Hindi - Bhartiya Lok Kathayein

  • November 2019
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  • Words: 24,707
  • Pages: 43
पकाशक मंती ससता सािितय मणडल एन-66, कनॉट सककस, नई ििलली-110001

● पाचवी बार : 2001 पितयॉँ : 1,000 मूलय : र. 30.00 ● मुदक बुकमैन िपनटसक ििलली-92

िमारे िेश मे और ििुनया मे छोटा -बडा शायि िी कोई ऐसा िो, ििसे लोक-कथाओं के पढन य े

ा स

ुननमे े आननिन

आता िो। िमारे गावो मे तो आि भी ऐसे लोग मौिूि िै , िो चौधरी की चौपाल पर या और किी गाववािसयो को बडे िी रोचक ढंग से लोक-कथाए स ं िाय।

ं ु

ातेि-ैऔ एकरउनकीएक किानी कभी-कभी कई-कई रात तक चलती िै। कया मिाल िक सुनन व



इस पुसतक मे िमन अ



पनि ,े ेशिवशे कीषकर ििनिी-पिरवार की भाषाओं की, चुनी िईु लोक-कथाए ि ं

तो यि थे िक सारे भारत के पतयेक अंचल की किािनया अपन प



े ालेऊब ी

िै।िमचािते

ाठकोकोिे , लेिकन ते थोडे-से पृषो मे इतनी सामगी आ निी

सकती थी। इसिलए िमन उ े न किािनयोकोचु , िो सरलनािो, सरस िो और मनोरिंक िो। िमे पूणक िवशास िै िक इस पुसतक को एक पुसतक को एक बार िाथ मे उठा लेन प े सकेगे।









किबनासमापतिकयेछोडनिी

इस माला मे िमन औ े र भ ीपु , सकतके नकालीिैिा रिी िै। पाठको से िमारा अनुरोध िै िक वे इन सारी ुछ ििनकाली े पुसतको को पढे और िमे बताये िक उनिे कैसी लगी। उससे िमे आगे छापन क े ि ल ए पु सतकोकाचुनावकरनमेेसिायतािमलेग

् ्

o ●

यण उपाघयाय सेवा का फल अजात बडा कौन?

लकमीिनवास िबडला चोर और रािा



भागीरथ कानोिडया बुआिी की आंखे



नागेशर िसिं ‘शशीनद’ सोन क े

िशवसिाय चतुवेिी बुिि बडी या पैसा ं ी बोला चार पिर रामकानत िीिित पछ



ाचूिा

-

मनोिर लाल करम का फल





चनदशेखर सवा मन कंचन



िवकम कुमार िैन सब समान



-

-

शिशपभा गोयल बिी का फल



लखनपताप िसंि मनुषय का मोल



शयामचरण िबुे भागय बात

-

गोिवनि चातक फयूंली

िशवाननि चनिन वन आननि नरिवक का िाियतव



िशव मिाकाल की ििृि

यशपाल िैन चतुरी चमार आिशक कुमारी िसंिलदीप की पििनी



-



भगवानचनद िवनोि खंिडी की खनक



● झवेरचंि मेघाणी िटा िलकारा

-

िशवनारायण उपाधयाय वाताकार और िंक ु ारा िेनवेाला

मुरलीधर िगताप चार िमत

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-



िकसी िमान म े





क च

ो र





। व

ि ब ड ा

ि ी

च त

ुरथा।लोगोकाकिनाथािकविआ

े उडा सकता था। एक ििन उस चोर न स ो च ा ि क ि ब त क व िरािधानीमे , तबतक निीिायगाऔरअपनाकरतबनिीिि े े े े चोरो क बीच उसकी धाक निी िमेगी। यि सोचकर वि रािधानी की ओर रवाना िआ ििेखनक ु और विा पिंच ु कर उसन य िलए नगर का चकर लगाया िक किा कया कर सकता िै। उसन त े य ि क ि कर ा ि ा क े म ि ल स े अ पनाकामशुर करेगा।रािानरे ात

िसपािी तैनात कर रखे थे। िबना पकडे गये पिरनिा भी मिल मे निी घुस सकता था। मिल मे एक बित ु बडी घडी लगी थी , िो े ि ं ेबिातीरितीथी। ििन रात का समय बतान क े ल एघट े चोर न ल े ो ि क ी क ु छ क ी ल े इ क ठ ट ी की ओरिबरातकोघडीनबे ारिबि

े ी मिल की िीवार मे एकएक कील ठोकता गया। इसतरि िबना शोर िकये उसन ि व ा रमे , बिफर ारिकीले उनिेलपकड गािी पकडकर वि ऊपर चढ गया और मिल मे िािखल िो गया। इसके बाि वि खिान म े े ग य ा औ र व िासेबित ु सेिीरेचुरालाया। े ा अगले ििन िब चोरी का पता लगा तो मंितयो न र ि ा क ो इ स क ी खबरिी।रािाबडािैरानऔरनारा े मंितयो को आजा िी िक शिर की सडको पर गशत करन क े ि ल ए ि स प ा ि ि योकीसंखयािनूीकरिीिाय समय िकसी को भी घूमते िएु पाया िाय तो उसे चोर समझकर िगरफतार कर िलया िाय। ििस समय िरबार मे यि ऐलान िो रिा था, एक नागिरक के भेष मे चोर मौिूि था। उसे सारी योिना की एक एक बात का पता चल गया। उसे फौरन यि भी मालूम िो यगा िक कौन से छबबीस िसपािी शिर मे गशत के िलए चुन ग े य े िै।विसफाईसे घर गया और साधु का बाना धारण करके उन छबबीसो िसपािियो की बीिवयो से िाकर िमला। उनमे से िरेक इस बात के िलए उतसुक थी िक उसकी पित िी चोर को पकडे ओर रािा से इनाम ले। एक एक करके चोर उन सबके पास गया ओर उनके िाथ िेख िेखकर बताया िक वि रात उसके िलए बडी शुभ िै। उसक पित की पोशाक मे चोर उसके घर आयेगा ; लेिकन, िेखो, चोर की अपन घ





ेना तुमिे िबा अंि,रमतआनि निी तोे वि

क े

लेगा। घर के सारे िरवािे बिं कर लेना और भले िी वि पित की आवाि मे बोलता सुनाई िे , उसके ऊपर िलता कोयला फेकना। इसका नतीिा यि िोगा िक चोर पकड मे आ िायगा। े ि सारी िसतया रात को चोर के आगमन के िलए तैयार िो गई। अपन प त य ो क ोउनिोनइे सकीिानकारीनिीिी। बीच पित अपनी गशत पर चले गये और सवेरे चार बिे तक पिरा िेते रिे। िालािक अभी अंधेरा था , लेिकन उनिे उस समय तक े

इधर उधर कोई भी ििखाई निी ििया तो उनिोन स



च ा

ि

क उसरातकोचोरनिीआयगा , यि सोचकर उनिोन अ

ै ेि िआ ा फ सलािकया।जयोिीवे , िसतयो को संघिरपिं र क ुचे और उनिोन च े ो फल वि िआ ु िक िसपािी िल गये ओर बडी मुिशकल से अपनी िसतयो को िवशास ििला पाये िक े िै और उनके िलए िरवािा खोल ििया िाय। सारे पितयो के िल िान क े क ा र िरबार मे आया तो उसे सारा िाल सुनाया गया। सुनकर रािा बित ु िचंितत िआ ु और उसन क ं सवय ि ाकरचोरपकडे। िान क े



उस रात कोतवाल न त



य ा



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क र श ि



े रचले पनघ

ी बताईकारकवाईशुरकरिी। वे िी उनके असली पित ण उ न िेअसपताललेिायागया।िस ू रेििन े ो त व ालकोआिेश िियािकवि

र क ा

िरािे , चोर नाशुर ने िकया।िबविएकगलीमे ि



े िा िवाब ििया, ‘मै चोर िं। ू ″ कोतवाल समझा िक लडकी उसके साथ मिाक कर रिी िै। उसन क तुम चोर िो तो मेरे साथ आओ। मै तुमिे काठ मे डाल िंगूा।″ चोर बाला, कोतवाल के साथ काठ डालन क े ी िगिपरपिंच ु ा। े िा, विा िाकर चोर न क

″कोतवाल सािब,

″ठीक

िै। इससे

इस काठ को आप इसतेमाल कैसे िकया करते िै

े िा, तुमिारा कया भरोसा! मै तुमिे बताऊं और तुम भाग िाओं तो समझा िीििए।″ कोतवाल न क किे मैन अ







क े

काठ कैसे डाला िाता िै। जयो िी उसन अ



आप े

, ″मिाक छाडो ओर अगर मेरा कया िबगडेगा !″ और वि

?″

,

मेिरबानी करके मुझे

चोर बाला,

ं गा क े क े िवाले क ?″ रिियािै कोतवाल । मै भागकयोिाऊ उसे यि ििखान

पनि-े ाथ पैर उसमे डाले िक चोर न झ









″आपके िबना



ि ल





एरािीिोगयािक

घ ुमाकरकाठकातालाबिंकरििया

और कोतवाल को राम-राम करके चल ििया।

े गे िाडे की रात थी। ििन िनकलते -िनकलते कोतवाल मारे सिी के अधमरा िो गया। सवेरे िब िसपािी बािर आन ल े े े नकोउसमेसेिनकालाऔरअसपताल तो उनिोन ि ख ा ि क क ो त व ा ल क ा ठ मेफंसेपडेिै।उनिोनउ े स अगले ििन िब िरबार लगा तो रािा को रात का सारा िकससा सुनाया गया। रािा इतना िैरान िआ ु िक उसन उ ं रात चोर की िनगरानी सवय क र न क े ा ि नश य ि क य ा । च ो रउससमयिरबारमेमौिूिथ िोन प े र उ स न स े ा ध ु क ा भे ष ब न ायाऔरनगरकेिसरेपरएकपेडकेनीचेधूनीिलाकरबैठगया। े े ेगुिरा।तीसरीबारिबव रािा न ग श त श ु र की और ि ो ब ा र स ा ध ु क ेसामनस े ?″ ेखािै साधु न ि े े यानमेलगाथा िक, ″कया इधर से िकसी अिनबी आिमी को िाते उसन ि व “ा ब ि ि या िकवितोअपनध , अगर उसके पास से कोई िनकला भी िोगा तो उसे पता निी। यिि आप चािे तो मेरे पास बैठ िाइए और िेखते रििए िक कोई े आता-िाता िै या निी।″ यि सुनकर रािा के ििमाग मे एक बात आई और उसन फ पिनकर शिर का चकर लगाये और वि साधु के कपडे पिनकर विा चोर की तलाश मे बैठे।



र न



यिकयािकसाधु उसकीपोशाक

े आपस मे काफ बिस-मुबाििसे और िो-तीन बार इक ं ार करन क े े प गया ओर उनिोन आ स म े क प डे ब ि कमरे मे िाकर आराम से सो गया, बेचारा रािा साधु बना चोर को पकडन क े बिन आ



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ख ा

े ोचा िनशय िकया; लेिकन िब वि मिल के फाटक पर पिंच ु ा तो संतिरयो न स िै, िो रािा बनकर मिल मे घुसना चािता िै। उनिोन र मचाया, पर िकसी न भ े ी ििन का उिाला िोन प थरथर कापन ल





उ सकीबातनसुनी। े र क ा

ा । व ि







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ं िारकरतारिा।सवेरे केकोईच

इ त

रािा तो पिले िी आ चुका िै , िो न िो यि चोर

ठ र े

े ोरा ख र चोररािाकीबातमाननक चो रततकालरािाकेघोडेपरसवारि

ि आ ि े लय ।

े ि ल मेलौटिानक क नतोसाधु , तो लउसन ौटाऔरकोईआिमीयाचोरउसरासते म सेगे ुिारा ा







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ल याऔरकालकोठरीमे डालििया ा

िेनवे ाले सत ं रीनरे ािाकाचेिर

िगरपडा।रािानस , िो रात े ारेिसपािियोकोबुलायाऔ

भर रािा के रप मे मिल मे सोया था , सूरि की पिली िकरण फूटते िी , रािा की पोशाक मे और उसी के घोडे पर रफूचकर िो गया। े र अगले ििन िब रािा अपन ि ब ा र म े प ि ं च ु ा त ोबित ु िीितरशथा।उसनऐे लानिक उपिसथितत िा िायगा तो उसे माफ कर ििया िायगा और उसके िखलाफ कोई कारकवाई निी कीि िायगी , बिलक उसकी चतुराई के िलए उसे इनाम भी िमलेगा। चोर विा मौिूि था िी अपराधीि िूं।″ इसके सबूत मे उसन र और उसका घोडा भी। रािा न उ े े गा। □ खूब आननि से रिन ल

,

फौरन रािा के सामन आ े

े ा िा क े स े ग ा व



गया ओर बोला

मिलसे , वििोक सब रायाथार ुछचुसामन न ा म म े

, “मिाराि,

मै िी वि

े खििया , साथ िी रािा की पोशाक ि ि य े औ रवािाकरायािकविआगेचोरीक



ं था। रािा उसे मोती चुगाया करता और बित पदमुिसंि नाम का एक रािा था। उसके पास एक िस ु लाड -पयार से ं िनतय पित सायक ं ाल रािा के मिल से उडकर कभी िकसी ििशा मे और कभी िकसी ििशा मे उसका पालन िकया करता। वि िस थोडा चकर काट आया करता। ं उडता िआ एक ििन वि िस ु नरखाथािक ु नीवनिी की छत पर िा बैठा। उकी पुतवधु गभकवती थी। उसन स े ं का मास खान क े गभावसथा मे यिि िकसी सती को िस ो ि म ल ि ा य ं आया िेखकर उसके मुिं मे पानी भर आया। उसन ि भागयशाली िोती िै। अनायास िी छत पर िस े

रसोईघर मे ले िाकर उसे पकाकर खा गई। इस बात का पता न उसन अ





ं मेधावी तोउसकीिोनव , तेिसवीे ालीसं और तानअतयत ं स कोपकडिलयाओर

ीसासकोलगनि , न ससुरे िया को और न पित को



िी, कयोिक उसे भय था िक अगर रािा को इस बात का सुराग लग गया तो बडा अिनि िो िायगा। े

उधर िब रात िोन प

र ािमिलमे -रानी नकोिीपिं बित च िचंता िईु। उनका मन आकुल -वयाकुल ु ु ातोरािा

ि स ं



े डोस-पडोस के शिरो -कसबो ं किी िो तब िमले न ! रािा न अ िोगया। चारो ओर उसकी खोि मे आिमी िौडाये गए। लेिकन िस ं का पता लगा सके तो राजय की ओर से उसे बित मे भी सूचना कराई िक अगर कोई िस ु बडा पुरसकार ििया िायगा।

ं रािा ओर रानी को बित िस-बीस ििन िनकल गये। कुछ भी पता निी लग सका। चूंिक वि िस ु िपय था , अत: वे

उिास रिन ल समय चाििए।











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क क ु

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ेपासआईऔरबोलीिकवििस ं कापतालगासकतीि रािाक , लेिकन उसे थोडा-सा



े िा, रािा न क

“मेरे राजय के पिंडत -ियोितषी, िािकम-िकुाम और मेरे इतन स े ा र े ग ु पतचरोमेकोईभीपतानिीलगा सका, तुम कैसे पता लगा सकोगी ?” े िा , “मुझे अपनी योगयता पर िवशास िै। अगर अनिाता का िकुम िो तो एक बार आकश के तारे भी कुटटनी न क तोडकर ले आऊं। आप मुझे थोडा-सा समय िीििए और आवशयक धन िे िीििय। उसे वापस ला सकूं या निी , लेिकन मै आपको िवशास ििलाती िंू िक उसका अता-पता आवशय ले आऊंगी।” रािा न स













क र

े देशयकीिसिदकेिलएचलपडी। ाऔरकुटअनीअपनउ

ि ल य

सबसे पिले कुटटुनी न य े ि प त ा ल ग ा यािकशिरक -कौन े धसती िनकघरोमे गभकवतीकिैौन। उसे पता था िक ं गभावसथा मे िकसी सती को यिि िस का मास िमल िाय तो वि िबना खाये निी रिेगी। साथ िी यि भी िनती थी िक साधारण ं पकडन क े घर की कोई सती रािा का िस ा स ािसनिीकरसकती। खोिते-खोिते उसे पता लगा िक िीवान की पुतवधू गभकवती िै। अत : उसके मन मे संिेि िो गया िक िो सकता िै , ं उडते-उडते िकसी ििन इनके घर की छत पर आ गया िो और गभावसथा मे िोन क े रािा का िस गई िो। े ोचा , िकसी भी सती के साथ िनकटसथ मैती करन क े कुटटनी न स िै। इसिलए कुटटनी उसके पीिर के गाव पिंच ु ी। विा िाकर उसन प



े ि

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क ा

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णलोभवशयिसतीउसेखा

सकेपीिरकेिालचालिाननाआवशयक

ेनामउनके घर मे बीती िईु र वालेस-ारेधाम लोगोक तथा

खास-खास पुरानी घटनाओं की िानकारी ली। उसे पता लगा िक िीवानिी की पुतवधू की बूआ छोटी उम मे िी िकसी साधु के े ोचा, अब िीवानिी के घर िाकर उनकी पुतवधू की बुआ बनकर साथ चली गई थी और आि तक लौटकर निी आई िै। उसन स भेि लेन क े ा अ च छ ाअसतअपनिेाथआगया।

वि िीवनिी के घर गई। उनकी पुतवधू के साथ बित गीऔरबोली ; “बेटी, मै तेरी ु सनिे -ममतव की बात करन ल े बुआ िूं। िम िोनो आि पिली बार िमली िै। तुम िानती िी िो िक मै तो बित ु पिले घर छोडकर एक साधु के साथ चली गई थी। े िल िी मे घर लौटकर आयी और भाई से िमली तो उसन ब त ा य ा ि क त ु म यि ाबयािीगईिोऔरतुमिारेससुरराज यि िानकर मन मे तुमसे िमलन क े ी ब ि त ु उ त क ं ठ ा ि ई ु त ोयिाचलीआई।तुमिे िेखकरमेर े े तुमिे सुखी रखे और तुमिारी कोख से एक काितवान तेिसवी पुत पैिा िो। मै परसो वापस िा रिी िंू और तुमिारे लडका िोन क बाि भाई-भाभी को साथ लेकर बचचे को िेखन औ े

िीवान की पुतवधू न अ

रउसकालाड -चाव करन य



पन

िस-बीस ििन तो यिा रििए। िान क े





भ इ त

बुआ बनी िईु कुटअनी को और कया चाििए था



!









केक,ारणउसकीबातोकािवशासकरिलयाऔरबोली “बुआिी, आप आई िै तो

ीिलिीभीकयापडीिै !”

उसन व

े िा, खूब ििल-िमल गई। एक ििन बातो-िी बातो मे बुआिी न क

े िाआऊं”गी।



“बेटी,

ि





ि

न ा

स वीकारकरिलया।थोडे -भतीिी िीििनोमेबुआ

ं का मास खाने गभावसथा मे िकसी सती को अगर िस

को िमल िाय तो बित ु अचछा पिरणाम िनकलता िै। उसके पभाव से िोनवेाली संतानबित ु िी तेिसवी और काितवान िोती िै ं तो मानसरोवर छोडकर और किी िोते निी, इसिलए यि काम पार पडे तो कैसे पडे िस े

यि सुनकर उसन अ





ं था अचरि की बात िै िक तुमिारे यिा रािा के पास िस सामन इ



स घ









ि

क ा

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स ं

खा

;

िकंतु

!” न





ी बातबु , “आबेटिीकोसििभावसे ी, यि बतािी।सुनकरब

तुमन ि े

ोकुछिकया , वि बितु अचछा िकया; िकनतु तुमिे िकसी के

ि ि क



वाली निी िै, इसिलए ििक कर ििया तो भी कोई बात निी!˝

ि

े सु ामनभ े ीनिीकरनाथा।ले ीकरनाचाििए।मे , मुझसे किी रिई बात तो किी िाने िकनखैर

े िा , कुछ ििन और बती गये , तब कुटटनी न क

े ीबातसवीकारकर ं खानक “बेटी, अगर भगवान के सामन त े ु म ि स ं की ितया का पाप तो िसर से उतर िी िायगा , सुपिरणाम भी िदगुिणत िोगा। मंििर के पुिारी से किकर मै ऐसी लो तो िस वसवसथा कर िंगूी िक ििस वकत विा तुम सारी घटना बताकर अपराध सवीकार करो , उस वकत पुिारी भी विा निी रिे तथा और भी कोई न रिे, िम िो िी रिेगी।˝ उसन ऐ







करनासवीकारकरिलया।

कुटटनी लुक -िछपकर रािा के पास पिंच ु ी और बोली , लगा लाई िूं।˝ ऐसा किकर उसन स े िा, रािा न क वि बोली, रािा न ऐ





“आपसे वायिा िकया था,

ं का अता -पता उसके अनुसार िस

र ीघटनारािाकोबताई।

“इसका पमाण कया िै?˝

“फला ििन आप मंििन मे आ िाय औ े





ि

स ं













े ीिाभरली। स ‘ा ’ क रनक

िनयत ििनसमय से कुछ पिले पूवक -योिना के अनुसार कुटटनी न र





ि ा





ं पन ालीसतीकीसवीकारोिकतसवयअ ˝

क ि राऊं-चेसथानपररखेिएुएकबडे

से ढोल मे िछपा ििया और बुआ-भतीिी मंििर पिंच ु ी। मंििर का पट खुला था। पुिारी या और िस ू रा कोई भी वयिकत विा निी था। अब बुआिी न श

े ुरिकया , “िा, तो

बेटी कया बात िईु थी उस ििन?˝ िीवानकी पुतवधू न घ





न ाआरमभकी।विथोडी -सी घटना िी कि पाई थी िक कुटटनी न सेोचा , रािा धयानपूवकक

सुन तो रिा िै न, इसिलए वि ढोल की तरफ इशारा करके बोली ,

“ढोल रे ढोल,

सुन रे बिू का बोल।˝

उसका इतना किना था िक भतीिी का माथा ठनका। उसे विम िो गया िक िो न िो, िाल मे कुछ काला िै। मालूम िोता िै, मै तो ठगी गई िूं। वि चुप िो गई। बुआ बोली;

“िा तो बेटी, आगे कया िआ ु ?˝ इस पर भतीिी बोली, “उसके बाि तो बुआिी मेरी आंख खुल गयी , सपना टूट गया।” जयोिी भतीिी की आंख खुली, तयोिी बुआिी की आंखे भी खुली-की-खुली रि गई। उसके पाव तो भतीिी से भी भारी

िो गये और उसके िलए उठकर खडे िोना भी मुिशकल िो गया।□





िकसी िेश मे एक रािा राि करता था। उसके िलए पैसा िी सबकुछ था। वि सोचता था िक पैसे के बल पर ििुनया के सब काम-काि चलते िै। ‘ताबे की मेख तमाशा िेख 6, किावत झूठ निी िै। मेरे पास अटूट धन िै , इसीिलए मै इतन बेडे े िेश पर राि करता िूं। लोग मेरे सामन ि ा थ ि ो ड े ख ड े र ि त े िै। चािूं तोअभीरपयोकीसड िसर उठाये खडे इन पिाडो को खुिवाकर िफकवा िं। ू पैसे के बूते पर मेरे पास एक िबरिसत फौि िै। उसके दारा िकसी भी िेश को िण-भर मे कुचल सकता िूं। वि सबसे यिी किता था िक इस संसार मे धमक -कमक, सती-पुत, िमत-सखा सब पैसा िी िै। रािा िसर से पैर तक पैसे के मि मे डू बा था

;

ं ु उसकी रानी बडी बिदमती थी। वि पैसे को तुचछ और बिद को शेष परत

समझती थी। रानी की चतुराई के कारण राि का सब काम -काि ठीक रीित से चलता था। उसका किना था िक ििुनया पैसे के बूते उतनी निी चलती, िितनी बुिद के बूते पर। लेिकन रािा के सामन स एक ििन रािा न पेूछा,

“रानी,





फब

तकिनमेेसंकोचकरतीथी।



सच किो, ििुनया मे बुिद बडी या पैसा?”

