या तकलीद लािजम है ? संकलन क़ाज़ी अदनान अहमद
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या तकलीद लािजम है ? ये बड़ा नाजुक मामला है िक इलाम मे शु के 400 साल तक तकलीद का नामो िनशान नह था िफर अचानक 4 मज़हबो क" बुिनयाद पड़ गई और लोगो ने कहना शु िकया िक चारो मज़हबो मे से 1 मज़हब क" पैरवी फज) है । और मआज़ अ,लाह लोग फज) का ल-ज़ इतेमाल करने पर नही डरे और ना ये सोचा िक फज) तो िकसी चीज़ को अ,लाह करता है और अगर तकलीद को फज) मान िलया जाये तो नाऊज़ुिब,लाह अ0वल के मुसलमान जो साहबा रिज0 ताबईन रह0 ताबेअ ताबईन रह0 ताबेअ ताबेअ ताबईन रह0 से एक फज) छु ट गया । इस मामले पर गौर व िफ5 क" ज़रत है तो ये 6रसाला इसिलये िलखा जा रहा है िक जो लोग तहक़"क़ के क़ायल है वो इससे फायदा हािसल करे और अ,लाह के नािज़ल िकये ह9ये इलाम पर उसके रसूल हज़रत मुह<मद स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के तरीके पर चले और कामयाबी हािसल करे इ>शाअ,लाह ।
तकलीद तकलीद के मायने (1) लुगत से गद)न-बंद (गले का पCा) गले मे डालना और िकसी िक िज<मेदारी पर काम करना और अपनी गरदन पर कोई काम ले लेना और माअनी मज़ाज़ी ये है िक िकसी क" ताबेदारी बगैर हक"कत मालूम िकये करना । गले का पCा (अज़ Dयास अल लुगत सफा 103) (2) शरा शराहह से तकलीद ये है िक िजस क" बाबत मु,ला अली कारी हनफ" रह0 अपनी िकताब शरह किसदा अमाली मतबुआ युसुफ" देहली सफा 34 मे िलखते है िक :तकलीद कु बूल करना कौल गैर का बगैर सबूत के , पस गोया िक इस मुIकिलद ने बोझा कबुल कर लेना अपने इमाम के कौल को अपने गले का हार बना लेना । मगतनम अल हसूल मे फाि़जल कं धारी हनफ" फरमाते है िक :तकलीद उस शMस के कौल पर िबला दलील अमल करना है िजस का कौल शरई ह9Nजतो मे से न हो सो जु करना आहंज़रत स,ला,लाह= अलैिह वस,लम और इNमाअ क" तरह तकलीद नह (मयाल हक मतबुआ रहमानी सफा 37)
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िकसी िकसी के कौल को उस क" दलील के जाने बगैर कु बूल करना तकलीद है । तकलीद कब से शु ह9ई
शाह वलीउ,लाह साहब ह9Nजतुल बलाग मतबुआ िसPीक" बरेली सफा 157 मे फरमाते हे िक :यािन मालूम होना चािहये िक चौथी सदी से पहले लोग िकसी खािलस एक मजहब पर मुRािफक न थे । अ,लामा अल मौकाईन मतबुआ अशरफ अल मताबअ देहली िज,द अ0वल सफा 222 मे है :ये तकलीद क" िबदअत चौथी सदी मे जारी ह9ई है ये वह ज़माना है िक िजस क" मज<मत रसुल अ,लाह स,ला,लाह= अलैिह वस,लम से सािबत हो चुक" है । अ,लामा लामा सनद िबन अ>नान नान मािलक" तहरीर फरमाते फरमाते है िक :और ये तकलीद एक िबदअत है जो (बाद के ज़माने मे) पैदा क" गई इसिलये िक हम यक"नन जानते है िक सहाबा रिज0 के ज़माने मे िकसी खास शMस के नाम का मज़हब न था िजसको पढ़ा पढ़ाया जाता हो और इस िक तकलीद क" जाती हो बि,क वो लोग वाकई मे कु रआन व हदीस क" तरफ जू करते थे और कु रआन व हदीस के न िमलने क" सुरत मे िजस तरफ उन क" बसीरत पह9ंचती इसी तरह ताबईन रह0 करते रहे । यानी कु रआन व हदीस क" तरफ जू करते अगर कु रआन व हदीस से न िमलता तो इNमाअ सहाबा क" तरफ नज़र करते, अगर इNमाअ भी न िमलता तो खुद इNतेहाद करते । और बाज़ सहाबी के कौल को कवी समझ कर इMतेयार कर लेते िफर ताबेअ ताबईन का ज़माना आया इस ज़माने मे इमाम अबू हनीफा रह0, इमाम मिलक रह0 और इमाम शाफई रह0 और इमाम अहमद िबन हंबल रह0 ह9ए Iयोिक इमाम मिलक रह0 ने 179 िह0 मे वफात पाई और इमाम अबू हनीफा रह0 ने 150 िह0 मे वफात पाई और इसी साल मे इमाम शाफई रह0 पैदा ह9ए और इमाम अहमद िबन हंबल 164 िह0 मे पैदा ह9ए ये चारो भी पहलो के तरीके पर थे इस के ज़माने मे भी िकसी खास शMस का मज़हब मुकर)र न था । िजस का आपस मे दस) देते हो । और इ>ही क" तरह अमल के करीब करीब उन के इतबाअ का भी यही तजW अमल था । बह9त से इमाम मािलक रह0 ओर उन के हम प,ला इमामा के कौल मे िजस मे इ>ही के शािग)दो ने इMतेलॉफ िकया । अगर हम इन को नकल करे तो इस िकताब का जो मकसद है वो रह जायेगा । इन शािग)दो ने इस आजादी के साथ इMतेलाफ इसी वाते िकया िक वो इन के मुIकिलद न थे । बि,क अलात इNतेहाद के जामेए थे और बहरहाल ताबेअ
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ताबईन के ज़माने मे तकलीद पैदा न ह9ई थी । और अ,लाह ने अपने नबी स,ला,लाह= अलैिह वस,लम को इन के इस कौल मे सZचा कर िदया िदया िक बेहतर ज़मानो मे अहले ज़माना मेरे है िफर वो जो इन के बाद वाले है िफर जो इन के बाद वाले है, अपने ज़माने के बाद दो ज़मानो का िज5 िकया ये हदीस सहीह बुखारी मे है । पस अहले तकलीद से ताNजुब है िक वो कै से कहते है िक ये (तकलीद वाला मज़हब) कदीम है और यही हम बुजगु [ से देखते चले आए है । हालांिक वो िहजरत से 200 वरस बाद पैदा ह9ए । बाद गुजरने इन ज़मानो के िजन क" रसुल स,ला,लाह= अलैिह वस,लम ने तारीफ क" (अला रािशदा 38)
तकलीद क" तरIक" शाह वलीउ,लाह साहब ह9Nजतुलाह अलबलाग मतबुआ िसPीक" बरेली सफा 151 मे फरमाते है िक :इमाम अबू हनीफा रह0 के शािगद[ मे सब से Nयादा शोहरत इमाम अबू यूसूफ रह0 क" ह9ई हान रशीद के अहद मे काज़ी का मनसब (ओहदा) उन को हािसल ह9आ इस क" वजह से इमाम अबू हनीफा रह0 का मजहब फैल गया और तमाम एतराफ इराक, खुरासन तक इस का क]जा हो गया ।
तकलीद क" मज़<मत मत (िवरोध) िवरोध) कु रआन व तफसीर से फरमाया अ,लाह पाक ने सुरह तौबा आयत नं0 31 मे ठहराते है अपने आिलमो और दरवेशो को अ,लाह लाह, अ,लाह लाह को छोड़कर इस आयत के तहत इमाम फखPीन राज़ी अपनी तफसीर कबीर मतबुआ इत<बूल िज,द चार सफा 623 मे फरमाते है :अIसर मु-फसरीन कहते है िक अरबाब से ये मुराद नह िक यह=दी और अंसार ने अपने मौलिवय_ और दरवेशो को उन के खुदा होने का एतेकाद कर िलया था । बि,क मुराद ये है िक उ>होने इतआत क" थी अपने मौलिवयो और दरवेशो क" इस बात पर क" उनके हलाल ठहराने को हलाल जाना और हराम ठहराने को हराम जाना । नकल िकया गया है िक अदी िबन हाितम ताई नसरानी थे पस रसूलू,लाह स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के पास आए िक आप सुरत बरात क" ितलावत फरमा रहे थे यहां तक इस आयत तक पह9ंचे,
