Yuwadhan Suraksha

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  • Words: 20,875
  • Pages: 57
पातः समरणीय परम पूजय संत शी आसारामजी के सतसंग पवचन

यौवन-सुरका कौन-सा तप, जो िक सवोपयय है ? िकसकी मिहमा गाई ॠिि-मुिनवयय है ? उतसाह ॠिि विृि िसिि िनिि िकसमेसुख शिि सोत कौन ? … बहचयय

दो शबद आज तक पूजयशी के समपकय मे आकर असंखय लोगो ने अपने पतनोनमुख जीवन को

यौवन सुरका के पयोगो दारा ऊधवग य ामी बनाया है । वीयन य ाश और सवपनदोि जैसी बीमािरयो की चपेट मे आकर हतबल हुए कई युवक-युवितयो के िलए अपने िनराशापूणय जीवन मे पूजयशी की

सतेज अनुभवयुि वाणी एवं उनका पिवत मागद य शन य डू बते को ितनके का ही नहीं, बििक नाव का सहारा बन जाता है ।

समाज की तेजिसवता का हरण करने वाला आज के िवलािसतापूणय, कुितसत और

वासनामय वातावरण मे यौवन सुरका के िलए पूजयशी जैसे महापुरिो के ओजसवी मागद य शन य की अतयंत आवशयकता है । उस आवशयकता की पूितय हे तु ही पूजयशी ने जहाँ अपने पवचनो मे

‘अमूिय यौवन-िन की सुरका’ िविय को छुआ है , उसे संकिलत करके पाठको के सममुख रखने का यह अिप पयास है ।

इस पुसतक मे सी-पुरि, गह ृ सथी-वानपसथी, िवदाथी एवं वि ृ सभी के िलए अनुपम सामगी

है । सामानय दै िनक जीवन को िकस पकार जीने से यौवन का ओज बना रहता है और जीवन

िदवय बनता है , उसकी भी रपरे खा इसमे सिननिहत है और सबसे पमुख बात िक योग की गूढ पिियाओं से सवयं पिरिचत होने के कारण पूजयशी की वाणी मे तेज, अनुभव एवं पमाण का सामंजसय है जो अििक पभावोतपादक िसि होता है ।

यौवन सुरका का मागय आलोिकत करने वाली यह छोटी सी पुसतक िदवय जीवन की चाबी

है । इससे सवयं लाभ उठाये एवं औरो तक पहुँचाकर उनहे भी लाभािनवत करने का पुणयमय कायय करे ।

शी योग व ेदानत स ेवा स िम ित , अमदावाद

आ शम।

वीय य वान बनो पालो बहचयय िविय-वासनाएँ तयाग। ईशर के भि बनो जीवन जो पयारा है ।।

उिठए पभात काल रिहये पसननिचत। तजो शोक िचनताएँ जो दःुख का िपटारा है ।।

कीिजए वयायाम िनतय भात! शिि अनुसार। नहीं इन िनयमो पै िकसी का इजारा1 है ।। दे िखये सौ शरद औ’कीिजए सुकमय िपय! सदा सवसथ रहना ही कतवयय तुमहारा है ।। लाँघ गया पवनसुत बहचयय से ही िसंिु। मेघनाद मार कीितय लखन कमायी है ।। लंका बीच अंगद ने जाँघ जब रोप दई। हटा नहीं सका िजसे कोई बलदायी है ।।

पाला वत बहचयय राममूितय, गामा ने भी। दे श और िवदे शो मे नामवरी2 पायी है ।। भारत के वीरो! तुम ऐसे वीयव य ान बनो। बहचयय मिहमा तो वेदन मे गायी है ।।

1- एकाििकार। 2- पिसिि ॐॐॐॐॐॐ

अनु िम

यौवन सु रका 1. िवदािथय य ो, माता-िपता-अिभभावको व राष के कणि य ारो के नाम बहिनष संत शी आसारामजी बापू का संदेश।

2. यौवन सुरका- बहचयय कया है ? बहचयय उतकृ ष तप है । वीयरयकण ही जीवन है । आिुिनक िचिकतसको का मत। वीयय कैसे बनता है ? आकिक य वयिितव का कारण। माली की कहानी। सिृष-िम के िलए मैथुन: एक

पाकृ ितक वयवसथा। सहजता की आड मे भिमत न हो। अपने को तोले। मनोिनगह की मिहमा। आतमघाती तकय। सी-पसंग िकतनी बार? राजा ययाित का अनुभव। राजा मुचुकनद का पसंग। गलत अभयास का दषुपिरणाम। वीयरयकण सदै व सतुतय। अजुन य और अंगारपणय गंिव।य बहचयय का ताितवक अथ।य

3. वीयरयका के उपाय- सादा रहन सहन बनाये। उपयुि आहार। िशशेिनिय सनान। उिचत आसन एवं वयायाम करो। बहमुहूतय मे उठो। दवुयस य नो से दरू रहो। सतसंग करो। शुभ संकिप करो। ितबनियुि

पाणायाम और योगाभयास करो। नीम का पेड चला। सी जाित के पित मातभ ृ ाव पबल करो। िशवाजी का पसंग। अजुन य और उवश य ी। सतसािहतय पढो।

4. वीयरयकण की महता- भीषम िपतामह और वीर अिभमनयु। पथृवीराज चौहान कयो हारे ? सवामी रामतीथय का अनुभव।

5. महतवपूणय बाते- हसतमैथुन के दषुपिरणाम। अमेिरका मे िकया गया पयोग। कामशिि का दमन या ऊधवग य मन। एक सािक का अनुभव। दस ू रे सािक का अनुभव। योगी का संकिपबल। कया यह चमतकार है ? हसतमैथुन व सवपनदोि से कैसे बचे? सदै व पसनन रहो। वीयय का ऊधवग य मन कया है ? वीयरयका का महतवपूणय पयोग। दस ू रा पयोग। मंत-पयोग। वीयरयकक चूण।य गोद का पयोग। तुलसी: एक अदभुत औििी।

6. पादपििमोतानासन।

7. हमारे अनुभवः महापुरि के दशन य का चमतकार। मेरी वासना उपासना मे बदली। ‘यौवन सुरका’ पुसतक आज के युवावगय के िलए एक अमूिय भेट है । ‘यौवन सुरका’ पुसतक नहीं अिपतु एक िशका-गनथ है ।

8. बहचयय ही जीवन है । 9. शासवचन।

10. भसमासुर िोि से बचो। बहचयय-रका का मंत।

ॐॐॐॐॐॐ

1. िवदा िथय य ो, मा ता -िपत ा-अिभ भावक ोंो व राष के क णय िारो के नाम बहिन ष संत शी आसाराम जी बाप ू का संदेश हमारे दे श का भिवषय हमारी युवा पीढी पर िनभरय है िकनतु उिचत मागद य शन य के अभाव

मे वह आज गुमराह हो रही है |

पािातय भोगवादी सभयता के दषुपभाव से उसके यौवन का हास होता जा रहा है | िवदे शी

चैनल, चलिचत, अशलील सािहतय आिद पचार माधयमो के दारा युवक-युवितयो को गुमराह िकया जा रहा है | िविभनन सामियको और समाचार-पतो मे भी तथाकिथत पािातय मनोिवजान से

पभािवत मनोिचिकतसक और ‘सेकसोलॉिजसट’ युवा छात-छाताओं को चिरत, संयम और नैितकता से भष करने पर तुले हुए है | िबतानी औपिनवेिशक संसकृ ित की दे न इस वतम य ान िशका-पणाली मे जीवन के नैितक मूियो के पित उदासीनता बरती गई है | फलतः आज के िवदाथी का जीवन कौमायव य सथा से ही िवलासी और असंयमी हो जाता है |

पािातय आचार-वयवहार के अंिानुकरण से युवानो मे जो फैशनपरसती, अशुि आहार-िवहार के

सेवन की पविृत कुसंग, अभिता, चलिचत-पेम आिद बढ रहे है उससे िदनोिदन उनका पतन होता

जा रहा है | वे िनबल य और कामी बनते जा रहे है | उनकी इस अवदशा को दे खकर ऐसा लगता है िक वे बहचयय की मिहमा से सवथ य ा अनिभज है |

लाखो नहीं, करोडो-करोडो छात-छाताएँ अजानतावश अपने तन-मन के मूल ऊजाय-सोत का वयथय

मे अपकय कर पूरा जीवन दीनता-हीनता-दब य ता मे तबाह कर दे ते है और सामािजक अपयश के ु ल

भय से मन-ही-मन कष झेलते रहते है | इससे उनका शारीिरक-मानिसक सवासथय चौपट हो जाता है , सामानय शारीिरक-मानिसक िवकास भी नहीं हो पाता | ऐसे युवान रिािपता, िवसमरण तथा दब य ता से पीिडत होते है | ु ल यही वजह है िक हमारे दे श मे औििालयो, िचिकतसालयो, हजारो पकार की एलोपैिथक दवाइयो, इनजेकशनो आिद की लगातार विृि होती जा रही है | असंखय डॉकटरो ने अपनी-अपनी दक ु ाने खोल रखी है िफर भी रोग एवं रोिगयो की संखया बढती ही जा रही है |

इसका मूल कारण कया है ? दवुयस य न तथा अनैितक, अपाकृ ितक एवं अमयाियदत मैथुन दारा

वीयय की कित ही इसका मूल कारण है | इसकी कमी से रोगपितकारक शिि घटती है , जीवनशिि का हास होता है |

इस दे श को यिद जगदगुर के पद पर आसीन होना है , िवश-सभयता एवं िवश-संसकृ ित का

िसरमौर बनना है , उननत सथान िफर से पाप करना है तो यहाँ की सनतानो को चािहए िक वे बहचयय के महतव को समझे और सतत साविान रहकर सखती से इसका पालन करे | बहचयय के दारा ही हमारी युवा पीढी अपने वयिितव का संतिु लत एवं शष े तर िवकास कर

सकती है | बहचयय के पालन से बुिि कुशाग बनती है , रोगपितकारक शिि बढती है तथा महान ्से-महान ् लकय िनिाियरत करने एवं उसे समपािदत करने का उतसाह उभरता है , संकिप मे दढता आती है , मनोबल पुष होता है |

आधयाितमक िवकास का मूल भी बहचयय ही है | हमारा दे श औदोिगक, तकनीकी और आिथक य केत मे चाहे िकतना भी िवकास कर ले , समिृि पाप कर ले िफर भी यिद युवािन की सुरका न

हो पाई तो यह भौितक िवकास अंत मे महािवनाश की ओर ही ले जायेगा कयोिक संयम, सदाचार आिद के पिरपालन से ही कोई भी सामािजक वयवसथा सुचार रप से चल सकती है | भारत का सवाग ा ीण िवकास सचचिरत एवं संयमी युवािन पर ही आिािरत है |

अतः हमारे युवािन छात-छाताओं को बहचयय मे पिशिकत करने के िलए उनहे यौन-सवासथय,

आरोगयशास, दीघाय य ु-पािप के उपाय तथा कामवासना िनयंितत करने की िविि का सपष जान

पदान करना हम सबका अिनवायय कतवयय है | इसकी अवहे लना करना हमारे दे श व समाज के िहत मे नहीं है | यौवन सुरका से ही सुदढ राष का िनमाण य हो सकता है | *

2. यौवन -सुरक ा शरीरमाद ं खल ु िम य सािनम ् | िमय का सािन शरीर है | शरीर से ही सारी सािनाएँ समपनन होती है | यिद शरीर कमजोर है तो उसका पभाव मन पर पडता है , मन कमजोर पड जाता है | कोई भी कायय यिद सफलतापूवक य करना हो तो तन और मन दोनो सवसथ होने चािहए | इसीिलये कई बूढे लोग सािना की िहममत नहीं जुटा पाते, कयोिक वैिियक भोगो से उनके शरीर

का सारा ओज-तेज नष हो चुका होता है | यिद मन मजबूत हो तो भी उनका जजरय शरीर पूरा साथ नहीं दे पाता | दस ू री ओर युवक वगय सािना करने की कमता होते हुए भी संसार की

चकाचौि से पभािवत होकर वैिियक सुखो मे बह जाता है | अपनी वीयश य िि का महतव न समझने के कारण बुरी आदतो मे पडकर उसे खचय कर दे ता है , िफर िजनदगी भर पछताता रहता है |

मेरे पास कई ऐसे युवक आते है , जो भीतर-ही भीतर परे शान रहते है | िकसीको वे

अपना

दःुख-ददय सुना नहीं पाते, कयोिक बुरी आदतो मे पडकर उनहोने अपनी वीयश य िि को खो िदया है | अब, मन और शरीर कमजोर हो गये गये, संसार उनके िलये दःुखालय हो गया, ईशरपािप उनके िलए असंभव हो गई | अब संसार मे रोते-रोते जीवन घसीटना ही रहा |

इसीिलए हर युग मे महापुरि लोग बहचयय पर जोर दे ते है | िजस वयिि के जीवन मे संयम

नहीं है , वह न तो सवयं की ठीक से उननित कर पाता है और न ही समाज मे कोई महान ् कायय कर पाता है | ऐसे वयिियो से बना हुआ समाज और दे श भी भौितक उननित व आधयाितमक उननित मे िपछड जाता है | उस दे श का शीघ पतन हो जाता है |

बह चय य कया है ? पहले बहचयय कया है - यह समझना चािहए | ‘याजविकय संिहता’ मे आया है : कम य णा मनसा वाचा सवा

य स थास ु सव य दा |

सव य त म ैथ ुनत ुआ गो ब हचय ा पच कते ||

‘सवय अवसथाओं मे मन, वचन और कमय तीनो से मैथुन का सदै व तयाग हो, उसे बहचयय कहते है |’ भगवान वेदवयासजी ने कहा है :

बह चय ा गुप ेिनिसयोपसथ सय संयमः |

‘िविय-इिनियो दारा पाप होने वाले सुख का संयमपूवक य तयाग करना बहचयय है |’ भगवान शंकर कहते है : िसि े िबनदौ म हाद ेिव िकं न िसियित भ ूतल े

|

‘हे पावत य ंी! िबनद ु अथात य वीयरयकण िसि होने के बाद कौन-सी िसिि है , जो सािक को पाप नहीं हो सकती ?’

सािना दारा जो सािक अपने वीयय को ऊधवग य ामी बनाकर योगमागय मे आगे बढते है , वे कई पकार की िसिियो के मािलक बन जाते है | ऊधवरयेता योगी पुरि के चरणो मे समसत िसिियाँ दासी बनकर रहती है | ऐसा ऊधवरयेता पुरि परमाननद को जिदी पा सकता है अथात य ् आतमसाकातकार जिदी कर सकता है |

दे वताओं को दे वतव भी इसी बहचयय के दारा पाप हुआ है : बह चये ण तप सा द ेवा म ृ तयुम ुपाघनत

इनिो ह ब हचय े ण द ेव ेभयः सवराभरत

| ||

‘बहचयर य पी तप से दे वो ने मतृयु को जीत िलया है | दे वराज इनि ने भी बहचयय के पताप से ही दे वताओं से अििक सुख व उचच पद को पाप िकया है |’

(अथवव य ेद 1.5.19)

बहचयय बडा गुण है | वह ऐसा गुण है , िजससे मनुषय को िनतय मदद िमलती है और जीवन के सब पकार के खतरो मे सहायता िमलती है |

बह चय य उतकृष त प ह ै ऐसे तो तपसवी लोग कई पकार के तप करते है , परनतु बहचयय के बारे मे भगवान शंकर कहते है :

न त पसतप इतयाह ु बय ह चय ा त पोतमम ् |

ऊधव य रेता भव ेदसत ु स देवो न तु मान ुि ः || ‘बहचयय ही उतकृ ष तप है | इससे बढकर तपियाय तीनो लोको मे दस ू री नहीं हो सकती | ऊधवरयेता पुरि इस लोक मे मनुषयरप मे पतयक दे वता ही है |’ जैन शासो मे भी इसे उतकृ ष तप बताया गया है | तवेस ु वा उतम ं ब ं भचेरम ् | ‘बहचयय सब तपो मे उतम तप है |’

वी यय रक ण ह ी ज ीवन है वीयय इस शरीररपी नगर का एक तरह से राजा ही है | यह वीयर य पी राजा यिद पुष है , बलवान ्

है तो रोगरपी शतु कभी शरीररपी नगर पर आिमण नही करते | िजसका वीयर य पी राजा िनबल य है , उस शरीररपी नगर को कई रोगरपी शतु आकर घेर लेते है | इसीिलए कहा गया है : मरण ं िब नदोपात ेन जीवन ं िब नद ु िारणात ् | ‘िबनदन य ाश) ही मतृयु है और िबनदरुकण ही जीवन है |’ ु ाश (वीयन जैन गंथो मे अबहचयय को पाप बताया गया है :

अबंभ चिरय ं घोर ं पमाय ं द ु रिह ििठयम ् |

‘अबहचयय घोर पमादरप पाप है |’ (दश वैकािलक सूत: 6.17) ‘अथवद े ’ मे इसे उतकृ ष वत की संजा दी गई है : वतेि ु व ै व ै बह चय य म ् | वैदकशास मे इसको परम बल कहा गया है : बह चय ा पर ं ब लम ् | ‘बहचयय परम बल है |’ वीयरयकण की मिहमा सभी ने गायी है | योगीराज गोरखनाथ ने कहा है : कंत गया क ूँ का िमनी झूर ै

| िब नद ु गया क ूँ जोगी

||

‘पित के िवयोग मे कािमनी तडपती है और वीयप य तन से योगी पिाताप करता है |’ भगवान शंकर ने तो यहाँ तक कह िदया िक इस बहचयय के पताप से ही मेरी ऐसी महान ् मिहमा हुई है :

यसय प सादानमिह मा ममापय े तादशो भव ेत ् |

आिुिन क िच िक तस को क ा मत यूरोप के पितिषत िचिकतसक भी भारतीय योिगयो के कथन का समथन य करते है | डॉ. िनकोल कहते है :

“यह एक भैििजक और दे िहक तथय है िक शरीर के सवोतम रि से सी तथा पुरि दोनो ही जाितयो मे पजनन ततव बनते है | शुि तथा वयविसथत जीवन मे यह ततव पुनः अवशोिित हो जाता है | यह सूकमतम मिसतषक, सनायु तथा मांसपेिशय ऊतको (Tissue) का िनमाण य करने के

