माता- पता के हक़ ु ूक़ ूेम एक विचऽ मनोभाव है । इसी मनोभाव के कारण मनुंय मु ँकल से मु ँकल
काम को सरलतापूवक कर ले जाता है । इसी अनुराग के ूित उ नित तथा ूगित के कृ
का न ऽ को ूा
करता है
य
क जस चीज़ से मनुंय ूेम करता है उसे
अपने ूाण से भी अिधक ूेम करता है । अपने आप को उस के िलए बिलदान कर दे ता है । इसी कारण य द ूेम अ लाह से हो तो पूजा बन जाती है य द ूेम नबी स0 अ0 व0 स0 से हो तो अनुसरण का ूकाश बन जाता है । ूेम माँ-बाप से हो तो अ लाह क ूस नता का कारण बन जाता है । अ लाह तआला सव मानव से ूेम से ूेम करने क आ ा दया है और करता है । इसी कारण उसने मानव को एक दसरे ु तमाम मानव के बीच एक दसरे पर कुछ ु क़ूक़ एंव अिधकार को अिनवाय कया है ु जसे पूरा करना ज़ र है । इन हक ु ू क और वाजबात म सब से पहला और बड़ा हक़
अ लाह का है और वह यह क केवल अ लाह क उपासना तथा उसी क पूजा क जाऐ और उसके साथ कसी को भागीदार न ठहराया जाए। एक बार ूय नबी स0 अ0 व0 स0 ने मआज़ र ज0 से ूशन कया।
ﺍﷲ ﻭﺭﺴﻭﻟﻪ: ﻗﻠﺕ, ﻫل ﺘﺩﺭﻱ ﻤﺎ ﺤﻕ ﺍﷲ ﻋﻠﻰ ﻋﺒﺎﺩﻩ: ﻗﺎل، ﻟﺒﻴﻙ ﺭﺴﻭل ﺍﷲ ﻭﺴﻌﺩﻴﻙ: ﻗﻠﺕ. ﻴﺎ ﻤﻌﺎﺫ : ) ﺤﻕ ﺍﷲ ﻋﻠﻰ ﻋﺒﺎﺩﻩ ﺃﻥ ﻴﻌﺒﺩﻭﻩ ﻭﻻ ﻴﺸﺭﻜﻭﺍ ﺒﻪ ﺸﻴﺌﺎ( ] ﺼﺤﻴﺢ ﺍﻟﺒﺨﺎﺭﻱ ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ: ﻗﺎل، ﺃﻋﻠﻡ [113512 अथ ,,ऐ मआज़ ! , म ने कहाः अ लाह के रसूल हा ज़र हँू , फरमाईये, आपने कहाः
या तुम जानते हो क अ लाह का अपने दास पर कया हक़ है ? म ने उ र दयाः
अ लाह और उस के रसूल अिधक जानते ह। तो आप ने कहाः अ लाह का दास पर हक़ है क वह केवल अ लाह क पूजा कर और उस के साथ कसी को उस का साझीदार न बनाऐ ,, यह तो पहला हक़ हआ हम पर दसरा हक ूय नबी स0 अ0 व0 स0 का है जन के ु ु
िश ा के कारण हम ने अपने वाःत वक मािलक को पहचाना है और वह हक यह है
क हम अपने जीवन के हर मोड़ पर ूय नबी स0 अ0 व0 स0 के आ ा का पालन
कर, जन चीज़ो के करने का हु म दया है वह कर और जन चीज़ से रोका है उस से
क जाएं यह आदे श अ लाह तआला ने हम क़ुरआन म दया है -
[ 7:" ﻭ ﻤﺎ ﺍﺘﺎﻜﻡ ﺍﻟﺭﺴﻭل ﻓﺨﺫﻭﻩ ﻭ ﻤﺎ ﻨﻬﺎﻜﻡ ﻋﻨﻪ ﻓﺎﻨﺘﻬﻭﺍ " ] ﺴﻭﺭﺓ ﺍﻟﺤﺸﺭ अथः <<और तु ह जो कुछ रसूल द उसे ले लो और जस से रोक
क जोओ >>
तीसरे न बर पर हम पर हमारे माता पीता के अिधकार ूचिलत होते ह। जन के ूेम तथा मोह बत, मेहनत और लगन , उनक सेवा और ःवाथ अपने य
याग के कारण ह हमने
व को परवान चढ़ाया है और अ लाह तआला के बाद हमारे उ प न का
कारण भी वह दोन ह, इस िलए अ लाह तथा उस के रसूल के बाद हम पर अपने माता पता का बड़ा अिधकार और
क़ है । यह वजह है क अ लाह ने उन के पद
को काफ ऊंचा और बुलद ं कया है । अ लाह तआला फरमाता है – [ 36 : " ﻭ ﺍﻋﺒﺩﻭﺍ ﺍﷲ ﻭ ﻻﺘﺸﺭﻜﻭﺍ ﺒﻪ ﺸﻴﺌﺎ ﻭ ﺒﺎﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻥ ﺇﺤﺴﺎﻨﺎ " ]ﺍﻟﻨﺴﺎﺀ अथः<<और अ लाह क इबादत करो और उस के साथ कसी को शर क़ न करो और माँ-बाप के साथ एहसान करो >> इस आयत पर िचंतन मनन कर क अ लाह ज ल शानहु ने अपनी पूजा और
उपासना के साथ माता- पता के साथ उपकार करने का आ ा दे कर इनसान को खबरदार कया क उनके साथ हर ूकार क भलाई, ूेम, ःवाथ
याग, कृ पा का