े गी, सतय का मुख रखा िोता िै। रािा के मन मे िो पैसे का मूलय बसा था रानी बडे असमंिस मे पडी। सोचन ल उसे वि अचछी तरि िानती थी। कुछ उतर तो िेना िी था। वि बोली ,

“मिाराि,

यिि आप सच पूछते िै तो मै बुिद को बडा े

समझती िं। ू बुिद से िी पैसा आता िै। और बुिद से िी सब काम चलते िै। बुिद न िो तो सब खिान य चौपट िो िाते िै।” पैसे की इस पकार िनिंा सुनकर रािा को बित ु गुससा आया। बोला , िेखना चािता िंू िक तुम िबना पैसे के बुिद के सिारे कैसे काम चलाती िो।

˝

,

िीलु -रािपाट टिातेिै



“रानी तुमिे अपनी बुिद का बडा घमंड िै। मै े

ऐसा किकर उसन र



कोनगरकेबािरएक

नी

मकान मे रख ििया। सेवा के िलए िो -चार नौकर भेि ििये। खचक के िलए न तो एक पैसा ििया और न िकसी तरि का कोई सामान रानी के शरीर पर िो िेवर थे

,

वे भी उतरवा िलये। रानी मन -िी-मन किन ल

संसार मे बुिद भी कोई चीि िै, पैसा िी सब कुछ निी िै। े नये मकान मे पिंच ौ ु कर रानी न न अपन न







क ी





ि

कर

द ा र ा



ग ी

क ु

ि



क ि

म ै



ा र

ेअवेसेिोईटेमंगवाईऔरउनिेसफ



रलगािी।िफरनौकरकोबु , “तुम मेरी इस धरोिर लाकरकिा को धनू सेठ के घर ले िाओ। किना

कििनरािाकोििखािंगूीिक

,

रानी

नय े ि धरोिरभे , िस ििार िीिै रपये मंगाये िै। कुछ ििनो मे तुमिारा रपया मय सूि के लौटा ििया िायगा और धरोिर वापस कर ली िायगी।” नौकर सेठ के यिा पिंच ु ा। धरोिर पर रानी के नाम की मुिर िेखकर सेठ समझा िक इसमे कोई कीमती िवािर िोगे। उवसे िस ििार रपया चुपचाप िे ििया। रपया लेकर नौकर रानी के पास आया। रानी न इ े न र प योसे वयापारशुर िकया। नौकर-चाकर लगा ििये। रानी िेख-रेख करन ल गया और काफी पैसा बच रिा। इस रपये से उसन ग



ग ी े र

े ओर रानी की िय-ियकार िोन ल ग ी । शि े गी। रिन ल इधर रानी के चले िान प े र र ा ि उिचत सलाि िेती थी। धूतों की िाल उसके सामन न े ि

।थ ी







ि



ि

ि

मे उसनइे तनापैसापैिाकरिलया

न ो

बोकेिलएमु,फतिवाखाना पाठशाला तथा अनाथालय खुलवा ििये। चारो रक

ेबािररानीक ेआसपासबित -से ेममकान कानकबन गये औरु विा अचछी रौनक

ा अ क े ला ी ग ल न



र ि े ा



ग त ी

य थ



ा।रानीथीतबविमौकेकेकामोकोस ।अबउसकेचलेिानपेरधूतोंकीब

े आ-आकर रिा को लूटन ल ग े । अ ं ध े र ग ि ी ब ढ ग ई।नतीिायििआ ु िकथोडे िीििन कमकचारी राजय की सब आमिनी िडप िाते थे। अब नौकरो का वेतन चुकाना किठन िो गया। राजय की ऐसी िशा िेख रािा घबरा े गया। वि अपना मन बिलान क े ि ल ए र ा ि क ािमंितयोकोसौपकरिेशाटनकेिलएिनकलपडा। िाते समय नगर के बािर िी उसे कुछ ठग िमले। उनमे से एक काना आिमी रािा के पास आकर बोला े मेरी आंख आपके यिा िो ििार मे िगरवी रखी थी। वािा िो चुका िै। अब आप अपन र प य कीििये।”

, “मिाराि, े

लेकरमेरीआंख मुझे वापस

रािा बोला,

“भाई, मेरे पास िकसी की आंख-वाख निी िै। तुम मंती के पास िाकर पूछो।” ठग बोला, “मिाराि, मै मंती को कया िानूं? मैन त े ो आ प क ेपासआं , आप खिगरवीरखीथी िी मेरी आंख िे। िब बाड िी फसल खान ल े ग ी त बरिाकाकयाउपाय ? आप रािा िै, िब आप िी इसंाफ न करेगे तो िसूरा कौन करेगा? आप मेरी आंख न िेगे तो आपकी बडी बिनामी िोगी।˝ े रािा बडा परेशान िआ िलएउसनि -तैसे े चारैसे ििार रपये िेकर उसे िविा िकया। कुछ िरू ु । बिनामी से बचन क े े ेसमानविभीकिनल आगे चला था िक एक बूचा आिमी उसके सामन आ कर ख डा ि ो ग या।पिले , “कमिाराि , मेरा एके गा कान आपके यिा िगरवी रखा था। रपया लेकर मेरा कान मुझे वापस कीििये।” रािा न उ











पकार रासते मे कई ठग आये और रािा से रपया ऐठंकर चले गये। िो कुछ रपया -पैसा साथ लाये थे , वि ठगो न ल वि खाली िाथ कुमारी चौबोला के िेश मे पिंच ु े।

रपयािेकरिविािकया।इस े ू टिलया।

कुमारी चौबोला उस िेश की रािकनया थी। उसका पण था िक िो आिमी मुझे िुए मे िरा िेगा उसी के साथ िववाि

करंगी। रािकुमारी बित थ े औ र ि ारकरिेल कीिवाखाते थे। ु सुनिर थी। िरू -िरू के लोग उसके साथ िुआ खेलन आ े त े सैकडो रािकुमार िेल मे पडे थे। मुसीबत के मारे यि रािा सािब भी उसी िेश मे आ पिंच ु े। चौबोला की सुनिरता की खबर उनके कानो मे पडी तो उनके मुंि मे पानी भर आया। उनकी इचछा उसके साथ िववाि करन क े ी ि ई ुमारीनमे िलसे कुछ िरूीपरएकबगंल ु । र ा ि क े ुरत ं बेटी ििया था। िववाि की इचछा से आनवेाले लोग इसी बगंले मे ठिरते थे। रािा भी उस बगंले मे िा पिंच ा। पिरे ि ार न त ु

को खबर िी। थोडी िेर बाि एक तोता उडकर आया और रािा की बाि पर बैठ गया। उसके गले मे एक िचटठी बध ं ी थी , ििसमे िववाि की शते ि ल खी थ ी । अ ं त म े य ि भ ी ि ल ख ा थ ा िकयिितुम िुए मे िारगये तो ं िचटठी पढकर िेब मे रख ली। थोडी िेर बाि रािा को रािकुमारी के मिल मे बुलाया गया। िुआ शुर िआ ु और रािा िार गया। शतक के अनुसार वि िेल भेि ििया गया। रािा की िालत िबगडन औ े रािा का पता लगान व े ि भ ी े गा, आया। किन ल िीििये।”

“रानी सािब,

रानी बोली,

“बितु



न प

ग र छ ो ि ि े श क ो

ड ि

े ासमाचारिबरानीकोमालू च ल े ि ानक :ख िआ मिआ ु । ु तोउ ल ी । क ु छिीिरूचलीथीिकविीपुरानठे गि

क र न क

आपके पास मेरी आंख िो ििार मे िगरवी रखी थी। आप अपना रपया लेकर मेरी आंख वापस

ठीक, मेरे पास बित ु -से लोगो की आंखे िगरवी रखी िै, उनिी मे तुमिारी भी िोगी। एक काम

करो। तुम अपनी िस ू री आंख िनकालकर मुझे िो। उसके तौल की िो आंख िोगी , वि तुमिे िे िी िायगी।” रानी का िवाब सुनकर ठग की नानी मर गई। वि बित ु घबराया। रानी बोली, िनकालो। उसी के तौल की आंख िे िी िायगी।” ठग िाथ-पैर िोडकर माफी मागन ल

“िेर मत करो। िसूरी आंख िलिी

े गा।बोला , “सरकार, मुझे आंख-वाख कुछ निी चाििए। मुझे िान क े

ीआजा

िीििये।” रानी बोली,

“निी,

मै िकसी की धरोिर आपनपेास रखना उिचत निी समझती। तुम िलिी अपनी आंख िनकालकर

मुझे िो, निी तो िसपािियो से किकर िनकलवा लूंगी।” े अंत मे ठग न ि व न त ी क नौकर िस ी व ा ल ा ि ू रा कान काटन ि े

र ै

क त

े ो

च ा र ि ि ा र र प यािेकरअपनीिानबचायी।य े ीचारििाररपयािेकररानीसेअपनािपड ं छुडाया। उ स न भ

े ा ठगो से िनपटकर रानी आगे बढी और पता लगाते-लगाते कुमारी चौबाला के िेश मे िा पिंच ु ी। रािा के िेल िान क समाचार सुनकर उसे िु :ख िआ ु । अब वि रािा को िेल से छुडान क े चौबीला िकस पकार िुआ खेलती िै। सारा भेि समझकर उसन प े सक े खबर िी। थोडी िेर मे तोता उडकर आया। रानी न उ

े ु

े गी।उसनपे तालगायािक उ प ा य स ोचनल ष क ा भ े ष बनायाऔरबगंले परिापिंच ु ी। ल े स े िचटठीखोलकरपढी।कुछसमयबािबुलावाआय

ा र ग

े गा।उसे रानी पुरषज-वेश मे कुमारी चौबोला के मिल मे पिंच य ोिगरनल ु ी। इनिे िेखकर चौबोला का मन न िान क े े े िलएच ऐसा मालूम िोन ल े ग ा ि क म ै इ स र ा ि क ु म ा र कोिीतनसकूं गी।खेलनक िबलली के िसर पर िीपक रखती थी। िबलली को इस पकार िसखाया गया था िक कुमारी का िाव िब ठीक निी पडता था और उसे

े गतीथी।इस मालूम िोता था िक वि िार रिी िै , तब वि िबलली के िसर ििलान स े े ि ी प क क ी जयोितडगमगानल े अपना पासा बल िेती थी। रानी यि बात पिले िी सुन चुकी थी। िबलली का धयान आकिषकत करन क े ि ल एउसनएेकचूिापाल े िलया था और उसे अपन क े ु ते क ी ब ा ि म े ि छ प ा र खाथा।चौसरकाखेल खलनल े ब तब उसन ि ल ल ी क ो इ श ा र ा ि क य ा । र ानीतोपिले से िीसिगथी।इसकेपिल े श क ा बािर कर िलया। िबलली की िनगाि अपन ि र प र ि म ग ई । रािकुमारीकेइशारे काउसपरकोई रािकुमारी के बार -बार इशारा िेन प





गयी। रािकुमारी के िववाि की तैयािरया िोन ल

भीिबललीटस -से-मस न िईु। िनिान रािकुमारी िार गई। तुरतं सारे नगर मे खबर फैल े

े ा गी।रानीबोली , “िववाि तो शतक पूरी िोते िी िो गया। रिा भावरे पडन क

िसतूर, वि घर चलकर कर िलया िायगा। विी से धूम-धाम के साथ शािी की िायगी।” चौबोला रािी िो गई। पुरष वेशधारी रानी बोली,

“एक बात और िै। यिा से चलन स







िले, उििनिे नसबलोगोको

िेल मे डाल रखा िै , छोड िो। लेिकन पिले एक बार उन सबको मेरे सामन बेुलाओ।” कैिी सामन ल े ा य े ग ए । ि र े क क ै ि ी क ी नाकछेिकरकौडीपिनाईगईथी। े गले मे चमडे का खलीता पडा था। इस खलीते मे उनके खान क े ि ल ए ख ा ल ी र ख ीिातीथी।खलीतेपरिरकैिीकान था। इनिी कैिियो के बीच रानी के पित (रािासािब) भी थे। रानी न ि े अपन म े न क े भ ा व क ो त ु र त अचछे कपडे पिनाकर उतम भोिन कराके उनको छुटटी िे िी गई। रािा न र पकडी।



उ ं

ि े

क ी छ ा ि

ि श ा िेखीतोउसकािीभरआया।उस प ा िलया।सबकैिियोकीनाकसे क क ु म ारकीियबोलकरसीधीघरकीर

िस ू रे ििन सवेरे रानी रािकुमारी चौबोला को िविा कराकर िाथी -घोडे, िास-िासी और धन-ििेि के साथ अपन नेगर को चली। रानी पुरष-वेश मे घोडे पर बैठी आगे -आगे चल रिी थी। पीछे -पीछे चौबोला की पालकी चलरिी थी। कुछ ििन मे वि े ग र अपन न म े आप ि ं चु ीऔरनगरकेबािरअपनबेगंलेमेठिरगई। े ग र म ेमकानक ेपासऔषधालय रािा िब लौटकर अपन न े आय े तो िे खतेकयािैिकरानीक , पाठशाला , अनाथालय े गा, रानी को मैन ए े आिि कई इमारते बनी िै, िेखकर रािा अचंभे मे आ गया। सोचन ल लाखो की इमारते कैसे बनवा ली। पैसे का मितव उसकी निरो मे अभी तक वैसा िी बना िआ ु था।

क प



सातोिियानिीथा , उसन येे

संधया-समय उसन र

ानीकोबु,लवाया पूछा,



“किो

रानी, अब भी तुमिारी समझ मे आया िक बुिद बडी िोती या

पैसा?” ं न और खली का टुकडा सामन रे ख ि ाकेनाककीकौडी , खलीता, िक

े ा

रानी कुछ निी बोली। चुपचाप उसन र

े गा, ये चीिे इसे किा से िमली। इतन म े ििया। रािा िविसमत िोकर रि गया। सोचन ल सामन ख े ड ा क उसकी बुिदमती रानी िी थी। े

रािा न ल था। तुमन म े कोई चीि निी िै।”

र ि





ि ी

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य ा ि त

आ ं ख े

खो

। अ ब ि



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र ा

क र

ि



िा

र क

न आ ं

ीकुमारीचौबोलाकोबुलाकरउनके

खेख , ुली।विसमझगयेिकचौबोल

े गा स, रनीचाकरिलया।िफरकु “रानी, अभी तक मै छबडी िेरसोचकरकिनल भूल मे

ी।अभीतकमै , पर आि पमेैसरीेकमसझ ोिीसबकु मे छआया समझताथा िक बुिद के आगे पैसा

शुभ मुिूतक मे चौबोला का िववाि रािा के साथ धूमधाम के साथ िो गया। िोनो रािनया ििल लगी। □





-िमलकर आनिंपूवकक रिने



े म य क ी ै । ए क र ा ि पुरान स ब ा त ि ा थ ा ।विबडासमझिारथाऔरिरनई उसके मिल के आंगनमे एक बकौली का पेड था। रात को रोि िनयम से एक पिी उस पेड पर आकर बैठता और रात के चारो पिरो के िलए अलग -अलग चार तरि की बाते किा करता। पिले पिर मे किता

:

“िकस मुख िधू िपलाऊं, िकस मुख िध ू िपलाऊं” िस ू रा पिर लगते बोलता

:

“ऐसा किंू न िीख, ऐसा किंू न िीख !” े गता: िब तीसरा पिर आता तो किन ल “अब िम करबू का, अब िम करबू का ?” िब चौथा पिर शुर िोता तो वि किता : “सब बममन मर िाये, सब बममन मर िाये !” रािा रोि रात को िागकर पिी के मुख से चारो पिरो की चार अलग -अलग बाते सुनता। सोचता, पिी कया किता

?पर उसकी समझ मे कुछ न आता। रािा की िचनता बढती गई। िब वि उसका अथक िनकालन म े उसन अ प न निी िे सका। उसन क े



प े ु र छ स म य



ि क

ि ी

तक म ु



ब ल

ु त

बराबर चकर काटती रिी। वि बित ु ेरा सोचता , पर उसे कोई िवाब न सूझता। अपन प

“तुम इतन प



ेश?ानकयोिीखते मुझे बताओ िो, बात कया िै



े िा, बाहाणी न क

“कया बताऊं !

े ल

े अ सफलरिातोिारकर ा य ा ।उसे सबिालसुनायाऔरउसस ग ी औ र िचंिततिोकरघरचलाआया।उस

मा े

ि





ो िैर,ानिेखकरबाहणीनपेू छा

?”

एक बडी िी किठन समसया मेरे सामन आ े

खडी िईु िै। रािा के मिल का िो आंगन

िै, विा रोि रात को एक पिी आता िै और चारो पिरो मे िनतय िनयम से चार आलग -अलग बाते किता िै। रािा पिी की उन े बातो का मतलब निी समझा तो उसन म ु झ स े उ न क ा मत ल ब प ू छा।परपिीकीपिेिलयामेरीसम िाकर कया िवाब िं ू, बस इसी उधेड-बुन मे िूं।” बाहाणी बोली, बाहाणी न च

“पिी किता कया िै? े







िरा मुझे भी सुनाओ।”



ि







“ीचारोबाते , यि ककौन िसुनकिठन ायी।सुबात नकरबाहाणीबोली।वाि िै! इसका उतर

तो मै िे सकती िं। ू िचंता मत करो। िाओ, रािा से िाकर कि िो िक पिी की बातो का मतलब मै बताऊंगी।” बाहाण रािा के मिल मे गया और बोला , बता सकती िै।”

“मिाराि,

पुरोिित की बात सुनकर रािा न उ



आप िो पिी के पशो के उतर िानना चािते िै

स क

ी स











,

उनको मेरी सती

े -े िरानी े से िी।बाहाणीआगई।रािा ुलानक लएपालकीभे नउ

आिर से िबठाया। रात िईु तो पिले पिर पिी बोला:

“िकस मुख िधू िपलाऊं, िकस मुख िध ू िपलाऊं ?” े िा, “पिंडतानी, सुन रिी िो, पिी कया बोलता िै?” रािा न क वि बोली, “िा, मिाराि ! सुन रिी िूं। वि अधकट बात किता िै।” रािा न पेूछा, “अधकट बात कैसी ?” े तरििया पिंडतानी न उ , “रािन्, सुनो, पूरी बात इस पकार िैलंका मे रावण भयो बीस भुिा िश शीश, माता ओ की िा किे, िकस मुख िध ू िपलाऊं। िकस मुख िध ू िपलाऊं ?” लंका मे रावण न ि े नमिलयािै , उसकी बीस भुिाए ि ं ै औ र ि से मुख से िध ू िपलाऊं?” राि बोला, “बित ि ीअथकलगािलया। ” ु ठीक ! बित ु ठीक ! तुमन स े े गा: िस ू रा पिर िआ ु तो पिी किन ल ऐसो किूं न िीख,





ी श ि



।उसकीमाताकितीिै िकउसेउसक

ऐसो किंू न िीख। रािा बोला, ‘पिंडतानी, इसका कया अथक िै े मझाया, पिडतानी नस

“मिाराि !

?”

सनो, पिी बोलता िै

:

“घर िमब नव िीप िबना िचंता को आिमी, ऐसो किूं न िीख, ऐसो किूं न िीख

!”

चारो ििशा, सारी पृथवी, नवखणड, सभी छान डालो, पर िबना िचंता का आिमी निी िमलेगा। मनुषय को कोई-न-कोई िचंता िर समय लगी िी रिती िै। कििये, मिाराि! सच िै या निी रािा बोला,

?”

“तुम ठीक किती िो।” े

तीसरा पिर लगा तो पिी न र

“अब िम करबू का, अब िम करबू का ?” बहाणी रािा से बोली, “मिाराि,



ि

क ी

तरिअपीबातकोिोिराया :

इसका ममक भी मै आपको बतला िेती िंू। सुिनये:

पाच वषक की कनया साठे िई बयाि , बैठी करम िबसूरती, अब िम करबू का, अब िम करबू का। पाच वषक की कनया को साठ वषक के बूढे के गले बाध िो तो बेचारी अपना करम पीट कर यिी किेगी

?” सिी िै न, मिाराि !” रािा बोला, “पिंडतानी, तुमिारी यि बात भी सिी लगी।” चौथा पिर िआ : ु तो पिी न च े ोचखोली “सब बममन मर िाये, सब बममन मर िाये !” े हाणीसे तभी राि न ब , “कसुिानो, पिंडतानी, पिी िो कुछ कि रिा िै , े गी, “मिाराि ! मैन प े ि ले बिाणी मुसकायी और किन ल सब बहाणो के मरन क े ी बातकितािै : िवशा संगत िो करे सुरा मास िो खाये, िबना सपरे भोिन करे, वै सब बममन मर िाये

-‘अब िम करबू

का, अब िम करबू का

कया वि उिचत िै ि



?”