िलये तैयार होकर पुनः पिरसंचारण मे जाता है | मनुषय का यह वीयय वापस ऊपर जाकर शरीर मे िवकिसत होने पर उसे िनभीक, बलवान ्, साहसी तथा वीर बनाता है | यिद इसका अपवयय िकया गया तो यह उसको सण ै , दब य , कृ शकलेवर एवं कामोतेजनशील बनाता है तथा उसके शरीर के ु ल

अंगो के कायवययापार को िवकृ त एवं सनायुतंत को िशिथल (दब य ) करता है और उसे िमगी (मग ृ ी) ु ल एवं अनय अनेक रोगो और मतृयु का िशकार बना दे ता है | जननेिनिय के वयवहार की िनविृत से शारीिरक, मानिसक तथा अधयाितमक बल मे असािारण विृि होती है |”

परम िीर तथा अधयवसायी वैजािनक अनुसि ं ानो से पता चला है िक जब कभी भी रे तःसाव

को सुरिकत रखा जाता तथा इस पकार शरीर मे उसका पुनवश य ोिण िकया जाता है तो वह रि को समि ृ तथा मिसतषक को बलवान ् बनाता है | डॉ. िडओ लुई कहते है : “शारीिरक बल, मानिसक ओज तथा बौििक कुशागता के िलये इस ततव का संरकण परम आवशयक है |” एक अनय लेखक डॉ. ई. पी. िमलर िलखते है : “शुिसाव का सवैिचछक अथवा अनैिचछक

अपवयय जीवनशिि का पतयक अपवयय है | यह पायः सभी सवीकार करते है िक रि के सवोतम ततव शुिसाव की संरचना मे पवेश कर जाते है | यिद यह िनषकिय ठीक है तो इसका अथय यह हुआ िक वयिि के कियाण के िलये जीवन मे बहचयय परम आवशयक है |” पििम के पखयात िचिकतसक कहते है िक वीयक य य से, िवशेिकर तरणावसथा मे वीयक य य से िविवि पकार के रोग उतपनन होते है | वे है : शरीर मे वण, चेहरे पर मुह ँ ासे अथवा िवसफोट, नेतो

के चतुिदय क नीली रे खाये, दाढी का अभाव, िँसे हुए नेत, रिकीणता से पीला चेहरा, समिृतनाश, दिष की कीणता, मूत के साथ वीयस य खलन, अणडकोश की विृि, अणडकोशो मे पीडा, दब य ता, िनिालुता, ु ल

आलसय, उदासी, हदय-कमप, शासावरोि या कषशास, यकमा, पष ृ शूल, किटवात, शोरोवेदना, संिि-पीडा, दब य वक ृ क, िनिा मे मूत िनकल जाना, मानिसक अिसथरता, िवचारशिि का अभाव, दःुसवपन, ु ल सवपन दोि तथा मानिसक अशांित |

उपरोि रोग को िमटाने का एकमात ईलाज बहचयय है | दवाइयो से या अनय उपचारो से ये

रोग सथायी रप से ठीक नहीं होते |

वी यय कैस े बन ता है वीयय शरीर की बहुत मूियवान ् िातु है | भोजन से वीयय बनने की पििया बडी लमबी है | शी

सुशत ु ाचायय ने िलखा है :

रसािि ं ततो मा ंस ं मा ंसानम े दः पजायत े | मेदसयािसथ ः ततो मज जा म जजाय ा: शुिस ं भवः || जो भोजन पचता है , उसका पहले रस बनता है | पाँच िदन तक उसका पाचन होकर रि बनता है | पाँच िदन बाद रि मे से मांस, उसमे से 5-5 िदन के अंतर से मेद, मेद से हडडी, हडडी से मजजा और मजजा से अंत मे वीयय बनता है | सी मे जो यह िातु बनती है उसे ‘रज’ कहते है | वीयय िकस पकार छः-सात मंिजलो से गुजरकर अपना यह अंितम रप िारण करता है , यह सुशत ु के इस कथन से जात हो जाता है | कहते है िक इस पकार वीयय बनने मे करीब 30 िदन व 4 घणटे लग जाते है | वैजिनक लोग कहते है िक 32 िकलोगाम भोजन से 700 गाम रि बनता है और 700 गाम रि से लगभग 20 गाम वीयय बनता है |

आकि य क वय िित व क ा क ारण इस वीयय के संयम से शरीर मे एक अदभुत आकिक य शिि उतपनन होती है िजसे पाचीन वैद िनवंतिर ने ‘ओज’ नाम िदया है | यही ओज मनुषय को अपने परम-लाभ ‘आतमदशन य ’ कराने मे सहायक बनता है | आप जहाँ-जहाँ भी िकसी वयिि के जीवन मे कुछ िवशेिता, चेहरे पर तेज, वाणी मे बल, कायय मे उतसाह पायेगे, वहाँ समझो इस वीयय रकण का ही चमतकार है | यिद एक सािारण सवसथ मनुषय एक िदन मे 700 गाम भोजन के िहसाब से चालीस िदन मे 32 िकलो भोजन करे , तो समझो उसकी 40 िदन की कमाई लगभग 20 गाम वीयय होगी | 30 िदन

अथात य महीने की करीब 15 गाम हुई और 15 गाम या इससे कुछ अििक वीयय एक बार के मैथुन मे पुरि दारा खचय होता है |

मा ली क ी क हान ी एक था माली | उसने अपना तन, मन, िन लगाकर कई िदनो तक पिरशम करके एक सुनदर बगीचा तैयार िकया | उस बगीचे मे भाँित-भाँित के मिुर सुगंि युि पुषप िखले | उन पुषपो को

चुनकर उसने इकिठा िकया और उनका बिढया इत तैयार िकया | िफर उसने कया िकया समझे आप …? उस इत को एक गंदी नाली ( मोरी ) मे बहा िदया | अरे ! इतने िदनो के पिरशम से तैयार िकये गये इत को, िजसकी सुगनि से सारा घर महकने वाला था, उसे नाली मे बहा िदया ! आप कहे गे िक ‘वह माली बडा मूखय था, पागल था …’ मगर अपने आपमे ही झाँककर दे खे | वह माली कहीं और ढू ँ ढने की जररत नहीं है | हममे से कई लोग ऐसे ही माली है | वीयय बचपन से लेकर आज तक यानी 15-20 विो मे तैयार होकर ओजरप मे शरीर मे िवदमान रहकर तेज, बल और सफूितय दे ता रहा | अभी भी जो करीब 30 िदन के पिरशम की

कमाई थी, उसे यूँ ही सामानय आवेग मे आकर अिववेकपूवक य खचय कर दे ना कहाँ की बुििमानी है ? कया यह उस माली जैसा ही कमय नहीं है ? वह माली तो दो-चार बार यह भूल करने के बाद

िकसी के समझाने पर सँभल भी गया होगा, िफर वही-की-वही भूल नही दोहराई होगी, परनतु आज तो कई लोग वही भूल दोहराते रहते है | अंत मे पिाताप ही हाथ लगता है | किणक सुख के िलये वयिि कामानि होकर बडे उतसाह से इस मैथुनरपी कृ तय मे पडता है परनतु कृ तय पूरा होते ही वह मुदे जैसा हो जाता है | होगा ही | उसे पता ही नहीं िक सुख तो नहीं िमला, केवल सुखाभास हुआ, परनतु उसमे उसने 30-40 िदन की अपनी कमाई खो दी |

युवावसथा आने तक वीयस य ंचय होता है वह शरीर मे ओज के रप मे िसथत रहता है | वह तो

वीयक य य से नष होता ही है , अित मैथुन से तो हिडडयो मे से भी कुछ सफेद अंश िनकलने लगता है , िजससे अतयििक कमजोर होकर लोग नपुस ं क भी बन जाते है | िफर वे िकसी के सममुख आँख उठाकर भी नहीं दे ख पाते | उनका जीवन नारकीय बन जाता है |

वीयरयकण का इतना महतव होने के कारण ही कब मैथुन करना, िकससे मैथुन करना, जीवन

मे िकतनी बार करना आिद िनदे शन हमारे ॠिि-मुिनयो ने शासो मे दे रखे है |

सृ िष ि म के िलए मैथ ुन : एक पाकृित क व यवसथ ा शरीर से वीयय-वयय यह कोई किणक सुख के िलये पकृ ित की वयवसथा नहीं है | सनतानोतपित

के िलये इसका वासतिवक उपयोग है | यह पकृ ित की वयवसथा है |

यह सिृष चलती रहे , इसके िलए सनतानोतपित होना जररी है | पकृ ित मे हर पकार की वनसपित व पाणीवगय मे यह काम-पविृत सवभावतः पाई जाती है | इस काम- पविृत के वशीभूत होकर हर पाणी मैथुन करता है और उसका रितसुख भी उसे िमलता है | िकनतु इस पाकृ ितक वयवसथा को ही बार-बार किणक सुख का आिार बना लेना कहाँ की बुििमानी है ? पशु भी

अपनी ॠतु के अनुसार ही इस कामविृत मे पवत ृ होते है और सवसथ रहते है , तो कया मनुषय पशु वगय से भी गया बीता है ? पशुओं मे तो बुििततव िवकिसत नहीं होता, परनतु मनुषय मे तो उसका पूणय िवकास होता है |

आहारिनिाभयम ैथ ुन ं च सामानयम ेततप शुिभ नय राणाम ् | भोजन करना, भयभीत होना, मैथुन करना और सो जाना यह तो पशु भी करते है | पशु शरीर मे रहकर हम यह सब करते आए है | अब यह मनुषय शरीर िमला है | अब भी यिद बुिि और िववेकपूणय अपने जीवन को नहीं चलाया और किणक सुखो के पीछे ही दौडते रहे तो कैसे अपने मूल लकय पर पहुँच पायेगे ?

सह जत ा की आड मे भिम त न होवे कई लोग तकय दे ने लग जाते है : “शासो मे पढने को िमलता है और जानी महापुरिो के मुखारिवनद से भी सुनने मे आता है िक सहज जीवन जीना चािहए | काम करने की इचछा हुई

तो काम िकया, भूख लगी तो भोजन िकया, नींद आई तो सो गये | जीवन मे कोई ‘टे नशन’, कोई तनाव नहीं होना चािहए | आजकल के तमाम रोग इसी तनाव के ही फल है … ऐसा

मनोवैजािनक कहते है | अतः जीवन सहज और सरल होना चािहए | कबीरदास जी ने भी कहा है : सा िो , सहज स मािि भली |” ऐसा तकय दे कर भी कई लोग अपने काम-िवकार की तिृप को सहमित दे दे ते है | परनतु यह अपने आपको िोखा दे ने जैसा है | ऐसे लोगो को खबर ही नहीं है िक ऐसा सहज जीवन तो

महापुरिो का होता है , िजनके मन और बुिि अपने अििकार मे होते है , िजनको अब संसार मे अपने िलये पाने को कुछ भी शेि नहीं बचा है , िजनहे मान-अपमान की िचनता नहीं होती है | वे

उस आतमततव मे िसथत हो जाते है जहाँ न पतन है न उतथान | उनको सदै व िमलते रहने वाले आननद मे अब संसार के िविय न तो विृि कर सकते है न अभाव | िविय-भोग उन महान ्

पुरिो को आकिित य करके अब बहका या भटका नहीं सकते | इसिलए अब उनके सममुख भले ही िविय-सामिगयो का ढे र लग जाये िकनतु उनकी चेतना इतनी जागत ृ होती है िक वे चाहे तो उनका उपयोग करे और चाहे तो ठु करा दे |

बाहरी िवियो की बात छोडो, अपने शरीर से भी उनका ममतव टू ट चुका होता है | शरीर रहे अथवा न रहे - इसमे भी उनका आगह नहीं रहता | ऐसे आननदसवरप मे वे अपने-आपको हर समय अनुभव करते रहते है | ऐसी अवसथावालो के िलये कबीर जी ने कहा है : सािो , सहज समा िि भ ली |

अप ने को तोल े हम यिद ऐसी अवसथा मे है तब तो ठीक है | अनयथा धयान रहे , ऐसे तकय की आड मे हम अपने को िोखा दे कर अपना ही पतन कर डालेगे | जरा, अपनी अवसथा की तुलना उनकी अवसथा से करे | हम तो, कोई हमारा अपमान कर दे तो िोिित हो उठते है , बदला तक लेने को तैयार हो जाते है | हम लाभ-हािन मे सम नहीं रहते है | राग-दे ि हमारा जीवन है | ‘मेरा-तेरा’ भी वैसा ही

बना हुआ है | ‘मेरा िन … मेरा मकान … मेरी पती … मेरा पैसा … मेरा िमत … मेरा बेटा … मेरी इजजत … मेरा पद …’ ये सब सतय भासते है िक नहीं ? यही तो दे हभाव है , जीवभाव है | हम इससे ऊपर उठ कर वयवहार कर सकते है कया ? यह जरा सोचे |

कई सािु लोग भी इस दे हभाव से छुटकारा नहीं पा सके, सामानय जन की तो बात ही कया ?

कई सािु भी ‘मै िसयो की तरफ दे खता ही नहीं हूँ … मै पैसे को छूता ही नहीं हूँ …’ इस

पकार की अपनी-अपनी मन और बुिि की पकडो मे उलझे हुए है | वे भी अपना जीवन अभी सहज नहीं कर पाए है और हम … ?

हम अपने सािारण जीवन को ही सहज जीवन का नाम दे कर िवियो मे पडे रहना चाहते है |

कहीं िमठाई दे खी तो मुह ँ मे पानी भर आया | अपने संबंिी और िरशतेदारो को कोई दःुख हुआ तो भीतर से हम भी दःुखी होने लग गये | वयापार मे घाटा हुआ तो मुह ँ छोटा हो गया | कहीं अपने घर से जयादा िदन दरू रहे तो बार-बार अपने घरवालो की, पती और पुतो की याद सताने लगी | ये कोई सहज जीवन के लकण है , िजसकी ओर जानी महापुरिो का संकेत है ? नहीं |

मन ोिनग ह की मिहम ा आज कल के नौजवानो के साथ बडा अनयाय हो रहा है | उन पर चारो ओर से िवकारो को भडकाने वाले आिमण होते रहते है | एक तो वैसे ही अपनी पाशवी विृतयाँ यौन उचछृंखलता की ओर पोतसािहत करती है और दस य बढाती है … इस पर उन पविृतयो को ू रे , सामािजक पिरिसथितयाँ भी उसी ओर आकिण

वौजािनक समथन य िमलने लगे और संयम को हािनकारक बताया जाने लगे … कुछ तथाकिथत

आचायय भी फायड जैसे नािसतक एवं अिूरे मनोवैजािनक के वयिभचारशास को आिार बनाकर ‘संभोग स े समा िि ’ का उपदे श दे ने लगे तब तो ईशर ही बहचयय और दामपतय जीवन की पिवतता का रकक है |

16 िसतमबर , 1977 के ‘नयूयॉकय टाइमस मे छपा था:

“अमेिरकन पेनल कहती है िक अमेिरका मे दो करोड से अििक लोगो को मानिसक िचिकतसा की आवशयकता है |” उपरोि पिरणामो को दे खते हुए अमेिरका के एक महान ् लेखक, समपादक और िशका िवशारद

शी मािटय न गोस अपनी पुसतक ‘The Psychological Society’ मे िलखते है : “हम िजतना समझते है उससे कहीं जयादा फायड के मानिसक रोगो ने हमारे मानस और समाज मे गहरा पवेश पा

िलया है | यिद हम इतना जान ले िक उसकी बाते पायः उसके िवकृ त मानस के ही पितिबमब है

और उसकी मानिसक िवकृ ितयो वाले वयिितव को पहचान ले तो उसके िवकृ त पभाव से बचने मे सहायता िमल सकती है | अब हमे डॉ. फायड की छाया मे िबिकुल नहीं रहना चािहए |” आिुिनक मनोिवजान का मानिसक िवशेिण, मनोरोग शास और मानिसक रोग की िचिकतसा … ये फायड के रगण मन के पितिबमब है | फायड सवयं सफिटक कोलोन, पायः सदा रहने वाला मानिसक अवसाद, सनायिवक रोग, सजातीय समबनि, िवकृ त सवभाव, माईगेन, कबज, पवास, मतृयु और िननाश भय, साईनोसाइिटस, घण ृ ा और खूनी िवचारो के दौरे आिद रोगो से पीिडत था | पोफेसर एडलर और पोफेसर सी. जी. जुग ं जैसे मूिन य य मनोवैजािनको ने फायड के िसिांतो का खंडन कर िदया है िफर भी यह खेद की बात है िक भारत मे अभी भी कई मानिसक रोग िवशेिज और सेकसोलॉिजसट फायड जैसे पागल वयिि के िसिांतो को आिार लेकर इस दे श के जवानो को अनैितक और अपाकृ ितक मैथुन (Sex) का, संभोग का उपदे श वतम य ान पतो और

सामयोको के दारा दे ते रहते है | फायड ने तो मतृयु के पहले अपने पागलपन को सवीकार िकया था लेिकन उसके लेिकन उसके सवयं सवीकार न भी करे तो भी अनुयायी तो पागल के ही माने

जायेगे | अब वे इस दे श के लोगो को चिरतभष करने का और गुमराह करने का पागलपन छोड दे ऐसी हमारी नम पाथन य ा है | यह ‘यौव न स ुरका ’ पुसतक पाँच बार पढे और पढाएँ- इसी मे सभी का कियाण िनिहत है |

आँकडे बताते है िक आज पािातय दे शो मे यौन सदाचार की िकतनी दग ु ियत हुई है ! इस

दग ु ियत के पिरणामसवरप वहाँ के िनवािसयो के वयििगत जीवन मे रोग इतने बढ गये है िक

भारत से 10 गुनी जयादा दवाइयाँ अमेिरका मे खचय होती है जबिक भारत की आबादी अमेिरका से

तीन गुनी जयादा है | मानिसक रोग इतने बढे है िक हर दस अमेिरकन मे से एक को मानिसक रोग होता है | दव य नाएँ इतनी बढी है िक हर छः सेकणड मे एक बलातकार होता है और हर विय ु ास लगभग 20 लाख कनयाएँ िववाह के पूवय ही गभव य ती हो जाती है | मुि साहचयय (free sex) का

िहमायती होने के कारण शादी के पहले वहाँ का पायः हर वयिि जातीय संबि ं बनाने लगता है | इसी वजह से लगभग 65% शािदयाँ तलाक मे बदल जाती है | मनुषय के िलये पकृ ित दारा

