Aahat Yug By Mahendra Bhatnagar

  • November 2019
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  • Words: 4,937
  • Pages: 68
आहत युग

***मह

भटनागर

* (१) सं ाम; और जस

व न को

साकार करने के िलएस पूण पीढ़ ने कया संघष अनवरत संघष, सव व जीवन- याग; वह हआ आगत ! ु

* कर गया अं कत हर अधर पर हष, चमके िशखर-उ कष ! ो

वल हई ु

हर य

के अंतःकरण म

आग, अिभनव

फूित भरती आग !

सं ा-शू य आहत दे श नूतन चेतना से भर हआ जा त, ु सघन नैरा य-ितिमरा छ न कलु षत वेश बदला दशाओं ने, हआ गितमान जन-जन ु प दन-यु

कण-कण !

* आततायी िनदयी सा ा यवाद श

को

लाचार करने के िलए-

नव- व ास से

योितत

उतारा था समय-पट पर जस

व न का आकार

वह, हाँ, वह हआ साकार*! ु * ले कन तभी.... अ

यािशत-अचानक

ती गामी / धड़धड़ाते / सव ाह , वाथ-िल सा से भरे भूक प ने कर दए खं डतम- विनिमत गगन-चु बी भवन, युग-युग सताये आदमी के शा त के, सुख के सपन ! * इसिलए; फर ढ़ संक प करना है ,

वचन को पूण करना है , वकृ त और धुँधले

व न म

नव रं ग भरना है , कमर कस कर फर क ठन संघष करना है ! (२) अमानु षक आज फर खं डत हआ व ास, ु आज फर धूिमल हई ु अिभनव ज दगी क आस ! * ढह गये साकार होती क पनाओं के महल ! बह गये अितती

अित ामक

उफनते

वार म,

युग-युग सहे जे भ य-जीवन-धारणाओं के अचल !

* आज छाये; फर लय-घन, सूय- सं कृ ित-स यता का फर

हण-आहत हआ ु ,

ष यं -िघरा यह दे श मेरा आज फर ममाहत हआ ! ु * फैली गंध नगर-नगर वषैली

ाणहर बा द क ,

व फोटक से पट गयी धरती, ू सुर ा-दग ु टटे और हर

ाचीर

त- व त हई ु ! * ज मा जाितगत व े ष,

फैला धमगत व े ष, भूँका

ांत-भाषा

े ष,

गँदला हो गया प रवेश ! सव

दानव वेश !

घुट रह साँस द ू षत वायु, वष-घुला जल छटपटाती आयु ! (३) फतहनामा आतंक:◌ः िसयापा ! छलनी / खून-सनी बेगुनाह लाश, खेत -खिलयान म िछतर लाश, सड़क पर बखर लाश ! * िनर ह माँ, प ी, बहन, पु याँ,

पता, ब धु, िम , पड़ोसीरोके आवेग थामे आवेश नत म तक मूक ववश ! * ज

मनाता

पूजा-घर म सतगु -ई र-भ खुदा-पर त ! *** (४)

ासद

दहशत : स नाटा दरू-दरू तक स नाटा ! * सहमे-सहमे कु े सहमे-सहमे प ी चुप ह। * लगता है -

ू र द र द ने िनद ष मनु य को फर मारा है , िनममता से मारा है ! रात -रात मौत के घाट उतारा है ! स नाटे को गहराता गूँजा फर मजहब का नारा है ! खातरा, बेहद खातरा है ! * रात गुजरते ह घबराए कु े रोएंगे, भय- व ल प ी चीखगे ! * हम आहत युग क पीड़ा सह कर इितहास का मलबा ढोएंगे ! (५) होगा कोई *

एक आदमी / झुका-झुका / िनराश दद से कराहता हआ ु तबाह ज दगी िलए गुजर गया। * एक आदमी / झुका-झुका / हताश चोट से लहलु ू हान चीखता हआ / पनाह माँगता / अभी-अभी ु गुजर गया। * (६) हॉकर से यह

या

रोज-रोज तरबतर खून से अखबार फक जाते हो तुम घर म मेरे ? ********* ********* तमाम हादस से रँ गा हआ ु **********अंधाधुंध गोिलय के िनशान

*** पृ -पृ

पर



उभरते !

