पातः सम रणीय प ूजयपाद संत शी आस ारामज ी बाप ू के सतस ंग पवचन
िनभय भ नाद मह क मुसािि र शी य ोग वे दा नत से वा सिमित संत शी आसा राम जी आशम
सा बरम ती , अम दा वा द-380005 िोनः 7505010,7505011
आमुख कुछ ऐस े महाप ुरषह ोते है िजनके पास बै ठने से , िजनके दशभ न मात स े अल ख के आन नद की झलके िमल जा ती है। िजनके हाव -भाव , चाल -ढाल , वाणी की मध ुर ता एवं िजनके चारो और हवा मे िब खरी हु ई मसत ी से उस परमा नन द सवर प ,
िनर ं जन , अल ख पुरष की खबर े िमल जा ती है और य िद उन की िवश े ष कृपा हो जा ये तो संसार मे उलझा हु आ मनु ष य अप नी आध या ितमक य ाता पर चल पड ता है।
ऐसे ही महाप ु रष की वाणी का यह एक छोटा सा संचय है। इसका एक एक शबद औज की िच नगारी है जो बु झते हु ए हद यो को िि र स े पका िशत कर ने का अन ंत ते ज अपन े म े
छुप ाये हु ए है। िजन होन े पर म प ू जय सं त शी आसारा मजी महारा ज को प तय क दे खे है व े तो लाभ उठा ही रह े है , जो अभ ी द ू र है उनके िल ए यह वाणी रप पसाद अम ृ त का काम कर ेगा।
आध या ितमक ख जा ने उपिन षदो का अम ृ त इसके ए क ए क शबद से टपक ता है , इस का आप प तय क अन ु भव कर े गे – इसी िवशास के साथ आपशी
के पाव न कर कमलो मे ......
शी य ोग व ेदा नत सेवा स िमित
अह मदाबाद
आशम
िनभ भ य ना द िव शं सिुरित यत ेद ं तर ं गा इ व सागर े।
ततवम े व न स नदेह शनम ू ते िवजवरो भव।। शदतसव तात श दतसव नात मोह ं कुरषव भो ः। जानसव रपो भग वा नातमा तव ं पकृत े ः परः।।
'जहाँ से यह संसार, सागर मे तरं गो की तरह सिुिरत होता है सो तू ही है , इसमे सनदे ह
नहीं। हे चैतनयसवरप ! संताप रिहत हो। हे सौमय ! हे िपय ! शदा कर शदा कर। इसमे मोह मत कर। तू जानसवरप, ईशर, परमातमा, पकृ ित से परे है ।' (अषावकगीता) यिद तुमने शरीर के साथ अहं बुिद की तो तुममे भय वयाप हो ही जायेगा, कयोिक शरीर
की मतृयु िनिशत है । उसका पिरवतन भ अवशयंभावी है । उसको तो सवयं बहाजी भी नहीं रोक
सकते। परनतु यिद तुमने आतमसवरप को जान िलया, सवरप मे तुमहारी िनषा हो गई तो तुम िनभय भ हो गये, कयोिक सवरप की मतृयु कभी होती नहीं। मौत भी उससे डरती है ।
सुख का दशय भी आयेगा और जायेगा तो दःुख का दशय भी आयेगा और जायेगा। पदे
को कया? कई ििलमे और उनके दशय आये और चले गये, पदाभ अपनी मिहमा मे िसथत है । तुम तो छाती ठोककर कहोः अनुकूलता या पितकूलता, सुख या दःुख िजसे आना हो आये और जाये। मुझे कया...? िकसी भी दशय को सचचा मत मानो। तुम दषा बनकर दे खते रहो, अपनी मिहमा मे मसत रहो।
बाहर कैसी भी घटना घटी, चाहे वह िकतनी भी पितकूल लगती हो, परनतु तुमहे उससे
िखनन होने की तिनक भी आवशयकता नहीं, कयोिक अनततोगतवा होती वह तुमहारे लाभ के िलए ही है । तुम यिद अपने आप मे रहो, तो तुमहे िमला हुआ शाप भी तुमहारे िलए वरदान का काम
करे गा। अजुन भ को ऊवश भ ी ने वषभ भर नपुंसक रहने का शाप िदया था, परनतु वह भी अजातवास के समय अजुन भ के िलए वरदान बन गया।
पितकूलता से भय मत करो। सदा शांत और िनभय भ रहो। भयानक दशय (दै त) केवल
सवपन मात है , डरो मत।
िचनता, भय, शोक, वयगता और वयथा को दरू िेक दो। उधर कतई धयान मत दो।
सारी शिि िनभय भ ता से पाप होती है , इसिलए िबलकुल िनभय भ हो जाओ। ििर तुमहारा कोई कुछ नहीं िबगाड सकेगा।
दे हाधयास को छोडना साधना का परम िशखर है , िजस पर तुमहे पहुँचना होगा। मौत के
पूवभ दे ह की ममता को भी पार करना पडे गा, वनाभ कमब भ नधन और िवकार तुमहारा पीछा न छोडे गे।
तुमहारे भीतर पभु के गीत न गूज ँ पायँगे, बह-साकातकार न हो पायेगा। जब तक तुम हडडी-मांसचाम को ही मै मानते रहोगे तब तक दभ ु ागभय से पीछा न छूटे गा। बडे से बडा दभ ु ागभय है जनममतृयु।
एक िदन तुम यह सब छोड जाओगे और पशाताप हाथ लगेगा। उससे पहले मोह-
ममतारपी पाश को िववेकरपी कैची से काटते रहना। बाहर के िमतो से, सगे समबिनधयो से िमलना, पर भीतर से समझनाः न कोई िमत है न सगे समबनधी, कयोिक ये भी सब साथ छोड जाएँगे। मेरा िमत है तो वह है जो अनत मे और इस शरीर की मौत के बाद साथ न छोडे ।
मन मे भय, अशांित, उदे ग और िवषाद को सथान मत दो। सदा शांत, िनभय भ और पसनन
रहने का अभयास करो। अपनी मिहमा मे जागो। खामखवाह कयो दीन दे ते हो?
दीनता हीनता पाप है । तुम तो मौत से भी िनभय भ तापूवक भ कहोः ऐ मौत ! मेरे शरीर को
छीन सकती है पर मेरा कुछ नहीं कर सकती। तू कया डरायगी मुझे? ऐ दिुनयाँ की रं गीिनयाँ ! संसार के पलोभनो ! तुम मुझे कया िँसाओगे? सुख-दःुखो ! अब तुम मुझे कया नचाओगे? अब
लाख-लाख काँटो पर भी मै िनभय भ तापूवक भ कदम रखूँगा। हजार-हजार उतथान और पतन मे भी मै जान की आँख से दे खग ूँ ा। मुझ आतमा को कैसा भय? मेरा कुछ न िबगडा है न िबगडे गा। शाबाश है ! शाबाश है !! शाबाश है !!!