िनिाियरत िकये गये संयम का उपहास करने के कारण पकृ ित ने उन लोगो को जातीय रोगो का िशकार बना रखा है | उनमे मुखयतः एडस (AIDS) की बीमारी िदन दन ू ी रात चौगुनी फैलती जा रही है | वहाँ के पािरवािरक व सामािजक जीवन मे िोि, कलह, असंतोि, संताप, उचछृंखलता,

उदंडता और शतुता का महा भयानक वातावरण छा गया है | िवश की लगभग 4% जनसंखया अमेिरका मे है | उसके उपभोग के िलये िवश की लगभग 40% सािन-सामगी (जैसे िक कार, टी वी, वातानुकूिलत मकान आिद) मौजूद है िफर भी वहाँ अपरािविृत इतनी बढी है की हर 10

सेकणड मे एक सेिमारी होती है , हर लाख वयिियो मे से 425 वयिि कारागार मे सजा भोग रहे है जबिक भारत मे हर लाख वयिि मे से केवल 23 वयिि ही जेल की सजा काट रहे है |

कामुकता के समथक य फायड जैसे दाशियनको की ही यह दे न है िक िजनहोने पिातय दे शो को

मनोिवजान के नाम पर बहुत पभािवत िकया है और वहीं से यह आँिी अब इस दे श मे भी

फैलती जा रही है | अतः इस दे श की भी अमेिरका जैसी अवदशा हो, उसके पहले हमे साविान

रहना पडे गा | यहाँ के कुछ अिवचारी दाशियनक भी फायड के मनोिवजान के आिार पर युवानो को बेलगाम संभोग की तरफ उतसािहत कर रहे है , िजससे हमारी युवापीढी गुमराह हो रही है | फायड ने तो केवल मनोवैजािनक मानयताओं के आिार पर वयिभचार शास बनाया लेिकन तथाकिथत दाशियनक ने तो ‘संभोग स े समा िि ’ की पिरकिपना दारा वयिभचार को आधयाितमक जामा

पहनाकर िािमक य लोगो को भी भष िकया है | संभोग स े समा िि नही ं हो ती , सतयान ाश होता है | ‘संयम से ही समािि होती है …’ इस भारतीय मनोिवजान को अब पािातय मनोिवजानी भी सतय मानने लगे है |

जब पििम के दे शो मे जान-िवजान का िवकास पारमभ भी नहीं हुआ था और मानव ने

संसकृ ित के केत मे पवेश भी नहीं िकया था उस समय भारतविय के दाशियनक और योगी मानव मनोिवजान के िविभनन पहलुओं और समसयाओं पर गमभीरता पूवक य िवचार कर रहे थे | िफर भी पािातय िवजान की छतछाया मे पले हुए और उसके पकाश से चकाचौि वतम य ान भारत के

मनोवैजािनक भारतीय मनोिवजान का अिसततव तक मानने को तैयार नहीं है | यह खेद की बात है | भारतीय मनोवैजािनको ने चेतना के चार सतर माने है : जागत, सवपन, सुिुिप और तुरीय | पािातय मनोवैजािनक पथम तीन सतर को ही जानते है | पािातय मनोिवजान नािसतक है |

भारतीय मनोिवजान ही आतमिवकास और चिरत िनमाण य मे सबसे अििक उपयोगी िसि हुआ है

कयोिक यह िमय से अतयििक पभािवत है | भारतीय मनोिवजान आतमजान और आतम सुिार मे सबसे अििक सहायक िसि होता है | इसमे बुरी आदतो को छोडने और अचछी आदतो को

अपनाने तथा मन की पिियाओं को समझने तथा उसका िनयंतण करने के महतवपूणय उपाय

बताये गये है | इसकी सहायता से मनुषय सुखी, सवसथ और सममािनत जीवन जी सकता है | पििम की मनोवैजािनक मानयताओं के आिार पर िवशशांित का भवन खडा करना बालू की

नींव पर भवन-िनमाण य करने के समान है | पािातय मनोिवजान का पिरणाम िपछले दो िवशयुिो के रप मे िदखलायी पडता है | यह दोि आज पििम के मनोवैजािनको की समझ मे आ रहा है | जबिक भारतीय मनोिवजान मनुषय का दै वी रपानतरण करके उसके िवकास को आगे बढाना

चाहता है | उसके ‘अनेकता मे एकता’ के िसिांत पर ही संसार के िविभनन राषो, सामािजक वगो, िमो और पजाितयो मे सिहषणुता ही नहीं, सििय सहयोग उतपनन िकया जा सकता है | भारतीय मनोिवजान मे शरीर और मन पर भोजन का कया पभाव पडता है इस िविय से लेकर शरीर मे िविभनन चिो की िसथित, कुणडिलनी की िसथित, वीयय को ऊधवग य ामी बनाने की पििया आिद

िवियो पर िवसतारपूवक य चचाय की गई है | पािातय मनोिवजान मानव-वयवहार का िवजान है | भारतीय मनोिवजान मानस िवजान के साथ-साथ आतमिवजान है | भारतीय मनोिवजान

इिनियिनयंतण पर िवशेि बल दे ता है जबिक पािातय मनोिवजान केवल मानिसक िियाओं या

मिसतषक-संगठन पर बल दे ता है | उसमे मन दारा मानिसक जगत का ही अधययन िकया जाता है | उसमे भी पायड का मनोिवजान तो एक रगण मन के दारा अनय रगण मनो का ही अधययन

है जबिक भारतीय मनोिवजान मे इिनिय-िनरोि से मनोिनरोि और मनोिनरोि से आतमिसिि का ही लकय मानकर अधययन िकया जाता है | पािातय मनोिवजान मे मानिसक तनावो से मुिि का

कोई समुिचत सािन पिरलिकत नहीं होता जो उसके वयिितव मे िनिहत िनिेिातमक पिरवेशो के िलए सथायी िनदान पसतुत कर सके | इसिलए पायड के लाखो बुििमान अनुयायी भी पागल हो गये | संभोग के मागय पर चलकर कोई भी वयिि योगिसि महापुरि नहीं हुआ | उस मागय पर

चलनेवाले पागल हुए है | ऐसे कई नमूने हमने दे खे है | इसके िवपरीत भारतीय मनोिवजान मे

मानिसक तनावो से मुिि के िविभनन उपाय बताये गये है यथा योगमागय, सािन-चतुषय, शुभसंसकार, सतसंगित, अभयास, वैरागय, जान, भिि, िनषकाम कमय आिद | इन सािनो के िनयिमत

अभयास से संगिठत एवं समायोिजत वयिितव का िनमाण य संभव है | इसिलये भारतीय मनोिवजान के अनुयायी पािणिन और महाकिव कािलदास जैसे पारमभ मे अिपबुिि होने पर भी महान िवदान हो गये | भारतीय मनोिवजान ने इस िवश को हजारो महान भि समथय योगी तथा बहजानी महापुरि िदये है |

अतः पाशचातय मनोिवजान को छोडकर भारतीय मनोिवजान का आशय लेने मे ही वयिि, कुटु मब, समाज, राष और िवश का कियाण िनिहत है | भारतीय मनोिवजान पतंजिल के िसिांतो पर चलनेवाले हजारो योगािसि महापुरि इस दे श मे हुए है , अभी भी है और आगे भी होते रहे गे जबिक संभोग के मागय पर चलकर कोई

योगिसि महापुरि हुआ हो ऐसा हमने तो नहीं सुना बििक दब य हुए, रोगी हुए, एडस के िशकार ु ल

हुए, अकाल मतृयु के िशकार हुए, िखनन मानस हुए, अशांात हुए | उस मागय पर चलनेवाले पागल हुए है , ऐसे कई नमूने हमने दे खे है |

फायड ने अपनी मनःिसथित की तराजू पर सारी दिुनया के लोगो को तौलने की गलती

की है | उसका अपना जीवन-िम कुछ बेतुके ढं ग से िवकिसत हुआ है | उसकी माता अमेिलया बडी खूबसूरत थी | उसने योकोव नामक एक अनय पुरि के साथ अपना दस ू रा िववाह िकया था | जब फायड जनमा तब वह २१ विय की थी | बचचे को वह बहुत पयार करती थी |

ये घटनाएँ फायड ने सवयं िलखी है | इन घटनाओं के अिार पर फायड कहता है : “पुरि

बचपन से ही ईिडपस कॉमपलेकस (Oedipus Complex) अथात य अवचेतन मन मे अपनी माँ के पित यौन-आकांका से आकिित य होता है तथा अपने िपता के पित यौन-ईषयाय से गिसत रहता है | ऐसे ही लडकी अपने बाप के पित आकिित य होती है तथा अपनी माँ से ईषयाय करती है | इसे इलेकटा कोऊमपलेकस (Electra Complex) कहते है | तीन विय की आयु से ही बचचा अपनी माँ के साथ यौन-समबनि सथािपत करने के िलये लालाियत रहता है | एकाि साल के बाद जब उसे पता

चलता है िक उसकी माँ के साथ तो बाप का वैसा संबि ं पहले से ही है तो उसके मन मे बाप के पित ईषयाय और घण ृ ा जाग पडती है | यह िवदे ि उसके अवचेतन मन मे आजीवन बना रहता है | इसी पकार लडकी अपने बाप के पित सोचती है और माँ से ईषयाय करती है |" फायड आगे कहता है : "इस मानिसक अवरोि के कारण मनुषय की गित रक जाती है | 'ईिडपस कोऊमपलेकस' उसके सामने तरह-तरह के अवरोि खडे करता है | यह िसथित कोई अपवाद नहीं है वरन सािारणतया यही होता है |

यह िकतना घिृणत और हासयासपद पितपादन है ! छोटा बचचा यौनाकांका से पीिडत होगा,

सो भी अपनी माँ के पित ? पशु-पिकयो के बचचे के शरीर मे भी वासना तब उठती है जब उनके शरीर पजनन के योगय सुदढ हो जाते है | ... तो मनुषय के बालक मे यह विृत इतनी छोटी आयु मे कैसे पैदा हो सकती है ? ... और माँ के साथ वैसी तिृप करने िक उसकी शािरिरक-मानिसक िसथित भी नहीं होती | िफर तीन विय के बालक को काम-ििया और माँ-बाप के रत रहने की

जानकारी उसे कहाँ से हो जाती है ? िफर वह यह कैसे समझ लेता है िक उसे बाप से ईषयाय करनी चािहए ? बचचे दारा माँ का दि ू पीने की ििया को ऐसे मनोिवजािनयो ने रितसुख के समकक

बतलाया है | यिद इस सतनपान को रितसुख माना जाय तब तो आयु बढने के साथ-साथ यह

उतकंठा भी पबलतर होती जानी चािहए और वयसक होने तक बालक को माता का द ूि ही पीते रहना चािहए | िकनतु यह िकस पकार संभव है ?

... तो ये ऐसे बेतुके पितपादन है िक िजनकी भतसन य ा ही की जानी चािहए | फायड ने अपनी मानिसक िवकृ ितयो को जनसािारण पर थोपकर मनोिवजान को िवकृ त बना िदया | जो लोग मानव समाज को पशुता मे िगराने से बचाना चाहते है , भावी पीढी का जीवन िपशाच होने से बचाना चाहते है , युवानो का शारीिरक सवासथय, मानिसक पसननता और बौििक

सामथयय बनाये रखना चाहते है , इस दे श के नागिरको को एडस (AIDS) जैसी घातक बीमािरयो से गसत होने से रोकना चाहते है , सवसथ समाज का िनमाण य करना चाहते है उन सबका यह नैितक कतवयय है िक वे हमारी गुमराह युवा पीढी को 'यौव न सुरका ' जैसी पुसतके पढाये |

यिद काम-िवकार उठा और हमने 'यह ठीक नहीं है ... इससे मेरे बल-बुिि और तेज का

नाश होगा ...' ऐसा समझकर उसको टाला नहीं और उसकी पूितय मे लमपट होकर लग गये, तो हममे और पशुओं मे अंतर ही कया रहा ? पशु तो जब उनकी कोई िवशेि ऋतु होती है तभी

मैथुन करते है , बाकी ऋतुओं मे नहीं | इस दिष से उनका जीवन सहज व पाकृ ितक ढं ग का होता है | परं तु मनुषय ... ! मनुषय तो बारहो महीने काम-ििया की छूट लेकर बैठा है और ऊपर से यह भी कहता है िक यिद काम-वासना की पूितय करके सुख नहीं िलया तो िफर ईशर ने मनुषय मे जो इसकी रचना की है , उसका कया मतलब ? ... आप अपने को िववेकपूणय रोक नहीं पाते हो, छोटे -छोटे सुखो मे उलझ जाते हो- इसका तो कभी खयाल ही नहीं करते और ऊपर से भगवान तक को अपने पापकमो मे भागीदार बनाना चाहते हो ?

आतम घा ती त कय अभी कुछ समय पूवय मेरे पास एक पत आया | उसमे एक वयिि ने पूछा था: “आपने सतसंग

मे कहा और एक पुिसतका मे भी पकािशत हुआ िक : ‘बीडी, िसगरे ट, तमबाकू आिद मत िपयो |

ऐसे वयसनो से बचो, कयोिक ये तुमहारे बल और तेज का हरण करते है …’ यिद ऐसा ही है तो भगवान ने तमबाकू आिद पैदा ही कयो िकया ?” अब उन सजजन से ये वयसन तो छोडे नहीं जाते और लगे है भगवान के पीछे | भगवान ने गुलाब के साथ काँटे भी पैदा िकये है | आप फूल छोडकर काँटे तो नहीं तोडते ! भगवान ने आग भी पैदा की है | आप उसमे भोजन पकाते हो, अपना घर तो नहीं जलाते ! भगवान ने आक

(मदार), ितूरे, बबूल आिद भी बनाये है , मगर उनकी तो आप सबजी नहीं बनाते ! इन सब मे तो आप अपनी बुिि का उपयोग करके वयवहार करते हो और जहाँ आप हार जाते हो, जब आपका मन आपके कहने मे नहीं होता। तो आप लगते हो भगवान को दोि दे ने ! अरे , भगवान ने तो

बादाम-िपसते भी पैदा िकये है , दि ू भी पैदा िकया है | उपयोग करना है तो इनका करो, जो आपके बल और बुिि की विृि करे | पैसा ही खचन य ा है तो इनमे खचो | यह तो होता नहीं और लगे है

तमबाकू के पीछे | यह बुिि का सदप ु योग नहीं है , दर ु पयोग है | तमबाकू पीने से तो बुिि और भी कमजोर हो जायेगी |

शरीर के बल बुिि की सुरका के िलये वीयरयकण बहुत आवशयक है | योगदशन य के ‘सािपाद’

मे बहचयय की महता इन शबदो मे बतायी गयी है : बह चय य पितषाया ं वीय य लाभः ||37||

बहचयय की दढ िसथित हो जाने पर सामथयय का लाभ होता है |

सी पसं ग िक तन ी ब ार ? िफर भी यिद कोई जान-बूझकर अपने सामथयय को खोकर शीहीन बनना चाहता हो तो यह यूनान के पिसि दाशियनक सुकरात के इन पिसि वचनो को सदै व याद रखे | सुकरात से एक वयिि ने पूछा :

“पुरि के िलए िकतनी बार सी-पसंग करना उिचत है ?” “जीवन भर मे केवल एक बार |”

“यिद इससे तिृप न हो सके तो ?” “तो विय मे एक बार |”

“यिद इससे भी संतोि न हो तो ?” “िफर महीने मे एक बार |”

इससे भी मन न भरे तो ?”

“तो महीने मे दो बार करे , परनतु मतृयु शीघ आ जायेगी |”

“इतने पर भी इचछा बनी रहे तो कया करे ?” इस पर सुकरात ने कहा :

“तो ऐसा करे िक पहले कब खुदवा ले, िफर कफन और लकडी घर मे लाकर तैयार रखे |

उसके पिात जो इचछा हो, सो करे |” सुकरात के ये वचन सचमुच बडे पेरणापद है | वीयक य य के दारा िजस-िजसने भी सुख लेने का पयास िकया है , उनहे घोर िनराशा हाथ लगी है और अनत मे शीहीन होकर मतृयु का गास

बनना पडा है | कामभोग दारा कभी तिृप नहीं होती और अपना अमूिय जीवन वयथय चला जाता है | राजा ययाित की कथा तो आपने सुनी होगी |

राजा य या ित क ा अ नुभ व शुिाचायय के शाप से राजा ययाित युवावसथा मे ही वि ृ हो गये थे | परनतु बाद मे ययाित के पाथन य ा करने पर शुिाचायय ने दयावश उनको यह शिि दे दी िक वे चाहे तो अपने पुतो से

युवावसथा लेकर अपना वािक य य उनहे दे सकते थे | तब ययाित ने अपने पुत यद ु, तवस य ु, िह ु ु और अनु से उनकी जवानी माँगी, मगर वे राजी न हुए | अंत मे छोटे पुत पुर ने अपने िपता को अपना यौवन दे कर उनका बुढापा ले िलया |

पुनः युवा होकर ययाित ने िफर से भोग भोगना शुर िकया | वे ननदनवन मे िवशाची नामक

अपसरा के साथ रमण करने लगे | इस पकार एक हजार विय तक भोग भोगने के बाद भी भोगो

से जब वे संतुष नहीं हुए तो उनहोने अपना बचा हुआ यौवन अपने पुत पुर को लौटाते हुए कहा : न जात ु का मः कामानाम ुपभोग ेन शामय ित | हिव िा कृषणवतम े व भ ूय एवािभ विय ते || “पुत ! मैने तुमहारी जवानी लेकर अपनी रिच, उतसाह और समय के अनुसार िवषयो का सेवन िकया लेिकन िवियो की कामना उनके उपभोग से कभी शांत नहीं होती, अिपतु घी की आहुित पडने पर अिगन की भाँित वह अििकाििक बढती ही जाती है |

रतो से जडी हुई सारी पथ ृ वी, संसार का सारा सुवणय, पशु और सुनदर िसयाँ, वे सब एक पुरि

को िमल जाये तो भी वे सबके सब उसके िलये पयाप य नहीं होगे | अतः तषृणा का तयाग कर दे ना चािहए |

छोटी बुििवाले लोगो के िलए िजसका तयाग करना अतयंत किठन है , जो मनुषय के बूढे होने पर भी सवयं बूढी नहीं होती तथा जो एक पाणानतक रोग है उस तषृणा को तयाग दे नेवाले पुरि को ही सुख िमलता है |” (महाभारत : आिदपवाियण संभवपवय : 12)