* *** छूने म.....पढ़ने म इसको लगता है डर, लपट लहराता जहर उगलता डसने आता है अखबार ! * य प यह खबर सुन कर सोता हँू हर रात क कोई कह ं अ य घटना नह ं घट , तनाव है क तु िनयं ण म है सब ! *** (७) आ मघात हम खुद तोड़ रहे ह अपने को ! ता जुब क

नह ं करते महसूस दद ! इसिलए क मजहब का आ दम बबर उ माद नशा बन कर हावी है दल पर सोच-समझ पर। हम खुद हथगोले फोड़ रहे ह अपने ह ऊपर ! पागलपन म अपने ह घर म बा द बछा कर सुलगा आग रहे ह अपने ह लोग पर करने वार- हार ! * हम खुद छोड़ रहे ह

प आदमी का

और पहन आये ह खाल जानवर क गुराते ह छ नने-झपटने जान अपने ह वंशधर क !

*** (८) लोग चल रहे ह लोग िसफ पीछे भीड़ के ! * जाना कहाँ नह ं मालूम, ह बेखबर िनपट मह म, * घूमते या इद िगद अपने नीड़ के ! * छाया इधरउधर जो शोर, आया कह ं न आदमखोर ? * सरसराहट आज जंगल म चीड़ के !

(९) आपा काल तूफान अभी गुजरा नह ं है ! ू चुका है बहत ु कुछ टट ू रहा है , **** टट मनहस ू रात शेष है अभी ! * जागते रहो हर आहट के

ित सजग

जागते रहो ! न जाने कब.....कौन द तक दे बैठेशरणागत। * जहर उगलता फुफकारता आहत साँप-सा तूफान

आखर गुजरे गा ! सब कुछ लीलती घनी

याह रात भी

हो जाएगी ओझल ! * हर पल अल सुबः का इं तजार अ त व के िलए ! (१०) जागते रहना * **** जागते रहना, जगत म भोर होने तक ! * **** छा रह चार तरफ दहशत **** रो रह इं सािनयत आहत वार सहना, संग ठत जन-शोर होने तक ! * **** मु

हो हर य

कारा से

**** जूझना वपर त धारा से जन- वजय सं ाम के घनघोर होने तक !

* **** मौत से लड़ना, नह ं थकना **** अंत तक बढ़ना नह ं

कना

ू हं सक के टटने - कमजोर होने तक ! **** (११) *ज र * इस

थित को बदलो

क आदमी आदमी से डरे, इन हालात को हटाओ क आदमी आदमी से नफरत करे ! * हमारे बुजुग हम नसीहत द क बेटे, साँप से भयभीत न होओ हर साँप जहर ला नह ं होता, उसक फू कार सुन अपने को सहज बचा सकते हो तुम। हं

शेर से भी भयभीत न होओ

हर शेर आदमखोर नह ं होता, उसक दहाड़ सुन अपने को सहज बचा सकते हो तुम ! पशुओं से, प िन छल

य से

ेम करो,

उ ह अपने इद-िगद िसमटने दो अपने तन से उ ह िलपटने दो, कोिशश करो क वे तुमसे न डर तु ह दे ख न भग, पंख फड़फड़ा कर उड़ान न भर, चाहे वह िच ड़या हो, िगलहर हो, नेवला हो ! * तु हारे छू लेने भर से बीरबहट ू व-र ा हे तु जड़ बनने का अिभनय न करे ! तु हार आहट सुन खरगोश कुलाच भर-भर न छलाँगे

सरपट न भागे ! * ले कन दरू-दरू रहना सजग-सतक इस आदमजाद से ! जोन फुफकारता है , न दहाड़ता है , अपने मतलब के िलए सीधा डसता है , िछप कर हमला करता है ! कभी-कभी य ह इसके-उसके परखचे उड़ा दे ता है ! फर चाहे वह आदमी हो, पशु हो, प ी हो, फूल हो, प ी हो, िततली हो, जुगनू हो ! * अपना, बस अपना उ लू सीधा करने

यह आदमी बड़ा मीठा बोलता है , सुनने वाले कान से मधुरस घोलता है ! * ले कन दबाए रखता है वषैला फन, दरवाजे पर सादर द तक दे ता है , ’जयराम जी‘ क करता है ! तु हारे गुण गाता है ! और फर सब कुछ तबाह कर हर तरफ से तु ह तोड़ कर तडपने-कलपने छोड़ जाता है ! * आदमी के सामने ढाल बन कर जाओ, भूख-े नंगे रह लो पर, उसक चाल म न आओ ! ऐसा करोगे तो सौ बरस जओगे, हँ सोगे, गाओगे !

