Matri Pitri Divas

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परम प ूज य स ं त श ी आसार ाम जी बाप ू की पे रण ा से आय ोिज त

मात ृ -िपत ृ पू जन ििवस इस ििन बालक बा िलकाए ँ अप ने माता -िपता का पूजन कर

माता -िपता की

आशीवा ा ि पाप

पिरकमा करत े

करे।

हुए शी गण ेष जी अििवािनशीलसय िनतयं वद ृ ोपसेिवनः। चतवािर तसय वधन ा ते आयुिवद ा ा यशो बलम।्।

जो वयिि माता-िपता और गुरजनो को पणाम तथा उनकी सेवा करते है उनकी आयु, िवदा, यश और बल चारो बढते है ।

वेल ेनटाइन ड े न हीं

मा तृ -िपत ृ पू जन ििवस मनाय े (14 फरवरी )

िपय आतमन ्,

हिर ú ििनाँक 14 फरवरी को सिी साधक िाई-बहन अपने घरो मे अथवा सामूिहक रप से मातृ-िपतृ पूजन ििवस मनाये। बाल संसकार केनद संचालक अपने केनद मे बचचो के माता-िपता को बुला कर सामूिहक

कायक ा म कर सकते है । पूजयशी के इस पावन संिेश को अिधक से अिधक लोगो तक पहुँचाये। अपने केत के

समाचार-पत मे पूजयशी का संिेश पकािशत करवाये। कायक ा म का िलिित िववरण एवं समाचार-पत की किटं ग (यिि समाचार पत मे ििया हो तो) बाल संसकार िविाग, अमिावाि मुखयालय को अवशय िेजे। िव श मानव

की म ंगल का मन ा स े िर े प ूजय बाप ू जी का परम िह

तकारी सं िेश पढ े - पढाय े।

िारतिूिम ऋिष-मुिनयो, अवतारो की िूिम है । पहले लोग यहाँ िमलते तो राम राम कहकर एक िस ू रे का

अििवािन करते थे।

िो बार राम कहने के पीछे िकतना सुि ं र अथा छुपा है िक सामने वाला वयिि तथा मुझमे िोनो मे उसी

राम परमातमा ईशर की चेतना है , उसे पणाम हो! ऐसी ििवय िावना को पेम कहते है । िनिोष, िनषकपट,

िनःसवाथा, िनवास ा िनक सनेह को पेम कहते है । इस पकार एक िस ू रे से िमलने पर िी ईशर की याि ताजा हो

जाती थी पर आज ऐसी िावना तो िरू की बात है , पतन करने वाले आकषण ा को ही पेम माना जाने लगा है ।

14 फरवरी को पििमी िे शो मे युवक युवितयाँ एक िस ू रे को गीिटं ग काडा स, फूल आिि िे कर वेलेनटाइन

डे मनाते है । यौन जीवन संबध ं ी परमपरागत नैितक मूलयो का तयाग करने वाले िे शो की चािरितक समपिा नष होने का मुखय कारण ऐसे वेलेनटाइन डे है जो लोगो को अनैितक जीवन जीने को पोतसािहत करते है । इससे उन िे शो का अधःपतन हुआ है । इससे जो समसयाएँ पैिा हुई, उनको िमटाने के िलए वहाँ की सरकारो को

सकूलो मे केवल संयम अिियानो पर करोडो डालर िचा करने पर िी सफलता नहीं िमलती। अब यह कुपथा हमारे िारत मे िी पैर जमा रही है । हमे अपने परमपरागत नैितक मूलयो की रका करने के िलए ऐसे वेलेनटाइन डे का बिहषकार करना चािहए।

इसे य़ुवाधन िवनाश डे संबोिधत कर इसके ियंकर पिरणामो से अवगत कराते हुए परम पूजय बापू जी

कहते है -

रोम के राजा कलाउिडयस बहचया की मिहमा से पिरिचत रहे होगे, इसिलए उनहोने अपने सैिनको को

