पसता वना भारतीय संसकृ ित की एक बडी िवशेषता है िक जीते-जी तो िविभनन संसकारो के दारा,
धमप म ालन के दारा मानव को समुननत करने के उपाय बताती ही है लेिकन मरने के बाद भी, अतयेिि संसकार के बाद भी जीव की सदगित के िलए िकये जाने योगय संसकारो का वणन म करती है ।
मरणोतर िियाओं-संसकारो का वणन म हमारे शास-पुराणो मे आता है । आििन(गुजरात-
महाराष के मुतािबक भादपद) के कृ षण पक को हमारे िहनद ू धमम मे शाद पक के रप मे मनाया जाता है । शाद की मिहमा एवं िविध का वणन म िवषणु, वायु, वराह, मतसय आिद पुराणो एवं
महाभारत, मनुसमिृत आिद शासो मे यथासथान िकया गया है । उनहीं पर आधािरत पूजयशी के पवचनो को पसतुत पुसतक मे संकिलत िकया गया है तािक जनसाधारण 'शाद मिहमा' से पिरिचत होकर िपतरो के पित अपना कतवमय-पालन कर सके।
िदवय लोकवासी िपतरो के पुनीत आशीवाद म से आपके कुल मे िदवय आतमाएँ अवतिरत हो
सकती है । िजनहोने जीवन भर खून-पसीना एक करके इतनी साधन-सामगी व संसकार दे कर
आपको सुयोगय बनाया उनके पित सामािजक कतवमय-पालन अथवा उन पूवज म ो की पसननता, ईिर की पसननता अथवा अपने हदय की शुिद के िलए सकाम व िनषकाम भाव से यह शादकमम करना चािहए।
शी योग व ेदानत स ेवा स िम ित , अमदावाद
आ शम।
अनु िम शाद-मिहमाा।
शाद मे दान।
शासो मे शाद-िवधान।
शाद मे िपणडदान।
बाहण को िनमंतण।
शादयोगय ितिथयाँ।
अिभशवण एवं रकक मंत।
शाद करने का अिधकारी कौन?
अनन आिद के िवतरण का िवधान।
करने से लाभ।
शाद योगय बाहण।
शाद के समय हवन और आहुित। शाद मे भोजन कराने का िवधान।
शाद के पकार।
शाद योगय सथान।
शाद मे शंका करने का पिरणाम व शदा
शाद से पेतातमाओं का उदार।
एकनाथजी महाराज के शाद मे िपतग ृ ण
गरड पुराण मे शाद मिहमा।
साकात पकट हुए।
महाकाल-करनधम संवाद।
पसतावना।
तपण म और शाद समबनधी शंका-समाधान। सातवाँ अधयायः जान िवजानयोग
भगवदगीता के सातवे अधयाय का माहातमय।
शाद मिहमा
िहनद ू धमम मे एक अतयंत सुरिभत पुषप है कृ तजता की भावना, जो िक बालक मे अपने
माता-िपता के पित सपि पिरलिकत होती है । िहनद ू धमम का वयिि अपने जीिवत माता-िपता की सेवा तो करता ही है , उनके दे हावसान के बाद भी उनके कलयाण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कायो को पूणम करने का पयत करता है । 'शाद-िविध' इसी भावना पर आधािरत है । मतृयु के बाद जीवातमा को उतम, मधयम एवं किनष कमान म ुसार सवगम नरक मे सथान
िमलता है । पाप-पुणय कीण होने प वह पुनः मतृयुलोक (पथ ृ वी) मे आता है । सवगम मे जाना यह िपतय ृ ान मागम है एवं जनम-मरण के बनधन से मुि होना यह दे वयान मागम है ।
िपतय ृ ान मागम से जाने वाले जीव िपतल ृ ोक से होकर चनदलोक मे जाते है । चंदलोक मे
अमत ृ ानन का सेवन करके िनवाह म करते है । यह अमत ृ ानन कृ षण पक मे चंद की कलाओं के साथ कीण होता रहता है । अतः कृ षण पक मे वंशजो को उनके िलए आहार पहुँचाना चािहए, इसीिलए शाद एवं िपणडदान की वयवसथा की गयी है । शासो मे आता है िक अमावस के िदन तो िपतत ृ पण म अवशय करना चािहए।
आधुिनक िवचारधारा एवं नािसतकता के समथक म शंका कर सकते है िकः "यहाँ दान िकया
गया अनन िपतरो तक कैसे पहुँच सकता है ?"
भारत की मुदा 'रपया' अमेिरका मे 'डॉलर' एवं लंदन मे 'पाउणड' होकर िमल सकती है एवं
अमेिरका के डॉलर जापान मे येन एवं दब ु ई मे दीनार होकर िमल सकते है । यिद इस िवि की ननहीं सी मानवरिचत सरकारे इस पकार मुदाओं का रपानतरण कर सकती है तो ईिर की
सवस म मथम सरकार आपके दारा शाद मे अिपत म वसतुओं को िपतरो के योगय करके उन तक पहुँचा दे , इसमे कया आशयम है ?
मान लो, आपके पूवज म अभी िपतल ृ ोक मे नहीं, अिपत मनुषय रप मे है । आप उनके िलए
शाद करते हो तो शाद के बल पर उस िदन वे जहाँ होगे वहाँ उनहे कुछ न कुछ लाभ होगा। मैने इस बात का अनुभव करके दे खा है । मेरे िपता अभी मनुषय योिन मे है । यहाँ मै उनका शाद करता हूँ उस िदन उनहे कुछ न कुछ िवशेष लाभ अवशय हो जाता है । (अनुिम)
मान लो, आपके िपता की मुिि हो गयी हो तो उनके िलए िकया गया शाद कहाँ जाएगा? जैसे, आप िकसी को मनीआडम र भेजते हो, वह वयिि मकान या आििस खाली करके चला गया हो तो वह मनीआडम र आप ही को वापस िमलता है , वैसे ही शाद के िनिमत से िकया गया दान आप ही को िवशेष लाभ दे गा।
दरूभाष और दरूदशन म आिद यंत हजारो िकलोमीटर का अंतराल दरू करते है , यह पतयक
है । इन यंतो से भी मंतो का पभाव बहुत जयादा होता है ।
दे वलोक एवं िपतल ृ ोक के वािसयो का आयुषय मानवीय आयुषय से हजारो वषम जयादा होता
है । इससे िपतर एवं िपतल ृ ोक को मानकर उनका लाभ उठाना चािहए तथा शाद करना चािहए। भगवान शीरामचनदजी भी शाद करते थे। पैठण के महान आतमजानी संत हो गये शी
एकनाथ जी महाराज। पैठण के िनंदक बाहणो ने एकनाथ जी को जाित से बाहर कर िदया था एवं उनके शाद-भोज का बिहषकार िकया था। उन योगसंपनन एकनाथ जी ने बाहणो के एवं
अपने िपतल ृ ोक वासी िपतरो को बुलाकर भोजन कराया। यह दे खकर पैठण के बाहण चिकत रह गये एवं उनसे अपने अपराधो के िलए कमायाचना की।
िजनहोने हमे पाला-पोसा, बडा िकया, पढाया-िलखाया, हममे भिि, जान एवं धमम के संसकारो
का िसंचन िकया उनका शदापूवक म समरण करके उनहे तपण म -शाद से पसनन करने के िदन ही है
शादपक। शादपक आििन के (गुजरात-महाराष मे भादपद के) कृ षण पक मे की गयी शाद-िविध गया केत मे की गयी शाद-िवधी के बराबर मानी जाती है । इस िविध मे मत ृ ातमा की पूजा एवं उनकी इचछा-तिृि का िसदानत समािहत होता है ।
पतयेक वयिि के िसर पर दे वऋण, िपतऋ ृ ण एवं ऋिषऋण रहता है । शादििया दारा
िपतऋ ृ ण से मुि हुआ जाता है । दे वताओं को यज-भाग दे ने पर दे वऋण से मुि हुआ जाता है ।
ऋिष-मुिन-संतो के िवचारो को आदशो को अपने जीवन मे उतारने से, उनका पचार-पसार करने से एवं उनहे लकय मानकर आदरसिहत आचरण करने से ऋिषऋण से मुि हुआ जाता है ।
पुराणो मे आता है िक आििन(गुजरात-महाराष के मुतािबक भादपद) कृ षण पक की
अमावस (िपतम ृ ोक अमावस) के िदन सूयम एवं चनद की युित होती है । सूयम कनया रािश मे पवेश करता है । इस िदन हमारे िपतर यमलोक से अपना िनवास छोडकर सूकम रप से मतृयुलोक मे
अपने वंशजो के िनवास सथान मे रहते है । अतः उस िदन उनके िलए िविभनन शाद करने से वे ति ृ होते है ।
सुनी है एक कथाः महाभारत के युद मे दय ु ोधन का िविासपात िमत कणम दे ह छोडकर
ऊधवल म ोक मे गया एवं वीरोिचत गित को पाि हुआ। मतृयुलोक मे वह दान करने के िलए पिसद था। उसका पुणय कई गुना बढ चुका था एवं दान सवणम-रजत के ढे र के रप मे उसके सामने आया।
(अनुिम)
कणम ने धन का दान तो िकया था िकनतु अननदान की उपेका की थी अतः उसे धन तो बहुत िमला िकनतु कुधातिृि की कोई सामगी उसे न दी गयी। कणम ने यमराज से पाथन म ा की तो यमराज ने उसे 15 िदन के िलए पथृवी पर जाने की सहमित दे दी। पथ ृ वी पर आकर पहले उसने
अननदान िकया। अननदान की जो उपेका की थी उसका बदला चुकाने के िलए 15 िदन तक साधुसंतो, गरीबो-बाहणो को अनन-जल से ति ृ िकया एवं शादिविध भी की। यह आििन (गुजरात
महाराष के मुतािबक भादपद) मास का कृ षणपक ही था। जब वह ऊधवल म ोक मे लौटा तब उसे सभी पकार की खाद सामिगयाँ ससममान दी गयीं।
धमरमाज यम ने वरदान िदया िकः "इस समय जो मत ृ ातमाओं के िनिमत अनन जल आिद
अिपत म करे गा, उसकी अंजिल मत ृ ातमा जहाँ भी होगी वहाँ तक अवशय पहुँचेगी।"
जो िनःसंतान ही चल बसे हो उन मत ृ ातमाओं के िलए भी यिद कोई वयिि इन िदनो मे
शाद-तपण म करे गा अथवा जलांजिल दे गा तो वह भी उन तक पहुँचेगी। िजनकी मरण ितिथ जात न हो उनके िलए भी इस अविध के दौरान दी गयी अंजिल पहुँचती है ।
वैशाख शुकल 3, काितक म शुकल 9, आििन (गुजरात-महाराष के मुतािबक भादपद) कृ षण 12
एवं पौष (गुजरात-महाराष के मुतािबक मागश म ीषम) की अमावस ये चार ितिथयाँ युगो की आिद ितिथयाँ है । इन िदनो मे शाद करना अतयंत शय े सकर है ।
शादपक के दौरान िदन मे तीन बार सनान एवं एक बार भोजन का िनयम पालते हुए
शाद िविध करनी चािहए।
िजस िदन शाद करना हो उस िदन िकसी िविशि वयिि को आमंतण न दे , नहीं तो उसी
की आवभगत मे धयान लगा रहे गा एवं िपतरो का अनादर हो जाएगा। इससे िपतर अति ृ होकर नाराज भी हो सकते है । िजस िदन शाद करना हो उस िदन िवशेष उतसाहपूवक म सतसंग, कीतन म , जप, धयान आिद करके अंतःकरण पिवत रखना चािहए।
िजनका शाद िकया जाये उन माता, िपता, पित, पती, संबंधी आिद का समरण करके उनहे
याद िदलाये िकः "आप दे ह नहीं हो। आपकी दे ह तो समाि हो चुकी है , िकंतु आप िवदमान हो। आप अगर आतमा हो.. शाित हो... चैतनय हो। अपने शाित सवरप को िनहार कर हे िपतृ
आतमाओं ! आप भी परमातममय हो जाओ। हे िपतरातमाओं ! हे पुणयातमाओं ! अपने परमातमसवभाव का समऱण करके जनम मतृयु के चि से सदा-सदा के िलए मुि हो जाओ। हे िपतृ
आतमाओँ ! आपको हमारे पणाम है । हम भी निर दे ह के मोह से सावधान होकर अपने शाित ् परमातम-सवभाव मे जलदी जागे.... परमातमा एवं परमातम-पाि महापुरषो के आशीवाद म आप पर हम पर बरसते रहे .... ॐ....ॐ.....ॐ...."
