हदीस एक पहचान इस छोटी सी िकताब को िलखने क जरत इसिलये महसूस हई िक जब हमने देखा िक आम मुसलमान को अपने रसुल सलला लाह अलैिह वस लम के फरमान िजसे हम हदीस कहते है िक बारे मे बहत अिधक मालुमात नही है इससे वो बेचारे उन मु लाओ के हाथो के कठपुतली बने हए है जो उनको गुमराही के अंधेरो मे धके ल कर उ-हे इ म के करीब भी नह/ जाने देते और अपने पीरो, आिलमो, दरवेशो क िकताबे िजसमे िसफ3 बकवास िलखी होती है उसका दस3 देते रहते है और उसी बकवास को वो बेचारे अपने िलए ह4जत समझते है । जबिक दुसरी तरफ रसुले अरबी स ला लाह7 अलैिह वस लम के वो फरमाने आलीशान मौजूद है िजसे अगर िकसी ने समझ िलया तो उसक िज-दगी संवर जाये, मगर वो ताअ9सुब पसंद मु ला उन गरीब मुसलमानो को आपके फरमान के करीब नह/ जाने देते और ना ही अ लाह के कलाम के करीब जाने देते है यह कहकर क यह आपक समझ मे आने वाली चीज़े नह/ है । जबिक ये नाि़जल ही आम आदमी के िलए हए है । इससे वो हर उस चीज़ को हदीस समझ लेते है जो आप स ला लाह7 अलैिह वस लम क तरफ मंसूब क गई हो, और इसमे वो सहीह, मुतवाितर, जईफ, मौजू, मुस3ल, शाज, मु-कर, जैसी हदीसो मे इ<तेयाज़ नह/ कर पाते और एक बहत बड़ा तबका जईफ हदीसो पर अमल पैरा होकर जह-नम क आग अपने वा9ते जमा कर रहा है । >योिक आप स ला लाह अलैिह वस लम ने जईफ और मौजू हदीसो के बारे मे बहत स?त तंबीह फरमाई :-
‘मुझ पर झूठ ना बांधो >योिक योिक जो मुझ पर झूठ बांधता है वो आग मे दािखल होगा ।‘ ।‘ (बुखारी िकताबुल इ म 106, मुि9लम मुकदमा 1, ितिम3जी िकताबुल इ म 2660, इHने माज़ा 31, ) हदीस के इ म को आम आदमी तक पहंचाने क यह एक छोटी सी कोिशश इ9लािमक दावाअ से-टर, रायपुर छKतीसगढ़ क तरफ से है अ लाह इसे कु बुल फरमाये और हमारी िनजात का ज़Mरया बनाये आमीन ।
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हदीस क तारीफ
लुगती ऐतबार से लOज़ हदीस का मायना है ‘िकसी चीज का नया और जदीद होना’ इस क जमा िखलाफे कयास ‘अहादीस’ आती है, जबिक सतही तौर पर हदीस क तारीफ ये है :‘हर वह कौल, फे ल और तकरीर या िसफत जो नबी करीम स ला लाह7 अलैिह वस लम क तरफ मंसूब हो इसे हदीस कहते है ।‘ (तकरीर से मुराद है िक रसुल अ लाह स ला लाह अलैिह वस लम क मौजूदगी मे कोई काम हआ हो और आप स ला लाह अलैिह वस लम ने इस पर खामोशी इ?तेयार क हो इस िक9म क हदीस को तकरीरी हदीस कहते है)
हदीस क िकमे कु बुल करने और रQ करने के लेहाज़ से उलमाओ ने हदीस क दो िक9मे क है :(1) मकबूल
(2) मदू3द
हदीसे मकबूल सहीह हदीस को मकबूल कहते है ज<ह7र के नज़दीक हदीसे मकबूल पर अमल वािजब है
हदीसे मदू द जईफ हदीस को मदू3द कहा जाता है
मकबूल हदीस क िकमे 1
सहीह
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हसन
सहीह हदीस क तारीफ रािवयो के कसरत से Mरवायत करने से हदीस हम तक पहंचती है मोहQसीन ने सहीह हदीस क तारीफ यूं क है जो हदीस आिदल रावी ने दुसरे आिदल रावी से Mरवायत क हो और ये कड़ी रसुले
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अकरम स ला लाह7 अलैिह वस लम तक पहंच जाये िजस हदीस मे ये नीचे िलखी बाते पाई जाये वो हदीसे सहीह होगी । (1) पहली बात ये है िक सहीह हदीस मुसनद होती है जो अपने पहले रावी से लेकर आिखरी रावी तक पहंचती है । इसक कोई कड़ी टू टी हई ना हो, मुसनद को मौसूल और मुतसल भी कहते है बाज़ अवकात मुहQसीन िकराम मुसनद व मुतसल मे फक3 भी करते है वो फक3 ये है िक मुसनद लाज़मन हदीस मफू3 ह होती है जो ज़ात नबवी तक पहंच कर खKम होती है, बर िखलाफ मुतसल वो हदीस है िजस क तमाम कि़डया िमली हई हो यािन हर रावी ने अपने ऊपर वाले रावी से सुना हो ?