क ि



ि ै

िकपिीअधकटबातकितािै।

वै सब बममन मर िाये। िो बाहाणी वेशया की संगित करते िै , सुरा ओर मास का सेवन करते िै और िबना सनान िकये भोिन करते िै , ऐसे सब बहाणो का मर िाना िी उिचत िै। िब बोिलये, पिी का किना ठीक िै या निी े िा, रािा न क

“तुमिारी चारो बाते बावन तोला,

े रािा-रानी न उ मे पिले से अिधक बढ गया। □



क ो



?”

पाव रती ठीक लगी। तुमिारी बुिद धनय िै

!”

िढयाकपडे -सममानऔसेरगिनि िविाे ेक िकया। रमान अब पुरोिित का आिर भी राििरबार





ै िकसी िमान क े ी ब ा त ि । ए क आ ि म ी थ ा।उसकानामथासू , िकंतु यकनारायण।विसव उसकी मा और सती इसी लोक मे रिती थी। सूयकनारापयण सवा मन कंचन इन िोनो को िेता था और सवा मन सारी पिा को। पिा चैन से ििन काट रिी थी, िकंतु मा-बिू के ििन बडी मुिशकल से गुिर रिे थे। िोनो ििनोििन सूखती िा रिी थी। प नीसाससे , “सासू किािी, और लोग तो आराम से रिते िै , पर िम भूखो मरे िा रिे िै। अपने



एक ििन बिू न अ

बेटे से िाकर किो न , वे कुछ करे।” ं गई। वि लाठी टेकती -टेकती िेवलोक पिंच बुिढया को बिू की बात िच ु ी। सूयकनारायण िरबार मे बैठे िएु थे। दारपाल नि





करउनिे , “मिाराि खबरिी! आपकी मातािी आई िै।” “े

सूयकनारायण न प े िा, दारपाल न क

?” छाकैसेिालिै



“मिाराि !

िाल तो कुछ अचछे निी िै। फटे -पुराने , मैले-कुचैले कपडे पिन ि



ै । साथमेनकोई

नौकर िै, न चाकर।” सूयकनारायण न ि

े कुमििया , “आओ, बाग मे ठिरा िो।”

ऐसा िी िकया गया। सूयकनारायण काम-काि से िनबटकर मा के पास गये , पूछा, बुिढया बोली,

“बेटा,

े ं

उतना बाकी की ििुनया का िेता िूं। ििुनया तो उतन क बुिढया बाली,

“बेटा !

“कयो मा !

कैसे आई ?”

!”

तू सारे िग को पालता िै। मगर िम भूखो मरती िै

सूयकनारायण को बडा अचरि िआ ु । उसन पेूछा,

“किो मा,

भूखो कयो मरती िो

च न म े



?

िितनी कंचन तुम को िेता िूं,



क ररिीिै ?” ।तुमउसकाआिखरकरतीकयािो



िम कंचन को िाडी मे उबाल लेती िै। िफर वि उबला िआ ु पानी पी लेती िै।˝

ं ते िएु बाला, सूयकनारायण िस

“मेरी भोली मा !

ीचीििै ! इसे तुम बािार मे बेचकर

कंचन किी उबालकर पीन क े

बिले मे अपनी मनचािी चीिे ले आया करो। तुमिारा सारा ि:ख िरू िो िायगा।˝ बुिढया खुश िोती िईु वापस लौटी। इस बीच बिू शिि की मकखी बकर िेवलोक मे आ गई थी। उसन मेा -बेटे की सारी बातचीत सुन ली थी। चचा खतम िोन प





व ि

ब ु

ि

ढ य



से

े ैसाक िले , िकीघरपिं ं चन को च ु गईऔरसूयकनारायणनि



बािार मे बेचकर घी-शकर, आटा-िाल सब ले आई। बुिढया िब लाठी टेकती -टेकती वापस आयी तो बिू न भ

‘सासू िी !

ोलीबनकरपू , छा



?” े ि लेिीकरडाला। सास घर के बिले रगं -ढंग िेखकर बोली, “िो कुछ किा था , वि तो तून प ˝ े सास-बिू के ििन आराम से कटन ल ग े । इ न क े घ र म े इ त नीबरकतिोगयीिकिानोसेलकमीस े ाससे,क“िासासूिी, तुमिारे बेटे न प े ि लेत,ोिियानिी िोनो घबरा गई। एक ििन बिू न स अब ििया तो इतना िक संभाला िी निी िाता, उनके पास िफर िाओ , वे िी कुछ तरकीब बतायेगे। ˝ बुिढया बिू के किन स े े ि फ र च ली।इसबारबु -चाकर,िढयानन लाव-े लशकर ौकर साथ ले िलया। पालकी मे बैठकर कया किा उनिोने

ठाठ से चली। बिू शिि की मकखी बनकर पिले िी विा पिंच ु गई। ं नप े बुिढया के पिच र द ा र पालनस , “े मिाराि ूयकनारायणकोखबरिी ! आपकी मा आई िै।˝ सूयकनारायण न पेूछा,

“कैसे िाल आई िै ?” े िा, “मिाराि ! बडे ठाठ -बाठ से। नौकर-चाकर, दारपाल न क े िा, “मिल मे ठिरा िो।˝ सूयकनारायण न क

लाव-लशकर सभी साथ िै।˝

बुिढया को मिल मे ठिरा ििया गया। काम-काि से िनबटकर सूयकनारायण मिल मे आया। मा से पूछा,

“किो मा !

मा बोली,

ि

“निी बेटा !

अब तो तून इ

े त





अभी भी पूरा निी पडता



ि ि

य ा

ि



क उ स े सभ ं ालनामुिशकलिोगयािै। ि

िमे बता िक िम उस धन का कया करे?” सूयकनारायण न ि



ं ते,िएु“ स किा मेरी भोली मा

!

यि तो बडी आसान बात िै। खाते -खरचते िो बचे, उससे धमक-

पुणय करो, कु ंए-बावडी खुिवाओ। परोपकार के ऐसे बित ु -से काम िै।˝ शिि की मकखी बनी बिू पिले िी मौिूि थी। उसन स





स ु

बावडी, धमकशाला आिि का काम शुर कर ििया। बुिढया िब लौटी तो उसन भ

न ि े







ोलीबनकरपू , “उनिोन छा क

औरफौरनघरलौटकरसिावर , तिबठ े याकिा ,

सासूिी?” बुिढया न घ

े र

केब-िले ढंगरगंिेखकर किा,

“बिू िो कुछ उसन क



िाथा , वि तो तून प



ि

लेिीकरडाला। ˝

इसी तरि कई ििन बीत गये। एक ििन सूयकनाराया को अपन घ











िधआई।उसनस , िेखे तो े सिी ोचािकचले



िक िोनो के कया िाल -चाल िै। इधर मा कई ििनो से आई निी। यि सोच सूयकनारायण साधु का रप धर कर आया। आते िी इनके िावािे पर आवाि लगाई ,

“अलख िनरिंन। आवाि सुनते िी बुिढया मुटठी मे आटा लेकर साधु को िेन आ े ई।साधुने किा, “माई ! मै आटा निी लेता। मै तो आि तेरे यिा िी भोिन करंगा। तेरी इचछा िो तो भोिन करा िे , निी तो मै शाप िेता िूं।˝ े ग ,डिगडाकरकिा शाप का नाम सुनते िी बुिढया न ि “निी-निी, बाबा ! शाप मत िो। मै भोिन कराऊंगी।” े िा, “माई, िमारी एक शतक ओर सुन लो। िम तुमिारी बिू के िाथ का िी भोिन करेगे।” साधु नक े े े माई बिू न छ त ीसतरिक , ेपबतीस कवान तरि की चटनी बनाइ। बुिढया साधु को बुलान ग ई ।साधु , “नक िा ! िम तो उसी पाट पर बैठेगे, ििस पर तेरा बेटा बैठता था; उसी थाली मे खायेगे, ििसमे तेरा बेटा खाता था। िबतक िम भोिन ं ा झलना पडेगा। तेरी इचछा िो तो बोल , निी तो मै शाप िेता िूं।” करेगे तब तक तेरी बिू को पख े े िा ! मै बिू से पूछ लूं।” बुिढया शाप के नाम से कापन ल गी।उसनक , “ठिरो बिू से सास न प े ू छातोविबोली , “मै कया िानूं? िैस तुम किो, वैसा करन क े ोतैय”ारिंू। बुिढया बोली, “बेटी ! बडा अिडयल साधु िै। पर अब कया करे ?” आिखर सूयकनारायण ििस पाट पर बैठता था , वि पाट िबछाया गया, उसकी खाने की थाली मे भोिन परोसा गया। बिू सामन प











लन

े ोिनिकया। बेैठी।तबसाधुमिारािनभ

े ोचा-चलो, अब मिाराि से पीछा छूटा। मगर मिाराि तो बडे िविचत िनकले बुिढया न स

“माई !

!

भोिन करन क े

ेबािबोले ,

िम तो यिी सोयगंे और उस पलंग पर ििस पर तेरा बेटा सोता था। और िेख , तेरी बिू को िमारे पैर िबान ि

े ोगे।तेरी

रािी िो तो बोल, निी तो मै शाप िेता िूं।” े

बुिढया बडी घबराई। बिू से िफर सलाि लेन ग साधु न ि



े मैिििया ई । बिून,क कया िानूं। तुम िानो।”

र ीिोतीिे , “खअचछा ीतोकिामाई, चल ििये।”



बुिढया िाथ िोडकर बोली, “निी-निी, मिाराि। आप िाइए मत। आप िैसा किेगे वैसा िी िोगा। बडी मुिशकल से िमारे ििन बिले िै। शाप मत िीििए।” सूयकनारायण ििस पलंग पर सोता था; पलंग िबछाया गया। साधु मिाराि न श

तभी छ: मिीन क े

ी र







य न

ि



े गी। या।बिूउनकेपैरिबानल

े गी। िोगई।सारीिि -तािि करन ल ु नयातािि

े िा , अब बुिढया समझी िक यि तो मेरा िी बेटा िै। उसन क

“बेटा ! कभी तो आया िी निी और आया तो यो अपने को िछपाकर कयो आया ? िा, अपना काम-काि संभाल। ििुनया मे िा-िाकार मचा िआ ु िै।” सूयकनारायण वापस िेवलोक लौट गया। इधर सूयकनारायण की पती न न े े गा। ििया। वि बालक ििनोििन बडा िोन ल एक ििन वि अपन ि

े ो





सतोके-सडड ाथगु ं ा लखे लील रिा था। खेल-िी-खेल मे उसन ि

ि

ी े

न ब े ािएकसुनिरतेिसवीपुतकोिन स ू

े गे , सौगंध खाई। उसके साथी उसे िचढान ल



ेलडकोकीतरिबापकी

“तेरे बाप िै किा ? तून क े भ ीउनिे ? तूिेखिबना ािै बाप का िै?” लडका रोता-रोता अपनी िािी के पास आया , बोला, “मा ! मुझे बता िक मेरे िपतािी किा िै। ? ” े ू बुिढया न स य क न ा रायणकीओरउं , “वे रिे गबेलीसे टा।सतरे क ं ेतिपता करकिा को तो सारी ििुनया िानती िै।” े चलते बालक न म , ि“एुकिा निी मा ! सचमुच के िपता बता।” े बालक न ि ि ि ठ ा न ल ी।बु-िढयाउसे चाकर साथ लेकरिेमेवले लोकचली।नौकर कर पालकी मे सवार िोकर विा े पिंच न क ीओरसं , क“ेतयेकरकिा िै ु े। मिलमे ठिराये गए। सूयकनारायण काम-काि से िनबटकर मिल मे आये। बुिढया न उ

तेरे िपता” े ा सूयकनारायण न ब लक क ो ग े गे। □ उस ििन से वे सब चैन से रिन ल



ि



म ेलेकरपयारिकया।बालककारोनाबिंिोगया।



एकबार की बात िै। सूरि , िवा, पानी और िकसान के बीच अचानक तनातनी िो गई। बात बडी निी थी े थी िक उनमे बडा कौन् िै ? सूरि न अ अपन ब े ड े ि ो न चारो न त





ि

क य ा

ि

प क े



ककलसे , िकसक के ोईकामनिीकरे िबना ििुनया का गे।काम िेखे रकता िै।

क व

पशु-पिियो को िब यि मालूम िआ ु तो वे िौडे आये। उनिेन उ सफलता निी िमली। िस ू रे ििन सूरि निी िनकला, िवा न च गया। चारो ओर िािकार मच गया। लोग पाथकना करन ल

छोटी-सी

े पनक े भीो पीछे न रिे। उनिोने डाबतायातोिवानअ , पानी और िकसान ा ि क य ा । आ ि खर ितलकाताडबनगया।खूब

क े ो ब ि ा व



,





न क

लकारासताखोिनक , पर उनिे े ापयतिकया

म े

ल नाबि ,ं करििया पानी सूख गया और िकसान िाथ-पर-िाथ रखकर बैठ

े े

गेिकवे-अ अपना पना काम करे; लेिकन वे टस-से-मस न िएु। अपनी

आप पर डटे रिे। लोग िैरान िोकर चुप िो गये। पर ििुनया का काम रका निी। ििा मुगा निी बोलता , विा कया सवेरा निी िोता

? चारो बडे िी कमेरे थे खाली बैठे तो उनिे थोडी िी िेर मे घबरािट िोन ल



े अिभमान गलन ल ग ा ।अिखरबडाकौनिै ? छोटा कौन िै? सबके अपने -अपन क े ा म िै। सबसे जयािा छटपटािट िईु सूरि को। अपन त े ा प स े स िी। िनकममे बैठे िोन स े े ि व ा कर ि म घ ु ट न ल े गये।



ी ि व



। स

मयकाटनाभारीिोगया।उनका

।बडाकोईआनसे , काम से िोतानिी य

ि



े गा।उसनअ े पनीिकरण लनल

ग ातोविभीचलपडी।इसीतरिपानीऔरिकसानभीअपन -अपन क े ाममेलग

वे अचछी तरि समझ गये िक संसार मे न कोई छोटा िै , न कोई बडा िै। सब समान िै। छोटे -बडे का भेि तो ऊपरी िै।□





िवकमािीत नाम के एक रािा थे। वि बडे नयायी थे। उनके नयाय की पशंसा िरू

-िरू तक फैली थी। एक बार िेवताओं

े व के रािा इदं न ि क माीीतकीपरीिाले , कयोिक उनिे नीचािी डर था िक किी ऐसा न िो िक अपनी नयायिपयता के कारण रािा े ि म ी क े िवकमािीत उनका पि छीन ले। इसके िलए उनिोन आ त ी न क ट े िएु िसरभेिकरकिलाभेिािकयिि मूलय बतला सकेगे तो उनके राि मे सब िगि सोन क े ी व ष ा ि ो ग ी । य ि ि नबतासकेतोगाििगरेगीओरराज े र

ं र संिार िोगा। रािा न ि भयक





र म



ी नोिसररखते , “आपिएुलोग सारे िइन रबारीपि िसरों डतोसे का मूकलिा य



बतलाइये।” पर कोई भी उनका मूलय न बतला सका, कयोिक तीनो िसर िेखन म े पडते थे। उनमे राई बराबर भी फकक न था। सारे सभासि म



न थे औरएकिीआिमीकेिान

ए क स म ा

ौनथे-।िरबार राि मे सनाटा छाया िआ ू रे का मुंि ु था, सब एक-िस





ताक रिे थे। पिंडतो का यि िाल िेखकर रािा िचंितत िएु। उनिोन प

रोिितकोबु , “तुलमिेाकरकिा तीन ििन की छुटटी िी



िाती िै। िो तुम इन तीन ििनो मे इनका मूलय बता सकोगे तो मुंिमागा पुरसकार ििया िायगा , निी तो फासी पर लटका ििये िाओगे।” िो ििन तक पुरोिितिी न ब

े ित ं ु वि िकसी भी फैसले पर न पिंच परत ु ,सोचा ु । तब तीसरा ििन शुर िआ ु , तो वि

बित ु वयाकुल िो उठे। खाना -पीना सब भूल गये। िचंता के मारे चदरओढकर लेटे रिे। पिंडताइन से न रिा गया। वि उनके पास े गी, गई और चदर खीचकर किन ल

“आप आि यो कैसे पडे िै ?

चिलये, उिठये, निाइये, खाइये।”पिंडत न उ



नतीनोिसरो

का सब िकससा पिंडताइन को कि सुनाया। सुनते िी पिंडताइन िोश -िवास भूल गई, बडे भारी संकट मे पड गयी। मन मे किने लगी-िे भगवान, अब मै कया करं

?

?

किा िाऊं



कुछ भी समझ मे निी आता। उसन स

िी िायगी, तो मै पिले िी कयो न पाण तयाग िं ू? पिंडत की मौत अपनी आंखो से िेखन स े ठान आधी रात के समय पिंडताइन शिर से बािर तालाब की ओर चली। इधर पावकती न भ



ग व



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ं क







च ा त ो

ि अ



कलतोपिंडतकोफासीिो



े ी छािै।यिसोचकरमरनक

ेऊपरसंकटआपडािै किािकएकसतीक , कुछ करना चाििए।

स े

े िा, शंकर भगवानन क

“यि संसार िै। यिा पर यि सब िोता िी रिता िै। तुम िकस -िकसकी िचंता करोगी ?” पर े िा , “अगर तुम निी मानती पावकती न ए े क नमानी।किा , “निी, कोई-न-कोई उपाय तो करना िी िोगा।” शंकर भगवान् न क े ो िो तो चलो।” िोनो िसयार और िसयािरन का भेष बनाकर तालाब की मेड पर पिंच ु े , ििा पिंडताइन तालाब मे डू बकर मरन क आई थी। पिंडताइन िब तालाब की मेड के पास पिंच ु न ा ि क एकिसयारपागलकीतरििोर -िोर से िसं रिा िै। ु ी तो उसन स े ं ता िै और कभी “िूके -िक कभी वि िस ु े , िवुा-िआ ु ” करता िै। िसयार की यि िशा िेखकर िसयािरन न पेूछा , “आि तुम पागल ं रिे िो ?” िसयार बालो, “अरे, तू निी िानती। अब खूब खान क े ोिमले,गा , िो गये िो कया? कयो बेमतलब इस तरि िस े िा, “कैसी बाते करते िो ? कुछ समझ मे निी आती ; िो कुछ समझूं तो खूब खायेगे और मोटे -तािे िो िायेगे।” िसयािरन न क े िा, “रािा इनद न र े िवशास करं।” िसयार न क ा ि ा ि व कम ा ि ी त क े यिातीनिसरभेिे िै औरयिशतक र उनका मोल बता सकेगा तो राजय भर मे सोना बरसेगा ; िो न बता सकेगा तो गािे िगरेगी। तो सुनो , िसरो का मूलय तो कोई बता न सकेगा िक सोना बरसेगा। अब राजय मे िर िगि गाि िी िगरेगी। खूब आिमी मरेगे। िम खूब खायेगे और मोटे िोगे।” इतना ं नल किकर िसयार िफर “िक ु े -िक ु े , िवुा-िआ ु ” किकर िस





ग ा।िसयारिरननप , “कया तुे मूछइन ा िसरो का मूलय िानते िो

?

िसयार बोला,

“िानता तो ि,ूं िकंतु बतलाऊंगा निी, कयोिक यि िी िकसी न स े ु न ि ल य ातोसाराखे ” ल िीिबगडिायगा। िसयािरन बोली, “तब तो तुम कुछ निी िानते , वयथक िी डीग मारते िो। यिा आधी रात कौन बैठा िै , िो तुमिारी बात सुन लेगा और भेि खुल िायगा!” िसयार को ताव आ गया। वि बोला, “तू तो मरा िवशास िी निी करती ! अचछा तो सुन, तीनो िसरो का मूलय मै बतलाता िूं। तीनो िसरो मे एक िसर ऐसा िै िक यिि सोन क े ििलाने -डुलान स े े स ला ई म ु ं ि स े



स नि

ल न

ा ई ल क





रउसकेकानमे से डाले औरचारोओ

े े लयिै।िस ल े तोउसकामू -डुलानलयअमू स ू रे िसरमेसलाई

यिि मुिं से िनकल िाय तो उसका मूलय िस ििार रपया िै। तीसरा िसर लेकर उसके कान से सलाई डालन प

र यििविमु , िं



नाक, आंख सब िगि से पार िो िाय तो उसका मूलय िै , िो कौडी।” पिंडताइन यि सब सुन रिी थी। चुपचाप िबे पाच घर की ओर चल पडी। पिंडताइन खुशी-खुशी घर पिंच ु ी। पिंडत अब भी मंि पर चािर डाले पिले के समान िचंता मे डू ब पडे थे। पिंडताइन ने चािर उठाई और किा, िसरो का मूलय।”

“पडे-पडे कया करते िो ?

चलो उठो, निाओ-खाओ। कयो वयथक िचंता करते िो

सवेरा िोते -िोते पिंडत उठे तो िेखा , िरवािे पर रािा का िसपािी खडा िै। पिंडत न ठ

फटकारते िएु किा,

“सवेरा निी िोन प



!

मै बतमाऊंगी उन

े ा



केसाथिसपािीको

े , गये य ाऔरबु ! िाओ लानआ रािा सािब से कि िेना िक निा ले, पूिा-पाठ कर ले,



खा-पी-ले, तब आयगंे।” िसपािी चला गया। पिंडत आराम से निाये -धोये, पूरा-पाठ और भोिन िकया, िफर पिंडताइन से भेि पूछकर राि-िरबार कीओर चले। पिंडत न प



िंच , ि“ीकिा रािन, मंगवाइये वे तीनो िसर किा िै ु ते

?”

