शी नाथ जी के आराधय महापभु वललभाचायय का पाकटय सन ् १४७८ मे वैशाख कृ षण एकादशी को हुआ। कांकरवाड िनवासी लकमण भटट की िितीय पती इललभा ने आपको जनम िदया। काशी मे
जतनबर मे आपने शुदािे ैैत बहवाद का पचार िकया और वेद रपी दिि से पाप नवनीत रप पुिि मागय का पवतन य िकया। आपका िववाह काशी के शी दे वभ की पुती महालकमी से हुआ िजनसे उनहे दो पुत गोपीनाथ और िवटठलेश हुए। आपने ८४ लाख योनी मे भटकते जीवो के उदाराथय ८४
वैषणव गनथ, ८४ बैठके और ८४ शबदो का बह महामंत िदया। काशी मे अपने आराधय को वतम य ान गोपाल मंिदर मे सथािपत िकया और सन ् १५३० मे संनयास ले िलया। हनुमान ् घाट पर आषाढ शुकल िितीया को गंगा मे जल समािि ले ली।
आचायप य ाद शी वललभाचायय का जनम चमपारणय मे रायपुर मधयपानत मे हुआ था। वे उतारिि
तैलग ं बाहण थे। इनके िपता लकमण भटटजी की सातवीं पीढी से ले कर सभी लोग सोमयज करते आये थे। कहा जाता है िक िजसके वंश मे सौ सोमयज कर िलए जाते है , उस कुल मे महापुरष का
जनम होता है । इसी िनयम के साकय के रप मे शी लकमण भ के कुल मे सौ सोमयज पूणय हो जाने
से उस कुल मे शी वललाभाचायय के रप मे भगवान ् का पादभ य हुआ। कुछ लोग उनहे अििनदे व का ु ाव अवतार मानते है । सोमयज की पूिकयत के उपलकय मे लकमण भ जी एक लाख बाहणो को भोजन कराने के उदे शय से सपिरवार काशी आ रहे थे तभी रासते मे शी वललभ का चमपारणय मे जनम
हुआ। बालक की अदत ु पितभा तथा सौनदयय दे ख कर लोगो ने उसे 'बालसरसवती वाकपित' कहना पारं भ कर िदया। काशी मे ही अपने िवषणुिचत ् ितरमलल तथा मािव यतीनद से िशका गहण की तथा समसत वैषणव शासो मे पारं गत हो गये।
काशी से आप वनृदावन चले गये। ििर कुछ िदन वहाँ रह कर तीथाट य न पर चले गये। उनहोने िवजयनगर के राजा कृ षणदे व की सभा मे उपिसथत हो कर बड़े -बड़े िविानो को शासाथय मे परािजत िकया। यहीं उनहे वैषणवाचायय की उपािि से िवभूिषत िकया गया।
राजा ने उनहे सवणय िसंहासन पर बैठा कर उनका साङगोपाङग पूजन िकया तथा सवणय रािश भेट
की। उसमे से कुछ भाग गहण कर उनहोने शेष रािश उपिसथत िविानो और बाहणो मे िवतिरत कर दी। शी वललभ वहां से उजजैन आये और िकपा नदी के तट पर एक अशतथ पेड़ के नीचे िनवास िकया। वह सथान आज भी उनकी बैठक के रप मे िवखयात है । मथुरा के घाट पर भी ऐसी ही एक बैठक है और चुनार के पास उनका एक मठ और मिनदर है । कुछ िदन वे वनृदावन मे रह कर शी कृ षण की उपासना करने लगे।
भगवान ् उनकी आरािना से पसनन हुए और उनहे बालगोपाल की पूजा का पचार करने का आदे श
िदया। अटठाईस वषय की अवसथा मे उनहोने िववाह िकया। कहा जाता है िक उनहोने भगवान ् कृ षण की पेरणा से ही 'बहसूत' के ऊपर 'अणुभाषय' की रचना की। इस भाषय मे आपने शाङकर मत का खणडन तथा अपने मत का पितपादन िकया है । आचायय ने पुििमागय की सथापना की। उनहोने शीमदागवत ् मे विणत य शीकृ षण की लीलाओं मे पूणय आसथा पकट की। उनकी पेरणा से सथान-सथान पर शीमदागवत ् का पारायण होने लगा। अपने
समकालीन शी चैतनय महापभु से भी उनकी जगदीशर याता के समय भेट हुई थी। दोनो ने अपनी ऐितहािसक महता की एक दस ू रे पर छाप लगा दी। उनहोने बहसूत, शीमदागवत ् तथा गीता को अपने पुििमागय का पिान सािहतय घोिषत िकया। परमातमा को साकार मानते हुए उनहोने
जीवातमक तथा जड़ातमक सिृि िनिाियरत की। उनके अनुसार भगवान शीकृ षण ही परबह है । संसार की अंहता और ममता का तयाग कर शीकृ षण के चरणो मे सवय अिपत य कर भिि के िारा उनका अनुगह पाप करना ही बह संबि ं है । शी वललभ ने बताया िक गोलोकसथ शीकृ षण की
सायुजय पािप ही मुिि है । आचायय वललभ ने साििकार सुबोििनी मे यह मत वयि िकया है िक पािणमात को मोक पदान करने के िलये ही भगवान ् की अिभवयिि होती है गह ृ ं सवात य मना तयाजयं तचचेतयिुं नशकयते। कृ षणाथर ् ततपयुञजीत कृ षणोऽनथस य य मोचक:।। उनके चौरासी िशषयो मे पमुख सूर, कुमभन, कृ षणदास और परमाननद शीनाथ जी की सेवा और कीतन य करने लगे। चारो महाकिव उनकी भिि कलपलता के अमर िल थे। उनका समग जीवन चमतकार पूणय घटनाओं से ओतपोत था। गोकुल मे भगवान ् शीकृ षण ने उनहे पतयक दशन य िदये थे।
शी वललभाचायय महान ् भि होने के साथ-साथ दशन य शास के पकाणड िविान ् थे। उनहोने बहसूत
पर अणुभाषय, भागवत ् की सुबोििनी वयाखया, िसदानत-रहसय, भागवत ् लीला रहसय, एकानतरहसय, िवषणुपद, अनत:करण पबोि, आचायक य ािरका, आननदाििकरण, नवरत िनरोि-लकण और उसकी िनविृत, संनयास िनणय य आिद अनेक गंथो की रचना की। वललभाचायय जी के परमिाम जाने की घटना पिसद है । अपने जीवन के सारे कायय समाप कर वे अडै ल से पयाग होते हुए काशी आ गये थे। एक िदन वे हनुमान ् घाट पर सनान करने गये। वे िजस
सथान पर खड़े हो कर सनान कर रहे थे वहाँ से एक उजजवल जयोित-िशखा उठी और अनेक लोगो के सामने शी वललभाचायय सदे ह ऊपर उठने लगे। दे खते-दे खते वे आकाश मे लीन हो गये। हनुमान घाट पर उनकी एक बैठक बनी हुई है । उनका महापयाण िव.सं. १५८३ आषाढ शुकल ३ को हुआ। उनकी आयु उस समय ५२ वषय थी। Jai Sai Ram!!!