* इस

थित को बदलना है

क आदमी आदमी को लूटे, उसे लहलु ू हान करे, हर कमजोर से बला कार करे , िन

नृशस ं

हार करे ,

अ याचार करे ! और फर मं दर, मस जद, िगरजाघर, गु भजन करे , ई र के स मुख नमन करे ! * (१२) इितहास का एक पृ * सच है िघर गये ह हम चार ओर से हर कदम पर नर-भ

य के च

यूह म,

ारा जाकर

भ चक-से खड़े ह लाश -ह डय के ू म ! ढह * सच है फँस गये ह हम चार ओर से हर कदम पर नर-भ

य के दरू तक

फैलाए- बछाए जाल म, छल-छ



उनक िघनौनी चाल म ! * बा द सुरंग से जकड़ कर कर दया िन



हमारे लौह-पैर को हमार श

शाली

ढ़ भुजाओं को !

भर दया घातक वषैली गंध से दग ु ध से

चार

दशाओं क हवाओं को !

* सच है उनके

ू र पंज ने

है दबा रखा गला, भींच डाले ह हर अ याय को करते उजागर दहकते र

म अधर !

म त क क नस-नस ववश है फूट पड़ने को, ठठक कर रह गये ह हम ! खं डत परा म अ त व / स ा का अहम ् ! * सच है क आ ामक- हारक सबल हाथ क जैसे छ न ली

मता वरा-

अब न हम ललकार पाते ह न चीख पाते ह,

वर अव मानवता- वजय- व ास का, सूया त जैसे गित- गित क आस का ! अब न मेधा म हमार ांितकार धारणाओं-भावनाओं क कडकती ती

व ुत क धती है ,

चेतना जैसे हो गयी है सु न जड़वत ् ! * चे ाह न ह / मजबूर ह, है रान ह, भार थकन से चूर ह ! * ले कन नह ं अब और थर रह सकेगा आदमी का आदमी के हं सा- ू रता का दौर !

ित

* ढ़ संक प करते ह क ठन संघष करने के िलए, इस

थित से उबरने के िलए !

* (१३) वसुधैवकुटु बकम ् * जाित, वंश, धम, अथ के नामाधार पर आदमी आदमी म करना भेद- वभेद, कसी को िन न कसी को ठहराना

े ,

कसी को कहना अपना कसी को कहना परायाआज के उभरते-सँवरते नये व गंभीर अपराध है , अ

य अपराध है ।

* करना होगा न -



ऐसे य

को / ऐसे समाज को

जो आदमी-आदमी के म य वभाजन म रखता हो व ास अथवा िनधनता चाहता हो रखना कायम। * स दय के अनवरत संघष का सह-िच तन का िन कष है क हमार -सबक जाित एक है - मानव, हमारा-सबका वंश एक है - मनु-

ा,

हमारा-सबका धम एक है - मानवीय, हमारा-सबका वग एक है -

िमक।

* रं ग

प क

विभ नता

सु दर व वध पा

कृ ित है ,

इस पर व मय है हम इस पर गव है हम, सुदरू आ दम युग म ल बी स फ द ू रय ने हम िभ न-िभ न भाषा-बोल दए, िभ न-िभ न िल प-िच ह दए। * क तु आज इन द ू रय को ान- व ान के आलोक म हमने बदल दया है नजद कय म, और िल प-भाषा भेद का अँधेरा जगमगा दया है पार प रक मेल-िमलाप के

काश म,

मै ी-चाह के अद य आवेग ने तोड़ द ह द वार / रे खाएँ जो बाँटती ह हम विभ न जाितय , वंश , धम , वग म।

*** (१४)

ाचार

गाजर घास-सा चार तरफ या खूब फैला है ! दे श को हर



पतन के गत म गहरे ढकेला है , करोड़ के बहमू ु य जीवन से ू र वहशी खेल खेला है ! * व जत गिलत यवहार है , द ू षत आचार है । ** (१५) अंत जमघट ठग का कर रहा जम कर

पर पर मु

जय-जयकार !