े ी “एक सोन क सलाई मंगवा िीििये।” सलाई मंगवायी गई। पिंडत न ए े क ि स र को उ ठ ा करउसक - े कानमे सलाईडाली।चार े गा, “यि आिमी बडा गंभीर िै, इसका भेि निी िमलता। िेिखये मिाराि, धुलाई, पर विकिी से न िनकली। पिंडत किन ल इसका मूलय अमूलय िै।” िफर िस ू रा उठाकर उसके कान मे सलाई डाली। ििलाई -डुलाई तो सलाई उसके मुंि से िनकल आई। े गा, “आिमी कानका कुछ कचचा िै , िो कान से सुनता िै , वि मुंि से कि डालता िै। िलिखये , मिाराि, इसका वि किन ल े मूलय िस ििार रपया।” पिंडत न त ीसरािसरउठाया , उसके कान से सलाई डालते िी उसके मुंि , नाक, आंख सभी िगि से े

रािा न त







ि स





े निेचारोओरइधर ं गवाििये -उधर ।उलट पिंडतनउ -पलटकर िेखा और किा,

पार िो गई। उसन म



िुं बनाकरकिा , “अरे, यि आिमी िकसी काम का निी। यि कोई भेि निी िछपा सकता। िलिखये ,

मिाराि, इकस मूलय िो कौडी। ऐसे कान के कचचे तथा चुगलखोर आिमी का मूलय िो कौडी भी बित ु िै।” े िंडतकोबित पिंडत का उतर सुनकर रािा पसन िआ -सा धन ु । उसन प ु , िीरा-िवािारात िेकर िविा िकया। े इधर रािा न त ी न ो ि स र ो का म ू ल य ि ल बरसा। पिा खुशिाल िो गयी।□

ख कररािाइनदकेिरबारमेिभिवाि





पिाड की चोटी पर, खेतो की मेडो पर, एक पीला फूल िोता िै। लोग उसे ‘फयूंली’ किते िै। किी एक घना िगंल था। उस िगंल मे एक ताल था और उस ताल के पास नरी -िैसी एक वन-कनया रिती थी। उसका नाम था फयूंली। कोसो तक विा आिमी का नाम न था। वि अकेली थी , बस उसके पास वनके िीव

-िनतु और पिी रिते थे। वे उसके

भाई-बिन थे-बस पयार से पाले-पोसे िएु। यिी उसका कुटुमब था। वि उन सबकी अपनी -िैसी थी। ििरनी उसके गीतो मे अपने े ो ं ते थे , िरी-भरी िबू उसके पैरो के नीचे िबछ िाती और भोर के पछ ं ी उसे िगान क को भूल िाती थी। फूल उसे घेरकर िस चिचिा उठते थे। विउनसबकी पयारी थी। वि बित ु खुश थी। सुनिर भी थी। उसके चेिरे पर चाि उतर आया था। उसके गालो मे गुलाब िखले थे। उसके बालो ं पर घटाए ि घ र ी थ ी । त ा ल क े प ा िाथो से छुआ था। उस धरती पर कभी आिमी की काली छाया न पडी थी। पाप के िाथो न क

न ी क े

ी त

भ ी

उसकीिवानीभरतीिारिीथी।उ ,न

र ि फ ू

ल ोकीपिवतताकोमैलानिकया

था। इसीिलए ििनिगी मे किी लोभ न था, शोक न था। सब ओर शाित और पिवतता थी। फयूंली िनडर िोरक वनो मे घूमती , कु ंिो मे पेडो के नये पते िबछाकर लेटती

,

लेटकर पिंछयो के सुर मे अपना सुर िमलाती , िफर फूलो की माला बनाती और निियो

े ग ती।थीतोअक की कल-कल के साथ नाचन ल , पर ेलउसकी ी ििनिगी अकेली न थी। एक ििन वि यो िी बैठी थी। पास िी झरझर करता एक पिाडी झरना बि रिा था विा एक बडे पतथर का सिारा िलए वि िलमे पैर डाले एक ििरन के बचचे को िल ु ार रिी थी। आंखे पानी की उठती तरगंो पर लगी थी

,

पर मन न िान िेकस

मनसूबे पर चािनी-सा मुसकरा रिा था। तभी िकसी के आन क े ी आ ि ट ि ई ु िेखा तो एक रािकुमार खडा था। कमलके फल िैसा कोमल और ििमालय की बरफ िैसा गोरा। फयूल ं ीनआ



।ििरनकाबचचाडरसे चौका।फयूल ितकिकसी

आिमी को निी िेखा था। उसे िेखकर वि चाि-सी शरमा गई, फूल -सी कुमिला गई। रािकुमार पयासा था। मन उसका पानी मे था, पर फयूली को िेखते िी वि पानी पीला भूल गया। फयूंली अलग सरक गयी। रािकुमार न अ े ािकु,मारसे “िशकार पूछा करन आ

लगा। पानी िपया तो फयूंली न र े िा , रािकुमार न क फयूंली बोली,

े ं

ि

ुिलबनायीऔरपानीपीने

ये ?” िो



“िा।”

“तो आप चले िाइये। यि मेरा आशम िै। यिा सब िीव-िनतु मेरे भाई-बिन िै। यिा कोई िकसी को

निी मारता। सब एक-िस ू रे को पयार से गले लगाते िै।” ं ा। बोला , रािकुमार िस

“मै

भी निी मारंगा। यिा खेल-खेल मे चला आया था। खैर, न िशकार िमला, न अब

िशकार करन क े ी इ च छ ा ि ै।.....” इतनीिरूभटकगयािूंिक इतना किकर रािकुमार चुप िो गया। िफर कुछ समय के िलए कोई कोई िकसी से निी बोला। फयूंली न आ िफर एक बार िेखा। वि सोच न पाई िक आगे उससे कया किे, कया पूछे, पर न िान व यो िी उसके मुख से िनकल पडा ,



ि







।आ

े ं

ख ोकीकोरसेउसे

योउसेअचछालगा।

“आप थके िै। आराम कर लीििये।”

रािकुमार एक पतथर के ऊपर बैठ गया। संधया िान ल







स मानलालिआ -पिियोु ।वनमे का लौटतेिएुपश

े ं ि -मूल और िगंली फलो का ढेर लग गया। यि रोि की िी बात थी। कोलािल गूंि उठा। िेखते-िी-िेखते फयूली के सामन क रोि िी तो वन के पशु -पिी-उसके वे भाई -बिन-उसके िलए फल -फूल लेकर आते थे। वि उन सबकी रानी िो थी। रािकुमार न य यिा रि पाता



ि िेखातोबाला , “वनिेवी, तुम धनय िो! िकतना सुख िै यिा

!

िकतना अपनापन िै

!

काश, मै

!”

े ोका, फयूंली न ट

“बडो के मुंि से छोटी बाते शोभा निी िेती। तुम यिा रिकर कया करोगे ? कया लेना-िेना। उनिे तो अपनमेिल चाििए, बडे-बडे शिर चाििए, ििा उनिे राि करना िोता िै।” े िा , “िगंल मे िी मंगल िै, तुम भी तो राि िी कर रिी िो यिा।” रािकुमारन क फयूंली मुसकरा उठी। बोली, “निी।”

रािकुमार को वनो से

े ा अंधेरा िो चुका था। फयूंली न र ि क म ा र क ा फू लोसे अिभननिनिकयाओरिफरव ु रािकुमार भी पेड के नीचे लेट गया। साझ का असत िोता सूरि िफर सुबि को पिाड की चोटी पर आ झाका। रािकुमार िागा तो उसे घर का खयाल े ो आकुल िो उठी। अब उसका िान क े ा ि ी न िीकररिाथा।सुबि आया। वि उिास िा उठा। फयूंली उसके पाणो मे िखलनक कलेवा लेकर फयूंली आई तो रािकुमार मन की बात न रोक सका , बाला,

“एक बात किना चािता िूं। सुनोगी ?”

फयूंली न पेूछा,

“कया ?” रािकुमार कुछ िझझका , पर ििममत करके बोला , “मेरे साथ चलोगी ?

मै तुमिे रािरानी बनाकर पूिूंगा।”

े िा, फयूंली न क

“निी,

रानी बनकर मै कया करंगी।”

े िा , रािकुमार न क

“मै तुमिे पयार करता िूं। तुमिारे िबना िी निी कसता।” े वाबििया फयूंली न ि , “पर विा यि वन, ये पेड, ये फूल , ये नििया और ये पिी निी िोगे।” े िा , “विा इससे भी अचछी-अचछी चीिे िै। मेरे रािमिल मे िर तरि से सुख से रिोगी। यिा वन मे रािकुमार न क कया रखा िै !” े िा, “आिमी न अ े े फयूंली न क प न ि ल ए ए कब न ावटीििनिगीबनारखीिै ” ।उसेमैसुखनिीमानती। े ोचा-इतनी सुंिरता, इतना पयार, सचमुच मुझे आििमयो के बीच किा रािकुमार इसका कया िवाब िेता ! फयूंली न स े िमलेगा ? आिमी एक-िस ि ल ,एसंपर गिठतिररिआ विी सिगंठन ू रे को सुखी बनान क े ु िै उसके िु :खो का कारण भी िै। आि मै अकेली िूं , पर मेरे ििल मे डाि निी िै, कसक निी िै। पर विा? विा इतना खुलापन किा िोगा। पर उसके भीतर बैठा कोई उससे कुछ और भीकि रिा था। आिखर नारी को सुिाग भी तो चाििए। यौवन मे लालसा िाती िी िै। वि एकिम काप उठी; पर अंत मे उसकी भावना उसे रािकुमार के साथ खीच ले िी गई।उसन र





िकुमारकीबातमान

ली। िफर कया था ! वे िोनो उसी ििन चल पडे। पशु -पिी आये। सबन उ े े ा रािकुमार उसे लेकर अपन र ज य म े प ि

न ं

ि च



ु पयार करता था। विा वन से भी जयािा सुख था। रािमिल मे भला िकस बात की कमी िो सकती थी के भोिन थे , सेवा के िलए िािसया ओर ििल बिलान ि अिधकार था।





!

ि व िािी।उनकीआंखोमेआस ं ू थे । ा । ि ानोबेििखुश थे। विअबरानीथी।

े ल,एनतक ििखान िकया।यिीनिी क े

ि

ेिलएतरि -तरि

खान क े ि



े ेिलए ए ऐशयक औरितानक

ििन बीतते गये। सुबि का सूरि शाम को ढलता रिा। कई ििनो तक उसके भाई -बिन उसे याि करते रिे। पर विी े गे , फूल फूलन ल े गे। ं ी पिले की तरि बोलन ल तो गई थी, बाकी िो ििा था, विी था। कुछ ििन बाि पछ पर एक ििन फयूंली को लगा, िैसे उसके िीवन की उमंग खो गई िो। रािमिल मे िीरे ओर मोितयो की चमक िरर थी, पर न फूलो का -सा भोलापन ,था और न पिंछयो की-सी पिवतता थी। अब रािमिलकी िीवारे िैसे उसकी सास घोटे िे रिी थी।उसे लगता , िैसे वि वनउसे पुकार रिा िै। अब उसके पास उसके भाई बिन किा थे? आिमी थे, डाि थी, लोभ था, लालच था। पर वि तो िनमकल पयार की भूखी थी। े िफर उस िीवन मे उसके िलए कोई रस न रिा। वि उिास रिन ल ग ी



-

े गा।रािकुमार से एकातअचछालगनल



े से खुश करन क े नउ ी लाखकोिशशे , पर उसका की कुमिलाया मन िरा न िो सका। कुछ ििन मे उसकी तबीयत खराब िो गई और वि िबसतर पर िा पडी। थोडी िी ििनो मे उसका चमकता चेिरा पीला पड गया। वि मुरझा गई। िकसी पौधे को एक िगि से उखाडकर े ीअबकोईआशानरिी। िस ी क ो ि श श ब े कारगई।उसकेिीनक ू री िगि लगा िेन क े े ािकु,मारसे एक ििन उसन र “मैकअब िा निी िीऊंगी। मेरी एक आिखरी चाि िै। पूरी करोगे?” े िा , रािकुमार न क फयूंली न ल



“िरर।” ेिएुकिा ब ीसासले , “तकभी अगर िशकार को िाओ तो मेरे वन के उन भाई -बिनो को मत मारना और



िब मै मर िाऊं तो मुझे पिाड की उसी चोटी पर गाड िेना, ििा वे रिते िै।” इसके बाि , उसके पाण पखेर उड गये। रािकुमार न उ









भाई-बिनो ने -सुना तो बडे िु :खी िएु। िवा न ि रि गया।

स ी



ि



ड क

े स ,सकीभरी फल िगर गये और लताए क

च ोटीपरगाडकरउसकीआिखरीइचछापू -पिियो ने-उसके उन रीकी।वनकेपशु

ी ं





िलाउठी।रािकुमारमनमसोसकर

आिमी िी मरते िै। धरती सिा अमर िै। एक ओर पेड सूखता िै , िस ू री ओर अंकुर फूटते िै। इसी का नाम ििनिगी िै। कुछ ििन बाि िफर पाणो की एक िससकी सुनाई िी। पिाड की चोटी पर , ििा फयूंली गाड िी गई थी, विा पर एक पौधा े गे।□ और उस पर एक सुनिर-सा फूल उग आया और लोग उसे फयूंली किन ल





िकसी गाव मे एक चमार रिता था। वि बडा िी चतुर था। इसीिलए सब उसे ‘चतुरी चमार’ किा करते थे। घर मे वि

और उसकी सती थी। उनकी गुिर-बसर िैसे-तैसे िोती थी, इससे वे लोग िैरान रिते थे। एक ििन चतुरी न स





चािकगावमे

रिकर तो उनकी िालत सुधरन स े ेरिी , तब कयो न वि कुछ ििन के िलए शिर चला िाय और विा से थोडी कमाई कर लाय ? ं गया। सती से सलाि की तो उसन भ े ी ि ा न क े ी िअनुमितिेिी।विशिरपिच मेिनती तो वि था िी। सूझबूझ भी उसमे खूब थी। कुछ िी ििनो मे उसन स े ौ र प य े कमािलये।इसकेबािविगाव को रवाना िो गया। रासते मे घना िगंल पडता था। िगंल मे डाकू रिते थे। चतुरी न मेन -िी-मन किा िक वि रपये ले िायगा े

तो डाकू छीन लेगे। उसन उ े

डाकुओं न उ







ख ो



। ए क



डीखरीिीओरकु -िेखते छ रपये उसकीपूंछ मे बाधक



सेघेर,ा।बोले “बडी कमाई करके लाया िै चतुिरया। ला , िनकाल रपये।”

े िा, चतुरी न क

“रपये मेरे पास किा ीै,

िो थे उससे यि घोडी खरीि लाया िूं। इस घोडी की बडी करामात िै। मुझे

यि रोि पचास रपये िेती िै।” इतना किकर उसन म डछाकुओं का सरिार बोला , तुमिे कया

ि

“सुन भाई,



ा र

पूंछ-मेखन डड ं ािकखन करके पचास रपये िनकल पडे।



े िा, “कयो ? ?” तनमे े ख चतु रीिीिै री न क

े क

यि घोडी तुमन ि

उससे

?” वि बोला,

“िमे रपये निी चाििए। यि घोडी िे िो।” े मभीरतासे “निी,” चतुरी न ग , “मैकऐसा िा निी कर सकता, सरिार बोला, “ये ले, घोडी के िलए सौ रपये।” चतुरी न औ









ि



े िा, सारा िकससा अपनी सती को सुना ििया। उसन क रिना चाििए।”



मेरी रोिी की आमिनी बिं िो िायेगी।”





ठी क न

ि ी

झ ा।रपयेलेकरघोडीउनिे िेिीऔरग

स म

“िो-न-िो, िो-चार ििन मे डाकू यिा आये िबना निी रिेगे। िमे तैयार

अगले ििन वि खरगोश के िो एक -से बचचे ले आया। एक उसन स



ीकोििया।बोला , “मै रात को बािर की कोठरी



मे बैठ िाया करंगा। िैसे िी डाकू आये , इस खरगोश के बचचे को यि किकर छोड िेना िक िा , चतुरी को िलवा ला। आगे मै संभाल लूंगा।” े

डाकुओं का सरिार घोडी को लेकर अपन घ

“ला,





य ा

और





तक

आ ं गनमे, खडाकरकेपूंछ मे डड ं ामाराऔ



े स-कसकर कई डड रपये।” रपये किा से आते ? उसन क ं े पिले तो पूंछ मे मारे , िफर कमर मे। घोडी न ल े

पर रपये निी ििये। सरिार समझ गया िक चतुरी न ब

िमाशीकीिै , पर उसन अ



स े

प न

िस ू रे के यिा गई , तीसारे के यिा गई , उसकी खूब मरममत िईु, पर रपये बेचारी किा से िेती? चतुरी न उ

े ा





ीिकरिी , िथयोसे कुछ भीनिीकिा।घोडी िेमूख , कबीे नाििया

े ा थ ीसेक ं ाई िो िोगी। आिखर पाचवे डाकू के यिा िाकर घोडी न ि े मतोड िकन इस बात को अपन स ?िेतउसकी ोकैसे िस ििया। तब भेि खुला। े ोल ििया। िफर सारे डाकू िमलकर एक रात को चतुरी के घर पिंच ु गये। िरवािा खटखआया। चतुरी की घरवाली नख सरिार न पेूछा,

“किा िै चतुरी का बचचा?” सती बोली, “वि खेत पर गये िै। आप लोग बैठे। मै अभी बुला िेती िूं।” े

इतना किकर उसन ख फौरन िलवा ला।” िण भर बाि िी डाकुओं न ि लोगो न म



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क ोिाथमे , ल“ेकिारिरवािे रे चतुक रे बी ािरछोडिियाऔरबोली को ी ख र



ो शकेब,चच्“ीेकआप ोिाथमेिलएचलाआरिािै।आतेि

ै ।इसकेप!िंच ु ”तेिीमैचलाआया।वािरेखरगोश

डाकू गुससे मे भरकर आये थे , पर खरगोश को िेखते िी उनका गुससा काफूर िो गया। सरिार न अ पूछा,

े चरिमेभरकर

“यि तुमिारे पास पिंचुा कैसे ?” चतुरी बोला, “यिी तो इसकी तारीफ िै। मै सातवे आसमान पर िोऊं, तो विा से भी िलवा ला सकता िै।” े िा, “चतुरी, यि खरगोश िमे िे िे। िमलोग इधर-उधर घूमते रिते िै और िमारी घरवाली परेशान रिती सरिार न क

िै। वि इसे भेिकर िमे बुलवा िलया करेगी।” िस ू रा डाकू बोला ,

“तून ि े म ा र े स ा थ ब ड ा ध ो पैसा भी निी ििया और मर गई। खैर, िो िआ ु सो िआ ु । अब यि खरगोश िे।” े े ौरपये चतुरी न ब ि त ु मन ा ि क,यातोसरिारनस “यि ले। ला , िे खरगोश िनकाले।को। बोला”

ख ा

िकयािै। रपये ले आयाऔरऐसी

े प य े चतुरी न र ल ेिलयेऔरखरगोशिेििया। डाकू चले गये। चतुरी न आ े ग े क े ि ल ए ि फ र ए क च ालसोची।उधरडाकुओं केसर िाकर अपनी सती को ििया ओर उससे कि िियािक िब खाना तैयार िो िाय तो इसे भेि िेना। और वि बािर चला गया। िोसतो

के बीच बैठा रिा। राि िेखते -िेखते आधी रात िो गई , पर खरगोश निी आया, तो वि झललाकर घर पिंच ु ा और सती पर उबल े िा, “तुम नािक नाराि िोते िो। मैन त े पडा। सती न क ो घ ट ं ो पिले”खरगोशकोभेििियाथा। सरिार समझ गया िक यि चतुरीकी शैतानी िै। वे लोग तीसरे ििन रात को िफर चतुरी के घर पिंच ु गये। प नीसतीसे , “कइनक िा े रपये लाकर िे िे।”



उनिे िेखते िी चतुरी न अ सती बोली,

“मै निी िेती।” “निी िेती ?” चतुरी गरिा और उसन क



े िा , िगर पडी और आंखे मुंि गई। डाकू िगं रि गये। उनिोन क



ल ा

ड ी

“अरे चतुरी,

तून य



उ ि







रअपनीसतीपरवारिकया।सत

कयाकरडाला ?”

चतुरी बोला, “तुम लोग िचंता न करो। यि तो िम लोगो की रोि की बात िै। मै इसे अभी िििंा िकये िेता िूं।” इतना किकर वि अंिर गया और विा से एक सारगंी उठा लाया। िैसे िी उसे बिाया िक सती उठ खडी िईु। े ेिलएवैसारगंतैया चतुरी न उ े से प ि ल े स े िी ि स ख ा र ख ा थ ाओरखूनििखानक े िा , समझकर डाकुओं का सरिार चिकत रि गया। उसन क चतुरी न ब

“चतुरी भैया,

े ित कानी की तो सरिार न स े ु -आना

घर पिंच ु ते िी सरिार न स







क ो

यि सारगंी तू िमे िे िे।”



र प

फ ट क ा र

े ि







ल क रिसे औरिे िियेऔरसारगंीलेकर



औ र सतीकु , छकतेुलिाडी िोगईतोउसनआ लेकर गिकेन विे अलग खानताव कर



े िी। िफर सारगंी लेकर बैठ गया। बिाते -बिाते सारगंी के तार टूट गये , लेिकन सती न आ ं ख े निीखोली।सरिारअपनी े क स ी क ो ब त ा मूखकता पर िसर धुनकर रि गया। पर अपनी बेवकूफी की बात उसन ि ई निीऔरएककेबािएकसारीिसत िसर कट गये। भेि खुला तो डाकुओं का पारा आसमान पर चढ गया। वे फौरन चतुरी के घर पिंच ु े और उसे पकडकर एक बोरी मे बिं कर निी मे डुबोन ल े े च ल े । र ा त भ र च ल क र स व े र ेवेएकमंििरपरपिंच ु े।थोडीिरूप ििया और और सब िनबटन च े लेगये। उनके िाते िी चतुरी िचललाया ,

“मुझे निी करनी। मुझे निी करनी।” संयोग से उसी समय एक गवाला अपी गाय े े िा, “कया बताऊं। रािा के लोग भैस लेकर आया। उसन आ व ा िस ु न “ी त ोबोरीक ?” ेपचतु ासगया।बोलाकयाबातिै री न क े े मेरे पीछे पडे िै। िक रािकुमारी से िववाि कर लू। लेिकन मे कैसे करं , लडकी कानी िै। ये लोग मुझे पकडकर बयाि करन ल िा रिे िै।” गवाला बोला, “भेया, बयाि निी िोता । मै इसके िलए तैयार िूं।” े इतना किकर गवाले न झ ट प ट ब ो र गाय-भैस लेकर नौ-िी-गयारि िो गया। थोडी िेर मे डाकू आये और बोरी ले िाकर उनिोन न

े ि

गया, लेिकन लौटे तो रासते मे िेखते कया िै िक चतुरी सामन ि



पूछा,

“कया बे,

तू यिा कैसे

ी ै

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क ो



प ट उ न

ख ो ल



रचतुरीकोबािरिनकालिियाऔरस

क ि

ी ।





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निेसत ं ोषिोगयािकचतुरीसेउनक

ीआंखोपरिवशासनिीिआ ु ।पास

?”

