Naam Mein Kya Rakha Hai

  • June 2020
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  • Words: 3,097
  • Pages: 11
कहानी

नाम म या रखा है

हरी भटनागर

घर के बड़े हॉल म हम लोग इकठा हो गए थेऔर िखड़िकय! की संध! सेहालात का जायज़ा लेरहे थे। वेबहत ू शहर! म ु बुरे िदन थे। मंिदर-मिःजद झगड़े को लेकर दंगेकी ख़बर थीं। दसरे मार-काट-आगजनी की ख़बर इ का-द ु का, िकसी तरह आए अख़बार! सेिमल जातीं। इससे इतनी दहशत न होती िजतनी रह-रह के शहर म हो रहेह6ल!-धुओंऔर पटाख! की तरह चलती गोिलय! की आवाज़! सेहोती। हम लोग सहम जाते, चेहर! का रंग सफ़ेद काग़ज़-सा हो जाता। पहलेिदन जब पता चला िक बाबरी मसिजद ढहा दी गई, उस िदन हमारे शहर म अमनचैन था। िकसी तरह की न फु सफु स थी और न कोई वारदात। सब पुरानेढर@ पर चल रहा था। सारेघपलेदसरे िदन शुA हए ू ू लेकर ु जब घर! म अखबार डालेगये। मC तड़के दध आया और जैसेही अख़बार खोला और दरवाज़ा खोलकर बाहर िनकला, हवा म फ़क़र ्नज़र

आ रहा था। एक आदमी जो शायद कुंजड़ा था, बोरे को काँख म दबाए, ढीलेपंचेको संभालता बदहवास-सा गली सेगुज़रा। मCनेदेखा, उसके चेहरे का रंग उड़ा हआ था। डर से ु उसके ह!ठ सूखे-पपड़ाए थे। आँख फ टी-फ टी थीं। आगेबढ़कर मCनेउससेपूछा- य! िमयां, या हआ ु ? वह है रान हो उठा। तिनक िठठका और अःफु ट-सा बुदबुदाता भाग खड़ा हआ ु िजसका यही मतलब था िक शहर म ख़ूनी वारदात शुA हो गई है । मुझेकाटो तो खून नहीं। बेजान-सा घर म दािख◌़ल हआ। पKनी नेमुझेदेखा और है रान-परेशान हो उठी। ु उसनेबMची को िखलाना छोड़ िदया और सामनेआ खड़ी हई। वह कुछ पूछती िक बाहर ु तीन-चार लोग पैदल और ःकूटर! पर चीखते-िच6लातेगुज़रे। आसपास के घर! के दरवाज़े खुलेऔर ज़ोर! सेबंद हए ु -पKनी को कुछ बताना नहींपड़ा। वह सकतेम आ गई। िफ र थोड़ी देर बाद तो चार! तरफ़ धुएँ के पहाड़ ही पहाड़ िदख रहे थे। शोर उठ रहा था। गोिलयाँ चल रही थीं। घर का दरवाज़ा अMछी तरह लगाकर मC ऊपर छत पर आ गया। आस-पास के घर! के लोग िखड़िकय! सेझाँक रहे थे , कुछ छत! पर थे। सभी खौफ़ज़दा थे। अकेला और असुरिPत महसूस कर रहे थे। सवेरा, दोपहर और शाम के एक-एक पल बहत ु ही मुिँकल सेबीते। लोग िदख रहे थे, शायद इसीिलए दहशत उतनी न थी िजतनी अँधरेा िघरतेहई। घर घर की तरह नहींलग ु रहे थे। उनम जैसेकोई रहता ही न हो। बMच! का शोर तक घुट गया था। मCनेपKनी पर िनगाह डाली। हमेशा सजी-सँवरी और मुःकुरानेवाली पKनी इस व ◌़त बफ़R की तरह ठSडी और धूसर लग रही थी। उसके बदन और सजीली बोलती आँख! की चमक गायब हो गई थी। इसकी छाया बMची पर भी थी। वह गुमसुम थी। पKनी नेकाँपतेहए ु मेरा हाथ पकड़ा-यहाँ सेिनकल चिलए, मुझेतो डर लग रहा है ! - कहाँ चलूँ? - उसकी आँख! म काँपतेभय को देखतेहए ु मCनेकहा-अब तो िनकलनेका कोई राःता भी नज़र नहींआ रहा है ! पKनी Pणभर को चुप रही, फ़शR को िनहारती रही, िफ र बोली-गौरी बाबू के यहाँ चलतेहC ; यहाँ अकेलेतो मेरे ूाण िनकल जाएँगे। - गौरी बाबू! गौरी बाबू के यहाँ!!

