ूेमचंद
िनम ला
िनम ला
य
तो बाबू उदयभानुलाल के पिरवार म बीस ही ूाणी थे, कोई ममेरा भाई था, कोई फुफेरा, कोई भांजा था, कोई भतीजा, लेिकन यहां हम
ु उनसे कोई ूयोजन नहीं, वह अ'छे वकील थे, लआमी ूस+न थीं और कुट.ब
के दिरि
ूािणय को आौय दे ना उनका क34य ही था। हमारा स.ब+ध तो
केवल उनकी दोन क+याओं से है , िजनम बड़ी का नाम िनम ला और छोटी का कृ ंणा था। अभी कल दोन साथ-साथ गुिड़या खेलती थीं। िनम ला का प+िहवां साल था, कृ ंणा का दसवां, िफर भी उनके ःवभाव म कोई िवशेष अ+तर न था। दोन चंचल, िखलािड़न और सैर-तमाशे पर जान दे ती थीं। दोन गुिड़या का धूमधाम से Cयाह करती थीं, सदा काम से जी चुराती थीं। मां प क ु ारती रहती थी, पर दोन कोठे पर िछपी बैठी रहती थीं िक न जाने िकस काम के िलए बुलाती हG । दोन अपने भाइय से लड़ती थीं, नौकर को डांटती थीं और बाजे की आवाज सुनते ही Kार पर आकर खड़ी हो जाती थीं पर आज एकाएक एक ऐसी बात हो गई है , िजसने बड़ी को बड़ी और छोटी को छोटी बना िदया है । कृ ंणा यही है , पर िनम ला बड़ी ग.भीर, एका+त-िूय और लMजाशील हो गई है । इधर महीन से बाबू उदयभानुलाल िनम ला के िववाह की बातचीत कर रहे थे। आज उनकी मेहनत िठकाने लगी है । बाबू भालच+ि िस+हा के MयेN प ऽ ु भुवन मोहन िस+हा से बात पPकी हो गई है । वर के िपता ने कह िदया है िक आपकी खुशी ही दहे ज द , या न द , मुझे इसकी परवाह नहीं; हां, बारात म जो लोग जाय उनका आदर-सRकार अ'छी तरह होना चिहए, िजसम मेरी और आपकी जग-हं साई न हो। बाबू उदयभानुलाल थे तो वकील, पर संचय करना न जानते थे। दहे ज उनके सामने किठन समःया थी। इसिलए जब वर के िपता ने ःवयं कह िदया िक मुझे दहे ज की परवाह नहीं, तो मान उ+ह आंख िमल गई। डरते थे, न जाने िकस-िकस के सामने हाथ फैलाना पड़े , दो-तीन महाजन को ठीक कर रखा था। उनका अनुमान था िक हाथ रोकने पर भी बीस हजार से कम खच न हगे। यह आSासन पाकर वे खुशी के मारे फूले न समाये। इसकी सूचना ने अTान बिलका को मुंह ढांप कर एक कोने म िबठा रखा है । उसके Vदय म एक िविचऽ शंका समा गई है , रो-रोम म एक अTात भय का संचार हो गया है , न जाने Pया होगा। उसके मन म वे उमंग नहीं 2
हG , जो युवितय की आंख म ितरछी िचतवन बनकर, ओंठ पर मधुर हाःय बनकर और अंग म आलःय बनकर ूकट होती है । नहीं वहां अिभलाषाएं नहीं हG वहां केवल शंकाएं, िच+ताएं और भीW कXपनाएं हG । यौवन का अभी तक प ण ू ूकाश नहीं हआ है । ु कृ ंणा कुछ-कुछ जानती है , कुछ-कुछ नहीं जानती। जानती है , बहन को अ'छे -अ'छे गहने िमलगे, Kार पर बाजे बजग,े मेहमान आयगे, नाच होगा-यह जानकर ूस+न है और यह भी जानती है िक बहन सबके गले िमलकर रोयेगी, यहां से रो-धोकर िवदा हो जायेगी, मG अकेली रह जाऊंगी- यह जानकर द:ु खी है , पर यह नहीं जानती िक यह इसिलए हो रहा है , माताजी और िपताजी Pय बहन को इस घर से िनकालने को इतने उRसुक हो रहे हG । बहन ने तो िकसी को कुछ नहीं कहा, िकसी से लड़ाई नहीं की, Pया इसी तरह एक िदन मुझे भी ये लोग िनकाल द गे? मG भी इसी तरह कोने म बैठकर रोऊंगी और िकसी को मुझ पर दया न आयेगी? इसिलए वह भयभीत भी हG । सं\या का समय था, िनम ला छत पर जानकर अकेली बैठी आकाश की और तृिषत नेऽ से ताक रही थी। ऐसा मन होता था
पंख होते, तो वह उड़
जाती और इन सारे झंझट से छूट जाती। इस समय बहधा दोन बहन कहीं ु सैर करने जाया करती थीं। ब]घी खाली न होती, तो बगीचे म ही टहला करतीं, इसिलए कृ ंणा उसे खोजती िफरती थी, जब कहीं न पाया, तो छत पर आई और उसे दे खते ही हं सकर बोली-तुम यहां आकर िछपी बैठी हो और मG तु.ह ढंू ढती िफरती हंू । चलो, ब]घी तैयार करा आयी हंू । िनम ला- ने उदासीन भाव से कहा-तू जा, मG न जाऊंगी। कृ ंणा-नहीं मेरी अ'छी दीदी, आज जWर चलो। दे खो, कैसी ठ^डी-ठ^डी हवा चल रही है । िनम ला-मेरा मन नहीं चाहता, तू चली जा। कृ ंणा की आंख डबडबा आई। कांप ती हई ु आवाज से बोली- आज तुम Pय नहीं चलतीं मुझसे Pय नहीं बोलतीं Pय इधर-उधर िछपी-िछपी िफरती हो? मेरा जी अकेले बैठे-बैठे घबड़ाता है । तुम न चलोगी, तो मG भी न जाऊगी। यहीं तु.हारे साथ बैठी रहंू गी। िनम ला-और जब मG चली जाऊंगी तब Pया करे गी? तब िकसके साथ खेलेगी और िकसके साथ घूमने जायेगी, बता? 3
कृ ंणा-मG भी तु.हारे साथ चलूंगी। अकेले मुझसे यहां न रहा जायेगा। िनम ला मुःकराकर बोली-तुझे अ.मा न जाने द गी। कृ ंणा-तो मG भी तु.ह न जाने दं ग ू ी। तुम अ.मा से कह Pय नहीं दे ती िक मG न जाउं गी। िनम ला- कह तो रही हंू , कोई सुनता है ! कृ ंणा-तो Pया यह तु.हारा घर नहीं है ? िनम ला-नहीं, मेरा घर होता, तो कोई Pय जबद ःती िनकाल दे ता? कृ ंणा-इसी तरह िकसी िदन मG भी िनकाल दी जाऊंगी? िनम ला-और नहीं Pया तू बैठी रहे गी! हम लड़िकयां हG , हमारा घर कहीं नहीं होता। कृ ंणा-च+दर भी िनकाल िदया जायेगा? िनम ला-च+दर तो लड़का है , उसे कौन िनकालेगा? कृ ंणा-तो लड़िकयां बहत ु खराब होती हगी? िनम ला-खराब न होतीं, तो घर से भगाई Pय जाती? कृ ंणा-च+दर इतना बदमाश है , उसे कोई नहीं भगाता। हम-तुम तो कोई बदमाशी भी नहीं करतीं। एकाएक च+दर धम-धम करता हआ छत पर आ पहंु चा और िनम ला ु को दे खकर बोला-अ'छा आप यहां बैठी हG । ओहो! अब तो बाजे बजगे, दीदी दXहन बनगी, पालकी पर चढ़ गी, ओहो! ओहो! ु च+दर का प रू ा नाम च+िभानु िस+हा था। िनम ला से तीन साल छोटा और कृ ंणा से दो साल बड़ा। िनम ला-च+दर, मुझे िचढ़ाओगे तो अभी जाकर अ.मा से कह दं ग ू ी। च+ि-तो िचढ़ती Pय हो तुम भी बाजे सुनना। ओ हो-हो! अब आप दXहन बनगी। Pय िकशनी, तू बाजे सुनेगी न वैसे बाजे तूने कभी न सुने ु हगे। कृ ंणा-Pया बै^ड से भी अ'छे हगे? च+ि-हां-हां, बै^ड से भी अ'छे , हजार गुने अ'छे , लाख गुने अ'छे । तुम जानो Pया एक बै^ड सुन िलया, तो समझने लगीं िक उससे अ'छे बाजे नहीं होते। बाजे बजानेवाले लाल-लाल विद यां और काली-काली टोिपयां पहने हगे। ऐसे खबूसरू त मालूम हगे िक तुमसे Pया कहंू आितशबािजयां भी हगी, 4
हवाइयां आसमान म उड़ जायगी और वहां तार म लगगी तो लाल, पीले, हरे , ू -टटकर ू नीले तारे टट िगर गे। बड़ा बजा आयेगा। कृ ंणा-और Pया-Pया होगा च+दन, बता दे मेरे भैया? च+ि-मेरे साथ घूमने चल, तो राःते म सारी बात बता दं ।ू ऐसे-ऐसे तमाशे हगे िक दे खकर तेरी आंख खुल जायगी। हवा म उड़ती हई ु पिरयां हगी, सचमुच की पिरयां। कृ ंणा-अ'छा चलो, लेिकन न बताओगे, तो माWंगी। च+िभानू और कृ ंणा चले गए, पर िनम ला अकेली बैठी रह गई। कृ ंणा के चले जाने से इस समय उसे बड़ा aोभ हआ। कृ ंणा, िजसे वह ु ूाण से भी अिधक bयार करती थी, आज इतनी िनठु र हो गई। अकेली छोड़कर चली गई। बात कोई न थी, लेिकन द:ु खी Vदय दखती हई ु ु आंख है , िजसम हवा से भी पीड़ा होती है । िनम ला बड़ी दे र तक बैठी रोती रही। भाईबहन, माता-िपता, सभी इसी भांित मुझे भूल जायगे, सबकी आंख िफर जायगी, िफर शायद इ+ह दे खने को भी तरस जाऊं। बाग म फूल िखले हए ु थे। मीठी-मीठी सुग+ध आ रही थी। चैत की शीतल म+द समीर चल रही थी। आकाश म तारे िछटके हए ु थे। िनम ला इ+हीं शोकमय िवचार म पड़ी-पड़ी सो गई और आंख लगते ही उसका मन ःवbन-दे श म, िवचरने लगा। Pया दे खती है िक सामने एक नदी लहर मार रही है और वह नदी के िकनारे नाव की बाठ दे ख रही है । स+\या का समय है । अंधेरा िकसी भयंकर ज+तु की भांित बढ़ता चला आता है । वह घोर िच+ता म पड़ी हई ंू ी! रो रही है ु है िक कैसे यह नदी पार होगी, कैसे पहंु चग िक कहीं रात न हो जाये, नहीं तो मG अकेली यहां कैसे रहंू गी। एकाएक उसे एक सु+दर नौका घाट की ओर आती िदखाई दे ती है । वह खुशी से उछल पड़ती है और Mयोही नाव घाट पर आती है , वह उस पर चढ़ने के िलए बढ़ती है , लेिकन Mयही नाव के पटरे पर प रै रखना चाहती है , उसका मXलाह बोल उठता है -तेरे िलए यहां जगह नहीं है ! वह मXलाह की खुशामद करती है , उसके प रै पड़ती है , रोती है , लेिकन वह यह कहे जाता है , तेरे िलए यहां जगह नहीं है । एक aण म नाव खुल जाती है । वह िचXला-िचXलाकर रोने लगती है । नदी के िनज न तट पर रात भर कैसे रहे गी, यह सोच वह नदी म कूद कर उस नाव को पकड़ना चाहती है िक इतने म कहीं से आवाज आती है -ठहरो, ठहरो, नदी गहरी है , डब ू जाओगी। वह नाव तु.हारे िलए नहीं है , मG 5
आता हंू , मेरी नाव म बैठ जाओ। मG उस पार पहंु चा दं ग ू ा। वह भयभीत होकर इधर-उधर दे खती है िक यह आवाज कहां से आई? थोड़ी दे र के बाद एक छोटी-सी डगी आती िदखाई दे ती है । उसम न पाल है , न पतवार और न ू हए मःतूल। पदा फटा हआ है , तcते टटे है और एक ु ु , नाव म पानी भरा हआ ु ू हई आदमी उसम से पानी उलीच रहा है । वह उससे कहती है , यह तो टटी ु है , यह कैसे पार लगेगी? मXलाह कहता है - तु.हारे िलए यही भेजी गई है , आकर बैठ जाओ! वह एक aण सोचती है - इसम बैठूं या न बैठूं? अ+त म वह िनdय करती है - बैठ जाऊं। यहां अकेली पड़ी रहने से नाव म बैठ जाना िफर भी अ'छा है । िकसी भयंकर ज+तु के पेट म जाने से तो यही अ'छा है िक नदी म डब ू जाऊं। कौन जाने, नाव पार पहंु च ही जाये। यह सोचकर वह ूाण की मुeठी म िलए हए ु नाव पर बैठ जाती है । कुछ दे र तक नाव डगमगाती हई ु चलती है , लेिकन ूितaण उसम पानी भरता जाता है । वह भी मXलाह के साथ दोन हाथ से पानी उलीचने लगती है । यहां तक िक उनके हाथ रह जाते हG , पर पानी बढ़ता ही चला जाता है , आिखर नाव चPकर खाने लगती है , मालूम होती है - अब डबी तब वह िकसी अfँय सहारे के ू , अब डबी। ू िलए दोन हाथ फैलाती है , नाव नीचे जाती है और उसके प रै उखड़ जाते हG । वह जोर से िचXलाई और िचXलाते ही उसकी आंख खुल गई। दे खा, तो माता सामने खड़ी उसका क+धा पकड़कर िहला रही थी। दो
बा
बू उदयभानुलाल का मकान बाजार बना हआ है । बरामदे म सुनार के ु हथौड़े और कमरे म दजh की सुईयां चल रही हG । सामने नीम के
नीचे बढ़ई चारपाइयां बना रहा है । खपरै ल म हलवाई के िलए भeठा खोदा गया है । मेहमान के िलए अलग एक मकान ठीक िकया गया है । यह ूब+ध िकया जा रहा है िक हरे क मेहमान के िलए एक-एक चारपाई, एक-एक कुसh और एक-एक मेज हो। हर तीन मेहमान के िलए एक-एक कहार रखने की तजवीज हो रही है । अभी बारात आने म एक महीने की दे र है , लेिकन तैयािरयां अभी से हो रही हG । बाराितय का ऐसा सRकार िकया जाये िक िकसी को जबान िहलाने का मौका न िमले। वे लोग भी याद कर िक िकसी के यहां बारात म गये थे। प रू ा मकान बत न से भरा हआ है । चाय के सेट ु 6
हG , नाँते की तँतिरयां, थाल, लोटे , िगलास। जो लोग िनRय खाट पर पड़े हPका पीते रहते थे, बड़ी तRपरता से काम म लगे हए ु ु हG । अपनी उपयोिगता िसi करने का ऐसा अ'छा अवसर उ+ह िफर बहत ु िदन के बाद िमलेगा। जहां एक आदमी को जाना होता है , पांच दौड़ते हG । काम कम होता है , हXलड़ ु अिधक। जरा-जरा सी बात पर घ^ट तक -िवतक होता है और अ+त म वकील साहब को आकर िनण य करना पड़ता है । एक कहता है , यह घी खराब है , दसरा कहता है , इससे अ'छा बाजार म िमल जाये तो टांग की राह से ू िनकल जाऊं। तीसरा कहता है , इसम तो हीक आती है । चौथा कहता है , तु.हारी नाक ही सड़ गई है , तुम Pया जानो घी िकसे कहते हG । जब से यहां आये हो, घी िमलने लगा है , नहीं तो घी के दश न भी न होते थे! इस पर तकरार बढ़ जाती है और वकील साहब को झगड़ा चुकाना पड़ता है । रात के नौ बजे थे। उदयभानुलाल अ+दर बैठे हए ु खच का तखमीना लगा रहे थे। वह ूाय: रोज ही तखमीना लगते थे पर रोज ही उसम कुछन-कुछ पिरवत न और पिरवध न करना पड़ता था। सामने कXयाणी भjहे िसकोड़े हए ु खड़ी थी। बाबू साहब ने बड़ी दे र के बाद िसर उठाया और बोलेदस हजार से कम नहीं होता, बिXक शायद और बढ़ जाये। कXयाणी-दस िदन म पांच से दस हजार हए। एक महीने म तो शायद ु एक लाख नौबत आ जाये। उदयभानु-Pया कWं, जग हं साई भी तो अ'छी नहीं लगती। कोई िशकायत हई ु तो लोग कह गे, नाम बड़े दश न थोड़े । िफर जब वह मुझसे दहे ज एक पाई नहीं लेते तो मेरा भी कत 4य है िक मेहमान के आदर-सRकार म कोई बात उठा न रखूं। कXयाणी- जब से ॄlा ने सृिm रची, तब से आज तक कभी बाराितय को कोई ूस+न नहीं रख सकता। उ+ह दोष िनकालने और िन+दा करने का कोई-न-कोई अवसर िमल ही जाता है । िजसे अपने घर सूखी रोिटयां भी मयःसर नहीं वह भी बारात म जाकर तानाशाह बन बैठता है । तेल खुशबूदार नहीं, साबुन टके सेर का जाने कहां से बटोर लाये, कहार बात नहीं सुनते, लालटे न धुआं दे ती हG , कुिस य म खटमल है , चारपाइयां ढीली हG , जनवासे की जगह हवादार नहीं। ऐसी-ऐसी हजार िशकायत होती रहती हG । उ+ह आप कहां तक रोिकयेगा? अगर यह मौका न िमला, तो और कोई ऐब िनकाल िलये जायगे। भई, यह तेल तो रं िडय के लगाने लायक है , हम तो सादा तेल 7
चािहए। जनाब ने यह साबुन नहीं भेजा है , अपनी अमीरी की शान िदखाई है , मानो हमने साबुन दे खा ही नहीं। ये कहार नहीं यमदत ू हG , जब दे िखये िसर पर सवार! लालटे न ऐसी भेजी हG िक आंख चमकने लगती हG , अगर दस-पांच िदन इस रोशनी म बैठना पड़े तो आंख फूट जाएं। जनवासा Pया है , अभागे का भा]य है , िजस पर चार तरफ से झके आते रहते हG । मG तो िफर यही कहंू गी िक बारितय के नखर का िवचार ही छोड़ दो। उदयभानु- तो आिखर तुम मुझे Pया करने को कहती हो? कXयाणी-कह तो रही हंू , पPका इरादा कर लो िक मG पांच हजार से अिधक न खच कWंगा। घर म तो टका है नहीं, कज ही का भरोसा ठहरा, तो इतना कज Pय ल िक िज+दगी म अदा न हो। आिखर मेरे और ब'चे भी तो हG , उनके िलए भी तो कुछ चािहए। उदयभानु- तो आज मG मरा जाता हंू ? कXयाणी- जीने-मरने का हाल कोई नहीं जानता। कXयाणी- इसम िबगड़ने की तो कोई बात नहीं। मरना एक िदन सभी को है । कोई यहां अमर होकर थोड़े ही आया है । आंख ब+द कर लेने से तो होने-वाली बात न टलेगी। रोज आंख दे खती हंू , बाप का दे हा+त हो जाता है , उसके ब'चे गली-गली ठोकर खाते िफरते हG । आदमी ऐसा काम ही Pय करे ? उदयभानु न जलकर कहा- जो अब समझ लूं िक मेरे मरने के िदन िनकट आ गये, यही तु.हारी भिवंयवाणी है ! सुहाग से िnय का जी ऊबते नहीं सुना था, आज यह नई बात मालूम हई। रं ड ापे म भी कोई सुख होगा ु ही! कXयाणी-तुमसे दिनया की कोई भी बात कही जाती है , तो जहर ु उगलने लगते हो। इसिलए न िक जानते हो, इसे कहीं िटकना नहीं है , मेरी ही रोिटय पर पड़ी हई ु है या और कुछ! जहां कोई बात कही, बस िसर हो गये, मान मG घर की लjडी हंू , मेरा केवल रोटी और कपड़े का नाता है । िजतना ही मG दबती हंू , तुम और भी दबाते हो। मुoतखोर माल उड़ाय, कोई मुंह न खोले, शराब-कबाब म Wपये लुट, कोई जबान न िहलाये। वे सारे कांटे मेरे ब'च ही के िलए तो बोये जा रहे है । उदयभानु लाल- तो मG Pया तु.हारा गुलाम हंू ? कXयाणी- तो Pया मG तु.हारी लjडी हंू ? 8
उदयभानु लाल- ऐसे मद और हगे, जो औरत के इशार पर नाचते हG । कXयाणी- तो ऐसी िnय भी हगी, जो मदp की जूितयां सहा करती हG । उदयभानु लाल- मG कमाकर लाता हंू , जैसे चाहंू खच कर सकता हंू । िकसी को बोलने का अिधकार नहीं। कXयाणी- तो आप अपना घर संभिलये! ऐसे घर को मेरा दरू ही से सलाम है , जहां मेरी कोई प छ ू नहीं घर म तु.हारा िजतना अिधकार है , उतना ही मेरा भी। इससे जौ भर भी कम नहीं। अगर तुम अपने मन के राजा हो, तो मG भी अपने मन को रानी हंू । तु.हारा घर तु.ह मुबारक रहे , मेरे िलए पेट की रोिटय की कमी नहीं है । तु.हारे ब'चे हG , मारो या िजलाओ। न आंख से दे खंग ू ी, न पीड़ा होगी। आंख फूटीं, पीर गई! उदयभानु- Pया तुम समझती हो िक तुम न संभालेगी तो मेरा घर ही न संभलेगा? मG अकेले ऐसे-ऐसे दस घर संभाल सकता हंू । कXयाणी-कौन? अगर ‘आज के महीने िदन िमeटी म न िमल जाये, तो कहना कोई कहती थी! यह कहते-कहते कXयाणी का चेहरा तमतमा उठा, वह झमककर उठी और कमरे के Kार की ओर चली। वकील साहब मुकदम म तो खूब मीन-मेख िनकालते थे, लेिकन िnय के ःवभाव का उ+ह कुछ य ही-सा Tान था। यही एक ऐसी िवqा है , िजसम आदमी बूढ़ा होने पर भी कोरा रह जाता है । अगर वे अब भी नरम पड़ जाते और कXयाणी का हाथ पकड़कर िबठा लेत,े तो शायद वह Wक जाती, लेिकन आपसे यह तो हो न सका, उXटे चलते-चलते एक और चरका िदया। बोल-मैके का घम^ड होगा? कXयाणी ने Kारा पर Wक कर पित की ओर लाल-लाल नेऽ से दे खा और िबफरकर बोल- मैके वाले मेरे तकदीर के साथी नहीं है और न मG इतनी नीच हंू िक उनकी रोिटय पर जा पडंू । उदयभानु-तब कहां जा रही हो? कXयाणी-तुम यह प छ ू ने वाले कौन होते हो? ईSर की सृिm म असंcय ूािूय के िलए जगह है , Pया मेरे ही िलए जगह नहीं है ? यह कहकर कXयाणी कमरे के बाहर िनकल गई। आंगन म आकर उसने एक बार आकाश की ओर दे खा, मानो तारागण को साaी दे रही है िक मG इस घर म िकतनी िनद यता से िनकाली जा रही हंू । रात के ]यारह बज 9
गये थे। घर म स+नाटा छा गया था, दोन बेट की चारपाई उसी के कमरे म रहती थी। वह अपने कमरे म आई, दे खा च+िभानु सोया है , सबसे छोटा सूयभ
ानु चारपाई पर उठ बैठा है । माता को दे खते ही वह बोला-तुम तहां दई तीं अ.मां? कXयाणी दरू ही से खड़े -खड़े बोली- कहीं तो नहीं बेटा, तु.हारे बाबूजी के पास गई थी। सूय- तुम तली दई, मुधे अतेले दर लदता था। तुम Pय तली दई तीं, बताओ? यह कहकर ब'चे ने गोद म चढ़ने के िलए दोन हाथ फैला िदये। कXयाणी अब अपने को न रोक सकी। मातृ-ःनेह के सुधा-ूवाह से उसका संतr Vदय पिरbलािवत हो गया। Vदय के कोमल पौधे, जो बोध के ताप से मुरझा गये थे, िफर हरे हो गये। आंख सजल हो गई। उसने ब'चे को गोद म उठा िलया और छाती से लगाकर बोली-तुमने प क ु ार Pय न िलया, बेटा? सूय- प त ु ालता तो ता, तुम थुनती न तीं, बताओ अब तो कबी न दाओगी। कXयाणी-नहीं भैया, अब नहीं जाऊंगी। यह कहकर कXयाणी सूयभ
ानु को लेकर चारपाई पर लेटी। मां के Vदय से िलपटते ही बालक िन:शंक होकर सो गया, कXयाणी के मन म संकXपिवकXप होने लगे, पित की बात याद आतीं तो मन होता-घर को ितलांजिल दे कर चली जाऊं, लेिकन ब'च का मुंह दे खती, तो वासXय से िच3 गिगि हो जाता। ब'च को िकस पर छोड़कर जाऊं? मेरे इन लाल को कौन पालेगा, ये िकसके होकर रह गे? कौन ूात:काल इ+ह दध ू और हलवा िखलायेगा, कौन इनकी नींद सोयेगा, इनकी नींद जागेगा? बेचारे कौड़ी के तीन हो जायगे। नहीं ं ी। bयारो, मG तु.ह छोड़कर नहीं जाऊंगी। तु.हारे िलए सब कुछ सह लूग िनरादर-अपमान, जली-कटी, खोटी-खरी, घुड़की-िझड़की
सब तु.हारे
िलए
सहंू गी। कXयाणी तो ब'चे को लेकर लेटी, पर बाबू साहब को नींद न आई उ+ह चोट करनेवाली बात बड़ी मुिँकल से भूलती थी। उफ, यह िमजाज! मान मG ही इनकी nी हंू । बात मुंह से िनकालनी मुिँकल है । अब मG इनका गुलाम होकर रहंू । घर म अकेली यह रह और बाकी िजतने अपने बेगाने हG , सब िनकाल िदये जाय। जला करती हG । मनाती हG िक यह िकसी तरह मर , 10
तो मG अकेली आराम कWं। िदल की बात मुंह से िनकल ही आती है , चाहे कोई िकतना ही िछपाये। कई िदन से दे ख रहा हंू ऐसी ही जली-कटी सुनाया करती हG । मैके का घम^ड होगा, लेिकन वहां कोई भी न प छ ू े गा, अभी सब आवभगत करते हG । जब जाकर िसर पड़ जायगी तो आटे -दाल का भाव मालूम हो जायेगा। रोती हई ु जायगी। वाह रे घम^ड ! सोचती हG -मG ही यह गृहःथी चलाती हंू । अभी चार िदन को कहीं चला जाऊं, तो मालूम हो जायेगा, सारी शेखी िकरिकरी हो जायेगा। एक बार इनका घम^ड तोड़ ही दं ।ू जरा वैध4य का मजा भी चखा दं ।ू न जाने इनकी िह.मत कैसे पड़ती है िक मुझे य कोसने लगत हG । मालूम होता है , ूेम इ+ह छू नहीं गया या समझती हG , यह घर से इतना िचमटा हआ है िक इसे चाहे िजतना कोसू,ं टलने का ु नाम न लेगा। यही बात है , पर यहां संसार से िचमटनेवाले जीव नहीं हG ! जह+नुम म जाये यह घर, जहां ऐसे ूािणय से पाला पड़े । घर है या नरक? आदमी बाहर से थका-मांदा आता है , तो उसे घर म आराम िमलता है । यहां आराम के बदले कोसने सुनने पड़ते हG । मेरी मृRयु के िलए ोत रखे जाते हG । यह है पचीस वष के दा.पRय जीवन का अ+त! बस, चल ही दं ।ू जब दे ख लूंगा इनका सारा घम^ड धूल म िमल गया और िमजाज ठ^डा हो गया, तो लौट आऊंगा। चार-पांच िदन काफी हगे। लो, तुम भी याद करोगी िकसी से पाला पड़ा था। यही सोचते हए ु बाबू साहब उठे , रे शमी चादर गले म डाली, कुछ Wपये िलये, अपना काड िनकालकर दसरे कुतu की जेब म रखा, छड़ी उठाई और ू चुप के से बाहर िनकले। सब नौकर नींद म मःत थे। कु3ा आहट पाकर चjक पड़ा और उनके साथ हो िलया। पर यह कौन जानता था िक यह सारी लीला िविध के हाथ रची जा रही है । जीवन-रं गशाला का वह िनद य सूऽधार िकसी अगम गुr ःथान पर बैठा हआ अपनी जिटल बूर बीड़ा िदखा रहा है । यह कौन जानता था िक ु नकल असल होने जा रही है , अिभनय सRय का Wप महण करने वाला है । िनशा ने इ+द ू को पराःत करके अपना साॆाMय ःथािपत कर िलया था। उसकी प श ै ािचक सेना ने ूकृ ित पर आतंक जमा रखा था। सिवृि3यां मुंह िछपाये पड़ी थीं और कुवृि3यां िवजय-गव से इठलाती िफरती थीं। वन म व+यज+तु िशकार की खोज म िवचार रहे थे और नगर म नर-िपशाच गिलय म मंड राते िफरते थे। 11
बाबू उदयभानुलाल लपके हए ु गंगा की ओर चले जा रहे थे। उ+हने अपना कु3ा घाट के िकनारे रखकर पांच िदन के िलए िमजा प रु चले जाने का िनdय िकया था। उनके कपड़े दे खकर लोग को डब ू जाने का िवSास हो जायेगा, काड कुतu की जेब म था। पता लगाने म कोई िदPकत न हो सकती थी। दम-के-दम म सारे शहर म खबर मशहर ू हो जायेगी। आठ बजते-बजते तो मेरे Kार पर सारा शहर जमा हो जायेगा, तब दे खं,ू दे वी जी Pया करती हG ? यही सोचते हए ु बाबू साहब गिलय म चले जा रहे थे, सहसा उ+ह अपने पीछे िकसी दसरे आदमी के आने की आहट िमली, समझे कोई होगा। ू आगे बढ़े , लेिकन िजस गली म वह मुड़ते उसी तरफ यह आदमी भी मुड़ता था। तब बाबू साहब को आशंका हई ु िक यह आदमी मेरा पीछा कर रहा है । ऐसा आभास हआ िक इसकी नीयत साफ नहीं है । उ+हने तुर+त जेबी ु लालटे न िनकाली और उसके ूकाश म उस आदमी को दे खा। एक बिरंN मनुंय क+धे पर लाठी रखे चला आता था। बाबू साहब उसे दे खते ही चjक पड़े । यह शहर का छटा हआ बदमाश था। तीन साल पहले उस पर डाके का ु अिभयोग चला था। उदयभानु ने उस मुकदमे म सरकार की ओर से प रै वी की थी और इस बदमाश को तीन साल की सजा िदलाई थी। सभी से वह इनके खून का bयासा हो रहा था। कल ही वह छूटकर आया था। आज दै वात ् साहब अकेले रात को िदखाई िदये, तो उसने सोचा यह इनसे दाव चुकाने का अ'छा मौका है । ऐसा मौका शायद ही िफर कभी िमले। तुर+त पीछे हो िलया और वार करने की घात ही म था िक बाबू साहब ने जेबी लालटे न जलाई। बदमाश जरा िठठककर बोला-Pय बाबूजी पहचानते हो? मG हंू मतई। बाबू साहब ने डपटकर कहा- तुम मेरे िपछे -िपछे Pय आरहे हो? मतई- Pय, िकसी को राःता चलने की मनाही है ? यह गली तु.हारे बाप की है ? बाबू साहब जवानी म कुँती लड़े थे, अब भी Vm-प m ु आदमी थे। िदल के भी क'चे न थे। छड़ी संभालकर बोले-अभी शायद मन नहीं भरा। अबकी सात साल को जाओगे। मतई-मG सात साल को जाऊंगा या चौदह साल को, पर तु.ह िजyा न छोडंू गा। हां, अगर तुम मेरे प रै पर िगरकर कसम खाओ िक अब िकसी को सजा न कराऊंगा, तो छोड़ दं ।ू बोलो मंजरू है ? उदयभानु-तेरी शामत तो नहीं आई? 12
मतई-शामत मेरी नहीं आई, तु.हारी आई है । बोलो खाते हो कसमएक! उदयभानु-तुम हटते हो िक मG प िु लसमैन को बुलाऊं। मतई-दो! उदयभानु-(गरजकर) हट जा बादशाह, सामने से! मतई-तीन! मुंह से ‘तीन’ शCद िनकालते ही बाबू साहब के िसर पर लाठी का ऐसा तुला हाथ पड़ा िक वह अचेत होकर जमीन पर िगर पड़े । मुंह से केवल इतना ही िनकला-हाय! मार डाला! मतई ने समीप आकर दे खा, तो िसर फट गया था और खून की घार िनकल रही थी। नाड़ी का कहीं पता न था। समझ गया िक काम तमाम हो गया। उसने कलाई से सोने की घड़ी खोल ली, कुतu से सोने के बटन िनकाल िलये, उं गली से अंगूठी उतारी और अपनी राह चला गया, मानो कुछ हआ ही ु नहीं। हां, इतनी दया की िक लाश राःते से घसीटकर िकनारे डाल दी। हाय, बेचारे Pया सोचकर चले थे, Pया हो गया! जीवन, तुमसे Mयादा असार भी दिनया म कोई वःतु है ? Pया वह उस दीपक की भांित ही aणभंगुर नहीं है , ु जो हवा के एक झके से बुझ जाता है ! पानी के एक बुलबुले को दे खते हो, ू लेिकन उसे टटते भी कुछ दे र लगती है , जीवन म उतना सार भी नहीं। सांस का भरोसा ही Pया और इसी नSरता पर हम अिभलाषाओं के िकतने िवशाल भवन बनाते हG ! नहीं जानते, नीचे जानेवाली सांस ऊपर आयेगी या नहीं, पर सोचते इतनी दरू की हG , मानो हम अमर हG । तीन
िव
वाह का िवलाप और अनाथ का रोना सुनाकर हम पाठक का िदल न दखाय गे। िजसके ऊपर पड़ती है , वह रोता है , िवलाप करता है , ु
पछाड़ खाता है । यह कोई नयी बात नहीं। हां, अगर आप चाह तो कXयाणी
की उस घोर मानिसक यातना का अनुमान कर सकते हG , जो उसे इस िवचार से हो रही थी िक मG ही अपने ूाणाधार की घाितका हंू । वे वाPय जो बोध के आवेश म उसके असंयत मुख से िनकले थे, अब उसके Vदय को वाण की भांित छे द रहे थे। अगर पित ने उसकी गोद म कराह-कराहकर ूाण-Rयाग 13
