ग़ज़ल और यंज़ल र वरतलामी http://raviratlami.blogspot.com/
भूिमका माना, मेरे अशआर म अथ नह ं पर जीवन म भी तो अथ नह ं! -----------मेर ग़ज़ल को लेकर पाठक क यदा कदा पाठक होते ह, वे इ ह पसंद करते ह चूं क ये
ित ल
याएँ
ा
होती रहती ह. जो वशु
नह ं होतीं, कसी फ़ॉमूले से आब
नह ं होतीं तथा कसी उ ताद क उ ताद क कची से कंट छं ट नह ं होतीं. वे सीधी, सपाट पर कुछ हद तक त ख़ होती ह. परं तु कुछ रचनाकार पाठक और वशु तावाद ग़ज़लकार को मेर कुछ ग़ज़ल नाग़वार ग़ुज़रती ह और वे इनम से कुछे क को तो ग़ज़ल मानने से ह इनकार करते ह. म यहाँ िमजा ग़ािलब के दो उदाहरण दे ना चाहँू गा, जो उ ह ने अपने तथा अपने ग़ज़ल के
अ दाज़ के बारे म कभी कहे थे. मुला हज़ा फरमाएँन सतायश क तम ना न िसले क परवा, गर नह ं है मेरे अशआर म माने न सह . तथा यह भीपूछते ह वो क ग़ािलब कौन है, कोई बतलाओ क हम बतलाएँ
या.
साथ ह यह भी, क जब ग़ािलब, द वाने ग़ािलब के िलए अपनी ग़ज़ल क छं टाई कर रहे थे, तो उ ह ने अपने िलखे हए ु कर बन २००० से अिधक अशआर न
कर दये चूं क
उनम शायद वज़न क कुछ कमी रह गई थी. बहरहाल मने तो अभी िलखना शु
ह
कया है . मेरे अशआर दो हजार से ऊपर हो जाएंगे,
तो म भी अपने कुछ कम वज़नी अशआर को न ---------------------------------------.
कर ह दं ग ू ा, ऐसा सोचता हँू ),
राह , कोई नई राह बना क तेरे पीछे आने वाले राह तुझे याद कर... *-*-* जावेद अ तर, ज ह कसी साल के फ़ मफ़ेयर के पाँच नॉिमनेशन उनके गीत के िलए िमले थे, ग़जल के बारे म बेबाक से कहते ह क – इतनी खूबसूरत े डशन का धीरे -धीरे लोग को इ म कम होता जा रहा है . ग़ज़ल को लोक य बनाने म इसक दो पं
य म
– इशार म, कॉ पे ट तर के से कह जाने वाली बात का खासा योगदान रहा है , जो ग़ज़लकार को मेहनत से िलखने के िलए मज़बूर करती ह. इसके साथ ह इसके रद फ, क़ा फए और मकता-मतला जैसी पारं प रक और िनयमब
चीज़ भी ग़ज़ल िलखने के
दौरान क ठनाइयाँ पैदा करती ह. मगर, फर भी लोग ग़ज़ल िलख रहे ह और और
या खूब िलख रहे ह. भले ह पाठक, ोता
शंसक नदारद ह – ग़ज़ल आ रह ह... ह द म भी और उद ू म भी. और, मेरा तो
यह मानना है क पारं प रक और िनयमब
रचना के पीछे पड़ने क ज रत ह नह ं है .
रचना ऐसी रिचए जसम पठनीयता हो, सरलता हो, वाह हो और जसे रच-पढ़ कर मज़ा आए. बस. क टरपंथी आलोचक तो हर दौर म अपनी बात कहते ह रहगे और उनसे हम घबराना नह ं चा हए, जैसा क जावेद अपनी बात को समा
करते हए ु कहते ह- तुलसी
दास ने जब राम च रत मानस िलखी तो उसक
बरादर ने िनकाल बाहर कया क कस
घ टया जुबान (दोहा-छं द तो बाद क बात है !) म रामायण जैसी प व
कताब िलखी. वैसा
ह सुलूक शाह अ दल था जब उ ह ने कुरान का उद ू म तजुमा कया ु क़ा दर के साथ हआ ु था.
--- तो, मेर भी ग़ज़ल और यंज़ल भले ह िनयमाब
न ह , और इसीिलए गुणी जन
नकार, मेर कोिशश त व क बात को कहने क रह ह.... *-*-*
ग़ज़ल 1 *-*-* अवाम को आईना आ खर दे खना होगा हर श स को अब ग़ज़ल कहना होगा यह दौर है यारो उठाओ अपने आयुध वरना ता-उ
ववशता म रहना होगा
बड़ उ मीद से आए थे इस शहर म लगता है अब कह ं और चलना होगा जमाने ने काट दए ह तमाम दर त कंट ली बेल के साए म छुपना होगा इ क म तुझे
या पता नह ं था र व
फूल िमल या कांटे सब सहना होगा *-*-* -----. पछले दन चैनल स फग (पीसी पर नह ं) के दौरान महे श भ ट क एक तीख़ी ट पणी पर बरबस
यान चला गया. उ ह ने कहा थाः पछड़ और ग़र ब के नाम से इस दे श
म लोग काफ़ धंधा कर रहे ह, और उनका शोषण कर रहे ह... ग़र ब और पछड़े हमेशा ह िसयासत के बड़े वोट बक रहे ह. जाितवाद ने भारत का
कबाड़ा कर दया है . एलीट
लास म जाितवाद, धमवाद तो समा
ायः है पर
ग़र ब और पछड़े अपनी अिश ा के चलते उ ह ं जाितवाद और धमवाद म घुसे ह और िसयासत उसम ढे र सारा शु
ऑ सीज़न पहँु चा रह है ता क यह आग उनक छु
भलाई के िलए ज़लती, और भड़कती रहे . अगर हम आने वाले कुछे क वष का अंदाज़ा लगाने क कोिशश कर तो पाते ह क इ ह ं बात को इं िगत करती एक ग़ज़ल **** ग़ज़ल 2 **** बन गए ह ग़र ब **** राजनीित के तंभ बन गए ह ग़र ब अब तो मु े
थाई बन गए ह ग़र ब
िसयासी खेल का कोई राज बताए क धनवान
य बन गए ह ग़र ब
चा द का च मच ले पैदा हए ु ह जो वो और भी
य़ादा बन गए ह ग़र ब
सोने क िच ड़या का हाल है नया क़ौम के सारे लोग बन गए ह ग़र ब अपनी अमीर दिनया सबने बना ली ु
और क सोचने म बन गए ह ग़र ब कुछ कर र व, क फोड़ अकेला भाड़ वरना तो यहाँ सब बन गए ह ग़र ब -----. *** ग़ज़ल 3 **** ज़रा दे खए
थित तो बनने के बज़ाए बगड़नी ह है ... तुत है ...
इस भारत का
या हाल हो रहा ज़रा दे खए
नेता अफ़सर माला माल हो रहा ज़रा दे खए द
ण सूखा, प
म सूखा पूरब क
या बात
उ र बाढ़ से बुरा हाल हो रहा ज़रा दे खए जसने सीट बजाई, यव था क बात क होना
या है , वह काल हो रहा ज़रा दे खए
कुरसी के खेल म तोड़ डाले सब िनयम ये दे श तो मकड़ जाल हो रहा ज़रा दे खए गित, वकास के नारे, समाज़वाद सा यवाद ऐसा पाखंड साल साल हो रहा ज़रा दे खए सभी लगे ह झोली अपनी जैसे भी भरने म मूख अकेला र व लाल हो रहा ज़रा दे खए ---**** ग़ज़ल 4 **** स ता होना चा हए घ टया बेकार चलेगा बशत उ ह स ता होना चा हए इस शहर म जीना है तो उ ह स ता होना चा हए वचारधारा, ितब ता, गितशीलता झ को भाड़ म ज ह सफ़ल होना है उ ह स ता होना चा हए न करो इस जमाने म कम क कालातीत बात समझने समझाने के िलए उ ह स ता होना चा हए सुकून भरे
वाब के िलए तरसता रहा वो मुसा फ़र
पता न था क नींद म भी उ ह स ता होना चा हए ढोर गँवार के शहर म तो ज़ा हरा बात है दो त अगर कोई रा ते बने भी ह उ ह स ता होना चा हए पुकारते हए ु साँस उखड़ जाएगी र व तेर एक दन
मु े उठने के िलए भी अब उ ह स ता होना चा हए ----. **** ग़ज़ल 5 **** भोजनशाला बन गया कुछ कमी थी क पाठशाला भोजनशाला बन गया आ ख़र
य कर यह मु क भोजनशाला बन गया
कह ं अमीर और कह ं ग़र बी क बात के बीच अदरदश योजनाओं का भोजनशाला बन गया ू इसम दे श क जनता का है
या कोई कसूर
जो दे श राजनेताओं का भोजनशाला बन गया या पता कभी कसी को फ़क पड़े गा क नह ं यव थाओं के बदले वहाँ भोजनशाला बन गया इनक भूख का कोई इलाज़
यो नह ं है र व
भोजनशालाओं म एक और भोजनशाला बन गया ----. **** ग़ज़ल 6 **** बस, अख़बार बचे ह अब तो बस अख़बार बचे ह कुछ टहनी कुछ ख़ार बचे ह
भीड़ भरे मेरे भारत म लो मानव बस दो चार बचे ह कहने को
या है जब सब
बेरोज़गार और बेकार बचे ह मन उजड़ चुका है बस नेता के ग़ले के हार बचे ह चूस चुके इस दे श को र व मुँह म फ़र भी लार बचे ह *** ट पः ख़ार = कांटे *+*+*+* -----. **** ग़ज़ल 7 **** म अपनी आ थाएँ िलए रह गया जंग ज़ार थी म बैठा रह गया आवरण तोड़ना तो था पर
य
लोग चल दए म पीछे रह गया करना था बहत ु कुछ नया नया
भीड़ म म भी सोचता रह गया ख़ुदा ने तो द थी बु
बख़ूब
य और क ट पता रह गया इस तक़नीक ज़माने म र व पुराणपंथी बना दे खो रह गया
*+*+*+ ------. **** ग़ज़ल 8 जहाँ लोग लगे ह पू रयाँ
लने म
या हज़ है अपनी रोट सकने म मची है मुह ले म जम के मारकाट हद है , और भीड़ लगी है दे खने म बात ग़ज़ब ह आगे चलने क पर ज़ोर है सारा असली चेहरा छुपने म भारत भा य
या जाने वधाता जब
जनता को पड़ गई आदत सहने म तू भी कर ह ले अपनी िचंता र व या रखा है इन पचड़ म पड़ने म *+*+*+* ---. *** ग़ज़ल 9 *** सब सुनाने म लगे ह अपनी अपनी ग़ज़ल य कोई सुनता नह ं मेर अपनी ग़ज़ल रं ग रं ग़ीली दिनया म कोई ये बताए हम ु रं ग िसयाह म
य पुती है अपनी ग़ज़ल
िछल जाएंगी उँ गिलयाँ और फूट जाएंगे माथे इस बेदद दिनया म मत कह अपनी ग़ज़ल ु मज़ा हया न म का ये दौर नया है यारो
कोई पूछता नह ं आँसुओं भर अपनी ग़ज़ल जो मालूम है लोग ठ ठा करगे ह हर हाल मूख र व फ़र भी कहता है अपनी ग़ज़ल *+*+*+ ----. **** ग़ज़ल 10 *** या यह याय है ? --ज़ुम तेर सज़ा मेर दशक बाद िमले तो
या यह
याय है
या यह
याय है
तहर र आपक और फ़ैसला भी आपका सुना तो रहे हो पर
या यह
याय है
तूने अपने िलए गढ़ ली राह गुल क काँट पर हम चल
या यह
याय है
सुनी थीं उनक तमाम तहर र दलील फ़ैसले पे सब हँ से
या यह
याय है
मत डू बो र व अपनी जीत के ज सब कहते फ़र रहे
या यह
म
याय है
*-*-*-* ग़ज़ल 11 ****** गुजरे ऐसे क हा दसे आदत बन गए मदरसे हर
योग के शहादत बन गए
ग़ली के गंवार को न जाने
या हआ ु
सड़क म आकर बड़े नफ़ासत बन गए
रक़ ब क अब कसको ज़ रत होगी अपने वचार ह जो खलाफ़त बन गए इ क इबादत का कोई दौर रहा होगा धन दौलत अब असली चाहत बन गए ेम का भूख़ा र व दर-दर भटका फरा या इ म था इं सािनयत आहत बन गए +*+*+* ---. ग़ज़ल 12 ***** वा हश ये उ
और तारे तोड़ लाने क
यव था ऐसी और प रवतन क
वा हश वा हश
आ दम सोच क जंजीर म जकड़े लोग और जमाने के साथ दौड़ने क
वा हश
तंगहाल घर के िलए कोई वचार है नह ं कमाल क ह
व णम संसार क
वा हश
क ठन दौर है ये नून तेल और लकड़ का भूलना होगा अपनी मुह बत क
वा हश
जला दगे तुझे भी दं ग म एक दन र व फ़र पालता
यूँ है भाई-चारे क
वा हश
***** -----. ग़ज़ल 13 मं ज़ल पाने क संभावना नग य हो गई
यव था म जनता और अकम य हो गई जाने कौन सा घुन लग गया भारत तुझे स यिन ा ह सबसे पहले वप य हो गई इतराए फ़रते र हए अपने सु वचार पर अब तो नकारा मक सोच अ ग य हो गई ह र-रांझ के इस दे श को
या हआ क ु
द वान क सं या एकदम नग य हो गई अब तक तो तेरे कम को थीं लानत र व या होगा अब जो सोच अकम य हो गई *+*+*+ ----. **** ग़ज़ल 14 --नाच गान म डू ब गई उ मीद ह नाउ मीद म भी बड़ उ मीद ह ज़लज़ल को आने दो इस बार क चे महल ढहगे ऐसी उ मीद ह जो िनकला है यव था सुधारने उस पागल से खासी उ मीद ह दे ख तो िलया दशक का सफ़र अब पास बची िसफ उ मीद ह तू भी
य उनके साथ है र व
बैठे बैठे लगाए ऊंची उ मीद ह *-*-* ----.
