शिक्षा विचार-1

  • Uploaded by: Rakesh Soni
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  • June 2020
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  • Words: 1,842
  • Pages: 3
िशका िवचार वतरमान पितसपधा के युग मे सफल एवं सममानजनक आजीिवका पािपत एक महतवपूणर िवषय बन रहा है। इसकी पािपत मे उिचत िशका अित सहायक िसद हो सकती है। सफल एवं सममानजनक आजीिवका पािपत की पहली सीढी है रिच अनुरप वािछत िशका। िकसी जातक की रिच िकसी केत िवशेष मे हो और उसे वही कायर करने को कहा जाए तो वह उस कायर को पूणर रिच लेकर करता है और उसे पूरा करके ही दम लेता है। यही बात िशका केत मे भी लागू होती है। अिधकाश अिभभावक अपने बालको के सुनहरे भिवषय िनमाण को धयान मे रखते हुए पितयोिगता की तैयारी हेतु िबना उनकी योगयता, कमता एवं रिच जाने उनहे मंहगे एवं नामी कोिचंग संसथानो मे अधययन हेतु भेजते है। उनकी सारी उममीदे उस बालक पर िटक जाती है,वे खुद जो बनना चाहते थे और न बन सके,उन सपनो की पूितर भी उस बालक के माधयम से चाहते है। अचछे और अचछे पदशरन हेतु बालक को बार–बार पेिरत िकया जाता है। उसे वे सब िवषय पढने को मजबूर िकया जाता है िजनमे बालक की रिच िबलकुल भी नही है फलत:िचंता,तनाव,एवं असफलता के भय के वातावरण के बीच अिनचछा से वह अिभभावको के सपनो की पूितर हेतु जुटा रहता है। यिद वह पयास के बाद भी िकसी कारण असफल हो जाता है तो अतयिधक तनाव,िनराशा एवं छीटाकशी से पीिड़़़ त ह ोने पर अिधकाश रप मे जो पिरणाम सामने आता है वह है, उसका घर से भाग जाना या आतमहतया कर लेना जैसा पाय: समाचार पतो मे पढने को िमलता है। एक ऐसी पितभा के अंत से बचा जा सकता था िजसे यिद उसका रिचकर िवषय िदलाया जाता तो वह अपने पिरवार,देश का नाम रोशन कर सकता था यिद बालक की रिच,योगयता एवं कमता पहचान कर उिचत िवषय चयन कर िशका िदलाई जाए तो उसका समय नष न होकर अधययन मे मन लगेगा एवं वह शीघ सफलतापूवरक िशका पापत कर सममानजनक आजीिवका पापत कर सकता है! उसके इस कायर मे जयोितष मददगार िसद हो सकता है। जयोितषशासत के अनुसार िशका िवचार हेतु जनमपितका मे िनमिलिखत आधारभूत तथयो का अधययन करना आवशयक है! िििििि िि िििि ििि,ििििि, ििििििििििि, िि िि िििि िििििििि ििि ििििििििििि! िििििि ििि ििििििििििि ििि िििििि िि ििििि िििि िििि ििि ििििि,िििि, िििििि ििि िििि ििि ििि! ििििि ििि िदतीय भाव को कुटुमब सथान भी कहते है अत: बालक मे पिरवार से पापत संसकारो के बीज का अंकुरण इसी भाव मे होता है! यही भाव वह भाव है जो पािरवािरक वातावरण का भी बोध कराने के साथ–साथ चतुथर भाव का लाभसथान भी है ! िबना िकसी औपचािरक िशका के आस–पास के वातावरण,पिरवार से पापत िशका,जान एवं संसकार का दशरन िदतीय भाव ही कराता है! िदतीयेश िदतीय भाव मे हो, केनद–ितकोण मे हो,शुभ भाव मे शुभगह युकत– दृष हो, िदतीय भाव मे शुभगह हो, िदतीयेश नीच,असत न हो तो ऐसे बालक के पािरवािरक संसकार अचछे होते है! उसमे सीखने की अचछी िजजासा होती है! ििििि ििि:– :– तीसरा भाव पराकम,सहनशीलता एवं धैयर का भाव है और शिन इसका नैसिगरक कारक है। यिद तीसरे भाव का सवामी शुभ भाव मे हो, सवरािश मे हो,सवनकत मे हो, शुभयुकत–शुभदृष हो अथवा शिन तीसरे भाव मे बैठे या तृतीयेश के साथ हो अथवा लगनेश,तीसरे भाव मे हो या तृतीयेश, लगन मे हो या लगनेश– तृतीयेश परसपर साथ हो तो वयिकत मे अचछी सहनशीलता एवं धैयर होता है! वह दीघरकाल तक बैठकर कायर कर सकता है या अधययन कर सकता है ! दीघरकाल तक बैठकर अधययन कर सकने की कमता होना िवदाथी को सफलता पािपत के िलए आवशयक है! िििििि ििि:– :– चतुथर भाव सुख भाव कहलाता है! चतुथर भाव उस सीमा तक िशका का बोध कराता है िजसमे िवषय चयन की बाधयता नही होती है! इस भाव से सकूली िशका का बोध होता है! अकरजान से लेकर सकूल सतर तक की िशका का दशरन चतुथर भाव ही कराता है! यही वह भाव है जहॉं िसथत गहपभावो से ऐसी नीव डलती है िजस पर आगे चलकर आजीिवका का भवन तैयार होता है। ऐसा माना जाता है िक चतुथर भाव शुभमधय,शुभगहयुत् शुभगहदृष हो,चतुथेश छठे ,आठवे ,बारहवे भाव मे न हो,नीच,असत एवं पापपीिडत न हो एवं मन तथा चतुथर भाव का कारक चनदमा पीिडत न हो तो बालक का मन एवं रिच पढाई मे बनी रहती है। ििििि:– अनेक कुणडिलयो मे अधययन के बाद मेरा ऐसा मानना है िक चतुथेश का अषम एवं ़़ ़दादश भाव मे जाना बुरा नही है। यह परीका पणाली वाली िशका मे बाधा–असफलता अवशय दे सकता है परनतु उसके जान,कौशल,मे कोई कमी हो जाए , यह मेरे अनुभव मे नही आया है। एक अनय महतवपूणर बात मै पाठको को बताना चाहंग ू ा जो मैने अनेक कुणडिलयो पर शोध करने के पशात सतय पायी है। वह यह है िक जब भी राहु का संबध ं िदतीय एवं चतुथर भाव से होता है, जातक एक बार पढाई मे िवषय अवशय बदलता है। छठा भाव पितसपधा, पितयोिगता और चतुथर से तीसरा अथात पराकम का अथवा िशका पािपत हेतु पयासरत रहना, पितयोिगता मे बने रहने की कमता है! अषम भाव शोध,िरसचर एवं छुपे हुए रहसयो के आवरण हटाने का भाव है तथा चतुथर से पंचम पडता है जो िक िशका

मे बुिद–कौशल का पयोग कराता है अत:चतुथेश या पंचमेश का अषम भाव से संबध ं होनेपर जातक गहनअधययन,िरसचर शोध,परािवजान,जयोितष,मनोिवजान,वयवहारशासत इतयािद मे पारंगत हो जाता है!दादश भाव, वयय का भाव माना जाता है ,यह लगन का वयय है न िक चतुथर का वयय!दादश भाव चतुथर से नवम पडता है अथात यह चतुथर का भागय सथान हुआ!