वाह वो हदीस मफ3ु ह हो या मौकू फ (िसफ3 सहाबी तक पहंची हो) । (2) दुसरी बात ये हो तो उसके सभी रावी आिदल, तकवा पर9त, बा मुरTवत, हो और फािसक, िबदअती, िशक3 करने वाला न हो । (3) तीसरी बात ये है िक उसका हािफज़ा बहत अUछा हो िजसके दुसरे लोग भी गवाह हो इसमे दो िक9मे है एक तो जब चाहे िबना तकलीफ बयान कर दे (िबना एक अ फाज के हेर-फे र के ) या िफर िलख लेता हो । (4) चौथी बात ये है िक हदीस शाज़ नह/ होना चािहये शाज़ से मुराद वो Mरवायत िजसमे िसका रावी अपने से 4यादा िसका रावी क मुखालेफत करे । (5) पांचवी बात ये है िक वह हदीस मलूल नह/ होना चािहये मतलब रावी ने वहम क वजह से कोइ3 तHदीली क हो और िजसका पता कु रआन से और तमाम सनदो (रािवयो) को जमा करने से पता चल गया हो । (6) छठव/ बात ये िक उस हदीस पर मोहQसीनो ने कोई फ-नी (इ मी) कलाम नह/ िकया हो यािन उस पर िकसी मोहQदीस ने कोई कमी देखी हो और उस तरफ इशारा िकया हो । िजस हदीस मे ये बाते मौजूद हो वो हदीसे सहीह कहलाती है इसक दो िकस्मे होती है सहीह िलजातीह, सहीह िलगैरीह, सहीह िलजातीह मे ऊपर मौजूद 6 बाते होती है और िलगैरीह मे कोई कमी
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होती है उसे िकसी और िबला पर सहीह करार िदया जाता है । सहीह िलगैरीह का दजा3 हसन िलजातीह से ऊपर होता है । जब हदीसे सहीह िमल जाये तो उस पर अमल वािजब होता है, इससे िकसी इमाम, िकसी मुहQीस, िकसी फुकहा, िकसी आिलम, ने इंकार नह/ िकया है ।
हसन हदीस क तारीफ वो हदीस िजसमे सहीह हदीस के खुिबया तो मौजुद हो मगर हािफजे के ऐतबार से इसके रावी सहीह हदीस के रावी से कमतर हो एैसी हदीस हसन हदीस होती है इसमे मे दो दजW है हसन िलजातीह और हसन िलगैरीह । ये मकबूल हदीस क िक9म है ।
सहीह हदीस क िकमे मुतवाितर:- वो हदीस िजसे बयान करने वाले रािवयो क तादाद इस कदर 4यादा हो िक उन सब का झूठ पर जमा हो जाना अ>ल न माने । अहद:-
खबर वािहद क जमा है इस से मुराद एैसी हदीस है िजस के रािवयो क तादाद मुतवाितर हदीस के रािवयो से कम हो ।
मफू3 ह:-
िजस हदीस को नबी स ला लाह7 अलैिह वस लम क तरफ मंसूब िकया गया हो ?वाह इस क सनद मुतसल हो या न हो । (मुतसल वो हदीस है िजस क तमाम कि़डया िमली हई हो यािन हर रावी ने अपने ऊपर वाले रावी से सुना हो)
हदीसे मदू द हदीसे मदू3द को हदीसे जईफ भी कहा जाता है इस क बेहतरीन तारीफ ये है ‘जईफ हदीस वो है िजसमे हदीस सहीह व हसन क िसफात न पाई जाती हो’ । जईफ का मतलब उदू3 ज़बान मे कमज़ोर और बूढ़े श?स के िलये इ9तेमाल होता है मगर उसूले हदीस मे अरबी ज़बान मे हदीस के जईफ होने का मतलब उलमा के नज़दीक उसका अ लाह के रसुल स ला लाह7 अलैिह वस लम का कलाम होना यकनी न होना बि क मशकू क (िजस पर शक हो) हो । और अगर यह यकन हो जाये क ये कलाम आप स ला लाह अलैिह वस लम का है ही नह/ तो िफर वह हदीस मौजू (झूठी, गढ़ी हई) होती है ।
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हदीसे जईफ क िकमे जईफ हदीस को अहले इ म ने सहीह हदीस क मु?तिलफ शरायत पाये जाने के एतबार से मु?तिलफ िक9मो मे तकसीम िकया है िजनका िजX ये है :मोअिYक, मुस3ल, मोअZ[ल, मुनकतेए, मुदिYस, मौजू, मतक, मु-कर, मुदरज, मकलूब, मुजतरेब, मु9सहफ, शाज़, मोअिYल, अगर सनद मुतसल (यािन िजसक तमाम कि़डया िमली हो यािन हर रावी ने अपने ऊपर वाले रावी से यकनी सुना हो) न हो तो जईफ हदीस को पांच िक9मो मे तकसीम िकया गया है । (1) मोअिYक :- वो हदीस िजसक सनद(रािवयो क कड़ी) क इHतेदा (शुआत) से एक या 4यादा रावी इक\े ही सािकत (छु पे हये) हो । (2) मुसल 3 :-
