख-रखाव,अश और हािियो को पिशििि िकया जाने लगा । िेना-नायक और यूि-नायक िेना िंचालन के िलए िैयार होने लगे । िमपूणा केकयराजय मे ििकनदर को रोकने के िलए अभयाि िकया जाने लगा । मन मे आया यिद

केकयराजय िुरििि होगा िो हम िब भी िुरििि ही होगे । िििशला िे िनकलकर केकयराजय मे पहुँचना उपयुक होगा । पुर की िहायिा करने मे हो िकिा है ििकनदर का आतमबल टू ट जाय ।

यह िोचकर मै केकयराज पुर के महामातय अनंि केभवन पहुँचा । अनंि शमाा िे िुरनि भेट हो गई। अननि ने िसििि सपष करिे हुए कहा -

`` इि िमय केकयराज को िंभवि: आपके िहयोग की आवशयकिा है । ििकनदर गांधार मे पवेश कर चुका है । आंिभ को पदचयुि कर शिशगुप को िििशला का भार िौपा है ।``

`` मुझे यह जानकारी पाप हो चुकी है िकनिु अब पश यह है िक हम िकि िरह िे

ििकनदर को केकयराज िे दरू ही रखे । यह भी हो िकिा है िक उिे केकय मे पवेश ही न करने दे । िब ही केकयराज को िुरििि रखा जा िकिा है । अनंि िुम मुझे महाराज पुर िे भेट करा दो । उनिे िमलने के बाद ही अगली कायय ा ोजना पर िवचार िकया जा िकेगा ।``

`` आचायव ा र ! आपके िवचार अनुकूल ही है । महाराज पुर िे भेट करना आवशयक

होगा । चिलए महाराज पुर िचनिािुर िदखाई दे रहे िे । उनके मुखमणडल पर िचनिा की रे खाएं सपष हो रही िी । मुझे दे खिे ही उठ खड़े हुए और मेरा अिभवादन िकया । बोले`` आचायव ा र ! केकय मे आपका सवागि है ।`` `` राजन ! आप िौभागयशाली हो ।``

`` िुना है , आप िमपूणा आयाव ा िा की याता पर गए हुए िे । यह भी जाि हुआ िक

आप मगध की याता भी कर आए है । वहाँ की िसििि कैिी है षोषो कया मधय आयाव ा िा मे यवनोिे को भारि मे पवेश होने िे रोकने के िलए कुछ उपाय हुए है षोषो िंभवि: कई नरे श आपके िवचारो िे िहमि िो होगे ही ।``

`` नहीं राजन ! मधय आयाव ा िा के नरे श इि बाि िे िबलकुल िनििनि है िक यवन

उन िक पहुँच पाएंगे । वे िो इि गलि िहमी मे है िक कभी यवन यहाँ िक नहीं आ पाएंगे । उनहे इिमे िबलकुल भी रिच नहीं है । जहाँ िक मगध िमाट का पश है , वे धन-मद ,िुरा-िुनदिरयो मे

इिने गहरे डू ब गए है िक उनहे इि बाि का िबलकुल भी भान नहीं है िक उनके राजय मे कया हो रहा है । वे पिभष हो गए है । अनयाय और दरुाचार मे वयसि हो गए है । राजय के लोग एक दि ू रे को लुटने मे लगे हए है । ऐिे मे उनहे अपने राजय की िबलकुल भी िचनिा नहीं है ।`` `` िो आचाया ! आप हाली हाि ही लौट आए है ।``

`` हाँ राजन ! िमाट नंद ने मेरे िाि जो दवुयवहार िकया है उि दवुयवहार िे मै

िवििप हूँ । मेिेरे हदय मे उि दवुयवहार की जवालामुखी धधक रहा है और इि जवालामुखी का

लावा नंद को िमपूणि ा : नष करके ही रहे गा । यह जो खुली हुई िशखा दे ख रहे है न आप , यह उनहीं के दषुकाया का पिरणाम है । अब यह िब ही बंधेगी जब नंद वंश का िवन ा ाश होगा ।``

``लेिकन यह कैिे िंभव होगा आचाया षोषो एक ओर भारि पर यवन आकमण

करने के िलए उिवाले हो रहे है और दि ू री ओर हम ही आपि मे लड़ने को आिुर भी है । ऐिे मे इि दे श की रिा करना किठन पिीि हो रहा है आचायव ा र ।``

`` हाँ राजन ! हमे पिमि: यवनो को भारि मे पवेश करने िे रोकना होगा । उनहे

इि भारि भूिम िे हटाना होगा । ितपिाि ही हम आपिी झगड़े िनपटाएंगे । आज जो िबिे अहं

मुदा है वह है िकि िरह िे ििकनदर को भारि िे बेदखल करे । जब िक हम िब राजय एक होकर शिकिमपनन नहीं होिे ििकनदर को परासि करना किठन हो िकिा है । ``

`` आचायव ा र ! ििकनदर का दबाव बढ़िा जा रहा है । उिने हमे केकयराजय को

िििशला के अधीन करने के िलए अपना अनुचर भेजा िा । यिद हम ऐिा नहीं करिे िो वह केकयराजय को कुचल दे गा । यह उिकी धमकी ही िमझो आचाय।ा``

`` राजन! अब िक मै अपनी इचछानुिार अनय राजयो िे िहायिा के िलए जािा

रहा िकनिु िकिी राजय का पिििनिध न होने के कारण मेरी मंतणा को िकिी भी राजय ने सवीकार करना उिचि नहीं िमझा । िभी राजय अपना-अपना राग अलाप रहे है । िबना िकिी अिधकार के

मै िकिी अनय राजय पर अिधक दबाव नहीं डाल िकिा और न ही अिधक अनुरोध कर िकिा ।`` `` आचायव ा र ! मै आपका आभारी हूँ िक आपने िबना मेरे अनुरोध के मेरी ओर िे

िहायिा के िलए मगध िमाट िे िहायिा पाप करने का पयाि िकया । भले ही वह पयाि

अििल रहा हो िकनिु मै आपका बड़ा आभारी रह गया । मै चाहिा हूँ िक आप केकय राजय का अिधकार पत लेकर अनय राजयो िे िहयोग की अपील करे । ``

`` चलो , यह भी कर के दे ख लेिे है । यिद ििल हुए िो अतयोतम होगा अनयिा

मेरे िशषय चनद के पाि लगभग पांच िहस िेना की वयवसिा िो है ही । भले ही यह िेना ििकनदर की िेना के मुकाबले कुछ भी नहीं िकनिु मेरे मागद ा शन ा मे वह अनोखा पराकम िदखा िकिी है ।`` `` मै आपकी वयवसिा और मंतणा िे अिभभूि हुआ आचायव ा र ! मंतीवर अननि

आपको अिधकार पत दे गे । आप शीघ ही अपनी अगली याता पारं भ कर दे । आपकी याता की िारी वयवसिा केकयराजय की ओर िे होगी ।``

`` धनयवाद राजन ! अब मुझे जाने की आजा िदिजए ।`` `` आजा नहीं आचायव ा र बिलक अनुरोध......`` `` आपका कलयाण हो राजन !`` केकयराज पुर मेरी मंतणा िे िहमि हुए । मंतीवर अननि ने अिधकार पत दे

िदया । याता की िारी िैयािरयाँ भी कर दी । लेिकन मुझे िवािाधक िचनिा चनद और िुदामा की हो रही िी । मेरा हदय उनिे भेट करने के िलए वयाकुल हो रहा िा । मै अब केकयराजय मे होने के

कारण अिधक िुिरिि महिूि कर रहा िा । केकयराजय के अििििगहृ मे िवशाम करने के दौरान िििशला िवदापीठ का एकअनुचर आकर मुझिे िमला । उिने बिाया -

`` आचायव ा र ! िहमािद नाम की युविि शिशगुप िे जा िमली है । वह िंभवि:

पहले िििशला िवदापीठ मे आया जाया करिी िी । मुझे ऐिा पिीि होिा है िक कहीं वह हमारी िारी गुप िूचनाएं गांधार नरे श शिशगुप को दे रही होगी । ``

`` लेिकन िुमने िो बिाया िा िक चनद ,िुदामा और उिके िािियो को िचेि करने मे िहमािद का बड़ा िहयोग रहा और अब वह हमारे िवरद कैिे हो िकिी है । मुझे लगिा है वह अवशय ही शिशगुप और ििकनदर के गुपचर िवभाग मे िमलकर हमारे िहयोग का मागा पशसि कर रही होगी ।``

`` यह िो ितय है िक उिी युविि ने चनद ,िुदामा और िािियो को िचेि कर

िदया िा अनयिा ििकनदर अब िक िभी को मतृयु दे चुका होिा । मुझे लगिा है वह युविि हमारे िहि मे ही काया कर रही होगी ।``

`` िनििि ही । लेिकन अब वह युविि है कहाँ षोषो`` `` शायद गांधार मे ....``

अनुचर बिाकर चला गया । मेरा मन एक बारगी िहमािद िे िमलने के िलए

वयाकुल हो गया । िहमािद िे िमले कािी लमबा िमय वयिीि हो गया है । वह भी अवशय ही िमलने के िलए वयाकुल हो रही होगी । यिद उिका मुझिे पेम नहीं होिा िो वह इिना बड़ा खिरा मोल नहीं लेिी । दशुमन के िशिवर मे पवेश कर िारी गुपवािाए ा ं मुझ िक पहुँचाना इिना िरल नहीं है । मै िहमािद के िहममि के िमि नमन करिा हूँ ।

अननि शमाा ने मुझे अिधकार पत दे िदया । याता की िारी िैयािरयाँ भी कर दी ।

मुझे लग रहा िा िक यिद मै राजिी िैयारी के िाि याता करँ िो िकिी भी िमय िकिी भी पकार

का िंकट आ िकिा है । इििलए राजिी याता के सिान पर सवयं ही अपने सिर िे याता पारं भ कर दी । अनेक राजयो की याताएं करने के िलए बड़ी ििकािा की आवशयकिा होिी है । कहीं भी कुछ

भी ििटि हो िकिा है । अि: मैने राजिी याता को सििगि कर सवयं पैदल चलना उिचि िमझा । कठ गणराजय पहुँचने मे मुझे िपाह भर का िमय लगा । कठ गण नरे श इनद का

भवन दे खकर मै आिया चिकि रह गया । अनेक िुिवधाओं िे युक भवन के पवेश वदार पर ही

िखि पहिरयो को दे खिे ही लगा िक यह िशक राजय है और इि राजय िे अवशय ही िहायिा पाप

हो िकिी है । मै कठगणराजय के महामातय िे िमला और उनिे कठ नरे श िे िमलने की बाि की । महामातय ने िुरनि ही िहमिि दे दी और िमलने का िमय िनधािारि कर िदया ।

कठगण नरे श इनद के दरबार मे अनेक िभािदो के िाि मै भी कठ नरे श के पाि

वाले आिान पर बैठा । कठ नरे श इनद बोले-

`` कठ गणराजय मे आपका सवागि है आचाया चाणकय । हमने आपकी पशंिा के

चचे दरू-दरू िक िुने है । किहए मै आपकी कया िेवा कर िकिा हूँ । आपके िवदापीठ के िलए ,जो भी कठ गणराजय िे बनेगा ,िेवा के िलए ितपर है ।``

`` राजन ! अब मेरा िवदापीठ नहीं रहा । आपको जाि होगा िक ििकनदर ने

गांधार पर आकमण कर िििशला को अपनी अधीन कर िलया है । उि िमय मै िििशला मे नही िा । दे शाटन करिे हुए मगध की याता पर िा । लौटकर दे खा िो गांधार पर ििकनदर की िवजय

पिाका िहरा रही िी । िििशला राजधानी मे ििकनदर की िेना ने छावनी बना डाली और िििशला िवदापीठ को िहि-पहि कर डाला । इिी िरह अगर यवन हमारी भारि भूिम पर आकर राजयो को परािजि करिे रहे गे िो हमारे भारिवषा का भिवषय कया होगा । मै आज आपके िमि

केकयराज िे अिधकार पत पाप कर आपिे िहयोग की आकांिा िे आया हूिूँ और मुझे िवशाि है कठ गणराजय हमे िनराश नहीं करे गा। ``

`` हम आपका अिभपाय नहीं िमझे आचाया । आपिे िनवेदन है िक कृ पया

िवसिार िे अपनी बाि रखे ।``

`` राजन ! हम आपिे केकयराज की ओर िे िहायिा के िलए अनुरोध करिे है ।

यवन िमाट ििकनदर ने िविसिा के दोनो पठारो पर अपनी िेनाएं िैनाि कर रखी है । ििकनदर कभी भी केकय पर आकमण कर िकिा है । केकयराज पुर अवशय ही ििकनदर िे बराबरी का

शिक पदशन ा नहीं कर पाएंगे और परािजि भी हो िकिे है । ऐिी िसििि मे यिद कठ गणराजय गांधार पर आकमण पर अपने अिधकार मे ले ले िो केकयराज को आपका यह िहयोग समरणीय रहे गा । जब आप गांधार पर आकमण करे गे उिी िमय ििकनदर का धयान केकय िे हटकर

गांधार की ओर जाएगा और ऐिे मे केकयराज ििकनदर पर अपनी पूरी शिक िे आकमण कर दे गे । अनायाि इि आकमण िे ििकनदर परािजि हो जाएगा और हम यवनो को िविसिा के पार िे ही उिे लौटाने मे ििल हो जाएंगे । इि िरह यवनो का भारि मे पवेश किठन हो जाएगा और िििशला पर आपका आिधपतय सिािपि हो जाएगा ।``

`` आचायव ा र ! आपका किन ितय है लेिकन यिद ििकनदर अपनी कुशाग बुिद िे

गांधार को बचा ले गया और िाि ही केिेकयराज पुर को परािजि कर ििनध कर ली िो ऐिी

िसििि मे कठ गणराजय का कया होगा । िवकट िसििि उतपनन हो िकिी है । आचायव ा र ! हम

अपने राजय के िवसिार को लेकर यिद ऐिा कर बैठे िो हो िकिा है िक हम कठ गणराजय को भी िंकट मे डाल दे गे , ऐिा हो िकिा है । िब कया होगा । मेरे िवचार िे इि िरह हम यवनो को भारि पवेश का आमंतण ही दे रहे होगे ।``

`` राजन ! आपका किन यिोिचि है िकनिु यिद हम िमपूणा भारि वषा को धयान

मे रखे िो सपष हो जाएगा िक हम अपने िलए िो लड़ ही रहे है िकनिु िाि ही भारिवषा की रिा के िलए कुछ बिलदान भी दे रहे है । हमारा यह बिलदान वयिा नहीं जाएगा राजन ! अिपिु हमारा बिलदान िािक ा ही होगा । ``

`` नहीं आचायव ा र ! यवन िमाट ििकनदर अकेला नहीं है उिके िाि आंिभ और

उिकी िेना भी है । आंिभ पिमि: ििकनदर का िहयोग िो करे गा ही । वह सवयं भी भयभीि है

उि पर ििकनदर का दबाव अिधक है । इििलए इि िरह यिद हम दोहरा काया िमपािदि करिे है िो हमे माि ही खानी पड़ िकिी है ।``

`` िकनिु नरे श ! आप अकेले नहीं है । मै सवयं आपके िाि रहूँगा । मेरा िशषय

चनद और उिकी पाँच िहस िेना भी आपके िाि होगी । मै चाहिा हूँ िक यवनोिे को भारि मे

पवेश ही नहीं िदया जाय और जो यवन भारि वषा मे पवेश कर चुके है उनहे इि दे श िे िनषकाििि कर िदया जाए । िजििे भारि की मयाद ा ा और गौरव बना रहे गा । ििलहाल हमे आपिी मनोमािलनय िे ऊँचा उठना होगा िब ही इि योजना मे ििल हो पाएंगे ।``

`` आचायव ा र ! मै िमझिा हूँ कठगणराजय को इि पचड़े मे नहीं पड़ना चािहए ।

हम िर बैठे िकिी पकार के षड़यंत मे उलझना उिचि नहीं िमझिे ।``

कठ नरे श िे अनेक िकोZ-िविकोZ के बाद भी पिरणाम िकारातमक पिरलििि

नहीं हुए । मै िनरतर हो गया । मैने झुककर कठ नरे श को पणाम िकया और पसिान करने की

अनुमिि मांग कठ राजदरबार िे उठकर चल िदया । यह िमझना -िमझाना किठन हो रहा िा

िक जब िक हम पि ृ क-पि ृ क राजय होकर रहे गेिे िब िक यवन की दिष भारि वषा पर लगी रहे गी । यवन चाहिे िे िक वह भारिीय नरे शो को आपि मे लड़वाकर एक-एक कर िभी राजयो पर

अिधपतय सिािपि कर दे । भारिवषा की वैभविा को यवनगण पूवाग ा ह की दिष िे दे खने लगे िे । वे भारिवषा मे पवेश कर यहाँ की अकूि वैभविा एवं िमपननिा को िगिहि कर उिका उपभोग करने के िाि-िाि यवन ले जाना चाहिे िे । मै िचिनिि और वयाकुल हो उठा । यह अचछा हुआ िक कठ नरे श के हदय मे दरुागह नहीं उपजा अनयिा कुछ भी अिपय ििटि हो िकिा िा । 00 कठ गणराजय की िीमा पार कर मै पैदल ही चला जा रहा िा । मेरी िशखा मुझे बार-बार नंद वदारा िकए गए अपमान को समरण करा रही िी । िीमा पार कर मै एक िरोवर के

पाि ठहरा । बहुि पुराने वस धारण िकए । मुख पर रािायिनक पदािा लगाकर अपना वणा बदल

िलया । ििर पर बहुि मैला-कुचैला िािा बांधा और चल िदया । िहिा मुझे िकिी नारी कणठ के सवर िुनाई िदए । वह िंभवि: कुछ असपष िौर पर बड़बड़ा रही िी । कुछ अशारोही िरपट भागे जा रहे िे । शायद वह नारी इन अशारोिहयो िे बचने का पयाि कर रही िी । अशारोही मेरे पाि आए । मेरी ओर दे खा और आगे बढ़ गए । नारी कणठ मनद पड़ गया । मै िठठक गया । िरोवर

िकनारे नारी की छाया िी पिीि हुई । वह िरोवर मे उिर पानी पी रही िी । उिका गौरवणा और

िुनहरे केश दे ख मुझे ऐिा आभाि हुआ मानो यह िहमािद ही हो । मैने िेजी िे उिकी ओर लपका । शीघ ही उिके पाि पहुँचा । वह नेत बनद कर िरोवर के िकनारे पतिर पर लेटी िी । मै उिके

िबलकुल पाि गया । उिे दे खिा ही रह गया । अरे , यह िो िहमािद है । मै उिी पतिर पर बैठा । शायद उिे मेरा इि िरह अनायाि आना जाि नहीं हुआ हो । वह मानो अचेि िी पतिर पर पड़ी

रही । मैने उिके मािे पर हाि रखा । वह िेजी िे िबरा कर उठ बैठी । मुझे नख िे िशख िक दे खा । वह पहचान नहीं पाई , उठ खड़ी हुई । बोली -

`` िमा करे ! आप कौन है और इि िने वन मे यहाँ िरोवर िकनारे मेरे पाि कैिे

आए षोषो मुझे भय है िक आप मेरे शतु िो नहीं है षोषो``

`` नहीं दे वी िहमािद ....मै िुमहारा िवषणु....`` `` िवषणु.......सवर िवषणु जैिा ही िकनिु वासिव मे आप है कौन...षोषो`` `` िििशला िवदापीठ का आचाया चाणकय भदे ि्र ! `` `` िवषणु ! मेरे िवषणु !!``

िहमािद मेरे वि िे िलपट गई । उिके नेतो िे अिवरल अशध ु ारा बह िनकली । वह बड़ी दे र िक इिी िरह िूट-िूटकर रोिे रही । मै उिके ििर और पीठ पर सनेिहल हाि िेरिे रहा । मेरा हदय दिवि हो गया । इिने लमबे िमय के पिाि दै वयोग िे अनायाि िहमािद िे िमलकर

ऐिा पिीि हो रहा िा मानो हदय को िवशाम िमल गया हो । हदय की पयाि और नारी का कोमल

सपशा , पुरष के िलए बहुि अहं बाि है । पुरष कभी भी नारी के िबना नहीं रह िकिा । उिे नारी के कोमल सपशा और सनेह की आवशयकिा होिी है । उिी िरह कोई भी नारी िबना पुरष के रह नहीं िकिा । उिे भी पुरष के दढ़ भुजपाश और कोमल सनेह की आवशयकिा होिी ही है । ईशर ने पकृ िि और पुरष के एक दि ू रे का पूरक बनाया है । पकृ िि के िबना पुरष अधूरा है िो पुरष के

िबना पकृ िि भी अधूरी है । यह िवपिरि िलंग एक दि ा के केनद है । कुछ िो ऐिा है ही ू रे के आकषण िजििे िक दोनो एक दि ू रे की आवशयकिा को महिूि करिे है । दोनो एक दि ू रे के पेम,आिलंगन

,िहवाि और सनेह के िलए आिुर रहिे है ।यह पिकया अनािद काल िे िनरनिर पवाहमान होिे आ रही है और अननि काल िक पवाहमान होिे रहे गी ।

बड़ी दे र िक िहमािद का सनेिहि सपशा मेरे रोम-रोम को रोमांिचि करिा रहा िो

वह भी मेरे बाहुपाश मे बंधकर सनेह और सपशा के िुख-िागर मे िैरिे-उिरिे रही । मैने नहीं िोचा िा िक िहमािद िे इि िरह अनायाि भेट हो जाएगी । भला हुआ उििे भेट हो गई िकनिु यह

िमझ मे नहीं आया िक िहमािद िििशला मे शिशगुप जा िमली िी िो उिकी यह दयनीय िसििि कैिे हो गई षोषो मै बहुि िमय िक यह िोचिे रहा ।

जब िहमािद के हदय का िूिान िम गया और वह िामानय हो गई िब वह मुझिे

पि ृ क हो कर िटसि मुदा मे आ गई । बोली-

`` िुमने यह कया हाल बना रखा है षोषो``

`` िसििियाँ वयिक को कुछ भी करने के िलए िववश कर दे िी है षोषो`` `` मै िमझी नहीं ...``

`` अचछा पहले यह बिाओ , िुम इि वीरान वन मे इि िरह कयो वयाकुल हो भागी जा रही िी षोषो ऐिी कौन िी िवपदा आ पड़ी िजििे वे अशारोही िुमहारा पीछा कर रहे िे षोषो``

`` िवषणु , िुम जानिे हो । िुमहे िब जाि है िवषणु । मुझे िुदामा ने िुमहारे आदे श

पर गुपवािाा के िलए िनयुक िकया है । मै गांधारराज मे गुपचर होकर िििशला मे शिशगुप के

दरबार मे जा पहुँची । दरबार मे हो रही िारी हलचल की जानकारी मै िुदामा को दे िे आ रही िी ।

कल राि शिशगुप और ििकनदर की गुप मंतणा मै लुकछुप के िुन रही िी िक अनायाि ििकनदर के िकिी गुपचर ने मुझे दे ख िलया । शायद वह िमझ गया िा िक मै गुप मंतणा िुन रही हूँ । उिे मुझ पर आशंका हुई और उिने शिशगुप िे िशकायि कर दी । वे अशारोही शिशगुप के आदे श पर

मुझे बनदी बनाने के िलए मेरा पीछा कर रहे िे । जाने कैिे उनहोने िुमहे दे खा और आगे बढ़ गए ।`` `` अब िचनिा की बाि नहीं दे वी । मै िुमहारे िाि हूँ । अचछा , यह बिाओ चनद

और िुदामा कहाँ है ।मुझे उनिे भेट करना अतयनि आवशयक है । अब िमय शेष नहीं है । शीघ ही

कुछ करना होगा अनयिा यवन िमाट ििकनदर अपनी िवशाल िेना के िाि भारिवषा को कुचलिे हुए आगे िनकल जाएगा और हम दे खिे ही रह जाएंगे । ``

`` लेिकन िुम अकेले कया कर पाओगे िवषणु षोषो आयाव ा िा के नरे शो को यह काया

करने दो । ``

`` आयाव ा िा का कोई भी नरे श िहमि नहीं है । कोई भी राजय पििमोतर मे हो रही

िटनाओं के पिि ििहषणु नहीं है । कोई भी नरे श िहयोग के िलए िैयार नहीं है । िभी का एक ही मि है िक पििमोतर मे हो रही हलचल िे उनका कोई िरोकार नहीं है । यिद पििमोतर का कोई नरे श परािजि होिा है िो उिका खािमयाना भी वो ही भुगिे । वे यह नहीं िोच रहे िक यवन

पििमोतर िे पवेश कर धीरे -धीरे िमपूणा आयाव ा िा को अपने अिधकार मे ले िकिे है । यवनो की िवशाल िेना और ििकनदर के नेितृव मे वह भारिवषा पर अपना परचम िहराना चाहिा है । यिद हमने कोई उिचि नहीं िोचा िो हम , हम नहीं रहे गे ।``

`` िवषणु ! चनद और िुदामा युद िवदा मे िनपुण हो गए है । इिना ही नहीं उनके

िैिनक भी अब अिधक ििम और जांबाज हो गए है । कयो न हम सवयं चलकर केकयराज की

िहायिा करे । यिद हम ििकनदर को वापि करने मे ििल हो गए िो हमारा पयाि िनरिक ा नहीं जाएगा और यिद हम परािजि हुए िो........``

`` नहीं दे वी ! हम पराजय सवीकार करना नहीं चाहिे । हमे ऐिा चकवयूह िैयार

करना होगा िजिे भेदकर कोई बाहर न जा िके । हमारा चकवयूह िोड़ने का िाहि कोई नहीं कर िकिा , यह िनििि है । बि, आवशयकिा है िाहि और शौया की । मै पहले केकयराज पुर िे

िमलकर आगे की योजनाएं बनाना चाहिा हूँ । उिके बाद चनदरर के पाि जाकर वयवसिा करनी होगी । अचछा दे वी , यह बिाओ, अब िुम कया िमाचार लाई हो ।``

`` यवनराज ििकनदर ,शिशगुप और आंिभ केकयराज पर आकमण की िैयारी कर चुके है । वे अब हमे िदगभिमि करने की योजना बना रहे है । वे चाहिे है िक िजि िकिी िरह िे केकयराज और अनय राजयो को मललयुद मे उलझा िदया जाय और जब वे िारे के िारे

मललयुद मेिे उलझ जाएंगे िब वे अनायाि िविसवा को पार कर केकय पर आकमण कर यवन िामाजय के अधीर कर लेगे । `` `

` अचछा दे वी ! मै केकयराज की ओर जा रहा हूँ । िुम शीघिा िे चनद और िुदामा

के पाि पहुँचो । हाँ ,यह रत-मंजूषा चनद को दे दे ना और कहना िक इि रािश का उपयोग िेना के िलए करे । मै शीघ ही चनद िे आ िमलूँगा ।``

मैने वह रत-मंजूषा िहमािद के पाि दे दी । मेरे पसिान करने िे पहले िहमािद एक

बार ििर मेरे वि लग गई । उिके नेतो मे आँिू छलक आए । मैने उिके कपोलो पर हलका िा चुमबन िदया । वह आशसि हुई । उिने मेरे चरण सपशा िकए । मै गनिवय की ओर चल पड़ा । िहमािद मुझे िब िक िनहारिी रही जब िक मै उिके दिष िे ओझल नहीं हुआ ।

मै चनद और िुदामा िे िमलने के िलए वयाकुल हो रहा िा । िहमािद के कहे अनुिार वे वनो मे िुरििि है । मै इि दिुवधा मे पड़ गया िक पहले िकि ओर जाऊँ । यिद चनद

और िुदामा की खोज मे िनकलिा िो इधर केकयराज पर ििकनदर का दबाव बढ़ जाएगा और यिद केकयराज की ओर जािा िो इि ओर चनद िकिी भी िमय ििकनदर वदारा ििरे जा िकिे है ।

िनणय ा लेने मे किठनाई हो रही िी िकनिु िनणय ा लेना होगा । बहुि अिधक िचनिन के बाद इि िनणय ा पर पहुँचा िक पिमि: चनद और िुदामा िे भेट की जाए ।

िहमािद िे िवदा लेने के बाद कठ गणराजय की िीमा पार कर मै केकयराज की

िीमा मे पहुँचा । केकयराज की िीमा पर चनद के गुपचर िे भेट हुई । उिने बिाया-

`` आचायव ा र ! चनद शीघ ही आपिे भेट करने के िलए आिुर है । आप शीघ चनद

िे भेट कर ले । आइए मेरे िाि चिलए । ``

मै गुपचार के िाि चल िदया । िारा िदन चलिे-चलिे िनधया िमय चनद और

िुदामा िे भेट हो पाई ।मुझे दे खिे ही चनद और िुदामा मे मानो नवीन पाणो का िंचार हो आया। वे उतिािहि हो उठे । कमश: दोनो ने चरण सपशा िकए । चनद बोला-

`` आचायव ा र ! हमारा आशम भूिमसि हो गया है । ििकनदर ने गांधार पर

आकमण कर अपने अधीन ले िलया और िििशला के राजभवन पर यवन-पिाका िहरा दी गई। आंिभ परािजि हो ििनध कर बैठा । ििकनदर ने आंिभ को नरे श के पद िे पदचयुि कर शिशगुप

को िििशला का कायभ ा ार िौपा । यवन अब भारि भूिम पर पैर रख चुके है । यिद दे वी िहमािद हमे शीघ ही िचेि नहीं करिी िो हम भी ििकनदर वदारा मारे जा चुके होिे या कैद हो चुके होिे ।``

`` वति! हमे यह िब जाि हो चुका है । हम जानिे है िक यवन िमाट ििकनदर भारि भूिम पर पैर रख चुका है । उिने न केवल गांधार पर अिधकार पाप िकया बिलक अनय छोटे -

छोटे राजयो को भी परािजि कर अपने अधीन कर िलया है । अब वह केकयराज पर दिष लगाए हुए है । िविसिा के उि पार ििकनदर अपनी िवशािाल िेना के िाि िाि ् लगाए बैठा है । वह िकिी भी िण केकयराज पर आकमण कर िकिा है । उिने कई बार कोिशश की िक केकयराज पुर

उनिे ििनध कर ले िकनिु वह भयभीि है िक कहीं उिे कैद न कर िलया जाए । यिद इिी िरह

ििकनदर भारि के राजयो को परािजि कर या उिने ििनध कर लेगा िो वह धीरे -धीरे पूरे आयाव ा िा पर अिधकार कर लेगा ।``

`` अब हमे कया करना है । आयाव ा िा के अनय राजयो के िमि गठबनधन का

पसिाव रखा जाय िो उतम होगा । जब िारे राजय एक होकर िंगिठि जो जाएंगे िब िकिी भी यवन का िाहि नहीं होगा िक वह भारि भूिम की ओर दिष उठाकर दे खे ।``

`` िुम ठीक कह रहे हो चनद िकनिु वति , यह दे ख रहे हो िक मेरी िशखा ,यह इिी

पिकया का दषुपिरणाम है । मै मगध िमाट नंद के िमि इिी िरह का पसिाव लेकर गया िा

िकनिु उिने इिका अविर ही नहीं िदया और भरी िभा मे मेरा अपमान कर बैठा । महामातय

रािि की कुिटलिा के चलिे मगध मे कुछ भी िंभव नहीं है । वह िो िुदामा ने अचछा ही िकया िक महामातय रािि की चाल को िविल कर ितकालीन महामातय शकटार को अंधकूप िे िनकाल

िलया अनयिा बहुि अनिा हो जािा । वति ! मेरी यह िशखा इिीिलए खुल रह गई है िक उिने मेरी िशखा िखंचवाकर मेरा अपमान िकया है । अब यह िशखा िब ही बंधेगी जब मगध िमाट नंद का इि धरिी िे नाम और िनशान िमट जाएगा । `` पालन करे गे ।``

`` आचायव ा र ! हम पण करिे है िक इि अिभयान मे हम आपके आदे श का पूरा चनद और िुदामा का यह िंकलप मेरे िलए नई जीवनिुधा ले आया । चनद बोले-

`` लेिकन आचायव ा र ! इि ओर केकयराज को बचाने के िलए हमे कया करना होगा । हम आपके आदे श की पिीिा कर रहे है । दे वी िहमािद शीघ ही कोई िवशेष िमाचार लेकर आएगी ।``

`` दे वी िहमािद िे मेरी भेट हो चुकी वति ! िकनिु वह अब िक कयो नहीं यहाँ िक

पहुँची । जबिक कल ही उनिे हमारी भेट हुई िी । हमने िुमहारी िहायिािा रत-मंजूषा उनही के हािो िभजवाई है ।``

`` कहीं ऐिा िो नहीं िक वह ििर िकिी िंकट मे ििर आई हो । हमे उनकी

िहायिा करनी होगी ।``

`` नही , वह िाहिी है और अपना अिभयान पूरा करके ही आएगी । वैिे उनहोने हमे कल ही गोपनीय िमाचार दे िदया है । लेिकन यवन िेना के कुछ िैिनक उनका पीछा कर रहे िे । वे अब िंभवि िुरििि है और शीघ ही िुमिे िमपका करने वाली है ।`` `` हमे आगे की योजना बिलाइए आचायव ा र ।``

`` ििकनदर और शिशगुप की िेना मे हमारे गुपचर िनयुक होने चािहए । वे पतयेक िण की िूचना हमे दे िे रहे गे । हमारे िारे िैिनक युद-िवदा मे िनपुल हो गए होगे । युदअभयाि मे कमी नहीं होनी चािहए । हाँ , एक बाि और परािजि नरे शो के िेना नायको पर कड़ी दिष रखी जाय । वे ििकनदर के आदे श का पालन ितपरिा िे करे गे । वे केकयराज पर िाि

लगाकर आकमण कर िकिे है । हमारी खोजी-दिष होना चािहए िािक िकिी भी पििकूल िसििि का िामना शीघिा िे िकया जा िके । हमे इि युद मे केकयराज को िहयोग दे ना होगा । इिके

िलए चनद िुम और िुदमािा िुम अपने िैिनको के िाि पिििण िैयार रहे । जब भी केकयराज को हमारे िहयोग की अपेिा होगी हम ितिण उपिसिि हो िके ।``

िारी िसििि िे चनद और िुदामा को अवगि करािे हुए जब मै िंिुष हुआ िब मै

आगे की याता के िलए चल पड़ा । मैने िोचा िनकट के राजयो िे भी िमपका कर िहयोग मांगा जाना उिचि होगा ।

कठ गणराजय िे अििल वािाा मेरे िलए िुखद नहीं रही । कठगणराजय िे

िनकल कर मै अिभिार ,आगेय ,विािि ,पुषकराविी ,िुदक और अनय राजयो के नरे शो िे भी िमल आया िकनिु वे िारे राजय नरे श केवल अपने िक ही िीिमि रहे । दरूदिष उनकी नहीं िी । वे केवल अपने राजय के िहि िचनिन मे ही लगे रहे । कोई अनुकूल पिरणाम नहीं िनकले । अनिि: वापि केकयराजय लौट आया ।

लगभग िनकटसि िभी राजयो िे हुई चचाा की िवसिि ृ जानकारी केकयराज पुर

को दी । उधर ििकनदर िविसिा के पाि अपनी िवराट िेना िलए डटा हुआ है और इि ओर पुर की मुटठी भर िेना । पुर िचिनिि हो गए ।

िविसिा पार ििकनदर ने अपनी िवराट िेना का िशिवर िान िदया । वह अकेला

नहीं िा । उिके िाि आंिभ और शिशगुप भी अपनी िेना के िि िैनाि िा । आंिभ और शिशगुप का िाि होिे हुए भी ििकनदर ने यवन िेना के िलए पि ृ क िे यवन युवक िििलपि को यवन िेनापिि बना िदया । आंिभ और शिशगुप को िििलपि के िनदे शानुिार िेना िंचालन का

कायभ ा ार िौपा गया । पुर की िचनिा सवाभािवक पिीि हो रही िी िकनिु ििर भी अननि शमाा की भूिमका िंिदगध पिीि हो रही िी । इिके पिाि भी पुर को िहायिा दे ने का मैने िंकलप ले िलया । पुर बोले-

`` आचायव ा र ! मुझे आपके िहयोग की अपेिा है िकनिु यह सपष नहीं है िक आप मेरी िहयिा िकि िरह िे करना चाहे गे । आपके िशषय चनद की िेना मुझे िकि िरह उपयोगी ििद होगी । कया चनद की िेना ििकनदर की िेना का टककर ले पाएगी षोषो``

`` आपकी िचनिा सवाभािवक है केकय नरे श िकनिु मै आपको आशसि करना

उिचि िमझिा हूँ िक मै युद मे आपके िाि मागद ा शन ा और िहयोग के िलए रहूँगा । रही चनद

और उिकी िेना का िहयोग ,उिके िलए आप िनििनि रहे । होगा यह िक युद-भूिम मे िजि भी ओर आपकी िेना को िहायिा की आवशयकिा होगी चनद और उिकी िेना उि ओर आपको

किटबद िदखाई दे गी । बि , हमे आवशयकिा है आपके दढ़ िंकलप िाहि की । आप ज़रा भी िडग

गए िो यह युद हमारे िाि िे िनकल भी िकिा है । इिके िलए आप िचेि रहे । शतु िकिी भी रप मे आपके िमि आ िकिा है ।``

`` अब हमे कया उिचि मागद ा शन ा होगा षोषो `` `` आपकी चकवयूह इि िरह हो िक उिमे शतु िो पवेश कर िो पाए िकनिु उिमे

िे बाहर वापि न िनकल पाएं । िबिे आगे पैदल िेना ,दोनो ओर गजिेना और बीच मे अशिेना होना आवशयक है । िंभवि केकयराज के पाि पयाप ा िेना होगी ।``

`` लेिकन ििकनदर की िेना िे कम िेना है । िाहि है िो केवल आपके कारण

अनयिा यह युद लड़ना मेरे िाहि िे बाहर ही है । लेिकन जब आप और चनद के िाि पूणि ा : िनपुण िेना है िो मुझे अिधक िचनिा की आवशयकिा नहीं है ।``

`` आप िनििनि रहे राजन ! हम आपको ििर िे आशसि करिे है िक ििकनदर

िनिय ही परािजि होगा । या िो उिे वापि यवन जाना पड़े गा या आपकी शरण मे आना पड़े गा । इिे आप िनििि माने राजन !``

`` मै आपिे आशसि हुआ । हमारे गुपचरो िे जाि हुआ है िक ििकनदर िकिी भी

िमय केकय पर आकमण कर िकिा है । िविसिा के उि पाि अपार यवन िेना और उिका

नेितृव करिा सवयं ििकनदर होगा और इि पार केकय की िेना होगी और हमारे िाि आचाया आप सवयं एवं आपके िशषय चनद के िाि दि ु Z षा िेना होगी !``

`` नहीं राजन ! दोनो िेना आमने-िामने भी हो िकिी है या केवल यवन िेना

िाि लगाकर आकमण कर िकिी है । इिके िलए ही आपको िचेि रहना होगा । चनद की िेना भी इिके िलए वयूह रचना बनाकर ििका रहे गी ।``

पुर को आशसि कर मै िीधे चनद के पाि पहुँचा । िेना का मुआयना िकया ।

चनद ने अपनी िेना को िुगिठि और िनपुण बना िदया िा । वह पिििण ििकािा िे काया करने के िलए िैयार िा । इि बार िहमािद ने जो िूचनाएं एकत की िी वह हमारे िलए अतयनि

महतवपूणा िी । िविसिा पार िे यवन िेना धीरे -धीरे इि पार आकर वनो मे छुपने लगी िी । सवयं

ििकनदर इि पार िने वनो मे िशिवर बनाकर युद के िलए िैयार िा । ििकनदर िे दि ू री ओर

पहाड़ी के पार चनद अपनी िेना लेकर िैयार िा । मैने और चनद ने पहाड़ी पर चढ़कर ििकनदर की िेना का परीिण िकया । उिकी िेना चकवयूह बनाकर युद के िलए पूरी िरह िैयार िी । लेिकन

पुर को इिना भी जाि नहीं िा िक ििकनदर िकि िदशा मे िैनाि है । पहाडी पर खडे -खड़े ही यवन िेना के चकवयूह का पूरा परीिण कर मुझे शीघ ही पुर के पाि जाना पड़ा । िंभवि यह अननि

की ही कोई चाल हो या हो िकिा है अननि अपने गुपचार काया मे पूरी िरह िे ििल न हो पाया हो । पुर आशंिकि िा । मुझे दे खिे ही पुर आलहािदि हो उठा । बोला`` कया िूचना है आचायव ा र षोषो``

`` राजन ! यवन िमाट िकिी भी िमय िाि लगाकर आकमण कर िकिा है । केकय िेना को ििका रहने के िनदे श िदए जाए । वह िकिी भी ओर िे िाि लगाकर आकमण करे गा । चनद की िेना आपके िहयोग के िलए ितपर है । ``

`` आचायव ा र ! मुझे चनद पर पूरा िवशाि है । बि, आप मागद ा शन ा के िलए मेरे

आिपाि रहे । ``

`` ठीक है राजन !`` यवन िमाट के कई िैिनक िविसिा को पार कर इि ओर आ गए िे । चनद के िनदे श पर िुदामा कुछ िैिनको को ले िविसिा के िने वनो मे छुप गए । िविसिा(झेलम नदी) िे लगभग दि कोि की दरूी पर ििकनदर की िेना युद के िलए िैनाि िी । इिी बीच िुदामा अपने िैिनको के िाि राि के अंधेरे मे िविसिा पार कर रहे यवन िैिनको को बीच धार मे ही बाणो की

वषाZ िे धाराशाही करने लगे । कोई भी यह जान नहीं पा रहा िा िक उि पार िे इि पार आनेवाले िैिनक बीच मे कहाँ लुप हो गए । ििकनदर इि योजना िे पूणि ा : अनिभज िा । िुदामा िब िक िविसिा के वनो मेिे िैनाि रहा जब िक उि ओर िे आनेवाले िारे िैराक िैिनक धाराशाही नहीं

हुए । ििकनदर के बाकी िैिनक िविसिा के उिी पार रके रहे िािक आवशयकिा पड़ने पर उनहे इि पार बुलाया जा िके ।

िदन िनकलने को अभी शेष िड़ी बाकी िा िक ििकनदर ने िाि लगाकर केकय

िेना पर आकमण कर िदया । वह इि भूल मे िा िक यवन िेना के चकवयूह िे मजबूि चकवयूह केकयराज की िेना मे बनाया गया होगा । िबिे आगे ििकनदर िा और उिके दोनो ओर पैदल

िेना िी ,जो िलवारो ,धनुषबाणो ,भालो और अनय आयुधो िे युक िी । कुछ पैदल िैिनक गदा िलए मललयुद के िलए भी िैनाि िे । ििकनदर के पीछे अशिेना िी । अशिैिनक िलवारो और भालो िे युक िी और चारो ओर िे गजिेना पर िवार महावि और धनुधाराी िैिनक िे । इनके पाि धनुष के अिििरक , भाले और िलवारे भी िी । इि िरह िे िीनो िेनाएं ििकनदर के

आिपाि िैनाि िी । केकय की िेना मे िबिे आगे पैदल िेना मे दि ु Z षा िैिनक िे जो कूटयुद मे

िनपुण िे । वे शस की अपेिा कूटनीिि िे युद करिे मे पवीण िे । अशिेना के िैिनक भालो और िलवारो िे युक िे । इिके बाद गजिेना िी । भीमकाय गजो के मािे पर लौह कवच बंधे िे ।

महाविो को भी युद के िलए पिशििि िकया गया िा । इिना ही नहीं गजिैिनक सवयं धनुिवद ा ा मे पवीण िे , जो धनुष के अिििरक िलवार , भाले और िवशेष पकार के कंिटले हिगोलो िे शतु पर

पहार करने मे कुशल िे । दोनो ओर की िेना मे िमािान पारं भ हो गया । यवन िेना ,केकय िेना के चकवयूह मे िंििी चली गई । केकय िेना भारी पड़ने लगी । िैकड़ो यवन बाणो के िशकार हुए । गजिेना के िैिनको ने गजब का पराकम िदखाया । यवनो के िैकड़ो अश मारे गए । महाराज पुर धनुिवद ा ा मे बहुि िनपुण िे । वे िजि िरह िे बाणो की वषाZ करिे िे , उि िरह कोई अनय

धनुधाराी नहीं कर पा रहा िा । वे पतयि : ही बाण वषाZ करिे िे । छुपकर वे वार नहीं करिे िे । यही उनका पमुख गुण िा । वे िनहतिे िैिनक पर कदािप वार नहीं करिे िे । उनकी बाण वषाZ के िममुख यवन िेना के पमुख िेनानाक िटक नहीं पा रहे िे । िभी अनाचक ििकनदर का बाण

आकर पुर की बांई जांग मे आ लगा । वे ििलिमला गए । वे िगरिे इिके पहले ही मैने उनहे िंभाला और उनके हाि मे धनुष और भाले िाम िदए । वे शीघ ही िंभल गए और भालो की बेचूक िनशाने

लगाने लगे । िििलपि की दोनो जांगे पुर के भालो िे जखमी हो गई । िििलपि को िायल दे ख अब ििकनदर भी ििलिमला गया । िििलपि उिका भरोिेमनद और वीर िेनापिि िा िकनिु वह मेरे

वदारा बनाए गए इि चकवयूह मे िंििा चला गया । ििकनदर िमझ नहीं पा रहा िा िक वह िकि िरह िे पुर को कैद कर ले । िििलपि को िायल दे ख ििकनदर ,पुर िे जूझ गया । उिने अनेको बाण और भाले एक िाि पुर पर चलाऐ िकनिु वह दे खकर आियच ा िकि हो गया िक उनके िारे

बाण और भाले िनषिल हो रहे है । दि ू री ओर िे आ रहे बाण और भाले ििकनदर की युदकला को

िनषिल कर रहे है । यह चनद िा जो पुर को िहयोग कर रहा िा । ििकनदर ने िोचा इििे बेहिर है पुर के िामने न आकर िाि िे वार करे । वह वहाँ िे हट गया िकनिु चनद ने उिका पीछा िकया । चनद को अपने पीछे आिे दे ख ििकनदर ने आंिभ को याद िकया । आंिभ ििकनदर के आिपाि ही युद कर रहा िा । ििकनदर अब पुर को भिमि करना चाह रहा िा । उिने अपने िवशेष

िेनानायको को िंकेि िदए िक वह अब आतमिािी युद पारं भ कर दे । उिके िेनानायको ने शीघ ही अपना पेिरा बदला और केकय िेना पर आतमिाि हमला बोल िदया । िेना िबखरे लगी ।

लेिकन मै ितिण ही िमझ गया । मैने भी अपने आतमिािी दि ु Z षा िैिनको को पतयुतर दे ने का िंकेि िकया । दे खिे ही दे खिे ििकनदर के आतमिािी िैिनको को मौि के िार उिार िदया । यह दे ख ििकनदर आिया चिकि हो गया । वह िबरा गया । वह केकय के युदचक िे िनकल नहीं पा रहा िा । िसििि दे ख उिने आंभी को बोला-

`` आंिभ ! हमारी िेना को बहुि अिधक ििि पहुँच रही है । जाने कौन िी शिक

हमे आगे बढ़ने ही नहीं दे रही है । ऐिा लगिा है आिमान िे कोई अदशय शिक पुर को िहयोग दे रही है । अब हम अिधक िमय िक िटक नहीं पाएंगे । िंभवि: या िो मारे जाएंगे या बनदी बना

िलए जाऐंगे । अि: िुम जाकर पुर िे ििनध की बाि करो । हमारे िलए इििे अिधक उतम रासिा नहीं हो िकिा । अनयिा हमारे िैिनक इिी िरह मारे जािे रहे गे और हम दे खिे रहे गे ।``

`` आप ठीक कहिे है । मुझे ऐिा पिीि हो रहा है यह युद पुर नहीं लड़ रहा बिलक

कोई और लड़ रहा है । यह अदशय युद पुर के िाहि िे परे है । लेिकन कौन हो िकिा है वह वयिक जो पुर की िहायिा कर रहा है षोषो कहीं ऐिा िो नहीं िक वह वयिक िििशला िवदापीठ का

आचाया चाणकय ही हो । उिी मे इिना िाहि है िक वह युद शिक िे नहीं िकनिु बुिद िे लड़िा है । `` `` आचाया चाणकया .........! नाम िो िुना है । ठीक है । िुम शीघ जाकर पुर िे ििनध की बाि करो । यह िबिे उतम िवचार होगा ।`` `` ठीक है राजन !``

ििकनदर और आंिभ ने आपि मे परामशा िकया । आंिभ अश पर िवार हो दि ु ्रि

गिि िे केकय नरे श पुर के िममुख पहुँचा । आंिभ को िशस आिा दे ख पुर ने उि पर िीविा िे बाणो की वषाZ की । वह बुरी िरह िे िायल हो गया और उिका अश मारा गया । आंिभ अपने

