Laghu Kathayein

  • June 2020
  • PDF

This document was uploaded by user and they confirmed that they have the permission to share it. If you are author or own the copyright of this book, please report to us by using this DMCA report form. Report DMCA


Overview

Download & View Laghu Kathayein as PDF for free.

More details

  • Words: 17,498
  • Pages: 53
अतरा करवड़े की लघुकथाएँ

दे न उसकी ! हमारे िलये कुछ मुःकान¸ आँसू और ढ़े र सी िवडंबनाओंकी सा(ी समप*ण मेरे स,गु. पू/य अ0णा महाराज¸ इदौर को िजह6ने गु. के .प म श8द¸ सृजन और सोच की महती दे न दी है भूिमका इसान6 के िलये एक आम इसान ने िलखे हए द िजंदगी के ल?ह है यहाँ। पता नहीं ु चं Aया अपे(ाएँ हर एक को होती है खुद से। अपने आप म ही एक िवB सा िलये चलते है हम सभी और िफर कटते जाते है सभी से। यहाँ तक िक अपने आप से भी। इन श8द6 म हो सकता है िक िकसी एक को आईना िमल जाए। हो सकता है िक कुछ पन6 म से कुछ अपने झाँकते हए ु िदखाई दे जाए। कुछ चुभन और कुछ अHछाई के खारे और मीठे आँसू िमलकर चं द िबडंबनाओंके नाम पर बहते जाते है । शायद कोई इस ूवाह को मोड़ते हए ु अपने आप तक पहँु च पाए। ऊँची दाश*िनक बात6 के अलावा कुछ सच और कुछ ज.री बदलाव भी िमल सकते है इस दौरान। आसमान को तकते हए ु उसकी ऊँचाई से दोःती करना और जमीन पर अपने पैर भी जमाए रखना। शायद यही है वो चीज िजसे हम जीते है । यही कुछ सोच इन कहािनय6 के लेखन के समय मन म रही। यिद अHछी हो तो चलती रहे और जमीन पर आसमान िमलते रहे ¸ यही कामना।

-अतरा अतरा करवड़े

कहािनयाँ 1। चैन 2। िकशोरी हो गई िबिटया 3। पीिढ़याँ 4। नशा 5। कमाई 6। शे िड़शनल पेरेिटंग 7। िसंदरी ू 8। बुढ़ापा 9। ूेम 10। कुपोषण 11। गाँव की लड़की 12। एक जात है सभी 13। भड़भूँिजया 14। सेिटंग 15। महानगर ड़ायरी 16। गंदा कुOा 17। पोट िशयल कःटमर 18। सपने

19। िमPटी लौट आई 20। िचिड़याघर 21। अधर 22। िडःचाज* सेिटःफेAशन 23। जुगत 24। सूट 25। इःटॉलमट 26। हक 27। दे शभिS 28। आरोप 29। पता नहीं 30। घर

चैन आज िकतने िदन6 के बाद इस घर म खुिशयाँ आ पाई है । बाबू के नैन सजल हो उठते थे बार - बार। काश िक ऐसा ही भरा पूरा घर हमेशा रहा करता। और इसे दे खने के िलये कमला भी आज होती। िकतना चाहती थी वो ¸ िक इस घर का और खुिशय6 का जो िवरह है वह समाV हो जाए। सारा पिरवार एक साथ रहे ¸ वे और कमला अपने पोते - पोितय6 की िजद पूरी करने¸ उह िखलाने म अपना बुढ़ापा धय कर । लेिकन सब कुछ धरा का धरा ही रह गया था। एक एक कर सभी अपना भिवंय सँवारने के िलये माँ बाप का वत*मान िबगाड़ िनकल गये थे। अब तो शायद ये एक साथ रहने लगे है ¸ ये दे खकर ही कमला की आYमा को चैन िमलेगा। वे पZी के िचऽ के सम( उसकी ूYय( उपिःथित की भाँित बात करने लगे थे। उह लगा जैसे कमला मुःकुराकर यह कह रही थी¸ "सुनो! आज िकतना अHछा लग रहा है ितम समय भले ही इनम से कोई भी नहींथा लेिकन आपके भरा पूरा घर हमारा । मेरे अं जीते जी तो एक हए ु है सभी। जाईये ! कह दीजीये इन सभी से¸ िक आपने उह माफ कर िदया है ।" बाबू को याद आया । अपनी माँ के अं ितम समय म भी कोई बेटा साथ नहींरह पाया¸ मुझसे िमलने भी नहींआया। इस बात को याद कर वे काफी कठोर हो चले थे। िपछले ु साल भर म तो ]यवहार म कटता बढ़ने लगी थी। ये बात बेट6 को समझ म आई थी¸ उहोने िपछली बीमारी म आकर माफी भी माँगी थी। उनके बचने की उ?मीद कम थी लेिकन ऊपरवाले की मज^ कुछ और थी¸ बच गये। तभी बाबू के कमरे का दरवाजा खुला। अजय िवजय दोन6 आए थे। िबना औपचािरकता के बात शु. हई। ु "बाबू ! आप तो जानते ही है िक मेरी नौकरी और अजय के ]यापार म से समय िनकालकर आपसे िमलने आना िकतना मुिँकल हो चला है इन िदन6।" "......"

"और भैया के या मेरे घर आकर रहने म भी अपकी तैयारी नहींहै । हमारे घर6 म आप एडजेःट नहींहो पाते।" "......" "इसिलये हम लोग6 ने इसका एक हल सोचा है । किहये ना भैया।" "बाबू अब ये मकान िकराये पर चढ़ा द गे। और आपकी ]यवःथा पास के ही आौम म कर दी है ।" "......" "आपकी दवाईय6 का खच* इस िकराये से िनकलता रहे गा और... आपकी दे खभाल भी हो जाएगी।" "और सच कह तो हम दोन6 को भी आपकी िचं ता लगी रहती है । सो इस तरह से हम भी चैन से रह पाएँगे।" बाबू ने दे खा¸ कमला का चेहरा कठोर हो चला था। आिखर वे िकसी एक को ही तो यह चैन दे सकते थे।

िकशोरी हो गई िबिटया जानती हँू शोना! अब तुम अपनी गुिड़या को दे ख थोड़ी परे शान हो जाती हो । तु?हारे ू दांत की bयारी सी मुःकान है ¸ उसे बचपन की वो तःवीर िजसम तु?हारे पहले पहले टटे अब तुमने तिकये के नीचे दबा िदया है । तु?हारी पलक लंबी और रे शमी होकर सपन6 के शहर म पहं ु चने लगी है । और हाँ ! तु?ह अब "शोना बेटा" कहना भी उलझन म डाल दे ता है । ये सब कुछ मुझे तो तु?हारे िलए बड़ा ःवाभािवक लग रहा है लेिकन Aया तुम ये जानती हो िक अब तुम अपने जीवन के नए अcयाय को पढ़ने जा रही हो । कई बार तु?ह माँ¸ िपताजी और ये सारी दिनया ही Aय6 न कहँू ¸ दँमन सी ूतीत होगी । कोई तु?हारे मन ु ु को पढ़ ले या तु?हारे िदन म दे खे जा रहे सपन6 म दखल दे इसे तुम कभी पसंद नहीं करोगी । और हो भी Aय6 नहींअब तुम बHची थोड़े ही रह गई हो जो ृॉक का हक ु लगवाने मेरे पास आओगी ।

पता है ¸ आज मeने दआ ु माँगी है ¸ तु?हारे िलए¸ िक तुम इस खुले आसमान म अपनी कfपनाओंके सतरंगे पंख लेकर अनंतकाल तक इस सपनीले ूदे श म िवचरण करो । मe तु?हारी भावनाओंकी ढाल बनने का ूयZ क.ंगी िजससे कोई भी तु?हारे पAके होते मन की िमPटी पर वS से पहले िकसी भी अनचाही याद की छाप न छोड़ सके । तुम ःवतंऽ हो िबिटया¸ अपने संसार म । तुम मुS हो अपने िनण*य लेने के िलए । मुझे िवBास है अपने पालन पोषण पर और तु?हारे ]यिSYव पर िक तुम कभी भी अपने आप को और अपने पिरवार को कh म नहींडालोगी । अब तुम फूल6 को दे खकर नई कfपनाएंकरो बेटी । पढ़ाई म से कुछ समय बचाकर अपने आप से भी बात िकया करो । अपने बचपन के िकसी वi को दे खकर िविःमत होकर मुझसे पूछो िक म?मी Aया मe कभी इतनी छोटी भी थी। और हाँ! कभी कभी ही सही लेिकन तु?हारा िसर अपनी गोद म लेकर सहलाना मुझे ताउॆ अHछा लगेगा चाहे कल तुम मेरी उॆ की ही Aय6 न हो जाओ । तु?ह कुछ और भी कहना था । अपने दोःत6 और सहे िलय6 की पहचान कैसे करना चािहये यह अब तु?ह िसखाने की आवँयकता नहींहै लेिकन भावनाएँ तुमसे है तुम भावनाओंसे नहींइस अं तर को कभी मत भूलना। तु?हारे िलए मeने अपने कैशोय* के कुछ ल?ह चुराकर रखे थे। लेिकन अब वे वS का जंग खाकर पुराने पड़ चुके है । और वैसे भी तु?ह िवरासत म सारा संसार िमला है । तुम उमुS हो परंतु इसे उमाद से ृ खलता का अथ* बड़ी अHछी तरह से पहले रोकना जानती हो। तुम ःवतंऽ हो और उHछं समझती हो । तुम सुदर हो और जीवन की (णभंगुरता से भी पिरिचत हो । िकतनी अजीब सी बात है ना िबिटया¸ मe तो तु?ह तु?हारे िकशोर जीवन की शु.आत पर कुछ समझाईश दे ने का िवचार रखती थी लेिकन तुम अब बड़ी हो गई हो िबिटया । खुशहाल बचपन की याद6 के साथ एक ःविbनल कैशोय* तु?हारी बाट जोह रहा है । अब सोचो नहीं। बस भर लो एक ऊंची उड़ान ¸ भिवंय के िलए । तु?हारी माँ !

पीिढ़याँ "मeनाबाई! आज यहींखा लो! ूसाद तो िजतन6 के मुँह लगे उतना अHछा।" "जी बाई!" किवता की Yयौिरयाँ चढ़ गई थी। पहले ही इनसे सःते म िमल रही बाई को हटवाकर मeनाबाई से आज की पूजा का खाना बनवाया था। अब माँ-जी न िसफ* इह खाना िखलाएँगी¸ साथ ही घर भर का िटिफन भी बाँध द गी। तभी तो ये सभी काम के वS नखरे िदखाते है । कम काम म इतना सब कुछ जो िमल जाता है । सब कुछ िनपटाकर¸ ॄाlण6 को दान दि(णा के साथ िवदा कर¸ सास बहू भोजन करने बैठी। माँ-जी ने किवता का मन जान िलया था। वे जान बूझकर मeनाबाई का िवषय िनकाल बैठी। उसका पित अपािहज है । तीन बHचे पढ़ रहे है आदी। असल म माँ-जी ःवयंभी पिरिःथित की मार के चलते¸ अपने ूारंिभक िदन6 म कुछ घर6 म जाकर पूजा का खाना बनाया करती थी। घरवाल6 से झूठ कहती िक आज फलांके यहाँ सुहािगन जीमने जाना है । और उस घर जाकर पूरा खाना बनाने का काम िकया करती। उनकी यजमान सरःवतीबाई को यह बात मालूम थी। वे आमह कर उह खाना िखलाती¸ साथ बाँध दे ती और खान बनवाई के जो पैसे िमलते सो अलग। तीन चार साल6 तक ऐसे ही झूठ से माँ-जी ने अपनी गृहःथी खींची थी। उसी के बल पर आज घर म सुख¸ वैभव¸ शांित है । "किवता! मeनाबाई के घरवाल6 को भी आज यही ॅम है िक वे आज हमारे यहाँ सुहािगन जीमने आई है ।" माँ-जी ने मुःकुराकर कहा। किवता के सारे अनपूछे ूo अपना उOर पा गये थे।

नशा खड़ाक्से दरवाजा खुला। इतनी रात गये िपछले दरवाजे से कोई आ रहा है ! सुनद ं ा ने डरते ु हए ता मत करो। ये जगदीश भाई ह6गे। हर छPटी पर ु अपने पित को जगाया। "अरे िचं ऐसे ही पीकर आते है ।"

"लेिकन अब वो Aया कर गे!" सुनद ं ा अब भी भयभीत ही थी। ¸ खाना साथ ही लाए ह6गे। तुम सो "कुछ नहीं। खाना खाकर सो रह गे। घर म कोई है नहीं भी जाओ अब।" सोते हए ं ा के मन म असंqय ूo आ जा रहे थे। इस तरह से पीने का Aया अथ* ु भी सुनद ु हो सकता है ? िसफ* छPटी पर! उसके मायके म भी तो घर के सामने ितवारी काका ऐसे ही पीकर आया करते थे। घर म िकतना कोहराम मचा करता था। तभी तो उसे मालूम पड़ा था िक पीने की आदत पड़ जाने पर आदमी का कोई भरोसा नहींरह जाता। रोज चािहये मतलब चािहये ही। आज तक कई िफfम6 म भी दे खा था उसने िक लोग गम भुलाने के िलये शराब का सहारा लेते है । अिभजाYय वग* का यह िूय शगल है आदी। जगदीश भाई के बारे म बस इतना ही मालूम था िक वे अःपताल म काम करते है । ु छPटी कभी नहींकरते। इसके पीछे भी कारण यह है िक वहींपर दोन6 वS का खाना िमल जाता है । उनकी पZी और पुऽ साल6 पहले एक दघ* ु टना म मारे गये थे। ु तब से छPटी के िदन ही इस तरह से िदखाई दे ते है । अयथा कब आते है कब जाते है ¸ िकसी को भी पता नहींचलता। इसीिलये उह िपछवाड़े का कमरा साल6 से िदया हआ है । ु िकराया दे ते समय ही उससे जो संवाद होता है बस उतना ही। लेिकन जगदीश भाई के संबंध म मोहfले म हवा अHछी नहींथी। सभी का एक मत था िक वे चिरऽ के अHछे नहींहै । उनका शराब पीना इस मत के पुqता होने म आग म घी का काम करता हालाँिक आज तक िकसी ने भी उह शराब खरीदते¸ बोतल हाथ म िलये हए ं ा की शादी से पहले सामने की पंिडताइन बोली भी थी िक ु आदी नहींदे खा था। सुनद अब जगदीश भाई को यहाँ से िनकाल दे ना चािहये। खैर! वे जो िटके है सो िटके है वहीं। उस िदन सुनद ं ा की सास की तबीयत अचानक खराब हो गई थी। शायद िदल का दौरा पड़ा था। सुनद ंा के पित को भी ऑिफस म फोन नहींलग पा रहा था। िकसी तरह से उह ऑटो म डालकर¸ राःता पूछते ताछते नजदीकी अःपताल ले गई। समय पर पहं ु चने के कारण जfदी से भत^ िमली। वहींपर जगदीश भाई भी थे। उहोने िबना िकसी बातचीत या औपचािरकता के¸ िबfकुल अपनी माँ के िलये करते वैसी ही सारी ]यवःथा कर दी।

अःपताल से लौटकर जब सब कुछ सामाय हो गया¸ एक िदन सुनद ं ा ने पकवान6 की थाली परोसी और जगदीश भाई को दे ने पहँु ची। उहोने बड़े आदर से उसे बैठाया। उॆ म वे उसके िपता समान थे। उसे ]यवहार म दे वता समान लगे। थोड़ी बातचीत बढ़ने पर ु सुनद ं ा ने उनसे पूछ ही िलया। यही िक वे हर छPटी पर पीते Aय6 है ¸ Aया उह कोई दख ु है ? वे गंभीर हो उठे । सुनद ं ा को एक (ण के िलये लगा िक उसने ये ूo पूछकर कहींकोई गलती तो नहींकी है ? शायद अब वे खाना भी न खाएँ। लेिकन आशंका के िवपरीत¸ वे ःवाद लेकर भोजन करते रहे । उठकर हाथ धोए और पालथी लगाकर बैठ गये। "बेटी! Aया तुम जानती हो िक मe अःपताल म Aया काम करता हँू ?" "जी! नहींतो।" जगदीश भाई गंभीर हो उठे । "मe एक जfलाद हँू बेटी। अःपताल म होने वाली ूYयेक मौत के बाद उस शरीर को चीर फाड़ कर पोःट माट* म के िलये तैयार रखना मेरा काम है ।" सुनद ं ा सन रह गई। जगदीश भाई कहते चले। "रोज दे खता हँू अभागी जवान लड़िकय6 को जो मार डाली जाती है । दघ* ु टना म मरे पाए गए िकसी माँ के नहे मुने लाड़ले को। नई नवेली दfहन को िवधवा कर इस जग से ु जाते उसके पित को। िकसी बुिढ़या के अकेले सहारे को। रंिजश म मारे गये बुढ़ापे के सहारे होते है वहाँ तो खुद से नाराज होकर आYमहYया करते ःवाथ^ बंदे भी। अब Aया Aया िगनाऊँ तु?ह ।" जगदीश भाई का चेहरा काठ के जैसा हो चला था और सुनद ं ा का चोरी करते पकड़ी गई िबfली के जैसा। "इस दिनया के नए िनराले सभी खेल इस मौत के आगे फीके है बेटी और उसी मौत से ु जाने िकतने तरीक़6 से मe रोज िमलता हँू । िदन भर के काम म सोचने को समय तो िमलता नहीं।" ु वे कहते चले "छPटी पर अपने पाप याद आते है । िजस शरीर को माँ िकतने जतन से अपने खून से शरीर पर पालती है ¸ जम के बाद उसकी साल6 दे खभाल करती है िखलाती