--ग़ज़ल 15 *** भीगे भ व य बखरे बचपन यहाँ सब चलता है लूट -पाट फ़रौती-डकैती यार सब चलता है कस कस का दद दे खोगे ज म सहलाओगे क़ौम क रं जश और ह फ़ायदे सब चलता है इस जमाने म फ़
य
कसे कसी और क
अपने गुल खल चाहे जंगल जल सब चलता है दन ब दन तो बढ़ता ह गया दायरा पेट का दावत म कु हड़ हो या हो चारा सब चलता है तू भी शािमल हो बची खुची संभावनाओं म र व ज़ूदेव, शहाबु न या हो वीर पन सब चलता है *+*+* ----. --ग़ज़ल 16 *** िसयासत म सारे
दयह न हो गए
नफ़ा नुकसान म त लीन हो गए कोई और दौर होगा मोह बत का अब तो सारे र ते मह न हो गए अजनबी भी पूछने लगे हाले दल यकायक कुछ लोग जह न हो गए ज़ेहन म यह बात
य आती नह ं
बड़े बड़े शहं शाह भी जमीन हो गए
जीना है बखरे
दय के साथ र व
हर दर और द वार संगीन हो गए *+*+* ----. ग़ज़ल 17 *** या बताएँ क ये दल हमेशा रोता
यूँ है
बता तो जरा तेरा बहस त ख़ होता
यूँ है
कभी द वान को जान पाएंगे जमाने वाले वो मन का क चड़ सरे आम धोता
यूँ है
लगता है भूल गए ह लोग सपने भी दे खना नह ं तो फर कस िलए जमाना सोता
यूँ है
लोग पूछगे क ये कौन नया मसखरा आया जानकर भी भाई-चारे का बीज बोता तू भी
यूँ है
य नह ं िनकलता भीड़ के र ते र व
बेकार बेआधार बनाकाम चैन खोता *+*+* ----. *********** ग़ज़ल 18 --ज़लालत है ज़दगी
यूँ है
या छोड़ दे ना चा हए
अब अंधी गली म कोई मोड़ दे ना चा हए ु ु या िमला उस बुत पे घं टयाँ टनटनाने से िम या सं कार को अब तोड़ दे ना चा हए कब तक रहोगे कसी के रहमो-करम पे ज़ेहाद का कोई ना रयल फोड़ दे ना चा हए
य नह ं हो सकतीं अपनी एक ह द वार खं डत आ थाओं को अब जोड़ दे ना चा हए बहत ु शाितराना चाल ह तेर बेईमान र व कहता है कह ं तो कोई होड़ दे ना चा हए *+*+* ----. ---ग़ज़ल 19 *** कोई
वाब दे खे जमाना गुज़र गया
या आया और
या
या गुज़र गया
चमन उजड़े दर त िगर ं नींव हलीं भला हआ वो एक गुबार गुज़र गया ु मु कल कुछ कम थीं तेरे िमलने पे न सोचा था वो सब भी गुज़र गया इ सािनयत तो अब है अंध का हाथी वो बेचारा कब जमाने से गुज़र गया एक बेचारा र व भटके है
याय पाने
इस रा ते पे वो सौ बार गुज़र गया *++*++* -----. *** ग़ज़ल 20 --इस यव था म जीने के िलए दम चा हए
सबको अब राजनीित के पचो-ख़म चा हए ज़द हालात म अब सूख चुक भावनाएँ पूर बात समझने आँख ज़रा नम चा हए नशे ड़य म तो कबके शुमार हो गए वो दो घड़ चैन के िलए भी कुछ ग़म चा हए शांित क बात सुनते तो बीत गई स दयाँ बात अपनी समझाने के िलए बम चा हए बात बुहारने क बहत ु करता है तू र व
उदर-शूल के िलए तुझे कुछ कम चा हए *+*+* -----. --ग़ज़ल 21 *** कोई बात कहता मंडल है कसी के पास कमंडल है ये दे श तो दो त दे खए बन गया र
का बंडल है
ख़वा हश ह दरू जाने क
और अपना पथ कुंडल है ये साँस कैसे चलगी र व हवा ह न जो नभ-मंडल है -----. कु े म तेरा ख़ून पी जाऊँगा... -------------------यह कोई फ़ मी डायलॉग नह ं है जो धम के राजनीित
क
अजीत को
डफ़ॉ ट भाषा बनती जा रह है .
न पर दे ता है . यह तो आज
कुछ नमूने आपके िलए
तुत ह-
।। मनमोहन िसंह िशखंड ह - यशवंत िस हा ।। अमर िसंह दलाल है - लालू यादव ।। लालू मसख़रा है - अमर िसंह ।। बीजेपी अजगर है और उसके साझा दल मढक और चूहे - लालू यादव ।। अटल बहार धृतरा
है - काँ ेस का एक नेता
।। आडवाणी अंतरा ीय भगोड़ा है - लालू यादव इनक भाषाओं पर अब हम हँ स , रोएँ, अपना िसर नोच या फ़र अपन भी इनक गाली मंडली म शािमल हो जाएँ? *+*+* ग़ज़ल 22 --राजनीित अब िशखंड हो गई िसयासती सोच घमंड हो गई सोचा था क बदलगे हालात ये क़ौम और पाखंड हो गई भरोसा और नाज हो कस पे यवहार सब
खंड हो गई
अब पु षाथ का
या हो र व
राजशाह सार िशखंड हो गई *+*+*
----. ग़ज़ल 23 --अब सूरज को भी द प दखानी होगी शायद कल कोई सुबह सुहानी होगी क़लम िसयाह और वह पुराने काग़ज तब तो दहराई गई वह कहानी होगी ु िसयासती खेल ने तोड़े ह सब िनयम धावक तु ह चाल नई िसखानी होगी धम क शरण म कुछ और ह िमला ता-उ
हम अपनी ज म छुपानी होगी
एक मतबा ह गया र व ग़र ब म सोचता है उसक न म *---*---* ----. ----ग़ज़ल 24 *** ये वो रा ता तो नह ं था उठा था गया तो नह ं था हँ सी दे ख गुमा होता है कोई
वाब तो नह ं था
ित दन पर
ा फर कोई
अंितम जवाब तो नह ं था खोने का गम
य हो
कुछ पाया तो नह ं था
हानी होगी
सुधरे कैसे र व जब कोई कुछ करता तो नह ं था *-*-*-* ---. ---------ग़ज़ल 25 *** द नो-ईमान बक रहा कौ ड़य म नंगे खेल रहे ह
पए करोड़ म
फ़ोड़ डाली ह सबने आँख अपनी िसयासत बची है अगड़
पछड़ म
कस कस के चेहरे पहचानोगे अब सब तो बकता है दकान म ु कोई और दौर था या कहानी थी स यता िगनी जा रह सामान म लक र पीटने से तो बेहतर है र व जा तू भी शािमल हो जा द वान म ----. *-*-*-* ग़ज़ल 26 --यव था को कोई नया नाम दे ना होगा बहत ु हो चुका अब कुछ काम दे ना होगा संभल सकते हो तो संभल जाओ यार नह ं तो फर बहत ु बड़ा दाम दे ना होगा
दन के उजाल म
या करते रहे थे
अब इसका हसाब हर शाम दे ना होगा इस मु क म कब कसी िशशु का नाम रॉबट न रह म और न राम दे ना होगा ह रयाली तो आएगी र व पर शत ये है ु ह से का एक टकड़ा घाम दे ना होगा
-घाम = धूप (छ ीसगढ़ ) ------. ----ग़ज़ल 27 *** अथ तो
या पूरे वा यांश बदल गए
जाने और भी
या
या बदल गए
गाते रहे ह प रवतन क चौपाइयाँ बदला भी
या ख़यालात बदल गए
म ट ले स के बीच जूझती झु गयाँ नए दौर के तो सवालात बदल गए दे खे तो थे सपने बहत ु हसीन मगर या कर अब तो हालात बदल गए
कब तक फूंकेगा बेसुर बांसुर र व तेरे साथ के सभी साथी बदल गए *-*-*-* -----. --ग़ज़ल 28 ***
अपने अपने ह से काट ली जए अपन को पहले जरा छाँट ली जए हाथ म आया है सरकार ख़जाना दो त म आराम से बाँट ली जए याले
ाचार के मीठे ह बहत ु
पी जए साथ व द ू रयाँ पाट ली जए सभी ने दे खी ह अपनी संभावनाएँ फर आप भी
य न बाँट ली जए
सार ये बचा है र व क दे श को काट सको जतना काट ली जए *-*-* ----. --ग़ज़ल 29 *** कब तक लूटोगे यार कुछ तो शम करो चचा म आने को कोई उलटा कम करो िछपी नह ं ह आपक कोई कारगुजा रयाँ थोड़ा रहम करो अपने अंदाज नम करो जमाने ने छ न ली है र
क रं गीिनयाँ
बस अपने पेट भरो अपनी जेब गम करो भाई चारे क तो ह और दिनया क बात ु लूट पाट दं गे फसाद का नया धम करो साधु के व ये
म र व उड़ने लगा जेट से
या हआ कैसे हआ लोग मम करो ु ु
*-*-*-* ----. हम कु प भारतीय: िम , जग सुरैया के टाइ स ऑफ इं डया (सोमवार, 4 अ ू बर) म िलखे गए लेख पर एक नज़र डािलएः
उ ह ने सच ह िलखा है क हम भारतीय दिनया म सबसे ु
यादा कु प (शार रक नह ं)
लोग म से ह. हम भारतीय म अनु ह और अ छे सामा जक यवहार क ज मजात कमी होती जा रह है .
ा फक डटे ल म बताते हए ु वे आगे िलखते ह क भारत क
उ नित ( जतनी होनी चा हए थी उतनी हई ु है या ?) कारक
तीक यथा फ़ाइव
होटल, भ य चमक ले शॉ पंग माल इ या द के बावजूद सड़क के ग ढे , सावजिनक
टार थल
पर कचर के अ बार, आवारा कु , वचरती गाय के बीच खुले आम थूकते-मूतते भारतीय, हमको व
के सबसे कु प लोग म शुमार करते ह. और, उनका यह भी कहना
है क इस कु पता के िलए भारत क गर बी कतई ज मेदार नह ं है , ब क एक िनपट गांव का िन कपट ग़र ब तो इन मामल म िन यह है क
या यह
त ह खूबसूरत होता है .
मशः बढ़ती कु पता कभी कम होने क ओर अ सर होगी?
*** ग़ज़ल 30 ---अपनी कु पताओं का भी गुमाँ क जए दसरो से पहले खुद पे हँ सा क जए ू या तो उठाइये आप भी कोई प थर या अपनी क़ मत पे रोया क जए
सफलता के पैमाने बदल चुके ह अब ाचार भाई-भतीजावाद बोया क जए मु क क गंगा म धोए ह सबने हाथ ब ढ़या है आप भी पोतड़े धोया क जए खूब भर रहे हो अपनी को ठयाँ र व उ
चार दन क
या
या क जए
*-*-*-* ----. ग़ज़ल 31 *** धम क कोई दकान खोल ली जए ु िसयासत के सामान मोल ली जए सफलता के नए पैमान म लोग थोड़े से झूठे मु कान बोल ली जए उस जहाँ क खर दार से पहले अपने यहाँ के मकान तोल ली जए रौशनी दखाने वाल के अँधेर के जरा उनके भी जान पोल ली जए गाता है कोई नया सा राग र व अब आप भी तान ढोल ली जए *-*-*-* ---. हमार
द ू षत होती आ थाओं का एक और
दय- वदारक
यः
मने अपने पछले कसी लॉग म िलखा था क हम अपने धािमक पाखंड के चलते वातावरण म कतना अिधक
दषण फैलाते ह. सामा जक सौहाद बगाड़ने क बात तो ू
अलग ह है . बना कसी सामा जक, वै ािनक और यवहा रक
कोण के, हम अपने
धािमक पाखंड म िन य नए आयाम भरते जा रहे ह. पछले दन अहमदाबाद के एक झील म लाख क तादाद म मछिलयाँ मर ग
(ऊपर िच
दे ख कर अपने कए पर फर
से आँसू बहाइये). ला टर ऑफ़ पे रस से बने तथा हािनकारक रं ग से पुते सैकड़ क सं या म गणेश ितमाओं के झील म वसजन के फल व प हए ु मु य कारण माना जा रहा है .
