Safar

  • June 2020
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  • Words: 9,623
  • Pages: 25
सोमेश शेखर च ि की कहानी : सफर बस कती, इसके पहले ही वह उससे कूद, रे लवे ःटे शन के िटकट घर की तरफ लपक ू िलया था। उसकी शे न के छटने का समय हो चुका था इसिलए वह काफी ज,दी म- था। िटकट घर के भीतर पहँु चकर, यह जानने के िलए िक, िकस िखड़की पर उसके ःटे शन का िटकट िमलेगा, ज,दी ज,दी, िखड़िकय3 के ऊपर टंगे बोड7 पढ़ा था। ’’यहाँ सभी जगह3 के िटकट िमलते ह9 ’’ वाली िखड़की पर नजर पड़ते ही उसकी आँखे चमक उठी थी और वह उसी तरफ लपक िलया था।

ू िटकट घर की िखड़की के ऊपर टंगी घड़ी के मुतािबक, उसकी शे न छटने म-, अब िसफ7, तीन िमनट ही बाकी रह गए थे और इतने कम समय म- िटकट कटवाना और दौड़कर शे न पकड़ना, उसे बड़ा नामुमिकन सा लग रहा था िजसके चलते वह घबराया हआ था और ु ू ज,दी से ज,दी िटकट कटवाकर, शे न छटने के पहले, उसे पकड़ लेने की उतावली म- था। वैसे उसकी इस उतावली की एक वजह और भी थी वह यह िक, उसके घर की तरफ, िदन ू जाने का मतलब था अगले चौबीस भर म- िसफ7 यही एक शे न जाती थी और इसके छट ु िठठर ु कर अपनी घंटे तक, िबना खाए िपए, खून जमा दे ने वाली ठंड म-, ःटे शन पर िठठर जान दे ना। हालांिक ठंड से बचने के िलए वह, सभी मुमिकन उपाय कर रखा था, लेिकन जैसे जैसे शाम नजदीक आती जा रही थी, कोहरा और भी घना होता जा रहा था और इसी के साथ ठंड भी बढ़ती जा रही थी। अभी िदन के चार ही बजे थे और वह िसर से लेकर पांव तक जरत भरके गरम कपड़े भी पहन रखा था, बावजूद इसके उसे लगता था ठंड उसकी हिBडय3 म- घुसड़ती जा रही है। िचं ता उसे इसी बात की हो रही थी िक, जब िदन के चार बजे, ठंड के चलते उसकी यह हाल है तो, रात म- यह कैसी होगी इसी को सोचकर, वह बुरी तरह परे शान था। िखड़की पर पहँु चकर, बड़ी बेसॄी से वह अं दर की तरफ झाँका था। यह दे खकर िक, बाबू अपनी सीट पर बैठा हआ है, उसे बड़ी राहत िमली थी। बाबू जी एक िटकट खं जनपुर, अपने ु ःटे शन का नाम बता, िटकट के पैसे िनकालने के िलए, हाथ अपनी प9ट की जेब म- डाला था तो एक दम से धFक रह गया था। पैसे, उसकी प9ट की जेब म- थे ही नहीं। कहींमेरी जेब पर, िकसी पािकट मार ने, अपने हाथ तो साफ नहींकर िदए? या इस हबड़ दबड़ म-, मै उ हे राःते म- ही तो नहींिगरा आया। दरअसल जब वह बस म- था, उसी समय, िटकट के पैसे िगनकर, कमीज की ऊपरी जेब म- सहे ज िलया था िजससे िक पैसा िनकालने और

िगनने म-, वेवजह की दे री न हो। लेिकन यह बात, इस समय उसके िदमाग से पूरी तरह उतर चुकी थी। िखड़की के पीछे बैठे बाबू को, उसने अपने गंतGय ःटे शन का नाम, पैसा दे ने के पेँतर, इसिलए बता िदया था िक, इस बीच, िजतनी दे र म- वह अपनी जेब से पैसे िनकालेगा, उतनी दे र म-, बाबू िटकट काटकर तैयार बैठा होगा, वह उसे पैसा पकड़ाएगा और उससे िटकट लेकर, गाड़ी पकड़ने के िलए दौड़ पड़े गा। कमीज की जेब म- पैसा महफूज पाकर, उसकी जान म- जान आ गई थी। िच,लर सिहत, िटकट के िजतने पैसे बनते थे पािकट से िनकालकर, अपनी मुJठी म- िलया था और पूरा हाथ, िखड़की म- घुसेड़, िटकट बाबू के सामने कर िदया था। बाबू जी एक िटकट खं जनपुर। उसके हाथ से िटकट के पैसे थाम, बाबू बड़ी सुःती से आगे की तरफ झुक आया था और अपनी गद7 न, िखड़की के करीब तक खींच, उसे सूिचत िकया था गाड़ी अठारह घंटे लेट है। अठारह घंटे ए ए ऽ ऽ लेट ऽ ऽ ट। जी ई ऽ ऽ ऽ ऽ । िटकट काट दँ ू ऊँ ऽ ऽ ? गाड़ी के, अठारह घंट- लेट होने की बात सुनकर, वह एकदम से बेजान सा हो गया था। बाबू को िटकट काटने के िलए, हाँ कहे या नहीं , उसकी कुछ समझ म- नहींआ रहा था। थोड़ी दे र तक बाबू, अपनी गद7 न आगे की तरफ खींच, उसके जबाब का इंतजार करता बैठा रहा था लेिकन जब उसे, उसकी तरफ से कोई जबाब नहींिमला था तो वह, झुंझलाकर िटकट ू स, उठ खड़ा हआ का पैसा, वापस उसकी हथेली म- ठं था और िटकट घर की िखड़की दडाम ु से बंद करके, कमरे से बाहर िनकल िलया था। -----रामजनम से उसकी मुलाकात, असा7 पहले, एक िदन शे न मे, सफर के दौरान हई ु थी। हआ ु यह था िक उस िदन, िरजवMशन उसके पास था नहीं। शे न के िजस जनरल िडNबे म- वह चढ़ा था उसम- इतनी भीड़ थी िक कहींखड़ा होने तक की जगह नहींथी। लोग3 के साथ, काफी धFका-मुFकी और गाली गलौज के बाद, उसे एक कोने म-, थोड़ी सी जगह िमल गई थी और वह वहींपर, अपने पा◌ॅव िटकाकर खड़ा हो गया था। पहले तो वह सोचा था िक आगे चलकर, उसे कहींन कहींबैठने की जगह िमल जाएगी लेिकन जैसे जैसे शे न बढ़ती

ु सते चले गए थे इसिलए घंटो गुजर जाने के बाद भी, गई थी, िडNबे म- और Rयादा लोग ठं उसे बैठने की कोई जगह नहींिमली थी और वह खड़े खड़े ही सफर करता रहा था। लेिकन घंटो गुजर जाने के बाद भी जब उसे बैठने की कोई जगह नहींिमली थी तो उसका िसर चकराने लग गया था और टांगे खड़ा रहने से जबाब दे गई थी, और वह जहां खडा था वहीं, लोग3 की टांग3 के बीच धSम से बैठ गया था। Fया हआ मेरे भाई, लगता है तुSह- गश आ गया है तुम तो एकदम पसीने पसीने हो रहे ु हो। वह जहाँ बैठा था, रामजनम वहींबगल की सीट पर बैठा हआ था। उस समय उसकी ु जैसी हाल थी उसे दे खकर उसे उस पर तरस आ गया था। उसे जमीन से उठाकर, वह, अपनी सीट पर बैठाया था, अपनी बैग से बोतल िनकालकर, उसके पानी से, उसका मुंह धुलवाया था और अपनी माल से, तब तक हवा करता रहा था जब तक वह पूरी तरह ठीक नहींहो गया था। इस तरह रामजनम उसे अपनी सीट पर बैठाकर खुद खड़े खड़े सफर करता रहा था। काफी दे र के बाद, सीट पर बैठे एक सRजन का ःटे शन आने पर वे, उतरने के पहले, अपनी सीट, उसे दे िदए थे इसके बाद उनकी आगे की याऽा काफी आसान हो गई थी। राम जनम उस िदन, अपने साथ, दा की एक बोतल िलए हए ु था। रात हई ु थी तो वह ःटे शन के Uलेटफाम7 से दो पैकेट खाना खरीद लाया था और दोनो उस िदन साथ-साथ खाना खाये थे और छक कर दा िपए थे। हॅ सी ठJठे के साथ, दोनो मे ऐसी-ऐसी बात- हई ु थी उस िदन, जैसे वे दोनो बचपन के लंगोिटया और हमराज ह3। सफर खWम होने के को, अपना-अपना पता िदये थे। राम जनम अपने घर का पता पहले दोनो, एक दसरे ू िलखने के साथ, उसकी डायरी म-, ःटे शन से िनकलकर, उसके घर कैसे पहँु चना है उस तक का एक नFशा बना िदया था। मेरे घर की तरफ तुSहारी िरँतेदारी है इसिलए तुम िसफ7 मेरे दोःत ही नहीं, िरँतेदार भी हये ु । भिवंय म-, जब भी तुम अपनी िरँतेदारी आओ, तो मेरे घर आना मत भूलना, मेरे दोःत, सच कहता हँू बडी मजा आएगी। बोलो आओगे ना? ु आऊँगा मेरे दोःत, जर आऊँगा। िबछड़ने के पहले दोन3 इस तरह एक दसरे से गले िमले ू थे जैसे दोन3 का ज म3 का साथ रहा हो। ऐसा नहींथा िक, राम जनम उसकी याददाँत से उतर चुका था। उसके साथ का उस िदन, का वह सफर, उसे अZछी तरह याद था और जब कभी वह अपनी िरँतेदारी जाने के िलए इस ःटे शन पर उतरा था या वापसी म- शे न पकडने के िलए ःटे शन पहँु चा था तो राम जनम उसे जर याद आया था। लेिकन उसकी याद, महज याद3 तक ही सीिमत रही थी।

