(15) मज़हब ही सिखाता है आपस में बैर करना - एक हिंदू धर्म के सिवा

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मज़हब ही सिखाता है आपि में बैर करना यदि अपने दहतों की िरु क्षा चाहते हो

तो पहले दहन्ि ू धमम के दहतों की रक्षा करो

मानोज रखखत यशोधमाम

ISBN 978-81-89746-15-5 / 81-89746-15-4 (अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मानक संख्या) पुस्तक प्राप्ति का स्थान – डॉ नर्रेन्द्र पारर्रख, 133 मोनारिसा, बोमनजी पेरिि मार्ग, मुंबई 36, दूर्रभाष 2367-6520, चिभाष 98690-21715, [email protected] लेखन, प्तिन्दी रूपाांतर, डीटीपी, प्रकाशन – मानोज र्ररखत (रपतामह प्रदत्त नाम यशोधमा), चिभाष 98698-09012, ईमेि [email protected] प्रकाशन – जनवर्री 2006, फर्रवर्री 2006, जून 2006, रसतंबर्र 2006, अक्िू बर्र 2006, जुिाई 2007, मई 2011, अक्िू बर्र 2012 मुद्रण – दे वेन्द्र वार्रंर्, आइरडयि ग्रारफक्स, 3 कदम चॉि, डी-एन दुबे मार्ग, अम्बावाड़ी, दरहसर्र पूवग, मुंबई 400 068, चिभाष 98920-75431, ईमेि [email protected] कृ प्ततस्वाम्य में छू ट (दुरुपयोर् से बचने हे तु करतपय शतें ) You are free to Share — To copy, distribute and transmit the work To make commercial use of the work Under the following conditions (a) Attribution — You must attribute the work in the manner specified by the author or licensor (but not in any way that suggests that they endorse you or your use of the work) (b) No Derivative Works — You may not alter, transform, or build upon this work; With the understanding that: (a) Waiver — Any of the above conditions can be waived if you get permission from the copyright holder (b) Public Domain — Where the work or any of its elements is in the public domain under applicable law, that status is in no way affected by the license (c) Other Rights — In no way are any of the following rights affected by the license: (i) Your fair dealing or fair use rights, or other applicable copyright exceptions and limitations; (ii) The author's moral rights; (iii) Rights other persons may have either in the work itself or in how the work is used, such as publicity or privacy rights. Notice — for any reuse or distribution, you must make clear to others the license terms of this work. The best way to do this is with a link to http://creativecommons.org/licenses/by-nd/3.0/deed.en_US

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स्तुप्तत / समपपण वक्रतुण्ड महाकाय सूयगकोरि समप्रभ। रनर्ववघ्नं कुरु में दे व शुभकायेषु सवगदा।। या कुन्द्देन्द्दत ु ष ु ार्रहार्रधविा या शुभ्रवस्रावृता, या वीणावर्रदण्डमण्ण्डतकर्रा या श्वेतपद्मासना। या ब्रह्माच्युतशंकर्रप्रभृरतरभर्र् दे वैस्सदावण्न्द्दता, सा माम् पातु सर्रस्वती भर्वती रनश्शेषजाड्यापहा।। या दे वी सवगभत ू ेषु शरिरूपेण संण्स्िता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। कायेन वाचा मनसेण्न्द्रऐवा बुध्यात्मना वा प्रकृ ते स्वभावात। कर्रोरम यद् यद् सकिं पर्रस्मै नार्रायणायेरत समपगयारम।।

पुस्तक समीक्षा श्री शुरतवन्द्त दुबे 'रवजन', र्राष्ट्रपरत पदक प्राप्त, र्राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मारनत, रवद्यावाचस्परत (मा0), रजिा अध्यक्ष इण्ण्डयन प्रेस कौंरसि, रजिा सीधी, मध्य प्रदे श, रदनांक 6 माचग 2006

"मानोज र्ररखत की कृ रत "मज़हब ही रसखाता है आपस में बैर्र कर्रना" मेर्रे हाि में है । अभी तक मैंने पढ़ा िा मज़हब नहीं रसखाता आपस में बैर्र कर्रना और्र अपने इस दृरिहीन ज्ञान को सर्वग प्रचारर्रत भी कर्रता आया हू ।ूँ रकन्द्तु आज समझा रक मैने तोतार्रिन्द्त इस पुस्तैनी अज्ञान को रवर्रासत में पाया और्र श्रृंखिा का सूर बनता र्रहा। "मैं" हू ूँ व्यरि, चर्र समरि का प्रतीक हू ,ूँ एक रसम्बि हू ।ूँ इसरिए यह अज्ञान भी व्यरि तक सीरमत न होकर्र समूह का सच है । कृ रत धमग पर्र चढ़ी आदशग की किई को खोिती धमग के कािे चे हर्रे को उजार्र्र कर्रती है । िे खक की किम धमग का पोस्िमािग म कर्रती है तिा अंर्-प्रत्यंर् चचतन के द्वार्र पर्र सोचने के रिए छोड़ दे ती है । ऐ वे सच्चाईया ूँ हैं जो पाठक की सोच को बदि सकती हैं । अन्द्य मज़हबों की संकीणगता, कट्टर्रता, दुर्राग्रहता तिा चहसात्मकता का बयान कर्रता िे खक सनातन धमग की वैज्ञारनकता और्र सवगग्राह्यता का भौरतक खुिासा कर्रता है ।

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पुस्तक धमग का फ़ोिोग्राफ़ है , िे खक एक फ़ोिोग्राफ़र्र। जो मज़हब के चे हर्रे को हू -बहू दशगक के सामने र्रख रदया है । फ़ोिोग्राफ़र्र फ़ोिो में अपना कुछ नहीं दे ता। िे खक ने भी नहीं रदया, पर्र सोचने के रिए जर्ह रदया है । इसीरिए वह कहता है - मुझमें अब कोई इच्छा नहीं र्रही, रक मैं उन व्यरियों को समझाने में, अपना समय एवं अपनी उजा नि करूूँ, जो मेर्री बात को समझने की ण्स्िरत तक, अभी नहीं पहु च ूँ े । ऐसे व्यरि इन िे खों रक महत्ता को तभी समझेंर्े जब पानी सर्र तक आ पहु च ूँ े र्ा, एवं डू बने की संभावना उन्द्हें बहु त ही रनकि से रदखने िर्ेर्ी। और्र िे खक का इच्छार्रारहत्य ही संर्ठन का प्राबल्य है । यही पाठक का आमंरण है जहा ूँ वह रचन्द्तन के रिए जर्ह पाता है । इस छोिी सी पुस्तक में बाइरबि ओल्ड व न्द्य ू िे स्िामेन्द्ि, ईसाई र्ॉस्पेि, कुर्रआन और्र उनकी आयतें तिा सनातन धमग का रनष्ट्पक्ष व रनष्ट्काम भाव से यिारूप, यिा आदे श एवं उपदे श प्रस्तुत रकया र्या है । मज़हब के खेमे में घुिती मानवीयता की पीड़ा ही िे खक का िे खन, सत्यकिन, अध्ययन एवं अध्यात्म है , िे खक की नज़र्रों ने मज़हब के खंजर्रों से असहायों, रनर्रीहों, बेर्न ु ाहों के किते रसर्र दे खा है , बण्स्तयों की जिती होिी दे खी है , खून की नरदयों में उफ़ान दे खा है । यही कार्रण है रक भावों का साधक रचन्द्तन के कमग-मठ में साधनार्रत होकर्र सत्यधमग के द्वार्र पर्र पहु च ूँ ता है । इस पहु च ूँ में न खीझ है , न उदासी है , न कचोि है , न हिौड़ा प्रहार्र का कोई आग्रह। वह शान्द्त रनर्विप्त भाव से अपने अध्ययन के रनष्ट्कषग धमगसार्र को पाठक के मन मण्स्तष्ट्क में रनचोड़ दे ता है , जो धीर्रे-धीर्रे रर्रसता हु आ पाठक की सोई हु ई चे तना को रबना आवाज के ही जार्ृत कर्रता है । यह जार्ृरत ही िे खक को अभीि है । िे खक कोई उपदे शक नहीं, पर्र मानव धमग का र्रक्षक है । इसीरिए उसका पहिा और्र अण्न्द्तम संदेश - यरद अपने रहतों की सुर्रक्षा चाहते हो तो पहिे सनातन धमग के रहतों की र्रक्षा कर्रो - है । यह कोई उपदे श नहीं, बण्ल्क आत्मक्लेश व धमगक्लेश है । अपने अध्ययन व रचन्द्तन से िेखक ने रनष्ट्कषग रनकािा है रक - मज़हब ही रसखाता है आपस में बैर्र कर्रना - सिीक एवम् तकगसंर्त है । पर्र सनातन धमग ही मानव धमग है रजसमें --सवे भवन्द्तु सुरखनः सवे सन्द्तु रनर्रामया--के भाव-पुष्ट्प रचन्द्तन-उद्यान में रवहूँसते र्रहते हैं । कुि रमिाकर्र, कृ रत संप्रेषणीय, पठनीय एवम् संग्रहणीय है । पाठक पुस्तक खोजकर्र पढ़ें , मेर्री अपीि है ।"

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बस केवल एक झलक दे ख लें बचपन से मैं सुनता आया िा — मज़हब नहीं रसखाता है आपस में बैर्र कर्रना तू न चहदू बनेर्ा, न मुसिमान बनेर्ा, इंसान की औिाद है , इंसान बनेर्ा ईसाई धमग प्रेम, दया एवं मानवता की सेवा का धमग है मदऱ िे र्रीसा ने "र्र्रीबों के र्र्रीब" की सेवा कर्र रवश्व में एक आदशग स्िारपत रकया। जीवन के पचास वषों तक मैंने इन बातों पर्र रवश्वास भी रकया। रशक्षा, मीरडया और्र प्रचार्र का प्रभाव मानव की सोच और्र भावनाओं को इस हद तक प्रभारवत कर्र सकता है । पर्र अब मैंने स्वयं उन धमगग्रंिों को पढ़ा। रफर्र, उन सीखों के आधार्र पर्र, उन धमों के अनुयारययों ने , मानवता के साि क्या वीभत्स व्यवहार्र रकया, इसका इरतहास भी पढ़ा।