वयं भगवान
दषण को इसका ू
ी गणेश इन लाख मछिलय क अकारण,
अवांिछत, असमय, अकाल मौत पर आँसू बहा रहे ह गे. आइए, इन िनद ष मछिलय क मृ यु पर इनक आ मा को एक िमनट का मौन धारण कर. ----ग़ज़ल 32 **** घ ड़याली आँसुओं के ये दन ह घ टया पाख ड के ये दन ह आइए आपका भी पसरती
वागत है
ढ़य के ये दन ह
दो गज़ ज़मीन क बात कैसी िसकुड़ने िसमटने के ये दन ह अथह न से हो गए श दकोश अपनी प रभाषाओं के ये दन ह
ांजिल दे ने हे तु हम भी
कोई तेर पुकार सुने
य रव
चीख़ने िच लाने के ये दन ह *-*-*-* -----. *** ग़ज़ल 33 ---लहर िगनने म सुनी संभावनाएँ ह ख़ून के र त ढंू ढ संभावनाएँ ह
जब से छोड़ा है ईमान का दामन िमलीं संभावनाएँ ह संभावनाएँ ह माँ तेरे दध ू म भी अब तेरे ब चे तलाश लेते ढे र सी संभावनाएँ ह
मेर हयात का ये नया रं ग कैसा कैसे तो दन कैसी संभावनाएँ ह अब कोई और ठकाना दे ख र व चुक गई यहाँ सार संभावनाएँ ह *-*-*-* ----ग़ज़ल 34 *** ज नत को समझे थे यार क गली उ
गुज़ार ढंू ढने म बहार क गली
इं कलाब इितहास क बात है शायद ब द कए ह सबने सु वचार क गली दद क तफ़सील तो वो ह बताएगा जो चला है कसी यार क गली
याद दलाने का शु
या दो त पर
आज कौन चलता है करार क गली र व बताने चला है रं गीिनयाँ पर वो चला ह नह ं कसी यौहार क गली *-*-* *** ----. ग़ज़ल 35 ---लहर िगनने म सुनी संभावनाएँ ह ख़ून के र त ढंू ढ संभावनाएँ ह
जब से छोड़ा है ईमान का दामन िमलीं संभावनाएँ ह संभावनाएँ ह माँ तेरे दध ू म भी अब तेरे ब चे तलाश लेते ढे र सी संभावनाएँ ह
मेर हयात का ये नया रं ग कैसा कैसे तो दन कैसी संभावनाएँ ह अब कोई और ठकाना दे ख र व चुक गई यहाँ सार संभावनाएँ ह *-*-*-* ---. अँधेरा ह अँधेरा *******
भारत के
ायः सभी रा य बजली क घोर कमी से जूझ रहे ह तथा पापुलर वोट बक के
चलते कसान को मु त बजली दे ने के च कर म कई बजली बोड द वािलया हो चुकने के कगार पर ह. बजली म राजनीितक यवधान के बीच एक खबर यह है क िभंड के जला अ पताल के बजली बल के बकाया भुगतान नह ं होने के कारण वहाँ क
बजली काट द गई. बजली के
अभाव म उिचत उपचार नह ं िमलने के कारण वहाँ चार लोग क मौत हो गई. एक दसर खबर मज़ेदार है . यारह हजार वो ट क ू
बजली के
ांसफामर को बजली के
खंभे पर लगाने के कई कायदे क़ानून ह जसम सुर ा से लेकर व ुत अिभयां क तक क बात स मिलत ह. परं तु इ ह धता बताते हए ु एक गांव म ऐसे ह एक
ांसफामर को बैलगाड़ के ऊपर रख कर
चालू कर िलया गया है ( बजली कमचा रय के पास समय और उपकरण का अभाव है ) और बैलगाड़ पर रखा यह ांसफामर बेखटके पछले डे ढ़ माह से काय कर रहा है . ठ क ह कहा गया है – आव यकता ह आ व कार क जननी है - बैलगाड़ पर रख कर 11 हजार वो ट के ांसफामर को चाज कर काम म लेने का काय नायाब है और इस हे तु बजली कमचा रय को इनाम दया जाना चा हए ( कसी को या फ़क़ पड़ता है क बेचारे गाँव वासी दघटना क आशंकाओं के बीच जीने को मजबूर ु
ह).
*** ग़ज़ल 36 *** आ खर कधर से आया अँिधयारा है पास म बच रहा िसफ अँिधयारा है अब तो बन गई है आदत अपनी कटते नह ं दन बना अँिधयारा है मालूम है मेर मासूिमयत फर
य
पूछते ह कसने फैलाया अँिधयारा है
अब ये कैसा समय आया है दो त जलाओ द प तो फैलता अँिधयारा है और का तो मालूम नह ं ले कन र व का दो त बस एक अँिधयारा है *+*+* ----. *** ग़ज़ल 37 *** यहाँ तो हर बात उ टे पु टे ह जीने के हालात उ टे पु टे ह मेरा ईश तेरा खुदा उसका ईशु कैसे ये ख़यालात उ टे पु टे ह बावरे नह ं ह अवाम दरअसल शहर के िनयमात उ टे पु टे ह जेल म होती है प पुओं क ज मु क के हवालात उ टे पु टे ह चैन और नींद से मह म र व उसके तो दनरात उ टे पु टे ह **** ---
ग़ज़ल
38
**** खुद क नह ं पहचानी असिलयत तलाश म ह और क असिलयत यह ं तो है उस लोक क हक कत जनता कब पहचानेगी असिलयत
मत मारो उस द वाने को प थर पहले दे ख लो अपनी असिलयत ई र तो मौज़ूद है तेरे कम म रे मूरख पहचान तेर असिलयत चोला राम का दल रावण रावण यह है र व हाहाकार असिलयत ----. ***
ग़ज़ल
39
--गले म फाँस हो इबादत क जए मन म पाप हो इबादत क जए बहत ु ु बेरहम हो गई ये दिनया
र ते चलते हो इबादत क जए ग ढे जाम
ै फ़क पुिलिसया
बच िनकले हो इबादत क जए पल भर जीना जहाँ मु कल गुज़ारे दन हो इबादत क जए कुछ करने से बेहतर है र व काय सफल हो इबादत क जए *+*+*+
**--**
ग़ज़ल
40
**+** मू य म गंभीर
रण हो गया
मु क का भी अपहरण हो गया राह म चलने न चलने का सवाल ये जीवन मरण हो गया बचे ह िसफ सांपनाथ नागनाथ पूछते हो ये
या वरण हो गया
हँ सा है शायद द वाना या फर भूल से तो नह ं करण हो गया र व बताए
य
क ढ िगय का
वो एक अ छा आवरण हो गया *-*-* *-*-* ग़ज़ल 41 */*/* या िमलना है भगदड़ म जीना मरना है भगदड़ म िम
ने ह कुचले हमको
अ छा बहाना है भगदड़ म लूटो या खुद लुट जाओ यह होना है भगदड़ म जीवन का नया वणन है फँसते जाना है भगदड़ म तंग हो के र व भी सोचे शािमल होना है भगदड़ म ++//-*-*-* ग़ज़ल 42 **//**
आदमी है आदमी के पीछे बराबर सोचता नह ं होना है हसाब बराबर चाँद का च मच ले के आया पर चार दन क र
जंदगी सबक बराबर
ज टत ताबूत है तो
या हआ ु
भीतर क ड़े और दगध सभी बराबर ु सच है क अपने आवरण के अंदर कह ं कोई फ़क़ नह ं है बाल बराबर काल को तुम भूल गए र व शायद कल दग ु था आज मैदान बराबर //**// *+*+*
ग़ज़ल 43 *+*+* बनते बगड़ते िन य नए क़ानून ह कुछ के िलए नह ं कह ं क़ानून ह चले कैसे कोई इस पथ पर अ वराम पग पग पर कई कई तो क़ानून ह िसयासती लोग खुश ह तो दरअसल बनाए उ ह ने अपने िलए क़ानून ह धन बल पर िनकलती ह या याएँ शायद इसीिलए अंधे सभी क़ानून ह जमाने म आ के रो नह ं सका र व सच बात न कहने के जो क़ानून ह **//**
--- -- --
ग़ज़ल 44 -- -- -नेता और वोटर क पोज़ीशन दे खए जाित और धम के परमुटेशन दे खए बीती है अभी तो िसफ अध शता द नेताओं के पहराव म
मोशन दे खए
आँसुओं से साबका पड़ा नह ं कभी वोटर को लुभाने के इमोशन दे खए िसयासती जोड़ तोड़ म मा हर उनके मु े पकड़ लाने के इ नीशन दे खए अपनी पाँच साला नौकर म र व ने कहाँ कहाँ नह ं खाए कमीशन दे खए .-.-. *+*+
ग़ज़ल 45 *+*+ ईमान का रा ता और था म चला वो रा ता और था चला तो था दम भर मगर मं जल का रा ता और था तेर वफा क है बात नह ं हमारा ह रा ता और था कथा है सफल सफर क या तेरा रा ता और था
सब द ु मन हो गए र व के वो दखाता रा ता और था ----. ****
ग़ज़ल 46 **** गुम गया मु क भाषण म जनता जूझ रह राशन म नेताओं क है कोई ज रत दिनया को सह मायन म ु इस दौर के नेता जुट गए गिलयारा रा ता मापन म बदहाल क़ौम के धनी नेता लोग घूम रहे ह कारण म जंदा रहा है अब तक र व और रहे गा बना साधन म *-*-*
*-*-*
ग़ज़ल 47 *-*-* लो िमठाई खाओ क चुनाव है तेरे
ारे लाया हँू क चुनाव है
पाँच साल फर िमलने का नह ं पओ मु त दा
क चुनाव है
भाई बाप दो त बने ह द ु मन
द ु मन बने दो त क चुनाव है योढ़ म ख़ैरात का ये अंबार हम
य भूले थे क चुनाव है
याद रखना र व प रवतन क वोट म है ताक़त क चुनाव है *-*-* *-*-*
ग़ज़ल 48 *-*-* बताते हो मुझे मेर जवाबदा रयाँ याद नह ं है अपनी कारगुजा रयाँ फ़ायदे का हसाब लगाने से पहले दे खनी तो ह गी अपनी दे नदा रयाँ दे श पया
दे श शहर धम और जाित नह ं है इतनी जानका रयाँ
काल का दौर ऐसा कैसा है आया असर भी खो चुक ह कलका रयाँ बैठा रह तू भले ह ग़मज़दा र व सबको तो पता है तेर कलाका रयाँ *-/-*
*-*-*
ग़ज़ल 49 *+* न लगाओ कोई इ जाम इन लहर को
िगन रखे ह खूब तुमने भी लहर को बात
ितरोध क करते हो खूब मगर
सर से यूँ गुजर जाने दे ते हो लहर को कुछ भी अस भव नह ं अगर ठानो तो बहत ु ने बाँध के रख दए ह लहर को तुझम जंदगी है म ती भी मौज भी आओ तैर के ये बात बताएँ लहर को अठखेिलय म है कतनी पहे िलयाँ र व या कोई समझ भी पाया है लहर को //**// *-*-*
ग़ज़ल 50 --..-सच कब क खो चुक है
ाथनाएँ
जनता दे खे है आपक आराधनाएँ अब ब द भी कर दो आँसू बहाना बहत ु दे ख चुके नक़ली स वेदनाएँ हर कसी ने राह है अपनी बनाई कुछ असर है नह ं डालती वजनाएँ िमलना है सबको इस िम ट म आओ बैठ खली धूप म गुनगुनाएँ ये भूलता दन ह चार ----.
य है र व जंदगी के या वह भी िगनाएँ
*-*-*
ग़ज़ल 51 -0-0कह ं गुम हो गई सरकार जेल म लग रहे दरबार लगी है लाइन म जनता पपुआ क करती जयकार मुज रम हो गए ह नरे श और ह फ रयाद बदकार मु क के मह पित ह गे सरगनाओं के भी सरदार र व तुझे कुछ करने को अब तो है खासा दरकार *-*-* *-*-* ग़ज़ल 52 //**// कहाँ कहाँ नह ं द यािचका ज़ र
य कर है यािचका
िनकाल दो भले ह दे श से नह ं दे नी है मुझे यािचका एतबार था तो फर
य
पछता रहे हो दे यािचका जुम है मु क म ज मना इसीिलए ज र है यािचका
आसाँ जंदगी के िलए र व िलए फरता है वो यािचका *-*-*
ग़ज़ल 53 **--** िसतम क इं ितहा म भी खुश ह दद तो है दल म मगर खुश ह कर आए ह बोफ़ोस सी नई ड ल इसीिलए आज वो बहत ु खुश ह यार न द ु मनी पर जाने
य
दद मेरा दे ख के वो अब खुश ह वो तो ख़ािलस दद क चीख थीं गुमान ये था हो रहे सब खुश ह भूखी ब ती म उ सव कर र व िच लाए है वो क हम खुश ह --**-आर. के. ल मण, टाइ स ऑफ इं डया के ताज़ा अंक म कहते ह: “सुनामी पी ड़त , भूकंप पी ड़त को तो तमाम तरह से सहायता िमल जाती है , परं तु हमारे जैसे लोग क जो राजनीितक गलितय और सड़ते शासन तं के पी ड़त ह, कोई सहायता नह ं करता. आ खर शहर के
य ?”
येक हाई राइस ब डं ग या शा पंग माल के पीछे ऐसे सैकड़ झ पड़ प टे तो
िमलगे ह , गांव म तो अिधसं य झोप ड़याँ ह िमंलगी जहाँ आव यक सु वधाओं का घोर अभाव है . ऐसे म लोग को अपने िन यकम से िनपटने का एक मा का कनारा ह तो बच पाती ह...
सहारा रे ल पट रय
सच है , इनके िलए ज मेदार हमार राजनीितक गलितयाँ और सड़ते हए ु शासन तं अलावा और कौन हो सकता है ? ..**..
