‘’अगर लम म) क इताअत करोगे तो ‘’अगर तुम रसुल (स ला ला लाह लाह अलैिह वस ल िहदायत पाओगे’’’’ (कुरआन) रआन)
एक बातचीत अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह :
अ&सलामुअलैकुम वरहमतु लाह । वालेकुम&लाम वरहमतु लाह व बरकातह( । किहये । एक मसला दया)*त करने आया ह( ं । फरमाईये । बंदा हािजर है । सुना है अहले हदीस एक नया ही िफरका िनकला है जो न सहाबा-ए-िकराम को मानते है न इमामो को बि क बुजुग0 को भी गािलयां देते है । अहमद : भाई । यह झूठी बाते फै लाई ह ई है (5ोपेग6डा), हम न िकसी को बुरा कहते है, न गाली देते है, बि क इ9जत वालो क इ9ज़त करते है । अ$दु लाह : आप इमामो को मानते है । अहमद : ;यो नह< । अ$दु लाह : लेिकन लोग तो कहते ह= आप इमाम> को नह< मानते । अहमद : ईसाई भी तो कहते ह= िक मुसलमान ईसा अलैिह&सलाम को नह< मानते, तो ;या आप ईसा अलैिह&सलाम को नह< मानते ? अ$दु लाह : हम तो ईसा अलैिह&सलाम को मानते है । अहमद : िफर ईसाई ;यो कहते है िक नह< मानते । अ$दु लाह : इसिलये िक जैसे वो मानते है वैसा हम नह< मानते । अहमद : उसी तरह से लोग हम@ कहते है ;योिक जैसे वो इमामो को मानते ह= वैसे हम नह< मानते अ$दु लाह : वो इमामो को कै से मानते है ? अहमद : निबय> क तरह । अ$दु लाह : निबय> क तरह कै से ? अहमद : उनक पैरवी करते है, उन के नाम पर िफरके बनाते है जबिक पैरवी और िन&बत िसफ) नबी का हक है । िकतने अफसोस क बात है िक ईसाई जो
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कािफर है वो तो अपनी िन&बत अपने नबी क तरफ करके ईसाई कहलाये और आप मुसलमान हाते ह ए अपने नबी को छोड़कर अपनी िन&बत इमाम क तरफ करे और हनफ कहलाये । ;या ईसाई अDछे न रहे िजEह>ने कम से कम िन&बत तो अपने नबी क तरफ क । अ$दु लाह : आप जो हनफ नह< कहलाते तो ;या इमाम अबू हनीफा को नह< मानते ? अहमद : अगर हम हनफ नह< कहलाते तो उस के यह मानी तो नह< िक हम उनको इमाम नह< मानते । हम उन को इमाम मानते है लेिकन नबी नह< मानते िक आप क तरह उन के नाम पर हनफ कहलाये । आप ही बताये आप जो शाफई नह< कहलाते तो ;या इमाम शाफई रह0 को नह< मानते ? अ$दु लाह : हम इमाम शाफई रह0 को जHर मानते है लेिकन जब हनफ कहलाते है तो िफर शाफई कहलाने क ;या जHरत । अहमद : हम@ भी मुहIमदी या अहले हदीस कहलाने के बाद हनफ कहलाने क ;या जHरत । अ$दु लाह : आप मुहIमदी ;यो कहलाते है । अहमद : आप अपने इमाम के नाम पर हनफ कहलाये हम अपने रसुल हज़रत मुहIमद स ला लाह अलैिह वस लम के नाम पर मुहIमदी कहलाते है िजEहे हम अपना इमाम त&लीम करते है और हमारे इमाम तो सारे निबयो के भी इमाम है और सारी कायनात मे हमारे इमाम क बात के बाद िकसी नबी के िलये भी ये गुंजाईश नह< क वो इसके िखलाफ बोले या करे । अब आप बताईये ये िन&बत बेहतर है या हनफ । अब्दु लाह : िन&तब तो मुहIमदी ही बेहतर है लेिकन हनफ भी तो गलत नह< । अहमद : गलत ;यो नह< ? रसुल के होते ह ये िफर िकसी और क तरफ मंसूब होना िकस शLरयत का मसला है ? ह जुरे अकरम स ला लाह अलैिह वस लम को छोड़ कर िकसी और क तरफ िन&बत करने का मतलब यह है िक वो गलतकार है और अपने आपको गैर क तरफ मंसूब करता है । रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम ने फरमाया – ला तरNबू अन आबाएकुम फमन
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अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
रगेबा अन अबीहे फकद कफर यािन जो अपने बाप से िन&बत तोड़ता है तो कुO करता है (िमPकात) दू सरी हदीस मे फरमाया ‘ ‘’मिनद’दआ इला गैरे अबीहे व होवा यालमो िफल जEनतो अलेहे हराम’’ यािन जो अपनी िन&बत गैर बात क तरफ करता है उस पर जEEत हराम है (िमPकात) जब आहंजरत स ला लाह अलैिह वस लम हमारे दीनी रहनुमा है तो उनको छोड़कर गैर क तरफ िन&बत करना बेदीनी नही तो और ;या है ? इसके अलावा आप बताये हनफ बनने के िलये िकसने कहा है ? ;या अ लाह ने कहा या उस के रसुल ने या खुद इमाम साहब ने ? जब हनफ बनने के िलये िकसी ने कहा नह< हनिफयत इ&लाम क कोई िक&म नह<, हनिफयत नाम क इ&लाम मे कोई दावत नह< तो हनफ िन&बत गलत ;यो नह हनफ कहलाने वाले िजतने पहले गुज़रे है ;या वो सब गलत थे ? पहले के हनफ जो थे उनक यह िन&बत शािगदR क िन&बत थी, मज़हबी िन&बत नह< थी । यह िन&बत गुमराही उस व;त बनती है जब मज़हबी हो और िफरका़पर&ती क बुिनयाद पर हो अगर यह िन&बत उ&तादी शािगदR क हो तो कोई हज) नह< । और यही सवाल िक जो पहले गुजर गये ;या वो गलत थे यही सवाल िफरऔन ने हज़रत मुसा अलैिह&सलाम से िकया था तो हज़रत मुसा अलैिह&सलाम ने कहा ‘’इसका इ म मेरे रब के पास एक िकताब मे दज) है, मेरा रब न चुकता है और न भुलता है’’ (सुरह ताहा आयत 51-52) । अगर हनफ कहलाना सही नह< ;य>िक िफरकापर&ती है तो अहले हदीस कहलाना भी तो िफरकापर&ती है । अहले हदीस कोई िफरका नह< है अहले हदीस तो ऐन इ&लाम है इ&लाम नाम नबी क पैरवी का है नबी क पैरवी उन क हदीस पर अमल करने से हो सकती है िलहाज़ा अहले हदीस बने बगैर तो चारा ही नह< । और अहले हदीस िसफाती नाम है, जैसे अ लाह का ज़ाती नाम ‘’अ लाह’’ है और रहीम, रहमान, ग*फार, करीम, कुXस ु , गौस, वगैरह वगैरह ये सब अ लाह के िसफाती नाम है, जैसे मदीना के सहाबा अंसार कहलाये अंसार का मतलब
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अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह :
होता है मदद करने वाला और उEहोने िहजरत करके आने वाले सहाबा क मदद क इसिलये उनका िसफाती नाम ‘’अंसार’’ ह आ । और जो सहाबा िकराम म;का से िहजरत करके मदीना तशरीफ ले गये उनका िसफाती नाम ‘’मुहािजर’’ ह आ । िजस तरह हज़रत अ$दे शIस रिदअ लाह ताआला अनह( का िसफाती नाम ‘’अबुहरैरा’’ पड़ा उEहे इसी नाम से आज तक जाना जाता है असली नाम से कम ही लोग वािकफ है । उसी तरह हमारा ज़ाती नाम ‘मुसलमान’ है और चूंिक हम हर अमल पर ह जुर अकरम स ला लाह अलैिह वस लम के फेल, अमल, तकरीरी (हदीस) को ह 9जत समझते है इसिलये हमारा िसफाती नाम अहले हदीस है । और सारे के सारे सहाबा, ताबई, ताबे ताबई मुहXेसीन, फुकहा िकराम, स फ सालेहीन सब अहले हदीस ही थे । हदीस को तो हम भी मानते है । िसफ) मानते ही है अमल नह< करते अगर अमल करते होते तो अहले हदीस होते । आदमी मानता बह तो को है लेिकन मंसबू उसी क तरफ होता है िजस से 9यादा ता लुक होता है । मानने को तो आप हदीस को भी मानते है और इमाम शाफाई रह0 को भी, लेिकन अहले हदीस कहलाते है ना शाफाई बि क हनफ कहलाते है ;योिक आपका असल ता लुक इमाम अबु हनीफा रहमतु लाह और उनके िफकह से है । मानने को हम भी इमामो को को मानते है लेिकन मंसूब िसफ) मुहIमद स ला लाह अलैिह वस लम क तरफ ही होते है ;योिक उनक पैरवी करते है और उने से ही 9यादा ता लुक है । ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम को तो सब मानते है नबी स ला लाह अलैिह वस लम के बाद आप का कोई इमाम नह< ? ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम के बाद भी िकसी इमाम क जHरत है ? िजEदगी हरकत मे है नये नये मसाइल पैदा होते है आिखर वो िकस से ले ? ह जुर स ला लाह( अलैिह वस लम से लो । उन से अब कै से ले ? वो अब कहां है ? आप हयातुEनबी स ला लाह अलैिह वस
म के कायल नह< ? ;य> नह< हयाते नबी का मै जHरत कायल ह( ं ।
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अहमद :
िफर इमाम क ;या जHरत ? जो लेना हो तो नबी स ला लाह अलैिह वस लम से लो अ$दु लाह : वो अब ;या देते है ? अहमद : अगर कुछ देते नह< तो हयातुEनबी स ला लाह अलैिह वस लम कै से और उस का फायदा ;या ? अ$दु लाह : हयात का यह मतलब तो नह< िक वो अब कुछ देते लेते है । अहमद : िफर हयात का और ;या मतलब है ? अ$दु लाह : हयात का मतलब तो यह है िक वो सलाम सुनते है । अहमद : ;यो वो िसफ) सलाम सुनने के िलये हयात है । यह कै से िक उन के आिशक उन क आंखो के सामने िशक), व िबदअत करे और वो उनको गुमराह होता देखते रहे और सलाम सुनते रहे । ;या वो सलाम सुनने के िलये दु िनया मे आये थे या िशक) व िबदअत को िमटाने और दीन िसखाने के िलये । अ$दु लाह : दीन तो वो िसखा कर गये, अब ;या िसखाना है ? अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : । अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद :
अगर वो दीन िसखा गये तो िफर इमाम क ;या जHरत ? िजEदगी मे िनत नये मसाइल पैदा होते रहते है िजनका हल इमाम ही पेश कर सकता है इसिलये इमाम का होना जHरी है । आजकल आपका इमाम कौन है जो आपको दरपेश मसले हल करता है ? हमारे इमाम तो इमामे आज़म अबू हनीफा रहमातु लाह है । वो कब पैदा ह ये ? सन् 80 िहजरी मे यानी ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम के स\तर साल बाद ;या उनके बारे मे आपका अकदा हयातुलइमाम का है ? नह< वो तो फौत हो चुके है । उनको फौत ह ये िकतना असा) हो गया ? तकरीबन 1280 साल । जब आप इमाम को हयात भी नही समझते और ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम को हयात मानते है और ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम और
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अ$दु लाह :
अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
इमाम साहब क वफात के बीच कोई 9यादा लंबा असा) भी नह< तो िफर यह ;या बात है िक इमाम क िफकह तो िजEदगी के मसले हल कर ले और ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम क िफकह फेल हो जाये और यह काम न कर सके । इमाम साहब ने अपनी िजEदगी मे असूले दीन को सामने रख कर िफकह क एैसी तदवीन (संकलन) कर दी िक लाखो मसले एक जगह जमा कर िदये जो रहती दु िनया तक काम आयेगे । ह जुर स लाल्लाह अलैिह वस लम ने यह काम ;यो नह< िकया ? आिखर इस क ;या वजह है िक ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम का पेशकदा) दीन तो िसफ) सौ साल काम दे सका लेिकन इमाम साहब ने दीन को ऐसे अंदाज़ से पेश िकया िक आज तक काम दे रहा है बि क कयामत तक काम देता रहेगा । इस क वजह ;या है ? ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम के तो सौ साल बाद ही इमाम क जHरत पड़ गई जो िजEदगी के बढ़ते ह ये मसाइल का हल पेश करे लेिकन इस इमाम के बाद तेरह सौ साल गुजर गये आज तक िकसी इमाम क जHरत पेश नह< आई । वही इमाम वही िफकह काम दे रहे है और आप उन के नाम पर हनफ चले आ रहे है । अगर इमाम साहब ऐसे ही थे तो उन को ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम क जगह होना चािहये था तािक इखितलाफात ही न होते, न मुहIमदी और हनफ का झगड़ा होता न इमामो का च;कर होता, सब एक होते और हनफ होते । अजीब बात यह है िक हयातुEनबी आप ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम को बताते है और मसले इमाम साहब के मानते है । कलमा मुहIमद स ला लाह अलैिह वस लम का पढ़ते है और हनफ बन कर पैरवी इमाम अबू हनीफा रह0 क करते है । आप लोग का हयातुEनबी स ला लाह अलैिह वस लम पर यक़न ;यो नह< ? अगर ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम हयात हो तो हम हयातुEनबी पर यक़न करे । इस अकदे का कोई फायदा हो तो हम उस को माने । जब आप लोग हनफ बन गये तो हयातुEनबी का अकदा कहां रहा । हककत यह है िक आप लोग जो हयातुEनबी को मानते है तो िसफ) रसमी तौर पर । िदल व
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अक्ल से आप भी इस को सही नही समझते अगर आप लोग इसे सही समझते होते तो कभी हनफ न बनते । आप का ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम के बाद हनफ बन जाना इस बात क ब_यन दलील है िक आप ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम को हयात नह< समझते वरना कौन एैसा बदब`त है जो नबी क मौजुदगी मे इमाम और पीर पकड़ता िफरे । आप जो इमाम और पीर पकड़ते है तो इस का मतलब है िक आप ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम को या तो हयात नह< समझते या काफ नह< समझते । अ$दु लाह : आप लोग ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम क हयात के िब कुल कायल नह< है ? अहमद : हम लोग ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम के बरज़खी हयात के कायल है, दु िनयावी हयात के कायल नह< । अ$दु लाह : इस का ;या मतलब ? अहमद : यही िक दु िनया मे आप खुद हयात नह< बि क आप क नबुaवत िजEदा है । बरज़ख मे अ लाह के यहां आप खुद हयात है । अ$दु लाह : दु िनया मे अगर ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम हयात नह< तो लोग उन से दीन कै से लेते है ? अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद :
िजस इमाम को आप पकड़े ह ये है वो ;या दु िनया मे है ? दु िनया मे तो वो भी नह< है । िफर आप उन से मसले कै से लेते है ? उनक तो िकताबे मौजूद है । तो ;या ह जुर स ला लाह( अलैिह वस लम क हदीसे मौजूद नह< ? िकताबे तो इमामो ने खुद िलखी है लेिकन हदीस तो ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम ने खुद नह< िलखी । उस को तो लोग> ने बाद मे जमा िकया है । िफकहा-ए-हनफ िजस को आप मानते है वो कौन सी इमाम साहब ने खुद िलखी है । वो भी तो लोग> ने ही जमा क है और वो भी बगैर सनद के । इमाम साहब के इEतेकाल के 278 साल के बाद उनक तरफ मंसूब करके िफकहा क पहले िकताब कुदूरी िलखी गई और बाद मे ना जाने िकतनी िकताबे बगैर
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सनद उनक तरफ मसूंब कर दी गई िजसमे एैसे एैसे मसअले मौजूद है अगर इमाम साहब उEहे देख ले तो शम) से ज़मीन मे गड़ जाये । और इसके बरअ;स हदीसे रसूल स ला लाह( अलैिह वस लम लोग> तक पूरी सनद के साथ पह ंची है, इसके अलावा हदीस दीन है अ लाह उस क िहफाज़त का िजIमेदार है, ;योिक अ लाह सुरह अल िहc आयत नं0 9 मे फरमाता है ‘’बेशक हमने ही इस िजe को नाि़जल िकया और हम ही इसक िहफाज़त करने वाले है’’ और हदीस भी कलामु लाह ही होती है, और अ लाह मुहXीसीने इकराम क कfो को नूर से भर दे उEहोने अपनी पूरी िजEदगी हदीस को जमा करने मे और सहीह, जईफ, और मौजू हदीसो को अलग अलग करने मे व;फ कर दी । और अब अलहIदु िgाह सहीह और जईफ, मौजू हदीसो क पहचान हो चुक है । और अ लाह उस क िहफाज़त का िजIमेदार है िकसी इमाम क िफकहा का अ लाह तआला िजIमेदार नह< है । अ$दु लाह : अ लाह तआला िफकहा का िजIमेदार ;यो नह< है ? अहमद : इसिलये के िफकहा लोग> क राय और कयास को कहते है जो गलत भी हो सकती है और सही भी । िफकहा अ लाह क वही नह< होती जो सही ही हो । िफकहा हर इमाम और िफरके क अलेहदा अलहेदा होती है । हदीसे रसुल स ला लाह अलैिह वस लम क होती है और सब के िलए एक ही होती है, िफकहा बदलती रहती है हदीस बदलती नह< । िलहाज़ा हदीस दीन है िफकहा दीन नह< इसीिलए अ लाह िफकहा का िजममेदार नह< है । अ$दु लाह : ;या यह सच है िक िफकहा-ए-हनफ इमाम साहब ने खुद नह< िलखी । अहमद : िकसी हनफ आिलम से पूछ ले । अगर कोई सािबत कर दे तो …………………. । अ$दु लाह : मान िलया िक हदीस रसुल स ला लाह अलैिह वस लम क है लेिकन हदीस को हर कोई समझ तो नह< सकता। अहमद : ;या िफकहा को हर कोई समझ लेता है ? अ$दु लाह : िफकहा तो बह त आसान है । अहमद : ;या बगैर पढ़े आ जाती है ।
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अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
नह<, पढ़ना तो पड़ता है । िफर ;या हदीस पढ़ने से नह< आती । आ तो जाती है लेिकन उस का समझना बह त मुिPकल है ;योिक हदीसो मे इि`तेलाफ बह त है हदीसो को समझना तो इमाम ही का काम है । यह सब दु Pमनाने रसुल स ला लाह अलैिह वस लम क उड़ाई ह ई बात है वरना हदीसो मे इि`तेलाफ कहा ? इि`तेलाफ तो िफकहा मे होता है जो नाम ही कौल और राय का है जो है ही इ`तेलाफ का ढेर । हदीस तो रसुल स ला लाह के फेल और कौल को कहते है िजसमे इि`तेलाफ का सवाल ही पैदा नह< होता ;योिक दीन होने क वजह से अ लाह उसका िजIमेदार है । िफकहा मे भी इ`तेलाफ है ? िफकहा मे तो इतना इि`तेलाफ होता है िक िजस क कोई हद नह< । बड़े जHरी और अहम मसाइल मे भी इि`तेलाफ है । िमसाल के तौर पर इ&तेमाल िकये ह ये पानी को ही ले ले िजस से हर व;त वा&ता पड़ता है, कोई पाक कहता है, कोई पलीद, कोई 9यादा पाक, कोई कम पलीद कोई 9यादा पलीद । यह तो आिलमो क राय का इि`तेलाफ होगा । इमाम साहब का फै सला ;या
अ$दु लाह : है ? अहमद : इमाम साहब के ही तो मु`तिलफ कौल है इमाम मुहIमद रह0 कहते है िक इमाम अबू हनीफा रह0 का कौल है िक इ&तेमाल शुदा पानी खुद पाक है, दु सरी चीज को पाक नह< कर सकता । इमाम साहब का दू सरा कौल यह है िक इ&तेमाल िकया ह आ पानी पलीद है । इमाम हसन रह0 क Lरवायत मे िनजासते गलीज़ा है और इमाम अबू युसुफ क Lरवायत मे िनजासते खलीफा (िहदाया 22) मुनयतुल मुस ली मे घोड़े क झूठे के बारे मे इमाम अबू हनीफा रह0 क चार Lरवायते है :एक Lरवायत मे निजस, एक Lरवायत मे मशकूक, एक Lरवायत मे मकHह और एक Lरवायत मे पाक । बताइए अब हनफ मुकिgद िकधर जाये िकस को सही समझे ? हनफ मौलवी हदीस से तो नफरत िदलाते है इि`तेलाफ का हaवा िदखाकर और यह नह< देखते िक हमारे घर मे ;या हो
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अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
रहा है । इन लोग> क तो यह िमसाल है ‘’बाLरश से भागा और परनाले के नीचे खड़ा हो गया’’ हदीस को तो छोड़ा इसिलए िक इसमे इ`तेलाफ है हालांिक उसम@ इ`तेलाफ नह< और फंस गये जाकर इ`तेलाफ क दलदल यािन िफकहा । आप लोग हमारी तरह िकसी एक इमाम को नह< पकड़ते ? नह<, अaवल इसिलये िक ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम के बाद िकसी को पकड़ने क जHरत नह< । दू सरे यह िक नबी स ला लाह अलैिह वस लम के बाद कोई एैसा मासूम नह< िजस से गलती न हो, अगर हम िकसी एक को पकड़ेगे और गलती मे भी उस क पैरवी करेगे तो गुमराह हो जायेगे । इमाम तो शायद अपनी इजितहादी गलती क वजह से ब`शा जाये लेिकन हम मारे जायेगे । तीसरे यह िक ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम के बाद कोई एैसा कािमल नह< िक िजस को पकड़ कर सारे काम चल जाये । हनफ बनने के बाद बनना पड़ता है – िफर कभी कादरी, कभी िचPती, कभी सोहरवदR, कभी न;शबंदी । ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम के बाद कोई एैसा नह< िक एक को पकड़ कर गुजारा हो । दर दर क ठोकरे खाना पड़ती है । चौथे यह िक एक को पकड़ने से बाक इमामो का इंकार लाि़जम आता है, एक को पकड़ने से िफरके पैदा होते है दीन के टु कड़े टु कड़े होते है । एक के चार टु कड़े एैसे ही तो हो गये । कुरआन कहता है ‘’िफरके िफरके न हो (अलHम 31-32) । जो िफरके बना लेते है वो मुशLरक हो जाते है । नबी स ला लाह अलैिह वस लम के बाद िकसी एक को पकड़ना दीन को बरबाद करने वाला खुद को मुशLरक ् बनाने जैसा है (हम अ लाह से इसक पनाह मांगते है) । आपका िफरका कब बना है ? हमारा िफरक़ा बना नह< । िफरका तो वो बनता है जो असल से कटता है और ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम के बाद िकसी एक इमाम को पकड़ कर अपना नाम उस के नाम पर रखता है िफर उस क तकलीद करता है । हम तो
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अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद :
असल है यानी अहले हदीस और उसी व;त से है जब से हदीस है । और हदीस उस व;त से है जब से रसुले करीम स ला लाह अलैिह है । हम ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम के बाद िकसी को नह< पकड़ते िक उस क तकलीद करके िफरका बने । हम िफरका नह< हम असल है जो ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम के साथ है उन क हदीस पर अमल पैरा है । आप हमारी तरह अहले सुEनत ;यो नह< ? आप अहले सुEनत कहां । आप तो हनफ है । अहले सुEनत तो हम है जो हनफ शाफई मािलक हंबली कुछ नह< िसफ) अहले सुEनत है । आप तो कहते है हम अहले हदीस है । अहले हदीस और अहले सुEनत मे कुछ फक) नह< असल अहले सुEनत अहले हदीस ही होते है । आप अहले हदीस ;यो है ? तािक हनफ अहले सुEनत और असली अहले सुEनत मे फक) हो जाय । असली अहले सुEनत वो होता है जो िसफ) सुEनते रसुल स ला लाह अलैिह वस लम का पाबEद हो, िकसी इमाम का मुकिgद न हो । वो सुEनत उसे समझता है जो सही हदीसे रसुल से सािबत हो । उस के नज़दीक हदीसे रसुल ही सुEनत का मेयार है, हदीस से ही हर मसले का हल चाहता है । इसीिलये उसे अहले हदीस कहते है । जब इ&लाम सुEनते रसुल का नाम है और सुEनते रसुल बगैर हदीसे रसुल के िमल ही नह< सकती तो अहले सुEनत बगैर अहले हदीस के हो ही नह< सकता । हनफ अहले सुEनत वो है जो शीआ के मुकाबले मे अहले सुEनत वल जमाअत होता है । ;योिक यह सुEनत और जमाअते सहाबा को मानने का दावेदार है और वो मुिEकर है लेिकन अमलन यह अहले सुEनत नह< होता बि क हनफ होता है, ;योिक इमाम अबू हनीफा क तकलीद करता है और अहले सुEनत क तारीफ मे िकसी इमाम क तकलीद करना िब कुल शािमल नह< । अहले सुEनत उसे कहते ह= जो सुEनते रसुल स ला लाह अलैिह वस लम पर चले और हनफ उसे कहते है जो िफकाहे हनफ पर चले । अब दोनो को एक सािबत करने के िलए सुEनते रसुल और िफकाहे हनफ को एक
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अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
सािबत करना जHरी है जो िक करीबन ना मुमिकन है । जब सुEनते रसुल और िफकाहे हनफ एक सािबत नह< हो सकते तो अहले सुEनत और हनफ भी एक नह< हो सकते । एक फक) यह भी है िक हनिफयत उIमितय> क बनाई ह ई है और सुEनत नबी क । अवाम तो हनिफयो खास कर बरेलिवय> को ही अहले सुEनत मानते है । अवाम को नह< देखा करते । देखा तो हककत को करते है िक हनफ बरेलवी क हककत ;या है और अहले सुEनत क ;या ? अहले सुEनत क हककत यह है िक वो सुEनते रसुल का पाबंद हो, िबदअत> के करीब न जायेगा । हनफ बरेलवी वो है जो इन का पाबंद हो जो खुद ही िबदअत है । अब िजस क ज़ात ही िबदअत हो वो अहले सुEनत कै से हो सकता है ? लेिकन बरेलवी तो अहले सुEनत होने के खुद भी बड़@ जबरद&त दावेदार है । जबरद&त नह< बि क जबरद&ती दावेदार है । अगर कोई मूंह करे बरेली को और िकबला कहे काबे को, रा&ता चले कूफे का और दावा करे मदीने का तो उसे कौन सDचा कहेगा आप का भी तो दावा ही है िक हम अहले सुEनत है । दावा ही नही बि क हककत है ;योिक हम िसफ) रसुलू लाह स ला लाह( अलैिह वस लम क पैरवी करते है और उन को ही अपना इमाम व हादी और पीर-व-मुिश)द समझते है । उन के िसवा िकसी क तरफ मंसूब नह< होते हम भी अहले सुEनत न होते अगर आप क तरह िकसी इमाम के मुकिgद होते और उस के नाम पर अपनी जमाअत का नाम रखते । पीर अ$दु ल कािदर जीलानी रहमतु लाह लाह अलैह क नज़र मे अहले हदीस अब आप शाह अ$दु ल कािदर िजलानी रह0 का बयाने हक िनशान भी सुने जो हमारे हक मे जबरद&त शहादत है । वो अपनी िकताब गुिनयातु\तालेबीन (पेज 294) पर फरमाते है :- ‘’िबदअितय> क बह त सी अलामते है िजन से वो पहचाने जाते है, बड़ी अलामत उन क यह है िक वो
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अहले हदीस को बुरा भला और स`त सु&त कहते है और यह सब उस अि&बयत (तंग नज़री) और बुNज (ईmया)) क वजह से है जो उन को असल अहले सुEनत से होता है । अहले सुEनत का िसफ) एक ही नाम है और वो अहले हदीस है ।‘’ शाह अ$दु ल कािदर िजलानी रह0 के इस बयान से वाजेह हो गया िक जो अहले हदीस को बुरा भला कहते है वो िबदअती है और जो िबदअती हो वो अहले सुEनत नह< हो सकते । नतीजा यह िनकलता है िक :1) अहले हदीस को बुरा भला कहने वाले अहले सुEनत नह< हो सकते । 2) जो अहले हदीस के उ टे सीधे नाम रखते है (कभी वहाबी कहते है कभी गैर मुकिgद) वो सब िबदअती है और िबदअती अहले सुEनत नह< हो सकते । 3) अहले सुEनत िसफ) अहले हदीस है बाक सब जबरद&ती के दावेदार है । 4) जब शाह िजलानी रह0 िनजात पाने वाली जमाअत को अहले सुEनत करार देते है और वज़ाहत फरमाते है िक अहले सुEनत िसफ) अहले हदीस होते है तो सािबत ह आ िक वो खुद भी अहले हदीस थे । 5) जब शाह िजलानी रह0 अहले हदीस थे और थे भी पीरे कािमल, मुस लम इEदलकुल तो मालूम ह आ है िक अहले हदीसो मे बड़े बड़@ वली गुज़रे है । 6) जािहल आिलमो का यह कहना िब कुल गलत है िक अहले हदीसो मे कोई वली नह< ह आ । 7) जो अहले हदीस नह< था वो वली भी नही था (चाहे जािहलो ने उसे वली मशह( र कर रखा हो) 8) िनजात के िलए और वली के िलए भी अहले हदीस होना जHरी है । जो अहले हदीस न हो वली बनना तो दरिकनार उस क िनजात का मसला भी खतरे मे है । अ$दु लाह : यह बाते बता कर तो आपने मुझे डरा िदया । अहमद : आप खुश िक&मत है जो डर गये वरना िकतने लोग है िजन को अपनी िनजात क िफe नह< । िसफ) िफरकापर&ती म@ बदम&त है जो उस क िहमायत को ही दीन क िखदमत समझते है । सोचने क बात यह है िक पहले हक को पहचाने िफर उस पर प;का हो जाये । अ$दु लाह : हक का पता कै से लगे ? हर एक ही अपने आपको हक़ पर समझता है ।