शािी करने के िलए मना िकया था, तािक वे शारीिरक बल और मानिसक िकता से युद मे िवजय पाप कर

सके। सैिनको को शािी करने के िलए जबरिसती मना िकया गया था, इसिलए संत वेलेनटाइन जो सवयं इसाई पािरी होने के कारण बहचया के िवरोधी नहीं हो सकते थे, ने गुप ढं ग से उनकी शािियाँ कराई। राजा ने उनहे िोषी घोिषत िकया और उनहे फाँसी िे िी गयी। सन ् 496 से पोप गैलेिसयस ने उनकी याि मे वेलेनटाइन डे मनाना शुर िकया।

वेलेनटाइन डे मनाने वाले लोग संत वेलेनटाइन का ही अपमान करते है कयोिक वे शािी के पहले ही

अपने पेमासपि को वेलेनटाइन काडा िेजकर उनसे पणय-संबध ं सथािपत करने का पयास करते है । यिि संत वेलेनटाइन इससे सहमत होते तो वे शािियाँ कराते ही नहीं।

पेम ििवस (वेलेनटाइन डे ) जरर मनाये लेिकन संयम और सचचा िवकास पेम ििवस मे लाना चािहए।

युवक-युवती िमलेगे तो िवनाश ििवस बनेगा।

कहाँ तो.......... परसपर ं िावयनत ु ......... हम एक िस ू रे को उननत करे । तनमे मनः

िश वसंकलप मसत ु .... मेरा मन सिै व शुि िवचार ही िकया करे । इस पकार की ििवय िावना को जगाने वाले हमारे रकाबंधन, िाईिज ू जैसे पवा और कहाँ यह वासना, अिदता को बढावा िे ने वाला वेलेनटाइन डे ।

यिि इसके पिरणामो को िे िा जाए तो आगे चलकर यह िचडिचडापन, िडपैशन, िोिलापन, जलिी बुढापा

और मौत लाने वाला ििवस सािबत होगा। अतः िारतवासी इस अंधपरं परा से सावधान हो! तुम िारत के लाल और लािलयाँ (बेिटयाँ) हो। पेम ििवस मनाओ, अपने माता-िपता का सममान करो और माता-िपता बचचो को

सनेह करे । करोगे ने बेटे ऐसा! पािातय लोग िवनाश की ओर जा रहे है । वे लोग ऐसे ििवस मना कर यौन रोगो का घर बन रहे है । अशांित की आग मे तप रहे है । उनकी नकल तो नहीं करोगे?

मेरे पयारे युवक-युवितयो और उनके माता-िपता! आप िारतवासी है । िरूदिष के धिन ऋिष-मुिनयो की

संतान है । पेम ििवस (वेलेनटाइन डे ) के नाम पर बचचो, युवान युवितयो की कमर टू टे , ऐसे ििवस का तयाग करके तथा पिु के नाते एक िस ू रे को पेम करके अपने ििल के परमेशर को छलकने िे । काम िवकार नहीं, रामरस... पिुरस.... पिुरस....

मा तृ िेवो ि व। िप तृ िेवो िव। बा िलकाि ेवो िव। क नयाि ेवो िव। प ुति ेवो िव।

पेम ििवस वासतव मे सबमे छुपे हुए िे व को पीित करने का ििवस है । िे शवासी और िवशवासी, सबका

मंगल हो। िारत के िाई-बहनो! ऐसा आचरण करो, मेरे िवश के िाई-बहनो का िी मंगल हो। उनका अनुकरण आप कयो करे ? आपका अनुकरण करके वे सििागी हो जाये।

सिी राषिि नागिरको को यह राषिहत का काय ा करके िावी सुदढ राष िनमाण ा मे अपना योगिान िे ना