िपलाती है ¸ उसके लाड़ करती है । ऐसे ही जाने िकतने लाड़ले शरीर6 को मe अब तक चीर चुका हँू । ऐसा लगता है जैसे हज़ार6 माताओंका कलेजा चीरा है मeने। नौकरी ही ऐसी है । Aया कuँ !" जगदीश भाई ने उठकर पानी िपया। सुनद ं ा के आँसुओंसे भीगे मुख की ओर ूेम से दे खते हए ु उसे भी िदया। ु "छPटी के िदन मe ूायिvO करता हँू बेटी। शहर से बाहर के उस उजाड़ मंिदर म जाकर वहाँ के बूढ़े पुजारी के साथ िदन भर रहता हँू । उनकी सेवा करता हँू ¸ मंिदर म झाडू दे ता हँू ¸ आँगन की धुलाई करता हँू । जो भी काम बन पड़े बस िदन भर भूखे पेट करता रहता हँू । िफर वहाँ जो भी ूसाद िमले उसी को लेकर घर आ जाता हँू । मंिदर शहर से दरू है ¸ आठ िकलोमीटर चलना पड़ता है इसीिलये दे र हो जाती है । िफर थकान और दसरे िदन के ू काम का सोचकर कदम लड़खड़ाने भी लगते है । मेरा यही नशा है बस।" सुनद ं ा मूक हो सोचती रही¸ "काश ऐसा नशा इस दिनया के सभी लोग कर सकते हो।" ु

कमाई िपछले दो साल6 से गुu महाराज के मठ म आना जाना शु. हआ है मेरा। वहाँ बड़े मधुर ु भजन होते¸ परोपकार के काय* िकये जाते¸ भावुक6 के ूo6 का समाधान िमलता। भजन म बाकी कोई हो न हो¸ एक सोलह सऽह वष* का फुत^ला लड़का बंसी हमेशा िदखाई दे ता था। वह भजन म सुंदर ढपली बजाता था। भावुक¸ सेवाभावी और सारी ऊँच नीच से दरू ईमानदारी से काम करने म िवBास रखता था। गुuदे व के चरण6 म सेवा करने को िमलती है इसी म वह अपना जीवन धय माना करता। िनयिमत आने जाने से उससे भी पहचान हो गई थी और उसे हम िचढ़ाया भी करते थे िक उसका नाम बंसी है और बजाता है ढपली। वह बस शरमाकर रह जाता। एक िदन बातचीत म मeने उससे पूछ ही िलया। वह िदन भर यहींरहकर सेवा िकया करता था। बदले म उसे थोड़े बहत ु पैसे¸ खाना¸ कपड़ा आदी िमलता था। घर की पिरिःथित भी कोई बहत ु अHछी नहींथी। "तुम इतने िदन6 तक यहाँ सेवा करते रहे बंसी!" मeने पूछा¸ "आिखर तुमने Aया कमाया?"

बंसी कुछ उOर दे इससे पहले ही उसे िकसी ने काम के िलये बुला िलया। बात आई गई हो गई। उस िदन गुu पूिण*मा का उYसव था मठ म। हज़ार6 लाख6 भSजन उपिःथत थे। ूसाद¸ हार फूल¸ दि(णा तो जैसे उफन रही थी। तभी मeने दे खा¸ िकसी अनाम भS ने गुu महाराज के चरण कमल6 पर एक लाख6 की कीमत का जड़ाऊ हीरे का हार रख िदया था। गु.जी के आस पास अिभजात वग* के िदखावटी भS6 की भीड़ थी जो अपने सामwय* का पिरचय दे ते हए ु गु.जी से सामीbय का ूदश*न करने म मxन थे। हार को हाथ म िलये हए ु गु.जी असमंजस म थे। तभी लालची yिh के वशीभूत ढे र6 हाथ आगे बढ़े ¸ "दीजीये गु.जी मe रख दे ता हँू ।" "यहाँ दीजीये गु.जी मe अपने पास सुरि(त रखूग ँ ा।" आदी के ःवर गूँजने लगे। उसी समय गु.जी ने सामाय तरीके से आवाज लगाई "अरे बंसी! ओ बं सी। कहाँ रह गया?" काम काज म उलझा बंसी पसीना प6छता गु.जी के सम( हािजर हआ। ु "ये रख तो जरा स?हालकर।" और वह हार बंसी की कृ तz हथेली पर आ िगरा। िकतनी ही वब yिhयाँ बंसी पर पड़ी। गुu का उसपर िवBास दे ख िकतने ही |दय भावुक भी हए। ु परंतु बंसी की yिh मुझे खोज रही थी। और उसने आँख6 की खुशी से ही मुझे जता िदया िक इतने िदन6 म उसने यहाँ रहकर Aया कमाया है ।

शे िडशनल पेरेिटंग "िवकास का बेटा कैसा हो गया हो इन िदन6!" शकुनजी ने भारी मन से कहा। "Aय6 ! कोई बुरी आदत है Aया!" बाबूजी ने िचं ितत ःवर म कहा। "बुरी आदत ज.र है लेिकन उसके माँ बाप म ।" शकुनजी धीरे धीरे गुःसा होती जा रही थी। "Aया मतलब?"

"िकसी से बात नहींकरना¸ सभी को खुद से कम Aवािलटे िटव समझना¸ मौज मःती करने¸ ू खाने पीने के नाम पर पसीने छटते है उसके। सब कुछ पढ़ाई¸ सारी िजंदगी नॉलेज के पीछे लगानी है उसने। खेलने खाने के िदन है उसके। मe कहती हँू आिखर ऐसा करके िवकास और वीणा Aया कर लगे?" शकुनजी अब फूट ही पड़ी थी। ु छिPटय6 म दो महीने बेटे के पास रह आई थी वे। बहू की दसरी िडलेवरी थी। बेटा बहू ू दोन6 नौकरी करते है । लेिकन उनका बड़ा पोता¸ िजसकी वे बात कर रही थी¸ उसका ]यवहार उह िचं ता म डाल गया था। "शकुनजी!" बाबूजी उह समझाने लगे। "दे िखये मुझे तो ऐसा लगता है िक घर म एक नया मेहमान आ जाने से ही उसके ]यवहार म फक* आ गया होगा। थोड़े िदन6 म हो सकता है िक वह सं भल जाए!" उहोने आशा बँधाई। "नहींजी! वो ऐसा िपछले दो साल6 से कर रहा है ।" "िवकास ने बताया ना मुझे। बस िदन भर पढ़ाई¸ कॉि?पिटशन¸ नॉलेज बeक¸ रे ड ी रे कनर ऐसी बात ही करता रहता है । उसे डॉAटर को भी िदखाया था। उहोने कहा िक वह इसी तरह ितत थी। से दबाव म रहा तो िदमाग पर बुरा असर पड़ सकता है ।" शकुनजी सचमुच िचं िफर कुछ िदन6 के बाद िवकास का फोन आया था। िजस ूकार की तकलीफ उसके बेटे को थी¸ उससे बाहर िनकालने के िलये एक ःवयंसेवी संःथा आगे आई थी। शकुनजी के घर के पास ही एक गाँव म उनका एक माह का िशिवर लगना था। वहाँ करीब तीस बHचे पेड़ पौध6¸ खेत6 के साथ रहते हए ु लकड़ी काटना¸ चूfहे पर खाना बनाना¸ खेती करना¸ िमPटी के बत*न बनाना आदी सीखगे। उसका बेटा भी वहाँ आ रहा था। इस सारे ूकfप का मुqय उ,दे श बHच6 को महानगर के अित सुिवधायुS व दमघोटू वातावरण से दरू रखकर उनके ]यिSYव म ज.री जमीनी जानकारी भरना था। िवकास का इतना ही कहना था िक वे बीच बीच म जाकर उससे िमल आएँ। सब कुछ सुनकर जब शकुनजी ने ये सब बाबूजी को सुनाया तब वे ठठाकर हँ सने लगे। "शकुनजी! एक बात बताईये!"

"किहये।" ु म दादा - नाना के गाँव म जाकर रहने का "मुझे लगता है इस नये जमाने म¸ छिPटय6 मजा लेने के िलये इन बHच6 को पैसे दे कर िशिवर म रहना होता है Aय6?" उनके अथ*पूण* वाAय का मम* शकुनजी एक हक ू दाबे समझ पाई और बाट जोहने लगी¸ अपने ूॉ8लम पोते की।

िसंदरी ू "िसंड़ी ऽऽ..." "जःट किमंग!" "िसंदरी ू ! उस लड़की ने िकसी िसंड़ी को आवाज लगाई है । तुम Aय6 इतनी फुत^ िदखा रही हो?" मीता ने मुःकुराते हए ु पूछा। "म?मी! मेरा नाम वैसे भी आऊट ऑफ डे ट है और तु?ह Aया लगता है ? "द" कहकर मेरे ृड़स अपनी एAसट नहींखराब कर सकते।" और िफर वह अजीब सी तंग और छोटी पोषाख पहने बाहर आई और अपना ऑAटोपॅड उठाकर चल दी। मीता उससे कहते कहते रह गई िक कहींवह कुछ पहनना भूल तो नहीं गई है लेिकन बेकार। अपनी ःपोट* स बाईक पर टाँग ड़ाले वह चौदह वष* की िकशोरी ःवयं को बीस की िदखाती हई ु अपनी ऐसी ही तीन सहे िलय6 के साथ चल दी। मीता को एकदम से ःवयंके आऊट डे टेड हो जाने का एहसास होने लगा था। िकतनी उमंग6 के साथ उसने और शेखर ने उसके जम पर¸ सूरज की लािलमा से दमकते मुखमंड़ल को दे ख इसका नाम िसंदरी ू रखना तय िकया था। बड़ी ूशंसा िमली थी दोन6 को उसके नामकरण पर। वही बेटी आज अपने नाम पर ही खुश नहींहै । उसने िपछले िदन6 फोन पर होती उसकी बातचीत से यह अं दाजा लगाया था िक उनके ःकूल के Aलब म कोई पॉप कसट* होनी है िजसके िलये इसे ऑAटोपॅड बजाना है । शायद आज वही कसट* होगा। यह कुछ भी तो बताती नहींहै आजकल।

मीता का िसर दद* करने लगा । हमेशा की तरह अपनी पसंदीदा शाiीय गायन की सीडी लगाकर वह बालकनी म कॉफी पीती खड़ी रही। वैसे भी िसंदरी ू को ये सब कभी समझ म नहींआता। काट*ू न दे खकर बचपन िबताया उसने और अब िॄटनी ःपीयस* के साथ बड़ी हो रही है । काश िक उसे भारतीय संगीत की िश(ा दी होती । कम से कम उसका ]यवहार तो सुधर जाता! लेिकन उसपर कोई दबाव नहींडाला था मीता ने। अपनी .िच के अनुसार ही ःवयंके िनण*य लेने िदये थे। इस सोच म जाने कब दो घ0टे बीत गए मालूम ही नहींपड़ा। िसंदरू ी वािपस आ गई थी। शायद शाiीय संगीत का ही असर था िक घर पर आते ही खाने और टीवी के िलये तूफान मचाने वाली लड़की आज शांित से अपने कमरे म चली गई। थक गई होगी। मीता ने सोचा। िफर वह कपड़े बदलकर बाहर आई। मीता के पास शांत बैठ गई। धीरे धीरे उसकी आँख6 से आँसू बहने लगे। मीता ने आvय* के साथ उसका िसर गोदी म िलया। उसे सहलाते हए ु bयार से पीठ पर हाथ फेरा। "म?मी! इसे कोई हक नहींहै मेरा आईिडयल बनने का।" कहकर उसने अपने गले म पहना हआ अपने पसंदीदा पॉप ःटार का लॉकेट तोड़ फका। ु "ये लोग हम इि0डयस को समझते Aया है म?मी?" हम लोग6 ने िकतनी मेहनत के साथ अपने बeड का परफॉमस वहाँ भेजा था लेिकन उनका जवाब आया है िक वे इि0डयस को िकतनी भी अHछी टै लट के बावजूद मौका नहींद गे। ऐसा Aय6 म?मी!" िसंदरी ू .आँसी हो गई थी। "तुम लोग जब उहींकी नकल करते हए ु इस संगीत की कला को सीखते हो तब यह ]यवहार भी Aय6 नहींसीख लेते उनसे?" मीता का आवाज कड़वा हो चला था। ितहाई के साथ शाiीय गायन का राग समाV हो चुका था। मीता ने िसंदरी ू को गुःसे से दे खा। "जब वे लोग ये दे खते है िक तुम अपने दे श की कला को िहकारत से दे खते हो¸ तब िवदे शी संगीत को Aया अपनाओगे? िजस ने अपने माँ बाप की कि नहींकी¸ उसकी पूजा कौन से दे व ःवीकार गे?" मीता ने िसंदरी ू को दे खा¸ वह ःवयंको कटघरे म ज.र पा रही थी।

"मेरे qयाल से उहोने कोई गलती नहींकी है ।" मीता ने अपने हाथ म एक चाबी ली और उसे िसंदरी ू के हाथ म रखते हए ु बोली¸ "और यिद तुम अपनी गलती सुधारना चाहती हो तो ये लो।" उसने सामने के एक बड़े से खड़े बAसे की ओर इशारा िकया। िसंदरी ू ने उसे खोला और हठात ्उसके हाथ जुड़ गए। उस बAसे म था¸ उसकी दादी की संगीत साधना का जीवंत ूतीक और सा(ी¸ एक तानपूरा। और हाँ आजकल उसे ःवयंको िसंदरी ू बुलाए जाने पर कोई आपिO नहींहै ।

बुढ़ापा "अरे सुनती हो सुधा!" ौीवाःतवजी अपनी लाठी टे कते बरामदे म पहँु चे। "किहये! अब Aया हआ। " सुधाजी धैय* के साथ बोली। ु "भैया तुम रह सकती हो इस नई पीढ़ी के साथ सुर िमलाकर। हमसे तो नहींहोने का। चलो हम कल ही िवनय के घर चलते है ।" ौीवाःतवजी आपा खोने लगे थे। "कुछ कह गे भी िक हआ Aया है ¸ सीधे चलने चलाने की बात करने लगे आप तो।" सुधाजी ु कुछ परे शान हो उठी थी। "अरे मe जरा मुने को िखला रहा था। उसे बी फॉर बाबू िसखाने लगा तो तु?हारी बहजी ू कहने लगी िक बाबूजी bलीज उसे बी फॉर बॉल ही िसखाईये। ःकूल म ऑ8जवशन होता है । अरे उसके पित को हमने ऊँगली पकड़कर चलना िसखाया है और वह हम िसखाने चली है । हमसे और नहींसहन होने का यह सब कुछ।" वे तमककर बोले। सुधाजी वैसी ही शांत बैठी हई ु मेथी तोड़ रही थी। बाहर बािरश होने लगी थी इसिलये हवा खाने वे अAसर यहींबैठा करती थी। िफर उहोने लहसुन की कुछ किलयाँ छीली। आँगन के बाहर रखी कचरा पेटी म जाकर वे कचरा फक आई और साफ की हई ु स8जी बहू को दे ने रसोई म चली गई। वे बाहर आई तब तक ौीवाःतवजी का गुःसा थोड़ा कम ज.र हो गया था पर वे भूले नहींथे उस वाकये को। बूँदाबाँदी हो रही थी।