यवहार करो। अ लाह तआला माता- पता के पद, ौे ा, महानता और स मान को बढ़ाते हे तू विभ न शैली से मानव को संबोिधत करता ह जैसा क अ लाह तआला का फरमान है [ 83:" ﻭﺇﺫ ﺃﺨﺫﻨﺎ ﻤﻴﺜﻘﺎﻕ ﺒﻨﻲ ﺇﺴﺭﺁﺌﻴل ﻻﺘﻌﺒﺩﻭﻥ ﺇﻻ ﺍﷲ ﻭ ﺒﺎﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻥ ﺇﺤﺴﺎﻨﺎ " ] ﺍﻟﺒﻔﺭﺓ अथः<< और जब हम ने इसराईल के पुऽ से वचन िलया क तुम अ लाह के सेवाय कसी और क इबादत न करना और माँ-बाप के साथ अ छा सुलूक करना >> प वऽ क़ुरआन म अ य ःथान पर अ लाह तआला फरमाता है [23: ﺎﻩ ﻭ ﺒﺎﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻥ ﺇﺤﺴﺎﻨﺎ" ] ﺍﻹﺴﺭﺍﺀﺒﻙ ﺃﻻ ﺘﻌﺒﺩﻭﺍ ﺇﻻ ﺇﻴ" ﻭ ﻗﻀﻰ ﺭ अथः<< और तेरा रब खुला हु म दे चुका है क तुम उसके िसवाय कसी दसरे क ू अराधना (इबादत) न
करना और माता- पता के साथ अ छा सुलूक करना >>
इसी तरह अ लाह तआला ने मानव को आ ा दया क वह माता- पता के साथ उ म उपकार तथा भलाई का बरताव कर जैसा क अ लाह तआला का फरमान है । [15 : " ﻭﻭﺼﻴﻨﺎ ﺍﻹﻨﺴﺎﻥ ﺒﻭﺍﻟﺩﻴﻪ ﺇﺤﺴﺎﻨﺎ " ] ﺍﻷﺤﻘﺎﻑ अथः << और हमने मानव को ताक द से आ ा दया क वह अपने माता- पता के साथ उपकार कर >> य द कोई मनुंय अ लाह के विस यत को याद कर के माँ-बाप का आदर और उन का स मान करते हऐ ु उनक अधीक सेवा करता है तो अ लाह उन को अ छा बदला
दे गा। पर तु जो मनुंय अ लाह के विस यत को भुला कर माँ-बाप के साथ अशु द यवहार करे गा अ लाह उस अभागी से स त ूशन करे गा। अ लाह तआला के पास ब दो के कम म से ूय कम माता- पता के साथ उ म यवहार है । अ द ु लाह बन मसऊद र ज़ ने ूय नबी स0 अ0 व0 स0 से ूशन
कया।
: ﻗﻠﺕ ﺜﻡ ﺃﻱ ؟ ﻗﺎل, ﺒﺭ ﺍﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻥ: ﻗﻠﺕ ﺜﻡ ﺃﻱ ؟ ﻗﺎل, ﺍﻟﺼﻼﺓ ﻋﻠﻰ ﻭﻗﺘﻬﺎ: " ﺃﻱ ﺍﻟﻌﻤل ﺃﺤﺏ ﺇﻟﻰ ﺍﷲ ؟ ﻗﺎل [ 117454 ﺍﻟﺠﻬﺎﺩ ﻓﻲ ﺴﺒﻴل ﺍﷲ " ] ﺼﺤﻴﺢ ﺍﻟﺒﺨﺎﺭﻱ ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ अथः << कौन सा कत य अ लाह के प पात ूय है ? आप ने उ र दयाः नमाज़ के ूाथिमक समय म नमाज़ पढ़ना , म ने कहाः फर कौन सा ? आप ने उ र दयाः माता- पता के साथ उ म यवहार करना , म ने कहाः फर कौन सा ? आप ने उ र दयाः अ लाह के माग म जहाद करना >> इःलाम धम ने माता- पता को सवौे
पद दया है और उन को इतना ऊंचा और
बुलद ं वग पर बैठाया है क अ य धम म इसका उदाहरण और तुलना नह ं। इःलाम ने माँ-बाप के साथ उपकार और अ छा ःवभाव को अ लाह क पूजा और
आराधना के बाद का दजा तथा पद दया है ।
माता- पता के कुछ अनीवाियत हक़ ु ूक़ िनःसंदेह माता- पता का अपने सपूत पर अनिगिनत हक़ ु ू क़ तथा उपकार है । कोई भी मानव अपने माँ-बाप का हक़ अदा नह ं कर सकता और नह ं उनके कृ पा को िगन
सकता है पर तू उनके कुछ अनीवाियत हक़ ु ू क़ िन ल खत शतर म बयान कया जा रहा है ।
(1)
माता- पता के साथ हर हाल म उपकार एंव इहसान करना जैसा क अ लाह
तआला का आदे श है । [ 8:" و وﺻﻴﻨﺎ اﻹﻧﺴﺎن ﺑﻮاﻟﺪﻳﻪ ﺣﺴﻨﺎ " ] ﺳﻮرة اﻟﻌﻨﻜﺒﻮت अथः और हम ने हर इं सान को अपने माता- पता से अ छा सुलूक करने क िश ा द है ।
(2)
माता- पता के आ ा का पालन करना जब तक वह आ ा ूमेशवर के आदे श के
ूितप ी और उनके कथन के वरोधी न हो जैसा क ूय नबी स0 अ0 व0 स0 ने फरमाया है । [36298 : ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ- " ﻻ ﻃﺎﻋﺔ ﻟﻤﺨﻠﻮق ﻓﻲ ﻣﻌﺼﻴﺔ اﻟﺨﺎﻟﻖ " ] ﺘﺎﺭﻴﺦ ﺒﻐﺩﺍﺩ अथः << अ लाह क नाफरमानी म कसी ब दे क आ ाकार उिचत नह ं >>
उमर र ज़0 के क ़ न ा से माता- पता क बात मा ने क मह वपुण ् ता ःप
उमर फा क़ र ज0 ने अपने पुऽ अ द ु लाह र ज़0 को कहा क तुम अपनी तलाक़ दो ू तु वह अपने
होती है । ी को
ी से अधीक ूेम करते थे उनहो ने तलाक़ दे ने से इनकार
कया फर उमर फा क़ र ज़0 ने नबी स0 अ0 व0 स0 से िगला कया तो आप स0 अ0 व0 स0 ने अ द ु लाह र ज़0 को अपने पता का कहना मा ने और