ययाित का अनुभव वसतुतः बडा मािमक य और मनुषय जाित ले िलये िहतकारी है | ययाित

आगे कहते है :

“पुत ! दे खो, मेरे एक हजार विय िवियो को भोगने मे बीत गये तो भी तषृणा शांत नहीं होती

और आज भी पितिदन उन िवियो के िलये ही तषृणा पैदा होती है | पूण ा वि य सह सं म े िव ियासिच ेतस ः |

तथापयन ुिदन ं त ृ षणा म मैत ेषविभ जायत े || इसिलए पुत ! अब मै िवियो को छोडकर बहाभयास मे मन लगाऊँगा | िनदय नद तथा

ममतारिहत होकर वन मे मग ृ ो के साथ िवचरँगा | हे पुत ! तुमहारा भला हो | तुम पर मै पसनन हूँ | अब तुम अपनी जवानी पुनः पाप करो और मै यह राजय भी तुमहे ही अपण य करता हूँ | इस पकार अपने पुत पुर को राजय दे कर ययाित ने तपसया हे तु वनगमन िकया | उसी राजा पुर से पौरव वंश चला | उसी वंश मे परीिकत का पुत राजा जनमेजय पैदा हुआ था |

राजा मु चक नद क ा प संग राजा मुचकनद गगाच य ायय के दशन य -सतसंग के फलसवरप भगवान का दशन य पाते है | भगवान से सतुित करते हुए वे कहते है : “पभो ! मुझे आपकी दढ भिि दो |” तब भगवान कहते है : “तूने जवानी मे खूब भोग भोगे है , िवकारो मे खूब डू बा है | िवकारी

जीवन जीनेवाले को दढ भिि नहीं िमलती | मुचकनद ! दढ भिि के िलए जीवन मे संयम बहुत जररी है | तेरा यह कितय शरीर समाप होगा तब दस ू रे जनम मे तुझे दढ भिि पाप होगी |” वही राजा मुचकनद किलयुग मे नरिसंह मेहता हुए | जो लोग अपने जीवन मे वीयरयका को महतव नहीं दे ते, वे जरा सोचे िक कहीं वे भी राजा

ययाित का तो अनुसरण नहीं कर रहे है ! यिद कर रहे हो तो जैसे ययाित साविान हो गये, वैसे

आप भी साविान हो जाओ भैया ! िहममत करो | सयाने हो जाओ | दया करो | हम पर दया न करो तो अपने-आप पर तो दया करो भैया ! िहममत करो भैया ! सयाने हो जाओ मेरे पयारे ! जो हो गया उसकी िचनता न करो | आज से नवजीवन का पारं भ करो | बहचयरयका के आसन, पाकृ ितक औििियाँ इतयािद जानकर वीर बनो | ॐ … ॐ … ॐ …

गल त अ भय ास का दु षप िरण ाम आज संसार मे िकतने ही ऐसे अभागे लोग है , जो शंग ृ ार रस की पुसतके पढकर, िसनेमाओं के कुपभाव के िशकार होकर सवपनावसथा या जागतावसथा मे अथवा तो हसतमैथुन दारा सपाह मे िकतनी बार वीयन य ाश कर लेते है | शरीर और मन को ऐसी आदत डालने से वीयाश य य बार-बार

खाली होता रहता है | उस वीयाश य य को भरने मे ही शारीिरक शिि का अििकतर भाग वयय होने लगता है , िजससे शरीर को कांितमान ् बनाने वाला ओज संिचत ही नहीं हो पाता और वयिि

शििहीन, ओजहीन और उतसाहशूनय बन जाता है | ऐसे वयिि का वीयय पतला पडता जाता है | यिद वह समय पर अपने को सँभाल नहीं सके तो शीघ ही वह िसथित आ जाती है िक उसके

अणडकोश वीयय बनाने मे असमथय हो जाते है | िफर भी यिद थोडा बहुत वीयय बनता है तो वह भी पानी जैसा ही बनता है िजसमे सनतानोतपित की ताकत नहीं होती | उसका जीवन जीवन नहीं

रहता | ऐसे वयिि की हालत मत ृ क पुरि जैसी हो जाती है | सब पकार के रोग उसे घेर लेते है | कोई दवा उस पर असर नहीं कर पाती | वह वयिि जीते जी नकय का दःुख भोगता रहता है | शासकारो ने िलखा है :

आयुसत ेजोबल ं वीय ा प जा श ीि महदय शः | पुणय ं च पी ितमतव ं च हनयत े ऽबहचया य || ‘आयु, तेज, बल, वीयय, बुिि, लकमी, कीितय, यश तथा पुणय और पीित ये सब बहचयय का पालन न करने से नष हो जाते है |’

वी यय रक ण सद ैव सत ुतय इसीिलए वीयरयका सतुतय है | ‘अथवव य ेद मे कहा गया है : अित स ृ षो अपा व ृ िभोऽ ितस ृ षा अगनयो

िदवया

इदं त मित स ृ जािम तं माऽभयविन िक ||2||

||1||

अथात य ् ‘शरीर मे वयाप वीयय रपी जल को बाहर ले जाने वाले, शरीर से अलग कर दे ने वाले

काम को मैने परे हटा िदया है | अब मै इस काम को अपने से सवथ य ा दरू फेकता हूँ | मै इस आरोगयता, बल-बुििनाशक काम का कभी िशकार नहीं होऊँगा |’

… और इस पकार के संकिप से अपने जीवन का िनमाण य न करके जो वयिि वीयन य ाश करता

रहता है , उसकी कया गित होगी, इसका भी ‘अथवव य ेद’ मे उिलेख आता है : रजन ् पिररजन ् मृ णन ् पिरम ृ णन ् |

मोको मनोहा

खनो िनदा य ह आतमद ू ििसतन द ू ू ििः ||

यह काम रोगी बनाने वाला है , बहुत बुरी तरह रोगी करने वाला है | मण ृ न ् यानी मार दे ने

वाला है | पिरमण ृ न ् यानी बहुत बुरी तरह मारने वाला है |यह टे ढी चाल चलता है , मानिसक

शिियो को नष कर दे ता है | शरीर मे से सवासथय, बल, आरोगयता आिद को खोद-खोदकर बाहर फेक दे ता है | शरीर की सब िातुओं को जला दे ता है | आतमा को मिलन कर दे ता है | शरीर के वात, िपत, कफ को दिूित करके उसे तेजोहीन बना दे ता है | बहचयय के बल से ही अंगारपणय जैसे बलशाली गंिवरयाज को अजुन य ने परािजत कर िदया था |

अजुय न औ र अं ग ार पणय गं िव य अजुन य अपने भाईयो सिहत िौपदी के सवंयवर-सथल पांचाल दे श की ओर जा रहा था, तब बीच

मे गंगा तट पर बसे सोमाशयाण तीथय मे गंिवरयाज अंगारपणय (िचतरथ) ने उसका रासता रोक

िदया | वह गंगा मे अपनी िसयो के साथ जलििडा कर रहा था | उसने पाँचो पांडवो को कहा :

“मेरे यहाँ रहते हुए राकस, यक, दे वता अथवा मनुषय कोई भी इस मागय से नहीं जा सकता | तुम लोग जान की खैर चाहते हो तो लौट जाओ |” तब अजुन य कहता है : “मै जानता हूँ िक समपूणय गंिवय मनुषयो से अििक शििशाली होते है , िफर भी मेरे आगे

तुमहारी दाल नहीं गलेगी | तुमहे जो करना हो सो करो, हम तो इिर से ही जायेगे |”

अजुन य के इस पितवाद से गंिवय बहुत िोिित हुआ और उसने पांडवो पर तीकण बाण छोडे |

अजुन य ने अपने हाथ मे जो जलती हुई मशाल पकडी थी, उसीसे उसके सभी बाणो को िनषफल

कर िदया | िफर गंिवय पर आगनेय अस चला िदया | अस के तेज से गंिवय का रथ जलकर भसम हो गया और वह सवंय घायल एवं अचेत होकर मुँह के बल िगर पडा | यह दे खकर उस गंिवय की

पती कुममीनसी बहुत घबराई और अपने पित की रकाथय युिििषर से पाथन य ा करने लगी | तब युिििषर ने अजुन य से उस गंिवय को अभयदान िदलवाया | जब वह अंगारपणय होश मे आया तब बोला ; “अजुन य ! मै परासत हो गया, इसिलए अपने पूवय नाम अंगारपणय को छोड दे ता हूँ

| मै अपने

िविचत रथ के कारण िचतरथ कहलाता था | वह रथ भी आपने अपने परािम से दगि कर िदया है | अतः अब मै दगिरथ कहलाऊँगा | मेरे पास चाकुिी नामक िवदा है िजसे मनु ने सोम को, सोम ने िवशावसु को और िवशावसु ने मुझे पदान की है | यह गुर की िवदा यिद िकसी कायर को िमल जाय तो नष हो जाती है |

जो छः महीने तक एक पैर पर खडा रहकर तपसया करे , वही इस िवदा को पा सकता है | परनतु अजुन य ! मै आपको ऐसी तपसया के िबना ही यह िवदा पदान करता हूँ | इस िवदा की िवशेिता यह है िक तीनो लोको मे कहीं भी िसथत िकसी वसतु को आँख से दे खने की इचछा हो तो उसे उसी रप मे इस िवदा के पभाव से कोई भी वयिि दे ख सकता है | अजुन य ! इस िवदा के बल पर हम लोग मनुषयो से शष े माने जाते है और दे वताओं के तुिय पभाव िदखा सकते है |” इस पकार अंगारपणय ने अजुन य को चाकुिी िवदा, िदवय घोडे एवं अनय वसतुएँ भेट कीं | अजुन य ने गंिवय से पूछा : गंिवय ! तुमने हम पर एकाएक आिमण कयो िकया और िफर हार

कयो गये ?”

तब गंिवय ने बडा ममभ य रा उतर िदया | उसने कहा :

“शतुओं को संताप दे नेवाले वीर ! यिद कोई कामासि कितय रात मे मुझसे युि करने आता तो िकसी भी पकार जीिवत नहीं बच सकता था कयोिक रात मे हम लोगो का बल और भी बढ जाता है |

अपने बाहुबल का भरोसा रखने वाला कोई भी पुरि जब अपनी सी के सममुख िकसीके दारा

अपना ितरसकार होते दे खता है तो सहन नहीं कर पाता | मै जब अपनी सी के साथ जलिीडा

कर रहा था, तभी आपने मुझे ललकारा, इसीिलये मै िोिािवष हुआ और आप पर बाणविाय की | लेिकन यिद आप यह पूछो िक मै आपसे परािजत कयो हुआ तो उसका उतर है : बह चय ा परो ि मय ः स चािप

िनयतसवतिय

|

यसमात ् तसमादह ं पाथ य रण ेऽ िसम िविज तसतवया

||

“बहचयय सबसे बडा िमय है और वह आपमे िनिित रप से िवदमान है | हे कुनतीनंदन !

इसीिलये युि मे मै आपसे हार गया हूँ |”

(महाभारत : आिदपवियण चैतरथ पवय : 71)

हम समझ गये िक वीयरयकण अित आवशयक है | अब वह कैसे हो इसकी चचाय करने से पूवय एक बार बहचयय का ताितवक अथय ठीक से समझ ले |

बह चय य का ता ितवक अ थय ‘बहचयय’ शबद बडा िचताकिक य और पिवत शबद है | इसका सथूल अथय तो यही पिसि है िक िजसने शादी नहीं की है , जो काम-भोग नहीं करता है , जो िसयो से दरू रहता है आिद-आिद |

परनतु यह बहुत सतही और सीिमत अथय है | इस अथय मे केवल वीयरयकण ही बहचयय है | परनतु

धयान रहे , केवल वीयरयकण मात सािना है , मंिजल नहीं | मनुषय जीवन का लकय है अपने-आपको जानना अथात य ् आतम-साकातकार करना | िजसने आतम-साकातकार कर िलया, वह जीवनमुि हो गया | वह आतमा के आननद मे, बहाननद मे िवचरण करता है | उसे अब संसार से कुछ पाना

शेि नहीं रहा | उसने आननद का सोत अपने भीतर ही पा िलया | अब वह आननद के िलये िकसी भी बाहरी िविय पर िनभरय नहीं है | वह पूणय सवतंत है | उसकी िियाएँ सहज होती है | संसार के िविय उसकी आननदमय आितमक िसथित को डोलायमान नहीं कर सकते | वह संसार के तुचछ िवियो की पोल को समझकर अपने आननद मे मसत हो इस भूतल पर िवचरण करता है | वह

चाहे लँगोटी मे हो चाहे बहुत से कपडो मे, घर मे रहता हो चाहे झोपडे मे, गह ृ सथी चलाता हो चाहे एकानत जंगल मे िवचरता हो, ऐसा महापुरि ऊपर से भले कंगाल नजर आता हो, परनतु भीतर से शहं शाह होता है , कयोिक उसकी सब वासनाएँ, सब कतवयय पूरे हो चुके है | ऐसे वयिि को, ऐसे

महापुरि को वीयरयकण करना नहीं पडता, सहज ही होता है | सब वयवहार करते हुए भी उनकी हर समय समािि रहती है | उनकी समािि सहज होती है , अखणड होती है | ऐसा महापुरि ही सचचा बहचारी होता है , कयोिक वह सदै व अपने बहाननद मे अविसथत रहता है | सथूल अथय मे बहचयय का अथय जो वीयरयकण समझा जाता है , उस अथय मे बहचयय शष े वत है , शष े तप है , शष े सािना है और इस सािना का फल है आतमजान, आतम-साकातकार | इस फलपािप के साथ ही बहचयय का पूणय अथय पकट हो जाता है |

जब तक िकसी भी पकार की वासना शेि है , तब तक कोई पूणय बहचयय को उपलबि नहीं हो

सकता | जब तक आतमजान नहीं होता तब तक पूणय रप से वासना िनवत ृ नहीं होती | इस

वासना की िनविृत के िलये, अंतःकरण की शुिि के िलये, ईशर की पािप के िलये, सुखी जीवन जीने के िलये, अपने मनुषय जीवन के सवोचच लकय को पाप करने के िलये या कहो परमाननद की पािप के िलये… कुछ भी हो, वीयरयकणरपी सािना सदै व अब अवसथाओं मे उतम है , शष े है और आवशयक है | वीयरयकण कैसे हो, इसके िलये यहाँ हम कुछ सथूल और सूकम उपायो की चचाय करे गे |

3. वी यय र का के उपा य सा दा रहन -सह न ब ना ये काफी लोगो को यह भम है िक जीवन तडक-भडकवाला बनाने से वे समाज मे िवशेि माने

जाते है | वसतुतः ऐसी बात नहीं है | इससे तो केवल अपने अहं कार का ही पदशन य होता है | लाल रं ग के भडकीले एवं रे शमी कपडे नहीं पहनो | तेल-फुलेल और भाँित-भाँित के इतो का पयोग करने से बचो | जीवन मे िजतनी तडक-भडक बढे गी, इिनियाँ उतनी चंचल हो उठे गी, िफर वीयरयका तो दरू की बात है | इितहास पर भी हम दिष डाले तो महापुरि हमे ऐसे ही िमलेगे, िजनका जीवन पारं भ से ही सादगीपूणय था | सादा रहन-सहन तो बडपपन का दोतक है | दस ू रो को दे ख कर उनकी अपाकृ ितक व अििक आवशयकताओंवाली जीवन-शैली का अनुसरण नहीं करो |

उपय ुि आ हार ईरान के बादशाह वहमन ने एक शष े वैद से पूछा : “िदन मे मनुषय को िकतना खाना चािहए?” “सौ िदराम (अथात य ् 31 तोला) | “वैद बोला |

“इतने से कया होगा?” बादशाह ने िफर पूछा | वैद ने कहा : “शरीर के पोिण के िलये इससे अििक नहीं चािहए | इससे अििक जो कुछ

खाया जाता है , वह केवल बोझा ढोना है और आयुषय खोना है |”

लोग सवाद के िलये अपने पेट के साथ बहुत अनयाय करते है , ठू ँ स-ठू ँ सकर खाते है | यूरोप का

एक बादशाह सवािदष पदाथय खूब खाता था | बाद मे औििियो दारा उलटी करके िफर से सवाद लेने के िलये भोजन करता रहता था | वह जिदी मर गया |

आप सवादलोलुप नहीं बनो | िजहा को िनयंतण मे रखो | कया खाये, कब खाये, कैसे खाये और िकतना खाये इसका िववेक नहीं रखा तो पेट खराब होगा, शरीर को रोग घेर लेगे, वीयन य ाश को पोतसाहन िमलेगा और अपने को पतन के रासते जाने से नहीं रोक सकोगे |

पेमपूवक य , शांत मन से, पिवत सथान पर बैठ कर भोजन करो | िजस समय नािसका का

दािहना सवर (सूयय नाडी) चालू हो उस समय िकया भोजन शीघ पच जाता है , कयोिक उस समय जठरािगन बडी पबल होती है | भोजन के समय यिद दािहना सवर चालू नहीं हो तो उसको चालू

कर दो | उसकी िविि यह है : वाम कुिक मे अपने दािहने हाथ की मुिठी रखकर कुिक को जोर से दबाओ या बाँयी (वाम) करवट लेट जाओ | थोडी ही दे र मे दािहना याने सूयय सवर चालू हो जायेगा |

राित को बाँयी करवट लेटकर ही सोना चािहए | िदन मे सोना उिचत नहीं िकनतु यिद सोना

आवशयक हो तो दािहनी करवट ही लेटना चािहए |

एक बात का खूब खयाल रखो | यिद पेय पदाथय लेना हो तो जब चनि (बाँया) सवर चालू हो

तभी लो | यिद सूयय (दािहना) सवर चालू हो और आपने दि ू , काफी, चाय, पानी या कोई भी पेय

पदाथय िलया तो वीयन य ाश होकर रहे गा | खबरदार ! सूयय सवर चल रहा हो तब कोई भी पेय पदाथय

न िपयो | उस समय यिद पेय पदाथय पीना पडे तो दािहना नथुना बनद करके बाँये नथुने से शास लेते हुए ही िपयो | राित को भोजन कम करो | भोजन हिका-सुपाचय हो | बहुत गमय-गमय और दे र से पचने वाला