"आ गई आप! उसी बहू की मदद करके िजसने थोड़े समय पहले आपके पित का अपमान िकया था?" ौीवाःतवजी ने िफर वही बात छे ड़ी। "Aया है जी! जब दे खो तब बैठे ठाले मीन मेख िनकालते रहते हो। जरा सी बात Aया कह दी बहू ने तो जैसे िमच^ लग गई है आपको। जमाना बदल गया है ¸ अब भी आप यही सोचगे िक वही पुराना िरवाज चला करे तो वह नहींहो सकता।" सुधाजी ने कह ही िदया। "अHछा! तो अब वह कल की आई हई ु लड़की कुछ भी कहा करे हम। आपको कोई फक* नहींपड़े गा। आपको ड़र लगा करता होगा इस नई पीढ़ी से¸ मe आज ही सुरेश से इसकी िशकायत करने वाला हँू । " बाबूजी िनणा*यक ःवर म बोले। "Aया िशकायत कर गे जी आप? यही िक मe गलत िसखा रहा था और बहू ने मुझे सुधारा इसिलये उसकी गलती हो गई?" सुधाजी ने भी पारा चढ़ाते हए ु कहा। "यहींतो गलती करते है आप लोग। और अHछी भली नई पीढ़ी के सामने बुढ़ापे का नाम बदनाम करते है । यिद वह नई लड़की आपको कुछ अHछा बता रही है ¸ तो Aया वह आपसे छोटी है इसिलये हमेशा गलत ही रहे गी? आप िसफ* उॆ को ही बड़bपन का तकाजा मान बैठे है । Aया आपको ःवयंयह मालूम है िक वह ऐसा Aया करे िजससे आपको उससे कोई भी िशकायत न रहे ?" सुधाजी ने मन की भड़ास िनकाल दी। ौीवाःतवजी पकड़े हए ु चोर की भाँित चुपचाप बैठे रहे । "दे िखये जी! मe ये नहींकहती िक आप चुप बैठे रह या िकसी भी काम म दखल न दे । आज यिद सुरेश और बहू हमारी अHछी दे खभाल कर रहे है ¸ समय पर खाना¸ दवाई सब कुछ िमल रहा है तब ]यथ* ही इस शांत पानी म कंकड़ Aय6 फकना चाहते है आप?" वहाँ चाय लेकर बहू के आ जाने से सुधाजी थोड़ी शांत और सामाय हो गई। काम म ]यःत बहू को कुछ समझ म नहींआया िक वहाँ Aया पक रहा है । वह रोते मुने की आवाज पर अं दर चली गई। "दे िखये जी! आपको तो याद ही होगा िक हमारे सुरेश की बचपन म सद* ूकृ ित थी। मेरे लाख मना करने के बावजूद भी िक डॉAटर ने मना िकया है ¸ आपकी माँ उसे चावल का मांड़ िखलाती ही थी ना? उस समय िकतने असहाय हो जाते थे हम दोन6। आज भी सुरेश को थोड़ी सी हवा लगते ही सद‚ हो जाती है । Aया आप हमारे बेटे और बहू को भी वैसा ही असहाय बना दे ना चाहते है ?" सुधाजी िकसी उOर की अपे(ा से बोली।

उनकी आशा के िवपरीत ौीवाःतवजी चाय वैसी ही छोडकर तेज कदम6 से बाहर चले गये। सुधाजी िसर हाथ धरे बैठी रही। पता नहींइस गीले म कहाँ चल िदये ह6गे। कहींमeने कुछ /यादा ही तो नहींकह िदया। इस तरह के िवचार उनके मन म आते जाते रहे । कुछ ही समय बाद ौीवाःतवजी हाथ म एक बड़ी सी कागज की थैली लाए। बाहर से ही बहू को आवाज दे ने लगे "अरे रीना िबिटया जरा बाहर आओ। मe सबके िलये भिजये ले आया हँू चलो बाहर बैठकर खाएँगे।" उहोने सुधाजी को शरारतपूण* yिh से दे खा। वे हँ सती हई दर चली गई। ु चाय गरम करने अं

ूेम वह ूेम िदवस का आयोजन था। लाल रंग के गुलाब6¸ िदल के आकार6 की िविभन वःतुएँ। रंग िबरंगे और अपे(ाकृ त ःमाट* पिरधान6 म युवक युवितयाँ अपने तƒ इकरार ू रहा था। कोई बदले इजहार आदी कर रहे थे। कोई झगड़ रहा था तो िकसी का िदल टट की भावना से गुःसा हआ जा रहा था तो िकसी के कदम जमीन पर नहींपड़ रहे थे। ु मोिनका भी एक bलांड़ इवट bलेस पर अपने परफॉमस की बारी का इंतजार कर रही थी। उहींके ृ„स Aलब ने ये आयोजन िकया था। इसम थी मौज मःती और नाच गाना। फूल¸ काड* ¸ िग…†स¸ चॉकलेट सभी कुछ उपल8ध था। उसे इंतजार था दे व का। िजसने िपछले वैलटाईन पर ही उससे अपने ूेम का इजहार िकया था। उसके बाद से साल भर दोन6 यूँ ही िमलते आ रहे थे। उसे िवBास था िक उसकी परफॉमस तक दे व ज.र आ जाएगा। अचानक बाहर कुछ शोर सुनाई िदया। सभी ने बाहर जाकर दे खा। दो गुट6 म झगड़ा हो रहा था। कारण जो भी कुछ रहा हो लेिकन पुिलस पहँु च चुकी थी। आतंक और तनाव का माहौल था। समझदार लड़िकय6 ने घर की राह पकड़ने म ही खैर समझी। लेिकन मोिनका वहाँ पहँु चती तब तक दे र हो चुकी थी। वह राःता बंद कर िदया गया था। सारा यातायात दसरी ओर मोड़ िदया गया था। ू मोिनका जहाँ दे व का इंतजार कर रही थी वहींएक पकी उॆ की माँ-जी भी खड़ी थी। उसे दे खते ही हठात ्बोल पड़ी। "इतनी गड़बड़ म Aय6 रात गये घर से िनकली हो बेटी?" मोिनका ने उपे(ापूण* yिh से उह दे खा। उसे लगा िक इन माँ-जी को वह Aया समझाए िक आज ूेम िदवस है । आज नहींतो कब बाहर िनकलना चािहये। आपके जमाने म नहीं

थे ये वैलटाईन डे वगैरह। आप तो अपने पित की चाकरी करते हए ु ही िजंदगी गुजािरये। उसे वैसे भी इस दादी टाईप की औरत की बात6 म कोई .िच नहींथी। लेिकन वह ःवयंइस हादसे के कारण घबराई हई ु सी सब दरू बस दे व को ही ढँू ढ़ रही थी। उसे िवBास था िक वह उसे इस मुसीबत से िनकालने के िलये ज.र आएगा। सारे वाहन वहाँ से हटवा िदये गये थे। काफी दे र तक जोर जोर से आवाज आती रही। लाठी चाज* होने लगा था। पुिलस िकसी को भी उस घेरे के अं दर से जाने दे ने को तैयार नहींथी। तभी मोिनका ने दे खा¸ दे व िकसी पुिलसकम^ से उलझ पड़ा था। वह उसे अं दर नहींआने दे रहा था। "ओह दे व bलीज मुझे िनकालो यहाँ से।" मोिनका चीख पड़ी थी। लेिकन दे व कुछ भी नहींकर पा रहा था। बार बार अपने मोबाईल से िकसी को फोन करता जा रहा था। शायद उसने मोिनका के भाई को फोन कर सारी िःथती बता दी थी और ःवयंवहाँ से िनकल गया था। मोिनका अिवBास से उसे जाते हए ु दे खती रही। Aया यही उसका िवBास था? तभी पास खड़ी माँ-जी खुशी से बोल पड़ी¸ "आ गये आप!" मोिनका ने उनकी yिh का पीछा िकया। एक बूढ़े से सOर के लगभग के बुजुग¸* काफी ऊँची रे िलंग को बड़ी मुिँकल से पार करते हए ु माँ-जी तक पहँु चे। दोन6 घबराए हए का हाथ पकड़े हाल चाल पूछते रहे । ू ु से पहले तो एक दसरे "मुझे तो सामने के वमा*जी ने खबर की। उहोने कहा िक जfदी से तु?ह घर ले आऊँ। यहाँ कोई फसाद हो गया है । तु?ह अकेले नहींआने द गे।" वे काफी घबराए हए ु थे। "लेिकन अब घबराने की ज.रत नहींहै । मe आ गया हँू ना। वो पुिलसवाले को दे खा¸ िकसी को भी अं दर आने नहींदे रहा था। सबसे झगडने पर ही तुला हआ है । इसीिलये मe उस ु रे िलंग को पार कर आ गया। यहाँ से बाहर जाने के िलये कोई पाबंदी नहींहै । चलो अब जfदी से िनकालते है ।" उनकी साँस फूलने लगी थी। मोिनका कुछ कहती इससे पहले ही माँ-जी ने उसे भी अपने साथ िलया और बाहर िनकलकर उसके भाई के हाथ6 म सुरि(त स‡प िदया। मोिनका को लगा िक दे व खुद भी तो यही कर सकता था!

वह सोचती रही। उन दोन6 का वैलटाईन डे के बगैर का¸ पका हआ ूेम िवBास और ु आपसी समझ। ये सब उन थके चेहर6 की आँख6 म चमक रहा थी िजसके आगे सारे युवा जोड़े फीके नजर आ रहे थे। उसे समझ आ गया था। यही सHचा ूेम था।

कुपोषण मिहलाओंम कुपोषण और उसके ूभाव6 पर आधािरत एक Aलब मिहला गोˆी उस तारांिकत होटल के टॉप …लोर पर चल रही थी। खाने और उसकी गुणवOा की कमी के कारण पैदा होते रोग व उससे हर साल होती मिहलाओंकी मृYयु जैसे तwय मय आँकड़6 के ूःतुत हए ु और एक मधुर घोषणा के साथ गोˆी समाV हई। ु "आप सभी भोजन के िलये आमंिऽत है ।" bलेट म पनीर दो bयाजा लेती हई ु िमसेस माहे Bरी¸ "आपका ूेजेटे शन तो बड़ा अHछा हआ िमसेस गुVा! काँमे†स।" ु "ओह थeAस!" चूिंक िमसेस गुVा अभी ःटाट* र पर थी इसिलये उह वहींछोड़ आपने िमसेस ूसाद को पकड़ा। िजनके साथ अगले ह…ते उह इसी िवषय पर ूेजेटे शन दे ना था। "मe सोचती हँू िमसेस ूसाद¸ िक हमारी कामवाली बाईयाँ ही है िजनसे हम ये सारे सवाल पूछ सकते है ।" िमसेस माहे Bरी ने बेAड वेज का कुरकुरा चीज़ मुँह म रखते हए ु कहा। "हाँ! उहींसे हम उनकी खान - पान की आदत6 और उनम सुधार की गुंजाइश की जानकारी िमलेगी। इस तरीके से हमारे ूेजेटे शन म थोड़ी लाईवलीनेस आ जाएगी यू नो!" और उहोने मचूिरयन पर धावा बोला। िफर कँमीरी पुलाव और मखनी दाल के साथ यह तय हुआ िक िमसेस माहे Bरी अगले ूेजेटे शन के िलये बाईय6 से आँकड़ जमा कर गी और िमसेस ूसाद उसका ःपीच बनाएँगी। अं त म आईःबीम िवथ ृेश ृूट ए0ड़ जैली के साथ ही इस ूेजेटे शन के िलये घर पर िरहस*ल का समय तय हआ। ु

तभी एक हfका सा शोर सुनाई िदया। "लाईव रोटी" के ःटॉल पर गम^ सहन न होने के कारण गभ*वती रमाबाई की तिबयत खराब हो रही थी। मeनेजर पैसे काटने की धमकी दे ु रहा था। रमाबाई आधे घ0टे की छPटी लेकर नींबूपानी पी लेने के बाद काम िनपटाए दे ने के िलये िचरौरी कर रही थी। िमसेस माहे Bरी और िमसेस ूसाद एक दसरे से िबदा लेकर¸ अपने भीमकाय जबड़6 म ू पान की िगलौिरयाँ दबाए¸ एअर क0डीशड गािड़य6 के बंद दरवाज6 के भीतर एक ही िवषय पर सोच रही थी¸ "आिखर मिहलाओंम कुपोषण के Aया कारण है ?"

गाँव की लड़की शहर के नामी पि8लक ःकूल के ूांगण म गहमा गहमी थी। आज ूाईमरी टीचस* के इ0टर]यू होने थे। ढे र सारी फेड़े ड़ मेकअप म सजी सजी सँवरी¸ सलवार सूट से लेकर पाvाYय कपड़6 म िलपटी कयाएँ¸ गृिहिणयाँ वहाँ थी। कोई अपने पहले के अनुभव बाँट रही थी तो कुछ अपने अंतरा*‰ीय िश(ण के तमगे लहरा रही थी। िकसी को वS काटने के िलये जॉब चािहये था तो कोई इंिडपड सी फील से पिरिचत होना चाह रही थी। इतनी जगमगाहट के बीच¸ फीके नारंगी रंग पर बeगनी फूल6 की सु.िचपूण* कढ़ाई वाली कलफ लगी सूती साड़ी पहने एक लड़की सकुचाई सी बैठी थी। पाvाYय शैली म सजाई हई ु बैठक म¸ सोफा सेट¸ टीपॉय¸ शोकेस के बीच म6ढ़े सी रखी हई ु वह थोड़ी सी आतंिकत अवँय थी लेिकन इसका असर उसके आYमिवBास पर नहींपड़ पाया था। उसके आस पास के सभी अपने ]यवहार से ही उसे "आऊट ड़े टेड़" या "िरजेAटे ड़ पीस" जैसा िकये दे रही थी। तभी उनके बीच एक ढ़ाई साल का बालक रोता - रोता दािखल हआ। उसकी हाफ पै0ट ु गदी और गीली थी¸ नाक बह रही थी। धूल म खेलकर आने के कारण आँसुओंसे चेहरे पर काले िनशान बन गये थे। वह क.णाि* ःवर म रोता हआ ु ¸ अपनी माँ को ढँू ढ़ता हआ ु वहाँ चला आया था और उसे वहाँ न पाकर उसकी िहचिकयाँ बँधी जा रही थी। सारा

वातावरण "ओ माय गॉड"¸ "वॉट अ डट‚ िकड"¸ "वेयर इज िहज केयरलेस मदर?" जैसे जुमल6 से भर गया। नहा बालक गोदी म िलये जाने के िलये हर िकसी की ओर हाथ बढ़ाता लेिकन उस नहे दे वदत ू को दे खकर िकसी भी शहरी का िदल नहींपसीजा। तभी सूती साड़ी वाली¸ मोढ़े सी गाँव की लड़की ने अपने नयन प6छे और उस बालक को bयार से गोदी म िलया। उसके गंदे होने और उससे ःवयंके गंदे हो जाने की परवाह िकये िबना! पास ही के गुसलखाने म ले जाकर उसने उसे साफ िकया¸ मीठी बात करने से उसका .दन बंद हआ। बालक की टी शट* की जेब म उसका नाम - पता िलखा था। वह ु झट िरसेbशन पर जाकर सारी जानकारी के साथ उस नहे मुने को दे आई जहाँ से माईक पर िविधवत घोषणा कर उसे उसकी माँ के पास स‡प िदया गया। सूती साड़ी वाली से िरसेbशन पर उसका नाम - पता आदी पूछा गया। वह वािपस वेिटंग .म म पहँु ची तब उसने पाया िक सारा पाvाYय माहौल अब उसे न िसफ* िहकारत वरन ् मजाक की yिh से भी दे ख रहा था। उसने पास लगे काँच म ःवयंको दे खा¸ जगह जगह गीले ध8बे¸ धूल के दाग। लगता था जैसे िबना इiी की मुचड़ी सी साड़ी पहनी है । वह पसीना - पसीना हो आई। अब Aया खाक इंटर]यू दे गी यहाँ जहाँ पहले से ही इतनी लायक युवितयाँ है ! एक िन:Bास छोडकर वह चल दी। उसके जाने के दस िमनट बाद ही वह इंटर]यू पोःट पो0ड होने की खबर दी गई और वह वेिटंग .म "ओह माई गॉड"¸ "हाऊ िडसगिःटंग" और "सो सॅड " जैसे जुमल6 के साथ खाली हआ। ु तीसरे ही िदन सूती साड़ी वाली के घर उस शाला का िनयुिS पऽ आ पहँु चा। उनकी भाषा म वह एक ूेिAटकल िथंकर थी और इसीिलये चुनी गई...