तलाक़ दे ने का आ ा दया फर अ द ु लाह र ज़0 ने अपनी
(3)
ी को
ी को तलाक़ दे दया।
अगर माँ-बाप अ लाह क नाफरमानी , अ लाह के अित र
कसी अ य क
पूजा , उस के साथ कसी को भागीदार बनाने का आ ा दे तो उनके आ ा का पालन न करना क तु उनके साथ उ म यवहार के साथ जीवन बताना जैसा क अ लाह
तआला का ु म है " ﻭﺇﻥ ﺠﺎﻫﺩﺍﻙ ﻋﻠﻰ ﺃﻥ ﺘﺸﺭﻙ ﺒﻲ ﻤﺎ ﻟﻴﺱ ﻟﻙ ﺒﻪ ﻋﻠﻡ ﻓﻼ ﺘﻁﻌﻬﻤﺎ ﻭ ﺼﺎﺤﺒﻬﻤﺎ ﻓﻲ ﺍﻟﺩﻨﻴﺎ ﻤﻌﺭﻭﻓﺎ " ]ﺴﻭﺭﺓ [ 14 :ﻟﻘﻤﺎﻥ अथः << और अगर वह दोन इस बात क अंधक कोिशश कर के तुम मेरे साथ िशक करो जस का तेरे पास
ान नह है तो तुम उन दोन क बात न मानो और संसार
म उन के साथ भलाई करते हऐ ु जीवन गुज़ारो >> इस आयत क ःप त म सा़द बन अबील व का़स र ज़0 के इःलाम लाने का क़ःसा बहत ु ह िश ा और नसीहत से भरा है । जब साद र ज़0 ने इःलाम ःवीकार कया तो उनक माँ ने कहाः म उस समय तक खाना नह खाऊंगी जब तक तुम
इःलाम छोड़ कर अपने पुवज धम म लौट न आऔ और उनक माँ ने खाना-पीना याग दया। साद र ज़0 ने माँ से कहाः ऐ माता , अगर तेरे पास एक सौ ूाण होती और वह एक एक कर के िनकलती तब भी म इःलाम नह ं छो ं गा। दो दन क भूक हढताल के बाद अंत म उनक माँ ने खाना-पीना आरं भ कर दया।
(4)
माँ-बाप क सेवा करना तथा उनका हर ूकार से धयान रखना अ लाह के माग
मे जहाद करने से उ म औऱ सवौे करते ह।
है जैसा क अ द ु लाह बन अॆ र ज़0 बयान
" ﻗﺎل. ﻨﻌﻡ: ﻓﻘﺎل " ﺃﺤﻲ ﻭﺍﻟﺩﺍﻙ ؟ " ﻗﺎل. ﺠﺎﺀ ﺭﺠل ﺇﻟﻰ ﺍﻟﻨﺒﻲ ﺼﻠﻰ ﺍﷲ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺴﻠﻡ ﻴﺴﺘﺄﺫﻨﻪ ﻓﻲ ﺍﻟﺠﻬﺎﺩ (175940: ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ: " )ﺼﺤﻴﺢ ﻤﺴﻠﻡ. ﻓﻔﻴﻬﻤﺎ ﻓﺠﺎﻫﺩ अथः एक आदमी नबी स0 अ0 व0 स0 के पास अ लाह के पथ म जहाद करने के िलए आ ा लेने के िलए आया तो आपने ूशन
या।
या तु हारे माता- पता जीवीत
ह ? उसने कहाः जी हाँ, आप ने कहाः तो तम उन दोन क
दय क ूेम के साथ
खूब सेवा करो।
(5)
माँ-बाप को बुरा-भला न कहना और नह ं डांटना-फटकारना ब क उनके कसी
बात पर << हँू >> तक न कहना जैसा क अ लाह तआला का फरमान है । [23 : ﻥ ﻋﻨﺩﻙ ﺍﻟﻜﺒﺭ ﺃﺤﺩﻫﻤﺎ ﺃﻭ ﻜﻼﻫﻤﺎ ﻓﻼ ﺘﻘل ﻟﻬﻤﺎ ﺃﻑ ﻭﻻ ﺘﻨﻬﺭ ﻫﻤﺎ" ] ﺍﻹﺴﺭﺍﺀ ﺎ ﻴﺒﻠﻐ" ﺇﻤ अथः << अगर तु हारे पास इन म से एक या यह दोन बुढ़ापे क उॆ को पहंु च जाय तो उनको ऊफ तक न कहना और नह ं उ ह डाँटना >>
(6) य
माता- पता के साथ नीची आवाज़ और इएज़त एहतेराम से बातचीत करना क माँ-बाप अ छ बातचीत एंव आदर तथा स मान के अधीक हक़दार ह।
अ लाह तआला ने भी मानव को इसी क
ु म दया है [23 : " ﻭ ﻗل ﻟﻬﻤﺎ ﻗﻭﻻ ﻜﺭﻴﻤﺎ " ] ﺍﻹﺴﺭﺍﺀ
अथः और उनके साथ आदर तथा स मान से बातचीत करो
(7)
उनके साथ हर ूकार से नरमी करना और ूेम का ःवभाव करना जैसा के
अ लाह तआला का आदे श है । [23 : " ﻭﺍﺨﻔﺽ ﻟﻬﻤﺎ ﺠﻨﺎﺡ ﺍﻟﺫل ﻤﻥ ﺍﻟﺭﺤﻤﺔ " ] ﺍﻹﺴﺭﺍﺀ अथः << और नम तथा मुह बत के साथ उन के सामने इ केसार के हाथ फैलाये रखो >>
(8) त
माता- पता के िलए अ लाह से रहमतो-मग़ फरत क दआ करना , अ लाह ु
ला सब लोग से चाहता है क लोग अपने िलए , माता- पता के िलए , सव
लोग के िलए अ लाह से ह दआ कर ु कर और अपने माँ-बाप के िलए बहत ु ु दआ अ लाह त
ला के इस कथन को खौ़र से पढ़े –
[23 : ﻴﺎﻨﻲ ﺼﻐﻴﺭﺍ " ] ﺍﻹﺴﺭﺍﺀﺏ ﺍﺭﺤﻤﻬﻤﺎ ﻜﻤﺎ ﺭﺒ " ﻭ ﻗل ﺭ
अथः << और कहोः ऐ मेरे रब , उन दोन पर वैसे ह कृ पा कर जैसा क उनह ने बचपन म हम पर दया और हमार पालन पोषन कया >>।
(9)
माता- पता पर पैसा खच करना और उनको जीवन वेयवःथा का साममी