रामजनम के िलए उसके भीतर ऐसा कोई आकष7ण या िखं चाव कभी नहींमहसूस हआ था ु िक वह उससे िमलने के िलए उसके घर तक िखं चा चला जाता। सफर के दौरान, कभीकभी ऐसे हमसफर िमल जाते है िजनसे ऐसी घिन]ता हो जाती है िक, लगता है िक उनसे अपना ज म3 का साथ हो। लेिकन सफर के दौरान की घिन]ता, ँमशान वैरा^य की तरह, िसफ7 उस सफर तक या थोड़े समय बाद तक ही मौजूद रहती है। सफर खWम होने के बाद, जब लोग अपने-अपने पिरवेष म- रम जाते हैतो वह सफर, िकसी सुखद सपने की तरह याद तो आता है लेिकन, उसकी बुिनयाद पर, हम सफर के घर पहँु च कर उससे िमलने िक बात सोचना ही बेमानी सा लगता है। राम जनम को लेकर, इतने असM तक ठीक ऐसा ही कुछ, उसके साथ भी होता रहा था और वह राम जनम के यहाँ जाने की कभी सोचा तक नहींथा। समूचे मुसािफरखाने म-, उसके िसवा दसरा एक भी मुसािफर नहींथा। ःटे शन का भी वह ू एक चFकर लगा आया था लेिकन वहाँ भी उसे कोई मुसािफर नहींिदखा था और न ही कोई ऐसी जगह िदखी थी जहाँ वह सुकून से हाड़ कॅपाती इस ठंड म-, अपनी रात काटता। ऐसे म- रामजनम के घर जाने के िसवा, उसके पास दसरा कोई िवक,प ही नहींबचा था। ू रामजनम का घर, ःटे शन से Rयादा दरू नहींथा, और उसने उसकी डायरी म- िजस तरह, अपने घर पहँु चने का पूरा नFशा बना रखा था, उससे वह उसके पते तक, बड़ी आसानी से पहँु च भी िलया था। लेिकन उसके पते पर पहँु चने पर, जो _ँय उसकी आँखो के सामने पेश आया था, उसे दे खकर वह िवचिलत हो उठा था। रामजनम ने उसे बताया था िक वह ब9क म- बाबू है और उसका अपना खुद का बड़ा मकान है। लेिकन िजस जगह वह, अपने मकान होने की बात बताया था वहाँ, दरू दरू तक मकान जैसा कुछ भी नहींथा। वहाँ थी तो, कोिलयरी के काफी पुराने और जज7र धौर3 (छोटे -छोटे घर3) वाली एक बःती। िजस जगह वह खड़ा था वहाँ से थोड़ी दरू पर, एक पुराना नीम का पेड़ था िजसके चार3 तरफ, बड़ा चबूतरा बना हआ था और उस चबूतरे पर मदb की दो गोल, गोिलयांकर बैठी ु हई ु थी और हर गोल के बीच, दो तीन दा की बोतल- और एक बड़े पcल पर िचखना रखा हआ था। सबके हाथ म- काँच की छोटी िगलास- थी और वे बोतल से उड़े ल उड़े ल कर, ु िचखने के साथ दा पीने म- जुटे हए ु थे। चबूतरे से सँटकर कोयले का एक बड़ा ढे र जल रहा था। िजस तरह नीम के पेड़ के चबूतरे पर शारािबय3 की दो गोल, दा पीने ममशगूल थी उसी तरह, जलते कोयले की ढे र को घेरकर, दो और गोल दा की बोतल3 के साथ जमी बैठी थी। उनसे थोड़ा हटकर कम, उॆ के बZचे कंचे खेल रहे थे। नीम के ू थे। धौर3 की तरफ से एक नाली इधर को ही चबूतरे से थोड़ा हटकर राख के तीन बड़े ढहे

ू के चलते उसका आगे का राःता बंद हो आई हई ु थी और कूड़े कताउर और राख के ढह3 चुका था, िजसके चलते धfरो का सारा पानी, एक जगह जमा होकर, कीचड़ से बजबजाती, छोटी गड़ही सरीखी बन गई थीऔर उसम- सुअरो का एक झुंड लोट पोट करने के साथ, आपस म- लड़ भी रहे थे। जलते कोयले से अलकतरे की गंध का धुआ ं , बजबजाते कीचड़ की सड़ांध और वैसे ही गंदे और दा के नशे म- चूर लोग3 को दे ख उसका मन िगजिगजा उठा था। राम जनम ब9क म- बाबू ह9 । वह इतनी गंदी जगह, और इन सुवर3 और शरािबय3 की बःती म- रह कैसे सकता है? उसने मुझे यह भी बताया था िक उसका अपना खुद का एक बड़ा मकान है, लेिकन यहाँ, इन धौर3 के अलावा, दरू दरू तक कोई मकान भी कहींनहींिदख रहा है? कही म9 गलत जगह तो नहींआ गया हँू ? राम जनम के बारे म-, लोगो से दरयाgत करके, पता करे या नहीं , वह अभी सोच ही रहा था िक, इसी बीच, शरािबय3 की गोल से, एक आदमी उठकर, उसके पास आया था और लड़खड़ाती जुबान म- उससे पूछा था। आप िकसे खोज रहे है बाबू ऊ ऊ ? यहाँ कोई रामजनम नाम का आदमी रहता है? राम जनम, कौ औन रामजनम, दा के नसे से झिखयाया अपने िदमाग पर जोर लगाकर वह रामजनम के बारे म- सोचा था। रामजनम जो बैक म- बाबू है। बैक म- बाबू ऊ हँु ? थोड़ी दे र सोचने के बाद भी रामजनम, जब उसके hयान म- नहींआया था तो वह, नीम के चबूतरे पर गोिलया कर बैठे लोगो से दरयाgत िकया था, यहाँ बैक का बाबू, रामजनम कौन है रे भाई? अरे बाकल, बाबू अपने रामज मा के बारे म- पूछ रहा होगा, जवाब म- चबूतरे पर बैठा एक आदमी उसे जोर से डांटा था। ओ ओ ऽ ऽ ऽ तभी तो हम कहे ......राम जनम यहाँ कवन है रे भाई। इतनी दे र म-, जो आदमी चबूतरे से उसे डांटा था वह, वहाँ से उठ कर, उसके पास आ कर खड़ा हो गया था।

हालाँिक वह भी काफी िपया हआ था लेिकन, पहले वाले की तरह, न तो उसकी जुबान ु बेकाबू थी और न ही शरीर ही। रामजनम जो बैक म- काम करता है आप उसी को खोज रहे है न बाबू? हाँ...हाँ...... मैउसे ही खोज रहा हँू । बाबू ऊ इस धौरे के पीछे जो धौरा है न, उसी लाइन म- रामज मा का ड़े रा ह9 इिधर से आप चले जाओं, उसके ड़े रे के सामने नीम का बड़ा पेड़ है। राम जनम ने मुझे बताया था िक वह ब9क म- बाबू है? यह तो हम बता नहींसकता बाबू, लेिकन वह ब9क म- काम जर करता है। Fया तुम मुझे, उसके ड़े रे तक नहींपहँु चा दोगे? उसके आमह पर, वह उसे बड़ा खुशी मन से, रामजनम के डे रे पर पहँु चा आने के िलए राजी हो गया था। रामज मा गे ए ऽ ऽ गे ए रामज मा आ ऽ ऽ। रामजनम के दरवाजे पर पहँु चकर वह उसे, जोर जोर से आवाज लगाने के साथ, उसके िकवाड़ का सांकल भी खटखटाया था। दो तीन आवाज के बाद, राम जनम घर का दरवाजा खोल, अपने दोन3 हाथ3 से, दरवाजे की दोन3 तरफ की कवही थाम, सवािलया नजर3 से आंगतुक को ताकता खड़ा था। दे ख ई बाबू, तोहे खोिज रहलो िछए! कौन? उसके चेहरे पर गहरे से ताक, रामजनम उसे पहचानने की कोिशश िकया था लेिकन वह उसे नहींपहचान सका था। मुझे नहींपहचाने न मेरे दोःत? नहीं। इनकार म- अपना िसर िहला, रामजनम दरवाजे की कवही छोड़ उसके एकदम करीब आकर, उसे पहचानने की कोिशश िकया था लेिकन िफर भी वह उसे नहींपहचान सका था। सचमुच, म9 आपको नहींपहचाना।