िदए होते, तो उसे संतोष होता िक मGने उनके ूित अपने कत 4य का पालन िकया। शोकाकुल Vदय को इससे Mयादा सा+Rवना और िकसी बात से नहीं होती। उसे इस िवचार से िकतना संतोष होता िक मेरे ःवामी मुझसे ूस+न गये, अि+तम समय तक उनके Vदय म मेरा ूेम बना रहा। कXयाणी को यह स+तोष न था। वह सोचती थी-हा! मेरी पचीस बरस की तपःया िनंफल हो गई। मG अ+त समय अपने ूाणपित के ूेम के वंिचत हो गयी। अगर मGने उ+ह ऐसे कठोर शCद न कहे होते, तो वह कदािप रात को घर से न जाते।न जाने उनके मन म Pया-Pया िवचार आये ह? उनके मनोभाव की कXपना करके और अपने अपराध को बढ़ा-बढ़ाकर वह आठ पहर कुढ़ती रहती थी। िजन ब'च पर वह ूाण दे ती थी, अब उनकी सूरत से िचढ़ती। इ+हीं के कारण मुझे अपने ःवामी से रार मोल लेनी पड़ी। यही मेरे शऽु हG । जहां आठ पहर कचहरी-सी लगी रहती थी, वहां अब खाक उड़ती है । वह मेला ही उठ गया। जब िखलानेवाला ही न रहा, तो खानेवाले कैसे पड़े रहते। धीरे -धीरे एक महीने के अ+दर सभी भांजे-भतीजे िबदा हो गये। िजनका दावा था िक हम पानी की जगह खून बहानेवाल म हG , वे ऐसा सरपट भागे िक पीछे िफरकर भी न दे खा। दिनया ही दसरी हो गयी। िजन ब'च को दे खकर bयार ु ू करने को जी चाहता था उनके चेहरे पर अब मिPखयां िभनिभनाती थीं। न जाने वह कांित कहां चली गई? शोक का आवेग कम हआ ु , तो िनम ला के िववाह की समःया उपिःथत हई। कुछ लोग की सलाह हई ु ु िक िववाह इस साल रोक िदया जाये, लेिकन कXयाणी ने कहा- इतनी तैयिरय के बाद िववाह को रोक दे ने से सब िकयाधरा िमeटी म िमल जायेगा और दसरे साल िफर यही तैयािरयां करनी ू पड़ गी, िजसकी कोई आशा नहीं। िववाह कर ही दे ना अ'छा है । कुछ लेनादे ना तो है ही नहीं। बाराितय के सेवा-सRकार का काफी सामान हो चुका है , िवल.ब करने म हािन-ही-हािन है । अतएव महाशय भालच+ि को शक-सूचना के साथ यह स+दे श भी भेज िदया गया। कXयाणी ने अपने पऽ म िलखाइस अनािथनी पर दया कीिजए और डबती हई ू ु नाव को पार लगाइये। ःवामीजी के मन म बड़ी-बड़ी कामनाएं थीं, िकंतु ईSर को कुछ और ही मंजूर था। अब मेरी लाज आपके हाथ है । क+या आपकी हो चुकी। मG लोग के सेवा-सRकार करने को अपना सौभा]य समझती हंू , लेिकन यिद इसम 14
कुछ कमी हो, कुछ ऽुिट पड़े , तो मेरी दशा का िवचार करके aमा कीिजयेगा। मुझे िवSास है िक आप इस अनािथनी की िन+दा न होने द ग,े आिद। कXयाणी ने यह पऽ डाक से न भेजा, बिXक प रु ोिहत से कहा-आपको कm तो होगा, पर आप ःवयं जाकर यह पऽ दीिजए और मेरी ओर से बहत ु िवनय के साथ किहयेगा िक िजतने कम आदमी आय, उतना ही अ'छा। यहां कोई ूब+ध करनेवाला नहीं है । प रु ोिहत मोटे राम यह स+दे श लेकर तीसरे िदन लखनऊ जा पहंु चे। सं\या का समय था। बाबू भालच+ि दीवानखाने के सामने आरामकुसh पर नंग-धड़ं ग लेटे हए पी रहे थे। बहत ु हPका ु ु ही ःथूल, ऊंचे कद के आदमी थे। ऐसा मालूम होता था िक काला दे व है या कोई हCशी अृीका से पकड़कर आया है । िसर से प रै तक एक ही रं ग था-काला। चेहरा इतना ःयाह था िक मालूम न होता था िक माथे का अंत कहां है िसर का आर.भ कहां। बस, कोयले की एक सजीव मूित थी। आपको गमh बहत ु सताती थी। दो आदमी खड़े पंखा झल रहे थे, उस पर भी पसीने का तार बंधा हआ था। आप ु आबकारी के िवभाग म एक ऊंचे ओहदे पर थे। पांच सौ Wपये वेतन िमलता था। ठे केदार से खूब िरSत लेते थे। ठे केदार शराब के नाम पानी बेच, चौबीस घंटे दकान खुली रख, आपको केवल खुश रखना काफी था। सारा ु कानून आपकी खुशी थी। इतनी भयंकर मूित थी िक चांदनी रात म लोग उ+ह दे ख कर सहसा चjक पड़ते थे-बालक और िnयां ही नहीं, प W ु ष तक सहम जाते थे। चांदनी रात इसिलए कहा गया िक अंधेरी रात म तो उ+ह कोई दे ख ही न सकता था-ँयामलता अ+धकार म िवलीन हो जाती थी। केवल आंख का रं ग लाल था। जैसे पPका मुसलमान पांच बार नमाज पढ़ता है , वैसे ही आप भी पांच बार शराब पीते थे, मुoत की शराब तो काजी को हलाल है , िफर आप तो शराब के अफसर ही थे, िजतनी चाह िपय, कोई हाथ पकड़ने वाला न था। जब bयास लगती शराब पी लेते । जैसे कुछ रं ग म परःपर सहानुभिू त है , उसी तरह कुछ रं ग म परःपर िवरोध है । लािलमा के संयोग से कािलमा और भी भयंकर हो जाती है । बाबू साहब ने पंिडतजी को दे खते ही कुसh से उठकर कहा-अcखाह! आप हG ? आइए-आइए। ध+य भाग! अरे कोई है । कहां चले गये सब-के-सब, झगडू , गुरदीन, छकौड़ी, भवानी, रामगुलाम कोई है ? Pया सब-के-सब मर गये! चलो रामगुलाम, भवानी, छकौड़ी, गुरदीन, झगड़। ू कोई नहीं बोलता, सब मर 15
गये! दज न-भर आदमी हG , पर मौके पर एक की भी सूरत नहीं नजर आती, न जाने सब कहां गायब हो जाते हG । आपके वाःते कुसh लाओ। बाबू साहब ने ये पांच नाम कई बार दहराये , लेिकन यह न हआ िक ु ु पंखा झलनेवाले दोन आदिमय म से िकसी को कुसh लाने को भेज दे त।े तीन-चार िमनट के बाद एक काना आदमी खांसता हआ आकर बोला-सरकार, ु ईतना की नौकरी हमार कीन न होई ! कहां तक उधार-बाढ़ी लै-लै खाई मांगत-मांगत थेथर होय गयेना। भाल- बको मत, जाकर कुसh लाओ। जब कोई काम करने की कहा गया, तो रोने लगता है । किहए पिडतजी, वहां सब कुशल है ? मोटे राम-Pया कुशल कहंू बाबूजी, अब कुशल कहां? सारा घर िमeटी म िमल गया। ू इतने म कहार ने एक टटा हआ चीड़ का स+दक ू लाकर रख िदया ु और बोला-कसh-मेज हमारे उठाये नाहीं उठत है । ू न जाये और पंिडतजी शमा ते हए ु डरते-डरते उस पर बैठे िक कहीं टट कXयाणी का पऽ बाबू साहब के हाथ म रख िदया। भाल-अब और कैसे िमeटी म िमलेगा? इससे बड़ी और कौन िवपि3 पड़े गी? बाबू उदयभानु लाल से मेरी प रु ानी दोःती थी। आदमी नहीं, हीरा था! Pया िदल था, Pया िह.मत थी, (आंख पछकर) मेरा तो जैसे दािहना हाथ ही कट गया। िवSास मािनए, जबसे यह खबर सुनी है , आंख म अंधेरा-सा छा गया है । खाने बैठता हंू , तो कौर मुंह म नहीं जाता। उनकी सूरत आंख के सामने खड़ी रहती है । मुंह जूठा करके उठ जाता हंू । िकसी काम म िदल नहीं लगता। भाई के मरने का रं ज भी इससे कम ही होता है । आदमी नहीं, हीरा था! मोटे - सरकार, नगर म अब ऐसा कोई रईस नहीं रहा। भाल- मG खूब जानता हंू , पंिडतजी, आप मुझसे Pया कहते हG । ऐसा आदमी लाख-दो-लाख म एक होता है । िजतना मG उनको जानता था, उतना दसरा नहीं जान सकता। दो-ही-तीन बार की मुलाकात म उनका भ} हो ू गया और मरने दम तक रहंू गा। आप समिधन साहब से कह दीिजएगा, मुझे िदली रं ज है । मोटे -आपसे ऐसी ही आशा थी! आज-जैसे सMजन के दश न दल
ु भ हG । नहीं तो आज कौन िबना दहे ज के प ऽ ु का िववाह करता है । 16
भाल-महाराज, दे हज की बातचीत ऐसे सRयवादी प W ु ष से नहीं की जाती। उनसे स.ब+ध हो जाना ही लाख Wपये के बराबर है । मG इसी को अपना अहोभा]य समझता हंू । हा! िकतनी उदार आमRमा थी। Wपये को तो उ+हने कुछ समझा ही नहीं, ितनके के बराबर भी परवाह नहीं की। बुरा िरवाज है , बेहद बुरा! मेरा बस चले, तो दहे ज लेनेवाल और दहे ज दे नेवाल दोन ही को गोली मार दं ,ू हां साहब, साफ गोली मार दं ,ू िफर चाहे फांसी ही Pय न हो जाय! प छ ू ो, आप लड़के का िववाह करते हG िक उसे बेचते हG ? अगर आपको लड़के के शादी म िदल खोलकर खच करने का अरमान है , तो शौक के खच कीिजए, लेिकन जो कुछ कीिजए, अपने बल पर। यह Pया िक क+या के िपता का गला रे ितए। नीचता है , घोर नीचता! मेरा बस चले, तो इन पािजय को गोली मार दं ।ू मोटे - ध+य हो सरकार! भगवान ्ने आपको बड़ी बुिi दी है । यह धम
का ूताप है । मालिकन की इ'छा है िक िववाह का मुहू त वही रहे और तो उ+हने सारी बात पऽ म िलख दी हG । बस, अब आप ही उबार तो हम उबर सकते हG । इस तरह तो बारात म िजतने सMजन आयग,े उनकी सेवा-सRकार हम कर गे ही, लेिकन पिरिःथित अब बहत ु बदल गयी है सरकार, कोई करनेधरनेवाला नहीं है । बस ऐसी बात कीिजए िक वकील साहब के नाम पर बeटा न लगे। भालच+ि एक िमनट तक आंख ब+द िकये बैठे रहे , िफर एक ल.बी सांस खींच कर बोले-ईSर को मंजरू ही न था िक वह लआमी मेरे घर आती, नहीं तो Pया यह वळ िगरता? सारे मनसूबे खाक म िमल गये। फूला न समाता था िक वह शुभ-अवसर िनकट आ रहा है , पर Pया जानता था िक ईSर के दरबार म कुछ और षय+ऽ रचा जा रहा है । मरनेवाले की याद ही Wलाने के िलए काफी है । उसे दे खकर तो जcम और भी हरा जो जायेगा। उस दशा म न जाने Pया कर बैठूं। इसे गुण समिझए, चाहे दोष िक िजससे एक बार मेरी घिनNता हो गयी, िफर उसकी याद िच3 से नहीं उतरती। अभी तो खैर इतना ही है िक उनकी सूरत आंख के सामने नाचती रहती है , लेिकन यिद वह क+या घर म आ गयी, तब मेरा िज+दा रहना किठन हो जायेगा। सच मािनए, रोते-रोते मेरी आंख फूट जायगी। जानता हंू , रोना-धोना 4यथ है । जो मर गया वह लौटकर नहीं आ सकता। सॄ करने के िसवाय 17
और कोई उपाय नहीं है , लेिकन िदल से मजबूर हंू । उस अनाथ बािलका को दे खकर मेरा कलेजा फट जायेगा। मोटे - ऐसा न किहए सरकार! वकील साहब नहीं तो Pया, आप तो हG । अब आप ही उसके िपता-तुXय हG । वह अब वकील साहब की क+या नहीं, आपकी क+या है । आपके Vदय के भाव तो कोई जानता नहीं, लोग समझगे, वकील साहब का दे हा+त हो जाने के कारण आप अपने वचन से िफर गये। इसम आपकी बदनामी है । िच3 को समझाइए और हं स-खुशी क+या का पािणमहण करा लीिजए। हाथी मरे तो नौ लाख का। लाख िवपि3 पड़ी है , लेिकन मालिकन आप लोग की सेवा-सRकार करने म कोई बात न उठा रखगी। बाबू साहब समझ गये िक पंिडत मोटे राम कोरे पोथी के ही पंिडत नहीं, वरन 4यवहार-नीित म भी चतुर हG । बोले-पंिडतजी, हलफ से कहता हंू , मुझे उस लड़की से िजतना ूेम है , उतना अपनी लड़की से भी नहीं है , लेिकन जब ईSर को मंजूर नहीं है , तो मेरा Pया बस है ? वह मृRयु एक ूकार की अमंगल सूचना है , जो िवधाता की ओर से हम िमली है । यह िकसी आनेवाली मुसीबत की आकाशवाणी है िवधाता ःपm रीित से कह रहा है िक यह िववाह मंगलमय न होगा। ऐसी दशा म आप ही सोिचये, यह संयोग कहां तक उिचत है । आप तो िवKान आदमी हG । सोिचए, िजस काम का आर.भ ही अमंगल से हो, उसका अंत अमंगलमय हो सकता है ? नहीं, जानबूझकर मPखी नहीं िनगली जाती। समिधन साहब को समझाकर कह दीिजएगा, मG उनकी आTापालन करने को तैयार हंू , लेिकन इसका पिरणाम अ'छा न होगा। ःवाथ
के वंश म होकर मG अपने परम िमऽ की स+तान के साथ यह अ+याय नहीं कर सकता। इस तक ने पिडतजी को िन3र कर िदया। वादी ने यह तीर छोड़ा था, िजसकी उनके पास कोई काट न थी। शऽु ने उ+हीं के हिथयार से उन पर वार िकया था और वह उसका ूितकार न कर सकते थे। वह अभी कोई जवाब सोच ही रहे थे, िक बाबू साहब ने िफर नौकर को प क ु ारना शुW िकयाअरे , तुम सब िफर गायब हो गये- झगडू , छकौड़ी, भवानी, गुWदीन, रामगुलाम! एक भी नहीं बोलता, सब-के-सब मर गये। पंिडतजी के वाःते पानी-वानी की िफब है ? ना जाने इन सब को कोई कहां तक समझये। अPल छू तक नहीं गयी। दे ख रहे हG िक एक महाशय दरू से थके-मांदे चले आ रहे हG , पर िकसी 18
को जरा भी परवाह नहीं। लाओं, पानी-वानी रखो। पिडतजी, आपके िलए शब त बनवाऊं या फलाहारी िमठाई मंगवा दं ।ू मोटे रामजी िमठाइय के िवषय म िकसी तरह का ब+धन न ःवीकार करते थे। उनका िसiा+त था िक घृत से सभी वःतुएं पिवऽ हो जाती हG । रसगुXले और बेसन के लडू उ+ह बहत ु िूय थे, पर शब त से उ+ह िच न थी। पानी से पेट भरना उनके िनयम के िवWi था। सकुचाते हए ु बोले-शब त पीने की तो मुझे आदत नहीं, िमठाई खा लूग ं ा। भाल- फलाहारी न? मोटे - इसका मुझे कोई िवचार नहीं। भाल- है तो यही बात। छूत-छात सब ढकोसला है । मG ःवयं नहीं मानता। अरे , अभी तक कोई नहीं आया? छकौड़ी, भवानी, गुदीन, रामगुलाम, कोई तो बोले! अबकी भी वही बूढ़ा कहार खांसता हआ आकर खड़ा हो गया और ु बोला-सरकार, मोर तलब दै दीन जाय। ऐसी नौकरी मोसे न होई। कहां लो दौरी दौरत-दौरत गोड़ िपराय लागत है । भाल-काम कुछ करो या न करो, पर तलब पिहले चिहए! िदन भर पड़े पड़े खांसा करो, तलब तो तु.हारी चढ़ रही है । जाकर बाजार से एक आने की ताजी िमठाई ला। दौड़ता हआ जा। ु कहार को यह हPम दे कर बाबू साहब घर म गये और nी से बोले-वहां ु से एक पंिडतजी आये हG । यह खत लाये हG , जरा पढ़ो तो। पी जी का नाम रं गीलीबाई था। गोरे रं ग की ूस+न-मुख मिहला थीं। Wप और यौवन उनसे िवदा हो रहे थे, पर िकसी ूेमी िमऽ की भांित मचलमचल कर तीस साल तक िजसके गले से लगे रहे , उसे छोड़ते न बनता था। रं गीलीबाई बैठी पान लगा रही थीं। बोली-कह िदया न िक हम वहां Cयाह करना मंजरू नहीं। भाल-हां, कह तो िदया, पर मारे संकोच के मुंह से शCद न िनकलता था। झूठ-मूठ का होला करना पड़ता। रं गीली-साफ बात करने म संकोच Pया? हमारी इ'छा है , नहीं करते। िकसी का कुछ िलया तो नहीं है ? जब दसरी जगह दस हजार नगद िमल रहे ू हG ; तो वहां Pय न कWं? उनकी लड़की कोई सोने की थोड़े ही है । वकील 19
साहब जीते होते तो शरमाते-शमाते प+िह-बीस हजार दे मरते। अब वहां Pया रखा है ? भाल- एक दफा जबान दे कर मुकर जाना अ'छी बात नहीं। कोई मुख से कुछ न कह, पर बदनामी हए ु िबना नहीं रहती। मगर तु.हारी िजद से मजबूर हंू । रं गीलीबाई ने पान खाकर खत खोला और पढ़ने लगीं। िह+दी का अयास बाबू साहब को तो िबXकुल न था और यqिप रं गीलीबाई भी शायद ही कभी िकताब पढ़ती ह, पर खत-वत पढ़ लेती थीं। पहली ही पांित पढ़कर उनकी आंख सजल हो गयीं और पऽ समाr िकया। तो उनकी आंख से आंसू बह रहे थे-एक-एक शCद कWणा के रस म डबा हआ था। एक-एक अaर से ू ु दीनता टपक रही थी। रं गीलीबाई की कठोरता पRथर की नहीं, लाख की थी, जो एक ही आंच से िपघल जाती है । कXयाणी के कWणोRपादक शCद ने उनके ःवाथ -मंिडत Vदय को िपघला िदया। Wंधे हए ु कंठ से बोली-अभी ॄाlण बैठा है न? भालच+ि पी के आंसओ ु ं को दे ख-दे खकर सूखे जाते थे। अपने ऊपर झXला रहे थे िक नाहक मGने यह खत इसे िदखाया। इसकी जWरत Pया थी? इतनी बड़ी भूल उनसे कभी न हई ु थी। संिद]ध भाव से बोले-शायद बैठा हो, मGने तो जाने को कह िदया था। रं गीली ने िखड़की से झांककर दे खा। पंिडत मोटे राम जी बगुले की तरह \यान लगाये बाजार के राःते की ओर ताक रहे थे। लालसा म 4यम होकर कभी यह पहलू बदलते, कभी वह पहलू। ‘एक आने की िमठाई’ ने तो आशा की कमर ही तोड़ दी थी, उसम भी यह िवल.ब, दाWण दशा थी। उ+ह बैठे दे खकर रं गीलीबाई बोली-है -है अभी है , जाकर कह दो, हम िववाह कर ग,े जWर कर गे। बेचारी बड़ी मुसीबत म है । भाल- तुम कभी-कभी ब'च की-सी बात करने लगती हो, अभी उससे कह आया हंू िक मुझे िववाह करना मंजूर नहीं। एक ल.बी-चौड़ी भूिमका बांधनी पड़ी। अब जाकर यह संदेश कहंू गा, तो वह अपने िदल म Pया कहे गा, जरा सोचो तो? यह शादी-िववाह का मामला है । लड़क का खेल नहीं िक अभी एक बात तय की, अभी पलट गये। भले आदमी की बात न हई ु , िदXलगी हई। ु
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रं गीली- अ'छा, तुम अपने मुंह से न कहो, उस ॄाlण को मेरे पास भेज दो। मG इस तरह समझा दं ग ू ी िक तु.हारी बात भी रह जाये और मेरी भी। इसम तो तु.ह कोई आपि3 नहीं है । भाल-तुम अपने िसवा सारी दिनया को नादान समझती हो। तुम कहो ु या मG कहंू , बात एक ही है । जो बात तय हो गयी, वह हो गई, अब मG उसे िफर नहीं उठाना चाहता। तु.हीं तो बार-बार कहती थीं िक मG वहां न कWंगी। तु.हारे ही कारण मुझे अपनी बात खोनी पड़ी। अब तुम िफर रं ग बदलती हो। यह तो मेरी छाती पर मूंग दलना है । आिखर तु.ह कुछ तो मेरे मानअपमान का िवचार करना चािहए। रं गीली- तो मुझे Pया मालूम था िक िवधवा की दशा इतनी हीन हो गया है ? तु.हीं ने तो कहा था िक उसने पित की सारी स.पि3 िछपा रखी है और अपनी गरीबी का ढग रचकर काम िनकालना चाहती है । एक ही छं टी औरत है । तुमने जो कहा, वह मGने मान िलया। भलाई करके बुराई करने म तो लMजा और संकोच है । बुराई करके भलाई करने मे कोई संकोच नहीं। अगर तुम ‘हां’ कर आये होते और मG ‘नहीं’ करने को कहती, तो तु.हारा संकोच उिचत था। ‘नहीं’ करने के बाद ‘हां’ करने म तो अपना बड़bपन है । भाल- तु.ह बड़bपन मालूम होता हो, मुझे तो लु'चापन ही मालूम होता है । िफर तुमने यह कैसे मान िलया िक मGने वकीलाइन म िवषय म जो बात कही थी, वह झूठी थी! Pया वह पऽ दे खकर? तुम जैसी खुद सरल हो, वैसे ही दसरे को भी सरल समझती हो। ू रं गीली- इस पऽ म बनावट नहीं मालूम होती। बनावट की बात िदल म चुभती नहीं। उसम बनावट की ग+ध अवँय रहती है । भाल- बनावट की बात तो ऐसी चुभती है िक स'ची बात उसके सामने िबXकुल फीकी मालूम होती है । यह िकःसे-कहािनयां िलखने वाले िजनकी िकताब पढ़-पढ़कर तुम घ^ट रोती हो, Pया स'ची बात िलखते है ? सरासर झूठ का तूमार बांधते हG । यह भी एक कला है । रं गीली- Pय जी, तुम मुझसे भी उड़ते हो! दाई से पेट िछपाते हो? मG तु.हारी बात मान जाती हंू , तो तुम समझते हो, इसे चकमा िदया। मगर मG तु.हारी एक-एक नस पहचानती हंू । तुम अपना ऐब मेरे िसर मढ़कर खुद बेदाग बचना चहाते हो। बोलो, कुछ झूठ कहती हंू , जब वकील साहब जीते थे, जो तुमने सोचा था िक ठहराव की जWरत ही कया है , वे खुद 21
ही िजतना
उिचत समेझगे द गे, बिXक िबना ठहराव के और भी Mयादा िमलने की आशा होगी। अब जो वकील साहब का दे हा+त हो गया, तो तरह-तरह के हीलेहवाले करने लगे। यह भलमनसी नहीं, छोटापन है , इसका इलजाम भी तु.हारे िसर है । मै। अब शादी-Cयाह के नगीच न जाऊंगी। तु.हारी जैसी इ'छा हो, करो। ढगी आदिमय से मुझे िचढ़ है । जो बात करो, सफाई से करो, बुरा हो या अ'छा। ‘हाथी के दांत खाने के और िदखाने के और’ वाली नीित पर चलना तु.ह शोभा नहीं दे ता। बोला आब भी वहां शादी करते हो या नहीं? भाला- जब मG बेईमान, दगाबाज और झूठा ठहरा, तो मुझसे प छ ू ना ही Pया! मगर खूब पहचानती हो आदिमय को! Pया कहना है , तु.हारी इस सूझ-बूझ की, बलैया ले ल! रं गीली- हो बड़े हयादार, ब भी नहीं शरमाते। ईमान से कहा, मGने बात ताड़ ली िक नहीं? भाल-अजी जाओ, वह दसरी औरत होती हG जो मदp को पहचानती हG । ू अब तक मG यही समझता था िक औरत की fिm बड़ी सूआम होती है , पर आज यह िवSास उठ गया और महाRमाओं ने औरत के िवषय म जो तRव की बाते कही है , उनको मानना पड़ा। रं गीली- जरा आईने म अपनी सूरत तो दे ख आओं, तु.ह मेरी कमस है । जरा दे ख लो, िकतना झप े हए ु हो। भाल- सच कहना, िकतना झप ा हआ हंू ? ु रं गीली- इतना ही, िजतना कोई भलामानस चोर चोरी खुल जाने पर झप ता है । भाल- खैर, मG झप ा ही सही, पर शादी वहां न होगी। रं गीली- मेरी बला से, जहां चाहो करो। Pय, भुवन से एक बार Pय नहीं प छ ू लेते? भाल- अ'छी बात है , उसी पर फैसला रहा। रं गीली- जरा भी इशारा न करना! भाल- अजी, मG उसकी तरफ ताकंू गा भी नहीं। संयोग से ठीक इसी व} भुवनमोहन भी आ पहंु चा। ऐसे सु+दर, सुड ौल, बिलN युवक कालेज म बहत ु कम दे खने म आते हG । िबXकुल मां को पड़ा था, वही गोरा-िचeटा रं ग, वही पतले-पतले गुलाब की प3ी के-से ओंठ, वही चौड़ा, माथा, वही बड़ी-बड़ी आंख, डील-डौल बाप का-सा था। ऊंचा कोट, ॄीचेज, 22
टाई, बूट, है ट उस पर खूब ल रहे थे। हाथ म एक हाकी-िःटक थी। चाल म जवानी का गWर था, आंख म आमRमगौरव। रं गीली ने कहा-आज बड़ी दे र लगाई तुमने? यह दे खो, तु.हारी ससुराल से यह खत आया है । तु.हारी सास ने िलखा है । साफ-साफ बतला दो, अभी सबेरा है । तु.ह वहां शादी करना मंजरू है या नहीं? भुवन- शादी करनी तो चािहए अ.मां, पर मG कWंगा नहीं। रं गीली- Pय? भुवन- कहीं ऐसी जगह शादी करवाइये िक खूब Wपये िमल। और न सही एक लाख का तो डौल हो। वहां अब Pया रखा है ? वकील साहब रहे ही नहीं, बुिढ़या के पास अब Pया होगा? रं गीली- तु.ह ऐसी बात मुंह से िनकालते शम नहीं आती? भुवन- इसम शम की कौन-सी बात है ? Wपये िकसे काटते हG ? लाख Wपये तो लाख ज+म म भी न जमा कर पाऊंगा। इस साल पास भी हो गया, तो कम-से-कम पांच साल तक Wपये से सूरत नजर न आयेगी। िफर सौ-दो-सौ Wपये महीने कमाने लगूंगा। पांच-छ: तक पहंु चते-पहंु चते उॆ के तीन भाग बीत जायगे। Wपये जमा करने की नौबत ही न आयेगी। दिनया ु का कुछ मजा न उठा सकंू ग। िकसी धनी की लड़की से शादी हो जाती, तो चैन से कटती। मG Mयादा नहीं चाहता, बस एक लाख हो या िफर कोई ऐसी जायदादवाली बेवा िमले, िजसके एक ही लड़की हो। रं गीली- चाहे औरत कैसे ही िमले। भूवन- धन सारे ऐब को िछपा दे गा। मुझे वह गािलयां भी सुनाये, तो भी चूं न कWं। दधाW गाय की लात िकसे बुरी मालूम होती है ? ु बाबू साहब ने ूशंसा-सूचक भाव से कहा-हम उन लोग के साथ सहानुभित है और द:ु खी है िक ईSर ने उ+ह िवपि3 म डाला, लेिकन बुिi से काम लेकर ही कोई िनdय करना चिहए। हम िकतने ही फटे -हाल जाय, िफर भी अ'छी-खासी बारात हो जायेगी। वहां भोजन का भी िठकाना नहीं। िसवा इसके िक लोग हं स और कोई नतीजा न िनकलेगा। रं गीली- तुम बाप-प त ू दोन एक ही थैली के चeटे -बeटे हो। दोन उस गरीब लड़की के गले पर छुरी फेरना चाहते हो। भुवन-जो गरीब है , उसे गरीब ही के यहां स.ब+ध करना चिहए। अपनी है िसयत से बढ़कर.....। 23
रं गीली- चुप भी रह, आया है वहां से है िसयत लेकर। तुम कहां के ध+ना-सेठ हो? कोई आदमी Kारा पर आ जाये, तो एक लोटे पानी को तरस जाये। बड़े है िसयतवाले बने हो! यह कहकर रं गीली वहां से उठकर रसोई का ूब+ध करने चली गयी। भुवनमोहन मुःकराता हआ अपने कमरे म चला गया और बाबू साहब ु मूछ पर ताव दे ते हए ु बाहर आये िक मोटे राम को अि+तम िनdय सुना द । पर उनका कहीं पता न था। मोटे रामजी कुछ दे र तक तो कहार की राह दे खते रहे , जब उसके आने म बहत ु दे र हई ु , तो उनसे बैठा न गया। सोचा यहां बैठे-बैठे काम न चलेगा, कुछ उqोग करना चािहए। भा]य के भरोसे यहां अड़ी िकये बैठे रह , तो भूख मर जायगे। यहां तु.हारी दाल नहीं गलने की। चुप के से लकड़ी उठायी और िजधर वह कहार गया था, उसी तरफ चले। बाजार थोड़ी ही दरू पर था, एक aण म जा पहंु चे। दे खा, तो बुढा एक हलवाई की दकान पर बैठा िचलम पी ू रहा था। उसे दे खते ही आपने बड़ी बेतकXलुफी से कहा-अभी कुछ तैयार नहीं है Pया महरा? सरकार वहां बैठे िबगड़ रहे हG िक जाकर सो गया या ताड़ी पीने लगा। मGने कहा-‘सरकार यह बात नहीं, बुडा आदमी है , आते ही आते तो आयेगा।’ बड़े िविचऽ जीव हG । न जाने इनके यहां कैसे नौकर िटकते हG । कहार-मुझे छोड़कर आज तक दसरा कोई िटका नहीं, और न िटकेगा। ू साल-भर से तलब नहीं िमली। िकसी को तलब नहीं दे ते। जहां िकसी ने तलब मांगी और लगे डांटने। बेचारा नौकरी छोड़कर भाग जाता है । वे दोन आदमी, जो पंखा झल रहे थे, सरकारी नौकर हG । सरकार से दो अद ली िमले हG न! इसी से पड़े हए ु हG । मG भी सोचता हंू , जैसा तेरा ताना-बाना वैसे मेरी भरनी! इस साल कट गये हG , साल दो साल और इसी तरह कट जायगे। मोटे राम- तो तु.हीं अकेले हो? नाम तो कई कहार का लेते है । कहार- वह सब इन दो-तीन महीन के अ+दर आये और छोड़-छोड़ कर चले गये। यह अपना रोब जमाने को अभी तक उनका नाम जपा करते हG । कहीं नौकरी िदलाइएगा, चलूं? मोटे राम- अजी, बहत ु नौकरी है । कहार तो आजकल ढंू ढे नहीं िमलते। तुम तो प रु ाने आदमी हो, तु.हारे िलए नौकरी की Pया कमी है । यहां कोई ताजी चीज? मुझसे कहने लगे, िखचड़ी बनाइएगा या बाटी लगाइएगा? मGने कह िदया-सरकार, बुडा आदमी है , रात को उसे मेरा भोजन बनाने म कm 24
होगा, मG कुछ बाजार ही से खा लूग ं ा। इसकी आप िच+ता न कर । बोले, अ'छी बात है , कहार आपको दकान पर िमलेगा। बोलो साहजी, कुछ तर माल ु तैयार है ? लडू तो ताजे मालूम होते हG तौल दो एक सेर भर। आ जाऊं वहीं ऊपर न? यह कहकर मोटे रामजी हलवाई की दकान पर जा बैठे और तर माल ू चखने लगे। खूब छककर खाया। ढाई-तीन सेर चट कर गये। खाते जाते थे और हलवाई की तारीफ करते जाते थे- शाहजी, तु.हारी दकान का जैसा नाम ू सुना था, वैसा ही माल भी पाया। बनारसवाले ऐसे रसगुXले नहीं बना पाते, कलाक+द अ'छी बनाते हG , पर तु.हारी उनसे बुरी नहीं, माल डालने से अ'छी चीज नहीं बन जाती, िवqा चिहए। हलवाई-कुछ और लीिजए महाराज! थोड़ी-सी रबड़ी मेरी तरफ से लीिजए। मोटे राम-इ'छा तो नहीं है , लेिकन दे दो पाव-भर। हलवाई-पाव-भर Pया लीिजएगा? चीज अ'छी है , आध सेर तो लीिजए। खूब इ'छाप ण ू भोजन करके पंिडतजी ने थोड़ी दे र तक बाजार की सैर की और नौ बजते-बजते मकान पर आये। यहां स+नाटा-सा छाया हआ था। ु एक लालटे न जल रही थी। अपने चबूतरे पर िबःतर जमाया और सो गये। सबेरे अपने िनयमानुसार कोई आठ बजे उठे , तो दे खा िक बाबूसाहब टहल रहे हG । इ+ह जगा दे खकर वह पालागन कर बोले-महाराज, आज रात कहां चले गये? मG बड़ी रात तक आपकी राह दे खता रहा। भोजन का सब सामान बड़ी दे र तक रखा रहा। जब आज न आये, तो रखवा िदया गया। आपने कुछ भोजन िकया था। या नहीं? मोटे - हलवाई की दकान म कुछ खा आया था। ू भाल- अजी प रू ी-िमठाई म वह आन+द कहां, जो बाटी और दाल म है । दस-बारह आने खच हो गये हगे, िफर भी पेट न भरा होगा, आप मेरे ै े लगे ह ले लीिजएगा। मेहमान हG , िजतने प स मोटे - आप ही के हलवाई की दकान पर खाया था, वह जो नुPकड़ पर ू बैठता है । भाल- िकतने प स ै े दे ने पड़े ? मोटे - आपके िहसाब म िलखा िदये हG । 25
भाल- िजतनी िमठाइयां ली ह, मुझे बता दीिजए, नहीं तो पीछे से बेईमानी करने लगेगा। एक ही ठग है । मोटे - कोई ढाई सेर िमठाई थी और आधा सेर रबड़ी। बाबू साहब ने िवःफिरत नेऽ से पंिडतजी को दे खा, मानो कोई अच.भे की बात सुनी हो। तीन सेर तो कभी यहां महीने भर का टोटल भी न होता था और यह महाशय एक ही बार म कोई चार Wपये का माल उड़ा गये। अगर एक आध िदन और रह गये, तो या बैठ जायेगी। पेट है या शैतान की कॄ? तीन सेर! कुछ िठकाना है ! उिK]न दशा म दौड़े हए ु अ+दर गये और रं गीली से बोल-कुछ सुनती हो, यह महाशय कल तीन सेर िमठाई उड़ा गये। तीन सेर पPकी तौल! रं गीलीबाई ने िविःमत होकर कहा-अजी नहीं, तीन सेर भला Pया खा जायेगा! आदमी है या बैल? भाल- तीन सेर तो अपने मुंह से कह रहा है । चार सेर से कम न होगा, पPकी तौल! रं गीली- पेट म सनीचर है Pया? भाल- आज और रह गया तो छ: सेर पर हाथ फेरे गा। रं गीली- तो आज रहे ही Pय, खत का जवाब जो दे ना दे कर िवदा करो। अगर रहे तो साफ कह दे ना िक हमारे यहां िमठाई मुoत नहीं आती। िखचड़ी बनाना हो, बनावे, नहीं तो अपनी राह ले। िज+ह ऐसे पेटु ओं को िखलाने से मुि} िमलती हो, वे िखलाय हम ऐसी मुि} न चािहये! मगर पंिडत िवदा होने को तैयार बैठे थे, इसिलए बाबूसाहब को कौशल से काम लेने की जWरत न पड़ी। पछ ू ा- Pया तैयारी कर दी महाराज? मोटे - हां सरकार, अब चलूंगा। नौ बजे की गाड़ी िमलेगी न? भाल- भला आज तो और रिहए। यह कहते-कहते बाबूजी को भय हआ िक कहीं यह महाराज सचमुच न ु रह जाय, इसिलये वाPय को य प रू ा िकया- हां, वहां भी लोग आपका इ+तजार कर रहे हगे। मोटे - एक-दो िदन की तो कोई बात न थी और िवचार भी यही था िक िऽवेणी का ःनान कWंगा, पर बुरा न मािनए तो कहंू , आप लोग म ॄा॑ाण के ूित लेशमाऽ भी ौiा नहीं है । हमारे जजमान हG , जो हमारा मुंह 26