पािरवािरक मोह और आसिि से अपने को दरू रखो। अपने मन मे यह दढ
संकलप
करके साधनापथ पर आगे बढो िक न यह मेरा दल भ शरीर सी बचचो के िलए है , न दक ु भ ु ान-
मकान के िलए है और न ही ऐसी अनय तुचछ चीजो के संगह करने के िलए है । यह दल भ शरीर ु भ आतम जान पाप करने के िलए है । मजाल है िक अनय लोग इसके समय और सामथयभ को चूस
ले और मै अपने परम लकय आतमसाकातकार से वंिचत रह जाऊँ? बाहर के नाते िरशतो को, बाहर के सांसािरक वयवहार को उतना ही महतव दो जहाँ तक साधना के मागभ मे िवघन न बने।
साधना मेरा पमुख कतवभय है , बाकी सब कायभ गौण है – इस दढ भावना के साथ अपने पथ पर बढते जाओ।
िकसी भी अनुकूलता की आस मत करो। संसारी तुचछ िवषयो की माँग मत करो। िवषयो
की माँग कोई भी हो, तुमहे दीन बना दे गी। िवषयो की दीनतावालो को भगवान नहीं िमलते। नाऽयमातमा
ब लहीन ेन लभय ः।
इसिलए भगवान की पूजा करनी हो तो भगवान बनकर करो। देवो भ ूतवा दे वं यज ेत।् जैसे भगवान िनवास भ िनक है , िनभय भ है , आननदसवरप है , ऐसे तुम भी िनवास भ िनक और
िनभय भ होकर आननद मे रहो। यही उसकी महा पूजा है ।
अपनी मिहमा से अपिरिचत हो, इसिलए तुम िकसी से भी पभािवत हो जाते हो। कभी
मसखरो से, कभी िवदानो की वाणी से, कभी पहलवानो या नट-निटयो से, कभी भिवषयविाओं से, कभी नेताओं से कभी जाद ू का खेल िदखाने वालो से, कभी िसयो से, कभी पुरषो से तो कभी
िथयेटरो मे पलािसटक की पििटयो (चलिचतो) से पभािवत हो जाते हो। यह इसिलए िक तुमहे अपने आतमसवरप की गिरमा का पता नहीं है । आतमसवरप ऐसा है िक उसमे लाखो-लाखो
िवदान, पहलवान, जादग ू र, बाजीगर, भिवषयविा आिद आिद िसथत है । तुमहारे अपने सवरप से बाहर कुछ भी नहीं है । तुम बाहर क े िकसी भी वयिि स
े या पिरिसथ ित से पभा िवत हो
रहे हो तो स मझ लो त ु म मािल क होत े ह ु ए भी ग ु लाम बन े ह ु ए हो।
िखलाडी अपने ही
खेल मे उलझ रहा है । तमाशबीन ही तमाशाई बन रहा है । हाँ, पभािवत होने का नाटक कर सकते हो, परनतु यिद वसतुतः पभािवत हो रहे हो तो समझो, अजान जारी है । तुम अपने आप मे नहीं हो।
मन को उदास मत करो। सदै व पसननमुख रहो। हँ समुख रहो। तुम आननदसवरप हो।
भय, शोक, िचनता आिद ने तुमहारे िलए जनम ही नहीं िलया है , ऐसी दढ िनषा के साथ अपने आतमभाव मे िसथर रहो।
समसत संसार आपकी रचना है । महापुरषो को अनुभव इस बात को पुष करता है , ििर भी
तुम घबराते हो ! अपनी ही कृ ित से भयभीत होते हो ! सब पकार के भयो को परे हटा दो। िकसी भी भय-शोक-िचनता को पास मत िटकने दो तुम संसार के शहं शाह हो। तुम परमेशर आप हो। अपने ईशरतव का अनुभव करो।
अपने आपको परमेशर अनुभव करो, ििर आपको कोई हािन नहीं पहुँचा सकता। सब मत-
मतानतर, पंथ-वाडे उपिनषद के जान के आगे कूदतर है । तुम अपने खयालो से उनको बडा कलप लेते हो, इसिलए वे बडे बन जाते है । अनयथा राम रहीम सब तुमहारे आतमसवरप है , तुमसे बडा कोई नहीं है ।
जब तक तुम भीतर से भयभीत नहीं होते तब तक बाहर की कोई भी पिरिसथित या
धमकी तुमहे भयभीत नहीं कर सकती। बाहर की िकसी भी पिरिसथित मे इतना बल ही कहाँ जो सविभनयनता, सबके शासक, सब के सष ृ ा को कण मात के िलए भी डगमगा सके। िकसी भी पिरिसथित से डरना अपनी छाया से डरने के समान है ।
हमने ही रची है ये रचना सारी। संसार न हुआ है , न होगा। यह दढ िनशय रखो। अपने
को हीन समझना और पिरिसथितयो के सामने झुक जाना आतमहनन के समान है । तुमहारे
अनदर ईशरीय शिि है । उस शिि के दारा तुम सब कुछ करने मे समथभ हो। पिरिसथितयो को बदलना तुमहारे हाथ मे है ।
तुम हीन नहीं हो। तुम सव भ हो। पूजय भगवान हो। तुम हीन नहीं हो, तुम िनबल भ नहीं हो,
सवश भ ििमान हो। भगवान का अननत बल तुमहारी सहायता के िलए पसतुत है । तुम िवचार करो और हीनता को, िमथया संसकारो को मारकर महान ् बन जाओ। ॐ...! ॐ.....! ॐ......! दिुनया मेरा
संकलप है , इसके िसवाय कुछ नहीं। इसमे जरा भी सनदे ह नहीं। सथावर-जंगम जगत के हम िपता
है । हम उसके पूजय और शष े गुर है । सब संसार मनुषय के आशय है और मनुषय एक िवशाल वन है । आतमा सब के भीतर बसती है ।
साकार िमथया है । िनराकार सतय है । सारा जगत िनराकार है । सब जगत को एक िशव
समझो।
िनद भ नद रह िन ःशंक रह , िन भभ य स दा िनषकाम र े। िचंता कभी मत की
िजए , जो होय होन े दी िजय े।।
जड-चेतन, सथावर-जंगम, समपूणभ चराचर जगत एक बह है और वह बह मै हूँ। इसिलए
सब मेरा ही सवरप है । इसके िसवाये कुछ नहीं।
जो कुछ तू दे खता है वह सब तू ही है । कोई शिि इसमे बाधा नहीं डाल सकती। राजा,
दे व, दानव, कोई भी तुमहारे िवरद खडे नहीं हो सकते।
तुमहारी शंकाएँ और भय ही हमारे जीवन को नष करते है । िजतना भय और शंका को
हदय मे सथान दोगे उतने ही उननित से दरू पडे रहोगे। सदा सम रहने की तपसया के आगे
बाकी की सब तपसयाएँ छोटी हो जाती है । सदा पसनन रहने की कुँजी के आगे बाकी की सब कुँिजयाँ छोटी हो जाती है । आतमजान के आगे और सब जान छोटे रह जाते है । इसिलए दिुनयाँ
मे हर इजजत वाले से बहवेता की ऊँची इजजत बहवेता भग ृ ु की सेवा करने वाले शुक जब सवगभ मे जाते है तब सहसनेतधारी इनददे व अपने िसंहासन से उठकर उस बहवेता के िशषय शुक को
िबठाते है और अघयप भ ाद से पूजन करके अपने पुणय बढाते है । आतमपद के आगे और सब पद छोटे हो जाते है , आतमजान के आगे और सब जान छोटे हो जाते है ।
तुमहारे सवरप के भय से चाँद-िसतारे भागते है , हवाएँ बहती है , मेघ वषाभ करते है ,
िबजिलयाँ चमकती है , सूरज रात और िदन बनाता है , ऋतुएँ समय पर अपना रं ग बदलती है । उस आतमा को छोडकर औरो से कब तक दोसती करोगे? अपने िपया को छोडकर औरो से कब तक िमलते रहोगे....?