वो जईफ हदीस िजस क सनद के आिखर से ताबई के बाद वाला रावी
सािकत(छु पा हआ) हो । यािन आप स ला लाह अलैिह वस लम और ताबई के बीच कोई साहबी रिज लाह न हो और ताबई िबना साहबी के वा9ते सीधे रसुलु लाह स ला लाह7 अलैिह वस लम से Mरवायत करे । (3) मोअZ[ल :- वो जईफ हदीस िजसक सनद मे से दो या 4यादा रावी एक के बाद एक या दीगर एक ही जगह से सािकत हो । (4) मुनकतेए :- वो जईफ हदीस िजसक सनद िकसी भी वजह से मुतसल न हो । (5) मुदिYस :- वो हदीस िजस मे िकसी रावी ने सनद के एैब को छु पा कर इस क तहसीन को ज़ािहर िकया हो । अगर रावी आिदल न हो तो जईफ हदीस को तीन िक9मो मे तकसीम िकया जाता है । (1) मौजू :-
वो झूठी, मनगंठत और खुद साख्ता बात िजसे रसुलुललाह ् सल्लाल्लाह
अलैिह वसल्लम क तरफ मंसूब िकया गया हो । (2) मुतरक :-
वो हदीस िजस के िकसी रावी पर झूठ क तोहमत का इ जाम हो ।
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(3) मु-कर कर :-
वो हदीस िजस के िकसी रावी मे फहश, गि तयां, इ-तेहाई, गफलत या फािसक
का ज़ािहर होना मालूम हो । यािन जईफ हदीस क वो िक9म िजस का कोई रावी फािसक, िबदअती, बहत 4यादा गि तयां करने वाला या बहत 4यादा गफलत बरतने वाला हो । अगर रावी का हािफज़ा सहीह न हो जईफ हदीस को चार िक9मो मे तकसीम िकया जाता है । (1) मुदरज :-
वो हदीस िजस क सनद का बदल दी गई हो या बगैर िकसी वजाहत के इस के
मतन मे कोई इज़ाफ बात दािखल कर दी गई हो । (2) मकलूब :-
वो हदीस िजस क सनद या मतन के एक लOज़ को दुसरे लOज़ के साथ बदल
िदया गया हो या इन मे तकदीम या तािखर कर दी गई हो । (3) मुजतरेब :- वो हदीस मु?तिलफ सनद से मरवी हो जबिक वो कु Tवत मे भी मसावी हो । (4) मु9सहफ सहफ :- वो हदीस िजस मे िसका रािवयो के बयान करदा अ फाज़ के बर अ>स एैसे अ फाज़ बयान िकये गये हो जो लOज़ी या माअनवी तौर पर मु?तिलफ हो । अगर कोई िसका रावी अपने से 4यादा िसका रावी क मुखालेफत करे तो जईफ हदीस क एक ही िक9म बनाई जाती है (1) शाज़ :-
वो जईफ हदीस िजसे कोई मकबूल रावी अपने से 4यादा अफज़ल रावी क
मुखालेफत मे बयान करे ।
जईफ हदीस क सबसे बुरी िक िकम जईफ हदीस क िक9मो मे से सबसे बुरी और कबीह िक9म ‘मौजू’ है बाज़ अहले इ म ने तो इसे एक मु9तिकल िक9म करार िदया है और इसे जईफ हदीस क िक9मो मे शुमार ही नही िकया । अहले इ म का इKतेफाक है िक जान बूझ कर मौजू Mरवायत को इस क हककत िजX िकये बगैर ही बयान कर देना हराम है >योिक एक सहीह हदीस मे रसुलू लाह स ला लाह7 अलैिह वस लम का ये फरमान मौजूद है :-
‘’िजस ‘’िजस ने जान बूझ कर मुझ पर झूठ बांधा वो अपना िठकाना दोजख बना ले ‘’ (सहीह बुखारी 107, अहमद 8784, इHने अबी शैबा 762/8, इHने हHबान 28)
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एक दुसरी हदीस मे रसुलु लाह स ला लाह7 अलैिह वस लम का ये फरमान मौजूद है :-
‘’िजस ‘’िजस ने मुझ से कोई हदीस बयान क और वो जानता भी है िक ये झूठ है तो वो खुद झूठो मे से एक है’’’’ (मुकदमा मुि9लम, ितिम3जी2662, इHने माज़ा, 41, अहमद 20242, इHने हHबान 29 तबिलसी 38/1 इHने अबी शैबा 595/8) एक और हदीस मे ये लOज़ है िक रसुलु लाह स ला लाह7 अलैिह वस लम ने फरमाया :-
‘’मु ‘’मुझ पर झूठ न बांधो >योिक योिक जो मुझ पर झूठ बांधता है वो आग मे दािखल होगा’’ होगा’’ (सहीह बुखारी 106, ितिम3जी 2660, इHने माज़ा 31, इHने यहला 613, तबिलसी 107)