पाण बचाकर भाग खड़ा हुआ । िकिी का भी इिना िाहि नहीं हो पा रहा िा िक वह पुर के िमि जाकर खड़ा हो और उनिे बाि कर िके । आंिभ को बुरी िरह िायल होिे दे ख ििकनदर के पिीने

छूट गए । अब की बार ििकनदर ने िुदक नरे श को पुर के पाि भेजा । िुदक नरे श पैदल ही िबना हिियार करबद हो पुर के िमि जा खड़ा हुआ । दभ ु ागाय िे उि िमय मैने युदभूिम का दि ू रा

मोचाा िंभाल िलया िा । िुदक नरे श को करबद होिे दे ख पुर ने अपना धनुष नीचे कर िलया । िुदक नरे श बोले -

`` महाराज की जय हो । राजन ! मुझे यवन िमाट ििकनदर ने आपके पाि ििनध

के िलए भेजा है । वे आपिे ििनध करना चाहिे है । ``

`` लेिकन कयो षोषो कया उनमे हमिे या हमारी िेना िे युद करने का िामिा नहीं

है या उनहोने अपनी पराजय सवीकार कर ली । यिद उनहोने अपनी पराजय सवीकार कर ली है िो वे आतम िमपण ा कर दे या वापि चले जाए ।``

`` राजन ! यवन िमाट आपकी पतयेक शिा सवीकारने के िलए िैयार है । यिद

आप भी सवीकार करिे है िो दोनो िेनाओं के िलए लाभपद होगा । दोनो ओर के िैकड़ो िैिनक

वीरगिि को पाप हुए है और िैकड़ो िैिनक िायल हो रहे है । युद की इि िविभिषका को आप ही बचा िकिे है । ``

`` यिद यवन िमाट वापि जाने को िैयार हो िो बाि करे । ``

`` ऐिा नहीं है राजन ! वे चाहिे है िक यिद आप ििनध कर ले िो वे आपके िाि िमलकर आयव ा िा के अनय राजयो को परािजि कर केकयराजय के अधीन कर दे गे ।``

`` यिद यवन िमाट केकय गणराजय के िवसिार मे िहयोग दे गे िो हमे कोई आपित नहीं है । लेिकन अगर ििनध मे िनयमो का उललंिन हुआ िो हम उनहे िे यवन वापि जाने के िलए िववश कर दे गे ।`` िदिजए ।``

`` सवीकार है राजन ! अब आप अपनी िेना को पीछे जाने के िलए आदे श दे `` नहीं यह नहीं होगा । पिमि: यवन िमाट अपनी िेना को वापि जाने के िलए

आदे श दे । जब िक यवन िेना वापि नहीं हटे गी िब िक हमारी िेना और हम युद जारी रखेगे ।`` `` ठीक है । जैिा आप उिचि िमझे । मै शीघ ही आपका िंदेश यवन िमाट

ििकनदर के पाि पहुँचािा हूँ।``

िुदक नरे श ने जाकर िारा वि ृ ानि यवन िमाट ििकनदर को कह िुनाया ।

ििकनदर ने शीघ ही यवन िेना को वापि हटने के िनदे श िदए । यवन िेना के वापि हटिे ही केकय िेना भी वापि हटने लगी । युिद भूिम मे इि िरह अनायाि पिरविन ा दे ख मै भािैचकका

रह गया । यह कया हो रहा है षोषो यह जानने के िलए मै गजराज पर बैठ शीघ ही केकयराज पुर के िनकट जा पहुँचा और उनिे इि पिरविन ा के कारण को जानने के िलए पूछा -

`` राजन ! युद भूिम मे अचानक यह पिरविन ा कैिा षोषो कया मै जान िकिा हूँ

षोषो हमारा िारा पयाि िमटटी मेिे िमल जाएगा । हमे युद िे िवमुख नहीं होना चािहए ।``

`` आचायव ा र ! यह िच है िक हमे युद िे िवमुख नहीं होना चािहए िकनिु कूटनीिि

िे चली चाल भी ििलिा की िीढ़ी बन जािी है । यवन िमाट ििकनदर ने हमिे ििनध कर ली है और आयाव ा िा के राजयो को केकयराजय मे शािमल करने का वचन दे चुके है ।``

केकयराज का यह रप और यह नीिि िुनकर मै िवििसमि हो गया । अब मै कुछ

नहीं कर िकिा िा । मै शीघ ही लौटकर चनद के पाि आया । मुझे इि िरह िनराश दे ख चनद बोला -

``आचायव ा र ! आप इि िरह िनराश कयो पिीि हो रहे है षोषो कया मै आपकी

िनराशा का कारण जान िकिा हूँ षोषो``

`` वति ! कुछ न पूछो । केकयराज पुर ने यवन िमाट ििकनदर िे ििनध कर ली

है । जो भय मेरे अनिर मे इिने िमय िे बिा हुआ िा , वही हुआ है । यवनो िंने भारि मे अपने पैर जमाना पारमभ कर िदए है । हमे आशंका है िक अब यवन इन भारिीय नरे शो िे िमलकर

पड़ौिी भारिीय राजयो पर आकमण करे गे । उनहे परािजि करे गे और अपने अधीन कर लेगे ।

बहुि अििोि के िाि कहना पड़ रहा है िक भारिीय नरे श अपने ही भारिीय नरे श के िवनाश का

कारण बन रहे है । इिना ही नहीं वे अपने पड़ौिी भारिीय नरे श का िवनाश दे खकर पिनन भी होिे

है िे । गांधार नरे श ,केकयराज और अनय राजय यह भूल कर रहे है िक ये यवन हम भारिियो को वापि मे ही लड़वाकर हमारी शिक िीण कर रहे है और यवन हमारी िीण शिक का लाभ उठाकर भारि की िमपदा का दोहन कर यवन िामाजय का िवसिार कर रहे है । यह द ु:खद िसििि है । ``

`` आयव ा र ! अब हमे कया करना चािहए षोषो िजििे िक हम िंगिठि होकर इन

यवनो को भारि िे वापि लौटने के िलए िववश कर िके षोषो``

`` बि , एक ही उपाय है । वह यह िक यवन िेना मे विृत पानेवाले भारिीय

िैिनको को इन यवनो के िवरद भड़का दे । इनहे भारिियो का शतु कहकर उनका िवरोध करे िे । उनहे यह बिाएं िक ये यवन हमारी एकिा को खिणडि कर हम पर अिधकार सिािपि करने मे

िंलगन है । जब िक यवन भारि मे रहे गे हमेिे आपि मे लड़वािे मरवािे रहे गे और हमारी शिक िीण कर हम पर शािन करिे रहे गे । हमे गुलाम बनाएं हुए है । इििे अिधक उिचि उपाय

िंभवि: विम ा ान मे नहीं है । दि ू री ओर चनद िुमहे अपनी िैनय-शिक बढ़ानी होगी । िंभवि:

िहमािद ने िुमहे रत-मंजूषा ला कर दी होगी । इि रत-मंजूषा ने कुछ वषोZ िक िुम िैनय-शिक

को बनाएं रख िकिे हो । इि िैनय-शिक का उपयोग हमे मगध नरे श के िवरद करना है । वह या िो पििमोतर भाग को िुरििि करने के अपनी िवशाल िेना का उपयोग करे या हम उिे नष कर भारि को एकछत राष िनमाण ा करे ।``

`` लेिकन आचायव ा र ! हमारी िैनय-शिक मगध िमाजय की िेना का मुकाबला

नहीं कर िकिी ।``

`` हमे केवल िैनय-शिक िे ही नहीं बिलक बौिदक शिक िे भी काया करना होगा ।

हम कूटनीिि िे काया करे गे । िेना का उपयोग शिक के िाि-िाि बुिद िे भी होगा । अब िंभवि: िुम िमझ गए होगे चनद । मगध िेना हमारे िलए वरदाियनी ििद हो िकिी है ।``

`` यह आपकी महिी कृ पा है आचायव ा र ! कया मै मगध की याता कर िकिा हूँ ।

मािाशी िे िमले हुए वषोZिं बीि गए है । उनके िमलने की हमारी बहुि अिभलाषा है ।``

`` यह िमय उिचि नहीं है । इि पििकूल िमय मे िुमको मगध की याता

लाभकारी ििद नहीं होगी । िुम िमय की पिीिा करो और पिमि: यवन िेना मे भारिीय

िैिनको को भारिवषा के पिि पेि्रिरि करो । उनहे िमझाने का पयाि करो िक वे भारि भूिम के पिि उदार नहीं है । भारि उनकी मािृ-भूिम है और मािृ-भूिम िे िवदोह करना अपनी मािा को

धोखा दे ने के िमान है । भारि भूिम की िेवा के बदले वे यवनो की गुलामी कर रहे है । उनहे बिाओ िक वे गुलामी की जंजीरे पिनद करिे है या सविंतिा की । बि इिने भर िे उनमे भारि-भूिम के पिि उदारिा का िंचार होगा और िंभवि: वे यवनो का िाि दे ने िे असवीकार कर दे गे । यिद

हमारा यह पयोग ििल हो जािा है िो हम शीघ ही यवनो को बाहर करने मे ििल हो जाएंगे । इिना ही नहीं हम भारि को एक सविंत िामाजय िनिमि ा करने मे भी ििल हो जाएंगे ।`` `` ऐिा ही होगा , आचायव ा र !``

`` और हाँ , िहमािद को िंदेश भेजो िक वह शीघ ही राजिगरी जाएं । वह राजिगरी मे अपने रहने की वयवसिा करे । मगध िामाजय पर िनगरानी रखने के िलए इििे अचछा उपाय

और दि ृ दहटट मे आचाया शकटार िे भी िमपका बनाए रखने मे हमे िुिवधा होगी । ू रा नहीं है । वह `` `` मै शीघ ही दे वी िहमािद को आपका िंदेश पहुँचा दे िा हूँ ।`` िुदामा ने शीघ ही पाँच िौ िैिनको को पिशििि कर यवन िेना मे िवदोह िैलाने के िलए भेज िदए । इन िैिनको को िवशेषिौर पर पिशििि िकया गया िा । वे न केवल युद-िवदा जानिे िे बिलक वे आतमिाि मे भी िनपुण िे । िमय आने पर वे अपने पाणो की बिल दे ने के िलए भी ितपर िे । िुदामा वदारा िादा वसो मे भेजे गए ये िैिनक यवन िेना मे विृत पा रहे

भारिीय िैिनको को भारि के पिि िमपण ा , दे श-भिक ,तयाग और भारि के दशुमनो के पिि

आगाह कर मािभ ृ िू म के पिि पेि्रिरि करने लगे । उनहे िमझाया जाने लगा िक केवल विृत के

िलए अपनी मािभ ृ िू म का िौदा करना उिचि नहीं है । िमय आने पर यवन हमे ही दे श-दोही कह कर हमारा अपमान करे गे और वह यह कह कर दिणडि भी करे गे िक जो अपनी मािभ ृ िू म का

िहिैषी का नहीं हो िकिा वह यवन िामाजय का िहिैषी कैिे हो िकिा है । वह भारिियो को गुलाम बनाकर भी िवदे श ले जा िकिा है और िवदे शो मे िमपनन िमाटो के हािो मे िबकवा

िकिा है । इि िरह के पचार िे यवन िेना मे विृत पाप कर रहे भारिीय िैिनको ने िवदोह छे ड़ िदया ।

यवन िेना मे बहुि कम यवन िैिनक शेष रहे िे और आधे िे अिधक िैिनक

भारिीय नागिरक ही िे । जब ििकनदर को जाि हुआ िक उनके िैिनको ने उिके िवरद िवदोह छे ड़ िदया िो उिे िमझने मे िवलमब नहीं हुआ । उिने ितकाल सपष कर िदया िक यह िवदोह

केवल िैिनको का नहीं है अिपिु इिके पीछे अवशय ही िकिी कूटनीििज भारिीय का हाि होना चािहए । ििकनदर ने अपने िेनानायक ििलयूकि को बुलाकर िसििि सपष करने हे िु कहा । िेलयूकि ने िैिनको को िमझाने का पयाि िकया-

`` यिद िुम मे िे कोई अपने-अपने राजयो मे जाना चाहिे है िो बेशक जा िकिे है

िकनिु समरण रहे िक उनके िाि उनके राजय अिधकारी िकि िरह का वयवहार करे गे । हो िकिा है िक उनहे मतृयु दणड ही दे दे । यह भी हो िकिा है िक वापि लौटिे िमय कोई िुमहे पि मे ही मार डाले । हमे कोई आपित नहीं है िकनिु ििर भी आपकी अपनी इचछा । ``

जब ििकनदर को उिे जाि हुआ िक िििशला िवदापीठ के ितकालीन आचाया

चाणकय वदारा यह षढ़यंत रचा गया है िो वह ििलिमला उठा । उिे जाि नहीं िा िक आचाया

चाणकय की शिक और कूटनीिि इिनी पबल है िक वह िबना अस-शस के शतु को परासि करने मे ििम है ।

चनद अपनी िैनय-शिक बढ़ाने मे िंलगन हो गए । अब िब उिने बीि िहस िैिनक िैयार कर िलए । िजनमे गजिेना, अशिेना , पैदल िेना और मलल-युद के पहलवान शािमल िे । वे िब के िब एक िे बढ़कर एक योदा िे । िकिी भी िसििि का िामना करने के िलए ििम िे ।

िबिे पमुख बाि यह िी िक चनद का गुपचर िवभाग िशक िा । पििपल की िूचना चनद को पाप हो रही िी । गुपचर िवभाग का िंचालन िहमािद कर रही िी । इििलए अिधक िचनिा की आवशयकिा नहीं िी ।

मेरी आशंकाएं ितय ििटि हो रही िी । अभी मै यवनो के िवरद कायव ा ाही करने

की योजना बना रहा िा िक गुपचर िे िूचना दी िक यवन िमाट ििकनदर , गांधार नरे श शिशगुप और केकयराज पुर ने िमलकर कठ राजय पर आकमण कर िदया । पिरणामि: कठ राजय के कई िहस िैिनको का िंहार कर िदया गया । िैकड़ो िैिनक िायल हो गए । इिना ही नहीं िैकड़ो

िवशिनीय और दि ु Z ट िैिनको को बनदी बना िलया गया और उनहे नज़रबनद कर िवशेष िकलो मे कैद कर िलया गया । कठ नरे श इनद पलायन कर गए । िुनकर मेरा हदय कांप उठा । मुझे लगा अब इि आयाव ा िा को बचाना इिना आिान काया नहीं है । आयाव ा िा के िमाम नरे शो की

मानििकिा सवयं मे ििमिि एवं िनिहि है । एक दि ू रो को िहयोग की बाि िो दरू वे एक दि ू रे का िवनाश दे ख-दे ख पिनन हो रहे है लेिकन जब उन पर यवनो की गाज िगरिी है िब वे ििलिमला

उठिे है । उनहे िमझाइश दे ने का िातपया है उनिे और अनय नरे शो िे वैरभाव मोल लेना । ऐिा

पिीि होने लगा िक मेरे िारे पयाि िविल हो जाएंगे । यिद मै सवयं ही यवनो को भारि पवेश का रासिा न रोक िकूँ िो । मुझे सवयं ही चनद को लेकर एक नया अिभयान पारं भ करना होगा । िब कहीं ििलिा पाप हो िकिी है । चनद और िुदामा को इि काया के िलए िैयार करना होगा । िुदामा भी चनद के िमान बिलष और दढ़ िंकलपयुक युवा हो गया है ।

अभी मै आगामी योजना पर काया करने के िलए िैयार हो ही रहा िा िक पदचयुि

कठ नरे श इनद िायल अवसिा मे मेरे पाि आ पहुँचे । उनहे हिाहि दे ख मै ििनक िठठक गया

िकनिु जब इनद ने बिाया िक कठ गणराजय पर ििकनदर ,पुर और शिशगुप पर आकमण कर अपने अधीन ले िलया है और उनहे मेरी िहायिा की आवशयकिा है िो मै शीघ ही इनद की

िहायिा के िलए िैयार हो गया । इनद की िहायिा करने का आशय यह भी रहा िक उिकी िहायिा िे चनद को और अिधक िैनय-शिक पाप होगी और हो िकिा है िक इनद के पाि कुछ

धन हो िो धन ही िहायिा भी िमल िकिी है । इनद की िववशिा और करण दशा मुझिे दे खी नहीं गई । चनद िे परामशा कर हम िब इनद की िहायिा के िलए कूच कर िदए । इनद के पाि िवशाल िकला िा । उिी िकले मे इनद के िवशिनीय योदाओं और मंितयो को ििकनदर ने कैद कर िलया िा । ििकनदर ,पुर और शिशगुप िमलकर इन िारे योदाओं और मंितयो को गुलाम बनाना चाह

रहे िे । उनहे कैद कर ििकनदर यवन ले जाना चाह रहे िे । ििकनदर को गुलामो की आवशयकिा िी । वह भारिियो को गुलाम बनाना अिधक पिनद करिे िे । वह भारिीय नरे शो को िदखाना

चाहिा िा िक उनके अपने भारिीय ही अपने भारिियो को िवदे शो के गुलाम बनाने के िलए कैिेकैिे कृ तय करिे है । लेिकन मै चाहिा हूँ िक भारिियो को िवदे िशयो के इन यवनो के चंगुल िे कैिे बचाया जाय षोषो मेरे िमि अब केवल एक िवकलप रह गया िा । वह यह िक अब मै चनद को

िैयार करँ । उिे िमपूणा भारि का एकछत िमाट बनाऊँ और यवनो को भारि िे बाहर खदे ड़ दँ ू । मेरे िलए यह एक मात िवकलप िा । इििलए मैने शीघ ही इनद की िहायिा करने के िलए िैयारी पारं भ कर दी । चनद ,िुदामा और मेरे िमि इनद की किठनाइयो को लेकर उि राि गोपनीय चचाए ा ं होिी रही । इनद को िजि िकिी िरह िे िे कठ गणराजय की बागडोर पुन: पाप हो जाए और उिके िैिनक ििा मंितगण कैद िे मुक हो जाए । इि पर िुदीि Z िवचार-िवमशा के बाद

िनणय ा िलया गया िक पिमि: िकले िे कठ गणराजय के िैिनको और मंितयो को मुक कराया जाय ।

दि ू री राि चनद, िुदामा, मै और इनद िकले का मुआयना करने चल िदए । िनिोर

कालीराि मे कुछ भी िूझ नहीं रहा िा िकनिु इनद के बिाए अनुिार हमने िकले के मुखय वदारो िे

लेकर गुप रासिो का भी मुआयना कर िलया । काया अतयनि किठन िा । चारो ओर ििकनदर , पुर और शिशगुप के िैिनक छावनी बनाकर पहरा दे रहे िे । इिने ििन पहरे मे कोई पंछी भी पर नहीं मार िकिा िा । इनद िायल होकर भी ििकािा िे मागद ा शन ा कर रहा िा । चनद और िुदामा

अपने दि ा ा िे किटबद हो गुपरासिो िे िकले के भीिर पवेश कर गए । कठोर पहरे के बावजूद ु Z षि भी चनद और िुदामा कुछ मंितयो को गुपरासिो िे बाहर ले आए । हमारे पाि पयाप ा अश नहीं िे

िकनिु हम िनबल ा भी नहीं िे । आधी िे जयादा राि बीि गई िी । यहाँ िे राजिगरी और वह ृ दहटट पर पहुँचने मे िारी राि लग गई । दो िदनोिे िक कठ गणराजय के मितगण राजिगरी मे ही रके रहे । अब िक िहमािद राजिगरी को अपना िनवाि सिल बना चुकी िी । इन दो िदनोिे के भीिर िकिी िरह की हलचल यवनो की ओर िे होिे िदखाई नही दी । पुर और शिशगुप को मंितयो के मुक होने की भनक भी नहीं लगी । मंिंितयो को िकले िे मुक कराने का हमारा यह अिभयान ििल रहा ।

अगली राि हमारे िलए किठन नहीं िी । इनद ,िकले के िारे भेद जानिा िा । वह

गुपवदारो िे भिलभांिि पिरिचि िा । िैिनक छावनी पहले िे कहीं अिधक िनी कर दी गई िी ।

धनुधाराी िैिनको को िैनाि िकया गया िा िजनहे यह अिधकार िा िक राि के अंधेरे मे िकिी के भी िदखिे बाण चला दे । िकले के परकोटो पर िैनाि यह िैिनक िंखया मे अिधक िे । कईयो के हािो मे मशाले जल रही िी । वे िारे के िारे बहुि ििका िदखाई दे रहे िे । िैिनको को ििका दे ख मुझे अंदेशा हो रहा िा िक िंभवि: उनहे मंितयो के मुक होने की िूचना पाप हो गई हो । िकले के

आिपाि िनो वनो मे अंधेरा पिरा हुआ िा । मशालो की रोशनी मे आिपाि िदखाई दे रहा िा । इिके बावजूद भी छोटी-छोटी झािड़यो मे छुपने की पयाप ा िुिवधा िी । हम चारो ने इन छोटी

झािड़यो का िहारा िलया और धीरे -धीरे गुपरासिो की ओर िरकने लगे । िकले के िबलकुल पीछे के गुप वदार के पाि कोई िैिनक िैनाि नहीं िा लेिकन जैिे ही हमने वदार मे पवेश िकया । दो पहरी पहरा दे रहे िे । चनद और िुदामा ने सिूििा िदखाई और उनहे धर दबोचा । रासिा िाि हो गया । िकले के भीिर बड़े भाग मे लगभग दो िौ िैिनक बनदी िे । उनहे ितकाल बनधनमुक िकया और

गुपवदार िे बाहर िनकलने के िलए िंकेिो मे कहा गया । वे धीरे -धीरे कर िभी बाहर िनकल आए । कुछ रिद किो मे रखी हुई िी िकनिु उनकी आवशयकिा न होने िे उनहे वहीं छोड़ िदया । लेिकन

यह कया षोषो वदार के बाहर लगभग एक िौ िैिनको ने उन बनदी िैिनको पर आकमण कर िदया । चनद और िुदामा उन िब पर अकेले ही भारी िे । मैने भी शीघिा िे धनुष धारण कर िैकड़ो बाण एक के बाद एक छोड़े । दे खिे ही दे खिे ििकनदर के आधे िे जयादा िैिनक मारे गए । शेष िैिनक

भाग िनकले मे ििल हो गए । अब हमे यह भय िा िक यिद हमने यहाँ िे िनकलने मे शीघिा नहीं

की िो ििकनदर के िैिनक कभी भी आकमण कर हमे बनदी बना लेगे । लेिकन यह कया ,अनायाि यवनो का एक दल हम पर टू ट पड़ा । चनद अपनी पूरी शिक के िाि यवनो के िाि लड़ने लगा ।

दे खिे ही दे खिे दोनो ओर के िैिनक मारे जाने लगे । इि अंधेरी राि मे चनद ने एक बलशाली पर भरपूर वार िकया । यह ििलयूकि िा ,उिकी दािहनी बांह मे चनद की िलवार जा िुिी वह

ििलिमलाकर रह गया । उिके मुख िे िचतकार िनकली । वह िन:हतिा हो गया । चनद कभी िनहतिे पर वार नहीं करिा । उिने तविरि उिे अपने िगरफि मे ले िलया । जयो ही मशाल का पकाश उिके मुख पर पड़ा ,चनद दिवि हो गया । बोला`` िमत ििलयूकि !`` `` ओि् चनद िुम !``

`` िमत शीघिा करो । िुम बहुि िायल हो गए हो । िमा करे िमत । हमे जाि नहीं

िा । अंधेरी राि मे कुछ भी िदखाई नहीं दे िा । हम अपने-अपने किवाय पालन मे अिडग है िकनिु िमत ,िुम िनििनि रहो और शीघ यहाँ िे िनकल जाओ ।``

चनद ने शीघिा िे एक िैिनक को आदे श िदया िक वह ििलयूकि को उनके िशिवर

के िनकट छोड़ आए । िैिनक ििलयूकि को ले िुिरिि सिान िक छोड़ आया । अभी हम िंभल ही पाए िे िक ििकनदर ने आतमिािी आकमण िकया । यह हमारे िलए भारी िािक ििद हुआ

और हमारे िैिनको को भारी ििि पहुँची । ििर भी हम हिाश नहीं हुए । हम अपनी पूरी शिक के िाि लड़िे रहे । पिरिसििि को दे ख हमने शीघ ही पलायन जररी िमझा । अंधेरे मे कठ नरे श

ििकनदर िे युद करिे हुए वीरगिि को पाप हो गए । हम शेष वनो के रासिे िनकल कर भागने मे ििल हो गए । ििकनदर चाहिा िा िक वह कठ गणराजय के मंितयो और कैद िकए गए िैिनको को अपने िाि यवन ले जाये । िवदे श ले जाकर कुछ िैिनको को अपने पाि रख शेष िैिनको का

िवकय िकया जाय । अंधेरी राि की इि छापामार कायव ा ाही मे हमने कठ गणराजय के मंितयो और िैकड़ो िैिनको को मुक िो करा िदया िकनिु इनद की मतृयु हमारे िलए भारी पड़ी । मंितयो को दाि बनाने की ििकनदर की मंशा पूरी न हो िकी ।

पाि: होिे-होिे हम राजिगरी जा पहुँचे । राजिगरी मे एकत कठ गणराजय के

मंितयो और िैिनको को गुपसिान मे एकत कर उनहे मुक होने की िूचना दी गई । चनद ,िुदामा और मेरे िलए िबिे बड़ी िमसया यह िी िक कठ गणराजय के इन मंितयो और िैिनको को हम

अपने िाि नहीं रख िकिे िे । अभी िक हम सवयं इिने दढ़ नहीं िे िक इन िभी का बोझ उठा िके । िंकट के िमय भारिीय नरे शो को िहायिा दे ना हमारा मुखय उदे शय रहा और इिी उदे शय को िनबहाने के िलए हम िनरनिर किटबद रहे ।

इधर यह जानकारी पाप हुई िक ििकनदर अपनी शेष यवन िेना को िाि लेकर

वापि यवन जा रहा है । यवन िेना मे िैले िवदोह को ििकनदर नज़रअनदाज नहीं कर िकिा िा िकनिु जब उिने दे खा िक उिकी िेना मे विृत पाप कर रहे भारिीय िैिनक अब भारिियो के

िवरद युद करना नहीं चाहिे । वह यह नहीं चाहिे िक भारिियो के िवरद युद करने मे यवन िमाट ििकनदर का पि ले । ििकनदर िैिनको के इि िवदोह के आगे िनििषकय हो गया । उिने दे खा िक वह अब भारि भूिम पर िंभवि: आगे नहीं बढ़ पाएगा । उिने केकयराज पुर , गांधार नरे श शिशगुप , कठ गणराजय के शेष पदािधकारी और दारि के नरे शो को एकत कर उनहे इन राजयो का कायभ ा ार िौप यवन जाने की िैयारी पारं भ कर दी ।

यवन लौटने के पूवा ििकनदर चनद और मुझिे भेट करने के िलए िेनानायक

ििलयूकि को िंदेश दे कर मेरे पाि भेजा । ििलयूकि मेरे िशिवर मे आया । बोला`` आचायव ा र ! आपके शीचरणो मे मेरा नमन ् ।``

`` सवागि है िेनानायक ििलयूकि । जाि हुआ है िक यवनो मे िुमहारा िवशेष

सिान है । बहादरु िो हो ही लेिकन नीिि परायण और मद ृ भ ु ाषी भी हो । ``

`` यह पशंिा मेरे िलए आपका बड़ककपन है आचाया । मुझे आपके पाि िमाट

ििकनदर ने िंदेश लेकर भेजा है । यवन िमाट ने आपको िवशेष दावि पर आमंिति िकया है ,आचायव ा र और िाि मे चनद ििा िुदामा को भी लाने का अनुरोध िकया है ।``

`` िेनानायक ििलयूकि ! मै आपका और आपके िमाट के आमंतण का आदर

करिा हूंिं । मै अतयनि आभारी हूँ िक यवन िमाट ने हमे आमंििति िकया है िकनिु राजनीिि कहिी है िक यिद हमने यह आमंतण सवीकार कर िलया िो इिका िातपया यह होगा िक हमने

यवन िमाट की अधीनिा सवीकार कर ली । यह हमारी भारिीय िंसकृ िि और िभयिा के अनुकूल नहीं है । हम भारिीय है । हमारे भारि मे पधारे अिििि का ही हम सवागि करना चाहे गे । आप

िमाट िे हमारा िनवेदन कह दे िक हम भारिीय अपने अिििि का सवागि कर रहे है । अि: िमाट

िादर हमारे िशिवर मे आमंिति है । हमारा यह िंदेश आप िमाट िक पहुँचा दे । हम आभारी होगे ।``

`` आचायव ा र ! यवन िमाट आपिे चचाा करने के िलए आिुर है । आपिे िनवेदन

है िक आप िमाट का आमंतण सवीकार कर ले । ``

`` यह हमारी भारिीय िभयिा के अनुकूल नहीं है । हम पुन: िनवेदन करिे है िक

आप हमारी ओर िे उनहे यहाँ आमंतण की िूचना दे दे । ``

`` अवशय ही आचायव ा र ! मै आपका आमंतण यवन िमाट िक पहुँचा दँग ू ा।``

`` चनद ! िेनानायक ििलयूकि के जलपान और िवशाम की वयवसिा करो । हम

भोजन के बाद िेनानायक ििलयूकि िे िवचारो का आदान पदान करे गे ।``

चनदगुप अब िक ििलयूकि का िमत बन चुका िा । दोनो के आचार-िवचार

लगभग िमान िे िकनिु अनिर इिना ही िा िक ििलयूकि यवन िा िो चनदगुप भारिीय । दोनो दि ु Z षा योदा िे । परािजि होना उनहोने िीखा नहीं िा िकनिु जब िमतिा की बाि िामने

आिी है िो युद और िमतिा को परे रखकर पि ृ क हो जाया करिे िे । उनहे िे अपने-अपने दे शो िे पेि्रम िा िकनिु दोनो ही रकपाि करने के पि मे नहीं िे ।

दोपहर के भोजन के बाद िशिवर मे ििलयूकि का ितकार िकया गया और उनहे

भारिीय पिरधान भेट िकए गए । ििलयूकि बहुि पिनन हुआ । वह बोला -

`` यवन िमाट ििकनदर की िवजय पिाका अनेको दे शो मे िहराने लगी है । वे

िजि भी दे श को अपने अधीन करना चाहिे है ,वहाँ के नरे शो को परािजि करने मे पूणि ा : ििम है

। यह िवजय याता उनके िलए िदै व लाभकारी हुई है । कया आप इि िमबनध मे कुछ कहना चाहे गे आचायव ा र ! ``

`` िेनानायक ििलयूकि ! पतयेक िमाट ही नहीं अिपिु पतयेक वयिक की

महतवकांिा िवजय की होिी है । कोई भी िमाट ,नरे श या वयिक अपने िेत मे परािजि होना नहीं चाहे गा । उिकी अपनी महातवाकांिा उिे यह िब करािी है िकनिु मेरे िवचार िे इि िवजय के

पीछे िमाटो और नरे शो की िोच कहाँ िक अनुकूल रहिी है यह कहना किठन है । जब एक राजय

दि ू रे राजय को परािजि कर अपने अधीन कर लेिा है िो उिकी िभयिा िंसकृ िि ,आचान-िवचार , मयाद ा ाएं और परमपराएं िाि-िाि चलिी है । वयविाय और

धन िमपदा उिके अनुगामी हो जािे है िकनिु मेरे िवचार िे यह िब िबना रकपाि के भी िकया जा िकिा है । दे शो मे आपिी िामंजसय उतपनन कर यह िब आिानी िे पाप िकया जा िकिा है । इिमे रकपाि भी नहीं होिा और दे शो की िमपननिा बढ़िी जािी है ।``

`` महतवाकांिा वयिक का पमुख उदे श होिा है और यवन िमाट अपनी

महातवाकांिा के िलए ही िवजय पिाका िहराने के पि मे है । वे अपनी िवजय पिाका िहरा कर वापि यवन चल दे िे है । केकय ,दारि , कठ ,गांधार को अपने अधीन कर उनहे िंचािलि करने के

िलए उनके ही नरे शो को कायभ ा ार िौपा गया है । वे यवन िामाजय की मयाद ा ावो का पालन करिे रहे गे और ितिमबनधी िूचनाओं िे यवन िमाट को अवगि करािे रहे गे । ``

`` यह िंभव नहीं होगा ििलयूकि । जब यवन िमाट को वापि ही जाना िा िो

यह िब रकपाि,युद और अपिाि आकमण.......इिका कया औिचतय षोषो हाँ , यिद िमाट इिी भारि भूिम पर रह जािे िो हमे आभाि होिा िक उनहोने वासिव मे िवजय पाप की है । िुमने

दे खा है िेनानायक िकिने ही िैिनको का िंहार हुआ है षोषो िकिना रक बहा है षोषो अनिि: यह िब कयो षोषो यवनो मेिे ऐिा कोई िो िववदान होगा िक जो यह िब होने िे रोकिा हो । हमने

िुना है महातमा िुकराि और महिषZ अरसिू ,िमाट ििकनदर के दरबार मे आदर पािे है ।िं इिना िब होिे हुए यह िब होना िनरिक ा लगिा है ।``

`` आपे ठीक कहा आचाया । महिषZ अरसिू ,िमाट ििकनदर के राजगुर भी है

और उनहीं की िलाह और िनदे श पर भारि िवजय का अिभयान पारं भ िकया गया है ।``

`` भारि िवजय अभी कहाँ हुई िेनानायक ििलयूकि । मुझे लगिा है यवन िमाट

ििकनदर अभी िक इि भूल मे है िक उनहोने भारि िवजय पाप कर ली है । केवल रकपाि करने

और राजदरबारो को अधीन करने िे भारि के माटी की िुगनध ,िंभयिा, ,िंसकृ िि,परमपराओं पर िवजय पाप नहीं होिी मेरे िपय िमत ।``

`` आपके िवचारो िे मै िहमि हूँ आचाया िकनिु आप यह भूल रहे है िक रक िो

बहने के िलए होिा है और जहाँ िक िैिनको का पश है िो िैिनक केवल कटने के िलए होिे है ।

राजनीिि का इििहाि रहा है िक रक बहे िैिनक मरे और शिकशाली वयिक वैशयारपी राजनीिि का उपभोग करे ।`

अब िक चनदगुप िुन रहे िे । जब मैने भारि की मूल अवसिा के िवजय की बाि

की िो वह ठहाका मारकर हं ि पड़े । बोले -

`` यह िच है िमत िक राजनीिि नामक वैशया को पाप करने के िलए रक बहाना

और िैिनको को मरना पड़िा है िकनिु भारि की िवराटिा को परािजि कर अपने अधीन करना इिना िरल नहीं है िमत ििलयूकि । यह भारि भूिम आिदकाल िे इिी िरह अपनी िंसकृ िि,

िभयिा और िविभनन परमपराएं िलए चली आ रही है । इिे जीिना है िो रकपाि िे नहीं अिपिु इि माटी की इन िमपदाओं को जीिना होगा । अभी यवन िमाट इिी भूल मे है । इिे जीिने के िलए उनहे भारि मे ही रहना होगा अनयिा यह जीि कोई मायने नहीं रखिी ।``

ििलयूकि अब यह जान गया िक भारि भू को परािजि करना िरल नहीं है ।

यवन िमाट ििकनदर की यह जीि नरे शो और दरबारो िक िीिमि हो िकिी है िकनिु िमूची भारि भूिम पर नहीं हो िकिी । वह बोला-

`` केकयराज ,गांधारराज ,कठराज ,दारि और िजन भी राजयो को िमाट ने अपने

अधीन िकया है उनके बारे मे आपकी कया राय है महामना आचायव ा र ।``

`` उनकी आतममुगधिा िमाप हो गई है । इिना ही नहीं उनकी मयाद ा ा और पििषा को भारी आिाि पहुँचा है । वे िंभवि: इि आिाि िे उबर पाए कहना किठन है या इि

आिाि का िशकार हो जाएंगे । राजयो के नागिरकोिे और िनकटसि नरे शो की दिष िे वे िगर चुके है । िबना मान-मयाद ा ा के एक िाधारण नागिरक िे लेकर नरे शो को जीना उिचि नहीं है । वे अपने कृ तयो को अवशय िजि िकिी भी रप मे पाएंगे । उनके िलए िकिी को कुछ करना नहीं होगा वे सवयं ही इन कृ तयो के पििकूल पिरणाम पाएंगे । यह िनििि है ।``

`` िंभवि : भारिीय िंसकृ िि का यह कोई उिचि पिरणाम हो ।``

पुन: बोले -

कुछ िमय िक ििलयूकि चुपचाप बैठे रहे । उठे , करबद कर पणाम िकया और `` पसिान होने की आजा चाहिा हूँ ।``

`` चनद , िेनानायक ििलयूकि को िादर िवदा करो ।`` ििलयूकि िवििसमि िा दे खिे रह गया । 00 मै अब िक बहुि िक चुका िा । मुझे िहमािद िे भेट करने की दढ़ अिभलाषा हो

रही िी । उिके पाि पहुँचने मे िमय लगने की िंभावना िी । िहमािद िे भेट हुए लगभग छह

माह वयिीि हो गए िे । मेरा मन कर रहा िा िक जाकर िहमािद के आंचल मे छुप जाऊँ और मन का िारा भार उिार लूँ । मै उििे िमलने चल िदया ।

मुझे आया दे ख िहमािद भावाििरे क मे िववहल हो िलपट गई । उिके नेतो िे

अिवरल अशध ु ाराएं बह िनकली । शायद उिका हदय भी अब िक मेरी पिीिा कर रहा िा। मुझिे

िलपट जब िहमािद की अशध ु ाराएं बहकर मेरे वि को िभगो रही िी ,िब मेरा रोम-रोम रोमांिचि हो रहा िा । मै भी इिी पिीिा मे िा । हदय मे धधकिे जवालामुखी की लपटे धीरे -धीरे शीिल होने लगी । अनायाि मेरे अधर िहमािद के अधरो पर जा बैठे । बहुि दे र िक मै िहमािद के अधरो का अमि ृ पान करिे रहा । वह िनिल िी मेरे वि और अधरो िे िलपटी रही । जब हदय की जवाला शानि हुई हम दोनो िामानय हो गए । उिने झुककर मेरे चरण सपशा िकए । नेतो िे बहिे आँिू पोछे और बोली -

`` िवषणु ! राजिगरी मे िुमको दे ख मेरा हदय गदद हुआ जा रहा है । मै िोच भी

नहीं िकिी िी िक िुम यहाँ भी आ जाओगे । यह िुमने अचछा ही िकया । ``

`` दे वी ! पेम ही एक ऐिा ितव है जो लाखो मील की दिूरयो को भी नहीं मानिा ।

जहाँ भी मनुषय का पेि्रम बिा होिा है वह वहाँ पहुँचकर ही रहिा है । यही पेि्रम की िवलिणिा है अनयिा कभी ऐिा होिा है कया षोषो िुम ही बिाओ षोषो ``

`` मै िुम पर िमिपि ा हूँ । हदय उि िवलिण िण के िलए वयाकुल रहिा है िजि

िण िुम मेरे नेतो के िमि उपिसिि रहिे हो । एक ओर िुमहारा पेि्रम िामाजय है िो दि ू री ओर

िुमहारा अपने किवाय के पिि अिाह शदा ,ऐिे मे िुमिे भेट करना आिान नहीं है िवषणु । िुम यिद मेरी पािन ा ा िुन िको िो कहूँ षोषो ``

`` पािन ा ा नहीं दे वी पेि्रम-िनवेदन !`` `` हाँ , मै वही कहने का पयाि कर रही हूँ । पिा नहीं कहाँ िक उिचि है । कहीं

ऐिा न हो िक िुम उिे सवीकार ही न करो । ``

`` नहीं दे वी , िुम ऐिी आशा मि करो िक िुमहारा िवषणु कभी असवीकार करे गा ।

िुम अपने हदय की बाि िन:िंकोच कह िकिी हो । िुमहे यह िब कहने का पूणा अिधकार है । कहो ....``

`` िवषणु ! कहने मे िंकोच होिा है िकनिु यिद नहीं कहूँ िो हदय मे टीि बनी

रहे गी और आजीवन पिािाप की अिगन मेिे जलिी रहूँगी । ``

`` िन:िंकोच कहो दे वी , मै िुमहारे िलए पसिुि हूँ िकनिु यह धयान रहे िक किवाय

मे िकिी िरह का वयवधान उतपनन न हो । कहीं ऐिा न हो िक िुम मुझे पि िे पि ृ क होने का कहना चाहिी हो िजिे सवीकार करना मेरे िलए किठन होगा ।`` आने लगा है ।``

`` नहीं आया ! ऐिा कोई िवषय नहीं है िकनिु लाज के मारे मेरे मुख पर पिीना भी `` नारी सवयं ही लाज की मूरि होिी है । िुमहारा इि िरह लाज िे पिीना-पिीना

होना नारीतव का गुण ही है । ििर भी यिद िुम मुझे अपना िपय मानिी हो िो कहने मे िंकोच कैिे षोषो अचछा , एक काया करो िक िुम दीवार की ओर मुख करके कहो । िंभवि: यह उपाय उिचि पिीि होिा है ।``

`` ठीक है सवामी ! मै ऐिा ही करिी हूँ ।``

`` दे वी ! िुमने मुझे सवामी कहा , इिका आशय जानिी हो षोषो सवामी िकिे कहा जािा है षोषो ``

`` यही िंकोच का कारण है आया , कहूँ भी िो कैिे कहूँ षोषो दीवार की ओर मुख

करके भी कहने मे लजजा होगी । िब िुम कहोगे यह भी कया कहा षोषो``

`` अचछा ! अचछा !! बािे न बनाओ और दीवार की ओर मुख करके िन:िंकोच

अपने हदय की बाि कह डालो ।``

`` लो िवषणु , मैिेने दीवार की ओर मुख कर िलया । दोनो हिेिलयो िे आँखे भी

बनद कर ली । अब कहूँ षोषो`` `` हाँ कहो ।``

`` िवषणु ! मेरे सवामी ! मुझे अपने पेम की िनशानी दो ।``

िहमािद इिना कह चुप हो गई । मै उिके िनकट गया । मेरे सपशा िे वह रोमांिचि हो उठी । उिके अंग-पतयंग पमुिदि हो उठे । वह लजजावश िकुचाकर मेरी बाहुपाश मे ििमट गई । राित के िीिरे

पहर मे दो अंग और दो आतमाएं एक हो गई । पकृ िि और पुरष के इि िंगम मे अनुराग पवाहमान हो बह गया । शीिल मदम पवन गुनगुना रही िी । िचनदकाएं िटमिटमाकर चनदमाँ को बहला रही िी । रािरानी और चमपा की महक िे कि िुगिनधि हो उठा और िहमािद मेरे अंग-

पतयंग मे िमा गई । जाने कब चेिना लौटी । वह चहक उठी और िीविा िे दि ू रे कि मे चली गई । वापि लौटी िो उिका मुख लजजा िे लाल हो रहा िा । उिने मेरे चरण सपशा िकए । िनकट ही िशा पर बैठ गई ।

`` आया ! िुम यही राजिगिर मे बि जािे िो उिचि रहिा । कम िे कम मेरे नेतो के

िमि होिे ।``

`` दे वी ! राजिगिर मे मेरा ठहरा उिचि नहीं है । मगध िमाट को जाि होने पर वे

अपिाि भी कर िकिे है । िुम िो जानिी हो दे वी , जब िक मै अपने अिभयान मे ििल नहीं

होिा िब िक कहीं भी ठहर नहीं िकिा । हाँ सविंत िवचरण कर िकिा हूँ । चाहे कोई भी राजय हो अधयापक को इििे कोई अनिर नहीं पड़िा । मै अधयापक के िाि-िाि दे शिहिािा और

जनिहिािा काया भी िमपनन करिे आ रहा हूँ । इििलए अनेको राजयो का भमण करना पड़िा है । िुमको जाि होगा दे वी िक पुर और शिशगुप ने ििकनदर िे िमलकर कठ गणराजय के नरे श इनद को परािजि कर अपने अधीन कर िलया िा । इनद के मंितयो िंऔर पमुख िैिनको को बनदी बना िलया िा । हमने चनद और िुदामा के िाि िमलकर उनहे मुक कराया है िकनिु दभ ु ागायवश इनद

बुरी िरह िे िायल हो गए िे । वे अतयिधक िायल िे । हम उनहे बचा न पाएं और वे वीरगिि को पाप हो गए । हम चाहिे िे िक अपने उदे शय की पूििा के िलए इनद का िहयोग िलया जाय और

अगले अिभयान मे िंलगन हो जाय िकनिु इनद की मतृयु िे हमारा मनोरि अपूणा ही रहा । हमारा अगला अिभयान मगध िामाजय के राजििंहािन पर चनद को िबठाना है । यिद हमारा यह

अिभयान ििल हो जािा है िो यवनो को भारि मे पवेश करने िे रोकने मे ििल हो जाएंगे । इिमे हमारी आकांिा भी पूरी हो जाएंगी । यह दे ख रही हो न हमारी खुली िशखा , यह िशखा अब

िब ही बंधेगी जब मगध िामाजय के ििहांिन िे नंद को पदचयुि कर उिके सिान पर चनद का राजय अिभशेक हो जाय । इि अिभयान मे मुझे िुमहारे भी िहयोग की आवशयकिा होगी दे वी ।`` `` मै पसिुि हूँ आया ! आदे श दे िक मुझे कया करना होगा षोषो ``

`` िुमहे आदे श की पिीिा करनी होगी दे वी । अब हमारे िलए राजिगिर मे रकना

उिचि नहीं है दे वी । िजिनी शीघिा िे हो िके उिनी शीघिा िे िुम बह ृ दहटट चली जाओ । वहाँ

आचाया शकटार का िनवाि है । वहीं पर िंभवि: हमारी आगमी भेट िंभव हो िकेगी । मुझे यहाँ के शेष काया शीघ िनपटाना होगा । चनद और िुदामा को िवशेष िनदे श दे ने होगे । अचछा ! अब मै पसिान करिा हूँ िुमुखे !``

मेरे पसिान करिे िमय िहमािद ने पुन: चरण-सपशा िकए ।

0

चनद पिीिारि िा । मुझे दे ख उनहे ििनक िाहि हुआ । आगामी काया के िलए ितपर

चनद ने कहा -

`` आचायव ा र ! मुझे ििनक िंदेह हो रहा है िक केकयराज पुर कहीं हमिे रष है ।

वे िकिी भी िण हमारा अिनष कर िकिे है । आजा हो िो िशिवर यहाँ िे शीघ ही िवनष कर अनयत सिािपि करे ।``

चनद के िवचार मे कहीं न कहीं ितयिा पगट हो रही िी । ििनक िोचकर मैने

िहमिि दे दी । उिी िदन दोपहर मे िशिवर िवनष कर िविसिा के दि ू रे िकनारे पर पििसिािपि

िकया गया । चनद की आशंका िनमूल ा नहीं िी । उिी राि पुर ने पूवा िशिवर पर आकमण करने के िलए िैिनक भेजे िकनिु वहाँ िवनष िशिवर के अिििरक उनहे कुछ भी पाप नहीं हुआ । वह

ििलिमला उठा । उिने अपने गुपचरो को ििका कर चनद और मेरी खोज के िलए आदे श िदया

िकनिु दभ ु ागायवश पुर के दो गुपचर मुठभेड मे मारे गए । गुपचरो के मारे जाने की िूचना िमलकर वह और अिधक कोिधि हो गया । मेरे पाि पुर की कूटनीिि िे बचने के अनेक उपाय िे िकनिु इिमे िमय वयिा नष करना मेरा उदे शय नहीं िा । मेरा मुखय उदे शय यवनो को भारि िे वापि

करवाने का िा । इििलए मै पमुखि: यवन राज ििकनदर को यवन भेजने की योजना मे अपनी

शिक लगाना उिचि िमझ रहा िा । जहाँ िक पुर िे िनपटने का पश है , इि काया हे िु आंिभ िे िमलना उिचि होगा । आंिभ िे िमले हुए मुझे बहुि वषा हो गए िे । उिने भी मेरा ििरसकार िकया िा िकनिु इि िमय कूटनीिि िे काया िलया जाना मुझे उिचि पिीि हुआ । मै आंिभ िे िमलने

िििशला जा पहुँचा । आंिभ िे भेट नहीं हो पाई िकनिु िििशला के अमातय भगुिर िे भेट हो िकी । मैने भागुिर का अिभननदन िकया । वे बोले-

`` शतु की मांध मे सवयं चले आएं हो आचाया ! ``

`` शतु ! कैिा शतु षोषो कया भारिीय आपि मे शतु होिे है षोषो`` `` बहुि चिुर हो आचाया । मै िमझ रहा िा िुम हमे शतु मानिे हो । इििलए

हमारे िवरद षड़यंत रचिे रहिे हो । आज कौन िा षड़यंत रच रहे हो आचाया षोषो``

`` मुझे यह िुनकर िोर आिया हो रहा है िक अब िक भारिीय नरे शो ने एक दि ू रे

को शतुिा की दिष िे दे खा है और जो िवदे शी नरे श है उनहे गले लगाया जा रहा है । इििे अिधक