एक जात है सभी समारोह ःथल पर तो जो होना था वही हआ। यानी भाषण¸ हार - फूल¸ इनकी ऐसी तो ु उनकी वैसी। और होता भी Aया है खैर इन राजनीितक समारोह6 म। भीड़ अपना िकराया वसूल चलती बनी और ट ट हाऊस वाले ने िसर पर खड़े रहकर जब तक खुद का िहसाब बराबर नहींकर िलया तब तक वहाँ से िहला तक नहीं। पुराना अनुभवी लगता था। सारे जमीनी से लेकर आसमानी काय*कता*¸ समारोह की सफलता का सेहरा अपने िसर बँधवाने के िलये सामूिहक िववाह समारोह की भाँित रे ल पेल मचा रहे थे।

इन सभी .टीन है bपिनंxस से ऊबते हए ु मeने एक पऽकार की है िसयत से इस बार की ःटोरी म कुछ नया डालने का सोचा। सारा काय*बम समाV होने के बाद जब काय*कता*ओं की भीड़ भी छँ ट गई तब उस ःटे िडयम का एक सफाईकम^ अपनी ही धुन म वहाँ के खाली िडःपोजेबल िगलास¸ कुचले हार¸ कागज आदी कचरे को िठकाने लगा रहा था। िनिल*V भाव चेहरे पर िलये वह सा(ात िनगुण * पं थ का समथ*क िदखाई दे रहा था। उसको ु लगभग च‡काते हए हए ु मe उसके पास पहँु चा और यह छपाते ु िक मe कोई पऽकार हँू ¸ उससे बात करता हआ उसके मन की टोह लेता रहा। बात ही बात म मeने उससे पूछ ही ु िलया िक चूिँ क वह लगभग हर काय*बम का जो उस ःटे िड़यम म होता है ¸ स(ी रहा है तब अलग - अलग राजनीितक पािट* य6 के आयोजन6 म Aया िभनता उसे नजर आती है ? मुझे एAस रे मशीन की नजर से घूरता हआ वह बोला¸ "दे खो बाबू! नेता जात एक ही होती ु है । िपछले ह…ते गंदगी हटाने का संकfप लेकर समारोह कर गये और इस ह…ते सफाई आंदोलन की .परे खा बनाने को जमा हए ु थे। लेिकन दोन6 ही बार हमारे िलये इस गंदगी का िसरदद* ही छोड़ गये।" िफर मुझे अपने पैड म कुछ िलखता दे ख वह हँ सते हए ु कहने लगा¸ "दे खो बाबू¸ मुझसे पूछा उसे अपने तक ही रखना नहींतो ये िरपोट* री की नौकरी भी जाएगी हाथ से हाँ! िकतने ही बने और िबगड़ गये है यहाँ।" मe ठगा सा दे खता रहा और वह सफाईकम^ पुन: िनगुण * ी हो चला था।

भड़भूंिजया बाबा अपने जमाने म थोड़ा बहत  पढ़े हए ु आयुवद ु थे। घर गृहःथी के चAकर म ऐसे उलझे िक बस िपसते ही रहे । हाँ! बीच बीच म अपना शौक पूरा करने की खाितर अपने िमऽ के पास जो िक पेशे से वै‹ थे¸ जाकर बैठा करते थे। उनसे बितयाकर तो कभी उनकी मरीज6 को जाँचने की िविध दे खकर अपना zान बढ़ाया करते। उहींसे पूछ ताछकर कुछ बड़े बड़े मंथ भी मँगवाए थे उह6ने। समय िमलने पर पढ़ा करते थे। अपने बेटे म यह .िच पैदा करना चाहते थे वे लेिकन वह ये सब कुछ छोड़कर एक नामी यूज एजेसी म िरपोट* र बन गया था। िरटायरमट के बाद अब बाबा के पास भरपूर समय था। उहोने अपने कमरे के एक कोने को साफ करवाकर वहाँ अलग - अलग खाने वाली एक अलमारी लगवा ली थी। वहाँ

अपनी मोटी िकताब रखते। अलग अलग आसव¸ बूिटयाँ¸ चूण* जाने Aया Aया लाकर रखा था वहाँ उह6ने। िदन रात वे या तो अपनी पुःतक6 म मगन रहते या बोतल6 म से कुछ यहाँ तो कुछ वहाँ िकया करते। उनका ये नया शौक घर म मजाक का िवषय बना हआ था। "सिठया गये है " से लेकर ु "बुढ़ापे का चःका" जैसे जुमले अूYय( .प से उनके कान6 तक पहँु चे थे। ये सब कुछ अनसुना करके वे अपने लआय की ओर बढ़ते रहे । उनका लआय था बुढ़ापे म शरीर की हिडय6 को कमजोरी से बचाने के िलये एक िवशेष औषिध का िनमा*ण। और वे इसका ूयोग ःवयंपर और अपने एक सहयोगी िमऽ पर कर रहे थे। पिरवार के लोग6 को इस बात की कोई जानकारी नहींथी। उह िदन रात इन औषिधय6 के साथ काम करते दे ख उनका बेटा कहता¸ "Aया बाबा आप भी! बुढ़ापे म Aया नया शौक चरा*या है आपको? घूमना िफरना¸ पूजा पाठ¸ आराम छोड़कर फालतू भाड़ झ6का करते है ।" बाबा ितलिमलाकर रह जाते। बेटा यह जुमला अAसर दोहराता। िकसी के उनके िवषय म पूछने पर कहता¸ "अपने कमरे म बैठे भाड़ झ6क रहे ह6गे।" लेिकन वे तटःथ होकर अपने काम म मxन रहते। और िफर लगभग दो वषŽ की कड़ी मेहनत के बाद वह शुभ िदन आ ही गया था। उनकी नवीन औषिध अपना असर िदखा रही थी। और इस उपलि8ध के िलये उह एक आिवंकारक की मायता के .प म एक भ]य समारोह म स?मािनत िकया जाने वाला था। इस शुभ अवसर पर उह लगा जैसे उनकी जीवन भर की साध पूरी हो गई थी। ःवयंका मकान बनाकर या बHच6 की शादी करके भी वे इतना आनंिदत और संतुh नहींहो पाए थे िजतने िक आज थे। उनका घर पऽकार6¸ यूज चैनल6 के कैमर6 से िदन भर अता पड़ा रहा। वे सहज ही उनके सभी ूo6 का समाधान करते हए ु िकसी अयःत िचिकYसक की भाँित ]यवहार कर रहे थे। उनका बेटा भी अपने ]यवहार म िबना िकसी पुरानी िझड़की या कटु श8द6 को बीच म न ला¸ एक सामाय िरपोट* र की है िसयत से उनका इंटर]यू अपनी यूज एजेसी के िलये ले गया था।

उस शाम बाबा के िमऽ म0डल ने उनके स?मान म एक भोज रखा। सभी खुश¸ ूसनिचO। उनम से एक बुजुगव * ार¸ इधर उधर की बात6 के बीच ही बाबा से उनके बेटे के िवषय म पूछने लगे। यह सुनने के िलये िक ःवयंके िवषय म बाबा Aया कहते है ¸ बेटा उनके पीछे ही खड़ा था। बाबा ने कहा¸ "मेरा बेटा? अरे वह तो बड़ा उ?दा िरपोट* र है । तड़क - भड़क नहीं। जमीन से जुड़े मु,द6 पर ही अपनी कलम चलाता है । आप यकीन नहींकर गे¸ आज ही वह एक भड़भूँिजये का इंटर]यू लेकर गया है ।" अब बेटे के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसने कुछ सुना ही न हो...

सेिटंग िमौाजी ने दे खा¸ वही कम बाल6 वाला िछतरी सी मूछ6 का मनुंय घर के बाहर आकर मीटर रीिड़ंग ले रहा है । "अरे इससे तो अपनी सैिटंग है !" वे मन ही मन बड़बड़ाए और लगभग दौड़ ही पड़े । "अरे अली भाई ऽऽ!" अली भाई दरवाजे के बाहर कदम ही रख रहे थे िक यह आवाज उह लौटा लाई। आिखर िमौाजी ने उनसे बड़ी जान पहचान िनकाल रखी थी। और आजकल इसके िसवाय कहाँ कोई काम होता है भला। यह मीटर रीिडंग करने आने वाला शqस वैसे तो अHछा भला मालूम होता था। िफर बात6 ही बात6 म िमौाजी इन लोग6 की सैिटंग के िवषय म जान पाए थे। एक िनिvत रकम रीडर की जेब म और लगभग हर महीने एवरे ज िबजली का िबल। "अरे मeने कहा जनाब चाय पानी तो िलये जाते गरीबखाने से!" िमौाजी कुछ /यादा ही बोल गये है ऐसा उनकी पZी को लगा। और अली भाई अयःत की भाँित बैठ भी गये। दौर चल पड़ा तो बािरश के बहाने चाय के साथ भिजये भी तले गये और पूरे ड़े ढ़ घ0टे की आवभगत के बाद अली भाई तृV मन से वहाँ से िनकले।

इधर िमौाजी खैर मना रहे थे िक इस बार का िबल तो एवरे ज ही आएगा। लेिकन पिह िदन6 के बाद ड़े ढ़ हजारी रकम के आँकड़े सामने दे ख उनकी Yयौिरयाँ चढ़ गई। "आने तो दो अब इस अली भाई को" वे मन ही मन बड़बड़ाए। िफर कुछ िदन6 बाद जब उहोने सफाई के बहाने से मीटर का बAसा खोला तब तेज गित से घूमते चAके को दे ख है रान रह गये। पूरे घर की जाँच पड़ताल की उहोने िक कहीं कोई घरे लू यंऽ /यादा िबजली तो नहींखींच रहा? यहाँ तक िक पूरे घर की सभी िबजली से चलने वाली वःतुएँ बंद कर दे ने के बाद भी मीटर का चAका था िक सामाय गित से घूमता ही जा रहा था। "ज.र कुछ गड़बड़ है " वे मन ही मन म बोले। "ये अली भाई से ही पूछना होगा िक Aया माजरा है ! आिखर सैिटंग है उससे अपनी।" उहोने तय तो िकया लेिकन अली भाई को वािपस उनके घर की मीटर रीिड़ंग लेने आने के िलये अभी काफी समय शेष था। ु एक छPटी के िदन उहोने अपनी सुबह की सैर के दौरान दे खा िक उनके घर के िपछवाड़े की झोपिड़य6 म से एक पर एक चौदह पिह वष* का िकशोर ऊँचाई पर चढ़ा हआ एक ु तार से दसरा तार जोड़ रहा है । िमौाजी ने उस तार को गौर से दे खा तो उह आvय* ू हआ। यह तार तो उनके घर के पीछे से आ रही थी। ु "अHछा ! तो ये माजरा है !" वे िकला फतह करने की सी मुिा म बोले। "अभी पकड़ता हँू इसे।" कहकर वे आगे बढ़े ही थे िक उह सामने से भागवत साहब आते िदखाई िदये। िमौाजी को याद आया िक िकस ूकार िपछली बार िकसी बात को लेकर भागवत साहब का इन लोग6 से िववाद हआ था और ये बाल - बाल बचे थे। ु उस समय तो वे सीधे घर पर आने के िलये िनकले पर यह ठान िलया िक अली भाई से चचा* कर इसकी िरपोट* ज.र िलखवाएँगे। आिखर ये झ6पड़ी वाले उनके िदये पैस6 पर िबजली का इःतेमाल कर रहे है । सब कुछ Aया मु…त म िमलता है ? यही सब कुछ सोचते सोचते उहोन घर की राह ली। लेिकन अनजाने ही उनके कदम अली भाई के मुहfले की ओर बढ़ चले। एक बार उह6ने अःपh सा पता बताया ज.र था। उसी के आधार पर उह6ने उन तंग गिलय6 म वह घर ढँू ढ़ िनकाला।

आवभगत और चाय पानी के बाद वे मु,दे पर आए¸ "अरे अली भाई! आप तो अपनी सैिटंग के िहसाब से चल ही रहे ह6गे लेिकन इन िदन6 िपछवाड़े की झोपड़पPटी के लोग6 ने नया ही नाटक शु. िकया है ।" िमौाजी िकसी नवीन तwय के रहःयो,घाटन से पहले की सी चुbपी गहराकर आगे बोले¸ "अरे तार खींचकर अपने टापरे म रौशनी करते है ये लोग। अभी - अभी दे खा मeने और सीधा आपके पास दौड़ा चला आया हँू । अब बताईये िक इन चोर6 को कैसे सबक िसखाया जाए।" आशा के िवपरीत¸ अली भाई थोड़े गंभीर हो उठे । िकसी भी तरह से वे बातचीत के मु,दे को टालते हए ु इधर उधर की उड़ाते रहे । साथ ही ये भी कहा िक एक दो महीन6 के बाद अवैध िबजली लेने वाल6 के िखलाफ सरकारी मुिहम शु. होने वाली है । ऐसे म अभी से इन लोग6 से झगड़ा Aय6 मोल िलया जाए? िफर िमौाजी को भी तो उसी इलाके म रहना है । िबजली िबल के हजार पाँच सौ के िलये वे घर की सुर(ा तो खYम नहींकर सकते थे। खैर! िमौाजी उfटे पाँव घर लौट आए। उह रह रहकर यह बात परे शान कर रही थी िक आिखर उनकी सैिटंग म Aया कमी रह गई जो इतना भारी िबल भरना मजबूरी बन गया! ु उस िदन िमौाजी के घर की कामवाली बाई छPटी पर थी और बदले म िपछवाड़े के झोपड़े की बाई को दे गई थी। उसकी बातचीत बातचीत म जब िपछली रात के टे लीिवजन सीिरयल का िजब आया तब िमौाजी की ौीमतीजी ने पूछ ही िलया¸ "Aय6 बाई! तु?हारे इलाके म तो िबजली का कनेAशन ही नहींहै िफर तुम टी वी कैसे दे खती हो?" "वो बाई ऐसा हे िक मीटर वाले बाबूजी के यहाँ बत*न कपड़े करती हँू न मe! सो उनसे सैिटंग जमा ली है मेरे मुना ने। उनसे पूछकर हर दो महीन6 के अं दर िकसी बँगले की लाईन से जोड दे ते है । बस अपनी तो ऐसे ही िनभ जाती है ।" वह खींसे िनपोर कर हँ सने लगी। िमौाजी को समझ म आ गया िक अली बाई के यहाँ की नौकरानी की सैिटंग उनसे /यादा अHछी है । वे तेजी से घूमते मीटर को असहाय से दे खते रहे ।

वाxदे वी का तेज

सुनहरी िखली धूप म ँयामा अपने किथत िवतीय का]य संमह के िलये .परे खा बनाती हई ु बैठी थी। तभी ड़ािकया कुछ पऽ लेकर आया। उनम से बाकी को छाँटकर अलग रखा¸ एक पर उसकी yिh जड़ हो गई । ये Aया? उसका कलेजा धक्से रह गया। उस सफेद पर सुनहरे रंग से छापे गये िनमंऽण पऽ के उन वाAय6 को वह एक साँस म पढ़ गई¸ "किवयऽी मंजूौी के ूथम का]य संमह "अतम*न" के िवमोचन पर आपकी उपिःथती ूाथ*नीय है ।" इन पंिSय6 का एक एक श8द ँयामा को बींधता हआ चला गया। यह मंजूौी¸ यानी ँयामा ु के िपता किववय* कृ ंणदास की सुिशंया। अYयंत सुंदर का]यपाठ िकया करती थी और समाचार पऽ के समी(क6 ,वारा इसे समय समय पर अगली पीढ़ी की सशS दावेदार के .प म भी िन.िपत िकया गया था। हर बार ँयामा इसके का]य को¸ ]यवहार को ःवयं की ूितभा के सम( बौना सािबत करने पर तुली रहती। दोन6 ने कृ ंणदास जी के िशंयYव म ही सािहYय ःनातक की उपािध ूाV की थी। ँयामा जहाँ अं क6 म िवजयी हई ु वहींमंजूौी म थी नैसिग*क का]य ूितभा िजसका लोहा आज सभी मान रहे थे। "इसका मतलब¸ िपताजी को पहले से ही मालूम था िक मंजूौी का का]य संमह भी उसी ूकाशक के पास है िजसके पास मeने दो महीने पहले मेरी का]य पांडु िलपी िभजवाई थी!" ँयामा मन ही मन सोचने लगी। "तो Aया ये जानते हए ु भी उहोने मंजूौी की किवता पुःतक पहले छप जाने दी?" ँयामा .आँसी हो उठी। िकशोरवय से उसने िजस मंजूौी को अपनी ूितंी मान रखा था वह आज उसके ही िपता की मदद से उसे नीचा िदखाने पर तुली हई ु है । वह तमककर िपता के सम( उपिःथत हई। ु कृ ंणदासजी यानी माता सरःवती के परम ् भS। अपने िनवास पर उहोने संगमरमर की अYयंत मनोz ऐसी माँ की ूितमा ःथािपत की थी। उनका िनयम था िक अपनी रचनाओंको पहले माँ को अिप*त करते और िफर वे िकसी भी भाxयशाली ूकाशक के झोले म िगरती। इस उपासना के ूखर तेज के फलःव.प आपकी रचनाएँ िवBिवqयात और िचरनावीय िलये पाठक6 के |दय म अपना ःथान बना लेती थी। इस संपूण* सफलता का ौेय वे माँ के तेज और कृ पा को ही दे ते।