सूकम जगत के लोगो को हमारी शदा और शदा से दी गयी वसतु से तिृि का एहसास
होता है । बदले मे वे भी हमे मदद करते है , पेरणा दे ते है , पकाश दे ते है , आनंद और शाँित दे ते (अनुिम)
है । हमारे घर मे िकसी संतान का जनम होने वाला हो तो वे अचछी आतमाओं को भेजने मे सहयोग करते है । शाद की बडी मिहमा है । पूवज म ो से उऋण होने के िलए, उनके शुभ आशीवाद म से उतम संतान की पािि के िलए शाद िकया जाता है ।
आजादी से पूवम काँगेस बुरी तरह से तीन-चार टु कडो मे बँट चुकी थी। अँगेजो का षडयंत
सिल हो रहा था। काँगेस अिधवेशन मे कोई आशा नहीं रह गयी थी िक िबखरे हुए नेतागण
कुछ कर सकेगे। महामना मदनमोहन मालवीय, भारत की आजादी मे िजनका योगदान सराहनीय
रहा है , यह बात ताड गये िक सबके रवैये बदल चुके है और अँगेजो का षडयंत सिल हो रहा है । अतः अिधवेशन के बीच मे ही चुपके से िखसक गये एक कमरे मे। तीन आचमन लेकर, शांत
होकर बैठ गये। उनहे अंतः पेरणा हुई और उनहोने शीमदभागवदगीता के 'गजेनद मोक ' का पाठ िकया।
बाद मे थोडा सा सतसंग पवचन िदया तो काँगेस के सारे िखंचाव-तनाव समाि हो गये
एवं सब िबखरे हुए काँगेसी एक जुट होकर चल पडे । आिखर अंगेजो को भारत छोडना ही पडा। काँगेस के िबखराव को समाि करके, काँगिसयो को एकजुट कर कायम करवानेवाले
मालवीयजी का जनम कैसे हुआ था?
मालवीयजी के जनम से पूवम िहनदओ ु ं ने अंगेजो के िवरद जब आंदोलन की शुरआत की
थी तब अंगेजो ने सखत 'कफयूम' जारी कर िदया था। ऐसे दौर मे एक बार मालवीयजी के िपता जी कहीं से कथा करके पैदल ही घर आ रहे थे।
उनहे मागम मे जाते दे खकर अंगेज सैिनको ने रोका-टोका एवं सताना शुर िकया। वे उनकी
भाषा नहीं जानते थे और अंगेज सैिनक उनकी भाषा नहीं जानते थे। मालवीय जी के िपता ने
अपना साज िनकाला और कीतन म करने लगे। कीतन म से अंगेज सैिनको को कुछ आनंद आया और इशारो से धनयवाद दे ते
हुए उनहोने कहा िकः "चलो, हम आपको पहुँचा दे ते है ।" यह दे खकर
मालवीयजी के िपता को हुआ िकः "मेरे कीतन म से पभािवत होकर इनहोने मुझे तो है रान करना बनद कर िदया िकनतु मेरे भारत दे श के लाखो-करोडो भाईयो का शोषण हो रहा है , इसके िलए मुझे कुछ करना चािहए।"
बाद मे वे गया जी गये और पेमपूवक म शाद िकया। शाद के अंत मे अपने दोनो हाथ
उठाकर िपतरो से पाथन म ा करते हुए उनहोने कहाः 'हे िपतरो ! मेरे िपणडदान से अगर आप ति ृ हुए हो, मेरा िकया हुआ शाद अगर आप तक पहुँचा हो तो आप कृ पा करके मेरे घर मे ऐसी ही संतान दीिजए जो अंगेजो को भगाने का काम करे और मेरा भारत आजाद हो जाये.....।'
िपता की अंितम पाथन म ा िली। समय पाकर उनहीं के घर मदनमोहन मालवीय जी का
जनम हुआ।
(अनुिम)
शासो मे शाद िव धान जो शदा से िदया जाये उसे शाद कहते है । शदा मंत के मेल से जो िविध होती है उसे
शाद कहते है । जीवातमा का अगला जीवन िपछले संसकारो से बनता है । अतः शाद करके यह भावना की जाती है िक उसका अगला जीवन अचछा हो। िजन िपतरो के पित हम कृ तजतापूवक म शाद करते है वे हमारी सहायता करते है ।
'वायु पुराण' मे आतमजानी सूत जी ऋिषयो से कहते है - "हे ऋिषवंद ृ ! परमेिष बहा ने
पूवक म ाल मे िजस पकार की आजा दी है उसे तुम सुनो। बहा जी ने कहा है ः 'जो लोग मनुषयलोक के पोषण की दिि से शाद आिद करे गे, उनहे िपतग ृ ण सवद म ा पुिि एवं संतित दे गे। शादकमम मे
अपने पिपतामह तक के नाम एवं गोत का उचचारण कर िजन िपतरो को कुछ दे िदया जायेगा वे िपतग ृ ण उस शाददान से अित संतुि होकर दे नेवाले की संतितयो को संतुि रखेगे, शुभ आिशष तथा िवशेष सहाय दे गे।"
हे ऋिषयो ! उनहीं िपतरो की कृ पा से दान, अधययन, तपसया आिद सबसे िसिद पाि होती
है । इसमे तिनक भी सनदे ह नहीं है िक वे िपतग ृ ण ही हम सबको सतपेरणा पदान करने वाले है । िनतयपित गुरपूजा-पभिृत सतकमो मे िनरत रहकर योगाभयासी सब िपतरो को ति ृ रखते
है । योगबल से वे चंदमा को भी ति ृ करते है िजससे तैलोकय को जीवन पाि होता है । इससे योग की मयाद म ा जानने वालो को सदै व शाद करना चािहए।
मनुषयो दारा िपतरो को शदापूवक म दी गई वसतुएँ ही शाद कही जाती है । शादकमम मे जो
वयिि िपतरो की पूजा िकये िबना ही िकसी अनय ििया का अनुषान करता है उसकी उस ििया का िल राकसो तथा दानवो को पाि होता है । (अनुिम) शादयो गय ब ाहण
'वराह पुराण' मे शाद की िविध का वणन म करते हुए माकमणडे यजी गौरमुख बाहण से कहते
है - "िवपवर ! छहो वेदांगो को जानने वाले, यजानुषान मे ततपर, भानजे, दौिहत, िसुर, जामाता,
मामा, तपसवी बाहण, पंचािगन तपने वाले, िशषय, संबध ं ी तथा अपने माता िपता के पेमी बाहणो को शादकमम मे िनयुि करना चािहए। 'मनुसमिृत' मे कहा गया है ः
"जो िोधरिहत, पसननमुख और लोकोपकार मे िनरत है ऐसे शष े बाहणो को मुिनयो ने
शाद के िलए दे वतुलय कहा है ।" (मनुस मृ ित ः 3.213)
वायु पुराण मे आता है ः शाद के अवसर पर हजारो बाहणो को भोजन कराने स जो िल
िमलता है , वह िल योग मे िनपुण एक ही बाहण संतुि होकर दे दे ता है एवं महान ् भय (नरक) से छुटकारा िदलाता है । एक हजार गहृसथ, सौ वानपसथी अथवा एक बहचारी – इन सबसे एक योगी (योगाभयासी) बढकर है । िजस मत ृ ातमा का पुत अथवा पौत धयान मे िनमगन रहने वाले
िकसी योगाभयासी को शाद के अवसर पर भोजन करायेगा, उसके िपतग ृ ण अचछी विृि से संतुि िकसानो की तरह परम संतुि होगे। यिद शाद के अवसर पर कोई योगाभयासी धयानपरायण िभकु न िमले तो दो बहचािरयो को भोजन कराना चािहए। वे भी न िमले तो िकसी उदासीन बाहण को भोजन करा दे ना चािहए। जो वयिि सौ वषो तक केवल एक पैर पर खडे होकर, वायु का
आहार करके िसथत रहता है उससे भी बढकर धयानी एवं योगी है – ऐसी बहा जी की आजा है । िमतघाती, सवभाव से ही िवकृ त नखवाला, काले दाँतवाला, कनयागामी, आग लगाने वाला,
सोमरस बेचने वाला, जनसमाज मे िनंिदत, चोर, चुगलखोर, गाम-पुरोिहत, वेतन लेकर पढानेवाला, पुनिवव म ािहता सी का पित, माता-िपता का पिरतयाग करने वाला, हीन वणम की संतान का पालन-
पोषण करने वाला, शूदा सी का पित तथा मंिदर मे पूजा करके जीिवका चलाने वाला बाहण शाद के अवसर पर िनमंतण दे ने योगय नहीं है , ऐसा कहा गया है ।
बचचो का सूतक िजनके घर मे हो, दीघम काल से जो रोगगसत हो, मिलन एवं पितत
िवचारोवाले हो, उनको िकसी भी पकार से शादकमम नहीं दे खने चािहए। यिद वे लोग शाद के
अनन को दे ख लेते है तो वह अनन हवय के िलए उपयुि नहीं रहता। इनके दारा सपशम िकये गये शादािद संसकार अपिवत हो जाते है ।
(वाय ु पुराणः
78.39.40)
"बहहतया करने वाले, कृ तघन, गुरपतीगामी, नािसतक, दसयु, नश ृ स ं , आतमजान से वंिचत एवं
अनय पापकमप म रायण लोग भी शादकमम मे विजत म है । िवशेषतया दे वताओं और दे विषय म ो की िनंदा मे िलि रहने वाले लोग भी वजयम है । इन लोगो दारा दे खा गया शादकमम िनषिल हो जाता है । (अनुिम)
बाहण को िनम ंतण
(वाय ु पुराणः
78.34.35)
िवचारशील पुरष को चािहए िक वह संयमी, शष े बाहणो को एक िदन पूवम ही िनमंतण दे
दे । शाद के िदन कोई अिनमंितत तपसवी बाहण, अितिथ या साधु-सनयासी घर पर पधारे तो उनहे भी भोजन कराना चािहए। शादकताम को घर पर आये हुए बाहणो के चरण धोने चािहए। ििर
अपने हाथ धोकर उनहे आचमन करना चािहए। ततपशात उनहे आसनो पर बैठाकर भोजन कराना चािहए।
िपतरो के िनिमत अयुगम अथात म एक, तीन, पाँच, सात इतयािद की संखया मे तथा दे वताओं
के िनिमत युगम अथात म दो, चार, छः, आठ आिद की संखया मे बाहणो को भोजन कराने की
वयवसथा करनी चािहए। दे वताओं एवं िपतरो दोनो के िनिमत एक-एक बाहण को भोजन कराने का भी िवधान है ।
वायु पुराण मे बह ृ सपित अपने पुत शंयु से कहते है -
"िजतेिनदय एवं पिवत होकर िपतरो को गंध, पुषप, धूप, घत ृ , आहुित, िल, मूल आिद अिपत म
करके नमसकार करना चािहए। िपतरो को पथम ति ृ करके उसके बाद अपनी शिि अनुसार
अनन-संपित से बाहणो की पूजा करनी चािहए। सवद म ा शाद के अवसर िपतग ृ ण वायुरप धारण कर बाहणो को दे खकर उनही आिवि हो जाते है इसीिलए मै ततपशात उनको भोजन कराने की बात कर रहा हूँ। वस, अनन, िवशेष दान, भकय, पेय, गौ, अि तथा गामािद का दान दे कर उतम