दभ ु ागाय कया हो िकिा है षोषो लगिा है अब िक हम भारिियो को िमत और शतु की पहचान ही नहीं है । िकिे हम िमत कहे या िकिे हम शतु कहे षोषो``

`` कैिे षोषो ऐिी िो कोई बाि नहीं है । ििर आप यह कैिे कह रहे है षोषो``

`` कया पुर आपका शतु नहीं है षोषो मेरा िातपया गांधार का शतु िो पुर अवशय है । उिने िबना हिरयार उठाये यवनराज ििकनदर के िमि िमपण ा कर िदया और अब आप िभी को िववश कर रहा है । यवनो को िाि दे नेवाले नरे श न केवल पड़ौिी नरे शो के शतु है बिलक वह

भारि-भू के भी शतु है । कया आप इि िथय को असवीकार कर िकिे हो अमातय भगुरी । हम भारिीय कयो एक दि ू रे को शतु मान बैठे षोषो``

`` िुम ठीक कहिे हो आचाया िकनिु अनय कोई उपाय भी नहीं है । यिद पुर अपनी

िवशाल िेना के िाि यवन राज को भारि मे पवेश करने के िलए रोकिे िो अवशय ही कुछ हल िनकल िकिा िा िकनिु उनहोने ऐिा नहीं िकया । ``

`` कया केकयराज पुर को हटाने का अनय िवकलप नहीं हो िकिा षोषो``

`` हो िकिा है । लेिकन मेरा उदे शय आपि मे मरना-मारना नहीं है । मै िमपूणा भारि के िलए लड़ना चाहिा हूँ । हो िके िो िुम मेरा िाि दे िकिे हो ।``

`` पिमि: िििशला राज को केकयराज िे पििशोध लेना आवशयक है । यिद

िििशला राज ऐिा नहीं करिा है िो केकयराज पुर के होने िे कभी भी िंकट मे पड़ िकिा है । आचाया ! िुम कोई उपाय िुझा दो । मै िुमहारे उपाय का अनुगमन करँगा ।``

`` अमातय भगुिर ! यिद िुम िकिी िवषकनया को केकयराज पुर के पाि भेज

िको िो िुम अवशय ििल हो िकिे हो । ``

`` िवषकनया षोषो लेिकन मै कहाँ िे लाऊँ षोषो ``

`` िकिी वािणक िे वयवसिा करा लो । इििे अिधक िरल उपाय कोई और नहीं हो िकिा । िवषकनया अिि-िुनदरी हो िो िोने मे िुहागा होगा ।``

`` धनयवाद आचाया चाणकय । िुमहे िििशला का शतु मानिे हुए भी िुमने

राषिहि का पि िलया । एकबार ििर धनयवाद ।``

`` अमातय भगुिर ! राष िवोपिर है । यिद राष िुरििि नहीं होगा िो हम-आप

िुरििि कैिे रह िकिे है । दे श-दोिहयो को िमाप करना आवशयक है अनयिा ये दे शदोही िनज सवािा िहि मे राष को ििि पहुँचाने का पयाि करे गे । यिद नागराज को दध ू िपलाओगे िो वह कभी न कभी िो डिेगा ही । ``

`` मै आपके िवचारो िे िहमि हूँ आचाया ! नागराज और िांपराज दोनो एक दि ू रे

के पूरक होिे है । इनके िो िन ही कुचल िदए जाने चािहए ।``

मै भी यही चाहिा िा । उिे इिी िरह नष िकया जा िकिा है । उिके नष होिे ही

केकयराज के महामातय अननि शमाा का उपयोग हो िकिा है । हो िकिा है अननि शमाा हमारे िलए उपयोगी ििद हो ।

मै शीघ लौट आया । भगुिर ने वािणक के िहयोग िे एक िुनदर िवषकनया का

पबंध िकया । िवषकनया को िारी जानकािरयाँ दे दी । इिना ही नहीं उिे कहा गया िक वह सपषि: पुर को बिा दे िक वह उनके पाि कयो भेजी गई है । िवषकनया इि षडयंत के िलए मानििकसिर

पर िैयार हो गई । उिी राि िवषकनया को केकयराज पुर के पाि भेजा गया । जब केकयराज पुर दािारि पान कर रहे िे । उिी िमय िवषकनया उनके पाि जा पहुँची । दािारि के मद मे

िवषकनया को दे ख उनका हदय डोल गया । उनहे िवषकनया का िवषकनया होना जाि नहीं िा । उनहोने उिे राजमहल की कोई िुनदरी िमझ िलया िा । उिे िनकट बुलािे हुए बोले-

`` िुनदरी ! आओ , इि िमय िुरा-िुनदरी का मेल बहुि मोहक लग रहा है । कया

करे , इि राजकाज मे िमय ही नहीं िमलिा िक िुरा के िाि िकिी िुनदरी का िाि िमले । आज िुमहे अनायाि इि िरह आया दे ख मेरा हदय डोला जा रहा है ।``

`` महाराज ! इि िमय आप बहुि नशे मे है । उिचि होगा िक आप िवशाम करे ।

यह िमय िुरा-िुनदरी का नहीं है । मै आपके पाि िकिी िवशेष काया िे आई हूँ ।``

`` नहीं िुनदरी , यह िमय उिचि है । इि एकानि मे अधरो पर िुरा ििरक रही है

िो िुरा के िाि िुनदरी भी ििरकनी चािहए । जब िुरा और िुनदरी का मधुर िमलाप इन कोमल अधरोिे पर होगा िो इििे अचछा िमय और कौन िा हो िकिा है िुनदरी ।`` `` लेिकन महाराज ! मै िवषकनया हूँ ििर भी आप......``

पुर ने िवषकनया की बांह पकड़ अपनी ओर खींच िलया । उिे बोलने का अविर ही

नहीं िदया । वे बोले-

`` िुनदिरयाँ िो वैिे ही िवष की सवणा-मंजूषा होिी है । जो िुनदिरयो का उपभोग

नहीं करिा वह अनिि: पछिािा है और जो उपभेग करिा है वह बार-बार िुनदिरयो के उपभोग के िलए आिुर होिा है । आज का यह शुभ अविर कहीं हाि िे िनकल न जाय । मै िुमहारे इि रपलावणय का रिपान करना चाहिा हूँ ।``

`` लेिकन महाराज .......!``

पुर कुछ िुनना नहीं चाहिे िे । िुनदरी अपनी मोहन छटा पुर पर िबखेर चुकी िी । नख-िशख िक शग ं ृ ारबद िुनदरी के कोमल लाल-लाल अधर लरजने लगे । उिने ििनक लजाने का अिभनय िकया िो पुर ने उिे आिलंगन मे जकड़ िलया । िुनदरी पुर के आिलंगन मे ििमटिी चली गई । उिने अपनी नीवीं की गांठ खोल दी । अपने कोमल अधर पुर के अधरो पर रख िदए ।

पुर िवषकनया के अधरो का पान करने लगा । वह इिना अिधक मदमसि हो गया िक उिे आभाि ही नहीं हुआ िक वह जीिवि है भी या नहीं । पुर का शरीर पाणहीन हो वहीं लुढक गया ।

िुबह केकय राजमहल मे हलचल मच गई । केकयराज पुर की पाििव ा दे ह पांगण

मे पड़ी रही िकनिु राजय का एक भी नागिरक दशन ा ािा नहीं आया । नागिरक इि बाि िे पिनन िे िक ऐिे भीर नरे श का होना या न होना कोई मायने नहीं रखिा ।

केकयराज पुर के दे हाविान की िूचना मुझे भी पाप हो गई । केकयराज के

महामातय अननि शमाा पर जैिे गाज िगरी हो । वह पुर के दे हाविान िे ििलिमला गया िकनिु वह कुछ नहीं कर िकिा िा । अननि शमाा मेरे पाि आया । बोला-

`` आचायव ा र ! मै िििशला िे िीधा आपके पाि चला आया । कया जो मैने िुना

वह ितय है षोषो आपको िो पूरी िूचना होगी ।``

`` िकि बाि की िूचना िमत षोषो ज़रा सपष करो षोषो`` `` यही िक पुर की हतया कर दी गई । िकिी ने उन पर िवषकनया का पयोग िकया

है । लेिकन यह कैिे हो िकिा है िमत षोषो``

`` कैकयराज पुर की िवषकनया के पयोग िे हतया ! िुम यह कया कह रहे हो िमत

अननि षोषो मुझे पुर की अब िक कोई िूचना नहीं िमली है । कया िुमहारा कहा ितय है अननि षोषो ``

`` हाँ िमत चाणकय । यह पूणि ा : ितय है । कैकयराज पुर की हतया िवषकनया के

पयोग िे की गई है । ``

`` यह अतयनि द ु:खदायी िूचना है िमत अननि । लेिकन अननि िुमहे पुर की

मतृयु का इिना अिधक द ु:ख कयो है । पुर नेिे न केवल भारि के िाि बिलक पूरे कैकयराज के

नागिरको के िाि अनयाय िकया है । उिने कठ गणराजय के युद मे यवनराज ििकनदर का िाि दे कर िैकड़ो बचचो ,नािरयो और िनरापराधो का रक बहाया है । वह िो अतयनि दष ु और भीर वयिक िा ।`` षोषो``

`` लेिकन िमत , कूटनीिि िे पुर की हतया करना कहाँ िक उिचि पिीि होिा है `` िमत अननि ! िुमहारा इि िरह उतेिजि होना शोभा नहीं दे िा । एक राजा का

जो किवाय होिा है उिका पुर ने पालन भी नहीं िकया । कया िुमहे जाि है , पूरे कैकय गणरजय के नागिरको को पुर की मतृयु का िबलकुल भी शोक नहीं है । िुमहे समरण होगा िििशला नरे श आंिभ ने िो यवन राज के िमि हिियार डाल िदए िे िकनिु पुर ने युदिेत मे िहसो िैिनको का रक

बहाने के बाद यवन िमाट ििकनदर िे ििनध कर ली और मुझिे ििनध के िवषय मे चचाा िकए

िबना ििकनदर की िारी शिे सवीकार कर यवनराज की पराधीनिा सवीकार कर ली । इििे बड़ा राषदोह कया हो िकिा है । यवन िमाट जािे-जािे भी अनय गणराजयो को परािजि करने की महतवाकांिा रखे हुए है िकनिु हम उिे आगे बढ़ने नहीं दे गे ।``

`` लेिकन िमत चाणकय , यह नीिि िही नहीं है । िंभवि दारि या कठ गणराजय

ने यह पििशोध िलया हो ।``

`` िमत हो िकिा है िक यह पििशोध िििशला नरे श आंिभ वदारा िलया गया हो ।

यह भी िुनने मे आया िक आंिभ ने ही िवषकनया पुर के पाि भेजी िी । ``

`` िुमहे िब जाि होने पर भी कुछ नहीं िकया । ऐिा कयो षोषो ``

`` िमत अननि ! यह िवषय और यह कायि ा ेत मेरा नहीं है । मै भारि के नरे शो को एकछत के नीचे दे खना चाहिा हूँ । यवनो को भारि मे पवेश होने िे रोकना चाहिा हूँ और महादष ु नंद को राजििंहािन िे पदचयुि कर उिके सिान पर चनद को िबठाना चाहिा हूँ । ििर मुझे

आपिी झगड़ो िे कया पयोजन । पयोजन बनाओ िो राषीय-िहि का अनयिा आपिी झगड़ो का पयोजन बनाकर आपि मे ही लड़िे-झगड़िे रहने िे कया उपलिबध होगी । िुम ही बिाओ ।``

`` मै िुमहारी महातवाकांिा को जानिा हूँ िमत ,लेिकन यह भी अनुरोध करना

चाहूँगा िक यह िब होने िे रोकना होगा ।``

`` यह मै नहीं कर िकिा । मेरा उदे श राषीय-िहि िे है जो राषीय-िहि लेकर मेरे

िाि चलेगा मै उिका पूरा िहयोग करँगा । कया िुम मेरा िहयोग कर िकिे हो । ``

`` िमत ! नंद को पदचयुि कर चनद को ििंहािन पर िबठाना िो राषीय-िहि नहीं

है । इिमे केवल चनद का लाभ होगा राष का नहीं ,िो ििर ..!``

`` नहीं िमत अननि ! चनद का मगध के राजििंहिन पर बैठने का अिा होगा ,

िमपूणा भारि के गणराजयो को एकछत के नीचे एकत करना । कोई िकिी िे नहीं लड़े गा । उनहे लड़ना ही है िो राषीय-िहि के िलए लड़े ।``

`` मगध िामाजय की िेना के आगे िुमहारी यह पाँच-दि िहस िेना िचिटं यो के

िमान है । इनिे कया होगा । इिना पबल वेग न िो चनद के पाि है और न ही िुमहारे पाि है । यह युद जीिना केवल सवपन दे खने के िमान होगा । इि िरह के सवपन दे खना उिचि पिीि नहीं होिा िमत चाणकय ।``

`` हाँ िमत ! िुम ठीक कहिे हो । चनद के पाि जो िैनय-शिक है वह िबलकुल अलप

है िकनिु िमत अननि ,युद केवल िैनय-शिक िे ही नहीं लड़ा जािा । इिके िलए िैनय-शिक के

अलावा बुिद की शिक की आवशयकिा होिी है । हम बुिद की शिक िे मगध का युद करे गे । इि

युद मे रकपाि या िो होगा नहीं और आवशयकिा पड़ी िो िोड़ा-बहुि रकपाि करना भी पड़ िकिा है िकनिु िंभवि: रकपाि की आवशयकिा पिीि नहीं होगी । यह भी िुम दे खना िमत अननि ।`` ...

`` िमत ! हमे भी ऐिी बुिद दो िजििे रकपाि हुए िबना ही युद जीि िलया जा िकिा है ।`` `` नहीं िमत ! एक िथय िदै व गांठ बांध कर रख लो िक जो काया बल िे नहीं हो

रहा हो उिे बुिद िे ििद करने की कोिशश की जाए । लेिकन एक बार मे केवल एक काया ही बुिद िे िलया जाय । यिद अनेक काया एक िाि एक ही बुिद िे लेने की कोिशश ् करोगे िो नष हो जाओगे

। हाँ , मुझे िुमिे िहायिािा धन पाप हो जाय िो िुिवधा होगी । कया िुम हमे धन का िहयोग कर िकिे हो षोषो``

`` मै आपके िाि हूँ । अचछा अब चलिा हूँ ।``

अननि शमाा ने िहयोग का वचन िो िदया िकनिु वह िवशिनीय नहीं है । कहिा

कुछ है और करिा कुछ है । हाँ , लेिकन हािन पहुँचाने का कोई पयाि नहीं कर िकिा । मेरी

योजनाओं को िकयाििनवि करने के िलए अिधक िहयोग की आवशयकिा है । िकिी के पाि

िैनय-शिक है िो िकिी के पाि धन की शिक है । मेरे पाि केवल बुिद और गुप िूचनाओं की शिक है ।

0 यवन िमाट जािे-जािे भी अनय जनपदो को परािजि करने मे लगे रहे । मै उनहे अिधक िमय िक भारि मे रहने दे ना नहीं चाहिा िा । मुझे शीघ ही कुछ करना िा । पाप िूचना के अनुिार ििकनदर भारिीय योदाओं के िाि मलल-युद की पिियोिगिा आमंिति कर रहा िा ।

इि पिियोिगिा मे मलल-युद का मुखय उदे शय भारि के शिकशाली योदाओं को परासि कर मतृयुदणड दे ना है । मलल-युद िो एक बहाना है िकनिु वह इिना शाििर मिसिषक का है िक इि मललयुद मे केवल योदा-िैिनको को ही आमंिति कर रहा है । िपछले मलल-युद मे उिने अनेक भारिीय मलल-योदाओं को कूटनीिि िे मतृयु की नींद मे िुला िदया।

मलल-युद की िोषणा हो गई । िििशला मे मललयुद के िमाचार िवदुि की िरह

िैल गए । यह ऐििहाििक मललयुद दे खने के िलए िििशला के नागिरक उमड़ पड़े । नागिरको के िलए यह महज़ एक खेल िा िकनिु वे यह नहीं जानिे िे िक मललयुद मे परािजि योदा मतृयु को

पाप हो जािा है । यवन के मललयोदा शिकशाली िे । इििलए वे भारिीय मललो पर भारी पड़िे िे । बावजूद भारिीय मललो ने यवनो के मलल का मुँहिोड़ जवाब िदया । परनिु अब की बार जो

मललयुद होनेवाला िा वह यवन िेनापिि िििलपि और चनदगुप के बीच िा । पिम िो िििलपि ने चनदगुप के आवाहन को ठु करा िदया और कहा िक चनदगुप िकिी अनय यवन मलल को चुन ले

िकनिु चनदगुप ने िििलपि को ललकारा िक िििलपि मे मललयुद का िाहि नहीं है िो वह अपनी हार सवीकार कर ले और िििशला िे चले जाए । जब चनदगुप ने इि िरह ललकारा िब िििलपि ,चनदगुप के िाि मललयुद करने के िलए िैयार हो गया ।

िजि िदन िििलपि और चनदगुप के बीच मललयुद होना िा उि िदन िििशला

के नागिरक इि अििवदिीय युद को दे खने के िलए उमड़ पड़े । मैने िुदामा और अनय िािक मललयोदाओं को अस-शस ििहि िैयार कर चनदगुप की रिा के िलए िैनाि कर िदया । हो

िकिा है िक यवन िेना मे िकिी भी िमय चनदगुप के िवरद षडयंत रचा जा िकिा है और चनद को ििि पहुँचाई जा िकिी है । िुदामा पिशििि मललयोदाओं के िाि मललसिल पर

गोपनीयिौर पर इि िरह िे िैनाि हो गए िक िंकट की िसििि मे हर िंभव उपाय िे चनद को बचाया जा िके । मललसिल की िेराबनदी िजि िरह िे मैने की िंभवि: उिी िरह िे िििलपि ने भी करवाई िी । यवन िैिनक पहचान मे आ जािे िे बिलक भारिीय िैिनक पहचान मे नहीं आ रहे िे । इिका कारण यह िा िक मललसिल पर िजिने यवन िैिनक उपिसिि िे उनके कई गुणा

जयादा भारिीय िैिनक और नागिरक उपिसिि िे । इििलए भारिीय िैिनको को पहचाना जाना किठन िा । मललसिल पर ऊँचे सिान पर िििशला नरे श शिशगुप और आंिभ िवराजमान िे । िििलपि अपनी िवशेष वेशभूषा मे आंिभ के िबलकुल बगल मे बैठा िा । उिके चारो ओर यवन

िैिनक अस-शस के िाि खड़े िे िकनिु चनद िामानय वेशभूषा मे िििशला नागिरको के बीच बैठा िा । आंििंभ ने िििलपि को िंकेि िे मललिेत मे उिरने को कहा । वह वि िुलाये हुए

मललिेत मे उिर आया । िििलपि दे खने मे बहुि बलवान और बड़ा भारी िदखाई दे रहा िा । वह चनद िे आयु मे अिधक ही िा । चनद का शरीर बड़ा भारी नहीं िा िकनिु उिका शरीर भरा हुआ

और बिलष िा । वह बार-बार अपनी िाल ठोकिा और अतयनि गंिंभीर वाणी के िाि चनद को ललकारने लगा । चनद अब िक नागिरको के बीच बैठा रहा । वह बार-बार मेरी ओर दे खने लगा । िंभवि: वह मेरे िंकेि के िलए अब िक रका हुआ िा । िििलपि की हुंकार िेज िी और वह

िायल शेर की िरह जोरो िे गजन ा ा कर रहा िा । मैने चनद को िंकेि मे आिशवाद ा दे कर मललिेत

मे उिरने का िंकेि िदया । चनद भीड़ मेिे िे िनकलकर मललिेत मे उिर आया । वह बहुि शानि

िदखाई दे रहा िा । वह िजिना शानि िा , उिना ही धीर-गंभीर भी िा । वह िििलपि की गजन ा ा िे भयभीि नहीं हो रहा िा और न ही वह उतेिजि हो रहा िा बिलक सवयं को िनयंिति कर िचेि

िदखाई दे रहा िा । उिने आिहसिा-आिहसिा मललिेत के दो-चार चककर लगाए । िििलपि वदारा ललकारने पर वह िचेि हो गया और उिकी आँखो मे आँखे डाल पढने का पयाि करने लगा ।

िििलपि की आंखो मे जवाला भभक रही िी जबिक चनद के मुखमणडल पर मुसकान िबखर रही िी । चनद को मुसकरािे दे ख िििलपि और अिधक गजन ा ा करने लगा । उिे लगा चनद उिका उपहाि कर रहा है िकनिु चनद को िजि िरह िे मैने पिशििि िकया िा वह ठीक उिी िरह मललिेत मे

उिरा िा । मैने उिे पहला मंत िदया िा िक जब िक िामनेवाला सवयं वार न करे िब िक शानि रहकर उिे छकािे रहो । चनद ने भी यही िकया । िििलपि िविभनन िरह िे चनद पर दांव

आजमािे रहा । िििलपि ने मललिेत के कई चककर लगा िलए िकनिु हर बार चनद उिके दांव को बचाने मे ििल होिे रहा । िििलपि िेजी िे िूम-िूमकर चनद पर दांव आजमािे जािा और चनद

हर बार उििे बचिे जािा । दोनो के इि अििवदिीय मललयुद को जहाँ यवन िैिनक बड़े धयान िे दे ख रहे िे वहीं भारिीय भी बड़े उतिाह िे दे ख रहे िे । यवनोिे के िलए उनकी पििषा का पश िा िो भारिियो के िलए यह िण गौरवशाली िा । हर िण लगिा िा िक यह अिनिम दांव है िकनिु

दि ा नहीं हो पा रहा है । धीरे -धीरे मललयुद मे गिि ू रे ही िण दे खिे िे िक अभी िक कुछ भी िनणय आने लगी । दोनो लपक कर मुषी पहार करिे और बचने का पयाि करिे । चनद की मललकला मे जवाला नहीं िी िकनिु बिीली िपन जवाला िे कई गुणा िेज िी । वह मुसकराकर रह जािा िो

िििलपि और अिधक कोिधि हो आग-बबूला हो गजन ा ा करिा । िभी िििलपि ने इिनी िेजी िे चनद की कनपटी मे मुषी-पहार िकया िक वह लगभग दि पग पीछे जा िगरा िकनिु िििलपि के िवार होने के पहले ही वह िवदुि गिि िे उठ खड़ा हुआ और मुषी-पहार का उतर िििलििपि के दोनो कनपिटयो पर िबना िमय गंवाएं बड़ी िीविा िे िदया । िििलपि ििलिमला कर ििर

पकड़कर िगर पड़ा । उिके िगरिे ही चनद ने बड़ी सिूििा िे िुटनो का पहार िििलपि के वि पर िकया । िििलपि हांप उठा । वह िीविा िे करवट बदल कर खड़ा हो गया । चनद अभी िंभल भी

नहीं पाया िक िििलपि ने अपनी मजबूि टांगो की कैची बनाकर चनद को जकड़ िलया । पल भर के िलए चनद सिबध हो गया । मुझे लगा अब चनद के पाण िंकट मे पड़ गए । उिने मेरी ओर दे खा । मैने िंकेि िे अपना वस चीर कर िदखाया । हालांिक चनद जकड़ गया िा िकनिु वह शीघ ही

िंभल गया और िििलपि के दोनो पैरो के बीच जोड़ो पर मुषी पहार िकया । िििलपि िबरा गया । उिके पैरो की पकड़ ढीली पड़ गई । पकड़ ढीली पड़िे ही उिी िण चनद ने िििलपि का एक पैर अपने दोनो पैरो के नीचे दबा िलया और दि ू रा पैर अपने मजबूि हािो मे पकड़ ऊधा एवं दीि Z

खींच िलया । िििलपि चीख पड़ा । दे खिे ही दे खिे चनद ने िििलपि को बांि की िरह चीर कर िेक िदया । िििलपि का आधा शरीर चीरा जा चुका िा । उिकी दे ह मललिेत मे छटपटाने लगी । रक धारा िूट पड़ी । उयवनो मे हड़कम मच गई । भारिियो मे जयिोष गूज ँ उठा । यवन कोई

पििकारातमक कायव ा ाही करिे इििे पहले ही मेरे वदारा िैनाि िवशेष मललो ने चनद को उि भीड़ िे शीघिा िे इिनी दरू ले गए िक पिा ही नहीं चला िक वह कभी मललिेत मे िा भी या नहीं ।

आंिभ और शिशगुप का मुख लटक गया । उनके मुख पर हिाशा और दयनीयिा सपष िदखाई दे

रही िी । यवन िैिनक दौड़ पड़े िकनिु कहीं भी चनद का पिा नहीं चला । मै भी ितिण वहाँ िे चल िदया ।

िििशला िे कुछ दरूी पर िविसिा के उि पार हमारा िशिवर लगा हुआ िा । यह

सिान हमारे िलए िुरििि िा । मुझे दे खिे ही चनद मेरे चरणो पर झुक गया । मैने उिे उठाकर

अपने वि िे लगा िलया । वसिुि: आज मेरा वि िूलकर कुपपा हुआ जा रहा िा । आज का िदन मेरे िलए िवजय का िदन िा ।

ििकनदर को जब िििलपि के पराजय और मतृयु की िूचना िमली । वह ििर िे

पैर िक कांप उठा । वह जानिा िा िक यह खेल मेरे वदारा खेला गया है । मुझे हराना उिके बि मे नहीं िा । उिने ििलयूकि को आदे श िदया िक अब यवन चलने के िलए पूरी िैयारी कर ली जाय । यह बाहण कूटनीिि िे यवनो को जीने नहीं दे गा ।

लेिकन यवन िमाट वापि जाने के बजाय भारि के मालवा के पििमी िेतो की

ओर रवाना हो गया । िंभवि: उिकी महतवाकांिा अभी शेष िी । पििमी भारि के छोटे -छोटे

राजयो के नरे श नहीं चाहिे िे िक यवन िमाट ििकनदर भारि मे अपने पैर पिारे । इि पििकूल िसििि मे पििमी मे लगभग िभी नेरशो ने िमलकर यवनो की शिक को ललकारा । इिना ही नहीं उनहोने यवन िेना मे विृत पाप कर रहे भारिीय िैिनको को भी लिाड़ा । पिरणामसवरप पििम

भारि मे यवन िेना मे विृत पाप कर रहे भारिीय िैिनको ने एक बार ििर यवनो के िवरद िवदोह

कर िदया िकनिु चिुर-िशरोमिण ििकनदर ने उन िैिनको का आवाहन िकया और कहा िक यिद वे वापि जाना चाहे िो जा िकिे है िकनिु हो िकिा है िक वापि लौटिे िमय वे शतुओं वदारा मारे जा िकेगे । इििे अिधक उिचि होगा िक वे यवन िेना मे ईमानदारी के िाि काया करिे रहे ।

ििकनदर के इन िवचारो को िुन भारिीय िैिनक पुन: यवन िेना मे अपनी विृत पर पििबद हो गए ।

हालांिक यवनो ने मालवा मे बहुि रकपाि िकया िकनिु भारिीय मालवा नरे शो की

एकिा दे ख यवन िमाट भी दांिो िले अंगल ु ी दबाये न रह िका । वह भले ही उतरी िेत को छोड़ गया िकनिु पििम मालवा मे भी अिधक िमय िक िटक न िका ।

पििमोतर मे यवनो का आकमण पूरी िरह ठहर िो नहीं पाया िकनिु यवनो को

आशंका बनी रही िक कहीं उनहे भारि िे पलायन न करना पड़े । मेरी दिष िनरनिर पििम मालवा पर िटकी रही । इिना ही नहीं मै मालवा मे भारिीय नरे शो को िैिनक िहायिा करिे रहा । मालवा मे चनद और िुदामा के िैिनक बराबर ििकनदर का पीछा करिे रहे । मेरी अपनी महतवाकांिा मालवा मेिं भी यिावि रही िक यवन भारि छोड़ दे । 0 उतर भारि मे आयाव ा िा पर यवनो के िंकट के बादल कमजोर पड़ने लगे िे । केकयराज पुर की मतृयु और यवन िेनापिि िििलपि का मललयुद मे मारा जाना ििकनदर के िलए िबक बन गया । वह इन दोनो की मतृयु िे िवचिलि हो गया िा । जािे-जािे उिने आंिभ और शिशगुप को केकय गणराजय ,कठगणराजय ,विािि ,अिभिार और गांधार गणराजय की

बागडोर िौप दी िी । आंिभ और शिशगुप की मन:िसििि इिनी िुदढ़ नहीं िी िक वह इन िवशाल राजयो को िंभाल पाए । इिका कारण यह िा िक इन राजयो को यवनो के अनुरप िंचािलि करना िा जो आंिभ और शिशगुप के िलए िरल नहीं िा । वे यवनो के अनुरप न िो सवयं को ढाल पा रहे िे और न ही इन गणराजयो को । वे गंभीर हो गए िे । इिका मुखय कारण मै सवयं भी िा । वे

मुझिे भयभीि िे । मै अब इि ओर िे िनििि िा िकनिु ििका भी िा िक कहीं ये दोनो िमलकर चनद को िकिी िरह की ििि न पहुँचा िके । िवितिा के उि पार मेरे िशिवर मे इन दोनोिे को

लेकर िचनिा छाई हुई िी । केकय गणराजय भले ही यवनो के अधीन हो िकनिु पुर की मतृयु के

बाद िबिे अिधक दिष अननि शमाा की िटकी रही । जबिक अननि ने मुझे िहयोग का आशािन िदया िा िकनिु जाने कब वह अपने आशािन िे मुकर जाय कह पाना किठन िा । मुझे अपनी महातवाकांिा के अगले पड़ाव पर चलना िा । यह िोचकर मैने चनद ,िुदामा और अनय िभी िहयोगी िमतो को एकत िकया । मैने कहा -

`` यहाँ की िसििि अब अिधक जिटल नहीं है । यवन िमाट ििकनदर उतर भारि िे

िनकल गया है । हमे िििशला और केकयराजयो पर दिष रखकर ििका रहना होगा । आंिभ

,शिशगुप और अननि शमाा के हदयो मे जवाला भभक रही होगी । कहीं ऐिा न हो िक वे हम पर

पििशोध लेने के िलए आकमण कर बैठे । इिके पहले िक हम अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़े हमे

ििकािा िे काम लेना होगा । यहाँ का काया िमपनन हुआ है । चनद , हमारे पाि िकिने िैिनक है और धन की िसििि कया है षोषो``

`` आचायव ा र ! हम पूणि ा : ििका है । िवितिा के इि पार अिधक खिरा नहीं है

लेिकन हमारी ििकािा आवशयक है । हमारा यहाँ का काया अभी शेष है गुरवर । हम चाहिे है िक

यहाँ जो यवन िशिवर िैनाि है उनहे नष कर दे । इििे यह होगा िक हम यहाँ के िलए िनििनि हो जाएंगे । हमारे पाि बीि िहस िैिनक और पांच िौ िेवक है । हम यवन िशिवरो पर िािक

आकमण कर उनहे िहि-नहि कर दे ना चाहिे है । धन अभी है िकनिु धन की वयवसिा करनी होगी । ``

`` िाधु ! िाधु !! हमे यहाँ के काया अिधक िे अिधक दो िदनो मे पूणा करने होगे ।

जैिे ही हमारा यहाँ का काया िमपनन होगा हम यहाँ िे मगध के िलए पसिान करे गे । हमारी िि

वदिीय महतवाकांिा मगध के आिपाि िबखरी पड़ी है । चनद िुम यहाँ का काया शीघ पारं भ कर दो । `` पििमोतर भारि को िुरििि करने के िलए चनद और िुदामा ने यवनो िंके िशिवरो पर आतमिािी आकमण पारं भ कर िदए । दे खिे ही दे खिे दो रािो मे िारे िशिवर नष हो

गए । सवणम ा ुदाएं और धन पयाप ा माता मे पाप हुआ । यह धन चनद की िैनय-शिक के आवशयक िा । आंिभ ,शिशगुप िमझ ही नहीं पाए िक यह िब कैिे हुआ जबिक अननि को मुझ पर

आशंका हो गई लेिकन वह भी ििका हो गया िक कहीं उिे भी इि आतमधाि का िशकार न होना पड़े । हालांिक उिकी यह िोच िनराधार िी । यवनो के िशिवरो को नष करने के बाद मै िनििनि

हो गया । मै अब मगध को केनद बनाकर आगामी पड़ाव के िलए िैयार हो गया । चनद को एकानि मे बुलाकर कहा-

`` चनद , मुझे शीघ ही आचाया शकटार िे िमलना आवशयक है । आचाया शकटार

िे िमलने के बाद मै मगध जाना चाहूँगा । वहाँ मगध की राजधानी पाटिलपुत मे मेरे िमत

रिचकुमार ,नंद के दरबार मे अमातय है । उनिे भी भि्ोट की जाना है । यहाँ की िसििि वैिे शानि हो गई है ििर भी ििका रहने की आवशयकिा है । िुम िवितिा के इि पार अपना िशिवर रहने दो । यिद आवशयकिा पड़ी िो िुम िशिवर को अनयत सिानानििरक कर िकिे हो । गुपचार िवभाग को और अिधक दढ़ करने का पयाि करो और पिििण की िूचना एकत करिे रहो । महतवपूणा

िूचना मुझ िक पहुँचाने की वयवसिा िुमहारे पाि होगी । हाँ , भूल िे भी राजिगरी या पाटिलपुत

जाने की गलिी नहीं करना जब िक िक मै िुमहे िकिी िरह का िनदे श न दँ ू । लेिकन हमारे पमुख

केनद िििशला ,पाटिलपुत और आचाया शकटार के नगर बह ृ दहटट मे होगे । इन िीन नगरो िे हम िमपूणा आयाव ा िा पर दिष रख िकेगे । इिना ही नहीं इनहीं िीनो केनदो िे िमपूणा गिििविधयो का िंचालन भी करे गे । जब िक हमारे उदे शय की पूििा नहीं होिी हम इन केनदो पर िनभरा रहे गे ।

िुमहारी मािा महारानी मुरादे वी िे भी भेट करनी है । िुमहे भी मािा मुरादे वी का समरण आिा होगा । लेिकन ििलहाल िंवेदना को दबाए रखो । िमय आने पर िब ठीक हो जाएगा । मुझे शीघ ही आचाया शकटार के पाि जाना है । मै चलिा हूँ । काया होिे ही शीघ लौट आऊँगा या िुमहे आने

की िूचना दे दँग ू ा । हमे छल-बल और गूढ़नीिि िे काया करना है । इििलए वति िदै व ििका रहो । अचछा , अब मै चलिा हूँ । ििर भेट होगी । ``

चनद को ििका रहने और िमझाने के बाद मैने आचाया शकटार िे भेट करने

बह ृ दहटट की ओर पसिान िकया । बह ृ दहटट पहुँचने मे मुझे पूरा एक माह लग गया। आचाया शकटार के चरणसपशा के बाद मै उनके िमीप बैठा । वे बोले-

`` इिने िदनो के बाद िुमहे मेरा समरण हो आया िवषणु । मै यह िमझा िा िक

कया पिा िुम इधर का पि ही िवसमि ृ हो गए होगे । वैिे भी अब मै वद ृ हो चला हूँ । लगिा है अब पूणा िवशाम का िमय िनकट आ गया है ।``

`` नहीं आचाया ! आपको समरण होगा िक नंद वदारा अपमािनि होने के बाद मै

आकोश मे आकर िििशला वापि लौट गया िा । िििशला लौटने पर दे खा िक पििमोतर भारि की िसििि अतयनि पििकूल हो गई िी । यवन िमाट ििकनदर का आिंक चरम पर िा ।

िििशला नरे श आंिभ , केकयराज पुर , कठराज इनद और अनय गणराजयो पर िंकट के बादल मंडरा रहे िे । यवनराज ने अनेको गणराजयो को परािजि कर अपने अधीन कर िलया । कुछ नरे शो ने सवयं ही ििनध कर ली । ऐिी िसििि मे मुझे चनद को िाि ले भारिीय नरे शो का

िहयोग करना अतयनि आवशयक हो गया िा िकनिु पद-दिलि और पदचयुि नरे श यवनो के िमि िुटने टे क चुके । पुर और इनद िजि िकिी िरह मारे गए।

यवनो का रक उबलने लगा । चनद ने यवन िेनापिि िििलपि को मललयुद मे मार डाला और पुर

के िाि यवनयुद मे चनद ने पराकम के िाि यवन िमाट ििकनदर को चने चबवा िदए । वह चनद के िाि िमलकर आयाव ा िा मे पवेश करना चाहिा िा िकनिु चनद और मैने उिे आयाव ा िा की ओर

बढ़ने ही नहीं िदया । अनिि: यवन िमाट ििकनदर पििमोतर िे पििम-दििण की ओर चल पड़ा । जािे-जािे उिने िििशला ,केकय और अनय गणराजयो की बागडोर उनके अधीनिा सवीकार करनेवालने नरे शो को िौप िदया । लेिकन हमने चुप रहने की बजाय इन राजयो मे िैनाि यवन

िशिवरो का नष करना पारं भ कर िदया । मै आपके पाि चला आया । अब मुझे अपने मुखय उदे श को मूिा रप दे ने के िलए मगध की ओर पसिान करना है ।``

`` अब िुमहारी आगामी योजना कया है आचाया िवषणु षोषो``

`` पिमि: मुझे आपके िहयोग की आवशयकिा है । आप िजिनी अचछी िरह िे

मगध िामाजय और पाटिलपुत िे पिरिचि है उिना मै नहीं हूँ । मै अब मगध िमाट नंद िे

पििशोध लेना चाहिा हूँ । उिे पदचयुि करके या पाटिलपुत के राजििंहािन िे िगराकर चनद को मगध के राजििंहािन पर बैठा दे खना चाहिा हूँ । जब िक मै नंद को पूणि ा : िमाप न कर दँ ू िब

िक मेरी यह िशखा इिी िरह खुली रहे गी और मुझे बार-बार नंद वदारा िकए गए अपमान की आग मे झुलिािे रहे गी । मेरे अनिि मे धधक रहे जवालामुखी का लावा भीिर ही भीिर खदबदा रहा है । मै इि खदबदािे लावा िे नंद को नष करना चाहिा हूँ । जब िक मै यह काया ििद नहीं करिा िब िक मेरे वि मे खदबदािा लावा मुझे शानि रहने नहीं दे गा । मै इि उदे शय के िलए आपका िहायिा चाहिा हूँ ।``

`` लेिकन आचाया िवषणु , िुम अचछी िरह िे जानिे हो िक मगध िमाट नंद के

पाि िागर के िमान िवशाल िैनय-शिक है । िुमहारे पाि कया है । िुम न िो कहीं के नरे श हो , न िमाट हो और न ही िुमहारे पाि नंद की िेना िे टककर लेने के िलए पयाप ा िेना है । धन और बल के िबना भला िुम नंद िे पििशोध कैिे ले िकोगे ।``

`` आप ठीक कहिे है आचाया िकनिु मै िैनय-शिक िे अिधक बौिदक शिक की

बाि कह रहा हूँ । जो बौिदक शिक आपके पाि है वह नंद की िवशाल िेना के पाि नहीं है । यिद हम िेना िे कम और बुिद िे अिधक काया ले िो िनििि ही हम हार नहीं माननेवाले । बि यही

हमारी आवशयकिा है । कूटनीिि के िबना इि िवशाल िेना को परािजि नहीं िकया जा िकिा ।`` `` लेिकन िकि िरह षोषो``

`` केवल एक ही रासिा है । वह है कूटनीिि , छल-बल और िूटनीिि । चनद िाहिी युवक है । उिने यवनो को आयाव ा िा की ओर पवेश करने िे रोका है । यवनो के शूरवीर

योदाओं का दमन िकया है । उिने अनेकानेक पराकम िकए है । यहाँ िक िक उिके भय के कारण पििमोतर के नरे श और सवयं यवन िमाट भी उििे ििनध करना चाहिा िा िकनिु चनद और

मेरा लकय एक है । िजिना मै अपने राजय मगध का पुत हूँ उिना ही चनद भी मगध का ही पुत है । इिी िमबनध के कारण हमने यवनो को आयाव ा िा की ओर बढ़ने िे रोका है अनयिा यवन िमाट अपनी िवशाल िेना के िाि अब िक आयाव ा िा मे पवेश कर चुका होिा ।``

`` ठीक है । मै इि लकय को मूिा रप दे ने के िलए िदै व िुमहारे िाि हूँ । िजि भी

िमय िुमहे मेरी आवशयकिा होगी मै ितपरिा िे आगे आऊँगा ।``

`` पूवा मे आपने जो रत-मंजूषा हमे पदान की िी उिके िलए हम आपके आभारी है

। मुझे मगध पसिान की आजा िदिजए । पाटिलपुत मे मेरा िमत रिचकुमार नंद के दरबार मे अमातय है । मै उनिे िमलना चाहूँगा ।``

`` अवशय िकनिु यह समरण रहे िक िुमहे कोई ििि पहुँच न पाए ।``

`` नहीं आचाया , मै वेशभूषा बदल कर जाऊँगा । जाने िे पहले मै िहमािद िे भेट

करना चाहूँगा । उिे मैने राजिगरी छोड़कर आपके आशय मे बह ृ दहटट मे रहने को कहा िा।`` `` अचछा , वह यवन युविि ...``

`` नहीं अब वह भारिीय युविि है और िुदामा के गुपचार िवभाग की पमुख है । िंभवि: उिने कोई िूचना िंगिहि की हो ।``

आचाया शकटार िे पसिान की अनुमिि ले मै िीधे िहमािद के पाि पहुँचा । उिने

बह ृ दहटट मे एक गुप-भवन मे अपना िठकाना बनाया िा । उिकी वेशभूषा यहाँ आकर िबलकुल

बदल गई । अब वह पूणा भारिीय नारी के िमान रहने लगी । उिे दे खकर पहचाना जाना किठन िा िक वह यवन युविि है । उिका शरीर पहले की अपेिा बहुि कुछ अशक हो गया िा । पहले की िी कािनि ,िेज , चपलिा ,वाकपटु िा ,कुिटलिा अब उिमे नहीं िी िकनिु उिमे चिुरिा जि की िि िवदमान िी । वदार खटखटािे ही उिने खोल िदया । उिके नेतो िे अशध ु ाराएं बह रही िी । मुझे दे खिे ही वह िूट-िूट कर रोने लगी । वह लगािार रोये जा रही िी । अबकी बार वह मुझिे

िलपटकर नहीं रोई बिलक वह खड़े -खड़े ही रोिे रही । मै वदार की चौखट पर खड़ा उिे दे खिे रहा । बोला-

`` कया बाि है दे वी िहमािद षोषो कयो रो रही हो षोषो``

लेिकन उिका रोना रक नहीं रहा िा । मैने उिे कांधो के िहारे िंभाला और भीिर िबछाएं िबछौने पर िबठाया । सवयं ही रिोई मे जा पात मे पानी ले आया । अब िक उिका रदन

िम गया िा । उिने पानी पीया । पात एक ओर रखा और मेरे वि िे िचपक कुछ िमय िक यो ही िसिर रही । जब उिका हदय शानि हुआ , वह ििमट कर मेरे पाि ही बैठ गई।

`` िवषणु ! अब मै बहुि िक चुकी हूँ । िुमिे दरू रहकर मेरा हदय िविछनन हुआ

जा रहा है । छुप-छुपकर जीना मुझे अब भला नहीं लग रहा है । मै िजिना िुमहारे पाि आना

चाहिी हूँ , उिने ही िुम मुझिे दरू-अिि-दरू चले जािे हो । कब िक यह िब चलिा रहे गा । मै यह भी नहीं जानिी , िुम िकि िमय कहाँ हो षोषो िकि िसििि मे हो । िुमिे िमलना भी चाहूँ िो

िुमहारा कहीं पिा-िठकाना नहीं िमलिा । मै लगािार इन िीि-पैििि वषोZिं िे केवल भटक ही रही हूँ । यह ितय है िक िुम भी भटक ही रहे हो । हमारा पेम कया इिी िरह भटकिे रहे गा षोषो मै नहीं जानिी ,मुझे अब कया करना चािहए िकनिु यह जानिी हूँ िक अब मुझे कुछ नहीं करना होगा ,अलावा िुमहारे पेि्रम की छाया मे ही रहना चाहिी हूँ ।``

`` िपये ! िुम ठीक कहिी हो । हम इन िीि-पैििि वषाZिे मे भटक ही रहे है ।

कोई एक िनििि सिान न मेरा है और न ही िुमहारा है । समरण रहे दे वी िक हमारा उदे शय

िामानय जन िे पि ृ क है । जब िक यह िमपूणा भारिवषा एकछत गणराजय नहीं होिा िब िक मै चुप कैिे बैठ िकिा । जब िक िुरा-िुनदरी के मद मे चूर धन-लोभी कामुक नरे श भारि मे राजय

करिे रहे गे िक िब मै कैिे चुप बैठा रह िकिा हूँ । पिमि: जब िक इन कामुक नरे शो को िमाप नहीं करिा िब िक मै चुप कैिे बैठा रह िकिा हूँ । दे वी ! िजिना िुमहे मेरी आवशयकिा है उिनी ही मुझे िुमहारी आवशयकिा है । हम दोनो एक दि ू रे का िंबल है । एक दि ू रे की वह शिक है

िजिके आधार पर हम किठन िे किठन पि पर आिानी िे चल िकिे है । अनयिा िुम दे ख रही

हो िक जो िवकट िसििियाँ भारिवषा के ििर पर मंडरा रही है वह िकिनी भयावह है । मै इनिे इि

दे श को बचाना चाहिा हूँ । दे वी ! कया िुम मुझे िदा की िरह और अिधक िहयोग नहीं दे ना चाहोगी षोषो``

`` िमा करे आया , मै िो अपनी ही पीड़ा मे पगला गई िी । आपने मेरे नेत खोल

िदए । मै पुन: आपके िाि कांधा िे कांधा िमलाकर काया करने के िलए ितपर हूँ । कहो, मुझे आगे कया आजा है षोषो``

`` पेि्रम मे पेि्रमी कया-कया नहीं करिे िकनिु हमारा पेि्रम अब इि भारिवषा

के िलए िमिपि ा है । पििमोतर मे यवनो की िसििि िे िुम अचछी िरह िे पिरिचि हो । िििशला का िेत चनद और अनय िशषयो के िंरिण मे है । अब हमे मगध मे कूटनीिि का जाल िबछाकर

कामुक और मद मे चूर मगध िमाट नंद को िमाप कर उिनके सिान पर चनद को राजििंहािन पर िबठाना है । इि पिवत उदिेदशय के िलए मुझे िुमहारे िहयोग की अतयनि आवशयकिा है । िुम बह ृ दहटट मे हो रही पतयेक हलचल की िूचना एकत करो और पिििण मुझे अवगि करािे

रहो । मै पाटिलपुत जाकर और भी वयवसिा करना चाहिा हूँ । यह काया िजिनी शीघिा िे हो िके उिनी शीघिा िे पूणा िकया जाना है । जब िक भारिवषा एकछत राजय नहीं होिा िब िक यवन भारि पर कूिटलदिष लगाए रखेगे । वे जानिे है िक भारिियो को िकि िरह आपि मे टकराकर राज िकया जािा है ।``

`` मै पसिुि हूँ आया ! मै इिी िण िे अपना काया पारं भ करना चाहिी हूँ ।``

`` ठीक है .......लेिकन िपये....कया िुम मुझे इिी िरह रखा-िूखा िवदा कराओगी। अपने पेमांचल मे सिान दे कर कृ िज नहीं करोगी षोषो`` `` आया !!!.................................``

कहिे हुए वह आिलंगनबद हो गई । उिके सपशा िे मेरे अंग-पतयंग रोमाििंचि हो

उठे । हम एक दि ृ कर बैठे । मै जानिा हूँ नारी का ू रे के आिलंगन मे िमसि िवश को िवसमि

कोमल सपशा पुरष के िलए नवजीवन के िमान होिा है उिी िरह पुरष का सपशा नारी के िलए

सवगा के िमान िुखदायी होिा है । पगाढ़ आिलंगन और अधरामि ृ िे िभी ििृषि कामनाएं िप ृ हो गई । वह मुसकरा दी िो लगा िमसि ििृष का िुख-वैभव मेरे हदयाकाश पर छा गया । वह पि ृ क हट कर लजा गई । मै मुसकराकर बोला-

`` बड़ी भूख लगी है । कुछ खाने को नहीं दोगी षोषो``

`` िुमहारा मधुरवािाल ा ाप भूख भी िमटा दे िा है । मै अभी लािी हूँ ।``

वह रिोई मे जाकर िूखे मेवे , कुछ िाजे िल और िमषानन ले आई । मैने भरपेट

खाया और अपना ििर उिकी गोद मे रख िदया । बोली-

`` लगिा है शीमान का हदय अभी िक पयाि है ।``

`` नहीं ऐिी बाि नहीं । ििर न जाने कब इिना िुख िुमहारी गोद िमल पाएगी या नहीं । िोचा ,िारी कामनाएं आज ही पूणा कर लूँ । अचछा...यह बिाओ....हमारे बेटे का शुभागमन कब होनेवाला है षोषो``