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कहां (अदी िबन हाितम ताई ने) मैने कहां हम उन के इबादत नह करते थे आहंजरत स,ला,लाह= अलैिह वस,लम ने फरमाया नह हराम करते थे उस चीज को क" िजसे अ,लाह ने हलाल िकया है पस हराम जानते थे तुम भी उस को । और हलाल करते उस चीज को िक िजसे अ,लाह ने हराम िकया है पस तुम भी उसे हलाल जानते थे । कहां हां ऐसा ही होता था पस रसुल,लाह स,ला,लाह= अलैिह वस,लम ने फरमाया यह उन क" इबादत है ।
हदीस से हज़रत जािबर रिज0 से 6रवायत है िक हज़रत उमर िबन खaताब रिज0 नबी स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के पास तौरात का एक नुखा लाये पस कहा ऐ अ,लाह के रसुल स,ला,लाह= अलैिह वस,लम ये तौरात का नुखा है, पस चुप रहे अ,लाह के रसुल स,ला,लाह= अलैिह वस,लम, पस पढ़ना शु िकया और नबी अकरम स,ला,लाह= अलैिह वस,लम का चेहरा सुख) होने लगा तो हज़रत अबू ब5 रिज0 ने कहा उमर गुम करे तुझे तेरी मां, Iयां नह देखता तु उस चीज को रसुल अ,लाह स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के चेहरे पर है, पस हज़रत उमर रिज0 ने आहंजरत स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के चेहरे क" तरफ देखकर फरमाया मै अ,लाह के साथ पनाह मांगता ह= उस के गजब से और रसुल स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के गजब से । हम अ,लाह के रब होने पर और इलाम के दीन होने पर और मुह<मद स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के नबी होने पर राज़ी ह9ए । िफर आप स,ला,लाह= अलैिह वस,लम ने फरमाया कसम है उस ज़ात िक िजस के हाथ मे मुह<मद क" जान है अगर मूसा तु<हारे वाते ज़ािहर होते और मुझb छोड़कर तुम उनक" पैरवी करते तो सीधी राह से भटक जाते और अगर होते मूसा िज>दा और मेरी नबूवत पाते तो िसवाए मेरी पैरवी के उनके पास कोई चारा न होता। (िमcकात)
सहाबा रिज0 रिज0, ताबईन रह0 रह0 व ताबेअ ताबईन रह0 रह0 से मीज़ान शीरानी मतबुआ िमd िज,द 1 सफा 47 मे है :हज़रत उमर रिज0 फरमाते थे कसम है उस ज़ात क" िजस के क]जे मे उमर क" जान है नह क]ज क" अ,लाह ने अपने नबी क" ह और न उठाया उन से वही को यहां तक क" बेपरवाह कर िदया अपनी उ<मत को राय से । मीज़ान शीरानी िज,द 1 सफा 47 मे है िक :हज़रत उमर रिज0 जब कोई फतवा देते तो कहते िक ये उमर रिज0 क" राय है अगर ठीक है
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तो अ,लाह क" तरफ से समझो वरना खता हो तो उमर रिज0 क" तरफ से । ह9Nजतु जतुल बलाग मतबुआ िसPीक" बरेली सफा 154 मे है िक :शरीह रह0 कहते है िक हज़रत उमर रिज0 ने मुझे खत िलखा इस मे ये था िक अगर कोई मसला दरपेश हो और कु रआन मे हो तो इस से फैसला करना इस से लोग तुझे ने फे रे, अगर ऐसी चीज़ पेश आये जो कु रआन मे नह है तो इस का फैसला सु>नत रसुलु,लाह स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के मुतािबक करना, अगर कोई मसला ऐसा दरपेश हो जो न कु रआन मे हो न हदीसे रसुल स,ला,लाह= अलैिह वस,लम मे हो तो अगर लोग िकसी बात पर मुRिफक हो गये तो इस पर अमल करना । अगर ऐसा मामला दरपेश आये जो न कु रआन मे है न हदीस मे है न तुम से पहले