चािहए।

कैस े मनाय े मात -िपत ृ पूजन ििवस ?  इस ििन बचचे-बिचचयाँ अपने माता-िपता को पणाम करे तथा माता-िपता अपनी संतानो को पेम करे । संतान अपने माता िपता के गले लगे। इससे वासतिवक पेम का िवकास होगा। बेटे-बेिटयाँ अपने माता-िपता मे ईशरीय अंश िे िे और माता-िपता बचचो मे ईशरीय अंश िे िे।

 बचचे-बिचचयाँ अपने माता-िपता का ितलक, पुषप आिि के दारा पूजन करे । माता-िपता िी बचचो को ितलक करे , आशीवच ा न कहे ।

 माता-िपता का पूजन करते है तो काम राम मे बिलेगा, अहं कार पेम मे बिलेगा, माता-िपता के आशीवाि ा से बचचो का मंगल होगा।

 बालक गणेषजी की पथ ृ वी पिरकमा, िि पुणडिलक की मातृ-िपत ृ ििि, शवण कुमार की मातृिपत ृ ििि - इन कथाओं का पठन करे अथवा कोई एक वयिि कथा सुनाये और अनय लोग शवण करे ।

 इस ििन बचचे बिचचयाँ पिवत संकलप करे - मै अपने माता-िपता व गुरजनो का आिर

करँगा/करँगी। मेरे जीवन को महानता के रासते ले जाने वाली उनकी आजाओं का पालन करना मेरा कतव ा य है और मै उसे अवशय पूरा करँगा/करँगी।

 माता-िपता बाल स ंसकार , युवाधन स ुरका , तू ग ुलाब होकर मह

क,

मधुर वयवहार

- इन

पुसतको को अपनी कमतानुरप बाँटे बँटवाये तथा पितििन थोडा-थोडा सवयं पढने का तथा बचचो से पढाने का संकलप ले। शी गणेष, पुणडिलक, शवण कुमार आिि मातृ-िपत ृ िि बालको की कथाओं को नाटक के रप मे पसतुत करे ।

 (1) मात -िपता ग ुर च रणो मे प िु ... (िजन िीप ांजली कैसेट से) (2) िूलो स िी को तुम म गर ... ऐसे िजनो का गान करे । इस ििन सिी िमलकर शी आ सारामा यण पाठ व

आरती करके बचचो को मधुर पसाि बाँटे। नीचे िलिी पंिियाँ जैसी मातृ-िपत ृ ििि की कुछ पंिियाँ गते पर िलि कर बोडा बना कर आयोजन सथल पर लगाये। 1. बहुत रात त क प ैर िबात े , िरे कंठ िपत आ िशष पात े। के त ुमस े स िा , पूरण होग े काम।

2. पु त त ुमहारा

3. मात ृ िेवो िव।

ज गत म े , सिा रह ेगा नाम। लो गो

िपत ृ िेवो ि व। आचाय ा िेवो िव।

 िवशमंगल की कामना से िरे परम पूजय बापू जी का परम िहतकारी संिेश पढे पढाये। वेलेनटाइन डे नहीं मा तृ -िप तृ पूजन ििवस मनाये।

मात ृ -िपत ृ -गुर ििि

अपनी िारतीय संसकृ ित बालको को छोटी उम मे ही बडी ऊँचाईयो पर ले जाना चाहती है । इसमे सरल छोटे -छोटे सूतो दारा ऊँचा, कलयाणकारी जान बचचो के हिय मे बैठाने की सुनिर वयवसथा है । मात ृ िेवो िव।

िपत ृ िेवो ि व। आचाय ा िेवो िव।

माता-िपता एवं गुर हमारे िहतैषी है , अतः हम

उनका आिर तो करे ही, साथ ही साथ उनमे िगवान के िशन ा कर उनहे पणाम करे , उनका पूजन करे ।

आजापालन के िलए आिरिाव पयाप ा है परनतु उसमे पेम की िमठास लाने के िलए पूजयिाव आवशयक है । पूजयिाव से आजापालन बंधनरप न बनकर पूजारप पिवत, रसमय एवं सहज कमा हो जाएगा।