वि बोला, आप लोगो न म





ु झ

न िीमे उ , थले इसिलए पानीमेगाय डाला -भैस िी मेरे िाथ पडी, अगर गिरे पानी मे

डाला िोता तो िीरे-िवािरात िमलते।” िीरे-िवािरात का नाम सुनकर सरिार के मुंि मे पानी भर आया। बोला िवािरात ििलवा िे।” चतुरी तो यि चािता िी था। वव उनिे लेकर निी पर गया। बोला ,

, “भैया चतुरी,

“िेखो,

तू िमे ले चल और िीरे -

िितनी िेर पानी मे रिोगे, उतना िी लाभ

िोगा। तुम सब एक-एक भारी पतथर गले मे बाध लो।” लोभी कया निी कर सकता को धका िेकर निी मे िगरा ििया।

!

उनिोन अ



पन



सारे डाकुओं से िमेशा के िलए छुटकारा पाकर चतुरी चमार गाय े गा। □ साथ आननि से रिन ल



ल ो



े प

त थ



ब ाधिलये -एकऔरएककतारमेखडेिोगये।

-भैस लेकर खुशी-खुशी घर लौटा और अपनी सती के



िकसी िगंल मे एकसुनिर बगीचा था। उसमे बित ु -सी पिरया रिती थी। एक रात को वे उडनखटोले मे बैठकर सैर के िलए िनकली। उडते-उडते वे एक रािा के मिल की छत से िोकर गुिरी। गरमी के ििन थे , चािनी रात थी। रािकुमार अपनी छत पर गिरी नीि मे सो रिा था। पिरयो की रानी की िनगाि इस रािकुमार पर पडी तो उसका ििल डोल गया। उसके िी मे आया े सानिी ं ु उसे पृथवीलोक का कोई अनुभव निी था, इसिलए उसन ऐ िक रािकुमार को चुपचाप उठाकर उडा ले िाय , परत े िकया। वि रािकुमार को बडी िेर तक िनिारती रिी। उसक साथवाली पिरयो न अ प न ी र ा न ीकीयििालतभापली।वेमिाक करती िईु बोली, “रानीिी, आििमयो की ििुनया से मोि निी करना चाििए। चलो , अब लौट चले। अगर िी निी भरा तो कल िम आपको यिी ले आयगंी।”

परी रानी मुसकरा उठी। बोली, “अचछा, चलो। मैन क े बमनािकया ? लगता िै, ििसन म े े र े मनकोमोििलयािै , े ु म प र भीिािक ” ू रिियािै। ं पडी और रािकुमार की पशंसा करती िईु अपन ि े े पिरया यि सुनकर िखलिखलाकर िस शकोलौटगई। सवेरे िब रािकुमार सोकर उठा तो उसके शरीर मे बडी तािगी थी। वि सोचता िक ििमालय की चोटी पर पिंच ु िाऊं े या एक छलाग मे समुनिर को लाघ िाऊं। तभ विीर न आ क र उ स े ख ब र ि ी िकरािाकीिालतबडीखराबि े ं विा पिंच आिखरी सास ले रिे िै। रािकुमार की खुशी काफूर िो गयी। वि तुरत ं ख ेखोलीऔररािकुमारके ु गया। रािा न आ उसन त

िसर पर िाथ रखता िआ ु बोला,

“बेआ,

विीर सािब तुमिारे िपता के िी समान िै। तुम सिा उनकी बात का खयाल रखना।”

इतना किते-किते रािा की आंखे सिा के िलए मुंि गयी। रािकुमार फूट े नगर न श ो क म न की राय के िबना निी करता था।





ा ।



ग ा

े ोतोरािकु े प किनक , पर अपन ि मारअबरािािोगयाथा त ा

एक ििन विीर रािकुमार को मिल के कमरे ििखान ल े एक कमरा निी ििखाया। रािकुमार न ब

-फूटकर रोन ल





। रािाकीमृतयुपरसारे

क ी

आजानुसारविकोईभीकामविीर

े बकमरेििखा ा।उसनस -खोलकर खोल ििये, लेिकन



ित पर विीर कैसे भी रािी न िआ ु ,िििकी ु । विीर का लडका भी उस समय साथ



था। वि रािकुमार का बडा गरा िमत था। उसन व



िीरसे , क‘िपतािी िा , रािपाट, मिल और बाग-बगीचे सब इनिी के तो िै

?” े िा, “बेटा, विीर न क

आप इनिे रोकते कयो िै

तुम ठीक किते िो। सब कुछ इनिी का िै , लेिकन मंिाराि न म था िक इस कमरे मे रािकुमार को मत ले िाना। अगर मै ऐसा करंगा तो राि को बडा बुरा लगेगा।” विीर का लडका थोडी िेर तक सोचता रिा। िफर बोला,

“लेिकन िपतािी,







े समयमुझे िकुमििया

अब तो रािकुमार िी िमारे मिाराि िै।

उनकी बात मानना िम सबके िलए िररी िै। अगर आप रािा के िु :ख का इतना धयान रखते िै तो िमारे इन रािा के िु :ख का भी तो धयान रिखये ओर िरवािा खोल िीििये। रािकुमार को िख ु ी िेखकर िमारे रािा को भी शाित निी िमलेगी।” े य विीर न ज ा िा ि ठ क र ना ठ ी क न स म झऔरचाबीअपनबेेटेकेिाथपररखिी कमरा बडा संिर था। छत पर तरि-तरि के कीमती झाड -फानूस लटक रिे थे और फशक पर मखमल के गलीचे िबछे िएु थे। िीवार पर सुिं र-सुिं र िसतयो की तसवीरे लगी थी। यकायक रािकुमार की िनगाि एक बडी सुंिर युवती की तसवीर पर पडी। े

उसन व

ि





े प?ूछािकयििकसकीिै विीर को ििसका डर था, विी िआ ु । उसे बताना िी पडा िक वि िसंिलदीप की



िीरसे , क“िामै पििमनी से िी बयाि



पििमनी की िै। रािकुमार उसकी सुनिरता पर ऐसा मोिित िआ ु िक उसी ििन उसन व करंगा। िबतक पििमी मुझे निी िमलेग, मै राि के काम मे िाथ निी लगाऊंगा।” विीर िैरान िोकर बोला,

“रािकुमार ,

ं दीप पिंच िसिल ु ना आसान काम निी िै। वि साम समुनिर पार िै। विा भी

िाओ तो शािी करना तो िरू, उससे भेट करन भी असमभव िै। उसकी तलाश मे िो भी गया , लौटकर निी आया। िफर ऐसे े ा म म े िा थ डा लनक ?”े ीसलािमैआपकोकैसेिेसकतािंू पर रािकुमार अपनी बात पर अडा रिा। विीर का लडका उसका साथ िेन क े

अनिोन क

सवार िोकर चल ििये। चलते-चलते ििन डू ब गया। वे एक बाग मे पिंच ु े और अपने -अपन घ



ो त ो

ै य



रिोगया।वे िोनोघोडे पर

डेख-ोलििये मुंि धोकर ।िाथकुछ

खाया-िपया। वे थके िएु तो थे िी , चािर िबछाकर लेट गये। कुछ िेर के बाि िी गिरी नीि मे सो गये। आंख खुली और चलने े को िएु तो िेखते कया िै िक बाग का फाटक बिं िो गया िै और विा कोई खोलन व ालनिीिै। बगीचे के बीचो -बीच संगमरमर का एक चबूतरा था। आधी रात पर विा कालीन िबछाये गये, फूलो और इत की सुगंिध चारो ओर फैलन ल









ि

फ र









र े

े ािसंििआ प रएकसोनक -घर करता ासनरखिियागया।कु छ िीिेर मे घर ु एक

उडनखटोला विा उतरा। उसके चारो पायो को एक -एक परी पकडे िएु थी और उस पर उनकी रानी िवरािमान थी। चारो पिरयो न अ



प न

अपनी सिखयो से किा, े ाओ।” मेरे सामन ल





“वि िेखो,









ो स

ि ा





े े िसंिासनपरिबठ ि ेकरनीचे -उधर उताराऔररतििडतसोनक िेखा और

ं पेड के नीचे चािर िबछाये िो आिमी सो रिे िै। उनमे से एक विी रािकुमार िै। उसे तुरत

िकुम करन क े ी ि े र थ ी ि क प ि र य ा स ो त े िएु रािकुमारकोअपनीरानीकेसा े गे-पीछे िेखकर उसे बडा डर लगा और िाथ िोडकर गई और वि पिरयो कीिगमगािट से चकाचौध िो गया। पिरयो को अपन आ बोला,

“मुझे िान िेीििये।” ुसकराते , “िरािक एुकिाुमार , अब तुम किी निी िा सकते। तुमिे मुझसे िववाि करना िोगा।”



परी रानी न म

रािकुमार बडी मुसीबत मे पड गया। बाला , “परी रानी, मै िमा चािता िूं। मै िसंिलदीप की पििमनी की तलाश मे िनकला िूं। इस समय मै। िववाि निी कर सकता।” े िा, “भोले रािकुमार , िसंिलदीप की पििमनी तक आिमी की पिंच परी न क ु समभव निी िै। वि िैवी शिकत के िबना कभी निी िमल सकती। अगर तुम मुझसे िववाि कर लोगे तो मै तुमिे ऐसी चीि िंगूी, ििससे िसंिलदीप कीपििमनी तुमिे आसानी से िमल िायेगी।”

रािकुमार यि सुनकर बडा खुश िआ ु और बोला , “परी रानी, मै तुमसे िरर शािी करंगा, पर तुमिे मेरी एक बात े ा थ माननी िोगी। मै िब पििमनी को लेकर लौटू ंगा तभी तुमिे अपन स ले ि ा स क ू ं गा।मै पितजाकरतािूं िकमेर कोई िेर-फेर निी िोगी।” परी न प







ि





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अंगूठ,ीउतारीऔररािकु “यि अंगूठी िबतक मारकीउंतुगमलीमे िारे पिनातीिईु बोली



पास रिेगी कोई भी िवपित तुमिारे ऊपर असार न करेगी। इसके पास रिन स े े त ु मिारे -ऊटोना परिकसीकािािू निी चल सकेगा।” अंगूठी िेकर परी रानी आकाश मे उड गई। रािकुमार विीर के लडके के पा आकर सो गया। सवेरे उन िोनो न िेेखा िक बगीचे का फाटक खुला िआ ी र ािकुमारकोऐसीउतावली ु िै। वे िोनो घोडो पर सवार िोकर चल ििये। पििमनी से िमलन क े

थी िक वि इतना तेि चला िक विीर का लडका उससे िबछुड गया। चलते -चलते रािकुमार एक ऐसे शिर मे पिंच ु ा , ििा िर िरवािे पर तलवारे-िी-तलवारे टंगी िईु थी। एक िरवािे पर उसन ए लगी थी। पानी पीन क े



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ुिढयाक -मूठेपासपिं का लाड च ििखाती िढयाझू िईुठबोली, ु गया।बु



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क ोबैठेिएु िेखा।उसे बडे िोरकीपय

“िाय बेटा !

तू बडे

?”

ििनो के बाि ििखाई ििया िै। तू तो मुझे पिचान भी निी रिा। भूल गया अपनी बुआ को

े ा यि किते-किते उसन र िक ु म ा र क ो ह ि य से लगािलयाऔरचुपचापउसकीअ रािकुमार को मकखी बनाकर िीवार से िचपका ििया। उधर विीर के लडके को रािकुमारी की तलाश मे भटकते -भटकते बित ु ििन िनकल गये। अंत मे उसे एक उपाय सूझा। वि परी रानी के बगीचे मे पिंच ु ा और रात को एक पेड पर चढ गया। आधी -रात को परी रानी उसी चबूतरे पर उतरी। वि विीर के लडके की िवपिा को समझ गई। उसन उ उसन उ







े सामनब ,े ुल“ाकरकिा यिा से सौ योिना की िरूी पर एक िगंल िै।



ं क पशु रिते िै। विा ेसामनब , े “ुलयिा ाकरकिा से सौ योिन की िरूी पर एक िगंल िै। उसमे तरि-तरि के ििस

,

ं डा टंगा िआ ताड के पेड पर एक िपि ु िै। उसमे एक तोता बैठा िै। उस तोते मे उस िािगूरनी को िान िै रािकुमार को मकखी बनाकर अपन घ े र म े ि ीवारसेिचपकारकखािै।

े ुमिारे ििसन त

विीर के लडके न पेूछा , “इतनी िरू मै कैसे पिंच ु सकता िूं ?” े ि परी रानी न व ी र क े ल ड क े क ो अ प न क े ानकीबालीउतारकरिीऔरकिा ं े मे तय कर लोगे। इसमे एक िसफत यि भी िै िक तुम सबको िेख सकोगे औरत तुमिे कोई निी िेख पायगा। इस पकार एक घट ं डे तक पिंच तोते के िपि े त ु म ि े क ो ई क ि ठ न ाईनिीिोगीऔरतोतेकोमारनातुमिारेबायेिाथकाखेलिोग ु नम े

े ं डाउताराओर विीर का लडका बाली लेकर खुशी-खुशी िगंल की ओर चल ििया। पेड के पास पिंच प ि ु कर उसन ि तोते की गिकन मरोड डाली। इधर तोते का मरना था िक िािगूरनी का भी अंत िो गया। विीर का लडका विा से िािगूरनी के घर े पिंच ं ग ू ठ ी ख ी च ी ि क रािकुमारमकखीसेिफरआिमी ु ा। िरिगूरनी की उंगली से िैसे िी उसन अ े ा िमलकर रािकुमार खुशी के मारे उछल पडा। विीर के लडके न र ि क ुमारकोसारािकससाकिसुनाया। अब िोनो साथ-साथ पििमनी से िमलन च

लििये-। चलते चलतेवे बित ु थक गये थे। रात भर के िलए वे एक सराय मे



रक गये। रािकुमार सो रिा था। उधर से िवमान मे बैठकर मिािेव -पावकती िनकले। िोनो बातचीत करते चले िा रिे थे। े िा, “पावकती, इस नगर की रािकुमारी बित यकायक मिािेविी न क ु सुंिर और गुणवती िै। रािा उसकी शािी एक काने े रािकुमार के साथ कर रिा िै। अगर बयाि िो गया तो िनमभर रािकुमारी को कान क े स ा थ र ि न ापडेगा।मैइसीसोचमेिूंिक इस सुनिरी को कान स े े कैसेछुटकाराििलाऊ ?” ं पावकतीिी न न

















िएु रािकु , “मिेारकीओरइशाराकरते िखये िरा नीचे की िओर एु किा , िकतना संिर

रािकुमार िै ! िवमानउतािरये और रािकुमार को लेकर वर की िगि पिंच ु ा िीििये।” े स ं गई। उनिोन ऐ मिािेविी को यि युिकत िच ा ि े समय रािकुमार बडे चकर मे पडा। िववाि करन क े ब ा ि ल िो।” े रािकुमारी को रािकुमार पर िवशास िोगया। उसन उ स े िक काला बाल िलाओगे तो काला िो िायेगा और सारी इचछाए प ं ू रीकरिेगा। रािकुमार बाल पाकर बडा खुश िआ ु और रािकुमारी को लौटन क े े उसन क ा ल ा ब ा ल ि ल ा य ा ।ब डरा, पर वि िानता था िक वि िैतय उसका सेवक िै। उसन ि

ी ि ौ ट



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य ा । र ािकुमारकीशािीउसरािकुमा स म य मै तुमिे साथले िाऊंगा।इससमय ल

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ि ि ये।एकसफेिओरएककाला।रा

स ा िेकरिसंिलदीपकीओरचलपडा। े ीिेरथीिककालािैतयरािकुमार ि ल ानक

े कुमििया , “िाओ, विीर के लडके को मेरे पास ले आओ।”

काला िैतय उसी िण विीर के लडके को रािकुमार के पास ले आया। िफर बोला

, “और कोई आजा ?”

े िा , रािकुमार न क किन क े अंिर निी िान ि



“िम िोनो को पििमनी के मिल मे पिंचुा िो।” े र िय

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मीक -ेमपुिलक ि संे फताटकपरआगये री पिरा िे रिा । विाएकहि था। उसने म ा र न ि े फ रकालाबालिलाया।िैतयिाि

े पलटन आ गई। उनिोन र ा न ी पििमनीक -की-ेिसपािियोकोबात बात मे मौत के घाट उतार ििया। इसके बाि िैतय गायग िो गये। े े रािकुमार और विीर का लडका मिल मे घुसे। रािकुमार न स फ ि ब ा ल िलाया।सफेििेवआगया।राि उससे किा,

“मै पििमनी से िववाि करना चािता िूं। बारात सिाकर लाओ।” े िरा-सी िेर मे िेव अपन स ा थ ए क ब ड ै रािकुमार पििमनी को शान -शौकत से बयािन आ े य ा ि





ा न

औ र इ त तो उसन च े ू ं त क न क ी । रािकुमारकाबयािपििमनीसेिोगया। अब रािकुमार पििमनी को लेकर अपन घ े र क ी ओ र र व ा न ा

िलया, ििसन उ











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ब ारातसिाकरले आया।पििमनीक

े सकी कत शालीिै िकउसनउ

श ि ि ो

े सरािकुम गया।रासतेमेसेउसनउ

े बािपरीरानीक -रात कोे बगीचे परी मरानी े आया।रातकोसबविीठिरे। आ

आई। रािकुमार उसे िेखकर बडा पसन िआ ु और बोला , “यि तुमिारी िी कृपा का फल िै। िो मै पििमनी को लेकर यिा अचछी तरि लौट आया। यि िस ू री रािकुमारी भी तुमिारी तरि मुसीबत मे मेरी सिायक िईु िै। तुम इसे छोटी बिन समझकर खूब पयार से रखना।” परीरानी गिगि कंठ से बाली, “रािकुमार , तुमिारी खुशी मे मेरी खुशी िै। पििमनी के कारण िी िम िोनो को तुमिारे िैसा सुिं र रािकुमार िमला िै। पििमनी आि से पटरानी िईु और िम िोनो उसकी छोटी बिने।” वे सब उडनखटोले मे बैठकर रािकुमार के िेश मे आ गयी। नगर भर मे खूब आननि मनाया गया और धूमधाम के साथ रािकुमार की तीनो रािनयो के साथ सवारी िनकाली गई। □



ं ी पख ं फैलाये तेिी से अपने -अपेन घोसलो की ओर लौट रिे थे। िगंली पशु ििन भर िशकार की साझ िो गई थी। पछ

े तलाश मे भटकन क े ब ा ि ि क स ी ि ला श य म े प ा नीपीकरलौटनल , न े गे।लेिकनसेमलकेगा डुली। उसके चेिरे पर उिासी का भाव था। गुमसुम िोकर वि डू बते िएु सूरि की लाली को िेख रिी थी। सेमल के गाछ पर े िबखरन व ा ल ी ल ा ल ी सेफूलऔरभीलालिोरिेथे। ििरनी को उिास िेखकर ििरन उसके पास आया। अपनी बडी -बडी आंखो से उसे िेखकर बाला, कया िो गया िै

?

“कयो,

आि तुमिे

?”

मै िेख रिा िमं िक तुम आि सवेरे से िी इस गाछ के नीचे गुमसुम खडी िो

ििरनी चुप रिी। कुछ निी बाली। उसकी सागर -सी गिरी आंखो मे आि सूनापन था। ििरन की बात सुनते िी उस सूनपेन को आंसुओं की बूंिो न भ े र ि ि य ा । ि प ी ु र व े आंसू ढुलकपडे। ििरनिव े आंसू उसन आ े ि प ि ली ब ा र ि ख अब भी िेख रिी िै। उसकी सास की गित बढ गई िै। उसके पैर काप रिे िै। े प

ििरन न स









े कसआशं े े खा े।निानि , ििरनी फटीकिई ासे आंसकाहियकापउठा।उसनि खो से ु उ



अपनीििरनीकोिल , “कया िो गया िै तुमिे ?छाकया तुमिारी चारागाि सूख गया िै। या ु ारा।िफरपू



िकसी िगंली िानवर का डर िै? बोलो, तुमिारी उिासी और तुमिारा मौर मेरे ििल को चीरे डालरिा िै।” ििरनी के िोठो मे थोडा -सा कमपन िआ ु । िफर वि सािस बटोरकर बोली,

“सुना िै,

-ििन मनाया िानवेाला िै। और ....और......इस अवसर पर तरि-तरि के

इस िेश के रािा के यािा रािकुमारी का िनम

बडे-बडे रािाओं को िनमंतण भेिे गये िै। कल बडा भारी उतसव िोगा।

पकवानबनेगे........ििसके िलए तुमिारा .............. वि बात पूरी िकये िबना िबलख उठी। आंखो से आंसुओं की धार बिन ल कया किे







। च

रोओरअंधेराछागया।बेचाराििरन



! े िा , एक िण तक वि मौन रिा। िफर धीरि के साथ उसन क

“अरी पगली,

इतनी-सी छोटी बात के िलए तू िु :खी

िोती िै ! ऐसे अचछे अवसर पर अगर मूझे बिलिान िोना पडा तो यि मेरा िकतना बडा सौभागय िोगा ! रािा के िगंल मे रिने वाले िम सब उनिी के तो सेवक िै। इस बिानमेै उनके ऋण के बोझ से छूट िाऊंगा। मुझे सवगक िमलेगा। अिखर एक ििन मरना तो िै िी

!