काफी असा7 पहले हम दोन3 शे न म- िमले थे। तुमने मेरी डायरी म- अपना पता िलखकर मुझे िदया था यह दे खो, और वह अपनी जेब से छोटी डायरी िनकाल, िजस प ने पर रामजनम अपने घर का पता िलखा था, उसे खोलकर उसके सामने कर िदया था। ओ ओ ऽ ऽ ऽ ओ ऽ ऽ तो आप ह9 ? डायरी म- खुद के हाथ की िलखावट दे ख रामजनम को शे न के सफर के दौरान, उसके साथ की मुलाकात, याद पड़ गई थी और वह उसे बड़ा धधाकर अपनी बाह3 म- भर िलया था। आओ मेरे दोःत आओ, रामजनम के इस गरीब खाने म- तुSहारा ःवागत है। रामजनम उसे पाकर एकदम से िनहाल हो उठा था। आओ मेरे दोःत आओ। दरअसल तुमने अपना चेहरा पूरी तरह चlर से तोप रखा है न, इसीिलए म9 तुSह- नहींपहचान सका। गुफानुमा रामजनम के एक कमरे वाले धौरे म-, छोटा सा एक आँगन था। आगे करीब पाँच बाई दस फुट का एक बरामदा था िजसे राम जनम अपनी रसोई की मसरफ म- िलया हआ ु था। उसकी औरत उस समय, कोयले की अं गीठी पर रोिटयाँ सेक रही थी। सुरंग नुमा उसकी कोठरी, पूरी तरह खुली हई ु थी। भीतर उसके, ताखे पर एक िढबरी जल रही थी। उसके पहँु चने के पहले, उसके चार बZचे कोठरी म- धमाचै कड़ी मचा रखे थे लेिकन उसे कड़ी बंद करके, िकवाड़ की ओंट से, उसे बड़े कुतूहल से आया दे ख, सब अपनी धमाचै िनहारते खड़े थे। उसकी पmी उसे दे ख, जमीन से प,लू उठाकर अपने िसर पर डाल ली थी। उसे बैठाने के िलए रामजनम, कोठरी के भीतर से दो Uलािःटक की कुिस7याँ िनकाल बरामदे म- डाल िदया था। कंधे से टंगा बैग, नीचे उतार कर, वह जमीन पर रखा था और कुसn पर बैठ, रामजनम के समूचे घर का सरसरी नजर3 से िफर से मुआयना िकया था। रामजनम के घर म- इन दो कुिस7य3 के अलावे कोई खिटया या पलंग नहींथी। हालांिक रामजनम के कपड़े गंदे नहींथे और न ही वही वैसा गंदा था िजतना गंदा उसका घर, घर के सामान, बZचे और उसकी औरत थी। इतने गंदे माहौल म- और एक कोठरी वाले इस घर म-, वह अपने रहने की जगह तलाशने के साथ साथ, वहाँ दस प िह घंटे कैसे गुजारे गा, इसके िलए खुद को तैयार करने लगा था। रामजनम अपनी पmी को चाय बनाने को कहकर, दसरी कुसn उसके एकदम करीब ू खींचकर बैठ गया था और उसका हाथ अपनी दोन3 हथेिलय3 म- दबाकर चहका था। दोःत आज सुबह से ही रह रहकर मेरा मन ूफुि,लत हो उठता था, लगता था आज मेरे घर

जर, मेरा कोई अजीज, पहँु चने वाला है। और मेरी खुशनसीबी दे खो िक तुम जैसा दोःत, मेरे घर पहँु चा गया। दरअसल मेरे एक िरँतेदार की मृWयु हो गई थी। उसी की तेरहवींमे म9, पेटरवार आया हआ था। वापस लौटने के िलए ःटे शन पहँु चा, तो पता चला गाड़ी अठारह घं टे लेट है। मेरे ु पास ूचुर समय था सोचा चलकर, तुमसे िमल आते है। रामजनम अपने बारे म- िजतना उसे बताया था उसकी बुिनयाद पर वह उसे िकसी सqय घर पिरवार और अZछी हैिसयत का आदमी समझ रखा था। लेिकन वहाँ वैसा कुछ भी नहींथा। इतनी दे र म- जो कुछ वह दे ख चुका था, उससे उसे लगने लगा था िक वह, बहत ु ही बुरी जगह और बुरे लोग3 के बीच आ फंसा है िक रामजनम बहत ु बड़ा झुJठा और ठग है और उसे िजतनी ज,दी हो, यहाँ से भाग िनकलना चािहए। इसिलए वह रामजनम से कुछ इस तरह बितयाया था जैसे वह उसके साथ चाय पानी करके तुरंत, यहाँ से िनकल जाएगा। बहत हमारे पास अठारह घंटे का समय ु अZछा िकए मेरे दोःत, म9 तुSह- पाकर ध य हआ। ु है, मौसम भी आज काफी अZछा है दोन3 िमलकर इसका खूब जr मनाएग- ठीक है न? रामजनम उसके कंधे दबा जोर से चहका था। रामजनम की पmी कांच के दो िगलास म-, लाल चाय उ ह- पकड़ा गई थी, चाय गरम थी इसिलए रामजनम अपना िगलास, जमीन पर रख, अपनी कुसn खींच उसके काफी करीब सँट कर, उससे िशकायत िकया था मुlत बाद तुSह- मेरा sयाल आया, मेरे दोःत, कहाँ थे इतने िदन3 तक? झुJठा साला, दे खो कैसे बन रहा है। इसकी बात से लगता है जैसे इतने िदन3 तक यह मेरी ही राह िनहारता बैठा हआ था। लेिकन उसने उसे कोई जबाब नहींिदया था। ु तुSह- मेरा घर ढँू ढ़ने म- कोई परे शानी तो नहींहई ु मेरे दोःत? नहीं, नहींकोई परे शानी नहींहई ु , बड़ी आिजजी से उसने उसे जबाब िदया था। रामजनम अपनी चाय खWम करके उससे थोड़ी मोहलत लेकर अपनी कोठरी म- घुस गया था और थोड़ी दे र बाद, जब वह कोठरी से बाहर िनकला था तो, उसकी हिलया दे ख, उसकी ु आँखे फैली की फैली रह गई थी। िसर पर बोिसए से बुनी गोलौवा टोपी, टे रीकाट के सफेद

कुतM के ऊपर काली जैकेट, नीचे चेकदार लुंगी और आँख म- मोटा सुरमा डाल वह, खाटी मुसलमान का प धर रखा था। चलो मेरे दोःत चलते ह9 , रामजनम आगे बढ़कर, जमीन पर पड़ा उसका बैग उठाया था और अपने कंधे पर टांग, दरवाजे की तरफ बढ़ गया था। िवःमय से कुछ दे र, रामजनम की पीठ पर अपनी नजरे गड़ाए बैठा रहने के बाद, यह जानने के िलए िक वह उसे कहाँ ले जाना चाहता है, अं गीठी पर रोिटयांस-कती रामजनम की पmी की तरफ, सवािलया नजर3 से दे खा था। लेिकन रामजनम की पmी, अपने काम म- कुछ इस तरह मशगूल थी, जैसे उसे, उन दोन3 म- से, िकसी से कोई मतलब ही न हो। हारकर वह वहाँ से उठा था और रामजनम के पीछे पीछे चल पड़ा था। राःते म- एक कलाली (शराब घर) के पास पहँु चकर, रामजनम उसे थोड़ा कने के िलए कहकर, कलाली की तरफ गया था और जब वहाँ से वह लौटा था तो उसके एक हाथ म-, दे शी शराब की दो बोतल- और दसरे म-, पालीथीन की थै ली म- बकरे का गोँत था। अब ू मजा आयेगा मेरे दोःत, चलो चलते ह9 । लेिकन कहाँ, तुम मुझे कहाँ ले जाना चाहते हो राम जनम ? जब से वह राम जनम के साथ उसके घर से िनकला था यह सोचकर, खुद को जGत िकए रखा था िक रामजनम चाहे िकतना झुJठा और फरे बी Fय3 न हो, िजस आWमीयता से उसके साथ पेश आ रहा था, वैसे म- वह उसके साथ कुछ बुरा या उ,टा-पु,टा तो नहींही करे गा। लेिकन जब वह ु की घनी झािड़य3 के बीच से गुजरती पगडंड ी की तरफ उसे चलने को कहकर, आगे फुटस बढ़ा था तो उस,◌े उसके इराद3 पर शक हो उठा था और वह उस पर एकदम से चीख पड़ा था। उसकी चीख पर, रामजनम क गया था और हैरान नजर3 से, थोड़ी दे र, उसके चेहरे का मुआयना करने के बाद, मुसकुराते हए ु उससे कहा था। म9 तुSहारी परे शानी समझ गया मेरे दोःत, तुम राम जनम को बड़ा ही लुZचा और शाितर िदमाग आदमी समझ रहे हो, सोच रहे हो िक राम जनम मुझे, जर िकसी गuढे म- ढकेलने के िलए, िलए जा रहा है। लेिकन सच मानो मेरे दोःत, जैसा तुम सोच रहे हो राम जनम वैसा आदमी नहींहै। िफर भी अगर तुSह- मेरे ऊपर भरोसा नहींहै, तो अभी कोई दे र नहींहई ु है, चलो म9 तुSह- वापस ःटे शन छोड़ आता हँू ।