गौरी बाबू ऐसेXयि त थेिजनसेमेरी पटती नहींथी। वेऐसेिवचार! के थेजो यह मानते थेिक िहZदः क़ौम को रहनेका हक़ नहीं। इस बात ु तान म िहZद ू के अलावा िकसी दसरी ू को अं जाम देनेके िलए वेकुछ भी करनेको उKसािहत िदखते। उZहींके िवचार! सेजुड़े Xयि त ही [◌़यादातर उनसेिमलते-जुलतेऔर देर रात तक उनके यहाँ डटे रहते। गौरी बाबू एक छोटा-मोटा अखबार िनकालतेथेिजसम एक-आध ख़बर के अलावा िव\ापन ही िव\ापन छपतेथे। वेअधेड़ उमर थे। दाँत उनके त]बाकू या िकसी रोग से ु िघस गए थेऔर काले-पीलेटकड़! की तरह आड़े-ितरछे फँ सेथे। लोग उZह भैया जी ू थे। जब वेबोलतेतो उनके मुँह सेझागदार लुआब िनकलता जो कहतेथेऔर घुटनेछते सामनेवालेके मुँह पर िगरता या उZहींके ह!ठ! के कोर! पर जमता जाता। गौरी बाबू के िवचार! सेमCनेहमेशा असहमित जताई। इसीिलए अं दर ही अं दर वेन मुझे ^यार करतेऔर न मC उZह । लेिकन ज़ािहरा तौर पर एक दसरे का आदर करतेथेऔर ू ओट होतेही थुड़ी बोलतेथे। गौरी बाबू के नाम पर मCनेमुँह िबचकाया। पKनी नेकहा-ऐसेमौक़े पर अब मुँह मत बनाओ। जान ^यारी है िक नहीं! - तो या उनके यहाँ जानेसेबच जाएगी। - बच तो नहींजाएगी मगर अकेलेसेतो दक ु ेलेभलेिक नहीं! पKनी की बात पर मCनेिसर िहलाया। ‘कुछ करतेहC '-कहता मC कमरे म च कर लगाने लगा। यकायक छोटे-छोटे डग रखता दालान म पहँु चा और आँगन पार करता हआ ु सीिढ◌़याँ चढ़नेलगा। कुछ ही Pण म मC छत पर था। पूरा मुह6ला अं धरेे म डू बा था। सड़क की लाइट तक नहींजल रही थी। जैसेलाइन काट दी गई हो। दरू कहींपर कु_ेरो रहे थे। जहाँ तक िनगाह जाती पेड़! की छायाओंका गाढ़ा अं धरेा फै ला था जबिक आसमान म ह6के उजालेके बीच तारे काँप-सेरहे थेमानो चार! तरफ़ चलती गोिलयाँ, आगजनी और खून-ख़राबेसेभयाबांत ह!। पास ही कहींचमगादड़ िचिचया रहे थे। लोग! के खाँसनेऔर बीड़ी-िसगरेट की िचनिगय! सेलगा िक लोग अपनी-अपनी छत! पर हC और हालात का जायज़ा लेरहे हC ।