`` िंभवि: आज आप लाज की गठरी िरयू मे िेक आए है ।``

`` बहुि अचछी िठठोली कर लेिी हो । बिाओ िो भला । वह अिििि कब आएगा ।

हमारे पेि्रम का उपहार कब इि आंगन मे िकलकािरयाँ भरे गा षोषो``

`` उिके आने की िूचना िमलिे ही आपको गुपचर वदारा िूचना दे दँग ू ी ।``

`` अिाि ा ् यह काया भी गुपचर वदारा ही िमपनन कराया जाएगा ।`` `` जी हाँ आया , यह काया भी ...``

। इि िरह.....``

`` ठीक है , हम पिीिा करे गे । अब हमे िवदा दे दो अपने एक गहरे चुमबन के िाि और मैने चलिे-चलिे उिके अधरो पर अपने अधर रख िदए । पाि: ही मै पाटिलपुत पहुँचा । वेशभूषा िविचत होने के कारण कोई पहचान नहीं पा

रहा िा । गि पनदह-िोलह वषा पूवा जो िसििि पाटिलपुत की िी वही िसििि आज भी दे खने को

िमल रही है । हाट मे दाि-दािियोिे का कय-िवकय दे खकर मै आचंिभि हो गया । अनन उिी िरह लुटा जा रहा िा । नगरवधुओं िे हाट गमा िदखाई दे रहा िा । मिदरालय के वदारो पर नागिरको की भीड़ पहले के िमान ही िी । नागिरको मे पहले के िमान ही लड़ाई-झगड़े हो रहा िे । उिी िरह

िैिनक नागिरको पर अतयाचार कर रहे िे । हाट के िबलकुल पि ृ क एक टू टे हुए खपरै ल झोपड़ी के पाि बहुि ही मैला-कुचैला युवक िविचत सवंिाग रच रहा िा । वह पागलो की िी हरकिे कर रहा

िा । मुझे कौिुहल हुआ । मै भी उिके पाि जा पहुँचा । कुछ बचचे उिे िेरे कूदकाद रहे िे । मुझे दे खिे ही बचचे भग खड़े हुए । मैने उिे पात मे जल िदया । उिने एक बारगी मेरी ओर दे खा और मुसकराया । बोला-

`` चनद , चनदमा , चाँद `` यह हमारा िंकेि िा । मै शीघ िमझ गया ,यह हमारा गुपचर है । िंभवि: िुदामा

ने कोई िंदेश भेजा हो ।मै बोला -

`` छनक. छनक..छनक...``

वह भी िमझ गया िक मै चाणकय हूँ । वह बोला-

`` पणाम गुरदे व ! मै बड़ी दे र िे आपकी पिीिा कर रहा िा । हमारे अनुचर

पाटिलपुत की जनिा मे िमाट नंद के िवरद आकोश िैलाने मे ििल हो रहे है । िारे पाटिलपुत मे चनद की वीरिा के परचम िहराए जा रहे है । नागिरक िमाट नंद के आिंक िे आिंिकि हो रहे है । वे न िो मर िकिे है और न ही जी िकिे है । िुदामा अभी भी मगध मे ही है और शीघ ही

िििशला की ओर पसिान करनेवाले है । हमारा एक गुपचर अनि:पुर मे पवेश करने मे ििल हो गया है ।``

वह कहिे हुए पुन:िविचत सवांग लेने लगा । िंभवि: उिने दे ख िलया िा िक कुछ

िैिनक हाट मे आ गए है । मै दि ू री ओर चलिे हुए बोला-

`` मै शीघ नंद के अमातय िे िमलने जा रहा हूँ।``

िैिनक अशो पर दि ु ्रि गिि िे मेरे पाि िे होकर आगे िनकल गए । मैने अिधक

िमय िक हाट मे रकना उिचि नहीं िमझा और िरयू की ओर चल िदया । िरयू िकनारे बैठ कर

सनान िकया । िशवालय मे पणाम कर रिचकुमार के भवन की ओर चल पड़ा । िरयू के कुछ ही दरूी पर रिचकुमार का भवन िदखाई िदया । अचछा हुआ िक रिचकुमार के भवन पर कोई पहरी िैनाि नहीं है । मै िीधे भवन गया और वदार खटखटाया । आिया िक वदार शयामा भाभी ने ही खोला । वह मुझे दे ख बोली -

`` अमातय कहीं गए हुए है । आप बाद मे आइए ।``

मै मुसकरा िदया और हं िने लगा । शयामा भाभी िचढ़ गई । बोली`` िंभवि: आपके पाि लजजा नाम की वसिु है ही नहीं । कृ पया आप यहाँ िे

पसिान करे या बाहर ही अमातय की पिीिा करे ।``

मुझे अब की बार ज़ोरो िे हं िी आ गई । वह कोिधि हो गई । बोली -

`` लगिा है आपको िमाट नंद का भय नहीं है या आप अमातय को नहीं जानिे । वे आपको आपकी इि दष ु िा का अवशय दणड दे गे ।``

`` हम दणड भुगिने ही आए है भाभी जी ...`` `` भाभी जी.....``

वह ििनक मेरे मुख की ओर दे खिे रह गई । मै ििर मुसकरा िदया । अब की बार शयामा भाभी ज़ोरोिे िे हं ि पड़ी । बोली-

`` बड़े दष ु हो गए हो दे वर जी ।``

`` इिनी िुनदर और गोरी-िचकनी भाभी पाकर कौन दष ु होना नहीं चाहे गा मेरी

िपय भाभी । कया मुझे इिी िरह बाहर खडी रखोगी षोषो`` `` दष ु ! महादष ु !! भीिर आओ ।``

`` यही िो िुनने के िलए हम िििशला िे इिनी दरू पैदल चलकर आए है । नहीं िो

कयो आिे बिाओ िो भाभी ।``

`` अचछा , बािे न बनाओ और भीिर आ जाओ । पहले सनान कर लो । यह कया

पागलो का िा पिरधान और वेशभूषा धारण कर रखी है । जाओ, सनान कर लो ििर बािे करे गे । `` `` जो आजा भाभी जी ...``

मै शीघ ही सनानागार मे गया और सनान कर आ गया । शयामा भाभी ने गमा भोजन िैयार कर िलया । आिन िबछा िदया और मै भोजन करने लगा । शयामा भाभी मुझे पंखे िे हवा दे िी रही । भोजन पशयाि ् शयामा बोली-

`` हमने िोचा दे वर जी हमे िवसमि ृ कर बैठे । पूरे पनदह वषा वयिीि हो गए।

इिनी दीि Z अविध कम नहीं होिी दे वर जी । कोई कनया पिनद की है कया जो इिने वषोZिं िक भाभी का समरण नहीं हुआ ।``

`` नहीं भाभी । िुमहारे दे वर को िवधािा ने इिना िमय ही नहीं िदया । जनम लेिे

ही मािा का दे हाविान ,िपिा की दे ख-रे ख और अनुशािन मे जीवन बीिा । युवा हुआ िो िहमािद िे पेि्रम हो गया िकनिु िपिाशी को वह सवीकार नहीं िी । िपिाशी के दे हाविान के बाद िबकुछ जैिे िमाप हो गया । पनदह वषा पूवा िमाट नंद वदारा अपमािनि िकया गया । दरबार िे भगा

िदया गया । वापि िििशला चला गया । भारि के पििमोतर मे यवनो का आकमण और भारिीय नरे शो का अधोपिन होिे दे खा । महारानी मुरादे वी को िदया हुआ वचन अभी पूरा करने का िमय आ गया है । इि बीच जाने िकिनी िवपदाओं ने आ िेरा । िहमािद िे पुन: भेट और वह अब मेरे

गुपचर िवभाग की पमुख हो गई है । हम दोनो ने अपने पेि्रम का बिलदान राष के नाम कर िदया है । अब आपिे िमलने और आपिे िहायिा लेने यहाँ चला आया हूँ ।``

`` िो कया अब मगध मे ही िनवाि करने का िनणय ा ले िलया है षोषो िववाह भी

यही करोगे न । अचछा है यही बि जाओ । आगे की आपकी कया योजना है षोषो``

`` भाभी ! इि िमय मुझे आपकी आवशयकिा है । महारानी मुरा का पुत चनद बड़ा

हो गया है । वयािढ़ का पुत िुदामा भी अब उिी के बराबर बड़ा हो गया है । वह िमय अब आ गया है िक मै नंद िे अपना पििशोध लूँ । यह खुली हुई शीखा दे ख रही हो न !

यह उिी अपमान के पिरणामसवरप खुली है । अब यह िब ही बंधेगी जब नंद का िवन ा ाश होगा और उिके रक िे यह िशखा रकरं िजि होगी । नंद के सिान पर अब मै महारानी मुरादे वी के पुत चनद को राजििंहािन पर िबठाना चाहूँगा ।``

`` यह िब िो ठीक है िकनिु यह िब होगा कैिे षोषो ना ही िुम कहीं के नरे श हो ।

ना ही िुमहारे पाि िेना है और ना ही िुमहारे पाि इिना धन है । िबना धन-बल और शािन के यह कैिे िंभव होगा षोषो मगध की अपार िेना के िामने िुम ििनके के िमान भी नहीं हो । िुम उिके िामने िटक नहीं पाओगे ििर यह िंकलप कैिे पूरा करोगे षोषो``

`` भाभी ! िैनय शिक का अपना बल होिा है और बुिद शिक का अपना बल होिा है

। िेना िब ही काया करिी है जब बुिद उिे मागद ा शन ा दे अनयिा शिकशाली िेना ठीक उिी िरह िे मारी जािी िजि िरह िे िवशाल हािी छोटी िी चींटी िे मारा जािा । नंद के पाि िवशाल िेना अवशय है िकनिु उिके नेितृव की शिक उिके पाि नहीं है । वह िो केवल िुरा-िुनदिरयो मे ही

मसि रहनेवाला िमाट है । अपने िवशिनीय अमातयो के भरोिे ही यह िामाजय चल रहा है और कैिे चल रहा है , यह भी िुम भिलभांिि जानिी हो भाभी जी ।``

`` िुमहारी वाकपाटु िा के आगे मेरी कया िबिाि । अचछा यह बिाओ इि

अिभयान मे मेरे िलए कया आदे श है षोषो``

`` यह मै िमय आने पर आपको मागद ा शन ा करिा जाऊँगा िकनिु भाभी हमारी इि

योजना की जानकारी अनय िीिरे वयिक के िामने खुल न पाएं । िहमािद भी इि काया मे आगे आ रही है । अब मुझे मुरा दे वी िे भी इिी िवषय पर चचाा करनी है । यिद मुरादे वी िे िजि िकिी िरह िे भेट हो जाएं िो पि िाि हो िकिा है । ``

`` मुरादे वी िे भेट की वयवसिा मै कर दे िी हूँ । अनि:पुर िे कुछ दािियो को मैने बुलवाया

है । उन दािियो के िाि दािी के रप मे मुरादे वी को भी बुलवा लेिी हूँ । जैिे ही वह आ जाएगी िुम उनिे िमल लेना । हाँ िब िक िुम वेशभूषा बदलकर यहीं आिपाि अपना िमय वयिीि कर लो । `` `` उिचि है भाभी । अब मै चलिा हूँ ।`` `` दे वर जी ! िुना है िुमने िकिी कनया को धमा-पुती बनाया है । कया यह िही है

षोषो यही हाँ ,िो वह कहाँ की है षोषो विम ा ान मे कहाँ है षोषो``

`` भाभी ि् आपने ठीक ही िुना है । कठ युद के िमय उि कठ बािलका ने बहुि ही

शौया के िाि यवनो िे युद िकया िा । वह वीर बािलका का अपना कोई जीिवि नहीं बचा है । उि युद मे उिके मािा-िपिा ,भाईयो को यवनो ने िलवार की िाट उिार िदया है । मैने उिे धमा-पुती

बना िलया है । मेरी धमा-पुती का नाम करिभका है । वह इि िमय चनद की िेना मे िेनानायक है । िाि ही वह गुपचार िवभाग की िदसय भी है । शीघ ही वह पाटिलपुत मे भी मेरे अिभयान मे शािमल होगी ।``

`` चलो ,िुमने यह उिचि ही िकया । एक ओर भाभी िहमािद िमल गई िो दि ू री

ओर धमा-पुती िमल गई । िुम िो अभागो के भागय िवधािा हो । अपने सवय के नहीं । ठीक कहा न मैने दे वर जी ।`` भाभी िखलिखलाकर हं ि दी ।

`` दे , वर का अिा िािक ा िकया है भाभी जी , आपके इि अभागे दे वर ने। अब कहो

भाभी जी ,मैने ठीक कहा या नहीं ।`` मै भी हं ि िदया ।

`` िठठोली के िलए िुमको महारि हाििल है िवषणु ।`` `` आिखर दे वर िकिका हूँ । अचछा अब चलिा हूँ ।``

मै उिी िण अपनी वेशभूषा बदली और िरयू िकनारे िशवालय चला गया । िीिरा

पहर बीि गया । अब िक शयामा भाभी िे कोई िूचना पाप नहीं हुई । मेरा मन वयाकुल हो रहा िा । िूया पििम मे धीरे -धीरे ििििज की ओर बढ़ने लगा । मै बार-बार मुखय मागा की ओर दे खिा

रहिा और िूया को ढलिे दे खिे जािा । लगभग चौिे पहर िं शयामा भाभी आिी हुई िदखाई दी ।

िाि मे महारानी मुरादे वी िी । उनके हाि मेिे पूजा की िाली िी । वह शयामा भाभी के पीछे -पीछे

चल रही िी । मुरा दे वी के िाि एक और दािी िी िजिे पहले कभी नहीं दे खा िा । िनकट आिे ही शयामा भाभी ने िंकेि िकया । मुरादे वी करबद हो गई । मैने भी िंकेि िे पणाम िकया ।मैने पूछा `` यह िाि मे कौन सी है षोषो ``

`` ये अनि:पुर की एक िवशिनीय दािी िुमिि है । इिी ने चनद का लालन-पालन

करने मे महारानी मुरादे वी को िहायिा की िी । ``

`` ओह ! िमा करे दे वी िुमिि । हमारी िववशिा है । इििलए आशंका होना

सवाभािवक है । आपने अबकी बार भी िहयोग िदया । हम आपके आभारी है । ``

इन पनदह-िोलह वषोZिं मे महारानी मुरादे वी के भौििक शरीर मे कािी पिरविन ा

दिषगोचर हो रहा िा । अब िक उनके केश शेि-शयाम हो गए िे । मुख पर अब भी वही िेज

जगमगा रहा िा जो एक राजवैभव िमपनन नारी का होिा है । मुरादे वी के नेतो के आिपाि शयाम वणा का वलय बन गया िा । उनके िवशाल नेतो मे अब भी कई पश उमड़-िुमड़ कर रहे िे । उनके मुख मणडल पर,आशा की िकरणो िदखाई दे रहे िी । उनके िवशाल मािे पर अवशय ही िशकन पड़

गई िकनिु पराजय सवीकार न करने के िचनह िवदमान हो रहे िे । मुरादे वी लगािार मेरी ओर दे खे जा रही िी । िंभवि: उनहे लग रहा हो िक कया आचाया चाणकय इि िरह के है , कुरप,काले-कलूटे ,िुनदरिा िवहीन और बेढंगे । मेरी बढ़ी हुई िशखा और चमकिे हुए शेि दाँि ,अंगारो के िमान

जलिी हुई रिकम आँखे और दे खने मे भयानक िा मुखमणडल । उिे िंभवि: अब भी िवशाि नहीं हो रहा होगा । महारानी मुरादे वी को इि िरह शानि-गंभीर और चुप दे खकर भाभी शयामा बोली `` महारानी मुरादे वी ! ये है मेरे दे वर और िििशला िवदापीठ के आचाया और

िुमहारे चनद के गुर आचाया चाणकय ।``

भाभी ने इि िरह पिरचय कराया िब महारानी मुरादे वी को िवशाि हो गया िक मै

ही आचाया चाणकय हूँ । मुरादे वी ने करबद हो पणाम िकया और मेरे चरण सपशा करने के िलए झुकी । उनहे इि िरह निमसिक होिे दे ख मैने उनहे उठाया और बोला -

`` महारानी मुरादे वी ! िििशला िवदापीठ का अधयापक आचाया चाणकय आपको

पणाम करिा है । ``

`` आचाया ! मेरा चनद कैिा है । वषोZिं िे उिे दे खने के िलए मेरे नेत उिकी िूखे

जा कर रहे है और हदय वयाकुल हुआ जा रहा है । ``

`` महारानी ! आपका चनद अब उगिे िूया के िमान पकाशमान हो रहा है । िजि

िरह िूया का पकाश पिििण बढ़िे जािा है । उिी िरह आपके चनद का पकाश पििमोतर भारि

मे जगमगा रहा है । आपके चनद का पकाश धीरे -धीरे मगध िक भी पहुँच रहा है । अब वह िदन दरू नहीं जब आपका चनद इि मगध पर पूणि ा : पकाशवान हो जाएगा और आप ििर ऊँचा उठाकर

िारे िंिार को कहे गी िक िूया कभी असि नहीं होिा बिलक वह पिििदन अपनी िहस िकरणो के िाि उिदयमान होिे रहिा है । चनद कभी डू बिा नहीं उिकी िोलह कलाएं िदै व बढ़िे रहिी है ।``

`` मै आपकी आभारी हूँ आचाया िकनिु मेरे चनद िे भेट कब िंभव हो िकेगी । वह

मगध आया हुआ है या नहीं षोषो वह पाटिलपुत मे कहीं ठहरा हुआ है या कहीं और जगह षोषो यिद वह पाटिलपुत मे ठहरा हुआ है िो उििे मेरी भेट करवाने की वयवसिा कर दो आचाया । मै आपकी आभारी होऊँगी ।``

`` दे वी मुरा ! नहीं वह न िो मगध मे है और न ही पाटिलपुत मे िकनिु उिे मगध

और िवशेषि: पाटिलपुत मे लाने का अिभयान पारं भ िकया जाना है । इि अिभयान को ििल

बनाने के िलए मुझे भाभी शयामा ,मेरी धमा-पुती करिभका के िाि आपके िहयोग की आवशयकिा है ।``

`` मै हर िंभव िहयोग के िलए ितपर हूँ । बि, आप आजा दे आचाया ।``

`` िमय आने पर आपको िनदे श भेज िदए जाएंगे । महारानी मुरादे वी , महाराज

िूयग ा ुप की िसििि कया है षोषो कया उनका कोई पिा है षोषो ``

महाराज िूयग ा ुप का नाम लेिे ही महारानी मुरादे वी के नेतो िे अशध ु ाराएं बह

िनकली । उनका कणठ अवरद हो गया और वह िििक-िििक कर रोने लगी । मैने कहा`` िमा करे महारानी ! मैने अनायाि आपको पीड़ा पहुँचाई ।``

`` आचाया ! जो िनयिि ने िलखा है वह होकर रहिा है । िकिका कया दोष कहा जा िकिा है षोषो न महाराज का और न ही िमाट नंद का ।``

महारानी का मलीन मुख दे ख मुझे ऐिा लगा जैिा उनहोने भागय को सवीकार कर

िलया हो। जब वयिक हार मानने लगिा है िब वह भागय को सवीकार करने लगिा है या भागय को दोष दे ने लगिा है । महारानी मुरादे वी ने िंभवि: हार मान ली हो इििलए उनहे उिे सवीकार कर

िलया । वासिव मे ऐिा नहीं है । हार मान लेना दभ ु ागाय नहीं है बिलक मानवीय हदय की कमजोरी है । हार मानकर चुपचाप बैठ जाना मनुषय के िलए शोभा नहीं दे िा । उिे लगािार िंिषा करिे

रहना है िब ही ििलिा िमलेिी है । बि , धैया और िाहि की आवशयकिा है । महारानी मुरादे वी

के मुख िे िमाट नंद का नाम िुनिे ही मेरे अंग-पतयंग मे जवाला िी भभक उठी है । मेरी नाक के वदार िन गए । मैने अपनी खुली िशखा िदखािे हुए कहा -

`` महारानी ! आप मेरी यह खुली िशखा दे ख रही हो । पनदह वषा पूवा इि मगध

िमाट नंद ने अपनी एक िवशेष भरी िभा मे मेरा अपमान िकया िा । इिना ही नहीं उनहोने मेरी िशखा पकड़वाकर िभा िे खींचवािे हुए बाहर करवा िदया िा । िब िे आज िक यह िशखा इिी िरह खुली है और पििपल मुझे जवालामुखी की आग मेिे जलािी रहिी है । । दे वी उिी िमय िे मेरे हदय मे पििशोध का लावा खदबदा रहा है । अब यह लावा िमाट नंद को उिके वंश ििहि भसम करके ही शानि होगा । मैने पिीजा ली िक जब िक मै यह िब नहीं करिा िब िक यह

िशखा इिी िरह खुली रहे गी और मुझे िदै व समरण करािे रहे गी । यह खुली िशखा समरण ही नहीं करािी बिलक मेरे भीिर के लावा को खदबदािे हुए िीव और अिधक िीव बनाए रखिी है ।

महारानी मुरादे वी , जब िक यह चाणकय ििल नहीं होिा िब िक वह शािनि िे नहीं बैठ पाएगा ।``

मेरी खुली िशखा दे ख और मेरा दढ़ िंकलप िुन महारानी मुरादे वी ने आँिू िाि

िकए और धीर-गंभीर हो बोली-

`` आचायव ा र ! हम आपके अिभयान मे पूरा िहयोग दे गे । आप आदे श दीिजए ।

हम पीछे नहीं हटे गे ।``

`` महारानी ! यह आचाया आपको वचन दे िा है िक खलकामी नंद को ििंहािन िे

िगराकर उिके सिान पर चनद को राजििंहापन िबठाकर ही अपने पाण तयागेगा िब िक नहीं । अब मुझे पसिान की अनुमिि दी ।``

मै जाने लगा िो भाभी शयामा ने राह रोक ली । बोली-

`` दे वर चाणकय ! अब की बार आओगे िो िहमािद को भी िाि ले आइएगा । मै उििे िमलना चाहिी हूँ । िहमािद िे कहना शयामा भाभी अपनी दे वरानी की आरिी उिारने के िलए वयाकुल हो रही है ।``

`` भाभी ! अवशय ही । यिद िमय िमला िो ...``

`` नहीं, नहीं । कोई बहाना नहीं चलेगा । नहीं िो शयामा भाभी खाना नहीं परोिेगी िमझे दे वरजी ।``

शयामा भाभी िखलिखलाकर हं ि दी । मैने पणाम िकया और चल िदया । िूया

पििम के आंचल मे जा छुप गया । 00 िुदामा िे भेट करना अब मेरे िलए आवशयक हो गया । गुपचर की िूचना के अनुिार उिने मगध िामाजय मे िमाट नंद के पिि नागिरको मे आकोश उतपनन करने का ििल अिभयान पारं भ कर िदया है । इि िमय वह कहाँ होगा ,पिा लगाना किठन है । इििे अिधक

उपयुक होगा सवयं ही िुदामा का पिा लगाया जाय । मै िरयू िट पर गया । सनानकर िशवालय के गभग ा ह ृ मे जाकर िाधु का वेश धारण कर िलया । हाि मे िचमटा िलए मै िमनदरो िे होिे हुए

पाटिलपुत के पमुख मागो िे होकर िनकल पड़ा । राजमागा िे िकंिचि दरूी पर एक बरगद के नीचे आिन लगा कर बैठ गया । धुनी बनाई और बम-बम भोले का दीि Z सवर िकया । यह राजमागा

िमाट नंद के भवन िे लगभग दो कोि की दरूी पर िा िकनिु इि राजमागा िे राजपुरषो का आनाजाना नहीं के बराबर िा । गुपचरो को िुरििि छुपने के िलए यही सिल उपयुक जान पड़िा िा । इिका कारण यह भी िा िक यहाँ अिधकिर िाधुओं के डे रे डले हुए िे । मै और मेरे िशषय इिी

मागा पर िविभनन वेशभूषओं मे िमलिे रहिे है । िमलने पर िांकेििक शबदो का उपयोग करिे है ।

यिद िांकेििक शबदो के उतर मे िांकेििक शबद का उपयोग िकया गया िो शीघ पहचान मे आ जािे है अनयिा िबना िकिी पििवाद के आगे पसिान कर जािे है । दो िदनो की पिीिा के बाद

चनद का एक गुपचर हिरहर राजमागा िे िनकला । बरगद के वि ृ के नीचे मुझे धुनी रमािे दे ख मेरे पाि आया और िचलम मांगने लगा । मैने उिे िचलम बना कर दी । वह िचलम पीने लगा । मै उिे नश िे िशख िक परखने का पयाि करने लगा । वह बोला -

`` कया बाि है बाबा षोषो आप मुझे इि िरह कयो दे ख रहे हो । `` `` छनक छनक छनक ।``

`` चनद चनदमा चाँद । आचायव ा र को मेरा पणाम ।``

`` लख लख जीवो । वति हिरहर िुदामा की कया िूचना है षोषो`` `` आचायव ा र ! वे नागिरको मे चनद की वीरिा ,आपकी ििलिा और हमारे इि

योजना को पचािरि कर रहे है । इिना ही नहीं वे िुरा-िुनदरी और मद मे चूर कामुक नंद के पिि नागिरको मे आकोश उतपनन करने मे ििल हो रहे है । कुछ धनाडय नागिरक हमे िहयोग दे ने के

िलए भी ितपर िदखाई दे रहे है । वे शीघ ही कामुक ,कामांध और कमह ा ीन िमाट िे छुटकारा चाहिे है । ``

`` वति हिरहर ! बहुि शुभ िमाचार है लेिकन मुझे शीघ ही िुदामा िे भेट करना

आवशयक है । वह इि िमय कहाँ है षोषो``

`` िुदामा इि िमय बह ृ दहटट मे आचाया शकटार के िंरिण मे िुरििि है । आप

िुदामा िे वहीं भेट कर िकिे है ।``

`` यह उपयुक है । चलो ,वहीं चलिे है लेिकन वति िुम पि ृ क मागा िे जाओ । मै

पि ृ क मागा िे, कहीं ऐिा न हो िक हम पहचान िलए जाय ।`` `` जो आजा आचायव ा र ! ``

हिरहर िे भेट के बाद मै िीधे बह ृ दहटठ पहुँचा । आचाया शकटार के भवन मे

िुदामा उनके िाि िवचार-िवमशा करिे हुए पाया गया । मुझे दे खिे ही उठ खड़ा हुआ । मेरे चरण सपशा िकए । िवशाम के बाद अपने पाि बुलािे हुए उििे पूछा-

`` वति ! पाटिलपुत मे िुमने कया-कया िकया ,इिकी िूचना हमे पाप हो गई है ।

अब िुमहे िमाट नंद के दरबार मे पिवष करना है और धीरे -धीरे राजभवन की गिििविधयो पर दिष रखना है ।``

`` आचायव ा र ! यह काया अतयनि दषुकर है । पिम िो नंद के दरबार मे पवेश

िमलेगा भी कैिे षोषो इि िमसया का िमाधान िकए िबना काया किठन होगा ।``

`` वति ! िुमहे दरबार मे पवेश कराने का हमने पबंध कर िलया है । िुमहे

राजदरबार मे राजपद िमल जाएगा । िुम कल ही मेरे िमत रिचकुमार के महल जाओ । वहाँ िुमहे

मेरी भाभी शयामा िमलेगी । वह िुमहे राजपद िदलाने मे िहायिा करे गी । राजपद पाप होिे ही िुम शीघिा िे कायभ ा ार िंभालो । शेष िुम सवयं भिलभांिि जानिे हो िक आगे कया करना है षोषो `` `` मै शीघ ही मािा शयामा िे िमल लेना चाहिा हूँ । आजा हो िो आज ही

पाटिलपुत चला जाऊँ षोषो कल का काया आज ही करना उतम होगा ।``

`` वति ! हड़बड़ी मि करो । कल िुम दि ू रे पहर जाओ । लेिकन िावधिानी

बरिना होगा । मेरे िमत रिचकुमार िुमिे कुछ पश करे गे उनका उतर िकारातमक दे ना और हाँ,

अब ,िुमहारा नाम िुदामा नहीं बिलक कृ षण होगा । िुम पाटिलपुत मे कृ षण नाम िे जाने जाओगे । `` `` जो आजा आचायव ा र ।`` शकटार अब िक िुन रहे िे । बोले-

`` िमत िवषणु ! िुमहारा यह पहला आकमण िािक ा रहे गा । जहाँ शिक काया नहीं

करिी वहाँ बुिद काया करने लगिी है । यिद िैनय-शिक का उपयोग करिे िो नंद के दरबार मे

पवेश पाना अतयनि दषुकर हो जािा । िैकड़ो िैिनक मारे जािे और पिरणाम भी पििकूल होिा । मै िुमहारे बुिद का पशंिा करिा हूँ ।``

`` मगध िामाजय की िवशाल िेना के िमि चनद की िेना ठीक उिी िरह है

िजि िरह िवशाल िमुद के िमि एक छोटा िा दिरया । यह छोटा दिरया उि िवशाल िमुद मे िवलुप हो जािा और उिके अिसितव का पिा ही नहीं चलिा । इिी िब िचनिन के पिाि ् मैने िि वदिीय पि िे मागा पशसि करने का िनणय ा िलया है । अनिि: मै मगध का पुत हूँ और िामानय

नागिरक िे लेकर आप जैिे अिििविशष जनो के िमपका मे िनरनिर रहिे आ रहा हूँ । उिी का यह पिरणाम है िक िुदामा को नंद के दरबार मे राजपद िदलवाने मे बड़ी ही िुगमिा हो गई है अनयिा यह िो अतयनि किठन है ।``

`` िमत िवषणु ! िुमहारी दरूदिष पशंिनीय है । अनेक याताओं और अनेकानेक

पिरचय के कारण ही िुम भीिर िक पैठ करने के योगय हो गए हो । िुम वासिव मे िाधुवाद के पाप हो ।``

`` आयव ा र ! िकिी भी उदे शय की ििलिा का पिम िोपान िमपका ही है न । िबना

िमपका के आगे पि पशसि नहीं हो पािा । मागा-मागा पर अवरोध उतपनन हो जािे है । इन

अवरोधो को हटाने के िलए िविशषजनो िे िमपका और उनकी िहिवषणुिा पाप करना अिनवाया है । वही मै कर रहा हूँ ।``

`` ििर भी िवषणु िुमहे िैनय-शिक की आवशयकिा होगी । चनद की िैनय-शिक के

िबना िुम शिक-पदशन ा नहीं कर पाओगे । इि काया के अिििरक िुम चनद की िैनय-शिक बढ़ाने का पयाि भी पारं भ कर दो । इिके िलए जो भी िहयोग िुमहे चािहए मै ितपर हूँ ।``

`` आया ! आपिे पाप रत-मंजूषा के पिरणामसवरप चनद के पाि इि िमय बीि िहस िैनय-बल है लेिकन इिने कम िैनय-बल िे कुछ होना नहीं है । वािहक िेत मे चनद के

पराकम िेिे आकिषZ ि होकर कठ ,गांधार और केकय गणराजय मे जो िैिनक विृत नहीं पा रहे है , वे शीघ ही चनद की िेना मे शािमल होने जा रहे है । धन की वयवसिा चनद और िुदामा ने बहुि कुछ की है िकनिु वह भिवषय के िलए पयाप ा नहीं है ििर भी पयाि ििि ् जारी है । शीघ ही कुछ वयवसिा की जानी होगी ।``

`` िुम बह ृ दहटट और अिभिार मे भी शिेिषयो िे भेटकर िहायिा पाप कर िकिे

हो । जो शष े ी दे श के िलए रक नहीं बहा िकिे वे धन दे ने के िलए िैयार रहिे है । िुम उनिे िनराश नहीं होगे ।``

`` ऐिा ही होगा आया ! आचाया शकटार के भवन मे िुदामा िे भेट और आचाया िे िवचार-िवमशा के बाद मै िुदामा को गुपसिान मे ले गया । कयोिक कुछ िवचार-िवमशा एकानि मे करने होिे है ।

बह ृ दहटट के वन के एकानि मे जलाशय िकनारे एक पुराना खणडहर है , हम दोनो वहीं पहुँचे । इि खणडहर मे िकिी का भी आना-जाना नहीं है । वैिे ही इि खणडहर को भूिालय कहा जािा है । जलाशय मे सनान के बाद िुदामा को िमि िबठाकर मै बोला-

`` िुदामा ! िुमहारे पाि िकिने अनुचर है षोषो`` `` पचाि अनुचर मै िाि मे लाया हूँ ।``

`` िुमहे आगामी काया-योजना के अनिगि ा नंद का राजपद पाप होिे ही िबका

िवशाि जीिना है । अब िुम कृ षण िे जाने जाओगे । मै शयामा भाभी को बिा िदया है । राजपद िंभालिे ही बड़ी िवशिनीयिा के िाि िुम िभी अमातयो को अपने िवशाि मे ले लो । अपने कुछ अनुचरो को राजमहल मे िनयुक कर लो । िंभवि हो िो नंद के िवशिनीय गुपचरो को अपने पि मे ले लो । यिद कोई िवशिनीयिा भंग करिा है िो उनहे िुम मतृयु भी दे िकिे हो लेिकन यह

धयान रखे भाभी शयामा, मुरादे वी और भाई रिचकुमार पर िकिी भी िरह का आिेप न आ पाए या वे िकिी िरह के िंकट मे न पड़ जाए । िवशिनीयिा और गोपनीयिा ििलिा के िलए अतयनि आवशयक ितव होिे है । गोपनीयिा बनाए रखे और पतयेक िूचना िंगहीि कर बड़ी चिुरिा िे

राजमहल मे हो रही गिििविधयो पर दिष जमाए रखो । कौन-कौन िे िूत हमारे िलए महतवपूणा है , उन पर एकागिा रखो और धीरे -धीरे अनि:पुर मे पवेश हो जाओ । अनि:पुर मे िुमहे महारानी मुरादे वी िे भेट होगी । मुरादे वी वसिुि: चनद की मािाशी है । उनिे भेट होने के उपरानि िुमहे आगामी िनदे श पाप होिे रहे गे ।``

`` आचायव ा र ! मुरादे वी अनि:पुर मे कयो है षोषो मै जानना चाहिा हूँ ।``

`` यह िमय िब कुछ बिाने के िलए पयाप ा नहीं है िकनिु यह िमझ लो िक जो अिभयान हमने चलाया है उिमे न केवल चनद का लाभ है बिलक िमपूणा भारिवषा इि अिभयान िे गौरवाििनवि हो जाएगा । हमारा िहयोग इिना है िक हम छोटे -छोटे राजयो मे बंटा यह भारि एकछत िामाजय बन जाएं और भारि मे यवन या अनय कोई िवदे शी शतु पवेश न कर पाएं ।`` `` मै आशाििनवि हूँ आया ! अब मुझे कया आजा है षोषो ``

`` मै िुमहे बिा चुका हूँ । िुम कल पाटिलपुत चले जाओ और वहाँ भाभी शयामा िे

िमलो । बाकी भाभी शयामा िबकुछ कर दे गी और मेरे आगामी मागद ा शन ा िक भाभी शयामा िे

िमपका बनाए रखो । यह िदै व धयान रहे िक महामातय रािि को ििनक भी भनक न होने पाएं । ििकािा जररी है इिके िलए िुम िदै व अपनी आँखे और कान खुले रखे िकनिु मुख बनद रखे । दे खे ,िुने ,जाने और िमझे िकनिु बोले कुछ नहीं ।``

`` आचायव ा र ! पाटिलपुत मे मेरी ओर िे चलाये जाने वाले अिभयान िे आप

िनििनि रहे । मै अवशय ही महतवपूणा काया कर आपको अनुकूल पिरणाम दँग ृ दहटट ू ा । यहाँ बह

मे आचाया शकटार के िहयोग िे िूचना-केनद पारं भ हो िो अचछा हो । मै िोच रहा हूँ दे वी िहमािद का िहयोग अपेििि है । ``

`` नहीं , िहमािद नहीं िकनिु अनय वयवसिा करनी होगी ।`` `` आचायव ा र ! यिद आप मेरी िष ृ िा िमा करे िो मै कठ गणराजय की वीर बेटी

करिभका को िनयुक कर िलया जाय । मुझे अचछी िरह िे समरण है कठ गणराजय पर जब यवनो ने आकमण िकया िा िब उि वीरबाला ने यवनो के िवरद िलवार उठाई िी और दे खिे ही दे खिे युद के मैदान मे अनेको शतुओं को मौि के िाि उिार िदया िा । वह आजकल हमारे गुपचर िवभाग मे िनयुक है ।``

`` करिभका मेरी धमा-पुती है । यिद िुमहे उिचि लगिा है िो अवय ही उिे

बह ृ दहटट मे िनयुक कर लो । आचाया शकटार की दे ख-रे ख मे यह उिचि भी होगा । अचछा ,अब मुझ िििशला की ओर पसिान करना है । दो माह वयिीि हो गए ,चनद के पाि पहुँचना भी आवयशयक है ।`` 0

पाटिलपुत और बह ृ दहटट मे काया िमपािदि कर मै वाराणािी ,मिुरा ,अयोधया ,इनदपसि और पुषकराविी िे होिे हुए िििशला पहुँचा । िवितिा के उि पार अब िक चनद का िशिवर लगा हुआ िा । चनद मेरी पिीिा मे िा । दे खिे ही मेरे चरण सपशा िकए और चरणोिे के पाि बैठ गया । मैने पूछा -

`` वति ! हमारे पाि िमय कम है । अचछा ,यह बिाओ मेरे जाने के बाद िुमने

यवन िशिवरो के िवरद कायव ा ाही की या नहीं षोषो``

`` आयव ा र ! हमने िििशला ,केकय ,कठ ,अिभिार ,विािि और अनय गणराजयो मे िजिने भी यवन िशिवर िे , उन िब पर िािक आकमण कर यवन िशिवरो को िरह-नहि कर

िदया । िैकड़ो हािी ,अस-शस और सवणा मुदाएं एकत कर ले आए । इन िशिवरो मे विृत पाप कर रहे भारिीय िैिनको को िचेि कर अपने िाि ले आए है । अब एक भी यवन ,िैिनक िशिवरो मे नहीं है । ``

`` बहुि अचछा काया िकया िुमने ,लेिकन कया गांधार के दोनो नरे शो ,केकय

पिििनिध ,,कठािधपिि और अननि शमाा ने िुमहारे इन आकमण के िवरद आवाज़ नहीं उठाई या वे भयभीि हो गए षोषो``

`` यही िो आिया है आचायव ा र ! उनके राजय मे पवेश कर हम यवनो का रकपाि

करिे रहे और वे चुप रहे । हो िकिा है िक या िो वे हमिे भयभीि हो गए होगे या यवनो के दबाव को सवीकार नहीं कर पा रहे होगे । िोच रहे होगे िक अचछा है चनदगुप इन यवनो को भारि िे भगाने के िलए उनहे मदद कर रहा है । इििलए वे यवनो का रक बहिे हुए दे खिे रह गए ।``

`` अिभिार नरे श और अननि शमाा भी चुप रहे ! यह िो आिया है । कहीं ऐिा िो

नहीं िक वे कभी भी हम पर अनायाि आकमण कर दे और हमे ििि पहुँचाएं ।``

`` ऐिा िंभव भी है और नहीं भी कयोिक कोई भी भारिीय नरे श यवनोिे की

अधीनिा सवीकार करना नहीं चाहे गे और यिद अधीनिा सवीकार कर रहे होगे िो भीिर िे भयभीि भी हो रहे होगे । उनमे इिना िाहि नहीं होगा िक वे अपने िे शिकशाली िे िभड़ ले ।``

`` चनद,हमारे पाि अब िक बीि िहस िैिनक हो जाना चािहए । इि काया हे िु

हमे धन की आवशयकिा होगी । धन का पबंध करना ही होगा ।``

`` आचाया ! मगध िामाजय िे कोई शष े ी िंभवि: दतकुमार नाम होगा उनका ! वे

पाटिलपुत और इनदपसि िे होिे हुए केकय की िीमा की ओर बढ़ रहे िे । उनके पाि िैकड़ो अश और अपिरिमि धन रािश िी । जैिे ही हमे हमारी गुपचर करिभक ने िूचना दी वैिे ही उन पर

छापा मारकर िारे अश और धनरािश छीन ली । दतकुमार और उनके कुछ िािियो को पैदल ही वापि भगाया है । दतकुमार के कुछ अनुचरो को केकय के पार जाने के आदे श दे िदए । अब हमारे पाि िवपुल धनरािश एकत हो गई है । इि धन मे िे कुछ धन हमने िैिनको मे िवििरि कर िदया

और बाकी धन िंगिहि कर िलया । आिपाि के गणराजयो िे विृत पर हमने दो िहस िैिनक और एकत कर िलए है ।``

`` चनद ! िुमहारा पयाि पशंिनीय है लेिकन मुझे अब यह पिीि होिा है िक

िवितिा के इि िशिवर को नष कर अनयत बना लेना होगा । यह कहा नहीं जा िकिा िक यवन या अननि या शिशगुप या आंिभ अिवा इन िबके िहयोग िे िशिवर पर अनायाि आकमण हो जाय । इििलए िवितिा के इि पठार िे अनयत िशिवर बना िलया जाय ।``

`` हमारी आगामी योजना कया होगी गुरवर षोषो हमे मगध की ओर कब पसिान करना होगा षोषो हमारी िेना उनकी िेना िे िकिनी अिधक है अिवा कम है षोषो``

`` वति ! इि िमय हमारी िसििि िंिोषजनक नहीं है । हम िबना राजय के राजा

है । िबना राजा के िेनापिि है और िबना धन के िमाट है । हमारे पाि न िो पयाप ा धन है न िेना है और न कोई राजय है । ऐिी िसििि मे िेना एकत करना किठन हो रहा है । आचाया शकटार हमे

िैनय-िंगठन के िलए अिििरक धन की वयवसिा कर रहे है । बार-बार हमे िैनय-िंगह की ओर चेिाया जा रहा है । ``

`` इिके अिििरक अनय कोई उपाय हो िकिा है आचायव ा र षोषो``

`` वह उपाय हमने पारं भ कर िदया है । िुदामा को पाटिनपुत के राजभवन मे राजपद पर िनयुिक िमल गई है । िुदामा को वह िारे िनदे श दे िदए गए है जो हमारे िलए

आवशयक है । दे वी िुमिि ि्र,महारानी मुरादे वी ,ि़करिभका और भाभी शयामा को िमाट नंद के भवन मे हो रही गिििविधयो की िूचना िंगिहि करने के िनदे श दे िदए है । हमारे िलए िबिे

महतवपूणा काया नंद के भवन मे पवेश करने का िा जो हो गया है ििर भी िवकट िसििि िे िनपटने के िलए हमे िैनय-शिक की आवशयकिा होगी ही चनद ।``

`` गुरवर ! िैनय-बल और बुिद-बल िमलाकर मगध की िेना िे टककर ली जा

िकिा है न ! ``

`` हाँ वति ! मगध की िेना िमुद की िरह िवशाल है । उि िेना मे हमारी यह

मुटठी भर िेना ठीक उिी िरह खप जाएगी िजि िरह िमुद मे आकर िमलिी हुई कोई छोटी-

मोटी नदी । हमारी िचनिा का पमुख अंग िैनय-शिक है । हमे लगभग िीि-चालीि िहस िैिनको का िंगह करना होगा िब हम आगे बढ़ िकिे है । लेिकन ििर भी मुझे िुदामा पर पूरा िवशाि है

िक वह हमारे िारे पि पशसि कर दे गा । हमारा गुपचर िवभाग ििकय है और इि छोटे िे गुपचर िवभाग को इिना पिशििि कर िदया गया है िक िमय आने पर हमारे गुपचर पाणो की आहुिि भी दे िकिे है । ``

चनद को िमपूणा िसििि सपष करने के बाद पिमि: हमने िवितिा नदी के पठार

पर बनाया िशिवर िवनष कर िदया और अिभिार के वनो मे नया िशिवर पििसिािपि कर िलया । यहाँ िे हम िुगमिा िे इनदपसि की ओर िे यमुना पार कर बह ृ दहटट आ-जा िकिे है । उधर मगध मे िुदामा के अनुचरो िे िूचना पाप हुई िक उिने रािि का पमुख

गुपचर शवराक को रासिे िे हटा िदया है । शवराक ,रािि का िवशिनीय गुपचर िा और िुदामा के राजपद पर आिे ही िवकट िसििि उतपनन कर रहा िा । रािि को िबलकुल भी आभाि नहीं हुआ और रािि ििलिमलािे रह गया । उिने बहुि पयाि िकया िक शवराक की हतया की िही-िही िूचना उिे िमल जाए िकनिु वह ििल न हो िकिा । रािि वसिुि: शवराक वदारा मगध

िामाजय के नगरो िे नवयुविियो और नविववािहिो का अपहरण करवा िलया करिा िा । इन नवयुविियो और नविववािहिो का उपयोग वह राजभवन मे दरबार के मंितयो और िेना पमुखो की कामिकड़ा के िलए करवाया करिा िा । जब िुदामा ने यह िब दे खा िो उिे यह अभद वयवहार

उिचि पिीि नहीं हुआ । िुदामा ने अनुकूल िमय आने पर शवराक की िुरा मे िवष िमला िदया ।

िुबह शवराक मि ृ पाया गया । शवराक िजि कि मे मि ृ पाया गया िा वह कि कामिकड़ा के िलए िनयि िकया गया िा । इििलए िुदामा पर िकिी भी पकार की आशंका रािि को नहीं हो पाई । शवराक की मतृयु की िूचना पाटिलपुत मे िवदुि की िरह िैल गई । नागिरको ने

िमाट नंद और महामातय रािि को बहुि कोिा । मुझे िुदामा की इि ििलिा की िूचना िमलिे ही मै बह ृ दहटट चला आया । आचाया शकटार िे िसििि सपष करने पर िवशाि हुआ । अब मुझे िवशाि हो गया िक एक अकेला िुदामा जब इि िरह की हलचल उतपनन कर िकिा है िो

चनदगुप का पूरा दल इििे भी कहीं अिधक हलचल उतपनन कर िकिे है । मैने आचाया शकटार िे िलाह लेनी उिचि िमझी । बोला-

`` आया ! हमारा िुदामा केवल बहादरु ही नहीं अिपि वह चिुर भी है । िबना िकिी

िेना के राजमहल मे हलचल मचा दी । मुझे लगिा है िक इि पकरण को और आगे बढ़ाया जाना

होगा । शवराक,रािि का अिभनन और िवशिनीय गुपचर िा । उिकी मतृयु पर वह एक िरह िे िबखर गया । शवराक की मतृयु के बाद िुदामा को रािि ने अपना पमुख गुपचर िनयुक कर िलया

। यह िूचना हमारे िलए बहुि पिननिा वाली और उपयोगी है । इि िमबनध मे आपकी कया राय है षोषो``

`` िुदामा के िाहि ने हमे एक नया मागा पशसि कर िदया । हमे िजिनी

आवशयकिा िेना की है उिनी ही आवशयकिा चिुराई और बुिद की है । यिद हमारी नारी गुपचर िजि िकिी िरह िे राजमहल मे िनयुक हो जाय िो और भी अिधक मागा पशसि हो िकिा है ।

लेिकन यह काया किठन भी है । वैिे िुदामा ने अपने अनुचर िनयुक िकए है । अब िुम एक पयोग और कर िकिे हो ।``

`` कैिा पयोग आयव ा र षोषो ``

`` पाटिलपुत राजय के मंती िे लेकर टु किड़यो के िेनानायक िारे के िारे कामिपय और िुरा-िपय िवनोदी पकृ िि के है । यिद िकिी िरह िे उनहे आकिषZ ि कर िकिे हो िो शीघ कर लो । ``

`` यह काया अतयिधक किठन नहीं है लेिकन अतयनि िावधानी की आवशयकिा

होगी । मै यह काया भी शीघ करना चाहूँगा । लेिकन यह काया करने के पूवा मुझे लगिा है िक अब

चनद की बीि िहस िेना बह ृ दहटट के वनो मे पििसिािपि कर दी जाय । यह िमय भी उपयुक है और कभी भी िेना की आवशयकिा पड़ िकिी है ।``

`` यह भी उिचि है । पिमि: चनद की िेना को यमुना पार लाने की वयवसिा कर ली जाय । कहीं िे कोई वयवधान उतपनन होिा है िो कहा जाय िक यह मगध िेना की छापामार टु कड़ी है । बि, मागा िाि हो जाएगा ।``

आचाया शकटार की िलाह उपयुक पिीि हुई । मै िकिी भी िरह का अनैिचछक

िंकट लेना नहीं चाहिा । िनिानि अकेले िुदामा पर कोई िंकट आना िािक ििद हो िकिा है । लेिकन िेना बुलाने के पहने िुदामा िे भेट करना आवशयक है । मैने िभखारी का वेशभूषा धारण