* शीतक-गृह म बस फलो-फूलो, वजय के गान गा िन

त च कर खा,

हँ डोले पर चढ़ो झूलो ! जीवन सफल हो, हर सम या शी

हल हो !

* धन सव व है , वच व है , धन-तेज को पहचानते ह ठग, उसक असीिमत और अपर पार म हमा जानते ह ठग ! * क तु; सब पकड़े गये कानून म जकड़े गये िस

वामी; राज नेता सब !

धूत मं ी; धमचेता सब ! * अच भा ह अच भा ! ह डं बा है ; नह ं र भा ! * मुखौटे िगर पड़े नकली मुखाकृ ित दख रह असली ! * (१६) र ा दे श क नव दे ह पर िचपक हई ु जो अनिगनत ज के-जलौक, र -लोलुप लोभ-मो हत बुभु



ज के-जलौकआओ उ ह नोच-उखाड़े , धधकती आग म झ क !

उनक आतुर उफनती वासना को फैलने से सब-कुछ लील लेने से अ वल ब रोक ! दे श क नव दे ह ू नह ,ं य टटे खुदगरज कुछ लोग वकिसत दे श क स प नता लूटे नह ं ! * (१७) तमाशा * तुम भी िघसे- पटे िस के फक कर चले गये*? अफसोस क हम इस बार भी छले गये*! * दे खो-

खोटा िस का है न ’धम-िनरपे ता‘ का ? और दसरा यह ू ’सामा जक मा

याय- यव था‘ का ?

ये नह ं

और ह सपाट िघसे काले िस के’रा ीय एकता‘ के / ’सं वधान-सुर ा‘ के जो तुम इस बार भी वदषक के काय-कलाप -सम ू फक कर चले गये*! * तुम तो भारत-भा य- वधाता थे ! तुमसे तो चाँद -सोने के िस क क क थी उ मीद, क तु क कैसी िम ट पलीद ! * अ त ु अंधेरे तमाशा है घनघोर िनराशा है ,

यह कस जनतं - णाली का ढाँचा है ? जनता के मुँह पर तड़-तड़ पड़ता ती

तमाचा है !

* (१८) वोट क द ु नीित दिलत क गिलय से कूच और मुह ल से, उनक झोप प ट के बीच -बीच बने-िनकले ऊबड़-खाबड़, ऊँचे-नीचे पथर ले-कँकर ले सँकरे पथ से िनकल रहा है दिलत का आकाश गुँजाता, नभ थराता भ य जुलूस ! * नह ं कराये के गलफोडू नारे बाज नकलची असली है , सब असली ह जी-

मोटे -ताजे, ह टे -क टे मु टं डे-प ठे , कुछ त द िनकाले गोल-मटोल ओढे महँ गे-महँ गे खोल ! * सब दे ख रहे ह कौतुकदिलत के नंग-धड़ं ग घुटमुंडे काले-काले ब चे, मैली और फट च ड -बिनयान वाले लड़के-फड़के, झ पडय के बाहर घूँघट काढ़े दिलत क माँ-बहन या कहने ! िच -िलखी-सी दे ख रह ह, पग-पग बढ़ता भ य जुलूस, दिलत का र क, दिलत के हत म भरता हँु कार, दे ता ललकार

िच

खँचाता / पीता जूस !

िनकला अित भ य जुलूस ! कल नाना ट वी-पद पर दिनया दे खग े ी ु यह ह , हाँ यह ह दिलत का भ य जुलूस ! * अफसोस ! नह ं है शािमल इसम दिलत क टोली, अफसोस ! नह ं है शािमल इसम दिलत क बोली ! (१९) घटनाच हमने नह ं चाहा क इस घर के सुनहरे - पहले नीले गगन पर घन आग बरसे !