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अहमद :
हक तो नबी स ला लाह अलैिह वस लम क सुEनत को कहते है और उसी पर चलना राहे िनजात है । अ$दु लाह : कहता तो हर एक यही है िक म= हक पर ह( ं यह पता कै से लगे िक कौन हक पर है ? अहमद : जो दीन मे िमलावट न करे वो हक पर है । इस उसूल से आप हर एक को जांच सकते है दु िनया मे हर िफरके ने नबी के बाद अपने आपको िकसी न िकसी क तरफ मंसूब कर रखा है और यह उस के िमलावटी होने क दलील है । अहले हदीस ही एक एैसी जमाअत है जो िकसी तरफ मंसूब नह< होते िसफ) नबी स ला लाह अलैिह वस लम क सुEनत पर अमल करते है जो हदीस से सािबत हो । अ$दु लाह : सुEनत का ;या मतलब है ? अहमद : जो रा&ता रसुले करीम स ला लाह अलैिह वस लम ने उIमत के िलए मुकर)र िकया हो उसे सुEनत कहते ह= और उस पर चलने वाले को अहले सुEनत । अ$दु लाह : सुEनते रसुल स ला लाह अलैिह वस लम का पता कै से और कहां से लगता है ? अहमद : हदीस पढ़ने और हदीस के आिलमो से पूछने से । अ$दु लाह : हदीस के सब ही आिलम होगे । अहमद : हदीस के आिलम असल मे तो अहले हदीस ही होते है । हदीस व सुEनत के बारे म@ कुछ मालुम करना हो तो अहले हदीस आिलम> से पूछे । िफकह के बारे मे कोई बात जानना हो तो हनफ आिलमो से दया)*त कर@ । अ$दु लाह : हदीसे कौन-कौन सी मोतबर है ? अहमद : हदीस क िकताबो के कई दजo है । कुछ आला दजo क कुछ दरिमयाना दजo क, कुछ कम दजo क और कुछ बेकार । आला दजo क तीन िकताबे है 1) सहीह बुखारी 2) सहीह मुि&लम 3) मुअpा इमाम मािलक । दरिमयाना दजo मे ितिम)जी, अबू दाऊद, नसई, इ$ने माजा और मुसनद अहमद वगैरह । तीसरे दजo मे \हावी, ितबरानी, और बैहक । तीसरे दजo क िकताबो मे चूंिक हर तरह क हदीसे है इसिलए आमाल का दारोमदार और मोहिXसीन और िफकहा का
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अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
एतबार िसफ) पहले और दू सरे दजo क िकताब> पर है । चौथे और पांचवे दजo क िकताबे बह त हद तक एतबार के लायक नह< है । िकताबो के यह तकसीम िकसने क है ? पहले उलेमा ने । शाह वली उ लाह साहब देहलवी क ह 9जातु लाह पढ़ कर देखे आप को इंशाअ लाह सब कुछ मालुम हो जायेगा । इस तकसीम को सब िफरके मानते है । अहले सुEनत कहलाने वाले सब िफरके मानते है । ;या दजा) अaवल क िकताब> क तमाम हदीसे सही है ? हां करीब करीब सब सहीह है । अ लाह ने कुरआन मजीद मे हमारा नाम मुि&लम रखा है िफर आप अहले हदीस ;यो कहलाते है ? मुि&लम तो हमारा जाती नाम है जैसा िक बDचे क पैदाईश पर उस का रखा जाता है लेिकन अहले हदीस हमारा िसफाती नाम है जो हमारे तरीकेकार को ज़ािहर करता है । आदमी के कई नाम उस के पेशे, मशािगल और उस के औसाफ के पेशेनज़र पड़ जाते है । न यह शरअन मना है उरफन । रसुलू लाह स ला लाह अलैिह वस लम के मुहIमद और अहमद जाती नाम थे । हािशर, आिकब, मु;फ वगैरह बह त से िसफाती नाम है जो आप स ला लाह अलैिह वस लम को मुमताज़ करते है । कुरआन ने ईसाईयो को अहले इंजील कहा है (अलमायदा 47) हदीस मे है ‘ऐ अहले कुरआन िवr पढ़ा करो ।’’ कुछ भी हो ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम के ज़माने मे तो यह मुसलमानो का नाम नह< था । ;यो नह< था नाम तो था अगरचे मशह( र नह< था, ;योिक सब ही दीन को कुरआन से यह िफर मुहIमद स ला लाह अलैिह वस लम के फरमान से ही लेते थे, मगर जब शीआ का चचा) ह आ तो अहले सुEनत वल जमाअत का नाम मशह( र ह आ , जब इमाम> क अंधी तकलीद ने जोर पकड़ा तो अहले हदीस के नाम को फरोग ह आ । सहाबा िकराम अपने आप को इन नामो से पुकारते थे ।
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अ$दु लाह : ? अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह :
हज़रत अबू सईद खुदरी रिदअ लाह तआला अनह( सहाबी रसुल स लाल्लाह अलैिह वस लम जब हदीस के नवजवान सीखने वालो को देखते तो कहते – नवजवानो तुIहे नबी करीम स ला लाह अलैिह वस लम क वसीयत मुबारक हो मरहबा नबी करीम स ला लाह अलैिह वस लम ने हमे ह ;म िदया है िक अपने इ मी मजिलसो को तुIहारे िलए फै ला दे और तुIहे हदीसे समझाये हां हां तुम हमारे खलीफे हो और हमारे बाद तुम ही अहले हदीस हो । देखा आपने । अगर िसफाती नाम रखना िबदअत नह< तो िफर हनफ कहलाने मे ;या हज) है हनफ कहलाने मे बह त हज) है । एक हनफ कहलायेगा तो दूसरा शाफई, इस तरह से इ&लाम मे िफरके पैदा होगे । जब हमारा असली नाम अ लाह क तरफ से मुि&लम है तो िसफाती नाम एैसा होना चािहये जो असली से मेल रखता हो । हनिफयत से इ&लाम क तारीफ नह< होती ;य> िक हनिफयत इ&लाम क कोई िक&म नह< है । नाम वो रखना चािहये जो इ&लाम के मुतािबक हो । अहले हदीस नाम इसीिलए 9यादा जामे है ;योिक अहले हदीस से मुराद वो जमाअत है जो कुरआन व हदीस पर अमल करे । हमने सुना है िक आप तकलीद को भी िशक) कहते है, हालांिक तकलीद का िशक) से ;या तआ लुक है ? तआ लुक ;यो नह<, तकलीद और िशक) का तो चोली दामन का साथ है । िशक) तकलीद क सरजमीन पर ही उगता है । हर मुशLरक पहले मुकिgद होता है िफर मुशLरक । अगर तकलीद न हो तो िशक) कभी पैदा न हो मुकिgद अपने इमाम को इतना बड़ा समझता है िक खुद को जानवर मान लेता है िफर आिह&ता आिह&ता उसे अ लाह का शरीक ठहरा लेता है । ये तो आपने गलत कहा अ लाह का शरीक कै से ? इस तरह िक उस क बात को खुदाई ह ;म समझता है । यह िशक) और शरीक ठहराना कै से ह आ ?