यकायक कोई, दरू की छत से, दहाड़ा। उसका दहाड़ना था िक आस-पास की छत! सेलोग दहाड़ उठे। मेरा भी मन हआ िक दहाडू ँ लेिकन ज़बान तालू सेिचपटी थी। पुरानेशहर की ु तरह इस मुह6लेके मकान एक-दसरे सेसटे हए ू ु नहींथे। आठ-दस मकान ही ऐसेह!गे। बाक़ी सभी फ़ासलेपर थे। बीच म चारदीवारी और पेड़-पौधे। गौरी बाबू को मCनेबेमन से आवाज़ दी। गौरी बाबू जैसेमेरी आवाज़ का इंतज़ार कर रहे थे। उZह!नेझट सेिखड़की खोली और मुझेपुकारा। यकायक जैसेउZह!नेमुझेछत पर देख िलया हो, िखड़की बंद की और थोड़ी देर म वेअपनी छत पर थे। हम गौरी बाबू के यहाँ नहींगए बि6क गौरी बाबू अपनी बूढ़ी माँ के साथ हमारे घर आ गए। थोड़ी देर बाद तो गौरी बाबू केआनेकी भनक लगतेही पड़ोस के आठ दस पिरवारआदमी, औरत, जवान लड़िकय!-लड़क! और बMच! का अMछा खासा झुSड हमारे घर म था। पKनी और मेरे चेहरे पर भय की वह काली छाया अब पहलेजैसेनहींरही थी। सुरPा के ढेर सारे सामान-पKथर, चैलेऔर लोग! की फ ड़कती भुजाओंनेहमारे डर को कम तो कर िदया था लेिकन िकसी भी हादसेकी आशंका सेहम अपनेको बचा नहींपा रहे थे। कहीं सेशोर उठता, बाग़ीचेम अमAद िगरता या कोई पPी फ ड़फ ड़ा उठता या कु_ा भbक उठता तो हमारे ूाण नह! म समा जाते। हॉल म जीरो वॉट का नीला ब6ब जल रहा था िजसम सब लोग चाँदनी रात म डू बे-सेलग रहे थे। िकसी मिहला की नाक की कील या चूड़ी या अं गूठी रह-रहकर चमकती िक लगता जुगनू हो। फ़शR पर एक तरफ़ जवान लड़िकयाँ-मिहलाएँ और बMचेथेऔर दसरी तरफ़ ू मदR । बीच की जगह ख़ाली थी जहाँ च^पल! का ढेर था। मC िखड़की के पास कुसc डाले बैठा था। दसरी िखड़की पर गौरी बाबू थेिजनके िगदR आठ-दस नवयुवक थेजो चौकZने ू थेऔर िकसी भी आफ़त सेटकरानेकेिलए तैयार। गौरी बाबू ग़ुःसेम िदख रहे थे। उनका चेहरा सd◌़त था और माथा िसकुड़ा हआ। वेइस ु बात सेनाराज़ थेिक िहZद ू का भिवंय अं धकार म है और उसकी वजह िसफ़R उसम एका का न होना है । वेहथेली पर मु का पटकतेकह रहे थेिक हज़ार! साल सेिहZद ू दबता आ रहा है , तभी वह गुलाम बना हआ है । कभी िकसी का; कभी िकसी का। सभी नेउस पर ु शासन िकया। उसके तो ख़ून म ग़ुलामी रच-बस गई है । यकायक उZह!नेमुिट◌्ठयाँ भींचीं और कहा- अब उसेचेत जाना चािहए और अब भी नहींचेता तो उसका अिःतKव खKम हो जाएगा