अपनी पुऽी ँयामा और िशंया मंजूौी के बीच एक अनकही सी अःवःथ ूितयोिगता है इसका अं दाजा उह काफी पहले हो गया था। परंतु वे इसे उॆ का तकाजा मान मौन बने रहे । मंजूौी एक उYकृ h कवियऽी के .प म उभरने लगी थी और उनके िशंयYव को साथ*क करती हई ु अपनी ूYयेक उपल8धी का ौेय गु. को दे ती हई ु बमश: ूगित कर रही थी। वहींँयामा म ूितभा कम और जुगाड़ की ूवृिO /यादा थी। आज भी उसे सभी उसकी किवताओंके कारण कम और कृ ंणदासजी की सुपुऽी के .प म अिधक जानते थे। अपनी ूितभा को ूसािरत करने के उ,दे श से ही ँयामा ने िदन रात मेहनत करके¸ िपता के उपदे श6 की अवहे लना करते हए ु एक आधुिनक शैली का का]य सृिजत िकया था। उनके लाख मना करने के बावजूद काफी मान मनौ]वल से उनका िसफािरशी पऽ एक बड़े ूकाशक के िलये िलखवा िदया था। दो महीने बीत गये थे इस बात को और कोई उOर नहींआया था। ूकाशन योxय न होने के बावजूद कृ ंणदासजी के पऽ के उOर म ःवयं ूकाशन कंपनी के मािलक का फोन उह आया था िजसम उहोने याचनाभरे ःवर म इसके ूकाशन म असमथ*ता ]यS की थी। इधर ँयामा इसी ूती(ा म थी िक कब उसका संमह ूकािशत होगा और वह मंजूौी से पहले ूकािशत हो पाने के सुख का अनुभव करे गी। "ये Aया है िपताजी?" ँयामा लगभग चीख ही पड़ी थी। "Aया आपको भी खबर नहींथी इस आयोजन की?" ँयामा की माँ यह आवाज सुनकर पूजाघर म दौड़ी आई और आvय*चिकत हो िपता पुऽी का संवाद सुनती रही। "दे खो ँयामा! तुम अयथा न लो। इस ूकाशक ने ःवयंही मंजूौी को अपना ूःताव भेजा था। उसने ःवयंबड़ी मेहनत की है इस संमह के िलये।" कृ ंणदासजी कातर ःवर म बोले। "नहींिपताजी। मe कुछ नहींजानती। उससे पहले मेरा संमह ूकािशत न हो इसिलये आपपर उसने दबाव ड़ाला होगा और आप अपनी बेटी का िहत छोड़ उसी के िहत म चल रहे है । यहाँ तक िक मुझे तो आज यह िनमंऽण पऽ दे खकर मालूम पड़ रहा है ।" ँयामा असंयत सी बोलती जा रही थी। "मe कुछ नहींजानती। यिद मंजूौी से पहले मेरा संमह ूकािशत नहींहआ तो मe आपको ु कभी (मा नहींक.ंगी।"

"ँयामा!" कृ ंणदासजी और उनकी पZी का युगल ःवर गूँजा। लेिकन तब तक ँयामा वहाँ से जा चुकी थी। "हे माता! कैसा धम* संकट है ।" किववय* ने माँ के सम( हाथ जोड़े । "कोई धम* संकट नहींहै आपके सम(।" उनकी धम*पZी का yढ़ ःवर गूँजा। "इस समय आपका सही धम* है अपने िपता होने का लाभ पुऽी को दे ना। आज के जमाने म कैसे कैसे मंऽीपुऽ¸ नायक पुऽ अपने ःथान6 पर जमे हए ु है ।" "लेिकन .िAमणी उस ूकाशक का ःपh उOर आया है िक ँयामा का संमह छपने योxय नहींहै । मe अपनी माँ को Aया जवाब दँ ग ू ा?" उहोने पुन: याचक की भाँित माँ सरःवती की शांत ूितमा को िनहारा। आनेवाले दस िदन6 तक यही पाप मन म पाले किववय* उस ूकाशक को मनाते रहे । अपनी ओर से कुछ किवताएँ¸ ँयामा ने िलखी है कहते हए ु उसके पास िभजवाई और उसे जबद* ःती इस संमह को जfद से जfद छापने को राजी िकया। मंजूौी के संमह का लोकाप*ण समारोह तीन िदन बाद था जब ँयामा के हाथ6 म उसका छपा हआ संमह था। आनन फानन म तीसरे ही िदन यानी मंजूौी के समारोह से एक ु िदन पूव* की ितथी ँयामा के संमह के लोकाप*ण समारोह के िलये चुनी गई। पानी की तरह पैसा बहाकर सारी तैयािरयाँ की गई। उपहार दे कर समी(क6 की उपिःथती तय की गई। आनेवाले सािहYयूेिमय6 के िलये भोज भी रखा गया था। ँयामा अYयंत उYसािहत थी और अपनी माँ के साथ िमलकर अपने पिरधान¸ भाषण आदी की तैयारी कर रही थी। लेिकन कृ ंणदासजी उस िदन के बाद से अपनी माँ से yिh िमलाकर बात नहींकर पाए थे। आयोजन के िदन घर से ूःथान करते हए मन से माँ के सम( खड़े थे। मन ु ु वे दखी हआ ु िक फूट फूटकर रो ल। अपने िकये का ूायिvO कर ले। परंतु समय ही नहींथा। बड़ी िह?मत कर उहोने माँ के मुखारिवंद की ओर yिhपात िकया। वह ूखर तेज और तीआण yिh उह असहनीय जान पड़ी। समारोह ःथल खचाखच भरा था। किववय* को सभी शुभिचतक बधाई दे रहे थे। ँयामा को भी वह सब कुछ िमल रहा था िजसकी लालसा म उसने वषŽ िबताए थे। आयोजन शु. होने को था। तभी िवचारमxन से किववय* को एक पिरिचत कंठःवर सुनाई िदया।

"ूणाम गु.जी!" वह मंजूौी थी। जब आश^वाद लेकर उठी तब किववय* को लगा जैसे उसके मुख पर आज कुछ ऐसा भाव है जो उहोने अभी अभी कहींदे खा है । वे बेचन ै हो उठे । काय*बम शु. हआ। वे मंच पर अपने ःथान पर िवराजे। ँयामा का का]यपाठ शु. हआ। वह अपने ु ु िपता की िलखी किवता को अपनी कह सबके सम( पढ़े जा रही थी¸ वाहवाही ले रही थी। तभी किववय* का cयान पुन: मंजूौी के मुख पर गया और उनके मिःतंक म िबजली सी क‡धी। आज मंच की साॆाzी अवँय ँयामा थी। लेिकन मंजूौी के मुख पर था उसी वाxदे वी का तेज िजसे किववय* ने यहाँ आने से पूव* अपनी माँ के मुख पर दे खा था। और वे मन ही मन अगले िदन के आयोजन की .परे खा बनाने लगे थे।

महानगर डायरी हमारा bयारा सा छोटा¸ सुंदर पिरवार है । यानी मेरे पित¸ चार साल का बेटा अिभ और मe। और हाँ अिभ के दादा भी हमारे ही साथ रहते है । मe थोड़ा गलत बोल गई। इतना भी छोटा पिरवार नहींहै हमारा। मेरे पित तो िदन भर काम म ]यःत रहते है । वो एAसपोट* का िबजनेस है ना हमारा। कःटम वाल6 से लगाकर टै Aस अथॉिरटीज सभी के साथ अHछी सेिटंग है इनकी। मe अपनी सहे िलय6 के साथ िजम¸ िकटी और Aलब की एAटीिवटीज म ही इतना थक जाती हँू िक ह…ते म दो तीन बार तो हम बाहर ही खा लेते है । अिभ के दादाजी को नहींभाता ये सब। अब बाहर जाएँगे तो साढे xयारह बारह से पहले लौट गे Aया? उनके िलये पॅAड िडनर ले आते है । कभी खाते है तो कभी वैसा ही पड़ा रहता है । दादा को मेरा घर म िकटी करना¸ टीवी पर सीिरयल दे खना¸ कॉकटे ल पाट‚ज म जाना और यहाँ तक िक नॉन वेज और िसंAस तक लेना भी पसंद नहींहै । हद होती है दिकयानूसी सोच की भी । आिखर कोई िकसी की लाईफःटईल म¸ जीने के तरीके पर तो पेटट नहीं रख सकता न? आप ही बताईये जब वे घर म जोर जोर से मंऽा बोलकर हमारी मॉिनग ःलीप म दखल दे ते थे¸ धूप जलाकर मेरे सारे इ?पोट ड कट* स खराब कर िदये उहोने¸ अिभ के बथ*डे पर

उसे गंदे आौम के बHच6 के पास ले जाने की िजद करने लगे थे¸ अपनी पZी की धरोहर के नाम पर तीन पेिटय6 की जगह घेरे हए ु रहते है तब हम उह कुछ भी कहते है Aया? कई बार मेरा िदमाग खराब होता है लेिकन अिभ के पापा सब कुछ समझते है । वे तो दादा से /यादा बात भी नहींकरते। उहोने मुझे बता रखा है िक मरते समय उनकी माँ को उहोने वचन िदया है इसिलये दादा को वृ’ाौम म नहींरख सकते। अब आिखर मe भी तो भारतीय नारी हँू । कुछ तो qयाल रखना ही पड़ता है ना पित की इमोशस का। लेिकन दादा ने उस िदन तो हद ही कर दी थी। िदवाली पर मe नौकरािनय6 के िलये कुछ सामान लाने बाजार ही नहींजा पाई थी। सोचा िक अपनी सासूजी की पुरानी धुरानी सिड़य6 के बंड़ल म से चार पाँच िनकाल कर उह दे भी दँ ग ू ी तो काम चल जाएगा। दादा टहलने गये थे और मeने अपना काम कर ड़ाला था। लेिकन अिभ! आिखर बHचा ही तो ठहरा¸ सो इनोसट ही इज। उसने दादा को बता ही िदया िक मeने दादी की सािड़या रमा¸ ऊमा¸ पारो और सिवता को दी है । िफर Aया था¸ वे मुझसे¸ िरयली मुझसे ऊँची आवाज म बात करने लगे थे। पता नहींकौन सी पाःट िहःशी बताते रहे थे। पुराना वैभव और Aया - Aया। तब मeने उह अिभ के पापा वाली बात बता ही दी थी िक "आपकी धम*पZी की ही बदौलत आपको दाना - पानी िमल रहा है यहाँ। नहींतो...।" और पता नहींAय6 वे छाती मलते हए ु से हमेशा की तरह नाटक करते बैठ गये थे। और सच बताऊँ अिभ ने ये भी सुन िलया और तो और मेरी सारी एAसूेशस को वह बखूबी इमीटे ट करने लगा है आजकल। उसे ना मेरा वड* "धम*पZी" बड़ा अHछा लगा था। कहता था "ममा आप तो बड़ा ही अHछा मदर टंग बोलती है ।" अिभ के पापा का मूड थोड़ा सा ऑफ ज.र हआ था लेिकन जब अिभ ने मेरा डायलॉग वैसे ही एAसूेशस के ु साथ बार - बार दोहराया तब ही ऑfसो एजॉइड लाईक एनीिथं ग। िफर तो जब भी दादा खाना खाने बैठते¸ अिभ उनके आगे पीछे दौड़ता हआ यही डायलॉग ु बोलता रहता। लेिकन िकतने .ड ]यिS थे वो। मeने तो सुना है और दे खा भी है िक दादा दादी को अपने नाती पोत6 से िकतना bयार होता है लेिकन यहाँ दादा तो बस एAसूेशनलेस होकर बैठे रहते थे।

साल का ये िदन मुझे बड़ा बोिरंग लगता है यू नो। मेरी सासू माँ की बरसी। अब आप ही सोिचये िक िजस लेड़ी को मe ठीक से जानती भी नहींउसके िलये ये सारा कुछ करने की एAसपॅAटे शन मुझसे Aय6 की जाती है ? पता नहींकौन कौन से बूढ़े और बोिरंग ]यिS आ जाते है इस िदन। और इतना खाते है िक पूिछये मत। और तो और सभी गँवार6 के जैसे नीचे बैठकर खाते है । और हमारे दादा! उनकी तो पूिछये मत। Vा◌ा नहींहमारे बारे म इन सभी लोग6 को Aया Aया बताते रहते है । इस सब चAकर म अिभ के पापा को घर पर रहना होता है और उनका िबजनेस लॉस होता है सो अलग। लेिकन कौन इह समझाए। दे िखये कैसे बैठे है सभी। छी! मुझे तो उनके सामने जाने की इHछा भी नहींहोती। उसपर आज साड़ी पहननी पड़ती है सो अलग। अिभ को तो मe उसकी नानी के यहाँ भेज दे ती हँू हमेशा लेिकन इस बार िजद करके .का है वो यहाँ। मe cयान रखती हँू िक वो इनम से िकसी भी आऊट ऑफ डे ट पीस के पास न चला जाए। ऐसा लग रहा है िक कब ये लोग एक बार के जाएँ यहाँ से और मe साड़ी की जगह ढीली नाईटी पहनू। लेिकन उस िदन आराम तो था ही नहींजैसे िकःमत म। सबके साथ दादा खाने बैठे थे। वही हमेशा की आदत! सासू माँ के "चिरऽ" का गुणगान! वे खाना अHछा बनाती थी¸ वे मेहमाननवाजी अHछी करती थी¸ उनके जाने के बाद तो जैसे घर म जान ही नहींरही आदी आदी। और जानते है उतने म Aया हआ ु ? अिभ वहाँ पहं ु चा और उसने अपना वही डायलॉग सबके बीच म दादा पर मारा। उसका ूेजेस ऑफ माƒड भी लाजवाब है । "आपकी धम*पZी की ही बदौलत आपको दाना - पानी िमल रहा है यहाँ। नहींतो...।" लेिकन दादा हमेशा की तरह तटःथ नहींबैठे रहे । वे िगर पड़े थे अपनी जगह पर ही। खैर... हम डॉAटर ने बताया िक िकसी शॉक के कारण ही हाट* फेल हआ है । अब जो ु आदमी इस दिनया म ही नहींरहा उसके िलये कोई कहाँ .कता है भला। उहोने उनका ु अं ितम संःकार काशी म करवाने का िलखा था। हमने रमाबाई और उसके पित को िटकट िनकालकर दे िदया था संःकार कर आने के िलये। िफर हम bलांड़ केरला िशप पर गये। िकतना ृःशे शन आया था अिभ के पापा को। उससे बाहर िनकलना भी तो ज.री था।

अिभ अपने साथ दादा का पुराना फोटो भी लाया था। एक िदन मe और उसके पापा िरसोट* के लॉन म कॉफी पी रहे थे। उनका मूड थोड़ा ऑफ था। अिभ भी कमाल का लड़का है हाँ। दादा का फोटो हमारे सामने रखा और कहने लगा¸ "आपकी धम*पZी की ही बदौलत आपको दाना - पानी िमल रहा है यहाँ। नहींतो...।" हमारा हँ सते - हँ सते बुरा हाल था...