रामजनम, तुमने मुझे बताया था िक तुम ब9क म- बाबू हो और तुSहारा अपना खुद का बड़ा मकान है। लेिकन हकीकत म- न तो तुSहारा अपना कोई मकान है और न ही तुम ब9क मबाबू ही हो। जैसी गंदी बःती और घिटया लोग3 के बीच तुम रहते हो उसम- चोर उचFक3 और उठाईगीर3 को छोड़, कोई भला आदमी तो नहींही रहता होगा। यही नहीं , जब म9 तुSहारे घर पहँु चा था तो म9 तुSह- एक प म- दे खा था और अब म9 तुSह- एकदम अलग ु ही प म- दे ख रहा हँू । और ऊपर से तुम मुझे इतनी कुबेला म-, अपना घर छोड़कर फुटस के जंगल3 के बीच िलए जा रहे हो ऐसे म- तुSहींबताओ िक तुSहारी ए सब बात-, तुSहारे ूित, िकसी के भी मन म- अिवvास और आतंक पैदा करने के िलए काफी नहींहै Fया ? ह9 , और पूरी तरह है मेरे दोःत, लेिकन तुम मुझे एक बात बताओ, िक अगर म9 उस िदन, तुSह- बता िदया होता िक म9 जाित का हाड़ी (ःवीपर) हँू , हाड़ी बःती म- रहता हँू , और टwटी मैला धोने का काम करता हँू तो Fया उस िदन का हमारा शे न का वह सफर, िजतनी मौज मःती म- कटा था, वह वैसा ही कटता? और आज जो तुम मेरे घर पहँु चकर, मुझे िनहाल कर िदए हो, यिद तुम रामजनम की सारी असिलयत3 और हकीकत3 से वािकफ होते, तब भी उसके घर आते? रामजनम म9 तुSहारी बात से पूरी तरह कायल हँू । सफर को खुशगवार बनाने के िलए, उस िदन की तुSहारी झूठ, उस समय की एक बड़ी जरत थी लेिकन यह जो तुम, बहिपय3 ु की तरह अपना वेष बदलते चलते हो यह Fया है? रामजनम से यह सवाल पूछते समय उसकी आवाज काफी त,ख हो उठी थी। उसकी बात सुनकर रामजनम बड़े जोर का ठहाका लगाया था। जानता हँू मेरे दोःत, िक तुम मेरे वेष बदलने को लेकर काफी परे शान हो। लेिकन सच मान3, म9 अपना वेश बदलता हं , बि,क ऐसा करना मेरी मजबूरी के ू तो िकसी को ठगने और धोखा दे ने के िलए नहीं साथ साथ, एक बड़ी जरत भी है। जरत.....? हाँ जरत, दरअसल हआ यह था िक म9 एक मुसलमान औरत को बैठा िलया था। ु मुसलमान3 ने कहा िक जब तक तुम मुसलमान नहींबन जाते, तुम उस औरत को अपने पास नहींरख सकते, म9ने कहा ठीक है म9 मुसलमान बन जाता हँू और म9 कलमा पढ़कर मुसलमान बन गया। रामजनम यह बात िजस तरह िबना िकसी लाग लपेट के और बेलौस कहा था उसे सुनकर उसे बड़े जोर का धFका लगा था।

लेिकन तुSहारे पास तो पहले से ही अपनी औरत और बZचे थे, िफर तुSह- ऐसा करने की Fया जरत पड़ गई थी, कहींतुSहारा Uयार-Gयार वाला चFकर तो नहींथा उससे? नहींई ऽ ऽ या ऽ ऽ र.... Uयार Gयार जैसा कोई चFकर नहींथा उससे। तब ? हआ ु यूँ था िक उस औरत का मद7 , कोिलयरी म- काम करता था, चाल िगरने से वह उसके नीचे दबकर मर गया। उसके एवज म- उसकी औरत को मोटा मुआबजा और नौकरी िमली थी। औरत अभी पूरा पJठी थी और उसे मद7 की जरत भी थी, उससे शादी करने से मुआबजे के उसके पैसे, मेरे हाथ म- आने के साथ साथ, एक कमासुत पJठी मेरे कNजे मआ गई थी बोलो मेरे िलए यह कोई घाटे का सौदा था Fया? अपनी इस चालाकी पर इतराता हआ रामजनम, अपनी गद7 न ऐंठ, उससे पूछता, अपनी दे ह अकड़ा िलया था। ु और िसफ7 इतने से फायदे के िलए तुम, अपना धम7 छोड़कर, दसरा धम7 तक कबूल कर ू िलए रामजनम? लेिकन ऐसा करके म9ने कोई गुनाह कर िदया Fया......... मेरे दोःत? रामजनम को उसने कोई जबाब नहींिदया था। हैरान सा वह िसफ7 उसे िहकारत भरी नजर3 से घूरता खड़ा रहा था। ु (छोटे झाड़ीदार पौधे) का जंगल पार कर, रामजनम उसे िजस बःती म- लेकर पहँु चा फुटस था उसम-, अःवेःटस सीट से छाए, एक एक कमरे के घर3 वाली कई कतार- थीं। उ हीं कतार3 म- से एक घर के पास पहँु चकर, वह उसके दरवाजे की कुंडी खटखटाने के साथ आवाज भी िदया था, बेगम दरवाजा खोलो। राम जनम के बेगम कहकर पुकारने से वह समझ गया था िक, यहाँ उसकी, दसरी बीबी ू रहती है। यह कालोनी भी रामजनम के पहले वाली कालोनी की तरह ही गंदी थी। जगह जगह राख ू , कूड़े कताउर के ढे र और नािलयाँ, यहाँ भी वैसे ही बजबजा रही थी जैसा वह इसके के ढहे पहले दे खकर आया था।

थोड़े इंतजार के बाद दरवाजा खुला था, तो रामजनम की बीबी के प म- जो औरत उसकी आँखो के सामने ूकट हई ु थी, वह उसे, दे खता ही रह गया था। कमिसन और बेहद खूबसूरत चेहरा, गुदाज और ठॅ सी हईर दे ह, बड़ी बड़ी आँख,- उॆ उसकी मुिँकल से अठारह ु साल की रही होगी। सलवार कुतM म- वह उसे, औरत नहीं , बि,क कालेज म- पढ़ती कोई लड़की लगी थी। बेगम इससे िमलो, यह है मेरा िजगरी दोःत िशवा। बचपन म- हम दोन3 साथ साथ खेले खाए ह9 । आज यह ब9क म- बहत ु बड़ा साहे ब है। लेिकन इसका बड़Uपन दे खो िक, इतना बड़ा आदमी बन जाने के बाद भी, यह मुझे, आज तक नहींभूला। रामजनम एक ही सांस मअपनी बीबी के सामने उसकी झूठी तारीफ म- इतना लSबा चौड़ा पुल बांध िदया था िक उसे, उसका मुह पकड़ लेने का मन हआ ु था। लेिकन बोलने के िलए वह अपना मुंह खोलता, इसके पहले ही रामजनम, अपनी बीबी का उससे पिरचय करवाने लग गया था। और मेरे दोःत आप ह9 मेरी बेगम अजरा। आप लोग3 जैसे ही रईस घर की बेटी है आप। इ ह- पाकर मेरा तो, जीवन ही ध य हो गया है। अपनी बीबी का पिरचय करवाने के बाद रामजनम अपने हाथ म- पकड़ी दा की बोतल और मीट का थै ला उसकी तरफ बढ़ा िदया था। बेगम यह पकड़ो मीट और यह दा की बोतल। आज, आप मेरे दोःत की ऐसी खाितर कर- िक यह बार बार हमारे गरीब खाने पर दौड़ा चला आता रहे । रामजनम के घर के बाहर जैसी भी गंदगी रही हो, लेिकन भीतर उसका घर, पूरी तरह रंगा पुता और साफ था। उसके इस घर म- भी, वैसी ही छोटी सी एक कोठरी और बाहर वैसा ही छोटा खुला बरामदा था। यहाँ भी, बरामदे को उन लोग3 ने, अपनी रसोई के मसरफ ले रखा था। बरामदे म- अं गीठी म- कोयला दहक रहा था और उसके पास एक मोढ़ा रखा हआ ु था। उनके आने के पहले, रामजनम का इंतजार करती, उसकी बीबी, अं गीठी की आग तापती बैठी हई गीठी की दहकती आग से, ु थी। बाहर काफी ठंड थी लेिकन बरामदा, अं गरम था। आओ मेरे दोःत, हम लोग चलकर भीतर बैठते है। रामजनम उसकी पीठ पर हाथ रख, बड़े आमह से उसे अपनी कोठरी म- ले आया था। छोटी सी उसकी कोठरी, काफी साफ सुथरी और सजी हई ु थी। उनके सोने के िलए एक पलंग थी िजसके िबःतरे पर साफ चlर िबछी हई ु थी। रामजनम उसे िवःतरे पर बैठा, खुद उसकी बगल बैठ गया था।