दे ना य द वह मोहताज हो तो अपने प ी तथा सपूत पर उनको तरजी जैसा क ूय नबी स0 अ0 व0 स0 के आदे श से ूमा णत है ।
दे ना
ﻋﻥ ﻋﺒﺩﺍﷲ ﺒﻥ ﻋﻤﺭﻭ ﺒﻥ ﺍﻟﻌﺎﺹ ﺃﻥ ﺃﻋﺭﺍﺒﻴﺎ ﺃﺘﻰ ﺍﻟﻨﺒﻲ ﺼﻠﻰ ﺍﷲ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺴﻠﻡ ﻓﻘﺎل ﺇﻥ ﻟﻲ ﻤﺎﻻ ﻭﻭﻟﺩﺍ ﻭﺇﻥ " " ﺃﻨﺕ ﻭﻤﺎﻟﻙ ﻷﺒﻴﻙ ﺇﻥ ﺃﻭﻻﺩﻜﻡ ﻤﻥ ﺃﻁﻴﺏ ﻜﺴﺒﻜﻡ ﻓﻜﻠﻭﺍ ﻤﻥ ﻜﺴﺏ ﺃﻭﻻﺩﻜﻡ:ﻭﺍﻟﺩﻱ ﻴﺭﻴﺩ ﺃﻥ ﻴﺠﺘﺎﺡ ﻤﺎﻟﻲ ﻗﺎل [ 148533 ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ:] ﺇﺭﻭﺍﺀ ﺍﻟﻐﻠﻴل अथः अ द ु लाह बन अॆ बन
स र ज़0 से वणन है क एक दे हाती नबी स0
अ0 व0 स0 के पास आया और कहाः बैशक मेरे पास धन-दौलत और बाल-ब चे ह। और मेरे पता मेरा धन-दौलत ले लेते ह। आप स0 अ0 व0 स0 ने उ र दया << तुम और तु हार धन-दौलत तु हारे पता क चीज़ है । िनःसंदेह संतान तेर उ म कमाई है तो तुम अपने संतान क कमाई खाओ >> नबी स0 अ0 व0 स0 के इस कथन से माता- पता क सेवा , उन पर अपनी संपती खच करने का उपदे श िमलता है । और उन को हर ूकार से ूसनन रखने का िश ण िमलता है ।
(10) य द माता- पता पुकारे तो उनक
पुकार पर परःतुत होना और उनक जीवन
सामिमय को पूरा करना य द न ली नमाज़ पढ़ रहा हो तो उसे छोड़ कर आना जैसा क हम जुरैज
ब ़ द के क ़ ःसे़ से िश ण िमलता है ।
ﻜﻠﻤﻨﻲ. ﻴﺎﺠﺭﻴﺞ ! ﺃﻨﺎ ﺃﻤﻙ: ﻓﺠﺎﺀﺕ ﺃﻤﻪ ﻓﻘﺎﻟﺕ. ﻜﺎﻥ ﺠﺭﻴﺞ ﻴﺘﻌﺒﺩ ﻓﻲ ﺼﻭﻤﻌﺔ: ﻋﻥ ﺃﺒﻲ ﻫﺭﻴﺭﺓ ﺃﻨﻪ ﻗﺎل : ﻓﻘﺎﻟﺕ. ﻓﺭﺠﻌﺕ ﺜﻡ ﻋﺎﺩﺕ ﻓﻲ ﺍﻟﺜﺎﻨﻴﺔ. ﺍﻟﻠﻬﻡ ! ﺃﻤﻲ ﻭﺼﻼﺘﻲ ﻓﺎﺨﺘﺎﺭ ﺼﻼﺘﻪ: ﻓﻘﺎل. ﻓﺼﺎﺩﻓﺘﻪ ﻴﺼﻠﻲ. ﺍﻟﻠﻬﻡ ! ﺇﻥ ﻫﺫﺍ ﺠﺭﻴﺞ: ﻓﻘﺎﻟﺕ. ﻓﺎﺨﺘﺎﺭ ﺼﻼﺘﻪ. ﺍﻟﻠﻬﻡ ! ﺃﻤﻲ ﻭﺼﻼﺘﻲ: ﻗﺎل. ﻓﻜﻠﻤﻨﻲ. ﻴﺎﺠﺭﻴﺞ ! ﺃﻨﺎ ﺃﻤﻙ ﻭﻟﻭ ﺩﻋﺕ ﻋﻠﻴﻪ: ﻗﺎل. ﺍﻟﻠﻬﻡ ! ﻓﻼ ﺘﻤﺘﻪ ﺤﺘﻰ ﺘﺭﻴﻪ ﺍﻟﻤﻭﻤﺴﺎﺕ. ﻭﺇﻨﻲ ﻜﻠﻤﺘﻪ ﻓﺄﺒﻰ ﺃﻥ ﻴﻜﻠﻤﻨﻲ. ﻭﻫﻭ ﺍﺒﻨﻲ. ﻭﻜﺎﻥ ﺭﺍﻋﻲ ﻀﺄﻥ ﻴﺄﻭﻱ ﺇﻟﻰ ﺩﻴﺭﻩ ﻗﺎل ﻓﺨﺭﺠﺕ ﺍﻤﺭﺃﺓ ﻤﻥ ﺍﻟﻘﺭﻴﺔ ﻓﻭﻗﻊ ﻋﻠﻴﻬﺎﺍﻟﺭﺍﻋﻲ: ﻗﺎل. ﺃﻥ ﻴﻔﺘﻥ ﻟﻔﺘﻥ ﻗﺎل ﻓﺠﺎﺀﻭﺍ ﺒﻔﺅﺴﻬﻡ ﻭ. ﻤﻥ ﺼﺎﺤﺏ ﻫﺫﺍ ﺍﻟﺩﻴﺭ: ﻤﺎ ﻫﺫﺍ ؟ ﻗﺎﻟﺕ: ﻓﺤﻤﻠﺕ ﻓﻭﻟﺩﺕ ﻏﻼﻤﺎ ﻓﻘﻴل ﻟﻬﺎ . ﻓﻠﻤﺎ ﺭﺃﻯ ﺫﻟﻙ ﻨﺯل ﺇﻟﻴﻬﻡ. ﻗﺎل ﻓﺄﺨﺫﻭﺍ ﻴﻬﺩﻤﻭﻥ ﺩﻴﺭﻩ. ﻓﻠﻡ ﻴﻜﻠﻤﻬﻡ. ﻤﺴﺎﺤﻴﻬﻡ ﻓﻨﺎﺩﻭﻩ ﻓﺼﺎﺩﻓﻭﻩ ﻴﺼﻠﻲ ﻓﻠﻤﺎ. ﺃﺒﻲ ﺭﺍﻋﻲ ﺍﻟﻀﺄﻥ: ﻤﻥ ﺃﺒﻭﻙ ؟ ﻗﺎل: ﻗﺎل ﻓﺘﺒﺴﻡ ﺜﻡ ﻤﺴﺢ ﺭﺃﺱ ﺍﻟﺼﺒﻲ ﻓﻘﺎل: ﺴل ﻫﺫﻩ: ﻓﻘﺎﻟﻭﺍ ﻟﻪ ﻭﻟﻜﻥ ﺃﻋﻴﺩﻭﻩ ﺘﺭﺍﺒﺎ ﻜﻤﺎ. ﻻ: ﻗﺎل. ﻨﺒﻨﻲ ﻤﺎ ﻫﺩﻤﻨﺎ ﻤﻥ ﺩﻴﺭﻙ ﺒﺎﻟﺫﻫﺏ ﻭﺍﻟﻔﻀﺔ: ﺴﻤﻌﻭﺍ ﺫﻟﻙ ﻤﻨﻪ ﻗﺎﻟﻭﺍ [175942 : ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ: ﺜﻡ ﻋﻼﻩ ] ﺼﺤﻴﺢ ﻤﺴﻠﻡ. ﻜﺎﻥ अथः अबू-होरै रा र ज़0 फरमाते ह << जुरैज अपने कु या म अराधना (इबादत) करता था तो उसक माँ आई और कहाः ऐ जुरैज ! म तु हार माँ हँू , तुम मुझ
से बात करो ू तु वे नमाज़ पढ़ रहे थे तो
दय म वचार कया, ऐ अ लाह ,मेर
माँ और नमाज़ फर वे नमाज़ पढ़ते रहे , और उसक माता लौट आई फर दसर ु
बार आई और कहा, ऐ जुरैज ! म तु हार माता हँू , तुम मुझ से बात करो ू तु वे नमाज़ पढ़ रहे थे तो
दय म वचार कया, ऐ अ लाह, मेर माता और नमाज़
फर वे नमाज़ पढ़ते रहे , तो उसक माँ ने कहा, ऐ अ लाह जुरैज मेरा पुऽ है और म उस से बात करना चाहती हँू ू तु वे बात करना नह ं चाहता, ऐ अ लाह उसे संभोिगक
ी के सम
बना मृितव न दे , (रावी कहते ह) और य द यौन
स बंिधत क शाप दे ती तो वे करता ! और एक चड़वाहा उसके कु या म आता था। तो एक
ी माम से िनकली और उन दोन ने यौन स बंध कया और औरत
गभ से होगई और एक पुऽ जनम दया। उस से कहा गया क यह कस का है ? औरत ने उ र दयाः यह इस कुटया वाले का है ! लोग अपने कु हार और हथौर से उसके घर को मु ह दम करने लगे फर वह नीचे उ रा तो लोग ने कहा यह या है ? जुरैज हं सा फर ब चे के सर पर हाथ फैरा और कहाः तु हारा बाप कौन