गंदा कुOा ठाकुरजी बड़े सफाई पसंद ]यिS थे। धूल का एक कण तो Aया जरा सा दाग भी हो¸ उह बदा*ँत नहींहोता था। सारा घर िसर पर उठाए रहते। उनके घर के नौकर चाकर सभी के नाक म दम था। सभी बेचारे िदन भर झाडू ¸ गीला कपड़ा िलये यहाँ वहाँ दौड़ भाग मचाते रहते। पूजा घर म ःवHछ सफेद संगमरमर लगा हआ था और ठाकुरजी का आदे श था िक ु इसकी रोजाना सफाई होना ज.री है । दसरी बात¸ उह जानवर6 से बड़ी घृणा थी◌ी। खासकर कुO6 से। गाय या हाथी कभी गली ू मोहfले म घूमते तो उह कोई एतराज नहींहोता लेिकन कुOा कहींभी िदखा िक उनका मुँह चढ़ जाता। उनके िहसाब से यिद ये संसार चलता होता तो सभी जगह6 पर सफेद पYथर मढ़वा िदया होता उहोने िजससे धूल का नामोिनशान न रहे । लेिकन इन िदन6 ठाकुरजी की Yयौिरयाँ चढ़ी हई ु रहती थी। रोजाना उनकी सुबह की सैर के वS एक भूरा सा मcयवय का ःवःथ कुOा िकसी पुराने संगी साथी की भाँित उनके साथ हो लेता था। वे लाख उसे िझड़कते¸ भगाते वहाँ से लेिकन वह पूँछ िहलाता िफर थोड़ी दे र बाद हािजर हो जाता। उह इस तरह से परे शान होते दे ख शायद उस Bान को बड़ा मजा आता था Aय6िक वह राह चलते िकसी अय ]यिS के पीछे कभी भी नहींगया था। "अरे साथ म छड़ी िलये चला करो।" ठाकुरजी के िमऽ ने सुझाया। लेिकन उससे भी कुOा नहींड़रा। "उसे कुछ िबःकुट ड़ाल िदया करो रोजाना।" दसरा सुझाव आया। "लेिकन ू इससे एक के ःथान पर और भी कुOे पीछे पड़ने लगे तो?" उनकी धम*पZी का कहना सही था। खैर वे अपनी सुबह की सैर पर उस संगी के साथ जाते रहे ¸ उसपर कुढ़ते रहे । संपक* होता रहे तो इंसान - इंसान का भी ूेम हो जाता है िफर ये तो खैर जानवर था। लेिकन ठाकुरजी को कबी रास नहींआया। वे उससे हमेशा चार हाथ दरू ही रहते। खई बार राह

चलते उनसे कईय6 ने कहा भी था¸ "अरे ठाकुर साहब आसरा दे दीिजये इस अनाथ को अपने बँगले म।" तब ठाकुर साहब "िशव िशव! आज कहा¸ िफर मत कहना ऐसी अपशगुनी बात। मe और िकसी कुOे को ःवेHछा से अपने घर म रखूग ँ ा?" और वे Yयौिरयाँ चढ़ाते¸ उस Bान को एक बार िफर िझड़कते हए ु आगे िनकल जाते। उन िदन6 शहर सांूदाियक तनाव के घेरे म था। एक Yयौहार िवशेष के िदन शहर के मcय िवःफोट होने वाला है ऐसी अफवाह जोर6 पर थी। ठाकुरजी िनYय की भाँित सफेद झक कुत पजाम म सैर को िनकले। हाथ म बत की लकड़ी¸ साथ म अनचाहा संगी। िरंग रोड़ पर पहँु चने को ही थे िक कहींदरू से नारे बाजी और अःपh वाद िववाद के ःवर सुनाई िदये। ये सोचकर िक वे अपानी सैर पूरी करके ही लौट गे¸ वे अपने रोज के राःते पर चल िनकले। लेिकन दे खते ही दे खते¸ पूरा माहौल बदल गया। ठाकुरजी स?हल पाते इससे पहले ही जोर - जोर से ढोल ढमाके पीटते कुछ शकनुमा वाहन िनकले। उनम बैठे िचfलाते हए ु हिथयार6 से लैस युवा। तूफानी गित से गुजरते उन वाहन6 के पीछे थी एक बु’ भीड़। राःते म आते जा रहे सभी वाहन6¸ लोग6 पर अपना गुःसा बरसाती उस भीड़ पर पीछे से अौुगैस ¸ लािठयाँ भी वार कर रही थी। सब कुछ अिनयंिऽत सा हो चला था। ठाकुरजी को सोचने तक का समय न िमला और अनजाने ही वे अपने Bान िमऽ के ू - फूटे शरण पदिचह6 पर उस अनदे खी बःती की तंग गिलय6 से गुजरते हए ु िकसी टटे ःथल पर पहँु चे। Bान ने उनका साथ नहींछोड़ा था। इतनी तेजी से यह लंबी दरी ू तय कर आने के कारण उनकी साँस फूल रही थी। कुOा भी जीभ िनकाले हाँफ रहा था। उस ू ू ¸ एकांत मकान की सीिढ़याँ¸ सीलन से भहराकर टटने को हो आई थी। जीण* - शीण* से टटे धूल की परत जमी थी वहाँ। हमेशा के सफाई पसंद ठाकुरजी आज इतने थके और सहम से थे िक अपनी झक सफेदी की परवाह िकये िबना उन गंदी सीिढ़य6 पर जस के तस िटक गये। उहोने दे खा¸ थका हआ ु कुOा हाँफता जा रहा था लेिकन उसने एक ःथान पर पंज6 से िमPटी खोदी¸ उस जगह को साफ िकया और िफर उसपर बैठ सुःताने लगा। ठाकुरजी मुःकुराने लगे। तो आज ये कुOा सफाई म उह पीछे छोड़ गया था। लेिकन उनकी हँ सी /यादा दे र तक िटक नहींपाई। भीड़ का शोर वहाँ भी आ पहँु चा था। कब और िकस वS वे Aया कर बैठे इसका कोई भरोसा नहींथा। ठाकुरजी ने कातर नेऽ6 से Bान को दे खा। वह समझ रहा था। बाहर िनकलकर वह दो तीन सुरि(त से िदखाई दे ते राःत6 पर चलने को हआ। परंतु जfद ही वािपस लौट आता। और अं त म उसने एक ु

ू मकान के िपछवाड़े से िनकलकर नाले के पार जाता ऐसा राःता ढँू ढ़ िनकाला जो उस टटे था। ठाकुरजी अपने सारे सोच िवचार ताक पर धरे उस कुOे के पीछे दम ु िहलाते चले जा रहे थे। शायद यही राःता आगे चलकर िरंग रोड़ के दसरे छोर पर खुलता है । वहाँ से दो ू तीन िकलोमीटर के बाद उनका अपना इलाका ही आ जाएगा। लेिकन थोड़ा ही आगे चले ह6गे¸ िक दो पागल से िदखाई दे ते ]यिS उनपर शक की िनगाह रखते पीछे हो िलये। उनकी टोह लेते हए ु पीछे से वे एक भरपूर वार करने को ही थे िक ू पड़ा। जगह - जगह पंज6 के घाव और खून वह Bान गजब की फुत^ से उन दोन6 पर टट िलये वे दोन6 सर पर पाँव रखकर भागे। ढाकुरजी तो जैसे पYथर का बुत हो गये थे। कुOे ने उनके धूल से सने हाथ चाटने शु. िकये। उहोने कोई ूितवाद नहींिकया। वह पूँछ िहलाता उनके पैर6 म लोट लगाने लगा¸ उनका पायजामा धूल - कीचड़ से सान िदया। ठाकुरजी ने कोई िवरोध नहींजताया। उfटे वे उसे गोदी म लेकर िकसी नहे मुने के जैसे लाड़ करने लगे। खुद म हए ु इस बदलाव पर उह ःवयंआvय* हो रहा था। और हो भी Aय6 ना ! आिखर यही कुOा आज इसािनयत म उनसे आगे जो िनकल गया था...

पोट िशयल कःटमर जोशी अं कल का िवनू इन िदन6 पास की मfटी म रहने वाले उसके ममेरे दादा दादी के यहाँ जाने म काफी .िच लेने लगा है । सऽह अठारह साल का िवनू उन अकेले रहते दादा दादी के िलये कभी घर का बना अचार ले जाता तो कभी गरम - गरम पूरणपोली। वे दोन6 भी बड़े खुश थे। इसी बहाने उनका भी थोड़ा वS िनकल जाता। थोड़ा उसके साथ बितयाने म और उससे दगु ु ना उसके िवषय म बितयाने म। पूछने पर वह बताता िक उसी िबिfड़ंग म उसका खास दोःत ूशांत भी रहता है .म लेकर। उसके यहाँ जाने पर दादा दादी के यहाँ भी चAकर लगा आता है । वैसे ूशांत से उसकी कोई इतनी खास नहींथी। बस हाईःकूल म दोन6 साथ पढ़े थे इतना ही। दादा दादी भी अकेले से अपना जीवन जी रहे थे। दोन6 की ही तिबयत वैसे तो िबfकुल ठीक ठाक थी। दादा च‡सठ के थे और दादी साठ के लगभग। उनके बHचे अपन भिवंय सुधारने दसरे दे श6 म थे और उनके अनुसार ये दोन6 वहाँ की संःकृ ित¸ रहन सहन से मोल ू

जोल नहींबैठा पाएँगे। इसिलये जब तक ःवयंका सब कुछ कर सकते है ¸ कोई तकलीफ नहीं। आगे दे खा जाएगा। कई बार दादा दादी जब यही दखड़ा िफर ले बैठते तब िवनू उह समझाता था¸ "आप Aय6 ु िचं ता करते है दादा! मe हँू ना यहाँ आपकी मदद करने को। आप तो जो भी काम हो¸ मुझे बेधड़क बता िदया कीिजये।" बड़े अपनेपन से कहता था िवनू। दादा दादी िनहाल हो जाते। इसी तरह धीरे धीरे उसने इन दो महीन6 म दादा के पशन िनकालने से लगाकर िकराना सामान लाने¸ उनके इंँयोरंस की ूीिमयम भरने से लगाकर बeक म जमा खच तक का काम संभाल िलया था। उसे इस तरह से काम करता दे ख उसका दोःत ूशांत है रान होता। "अरे यार कोई इन िदन6 इतना तो अपने घर के िलये भी नहींकरता¸ तू है िक जुटा रहता है यहाँ पर। कोई मतलब साधना है Aया?" ूशांत ने उसे टटोलते हए ु पूछा था। "बस यही समझ ले।" िवनू मुःकुराते हए ु बोला था। उस िदन दादाजी को मालूम था िक िवनू ऊपर ूशांत के यहाँ आया है । वे उसके िलये खुद जाकर उसके पसंद की ृूट आईःबीम लाए थे । दादा दादी का िवचार था िक िवनू और ूशांत को एक साथ नीचे बुलाकर आईःबीम पाट‚ दी जाए। इसिलये दादाजी ऊपर ूशांत के 8लॉक की ओर बढ़ रहे थे। ऊपर पहँु चकर बेल दबाने को ही थे िक उह सुनाई िदया जैसे दोन6 दोःत िमलकर उहीं के िवषय म बितया रहे है । वे बेल बजाना छोड़ उनकी बात सुनने का ूयZ करने लगे। "अरे बता ना यार। दे ख तू भाव मत खा Aया। बता तो ऐसा Aया है ये नीचे वाले दादा दादी के पास जो मेरे यहाँ आने के बहाने इनके चAकर लगाया करता है तू?" ूशांत िवनू को परे शान कर रहा था। "अभी नहींयार। दे ख जfदी ही तुझे समझ आ जाएगा िक मe Aया करने वाला हँू ।" िवनू बात टालने के मूड़ म था। दादाजी और सतक* हो उठे । "बता ना यार कोई लड़की वड़की हो उनके िरँते म तो मe भी सेवा का पु0य कमाऊँ।" ूशांत ने िवनू को छे ड़ा।

"नहींरे । अब तू इतना ही पीछे पड़ा है तब सुन। ये दादा दादी वैसे बड़े पैसे वाले है । मeने इनके बeक का काम Aया यूँ ही हिथयाया है ? और दादा अभी पeसठ के नहींहए ु है । अगले महीने मe एक इंँयोर स कंपनी की एजसी ले रहा हँू । ये मेरे पोट िशयल कःटमर है इहे ऐसी भारी पॉिलसी बेचग ूं ा िक सारे फायदे अपने। इतने िदन6 के संबंध6 के बाद मना थोड़े ही कर गे दोन6 बूढ़ा बूढ ी Aय6?" और िवनू और ूशांत ताली मारकर हँ सने लगे थे। दादाजी को लगा जैसे उनके हाथ6 से अचानक िकसी ने छड़ी छीन ली है ...

सपने "बाबू ऽऽ! औ बाबू ऽऽ! अरे हो Aया घर म बाबू?" "जाईये! आ गया भगत आपका। म?मी ने बीच म ही पोथी बंद करते हए ु कहा। "अरे हिरराम भैया! बड़े िदन6 के बाद िदखाई पड़ रहे हो । सब कुशल मंगल तो है ?" िपताजी बड़ी आYमीयता से िमलते है इस हिरराम माली से । ऐसे जैसे कोई पुराना िबछड़ा हआ साथी बड़े िदन6 के बाद िमल रहा हो। और हिरराम माली¸ वह तो िबछ िबछ जाता है ु पापा के शहद म डू बे श8द6 पर। कहने को कॉलोनी के छह सात घर6 म बगीचे की दे खभाल का काम करता है बस। लेिकन चाय पानी की बैठक बस हमारे यहाँ ही जमती है उसकी। वो भी रिववार की सुबह। िगनकर एक घ0टा। म?मी को थोड़ी िचढ़ है इस माली से। और हो भी Aय6 ना। ह…ते म एक िदन तो िमलता है पापा को आराम से बैठने बोलने को। उसपर सुबह का आधा घ0टा ये ही चाट जाता है । ऊपर से चाय नाँता। उसकी बेिसर पैर की बात सुननी पड़ती है सो अलग। "Aय6 पाल रखा है इसे अपने यहाँ? कहने को आमने सामने के दस घर6 म काम करता है लेिकन वS काटता है हमारे ही घर। Aया रस आता है तु?ह इसकी बात6 म भगवान जाने।" म?मी बड़बड़ाया करती। उस िदन तो हद ही हो गई। रिववार था और मामा के यहाँ कथा का आयोजन था। सुबह दस बजे पहँु चना था और माँ के श8द6 म अपशकुनी के जैसा हिरराम आ टपका था। उस िदन बड़ा खुश¸ हाथ6 म ताजे फूल6 का गुHछा चेहरे पर वैसी ही ताजी मुःकान।

म?मी के चेहरे पर लग गया महण और हिरराम के मुख से बतरस बरसता रहा। पूरा एक घ0टा खाकर उठा था वो। िपताजी भी खुश खुश थे उसे िवदा करते हए। ु गाड़ी म मeने पूछ ही िलया था उनसे¸ "िपताजी! ये हिरराम माली Aया कर रहा था आज? इतनी दे र बैठा रहा। फालतू ही दे र करवा दी हम।" मeने कुछ कुछ म?मी के िबगड़े मूड़ को टटोलते हए ु कहा। "बेटा! हिरराम आज एक बहत ु बड़ी जंग जीत गया है ।" वे कुछ .के। हम सभी के ूoाथ*क चेहरे दे खकर उहोने आगे कहना शु. िकया। "हिरराम का बेटा आज इंजीिनयिरंग की परी(ा पास करके लौटा है । एक माली का बेटा और वो भी इंजीिनयर। इसिलये आज वह बड़ा खुश था। अगले ह…ते से अपने बेटे के पास शहर जा रहा है जहाँ उसे नौकरी लगी है । यहाँ का काम काज अब उसका छोटा भाई दे खा करे गा।" पापा साँस लेने को .के। मुझे मेरा ूी इंजीिनयिरंग टे ःट के िलये गॅप लेना अखरने लगा था। पापा कहने लगे¸ " अब तो खुश हो ना िूया! हिरराम हमारी रिववार की सुबह खराब नहीं कर पाएगा कभी।" म?मी के चेहरे पर अपराधी के से भाव थे।

िमPटी लौट आई सुरेि की माँ िकसी कलाकार से कम नहींथी। अपने हाथ6 के हनर से उहोने िकतने ही ु चादर िलहाफ जीवंत िकये। फुलकारी¸ जरदौजी¸ िसंधी टाँका¸ यहाँ तक िक कागज और कपड़6 के फूल¸ िखलौने¸ िमPटी के सुंदर दीपक भी उनके हाथ6 से जम लेकर िकसी भी पिवऽ ःथान की शोभा बढ़ाने म समथ* थे। अपने घर म उहोने दीवार के सहारे लटकती कई आकृ ितयाँ लगा रखी थी। उनकी सबसे सुंदर कृ ित¸ कमरे के कोने म रखी हई ु बड़ी सी मूित* थी। उसके हाथ म रखे हए ु घट म से सुनहरी चुनरी बाहर िनकलती हई ु रखी थी जो बहते हए ु जल का सा आभास दे ती थी।

एक के ऊपर एक चूिड़याँ बैठाकर बनाया गया बेलनाकर फूलदान¸ और भी न जाने Aया Aया था उनकी कला कौशल के खजाने म। माँ के जाने के बाद बस ये उसकी कलाकृ ितयाँ ही थी जो उनके इस घर म जीवंत होने का आभास दे ती थी। एक िदन सुरेि घर लौटा तो उसकी पZी लितका ने उसे सरूाईज िदया। उसने cयान से दे खा। पूरा घर नम* गुदगुदे से¸ फर वाले िखलौन6 से अटा पड़ा था। जाने कहाँ अपनी पूँछ छोड़ आया काला कलूटा बंदर था तो "कभी साथ ना छोड़ गे" की तज* पर एक दसरे से िचपके रंग िबरंगे लव टै ड़ी। बड़ी मूित* के ःथान पर एक सजीव सा ू लगता जम*न शेपड़* तनकर खड़ा हआ था। और तो और घर के परद6 को भी कुछ नहे ु खरगोश अपने आगोश म िलये थे। "बस यही बाकी था।" कहकर लितका ने उसके हाथ से गाड़ी की चाबी छीनी और उसम एक नैन मटAका करता मछिलय6 का जोड़ा लगाकर उसे िनयत ःथान पर टाँग िदया। सुरेि ने दे खा िक वहाँ पहले से ही कुछ मुँह िचढ़ाती और आँख िदखाती आकृ ितयाँ मौजूद थी। उसे लगा जैसे वह िमनू िबिटया को िकंड़रगाड़* न भत^ करवाने ले गया था¸ वैसा ही कुछ यहाँ आ गया है । इस सबके पीछे लितका का आिट* िःटक ःटे टमट था िक पहले का डे कोरे शन "लाईव" नहीं था और अब इन सॉ…ट टॉयज की नम* दे ह और मासूम मुखमुिा एक ूकार की वाम* फीलींग दे ती है । सुरेि ने कुछ भी नहींकहा। िफर उसने दे खा िक लगभग छ: महीने इस वाम* फीलींग के साये तले रहकर¸ उसकी बचपन से गुिड़याओंके बीच पाली बढ़ी बेटी अचानक खुद को बड़ा समझने लगी है । माँ के नकाराYमक .ख की परवाह न करते हए ु भी अपनी अिभ]यिSय6 को पॉटरीज Aलास म जाकर आकार दे ने लगी है । सुरेि खुश होने लगा।

बेटी की दे शज कलाकृ ितयाँ गुदगुदे बनी टै ड ी के बीच जगह पाने म सफल रही। िकसी भी तरीके से हो¸ घर म िमPटी लौट रही थी। घर खुश था...