जो एक से राग करता है , वह दस ू रे से दे ष करे गा। जो िकसी से राग नहीं करता है वह
िकसी से दे ष नहीं करे गा। वह परम पेमी होता है । वह जीवनमुि होता है । न पलय है , न उतपित है , न बद है , न साधक है , न मुमुकु है और न मुि ही है । यही परमाथभ है ।
आप सवत भ मंगलमय दे खने लग जाइये, िचत अपने आप शानत हो जाएगा।
िजस कृ तय ् से िचत िखनन हो ऐसा कृ तय मत करो। जो िवचार भय, िचनता या िखननता
पैदा करे उन िवचारो को िवष की नाई तयाग दो।
अगर तुम सवाग ा पूणभ जीवन का आननद लेना चाहते हो, तो कल की िचनता को छोडो।
कल तुमहारा अतयनत आननदमय होगा, यह दढ िनशय रखो। जो अपने से अितरि िकसी वसतु को नहीं जानता, वह बह है । अपने खयालो का िवसतार जगत है ।
िनशय ही समपूणभ जगत तुमसे अिभनन है , इसिलए मत डरो। संसार को आतमदिष से दे खने लग जाओ ििर दे खो, िवरोथ कहाँ रहता है , कलह कहाँ रहता है , दे ष कहाँ रहता है ।
िजसका मन अनतमुख भ हो जाता है , वह िचत थकान को तयाग कर आतमिवशािनत का
सवाद लेता है । तु म िज तन ा समा िहत िचत होत े जाओग े , उतना अम ृ त त ुम हार े चरणो क े नीच े आ ता जाय ेगा।
आज तक तुम दे वी-दे वताओं को पूजते आये हो, मिनदर-मिसजद मे नाक रगडते आये हो,
लेिकन िकसी बुद पुरष से अनतमुख भ होने की कला पाकर अभयास करोगे तो वह िदन दरू नहीं जब िक दे वी-दे वता तुमहारे दशन भ को आएँगे।
पभात के समय साधको को जो पेरणा होती है , वह शुभ होती है । तुम जब कभी
वयवहािरक परे शािनयो उलझ जाओ तो िविकप िचत से कोई िनणय भ मत लो। पातः काल जलदी उठो। सनानािद के पशात ् पिवत सथान पर पूवािभभमुख होकर बैठो। ििर भगवान या गुरदे व से, िजनमे आपकी शदा हो, िनषकपट भाव से पाथन भ ा करोः 'पभु ! मुझे सनमागभ िदखाओ। मुझे
सदपेरणा दो। मेरी बुिद तो िनणय भ लेने मे असमथभ है ।' िनदोष भाव से की गई पाथन भ ा से तुमको सही पेरणा िमल जाएगी। हुआ।
शरीर की मौत हो जाना कोई बडी बात नहीं, लेिकन शदा की मौत हुई तो समझो सवन भ ाश अगर तुमने दस साल तक भी बहिनष गुर के आदे शानुसार साधना की हो, ििर भी यिद
तुमहारी शदा चली गई, तो वहीं पहुँच जाओगे जहाँ से दस साल पहले चले थे।
अपनी ही कृ ित से तुम गुर को नजदीक या दरू अनुभव करते हो। बहजानी न तो िकसी
को दरू धकेलते है , न ही नजदीक लाते है । तुमहारे शदा और वयवहार ही तुमहे उनसे नजदीक या दरू होने का अहसास कराते है ।
सदगुर ही जगत मे तुमहारे सचचे िमत है । िमत बनाओ तो उनहे ही बनाओ, भाई-माता-
िपता बनाओ तो उनहे ही बनाओ। गुरभिि तुमहे जडता से चैतनय की ओर ले जायेगी। जगत के अनय नाते-िरशते तुमहे संसार मे िँसायेगे, भटकायेगे, दःुखो मे पटकेगे, सवरप से दरू ले जाएँगे। गुर तुमहे जडता से, दःुखो से, िचनताओं से मुि करे गे। तुमहे अपने आतमसवरप मे ले जाएँगे।
गुर से ििरयाद न करो, उनके आगे समपण भ करो। ििरयाद से तुम उनके लाभ लेने से
वंिचत रह जाओगे। उनका हदय तो ऐसा िनमल भ है िक जैसी उनमे भावना करोगे, वैसा ही लाभ होगा। तुम उनमे दोषदिष करोगे तो दोषी बनोगे, गुणगाहक दिष करोगे तो उनके गुण तुममे
आयेगे और उनको ितगुणातीत मानकर उनके आजापालन मे चलोगे तो सवयं भी गुणो से एक िदन पार हो जाओगे।
खबरदार ! जो समय गुर सेवन, ईशर भिि और सतसंग मे लगाना है , वह यिद जड पदाथो
मे लगाया तो तुम भी जडीभाव को पाप हो जाओगे। तुमने अपना सामथयभ, शिि, पैसा और सता
अपने िमतो व समबिनधयो मे ही मोहवश लगाया तो याद रखो, कभी न कभी तुम ठु कराये जाओगे, दःुखी बनोगे और तुमहारा पतन हो ही जायेगा।
िजतना हो सके, जीिवत सदगुर का सािननधय लाभ लो। वे तुमहारे अहं कार को काट-छाँट
कर तुमहारे शुद सवरप को पतयक करे गे। उनकी वतम भ ान हयाती के समय ही उनसे पूरा-पूरा लाभ लेने का पयास करो। उनका शरीर छूटने के बाद तो..... ठीक है , मिनदर बनते है और
दक ु ानदािरयाँ चलती है । तुमहारी गढाई ििर नहीं हो पायेगी। अभी तो वे तुमहारी – सवयं को
शरीर मानना और दस ू रो को भी शरीर मानना, ऐसी पिरिचछनन मानयताओं को छुडाते है । बाद मे कौन छुडायेगा?..... बाद मे नाम तो होगा साधना का िक मै साधना करता हूँ, परनतु मन खेल करे गा, तुमहे उलझा दे गा, जैसे सिदयो से उलझाता आया है ।
िमिटी को कुमहार शतु लगता है । पतथर को िशलपी शतु लगता है । कयोिक वे िमिटी और