जोहते रहते हG िक पंिडतजी कोई आTा द , तो उसका पालन कर । हम उनके Kारा पहंु च जाते हG , तो वे अपना ध+य भा]य समझते हG और सारा घर-छोटे से बड़े तक हमारी सेवा-सRकार म म]न हो जाते हG । जहां अपना आदर नहीं, वहां एक aण भी ठहरना अस॑ाय है । जहां ॄ॑ाण का आदर नहीं, वहां कXयाण नहीं हो सकता। भाल- महाराज, हमसे तो ऐसा अपराध नहीं हआ। ु मोटे - अपराध नहीं हआ ु ! और अपराध कहते िकसे हG ? अभी आप ही ने घर म जाकर कहा िक यह महाशय तीन सेर िमठाई चट कर गये, पPकी तौल। आपने अभी खानेवाले दे खे कहां? एक बार िखलाइये तो आंख खुल जाय। ऐसे-ऐसे महान प W ु ष पड़े हG , जो पसेरी भर िमठाई खा जाय और डकार तक न ल। एक-एक िमठाई खाने के िलए हमारी िचरौरी की जाती है , Wपये िदये जाते हG । हम िभaुक ॄा॑ाण नहीं हG , जो आपके Kार पर पड़े रह । आपका नाम सुनकर आये थे, यह न जानते थे िक यहां मेरे भोजन के भी लाले पड़ गे। जाइये, भगवान ्आपका कXयाण कर ! बाबू साहब ऐसा झप े िक मुंह से बात न िनकली। िज+दगी भर म उन पर कभी ऐसी फटकार न पड़ी थी। बहत ु बात बनायीं-आपकी चचा न थी, एक दसरे ही महाशय की बात थी, लेिकन पंिडतजी का बोध शा+त न हआ। ू ु वह सब कुछ सह सकते थे, पर अपने पेट की िन+दा न सह सकते थे। औरत को Wप की िन+दा िजतनी िूय लगती है , उससे कहीं अिधक अिूय पW ु ष को अपने पेट की िन+दा लगती है । बाबू साहब मनाते तो थे; पर धड़का भी समाया हआ था िक यह िटक न जाय। उनकी कृ पणता का परदा ु खुल गया था, अब इसम स+दे ह न था। उस पदu को ढांकना जWरी था। अपनी कृ पणता को िछपाने के िलए उ+हने कोई बात उठा न रखी पर होनेवाली बात होकर रही। पछता रहे थे िक कहां से घर म इसकी बात कहने गया और कहा भी तो उ'च ःवर म। यह दm ु भी कान लगाये सुनता रहा, िक+तु अब पछताने से Pया हो सकता था? न जाने िकस मनहस ू की सूरत दे खी थी यह िवपि3 गले पड़ी। अगर इस व} यहां से Wm होकर चला गया; तो वहां जाकर बदनाम करे गा और मेरा सारा कौशल खुल जायेगा। अब तो इसका मुंह ब+द कर दे ना ही पड़े गा। यह सोच-िवचार करते हए ु वह घर म जाकर रं गीलीबाई से बोले-इस दm ु ने हमारी-तु.हारी बात सुन ली। Wठकर चला जा रहा है । 27
रं गीली-जब तुम जानते थे िक Kार पर खड़ा है , तो धीरे से Pय न बोले? भाल-िवपि3 आती है ; तो अकेले नहीं आती। यह Pया जानता था िक वह Kार पर कान लगाये खड़ा है । रं गीली- न जाने िकसका मुंह दे ख था? भाल-वही दm था। जानता तो उधर ताकता ही नहीं। ु सामने लेटा हआ ु अब तो इसे कुछ दे -िदलाकर राजी करना पड़े गा। रं गीली- ऊंह, जाने भी दो। जब तु.ह वहां िववाह ही नहीं करना है , तो Pया परवाह है ? जो चाहे समझे, जो चाहे कहे । भाल-य जान न बचेगी। आओं दस Wपये िवदाई के बहाने दे दं ।ू ईSर िफर इस मनहस ू की सूरत न िदखाये। रं गीली ने बहत ु अछताते-पछताते दस पये िनकाले और बाबू साहब ने उ+ह ले जाकर पंिडतजी के चरण पर रख िदया। पंिडतजी ने िदल म कहाध3ैरे मPखीचूस की! ऐसा रगड़ा िक याद करोगे। तुम समझते होगे िक दस पये दे कर इसे उXलू बना लूग ं ा। इस फेर म न रहना। यहां तु.हारी नस-नस पहचानते हG । पये जेब म रख िलये और आशीवा द दे कर अपनी राह ली। बाबू साहब बड़ी दे कर तक खड़े सोच रहे थे-मालूम नहीं, अब भी मुझे कृ पण ही समझ रहा है या परदा ढं क गया। कहीं ये पये भी तो पानी म नहीं िगर पड़े । चार
क
Xयाणी के सामने अब एक िवषम समःया आ खड़ी हई। पित के ु दे हा+त के बाद उसे अपनी दरवःथा का यह पहला और बहत ु ु ही
कड़वा अनुभव हआ। दिरि िवधवा के िलए इससे बड़ी और Pया िवपि3 हो ु सकती है िक जवान बेटी िसर पर सवार हो? लड़के नंगे पांव पढ़ने जा सकते हG , चौका-ब3 न भी अपने हाथ से िकया जा सकता है , Wखा-सूखा खाकर िनवा ह िकया जा सकता है , झोपड़े म िदन काटे जा सकते हG , लेिकन युवती क+या घर म नहीं बैठाई जा सकती। कXयाणी को भालच+ि पर ऐसा बोध आता था िक ःवयं जाकर उसके मुंह म कािलख लगाऊं, िसर के बाल नोच
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लूं, कहंू िक तू अपनी बात से िफर गया, तू अपने बाप का बेटा नहीं। पंिडत मोटे राम ने उनकी कपट-लीला का न]न वृ3ा+त सुना िदया था। वह इसी बोध म भरी बैठी थी िक कृ ंणा खेलती हई ु आयी और बोली-कै िदन म बारात आयेगी अ.मां? पंिडत तो आ गये। कXयाणी- बारात का सपना दे ख रही है Pया? कृ ंणा-वही च+दर तो कह रहा है िक-दो-तीन िदन म बारात आयेगी, Pया न जायेगी अ.मां? कXयाणी-एक बार तो कह िदया, िसर Pय खाती है ? कृ ंणा-सबके घर तो बारात आ रही है , हमारे यहां Pय नहीं आती? कXयाणी-तेरे यहां जो बारात लाने वाला था, उसके घर म आग लग गई। कृ ंणा-सच, अ.मां! तब तो सारा घर जल गया होगा। कहां रहते हगे? बहन कहां जाकर रहे गी? कXयाणी-अरे पगली! तू तो बात ही नहीं समझती। आग नहीं लगी। वह हमारे यहां Cयाह न करे गा। कृ ंणा-यह Pय अ.मां? पहले तो वहीं ठीक हो गया था न? कXयाणी-बहत ु से पये मांगता है । मेरे पास उसे दे ने को पये नहीं हG । कृ ंणा-Pया बड़े लालची हG , अ.मां? कXयाणी-लालची नहीं तो और Pया है । प रू ा कसाई िनद यी, दगाबाज। कृ ंणा-तब तो अ.मां, बहत िक उसके घर बहन का Cयाह ु अ'छा हआ ु नहीं हआ। बहन उसके साथ कैसे रहती? यह तो खुश होने की बात है ु अ.मां, तुम रं ज Pय करती हो? कXयाणी ने प ऽ ु ी को ःनेहमयी fिm से दे खा। इनका कथन िकतना सRय है ? भोले शCद म समःया का िकतना मािम क िनWपण है ? सचमुच यह ते ूस+न होने की बात है िक ऐसे कुपाऽ से स.ब+ध नहीं हआ ु , रं ज की कोई बात नहीं। ऐसे कुमानुस के बीच म बेचारी िनम ला की न जाने Pया गित होती अपने नसीब को रोती। जरा सा घी दाल म अिधक पड़ जाता, तो सारे घर म शोर मच जाता, जरा खाना Mयादा पक जाता, तो सास दिनया िसर पर उठा लेती। लड़का भी ऐसा लोभी है । बड़ी अ'छी बात हई ु , नहीं, 29
बेचारी को उॆ भर रोना पड़ता। कXयाणी यहां से उठी, तो उसका Vदय हXका हो गया था। लेिकन िववाह तो करना ही था और हो सके तो इसी साल, नहीं तो दसरे साल िफर नये िसरे से तैयािरयां करनी पडे गी। अब अ'छे घर की ू जWरत न थी। अ'छे वर की जWरत न थी। अभािगनी को अ'छा घर-वर कहां िमलता! अब तो िकसी भांित िसर का बोझा उतारना था, िकसी भांित लड़की को पार लगाना था, उसे कुएं म झकना था। यह Wपवती है , गुणशीला है , चतुर है , कुलीन है , तो हुआ कर , दहे ज नहीं तो उसके सारे गुण दोष हG , दहे ज हो तो सारे दोष गुण हG । ूाणी का कोई मूXय नहीं, केवल दे हज का मूXय है । िकतनी िवषम भ]यलीला है ! कXयाणी का दोष कुछ कम न था। अबला और िवधवा होना ही उसे दोष से मु} नहीं कर सकता। उसे अपने लड़के अपनी लड़िकय से कहीं Mयादा bयारे थे। लड़के हल के बैल हG , भूसे खली पर पहला हक उनका है , उनके खाने से जो बचे वह गाय का! मकान था, कुछ नकद था, कई हजार के गहने थे, लेिकन उसे अभी दो लड़क का पालन-पोषण करना था, उ+ह पढ़ाना-िलखाना था। एक क+या और भी चार-पांच साल म िववाह करने यो]य हो जायेगी। इसिलए वह कोई बड़ी रकम दहे ज म न दे सकती थी, आिखर लड़क को भी तो कुछ चािहए। वे Pया समझगे िक हमारा भी कोई बाप था। पंिडत मोटे राम को लखनऊ से लौटे प+िह िदन बीत चुके थे। लौटने के बाद दसरे ही िदन से वह वर की खोज म िनकले थे। उ+हने ूण िकया ू था िक मG लखनऊ वाल को िदखा दं ग ू ा िक संसार म तु.हीं अकेले नहीं हो, तु.हारे ऐसे और भी िकतने पड़े हए ु हG । कXयाणी रोज िदन िगना करती थी। आज उसने उ+ह पऽ िलखने का िनdय िकया और कलम-दवात लेकर बैठी ही थी िक पंिडत मोटे राम ने पदाप ण
िकया। कXयाणी-आइये पंिड़तजी, मG तो आपको खत िलखने जा रही थी, कब लौटे ? मोटे राम-लौटा तो ूात:काल ही था, पर इसी समय एक सेठ के यहां से िनम+ऽण आ गया। कई िदन से तर माल न िमले थे। मGने कहा िक लगे हाथ यह भी काम िनपटाता चलूं। अभी उधर ही से लौटा आ रहा हंू , कोई पांच सौ ॄ॑ाण को पंगत थी। 30
कXयाणी-कुछ काय भी िसi हआ या राःता ही नापना पड़ा। ु मोटे राम- काय Pय न िसi होगा? भला, यह भी कोई बात है ? पांच जगह बातचीत कर आया हंू । पांच की नकल लाया हंू । उनम से आप चाहे िजसे पस+द कर । यह दे िखए इस लड़के का बाप डाक के सीगे म सौ Wपये महीने का नौकर है । लड़का अभी कालेज म पढ़
रहा है । मगर नौकरी का
भरोसा है , घर म कोई जायदाद नहीं। लड़का होनहार मालूम होता है । खानदान भी अ'छा है दो हजार म बात तय हो जायेगी। मांगते तो यह तीन हजार हG । कXयाणी- लड़के के कोई भाई है ? मोटे -नहीं, मगर तीन बहन हG और तीन Pवांरी। माता जीिवत है । अ'छा अब दसरी नकल िदये। यह लड़का रे ल के सीगे म पचास Wपये ू महीना पाता है । मां-बाप नहीं हG । बहत ु ही Wपवान ्सुशील और शरीर से खूब Vm-प m ु कसरती जवान है । मगर खानदान अ'छा नहीं, कोई कहता है , मां नाइन थी, कोई कहता है , ठकुराइन थी। बाप िकसी िरयासत म मुcतार थे। घर पर थोड़ी सी जमींदारी है , मगर उस पर कई हजार का कज है । वहां कुछ लेना-दे ना न पडे गा। उॆ कोई बीस साल होगी। कXयाणी-खानदान म दाग न होता, तो मंजूर कर लेती। दे खकर तो मPखी नहीं िनगली जाती। मोटे -तीसरी नकल दे िखए। एक जमींदार का लड़का है , कोई एक हजार सालाना नफा है । कुछ खेती-बारी भी होती है । लड़का पढ़-िलखा तो थोड़ा ही है , कचहरी-अदालत के काम म चतुर है । दहाजू है , पहली nी को मरे दो साल ु हए। उससे कोई संतान नहीं, लेिकन रहना-सहन, मोटा है । पीसना-कूटना घर ु ही म होता है । कXयाणी- कुछ दे हज मांगते हG ? मोटे -इसकी कुछ न प िू छए। चार हजार सुनाते हG । अ'छा यह चौथी G ीस साल होगी। तीन-चार सौ की नकल िदये। लड़का वकील है , उॆ कोई प त आमदनी है । पहली nी मर चुकी है उससे तीन लड़के भी हG । अप ना घर बनवाया है । कुछ जायदाद भी खरीदी है । यहां भी लेन-दे न का झगड़ा नहीं है । कXयाणी- खानदान कैसा है ? 31
मोटे -बहत ु ही उ3म, प रु ाने रईस हG । अ'छा, यह पांचवीं नकल िदए। बाप का छापाखाना है । लड़का पढ़ा तो बी. ए. तक है , पर उस छापेखाने म काम करता है । उॆ अठारह साल की होगी। घर म ूेस के िसवाय कोई जायदाद नहीं है , मगर िकसी का कज िसर पर नहीं। खानदान न बहत ु अ'छा है , न बुरा। लड़का बहत ु सु+दर और स'चिरऽ है । मगर एक हजार से कम म मामला तय न होगा, मांगते तो वह तीन हजार हG । अब बताइए, आप कौन-सा वर पस+द करती हG ? कXयाणी-आपक सब म कौन पस+द है ? मोटे -मुझे तो दो वर पस+द हG । एक वह जो रे लवई म है और दसरा ू जो छापेखाने म काम करता है । कXयाणी-मगर पहले के तो खानदान म आप दोष बताते हG ? मोटे -हां, यह दोष तो है । छापेखाने वाले को ही रहने दीिजये। कXयाणी-यहां एक हजार दे ने को कहां से आयेगा? एक हजार तो आपका अनुमान है , शायद वह और मुंह फैलाये। आप तो इस घर की दशा दे ख ही रहे हG , भोजन िमलता जाये, यही गनीमत है । Wपये कहां से आयगे? जमींदार साहब चार हजार सुनाते हG , डाक बाबू भी दो हजार का सवाल करते हG । इनको जाने दीिजए। बस, वकील साहब ही बच सकते हG । प त G ीस साल की उॆ भी कोई Mयादा नहीं। इ+हीं को Pय न रिखए। मोटे राम-आप खूब सोच-िवचार ल। मG य आपकी मजh का ताबेदार हंू । जहां किहएगा वहां जाकर टीका कर आऊंगा। मगर हजार का मुंह न दे िखए, छापेखाने वाला लड़का र है । उसके साथ क+या का जीवन सफल हो जाएगा। जैसी यह Wप और गुण की प रू ी है , वैसा ही लड़का भी सु+दर और सुशील है । कXयाणी-पस+द तो मुझे भी यही है महाराज, पर पये िकसके घर से आय! कौन दे ने वाला है ! है कोई दानी? खानेवाले खा-पीकर चंप त हए। अब ु िकसी की भी सूरत नहीं िदखाई दे ती, बिXक और मुझसे बुरा मानते हG िक हम िनकाल िदया। जो बात अपने बस के बाहर है , उसके िलए हाथ ही Pय फैलाऊं? स+तान िकसको bयारी नहीं होती? कौन उसे सुखी नहीं दे खना चाहता? पर जब अपना काबू भी हो। आप ईSर का नाम लेकर वकील साहब को टीका कर आइये। आयु कुछ अिधक है , लेिकन मरना-जीना िविध के हाथ है । प त G ीस साल का आदमी बुडा नहीं कहलाता। अगर लड़की के भा]य म 32
सुख भोगना बदा है , तो जहां जायेगी सुखी रहे गी, द:ु ख भोगना है , तो जहां जायेगी द:ु ख झेलेगी। हमारी िनम ला को ब'च से ूेम है । उनके ब'च को अपना समझेगी। आप शुभ मुहू त दे खकर टीका कर आय। पांच
िन
म ला का िववाह हो गया। ससुराल आ गयी। वकील साहब का नाम था मुंशी तोताराम। सांवले रं ग के मोटे -ताजे आदमी थे। उॆ तो
अभी चालीस से अिधक न थी, पर वकालत के किठन पिरौम ने िसर के
बाल पका िदये थे। 4यायाम करने का उ+ह अवकाश न िमलता था। वहां तक िक कभी कहीं घूमने भी न जाते, इसिलए तद िनकल आई थी। दे ह के ःथून होते हए ु भी आये िदन कोई-न-कोई िशकायत रहती थी। मंदि]न और बवासीर से तो उनका िचरःथायी स.ब+ध था। अतएव बहत ु फंू क-फंू ककर कदम रखते थे। उनके तीन लड़के थे। बड़ा मंसाराम सोहल वष का था, मंझला िजयाराम बारह और िसयाराम सात वष का। तीन अंमेजी पढ़ते थे। घर म वकील साहब की िवधवा बिहन के िसवा और कोई औरत न थी। वही घर की मालिकन थी। उनका नाम था किमणी और अवःथा पचास के ऊपर थी। ससुराल म कोई न था। ःथायी रीित से यहीं रहती थीं। तोताराम द.पित-िवTान म कुशल थे। िनम ला के ूस+न रखने के िलए उनम जो ःवाभािवक कमी थी, उसे वह उपहार से प रू ी करना चाहते थे। यqिप वह बहु ही िमत4ययी प W ु ष थे, पर िनम ला के िलए कोई-न-कोई तोहफा रोज लाया करते। मौके पर धन की परवाइ न करते थे। लड़के के िलए थोड़ा दध ू आता था, पर िनम ला के िलए मेवे, मुरCबे, िमठाइयां-िकसी चीज की कमी न थी। अपनी िज+दगी म कभी सैर-तमाशे दे खने न गये थे, पर अब छुिeटय म िनम ला को िसनेमा, सरकस, एटर, िदखाने ले जाते थे। अपने बहमू ु Xय समय का थोडा-सा िहःसा उसके साथ बGठकर मामोफोन बजाने म 4यतीत िकया करते थे। लेिकन िनम ला को न जाने Pय तोताराम के पास बैठने और हं सनेबोलने म संकोच होता था। इसका कदािचत ्यह कारण था िक अब तक ऐसा ही एक आदमी उसका िपता था, िजसके सामने वह िसर-झुकाकर, दे ह चुराकर िनकलती थी, अब उनकी अवःथा का एक आदमी उसका पित था। वह उसे 33
ूेम की वःतु नहीं स.मान की वःतु समझती थी। उनसे भागती िफरती, उनको दे खते ही उसकी ूफुXलता पलायन कर जाती थी। वकील साहब को नके द.पि3-िवTान न िसखाया था िक युवती के सामने खूब ूेम की बात करनी चािहये। िदल िनकालकर रख दे ना चिहये, यही उसके वशीकरण का मुcय मंऽ है । इसिलए वकील साहब अपने ूेमूदश न म कोई कसर न रखते थे, लेिकन िनम ला को इन बात से घृणा होती थी। वही बात, िज+ह िकसी युवक के मुख से सुनकर उनका Vदय ूेम से उ+म3 हो जाता, वकील साहब के मुंह से िनकलकर उसके Vदय पर शर के समान आघात करती थीं। उनम रस न था उXलास न था, उ+माद न था, Vदय न था, केवल बनावट थी, घोखा था और शुंक, नीरस शCदाड.बर। उसे इऽ और तेल बुरा न लगता, सैर-तमाशे बुरे न लगते, बनाव-िसंगार भी बुरा न लगता था, बुरा लगता था, तो केवल तोताराम के पास बैठना। वह अपना Wप और यौवन उ+ह न िदखाना चाहती थी, Pयिक वहां दे खने वाली आंख न थीं। वह उ+ह इन रस का आःवादन लेने यो]य न समझती थी। कली ूभात-समीर ही के सपश से िखलती है । दोन म समान सारःय है । िनम ला के िलए वह ूभात समीर कहां था? पहला महीना गुजरते ही तोताराम ने िनम ला को अपना खजांची बना िलया। कचहरी से आकर िदन-भर की कमाई उसे दे दे ते। उनका cयाल था िक िनम ला इन Wपय को दे खकर फूली न समाएगी। िनम ला बड़े शौक से इस पद का काम अंजाम दे ती। एक-एक प स ै े का िहसाब िलखती, अगर कभी Wपये कम िमलते, तो प छ ू ती आज कम Pय हG । गृहःथी के स.ब+ध म उनसे खूब बात करती। इ+हीं बात के लायक वह उनको समझती थी। Mयही कोई िवनोद की बात उनके मुंह से िनकल जाती, उसका मुख िलन हो जाता था। िनम ला जब वnाभूंण से अलंकृत होकर आइने के सामने खड़ी होती और उसम अपने सj+दय की सुषमाप ण ू आभा दे खती, तो उसका Vदय एक सतृंण कामना से तड़प उठता था। उस व} उसके Vदय म एक Mवाला-सी उठती। मन म आता इस घर म आग लगा दं ।ू अपनी माता पर बोध आता, पर सबसे अिधक बोध बेचारे िनरपराध तोताराम पर आता। वह सदै व इस ताप से जला करती। बांका सवार लिद-ू टeटू पर सवार होना कब पस+द करे गा, चाहे उसे प द ै ल ही Pय न चलना पड़े ? िनम ला की दशा उसी बांके 34
सवार की-सी थी। वह उस पर सवार होकर उड़ना चाहती थी, उस उXलासमयी िवqत ्गित का आन+द उठाना चाहती थी, टeटू के िहनिहनाने और कनौितयां खड़ी करने से Pया आशा होती? संभव था िक ब'च के साथ हं सने-खेलने से वह अपनी दशा को थोड़ी दे र के िलए भूल जाती, कुछ मन हरा हो जाता, लेिकन किमणी दे वी लड़क को उसके पास फटकने तक न दे तीं, मानो वह कोई िपशािचनी है , जो उ+ह िनगल जायेगी। किमणी दे वी का ःवभाव सारे संसार से िनराला था, यह पता लगाना किठन था िक वह िकस बात से खुश होती थीं और िकस बात से नाराज। एक बार िजस बात से खुश हो जाती थीं, दसरी बार उसी बात से जल जाती थी। अगर िनम ला अपने कमरे म ू बैठी रहती, तो कहतीं िक न जाने कहां की मनहिसन है ! अगर वह कोठे पर ू चढ़ जाती या महिरय से बात करती, तो छाती पीटने लगतीं-न लाज है , न शरम, िनगोड़ी ने हया भून खाई! अब Pया कुछ िदन म बाजार म नाचेगी! जब से वकील साहब ने िनम ला के हाथ म पये-प स ै े दे ने शुW िकये, किमणी उसकी आलोचना करने पर आWढ़ हो गयी। उ+ह मालूम होता था। िक अब ूलय होने म बहत ु थोड़ी कसर रह गयी है । लड़क को बार-बार पस ै की जWरत पड़ती। जब तक खुद ःवािमनी थीं, उ+ह बहला िदया करती थीं। अब सीधे िनम ला के पास भेज दे तीं। िनम ला को लड़क के चटोरापन अ'छा न लगता था। कभी-कभी प स ै े दे ने से इ+कार कर दे ती। किमणी को अपने वा]बाण सर करने का अवसर िमल जाता-अब तो मालिकन हई ु है , लड़के काहे को िजयगे। िबना मां के ब'चे को कौन प छ ू े ? Wपय की िमठाइयां खा जाते थे, अब धेल-े धेले को तरसते हG । िनम ला अगर िचढ़कर िकसी िदन िबना कुछ प छ ू े -ताछे प स ै े दे दे ती, तो दे वीजी उसकी दसरी ही आलोचना ू करतीं-इ+ह Pया, लड़के मरे या िजय, इनकी बला से, मां के िबना कौन िमठाइयां मत खाओ। आयी-गयी तो मेरे िसर समझाये िक बेटा, बहत ु जायेगी, इ+ह Pया? यहीं तक होता, तो िनम ला शायद जCत कर जाती, पर दे वीजी तो खुिफया प िु लस से िसपाही की भांित िनम ला का पीछा करती रहती थीं। अगर वह कोठे पर खड़ी है , तो अवँय ही िकसी पर िनगाह डाल रही होगी, महरी से बात करती है , तो अवँय ही उनकी िन+दा करती होगी। बाजार से कुछ मंगवाती है , तो अवँय कोई िवलास वःतु होगी। यह बराबर उसके पऽ पढ़ने की चेmा िकया करती। िछप-िछपकर बात सुना करती। िनम ला उनकी दोधरी तलवार से कांप ती रहती थी। यहां तक िक उसने एक 35
िदन पित से कहा-आप जरा जीजी को समझा दीिजए, Pय मेरे पीछे पड़ रहती हG ? तोताराम ने तेज होकर कह- तु.ह कुछ कहा है , Pया? ‘रोज ही कहती हG । बात मुंह से िनकालना मुिँकल है । अगर उ+ह इस बात की जलन हो िक यह मालिकन Pय बनी हई ु है , तो आप उ+हीं को Wपये-प स ै े दीिजये, मुझे न चािहये, यही मालिकन बनी रह । मG तो केवल इतना चाहती हंू िक कोई मुझे ताने-मेहने न िदया करे ।’ यह कहते-कहते िनम ला की आंख से आंसू बहने लगे। तोताराम को अपना ूेम िदखाने का यह बहत ु ही अ'छा मौका िमला। बोले-मG आज ही उनकी खबर लूग ं ा। साफ कह दं ग ू ा, मुंह ब+द करके रहना है , तो रहो, नहीं तो अपनी राह लो। इस घर की ःवािमनी वह नहीं है , तुम हो। वह केवल तु.हारी सहायता के िलए हG । अगर सहायता करने के बदले तु.ह िदक करती हG , तो उनके यहां रहने की जWरत नहीं। मGने सोचा था िक िवधवा हG , अनाथ हG , पाव भर आटा खायगी, पड़ी रह गी। जब और नौकर-चाकर खा रहे हG , तो वह तो अपनी बिहन ही है । लड़क की दे खभाल के िलए एक औरत की जWरत भी थी, रख िलया, लेिकन इसके यह माने नहीं िक वह तु.हारे ऊपर शासन कर । िनम ला ने िफर कहा-लड़क को िसखा दे ती हG िक जाकर मां से प स ै े मांगे, कभी कुछ-कभी कुछ। लड़के आकर मेरी जान खाते हG । घड़ी भर लेटना मुिँकल हो जाता है । डांटती हंू , तो वह आख लाल-पीली करके दौड़ती हG । मुझे समझती हG िक लड़क को दे खकर जलती है । ईSर जानते हगे िक मG ब'च को िकतना bयार करती हंू । आिखर मेरे ही ब'चे तो हG । मुझे उनसे Pय जलन होने लगी? तोताराम बोध से कांप उठे । बोल-तु.ह जो लड़का िदक करे , उसे पीट िदया करो। मG भी दे खता हंू िक लjडे शरीर हो गये हG । मंसाराम को तो म बोिड ग हाउस म भेज दं ग ू ा। बाकी दोन को तो आज ही ठीक िकये दे ता हंू । उस व} तोताराम कचहरी जा रहे थे, डांट-डपट करने का मौका न था, लेिकन कचहरी से लौटते ही उ+हने घर म िPमणी से कहा-Pय बिहन, तु.ह इस घर म रहना है या नहीं? अगर रहना है , शा+त होकर रहो। यह Pया िक दसर का रहना मुिँकल कर दो। ू िPमणी समझ गयीं िक बहू ने अपना वार िकया, पर वह दबने वाली औरत न थीं। एक तो उॆ म बड़ी ितस पर इसी घर की सेवा म िज+दगी 36
काट दी थी। िकसकी मजाल थी िक उ+ह बेदखल कर दे ! उ+ह भाई की इस aुिता पर आdय हआ। बोलीं-तो Pया लjडी बनाकर रखेग?े लjडी बनकर ु रहना है , तो इस घर की लjडी न बनूंगी। अगर तु.हारी यह इ'छा हो िक घर म कोई आग लगा दे और मG खड़ी दे खा कWं, िकसी को बेराह चलते दे खं;ू तो चुप साध लू,ं जो िजसके मन म आये करे , मG िमeटी की दे वी बनी रहंू , तो यह मुझसे न होगा। यह हआ Pया, जो तुम इतना आपे से बाहर हो रहे हो? ु िनकल गयी सारी बुिiमानी, कल की लjिडया चोटी पकड़कर नचाने लगी? कुछ प छ ू ना न ताछना, बस, उसने तार खींचा और तुम काठ के िसपाही की तरह तलवार िनकालकर खड़े हो गये। तोता-सुनता हंू , िक तुम हमेशा खुचर िनकालती रहती हो, बात-बात पर ताने दे ती हो। अगर कुछ सीख दे नी हो, तो उसे bयार से, मीठे शCद म दे नी चािहये। तान से सीख िमलने के बदले उलटा और जी जलने लगता है । िPमणी-तो तु.हारी यह मजh है िक िकसी बात म न बोलू,ं यही सही, िकन िफर यह न कहना, िक तुम घर म बैठी थीं, Pय नहीं सलाह दी। जब मेरी बात जहर लगती हG , तो मुझे Pया कु3े ने काटा है , जो बोलूं? मसल है ‘नाट खेती, बहिरय घर।’ मG भी दे खं,ू बहिरया कैसे कर चलाती है ! ु ु इतने म िसयाराम और िजयाराम ःकूल से आ गये। आते ही आते दोन बुआजी के पास जाकर खाने को मांगने लगे। िPमणी ने कहा-जाकर अपनी नयी अ.मां से Pय नहीं मांगते, मुझे बोलने का हPम नहीं है । ु तोता-अगर तुम लोग ने उस घर म कदम रखा, तो टांग तोड़ दं ग ू ा। बदमाशी पर कमर बांधी है । िजयाराम जरा शोख था। बोला-उनको तो आप कुछ नहीं कहते, हमीं को धमकाते हG । कभी प स ै े नहीं दे तीं। िसयाराम ने इस कथन का अनुमोदन िकया-कहती हG , मुझे िदक करोगे तो कान काट लूंगी। कहती है िक नहीं िजया? िनम ला अपने कमरे से बोली-मGने कब कहा था िक तु.हारे कान काट लूंगी अभी से झूठ बोलने लगे? इतना सुनना था िक तोताराम ने िसयाराम के दोन कान पकड़कर उठा िलया। लड़का जोर से चीख मारकार रोने लगा। 37
िPमणी ने दौड़कर ब'चे को मुंशीजी के हाथ से छुड़ा िलया और बोलीं- बस, रहने भी दो, Pया ब'चे को मार डालोगे? हाय-हाय! कान लाल हो गया। सच कहा है , नयी बीवी पाकर आदमी अ+धा हो जाता है । अभी से यह हाल है , तो इस घर के भगवान ही मािलक हG । िनम ला अपनी िवजय पर मन-ही-मन ूस+न हो रही थी, लेिकन जब मुंशी जी ने ब'चे का कान पकड़कर उठा िलया, तो उससे न रहा गया। छुड़ाने को दौड़ी, पर िPमणी पहले ही पहंु च गयी थीं। बोलीं-पहले आग लगा दी, अब बुझाने दौड़ी हो। जब अपने लड़के हगे, तब आंख खुलग ी। पराई पीर Pया जानो? िनम ला- खड़े तो हG , प छ ू लो न, मGने Pया आग लगा दी? मGने इतना ही कहा था िक लड़के मुझे प स ै के िलए बार-बार िदक करते हG , इसके िसवाय जो मेरे मुंह से कुछ िनकला हो, तो मेरे आंख फूट जाय। तोता-मG खुद इन लjड की शरारत दे खा करता हंू , अ+धा थोड़े ही हंू । तीन िजyी और शरीर हो गये हG । बड़े िमयां को तो मG आज ही होःटल म भेजता हंू । िPमणी-अब तक तु.ह इनकी कोई शरारत न सूझी थी, आज आंख Pय इतनी तेज हो गयीं? तोताराम- तु.हीं न इ+ह इतना शोख कर रखा है । किमणी- तो मG ही िवष की गांठ हंू । मेरे ही कारण तु.हारा घर चौपट हो रहा है । लो मG जाती हंू , तु.हारे लड़के हG , मारो चाहे काटो, न बोलूंगी। यह कहकर वह वहां से चली गयीं। िनम ला ब'चे को रोते दे खकर िवVल हो उठी। उसने उसे छाती से लगा िलया और गोद म िलए हए ु अपने कमरे म लाकर उसे चुमकारने लगी, लेिकन बालक और भी िससक-िससक कर रोने लगा। उसका अबोध Vदय इस bयार म वह मातृ-ःनेह न पाता था, िजससे दै व ने उसे वंिचत कर िदया था। यह वाRसXय न था, केवल दया थी। यह वह वःतु थी, िजस पर उसका कोई अिधकार न था, जो केवल िभaा के Wप म उसे दी जा रही थी। िपता ने पहले भी दो-एक बार मारा था, जब उसकी मां जीिवत थी, लेिकन तब उसकी मां उसे छाती से लगाकर रोती न थी। वह अूस+न होकर उससे बोलना छोड़ दे ती, यहां तक िक वह ःवयं थोड़ी ही दे र के बाद कुछ भूलकर िफर माता के पास दौड़ा जाता था। शरारत के िलए सजा पाना तो उसकी समझ म आता था, लेिकन मार खाने पार 38