इस मे िकसी ने कहा है तो तुझे इMतेयार है िक इन दो बात_ मे से एक पंसद करे । एक ये िक इNतेहाद कर के अपनी राय से फैसला करे दुसरे ये िक सुकूत करे और कोई फैसला न करे, मेरी राय मे तेरे वाते सुकूत बेहतर है । ह9Nजातु जातुल बलाग सफा 153 मे फरमाते है :हज़रत जािबर िबन जैद रिज0 से अ]दु,लाह िबन उमर रिज0 ने फरमाया िक तुम बसरा के फक"हो मे से हो इसिलये हमेशा फतवा कु रआन व हदीस के मवािफक ही देना अगर ऐसा न करोगे तो खुद भी हलाक होगे और हलाक करोगे । मीज़ान मीज़ान शारानी िज,द 1 सफा 47 मे है िक :हज़रत अ]दु,लाह िबन मसऊद रिज0 फरमाते थे तकलीद करे कोई मद) िकसी मद) क" अपने दीन मे (इस तरह) क" अगर इमान लाये वो तो इमान लाये ये और अगर कािफर करे वो तो कािफर करे ये । अ,लामा लामा अलमौकईन मतबुआ अशरफ अल मताबेए िज,द 1 सफा 217 मे है हज़रत इ]ने मसऊद रिज0 फरमाते है िक कोई शMस दीन के बारे मे िकसी क" तकलीद न करे Iयोिक अगर वो मोिमन रहा तो इसका मुकिeद भी मोिमन रहेगा और अगर वो कािफर ह9आ तो इसका मुकिeद भी कािफर रहेगा । बस बुराई मे िकसी क" पैरवी नह । अ,लामा लामा अल मौकईन िज,द 1 सफा 94 मे है िक शाअबी रह0 कहते थे िक कयास वालो के पास मत बैठो वरना तू हलाल को हराम और हराम को हलाल कर देगा । दारमी सफा 25 मे है िक
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दाऊद िबन अबी िह>द रह0 कहते है िक इ]ने सी6रन ने कहा क" पहले िजस ने कयास िकया वो शैतान है और सूरज और चांद क" कयास ही से इबादत क" गई है ।
मीज़ान िज,द 1 सफा 48 मे है िक मुजािहद अपने शािगद[ से कहते थे िक मेरी हर बात और हर फतवा मत िलखा करो िसफ) हदीस रसुल स,ला,लाह= अलैिह वस,लम िलखने के कायल है शायद िक मै आज िजन चीजो का ह9Iम देता ह=ं कल इस से जु कर लूं ।
तकलीद क" मनाही इमामो के कौल से फतावा इ]ने तैिमया मतबुआ िमd 406 मे है चारो इमामो से सािबत हो चुका है िक उ>होने ने लोगो को अपनी तकलीद से मना िकया है । और यही ह9Iम िदया है िक जब कोई बात उन को िकताब व सु>नत से मालूम हो जाये । जो उन के कौल से कवी तर हो तो इसी बात को ले जो िकताब व सु>नत से मालूम ह9ई हो और उन के कौलो को छोड़ दे ।
इमाम अबू हनीफा रहमाउ,लाह लाह का कौल शाह वली उ,लाह लाह साहब फरमाते है :इमाम अबू हनीफा रह0 से िकसी ने पूछा अगर आपने कु छ कहा और िकताबु,लाह इस के मुखािलफ हो, जवाब िदया िक मेरा कौल िकताबु,लाह के मुकाबले मे तक) कर दो । इस ने िफर पूछा िक अगर रसुल अ,लाह स,ला,लाह= अलैिह वस,लम क" हदीस इस के िखलाफ हो तो जवाब िदया िक मेरा कौल रसुलु,लाह स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के मुकाबले मे तक) कर दो । इस ने िफर पूछा कहा अगर सहाबा रिज0 का कौल इस के मुखािलफ हो जवाब िदया िक मेरा कौल सहाबा रिज0 के मुकाबले मे तक) कर दो । मीज़ान शीरानी मतबुआ िमd सफा 29 मे है िक :इमाम आज़म रह0 ने अपने इस कौल से इशारा िकया है िक जो रसुलू,लाह स,ला,लाह= अलैिह वस,लम से (मेरे मां बाप आप पर कु रबान) पह9ंचे वो सर आंखो पर कु बूल है, और जो सहाबा रिज0 से पह9ंचे इस मे से इ>तेखाब करेगे और जो सहाबा के िसवा ताबईन रह0 वगैरह से पह9ंचे तो वो आदमी है और हम भी आदमी है ।
