उर ूदे श की लोकलोक-कथाएं लोक कथा
किलयुगी प ितित-भि या मथुरा , या बरसाना - - या गोकुल , या नंदगांव! मतलब यह िक ॄज'ेऽ की इं च - इं च जमीन प र प ितोता सुशीला की मिहमा गाई जाती थी। लोग कहते िक अगर सा'ात प ितोता नारी के दश0न करना चाहते हो तो दे वी सुशीला के दश0न करो। थी भी यही बात। सुशीला की िज2दगी का हर प ल अप ने प ित के िलए था। प ित के दश0न िकए िबना वह जल न प ीती। एक बार वह अप नी एक सहे ली के यहाँ गई। सहे ली का प ित कहीं प रदे स गया हआ था। लेिकन खाने के िलए सहे ली ने नाना ूकार के ःवािद7 8यंजन ु प काए थे। सुशीला यह दे खकर हकी - बकी रह गई। वह तो प ित की अनुप िःथित म9 एक बूंद तक महण करने की बात न सोच सकती थी। इसिलए उससे न रहा गया। वह बोली , " बहन , तुम कैसी >ी हो! तु?हारे प ित तो प रदे स म9 ह@ और तुमने अप ने िलए इतनी तरह के 8यंजन प काए ह@ । भला एक प ितोता के िलए यह सब शोभा दे ता है ! सBची प ितोता तो वह है जो प ित को दे खे िबना जल तक न िप ए। " सुशीला की सहे ली बड़े मुंहफट ःवभाव की थी। िदल की भी वह बड़ी साफ थी। बोली , " बहन सुशीला , यह सब ढकोसलेबाजी मुझसे नहीं चलती। अगर म@ अप ने प ित के बाहर होने प र भी अBछा खाना खाती हँू तो इसका मतलब यह तो नहीं होता िक म@ उ2ह9 नहीं चाहती। म@ तो जैसी खुश उनके सामने रहती हँू वैसी ही उनके प ीछे भी। अगर कोई मुझ प र उं गली उठाने प र ही तुला होगा तो उसे म@ रोक नहीं सकती। बाकी यह तो िसफ0 म@ जानती हँू या मेरे प ित , िक हम एक - दसरे को िकतना चाहते ह@ । " सहे ली के इस ू जवाब से सुशीला जल - भुनकर रह गई। उसने मुह ं चुिनयाकर कहा , " यह तो सब ठीक है , लेिकन तुम प ितोता नहीं हो। प ितोता >ी के िलए शा>L म9 िलखा है िक प ित की गैरहािजरी म9 वह जल तक न िप ए। " सहे ली ने इसका भी करारा जवाब िदया। बोली , " ऐसे शा> मेरे ठ9 गे से! " अ2त म9 बात यहाँ तक बढ़ गई िक सुशीला तुनककर अप ने घर लौट आई। घर आकर सारा िकःसा उसने अप ने प ित को बताया। प ित भी सुशीला को बहत ु चाहता था और उसकी िनंकाम प ित - भि से बहत ु ूभािवत था। िफर भी कभी - कभी उसे यह जRर लगता था िक यह सब ढLग है । अगर पित एक महीना तक घर प र न रहे तो
या कोई >ी िबना अ2न - प ानी के एक महीना तक रह सकती है ! और उसे लगा िक यह िबलकुल असंभव है । अगर कोई िजSी >ी इस बात प र अड़ ही जाए तो जीिवत नहीं बच सकती। यह सोचकर प ित ने सुशीला की प री'ा लेने का िवचार बनाया। कई िदनL तक वह तरह - तरह से सुशीला को कसौटी प र कसता रहा , लेिकन सुशीला हर बार खरी उतरती। कभी वह ःनान दे र से करता , तो कभी खेत से दोप हर ढले लौटता। कभी - कभी तो ऐसा होता िक प रोसी थाली तक सामने होने प र वह बहाना बनाकर बाहर िनकल जाता और िदन ढले लौटता। लेिकन सुशीला ने कभी भी प ित के खाने से प हले प ानी तक न िप या। एक िदन सुशीला के प ित ने कहा , " आज मेरा मन खीर और प ुआ खाने का हो रहा है । इसिलए खूब इलायची गरी डालकर प ुए और िचरUजी , िकशिमश , केसर डालकर खीर बना