िकया और महामातय रािि के भवन की ओर चल िदया । मेरी कमर आधे िे जयादा झुकी हुई िी । केश िबखरे हुए िे और एक पैर ििीटिे हुए चल रहा िा । अंगो पर मैले-कुचैले िचिड़े पहने हुए िे । वदार िे कुछ दरूी पर ििीटिे हुए जा पहुँचा । रि पर िवार रािि को दे ख मुझे कोध हो आया

िकनिु उि कोध को पी गया । िुदामा पीछे अश पर िवार चल रहा िा । रािि के भवन मे रि

पवेश करने पर िुदामा वदार के बाहर ही अश िे नीचे उिर आया । रािि भवन मे पवेश कर चुका िा । मैने िंकेि िदया -

`` छनक छनक छनक `` `` चनद चनदमा चाँद ``

`` िरयू िकनारे िशिालय मे चलिे है ।`` इिना कह कर मै पैर ििीटिे हुए िरयू की ओर चल िदया । कोई जान नहीं पा रहा

िा िक मै कौन हूँ । िशवालय के पीछे िवशाल िशला के नीचे मै बैठ गया । िुदामा िशवालय मे पणाम कर बाहर िनकल रहा िा । मै बोला-

`` मैने जो िुना वह ितय है षोषो`` `` हाँ , आचाया ितय है िकनिु मै अिधक िमय िक यहाँ ठहर नहीं िकिा। मै

आचाया शकटार के भवन िूचना दे कर अपना अनुचर भेज रहा हूँ । मुझे चलने की आजा दीिजए । `` `` िवजयी भव वति !``

िुदामा िजि िरह िे आया िा उिी िरह शीघ लौट गया । मै आशसि हुआ । शीघ

ही बह ृ दहटट पहुँचा । वहाँ अनुचर आ चुका िा । अनुचर बोला-

`` आपको जो िूचनाएं पाप हुई है । वह ितय है । शवराक के सिान पर िुदामा को

मुखय गुपचर िनयुक िकया गया है और आपके िनदे शानुिार पाटिलपुर मे िवदोह िैलाने का

अिभयान पारं भ कर िदया गया है । अनि:पुर िे िुमिि का पूरा िहयोग िमल रहा है लेिकन एक और नारी गुपचर की आवशयकिा हो रही है । ``

`` िाधु ! िाधु !! िुदामा िे कह दो करिभका िुमहारे इि काया के िलए िैयार है

करिभका िे िहयोग पाप िकया जा िकिा है िकनिु करिभका अनि:पुर मे कैिे पवेश कर पाएगी । ``

`` उनहे अनि:पुर मे पवेश के िलए कोई किठनाई नहीं होगी । उिे दािी के रप मे ले जाया जा िकिा है । हालांिक यह काया किठन अवशय है िकनिु िुदामा के रहिे कोई बाधा नहीं हो िकिी । ``

`` ठीक है करिभका िैयार है । वह िुमिे आज िनधया के िमय भेट करे गी अब

िुम जाओ और उििे िमलने की पिीिा करो ।`` `` जो आजा ।``

अनुचर को मागद ा शन ा दे कर िवदा िकया । मै इि काया को शीघिा िे पूणा करना चाहिा हूँ । िनधया होिे ही करिभका अनुचर िे िमली । वह पाटिलपुर के िलए रवाना हो गई ।

िुदामा ने उिे दािी के रप मे अनि:पुर मे िनयुक करवा िलया । मै शीघ ही चनद के पाि वापि जाना चाहिा िा । काशी ,बनारि,अयोधया ,मिुरा िे होिे हुए इनदपसि के रासिे मै अिभिार

पहुँचा । वहाँ िे िीधे चनद के पाि पहुँच गया । मुझे शीघ वापि आिा दे ख चनद उललाििि हो गया ।आचाया शकटार िे पाप सवणम ा ुदाएं चनद को िौप दी `` चनद ! इधर की कया िसििि है षोषो ``

`` वहीं िचनिाजनक है आचाया । िैिनको की कमी का आभाि हो रहा है । अब िक

हम केवल िीि िहस िैिनक ही एकत कर पाए है । ``

`` ठीक है चनद ! हमे िैनय-शिक के िाि बुिद शिक को भी उपयोग मे लाना है ।

हमारा अिभयान पारं भ हो चुका है ।``

`` कैिे आचायव ा र षोषो``

`` िजि िरह िे िुदामा ने िबना िैिनक के पाटिलपुर के राजभवन मे हलचल मचा दी और मगध मे अिंिोष िैला िदया । नागिरको मे आकोश उतपनन हो गया । नंद और उिके

मंितयो के पिि अिवशाि उतपनन हो रहा है । नंद नागिरको िे मनमाने ढं ग िे कर विूल करिा है । कर न दे ने पर वह कृ षको और वयापािरयो को दिणडि करिा है । अब भी यह िसििि बनी हुई है ।

िनिानि अकेले िुदामा ने अनुचरो की मदद िे मगध के नागिरको को जागरक और िचेि िकया है । जागरक नागिरक अपने पशािको के िवरद आकोश पदिशि ा कर रहे है । महामातय रािि

ििहि अनेक अमातय और िेना आिमंजसय मे पड़ गए है । अिधकांश िैिनक भी विृत न िमलने और िनकममे होने के कारण िवदोही हो गए है । यह िब अकेले िुदामा का खेल है िो हम िब िमलकर िकिना खेल , खेल िकिे है चनद िुम ही बिाओ षोषो``

`` आचायव ा र ! िाधु ! िाधुवाद !! अिाि ा ् यह िक मगध को यिद परािजि करना है

िो बल िे कम िकनिु युिक िे अिधक काया िलया जा िकिा है । हमे मगध मे िविभनन िरह की युिकयो की आवशयकिा होगी । िनकममे िैिनक और कामुक राज

पदािधकािरयो को पलोभन

दे कर उकिाया जा िकिा है । नागिरको मे और अिधक अिंिोष उतपनन करके नंद को पदचयुि िकया जा िकिा है ।``

`` हाँ वति ! युिक और शिक िमल जाए िो हम मगध िामाजय की जड़ो को आिानी उखाड़ िेक िकिे है । मेरा वापि आने का औिचतय ही यही है िक अब हमे यमुना पार कर बह ृ दहटट के वनो मे अपना िशिवर पििसिािपि िकया जाना होगा । वहाँ िे मगध अिधक दरूी पर

नहीं है । िकिी भी िमय हमे िेना की आवशयकिा होगी । आचाया शकटार की िहयिा िे हमे दि

िहस िैिनक पाप होने की िंभावना भी है । िंभवि: वे यह दि िहस िैिनक बह ृ दहटट के पवि ा ीय नरे शो िे एकत करे गे । उनकी बािो िे ऐिा ही पिीि हो रहा िा । पवि ा ीय नरे शो िे आचाया

शकटार ने पचुर माता मे धन की वयवसिा भी की है । िुम शीघिा करो और िेना को बह ृ दहटट के िलए पसिान कराओ । हाँ, समरण रहे िक यमुना पार करिे िमय िवशेष िावधानी रखी जाए । कोई वयवधान उतपनन हो िो हम यह कहे गे िक यह मगध की िवशेष वािहनी िेना है ।`` `` जो आजा आचायव ा र । ``

`` मुझे शीघ ही वापि बह ृ दहटट जाना होगा । िुदामा मगध मे अकेले है उनहे मेरी उपिसििि की आवशयकिा होगी । ``

चनद को िनदे श दे ने के बाद मै पुन: बुहदहटट लौट आया । आिे ही िूचना िमली

िक आचाया शकटार ने दि िहस िैिनक िंगिठि कर िलए है । चनद के आिे ही उिे िौप िदए

जाएंगे । अब यह सपष हो गया िक आचाया शकटार ने पवि ा ीय राजाओ िे िकिी शिा के आधार पर िहायिा पाप की है । ििर भी हमारे िलए आचाया शकटार का िहयोग िवशेष समरणीय रहे गा ।

आचाया ने बिाया िक शवराक की हतया के बाद महामातय रािि के माधयम िे नंद ने रिचकुमार को अमातय पद िे पदचयुि कर िदया । िुनकर मै िनन रह गया । मै िीधे रिच के पाि पहुँचा । वे बहुि िचिनिि िे । बोले-

`` यह िब िुदामा के कारण हुआ है िवषणु ,अनयिा रािि मुझे पद िे चयुि नहीं

करिे । िंभिव: रािि ने अनयिा ले िलया । िुदामा ने कुछ ऐिी चाल चली िजििे उिने रािि और नंद का हदय जीि िलया और मुझे ितिण बाहर कर िदया ।``

`` आया रिच ! यह अवशय ही िुदामा की कोई ऐिी चाल होगी िजििे हमारा मागा

पशसि हो । हम मे िे िकिी को िो आतम-बिलदान करना ही होगा या हम िबको भी करना पड़

िकिा है । यिद िुदामा इि बिलदान मे होिा िो वह भी अपना आतम-बिलदान दे दे िा । मुझे पूरा िवशाि है ।`` `` लेिकन िवषणु ! मेरा ही आतम-बिलदान कयो षोषो`` `` िंभवि: इििलए आया िक आप िुदामा िे जुड़े है । मुझिे जुड़े है और इि मगध

िे जुड़े है । इि िरह के अनेक िंकट आ िकिे है । आया ! इि मगध को पतयेक के िहयोग की आवशयकिा है । कृ पया आप िवचिलि न हो ।``

रिचकुमार चुप रह गए । भाभी शयामा अवशय ििलिमलाई िकनिु िमय को दे खिे हुए उिने िमझौिा कर िलया । पिाि ् वह बोली-

`` यह िमय िंयम का है । यिद िंयम नहीं रखा गया िो िंभवि: िवषणु का

अिभयान ििल नहीं हो पाएगा । यिद इि मगध को काम-लोलुप मंितयो और िमाट िे उबारना है िो िवषणु िुमहे यह िब करना होगा ।``

रिचकुमार मेरी मंशा िे अचछी िरह िे पिरिचि िे । उनहोने जनिहि मे पदतयाग

को सवीकार कर िलया ।

चनद की दि ु Z िषZ िा िनरनिर पजजविलि होिे रही । गांधार िे पसिान करने के

पूवा उिने एक बार ििर िििशला ,पुषकराविी ,कठ ,केकय ,आगेय ,अिभिार ,विािि ,अंबक और

िुि्रदक का भमण िकया । इि भमण मे उिने यवन िेना मे भरिी भारिीय िैिनको को पेि्रिरि िकया और अपनी िेना मे िमला िलया । जाि हुआ िक बेबीलोन मे ििकनदर कालगििि हो गया ।

उिकी मतृयु िे िेलयूकि को भारी आिाि पहुँचा । अरसिू और अनय िववदानो की भिवषयवािणयाँ िनषिल हो गई ।

लगभग दो माह मे चनद लगभग बाईि िहस िेना के िाि यमुना पार कर

बह ृ दहटट के िने वनो मे आ गया । अब िक उिके पाि पयाप ा धन िंजय हो गया िा । वह अगले दो वषोZिं िक इि धन िे िेना को बनाए रख िकिा िा । उिके आिे ही मैने और आचाया

शकटार ने िेना का िनरीिण िकया । िेना मे बलवान और िमिपि ा िैिनको को दे खकर हदय पिनन हो गया ।

चनदगुप अब अपनी बाईि िहस िेना के िाि मगध पर अिधकार करने के िलए

मानििकिौर पर ििम हो गया िकनिु हमे अब भी मगध की िवशाल िेना िमुद के िमान पिीि हो रही िी । िारी िैयारी के बाद आचाया शकटार की हवेली पर आगामी काया-योजना को मूिा रप

दे ने के िलए एक गोपनीय बैठक आयोिजि की गई । इि बैठक मे मेरे अिििरक आचाया शकटार , चनदगुप , िहमािद ,शुभ ं क और अशोक उपिसिि िे । शुभक और अशोक ये दोनो चनद के िहयोगी के रप मे गांधार िे िवशेषिौर पर आए है । आचाया शकटार बोले-

`` यह िमय बहुि ही िंकमणकाल का है । इिमे पतयेक वयिक को चिुराई और

िूझबूझ के िाि अपने पैर बढ़ाना होगा । मगध के नागिरक भी अब कामलोलुप मंती और राजा को बने रहने दे ना नहीं चाहिे । िमूणा मगध मे अराजकिा वयाप हो गई है । िकिान िे लेकर वयापारी और विृतपानेवाले नागिरक भी तसि हो गए है । नागिरको मे एक पकार का जनआनदोलन

उतपनन हो गया है । आप िबको जाि होगा िक यह िमपूणा जाल आचाया के िशषय िुदामा वदारा िबछाया गया है । िुदामा की िूझबूझ हमारे िलए उिनी ही महतवपूणा है िजिनी महतवपूणा हमारे

िलए िैनय-शिक । हम न केवल िबिुद िे बिलक िैनय-शिक िे भी काया िंचािलि करे िो िनििि

ही हमारी िवजय होगी और इि अराजकिा का अनि हो जाएगा । मै आप िबका आवाहन करिा हूँ ।``

मैने चनद और िहयोिगयो िे कहा`` हमारी आगामी काया-योजना राजमहल के भीिर आकोश िैलाना ,गुप िूचनाएं

पाप करना और भीिर ही भीिर कूटनीिि वदारा एक दि ू रे के पिि आिंक पैदा करना होगा । जब

िक पािटिलपुत के राजमहल की नींव कमजोर नहीं होिी िब िक हमे पूरी िमझदारी और िंयम िे यह काया करना है । जैिे ही िमाट की नींव कमजोर हो जािी हम िैनय-शिक िे िमपूणा

पाटिलपुत को िनयंिति कर लेगे । इिके बाद की काया-योजना के िलए मै और आचाया शकटार

आपको िनदे िशि करिे रहे गे । िकिी पकार की आशंका हो िो चनद ,शुभ ं क और अशोक हमे बिाएं ।``

`` बह ृ दहटट के पाि िहारणय मे यिद हम िैनय-िशिवर सिािपि करे िो मेरे

अनुमान िे उिचि होगा । पिा नहीं कौन का अविर कब आएं कहा नहीं जा िकिा ।``चनदगुप ने अपनी शंका वयक की ।

`` चनद ! िजिनी शीघिा िे हो िेना को िहारणय के वनो मे एकत कर लो ।

िहारणय मे छोटे -छोटे खणडहर है । उिमे िेना को पि ृ क-पि ृ क ठहराओ लेिकन यह भी धयान रहे िक एक खणडहर िे दि ू रे खणडहर िक की दरूी मात कुछ िण की ही होनी चािहए िािक िंकट के िमय िहायिा की जा िके ।`` शकटार ने िहमिि जिािे हुए िमबोिधि िकया ।

`` यह उिचि होगा आया ! शुभि्ंिाक िुम यह काया पूरा कर चनद के िाि रहो और

चनद िुम इि बीच पाटिलपुत की याता कर आओ िकनिु िावधानी पूवक ा ,िुमहे वेशभूषा बदलनी होगी । इि िरह िक िुम मगध के िामानय नागिरक पिीि हो । िुदामा िे भेट होगी उििे िमलकर राजमहल के भीिर काया की योजना बनाओ िक िकि िरह िे भीिर अिंिोष और

आकोश वयाप हो िके । िुम अपने िाि एक-दो अंगरिक भी लेिे जाओ । नगर भमण कर िसििि का जायजा लो और िसििि िमझ लो । इििे िुमहे अनायाि आकमण करने मे िुिवधा होगी । मै िुमहारे आिपाि ही रहूँगा ।`` मैने चनद को िनदे श िदए ।

इि िवचार-िवमशा िे पाटिलपुत मे काया करने का मागा पशसि हुआ । चनद ने

िारी िेना िहारणय के खणडहरो मे एकत कर ली । शुभक ििा दो अंगरिको को िाि लेकर चनद पाटिलपुत की याता के िलए पसिान कर गया । उिने वेशभूषा बदलकर नगर भमण िकया । नागिरको िे िमपका िकए और उनके िवचारो िे अवगि हुआ । राजय मे वयाप अिंिोष और

अनाचार को दे ख चनद िुबध हो गया िकनिु िसििि को दे खकर वह िंयम के िाि पूरे नगर की राजनीििक ,आििक ा , िामािजक और वयापािरक गिििविधयो की जानकारी ली ।

इिी बीच वैशाली के भाल ,शाकय ,मलल और बुली पिरषदो ने मगध िमाट को वािषZ क कर और अनय धन दे ने िे इनकार कर िदया । िकिानो और वयापािरयो के बीच अनबन हो गई । पिरणामसवरप नंद कोििि हो गया । उिने रािि को बुलाकर पूछा -

`` वैशाली गणराजय िे वािषZ क कर और धन कयो पाप नहीं हो रहा है षोषो``

`` राजन ! भाल ,शाकय ,मलल और बुली पिरषदो ने अपने सविंत होने की िोषणा की है और िूचना भेजी है िक इिना अिधक कर और अनय धन िदया जाना िंभव नहीं है । पिरषदो के नागिरको मे आकोश मच गया है और उनहोने िवदोह कर िलया है । मगध िामाजय की

अधीनिा को चुनौिि दे िे हुए िकिी भी पकार का कर और धन दे ने िे उनहोने इनकार कर िदया है । `` `` महामातय रािि ! उनहे मगध िामाजय की शिक का अनुमान नहीं है । हमिेिे िवदोह करके वे उिचि नहीं कर रहे है । उन पर आककण कर उनहे हमारी अधीनिा सवीकारने के िलए िववश िकया जाय । `` नंद कोिधि हो गया ।

`` लेिकन राजन ! पजा की दिष मे यह कैिे िंभव होगा षोषो``

`` ठीक है िुम िेनापिि भदशाल को हमिे भेट करने के िनदे श दो ।`` नंद के आदे श पर रािि,िेनापिि भदशाल के िाि उपिसिि हुआ । भदशाल ने

नंद का अिभननदन िकया और बोला-

`` िमाट की जय हो । मुझे समरण िकया गया है राजन ! आजा दीिजए ।``

`` िुम शीघ ही वैशाली पर आकमण कर भाल ,शाकय ,मलल और बुली पिरषदो को कुचल डालो और दोिषयो को बनदी बनाकर कारागार मे डाल दो ।`` नंद आपे िे बाहर कोिधि हो चीख उठा ।

`` लेिकन भाल ,शाकय ,मलल और बुली पिरषदो के अपराध कया है राजन ! उन

पिरषदो के नागिरक कमजोर और िववश है । गणो के नरे शो की आििक ा िसििि अचछी नहीं है ।`` `` यह िुम कह रहे हो भदशाल ! िुमहे यह शोभा नहीं दे िा । िुम शीघ ही भाल

,शाकय ,मलल और बुली पिरषदो पर आकमण के िलए कूच करो ।``

`` राजन ! हमारी िेना गि बीि वषोZिं िे िनििषकय है । उनहे अभी युदाभयाि

की आवशयकिा है । वे इिने शीघ युद के िलए िैयार नहीं होगे । ``

`` यह हम नहीं जानिे । हमे िकिी पकार की लापरवाही पिनद नहीं है । हमारी

आजा का पालन िकया जाय । अब िुम जा िकिे हो ।``

नंद िबना पिरणाम जाने ही िेनापिि भदशाल को आदे श दे बैठे । वषोZिं िे िबना

िकिी िरह का काया िकए िैिनक अभयािहीन हो गए । िेना नायक िकंकिवायमूढ़ हो गए िे ।

इिना ही नहीं जब उनहे िमाट नंद का आदे श िुनाया गया िो उनमे आकोश उतपनन हो गया ।

अिधकांश िैिनको ने अचानक युद पर जाने िे इनकार कर िदया । चनद के अनुचरो ने िेना मे जो

िवदोह िैला िदया िा उिका भी िैिनको पर पभाव पड़ा िा । कई िैिनको ने िवदोह कर िदया । िैिनको का िका िा िक िनरापराध नागिरको का बध नहीं िकया जाना चािहए । वे यह जिनय

अपराध नहीं करे गे । वे युद के िलए अवशय ितपर है यिद मगध पर कोई शतु आकमण करिा है िो वे अवशय ही शतुओं का िामना करे गे िकनिु अपने ही नागिरिाको का अकारण वध नहीं करे गे ।

यह उनकी विृत मे शािमल नहीं है । िेना के िवदोह की चचाा पाटिलपुत के नागिरको िक पहुँच गई । इिना ही नहीं मगध िामाजय के अधीन गणराजयो मे भी यह िूचना वयाप हो गई । नंद िकिी भी िरह िे उन गणराजयो को कूचलने के िलए ितपर हो रहे िे । उनहे पयाप ा धन की अिभलाषा

रहिी है । उनके भोग-िवलाि मे िकिी भी िरह की कमी वे बदाशाि नहीं कर पािे । इिना ही नहीं वे अपने राजिभा के मंितयो और िमतो की भोग-िवलािििा को पूणा करने मे भी आननद का अनुभव करिे िे । उनहोने भदशाल और रािि को आदे श दे िदया िक वे गणराजयो िे हर िसििि मे

िनपटने की कायव ा ाही करे । यिद कोई नागिरक या पिरषद कर और अनय धन पदान नहीं करिे है िो उनकी नवयौवनओं ििा नविववािहिोिे को उठा कर केली-भवन मे उपभोग के िलए उठा िलया जाय । जब पिरषदो मे नागिरको ने नंद के इि आदे श को िुना िब िमपूणा मगध मे आकोश िैल

गया और िवदोह की आग भड़क उठी । हमारे िलए यह उपयुक िमय िा । आकोश और िवदोह की इि आग के पीछे ही हम अपने मनिवय िक पहुँच िकिे है । उपयुक अविर का लाभ उठाना बुिदमानी की िंकेि है ।

िैिनको के िवदोह पर नंद िनन रह गया । उिकी नींव िहलने लगी । ऐिी िसििि

मे वह भीिर िक सवयं को िंभालने मे किठनाई अनुभव करने लगा । चनद के िलए यह उपयुक अविर िा । वह अब िुदामा िे िमलने चल िदया ।

िुदामा को करिभका ने िूिचि िकया िक गांधार िे उनिे भेट करने कोई आया है ।

चनद ,करिभका के िनवाि पर राित मे ही आ चुका िा । िुदामा को दे खिे ही चनद ने उिे अपने अंग मे िमेट िलया । ठीक दो वषा के उपरानि चनद और िुदामा की भेट िंभव हो पाई िी । `` बनधु चनद !``

`` हाँ िुदामा ! कैिे हो मेरे िपय षोषो``

`` ठीक हूँ । इन दो वषोZिं मे मै िबलकुल अकेला पड़ गया िा । ऐिा पिीि हो रहा

िा मानो मै वासिव मे शिकहीन हो गया हूँ । अब िुम आ गए हो िो मेरी िारी शिक वापि आ जाएगी ।``

`` अब िुम कया कर रहे हो िुदामा षोषो आचाया ,शुभक और अशोक के िाि कूच

कर रहे है । कुछ ही िदनो मे वे मगध आ जाएंगे ।``

`` उनहे कहाँ ठहराया जाएगा बनधु चनद षोषो``

`` हमारी िेना िहारणय मे है और वहीं िे इि ओर आ रही है । बि ,िुमहारे मागािनदे श की आवशयकिा होगी । महामातय रािि और िेनापिि भदशाल को यिद जाि हो गया िो हम पर िंकट आ िकिा है िुदामा ।``

`` नहीं ऐिा नहीं होगा । भदशाल चालीि िहस िेना लेकर वैशाली के पिरषदो पर

आकमण करने कूच कर िदए है । अब नगर मे मात कुछ िहस ही िेना होगी । हमारे पाि िैनयबल कम है िकनिु जो भी है वह अनुकूल िसििि मे उपयुक है ।``

`` ठीक है । हम िेना को नगर मे िविभनन सिानो मे िबखराकर िैनाि कर दे िे है ।

पाटिलपुत के आिपाि भी कािी खणडहर है । उनमे भी िुम िैिनको को िैनाि कर िकिे हो । बि िकिी को कानोकान जाि न हो पाए । और हाँ , िेना के नगर मे पवेश के बाद कुछ नया करना

होगा । िजििे राजपदािधकािरयो और िमाट का धयान हट िके और हम अपना काया िुगमिा िे िमपािदि कर िके । कोई ऐिे गुप मागा होिंगे ,जो राजभवन के िकिी गोपनीय कि मे खुलिे हो ।``

`` है िमत । कुछ मागा है । मैिेने उनहीं मागो िे आचाया शकटार को अंधकूप िे

बाहर िनकाला िा । मैने िारे मागो की जानकारी पाप कर ली है । कुछ नया करना चाहिे हो िो

पिमि: राजमहल की पाचीरो मे अवरोध उतपनन करना होगा । िजििे बाहर िे भीिर की ओर कोई आ न िके और भीिर िे बाहर की ओर कोई जा न िके । यिद यह िंभव हो जाय िो हमारे

अिभयान मे राजमहल िे बाहर न िो कोई जा िकेगा और न कोई आ िकेगा । नंद को भी िहायिा नहीं िमल पाएगी और िबना िूचना-िंचार के वह अिमिा हो जाएगा । इििे उिचि उपाय िदखाई नहीं दे िा ।``

`` मुझे कया कया करना होगा िुदामा षोषो ``

`` िुम इिी गोपनीय वेशभूषा मे जाकर राजभहल की पाचीरो का अवलोकन करो । वह बहुि खिरनाक है । िमाट नंद के भवन मे पवेश करना िरल नहीं है ििर भी इन गुपवदारो िे पवेश िकया जा िकिा है । बि ,ििकािा की आवशयकिा है ।``

``मै राजमहल के िकले को दे खना चाहूँगा । हमारी िेना िकि िरह िे महल मे

पवेश कर िकिी और हम कैिे अपने षडयंत मे ििल हो िकिे है िं षोषो``

पाटिलपुत के िवशाल िकले मे चौिठ वदार िे । िकले के चारो ओर आठ िौ गज

चौड़ी और पचाि गज गहरी खाई िी । इि खाई मे िवषैले िपा, भयंकर डरावने मगरमचछ और

बहुि िे िवकराल नरभिी जीव रहा करिे िे । खाई मे िदै व जल और दलदल भरा रहिा िा । िकले मे इन वदारो के अिििरक अनय कोई पवेश लगभग अिंभव िा । वदारो िंपर अतयनि मजबूि , िवशाल ििा भारी िकवाड़ लगे हुए िे । िेनापिि के आदे श िे िभी वदार बनद िे । केवल पमुख

वदार राजपदािधकािरयो और पमुख गणो के िलए खुला रहा करिा िा । िकले के झरोखो मे पहरी छुप कर बैठा करिे िे । ये पहरी बाहरी आकमण को िनििषकय करने मे चिुर िे । खाई पर

िामानयसिर के पुल बने हुए िे िजनहे कभी भी हटा िदया जा िकिा िा और कभी भी लगा िदया

जा िकिा िा । कहीं िे भी पवेश मागा िदखाई दे रहा िा । उिे िवशाि नहीं हो रहा िा िक िकले मे

आने-जाने के िलए पि ृ क िे भी कोई न कोई रासिा है । यह रहसय को केवल िुदामा अचछी िरह िे जानिा िा । उिे यह अवशय जाि है िक नंद के अंधकूप िे आचाया शकटार को िनकालकर लाने मे

िुदामा ने अहं भूिमका िनभाई िी । इिका अिा यह हुआ िक िकले का गुप वदार अवशय है । चनद ने वेशभूषा बदल िामानय नागिरक की है िियि िे िकले को दे खा-परखा । नंद के इि अदद ु िकले को

दे ख पहली ही दिष मे चनद चौिंक गया । वह इि िवशाल िकले की पाचीर को दे खकर उििवदगन हो गया िकनिु जब उिे बिाया गया िक हमे इन पाचीरो िे नहीं जाना है बिलक कूटनीिि िे यह युद जीिना है िो वह आशसि हुआ । 0

मगध की चालीि िहस िेना वैशाली के पिरषदो को कुचलने के िलए पसिान कर

चुकी िी । भदशाल इि िेना का पिििनिधतव कर रहे िे । पाटिलपुत मे अब केवल पनद-बीि िहस िैिनक ही शेष रहे िे । ये वे िैिनक िे जो कई वषोZिं िे युदाभयाि िे वंिचि िे और अिधकांशि: िनकममे हो गए िे । िेनानायक कामुक और नंद के अनुगामी होने िे वे अिधक ििकय नहीं िे । मैने इि अविर का लाभ उठाना उिचि िमझा । मेरे और चनद के िलए इििे अिधक उपयुक

िमय और कोई नहीं हो िकिा । मगध की जो िेना पाटिलपुत मे िवदमान िी वह चनद की िेना के मुकाबले मे कमिर ही िी । राजधानी पाटिलपुत मे इि िमय केवल नंद और उनके चाटु कार

मंती ही िे । िेनापिि भदशाल अपने दि ु Z षा िैिनको के िाि पाटिलपुत िे बाहर िे । महामातय

रािि के अलावा शेष िभी मंती वीयह ा ीन और कामुक िे । उनमे इिना िाहि नहीं िा िक वे अपनी मिि िे िमाट नंद और महामातय रािि को िलाह दे िके या िकिी िरह का िहयोग दे िके । िमय अनुकूल दे खकर मैने चनद ,शुभक और अशोक को पाटिलपुर को चारो ओर िे िेरने के

िनदे श दे िदए । दे खिे ही दे खिे पाटिलपुत को चारो ओर िे चनद की िेना ने िेर कर नाकाबनदी कर ली । नगर मे गली-गली और मुखय-मुखय सिानो पर चनद के िैिनको के अश दौड़ पड़े । मगध के िमसि गुपचरो को बनदी बना िलया गया । िैिनको को िेर िलया । रािि और नंद िमाचार

िुनकर िवििसमि हो गए । उनहोने िुरनि िेनानायको को बुलाया । िेनानायक ििका हो गए ।

नंद ितकाल कुछ करने की िसििि मे नहीं िे । रािि िोच मे पड़ गए िक यह िब अचानक कैिे हो गया । िसििि का परीिण करने के िलए रािि ने िुदामा को समरण िकया । िुदामा उिी िण रािि िे आ िमले । रािि ने पूछा -

`` पाटिलपुत पर अचानक यह आकमण कौन करने की िैयारी कर रहा है षोषो

कौन हो िकिा है यह िाहि षोषो ``

`` महामातयवर ! जाि हुआ है िक गांधार िे चनदगुप नाम का कोई िाहिी वयिक

अपनी िेना लेकर नगर मे आ चुका है । ``

`` गांधार िे हमारा कया वैर हो िकिा है षोषो `` `` गांधार िे हमारा कोई शतुिा नहीं है आयव ा र िकनिु िुनने मे आया है िक

चनदगुप का िलाहकार कोई आचाया है आचाया चाणकय ।``

मेरा नाम िुनिे ही रािि को अिीि का समरण हो आया । वह िोचने लगा

िंभवि: यह वही आचाया चाणकय है कई वषोZिं पहले िजिका िमाट ने भरी िभा मे अपमान िकया िा और उिने कोिधि होकर कहा िा िक , `` नंद ! यह िशखा िब ही बंधेगी जब िेरा और िेरे वंश का नाश कर डालूँगा ।`` यह िोचिे हुए रािि ििका हो गया । वह शीघिा िे िमाट नंद के

पाि गया और पनदह-िोलह वषा पहले हुई िभा का समरण िदलाया । नंद को वह समिृि याद नहीं िी िकनिु उिे यह अवशय समरण िा िक कोई चाणकय अवशय है जो बड़ा ही कूटनीििज है और

िििशला का आचाया है । पल भर समरण कर नंद का रोम-रोम कांप उठा । वह िण भर के िलए भयभीि हुआ ििर िहिा उठकर खड़ा हो गया और बड़बडाने लगा -

`` दे खिा हूँ इि चाणकय को । िंभवि: इिके पर िनकल आए है । मगध की िमुद

के िमान िवशाल िेना के िमि इिकी मुटठी भर िेना कैिे िटक िकिी है । उिकी िेना और उिे भी पीि कर रख दँग ू ा ।``

`` इिना बड़ा षडयंत िबछाया गया और हमे जाि िक नहीं है । हम इि आिया मे

पड़ गए िक चाणकय और चनदगुप अपनी इिनी िेना लेकर मगध मे पवेश कर गया और हमारे

गुपचरो को िूचना िक नहीं है । अवशय ही इि षड़यंत मे हमारे कुछ मंती और गुपचर िलप होगे । राजन ! मै आपिे िनवेदन करिा हूँ िक चाणकय िे िमबिनधि िभी वयिकयो को बनदी बना िलया

जाना उिचि होगा अनयिा कुछ भी ििटि हो िकिा है । लेिकन यह कहा जाना किठन है िक मगध मे कौन-कौन चाणकय के पिधर है कयोिक चाणकय पतयेक अमातय और पतयेक

राजपदािधकािरयो को जानिा है । केवल जानिा ही नहीं है बिलक हमारे िभी पदािधकारी उिे अचछी िरह िे जानिे है । इििलए िकिी का नाम या िकिी एक का नाम िलया जाना भी किठन पिीि हो रहा है । ``

`` महामातय रािि ! िुमने चाणकय के िजन िजन वयिकयो को राजपद िौपा है

उनहे िंितकाल बनदी बना ले । शेष का पिा लगाया जाय । िाि ही िेना को ििका िकया जाय । मै सवयं िेना का िंचालन और नेितृव करँगा । महामातय िेनानायको को आदे श दो िक नगर के

पमुख वदारो को बनद िकया जाय । पहिरयो और आतमिािी िैिनको को शीघ ििका रहने को कहा जाय । हम शीघ ही िेना का िनरीिण करना चाहे गे ।``

`` राजन ! नगर के नागिरको मे अिंिोष वयाप हो गया है । नागिरक यहाँ-वहाँ

पाण बचाकर भाग रहे है । िारे नगर मे आिंक छा गया है । ऐिे िमय मे हमारी मगध-िेना

अपयाप ा पड़ रही है । बाहर जाने के िभी रासिे बनद है । भीिर पवेश के रासिे भी बनद कर िदए गए है । पिा नहीं , इिनी ििकािा और चौकिी के पिाि ् भी हमारी राजधानी मे िविटनकारी ितव

कब िे काया कर रहे है । हमे इिकी भनक भी नहीं है । िेना मे िवदोह भी इिका पमुख कारण हो िकिा है िकनिु यह िवदोह भी िंभवि: चाणकय के अस-शस है । राजन ! चाणकय कूटनीििज है

। वह राजनीिि को कूटनीिि के दिषकोण िे दे खिा है । मुझिे िकिनी ही बार िमला िकनिु उिकी बुिद वयिकयो को इि िरह िममोिहि कर दे िी है िक कोई जाि भी नहीं कर पािा । ``

िमपूणा पाटिलपुत मे इिके पहले कभी ऐिा अविर दे खने को नहीं िमला । इि

िरह के आिंक के बादल नहीं छाए । िकिी भी िेना या नरे श मे इिना िाहि नहीं है िक वह पाटिलपुत मे , हमारे ही िर मे आकर हमे आिंिकि करे । रािि ििर बोला-

`` राजन ! अवशय ही इि षड़यंत मे राजभवन िे कुछ िार जुड़े हुए हो िजिने

हमारी कमजोरी का अचछी िरह िे दोहन िकया है । हमने भारी भूल की है । हमने उि बाहण को यो ही कमजोर िमझकर उिका अपमान िकया । अब न जाने वह बाहण पाटिलपुत के कया हाल बनािा है षोषो ``

`` महामातय रािि ! िुम नाहक इिनी िचनिा िकए जा रहे हो । मगध जैिे

िामाजय के िामने आज िक कोई िटक नहीं पाया िो ििर यह चाणकय िकि खेि की मूली है षोषो हम उिे चकनाचूर कर दे गे और उिे बनदी बनाकर अंधकूप मे डाल दे गे ।``

नंद ने पाटिलपुर नगर के िारे वदार बनद करने और पहिरयो को ििका करने के

आदे श िदए िकनिु उिके िारे पयाि िनषिल हो गए कयोिक यह काया चाणकय के आदे श पर

िमपनन हो गए िे । ििर भी िनबुZ िद नंद िुरिा के िलए नगर मे उपिसिि िेना का िनरीिण करने चल िदया । मगि िेना को दे खकर नंद िोड़ा बहुि आशसि हुआ । लेिकन वह िकिी िरह की आशंका मे रहना नहीं चाहिा िा । उिने रािि िे कहा -

`` हमारे पाि और अिधक िेना की आवशयकिा पिीि हो रही है । महामातय

रािि ,िुम शीघ ही पवि ा ीय िेतो मे जाओ और वहाँ िे दि िहस िेना िंगिठि करो । हो िके िो िेनापिि भदशाल िे िमपका सिािपि कर उनिे िहायिा लो । िेना कम न पड़ने पाए ।``

`` लेिकन राजन ! िेनापिि भदशाल के पाि पहुँचना आिान नहीं है । नगर के िारे वदार

चाणकय ने बनद करवा िदए है । न कोई बाहर जा िकिा है और कोई भीिर आ िकिा है । यिद पहुँच भी गए िो.......हमारे पाि िमय अभाव है । नगर मेिे कुछ भी ििटि हो िकिा है ।``

`` महामातय रािि ! कोई िो उपाय होगा ,िजििे नगर के बाहर जाकर भदशाल

को िूिचि िकया जा िके या वनो िे िेना एकिति की जा िके ।``

`` पयाि िकया जा िकिा है । मै शीघ ही कोई पयाि करिा हूँ ।``

चनद के गुपचर और अनुचर पाटिलपुत मे चपपे-चपपे पर छाए हुए िे । नंद और

रािि के इि वािाल ा ाप की िूचना पाप होिे ही िबिे पहले महारानी मुरादे वी और दािी िुमिि को अनि:पुर िे िनकालकर आचाया शकटार के भवन मे िुरििि पहुँचा िदया गया ।

अब हम अिधक आशसि हो गए िकनिु िभी एक आशंका ने उिितपिड़ि िकया । वह यह िक

महामातय को आशंका हो गई िक इि िारे षड़यंत को मूिा रप दे ने मे िुदामा का अपतयि िौर िे िहयोग है । िुदामा को पहले ही आभाि हो गया िा िक रािि उि पर आंशका वयक करे गा । अि: िुदामा रािि के महल िे पलायन कर िीधे बह ृ दहटट जा पहुँचा ।

हमिे यह भूल हो गई िक हमने शतु को कमजोर िमझा । नंद और रािि के

गुपचर भी ििकय िे । उनके पाि भी कुछ कूटनीििज िे जो ििि िूचनाएं एकिति कर रहे िे । िजनिे हम अनिभज िे । रािि वेशबदल कर पाटिलपुत िे बाहर िनकलने मे ििल हो गया । वह पाटिलपुत के पवि ा ीय िेतो मे जाकर बीि िहस िे अिधक िैिनक एकत करने मे ििल हो गया ।

उिने अपने गुपसिानो िे चनद के िैिनको पर आतम-िािक आकमण िकए । िजिका हमे ििनक भी आभाि नहीं िा । हम िनििनि िो िे ही िकनिु ििका नहीं िे । रािि वदारा एकत पवि ा ीि

िैिनक दि ु Z षा िो नहीं िे िकनिु वे िनरापराध नािागिरको के पिि कूि्रर िे । उनहोने हमारी िेना को िनषिल करने के िलए नागिरको पर अतयाचार बरपना पारं भ कर िदया । िमपूणा नगर के

नागिरको मे खलबली मच गई । इि आतमिािक आकमण मे हमारे िैिनक िबखर गए । चनद ने िैिनको को िुरनि पलायन करने के िनदे श िदए । हमारे िैिनक िबखर गए िे । अब मै और चनद िजि िकिी िरह बह ृ दहटट पहुँचे ।

हमारी कमजोरी कहाँ िी , इि िवषय पर एक बैठक आयोिजि की गई । िजिमे

मेरे अलावा चनद ,िुदामा ,शुभ ं क ,अशोक ,करिभका ,भाभी शयामा ,िुिुमिि ,महारानी मुरादे वी

और िहमािद उपिसिि रहे । बहुि िचनिन कर यह िनषकषा िनकला िक कूटनीिि को ििलिा िे

िकयाििनवि करने के िलए शिक का होना भी िनिानि आवशयक है । दोनो एक दि ू रे के पूरक है । अि: कूटनीिि की ििदी के िलए हमे और अिधक िैनय-िंगठन की आवशयकिा है । अि: िैनयबल अिधक बढ़ाया जाना होगा ।

इि िनणय ा के बाद हम शिक अिजि ा करने के िलए िैयारी पारं भ कर िैनय-बल के

िवकाि करने के िलए किटबद हो गए । बह ृ दहटट के पवि ा ो मे अनेक पवि ा राज शािन करिे िे । जाि हुआ िा िक पवि ा ीय राजा धन के िलए अनय नरे शो को िैनय-बल की िहायिा करिे है िं ।

उनके पाि िैनय-बल पयाप ा होिा है । पवि ा ीय शािको के िैिनक बहुि ही चिुर ,शिकशाली और कूि्रर होिे िे । आचाया शकटार का पवि ा ीय राजाओं िे भिलभांिि पिरचय िा । वे इन पवि ा ीय

राजाओं के िनकट िे । पवि ा ीय राजाओं को धन की अिधक आवशयकिा होिी है । आचाया शकटार के पाि िवपुल धन-िमपित िी । उनहोने मागद ा शन ा िदया िक इन पवि ा ीय राजाओं को धन दे कर

उनिे िैनय-बल की िहायिा ली जा िकिी है । लेिकन यिद कोई राजा और कुछ चाहिा है िो उि पर िवचार िकया जाएगा ।

आचाया शकटार की िहायिा िे पवि ा राज िशिा िहायिा के िलए उनके िमि

उपिसिि हुए । पवि ा राज ने धन की कामना की । हम धन दे ने के िलए िैयार हो गए । उनहे कहा गया िक यिद हम नंद के राजमहल पर अिधकार पाप कर लेगे िो उनहे अिधकािधक धन पदान िकया जाएगा । पवि ा राज धन लेने की शिा पर िनिुष हो गए । इि िरह आचाया शकटार की िहायिा िे पवि ा ीय राजाओं िे हमे बीि िहस िैिनक उपलबध हो गए ।

पवि ा ीय राजाओं िे िैनय-बल पाप करने के बाद मै ,चनद और िुदामा वाहीक

जनपदो की ओर गए । वाहीक पांि िे लगभग िभी जनपदो की िेनाओं के िेनापिियो ने भी

िहयोग पदान करना पारं भ कर िदया । वाहीक पानिो को अब अचछी िरह िे जाि हो गया िा िक

यिद यवनो ने भारिवषा मे दब ु ारा पवेश िकया िो उनका अनि िनििि है । इििलए भी हमे िहयोग िदया जाना उनके िलए उपयुक लगा । वािहक िेत िे हमे पयाप ा िैनय-बल पाप हो गया । इि िरह हमारे पाि लगभग िाठ िहस िे भी अिधक िैिनक एकत हो गए । जो हमारे िलए पयाप ा िे ।

चनदगुप , सुहन गणराज के वीर िैिनको को लेकर अनेक छोटे -छोटे गणराजयो को

परािजि कर अपने अधीन करिे हुए आगे बढ़ने लगा । जब यवन िेनापिि युििदमि को हमारी

िवजय गािा जाि हुई िो वह ििलिमला उठा । उनिे पुषकराविी राजयो िििशला को िाि लेकर चनद की िेना पर टू ट पड़ा । दोनो िेनाओ मे भारी युद हुआ । चनद की िेना ने आतमिािी

आकमण कर िेनापिि युििदमि को िेर िलया । वह ििर जाने के कारण मारा गया । उिकी मतृयु होिे ही युद िवराम हो गया । 0

मगध िामाजय षड़यंतो का गढ़ बन गया िा । पिििदन षडयंत रचे जािे और

आपि मे ही लड़ने मरने लगे । राजपदािधकारी और राजमहल के पमुखो के बीच भी षड़यंत रचे जाने लगे । चारो ओर भय और आिंक के बादल मंडराने लगे । मगध को कुशल नेितृव की

आवशयकिा िी । महामातय रािि चाहिा िा िक वह अनय िकिी को मगध का नेितृव न िौपिे हुए सवयं ही मगध के राजििंहािन पर िवराजमान हो । रािि ,नंद का िवशिनीय महामातय िा । इििलए नंद ,रािि की िलाह के िबना कुछ भी नहीं करिा िा ।

मगध िामाजय के महामातय रािि को जब जाि हुआ िक चनदगुप पुन:

पाटिलपुत पर आकमण करनेवाला है । िब उिने िैनय-शिक का उपयोग न करिे हुए िवषकनया के उपयोग की योजना बनाई और चनदगुप को िमाप करने के िलए उिके िशिवर मे िवषकनया

भेज दी । चनद को मैने पारं भ िे ही बहचया का पाठ पढ़ाया िा िकनिु ििर भी मै िकिी िरह की िजममेदारी लेना नहीं चाहिा िा । चनद के गुपचरो ने रािि की योजना की जानकारी मुझे पाप हो

गई िी । चनदगुप को िचेि कर िदया गया । उिके शयन िशिवर को पििराि बदल िदया जािा रहा । कोई यह नहीं जानिा िा िक आज राि चनदगुप िकि िशिवर मे िो रहा है । रािि वदारा भेजी गई िवषकनया ,चनदगुप के िशिवर को िलाशिे रही िकनिु उिे ििलिा नहीं िमली ।

अनिि: िवषकनया ने चनद को ढू ँ ढ िनकाला िकनिु उिी िण करिभका ने उिे दबोच िलया और

उिके वि मे कटार झोक दी । िवषकनया की मि ृ दे ह िुबह रािि के भवन के िामने पड़ी िदखाई दी । वह िोिभि हुआ ।

पाि: चनदगुप के िभी िहयोगी नरे श ििहि पवि ा राज को िसििि जाि हुई । एक

पकार का आकोश वयाप हो गया । अब िक िुदामा भी चनद के पाि आ चुका िा । मैने ितकाल एक बैठक आयोिजि की । इि बैठक मे मै सवयं ,चनद, पवि ा राज ,िुदामा करिभका,आचाया

शकटार और िहयोगी पिरषदो के नरे शो ने भाग िलया । मै अब आरपार की लड़ाई लड़ना चाहिा िा । इि युद मे न केवल कूटनीिि बिलक शिक का भी पयोग िकया जाना िा । मैने कहा -

`` चनद की िेना पाटिलपुर मे िमाट नंद के िकले को चारो ओर िे िेर लेगी और

िुदामा अपने दल के िाि उि िुरंग िे िकले मे पवेश करे गा िजि िुरंग िे उिने आचाया शकटार को अंधकूप िे बाहर िनकाला िा ।``

`` शिक का दि ू रा सवरप होगा वह रासिा िजि रासिे को वषोZिं िे बनद रखा

गया है कयोिक वह रासिा िकले के िबलकुल पीछले भाग मे है और वहाँ केवल झािड़यो के अलावा कुछ भी नहीं है । लेिकन इि रासिे के भीिरी भाग मे नंद के कुछ पहरी िदै व पहरा दे िे रहिे है ।

हालांिक वह रासिा िुरििि है और अब िक उि पर िकिी का धयान आकिषZ ि नहीं हुआ है । `` आचाया शकटार ने िमबोिधि िकया ।``

`` िकले के पििमी भाग मे शोण नदी का हलका पवाह है िकनिु उि रासिे को पार

करने के िलए हमे पुिलया बनाना होगा । `` िुदामा ने बिाया ।

`` अधा राित के ििवदिीय पहर मे हम छापामार युद लड़े गे । िमय और पिीिा

नहीं करनी है । ििकािा और कूटनीिि को अपनाना होगा । आवशयकिा पड़े िो आतमिािी आकमण भी करना पड़ िकिा है ।`` मैने कहा

शेष िनदे शो पर भी गूढ़ चचाा हुई । ऐिा ही िकया । िकले के पििमी भाग मे बह रही

नदी के हलके पवाह को िुदामा की चिुराई िे रोका गया । इि भाग मे िनधन ा लोगो के िनवाि बने

हुए िे । यहाँ नगर के पििििषि लोगो का आवागमन नहीं िा । विृत पर काया करना यहाँ के लोगो का वयविाय िा । इनहे िुदामा ने शोण नदी के पवाह को रोकने के िलए काया दे िदया और मात दो िदनो मे शोण नहीं के पवाह को िबना रोके उि पर पुल का िनमाण ा हो गया । िनधन ा ो ने शोण नदी के पवाह को रोकना उिचि नहीं िमझा िा िकनिु दि ू रा िवकलप िनकालकर पुिलया बना िलया । इि भाग मे झािड़याँ होने के कारण पहरी भी कम िनयुक िकए गए िे । यह रासिा हमारे पिम छापामार युद का बहुि अचछा िाधन और उपाय िा ।

हम िमय का उपयोग करना चाहिे िे । िुदामा , चनद ,शुभ ं क ,अशोक और लगभग पाँच िहस िैिनको को शोण नदी के उि रासिे िैनाि करने मे दो राितयाँ लग गई । यह िब इिनी शीघिा और गोपनीयिा िे िकया गया िक रािि और भदशाल को इिकी भनक भी नहीं लग पाई । िादे पिरधान मे िामानय नागिरको की िरह िदखिे हमारे िैिनक और वेशभूषा बदल कर पाटिलपुत मे पवेश कर चुके चनद,िुदामा,शुभक,अशोक और पवि ा राज को मगध के गुपचर भी नहीं पहचान पाए ।