है ? ब चे ने उ र दयाः मेरा बाप चड़वाहा है । तो जब लोग ने ( जनम हे तू )
ब चे को बोलते हऐ ू सूना तो कहा क हम आप के घर को सोने-चाँद से बना दगे तो उसने उ र दयाः नह ं, पर तु जैसा था वैसा ह बना दो।>>
(11)
माता- पता का उपकार मा ना और उनके ूित कृ त
दखाना जैसा क
आकाश-पृथवी के मािलक का आदे श है । [ 14 : " ﺃﻥ ﺍﺸﻜﺭ ﻟﻲ ﻭ ﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻙ " ] ﺴﻭﺭﺓ ﻟﻘﻤﺎﻥ अथः<< तुम मेरे ूित कृ तर ता दखाओ और माँ-बाप के ूित कृ त
दखाओ >>
अ लाह तआला ने मानव को आ ा दया क तम मेरे उपकार का शुब या अदा करो और माता- पता के इहसान का शुब या अदा करो
य
क वाःतव म तुम
जतना भी मेरा फर अपने माँ-बाप का कृ तर ता दखाओगे तब भी वह कम है ।
माता का हक़ पता से अधीक ह। इःलाम ने माँ-बाप का पद बहत ू और उन ु ऊंचा कया है और उन दोन के ूित उ म सुलक
दोन का खूब आदर तथा स मान करने का आदे श दया है । ू तु उन दोन म माता का क़ और अधीकार पता के सम
अधीक दया है य क माँ ने ब चे क दे ख-भाल म
काफ क झेली है । माँ ने संतान के पालन पोषण म बहत ु ज़यादा तकलीफ बदाँत क है । बाल-ब चे को हर ूकार के हष तथा वयाकुिलय से सुर
पालन-पोषण म पता से अधीक बिलदान ू
त कया है । माता ने संतान के
कया है और ब च के िलऐ हर ूकार का
ःवाथ याग दया है । इस िलऐ इःलाम ने माँ को अ छे यवहार का ज़यादा मुःत क़ क़रार दया है । जैसा क नबी स0 अ0 व0 स0 के कथन से ूमा णत है । ﻤﻥ ﺃﺤﻕ ﺍﻟﻨﺎﺱ ﺒﺤﺴﻥ ﺼﺤﺎﺒﺘﻲ ؟ ﻗﺎل، ﻴﺎ ﺭﺴﻭل ﺍﷲ:ﺠﺎﺀ ﺭﺠل ﺇﻟﻰ ﺭﺴﻭل ﺍﷲ ﺼﻠﻰ ﺍﷲ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺴﻠﻡ ﻓﻘﺎل ( ) ﺜﻡ ﺃﺒﻭﻙ: ﺜﻡ ﻤﻥ ؟ ﻗﺎل: ) ﺜﻡ ﺃﻤﻙ ( ﻗﺎل: ﺜﻡ ﻤﻥ ؟ ﻗﺎل: )ﺜﻡ ﺃﻤﻙ ( ﻗﺎل: ﺜﻡ ﻤﻥ ؟ ﻗﺎل: ) ﺃﻤﻙ ( ﻗﺎل: [113508 : ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ: ] ﺼﺤﻴﺢ ﺍﻟﺒﺨﺎﺭﻱ अथः << एक आदमी रसूलु लाह स0 अ0 व0 स0 के पास आया और कहाः ऐ अ लाह के रसूल ! कौन मेरे अ छे यवहार तथा खूब सेवा का क़दार है ? तो आप स0 अ0 व0 स0 ने उ र दयाः तु हार माँ, उस ने कहाः फर कौन ? आप स0 अ0 व0 स0 ने उ र दयाः फर
तु हार माँ, उस ने कहाः फर कौन ? आप स0 अ0 व0 स0 ने उ र दयाः फर तु हार माँ, उस ने कहाः फर कौन ? आप स0 अ0 व0 स0 ने उ र दयाः फर तु हारा बाप। >>
माता- पता के मृ यु के प ात के अधीकार ौीमानः यह कुछ ु क़ूक़ और अधीकार ह जो माता- पता के जीवन म ह ब च पर
अनीवाय होता है क तु कुछ वाजबात तथा अधीकार एंव ु क़ूक़ ऐसे भी ह जो माता- पता के मृ यु के प ात भी पूरा करना पड़ता है । जैसा क ूय नबी स0 अ0 व0 स0 के आदे श से
ूमा णत है । ﻴﺎ ﺭﺴﻭل ﺍﷲ: ﻜﻨﺎ ﻋﻨﺩ ﺍﻟﻨﺒﻲ ﺼﻠﻰ ﺍﷲ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺴﻠﻡ ﻓﻘﺎل ﺭﺠل:ﻋﻥ ﺃﺒﻲ ﺃﺴﻴﺩ ﺍﻷﻨﺼﺎﺭﻱ ﺭﻀﻲ ﺍﷲ ﻋﻨﻪ ﻗﺎل ﻭ، ﺍﻟﺩﻋﺎﺀ ﻟﻬﻤﺎ ﻭ ﺍﻹﺴﺘﻐﻔﺎﺭ ﻟﻬﻤﺎ: ﺨﺼﺎل ﺃﺭﺒﻊ، ﻨﻌﻡ: ﻫل ﺒﻘﻲ ﻤﻥ ﺒﺭ ﺃﺒﻭﻱ ﺸﻲﺀ ﺒﻌﺩ ﻤﻭﺘﻬﻤﺎ ﺃﺒﺭﻫﻤﺎ ﻗﺎل [ ﻭ ﺼﻠﺔ ﺍﻟﺭﺤﻡ ﺍﻟﺘﻲ ﻻ ﺭﺤﻡ ﻟﻙ ﺇﻻ ﻤﻥ ﻗﺒﻠﻬﻤﺎ " ]ﺍﻷﺩﺏ ﺍﻟﻤﻔﺭﺩ ﻟﻠﺒﺨﺎﺭﻱ، ﻭ ﺇﻜﺭﺍﻡ ﺼﺩﻴﻘﻬﻤﺎ، ﺇﻨﻔﺎﺫ ﻋﻬﺩﻫﻤﺎ अथः अबू उसैद अ सा़र र ज़0 फरमाते ह क हम नबी कर म स0 अ0 व0 स0 के पास थे क एक आदमी ने कहाः ऐ अ लाह के रसूल ! या मेरे वािलदै न के मरण के प ात भी कुछ अ छा आचार, यवहार है जो म उन के साथ क
? आप स0 अ0 व0
स0 ने फरमायाः << हाँ,चार चीज़ ह जो उन क मृ यु के उपरांत भी कया जा सकता है >>।