पप्तवत्र बाइप्तबल की प्तशक्षायें अनुवादक के रूप में मेर्रा कतगव्य बनता है रक मैं, अपनी योग्यता के अनुसार्र, अंग्रेज़ी मूि से यिासम्भव उप्तित समानाथप क प्तिन्दी शब्दों एवां वाक्यों का चयन कर्र ही अनुवाद प्रस्तुत करूूँ ताप्तक मूल भाव बरकरार रिे । प्तनम्नोक्त उद्धरणों के स्रोत—होिी बाइबि, वैरिकन / पोप द्वार्रा प्रारधकृ त संस्कर्रण चकर् जेम्स वज़गन, पाइिि बुक्स, एिेन्द्स, जॉर्वजया, ब्रॉडमैन ऐंड हॉिमैन पबरिशसग, बेिरजयम, 1996, ISBN 0840036254

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अांग्रेज़ी-प्तिन्दी अनुवाद िे त ु प्रयुक्त शब्दकोश— अंर्र्रेजी-रहन्द्दी कोश, फ़ादर्र कारमि बुल्के, कािरिक प्रेस, र्राूँची, 1968 तिा र्राजपाि अंग्रेज़ी-रहन्द्दी शब्दकोश, डॉ हर्रदे व बाहर्री, र्राजपाि एण्ड सन्द्ज़,़ रदल्ली, 2005 ऑक्सफ़ोडप शब्दकोश बृहत संस्कर्रण ISBN 0195654323 के अनुसार्र ईसाई बाइप्तबल (उच्चार्रण बाइबि) का प्रिम भार् ओल्ड टे स्टामेंट यिू दी मूल का है । यहू दी धमग की रशक्षायें इसमें सरिरहत हैं जो ईसाई धमग को भी मान्य हैं । ईसाई बाइरबि के ककग जेम्स वज़प न को ईसाई पोप की मान्यताप्राि है । इसमें सरिरहत रशक्षाओं में से हम करतपय उद्धर्रण यहाूँ प्रस्तुत कर्रेंर्े जो यिू दी तिा ईसाई धमग के बार्रे में आपकी मान्यताओां को एक नई रदशा दे र्ी। यिू दी मूल का पप्तवत्र बाइप्तबल—ओल्ड टे स्टामेंट—प्तडउटे रॉनॉमी 12:1 ये हैं (बाइरबि के) र्ॉड (ईश्वर्र) के प्तवधान (कानून) रजनका तुम पािन कर्रोर्े तब तक जब तक तुम इस पृथ्वी पर प्तजओगे। 12:2 तुम पूरी तरि प्तवनाश कर दोगे उन सभी स्िानों का रजन पर्र तुमने अरधकार्र रकया, यरद वहा ूँ के िोर् प्तकसी भी अन्य भगवान की पूजा कर्रते हों, चाहे वे ऊूँचे पवगतों पर्र बसते हों, या पहारड़यों पर्र, या रफर्र हर्री-भर्री वारदयों में 12:3 और्र तुम उनके पूजा की वेप्तदयों को प्तवध्वांश कर दोगे, उनके पूजा के स्तम्भों को तोड़ दोर्े, उनके उपवनों को जिा दोर्े, उनके दे वी-दे वताओं के अंरकत रचरों को चीर्र डािोर्े, र्ढ़ी हु ई मूर्वतयों को काि डािोर्े, उनका नाम तक विााँ से प्तमटा डालोगे। 13:6 यरद तुम्िारा सगा भाई जो है तुम्हार्री अपनी माूँ का बेिा, या तुम्िारा पुत्र, या तुम्िारी पुत्री, या तुम्िारी पत्नी जो तुम्हार्रे हृदय में बसती हो, या तुम्हार्रा वि प्तमत्र जो तुम्हार्री अपनी आत्मा के समान है — इनमें से यरद 6

कोई तुम्हें चुपके से फु सिाए रक चिो हम चि कर्र दूसर्रे धमग के भर्वान की पूजा कर्रें जो न तुम्हार्रे भर्वान हैं न तुम्हार्रे पूवगजों के 13:8 न तुम अपनी सहमरत दोर्े, न तुम उसकी बात सुनोर्े, न तुम्हार्री नज़र्र में उसके प्ररत दया होर्ी, न तुम उसे क्षमा कर्रोर्े, न तुम उसे छु पाओर्े 13:9 तुम उसे अवश्य िी मार डालोगे, तुम्हार्रा हाि वह पिला िाथ िोगा जो उसे मृत्यु के द्वार्र तक पहु च ूँ ाएर्ा, उसके पश्चात दूसर्रे िोर्ों के हाि उस पर्र पड़ें र्े 13:10 और्र तुम उसे पत्थरों से मारोगे तारक वह मर्र जाए क्योंरक उसने तुम्हें तुम्हार्रे अपने भर्वान से दूर्र िे जाने की चे िा की 20:16 उन शहर्रों को रजनका तुम्हें तुम्हार्रे भर्वान ने उत्तर्रारधकार्री बनाया, उन शहर्रों के िोर्ों में से प्तकसी को भी सााँस लेता न छोड़ना 20:17 उन्द्हें पूणपतया नष्ट कर्र दे ना। 32:24 उन्द्हें भूख से तड़पाओ और्र जिती हु ई आर् की िपिों को रनर्ि जाने दो उनके शर्रीर्रों को, उनकी मौत अत्यां त दुुःखद िो, मैं भी भेजर्ा ू ूँ जानवर्रों को रजनके दाूँत उनके शर्रीर्रों पर्र र्ड़ें र्े और्र सापूँ ों को रजनका रवष उन्द्हें धूि चिाएर्ा 32:25 रबना तिवार्र के उनके रदिों में आतंक भर्र दो, नि कर्र दो जवा ूँ मदों को, कुमारर्रयों को, मााँ का दूध पीते नन्िे बच्चों को, और्र वृद्धों को प्तजनके बाल पक िुके हों। यिू दी मूल का पप्तवत्र बाइप्तबल—ओल्ड टे स्टामेंट—ईसाइयाि 13:16 उनकी आूँखों के सामने उनके बच्चों को पूर्री शरि के साि उठा कर्र पिको तारक उनके टु कड़े -टु कड़े हो जायें, उनकी पप्तत्नयों का बलात्कार कर्रो।

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यिू दी मूल का पप्तवत्र बाइप्तबल—ओल्ड टे स्टामेंट—नम्बसप 31:17 बच्चों में प्रत्येक नर्र का कत्ि कर्र डािो और्र प्रत्येक उस स्री का भी रजसने रकसी पुरुष के साि सहवास रकया हो 31:18 पर्र उन सभी मादा बच्चों को रजन्द्होंने रकसी पुरुष के साि सहवास न रकया हो, उन्द्हें अपने प्तलए जीप्तवत रखो। यिू दी मूल का पप्तवत्र बाइप्तबल—ओल्ड टे स्टामेंट—एक्सोडस 23:24 तुम दूसर्रों के र्ॉड (ईश्वर्र) के सामने न तो झुकोगे और्र न उनकी सेवा कर्रोर्े, बण्ल्क उन्द्हें पूरी तरि से प्तवध्वांश कर्र दोर्े, उनकी मूर्ततयों तोड़-फ़ोड़ कर नष्ट कर्र दोर्े। 34:13 तुम उनकी पूजा की वेप्तदयों ध्वांश कर्र दोर्े, उनकी मूर्वतयों को तोड़ दोर्े, उनके उपवनों को काि डािोर्े 34:14 तुम रकसी भी दूसर्रे भर्वान की सेवा न कर्रोर्े क्योंप्तक लॉडप , रजसका नाम ईर्ष्यालु िै वह एक ईर्ष्यालु ग़ॉड हैं । यिू दी मूल का पप्तवत्र बाइप्तबल—ओल्ड टे स्टामेंट—नािु म 1:2 र्ॉड ईष्ट्यािु हैं , और्र लॉडप बदला लेते हैं ; जब लॉडप बदिा िेते हैं तो वह क्रोधोन्मत्त िो जाते हैं ; लॉडप प्रप्ततशोध िेंर्े अपने रवर्रोरधयों से; वे अपना क्रोध बर्रसाते हैं अपने शतुओां पर्र। ईसाई मूल का पप्तवत्र बाइप्तबल—प्तनउ टे स्टामेंट—मैथ्यू सांत मैथ्यू ईसा मसीि के बार्रह मुख्य प्तशर्ष्यों में से एक िे और्र उन्द्होंने ईसा से जो सुना और सीखा उसे र्ॉस्पेि में रिरपबद्ध रकया। 8

र्ॉस्पेि कहते हैं ईसा की जीवनी एवां उनकी प्तशक्षाओां के संकिन को। सुरनए ईसा की कथनी मैथ्यू की जबानी — 10:34 न सोिो रक मैं आया हू ूँ प्तवश्व में शाांप्तत िाने के रिए, मैं आया हू ूँ शाांप्तत के प्तलए निीं बल्ल्क तलवार प्तलए 10:35 क्योंरक मैं आया हू ूँ आदमी को अपने प्तपता के प्तवरुद्ध खड़ा कर्रने, पुत्री को माता के प्तवरुद्ध, बिू को सास के प्तवरुद्ध 10:36 मनुष्ट्य का शतु होर्ा उसका अपना पप्तरवार। ईसाई मूल का पप्तवत्र बाइप्तबल—प्तनउ टे स्टामेंट—ल्यूक सांत ल्यूक बाइरबि में एक र्ॉस्पेि (ईसा की रशक्षाओं) के िेखक हैं । 12:51 तुम समझते िो रक मैं आया हू ूँ इस धर्रती को अमन िैन दे ने? मैं तुम्हें बताता हू ूँ - निीं। मैं आया हू ूँ बूँिवार्रा कर्रने 12:52 क्योंरक अब से घर में पा ूँच बिे होंर्े - तीन दो के रवरुद्ध - दो तीन के रवरुद्ध 12:53 प्तपता होर्ा पुत्र के रवरुद्ध - पुत्र होर्ा प्तपता के रवरुद्ध - मााँ होर्ी पुत्री के रवरुद्ध पुत्री होर्ी माता के रवरुद्ध - सास होर्ी बिू के रििाफ़ - बिू होर्ी सास के रििाफ़। 14:26 यरद एक व्यरि मेर्रे पास आता है और्र वह अपने प्तपता से घृणा निीं कर्रता - एवं माता से, पत्नी से, सांतानों से, भाई-बिनों से, एवं अपने-आप से भी - तो वह मे रा प्तशर्ष्य निीं बन सकता। ईसाई मूल का गॉस्पेल ऑफ थॉमस सांत िॉमस ईसा मसीि के बार्रह मुख्य प्तशर्ष्यों में से एक िे और्र उन्द्होंने ईसा से जो सुना और सीखा उसे र्ॉस्पेि में रिरपबद्ध रकया। सुप्तनए ईसा की कथनी थॉमस की जबानी — 9

