लहर नही ं ज हर ह ूँ म ै ......
पेपसी बोली कोका कोला !
भारत का इनसान है भोला। ििदे श से मै आयी हूँ,
साथ मौत को लायी हूँ।
लहर नहीं जहर हूँ मै,
गुदो पर बढता कहर हूँ मै।
मेरी पी.एच. दो पॉइनट सात,
मुझ मे िगर कर गल जाये दाँत। िजंक आसिेनक लेड हूँ मै,
काटे आँतो को िो बलेड हूँ मै। मुझसे बढती एिसिडटी,
ििर कयो पीते भैया-दीदी ? ऐसी मेरी कहानी है ,
मुझसे अचछा तो पानी है । दध है , ू दिा है , दध ू दआ ु मै जहरीला पानी हूँ।
हाँ दध ू मुझसे ससता है ,
ििर पीकर मुझको कयो मरता है ? 540 करोड कमाती हूँ,
ििदे श मे ले जाती हूँ।
िशि ने भी न जहर उतारा, कभी अपने कणठ के नीचे।
तुम मूखख नादान हो यारो ! पडे हुए हो मेरे पीछे ।
दे खो इनसां लालच मे अंधा, बना िलया है मुझको धंधा। मै पहुँची हूँ आज िहाँ पर,
पीने का नहीं पानी जहाँ पर। छोडो नकल अब अकल से जीयो, जो कुछ पीना संभल के पीयो।
इतना रखना अब तुम धयान, घर आये जब मेहमान।
इतनी तो रसम िनभाना, उनको भी कुछ कसम िदलाना। दध ू जूस गाजर रस पीना,
डाल कर छाछ मे जीरा पुदीना।
अनानास आम का अमत ृ , बेदाना बेलिल का शरबत।
सिासथयिधक ख नींबू का पानी, तुम भी पीना और िपलाना,
िजसका नहीं है कोई सानी।
पेपसी अब नहीं घर लाना। अब तो समझो मेरे बाप,
मेरे बचे सटॉक से करो टॉयलेट साि।
नहीं तो होगा िो अंजाम,
कर दँग ू ी मै काम तमाम।
(लेखकः िगरीश कुमार जोशी, उदयपुर (राज.) (इसको हर कोई छपा सकता है ।) सोतः ऋिि पसाद जनिरी 2008.