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कलमात तैयबात मतबुआ मताला अलउलूम सफा 30 मे इमाम अबू हनीफा रह0 का कौल नकल फरमाते है िक :-
जब सहीह हदीस िमल जाये पस वही मेरा मज़हब है । मीज़ान सफा 49 मे है िक :इमाम अबू हनीफा रह0 फरमाते थे िक लोग िहदायत पर रहेगे जबतक िक उन मे हदीस के तलब करने वाले होगे जब हदीस को छोड़ कर और चीजे तलब करेगb तो िबगड़ जायेगे । ऐनी शरह िहदाया मतबुआ िज,द 1 सफा 253 मे है िक :हदीसे मस)ल हमारे िलये ह9Nजत है । तारर शरह दुरW मुMतार दुरW मुMता तार मतबुआ देहली िज,द 1 सफा 51 मे है िक :इमाम अबू हनीफा रह0 फरमाया करते थे िक जईफ हदीस मुझ को Nयादा महबूब है लोगो क" राय से । अक"दा अल जैद सफा 70 मे है िक :इमाम अबू हनीफा रह0 कहते है िक जो शMस मेरी दलील से वािकफ न हो उस को लाईक नही िक मेरे कलाम का फतवा दे। मुकदमा िहदाया िज,द 1 सफा 93 मे है िक :इमाम अबू हनीफा रह0 फरमाते है िक िकसी को हलाल नह िक मेरे कौल को ये जबिक ये न जाने िक मैने कहां से कहा है, पस तकलीद से मुमािनयत क" और माफ)त दलील क" जािनब तरगीब दी। मतबुआ फाक" के सफा 4 मे है इमाम अबू हनीफा रह0 फरमाया करते िक मेरी तकलीद मत करना और न मािलक रह0 क" और न िकसी और िक तकलीद करना और अहकाम को वहा से ले जहां से उन्होने िलये है िकताब व सु>नत से।
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इमाम मिलक रह0 रह0 का कौल जलबू अल मनफआता सफा 74 मे है िक :मै भी एक आदमी ह= कभी मेरी राय सही और कभी गलत होती है, अब तुम मेरी राय को देख लो जो िकताब व सु>नत के मुवािफक हो इस को ले लो और जो मुखािलफ हो उसको छोड़ दो । तारीख इ]ने खलकान मतबुआ इरान िज,द 2 सफा 11 मे है िक :हािफज़ हमीद ने हकायत क" है िक कानबी ने बयान िकया िक मै इमाम मािलक रह0 के मज) मौत मे उन के पास गया और सलाम कर के बैठा तो देखा उन को रोते ह9ए । मैने कहा आप Iयो रोते है फरमाया ऐ काअनबी मै Iयो न रोऊ मुझ से बढ़ कर रोने के कािबल कौन है मै ने िजस िजस मसले मे राय से फतवा िदया, मुझे ये अZछा मालूम होता है िक उन हर मसले के बदले कोड़े से मै मार खाता, मुझको इसमे गुजांईश थी काश मg राय से फतवा न देता ।
इमाम शाफाई रह0 रह0 का कौल अकदाल जैद सफा 54 मे है िक :इमाम शाफाई रह0 फरमाते है जब मg कोई मसला कह=ं और नबी स,ला,लाह= अलैिह वस,लम ने मेरे कौल के िखलाफ फरमाया हो तो, जो मसला नबी करीम स,ला,लाह= अलैिह वस,लम क" हदीस से सािबत हो वह अ0वल है, पस मेरी तकलीद मत करना । सफा 80 मे है :इमाम शाफाइ रह0 से 6रवायत है वह फरमाया करते थे जब सहीह हदीस िमल जाये पस वही मेरा मज़हब है । और एक 6रवायत मे है िक जब मेरे कलाम को देखो िक हदीस के मुखािलफ है तो हदीस पर अमल करो । और मेरे कलाम को दीवार पर दे मारो । और एक िदन मजनी से कहा िक ऐ इhािहम हर एक बात मे मेरी तकलीद न करना और इस से अपनी जान पर रहम करना, Iयोिक ये दीन है, और नीज़ इमाम शाफाई रह0 फरमाया करते थे िक िकसी के कौल