मCनेग़ौर िकया, नवयुवक! पर गौरी बाबू के कहनेका असर हआ। नवयुवक! की मुिट◌् ठयाँ ु िभंच रही थीं। चेहरे की मांसपेिशय! म तनाव आ रहा था, तभी एक नवयुवक नेिजसकी दाढ़ी बढ़ी हई , कहा - ऐसा नहींहै बाबू जी! िहZद ू अब चेत गया ु थी और बाल बेतरतीब थे है । ु गौरी बाबू भड़के - अरे भाई, आपके िलए देश के टकड़े ःवीकार िकयेिक चलो अब तो चैन सेरहनेदो, लेिकन नहीं मC चुप था। ऐसेमौके पर बोलना िनरथRक था य!िक लोग जड़ता और जुनून पर उतर आए थे। सहसा एक नवयुवक संध सेझाँकते-झाँकतेबदहवास-सा ज़ोर! सेचीख पड़ा - कोई है बुरके म! इधर ही आ रहा है , वो देखो सब दहल गए और सावधान हो गए। जवान लड़िकय! और मिहलाओंम आतंक कुछ [◌़यादा ही तारी था। मC संध सेजा लगा। इस बीच कुछ नवयुवक दरवाज़ेपर जा खड़े हए ु और कुछ दबेपाँव छत पर िनकल गए। अचानक कु_! का भbकना शुA हआ तो तेज़ सेतेज़तर होता गया। ऐसा लगता था िक ु कोई है जो कु_! को fट-पKथर िदखाकर बार-बार डरा रहा है । मगर कु_ेहC िक डरतेनहीं। वेऔर भी ज़ोर! सेभbकनेलगतेहC । भbकनेकी यह आवाज़ दरवाज़ेपर आती लगी िफ र दरू, काफ़ी दरू होती गई। घSटे भर बाद नवयुवक छत सेउतर आए। कौवेबोले। लगा सवेरा हो गया। पदाR हटाया तो शीशेपर मटमैला उजाला िचपका था। िखड़की खोली तो सड़क पर दरू-दरू तक कोई नज़र नहींआया। दरू , पेड़! की चोिटय! के पीछे, धुआँ ही धुआँ उठ रहा था। गोिलय! और दरू सेचीखने-िच6लानेकी आवाज़ आ रही थीं। आज की हालत कल से[◌़यादा िबगड़ी लग रही थी। मC बाहर िनकला। नु कड़ के जोशी साहब िदखे। वेअकेलेथे। पीछे, िकसी के यहाँ उZह!ने रात म शरण ली थी। मुझेदेखतेही पास आए, फु सफु साए- िसटी की हालत बहत ु ख़राब

है । भयंकर मार-काट मची है । कोई िकसी को बचानेवाला नहींहै । पुिलस िदखती नहीं। बलबाइय! का हौसला इतना बुलद ं है िक मत पूिछए। घर-घर आग लगा रहे हC और लूट मचाए हC । लड़िकय!-औरत! की आबA लूट रहे हC । लोग मंिदर और मसिजद! की ओर भाग रहेहC । लेिकन वहाँ भी खतरा कम नहीं। हे भगवान! उZह!नेगहरी साँस भरी और gआँसे हो आए। उनका इकलौटा बेटा परस! रात म िसटी गया था िफ र लौटा नहीं। मCनेसांKवना के लहजेम कहा िक उसेकुछ नहींहोगा। आप िनिhंत रह , वह आ जाएगा। िकसी दोःत के यहाँ gक गया होगा। उZह!नेमेरा हाथ पकड़ िलया और ज़ोर! सेरो पड़े। यकायक उZह!नेआँसू प!छे और लड़खड़ातेहए ु चलतेबने। मC घर म दािखल हआ। लोग अपने-अपनेघर जानेके िलए िबःतर समेट रहे थे। एक-दो ु घSटे बाद जब मC छत पर था, गौरी बाबू चौराहे पर नीम के पेड़ केनीचेथे। उनके पास ही वेनवयुवक थेिजZह!नेकल रात मेरे घर म शरण ली थी। गौरी बाबू कल की तरह गु◌ः ़ सेम िदख रहे थेऔर हथेली पर मु केमारतेजा रहे थे। वेकाफ़ी देर तक इसी मुिा म रहे िक एक नवयुवक ज़ोर! सेचीख़ा जैसेकह रहा हो िक बहत ु जु6म हो गया, अब बरदाँत नहींकर गे। उसनेहवा म मुिट◌्ठयाँ लहराf और ज़मीन पर, ज़ोर! सेपैर पटके। उसका ऐसा करना था िक सारे नवयुवक! नेउसका अनुसरण िकया। यकायक गौरी बाबू धोती का लांग छोड़कर ज़ोर! सेचीख़ेिक सारे नवयुवक हाथ लहराकर चीख पड़े। सहसा नवयुवक! का यह दल चीखता-आवाज़ बुलद ं करता एक िदशा म दौड़ा। गौरी बाबू उनके आगे-आगेधोती, का लांग पकड़े दौड़तेजा रहे थे। उनका नेतKृ व-सा करते। मC डरा, येलोग कुछ अनथR कर गे। भय सेकाँपता हआ मC नीचेउतरा। थोड़ी देर बाद, पता लगा, ु गौरी बाबू नेमुह6लेके तकरीबन सौ-डेढ़ सौ नवयुवक! की फ ौज़ इकठा कर ली। नवयुवक! के हाथ! म घातक हिथयार थेिजZह मज़बूती सेपकड़े वेगौरी बाबू के सामने िसपािहय! की मुिा म अट शन खड़े थे। गौरी बाबू गंभीर मुिा म थेजैसेकोई योजना बना रहे ह!। यकायक वेमुःकराए जैसे योजना को िदमाग़ म बना िलया हो। िफ र तेज़ी सेनवयुवक! को अपनेपीछे आनेका इशारा िकया और आगेबढ़े।