बाहणो की पूजा करनी चािहए। िदजो का सतकार होने पर िपतरगण पसनन होते है ।" (अनुिम) (वाय ु पुराणः
शाद के समय हवन और आह
75.12-15)
ु ित
"पुरषपवर ! शाद के अवसर पर बाहण को भोजन कराने के पहले उनसे आजा पाकर लवणहीन अनन और शाक से अिगन मे तीन बार हवन करना चािहए। उनमे 'अगनय े
कवयवाहन ाय सवाहा .....' इस मंत से पहली आहुित, 'सो माय िपत ृ मते सवाहा .....' इस मंत से
दस ू री आहूित एवं 'वैवस वताय सवाहा ....' मंत बोलकर तीसरी आहुित दे ने का समुिचत िवधान है । ततपशात हवन करने से बचा हुआ अनन थोडा-थोडा सभी बाहणो के पातो मे दे ।" (अनुिम) अिभ शवण एव ं रकक म ंत
शादिविध मे मंतो का बडा महतव है । शाद मे आपके दारा दी गई वसतुएँ िकतनी भी मूलयवान कयो न हो, लेिकन आपके दारा यिद मंतो का उचचारण ठीक न हो तो कायम असत-
वयसत हो जाता है । मंतोचचारण शुद होना चािहए और िजनके िनिमत शाद करते हो उनके नाम का उचचारण शुद करना चािहए।
शाद मे बाहणो को भोजन कराते समय 'रकक म ंत ' का पाठ करके भूिम पर ितल िबखेर
दे तथा अपने िपतर ृ प मे उन िदजशष े ो का ही िचंतन करे । 'रकक म ंत ' इस पकार है ः यजेिरो यजस मसतन े ता भोिा ऽवय यातमा हिररीिरोऽसत
ु।
ततस ंिन धान ादपयानत ु सदो रका ंसयश ेषा णयस ुराश स वे ।।
'यहाँ संपूणम हवय-िल के भोिा यजेिर भगवान शीहिर िवराजमान है । अतः उनकी सिननिध के कारण समसत राकस और असुरगण यहाँ से तुरनत भाग जाएँ।'
(वराह प ुराणः
14.32)
बाहणो को भोजन के समय यह भावना करे िकः
'इन बाहणो के शरीरो मे िसथत मेरे िपता, िपतामह और पिपतामह आिद आज भोजन से ति ृ हो जाएँ।'
जैसे, यहाँ के भेजे हुए रपये लंदन मे पाउणड, अमेिरका मे डालर एवं जापान मे येन बन
जाते है ऐसे ही िपतरो के पित िकये गये शाद का अनन, शादकमम का िल हमारे िपतर जहाँ है , जैसे है , उनके अनुरप उनको िमल जाता है । िकनतु इसमे िजनके िलए शाद िकया जा रहा हो,
उनके नाम, उनके िपता के नाम एवं गोत के नाम का सपि उचचारण होना चािहए। िवषणु पुराण मे आता है ः
शदासम िनवत ै दम तं िपत ृ भयो न ाम गोततः। यदाहा रासत ु त े जातासतदाहारतवम
ेित त त।् ।
'शदायुि वयिियो दारा नाम और गोत का उचचारण करके िदया हुआ अनन िपतग ृ ण को
वे जैसे आहार के योगय होते है वैसा ही होकर उनहे िमलता है '।(अनुिम)
(िवषण ु प ुराणः
3.16.16)
शाद म े भोजन करान े का िव धान
भोजन के िलए उपिसथत अनन अतयंत मधुर, भोजनकताम की इचछा के अनुसार तथा अचछी पकार िसद िकया हुआ होना चािहए। पातो मे भोजन रखकर शादकताम को अतयंत सुद ं र एवं मधुरवाणी से कहना चािहए िकः 'हे महानुभावो ! अब आप लोग अपनी इचछा के अनुसार भोजन करे ।'
ििर िोध तथा उतावलेपन को छोडकर उनहे भिि पूवक म भोजन परोसते रहना चािहए। बाहणो को भी दतिचत और मौन होकर पसनन मुख से सुखपूवक म भोजन करना चािहए।
"लहसुन, गाजर, पयाज, करमभ (दही िमला हुआ आटा या अनय भोजय पदाथम) आिद वसतुएँ
जो रस और गनध से िननद है , शादकमम मे िनिषद है ।"
(वाय ु पुराणः
78.12)
"बाहण को चािहए िक वह भोजन के समय कदािप आँसू न िगराये, िोध न करे , झूठ न
बोले, पैर से अनन के न छुए और उसे परोसते हुए न िहलाये। आँसू िगराने से शादानन भूतो को, िोध करने से शतुओं को, झूठ बोलने से कुतो को, पैर छुआने से राकसो को और उछालने से पािपयो को पाि होता है ।"
(मनुसम ृ ितः 3.229.230)
"जब तक अनन गरम रहता है और बाहण मौन होकर भोजन करते है , भोजय पदाथो के
गुण नहीं बतलाते तब तक िपतर भोजन करते है । िसर मे पगडी बाँधकर या दिकण की ओर मुँह करके या खडाऊँ पहनकर जो भोजन िकया जाता है उसे राकस खा जाते है ।"
(मनुसम ृ ितः 3.237.238)
"भोजन करते हुए बाहणो पर चाणडाल, सूअर, मुगाम, कुता, रजसवला सी और नपुंसक की
दिि नहीं पडनी चािहए। होम, दान, बाहण-भोजन, दे वकमम और िपतक ृ मम को यिद ये दे ख ले तो वह कमम िनषिल हो जाता है ।
सूअर के सूँघने से, मुगी के पंख की हवा लगने से, कुते के दे खने से और शूद के छूने से
शादानन िनषिल हो जाता है । लँगडा, काना, शादकताम का सेवक, हीनांग, अिधकांग इन सबको शाद-सथल से हटा दे ।"
(मनुसम ृ ितः 3.241.242) "शाद से बची हुई भोजनािद वसतुएँ सी को तथा जो अनुचर न हो ऐसे शूद को नहीं दे नी
चािहए। जो अजानवश इनहे दे दे ता है , उसका िदया हुआ शाद िपतरो को नहीं पाि होता। इसिलए शादकमम मे जूठे बचे हुए अननािद पदाथम िकसी को नहीं दे ना चािहए।" (अनुिम)
(वाय ु पुराणः
79.83)
अनन आ िद के िव तरण का िवधान
जब िनमंितत बाहण भोजन से ति ृ हो जाये तो भूिम पर थोडा-सा अनन डाल दे ना चािहए। आचमन के िलए उनहे एक बार शुद जल दे ना आवशयक है । तदनंतर भली भांित ति ृ हुए बाहणो से आजा लेकर भूिम पर उपिसथत सभी पकार के अनन से िपणडदान करने का िवधान है । शाद के अंत मे बिलवैिदे व का भी िवधान है ।
बाहणो से सतकािरत तथा पूिजत यह एक मंत समसत पापो को दरू करने वाला, परम
पिवत तथा अिमेध यज के िल की पािि कराने वाला है ।
सूत जी कहते है ः "हे ऋिषयो ! इस मंत की रचना बहा जी ने की थी। यह अमत ृ मंत है ः देव ताभयः िपत ृ भयश म हायोिगभय एव च।
नमः सव धाय ै सवाहाय ै िनतयम ेव भव नतय ुत।। "समसत दे वताओं, िपतरो, महायोिगिनयो, सवधा एवं सवाहा सबको हम नमसकार करते है ।
ये सब शाित िल पदान करने वाले है ।"
(वाय ु पुराणः
74.16)
सवद म ा शाद के पारमभ, अवसान तथा िपणडदान के समय सावधानिचत होकर तीन बार इस मंत का पाठ करना चािहए। इससे िपतग ृ ण शीघ वहाँ आ जाते है और राकसगण भाग जाते है ।
राजय पािि के अिभलाषी को चािहए िक वह आलसय रिहत होकर सवद म ा इस मंत का पाठ करे । यह वीयम, पिवतता, धन, साििवक बल, आयु आिद को बढाने वाला है ।
बुिदमान पुरष को चािहए की वह कभी दीन, िुद अथवा अनयमनसक होकर शाद न करे ।
एकागिचत होकर शाद करना चािहए। मन मे भावना करे िकः 'जो कुछ भी अपिवत तथा
अिनयिमत वसतुएँ है , मै उन सबका िनवारण कर रहा हूँ। िवघन डालने वाले सभी असुर एवं
दानवो को मै मार चुका हूँ। सब राकस, यक, िपशाच एवं यातुधानो (राकसो) के समूह मुझसे मारे जा चुके है ।"(अनुिम) शाद म े दान
शाद के अनत मे दान दे ते समय हाथ मे काले ितल, जौ और कुश के साथ पानी लेकर बाहण को दान दे ना चािहए तािक उसका शुभ िल िपतरो तक पहुँच सके, नहीं तो असुर लोग िहससा ले जाते है । बाहण के हाथ मे अकत(चावल) दे कर यह मंत बोला जाता है ः अकत ं चा सतु म े प ुणय ं श ां ित प ुििध मृ ित श म े।
यिद चछेयस ् कमम लोके तदसत ु स दा म म।।
"मेरा पुणय अकय हो। मुझे शांित, पुिि और धिृत पाि हो। लोक मे जो कलयाणकारी
वसतुएँ है , वे सदा मुझे िमलती रहे ।"
इस पकार की पाथन म ा भी की जा सकती है ।
िपतरो को शदा से ही बुलाया जा सकता है । केवल कमक म ाणड या वसतुओं से काम नहीं होता है ।
"शाद मे चाँदी का दान, चाँदी के अभाव मे उसका दशन म अथवा उसका नाम लेना भी
िपतरो को अननत एवं अकय सवगम दे नेवाला दान कहा जाता है । योगय पुतगण चाँदी के दान से अपने िपतरो को तारते है । काले मग ृ चमम का सािननधय, दशन म अथवा दान राकसो का िवनाश
करने वाला एवं बहतेज का वधक म है । सुवणिमनिमत म , चाँदीिनिमत म , तामिनिमत म वसतु, दौिहत, ितल,
वस, कुश का तण ृ , नेपाल का कमबल, अनयानय पिवत वसतुएँ एवं मन, वचन, कमम का योग, ये सब शाद मे पिवत वसतुएँ कही गई है ।"
(वाय ु पुराणः
74.1-4)
शादकाल मे बाहणो को अनन दे ने मे यिद कोई समथम न हो तो बाहणो को वनय
कंदमूल, िल, जंगली शाक एवं थोडी-सी दिकणा ही दे । यिद इतना करने भी कोई समथम न हो तो िकसी भी िदजशष े को पणाम करके एक मुटठी काले ितल दे अथवा िपतरो के िनिमत पथृवी पर भिि एवं नमतापूवक म सात-आठ ितलो से युि जलांजिल दे दे वे। यिद इसका भी अभाव हो तो
कहीँ कहीं न कहीं से एक िदन का घास लाकर पीित और शदापूवक म िपतरो के उदे शय से गौ को िखलाये। इन सभी वसतुओं का अभाव होने पर वन मे जाकर अपना ककमूल (बगल) सूयम को िदखाकर उचच सवर से कहे ः
न म े ऽिसत िवत ं न धन ं न चा नयचछादसय
योग यं सव िपत ृ ननतोऽ िसम।
तृ षयनत ु भ िया िपतरो मय ै तौ भुजौ ततौ वतम म िन मारतसय।।