चुमकारा जाना उसकी समझ म न आता था। मातृ-ूेम म कठोरता होती थी, लेिकन मृदलता से िमली हई। इस ूेम म कWणा थी, पर वह कठोरता न थी, ु ु जो आRमीयता का गुr संदेश है । ःवःथ अंग की पारवाह कौन करता है ? लेिकन वही अंग जब िकसी वेदना से टपकने लगता है , तो उसे ठे स और घPके से बचाने का य िकया जाता है । िनम ला का कWण रोदन बालक को उसके अनाथ होने की सूचना दे रहा था। वह बड़ी दे र तक िनम ला की गोद म बैठा रोता रहा और रोते-रोते सो गया। िनम ला ने उसे चारपाई पर सुलाना ु ावःथा म अपनी दोन कोमल बाह उसकी गद न म चाहा, तो बालक ने सुषr डाल दीं और ऐसा िचपट गया, मानो नीचे कोई गढ़ा हो। शंका और भय से उसका मुख िवकृ त हो गया। िनम ला ने िफर बालक को गोद म उठा िलया, चारपाई पर न सुला सकी। इस समय बालक को गोद म िलये हए ु उसे वह तुिm हो रही थी, जो अब तक कभी न हई ु थी, आज पहली बार उसे आRमवेदना हई ु , िजसके ना आंख नहीं खुलती, अपना क3 4य-माग नहीं समझता। वह माग अब िदखायी दे ने लगा। छह
उ
स िदन अपने ूगाढ़ ूणय का सबल ूमाण दे ने के बाद मुंशी तोताराम को आशा हई ु थी िक िनम ला के मम -ःथल पर मेरा िसPका जम
जायेगा, लेिकन उनकी यह आशा लेशमाऽ भी प रू ी न हई ु बिXक पहले तो वह कभी-कभी उनसे हं सकर बोला भी करती थी, अब ब'च ही के लालन-पालन म 4यःत रहने लगी। जब घर आते, ब'च को उसके पास बैठे पाते। कभी दे खते िक उ+ह ला रही है , कभी कपड़े पहना रही है , कभी कोई खेल, खेला रही है और कभी कोई कहानी कह रही है । िनम ला का तृिषत Vदय ूणय की ओर से िनराश होकर इस अवल.ब ही को गनीमत समझने लगा, ब'च के साथ हं सने-बोलने म उसकी मातृ-कXपना तृr होती थीं। पित के साथ हं सनेबोलने म उसे जो संकोच, जो अिच तथा जो अिन'छा होती थी, यहां तक िक वह उठकर भाग जाना चाहती, उसके बदले बालक के स'चे, सरल ःनेह से िच3 ूस+न हो जाता था। पहले मंसाराम उसके पास आते हए ु िझझकता था, लेिकन मानिसक िवकास म पांच साल छोटा। हॉकी और फुटबाल ही उसका संसार, उसकी कXपनाओं का मु}-aेऽ तथा उसकी कामनाओं का हरा39
भरा बाग था। इकहरे बदन का छरहरा, सु+दर, हं समुख, लMजशील बालक था, िजसका घर से केवल भोजन का नाता था, बाकी सारे िदन न जाने कहां घूमा करता। िनम ला उसके मुंह से खेल की बात सुनकर थोड़ी दे र के िलए अपनी िच+ताओं को भूल जाती और चाहती थी एक बार िफर वही िदन आ जाते, जब वह गुिड़या खेलती और उसके Cयाह रचाया करती थी और िजसे अभी थोड़े आह, बहत ु ही थोड़े िदन गुजरे थे। मुंशी तोताराम अ+य एका+त-सेवी मनुंय की भांित िवषयी जीव थे। कुछ िदन तो वह िनम ला को सैर-तमाशे िदखाते रहे , लेिकन जब दे खा िक इसका कुछ फल नहीं होता, तो िफर एका+त-सेवन करने लगे। िदन-भर के किठन मािसक पिरौम के बाद उनका िच3 आमोद-ूमोद के िलए लालियत हो जाता, लेिकन जब अपनी िवनोद-वािटका म ूवेश करते और उसके फूल को मुरझाया, पौध को सूखा और Pयािरय से धूल उड़ती हई ु दे खते, तो उनका जी चाहता-Pय न इस वािटका को उजाड़ दं ?ू िनम ला उनसे Pय िवर} रहती है , इसका रहःय उनकी समझ म न आता था। द.पित शाn के सारे म+ऽ की परीaा कर चुके, पर मनोरथ प रू ा न हआ। अब Pया करना ु चािहये, यह उनकी समझ म न आता था। एक िदन वह इसी िचंता म बैठे हए ु थे िक उनके सहपाठी िमऽ नयनसुखराम आकर बैठ गये और सलाम-वलाम के बाद मुःकराकर बोलेआजकल तो खूब गहरी छनती होगी। नयी बीवी का आिलंगन करके जवानी का मजा आ जाता होगा? बड़े भा]यवान हो! भई Wठी हई ु जवानी को मनाने का इससे अ'छा कोई उपाय नहीं िक नया िववाह हो जाये। यहां तो िज+दगी बवाल हो रही है । पी जी इस बुरी तरह िचमटी हG िक िकसी तरह िप^ड ही नहीं छोड़ती। मG तो दसरी शादी की िफब म हंू । कहीं डौल हो, तो ठीक-ठाक ू कर दो। दःतूरी म एक िदन तु.ह उसके हाथ के बने हए ु पान िखला द गे। तोताराम ने ग.भीर भाव से कहा-कहीं ऐसी िहमाकत न कर बैठना, नहीं तो पछताओगे। लjिडयां तो लjड से ही खुश रहती हG । हम तुम अब उस काम के नहीं रहे । सच कहता हंू मG तो शादी करके पछता रहा हंू , बुरी बला गले पड़ी! सोचा था, दो-चार साल और िज+दगी का मजा उठा लूं, पर उलटी आंत गले पड़ीं।
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नयनसुख-तुम Pया बात करते हो। लौिडय को पंज म लाना Pया मुिँकल बात है , जरा सैर-तमाशे िदखा दो, उनके Wप-रं ग की तारीफ कर दो, बस, रं ग जम गया। तोता-यह सब कुछ कर-धरके हार गया। नयन-अ'छा, कुछ इऽ-तेल, फूल-प3े, चाट-वाट का भी मजा चखाया? तोता-अजी, यह सब कर चुका। द.पि3-शाn के सारे म+ऽ का इ.तहान ले चुका, सब कोरी गbपे हG । नयन-अ'छा, तो अब मेरी एक सलाह मानो, जरा अपनी सूरत बनवा लो। आजकल यहां एक िबजली के डॉPटर आये हए ु हG , जो बुढ़ापे के सारे िनशान िमटा दे ते हG । Pया मजाल िक चेहरे पर एक झुरया या िसर का बाल पका रह जाये। न जाने Pया जाद ू कर दे ते हG िक आदमी का चोला ही बदल जाता है । तोता-फीस Pया लेते हG ? नयन-फीस तो सुना है , शायद पांच सौ Wपये! तोता-अजी, कोई पाख^डी होगा, बेवकूफ को लूट रहा होगा। कोई रोगन लगाकर दो-चार िदन के िलए जरा चेहरा िचकना कर दे ता होगा। इँतहारी डॉPटर पर तो अपना िवSास ही नहीं। दस-पांच की बात होती, तो कहता, जरा िदXलगी ही सही। पांच सौ Wपये बड़ी रकम है । नयन-तु.हारे िलए पांच सौ Wपये कौन बड़ी बात है । एक महीने की आमदनी है । मेरे पास तो भाई पांच सौ Wपये होते, तो सबसे पहला काम यही करता। जवानी के एक घ^टे की कीमत पांच सौ Wपये से कहीं Mयादा है । तोता-अजी, कोई सःता नुःखा बताओ, कोई फकीरी जुड़ी-बूटी जो िक िबना हर -िफटकरी के रं ग चीखा हो जाये। िबजली और रे िडयम बड़े आदिमय के िलए रहने दो। उ+हीं को मुबारक हो। नयन-तो िफर रं गीलेप न का ःवांग रचो। यह ढीला-ढाला कोट फक, तंजेब की चुःत अचकन हो, चु+नटदार पाजामा, गले म सोने की जंजीर पड़ी हई ु , िसर पर जयप रु ी साफा बांधा हआ ु , आंख म सुरमा और बाल म िहना का तेल पड़ा हआ। तद का िपचकना भी जWरी है । दोहरा कमरब+द बांधे। ु जरा तकलीफ तो होगी, पार अचकन सज उठे गी। िखजाब मG ला दं ग ू ा। सौपचास गजल याद कर लो और मौके-मौके से शेर पढ़ी। बात म रस भरा हो। ऐसा मालूम हो िक तु.ह दीन और दिनया की कोई िफब नहीं है , बस, ु 41
जो कुछ है , िूयतमा ही है । जवांमद और साहस के काम करने का मौका ढंू ढते रहो। रात को झूठ-मूठ शोर करो-चोर-चोर और तलवार लेकर अकेले िपल पड़ो। हां, जरा मौका दे ख लेना, ऐसा न हो िक सचमुच कोई चोर आ जाये और तुम उसके पीछे दौड़ो, नहीं तो सारी कलई खुल जायेगी और मुoत के उXलू बनोगे। उस व} तो जवांमद इसी म है िक दम साधे खड़े रहो, िजससे वह समझे िक तु.ह खबर ही नहीं हई ु , लेिकन Mयही चोर भाग खड़ा हो, तुम भी उछलकर बाहर िनकलो और तलवार लेकर ‘कहां? कहां?’ कहते दौड़ो। Mयादा नहीं, एक महीना मेरी बात का इ.तहान करके दे ख। अगर वह तु.हारी दम न भरने लगे, तो जो जुमा ना कहो, वह दं ।ू तोताराम ने उस व} तो यह बात हं सी म उड़ा दीं, जैसा िक एक 4यवहार कुशल मनुंय को करना चिहए था, लेिकन इसम की कुछ बात उसके मन म बैठ गयी। उनका असर पड़ने म कोई संदेह न था। धीरे -धीरे रं ग बदलने लगे, िजसम लोग खटक न जाय। पहले बाल से शुW िकया, िफर सुरमे की बारी आयी, यहां तक िक एक-दो महीने म उनका कलेवर ही बदल गया। गजल याद करने का ूःताव तो हाःयाःपद था, लेिकन वीरता की डींग मारने म कोई हािन न थी। उस िदन से वह रोज अपनी जवांमद का कोई-न-कोई ूसंग अवँय छे ड़ दे ते। िनम ला को स+दे ह होने लगा िक कहीं इ+ह उ+माद का रोग तो नहीं हो रहा है । जो आदमी मूग ं की दाल और मोटे आटे के दो फुलके खाकर भी नमक सुलेमानी का मुहताज हो, उसके छै लेप न पर उ+माद का स+दे ह हो, तो आdय ही Pया? िनम ला पर इस पागलपन का और Pया रं ग जमता? ह उसे उन पार दया आजे लगी। बोध और घृणा का भाव जाता रहा। बोध और घृणा उन पर होती है , जो अपने होश म हो, पागल आदमी तो दया ही का पाऽ है । वह बात-बात म उनकी चुटिकयां लेती, उनका मजाक उड़ाती, जैसे लोग पागल के साथ िकया करते हG । हां, इसका \यान रखती थी िक वह समझ न जाय। वह सोचती, बेचारा अपने पाप का ूायिdत कर रहा है । यह सारा ःवांग केवल इसिलए तो है िक मG अपना द:ु ख भूल जाऊं।
आिखर
अब भा]य तो बदल सकता नहीं, इस बेचारे को Pय जलाऊं? एक िदन रात को नौ बजे तोताराम बांके बने हए ु सैर करके लौटे और िनम ला से बोले-आज तीन चोर से सामना हो गया। जरा िशवप रु की तरफ चला गया था। अंधेरा था ही। Mयही रे ल की सड़क के पास पहंु चा, तो तीन 42
आदमी तलवार िलए हए ु न जाने िकधर से िनकल पड़े । यकीन मानो, तीन काले दे व थे। मG िबXकुल अकेला, पास म िसफ यह छड़ी थी। उधर तीन तलवार बांधे हए ु , होश उड़ गये। समझ गया िक िज+दगी का यहीं तक साथ था, मगर मGने भी सोचा, मरता ही हंू , तो वीर की मौत Pय न मं । इतने म एक आदमी ने ललकार कर कहा-रख दे तेरे पास जो कुछ हो और चुप के से चला जा। मG छड़ी संभालकर खड़ा हो गया और बोला-मेरे पास तो िसफ यह छड़ी है और इसका मूXय एक आदमी का िसर है । मेरे मुंह से इतना िनकलना था िक तीन तलवार खींचकर मुझ पर झपट पड़े और मG उनके वार को छड़ी पर रोकने लगा। तीन झXलाझXलाकर वार करते थे, खटाके की आवाज होती थी और मG िबजली की तरह झपटकर उनके तार को काट दे ता था। कोई दस िमनट तक तीन ने खूब तलवार के जौहर िदखाये, पर मुझ पर रे फ तक न आयी। मजबूरी यही थी िक मेरे हाथ म तलवार न थी। यिद कहीं तलवार होती, तो एक को जीता न छोड़ता। खैर, कहां तक बयान कं । उस व} मेरे हाथ की सफाई दे खने कािबल थी। मुझे खुद आdय हो रहा था िक यह चपलता मुझम कहां से आ गयी। जब तीन ने दे खा िक यहां दाल नहीं गलने की, तो तलवार .यान म रख ली और पीठ ठोककर बोले-जवान, तुम-सा वीर आज तक नहीं दे खा। हम तीन तीन सौ पर भारी गांव-के-गांव ढोल बजाकर लूटते हG , पर आज तुमने हम नीचा िदखा िदया। हम तु.हारा लोहा मान गए। यह कहकर तीन िफर नजर से गायब हो गए। िनम ला ने ग.भीर भाव से मुःकराकर कहा-इस छड़ी पर तो तलवार के बहत ु से िनशान बने हए ु हगे? मुंशीजी इस शंका के िलए तैयार न थे, पर कोई जवाब दे ना आवँयक था, बोले-मG वार को बराबर खाली कर दे ता। दो-चार चोट छड़ी पर पड़ीं भी, तो उचटती हई ु , िजनसे कोई िनशान नहीं पड़ सकता था। अभी उनके मुंह से प रू ी बात भी न िनकली थी िक सहसा िPमणी दे वी बदहवास दौड़ती हई ु आयीं और हांफते हए ु बोलीं-तोता है िक नहीं? मेरे कमरे म सांप िनकल आया है । मेरी चारपाई के नीचे बैठा हआ है । मG उठकर ु भागी। मुआ कोई दो गज का होगा। फन िनकाले फुफकार रहा है , जरा चलो तो। डं ड ा लेते चलना। 43
तोताराम के चेहरे का रं ग उड़ गया, मुंह पर हवाइयां छुटने लगीं, मगर मन के भाव को िछपाकर बोले-सांप यहां कहां? तु.ह धोखा हआ होगा। कोई ु रःसी होगी। िPमणी-अरे , मGने अपनी आंख दे खा है । जरा चलकर दे ख लो न। हG , हG । मद होकर डरते हो? मुंशीजी घर से तो िनकले, लेिकन बरामदे म िफर िठठक गये। उनके पांव ही न उठते थे कलेजा धड़-धड़ कर रहा था। सांप बड़ा बोधी जानवर है । कहीं काट ले तो मुoत म ूाण से हाथ धोना पड़े । बोले-डरता नहीं हंू । सांप ही तो है , शेर तो नहीं, मगर सांप पर लाठी नहीं असर करती, जाकर िकसी को भेजं,ू िकसी के घर से भाला लाये। यह कहकर मुंशीजी लपके हए ु बाहर चले गये। मंसाराम बैठा खाना खा रहा था। मुंशीजी तो बाहर चले गये, इधर वह खाना छोड़, अपनी हॉकी का डं ड ा हाथ म ले, कमरे म घुस ही तो पड़ा और तुरंत चारपाई खींच ली। सांप मःत था, भागने के बदले फन िनकालकर खड़ा हो गया। मंसाराम ने चटपट चारपाई की चादर उठाकर सांप के ऊपर फक दी और ताबड़तोड़ तीन-चार डं डे कसकर जमाये। सांप चादर के अंदर तड़प कर रह गया। तब उसे डं डे पर उठाये हए ु बाहर चला। मुंशीजी कई आदिमय को साथ िलये चले आ रहे थे। मंसाराम को सांप लटकाये आते दे खा, तो सहसा उनके मुंह से चीख िनकल पड़ी, मगर िफर संभल गये और बोले-मG तो आ ही रहा था, तुमने Pय जXदी की? दे दो, कोई फक आए। यह कहकर बहादरी ु के साथ िPमणी के कमरे के Kार पर जाकर खड़े हो गये और कमरे को खूब दे खभाल कर मूंछ पर ताव दे ते हए ु िनम ला के पास जाकर बोले-मG जब तक आऊं-जाऊं, मंसाराम ने मार डाला। बेसमझ ् लड़का डं ड ा लेकर दौड़ पड़ा। सांप हमेशा भाले से मारना चािहए। यही तो लड़क म ऐब है । मGने ऐसे-ऐसे िकतने सांप मारे हG । सांप को िखला-िखलाकर मारता हंू । िकतन ही को मुeठी से पकड़कर मसल िदया है । िPमणी ने कहा-जाओ भी, दे ख ली तु.हारी मदा नगी। मुंशीजी झप कर बोले-अ'छा जाओ, मG डरपोक ही सही, तुमसे कुछ इनाम तो नहीं मांग रहा हंू । जाकर महाराज से कहा, खाना िनकाले। मुंशीजी तो भोजन करने गये और िनम ला Kार की चौखट पर खड़ी सोच रही थी-भगवान।् Pया इ+ह सचमुच कोई भीषण रोग हो रहा है ? Pया 44
मेरी दशा को और भी दाण बनाना चाहते हो? मG इनकी सेवा कर सकती हंू , स.मान कर सकी हंू , अपना जीवन इनके चरण पर अप ण
कर सकती हंू , लेिकन वह नहीं कर सकती, जो मेरे िकये नहीं हो सकता। अवःथा का भेद िमटाना मेरे वश की बात नहीं । आिखर यह मुझसे Pया चाहते हG -समझ ् गयी। आह यह बात पहले ही नहीं समझी थी, नहीं तो इनको Pय इतनी तपःया करनी पड़ती Pय इतने ःवांग भरने पड़ते। सात
उ
स िदन से िनम ला का रं ग-ढं ग बदलने लगा। उसने अपने को क3 4य पर िमटा दे ने का िनdय कर िदया। अब तक नैराँय के संताप म
उसने क3 4य पर \यान ही न िदया था उसके Vदय म िवbलव की Mवाला-सी दहकती रहती थी, िजसकी अस वेदना ने उसे संTाहीन-सा कर रखा था। अब उस वेदना का वेग शांत होने लगा। उसे Tात हआ िक मेरे िलए जीवन ु का कोई आंनद नहीं। उसका ःवbन दे खकर Pय इस जीवन को नm कं । संसार म सब-के-सब ूाणी सुख-सेज ही पर तो नहीं सोते। मG भी उ+हीं अभाग म से हंू । मुझे भी िवधाता ने दख ु की गठरी ढोने के िलए चुना है । वह बोझ िसर से उतर नहीं सकता। उसे फकना भी चाहंू , तो नहीं फक ू सकती। उस किठन भार से चाहे आंख म अंधेरा छा जाये, चाहे गद न टटने लगे, चाहे प रै उठाना दःतर हो जाये, लेिकन वह गठरी ढोनी ही पड़े गी ? उॆ ु भर का कैदी कहां तक रोयेगा? रोये भी तो कौन दे खता है ? िकसे उस पर दया आती है ? रोने से काम म हज होने के कारण उसे और यातनाएं ही तो सहनी पड़ती हG । दसरे िदन वकील साहब कचहरी से आये तो दे खा-िनम ला की सहाःय ू मूित अपने कमरे के Kार पर खड़ी है । वह अिन+q छिव दे खकर उनकी आंख तृr हा गयीं। आज बहत िदखलाई ु िदन के बाद उ+ह यह कमल िखला हआ ु िदया। कमरे म एक बड़ा-सा आईना दीवार म लटका हआ था। उस पर एक ु परदा पड़ा रहता था। आज उसका परदा उठा हआ था। वकील साहब ने कमरे ु म कदम रखा, तो शीशे पर िनगाह पड़ी। अपनी सूरत साफ-साफ िदखाई दी। उनके Vदय म चोट-सी लग गयी। िदन भर के पिरौम से मुख की कांित मिलन हो गयी थी, भांित-भांित के पौिmक पदाथ खाने पर भी गाल की 45
झुिर यां साफ िदखाई दे रही थीं। तद कसी होने पर भी िकसी मुंहजोर घोड़े की भांित बाहर िनकली हई ओर ू ु थी। आईने के ही सामने िक+तू दसरी ताकती हई ु िनम ला भी खड़ी हई ु थी। दोन सूरत म िकतना अंतर था। एक ू -फूटा खंड हर। वह उस आईने की ओर न र जिटत िवशाल भवन, दसरा टटा ू दे ख सके। अपनी यह हीनावःथा उनके िलए अस थी। वह आईने के सामने से हट गये, उ+ह अपनी ही सूरत से घृणा होने लगी। िफर इस Wपवती कािमनी का उनसे घृणा करना कोई आdय की बात न थी। िनम ला की ओर ताकने का भी उ+ह साहस न हआ। उसकी यह अनुप म छिव उनके Vदय का ु शूल बन गयी। िनम ला ने कहा-आज इतनी दे र कहां लगायी? िदन भर राह दे खतेदे खते आंखे फूट जाती हG । तोताराम ने िखड़की की ओर ताकते हए ु जवाब िदया-मुकदम के मारे दम मारने की छुeटी नहीं िमलती। अभी एक मुकदमा और था, लेिकन मG िसरदद का बहाना करके भाग खड़ा हआ। ु िनम ला-तो Pय इतने मुकदमे लेते हो? काम उतना ही करना चािहए िजतना आराम से हो सके। ूाण दे कर थोड़े ही काम िकया जाता है । मत िलया करो, बहत ु मुकदमे। मुझे पय का लालच नहीं। तुम आराम से रहोगे, तो पये बहत ु िमलगे। तोताराम-भई, आती हई ु लआमी भी तो नहीं ठु कराई जाती। िनम ला-लआमी अगर र} और मांस की भट लेकर आती है , तो उसका न आना ही अ'छा। मG धन की भूखी नहीं हंू । इस व} मंसाराम भी ःकूल से लौटा। धूप म चलने के कारण मुख पर पसीने की बूंदे आयी हई ु थीं, गोरे मुखड़े पर खून की लाली दौड़ रही थी, आंख से Mयोित-सी िनकलती मालूम होती थी। Kार पर खड़ा होकर बोलाअ.मां जी, लाइए, कुछ खाने का िनकािलए, जरा खेलने जाना है । िनम ला जाकर िगलास म पानी लाई और एक तँतरी म कुछ मेवे रखकर मंसाराम को िदए। मंसाराम जब खाकर चलने लगा, तो िनम ला ने पछ ू ा-कब तक आओगे? मंसाराम-कह नहीं सकता, गोर के साथ हॉकी का मैच है । बारक यहां से बहत ु दरू है । 46
िनम ला-भई, जXद आना। खाना ठ^डा हो जायेगा, तो कहोगे मुझे भूख नहीं है । मंसाराम ने िनम ला की ओर सरल ःनेह भाव से दे खकर कहा-मुझे दे र हो जाये तो समझ लीिजएगा, वहीं खा रहा हंू । मेरे िलए बैठने की जरत नहीं। वह चला गया, तो िनम ला बोली-पहले तो घर म आते ही न थे, मुझसे बोलते शमा ते थे। िकसी चीज की जरत होती, तो बाहर से ही मंगवा भेजते। जब से मGन बुलाकर कहा, तब से आने लगे हG । तोताराम ने कुछ िचढ़कर कहा-यह तु.हारे पास खाने-पीने की चीज मांगने Pय आता है ? दीदी से Pय नही कहता? िनम ला ने यह बात ूशंसा पाने के लोभ से कही थी। वह यह िदखाना चाहती थी िक मG तु.हारे लड़क को िकतना चाहती हंू । यह कोई बनावटी ूेम न था। उसे लड़क से सचमुच ःनेह था। उसके चिरऽ म अभी तक बाल-भाव ही ूधान था, उसम वही उRसुकता, वही चंचलता, वही िवनोदिूयता िवqमान थी और बालक के साथ उसकी ये बालवृि3यां ूःफुिटत होती थीं। पीसुलभ ईंया अभी तक उसके मन म उदय नहीं हई ु थी, लेिकन पित के ूस+न होने के बदले नाक-भj िसकोड़ने का आशय न समकर बोली-मG Pया नहीं दे ती। अगर जानू,ं उनसे Pय नहीं मांगते? मेरे पास आते हG , तो दRकार ु ऐसा कं , तो यही होगा िक यह लड़क को दे खकर जलती है । मुंशीजी
ने
इसका
कुछ
जवाब
न
िदया, लेिकन
आज
उ+हने
मुविPकल से बात नहीं कीं, सीधे मंसाराम के पास गये और उसका इ.तहान लेने लगे। यह जीवन म पहला ही अवसर था िक इ+हने मंसाराम या िकसी लड़के की िशaो+नित के िवषय म इतनी िदलचःपी िदखायी हो। उ+ह अपने काम से िसर उठाने की फुरसत ही न िमलती थी। उ+ह इन िवषय को पढ़े हए ु चालीस वष के लगभग हो गये थे। तब से उनकी ओर आंख तक न उठायी थी। वह कानूनी प ः ु तक और पऽ के िसवा और कुछ पड़ते ही न थे। इसका समय ही न िमलता, पर आज उ+हीं िवषय म मंसाराम की परीaा लेने लगे। मंसाराम जहीन था और इसके साथ ही मेहनती भी था। खेल म भी टीम का कैbटन होने पर भी वह Pलास म ूथम रहता था। िजस पाठ को एक बार दे ख लेता, पRथर की लकीर हो जाती थी। मुंशीजी को उतावली म ऐसे मािम क ू तो सूझे नहीं, िजनके उ3र दे ने म चतुर लड़के को भी 47
कुछ सोचना पड़ता और ऊपरी ू को मंसाराम से चुटिकय म उड़ा िदया। कोई िसपाही अपने शऽु पर वार खाली जाते दे खकर जैसे झXला-झXलाकर और भी तेजी से वार करता है , उसी भांित मंसाराम के जवाब को सुनसुनकर वकील साहब भी झXलाते थे। वह कोई ऐसा ू करना चाहते थे, िजसका जवाब मंसाराम से न बन पड़े । दे खना चाहते थे िक इसका कमजोर पहलू कहां है । यह दे खकर अब उ+ह संतोष न हो सकता था िक वह Pया करता है । वह यह दे खना चाहते थे िक यह Pया नहीं कर सकता। कोई अयःत परीaक मंसाराम की कमजोिरय को आसानी से िदखा दे ता, पर वकील साहब अपनी आधी शताCदी की भूली हई ु िशaा के आधार पर इतने सफल कैसे होते? अंत म उ+ह अपना गुःसा उतारने के िलए कोई बहाना न िमला तो बोले-मG दे खता हंू , तुम सारे िदन इधर-उधर मटरगँती िकया करते हो, मG तु.हारे चिरऽ को तु.हारी बुिi से बढ़कर समझता हंू और तु.हारा य आवारा घूमना मुझे कभी गवारा नहीं हो सकता। मंसाराम ने िनभhकता से कहा-मG शाम को एक घ^टा खेलने के िलए जाने के िसवा िदन भर कहीं नहीं जाता। आप अ.मां या बुआजी से प छ ू ल। मुझे खुद इस तरह घूमना पसंद नहीं। हां, खेलने के िलए हे ड माःटर साहब से आमह करके बुलाते हG , तो मजबूरन जाना पड़ता है । अगर आपको मेरा खेलने जाना पसंद नहीं है , तो कल से न जाऊंगा। मुंशीजी ने दे खा िक बात दसरी ही ख पर जा रही हG , तो तीो ःवर म ू बोले-मुझे इस बात का इतमीनान Pयकर हो िक खेलने के िसवा कहीं नहीं घूमने जाते? मG बराबर िशकायत सुनता हंू । मंसाराम ने उ3ेिजत होकर कहा-िकन महाशय ने आपसे यह िशकायत की है , जरा मG भी तो सुनं?ू वकील-कोई हो, इससे तुमसे कोई मतलब नहीं। तु.ह इतना िवSास होना चािहए िक मG झूठा आaेप नहीं करता। मंसाराम-अगर मेरे सामने कोई आकर कह दे िक मGने इ+ह कहीं घूमते दे खा है , तो मुंह न िदखाऊं। वकील-िकसी को ऐसी Pया गरज पड़ी है िक तु.हारी मुंह पर तु.हारी िशकायत करे और तुमसे बैर मोल ले? तुम अपने दो-चार सािथय को लेकर उसके घर की खपरै ल फोड़ते िफरो। मुझसे इस िकःम की िशकायत एक आदमी ने नहीं, कई आदिमय ने की है और कोई वजह नहीं है िक मG अपने 48
दोःत की बात पर िवSास न कं । मG चाहता हंू िक तुम ःकूल ही म रहा करो। मंसाराम ने मुंह िगराकर कहा-मुझे वहां रहने म कोई आपि3 नहीं है , जब से किहये, चला जाऊं। वकील- तुमने मुंह Pय लटका िलया? Pया वहां रहना अ'छा नहीं लगता? ऐसा मालूम होता है , मान वहां जाने के भय से तु.हारी नानी मरी जा रही है । आिखर बात Pया है , वहां तु.ह Pया तकलीफ होगी? मंसाराम छाऽालय म रहने के िलए उRसुक नहीं था, लेिकन जब मुंशीजी ने यही बात कह दी और इसका कारण प छ ू ा, सो वह अपनी झप िमटाने के िलए ूस+निच3 होकर बोला-मुंह Pय लटकाऊं? मेरे िलए जैसे बोिड ग हाउस। तकलीफ भी कोई नहीं, और हो भी तो उसे सह सकता हंू । मG कल से चला जाऊंगा। हां अगर जगह न खाली हई ु तो मजबूरी है । मुंशीजी वकील थे। समझ गये िक यह लjडा कोई ऐसा बहाना ढंू ढ रहा है , िजसम मुझे वहां जाना भी न पड़े और कोई इXजाम भी िसर पर न आये। बोले-सब लड़क के िलए जगह है , तु.हारे ही िलये जगह न होगी? मंसाराम- िकतने ही लड़क को जगह नहीं िमली और वे बाहर िकराये के मकान म पड़े हए ु हG । अभी बोिड ग हाउस म एक लड़के का नाम कट गया था, तो पचास अिज यां उस जगह के िलए आयी थीं। वकील साहब ने Mयादा तक -िवतक करना उिचत नहीं समझा। मंसाराम को कल तैयार रहने की आTा दे कर अपनी ब]घी तैयार करायी और सैर करने चल गये। इधर कुछ िदन से वह शाम को ूाय: सैर करने चले जाया करते थे। िकसी अनुभवी ूाणी ने बतलाया था िक दीघ जीवन के िलए इससे बढ़कर कोई मंऽ नहीं है । उनके जाने के बाद मंसाराम आकर िPमणी से बोला बुआजी, बाबूजी ने मुझे कल से ःकूल म रहने को कहा है । िPमणी ने िविःमत होकर प छ ू ा-Pय? मंसाराम-मG Pया जानू? कहने लगे िक तुम यहां आवार की तरह इधर-उधर िफरा करते हो। िPमणी-तूने कहा नहीं िक मG कहीं नहीं जाता। मंसाराम-कहा Pय नहीं, मगर वह जब मान भी। िPमणी-तु.हारी नयी अ.मा जी की कृ पा होगी और Pया? 49
मंसाराम-नहीं, बुआजी, मुझे उन पर संदेह नहीं है , वह बेचारी भूल से कभी कुछ नहीं कहतीं। कोई चीज़ मांगने जाता हंू , तो तुर+त उठाकर दे दे ती हG । िPमणी-तू यह िऽया-चिरऽ Pया जाने, यह उ+हीं की लगाई हई ु आग ू ती हंू । है । दे ख, मG जाकर प छ िPमणी झXलाई हई ु िनम ला के पास जा पहंु ची। उसे आड़े हाथ लेने का, कांट म घसीटने का, तान से छे दने का, लाने का सुअवसर वह हाथ से न जाने दे ती थी। िनम ला उनका आदर करती थी, उनसे दबती थी, उनकी बात का जवाब तक न दे ती थी। वह चाहती थी िक यह िसखावन की बात कह , जहां मG भूलंू वहां सुधार , सब काम की दे ख-रे ख करती रह , पर िPमणी उससे तनी ही रहती थी। िनम ला चारपाई से उठकर बोली-आइए दीदी, बैिठए। िPमणी ने खड़े -खड़े कहा-मG प छ ू ती हंू Pया तुम सबको घर से िनकालकर अकेले ही रहना चाहती हो? िनम ला ने कातर भाव से कहा-Pया हआ दीदी जी? मGने तो िकसी से ु कुछ नहीं कहा। िPमणी-मंसाराम को घर से िनकाले दे ती हो, ितस पर कहती हो, मGने तो िकसी से कुछ नहीं कहा। Pया तुमसे इतना भी दे खा नहीं जाता? िनम ला-दीदी जी, तु.हारे चरण को छूकर कहती हंू , मुझे कुछ नहीं मालूम। मेरी आंखे फूट जाय, अगर उसके िवषय म मुंह तक खोला हो। िPमणी-Pय 4यथ कसम खाती हो। अब तक तोताराम कभी लड़के से नहीं बोलते थे। एक हoते के िलए मंसाराम निनहाल चला गया था, तो इतने घबराए िक खुद जाकर िलवा लाए। अब इसी मंसाराम को घर से िनकालकर ःकूल म रखे दे ते हG । अगर लड़के का बाल भी बांका हआ ु , तो तुम जानोगी। वह कभी बाहर नहीं रहा, उसे न खाने की सुध रहती है , न पहनने की-जहां बैठता, वहीं सो जाता है । कहने को तो जवान हो गया, पर ःवभाव बालक-सा है । ःकूल म उसकी मरन हो जायेगी। वहां िकसे िफब है िक इसने खोया या नहीं, कहां कपड़े उतारे , कहां सो रहा है । जब घर म कोई पछ ू ने वाला नहीं, तो बाहर कौन प छ ू े गा मGने तु.ह चेता िदया, आगे तुम जानो, तु.हारा काम जाने। यह कहकर िPमणी वहां से चली गयी। 50