16 ईसा ने कहा सांभवतुः लोग सोिते िैं रक मैं आया हू ूँ प्तवश्व में शाांप्तत स्थापना िे त ु - वे निीं जानते रक मैं आया हू ूँ इस धरती पर फू ट डालने के प्तलए - आर्, तिवार्र और्र युद्ध फैलाने के प्तलए - जिााँ पााँि िोंगे एक पप्तरवार में - वहाूँ तीन होंर्े दो के प्तवरुद्ध और्र दो होंर्े तीन के प्तवरुद्ध - रपता होर्ा पुर के प्तवरुद्ध और्र पुर रपता के - और्र वे डिे र्रहें र्े क्योंरक वे दोनों अपने आप में अकेले िोंगे। 56 जो अपने प्तपता से घृणा निीं कर्रेर्ा और्र अपनी माता से भी, वह मेरा प्तशर्ष्य निीं बन सकता। वह जो अपने भाइओां एवां बिनों से घृणा निीं कर्रेर्ा, और्र अपना क्रॉस नहीं ढोयेर्ा जैसा रक मैंने रकया है , वह मेरे योग्य न बन पायेर्ा।

पप्तवत्र कुरआन की प्तशक्षायें प्तनम्नोक्त उद्धरणों के स्रोत— (1) कुर्रआन मजीद, चहदी अनुवाद मुहम्मद फ़ारुक खा,ूँ अूँग्रेज़ी अनुवाद मु0 मा0 रपक्िाि, मिबा अि-हसनात, दरर्रया र्ंज, नई रदल्ली, 2003, ISBN 818663200X (2) कोिकाता उच्चन्यायालय में प्रस्तुत की र्ई प्तरट याप्तिका 227 ऑफ 1985, द कैलकटा कुरान पेटटशन, वॉयस ऑफ इंरडया, नई रदल्ली, 1999, ISBN 8185990581 (3) कुर्रआन मजीद, चहदी अनुवाद हज़र्रत मौिाना अब्दुि कर्रीम पार्रेख साहब, एजुकेशनि पबरिचशर् हाउस, िाि कु आूँ रदल्ली, इंरडया रर्ररिजस बुक सेंिर्र, नार्पुर्र (4) एरमनेंि रहस्िोरर्रयन्द्स, अरुण शोउर्री, ए एस ए, नोयडा, 1998, ISBN 8190019988 (5) अ चहदू रवउ ऑफ द वल्डग , एन एस र्राजार्राम, वॉयस ऑफ इंरडया, नई रदल्ली, 1998, ISBN 8185990522

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कुर'आन सूरा 2 अल'बकरा आयत 193 तब तक उनसे िड़ते र्रहो जब तक मूर्तत पूजा प्तबल्कुल खत्म न िो जाये और्र अल्लाह का मज़हब सबपर्र र्राज कर्रे 216 िड़ना तुम्हार्री मजबूर्री है , चाहे तुम रकतना भी नापसंद कर्रो इसे (ISBN 8185990581) रिप्पणी— सूरा (अध्याय) अि'बकर्रा (शीषगक) आयत (श्लोक) कुर'आन सूरा 4 अन'प्तनसा आयत 91 वे जो पीठ मोड़ िें , उन्द्हें पकड़ो जहाूँ भी उन्द्हें पाओ, और्र उन्द्हें किसा पूवपक कत्ल कर्र डािो (ISBN 8190019988) आयत 56 वे जो अल्लाह के आदे श को नहीं मानते हैं , हम उन्द्हें आग में झोंक दें र्े और्र जब उनकी िमड़ी प्तपघल जाए तो हम उनकी जर्ह नई चमरड़याूँ डाि दें र्े तारक उन्द्हें स्वाद प्तमले यां त्रणा का। अल्लाह सबसे अरधक शरिमान हैं एवं प्तववेक पूणप हैं (ISBN 818663200X) कुर'आन सूरा 8 अल'अन्फ़ाल आयत 12 जो मेर्रे अनुयायी नहीं हैं , मैं उनके हृदयों में आतांक भर्र दूर् ूँ ा। उनके सर धड़ से अलग कर्र दो, उनके हाि और्र पाव ूँ को इस कदर्र जखमी कर्र दो रक वे प्तकसी भी काम के लायक न रि जायें 15 से 18 तक वो तुम निीं, बल्ल्क अल्लाि िा, रजसने चहसापूणग ढं र् से उन्द्हें मार्र डािा। वि तुम निीं िे रजसने उन पर्र दृढ़ता पूवगक प्रहार्र रकया। अल्लाह ने उन पर्र दृढ़ता पूवगक प्रहार्र रकया तारक वह तुम जैसे अनुयायी को भरपूर पुरस्कार दे सके 39 तब तक उन पर्र हमिा कर्रते र्रहो जब तक मूर्तत पूजा का नामों प्तनशााँ 11

न प्तमट जाये और्र सब अल्लाि के मज़िब के अधीन न हो जायें 67 पैर्ंबर्र, युद्ध बां दी तब तक न बनायेर्ा, जब तक वह, उस जमीन पर्र कत्लेआम न कर िे (ISBN 8185990581) कुर'आन सूरा 9 अत'तौबा आयत 2-3 अल्लाह एवं उनके पैर्ंबर्र मुि हैं , रकसी भी दारयत्व से, मूर्तत पूजकों के प्रप्तत... उन्द्हें ऐसी सजा दो रक वे शोक ग्रस्त हो जायें (ISBN 8185990581) आयत 5 जब हर्राम महीने बीत जायें तो मूर्ततपूजकों को कत्ल कर्र डािो जहाूँ भी पाओ उन्द्हें। प्तछप कर घात लगाये बै ठे र्रहो उन पर्र आक्रमण कर्रने के रिए। उन्द्हें घे र्र िो और्र बन्द्दी बना िो। यरद उन्द्हें मूर्वतपूजक होने का पछतावा हो और्र वे इस्लाम कबूल कर िें, नमाज़ पढ़ें , ज़कात (कर्र) दें तब उनका मार्ग छोड़ दो। अल्लाह ने उन्द्हें क्षमा रकया और्र उन पर्र दया की (ISBN 8185990522) आयत 7 अल्लाह और्र उनके पैर्ंबर्र मूर्तत पूजकों को प्तवश्वास की दृप्तष्ट से निीं दे खते 39 ऐ मुसिमानों, अगर तुम युद्ध न करो तो अल्लाह तुम्हें कड़ी सजा दे र्ा और्र तुम्हार्री जर्ह पर्र दूसर्रे आदमी को िायेर्ा 41 चाहे तुम्हार्रे पास िप्तथयार िों या न िो, चि पड़ो और्र िड़ो अल्लाह की खारतर्र, अपने धन और्र अपने शर्रीर्र के साि 73 ओ पैर्ंबर्र! जो मुझमें रवश्वास नहीं कर्रते, उनसे युद्ध छे ड़ो। उन पर्र कठोर्र बनो। उनका अांप्ततम प्तठकाना नरक है , एक दुभाग्य पूणग यारा का अंरतम चर्रण (ISBN 8185990581) आयत 111 अल्लाह ने खर्रीद रिया है , अल्लाह पर्र रवश्वास कर्रने वािों से (अिात मुसिमानों से), उनकी रजन्द्दर्ी और्र उनकी धन-सम्परत्त 12

क्योंरक (जित) स्वगप उनका िोगा - वे िड़ें र्े अल्लाह के रिए, किसा पूवपक कत्ल करें गे अल्लाि के प्तलए, और्र कि मर्रेंर्े अल्लाह के रिए। यह विन िै अल्लाि का तोर्राह में (यहू रदयों का धमगग्रंि), र्ॉस्पेि में (ईसा की जीवनी एवं रशक्षायें), एवं कुर्रआन में, रजससे वि (अल्लाि) बधें िैं । अल्लाह से बेहतर्र कौन पूर्रा कर्रता है अपनी प्ररतज्ञा? आनन्द्द मनाओ रक यि जो सौदा तुमने प्तकया िै (अल्लाि से) यही तुम्हार्री सबसे बड़ी उपिण्ब्ध है (ISBN 818663200X) आयत 123 मुसिमानों, तुम्िारे आस-पास जो भी गैर-मुसलमान बसते िैं , िमला बोल दो उन पर, उन्द्हें जताओ रक तुम रकतने कठोर्र हो (ISBN 8185990581) कुर'आन सूरा 22 अल'िज़्ज़ आयत 19-22 आर् के परर्रधान (वस्र) बनाये र्ए हैं उनके रिए जो इस्िाम को नहीं अपनाते। उबलता िु आ पानी उनके सर पर डािा जायेर्ा तारक उनकी िमड़ी भी प्तपघल जाए और्र वह सब भी रपघि जाए जो उनके पेि में है (अाँतप्तड़यााँ भी)। उन पर्र कोड़े बर्रसाये जाएूँ, आर् में तपते िु ए लाल लोिे के बने कोड़ों से (ISBN 8185990581) कुर'आन सूरा 33 अल'अिज़ाब आयत 36 जब अल्लाह एवं उसके पैगांबर ने प्तनणपय कर्र रिया है , रकसी भी बात पर्र, तो प्तकसी मुसलमान मदग या और्रत को यह िक निीं रक वह उस बार्रे में, कुछ भी कह सके (ISBN 818663200X)