* हमने नह ं चाहा क इस घर का अबोध-अजान बचपन और अ हड़ सरल यौवन यार को तरसे ! * हमने नह ं चाहा क इस घर क मधुर

वर-लह रयाँ

खामोश हो जाएँ, यहाँ क भूिम पर कोई घृणा

ितशोध हं सा के

वषैले बीज बो जाए ! * हमने नह ं चाहा लय के मेघ छाएँ और सब-कुछ द बहा,

गरजती आँिधयाँ आएँ चमकते इं धनुषी व न-महल को हला कर एक पल म द ढहा ! * पर, अनचाहा सब सामने घटता गया, हम दे खते केवल रहे , सब सामने मशः ू उजड़ता टटता हटता गया ! *** (२०) िन कष उसी ने छला अंध जस पर भरोसा कया, उसी ने सताया कया सहज िनः वाथ जसका भला !

* उसी ने डसा दध ू जसको पलाया, अनजान बन कर रहा दरू या खूब र ता िनभाया ! * अप रिचत गया बन वह आज जसको गले से लगाया कभी, अजनबी बन गया यार, भर-भर जसे गोद-झूले झुलाया कभी ! * हमसफर मुफिलसी म कर गया कनारा, ज दगी म अकेला रहा और हर बार हारा ! *** (२१) आ म-संवेदन हर आदमी

अपनी मुसीबत म **** अकेला है ! यातना क रािश-सार मा

उसक है !

साँसत के

ण म

आदमी ब कुल अकेला है ! * संकट क रात एकाक

बतानी है उसे,

घुप अँधेरे म * करण उ मीद क जगानी है उसे ! हर चोट सहलाना उसी को है, हर स य बहलाना उसी को है ! * उसे ह झेलने ह हर कदम पर

आँिधय के वार, ओढने ह व

पर चुपचाप

चार ओर से बढ़ते-उमड़ते

वार !

सहनी उसे ह ठोकरदभा ु य क, अिभश

जीवन क ,

क ठन चढ़ती-उतरती राह पर कटु यं य करतीं ****

ू र-

ड़ाएँ

अशुभ

ार ध क !

उसे ह जानना है

वाद कड़वी घूँट का,

अनुभूत करना है असर वष-कूट का ! अकेले हाँ, अकेले ह ! * य क सच है यहक अपनी हर मुसीबत म

अकेला ह

जया है आदमी !

* (२२) दशा-बोध * िनर ह को दय म

थान दो

सूनापन-अकेलापन िमटे गा ! * जनको ज रत है तु हार जाओ वहाँ, मुसकान दो उनको अकेलापन बँटेगा ! * अनजान

ाणी

जो क चुप गुमसुम उदास-हताश बैठे ह उ ह बस, थपथपाओ यार से मनहस ू स नाटा छँ टेगा ! *

ज दगी म य द अँधेरा-ह अँधेरा है , न राह ह, न डे रा है , रह-रह गुनगुनाओ गीत को साथी बनाओ यह

णक वातावरण गम का

******* हटे गा ! ऊब से बो झल अकेलापन कटे गा (२३)

वीकार

* अकेलापन िनयित है, हष से झेलो इसे ! * अकेलापन

कृ ित है ,

कामना-अनुभूित से ले लो इसे ! *

इससे भागना-बचनावकृ ित है ! मा

अंगीकार करना-

एक गित है ! इसिलए

वे छा वरण,

मन से नमन ! (२४) अवधान * कश-म-कश क

ज दगी म

आदमी को चा हए कुछ

ण अकेलापन !

कर सके गुजरे दन का आकलन ! कसका सह था आचरण ! कौन कतना था ज र या क कसने क तु हार चाह पूर , यार कसका पा सके, कसने कया वंिचत कपट से क उपे ा

और झुलसाया घृणा-भरती लपट से ! * जानना य द स य जीवन का **** त य जीवन का अकेलापन बताएगा तु ह, **** साथक जलाएगा तु ह ! * वरदान सूनापन अकेलापन ! कसी को मत पुकारो, पा इसे मन म न हारो ! रे अकेलापन महत ् वरदान है , अवधान है ! * (२५) सामना प थर-प थर जतना पटका

उतना उभरा ! * प थर-प थर जतना कुचला उतना उछला ! * क चड़ - क चड़ जतना धोया उतना सुथरा ! * कािलख - कािलख जतना साना जतना पोता उतना िनखरा ! असली सोना बन कर िनखरा ! * जंजीर से तन को जब - जब