नवयुवक उनके पीछे फु तc सेबढ़े। मुझेयक़ीन हो गया िक गड़बड़ होनेम देर नहीं। साँस रोके मC ख़तरे का इंतज़ार करने लगा। लेिकन ख़तरा दरू-दरू तक नहींिदख रहा था। इसके उलट गौरी बाबू नेमुह6लेम नई Xयवःथा अं जाम दे दी थी। उZह!नेबहत ु ही सूझ सेमुह6लेकी मज़बूत घेराबंदी कर दी और जगह-जगह मुःतैद नवयुवक! को तैनात कर िदया था। काँधेपर बंदक ू , ब6लम, फ रसा रखेनवयुवक िसपािहय! की तरह चौकस थे। गौरी बाबू सेनापित की तरह अपनेिसपािहय! पर िनगाह रखेमुह6लेकी जनता को िनशख़ाितर करतेघूम रहे थे। मC आँचयRचिकत था। मेरे आँचयR का िठकाना तब और न रहा जब तकरीबन पूरा शहर ख़ून-ख़राबेऔर आगजनी सेतबाह था, हमारे मुह6लेम ऐसा कुछ न था! - यह गौरी बाबू का कमाल है , नहीं , पूरा मुह6ला गक़R हो जाता-मुह6लेकेसभी लोग! की जुबान पर यह जुमला था। लेिकन गौरी थेिक इसके ूितवाद म कहते-मेरा तो यह फ़जR था जो मCनेपूरा िकया और िकए आ रहा हँू । पूरा मुह6ला और उसके रहवासी पिरवार की तरह हC , उनकी सुरPा-Xयवःथा, उनकी अपनी सुरPा-Xयवःथा है । हाथ म गु^ती िलए और गलेम सीटी लटकाए, गौरी बाबू जगह-जगह लोग! सेकहतेअXवल तो मुह6लेम पिरंदा पर नहींमार सकता। मान लो, भगवान न करे कुछ हआ तो ु सबसेपहलेमेरी जान जाएगी। इसीिलए ख़तरे को सपना मान! और खराRटे लो। चार िदन गुज़र गए जब िकसी तरह का ख़तरा नहींिदखा तो लोग सचमुच खराRटे लेने ू लगे। मC भी खराRटे लेनेलगा हालांिक आशंका सेकइय! बार नींद टटती। उस रात जब हॉल म सब सो रहे थे, गौरी बाबू संध के पास बैठे काफ़ी बेचैन नज़र आ रहे थे। कई िदन! के बाद आज रात म वेयहाँ थे। अःफु ट-सा बुदबुदातेवेहॉल म च कर-सा लगा रहे थे। यह बेचन ै ी कुछ ऐसी थी जैसेिक िकसी काम के होनेका वेबेसॄी से इंतज़ार कर रहे ह! और काम हो न रहा हो।