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अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह :
अ लाह का हक अपने इमाम को जो िदया कुरआन मे है ‘’उEहोने एैसे शरीक बना रखे है जो उन के िलए दीन मे एैसे मसले बनाते है िजन क मंजूरी अ लाह ने नह< दी’’ इस आयत मे िजस के कौल व कयास को दीन समझा जाय उस को अ लाह ने अपना शरीक करार िदया है । अ लाह के ह ;म के िबना तो नबी क बात दीन नह< हो सकती तो िफर आिलमो क राय और कयास को दीन कै से बनाया जाय । लेिकन मुकिgद अपने इमाम क बात को दीन समझता है । अ लाह तआला फरमाता है ‘’यह( द व नसारा जब िबगड़े तो उEहोने अपने उलेगा व मशाइख को रब बना िलया ‘’ (सुरह तौबा-31) । अदी िबन हाितमताई रिदअ लाह अनह( जब मुसलमान ह ये तो उEहोने पूछा या रसुलू लाह स ला लाह( अलैिह वस लम हमने तो अपने उलेमा और मशाइख को रब नह< बनाया था आप स ला लाह( अलैिह वस लम ने फरमाया ;या तुम उन के हलाल कदा) को हलाल और उन के हराम कदा) को हराम नह< समझते थे यानी क उन क राय को दीन नह< बना लेते थे ? उEहोने कहा यह बात तो थी, आप स ला लाह अलैिह वस लम ने फरमाया यही तो रब बनाना है (ितिम)जी) । हम तो अपने इमाम को रब नही बनाते हम तो िसफ) इमाम मानते है । रब तो वो ईसाई और यह( दी भी नह< कहते थे लेिकन दजा) उन को रब का देते थे इसीिलए अ लाह ने इसे रब बनाना करार िदया है । नाम बदल देने से हककत नह< बदल जाती । आिखर आप इमाम ;यो बनाते है ? दीन के मसले लेने के िलए । यही काम तो यह( द व नसारा िकया करते थे जैसा िक हज़रत अदी िबन हाितमताई रिद0 ने मुसलमान होकर त&लीम िकया । ;या एैसी इमामत क इ&लाम मे गुजांईश है ? ;या कुरआन मजीद मे नह< ‘’व ज अलना ह म अइIमतैयहदु ना बेअमरेना’’ और हमने उEहे इमाम बनाया जो हमारे ह ;म से लोग> को राह िदखाते थे (सुरह अल अंिबया -73)
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अहमद :
यह तो निबयो के बारे मे है नबी तो इमाम हो सकता है बि क इमाम होता है ;योिक उसे अ लाह इमाम बनाता है नबी के िसवा कोई इमाम नह< हो सकता । अ$दु लाह : आप कहते है िक नबी के िसवा इमाम नह< हो सकता हालांिक इ&लाम मे बड़े बड़@ अइIमा-ए-दीन गुजरे है । अहमद : अइIमा-ए-दीन से मुराद यह है िक वो दीनी ऊलूम के बड़े आिलम थे न िक कािबल इताअत । इस िक&म क इमामत का तसaवुर इ&लाम मे िब कुल नह< है । सब से पहले यह अकदा शीयाओ ने घड़ा, अहले सुEनत ने यह अकदा उन से िलया । िशया ने यह अकदा अकदा ए Lरसालत को कमजोर करने के िलए घड़ा था, उनके यहां पैगIबर और इमाम म@ कोई फक) नह< । मुकिgद चाहे सुEनी हो या शीआ इमामत का तसaवुर करीबन एक ही है । अ$दु लाह : शीआ तो अपने इमाम को मासूम कहते है हम अपने इमाम को मासूम तो नह< कहते । अहमद : ज़बान से बेशक न कहे लेिकन समझते मासूम ही है, जब ही उन के नाम पर मज़हब बना कर हनफ कहलाते है इसीिलए हम कहते है िक इ&लाम मे िसवाये पैगIबर के कोई इमाम नह< हो सकता । अ$दु लाह : इमाम तो हमने इस िलए बनाया है िक कयामत के रोज बुलाया ही इमामो के नाम पर जायेगा जैसा िक कलाम पाक क आयत ‘’िजस िदन हम सब लोग> को उनके इमामो के साथ बुलायेगे’’ (सुरह बनी इsराईल-71) । अहमद : इस आयत मे इमाम से मुराद नामा ए आमाल है आप के बनाये ह ये इमाम नह< इसी के आगे वजाहत मौजूद है हम तमाम लोग> को उन के नामा ए आमाल के साथ बुलायेगे िफर िजस के दाये हाथ मे नामा ए आमाल दे िदया गया वो उस को पढ़ेगा और खुश होगा । जु म िकसी पर न होगा – लेिकन इमाम का मतलब इमाम ही िलया जाय तो इमाम वो है िजन को अ लाह ने इमाम बनाया है यानी अंिबया अलैिह&सलाम , कयामत के रोज उIमतो को उन के अंिबया के नाम पर पुकारा जायेगा । िफर खुश िक&मत होगे वो लोग िजEहोने अपने इमाम बना कर उनक तकलीद नही क बि क निबयो क पैरवी क, वो अपने
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निबयो के साथ जEनत मे चले जायेगे अहले हदीस के िलए यह बह त बड़ा शफ) है िक उन के इमाम िसफ) नबी ए अकरम स ला लाह अलैिह वस लम है, वो उन के साथ जEनत मे चले जायेगे और गैर नबी क बात को ह 9जत समझने वाले और गैर नबी क पैरवी करने और गैर नबी को अपना इमाम बनाने वाले खड़े रह जायेगे । ;योिक आयत के शुH मे ही वजाहत है िक हम सभी लोग> को बुलायेगे इसमे मुसलमान, यह( दी नसारा, सब शािमल है ;योिक अ लाह ने सब क तरफ नबी भेजे है, अगर इससे मुराद िसफ) इमाम होते तो अ लाह फरमाता िक हम सभी मुसलमानो को उनके इमामो के साथ बुलायेगे । और आपके इमाम अबू हनीफा रह0 तो है नह< ;योिक उEहोने तो कभी नह< कहा िक मै तुIहारा इमाम ह( ं मेरी तकलीद करना । अ$दु लाह : हम जो इनको मानते है और इमाम समझते है । अहमद : आप के समझने और कहने से ;या होता है ? जब तक इमाम इिtदा क िनयत न करे वो इमाम कै से बन जायेगा ? आप तो यह बताये िक देवबEदी और बरेलवी दोनो ही अबू हनीफा रह0 को इमाम मानते है । अब देवबंदी और बरेलवी दोनो तो जEनत मे जा नह< सकते इसिलए िक वो एक दू सरे को कािफर कहते है तो िफर इमाम अबू हनीफा रह0 िकस के साथ होगे ;योिक वो तो दोनो के इमाम है । इसी तरह अगर शीआ अपने इमामो के साथ जEनत मे चले गये तो िफर सुEनी अपने इमामो के साथ कहां जायेगे और सुEनी अगर जEनत मे चले गये तो शीआ कहां जायेगे जEनत मे तो दोनो जा नह< सकते अब आप ही बताये आप के उसूल पर शीआ इमाम दोज़ख मे जायेगे या सुEनी हांलांिक इमाम दोनो िफरको के नेक और &वालेह थे और वो इंशाअ लाह जHर जEनत मे जायेगे अ$दु लाह : बात तो आप क ठीक है यह इमामो का मसला है तो यककनन बह त बड़ा च;कर । अहमद : एैसा ही च;कर वो है जो मुकिgदीन कहते है िक हम अपने इमाम> और औिलया के साथ होगे ;योिक हमे उन से मुह$बत है और अहले हदीस चूंिक िकसी को मानते नह< इसिलए उनको िकसी का भी साथ नसीब नह< होगा ।