पतथर को चोट पहुँचाते है । ऐसे ही गुर भी चाहे तुमहे शतु जैसे लगे, कयोिक वे तुमहारे दे हाधयास पर चोट करते है , परनतु शतु होते नहीं। शतु जैसे लगे तो भी तुम भूलकर भी उनका दामन मत
छोडना। तुम धैयप भ ूवक भ लगे रहना अपनी साधना मे। वे तुमहे कंचन की तरह तपा-तपा कर अपने सवरप मे जगा दे गे। तुमहारा दे हाधयास रपी मैल धोकर सवचछ बहपद मे तुमहे िसथर कर दे गे।
वे तुमसे कुछ भी लेते हुए िदखे, परनतु कुछ भी नहीं लेगे, कयोिक वे तो सब छोडकर सदगुर बने है । वे लेगे तो तुमहारी पिरिचछनन मानयताएँ लेगे, जो तुमहे दीन बनाए हुए है ।
सदगुर िमटाते है । तू आना कानी मत कर, अनयथा तेरा परमाथभ का मागभ लमबा हो
जायेगा। तू सहयोग कर। तू उनके चरणो मे िमट जा और मािलक बन जा। िसर दे और
िसरताज बन। अपना 'मै' पना िमटा और मुिशद भ बन। तू अपना तुचछ 'मै' उनको दे दे और उनके सवस भ व का मािलक बन जा। अपने नशर को ठोकर मार और उनसे शाशत का सवर सुन। अपने तुचछ जीवतव को तयाग दे और िशवतव मे िवशाम कर।
तुमहारे िजस िवत मे सुखाकार-दःुखाकार-दे षाकार विृतयाँ उठ रही है , वह िचत पकृ ित है
और उसका पेरक परमातमा साकी उससे परे है । वही तुमहारा असली सवरप है । उसमे न रहकर जब पकृ ित मे भटकते हो, विृतयो के साथ एक जाते हो तो अशांत होते ही और सवरप मे रहकर सब करते हुए भी अकताभ हो। ििर आननद तो तुमहारा सवरप ही है ।
जैसे सडक पर िकतने ही वाहन-कार, िरकशा, साइिकल, बैलगाडी आिद चलते है लेिकन
अचल सडक के आधार पर ही चलते है वैसे ही तुमहारा आतमा अचल है । उस पर विृतयाँ चल रही है । जैसे सरोवर मे तरं गे उठती है वैसे तुमहारे आतमसवरप मे ये सब विृतयाँ उठती है और लय होती है ।
वयवहार मे िचनतारपी राकसी घूमा करती है । वह उसी को गस लेती है , िजसको जगत
सचचा लगता है । िजसको जगत सवपनवत ् लगता है , उसे पिरिसथितयाँ एवं िचनताएँ कुचल नहीं सकती।
एक ही मिनदर-मिसजद मे कया जाना, सारे िवश को ही मंिदर मिसजद बना दो। तुम ऐसा जीवन िजयो िक तुम जो खाओ वह पसाद बन जाये और जो करो वह साधना या भिि बन जाये और जो िचनतन करो वह आतमिचनतन बन जाये।
तुम जब सतय के रासते पर चल पडे हो तो वयवहािरक कायो की िचनता मत करो िक वे
पूरे होते है िक नहीं। समझो, कुछ कायभ पूरे न भी हुए तो एक िदन तो सब छोडकर ही जाना है । यहाँ अधूरा तो अधूरा ही है , लेिकन िजसे संसारी लोग पूरा समझते है , वह भी अधूरा ही है । पूणभ तो एक परमातमा है । उसे जाने िबना सब जान िलया तो भी वयथभ है ।
कोई आपका अपमान या िननदा करे तो परवाह मत करो। ईशर को धनयवाद दो िक
तुमहारा दे हाधयास तोडने के िलए उसने ऐसा करने के िलए पेिरत िकया है । अपमान से िखनन मत बनो, बिलक उस अवसर को साधना बना लो। अपमान या िननदा करने वाले आपका िजतना िहत करते है , उतना पशंसक नहीं करते – यह सदै व याद रखो।
कया आप सुख चाहते है ?... तो िवषय भोग से सुख िमलेगा यह कलपना मन से िनकाल
दीिजए। उसमे बडी पराधीनता है । पराधीनता दःुख है । भोगय वसतु चाहे वह कुछ भी कयो न हो,
कभी िमलेगी कभी नहीं। इिनदयो मे भोग का सामथयभ सदा नहीं रहे गा। मन मे एक-सी रिच भी
नहीं होगी। योग-िवयोग, शतु-िमत, कमभ-पकृ ित आिद उसमे बाधक हो सकते है । यिद िवषयभोग मे आप सुख को सथािपत कर दे गे तो िनिशत ही आपको परवश और दःुखी होना पडे गा।
'सुख' कया है ? 'सु' माने सुनदर। 'ख' माने इिनदय, मन, हदयाकाश। इनकी सुनदरता सहज
सवाभािवक है । आप सुखसवरप है । िकनतु सुख की इचछा करके उतपात खडा करते है । अपने
केनद से चयुत होते है । सुख को आमिनतत मत कीिजए। दःुख को भगाने के िलए बल पयोग मत कीिजए। बुिद मे वासना रप मिलनता लगी-सी भास रही है । उसको आतमबुिद के पकाश मे लुप हो जाने दीिजए। आपका जीवन सुख-समुद का तरं गायमन रप है । सुख-सूयभ का रिशम-पुंज है । सुख-वायु का सुरिभ पवाह है ।
कहीं आप अपने को अवयवयुि पञचभौितक शरीर तो नहीं मान बैठे है ? यिद ऐसा है तो
आप सुखी जीवन कैसे िबता सकते है ? शरीर के साथ जनम-मतृयु, जरा-वयािध, संयोग-िवयोग, हासिवकास लगे ही रहते है । अपने को शरीर मानकर कभी कोई भयमुि नहीं हो सकता। िनभय भ ता
की पािप के िलए आतमा की शाशत सता पर आसथा होना आवशयक है । यह आसथा ही धमभ का सवरप है । िजतने धािमक भ मत मजहब है उनका मूल आधार दे हाितिरि आतमा पर आसथा है । आप बुिद के दारा न समझ सके तभी आतमा के िनतय आतमा मे िसथत रिहये और कायभ