बनाओ। " ये दोनL चीज9 सुशीला को भी बड़ी िूय थीं। इसिलए खूब मन लगाकर उसने ये चीज9 बनाई। केसर और इलायची और दे सी घी की सुग2ध से बनाते समय ही सुशीला के मुंह म9 प ानी आने लगा। चीज9 बना चुकने के बाद सुशीला ने अप ने प ित से झटप ट ःनान कर लेने को कहा। लेिकन प ित को तो उस िदन धैय0 की प री'ा लेनी थी। इसिलए काफी दे र तक वह ढील डाले रहा और टालता रहा। सुशीला के बार - बार कहने प र , आिखर म9 हारकर , वह बाXटी - लोटा और रःसी लेकर नहाने गया। नहाने म9 भी उसने काफी दे र लगा दी। इधर सुशीला की आत9 मारे भूख के कुलबुलाने लगी थी। लेिकन जैसे ही दे हरी के बाहर उसे प ित के खड़ाऊं की आवाज सुनाई दी , उसे िदलासा बंधी िक अब तो खाने का समय आ ही गया। लेिकन जैसे ही प ित ने दे हरी दे अंदर प ैर रखे , दाय9 प ैर की खड़ाऊं से प ैर ऐसा ू िफसला िक वह चारL खाने िचत फैल गया। बाXटी - लोटा हाथ से छटकर दरू जा िगरे और आँख9 फैली की फैली रह गई। यह दे खा तो सुशीला िजस हालत म9 थी वैसी ही दौड़ी प ास जाकर िसर िहलाया , आवाज9 दीं , लेिकन सब बेकार। प ित अगर िजंदा होता तब तो बोलता ही , लेिकन उसके तो ूाण प खेR उड़ चुके थे , इसिलए भला वह कैसे बोलता। सुशीला की आंख9 डबडबा आई और गला भर आया। उसका मन हआ िक धाड़ मारकर रो ु प ड़े । लेिकन तभी उसे खीर और प ुए का Zयान हो आया। उसने सोचा िक प ित अब मर ही गए ह@ । रोने से जी तो प ाएंगे नही। हां , आस - प ड़ोस के लोग जRर जुड़ जाएंगे। और तब खीर - प ुए खाने का मौका तो िमलने से रहा। इसिलए बेहतर यह होगा िक प हले म@ खीर - प ुए खा लूं , तब रोना - धोना शुR कRं। यह सोचकर वह चुप चाप गई और जXदी - जXदी खीर उड़ाने लगी। प ुए अगले िदन के िलए रख िलए , यLिक उनके खराब होने का डर न था। असिलयत यह थी िक प ित मरा नहीं था , बिXक मरने का नाटक िकए
प ड़ा था। इसिलए अप नी प [ी की यह सारी हरकत9 वह दे खता रहा। जब सुशीला खीर खूब जी भरकर खा चुकी तो झटप ट मुंह धोया और ल?बा - सा घूंघट िनकालकर प ित के प ास गई और सीने से िचप टकर रोने लगी। रोने के साथ - साथ वह यह भी कहती जाती थी " तुम तो चले प रमधाम कूं , हम हँू सूं कुछ बखU (कहो) कहो)। " उसका प ित कुछ दे र तक तो उसके नकली ूेम और दख ु को सहन करता रहा। लेिकन अ2त म9 उससे न रहा गया। और जैसे ही सुशीला ने अप ना जुमला `तुम तो चले प रधाम कूं हम हँू सूं कुछ बक् खौ' ख_म िकया , वैसे ही उसके प ित ने उसीसे िमलता - जुलता एक जुमला जड़ िदया। प ित का जुमला इस ूकार था - खीर सड़ोप ा किर तौ प ुअनूं कूं तौ चक् खौ। " अब तो सुशीला की ऐसी हालत हो गई िक काटो तो खून तक न िनकले। उसे या प ता था िक उसका प ित नाटक िकए प ड़ा है और उसकी प री'ा ले रहा है ! मन ही मन वह रह - रहकर अप ने आप को कोसती रही िक यह या िकया। यL न जबान प र काबू रखकर बुिa से काम िलया! और उसके बाद िफर कभी िकसी ने सुशीला के मुंह से अप ने प ितोत धम0 की तारीफ नहीं सुनी। प हले जैसी डींगे हांकना अब सुशीला ने ब2द कर िदया था। -------.