जईफ हदीस को िज करने का ह म जईफ हदीस को िजX करना जायज़ नह/ अलबcा इसे िसफ3 इस सुरत मे बयान िकया जा सकता है िक इस के जईफ को भी साथ ही बयान िकया जायेगा । तािक लोगd को इ म हो जाये िक ये बात रसुलु लाह स ला लाह7 अलैिह वस लम क तरफ मंसूब तो क गई है मगर सािबत नह/ । >योिक अगर जईफ हदीस को इसका जईफ बयान िकये बगैर ही आगे नकल कर िदया गया तो यकनन एक तरफ ये रसुलुललाह स ला लाह7 अलैिह वस लम पर बोहतान होगा और दूसरी तरफ लोगd को गुमराह करने का जMरया जो यकनन जायज़ नह/ । वाज़ेह रहे िक जईफ हदीस को बयान करने वाला दो हालातो से खाली नह/ है :1
इसे हदीस के जईफ होने का इ म हो
2
इसे ये इ म न हो
अगर इसे हदीस के जईफ होने का इ म था और इस ने िफर भी इसे इस का जईफ वाजेह िकये बगैर आगे बयान कर िदया तो लाज़मन इस पर रसुलु लाह स ला लाह7 अलैिह वस लम क बयान करदा ये वाईद सािदक आयेगी:-
‘’िजस ‘’िजस ने मुझ से कोई हदीस बयान क और वो जानता भी है िक ये झूठ है तो वो खुद झूठो मे से एक है’’’’ (मुकदमा मुि9लम, ितिम3जी2662, इHने माज़ा, 41, अहमद 20242, इHने हHबान 29 तबिलसी 38/1 इHने अबी शैबा 595/8)
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और अगर इसे हदीस के जईफ होने का इ म ही नह/ था तो िफर भी वो रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम के इस फरमान क वजह से गुनाहगार जर होगा :-
‘’आदमी ‘’आदमी के झूठा होने के िलये यही काफ है िक वो जो सुने उसे आगे बयान कर दे’’’’ (मुि9लम मुकदमा 5, अबू दाऊद 4992, इHने अबी शैबा 595/8,इHने हHबान 30, हािकम 381/1) इस हदीस पर इमाम मुि9लम रह0 ने ये बाब बांधा है :‘’हर ‘’हर वो बात िजसे इंसान सुने (िबला तहकक) तहकक) उसे आगे बयान करना मना है’’’’ चुनांचे अ लाह फरमाता है :‘’ऐ मुसलमानो अगर तु<हे कोई फािसक खबर दे तो तुम उस क अUछी तरह तहकक कर िलया करो एैसा न हो िक नादानी मे िकसी कौम को अज़ा पहंचा दो िफर अपने िकये पर शिम3-दगी उठाओ’’ (सुरह तलाक-2) खुलासा कलाम ये है िक हदीस बयान करते व>त इ-तेहाई एहितयात से काम लेना चािहये जब तक तहकक के जMरये िकसी हदीस क सेहत के बारे मे कािमल यकन न हो जाये इसे आगे बयान नह/ करना चािहये हां अगर कही जईफ या मौजू Mरवायत को बयान करने क जरत पेश आ जाये तो वो साथ ही इस क हालत भी वाजेह कर देनी चािहये क ये जईफ है या मौजू । और बयान करते व>त ये न कहा जाये िक आप स ला लाह अलैिह वस लम ने इरशाद फरमाया बि क गैर पु?ता अ फाज़ मे यूं कहा जाये िक रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम से इस तरह Mरवायत िकया जाता है, या इस तरह नकल िकया जाता है या हमे आप स ला लाह अलैिह वस लम से इस तरह पहंचा है ।
जईफ हदीस पर अमल का ह म जईफ हदीस पर अमल के िसलिसले मे अहले इ म के दरि<यान इ?तेलाफ है, ज<ह7र अहले इ म क राय ये है िक फज़ाइल आमाल मे उन पर अमल मु9तहब है मगर इस के िलये तीन शतW है जैसा िक हािफज़ इHने हजर रह0 ने िलखा है :1)
इसका जईफ शदीद न हो
2)
वो हदीस िकसी मामूल और सािबत शुदा उसूल के तहत आती हो
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3)
अमल करते व>त इसका सु-नत होने का इतेकाद न रखा जाये बि क एहितयात क नीयत से अमल िकया जाये ।