थोड़ी दे र म- रामजनम की बीबी दो Uयाली चाय, एक शे म- रखकर, कोठरी म- पहँु चा आई थी। उनकी चाय खWम होते होते वह, गरम गरम आमलेट, भुने मूंगफली के दाने, िगलास और दा की एक बोतल, उनके पास रख आई थी। मान गया मेरे दोःत, तुम हो बड़े ऊँचे दजM के िशकारी। दा की कुछ घूँट हलक के नीचे उतरने के बाद, उसके भीतर की तमाम िझझक और संकोच गायब होकर, कई बात-, जो उसके भीतर हलचल मचा रखी थी, वे उभरकर ऊपर आ गई थी। बड़े ऊँचे दजM के िशकारी हो मेरे दोःत, मुझे तुमसे बड़ी ईंया7 हो रही है। उसकी बात से रामजनम समझ गया था िक दा की नशा उस पर चढ़ गई है और उसी के सुर म- वह ऐसी बात, िजसे उसे यहाँ नहींकरनी चािहए, करने लगा है। इःसस ऽ ऽ, राम जनम अपने ह3ठ पर हाथ रख, बाहर बैठी अपनी बीबी की तरफ इशारा करके, उसे ऐसी बात यहाँ न करने के िलए मना कर िदया था। मेरे दोःत, वह सब कुछ तो ठीक है लेिकन एक बात म9 तुमसे पूँछू, तुSहे बुरा तो नहीं लगेगा? रामजनम के मना करने पर वह कुछ दे र मूंगफली के दाने चबाता और दा की घूँट- भरता चुप मारे बैठा रहने के बाद, एक बड़ा ही अहम सवाल, जो उसे राम जनम की दोन3 गृहिःथयाँ दे खने के बाद, बुरी तरह परे शान कर रखी थी, उसके िवषय म- वह उससे जानना चाहा था। पूँछू, तुSह- बुरा तो नहींलगेगा मेरे दोःत? तुम मेरे दोःत हो। तुSहारी कोई भी बात मुझे बुरी नहींलगेगी, बेिझझक होकर पूछो मेरे दोःत, रामजनम, तुSह- सब बतायेगा। इतनी दे र म- रामजनम पर भी दा अपना असर कर चुकी थी और इसके चलते वह भी खुद पर अपना िनयंऽण खोने लग गया था। तुम कुछ समय पहले िहंद ू थे मेरे दोःत और अब तुम मुसलमान हो, हो न? एकदम हँू मेरे दोःत और पूरी तरह हँू । इसका मतलब तुम एक ही समय म- दो अलग-अलग तरह की और एक दसरे के एकदम ू िवपरीत िजंदिगयाँ जीते हो। बोलो जीते हो ना? हाँ जीता हँू । ऐसे म-, एक बात जो मेरी समझ म- नहींआयी वह यह है िक, तुम अपनी इन दोन3 िज दिगय3 के साथ तालमेल कैसे िबठाते हो?

सच कहँू मेरे दोःत, तो मुझे अपनी दोन3 िज दिगय3 म- तालमेल िबठाने की कभी जरत ही नहींपड़ती। थोड़ी दे र सोचने के बाद, रामजनम हॅ सते हए ु उसे जबाब िदया था। अZछा? वह कैसे? वह इस तरह िक जब म9 रामजनम होता हं ू तो मि दर जाता हँू पूजा पाठ करता हँू , होली दशहरा और दीवाली ठीक वैसे ही मानता हँू जैसा एक िह द ू मनाता है और जब म9 रमजानी होता हँू तो मिःजद जाता हँू नमाज पढ़ता हँू , ईद, बकरीद मानता हँू , और वैसा ही म9, अपनी दोन3 बीिबय3 के साथ भी िनभाता हँू । कमाल है...... आxय7 से उसकी आँखे थोड़ी दे र तक फैली रही थी और िफर एक बड़ी गहरी शरारत, उसके चेहरे पर ितर आई थी। कर लेते ह3गे मेरे दोःत, जर कर लेते ह3गे ू Fय3िक बनने की कला म- तुम बड़े ऊँचे दजM के कलाकार जो ठहर- । उसकी यह कटिy और उसके कहने का अं दाज काफी चुभने वाला था और वह रामजनम को चुभा भी था लेिकन ू अपने ःवभाव के अनुप, राम जनम उसकी इस कटिy को कोई तवRजो नहींिदया था, और उसे हंसकर उड़ा िदया था। इसके बाद दोन3 म- कोई बात नहींहई ू , ु थी, िजसकी भी िगलास की दा खWम होती, दसरा बोतल से उड़े लकर कर उसे भर दे ता और इस तरह दोन3 दा की चुिःकयाँ लेते बड़ी दे र तक शराब पीते बैठे रहे थे। मीट पककर तैयार हो गया था तो रामजनम की बीबी, अं गीठी के पास चटाई डाल, दोन3 को खाने पर बैठा, खुद रोिटयाँ स-कने बैठ गई थी और तवे से गरम गरम रोिटयाँ उतारकर उनकी थािलय3 म- परोस-परोस कर उ ह- िखलाने लग गई थी। उसने गोँत बड़ा लजीज बनाया हआ था, और वह और रामजनम, दोन3 उसे, बड़े आमह और सWकार से, Rयादा से ु Rयादा िखला दे ने पर जुटे हए ु थे। लेिकन रामजनम की, अब तक की, िजन कारगुजािरय3 से वह ब हो चुका था, उसे लेकर, उसकी तरफ से, उसका मन, िकसी बड़े षंड़यंऽ की आशंका से िघरा हआ था। हालांिक िदखाने के िलए वह, रामजनम से बड़ा हंस हंसकर बातु कर रहा था और खाने की तारीफ कर करके, बड़ा चटखारे ले लेकर खाना भी खा रहा था, लेिकन उसकी चोर नजर- , रामजनम और उसकी बीबी के चेहर3 और हाव भाव से लेकर, ु , संभािवत खतर3 की टोह लेने म- जुटी हई उसके घर के कोने-कोने म- छपे ु थी। इस आदमी से मेरी, महज कुछ घंट3 की मुलाकात है और वह भी चलती शे न के िडNबे म-। ऐसी मुलाकाते लोग याद रखने तक की जहमत नहींकरते। सफर खWम हआ और वे उसे भूल ु

जाते ह9 लेिकन यह शsस, मेरे साथ ऐसा गुड़ िचउँ टा हो रहा है जैसे, इसकी और मेरी ज म3 की दोःती रही ह3। और इसकी बीबी, यह साली तो उससे भी Rयादा, छँ टींहई ु लगती है। इस तरह हंस हंस कर मुझे िखला रही है-जैसे म9 इसका कोई पुराना यार होऊँ। इन दोन3 के मन म- जर कोई बड़ी खोट है नहींतो भला, िकसी अनजान और अपिरिचत की, कोई इतनी आवभगत कभी करता है Fया? खाना पीना खWम होते होते तक काफी रात बीत चुकी थी। रसोई का सारा काम समेट कर अपना हाथ स-कने के िलए, रामजनम की बीबी अं गीठी के पास आकर बैठी थी तो, राम जनम ने उससे कहा था, ऐसा है बेगम िक रात काफी हो चुकी है और ठंड भी आज बहत गीठी के पास डाल दोण ् ु Rयादा है तुम ऐसा करो िक एक ग3दरी लाकर यहींअं खट...खट....खट... घर के बाहरी दरवाजे की साँकल के बजने की आवाज थी यह। आवाज कान म- पड़ते ही वह घबराकर िवःतरे पर बैठ गया था। रात के इस पहर म-, और बजाने वाले ने, िजस दबे हाथ और आिहःती आवाज म-, साँकल खटखटाया था उसे सुन, डर से उसका कलेजा मुंह को आने लग गया था। खwट, खwट, खwट इस दफा, सांकल के बजने की आवाज Rयादा वजनी थी और बजाने वाले ने सांकल बजाने के साथ सांसो के जोर से रामजनम को आवाज भी िदया था। रामज मा गे ए ऽ ऽ ऽ । दरवाजे की खटर खटर और पुकारने वाले की आवाज पर, रामजनम तो नहीं , लेिकन उसकी बीबी उठी थी और दबे पांव कोठरी से िनकलकर, बाहरी दरवाजे की िसटिकनी खोल दे खी थी तो बाहर उसे शंकर और राम अवतार खड़े िमले थे। Fया हआ ु , इतनी रात म-? रामजनम की औरत, उन दोन3 को अZछी तरह जानती थी, दोन3 रामजनम केधौर3 की लाइन म- रहते थे। वे, उसके अZछे दोःत थे और दोन3 कोिलयरी मकाम भी करते थे। रामज मा नहींहै Fया? राम औतार ने उससे पूछा था। ह9 तो..... लेिकन बात Fया है? यह जान कर िक रामजनम घर म- ही है, वे दोन3 िबना और के या उसे कुछ बताए, घर के अ दर आ गए थे और अं गीठी की धधकती आंच मअपना हाथ सेकने लग गए थे। रामजनम गहरी नींद म- था। बीबी के काफी िहलाने, झकझोरने के बाद वह उठा था तो बीबी पर गुःसा गया था। लेिकन राम औतार और शंकर पर नजर पड़ते ही उसका गुःसा