आँख बंद िकए मC लेटा था और बीच-बीच म उZह देख लेता था। वेबेचन ै य! थे ? यह बात समझ म नहींआ रही थी। इसका राज़ तब खुला जब आधी रात को पीछे, चौराहे की तरफ़, रोज़गार दl◌़तर के पास, ज़ोर! का ह6ला मचा। मC ऊपर छत की ओर भागा। चौराहे पर एक मकान म भीषण आग लगी थी और चीKकार-सा मचा था। आग और चीKकार इतनेभयंकर थेिक मC काँप गया। यकायक लगा िक पीछे की गली सेदो-चार लोग दबी-घुटी आवाज़ म रोते-िससकते, दौड़ते हए ु िनकले। मCनेझाँककर देखा, काली छायाओंके िसवा कुछ नहींिदखा। पलभर के बाद ही सैकड़! लोग हाथ! म जलती मशाल पकड़े तलवार, फ रसेलहराते‘पकड़ो, भागनेन पाए' का शोर बुलद ं करतेपास की सड़क सेतेज़ी सेगुज़रे। मCनेग़ौर िकया-येवही अपनेमुह6लेके नवयुवक थे। बात की तह म जाता िक नवयुवक! का यह जKथा तेज़ी सेलौटा िकसी को खोजता हआ ु -सा, िफ र जलतेमकान की ओर शोर करता लपका। माजरा समझ म आया। मुिःलम पिरवार! को येलोग चुन-चुनकर ख़Kम करना चाहतेहC । मन हआ िक गौरी बाबू को फ ाड़ कर रख दँ ू िक यह जKथा तेज़ी सेिफ र लौटा। और ु चौराहे पर आकर खड़ा हो गया। इनम सेकुछ नवयुवक ज़ोर-ज़ोर सेबोल रहे थे। इनकी बात! सेऐसा लग रहा था जैसेएक-दसरे पर िबगड़ रहे ह!। िकसी बात के िलए एक-दसरे ू ू को दोषी ठहरा रहेह!। यकायक इनम सेएक नवयुवक िजसेमCनेपहली बार देखा था िजसकेिसर के बाल और दाढ़ी मूँछ बेतरतीबी सेबढ़े हए ु थे, ज़ोर! सेचीख़ा। सबको चुप करनेके िलए उसनेऐसा िकया। उसकी आँख, चेहरा और माथेपर लगा बड़ा-सा ितलक मशाल की रोशनी म चमक रहे थे। उनसेगु◌ः ़ सेम िसर झटका और तलवार लहराकर सबके सामनेतनकर खड़ा हो गया। बोला-तुम लोग! की चूितयापंती सेवह कटा और वह चू भागी सारे युवक शांत खड़े थेऔर वह नवयुवक ज़ोर! सेचीखे◌़जा रहा था।

यकायक उसनेसबको जलती आँख! सेदेखा और दाँत पीसते, ज़ोर! सेदहाड़तेहए ु , हाथ लहराकर सबको अपनेपीछे आनेको कहा, जैसेउसका कहा न करनेपर वह सबको िजबह कर देगा। वह कैसी भूखेशेर की तरह आगेबढ़ा और सारे नवयुवक उसकेपीछे ऐसेचलेजैसेकोई ू गया हो और अब उसकी सज़ा उZह िमलनेवाली हो। अचानक गुःसैल िशकार हाथ सेछट नवयुवक नेआगेबढ़कर मेरे दरवाज़ेको तलवार सेखटखटाया। हलक म कलेजा िलए मC नीचेउतरा और दरवाज़ा खोला। नवयुवक ज6लाद की तरह मेरे सामनेझूम-सा रहा था जैसेनशेम हो। मुझेज़ोर! से धिकयातेहए ु वह तेज़ी सेघर म घुसा और जलती आँख! सेघूरता हआ ु -सा मान! िकसी को खोज रहा हो, िबजली की गित सेघर का कोना-कोना झाँक आया। आिख◌़र म वह उस हॉल की ओर बढ़ा जहाँ गौरी बाबू और मिहलाएँ-लड़िकयाँ और बMचेथे। मCनेसोचा ू था िक गौरी बाबू को देखकर वह िझझकेगा और तुरंत घुटनेछकर लौट जायेगा। लेिकन वह तो जैसेगौरी बाबू को पहचानता ही न था। उसनेगौरी बाबू को ऐसेधकेल कर अलग कर िदया जैसेकोई कु_ा ह!। यही नहीं , वह सबके साथ ऐसा ही सलूक कर रहा था। जब उसेइिMछत नहींिमला, तो वह भड़क-सा उठा और मेरे सामनेतनकर खड़ा हो गया। मेरे मुँह पर थूक-पान का फु हारा-सा छोड़ता, वह जलती आँख! बोला-िकसी को िछपाया हो, बता दे, नहींतो अं जाम बुरा होगा। मCनेगौरी बाबू की ओर देखा तो उसनेएक करारा थ^पड़ मेरे मुँह पर दे मारा-उस बहन के लंकी तरफ या देख रहा है , इधर देख और जवाब दे, नहीं उसनेदसरा उ6टा हाथ बढ़ाया दाँत पीसकर िक मCनेहाथ जोड़कर िकसी को िछपानेसेपूरे ू खुलूस सेइनकार िकया। इस पर वह झ6ला गया। छत की ओर मुँह करकेउसनेउभरी नस!वालेगलेसे, पता नहींिकसेबहन की गाली दी। अपनी बाल भरी खुली छाती पर कई मु के बरसाए और अचानक शांत खड़े होकर नवयुवक! को जो उसके इदR -िगदR थे, कहीं और चलनेका ह ु म िदया। नवयुवक! केसाथ जैसेही वह बाहर िनकलनेको हुआ इस बीच एक घटना घट गई। मेरी एक साल की बMची को जो शायद मुझेथ^पड़ मारे जानेकी वजह सेज़ोर! सेरोनेलगी थी और चुप करानेके बाद चुप नहींहो रही थी, पड़ोस की एक मिहला नेफु सफु साकर “सोिफ ◌़या चुप हो जा” कहकर अपनी गोद म िलया िक ज6लाद नवयुवक के कान खड़े