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कुर'आन सूरा 47 मुिम्मद आयत 4 से 15 जब तुम्हार्रा सामना हो गैर-मुसलमानों से, युद्धभूरम पर्र, उनके सर काट डािो। जब तुम उन्द्हें कुिल डालो तो कस कर्र बाूँधो। उनसे धन वसूल कर्रो। उनके हरियार्र डिवा दो। तुम ऐसा ही कर्रोर्े। यरद अल्लाह ने चाहा होता तो वि स्वयां उन्द्हें नि कर्र दे ता, तुम्हार्री सहायता के रबना। पर्र उसने यह आदे श रदया है , तारक वह तुम्हार्री पर्रीक्षा िे सके। और्र वे जो अल्लाि के प्तलए िड़ते हु ए कि मर्रेंर्े, अल्लाह उनके काम को व्यिग न जाने दे र्ा। वह उन्द्हें जन्नत में बुला िेर्ा। अल्लाि का विन है यह। मुसिमानों, यरद तुम अल्लाि की सिायता कर्रते हो, तो अल्लाह तुम्हार्री सहायता कर्रेर्ा, और्र तुम्हें मज़बूत बनायेर्ा। पर्र जो अल्लाह का न होर्ा वह अनन्त काल तक नरक में सड़े र्ा। अल्लाह केवि मुसिमानों की ही र्रक्षा कर्रेर्ा। र्ैर्र-मुसिमानों का कोई भी र्रखवािा नहीं। जो सच्चे धमप (इस्लाम) को अपनायेंर्े उन्द्हें अल्लाि जन्नत में दाप्तखल कर्रेर्ा। जो मुसिमान निीं बनेंगे, वे वही खायेंर्े जो जानवर खाते हैं , नकग उनका घर्र होर्ा... वे वहाूँ अनन्द्त काि तक र्रहें र्े, और्र खौलता िु आ पानी रपएूँर्े जो उनकी अाँतप्तड़यों को िीर दे र्ा (ISBN 8185990581) कुर'आन सूरा 48 अल'फ़ति आयत 29 मुहम्मद अल्लाह के पैर्ंबर्र हैं । जो उनका अनुसर्रण कर्रते हैं वे गैर-मुसलमानों के प्रप्तत बे रिम होते हैं पर्र एक दूसर्रे (मुसलमानों) के प्रप्तत कृ पालु होते हैं (ISBN 8185990581)

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कुर'आन सूरा 60 अल'मुम्तिना आयत 4 शतुता एवां घृणा िी रिे गी िमारे बीि तब तक जब तक तुम केवल अल्लाि के बां दे न बन जाओ (ISBN 8185990581) कुर'आन सूरा 66 अत'तिरीम आयत 9 ओ पैर्ंबर्र! जो मुझमें (अल्लाह में) रवश्वास नहीं कर्रते, उन पर्र हमिा कर्रो और्र उनके साि कठोर्रता से पेश आओ। नकग उनका रनवास होर्ा, दुभाग्य पूणग उनका भाग्य होर्ा (ISBN 8185990581) कुर'आन सूरा 69 अल'िक्का आयत 30-33 उसे पकड़ो और्र उसे बाूँधो। जलाओ उसको नकप की आग में और्र उसके बाद बाूँधो उसे एक जंजीर्र से, जो हो सत्तर्र क्युरबि िंबा, क्योंरक उसने अल्लाह को नहीं स्वीकार्रा, जो हैं सबसे ऊपर्र (ISBN 8185990581)

प्तिन्दू धमप की प्तशक्षायें प्तनम्नोक्त उद्धरणों के स्रोत— (1) श्रीमद्भर्वद्गीता, र्ीता प्रेस, र्ोर्रखपुर्र (2) अ चहदू रवउ ऑफ द वल्डग , एन एस र्राजार्राम, वॉयस ऑफ इंरडया, नई रदल्ली, 1998, ISBN 8185990522 (3) चान्द््स ऑफ इंरडया, पंरडत र्ररव शंकर्र, ऐंजेि र्रेकॉर्डसग, 2002 (4) सेिेक्शंस फ़्रॉम चहदू स्कृ प्चसग मनुस्मृरत, प्रोफ़ेसर्र जी सी असनानी, पुणे, 2000, ISBN 8190040049

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 श्लोक 29 मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हू ,ूँ न कोई मेर्रा अप्तप्रय है और्र न प्तप्रय है ; जो भि मुझको प्रेमसे भजते हैं , वे मुझमें हैं और्र मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकि हू ूँ

ऋग्वेद 1-164-46 ब्रह्माण्डीय सत्य एक है पर्रन्द्तु प्रज्ञावान उसे रभि-रभि ढं र् से अनुभव कर्रते हैं ; जैसे इंर, रमर, वरुण, अरि, शरिशािी र्रुत्मत, यम एवं मतरर्रस्वन (ISBN 8185990522) प्तशवमप्तिम्ना स्तोत्र 3 रजस प्रकार्र से अनरर्नत नरदयाूँ रभि-रभि मार्ों से, सीधे या िे ढ़े-मेढ़े र्रास्तों से, बहती हु ई अंत में जाकर्र उसी सार्र्र से रमिती हैं , उसी प्रकार्र सभी इच्छु क तुम (ईश्वर्र) तक जा पहु च ूँ ते हैं , अपनी-अपनी चे िाओं के द्वार्रा, अपनी-अपनी रुरच और्र योग्यता के अनुसार्र (ISBN 8185990522) तैत्रीय उपप्तनशद, ब्रह्मवप्तल्ल एवां भृगव ु प्तल्ल, शाांप्तत मांत्र ईश्वर्र िम सभी की र्रक्षा कर्रें। ईश्वर्र िम सभी का पोषण कर्रें। हम सभी साथ काम कर्रें, एक िोकर मानवता की भलाई के रिए। हमार्रा ज्ञान ज्योरतमगय हो एवं अथप पण ू प हो। हममें एक-दूसर्रे के प्ररत घृणा न हो। िारों तरफ शाांप्तत हो, शांरत एवं सम्पूणग शांरत हो (चान्द््स ऑफ इंरडया)

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तैत्रीय अरण्यक, ितुथप प्रश्न, प्रवग्यप मांत्र, 42वा अनुवाक पृथ्वी पर शांरत हो, आकाश में शांरत हो, स्वगप में शांरत हो, सभी प्तदशाओां में शांरत हो, अप्ति में शांरत हो, वायु में शांरत हो, सूयप में शांरत हो, िांद्रमा में शांरत हो, ग्रिों में शांरत हो, जल में शांरत हो, पौधों में शांरत हो, जड़ी-बूप्तटयों में शांरत हो, पेड़ों में शांरत हो, गाय-बै लों में शांरत हो, बकप्तरयों में शांरत हो, घोड़ों में शांरत हो, मानवों में शांरत हो, ब्रह्म में शांरत हो, उन व्यरियों में शांरत हो रजन्द्होंने ब्रह्म को पाया हो, शांरत हो, केवि शांरत हो। वह शांरत मुझमें हो, केवि शांरत! उस शांरत के द्वार्रा अपने-आपमें शांरत स्थायी कर सकू ाँ , और्र सभी रद्वपादों में एवं चतुपादों में। ईश्वर्र कर्रें मुझमें शांरत हो, केवल शाांप्तत (चान्द््स ऑफ इंरडया) सवे शाम सब का भिा हो। सब के प्तलए शांरत हो। सभी पूणगता के योग्य हों एवं सभी उसकी अनुभरू त कर्रें जो शुभ हो। सभी आनण्न्द्दत हों। सभी स्वस्ि हों। सभी के जीवन में वह हो जो भिा है एवं कोई भी कष्ट में न हो (चान्द््स ऑफ इंरडया) तैत्रीय उपप्तनषद, प्तशक्षावप्तल्ल, 10वा अनुवाक दे वी-दे वताओां एवं पूवपजों के प्ररत अपने दारयत्वों की अविे लना न कर्रो। तुम्हार्री माता तुम्हार्रे रिए एक दे वी स्वरूप हों। तुम्हार्रे प्तपता तुम्हार्रे रिए एक दे वता स्वरूप हों। तुम्हार्रे गुरु तुम्हार्रे रिए एक दे वता स्वरूप हों। तुम्हार्रे अप्ततप्तथ तुम्हार्रे रिए एक दे वता स्वरूप हों। जहाूँ भी तुम दोष रप्तित कमों को रकए जाते हु ए दे खो, केवल उन्िीं का अनुसरण कर्रो, अन्य कमों