मे ह9Nजत नह है िसवाए रसुल अ,लाह स,ला,लह= अलैिह वस,लम के । अगरचे कहने वाले कसरत से हो, और न िकसी कयास मे, और निकसी शै मे, यहां बात अ,लाह और उसके रसुल के तसलीम करने के और कु छ नह है । नज़ुरातूलहक मतबुआ बलगार सफा 26 मे अ,लामा लामा मरजानी हनफ" फरमाते है िक :इमाम शाफाई रह0 ने फरमाया िक सब मुसलमानो ने इRेफाक िकया है िक आहंजरत स,ला,लाह= अलैिह वस,लम क" हदीस िकसी के कौल से न छोड़ी जाये । ह9Nजतु जतुल बलाग मतबुआ िसPीक" सफा 153 मे है िक :इमाम शाफाई रह0 ने इमाम अहमद रह0 से कहा िक सही हदीस का इ,म तुम हो हम से Nयादा
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है, जो हदीस सहीह ह9आ करे वह मुझे बता िदया करो तािक मै इसी को अपना मज़हब करार दूं । अ,लामा लामा मौकाईन िज,द 1 सफा 219 मे है िक :मज़रनी कहते है िक इमाम शाफाई रह0 ने अपनी और दूसरो क" तकलीद से मना िकया है तािक इस मे गौर करे और अपने वातb बचाव का राता तलाश करे ।
इमाम अहमद िबन हंबल रह0 रह0 का कौल अकदाल जैद मतबुआ िसPीक" लाहौर सफा 81 मे है िक :इमाम अहमद रह0 फरमाया करते थे िक िकसी को अ,लाह और उसके रसुल स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के साथ कलाम क" गुजांईश नह है । मीज़ान मीज़ान शअरानी शअरानी मे मतबुआ िमd िज,द 1 सफा 51 मे है िक :इमाम अहमद िबन हंबल रह0 के बेटै अ]दु,लाह कहते है िक मैने अपने बाप अहमद िबन हंबल रह0 से दरया-त िकया िक एक शहर ऐसा है जहां एक मुहPीस है जो सहीह, जईफ हदीस का इ,म नह रखता और एक सहाब-बुल-राय यािन फक"ह है अब आप फरमाईये िक िकस से फतवा पूछे तो कहा सहाबुल हदीस से पूछो, सहाबुल राय से न पूछो । मीज़ान शअरानी शअरानी मतबुआ िमd िज,द 1 सफा 10 मे है िक :इमाम अहमद िबन हंबल रह0 फरमाते थे िक अपना इ,म इसी जगह से लो जहां से इमाम लेते है । और तकलीद पर कनाअत न करो Iयोिक ये अंधापन है, समझे । अकदाल ज़ैद मतबुआ िसPीक" लाहौर सफा 81 मे है िक :और फरमाया करते थे िक मेरी तकलीद न करना और न मािलक क" और न औजाई क" और न िकसी और िक तकलीद करना और अहकाम को वहां से लेना जहां से उ>होने ने िलये है । िकताब व सु>नत से । इस तरह हर दौर के बुजुग[ ने इस उ<मत पर आने वाली ताबाही को पहले ही भांप िलया था और वIत ब वIत इससे आगाह करते रहे मगर अफसोस उ<मत गहरी गुमरािहय_ मे गुम हो गयी और
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उसे गुमराही को ही हक समझ बैठी और जो लोग ऐन कु रआन व सु>नत के पांबद है या पांबदी क" कोिशश करते है उ>हे बदमज़हब का िखताब दे डाला । अ,लाह लाह फरमाता है सुरह माइदा आयत 44 मे :व म,लम यहकु म िबमा अ>जल,लाह= फउलाइक ह9मुल कािफन और जो कु रआन (व हदीस क" दलील) दलील) से फैसला न करे वह कािफर है । इमाम अबू हनीफा रह0 के इ>तेकाल के 278 साल के बाद 428 िहजरी मे उनक" तरफ मंसूब करके पहली िकताब कु दुरी िलखी गई, िफर 573 िहजरी मे िहदाया िलखी गई िजसे कु रआन के मािiद कहा गया नाऊजुि]बलाह और इसमे ढेरो मनगंठत मसले इमाम साहब क" तरफ मंसूब कर िदये गये । और धीरे धीरे लोग इस मज़हब पर एक के बाद एक जमा होते गए और िह>दुतान मे इस मज़हब क" बुिनयाद पड़ गई और अब तो हनफ" मसलक के भी पचासो टु कड़े हो गये ।