वकील साहब सैर करके लौटे , तो िनम ला न तुरंत यह िवषय छे ड़ िदया-मंसाराम से वह आजकल थोड़ी अंमेजी पढ़ती थी। उसके चले जाने पर िफर उसके पढ़ने का हरज न होगा? दसरा कौन पढ़ायेगा? वकील साहब को ू अब तक यह बात न मालूम थी। िनम ला ने सोचा था िक जब कुछ अयास हो जायेगा, तो वकील साहब को एक िदन अंमेजी म बात करके चिकत कर दं ग ू ी। कुछ थोड़ा-सा Tान तो उसे अपने भाइय से ही हो गया था। अब वह िनयिमत Wप से पढ़ रही थी। वकील साहब की छाती पर सांप -सा लोट गया, Rयोिरयां बदलकर बोले-वे कब से पढ़ा रहा है , तु.ह । मुझसे तुमने कभी नही कहा। िनम ला ने उनका यह Wप केवल एक बार दे खा था, जब उ+होने िसयाराम को मारते-मारते बेदम कर िदया था। वही Wप और भी िवकराल बनकर आज उसे िफर िदखाई िदया। सहमती हई ु बोली-उनके पढ़ने म तो इससे कोई हरज नहीं होता, मG उसी व} उनसे पढ़ती हंू जब उ+ह फुरसत रहती है । प छ ू लेती हंू िक तु.हारा हरज होता हो, तो जाओ। बहधा जब वह ु खेलने जाने लगते हG , तो दस िमनट के िलए रोक लेती हंू । मG खुद चाहती हंू िक उनका नुकसान न हो। बात कुछ न थी, मगर वकील साहब हताश से होकर चारपाई पर िगर पड़े और माथे पर हाथ रखकर िचंता म म]न हो गये। उ+हनं िजतना समझा था, बात उससे कहीं अिधक बढ़ गयी थी। उ+ह अपने ऊपर बोध आया िक मGने पहले ही Pय न इस लjडे को बाहर रखने का ूबंध िकया। आजकल जो यह महारानी इतनी खुश िदखाई दे ती हG , इसका रहःय अब समझ म आया। पहले कभी कमरा इतना सजा-सजाया न रहता था, बनावचुनाव भी न करती थीं, पर अब दे खता हंू कायापलट-सी हो गयी है । जी म तो आया िक इसी व} चलकर मंसाराम को िनकाल द , लेिकन ूौढ़ बुिi ने समझाया िक इस अवसर पर बोध की जWरत नहीं। कहीं इसने भांप िलया, तो गजब ही हो जायेगा। हां, जरा इसके मनोभाव को टटोलना चािहए। बोलेयह तो मG जानता हंू िक तु.ह दो-चार िमनट पढ़ाने से उसका हरज नहीं होता, लेिकन आवारा लड़का है , अपना काम न करने का उसे एक बहाना तो िमल जाता है । कल अगर फेल हो गया, तो साफ कह दे गा-मG तो िदन भर पढ़ाता रहता था। मG तु.हारे िलए कोई िमस नौकर रख दं ग ू ा। कुछ Mयादा खच न होगा। तुमने मुझसे पहले कहा ही नहीं। यह तु.ह भला Pया पढ़ाता 51
होगा, दो-चार शCद बताकर भाग जाता होगा। इस तरह तो तु.ह कुछ भी न आयेगा। िनम ला ने तुर+त इस आaेप का ख^डन िकया-नहीं, यह बात तो नहीं। वह मुझे िदल लगा कर पढ़ाते हG और उनकी शैली भी कुछ ऐसी है िक पढ़ने म मन लगता है । आप एक िदन जरा उनका समझाना दे िखए। मG तो समझती हंू िक िमस इतने \यान से न पढ़ायेगी। मुंशीजी अपनी ू-कुशलता पर मूछ ं पर ताव दे ते हए ु बोले-िदन म एक ही बार पढ़ाता है या कई बार? िनम ला अब भी इन ू का आशय न समझी। बोली-पहले तो शाम ही को पढ़ा दे ते थे, अब कई िदन से एक बार आकर िलखना भी दे ख लेते हG । वह तो कहते हG िक मG अपने Pलास म सबसे अ'छा हंू । अभी परीaा म इ+हीं को ूथम ःथान िमला था, िफर आप कैसे समझते हG िक उनका पढ़ने म जी नहीं लगता? मG इसिलए और भी कहती हंू िक दीदी समझगी, इसी ने यह आग लगाई है । मुoत म मुझे ताने सुनने पड़ गे। अभी जरा ही दे र हई ु , धमकाकर गयी हG । मुंशीजी ने िदल म कहा-खूब समझता हंू । तुम कल की छोकरी होकर मुझे चराने चलीं। दीदी का सहारा लेकर अपना मतलब प रू ा करना चाहती हG । बोले-मG नहीं समझता, बोिड ग का नाम सुनकर Pय लjडे की नानी मरती है । और लड़के खुश होते हG िक अब अपने दोःत म रह गे, यह उलटे रो रहा है । अभी कुछ िदन पहले तक यह िदल लगाकर पढ़ता था, यह उसी मेहनत का नतीजा है िक अपने Pलास म सबसे अ'छा है , लेिकन इधर कुछ िदन से इसे सैर-सपाटे का चःका पड़ चला है । अगर अभी से रोकथाम न की गयी, तो पीछे करते-धरते न बन पड़े गा। तु.हारे िलए मG एक िमस रख दं ग ू ा। दसरे ू
िदन मुंशीजी ूात:काल कपड़े -ल3े पहनकर बाहर िनकले।
दीवानखाने म कई मुविPकल बैठे हए ु थे। इनम एक राजा साहब भी थे, िजनसे मुंशीजी को कई हजार सालाना मेहनताना िमलता था, मगर मुंशीजी उ+ह वहीं बैठे छोड़ दस िमनट म आने का वादा करके ब]घी पर बैठकर ःकूल के हे ड माःटर के यहां जा पहंु चे। हे ड माःटर साहब बड़े सMजन प ु ष थे। वकील साहब का बहत ु आदर-सRकार िकया, पर उनके यहा एक लड़के की भी जगह खाली न थी। सभी कमरे भरे हए ु थे। इं ःपेPटर साहब की कड़ी ताकीद थी िक मुफिःसल के लड़क को जगह दे कर तब शहर के लड़क को िदया 52
जाये। इसीिलए यिद कोई जगह खाली भी हई ु , तो भी मंसाराम को जगह न िमल सकेगी, Pयिक िकतने ही बाहरी लड़क के ूाथ ना-पऽ रखे हए ु थे। मुंशीजी वकील थे, रात िदन ऐसे ूािणय से सािबका रहता था, जो लोभवश असंभव का भी संभव, असा\य को भी सा\य बना सकते हG । समझे शायद कुछ दे -िदलाकर काम िनकल जाये, दoतर Pलक से ढं ग की कुछ बातचीत करनी चािहए, पर उसने हं सकर कहा- मुश ं ीजी यह कचहरी नहीं, ःकूल है , है ड माःटर साहब के कान म इसकी भनक भी पड़ गयी, तो जामे से बाहर हो जायगे और मंसाराम को खड़े -खड़े िनकाल द गे। संभव है , अफसर से िशकायत कर द । बेचारे मुंशीजी अपना-सा मुंह लेकर रह गये। दस बजतेबजते झुंझलाये हए ु घर लौटे । मंसाराम उसी व} घर से ःकूल जाने को िनकला मुंशीजी ने कठोर नेऽ से उसे दे खा, मानो वह उनका शऽु हो और घर म चले गये। इसके बाद दस-बारह िदन तक वकील साहब का यही िनयम रहा िक कभी सुबह कभी शाम, िकसी-न-िकसी ःकूल के हे ड माःटर से िमलते और मंसाराम को बोिड ग हाउस म दािखल करने कल चेmा करते, पर िकसी ःकूल म जगह न थी। सभी जगह से कोरा जवाब िमल गया। अब दो ही उपाय थे-या तो मंसाराम को अलग िकराये के मकान म रख िदया जाये या िकसी दसरे ःकूल म भतh करा िदया जाये। ये दोन बात आसान थीं। मुफिःसल ू के ःकूल म जगह अPसर खाली रहे ती थी, लेिकन अब मुंशीजी का शंिकत Vदय कुछ शांत हो गया था। उस िदन से उ+हने मंसाराम को कभी घर म जाते न दे खा। यहां तक िक अब वह खेलने भी न जाता था। ःकूल जाने के पहले और आने के बाद, बराबर अपने कमरे म बैठा रहता। गमh के िदन थे, खुले हए ु मैदान म भी दे ह से पसीने की धार िनकलती थीं, लेिकन मंसाराम अपने कमरे से बाहर न िनकलता। उसका आRमािभमान आवारापन के आaेप से मु} होने के िलए िवकल हो रहा था। वह अपने आचरण से इस कलंक को िमटा दे ना चाहता था। एक िदन मुंशीजी बैठे भोजन कर रहे थे, िक मंसाराम भी नहाकर खाने आया, मुंशीजी ने इधर उसे महीन से नंगे बदन न दे खा था। आज उस पर िनगाह पड़ी, तो होश उड़ गये। हिडय का ढांचा सामने खड़ा था। मुख पर अब भी ॄ॑ाचय का तेज था, पर दे ह घुलकर कांटा हो गयी थी। प छ ू ाआजकल तु.हारी तबीयत अ'छी नहीं है , Pया? इतने दब
ु ल Pय हो? 53
मंसाराम ने धोती ओढ़कर कहा-तबीयत तो िबXकुल अ'छी है । मुंशीजी-िफर इतने दब
ु ल Pय हो? मंसाराम- दब
ु ल तो नहीं हंू । मG इससे Mयादा मोटा कब था? मुंशीजी-वाह, आधी दे ह भी नहीं रही और कहते हो, मG दब
ु ल नहीं हंू ? Pय दीदी, यह ऐसा ही था? िPमणी आंगन म खड़ी तुलसी को जल चढ़ा रही थी, बोली-दबला ु Pय होगा, अब तो बहत ु अ'छी तरह लालन-पालन हो रहा है । मG गंवािरन थी, लडक को िखलाना-िपलाना नहीं जानती थी। खोमचा िखला-िखलाकर इनकी आदत िबगाड़ दे ते थी। अब तो एक पढ़ी-िलखी, गृहःथी के काम म चतुर औरत पान की तरह फेर रही है न। दबला हो उसका दँमन। ु ु मुंशीजी-दीदी, तुम बड़ा अ+याय करती हो। तुमसे िकसने कहा िक लड़क को िबगाड़ रही हो। जो काम दसर के िकये न हो सके, वह तु.ह खुद ू करने चािहए। यह नहीं िक घर से कोई नाता न रखो। जो अभी खुद लड़की है , वह लड़क की दे ख-रे ख Pया करे गी? यह तु.हारा काम है । िPमणी-जब तक अपना समझती थी, करती थी। जब तुमने गैर समझ िलया, तो मुझे Pया पड़ी है िक मG तु.हारे गले से िचपटंू ? प छ ू ो, कै िदन से दध ू नहीं िपया? जाके कमरे म दे ख आओ, नाँते के िलए जो िमठाई भेजी गयी थी, वह पड़ी सड़ रही है । मालिकन समझती हG , मGने तो खाने का सामान रख िदया, कोई न खाये तो Pया मG मुंह म डाल दं ?ू तो भैया, इस तरह वे लड़के पलते हगे, िज+हने कभी लाड़-bयार का सुख नहीं दे खा। तु.हारे लड़के बराबर पान की तरह फेरे जाते रहे हG , अब अनाथ की तरह रहकर सुखी नहीं रह सकते। मG तो बात साफ कहती हंू । बुरा मानकर ही कोई Pया कर लेगा? उस पर सुनती हंू िक लड़के को ःकूल म रखने का ूबंध कर रहे हो। बेचारे को घर म आने तक की मनाही है । मेरे पास आते भी डरता है , और िफर मेरे पास रखा ही Pया रहता है , जो जाकर िखलाऊंगी। इतने म मंसाराम दो फुलके खाकर उठ खड़ा हआ। मुंशीजी ने प छ ू ाु Pया दो ही फुलके तो िलये थे। अभी बैठे एक िमनट से Mयादा नहीं हआ। ु तुमने खाया Pया, दो ही फुलके तो िलये थे। मंसाराम ने सकुचाते हए ु कहा-दाल और तरकारी भी तो थी। Mयादा खा जाता हंू , तो गला जलने लगता है , खeटी डकार आने लगतीं हG । 54
मुंशीजी भोजन करके उठे तो बहत ु ु िचंितत थे। अगर य ही दबला होता गया, तो उसे कोई भंयकर रोग पकड़ लेगा। उ+ह िPमणी पर इस समय बहत ु बोध आ रहा था। उ+ह यही जलन है िक मG घर की मालिकन नहीं हंू । यह नहीं समझतीं िक मुझे घर की मालिकन बनने का Pया अिधकार है ? िजसे पया का िहसाब तक नहीं अता, वह घर की ःवािमनी कैसे हो सकती है ? बनीं तो थीं साल भर तक मालिकन, एक पाई की बचत न होती थी। इस आमदनी म Wपकला दो-ढाई सौ पये बचा लेती थी। इनके राज म वही आमदनी खच को भी प रू ी न पड़ती थी। कोई बात नहीं, लाड़bयार ने इन लड़क को चौपट कर िदया। इतने बड़े -बड़े लड़क को इसकी Pया जWरत िक जब कोई िखलाये तो खाय। इ+ह तो खुद अपनी िफब करनी चािहए। मुंशी जी िदनभर उसी उधेड़-बुन म पड़े रहे । दो-चार िमऽ से भी िजब िकया। लोग ने कहा-उसके खेल-कूद म बाधा न डािलए, अभी से उसे कैद न कीिजए, खुली हवा म चिरऽ के ॅm होने की उससे कम संभावना है , िजतना ब+द कमरे म। कुसंगत से जWर बचाइए, मगर यह नहीं िक उसे घर से िनकलने ही न दीिजए। युवावःथा म एका+तवास चिरऽ के िलए बहत ु ही हािनकारक है । मुश ं ीजी को अब अपनी गलती मालूम हई। घर लौटकर ु मंसाराम के पास गये। वह अभी ःकूल से आया था और िबना कपड़े उतारे , एक िकताब सामने खोलकर, सामने िखड़की की ओर ताक रहा था। उसकी fिm एक िभखािरन पर लगी हई ु थी, जो अपने बालक को गोद म िलए िभaा मांग रही थी। बालक माता की गोद म बैठा ऐसा ूस+न था, मानो वह िकसी राजिसंहासन पर बैठा हो। मंसाराम उस बालक को दे खकर रो पड़ा। यह बालक Pया मुझसे अिधक सुखी नहीं है ? इस अ+नत िवS म ऐसी कौन-सी वःतु है , िजसे वह इस गोद के बदले पाकर ूस+न हो? ईSर भी ऐसी वःतु की सृिm नहीं कर सकते। ईSर ऐसे बालक को ज+म ही Pय दे ते हो, िजनके भा]य म मातृ-िवयोग का दख ु भोगना बडा? आज मुझ-सा अभागा संसार म और कौन है ? िकसे मेरे खाने-पीने की, मरने-जीने की सुध है । अगर मG आज मर भी जाऊं, तो िकसके िदल को चोट लगेगी। िपता को अब मुझे लाने म मजा आता है , वह मेरी सूरत भी नहीं दे खना चाहते, मुझे घर से िनकाल दे ने की तैयािरयां हो रही हG । आह माता। तु.हारा लाड़ला बेटा आज आवारा कहां जा रहा है । वही िपताजी, िजनके हाथ म तुमने हम तीन भाइय के हाथ पकड़ाये थे, आज मुझे आवारा और बदमाश कह रहे हG । मG इस यो]य भी 55
नहीं िक इस घर म रह सकंू । यह सोचते-सोचते मंसाराम अपार वेदना से फूट-फूटकर रोने लगा। उसी समय तोताराम कमरे म आकर खड़े हो गये। मंसाराम ने चटपट आंसू पछ डाले और िसर झुकाकर खड़ा हो गया। मुंशीजी ने शायद यह पहली बार उसके कमरे म कदम रखा था। मंसाराम का िदल धड़धड़ करने लगा िक दे ख आज Pया आफत आती है । मुंशीजी ने उसे रोते दे खा, तो एक aण के िलए उनका वाRसXय घेर िनिा से चjक पड़ा घबराकर बोले-Pय, रोते Pय हो बेटा। िकसी ने कुछ कहा है ? मंसाराम ने बड़ी मुिँकल से उमड़ते हए ु ं को रोककर कहा- जी ु आंसओ नहीं, रोता तो नहीं हंू । मुंशीजी-तु.हारी अ.मां ने तो कुछ नहीं कहा? मंसाराम-जी नहीं, वह तो मुझसे बोलती ही नहीं। मुंशीजी-Pया कं बेटा, शादी तो इसिलए की थी िक ब'च को मां िमल जायेगी, लेिकन वह आशा प रू ी नहीं हई ु , तो Pया िबXकुल नहीं बोलतीं? मंसाराम-जी नहीं, इधर महीन से नहीं बोलीं। मुंशीजी-िविचऽ ःवभाव की औरत है , मालूम ही नहीं होता िक Pया चाहती है ? मG जानता िक उसका ऐसा िमजाज होगा, तो कभी शादी न करता रोज एक-न-एक बात लेकर उठ खड़ी होती है । उसी ने मुझसे कहा था िक यह िदन भर न जाने कहां गायब रहता है । मG उसके िदल की बात Pया जानता था? समझा, तुम कुसंगत म पड़कर शायद िदनभर घूमा करते हो। कौन ऐसा िपता है , िजसे अपने bयारे प ऽ ु को आवारा िफरते दे खकर रं ज न हो? इसीिलए मGने तु.ह बोिड ग हाउस म रखने का िनdय िकया था। बस, और कोई बात नहीं थी, बेटा। मG तु.हारा खेलन-कूदना बंद नहीं करना चाहता ु था। तु.हारी यह दशा दे खकर मेरे िदल के टकड़े हए ु जाते हG । कल मुझे मालूम हआ मG ॅम म था। तुम शौक से खेलो, सुबह-शाम मैदान म िनकल ु जाया करो। ताजी हवा से तु.ह लाभ होगा। िजस चीज की जWरत हो मुझसे कहो, उनसे कहने की जWरत नहीं। समझ लो िक वह घर म है ही नहीं। तु.हारी माता छोड़कर चली गयी तो मG तो हंू । बालक का सरल िनंकपट Vदय िपतृ-ूेम से प ल ु िकत हो उठा। मालूम हआ िक साaात ्भगवान ्खड़े हG । नैराँय और aोभ से िवकल होकर उसने ु मन म अपने िपता का िनNु र और न जाने Pया-Pया समझ रखा। िवमाता 56
से उसे कोई िगला न था। अब उसे Tात हआ िक मGने अपने दे वतुXय िपता ु के साथ िकतना अ+याय िकया है । िपतृ-भि} की एक तरं ग-सी Vदय म उठी, और वह िपता के चरण पर िसर रखकर रोने लगा। मुंशीजी कणा से िवल हो गये। िजस प ऽ ु को aण भर आंख से दरू दे खकर उनका Vदय 4यम हो उठता था, िजसके शील, बुिi और चिरऽ का अपने-पराये सभी बखान करते थे, उसी के ूित उनका Vदय इतना कठोर Pय हो गया? वह अपने ही िूय पऽ ु को शऽु समझने लगे, उसको िनवा सन दे ने को तैयार हो गये। िनम ला पऽ ु और िपता के बी म दीवार बनकर खड़ी थी। िनम ला को अपनी ओर खींचने के िलए पीछे हटना पड़ता था, और िपता तथा प ऽ ु म अंतर बढ़ता जाता था। फलत: आज यह दशा हो गयी है िक अपने अिभ+न प ऽ ु उ+ह इतना छल करना पड़ रहा है । आज बहत ु सोचने के बाद उ+ह एक एक ऐसी युि} सूझी है , िजससे आशा हो रही है िक वह िनम ला को बीच से िनकालकर अपने दसरे बाजू को अपनी तरफ खींच लगे। उ+हने उस युि} का आरं भ ू भी कर िदया है , लेिकन इसम अभीm िसi होगा या नहीं, इसे कौन जानता है । िजस िदन से तोतोराम ने िनम ला के बहत ु िम+नत-समाजत करने पर भी मंसाराम को बोिड ग हाउस म भेजने का िनdय िकया था, उसी िदन से उसने मंसाराम से पढ़ना छोड़ िदया। यहां तक िक बोलती भी न थी। उसे ःवामी की इस अिवSासप ण ू तRपरता का कुछ-कुछ आभास हो गया था। ओoफोह। इतना शPकी िमजाज। ईSर ही इस घर की लाज रख। इनके मन म ऐसी-ऐसी दभा
ु वनाएं भरी हई ु हG । मुझे यह इतनी गयी-गुजरी समझते हG । ये बात सोच-सोचकर वह कई िदन रोती रही। तब उसने सोचना शूW िकया, इ+ह Pया ऐसा संदेह हो रहा है ? मुझ म ऐसी कौन-सी बात है , जो इनकी आंख म खटकती है । बहत ु सोचने पर भी उसे अपने म कोई ऐसी बात नजर न आयी। तो Pया उसका मंसाराम से पढ़ना, उससे हं सना-बोलना ही इनके संदेह का कारण है , तो िफर मG पढ़ना छोड़ दं ग ू ी, भूलकर भी मंसाराम से न बोलूंगी, उसकी सूरत न दखूंगी। लेिकन यह तपःया उसे असा\य जान पड़ती थी। मंसाराम से हं सनेबोलने म उसकी िवलािसनी कXपना उ3ेिजत भी होती थी और तृr भी। उसे बात करते हुए उसे अपार सुख का अनुभव होता था, िजसे वह शCद म ूकट न कर सकती थी। कुवासना की उसके मन म छाया भी न थी। वह ःवbन 57
म भी मंसाराम से कलुिषत ूेम करने की बात न सोच सकती थी। ूRयेक ूाणी को अपने हमजोिलय के साथ, हं सने-बोलने की जो एक नैसिग क तृंणा होती है , उसी की तृिr का यह एक अTात साधन था। अब वह अतृr तृंणा िनम ला के Vदय म दीपक की भांित जलने लगी। रह-रहकर उसका मन िकसी अTात वेदना से िवकल हो जाता। खोयी हई ु िकसी अTात वःतु की खोज म इधर-उधर घूमती-िफरती, जहां बैठती, वहां बैठी ही रह जाती, िकसी काम म जी न लगता। हां, जब मुंशीजी आ जाते, वह अपनी सारी तृंणाओं को नैराँय म डबाकर , उनसे मुःकराकर इधर-उधर की बात करने लगती। ु कल जब मुंशीजी भोजन करके कचहरी चले गये, तो िPमणी ने िनम ला को खुब तान से छे दा-जानती तो थी िक यहां ब'च का पालनपोषण करना पड़े गा, तो Pय घरवाल से नहीं कह िदया िक वहां मेरा िववाह ु ष के िसवा और कोई न होता। वही यह बनावन करो? वहां जाती जहां प चुनाव और छिव दे खकर खुश होता, अपने भा]य को सराहता। यहां बुढा आदमी तु.हारे रं ग-Wप, हाव-भाव पर Pया लeटू होगा? इसने इ+हीं बालक की सेवा करने के िलए तुमसे िववाह िकया है , भोग-िवलास के िलए नहीं वह बड़ी दे र तक घाव पर नमक िछड़कती रही, पर िनम ला ने चूं तक न की। वह अपनी सफाई तो पेश करना चाहती थी, पर न कर सकती थी। अगर कहे िक मG वही कर रही हंू , जो मेरे ःवामी की इ'छा है तो घर का भ^डा फूटता है । अगर वह अपनी भूल ःवीकार करके उसका सुधार करती है , तो भय है िक उसका न जाने Pया पिरणाम हो? वह य बड़ी ःपmवािदनी थी, सRय कहने म उसे संकोच या भय न होता था, लेिकन इस नाजुक मौके पर उसे चुbपी साधनी पड़ी। इसके िसवा दसरा उपाय न था। वह दे खती थी मंसाराम बहत ू ु िवर} और उदास रहता है , यह भी दे खती थी िक वह िदन-िदन दब
ु ल होता जाता है , लेिकन उसकी वाणी और कम दोन ही पर मोहर लगी हई ु थी। चोर के घर चोरी हो जाने से उसकी जो दशा होती है , वही दशा इस समय िनम ला की हो रही थी। आठ
ज
ब कोई बात हमारी आशा के िवi होती है , तभी दख होता है । ु मंसाराम को िनम ला से कभी इस बात की आशा न थी िक वे उसकी 58
िशकायत कर गी। इसिलए उसे घोर वेदना हो रही थी। वह Pय मेरी िशकायत करती है ? Pया चाहती है ? यही न िक वह मेरे पित की कमाई खाता है , इसके पढ़ान-िलखाने म पये खच होते हG , कपड़ा पहनता है । उनकी यही इ'छा होगी िक यह घर म न रहे । मेरे न रहने से उनके पये बच जायगे। वह मुझसे बहत ु ूस+निच3 रहती हG । कभी मGने उनके मुंह से कटु शCद नहीं सुने। Pया यह सब कौशल है ? हो सकता है ? िचिड़या को जाल म फंसाने के पहले िशकारी दाने िबखेरता है । आह। मG नहीं जानता था िक दाने के नीचे जाल है , यह मातृ-ःनेह केवल मेरे िनवा सन की भूिमका है । अ'छा, मेरा यहां रहना Pय बुरा लगता है ? जो उनका पित है , Pया वह मेरा िपता नहीं है ? Pया िपता-प ऽ ु का संबंध nी-प ु ष के संबंध से कुछ कम घिनm है ? अगर मुझे उनके संप ण ू आिधपRय से ईंया नहीं होती, वह जो चाहे कर , मG मुंह नहीं खोल सकता, तो वह मुझे एक अगुंल भर भूिम भी दे ना नहीं चाहतीं। आप पPके महल म रहकर Pय मुझे वृa की छाया म बैठा नहीं दे ख सकतीं। हां, वह समझती हगी िक वह बड़ा होकर मेरे पित की स.पि3 का ःवामी हो जायेगा, इसिलए अभी से िनकाल दे ना अ'छा है । उनको कैसे िवSास िदलाऊं िक मेरी ओर से यह शंका न कर । उ+ह Pयकर बताऊं िक मंसाराम िवष खाकर ूाण दे दे गा, इसके पहले िक उनका अिहत कर। उसे चाहे िकतनी ही किठनाइयां सहनी पड वह उनके Vदय का शूल न बनेगा। य तो िपताजी ने मुझे ज+म िदया है और अब भी मुझ पर उनका ःनेह कम नहीं है , लेिकन Pया मG इतना भी नहीं जानता िक िजस िदन िपताजी ने उनसे िववाह िकया, उसी िदन उ+हने हम अपने Vदय से बाहर िनकाल िदया? अब हम अनाथ की भांित यहां पड़े रह सकते हG , इस घर पर हमारा कोई अिधकार नहीं है । कदािचत ् प व ू संःकार के कारण यहां अ+य अनाथ से हमारी दशा कुछ अ'छी है , पर हG अनाथ ही। हम उसी िदन अनाथ हए ु , िजस िदन अ.मां जी परलोक िसधारीं। जो कुछ कसर रह गयी थी, वह इस िववाह ने प रू ी कर दी। मG तो खुद पहले इनसे िवशेष संबंध न रखता था। अगर, उ+हीं िदन िपताजी से मेरी िशकायत की होती, तो शायद मुझे इतना दख ु न होता। मG तो उसे आघात के िलए तैयार बैठा था। संसार म Pया मG मजदरी ू भी नहीं कर सकता? लेिकन बुरे व} म इ+हने चोट की। िहं सक पशु भी आदमी को गािफल पाकर ही चोट करते हG । इसीिलए मेरी आवभगत होती 59
थी, खाना खाने के िलए उठने म जरा भी दे र हो जाती थी, तो बुलावे पर बुलावे आते थे, जलपान के िलए ूात: हलुआ बनाया जाता था, बार-बार प छ ू ा जाता था-पय की जWरत तो नहीं है ? इसीिलए वह सौ पय की घड़ी मंगवाई थी। मगर Pया इ+ह Pया दसरी िशकायत न सूझी, जो मुझे आवारा कहा? ू आिखर उ+हने मेरी Pया आवारगी दे खी? यह कह सकती थीं िक इसका मन पढ़ने-िलखने म नहीं लगता, एक-न-एक चीज के िलए िनRय पये मांगता रहता है । यही एक बात उ+ह Pय सूझी? शायद इसीिलए िक यही सबसे कठोर आघात है , जो वह मुझ पर कर सकती हG । पहली ही बार इ+हने मुझे पर अि]न–बाण चला िदया, िजससे कहीं शरण नहीं। इसीिलए न िक वह िपता की नजर से िगर जाये? मुझे बोिड ग-हाउस म रखने का तो एक बहाना था। उyे ँय यह था िक इसे दध ू की मPखी की तरह िनकाल िदया जाये। दोचार महीने के बाद खच -वच दे ना बंद कर िदया जाये, िफर चाहे मरे या िजये। अगर मG जानता िक यह ूेरणा इनकी ओर से हई ु है , तो कहीं जगह न रहने पर भी जगह िनकाल लेता। नौकर की कोठिरय म तो जगह िमल जाती, बरामदे म पड़े रहने के िलए बहत ु जगह िमल जाती। खैर, अब सबेरा है । जब ःनेह नहीं रहा, तो केवल पेट भरने के िलए यहां पड़े रहना बेहयाई है , यह अब मेरा घर नहीं। इसी घर म प द ै ा हआ हंू , यही खेला हंू , पर यह अब ु मेरा नहीं। िपताजी भी मेरे िपता नहीं हG । मG उनका प ऽ ु हंू , पर वह मेरे िपता नहीं हG । संसार के सारे नाते ःनेह के नाते हG । जहां ःनेह नहीं, वहां कुछ नहीं। हाय, अ.मांजी, तुम कहां हो? यह सोचकर मंसाराम रोने लगा। Mय-Mय मातृ ःनेह की प व ू - ःमृितयां जागृत होती थीं, उसके आंसू उमड़ते आते थे। वह कई बार अ.मां-अ.मां पक ु ार उठा, मानो वह खड़ी सुन रही हG । मातृ-हीनता के द:ु ख का आज उसे पहली बार अनुभव हआ। वह आRमािभमानी था, साहसी था, पर अब तक ु सुख की गोद म लालन-पालन होने के कारण वह इस समय अपने आप को िनराधार समझ रहा था। रात के दस बज गये थे। मुंशीजी आज कहीं दावत खाने गये हए ु थे। दो बार महरी मंसाराम को भोजन करने के िलए बुलाने आ चुकी थी। मंसाराम ने िपछली बार उससे झुंझलाकर कह िदया था-मुझे भूख नहीं है , 60
कुछ न खाऊंगा। बार-बार आकर िसर पर सवार हो जाती है । इसीिलए जब िनम ला ने उसे िफर उसी काम के िलए भेजना चाहा, तो वह न गयी। बोली-बहजी ू , वह मेरे बुलाने से न आवगे। िनम ला-आयगे Pय नहीं? जाकर कह दे खाना ठ^डा हआ जाता है । दो ु चार कौर खा ल। महरी-मG यह सब कह के हार गयी, नहीं आते। िनम ला-तूने यह कहा था िक वह बैठी हई ु हG । महरी-नहीं बहजी ू , यह तो मGने नहीं कहा, झूठ Pय बोलूं। िनम ला-अ'छा, तो जाकर यह कह दे ना, वह बैठी तु.हारी राह दे ख रही हG । तुम न खाओगे तो वह रसोई उठाकर सो रह गी। मेरी भूग ं ी, सुन, अबकी और चली जा। (हं सकर) न आव, तो गोद म उठा लाना। भूंगी नाक-भj िसकोड़ते गयी, पर एक ही aण म आकर बोली-अरे बहजी ू , वह तो रो रहे हG । िकसी ने कुछ कहा है Pया? िनम ला इस तरह चौककर उठी और दो-तीन पग आगे चली, मानो िकसी माता ने अपने बेटे के कुएं म िगर पड़ने की खबर पायी हो, िफर वह िठठक गयी और भूग ं ी से बोली-रो रहे हG ? तूने प छ ू ा नहीं Pय रो रहे हG ? भूंगी- नहीं बहजी ू ा। झूठ Pय बोलू?ं ू , यह तो मGने नहीं प छ वह रो रहे हG । इस िनःतबध रािऽ म अकेले बैठै हए ु वह रो रहे हG । माता की याद आयी होगी? कैसे जाकर उ+ह समझाऊं? हाय, कैसे समझाऊं? यहां तो छींकते नाक कटती है । ईSर, तुम साaी हो अगर मGने उ+ह भूल से भी कुछ कहा हो, तो वह मेरे गे आये। मG Pया कं ? वह िदल म समझते हगे िक इसी ने िपताजी से मेरी िशकायत की होगी। कैसे िवSास िदलाऊं िक मGने कभी तु.हारे िवi एक शCद भी मुंह से नहीं िनकाला? अगर मG ऐसे दे वकुमार के-से चिरऽ रखने वाले युवक का बुरा चेत,ंू तो मुझसे बढ़कर राaसी संसार म न होगी। िनम ला दे खती थी िक मंसाराम का ःवाःय िदन-िदन िबगड़ता जाता है , वह िदन-िदन दब
ु ल होता जाता है , उसके मुख की िनम ल कांित िदन-िदन मिलन होती जाती है , उसका सहास बदन संकुिचत होता जाता है । इसका कारण भी उससे िछपा न था, पर वह इस िवषय म अपने ःवामी से कुछ न कह सकती थी। यह सब दे ख-दे खकर उसका Vदय िवदीण होता रहता था, पर उसकी जबान न खुल सकती थी। वह कभी-कभी मन म झुंझलाती िक 61
मंसाराम Pय जरा-सी बात पर इतना aोभ करता है ? Pया इनके आवारा कहने से वह आवारा हो गया? मेरी और बात है , एक जरा-सा शक मेरा सव नाश कर सकता है , पर उसे ऐसी बात की इतनी Pया परवाह?
उ
सके जी म ूबल इ'छा हई ु िक चलकर उ+ह चुप कराऊं और लाकर खाना िखला दं ।ू बेचारे रात-भर भूखे पड़े रह गे। हाय। मG इस उपिव की
जड़ हंू । मेरे आने के पहले इस घर म शांित का राMय था। िपता बालक पर जान दे ता था, बालक िपता को bयार करते थे। मेरे आते ही सारी बाधाएं आ खड़ी ह। इनका अंत Pया होगा? भगवान ्ही जाने। भगवान ्मुझे मौत भी ु नहीं दे ते। बेचारा अकेले भूख पड़ा है । उस व} भी मुंह जुठा करके उठ गया था। और उसका आहार ही Pया है , िजतना वह खाता है , उतना तो साल-दोसाल के ब'चे खा जाते हG । िनम ला चली। पित की इ'छा के िवi चली। जो नाते म उसका प ऽ ु होता था, उसी को मनाने जाते उसका Vदय कांप रहा था। उसने पहले िPमणी के कमरे की ओर दे खा, वह भोजन करके बेखबर सो रही थीं, िफर बाहर कमरे की ओर गयी। वहां स+नाटा था। मुंशी अभी न आये थे। यह सब दे ख-भालकर वह मंसाराम के कमरे के सामने जा पहंु ची। कमरा खुला हआ था, मंसाराम एक प ः ु तक सामने रखे मेज पर िसर झुकाये बैठा हआ ु ु था, मानो शोक और िच+ता की सजीव मूित हो। िनम ला ने प क ु ारना चाहा पर उसके कंठ से आवाज़ न िनकली। सहसा मंसाराम ने िसर उठाकर Kार की ओर दे खा। िनम ला को दे खकर अंधेरे म पहचान न सका। चjककर बोला-कौन? िनम ला ने कांप ते हए ु ःवर म कहा-मG तो हंू । भोजन करने Pय नहीं चल रहे हो? िकतनी रात गयी। मंसाराम ने मुंह फेरकर कहा-मुझे भूख नहीं है । िनम ला-यह तो मG तीन बार भूग ं ी से सुन चुकी हंू । मंसाराम-तो चौथी बार मेरे मुंह से सुन लीिजए। िनम ला-शाम को भी तो कुछ नहीं खाया था, भूख Pय नहीं लगी? मंसाराम ने 4यं]य की हं सी हं सकर कहा-बहत ु भूख लगेगी, तो आयेग कहां से?