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का निीं। िम जो तुम्िारे गुरु िैं , जब तुमने दे खा है हमें अच्छे कमग कर्रते हु ए तो केवल उन्िीं कमों का अनुसरण कर्रो (चान्द््स ऑफ इंरडया) बृिद अरण्यक उपप्तनषद, प्रथम अध्याय, तृतीय ब्रह्मणा, 28वा मांत्र हे ईश्वर्र! कृ पया मुझे िे चिो नश्वर से अनश्वर की ओर। िे चिो अज्ञान से ज्ञान की ओर। िे चिो मुझे आवार्मन की प्ररक्रया से मुि कर्र मोक्ष की ओर। शांरत हो, शांरत एवं सम्पूणग शांरत (चान्द््स ऑफ इंरडया) मनु स्मृप्तत 7-90 जब र्राजा अपने शतु से युद्ध भूरम पर्र िड़े तो वह रकसी ऐसे अस्र का प्रयोग न कर्रे जो छु पा िु आ हो, काँ टीले तारों से बुना हु आ हो, प्तवष बुझा हो, अिवा रजसके फलक से आग लपलपा र्रही हो 7-91 र्राजा उस पर वार न करे जो युद्ध भूरम छोड़ कर भाग रिा हो अिवा डर्र के मार्रे पेड़ पर्र चढ़ र्या हो। र्राजा उस पर वार न करे जो नपुांसक हो, या रजसने प्तवनय पूवपक दोनों हाि जोड़ रिए हों, अिवा जो युद्ध भूप्तम से पलायन कर्र र्रहा हो, या रजसने घुटने टे क प्तदए हों और्र कहता हो रक मैं तुम्िारी शरण में हू ूँ 7-92 न उस पर्र जो सो रिा हो, या रजसके कवि खो गए हों, अिवा जो निावस्था में हो, या रफर्र रजसने िप्तथयार डाल प्तदए हों, न उस पर्र जो युद्ध में भार् न िेता हु आ केवि एक दशपक मात्र हो, न उस पर्र जो एक दूसरे शतु से युद्ध कर रिा हो 7-93 न उस पर्र रजसके अस्त्र टू ट िुके हों, न उस पर्र जो शोक में डू बा िु आ हो, न उस पर्र जो भीषण रूप से घायल हो, न उस पर्र जो आतांप्तकत िो, न उस पर्र जो युद्ध क्षे त्र से भाग रिा हो। र्राजा के ध्यान में र्रहे एक गौरवपूणप योद्धा की आिरण-सांप्तिता (ISBN 8190040049) 18

लेखक के बारे में मैं न तो रकसी संर्ठन का सदस्य हू ,ूँ न रकसी र्राज नैरतक दि का, न रकसी धार्वमक पंि का। मैं रकसी संस्िा के बंधनों में अपने को जकड़ा हु आ पाना नहीं चाहता हू ।ूँ न ही मुझमें कोई अरभिाषा है र्राजनीरत के दिदि में फूँ सने की। मेर्रे िेखन में यरद कोई तुरि पाएूँ तो समझें रक वह जान बूझकर्र नहीं हु आ और्र उसे ठीक कर्रने के रिए आप मुझे सदा तैयार्र पाएूँर्े। चहदी मेर्री मातृभाषा नहीं है अतएव आशा है रक आप मेर्री भाषा संबंधी भूिों को क्षमा कर्रेंर्े। मैं चहदू पैदा हु आ, मैं चहदू हू ूँ और्र चहदू ही र्रहू र् ूँ ा। मेर्रे इिदे व श्री रसरद्ध रवनायक र्णपरत को मैंने प्रत्येक स्िान पर्र पाया चाहे वह मंरदर्र हो, या मण्स्जद, या रर्र्रजा। अपने पारकस्तानी ड्राइवर्र मरिक के साि मैं शार्रजाह के मण्स्जद में र्या और्र उसके बर्ि में बैठ कर्र अपने इिदे व को याद रकया, जबरक उसने अपनी नमाज़ पढ़ी। तंज़ारनयन-ओमानी हमूद हमदून रबन मुहम्मद के घर्र पर्र, उनके परर्रवार्र के साि, एक ही बहु त बड़ी िािी में से , हम सभी ने एक साि भोजन रकया, उनके एक कर्रीबी रर्रश्तेदार्र की मौत के बाद, मण्स्जद से िौि कर्र। मुम्बई में एक कैिोरिक चचग के मास के दौर्रान मैं रर्र्रजे में मौजूद िा। कैनेडा के एक प्रोिे स्िें ि चचग में सरमन के समय मैं उपण्स्ित र्रहा। मुम्बई में यहू रदयों के रसनर्ॉर् एवं पार्ररसयों के िे म्पि में मैं र्या। कैनेडा के एक बौद्धों के मंरदर्र में मैंने मेरडिे शन रकया। एक चहदू, यह नहीं सोचता, रक मेर्रा ईश्वर्र ही अकेिा सच्चा ईश्वर्र है , और्र बाक़ी सभी के ईश्वर्र, झूठे ईश्वर्र हैं , जैसा रक यहू दी सोचते हैं , ईसाई सोचते हैं , मुसिमान सोचते हैं रजसका मुझे तब ज्ञान न िा। मोहनदास कर्रमचन्द्द (महात्मा ?) र्ांधी तिा उनकी दे खा दे खी अनेक रहन्द्द ू धमगर्रु ु ओं ने 19

जो कहा उसे मैं सत्य समझता र्रहा। चाहे कहीं भी मैं र्रहा, चहदू भार्रतवषग या मुण्स्िम रमर्डि-ईस्ि या मुण्स्िम फ़ार्र-ईस्ि या ईसाई वेस्ि, मैंने सभी धमों को एक जैसा जाना, और्र माना। मैंने जाने रकतने िोर्ों को नौकर्री के रिए चुना पर्र कभी यह न सोचा रक वह चहदू िा, या मुसिमान, या ईसाई। उन रदनों मेर्री सोच, धमों की सिन्नता की ओर्र न जाती, क्योंरक मैं इस संदभग में अनजान िा। मैं जानता नहीं िा रक रवरभि धमग वास्तव में क्या सिखाते हैं । मैं एक ऐसी काल्परनक दुरनया में जीया, रजसमें ििी धमम िमान हु आ कर्रते िे ! अभी भी मैंने उस कड़वी सच्चाई को न जाना िा, क्योंरक मैंने इस बात की आवश्यकता कभी न महसूस की िी, रक मुझे स्वयं रवरभि धमों का अध्ययन कर्रना चारहए। मैं बड़ा सुखी िा, उन ज्ञाननयों पर पूणगतया रवश्वास कर्र, रजन्द्होने मुझे उस महान अित्य का पाठ पढ़ाया, रक सभी धमग समान हैं , एवं सभी धमग प्रेम और शाांनत की सशक्षा दे ते हैं । उन्द्होंने ऐसा क्यों रकया? क्या वे स्वयं अज्ञानी िे , और्र उिी अज्ञान को, अपने अनुयारययों में बााँटते रहे िे? या रफर्र सत्य की प्रतीरत िी उन्द्हें, पर्र ककिी ननदहत स्वार्म की पूर्वत हे तु, वे अित्य को ित्य का ूप दे ते र्रहे िे ? जीवन के पचास वषग बीत चुके िे , और्र तब जाकर्र मैं बैठा, रवरभि धमों की रशक्षाओं का अध्ययन कर्रने। मैंने पाया रक, ये रशक्षाएूँ बहुत ही स्पष्ट ूप िे झिकती हैं उन धमों के अनुयारययों की सोच, एवं आचर्रण में। र्हर्राई में र्या, तो मैंने जाना रकस प्रकार्र से , प्रत्येक धमग ने , मानव इरतहास, एवं वतगमान की घिनाओं को रूप रदया। मैंने दे खा रक धमग, इरतहास एवं वतगमान की घिनाओं के बीच एक र्हर्रा, और्र सीधा संबंध है । संदेश बहु त ही स्पि िा, हम इन जानकारर्रयों को नज़र्र अंदाज तो कर्र सकते हैं , पर्र 20

अपनी ही क्षरत कर्रके। अब मैं बाूँिना चाहता हू ,ूँ अपनी इन नई जानकारर्रयों को, केवल उनके िार्, रजन्द्हें पर्रवाह हो इनकी। मैं एक ऐसे परर्रवार्र में जन्द्मा िा, रजसमें अध्यात्म, एवं उच्च रशक्षा का प्रचिन, अनेक पीरढ़यों से र्रहा िा। मेर्रे रपता स्वणगपदक प्राप्त इंजीरनयर्र िे। रपतामह डॉक्िर्र िे। प्ररपतामह रशक्षारवद् एवं िेखक िे। प्ररपतामह के रपता, व्यवसाय त्यार् कर्र, अपने अंरतम जीवनकाि में, संसार्र में र्रह कर्र भी, एक योर्ी बन र्ए िे। सभी के अंश मुझे रमिे। मातृपक्ष के रपतामह एक जाने माने शल्यरचरकत्सक िे। पर्रंपर्रा के अनुसार्र, मेर्रा जन्द्म, मातृपक्ष के रपतामह के घर्र, बा ूँकुड़ा (परश्चम बंर्ाि) में 25 जनवर्री 1952 को हु आ िा। इस प्रकार्र मैं एक दहांि ू बांगाली पररवार में जन्द्मा, पिा और्र बड़ा हु आ। एक समय िा जब मैं श्री र्राम कृ ष्ट्ण पर्रम हं स दे व का अनन्द्य भि भी र्रहा िा। रवश्वरवद्यािय की पदवी, एवं भार्रतवषग तिा रवदे श से , तीन व्यवसारयक योग्यताओं को प्राप्त कर्र, मुझे कई दे शों के रनर्रमत क्षेर में, उच्च स्तर्र पर्र, व्यापक प्रशासरनक कायगभार्र सूँभािने का, अवसर्र भी रमिा। इस बीच मुझे, बीस रवरभि दे शों के नार्रर्रकों के साि, रनकि संपकग में कायग कर्रने का, एवं उन्द्हें जानने का भी, समुरचत अवसर्र रमिा। पचीस वषों तक, अिक परर्रश्रम कर्रने के पश्चात, अब मैंने कायग रनवृत्त होकर्र, एकांत वास का आश्रय रिया है । मेर्रे आर्राध्य, श्री नार्रायण की दया से, मेर्रे जीवन की महत्वाकांक्षाएूँ एवं सांसारर्रक आकांक्षाएूँ पूणग हो चुकी हैं । अब मैं , अपने समय, एवं परर्रश्रम, के बदिे में, कुछ िी नहीां चाहता। इस कार्रण, मैं कायग में पूणग मनोयोर् के साि, एकाांत ही चाहता हू ।ूँ मेर्रा कायग, केवि उन्द्हीं िोर्ों के रिए है , जो इसकी महत्ता को पहचानते हैं । मुझमें अब कोई इच्छा नहीां रही, रक मैं उन 21