जईफ हदीस पर अमल दर हक कत िबदअत क इजाद फजाइल और तगeब मे जईफ अहािदस को बयान करने और उन पर अमल को मु9तहब करार देने का नतीजा ये हआ िक िबदअत व खुराफत क इHतेदा हई । लोगो ने कम इ म खतीब से जईफ क वजाहत के बगैर जईफ अहािदस सुने और उन पर अमल शु कर िदया । आिह9ता आिह9ता ये अमल एैसा पु?ता हआ िक लोगd ने इसी को दीन समझ िलया और ये जानने क जरत ही महसूस न क िक जो अमल हम दीन समझ कर इ?तेयार िकये बैठे है इस क बुिनयाद िकताब व सु-नत है या जईफ व मनगंठत Mरवायत है । िफर आने वाली न9लो ने िजस तरह अपने अकाबरीन को उन िबदअत पर अमल करते हऐ देखा उसी तरह खुद भी उ-होने अपना िलया और सहीह अहािदस के मुकाबले मे अपने बड़ो के अमल को ही बरहक समझा । नतीजा लोगd के अकाईद व अमाल जईफ और मनगंठत हदीसो के भेट चढ़ गये ।
जईफ हदीस क बुिनयाद पर दौरे हाि़जर मे होने वाली चंद िबदअते (1) ये अकदा रखना क सारी दुिनया क तखलीक (पैदाईश) नबी स ला लाह अलैिह वस लम के िलये हई । इस अकदे क बुिनयाद ये मनगंठत (मौजू) Mरवायत है :‘’(ऐ पैग<बर) अगर तु न होता तो मै कायनात पैदा न करता’’ (मौजू, िसलिसला जईफ 282) (2) ये अकदा रखना क सबसे पहले नबी का नूर पैदा हआ । इस अकदे क बुिनयाद ये बाितल और मौजू Mरवायत है :‘’ऐ जािबर । अ लाह तआला ने सब से पहले जो चीज़ पैदा क वो तेरे नबी का नूर था’’(िस0 जईफ 458) (3) ये अकदा रखना क हर दद पढ़ने वाले क आवाज़ नबी स ला लाह अलैिह वस लम को पहंचती है । इस अकदे क बुिनयाद ये जईफ Mरवायत है :‘’जुमाअ के रोज मुझ पर कसरत के साथ दद पढ़ा करो, िबला शुHहा ये एैसा िदन है िजसमे फMरfते हाि़जर होते है, जो आदमी भी मुझ पर दद पढ़ता है इस क अवाज़ मुझे पहंच जाती है वो
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जहां कही भी हो (सहाबा कहते है) हम ने अज3 िकया आप स ला लाह अलैिह वस लम क वफात के बाद भी ? तो आप स ला लाह अलैिह वस लम ने फरमाया मेरी वफात क बाद भी । बेशक अ लाह तआला ने ज़मीन पर अंिबया के िज9मो को खाना हराम कर िदया है’’ (जईफ, इसक सनद सहीह न होने क वजह ये है िक इस मे सईद िबन मरयम और खािलद िबन यजीद के दरिमयान इKतेफाक नह/, तहजीब 178/2) (4) ये अकदा रखना क उ<मत के अमाल नबी स ला लाह अलैिह वस लम पर पेश िकये जाते है इस अकदे क बुिनयाद मु?तिलफ जईफ Mरवायत है िजनमे से एक ये है :’’हर जुमाअ को मुझ पर मेरी उ<मत के अमाल पेश िकये जाते है’’ (जईफ, ये Mरवायत इसिलये जईफ है >योिक इस क सनद मे दो रावी मज़ह है एक अहमद िबन ईसा और दुसरा उबाद िबन कसीर बसरी) ।
(5) वुजू के दरिमयान गद3न का मसह करना । इस अमल क बुिनयाद चंद जईफ Mरवायत है िजन मे से एक ये है :’’हज़रत वाईल िबन हg रिदअ लाह तआला अ-ह से मरवी एक तवील मरफू Mरवायत मे ये लOज़ है (मसहा रकाबतह7) आप स ला लाह अलैिह वस लम ने (वुजू करते हए) अपनी गद3न का मसह िकया’’ (जईफ, ये Mरवायत तीन रािवयो के िबला पर जईफ है 1 मुह<मद िबन हजर 2 सईद िबन अHदुल जािबर 3 इHने तरकमानी) ‘’गद3न का मसह (रोजे कयामत) तौक से िनजात का ज़Mरया है’’ (मौजू, िसलिसला जईफ 69)
(6) वुजू के बाद आसमान क तरफ देखना और उंगूली उठाना । ये अमल िकसी सहीह हदीस से सािबत नह/ इसी िलये उलमा ने इसे िबदअत मे शुमार िकया है, नीज़ िजस Mरवायत मे आसमान क तरफ देखने का िजX है इस मे इHने उ<मा अबी अकल रावी मजह7ल है इस िलये वो जईफ है (जईफ, अबू दाऊद 31, 170, हािफज इHने हजर ने इसे जईफ कहा है)
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(7) अज़ान के दरिमयान अंगठू ो के साथ आंखे चुमना । इस अमल क बुिनयाद वो Mरवायत है िजस मे है :’’िजस श?स ने मोअZ[न के ये कलमात ‘’अfहदु अ-ना मुह<मदर रसुलु लाह’’ सुन कर कहा ‘’मरहबा बेहबीबी व कु र3ती एैनी मुह<मद िबन अHदु लाह’’ िफर अपने अंगठू ो को बोसा ले कर उ-हे अपनी आंखो पर लगाया वो कभी आंख क तकलीफ मे मुबितला नही होगा ‘’ (िसलिसला जईफ 73, इमाम सखावी रह0 ने इस Mरवायत को नकल करने के बाद कहा है िक इस से कु छ भी मरफू सािबत नह/)