एकदम से ठंडा पड़ गया था। आज की रात उसे मुदा7 खोदने जाना था इसी के िलए वह, उन दोन3 को बुलाया हआ था लेिकन यह बात, उसके खुद के िदमाग से, पूरी तरह उतर ही ु गई थी। चलना नहींहै Fया? राम औतार ने उससे पूछा था तो वह, झट उठकर खड़ा हो गया था। िदन म- ही रामजनम, Gयापारी से मुदM के िलए पाँच हजार पए की पेशगी थाम चुका था। सुबह होने के पहले, उसे कॄ से मुदा7 िनकालकर, उसके हवाले कर दे ना था। शत7 के िहसाब से बाकी के दस हजार उसे, काम पूरा होने के बाद िमलने को था। धं धे की बात है यह और धं धे म- पैसा उतना महWवपूण7 नहींहोता िजतना िक िकसी को दी हई ु बात पर कायम रहना और वादे के मुतािबक काम करके दे दे ना। Gयापारी को कल ही यहाँ से कूच भी कर जाना था इसिलए िकसी भी हाल म-, उसे यह काम आज ही िनपटा दे ना था। अगर यह काम आज रात नहींहो गया तो इससे न िसफ7 उसकी बतकटी होगी बि,क उसकी साख को भी बwटा लगेगा। रामजनम की, यही सबसे बड़ी खािसयत है िक वह िजतना िकसी से वादा करता है उतना और ठीक वैसे ही उसे पूरा भी करता है। इसी के चलते मािक7ट म- उसकी अZछी शाख है और उसकी इसी साख के चलते, उसे सब पूछते भी है वना7 यह काम करने वाले तो यहाँ अनेक3 घूम रहे ह9 । िबःतरे पर अपना दम साधे बैठा वह, कोठरी के बाहर चलती खुसुर पुसुर पर, अपने कान लगाए, उन लोग3 के भीतर Fया बात हो रही है उसे सुनने की कोिशश म- जुटा हआ था। ु लेिकन वे लोग इतने आिहःते और दबी जुबान मे बितया रहे थे िक उ ह- सुन पाना मुिँकल था। िबःतरे पर बैठे बैठे, इन सालो का आसान िशकार बनने से तो अZछा िक, इनसे िभड़कर अपनी जान बचाऊं सोचा था उसने। अगर इन लोग3 ने िमलकर, मुझे कोठरी के भीतर दबोच िलया या बाहर से सांकल चढ़ाकर कोठरी म- कैद कर िदया तो गुहार लगाने पर भी, कोई नहींसुनेगा इसिलए यहाँ से भाग लेना ही अZछा है, यही सोचकर वह िबःतरे से उतरकर, ज,दी ज,दी अपने कपड़े पहना था और कोठरी के बाहर आकर खड़ा हो गया था। उसे बाहर खड़ा दे ख, शंकर और राम औतार एकदम से सकड़ से गए थे। दोन3 ने पहले तो एक दसरे को सवािलया नजर3 से दे खा था िफर वे रामजनम की बीबी को दे खने लग ू गए थे। रामजनम उस समय आंगन म- एक िकनारे खड़ा, िगलास के पानी से अपना मुह धो रहा था। मुँह धोकर, जब वह पीछे मुड़ा था तो उसे बरामदे म- खड़ा दे ख, वह भी {ण भर के िलए असहज हो उठा था। लेिकन तुरंत ही, खुद पर काबू करके, बड़े आWमिवvास

के साथ, वह उसके पास आया था और उसके कंधे पर हाथ रख, ह,की िझड़की िपलाते हए ु उससे कहा था, तुम Fय3 उठ गये मेरे दोःत, जाकर आराम से सोओ। दरअसल हम लोग3 को अभी और इसी समय, एक बहत ु ही जरी काम िनपटाना हैइसिलए हम लोग बाहर िनकल रहे ह9 । इसके बाद, उसकी अचानक की उपिःथित से हैरान परे शान शं कर और राम औतार को उसने बताया था अरे घबराओ नहींयह मेरा पुराना लंगोिटया है अपना बहत ु ही गहरा दोःत। इतनी िनयाई रात म- और कड़ाके की इस ठंड म- इन तीन3 को, ऐसा कौन सा जरी काम आन पड़ा हैजो इ ह- , अभी और इसी वy बाहर जाने की जरत पड़ गई? रामजनम की तुरंत बाहर िनकलने की बात सुन, वह बुरी तरह घबरा उठा था और इतनी ठंड म- भी उसे ू गए थे। हीलते कांपते, वह राम जनम के पास आया था और बड़ा िमिमयाते पसीने छट हए ु उससे पूछा था, Fया म9 भी, तुSहारे साथ नहींचल सकता राम जनम? अगर तुम चलना चाहो तो चल सकते हो मेरे दोःत, लेिकन इतनी ठंड म- तुम परे शान हो जाओगे। ---------राम अवतार अपने साथ, दो बोतल दा की ले आया था। चार3 बैठकर, िबना िकसी िचखना के, शराब की बोतल खाली िकए थे और बाहर िनकल पड़े थे। राम औतार के हाथ म- एक फावड़ा और शंकर के हाथ म- एक ग9ता था। रामजनम छोटा सा सावेल, Uलािःटक की बोरी, अपने एक हाथ म- और दसरे म- छोटी टाच7 ले रखा था। तीन3 आगे आगे एक लाइन ू म- चल रहे थे, सबसे पीछे वह था। हम लोग कहाँ और Fया करने जा रह- ह9 ? बःती से िनकलकर, चार3 िनचाट म- पहँु चे थे तो उसने राम जनम से पूछा था। लेिकन रामजनम कुछ बताने की बजाय, इःस की आवाज िनकाल, उसे बोलने के िलए मना कर िदया था। थोड़ी दे र म- चार3, एक िनहायत ही वीरान जगह म- पहँु चे थे। रामजनम, राम औतार और शंकर को काम पर लगाकर, उसे अपने साथ िलया था और दोनो एक चबूतरनुमा जगह पर जाकर बैठ गए थे। जहाँ वे बैठे थे, उससे थोड़ी ही दरू पर, राम औतार और शंकर भुकुर भुकुर कुछ खोद रहे थे लेिकन Fया खोद रहे थे, अं धेरे म-, उसे कुछ भी िदखाई नहींपड़ रहा था। िजस चबूतरे पर वह बैठा था, हाथ से टटोलकर, जगह का अं दाजा लगाया था, तो उसे लगा िक वह िकसी कबर पर बैठा हआ है, और कबर का sयाल आते ही, वह डरकर, ु

बगल बैठे रामजनम से एक दम से िलपट गया था। उसे लगा था कबर के भीतर गड़ा आदमी वहाँ से िनकलकर, अपना कंकालनुमा पंजा, उसकी गद7 न पर रख िदया है। वह बड़े जोर से चीख पड़ता, यिद रामजनम उसे, अपनी बांह म- भरकर, जोर से भींच नहींिलया होता। Fया हआ मेरे दोःत, तुम इतना डर Fय3 गये? सांस के जोर से रामजनम, डांटते हए ु ु उससे पूछा था। हम लोग िकसी की कबर पर बैठे हए ु ह9 Fया ? हाँ यह कबर ही है। वे लोग Fया खोद रहे ह9 ? वे लोग, कबर खोद रहे ह9 लेिकन इस समय हम- कुछ बोलना नहींहै हमारी जान काफी खतरे म- ह9 । रामजनम की िहदायत पर एकदम से चुUपी साध िलया था उसने। काम हो गया बास। कबर खोदकर, उसका मुदा7 बाहर िनकाल लेने के बाद राम औतार, उसके पास आकर, बड़ा फुसफुसाते हए ु उसे बताया था। इतनी ज,दी? उसकी बात सुन, रामजनम के मन म- गहरी शंका उठ खड़ी हई ु थी। इतनी ज,दी इन दोन3 ने, कबर खोद कैसे िलया? इWमीनान करने के िलए वह, कबर के पास जाकर टाच7 की रोशनी म- मुदM को दे खा था तो उसे सारी गड़बड़ समझ म- आ गई थी। दरअसल, िदन की रोशनी म-, वे लोग िजस कबर को खोदना तय िकये थे, नशे म- धुc होने की वजह से, दोनो उसे न खोदकर, बगल की एक ताजा तरीन कबर, िजसम- कल ही मुदा7 दफन िकया गया था, उसे खोदकर, उसका मुदा7 बाहर िनकाल िलये थे। यह Fया कर िदया तुम दोनो ने? साबुत और ताजा मुदा7 दे ख रामजनम बुरी तरह झ,ला उठा था। हाँ बास, यह तो बहत ु बड़ा भूल हो िगया, दरअसल झ3क म- कुछ पता ही नहींचला। शंकर बड़ा िगड़िगड़ाते हुए राम जनम से अफसोस ूकट िकया था।