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हम तो एक बात जानते है हज़रत ईसा अलैिह&सलाम कभी उस से मुह$बत नह< रखेगे जो ह जूर स ला लाह( अलैिह वस लम के आ जाने के बाद उन क इिpबा न करे । इसी तरह हज़रत ह सैन रिज0 शाह िजलानी रह0 और दू सरे इमाम व औिलया कभी िकसी ऐसे से मुह$बत नह< रख सकते जो ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम क पैरवी न करे बि क िशक) व िबदअत करे और अपनी तरफ से इमाम बना कर उन क तकलीद करे । वो सब जानते है िक इताअत िसफ) अ लाह के ह ;म क है इस िलए वह अपनी पैरवी िकस तरह करा सकते है ? कुरआन मजीद मे है ‘’उसके पीछे चलो जो अ लाह ने तुIहारी तरफ उतारा है उस का ह ;म मानो, उस का ह ;म छोड़ कर औिलया के पीछे न जाओ 1’’ औिलया से मुराद यहां वो हि&तयां है िजन को लोग खुद तजवीज करते है और अपने िलए ज़Lरया-ए-िनजात समझ कर सहारा बनाते ह= हालांिक िसवाये पैगIबर क पैरवी के और कोइ) िनजात का जLरया नह< है । दु िनया मे िजतने िशक) व िबदअत करने वाले ह= हककत मे उन का पीर, उनका इमाम और उनक वली िसफ) शैतान है वो नाम अ लाह वालो और इमामो का लेते है लेिकन पैरवी शैतान क करते है । कुरआन शैतान क पैरवी से मना करता है । कुरआन कहता है ‘’शैतान क इबादत न करो (यासीन -60) ‘’शैतान क पैरवी न करो (अल बकरा -168) कयामत के रोज़ जब अ लाह तआला दोज़िखयो को दोज़ख मे डालने के िलए अलेहदा कर लेगा तो फरमायेगा ‘’ ऐ इंसानो ;या मैने तुIहे नह< बताया था िक शैतान क इबादत न करना वो तुIहारा बड़ा दु Pमन है, इबादत मेरी करना यही सीधा रा&ता है, िकन तुमने परवाह न क, उसने तुम मे से िकतनी भारी तादाद मे गुमराह कर िलया है, ;या तुम बेअ;ल थे जो तुIहे पता नही लगा’’ (सुरह यासीन -60,61) यह होता यूं है िक जब शैतान िकसी को नबी क पैरवी मे जरा नम) देखता है तो फौरन उस को अपने दामन मे लेने क कोिशश करता है, अपने बड़े बड़े इंसानी चेलो के जLरये नबी क जगह पैरवी के िलए उन बुजुग0 के नाम तजवीज़ करता है िजन क दु िनया मे मकबूिलयत व शोहरत होती है, उन के नाम पर िशक) व िबदअत के बड़े बड़े िसलिसले जारी करता है (तसaवुर उन बुजुग0 का पेश
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अ$दु लाह :
करता है और पूजा पाठ अपनी कराता है) अनपढ़ जािहल उन बुजुग0 के नामो क वजह से उसके धोखे मे आ जाते है और उस क पैरवी करने लग जाते है और नह< समझते िक हम िकस उ टी राह पर लग गये है बि क उस उ टी राह को ही राहे रा&त समझते हहै । अ लाह फरमाता है ‘’शैतान के गुमराह िकये ह ए लोग काम गलत करते है लेिकन िजहालत क वजह से यह समझते है िक हम बह त अDछा कर रहे है’’(अल कहफ-104) यह िकतना बड़ा धोखा है और अ लाह ने उस के धोखे से बार बार खबरदार िकया है ‘’होिशयार रहना, धोखेबाज तुम को धोखा देकर खुदा से दू र न कर दे, यह धोखेबाज़ शैतान तुIहारा दु Pमन है इसे दु Pमन ही समझना’’ शैतान इमाम> और औिलयाओं का नाम लेकर एैसा ज़ेहन तैयार करता है िक वो उनक इबादत शुH कर दत@ है । रह गये असली बुजुग) िजन के नाम लेकर शैतान अपनी इबादत करवाता है उन को पता तक नह< होता िक उन के मानने वाले कौन है और वो ;या करते है । वो बुजुग) िब कुल बेखबर होते है । कुरआन मजीद मे है ‘’िजन को तुम पुकारते हो, िजन क तुम इबादते करते हो वो तुIहारी इन हरकत> से िब कुल बेखबर है कयामत के िदन वो तुIहारे मुखािलफ होगे (सुरे अल अहकाफ 5)(सुरे युनुस-28)(सुरे मरयम-82) ईसा अलैिह&सलाम से अ लाह पूछेगा ‘’ऐ ईसा ईसाई जो तेरी और तेरी मां क इबादत करते है तो ;या तुने उन से कहा था िक एैसा करना’’(सुरह अल माइदा -116) वो साफ इंकार कर द@गे । ऐसे इमाम अबू हनीफा रह0 और दू सरे औिलया भी साफ इंकार कर देगे िक हमने उन से नह< कहा था िक हमारी तकलीद करना, यह सब कुछ अपनी मजR से करते रहे है । इसिलये तकलीद का िसलिसला सरासर गुमराही है उस से िब कुल बचना चािहए । अब आप खुद देखे िक आप को सुEनते रसुल चािहये या सुEनते इमाम ? अगर सुEनते रसुल चािहये तो वो हदीसे रसुल स ला लाह अलैिह वस लम से िमलेगी और सुEनते इमाम चािहये तो वो िफकहा ए हनफ से िमलेगी । सुEनत रसूल क होती है न िक इमाम क ।
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अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद : अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह : अहमद :
अ$दु लाह :