(8) जुमाअ ाअ के रोज वािलदैन क कhो क ि़जयारत का खास एहतेमाम करना । इस अमल क बुिनयाद मनगंठत Mरवायत है :’’िजस श?स ने हर जुमाअ के रोज़ अपने वालदैन क कhो क ि़जयारत क उस के गुनाह ब?श् िदये जायेगे और उसे नेकोकार िलख िदया जायेगा’’ (मौजू, िसलिसला जईफ 49)
(9) कhो पर सुरह यासीन क ितलावत करना । इस अमल के बुिनयाद िजन मनगंठत और जईफ Mरवायत पर है उन मे से एक ये है :’’जो किh9तान मे दािखल हआ और उस ने सुरह यासीन क िकरात क तो अ लाह तआला उन (कh वालो से आजमाईश मे) नरमी फरमाएगा और उसे (यासीन पढ़ने वाले को) इस किh9तान मे दफन लोगd के बराबर नेिकयां िमलेगी ।‘’(मौजू, िसलिसला जईफॅ 1246) (10) शबे बरात क रात इबादत के िलये खास करना । इस अमल क बुिनयाद वो जईफ Mरवायत है िजस मे है :’’िबला शुHहा अ लाह तआला 15 शाबान क रात को पहले आसमान क जािनब उतरते है और बनु कलीब क बकMरयd के बालो से 4यादा अफराद को ब?श् देते है’’ ।(जईफ, ितिम3जी 739, इHने माज़ा 1389)
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अहले िबदअत का इबरतनाक अंजाम िबदअती का अमल कुबूल नह& होता :(1)
इरशादे बारी तआला है िक :-
’’ऐ पैग<बर कह दीिजये क >या मै तु<हे बता दू िक बा एतबारे अमाल सब से 4यादा खसारे मे कौन है । वो है िजन क दुिनयावी िज-दगी क तमाम तर कोिशश बेकार हो गई और वो इसी गुमान मे रहे िक वो बहत अUछे काम कर रहे है’’ (सुरह अल कहफ 103:104) (2)
हजरत आयशा रिज0 बयान करती है है िक रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम ने
फरमाया :’’िजसने हमारे इस दीन मे कोई एैसा चीज ईजाद क जो इस मे से नह/ तो वो कािबल रद है’’ (सहीह, अबू दाऊद 4606, इHने माज़ा 14) (3)
हज़रत आयशा रिज0 बयान करती है िक रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम ने
फरमाया :’’िजसने कोई एैसा अमल िकया िजस पर हमारा ह>म नही वो मदू3द है’’(सहीह, तगeब 49)
िबदअती क तौबा कुबूल नह& होती :हज़रत अनस िबन मिलक रिदअ लाह अ-ह7 से मरवी है िक रसुलु लाह स ला लाह7 अलैिह वस लम ने फरमाया िक ‘’िबला शुHहा अ लाह तआला उस व>त तक िकसी भी िबदअती क तौबा कु बुल नह/ फरमाते जब तक वो िबदअत को छोड़ न दे’’ (सहीह तगeब54, तबरानी)
तािलक िलक रसुलल ु लाह ् स+ला+ जईफ व मौजू अहदीस के मु)ता ला+लाह लाह अलैिह वस+लम लम क तंबीह हज़रत अबूहररै ा रिज0 से मरवी है िक रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम ने फरमाया ‘’आिखरी ज़माना मे द4जाल और क4जाब होगे, वो तु<हारे सामने एैसी एैसी हदीस पेश करेगे जो न
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कभी तुमने सुनी होगी और न ही तु<हारे अबा अजदाद ने, लेहाज़ा अपने आप को उन से बचाए रखना, वो तु<हे गुमराह करे और िफतने मे डाल दे’’(मुि9लम 7 तहावी 2954)