(1) उन दोन के िलए दआ ु करना य क दआ ु मरने के बाद भी लाभ पहंु चाती है जैसा क नबी स0 अ0 व0 स0 के कथन म आया है
" ﻤﻥ ﺼﺩﻗﺔ ﺠﺎﺭﻴﺔ ﺃﻭﻋﻠﻡ ﻴﻨﺘﻔﻊ ﺒﻪ ﺃﻭ ﻭﻟﺩ ﺼﺎﻟﺢ ﻴﺩﻋﻭ ﻟﻪ:" ﺇﺫﺍ ﻤﺎﺕ ﺍﻹﻨﺴﺎﻥ ﺍﻨﻘﻁﻊ ﻋﻨﻪ ﻋﻤﻠﻪ ﺇﻻ ﻤﻥ ﺜﻼﺜﺔ [ 89269 : ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ:]ﺼﺤﻴﺢ ﻤﺴﻠﻡ अथः << जब मानव मर जाता है तो उन के सारे कम ख़ म हो जाते ह सवाये तीन कम केः हमेशा रहने वाला दान , या,
ान जस से लाभ उठाया जाऐ , या, नेक पुऽ
जो उन के िलए दआ करे >> ु
(2) इसी ूकार माता- पता के िलए अ लाह से ब शश मांगना जैसा क अ लाह के नबी नू
अलै हःसलाम अपने माँ-बाप के िलए अ लाह से ब शश मांगते थे। [ 28:ﻱ ﻭ ﻟﻤﻥ ﺩﺨل ﺒﻴﺘﻲ ﻤﺅﻤﻨﺎ ﻭ ﻟﻠﻤﺅﻤﻨﻴﻥ ﻭ ﺍﻟﻤﺅﻤﻨﺎﺕ " ] ﺴﻭﺭﺓ ﻨﻭﺡ "ﺭﺏ ﺍﻏﻔﺭ ﻟﻲ ﻭ ﻟﻭﺍﻟﺩ
अथः << ऐ मेरे मािलक , मुझे तथा
ीय को
मा कर दे >>
मा करदे और मेरे माता- पता और मोिमन पु ष
(3) माता- पता के वचन तथा ू र थ को उन के मृ यु प ात पुरा करना य द उन पर उधार हो तो उसे अदा करना होगा य क अ लाह तआला अपने अधीकार और ु क़ूक़ को माफ कर सकता है ू तु मानव का अधीकार व ु क़ूक़ केवल मानव ह माफ करे गा अ लाह तआला
मा नह ं करे गा इसी िलए अ य मानव के अधीकार एंव ु क़ूक़ को माता- पता के
मृ यु के बाद संतान पर वापस करना अनीवाय है ।
(4) माँ-बाप के िमऽ और सािथय का आदर - स मान करना , उन के संबंिधय और नातेदार
के साथ भी उ म सुलक ू करना और इन सब को अपने शैली के अनुसार सौगात
दे ना है । जैसा क इःलाम का आदे श है । ﻭﺃﻋﻁﺎﻩ. ﻭﺤﻤﻠﻪ ﻋﻠﻰ ﺤﻤﺎﺭ ﻜﺎﻥ ﻴﺭﻜﺒﻪ. ﻓﺴﻠﻡ ﻋﻠﻴﻪ ﻋﺒﺩﺍﷲ. " ﺃﻥ ﺭﺠﻼ ﻤﻥ ﺍﻷﻋﺭﺍﺏ ﻟﻘﻴﻪ ﺒﻁﺭﻴﻕ ﻤﻜﺔ . ﺃﺼﻠﺤﻙ ﺍﷲ ! ﺇﻨﻬﻡ ﺍﻷﻋﺭﺍﺏ ﻭﺇﻨﻬﻡ ﻴﺭﻀﻭﻥ ﺒﺎﻟﻴﺴﻴﺭ: ﻓﻘﻠﻨﺎ ﻟﻪ: ﻓﻘﺎل ﺍﺒﻥ ﺩﻴﻨﺎﺭ. ﻋﻤﺎﻤﺔ ﻜﺎﻨﺕ ﻋﻠﻰ ﺭﺃﺴﻪ ﺇﻥ ﺃﺒﺎ ﻫﺫﺍ ﻜﺎﻥ ﻭﺩﺍ ﻟﻌﻤﺭ ﺒﻥ ﺍﻟﺨﻁﺎﺏ ﻭﺇﻨﻲ ﺴﻤﻌﺕ ﺭﺴﻭل ﺍﷲ ﺼﻠﻰ ﺍﷲ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺴﻠﻡ ﻴﻘﻭل " ﺇﻥ: ﻓﻘﺎل ﻋﺒﺩﺍﷲ [175943: ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ: ﺃﺒﺭ ﺍﻟﺒﺭ ﺼﻠﺔ ﺍﻟﻭﻟﺩ ﺃﻫل ﻭﺩ ﺃﺒﻴﻪ "] ﺼﺤﻴﺢ ﻤﺴﻠﻡ अथः अ द ु लाह बन द नार कहते ह क एक मामीण से भट हई ु ,तो अ द ु लाह ने उसे सलाम कया। और जस ग हे पर बैठे थे वह उसे दे दया और अपने सर से पगड़
उतार कर उसे दे दया। तो इ ने द नार ने कहाः अ लाह आप का भला करे ! िनःसंदेह ये मािमक लोग ह। और ये थोड़ा ूा दया, बैशक इस य
कर के परस न होते ह। अ द ु लाह ने उ र
का पता उमर बन खग ाब का िमऽ था और म ने नबी स0
अ0 व0 स0 को फरमाते हे तू सुना है । << िनःसंदेह ने कय म सब से बड़ नेक पुऽ का अपने पता के ूेिमय के पर वार वालो के साथ अ छा यवहार करना है । >> इःलाम ह वह महान धम है जस ने ूित य
को उस का मुनािसब ःथान दया
है और इःलाम ने माता- पता का जो ःथान एंव पद दया है अ य धम इस के बहत ु पछे है ।
लाभ जो माता- पता का सेवा करने से ूा
होते ह।
(1) य द आप पतर के साथ भलाई तथा उपकार करते ह तो मानो आप अ लाह के आ ाकार के पथ पर गमन करते ह और जो अ लाह के पथ पर चलेगा अ लाह उसे महान प ंकार दे गा।
(2) माता- पता जस य
से ूस न ह गे तो अ लाह भी उस य
से खुश होगा
जैसा क रसूलु लाह स0 अ0 व0 स0 का कथन ह। : ﺭﻗـﻡ ﺍﻟﺤـﺩﻴﺙ: ﻭﺴﺨﻁ ﺍﷲ ﻓﻲ ﺴﺨﻁ ﺍﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻥ" ]ﺼﺤﻴﺢ ﺍﺒﻥ ﺤﺒـﺎﻥ، '' ﺭﻀﻰ ﺍﷲ ﻓﻲ ﺭﻀﻰ ﺍﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻥ [33459
अथः अ लाह क खुशी माता- पता क ूस नता म गु
है और अ लाह क