चतुथेश का दादश भाव मे जाना जातक को िशका पािपत हेतु घर के दूरसथ कॉलेज, हॉसटल आिद मे अवशय ले जा सकता है परनतु उसके जान मे कोई कमी हो ऐसा सवीकार करने मे मुझे संकोच है! िििि ििि:– पंचम भाव बुिद,जान,अितिनदयता,समृित एवं पूवरजनम के संिचत कमर का दशरन कराता है! वह िशका जो औपचािरक रप से आजीिवका हेतु आवशयक होती है,पंचम भाव के गभर मे पलती है! नौकरी या वयवसाय को धयान मे रखते हुए िशका पािपत हेतु उिचत िवषयो के चयन मे पंचम भाव सहायक होता है! पंचमेश केनद–ितकोण मे हो,शुभ भाव मे शुभगह युकत– दृष हो, पंचम भाव मे शुभगह हो, पंचमेश नीच,असत न हो तो बालक की रिच िवषय िवशेष मे बनी रहती है!पंचमेश का संबध ं यिद दशम भाव–भावेश से हो जाता है तो पापत की गई िवषय–िवशेष की िशका उसके रोजगाार ़़ म े सहायक होती है ,उसका रोजगाार ़़ उ स िशका से संबध ं रखता है जैसे िवजान– गिणत िवषय का अधययन कर इंजीिनयर बनना अथवा जीविवजान का अधययन कर िचिकतसा या वैजािनक केतो से आजीिवका पापत करना! ििि ििि:– नवम भाव धमर एवं भागयभाव होने के साथ–साथ उचच िशका भी दशाता है!सनातकोतरएवं उचच पोफेशनल िशका हेतु नवम भाव एवं गुर की िसथित का अधययन करना आवशयक है! चतुथर एवं नवम भाव–भावेश की िसथित शुभ हो एवं इनमे परसपर संबध ं हो तो जातकउचच िशका या उचच वयावसाियक िशका पापत करता है ! यिद नवम एवं पंचम भाव–भावेश का संबध ं िकसी पकार हो जाता है तो जातक िकसी उचचएवं पितिषत संसथान से या िवदेश मे उचचिशका या वयावसाियक िशका पापत करता है! िििििि ििििििि िििि:– अचछी एवं सफल िशका पािपत हेतु बुध एवं गुर का आशीवाद पापत होना अतयंत आवशयक है! बुध,बुिद एवं गुर,जान के कारक है!बुिद एवं जान का संगम अचछी एवं सफल िशका पािपत तथा सफल जीवन की िनशानी है! बुिद एवं जान के कारक बुध एवं गुर का जनमकुणडली मे केनद–ितकोण मे होना,लगन–लगनेश,पंचम–पंचमेश से संबध ं होना िशका केत मे सफलता का मागर पशसत करता है! सूयर,मंगल,शिन,राहु एवं केतु तकनीकी गह माने जाते है। इनका िशका भावो से संबध ं होने पर जातक िवजान,गिणत या तकनीकी िशका गहण करते देखा गया है। िििििििििििि:– उकत बातो की पुिष हेतु उकत योगायोगो को नवाशकुणडली मे भी देखना चािहए कयोिक जनमकुणडली के गहो के वासतिवक बल का पता नवाश कुणडली मे ही चलता है! नवाशकुणडली का दूसरा,चौथा,एवं पाचवा भाव–भावेश का अधययन जनमलगन की तरह ही करना चािहए! ििििििििििि:– िििििििििििि(िि–24) जनमकुणडली मे केतिवशेष के फलपािपत की पुिष संबिं धत वगरकुणडली दारा की जानी चािहए! संबिं धत वगरकुणडली एक तरह से सूकमदशी का कायर करती है और फलपािपत का वासतिवक दशरन कराती है! पाराशर मुिन ने कहा है िक िवदाया वेद बाशे भाशे चैव बलाबलम अथात िशका संबध ं ी बातो की पुिष िसदाश या चतुिवरश ं ाश (डी–24) देखकर करनी चािहए!