जईफ अहदीस और िबदअत पर अमल से हम कै से बचे? इस के िलये सब से पहले तो ये जरी है िक िकसी भी खतीब या वाज़ के बयान करदा मसले को िबला दलील और िबला हवाला कु बुल न िकया जाये दुसरे ये िक हम अपने अंदर दीनी मसाईल क तहकक का शौक पैदा करे, खुद िकताब व सु-नत, सहीह अहदीस क िकताबे और दीगर दीनी िकताबो का मुताला करे, जब कोई बात समझ न आये या कोई इ?तलाफ मसले मे कु छ सुझाई न दे तो िसफ3 अपने इलाकाई एक आिलम क बात पर ऐतबार न करे और न िसफ3 एक मजहब मकतबे िफX क दलाइल पर ऐतबार करे बि क दुसरj आिलमो और दुसरे मजहब मकतबे िफX के दलाइल पर भी गौर करे, िफर इनके दलाईल को िकताब व सु-नत, सहीह अहदीस और मुहQसीन के मुकर3र करदा उसूले हदीस पर परखे, िफर िजस क राय अलल हक मालूम हो उसे मजबूती से पकड़ ले लेिकन यहां ये भी याद रहे िक अगर इस के बाद िफर कभी मालूम हो िक ये बात भी दु9त नह/ थी बि क कोई और बात कदीम हक है तो अपनी इ9लाह कर ले । हमे ये ज़हन नशी कर लेना चािहये िक जब हम दुिनयावी चीजे हािसल करने के िलये तहकक करते है िक फला चीज कै सी है, कहां से िमलेगी, मुनािसब कमत पर कहां से िमलेगी, कौन सी 4यादा फायदेमंद है वगैरह वगैरह इस के िलये लोगd से पूछताछ करते है, मु?तिलफ बाज़ारो क खान छांनते है, व>त िनकालते है, तो हम ये कै से सोच लेते है िक सही दीनी मामलात बगैर हमारी मेहनत कोिशश और बगैर तहकक व तफशीश् के हमारे घरो मे पहंच जायेगा । हांलािक दीनी मामले दुिनयावी मामलो से 4यादा तव4जो के हकदार है । >योिक इसका ता लुक आिखरत से है और हम दुिनया मे पैदा ही िसफ3 इसिलये िकये गये है िक हम अपनी आिखरत को संवार ले ।
जईफ अहदीस क पहचान के िसलिसले िसलिसले मे शेख मुह0मद मद सलाह रह0 रह0 का बयान िकसी ने दरयाOत िकया िक आप के इ म मे होना चािहये िक हम पर नबी करीम स ला लाह अलैिह वस लम क इKतेबाअ जरी है, लेिकन हम आज ये यकन कै से करे िक मौजूदाअहदीस तHदील शुदा या झूठी नही? गुजाMरश है िक आप ये ज़हन मे रखे मै अहदीस को न तो सहीह कहता ह7ं
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और न ही िकसी हाल मे गलत कहता ह7ं, लेिकन कु छ मुसलमानो ने िजतनी भी अहदीस मुझे बयान क वो सब क सब जईफ और मौजू थी, मै अपनी ताकत के एतबार से सभी पर अमल करता ह7ं आप से गुजाMरश है िक इस िसलिसले मे मालूमात दे? शेख ने जवाब िदया :(1)
अ लाह तआला ने अपने दीन क िहफाजत का िज<मा ले रखा है और इसीिलये
िकताबु लाह क िहफाजत एक मोजेजा है और इस के साथ सु-नते नबवी स ला लाह अलैिह वस लम है जो िक कु रआन मजीद को समझने का जMरया है अ लाह तआला का फरमान कु छ इस तरह है :’’िबला शुHहा हम ने ही िजX को नाि़जल फरमाया और हम ही इस क िहफाज़त करने वाले है’’(अलिहg;9) इस आयत मे िजX से मुराद कु रआन और सु-नत है >योिक ये दोनो को शािमल होता है । (2)
बहत से लोगd ने माज़ी और हािजर मे ये कोिशश क िक शरीयत मुताहरा और अहािदस
नबवी स ला लाह अलैिह वस लम मे जइ3फ और मौजू अहदीस दािखल क जाये लेिकन अ लाह तआला ने उन क ये कोिशश कामयाब नह/ होने दी और एैसे असबाब मुहया कर िदये िजस से अपने दीन क िहफाजत फरमाई इ-ही असबाब मे से िसका उलमाए िकराम क जमाअत है िज-होने Mरवायत अहदीस क छान भटक क उन के सनद का पीछा िकया और रािवयो के हालत का पता चलाया । हKता क उ-होने ये भी िजX िकया िक रावी को इ?तेलात (confusion, उलझन, उm 4यादा हो जाने पर कु Tवते हािफजा मे जो तकलीफ पैदा होती है) कब हआ और इ?तेलात से पहले इससे िकस ने Mरवायत क और इ?तेलात के बाद िकस ने Mरवायत बयान क, और वो ये भी जानते है िक रावी ने सफर कहां और िकतने िकये और िकस िकस मु क और शहर मे दािखल हआ और वहां िकस िकस से हदीस हािसल क, तो इस तरह ये एक लंबी फे हMर9त बन जाती है िजस का यहां शुमार करना मुमिकन नह/, ये सब कु छ इस पर दलालत करता है िक दुfमनाने इ9लाम िजतनी भी तहरीफ व तHदील क कोिशश कर ले िफर भी ये उ<मत अपने दीन क िहफाज़त करती है और दीन महफू ज़ है । सुिफयान सुरी रह0 का कौल है :-