जब िारा पाटिलपुत िो रहा िा और िमाट नंद दािारि के मद मे चूर गिणकाओं

के िाि रं गरे िलयाँ मना रहा िा । महामातय रािि काम-वािना मे िलप नगरवधू के आंचल मे खोया हुआ िा । मगध की िेना दािा-िुरा मे मदमसि हो झूम रही िी । िारे पाटिलपुत मे

सिबधिा छाई हुई िी , िब मैने िुअविर जान चनद ,िुदामा ,शुभ ं क,अशोक और पवि ा राज को छापामार युद के िनदे श दे िदए ।

राित के िीिरे पहर मे िमाट िे लेकर उनके िामानय िैिनक िक िभी भोग-

िवलाि मे िलप िे । पाटिलपुत राजभवन मे िकिी ने भी इि िमय अिुरिाके बारे मे िोचा भी नहीं िा । िुदामा ने पवि ा राज के िैिनको का िहयोग िलया और शोण नदी पर बने पुल िे होिे हुए िकले की पाचीर को बड़ी आिानी िे लांि िलया । पहरी िैनाि िे िकनिु वे मद मे चूर िे । लगभग पचाि पहिरयो को शीघ ही मतृयु का रासिा िदखा िदया । िकले के भीिर के वदार खोल िदए गए । चनद और पवि ा राज के िैिनक राजमहल के वदार पार करिे हुए आगे बढ़ने लगे और पहिरयो पर

आतमिािी आकमण करिे हुए मतृयु को िमिपि ा करने लगे । िकले मे हलचल मच गई । जैिे ही

महामातय रािि को पिा चला वह बौखला गया । भदशाल जैिे नींद िे चेिना मे वापि आ गया । उिने शीघ ही िैिनको को आदे श िदए । िहसो िैिनक िकले के पूवी वदार पर एकत हो गए ।

भदशाल िमझ नहीं पा रहा िा िक कैिे वह चनद के िैिनको िक पहुँचे । चनद की िेना का नेितृव इि िमय िुदामा कर रहा िा । इिका मुखय कारण यह िा िक िुदामा को मगध की िेना के

िैिनक पहचानिे िे । उनहे यह जाि िा िक िुदामा महामातय रािि का पमुख गुपचर है । मगध के िैिनको ने उतरी भाग िे िकले मे पवेश करना पारं भ कर िदया । लगभग दो िहस िैिनक िकले

के भीिर पवेश कर गए । िामने िे िुदामा के िाि आिे िैकड़ो िैिनको को दे खकर मगध िैिनक यह िमझ बैठे िक यह भी मगध के ही िैिनक होगे । भदशाल के िैिनक िुदामा िे िबना कुछ कहे दि ू री ओर चले गए । िुदामा अपने िैिनको को लेकर आगे बढ़ा और ितकाल पीछे पलटकर

भदशाल के िैिनको पर आतमिािी आकमण कर िदया । वे िंभल ही नहीं पाए और दे खिे ही दे खिे भदशाल के लगभग आधे िे जयादा िैिनक इि आतमिािी आकमण मे मारे गए । भदशाल

ििलिमला गया । जो आधे िे भी कम िैिनक बचे िे उनहे ितकाल बनदी बना िलया गया । उनिे अस-शस िछन िलए गए ।

चनद की िेना , पवि ा राज की िेना और पिरषदो िे पाप िेना ने िकलेबनदी कर दी । गंगा िट िे भूिमगि रासिे िे आए चनद के िैिनको ने नंद के महल को िेर िलया और नंद ििहि उिकी पती ििा दो पुितयो को एक िवशेष कि मे बनदी बना िलया । दाि-दािियो को बड़े कि मे

बनदी बना िलया । िकले के भीिर की छापामार कायव ा ाही पूरी होिे ही शुभक ने िीविा िदखाई और महामातय रािि को बनदी बना िलया । यह िब कुछ इिने कम िमय इिनी िीविा िे हुआ िक भदशाल अपनी िवशाल िेना को एकत नहीं कर िका । अिधकांश िैिनक और िेनानायक इि

िमय मद और िुरा-िुनदिरयो मे चूर िे । उनमे इिना िाहि भी नहीं िा िक वे अपनी शिक िे शस उठा पािे । चनद की िाठ िहस िेना ने िमपूणा पाटिलपुत को िेर िलया । मगध की िबखरी

हुई िेना नगर मे पवेश नहीं कर पाई । चनद के आतमिािी आकमण ने िीन चौिाई मगध िेना मे मारकाट मचा दी । िहसो मगध िैिनक धाराशाही हुए ।िहसो िैिनक बुरी िरह िे िायल हुए । िैकड़ो िैिनको को बनदी बना िलया गया । िेनापिि भदशाल को बनदी बना िलया गया है ।

भदशाल के बनदी होिे ही िेना िबखर गई और नगर छोड़कर वनो की ओर पलायन कर गई ।

पाि: होने पर पाटिलपुत नगर मे चारो ओर चनद के िैिनक िदखाई दे ने लगे ।

चनद के िैिनको ने िोषणा कर दी िक राजधानी पाटिलपुत पर चनदगुप मौया ने अपनी िवजय

पिाका िहरा दी है । पाटिलपुत की पजा इि अनाचाक पिरविन ा िे सिबध हो गई । कोई िमझ नहीं पा रहा िा िक रािोराि मगध का पशािन धवसि हो जाएगा । नागिरक आिंिकि और उनमन िसििि मे दिषगोचर हो रहे िे । उनके हदयो मे आशंका और उतिाह की लहरे उठने लगी ।

नगरशिेिष चनदनदाि का मगध के महामातय रािि िे गहरी िमतिा िी । जब

उनहे जाि हुआ िक रािि बनदी बना िलया गया है । उनहोने ितकाल रािि के पिरवार को िुरििि कर अपने िनवाि पर ले गये। चनदनदाि वदारा रािि के पिरवार की िुरिा की जानकारी उिी

िदन ितकाल रािि को दे दी गई । इिना ही नहीं उनहे िुरििि रहने का आशािन भी पहुँचा िदया

गया । रािि को यह जानकर आिया हुआ िक चाणकय और चनदगुनि ने उनके पिरवार को िकिी िरह की ििि नहीं पहुँचाई ।

अिधकांश नागिरक इि पिरविन ा िे पिनन िदखाई दे रहे िे िो कई नागिरक

िुबध लग रहे िे । हाट-बाजार बनद हो गए िे । चारो ओर चनद के िैिनक बड़ी ििकािा िे अशो पर िवार यहाँ िे वहाँ िक िूकम दिष लगाए हुए िे । शुभ ं क नगर मे िूम-िूम कर जनिा की पिििकया का अधययन करने लगा िा । अशोक और करिभका की गूढ़दिष पतयेक पर गढ़ी हुई िी । नगर

वदार िे आने-जानेवालो की जांच की जा रही िी । कोई भी नागिरक या राजपदािधकारी युगमो मे

ििा अस-शस िलए आ-जा नहीं िकिा िा । राजदरबार िे लेकर नगर परकोट िक कठोर िुरिा के पबंध िकए गए । िबना अनुमिि के िकिी को भी कहीं आने-जाने की अनुमिि नहीं िी । चनद के िाि आए अनुचर नागिरको की िहायिािा जुट गए िे । हाट-बाजार बनद होने िे नागिरको को हो

रही परे शािनयो िे मुक करने की वयवसिा ितकाल कर दी गई । बीमार और लाचार नागिरको के िहायिािा चनद के िैिनको ने िशिवर िैनाि कर िदए ।

मगध िामाजय के अधीन िमपूणा नरे शो को िूिचि कर िदया गया और यह भी

कहा गया िक वे अब नंद के पकोप िे पूणि ा : मुक है ििा उनहे ितकाल ही िमुिचि िहायिा पदान कर दी जाएगी । कारागार मे बनद िनरापराध िबनदयो को ितकाल मुक करा िदया गया । अंधकूप मे डाले गए िनरापराधो को भी मुक िकया गया । नागिरको की िुरिा के वे िभी िाधन ितकाल

उपलबध कराए गए जो उनहे चािहए । यह िब अनायाि इि िरह हुआ िक िमपूणा मगध दे खिे ही

रह गया । एक ही राित मे मगध िामाजय का िखिा पलट जाएगा ,यह िकिी ने सवपन मे भी िोचा नहीं िा । वसिुि: िमाट नंद ,महामातय रािि और िेनापिि भदशाल िनििनि िे िक अब

चाणकय और चनद पहले जैिा दस ु िाहि नहीं करे गे । वह उनहे भयभीि और भागे हुए िमझ बैठा िा । यही उनकी भूल िी ।

शीकृ षण ने भी यही कूटनीिि अपनाई िी । जब यवन िमाट ने मिुरा पर

आकमण िकया िा और शीकृ षण का पीछा िकया िा िब शीकृ षण पलायन कर गए िे िकनिु यवन िमाट को कूटनीिि िे मरवा िदया िा ।

मगध िामाजय मे सविंतिा की इि अलख ने एक िरह नई चेिना जागि कर दी

िो दि ू री ओर जो नंद के पि मे िे उनके हदयो मे आकोश और िवदोह भड़क उठा । इिका कारण

यह िा िक नंद के पिधर लोग भषाचार ,अनाचार ,दरुाचार और अिधकिर अपराधी पविृतवाले िे । वे नहीं चाहिे िे िक उनके पकोप िे नागिरक मुक हो पाए । चाणकय और चनद ने िैकड़ो िकिानो के ऋण माि कर िदए गए । जो वयापारी और अनय लोग िकनहीं कारणो िे कर भुगिान नहीं कर पाए उनके कर भी माि कर िदए गए । िनधन ा ो के िलए उपयुक वयवसिा की गई । इि िरह अनाचक हुए पिरविन ा िे िमपूणा मगधवािी पिनन हो गए।

जो लोग िनराश होकर नगर छोड़ गए िे वे भी लौटकर नगर वापि आने लगे ।

मगध िामाजय के अनेक नरे श चनद को शुभकामनाएं दे ने हे िु सवयं आने लगे । पतयेक नरे श

शुभकामनाओं के िाि चनद को पांच िहस िेना ििा दि लाख सवणा मुदाएं भेट करने लगे । अभी चनद का राजय अिभषेक भी नहीं हुआ िा लेिकन चनद के पराकम िे िारा आयाव ा िा िूला नहीं

िमा रहा िा । दो ही िदनो मे अनेको नरे श मगध राजधानी पाटिलपुत आ पहुँचे । वे िभी के िभी िवजय याता मे ििममिलि होने के िलए पधारे ।

आचाया शकटार इि अनाचक िवजय के िमाचार िुन आननद िे िूले नहीं िमा

रहे िे । वे िजिने आिननदि िे उिने उतिािहि भी । बनदीगहृो और अंधकूपो िे अपने िमतो को मुक पाकर वे बहुि पिनन हो रहे िे । 0

अभी चनद का राजािभषेक भी नहीं हुआ िा िक पवि ा राज ने बीच मे वयवधान

उतपनन कर िदया । पवि ा राज ने अनायाि ही चनद के पिि िवदोह खड़ा कर िदया । उिका कहना

िा िक यिद राषिहि का पश है िो उिे ही मगध का िमाट कयो नहीं बनाया जाय । वह चनदगुप िे िकिी भी योगयिा मे कम नहीं है । मैने उिे बहुि िमझाया िकनिु पवि ा राज मानने को िैयार ही नहीं हो रहे िे । पवि ा राज का कहना िा िक वे उनहे चनद िे कमिर िािबि करे या उिे िमाट

बनाएं अनयिा वह मगध िामाजय मे ििममिलि नहीं हो िकिा । मै ,पवि ा राज के इि किन िे

िंग आ गया । उिे कैिे िमझाया जाय िक मेरा उदे शय कुछ और ही है िजिे पूरा िकया जाना अभी शेष है । उिे कैिे बिाया जाय िक चनदरर कमिर है या वह पवि ा राज कमिर है । उिकी इि चुनौिी को सवीकार करना आिान नहीं है । मगध मे पुन: आकोश और िवदोह िैल िकिा है । मैने कूटनीिि िे काया लेने का िनणय ा िलया ।

पवि ा राज की चुनौिी को सवीकार कर िलया और उिे बड़े िममान के िाि िवजय

िमारोह मे आमंिति िकया । िवजय िमारोह के पहले एक राि मैने नतृय-िंगीि का आयोजन

िकया । पाटिलपुत की िबिे चिुर और चालाक नि ृ की को आमंिति िकया । वह नि ृ की कूटनीिि मे भी पारं गि िी । उिे पहले ही िबकुछ िमझा िदया गया । नतृय-िंगीि के इि आयोजन मे मै , पवि ा राज को भी अपने िाि ले आया । नतृय-िंगीि पारं भ हुआ । नि ृ की को दे ख वहाँ उपिसिि कई नरे श और उप-नरे श छटपटाने लगे । नि ृ की के िौदया और यौवन की छटा िबके हदय पर िबजिलयाँ िछटकाने लगी । चनद भी उिे दे खकर हिपभ रह गया । वह नि ृ की के रप मे

िममोिहि िा हो गया । उिकी अिभलाषा जागी िक वह उि नि ृ की को अपने अनि:पुर मे आमंिति करे कयोिक अब वह इि मगध का िमाट बनने जा रहा है ।

लेिकन यह कया चनद को अपने िमाट होने के किवाय और नीिि का समरण हो

आया । वह िोचने लगा इिी िवलािििा ने ननद का िवनाश कर िदया कयािोिक िवलािी वयिक का मिसिषक कुछ भी िोचने के िलए ििम नहीं रहिा । चनद भिवषय की िचनिा के कारण सवयं को

िनयंिति कर िलया । मै चाहिा िा िक पवि ा राज सवयं पहल करे और नि ृ की के पिि िममोिहि हो जाए । नि ृ की को पहले ही िमझा िदया गया िा । वह नतृय करिे हुए बार-बार पवि ा राज पर कटाि िकया करिी रही और उि पर िबजिलयाँ बरिािी रही । पवि ा राज उि नि ृ की की भाव-भंिगमओ

को दे ख-दे ख मोिहि होिे रहे । अनिि: उनहोने िबके िामने नि ृ की को अपनी ओर खींच िलया । नि ृ की ,पवि ा राज के आिलंगन मे जा िगरी । वह मुसकराकर उठी और पुन: नतृय करने लगी ।

पवि ा राज उिके सपशा िे अिभभूि हो गए । नि ृ की का नतृय िमाप होिे-होिे पवि ा राज उि पर

िममोिहि हो गए । िमारोह िमाप होिे ही पवि ा राज ने नि ृ की के पाि गुप पणय िंदेश भेजा । नि ृ की ने पवि ा राज का पणय-िंदेश सवीकार कर िलया । मै यही चाहिा िा ।

नि ृ की राित के एकानि मे पवि ा राज के पाि गई । उिे दे खिे ही पवि ा राज ने उिे

अपने अंग मे लेना चाहा । वह नि ृ की के अधरो पर झुक गए । बोले-

`` िुनदरी ! यह पवि ा राज आपिे पेि्रम करने लगा है । अपने पेि्रम को पदिशि ा करने के िलए मै िुमहारे चरणो िंमे अपना राजय नयौछावर करने को वयाकुल हूँ । यिद िुम सवीकार करो िो िुमहे महारानी बनाना चाहूँगा ।``

नि ृ की िखलिखलाकर हं ि पड़ी । उिने पवि ा राज के अधरो पर अपनी पिली िी

गोरी अंगुली रखकर कहा -

`` राजन ! मै आचाया के गुप कायो के िलए िैयार की गई एक िवषकनया हूँ । मुझे

आज िक ठीक उिी िरह िे बचा कर रखा गया है िजि िरह िे िपिा अपनी पुती को उिके पिि के िलए बचाकर रखिा है । यहाँ िक िक मैने मगध के भावी िमाट को भी अब िक नहीं दे खा ।

लेिकन आज जब मगध के भावी िमाट को दे खा िो मै उनिे पभािवि हो गई । मै बार-बार उनको कटाि करिी सवयं पर आशक करने का पयत करिी रहे , परनिु वे िवचिलि नहीं हुए । उनकी

दिष मे िकिनी आशिक िी , परनिु उिमे वािना नहीं िी और आप एक िुचछ नारी के िलए वािना िे वयाकुल होकर अपने राजय िक को उिके चरणो िंमे नयौछावर करने के िलए िैयार हो रहे है । हमे यह बिाइए िक कया वह राजय आपका अपना है षोषो कया पजा का उन पर या आप पर कोई अिधकार नहीं है षोषो राजन ! भावी िमाट चनद और आपमे यही िो पमुख अनिर है । राजन !

योगयिा गुणो िे नहीं अिपिु िवचारशीलिा िे जानी जािी है । िमाट चनद भी मेरे पिि मोिहि िे परनिु अपनी िजममेदारी ,किवाय और नीिि परायणिा पर िवचार करके उनहोने नीिज महतवाकांिा को तयाग िदया ।

लेिकन आप िनजी वािना पूििा के िलए राजयिहि,जनिहि, राषिहि और मयाद ा ाओं का तयाग करने के िलए उिावले हो रहे है । ``

पवि ा राज ,निक ृ ी के चनदमुख की ओर िनिनZ मेष दे खिे रहे िकनिु नि ृ की ने कया

कहा ,वे िमझ नहीं पाए । वह ििर बोली दीिजए ।``

``यिद आप मेरी इि बाि िे िंिुष हो जाए िो इि ििनध-पत पर हसिािर कर पवि ा राज इिने अिधक िममोिहि हो गए िे िक उनहे उिचि-अनुिचि का ििनक

भी जान नहीं रहा और उनहोने नि ृ की के पाि िे ििनध-पत ले िलया और उि पर हसिािर कर

िदए । कुछ िण िक वे िसिमभि रहे । वे िमझ नहीं पा रहे िे िक उनका पेि्रम वासििवक है या

केवल कामुक पविृत का है । वे िवमूढ़ हो नि ृ की की ओर दे खिे रहे । उनहे लगा िंभवि: वे भूल कर रहे है । उनके हदय मे अपराधबोध होने लगा। उनहे लगा वे वासिव मे उि योगय नहीं है िजि

योगय सवयं को िमझिे िे । उनहे सवयं पर गलािन होने लगी । वे िंभवि: अब िक अपने-आपको िंभाल पाए िे । बोले-

`` हे िुनदरी ! मै आज अपनी ही दिष िे पििि हो गया हूँ । मैने बहुि ही शीघिा मे

आचाया को िमझने की भारी भूल की है । मुझमे इिना सवािभमान जाग गया है िक अपने किवाय

और अकिवाय को भी भूल जाने की गलिी की है । वासिव मे मुझ जैिे नाराधम को जीने का कोई अिधकार नहीं है । मैने ििनध-पत पर हसिािर कर अपनी गलिी िुधार ली है िकनिु कया मतृयु के पहले िुम मेरी अिनिम अिभलाषा पूणा नहीं करोगी । आओ ,मेरे िनकट आओ और मुझे िुमहारे अधरो का पान करने दो । मै िुमहारे इन िवषभरे अधरो का पान करिे हुए अपने पाण तयागना चाहिा हूँ ।``

`` राजन ! मै आपके योगय नहीं हूँ । मै िवषकनया पर-पुरषो की भोगया बनकर

उनके पाण हरण करिी आ रही हूँ । मै अपनी ओर िे आज िक िकिी पुरष के अधरो िे नहीं लगी

हूँ । यह िोर अपराध मै सवयं नहीं करना चाहिी िकनिु यिद आप ही अपनी इचछा िे मेरे अधरो का पान करना चाहे िो मुझे आपित नहीं है । ``

`` िो आओ िुनदरी ! मेरे िनकट आओ । अिनिम िमय मे िकिी की इचछा पूणा

करना अपराध नहीं बिलक पुणय का काया है । मै सवयं पहल कर रहा हूँ ।`` िु

पवि ा राज उठे । उनहोने नि ृ की को अपने अंगो मे भर िलया और बड़ी िनमयिा िे

उनके िवषैले अधरो का पान करने लगे । वे पाणानि िक उि नि ृ की के अधरो का पान करिे रहे । नि ृ की ने वह ििनध-पत मेरे पाि िौप िदया ।

पाि: जब पवि ा राज का पुत उनके िशिवर मे गया पवि ा राज मि ृ पाए गए । उनका पुत बहुि रोया । उिे िमझाया गया । वह िपिा की पाििव ा दे ह लेकर अपने राजय चला गया । 0 िवजयोतिव मनाने के पहने िभी िहयोिगयो को एकत कर उनहे धनयवाद दे ने की अिभलाषा हदय मे उपज आई । मैने चनद और िुदामा को िनदे श िदए -

`` वति चनद ! िुम शीघ मािा मुरादे वी , आचाया शकटार , भािा रिचकुमार,

भाभी मािा शयामा , िुदामा के धमिापिा वयािड़ , करिभका , दे वी िहमािद , शुभक,अशोक ,भूिपूवा महामातय के पुत ििषय को राजमहल के मुखय वदार पर एकत करो । चनद ने रि भेजकर पतयेक को िादर बुलवा िलया । मािा मुरादे वी को दे ख चनद गदद हो गया और मािा के चरणो मे

निमसिक हो गया । मुरादे वी ने अपने पुत चनद को उठाकर गले िे लगा िलया । उनके नेतो िे अजस अशध ु ाराएं बह िनकली । वह बड़ी दे र िक भाव-िववहल हो पुत को बार-बार सनेहाििक करिी जािी । चनद भी मािा मुरादे वी िे लगभग िोलह वषा के उपरानि िमला । उिने कलपना भी नहीं

की होगी िक वह इि पिननिा की िसििि मे मािा मुरादे वी िे भेट कर पाएगा । वषोZिं िे िबछड़े पुत-मािा एक दि ू रे को पाकर आलहािदि हो गए । मुरादे वी करबद हो बोली-

`` आचायव ा र ! मै आपकी कृ िज हूँ । आपने मेरे पुत चनद को इि योगय बनाया है

िक िारा भारिवषा आज मेरे पुत की जय-जयकार कर रहा है । िारा मगध िामाजय चनद के गुणो की पशंिा मे िललीन है । उनहे एक नवयुवक के रप मे ऐिा िमाट िमला है िजिके गुर िवश

पििद आचाया चाणकय है । आचाया ! वासिव मे चनद या हम इि योगय नहीं िे िजि योगय आपने कठोर शम करके चनद और हमको बनाया है । हम मािा-पुत आपके आजीवन आभारी रहे गे ।``

`` राजमािा मुरादे वी ! यह आपका बड़कपपन है अनयिा आप ऐिी नहीं कहिी ।

वसिुि: इि पयोजन के पीछे मेरे वि मे िूटे जवालामुखी िे बहिा और खदबदािा लावा मेरे हदय

को िवदीणा कर रहा िा । यिद यह लावा मेरे हदय मे नहीं खदबदािा िो िनिम ही यह दि ु Z षा कमा मै नहीं कर पािा । आप या चनद िो मेरे िनिमत रहे है । यिद चनद या आप नहीं होिे िो मेरे वि मे खदबदािा लावा मुझे जीिे जी जला कर राख कर दे िा । दोनो एक दि ू रे के पूरक है । इििलए कृ पया इिे अनयिा न ले ।``

िुदामा ,वयािड़ और आचाया शकटार मािा-पुत के िमलन को दे खकर इिने

अिभभूि हो गए िक उनके नेतो िे अशध ु ाराएं बह िनकली । आचाया शकटार अतयनि िवनम हो बोले-

`` आचाया िवषणु ! िुम िबके िनिमत हो । िजि िरह शीकृ षण ने िबकुछ जीिकर

भी अपनो मे िवििरि कर िदया िा ठीक उिी िरह िुमने भी अपना िारा कोष जीिकर भी हम

लोगो मे िवििरि कर िदया । मै आभारी हूँ आपका ,यिद िमय पर आप िुदामा को नहीं भेजिे िो मै अब िक अंधकूप मे पड़ा-पड़ा मतृयु को पाप हो चुका होिा । आचाया िवषणु मै िुमको िाधुवाद

भी नहीं दे िकिा कयोिक िाधुवाद दे कर अपने किवाय िे मै िवमुख होना नहीं चाहिा । इिी युद मे पवि ा राज के अहं कार िे िजिने आप वयििि हुए उििे कहीं जयादा मै वयििि हुआ । लेिकन आप िंशय मे पड़ गए िे । बावजूद आपने िसििि िंभाल ली । एक िरह िे दे खे िो मै अतयिधक अपराधबोध िे गििि हो गया हूँ । हो िके िो िमा करे ।``

आचाया शकटार मेरे िपिाशी आचाया चणक के गहरे िमत िे । वे मेरे िलए भी गुर

के िमान िे । मै करबद हो उनके िममुख जा खड़ा हुआ । बोला-

`` आचायव ा र ! आप मेरे िपिा िुलय है । आपके पिि जो मेरा किवाय बनिा है

उिीको पूणा करने का िकंिचि िा पयाि िा ,जो िाधुवाद के िलए नहीं है । इिना ही नहीं आप इि अिभयान के बाद भी हमारे िाि है और रहे गे । ``

`` िुम मुझे अवकाश पर नहीं रहने दोगे िवषणु ! ``आचाया शकटार ने िवनोदवश

कहा िो मुझे हं िी आ गई । मै आगे बोला -

`` शेष िहयोिगयो को पाटिलपुत के िनकट के पिरषदो के पिरषद पमुख िनयुक

िकया जाएगा । नंद के जो अनुचर और िैिनक चनद के राजतव को सवीकार करिे है उनहे

यिासिान िनयुक िकया जाएगा और जो सवीकार नहीं करिे उनहे िं मगध िे िनषकाििि िकया जाएगा । मेरे इि िनणय ा पर आप मे िे कोई अपने िवचार रखना चाहिे हो िो िनभय ा होकर रखे ।``

मेरे िनणय ा को चनद ििा िभी िहयोिगयो ने सवीकार कर िलया िकनिु आचाया के शीमुख पर मिलनिा िदखाई दी । िंभवि: उनके अिभष की पूििा होना अभी शेष है । मैने उनकी ओर मुख कर अनुरोध िकया -

`` आयव ा र ! आपके शीमख पर यह मिलनिा दे ख मुझे ऐि पिीि हो रहा है मानो

अभी भी आपके हदय मे कोई आशंका िवदमान हो । यिद आप कृ पा कर अपनी आशंका पगट करे िो उि पर भी चचाा की जानी चािहए ।``

`` िवषणु ! िुम भिलभांिि जानिे हो िक नंद ने रािि के कहने पर मुझे अंधकूप मे

डलवा िदया िा । कया िुम मेरे वि मे पड़ी उि टीि को उखाड़ िकिे हो जो भीिर ही भीिर चुभी जा रही है षोषो``

`` आयव ा र ! हम िबकी कोई न कोई महतवाकांिा है । मै चाहिा हूँ दोनो को

मतृयुदणड िे कम न िदया जाय िकनिु कया यह जनिहि और राषिहि के अनुकूल होगा । मुझे भय है िक यिद हमने वयिकगि आकांिा को पाििमकिा दी िो कहीं मगध िामाजय और इि भारिवषा की िभयिा और िंसकृ िि पर पिििाि हो जाएगा ।``

आचाया शकटार मेरे मुख की ओर दे ख िकंिचि िुबध हुए िकनिु िसििि को

पििकूल होने नहीं दे खना चाहिे िे । उनकी महतवाकांिा महामातय रािि को अंधकूप मे डालने की िी लेिकन मैने राजिहि और जनिहि की बाि कहीं िो वे िणभर मे चुप हो गए । हालांिंिक उनके हदय मे रािि को लेकर उिल-पुिल होने लगी लेिकन उनहोने ििलहाल अपनी महतवाकांिा को दबाना उिचि िमझा । उनहे शानि और चुपचाप दे ना मुरादे वी बोली-

`` आया चाणकय ! मेरे पिि महाराजा िूयच ा नद मौया को बलाि ् बनदी बनाकर

िमाट नंद ने उनहे अंधकूप मे डलवा िदया । वे अंधकूप की पीड़ा िे िंिप होकर काल के गाि हो

गए होगे िकनिु कया नंद और रािि के हदय मे अपने कमो के पिि िंिाप हुआ षोषो नहीं हुआ ।

मै आज भी पििशोध की आग मे पल पिि पल जल रही हूँ । मुझे जाि नहीं महाराज िूयग ा ुप अब

िक जीिवि भी है या नहीं । पिमि: उनहे अंधकूप िे िनकाला जाना होगा । उिके बाद ही आगे की योजना पर िवचार िकया जाय ।``

`` महारानी ! आपने उिचि ही कहा । हमे पिमि: महाराजा िूयग ा ुवि को अंधकूप

िे बाहर िनकालना होगा । पिा नहीं उनकी िसििि अब िक कया हो गई होगी । ितपिाि ् ही आगे की योजना पर िवचार िकया जाना उिचि होगा ।``

मुझे महाराज िूयग ा ुप मौया को शीघ ही अंधकूप िे िनकालना होगा । यह अब िक

मैने िोचा ही नहीं िा । मेरी महातवाकांिा ही मुझे भीिर ही भीिर कुरे द रही िी । हम िब िमलकर अंधकूप की ओर चल िदए । पहिरयो िे वदार खुलवाया । पयाप ा पकाश करने के आदे श िदए गए ।

िकनिु यह कया षोषो महाराज िूयग ा ुप मौया का पाििव ा शरीर जंजीरो मे जकड़ा पड़ा हुआ है । उनके शरीर पर मात अिसियाँ ही रह गई िी । मेरा हदय दहक गया । आचाया शकटार की नेतो मे जवाला

धधक उठी । मानो नेतो िे अंगारे बरि रहे हो । उनकी मुिटि्ठयाँ भींच गई । उनहोने कोधवश दीवार िे पूरी शिक िे मुििष पहार िकया और पथ ृ वी पर बैठ गए । पिि की मि ृ दे ह जंजीरो मे

जकड़ी दे ख मुरादे वी पछाड़ खाकर िगर पड़ी । उनके नेतो िे अजस अशध ु ाराएं बह िनकली । वह बड़ी दे र िक रोिी रही । मािा को इि िरह रोिे-िबलखिे दे ख पुत चनदगुप ने सवयं को िंभाला । वे भी यिद इि िमय रो दे िो िसििि िबगड़ िकिी िी । चनद ने मािा मुरादे वी को िंभाला । बोले`` मािे ! िवधािा के िवधान को कौन टाल िकिा है । जो िविध ने िलखा है वह

होकर ही रहिा है । अपने-आपको िंभालो और भिवषय के पिि िचेि रहो ।``

महाराज िूयग ा ुप मौया के पाििव ा दे ह को अंधकूप िे िनकाल कर पूरे राजिी िविध

िे उनका अिनिम िंसकार कर िदया गया । चनद ,िपिा की दद ु ा शा दे खकर िंिप हो गए । ऐिे

िमय मे धैया की परम आवशयकिा होिी है । मेरी िशिा िे चनद को अनेकानेक लाभ पाप हुए है । उनमे धैया भी एक है । िूयग ा ुप मौया के अिनिम िंसकार के बाद पुन: नंद और रािि को लेकर िवचार-िवमशा हुआ । आचाया शकटार बोले-

`` नंद और रािि को मतृयुदणड िदया जाय । पाटिलपुत के चौराहे पर उनको िूली

पर चढ़ाया जाना उिचि होगा ।``

`` आचाया ! यह वयिकगि पििशोध नहीं है । हमे ऐिा करना अनुिचि होगा ।

मगध के नागिरको मे रोष उतपनन हो िकिा है । इििलए उपयुक दणड दे या जाना ही उिचि होगा । `` मैने िुझाया ।

`` गुरवर ! यिद आपकी आजा हो िो मै कुछ कहूँ षोषो`` िुदामा िवनम हो बोले `` वति ! िंकोच न करो कयोिक िुमहारे ही कारण हम आज पाटिलपुत पर अिधकार पाप कर िके है ।``

`` आचायव ा र ! आप मुझे लिजजि कर रहे है । मैने िो राषिहि मे काया िकया है ।

मेरा अनुरोध है िक नंद और रािि को अंधकूप मे डलवा िदया जाना जनिहि मे उिचि होगा । यिद आप ऐिा िमझिे है िो आदे श दीिजए ।``

मैने अपनी िशखा पर हाि िेरिे हुए अपने िंकलप को मन ही मन दोहराया । मै

नंद और रािि िे भयंकर पििशोध लेना चाहिा हूँ । मेरी आकांिा है िक दोनो को पाटिलपुत के

बीच मे जनिा के िामने िूली पर चढ़ाया जाय िकनिु यह मेरी वयिकगि महातवाकांिा है । मुझे जनिहि और राषिहि को भी धयान मे रखना है । मैने पि ृ क ही युिक िोच दी । मैने कहा-

`` मेरे िवचार िे नंद को िपिरवार पाटिलपुत िे िनषकाििि िकया जाना चािहए ।

रािि को अभी कारागार मे रखा जाय िो उिचि होगा । यही उिका दणड होगा । राजधानी िे

िनषकाििि होने के िमान बड़ा भारी दणड और कोई नहीं हो िकिा । जीिवि रहिे िक नंद इि कलंक को िह नहीं पाएगा ।``

`` िकनिु आचाया िवषणु ! िुम यह भूल रहे हो िक नंद को यिद राजधानी िे िनषकाििि िकया गया िो वह बाहर जाकर पुन: हमारे िवरद षड़यंत रचेगा और वह अपने पि के

नरे शो िे िमलकर आकमण करे गा । हमारे पाि अभी पयाप ा िैनय-शिक नहीं है और िाधनो की भी कमी है । अभी हम राजधानी मे ठीक िरह िे िंभल भी नहीं पाए है ।`` आचाया शकटार ने कहा ।

`` नहीं आचाया ! अब नंद मे इिनी शिक नहीं है । हम उिे राजधानी िे िनषकाििि

करना ही उिचि िमझिे है । ``

`` आचाया िवषणु ! कया िुम कोई कूटनीिि की चाल चल रहे हो । यिद ऐिा कुछ

कर रहे हो िो उिके पिरणाम कया होगे । इि पर ििनक िवचार िकया जाना उिचि होगा ।``

`` मैने िवचार कर िलया है । नंद को िनषकाििि िकए जाने की िैयारी पारं भ करनी

होगी । मै सवयं नंद के पाि जाकर उनहे राजधानी िनषकािन की िूचना दे िा हूँ । नागिरको को

पििकूल न लगे इििलए उनहे पूरे राजकीय िममान के िाि राजधानी िे बाहर िक जाकर िवदा िकया जाएगा । ``

`` यिद आचाया यही चाहिे है िो उनका िोचना उिचि होगा आयव ा र चाणकय ।``

मुरा दे वी ने अनुमोदन िकया । िमाट नंद , उनकी पती िवशाखा और पुती दध ृ क कि मे ु राा.को राजभवन के पि

बनदी बनाया गया िा । मै उनके कि मे गया । मुझे दे खिे ही नंद उठ खड़ा हुआ । वह अपनी गदा न झुकाए हुए िा । िंिंभवि: मुझे पहचान नहीं पा रहा िा । पहचानिा भी कैिे पूरे िोलह-ितह वषा

वयिीि हो चुके िे , जब नंद ने मुझे भरी िभा मे अपमािनि और िशखा पकड़वाकर बाहर िनकाल िदया िा । मैने अपनी िशखा िामने कर उनिे कहा -

`` मगध िमाट नंद ! कया िुम मुझे पहचानिे हो षोषो`` `` िुम कौन हो और यहाँ कयो आए हो षोषो``

`` िुमहे समरण िदलाने के िलए आया हूँ । आज िे िोलह-ितह वषा पहले िुमने

भरी िभा मे मेरा अपमान कर मेरी यह िशखा खींचिे हुए दरबार िे बाहर िनकलवा िदया िा । समरण करो । ``

`` ओह ! िो िुम आचाया चाणकय हो । िििशला के िाधारण अधयापक । अब

कया चाहिे हो षोषो ``

`` लगिा है रसिी जली िकनिु बल अब िक गया । मै िुमहे यह िूचना दे ने आया

हूँ िक मगध पर चनदगुप ने अिधकार कर िलया है और िुमहे राजधानी िे िनषकाििि करने के आदे श िदए गए है । कहो िुतहे िनषकािन सवीकार है या िपिरवार मतृयु सवीकार है षोषो `` नंद ने अपना ििर झुका िलया । िवशाखा बोली -

`` आचाया चाणकय , हम पर यह कृ पा करो । हमे िनषकािन सवीकार है । हम यहाँ िे अनयत पसिान करना चाहिे है ।``

`` ठीक है । कल िुमहारे पसिान की िैयारी की जाएगी िकनिु हमारी अिभलाषा है

िक मगध के िरशिे िदै व मधुर बने रहे इििलए िुमहारी कनया दध ु राा का िववाह मगध के भावी िमाट चनदगुप मौया िे कर िदया जाय ।``

`` चनदगुप मौया ! कौन है यह युवक षोषो ``

`` समरण करो । िपपपली गणराजय नरे श िूयग ा ुप मौय , िजनहे िुमने बनदी बनाकर अंधकूप मे डलवा िदया िा । महाराज िूयग ा ुप अंधकूप मे िदवंगि हो गए । चनदगुप चाहिे िो िुम िबको अंधकूप मे डलवा िकिा िा िकनिु मनुषय की िभयिा भी कुछ होिी है । वह

िुमहारे िमान न िो कूर है न लोभी है न कामुक है और न जनिवरोधी है । इििलए उिने िुमहे जीिवि रखिे हुए राजय िे िनषकािन के आदे श िदए है । िुमिे िमबनध और िरशिे बने रहे

इििलए वह िुमहारी पुती िे िववाह करने के िलए भी िैयार हो गया है । महाराज िूयग ा ुप की पती महारानी मुरादे वी की भी यही अिभलाषा है ।``

`` लेिकन बाहण ,मै िुमहारी बािो पर कैिे िवशाि करँ षोषो``

`` यह िुम पर िनभरा करिा है । कल पाि: िुमहारे िलए रि िैयार रहे गा । कोई िारिी नहीं होगा । िुम सवयं रि ले जाओगे । िुम जहाँ चाहे जा चाकिे हो । जीिवका के िलए िुमहे पयाप ा धन िाि मे िदया जाएगा । िुमहे धन िे बहुि पेम है इििलए धन की कमी िुमहे नहीं होगी । चाहो िो िुनदिरयाँ और दाि-दािियाँ भी िुमहे िमल जाएगी ।``

िुनदिरयो का नाम आिे ही नंद का ििर झुक गया । वह बोला नहीं । रानी िवशाखा

और पुती दध ु राा के िमि वह लिजजि अनुभव कर रहा िा । उिकी चुपपी दे ख मै पुन: बोला -

`` अचछा कोई बाि नहीं । कल पाि: आप िैयार रिहए । हाँ, पुती दध ु राा को अपने

िाि िलए जा रहा हूँ । वह िुमहारे अमातय रिचकुमार की पती शयामा के िंरिण मे राजभवन मे रहे गी । िकिी पकार का दबाव नहीं है । यिद िुमहे मगध पुत चनद के िाि दध ु राा का िववाह न

कराना चाहो िो कोई बाि नहीं िकनिु हमारे हदय मे यह पीड़ा बनी रहे गी िक हम अिीि के मगध के िाि िरशिे जुड़ा नहीं पाए । िुमहारी पुती िे उतपनन होनेवाला वंश इि मगध का भावी िमाट होगा , मै यह वचन दे िा हूँ ।``

िवशाखा के नेतो मे आँिू छलक आए । उिके हदय मे दध ु राा के पिि उमड़ा अपार

माितृव को मै दे ख रहा िा । मेरी अिभलाषा यही है िक मै चाहे नंद को िकिी भी पकार का दणड दँ ू िकनिु मािा और पुती को िुरििि कर पाऊँ । िवशाखा ने पुती दध ु राा को वि िे लगाकर उिे

आिशष िदया । नंद ने भी दध ा ु राा को गले िे लगाकर सनेहाििक अशु बहाएं और पुती को आिशवाद िदया । उनहोने दध ु राा को मेरी िुपुदा कर िदया । कि िे बाहर िनकलने के पूवा मैिंने महारानी िवशाखा को िमबोिधि िकया -

`` महारानी ! कल महाराजा नंद को नगर िे िनषकाििि िकया जाएगा । यिद आप उिचि िमझिी है िो आप भी अपनी पुती दध ु राा के िाि चल िकिी है । अमातय रिचकुमार की पती शयामा आपके िलए पसिुि है ।``

`` नहीं बाहण , मुझे पती धमा का पालन करने दीिजए । मै पिि के िाि ही इि

नगर िे िनषकाििि होना चाहिी हूँ । कया अिनिम िमय आप मेरी यह अिभलाषा पूणा नहीं करे गे ।``

मै िकिी िरह की बहि करने की िसििि मे नहीं िा । मेरे हदय मे पििशोध का

लावा खदबदा रहा िा । मै शीघ ही कुछ करना चाह रहा िा । मै महारानी िवशाखा को अनावशयक

इि पििशोध की जवाला मे ढकेलना नहीं चाह रहा िकनिु यिद अविर िमला िे उनहे बचाने का पूरा पयाि िकया जाएगा । मै दध ु राा को िाि लेकर वापि आ गया ।

मै कल िूयोदय की पिीिा करने लगा । िूयोदय होिे िमय मगध िामाजय का

िूयास ा ि होने वाला है । लौटकर चनद, मुरादे वी , िुदामा , करिभका ,शुभक,अशोक,शकटार ,शयामा भाभी और िारे िहयोिगयो को यह िूचना दे ने के िलए एकत िकया । आचाया शकटार मेरे मुख की ओर दे खने लगे । उनहे आशंका िी िक कहीं मै अपने वचनो िे मुकर न जाऊँ । मैने उनहे आशसि करिे हुए कहा -

`` आयव ा र ! कल पाि: नंद को ििममान नगर िे िनषकाििि िकया जा रहा है ।

जािे-जािे मैने उनकी यह कनया दध ु राा का हाि अपने चनद के िलए मांग िलया िािक मगध का भावी िमाट दध ु राा िे ही उतपनन हो । अि: कल पाि: महाराज नंद के पसिान की िैयारी पारं भ करनी होगी । वति चनद ! उनके िलए िवशेष रि की वयवसिा की जाय । उनकी आजीिवका के िलए पयाप ा धन उनहे पदान िकए जाए । इिके अिििरक उनहे राजिी िममान के िाि िवदा

िकया जाए । वे सवयं अपना रि हांकिे ले जाएंगे िजििे िक उनहे कहीं भी जाने की किठनाई न हो । ``

`` जी आचाया ! आपके आदे श का पालन िकया जाएगा ।`` आचाया शकटार ,मुरादे वी और शयामा भाभी मेरे मुख की ओर दे खने लगे । आचाया

शकटार अब भी िंिुष िदखाई नहीं दे रहे िे । उनकी आँखो मे अब भी पििशोध की आग धधक रही िी ।

पाि:नंद के िलए रि िैयार िकया गया । आवशयक िामगी ,पयाप ा सवणम ा ुदाएं

और बहुमूलय उपहार उनहे भेट िकए गए । दो अशरोही रि के िाि िनयुक िकए ।

मै,चनद,िुदामा,शुभक,अशोक,आचाया शटकार,दध ु राा,करिभका और नगर के गणमानय नागिरक एकत हो नंद और उनकी पती िवशाखा को िवदा करने नगर के पमुख वदार िक गए । पुती दध ु राा

िपिा नंद और मािा िवशाखा िे अिनिम बार गले िमली । पुती ने दोनो को अशप ु िू रि िवदा िकया । रि सवयं नंद चला रहे िे । बड़ी दरू िक उनहे जािे हुए हम िभी ने दे खा । दो अशरोही उनके आगे

पीछे चल रहे िे । नेतो िे ओझल होने िक पुती दध ु राा उनहे दे खिे रही । जब वे नेतो िे िबलकुल ही ओझल हो गए । हम िब लौट आए । वदारपालो को नगर वदार बनद करने के िनदे श िदए गए ।

लौटकर जब हम िभी आ गए िब आचाया शटकार ने भेदभरी दिष िे मेरी ओर

दे खा । मै मुसकरा िदया । वे िंभवि: िमझ गए िक कुछ अनहोनी ििटि होनेवाली है । वे भी मुसकरा िदए । मैने कहा -

`` जो आशंका आपके हदय मे टीि बन कर चुभ रही िी उिे मैने िनमूल ा करने का

पयाि िकया । िंभवि: आप िंिुष हो गए होगे । अब कौन िी आशंका आपके हदय मे चुभ रही है । कृ पया वह भी बिा दे आचाया ! ``

`` एक िवषैना कांटा अब भी शेष है । उि िवषैले कांटे ने मेरे अंग-पतयंग जकड़ िदए

िे । मै िुदामा के आने िक अपने अंगो को मुक नहीं कर पा रहा िा । अब उिकी भी कोई िचिकतिा करो आया िवषणु ! ``

`` वह भी शीघ ही हो जाएगा । िवष को कभी-कभी अमि ृ िे भी मारना पड़िा है

आया । आप दे खेगे अमि ृ िकि िरह िवष का दोहन करिा है ।`` `` मै िमझा नहीं .....``

`` िमय आने पर आप सवयं जान जाएंगे आयव ा र । उिी िमय की पिीिा करनी होगी । अभी हमारा पमुख काया शेष है । मेरी अिभलाषा है िक अब चनद का राजय अिभषेक कर

िलया जाना चािहए । अनयिा राजकाज मे िवलमब िंभािवि हो िकिा है । इिी के िाि चनद और दध ु राा का िववाह भी िमपनन करा िलया जाना उिचि होगा । अिधक पपंच की आवशयकिा नहीं है । केवलआवशयक कमा पूणा कर िलए जाएं िो अतयुतम होगा ।`` `` मै आपके िवचार िे िहमि हूँ िवषणु ।``

दि ू रे िदन िनधया के िमय चनदगुप के राजयािभषेक की िैयारी पारं भ कर दी ।

शुभक को इि कायक ा म की िजममेदारी िौप दी । नगर के पमुख गणमानय वयिकयो ,वािणको ििा िववदानो को आमंिति िकया गया । राजयािभषेक के पहले मगध के पूवा महामातय आचाया शकटार ने िमबोिधि िकया -

`` नगरवािियो ! चनदगुप मौया िपपपलीवन गणराजय के ितकािलन गणािधपिि

िूयग ा ुप मौया के पुत है । िपपपलीवन के गणिधपिि होने के नािे वे मगध िामाजय िे िमबिनधि िे । ितकािलन िमाट नंद ने आज िे िोलह वषा पूवा महाराज िूयग ा ुप मौया को अपिाि िे बनदी

बनाकर अंधकूप मे डाल िदया िा । महाराज िूयग ा ुप मौया की मतृयु उिी अंधकूप मे िड़प-िड़प कर हो गई । अभी दो िदवि पहले िूयग ा ुप मौया का अिनिम िंसकार िकया गया है । जैिा िक आप िभी जानिे है ितकािलन मगध िमाट के शािन काल मे छोटे वािणको ,कृ षको ,िामानय

नागिरको और दरूदराज़ के नागिरको को जिनयरप िे ििाया गया िा । राजय मे चारो ओर

अशािनि , अराजकिा , अनयाय और अनीिि का िामाजय छा गया िा । महाराज नंद ने राजय का

उपभोग अपने िनजी सवािा के िलए िकया । नंद महा-आलिी मदपेमी , पतयेक िण िुरािुनदिरयो िे ििरा रहनेवाला और रििक िा । उिके आिपाि उिकी हाँ मे हाँ िमलानेवाले कई

चाटु कार मंती और िमतगण भी ििममिलि रहा करिे िे । वह धन और िुनदर िसयो का अतयनि लोभी और दरुाचारी पविृत का राजा िा । उिे इि बाि की ििनक भी िचनिा नहीं िी िक उिके

राजय मे कब , कहाँ कया हो रहा िा । वह अपने चाटु कार मंितयो और िमतो पर आिशि रहा करिा िा । कोई भी िनणय ा अपनी बुिद िे ना लेिे हुए इनहीं चाटु कारो की मिि िे िलया करिा िा ।

पिरणामसवप पजा को नयाय नहीं िमल पा रहा िा । आज िे िोलह-ितह वषा पूवा जब यवन भारि पर आकमण के िलए पसिुि हुए उि िमय पूवोतर राजयो की िहायिािा िििशला के आचाया

चाणकय का कामुक राजा नंद ने िोर अपमान कर िशखा पकड़ ििीटिे हुए बाहर िनकाल िदया िा । यवन िमाट ने पििमोतर िे भारि मे पवेश कर अनेक राजयो को िवनष कर धन-जन को ििि