पानी को ऊपर चढाना हो तो बल लगाना पडता है । िलफट से कुछ ऊपर ले जाना हो तो ऊजाा िचा

करनी पडती है । पानी को िाप बनकर ऊपर उठना हो तो ताप सहना पडता है । गुलली को ऊपर उठने के िलए डं डा सहना पडता है । परनतु पयारे िवदािथय ा ो! कैसी अनोिी है अपनी िारतीय सनातन संसकृ ित िक िजसके ऋिषयो महापुरषो ने इस सूत दारा जीवन उननित को एक सहज, आनंििायक िेल बना ििया।

इस सूत को िजनहोने िी अपना बना िलया वे िुि आिरणीय बन गये, पूजनीय बन गये। िगवान

शीरामजी ने माता-िपता व गुर को िे व मानकर उनके आिर पूजन की ऐसी मयाि ा ा सथािपत की िक आज िी मयाि ा ापुरषोतम शीरामजी की जय कह कर उनकी यशोगाथा गाय़ी जाती है । िगवान शी कृ षण ने नंिनंिन,

यशोिानंिन बनकर नंि-घर मे आनंि की वषाा की, उनकी पसननता पाप की तथा गुर सांिीपनी के आशम मे

रहकर उनकी िूब पेम एवं िनषापूवक ा सेवा की। उनहोने युिधिषर महाराज के राजसूय यज मे उपिसथत गुरजनो, संत-महापुरषो एवं बाहणो के चरण पिारने की सेवा िी अपने िजममे ली थी। उनकी ऐसी कमा-कुशलता ने

उनहे कमय ा ोगी िगवान शी कृ षण के रप मे जन-जन के ििलो मे पूजनीय सथान ििला ििया। मातृ-िपत ृ एवं गुर ििि की पावन माला मे िगवान गणेष जी, िपतामह िीषम, शवणकुमार, पुणडिलक, आरिण, उपमनयु, तोटकाचाया आिि कई सुरिित पुषप है ।

तोटक नाम का आद शंकराचाया जी का िशषय, िजसे अनय िशषय अजानी, मूिा कहते थे, उसने

आचायि ा े वो िव सूत को दढता से पकड िलया। पिरणाम सिी जानते है िक सिगुर की कृ पा से उसे िबना पढे ही सिी शासो का जान हो गया और वे तोटकाचाया के रप मे िवखयात व सममािनत हुआ। वतम ा ान युग का

एक बालक बचपन मे िे र रात तक अपने िपताशी के चरण िबाता था। उसके िपता जी उसे बार-बार कहते बेटा! अब सो जाओ। बहुत रात हो गयी है । िफर िी वह पेम पूवक ा आगह करते हुए सेवा मे लगा रहता था। उसके पूजय िपता अपने पुत की अथक सेवा से पसनन होकर उसे आशीवाि ा िे ते पु त त ुमहारा

ज गत म े , सिा रह ेगा नाम। लो गो के त ुमस े स िा , पूरण हो गे काम।

अपनी माताशी की िी उसने उनके जीवन के आििरी कण तक िूब सेवा की।

य़ुवावसथा पाप होने पर उस बालक िगवान शीराम और शीकृ षण की िांित गुर के शीचरणो मे िूब

आिर पेम रिते हुए सेवा तपोमय जीवन िबताया। गुरदार पर सहे वे कसौटी-िःुि उसके िलए आििर परम सुि के िाता सािबत हुए। आज वही बालक महान संत के रप मे िवशवंिनीय होकर करोडो-करोडो लोगो के

दारा पूिजत हो रहा है । ये महापुरष अपने सतसंग मे यिा-किा अपने गुरदार के जीवन पसंगो का िजक करके कबीरजी का यह िोहा िोहराते है -