कीिजये। आपके जीवन मे धमभ पवेश करे गा और पितिषत होगा। बुिद की िनमल भ ता और िववेक का पकाश आने पर आपका अनतःकरण मुसकरायेगा और बाह जीवन भी सुखी हो जायगा।
तुम अपने को भूलकर दीन-हीन हो रहे हो। िजस पकार पशु रससी से बंधकर दीन-हीन हो
जाता है उसी पकार मनुषय िजसम की खुदी मे पडकर, दे ह के कीचड मे िँसकर दीन-हीन हो
जाता है । साधना का मतलब सवगप भ ािप नहीं बिलक अपने आप तक पहुँचना है । ऐसी मतृयु को लाना है िजससे ििर मतृयु न हो।
ईशर को कुछ सौप दो। समपण भ की भावना मे बल आने दो। उस ईशर को भी कुछ काम
करने दो। कमजोरी को दरू करो। यही साधना है जो अमत ृ मे डु बा दे ती है .... मनुषय को अमर बना दे ती है । उस अमत ृ मे डू बकर वह अपनी खुदी को 'मै' को खो दे ता है और असली 'मै' को पहचान लेता है । जीव खो जाता है , िशवसवरप पकट हो जाता है ।
तुम महान हो। अपनी महानता को सँभालो। तब तक दःुख की रात नहीं कटे गी जब तक
आतमिवशास से 'अहं बहािसम' न कह पाओगे। इस वासतिवकता को भूलकर अनधकार मे ठोकरे खा रहे हो। आतम पकाश को भूल जाने से ही काम, कोध, लोभािद चोर आपके पीछे लगे है । अनधेरे मे पकाश करो, चोर अपने-आप भाग जायेगे।
िहमालय की तरह दढ होकर अपनी रकावटो को काटो। यह िवशास रखो िक जो सोचँग ू ा
वही हो जाऊँगा। सतयसंकलप आतमा तुमहारे साथ है .... नहीं नहीं, तुम ही सतयसंकलप आतमा हो। उठो, अपनी शिि को पहचानो। तमाम शिियाँ तुमहारे साथ है । यह खयाल न करो िक तमाम चीजे पहले इकिठी हो, बाद मे मै आगे बढू ँ । बिलक दढ संकलप करो अपने परम लकय को हािसल करने का। चीजे अपने आप तुमहारे कदम चूम लेगी।
सोचो िक तुम ताकत के तूिान हो। वह चशमा हो िजससे तमाम निदयो को जल िमलता
है । जो आतमशिि पर िवशास करता है वह सवावलमबी और िनभय भ होता है ।
हाथी हमेशा दल मे रहते है । उनका झुणड जब सोता है एक हाथी चौकी दे ता है िक कहीं
शेर न मार दे । शेर से वह डरता रहता है । अपनी ताकत पहचानता नहीं। वह शेर से बडा
ताकतवर और वजन मे जयादा है । बडे -बडे वक ृ ो को जडो से उखाड दे ता है । यिद वह अपना बल पहचान जाये तो शेरो को मार दे । लेिकन दजन भ ो हाथी भी एक शेर से डरते है । एक शेर िनभीक हो जंगल मे कयो सोता है ? कयोिक वह अपनी शिि को पहचानता है । तभी तो वह जंगल का
बादशाह कहलाता है । शेर असल मे वेदानती है । वेदानत अनदर की शिि पर िवशास करता है , बाहर के साजो-सामान पर नहीं।
सुख को भिवषय मे मत ढू ँ ढो। 'यह िमलेगा तब सुखी होऊँगा, इतना करँ गा तब सुखी
होऊँगा...' ऐसा नहीं। वतम भ ान कण को ही सुखद बनाने की कला सीख लो, कयोिक भिवषय कभी आता नहीं और जब भी आता है तब वतम भ ान बनकर ही आता है ।
तुम आननदसवरप हो। तुमहे कौन दःुखी कर सकता है ? एक दो तो कया... जगत के सारे
लोग, और यहाँ तक िक तैतीस करोड दे वता िमलकर भी तुमहे दःुखी करना चाहे तो दःुखी नहीं
कर सकते, जब तक िक तुम सवयं दःुखी होने को तैयार न हो जाओ। सुख-दःुख की पिरिसथित
पर तुमहारा कोई वश हो या न हो परनतु सुखी-दःुखी होना तुमहारे हाथ की बात है । तुम भीतर से
सवीकृ ित दोगे तभी सुखी या दःुखी बनोगे। मंसूर को लोगो ने सूली पर चढा िदया, परनतु दःुखी नहीं कर सके। वह सूली पर भी मुसकराता रहा।
कोई भी पिरिसथित तुमसे बडी नहीं हो सकती। कोई भी दःुख तुमसे बडा नहीं हो सकता।
ििर िकसी भी पिरिसथित से, दःुख से, भय से भयभीत होने की कया आवशयकता?
तुम अचल हो, शेष सब चल है , पिरवतन भ शील है । ििलम का पदाभ अचल है , ििलम के दशय
बदलते रहते है । बाह पिरिसथित िकतनी ही भयंकर लगे, दःुख भले पवत भ ाकार लगे, सब तरि
अनधकार ही अनधकार नजर आता हो, कोई रासता नहीं सूझता हो, सभी सवजन िवरोधी बन गये हो, सारा संसार तुमहारे सममुख तलवार िलये खडा नजर आता हो, ििर भी उसे मत... िहममत
रखो, धैयभ रखो, सब तुमहारी माया है । इसको वासतिवकता मत दो। अपने िनभय भ आतमसवरप का समरण कर उन सब की अवहे लना कर दो। िवकट पिरिसथित के रप मे नजर आती हुई आँधी उड जायेगी। पिरिसथित की ऐसी कौन सी गंभीरता, िजसे तुम हटा नहीं सकते या िूँक मारकर उडा नहीं सकते?
यह संसार तुमहारा बनाया हुआ है । तुमने अपने आननद के िलए रचा है । अरे दे वो के दे व!
अपने आपको भूलकर तुम अपनी ही कृ ित से भयभीत हो रहे हो? भय और िझझक को दरू िेको। सत ् होकर असत ् से डरते हो ! चेतन होकर जड से डरते हो ! िजनदा होकर मुदे से डरते हो ! अमत ृ का पुञज होकर मौत से डरते हो !
