जाजिि नाम का एक बाहण था। वह जान पाप करना चाहता था। इसके ििए वह जगह-जगह भटकता ििरा, अनेक साधु
-महातमाओं के पीछे दौडता रहा, पर उसे कोई ऐसा जानी नहीं िमिा, िजसे अपना गुर बना कर वह आशसत महसूस कर सके। अपनी खोज से उसे िनराशा महसूस होने िगी िक अचानक एक िदन उसकी मुिाकात एक नए साधु से हुई।
िजजासावश उससे भी जाजिि ने िकसी सचचे गुर का पता बताने को कहा, जो उसे सही राह िदखा सके। साधु ने उसे सिाह दी िक वह उसी नगर के तुिाधार वैशय के पास जाए। उसी से उसे जान िमिेगा। जाजिि पहिे तो साधु को अिवशास से दे खता रहा, उसे िगा िक शायद साधु उसका
मजाक बना रहा है । िेिकन उसके मुख पर गंभीरता दे खकर जाजिि ने उसकी सिाह आजमाने का इरादा िकया।
वह तुरंत ही साधु से िवदा िेकर तुिाधार वैशय की तिाश मे िनकि पडा। तुिाधार के पास पहुंचकर उसने अपनी इचछा पकट की और िनवेदन िकया िक मुझे ऐसा जान दीिजए िजससे मेरा जीवन सुधर जाए।
तुिाधार ने िवसमय से उसकी ओर दे खा, ििर बोिा, भैया, मै तो कोई जानी-पंिित नहीं हूं जो
सचची राह िदखा सकूं। पर हां, वह रासता जरर बता सकता हूं, िजस राह सवयं चिता हूं। सच पूछो
तो मै हमेशा अपनी इस तराजू से मागद ग शन ग पाता हूं। इसकी िं िी हमेशा सीधी रखनी है , न ऊंची, न नीची। जाजिि ने अनुभव िकया िक शायद यही कारण है िक दक ु ान पर आने वािे सभी िोगो के
ििए तुिाधार -हर छोटे -बिे ़,़ अमीर- गरीब के ििए अपना कायग-वयवहार हमेशा एक समान रखता है । जाजिि को समझ मे आ गया िक हम जो कुछ कमग करते है , उसका सीधा पिरणाम हमारे मन पर होता है । कमय ग ोगी की साधना और जप उसके कमग मे ही िनिहत होता है । उसी से उसकी िचत
शुिि होती है । और िनमि ग मन पर जान का पभाव पडता है । जाजिि िजस उदे शय को िेकर तुिाधार के पास गया था, उसकी पूितग हो गई। उसे जान िमि गया। -"जीवन हमे िकतना ही पिरपूणग और संतुष िगे, िेिकन अपने खास िमत के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चािहये ।"
'पिवत हदय से बोिनी चािहए मधुर वाणी' -"Self-trust is the first secret of success" -Living in favorable & unfavorable situation is called part of life. But, "SMILING" in all those situation is called........... 'ART OF LIVING'. With 'LOVE'