शेखिचXली और कुएं की प िरयां एक गांव म9 एक सुःत और कामचोर आदमी रहता था। काम - धाम तो वह कोई करता न था , हां बात9 बनाने म9 बड़ा मािहर था। इसिलए लोग उसे शेखिचXली कहकर प ुकारते थे। शेखिचXली के घर की हालत इतनी खराब थी िक महीने म9 बीस िदन चूXहा नहीं जल प ाता था। शेखिचXली की बेवकूफी और सुःती की सजा उसकी बीवी को भी भुगतनी प ड़ती और भूखे रहना प ड़ता। एक िदन शेखिचXली की बीवी को बड़ा गुःसा आया। वह बहत ु िबगड़ी और कहा , " अब म@ तु?हारी कोई भी बात नहीं सुनना चाहती। चाहे जो कुछ करो , लेिकन मुझे तो प ैसा चािहए। जब तक तुम कोई कमाई करके नहीं लाओगे , म@ घर म9 नहीं , घुसने दं ग ू ी। " यह कहकर बीवी ने शेखिचXली को नौकरी की खोज म9 जाने को
मजबूर कर िदया। साथ म9 , राःते के िलए चार Rखी - सूखी रोिटयां भी बांध दीं। साग सालन कोई था ही नहीं , दे ती कहाँ से? इस ूकार शेखिचXली को न चाहते हए ु भी नौकरी की खोज म9 िनकलना प ड़ा। शेखिचXली सबसे प हले अप ने गांव के साहकार के यहाँ गए। सोचा िक शायद साहकार ू ू के कािर2दL ने bयोढ़ी कोई छोटी - मोटी नौकरी दे दे । लेिकन िनराश होना प ड़ा। साहकार ू प र से ही डांट - डप टकर भगा िदया। अब शेखिचXली के सामने कोई राःता नहीं था। िफर भी एक गांव से दसरे गांव तक िदन भर भटकते रहे । घर लौट नहीं सकते थे , ू यLिक बीवी ने सcत िहदायत दे रखी थी िक जब तक नौकरी न िमल जाए , घर म9 प ैर न रखना। िदन भर चलते - चलते जब शेखिचXली थककर चूर हो गए तो सोचा िक कुछ दे र सुःता िलया जाए। भूख भी जोरL की लगी थी , इसिलए खाना खाने की बात भी उनके मन म9 थी। तभी कुछ दरू प र एक कुआं िदखाई िदया। शेखिचXली को िह?मत बंधी और उसी की ओर बढ़ चले। कुएं के चबूतरे प र बैठकर शेखिचXली ने बीवी की दी हई ु रोिटयL की प ोटली खोली। उसम9 चार Rखी - सूखी रोिटयां थीं। भूख तो इतनी जोर की लगी थी िक उन चारL से भी प ूरी तरह न बुझ प ाती। लेिकन समःया यह भी थी िक अगर चारL रोिटयL आज ही खा डालीं तो कल - प रसL या उससे अगले िदन या कRंगा , यLिक नौकरी खोजे िबना घर घुसना नामुमिकन था। इसी सोच - िवचार म9 शेखिचXली बार बार रोिटयां िगनते और बारबार रख दे ते। समझ म9 नहीं आता िक या िकया जाए। जब शेखिचXली से अप ने आप कोई फैसला न हो प ाया तो कुएं के दे व की मदद लेनी चाही। वह हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले , " हे बाबा , अब तु?हीं हम9 आगे राःता िदखाओ। िदन भर कुछ भी नहीं खाया है । भूख तो इतनी लगी है िक चारL को खा जाने के बाद भी शायद ही िमट प ाए। लेिकन अगर चारL को खा लेता हँू तो आगे या कRंगा? मुझे अभी कई िदनL यहीं आसप ास भटकना है । इसिलए हे कुआं बाबा , अब तु?हीं बताओ िक म@ या कRं! एक खाऊं , दो खाऊं , तीन खाऊं चारL खा जाऊं? " लेिकन कुएं की ओर से कोई जवाब नहीं िमला। वह बोल तो सकता नहीं था , इसिलए कैसे जवाब दे ता! उस कुएं के अ2दर चार प िरयां रहती थीं। उ2हLने जब शेखिचXली की बात सुनी तो सोचा िक कोई दानव आया है जो उ2हीं चारL को खाने की बात सोच रहा है । इसिलए तय िकया िक चारL को कुएं से बाहर िनकालकर उस दानव की िवनती करनी चािहए , तािक वह उ2ह9 न खाए। यह सोचकर चारL प िरयां कुएं से बाहर िनकल आई। हाथ जोड़कर वे शेखिचXली से बोलीं , " हे दानवराज , आप तो बड़े बलशाली ह@ ! आप 8यथ0 ही हम चारL को खाने की बात सोच रहे ह@ । अगर आप हम9 छोड़ द9 तो हम कुछ ऐसी चीज9 आप को दे सकती ह@ जो