अगर इमाम क सुEनत नह< है तो आप हनफ ;यो बने ? आिखर हनफ िकसे कहते है हनफ वो होता है जो िक िफकहा ए हनफ पर चले । िफकहा ए हनफ िकसे कहते है ? इमाम अबू हनीफा रह0 के मसलक को । मसलक से ;या मुराद है ? मसलक तरीके को कहते है । सुEनत भी तो तरीके को ही कहते है । जब हम कहते है िक यह ह जुर स ला लाह अलैिह वस लम क सुEनत है तो इसका यह मतलब होता है िक यह उन का तरीका है इस तरीके से नबी करीम स ला लाह( अलैिह वस लम ने यह काम िकया था करने को कहा था । तो िजस तरीके पर आप चलते ह= इस तरह आप उनक सुEनत पर अमल करते है किहए यह ठीक है या नह< ? यह िब कुल ठीक है यह बात मेरी समझ मे आ गई । इसीिलए तो हम कहते है िक हनफ इमाम अबू हनीफा रह0 के तरीके पर चलता है और अहले हदीस रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम के तरीके पर । लेिकन इमाम अबू हनीफा रह0 को तरीका कोई अलेहदा तो नह< उनका तरीका भी तो वही है जो रसुल स ला लाह( अलैिह वस लम को है । तरीका वह< हो या मु`तिलफ हनफ के पेशे नजर तो तरीका ए हनफ ही होता है, वो तो हनफ तरीके पर ही चलता है, जो उस के मज़हब मे है चाहे वह सुEनते रसुल स ला लाह अलैिह वस लम न हो वो उस पर जान देता है । म= यह मानता ह( ं हम@ िब कुल यह `याल नह< होता िक हमारा यह मसला सुEनते रसुल के मुतािबक है या मुखािलफ हम@ तो यह याद होता है िक हम हनफ है और हमे अपने िफकहा पर चलना है, हम तो अपने इमाम के मज़हब पर चल@गे । अगर हमारे इमाम ने िकसी हदीस पर अमल नह< िकया तो हम ;यो करे ।
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अहमद :
ठीक है जब वो सुEनते रसुल स ला लाह अलैिह वस लम पर चलता नह<, और अपने इ)माम क सुEनत पर चलता है तो उसे ज़ेब नह< देता िक वो ‘’मुहIमद रसुलु लाह’’ साथ पढ़े और अहले सुEनत होने का दावा करे । िजस पाबEदी से आज एक हनफ अपने इमाम क तकलीद करता है अगर वो उसी पाबEदी के साथ इिpबा-ए-रसुल करे तो उस क िनजात हो जायेगा । आप जो इमाम अबू हनीफा रह0 क तकलीद करते है अगर आप मूसा अलैिह&सलाम क तकलीद भी कर@ तो भी िनजात नह< । ह जूर स ला लाह अलैिह वस लम का फरमान है ‘’अगर आज मुसा अलैिह&सलाम तुIहारे वा&ते जािहर हो जाये और तुम उनके पीछे लग जाओ तो गुमराह हो जाओ, और अगर आज मुसा अलैिह&सलाम होते तो उनको भी िसवाए मेरी इताअत के और कोई चारा न होता’’ । अब आप खुद सोच ले कहां मूसा अलैिह&सलाम और कहां इमाम अबू हनीफा रह0 जब नबी स ला लाह अलैिह वस लम क तशरीफ आवारी के बाद मुसा अलैिह&सलाम क पैरवी मे िनजात नह< तो इमाम अबू हनीफा रह0 क तकलीद म@ कै से िनजात हो सकती है । बि क हम तो खुद इमाम अबू हनीफा रह0 के कौल पर अमल करते है िक आप का फरमान है ‘’मेरी बात पर फतवा या अमल तब तक न करो जब तक तुIहे ये ना पता हो िक मैने कहां से कही’’ यािन बगैर दलील अमल मत करो । ‘’और जब मेरी बात हदीसे रसुल स ला लाह अलैिह वस लम से टकरा जाये तो उसे दीवार पर मार दो’’ और दीन वही से लो जहां से हमने िलया यािन कुरआन व सुEनत से, जब हदीसे सहीह िमल जाये वही मेरा मज़हब है’’ ये जुमले तो खुद बता रहे है िक इमाम साहब खुद अहले हदीस थे हम तो आप को रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम क तरफ दावत दे रहे है िजन का आप कलमा पढ़ते है िजन क पैरवी मे ही िनजात है और इस से बाहर िनजात का कोई तसaवुर नह< । सोच ले मामला िनजात का है अगर इस हनिफयत पर आप का खा\मा हो गया तो मामला बड़ा खतरनाक है ।
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;योिक योिक कुरआन फरमाता है :1) 2) 3) 4)
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और अ लाह और उसके रसुल क इतआत करो, तािक तुम पर रहम िकया जाय (आले इमरान-132) और जब उनको कोई कहे िक अ लाह और उसके रसुल के ह ;म क तरफ आओ, तु मुनािफको को देखता है सामने आने से Hकते है (सुरह िनसा -61) तेरे रब क कसम हिग)ज ये लोग ईमानदार न होगे जब तक आपस के इ`तेलाफ मे तुझे ही इंसाफ करने वाला न बना ले (सुरह िनसा-65) और जब कोई उनसे कहे िक अ लाह के ह ;म और रसुल के रा&ते पर आओ तो कहते है िक िजस राह पर हमने बाप-दादाओं को पाया वही हम को काफ है । अगचo उनके बाप-दादा न कुछ जानते हो और न सीधी राह पाये हो (सुरह बकरा170)(सुरह माइदा-104) और कहो यही मेरा सीधा रा&ता है बस तुम उसी क ताबेदारी करो, और दुसरे रा&तो क ताबेदारी न करो वरना तुम को अ लाह क राह से िततर-िबतर कर देगे । इसी का अ लाह ने ह ;म िदया तािक तुम परेहजगार हो । (सुरह अनआम -152) और जो कुछ तुIहे रसुल दे और िजस चीज़ से मना करे उससे Hक जाओ (अल हu7) ऐ लोग> जो ईमान लाये हो, अ लाह क इताअत करो व उसके रसुल क इताअत करो और (उनक मुखालेफत करके) अपने आमाल बरबाद मत करो (मुहIमद -33) ऐ रसुल कह दीिजये ‘’अगर तुम अ लाह से मुह$बत रखते हो तो मेरी ताबेदारी करो खुद अ लाह तआला तुमसे मुह$बत करेगा और तुIहारे गुनाह माफ फरमा देगा (आले इमरान -31) सुनो जो लोग ह ;मे रसुल क मुखालेफत करते है उEहे डरते रहना चािहये िक कही उन पर कोई जबरद&त आफत या दद)नाक अज़ाब न आ पड़े (सुरह नूर -63)
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िजसने रसुल क इताअत क तो उसने अ लाह क इताअत क, और िजसने मूंह मोड़ा तो हमने तुIहे एैसे लोग> पर कोई रखवाला बनाकर नही भेजा (सुरह िनसा-80) वा आखHदवािन वलहIदु िgाहे रि$बल आलेमीन इ&लािमक दावाअ सेEटर, रायपुर, छ\तसीगढ़