बैत,ु लाह लाह मे चार मुस,ले चौथी सदी मे तकलीद िनकली िफर तकलीदी मज़हब पैदा ह9ए िफर इनक" आपस मे सर फुट0वल शु ह9ई । हनफ" व शाफाई का मतभेद इतना बढ़ा िक एक दूसरे के पीछे नमाज़ न पढ़ते थे यहां तक िक 665 िह0 मे िमd मb चारो मज़हबो के चार काज़ी मुस,लत िकए गए । शाफाई, मािलक", हंबली और हनफ" इसके बाद सुलतान फ़र)ह िबन बरकू क जो अशेर समलूम चराकसा कहा जाता था नव सदी के शु मे बैतु,लाह के अंदर चार मुस,ले बना डाले । हालत यह हो गयी िक एक इमाम जमाअत करा रहा है तो तीन मुस,लो पर नमाज़ी बैठे ह9ए है एक दूसरे के पीछे नह पढ़ते । वत तखेजु िमम मक़ामे इhाहीमा इhाहीमा व मुस,ला क" िमसाल को तकलीदी मज़हब ने पारा पारा कर िदया था । सुलतान इ]ने मसऊद रह0 क" कh को अ,लाह नूर से भरे िक जब अ,लाह ने उसे िहजाज का बादशाह बनाया तो उसने 1343 िहजरी मे बैतु,लाह से इस िबदअत को िमटा िदया और चारो मुस,लो को ढहा िदया और अ,ह<दोिल,लाह अब एक ही मुस,ले पर नमाज़ होती है । अ,लाह से दुआ है िक िजस तरह उसने चार मुस,लो को हरम से ढहा िदया उस तरह इन चारो मज़हबो को भी ढहा दे और िसफ) कु रआन व सु>नत पर लोगो को जमा कर दे । आमीन या र]बुल आलेमीन ।
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चुनांचे फरमाने रसुल स,ला, ला,लाह9 लाह9 अलैिह वस,लम लम है :हज़रत अबू ह9रैरह रिज0 6रवायत करते ह9ए कहते है िक नबी करीम स,ला,लाह= अलैिह वस,लम ने फरमाया :- मेरी उ<मत एक ज़माने तक तो कु रआन व सु>नत पर अमल करती रहेगी इसके बाद उ<मती, उ<मितय_ क" राय पर चलने लगेगी जब राय पर चलेगी तो गुमराह हो जायेगी (इ]ने कसीर) हज़रत अ]दु,लाह िबन अl िबन आस 6रवायत करते ह9ए कहते है िक नबी स,ला,लाह= अलैिह वस,लम ने फरमाया मेरी उ<मत पर ज़माना आएगा जैसे ज़माना आया बनी इdाईल पर बराबर पापोश के साथ पापोश (यािन बनी इdाईल क" सMत आज़माइश का ज़माना) यहां तक अगर उनमे से कोई आता था अपनी (सौतेली) मां के पास खुले तौर पर (हराम कारी के िलए) अलबRा होगा मेरी उ<मत मे भी ऐसा आदमी जो कहेगा यह (हां हां) बेशक बनी इdाईल बंट गए और तेहRर गुटो के सारे जह>नम मे जाएंगे के वल एक िगरोह के , सहाबा ने पूछा वह िगरोह कौन सा होगा आपने फरमाया ‘‘मा अताअलयिह व असहािब’’ यािन ‘िजस पर आज मg और मेरे सहाबा है’ । (मुसनद अहमद) अब इस हदीस पर गौर करे और ईमानदारी से बताईये िक आप स,ला,लाह= अलैिह वस,लम ने जो ये मुबारक अ,फाज कहे उस वIत उस मजिलस मे िकतने शाफाई िकतने हंबली िकतने मािलक" और िकतने ह>फ" मौजूद थे । अफसोस वहां इन िफरको मे का कोई शMस मौजूद नह था, बि,क इन मजहबो के बािनय_ के वािलद भी अपने वािलद क" पुcत मे नह आए थे । िसफ) सहाबा िकराम क" जमात थी जो दीन या तो कु रआन से लेती थी या िफर मुह<मदूर)सुल अ,लाह स,ला,लाह= अलैिह वस,लम के फरमान से लेती थी, इसका मतलब जो दीन यहां से लेगा वही िनजात पानी वाली जमात मे शरीक होगा ।
इलािमक लािमक दावाअ से>टर टर रायपुर छ0 छ0ग0