व्यरियों को समझाने में, अपना समय, एवं अपनी ऊजा नि करूूँ, जो मेर्री बात को समझने की ण्स्िरत तक, अभी नहीं पहु च ूँ े । ऐसे व्यरि, इन िेखों की महत्ता को तभी समझेंर्े जब पानी िर तक आ पहु च ूँ े र्ा, एवं डू बने की संभावना उन्द्हें बहु त ही रनकि से रदखने िर्ेर्ी। रफर्र भी मुझे अपना दारयत्व, पूणग समपगण की भावना के साि, रनभाते जाना है , एवं उि कमम के पररणाम को, श्री नार्रायण को समर्वपत कर्रते हु ए, आर्े बढ़ते जाना है । आज यही मेर्री पूजा है ।

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पप्तरप्तशष्ट 2012 सांस्करण कोलकाता उच्चन्यायालय में प्रस्तुत की गई प्तरट याप्तिका 227 ऑफ 1985 कुर्रआन से करतपय आयतों को संकरित कर्र कोिकाता के हिम ांशु किशोर चक्रोबोर्ती ने प्रांतीय सर्रकार्र को एक पर रिखा (20 जुिाई 1984) यह अनुर्रोध कर्रते हु ए रक कुरआन पर प्रप्ततबन्ध िर्ाया जाये। अपने पर के साि उन्द्होंने तीन परर्ररशि संिि रकए। प्रिम परर्ररशि में कुर्रआन से 37 आयत उधृत रकए र्ए िे जो क्रूरर्त ि उपदे श दे र्ते हैं , हिांस िे लिए उिस र्ते हैं तिा स र्वजनिि श ांनर्त िो भांग कर्रते हैं । रद्वतीय परर्ररशि में कुर्रआन से 17 आयत उधृत रकए र्ए िे जो धमव िे आध र पर शत्रर्त ु िी भ र्ि

िो बढ़ र् दे ते हैं , तिा अन्य धमों िे प्रनर्त घण ृ

र्तथ

र्ैमिस्यर्त िी भ र्ि िो उिस र्ते हैं । तृतीय परर्ररशि में कुर्रआन से 31 आयत उधृत रकए र्ए िे जो अन्य धमों र्तथ उििी ध लमवि आस्थ ि अपम ि कर्रते हैं । 14 अर्स्त 1984 को रहमांश ु रकशोर्र चक्रोबोती ने पुनः एक स्मर्रणपर भेजा उन्द्हीं अनुििकों के साि। उनके आधार्र पर्र च ाँदमि चोपड़ ने उच्च न्द्यायािय में एक रर्रि यारचका दायर्र की। मुसिमानों ने इसके रवर्रोध में सवगर चहसात्मक प्रदशगन रकए रजससे केन्द्रीय सर्रकार्र ने घबड़ा कर्र इस मामिे में हस्तक्षेप रकया। केंद्रीय सरकार की तर्रफ़ से महान्द्यायवादी (ऐिॉनी जनर्रि) ने उच्च न्द्यायािय के समक्ष यह दिीि पेश की रक वे सभी आयतें अल्लाि से पैगांबर तक पहु च ूँ ी अतः अल्लाह की मज़ी पर्र प्रप्ततबां ध निीं िर्ाया जा सकता। केन्द्रीय सर्रकार्र के दबाव पर्र रर्रि को खारर्रज कर्र रदया र्या तिा 23

उस पर्र और सुिर् ई िि ां िुई (अपीि स्वीकार्र नहीं की र्ई)। स्रोत ISBN 8185990581 कोिकाता के रहमांश ु रकशोर्र चक्रोबोती की उस पिि िे िोर्ों में एक िई चेर्ति ि सांच र रकया तिा एक बहु त बड़े लमथ्य ि पद वफ़ श रकया रजसका ताना-बाना र्तथ िथथर्त मि त्म र्ांधी के सर्वधमव समभ र् रूपी ढकोसिे के आधार्र पर्र बुना र्या िा। दुभाग्यवश उसी र्ांधी के अिेि अिुचर आज भी उसी रमथ्या के प्रसार्र में तत्पर्र हैं । जब हिन्द ू र ष्ट्र िी स्थ पि होर्ी तब ऐसे रमथ्याचारर्रयों का निष्ट्ि सि आर्श्यि होर्ा। दे श में दां गे क्यों िोते िैं ? संभवतः इसी घिना से प्रेरर्रत होकर्र रदल्ली में स्िान-स्िान पर्र अिेि पोस्टर िर्ाये र्ये रजनमें कुर्रआन से 24 आयतों को उधृत रकया र्या। हिन्द ू रक्ष दि के सरचव तिा अध्यक्ष (जो उन रदनों अरखि भार्रतीय हिन्द ू मि सभ के उपाध्यक्ष भी िे ) को हिर सर्त में िे रिया र्या। भार्रतीय दण्ड संरहता की ध र 153अ र्तथ 295अ के आधार्र पर्र वह रर्रि यारचका दायर्र की र्ई िी रजसमें सर्रकार्र से अनुर्रोध रकया र्या िा रक कुर्रआन पर्र प्ररतबंध िर्ाया जाये पर्र हमार्री केन्द्रीय सर्रकार्र ने मस ु िम िों ि पक्ष रिया िा। और्र अब उन्ि ां दो ध र ओां िे आध र पर इन दोनों हिन्दओ ु ां िो हिर सर्त में रिया र्या तिा उनपर्र पर्र मि ु दम चि य र्या। धमगरनर्रपेक्षता का रकतना सुंदर्र उदाहर्रण ! हम हिन्दब ु िुि र ष्ट्र में तो र्रह र्रहे हैं पर्र मुसिम िों िे रिमो-िरम पर्र।

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प्तदल्ली मेट्रपाप्तलटन मैप्तजस्ट्रेट का फ़ैसला रदल्ली के मेरपारििन मैरजस्रेि ने फ़ैसिा रदया रक उन्िें दोषी िि ां म ि ज सिर्त है क्योंरक कुर्रआन मजीद के आयतों को ध्यानपूवगक पढ़ने से यि स्पष्ट्ट िो ज र्त है रक वे िाप्तनकारक िैं तिा घृणा की प्तशक्षा दे ते हैं रजसके फिस्वरूप एक तर्रफ़ मुसिमान तिा दूसर्री तर्रफ़ अन्द्य संप्रदायों के बीच वैमनस्य पनपता है । ज़ेड एस िोहाि, 31 जुिाई 1986, स्रोत ISBN 8185990581 इस्लाम पर स्वामी प्तववेकानन्द (1862-1902) के वक्तव्य प्तनम्नोक्त

उद्धरणों

के

स्रोत—कम्प्लीट वर्कसस ऑफ़ स्वामी

टववेकानन्द, वॉल्यूम 1-8 (पुनरुधृत एटमनेन्ट इंटियन्स ऑन इस्लाम, डॉ के वी पािीवाि, नई रदल्ली) सोरचए, उन िाखों-कर्रोड़ों िोर्ों के बार्रे में रजनका कत्लेआम रकया र्या, मुिम्मद की प्तशक्षाओां के कारण, और्र उन माताओां के बार्रे में रजन्द्होंने अपनी संतानों को खोया, उन बच्चों के बार्रे में जो अनाि हो र्ए, दे श के दे श जो उजड़ गए, िाखों-कर्रोड़ों जो मार्रे र्ये (वॉल्यूम 1, पृष्ठ 184) कुर्रआन का एक रसद्धांत है रक जो उसकी प्तशक्षाओां को न माने उसका कत्ि कर्र दे ना उस पर दया करने के समान है । ऐसा कर्रना स्वगप प्राप्ति का प्तनप्तित माध्यम है , जहाूँ सुंदर्र हू रर्रयाूँ सभी प्रकार्र के इल्न्द्रय-तृप्ति के साधन जुिायेंर्ी। सोच कर्र दे खें, प्तकतना खून बिाया गया िोगा ऐसी मान्द्यताओं के कार्रण (वॉल्यूम 2, पृष्ठ 352-53) मुसिमान आये कुर्रआन एक हाि में और्र तिवार्र दूसर्रे – "कुर्रआन स्वीकार्र कर्रो, या मृत्यु वर्रण कर्रो; कोई दूसरा प्तवकल्प निीं 25

तुम्हार्रे पास"। इरतहास आपको बताता है रकतनी असाधार्रण र्रही उनकी सफिता। कोई न र्रोक पाया उन्द्हें छुः सौ वषों तक, रफर्र एक समय आया जब उनकी गप्तत रुद्ध िो गई। यिी िोगा अन्य धमों का यरद वे इन्द्हीं र्राहों को चुनेंर्े (वॉल्यूम 2, पृष्ठ 370) ये अज्ञानी…यह कहने का दुस्साहस कर्रते हैं रक अन्य सभी पूरी तरि से गलत हैं , तिा केवल वे िी सिी हैं । यरद उनका प्तवरोध प्तकया जाये तो वे िड़ने िर्ते हैं । कहते हैं रक िम कत्ल कर डालेंगे हर्र रकसी को जो उन बातों में रवश्वास नहीं कर्रते रजनमें मुसिमान रवश्वास कर्रते हैं (वॉल्यूम 4, पृष्ठ 52) मुसिमान सदा से मूर्तत पूजा के प्तवरोधी र्रहे हैं पर्र दे खा जाये तो वे िजारों सूफ़ी सांतों को पूजते हैं (वॉल्यूम 4, पृष्ठ 121) एक के बाद एक, सैिाब की भाूँरत वे आते र्रहे भार्रत की इस धर्रती पर्र, सब कुछ रौंदते िुए सैंकड़ो वषों तक, तिवार्रें चमकाते हु ए, अल्लाह के फ़तह की र्ूज ूँ आसमान को छू ता हु आ, पर्र अन्द्त में न सैलाब रिा, न िमारे आदशप बदले (वॉल्यूम 4, पृष्ठ 159) इस्िाम का सैिाब रजसने सार्रे रवश्व को रनर्ि डािा, अन्द्ततः उसे भार्रत आकर्र रुकना पड़ा (वॉल्यूम 5, पृष्ठ 528) जब मुसिमान यहाूँ शुरू-शुरू में आये तो बाताते हैं रक िम साठ करोड़ प्तिन्दू थे (मुझे िर्ता है यह उरि िी सबसे पुर्राने मुसिमान इरतहासज्ञ फ़रर्रश्ता की)। अब िम बीस करोड़ रि गए िैं । िर वि शख्श जो प्तिन्दू से मुसलमान बना, वि एक प्तिन्दू कम निीं िु आ, बल्ल्क एक शतु बढ़ा। इस्िाम व ईसाई धमग से रवकृ त रहन्द्दओ ु ं में बहु संख्यक वे हैं जो तिवार्र की नोंक पर्र रवकृ त रकये र्ए तिा उनके वंशज (वॉल्यूम 5, पृष्ठ 233)