ग़ज़ल 54 ..**.. माफ़ के का बल नह ं ह ये गलितयाँ तब भी हो रह ं गलितय पे गलितयाँ मौज क
यावली लगती तो है पर
पी ढ़य को सहनी होगी ये गलितयाँ जब भी पकड़ा गया फरमाया उसने भूल से ह हो रह ं थीं ये गलितयाँ अब तो दौर ये आया नया है यारो सच का जामा पहने ह ये गलितयाँ कभी अपनी भी िगन लो र व तुमने दसर क तो खूब िगनी ये गलितयाँ ू ---.
सारा मु क फरार है ...
के
*-*-* बहार के पाँच वधायक अस से फरार थे, जो, जा हर है , चुनावी बेला पर नमूदार हो गए. इससे पूव क य मं ी िशबूसोरे न को कोट का समन जार हआ था तो वे मं ी पद छोड़ ु
कुछ दन तक फरार हो गए थे. इस बीच वे मी डया को सा ा कार दे ते रहे . जब समन बीत गया तो वे
कट हो फर मं ी बन गए. यूं तो सारा दे श फरार हो गया है . सोने क
िच ड़या भारत, ह द ु तान बचा है
या? उसे हमने कह ं फरार करवा दया है और जो
हमारे पास बचा है वह ला टक, पॉिलथीन का इं डया है ... *-*-* ग़ज़ल 55 //**// सम मु क फरार है ज म है जाँ फरार है अवाम बैठ मुँह खोले और हा कम फरार है क़ैद है जेल म ले कन वहाँ िसपाह फरार है दे खो दिनया द वानी ु
जए वह जो फरार है
सोचे है र व बहत ु पर उसका कम फरार है
--**-*-*-*
ग़ज़ल 56 --**-मनुज आज म गंदा न था साथ म लाया फंदा न था िसयासत म मज़हब का ये धंधा खासा मंदा न था लोग अकारण ह चुक गए फेरा गया अभी रं दा न था मह फ़ल से लोग चल दए कसी ने मांगा चंदा न था र व मरा बैमौत कहते ह पागल द वाना बंदा न था *** ---. **--** यंज़ल (हा य ग़ज़ल यानी हज़ल के तज पर) 57 *-/-/* समाज को बुरा हमने बनाया दो त आईना दसर को ह ू
दखाया दो त
जाना था मं जल-ए-राह म मु त से खुद बैठे सबको साथ बठाया दो त अपने ह
जले से होकर जला-बदर
हमने है बहत ु नाम कमाया दो त कल क खबर नह ं कसी को यहाँ शतरं जी चाल
य है जमाया दो त
हमम तो न दल है न ह जान र व अपनी लाश तो कबसे जलाया दो त ***---*** *-*-* यंज़ल (हा य ग़ज़ल, हज़ल क तज पर) 58 *-*-* कस बना पर रहना होगा मूख क तरह रहना होगा मूख के राज म कैसे यार दािनशमंद का रहना होगा मूख क जमात का फौजी कहता है यह ं रहना होगा बन जा खुद या दसर को ू मूख बना कर रहना होगा
मूख के दौर म सोचे र व कस तरह कैसे रहना होगा //**// *-*-*
यंज़ल (हा
य ग़ज़ल, हज़ल के तज पर) 59
*-*-* आती ह अब बेमौसम बहार कुछ क रखेल हो गई बहार अब तक पड़ा नह ं सा बका कैसे जानगे जो आएंगी बहार िसयासत से लुट गई क़ौम
बनानी होगी अब अपनी बहार जीने के ज ोजहद म यार कैसा बसंत और कैसी बहार इस क़
नावा क़फ़ रहा र व
आकर गुजर चुक कई बहार *+*+*
110 अरब
पय क सालाना र त
***/***
*-*-* भारत म 110 अरब
पय क सालाना र त पुिलस, यातायात पुिलस और अ य सरकार
कमचा रय को द जाती है . यह धनरािश क शु क के पर
प म सालाना
ा
तथा रा य सरकार को कर और अ य
होने वाली रािश से 30 अरब
पए
यादा है .
क / वाहन से वसूली करती दखाई दे ती पुिलस इन आंकड़ क पु
ाय: हर माग करती है .
हाल ह म पुिलस का मु य काम यह हो गया था क वह मु बई जैसे महानगर से लेकर मेवासा गांव तक वह यह सुिन
त करे क दो प हया वाहन चालक हे लमेट पहन कर ह
वाहन चलाएँ. हे लमेट िनमाताओं ने भी र त का सहारा अपने उ पाद को बेचने के िलए ले िलया लगता है . पुिलस के अनुसार हे लमेट पहन कर आप संपूण सुर भीड़ भर , अिनयं त *-*-*
ै फक स हत, ग ढ से प रपूण सड़क म. ध य है !
त हो जाएँगे-
यंज़ल (हा
य ग़ज़ल, हज़ल के तज पर) 60
/*/*/ जीवन के शत म शािमल है र त मय सर है कफन जो होगी र त क़ स म भी नह ं यार क बात भाई-भाई के र त म घुसी र त ऐसे दौर क कामना नह ं थी हम अपने आप को दे ना पड़े है र त बदल चुके ह इबादत के अथ भी कोई फ़क़ नह ं र म हो या र त हवालात क हवा खाना ह थी र व तूने िलया जो नह ं था कोई र त *-*-*
*-*-*
यंज़ल 61
-+-+उनने कमज़ोर कर ली ह अपनी नज़र कहते ह न रखगे दसर क कोई खबर ू उनने चल द ह अपनी शाितराना चाल दे ख क क़ौम पर
या होता है असर
उनने ऐलान कया है समाजवाद का हम तो बेताब ह कस घड़
कस पहर
मं जल तो तय कर लीं बहत ु दरू क
रा ते कस ओर को जाएंगे जरा ठहर
लोग इतने नादान नह ं हो सकते र व नतीज़े से पहले रख ले जरा सी सबर -+-+-
ग़ज़ल 62 पानी क क मत कसी पसीने से पूछना बयार
य बहती नह ं उ ट मत पूछना
जोड़ घटाना गुणा भाग के ग णतीय सू राजनीित म ऐसे चले आए
या पूछना
स ा- कुस के खेल म िनयम- कायदे वो भला आदमी चले- चला था पूछना नया
या आ मघाती का बेरोजगार होना
जेहन म आता है फर
य ये पूछना
र व, खुदा ने तो तुझे बनाया था बेजात फर
य सभी जात तेर चाहते ह पूछना
ग़ज़ल 63 जरा से झ के को तूफान कहते हो
ू टटता छ पर है आसमान कहते हो उठो पहचानो मृग मर िचका को मु ठ भर रे त को रे िग तान कहते हो अब तो बदलनी पड़गी प रभाषाएं सोचो तुम कनको इं सान कहते हो नैन का जल अभी सूखा नह ं है पहचानो उ ह ज ह महान कहते हो
सूिचयाँ सब सावजिनक तो करो जानते हो कनको भगवान कहते हो जमाने को मालूम है बदमािशयाँ कैसे अपने को नादान कहते हो कभी झांके हो अपने भीतर र व और को फर
य शैतान कहते हो
ग़ज़ल 64 जीने क खबर है रने क खबर है अपने दो त के जलने क खबर है उनके नासूर के भरने क खबर है डरावने लोग के डरने क खबर है दो
ेिमय के
लड़ने क खबर है कसी कंगाल के खाने क खबर है दद को र व के सहने क खबर है
ग़ज़ल 65 खुदा को ह दआएं दे रहा हंू म ु जले चराग़ बुझाए दे रहा हंू म
चाहत म म जल-ए-इ क क खुद ह को िमटाए दे रहा हंू म राह-ए-मोह बत म मरकर वफा सबको िसखाए दे रहा हंू म मोह बत डरने वाल का नह ं जान लो यह बताए दे रहा हंू म ल हे भर को उ ह भूले नह ं खुद को ऐसे भुलाए दे रहा हंू म जरा सी बात थी उनके िमलने क और अफसाना बनाए दे रहा हंू म इतना तो तेर खाितर है र व अपना दल जलाए दे रहा हंू म
ग़ज़ल 66
यूं तो दिनया म कुछ कम गम नह ं ु हम तो गम है क कोई गम नह ं मरने को तो मरते ह सभी मगर जंदगी जीने का कसी म दम नह ं साथ दे ने का वादा तो सबने कए यहां तो हम सफर खुद हम नह ं रोया कए ह ता उ
तेर याद म
आलम है अब आंख भी नम नह ं फर से िमलने क
कसी मोड़ पर
मांगी थी दआ खुदा से कुछ कम नह ं ु
समझे थे पैग बर-ए-वफा तुझे सोचा ये था क हम कोई
म नह ं
िमलेगा मुक र म सुकून र व ये सोच के कया था कोई
ग़ज़ल 67
म नह ं
िनकलो गर सफर पे लोग िमलते जाएंगे प छ लो ये चंद आँसू वरना ढरक जाएंगे माना अंधेर म साए भी नह ं दे ते साथ आ खर मोड़ तक उनके अहसास जाएंगे अ क का जाम बना पया है ज ह ने वे द वाने तेरे पास दद दल ले के जाएंगे जब भी िगरो बढ़ाओ सहारे के िलए हाथ लोग तो खुद डू ब कर तुझे बचा जाएंगे सहर होने पर भी खोलो न आँख अपनी उनके बखरे
वाब संवर ह जाएंगे
मं जल इ ह ं राह पर ह िमलेगी र व बाक है जोश बहत फर कैसे घर जाएंगे ु
ग़ज़ल 68
अनाज के ढे र म बैठा भूखा हँू म भरा है पेट मगर बैठा भूखा हँू म जनाज के मेले म भीड़ है मगर बेगुनाह लाश का बैठा भूखा हँू म इस जंग म हु
ह सभी हद पार
कुिसयाँ पकड़ा बैठा भूखा हँू म
सड़क, नहर, बांध और न जाने
या
थािलयाँ सजाए बैठा भूखा हँू म गर ब के गले से िनवाले िनकाल अमीर शहर म बैठा भूखा हँू म ये है तेरे मु क क हालत र व सबकुछ खा के बैठा भूखा हँू म
ग़ज़ल 69
मेरे शहर के सड़क के ग ढ क कहािनयाँ ह बेजान बजली के ख भे भी कहते कहािनयाँ ह । ू , तो यहाँ कोई वहाँ कोई पूल टटा नए क स म
े न टकराई
य भूलते पछली कहािनयाँ ह ।
धारावी के झ पड़े , वरली सी- फेस के बंगले कह ं रसभर , तो कह ं क णामयी कहािनयाँ ह । भीड़ का ये मंजर ख़तम होता नह ं दखता करोड़ के दे श म अकेलेपन क कहािनयाँ ह । तेरे चेहरे पे आज मु कान चौड़
य है र व
या तू ने सुन ली कोई दद भर कहािनयाँ ह ।
ग़ज़ल 70
जमाने, तेर खाितर हम बरबाद हो गए य लोग कहते ह क िमसाल हो गए । इस दौर म तो अब मुह बत से पहले नून, तेल और लकड़ के सवाल हो गए । अब दो त ने शु
कया क ले आम
सभी बन गए बुत, हवा द वार हो गए । पता नह ं क यह आ खर कैसे हो गया सपने थे तूफ़ान के पर बयार हो गए । वीरान ब ती म था िसफ हमारा जलवा जमाने तेरे िसतम से हम बेकार हो गए । हआ है मेरे शहर म एक अजीब हादसा ु
कुछ खा के, बाक़ भूख से बीमार हो गए । अरमाँ मत रख बेवकूफ
या पता नह ं
राजपथ के कु े अब सब िसयार हो गए । इतना आसाँ नह ं जमाने को बदलना र व तुझसे पागल कई हजार हो गए ।
ग़ज़ल 71
म छर ने हमको काटकर चूसा है इस तरह आदमकद आइना भी अब जरा छोटा चा हए । घर हो या दालान म छर भरे ह हर तरफ इनसे बचने सोने का कमरा छोटा चा हए । ड ड ट , मलहम, अगरब ी, और आलआउट अब तो मसहर का हर छे द छोटा चा हए । एक चादर सरोपा बदन ढं कने नाकाफ है इस आफत से बचने क़द भी छोटा चा हए । सुहानी याद का व
हो या ग़म पीने का
म छर से बचने अब शाम छोटा चा हए ।
ग़ज़ल 72
तेर मुह बत म कोई लहर नह ं है चलो कोई बात मगर नह ं है । ये रा ता तो थराता था आहट से चीख का कोई खास असर नह ं है । कए तो थे वादे इफ़रात
या कर
इनम से कोई याद अगर नह ं है । तेरे बगैर जीने को सोचा नह ं था जमाने से तेर कोई खबर नह ं है । तुझे भूलने क कोिशश म सफल याद ऐसी कोई शाम-सहर नह ं है । तूने खाई ह गी कसम ढे र मगर कोिशश म खास क़सर नह ं है । वो तो वादा िनभाकर भी दखाते अफसोस कोई पास ज़हर नह ं है । द वान क भीड़ म पहचान जसे र व वैसा कोई नाम नज़र नह ं है ।
ग़ज़ल 73
हमसे आप इस तरह
यूँ शरमाने लगे
नज़र िमला के फर
यूँ शरमाने लगे ।
कसी ने कोई बात न क मह फल म लो वो खुद क बात पे शरमाने लगे । ज़ रत नह ं शै को कसी सबब क वो आप ह आप ऐसे शरमाने लगे ।