गुर के सम मुि जाय े के सह े क सौटी ि ु ःि। कह कबीर ता ि

ु ःि पर को िट वार ँ सुि।।

सिगुर जैसा परम िहतैषी संसार मे िस ू रा कोई नहीं है । आचाय ा िेवो िव , यह शास-वचन मात वचन

नहीं है । यह सिी महापुरषो का अपना अनुिव है । मात ृ िेवो िव।

िपत ृ िेवो ि व। आचाय ा िेवो िव।

यह सूत इन महापुरष के जीवन मे मूितम ा ान

बनकर पकािशत हो रहा है और इसी की फलिसिद है िक इनकी पूजनीया माताशी व सिगुरिे व - िोनो ने अंितम कणो मे अपना शीश अपने िपय पुत व िशषय की गोि मे रिना पसंि िकया। िोजो तो उस बालक का नाम िजसने मातृ-िपतृ-गुर ििि की ऐसी पावन िमसाल कायम की।

आज के बालको को इन उिाहरणो से मातृ-िपतृ-गुरििि की िशका लेकर माता-िपता एवं गुर की

पसननता पाप करते हुए अपने जीवन को उननित के रासते ले जाना चािहए।

माँ -बाप को ि ू लना न हीं

िूलो सिी को मगर, माँ-बाप को िूलना नहीं। उपकार अगिणत है उनके, इस बात को िूलना नहीं।। पतथर पूजे कई तुमहारे , जनम के िाितर अरे ।

पतथर बन माँ-बाप का, ििल किी कुचलना नहीं।। मुि का िनवाला िे अरे , िजनने तुमहे बडा िकया।

अमत ृ िपलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।। िकतने लडाए लाड सब, अरमान िी पूरे िकये।

पूरे करो अरमान उनके, बात यह िूलना नहीं।। लािो कमाते हो िले, माँ-बाप से जयािा नहीं।

सेवा िबना सब राि है , मि मे किी फूलना नहीं।।

सनतान से सेवा चाहो, सनतान बन सेवा करो। जैसी करनी वैसी िरनी, नयाय यह िूलना नहीं।। सोकर सवयं गीले मे, सुलाया तुमहे सूिी जगह।

माँ की अमीमय आँिो को, िूलकर किी ििगोना नहीं।। िजसने िबछाये फूल थे, हर िम तुमहारी राहो मे। उस राहबर के राह के, कंटक किी बनना नहीं।।

धन तो िमल जायेगा मगर, माँ-बाप कया िमल पायेगे? पल पल पावन उन चरण की, चाह किी िूलना नहीं।।

मात िपता ग ुर प िु चरणो म े ............... मात िपता गुर चरणो मे पणवत बारमबार।

हम पर िकया बडा उपकार। हम पर िकया बडा उपकार। ।।टे क।।

(1) माता ने जो कष उठाया, वह ऋण किी न जाए चुकाया।

अंगल ु ी पकड कर चलना िसिाया, ममता की िी शीतल छाया।।

िजनकी गोिी मे पलकर हम कहलाते होिशयार,

हम पर िकया..... मात िपता...... ।।टे क।।

(2) िपता ने हमको योगय बनाया, कमा कमा कर अनन ििलाया।

पढा िलिा गुणवान बनाया, जीवन पथ पर चलना िसिाया।।

जोड-जोड अपनी संपित का बना ििया हकिार।

हम पर िकया..... मात िपता...... ।।टे क।।

(3) ततवजान गुर ने िरशाया, अंधकार सब िरू हटाया।

हिय मे ििििीप जला कर, हिर िशन ा का मागा बताया।

िबनु सवारथ ही कृ पा करे वे, िकतने बडे है उिार।

हम पर िकया..... मात िपता...... ।।टे क।।

(4) पिु िकरपा से नर तन पाया, संत िमलन का साज सजाया।

बल, बुिद और िवदा िे कर सब जीवो मे शष े बनाया।

जो िी इनकी शरण मे आता, कर िे ते उदार।

हम पर िकया..... मात िपता...... ।।टे क।।

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