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इस्लाम, ईसाई धमप पर रोप्तबन्द्रोनाथ ठाकुर (1861-1941) के वक्तव्य इस धर्रा पर्र दो ऐसे धमग हैं रजनमें अन्द्य सभी धमों के प्ररत स्पष्ट शतुता व्याप्त है । ये हैं इस्लाम तिा ईसाई धमप । ये अपना-अपना धमग पािन कर्रने में कतई सांतष्टु निीं होते, बण्ल्क इन्द्होंने दृढ़ सांकल्प कर रखा है रक वे अन्द्य सभी धमों को नष्ट कर दें गे। परर्रणाम स्वरूप उनके साि शाांप्तत स्थाप्तपत करने का एक ही जरर्रया र्रह जाता है , उनका धमप स्वीकार कर्र (अरर्ररजनि वक्सग ऑफ़ र्ररबन्द्रनाि, वॉल्यूम 24 पृष्ठ 375, रवश्व भार्रती, 1982) एक बिुत िी मित्वपूणप घिक जो प्तिन्दू-मुल्स्लम एकता को वास्तरवक बनाना िर्भर् असांभव कर दे ता है , वह यह रक मुसिमान अपनी रार्ष्ट्रभप्तक्त को कभी भी एक रार्ष्ट्र के दायरे में बाूँध कर्र नहीं र्रख सकता। मैंने बहु त स्पष्ट रूप से मुसिमानों से एक प्रश्न रकया िा – यरद कोई मुसलमान रार्ष्ट्र भारत पर आक्रमण करता िै तो क्या वे अपने रहन्द्द ू पड़ोरसयों के साथ खड़े िोंगे उस धरती को बिाने के प्तलए जो रहन्द्दओ ु ं का भी है और्र उनका भी। मुझे जो उत्तर्र उनसे रमिे , मैं उनसे संतिु न हो पाया। यहाूँ तक रक मुहम्मद अिी ने घोषणा की है रक प्तकसी भी ल्स्थप्तत में एक मुसलमान को यि अप्तधकार निीं—चाहे जो भी उसका र्राष्ट्र हो—रक वह अन्य मुसलमान के प्तवरुद्ध खड़ा िो (टाइम्प्स ऑफ़ इन्न्िया में रटिन्रना का इण्टरव्यू 18-4-1924 कॉिम ू इंटियन आइज़ ऑन द पोस्ट टिलाफ़त टिन्दू-मुन्स्लम रायट्स पुनरुधृत एटमनेन्ट इंटियन्स ऑन इस्लाम) इस्लाम पर श्रीमती एनी बे सेंट (1847-1933) के वक्तव्य महान मानवतावादी नेरी तिा भार्रतीय र्राष्ट्रीय कॉन्द्ग्रेस की भूतपूवग अध्यक्षा का किन – प्तखलाफ़त के बाद बहु त कुछ बदि र्या। भार्रत के 27

ऊपर्र अनेकों अत्याचार्रों में से एक िा यह। रखिाफ़त के रज़हाद को बढ़ावा दे ने से मुसलमानों में प्तिन्दुओां के प्रप्तत दबी िु ई घृणा अपने नि तथा प्तनलपज्ज रूप में बािर आ गयी ठीक वैसे ही जैसे पुराने प्तदनों में हु आ कर्रती िी। वास्तप्तवकता की राजनीप्तत में हमने एक बार्र रफर्र दे खा मुसिमानों के तलवार का मज़िब; सरदयों की भुिाई हु ई सच्चाई को धीर्रे-धीर्रे बाहर्र आते दे खा; वही पुर्रानी अलगाववाद, जरज़रुत-अर्रब का दावा—अर्रब द्वीप के रूप में—जहाूँ एक गैर-मुसलमान के गांदे पााँव न पड़ें ; हमने सुना मुण्स्िम नेताओं द्वार्रा घोषणा रक यरद अफ़गान के मुसिमान भारत पर िमला करें तो भारत के मुसलमान अपने हम-मज़हब का साि दें र्े और्र उन प्तिन्दुओां का कत्ल करें गे जो अपनी मातृभप्तू म की रक्षा हे तु अपने शतु से िड़ें र्े। हमें यह दे खने पर्र बाध्य होना पड़ा रक मुसलमानों की पिली प्तनष्ठा मुल्स्लम रार्ष्ट्रों के प्रप्तत, अपनी मातृभप्तू म के प्रप्तत निीं; हमने यह जाना रक उनकी सबसे गिरी आशा िै अल्लाि के वतन की स्थापना, उस ईश्वर्र के जर्त की नहीं जो संसार्र का रपता हो, जो समस्त जीवों से प्रेम कर्रता हो, बण्ल्क एक ऐसे अल्लाह की रजसे मुसिमान दे खते हैं एक ऐसे व्यरि की नज़र्रों से जो उन्द्हें अल्लाह का ऐसा पैर्ंबर्र प्रतीत होता है रजसे अल्लाह ने अपनी कमान सौंप र्रखी हो। मुसिमान नेतत्ृ व का अब यह दावा है रक मुसलमान केवल अपने उस पैगांबर का कानून मानेंगे जो उस रार्ष्ट्र के कानून से ऊपर िै प्तजसमें वे रिते िैं । यह र्राष्ट्र के नागप्तरकों में शाांप्तत तिा सुव्यवस्िा एवं रार्ष्ट्र के स्थाप्तयत्व के रिए घातक है । यह उन्द्हें बुरा नागप्तरक बनाता है क्योंरक उनकी राजभप्तक्त बािरी रार्ष्ट्र के प्ररत है …मिबार्र ने हमें रसखाया रक मुल्स्लम राज का आज भी क्या अथप िै और्र हम भार्रत में एक और्र रखिाफ़त र्राज नहीं दे खना चाहते। जो मुण्स्िम मलबार (केरल) से बािर रिते िैं , उनमें मोपिाओं (मिबार्र के मुसिमानों) के प्ररत रकतनी सहानुभरू त र्रही है इसका 28

प्रमाण िमें प्तमला जब उन्द्होंने अपने मजहबी भाइयों के बचाव की व्यवस्िायें कीं। प्तमस्टर गाांधी ने स्वयं कहा रक उन्द्होंने वैसा ही रकया जैसा उनके रवश्वास के अनुसार्र उनके मज़हब ने उन्द्हें कर्रना रसखाया। मुझे भय है रक यह सत्य है , पर्र एक सभ्य दे श में ऐसे िोर्ों के रिए कोई स्थान निीं जो यह मानते हैं रक उनका मज़िब उन्िें कत्ल, लूट, बलात्कार, जिाना अिवा उन िोर्ों को अपनी धर्रती से बेदखि कर्रना जो अपने पूवपजों का धमप त्यागने को तैय्यार्र न हों। ये ठर् मानते हैं रक उनके इस अल्लाि ने उन्िें यि आदे श प्तदया है रक वे गला घोंट दें रवशेषकर्र उन याप्तत्रयों का जो धन के साथ यारा कर्र र्रहे हों। ऐसे अल्लाह के कानूनों को इस बात की इजाजत निीं िोनी िाप्तिए रक वे एक सभ्य दे श के कानूनों का उल्लंघन कर्रें। बीसवीं सदी के िोर्ों को चारहए रक वे या तो ऐसे व्यरियों को रशरक्षत कर्रें जो इस प्रकार्र की मध्ययुर्ीय सोच को प्रश्रय दे ते हैं अिवा उन्िें दे श प्तनकाला दे दें । भार्रत की स्वतांत्रता के सांबांध में सोिते समय मुसिमान र्राज की हारनकारर्रता को ध्यान में रखना होर्ा (द फ़्यूचर ऑफ़ इन्ण्ियन पॉटलटटर्कस, पृष्ठ 301-305, पुनरुधृत पाटकस्तान ऑर पाटीशन ऑफ़ इन्ण्िया, अंबेडकर्र, 1945, पृ 275276, पुनरुधृत एटमनेन्ट इंटियन्स ऑन इस्लाम) इस्लाम पर शरत िन्द्र िट्टोपाध्याय (1876-1938) के वक्तव्य यरद मुसिमान कहें रक हम रहन्द्दओ ु ं के साि एकता चाहते हैं तो यह धोखे के प्तसवा कुछ निीं। कोई कहता है रक मुसिमान भार्रत आये केवि िूिने के रिए, अपना र्राज स्िारपत कर्रने के रिए नहीं। पर्र वे केवि िूि से ही संतिु नहीं िे , उन्द्होंने रहन्द्द ू मांप्तदरों को ढिा रदया, भर्वान की मूर्ततयों को तोड़ा, रहन्द्द ू ल्स्त्रयों का बलात्कार रकया। सत्य तो यह है रक वे अन्यों के धमप एवं मानवता का प्तनरादर करने तिा सवाप्तधक क्षप्तत पहु च ूँ ाने से कभी 29