या खुदा वो आज जाने
या होगा मेरे तस वुर का
वाब म भी आके शरमाने लगे । यूँ ये दिनया बदली सी है ु
या हआ क वो शरमाने लगे । ु
कोई तो समझाए र व को क
य
कल क बात पे आज शरमाने लगे ।
ग़ज़ल 74
र ते अब बेमाने हो रहे ज म भी यारे हो रहे । तुझसे िमले ल हा न हआ ु और हम तु हारे हो रहे ।
दले गुबार िनकाल तो कैसे अ क भी अब
यारे हो रहे ।
ू अपना या हआ दल टटा ु
वो भी तो अब बंजारे हो रहे । कससे कह हाले दल यहाँ अपने तो बेगाने हो रहे । तस वुर म बैठे ह आँखे मूंदे भर दिनया म नजारे हो रहे । ु मुह बत तो डू बना है र व फर वो कैसे कनारे हो रहे ।
ग़ज़ल 75
जरा सी बात थी जो पूर दा ताँ बन गई
नज़र
या िमली मुह बत का सामाँ बन गई ।
उनके खुदा का हाल तो पता नह ं हमको यहाँ मुह बत अपना धम और ईमाँ बन गई । वो
या आए मेरे दर पे एक पल के िलए
मेरा ग़र ब खाना खुिशय का जहाँ बन गई । पता नह ं क ऐसा हआ आ खर कसिलए ु
सारा जहाँ यकायक मेर मेहरबाँ बन गई । न कोई ग़मी हई ु न कोई हा दसा ह हआ ु जाने
य खामोशी अपनी जुबाँ बन गई ।
सबके खयाल से भले ह वो बहार थी मेरे दर पे आके तो वो तूफाँ बन गई । रहने ह दो फ़जूल है ये दावा आपका अपनी चाहत तो अब आ माँ बन गई । अब हम ये खुिशयाँ ले के कहाँ जाएंगे कफ़स ह जब अपना आिशयाँ बन गई । पहले वो पूछते थे क वो कौन ह तेरे जंदगी जान के र व वो नादाँ बन गई ।
ग़ज़ल 76 ज
बेवफ़ाई का जब कया जाएगा
उसके साथ तेरा नाम िलया जाएगा । हाल अ छा अपना कह तो कस तरह जुबां खुलेगी जब जाम पया जाएगा । आलम है क यहाँ कोई हम सफर नह ं बात बनेगी जब कह ं दल दया जाएगा ।
कहते ह वो हमसे िमलने क फुसत नह ं तस ली है जनाजे पे िमल िलया जाएगा । बात क थोड़ सी और वो
वा हो गए
बनेगी बात कैसे जो न कया जाएगा । अभी तो बैठे ह खयाल म खोए हए ु
दे खगे जो मह फल म याद कया जाएगा । उनक वसीयत थी जनाजे पे न रोए कोई नई बात नह ं दल थाम िलया जाएगा । मं ज़ल क ये दौड़ तो ख म होने से रह चलो अब कह ं आराम कया जाएगा । उसे खबर है क उनके इ तेज़ार म र व अपनी जंदगी यूँ बरबाद कया जाएगा ।
ग़ज़ल 77
इस जमाने क बहार को
या क हए
गुल ह काँट से लग तो
या क हए ।
गुमाँ था बहत ु तेर यार पे अबतक अब द ु मनी सी लगे तो
या क हए ।
समंदर के कनारे है आिशयाँ अपना गर यास न बुझे तो
या क हए ।
दपहर क धूप म िनकला है द वाना ु उजाला न िमले उसे तो
या क हए ।
कहते ह जंदगी बड़ आसाँ है र व लोग मान न मान तो
या क हए ।
ग़ज़ल 17 इक दद सा है
यूँ दल म कोई बताए तो हमको
सभी मेहरबाँ हो रहे
यूँ, कोई सताए तो हमको ।
मांगी है दआ तेरे ह िलए ईश और अ लाह से ु
दे रहे सभी ब आ तो हमको । ु यहाँ दे कोई दआएँ ु जब भी चाहा तब सुम को अ क िनकल जाते ह एक अ क क खाितर ह कोई हँ साए तो हमको । सब कहते ह बहत ु क ठन है राह उस मं जल क
राहबर बनकर राह अरे , कोई दखाए तो हमको । िनकल चुक है जान कािसद के इ तेजार म कुछ खबर उनक सुना कोई जलाए तो हमको । हर चीज है मुम कन कहने को लोग कहते ह इक दन मेरे महबूब से कोई िमलाए तो हमको । वो वफा कर डर से लुट नींद अपनी है र व झूठ तस ली दे के सह कोई सुलाए तो हमको ।
ग़ज़ल 78
मह फल म सुनाई दा ताँ सबने अपनी हम पे गुजर ऐसी क सुनाई न गई । उनके पूछने का अंदाज था कुछ ऐसा कोई सूरत वो बात बताई न गई । उनका दोष नह ं न उनने क बेवफाई हम ह
ठे थे ऐसे क मनाई न गई ।
द वानगी म अपने दल जलाए बैठे
होश आया पर आग बुझाई न गई । त हाई का खौफ इस कदर है र व वो आ गए पर मेर त हाई न गई ।
ग़ज़ल 79
जाने कस बात पे हम रोना आया बेदद जमाने
य हम रोना आया ।
कोई तो दे हम ज़हर का याला जाम पी के तो हम रोना आया । इन चराग को बुझा दो यार रौशनी दे ख के हम रोना आया । बस करो छे ड़ो न चचा फर जन बात पे हम रोना आया । के कहकहे लगाए सबने र व सुनके जो बात हम रोना आया ।
ग़ज़ल 80
इस कदर कर कोिशश ख़जा-ए-गुल खलाने बने मु कान गुिल ताँ क के तेरा मुरझाना । माना खार भी लेते ह साँस इस चमन म इक फूल क खुशबू से है दामन भर जाना । इन अ क के टपकने से िमलता है सुकून दो बूंद दे गा सागर-ए-सुकून तुझे अंजाना । उ ह याद दलाने से याद रह वो
या होगा हािसल
या फर याद आना न आना ।
करले तू अपनी जुबाँ को इस कदर यासा ज़हर भी तू अमृत समझ पचा जाना । न कर इं तजार आ खर साँस का र व हर साँस आ खर है और दल है बेगाना ।
ग़ज़ल 81
कुछ नह ं तो वायद क बौछार लाऊँगा इस चुनाव म जीता तो यौहार लाऊँगा । अभी तो याचक बना हँू तेरे दर पर
कुस पे बैठ तेरे िलए इ तेजार लाऊँगा । परोसा है सभी को आ ासन के याले होगी जेब गम तभी ऐतबार लाऊँगा । अभी तो होगा वो तुम चाहते हो जो बाद म फर म झूठा इक़रार लाऊँगा । लगते हो आज तुम मेरे अपने से कल को पहचानने से इनकार लाऊँगा । जब बीतगे पांच बरस खामोशी से र व चीखता हआ फर स चा इसरार लाऊँगा । ु
ग़ज़ल 82
भूले हए ु है खुशी को खुशी क तलाश म हो गए ख़ुद बेवफा वफा क तलाश म । बे- दल दिनयाँ म एक इ साँ न िमला ु
हम भटका कए थे खुदा क तलाश म ।
समंदर क लहर से भी न िमट
यास
गोता लगाया यथ शबनम क तलाश म । थे बेखबर जल रहा था अपना आिशयाना भटका कए दरबदर रौशनी क तलाश म । लोग ितनक के सहारे लांघते ह द रया हमसे डू बी क ती सहारे क तलाश म । अब तक थे िशकार गलतफ़हमी के र व िमली थी मौत जंदगी क तलाश म ।
ग़ज़ल 83 इक दद सा है
यूँ दल म कोई बताए तो हमको
सभी मेहरबाँ हो रहे
यूँ, कोई सताए तो हमको ।
मांगी है दआ तेरे ह िलए ईश और अ लाह से ु
दे रहे सभी ब आ तो हमको । ु यहाँ दे कोई दआएँ ु जब भी चाहा तब सुम को अ क िनकल जाते ह एक अ क क खाितर ह कोई हँ साए तो हमको । सब कहते ह बहत ु क ठन है राह उस मं जल क
राहबर बनकर राह अरे , कोई दखाए तो हमको । िनकल चुक है जान कािसद के इ तेजार म कुछ खबर उनक सुना कोई जलाए तो हमको । हर चीज है मुम कन कहने को लोग कहते ह इक दन मेरे महबूब से कोई िमलाए तो हमको । वो वफा कर डर से लुट नींद अपनी है र व झूठ तस ली दे के सह कोई सुलाए तो हमको । -----------.
यंजल (हा /*/*/ ये, है ये
य ग़ज़ल=हज़ल के तज पर) 84
ेम, नह ं है झगड़ा
आओ यूँ सुलझाएँ अपना रगड़ा जंदगानी के चंद चार
ण म
ऊपर नीचे होते रहना है पलड़ा करम धरम तो दखगे सबको चाहे ज ा डालो उस पे कपड़ा जब ख म होगी तो सुखद होगी यूँ पीड़ा को रखा हआ है पकड़ा ु जया है जंदगी को बहत ु रव
मौत कतनी है ये असली पचड़ा *-*-* *-/-* यंज़ल 85 *-/-* राजा नए हए ु ु ह गूजर हो या ददआ
मानव या तो मरा पड़ा या है बंधुवा जाित-धम के समीकरण म उलझा मेरे दे श का नेता हो गया है भड़ु आ उस एक पागल क स ची बात को पीना तो होगा लगे भले ह कड़ु आ अवाम का तो होना था ये हाल, पर ये क़ौम कस िलए हो गई है रं डुवा एक अकेला र व भी
या कर लेगा
इसीिलए वो भी खाता बैठा है लड़ु वा
*-*-* *-*-*
यंज़ल 86
*-*-* नकारे गा भी कोई ये वचार घ टया
ू ख टया बरस से बछ पड़ है टट जमाने म बहत ु ह मख़मली मसनद
हम माकूल वह अपनी फट च टया जमाना हँ सता है तो इससे हम
या
समंदर को चले उठाए अपनी प टया हम सा अमीर कोई नह ं जमाने म हमने दरवाजे पे लगा ली है ट टया -*-/-**-*-* *-*-* यंज़ल 87 *-*-* लोग को डराती और तंग करती है सरकार लूली लंगड़ क़ौम कस तरह से दे ललकार जनता क सरकार है या सरकार क जनता सरकार के िलए भी कोई सरकार है दरकार यह नमूना नह ं था आजाद के द वान का या न शे नए ह गे, नए ह गे कभी परकार मेरा ये मु क दौड़ के वहाँ जा पहँु चा है जहाँ िनद ष को करनी होती है द ु
क जयकार
एक अकेला तू चला था ईमान के र ते र व
िमलना तो था सारे जमाने का तुझे बदकार *-*-* ----. *-*-*
यंज़ल 88
-/*/*/कुछ क ँ या न क ँ क सरकार मेर है म दे ता नह ं जवाब क सरकार मेर है अपने ब धुओं म ह
कया है वतरण
है खरा समाजवाद क सरकार मेर है मांगता रहा हँू वोट छांट बीन तो म पूण सेकुलरवाद
या
क सरकार मेर है
रहे मेर ह सरकार या मेरे कुनब क मने कए ह जतन क सरकार मेर है मु क क सोचेगा तो र व कैसे कहे गा म ह तो हँू सरकार क सरकार मेर है *-*-* ----. *-*-*
यंज़ल 89
*-*-* य हो गया मेरा दे श लं बत है सोच कर ये मन होता कं पत है मेर आशाओं का महल
य कर
अध शती म हो गया खं डत है मेहनतकश का मुकाम नह ं और अकम य होता म हमा मं डत है
मनी षय के दन लद गए कबसे यहाँ पूजा जाता प गा पं डत है मु त म आँसू बहा कर र व यूँ य तू करता खुद को दं डत है *-*-* झारखंड म सरकार बनाने के िलए आमं त नह ं कए जाने से नाराज अजुन मुंडा क अज पर सु ीम कोट ने सुनवाई करते हए ु रा यपाल के फैसले को सं वधान के साथ धोखाधड़ करार दया है .
इसके साथ ह नेताओं म वधाियका – यायपािलका म कौन बड़ा – कसका अिधकार कहां तक का सवाल एक बार फर खड़ा हो गया है . जहाँ बीजेपी
वागत कर रह है (चूँ क यहाँ
उसके फायदे क बात हो रह है ) वह ं तमाम अ य दल ितलिमलाए हए ु ह क ओवरए ट व म दखा रह है . परं तु
यायालय को
याय क प रभाषा फर से बताने और
यह बताने के िलए क सं वधान के साथ धोखाधड़ रा यपाल जैसे सं वधान कया जा रहा है , कस ने मजबूर कया है? आज क कुस क खाितर सं वधान तो
खुद क सेवा है कोई धोखाधड़ नह ं रहे ह तंगहाल तो
या
तस ली तो है कया धोखाधड़ नह ं गुजर गया दौर ईमान क बात का जीना असंभव जहाँ धोखाधड़ नह ं कोई फक बचा नह ं पहचानोगे कैसे या छल और
मुख
या धोखाधड़ नह ं
अमीर म नाम िलखवाने चला र व
ारा
तरह न राजनीित ने, जहाँ स ा और
या, लोग अपने आप से भी धोखाधड़ कर रहे ह.
