Poem On Drug Abuse

  • December 2019
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  • Words: 321
  • Pages: 1
सब कछ छोड कर तू य अपने लय से भटक रहा है ! ु

या मैन तझे ु धरती पर इस!लये भेजा था, अरे तेरा तो िज%दगी म कछ का कलेजा था ! ु ु कर गजरने (फर या हआ ु , तू यह कहां अटक रहा है , सब कछ ु छोड कर तू य अपने लय से भटक रहा है ! तू या नह,ं जानता,यह जीवन (कतना म.यवान है , ू नशा और कछ नह,ं, !सफ1 तेर, मौत का सामान है ! ु िज%दगी को छोड, तू तो क3 म लटक रहा है , सब कछ ु छोड कर तू य अपने लय से भटक रहा है ! एक सपना टट ू गया तो य हाथ मलता है, खब ू तपने पर ह, सोना पानी क6 तरह उबलता है ! सोने क6 तरह चमकने के बजाये, तू कहां सटक रहा है , सब कछ ु छोड कर तू य अपने लय से भटक रहा है !

अरे 9यार म बहत ु ताकत है , नशा तो कमजोर बना दे ता है , नशा तो अ:छे भले आदमी को कामचोर बना दे ता है ! "कल" के इस "यग ु " म ये या तेरे <दमाग म खटक रहा है , सब कछ ु छोड कर तू य अपने लय से भटक रहा है ! और नशा अगर करना ह, है तो दे श=ेम का नशा कर, अपनी वजह से अपन क6 ना ऐसी दशा कर !

यो(कं तू नशे को नह,ं, नशा तझे ु गटक रहा है, सब कछ ु छोड कर तू य अपने लय से भटक रहा है ! नशा पहले शौक, (फर आदत और अतं म मजबर, ू बन जाती है, और इसके बाद िज%दगी का तो पता नह,ं, मौत ज?र, बन जाती है ! भरतना@यम वाला मेरा दे श, यह (कस धन ु पर मटक रहा है , सब कछ ु छोड कर तू य अपने लय से भटक रहा है ! --मनीष

डबराल, च%डीगढ

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