िकसी िशकारी के तीर से मरन क े



बि ा य

ििरनी फफक-फफक कर रो पडी। रोते-रोते बोली, िीऊंगी? मैन त





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केबेट”ेकेिलएबिलिानिोनाकिीअचछािै।



“मेरे पाणनाथ, मेरी ििुनया सूनी मत करो। तुमिारे िबना कैसे े िया।मे ेिलए ” ी आंख .... ोसेकबस भीओझलनिीिोनि मेरे िलए....ऐसा मतरकरा।



“तू बडी रासमझ िै !” ििरन न प े य ा रसेिफरसमझानाचािा। े िा, “लेिकन अपन प े ा “ठीक िै, मै नासमझ िूं।” ििरनी नक ण ो स े ब ढ क रपयारे िेवताकोमै किीनिीिानिे ंगू एक बार, बस एक बार, मेरी बात मान लो। िम इसीसमय इस राजय को छोडकर िकसी िस ू रे िगंल मे भाग चले। इतनी िरू चले....िक ििा और कोई न िो....।” ििरनी सारी रात इससे िवनय करती रिी, लेिकन ििरन निी माना। एक ओर पयार था, िस ू री ओर कतकवय, उनके बीच े य ा र कीबिलचढारिाथा। उसे फैसला करना था। उसकी िनगाि मे कतकवय का मितव अिधक था , तभी तो वि अपन प िोनो एक-िस ू रे का सिारा िलए, सेमलकी छाया मे, बैठे रिे। आंखे बिं थी। सनाटा इतना छाया था िक ििल की धडकने साफ सुनाई िेती थी। सूखे पतो की खडखडािट से अचानक िगंल िाग उठा। िोनो न च रिी थी और िो बिधक नगी तलवारे िलये खडे थे। े घबराकर ििरनी न आ ं ख े ब ि ं क र आंखे खोलकर िेखा तो न विा बिधक थे और न उसका पाणो से पयारा ििरन।





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ेखा।पूरबमे सूरिकीलालीमुसकरा

र ि े



हियकीधडकनबढगयी।मारेपी

तभी आसमान मे लाली ओर अिधक वयापत िो गयी। उसे लगा , िैसे उसके ििरन का लिू बिकर चारो तरफ फैल गया िो। ििरनी के ििल बडा धका लगा। वि बेसुध िो गयी। ििन -भर अचेत पडी रिी। शाम को उसकी चेतना पल-भर के िलए लौटी। तब न लािलमा थी, न रोशनी। चारो तरफ भयानक सूनापन और अंधेरा छाया था। े

ििरनी न ि











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पिंच ु ी। तबतक रािमिल मे िनम-मिोतसव समापत िो चुका था। मिारानी अपन छ ििरनी न उ





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ाया।विउठीऔरभारीपै -चलते वि मिल रमेोसेरािमिलकीओरचलिी। ट

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िकुमारकोगोिमे िलये बैठीथी।

काकरपणामिकयाऔरकातरसवरमे , “मिारानी िी ! मै आपके राजय िवनतीकी कीएक अभािगनी ििरनी

िूं। आि के मिोतसव मे मेरे पाणाथ का वध िकया गया िै। उससे आपकी रसोई की शोभा बढी , मेिमानो का आिर-सतकार िआ ु , यि सब ठीक िै; िकंतु मेरा तो सुिाग िी लुट गया। अब मेरा कोई निी रिा। मै अनाथ िो गई....।”

े गे, पर धीरि धर कर वि िफर बाली, उसकी आंखो से आंसू बिन ल आप कृपा कर मेरे ििरनकी खाल मुझे िे िे। मैन उ े स े अ प

“मिारानीिी! न





अब एक मेरी आपसे िवनती िै। ं ख ो से कभीओझलनिीिोनिेिया।उसख

के गाछ पर टाग िंगूी और िरू से िेख -िेखकर समझ िलया करंगी िक मेरा ििरन मरा निी, िीिवत िै। मिारानीिी सुिाग की िनशानी िै।” लेिकन मिारानी न ि



ि









!

वि मेरे

ीपाथक , न“ासवीकारनिीकी।उनिोनक उस खाल की तो मै खंे ििाडी बनवाऊंगी और

उसे बिा-बिाकर मेरा बेटा खेला करेगा।” ििरनी का हिय टूक -टूक िो गया। उसकी आशा की धुंधली जयोित िवा के एक झोके से बुझ गयी। िनराश और भारी मन से वि िगंल को पुन: लौट आयी। उसके बाि िब भी रािमिल मे खंिडी खनकती तो ििरनी एक िण के िलए बेसुध िो िाती िै। वि उस खनक को ं ो आंसू बिाती रिती िै। □ सुन-सुनकर घट





एक गाव मे एक वाता किनवेाला रिता था। उसे लमबी वाता किन क े े

िमल रिा था। इसिलए उसन स











।लेिकनकोईिंक ु ारािेनवे ालान

थ ा

िकपरिे , शशायि मेचलनाचाििए विा कोई िमल िाये।

चा

चलते-चलते वषों बीत गये। कई गावो ओर नगरो की याता की, पर कोई िंक ु ारा िेनवेाला निी िमला। लाचार िो वि एक छोटे -से गाव के बािर नीम की ठणडी छाव िेखकर उसके नीचे िवशाम करन ब से एक आिमी िनकला और उसन पेूछा,

“कयो भई,

तुम कौन िो

?

कया काम करते िो



?”

े िा, “मै वाताकार िंू और लमबी वाता किना मेरा काम िै। लेिकन वाता सुनाऊं तो िकसे उसन क े िेनवाला निी िमल रिा िै।” े िा, उस आिमीन क

“वाि भाई वाि!

तुम खूब िमले

!

ठ गया।इतनमेेविा



मै िसफक िंक ु ारा िेन क े



का

?

कोई िंक ु ारा



कर

तािंू औरवषोंसे एकऐसे

आसिमी को खोि रिा ि,ंू िो लमबी वाता कि सके। आि तुम िमल गये तो मेरी खुशी का िठकाना निी िै।” इस तरि एक-िस ू रे को पाकर िोनो बडे पसन िएु। िफर उनिोन स

े नानिकया , भोिन िकया ओर भगवान का धययान

े े रवषक करके वाताकार न अ प न ी ल मबीवाताकिनीशु , मिीन औ रकी।ििन -पर-वषक बीतते गये, लेिकन न वाता खतम िईु और न िंक ु ारे। े े कुछ ििनो बाि लोगो न ि ख ा ि कउ स ि ग ि ि ो ि ि ड ड य ोकेढाचेपडेिएुिै।लोगोकीकुछसम वे उनिो कोई चमतकारी संत समझकर पणाम कर लौट िाते थे। उधर वाताकार और िंक ु ारा िेनवेाले की पितया अपने -अपन प े

वे िानो पितवरता थी। इसिलए उनिोन ि

ि

पिंच ु ी, ििा ििडडयो के िो ढाचे पडे िएु थे। एक न ि े िा, उसन क ं ारा िेता रिे।” िक





े ि

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केघरलौटनक -िेखतेे िनराश ीराििेखिोते गई। र ीऔरपितयोकीखोिमे , िोनो उसी पेड कचे लिी।सं नीचे योगकीबात



े स , प“ूछकयो ा बिन, तुमिारे पित कया काम करते थे ू रीसे

“वे वाताकार थे और उनिे लमबी वाता किन क





शौ



?”

। वे,ऐसेिो आिमीकीखोिमे सालो तक थे

थ ा

े िा, िस ू री न क

े ा ल े “मेरे पित िंक थ े औरऐसे , िोवाताकारकीखोिमे लमबी वाता किे। थ”े ु ारा िेन व े ोचा, िो न िो, ये िोनो ढाचे िमारे पितयो के िोन च े िोनो न स ा ि ि ए।ले -सािकनउनमे ढाचा वाताकार सेकौन का था े और कौन-सा िंक प सयाशु , वषोंरकरिी बीत गये। इस बीच एक संत विा ु ारे वाले का, यि िानना मुिशकल था। तब िोनो न त े से िनकले। उनिोन उ न क ी तपसयासे , ‘िेपिेसनिोकरकिा िवयो ! यिि तुम भगवान से पाथकना करके इन पर गंगा -िल िछडको तो तुमिारे पित तुमिे िमल सकते िै।” तुरत ि ं



ए क

स त

ं कर िे।” ओर उसने ीनभ ,े गवानसे “भगवान पथक,नाकी यिि मै सती िोऊं तो मेरे पित वाता पारभ

उन ढाचो पर गंगा-िल िछडका िकएक ढाचे मे िलचल िईु और उसन व











ि



ं करििया।िफरिस ा पारभ ू रीसतीनपे

े े ाचेपरिलिछडका। ं की, “िे भगवान यिि मै सती िोऊं तो मेरे पित िंक ा ”र भ क र ि े । औरउसनढ ु ारा िेन प े ं करििया। मे िलचल िईु और उसन ि ं क ु ारािेनापारभ तब से आि तक वाताए च ं ल र ि ी ि ै औ र ि ंक □ । ु ारोकीआवािभीबराबरआतीरितीिै



छोटे -से गणपित मिाराि थे। उनिोन ए



ुिडयामे , चएकावलिलया मे शकर ली, सीम मे िध ू िलया और सबके यिा

कप

गये। बोले,

“कोई मुझे खीर बना िो।” े िा, मेरा बचचा रोता िै; िकसी न क े िा, मै सनान कर रिा ि;ूं िकसी न क े िा, मै ििी िबलो रिी िूं। िकसी न क े िा, “तुम लौिाबाई के घर चले िाओ। वे तुमिे खार बना िेगी।” एक न क वे लौिाबाई के घर गये। बोले , “बिन, मुझे खीर बना िो।” उसन ब े ड ेपयारसे , “किािा-िा, लाओ, मै बनाये िेती िंू।” े ड छीमे,िध उसन क डाला डाले, शकर डाली और खर बनान ल े ग ी त ो क ड छीभरगई।तपेले मे डालीतो ू चावल तपेला भर गया, चरवे मे डाली तो चरवा भर गया। एक-एक कर सब बतकन भर गये। वि बडे सोच मे पडी िक अब कया करं ? े िा, “अगर तुमिे िकनिी को भोिन कराना िो तो उनिे िनमंतण िे आओ।” गणपित मिाराि न क वि खीर को ढककर िनमंतण िेन ग उसन स



े िा, उसन क

“मैन त

फल था। िो भी अपन द मिाराि पसन िोगे। □



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ट करिेखातोपाचोपकवानबनगये।

ट भ छ

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रकरभोिनकराया।लोगआशयक , “कयो बिन, यि कैसे िआ ?” ।पूछा ुचिकतरिगये ि







े का ।िसफक , यिअउसी पनघ रआये अितिथकोभगवानसमझ

र आ एअितिथकीसे , अपनावकाम ाकरेगछोडकर ा उसका काम पिले करेगा, उस पर गणपित

? □

् ् भूख, पयास, नीि और आशा चार बिने थी। एक बार उनमे लडाई िो गई। लडती-झगडती वे रािा के पास पिंच ु ी। े िा, एक न क

े िा, “ मै बडी िंू।” तीसरी न क े िा, “मै बडी िंू।” चौथी न क े िा, “मै “मै बडी िं।ू ” िसूरी न क बडी िंू।” सबसे पिले रािा न भ े ू खसे , प“ूछकयो ा बिन, तुम कैसे बडी िो ?” भूख बोली, “मै इसिलए बडी िंू, कयोिक मेरे कारण िी घर मे चूले िलते िै , पाचो पकवान बनते िै और वे िब मुझे थाल सिाकर िेते िै , तब मै खाती िूं, निी तो खाऊं िी निी।” े े ,मकच“ािरयोसे रािा न अ प नक िाओ,कराजय िा भर मे मुनािी करा िो िक कोई अपन घ े र म ेचूलेन,िलाये पाचो पकवान न बनाये, थाल न सिाये, भूख लगेगी तो भूख किा िायगी ?” सारा ििन बीता, आधी रात बीती। भूख को भूख लगी। उसन य े िाखोिा , विा खोिा; लेिकन खान क े ोकिीनिी े गी। िमला। लाचार िोकर वि घर मे पडे बासी टुकडे खान ल पयास न य

े ििे,खतो ा वि िौडी-िौडी रािा के पास पिंच ु ी। बोली ,

खा रिी िै। िेिखए, बडी तो मै िूं।” रािा न पेूछा, तुम कैसे बडी िो

“रािा!

रािा

!

भूख िार गई। वि बासी टुकडे

?

पयास बोली,

“मै बडी िूं कयोिक मेरे कारण िी लोग कुए ं , तालाब बनवाते िै, बिढया बतानो मे भरकर पानी रखते िै और वे िब मुझे िगलास भरकर िेते िै , तब मै उसे पीती ि,ूं निी तो पीऊं िी निी।” े े ,मकच“ािरयोसे रािा न अ प नक िाओ,कराजय िा मे मुनािी करा िो िक कोई भीअपन घ े र म े पानीभरकरनिीरखे , िकसी का िगलास भरकर पानी न िे। कुए ं -तालाबो पर पिरे बैठा िो। पयास को पयास लगेगी तो िायगी किा?” सारा ििन बीता, आधी रात बीती। पयास को पयास लगी। वि यिा िौडी। विा िौड , लेिकन पानी की किा एक बूंि न े गी। िमली। लाचार वि एक डबरे पर झुककर पानी पीन ल नीि निेेखा तो वि िौडी-िौडी रािा के पास पिंच ु ी बोली ,

“रािा !

रािा

!

पयास िार गई। वि डबरे का पानी पी रिी

िै। सच, बडी तो मै िूं।” रािा न पेूछा,

“तुम कैसे बडी िो ?” नीि बोली, “मै ऐसे बडी िंू िक लोग मेरे िलए पलंग िबछवाते िै , उस पर िबसतर डलवाते िै और िब मुझे िबसतर िबछाकर िेते िै तब मै सोती िंू, निी तो सोऊं िी निी। े े ,मकच“ािरयोसे रािा न अ प नक िाओ,कराजय िा भर मे यि मुनािी करा िो कोई पलंग न बनवाये , उस पर गदे न डलवाये ओर न िबसतर िबछा कर रखे। नीि को नीि आयेगी तो वि िायगी किा ?” े सारा ििन बीता। आधी रात बीती। नीि को नीि आन ल गी।उसनय , विाे ढूिाढू ढ ं ा,ढ ं ा लेिकन िबसतर किी निी िमला। लाचार वि ऊबड-खाबड धरती पर सो गई। े े खातोवििौडी आशा न ि -िौडी रािा के पा पिंचुी। बोली , “रािा ! रािा ! नीि िार गयी। वि ऊबड-खाबड धरती पर सोई िै। वासतव मे भूख, पयास और नीि, इन तीनो मे मै बडी िूं।” रािा नपेूछा, “तुम कैसे बडी िो ?” आशा बोली, “मै ऐसे बडी िूं िक लोग मेरी खाितर िी काम करते िै। नौकरी -धनधा, मेिनत और मििरूी करते िै। परेशािनया उठाते िै। लेिकन आशाके िीप को बुझन न रािा न अ



े िीिे”ते।

े ,मकच“ािरयोसे ं ा, प नक िाओ,किा राजय मे मुनािी करा िो। कोई काम न करे , नौकरी न करे। धध

मेिनत और मििरूी न करे और आशा का िीप न िलाये। आशा को आश िागेगी तो वि िायेगी किा ?” सारा ििन बीता। आधी रात बीती। आशा को आश िगी। वि यिा गयी, विा गयी। लेिकन चारो ओर अंधेरा छाया िआ ु था। िसफक एक कुमिार िटमिटमाते िीपक के पकाश मे काम कर रिा था। वि विा िाकर िटक गयी। और रािा न िेेखा, उसका सोन क े

ाििया , रपये की बाती तथा कंचन का मिल बन गया।

िैसे उसकी आशा पूरी िईु, वैसे सबकी िो। □









सरैसा के नरिन मोखा िनपि मे एक वयापारी रिता था। उसे िुआ खेलन क े



ल त थ ी

। एकबारवििुए मे अपनी

सारी समपित िार गया। इससे उसे इतना िु :ख िआ ु िक एक ििन वि मर गया। उसकी पती गभकवती थी। कुछ ििनो बाि उसने एक लडके को िनम ििया। उन ििनो उसके घर मे बेिि तगंी थी। े ेकोिैसिब लडका पाच साल का िआ वयापारी की पती न अ प न इेकलौते -तैसबे ेटपाला। ु तो वि अपन प े ुतकेसाथ पित के एक धिनक िमत कीशरण मे चली गयी। विा वि बारि वषक तक रिी। एकििन अवसरपाकर लडके की मा न प े ितकेिमत से पाथकना की िक सेठिी, मेरे पुत को कुछ पढा -िलख िेते तो वि अपन प सेठ न ए



क अ









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र खड ा

िोिाता।लडकेकीमाकपाथकना

पकरखििया।उसनउ -िलखना और ेििसाब सेकुछ-पढना िकताब िसखा ििया।



, इस िचंता मे े ं च ल स उसकी आंखे गीली िो गई। उसी समय उसकी मा भी विा आ गई। मा न आ े बेट,ेकामु “ंिबेपोछते टा, तुिमएुकिा रोते ं ा शुर कर िो। पास के मोिलले मे एक सेठ रिता िै , िो कयो िो? तुम वयापारी के लडके िो। इसिलए कोई छोटा -मोटा धध े िीन-िख ि ल ए ि बन ा ब य ा ि क े पैसाउधारिेिेतािै।तुमउनकेपा ु ी लडको को वयापार मे पूंिी लगान क े रपया ले आओ।˝ सवेरा िोते िी लडका सेठ के पास गया। ििस समय वि उसकी गदी पर पिंच ु ा , वि िकसी लडके को डाटते िएु समझा े ी व न म रिा था िक तुम इस तरि अपन ि े म ु छ निीकरसकोगे , वि भी।कोई िोआिमीमे आिमीिनतनिीकरता िै ! िबना एक ििन की बात िै िक वि लडका सेठ के िरवािे पर बैठा चुपचाप कुछ सोच रिा था। आगे कया िोगा

उदोग िकये तुम सुखी निी रि सकोगे। तुमिारा िीवन बेकार चला िायगा। उदम के िबना िकसी का मनोरथ आि तक पूरा निी िआ ु िै। िेखते िो , सामन ि े





राचू , िकसी िापडािैयोगय और कमकठ वयापारी का बेटा उसे बेचकर भी पैसा बना सकता िै।

सामन ि े ो ि ,म उससे टटीऔरकोयलािै वि सोना बना सकता िै। चूले की राख से वि लाख बना सकता िै। मैन त े ुमिेइतने े ीश रपये ििये और तुम खाली िाथ लौटकर और रपये मागन आ े य े ि ो । यि ा स े च ले िाओ।तुम मे कामकरनक े ि तुम अपन प त भीईमानिारनिीिो। इस लडके न ि



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ी चकीबातचीतसु , “सेठिीन,ीतोउसनस मै इस े मरेेठसेिएक चूिे को आपसे पूंिी ु िा

के रप मे उधार ले िाना चािता िूं। ˝

े स यि किकर वि लडका विा रका निी, बिलक उसमरे चूिे को पूंछ के सिारे उठाकर विा से चला गया। सेठ न उ े लडके का पिरचय िानन क े ि ल ए अ पन म े ु न ी म क ो उ स कीखोिमेभेिा।परविलडकातोनगरक

े पनमे ुनीमसे कि लौटकर मुनीम न स े े ठ क ो इ स ब ा त क ी स ू च नािीतोउसे , “मुनबीमडीिचं िीत,ािईु।उसनअ वि लडका बडा िोनिार िै। एक ििन वि अवशय लखपित बनगेा। अगर मै उसकी कुछ मिि कर सकता तो मुझे बडी खुशी िोती।˝ उसे मरे चूिे को आिखर कौन लेतो ? एक खरीि िलया। लडके न उ े न प ै स ो े के नचे बैठ गया। उस रासते से गुिरन व ा खुश िोकर वे उसे कुछ पैसे िे िेते। े क ा लकडी काटन क े म स मे लकिडया िे िाते। इस तरि विा लकिडयो का ढेर लकिडया बेच िी। लकडी की उस पूंिी से उसन क

े बिनये के बेटे न अ प न ी ि ब ल ल ीकेिशकारकेिलएउसे कुछ पैसे िेकर े स े क ु छ चन औ र ए क घ डाखरीिा।िफरउसघडेमेिलभ ल े ल ो ग ो क ो व ि ब ड ी न मतासेकुछचनिेेकरिलिपलाता

े ब ढ ई लो ग भ ी उ स ी र ा सतेसेगुिरतेथे।वेलोगभीविापान े ारी लग गया। एक ििन लकडी के एक वयापारी के िाथ उस लडके न स े े रीिे। ु छऔरचनख

े वि पिले की तरि रािगीरो को चन ि ख ल ा क र प ा न ी ि प-लातारिाऔरबिले धीरे मे पैसे औरलक े उसकी पूंिी बढन ल ग ी । ि ब उ स के प ा स क छ ज य ािापैसािोगयातोविलकिडयाभीख ु लाभ िआ ु । े गा।लोगपानीभीक ं ा म लेिकन वषा ऋतु के आन स े े ल क ि ड य ो क ा ध ध ं िपडनल े चौरािे पर िमा लकिडयो को लेकर बािार मे बेच ििया और उसी पूंिी से विा उसन ए क ि कु ानखोलिी।थोडे िीििनोमे उसकी िक ु ान चल पडी। रोि के काम मे आनवेाली सभी चीिे उस िक ु ान पर ससते िामो मे िमल िाती थी। लडका कुछ िी ििनो े ल मे बडा वयापारी बनगया। उसन व े ि ी अ प न ि ए ए क म क ा नबनवािलया।उसमे विअपनी लगा।

एक ििन िब वि अपनी िक ु ान पर बैठा था , उसे अचानक उस सेठ की याि आ गई, ििसके यिा से वि मरा िआ ु चूिा े े े ाचूिाबनवायाऔरउस लाया था। उसन उ सक े ऋ ण स े म ु क त ि ो न के ि ल एसोनक किा,

“सेठिी,

अपन प

आपके चूिे न म े ु झ े ल ख े सेठ उस घटना को भूल गये थे। िब लडके न स े ा स ग द ी प र ब ै ठ

प ि त ब न ािियािै ˝ ।मेरेिीवनकीधारािीबिलिीिै। ा र ी क ि ा न ी स ु न ाईतोउसपरविइतनमेुगधिोगयेिक ा ि ल या।बािमे □ अपनीलडकीकािववािउसकेसाथकरििया।





एक लडकी थी। वि बडी सुनिर थी, शरीर उसका पतला था। रगं गोरा था। मुखडा गोल था। बडी -बडी आंखे कटी िईु अिमबयो िैसी थी। लमबे -लमबे काले-काले बाल थे। वि बडा मीठा बोलती थी। धीरे-धीरे वि बडी िो गई। उसके िपता ने ोकिा, उन िानो न ि