*-*-* यंज़ल 90 *-*-* ये मेर मासूिमयत है धोखाधड़ नह ं
तमाम उ
यायालय
तार फ़ है क आती धोखाधड़ नह ं *-*-* *-*-*
यंज़ल 91
*-*-* या कुछ नह ं ज़हर ली हो गई अब ये गंगा भी ज़हर ली हो गई आ खर कैसे हो क़ौम का इलाज अब औषध भी ज़हर ली हो गई अमृत अब से बुझती नह ं यास अपनी लत ह ज़हर ली हो गई अंतत: श ागार बन गई दिनया ु दो ती क बात ज़हर ली हो गई ेमशा
पढ़ जवाँ हआ था र व ु
मेर चाल कैसे ज़हर ली हो गई *-*-* *-*-*
यंज़ल 92
*-*-* बदल गई प रभाषाएँ बदल गए पहचान मूरख मनुज तू
य बना रहा अनजान
जसका नाम न हो न हो कोई पहचान इस जग म बरादर कतई नह ं धनवान ले आओ मु ा या कह ं से जान पहचान होगा काम तभी तो बगैर कसी अहसान अंट म
पया नह ं न कसी से पहचान
यूँ तो िमलना ह है सभी जगह दरबान नंग म र व ने भी ख़ूब बनाई पहचान िसर म टोपी डाल के भूले है अपमान *-*-*
यंज़ल 93 /*/*/ खुद पर नह ं अपना मािलकाना हक है जताने चले जग म मािलकाना हक है लोग कहते ह ये मु क है तेरा अपना बेघर तेरा बेहतर न मािलकाना हक है यहाँ खूब झगड़ िलए राम रह म ईसा वहाँ नह ं कसी का मािलकाना हक है दल म द ू रयाँ तब से और बढ़ ग
जब से
कट कया मािलकाना हक है
ले फरे है अपनी
ह बाज़ार म र व
मोटे असामी का ह मािलकाना हक है ----.
ये दे श मलाईदार!
*-*-* स दय पहले भारत, सोने क िच ड़या कहलाता था. जब वा को ड गामा, भारत के िलए समु
रा ता ढंू ढ कर वापस पुतगाल पहँु चा था तो पुतगाल म मह न तक रा ीय ज
मनाया गया था- िसफ इसिलए क अमीर-सोने क िच ड़या – भारत - से यापारयवसाय का एक नया, आसान रा ता खुला जससे पुतगािलय का जीवन
तर ऊँचा उठ
जाएगा. तब से, लगता है , यह ज जार है . पुतगािलय के बाद अं ेज ने ज बाद से मलाईदार वभाग वाले नेता-अफ़सर
ारा ज
मनाए और उसके
मनाए जाने का दौर िनरं तर जार
है . सोने क यह िच ड़या आज लुट- पट कर भंगार हो चुक है , परं तु उसम से भी मलाई चाटने का होड़ जार है . *-*-*-* यंज़ल 94 */*/* सभी को चा हए अनुभाग मलाईदार
ू फूट हो पर हो मलाईदार कुस टट अब तो जीवन के बदल गए सब फंडे कपड़ा चाहे फटा हो खाइए मलाईदार अपना खाना भले हज़म नह ं होता हो
दस ू र थाली सब को लगती मलाईदार जार है सात पु त के मो
का
यास
कभी तो िमलेगा कोई वभाग मलाईदार जब संत बना र व तो चीज़ हु भूखे को भगाते अब
उलट
वागत मलाईदार
*-*-* *-*-* ग़ज़ल 95 //*// सड़ाएगा सड़ता झाग जो है डसेगा गले का नाग जो है उगलगी तो बेशक जलाएंगी इस पापी पेट म आग जो है कह ं ऊंच तो है कह ं नीच जीवन का गुणा भाग जो है खताएँ सार मुआफ़ तु हार आ ख़र चाँद म दाग जो है मह फ़ल म द ु कारा गया
गाया बेमौसम फ़ाग जो है पूछ परख खूब है र व क हं स के भेस म काग जो है *-*-* यंज़ल 96 गु सा दे खा नह ं कभी उसका दःख कया नह ं कभी उसका ु
वैसे तो था बहत ु याराना पर
खयाल आया नह ं कभी उसका यथ म न जोड़ो र ता मने नाम िलया नह ं कभी उसका इबादत तो क ं सुबह शाम पर दशन िमला नह ं कभी उसका प थर म ये बात तो है र व िमटे िनशां नह ं कभी उसका **-** -*ग़ज़ल 97 --.-कतना बड़ा हो गया है आदमी ई र को बेच खाया है आदमी खुदा ने बनाया आदमी बस एक दे व म फक बो दया है आदमी ई र, अ लाह और ईशू के नाम खूब क लेआम कया है आदमी पहचानता नह ं अपनी ह सूरत बड़ा बेईमान हो गया है आदमी पूछता है ई र से र व क
या
गलती से वो बन गया है आदमी --.—
ग़ज़ल 98 **-** दलील का दौर ब द न हआ ु इ क म ऐसे फैसला न हआ ु पतंगे के रा ते म थी शमा कैसे उसका कुसूर न हआ ु ये
य नह ं सोचता आदमी
जो आज था कल को न हआ ु बैठे हाथ धरे और ये मलाल ये न हआ वो भी न हआ ु ु जले को कटे का दद नह ं कसी सूरत ये तक न हआ ु दसर का हो तो कैसे र व ू
वो तो कभी खुद का न हआ ु **-** यंज़ल 99 **-** यूँ पालते हो फोकट क आशाएँ हमने तो भुला द ं तमाम मा ाएँ झंडा ले घूम रहा है सरे बाजार जहां िगरवी हो गई ह सार हवाएँ नस म जहर घोलकर वो जािलम ले के आया है जमाने भर क दवाएँ चलाया च पू तमाम उ
वो नादान
मं जल वह ं थी पता न थी दशाएँ
खुद फंस चुका है र व गले तक सोचता है क कैसे सब को फंसाएँ **-** यंज़ल 100 **-** कोई सबब
यूँ हो क म खुश हँू
उनको दःखी दे खकर ह म खुश हँू ु चेहरे पर गुमां
थाई ह पीड़ा क लक र
यूँ सबको है क म खुश हँू
बकने लगा है बाज़ार म सबकुछ अपने उसूल को बेचकर म खुश हँू सबने बहत ु नकारा मुझ बे दल को
द वान क भीड़ म एक म खुश हँू वो आँसू याज िमच के रहे ह गे र व सच म तो बहत ु म खुश हँू **********. ग़ज़ल 101 /-/-/ कन खय म उनक शरारत दे खूँ चढ़ती उतराती मुसकराहट दे खूँ वादा भले ह न कया हो उनने हर आवाज़ पे उनक आहट दे खूँ पल पल बदले है िमज़ाज उनका कभी गु सा तो कभी चाहत दे खूँ म जा हल गंवार उनके गु से म
द य
णय क सरसराहट दे खूँ
उनके इनकार म म बावरा र व यु म क ती
छटपटाहट दे खूँ
*-*-* -*-*यंज़ल 102 **--** जंदा रहने क बात करते हो कस शहर क बात करते हो एक कौर रोट नह ं मय सर तुम भोज क बात करते हो गली के हड़दं ु िगये संभले नह ं व
शांित क बात करते हो
न घर न व
न है िनवाला
हद म रहने क बात करते हो इन हालात म जंदा है र व तुम कस क बात करते हो *-*-* यंज़ल 103 *-*-* ये दिनया इक ु हर वासी यहाँ
ॉड है ॉड है
ये काम सब करते ह तुम कहते हो
ॉड है
म सह हँू खुदा कसम
य कहते हो
ॉड है
नमाज पूजा व
ाथना
भु जाने
या
ॉड है
इ ज़त से बताता र व उसका ईमान *-*-*
ॉड है
*-*-* यंज़ल 104 *-*-* समा गई है रसातल म राजनीित। होने लगी है मुह बत म राजनीित। रहा करता था भाई चारा कभी फैल गई गली कूच म राजनीित। य दे खता हँू हर तरफ बुराइयाँ
समा गई मेर नज़र म राजनीित। जीवन तो है पल भर का इनका दे खो इनक हर चीज़ म राजनीित। र व सोचता है
या हो जाता जो
न होती अपने जीवन म राजनीित। *-*-* *-*-* यंज़ल 105 *-*-* ह नेता और अफसर इस जमाने के खुदा। मेरे खुदा तो बस क से कहानी के खुदा।
तमाम झगड़े ह िसफ उसी एक के िलए कसी के
भु परमे र तो कसी के खुदा।
चोर के ह राज चल रहे ह इस दौर म बड़े ह श
शाली ह िसफ उन के खुदा।
शहर के बािशंदे भूखे ह कसी जमाने से फर कस का ई र और कस के खुदा। एक जहान, एक ह वेष हम सभी के र व फर
य
व वध रं ग के ह सब के खुदा।
*-*-* *-*-* यंज़ल 106 *-*-* कसी ने ये य नह ं सोचा सोचता रहा तमाम उ
बैठे बैठे बस म सोचता रहा
तेरा खयाल मुझ से जुदा नह ं होता पर य तेरे खयाल म म नह ं सोचता रहा हरकत तो कर डालीं उनने तमाम मगर ू नह ं मेरा ये दल टटा
य सोचता रहा
जनसं या बेकार धािमकता के म य से कधर जा रहा है मेरा मु क सोचता रहा उठाते कोई कंकर तभी कोई हक था र व मजमे म आसीन म भी यह सोचता रहा *-*-* ग़ज़ल 107 म भला कैसे इस तरह शरमाया होऊँगा
कसी और के गम पे मुसकाया होऊँगा िछन गए बचपन, जवानी, बुढ़ापा सभी म शायद कभी गभ म इतराया होऊँगा मत पूछो मेरे चेहरे क खुशी का सबब कसी सपने म शायद पगलाया होऊँगा यूँ तो कट गई थी मजे म रात अपनी खाली पेट को ठ क से सहलाया होऊँगा िगला करने को तो कुछ भी नह ं र व शायद म ह जरा सा कतराया होऊँगा *-*-* *-*-* यंज़ल 108 *-*-* ये दिनया इक ु हर वासी यहाँ
ॉड है ॉड है
ये काम सब करते ह तुम कहते हो
ॉड है
म सह हँू खुदा कसम य कहते हो
ॉड है
नमाज पूजा व
ाथना
भु जाने
या
ॉड है
इ ज़त से बताता र व उसका ईमान *-*-*
ॉड है
यंज़ल 109 **/** जाने कस जहाँ म खोया रहा सब चलते रहे म सोया रहा जसने
ाण हरे दो त के
वो ज़हर म ह तो बोया रहा जाना है एक दन ये सोच
अपना ताबूत खुद ढोया रहा दो हाथ थे मेरे भी फर
य
बैठ के तकद र पे रोया रहा जहाद तो कर आया र व
ता उ
-----
वो लहू म धोया रहा
*-*-* यंज़ल 110 **-** जाने कब से म गुम हो गया भीड़ म राह म कैसे पहचानूँ इस क़दर भीड़ म दौड़ना चाहा था मने भी एक मैराथन ू गए फंस कर भीड़ म सपने मेरे टट
जला दए आ थाओं के म जद मं दर म करता भी
या धमा ध क भीड़ म
सोचा था चहँु ओर िमलगे यार दो त
खूब अकेलापन पाया बे मु त भीड़ म
उठा िलए ह प थर र व ने भी अंतत: कौन पहचानेगा उ मा दय क भीड़ म *-*-*
*-*-* यंज़ल 111 //*// फ़क़
या कौन भार अफ़सर या बाबू
जनता को पीसे या अफ़सर या बाबू जातं
क चाहे जो दो प रभाषा पर
असली राजा तो ह अफ़सर या बाबू और होगा दौर डॉ टर इं जीिनयर का अब एक ह सपना अफ़सर या बाबू महल वाली गली का नया नजारा बािशंदे सब वहाँ के अफ़सर या बाबू पागल बन के लौटा है जलसे से र व जहाँ क सागो सब अफ़सर या बाबू *-*-*
*-*-*
यंज़ल 112 *-*-* ईमान क बात करते हो बड़ अजूबी बात करते हो
कसी काम का है ईमान सहे जने क बात करते हो कर दो ईमान को ितर कृ त स गुण क बात करते हो आज क राजनीित म ईमान बेकार क बात करते हो ईमान ओढ़ के र व तुम सफलता क बात करते हो *-*-*
/*/ यंज़ल 113 --==-बुिनयाद ज रत हो गई है र त स ब ध का सेतु बन गई है र त फ रयाद को कर दया है अंदर अपराधी
ारा दे द गई है र त
समय ज द बदलेगा सोचा न था मुह बत
ारा मांगी गई है र त
दे श को वसूलने म लगा हर कोई मु त म तो नह ं द गई है र त ताक़त का बड़ा घमंड है र व को हर तरफ जो चल गई है र त /*//*//*/
तकद र हो तो ऐसी... *-*-*
भाई, तकद र हो तो ऐसी. बाथ म से लेकर िल वंग
म – सब जगह
पय से भर बोर .
कुछ साल पहले भारत के पूव संचार मं ी, सुखराम के घर से भी सात करोड़ पए से भी अिधक नकद बरामद क गई थी – उनके घर म भी जहाँ दे खो वहाँ पय से भर बोर िमली थी – ब तर म, ग
म, हर उस मुम कन जगह पर जहाँ
पए िछपाए जा सकते थे.