आप के बड़े काम आएंगी। " प िरयL को दे खकर व उनकी बात9 सुनकर शेखिचXली हके बके रह गए। समझ म9 न आया िक या जवाब दे । लेिकन प िरयL ने इस चुdप ी का यह मतलब िनकाला िक उनकी बात मान ली गई। इसिलए उ2हLने एक कठप ुतला व एक कटोरा शेखिचXली को दे ते हए ु कहा , " हे दानवराज , आप ने हमारी बात मान ली , इसिलए हम सब आप का बहत ु - बहत ु उप कार मानती ह@ । साथ ही अप नी यह दो तुBछ भ9ट9 आप को दे रही ह@ । यह कठप ुतला हर समय आप की नौकरी बजाएगा। आप जो कुछ कह9 गे , करे गा। और यह कटोरा वह हर एक खाने की चीज आप के सामने पेश करे गा , जो आप इससे मांग9गे। " इसके बाद प िरयां िफर कुएं के अ2दर चली गई। इस सबसे शेखिचXली की खुशी की सीमा न रही। उसने सोचा िक अब घर लौट चलना चािहए। यLिक बीवी जब इन दोनL चीजL के करतब दे खेगी तो फूली न समाएगी। लेिकन सूरज डू ब चुका था और रात िघर आई थी , इसिलए शेखिचXली प ास के एक गांव म9 चले गए और एक आदमी से रात भर के िलए अप ने यहाँ ठहरा लेने को कहा। यह भी वादा िकया िक इसके बदले म9 वह घर के सारे लोगL को अBछे - अBछे प कवान व िमठाइयां िखलाएंगे। वह आदमी तैयार हो गया और शेखिचXली को अप नी बैठक म9 ठहरा िलया। शेखिचXली ने भी अप ने कटोरे को िनकाला और उसने अप ने करतब िदखाने को कहा। बात की बात म9 खाने की अBछी - अBछी चीजL के ढे र लग गए। जब सारे लोग खा - प ी चुके तो उस आदमी की घरवाली जूठे बरतनL को लेकर नाली की ओर चली। यह दे खकर शेखिचXली ने उसे रोक िदया और कहा िक मेरा कठप ुतला बत0न साफ कर दे गा। शेखिचXली के कहने भर की दे र थी िक कठप ुतले ने सारे के सारे बत0न प ल भर म9 िनप टा डाले। शेखिचXली के कठप ुतले और कटोरे के यह अजीबोगरीब करतब दे खकर गांव के उस आदमी और उसकी बीवी के मन म9 लालच आ गया शेखिचXली जब सो गए तो वह दोनL चुप के से उठे और शेखिचXली के कटोरे व कठप ुतले को चुराकर उनकी जगह एक नकली कठप ुतला और नकली ही कटोरा रख िदया। शेखिचXली को यह बात प ता न चली। सबेरे उठकर उ2हLने हाथ - मुंह धोया और दोनL नकली चीज9 लेकर घर की ओर चल िदए। घर प हंु चकर उ2हLने बड़ी डींग9 हांकी और बीवी से कहा , " भागवान , अब तुझे कभी िकसी बात के िलए झींकना नहीं प ड़े गा। न घर म9 खाने को िकसी चीज की कमी रहे गी और न ही कोई काम हम9 - तु?ह9 करना प ड़े गा। तुम जो चीज खाना चाहोगी , मेरा यह कटोरा तु?ह9 िखलाएगा और जो काम करवाना चाहोगी मेरा यह कठप ुतला कर डालेगा। " लेिकन शेखिचXली की बीवी को इन बातL प र िवeास न हआ। उसने कहा , " तुम तो ऐसी डींगे ु रोज ही मारा करते हो। कुछ करके िदखाओ तो जानूं। " हां , यL नहीं? " शेखिचXली ने