कुल के पुरोिित तथा नाई से वर की खोि करन क े िल ू े को िेखा, न िल ू ेनि





म ल



क वरतलाशिकया।नलडकीनिेोनवेा

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ोनवेालीिल ु नको।

धूम-धाम से उनका िववाि िो गया। िब पिली बार लडकी न प



ि

ोिेख-ातोउसकीकाली कलूटी सूरत को िेखकर

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वि बडी िु :खी िईु। इसके िवपरीत लडका सुनिर लडकी को िेखकर फूला न समाया। रात िोती तो लडकी की सास िध ू औटाकर उसमे गुड या शकर िमलाकर बिू को कटोरा थमा िेती और किती ,

“िा,

े ाडे (पित) को िपला आ।˝ वि कटोरा िाथ मे लेकर, पकत के पास िाती और िबना कुछ बोले चुपचाप खडी िो िाती। अपन ल उसका पित िध ू का कटोरा लेलेता और पी िाता। इस तरि कई ििन बीत गये। िर रोि ऐसे िी िोता। एक ििन उसका पित े गा, आिखर यि बोलती कयो निी। उसन ि सोचन ल









ि







निी िक लो िध ू पी लो, मै इसके िाथ से कटोरा निी लूंगा। उस ििन रात को िब वि िध ू लेकर उसके पास खडी िईु तो वि चुपचाप लेटा रिा। उसन क े कटोरे को िाथ मे पकडे खडी रिी , कुछ बोली निी। बेचारी सारी रात खडी रिी , मगर उसन म आिमी न भ े ी ि ध ू काकटोरानिीिलया। े ोचाबेचारी न म े सुबि िोन क े ो ि ईुतोपितनस , इस े र े े इसे अपन प ा स र ख न ाइसकेसाथघोरअनयायकरनािै। इसके बाि वि उसे उसके पीिर छोड आया। बेचारी विा भी पसन कैसे रिती े

मरन ल





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क आिइसे बुलवाये िबनामानूंगानि







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रानिीथामा।पतीभी







िनिीखोला।उसिठीले

ाकिसिािै।यिमेरेसाथरिक



वि मन-मन िी कुढती। वि घुटकर

मारीनथी।विबािरसे -िपता को उसकेएिविचत किमठीकलगतीथी।माता रोग की िचंता िोने



लगी। वे बित ु -से वैदो और जयोितिषयो के पास गये , पर िकसी की समझ मे उसका रोग निी आया। अंत मे एक बडे जयोितषी न ल की रेखाए ि



े डकीक -रपेरगंऔर चाल-ढाल को िेखकर असली बात िानली। उसन उ

े खी।जयोितषीनब , “बेटी!े ताया िपछले िनम मे तून ि

नतेरा िोष िै, न तेरे पित का। तेरे पित न ि



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ै े

े सकेिाथ

े ठीक से,कतुमकझ िकये थे वैसा िी फल िमल रिा िै। इसमे ि

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वालो की झोिलयो मे डाले थे। सफेि मोितयो के िानके फल से तेरे पित को सुंिर पती िमली िै और तुझे उडिो िैसा काला कलूटा आिमी िमला िै।

िमोितयोकािानिकयाथाऔरतून

-

“ऐसी िालत मे तेरे िलए यिी अचछा िै िक तू अपन प े ि त क े घ र च ल ी ि ा औरमनमेिकसीभीपकारकीबुरीभ लाये िबना उसी से सातोष कर, िो तुझे िमला िै , ओर आगे के िलए खूब अचछे -अचछे काम कर। उसका फल तुझे अगले िनम मे अवशय िमलेगा।” जयोितषी की बात उस लडकी की समझ मे आ गई और वि खुश िोकर अपन प े गे। □ से रिन ल



ि





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ासचलीगई।वे लोगआंनिं





िो िमत थे। एक बाहाण था, िस ू रा भाट। भाट न ए गोपाल रािा खुश िो गया तो िमारे भागय खुल िायेगे।” े

बाहाण न ि



ि नअपनि , “े चलो मतसे,करािा िा के िरबार मे चले। यिि

ि

क रउसकीबातटालते , “िेगा तो कपाल िएु किा , कया करेगा गोपाल







?

भागय मे िोगा, विी

िमलेगा।” े िा, भाट न क

“निी,

िेगा तो गोपाल, कया करेगा कपाल

!

गापाल रािा बडा िानी िै , वि िमे अवशय बित ु धन

िेगा।”

े पनी -अपनी बात किी। भाट िोनो मे इस पकार िववाि िोता रिा और अंत मे गोपाल रािा के िरबार मे िाकर िोनो न अ े ो े ीआजा की बात सुनकर रािा पसन िआ न ो को ि स ू रे ििनिरबारमेआनक ु । बाहाण की बात सुनकर उसे कोध आया। उसन ि िी। े ह ा िोनो िमत िस ण क ोएकमुटठीचावलतथाएक ू रे ििन िरबार मे पिंच ु े। रािा की आजा से उसके िसपािियो न ब मुटठी िाल और कुछ नमक िे ििया। भाट को एक सेर चावल , एक सेर घी और कद ि

िय



िाकेआिेशसेकदमूेसोनाभर

ा । र ा

े िा, ििया गया। रािा न क

“अब िाकर बना-खा लो। शाम को िफर िरबार मे िाििर िोना।” िरबार से चलकर वे निी िकनारे के उस सथान पर पिंच ा त िबताईथी।भाटमन -िी-मन सोच रिा ु े , ििा उनिोन र े े े था-“न िान के यो, रािा न ब ा हाणकोतोिालिी , और मुझे यि कद ि ू ििया।इसे , काटो छीलोऔर िफर बनाओ इसकी तरकारी। कौन करे इतना झझ ं ट ? ऊपर से यि भी डर िै िक किी सके खान स े े ि फ र स े क मरकापु ”रानाििक नउभरआए। े ाहाणसे ऐसा सोचकर उसन ब , “किमत िा , कद ख ू ा न स े े मरीकमरमे , इसेििकलेिकोिाये र तुगमा अपनी िाल मुझे िे िो।” े सकी बात मान ली। अपना-अपना सामान लेकर िोनो रसोई मे िुट गये। भाट िाल -चावल खाकर एक आम के पेड के बाहाण नउ े े न नीचे सो गया। बाहाण न ि े ब क द क ू ा टातोउसे , िो वरािा िसोनाििखाईििया नउ स म े भरवािियाथा।उसनम -िी-मन े सोचा, “मेरे भागय मे था, मेरे पास आ गया। गोपाल तो इसे भाट को िेना चािता था , उसन स ो न ा एककपडे मे बाधिलया। कद क ू ा आ ध ा भ ा ग ब च ाकरआधे -पीकरकसोीतरकारीबनाली।विभीखा गया। संधया के समय िोनो िमत िफर गोपाल रािा के िरबार मे पिंच ु े। बाहाण न श े

पास िी रख िलया था। रािा न ब े

बाहाण न आ कया करेगा गोपाल













धक

दएूककपडेमेलपेटकरअपने

हाणीकीओरिे , “अब तोखकरपू मान छ िलया ा , िेगा तो गोपाल, कया करेगा कापाल?



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ीओरबढािियाऔरनमतासे , “निी मािाराि, िेिगसरझु ा तोककपाल ाकरकिा ,



िा



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ा ण

ेभागयमेसभाट सचकिरिािै , भाट के निी ।बाहाणक और इसीिलए ोनाथान क

?”

रािा न स



े िा, को िे ििया। रािा न क े ो उसन ि



च ा

ि

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“तुमिारा किना िी ठीक िै। िेगा तो कपाल, नो





कया करेगा गोपाल भ ेटमेधनिे□ करिविाकरििया।

?”



दबूाहाण





िकसी गाव मे िो िमत रिते थे। बचपनसे उनमे बडी घिनिता थी। उनमे से एक का नाम था पापबुिद और िस ू रे का धमकबुिद। पापबुिद पाप के काम करन म े े ि ि च ि क च ातानिीथा।कोईभीऐसाििननिीिाताथा , िबिक वि कोई-न-कोई पाप ने े गे-समबिंधयो के साथ भी बुरा वयविार करन म े करे, यिा तक िक वि अपन स



निीचूकताथा।

िस ू रा िमत धमकबुिद सिा अचछे -अचछे काम िकया करता था। वि अपन ि े ि मन, धन से पूरा पयत करता था। वि अपन च पडता था। वि बडी किठनाईयो से धनोपािकन करता था। े म

एक ििन पापबुिद न ध







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बुिदक , े प“ासिाकरकिा िमत ! तून अ



त ो







ण पिसदथा।धमक -पोषण करना बुिदकोअपनबेडेपिरवारकापालन







े ेिलएतन ी क िठनाइयोकोिर , ू करनक





ि



स ीिस ू रे सथानोकीयातानिीकी।

इसिलए तुझे और िकसी सथान की कुछ भी िानकारी निी िै। िब तेरे बेटे -पोते उन सथानो के बारे मे तुझसे पूछेगे तो तू कया िवाब िेगा

?

े ल।” इसिलए िमत, मै चािता िूं िक तू मेरे साथ घूमन च

धमकबुिद ठिरा िनषकपट। वि छल-फरेब निी िानता था। उसन उ कर वे याता पर चल पडे। चलते-चलते वे एक सुनिर नगरी मे िाकर रिन ल



गे



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ब ा

यि सुनकर धमकबुिद न पेूछा,

मानली।बाहाणसे शुभ मुित ू क िनकलवा

ा पबुिदनध -साे मकधन बुिदकीसिायतासे कमाया। िबबित ु

। प

अचछी कमाई िो गई तो वे अपन घ े र क ी ओ र र वानािए -िीु-।रासते मन सोचन मे पापबु ल िदमने े ं कर इस सारे धन को ििथया लूं और धनवान बन िाऊ। इसका उपाय भी उसन ख ोििलया। िोनो गाव के िनकट पिंच ु े। पापबुिद न ध



गा

ि

क मै इसधमकबुिदकोठग

े मकबुिदसे , “किमत िा , यि सारा धनगाव मे ले िाना ठीक निी।”

“इसको कैसे बचाया िा सकता िै ? ”

े िा, पापबुिद न क

“सारा धन अगर गाव मे ले गये तो इसे भाई बटवा लेगे और अगर कोई पुिलस को खबर कर िेगा तो िीना मुिशकल िो िायगा। इसिलए इस धन मे से आवशयकता के अनुसार थोडा -थोडा लेकर बाकी को िकसी िगंल मे गाड िे। िब िररत पडेगी तो आकर ले िायेगे।” े ै यि सुनकर धमकबुिद बित स ा ि ीिकयाऔरघरलौटगए। ु खुश िआ ु । िोनो न व कुछ ििनो बाि पापबुिद उसी िगंल मे गया और सारा धन िनकालकर उसके सथान पर िमटटी के ढेले भर आया। उसने वि धन अपन घ

े र



े िछपािलया।तीन -चार ििन बाि वि धमकबूिद के पास िाकर बोला ,

“िमत,

िो धन िम लाये थे वि सब

खतम िो चुका िै। इसिलए चलो, िगंल मे िाकर कुछ धन और ले आये।” े

धमकबुिद उसकी बात मान गया और अगलेििन िोनो िगंल मे पिंच ु े। उनिोन ग मगर धन का किी भी पता न था। इस पर पापबुिद न ब े िा, धमकबुिद को बडा गुससा आया। उसन क कीभी निी िकया ।यि धन तून ि े ीचुर”ायािै।



े िा, “मैन न े िीरचु,रायातून ि े पापबुिद न क नयायधीश से तेरी िशकायत करंगा।” धमकबुिद न य े ि ब ा त स





कोधक , से “ाथकिा धमकबुिद, यि धन तून ल े

डे

“मैन य





ि ी

व ी



न न

ि

ी ि

नवालीिगिगिरीखोिडाली ,



ेिलयािै ” । ल



े पनीििगंीमे आितकऐस ।मैनअ



चुर-ायािै सच।बता सच िे और आधा धन मुझे िे िे , निी तो मै क













।िोनोनयायालयमे पिंच ु े। नययाधीश

की बात मान ली और पापबुिद को सौ कोडे का िणड ििया। इस पर पापबुिद कापन ल े गाऔरबोला , “मिाराि, वि पेड पिी िै। े न ”कालािै। िम उससे पूछ ले तो वि िमे बता िेगा िक उसके नीचे से धन िकसन ि े न ि े ािनशयचिकया।पापबुिदन यि सुनकर नयायधीश न उ ो न ो क ो स ा थ ल े क रविािानक मागा और वि अपन ि खोखर मे बैठ िाय औ

े प ं

त र न

ाकेप,ासिाकरबोला “िपतािी, अगर आपको यि धन और मेरे पाण बचान ि े ो त य ा यध ी श क े पूछनप ”े रचोरीकेिलएधमकबुिदकानामलेिे।

िपता रािी िो गये। अगले ििन नयायधीश, पापबुिद और धमकबुिद विा गये। विा िाकर पापबुिद न पेूछा, सच बता, यिा का धन िकसन च



आपउसपेड की

“ओ वृि !

े ुर”ायािै।

े िा , खोखर मे िछपे उसके िपता न क

“धमकबुिद न।े”

यि सुनकर नयायधीश धमकबुिद को कठोर कारावास का िणड िेन क े इस वृि को आग लगान क े ी आ ज ा ि े नयायधीश की आजा पाकर धमकबुिद न उ े



ि ल



ि े।बािमे , उसे िोउिचतिणडिोगा मै सिषक सवीकार कर लूंगा।” स प े ड के चा र ो

े िा त ैयारिोगये , “आप ।धमक मुझ बुिे दनक ओ



खोखरमेिमटटीकेतेलकेचीथडेतथ

लगा िी। कुछ िी िणो मे पापबुिद का िपता िचललाया “अरे , मै मरा िा रिा िूं। मुझे बचाओ।” िपता के अधिले शरीर को बािर िनकाला गया तो सचचाई का पता चल गया। इस पर पापबुिद को मृतयु िणड ििया गया। धमकबुिद खुशी-खुशी अपन घ



रलौटगया। □





एक रािा िशकार खेलते िएु िरू सघन वन मे पिंच ु गया। लौटते समय वि मागक भूल गया। भटकते -भटकते उसे एक मंि पकाश ििखाई ििया। उस पकाश की ओर बढते -बढते वि एक घोपडी के समीप आ गया

, ििा एक िनधकन भील रिता था। े ी ल क े राि न भ द ा र क ो ख ट ख ट ायाऔरउसकीझोपडीमे -सतकार िकया।शरणली।भीलनर रािा न स े े ािाकासवागत ुखसे राित वयतीत की। पात:काल िविा िोते िएु रािा न पेूछा, “भील,तुमिारी आिीिवका का साधन कया िै ?” े तरििया भील न उ , “मिाराि, मै वन से लकडी काटकर लाता िूं और उसका कोयला बनाकर बािार मे बेच आता िंू।” रािा पसन िोकर भील को अपन र े गा। कुटी बनाकर सुखपूवकक रिन ल

े ा ज



एक वषक के बाि रािा उस चंिन -वन को िेखन क े



े ल े ग

य ाओरपु-रसा सकारक चंिनेर -वन पमेउिेसेििया। एकछोटाभील

ेिलएगया ; वि यि िेखकर चिकत रि गया िक वन पाय: उिड

चुका था और भील उस झोपडी मे ियनीय अवसथा मे रि रिा था। रािा न उ

े ससे , प“ूछतुा मन व





काकयािकया ?”

े तरििया , “मिाराि, पिले तो मै िरू से लकडी काटकर लाता था और िफर कोयला बना लेता था। अब

भील न उ

मै यिी लकडी का कोयला बना लेता िंू, और उसे बेच कर अपना बुिारा करता िं। ू अब तो सारा वन कट चुका , केवल एक वृि बचा िै।” े िा, रािा को उसकी मूखकता पर बडा िु :ख िआ ु और उसन क

“भील,

े ं न-वन का मितव तम बित ु िी मूखक िै। तून च

िी निी समझा। इस वृि की छोटी-सी लकडी काटकर उसे बािार मे बेचकर आ।”

भील वृि की छोटी-सी लकडी काटकर उसे बािार मे ले गया और उसन उ े स े ब े च ििया।भीलकोउससेकाफीपैसा िमल गया। वि बित ु िी चिकत िोकर रािा के पास लौट गया। भील के हिय मे अपनी अजानता पर बडा िोभ था। उसन रेािा े से किा, “मिाराि, मैन आ प क े उपिारकामू ” लयनिीसमझा। रािा न उ



सेस,मझाकरकिा “भील, िो कुछ िािन िो गई , उस पर अब पछतान स े



कयालाभिै ? अब इस वृि का

ठीक मूलय समझो। इसमे से थोडी-थोडी लकडी काटकर धन कमाते रिो ओर नये -नये वृि लगाते रिो। आगे चलकर िफर एक िरा-भरा चंिन-वन िो िायगा।” □





नत लान क े

े गी।वायु एक नौका िनल मे िविार कर रिी थी। अकसमात् आकाश मे मेघ िघर आये और घनघोर वषा िोन ल -पकोप े ू फ ा न क ो भ ी ष ण क र ि ि या । य ातीघबराकरिािाकारकरनल े िलएिी -िान से पिरशम करना पारमभ कर ििया। वि अपन म

िबलकुल थक िी न गया। िकंतु थकन प गया। धीरे-धीरे नौका मे िल भरन ल



र भ ी े





ि



िब

नावकोक ? विैसअपन ेछोडिेथ

ा औ र

य ा



े ि





ि ाथोसे , िब नावकोखे तक तिक ािीरिा वि

के







े गी, पर नािवक सािसपूवकक िुटा िी रिा। अंत मे उसे िनराशा न घ गया। नौका धीरे-धीरे भारी िोन ल

र ी

स ेभीनौकाकोपारकरनमेेिुट



क े







े ापयतक रापानीकोिनकालनक



रिलया।अभीिकनारा

े े ाथसे काफी िरू था और नौका िल मे डू बन ल गी ।न ा िवकनि , और िसरपतवारफे पकडकर किीबैठ गया। कुछ िी िणो मे मौका डू ब गयी। सभी याती पाणो से िाथ धो बैठे। यमराि के पाषकि आये और नािवक को नरक के दार पर ले गये। नािवक ने पूछा,

“कृपा करके मेरा अपराध तो बताओ िक मुझे नरक की ओर कयो घसीटा िा रिा िै ?” े तरििया पाषकिो न उ , “नािवका, तुम पर मौका के याितयो को डुबान क े ा पापलगािै ” । े। नािवक चिकत िोकर बोला, “यि तो कोई नयाय निी िै। मैन त े ो भ र स क प य तिकयािकयाितयोकीरिािोसक ” े तरििया े िरशमिकया पाषकिो न उ , “यि ठीक िै िक तुमन प , िकंतु तुमे अंत मे नौका चलाना छोड ििया था। तुमिारा

कतकवय था िक अंितम शयास तक नौका को खेते रिते। नौका के याितयो की ििममेिारी तुम पर थी। तुम पर उनकी ितया का िोष लगा िै।” □

□ िेव-समाि के वृिि म



ि

ो त







े ा वताअपने ाआयोिनिोरिाथा।सभीिे -अपन व ि न ो

मे आ रिे थे। मिािेव शंकर

े भा-भवन के बािर िसथत एक वृि की शाखा पर बैठे िएु एक शुक की ओर कुछ गमभीर ििृि से सभा मे पवेश कर रिे थे। उनिोन स े पनी िेखा। शंकर तो सभा-भवन मे चले गये, िकंतु उस शुक के मन मे िचंता उतपन िो गयी। समीप बैठे गरड से उसन अ

े समुदो को पार आशंका का िनवेिन िकया। उसके बचन क े ा उ प ायसोचकरगरडनक , “शुकरािे, िामै तुमिे दतुगित से अनक करा कर िकसी सुरिित सथान पर छोड आता िूं। िचंता मत करो।” े समुद पार गरड न प े ू र ी श ि क त स े उ ड क र ब ि त ु कमसमयमे अनक ििया। शुक आशसत िो गया िक वि पलयकर शंकर की कठोर ििृि से बच गया। गरड लौटकर पुन : उसी वृि पर िा बैठा और े गा। उतसुकता से शंकर के सभा से बािर आन क े ी पतीिाकरनल शंकर िनकले। उनिोन पे ुन: वृि की उसी शाखा की ओर िेखा। गरड न स



ि





र उनकीगमभीरििृिकाकारण

पूछा। शंकर बोले,

“शुक किा िै ?” े िा, “भगवान् ! शुक आपकी तीकण ििृि से भयभीता िो गया था और मैन उ गरड न क



स े

ि

रूएकसुिितसथानपर

बैठा ििया िै।” े िा, शंकर न क िायगा। तुमन उ े

“यिी तो मेरा आशयक था िक कुछ िी िण के बाि वि शुक उसी सथान पर एक मिासपक दारा कविलत िो स स

म सयाकाउपायकरििया। ”□





नपुस ं क पित की घरवाली-सी वि शोकभरी शाम थी। अगले िनम की आशा के समान कोई तारा चमक रिा था। अंधेरे पखवाडे के ििन थे।

-छोटे अधनगंे बचचो

ऐसी नीरस शाम को आंबला गाव के चबूतरे पर ठाकुरिी की आरती की सब बाट िेख रिे थे। छोटे

े ी की भीड लगी थी। िकसी के िाथ मे चाि -सी चमकती कासे की झालर झूल रिी थी तो कोई बडे नगाडे पर चोट लगान क

पतीिा कर रिा था। छोटे -छोटे बचचे इस आशा से नाच रिे थे िक पसाि मे उनिे िमसी का एकाध टुकडा , नारिरयल की एक-िो फाके तथा तुलसी िल से सुगंिधत मीठा चरणमृत िमलेगा। बाबािी न अ े भ ी त क म ं ि ि र कोखोलानिीथा।कु ंएकेिकना बाबािी सनान कर रिे थे। बडी उम के लोग ननिे बचचो को उठाये आरती की पतीिा मे चबूतरे पर बैठे थे। सब चुपपी साधे थे। उनके अंतर अपने आप गिरारई मे ब्ीैठते िा रिे थे। यि ऐसी शाम थी। ं धीमी आवाि मे िकसी न ब बडी उिास थी आि की शाम। अतयत

े :डेख िु से किा,

“ऋतुए







िपडतीिारिी

िै।” िस ू रा इस िु :ख मे वृिद करते िएु बोला ,

“यि किलयुग िै। अब किलयुग मे ऋतुए ि ं

त ीनिीिै। िखले तोकैसे

ख ल

िखले!” े िा, तीसरे न क चौथा बोला,

“ठाकुरिी का मुखारिबनि ि



क त

नामलानपडगयािै ” ।

“िस वषक पिले उनके मुख पर िकतना तेि था।”

बड-बूढे लोग धीमी आवाि मे तथा अधमुंिी आंखो से बातो मे तललीन थे। उसी समय आंबला गाव के बािार मे िो वयिकत सीधे चले आ रिे थे। आगे पुरष और पीछे सतीी्र। पुरष की कमर मे तलवार और िाथ मे लकडी थी। सती के िसर पर बडी गठरी ं ु रािपूतनी अपन प थी। पुरष को एकिम पिचाना निी िा सकता था, परत पिचानी िाती थी। रािपूत न ल















ालसे ओरघेरिारलिगंे तथाओ

‘ोगोकोराम -राम’ निी िकया, इससे गाव के लोग समझ गये िकये अिनबी िै। अपनी ओर से िी लोगो ने



किा, ‘राम-राम’। उतर मे ‘राम-राम’ किकर याती िलिी-िलिी आगे चल पडा। उसके पीछे रािपूतनी अपन प े िा , िईु बढ चली। एक-िस ू रे के मुिं की ओर िेखकर लोगो न क

“ठाकुर ,

िकतनी िरू िाना िै





र ोकीएिडयोकोढकती

?”