हए ु और वह मुःतैदी सेपलटा। उसेकुछ समझ म आया। भnी गािलयांदेतेहए ु उसने िसर झटका और उझककर मेरे िसर के बाल मुिट◌्ठय! म भरे और चीख़ा-कहतेहो, कोई नहींहै ! येसोिफ ◌़या कौन है ? तेरी चू ? अपनेको असहाय पाकर मCनेगौरी बाबू की ओर देखा, इस आशा सेिक शायद वे हःतPेप कर और ज6लाद मुझेबdश दे। मेरेसाथ होनेवालेबदसलूक की वजह सेगौरी बाबू का चेहरा यकायक तमतमा उठा और मुिट◌्ठयाँ िभंच गf गोया वेउस ज6लाद सेिभड़नेवालेह!। लेिकन मेरा दभाR ु oय गौरी बाबू यकायक शांत पड़ गए। और पता नहीं या सोचकर िसर िहलातेहए ु पीछे हट गये। जैसेकह रहे ह! िक तु]ह तु]हारी सज़ा िमलनी ही चािहए! और मुसलमान! का पP लो!! इसके बाद भी मC िनराश न था। मCनेहकलातेहए ु नवयुवक सेकहा-येयेमेमेरी बेटी है ! मेरी! मC िहZद ू हँू , िहZद!ू मCनेिकसी को नहींिछपाया इसका नाम ही बस उसनेजवाब म उचककर एक खड़ी लात मेरे सीनेम दे मारी और सरपट हॉल की ओर बढ़ा। चार! तरफ़ खूनी नज़र डालते, दाँत पीसतेहए ु नवयुवक नेकहा-सोिफ ◌़या मेरे पास आए और उसकी माँ भी। सब पर मौत का साया डोल रहा था। जब कोई नहींबोला तो ह!ठ काटता वह आगेबढ़ा। उसनेमेरी पKनी की-जो अचानक चीख़ पड़ी थी और आँसुओंकी धार ठोड़ी सेटपटपा रही थी, कलाई पकड़ी और उसेअपनी तरफ़ खींचा। मज़बूत पकड़ की वजह सेकलाई की कुछ ू चूिड◌़याँ टटकर फ़शR पर फै ल गf, कुछ पKनी की कलाई म चुभ गf िजनसेलहू की धार बह िनकली। अचानक ही उसनेपKनी के सीनेकी ओर हाथ लहराया और इस क़दर pलाउज़ पकड़कर खींचा िक pलाउज नुचकर उसकेहाथ म आ गया। पKनी चीखती िक उस नवयुवक ने सोिफ ◌़या को िकसी चील की तरह झपटकर उसके हाथ सेछीना। पKनी बेहोश होकर िगर पड़ी।

मC चीख़ता-िच6लाता दौड़ा और बेटी को अपनेदायरे म िछपानेलगा। यह सोचकर िक वार जो भी पड़े, मुझ पर पड़े। लेिकन इसके पहलेही मेरी आँख! के सामनेअँधरेा छा गया।

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