तप ाक से जबाव िदया और कटोरा व कठप ुतल9 म9 अप ने - अप ने करतब िदखाने को कहा। लेिकन वह दोनL चीज9 तो नकली थीं , अत: शेखिचXली की बात झूठी िनकली। नतीजा यह हआ िक उनकी बीवी प हले से gयादा नाराज हो उठी। कहा , " तुम मुझे इस तरह ु धोखा दे ने की कोिशश करते हो। जब से तुम घर से गए हो , घर म9 चूXहा नहीं जला है । कहीं जाकर मन लगाकर काम करो तो कुछ तनखा िमले और हम दोनL को दो जून खाना नसीब हो। इन जादईु चीजL से कुछ नहीं होने का। " बेबस शेखिचXली िखिसयाए हए ु - से िफर चल िदए। वह िफर उसी कुएं के चबूतरे प र जाकर बैठ गए। समझ म9 नहीं आ रहा था िक अब या िकया जाए। जब सोचते - सोचते वह हार गए और कुछ भी समझ म9 न आया तो उनकी आंख9 छलछला आई और रोने लगे। यह दे खकर कुएं की चारL प िरयां िफर बाहर आयी और शेखिचXली से उनके रोने का कारण प ूछा। शेखिचXली ने सारी आप बीती कह सुनाई। प िरयL को हं सी आ गई। वे बोलीं , " हमने तो तुमको कोई भयानक दानव समझा था। और इसिलए खुश करने के िलए वे चीज9 दी थीं। लेिकन तुम तो बड़े ही भोले - भाले और सीधे आदमी िनकले। खैर , घबराने की जRरत नहीं। हम तु?हारी मदद कर9 गी। तु?हारा कठप ुतला और कटोरा उ2हीं लोगL ने चुराया है , िजनके यहाँ रात को तुम hके थे। इस बार तु?ह9 एक रःसी व डं ड ा दे रही ह@ । इनकी मदद से तुम उन दोनL को बांध व मारकर अप नी दोनL चीज9 वाप स प ा सकते हो। " इसके बाद प िरयां िफर कुएं म9 चली गयीं। जादईु रःसी - डं ड ा लेकर शेखिचXली िफर उसी आदमी के यहाँ प हंु चे और कहा , " इस बार म@ तु?ह9 कुछ और नये करतब िदखाऊंगा। " वह आदमी भी लालच का मारा था। उसने समझा िक इस बार कुछ और जादईु चीज9 हाथ लग9गी। इसिलए उसम9 खुशीखुशी शेखिचXली ने शेखिचXली को अप ने यहाँ िटका िलया। लेिकन इस बार उXटा ही हआ। ु जैसे ही हम िदया वैसे ही उस घरवाले व उसकी बीवी को जादईु रःसी ने कस कर बांध ु िलया और जादईु डं ड ा दनादन िप टाई करने लगा। अब तो वे दोनL चीखने - िचXलाने और माफी मांगने लगे। शेखिचXली ने कहा , " तुम दोनL ने मुझे धोखा िदया है । म@ने तो यह सोचा था िक तुमने मुझे रहने को जगह दी है , इसिलए म@ भी तु?हारे साथ कोई भलाई कर दं ।ू लेिकन तुमने मेरे साथ उXटा बता0व िकया! मेरे कठप ुतले और कटोरे को ही चुरा िलया। अब जब वे दोनL चीज9 तुम मुझे वाप स कर दोगे , तभी म@ अप नी रःसी व डं डे को hकने का हम दं ग ू ा। " उन दोनL ने झटप ट दोनL चुराई हई ु ु चीज9 शेखिचXली को वाप स कर दीं। यह दे खकर शेखिचXली ने भी अप नी रःसी व डं डे को hक जाने का हम दे ु िदया।
अब अप नी चारL जादईु चीज9 लेकर शेखिचXली ूसन ् न मन से घर को वापस लौट प ड़े । जब बीवी ने िफर दे खा िक शेखिचXली वाप स आ गए ह@ तो उसे बड़ा गुःसा आया। उसे तो कई िदनL से खाने को कुछ िमला नहीं था , इसिलए वह भी झुंझलाई हई ु थी। दरू से ही दे खकर वह चीखी , " कामचोर तुम िफर लौट आए! खबरदार , घर के अंदर प ैर न रखना! वरना तु?हारे िलए बेलन रखा है । " यह सुनकर शेखिचXली दरवाजे प र ही hक गए! मन ही मन उ2हLने रःसी व डं डे को हम िदया िक वे उसे काबू म9 कर9 । रःसी और ु डं डे ने अप ना काम शुR कर िदया। रःसी ने कसकर बांध िलया और डं डे ने िप टाई शुR कर दी। यह जादईु करतब दे खकर बीवी ने भी अप ने सारे हिथयार डाल िदए और कभी ु िमला। वैसा बुरा बता0व न करने का वादा िकया। तभी उसे भी रःसी व डं डे से छटकारा अब शेखिचXली ने अप ने कठप ुतले व कटोरे को हम दे ना शुR िकया। बस , िफर या ु था! कठप ुतला बत0न - भाड़े व िजन - िजन चीजL की कमी थी झटप ट ले आया और कटोरे ने बात की बात म9 नाना ूकार के 8यंजन तैयार कर िदए।