कस कर बाँधा खुल कर बखरा उ र - द



पूरब - प



बह - बह बखरा ! * भार भरकम चंचल पारा बन कर लहरा ! * हर खतरे से जम कर खेला, वार तु हारा बढ़ कर झेला ! (२६) अकारथ दन रात भटका हर जगह सुख- वग का संसार पाने के िलए ! * किलका खली या अध खली

झूमी मधुप को जब रझाने के िलए ! * सुनसान म तरसा कया तन-गंध रस-उपहार पाने के िलए ! * या- या न जीवन म कया कुछ पल तु हारा यार पाने के िलए ! * डू बा व उतराया सतत व ास का आधार पाने के िलए ! * रख ज दगी को दाँव पर खेला कया, बस हार जाने के िलए ! ** (२७) असह बहत ु उदास मन थका-थका बदन ! बहत ु उदास मन ! * उमस भरा गगन

थमा हआ पवन ु घुटन घुटन घुटन ! * िघरा ितिमर सघन नह ं कह ं करन भटक रहे नयन ! * बहत ु िनराश मन बहत ु हताश मन सुलग रहा बदन जलन जलन जलन ! *** (२८) मूरत अधूर तय है क अब यह ज दगी **** मुहलत नह ं दे गी अब और तुमको ज दगी **** *फुरसत नह ं दे गी ! * गुजरे दन क याद कर, कब-तक दहोगे तुम ? वपर त धार से उलझ, कतना बहोगे तुम ?

रे कब-तलक तूफान के ध के सहोगे तुम ? * य खेलने क , ज दगी **** नौबत नह ं दे गी, अब और तुमको ज दगी **** कूवत नह ं दे गी ! * साकार हो जाएँ अस भव क पनाएँ सब, आकार पा जाएँ चहचहाती चाहनाएँ सब, अनुभूत ह मधुमय उफनती वासनाएँ सब, * यह ज दगी ऐसा कभी **** ज नत नह ं दे गी, यह ज दगी ऐसी कभी **** क मत नह ं दे गी ! *** (२९) मजबूर ज दगी जब दद है तो हर दद सहने के िलए मजबूर ह हम !

* राज है यह ज दगी जब खामोश रहने के िलए मजबूर ह हम ! * है न जब कोई कनारा तो िसफ बहने के िलए मजबूर ह हम ! * ज दगी य द जलजला है ू ढहने के िलए तो टट मजबूर ह हम ! * आग म जब िघर गये ह अ वराम दहने के िलए मजबूर ह हम* ! * स य कतना है भयावह ! हर झूठ कहने के िलए

मजबूर ह हम ! *** (३०) एक रात अँिधयारे जीवन-नभ म बजुर -सी चमक गयीं तुम ! * सावन झूला झूला जब बाँह म रमक गयीं तुम ! * कजली बाहर गूँजी जब िु त- वर-सी गमक गयीं तुम ! * महक गंध

यामा जब

पायल-सी झमक गयीं तुम ! * तुलसी-चौरे पर आ कर अलबेली छमक गयीं तुम ! * सूने घर-आँगन म आ द पक-सी दमक गयीं तुम !

* (३१) सहसा आज तु हार आयी याद, मन म गूँजा अनहद नाद ! **** बरस बाद **** बरस बाद ! * साथ तु हारा केवल सच था, हाथ तु हारा सहज कवच था, **** सब-कुछ पीछे छूट गया, पर **** जी वत पल-पल का उ माद ! **** आज तु हार आयी याद ! * बीत गये युग होते-होते, रात -रात सपने बोते, **** ले कन उन मधु चल-िच **** जीवन रहा सदा आबाद ! **** आज तु हार आयी याद ! ****

से

(३२)

वागत१

जूह मेरे आँगन म महक , रं ग- बरं गी आभा से लहक ! * चमक ले झबर ले कतने इसके कोमल-कोमल कसलय, है इसक बाँह म मृदता ु है इसक आँख म प रचय, * **** भोली-भोली गौरै या चहक **** लटपट मीठे बोल म बहक ! * ल बी लचक ली ह रआई डाल डगमग-डगमग झूली, पाया हो जैसे धन

विगक

कुछ-कुछ ऐसी हली ू -फूली, * **** लगती है कतनी छक -छक **** गह-गह गहन -गहन गहक !