ये पंचभूत तुमहारे ही बनाये हुए है । भय और िझझक को दरू िेक दो।
धन, सता व पितषा पाप करके भी तुम चाहते कया हो? तुम दस ू रो की खुशामद करते हो,
िकसिलए ? समबिनधयो को खुश रखते हो, समाज को अचछा लगे ऐसा ही वयवहार करते हो,
िकसिलए ? सुख के िलए ही न ? ििर भी सुख िटका? तुमहारा सुख िटकता नहीं और जानी का सुख जाता नहीं। कयो? कयोिक जानी गुणातीत है और हम लोग गुणो मे भटकते है ।
दःुखो और िचनताओं से भागो नहीं। तुम ताल ठोककर आमंतण दो उनहे की वे आ जाये।
वे कहाँ रहती है .... जरा दे खूँ तो सही ! है ही नहीं। सब खयाल ही खयाल है । जो कुछ है , दषा का दशयािवलास है । तुम दषा हो। अपने से अलग कुछ भी माना, अपनी जानदिष से कुछ भी नीचे आये, तो समझो दःुख ही दःुख खडे हो गये। जानदिष आई तो पितकूलता भी अनुकूलता बन गई। िवरोधी भी िमत बन गये।
तू िा न और आ ँ धी ह मको न रोक पाय े।
वे और थ े म ुसाििर जो प थ स े लौट आय े।। मर ने के सब इराद े जी ने के काम आय े।
हम भी तो ह ै त ुम हार े क हने ल गे पराय े।।
ऐसा कौन है जो तुमहे दःुखी कर सके? तुम यिद न चाहो तो दःुखो की कया मजाल है जो
तुमहारा सपशभ भी कर सके? अननत-अननत बहाणड को जो चला रहा है वह चेतन तुमहीं हो।
अहो िनर ंजनः श ानतो बोधोऽह ं प कृत ेः पर ः। एतावनत महं काल ं मोह ेन ैव िवड िमबत ः।।
अहो अह ं नमो मह ं िवनाशो यसय न
ािसत म े।
बहािद सतमबपय भ नतं ज गननाश ेऽ िप ित षत।।
"मै िनदोष, शानत, बोधसवरप और पकृ ित से परे हूँ। अहो ! िकतने आशयभ की बात है िक
ििर भी मै इतने समय तक मोह दारा ठगा हुआ था ! बहा से लेकर तण ृ पयन भ त सारे जगत के नाश हो जाने पर भी िजस 'मै' का नाश नहीं होता, वह 'मै' कैसा आशयभ भरा हूँ। मेरा मुझसे नमसकार है ।"
(अषावकगीता) मै तो आननदघन हूँ। मै तो जानता ही नहीं िक सुख ् कया है और दःुख कया है , भय शोक,
िचनता कया है । मै सवभाव से ही िनभीक हूँ।
मै चैतनयघन आतमा हूँ। सारा जगत मेरा बनाया हुआ है । इसमे जरा भी सनदे ह नहीं है । मै बादशाहो का बादशाह हूँ। मै शाहो का शाह हूँ। मुझे कौन भयभीत कर सकता है ?
ॐ....ॐ...ॐ...
जानी पुरष को सवपनावसथा मे भी 'जगत सचचा है ' ऐसी भूल नहीं होती। संसार मे िजतनी वसतुएँ पतयक मे घबराने वाली मालूम होती है , वासतव मे तेरी
पिुललता और आननद के िलए ही पकृ ित ने तैयार की है । उनसे डरने से कया लाभ? तेरी ही मूखत भ ा तुझे चककर मे डालती है , नहीं तो तुझे कोई नीचा िदखाने वाला है ही नहीं। यह पकका िनशय रख िक संसार तेरे ही आतमदे व का सारा िवलास है । संसार का कोई भी पदाथभ तुझे वासतव मे दःुख नहीं दे सकता है । सकती।
सुख-दःुखो की बौछार होती रहे , परनतु वे मुझे अपने सवरप से कभी िवचिलत नहीं कर एक बैलगाडी वाला था। वह सदगुर के पास जाता, सतसंग सुनता और धयान भी करता।
उसने समझ िलया था िक कैसी भी पिरिसथित आये, उससे डरना नहीं चािहए, मनोबल दढ करके उसका सामना करना चािहए।
एक बार बैलगाडी मे नमक भरकर वह कहीं जा रहा था। इतने मे आकाश बादलो से छा
गया। िरमिझम.... िरमिझम... बािरश होने लगी। थोडी ही दे र मे मेघगजन भ ा, िबजली और आँधी-
तूिान के साथ जोर से वषाभ होने लगी। रासते मे पानी भर गया। मेघगजन भ ा के साथ िबजली का तेज चमकारा हुआ तो बैल भडक उठा और भाग गया। गाडी एक नाली मे िँस गई। इतने मे ििर से िबजली चमकी। गाडीवाला बोलता है ः
"ऐ िबजली ! तू िकसको डराती है ? मै नमक नहीं हूँ िक बह जाऊँ। मै गाडी नहीं हूँ िक
िँस जाऊँ। मै बैल नहीं हूँ िक भाग जाऊँ। मै तो तेरे ही पकाश मे अपना रासता तय करँगा।"
मानवी यिद िनभय भ हो जाए तो जगत की तमाम-तमाम पिरिसथितयो मे सिल हो जाए। हमे रोक सक े य े जमान े म े दम नही ं।
हमसे ह ै जमाना जमान े स े ह म नही ं।। जैसे आप सोचते हो वैसे ही बन जाते हो। अपने आपको पापी कहो तो अवशय ही पापी
बन जाओगे। अपने को मूखभ कहो तो अवशय ही मूखभ बन जाओगे। अपने को िनबल भ कहो तो
संसार मे कोई ऐसी शिि नहीं है जो आपको बलवान बना सके। अपने सवश भ िितव का अनुभव करो तो आप सवश भ ििमान हो जाते हो।
अपने हदय से दै त की भावना को चुन-चुनकर िनकाल डालो। अपने पिरिचछनन अिसततव
की दीवारो को नींव से ढहा दो, िजससे आननद का महासागर पतयक लहराने लगे।
कया तुमहे अपने बहतव के िवषय मे सनदे ह है ? अपने हदय मे ऐसा सनदे ह रखने की
अपेका गोली मार लेना शष े है ।
गमभीर से गमभीर किठनाइयो मे भी अपना मानिसक सनतुलन बनाये रखो। कूद अबोध
जीव तुमहारे िवरद कया कहते है इसकी तिनक भी परवाह मत करो। जब तुम संसार के
पलोभनो और धमिकयो से नहीं िहलते तो तुम संसार को अवशय िहला दोगे। इसमे जो सनदे ह करता है , वह मंदमित है , मूखभ है ।
मेरे मानिसक शुभाशुभ कमभ कोई नहीं है । न शारीिरक शुभाशुभ कमभ मेरे है और न
वािचक शुभाशुभ कमभ मेरे है । मै सवभाव से ही िनराकार, सववभयापी आतमा हूँ। मै ही अिवनाशी,
अननत, शुद और िवजानसवरप हूँ। मै सुख-दःुख नहीं जानता हूँ िक िकसको कहते है । यिद सवपन मे रिचकर और िचताकषक भ घटनाएँ उपिसथत है तो वे तेरे ही िवचार है और महाभयावने रप
िवदमान है , तो वे भी तेरी ही करतूत है । वैसे ही संसार मे मनभाती घटनाएँ हो चाहे िवपितयाँ और आिते हो, यह सब तेरी ही बनाई हुई है । तू दोनो का सब सवामी है ।
हे िपय ! तेरे ही िवराट सवरप मे यह जगतरपी तरं गे अपने आप उदय होती है और
असत होती है । उसमे न तेरी विृद होती है न नाश, कयोिक जगतरपी तरं गे तुझसे िभनन नहीं है । ििर "िकसका गहण करँ.... िकससे दे ष करँ..." आिद िचनतन करके कयो परे शान होता है ?