ऐसी तकद र से कसे र क नह ं होगा? भगवान, मुझे अगले ज म म ऐसी ह तकद र वाला बनाना. *-*-* यंज़ल 114 *-*-*
कम कुकम ढे र उस धनवीर के या िमला है भरोसे तकद र के महल को दे ख दे ख ये सोचता हँू ये ह गवाह कैसे-कैसे तदबीर के इस दौर के जीवन उनके ह गे जो काम करगे कसी रणवीर के गुणा-भाग कर बताया साहकार ने ू हसाब म ह ला ठयाँ
मवीर के
सब हँ सते ह तेर नादानी पे र व जंग जीतने चला बना करवीर के ----.---*करवीर=तलवार *-*-*
*-*-* यंज़ल 115 *-*-* सरकार को सरकार ह रहने दो तो अ छा भ
को िनराकार ह रहने दो तो अ छा
अब हम चलना होगा और कतने कदम यक ं को िनराधार ह रहने दो तो अ छा कारण म फंस सा गया है आज मगर ेम को बेआधार ह रहने दो तो अ छा या लेना है कसी के हसाब कताब से हम को वफ़ादार ह रहने दो तो अ छा
बहते ु रे
दषण फैला दए ह र व तुमने ू
मु क को हवादार ह रहने दो तो अ छा *-*-*
*-*-* यंज़ल 116 //**// या नह ं कुछ बोगस है दल मन सब बोगस है धूप-ब ी अजान
ाथना
पर सच म सब बोगस है चल कह ं कोई और ठौर बचा यहाँ सब बोगस है इस दौर म
ेम क बात
लगे कह ं कुछ बोगस है सोचता बैठा र व कब से बन गया खुद बोगस है *-*-* **--** यंज़ल 117 *-/-/-* फ़क़ गुम गदभ मनुज म ये माजरा नेताओं के बोल म सत ये माजरा जाित और धम के िसयासी
ड़ा
बन गए सब तमाशबीन ये माजरा
या है या है थल म या है
वाब म फर- फर चला आता है वो गांधी
पूछता है मेरे भारत म ये माजरा
या है
कोई और ब ढ़या रहा होगा दौर जीवन का नए आकलन समीकरण ये माजरा
या है
नई टोपी नया ख र का कुरता पहने र व दो त से िनगाह चुराए ये माजरा
या है
*-*-* *-*-*-* यंज़ल 118 *-*-* वो तो नासमझ ह जो ग ढ को चल दए आप
य उनक उँ गली पकड़ के चल दए
क़दम अभी ठ क से संभले नह ं ह ज़मीं पर और कमाल है क वो घर बसाने चल दए पता न था क रा ता खुद को बनाना है वो मुझको स ज़ बाग दखा के चल दए कोई मुझे उठा के ले जाएगा कंध पर म सोचता बैठा रहा और सब चल दए या अपनी अ ानता का भान है र व फर कसिलए सबको िसखाने चल दए **--**
*-*-* यंज़ल 119 *-*-* लूली लंगड़ क दरकार कसे है चा हए ऐसी सरकार कसे है
काम नह ं ह मुआफ़ के क़ा बल फर िमलेगी ये हरबार कसे है जंगल को जलाए ह ज ह ने उनम चा हए घरबार कसे है भीड़ तो साथ रखते ह खर द अब आव यक दरबार कसे है बन गया है ज़ह न र व भी िनशाना कह ं परहार कसे है *-*-* *-*-* यंज़ल 120 *-*-* फर कस िलए ये क़ानून ह शायद मेरे िलए ह क़ानून ह बने ह सरे राह मं दर म जद जहां चलने के भी क़ानून ह खुदा के ब द ने छ नी वाणी बोलने न बोलने के क़ानून ह मं ज़ल क आस फ़ज़ूल है यहाँ हर कदम क़ानून ह क़ानून ह कैद म है र व, दोषी
वतं
ह
कैसा ये दे श है कैसे क़ानून ह **--**
*-*-* यंज़ल 121 *-*-*
नह ं कयास कहाँ कहाँ ह िमलावट मु कराहट म िमलती ह िमलावट उनक हक कत का हो
या गुमाँ
चाल म उनने भर ली ह िमलावट कोई और श स था वो मेरा दो त
ढंू ढे से भी नह ं िमलती ह िमलावट अपना
ू तो कस तरह म अब टटे
असल क पहचान बनी ह िमलावट आसान हो गया है र व का जीवन अब अपनाई उसने भी ह िमलावट *-*-*
*-*-* यंज़ल 122 *-*-* बढ़ती जा रह ह मु कल पे मु कल इस दौर म बेदाग बने रहना मु कल तमाम प रभाषाएँ बदल ग
इन दन
दाग को अब दाग कहना है मु कल गव अिभमान क ह तो बात ह दाग जाने
य कबीर को हई ु थी मु कल
दाग को िमटा सकते ह बड़े दाग से दाग िमटाना अब कोई नह ं मु कल र व ने जब लगाए खुद अपने पे दाग जीना सरल हआ उसका बड़ा मु कल ु
*-*-* *-*-* यंज़ल 123 **-** अंतत: बन ह गया वो बेशरम नाम कमाने लगा है वो बेशरम िसंहासन पर बैठ कर याग के सब को
वचन दे ता वो बेशरम
पाँच वष म ढे र त द िलय के स ज बाग़ दखाता वो बेशरम ू नह ं अमन चैन अरसे से टटा कस खयाल म है वो बेशरम फटे कपड़े पहन रखे ह र व ने नए फैशन म बना वो बेशरम *-*-* **--** ग़ज़ल 124 *-*-* आशा म जीवन है आशा ह जीवन है गद गुबार म भी आशा से जीवन है धमा ध का कैसा आशा का जीवन है हालात चाहे न ह
आशा ह जीवन है जी रहा र व अभी आशा का जीवन है *-*-* यंज़ल 125 *-*-* अपने नासूर से
यादा और के घाव चुभ रहे ह
रोम-रोम म पसरे कस दद क बात कर रहे ह कस तरह हजम होगी ये उलट -पुलट कहािनयाँ खोखली हो चुक ह जड़ और महाश या कोई
ाय
बन रहे ह
कभी वापस ढंू ढ कर लाएगी
लोग स दय से सोन िचरै या क बात कर रहे ह मं जल िमलने का भरोसा हो तो कैसे, पता नह ं अिनयं त भीड़ म लोग
थर ह या चल रहे ह
खाली-पीली बहस करते लोग म शािमल है र व और सोचते ह क वो कोई बड़ा काम कर रहे ह *-*-* **--** यंज़ल 126 **-** अपना सूट तो खुद हमने ह कतरवाया है पट पीस फाड़कर बरमूडा िनकलवाया है इस तरह हँ सा न क जए हम दे खकर
वो दो त थे ज ह ने क छा उतरवाया है खुद के हालात क खबर नह ं है ले कन
दावा ये है क कइय को सुधरवाया है व ास न क जए मगर हमने भी बहत ु
झूठ क़सम खलाकर सच उगलवाया है महज़ मजे क खाितर शाितर र व ने जाने कतने गड़े मुद को उखड़वाया है -----. **--** यंज़ल 127 --*-बहत कए हो स मान क बात ु कभी अपनाए स मान क बात ार के नवीन परदे को दे खकर सब सोचते ह स मान क बात जाने
य हो जाते हो ज़लील
दसर के ये ह स मान क बात ू वो तो है क व -व
म यार
बदल जाती ह स मान क बात र
उदर म कसी को भी र व
लुभाती नह ं ह स मान क बात **-** **-** यंज़ल 128 --.-अपने सूरज को प
म से उगाया है
कतना दम है ये सबको बताया है
जीवन म अब ईमान ज र नह ं ये बात सा बत कर के दखाया है इस दौर म तो अपरािधय ने यार क़ानून के रखवाल को डराया है इस हिलए को भले ह कबूलो नह ं ु य कह क समाज ने सताया है
दसर क खोट िनकाल रहा है र व ू खुद झूठ म गीता कुरान उठाया है ***-*** यंज़ल 129 ---ईमान से कोई एक मकान बनाओगे दिनया को तिनक चलकर दखाओगे ु
खुद से कए वादे कभी िनबाहे हो गैर से कए वादे बहत ु िनबाहोगे
भूखा बेजार है तमाम मु क अब कतन को तस ली दे के सुलाओगे
बात बहत ु करते हो मगर मौक़े पे तुम भी चमड़े का िस का चलाओगे
मैदाने जंग म अकेले कूद तो गए दे ख कस कसको पानी पलाओगे
बहत दन से रोया नह ं है र व ु ु हँ सी का एक टकड़ा उसे दलाओगे
***-*** **-** यंज़ल 130 नसीब म न थे शायद आनंद के पल ढंू ढने म ह
बता दए आनंद के पल
गिलय शहर तलाशा था पर अंततः माथे के पसीने म िमले आनंद के पल
ब चे क हँ सी, कह ं कोयल क कूक या नह ं ह ये परम आनंद के पल
या ये बात पता भी है क व तुतः दसर क खुशी म ह ह आनंद के पल ू
नादान नह ं होगा जो ढंू ढता है र व दसर के दःख म अपने आनंद के पल ू ु
**-**
यंज़ल 131 **-**
गर पूछा था धम
या है
कया कोई अधम
या है
उस ब ती म धािमक को पता नह ं है शम
पूजा
या है
ाथना इबादत म
कह ं िलखा है कम
या है
जो बहता है तेर रग म लहू नह ं तो गम
या है
द वानी हरकत का र व या बताए मम
या है
*-**-* ग़ज़ल 132 मेरा तुझसे र ता है लाभ क खाितर
मुसकराया हँू अगरचे लाभ क खाितर
जाइएगा नह ं उनके इन आँसुओं पर रोए भी ह कभी तो लाभ क खाितर
वो एक व त था, ये एक व त है
अबक तो दिनया है लाभ क खाितर ु या ऐसा नह ं लगता क ख़ुदा ने बंद को बनाया है लाभ क खाितर उठा िलए ह आयुध र व ने भी अब जा हर है अपने ह लाभ क खाितर
**--** **-**
यंज़ल 133 -----.
दे खते ह दसर के चेहरे पर रं ग ू
दे खा है कभी अपने चेहरे पर रं ग आ खरकार उसने भी पोत िलए ह अपने बेकसूर से चेहरे पर रं ग यूँ तो लोग मुसकराते फरते ह या असल ह भी चेहरे पर रं ग इस दौर म हर वो दावा है झूठा चढ़ाने का, िसयाह चेहरे पर रं ग कब से सोचे बैठा हँू चढ़ा लूँ र व तेरे चेहरे का अपने चेहरे पर रं ग **-** **-**