मेरे पास शाद कमम के योगय न धन-संपित है और न कोई अनय सामगी। अतः मै अपने िपतरो को पणाम करता हूँ। वे मेरी भिि से ही तिृिलाभ करे । मैने अपनी दोनो बाहे आकाश मे उठा रखी है ।
वाय ु पुराणः
13.58
कहने का तातपयम यह है िक िपतरो के कलयाणाथम शाद के िदनो मे शाद अवशय करना चािहए। िपतरो को जो शदामय पसाद िमलता है उससे वे ति ृ होते है । (अनुिम) शाद म े िप णडदान
हमारे जो समबनधी दे व हो गये है , िजनको दस ृ ोक मे ू रा शरीर नहीं िमला है वे िपतल
अथवा इधर उधर िवचरण करते है , उनके िलए िपणडदान िकया जाता है ।
बचचो एवं सनयािसयो के िलए िपणडदान नहीं िकया जाता। िपणडदान उनहीं का होता है िजनको मै-मेरे की आसिि होती है । बचचो की मै-मेरे की समिृत और आसिि िवकिसत नहीं
होती और सनयास ले लेने पर शरीर को मै मानने की समिृत सनयासी को हटा दे नी होती है । शरीर मे उनकी आसिि नहीं होती इसिलए उनके िलए िपणडदान नहीं िकया जाता। शाद मे बाह रप से जो चावल का िपणड बनाया जाता, केवल उतना
बाह कमक म ाणड नहीं
है वरन ् िपणडदान के पीछे ताििवक जान भी छुपा है ।
जो शरीर मे नहीं रहे है , िपणड मे है , उनका भी नौ तिवो का िपणड रहता है ः चार
अनतःकरण और पाँच जानेिनदयाँ। उनका सथूल िपणड नहीं रहता है वरन ् वायुमय िपणड रहता है । वे अपनी आकृ ित िदखा सकते है िकनतु आप उनहे छू नहीं सकते । दरू से ही वे आपकी दी हुई
चीज को भावनातमक रप से गहण करते है । दरू से ही वे आपको पेरणा आिद दे ते है अथवा कोई कोई सवपन मे भी मागद म शन म दे ते है ।
अगर िपतरो के िलए िकया गया िपणडदान एवं शादकमम वयथम होता तो वे मत ृ क िपतर
सवपन मे यह नहीं कहते िकः हम दःुखी है । हमारे िलए िपणडदान करो तािक हमारी िपणड की आसिि छूटे और हमारी आगे की याता हो... हमे दस ू रा शरीर, दस ू रा िपणड िमल सके।
शाद इसीिलए िकया जाता है िक िपतर मंत एवं शदापूवक म िकये गये शाद की वसतुओं को
भावनातमक रप से ले लेते है और वे ति ृ भी होते है । (अनुिम) शाद के पकार
शाद के अनेक पकार है - िनतय शाद, कामय शाद, एकोिदि शाद, गोष शाद आिद-आिद। िनतय श ादः यह शाद जल दारा, अनन दारा पितिदन होता है । शदा-िविास से िकये
जाने वाले दे वपूजन, माता-िपता एवं गुरजनो के पूजन को िनतय शाद कहते है । अनन के अभाव मे जल से भी शाद िकया जाता है ।
कामय श ादः जो शाद कुछ कामना रखकर िकया जाता है , उसे कामय शाद कहते है ।
वृ द श ादः िववाह, उतसव आिद अवसर पर वद ृ ो के आशीवाद म लेने हे तु िकया जाने वाला शाद वद ृ शाद कहलाता है । सिपंिड त शादः
सिपंिडत शाद सममान हे तु िकया जाता है ।
पाव म शादः
मंतो से पवो पर िकया जाने वाला शाद पावम शाद है जैसे अमावसया आिद
गोष शादः
गौशाला मे िकया जाने वाला गौष शाद कहलाता है ।
पवो पर िकया जाने वाला शाद।
शुिद श ादः पापनाश करके अपनी शुिद कराने के िलए जो शाद िकया जाता है वह है शुिद शाद।
दै िवक शादः
दे वताओँ को पसनन करने के उदे शय से दै िवक शाद िकया जाता है ।
कमा ा ग श ादः आने वाली संतित के िलए गभाध म ान, सोमयाग, सीमानतोननयन आिद जो संसकार िकये जाते है , उनहे कमाग ा शाद कहते है ।
तुिि श ादः दे शानतर मे जाने वाले की तुिि के िलए जो शुभकामना की जाती है , उसके
िलए जो दान पुणय आिद िकया जाता है उसे तुिि शाद कहते है । अपने िमत, भाई, बहन, पित,
पती आिद की भलाई के िलए जो कम म िकये जाते है उन सबको तुिि शाद कहते है । (अनुिम) शादयो गय ित िथया ँ
ऊँचे मे ऊँचा, सबसे बिढया शाद शादपक की ितिथयो मे होता है । हमारे पूवज म िजस ितिथ मे इस संसार से गये है , शादपक मे उसी ितिथ को िकया जाने वाला शाद सवश म ष े होता है । िजनके िदवंगत होने की ितिथ याद न हो, उनके शाद के िलए अमावसया की ितिथ
उपयुि मानी गयी है । बाकी तो िजनकी जो ितिथ हो, शादपक मे उसी ितिथ पर बुिदमानो को शाद करना चािहए।
जो पूण म मासी के िदन शादािद करता है उसकी बुिद, पुिि, समरणशिि, धारणाशिि, पुत-
पौतािद एवं ऐियम की विृद होती। वह पवम का पूणम िल भोगता है ।
इसी पकार पित पदा धन-समपित के िलए होती है एवं शाद करनेवाले की पाि वसतु नि
नहीं होती।
िद ितया को शाद करने वाला वयिि राजा होता है ।
उतम अथम की पािि के अिभलाषी को तृ ितया िविहत है । यही तिृतया शतुओं का नाश करने वाली और पाप नािशनी है ।
जो चतु थी को शाद करता है वह शतुओं का िछद दे खता है अथात म उसे शतुओं की
समसत कूटचालो का जान हो जाता है ।
पंच मी ितिथ को शाद करने वाला उतम लकमी की पािि करता है । जो षषी ितिथ को शादकमम संपनन करता है उसकी पूजा दे वता लोग करते है ।
जो सिमी को शादािद करता है उसको महान यजो के पुणयिल पाि होते है और वह गणो का सवामी होता है ।
जो अिमी को शाद करता है वह समपूणम समिृदयाँ पाि करता है । नवमी ितिथ को शाद करने वाला पचुर ऐियम एवं मन के अनुसार अनुकूल चलने वाली
सी को पाि करता है ।
दश मी ितिथ को शाद करने वाला मनुषय बहतव की लकमी पाि करता है । एकादशी
का शाद सवश म ष े दान है । वह समसत वेदो का जान पाि कराता है । उसके
समपूणम पापकमो का िवनाश हो जाता है तथा उसे िनरं तर ऐियम की पािि होती है । दादशी
ितिथ के शाद से राष का कलयाण तथा पचुर अनन की पािि कही गयी है ।
तयोदशी
के शाद से संतित, बुिद, धारणाशिि, सवतंतता, उतम पुिि, दीघाय म ु तथा ऐियम की
पािि होती है ।
चतुद म शी का शाद जवान मत ृ को के िलए िकया जाता है तथा जो हिथयारो दारा मारे गये
हो उनके िलए भी चतुदमशी को शाद करना चािहए। अमावसया
का शाद समसत िवषम उतपनन होने वालो के िलए अथात म तीन कनयाओं के
बाद पुत या तीन पुतो के बाद कनयाएँ हो उनके िलए होता है । जुडवे उतपनन होने वालो के िलए भी इसी िदन शाद करना चािहए।
सधवा अथवा िवधवा िसयो का शाद आििन (गुजरात -महाराष क े म ुता िबक
भादपत ) कृषण पक की नवमी
ितिथ के िदन
बचचो का शाद कृषण पक की त योदशी
िकया जाता है ।
ित िथ को िकया जाता है ।
दघ म ना मे अथवा युद मे घायल होकर मरने वालो का शाद कृषण पक की च तुद म शी ु ट
ित िथ को िकया जाता है ।
जो इस पकार शादािद कमम संपनन करते है वे समसत मनोरथो को पाि करते है और
अनंत काल तक सवगम का उपभोग करते है । मघा नकत िपतरो को अभीि िसिद दे ने वाला है । अतः उि नकत के िदनो मे िकया गया शाद अकय कहा गया है । िपतग ृ ण उसे सवद म ा अिधक पसंद करते है ।
जो वयिि अिकाओं मे िपतरो की पूजा आिद नहीं करते उनका यह जो इन अवसरो पर
शादािद का दान करते है वे दे वताओं के समीप अथात म ् सवगल म ोक को जाते है और जो नहीं करते वे ितयक म ् (पकी आिद अधम) योिनयो मे जाते है ।
राित के समय शादकमम िनिषद है । (अनुिम)
वाय ु पुराणः
78.3
शादयो गय स थान
समुद तथा समुद मे िगरने वाली निदयो के तट पर, गौशाला मे जहाँ बैल न हो, नदीसंगम पर, उचच िगिरिशखर पर, वनो मे लीपी-पुती सवचछ एवं मनोहर भूिम पर, गोबर से लीपे हुए एकांत घर मे िनतय ही िविधपूवक म शाद करने से मनोरथ पूणम होते है और िनषकाम भाव से
करने पर वयिि अंतःकरण की शुिद और परबह परमातमा की पािि कर सकता है , बहतव की िसिद पाि कर सकता है ।
अशद धानाः पापमान
ो नािसतकाः
िसथत संशयाः।
हेत ुदिा च पंच ैत े न तीथ म ि लमश ु ते।।
गुरतीथ े परािसिदसती
थाम नां परम ं पदम।्
धयान ं तीथ म परं त समाद बहती था सनातनम। ् ।
शदा न करने वाले, पापातमा, परलोक को न मानने वाले अथवा वेदो के िननदक, िसथित मे संदेह रखने वाले संशयातमा एवं सभी पुणयकमो मे िकसी कारण का अनवेषण करने वाले कुतकीइन पाँचो को पिवत तीथो का िल नहीं िमलता।
गुररपी तीथम मे परम िसिद पाि होती है । वह सभी तीथो मे शष े है । उससे भी शष े तीथम
धयान है । यह धयान साकात ् बहतीथम है । इसका कभी िवनाश नहीं होता। ये त ु वत े िसथ ता िनतय ं जािननो देव भिा महातमानः प
वाय ु पुराणः
77.127.128
ध यािन नसत था।
ुनीय ुद म शम नादिप।।
जो बाहण िनतय वतपरायण रहते है , जानाजन म मे पवत ृ रहकर योगाभयास मे िनरत रहते है , दे वता मे भिि रखते है , महान आतमा होते है । वे दशन म मात से पिवत करते है ।
वाय ु पुराणः
79.80
काशी, गया, पयाग, रामेिरम ् आिद केतो मे िकया गया शाद िवशेष िलदायी होता है ।
(अनुिम)
शाद करन े का अ िधकारी कौन ?