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यह कहते-कहते मंसाराम ने कमरे का Kार बंद करना चाहा, लेिकन िनम ला िकवाड़ को हटाकर कमरे म चली आयी और मंसाराम का हाथ पकड़ सजल नेऽ से िवनय-मधुर ःवर म बोली-मेरे कहने से चलकर थोड़ा-सा खा लो। तुम न खाओगे, तो मG भी जाकर सो रहंू गी। दो ही कौर खा लेना। Pया मुझे रात-भर भूख मारना चाहते हो? मंसाराम सोच म पड़ गया। अभी भोजन नहीं िकया, मेरे ही इं तजार म बैठी रहीं। यह ःनेह, वाRसXय और िवनय की दे वी हG या ईंया और अमंगल की मायािवनी मूित ? उसे अपनी माता का ःमरण हो आया। जब वह ठ जाता था, तो वे भी इसी तरह मनाने आ करती थीं और जब तक वह न जाता था, वहां से न उठती थीं। वह इस िवनय को अःवीकार न कर सका। बोला-मेरे िलए आपको इतना कm हआ ु , इसका मुझे खेद है । मG जानता िक आप मेरे इं तजार म भूखी बैठी हG , तो तभी खा आया होता। िनम ला ने ितरःकार-भाव से कहा-यह तुम कैसे समझ सकते थे िक तुम भूखे रहोगे और मG खाकर सो रहंू गी? Pया िवमाता का नाता होने से ही मG ऐसी ःवािथ नी हो जाऊंगी? सहसा मदा ने कमरे म मुंशीजी के खांसने की आवाज आयी। ऐसा मालूम हआ िक वह मंसाराम के कमरे की ओर आ रहे हG । िनम ला के चेहरे ु का रं ग उड़ गया। वह तुरंत कमरे से िनकल गयी और भीतर जाने का मौका न पाकर कठोर ःवर म बोली-मG लjडी नहीं हंू िक इतनी रात तक िकसी के िलए रसोई के Kार पर बैठी रहंू । िजसे न खाना हो, वह पहले ही कह िदया करे । मुंशीजी ने िनम ला को वहां खड़े दे खा। यह अनथ । यह यहां Pया करने आ गयी? बोले-यहां Pया कर रही हो? िनम ला ने कक श ःवर म कहा-कर Pया रही हंू , अपने भा]य को रो रही हंू । बस, सारी बुराइय की जड़ मG ही हंू । कोई इधर ठा है , कोई उधर मुंह फुलाये खड़ा है । िकस-िकस को मनाऊं और कहां तक मनाऊं। मुंशीजी कुछ चिकत होकर बोले-बात Pया है ? िनम ला-भोजन करने नहीं जाते और Pया बात है ? दस दफे महरी को भे, आिखर आप दौड़ी आयी। इ+ह तो इतना कह दे ना आसान है , मुझे भूख नहीं है , यहां तो घर भर की लjडी हंू , सारी दिनया मुंह म कािलख पोतने को ु 63
तैयार। िकसी को भूख न हो, पर कहने वाल को यह कहने से कौन रोकेगा िक िपशािचनी िकसी को खाना नहीं दे ती। मुंशीजी ने मंसाराम से कहा-खाना Pय नहीं खा लेते जी? जानते हो Pया व} है ? मंसाराम िःR.भत-सा खड़ा था। उसके सामने एक ऐसा रहःय हो रहा था, िजसका मम वह कुछ भी न समझ सकताथा। िजन नेऽ म एक aण पहले िवनय के आंसू भरे हए ु थे, उनम अकःमात ्ईंया
की Mवाला कहां से
आ गयी? िजन अधर से एक aण पहले सुधा-वृिm हो रही थी, उनम से िवष ूवाह Pय होने लगा? उसी अध चेतना की दशा म बोला-मुझे भूख नहीं है । मुंशीजी ने घुड़ककर कहा-Pय भूख नहीं है ? भूख नहीं थी, तो शाम को Pय न कहला िदया? तु.हारी भूख के इं तजार म कौन सारी रात बैठा रहे ? तुमम पहले तो यह आदत न थी। ठना कब से सीख िलया? जाकर खा लो। मंसाराम-जी नहीं, मुझे जरा भी भूख नहीं है । तोताराम-ने दांत पीसकर कहा-अ'छी बात है , जब भूख लगे तब खाना। यह कहते हए ु एवह अंदर चले गये। िनम ला भी उनके पीछे ही चली गयी। मुंशीजी तो लेटने चले गये, उसने जाकर रसोई उठा दी और कुXलाकर, पान खा मुःकराती हई ू ा-खाना खा िलया न? ु आ पहंु ची। मुंशीजी ने प छ िनम ला-Pया करती, िकसी के िलए अ+न-जल छोड़ दं ग ू ी? मुंशीजी-इसे न जाने Pया हो गया है , कुछ समझ म नहीं आता? िदनिदन घुलता चला जाता है , िदन भर उसी कमरे म पड़ा रहता है । िनम ला कुछ न बोली। वह िचंता के अपार सागर म डबिकयां खा रही ु थी। मंसाराम ने मेरे भाव-पिरवत न को दे खकर िदल म Pया-Pया समझा होगा? Pया उसके मन म यह ू उठा होगा िक िपताजी को दे खते ही इसकी Rयोिरयं Pय बदल गयीं? इसका कारण भी Pया उसकी समझ म आ गया होगा? बेचारा खाने आ रहा था, तब तक यह महाशय न जाने कहां से फट पड़े ? इस रहःय को उसे कैसे समझाऊं समझाना संभव भी है ? मG िकस िवपि3 म फंस गयी? सवेरे वह उठकर घर के काम-धंधे म लगी। सहसा नौ बजे भूंगी ने आकर कहा-मंसा बाबू तो अपने कागज-प3र सब इPके पर लाद रहे हG । भूंगी-मGने प छ ू ा तो बोले, अब ःकूल म ही रहंू गा। 64
मंसाराम ूात:काल उठकर अपने ःकूल के हे ड माःटर साहब के प ास गया था और अपने रहने का ूबंध कर आया था। हे ड माःटर साहब ने पहले तो कहा-यहां जगह नहीं है , तुमसे पहले के िकतने ही लड़क के ूाथ ना-पऽ पडे हए ु हG , लेिकन जब मंसाराम ने कहा-मुझे जगह न िमलेगी, तो कदािचत ् मेरा पढ़ना न हो सके और मG इ.तहान म शरीक न हो सकंू , तो हे ड माःटर साहब को हार माननी पड़ी। मंसाराम के ूथम ौेणी म पास होने की आशा थी। अ\यापक को िवSास था िक वह उस शाला की कीित को उMजवल करे गा। हे ड माःटर साहब ऐसे लड़क को कैसे छोड़ सकते थे? उ+होने अपने दoतर का कमरा खाली करा िदया। इसीिलए मंसाराम वहां से आते ही अपना सामान इPके पर लादने लगा। मुंशीजी ने कहा-अभी ऐसी Pया जXदी है ? दो-चार िदन म चले जाना। मG चाहता हंू , तु.हारे िलए कोई अ'छा सा रसोइया ठीक कर दं ।ू मंसाराम-वहां का रसोइया बहत ु अ'छा भोजन पकाता है । मुंशीजी-अपने ःवाःय का \यान रखना। ऐसा न हो िक पढ़ने के पीछे ःवाःय खो बैठो। मंसाराम-वहां नौ बजे के बाद कोई पढ़ने नहीं पाता और सबको िनयम के साथ खेलना पड़ता है । मुंशी जी-िबःतर Pय छोड़ दे ते हो? सोओगे िकस पर? मंसाराम-कंबल िलए जाता हंू । िबःतर जरत नहीं। मुंशी जी-कहार जब तक तु.हारा सामान रख रहा है , जाकर कुछ खा लो। रात भी तो कुछ नहीं खाया था। मंसाराम-वहीं खा लूंगा। रसोइये से भोजन बनाने को कह आया हंू यहां खाने लगूंगा तो दे र होगी। घर म िजयाराम और िसयाराम भी भाई के साथ जाने के िजद कर रहे थे िनम ला उन दोन के बहला रही थी-बेटा, वहां छोटे नहीं रहते, सब काम अपने ही हाथ से करना पड़ता है । एकाएक िPमणी ने आकर कहा-तु.हारा वळ का Vदय है , महारान। लड़के ने रात भी कुछ नहीं खाया, इस व} भी िबना खाय-पीये चला जा रहा है और तुम लड़को के िलए बात कर रही हो? उसको तुम जानती नहीं हो। यह समझ लो िक वह ःकूल नहीं जा रहा है , बनवास ले रहा है , लौटकर िफर 65
न आयेगा। यह उन लड़क म नहीं है , जो खेल म मार भूल जाते हG । बात उसके िदल पर पRथर की लकीर हो जाती है । िनम ला ने कातर ःवर म कहा-Pया कं , दीदीजी? वह िकसी की सुनते ही नहीं। आप जरा जाकर बुला ल। आपके बुलाने से आ जायगे। िPमणी- आिखर हआ Pया, िजस पर भागा जाता है ? घर से उसका ु जी कभ उचाट न होता था। उसे तो अपने घर के िसवा और कहीं अ'छा ही न लगता था। तु.हीं ने उसे कुछ कहा होगा, या उसकी कुछ िशकायत की होगी। Pय अपने िलए कांटे बो रही हो? रानी, घर को िमeटी म िमलाकर चैन से न बैठने पाओगी। िनम ला ने रोकर कहा-मGने उ+ह कुछ कहा हो, तो मेरी जबान कट जाये। हां, सौतेली मां होने के कारण बदनाम तो हंू ही। आपके हाथ जोड़ती हंू जरा जाकर उ+ह बुला लाइये। िPमणी ने तीो ःवर म कहा- तुम Pय नहीं बुला लातीं? Pया छोटी हो जाओगी? अपना होता, तो Pया इसी तरह बैठी रहती? िनम ला की दशा उस पंखहीन पaी की तरह हो रही थी, जो सप को अपनी ओर आते दे ख कर उड़ना चाहता है , पर उड़ नहीं सकता, उछलता है और िगर पड़ता है , पंख फड़फड़ाकर रह जाता है । उसका Vदय अंदर ही अंदर तड़प रहा था, पर बाहर न जा सकती थी। इतने म दोन लड़के आकर बोले-भैयाजी चले गये। िनम ला मूित वत ्खड़ी रही, मानो संTाहीन हो गयी हो। चले गये? घर म आये तक नहीं, मुझसे िमले तक नहीं चले गये। मुझसे इतनी घृणा। मG उनकी कोई न सही, उनकी बुआ तो थीं। उनसे तो िमलने आना चािहए था? मG यहां थी न। अंदर कैसे कदम रखते? मG दे ख लेती न। इसीिलए चले गये। नौ
मं
साराम के जाने से घर सूना हो गया। दोन छोटे लड़के उसी ःकूल म पढ़ते थे। िनम ला रोज उनसे मंसाराम का हाल प छ ू ती। आशा थी िक
छुeटी के िदन वह आयेगा, लेिकन जब छुeटी के िदन गुजर गये और वह न आया, तो िनम ला की तबीयत घबराने लगी। उसने उसके िलए मूंग के लडू
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बना रखे थे। सोमवार को ूात: भूग ं ी का लडू दे कर मदरसे भेजा। नौ बजे भूंगी लौट आयी। मंसाराम ने लडू Mय-के-Rय लौटा िदये थे। िनम ला ने प छ ू ा-पहले से कुछ हरे हए ु हG , रे ? भूंगी-हरे -वरे तो नहीं हए ु , और सूख गये हG । िनम ला- Pया जी अ'छा नहीं है ? भूंगी-यह तो मGने नहीं प छ ू ा बहजी ू , झूठ Pय बोलू?ं हां, वहां का कहार मेरा दे वर लगता है । वह कहता था िक तु.हारे बाबूजी की खुराक कुछ नहीं है । दो फुलिकयां खाकर उठ जाते हG , िफर िदन भर कुछ नहीं खाते। हरदम पढ़ते रहते हG । िनम ला-तूने प छ ू ा नहीं, लडू Pय लौटाये दे ते हो? भूंगी- बहजी ू ने की तो मुझे सुध ही न रही। ू , झूठ Pय बोलू?ं यह प छ हां, यह कहते थे िक अब तू यहां कभी न आना, न मेरे िलए कोई चीज लाना और अपनी बहजी से कह दे ना िक मेरे पास कोई िचeठी-प3री न भेज। ू लड़क से भी मेरे पास कोई संदेशा न भेज और एक ऐसी बात कही िक मेरे मुंह से िनकल नहीं सकती,
िफर रोने लगे।
िनम ला-कौन बात थी कह तो? भूंगी-Pया कहंू कहते थे मेरे जीने को धीPकार है ? यही कहकर रोने लगे। िनम ला के मुंह से एक ठं डी सांस िनकल गयी। ऐसा मालूम हआ ु , मानो कलेजा बैठा जाता है । उसका रोम-रोम आत नाद करने लगा। वह वहां बैठी न रह सकी। जाकर िबःतर पर मुंह ढांप कर लेट रही और फूट-फूटकर रोने लगी। ‘वह भी जान गये’। उसके अ+त:करण म बार-बार यही आवाज़ गूंजने लगी-‘वह भी जान गये’। भगवान ्अब Pया होगा? िजस संदेह की आग म वह भःम हो रही थी, अब शतगुण वेग से धधकने लगी। उसे अपनी कोई िचंता न थी। जीवन म अब सुख की Pया आशा थी, िजसकी उसे लालसा ू
होती? उसने अपने मन को इस िवचार से समझाया था िक यह मेरे प व कमp का ूायिdत है । कौन ूाणी ऐसा िनल Mज होगा, जो इस दशा म बहत ु िदन जी सके? क3 4य की वेदी पर उसने अपना जीवन और उसकी सारी कामनाएं होम कर दी थीं। Vदय रोता रहता था, पर मुख पर हं सी का रं ग भरना पड़ता था। िजसका मुंह दे खने को जी न चाहता था, उसके सामने हं सहं सकर बात करनी पड़ती थीं।
िजस दे ह का ःपश उसे सप के शीतल ःपश
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के समान लगता था, उससे आिलंिगत होकर उसे िजतनी घृणा, िजतनी मम वेदना होती थी, उसे कौन जान सकता है ? उस समय उसकी यही इ'छा थी िक धरती फट जाये और मG उसम समा जाऊं। लेिकन सारी िवड.बना अब तक अपने ही तक थी। अपनी िचंता उसन छोड़ दी थी, लेिकन वह समःया अब अRयंत भयंकर हो गयी थी। वह अपनी आंख से मंसाराम की आRमपीड़ा नहीं दे ख सकती थी। मंसाराम जैसे मनःवी, साहसी युवक पर इस आaेप का जो असर पड़ सकता था, उसकी कXपना ही से उसके ूाण कांप उठते थे। अब चाहे उस पर िकतने ही संदेह Pय न ह, चाहे उसे आRमहRया ही Pय न करनी पड़े , पर वह चुप नहीं बैठ सकती। मंसाराम की रaा करने के िलए वह िवकल हो गयी। उसने संकोच और लMजा की चादर उतारकर फक दे ने का िनdय कर िलया। वकील साहब भोजन करके कचहरी जाने के पहले एक बार उससे अवँय िमल िलया करते थे। उनके आने का समय हो गया था। आ ही रहे हगे, यह सोचकर िनम ला Kार पर खड़ी हो गयी और उनका इं तजार करने लगी लेिकन यह Pया? वह तो बाहर चले जा रहे है । गाड़ी जुतकर आ गयी, यह हPम वह यहीं से िदया करते थे। तो Pया आज वह न आयग,े बाहर-हीु बाहर चले जायगे। नहीं, ऐसा नहीं होने पायेगा। उसने भूग ं ी से कहा-जाकर बाबूजी को बुला ला। कहना, एक जरी काम है , सुन लीिजए। मुंशीजी जाने को तैयार ही थे। यह संदेशा पाकर अंदर आये, पर कमरे म न आकर दरू से ही प छ ू ा-Pया बात है भाई? जXदी कह दो, मुझे एक जरी काम से जाना है । अभी थोड़ी दे र हई ु , हे ड माःटर साहब का एक पऽ आया है िक मंसाराम को Mवर आ गया है , बेहतर हो िक आप घर ही पर उसका इलाज कर । इसिलए उधर ही से हाता हआ कचहरी जाऊंगा। तु.ह कोई खास ु बात तो नहीं कहनी है । िनम ला पर मानो वळ िगर पड़ा। आंसओ ु ं के आवेग और कंठ-ःवर म घोर संमाम होने लगा। दोन पहले िनकलने पर तुले हए ु थे। दो म से कोई एक कदम भी पीछे हटना नहीं चाहता था। कंठ-ःवर की दब
ु लता और आंसओ ु ं की सबलता दे खकर यह िनdय करना किठन नहीं था िक एक aण यही संमाम होता रहा तो मैदान िकसके हाथ रहे गा। अखीर दोन साथ-साथ िनकले, लेिकन बाहर आते ही बलवान ने िनब ल को दबा िलया। केवल इतना मुंह से िनकला-कोई खास बात नहीं थी। आप तो उधर जा ही रहे हG । 68
मुंशीजी- मGने लड़क प छ ू ा था, तो वे कहते थे, कल बैठे पढ़ रहे थे, आज न जाने Pया हो गया। िनम ला ने आवेश से कांप ते हए ु कहा-यह सब आप कर रहे हG मुंशीजी ने Rयोिरयां बदलकर कहा-मG कर रहा हंू ? मG Pया कर रहा हंू ? िनम ला-अपने िदल से प िू छए। मुंशीजी-मGने तो यही सोचा था िक यहां उसका पढ़ने म जी नहीं लगता, वहां और लड़क के साथ खामाcवह पढ़े गा ही। यह तो बुरी बात न थी और मGने Pया िकया? िनम ला-खूब सोिचए, इसीिलए आपने उ+ह वहां भेजा था? आपके मन म और कोई बात न थी। मुंशीजी जरा िहचिकचाए और अपनी दब
ु लता को िछपाने के िलए मुःकराने की चेmा करके बोले-और Pया बात हो सकती थी? भला तु.हीं सोचो। िनम ला-खैर, यही सही। अब आप कृ पा करके उ+ह आज ही लेते आइयेगा, वहां रहने से उनकी बीमारी बढ़ जाने का भय है । यहां दीदीजी िजतनी तीमारदारी कर सकती हG , दसरा नहीं कर सकता। ू एक aण के बाद उसने िसर नीचा करके कहा-मेरे कारण न लाना चाहते ह, तो मुझे घर भेज दीिजए। मG वहां आराम से रहंू गी। मुंशीजी ने इसका कुछ जवाब न िदया। बाहर चले गये, और एक aण म गाड़ी ःकूल की ओर चली। मन। तेरी गित िकतनी िविचऽ है , िकतनी रहःय से भरी हई ु , िकतनी दभu ु है । ु q। तू िकतनी जXद रं ग बदलता है ? इस कला म तू िनप ण आितशबाजी की चखh को भी रं ग बदलते कुछ दे री लगती है , पर तुझे रं ग बदलने म उसका लaांश समय भी नहीं लगता। जहां अभी वाRसXय था, वहां िफर संदेह ने आसन जमा िलया। वह सोचते थे-कहीं उसने बहाना तो नहीं िकया है ? दस
मं
साराम दो िदन तक गहरी िचंता म डबा ू रहा। बार-बार अपनी माता की याद आती, न खाना अ'छा लगता, न पढ़ने ही म जी लगता। उसकी 69
कायापलट-सी हो गई। दो िदन गुजर गये और छाऽालय म रहते हए ु भी उसने वह काम न िकया, जो ःकूल के माःटर ने घर से कर लाने को िदया था। पिरणाम ःवप उसे बच पर खड़ा रहना पड़ा। जो बात कभी न हई ु थी, वह आज हो गई। यह अस अपमान भी उसे सहना पड़ा। तीसरे िदन वह इ+हीं िचंताओं म म]न हआ अपने मन को समझा रहा ु था-कहा संसार म अकेले मेरी ही माता मरी है ? िवमाताएं तो सभी इसी ूकार की होती हG । मेरे साथ कोई नई बात नहीं हो रही है । अब मुझे प ु ष की भांित िKगुण पिरौम से अपना म करना चािहए, जैसे माता-िपता राजी रह , वैसे उ+ह राजी रखना चािहए। इस साल अगर छाऽवृित िमल गई, तो मुझे घर से कुछ लेने की जरत ही न रहे गी। िकतने ही लड़के अपने ही बल पर बड़ी-बड़ी उपािधयां ूाr कर लेते हG । भागय के नाम को रोने-कोसने से Pया होगा। इतने म िजयाराम आकर खड़ा हो गया। मंसाराम ने प छ ू ा-घर का Pया हाल है िजया? नई अ.मांजी तो बहत ु ूस+न हगी? िजयाराम-उनके मन का हाल तो मG नहीं जानता, लेिकन जब से तुम आये हो, उ+होने एक जून भी खाना नहीं खाया। जब दे खो, तब रोया करती हG । जब बाबूजी आते हG , तब अलब3ा हं सने लगती हG । तुम चले आये तो मGने भी शाम को अपनी िकताब संभाली। यहीं तु.हारे साथ रहना चाहता था। भूंगी चुड़ैल ने जाकर अ.मांजी से कह िदया। बाबूजी बैठे थे, उनके सामने ही अ.मांजी ने आकर मेरी िकताब छीन लीं और रोकर बोलीं, तुम भी चले जाओगे, तो इस घर म कौन रहे गा? अगर मेरे कारण तुम लोग घर छोड़छोड़कर भागे जा रहे तो लो, मG ही कहीं चली जाती हंू । मG तो झXलाया हआ ु था ही, वहां अब बाबूजी भी न थे, िबगड़कर बोला, आप Pय कहीं चली जायगी? आपका तो घर है , आप आराम से रिहए। गैर तो हमीं लोग हG , हम न रह गे, तब तो आपको आराम-आराम ही होग। मंसाराम-तुमने खूब कहा, बहत ही अ'छा कहा। इस पर और भी ु झXलाई हगी और जाकर बाबूजी से िशकायत की होगी। िजयाराम-नहीं, यह कुछ नहीं हआ। बेचारी जमीन पर बैठकर रोने ु लगीं। मुझे भी कणा आ गयी। मG भी रो पड़ा। उ+होने आंचल से मेरे आंसू पछे और बोलीं, िजया। मG ईSर को साaी दे कर कहती हंू िक मGने तु.हारे 70
भैया केइिवषय म तु.हारे बाबूजी से एक शCद भी नहीं कहा। मेरे भाग म कलंक िलखा हआ है , वही भाग रही हंू । िफर और न जाने Pया-Pया कहा, जा ु मेरी समझ म नहीं आया। कुछ बाबुजी की बात थी। मंसाराम ने उिK]नता से प छ ू ा-बाबूजी के िवषय म Pया कहा? कुछ याद है ? िजयाराम-बात तो भई, मुझे याद नहीं आती। मेरी ‘मेमोरी’ कौन बड़ी ते है , लेिकन उनकी बात का मतलब कुछ ऐसा मालूम होता था िक उ+ह बाबूजी को ूस+न रखने के िलए यह ःवांग भरना पड़ रहा है । न जाने धम अधम की कैसी बात करती थीं जो मG िबXकुल न समझ सका। मुझे तो अब इसका िवSास आ गया है िक उनकी इ'छा तु.ह यहां भेजन की न थी। मंसाराम- तुम इन चाल का मतलब नहीं समझ सकते। ये बड़ी गहरी चाल हG । िजयाराम- तु.हारी समझ म हगी, मेरी समझ म नहीं हG । मंसाराम- जब तुम Mयोमेशी नहीं समझ सकते, तो इन बात को Pया समझ सकोगे? उस रात को जब मुझे खाना खाने के िलए बुलाने आयी थीं औरउनके आमह पर मG जाने को तैयार भी हो गया था, उस व} बाबूजी को दे खते ही उ+होने जो कGडा बदला, वह Pया मG कभी भी भूल सकता हंू ? िजयाराम-यही बात मेरी समझ म नहीं आती। अभी
कल ही मG यहां
से गया, तो लगीं तु.हारा हाल प छ ू ने। मGने कहा, वह तो कहते थे िक अब कभी इस घर म कदम न रखूंगा। मGने कुछ झूठ तो कहा नहीं, तुमने मुझसे कहा ही था। इतना सुनना था िक फूट-फूटकर रोने लगीं मG िदल म बहत ु पछताया िक कहां-से-कहां मGने यह बात कह दी। बार-बार यही कहती थीं, Pया वह मेरे कारण घर छोड़ द ग?े मुझसे इतने नाराज है ।? चले गये और मझसे िमले तक नहीं। खाना तैयार था, खाने तक नहीं आये। हाय। मG Pया बताऊं, िकस िवपि3 म हंू । इतने म बाबूजी आ गये। बस तुर+त आंख पछकर मुःकुराती हई ु उनके पास चली गई। यह बात मेरी समझ म नहीं आती। आज मुझे बड़ी िम+नत की िक उनको साथ लेते आना। आज मG तु.ह खींच ले चलूंगा। दो िदन म वह िकतनी दबली हो गयी हG , तु.ह यह ु दे खकर उन पर दया आयी। तो चलोगे न? मंसाराम ने कुछ जवाब न िदया। उसके प रै कांप रहे थे। िजयाराम तो हािजरी की घंटी सुनकर भागा, पर वह बच पर लेट गया और इतनी ल.बी 71
सांस ली, मानो बहत ु ु दे र से उसने सांस ही नहीं ली है । उसके मुख से दःसह वेदना म डबे ू हए ु शCद िनकले-हाय ईSर। इस नाम के िसवा उसे अपना जीवन िनराधार मालूम होता था। इस एक उ'छवास म िकतना नैराँय था, िकतनी संवेदना, िकतनी कणा, िकतनी दीन-ूाथ ना भरी हई ु थी, इसका कौन अनुमान कर सकता है । अब सारा रहःय उसकी समझ म आ रहा था और बार-बार उसका पीिड़त Vदय आत नाद कर रहा था-हाय ईSर। इतना घोर कलंक। Pया जीवन म इससे बड़ी िवपि3 की कXपना की जा सकती है ? Pया संसार म इससे घोरतम नीचता की कXपना हो सकती है ? आज तक िकसी िपता ने अपने प ऽ ु पर इतना िनद य कलंक न लगाया होगा। िजसके चिरऽ की सभी ूशंसा करते थे, जो अ+य युवक के िलए आदश समझा जाता था, िजसने कभी अपिवऽ िवचार को अपने पास नहीं फटकने िदया, उसी पर यह घोरतम कलंक। मंसाराम को ऐसा मालूम हआ ु , मान उसका िदल फटा जाता है । दसरी घंटी भी बज गई। लड़के अपने-अपने कमरे म गए, पर मंसाराम ू हथेली पर गाल रखे अिनमेष नेऽ से भूिम की ओर दे ख रहा था, मानो उसका सव ःव जलम]न हो गया हो, मानो वह िकसी को मुंह न िदखा सकता हो। ःकूल म गैरहािजरी हो जायेगी, जुमा ना हो जायेगा, इसकी उसे िचंता नहीं, जब उसका सव ःव लुट गया, तो अब इन छोटी-छोटी बात का Pया भय? इतना बड़ा कलंक लगने पर भी अगर जीता रहंू , तो मेरे जीने को िधPकार है । उसी शोकाितरे क दशा म वह िचXला पड़ा-माताजी। तुम कहां हो? तु.हारा बेटा, िजस पर तुम ूाण दे ती थीं, िजसे तुम अपने जीवन का आधार समझती थीं, आज घोर संकट म है । उसी का िपता उसकी गद न पर छुरी फेर रहा है । हाय, तुम हो? मंसाराम िफर शांतिच3 से सोचने लगा-मुझ पर यह संदेह Pय हो रहा है ? इसका Pया कारण है ? मुझम ऐसी कौन-सी बात उ+हने दे खी, िजससे उ+ह यह संदेह हआ ु ? वह हमारे िपता हG , मेरे शऽु नहीं है , जो अनायास ही मझ पर यह अपराध लगाने बैठ जाय। जर उ+होन कोई-कोई बात दे खी या सुनी है । उनका मुझ पर िकतना ःनेह था। मेरे बगैर भोजन न करते थे, वही मेरे शऽु हो जाय, यह बात अकारण नहीं हो सकती। 72
अ'छा, इस संदेह का बीजारोपण िकस िदन हआ ु ?
मुझे बोिड ग हाउस
म ठहराने की बात तो पीछे की है । उस िदन रात को वह मेरे कमरे म आकर मेरी परीaा लेने लगे थे, उसी िदन उनकी Rयोिरयां बदली ह ु थीं। उस िदन ऐसी कौन-सी बात हई ु , जो अिूय लगी हो। मG नई अ.मां से कुछ खाने को मांगने गया था। बाबूजी उस समय वहां बैठे थे। हां, अब याद आती है , उसी व} उनका चेहरा तमतमा गया था। उसी िदन से नई अ.मां ने मुझसे पढ़ना छोड़ िदया। अगर मG जानता िक मेरा घर म आना-जाना, अ.मांजी से कुछ कहना-सुनना और उ+ह पढ़ाना-िलखाना िपताजी को बुरा लगता है , तो आज Pय यह नौबत आती? और नई अ.मां। उन पर Pया बीत रही होगी? मंसाराम ने अब तक िनम ला की ओर \यान नहीं िदया था। िनम ला का \यान आते ही उसके रये खड़े हो गये। हाय उनका सरल ःनेहशील Vदय यह आघात कैसे सह सकेगा? आह। मG िकतने ॅम म था। मG उनके ःनेह को कौशल समझता था। मुझे Pया मालूम था िक उ+ह िपताजी का ॅम शांत करने के िलए मेरे ूित इतना कटु 4यवहार करना पड़ता है । आह। मGने उन पर िकतना अ+याय िकया है । उनकी दशा तो मुझसे भी खराब हो रही होगी। मG तो यहां चला आय, मगर वह कहां जायगी? िजया कहता था, उ+हने दो िदन से भोजन नहीं िकया। हरदम रोया करती हG । कैसे जाकर समझाऊं। वह इस अभागे के पीछे Pय अपने िसर यह िवपि3 ले रही हG ? वह बार-बार मेरा हाल प छ ू ती हG ? Pय बार-बार मुझे बुलाती हG ? कैसे कह दं ू िक माता मुझे तुमसे जरा भी िशकायत नहीं, मेरा िदल तु.हारी तरफ से साफ है । वह अब भी बैठी रो रही हगी। िकतना बड़ा अनथ है । बाबूजी को
यह
Pया हो रहा है ? Pया इसीिलए िववाह िकया था? एक बािलका की हRया करने के िलए ही उसे लाये थे? इस कोमल प ंु प को मसल डालने के िलए ही तोड़ा था। उनका उKार कैसे होगा। उस िनरपरािधनी का मुख कैस उMजवल होगा? उ+ह केवल मेरे साथ ःनेह का 4यवहार करने के िलए यह दं ड िदया जा रहा है । उनकी सMजनता का उ+ह यह उपहार िमल रहा है । मG उ+ह इस ूकार िनद य आघात सहते दे खकर बैठा रहंू गा? अपनी मान-रaा के िलए न सही, उनकी आRम-रaा के िलए इन ूाण का बिलदान करना पड़े गा। इसके िसवाय उiार का काई उपाय नहीं। आह। िदल म कैसे-कैसे अरमान थे। वे 73
सब खाक म िमला दे ने हगे। एक सती पर संदेह िकया जा रहा है और मेरे कारण। मुझे अपनी ूाण से उनकी रaा करनी होगी, यही मेरा क3 4य है । इसी म स'ची वीरता है । माता, मG अपने र} से इस कािलमा को धो दं ग ू ा। इसी म मेरा और तु.हारा दोन का कXयाण है । वह िदन भर इ+हीं िवचार मे डबा रहा। शाम को उसके दोन भाई ू आकर घर चलने के िलए आमह करने लगे। िसयाराम-चलते Pयां नही? मेरे भैयाजी, चले चलो न। मंसाराम-मुझे फुरसत नहीं है िक तु.हारे कहने से चला चलूं। िजयाराम-आिखर कल तो इतवार है ही। मंसाराम-इतवार को भी काम है । िजयाराम-अ'छा, कल आआगे न? मंसाराम-नहीं, कल मुझे एक मैच म जाना है । िसयाराम-अ.मांजी मूग ं के लडू बना रही हG । न चलोगे तो एक भी पाआगे। हम तुम िमल के खा जायगे, िजया इ+ह न द गे। िजयाराम-भैया, अगर तुम कल न गये तो शायद अ.मांजी यहीं चली आय। मंसाराम-सच। नहीं ऐसा Pय कर गी। यहां आयीं, तो बड़ी परे शानी होगी। तुम कह दे ना, वह कहीं मैच दे खने गये हG । िजयाराम-मG झूठ Pय बोलने लगा। मG कह दं ग ू ा, वह मुंह फुलाये बैठे थे। दे ख ले उ+ह साथ लाता हंू िक नहीं। िसयाराम-हम कह द गे िक आज पढ़ने नहीं गये। पड़े -पड़े सोते रहे । मंसाराम ने इन दत ू से कल आने का वादा करके गला छुड़ाया। जब दोन चले गये, तो िफर िचंता म डबा। रात-भर उसे करवट बदलते गुजरी। ू छुeटी का िदन भी बैठे-बैठे कट गया, उसे िदन भर शंका होती रहती िक कहीं अ.मांजी सचमुच न चली आय। िकसी गाड़ी की खड़खड़ाहट सुनता, तो उसका कलेजा धकधक करने लगता। कहीं आ तो नहीं गयीं? छाऽालय म एक छोटा-सा औषधालय था। एक डांPटर साहब सं\या समय एक घ^टे के िलए आ जाया करते थे। अगर कोई लड़का बीमार होता तो उसे दवा दे ते। आज वह आये तो मंसाराम कुछ सोचता हआ उनके पास ु जाकर खड़ा हो गया। वह मंसाराम को अ'छी तरह जानते थे। उसे दे खकर आdय से बोले-यह तु.हारी Pया हालत है जी? तुम तो मानो गले जा रहे 74
हो। कहीं बाजार का का चःका तो नहीं पड़ गया? आिखर तु.ह हआ Pया? ु जरा यहां तो आओ। मंसाराम ने मुःकराकर कहा-मुझे िज+दगी का रोग है । आपके प ास इसकी भी तो कोई दवा है ? डाPटर-मG तु.हारी परीaा करना चाहता हंू । तु.हारी सूरत ही बदल गयी है , पहचाने भी नहीं जाते। यह कहकर, उ+होने मंसाराम का हाथ पकड़ िलया और छाती, पीठ, आंख, जीभ सब बारी-बारी से दे खीं। तब िचंितत होकर बोले-वकील साहब से मG आज ही िमलूग ं ा। तु.ह थाइिसस हो रहा है । सारे लaण उसी के हG । मंसाराम ने बड़ी उRसुकता से प छ ू ा-िकतने िदन म काम तमाम हो जायेगा, डPटर साहब? डाPटर-कैसी बात करते हो जी। मG वकील साहब से िमलकर तु.ह िकसी पहाड़ी जगह भेजने की सलाद दं ग ू ा। ईSर ने चाहा, तो बहत ु जXद अ'छे हो जाओगे। बीमारी अभी पहले ःटे ज म है । मंसाराम-तब तो अभी साल दो साल की दे र मालूम होती है । मG तो इतना इं तजार नहीं कर सकता। सुिनए, मुझे थायिसस-वायिसस कुछ नहीं है , न कोई दसरी िशकायत ही है , आप बाबूजी को नाहक तरिदद ू ु म न डािलएगा। इस व} मेरे िसर म दद है , कोई दवा दीिजए। कोई ऐसी दवा हो, िजससे नींद भी आ जाये। मुझे दो रात से नींद नहीं आती। डॉPटर ने जहरीली दवाइय की आलमारी खोली और शीशी से थोड़ी सी दवा िनकालकर मंसाराम को दी। मंसाराम ने प छ ू ा-यह तो कोई जहर है भला इस कोई पी ले तो मर जाये? डॉPटर-नहीं, मर तो नहीं जाये, पर िसर म चPकर जWर आ जाये। मंसाराम-कोई ऐसी दवा भी इसम है , िजसे पीते ही ूाण िनकल जाय? डॉPटर-ऐसी एक-दो नहीं िकतनी ही दवाएं हG । यह जो शीशी दे ख रहे हो, इसकी एक बूंद भी पेट म चली जाये, तो जान न बचे। आनन-फानन म मौत हो जाये। मंसाराम-Pय डॉPटर साहब, जो लोग जहर खा लेते हG , उ+ह बड़ी तकलीफ होती होगी?