नहीं चूके। जब मुसिमान हमार्री धर्रती के शासक बन र्ये तब भी वे अपनी इस घृप्तणत मानप्तसकता से बािर निीं प्तनकल सके। तथाकप्तथत उदार र्राजा अकबर ने भी रहन्द्दओ ु ं को बलात्कार एवां यां त्रणा से नहीं बख्शा। यह स्पि है रक बिात्कार्र एवं यंरणा की तहज़ीब उनके जन्मजात स्वभाव का अांग बन चुकी है । जब मुसिमान अपने मज़हब की ऊूँची उड़ान से नीचे रर्र्रेंर्े तब शायद उन्द्हें अहसास हो रक यह सब ऐसा जांगलीपन था प्तजसकी तुलना निीं हो सकती। पर्रंतु मुसिमानों को अभी भी बहु त लांबा रास्ता तय करना है इसके पहिे रक उन्द्हें इस बात की समझ आये। उनकी आाँखें कभी निीं खुलेंगी यरद सारा सांसार एकजुट िोकर उन्द्हें सही सबक न रसखाये (वतसमान टिन्दू-मुन्स्लम समस्या, शर्रत चन्द्र चट्टोपाध्याय, संपारदत रदपंकर्र चट्टोपाध्याय, प्रकाशक पान्द्चजन्द्य प्रकाशनी, 10 के-एस र्रे मार्ग, कोिकाता, पुनरुधृत एटमनेन्ट इंटियन्स ऑन इस्लाम) इस्लाम पर सर जोदुनाथ सॉरकार (1870-1958) का कथन प्तवश्वप्रप्तसद्ध इप्ततिासज्ञ ने रिखा — क़ुर्रान के कानून के अनुसार्र एक मुसिमान र्राजा तिा उसके पड़ोसी र्ैर्र-मुसिमान र्राजा के बीच कभी शाांप्तत सांभव निीं। र्ैर्र-मुसिमान र्राज्य दार-उल-िबप है एवं उससे युद्ध छे ड़ना जायज है । मुसिमान र्राजा का यह कतगव्य है रक वह उन्द्हें (र्ैर्रमुसिमान को) लूटे एवां उनका कत्ल कर्रे तब तक जब तक वे सच्चे धमप (इस्लाम) को स्वीकार न कर्र िें और्र वह र्राज्य दार-उल-इस्लाम (केवल इस्लाम की धरती) न बन जाये, रजसके बाद वे उसके (मुसिमान र्राजा के) संर्रक्षण के अरधकार्री बनेंर्े (टशवाजी ऐण्ि टिज़ टाइम्प्स, पृष्ठ 479-480, प्रकाशक ओरर्रएन्द्ि िॉन्द्र्मैन, पुनरुद्ध ृत एटमनेन्ट इंटियन्स ऑन…)

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इस्लाम पर योगी ऑरोप्तबन्दो घोष (1872-1950) के वक्तव्य आप मैरीपूणग ढं र् से जी सकते हैं उन िोर्ों के साि रजनका धमग सरहष्ट्णत ु ा / उदार्रता के रसद्धांत पर्र बना हो, पर उन लोगों के साथ आप कैसे जीयें गे रजनका रसद्धांत है "िम आपको निीं सिें गे"? यह रनरश्चत है रक रहन्द्द-ू मुण्स्िम एकता का आधार्र यह नहीं हो सकता रक मुसिमान तो रहन्द्दओ ु ं का धमगपरर्रवतगन कर्रते जायें पर्र रहन्द्दओ ु ं को यह अरधकार्र न हो रक वह रकसी मुसिमान को रहन्द्द ू बनाये (संध्या-वाता श्री ऑर्रोरबन्द्दो के साि, 23-7-1923 को र्रेकॉडग की र्ई ए-बी पुर्रनानी द्वार्रा, प्रकारशत श्री ऑर्रोरबन्द्दो आश्रम रस्ि, 1995, पृष्ठ 291, पुनरुद्ध ृत एरमनेन्द्ि इंरडयन्द्स ऑन इस्िाम, पृष्ठ 40) 18-4-1823 एक रशष्ट्य द्वार्रा प्रश्न पूछे जाने पर्र श्री ऑर्रोरबन्द्दो ने उत्तर्र रदया "मुझे खेद है रक (पण्ण्डत मदनमोहन मािवीय तिा चक्रवती र्राजार्ोपािाचार्री) रहन्द्द-ू मुण्स्िम एकता के रवषय में अंधभरि रदखा र्रहे हैं । सच्चाई से मुिाँ मोड़ने से कुछ होर्ा नहीं। एक रदन ऐसा आयेर्ा जब रहन्द्दओ ु ं को मुसिमानों के साि युद्ध करना िी पड़े गा और्र उन्द्हें इसके रिए तैयारी करनी िाप्तिए। रहन्द्द-ू मुण्स्िम एकता का अथप यि निीं िोना िाप्तिए रक रहन्द्द ू पर्राधीनता स्वीकार्र कर्र िे। प्रत्येक बार्र रहन्द्द ू की उदार्रता ने मुसिमानों की ही चिने दी। सबसे अरधक उरचत होर्ा रक रहन्द्दओ ु ं को अपने-आपको सांगप्तठत करने का अवसर रदया जाये और्र रहन्द्द-ू मुण्स्िम एकता का प्रश्न अपने-आप सुिझ जायेर्ा। अन्द्यिा िमें सुला प्तदया जाये गा इस गलत सांतोष के आधार पर रक हमने एक करठन समस्या का समाधान कर्र रिया, जबरक वास्तव में हमने उसे केवि कल के प्तलए ताक पर रख प्तदया (पूवोि संदभग, पृष्ठ 289) 31

29-6-1926 एक रशष्ट्य ने पूछा "यरद भार्रत की यही रनयरत है रक हम सभी पर्रस्पर्र-रवर्रोधी तत्वों को आत्मसात कर्र िें , तो क्या हम मुण्स्िम तत्व को भी आत्मसात कर्र पायेंर्े?" श्री ऑर्रोरबन्द्दो ने उत्तर्र रदया "क्यों नहीं? भार्रत ने यूनारनयों, ईर्रारनयों तिा अन्द्य र्राष्ट्रों के तत्वों को अपने -आपमें आत्मसात कर्र रिया। पर्रंतु यह तभी होता है जब अन्द्य पक्ष हमार्रे केन्द्रीय सत्य को मान्द्यता दे और्र वह भी ऐसे रक वे तत्व अपनी प्तवदे शी पििान खोकर िमारे साथ एक िो जायें । मुण्स्िम संस्कृ रत का आत्मीयकर्रण इसी आधार्र पर्र आर्रंभ हु आ तिा संभवतः यह प्ररक्रया और्र भी आर्े जाती। पर्र इस प्ररक्रया को संपण ू ग कर्रने हे तु यह आवश्यक िा रक मुल्स्लम मानप्तसकता में भी कुछ पप्तरवतपन आते। रवर्रोध बाह्य जीवन में है , एवं जब तक मुसिमान सरहष्ट्णत ु ा नहीं सीख िेता तब तक, मैं नहीं सोचता रक आत्मीयकरण सांभव िोगा। रहन्द्द ू तत्पर्र है सरहष्ट्णत ु ा के रिए। वह नई सोच का स्वार्त कर्रता है । उसकी संस्कृ रत में यि अद्भुत योग्यता िै बशते उसके केन्द्रीय सत्य को स्वीकार्रा जाये (पूवोि, पृष्ठ 282) 30-12-1939 रहन्द्द-ू मुण्स्िम संबंधों पर्र श्री ऑर्रोरबन्द्दो ने कहा "मैंने रचत्तर्रंजन दास को (1923 में) कहा िा रक अांग्रेज़ों के जाने से पिले इस रहन्द्द-ू मुण्स्िम समस्या का हि रनकािना होर्ा अन्द्यिा गृियुद्ध के र्ंभीर्र संकि की सांभावना है । वह भी इस बात से सहमत हु ए तिा इसका समाधान चाहते िे (पूवोि संदभग, पृष्ठ 696, पुनरुद्ध ृत एटमनेन्ट इंटियन्स ऑन इस्लाम, पृष्ठ 42-43)

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मुगलस्तान—एक िेतावनी मुण्स्िम-बहु ि पारकस्तान तिा बांग्लादे श की खुरफ़या एजेण्न्द्सयों (आई-एस-आई एवं डी-जीएफ़-आई) द्वार्रा भारत के एक बड़े प्तिस्से को काटकर मुर्िस्तान बनाने की परर्रयोजना, रजसकी आधार्ररशिा "ऑपर्रेशन रजब्राल्िर्र (1965)" की असफ़िता के पश्चात, भूतपूवग पारकस्तानी र्राष्ट्रपरत रज़या-उि-हक द्वार्रा "ऑपर्रेशन िू पैक (1988)" के अंतर्गत र्रखी र्ई। इसके उद्दे श्य िे (अ) भारत को टु कड़ों में बााँटना

(ब)

खुरफ़या

नेिवकग की सहायता से भार्रत में तोड़-फोड़ कर्रना (स) नेपाि तिा बांग्लादे श की असुरप्तक्षत सीमाओां का िाभ उठाकर्र सैन्द्य संचािन केन्द्रों का रनमाण कर्र सामरर्रक र्रतरवरधयों को रदशा दे ना तिा इन सभी दुष्ट्कृत्यों में भार्रत में बसे एवं घुसपैठी मुसिमानों की सिायता लेना। जब मुसिमान भार्रत आये तो उनका एक ही सपना िा—इस धर्रती को इस्लाम का वतन बनाना। उनकी वह कोरशश आज भी जार्री है रजसमें सिभागी बनेंगे इस धर्रती का नमक खाने वािे मुसिमान जैसा रक रखिाफ़त मूवमेन्द्ि के सर्रर्ना कुख्यात अली ब्रदसप ने कहा िा रक प्तकसी भी ल्स्थप्तत में एक मुसलमान को यि अप्तधकार निीं—चाहे जो

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भी उसका रार्ष्ट्र हो—रक वह अन्य मुसलमान के प्तवरुद्ध खड़ा िो (िाइम्स ऑफ़ इण्न्द्डया 18-4-1924) भार्रत में मुण्स्िम जनसंख्या1 का बढ़ता िु आ सैलाब िे डू बेर्ा रहन्द्द ू जनसंख्या के भार्रत में घटते िु ए अनुपात को।

1

यिोरचत रववर्रण रकसी आर्ामी खण्ड में कार्रण इस रवषय पर्र अपने -आपमें एक छोिी-सी

पुण्स्तका रिखी जा सकती है ।

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