इस इनदजालवत ् िमथया संसार मे मोह मत कर। हे सौमय ! तेरा यह जड शरीर कलप के
अनत तक िसथर रहे चाहे अभी इसी वि इसका नाश हो जाये, तुझ चैतनय को भय कैसा?
इस संसाररपी समुद मे एक तू ही हुआ है , तू ही है और कृ ताथभ भी तू ही होगा। तेरा न
बनधन है और न मोक है यह िनशय जानकर तू सुखपूवक भ िवचर।
हे चैतनयसवरप ! संकलप और िवकलपो से िचत को तू कुबध मत कर। मन को शांत
करके आननदमय अपने सवरप मे सुखपूवक भ िसथत हो जा। बहदिष को छोडकर अनय िकसी भाव से िकसी वसतु को मत दे खो। यिद ऐसा नहीं करोगे तो अनयाय और बुरा ही दे खने मे आयेगा।
भय मात हमारी कलपना की उपज है । यह सब पपञच हमारी सिुरणा है , कलपना मात है । ििर बताओ, हम िकससे भय खाएँ और िकसकी इचछा करे ? सदा िसंहवत ् िनभय भ रहो। कभी भी िकसी से मत डरो।
वेदानत के अनुसार समसत संसार आपकी ही रचना है , आप ही का संकलप है , तो आप
अपने को दीन-हीन, पापी कयो समझते हो? आप अपने को िनभय भ , सवावलमबी, परमातमा का
अवतार कयो नहीं मानते? सब पकार के भय, दःुख, शोक और िचनता भम मात है । जब दःुख का िवषय सामने आवे तो झट भम समझकर टाल दो।
भय और सनदे ह से ही तुम अपने को मुसीबत मे डालते हो। िकसी बात से अिसथर और
चिकत मत हो। अजािनयो के वचनो से कभी भय मत करो।
परमातमा की शांित भंग करने की भला िकसमे सामथयभ है ? यिद आप सचमुच परमातम-
शांित मे िसथत हो जाओ तो सारा संसार उलटा होकर टं ग जाए, आपकी शांित कभी भंग नहीं हो सकती।
वेदानत का िसदानत यह है िक हम बद नहीं है , अिपतु िनतय मुि है । इतना ही नहीं
बिलक यह सोचना भी िक 'मै बद हूँ....' भी तुमहारा दभ ु ागभय आरमभ हो गया। इसिलए ऐसी बात कभी न कहना और न इस पकार कभी सोचना ही।
िवदानो, दाशिभनको और आचायो की धमिकयाँ और अनुगह, आलोचनाएँ तथा सममितयाँ
बहजानी पर कोई पभाव नहीं डालतीं।
परिहत के िलए थोडा-सा काम करने से भी भीतर की शिियाँ जागत ृ होने लगती है ।
दस ू रो के कलयाण करने के िवचार मात से हदय मे एक िसंह के समान बल आ जाता है ।
जो िालतू बाते नहीं करता, िालतू समय नहीं गँवाता, चािरतयहीन वयिियो का संग नहीं
करता, ऐसे सौभागयशाली वयिि को यिद ततवजानी गुर िमल जाए तो मानो उसका आिखरी जनम है । मूखो की कलपनाओं को, जगत की वसतुओं को िजतना सतय मानते है , उतना ही
महापुरषो के वचनो को सतय मान ले तो ऐसा कौन है जो मुि न हो जाये? ऐसी कौन सी मुिि है जो उसकी मुिठी मे न आ जाए?
तुमहे िजतना दे खना चािहए, िजतना बोलना चािहए, सुनना चािहए, िजतना घूमना चािहए,
िजतना समझना चािहए वह सब हो गया। अब, िजससे बोला जाता है , सुना जाता है , समझा जाता
है , उसी मे डू ब जाना ही तुमहारा िजभ है । यही तुमहारी बुिदमता का कायभ है , अनयथा तो जगत का दे खना-सुनना खतम न होगा.... सवयं ही खतम हो जायेगे.....। इसिलए कृ पा करके अब रको। .....हाँ रक जाओ.... बहुत हो गया। भटकने का अनत कर दो।
बस, खो जाओ.....। हाँ, खो जाओ..... उसी अपने िनज सवरप मे खो जाओ। वही हो
जाओ.... तुम वही हो..... वही हो.... समझ लो तुम वही हो। ॐ......ॐ......ॐ...... ॐ आननद ! ॐ आननद !! ॐ आननद!!!