गिरष भोजन रोग पैदा करता है | अििक पकाया हुआ, तेल मे तला हुआ, िमचय-मसालेयुि, तीखा, खटटा, चटपटे दार भोजन वीयन य ािडयो को कुबि करता है | अििक गमय भोजन और गमय चाय से दाँत कमजोर होते है | वीयय भी पतला पडता है |

भोजन खूब चबा-चबाकर करो | थके हुए हो तो ततकाल भोजन न करो | भोजन के तुरंत बाद

पिरशम न करो |

भोजन के पहले पानी न िपयो | भोजन के बीच मे तथा भोजन के एकाि घंटे के बाद पानी पीना िहतकर होता है | राित को संभव हो तो फलाहार लो | अगर भोजन लेना पडे तो अिपाहार ही करो | बहुत रात

गये भोजन या फलाहार करना िहतावह नहीं है | कबज की िशकायत हो तो 50 गाम लाल िफटकरी तवे पर फुलाकर, कूटकर, कपडे से छानकर बोतल मे भर लो | राित मे 15 गाम सौफ एक िगलास

पानी मे िभगो दो | सुबह उसे उबाल कर छान लो और डे ढ गाम िफटकरी का पाउडर िमलाकर पी लो | इससे कबज व बुखार भी दरू होता है | कबज तमाम िबमािरयो की जड है | इसे दरू करना आवशयक है |

भोजन मे पालक, परवल, मेथी, बथुआ आिद हरी तरकािरयाँ, दि ू , घी, छाछ, मकखन, पके हुए

फल आिद िवशेि रप से लो | इससे जीवन मे साितवकता बढे गी | काम, िोि, मोह आिद िवकार घटे गे | हर कायय मे पसननता और उतसाह बना रहे गा | राित मे सोने से पूवय गमय-गमय दि ू नहीं पीना चािहए | इससे रात को सवपनदोि हो जाता है | कभी भी मल-मूत की िशकायत हो तो उसे रोको नहीं | रोके हुए मल से भीतर की नािडयाँ

कुबि होकर वीयन य ाश कराती है |

पेट मे कबज होने से ही अििकांशतः राित को वीयप य ात हुआ करता है | पेट मे रका हुआ मल

वीयन य ािडयो पर दबाव डालता है तथा कबज की गमी से ही नािडयाँ कुिभत होकर वीयय को बाहर

िकेलती है | इसिलये पेट को साफ रखो | इसके िलये कभी-कभी ितफला चूणय या ‘संतकृ पा चूणय’ या ‘इसबगुल’ पानी के साथ िलया करो | अििक िति, खटटी, चरपरी और बाजार औििियाँ

उतेजक होती है , उनसे बचो | कभी-कभी उपवास करो | पेट को आराम दे ने के िलये कभी-कभी िनराहार भी रह सकते हो तो अचछा है |

आहार ं पच ित िशखी दोिान ् आहारव िज य तः | अथात य पेट की अिगन आहार को पचाती है और उपवास दोिो को पचाता है | उपवास से पाचनशिि बढती है | उपवास अपनी शिि के अनुसार ही करो | ऐसा न हो िक एक िदन तो उपवास िकया और दस ू रे िदन िमषानन-लडडू आिद पेट मे ठू ँ स-ठू ँ स कर उपवास की सारी कसर िनकाल दी | बहुत अििक भूखा रहना भी ठीक नहीं |

वैसे उपवास का सही अथय तो होता है बह के, परमातमा के िनकट रहना | उप यानी समीप

और वास यानी रहना | िनराहार रहने से भगवदजन और आतमिचंतन मे मदद िमलती है | विृत अनतमुख य होने से काम-िवकार को पनपने का मौका ही नहीं िमल पाता | मदपान, पयाज, लहसुन और मांसाहार – ये वीयक य य मे मदद करते है , अतः इनसे अवशय बचो |

िश शेिनि य स ना न शौच के समय एवं लघुशंका के समय साथ मे िगलास अथवा लोटे मे ठं डा जल लेकर जाओ और उससे िशशेिनिय को िोया करो | कभी-कभी उस पर ठं डे पानी की िार िकया करो | इससे कामविृत का शमन होता है और सवपनदोि नहीं होता |

उिचत आस न ए वं व या या म क रो सवसथ शरीर मे सवसथ मन का िनवास होता है | अंगेजी मे कहते है : A healthy mind resides in a healthy body. िजसका शरीर सवसथ नहीं रहता, उसका मन अििक िवकारगसत होता है | इसिलये रोज पातः वयायाम एवं आसन करने का िनयम बना लो | रोज पातः काल 3-4 िमनट दौडने और तेजी से टहलने से भी शरीर को अचछा वयायाम िमल जाता है | सूयन य मसकार 13 अथवा उससे अििक िकया करो तो उतम है | इसमे आसन व वयायाम दोनो का समावेश होता है | ‘वयायाम’ का अथय पहलवानो की तरह मांसपेिशयाँ बढाना नहीं है | शरीर को योगय कसरत िमल जाय तािक उसमे रोग पवेश न करे और शरीर तथा मन सवसथ रहे – इतना ही उसमे हे तु है |

वयायाम से भी अििक उपयोगी आसन है | आसन शरीर के समुिचत िवकास एवं बहचयय-

सािना के िलये अतयंत उपयोगी िसि होते है | इनसे नािडयाँ शुि होकर सतवगुण की विृि होती है | वैसे तो शरीर के अलग-अलग अंगो की पुिष के िलये अलग-अलग आसन होते है , परनतु

वीयरयका की दिष से मयूरासन, पादपििमोतानासन, सवाग ा ासन थोडी बहुत साविानी रखकर हर

कोई कर सकता है | इनमे से पादपििमोतानासन तो बहुत ही उपयोगी है | आशम मे आनेवाले कई सािको का यह िनजी अनुभव है |

िकसी कुशल योग-पिशकक से ये आसन सीख लो और पातःकाल खाली पेट, शुि हवा मे

िकया करो | शौच, सनान, वयायाम आिद के पिात ् ही आसन करने चािहए |

सनान से पूवय सुखे तौिलये अथवा हाथो से सारे शरीर को खूब रगडो | इस पकार के घिण य से शरीर मे एक पकार की िवदुत शिि पैदा होती है , जो शरीर के रोगो को नष करती है | शास तीव गित से चलने पर शरीर मे रि ठीक संचरण करता है और अंग-पतयंग के मल को िनकालकर फेफडो मे लाता है | फेफडो मे पिवष शुि वायु रि को साफ कर मल को अपने साथ बाहर

िनकाल ले जाती है | बचा-खुचा मल पसीने के रप मे तवचा के िछिो दारा बाहर िनकल आता है | इस पकार शरीर पर घिण य करने के बाद सनान करना अििक उपयोगी है , कयोिक पसीने दारा

बाहर िनकला हुआ मल उससे िुल जाता है , तवचा के िछि खुल जाते है और बदन मे सफूितय का संचार होता है |

बहम ुहू तय मे उ ठो सवपनदोि अििकांशतः राित के अंितम पहर मे हुआ करता है | इसिलये पातः चार-साढे चार

बजे यानी बहमुहूतय मे ही शैया का तयाग कर दो | जो लोग पातः काल दे री तक सोते रहते है , उनका जीवन िनसतेज हो जाता है |

दु वयय स नो से द ू र र हो शराब एवं बीडी-िसगरे ट-तमबाकू का सेवन मनुषय की कामवासना को उदीप करता है |

कुरान शरीफ के अिलाहपाक ितकोल रोशल के िसपारा मे िलखा है िक शैतान का भडकाया हुआ मनुषय ऐसी नशायुि चीजो का उपयोग करता है | ऐसे वयिि से अिलाह दरू रहता है , कयोिक यह काम शैतान का है और शैतान उस आदमी को जहननुम मे ले जाता है |

नशीली वसतुओं के सेवन से फेफडे और हदय कमजोर हो जाते है , सहनशिि घट जाती है

और आयुषय भी कम हो जाता है | अमरीकी डॉकटरो ने खोज करके बतलाया है

िक नशीली

वसतुओं के सेवन से कामभाव उतेिजत होने पर वीयय पतला और कमजोर पड जाता है |

सतस ंग क रो आप सतसंग नहीं करोगे तो कुसंग अवशय होगा | इसिलये मन, वचन, कमय से सदै व सतसंग का ही सेवन करो | जब-जब िचत मे पितत िवचार डे रा जमाने लगे तब-तब तुरंत सचेत हो जाओ

और वह सथान छोडकर पहुँच जाओ िकसी सतसंग के वातावरण मे, िकसी सिनमत या सतपुरि के सािननधय मे | वहाँ वे कामी िवचार िबखर जायेगे और आपका तन-मन पिवत हो जायेगा | यिद ऐसा नहीं िकया तो वे पितत िवचार आपका पतन िकये िबना नहीं छोडे गे, कयोिक जो मन मे

होता है , दे र-सबेर उसीके अनुसार बाहर की ििया होती है | िफर तुम पछताओगे िक हाय ! यह मुझसे कया हो गया ?

पानी का सवभाव है नीचे की ओर बहना | वैसे ही मन का सवभाव है पतन की ओर सुगमता

से बढना | मन हमेशा िोखा दे ता है | वह िवियो की ओर खींचता है , कुसंगित मे सार िदखता है , लेिकन वह पतन का रासता है | कुसंगित मे िकतना ही आकिण य हो, मगर… िज सके पीछ े हो गम

की कतार े , भूलकर उस ख ु शी स े न खेलो |

अभी तक गत जीवन मे आपका िकतना भी पतन हो चुका हो, िफर भी सतसंगित करो |

आपके उतथान की अभी भी गुज ं ाइश है | बडे -बडे दज य भी सतसंग से सजजन बन गये है | ु न शठ स ु िरिह ं सत संग ित पाई

|

सतसंग से वंिचत रहना अपने पतन को आमंितत करना है | इसिलये अपने नेत, कणय, तवचा आिद सभी को सतसंगरपी गंगा मे सनान कराते रहो, िजससे कामिवकार आप पर हावी न हो सके |

शुभ स ं कि प क रो ‘हम बहचयय का पालन कैसे कर सकते है ? बडे -बडे ॠिि-मुिन भी इस रासते पर िफसल पडते

है …’ – इस पकार के हीन िवचारो को ितलांजिल दे दो और अपने संकिपबल को बढाओ | शुभ

संकिप करो | जैसा आप सोचते हो, वैसे ही आप हो जाते हो | यह सारी सिृष ही संकिपमय है | दढ संकिप करने से वीयरयकण मे मदद होती है और वीयरयकण से संकिपबल बढता है | िव शासो फ लदायकः

| जैसा िवशास और जैसी शिा होगी वैसा ही फल पाप होगा | बहजानी

महापुरिो मे यह संकिपबल असीम होता है | वसतुतः बहचयय की तो वे जीती-जागती मुितय ही होते है |

ित बन ियुि पाण ाय ाम और य ोगाभय ास करो

ितबनि करके पाणायाम करने से िवकारी जीवन सहज भाव से िनिवक य ािरता मे पवेश करने लगता है | मूलबनि से िवकारो पर िवजय पाने का सामथयय आता है | उिडडयानबनि से आदमी उननित मे िवलकण उडान ले सकता है | जालनिरबनि से बुिि िवकिसत होती है |

अगर कोई वयिि अनुभवी महापुरि के सािननधय मे ितबनि के साथ पितिदन 12 पाणायाम

करे तो पतयाहार िसि होने लगेगा | 12 पतयाहार से िारणा िसि होने लगेगी | िारणा-शिि बढते ही पकृ ित के रहसय खुलने लगेगे | सवभाव की िमठास, बुिि की िवलकणता, सवासथय की सौरभ आने लगेगी | 12 िारणा िसि होने पर धयान लगेगा, सिवकिप समािि होने लगेगी | सिवकिप समािि का 12 गुना समय पकने पर िनिवक य िप समािि लगेगी | इस पकार छः महीने अभयास करनेवाला सािक िसि योगी बन सकता है | िरिि-िसिियाँ उसके आगे हाथ जोडकर खडी रहती है | यक, गंिवय, िकननर उसकी सेवा के िलए उतसुक होते है | उस पिवत पुरि के िनकट संसारी लोग मनौती मानकर अपनी मनोकामना पूणय कर सकते है | सािन करते समय रग-रग मे इस महान ् लकय की पािप के िलए िुन लग जाय| बहचयय-वत पालने वाला सािक पिवत जीवन जीनेवाला वयिि महान ् लकय की पािप मे

सफल हो सकता है |

हे िमत ! बार-बार असफल होने पर भी तुम िनराश मत हो | अपनी असफलताओं को याद करके हारे हुए जुआरी की तरह बार-बार िगरो मत | बहचयय की इस पुसतक को िफर-िफर से पढो | पातः िनिा से उठते समय िबसतर पर ही बैठे रहो और दढ भावना करो :

“मेरा जीवन पकृ ित की थपपडे खाकर पशुओं की तरह नष करने के िलए नहीं है | मै अवशय

पुरिाथय करँगा, आगे बढू ँ गा | हिर ॐ … ॐ … ॐ …

मेरे भीतर परबह परमातमा का अनुपम बल है | हिर ॐ … ॐ … ॐ … तुचछ एवं िवकारी जीवन जीनेवाले वयिियो के पभाव से मै अपनेको िविनमुि य करता जाऊँगा | हिर ॐ … ॐ … ॐ … सुबह मे इस पकार का पयोग करने से चमतकािरक लाभ पाप कर सकते हो | सवियनयनता सवश े र को कभी पयार करो … कभी पाथन य ा करो … कभी भाव से, िवहलता से आतन य ाद करो | वे अनतयाम य ी परमातमा हमे अवशय मागद य शन य दे ते है | बल-बुिि बढाते है | सािक तुचछ िवकारी

जीवन पर िवजयी होता जाता है | ईशर का असीम बल तुमहारे साथ है | िनराश मत हो भैया ! हताश मत हो | बार-बार िफसलने पर भी सफल होने की आशा और उतसाह मत छोडो |

शाबाश वीर … ! शाबाश … ! िहममत करो, िहममत करो | बहचयय-सुरका के उपायो को बारबार पढो, सूकमता से िवचार करो | उननित के हर केत मे तुम आसानी से िवजेता हो सकते हो | करोगे न िहममत ? अित खाना, अित सोना, अित बोलना, अित याता करना, अित मैथुन करना अपनी सुिुप

योगयताओं को िराशायी कर दे ता है , जबिक संयम और पुरिाथय सुिुप योगयताओं को जगाकर जगदीशर से मुलाकात करा दे ता है |

नी म क ा पेड चल ा हमारे सदगुरदे व परम पूजय लीलाशाहजी महाराज के जीवन की एक घटना बताता हूँ:

िसंि मे उन िदनो िकसी जमीन की बात मे िहनद ू और मुसलमानो का झगडा चल रहा

था | उस जमीन पर नीम का एक पेड खडा था, िजससे उस जमीन की सीमा-िनिारयण के बारे मे कुछ िववाद था | िहनद ू और मुसलमान कोटय -कचहरी के िकके खा-खाकर थके | आिखर दोनो पको

ने यह तय िकया िक यह िािमक य सथान है | दोनो पको मे से िजस पक का कोई पीर-फकीर उस सथान पर अपना कोई िवशेि तेज, बल या चमतकार िदखा दे , वह जमीन उसी पक की हो जायेगी | पूजय लीलाशाहजी बापू का नाम पहले ‘लीलाराम’ था | लोग पूजय लीलारामजी के पास पहुँचे और बोले: “हमारे तो आप ही एकमात संत है | हमसे जो हो सकता था वह हमने िकया, परनतु असफल रहे | अब समग िहनद ू समाज की पितषा आपशी के चरणो मे है | इंसा ँ की अज म स े जब द ू र िकना रा होता ह ै | तूफ ाँ म े टूटी िकशती का एक भ

गवान िकनार ा होता ह ै ||

अब संत कहो या भगवान कहो, आप ही हमारा सहारा है | आप ही कुछ करे गे तो यह िमस य थान िहनदओ ु ं का हो सकेगा |”

संत तो मौजी होते है | जो अहं कार लेकर िकसी संत के पास जाता है , वह खाली हाथ लौटता

है और जो िवनम होकर शरणागित के भाव से उनके सममुख जाता है , वह सब कुछ पा लेता है | िवनम और शिायुि लोगो पर संत की करणा कुछ दे ने को जिदी उमड पडती है | पूजय लीलारामजी उनकी बात मानकर उस सथान पर जाकर भूिम पर दोनो घुटनो के बीच िसर नीचा िकये हुए शांत भाव से बैठ गये |

िवपक के लोगो ने उनहे ऐसी सरल और सहज अवसथा मे बैठे हुए दे खा तो समझ िलया िक

ये लोग इस सािु को वयथय मे ही लाये है | यह सािु कया करे गा …? जीत हमारी होगी |

पहले मुिसलम लोगो दारा आमंितत पीर-फकीरो ने जाद ू-मंत, टोने-टोटके आिद िकये | ‘अला

बाँिँू बला बाँि… ँू पथ ृ वी बाँि… ँू तेज बाँिँू… वायू बाँिँू… आकाश बाँि… ँू फूऽऽऽ‘ आिद-आिद िकया | िफर पूजय लीलाराम जी की बारी आई |

पूजय लीलारामजी भले ही सािारण से लग रहे थे, परनतु उनके भीतर आतमाननद िहलोरे ले

रहा था | ‘पथ ृ वी, आकाश कया समग बहाणड मे मेरा ही पसारा है … मेरी सता के िबना एक पता भी नहीं िहल सकता… ये चाँद-िसतारे मेरी आजा मे ही चल रहे है … सवत य मै ही इन सब िविभनन रपो मे िवलास कर रहा हूँ…’ ऐसे बहाननद मे डू बे हुए वे बैठे थे |

ऐसी आतममसती मे बैठा हुआ िकनतु बाहर से कंगाल जैसा िदखने वाला संत जो बोल दे , उसे

घिटत होने से कौन रोक सकता है ?

विशष जी कहते है : “हे रामजी ! ितलोकी मे ऐसा कौन है , जो संत की आजा का उिलंघन

कर सके ?”