वणस म ंकर के हाथ का िदया हुआ िपणडदान और शाद िपतर सवीकार नहीं करते और
वणस म ंकर संतान से िपतर ति ृ नहीं होते वरन ् दःुखी और अशांत होते है । अतः उसके कुल मे भी दःुख, अशांित और तनाव बना रहता है ।
शीमदभगवदगीता के पथम अधयाय के 42 वे शोक मे आया है ः
संकरो नरका यैव कुल घना नां कु लसय च।
पत िनत िपतरो हेषा ं ल ुििप णडोदकिियाः।।
वणस म ंकर कुलघाितयो को और कुल को नरक मे ले जाने वाला ही होता है । शाद और तपण म न िमलने से इन (कुलघाितयो) के िपतर भी अधोगित को पाि होते है ।
वण म संकरः एक जाित के िपता एवं दस म ंकर ू री जाित की माता से उतपनन संतान को वणस
कहते है ।
महाभारत के अनुशासन पवम के अनतगत म दानधमम पवम मे आता है ः अथा म ल लोभादा
कामादा वणा म नां चापयिनशयात। ्
अजान ादािप वणा म नां जायत े वण म संकर ः।। तेषाम ेत ेन िविध ना जाताना ं वण म संकर े।
धन पाकर या धन के लोभ मे आकर अथवा कामना के वशीभूत होकर जब उचच वणम की सी नीच वणम के पुरष के साथ संबंध सथािपत कर लेती है तब वणस म ंकर संतान उतपनन होती है । वणम का िनशय अथवा जान न होने से भी वणस म ंकर की उतपित होती है ।
महाभारतः दानधम
म प वम ः 48.1.2
शादकाल मे शरीर, दवय, सी, भूिम, मन, मंत और बाहण ये सात चीजे िवशेष शुद होनी चािहए। शाद मे तीन बातो को धयान रखना चािहए। शुिद, अिोध और अतवरा यानी जलदबाजी नहीं।
शाद मे कृ िष और वािणजय का धन उतम, उपकार के बदले िदया गया धन मधयम और
बयाज एवं छल कपट से कमाया गया धन अधम माना जाता है । उतम धन से दे वता और िपतरो की तिृि होती है , वे पसनन होते है । मधयम धन से मधयम पसननता होती है और अधम धन से छोटी योिन (चाणडाल आिद योिन) मे जो अपने िपतर है उनको तिृि िमलती है । शाद मे जो
अनन इधर उधर छोडा जाता है उससे पशु योिन एवं इतर योिन मे भटकते हुए हमारे कुल के लोगो को तिृि िमलती है , ऐसा कहा गया है ।
शाद के िदन भगवदगीता के सातवे अधयाय का माहातमय पढकर ििर पूरे अधयाय का
पाठ करना चािहए एवं उसका िल मत ृ क आतमा को अपण म करना चािहए। (अनुिम) शाद म े श ंका कर ने का पिरणाम व शदा करन
े स े ल ाभ
बह ृ सपित कहते है - "शादिवषयक चचाम एवं उसकी िविधयो को सुनकर जो मनुषय दोषदिि से दे खकर उनमे अशदा करता है वह नािसतक चारो ओर अंधकार से िघरकर घोर नरक मे
िगरता है । योग से जो दे ष करने वाले है वे समुद मे ढोला बनकर तब तक िनवास करते है जब तक इस पथ ृ वी की अविसथित रहती है । भूल से भी योिगयो की िननदा तो करनी ही नहीं चािहए कयोिक योिगयो की िननदा करने से वहीं कृ िम होकर जनम धारण करना पडता है । योगपरायण योगेिरो की िननदा करने से मनुषय चारो ओर अंधकार से आचछनन, िनशय ही अतयंत घोर िदखाई पडने वाले नरक मे जाता है । आतमा को वश मे रखने वाले योगेिरो की िननदा जो
मनुषय सुनता है वह िचरकालपयत ा कुमभीपाक नरक मे िनवास करता है इसमे तिनक भी संदेह नहीं है । योिगयो के पित दे ष की भावना मनसा, वाचा, कमण म ा सवथ म ा विजत म है ।
िजस पकार चारागाह मे सैकडो गौओं मे िछपी हुई अपनी माँ को बछडा ढू ँ ढ लेता है उसी
पकार शादकमम मे िदए गये पदाथम को मंत वहाँ पर पहुँचा दे ता है जहाँ लिकत जीव अविसथत
रहता है । िपतरो के नाम, गोत और मंत शाद मे िदये गये अनन को उसके पास ले जाते है , चाहे
वे सैकडो योिनयो मे कयो न गये हो। शाद के अननािद से उनकी तिृि होती है । परमेषी बहा ने इसी पकार के शाद की मयाद म ा िसथर की है ।"
जो मनुषय इस शाद के माहातमय को िनतय शदाभाव से, िोध को वश मे रख, लोभ आिद
से रिहत होकर शवण करता है वह अनंत कालपयत ा सवगम भोगता है । समसत तीथो एवं दानो को िलो को वह पाि करता है । सवगप म ािि के िलए इससे बढकर शष े उपाय कोई दस ू रा नहीं है ।
आलसयरिहत होकर पवस म िं धयो मे जो मनुषय इस शाद-िविध का पाठ सावधानीपूवक म करता है वह मनुषय परम तेजसवी संतितवान होता और दे वताओं के समान उसे पिवतलोक की पािि होती है ।
िजन अजनमा भगवान सवयंभू (बहा) ने शाद की पुनीत िविध बतलाई है उनहे हम नमसकार करते है ! महान ् योगेिरो के चरणो मे हम सवद म ा पणाम करते है !
जीवातमा का अगला जीवन िपछले संसकारो से बनता है । अतः शाद करके यह भावना भी
की जाती है िक उनका अगला जीवन अचछा हो। वे भी हमारे वतम म ान जीवन की अडचनो को दरू करने की पेरणा दे ते है और हमारी भलाई करते है ।
आप िजससे भी बात करते है उससे यिद आप पेम से नमता से और उसके िहत की बात
करते है तो वह भी आपके साथ पेम से और आपके िहत की बात करे गा। यिद आप सामने वाले से काम करवाकर ििर उसकी ओर दे खते तक नहीं तो वह भी आपकी ओर नहीं दे खेगा या आप से रि हो जायेगा। Every action creates reaction.
िकसी के घर मे ऐरे गैरे या लूले लँगडे या माँ-बाप को दःुख दे ने वाले बेटे पैदा होते है तो
उसका कारण भी यही बताया जाता है िक िजनहोने िपतरो को ति ृ नहीं िकया है , िपतरो का पूजन नहीं िकया, अपने माँ-बाप को ति ृ नहीं िकया उनके बचचे भी उनको ति ृ करने वाले नहीं होते। शी अरिवनदघोष जब जेल मे थे तब उनहोने िलखा थाः "मुझे सवामी िववेकाननद की
आतमा दारा पेरणा िमलती है और मै 15 िदन तक महसूस करता रहा हूँ िक सवामी िववेकाननद की आतमा मुझे सूकम जगत की साधना का मागद म शन म दे ती रही है ।" (अनुिम)
जब उनहोने परलोकगमन वालो की साधना की तब उनहोने महसूस िकया िक रामकृ षण
परमहं स का अंतवाहक शरीर (उनकी आतमा) भी उनहे सहयोग दे ता था।
अब यहाँ एक संदेह हो सकता है िक शी रामकृ षण परमहं स को तो परमातम-तिव का
साकातकार हो गया था, वे तो मुि हो गये थे। वे अभी िपतर लोक मे तो नहीं होगे। ििर उनके दारा पेऱणा कैसे िमली?
'शीयोगवािशष महारामायण' मे शी विशषजी कहते है "जानी जब शरीर मे होते है तब जीवनमुि होते है और जब उनका शरीर छूटता है तब वे
िवदे हमुि होते है । ििर वे जानी वयापक बह हो जाते है । वे सूयम होकर तपते है , चंदमा होकर
चमकते है , बहाजी होकर सिृि उतपनन करते है , िवषणु होकर सिृि का पालन करते है और िशव होकर संहार करते है ।
जब सूयम एवं चंदमा मे जानी वयाप जाते है तब अपने रासते जाने वाले को वे पेरणा दे दे
यह उनके िलए असंभव नहीं है ।
मेरे गुरदे व तो वयापक बह हो गये लेिकन मै अपने गुरदे व से जब भी बात करना चाहता
हूँ तो दे र नहीं लगती। अथवा तो ऐसा कह सकते है िक अपना शुद संिवत ही गुररप मे िपतर ृ प मे पेरणा दे दे ता है ।
कुछ भी हो शदा से िकए हुए िपणडदान आिद कताम को मदद करते है । शाद का एक
िवशेष लाभ यह है िक 'मरने का बाद भी जीव का अिसततव रहता है ....' इस बात की समिृत बनी
रहती है । दस ू रा लाभ यह है िक इसमे अपनी संपित का सामािजकरण होता है । गरीब-गुरबे,
कुटु िमबयो आिद को भोजन िमलता है । अनय भोज-समारोहो मे रजो-तमोगुण होता है जबिक शाद हे तु िदया गया भोजन धािमक म भावना को बढाता है और परलोक संबध ं ी जान एवं भििभाव को िवकिसत करता है ।
िहनदओ ु ं मे जब पती संसार से जाती है तब पित को हाथ जोडकर कहती है ः "मेरे से कुछ
अपराध हो गया हो तो कमा करना और मेरी सदगित के िलए आप पाथन म ा करना.... पयत
करना।" अगर पित जाता है तो हाथ जोडते हुए कहता है ः "जाने अनजाने मे तेरे साथ मैने कभी कठोर वयवहार िकया हो तो तू मुझे कमा कर दे ना और मेरी सदगित के िलए पाथन म ा करना.... पयत करना।"
हम एक-दस ू रे की सदगित के िलए जीते-जी भी सोचते है और मरणकाल का भी सोचते
है , मतृयु के बाद का भी सोचते है । (अनुिम) शाद स े प ेतातमाओ ं का उदार
इस जमाने मे भी जो समझदार है एवं उनकी शादििया नहीं होती वे िपतल ृ ोक मे नहीं, पेतलोक मे जाते है । वे पेतलोक मे गये हुए समझदार लोग समय लेकर अपने समझदार
संबिं धयो अथवा धािमक म लोगो को आकर पेरणा दे ते है िकः "हमारा शाद करो तािक हमारी सदगित हो।"
राजसथान मे कसतूरचंद गडोिदया एक बडी पाटी है । उनकी गणना बडे -बडे धनाढयो मे
होती है । उनके कुटु िमबयो मे िकसी का सवगव म ास हो गया। गडोिदया िमम के कनहै यालालजी गया जी मे उनका शाद करने गये, तब उनहे वहाँ एक पेतातमा िदखी। उस पेतातमा ने कहाः "मै
राजसथान मे आपके ही गाँव का हूँ, लेिकन मेरे कुटु िमबयो ने मेरी उतरििया नहीं की है , इसिलए
मै भटक रहा हूँ। आप कनहै यालाल गडोिदया सेठ ! अपने कुटु मबो का शाद करने के िलए आये है
तो कृ पा करके मेरे िनिमत भी आप शाद कर दीिजए। मै आपके गाँव का हूँ, मेरा हजाम का धंधा था और मोहन नाई मेरा नाम है ।"
कनहै यालाल जी को तो पता नहीं था िक उनके गाँव का कौन सा नाई था लेिकन उनहोने
उस नाई के िनिमत शाद कर िदया।
राजसथान वापस आये तो उनहोने जाँच करवायी तब उनहे पता चला िक थोडे से वषम पूवम
ही कोई जवान मर गया था वह मोहन नाई था।
ऐसे ही एक बार एक पारसी पेतातमा ने आकर हनुमान पसाद पोदार से पाथन म ा की िकः
"हमारे धमम मे तो शाद को नहीं मानते परनतु मेरी जीवातमा पेत के रप मे भटक रही है । आप कृ पा करके हमारे उदार के िलए कुछ करे ।"
हनुमान पसाद पोदार ने उस पेतातमा के िनिमत शाद िकया तो उसका उदार हो गया एवं