िचिड़याघर िहरन के िपंजरे म आज Yयौहार का सा माहौल था। एक नहा सा मृगछौना वहाँ जमा था। चीतल ूजाित का ये िहरन यिद ःवःथ और सुंदर िनकलता है तो िचिड़याघर की शान बढ़ जाएगी। पशु िचिकYसक से लगाकर एनीमल फीडर और कई वय जीव ूेमी संःथाएँ इसम .िच ले रही थी। सामाय से कुछ कम वजन का वह नहा िहरन शावक बेसुध सोया था। उसके आस पास छायाकार6¸ रपट लेखक6 और वय जीव ूेिमय6 की भीड़ थी। िहरनी माँ¸ इस बरसते सुख की छाँव तले नर के साथ बैठी¸ थकी हई ु सी¸ इस yँय को दे खते हए ु ःवाःwय लाभ ले रही थी। उसके खान पान और दवाइय6 का िवशेष cयान रखा जा रहा था। िहरन के िपंजरे के िपछवाड़े एक गंदा नाला बहता था। उसी के पास की एक सूखी और आरामदे ह जगह पर एक कुितया ने भी एक साथ आठ बHच6 को जम िदया था। दोन6 जानवर6 को इसान6 से िमलते इस अजीब ]यवहार को दे खकर आvय* होता था। िहरनी तो खैर िपंजरे म रहते हए ु इस तरह के जीवन की अयःत हो चुकी थी। कुितया को उसे दे ख दे ख कर है रानी होती थी। इसने ऐसा आिखर Aया कर िलया है जो इतनी सेवा सूौष ू ा पा रही है ? इतनी कवायद करने के बाद भी जमा तो एक ही शावक था ना उसने? और कुितया ने तो पूरे आठ आठ जीव एक साथ जने है । इस तरह की िवड़ंबना वह पहले भी दे ख चुकी थी। इसान6 का िदमाग उसे कभी भी समझ नहींआया था। कुितया बैठी सोचा करती। इसी बीच नाले का गंदा पानी कभी कभी सरकार की अितबमण हटाओ मुिहम के अफसर6 के जैसा उसकी ममता पर क8जा करने आता। वह नहे ¸ बंद आँख6 के जीव िलये एक ःथान से दसरा ःथान बदलती रहती। ू उस िदन कुितया िवशेष सतक* थी। उसके नहे अब अपने कोमल पैर6 से आगे - पीछे सरकने लगे थे। और उनकी इन गितिविधय6 से आकिष*त हो दो गली के बHचे इस टोह

म थे िक कब इनम से एकाध हाथ लग जाए। वह िदन भर उह भ‡क कर¸ गुरा*कर वहाँ से भगाती रही थी। ये सब करते करते अब कुितया थकने लगी थी। सोचने लगी िक काश एकाध िपंजरा उसे भी नसीब हो जाता तो इन नह6 की िचं ता न रहती। लेिकन पता नहींये इसान भी Aया अजीब ूाणी है । जाने उस िहरनी के एक बHचे पर इतनी कृ पा Aय6 बरस रही है । उसकी िहरनी माँ दे खो कैसी सारी िचं ताओंसे दरू सो रही है । उसे ना ःवयंके खाने की िचं ता है और न ही बHचे के िलये खाना ढँू ढ़कर लाना होता है । कुितया ने एक आह भरी। काश िक उसके बHचे भी िहरनी के नहे के जैसे भाxयवान होते! तभी नाले पार के िपंजरे से एक चीख उभरी। कुितया ने उठकर दे खा¸ दो मनुंय नहे मृगछौने को जबद* ःती उसकी माँ से अलग िपंजरे के बाहर ले गये । यही नहींउहोने उसे एक नुकीली सी सूई भी चुभो दी। िहरनौटा दद* से िबलिबला रहा था। उसकी िपंजरे म बंद िहरनी माँ असहाय सी ितलिमला रही थी। कुितया ने आठ6 जीव अितिरS सावधानी से अपने क8जे म िलये और चैन से सो गई।

अधर आज िरतेश और िूयंका बड़े खुश थे। खुद की मेहनत के बल पर उहोने शहर के सबसे महँ गे और पॉश कहे जाने वाले इलाके म एक अYयाधुिनक …लैट खरीद िलया था। बीसवीं मंिजल पर बसा उनका ये नया आिशयाना सचमुच बड़ा खूबसूरत था। चौबीस6 घ0टे की वीिडयो कैमरा और वॉईस फैिसिलटी से सुसि/जत िसAयुिरटी¸ एक पावर ःटे शन¸ ूाईवेट बस ःटॉप¸ पाक*¸ िजम¸ पूल¸ bले जोन¸ Aया नहींथा वहाँ! िरतेश को सबसे /यादा पसंद आई थी उसके …लॅट की सी ]यू गैलेरी। िकतना मनमोहक yँय िदखाई दे ता था वहाँ से ! आज तक वे माऊ0ड …लोर की इस छोटी सी पुरानी जगह पर रहते आए थे।

िूयंका को तो जैसे पर लग गये थे। नये घर की सजावट¸ बुक शैfफ¸ कट* स¸ फन^चर और बी न जाने Aया Aया था उसक िलःट म। अनमना सा कोई था तो उनका पाँच वष* का ूशांत। उसे िबfकुल भी समझ म नहींआ रहा था िक इस जगह को छोड़कर वे आिखर उस इतनी ऊँची इमारत म Aय6 रहने जाएँगे? उसकी िचं ता भी वािजब थी। उसकी सबसे अHछी साथी यानी उसकी दहलीज पर दाना चुगने आती िचिड़या अब भूखी रहा कर गी। उसने एक बार नये घर म जाकर दे खा था। कोई भी पेड उसके घर की बराबरी नहींकर पा रहा था। तो Aया ये सब भूल जाना होगा उसे? "Aया बात है ूशांत? दे खो मe तु?हारी मनपसंद काट*ू न सी डी लाया हँू ।" िरतेश ने उसे मनाते हए त ने कोई जवाब नहींिदया। ु कहा। ूशां तभी जोर जोर से खाँसती िूयंका अं दर आई। "िपछली गली म कचरे के नाम पर Aया Aया जलाते है ? दम घुटने लगता है कभी - कभी।" "कुछ ही िदन6 की तो बात है िडयर! िफर तो हम इतने ऊँचे चले जाएँगे िक तुम बस दे खती रहना।" ूशांत ने सपनीली आँख6 से उसे दे खा। "सचमुच! मुझे तो ऐसा लग रहा है िक कब ये कबाड़खाना छोडकर वहाँ िश…ट ह6गे हम। िकतना साफ¸ पोfयूशन ृी¸ एकदम हाई सोसाईटी फील के जैसा।" िूयंका को अपना िूय िवषय िमल गया था। दोन6 ने दे खा िक इस नये घर को लेकर ूशांत उतना उYसािहत नहींहै िजतना िक उसे होना चािहये। "ूशांत! बेटा हम थोड़े ही िदन6 के बाद अपने नये घर म िश…ट होने वाले है । Aय6 न हम तु?हारे यहाँ वाले दोःत6 के िलये एक पाट‚ अर ज कर ?" िूयंका ने उसे टटोलते हए ु पूछा। "और िफर ूशांत¸ नया घर तो बड़ी ऊँचाई पर है वहाँ से सब कुछ िकतना अHछा लगेगा है ना?" िरतेश ने उसे मनाते हए ु कहा। दोन6 ही उसकी ूितिबया दे खना चाह रहे थे। "लेिकन पापा!"

"बोलो बेटा!" "वहाँ पर न तो कोई पेड़ पौधे रह गे¸ न पंछी। ये सब बहत ु नीचे होगा। और न ही हम चाँद तार6 को छू सकते है ¸ ये बहत ु ऊपर होगा। ऐसी बीच वाली ःटे ज को तो अधर म लटकना कहते है ना?" दोन6 के पास कोई उOर नहींथा। उधर आँगन म¸ चावल के दान6 पर अपना हक जताती एक िचया चहचहा रही थी।

िडःचाज* सेिटःफेAशन "दे िखये मfहोऽा जी ! मॅड म के िरःपॉसेस तो ठीक है लेिकन अभी मेरा सेिटःफेAशन लेवल तो नहींबोलता िक िडःचाज* दँ ।ू आगे आपकी मज^!" "दे िखये डॉAटर साहब! मधु को तो मeने पूरा - पूरा आपके भरोसे कर रखा है । उसकी बीमारी Aय6 पकड़ म नहींआ रही है इसकी िचं ता तो मुझे भी है । आप तो अपने िहसाब से उसका इलाज कीजीये।" "ठीक है । तो िफर ये कुछ टे ःट करवाने ह6गे उनके। और याद रहे ! िसफ* ौेया पॅथालॉजी म ही।" "जी" ..................... "ौेया लॅब से बोल रहे है ?" "जी! किहये!" "मॅड म से बात करवाईये। मe डॉ झा बोल रहा हँू ।" "जी!" "है fलो डॉ झा! किहये¸ िकसकी इटीमेशन है इस बार?"

"मॅड म! आपको न िसफ* पॅथालॉिजःट बिfक टे लीपॅिथःट भी होना चािहये था। िकतनी खूबसूरती से मन की बात जान लेती है आप! जवाब नहीं।" "किहये ना! कौन है इस बार?" "िमःटर मfहोऽा। उनकी पZी के कुछ सपfस आऐंगे आपके पास। िरपो†स* से िडःचाज* सेिटःफेAशन ह…ते भर आगे बढ़ जाना चािहये। आई िवल बी विकग फॉर िफ…टीन पस”ट।" "ँयोर! ड़न!" मfहोऽा साहब बेटे को फोन लगा रहे थे। "बेटे! तिबयत /यादा खराब है । बीस की ]यवःथा और करनी होगी।"

जुगत "अरे शमा* बंधू सुना तुमने?" पिरहार बाबू तंबाकू मलते हए ु कहने लगे। "अपने ौीवाःतवजी तो अं दर हो गये। आज के अखबार म¸ पकड़कर ले जाते हए ु का फोटो है उनका।" "लेिकन ये गँवई भी आजकल बड़े चालाक हो चले है । वो िकसिनया नहीं? नोट म रंग लगाकर ले आया प†ठा!" शमा*जी की मुखमुिा दश*नीय थी। "तुम भी स?हलकर रहना भैये। "डाईरे Aट" म हो। अपना तो पस”टेज वाला िवभाग है । िमल गये तो ठीक¸ न िमले तो ठीक। िसर पे ठीकरा नहींफूटने का। अपनी पहले से ही जुगत िभड़ी है ।" पिरहार बाबू खुश हो िलये। "हाँ खैर! आपका काम अलग है ।" शमा*जी अनमने से होकर कुछ जुगत िभड़ाने लगे। इन िदन6 उनके घर म बेटी के 8याह की तैयािरयाँ चल रही थी। दो तीन मोटे माहक6 से उहोने काम करवाकर दे ने के बदले म हॉल¸ गाड* न¸ हलवाई आदी की सैिटंग भी कर रखी थी।

"लेिकन इस तरीके से चलता रहा तो भारी पड़े गा।" वे मन ही मन बुदबुदाए। तभी उनकी नजर अखबार के एक छोटे से शीष*क पर पड़ी। "कम*चारी ःथानांतरण शीय संभा]य।" जाने Aया सोचकर वे मन ही मन मुःकाने लगे थे। दो तीन ह…त6 के बाद पिरहार बाबू के हाथ उनका ःथानांतरण पऽ आया। उनकी बदली "डाईरे Aट" वाले ःथान पर कर दी गई थी। और अब उनके पस”टेज वाले ःथान पर आने वाले थे शमा* बंध।ु "सबकी िमली भगत है ।" पिरहार बाबू दाँत पीसते रह गये...

सूट िवदे श म 8याही बेटी तीन साल बाद मायके लौटी तो घर म जैसे खुिशयाँ बरस पड़ी। हर कोई उससे बात करने¸ िकःसे सुनने और उसके साथ रहने को आतुर था। लेिकन बेटी थी िक अपने नखर6 से ही उबर नहींपा रही थी। "ऊफ! िकतनी गम^ है यहाँ।" "मेरे िलये तो बस िमनरल वॉटर। पता नहींअब ये सूट करे या नहीं।" "इतना सारा खाना Aय6 बना िलया है ? वहाँ तो ये कfचर ही नहींचलता। इतना सब कुछ तो हम लोग पाट‚ज के िलये भी नहींबनाते।" "म?मी! िकतना वेट गेन कर िलया है आपने? वहाँ होती तो सबकी टोकाटोकी सुनकर िजम शु. कर दे ती अभी तक।" सबके उYसाह पर पानी फेरती हई ु िबिटया वहाँ के ऐBय* और यहाँ की अनहाईिजिनक कडीशस को तौलती रहती। दो िदन बाद जब "वहाँ" का बुखार उतरा तब माँ से बोली¸ "माँ! तु?हारे हाथ के आलू के परांठे और मटर पनीर खाना है ।" "मeने तो तेरे आने की खबर सुनते ही सोच रखा था लेिकन तेरी बात सुनकर लगा िक अब तुझे सूट करे गा या नहीं?" "वहाँ पकाकर िखलाने को माँ नहींहोती कहीँ । शायद इसीिलये सारी असली चीज सूट नहीं होती माँ। अब मुझे यहाँ सब असली और शु’ िखलाकर पAका नहींबनाओगी Aया?"

माँ के हाथ6 म थी मटर की फिलयाँ और आँख6 म मोती...