अZछा छोड़ उसे, चल इसे खोदते ह9 , कल उसे दे ने का वादा कर िलये ह9 । नहींिमलने पर वह गुःसा करे गा, इसके बाद वे तीन3, बगल की एक काफी पुरानी कबर खोदने म- जुट गये थे। साबुत मुदM को कबर के भीतर, वापस दफनाने म- काफी वy लगता और Rयादा दे र तक वहाँ कने म- काफी जोिखम भी था, इसिलए रामजनम, पुरानी कबर का कंकाल, बोरी मभरकर अपने कंधे पर लादा था, और राम औतार और शंकर साबुत मुदM को, अपने कंध3 पर लाद, चल पड़े थे। थोड़ी दे र चलने के बाद, चार3 एक छोटी पुिलया के पास पहं ु च कर क गए थे। रामजनम कुछ बोला नहींथा। इशारे से उन दोन3 को आगे बढ़ने के िलए कहकर, टाच7 की रोशनी फ-क, उनका राःता िदखाने लग गया था। पुिलया के नीचे से, एक जोहड़ बहता था। ताजा मुदM को कंधे पर लादे लादे रामऔवतार और शंकर पुिलया के नीचे गये थे और मुदM को पानी म- उतार, दो, तीन बड़े पWथर3 से उसे दबाकर, रामजनम के पास वापस आ गये थे। ठीक से दबा िदया है न? हाँ दबा िदया बास। लेिकन रामजनम को, उनकी बात का भरोसा नहींहआ था। वह खुद जोहड़ के पास जाकर, ु टाच7 की रोशनी म- पानी म- दबे मुदM को दे खा था और मुदा7 ठीक से दबाकर रखा गया है इस बात का इWमीनान हो लेने के बाद वापस आ गया था। -------------शंकर और राम औतार को, वहींसे िवदा करके, रामजनम, बोरी का कंकाल अपने कंधे पर ु का एक छोटा जंगल पड़ा था। जंगल लाद, चल पड़ा था। थोड़ी दे र चलने के बाद, फुटस पार करने के बाद, एक बंगला आया था। बंगला, बड़ी एका त और सुनसान जगह म- था लेिकन वह काफी िवशाल था और उसके चार3 तरफ काफी लंबी और ऊँची बाउ|सी थी और बाउ|सी पर, चार3 तरफ वैपर लाइट- दगदगा रही थीं। जैसे ही वे दोन3, बंगले के गेट पर पहँु चे थे, भीतर से दो अ,सेिसयन कुcे शेर3 की तरह दहाड़ते, गेट की तरफ दौड़ पड़े थे। कुc3 के गेट पर पहँु चने के थोड़ी ही दे र बाद, एक आदमी हाथ म- राइफल िलये, गेट पर आया था। वह खुद को िसर से लेकर पाँव तक, मोटे

ऊनी कSबल से ढाप रखा था लेिकन चेहरा उसका खुला हआ था। उसका चेहरा बाघ की ु तरह बड़ा था और उसी की तरह खूख ँ ार भी था। यह कौन है? राम जनम के साथ, दसरे आदमी को खड़ा दे ख, गुरा7ती आवाज म- उसने ू उससे पू◌ॅछा था। य य....... यह मेरा दोःत है हजू ु र, उसके पूछने पर रामजनम बुरी तरह िसकुड सा गया था। अपनी सफाई म-, करीब करीब हकलाते हए ु उसने उसे बताया था, इस बेवकूफ को म9 अपने साथ आने से मना िकया था हजू ु र, लेिकन यह नहींमाना। हऊ ऊम ऽ ऽ ऽ रामजनम को, इस तरह की गलती दोबारा नहींकरने के िलए, वह उस पर गुरा7कर, पय3 की एक गBडी, उसकी तरफ उछाल, वापस लौट गया था। पय3 की गBडी, हवा म- फड़फड़ाती, रामजनम के ठीक सामने आकर िगरी थी। वह दौड़कर उसे जमीन से उठा िलया था और अपने माथे से लगा, िबना िगने ही अपनी भीतरी जेब म- डाल, बोरी का कंकाल वहींगेट पर छोड़, अपने घर आ गया था। -----------रामजनम के साथ, वह िजस डरावनी और हैरत अं गेज दिनया से गुजर कर वापस लौटा ु था, उसे लेकर उसका िदमाग उड़ सा गया था। घर पहँु चकर रामजनम तो, पहले की तरह ही बरामदे के अपने िबःतरे पर लेट गया था और थोड़ी ही दे र म- खरा7टे भरने लग गया था, लेिकन वह, बदहवास सा, अपनी आँखे फाड़े , चार3 तरफ ताकता िबःतरे पर बैठा रहा था। सुबह पता नहींवह और िकतनी दे र सोया रहता, यिद राम जनम के दरवाजे के िपटने की ू न गई होती। दर असल हआ आवाज से, उसकी नींद, टट ु यह था िक रात म- वे लोग, िजस आदमी की ताजी, लाश, कबर से खोद लाए थे, उसके घर वाले सुबह, जब अगरबcी जलाने और फूल चढ़ने के िलए, कबर पर पहं ु चे थे तो यह दे ख कर हैरान रह गए थे िक उनकी कबर न िसफ7 खुदी हई ु है बि,क उसम- दफनाई लाश भी नदारद है। और जब लोग3 ने दे खा िक उस कबर से सटी, एक दसरी काफी पुरानी कबर, और भी खुदी हई ू ु है और उसका भी कंकाल नदारत है, तो उ ह- यह समझते दे र नहींलगी थी िक कोई आदमी, रात मकबर खोद कर, उसम- दफन उनके अजीज की लाश िनकाल ले गया है।

कबर म- दफन आदमी, यिद िजंदा रहते, कही भाग परा गया होता या नदी तालाब म- कूद कर, अपनी जान दे िदया होता तो शायद, इस घटना से, उसके घर वाल3 के िदल को उतना आघात नहींपहं ु चता, िजतना आघात उ हे , कबर के खुदने और उसमे से उनके अजीज की लाश िनकाल िलए जाने से पहं ु चा था। उ हे लगा था जैसे िक खोदने वाला, कबर खोदकर, उनके अजीज की लाश नहींउठा ले गया है बि,क, िजस अभे~ और ःथाई दग7 ु म- वे उसे, पृवी के रहने तक, िनिxंत और सुरि{त रहने के िलए, पहं ु चा आए थे उसे ढहाकर, उसने उसे दरबदर करके हमेशा-हमेशा के िलए भटकने के िलए छोड़ िदया है। अपने अजीज की दग7 ु ित का यह खयाल, उ हे बुरी तरह परे शान करके रख िदया था। इसे लेकर जहाँ एक तरफ वे बुरी तरह उcेिजत थे और उनम- गहरा तरफ लोग गहरे सदमे म- थे वही दसरी ू रोष था। घर के लोग, कबिरःतान से लौटकर, इस हौलनाक घटना की जानकारी िकसी को दे ते, इसके पहले ही यह खबर उड़कर उनकी बःती म- पहँु च गई थी। और इसके बाद, इस तरह की तमाम खबर3 के िमलने पर जैसा होता है वैसा ही सब कुछ, इस खबर के बःती मपहं था। खबर सुनकर पहले तो लोगो को जै से हजार वो,ट के कर- ट ु चने के बाद भी हआ ु का झटका सा लगा था और जो जहाँ और िजस हाल म- था एक दम से सु न रह गया था कुछ इस तरह, जैसे उनकी शरीर की सारी चेतना ही खींच ली गई हो। अपनी इस हाल से, िकसी तरह उबर कर, जब लोग, अपनी चेतना म- लौटे थे तो, उनके िसर पर, अजीब तरह का पागलपन सवार हो गया था और वे हा हा करते, अपने घर3 से िनकल कर, िजस घर के आदमी की लाश गायब हई ु थी, उसके घर की तरफ दौड़ पड़े थे। और दे खते ही दे खते उस घर के दरवाजे पर, लोगो की भारी भीड़ जमा हो गई थी। यह एक ऐसी भीड़ थी जो, पहले से ही बुरी ःतNध, उcेिजत और गुःसे से भरी हई ु थी। लेिकन जब वहांमौजूद कुछ शाितर िदमाग लोग इस घटना को, उनके अिःतWव और अिःमता का सवाल बताकर, उ हललकारना शु कर िदए थे तो िफर भीड़, अपना आपा खो बैठी थी और अररते घहरते, रे ल रोकने, रोड़ जाम करने और बसे तोड़ने, जलाने के िलए बःती से िनकल कर सड़क3 पर आ गई थी। --------धाड़, धाड़, धाड़ राम जनम के घर के दरवाजे के िपटने की आवाज थी यह। आवाज इतनी तेज और कक7श थी िक गहरी नींद म- होने पर भी उसे लगा था जैसे कोई उसके कान के ू गई थी और वह हड़बड़ाकर िबःतरे पास नगाड़ा पीट रहा है। इसे सुनकर उसकी नींद टट पर बैठ गया था।