यंज़ल 134 **-**
िमलता नह ं कुछ मु त म फर ये लंच कैसा मु त म
वोट दे दे कर स दय से मारा गया गर ब मु त म
मुसकुराहट क बात करते हो गािलयाँ िमलती नह ं मु त म
लड़ाई भले हो हक के िलए पर हम
यूँ लड़ मु त म
लेने को कोई तैयार नह ं बांटे है राय, र व मु त म
**-** **-**
यंज़ल 135 **-**
बहती नमदा है हाथ धोइए आप भी जरा नाम कमाइए
सोचा है क कुछ करना है कोई बंद धरना करवाइए
मु क क बात करते हो अपना आंगन तो धुलवाइए
सभी बहरे गूंगे ह तो
या
आप भी वैसे िसर हलाइए
ज़ह न कोई िमलेगा र व को अरे भाई कोई तो बताइए
**-** **--**
यंज़ल 136 --*--
कोई आसान है होना फेल इसम भी िनकलता है तेल
हर घड़ यहाँ पर कहाँ पास ह
ाएँ ह
कसम फेल
ज ोजहद कम नह ं होगी नतीजा पास हो क फेल
जंदगी वैसी नह ं िनकली पास होकर भी हए ु फेल
अकेला हँ सता िमला र व जो हो गया था वो फेल
**-** **--**
यंज़ल 137 **-**
राजा ने रं क को धमकाया या कोई नया रं ग बतलाया
यूं तो सहती है
जा पर कई
राजाओं को है धूल चटवाया
ये भ
गान नह ं हो सकता
जो बना अथ गया रटवाया
या
या याद रख आ खर
कतन को धोया चमकाया
राजनीित के नाले म र व एक दजे ू का क छा उतराया
***---*** यंज़ल 138 -----.
खटता रहा तमाम उ
ल य क खाितर
वो ल य पहचाना नह ं ल य क खाितर
कतने तो घाव दे दए मने अपन को लोग कहते ह
ु
से ल य क खाितर
आग तो लगी हई ु है मन म इधर भी या कर बुझे बैठे ह ल य क खाितर
कैसा मजा होगा परवाने को जलने म जल के दे खना होगा ल य क खाितर
र व भी कभी द वाना था आिशक था वो बन गया आदमी ल य क खाितर
**-** यंज़ल 139
गु -गो वंद क कथा तो कथा थी गु या अब कोई मानता है गु
िन
को गु
त ह वो कोई और दौर रहा होगा
गलब हयाँ डाले घूमते ह अब िश य गु
माना क पढ़ना है जरा क ठन काम पढ़ाना अब और
यादा क ठन है गु
भुखमर क बात ह तो वह पढ़ाएगा फटे हाल म भी फटे हाल है आज गु
एक कामयाब िश क रहा है र व भी पढ़ाने के िसवा सब काम करे है गु
**--**
यंज़ल 140
रखगे कसका कतना हसाब थक जाएंगे दे ते दे ते हसाब वहाँ क िचंता म इतना घुले भूल गए यहां का ह
हसाब
दे ख के बस मुसकराए तो थे यूं वो दे ने लग गए हसाब मेरे मु क पर तो बकाया ह जाने कसके कतने हसाब हम कोई द ु मन ह
या र व
मांगते ह जो हम से हसाब **-** **-**
यंज़ल 141 ज ह ने खेली है राजनीित म राजनीित उ ह ये
ये व
म है क है यार म राजनीित
है , बचते फरोगे कहाँ तक िम
तुझे िमलेगी दर-ओ-द वार म राजनीित
कल तक तो हमारे पास भी था आिशयाँ सभी ने तो क उसके ढहाने म राजनीित
सू मता से छानबीन करोगे दो त, तो पाओगे हर झगड़े क जड़ म राजनीित
पहले नकारा ह गया था चहँु ओर र व फर अपनाया उसने जीवन म राजनीित
**-** **-** यंज़ल 142 **-** जाने कब से नींद म है सरकार नह ं हो रह
य जनता बेकरार
दोहराए ह िसयासत के खेल म वह कहानी वह
क से हरबार
मु त बाद झपक आई थी क कसी हँ सी ने कर दया बेकरार
जंग तो जीतगे हौसला है बहत ु हाथ म है कलम न क तलवार
सोता ह रहा था र व अब तक मालूम नह ं थे अपने अिधकार **--**
यंज़ल 143 --/--
भुलाया सरकार ने अपना धम य याद रख हम अपना धम
पुरवाई हो
पात हो या स रता
सं ित सबने बदला अपना धम
सब के सब तो हो गए वधम चलो हम भी बदल अपना धम
अ न बहत ु लगाई है धम ने बनाएँ कंिचत नया अपना धम
अ य के अवगुण म उलझ र व कब का भूल चुका अपना धम
**-** **-**
यंज़ल 144
**-**
कहते ह बुत को टशन नह ं होता हमको भी तो अब टशन नह ं होता
वो तो एक राजनीित
है इसिलए
पाँच वष से पहले टशन नह ं होता
नया नया है वो मेरे शहर म अभी
अ यथा उसे कोई टशन नह ं होता
गलती से सुन ली समृ
क कथाएँ
नह ं तो यहाँ कोई टशन नह ं होता
इस टशन म मरा फरता है र व क उसे
य कोई टशन नह ं होता
**-
. यंज़ल 145
भूल गया या बताऊँ क कैसे भूल गया म तो जानबूझ कर भूल गया
जंदगी के मसले उलझे बहत ु कुछ याद रहा कुछ भूल गया
यार क बात हमने भी क ं भूख से ज द ह भूल गया
वो कानून संसद को कसिलए कल याद था आज भूल गया
बन गया र व भी राजनीित तभी वह खुद को भूल गया **-** यंज़ल 146 //*// कसी को नसीब है ख टया खटमली तो कसी के पास बछौना मखमली मेरे खुदा मुझे बता क
यूं नह ं है
मुझे मय सर रो टयाँ भली अधजली तमाम उपाय आजमाए जा चुके ह मचती नह ं नस म
य खलबली
अपनी वेदनाओं का पता है हम ह जमाना समझे है क सा झलिमली कैसे बताए र व क उसके दे श म हो चुक तमाम यव था पल पली **-** **-** यंज़ल 147 **-**
नह ं त द ली अपनी लक र बैठे रहे यूँ बन कर फ़क़ र जमाना कहाँ से कहाँ चला और हम पीटते रहे लक र सबने बढ़ाए थे हाथ अपने हमने ह खींची नह ं लक र अपनी खंच नह ं पाई तो िमटा द दसर क लक र ू अपनी बढ़ाई नह ं र व ने दे खा कए और क लक र **-**
रावण क चोर अजीबो-गर ब क म क चोर क वारदात के बारे म आपने सुना होगा. परं तु आपने 20 फुट ऊंचे रावण के पुतले के चोर चले जाने क वारदात के बारे म नह ं सुना होगा. लोग का सह कहना है . घोर कलजुग आ गया है . अब तो चोर रावण को भी चोर कर ले जाने लगे ह. वैस,े दसरे वचार म, चोर राम को थोड़े ह ले जाएगा चोर करके. सीता को भी ू नह ं ले जाएगा. राम जैसा स यवाद उसका
या भला करे गा और स यवती सीता से उसे
या िमलेगा? उ ह भी खलाना पलाना जो पड़े गा. बहत तो राम का मुकुट और ु हआ ु
धनुष बाण - य द वे खािलस सोने के हए ु तो - चोर कर ले जाएगा अ यथा चोर के काम का तो रावण ह है ! *-**-* . . यंज़ल 148 *-* इस दौर म यार सब हसाब बदले गए खबर ये है क लोग रावण चुरा ले गए मेरे मन म भी उठे थे बहत ु मगर
जुबां पे आते आते जाने कहाँ चले गए इन चोर क अ ल का अब व
या कह
छोड़ गए, घ ड़याँ चुरा कर ले गए
वादे थे पाँच बरस म दिनया बदलने के ु
रो टय के बजाए ट वी से बहला ले गए अंततः परा जत म खड़ा हो गया र व वजेता होने के फ़ायदे कब के चले गए **-** यंज़ल 149 --कैसा है तेरे भीतर का आदमी झांक जरा फल यह ं है , यास को पहले आंक जरा रोते रहे ह भीड़ म अकेले पड़ जाने का मुखौटा छोड़, दो ती का र ता टांक जरा
फर दे खना क दिनया कैसी बदलती है ु
चख के दे ख अनुराग का कोई फांक जरा दौड़ कर चले आने को लोग बैठे ह तैयार दल से बस एक बार लगा दे हांक जरा जनता समझेगी तेरे वचार को भी र व अपने अबूझे च र
को पहले ढांक जरा
**-**
यंज़ल 150 *****
आदमी आतं कत है बंदर से कतना कमजोर है अंदर से
वो गए जमाने क बात थीं अब सब िमलता है नंबर से
यार क प रभाषाएं बहत ु ह सोच िमलता नह ं चंदर से
कुछ नह ं होगा यक न करो
जंदा है अब तक लंगर से
कम या
यादा का है फक?
पराजय तो हआ है अंतर से ु
र व मानता है क यव था अनुकूल हो जाता है जंतर से *****
यंज़ल 151 -----**-** म अगर कभी मुसकाया होऊंगा अ ानता म ऐसा कया होऊंगा
जमाने को पता नह ं है ये बात मजबूरन ये उ
हं सी क
जया होऊंगा
णक रे खा के िलए
जाने कतना तो रोया होऊंगा
वो हािसल ह ये तो द ु या
त है
या नह ं म खोया होऊंगा
कोई तो मुझे बताए क र व म यहाँ
य कर आया होऊंगा
**-** **-**
यंज़ल 152 **-** जीवन के हर ह से पर लग गए अिधभार कोई बताओ कैसे अव
होगा ये अितसार
हमने तो भर नह ं थी कसी बात क हामी उ ह ने ह ले िलए जबरन सारे अिधकार
कुछ तो थे हालात और कुछ हमारे करम जोहते रहे तमाम उ
चाहत और अिभसार
दोष दे ता है जमाना हमार नादािनय का, पर
समर और
नेह म खूब जायज़ ह अितचार
दसर क करतूत पर अब न हँ सा करगे र व ू इस संसार पर हम भी तो ह एक अितभार **-** **-**
यंज़ल 153 आय कम खच
यादा है
फर भी पीने का इरादा है
इस दौर म पहचान कैसे कौन राजा कौन यादा है
यहाँ चेहरे सबके एक ह ओढा सभी ने लबादा है
अब न करगे कोई इरादा बचा एक यह इरादा है
मुसकराहट म अब र व
व पता जरा ू
यादा है
**-** *-*
यंज़ल 154 **-** मेरा दमाग मुझसे
ठया गया है
और नह ं तो ज र स ठया गया है
सोचता बैठा रहा था म तमाम उ अब तो जोड़-जोड़ ग ठया गया है
भला कस तरह मानेगी सरकार इसका हर अंग जो ह ठया गया है
व
क ज़ंजीर को सुलझाते हए ु
मेरे भीतर का मद प ठया गया है
जुबान ब द कर ली है मने र व हर कोई मुझे जो ल ठया गया है **-** ****
यंज़ल 155 **** हो गई जनता चतुर सुजान है कसी को इसका सं ान
मेर बात के ह मेरे आधार आप मानते रह मेरा अ ान
कोई नह ं पूछता क छोड़े मने
य
ाथना और अजान
धम के गिलयारे म अंततः खोल ली है मने भी दकान ु
िगरा था म, ये सोच के र व िगराव के बाद ह है उठान
-----. **** यंज़ल 156
**** अब
या बताएँ क
या नक़ली है
आदमी अंदर या बाहर से नक़ली है
चीर के दखा दया था जगर अपना जाने
य वो समझते रहे नक़ली है
कर लगे इबादत पहले पता तो चले तेरे ईश मेरे खुदा म कौन नक़ली है
दो त ने चढ़ा िलए ह मुखौटे फर पहचान कैसे असली कौन नक़ली है
जमाना बहत ु बदल गया है अब र व जो असल होता है दखता नक़ली है ----. यंज़ल 157 ----------. बेहाली म
या नह ं है मेर सहमित
अवाक् था म नह ं थी मेर सहमित
नादां है वो महबूब मेरा जो ढंू ढता है मेर असहमितय म मेर सहमित
मूढ़ था म जो यह सोचा करता था हर हाल म पूछगे वो मेर सहमित
उठा के चल दए मेरा सामान और पूछा क कौन म कैसी मेर सहमित
मुह बत म वो दन भी दे खे ह र व मुझको खुद नह ं िमली मेर सहमित -------. ---
यंज़ल 158 कभी ज
तो कभी रोना
जंदगी का है यह रोना
ेम म ये कहां से आया दाल रोट का वह रोना
हँ सते हँ सते आते आँसू आंख भूलते ह कभी रोना
कब तक हँ सगे दसर पे ू जब खुद पे है वह रोना
जंदगी आसां होती र व याद होता कल वह रोना
------. --यंज़ल 159 वो मेरा कथन नह ं था ज ट क डं ग दिनया बड़ आसान है ज ट क डं ग ु
मेर उ मीद म सदै व रहा था हमालय मेरे पैर कुछ यूं चले क ज ट क डं ग
मने मुह बत म अलाव तक जला दए
वो दे खकर हँ स दए पूछे ज ट क डं ग
मेर संजीदा वाकय को अनदे खा कया भृकु टयाँ तनीं जब कया ज ट क डं ग
मु कल घ ड़याँ आसानी से कटगे र व जीवन को यूं जयो जैसे ज ट क डं ग --------. यंज़ल 160 -----. मुझे यार ह मेर अपनी बेवकू फ़याँ जंदा रहने को ह ज र बेवकू फ़याँ
मुह बत म दािनशमंदो का काम नह ं चलती ह वहां िसफ िनर बेवकू फ़याँ
इ क गर ज़ंदा है तो कुछ इस तरह कुछ उसक तो कुछ मेर बेवकू फ़याँ
ऐसा कर
य न कुछ ठहाके लगा ल
चलो सुन सुनाएं मेर तेर बेवकू फ़याँ
जमाना मुझे कस तरह बताएगा र व बखूबी मालूम ह मुझे मेर बेवकू फ़याँ ------. ---यंज़ल 161 ---दो त सारे एजट हो गए दो त सारे जब एजट हो गए दो ती म हम भी एजट हो गए मेरे शहर क
फ़जां यूं बदली
यहां के लोग सब एजट हो गए र त म त द िलयाँ ऐसी हु
एक दजे ू के लोग एजट हो गए दल के बदले मांगा दल था कहते ह वो तुम एजट हो गए दन अब हमारे भी फरगे र व आ खर हम भी एजट हो गए ---------. यंज़ल 162 -----जूते और िलबास तो ह डजाइनर
या दल और मन ह डजाइनर व
व
म फ़क़ तो है यक नन
हमारे मुकाबले उनके ह डजाइनर दिनया उसी क जमाना उसी का ु
पलटकर जो बन गए ह डजाइनर कह ले जमाना हम इ क म अंधा उनक तो हर अदाएं ह डजाइनर दे खो ये लौट के आ गया बु ू र व कहे थे बनने जा रहे ह डजाइनर -----. ----.
यंज़ल 163 ----. सब कुछ ले ली जए सपने तो मत छ िनए
कुछ करने क खाितर चिलए कुछ तो क जए
बदले तो ह, भले ह व
को
य े द जए
शै पेन नह ं िमले तो क टं ग चाय ह पी जए
बेच दए सपने र व अब आप
या क जए
-----------. ----. यंज़ल 164 ----. और को दःखी दे ख म खुश हो गया ु बदलाव क बात करके खुश हो गया
वहां और भी थे बहत ु से सबब मगर धम क बात सुन कर खुश हो गया
हादस के
भाव शायद बदलने लगे
तभी मेरा एक ह सा खुश हो गया
गया तो था म एक सजदे म मगर
वनाश क बात कर खुश हो गया
ये फ़क़त व
व
क बात है र व
रोने क बात पे आज खुश हो गया
-----.