उसने पभात काल मे पसननवदन उनका अिभवादन िकया िक मेरी सदगित हुई।
शादकमम करने वालो मे कृ तजता के संसकार सहज मे दढ होते है जो शरीर की मौत के बाद भी कलयाण का पथ पशसत करते है । शादकमम से दे वता और िपतर ति ृ होते है और शाद करनेवाले का अंतःकरण भी तिृि-संतिु ि का अनुभव करता है । बूढे-बुजग ु ो ने आपकी उननित के
िलए बहुत कुछ िकया है तो उनकी सदगित के िलए आप भी कुछ करे गे तो आपके हदय मे भी तिृि-संतुिि का अनुभव होगा।
औरं गजेब ने अपने िपता शाहजहाँ को कैद कर िदया था तब शाहजहाँ ने अपने बेटे को
िलख भेजाः "धनय है िहनद ू जो अपने मत ृ क माता-िपता को भी खीर और हलुए-पूरी से ति ृ करते है और तू िजनदे बाप को भी एक पानी की मटकी तक नहीं दे सकता? तुझसे तो वे िहनद ू अचछे , जो मत ृ क माता-िपता की भी सेवा कर लेते है ।"
भारतीय संसकृ ित अपने माता-िपता या कुटु मब-पिरवार का ही िहत नहीं, अपने समाज और
दे श का ही िहत नहीं वरन ् पूरे िवि का िहत चाहती है । (अनुिम)
गरड प ुराण म े शाद -मिह मा
"अमावसया के िदन िपतग ृ ण वायुरप मे घर के दरवाजे पर उपिसथत रहते है और अपने सवजनो से शाद की अिभलाषा करते है । जब तक सूयास म त नहीं हो जाता, तब तक वे भूख-पयास से वयाकुल होकर वहीं खडे रहते है । सूयास म त हो जाने के पशात वे िनराश होकर दःुिखत मन से अपने-अपने लोको को चले जाते है । अतः अमावसया के िदन पयतपूवक म शाद अवशय करना
चािहए। यिद िपतज ृ नो के पुत तथा बनधु-बानधव उनका शाद करते है और गया-तीथम मे जाकर इस कायम मे पवत ृ होते है तो वे उनही िपतरो के साथ बहलोक मे िनवास करने का अिधकार पाि करते है । उनहे भूख-पयास कभी नहीं लगती। इसीिलए िवदान को पयतपूवक म यथािविध शाकपात से भी अपने िपतरो के िलए शाद अवशय करना चािहए।
कुवीत स मये शाद ं कुल े क िशनन सीद ित।
आयु ः प ुतान ् यश ः सवग ा की ित ा पुिि ं बल ं िशयम।् । पशून ् सौख यं धन ं धा नयं पापन ुयात ् िपत ृ पूजनात।् देव काय ाम दिप स दा िपत ृ का या िव िशषयत े।।
देव ताभयः िपत ृ ण ां िह पूव म मापया यनं शुभ म।्
"समयानुसार शाद करने से कुल मे कोई दःुखी नहीं रहता। िपतरो की पूजा करके मनुषय
आयु, पुत, यश, सवगम, कीितम, पुिि, बल, शी, पशु, सुख और धन-धानय पाि करता है । दे वकायम से भी िपतक ृ ायम का िवशेष महिव है । दे वताओं से पहले िपतरो को पसनन करना अिधक कलयाणकारी है ।"
(10.57.59)
जो लोग अपने िपतग ृ ण, दे वगण, बाहण तथा अिगन की पूजा करते है , वे सभी पािणयो की अनतरातमा मे समािवि मेरी ही पूजा करते है । शिि के अनुसार िविधपूवक म शाद करके मनुषय बहपयत ा समसत चराचर जगत को पसनन कर दे ता है ।
हे आकाशचािरन ् गरड ! िपशाच योिन मे उतपनन हुए िपतर मनुषयो के दारा शाद मे
पथ ृ वी पर जो अनन िबखेरा जाता है उससे संति ृ होते है । शाद मे सनान करने से भीगे हुए वसो दारा जी जल पथ ृ वी पर िगरता है , उससे वक ृ योिन को पाि हुए िपतरो की संतुिि होती है । उस
समय जो गनध तथा जल भूिम पर िगरता है , उससे दे व योिन को पाि िपतरो को सुख पाि होता है । जो िपतर अपने कुल से बिहषकृ त है , ििया के योगय नहीं है , संसकारहीन और िवपनन है , वे
सभी शाद मे िविकरानन और माजन म के जल का भकण करते है । शाद मे भोजन करने के बाद आचमन एवं जलपान करने के िलए बाहणो दारा जो जल गहण िकया जाता है , उस जल से िपतरो को संतिृि पाि होती है । िजनहे िपशाच, कृ िम और कीट की योिन िमली है तथा िजन
िपतरो को मनुषय योिन पाि हुई है , वे सभी पथ ृ वी पर शाद मे िदये गये िपणडो मे पयुि अनन की अिभलाषा करते है , उसी से उनहे संतिृि पाि होती है ।
इस पकार बाहण, कितय एवं वेशयो के दारा िविधपूवक म शाद िकये जाने पर जो शुद या
अशुद अनन जल िेका जाता है , उससे उन िपतरो की तिृि होती है िजनहोने अनय जाित मे
जाकर जनम िलया है । जो मनुषय अनयायपूवक म अिजत म िकये गये पदाथो के शाद करते है , उस शाद से नीच योिनयो मे जनम गहण करने वाले चाणडाल िपतरो की तिृि होती है ।
हे पिकन ् ! इस संसार मे शाद के िनिमत जो कुछ भी अनन, धन आिद का दान अपने
बनधु-बानधवो के दारा िकया जाता है , वह सब िपतरो को पाि होता है । अनन जल और शाकपात आिद के दारा यथासामथयम जो शाद िकया जाता है , वह सब िपतरो की तिृि का हे तु है । (अनुिम)
(गर ड प ुराण )
तप म ण और शाद स ंब ं धी शंका समा धान
गरड न े प ूछाः "हे सवािमन ् ! िपतल ृ ोक से आकर इस पथृवी पर शाद मे भोजन करते
हुए िपतरो को िकसी ने दे खा भी है ?" शी भग वान ने कहाः
"हे गरड ! सुनो। दे वी सीता का उदाहरण है । िजस पकार सीता
जी ने पुषकर तीथम मे अपने ससुर आिद तीन िपतरो को शाद मे िनमंितत बाहण के शरीर मे पिवि हुआ दे खा था, उसको मै कह रहा हूँ।
हे गरड ! िपता की आजा पाि करके जब शी राम वन को
चले गये तो उसके बाद सीता
जी के साथ शीराम ने पुषकर तीथम की याता की। तीथम मे पहुँचकर उनहोने शाद करना पारमभ
िकया। जानकी जी ने एक पके हुए िल को िसद करके शी राम जी के सामने उपिसथत िकया।
शादकमम मे दीिकत िपयतम शी राम की आजा से सवयं दीिकत होकर सीता जी ने उस धमम का समयक पालन िकया। उस समय सूयम आकाशमणडल के मधय पहुँच गये और कुतुपमुहूतम (िदन
का आठवाँ मुहूतम) आ गया था। शी राम ने िजन ऋिषयो को िनमंितत िकया था, वे सभी वहाँ पर
आ गये थे। आये हुए उन ऋिषयो को दे खकर िवदे हराज की पुती जानकी जी शीरामचंद की आजा से अनन परोसने के िलए वहाँ आयीं, िकनतु बाहणो के बीच जाकर वे तुरंत वहाँ से दरू चली गयीं
और लताओं के मधय िछपकर बैठ गयीं। सीता जी एकानत मे िछप गयी है , इस बात को जानकर शीराम ने िवचार िकया िकः "बाहणो को िबना भोजन कराये साधवी सीता लजजा के कारण कहीँ चली गयी होगी।" पहले मै इन बाहणो को भोजन करा लूँ ििर उनका अनवेषण करँगा। ऐसा
िवचारकर शीराम ने सवयं उन बाहणो को भोजन कराया। भोजन के बाद उन शष े बाहणो के चले जाने पर शीराम ने अपनी िपयतमा सीता जी से पूछाः "बाहणो को दे खकर तुम लताओं की ओट मे कयो िछप गई थीं? हे तनवङी ! तुम इसका समसत कारण अिवलमब मुझे बताओ।" शी राम के ऐसा कहने पर सीता जी मुँह नीचे कर सामने खडी हो गयीं और अपने नेतो से आँसू बहाती हुई बोलीं-
सीता जी न े क हाः "हे नाथ ! मैने यहाँ िजस पकार का आशयम दे खा है , उसे आप सुने।
हे राघव ! इस शाद मे उपिसथत बाहण के अगभाग मे मैने आपके िपता का दशन म िकया, जो
सभी आभूषणो से सुशोिभत थे। उसी पकार के अनय दो महापुरष भी उस समय मुझे िदखायी
पडे । आपके िपता को दे खकर मै िबना बताये एकानत मे चली आय़ी थी। हे पभो ! वलकल और मग ृ चमम धारण िकये हुए मै राजा (दशरथ) के सममुख कैसे जा सकती थी? हे शतुपक के वीरो का िवनाश करने वाले पाणनाथ ! मै आपसे यह सतय ही कह रही हूँ, अपने हाथ से राजा को मै वह
भोजन कैसे दे सकती थी, िजसके दासो के भी दास कभी वैसा भोजन नहीं करते रहे ? तण ृ पात मे उस अनन को रखकर मै उनहे कैसे दे ती? मै तो वही हूँ जो पहले सभी पकार के आभूषणो से
सुशोिभत रहती थी और राजा मुझे वैसी िसथित मे दे ख चुके थे। आज वही मै राजा के सामने
कैसे जा पाती? हे रघुननदन ! उसी से मन मे आयी हुई लजजा के कारण मै वापस हो गयी।" (अ नुिम)
(गर ड प ुराण ) महाकाल -कर नधम स ंवाद
एक बार महाराज करनधम महाकाल का दशन म करने गये। कालभीित महाकाल ने जब करनधम को दे खा, तब उनहे भगवान शंकर का वचन समरण हो आया। उनहोने उनका सवागत
सतकार िकया और कुशल-पशािद के बाद वे सुखपूवक म बैठ गये। तदननतर करनधम ने महाकाल ( कालभीित) से पूछाः "भगवन ! मेरे मन मे एक बडा संशय है िक यहाँ जो िपतरो को जल िदया जाता है , वह तो जल मे िमल जाता, ििर वह िपतरो को कैसे पाि होता है ? यही बात शाद के
समबनध मे भी है । िपणड आिद जब यहीं पडे रह जाते है , तब हम कैसे मान ले िक िपतर लोग उन िपणडािद का उपयोग करते है ? साथ ही यह कहने का साहस भी नहीं होता िक वे पदाथम
िपतरो को िकसी पकार िमले ही नहीं, कयोिक सवपन मे दे खा जाता है िक िपतर मनुषयो से शाद
आिद की याचना करते है । दे वताओं के चमतकार भी पतयक दे खे जाते है । अतः मेरा मन इस िवषय मे मोहगसत हो रहा है ।" महाकाल न े कहाः
"राजन ! दे वता और िपतरो की योिन ही इस पकार की है दरू से
कही हुई बात, दरू से िकया हुआ पूजन-संसकार, दरू से की हुई अचाम, सतुित तथा भूत, भिवषय और वतम म ान की सारी बातो को वे जान लेते है और वहीं पहुँच जाते है । उनका शरीर केवल नौ तिवो (पाँच तनमाताएँ और चार अनतःकरण) का बना होता है , दसवाँ जीव होता है , इसिलए उनहे सथूल उपभोगो की आवशयकता नहीं होती।"
करन धम न े क हाः "यह बात तो तब मानी जाये, जब िपतर लोग यहाँ भूलोक मे हो।
परनतु िजन मत ृ क िपतरो के िलए यहाँ शाद िकया जाता है वे तो अपने कमान म ुसार सवगम या
नरक मे चले जाते है । दस ू री बात, जो शासो मे यह कहा गया है िकः िपतर लोग पसनन होकर मनुषयो को आयु, पजा, धन, िवदा, राजय, सवगम या मोक पदान करते है ... यह भी समभव नहीं है , कयोिक जब वे सवयं कमब म नधन मे पडकर नरक मे है , तब दस ू रो के िलए कुछ कैसे करे गे!" महाकाल न े कहाः