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डॉPटर-सभी जहर म तकलीफ नहीं होती। बाज तो ऐसे हG िक पीते ही आदमी ठं डा हो जाता है । यह शीशी इसी िकःम की है , इस पीते ही आदमी बेहोश हो जाता है , िफर उसे होश नहीं आता। मंसाराम ने सोचा-तब तो ूाण दे ना बहत ु आसान है , िफर Pय लोग ू कर शहर के इतना डरते हG ? यह शीशी कैसे िमलेगी? अगर दवा का नाम प छ िकसी दवा-फरोश से लेना चाहंू , तो वह कभी न दे गा। ऊंह, इसे िमलने म कोई िदPकत नहीं। यह तो मालूम हो गया िक ूाण का अ+त बड़ी आसानी से िकया जा सकता है । मंसाराम इतना ूस+न हआ ु , मानो कोई इनाम पा गया हो। उसके िदल पर से बोझ-सा हट गया। िचंता की मेघ-रािश जो िसर पर मंड रा रही थी, िछ+न-िभ+न ् हो गयी। महीन बाद आज उसे मन म एक ःफूित का अनुभव हआ। लड़के िथयेटर दे खने जा रहे थे, िनरीaक से आTा ु ले ली थी। मंसाराम भी उनके साथ िथयेटर दे खने चला गया। ऐसा खुश था, मानो उससे Mयादा सुखी जीव संसार म कोई नहीं है । िथयेटर म नकल दे खकर तो वह हं सते-हं सते लोट गया। बार-बार तािलयां बजाने और ‘व+स मोर’ की हांक लगाने म पहला न.बर उसी का था। गाना सुनकर वह मःत हो जाता था, और ‘ओहो हो। करके िचXला उठता था। दश क की िनगाह बार-बार उसकी तरफ उठ जाती थीं। िथयेटर के पाऽ भी उसी की ओर ताकते थे और यह जानने को उRसुक थे िक कौन महाशय इतने रिसक और भावुक हG । उसके िमऽ को उसकी उ'छृंखलता पर आdय हो रहा था। वह बहत ु ही शांतिच3, ग.भीर ःवभाव का युवक था। आज वह Pय इतना हाःयशील हो गया है , Pय उसके िवनोद का पारावार नहीं है । दो बजे रात को िथयेटर से लौटने पर भी उसका हाःयो+माद कम नहीं हआ। उसने एक लड़के की चारपाई उलट दी, कई लड़क के कमरे के Kार ु बाहर से बंद कर िदये और उ+ह भीतर से खट-खट करते सुनकर हं सता रहा। यहां तक िक छाऽालय के अ\यa महोदय करी नींद म भी शोरगुल सुनकर खुल गयी और उ+हने मंसाराम की शरारत पर खेद ूकट िकया। कौन जानता है िक उसके अ+त:ःथल म िकतनी भीषण बांित हो रही है ? संदेह के िनद य आघात ने उसकी लMजा और आRमस.मान को कुचल डाला है । उसे अपमान और ितरःकार का लेशमाऽ भी भय नहीं है । यह िवनोद नहीं, उसकी आRमा का कण िवलाप है । जब और सब लड़के सो गये, तो वह भी चारपाई पर लेटा, लेिकन उसे नींद नहीं आयी। एक aण के बाद वह बैठा और अपनी 76
सारी प ः ु तक बांधकर संदक ू म रख दीं। जब मरना ही है , तो पढ़कर Pया होगा? िजस जीवन म ऐसी-एसी बाधाएं हG , ऐसी-ऐसी यातनाएं हG , उससे मृRयु कहीं अ'छी। यह सोचते-सोचते तड़का हो गया। तीन रात से वह एक aण भी न सोया था। इस व} वह उठा तो उसके प रै थर-थर कांप रहे थे और िसर म चPकर सा आ रहा था। आंख जल रही थीं और शरीर के सारे अंग िशिथल हो रहे थे। िदन चढ़ता जाता था और उसम इतनी शि} िदन चढ़ता जाता था और उसम इतनी शि} भी न थी िक उठकर मुंह हाथ धो डाले। एकाएक उसने भूंगी को Wमाल म कुछ िलए हए ु एक कहार के साथ आते दे खा। उसका कलेजा स+न रह गया। हाय। ईSर वे आ गयीं। अब Pया होगा? भूंगी अकेले नहीं आयी होगी? ब]घी जWर बाहर खड़ी होगी? कहां तो उससे उठा ू जाता था, कहां भूंगी को दे खते ही दौड़ा और घबराई हई ु आवाज म बोला-अ.मांजी भी आयी हG , Pया रे ? जब मालूम हआ िक अ.मांजी नहीं ु आयी, तब उसका िच3 शांत हआ। ु भूंगी ने कहा-भैया। तुम कल गये नही, बहजी तु.हारी राह दे खती रह ू गयीं। उनसे Pय ठे हो भैया? कहती हG , मGने उनकी कुछ भी िशकायत नहीं की है । मुझसे आज रोकर कहने लगीं-उनके पास यह िमठाई लेती जा और कहना, मेरे कारण Pय घर छोड़ िदया है ? कहां रख दं ू यह थाली? मंसाराम ने खाई से कहा-यह थाली अपने िसर पर पटक दे चुड़ैल। वहां से चली है िमठाई लेकर। खबरदार, जो िफर कभी इधर आयी। सौगात लेकर चली है । जाकर कह दे ना, मुझे उनकी िमठाई नहीं चािहए। जाकर कह दे ना, तु.हारा घर है तुम रहो, वहां वे बड़े आराम से हG । खूब खाते और मौज करते हG । सुनती है , बाबूजी की मुंह पर कहना, समझ गयी? मुझे िकसी का डर नहीं है , और जो करना चाह , कर डाल, िजससे िदल म कोई अरमान न रह जाये। कह तो इलाहाबाद, लखनऊ, कलक3ा चला जाऊं। मेरे िलए जैसे बनारस वैसे दसरा शहर। यहां Pया रखा है ? ू भूंगी-भैया, िमठाई रख लो, नहीं रो-रोकर मर जायगी। सच मानो रोरोकर मर जायगी। मंसाराम ने आंसओ ु ं के उठते हए ु वेग को दबाकर कहा-मर जायगी, मेरी बला से। कौन मुझे बड़ा सुख दे िदया है , िजसके िलए पछताऊं। मेरा तो 77
उ+हने सव नाश कर िदया। कह दे ना, मेरे पास कोई संदेशा न भेज, कुछ जWरत नहीं। भूंगी- भैया, तुम तो कहते हो यहां खूब खाता हंू और मौज करता हंू , मगर दे ह तो आधी भी न रही। जैसे आये थे, उससे आधे भी न रहे । मंसाराम-यह तेरी आंख का फेर है । दे खना, दो-चार िदन म मुटाकर कोXहू हो जाता हंू िक नहीं। उनसे यह भी कह दे ना िक रोना-धोना बंद कर । जो मGने सुना िक रोती हG और खाना नहीं खातीं, मुझसे बुरा कोई नहीं। मुझे घर से िनकाला है , तो आप न से रह । चली हG , ूेम िदखाने। मG ऐसे िऽयाचिरऽ बहत ु पढ़े बैठा हंू । भूंगी चली गयी। मंसाराम को उससे बात करते ही कुछ ठ^ड मालूम होने लगी थी। यह अिभनय करने के िलए उसे अपने मनोभाव को िजतना दबाना पड़ा था, वह उसके िलए असा\य था। उसका आRम-स.मान उसे इस कुिटल 4यवहार का जXद-से-जXद अंत कर दे ने के िलए बा\य कर रहा था, पर इसका पिरणाम Pया होगा? िनम ला Pया यह आघात सह सकेगी? अब तक वह मृRयु की कXपना करते समय िकसी अ+य ूाणी का िवचार न करता था, पर आज एकाएक Tान हआ िक मेरे जीवन के साथ एक और ु ूाणी का जीवन-सूऽ भी बंधा हआ है । िनम ला यह समझेगी िक मेरी िनNु रता ु ही ने इनकी जान ली। यह समझकर उसका कोमल Vदय फट न जायेगा? उसका जीवन तो अब भी संकट
म है । संदेह के कठोर पंजे म फंसी हुई
अबला Pया अपने का हRयािरणी समझकर बहत ु िदन जीिवत रह सकती है ? मंसाराम ने चारपाई पर लेटकर िलहाफ ओढ़ िलया, िफर भी सद से कलेजा कांप रहा था। थोड़ी ही दे र म उसे जोर से Mवर चढ़ आया, वह बेहोश हो गया। इस अचेत दशा म उसे भांित-भांित के ःवbन िदखाई दे ने लगे। थोड़ी-थोड़ी दे र के बाद चjक पड़ता, आंख खुल जाती, िफर बेहोश हो जाता। सहसा वकील साहब की आवाज सुनकर वह चjक पड़ा। हां, वकील साहब की आवाज थी। उसने िलहाफ फक िदया और चारपाई से उतरकर नीचे खड़ा हो गया। उसके मन म एक आवेग हआ िक इस व} इनके ु सामने ूाण दे दं ।ू उसे ऐसा मालूम हआ िक मG मर जाऊं, तो इ+ह स'ची ु खुशी होगी। शायद इसीिलए वह दे खने आये हG िक मेरे मरने म िकतनी दे र है । वकील साहब ने उसका हाथ पकड़ िलया, िजससे वह िगर न पड़े और 78
पछ ू ा-कैसी तबीयत है लXलू। लेटे Pय न रहे ? लेट न जाओ, तुम खड़े Pय हो गये? मंसाराम-मेरी तबीयत तो बहत ु अ'छी है । आपको 4यथ ही कm हआ। ु मुंशी जी ने कुछ जवाब न िदया। लड़के की दशा दे खकर उनकी आंख से आंसू िनकल आये। वह Vm-प m ु बालक, िजसे दे खकर िच3 ूस+न हो जाता था, अब सूखकर कांटा हो गया था। पांच-छ: िदन म ही वह इतना दबला हो गया था िक उसे पहचानना किठन था। मुंशीजी ने उसे आिहःता ु से चारपाई पर िलटा िदया और िलहाफ अ'छी तरह उसे उढ़ाकर सोचने लगे िक अब Pया करना चािहए। कहीं लड़का हाथ से तो नहीं जाएगा। यह cयाल ू पर बैठकर फूट-फूटकर रोने लगे। करके वह शोक िववल हो गये और ःटल मंसाराम भी िलहाफ म मुंह लपेटे रो रहा था। अभी थोड़े ही िदन पहले उसे दे खकर िपता का Vदय गव से फूल उठता था, लेिकन आज उसे इस दाण दशा म दे खकर भी वह सोच रहे हG िक इसे घर ले चलूं या नहीं। Pया यहां दवा नहीं हो सकती? मG यहां चौबीस घ^टे बैठा रहंू गा। डॉPटर साहब यहां हG ही। कोई िदPकत न होगी। घर ले चलने से म उ+ह बाधाएं-ही-बाधाएं िदखाई दे ती थीं, सबसे बड़ा भय यह था िक वहां िनम ला इसके पास हरदम बैठी रहे गी और मG मना न कर सकंू गा, यह उनके िलए अस था। इतने म अ\यa ने आकर कहा-मG तो समझता हंू िक आप इ+ह अपने साथ ले जाय। गाड़ी है ही, कोई तकलीफ न होगी। यहां अ'छी तरह दे खभाल न हो सकेगी। मुंशीजी-हां, आया तो मG इसी खयाल से था, लेिकन इनकी हालत बहत ु ही नाजुक मालूम होती है । जरा-सी असावधानी होने से सरसाम हो जाने का भय है । अ\यa-यहां से इ+ह ले जाने म थोड़ी-सी िदPकत जर है , लेिकन यह तो आप खुद सोच सकते हG िक घर पर जो आराम िमल सकता है , वह यहां िकसी तरह नहीं िमल सकता। इसके अितिर} िकसी बीमार लड़के को यहां रखना िनयम-िवi भी है । मुंशीजी- किहए तो मG हे ड माःटर से आTा ले लूं। मुझे इनका यहां से इस हालत म ले जाना िकसी तरह मुनािसब नहीं मालूम होता।
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अ\यa ने हे ड माःटर का नाम सुना, तो समझे िक यह महाशय धमकी दे रहे हG । जरा ितनककर बोले-हे ड माःटर िनयम-िवK कोई बात नहीं कर सकते। मG इतनी बड़ी िज.मेदारी कैसे ले सकता हंू ? अब Pया हो? Pया घर ले जाना ही पड़े गा? यहां रखने का तो यह बहाना था िक ले जाने बीमारी बढ़ जाने की शंका है । यहां से ले जाकर हःपताल म ठहराने का कोई बहाना नहीं है । जो सुनेगा, वह यही कहे गा िक डाPटर की फीस बचाने के िलए लड़के को अःपताल फक आये, पर अब ले जाने के िसवा
और कोई उपाय न था। अगर अ\यa महोदय इस व}
िरSत लेने पर तैयार हो जाते, तो शायद दो-चार साल का वेतन ले लेते, लेिकन कायदे के पाबंद लोग म इतनी बुिK, इतनी चतुराई कहां। अगर इस व} मुंशीजी को कोई आदमी ऐसा उळ सुझा दे ता, िजसम उनह मंसाराम को घर न ले जाना पड़े , तो वह आजीवन असका एहसान मानते। सोचने का समय भी न था। अ\यa महोदय शैतान की तरह िसर पर सवार था। िववश होकर मुंशीजी ने दोन साईस को बुलाया और मंसाराम को उठाने लगे। मंसाराम अध चेतना की दशा म था, चौककर बोला, Pया है ? कोन है ? मुंशीजी-कोई नहीं है बेटा, मG तु.ह घर ले चलना चाहता हंू , आओ, गोद म उठा लूं। मंसाराम- मुझे Pय घर ले चलते हG ? मG वहां नहीं जाऊंगा। मुंशीजी- यहां तो रह नहीं सकत, िनयम ही ऐसा है । मंसाराम- कुछ भी हो, वहां न जाऊंगा। मुझे और कहीं ले चिलए, िकसी पेड़ के नीचे, िकसी झपड़े म, जहां चाहे रिखए, पर घर पर न ले चिलए। अ\यa ने मुंशीजी से कहा-आप इन बात का cयाल न कर , यह तो होश म नहीं है । मंसाराम- कौन होश म नहीं है ? मG होश म नहीं हंू ? िकसी को गािलयां दे ता हू? दांत काटता हंू ? Pय होश म नहीं हंू ? मुझे यहीं पड़ा रहने दीिजए, जो कुछ होना होगा, अगरन ऐसा है , तो मुझे अःपताल ले चिलए, मG वहां पड़ा रहंू गा। जीना होगा, जीऊगा, मरना होगा मं गा, लेिकन घर िकसी तरह भी न जाऊंगा। यह जोर पाकर मुंशीजी िफरा अ\यa की िम+नत करने लगे, लेिकन वह कायदे का पाबंदी आदमी कुछ सुनता ही न था। अगर छूत की बीमारी 80
हई लड़के को छूत लग गयी, तो कौन उसका जवाबदे ह ू ु और िकसी दसरे होगा। इस तक के सामने मुंशीजी की कानूनी दलील भी मात हो गयीं। आिखर मुंशीजी ने मंसाराम से कहा-बेटा, तु.ह घर चलने से Pय इं कार हो रहा है ? वहां तो सभी तरह का आराम रहे गा। मुंशीजी ने कहने को तो यह बात कह दी, लेिकन डर रहे थे िक कहीं सचमुच मंसाराम च लने पर राजी न हो जाये। मंसाराम को अःपताल म रखने का कोई बहाना खोज रहे थे और उसकी िज.मेदारी मंसाराम ही के िसर डालना चाहते थे। यह अ\यa के सामने की बात थी, वह इस बात की साaी दे सकते थे िक मंसाराम अपनी िजद से अःपताल जा रहा है । मुंशीजी का इसमे लेशमाऽ भी दोष नहीं है । मंसाराम ने झXलाकर हा-नहीं, नहीं सौ बार नहीं, मG घ नहीं जाऊंगा। मुझे अःपताल ले चिलए और घर के सब िक
आदिमय को मना कर दीिजए
मुझे दे खने न आये। मुझे कुछ नहीं हआ है , िबXकुल बीमार नहीं ह।ू ु
आप मुझे छोड़ दीिजए, मG अपने पांव से चल सकता हंू । वह उठ खड़ा हआ और उ+म3 की भांित Kार की ओर चला, लेिकन प रै ु लड़खडा गये। यिद मुंशीजी ने संभाल न िलया होता, तो उसे बड़ी चोट आती। दोन नौकर की मदद से मुंशीजी उसे ब]घी के पास लाये और अंदर बैठा िदया। गाड़ी अःपताल की ओर चली। वही हआ जो मुंशीजी चाहते थे। इस ु शोक म भी उनका िच3 संतुm था। लड़का अपनी इ'छा से अःपताल जा रहा था Pया यह इस बात का ूमाण नहीं था िक घर म इसे कोई ःनेह नहीं है ? Pया इससे यह िसi नहीं होता िक मंसाराम िनदष है ? वह
उसक
पर
अकारण ही ॅम कर रहे थे। लेिकन जरा ही दे र म इस तुिm की जगह उनके मन म ]लािन का भाव जामत हआ। वह अपने ूाण-िूय प ऽ ु को घर न ले जाकर अःपताल ु िलये जा रहे थे। उनके िवशाल भवन म उनके प ऽ ु के िलए जगह न थी, इस दशा म भी जबिक उसकी जीवल संकट म पड़ा हआ था। िकतनी िवड.बना ु है ! एक aण के बाद एकाएक मुंशीजी के मन म ू उठा-कहीं मंसाराम उनके भाव को ताड़ तो नहीं गया? इसीिलए तो उसे घर से घृणा नहीं हो गेयी है ? अगर ऐसा है , तो गजब हो जायेगा। 81
उस अनथ की कXपना ही से मुंशीजी के रए खड़े हो गये और कलेजा धPधक करने लगा। Vदय म एक धPका-सा लगा। अगर इस Mवर का यही कारण है , तो ईSर ही मािलक है । इस समय उनकी दशा अRय+त दयनीय थी। वह आग जो उ+हने अपने िठठु रे हए ु हाथ को सकने के िलए जलाई थी, अब उनके घर म लगी जा रही थी। इस कणा, शोक, पdा3ाप और शंका से उनका िच3 घबरा उठा। उनके गुr रोदन की \विन बाहर िनकल सकती, तो सुनने वाले रो पड़ते। उनके आंसू बाहर िनकल सकते, तो उनका तार बंध जाता। उ+हने प ऽ ु के वण -हीन मुख की ओर एक वाRसXयूप ण नेऽ से दे खा, वेदना से िवकल होकर उसे छाती से लगा िलया और इतना रोये िक िहचकी बंच गयी। सामने अःपताल का फाटक िदखाई दे रहा था। ]यारह
मुं
शी तोताराम सं\या समय कचहरी से घर पहंु च,े तो िनम ला ने प छ ू ाउ+ह दे खा, Pया हाल है ? मुंशीजी ने दे खा िक िनम ला के मुख पर
नाममाऽ को भी शोक यािचनता का िच+ह नहीं है । उसका बनाव-िसंगार और िदन से भी कुछ गाढ़ा हआ है । मसलन वह गले का हार न पहनती थी, पर ु आजा वह भी गले मे शोभ दे रहा था। झूमर से भी उसे बहत ु ूेम था, वह आज वह भी महीन रे शमी साड़ी के नीचे, काले-काले केश के ऊपर, फानुस के दीपक की भांित चमक रहा था। मुंशीजी ने मुंह फेरकर कहा- बीमार है और Pया हाल बताऊं? िनम ला- तुम तो उ+ह यहां लाने गये थे? मुंशीजी ने झुंझलाकर कहा- वह नहीं आता, तो Pया मG जबरदःती उठा लाता? िकतना समझाया िक बेटा घर चलो, वहां तु.ह कोई तकलीफ न होने पावेगी, लेिकन घर का नाम सुनकर उसे जैसे दना ू Mवर हो जाता था। कहने लगा- मG यहां मर जाऊंगा, लेिकन घर न जाऊंगा। आिखर मजबूर होकर अःपताल पहंु चा आया और Pया करता? िPमणी भी आकर बरामदे म खड़ी हो गई थी। बोलीं- वह ज+म का हठी है , यहां िकसी तरह न आयेगा और यह भी दे ख लेना, वहां अ'छा भी न होगा? 82
मुंशीजी ने कातर ःवर म कहा- तुम दो-चार िदन के िलए वहां चली जाओ, तो बड़ा अ'छा हो बहन, तु.हारे रहने से उसे तःकीन होती रहे गी। मेरी बहन, मेरी यह िवनय मान लो। अकेले वह रो-रोकर ूाण दे दे गा। बस हाय अ.मां! हाय अ.मां! की रट लगाकर रोया करता है । मG वहीं जा रहा हंू , मेरे साथ ही चलो। उसकी दशा अ'छी नहीं। बहन, वह सूरत ही नहीं रही। दे ख ईSर Pया करते हG ? यह कहते-कहते मुंशीजी की आंख से आंसू बहने लगे, लेिकन िPमणी अिवचिलत भाव से बोली- मG जाने को तैयार हंू । मेरे वहां रहने से अगर मेरे लाल के ूाण बच जाय, तो मG िसर के बल दौड़ी जाऊं, लेिकन मेरा कहना िगरह म बांध लो भैया, वहां वह अ'छा न होगा। मG उसे खूब पहचानती हंू । उसे कोई बीमारी नहीं है , केवल घर से िनकाले जाने का शोक है । यही द:ु ख Mवर के प म ूकट हआ है । तुम एक नहीं, लाख दवा करो, िसिवल सज न ु को ही Pय न िदखाओ, उसे कोई दवा असार न करे गी। मुंशीजी- बहन, उसे घर से िनकाला िकसने है ? मGने तो केवल उसकी पढ़ाई के खयाल से उसे वहां भेजा था। िPमणी- तुमने चाहे िजस खयाल से भेजा हो, लेिकन यह बात उसे लग गयी। मG तो अब िकसी िगनती म नहीं हंू , मुझे िकसी बात म बोलने का कोई अिधकार नहीं। मािलक तुम, मालिकन तु.हारी nी। मG तो केवल तु.हारी रोिटय पर पड़ी हई े ा और कौन ु अभिगनी िवधवा हंू । मेरी कौन सुनग परवाह करे गा? लेिकन िबना बोले रही नहीं जाता। मंसा तभी अ'छा होगा: जब घर आयेगा, जब तु.हारा Vदय वही हो जायेगा, जो पहले था। यह कहकर िPमणी वहां से चली गयीं, उनकी Mयोितहीन, पर अनुभवप ण ू आंख के सामने जो चिरऽ हो रहे थे, उनका रहःय वह खूब समझती थीं और उनका सारा बोध िनरपरािधनी िनम ला ही पर उतरता था। इस समय भी वह कहते-कहते ग गयीं, िक जब तक यह लआमी इस घर म रह गी, इस घर की दशा िबगड़ती हो जायेगी। उसको ूगट प से न कहने पर भी उसका आशय मुंशीजी से िछपा नहीं रहा। उनके चले जाने पर मुंशीजी ने िसर झुका िलया और सोचने लगे। उ+ह अपने ऊपर इस समय इतना बोध आ रहा था िक दीवार से िसर पटककर ूाण का अ+त कर द । उ+हने Pय िववाह िकया था? िववाह करे न की Pया जरत थी? ईSर ने उ+ह एक नहीं, तीन-तीन प ऽ ु िदये थे? उनकी अवःथा भी पचास के लगभग 83
पहंु च गेयी थी िफर उ+हने Pय िववाह िकया? Pया इसी बहाने ईSर को उनका सव नाश करना मंजरू था? उ+हने िसर उठाकर एक बार िनम ला को सहास, पर िनdल मूित दे खी और अःपताल चले गये। िनम ला की सहास, छिव ने उनका िच3 शा+त कर िदया था। आज कई िदन के बाद उ+ह शाि+त मयसर हई ु थी। ूेम-पीिड़त Vदय इस दशा म Pया इतना शा+त और अिवचिलत रह सकता है ? नहीं, कभी नहीं। Vदय की चोट भाव-कौशल से नहीं िछपाई जा सकती। अपने िच3 की दब
ु नजा पर इस समय उ+ह अRय+त aोभ हआ। उ+हने अकारण ही स+दे ह को Vदय म ःथान दे कर इतना अनथ
ु िकया। मंसाराम की ओर से भी उनका मन िन:शंक हो गया। हां उसकी जगह अब एक नयी शंका उRप+न हो गयी। Pया मंसाराम भांप तो नहीं गया? Pया भांप कर ही तो घर आने से इ+कार नहीं कर रहा है ? अगर वह भांप गया है , तो महान ्अनथ हो जायेगा। उसकी कXपना ही से उनका मन दहल उठा। उनकी दे ह की सारी हिडयां मान इस हाहाकार पर पानी डालने के िलए 4याकुल हो उठीं। उ+हने कोचवान से घोड़े को तेज चलाने को कहा। आज कई िदन के बाद उनके Vदय मंड ल पर छाया हआ सघन फट गया था ु और ूकाश की लहर अ+दर से िनकलने के िलए 4यम हो रही थीं। उ+हने बाहर िसर िनकाल कर दे खा, कोचवान सो तो नहीं रहा ह। घोड़े की चाल उ+ह इतनी म+द कभी न मालूम हई ु थी। अःपताल पहंु चकर वह लपके हए ु मंसाराम के पास गये। दे खा तो डॉPटर साहब उसके सामने िच+ता म म]न खड़े थे। मुंशीजी के हाथ-पांव फूल गये। मुंह से शCद न िनकल सका। भरभराई हई ु आवाज म बड़ी मुिँकल से बोले- Pया हाल है , डॉPटर साहब? यह कहते-कहते वह रो पड़े और जब डॉPटर साहब को उनके ू का उ3र दे ने म एक aण का िवल.बा हआ ु , तब तो उनके ूाण नह म समा गये। उ+हने पलंग पर बैठकर अचेत बालक को गोद म उठा िलया और बालक की भांित िससक-िससककर रोने लगे। मंसाराम की दे ह तवे की तरह जल रही थी। मंसाराम ने एक बार आंख खोलीं। आह, िकतनी भयंकर और उसके साथ ही िकतनी दी fिm थी। मुंशीजी ने बालक को क^ठ से लगाकर डॉPटर से प छ ू ा-Pया हाल है , साहब! आप चुप Pय हG ? डॉPटर ने संिद]ध ःवर से कहा- हाल जो कुछ है , वह आपे दे ख ही रहे हG । 106 िडमी का Mवर है और मG Pया बताऊं? अभी Mवर का ूकोप बढ़ता 84
ही जाता है । मेरे िकये जो कुद हो सकता है , कर रहा हंू । ईSर मािलक है । जबसे आप गये हG , मG एक िमनट के िलए भी यहां से नहीं िहला। भोजन तक नहीं कर सका। हालत इतनी नाजुक है िक एक िमनट म Pया हो जायेगा, नहीं कहा जा सकता? यह महाMवर है , िबलकुल होश नहीं है । रहरहकर ‘िडलीिरयम’ का दौरा-सा हो जाता है । Pया घर म इ+ह िकसी ने कुछ कहा है ! बार-बार, अ.मांजी, तुम कहां हो! यही आवाज मुंह से िनकली है । डॉPटर साहब यह कह ही रहे थे िक सहसा मंसाराम उठकर बैठ गया और धPके से मुंशीज को चारपाई के नीचे ढकेलकर उ+म3 ःवर से बोलाPय धमकाते हG , आप! मार डािलए, मार डािल, अभी मार डािलए। तलवार नहीं िमलती! रःसी का फ+दा है या वह भी नहीं। मG अपने गले म लगा लूंगा। हाय अ.मांजी, तुम कहां हो! यह कहते-कहते वह िफर अचेते होकर िगर पड़ा। मुंशीजी एक aण तक मंसाराम की िशिथल मुिा की ओर 4यिथत नेऽ से ताकते रहे , िफर सहस उ+हने डॉPटर साहब का हाथ पकड़ िलया और अRय+त दीनताप ण ू आमह से बोले-डॉPटर साहब, इस लड़के को बचा लीिजए, ईSर के िलए बचा लीिजए, नहीं मेरा सव नाश हो जायेगा। मG अमीर नहीं हंू लेिकन आप जो कुछ कह गे, वह हािजर कं गा, इसे बचा लीिजए। आप बड़े से-बड़े
डॉPटर को बुलाइए और उनकी राय लीिजएक , मG सब खच दं ग ू ा।
इसीक अब नहीं दे खी जाती। हाय, मेरा होनहार बेटा! डॉPटर साहब ने कण ःवर म कहा- बाबू साहब, मG आपसे सRय कह रहा हंू िक मG इनके िलए अपनी तरफ से कोई बात उठा नहीं रख रहा हंू । अब आप दसरे डॉPटर से सलाह लेने को कहते हG । अभी डॉPटर लािहरी, ू डॉPटर भािटया और डॉPटर माथुर को बुलाता हंू । िवनायक शाnी को भी बुलाये लेता हंू , लेिकन मG आपको 4यथ का आSासन नहीं दे ना चाहता, हालत नाजुक है । मंशीजी ने रोते हए ु कहा- नहीं, डॉPटर साहब, यह शCद मुंह से न िनकािलए। हाल इसके दँमन की नाजुक हो। ईSर मुझ पर इतना कोप न ु कर गे। आप कलक3ा और ब.बई के डॉPटर को तारा दीिजए, मG िज+दगी भर आपकी गुलामी कं गा। यही मेरे कुल का दीपक है । यही मेरे जीवन का आधार है । मेरा Vदय फटा जा रहा है । कोई ऐसी दवा दीिजए, िजससे इसे 85
होश आ जाये। मG जरा अपने कान से उसकी बाते सुनंू जानूं िक उसे Pया कm हो रहा है ? हाय, मेरा ब'चा! डॉPटर- आप जरा िदल को तःकीन दीिजए। आप बुजग ु आदमी हG , य हाय-हाय करने और डॉPटर की फौज जमा करने से कोई नतीजा न िनकलेगा। शा+त होकर बैिठए, मG शहर के लोग को बुला रहा हंू , दे िखए Pया कहते हG ? आप तो खुद ही बदहवास हए ु जाते हG । मुंशीजी- अ'छा, डॉPटर साहब! मG अब न बोलूंग, जबान तब तक न खोलूग ं ा, आप जो चाहे कर , ब'चा अब हाथ म है । आप ही उसकी रaा कर सकते हG । मG इतना ही चाहता हंू िक जरा इसे होश आ जाये, मुझे पहचान ले, मेरी बात समझने लगे। Pया कोई ऐसी संजीवनी बूटी नहीं? मG इससे दो-चार बात कर लेता। यह कहते-कहते मुंशीजी आवेश म आकर मंसाराम से बोले- बेटा, जरा आंख खोलो, कैसा जी है ? मG तु.हारे पास बैठा रो रहा हंू , मुझे तुमसे कोई िशकायत नहीं है , मेरा िदल तु.हारी ओर से साफ है । डॉPटर- िफर आपने अनग ला बात करनी शु कीं। अरे साहब, आप ब'चे नहीं हG , बुजुग है , जरा धैय से काम लीिजए। मुंशीजी- अ'छा, डॉPटर साहब, अब न बोलूग ं ा, खता हई। आप जो चाह ु कीिजए। मGने सब कुछ आप पर छोड़ िदया। कोई ऐसा उपाय नहीं, िजससे मG इसे इतना समझा सकंू िक मेरा िदल साफ है ? आप ही कह दीिजए डॉPटर साहब, कह दीिजए, तु.हारा अभागा िपता बैठा रो रहा है । उसका िदल तु.हारी तरफ से िबलकुल साफ है । उसे कुछ ॅम हआ था। वब अब दरू हो गया। ु बस, इतना ही कर दीिजए। मG और कुछ नहीं चाहता। मG चुप चाप बैठा हंू । जबान को नहीं खोलता, लेिकन आप इतना जर कह दीिजए। डॉPटर- ईSर के िलए बाबू साहब, जरा सॄ कीिजए, वरना मुझे मजबूर होकर आपसे कहना पड़े गा िक घर जाइए। मG जरा दoतर म जाकर डॉPटर को खत िलख रहा हंू । आप चुप चाप बैठे रिहएगा। िनद यी डॉPटर! जवान बेटे की यहा दशा दे खकर कौन िपता है , जो धैय
से कामे लेगा? मुंशीजी बहत ु ग.भीर ःवभाव के मनुंय थे। यह भी जानते थे िक इस व} हाय-हाय मचाने से कोई नतीजा नहीं, लेिकन िफरी भी इस समय शा+त बैठना उनके िलए अस.भव था। अगर दै व-गित से यह बीमारी होती, तो वह शा+त हो सकते थे, दसर को समझा सकते थे, खुद डॉPटर का ू 86
बुला सकते थे, लेिकन Pयायह जानकर भी धैय रख सकते थे िक यह सब आग मेरी ही लगाई हई ु है ? कोई िपता इतना वळ-Vदय हो सकता है ? उनका रोम-रोम इस समय उ+ह िधPकार रहा था। उ+हने सोचा, मुझे यह दभा
ु वना उRप+न ही Pय हई ु ? मGने Pयां िबना िकसी ूRयa ूमाण के ऐसी भीषण कXपना कर डाली? अ'दा मुझे उसक दशा म Pया करना चािहए था। जो कुछ उ+हने िकया उसके िसवा वह और Pया करते, इसका वह िनdय न कर सके। वाःतव म िववाह के ब+धन म पड़ना ही अपने प रै म कुXहाड़ी माराना था। हां, यही सारे उपिव की जड़ है । मगर मGने यह कोई अनोखी बात नहीं की। सभी nी-प ु ष का िववाह करते हG । उनका जीवन आन+द से कटता है । आन+द की अ'दा से ही तो हम िववाह करते हG । मुहXले म सैकड़ आदिमय ने दसरी ू , तीसरी, चौथी यहां तक िक सातवीं शिदयां की हG और मुझसे भी कहीं अिधक अवःथा म। वह जब तक िजये आराम ही से िजये। यह भी नहीं हआ िक सभी nी से पहले मर गये ह। दहाज -ितहाज होने पर भी िकतने ही िफर रं डु ए हो गये। अगर मेरीु जैसी दशा सबकी होती, तो िववाह का नाम ही कौन लेता? मेरे िपताजी ने पचपनव वष म िववाह िकया था और मेरे ज+म के समय उनकी अवःथा साठ से कम न थी। हां, इतनी बात जर है िक तब और अब म कुछ अंतर हो गया है । पहले nीयां पढ़ी-िलखी न होती थीं। पित चाहे कैसा ही हो, उसे पM ू य समझती थी, यह बात हो िक प ु ष सब कुछ दे खकर भी बेहयाई से काम लेता हो, अवँय यही बात है । जब युवक वृiा के साथ ूस+न नहीं रह सकता, तो युवती Pय िकसी वृi के साथ ूस+न रहने लगी? लेिकन मG तो कुछ ऐसा बुढ़ा न था। मुझे दे खकर कोई चालीस से अिधक नहीं बता सकता। कुछ भी हो, जवानी ढल जाने पर जवान औरत से िववाह करके कुछ-न-कुछ बेहयाई जर करनी पड़ती है , इसम स+दे ह नहीं। nी ःवभाव से लMजाशील होती है । कुलटाओं की बात तो दसरी है , पर साधारणत: nी प ु ष ू से कहीं Mयादा संयमशील होती है । जोड़ का पित पाकर वह चाहे पर-प ु ष से हं सी-िदXलगी कर ले, पर उसका मन शुi रहता है । बेजोड़े िववाह हो जाने से वह चाहे िकसी की ओर आंखे उठाकर न दे ख,े पर उसका िच3 दखी रहता है । ु वह पPकी दीवार है , उसम सबरी का असर नहीं होता, यह क'ची दीवार है और उसी व} तक खड़ी रहती है , जब तक इस पर सबरी न चलाई जाये। 87
इ+हीं िवचारां म पड़े -पड़े मुंशीजी का एक झपकी आ गयी। मने के भाव ने तRकाल ःवbन का प धारण कर िलया। Pया दे खते हG िक उनकी पहली nी मंसाराम के सामने खड़ी कह रही है - ‘ःवामी, यह तुमने Pया िकया? िजस बालक को मGने अपना र} िपला-िपलाकर पाला, उसको तुमने इतनी िनद यता से मार डाला। ऐसे आदश चिरऽ बालक पर तुमने इतना घोर कलंक लगा िदया? अब बैठे Pया िबसूरते हो। तुमने उससे हाथ धो िलया। मG तु.हारे िनद या हाथ से छीनकर उसे अपने साथ िलए जाती हंू । तुम तो इतनो शPकी कभी न थे। Pया िववाह करते ही शक को भी गले बांध लाये? इस कोमल Vदय पर इतना कठारे आघात! इतना भीषण कलंक! इतन बड़ा अपमान सहकर जीनेवाले कोई बेहया हगे। मेरा बेटा नहीं सह सकता!’ यह कहते-कहते उसने बालक को गोद म उठा िलया और चली। मुश ं ीजी ने रोते हए ु उसकी गोद से मंसाराम को छीनने के िलए हाथ बढ़ाया, तो आंखे खुल गयीं और डॉPटर लािहरी, डॉPटर लािहरी, डॉPटर भािटया आिद आधे दज न डॉPटर उनको सामने खड़े िदखायी िदये। बारह
ती
न िदन गुजर गये और मुंशीजी घर न आये। िPमणी दोन व} अःपताल जातीं और मंसाराम को दे ख आती थीं। दोन लड़के भी
जाते थे, पर िनम ला कैसे जाती? उनके प रै म तो बेिड़यां पड़ी हई ु थीं। वह
मंसाराम की बीमारी का हाल-चाल जानने क िलए 4यम रहती थी, यिद िPमणी से कुछ प छ ू ती थीं, तो ताने िमलते थे और लड़को से प छ ू ती तो बेिसर-प रै की बात करने लगते थे। एक बार खुद जाकर दे खने के िलए उसका िच3 4याकुल हो रहा था। उसे यह भय होता था िक स+दे ह ने कहीं मुंशीजी के प ऽ ु -ूेम को िशिथल न कर िदया हो, कहीं उनकी कृ पणता ही तो मंसाराम क अ'छे होने म बाधक नहीं हो रही है ? डॉPटर िकसी के सगे नहीं होते, उ+ह तो अपने प स ै से काम है , मुदा दोजख म जाये या बिहँत म। उसक मन मे ूबल इ'छा होती थी िक जाकर अःपताल क डॉPटर का एक हजार की थैली दे कर कहे - इ+ह बचा लीिजए, यह थैली आपकी भट हG , पर उसके पास न तो इतने पये ही थे, न इतने साहस ही था। अब भी यिद वहां पहंु च सकती, तो मंसाराम अ'छा हो जाता। उसकी जैसी सेवा-शुौष ू ा 88
होनी चािहए, वैसी नहीं हो रही है । नहीं तो Pया तीन िदन तक Mवर ही न उतरता? यह दै िहक Mवर नहीं, मानिसक Mवर है और िच3 के शा+त होने ही से इसका ूकोप उतर सकता है । अगर वह वहां रात भर बैठी रह सकती और मुंशीजी जरा भी मन मैला न करते, तो कदािचत ्मंसाराम को िवSास हो जाता िक िपताजी का िदल साफ है और िफर अ'छे होने म दे र न लगती, लेिकन ऐसा होगा? मुंशीजी उसे वहां दे खकर ूस+निच3 रह सकगे? Pया अब भी उनका िदल साफ नहीं हआ ु ? यहां से जाते समय तो ऐसा Tात हआ था िक वह अपने ूमाद पर पछता रहे हG । ऐसा तो न होगा िक उसके ु वहां जाते ही मुंशीजी का स+दे ह िफर भड़क उठे और वह बेटे की जान लेकर ही छोड़ ? इस दिवधा म पड़े -पड़े तीन िदन गुजर गये और न घर म चूXहा ु जला, न िकसी ने कुछ खाया। लड़को के िलए बाजार से प िू रयां ली जाती थीं, िPमणी और िनम ला भूखी ही सो जाती थीं। उ+ह भोजन की इ'छा ही न होती। चौथे िदन िजयाराम ःकूल से लौटा, तो अःपताल होता हआ घर ु आया। िनम ला ने प छ ू ा-Pय भैया, अःपताल भी गये थे? आज Pया हाल है ? तु.हारे भैया उठे या नहीं? िजयाराम आंसा होकर बोला- अ.मांजी, आज तो वह कुछ बोलतेचालते ही न थे। चुप चाप चारपाई पर पड़े जोर-जोर से हाथ-पांव पटक रहे थे। िनम ला के चेहरे का रं ग उड़ गया। घबराकर प छ ू ा- तु.हारे बाबूजी वहां न थे? िजयाराम- थे Pय नहीं? आज वह बहत ु रोते थे। िनम ला का कलेजा धक्-धक् करने लगा। प छ ू ा- डॉPटर लोग वहां न थे? िजयाराम- डॉPटर भी खड़े थे और आपस म कुछ सलाह कर रहे थे। सबसे बड़ा िसिवल सज न अंगरे जी म कह रहा था िक मरीज की दे ह म कुछ ताजा खून डालना चािहए। इस पर बाबूजीय ने कहा- मेरी दे ह से िजतना खून चाह ले लीिजए। िसिवल सज न ने हं सकर कहा- आपके Cलड से काम नहीं चलेगा, िकसी जवान आदमी का Cलड चािहए। आिखर उसने िपचकारी से 89
कोई दवा भैया के बाजू म डाल दी। चार अंगुल से कम के सुई न रही होगी, पर भैया िमनके तक नहीं। मGने तो मारे डरके आंख ब+द कर लीं। बड़े -बड़े महान संकXप आवेश म ही ज+म लेते हG । कहां तो िनम ला भय से सूखी जाती थी, कहां उसके मुंह पर fढ़ संकXप की आभा झलक पड़ी। उसने अपनी दे ह का ताजा खून दे ने का िनdय िकया। आगर उसके र} से मंसाराम के ूाण बच जाय, तो वह बड़ी खुशी से उसकी अि+तम बूंद तक दे डालेगी। अब िजसका जो जी चाहे समझे, वह कुछ परवाह न करे गी। उसने िजयाराम से काह- तुम लपककर एक एPका बुला लो, मG अःपताला जाऊंगी। िजयाराम- वहां तो इस व} बहत ु से आदमी हगे। जरा रात हो जाने दीिजए। िनम ला- नहीं, तुम अभी एPका बुला लो। िजयाराम- कहीं बाबूजी िबगड़ न? िनम ला- िबगड़ने दो। तुमे अभी जाकर सवारी लाओ। िजयाराम- मG कह दं ग ू ा, अ.मांजी ही ने मुझसे सवारी मंगाई थी। िनम ला- कह दे ना। िजयाराम तो उधर तांगा लाने गया, इतनी दे र म िनम ला ने िसर म कंघी की, जूड़ा बांधा, कपड़े बदले, आभूषण पहने, पान खाया और Kार पर आकर तांगे की राह दे खने लगी। िPमणी अपने कमरे म बैठी हई ु थीं उसे इस तैयारी से आते दे खकर बोलीं- कहां जाती हो, बहू? िनम ला- जरा अःपताल तक जाती हंू । िPमणी- वहां जाकर Pया करोगी? िनम ला- कुछ नहीं, कं गी Pया? करने वाले तो भगवान हG । दे खने को जी चाहता है । िPमणी- मG कहतीं हंू , मत जाओ। िनम ला- ने िवनीत भाव से कहा- अभी चली आऊंगी, दीदीजी। िजयाराम कह रहे हG िक इस व} उनकी हालत अ'छी नहीं है । जी नहीं मानता, आप भी चिलए न?