अभागा आदमी भे ही इन िवचारो
भयभीत हो, इन िवचारो को हदय मे सथान न दे पर
इन पावनकारी परम मागलय के दार खोलनेवाले शुभ िवचारो को कोई सौभागयशाली तो पढे गा ही और उसी आतमरस मे डू बेगा िजससे सब दे खा जाता है , सुना जाता है , समझा जाता है ।
आलसी, पमादी, बुदु लोगो के िलए यह अमत ृ -उपदे श नहीं है । जो सुज है , सिूितल भ े है ,
उतसाही है , संयमी है वे ही यह परम खजाना पा सकते है । ॐ.... ॐ..... ॐ..... सदै व बिहमुख भ रहना अपने को धोखा दे ना है ।
सुबह घूमने िनकल जाओ। इन पावन िवचारो को जरा-सा पढते जाओ। नदी के िकनारे , तालाब के िकनारे .... जहाँ एकानत हो, टहलो। खुली जगह मे, पाकृ ितक सौनदयव भ ाले शांत वातावरण मे जब मौका िमले, जाया करो। वहाँ नाचो, गाओ, कूदो, घूमो और ििर बैठ जाओ। जब तक साकातकार न हो जाये तब तक इस पावन पुिसतका को सदै व अपने साथ रखो और इसके िवचारो मे तललीन रहो।
ििर दे खो, जगत की परे शािनयाँ, लोगो के वागजाल, शतुओं की िननदा व धमिकयाँ, िमतो की
मोह-ममता, सताधीशो की धमिकयाँ और सब िकसम की परे शािनयाँ तुमहारे पास से पलायन होती है िक नहीं? यिद नहीं होती है तो मुझसे िमलना।
सूयोदय और सूयास भ त के समय सोने से बुिद कमजोर होती है । सूयोदय के पूवभ सनान हो,
उसके बाद 10-15 पाणायाम हो, ििर ॐकार की पावन धविन गूज ँ ने दो। आधी आँख बनद आधी खुली। तुमहारे भीतर जान-सूयभ उदय हो रहा है । भूताकाश मे भासकर उदय हो रहा है तो िचताकाश मे चैतनय उदय हो रहा है ।
ॐ आननद ! ॐ आननद ! ॐ आननद ! मसती मे डू बते जाओ। बार-बार इस पुिसतका के
कुछ वाकय पढो..... ििर मन को उनमे डू बने दो.... ििर पढो..... ििर उनमे डू बने दो.... ऐसा आदर सिहत अभयास करो। सारी परे शािनयो से छूटने की यही सुनदर से सुनदर कुञजी है ।
सदै व शानत रहो। मौन का अवलमबन लो। कम-से-कम िमत बनाओ। कम-से-कम जगत
का पिरचय करो। कम-से-कम जगत की जानकारी मिसतषक मे भरो। अिधक-से-अिधक
आतमजान के िवचारो से अपने हदय और मिसतषक को भर दो..... भर दो बाबा ! भर दो....
कािी समय िनकल चुका.... कािी जान चुके.... कािी दे ख चुके.... कािी बोल चुके..... ॐ
शांितः शांितः शांितः !
मुझ े व ेद पुरा ण कुरान से कया ? मुझ े सतय का पाठ पढा द े कोई।
मुझ े म ंिदर म िसजद म े जान ा नही ं , मुझ े प ेम का र ंग च ढा द े कोई।।
जहाँ ऊँच या नीच का भ
ेद का नही ं ज हाँ जात या पात की बात नही
न हो म ं िदर मिसज द च चभ जह ाँ , न हो प ू जा नमाज म े ि कभ जह ाँ।।
जह ाँ सतय ही सार
हो जीवन का , िर धवार िस ं गार हो तयाग जह ाँ।
जहाँ प ेम ही प ेम की स ृ िष िमल े , चलो नाव
को ल े च ले ख ेके वह ीं।।
ं।
पेम का पाठ कौन पढायेगा....? तुम सवयं अपने पेमसवरप मे डू ब जाओ। यही है आननद के सागर मे डू बने का तरीका... डू ब जाओ...
साहसी बनो। धैयभ न छोडो। हजार बार असिल होने पर भी एक कदम रखो। ििर से
रखो। अवशय सिलता िमलेगी। सं शय ातमा िवनशयित।
संशय िनकाल दो।
िजन कमो और िवचारो से तुमहारी चञचलता, भय और अशांित बढती है , उनको िवष की
तयाग दो। पहुँच जाओ कोई समिचत, शांत सवरप, पेममूितभ, िनदभ नद-िनरामय सवरप मे मसत रहने वाले िकसी मसत िकीर के चरणो मे। वहाँ तुमहे जो सहयोग िमलेगा.... उनकी दिष मात से जो िमलेगा वह न चानदायण वत रखने से िमलेगा न गंगासनान से िमलेगा। काशी, मकका, मिदना
आिद तीथो मे जाने से भी उतना नहीं िमलेगा। िजतना आतमजानी महापुरष की दिष तुम पर पडने से लाभ होगा। ििर तो कह उठोगेः
कर सतस ं ग अभी स े पया रे , नह ीं तो ििर पछताना ह िखला िपलाकर द ेह बढाई , वह भी अगन जलाना
ै। है।
पडा रह ेगा मा ल खजाना , छोड ितया स ु त जान ा ह ै। कर सतस ं ग ....
नाम दीवाना दाम दीवान धन य ध नय जो राम दीवा
ा चाम दीवाना
ना , बनो दीवाना
नाम दीवाना न ाम न पायो , दाम दीवाना चा म दीवान ा चाम न पायो राम दीवाना
को ई। सो ई।।
दा म न पायो।
, जु ग ज ुग म े भ टकायो।।
राम समायो ......
कयो ठीक है न.... ? करोगे न िहममत ? कमर कसोगे..... ? वीर बनोगे िक नहीं....? आिखरी
सतय तक पहुँचोगे िक नहीं? उठो.... उठो.... शाबाश.... िहममत करो। मंिजल पास मे ही है । मंिजल दरू नहीं है । अटपटी जरर है । झटपट समझ मे नहीं आती, परनतु याजवलकय, शुकदे व, अषावक जैसे कोई महापुरष िमल जाये और समझ मे आ जाए तो जीवन और जनम-मतृयु की सारी खटपट िमट जाये।
ॐ आननद ! ॐ आननद !! ॐ आननद !!! ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
िशवोऽह ं िशवोऽहम ्
मनो बुद यहंकारिचतािन नाह
ं
न च शोत िजहे न च घाणन ेत े।
न च वयोमभ ूिम नभ तेजो न वाय ुः िच दाननदरपः
िशवोऽह ं िशवो ऽहम।् ।
न पाणस ंजौ न वै प ं चवाय ुः
न वा सपधात ुन भ वा प ंच कोशः।
न वाकपािणपादौ न चोपस न मे द ेषरागौ
िचदाननदरप ः िश वोऽह ं िश वोऽह म।् ।
न म े लो भमोहौ
मदो न ैव म े न ैव मातसय भ भावः। न ध मो न चाथो न कामो न िच दाननदरपः
थपाय ुः
म ोकः
िशवोऽह ं िशवो ऽहम।् ।
न पु णयं न पाप ं न सौखय ं न द ु ःख म् न म ंतो न तीथ ा न व ेदा न यजाः। अहं भो जनं नैव भोजय ं न भोिा
िचदाननदरप ः िश वोऽह ं िश वोऽह म।् ।
न मे म ृ तयुश ंका न म े जाितभ े दः िपता न ैव म े न ैव माता न जनम न ब नधुन भ िमत ं ग ु रनै व िशषयः िच दाननदरपः
ः।
िशवोऽह ं िशवो ऽहम।् ।
अहं िन िव भ कलपो िनराकार
रपो
िव भुवय ाभ पय स वभ त सव े िनदयाणाम। ् सदा मे समतव ं न म ु ििन भ बनध ः
िचदाननदरप ः िश वोऽह ं िश वोऽह म।् । ॐॐॐॐॐॐॐ