जब लोगो ने पूजय लीलारामजी से आगह िकया तो उनहोने िीरे से अपना िसर ऊपर की ओर

उठाया | सामने ही नीम का पेड खडा था | उस पर दिष डालकर गजन य ा करते हुए आदे शातमक भाव से बोल उठे :

“ऐ नीम ! इिर कया खडा है ? जा उिर हटकर खडा रह |” बस उनका कहना ही था िक नीम का पेड ‘सरय रय… सरय रय…’ करता हुआ दरू जाकर पूवव य त्

खडा हो गया |

लोग तो यह दे खकर आवाक रह गये ! आज तक िकसी ने ऐसा चमतकार नहीं दे खा था | अब

िवपकी लोग भी उनके पैरो पडने लगे | वे भी समझ गये िक ये कोई िसि महापुरि है |

वे िहनदओ ु ं से बोले : “ये आपके ही पीर नहीं है बििक आपके और हमारे सबके पीर है | अब

से ये ‘लीलाराम’ नहीं िकंतु ‘लीलाशाह’ है |

तब से लोग उनका ‘लीलाराम’ नाम भूल ही गये और उनहे ‘लीलाशाह’ नाम से ही पुकारने

लगे | लोगो ने उनके जीवन मे ऐसे-ऐसे और भी कई चमतकार दे खे |

वे 13 विय की उम पार करके बहलीन हुए | इतने वि ृ होने पर भी उनके सारे दाँत सुरिकत थे,

वाणी मे तेज और बल था | वे िनयिमत रप से आसन एवं पाणायाम करते थे | मीलो पैदल याता करते थे | वे आजनम बहचारी रहे | उनके कृ पा-पसाद दारा कई पुतहीनो को पुत िमले, गरीबो को

िन िमला, िनरतसािहयो को उतसाह िमला और िजजासुओं का सािना-मागय पशसत हुआ | और भी कया-कया हुआ यह बताने जाऊँगा तो िवियानतर होगा और समय भी अििक नहीं है | मै यह

बताना चाहता हूँ िक उनके दारा इतने चमतकार होते हुए भी उनकी महानता चमतकारो मे िनिहत नहीं है | उनकी महानता तो उनकी बहिनषता मे िनिहत थी |

छोटे -मोटे चमतकार तो थोडे बहुत अभयास के दारा हर कोई कर लेता है , मगर बहिनषा तो

चीज ही कुछ और है | वह तो सभी सािनाओं की अंितम िनषपित है | ऐसा बहिनष होना ही तो वासतिवक बहचारी होना है | मैने पहले भी कहा है िक केवल वीयरयका बहचयय नहीं है | यह तो

बहचयय की सािना है | यिद शरीर दारा वीयरयका हो और मन-बुिि मे िवियो का िचंतन चलता रहे , तो बहिनषा कहाँ हुई ? िफर भी वीयरयका दारा ही उस बहाननद का दार खोलना शीघ संभव होता है | वीयरयकण हो और कोई समथय बहिनष गुर िमल जाये तो बस, िफर और कुछ करना

शेि नहीं रहता | िफर वीयरयकण करने मे पिरशम नहीं करना पडता, वह सहज होता है | सािक िसि बन जाता है | िफर तो उसकी दिष मात से कामुक भी संयमी बन जाता है |

संत जानेशर महाराज िजस चबूतरे पर बैठे थे, उसीको कहा: ‘चल…’ तो वह चलने लगा | ऐसे

ही पूजयपाद लीलाशाहजी बापू ने नीम के पेड को कहा : ‘चल…’ तो वह चलने लगा और जाकर

दस ू री जगह खडा हो गया | यह सब संकिप बल का चमतकार है | ऐसा संकिप बल आप भी बढा सकते है |

िववेकाननद कहा करते थे िक भारतीय लोग अपने संकिप बल को भूल गये है , इसीिलये

गुलामी का दःुख भोग रहे है | ‘हम कया कर सकते है …’ ऐसे नकारातमक िचंतन दारा वे

संकिपहीन हो गये है जबिक अंगेज का बचचा भी अपने को बडा उतसाही समझता है और कायय मे सफल हो जाता है , कयोिक वे ऐसा िवचार करता है : ‘मै अंगेज हूँ | दिुनया के बडे भाग पर

हमारी जाित का शासन रहा है | ऐसी गौरवपूणय जाित का अंग होते हुए मुझे कौन रोक सकता है सफल होने से ? मै कया नहीं कर सकता ?’ ‘बस, ऐसा िवचार ही उसे सफलता दे दे ता है |

जब अंगेज का बचचा भी अपनी जाित के गौरव का समरण कर दढ संकिपवान ् बन सकता

है , तो आप कयो नहीं बन सकते ?

“मै ॠिि-मुिनयो की संतान हूँ | भीषम जैसे दढपितज पुरिो की परमपरा मे मेरा जनम हुआ है

| गंगा को पथ ृ वी पर उतारनेवाले राजा भगीरथ जैसे दढिनियी महापुरि का रि मुझमे बह रहा है | समुि को भी पी जानेवाले अगसतय ॠिि का मै वंशज हूँ | शी राम और शीकृ षण की अवतारभूिम भारत मे, जहाँ दे वता भी जनम लेने को तरसते है वहाँ मेरा जनम हुआ है , िफर मै ऐसा दीन-हीन कयो? मै जो चाहूँ सो कर सकता हूँ | आतमा की अमरता का, िदवय जान का, परम

िनभय य ता का संदेश सारे संसार को िजन ॠिियो ने िदया, उनका वंशज होकर मै दीन-हीन नहीं

रह सकता | मै अपने रि के िनभय य ता के संसकारो को जगाकर रहूँगा | मै वीयव य ान ् बनकर रहूँगा |” ऐसा दढ संकिप हरे क भारतीय बालक को करना चािहए |

सी -जाित के प ित म ात ृ भ ाव प बल क रो शी रामकृ षण परमहं स कहा करते थे : “ िकसी सुंदर सी पर नजर पड जाए तो उसमे माँ जगदमबा के दशन य करो | ऐसा िवचार करो िक यह अवशय दे वी का अवतार है , तभी तो इसमे

इतना सौदयय है | माँ पसनन होकर इस रप मे दशन य दे रही है , ऐसा समझकर सामने खडी सी को मन-ही-मन पणाम करो | इससे तुमहारे भीतर काम िवकार नहीं उठ सकेगा | मात ृ वत ् परदार ेि ु परिवय ेि ु लोषवत ् | पराई सी को माता के समान और पराए िन को िमटटी के ढे ले के समान समझो |

िश वा जी का पसं ग िशवाजी के पास कियाण के सूबेदार की िसयो को लाया गया था तो उस समय उनहोने यही आदशय उपिसथत िकया था | उनहोने उन िसयो को ‘माँ’ कहकर पुकारा तथा उनहे कई उपहार

दे कर सममान सिहत उनके घर वापस भेज िदया | िशवाजी परम गुर समथय रामदास के िशषय थे | भारतीय सभयता और संसकृ ित मे 'माता' को इतना पिवत सथान िदया गया है िक यह मातभ ृ ाव

मनुषय को पितत होते-होते बचा लेता है | शी रामकृ षण एवं अनय पिवत संतो के समक जब कोई सी कुचेषा करना चाहती तब वे सजजन, सािक, संत यह पिवत मातभ ृ ाव मन मे लाकर िवकार के फंदे से बच जाते | यह मातभ ृ ाव मन को िवकारी होने से बहुत हद तक रोके रखता है | जब भी िकसी सी को दे खने पर मन मे िवकार उठने लगे, उस समय सचेत रहकर इस मातभ ृ ाव का पयोग कर ही लेना चािहए |

अजुय न औ र उवय श ी अजुन य सशरीर इनि सभा मे गया तो उसके सवागत मे उवश य ी, रमभा आिद अपसराओं ने नतृय िकये | अजुन य के रप सौनदयय पर मोिहत हो उवश य ी राित के समय उसके िनवास सथान पर गई और पणय-िनवेदन िकया तथा साथ ही 'इसमे कोई दोि नहीं लगता' इसके पक मे अनेक दलीले भी कीं | िकनतु अजुन य ने अपने दढ इिनियसंयम का पिरचय दे ते हुए कह : तवया ||

गचछ मूधनाय पपननोऽिसम पादौ ते वरविणन य ी | तवं िह मे मातव ृ त ् पूजया रकयोऽहं पुतवत ् ( महाभारत : वनपवियण इनिलोकािभगमनपव य : ४६.४७) "मेरी दिष मे कुनती, मािी और शची का जो सथान है , वही तुमहारा भी है | तुम मेरे िलए

माता के समान पूजया हो | मै तुमहारे चरणो मे पणाम करता हूँ | तुम अपना दरुागह छोडकर लौट जाओ |" इस पर उवश य ी ने िोिित होकर उसे नपुंसक होने का शाप दे िदया | अजुन य ने उवश य ी से शािपत होना सवीकार िकया, परनतु संयम नहीं तोडा | जो अपने आदशय से नहीं हटता, िैयय और सहनशीलता को अपने चिरत का भूिण बनाता है , उसके िलये शाप भी वरदान बन जाता है |

अजुन य के िलये भी ऐसा ही हुआ | जब इनि तक यह बात पहुँची तो उनहोने अजुन य को कहा :

"तुमने इिनिय संयम के दारा ऋिियो को भी परािजत कर िदया | तुम जैसे पुत को पाकर कुनती वासतव मे शष े पुतवाली है | उवश य ी का शाप तुमहे वरदान िसि होगा | भूतल पर वनवास के १३वे विय मे अजातवास करना पडे गा उस समय यह सहायक होगा | उसके बाद तुम अपना पुरितव

िफर से पाप कर लोगे |" इनि के कथनानुसार अजातवास के समय अजुन य ने िवराट के महल मे नतक य वेश मे रहकर िवराट की राजकुमारी को संगीत और नतृय िवदा िसखाई थी और इस पकार

वह शाप से मुि हुआ था | परसी के पित मातभ ृ ाव रखने का यह एक सुंदर उदाहरण है | ऐसा ही एक उदाहरण वािमीिककृ त रामायण मे भी आता है | भगवान शीराम के छोटे भाई लकमण को

जब सीताजी के गहने पहचानने को कहा गया तो लकमण जी बोले : हे तात ! मै तो सीता माता के पैरो के गहने और नूपुर ही पहचानता हूँ, जो मुझे उनकी चरणवनदना के समय दिषगोचर होते रहते थे | केयूर-कुणडल आिद दस ृ ाववाली दिष ही इस ू रे गहनो को मै नहीं जानता |" यह मातभ

बात का एक बहुत बडा कारण था िक लकमणजी इतने काल तक बहचयय का पालन िकये रह

सके | तभी रावणपुत मेघनाद को, िजसे इनि भी नहीं हरा सका था, लकमणजी हरा पाये | पिवत मातभ ृ ाव दारा वीयरयकण का यह अनुपम उदाहरण है जो बहचयय की महता भी पकट करता है | सतसा िहतय प ढो

जैसा सािहतय हम पढते है , वैसे ही िवचार मन के भीतर चलते रहते है और उनहींसे हमारा सारा वयवहार पभािवत होता है | जो लोग कुितसत, िवकारी और कामोतेजक सािहतय पढते है , वे कभी ऊपर नही उठ सकते | उनका मन सदै व काम-िविय के िचंतन मे ही उलझा रहता है और इससे वे अपनी वीयरयका करने मे असमथय रहते है | गनदे सािहतय कामुकता का भाव पैदा

करते है | सुना गया है िक पािातय जगत से पभािवत कुछ नरािम चोरी-िछपे गनदी िफिमो का पदशन य करते है जो अपना और अपने संपकय मे आनेवालो का िवनाश करते है | ऐसे लोग

मिहलाओं, कोमल वय की कनयाओं तथा िकशोर एवं युवावसथा मे पहुँचे हुए बचचो के साथ बडा

अनयाय करते है | 'बियू िफिम' दे खने-िदखानेवाले महा अिम कामानि लोग मरने के बाद शूकर, कूकर आिद योिनयो मे जनम लेकर अथवा गनदी नािलयो के कीडे बनकर छटपटाते हुए द :ु ख

भोगेगे ही | िनदोि कोमलवय के नवयुवक उन दष ु ो के िशकार न बने, इसके िलए सरकार और समाज को साविान रहना चािहए |

बालक दे श की संपित है | बहचयय के नाश से उनका िवनाश हो जाता है | अतः नवयुवको

को मादक िवयो, गनदे सािहतयो व गनदी िफिमो के दारा बबाद य होने से बचाया जाये | वे ही तो

राष के भावी कणि य ार है | युवक-युवितयाँ तेजसवी हो, बहचयय की मिहमा समझे इसके िलए हम सब लोगो का कतव य य है िक सकूलो-कालेजो मे िवदािथय य ो तक बहचयय पर िलखा गया सािहतय

पहुँचाये | सरकार का यह नैितक कतवयय है िक वह िशका पदान कर बहचयय िवशय पर िवदािथय य ो को साविान करे तािक वे तेजसवी बने | िजतने भी महापुरि हुए है , उनके जीवन पर दिषपात

करो तो उन पर िकसी-न-िकसी सतसािहतय की छाप िमलेगी | अमेिरका के पिसि लेखक इमसन य

के गुर थोरो बहचयय का पालन करते थे | उनहो ने िलखा है : "मै पितिदन गीता के पिवत जल से सनान करता हूँ | यदिप इस पुसतक को िलखनेवाले दे वताओं को अनेक विय वयतीत हो गये, लेिकन इसके बराबर की कोई पुसतक अभी तक नहीं िनकली है |"

योगेशरी माता गीता के िलए दस ू रे एक िवदे शी िवदान ्, इं गलैणड के एफ. एच. मोलेम कहते

है : "बाइिबल का मैने यथाथय अभयास िकया है | जो जान गीता मे है , वह ईसाई या यदह ू ी

बाइिबलो मे नहीं है | मुझे यही आियय होता है िक भारतीय नवयुवक यहाँ इं गलैणड तक पदाथय

िवजान सीखने कयो आते है ? िन:संदेह पािातयो के पित उनका मोह ही इसका कारण है | उनके भोलेभाले हदयो ने िनदय य और अिवनम पििमवािसयो के िदल अभी पहचाने नहीं है | इसीिलए उनकी िशका से िमलनेवाले पदो की लालच से वे उन सवािथय य ो के इनिजाल मे फंसते है |

अनयथा तो िजस दे श या समाज को गुलामी से छुटना हो उसके िलए तो यह अिोगित का ही मागय है |

मै ईसाई होते हुए भी गीता के पित इतना आदर-मान इसिलए रखता हूँ िक िजन गूढ

पशो का हल पािातय वैजािनक अभी तक नहीं कर पाये, उनका हल इस गीता गंथ ने शुि और

सरल रीित से दे िदया है | गीता मे िकतने ही सूत आलौिकक उपदे शो से भरपूर दे खे, इसी कारण गीताजी मेरे िलए साकात योगेशरी माता बन गई है | िवश भर मे सारे िन से भी न िमल सके, भारतविय का यह ऐसा अमूिय खजाना है |

सुपिसि पतकार पॉल िबिनटन सनातन िम य की ऐसी िािमक य पुसतके पढकर जब पभािवत

हुआ तभी वह िहनदस य करके ु तान आया था और यहाँ के रमण महििय जैसे महातमाओं के दशन

िनय हुआ था | दे शभििपूणय सािहतय पढकर ही चनिशेखर आजाद, भगतिसंह, वीर सावरकर जैसे रत अपने जीवन को दे शािहत मे लगा पाये |

इसिलये सतसािहतय की तो िजतनी मिहमा गाई जाये, उतनी कम है | शीयोगविशष

महारामायण, उपिनिद, दासबोि, सुखमिन, िववेकचूडामिण, शी रामकृ षण सािहतय, सवामी रामतीथय के पवचन आिद भारतीय संसकृ ित की ऐसी कई पुसतके है िजनहे पढो और उनहे अपने दै िनक जीवन का अंग बना लो | ऐसी-वैसी िवकारी और कुितसत पुसतक-पुिसतकाएँ हो तो उनहे उठाकर कचरे ले ढे र पर फेक दो या चूिहे मे डालकर आग तापो, मगर न तो सवयं पढो और न दस ू रे के हाथ लगने दो |

इस पकार के आधयाितमक सिहतय-सेवन मे बहचयय मजबूत करने की अथाह शिि होती

है | पातःकाल सनानािद के पिात िदन के वयवसाय मे लगने से पूवय एवं राित को सोने से पूवय

कोई-न-कोई आधयाितमक पुसतक पढना चािहए | इससे वे ही सतोगुणी िवचार मन मे घूमते रहे गे जो पुसतक मे होगे और हमारा मन िवकारगसत होने से बचा रहे गा |

कौपीन (लंगोटी) पहनने का भी आगह रखो | इससे अणडकोि सवसथ रहे गे और वीयरयकण

मे मदद िमलेगी |

वासना को भडकाने वाले नगन व अशील पोसटरो एवं िचतो को दे खने का आकिण य छोडो |

अशील शायरी और गाने भी जहाँ गाये जाते हो, वहाँ न रको |

वी यय संच य के चमत कार

वीयय के एक-एक अणु मे बहुत महान ् शिियाँ िछपी है | इसीके दारा शंकराचायय, महावीर,

कबीर, नानक जैसे महापुरि िरती पर अवतीणय हुए है | बडे -बडे वीर, योिा, वैजािनक, सािहतयकारये सब वीयय की एक बूद ँ मे िछपे थे … और अभी आगे भी पैदा होते रहे गे | इतने बहुमूिय वीयय का सदप ु योग जो वयिि नहीं कर पाता, वह अपना पतन आप आमंितत करता है | वीय ं वै भ गय ः |

(शतप थ बाहण

)

वीयय ही तेज है , आभा है , पकाश है | जीवन को ऊधवग य ामी बनाने वाली ऐसी बहुमूिय वीयश य िि को िजसने भी खोया, उसको िकतनी

हािन उठानी पडी, यह कुछ उदाहरणो के दारा हम समझ सकते है |

भी षम िपत ाम ह औ र वी र अिभम नयु महाभारत मे बहचयय से संबंिित दो पसंग आते है : एक भीषम िपतामह का और दस ू रा वीर

अिभमनयु का | भीषम िपतामह बाल बहचारी थे, इसिलये उनमे अथाह सामथयय था | भगवान शी कृ षण का यह वत था िक ‘मै युि मे शस नहीं उठाऊँगा |’ िकनतु यह भीषम की बहचयय शिि का ही चमतकार था िक उनहोने शी कृ षण को अपना