पहुँचाई । महाराज नंद धन और िुरा-िुनदिरयो मे मसि होकर भारिीय नरे शो को िुचछ िमझिा रहा । यवनो ने भारि को बहुि लुटा । अचछा हुआ उि िमय हमारे मगध का ही लाल चनदगुप

और मगध के ही आचाया चाणकय ने अपनी िनजी िेना जुटाकर पििमोतर िे यवनो को भगाया । मगध पर िबना िकिी िरह का आकमण िकए और धन-जन को ििि पहुँचे

आचाया चाणकय और चनदगुप ने िाहि और बुिद के बल पर िमाट नंद को बनदी बना पाटिलपुत पर अिधकार कर िलया । अब यह मगध या पाटिलपुत न िो आचाया चाणकय की िमपित है और न ही चनदगुप की िमपित है बिलक यह मगध िामाजय और यह राजधानी पाटिलपुत एवं िमसि

मगध के नागिरको की अपनी है । िकिी को भी मगध राजय के िवसिार-िवकाि और उिचि काया करने का अिधकार रहे गा । जनिहि और राषिहि ही चाणकय और चनदगुप का उदे शय है । हर नागिरक को अपने िवचार रखने का पूरा अिधकार है । जो नागिरक बनधु अपने िवचार रखना चाहिे है वे िनिभZ क होकर अपने िवचार इि िभा मे रख िकिा है ।``

आचाया शकटार के उदोधन पर नागिरको ने िािलयाँ बजाकर अपनी अिभवयिक

पगट की । लेिकन िकिी ने भी अपने िवचार नहीं रखे । इि पर ििर भी मैने अपनी ओर िे कहा `` मै आचाया चाणकय , आप िभी िे यह िनवेदन करिा हूँ िक वे िनिभZ क होकर

अपने िवचार वयक करे । यिद कोई इि भरी िभा मे िवचार वयक नहीं करना चाहिा है िो कोई

बाि नहीं । हम उनहे िकिी भी िमय कहीं भी अपने िवचार और िकिी िरह की िलाह दे ने के िलए िदै व आमंिति करिे है । यह िामाजय आपका है । यह राजनधानी आपकी है । मै आपका हूँ ।

चनदगुप मौया आपका अपना है । िनिभZ क रिहए और पशािन चलाने मेिं िहयोग दीिजए ।``

जब िकिी ने भी अपने िवचार नहीं रखे और िकिी िरह की िलाह नही दी । िब

मैने िभा को पुन: िमबोिधि िकया -

`` मगध की पजाजनो ! मै और आचाया अपने िवचार पगट कर चुके है । मै आचाया शकटार िे अनुरोध करिा हूँ िक वे चनदगुप को राजििंहािन पर िबठाने के िलए िभा मे िे ले आएं और उनके राजयिभषेक के काया को िमपनन करे ।``

आचाया शकटार ने चनद की अगुवाई की । उिे राजििंहािन पर आरढ़ िकया ।

राजपुरोिहि और नगर के पििििषि पंिड़िो ने वेद मंतो का पाठ पारं भ िकया । मैिेने सवयं चनद के मिसिषक पर राजमुकुट रखा । मािा मुरादे वी ने पुत की आरिी उिरी । राजपदािधकािरयो ििा जनिमूह ने पुषप वषाZ की । िुदामा , अशोक ,शुभक और अनय िािियो ने जयिोष िकया `` िमाट चनदगुप की जय ``

जनिमूह ने जयकारा लगाया । िमूचे पाटिलपुत मे चनदगुप मौया के राजििंहन पर राजयिभषेक की िूचना िवदुि गिि िे िैल गई। गणराजयो और अधीनसि नरे शो के

पिििनिधयो ने चनद को शुभकामनाएं दी । चनद की ओर िे िनधन ा ो और लाचारो को दान पदान िकए गए । िमतो को राजय की ओर िे भेटे पदान की गई । िपाह भर िक शुभकानाएं आिी रही और दान-दििणा िवििरि होिे रही ।

चनद के राजयिभषेक के बाद िुरनि ही राजय पदो का िनमाण ा िकया गया । राजय

कोषाधयि के पद पर सवयं चनदगुप ही रहे गे । मैने सवयं मगध िामाजय का महामातय का पद

िंभाला । िुदामा को मगध का पमुख गुपचर ,दतकुमार को मगध का पमुख-महाशिेिष ,शुभक को िेनापिि ,अशोक को राजधानी पाटिलपुत का िंचालक , रिचकुमार को पुन: अमातय ,करिभका को पाटिलपुर राजधानी की उप-िंचािलका और पूवा मे जो राजपदािधकारी कायराि िे उनहे यिासिान पद-सिािपि िकया गया ।

राजय के पदो पर पदसिीकरण के बाद िवप ा िम राजकोषा का िनरीिण िकया

गया । राजकोष मे पयाप ा धन िंगिहि िा । बहीखािो को दे खकर जाि हुआ िा िक नंद के बहुि िे अमातयो और राजपदािधकािरयो ने राजधन का बहुि दर ु पयोग िकया है । इिकी जांच के आदे श िदए गए ।

कुछ ही िदनो मे राजधन के दर ु पयोग की जानकारी पाप हुई । िजनमे िे कुछ

विम ा ान मे भी कायराि िे । उनहे चेिावनी दे कर िामानय िदनो की िरह काया करने के िनदे श िदए गए । जो चले गए उनके पिि िचेि रहने के िलए आगाह िकया गया । 0 अब पमुख िमसया का िमाधान िकया जाना अभी भी शेष िा । आचाया शकटार ने समरण िदलाया िक बनदी बनाए गए रािि का कया िकया जाए । उनहे या िो राजय िे

िनषकाििि िकया जाय या उनहे दे श दोही करार करके िपिरवार िूली पर चढ़ा िदया जाय । रािि ,नंद का िवशनीय महामातय िा । उिे इिनी आिानी िे नहीं छोड़ा जा िकिा िा । वह उिी िरह

है िजि िरह दध ू िपलाया िपा होिा है । िजिे िजिना दध ू िपलाया जाय उिना वह िवषैला होिे

जािा है । मै अभी िक रािि को लेकर कोई िनणय ा नहीं ले पा रहा िा । वह मुझिे आयु मे अिधक भी िा । राजनीिि और कूटनीिि का उिे अचछा जान िा । वह पररशािन का बहुि ही अचछा

िंचालक िा । हदय मे आया , रािि का उपयोग िामाजय के िुदिढ़करण के िलए िकया जाना

चािहए । उिके दीि Z कालीन अनुभव का यिोिचि लाभ उठाया जाना चािहए । लेिकन िकि िरह षोषो वह कहीं षड़यंत रचकर हािन िो नहीं पहुँचा िकिा । यिद उिे कुशल पशािन िंचालन के

िलए िनयुक िकया गया और उिने चनद पर िकिी िरह का आतमिाि िकया िो िब िकया कराया माटी मे िमल जाएगा । आचाया शकटार नहीं चाहिे िक रािि को िकिी िरह िे िमा िकया जाए । राजमािा मुरादे वी िकिी भी अपराधी को दिणडि करने के पि मे नहीं है । राजामािा का वकवय है िक िनजी लाभ के िलए िकया गया राजदोह िमा योगय नहीं है िकनिु यिद राजय के िलए िवदोह

िकया गया है िो वह राजकीय काया की पिरिध मे आिा है । इििलए रािि के पिि जो भी िनणय ा िलया जाना है , िोच िमझ कर िलया जाय । अनुिचि कुछ भी नहीं होना चािहए ।

अभी हम िवचार-िवमशा कर ही रहे िे िक गुपचर ने आकर िूचना दी िक पाटिलपुत

िे लगभग पचाि मील की दरूी पर िने वन मे दसयुओ के िगरोह ने नंद िे अशो ििहि रि छीन

िलया । उनके पाि की सवणा मुदाएं लूट ली और उनहे रि िे उिारकर बहुि दौड़ाया ितपिाि नंद

की हतया कर दी । नंद का शव िने वन मे छोड़ िदया गया । महारानी िवशाखा बहुि िायल हो गई है । नंद की हतया िुनिे ही आचाया शकटार मेरी ओर दे खने लगे । वे ििनक मुसकराए । मुरादे वी ििनक गंभीर हो गई । मैने कहा -

`` नंद के शव को ििममान पाटिलपुत लाये जाकर उनका अिनिम िंसकार

राजिी िविध िे िकये जाने ििा महारानी िवशाखा को ितकाल िचिकतिा िुिवधा िदए जाने हे िु

िैिनको को भेज िदया जाना उिचि होगा । महारानी िवशाखा ने िकिी का कुछ अिपय नहीं िकया । उनके पाणो की रिा की जानी चािहए ।``

`` आचाया ठीक कह रहे है । िुदामा , िुम शीघ ही नंद के शव को राजिी िममान

के िाि अिनिम िंसकार िकए जाने ििा महारानी िवशाखा की उिचि िचिकतिा वयवसिा करो । शुभि्ंिाक और िहयोगी जाकर महारानी िवशाखा को िादर राजमहल ले आएं ।``

शुभ ं क और िहयोिगयो ने शीघ ही वन की ओर पसिान िकया । नंद का शव पाप

नहीं हो पाया । िंभवि: वन पशुओं ने नंद के शव को िुरििि नहीं रहने िदया होगा । लेिकन शीघ ही महारानी िवशाखा को राजमहल लाया गया । उनकी िचिकतिा की वयवसिा की गई ।

कुछ िदनो के उपचार के बाद महारानी िवशाखा सवसथय हो पाई । सवसथय लाभ

के बाद महारानी िवशाखा मेरे िममुख उपिसिि हुई । बोली -

`` आचायव ा र ! मुझे ऐिा पिीि होिा है जैिे िवधािा वदारा अवशय ही कोई िवशेष लेखा गया हो अनयिा िकिी भी पराधीन िमाट और उिकी पती को िवजेिा िमाट वदारा जीिवि

नहीं छोड़ा जािा । आपने िजि िममान के िाि हमे िवदा िकया िा , वह पशंिनीय िा । इिी िरह िजि िममान के िाि िमाट की पती और पुती को आशय िदया गया , वह उििे भी अिधक

पशंिनीय है । मै िमझ नहीं पा रही हूँ िक आचाया िक आप िकि िमटटी के बने है षोषो कया आपने केवल अपने उदे शय की पूििा के िलए ही यह िारा पपंच रचा या इिके पीछे और कोई राज़ है षोषो`` `` महारानी िवशाखा ! आप इि िमय महारानी नहीं है ििर भी आपको महारानी

कहने मे हमे गौरव िा अनुभव होिा है । लेिकन महारानी िवशाखा , मै और मेरा िशषय अपने िनजी सवािा के िलए कुछ भी नहीं कर रहे है , जो भी िकया जा रहा है वह केवल भारिवषा को यवनो िे िविहन करने के िलए िकया गया है । हम भारिीय नहीं चाहिे िक कोई िवदे शी आकानि हमारे

भारिवषा मे आकर हम भारिियो पर शािन करे और हमारी िभयिा िािा िंसकृ िि का दोहन करे । बि, इििे अिधक हम कुछ भी नहीं जानिे ।``

महारानी िवशाखा मेरा सपषीकरण िुन मेरे शीमुख की ओर दे खिे रह गई । वह

नहीं िमझ पाई िक मेरे वदारा रचा गया यह कूटनीिि जाल नंद के नाश के िलए रचा गया िा । मै

केवल नंद के वश का नाश करना चाहिा िा ,िो वह हो गया । केवल महारानी िवशाखा नंद के वंश को नहीं चला िकिी िी । िबना पुरष के नारी वंश परमपरा को आगे नहीं बढ़ा िकिी । ििर हमे

महारानी िवशाखा िे कया वैरभाव षोषो हमारा मनिवय पूरा हो गया । इििलए महारानी िवशाखा को शयामा भाभी की दे ख-रे ख मे अनि:पुर मे ही िुरििि रहने की अनुमिि दे दी गई ।

एक बार ििर रािि को लेकर िवचार-िवमशा कुछ िदनो के िलए टल गया िकनिु

अब अिधक िमय िक खींचा जाना उिचि नहीं है । आचाया शकटार नहीं चाहिे िे िक रािि को िकिी भी िरह िे िमादान िदया जाय िकनिु मेरी दिष मे वयिकगि दोष नहीं िा । मेरे हदय मे िवचार उठा ,कयो न एक बार रािि िे िमल िलया जाय । रािि को िजि कि मे बनदी बनाया

गया िा , वहाँ िे उिे हटाकर करिभका के भवन मे भेज िदया गया । जब उिने दे खा िक उिे एक िरह िे नज़रबनद कर रखा जा रहा है ,उिने सवयं को चनदगुप के िममुख आतम-िमपण ा करने

का िनणय ा ले िलया । वह भीिर िे बहुि िक गया िा । वह अपराधबोध िे गसि हो रहा िा । वह यह जान गया िा िक उिने नंद के अनुिरण मे अनेको िनरापरािधयो को दणड िदलवाया है ।

आचाया शकटार , िपपपलीगण राजय के नरे श िूयग ा ुप मौया और नंद के अनुिरण मे अनेको कुमारी बािलकाओं और नवयुविियो को अिमय ही पिभष कर िदया िा । वह न केवल राषदररोही है

बिलक वह मनुषयिा िवरोधी भी है । वह िंिापो िे तसि होकर शूनय मे िनहारिे हुए पायििि

करना चाह रहा िा । जो अपराध उिने नंद के अनुिरण मे िकए है वह िभय लोगो के उपयुक नहीं

है ििर भी उिे िकए ही है । अमानवीय कृ तयो के पिरणाम अनुकूल नहीं होिे । कभी न कभी पकृ िि उिका पििशोध लेिी ही है । आज पकृ िि ही नहीं अिपिु िवधािा भी पििशोध ले रहा है । उिका

अपना पिरवार उििे िविछनन हो गया है । यिद नगरशिेिष चनदनदाि नहीं होिे िो उिका पिरवार अब िक राजदणड का भागी हो जािा । लेिकन उिे अब िक बनदी कयो रखा गया है , यह

िोच-िोचकर वह मानििकिौर पर वयाकुल हुआ जा रहा िा । करिभका उिे कई बार भोजन और

जलपान के िलए मनािे रह गई िकनिु उिने नहीं िलया । वह पिििण मेरी पिीिा करिे रहा । मै चाहकर भी उििे भेट नहीं कर पा रहा िा । चनदगुप के राजयिभषेक के बाद वयसििा अिधक बढ़

जाने िे मै सवयं के िलए िमय नहीं िनकाल पा रहा िा । लेिकन आज िमय िनकालकर रािि िे

भेट करने के उदे शय िे करिभका के भवन की ओर चल िदया । करिभका , रािि के िममुख भोजन िलए बैठी िी । मुझे दे खिे ही वह उठ खड़ी हुई । रािि ििर झुकाए खड़ा हो गया । रािि के िामने भोजन की िाली दे ख मै बोला-

`` पुती करिभके ! चलो , मै भी सवलपाहार करना चाहूँगा । मुझे पुए बहुि पिनद है

। पुए नहीं िखलाओगी षोषो ``

`` मै शीघ ही पूए िैयार कर लािी हूँ िपिाशी ।``

रािि अब िक ििर झुकाए खड़ा रहा । मैने उनहे िमबोिधि करिे हुए कहा `` आयव ा र रािि ! मेरा पणाम सवीकार करे ।`` `` कया यह वयंगयबाण है िमत चाणकय षोषो ``

`` नहीं िमत , कृ पया इिे वयंगयबाण न िमझे ।``

`` ठीक है लेिकन आपका िंकलप पूणा हो गया है । आपके चाहे अनुिार नंद वंश का नाश हो गया है । अब िो अपनी िशखा बांध लीिजए आचाया ।``

`` लेिकन आयव ा र ! अभी मेरा िंकलप पूणा नहीं हुआ है । अभी िमपूणा आयाव ा िा

को एकछत राजय करने ििा यवनो को भारि िे बाहर करने के बाद ही पूणा होगा । मै चाहिा हूँ िक िमपूणा भारि एकछत राष बन जाए िो इि दे श के बाहर िे कोई यवन आकानि भारि पर कुिटल दिष न डाले । ``

`` िनिह ही । आपका यह िंकलप भी पूरा होगा ।`` `` िकनिु आयव ा र ! मै अकेला इिे पूरा नही कर पाऊँगा ।``

`` आप अकेले नहीं है िमत चाणकय , आपके िाि चनद है , आचाया शकटार है और आपकी पखर पजा है । िबकुछ होिे हुए अपने-आपको अकेला पािे है ।``

`` हाँ ,अब भी अकेला पा रहा हूँ लेिकन इि अकेलेपन को िमाप करना चाहिा हूँ ।

यिद आप हमे िहयोग करे ।``

`` यह बहुि शुभ िवचार है । इि अकेलेपन को िमाप कर दीिजए ििर आप ही

आप है और कोई नहीं । मै नही । लेिकन इिमे मै कया िहयोग कर िकिा हूँ ।``

`` आया ! यह कया कह रहे है आप , यिद आप ऐिा कहे गे िो मै अकेला ही रह

जाऊँगा ।``

`` िमत चाणकय ! आपकी गूढ़ बािे िमझ मे नहीं आिी । ििवद-अिी वािाल ा ाप पिीि होिा है । यिद आप सपष करे िो मैिं कम िे कम िमझ िो िकिा हूँ ।``

`` यिद आप मेरा िनवेदन सवीकार कर लेिे है िो मेरा अकेलापन िमाप हो जाएगा

और यिद असवीकार करिे है िो मेरा अकेलापन और अिधक बढ़ जाएगा । मै आपको भी खो दँग ू ा। `` `` िमत चाणकय ! पहे िलयाँ न बुझाइए । जो भी आप कहना चाहिे है कह दीिजए । मै िुनने को ितपर हूँ ।``

`` कल कुछ लोगो को िूली पर चढ़ाया जा रहा है । उन लोगो मे आपका पिरवार

और आपके िमत चनदनदाि का पिरवार भी है । इन दोनो पिरवार का िवन ा ाश कल होनेवाला है । ```` नहीं िमत ! िुम ऐिा नहीं करोगे ।`` वह लगभग चीख पड़ा ।

`` इििलए िो मैिं जो कहिा हूँ उिे सवीकार कर लीिजए ।``

`` िमत , यिद अनुिचि होगा िो असवीकार और उिचि होगा िो सवीकार........ कहो कया कहना चाहिे हो ।``

`` आयव ा र रािि ! मेरा आपिे अनुरोध है । आदे श नहीं । यह िमपूणा मगध

िामाजय है । यह भारिवषा है । यह गंगा , यह यमुना , यह नदी , खेि-खिलहान , यह पाटिलपुत ,

यह पजा , यह राजभवन , यह मै , चनद ,आचाया शकटार और ये जो भारि के आपके-अपने है । ये िब आपको याद कर रहे है । यह िब आपको आमंिति कर रहे है । अपने िर , अपने पिरवार अपने िमत और िरशिेदार िब आपको बुला रहे है । आप लौट चले । यह बागान और गंगा के िट और

राजमहल के गिलयारे आपको बुला रहे है । यह पाटिलपुत की गिलयाँ आपके पि पर दिष लगाए

हुए है । आपका रि इि पाटिलपुत के रासिो पर दौड़ने को आिुर हो रहा है ।कया आप इन िबका अनुरोध असवीकार करे गे । ``

`` िमत चाणकय ! मै दे शदोही , षडयंतकारी , आपकी ,चनद की , िूयग ा ुप की ,

आचाया शकटार की और नंद के िवरोिधयो की हतया का षडयंत रचाया करिा रहा और इि िवनाशकारी दरुागही को आप......``

कहिे कहिे रािि का कणठ भर आया । मैने उिके कांधे पर हाि रखा ,ििनक

िपिपाया । करिभका जलपात ले आई । रािि के अधरो पर जलपात लगाया । वह अशु पोछिे हुए शीिल जल पी गया । मैने कहा -

`` िमत ! वह िुमहारा अिीि िा । अपने राजा के पिि , अपने राजय के पिि

िुमहारा किवाय िा । कल को िवसमि ृ कर दीिजए और विम ा ान मे आइए । मै या चनद , कल कुछ और िे आज िुमहारे अपने है । यह िमपूणा भारिवषा हमारा अपना है । हमे िमपूणा भारि को

एकछत राष बनाना है । इिे यवनो िे बचाना है । आपि मे लड़ना हमार उदे शय नहीं है । मुझे नंद

िे पििशोध लेने का कारण उििे वयिकगि दरूागह नहीं िा िकनिु वह कामी ,धनलोभी और केवल

मगध िक ही िीिमि िा । उिका नाश करने के बाद भी मेरी िशखा खुली ही िी । खुली िशखा के िाि ही उनहे नगर िे जीिवि भेजा िा । वह मगध को ही अपना िबकुछ िमझिा िा िकनिु हमारा दिषकोण िमपूणा भारि के पिि िमान है । कोई यवन हमारे भारि के िकिी नरे श को

ललकारे और उनहे परािजि कर अधीन कर ले , यह हम नहीं दे खना चाहिे । हम भले ही आपि मे

लड़े -िमटे िकनिु यवनो को भारि मे पवेश न होने दे । यही हमारा पमुख उदे श है । इििलए िुम भी वयिकगि दरूागह को तयागकर वापि लौट आओ । िुमहारा महामातय का पद अब भी िरक है । यह िुमहारे िबना िरक ही रहे गा ।``

`` लेिकन आचाया ! मैने िो आचाया शकटार को हटाकर उनका पद िछना िा ।

चनद की हतया का पयाि िकया िा । इिना ही नही वे........!``...

`` मै ििर कहिा हूँ वह िुमहारा बीिा हुआ कल िा । वह िुमहारे किवाय मे िा ।

आज वह पिरिसििियाँ नहीं है । आज जो मै कह रहा हूँ वह िुमहारा आज के किवाय है । किवायवान पुरष कभी किवाय िे िवमुख नहीं होिे । यह आप भिलभांिि जानिे है ।``

`` लेिकन आचाया ! महामातय के पद पर पिम अिधकार िुमहारा है , मेरा नहीं । मै

अब राजनीिि और राजकाज िे िेवािनवत ृ होना चाहिा हूँ ।``

`` यह वयिकगि हो िकिा है िकनिु मै राजिहि मे िजिना िुमको योगय पािा हूँ

सवयं को नहीं । मै कुिटया मे रहनेवाला एक िामानय अधयापक ही रहना पिनद करिा हूँ । िुमहारे अंग-पतयंग मे िामाजय की नि-नािड़याँ दौड़िी है । िजि कुशलिा िे िुम िामाजय का िंचालन

कर पािे हो ,उिना मै नहीं । मै राजनीिि ,कूटनीिि और अनय नीिि पर दिष लगाए रखूँगा । िुम मगध को मगध िक ही नहीं अिपिु िमपूणा आयव ा िा का िवसिार करोिे । िुम भले ही अचछे

कूटनीििज नहीं हो िकनिु बहुि अचछे पशािक हो । इििलए मगध िामाजय के पशािन का

िंचालन िुम करो । चनद एक कुशल ,वीर ,चिुर, आजाकारी और उदार मौया िैिनक है । वह िो हमारा िनिमत है , िामाजय िो हमे और िुमको िमलकर चलाना है । जब िमपूणा भारि एकछत गणराष बनेगा िब िहस ििकनदर भी ििनधु को पार करने मे ििल नहीं हो पाएंगे ।``

`` आचायव ा र ! आप मुझे लिजजि कर रहे है । मेरी धष ृ िाओं पर परदा डाल रहे है ।

आपको यह शोभा नहीं दे िा । आप मुझे उिचि दणड दीिजए ।``

`` आयव ा र ! अिीि के दिषकोण को िवसमि ृ कीिजए । आप मुझिे आयु मे बड़े है ।

आचाया शकटार आपिे आयु मे बड़े है । मैने दोनो के िाि बहुि िी धष ृ िाएं की होगी । मै भी अिीि को िवसमि ृ कर आप दोनो के िमि लिजजि हूँ ।``

`` आचायव ा र चाणकय ! मै आज िक सवयं को अपराधबोध िे गििि पा रहा िा

िकनिु िमत चाणकय , िुमहारी महानिा ने मेरे अनिचि ा ु खोल िदए है । वसिुि: जो महानिा िुममे है वह अनयत दे खने को नहीं िमलिी । मै कृ िज हूँ आचायव ा र ।``

रािि के नेतो िे पिािाप की अशध ु ाराएं बह िनकली । उनका कणठ भर आया और वे मेरे वि िे लग गए । जब िक उनके हदय मेिे अपराधबोध की भावना िी वे रोिे रहे । इिी दौरान करिभका पूए बनाकर ले आई । बोली -

`` िपिाशी ! गरमागरम पूए िैयार है ।`` आवाज़ दी -

रािि अशु पोछिे हुए मेरे वि िे पि ृ क हुए िो मैने िशषयो को ऊँचे सवर मे `` िुदामा ,शुभक ,अशोक और करिभके आओ , हमारे िपयिमत रािि ने मगध

िामाजय के पशािक का पद गहण करना सवीकार कर िलया है । आओ िमत रािि ! करिभका के हाि के पुए कभी-कभी ही खाने को िमलिे है । आज बड़ी पिननिा का अविर है ।`` िपिाशी !``

`` मै भी आपको इि शुभ अविर पर और अिधक शुभ िमाचार िुनाना चाहिी हूँ `` कौन िा शुभ िमाचार पुती षोषो ``

`` दे वी िहमािद को पुत रत की पािप हुई है ।``

`` यह िो अतयनि पिननिा का िमाचार है पुती करिभके । दे वी िहमािद कहाँ है

षोषो वह कुशल िो है न । उिके पुत का सवासथय िो उतम है न ।`` ``

`` वह भाभी शयामा की दे ख-रे ख मे है । महारानी िवशाखा भी वहीं है ।`` `` महारानी िवशाखा षोषो`` रािि चौक गया ।

`` हाँ महामातय रािि ! महारानी िवशाखा जीिवि है । जब दसयुओं ने नंद की

हतया की ,िंभवि: उनको भी िायल कर िदया िा । उनहे िायल अवसिा मे लाया गया । िचिकतिा के बाद अब वह पूणि ा : सवसथय है ।`` मैने बिाया ।

`` आिया ! महािया !! मै यह िब कहीं सवपन िो नहीं दे ख रहा हूँ ।`` रािि को

आिया हो आया ।

`` नहीं महामातय रािि ! यह पूणि ा : ितय है । नंद की मतृयु के बाद उनके वंश का

नाश िो हुआ है िकनिु उनकी पती महारानी िवशाखा अभी जीिवि है । उनहे उनकी पुती दध ु राा के पुत को मगध के राजििंहािन पर बैठिे हुए दे खना भी िो है न िमत ! यह िब कैिे िंभव होगा षोषो``

मैने रािि का हाि अपने हािो मे लेिे हुए कहा । रािि के आिया का पारावार

और अिधक बढ़ गया । वह आिया की भांिि मुझे दे खने लगा । बोला-

`` आचाया चाणकय ! िुम न केवल महान हो बिलक िुम िो महामानव हो । शतु को

भी सनेह िे गले लगाना अचछी िरह िे जानिे हो । मै िुमहे िहसो बार नमन ् करिा हूँ । िुमने

आज मेरे हदय का भार ही उिार कर पि ृ क कर िदया । िुम शतु दमन ही नहीं िकनिु मानव-िमत भी हो । िाधु ! िाधु !! चाणकय !````

`` िमत रािि ! वयिक िवशेष की शतुिा और राषिहि दोनो पि ृ क-पि ृ क है । मेरा वयिक िवशेष िे शतुिा नहीं है बिलक राषिहि िवोपिर है । राषिहि को इििे न जोिड़ए । जो राष का शतु है वह मेरा शतु है िकनिु वयिकगि शतुिा का इििे कोई िमबनध नहीं है ।`` मैने िमझाने का पयाि िकया । रािि बोला-

`` िमत ! मै िुमको िमझ नहीं पा रहा हूँ । इििलए अलावा चुप रहने के कोई

िवकलप नहीं है ।``

`` चलो िमत ! आचाया शकटार िे भि्ोिंट कर ले ।``

आचाया शकटार , रािि के पि मे नहीं िे । वे चाहिे िे िक िजि िरह उनहे

रािि ने अंधकूप मे डालकर उनका महामातय का पद पाप कर िलया िा , उिी िरह अब की बार रािि को अंधकूप मे डालकर वे महामातय का पद िंभाल ले । आचाया शकटार िे िमलने पर वे

अतयनि िुबध हुए । उनके नेतो मे पििशोध की जवाला भभकने लगी िी । वे िकिी भी िरह की

ििाई नहीं चाहिे िे । उनका एक ही मंिवय िा , रािि को िमा न िकया जाय । वे अिंिुष होकर वापि बह ृ दहटट चले गए । मुझे भी अतयनि द ु:ख हुआ । मै नहीं चाहिा िा िक आचाया शकटार

कोिधि हो िकनिु राजनीिि मे कूटनीिि िो आवशयक है । यिद मै ितकालीन पशािको को िाि

लेकर न चलूँ िो िंभवि: चनद के हाि मे आया यह िामाजय कूटनीिि का अखाड़ा बन जाएगा । िकिी भी िमय पाटिलपुत पर िवदररोिहयो वदारा आकमण हो िकिा है । चनद अभी िबलकुल नया है । िैनय-शिक पयाप ा नहीं है । िसििि बड़ी नाजुक है और ऐिे मे नंद के िमिक ा कुछ भी अिपय कर िकिे है । यही िोचकर मैने कूटनीिि का यह रासिा अपनाया है । आचाया शकटार का

अिंिोष मेरे िलए द ु:खदायी अवशय है िकनिु वह राष के द ु:ख िे कमिर ही है । रािि को अपने पि मे लेने के बाद मेरी दिष भदशाल पर पड़ी । भदशाल कुशल िेनापिि है । िैिनको मे उनका

सिान िवोपिर है । इिना ही नहीं , भदशाल की िाख भी िैिनको मे बहुि अचछी है । हमेिं उििे भी िमय का लाभ उठाना होगा ।

राजमहल के कि मे बनदी भदशाल को ितकाल मुक कराना अब मेरे िलए अतयावशयक िा । वह ििलिमला रहा िा । उिे यह िमझ मे नहीं आ रहा िा िक उिे यह िकि

िरह बनदी बनाया गया है । बनदीगहृ िो कारागार होिा है । िजि कि मे उिे बनदी बनाया गया िा उि कि मे उिके िलए िभी िरह की वयवसिाएं उपलबध करा दी गई िी । बि , उिे कि िे बाहर िनकलने की अनुमिि नहीं िी । वह चाहे जैिे रह िकिा िा । उिे इि िथय का आभाि नहीं होने िदया गया िा िक वह बनदी है । िजि िमय मै भदशाल के कि मे पहुँचा , वह झरोखे िे बाहर

िनहार रहा िा । दो दािियाँ रजक पात मे भोजन िलए उििे भोजन करने का आगह कर रही िी । दािी ने िनवेदन िकया -

`` िेनापिि जी ! आपकी जय हो । भोजन का िमय हो गया है । आप भोजन

गहण िकिजए ।``

`` नहीं , मै भोजन नहीं करँगा । मुझे इि िरह कि मे बनदी बनाया जाना शोभा

नहीं दे िा । मैने कोई अपराध नहीं िकया है ।`` वह आवेश मे बोला

`` हम दािियाँ है िेनापिि , हमे आपकी िेवा के िलए िनयुक िकया गया है । भला

हम आपके पश का कया उतर दे । हम आपका िनवेदन आचायव ा र िक पहुँचा चुके है । वे िमय िनकालकर आपिे िमलने आने ही वाले है । ``दािी ने िवनमिा के िाि कहा ।

`` मै पसिुि हूँ िेनापिि भदशाल ! भोजन अवकाश का िमय हो गया है । हम भी

िेनापिि जी के िाि भोजन करे गे । दािी हमारे िलए भी भोजन पसिुि करो । शीघिा करो ।`` कि मे पवेश करिे हुए मैने कहा

`` आचायव ा र ! आप मुझे िेनापिि िमबोिधि कर वयंगय कर रहे है या हमारे िावो

पर नमक िछड़क रहे है षोषो``

`` िेनापिि भदशाल ! न ही यह वयंगय है और न ही िाव पर नमक िछड़का जा रहा

है । आप बीिे हुए िमय मे भी िेनापिि िे और विम ा ान मे भी िेनापिि ही है । बि ,िमा चाहँ िूगा । अतयिधक वयसििा के कारण आपिे भेट करने मे िवलमब हो गया अनयिा इिना िवलमब नहीं होिा ।``

`` वाह आचायव ा र ! एक िो हमे बनदी बना िलया गया और उि पर हमिे िमा

याचना कर वयंगय पर वयंगय िकए जा रहे है । यह आप जैिे आचाया को शोभा नहीं दे िा ।`` वह ििलिमलाकर बोला

`` नहीं िेनापिि , आपको बनदी बनाया होिा िो आप कारागार मे होिे लेिकन

आप िममाननीय है इििलए कि का उपयोग िकया गया । वह भी ऐिा कि िजिमे आपके

िवशाम की िारी िुिवधाएं उपलबध है । भला , बिाइए हमिे कया भूल हो गई षोषो हाँ , मयाद ा ा का उजललंिन नहीं िकया ।`` है ।``

`` आचाया ! आप मुझे या िो बहला रहे है या कूटनीिि िे कुछ और करना चाह रहे `` िेनापिि भदशाल ! जो कुछ भी आपके िमि है । यह बहलाया नहीं जा रहा

बिलक जो िममान आपका पूवा मे िा वही िममान आज भी उिी िरह िवदमान है । आपका पद िरक नहीं िकया गया ।``

`` आचायव ा र ! मै आपके िविभनन कटु वचनो िे िबंध रहा हूँ आप अब िक अपनी

िशिक की वाणी मे बोले जा रहे है । मै आपके किन को िमझ नहीं पा रहा हूँ िक आप कहना कया चाहिे है षोषो `` अब की बार भदशाल िवनम हो गया ।

मै भदशाल के िनकट गया । उिके कांधो पर दोनो हाि रख उिे पीठे पर िबठाया

और सवयं भी पीठे पर बैठा । बोला-

`` िेनापिि भदशाल ! िुम जो िोच रहे हो वैिा कुछ भी नहीं है । िुमको अब िक

िारी िूचनाएं िमल गई होगी । पाटिलपुत पर चनदगुप मौया का आिधपतय हो गया । महामातय रािि भी यहीं है वे पशािक के पद पर सिािपि हो गए । हाँ , नंद को ििममान नगर िे

िनषकाििि िकया गया िा िकनिु दभ ु ागाय िे दसयुओं ने उनकी हतया कर दी । महारानी िवशाखा

को िायल अवसिा मे राजमहल लाया गया । अब वह सवसथय और जीिवि है । उनकी पुती दध ु राा

का िववाह चनदगुप िे.............कुछ भी पिरवििि ा नहीं हुआ है िेनापिि भदशाल । पिरविन ा हुआ है िो केवल लोभी ,दरुाचारी ,कामी और अनाचारी नंद को पदचयुि कर उनके सिान पर चनदगुप का राजयािभषेक िकया गया है । ििर िुम कयो इिने िवचिलि हो रहे हो षोषो ``

`` कया आप मुझे दिणडि नहीं करे गे षोषो अंधकूप मे नहीं डालेगे या िूली पर नहीं

चढ़ाएंगे षोषो लेिकन कयो नहीं षोषो`` वह उतेिजि हो गया और उिका मुख िववणा हो गया । उिे िवशाि नहीं हो रहा िा ।

`` िकिी को भी दिणडि नहीं िकया गया । िकिी को भी अंधकूप मे नहीं डाला गया

। िकिी को भी िूली पर नहीं चढ़ाया गया । कोई रकपाि नहीं हुआ । कोई जनहािन नहीं हुई । राजधानी मे िजि िरह पहले अशािनि िी उिके सिान पर अब शािनि सिािपि हो गई है ।

िुमको यिद मेरी बािो पर िवशाि न हो िो सवयं चलकर नगर भमण कर लो । जाओ िुम सविंत हो । कोई िबनदश नहीं है ।``

इिनी िारी बािे होने के बाद िेनापिि भदशाल शानि हुआ । उिके मुख पर

पिननिा के पुषप िखल गए । वह पिनन हो बोला `` ििर िो मेरा पिरवार ......,षोषो``

`` िुमहारे पिरवार पर आंच भी नहीं आई है । िेनापिि , जो जहाँ िे वही पर है । यहाँ िक िक िमिपि ा राज पदािधकारी भी यिासिान है । हाँ , जो िमिपि ा नहीं िे उनहे पूरे

िममान के िाि िनषकाििि िकया गया । अब िुम अपना पदभार िंभालो और मुझे अपने दाियतव िे मुक करो ।``

िेनापिि भदशाल ने शीघ ही अपना मिसिषक मेरे चरणो मे रख िदया । उिके

नेतो िे अशध ु ाराएं बह िनकली । वह बहुि दे र िक पिािाप के आँिू बहािा रहा । बोला-

`` आचायव ा र ! आपने ऐििहाििक पिरविन ा िकया है । इि िरह का पिरविन ा

इििहाि मे दे खने-िुनने को नहीं िमलिा । इििहाि िािी है िक परािजि , बनदी या पदचयुि

िमाट के िमसि राजपदािधकािरयो और पिरजनो को बनदी कर कारागार मे डाला जािा है या उनहे मतृयुदणड िदया जािा है । लेिकन आपने या चनदगुप ने ऐिा नहीं िकया । मुझे अब िक िवशाि ही नहीं हो रहा िकनिु एक आचाया पर िवशाि िकया जाना चािहए । आचाया िो िमाज के मागद ा शक ा होिे है । मुझे िवशाि करना ही होगा ।``

`` िेनापिि भदशाल ! आपके इि िशिक ने वही िकया जो पिरवार ,िमाज और

राष के िहि मे उिचि हो । मेरी आकांिा रकपाि या परािधनिा की नहीं है अिपिु मै इि भारिवषा को यवनो के चंगुल मे आने िे बचाना चाहिा हूँ । मैने िमाट नंद िे चाहा िा िक पििमोतर िे

भारिवषा मे पवेश कर रहे यवनो को वापि भगाने िहयोग करे िकनिु उनहोने िहयोग नहीं िकया

बिलक मुझे भरी िभा मेिे अपमािनि िकया । मेरी िशखा पकड़ावकर िभा िे बाहर िनकलवा िदया । उिी िमय मैने िौगंध ली िी िक नंद वंश का नाश करँगा । इिके बाद यवनो को भारिवषा मे

पवेश करने िे रोकूँगा । बि , मेरा िनजी कोई सवािा नहीं है । इिीिलए जो कुछ भी हुआ , हो रहा है और होगा , वह िनजी सवािा के िलए नहीं होगा अिपिु राष के उननयन के िलए होगा । बाकी िुम जानो । यिद िुम ििर भी अिवशाि कर रहे हो िो मुझे कुछ कहना नहीं है । िै``

िेनापिि भदशाल िविनि भाव िे मेरी ओर दे खिे रहा । िंभवि: उिे अब या िो

िवशाि हो गया होगा अिवा इिे भी कूटनीिि िमझ रहा होगा । वह कुछ बोला नहीं । िभी दािी भोजन ले आई । हम दोनो ने िमलकर भोजन िकया ।

भोजन के बाद िीधे रािि के पाि गए । दोनो ने एक दि ू रे का अिभवादन िकया ।

िवचार-िवमशा िकया । िेनापिि भदशाल पिनन हो गए । उनहोने िेनापिि का पदभार िंभाल िलया । 0

मुझे लगा अब कुछ िमय िक िवशाम िकया जाय िकनिु राजकाज िे ििणक

अवकाश िमलिे ही िहमािद का समरण हो आया । करिभका ने बिाया िा िक िहमािद को पुत रत की पािप हुई है । वह विम ा ान मे शयामा भाभी के िंरिण मे है । शयामा भाभी का उतरदाियतव भी

बढ़ गया है । अब उनके पाि न केवल िहमािद है बिलक उनका अपना पुत भी है । महारानी िवशाखा भी उनके िंरिण मे है । रिचकुमार यह िब दे खकर मुझे अवशय ही वयंगयबाण मारे गे । लेिकन अब यह िब िहना होगा । मैने चनद को बिाया िक उिे अब कुछ िणो के िलए िहमािद और

शयामा भाभी के पाि जाना है । उिे िूिचि कर मै िीधे िरयू की ओर चल पड़ा । बड़े िदनो बाद

आज िरयू पर पूणा शािनि का अनुभव हो रहा है । मन बहुि िका हुआ िा िण पर िवशाम िकया

जाना उिचि लगा । सनान धयान और िशवालय मे दशन ा के बाद मैिे रिचकुमार के भवन की ओर चल िदया ।

वदार खटखटािे ही शयामा भाभी ने मुसकरािे हुए पट खोले । बोली-

`` िुमहारे िबना दे वर जी िब कुछ िुना-िुना लागे ।`` `` भाभी दे वर माने कया होिा है । दे खो .......दे ......वर ....यानी जो वर दे िा है वह

दे वर कहलािा है ।``

`` िवषणु ! िुम िबलकुल नहीं बदले हो । चलो आओ भीिर आओ । हम आज िुमहे

अनमोल चीज िदखािे है । चलो आओ िो ।``

मै उनके िाि भीिर गया । िामने झुले मे िहमािद पुत को झुला ,झुला रही िी और

वह गुनगुना रही िी । मुझे दे खिे ही वह उठ खड़ी हुई । चरण सपशा िकए । उिकी अशध ु ाराएं बह

िनकली । मैने उिे आिलंगन मे भर िलया । भाभी दे खकर हं ििे हुए कि िे चली गई । मैने िहमािद की ढोडी पकड़ ऊपर की और उिके अधरो पर हलका िा चुमबन िदया । वह अिभभूि हो गई।बोली`` िवषणु ! दे खो ,पलने मे हमारा पुत िो रहा है । उिका मािा िकिना ऊँचा है

िबलकुल िुमहारी िरह .....एक बाि कहूँ आया ! यह िबलकुल िुम पर जाएगा । अभी िे ही मेरी मुख की ओर दे ख मुसकरा दे िा है ।``

`` बि , दे वी िुम इिी िरह मुसकरािी रहो और पिनन रहा करो । मेरी ढे र िारी

शुभकामनाएं और शुभािशष िुमहारे िाि है ।``

`` आया ! इििलए मै िनििनि हूँ । अब मै शीघ ही वयसथय होकर िुमहारे कायो मे

िहयोग करँगी ।``

`` दे वी हे म ! अब िुमहे कोई काया नहीं करना है । यह िुमहारे अवकाश के िदन है ।

मै चाहिा हूँ िुम अब कुछ न करो । हम िब लोग है न .....भैया रिचकुमार, भाभी शयामा ,िुदामा ,अशोक ,शुभक ,करिभका और ढ़े र िारे लोग.....िुम िो महारानी बनकर रहो शयामा भाभी के पाि....ठीक है न षोषो``

`` जैिा िुमहारी अिभलाषा िकनिु जब भी िुम कहोगे मै शीघ चली आऊँगी ।`` `` ठीक है । िुमहारे िलए पििमाि राजकीय िहायिा पाप होिे रहे गी । हमारे पुत

और िुमहारे िलए वह पयाप ा होगा । इिे िुिशििि और योगय बनाना िुमहारा काया है । मािा

िंिान की पिम गुर होिी है । जो िुम ििखाओगी वो ही वह गहण करे गा । शेष मुझ पर छोड़ दो । अचछा....यह िो बिाओ ...हमारे पुत का नाम कया रखा गया है षोषो``

`` भाभी कह रही िी मेरा नाम शयामा है िो मेरे भांजे का नाम राधा होना चािहए ...