िजस पकार जनमकुणडली एवं नवाश मे िदतीय,चतुथर एवं पंचम भाव–भावेश का अधययन िकया है उसी पकार चतुिवरश ं ाश (डी–24) मे भी इन भावो का अधययन करना चािहए! िििििििििििि (िि–24) िि िििििि ििििि ििििििििि िि िििि िि िििि ििििि....................... जनमकुणडली के लगनेश का चतुिवरश ं है! यिद दोनो मे ं ाश (डी–24)के लगनेश से कैसा संबध परसपर संबध ं है, दोनो परसपर िमत है तो िशका पािपत एवं सफलता मे कोई संशय नही रहता है! जनमकुणडली की पंचमरािश, पंचमेश की िसथित चतुिवरश ं ाश (डी–24) मे अचछे भाव मे हो या चतुिवरश ं ाश (डी–24) के पंचम–पंचमेश से अचछे भाव मे हो हो तो िशका पािपत एवं सफलता मे कोई संशय नही रहता है! चतुिवरश ं ाश (डी–24) कुणडली का अधययन जनमकुणडली की तरह सवतंत रप से करना चािहए ! चतुिवरश ं होना अचछी िशका दशाता है! ं ाश (डी–24) के पंचम–पंचमेश से बुध,गुर का संबध ं समझकर िनणरय लेने ििििि:– चतुिवरश ं ाश (डी–24) मे बुध यिद चर रािश मे हो तो वह जातक की बुिद–चातुयर को तीवर कर तुरत की कमता िवकिसत करता हैयिद मंगल भी बुध की रािश िमथुन या कनया मे हो तो यह गुण और तीवर हो जाता है!

यिद चतुिवरश ं ाश (डी–24) के एकादश भाव मे नैसिगरक शुभगह बैठते है तो अचछी िशका की गारंटी देते है! चतुिवरश ं ाश (डी–24) के एकादश भाव मे बुध,गुर या शुक हो तो जातक अचछी बुिद, चतुराई,दूरदिशरता एवं उचच शैकिणक एवं वयावसाियक योगयता पदान करते है! िििििि िि िििििििििििि ििििि िििि ििििििि:––––––––– बालक की कुणडली मे यिद िनम योगायोग उपिसथत हो तो अचछी िशका पािपत मे ये सहायक की भूिमका िनभाते है! 1.बुधािदतय योग:–सूयर,ब़़ ुध एक साथ एक ही भाव मे िसथत हो ! यह योग जातक को चतुर,बुिदमान बनाता है! 2.शंखयोग:–पंचमेश एवं षषेश परसपर केनद मे हो और लगन बली हो तो जातक िशका संबध ं ी पितसपधा मे सफलता पापत करता है! 3.सरसवती योग:–गुर,श़़ ुक एवं बुध एक साथ या अलग –अलग या इनमे से कोई दो एक साथ 1,2,4,5,7,9 या10 भाव मे हो यह जातक को िशका के केत मे िवशेष उपलिबध देता है! 4.बुधयोग:–लगन मे गुर,क़़ ेनद मे चनदमा,चनद से िदतीय मे राहु ,राहु से तीसरे मे सूयर–मंगल होने पर जातक को िवषय का गहन जान होता है! 5.गुर–शुक, गुर–मंगल का िकसी भी भाव मे संयोग अचछी िशका दशाता है! ििि :– मेरा ऐसा मानना है िक वयिकत के जीवन मे 16 वषर की आयु से 25 वषर की आयु के मधय यिद कमजोर और पाप पीिडत गहो की दशानरतदशा आती है तो वह वयिकत को 1. सफल रोजगार हेतु उचच िशका पािपत मे, 2. सवरिच के रोजगार पािपत मे, 3.उिचत समय पर कायरकेत मे सथािपत होने मे बाधा उतपन करती है जबिक अधययनकाल एवं परीकाकाल मे िशका से संबिं धत भावेशो की दशानरतदशा यथा लगनेश,चतुथेश पंचमेश,नवमेश एवं दशमेश की परसपर दशानरतदशा िशका मे सफलता पापत होती है एवं परीका पिरणाम अनुकूल रहता है! यिद उकत भावेश गोचर मे भी शुभ सथानो से गुजर रहे हो तो सोने मे सुहागा वाली कहावत चिरताथर िसद होती है!

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