“यिी कोई आधा मील।” िवाब िमला। “तब तो आत लोग यिा रक िाइये ? ” “कयो ? इतना िोर कयो िे रिे िै?” याती न क े ु छतेिीसेकिा। “इसका कोई खास कारण तो निी िै, परतंु समय अिधक िो गया और साथ मे मििला िै। इसी से िम कि रिे िै। अंधेरे मे अकारण िोिखम कयो लेते िै ? िफर यिा िम सब आपके िी भाई -बिं तो िै। इसिलए आप रक िाइये।” े वाबििया मुसािफर न ि , “अपनी ताकत का अंिािा लगा करके िी मै सफर करता िूं। मािों के िलए समय -समय कया िोता िै ! अब तक तो अपन स े े ब ढ क रकोईबिािर ” ु िेखानिीिै। े े िा िै तो इनिे मरन िेो।” आगि करन व ा ल े ल ो ग ोकोबडाबु , “ठीक रालगा।िकसीनक िै, वरना चािते

रािपूत और रािपूतानी आगे बढ गये। ं े की धविन सुनाई िे रिी थी। िरू के िोनो िगंल मे चले िा रिे थे। सूयक असत िो गया था। िरू से मंििर मे आरती के घट गावो के िीपक िटमिटमा रिे थे और कुते भौक रिे थे। े मुसािफर न अ च ा न क प ी छ े घ ु ं घ र क ीआवािसुीी।रािपूतनीनपेीछे मुडक कंधे पर डाक की थैली लटकाये, िाथ मे घुंघर वाला भाला िलये, िाते िएु ििखाई ििया। उसकी कमर मे फटे मयानवाली तलवार लटकी िईु थी। िटा िलकारा ििुनया की आशा -िनराशा और शुभ-अशुभ की थैली कंधे पर लेकर िा रिा था। कुछ परिेश गये पुतो की वृद माताए ओ



र प

वािसयोकीिसतयासाल -छ: मिीन म े



ि









ि

े ीआसलगायेबैठीराििेख म,लनक

यि सोचकर निी,बिलक िेरी िो िायेगी तो वेतन कट िरयगा , इस डर से िटा िलकारा िौडा िा रिा था। भाले के घुंघर इस अंधेरे एकात रात मे उसके साथी बन ि े एुथे। िेखते-िी-िेखते िलकारा पीछे चलती रािपूतनी के पास पिंच ू रे की कुशल पूछी। रािपूतनी का ु गया। िोनो न एेक -िस मायका सणोसरा मे था। िलकारा सणोसरा से िी आ रिा था। इसिलए रािपूतनी अपन मेा-बाप के समािचार पूछन ल े गे। के गाव से आनवेाले अपिरिचत पुरष को भी सती अपन स े गेभ-ाईसा समझती िै। िोनो बाते करते िएु साथ चलन ल े रािपूत कुछ किम आगे था। रािपूतनी को पीछे रि िाते िेखकर उसन म ु ड कर करते िेखकर उसन उ

े सकोभला -बुरा किा और धमकाया।

े िा, रािपूतनी न क

“मेरे पीिर का िलकारा िै। मेरा भाई िै।”

े गी।पीिर िेखा।िस ू रे आिमीकेसाथबाते

“िेख

िलया तेरा भाई

!

चुपचाप चली आ।” रािपूत न भ

ौिे च,ढाकरकिा िफर िलकारे से बोला,



“तुम

भी तो

आिमी-आिमी को पिचानो।” ठीक िै, बापू

!”



यो किकर िलकारे न अ





न ी



े लकारा, िब यि रािपूत िोडी निी पर पिंच ु ी तो एक साथ बाररि आििमयो न ल नीचे डाल िो।”





ध ी

“खबरिार,

मीकरिी।एकखेतिितनीिरूीरखकर

िो आगे बढे

!

तलवार

ं ु मयान से तलवार निी िनकल पायी। आंबला गाव के बािर कोिलयो ने रािपूत के मुिं से िो -चार गािलया िनकली, परत आकर उस रािपूत को रससी से बाध ििया और िरू पटक ििया।

“बाई,

”त ा



गीिन उ

र ीरपरसे -एकएकगिना उतारन ल



बेचारी रािपूतनी अपन श

ो ।एकलुटेरेनरेािपूतनीसेकिा।

र ि



आगे आये। उसकी भरी िईु िेि न ल

े गी।िाथ , पैर, सीना आिि अंग लुटेरो की आंखो के

ट ेरोकीआं -वासना खोमेक उभार ाम िी। िवान कोिलयो न प



शुर िकया। रािपूतनी शात रिी, लेिकन िब लुटेरे बढकर उसके िनकट आन ल रािपूतनी खडी िो गई। कोिलयो न य े ि अंधेरे मे रािपूतनी न आ रािपूतनी चीख उठी,

“भाई,

िौडो

!





ि

त ो

ल ि

ेतोउसकामिाकउडाना

िरीलीनािगनकीतरिफुफकारती

खकरअटटिासकरते , “अरे ! उस समी िएुकिा की पूंछ को धरती पर पटक िो !” क ी ओर ि े ख ा । िटािलकाराकेघघ ुं रकीआवािउसकेकानोमेपडी।

े ि क श







बचाओ

!”

े िलकारे न त ल व ा र ख ी च लीऔरपलकमारते , “खबरिार,विािापिं िो उसच ा।बोला िाथ उठाया !” ु पर े बारि कोली लािठया लेकर उस पर टूट पडे। िलकारे न त ल व ा र च ला यीऔरसातकोिलयोकोमौतकेघाटउ े ोर ं ु िलकारे को लािठयो की चोट का पता िी निी था। रािपूतनी न श ििया। उसके िसर पर लािठयो की वषा िो रिी थी , परत मचा ििया। मारे डर के बचे िएु लुटेरे भाग गये। उनके िाते िी िलकारा चकर खाकर िगर पडा ओर उसके पाण गये। रािपूतनी न अ



प न





ि

त क

-पखेर उड

ीरिससयाखोलिी।उठते , “अब िम चले।”िीरािपूतबोला

“किा चले?” सती न िेु :खी िोकर किा, “तुमिे शमक निी आती ! िो किम साथ चलनवेाला वि बाहाण, घडी भर की पिचान के कारण , मेरे शील की रिा करते मरा पडा िै। और मेरे िनम भर के साथी , तुमिे अपना िीवन पयारा लगता िै ! े ं कासाथनिीिोसकता ठाकुर , चले िाओ अपन र ा स त े । अ ब ि म ा र ा क ा ग औरिस िचता मे िी भसम िो िाऊंगी !” “ठीक िै, तेरी िैसी मुझे और िमल िायगी।” किता िआ ु रािपमत विा से चला गया। ं र िगंल मे बैठी रिी। उिाला िोन प े िलकारे के शव को गोि मे लेकर रािपूतनी सवेरे तक उस भयक रउसनइ -िगिके िक ं च त ा से लकिडया इकटठी करके िचता रची। शव को गोि मे लेकर सवय ि प र च ढ िो गये। कायर पित की सती सती िैसी शोकातुर संधया की उस घडी मे िचता की िीण जयोित िेर तक चमकती रिी। आंबला और रामधारी के बीच के एक नाले मे आि भी िटा और सती की समृित सुरिित िै। □

गई।अिगनसुलगउठी।िोनोिल





बित ु ििन पिले की बात िै। एक छोटा-सा नगर था, पर उसमे रिन व









ल ो



बडे ििलवाले थे। ऐसे नयारे नग

चार िमत रिते थे। वे छोटी उमर के थे , पर चारो मे बडा मेल था। उनमे एक था। रािकुमार , िस ू रा रािा के मंती का पुत , तीसरा सिूकार का लडका और चौथा एक िकसान का बेटा। चारो साथ-साथ खाते-पीते और खेलते -घूमते थे। े

एक ििन िकसान न अ

प नपेुत,से“किेिाखो बेटा, तुमिारे तीनो साथी धनवान िै और िम गरीब िै। भला धरती और

!” लडका बोला, “निी िपतािी, मै उनका साथ निी छोड सकता। बेशक यि घर छोड सकता िूं।” ं घर छोड िान क े बाप यि सुनकर आग-बबूला िो गया और लडके को तुरत ी अ जा

आसमान का कया मेल



अपन ि







क ी







ि श





भी अपना-अपना घर छोडकर िमत के साथ िायगंे। इसके बाि सबन अ पडे।



ग ा ।

उन

क े

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और िम अपने -अपन घ

े र

सबन उ





ग े । े



“तुम लोगो न म





र और



े ीरामकीभाित ।लडकेनभ ल ीऔरसीधाअपनिेमतोकेपासप

ि ी क र



धीरे-धीरे सूरि पिशम के समुनिर मे डू बता गया और धरती पर अंधेरा छान ल

किा। तीनो को थका-मािा िेखकर उसका ििल भर गया। बोला,

ग ा



से िविालेलीऔरवनकीओरचल

च ा ट

रोवनसे गुिररिे थे। काली भूख केमारे चूिेिौडरिे थे। िकस

मे

क ो व

े े ा ले गयाऔरउनिे पेड केनीचे सोनक

ि

ख ाितरनािकयिमु ” सीबतमोलली।

र ी

धीरिबध , “ं निी ायाऔरकिा -निी, यि कैसे िो सकता िै िक िमारा एक साथी भूखा -पयासा भटकता रिे







मौिउडाये -साथ,।िीये मरेगगे तो ेतोसाथ साथ-साथ।”

थोडी िेर बाि वे तीनो सो गये , पर िकसान के लडके की आंख मे नीि किा

!



घ े

िेखा, एक पेड के नीचे बित ु -से िुगनू चमक रिे िै।वि अपन स

भगवान





रात थी। वन मे तरि-तरि की आवािे सुनकर सब डरन ल





!



उसन भ

वानसे , “पिेाथकनाकी



अगर तू सचमुच किी िै तो मेरी पुकार सुनकर आ िा और मेरी मिि कर।” उसकी पुकार सुनकर भगवान एक बूढे के रप मे विा आ गये। लडके से किा

, “माग ले,

िो कुछ मागना िै। यि

िेख, इस थैली मे िीरे-िवािरात भरे िै।” े िा , लडके न क

“निी, मुझे िीरे निी चाििए। मेरे िमत भूखे िै। उनिे कुछ खान क े ोिेिो। ” े िा, “मै तुमिे भेि की एक बात बताता िूं। वि िो सामन प े ेड.... भगवान न क िैन आम का, उस पर चार आम लगे िै-एक पूरा पका िआ ू रा उससे कुछ कम पका िआ ु , िस ु , तीसरा उससे कम पका िआ ु और चौथा कचचा।” “इसमे भेि की कौन-सी बात ?” लडके न पेूछा। े िा, “ये चारो आम तुम लोग खाओ। तुममे से िो पिला आम खायगा, वि रािा बन िायगा। िस भगवान न क ू रा आम े खान व ा ल ा र ा ि ा कामंत,ीबनिायगा।िोतीसराआमखायगा उसके मुंि से िीरे िनकलेगे और चौथा आम खानवेाले को उमर कैि की सिा भोगनी पडेगी।” इतना किकर बूढा आंख से ओझल िो गया। े िा , “सब मुंि धो लो।” िफर उसन क े तडके सब उठे तो िकसान के पुत न क च च े िलएिेििये। बाकी आम उनको खान क े े । प े ट क ो सबन आ े म ख ा ि ल य कु छ आ र

ा ा



मअपनिेलएरखिलयाऔर

म पिंच ु ातोसबविासे चलपडे। रा

े े इरािे से पानीिपया चलते रिन स े े स बकोिफरसे -पयास भलगूख आई। इिसिलए वे पानी पीन ल े गे । र ा ि क ुमारनमे िुं धोनक े ु और िफर थूक ििया तो उसके मुंि से तीन िीरे िनकल आये। उसे िीरे की परख थी। उसन च प च ा पिीरेअपनीिेबमेरखिलए। े िस ब ा ि उ सन ए े क ि ी रािनकालकरमंतीकेपुत कोिियाऔ ू रे ििन सुबि एक रािधानी मे पिंच ु नक े कुछ ले आन क े ोकिा। वि िीरा लेकर बािार पिंच ु ा ता िेतखता कया िै िक रासते मे बित ु -से लोग िमा िो गये िै। कनधे-से-कनधा िठल रिा िै। गािे-बािे के साथ एक िाथी आ रिा िै। उसन ए



क आिमीसे , “पकयो ूछा भाई, यि शोर कैसा िै

?”

े व समयसेकिा। “अरे, तुमिे निी मालूम ?” उस आिमी न ि “निी तो।” “यिा का रािा िबना संतान के मर गया िै। राि के िलए रािा चाििए। इसिलए इस िाथी को रासते मे छोडा गया िै। विी रािा चुनगेा।”

“सो कैसे ?” “िाथी की सूंड मे वि फल-माला िेख रिे िो न ?” “िा-िा।”

“िाथी ििसके गले मे यि माला डालेगा , विी िमारा रािा बन िायगा। िेखो, वि िाथी इसी ओर आ रिा िै। एक तरफ िट िाओ।” े े लडका रासते के एक ओर िटकर खडा िो गया। िाथी न उ स क प ा स आ क रअचानकउसीकेगलेमेमालाडालि इसी पकार मंती का पुत रािा बन गया। उसन प े ू र ा प क ा ि आु आ म ि ोखायाथा।विरािवैभवमे अप गया। बित ु समय बीतन प कुछ लान क े



र भ ीविनिीलौटा , यि िेखकर रािकुमार न ि



क ि







िाथी को माला िेकर िबुारा भेिा गया। िकसमत की बात पिनाई। वि मंती बन गया और िोसतो को भूल गया।

ि ि

!











“अब मै िी खान क

रािनकालाऔरसािूकारकेपुतकोि

ाले,करबािारपिं पर मंती केच ा।रािकोरािािमलगयाथा की पूितक करनी थी , इसिलए ु अभाव



अब िाथी नएेक िक ु ान के पास खडे सािक ू ार के पुत को िी माला

?

इधर रािकुमार और िकसान के लडके का भूख के मारे बुरा िाल िो रिा था। अब कया करे किा,

ा ि ी

िफर िकसान के पुत ने

ईचीिले ” आतािूं। ि आ ु त ी स र ा ि ी र ा उ स े सौपििया।विएकिक ु ानमेगया े े वाला िीरा िक ानिार की िथे ल ी पर रख ििया। फटे ि ाल लडक क प ास कीमती िीरा िे ख कर िक ानिार को शक िआ िक , िो न ु ु ु रािकुमार न ब

िो, इस लडके न ि े उनिोन ि था कचचे आम का।







को ा



े र र ि ी य क स ा न क े ल

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ि ड क

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ा र ी

ा ि ए क न स

े ुरत ं पुिलस िलसे चुरायािोगा।उसनत न ीऔरउसेिगरफतारकरिलया।िस ू

म ु

े गा , यि बडा िविचत नगर िै। मेरा एक भी िमत वापस निी बेचारा रािकुमार मारे िचंता के परेशान था। वि सोचन ल आया। ऐसे नगर मे न रिना िी अचछा। वि िौडता िआ ू रे गाव के पास पिंच ु विा से िनकला और िस ु ा। रासते मे उसे एक िकसान िकला, िो िसर पर रोटी की पोटली रखे अपन घ े घर ले गया। े िकसान के घर पिंच ब ा ु नक े







ि र

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े से अपनस े ाथलेिलयाऔ क साननउ

र न

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े ेखािकिकसानकीिालतबडीखर

निलाया और किा, मै गाव का मुिखया था। रोि तीन करोड लोगो को िान िेता था, पर अब कौडी-कौडी के िलए मोिताि िं। ू

रािकुमार बडा भूखा था , उसन ि े ोरखी -सूखी रोटी िमली, वि खा ली। िसूरे ििन सुबि उठन क े े बाििबउसने े कस मुंि धोया तो िफर मुंि से तीन िीरे िनकले। वे िीरे उसन ि ा न क ो ि े ि ि ये। िकसानिफरधनवानबन े गा। करोड का िान िफर से आरमभ कर ििया। रािकुमार विी रिन ल े ग ा औ र ि क सानभीउससेपुतवत्पेमकरनल े िकसान के खेत मे काम करन व ा ली ए क औ र त स े य ि स ुख निीिेखागया।उसनएे कवेशयाको किा,

“उस लडके को भगाकर ले आओ तो तुमिे इतना धन िमलेगा िक ििनिगी भर चैन की बसंी बिाती रिोगी।” अब वेशया ने एक िकसान-औरत का रप रख िलया और िकसान के घर िाकर किा , “मै इसकी मा िं। ु ारा मेरी आंखो का तारा िै। मै ू यि िल ं गई। रािकुमार भी भुलावे मे आकर उसके इसके िबना कैसे ि सकूंगी ? इसे मेरे साथ भेि िो।” िकसान को उसकी बात िच पीछे -पीछे चल ििया। े श य घर आन प े र व ा न रेािकु,मारकोखू लडका बउलटी शराबिपलाई।उसनस करेगा तो बित से िीरे एक साथ ुे -ोचा िनकल आयगंे। उसकी इचछा के अनुसार लडके को उलटी िो गई। लेिकन िीरा एक भी निी िनकला। कोिधत िोकर उसने रािकुमार को बित ु पीटा और उसे िकसान के मकान के पीछे एक गडढे मे डाल ििया। रािकुमार बेिोश िो गया था। िोश मे आन प े रउसनस , े अब ोचा िकसानके घर िाना ठीक निी िोगा , इसिलए उसने बिन पर राख मल ली और संनयासी बनकर विा से चल ििया। रासते मे उसे सोन क े





क र





ी प



ीिईुििखाईिी।िै , वि अचानक सेिीउसनर सुनिरेे ससीउठाई रगं का तोता

बनगया। तभी आकाशवाणी िईु,

“एक रािकुमारी नपेण िकया िै िक वि सुनिरे तोते के साथ िी बयाि करेगी।” े गा।िोते अब तोता मुकत रप से आसमान मे उडता िआ -िोते एक ििन विउसी रािमिल के ु िेश-िेश की सैर करन ल पास पिंच ु ा, ििा की रािकुमारी ििन -रात सुनिरे तोते की राि िेख रिी थी और ििन -ब-ििन िबुली िोती िा रिी थी। उसने रािा से किा, “मै इस सुनिरे तोते के साथ िी बयाि करंगी।” रािा को बडा िु :ख िआ ु िक ऐसी सुनिर रािकुमारी एक तोते के साथ बयाि करेगी! पर उसकी एक न चली। आिखर सुनिरे तोते के साथ रािकुमारी का बयाि िो गया। बयाि िोत िी तोता े सुनिररािकुमार बन गया। यि िेखकर रािा खुशी से झूम उठा। उसन अ प न ीपुतीकोअपारसमपित , नौकर-चकर, घोडे और िाथी भेट-सवरप ििये। आधा राजय भी िे ििया। नये रािा-रानी अपन घ े र ि ा न ि े न क ले,।रािापिले िो िफर गरीब गावकेमबन ुिखयािकसानसे गया था। िमलनगेया रािा न उ े स ेक,ाफीसं ििससे पितिी उसका तीन करोड का िान-कायक िफर से चालू िो गया। े म त अब रािकुमार को अपन ि ो क ी य ा ि आ ई । उ स नपे,डोसक पर ेराजयकीरािधानीपरिमला े े पनाराजय ं िोन स े लडाई आरभ े प ि ल े ि ीउसराजयकारािाअपनस -मुसाििबो सििते रािकु रिारो मार से िमलन आ य ा।उसनअ रािकुमार के िवाले करन क े ी त ै य ा र ी ब त ा ई । रािाकीआवािसे , “कयो िमत रािकु , मारनउेसेपिचानिलयाऔर े म लकरअपने तुमन म े ुझेप?” िचानानिी िोनो न एेक-िस ू रे को पिचना तो िोनो की खुशी का िठकाना निी रिा। अब िोनो न ि े साथी, िकसान केपुत को खोिना आरमभ िकया। रािकुमार को यि बात खलन ल ग ी ि क उसकीखाितरिमतकोकारावास भुगतना पडा। िब सब कैिियो को िरिा िकया गया तो उनमे िकसान का लडका िमलगया। रािकुमार न उ और अपना पिरचय ििया। िकसान का लडका खुशी से उछल पडा। सब िफर से इकटे िो गए।



सकाआिलंगनिकया

े पनी -अपनी समपित एकत की और उसके चार बराबर ििससे िकए। सबको एक -एक ििससा िे ििया इसके बाि सबन अ गया। सब अपन ग



ा व

े गे। वापसआगये -िपता से।माता िमले। गाव भर मे खुशी की लिर िौड गई सबके ििन सुख से बीतन ल

‘मणडल’ दारा पकािशत □ ● िमारी आिशक नािरया ● िमारे संत मिातमा ● िमारी नििया ● िमारी बोध-कथाएं ● मातािी का ििवय िशकन ● बापू का पथ ● बडो की बडी बाते ● बेताल पचचीसी ● पथ के आलोक ● ईट की िीवार ● िसंिासन बतीसी ● सफलता की कु ंिी ● िमारे पमुख तीथक ● संतो की सीख ● िवश की शेष किािनया ● भारतीय लोक-कथाएं □□ ससता सािितय मणडल पकाशन ससता सािितय मणडल

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