राधा गुप .......ठीक है न ...``

`` भाभी िकिकी है षोषो मेरी न ....वह कभी गलि नहीं करे गी ।``

चचाा मे शयामा भाभी अपना नाम िुनिे ही कि मे हं ििे हुए चली आई । बोली`` भई शयामा भाभी का नाम लेकर कया खुिर-िुिर हो रही है षोषो``

`` भाभी ! आपने हमारे पुत का नाम राधागुप रखकर हमारे हदय की अिभलाषा पूणा कर दी । धनय हो भाभी ।``

`` भाभी िकिकी हूँ दे वर जी षोषो ``

`` भाभी िो िदै व दे वर की ही होिी है न...कयो भाभी जी षोषो``

`` दे ख िहमािद ! ये जो मेरा दे वर है न िारे दिुनया भर मे न जाने कया-कया नाटक-

िमाशे करिे रहिा है िकनिु जब अपनी भाभी के पाि आिा है न िो िबलकुल भीगी िबलली बन के आिा है कयो दे वर जी ...!``

`` भाभी ! आप भी बहुि वो हो ।``षोषो

`` वो मिलब.....बोलो, बोलो ......दे वर जी बोलने के पहले िोचा करो ििर बोला करो । वो के मिलब अनेको होिेिे है ।``

`` भाभी जी...वो मिलब नटखट.....................`` `` िुम भी कया कुछ कम हो......िाि िमनदर पार की भाभी पिनद की है िबलकुल

गोरी िचकनी ...िूल िी कोमल और मनमोिहनी िी.....दे खा िहमािद....अब बिाओ कौन वो है मै या मेरे दे वर िवषणु ...``

दोनो िखलिखलाकर हं ि दी िो लगा मै वासिव मे भागयशाली हूँ । यह बाि पि ृ क

है िक नारी का पूणा िुख मुझे नहीं िमल पा रहा है । िदै व राजकाज मे यहाँ िे वहाँ भटकना पड़िा है

। इिकी टोपी उिके ििर पर , उिकी टोपी इिके ििर पर रखिे-रखिे मेरी टोपी ही गायब हो गई है । अब जो भी है उिी मे िनिुष हो जाना होगा अनयिा वह भी हाि िे रे ि की िरह िििल जाएगा और हाि िरक ही रह जाएंगे । दो िड़ी िहमािद के िाि रहकर मै शीघ ही राजमहल लौट आया । 0

िेनापिि भदशाल ने अपने दाियतव को िंभाल िलया । भदशाल को िचेि िकया

गया िा िक अनावशयक रकपाि िे बचा जाय । िनरापराध नागिरको िवशेषि: वद ृ , बचचे ,िसयोिे पर अतयाचार न िकया जाय । यिद युद होना भी है िो िेना के मधय हो । पजा को इििे मुक रखा जाय । िेनापिि भदशाल िामाजय के िवसिार के िलए वह मगधवािहनी िेना लेकर िवजय याता के िलए िनकल पड़ा । उिने उन नरे शो पर दबाव डाला जो विम ा ान मगध िमाट को मानने िे असवीकार कर रहे िे । उनहे पुन:मगध के अधीन करने मे उिने ििलिा पाप की । राजिगरी

,वैशाली ,मिुरा ,काशी ,अयोधया ,कौशाबी ,शाविी ,कांिपलय ,इनदपसि ,उजजैियनी , िमििला

,चंपा , िामिलिप ,किलंग को अपने अधीन कर उन पर िेनानायको को शािक िनयुक कर िदया । भदशाल के पराकम की िारे आयाव ा िा मेिे िूिी बजने लगी । भदशाल का िहयोग चनदररगुप के िलए अपेििि िा ।

िवजय याता िे लौटने के बाद मै उिके पाि गया । वह िजिना उतिािहि लग रहा

िा उिना ही िका लग रहा िा । उिे िचिनिि दे ख मैने पूछा-

`` िेनापिि भदशाल ! कया िुम असवसथय महिूि कर रहे हो षोषो``

`` आचायव ा र ! यह आयु ही ऐिी होिी है िक इनिान का शरीर िकने लगिा है । िब कुछ ठीक होिे हुए भी ऐिा पिीि होिा है जैिे कुछ भी ठीक नहीं है ।``

`` ऐिा इििलए होिा है िक वयिक का शरीर अिधक िक चुका होिा है । जब शरीर

िक जािा है िो उिका मन-मिसिषक भी िनििषकय हो जािा है । वयिक के अि्रग-पतयंक

िशििल हो रहे होिे है और िशििल शरीर को िवशाम की आवशयकिा होिी है । यिद शरीर को िवशाम नहीं िदया गया िो वह मि ृ िुलय हो जािा है ।``

`` मुझे भी ऐिा ही कुछ महिूि हो रहा है आचायव ा र ।`` `` िेनापिि जी ! मुझे ऐिा पिीि होिा है अब आपको िवशाम कर लेना चािहए ।

िुमहारे मन-मिसिषक और शरीर को िवशाम की आवशयकिा है ।``

`` आया ! मै आपका मंिवय िमझ नहीं पा रहा हूँ ।``

`` मेरा मंिवय यह है िक जब िुमहारा मन-मिसिषक और शरीर िक गया है िो िुम अब िेवा-िनवत ृ होकर िवशाम करो । `` `` िेना िे िेवा-िनवत ृ !``

`` हाँ भदशाल , िेना िे िेवा-िनविृत िकनिु िुम अनयिा न लो िुमहे जीवन पयन ा ि

उिनी ही विृत िमलिे रहे गी िजिनी िुम अभी पा रहे हो । िुमहारे पिरवार की िजममेदारी भी अब राजय की होगी ।``

`` आचायव ा र ! आपका आदे श िशरोधाया िकनिु राजय की िेवा....!`` `` भदशाल ! िुमहारी िेवा की जब भी आवशयकिा होगी राजय िुमको समरण

करे गा । मै यह वचन दे िा हूँ ।``

`` जैिा आपका आदे श आचायव ा र ।``

मै िेनापिि भदशाल को अिधक िमय िक िामाजय के काया मे रखना नहीं चाहिा िा । उनहे बनदी बनाकर मै दिणडि भी नहीं करना चाहिा िा । यिद उनहे बनदी बनाकर दिणडि िकया जािा िो उििे इिने मधुर िमबनध नहीं रह पािे और हो िकिा िा िक िेना ही

िवदोह कर दे । िेनापिि भदशाल ,नंद के िामाजय के िचचे राजय-भक िे । वे अपने किवाय का

पूरा पालन कर रहे िे । जो हमे सवीकार नहीं िा । रािि को िकिी भी िसििि मे िंभाला जा िकिा है िकनिु िेनापिि भदशाल को िंभालने का अिा िा िकिी िरह की आपित मोल लेना । इिीिलए अविर दे ख-िमझकर भदशाल को िेना िे िेवािनवत ृ िकया जाना राजयिहि मे आवशयक िा । चनद सवयं भारिवषा के पििमोतर मे अपनी िवशाल िेना लेकर गांधार के

िििशला और पुषकराविी पर अिधकार कर अपना धवज लहरा िदया । आंिभ ,चनद के इि अिभयान िे बौखला गया । पुषकराविी पर अिधकार कर अपना धवज िहराने मे चनद को अिधक

शम नहीं करना पड़ा । पुषकराविी नरे श हसिी शीघ ही मगध िामाजय मे ििममिलि होने के िलए

िैयार हो गया । चनद ने अिभिार िक और वाहीक मे ििनधु िक और दििण-पििम मे िौराष पर भी अिधकार कर अपना धवज लहरा िदया।

इिी बीच गुपचरो िे िूचना पाप हुई िक ििकनदर की मतृयु बेबीलान मे हो गई ।

ििकनदर के सिान पर उिका वीर िेनानायक िेलयूकि ने िारा भार अपने कांधो पर ले िलया ।

िेलयूलि के िवचार भारिवषा पर िवशाल िेना लेकर आकमण का बन रहा िा । लेिकन वह अभी चुप बैठा िा और अविर की पिीिा कर रहा िा । उिे यह नहीं जाि िा िक अब मगध पर चनदगुप का पािधकार है और वह भी उिके आकमण का िवधवंिक उतर दे िकिा है । मगध िमाट

चनदगुप मौया के िामाजय की िीमा अब गांधार ,वािहक िे लेकर पूवोतर भारि ििा पूवोतर भारि िे लेकर पििम-दििण भारि िक िवसिािरि हो गई । अब चनदगुप केवल मगध का ही नहीं

अिपिु िमपूणा आयाव ा िा का एकछत िमाट हो गया । आयाव ा िा के िकिी भी राजय पर आकमण का अिा होगा , आयाव ा िा पर आकमण और िमाट चनदगुप आयाव ा िा के िकिी भी राजय पर आकमण

करनेवाले यवन आकािो को मिटयामेट करने के िलए पयाप ा है । िकनिु िेलयूकि चनदगुप के इि अिभयान िे िबलकुल अनिभज िा । चनदगुप मौया िमपूणा आयाव ा िा के िलए िचेि िा िो िेलयूकि पििमोतर पर पुन: आकमण के िलए उिावला हो रहा िा । 0 मगध की राजधानी पाटिलपुत के राजभवन मे िकिी राजदोही वदारा षड़यंत रचा जा रहा िा िजिकी िकिी को भी िूचना नहीं िी । चाणकय ने राजकमच ा ािरयो को िवशाि मे लाने के िलए कुछ िशििलिा दे दी । यह िशििलिा इििलए दे दी गई िी िकिी भी राजकमच ा ारी को परािधनिा का अहिाि न हो । दि ू रा कारण यह भी रहा िा िक राजभवन मे चल रही गुप

गिििविधयो की परीिा भी हो जाएगी । लेिकन अनहोनी होनी िी उिे टाला नहीं जा िकिा । इिी िरह की अनहोनी िे राजमहल को गुजरिा पड़ा । चनद को पिििदन िदए जानेवाले भोजन को

राजिचिकतिक वदारा जांच करके ही िदया जािा िा । इिना ही नहीं मैने किठन पिरशम कर िवषिवरोधी औषध का िनमाण ा िकया िा । यह औषिध चनद को पििमाह िनििि िमय पर िपलाई

जािी िी । िमयाभाव के कारण कभी औषिध नहीं दी जा िकिी िब राजिचिकतिक भोजन का परीिण कर सवयं भी एक गाि खा लेिा िा । अबकी बार जब भोजशाला िे रजक-पात मे चनद के िलए भोजन लाया गया िो बीच मे ही दध ु राा ने भोजन की वह िाली दािी िे ले ली । अपने कि मे

जाकर उिने वह भोजन गहण कर िलया िा । भोजन के लगभग एक िड़ी बाद दध ु राा अचेि हो गई । उिके मुख िे िेन िनकलने लगा । शीघ की राजवैद को बुलाया गया । राजवैद ने परीिण बाद

दध ृ िोिषि कर िदया । इि िमय दध ु राा को मि ु राा को आठ मिहने का गभा िा । राजमहल मे दध ु राा की मतृयु के िमाचार िेजी िे िैल गया । महारानी िवशाखा को िूचना िमलिे ही वह राजमािा

मुरादे वी के िाि दध ु राा के शव के पाि आ पहुँची । राजमािा मुरा दे वी और महारानी िवशाखा इि

अिामियक मतृयदि ु Z टना िे बहुि वयििक हुई । िवशाखा पुती की मतृयु पर बहुि रोई-िबिरी । राजामािा मुरादे वी ने उिे ढांढि बंधाया और धैया रखने के िलए िानतवना दे ने लगी ।राजवैद ने

दध ु राा का उदर िवचछे दन कर िशशु को बाहर िनकालवाने की िलाह दी । राजवैद की िलाह शीघ

मान ली गई और उदर िवचछे दन कर गभा िे िशशु बाहर िनकाला । िशशु पर िवष का िकंिचि पभाव पड़ा िकनिु राजवैद की िचिकतिा िे िशशु पर पड़ा िवष का पभाव िमाप हो गया । दध ु राा के उदर िे िनकाले िशशु के बचने की कोई आशा दिषगोचर नहीं हो रही िी । महारानी को उनका सवपन अधर मे लटका िा पिीि होने लगा । मैने ही महारानी िवशाखा को कहा िा िक दध ु राा की भावी िनिान मगध के राजििंहािन की उतरािधकारी होगी । लेिकन दध ु राा के उदर िे िनकला िशशु अतयनि िीण होने िे महारानी िवशाखा िचिनिि हो गई । राजवैद ने पिरशम कर िशशु का बचा िलया ।

िशशु को बचा दे ख महारानी िवशाखा ििनक द ु:िचनिा िे िवमुक िी हो गई । उिे अब आशा और िवशाि हो गया िक िशशु अब बच ही जाएगा । दध ु राा का अिनिम िंसकार पूरे राज-िममान के िाि कर िदया गया ।

दध ु राा िे उतपनन िशशु कुछ ही िदनो मे सवसथय हो गया । लेिकन वह शारीिरक

गठन िे बहुि ही अशक िा । राज-जयोििष ने उिका नाम िबमबिार रखा । िशशु िबमबिार को पाकर महारानी िवशाखा पिननिा िे िूली न िमाई । वह अब िबनदि ु ार को मगध के

राजििंहािन पर बैठे दे खना चाहिी है । इि उदे शय की पूििा के िलए उिे पिीिा करनी होगी कयोिक जीवन बहुि दीि Z और कंटकाकीणा होिा है ।इि पर चलना इिना िरल नहीं होिा । पिा

नहीं भिवषय कया-कया िदखािा है , कौन जाने षोषो अिभलाषा और इचछाएं कभी िमाप नहीं होिी । लेिकन सवपन दे खना गलि भी िो नहीं हो िकिा । कौन रोकिा है सवपन दे खने के िलए षोषो

अभी दध ु राा की मतृयु को छह माह भी नहीं वयिीि हुए िक राजमािा मुरादे वी ने

अपने भािा की पुती िे चनद के िववाह की चचाा पारं भ कर दी । राजमािा मुरादे वी चाहिी िी िक उिका चनद िकिी भी िरह िे मगध िामाजय के िलए अपना वंज पैदा करे । दध ु राा के िशशु की

िसििि बहुि कमजोर िी । इििलए राजमािा मुरादे वी को यह िनणय ा लेना पड़ा । लेिकन महारानी िवशाखा को पूरा िवशाि िा िक दध ु राा का यह पुत अवशय ही भिवषय मे मगध का िमाट बनेगा । अनिि: चनद का िववाह राजमािा मुरादे वी के भािा की पुती िे िमपनन करा िदया गया । 0

अभी चनद का ििवदिीय िववाह हुआ ही िा िक मुझे जाि हुआ िक िेलयूकि ने

पचाि िहस िेना लेकर कुभा के उि पर िशिवर लगा िलया है । िंभवि: उिकी अिभलाषा िििशला िे भारि मे पवेश करने की िी । गुपचर वदारा िूचना पाप होिे ही मैने चनद को

पििमोतर भारि की ओर िििशला चलने के िलए िनदे िशि िकया । िििशला मे बीि िहस िेना

पहले िे ही िैनाि की गई िी िकनिु यह िेना बहुि कम िी । शायद इिीिलए िेलयूकि ने

िििशला पर आकमण का मन बना िलया िा । िििशला को यवनो के आकमण िे बचाने के िलए चनद ने असिी िहस िैिनक िाि ले िलए । िजिमे बीि िहस गज िेना ,बीि िहस अश िेना

ििा चालीि िहस पद िेना ििममिलि िी । चनद की िेना िििशला पहुँच गई लेिकन िेलयूकि को दशान ा े के िलए हमने मात बीि िहस िेना ही िमि मे रखी । शेष िेना कुभा के इि पार यत-

ित िैनाि कर दी िािक यिद िेलयूकि आकमण करिा है िो उिको िीधे पतयतर िदया जा िके। िेलयूकि ने दि ू के हाि चनदगुप के िलए िंदेश भेजा । चनद ने दि ू का अिििि

सवागि िकया और उिके आने का कारण पूछा -

`` मगध िमाट चनदगुप ,िमाट िेलयूकि के दि ू का सवागि करिा है । कहो िमत

, कया िंदेश लाए हो षोषो``

`` राजन ! िमाट िेलयूकि ने आपको आदे श िदया है िक यवन िमाट ििकनदर

वदारा िविजि िििशला िे अपना पभुतव हटाकर पाटिलपुत वापि चले जाए । िमूचे िििशला

,केकय और पुषकराविी पर िमाट ििकनदर का अिधकार है । िारा वाहीक यवन िमाट के अधीन है । अचछा हो िक आप सवयं ही अपनी िेना हटा ले और िमत बने रहे । हम अस-शस नहीं अिपिु हाि िमलना चाहिे है ।``

`` दि ा िा का अंग ू ! महाराज िेलयूकि को मेरा िंदेशा दे िक वाहीक िदै व आयाव

रहा है और भिवषय मे भी रहे गा । कुभा पार करके आप भारिियो को ललकार रहे है । भारिीय

िमाट आिंिकयो के िमि निमसिक नहीं होिे । यिद िमाट िेलयूकि िमतिा ही चाहिे है िो वे ितकाल यवन िेना हटा ले ।``

`` अचछा राजन ! यवन दि ू वापि जाने को उतिुक है िकनिु िमाट ने यह भी पूछा

है िक वे िििशला िवदापीठ के आचाया चाणकय िे भेट करना चाहिे है । िमाट ने आचाया को अपना पणाम िंदेश भेजा है ।``

`` आचायव ा र आजकल सवसथय न होने के कारण पाटिलपुत मे सवासथय लाभ ले

रहे है । हम िमाट का िंदेश आचायव ा र िक पहुँचा दे गे । ``

चनदगुप ने िेलयूकि के दबाव को असवीकार कर िदया । िेलयूकि के पाि अब

केवल आकमण के अलावा अनय कोई िवकलप नहीं िा । उिे यह आशंका िी िक मै भी िििशला

मे चनद के िाि हूँ िकनिु जब उिे यह बिाया गया िक मै सवासथय लाभ के िलए पाटिलपुत मे हूँ िो

वह िकंिचि आशसि हो गया । िेलयूकि ने िोचा , चनदगुप के पाि मात बीि िहस िैिनक ही है । अब की बार आचाया चाणकय उिके िाि नहीं है । उिे पूरा िवशाि हो गया िक वह चनदगुप को परािजि कर िििशला को अिधकार मे ले लेगा । िेलयूकि ििनधु के उि पार िे िििशला और

चनदगुप की िेना पर दिष लगाए हुए बार-बार परीिण करिा रहा । वह बीि िहस िेना को शीघ

ही कुचलने के िलए िमय की पिीिा करने लगा । मैने उिे िदगभिमि करिे हुए मगधवािहनी िेना

को पूरी दििा के िाि िैयार कर रखा । िेलयूकि िे पुन: दि ू भेजकर आगाह िकया िक यिद चनद अपना िनणय ा नहीं बदलिे िो वह आकमण के िलए िैयार हो जाय । चनद ने चुनौिी सवीकार कर ली ।

युद का िबगुल बज उठा । िेलयूकि और चनद की िेनाएं आमने िामने िैनाि हो

गई । वह चनद की िेना दे ख कर दं ग रह गया । िहसो िवशाल गज िेना , िहसो अशारोही िैिनक

और एक लि िे भी अिधक पैदन िैिनक अपने-अपने मोचे पर िैनाि है । वह चनद की िेना दे खिे ही रह गया । उिने अपने गुपचर िे पूछा -

`` युद भूिम मे चनदगुप के एक लि िे भी अिधक िैिनक िैनाि है िो िििशला ,

केकय और पुषकराविी मे िकिने िैिनक अभी उिके पाि होगे षोषो ``

`` राजन ! यह बिाना अतयनि किठन है । पूरा वाहीक िो िैिनको की छावनी ही

पिीि होिा है । ``

`` इिका अिा यह हुआ िक चनद की िेना आंिभ , पुर ,इनद और अिभिार की िेना

िे भी कहीं अिधक होगी ।``

`` हाँ राजन ! हमारी िेना उनकी िेना के एक अंश भी बराबर नहीं है ।``

`` ठीक है अनुचर ! हम कूटनीिि िे चनदगुप को परािजि करे गे । वह अकेला है

और उिका िेनापिि अभी दध ू मुँहा बचचा है । यिद िेनानायक ही कमजोर हो और उिका नेितृव कमजोर हो िो एक लि कया दि लि िैिनक भी हो िो भी उनहे िरलिा िे कूचला जा िकिा है । `` िेलयकि और चनदगुप अपनी-अपनी िेना के मधय िे चलिे हुए एक दि ू रे के िनकट आए । चनदगुप ने अिभवादन िकया -

``यवन िमाट बनने पर आप मेरी ओर िे अिभवादन सवीकार करे ।``

`` मै भी आपको िमपूणा आयाव ा िा का िमाट बनने पर अिभवादन करिा हूँ ।``

`` िेलयूकि ! हम भारिीय अपने अिििियो का सवागि करना कभी नहीं भूलिे ।``

`` चनदगुप ! मै िुमको उि िमय िे जानिा हूँ जब िुम िििशला िवदालय मे

आचाया चाणकय का िशषयतव पाप कर रहे िे । इििलए मै िुमिे यह कहने का अिधकार रखिा हूँ िक िुम अकारण ही इि युद को आमंिति कर रहे हो ।``

`` यह िुमहारी भूल है यवन िमाट कयोिक ििनधु िे वाहीक और वाहीक िे िमपूणा

आयाव ा िा िक का िहसिा भारिवषा का िा , भारि वषा का है और अनि िक भारिवषा का रहे गा ।`` रहे गी ।``

`` यह िुमहारी भूल है चनदगुप । यवन की िीमा ििनधु िे वाहीक िक है और `` यह सवपन दे खना छोड़ दो िमाट िेलयूकि ! भारि भूिम केवल भारि की है

आकानिो की नहीं ।``

`` िो िुम युद के सिान पर िमतिा और ििनध करना नहीं चाहिे ।`` `` पश ही उपिसिि नहीं होिा । जो भारि का है भारि का रहे गा । िमतिा और

ििनध युद के मैदान मे नहीं होिी यवन िमाट ।``

`` अिाि ा ् िुम युद की चुनौिी दे रहे हो ।``

`` नहीं । चुनौिी नहीं । यह पतयेक भारिवािी का किवाय है िक वह अपनी मािभ ृ िू म को िवदे िशयो िे बचाये ।``

`` ठीक है िो चले , युद होकर रहे गा ।`` यवन िमाट िेलयूकि िकिी भी िरह िे वापि लौटने को िैयार नहीं हो रहा िा ।

पिरणामि: दोनो पिो मे िमािान युद पारं भ हो गया । पिम वार यवनो ने िकया । उनहोने गजो

और अशो को िनशाना बनाना पारं भ िकया िकनिु पूवा िे िैयार चनद के िैिनको ने कठोर पतयुतर दे ना पारं भ िकया । गजो पर िवार धनुधािारयो ने अिि-िीविा के िाि यवनो को बाणो िे छलनी करना पारं भ कर िदया । मगध िेना के धनुधाराी दि ु Z षा िनशानेबाज िे । दे खिे ही दे खिे यवन िेना ििलिमला उठी । पैदल यवन िेना मूली की िरह कटने लगी । यवनो मे इिनी शीघिा िे

भगदड़ मच जाएगी यह िोचा ही नहीं िा । अशरोही िेना िलवारो और भालो िे यवन गजिेना को आहि करिे हुए िंहार करने लगी । यवन िेना गाजर-मूली की िरह कटिी जा रही िी । यवनो ने

यह भूल की िी िक वे ििनधु पार आ गए िे । चनद की िेना ने यवनो को ििनधु पार आिे ही उनके िारे रासिो मे अवरोध उतपनन कर िदए । कुभा पर बने पुल नष करने िे वे वापि भी जा नहीं

िकिे िे । िेलयूकि ,चनद की िमुद िी िदखनेवाली िवशाल िेना को बढ़िे दे ख िबरा गया । वह िशििल हुआ जा रहा िा । अब वे चारो ओर िे ििर जाने के कारण बाहर िनकल नहीं पा रहे िे ।

िेलयूकि ने दे खा िक वह ििर गया है िो उिे आशंका हुई िक यह युद की वयूह-रचना अवशय ही चाणकय की रचाई होगी । अनयिा वह इि िरह भीिर ििर नहीं िकिा िा । यवन िमाट

िेलयूकि चकवयूह मे िंि गया िा । उिका भागय बहुि अचछा िा िक िूया पििम मे असिाचल की ओर धीरे -धीरे जा रहा िा। राित होिे ही युद रक गया िकनिु िेलयूकि और उिकी शेष िेना

चनदगुप की िेना वदारा ििरी जा चुकी िी । उिने राित होिे ही पहला काया यह िकया िक अपना दि ू चनद के पाि भेजा । दि ू ने कहा-

`` यवन-िमाट िेलयूकि आपिे ििनध करना चाहिे है ।``

`` बहुि िवलमब के बाद यवन िमाट को ईशर ने िुबुिद पदान की है ।``

`` िमाट ने िनवेदन िकया है िक ििनध सवीकार कर हमे कुभा के उि पार जाने

की िुिवधा पदान करे ।`` जा िकिी ।``

`` नहीं । जब िक ििनध की शिे सवीकार नहीं हो जािी िब िक अनुमिि नहीं दी

`` हमारी िेना और िमाट वयििि हो गए है । दो िदनो िे िारे िैिनक ििहि िमाट भी भूखे है । ``

`` यवन-िमाट और िेना के िलए यह वयवसिा कर दी जाएगी । पिमि: हमारी

शिे पूरी हो जाए उिके बाद ही िबकुछ िय हो पाएगा । हम शीघ ही ििनध की शिे िमाट को भेज रहे है और हाँ , िमाट को यह भी कह दो िक कुभा के उिपार िशिवर मे यवन िामाजी और उनकी राजकुमारी हे लेना िुरििि है । उनके िलए वांिछि वयवसिा कर दी गई है । वे भारि की अिििि है और भारिीय अिििियो का ितकार करना अचछी िरह िे जानिे है ।``

``शुिकया िमाट । िमाट का यह भी िनवेदन है िक वे आचाया चाणकय िे भेट

करना चाहिे है ।`` िकिे है ।``

`` इि िमबनध मे उनहे शीघ ही िूिचि िकया जाएगा । अब आप पसिान कर यवन िमाट िेलयूकि की ििनध का िनवेदन सवीकार िो िकया जा िकिा है

िकनिु शिे हमारी होगी । पहली शिा यह होगी िक िजन भारिीय गणराजयो को यवनो ने अपने अिधकार मे िलया िा वे िारे छोड़ने होगे । दि ू री शिा यह होगी िक वह कभी भारि की ओर दिष उठाकर नहीं दे खेगे । िीिरी शिा यह होगी िक राजकुमारी हे लेना का िववाह िमाट चनदगुप िे

करना होगा । हे लेना िे िववाह का िातपया यह िा िक वे िदै व भारिियो िे मधुर िमबनध बनाए रखे ।

यवन िमाट िेलयूकि ने चनदगुप मौया की िारी शिो को सवीकार कर ली । उिने

ििनधपत पर हसिािर कर चनदगुप के पाि िभजवा िदए । पिाि ् वह मुझिे भेट करने आया । वह बोला-

`` आचायव ा र को िेलयूकि का पणाम सवीकार हो ।`` ``आओ यवन-िमाट िेलयकूि ! हमे पिननिा हुई िक िुमने चनदगुप के िाि

िमतिा कर मधुर िमबनध बना िलए है । िमाट ि् िमतिा िमानिा मे हो िो वह चीर-सिायी होिी है । दो िभयिा , दो िंसकृ िि और दो आचार-िवचारो के िमलन की िमतिा युग-युगानिर िक चलिी रहिी है । इििहाि मे ऐिी िमतिा सवणा अिरो मे िलखी जािी है ।``

`` हाँ आचाया ! लेिकन जब िक आप जैिे बाहण दे विा का आिशष न हो िब िक

िनषिल ही िमझो ।``

`` मेरा आिशवाद ा िदै व िुम लोगो के िाि रहे गा ।``

`` आचायव ा र ! आपके पुिनि करकमलो िे पुती हे लेना और चनद का पिरणय िंसकार करने का अनुरोध करिा हूँ । पिमि: आप इि काया को मूिा रप दे ने का कष करे । हम आपके कृ मज होगे ।``

`` िमाट िेलयूकि ! मेरी उपिसििि मे राजपुरोिहि वेदमेतो वदारा यह पुिनि काया पूणा करे गे । आप िनििनि रहे । िारी वयवसिा िुदामा वदारा की जाएगी ।``

हे लेना का िववाह चनदगुप िे िय हो गया । िनििि िमय पर राजकुमारी हे लेना

का िववाह िमाट चनदगुप के िाि आया िंसकृ िि के अनुकूल िमपनन कर िदया गया । इि अविर पर चनदगुप ने िेलयूकि को दो िौ बिलष गज और एक लाख सवणा मुदाए भेट सवरप पदान की ।

मगध िामाजय का िवसिार कुभा िे लेकर बहपुत िक और कायचपमेर िे लेकर

ििमल िक िैल गया । चनदगुप और िेलयूकि की िमतिा पेि्रेम िमबनधो मे पिरवििि ा हो गई । 0 शयामा भाभी ने कई बार बुझे बुलवाने के िलए दाि के वदारा िूचना िभजवाई

िकनिु राजकीय काया की अिधकिा के कारण मै िमय पर पहुँच नहीं पाया । मैने िेवक वदारा

िूचना भेज दी िी िक जैिे ही राजकीय काया िे अवकाश पाप होगा , वह उनकी िेवा मे उपिसिि हो जाएगा ।

चनद और हे लेना के िववाह के पिाि ् मै िीधे शयामा भाभी के पाि गया । भाभी

शयामा िहमािद के ििरहाने बैठी िी । िहमािद नेत बनद िकए लेटी हुई िी । मुझे दे खिे ही शयामा भाभी जलिी हुई आँखो िे मेरी ओर दे खने लगी। वह बोली-

`` आया िवषणु ! हमे यह पिीि होिा है िक िुम मोह-माया िे बहुि दरू हो गए हो ।

कया िनयािी हो गए हो षोषो कया तयागी हो गए हो षोषो अिवा यह बिाओं िक कया किवायिवमूढ़ हो गए हो षोषो लेिकन नहीं , िुम कुछ भी नहीं बन पाए । इिके अलावा िक िुम एक आचाया हो । िारी दिुनया को िुधारने का ठे का िुमने ही िलया है । हम िुधरे या न िुधरे िकनिु िवश अवशय िुधरना चािहए । धर मे नहीं दाने और िुम चले भुनाने ।``

मै िमझ गया िक अवशय ही कोई िवपती आ पड़ी है । िबना कुछ कहे मै िहमािद के

ििरहाने बैठा । मैने उिे सपशा िकया , बोला`` दे वी ! नेत खोलो ।``

मैने कई बार िहमािद को करण सवर मे पुकारा । बड़ी किठनाई िे उिके मुख िे टू टे -टू टे शबद िनकले । वह बोली-

`` मेरे िवषणु............ ! िुम..... आ...... गए । अचछा..... िकया । मै.......मै.........

िुमहारी ही....... पिीिा मे.... िी ।``

िहमािद की डू बे हुए सवर िुनकर मै अिपभ हो गया । मुझे िमझ मे नहीं आ रहा

िा िक यह िब कया हो रहा है अिवा कया हो गया है । मैने शयामा भाभी की ओर दिष उठाकर दे खा । वह िबलकुल िनिवक ा ार दिषगि हो रही िी िकनिु खामौश पशो की वषाZ हो रही िी । भाभी के

मुख पर कोध के भाव िैर रहे िे । मै चुप ही रहा । िहमािद के हािो को अपनी हिेिलयो मे लेिे हुए बोला -

`` हाँ दे वी ! मै आ गया हूँ ।`` `` बहुि

..........िवलमब..............िे.........आए.............हो...............ििनक..........शीघ...................`` `` मै अनिभज िा दे वी । मुझे िुमहारी इि दशा की जानकारी नहीं िी और चनद

का िववाह...............`` `` चनद................को...........मेरा............आशीष..............कहना.....िवषणु.............``

`` लेिकन दे वी ! िुम ऐिा कयो कह रही हो षोषो िुमहे कुछ नहीं होगा ।`` `` िमय............नहीं.................है .........शेष..............िुम .........वचन

दो...िवषणु..............राधा.........``

`` मै वचन दे िा हूँ दे वी ! राधागुप के पिि मै िदै व िचेि रहूँगा ।`` `` िवषणु

........मै.........मै.......राधा......गुप..................को..........िुमहा.................रे .............पाि................. ..छोड़............रही.......हूँ ।

ये.............मेरी...............अमानि.......................िंभाल....................रखना.....`` `` नहीिे दे वी ! नहीं , िुमहे कुछ नहीं होगा । कुछ नहीं होगा ।

.....भाभी....भाभी......जल दो ।`` `` नहीं.............नहीं.............िव...........षणु...............न........हीं...........`कया............िुम................मु झे.................पेि्र..........पेि्रम................करिे

हो............................उ...............उिना.................िजिना....................मुझे..........चा.........चािहए ................िा षोषो```

`` हाँ दे वी ! मै िुमिे केवल पेि्रम करिा हूँ , केवल पेि्रम......``

`` िवषणु !......... िुम............ मुझे..........िमा........ कर दो.............मै.........

िुमहारे पेि्रम............ के ...........लायक...........नहीं................... िी । मुझे................ िमा ....................कर........... दो ।``

`` दे वी ! मै िुमिे कभी िवलग ही नहीं रहा । केवल ,केवल िाि रहने का अविर ही

नहीं िमला ।``

िहमािद के सवर टू ट रहे िे । उििे बोला नहीं जा रहा िा । मुझे िमझ नहीं आ रहा

िा । िहमािद का िेयह अनायाि कया हो गया िा । मै िो उिे दो माह पहले सवसथय छोड़ गया िा

िकनिु हाँ , उिके िाि कभी दीि Z काल िक रहने का अविर नहीं िमला । मेरा कणठ भर आया । मैने उिके दोनो हािो को अपनी हिेिलयो मे भींच िलया । उिके नेतो ने िनरनिर अशध ु ाराएं बह

िनकली । उिके मुख पर कािलमा की छाया िदखाई दी । यह छाया दे ख मेरा हदय कांप उठा । मेरे कणठ िे रदन के सवर िूट पड़े । वह बोली -

`` िवषणु............... इि............... जनम................... मे नहीं...........

िमल.............. िके । उि............ जनम मे............. अवशय................. िमलना............. मेरे................सवा......``

`` सवा `` के बाद उिका सवर टू टा िो ििर लौट के नहीं आया । अभी मुझे उिके

पाि आए दो िण भी नहीं हो पाए िक उिकी अिनिम शाि अनायाि िम गई । िंभवि: मुझे वह ``सवामी`` कहना चाह रही िी । उिके मुखमणडल पर वही अििृप के भाव िैर गए । मेरे हािो मे उिके हाि िशििल पड़ गए िे । मै िहमािद के पाििव ा दे ह को पकड़ िूट-िूट कर रो पड़ा । यो ही

िारी आयु भटकिे रहा । पाि मे होकर भी मै िहमािद के पिि िचेि नहीं रहा । उिे कभी पहचान नहीं पाया । मेरा रदन रोके िे रकिा नहीं िा । िहमािद इिने िनकट होिे हुए भी मै िहमािद के िबना अकेला महिूि करने लगा ।

यवन पि ृ ा के अनुिार िहमािद का अिनिम िंसकार िकया गया । राधाकृ षण इि

िमय दो वषा का रहा होगा । उिे शयामा भाभी के पाि ही रहने िदया । शयामा भाभी और

रिचकुमार भैया की अपनी िंिान नहीं िी । इििलए मैने राधागुप का शयामा भाभी के आंचल मे ही रखना उिचि िमझ रहा िा । राधागुप को रिच भैया के पाि छोड़ मै पुन: पाटिलपुत चला आया ।

मेरे पल-पिि-पल िकिी कमी की पूििा के िलए आलोिड़ि होिे रहे िकनिु उि कमी

की पूििा की जाना िवि ा ा किठन ही है । मैने िुदामा को बुलवाया और कहा -

`` वति िुदामा ! मै अब बहुि िक गया हूँ । हदय और यह शरीर अब िवशाम

चाहिे है । िुम चनद िे कह दो िक मै अब राजधानी िे दरू वन मे िरयू िकनारे कुिुिटया मे िवशाम करना चाहिा हूँ ।``

`` आचायव ा र ! यिद आप शमजिनि िकावट का अनुभव करिे है िो कुछ िमय के

िलए िवशाम अवशय कर िलजीए िकनिु राजधानी िे दरू रहने की कया आवशयकिा है षोषो ``

`` वति ! मैने कभी राजमहल मे िनवाि नहीं िकया और अब मेरी अिभलाषा है िक

मै पणक ा ु िट मे रहकर िवशाम करँ।``

िुनिे ही चनद अििशीघ उपिसिि हुआ । आिे ही चरणो मे मसिक रखा और

करबद हो िनकट बैठ गया । बोला-

`` आचायव ा र ! मैिं इि िवशाल िामाजय को आपके मागद ा शन ा के िबना कैिे िंचािलि कर पाऊँगा षोषो मेरी शिक आप ही है । यिद आप ही राजधानी िे दरू जाकर िदा के िलए अवकाश ले लेगे िो मै शीघ ही टू ट जाऊँगा ।``

`` वति चनद ! हदय की अवसिा शरीर की अवसिा िे बहुि कुछ पि ृ क होिी है ।

िजिना हदय दढ़ होिा है ,आवशयक नहीं िक उिना दढ़ शरीर भी रहे । यह भी िक मेरे हदय मे

खदबदािा लावा अब शानि हो रहा है । चनद ! िुम भिलभांिि जानिे हो िक मै यवनो को िदै व के

िलए भारि िे िनषकाििि करना चाहिा िा । मेरा वह िंकलप पूणा हो गया है । दि ू रा िंकलप िुम यह भी जानिे हो िक नंद ने भरी िभा मे मेरा अपमान िकया िा और मैने भरी िभा मे िंकलप िलया िा िक नंद वंश और नंद िामाजय का नाश करने के बाद ही यह िशखा बंधेगी । मेरा यह

िंकलप भी पूरा हो गया । अब मुझे िवशाम के िाि अवकाश की भी आवशयकिा महिूि कर रहा हूँ । ``

`` आचायव ा र ! आप भिलभांिि िभज है िक यह िब कुछ , जो मुझे पाप हुआ है

उिके अिधकारी अपतयि रप िे आप और िुदामा है । वसिुि: इि िामाजय के अिधकारी िो आप एवं िुदामा ही है । मै िो िनिमत मात हूँ । ििर कयो आप मुझे इि ऊँपाई पर पििसिािपि िकया है

। मै इि योगय भी नहीं हूँ िक आपके जान के एक अंश को भी िमझ िकूँ । मुझ अजानी को आपने िनरिक ा इिना महतव िदया है ।``

`` वति चनद ! ऐिा नहीं है । िनरिक ा कुछ भी होिा नहीं है लेिकन हमारा उदे शय

राजय पाप करना नहीं िा और न अब है । हम िनरपेि रप िे भारि-भू को यवनो िे मुक कराने के पि मे रहे है और िदै व रहे गे । मेरी आकांिा है िक िुम िूया के िमान िेजसवी बनो ,अिगन के

िमान उजजवलयमान बनो , ितय के िमान एकिनष बनो ,िहमालय के िमान िुदढ़ि़ बनो और

िमुद के िमान अिाह बनो िािक कोई िुम िक पहुँचने का िाहि न कर िके । जब िुम िक कोई पहुँचेगा नहीं िो िुम िदै व िवजयी रहोगे । आज िुमको िमपूणा िामाजय का िमाट दे खकर मुझे अिि पिननिा हो रही है ।``

`` आचायव ा र ! मै िमाट बन गया । यह मेरे िलए पयाप ा है िकनिु यह पयाप ा नहीं है

िक िजिे िमाट बनने की पातिा िी उिे न बनािे हुए मुझ चनद को बनाया गया है । ``

`` वति चनद ! िुम ठीक कहिे हो लेिकन यह भी िमझ लो िक िमाट , िामाजय

िे बड़ा नहीं होिा और न ही िमाट के िलए िामाजय होिा है बिलक िामाजय के िंचालन के िलए

िमाट का होना अिि-आवशयक है । िुम यह भूल करिे हो िक यह िामाजय िुमहारे िलए है या मेरे िलए है या िकिी और के िलए है । नहीं िुम , मै और अनय कोई िामाजय के िलए है । इििलए

केवल अपने किवाय का पालन करो । गीिा मे कृ षण ने कहा है िक िनषकाम होकर काया करो ।

िनरपेि होकर करो । यह मि कहो िक यह काया िुम कर रहे हो बिलक यह काया िुमहारे वदारा उि पभुतव-िता के वदारा िंचािलि िकया जा रहा है । िुम केवल अपने कमा करिे रहो । शुभ कमा

करोगे िो पजा भी शुभ काया ही करे गी । कहा गया है िक जैिा राजा होिा है पजा भी वैिी ही होिी है । जैिा नंद िा उिी िरह उिकी पजा भी िी िकनिु जैिे ही नंद पदचयुि हो गया और चनद उि सिान पर पििसिािपि हो गया उिी िण िे पजा भी चनद की अनुगामी हो गई है । इििलए िामाजय िुमहारे िलए नहीं है बिलक िुम िामाजय के िलए हो ।`` `` आचायव ा र ! मै आपका आभारी हूँ ।``

`` चनद ! मै बाहण हूँ । िदै व राजा और पजा के िलए िशिा का काया करिा रहा हूँ

। मेरी शुभाकांिा िुमहारे िलए िदै व रहे गी । चनद ! मै अब राजभवन िे पसिान चाहिा हूँ । िुदामा मुझे िरयू िक छोड़ आएगा । वहाँ पणक ा ु िट की वयवसिा है ।मै उिी कुिटया मे िनवाि करँगा । हाँ , यह आशािन दे िा हूँ िक यहाँ रहिे हुए भी मै िुम पर और िुमहारे िामाजय पर दिष रखूँगा ।`` िुदामा ने रि िैयार िकया िकनिु मैने कहा-

`` नहीं , मै पैदल ही पसिान करना चाहिा हूँ ।``

िकनिु चनद ने रि िे पसिान करने का आगह िकया । मुझे उिके इि आगह को

सवीकार करना पड़ा । िुदामा मुझे िरयू िट िक ले गया । िट िे कुछ ही दरूी पर पणक ा ु िट बनी िी । वह पणक ा ु िट पूणि ा : एक आशम के िमान िी । मै रि िे उिरा और िीधे कुिट मे पहुँचा ।

कुछ वषोZिं िक पाटिलपुत िे पाँच कोि के भीिर िरयू िीरे कुिटया मे

रहा । लेिकन मै चाहिा िा और अिधक दरूी पर रहूँ । इििलए मैने दििण मे जाने का िनिय कर

िलया । उि िमय मेरे िाि िुमहारे अिििरक (मेरा एक िशषय कमंद) अनय कोई िशषय नहीं िा । अि: दििण मे जाकर एक कुिटया बना ली । अनि िमय पर मै उिी कुिटया मे रहा । आज िुमने मेरे अनिमन ा को कुरे दा है कमदं ,इििलए मैने अपने िमपूणा जीवन का वि ृ ानि िुमहे िुनाना

उिचि िमझा । यह िमझ लो िक िुमने यह उिचि ही िकया ,अनयिा न जाने कब िक यह पीड़ा मेरे अनिमन ा को कुरे दिी रहिी । 0 मेरा िपय िशषय कमंद िदै व मेरी िेवा मे रहा करिा िा । उिी ने मुझे मेरे भीिर

खदबदािे हुए लावा की आग को बुझाने के िलए मेरा वि ृ ानि जानना चाहा िा । मै नेत मूँदे बैठा िा और कमंद मेरे िामने बैठा मेरे िवचारो को धयान पूवक ा िुन रहा िा । मैने कहा-

वति कमंद ! मै ितयानवेषी बाहण रहा हूँ । इिके अिििरक मुझे िकिी अनवेषण

की आवशयकिा महिूि नहीं हुई । ितय ,कयोिक वह पूणा िशव है , कलयाणकारी िशव । िमिष का कलयाण ही बाहण का उदे शय होिा है । यिद बाहण अपने उतरदाियतव िे मुख मोड़िा है िो उिे बाहण कहलाने का कोई अिधकार नहीं है । िशवतव की पािप िरल नहीं है । जब िक मानव

िमुदाय का कलयाण नहीं होिा िशव भी कलयाणकारी नहीं कहलाएगा । िशव का अिसितव ही कलयाण है । जो इि ितव को जान लेिा है वह ही वासििवक बाहण होिा है । िशव को जानना यािन बह को जानना । िशव अिाि ा ् बह जानने के पिाि वयिक को कुछ भी जानना शेष नहीं

रहिा । वह उिे जानकर वासििवक आननद की अनुभूिि करिा है । िशवतव की पािप ही मनुषय की वासििवक पिरणिी है ।

लेिकन जब राष की बाि आिी है िो उिे पिमि: िबिे पि ृ क ही दे खा जाना

चािहए । राष िकिी एक वयिक का नहीं होिा । िकिी एक वयिक के िलए राष नहीं होिा । राष िमपूणा पजा के िलए होिा है । पजा राष का मूिा रप होिी है । जैिे िक मैने कहा , िामाजय , िमाट के िलए नहीं होिा िकनिु िमाट , िामाजय के िलए होिा है । अि: यह नहीं िक यह

िामाजय उि िमाट का है बिलक यह िमाट उि िामाजय का अिधपिि है । जब यह िसििि सपष हो जािी है िब िमाट का अहं कार सवयमेव ही िमाप हो जािा है । लेिकन जब िक यह अनुभिू म िमाप नहीं होिी िमाट को अहं कार िकिी न िकिी िरह िे नष कर दे िा है । नंद की िसििि भी

यही रही । उिने िामाजय को अपने िलए माना और िामाजय का उपभोग अनुिचि ढं ग िे िकया । यिद वह सवयं को िामाजय के िलए िमिपि ा कर दे िा िो उिके नंद वंश का नाश नहीं होिा । अहं कार बुिद भष कर दे िा है और बुिद के भष िे वयिक का नाश होिा है । इििलए जब िब अहं कार है िब िक वयिक एवं िमुदाय का िवकाि नहीं हो िकिा ।

बाईि वषो िक िनरनिर िामाजय का काया िनबाZ ध गिि िे चल पडा इि बीच

िबनदि ु ार और राधागुप वयसक हो गए िे । चनदगुप मगध पर बाईि वषोZिं िक राजय करिे रहे । चनद ने उिके पत िबनदि ु ार को मगध का उतरािधकारी िनयुक िकया । ितपिाि चनदगुप ने मुिन दीिा पाप ली ।

उिी िमय की िटना है । मेरा एक िशषय शुभ ं क जो चनदगुप के बाद कई वषोZिं

िे मेरे िवशेष िशषयतव मे िा और चनदगुप ििा िुदामा के पिि ईषया िे ििलिमला रहा िा , एक राि उिने मेरी पणक ा ु िट मे आग लगा दी । पणक ा ु िट कुछ ही िमय मे जल कर राख हो गई । मै

पणक ा ु िट िे बाहर िनकल न िका । वह पणक ा ु िट मेरी िचिा बन गई िी । िबनदि ं क को ु ार ने शुभ

अंधकूप को डाल िदया । शुभ ं क के पाि मेरा रिचि `` कौिटलय अिा शास `` िा िजिे िबनदि ु ार ने उििे जबि कर िलया िा ।

िबनदि ु ार ने लगभग िताईि वषोZिं िक शािन िकया । वह चनदगुप के

ििदानिो को माननेवाला िा । ठीक उिी िरह िजि िरह चनद िा । िबनदि ु ार की नानी महारानी िवशाखा ने जीिे जी िबनदि ु ार को मगध का िमाट बनिे दे ख पिननिा िे िूली नहीं िमाई िी ।

मैने महारानी िवशाखा को िदए वचन का भिलभांिि पालन िकया िा । िबनदि ु ार की कई िंिाने िी । उिमे िे अशोक ने िििशला और उजजियनी पर भी कई वषोZिं िक शािन िकया । किलंग के युद मे अिंखय बेगुनाह लोगो को मरिे ,िबलखिे दे ख अशोक का हदय पिरविन ा हुआ । अशोक ने बौद धमा की दीिा ली । अशोक केबाद धीरे -धीरे मौया वंश का पिन होने लगा । मैने इि दीि Z

अनुभव को भोग कर यह िनणय ा िनकाला िक कुछ भी शाशि नहीं है । आज िामाजय है िो कल उि िामाजय का अनि भी िनििि ही है ।

आज ,मेरा पाििव ा शरीर नहीं है िकनिु आज भी मेरी अनिरातामा उि इििहाि की िािी है

। ।। इििशी ।। अिभिार - एक जनपद जो दििण कशमीर के जेहलम और चनाब निदयो के मधयविी िेत मे िसिि िा ।

आगेय - िहिार ( हिरयाणा ) मे िसिि एक गणराजय

कठ - एक गणराजय जो रावी और वयाि निदयो के बीच मे िसिि िा । कुभा - काबुल नदी जो अिगािनसिान मे है ।

कुर - गंगा-यमुदा निदयो का मधयविी ििा यमुना के पििम का पदे श । केकय - जेहलम ििा चनाब निदयो का मधयविी एक जनपद ।

गांधार - इि नाम के दो जनपद िे ,पूवी गांधार ििा पििमी गांधार । ििनध और जेहलम निदयो के बीच के पदे श मे पूवी गांधार िसिि िा,िजिकी राजधानी िििशला िी।

पििमी गांधार ििनध नदी के पििम मे िा और उिकी राजधानी पुषकलाविी(पुषकराविी) मानी जािी िी ।

पुषकलाविी(पुषकराविी)-पििमी गांधार की राजधानी । मगध - िबहार

मधयदे श - उतर भारि का वह िेत जहां विम ा ान िमय मे िबहार,उतर पदे श,हिरयाणा आिद िसिि है ।

मालव - रावी और चनाव के िंगम के िेत मे िसिि एक गणराजय । यवन - गीम-यूनानी ।

वाहीक दे श - विम ा ान िमय का पंजाब(भारि एवं पािकसिान) िविसिा - झेलम नदी ।

पाटिलपुत - विम ा ान पटना । इनदपसि - िदलली ........................................................................................ शंकर िोनाने .. एक पिरचय

जनम 19 अपैल 1952 नेपानगर मप िशिा एचएििीए आयुवद े रतए एमआईएच होमयोए पटकिा

लेखन पकाशन 1 णवेदनाणपबंधा कावय 2 णकोरी िकिाबणकावय िंकलन 3 णिंवेदना के सवरणकावय िंकलन 4 णबौराया मनण ् कावय िंकलन

5 णमेरे िो िगरधर गोपालणकृ षणकावय िंकलन 6 णदो शबदो के बीचणकिविा 7 िणकशोरीलाल की आतमहतयाणदिलि कावय िंकलन 8 िणनवािाििाणकिविा एक औरि 9 णधूप मे चाँदनीणणग़ज़ल िंगह 10 णगौरीणणउ्पनयाि

11 णकोधणणबाल कहािनयाँ 12 णकुदरि का नयाय णणबाल कहािनयाँ

13 णआ ् िदवािी िमिक किाएंणणपेि मे 14 णकेकटि के िूलणणउ्पनयािणणपेि मे 15–िमकालीन पटकिा 16–मुटठी भर पैिे. पेि मे

आि ्‍मकिा 18 लावा उपन ्‍याि पकाशनाधीन

17 नीम के पि ्‍िे

िचिकि ्‍िा िािहि ्‍य.. 1. एलोपैििक मेिडििन ्‍ि ए 2. एलोपैििक िचिकि ्‍िा 3.एलोपैििक

इं जेक्‍शन ्‍ि 4. पशु िचिकि ्‍िा 5. गुप ्‍ि रोग िचिकि ‍ि ् ा 6. एलोपैििक पेटेल ‍ि ् मेिडििन ्‍ि 7. ि ्‍ती िम ्‍बोधनी। िम ्‍मान र

कबीर िम ्‍मानएिववेकानन ्‍द िम ्‍मानएराष ्‍टीय िज ृ न.िेवा िम ्‍मानएरजन

कलश िशव िम ्‍मानए िािहि ्‍य िौरभ िम ्‍मानएमध ्‍यपदे श पगििशील लेखक िंि.शाजापुर िजला इकाई व ्‍दारा िम ्‍मािनिएि ्‍व अवधेश नारायण ििवारी ि ‍म ् िृि िम ्‍मानएहरमल रीझवानी ि ्‍मिृि िम ्‍मान 2007 एििा िुलिी िम ्‍मान। अनय

`` ददा की िरिन ``टे लीििलम पटकिा-अिभनय , `` गारे की दीवार `` नरे पद कोहली के

नाटक का मंचन-िनदे शन-टे लीनाटक दरूदश Z न भोपाल के िलए, `` आओ झूमे गाएं `` िंगीि धारावािह का दरूदशन भोपाल के िलए िनमाण ा -िनदे शन, `` मुटठी भर पैिे ``धािारावािहक का

िनमाण ा -लेखन-दरूदश Z न भोपाल िे दो एिपिोड का पिारण । ``िवकाि गीि `` दरूदशन भोपाल के

िलए पांच िवकाि गीि का लेखन-िनमाण ा ििा िनदे शन।

डाक पिा..

दरूवािाा 0755 4229018 चिलिवािाा 9424401361 म ् उं पि र किेिींदांिेवदं दमल/लंिीववणबवणना

िंमइिेपजमेर. िूिूिूणबि्ीवनचंिणि्ूविकचिमेिेण ् िूिूिू

णि्ेिींदांिेवदं दमणइ्िवहे चवजणबवउिूिूिूणि्ेिींदांिेवदं दमणि्ूविकचिमेिेणबवउ

िािहि ्‍य िवचार ... ‘श ् जब मानवीय मूल ्‍यो का हनन होिा है ए इन ्‍िानी िरश ्‍िे दिकयानूि होने लगिे है ििा दे श की िामािजक एराजनैििक एआििक ा ििा धािमक ा व ्‍यवि ्‍िाएं ध ‍व ् ि ्‍ि होने

लगिी है िब रचनाकार कलम उठािा है और अपने िवचार गद या पद मे अिभव ्‍यक् ‍ि करिा है । मै भी उिी व ्‍यवि ्‍िा के अनुकूल या पििकूल रचनाकमा करिा हूँ।

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