अरे कुछ सुना तैने? दरवाजा भड़भड़ाकर खुला था तो कोई दौड़कर भीतर आया था और घबराई आवाज म- राम जनम से पूछा था। Fया हआ तू इतना घबराया Fय3 है? ु चारो तरफ बहत है। पुिलस जगह-जगह छापा मारी करके, लोगो की ु बड़ा हंगामा मचा हआ ु धर पकड़ कर रही है, कही वह इिधर......। राम औतार था यह जो घबराया, राम जनम को यह बुरी खबर सुना रहा था। बे हू ऊ ऊ दा आ ऽ ऽ कही वह आ ऽ ऽ, बस इतनी सी बात के िलए तू सबेरे-सबेरे, मेरी नींद हराम करने पहं ु च गया ऽ ऽ। नींद म- खलल पड़ने से राम जनम, राम औतार पर बुरी तरह झ,ला उठा था। पुिलस छापा मारती है तो मारने दे इसमे इतना घबराने का Fया है? लेिकन चार3 तरफ मचे हंगामे और पुिलस की छापा मारी की खबर सुन, इतनी ठंड़ म- भी वह पसीने पसीने हो उठा था। इसके बाद कोठरी म- उसका का रहना मुिँकल हो गया था और वह वहाँ से भागकर बरामदे म- आकर खड़ा हो गया था। राम जनम, राम औतार को िजस बुरी तरह डाँट रहा था उसे दे ख कर वह भौचक था। इन लोगो ने इतना बड़ा कांड़ कर िदया है और इसे लेकर, सारे शहर मे, हंगामा मचा हआ है और पुिलस चारो ु तरफ छापामारी करके लोगो की धर पकड़ कर रही है लेिकन इस शsस को न तो अपने िकए का कोई पxाताप है और न ही पुिलस या और िकसी की जरा सी डर ही है। राम जनम से डांट खाकर, राम औतार वहाँ से चला गया था तो वह बड़ा डरते डरते, राम जनम की बगल आकर बैठ गया था और उसका कंधा पकड़, बडी िघिघयानी आवाज मउससे पूछा था, राम जनम मेरे दोःत, मैअपने घर सुरि{त पहं ु च जाऊँगा तो? तुम एकदम िनिxंत रहो मेरे दोःत, इसमे न तो तुSह- कुछ होगा, न ही मुझे, और न ही िकसी और को। तुम एकदम सकुशल और खुशी-खुशी, अपने घर पहं ु चोगे। जब तक राम जनम है तुSह- जरा सा भी ड़रने की जरत नहींहै-- अं य। लेिकन राम जनम तुम यह बात, इतने दावे के साथ कैसे कह रहे हो। कहींतुम मुझे छल तो नहींरहे हो? बड़ा अधीर हो वह िमिमयाकर, राम जनम के सामने, अपना चेहरा रोप िदया था।

इतने दावे के साथ, ऐसा मैइसिलए कह रहा हं ू मेरे दोःत, िक अगर यह बात राम जनम की होती तो पुिलस मेरे घर कब की पहं ु च चुकी होती। लेिकन िजन लोगो ने इसे करवाया है न, वे बड़ी ऊंची पहं ु च वाले आदमी है इसिलए पुिलस या और कोई हम लोग3 पर हाथ, कभी नहींडालेगा। राम जनम िजतने िवvास और िनडरता के साथ, उसकी पीठ थपथपाकर उससे यह बात कहा था उससे उसे बड़ी आvिःत और सुकून िमला था। िनWयिबया से िनपटने के बाद, हाथ मुंह धोकर, जब राम जनम और वह, धधकती अं गीठी के पास मूढ़े ड़ाल, चाय पीने बैठे थे तो एक बात, जो उसे लगातार मथे डाल रही थी, उसे उसने राम जनम से पूछ िलया था। राम जनम, तुम लोगो ने कबर से मुदा7 उखाडने के बाद उसे जोहड के पानी म- Fय3 दबा िदया था? दर असल वह मुदा7 ताजा था। Gयापारी को िसफ7 कंकाल की जरत होती है इसिलए उसे सड़ने के िलए, हम लोगो ने वहांदबा िदया है। जब वह पूरी तरह सड़ जाएगा तो उसे िनकाल धोकर हम लोग साफ कर ल-गे और उसका कंकाल Gयापारी को सfप द- गे। Gयापारी को ओ ऽ ऽ? हा◌ॅ आँ ऽ ऽ ऽ। इसका मतलब तुम लोग यह काम Gयापार की तौर पर करते हो? हा◌ॅ आ ऽ ऽ ऽ। लेिकन Gयापार के िलए तो काफी कंकाल की जरत होती होगी। तुम लोग3 को इतना कंकाल भला िमलता कहाँ से है यही कबर खोद कर? नहींयार, कंकाल3 की िजतनी िडमांड है अगर हम लोग उसे, कबर- खोद कर पूरी करने लग-, तो सारी कबर- , मुद€ से खाली हो जाऐगी। दर असल अःपताल3 और सड़क3 से हमे, बडी तादात म- लावािरस मुदM िमल जाते ह9 । हम लोग सड़ने के िलए उ ह- पानी म- दबा दे ते है। जब वे पूरी तरह सड़ जाते है तो उ ह- िनिकया धोकर साफ कर लेते है। हाँ, कभी कभार, कंकाल3 की मांग जब बहत ु बढ़ जाती है और लावािरस मुद€ से, उसे, पूरी करना मुिँकल हो जाता है तो, उस सूरत म- हम लोग कबर- खोदकर उसे पूरा करते है। लेिकन राम जनम, तुम इतना घिटया और नीच काम, भला करते ही Fयो हो?

राम जनम उसकी इस बात पर बड़े जोर से हँ सा था और दे र तक हँ सता रहा था। इस काम को तुम घिटया और नीच कैसे कहते हो मेरे दोःत? यह काम घिटया नहींहै राम जनम? जैसा बेिहचक होकर और िजस _ढ़ता के साथ रामजनम उससे यह बात कहा था उसे सुनकर उसे बड़ी हैरानी हई ु थी। कतई नहीं.....। दे खो मेरे दोःत, मेरे खयाल से, घिटया और नीच, वह काम होता है िजससे िकसी का नुकसान होता हो या िकसी का कुछ िबगड़ता हो। मेरा अपना असूल है िक मैअगर अपने हाथ से, िकसी का कुछ भला नहींकर सका तो उसका बुरा तो कतई नहींकँगा। िकसी का बुरा करना ही म9 घिटया काम समझता हँू । लेिकन तुSहारा यह काम भी तो बुरा ही है राम जनम, िकसी मुदM को पानी म- सड़ाना और िफर उसे िनिकया धो कर उसका कंकाल बेचना.....िछः। इसम- ऐसा बुरा Fया है मेरे दोःत, मुझे तो इसमे कोई बुराई नहींिदखती। और अगर, यह बुरा है भी तो वह, िसफ7 तुSहारे मन के भीतर है। तुSहींबताओ, मेरे ऐसा करने से, कहाँ िकसी का कोई बुरा होता है। अरे मुदा7 तो मुदा7, वह हर हाल म- मुदा7 है। मुदM को गाड़ दो, जला दो उसे बाहर चील कौओंके खाने के िलए छोड़ दो या सड़ाकर उसका कंकाल बेच दो, इससे कहींिकसी का, कोई नुकसान हआ Fया? ु चाय के दो तीन घूँट, हलक के नीचे उतारने के बाद ही, वह मुदM की बाबत, राम जनम से पूछ िलया था। इसके पहले वह, यह सोचकर अपने मन को तस,ली दे िलया था िक जाने दो साले को, मुझे कौन इसके घर की बगल छा ही ड़लना है या इसके साथ िरँतेदारी जोड़ना है िक उसकी इन िघनौनी कततूत3 की सोच-सोच कर, हलाकान होता रहँू । वह तो मेरे सामने ऐसे हालत पै दा हो गए थे िक मुझे, इसके घर आना पड़ गया नहींतो, ऐसे अधम के घर म9 आता कभी? जो करता है करे साला, मुझे इससे Fया लेना दे ना। अब तो बस नाँता करना है िमले तो दो कौर खाकर, अपने घर का राःता पकड़ लेना है। लेिकन जब राम जनम उसे यह बताया था िक वह, मुद€ को सड़ाने और उ ह- िनिकया धोकर, उसके कंकाल बेचने जैसा अधम और िघनौना काम करता है तो इसे सुनकर, उसके ूित उसका मन घृणा से भर गया था और वह ज,दी से ज,दी उसके घर से िनकल भागने के िलए उतावला हो उठा था। -------सोमेश शेखर च ि

आर ए िमौ, 2284/4 शाƒी नगर, सुलतानपुर, उू 228001

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