अूस नता माँ-बाप के बोध म है ।
(3) िमतरौ के साथ सव छ यवहार और उनक िनःःवाथ सेवा तथा उनके साथ
बेहतर न सुलूक ज नत (ःवग) म ूवेश का सट फकेट है । जैसा क नबी स0 अ0 व0 स0 ने फरमाया है । [ 9979 : ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ: ﻓﺈﻥ ﺸﺌﺕ ﻓﺄﻀﻊ ﺫﻟﻙ ﺍﻟﺒﺎﺏ ﺃﻭ ﺍﺤﻔﻅﻪ" ] ﺴﻨﻥ ﺍﻟﺘﺭﻤﺫﻱ، " ﺍﻟﻭﺍﻟﺩ ﺃﻭﺴﻁ ﺃﺒﻭﺍﺏ ﺍﻟﺠﻨﺔ अथः पता ज नत के न
ार म से बी ला
ार है तो तुम इसे सुर
त करलो या इसे
कर दो ,,
(4) माता- पता क खूब खदमत करना औ हर ूकार से उन को खूश रख कर उन
क दआ लेना और उन के शाप से संयम रहना , उनका आशीरवाद लेना ु
य
क क
माँ-बाप क शाप या दआ संतान के हक़ म अ लाह ःवीकार करता है । जैसा क नबी ु स0 अ0 व0 स0 ने फरमाया है ।
"" ﺜﻼﺙ ﺩﻋﻭﺍﺕ ﻻ ﺸﻙ ﻓﻲ ﺇﺠﺎﺒﺘﻬﻥ ﺩﻋﻭﺓ ﺍﻟﻤﻅﻠﻭﻡ ﻭﺩﻋﻭﺓ ﺍﻟﻤﺴﺎﻓﺭ ﻭﺩﻋﻭﺓ ﺍﻟﻭﺍﻟﺩ ﻋﻠﻰ ﻭﻟﺩﻩ [198841 :]ﺍﻟﺘﺭﻏﻴﺏ ﻭ ﺍﻟﺘﺭﻫﻴﺏ’ ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ अथः << िनःसंदेह तीन दआय ःवीकर क जाती ह नृशंिसत क दआ और याऽी क ु ु दआ और माँ-बाप क दआ संतान के बारे म >> ु ु
(5) माँ-बाप के साथ अ छा यवहार करने पर अ लाह तआला ऊॆ म ज़यादती
और जीवीका तथा रोज़ी म अधीकता वःतार करता है । जैसा क रसूलु लाह के फरमान म आता है । 3/293 : اﻟﺘﺮﻏﻴﺐ واﻟﺘﺮهﻴﺐ: ] " "ﻣﻦ ﺳﺮﻩ أن ﻳﻤﺪ ﻟﻪ ﻓﻲ ﻋﻤﺮﻩ وﻳﺰاد ﻓﻲ رزﻗﻪ ﻓﻠﻴﺒﺮ واﻟﺪﻳﻪ وﻟﻴﺼﻞ رﺣﻤﻪ [ و ﺳﻨﻦ اﻟﺘﺮﻣﺬي अथः << जस य
को ूस नता ूा
हो क उसे लंबी ऊॆ िमले और उस के रोज़ी
म ज़यादती हो तो वह अपने माँ-बाप के साथ नेक करे और अपने संबंिधय के साथ उपकार करे >>
हािन जो माँ-बाप के अव ा एंव कृ तिनंदा करने से ूा
होता है ।
(1) माँ-बाप क अव ा और उनक नाफरमानी बड़े पाप म से है । जैसा क रसुलू लाह ने फरमाया है ।
ﻭﻋﻘﻭﻕ ﺍﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻥ ﻭﺠﻠﺱ، ﺍﻹﺸﺭﺍﻙ ﺒﺎﷲ: ﻗﺎل، ﺒﻠﻰ ﻴﺎ ﺭﺴﻭل ﺍﷲ: ﻗﺎﻟﻭﺍ، ﺜﻼﺜﺎ. ﺃﻻ ﺃﻨﺒﺌﻜﻡ ﺒﺄﻜﺒﺭﺍﻟﻜﺒﺎﺌﺭ ﺭﻗﻡ: ﻟﻴﺘﻪ ﻴﺴﻜﺕ" ]ﺼﺤﻴﺢ ﺍﻟﺒﺨﺎﺭﻱ: ﻓﻤﺎ ﺯﺍل ﻴﻜﺭﺭﻫﺎ ﺤﺘﻰ ﻗﻠﻨﺎ: ﻗﺎل, ﺃﻻ ﻭﻗﻭل ﺍﻟﺯﻭﺭ- ﻓﻘﺎل، ﻭﻜﺎﻥ ﻤﺘﻜﺌﺎ [2654 :ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ अथः << कया तु ह पाप म बड़े पाप के बारे म सािथय ने उ र दयाः
ान न दँ ू , तीन बार कहा, आप के
य नह ऐ अ लाह के रसूल, आप ने फरमायाः अ लाह के
साथ कसी दसरे को साझीदार बनाना, और वािलदै न क नाफरमानी करना, और आप ु टे क लगाऐ थे ,बैठ गऐ, तो फरमाया, सुनो, झूट गवाह दे ना,(रावी कहते ह) आप
इसे बार बार दोहरा रहे थे यहाँ तक क हमने ( दल म) कहाः काश क आप खामूश हो जाते >>
(2) य द माँ-बाप नाराज़,अूस न हो तो अ लाह भी नाराज़ होगा।और वह बद ब त होगा जस से अ लाह नाराज़ हो, इसी िलए माँ-बाप क खूब सेवा करके उनको खूश रख। जैसा क नबी स0 अ0 न0 स0 ने फरमाया, [33459 : ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ: ﻭﺴﺨﻁ ﺍﷲ ﻓﻲ ﺴﺨﻁ ﺍﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻥ " ]ﺼﺤﻴﺢ ﺍﺒﻥ ﺤﺒﺎﻥ، " ﺭﻀﻰ ﺍﷲ ﻓﻲ ﺭﻀﻰ ﺍﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻥ अथः अ लाह क खुशी माता- पता क ूस नता म गु है और अ लाह क अूस नता माँ-बाप के बोध म है ।
(3) जो लोग माता- पता के साथ अ ूय यवहार करते ह। उनको क दे ते , उन पर अ याचार करते , उनको सताते ह। उनक संतान भी उनके साथ अ ूय यवहार करते, उनको क
दे ते ह। और यह बात तजुरबे से सा बत है । और आप
लोग ने भी अनगिनत वा क़यात दे खे ह गे। बैशक जो जैसा बीज बोऐगा, वैसा फल काटे गा, और ूय नबी स0 अ0 व0 स0 का फरमान है । [
