सफा 113 मंगल बद - मंगलीक ( हरण , उं ठ, चीता) 1. शिन तरफ चार ह चलता , घर चौथा च 2. उ
का मािलक 3 - 8 , च
3.
(2) का है ।
मारता बद मंगलीक को है ।
मंगल बद - मंगलीक का उपाए
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जब यह ज़ा हर
4. हो जावे क बद या बद तु म का असर आ रहा है तो फौरां 5. च
का उपाए करना चा हऐ । यािन बड के दर त को दघ ु
6. डाल कर िगली होई हुई िम ट का ितलक लगाना मंगल बद 7. (पेट क खराबीयां) को दरु करे गा । अगर वह आग 8. से जला कर तबाह ह कर जावे - तो उस के बुरे 9. असर के ज़ म को दरु करने के िलये खा ड (फोडे 10. के मुंह म दे सी खा ड) क बोर य का बोझ छत 11. पर कायम कर । मगर अब छत पर त दरू न रहे । अगर 12. लाव द या औलाद क ह या करता जावे तो शहद से 13. िम ट का बतन भर कर बाहार मैदान मे दबाया जवे । अगर मौत ---------------------------------------------14. (2) 15.
चार युग (सतयुग ,
े ता ,
ापर, कलयुग)
तम ह गे ।
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सफा 114 मंगल बद - मंगलीक का उपाए 1. तो न दे वे - मगर बसने भी न दे - तो मृगशाला 2. से इस क ज़हर हटाव । अगर फर भी बाज़ न आवे तो ु 3. चांद के चौकोर टकडे क म
लेव । या जनूबी दरवाज़ा म
4. ह लोहे से उसे क ल दे व । और मंगल बद क 5. मुत
का आ यां - काला - काना - लाव द वगैराह ढे क का दर त
6. से दरु पकड । या बंदर (सुरज) को आबाद कर । 7. बहरहाल इस लाअनत से बे बर न होव । खानदानी 8. उपाए म िचडे - िच डय को िमठा दे व । वरना बद का 9. न फा बद तु म फर काबू न होगा ।
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