तप प ण और शाद एक बार महाराज करनधम महाकाल का दशन प करने गये। कालभीित महाकाल ने जब
करनधम को दे खा, तब उनहे भगवान शंकर का वचन समरण हो आया। उनहोने उनका सवागत सतकार िकया और कुशल-पशािद के बाद वे सुखपूवक प बैठ गये। तदननतर करनधम ने महाकाल ( कालभीित) से पूछाः "भगवन ! मेरे मन मे एक बडा संशय है िक यहाँ जो िपतरो को जल िदया जाता है , वह तो जल मे िमल जाता, ििर वह िपतरो को कैसे पाप होता है ? यही बात शाद के
समबनध मे भी है । िपणड आिद जब यहीं पडे रह जाते है , तब हम कैसे मान ले िक िपतर लोग उन िपणडािद का उपयोग करते है ? साथ ही यह कहने का साहस भी नहीं होता िक वे पदाथप
िपतरो को िकसी पकार िमले ही नहीं, कयोिक सवपन मे दे खा जाता है िक िपतर मनुषयो से शाद आिद की याचना करते है । दे वताओं के चमतकार भी पतयक दे खे जाते है । अतः मेरा मन इस िवषय मे मोहगसत हो रहा है ।" महाकाल न े कहाः
"राजन ! दे वता और िपतरो की योिन ही इस पकार की है दरू से
कही हुई बात, दरू से िकया हुआ पूजन-संसकार, दरू से की हुई अचाप, सतुित तथा भूत, भिवषय और वतम प ान की सारी बातो को वे जान लेते है और वहीं पहुँच जाते है । उनका शरीर केवल नौ ततवो (पाँच तनमाताएँ और चार अनतःकरण) का बना होता है , दसवाँ जीव होता है , इसिलए उनहे सथूल उपभोगो की आवशयकता नहीं होती।"
करन धम न े क हाः "यह बात तो तब मानी जाये, जब िपतर लोग यहाँ भूलोक मे हो।
परनतु िजन मत ृ क िपतरो के िलए यहाँ शाद िकया जाता है वे तो अपने कमान प ुसार सवगप या
नरक मे चले जाते है । दस ू री बात, जो शासो मे यह कहा गया है िकः िपतर लोग पसनन होकर मनुषयो को आयु, पजा, धन, िवदा, राजय, सवगप या मोक पदान करते है ... यह भी समभव नहीं है , कयोिक जब वे सवयं कमब प नधन मे पडकर नरक मे है , तब दस ू रो के िलए कुछ कैसे करे गे!" महाकाल न े कहाः
"ठीक है , िकनतु दे वता, असुर, यक आिद के तीन अमूतप तथा चारो
वणओ प ँ के चार मूतप, ये सात पकार के िपतर माने गये है । ये िनतय िपतर है । ये कमो के आधीन नहीं, ये सबको सब कुछ दे ने समथप है । इन िनतय िपतरो के अतयनत पबल इककीस गण है । वे तप ृ होकर शादकताप के िपतरो को, वे चाहे कहीं भी हो, तप ृ करते है ।"
करन धम न े क हाः "महाराज ! यह बात तो समझ मे आ गयी, िकनतु ििर भी एक
सनदे ह है । भूत-पेतािद के िलए जैसे एकितत बिल आिद िदया जाता है , वैसे ही एकितत करके संकेप मे दे वतािद के िलए भी कयो नहीं िदया जाता? दे वता, िपतर, अििन, इनको अलग-अलग नाम लेकर दे ने मे बडा झंझट तथा िवसतार से कष भी होता है ।" महाकाल न े कहाः
"सभी के िविभनन िनयम है । घर के दरवाजे पर बैठनेवाले कुते को
िजस पकार खाना िदया जाता है , कया उसी पकार एक िविशष सममािनत वयिि को भी िदया
जाए?.... और कया वह उस तरह िदए जाने पर उसे सवीकार करे गा? अतः िजस पकार भूतािद को िदया जाता है उसी पकार दे ने पर दे वता उसे गहण नहीं करते। िबना शदा के िदया हुआ चाहे
उसी पकार दे ने पर दे वता उसे गहण नहीं करते। िबना शदा के िदया हुआ चाहे वह िजतना भी पिवत तथा बहूमूलय कयो न हो, वे उसे कदािप नहीं लेते। यही नहीं, शदापूवक प िदये गये पिवत पदाथप भी िबना मंत के वे सवीकार नहीं करते।"
करन धम न े क हाः "मै यह जानना चाहता हूँ िक जो दान िदया जाता है वह कुश, जल
और अकत के साथ कयो िदया जाता है ?" महाकाल न े कहाः
"पहले भूिम पर जो दान िदये जाते थे, उनहे असुर लोग बीच मे ही
घुसकर ले लेते थे। दे वता और िपतर मुह ँ दे खते ही रह जाते। आिखर उनहोने बहा जी से िशकायत की।
बहाजी ने कहा िक िपतरो को िदये गये पदाथो के साथ अकत, ितल, जल, कुश एवं जौ भी िदया जाए। ऐसा करने पर असुर इनहे न ले सकेगे। इसीिलए यह पिरपाटी है ।"
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