वत भंग करने के िलए मजबूर कर िदया |

उनहोने अजुन य पर ऐसी बाण विाय की िक िदवयासो से सुसिजजत अजुन य जैसा िुरनिर िनुिारयी

भी उसका पितकार करने मे असमथय हो गया िजससे उसकी रकाथय भगवान शी कृ षण को रथ का पिहया लेकर भीषम की ओर दौडना पडा |

यह बहचयय का ही पताप था िक भीषम मौत पर भी िवजय पाप कर सके | उनहोने ही यह

सवयं तय िकया िक उनहे कब शरीर छोडना है | अनयथा शरीर मे पाणो का िटके रहना असंभव था, परनतु भीषम की िबना आजा के मौत भी उनसे पाण कैसे छीन सकती थी ! भीषम ने सवेचछा से शुभ मुहूतय मे अपना शरीर छोडा |

दस य का वीर पुत अिभमनयु ू री ओर अिभमनयु का पसंग आता है | महाभारत के युि मे अजुन

चिवयूह का भेदन करने के िलए अकेला ही िनकल पडा था | भीम भी पीछे रह गया था | उसने जो शौयय िदखाया, वह पशंसनीय था | बडे -बडे महारिथयो से िघरे होने पर भी वह रथ का पिहया लेकर अकेला युि करता रहा, परनतु आिखर मे मारा गया | उसका कारण यह था िक युि मे

जाने से पूवय वह अपना बहचयय खिणडत कर चुका था | वह उतरा के गभय मे पाणडव वंश का बीज डालकर आया था | मात इतनी छोटी सी कमजोरी के कारण वह िपतामह भीषम की तरह अपनी मतृयु का आप मािलक नहीं बन सका |

पृ थव ीर ाज चौह ान कयो हार ा ? भारात मे पथ ृ वीराज चौहान ने मोहममद गोरी को सोलह बार हराया िकनतु सतहवे युि मे वह खुद हार गया और उसे पकड िलया गया | गोरी ने बाद मे उसकी आँखे लोहे की गमय सलाखो से फुडवा दीं | अब यह एक बडा आियय है िक सोलह बार जीतने वाला वीर योिा हार कैसे गया ? इितहास बताता है िक िजस िदन वह हारा था उस िदन वह अपनी पती से अपनी कमर

कसवाकर अथात य अपने वीयय का सतयानाश करके युिभूिम मे आया था | यह है वीयश य िि के वयय का दषुपिरणाम | रामायण महाकावय के पात रामभि हनुमान के कई अदभुत परािम तो हम सबने सुने ही है जैसे- आकाश मे उडना, समुि लाँघना, रावण की भरी सभा मे से छूटकर लौटना, लंका

जलाना, युि मे रावण को मुकका मार कर मूिछय त कर दे ना, संजीवनी बूटी के िलये पूरा पहाड उठा लाना आिद | ये सब बहचयय की शिि का ही पताप था | फांस का समाट नेपोिलयन कहा करता था : "असं भव शबद ही मेरे शबदकोि मे नहीं है |" परनतु वह भी हार गया | हारने के मूल कारणो मे एक कारण यह भी था िक युि से पूवय ही उसने सी के आकिण य मे अपने वीयय का कय कर िदया था |

सेमसन भी शूरवीरता के केत मे बहुत पिसि था | "बाइिबल" मे उसका उिलेख आता है |

वह भी सी के मोहक आकिण य से नहीं बच सका और उसका भी पतन हो गया |

सव ामी र ामती थय क ा अन ुभ व सवामी रामतीथय जब पोफेसर थे तब उनहोने एक पयोग िकया और बाद मे िनषकिर य प मे

बताया िक जो िवदाथी परीका के िदनो मे या परीका के कुछ िदन पहले िवियो मे फंस जाते है , वे परीका मे पायः असफल हो जाते है , चाहे विय भर अपनी कका मे अचछे िवदाथी कयो न रहे हो | िजन िवदािथय य ो का िचत परीका के िदनो मे एकाग और शुि रहा करता है , वे ही सफल होते है | काम िवकार को रोकना वसतुतः बडा दःुसाधय है |

यही कारण है िक मनु महाराज ने यहां तक कह िदया है :

"माँ, बहन और पुती के साथ भी वयिि को एकानत मे नहीं बैठना चािहये, कयोिक मनुषय की इिनियाँ बहुत बलवान ् होती है | वे िवदानो के मन को भी समान रप से अपने वेग मे खींच ले जाती है |"

यु वा वगय से दो बा ते मै युवक वगय से िवशेिरप से दो बाते कहना चाहता हूं कयोिक यही वह वगय है जो अपने

दे श के सुदढ भिवषय का आिार है | भारत का यही युवक वगय जो पहले दे शोतथान एवं

आधयाितमक रहसयो की खोज मे लगा रहता था, वही अब कािमिनयो के रं ग-रप के पीछे पागल होकर अपना अमूिय जीवन वयथय मे खोता जा रहा है | यह कामशिि मनुषय के िलए अिभशाप नहीं, बििक वरदान सवरप है | यह जब युवक मे िखलने लगती है तो उसे उस समय इतने

उतसाह से भर दे ती है िक वह संसार मे सब कुछ कर सकने की िसथित मे अपने को समथय अनुभव करने लगता है , लेिकन आज के अििकांश युवक दवुयस य नो मे फँसकर हसतमैथुन एवं सवपनदोि के िशकार बन जाते है |

हस तमैथ ु न का दु ष पिरण ाम इन दवुयस य नो से युवक अपनी वीयि य ारण की शिि खो बैठता है और वह तीवता से

नपुसंकता की ओर अगसर होने लगता है | उसकी आँखे और चेहरा िनसतेज और कमजोर हो जाता है | थोडे पिरशम से ही वह हाँफने लगता है , उसकी आंखो के आगे अंिेरा छाने लगता है | अििक कमजोरी से मूचछाय भी आ जाती है | उसकी संकिपशिि कमजोर हो जाती है |

अमेिर का मे िक या ग या प योग अमेिरका मे एक िवजानशाला मे ३० िवदािथय य ो को भूखा रखा गया | इससे उतने समय

के िलये तो उनका काम िवकार दबा रहा परनतु भोजन करने के बाद उनमे िफर से काम-वासना जोर पकडने लगी | लोहे की लंगोट पहन कर भी कुछ लोग कामदमन की चेषा करते पाए जाते है | उनको 'िसकिडया बाबा' कहते है | वे लोहे या पीतल की लंगोट पहन कर उसमे ताला लगा दे ते है

| कुछ ऐसे भी लोग हुए है , िजनहोने इस काम-िवकार से छुटटी पाने के िलये अपनी जननेिनिय ही काट दी और बाद मे बहुत पछताये | उनहे मालूम नहीं था िक जननेिनिय तो काम िवकार पकट होने का एक सािन है | फूल-पतते तोडने से पेड नष नहीं होता | मागद य शन य के अभाव मे लोग कैसी-कैसी भूले करते है , ऐसा ही यह एक उदाहरण है |

जो युवक १७ से २४ विय की आयु तक संयम रख लेता है , उसका मानिसक बल एवं बुिि बहुत तेजसवी हो जाती है | जीवनभर उसका उतसाह एवं सफूितय बनी रहती है | जो युवक बीस विय की आयु पूरी होने से पूवय ही अपने वीयय का नाश करना शुर कर दे ता है , उसकी सफूितय और होसला पसत हो जाता है तथा सारे जीवनभर के िलये उसकी बुिि कुिणठत हो जाती है | मै

चाहता हूँ िक युवावगय वीयय के संरकण के कुछ ठोस पयोग सीख ले | छोटे -मोटे पयोग, उपवास,

भोजन मे सुिार आिद तो ठीक है , परनतु वे असथाई लाभ ही दे पाते है | कई पयोगो से यह बात िसि हुई है |

काम शिि का दमन य ा ऊ धव य गमन ? कामशिि का दमन सही हल नहीं है | सही हल है इस शिि को ऊधवम य ुखी बनाकर शरीर

मे ही इसका उपयोग करके परम सुख को पाप करना | यह युिि िजसको आ गई, उसे सब आ गया और िजसे यह नहीं आई वह समाज मे िकतना भी सतावान ्, िनवान ्, पितशठावान ् बन

जाय, अनत मे मरने पर अनाथ ही रह जायेगा, अपने-आप को नहीं िमल पायेगा | गौतम बुि यह युिि जानते थे, तभी अंगुलीमाल जैसा िनदय यी हतयारा भी सारे दषुकृ तय छोडकर उनके आगे

िभकुक बन गया | ऐसे महापुरिो मे वह शिि होती है , िजसके पयोग से सािक के िलए बहचयय की सािना एकदम सरल हो जाती है | िफर काम-िवकार से लडना नही पडता है , बििक जीवन मे बहचयय सहज ही फिलत होने लगता है |

मैने ऐसे लोगो को दे खा है , जो थोडा सा जप करते है और बहुत पूजे जाते है | और ऐसे

लोगो को भी दे खा है , जो बहुत जप-तप करते है , िफर भी समाज पर उनका कोई पभाव नहीं,

उनमे आकिण य नहीं | जाने-अनजाने, हो-न-हो, जागत ृ अथवा िनिावसथा मे या अनय िकसी पकार से उनकी वीयय शिि अवशय नष होती रहती है |

एक स ाि क क ा अ नुभ व एक सािक ने, यहाँ उसका नाम नहीं लूँगा, मुझे सवयं ही बताया : "सवामीजी ! यहाँ आने

से पूवय मै महीने मे एक िदन भी पती के िबना नहीं रह सकता था ... इतना अििक काम-िवकार मे फँसा हुआ था, परनतु अब ६-६ महीने बीत जाते है पती के िबना और काम-िवकार भी पहले की भाँित नहीं सताता |"

दू सरे सा िक का अनुभव दस ू रे एक और सजजन यहाँ आते है , उनकी पती की िशकायत मुझे सुनने को िमली है |

वह सवयं तो यहाँ आती नहीं, मगर लोगो से कहा है िक : "िकसी पकार मेरे पित को समझाये िक वे आशम मे नहीं जाया करे |"

वैसे तो आशम मे जाने के िलए कोई कयो मना करे गा ? मगर उसके इस पकार मना

करने का कारण जो उसने लोगो को बताया और लोगो ने मुझे बताया वह इस पकार है : वह कहती है : "इन बाबा ने मेरे पित पर न जाने कया जाद ू िकया है िक पहले तो वे रात मे मुझे पास मे सुलाते थे, परनतु अब मुझसे दरू सोते है | इससे तो वे िसनेमा मे जाते थे, जैसे-तैसे

दोसतो के साथ घूमते रहते थे, वही ठीक था | उस समय कम से कम मेरे कहने मे तो चलते थे, परनतु अब तो..."

कैसा दभ ु ागयय है मनुषय का ! वयिि भले ही पतन के रासते चले, उसके जीवन का भले ही

सतयानाश होता रहे , परनतु "वह मेरे कहने मे चले ..." यही संसारी पेम का ढाँचा है | इसमे पेम दो-पांच पितशत हो सकता है , बाकी ९५ पितशत तो मोह ही होता है , वासना ही होती है | मगर

मोह भी पेम का चोला ओढकर िफरता रहता है और हमे पता नहीं चलता िक हम पतन की ओर जा रहे है या उतथान की ओर |

यो गी क ा संक िप बल बहचयय उतथान का मागय है | बाबाजी ने कुछ जाद ू-वाद ू नहीं िकया| केवल उनके दारा

उनकी यौिगक शिि का सहारा उस वयिि को िमला, िजससे उसकी कामशिि ऊधवग य ामी हो गई | इस कारण उसका मन संसारी काम सुख से ऊपर उठ गया | जब असली रस िमल गया तो गंदी नाली दारा िमलने वाले रस की ओर कोई कयो ताकेगा ? ऐसा कौन मूखय होगा जो बहचयय का पिवत और असली रस छोडकर घिृणत और पतनोनमुख करने वाले संसारी कामसुख की ओर दौडे गा ?

कया य ह च मत का र है ?

सामानय लोगो के िलये तो यह मानो एक बहुत बडा चमतकार है , परनतु इसमे चमतकार

जैसी कोई बात नहीं है | जो महापुरि योगमागय से पिरिचत है और अपनी आतममसती मे मसत रहते है उनके िलये तो यह एक खेल मात है | योग का भी अपना एक िवजान है , जो सथूल िवजान से भी सूकम और अििक पभावी होता है | जो लोग ऐसे िकसी योगी महापुरि के

सािननधय का लाभ लेते है , उनके िलये तो बहचयय का पालन सहज हो जाता है | उनहे अलग से कोई मेहनत नहीं करनी पडती |

हस तमैथ ु न व सवप नदो ि स े कैस े बचे यिद कोई हसत मैथुन या सवपनदोि की समसया से गसत है और वह इस रोग से छुटकारा पाने को वसतुतः इचछुक है , तो सबसे पहले तो मै यह कहूँगा िक अब वह यह िचंता छोड दे िक 'मुझे यह रोग है और अब मेरा कया होगा ? कया मै िफर से सवासथय लाभ कर सकूँगा ?' इस पकार के िनराशावादी िवचारो को वह जडमूल से उखाड फेके |

सदैव पस नन र हो जो हो चुका वह बीत गया | बीती सो बीती

, बीती ता ही िबसार द े , आगे की स ु िि

लेय | एक तो रोग, िफर उसका िचंतन और भी रगण बना दे ता है | इसिलये पहला काम तो यह करो िक दीनता के िवचारो को ितलांजिल दे कर पसनन और पफुििलत रहना पारं भ कर दो |

पीछे िकतना वीयन य ाश हो चुका है , उसकी िचंता छोडकर अब कैसे वीयरयकण हो सके, उसके

िलये उपाय करने हे तु कमर कस लो |

धयान रह े : वीयश य िि का दमन नहीं करना है , उसे ऊधवग य ामी बनाना है | वीयश य िि का

उपयोग हम ठीक ढं ग से नहीं कर पाते | इसिलये इस शिि के ऊधवग य मन के कुछ पयोग हम समझ ले |

वी यय का ऊध वय ग मन क या है ?

वीयय के ऊधवग य मन का अथय यह नहीं है िक वीयय सथूल रप से ऊपर सहसार की ओर जाता है | इस िविय मे कई लोग भिमत है | वीयय तो वहीं रहता है , मगर उसे संचािलत करनेवाली जो कामशिि है , उसका ऊधवग य मन होता है | वीयय को ऊपर चढाने की नाडी शरीर के भीतर नहीं

है | इसिलये शुिाणु ऊपर नहीं जाते बििक हमारे भीतर एक वैदिु तक चुमबकीय शिि होती है जो नीचे की ओर बहती है , तब शुिाणु सििय होते है |

इसिलये जब पुरि की दिशट भडकीले वसो पर पडती है या उसका मन सी का िचंतन करता

है , तब यही शिि उसके िचंतनमात से नीचे मूलािार केनि के नीचे जो कामकेनि है , उसको

सििय कर, वीयय को बाहर िकेलती है | वीयय सखिलत होते ही उसके जीवन की उतनी कामशिि वयथय मे खचय हो जाती है | योगी और तांितक लोग इस सूकम बात से पिरिचत थे | सथूल िवजानवाले जीवशासी और डॉकटर लोग इस बात को ठीक से समझ नहीं पाये इसिलये

आिुिनकतम औजार होते हुए भी कई गंभीर रोगो को वे ठीक नहीं कर पाते जबिक योगी के दिषपात मात या आशीवाद य से ही रोग ठीक होने के चमतकार हम पायः दे खा-सुना करते है |

आप बहुत योगसािना करके ऊधवरयेता योगी न भी बनो िफर भी वीयरयकण के िलये इतना

छोटा-सा पयोग तो कर ही सकते हो :

वी यय रक ा क ा मह तवप ूण य प योग अपना जो ‘काम-संसथान’ है , वह जब सििय होता है तभी वीयय को बाहर िकेलता है | िकनतु िनमन पयोग दारा उसको सििय होने से बचाना है | जयो ही िकसी सी के दशन य से या कामुक िवचार से आपका धयान अपनी जननेिनिय की तरफ िखंचने लगे, तभी आप सतकय हो जाओ | आप तुरनत जननेिनिय को भीतर पेट की तरफ़

खींचो | जैसे पंप का िपसटन खींचते है उस पकार की ििया मन को जननेिनिय मे केिनित करके करनी है | योग की भािा मे इसे योिनमुिा कहते है | अब आँखे बनद करो | िफर ऐसी भावना करो िक मै अपने जननेिनिय-संसथान से ऊपर िसर मे िसथत सहसार चि की तरफ दे ख रहा हूँ | िजिर हमारा मन लगता है , उिर ही यह शिि

बहने लगती है | सहसार की ओर विृत लगाने से जो शिि मूलािार मे सििय होकर वीयय को सखिलत करनेवाली थी, वही शिि ऊधवग य ामी बनकर आपको वीयप य तन से बचा लेगी | लेिकन

धयान रहे : यिद आपका मन काम-िवकार का मजा लेने मे अटक गया तो आप सफल नहीं हो पायेगे | थोडे संकिप और िववेक का सहारा िलया तो कुछ ही िदनो के पयोग से महतवपूणय

फायदा होने लगेगा | आप सपष महसूस करे गे िक एक आँिी की तरह काम का आवेग आया और इस पयोग से वह कुछ ही कणो मे शांत हो गया |

दू सर ा पय ोग जब भी काम का वेग उठे , फेफडो मे भरी वायु को जोर से बाहर फेको | िजतना अििक बाहर फेक सको, उतना उतम | िफर नािभ और पेट को भीतर की ओर खींचो | दो-तीन बार के पयोग से ही काम-िवकार शांत हो जायेगा और आप वीयप य तन से बच जाओगे |

यह पयोग िदखता छोटा-सा है , मगर बडा महतवपूणय यौिगक पयोग है | भीतर का शास

कामशिि को नीचे की ओर िकेलता है | उसे जोर से और अििक माता मे बाहर फेकने से वह मूलािार चि मे कामकेनि को सििय नहीं कर पायेगा | िफर पेट व नािभ को भीतर संकोचने से वहाँ खाली जगह बन जाती है | उस खाली जगह को भरने के िलये कामकेनि के आसपास की

सारी शिि, जो वीयप य तन मे सहयोगी बनती है , िखंचकर नािभ की तरफ चली जाती है और इस पकार आप वीयप य तन से बच जायेगे |