* महक , मेरे आँगन म महक जूह मेरे आँगन म महक ! *** (१ पौ ी इरा के

ित।)

* *** (३३) वषा-पूव आज छायी है घटा **** काली घटा ! * मह न क तपन के बाद अहिनश तन-जलन के बाद * हवाओं से िलपट लहरा उठा ऊमस भरा वातावरण-आँचर ! * कसी ने

डाल द तन पर सलेट बादल क रे शमी चादर ! * मोह लेती है छटा, मोद दे ती है घटा, **** काली घटा ! * (३४) कामना-सूय *(१)** हर य

सूरज हो

**** ऊजा-भरा, **** तप-सा खरा, ******* हर य

सूरज-सा धधकता

******* आग हो, ******* बेलौस हो, बेलाग हो ! *(२)** हर य ****

सूरज-सा

खर,

**** पाब द हो, **** रोशनी का छ द हो !

******* जाए जहाँ******* कण-कण उजागर हो, ******* असमंजस अँधेरा ******* क -बाहर हो ! (३) हर य

सूरज-सा

**** दमकता दखे, **** ऊ मा भरा **** करण धरे , ******* हर य

सूरज-सा

******* चमकता दखे ! **** (३५) एक स य **** **** ब धन **** उभरता है - चुनौती बन **** अ वीकृ ित बन, **** जगाता है सतत **** व ोह / बल / **** *

वाला /

ोध।

ितरोध /

**** ब धन **** उभरता ****

नेह क उपल ध बन,

वीकार बन,

**** जगाता **** मोह / अ य स ध / अपण चाह / **** जीवन - दाह। * ** (३६) उपल ध **** **** सपन के सहारे **** एक ल बी उ **** हमने **** सहज ह काट ली **** बडे सुख से ******* सहन से ******* स

से !

**** मन के गगन *पर **** मु

मँडराती व घहराती

**** गहन बदली अभाव क

**** उड़ा द , छाँट द **** हमने **** अटल व ास के *******

ढ़ वेगवाह वातच

से

**** दन के, रै न के **** अनिगनत सपन के भरोसे ! * **** मौन रह अ वराम जी ली **** यह क ठनतम ज दगी **** हमने **** अमन से, चैन से ! **** सपनो ! **** महत ् आभार, **** वृहत ् आभार ! **** ****** (३७) वचार- वशेष **** सपने आनन-फानन साकार नह ं होते **** पीढ़ -दर-पीढ़ **** सपने माणव-मं

म- म से सच होते ह, से िस

नह ं होते

*** पीढ़ -दर-पीढ़ धृित- म से सच होते ह ! **** ****** (३८) साथकता **** जस दन **** मानव-मानव से यार करे गा, **** हर भेद-भाव से **** ऊपर उठ कर, **** भूल **** अप रिचत-प रिचत का अ तर **** सबका

वागत-स कार करे गा,

**** पूरा होगा **** उस दन सपना ! **** व

लगेगा

**** उस दन अपना ! **** **** (३९) अलम ् **** **** आह और कराह से **** नह ं िमटे गी

**** आहत तन क , आहत मन क पीर ! * ****

ढ़ आ ोश उगलने से

**** नह ं कटे गी **** हाथ -पैर से िलपट जंजीर ! * **** जीवन-र

बहाने से

**** नह ं घटे गी **** लहराती लपट क तासीर ! **** **** आओ **** पीड़ा सह ल, **** बािधत रह ल, **** पल-पल दह ल ! * **** करवट लेगा इितहास, **** इतना रखना व ास ! **** ****** (४०) चाह

**** जीवन अबािधत बहे , **** जय क कहानी कहे ! * **** आशीष-त -छाँह म **** जन-जन सतत सुख लहे ! * **** दन-रात मन-बीन पर ****

य गीत गाता रहे !