इःटॉलमट "अरे बाई! जरा दरद सहन कर। Aय6 िचfलाती है ? दे र है अभी।" गीताबाई ने ूेम से उसके िसर पर हाथ फेरा। इस अःपताल म ही उनका जीवन गया था। जाने िकतनी ही जHचाओंको¸ उनके हाथ म गु„डे गुिड़या थमा खुशी - खुशी घर भेज चुकी थी। डॉ वै‹ की भरोसेमद ं दाई थी वे। हड़बड़ी या जfदबाजी म उहोने कभी कोई िनण*य नहीं िलया। रात - रात भर ही Aय6 न जागना पड़ा हो¸ उनका दबाव हमेशा ही सामाय ूसूित की ओर ही रहा करता था। । बहत ु /यादा खतरा होने या दे र हो जाने पर ही वे िकसी गभ*वती की ूसूित ऑपरे शन से करवाती। इन िदन6 उनकी बहू भी अःपताल म आने लगी है जो िक ःवयंभी iी रोग िवशेषzा है । उसके आने के कारण डॉ वै‹ ने अःपताल आना काफी कम कर िदया है । बहू ने आते ही सारे अःपताल का कायकfप करवाया। खुद के केिबन म ए सी¸ नये इAयूपम†स¸ यंऽ¸ आधुिनक साजो सामान आदी सब कुछ "हॉिःपटल इंूूवमट लोन" की रािश के अं तग*त िलया था। हालाँिक डॉ वै‹ इसके प( म नहींथी। Aय6िक इस खच के चलते उह अपनी फीस बढ़ानी पड़ी थी िजसके कारण उनकी बरस6 पुरानी मरीज आजकल अपनी बहू बेिटय6 को उनके पास लाते हए ु कतराने लगी थी। एक दो बार उहोने अूYय( .प से यह बात बहू से कही भी थी । लेिकन बहू ने यह कहकर उह चुप करा िदया था िक उसके पास कमाई के दसरे तरीके भी है । पूरा जीवन iी राग िवशेषzा के .प म िबता चुकी डॉ वै‹ असमंजस ू म ज.र पड़ी थी लेिकन उहोने बहू से कुछ कहा नहीं। आिखर आगे ये सब कुछ उसे ही तो स?हालना था। उनके आvय* का िठकाना न रहा जब कुछ महीन6 के बाद ही उनकी बरस6 पुरानी गीताबाई¸ िबना िकसी ःपh कारण के तड़क फड़क नौकरी छोड़ गई। तिबयत थोड़ी िगरी हई ु सी रहने लगी थी उनकी। बावजूद इसके वे उस िदन अःपताल गई। वे पहँु ची ही थी िक उनसे (ण भर पूव* अिभजाYय वग* का एक पिरवार अYयाधुिनक

गाड़ी से उतरा। एक बाईस तेईस साल की गभ*वती युवती¸ उसके पित¸ सास¸ ससुर आदी। अनुभवी डॉ वै‹ उस युवती को दे खते ही जान गई िक इसे ह…ते पिह िदन तक कुछ नहींहोने का¸ हfके दद* उठ रहे ह6गे बस। लेिकन वे हतूभ रह गई ये दे खकर िक उनकी बहू ने उसे अपने केिबन म बमुिँकल पाँच िमनट जाँचा परखा और इमरजेसी केस घोिषत कर ड़ाला! सारा पिरवार सकते म। एक सदःय मोबाईल से जाने िकस िकस को फोन करने लगा। दसरा अःपताल के काऊ0टर ू पर नोट6 की गिडयाँ रखने लगा और दे खते ही दे खते उस सामाय सी िदखाई दे ती लड़की की ऑपरे शन ,वारा ूसूित करवा दी गई। डॉAटर वै‹ बहू के ए सी केिबन म पहँु ची तब वह सब से बेखबर¸ िकसी से फोन पर बितया रही थी। "अरे अब कोई सहन करने की तकलीफ से बचना चाहे तो इमरजसी िडिAलयर करनी ही पड़ती है । एनी वे! इस बार का लोन इटॉलमट तो पूरा पक गया। तू सुना!" डॉAटर वै‹ को काटो तो खून नहीं। ये था उनकी िवBःत गीताबाई का नौकरी छोड़ने का कारण और कािबल बहू का पैसा कमाने का नया तरीका...

हक "जfदी करना सारा! पाट‚ शु. होने म घ0टा भर ही बाकी है ।" अिBनी ने फट से फोन पटका और तैयार होने के िलये कमरे म बंद हो गई। िनयत समय से दस िमनट पूव* अिBनी के घर पहँु ची शालीन िलबास म िलपटी सारा को अिBनी के तैयार न होने के कारण पिह िमनट और .कना पड़ा। "वॉओ ! लुिकंग मेट। यार तुम इतनी जfदी कैसे मeनेज कर लेती हो सारा! मुझे तो से स िडसाईड करने म ही आधा घ0टा लग जाता है ।" अिBनी ने पूछा। "मेरे िलये ये काम मेरी म?मी कर दे ती है अिBनी।" सारा ने सरलता से कहा। "Aया मतलब? यानी तुम पाट‚ म Aया पहनोगी ये िडसीजन भी अभी तक तु?हारी म?मी लेती है ? बी मeHयोर सारा! Aया तु?ह सूट करता है उनका चॉईस?" अिBनी ने कह तो

िदया िफर जीभ चबाई िक उसने ही सारा को अHछे लुAस के िलये अभी कॉ?पलीमट िदया है । सारा गंभीर हो उठी। "िजहोने ये िजंदगी ही मुझे िग…ट की है ¸ वे Aया मेरे िलये से स चुनने म गलती कर गी अिBनी? मe तो इसे उनका राईट कहती हँू ।" अब अिBनी को अपनी पोषाक जाने Aय6¸ कुछ /यादा ही बदन उघाडू लगने लगी थी।

दे शभिS पूरा घर अं शुल के इद* िगद* जमा था। उसने र(ा अकादमी की परी(ा उOीण* की थी और अगले महीने से उसे शे िनंग पर जाना था। "आपकी माँ के थे चार - चार बेटे। सो एक का फौज म जाना सुहाया होगा उह । मेरा एक ही दीपक है । मe नहींभेजने की इसे पूना।" माँ का क0ठ अौुआि* हो उठा था। "लेिकन माँ! अं शुल की मज^ जाने बगैर आप अपने इमोशस उसपर थोप तो नहींसकती ना?" बहन अिदती तुनककर बोल पड़ी। "और िफर मe हँू ना यहाँ आपके पास।" अिदती ने आगे कहा। "तुम चुप रहो अिदती। अजी आप कुछ भी नहींकह गे Aया?" माँ जfद से ल/द िनण*य चाहती थी। पापा वहींकमरे म चAकर काट रहे थे। जैसे कुछ सोच रहे हो। उनके िलये भी तो िनण*य लेना टे ढ़ी खीर था। बरस6 पुरानी फौजी परंपरा रही है गर म और अब इकलौता अँशुल। उनका भी कलेजा मुँह को आ रहा था। लेिकन िनण*य जो भी कुछ हो¸ इस वS िदल से नहींिदमाग से लेना ज.री था िजससे अँशुल का भिवंय और पिरवार की परंपरा दोन6 ही सुरि(त रह सके। शाम को अिदती मुँह बनाए लॉन म टहल रही थी। उसे अचानक एक तरकीब सूझी। दो िदन6 के बाद माँ के हाथ म एक पच^ थी और अं शुल घर से गायब! िकसी सहपािठनी से िववाह की बात िलखकर सारे घर को सकते म डाल गया था। माँ वो िच†ठी पढ़ती और रोती जाती।

"जाने कौन चुड़ैल है जो मेरे हीरे से लाल को ले गई अपने साथ! ये भी Aया उॆ है ये सब काम करने की? कहाँ तो मe सपने सँजोए थी इसके आनेवाले कल के िलये और ये है िक हमारे मुख पर कािलख पोत गया है ।" अिदती और पापा दोन6 तटःथ थे। अँशुल घर से गायब। "आपको कोई फक* नहींपड़ता है Aया? अब हम समाज म Aया मुँह िदखाएँगे? Aया कह गे िक हमारा बेटा िकसी लड़की के साथ भाग गया? जाने Aया होगा अब! इससे तो अHछा था िक वो पूना ही चला जाता।" माँ िवलाप करती रही। अिदती ने अँशुल का सामान बाँधना शु. िकया। पापा ने अँशुल के दोःत के घर फोन िकया। "अँशुल! तु?हारे कल का फैसला हो चुका है । तुम पूना जा रहे हो। जfदी घर आ जाओ।"

आरोप "दे खो िदनेश! ये इस तरह से िदन भर घर म तु?हारे दोःत6 का जमघट मुझे पसंद नहीं है । पढ़ाई पूरी कर चुके हो तो काम काज शु. करो कुछ। और ये तो तुम जानते ही हो िक इनके बीच सर उठाकर Aय6 रह पाते हो तुम!" बाबूजी का िफर वही राग सुनकर िदनेश का मुँह कसैला हो आया। अब िफर वही दो साल पहले का आरोप उसपर मढ़ा जाएगा। उसने बाबूजी की दराज म से पाँच हजार .पये िलये थे। अपने िमऽ को उसकी माँ की बीमारी म दे ने के िलये। लेिकन रंगे हाथ6 पकड़ा गया था। तब बाबूजी ने उसे घ0ट6 की डाँट फटकार और समझाईश के बाद माफ िकया था। तब से आज तक¸ हर ह…ते पिह िदन म इस घटना का िजब उसके सामने कर ही दे ते थे। चूिँ क अब िदनेश बड़ा हो गया था। इन आरोप6 से ितलिमला उठता था। आज भी इस िबना वजह की असमय डाँट उसे गुःसा तो िदला िदया था लेिकन वह गम खा गया। लेिकन बाबूजी कहते ही चले।

"कदम बहकने लगे थे तु?हारे । याद है ना सब कुछ? मe माफ नहींकरता तु?ह और पुिलस को तलाशी म तुमसे .पये िमल जाते तो सोचो Aया अं जाम होता था!" जाम होता बाबूजी!" अब िदनेश फट ही पड़ा था। "जो भी होता बड़ा अHछा अं "आपने .पये चुराते हए ु मुझे रंगे हाथ पकड़ा था ना? अHछा होता यिद आप मुझे पुिलस के हवाले ही कर दे ते। अरे पाँच हजार चुराने की सजा Aया होती? /यादा से /यादा साल भर ना! लेिकन आप जो मुझे हर िकसी बात पर सलाख6 के पीछे ड़ाल दे ते है ¸ उससे तो लाख गुना अHछी होती। आप यही चाहते है ना िक आपकी दी हई ु इस माफी को मe िजंदगी भर नहींभूलूँ? लेिकन आपकी यही इHछा आपका कद और कम कर दे ती है । काश िक इस एक गलती की सजा मe काट आया करता। आप यूँ वS बेवS मुझे कटघरे म न खड़े करते।" िदनेश धड़ाक से दरवाजा खोलकर बाहर िनकल गया। बाबूजी मुँह फाड़े उसकी बात सुनते रहे । तभी पीछे से माँ आ िनकली। बाबूजी को जैसे ितनके का सहारा िमला हो। "दे ख रही हो भाxयवान! हमारे सपूत के ल(ण! कैसे बात बनाने..." "कोई गलत बात नहींकही उसने।" माँ ने बात काटते हए ु कहा। "लड़का बड़ा हो गया है । कद म बराबर आने लगा है । आप चाहते है िक उसे एक गलती के िलये माफ करके आपने कोई िकला फतह कर िलया है िजसका बोझा वह बेचारा िजंदगी भर उठाए घूमता रहे ?" माँ का चेहरा तमतमा उठा। "उसकी यही गलती हई ु ना िक वो पकड़ा गया? गनीमत समिझये िक आपके िपताजी नहीं जानते िक आपने उनके दःतखत की नकल करके िकतनी ही बार अपनी गाड़ी खींची है । बस पकड़ा गया ही चोर नहींहोता।" और बाबूजी पहली बार पकड़े गये थे।

पता नहीं

"पता नहींइन हवाओंका .ख कब बदलेगा¸ कब हमारे िदन िफर गे। लगता है जैसे भगवान का cयान ही कहींऔर है ।" "ऐसा कहते हए ु तुम अपनी खुद की ताकद को Aय6 भूल जाते हो? तु?ह हाथ - पैर मेहनत करने के िलये िमले है । ये िदमाग चलाकर काम करने के िलये िमला है और ..." "अब बस भी करो ये लंबी चौड़ी हाँकना। खुद तो चाँदी का च?मच िलये जमे हो। छोड़ Aय6 नहींदे ते इस दौलत को और खुद Aय6 नहींपसीना बहाकर अपनी िजंदगी जीते? खाने - पीने¸ पहनने ओढ़ने की िचं ता न हो तब ही सूझती है ऐसी दाश*िनकता।" "तुम Aया समझते हो मe इस तरह की मेरी िजंदगी से खुश हँू ? िकतनी भी मेहनत करने के बाद भी तो यही सब कुछ सुनना पड़ता है िक बरस6 पुरानी जायदाद है उसे ही आगे बढ़ा रहे है । अपना तो जैसे कोई वजूद ही नहींहै ।" "वजूद बनाना पड़ता है । जमीन जायदाद के जैसा वो भी िवरासत म नहींिमला करता। नकल के आदी हो जाते हो तुम सब। जैसा बाप दाद6 ने िकया¸ बस दोहराने लगे।" "तुम सब होते ही ऐसे हो। मेरे पापा ठीक ही कहते है । तु?हारे भाxय म सुख सुिवधाएँ¸ धन दौलत नहींहै ना इसिलये जलते हो। खुद तो कुछ कर नहींपाते और हम नाम धरते हो।" "दे खा तुमने? तु?हारे िवचार भी तो तु?हारे अपने नहींहै । िपछली पीढ़ी के िवचार लेकर नई पीढ़ी से लड़ोगे तो हार जाओगे बाबू। तकलीफ है इस दिनया से तो िनकल आओ धन ु दौलत की गुदगुदी दिनया से बाहर। खुद सवाल करो ऊपरवाले से और िफर दे खना जवाब ु कैसे नहींिमलता।" "तु?हारी बात तु?हारे पास ही रहने दो। जाने कब सुधरोगे तुम लोग। इसी तरह से पैसे पैसे को मोहताज होते हए ु अपने भाxय को रोते रहोगे।" ये कहते हए ु किथत धिनक िनकल पड़ा था या शायद भाग रहा था सHचाई से। उसे अपनी ूेयसी से िमलने जाना था। मन हआ िक उसके िलये खुशबूदार रजनीगंधा ले ु चले। लेिकन याद आया िक उसके धना—य पिरवार म कोई भी पांच रोज से नीचे नहीं उतरा था। बनावटी और उधारी सोच के साये तले पलता यह उस धिनक का तीसरा ूेम

था िजसम उसने ढ़े रो पर…यूम¸ सॉ…ट टॉयज¸ ईयिरंxस¸ ॄेसलेट¸ फूल¸ काड* आदी यौछावर िकये थे। िफर भी एक धुकधुकी सी लगी रहती थी िक पता नहींकब¸ Aया कहाँ िबगड़ जाए। उनका सारा वS "bलीज"¸ "इफ यू ड़6ट माƒड़"¸ "आई िवल कीप फेथ ऑन यू"¸ "मe लेट हो गया इसिलये चॉकले†स" और "हमारी मुलाकात की मंथली एनीवस*री है इसिलये िडनर" जैसे ु छईमु ई नुS6 पर¸ इस िरँते को िजलाए रखने म बीतता था। उधर फAकड़ दाश*िनक आदमी ने अपने सात वष* पूव* के अख0ड़ ूेम से कहा¸ "अब उपहार नहींहम दोन6 के मcय। बस मe ही हँू तु?हारी हर उमंग और अपे(ा का उOर!" ूितिबया म उसके ूेम की आँख6 म था अपनापन और स?मान¸ खरे सोने सा। िजसका िकसी कैरे ट या तोले माशे म कोई मूfय नहींथा...

घर दसरे ू ¸ तीसरे और चौथे माले पर रहने वाली िमसेस शमा*¸ िमसेस गुVा और िमसेस ितवारी। टीन6 ही कुछ समय के िलये अपने बेटे बहओं के पास रहने के िलये आई थी सो उनकी ु दोपहर की महिफल जमा करती थी। िमसेस शमा* कहती चली¸ "मेरी बहू भी Aया लड़की है ? काम से लौटते हए ु पकी हई ु चपाितयाँ और साफ की हई ु स8जी ले आती है । घर आकर पिह िमनट म खाना तैयार। आग लगे ऐसी रसोई को। हम लोग6 ने तो हमेशा से घर का पका खाना ह खाया हे । बुरा तो लगता है लेिकन Aया कर !" "आपको कम से कम घर का पका कुछ तो िमलता है िमसेस शमा* !" िमसेस गुVा ने कहा। " हमारी बहरानी तो ऑिफस से आते हए ू ु दो - दो †यूशस करती आती है और साथ ही िटिफन बी ले आती है । दाल म िभगो िभगो कर रोिटयाँ हलक से नीचे उतारनी पड़ती है । बुरा तो लगता है लेिकन Aया कर ?"

अब कायदे से िमसेस ितवारी को अपना अनुभव बाँटना चािहये था परंतु वे शूय म तकती बैठी थी। आिखर िमसेस शमा* ने टोका¸ "Aय6 िमसेस ितवारी! आपकी बहू तो घर पर ही होती है । आपकी तो अHछी कटती होगी।" भारी आवाज म िमसेस ितवारी बोली¸ "मेरी बहू तो मेरे आते ही पूरा घर और मेरा बेटा ही मेरे भरोसे छोड़ अपने मायके चली जाती है ... अHछी कटती है मेरी।" और वे उठकर चलने लगी। घर म बड़ा अँधेरा था।

Related Documents

Laghu Kathayein
June 2020 19
Laghu Vakyavritti
November 2019 23
Laghu Parashari Siddhanta
October 2019 26
Laghu Shodha Nyas
June 2020 32
Up Ki Lok Kathayein
June 2020 7