इस पयोग को करने मे न कोई खचय है , न कोई िवशेि सथान ढू ँ ढने की जररत है | कहीं भी

बैठकर कर सकते है | काम-िवकार न भी उठे , तब भी यह पयोग करके आप अनुपम लाभ उठा सकते है | इससे जठरािगन पदीप होती है , पेट की बीमािरयाँ िमटती है , जीवन तेजसवी बनता है और वीयरयकण सहज मे होने लगता है |

वी यय रक क चू णय बहुत कम खचय मे आप यह चूणय बना सकते है | कुछ सुखे आँवलो से बीज अलग करके

उनके िछलको को कूटकर उसका चूणय बना लो | आजकल बाजार मे आँवलो का तैयार चूणय भी

िमलता है | िजतना चूणय हो, उससे दग ु ुनी माता मे िमशी का चूणय उसमे िमला दो | यह चूणय उनके िलए भी िहतकर है िजनहे सवपनदोि नहीं होता हो |

रोज राित को सोने से आिा घंटा पूवय पानी के साथ एक चममच यह चूणय ले िलया करो |

यह चूणय वीयय को गाढा करता है , कबज दरू करता है , वात-िपत-कफ के दोि िमटाता है और संयम को मजबूत करता है |

गोद का पय ोग 6 गाम खेरी गोद राित को पानी मे िभगो दो | इसे सुबह खाली पेट ले लो | इस पयोग के दौरान अगर भूख कम लगती हो तो दोपहर को भोजन के पहले अदरक व नींबू का रस िमलाकर लेना चािहए |

तुलस ी : एक अदभ ुत औ ििि पेनच डॉकटर िवकटर रे सीन ने कहा है : “तुलसी एक अदभुत औििि है | तुलसी पर िकये गये

पयोगो ने यह िसि कर िदया है िक रिचाप और पाचनतंत के िनयमन मे तथा मानिसक रोगो मे तुलसी अतयंत लाभकारी है | इससे रिकणो की विृि होती है | मलेिरया तथा अनय पकार के बुखारो मे तुलसी अतयंत उपयोगी िसि हुई है |

तुलसी रोगो को तो दरू करती ही है , इसके अितिरि बहचयय की रका करने एवं यादशिि

बढाने मे भी अनुपम सहायता करती है | तुलसीदल एक उतकृ ष रसायन है | यह ितदोिनाशक है | रििवकार, वायु, खाँसी, कृ िम आिद की िनवारक है तथा हदय के िलये बहुत िहतकारी है |

बहच यय रक ा ह ेत ु म ंत एक कटोरी दि ू मे िनहारते हुए इस मंत का इककीस बार जप करे | तदपिात उस दि ू को पी

ले, बहचयय रका मे सहायता िमलती है | यह मंत सदै व मन मे िारण करने योगय है : ॐ नमो भगवत े महाबल े पर ाि माय मनो िभला िित ं मनः सत ं भ कु र कु र सवाहा

|

पाद पििमो तान ास न

िव िि : जमीन पर आसन िबछाकर दोनो पैर सीिे करके बैठ जाओ | िफर दोनो हाथो से पैरो के अगूँठे पकडकर झुकते हुए िसर को दोनो घुटनो से िमलाने का पयास करो | घुटने जमीन पर सीिे रहे | पारं भ मे घुटने जमीन पर न िटके तो कोई हजय नहीं | सतत अभयास से यह

आसन िसि हो जायेगा | यह आसन करने के 15 िमनट बाद एक-दो कचची िभणडी खानी चािहए | सेवफल का सेवन भी फायदा करता है |

लाभ : इस आसन से नािडयो की िवशेि शुिि होकर हमारी कायक य मता बढती है और शरीर

की बीमािरयाँ दरू होती है | बदहजमी, कबज जैसे पेट के सभी रोग, सदी-जुकाम, कफ िगरना, कमर

का ददय , िहचकी, सफेद कोढ, पेशाब की बीमािरयाँ, सवपनदोि, वीयय-िवकार, अपेिनडकस, साईिटका, नलो की सुजन, पाणडु रोग (पीिलया), अिनिा, दमा, खटटी डकारे , जानतंतुओं की कमजोरी, गभाश य य के

रोग, मािसकिमय की अिनयिमतता व अनय तकलीफे, नपुंसकता, रि-िवकार, िठं गनापन व अनय कई पकार की बीमािरयाँ यह आसन करने से दरू होती है |

पारं भ मे यह आसन आिा िमनट से शुर करके पितिदन थोडा बढाते हुए 15 िमनट तक कर

सकते है | पहले 2-3 िदन तकलीफ होती है , िफर सरल हो जाता है |

इस आसन से शरीर का कद लमबा होता है | यिद शरीर मे मोटापन है तो वह दरू होता है

और यिद दब ु लापन है तो वह दरू होकर शरीर सुडौल, तनदर ु सत अवसथा मे आ जाता है | बहचयय पालनेवालो के िलए यह आसन भगवान िशव का पसाद है | इसका पचार पहले िशवजी ने और बाद मे जोगी गोरखनाथ ने िकया था |

हमार े अन ुभव मह ापुरि के दश य न क ा च मत का र “पहले मै कामतिृप मे ही जीवन का आननद मानता था | मेरी दो शािदयाँ हुई परनतु दोनो

पितयो के दे हानत के कारण अब तीसरी शादी 17 विय की लडकी से करने को तैयार हो गया |

शादी से पूवय मै परम पूजय सवामी शी लीलाशाहजी महारज का आशीवाद य लेने डीसा आशम मे जा पहुँचा | आशम मे वे तो नहीं िमले मगर जो महापुरि िमले उनके दशन य मात से न जाने कया हुआ िक

मेरा सारा भिवषय ही बदल गया | उनके योगयुि िवशाल नेतो मे न जाने कैसा तेज चमक रहा

था िक मै अििक दे र तक उनकी ओर दे ख नहीं सका और मेरी नजर उनके चरणो की ओर झुक गई | मेरी कामवासना ितरोिहत हो गई | घर पहुँचते ही शादी से इनकार कर िदया | भाईयो ने एक कमरे मे उस 17 विय की लडकी के साथ मुझे बनद कर िदया |

मैने कामिवकार को जगाने के कई उपाय िकये, परनतु सब िनरथक य िसि हुआ … जैसे,

कामसुख की चाबी उन महापुरि के पास ही रह गई हो ! एकानत कमरे मे आग और पेटोल जैसा संयोग था िफर भी ! मैने िनिय िकया िक अब मै उनकी छतछाया को नहीं छोडू ँ गा, भले िकतना ही िवरोि सहन करना पडे | उन महापुरि को मैने अपना मागद य शक य बनाया | उनके सािननधय मे रहकर कुछ

यौिगक िियाएँ सीखीं | उनहोने मुझसे ऐसी सािना करवाई िक िजससे शरीर की सारी पुरानी वयािियाँ जैसे मोटापन, दमा, टी.बी., कबज और छोटे -मोटे कई रोग आिद िनवत ृ हो गये | उन महापुरि का नाम है परम पूजय संत शी आसारामजी बापू | उनहींके सािननधय मे मै अपना जीवन िनय कर रहा हूँ | उनका जो अनुपम उपकार मेरे ऊपर हुआ है , उसका बदला तो मै अपना समपूणय लौिकक वैभव समपण य करके भी चुकाने मे असमथय हूँ |” -महनत चंदीराम ( भूतपूवय चंदीराम कृ पालदास )

संत शी आसारामजी आशम, साबरमित, अमदावाद |

मेरी वासना उपासना मे बदली

“आशम दारा पकािशत “यौवन सुरका ” पुसतक पढने से मेरी दिष अमीदिष हो गई | पहले परसी को एवं हम उम की लडिकयो को दे खकर मेरे मन मे वासना और कुदिष का भाव पैदा होता था

लेिकन यह पुसतक पढकर मुझे जानने को िमला िक: ‘सी एक वासनापूितय की वसतु नहीं है , परनतु शुि पेम और शुि भावपूवक य जीवनभर साथ रहनेवाली एक शिि है |’ सचमुच इस ‘यौव न सुरका ’ पुसतक को पढकर मेरे अनदर की वासना, उपासना मे बदल गयी है |” -मकवाणा रवीनि रितभाई

एम. के. जमोड हाईसकूल, भावनगर (गुज)

‘यौव न सुर का ’ पुस तक आज के य ु वा वग य के िलय े एक अम ूिय भेट है “सवप य थम मै पूजय बापू का एवं शी योग वेदानत सेवा सिमित का आभार पकट करता हूँ | ‘यौव न स ुरका ’ पुसतक आज के युवा वगय के िलये अमूिय भेट है | यह पुसतक युवानो के िलये सही िदशा िदखानेवाली है | आज के युग मे युवानो के िलये वीयरयकण अित किठन है | परनतु इस पुसतक को पढने के बाद ऐसा लगता है िक वीयरयकण करना सरल है | ‘यौव न स ुरका ’ पुसतक आज के युवा वगय को सही युवान बनने की पेरणा दे ती है | इस पुसतक मे मैने ‘अनुभव-अमत ृ ’ नामक पाठ पढा | उसके बाद ऐसा लगा िक संत दशन य करने से वीयरयकण की पेरणा िमलती है | यह बात िनतांत सतय है | मै हिरजन जाित का हूँ | पहले मांस, मछली, लहसुन, पयाज आिद सब खाता था लेिकन ‘यौवन सुरका ’ पुसतक पढने के बाद मुझे मांसाहार से सखत नफरत हो गई है | उसके बाद मैने इस

पुसतक को दो-तीन बार पढा है | अब मै मांस नहीं खा सकता हूँ | मुझे मांस से नफरत सी हो

गई है | इस पुसतक को पढने से मेरे मन पर काफी पभाव पडा है | यह पुसतक मनुषय के जीवन को समि ृ बनानेवाली है और वीयरयकण की शिि पदान करने वाली है |

यह पुसतक आज के युवा वगय के िलये एक अमूिय भेट है | आज के युवान जो िक 16 विय से

17 विय की उम तक ही वीयश य िि का वयय कर दे ते है और दीन-हीन, कीणसंकिप, कीणजीवन

होकर अपने िलए व औरो के िलए भी खूब दःुखद हो जाते है , उनके िलए यह पुसतक सचमुच पेरणादायक है | वीयय ही शरीर का तेज है , शिि है , िजसे आज का युवा वगय नष कर दे ता है |

उसके िलए जीवन मे िवकास करने का उतम मागय तथा िदगदशक य यह ‘यौव न स ुरका ’ पुसतक है | तमाम युवक-युवितयो को यह पुसतक पूजय बापू की आजानुसार पाँच बार अवशय पढनी चािहए | इससे बहुत लाभ होता है |”

-राठौड िनलेश िदनेशभाई

‘यौव न सुर का ’ पुस तक नही ं , अिपत ु ए क िशका गनथ है “यह ‘यौवन सुरका ’ एक पुसतक नहीं अिपतु एक िशका गनथ है , िजससे हम िवदािथय य ो को

संयमी जीवन जीने की पेरणा िमलती है | सचमुच इस अनमोल गनथ को पढकर एक अदभुत

पेरणा तथा उतसाह िमलता है | मैने इस पुसतक मे कई ऐसी बाते पढीं जो शायद ही कोई हम

बालको को बता व समझा सके | ऐसी िशका मुझे आज तक िकसी दस ू री पुसतक से नहीं िमली | मै इस पुसतक को जनसािारण तक पहुँचाने वालो को पणाम करता हूँ तथा उन महापुरि

महामानव को शत-शत पणाम करता हूँ िजनकी पेरणा तथा आशीवाद य से इस पुसतक की रचना हुई |”

हरपीत िसंह अवतार िसंह कका-7, राजकीय हाईसकूल, सेकटर-24 चणडीगढ

बहचय य ही जीव न है बहचयय के िबना जगत मे, नहीं िकसीने यश पाया | बहचयय से परशुराम ने, इककीस बार िरणी जीती | बहचयय से वािमीकी ने, रच दी रामायण नीकी |

बहचयय के िबना जगत मे, िकसने जीवन रस पाया ? बहचयय से रामचनि ने, सागर-पुल बनवाया था | बहचयय से लकमणजी ने मेघनाद मरवाया था |

बहचयय के िबना जगत मे, सब ही को परवश पाया | बहचयय से महावीर ने, सारी लंका जलाई थी |

बहचयय से अगंदजी ने, अपनी पैज जमाई थी | बहचयय के िबना जगत मे, सबने ही अपयश पाया | बहचयय से आिहा-उदल ने, बावन िकले िगराए थे |

पथ ृ वीराज िदिलीशर को भी, रण मे मार भगाए थे |

बहचयय के िबना जगत मे, केवल िवि ही िवि पाया | बहचयय से भीषम िपतामह, शरशैया पर सोये थे |

बहचारी वर िशवा वीर से, यवनो के दल रोये थे | बहचयय के रस के भीतर, हमने तो िटरस पाया | बहचयय से राममूितय ने, छाती पर पतथर तोडा |

लोहे की जंजीर तोड दी, रोका मोटर का जोडा |

बहचयय है सरस जगत मे, बाकी को करकश पाया |

शासवच न राजा जनक शुकदे वजी से बोले :

“बाियावसथा मे िवदाथी को तपसया, गुर की सेवा, बहचयय का पालन एवं वेदाधययन करना

चािहए |” तप सा ग ुरव ृ तया च बह चये ण वा िवभो | - महाभारत म े मोक िम य प वय संकिपाजजायत े काम ः स ेवयमानो यदा पाजो

िववि य ते |

िवरमत े तदा सदः प णश यित ||

“काम संकिप से उतपनन होता है | उसका सेवन िकया जाये तो बढता है और जब बुििमान ्

पुरि उससे िवरि हो जाता है , तब वह काम ततकाल नष हो जाता है |”

-महाभारत म े आपिम य प वय

“राजन ् (युिििषर)! जो मनुषय आजनम पूणय बहचारी रहता है , उसके िलये इस संसार मे कोई भी ऐसा पदाथय नहीं है , जो वह पाप न कर सके | एक मनुषय चारो वेदो को जाननेवाला हो और दस े है |” ू रा पूणय बहचारी हो तो इन दोनो मे बहचारी ही शष

-भीषम िप तामह

“मैथुन संबि ं ी ये पविृतयाँ सवप य थम तो तरं गो की भाँित ही पतीत होती है , परनतु आगे चलकर ये कुसंगित के कारण एक िवशाल समुि का रप िारण कर लेती है | कामसबंिी वाताल य ाप कभी शवण न करे |”

-ना रदजी

“जब कभी भी आपके मन मे अशुि िवचारो के साथ िकसी सी के सवरप की किपना उठे तो आप ‘ॐ द ु गाय देवय ै नमः ’ मंत का बार-बार उचचारण करे और मानिसक पणाम करे |” -िश वान ंदजी

“जो िवदाथी बहचयय के दारा भगवान के लोक को पाप कर लेते है , िफर उनके िलये ही वह सवगय है | वे िकसी भी लोक मे कयो न हो, मुि है |”

उ पिनिद

-छानदोगय

“बुििमान ् मनुषय को चािहए िक वह िववाह न करे | िववािहत जीवन को एक पकार का दहकते

हुए अंगारो से भरा हुआ खडडा समझे | संयोग या संसगय से इिनियजिनत जान की उतपित होती है , इिनिजिनत जान से ततसंबंिी सुख को पाप करने की अिभलािा दढ होती है , संसगय से दरू रहने पर जीवातमा सब पकार के पापमय जीवन से मुि रहता है |”

-महातमा ब ुि

भग ृ ुवश ं ी ॠिि जनकवंश के राजकुमार से कहते है :

मनोऽप ितकूलािन प ेतय च ेह च वा ंछ िस

|

भूताना ं पित कूल ेभयो िनव तय सव यत ेिनिय ः || “यिद तुम इस लोक और परलोक मे अपने मन के अनुकूल वसतुएँ पाना चाहते हो तो अपनी इिनियो को संयम मे रखकर समसत पािणयो के पितकूल आचरणो से दरू हट जाओ |” –महाभारत म े मोक िम य प वय : 3094

भस मास ुर िोि से बचो काम, िोि, लोभ, मोह, अहं कार- ये सब िवकार आतमानंदरपी िन को हर लेनेवाले शतु है |

उनमे भी िोि सबसे अििक हािनकताय है | घर मे चोरी हो जाए तो कुछ-न-कुछ सामान बच

जाता है , लेिकन घर मे यिद आग लग जाये तो सब भसमीभूत हो जाता है | भसम के िसवा कुछ नही बचता |

इसी पकार हमारे अंतःकरण मे लोभ, मोहरपी चोर आये तो कुछ पुणय कीण होते है

लेिकन िोिरपी आग लगे तो हमारा तमाम जप, तप, पुणयरपी िन भसम हो जाता है | अंतः साविान होकर िोिरपी भसमासुर से बचो | िोि का अिभनय करके फुफकारना ठीक है , लेिकन िोिािगन तुमहारे अतःकरण को जलाने न लगे, इसका धयान रखो |

25 िमनट तक चबा-चबाकर भोजन करो | साितवक आहर लो | लहसुन, लाल िमचय और तली हुई चीजो से दरू रहो | िोि आवे तब हाथ की अँगुिलयो के नाखून हाथ की गदी पर दबे, इस पकार मुिठी बंद करो |

एक महीने तक िकये हुए जप-तप से िचत की जो योगयता बनती है वह एक बार िोि

करने से नष हो जाती है | अतः मेरे पयारे भैया ! साविान रहो | अमूिय मानव दे ह ऐसे ही वयथय न खो दे ना | दस गाम शहद, एक िगलास पानी, तुलसी के पते और संतकृ पा चूणय िमलाकर बनाया हुआ

शबत य यिद हररोज सुबह मे िलया जाए तो िचत की पसननता बढती है | चूणय और तुलसी नहीं िमले तो केवल शहद ही लाभदायक है | डायिबिटज के रोिगयो को शहद नहीं लेना चािहए | हिर ॐ

बहाचय य -रका का म ंत ॐ नमो भ गवत े महाबल े परािमाय मनोिभ

लाित ं मनः स तंभ कुर कुर स वाहा।

रोज दि ू मे िनहार कर 21 बार इस मंत का जप करे और दि ू पी ले। इससे बहचयय की

रका होती है । सवभाव मे आतमसात ् कर लेने जैसा यह िनयम है । ॐॐॐॐॐॐॐॐ

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