3/294
: " ] ﺍﻟﺘﺭﻏﻴﺏ ﻭﺍﻟﺘﺭﻫﻴﺏ................ "ﺒﺭﻭﺍ ﺁﺒﺎﺀﻜﻡ ﺘﺒﺭﻜﻡ ﺃﺒﻨﺎﺀﻜﻡ
अथः अपने माँ-बाप के साथ अ छा यवहार करो, तुमहार संतान तु हारे साथ उ म यवहार करे गी,
(4) जो लोग माँ-बाप के साथ अनुिचत यवहार और अिश ह। अ लाह तआला एसे य
तथा अ याचार करते
को संसार म ह अपमािनत करता है । वह य
लोग
क नज़र म नीच , कमीना और बेइएज़त होता है और मृ यु के प ात भी अ लाह उसे स त दं ड दे गा।
(5) माता- पता के अव ा कार को अ लाह तआला क़यामत के दन कृ पा क से नह ं दे खेगा और जस से अ लाह नज़र मोड़ ले, वह बहत ु बड़ा अभागी है । एसे
बद नसीब श स के बारे म रसूलु लाह स0 अ0 व0 स0 का कथन पढ़े -
ﻭﺍﻟﻤﻨﺎﻥ ﺒﻤﺎ ﺃﻋﻁﻰ " ]ﻜﺘﺎﺏ ﺍﻟﺘﻭﺤﻴﺩ، ﻭﻤﺩﻤﻥ ﺨﻤﺭ، ﺍﻟﻌﺎﻕ ﻟﻭﺍﻟﺩﻴﻪ: " ﺜﻼﺜﺔ ﻻ ﻴﻨﻅﺭ ﺍﷲ ﺇﻟﻴﻬﻡ ﻴﻭﻡ ﺍﻟﻘﻴﺎﻤﺔ [ 859/2 : ﻹﺒﻥ ﺨﺯﻴﻤﺔ अथः << क़यामत के दन अ लाह तआला तीन श स क ओर दया क नज़र से नह ं दे खेगाः अपने माता- पता क नाफरमानी करने वाले , खूब दा
पीने वाले , भलाई
करके उपकार जताने वाले >>
(6) बरबाद और हलाकत है उस आदमी के िलए जो बूढ़े माता- पता क सेवा और खदमत करके ज नत (ःवग) म दा खल न हो सका ، ﻤﻥ ﺃﺩﺭﻙ ﺃﺒﻭﻴﻪ ﻋﻨﺩ ﺍﻟﻜﺒﺭ: ﻤﻥ ؟ ﻴﺎ ﺭﺴﻭل ﺍﷲ ! ﻗﺎل: ﺜﻡ ﺭﻏﻡ ﺃﻨﻑ ﻗﻴل، ﺜﻡ ﺭﻏﻡ ﺃﻨﻑ، " ﺭﻏﻡ ﺃﻨﻑ [ 1880 : ﺭﻗﻡ ﺍﻟﺤﺩﻴﺙ: ﺃﺤﺩﻫﻤﺎ ﺃﻭ ﻜﻠﻴﻬﻤﺎ ﻓﻠﻡ ﻴﺩﺨل ﺍﻟﺠﻨﺔ " ]ﺍﻟﺼﺤﻴﺢ ﻟﻤﺴﻠﻡ अथः उस य
क स यानाश हो , फर उस य
क स यानाश हो , फर उस य
क
स यानाश हो, कहा गया , कौन ? ऐ अ लाह के रसूल ! आप ने फरमायाः जो अपने माता- पता म से एक या दोन को बूढ़ापे क उॆ म पाये और ज नत म दा खस न हो सका।
(7) जबर ल अलै हःसलाम क िध कार और नबी स0 अ0 व0 स0 क िध कार उस य पर जो बूढ़े माता- पता को पाये और उनक सेवा न कया , उनको खूश न कर सका जस के कारण जह नम (नग) म ूवेश हो गया। ﺁﻤﻴﻥ ﺜﻡ ﺭﻗﻲ: ﺁﻤﻴﻥ ﺜﻡ ﺭﻗﻲ ﺃﺨﺭﻯ ﻓﻘﺎل:ﺼﻌﺩ ﺭﺴﻭل ﺍﷲ ﺼﻠﻰ ﺍﷲ ﻋﻠﻴﻪ ﻭﺴﻠﻡ ﺍﻟﻤﻨﺒﺭ ﻓﻠﻤﺎ ﺭﻗﻲ ﻋﺘﺒﺔ ﻗﺎل ﻴﺎ ﻤﺤﻤﺩ ﻤﻥ ﺃﺩﺭﻙ ﺭﻤﻀﺎﻥ ﻓﻠﻡ ﻴﻐﻔﺭ ﻟﻪ: " ﺃﺘﺎﻨﻲ ﺠﺒﺭﻴل ﻋﻠﻴﻪ ﺍﻟﺴﻼﻡ ﻓﻘﺎل: ﺁﻤﻴﻥ ﺜﻡ ﻗﺎل:ﻋﺘﺒﺔ ﺜﺎﻟﺜﺔ ﻓﻘﺎل ﻭﻤﻥ: ﺁﻤﻴﻥ ﻗﺎل: ﻓﻘﻠﺕ, ﻭﻤﻥ ﺃﺩﺭﻙ ﻭﺍﻟﺩﻴﻪ ﺃﻭ ﺃﺤﺩﻫﻤﺎ ﻓﺩﺨل ﺍﻟﻨﺎﺭ ﻓﺄﺒﻌﺩﻩ ﺍﷲ: ﺁﻤﻴﻥ ﻗﺎل: ﻓﻘﻠﺕ, ﻓﺄﺒﻌﺩﻩ ﺍﷲ [406/2 : ﻟﻠﻤﻨﺫﺭﻱ: ﺁﻤﻴﻥ " ]ﺍﻟﺘﺭﻏﻴﺏ ﻭﺍﻟﺘﺭﻫﻴﺏ: ﺁﻤﻴﻥ ﻓﻘﻠﺕ: ﻗل, ﺫﻜﺭﺕ ﻋﻨﺩﻩ ﻓﻠﻡ ﻴﺼل ﻋﻠﻴﻙ ﻓﺄﺒﻌﺩﻩ ﺍﷲ अथः रसूलु लाह स0 अ0 व0 स0 िमंबर पर चढ़े तो जब पहला जीना चढ़े , कहाः आमीन , फर दसरा ज़ीना चढ़े तो कहाः आमीन , फर तीसरा ज़ीना चढ़े तो कहाः ु
आमीन , फर फरमायाः मेरे पास जबर ल अलै हःसाम आये और कहाः ऐ मोह मद जो रमज़ान पाये तो उसे माफ नह ं कया गया तो अ लाह उसे दरू करे , म ने कहाः
आमीन , जबर ल ने कहाः और जो अपने माँ-बाप या उन दोन म से एक को पाये
तो जह नम (नग) म दा खल हआ तो अ लाह उसे दरू करे , म ने कहाः आमीन , ू जबर ल ने कहाः और जस के सम
आप का नाम आये और आप पर द द न पढ़े
तो अ लाह उसे दरू करे , आमीन कहो , तो म ने कहाः आमीन , इःलाम ह वह महान एंव सवौे
धम है जो हर मनुंय को उसके उिचत ःथान पर
रखता है । जब संतान छोटा होता है तब माता- पता को अ लाह ने यह आ ा दया क तुम अपने संतान क अ छ पालण पोशन करो , उसे उ म िश ा दलाओ , उस
पर हर ूकार से धयान दो, फर जब माता- पता बुढ़ापे क उॆ को पहंु च जाऐ तो उन के साथ भी सवौे
सुलक ू कया जाऐ। उनको हर ूकार से ूस न रखा जाए। और
उन पर अपनी संपती खच कया जाऐ । और अपने इस कत य का पु ंकार अ लाह के पास ूा
करे ...अ छा .... या बुरा....