’’फMर ’’फMरf फMरfते आसमान के पहरे दार है और अहले हदीस ज़मीन के पहरेदार है’’’’
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हािफज़ ज़हबी रह0 ने िजX िकया है :’’हान रशीद (अHबासी खलीफा) जब एक ज़ि-दक को कKल करने लगा तो उस बेदीन ने कहा ‘उन एक हज़ार हदीस का >या करोगे जो मैने गढ़ी है’ तो हान रशीद कहने लगा –ऐ अ लाह के दुfमन तु कहां िफर रहा है अबु इ9हाक और अHदु लाह िबन मुबारक रह0 इस क छान भटक कर के हफ3 हफ3 िनकाल देगj ।‘’ (3)
बहत सारे उलमा ने जईफ और मौजू अहदीस को एक जगह पर भी जमा कर िदया है
तािक इंसान को इस क पहचान मे आसानी रहे और वो जईफ और मौजू अहदीस से खूद भी बचे और दुसरो को भी बचने क नसीहत करे । अल्हम्दुिYाह बाितल ताकते िसफ3 अपने बाितल अमल को सािबत करने के िलए झूठी और जईफ हदीसो का सहारा लेकर चीखते रहjगे और अपनी बात को सािबत करने के िलए कोई सहीह अहदीस पेश नह/ कर सके गे, हKता क अ लाह का ह>म आ पहंचेगा (यानी कयामत) । और दीन क िहफाज़त का अ लाह का वादा सच होकर रहेगा । >योिक फMरfते आसमान के पहरेदार है और अहले हदीस इस ज़मीन के पहरेदार ।
इ9लािमक दावाअ से-टर रायपुर छKतीसगढ़
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हदीसे एक नज़र मे हदीस
एैसा कौल, फेल और तकरीर िजस क िन9बत रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम क तरफ क गई हो, सु-नत क भी यही तारीफ है याद रहे िक तकरीर से मुराद आप स ला लाह अलैिह वस लम क तरफ से िकसी काम क इजाज़त है । खबर खबर के मुKतािलक 3 अकवाल है 1 खबर हदीस का ही दूसरा नाम है 2 हदीस वो है जो नबी स ला लाह अलैिह वस लम से मनकू ल हो और खबर वो है जो िकसी और से मनकू ल हो 3 खबर हदीस से आम है यािन उस Mरवायत को भी कहते है जो नबी स ला लाह अलैिह वस लम से मनकू ल हो और उस को भी कहते है जो िकसी और से मनकू ल हो । आसार एैसे अकवाल और अफआल जो सहाबा िकराम और ताबई क तरफ मनकू ल हो । मुतवाितर वो हदीस िजसे बयान करने वाले रािवयो क तादाद इस कदर 4यादा हो िक उन सब का झूठ पर जमा हो जाना अ>ल मुहाल हो । अहद इससे मुराद एैसी हदीस है िजस के रािवयो क तादाद मुतवाितर हदीस के रािवयो से कम हो । मरफू िजस हदीस को नबी स ला लाह अलैिह वस लम क तरफ मंसूब िकया गया हो, ?वाह उस क सनद मुतसल हो या न हो । मौकू फ िजस हदीस को सहाबी क तरफ मंसूब िकया गया हो ?वाह उस क सनद मुतसल हो या न हो । मकतूअ िजस हदीस को ताबई या इससे कम दजW के िकसी श?स क तरफ मंसूब िकया गया हो ?वाह इस क सनद मुतसल हो या न हो । सहीह िजस हदीस क सनद मुतसल हो और इस के तमाम रावी िसका दयानतदार और कु Tवते हािफज़ा के मािलक हो, और इस हदीस मे कोई खुिफया खराबी भी न हो । हसन िजस हदीस के रावी हािफज़े के एतबार से सहीह हदीस के रािवयो से कम दजW के हो । जईफ एैसी हदीस िजसमे न सहीह हदीस क िसफात पाए जाये और न हसन हदीस क । मौजू जईफ हदीस क वह िक9म िजस मे िकसी मनगंठत खबर को रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम क तरफ मंसूब िकया गया हो । शाज जईफ हदीस क वह िक9म िजस मे एक िसका रावी ने अपने से 4यादा िसका रावी क मुखािलफत क हो । मुस3ल जईफ हदीस क वह िक9म िजस मे कोई ताबई सहाबी के वा9ते के बगैर रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम से Mरवायत करे । मुतरक जईफ हदीस क वह िक9म िजसके िकसी रावी पर झूठ क तोहमत हो । मु-कर जईफ हदीस क वह िक9म िजस का कोई रावी फािसक, िबदअती, बहत 4यादा गलितयां करने वाला या बहत 4यादा गफलत बरतने वाला हो ।