"ठीक है , िकनतु दे वता, असुर, यक आिद के तीन अमूतम तथा चारो
वणओ म ँ के चार मूतम, ये सात पकार के िपतर माने गये है । ये िनतय िपतर है । ये कमो के आधीन नहीं, ये सबको सब कुछ दे ने समथम है । इन िनतय िपतरो के अतयनत पबल इककीस गण है । वे ति ृ होकर शादकताम के िपतरो को, वे चाहे कहीं भी हो, ति ृ करते है ।"
करन धम न े क हाः "महाराज ! यह बात तो समझ मे आ गयी, िकनतु ििर भी एक
सनदे ह है । भूत-पेतािद के िलए जैसे एकितत बिल आिद िदया जाता है , वैसे ही एकितत करके
संकेप मे दे वतािद के िलए भी कयो नहीं िदया जाता? दे वता, िपतर, अिगन, इनको अलग-अलग नाम लेकर दे ने मे बडा झंझट तथा िवसतार से कि भी होता है ।" महाकाल न े कहाः
"सभी के िविभनन िनयम है । घर के दरवाजे पर बैठनेवाले कुते को
िजस पकार खाना िदया जाता है , कया उसी पकार एक िविशि सममािनत वयिि को भी िदया
जाए?.... और कया वह उस तरह िदए जाने पर उसे सवीकार करे गा? अतः िजस पकार भूतािद को िदया जाता है उसी पकार दे ने पर दे वता उसे गहण नहीं करते। िबना शदा के िदया हुआ चाहे
उसी पकार दे ने पर दे वता उसे गहण नहीं करते। िबना शदा के िदया हुआ चाहे वह िजतना भी पिवत तथा बहूमूलय कयो न हो, वे उसे कदािप नहीं लेते। यही नहीं, शदापूवक म िदये गये पिवत पदाथम भी िबना मंत के वे सवीकार नहीं करते।"
करन धम न े क हाः "मै यह जानना चाहता हूँ िक जो दान िदया जाता है वह कुश, जल
और अकत के साथ कयो िदया जाता है ?" महाकाल न े कहाः
"पहले भूिम पर जो दान िदये जाते थे, उनहे असुर लोग बीच मे ही
घुसकर ले लेते थे। दे वता और िपतर मुह ँ दे खते ही रह जाते। आिखर उनहोने बहा जी से िशकायत की।
बहाजी ने कहा िक िपतरो को िदये गये पदाथो के साथ अकत, ितल, जल, कुश एवं जौ भी िदया जाए। ऐसा करने पर असुर इनहे न ले सकेगे। इसीिलए यह पिरपाटी है ।" (अनुिम) एकनाथजी महाराज क
े शाद म े िप तृ गण साकात पकट ह
ुए
एकनाथजी महाराज शादकमम कर रहे थे। उनके यहाँ सवािदि वयंजन बन रहे थे। िभखमंगे
लोग उनके दार से गुजरे । उनहे बडी िलजजतदार खुशबू आयी। वे आपस मे चचाम करने लगेः "आज तो शाद है .... खूब माल उडे गा।"
दस ू रे ने कहाः "यह भोजन तो पहले बाहणो को िखलाएँगे। अपने को तो बचे-खुचे जूठे
टु कडे ही िमलेगे।"
एकनाथजी ने सुन िलया। उनहोने अपनी धमप म ती िगरजाबाई से कहाः "बाहणो को तो
भरपेट बहुत लोग िखलाते है । इन लोगो मे भी तो बहा परमातमा िवराज रहा है । इनहोने कभी
खानदानी ढं ग से भरपेट सवािदि भोजन नहीं िकया होगा। इनहीं को आज िखला दे । बाहणो के िलए दस ू रा बना दोगी न? अभी तो समय है ।"
िगरजाबाई बोलीः "हाँ, हाँ पितदे व ! इसमे संकोच से कयो पूछते हो?" िगरजाबाई सोचती है िकः "मेरी सेवा मे जरर कोई कमी होगी, तभी सवामी को मुझे सेवा
सौपने मे संकोच हो रहा है ।"
अगर सवामी सेवक से संकुिचत होकर कोई काम करवा रहे है तो यह सेवक के समपण म
मे कमी है । जैसे कोई अपने हाथ-पैर से िनिशनत होकर काम लेता है ऐसे ही सवामी सेवक से िनिशनत होकर काम लेने लग जाये तो सेवक का परम कलयाण हो गया समझना। एकनाथ जी ने कहाः ".................तो इनको िखला दे ।"
उन िभखमंगो मे परमातमा को दे खनेवाले दं पित ने उनहे िखला िदया। इसके बाद नहा
धोकर िगरजाबाई ने ििर से भोजन बनाना पारमभ कर िदया। अभी दस ही बजे थे मगर सारे गाँव मे खबर िैल गई िकः 'जो भोजन बाहणो के िलए बना था वह िभखमंगो को िखला िदया गया। िगरजाबाई ििर से भोजन बना रही है ।'
सब लोग अपने-अपने िवचार के होते है । जो उदं ड बाहण थे उनहोने लोगो को भडकाया
िकः "यह बाहणो का घोर अपमान है । शाद के िलए बनाया गया भोजन ऐस मलेचछ लोगो को िखला िदया गया जो िक नहाते धोते नहीं, मैले कपडे पहनते है , शरीर से बदबू आती है .... और हमारे िलए भोजन अब बनेगा? हम जूठन खाएँगे? पहले वे खाएँ और बाद मे हम खाएँगे? हम अपने इस अपमान का बदला लेगे।"
ततकाल बाहणो की आपातकालीन बैठक बुलाई गई। पूरा गाँव एक तरि हो गया। िनणय म
िलया गया िक "एकनाथ जी के यहाँ शादकमम मे कोई नहीं जाएगा, भोजन करने कोई नहीं जायेगा तािक इनके िपतर नकम मे पडे और इनका कुल बरबाद हो।"
एकनाथ जी के घर दार पर लटठधारी दो बाहण युवक खडे कर िदये गये।
इधर िगरजाबाई ने भोजन तैयार कर िदया। एकनाथ जी ने दे खा िक ये लोग िकसी को आने दे ने वाले नहीं है ।..... तो कया िकया जाये? जो बाहण नहीं आ रहे थे, उनकी एक-दो पीढी मे िपता, िपतामह, दादा, परदादा आिद जो भी थे, एकनाथ जी महाराज ने अपनी संकलपशिि, योगशिि का उपयोग करके उन सबका आवाहन िकया। सब पकट हो गये। "कया आजा है , महाराज !"
एकनाथजी बोलेः "बैिठये, बाहणदे व ! आप इसी गाँव के बाहण है । आज मेरे यहाँ भोजन
कीिजए।"
गाँव के बाहणो के िपतरो की पंिि बैठी भोजन करने। हसतपकालन, आचमन आिद पर
गाये जाने वाले शोको से एकनाथ जी का आँगन गूँज उठा। जो दो बाहण लटठ लेकर बाहर खडे थे वे आवाज सुनकर चौके ! उनहोने सोचाः 'हमने तो िकसी बाहण को अनदर जाने िदया।' दरवाजे की दरार से भीतर दे खा तो वे दं ग रह गये ! अंदर तो बाहणो की लंबी पंिि लगी है .... भोजन हो रहा है !
जब उनहोने धयान से दे खा तो पता चला िकः "अरे ! यह कया? ये तो मेरे दादा है ! वे मेरे
नाना ! वे उसके परदादा !"
दोनो भागे गाँव के बाहणो को खबर करने। उनहोने कहाः "हमारे और तुमहारे बाप-दादा,
परदादा, नाना, चाचा, इतयािद सब िपतरलोक से उधर आ गये है । एकनाथजी के आँगन मे शादकमम अब भोजन पा रहे है ।"
गाँव के सब लोग भागते हुए आये एकनाथ झी के यहाँ। तब तक तो सब िपतर भोजन
पूरा करके िवदा हो रहे थे। एकनाथ जी उनहे िवदाई दे रहे थे। गाँव के बाहण सब दे खते ही रह गये ! आिखर उनहोने एकनाथजी को हाथ जोडे और बोलेः "महाराज ! हमने आपको नहीं पहचाना। हमे माि कर दो।"
इस पकार गाँव के बाहणो एवं एकनाथजी के बीच समझौता हो गया। नकत और गहो को
उनकी जगह से हटाकर अपनी इचछानुसार गेद की तरह घुमा सकते है । समरण करने मात से
दे वता उनके आगे हाथ जोडकर खडे हो सकते है । आवाहन करने से िपतर भी उनके आगे पगट
हो सकते है और उन िपतरो को सथूल शरीर मे पितिषत करके भोजन कराया जा सकता है । (अ नुिम)
भगवदग ीता के सातव े अधयाय क ा माहातमय भगवान िश व कहत े ह ै - "हे पावत म ी ! अब मै सातवे अधयाय का माहातमय बतलाता हूँ,
िजसे सुनकर कानो मे अमत ृ -रािश भर जाती है ।
पाटिलपुत नामक एक दग म नगर है िजसका गोपुर (दार) बहुत ही ऊँचा है । उस नगर मे ु म
शंकुकणम नामक एक बाहण रहता था। उसने वैशय विृत का आशय लेकर बहुत धन कमाया
िकनतु न तो कभी िपतरो का तपण म िकया और न दे वताओं का पूजन ही। वह धनोपाजन म मे ततपर होकर राजाओं को ही भोज िदया करता था।
एक समय की बात है । उस बाहण ने अपना चौथा िववाह करने के िलए पुतो और
बनधुओं के साथ याता की। मागम मे आधी रात के समय जब वह सो रहा था, तब एक सपम ने
कहीं से आकर उसकी बाँह मे काट िलया। उसके काटते ही ऐसी अवसथा हो गई िक मिण, मंत और औषिध आिद से भी उसके शरीर की रका असाधय जान पडी। ततपशात कुछ ही कणो मे उसके पाण पखेर उड गये और वह पेत बना। ििर बहुत समय के बाद वह पेत सपय म ोिन मे उतपनन हुआ। उसका िवत धन की वासना मे बँधा था। उसने पूवम वत ृ ानत को समरण करके सोचाः
'मैने घर के बाहर करोडो की संखया मे अपना जो धन गाड रखा है उससे इन पुतो को
वंिचत करके सवयं ही उसकी रका करँगा।'
साँप की योिन से पीिडत होकर िपता ने एक िदन सवपन मे अपने पुतो के समक आकर
अपना मनोभाव बताया। तब उसके पुतो ने सवेरे उठकर बडे िवसमय के साथ एक-दस ू रे से सवपन की बाते कही। उनमे से मंझला पुत कुदाल हाथ मे िलए घर से िनकला और जहाँ उसके िपता
सपय म ोिन धारण करके रहते थे, उस सथान पर गया। यदिप उसे धन के सथान का ठीक-ठीक पता नहीं था तो भी उसने िचहो से उसका ठीक िनशय कर िलया और लोभबुिद से वहाँ पहुँचकर बाँबी को खोदना आरमभ िकया। तब उस बाँबी से बडा भयानक साँप पकट हुआ और बोलाः
'ओ मूढ ! तू कौन है ? िकसिलए आया है ? यह िबल कयो खोद रहा है ? िकसने तुझे भेजा है ?
ये सारी बाते मेरे सामने बता।'
पुत ः "मै आपका पुत हूँ। मेरा नाम िशव है । मै राित मे दे खे हुए सवपन से िविसमत होकर
यहाँ का सुवणम लेने के कौतूहल से आया हूँ।"
पुत की यह वाणी सुनकर वह साँप हँ सता हुआ उचच सवर से इस पकार सपि वचन
बोलाः "यिद तू मेरा पुत है तो मुझे शीघ ही बनधन से मुि कर। मै अपने पूवज म नम के गाडे हुए धन के ही िलए सपय म ोिन मे उतपनन हुआ हूँ।"
पुत ः "िपता जी! आपकी मुिि कैसे होगी? इसका उपाय मुझे बताईये, कयोिक मै इस रात
मे सब लोगो को छोडकर आपके पास आया हूँ।" (अनुिम)
िपता ः "बेटा ! गीता के अमत ृ मय सिम अधयाय को छोडकर मुझे मुि करने मे तीथम,
दान, तप और यज भी सवथ म ा समथम नहीं है । केवल गीता का सातवाँ अधयाय ही पािणयो के जरा
मतृयु आिद दःुखो को दरू करने वाला है । पुत ! मेरे शाद के िदन गीता के सिम अधयाय का पाठ करने वाले बाहण को शदापूवक म भोजन कराओ। इससे िनःसनदे ह मेरी मुिि हो जायेगी। वतस !
