Katha Prasang Ghar Ghar Mein Bahe Prem Ki Ganga Rpaugust2008

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  • Words: 998
  • Pages: 3
कथा -पसंग घर -घर म े ब हे प ेम क ी ग ंगा

मेरठ (उ.प.) मे रामनारायण व जयनारायण नाम के दो भाई रहते थे। उनकी एक छोटी

बहन थी – पेमा। उनके माता-ििता सवगव ग ासी हो गये थे। बडे भाई रामनारायण जमींदार थे और छोटे भाई जयनारायण वकील बन गये थे।

रामनारायण व पेमा सतसंग, कीतन ग , पभुभिि मे रिि रखते थे तथा जयनारायण िाशातय

जीवन शैली से पभािवत थे। पेमा जब िववाह योगय हुई तब दोनो भाई उसके िलए सुयोगय वर

खोजने लगे। रामनारायण धमिगनष व सचििरतवान वर खोजने लगे व जय नारायण अिने जैसी

िविारधारा वाला वर तलाश करने लगे। इसी बात को लेकर दोनो भाइयो मे मनमुटाव हो गया। जयनारायण ने घर छोड िदया और अिनी िती को लेकर दस ू रे मोहलले मे रहने लगे। रामनारायण ने पेमा का िववाह एक सचििरत युवक के साथ कर िदया।

समय बीता। एक िदन पेमा ससुराल से अिने बडे भाई के आयी हुई थी। एक शाम को

वह झूला झूल रही थी िक जयनारायण िकसी कायव ग श उधर से गुजरे । पेमा की जयनारायण की तरफ िीठ थी इसिलए वह भाई को नहीं दे ख िायी िरनतु उनहोने बहन को दे ख िलया। वकील बाबू ने सुना िक पेमा गा रही है ः

भगीरथ की प भुपीित ति सय ा, गंगा धर ती िे लायी।

घर -घर मे बह े प ेम की ग ंगा , रहे न कोई

िदल खाली।।

हर िद ल बन े म ंिदर पभ ु का ,

यिद ग ुरजान जयोित ज गा ल ी। मेरे भ ैया दोनो ना रायण , मै ह ूँ ईशर की लाड

ली।।

वकील बाबू ने सोिा, "िजसे मैने भुला िदया था, वह मुझे अब भी समरण कर रही है ।"

बात हदय को िोट कर गयी। वे बहन और भाई के िलए तडिने लगे। आिखर संसकारी खानदान का खून रगो मे था। अिनी भूल के िलए िशाताि करते हुए जयनारायण उदास रहने लगे। खाने-िीने से भी उनकी विृि हट गयी। उििगनता अतयंत बढने के कारण एक िदन उनहे तेज बुखार हो गया।

एक हफते बाद पेमा ने सुना िक जयनारायण बहुत बीमार है । वह बडे भाई के कमरे मे

गयी और बोलीः "छोटे भैया बहुत बीमार है ।"

"मुझे िता है तुम उससे िमलने जाना िाहती हो लेिकन पेमा ! वहाँ तुमहे वयथग ही

अिमािनत होना िडे गा यह िहले ही समझ लेना।"

"भैया ! मान-अिमान आया जाया करते है िर अिनी संसकृ ित का 'हदय की िवशालता व

िमल-जुलकर रहने का िसदानत शाशत है । आि ही तो गाया करते है ।

सतय बोल े झ ूठ तयाग े म ेल आि स म े कर े।

िदवय जीवन हो हमारा यश

'तेरा ' गाया कर े।।

"शाबाश ! तुमहारे िविारो की सुवास जयनारायण के घर को भी महकायेगी।" जयनारायण के घर िहुँिकर पेमा ने दे खा िक वे िलंग िर बेहोश िडे है । एक ओर रमा

भाभी खडी है व दस ू री ओर डॉकटर खडे है ।

डॉकटरः "इनके शरीर मे रि की बहुत कमी हो गयी है , नसे तक िदखाई दे रही है ।"

रमाः "कुछ भी खाते िीते नहीं है । कभी-कभी बस इतना ही कह उठते है – मेरे भ ैया दोन ो नार ायण , मै ह ूँ ई शर की लाडली।। "यह सिननिात का लकण है ।"

"डॉकटर साहब ! िास जो कुछ है सब ले लीिजए िरनतु इनके पाण बिा लीिजए।"

"पाण बिाना िरमातमा के हाथ मे है । डॉकटर का काम ततकाल कोिशश करना है । इनहे ततकाल खून िढाना िडे गा।"

"मेरा खून ले लीिजए।" "आि गभव ग ती है , आिका खून लेना ठीक नहीं।"

"डॉकटर साहब ! मै सवसथ हूँ, मेरा खून ले लीिजए !" – दरवाजे मे खडी पेमा बोल उठी। रमाः "नहीं पेमा ! आि रहने दीिजए।" "कयो भाभी?"

"हमने आिसे बहुत गलत वयवहार िकया है । आिकी शादी मे भी हमलोग शािमल नहीं

हुए थे और एक िैसा भी हमने खिग नहीं िकया। आि हमसे नाराज नहीं है ?"

"बहन का आदशग यह नहीं है िक वह िकसी भूल के कारण अिने भाई से सदा के िलए

नाराज हो जाये। मेरे गुरदे व कहते है -

बीत गयी सो बीत गयी

,

तकदीर िश कवा कौन

कर े।

जो तीर कमान स े िनक ल गया ,

उस तीर का िीछा कौन

कर े।। "

डॉकटर ने पेमा का बलॅड गुि जाँिकर खून ले िलया और वकील साहब को िढा िदया।

एक हफते मे ही जयनारायण सवसथ हो गये। वे रामनारायण के घर आये। तब पेमा वहीं थी। जयनारायण

ने बडे भाई के िरणो िर अिना िसर रख िदया व िससक-िससककर रोने लगे।

रामनारायण ने उनहे उठाया और छाती से लगा िलया। सभी की आँखो से पेमाश ु बरसने लगे। "भाई साहब ! मुझे कमा कर दीिजए। मुझे अिने घर मे रहने की अनुमित दीिजए।" "अनुमित?.... यह तुमहारा ही घर है ।" मैने...."

"भैया ! आि ििता जी के समान है । आिने मुझे िढाया-िलखाया, योगय बनाया है और "दःुखी मत होओ। सुबह का भूला शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते। तुम

आज ही यहाँ आ जाओ।"

"पेमा ! मेरी िहममत नहीं होती िक तुमहारी नजर से नजर िमला सकूँ। मै भाई का आदशग

भूल गया िरनतु तुम बहन का आदशग नहीं भूली।"

"िहनद ू संसकृ ित व संतो के अनुसार बहन का जो आदशग है , उसी का मैने िालन िकया है ।

यह तो मेरा कतवगय ही था। यिद तारीफ करनी ही है तो मेरी नहीं, अिनी संसकृ ित व संतो की करो।"

दस ू रे िदन जयनारायण अिनी िती सिहत उस घर मे लौट आये। सतसंग के संसकारो ने,

संसकृ ित के आदशो ने टू टे हुए िदलो को पेम की डोर से जोड िदया।

हे भारत की धरा ! हे ऋििभूिन ! तेरे कण-कण मे अभी भी िकतने िावन संसकार है ! हे

भारत वािसयो ! हे िदवय संसकृ ित के सिूतो ! आि अिने महािुरिो के सनेह के, हदय की

िवशालता के संसकारो को मत भूलो। ये संसकार घर-घर मे िदल-िदल मे पेम की गंगा पकटाने का सामथयग रखते है ।

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