* **** मधु- व न दे खे सदा, **** झूमे हँ से गहगहे ! * **** मायूस कोई न हो, **** लगते रहे कहकहे ! * **** हर य

कु दन बने,

**** अ तर-अगन म दहे ! * **** अ ात

ार ध का

**** हर वार हँ स कर सहे ! * **** (४१) स भव (१) * **** आओ **** चोट कर, **** घन चोट कर **** प रवतन होगा, **** धरती क गहराई म **** क पन होगा, **** च टान क परत ******* चटखगी, ू , **** अवरोधक टटगे **** फूटे गी जल-धार ! * **** आओ **** चोट कर, **** िमल कर चोट कर ****

थितयाँ बदलगी,

**** प थर अँकुराएंगे, **** लह-लह **** पौध से ढक जाएंगे ! **** **** (४२) स भव (२) * **** आओ **** टकराएँ, **** पूर ताकत से टकराएँ, **** आखर **** लोहे का आकार ******* हलेगा, **** बंद िसंह- ार ******* खुलेगा ! **** मु

मशाल थामे

**** जन-जन गुजरगे, **** कोने-कोने म **** अपना जीवन-धन खोजगे ! **** नवयुग का तूय बजेगा,

****

ाची म सूय उगेगा !

**** आओ **** टकराएँ, **** िमल कर टकराएँ, **** जीवन सँवरे गा, **** हर वंिचत-पी ड़त सँभलेगा ! **** **** (४३) वपत **** **** आखर, **** गया थम ! **** उठा**** चीखता **** तोड़ता - फोड़ता **** लीलता ****



अंधड़ !

* **** तबाह .... तबाह .... तबाह ! *

**** इधर भी; उधर भी **** यहाँ भी; वहाँ भी ! **** द खते **** ख डहर.... ख डहर.... ख डहर, **** अनिगनत शव ! **** सव

िन त धता,

**** थम गया रव ! * **** दबे, **** चोट खाये, ****

िधर - िस

**** मानव... मवेशी... प र दे **** ववश तोड़ते दम ! * **** भया ांत सुनसान म **** सनसनाती हवा, **** खा गया **** अंग- ित-अंग **** लकवा !

**** अपा हज **** थका श

-गितह न जीवन,

**** वगत-राग धड़कन ! * **** भयानक कहर **** अब गया थम, **** बचे कुछ **** उदासी-सने चेहरे नम ! * **** सदा के िलए **** खो **** घर -प रजन को, **** बलखते **** बेसहारा ! **** असह **** का णक ****

य सारा !

* **** चलो,

**** तेज अंधड़ **** गया थम ! **** गहरा गमजदा हम ! * **** (४४)

व-तं

* **** आकाश है सबके िलए, **** अवकाश है सबके िलए ! * **** वहगो ! **** उड़ो, **** उ मु

पंख से उड़ो !

* **** ऊँची उड़ान **** श

-भर ऊँची उड़ान

**** दरू तक **** वहगो भरो ! **** व ास से ऊपर उठो; **** ग त य तक पहँु चो,

**** अभी सत ल य तक पहँु चो ! * **** ऊँचे और ऊँचे और ऊँचे **** ती

विन-गित से उड़ो,

**** िनडर होकर उड़ो ! **** आकाश यह **** सबके िलए है**** असीिमत **** शू याकाश म **** जहाँ चाहो मुड़ो, **** जहाँ चाहो उड़ो * **** ऐसे मुड़ो; वैसे मुड़ो, **** ऐसे उड़ो; वैसे उड़ो, **** सु वधा व सुभीते से उड़ो ! **** **** अपने

ा य को

******* हािसल करो ! ****

व छं द हो, िन

हो,

**** ऊ वगामी, ऊ वमुख; **** गगनचु बी उड़ान **** दरू तक ******* वहगो भरो ! * **** न हो **** कोई कसी क राह म, **** बाधक न हो **** कोई कसी क **** पूण होती चाह म ! * ****

वाधीन ह सब

****

वानुशासन म बँध,े

**** हम-राह ह **** सँभले सधे ! (समा ) **** * संपक: डा. मह भटनागर

११० बलवंतनगर, गांधी रोड, वािलयर - ४७४ ००२ (म.

.)

फोन : ०७५१-४०९२९०८ ई-मेल : [email protected] (इस पीड एफ़ ई-बुक का िनमाण व

काशन रचनाकार – http://rachanakar.blogspot.com

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