अपनी शिि के अनुसार पूणम शदा के साथ िनवयस म ी और वेदिवदा मे पवीण अनय बाहणो को भी भोजन कराना।"
सपय म ोिन मे पडे हुए िपता के ये वचन सुनकर सभी पुतो ने उसकी आजानुसार तथा उससे
भी अिधक िकया। तब शंकुकणम ने अपने सपश म रीर को तयागकर िदवय दे ह धारण िकया और सारा धन पुतो के अधीन कर िदया। िपता ने करोडो की संखया मे जो धन उनमे बाँट िदया था, उससे वे पुत बहुत पसनन हुए। उनकी बुिद धमम मे लगी हुई थी, इसिलए उनहोने बावली, कुआँ, पोखरा, यज तथा दे वमंिदर के िलए उस धन का उपयोग िकया और अननशाला भी बनवायी। ततपशात सातवे अधयाय का सदा जप करते हुए उनहोने मोक पाि िकया।
हे पावत म ी ! यह तुमहे सातवे अधयाय का माहातमय बतलाया, िजसके शवणमात से मानव
सब पातको से मुि हो जाता है ।" (अनुिम)
सातवा ँ अधय ायःजा निवजान योग ।। अथ सिमो ऽधयायः।। शी भ गवान ुवाच
मययासि मन ाः पा थम योग ं य ुंजनमदा शयः। असंशय ं सम गं मा ं यथा जासयिस तच
छणु।। 1।।
शी भगवान बोलेः हे पाथम ! मुझमे अननय पेम से आसि हुए मनवाला और अननय भाव
से मेरे परायण होकर, योग मे लगा हुआ मुझको संपूणम िवभूित, बल ऐियािमद गुणो से युि सबका आतमरप िजस पकार संशयरिहत जानेगा उसको सुन।(1)
जान ं त ेऽह ं स िवजानिमद ं व कय ामयश ेषत ः।
यजज ातवा न ेह भ ूयोऽनयजजातवयमविशषयत
े।। 2।।
मै तेरे िलए इस िवजान सिहत तिवजान को संपूणत म ा से कहूँगा िक िजसको जानकर
संसार मे ििर कुछ भी जानने योगय शेष नहीं रहता है ।
मनुषयाणा ं सह सेष ु किशद तित िसदय े।
यततामिप
िसदाना ं किश मन मां व ेित ति वतः।। 3।।
हजारो मनुषयो मे कोई ही मनुषय मेरी पािि के िलए यत करता है और उन यत करने
वाले योिगयो मे भी कोई ही पुरष मेरे परायण हुआ मुझको तिव से जानता है ।(3) भूिमरापोऽनलो वाय
ुः ख ं मनो ब ुिदर ेव च।
अहंकार इ तीय ं मे िभन ना पकृ ितरिधा।। 4।। अपर ेय िमतसतवनय ां पकृित ं िविद म े पराम। ्
जीवभ ूत ां महाबाहो यय ेद ं ध ायम ते ज गत।् । 5।। पथ ृ वी, जल, तेज, वायु तथा आकाश और मन, बुिद एवं अहं कार... ऐसे यह आठ पकार से
िवभि हुई मेरी पकृ ित है । यह (आठ पकार के भेदो वाली) तो अपरा है अथात म मेरी जड पकृ ित है
और हे महाबाहो ! इससे दस म चेतन पकृ ित जान िक िजससे यह ू री को मेरी जीवरपा परा अथात संपूणम जगत धारण िकया जाता है ।(4,5)
एतदोनीिन भ ूतािन सवा म णीतय ुपधारय।
अहं कृतसनसय
ज गत ः पभव ः पलयसतथा।।
6।।
मतः परतर ं नानयितक ं िचद िसत धन ं जय।
मिय सव म िमद ं पोत ं स ूत े मिण गणा इ व।। 7।।
हे अजुन म ! तू ऐसा समझ िक संपूणम भूत इन दोनो पकृ ितयो(परा-अपरा) से उतपनन होने वाले है और मै संपूणम जगत की उतपित तथा पलयरप हूँ अथात म ् संपूणम जगत का मूल कारण हूँ। हे धनंजय ! मुझसे िभनन दस ू रा कोई भी परम कारण नहीं है । यह समपूणम सूत मे मिणयो के सदश मुझमे गुथ ँ ा हुआ है ।(6,7)
रसोऽह मपस ु कौनत ेय पभा िसम श िशस ूय म य ोः। पणवः स वम देव ेष ु शबद ः ख े पौरष ं न ृ षु।। 8।।
पुणयो गन धः प ृ िथवया ं च तेजशा िसम िवभावसौ। जीवन ं सव े भूत ेष ु तपशा िसम तप िसवष ु।। 9।।
हे अजुन म ! जल मे मै रस हूँ। चंदमा और सूयम मे मै पकाश हूँ। संपूणम वेदो मे पणव(ॐ) मै
हूँ। आकाश मे शबद और पुरषो मे पुरषतव मै हूँ। पथ ृ वी मे पिवत गंध और अिगन मे मै तेज हूँ। संपूणम भूतो मे मै जीवन हूँ अथात म ् िजससे वे जीते है वह तिव मै हूँ तथा तपिसवयो मे तप मै हूँ।(8,9)
बीज ं मा ं सव म भूताना ं िविद पाथ म सनातनम। ्
बुिदब ुम िद मतामिसम
तेजसत ेज िसवनामहम। ् । 10।।
हे अजुन म ! तू संपूणम भूतो का सनातन बीज यािन कारण मुझे ही जान। मै बुिदमानो की बुिद और तेजिसवयो का तेज हूँ।(10)
बलं ब लवता ं च ाहं का मरागिवव िज म तम।्
धमाम िवरदो भूत ेष ु कामोऽ िसम भरत भम ।। 11।।
हे भरत शष े ! आसिि और कामनाओँ से रिहत बलवानो का बल अथात म ् सामथयम मै हूँ
और सब भूतो मे धमम के अनुकूल अथात म ् शास के अनुकूल काम मै हूँ।(11) (अनुिम) ये च ैव सा ििवका भावा राजसासतामसाश य
े।
मत एव ेित ता िनविद न तवह ं त ेष ु त े म िय।। 12।।
और जो भी सिवगुण से उतपनन होने वाले भाव है और जो रजोगुण से तथा तमोगुण से उतपनन होने वाले भाव है , उन सबको तू मेरे से ही होने वाले है ऐसा जान। परनतु वासतव मे उनमे मै और वे मुझमे नहीं है ।(12)
ितिभ गुम णमय ैभा म वैरे िभः स वम िम दं जग त।्
मो हतं नािभजानाित माम
ेभयः पर मवय यम।् ।13।।
गुणो के कायर म प(साििवक, राजिसक और तामिसक) इन तीनो पकार के भावो से यह सारा
संसार मोिहत हो रहा है इसिलए इन तीनो गुणो से परे मुझ अिवनाशी को वह तिव से नहीं जानता।(13)
दैवी ह ेषा गुणमयी म म माया
द ु रतयया।
माम ेव य े पपदनत े मयाम ेता ं तर िनत त े।। 14।।
यह अलौिकक अथात म ् अित अदभुत ितगुणमयी मेरी माया बडी दस ु तर है परनतु जो पुरष
केवल मुझको ही िनरं तर भजते है वे इस माया को उललंघन कर जाते है अथात म ् संसार से तर जाते है ।(14)
न म ां द ु षकृ ितनो मूढाः पपदनत े नराधमा ः।
मायय ापहतजाना ं आस ुर ं भ ाविम िशता ः।। 15।। माया के दारा हरे हुए जानवाले और आसुरी सवभाव को धारण िकये हुए तथा मनुषयो मे
नीच और दिूषत कमम करनेवाले मूढ लोग मुझे नहीं भजते है ।(15)
चतु िव म धा भ जनत े म ां जनाः स ु कृितनोऽज ुम न।
आतो िजजास ुरथा म थ ीं जानी
च भरतष म भ।। 16।।
हे भरतवंिशयो मे शष े अजुन म ! उतम कमव म ाले अथाथ म ी, आतम, िजजासु और जानी – ऐसे
चार पकार के भिजन मुझे भजते है ।(16)
तेष ां जान ी िनतयय ुि ए कभिि िव म िश षयत े।
िपयो िह जािननोऽतयथ
म महं स च मम िपयः।। 17।।
उनमे भी िनतय मुझमे एकीभाव से िसथत हुआ, अननय पेम-भििवाला जानी भि अित
उतम है कयोिक मुझे तिव से जानने वाले जानी को मै अतयनत िपय हूँ और वह जानी मुझे अतयंत िपय है । (17)
उदार ाः स वम एव ैत े जान ी तवातम ैव म े म तम।् आिसथ तः स िह युिातमा
माम ेवान ुतमा ं ग ित म।् । 18।।
ये सभी उदार है अथात म ् शदासिहत मेरे भजन के िलए समय लगाने वाले होने से उतम है
परनतु जानी तो साकात ् मेरा सवरप ही है ऐसा मेरा मत है । कयोिक वह मदगत मन-बुिदवाला जानी भि अित उतम गितसवरप मुझमे ही अचछी पकार िसथत है । (18) (अनुिम) बहूनां जन मनामनत े जानव ान मां पपदत े।
वास ु देवः स वम िम ित स म हातमा स द ु ु लम भः।। 19।।
बहुत जनमो के अनत के जनम मे तिवजान को पाि हुआ जानी सब कुछ वासुदेव ही है -
इस पकार मुझे भजता है , वह महातमा अित दल म है । (19) ु भ
काम ै सतैसत ैह म तजानाः पपदनत े ऽनयद ेवताः।
तंत ं िनयम मासथाय
प कृतय ा िनयताः सवया।।
20।।
उन-उन भोगो की कामना दारा िजनका जान हरा जा चुका है वे लोग अपने सवभाव से
पेिरत होकर उस-उस िनयम को धारण करके अनय दे वताओं को भजते है अथात म ् पूजते है । (20) यो यो या ं या ं तन ुं भि ः शदयािच म तु िमच छित।
तसय तसयाचल ां शदा ं ताम ेव िवद धामयहम। ् । 21।।
जो-जो सकाम भि िजस-िजस दे वता के सवरप को शदा से पूजना चाहता है , उस-उस भि
की शदा को मै उसी दे वता के पित िसथर करता हूँ। (21)
स तया श दया य ुिसतसयासधनमीहत
े।
लभत े च तत ः कामानमय ैव िविह तािनह तान।् । 22।। वह पुरष उस शदा से युि होकर उस दे वता का पूजन करता है और उस दे वता से मेरे
दारा ही िवधान िकये हुए उन इिचछत भोगो को िनःसनदे ह पाि करता है । (22) अनत वतु ि लं त ेषा ं त द भवतयलपम ेध साम।्
देवा नदेवयजो या िनत मद भ िा या िनत माम िप।। 23।। परनतु उन अलप बुदवालो का वह िल नाशवान है तथा वे दे वताओं को पूजने वाले
दे वताओं को पाि होते है और मेरे भि चाहे जैसे ही भजे, अंत मे मुझे ही पाि होते है । (23) अवयिं वयिि मापनन ं मनय नते मामब ुदयः।
परं भाव मजाननतो ममावययमन
ु तम म।् । 24।।
बुिदहीन पुरष मेरे अनुतम, अिवनाशी, परम भाव को न जानते हुए, मन-इनदयो से परे मुझ
सिचचदानंदघन परमातमा को मनुषय की भाँित जानकर वयिि के भाव को पाि हुआ मानते है । (24) नाह ं पका शः सव म सय योगमायासमाव ृ त ः मूढोऽय ं न ािभजानाित लोको मामज
मवय यम।् ।25।।
अपनी योगमाया से िछपा हुआ मै सबके पतयक नहीं होता इसिलए यह अजानी जन
समुदाय मुझ जनमरिहत, अिवनाशी परमातमा को तिव से नहीं जानता है अथात म ् मुझको जनमनेमरनेवाला समझता है । (25) (अनुिम)
इचछाद ेषसम ुतथ ेन द नदमोह ेन भारत।
सवम भूतािन स ं मोह ं स गे यािनत पर ंतप।। 27।।
हे भरतवंशी अजुन म ! संसार मे इचछा और दे ष से उतपनन हुए सुख-दःुखािद दनदरप मोह
से संपूणम पाणी अित अजानता को पाि हो रहे है । (27)
येष ां तवनत गतं पाप ं जनाना ं प ुणयकम म णाम।्
ते द नदमोहिन मुम िा भ जनत े म ां दढव ताः।। 28।।
(िनषकाम भाव से) शष े कमो का आचरण करने वाला िजन पुरषो का पाप नि हो गया है , वे राग-दे षािदजिनत दनदरप मोह से मुि और दढ िनशयवाले पुरष मुझको भजते है । (28) जरामरणमोकाय
मामा िशतय यतिनत
ये।
ते बह त िदद ु ः कृतसनमधयातम ं कम म चा िखलम।् । 29।।
जो मेरे शरण होकर जरा और मरण से छूटने के िलए यत करते है , वे पुरष उस बह को तथा संपूणम अधयातम को और संपूणम कमम को जानते है । (29)
सा िधभ ूतािध दैव ं मा ं सािध यजं च ये िवद ु ः।
पयाणकाल ेऽ िप च म ां त े िवद ु युम िचेतस ः।। 30।।
जो पुरष अिधभूत और अिधदै व के सिहत तथा अिधयज के सिहत (सबका आतमरप) मुझे अंतकाल मे भी जानते है , वे युि िचतवाले पुरष मुझको ही जानते है अथात म ् मुझको ही पाि होते है । (30) (अनुिम)
ॐ ततसिदित शीमद भगवदगीतासूपिनषतसु बहिवदायां योगशासे शीकृ षणाजुन म संवादे जानिवजानयोगे नाम सिमोऽधयायः।।7।। इस पकार उपिनषद, बहिवदा तथा योगशाससवरप शीमद भगवदगीता मे शीकृ षण तथा अजुन म के संवाद मे 'जानिवयोग नामक' सातवाँ अधयाय संपूण।म
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