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िPमणी- मG दे ख आई हंू । इतना ही समझ लो िक, अब बाहरी खून पहंु चाने पर ही जीवन की आशा है । कौन अपना ताजा खून दे गा और Pय दे गा? उसम भी तो ूाण का भय है । िनम ला- इसीिलए तो मG जाती हंू । मेरे खून से Pया काम न चलेगा? िPमणी- चलेगा Pय नहीं, जवान ही का तो खून चािहए, लेिकन तु.हारे खून से मंसाराम की जान बचे, इससे यह कहीं अ'छा है िक उसे पानी म बहा िदया जाये। तांगा आ गया। िनम ला और िजयाराम दोन जा बैठे। तांगा चला। िPमणी Kार पर खड़ी दे त तक रोती रही। आज पहली बार उसे िनम ला पर दया आई, उसका बस होता तो वह िनम ला को बांध रखती। कणा और सहानुभिू त का आवेश उसे कहां िलये जाता है , वह अूकट प से दे ख रही थी। आह! यह दभा
ु ]य की ूेरणा है । यह सव नाश का माग है । िनम ला अःपताल पहंु ची, तो दीपक जल चुके थे। डॉPटर लोग अपनी राय दे कर िवदा हो चुके थे। मंसाराम का Mवर कुछ कम हो गयाथा वह टकटकी लगाए हद ु Kार की ओर दे ख रहा था। उसकी fिm उ+मु} आकाश की ओर लगी हई ु थी, माने िकसी दे वता की ूतीaा कर रहा हो! वह कहां है , िजस दशा म है , इसका उसे कुछ Tान न था। ू सहसा िनम ला को दे खते ही वह चjककर उठ बैठा। उसका समािध टट गई। उसकी िवलुr चेतना ूदीr हो गई। उसे अपने िःथित का, अपनी दशा का Tान हो गया, मानो कोई भूली हई ु बात याद हो गई हो। उसने आंख फाड़कर िनम ला को दे खा और मुंह फेर िलया। एकाएक मुंशीजी तीो ःवर से बोले- तुम, यहां Pया करने आ? िनम ला अवाक् रह गई। वह बतलाये िक Pया करने आई? इतने सीधे से ू का भी वह कोई जवाब दे सकी? वह Pया करने आई थी? इतना जिटल ू िकसने सामने आया होगा? घर का आदमी बीमार है , उसे दे खने ू े मालूम न हो सकती थी? िफर ू Pय? आई है , यह बात Pया िबना प छ वह हतबुiी-सी खड़ी रही, मानो संTाहीन हो गई हो उसने दोन लड़को से मुंशीजी के शोक और संताप की बात सुनकर यह अनुमान िकया था िक अब उसनका िदल साफ हो गया है । अब उसे Tात हआ िक वह ॅम था। ु हां, वह महाॅम था। मगर वह जानती थी आंसओ ु ं की fिm ने भी संदेह की 91
अि]न शांत नहीं की, तो वह कदािप न आती। वह कुढ़-कुढ़ाकर मर जाती, घर से पांव न िनकालती। मुंशजी ने िफर वही ू िकया- तुम यहां Pय आ? िनम ला ने िन:शंक भाव से उ3र िदया- आप यहां Pया करने आये हG ? मुंशीजी के नथुने फड़कने लगा। वह झXलाकर चारपाई से उठे और िनम ला का हाथ पकड़कर बोले- तु.हारे यहां आने की कोई जरत नहीं। जब मG बुलाऊं तब आना। समझ ग? अरे ! यह Pया अनथ हआ ु ! मंसाराम जो चारपाई से िहल भी न सकता था, उठकर खड़ा हो गया औम िनम ला के प रै पर िगरकर रोते हए ु बोलाअ.मांजी, इस अभागे के िलए आपको 4यथ इतना कm हआ। मG आपका ःनेह ु कभी भी न भूलंगा। ईSर से मेरी यही ूाथ ना है िक मेरा प न ु ज
नम आपके गभ से हो, िजससे मG आपके ऋण से अऋण हो सकंू । ईSर जानता है , मGने आपको िवमाता नहीं समझा। मG आपको अपनी माता समझता रहा । आपकी उॆ मुझसे बहत ु Mया न हो, लेिकन आप, मेरी माता के ःथान पर थी और मGने आपको सदै व इसी fिm से दे खा...अब नहीं बोला जाता अ.मांजी, aमा कीिजए! यह अंितम भट है । िनम ला ने अौु-ूवाह को रोकते हए ु कहा- तुम ऐसी बात Pय करते हो? दो-चार िदन म अ'छे हो जाओगे। मंसाराम ने aीण ःवर म कहा- अब जीने की इ'छा नहीं और न बोलने की शि} ही है । यह कहते-कहते मंसाराम अश} होकर वहीं जमीन पर लेट गया। िनम ला ने पित की ओर िनभ य नेऽ से दे खते हए ु कहा- डॉPटर ने Pया सलाह दी? मुंशीजी- सब-के-सब भंग खा गए हG , कहते हG , ताजा खून चािहए। िनम ला- ताजा खून िमल जाये, तो ूाण-रaा हो सकती है ? मुंशीजी ने िनमuला की ओर तीो नेऽ से दे खकर कहा- मG ईSर नहीं हंू और न डॉPटर ही को ईSर समझता हंू । िनम ला- ताजा खून तो ऐसी अलय वःतु नहीं! मुंशीजी- आकाश के तारे भी तो अलय नही! मुंह के सामने खदं क Pया चीज है ? िनम ला- मG आपना खून दे ने को तैयार हंू । डॉPटर को बुलाइए। 92
मुंशीजी ने िविःमत होकर कहा- तुम! िनम ला- हां, Pया मेरे खून से काम न चलेगा? मुंशीजी- तुम अपना खून दोगी? नहीं, तु.हारे खून की जरत नहीं। इसम ूाणो का भय है । िनम ला- मेरे ूाण और िकस िदन काम आयग?े मुंशीजी ने सजल-नेऽ होकर कहा- नहीं िनम ला, उसका मूXय अब मेरी िनगाह म बहत ु बढ़ गया है । आज तक वह मेरे भोग की वःतु थी, आज से वह मेरी भि} की वःतु है । मGने तु.हारे साथ बड़ा अ+याय िकया है , aमा करो। तेरह
जो
कुछ होना था हो गया, िकसी को कुछ न चली। डॉPटर साहब िनम ला की दे ह से र} िनकालने की चेmा कर ही रहे थे िक
मंसाराम अपने उMMवल चिरऽ की अि+तम झलक िदखाकर इस ॅम-लोक से िवदा हो गया। कदािचत ्इतनी दे र तक उसके ूाण िनम ला ही की राह दे ख
रहे थे। उसे िनंकलंक िसi िकये िबना वे दे ह को कैसे Rयाग दे ते? अब उनका उyे ँय प रू ा हो गया। मुंशीजी को िनम ला के िनदष होने का िवSास हो गया, पर कब? जब हाथ से तीर िनकल चुका था, जब मुसिफर ने रकाब म पांव डाल िलया था। पऽ ु -शोक म मुंशीजी का जीवन भार-ःवप हो गया। उस िदन से िफर उनके ओठ पर हं सी न आई। यह जीवन अब उ+ह 4यथ -सा जान पड़ता था। कचहरी जाते, मगर मुकदम की प रै वी करने के िलए नहीं, केवल िदल बहलाने के िलए घंटे-दो-घंटे म वहां से उकताकर चले आते। खाने बैठते तो कौर मुंह म न जाता। िनम ला अ'छी से अ'छी चीज पकाती पर मुंशीजी दो-चार कौर से अिधक न खा सकते। ऐसा जान पड़ता िक कौर मुंह से िनकला आता है ! ू -टक ू हो जाता था। जहां मंसाराम के कमरे की ओर जाते ही उनका Vदय टक उनकी आशाओं का दीपक जलता रहता था, वहां अब अंधकार छाया हआ था। ु उनके दो प ऽ ु अब भी थे, लेिकन दध ू दे ती हई ु गायमर गई, तो बिछया का Pया भरोसा? जब फूलने-फलनेवाला वृa िगर पड़ा, न+हे -न+हे पौध से Pया आशा? य ता जवान-बूढ़े सभी मरत हG , लेिकन द:ु ख इस बात का था िक 93
उ+हने ःवयं लड़के की जान ली। िजस दम बात याद आ जाती, तो ऐसा मालूम होता था िक उनकी छाती फट जायेगी-मानो Vदय बाहर िनकल पड़े गा। िनम ला को पित से स'ची सहानुभिू त थी। जहां तक हो सकता था, वह उनको ूस+न रखने का िफब रखती थी और भूलकर भी िपछली बात जबान पर न लाती थी। मुश ं ीजी उससे मंसाराम की कोई चचा करते शरमाते थे। उनकी कभी-कभी ऐसी इ'छा होती िक एक बार िनम ला से अपने मन के सारे भाव खोलकर कह दं ,ू लेिकन लMजा रोक लेती थी। इस भांित उ+ह सा+Rवना भी न िमलती थी, जो अपनी 4यथा कह डालने से, दसरो को अपने ू गम म शरीक कर लेने से, ूाr होती है । मवाद बाहर न िनकलकर अ+दरही-अ+दर अपना िवष फैलाता जाता था, िदन-िदन दे ह घुलती जाती थी। इधर कुछ िदन से मुंशीजी और उन डॉPटर साहब म िज+हने मंसाराम की दवा की थी, याराना हो गया था, बेचारे कभी-कभी आकर मुंशीजी को समझाया करते, कभी-कभी अपने साथ हवा िखलाने के िलए खींच ले जाते। उनकी nी भी दो-चार बार िनम ला से िमलने आई थीं। िनम ला भी कई बार उनके घर गई थी, मगर वहां से जब लौटती, तो कई िदन तक उदास रहती। उस द.पि3 का सुखमय जीवन दे खकर उसे अपनी दशा प र द:ु ख हए ु िबना न रहता था। डॉPटर साहब को कुल दो सौ पये िमलते थे, पर इतने म ही दोन आन+द से जीवन 4यतीत करते थे। घर मं केवल एक महरी थी, गृहःथी का बहत ु -सा काम nी को अपने ही हाथ करना पड़ता थ। गहने भी उसकी दे ह पर बहत ु कम थे, पर उन दोन म वह ूेम था, जो धन की तृण के बराबर परवाह नहीं करता। प ु ष को दे खकर nी को चेहरा िखल उठता था। nी को दे खकर प ु ष िनहाल हो जाता था। िनम ला के घर म धन इससे कहीं अिधक था, अभूषण से उनकी दे ह फटी पड़ती थी, घर का कोई काम उसे अपने हाथ से न करना पड़ता था। पर िनम ला स.प+न होने पर भी अिधक दखी थी, और सुधा िवपनन होने पर भी ु
सुखी। सुधा के पास
कोई ऐसी वःतु थी, जो िनम ला के पास न थी, िजसके सामने उसे अपना वैभव तु'छ जान पड़ता था। यहां तक िक वह सुधा के घर गहने पहनकर जाते शरमाती थी।
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एक िदन िनम ला डॉPटर साहब से घर आई, तो उसे बहत ु उदास दे खकर सुधा ने प छ ू ा-बिहन, आज बहत ु उदास हो, वकील साहब की तबीयत तो अ'छी है , न? िनम ला- Pया कहंू , सुधा? उनकी दशा िदन-िदन खराब होती जाती है , कुछ कहते नहीं बनता। न जाने ईSर को Pया मंजूर है ? सुधा- हमारे बाबूजी तो कहते हG िक उ+ह कहीं जलवायु बदलने के िलए जाना जरी है , नहीं तो, कोई भंयकर रोग खड़ा हो जायेगा। कई बार वकील साहब से कह भी चुके हG पर वह यही कह िदया करते हG िक मG तो बहत ु अ'छी तरह हंू , मुझे कोई िशकायत नहीं। आज तुम कहना। िनम ला- जब डॉPटर साहब की नहीं सुना, तो मेरी सुनगे? यह कहते-कहते िनम ला की आंख डबडबा गई और जो शंका, इधर महीन से उसके Vदय को िवकल करती रहती थी, मुंह से िनकल पड़ी। अब तक उसने उस शंका को िछपाया था, पर अब न िछपा सकी। बोली-बिहन मुझे लaण कुद अ'छे नहीं मालूम होते। दे ख, भगवान ्Pया करते हG ? साधु-तुम आज उनसे खूब जोर दे कर कहना िक कहीं जलवायु बदलने चािहए। दो चार महीने बाहर रहने से बहत ु सी बात भूल जायगी। मG तो समझती हंू ,शायद मकान बदलने से भी उनका शोक कुछ कम हो जायेगा। तुम कहीं बाहर जा भी न सकोगी। यह कौन-सा महीना है ? िनम ला- आठवां महीना बीत रहा है । यह िच+ता तो मुझे और भी मारे डालती है । मGने तो इसके िलए ईdर से कभी ूाथ न न की थी। यह बला मेरे िसर न जाने Pय मढ़ दी? मG बड़ी अभािगनी हंू , बिहन, िववाह के एक महीने पहले िपताजी का दे हा+ता हो गया। उनके मरते ही मेरे िसर शनीचर सवार हए। जहां पहले िववाह की बातचीत पPकी हई ु ु थी, उन लोग ने आंख फेर लीं। बेचारी अ.मां को हारकर मेरा िववाह यहां करना पड़ा। अब छोटी बिहन का िववाह होने वाला है । दे ख, उसकी नाव िकस घाट जाती है ! सुधा- जहां पहले िववाह की बातचीत हई ु थी, उन लोग ने इ+कार Pय कर िदया? िनम ला- यह तो वे ही जान। िपताजी न रहे , तो सोने की गठरी कौन दे ता? सुधा- यह ता नीचता है । कहां के रहने वाले थे? 95
िनम ला- लखनऊ के। नाम तो याद नहीं, आबकारी के कोई बड़े अफसर थे। सुधा ने ग.भीरा भाव से प छ ू ा- और उनका लड़का Pया करता था? िनम ला- कुछ नहीं, कहीं पढ़ता था, पर बड़ा होनहार था। सुधा ने िसर नीचा करके कहा- उसने अपने िपता से कुछ न कहा था? वह तो जवान था, अपने बाप को दबा न सकता था? िनम ला- अब यह मG Pया जानूं बिहन? सोने की गठरी िकसे bयारी नहीं होती? जो पि^डत मेरे यहां से स+दे श लेकर गया था, उसने तो कहा था िक लड़का ही इ+कार कर रहा है । लड़के की मां अलब3ा दे वी थी। उसने प ऽ ु और पित दोन ही को समझाया, पर उसकी कुछ न चली। सुधा- मG तो उस लड़के को पाती, तो खूब आड़े हाथ लेती। िनम ला- मरे भा]य म जो िलखा था, वह हो चुका। बेचारी कृ ंणा पर न जाने Pया बीतेगी? सं\या समय िनम ला ने जाने के बाद जब डॉPटर साहब बाहर से आये, तो सुधा ने कहा-Pय जी, तुम उस आदमी का Pया कहोगे, जो एक जगह िववाह ठीक कर लेने बाद िफर लोभवश िकसी दसरी जगह? ू डॉPटर िस+हा ने nी की ओर कुतूहल से दे खकर कहा- ऐसा नहीं करना चािहए, और Pया? सुधा- यह Pय नहीं कहते िक ये घोर नीचता है , पहले िसरे का कमीनापन है ! िस+हा- हां, यह कहने म भी मुझे इ+कार नहीं। सुधा- िकसका अपराध बड़ा है ? वर का या वर के िपता का? िस+हा की समझ म अभी तक नहीं आया िक सुधा के इन ू का आशय Pया है ? िवःमय से बोले- जैसी िःथित हो अगर वह िपता क अधीन हो, तो िपता का ही अपराध समझो। सुधा- अधीन होने पर भी Pया जवान आदमी का अपना कोई क3 4य नहीं है ? अगर उसे अपने िलए नये कोट की जरत हो, तो वह िपता के िवराध करने पर भी उसे रो-धोकर बनवा लेता है । Pया ऐसे मह3व के िवषय म वह अपनी आवाज िपता के कान तक नहीं पहंु चा सकता? यह कहो िक वह और उसका िपता दोन अपराधी हG , पर+तु वर अिधक। बूढ़ा आदमी सोचता है - मुझे तो सारा खच संभालना पड़े गा, क+या पa से िजतना ऐंठ 96
सकंू , उतना ही अ'छा। मगेर वर का धम है िक यिद वह ःवाथ के हाथ िबलकुल िबक नहीं गया है , तो अपने आRमबल का पिरचय दे । अगर वह ऐसा नहीं करता, तो मG कहंू गी िक वह लोभी है और कायर भी। दभा
ु ]यवश ऐसा ही एक ूाणी मेरा पित है और मेरी समझ म नहीं आता िक िकन शCद म उसका ितरःकार कं ! िस+हा ने िहचिकचाते हए बात थी। लेनू ु कहा- वह...वह...वह...दसरी दे न का कारण नहीं था, िबलकुल दसरी बाता थी। क+या के िपता का दे हा+त ू हो गया था। ऐसी दशा म हम लोग Pयो करते? यह भी सुनने म आया था िक क+या म कोई ऐब है । वह िबलकुल दसरी बाता थी, मगर तुमसे यह ू कथा िकसने कही। सुधा- कह दो िक वह क+या कानी थी, या कुबड़ी थी या नाइन के पेट की थी या ॅmा थी। इतनी कसर Pय छोड़ दी? भला सुनंू तो, उस क+या म Pया ऐब था? िस+हा- मGने दे खा तो था नहीं, सुनने म आया था िक उसम कोई ऐब है । सुधा- सबसे बड़ा ऐब यही था िक उसके िपता का ःवग वास हो गया था और वह कोई लंबी-चौड़ी रकम न दे सकती थी। इतना ःवीकार करते Pय झप ते हो?
मG कुछ तु.हारे कान तो काट न लूंगी! अगर दो-चार िफकरे
कहंू , तो इस कान से सुनकर उसक कान से उड़ा दे ना। Mयादा-चीं-चपड़ कं , तो छड़ी से काम ले सकते हो। औरत जात ड^डे ही से ठीक रहती है । अगर उस क+या म कोई ऐब था, तो मG कहंू गी, लआमी भी बे-ऐब नहीं। तु.हारी खोटी थी, बस! और Pया? तु.ह तो मेरे पाले पड़ना था। िस+हा- तुमसे िकसने कहा िक वह ऐसी थी वैसी थी? जैसे तुमने िकसी से सुनकर मान िलया। सुधा- मGने सुनकर नहीं मान िलया। अपनी आंख दे खा। Mयादा बखान Pया कं , मGने ऐसी सु+दी nी कभी नहीं दे खी थी। िस+हा ने 4यम होकर प छ ू ा-Pया वह यहीं कहीं है ? सच बताओ, उसे कहां दे खा! Pया तुमळारे घर आई थी? सुधा-हां, मेरे घर म आई
थी और एक बार नहीं, कई बार आ चुकी है ।
मG भी उसके यहां कई बार जा चुकी हंू , वकील साहब के बीवी वही क+या है , िजसे आपने ऐब के कारण Rयाग िदया। 97
िस+हा-सच! सुधा-िबलकुल सच। आज अगर उसे मालूम हो जाये िक आप वही महाप ु ष हG , तो शायद िफर इस घर मे कदम न रखे। ऐसी सुशीला, घर के काम म ऐसी िनप ण ु और ऐसी परम सु+दारी nी इस शहर मे दो ही चार हगी। तुम मेरा बखान करते हो। मै। उसकी लjडी बनने के यो]य भी नहीं हंू । घर म ईSर का िदया हआ सब कुछ है , मगर जब ूाणी ही मेल के◌ा ु नहीं, तो और सब रहकर Pया करे गा? ध+य है उसके धैय को िक उस बुढे खूसट वकील के साथ जीवन के िदन काट रही है । मGने तो कब का जहर खा िलया होता। मगर मन की 4यथा कहने से ही थोड़े ूकट होती है । हं सती है , बोलती है , गहने-कपड़े पहनती है , पर रोयां-रोयां राया करता है । िस+हा-वकील साहब की खूब िशकायत करती होगी? सुधा-िशकायत Pय करे गी? Pया वह उसके पित नहीं हG ? संसार मे अब उसके िलए जो कुछ हG , वकील साहब। वह बुढे ह या रोगी, पर हG तो उसके ःवामी ही। कुलवंती nीयां पित की िन+दा नहीं करतीं,यह कुलटाओं का काम है । वह उनकी दशा दे खकर कुढ़ती हG , पर मुंह से कुछा नहीं कहती। िस+हा- इन वकील साहब को Pया सूझी थी, जो इस उॆ म Cयाह करने चले? सुधा- ऐसे आदमी न ह, तो गरीब Pवािरय की नाव कौन पार लगाये? तुम और तु.हारे साथी िबना भारी गठरी िलए बात नहीं करते, तो िफर ये बेचारर िकसके घर जायं? तुमने यह बड़ा भारी अ+याय िकया है , और तु.ह इसका ूािँयचत करना पड़े गा। ईSर उसका सुहाग अमर करे , लेिकन वकील साहब को कहीं कुछ हो गया, तो बेचारी का आज तो वह बहत ु रोती थी।
जीवन ही नm हो जाये◌ेगा।
तुम लोग सचमुच बड़े िनद यी हो। मै। तो
अपने सोहन का िववाह िकसी गरीब लड़की से कं गी। डॉPटर साहब ने यह िपछला वाPया नहीं सुना। वह घोर िच+ता मं पड़ गये। उनके मन म यह ू उठ-उठकर उ+ह िवकल करने लगा-कहीं वकील साहब को कुछ हो गया तो? आज उ+ह अपने ःवाथ का भंयकर ःवप िदखायी िदया। वाःतव म यह उ+हीं का अपराध था। अगर उ+हने िपता से जोर दे कर कहा होता िक मै। और कहीं िववाह न कं गा, तो Pया वह उनकी इ'छा के िवK उनका िववाह कर दे त?े 98
सहसा सुधा ने कहा-कहो तो कल िनम ला से तु.हारी मुलाकात करा दं ?ू वह भी जरा तु.हारी सूरत दे ख ले। वह कुछ बोलगी तो नहीं, पर कदािचत ्एक fिm से वह तु.हारा इतना ितरःकार कर दे गी, िजसे तुम कभी न भूल सकोगे। बोल, कल िमला दँ ?ू तु.हारा बहत ु संिar पिरचय भी करा दं ग ू ीं िस+हा ने कहा-नहीं सुधा, तु.हारे हाथ जोड़ता हंू , कहीं ऐसा गजब न करना! नहीं तो सच कहता हंू , घर छोड़कर भाग जाऊंगा। सुधा-जो कांटा बोया है , उसका फल खाते Pय इतना डरते हो? िजसकी गद न पर कटार चलाई है , जरा उसे तड़पते भी तो दे खो। मेरे दादा जी ने पांच हजार िदये न! अभी छोटे भाई के िववाह मं पांच-छ: हजार और िमल जायगे। िफर तो तु.हारे बराबर धनी संसार म काई दसरा न होगा। ]यारह ू हजार बहत ु होते हG । बाप -रे -बाप! ]यारह हजार! उठा-उठाकर रखने लगे, तो महीन लग जाय अगर लड़के उड़ाने लग, तो पीिढ़य तक चले। कहीं से बात हो रही है या नहीं? इस पिरहास से डॉPटर साहब इतना झप े िक िसर तक न उठा सके। उनका सारा वाक्-चातुय गायब हो गया। न+हा-सा मुंह िनकल आया, मानो मार पड़ गई हो। इसी व} िकसी डॉPटर साहब को बाहर से प क ु ारां बेचारे जान लेकर भागे। nी िकतनी पिरहास कुशल होती है , इसका आज पिरचय िमल गया। रात को डॉPटर साहब शयन करते हए ु सुधा से बोले-िनॆला की तो कोई बिहन है न? सुधा- हां, आज उसकी चचा तो करती थी। इसकी िच+ता अभी से सवार हो रही है । अपने ऊपर तो जो कुछ बीतना था, बीत चुका, बिहन की िकफब म पड़ी हई ु थी।मां के पास तो अब ओर भी कुछ नहीं रहा, मजबूरन िकसी ऐसे ही बूढ़े बाबा क गले वह भी मढ़ दी जरयेगी। िस+हा- िनम ला तो अपनी मां की मदद कर सकती है । सुधा ने तीआण ःवर म कहा-तुम भी कभी-कभी िबलकुल बेिसर’ प रै की बात करने लगते हो। िनम ला बहत ु करे गी, तो दा-चार सौ पये दे दे गी, और Pया कर सकती है ? वकील साहब का यह हाल हो रहा है , उसे अभी पहाड़-सी उॆ काटनी है । िफर कौन जाने उनके घर का Pयश हाल है ? इधर छ:महीने से बेचारे घर बैठे हG । पये आकाश से थोड़े ही बरसते है । दस-बीस 99
हजार हगे भी तो बGक म हगे, कुछ िनम ला के पास तो रखे न हगे। हमारा दो सौ पया महीने का खच है , तो Pया इनका चार सौ पये महीने का भी न होगा? सुधा को तो नींद आ गई,पर डॉPटर साहब बहत ु दे र तक करवट बदलते रहे , िफर कुछ सोचकर उठे और मेज पर बैठकर एक पऽ िलखने लगे। चौदह
दो
न बाते एक ही साथ ह ु -िनम ला के क+या को ज+म िदया, कृ ंणा का िववाह िनिdत हआ और मुंशी तोताराम का मकान नीलाम हो गया। ु
क+या का ज+म तो साधारण बात थी, यqिप िनम ला की fिm म यह उसके
जीवन की सबसे महान घटना थी, लेिकन शेष दोन घटनाएं अयाधारण थीं। कृ ंणा का िववाह-ऐसे स.प+न घराने म Pयकर ठीक हआ ु ? उसकी माता के पास तो दहे ज के नाम को कौड़ी भी न थी और इधर बूढ़े िस+हा साहब जो ु अब पशन लेकर घर आ गये थे, िबरादरी महालोभी मशहर ू थे। वह अपने प ऽ का िववाह ऐसे दिरि घराने म करने पर कैसे राजी हए। िकसी को सहसा ु िवSास न आता था। इससे भी बड़ आdय की बात मुंशीजी के मकान का नीलाम होना था। लोग मुंशीजी को अगर लखपती नहीं, तो बड़ा आदमी अवँय समझते थे। उनका मकान कैसे नीलाम हआ ु ? बात यह थी िक मुंशीजी ने एक महाजन से कुछ पये कज लेकर एक गांव रहे न रखाथा। उ+ह आशा थी िक साल-आध-साल म यह पये पाट द गे, िफर दस-पांच साल म उस गांव पर कCजा कर लगे। वह जमींदारअसल और सूद के कुल पये अदा करने म असमथ हो जायेगा। इसी भरोसे पर मुंशीजी ने यह मामला िकया था। गांव बेहु त बड़ा था, चार-पांच सौ पये नफा होता था, लेिकन मन की सोची मन ही म रह गई। मुंशीज िदल को बहत ु
समझाने पर भी
कचहरी न जा सके। प ऽ ु शोक ने उनमं कोई काम करने की शि} ही नहीं छोड़ी। कौन ऐसा Vदय –शू+य िपता है , जो प ऽ ु की गद न पर तलवार चलाकर िच3 को शा+त कर ले? महाजन के पास जब साल भर तक सूद न पहंु चा और न उसके बारबार बुलाने पर मुंशीजी उसके पास गये। यहां तक िक िपछली बार उ+हने 100
साफ-साफ कही िदया िक हम िकसी के गुलाम नहीं हG , साहजी जो चाहे कर ू तब साहजी को गुःसा आ गया। उसने नािलश कर दी। मुंशजी प रै वी करने ू भी न गये। एकाएक िडमी हो गई। यहां घर म पये कहां रखे थे? इतने ही िदन म मुंशीजी की साख भी उठ गई थी। वह पये का कोई ूब+ध न कर सके। आिखर मकान नीलाम पर चढ़ गया। िनॆला सौर म थी। यह खबर सुनी, तो कलेजा स+न-सा हो गया। जीवन म कोई सुख न होने पर भी धनाभाव की िच+ताओं से मु} थी। धन मानव जीवन म अगर सव ूधान वःतु नहीं, तो वह उसके बहत ु िनकट की वःतु अवँय है । अब और अभाव के साथ यह िच+ता भी उसके िसर सवार हई। उसे दाई Kारा कहला भेजा, ु मेरे सब गहने बेचकर घर को बचा लीिजए, लेिकन मुंशीजी ने यह ूःताव िकसी तरह ःवीकार न िकया। उस िदन से मुंशीजी और भी िच+तामःत रहने लगे। िजस धन का सुख भोगने के िलए उ+हने िववाह िकया था, वह अब अतीत की ःमृित माऽ था। वह मारे ]लािन क अब िनम ला को अपना मुंह तक न िदखा सकते। उ+ह अब उसक अ+याय का अनुमान हो रहा था, जो उ+हने िनम ला के साथ िकया था और क+या के ज+म
ने तो रही-सही कसर भी प रू ी कर दी,
सव नाश ही कर डाला! बारहव िदन सौर से िनकलकर िनम ला नवजात िशशु को गोद िलये पित के पास गई। वह इस अभाव म भी इतनी ूस+न थी, मानो उसे कोई िच+ता नहीं है । बािलका को Vदय से लगार वह अपनी सारी िच+ताएसं भूल गई थी। िशशु के िवकिसत और हष ूदीr नेऽ को दे खकर उसका Vदय ूफुिXलत हो रहा था। मातृRव के इस उार म उसके सारे Pलेश िवलीन हो गये थे। वह िशशु को पित की गोद मे दे कर िनहाल हो जाना चाहती थी, लेिकन मुंशीजी क+या को दे खकर सहम उठे । गोद लेने के िलए उनका Vदय हलसा नहीं, पर उ+हने एक बार उसे कण नेऽ से दे खा और िफर िसर ु झुका िलया, िशशु की सूरत मंसाराम से िबलकुल िमलती थी। िनम ला ने उसके मन का भाव और ही समझा। उसने शतगुण ःनेह से लड़की को Vदय से लगा िलया मानो उसनसे कह रही है -अगर तुम इसके बोझ से दबे जाते हो, तो आज से मG इस पर तु.हार साया भी नहीं पड़ने दं ग ू ी। िजस रतन को मGने इतनी तपःया के बाद पाया है , उसका िनरादर करते हए ु तु.हार Vदय फट नहीं जाता? वह उसी aण िशशु को गोद से 101
िचपकाते हए ु अपने कमरे म चली आई और दे र तक रोती रही। उसने पित की इस उदासीनता को समझने की जरी भी चेmा न की, नहीं तो शायद वह उ+ह इतना कठोर न समझती। उसके िसर पर
उ3रदाियRव का इतना बड़ा
भार कहां था,जो उसके पित पर आ पड़ा था? वह सोचने की चेmा करती, तो Pया इतना भी उसकी समझ म न आता? मुंशीजी को एक ही aण म अपनी भूल मालूम हो गई। माता का Vदय ूेम म इतना अनुर} रहता है िक भिवंय की िच+RT और बाधाएं उसे जरा भी भयभीत नहीं करतीं। उसे अपने अंत:करण म एक अलौिकक शि} का अनुभव होता है , जो बाधाओं को उनके सामने पराःत कर दे ती है । मुंशीजी दौड़े हए ु घर मे आये और िशशु को गोद म लेकर बोले मुझे याद आती है , मंसा भी ऐसा ही था-िबलकुल ऐसा ही! िनम ला-दीदीजी भी तो यही कहती है । मुंशीजी-िबलकुल वहीं बड़ी-बड़ी आंखे और लाल-लाल ओंठ हG । ईSर ने मुझे मेरा मंसाराम इस प म दे िदया। वही माथा है , वही मुह ं , वही हाथपांव! ईSर तु.हारी लीला अपार है । सहसा िPमणी भी आ गई। मुंशीजी को दे खते ही बोली-दे ख बाबू, मंसाराम है िक नहीं? वही आया है । कोई लाख कहे , मG न मानूंगी। साफ मंसाराम है । साल भर के लगभग ही भी तो गया। मुंशीजी-बिहन, एक-एक अंग तो िमलता है । बस, भगवान ्ने मुझे मेरा मंसाराम दे िदया। (िशशु से) Pय री, तू मंसाराम ही है ? छौड़कर जाने का नाम न लेना, नहीं िफर खींच लाऊंगा। कैसे िनNु र होकर भागे थे। आिखर पकड़ लाया िक नहीं? बस, कह िदया, अब मुझे छोड़कर जाने का नाम न लेना।
ु ु र-टक ु ु र ताक रही है ? दे खो बिहन, कैसी टक उसी aण मुंशीजी ने िफर से अिभलाषाओं का भवन बनाना शु कर
िदया। मोह ने उ+ह िफर संसार की ओर खींचां मानव जीवन! तू इतना aणभंगुर है , पर तेरी कXपनाएं िकतनी दीघा ल!ु वही तोताराम जो संसार से िवर} हो रह थे, जो रात-िदन मुRयु का आवाहन िकया करते थे, ितनके का सहारा पाकर तट पर पहंु चने के िलए प रू ी शि} से हाथ-पांव मार रहे हG । मगर ितनके का सहारा पाकर कोई तट पर पहंु चा है ?
102
प+िह
िन
म ला को यqिप अपने घर के झंझट से अवकाश न था, पर कृ ंणा के िववाह का संदेश पाकर वह िकसी तरह न क सकी। उसकी
माता ने बेहु त आमह करके बुलाया था। सबसे बड़ा आकष ण यह था िक
कृ ंणा का िववाह उसी घर म हो रहा था, जहां िनम ला का िववाह पहले तय हआ था। आdय यही था िक इस बार ये लोग िबना कुछ दहे ज िलए कैसे ु िववाह करने पर तैयार हो गए! िनम ला को कृ ंणा के िवषय म बड़ी िच+ता हो रही थी। समझती थी- मेरी ही तरह वह भी िकसी के गले मढ़ दी जायेगी। बहत ु चाहती थी िक माता की कुछ सहायता कं , िजससे कृ ंणा के िलए कोई यो]य वह िमले, लेिकन इधर वकील साहब के घर बैठ जाने और महाजन के नािलश कर दे ने से उसका हाथ भी तंग था। ऐसी दशा म यह खबर पाकर उसे बड़ी शि+त िमली। चलने की तैयारी कर ली। वकील साहब ःटे शन तक पहंु चाने आये। न+हीं ब'ची से उ+ह बहत ु ूेम था। छो◌ैड़ते ही न थे, यहां तक िक िनम ला के साथ चलने को तैयार हो गये, लेिकन िववाह से एक महीने पहले उनका ससुराल जा बैठना िनम ला को उिचत न मालूम हआ। िनम ला ने अपनी माता से अब तक अपनी िवपि3 कथा न कही थी। ु जो बात हो गई, उसका रोना रोकर माता को कm दे ने और लाने से Pया फायदा? इसिलए उसकी माता समझती थी, िनम ला बड़े आन+द से है । अब जो िनम ला की सूरत दे खी, तो मानो उसके Vदय पर धPका-सा लग गया। लड़िकयां सुसरु ाल से घुलकर नहीं आतीं, िफर िनम ला जैसी लड़की, िजसको सुख की सभी सामिमयां ूाr थीं। उसने िकतनी लड़िकय को दज ू की च+िमा की भांित ससुराल जाते और प ण ू च+ि बनकर आते दे खा था। मन म कXपना कर रही थी, िनम ला का रं ग िनखर गया होगा, दे ह भरकर सुड ौल हो गई होगी,
अंग-ूRयंग की शोभा कुछ और ही हो गई होगी। अब जो
दे खा, तो वह आधी भी न रही थीं न यौवन की चंचलता थी सन वह िवहिसत छिव लो Vदय को मोह लेती है । वह कमनीयता, सुकुमारता, जो िवलासमय जीवन से आ जाती है , यहां नाम को न थी। मुख पीला, चेmा िगरी ह ु , तो माता ने प छ ू ा-Pय री, तुझे वहां खाने को न िमलता था? इससे कहीं अ'छी तो तू यहीं थी। वहां तुझे Pया तकलीफ थी?
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कृ ंणा ने हं सकर कहा-वहां मालिकन थीं िक नहीं। मालिकन दिनया ु भर की िच+ताएं रहती हG , भोजन कब कर ? िनम ला-नहीं अ.मां, वहां का पानी मुझे रास नही आया। तबीयत भारी रहती है । माता-वकील साहब +योते म आयगे न? तब प छ ू ू ं गी िक आपने फूल-सी लड़की ले जाकर उसकी यह गत बना डाली। अ'छा, अब यह बता िक तूने यहां पये Pय भेजे थे? मGने तो तुमसे कभी न मांगे थे। लाख गई-गुलरी हंू , लेिकन बेटी का धन खाने की नीयत नहीं। िनम ला ने चिकत होकर प छ ू ा- िकसने पये भेजे थे। अ.मां, मGने तो नहीं भेजे। माता-झूठ ने बोल! तूने पांच सौ पये के नोट नहीं भेजे थे? कृ ंणा-भेजे नहीं थे, तो Pया आसमान से आ गये? तु.हारा नाम साफ िलखा था। मोहर भी वहीं की थी। िनम ला-तु.हारे चरण छूकर कहती हंू , मGने पये नहीं भेजे। यह कब की बात है ? माता-अरे , दो-ढाई महीने हए ु हगे। अगर तूने नहीं भेज,े तो आये कहां से? िनम ला-यह मG Pया जानू? मगर मGने पये नहीं भेजे। हमारे यहां तो जब से जवान बेटा मरा है , कचहरी ही नहीं जाते। मेरा हाथ तो आप ही तंग था, पये कहां से आते? माता- यह तो बड़े आdय की बात है । वहां और कोई तेरा सगा स.ब+धी तो नहीं है ? वकील साहब ने तुमसे िछपाकर तो नहीं भेजे? िनम ला- नहीं अ.मां, मुझे तो िवSास नहीं। माता- इसका पता लगाना चािहए। मGने सारे पये कृ ंणा के गहनेकपड़े म खच कर डाले। यही बड़ी मुिँकल हई। ु दोन लड़को म िकसी िवषय पर िववाद उठ खड़ा हआ और कृ ंणा ु उधर फैसला करने चली गई, तो िनम ला ने माता से कहा- इस िववाह की बात सुनकर मुझे बड़ा आdय हआ। यह कैसे हआ अ.मां? ु ु माता-यहां जो सुनता है , दांत उं गली दबाता हG । िजन लोग ने पPकी की कराई बात फेर दी और केवल थोड़े से पये के लोभ से, वे अब िबना कुछ िलए कैसे िववाह करने पर तैयार हो गये, समझ म नहीं आता। उ+हने 104
खुद ही पऽ भेजा। मGने साफ िलख िदया िक मेरे पास दे न-े लेने को कुछ नहीं है , कुश-क+या ही से आपकी सेवा कर सकती हंू । िनम ला-इसका कुछ जवाब नहीं िदया? माता-शाnीजी पऽ लेकर गये थे। वह तो यही कहते थे िक अब मुंशीजी कुछ लेने के इ'छुक नहीं है । अपनी पहली वादा-िखलाफ पर कुछ लिMजत भी हG । मुंशीजी से तो इतनी उदारता की आशा न थी, मगर सुनती हंू , उनके बड़े प ऽ ु बहत ु सMजन आदमी है । उ+हने कह सुनकर बाप को राजी िकया है । िनम ला- पहले तो वह महाशय भी थैली चाहते थे न? माता- हां, मगर अब तो शाnीजी कहते थो िक दहे ज के नाम से िचढ़ते हG । सुना है यहां िववाह न करने पर पछताते भी थे। पये के िलए बात छोड़ी थी और पये खूब पाये, nी पसं+द नहीं। िनम ला के मन म उस प ु ष को दे खने की ूबल उRकंठा हई ु , जो उसकी अवहे लना करके अब उसकी बिहन का उKार करना चाहता हG ूायिdत सही, लेिकन िकतने ऐसे ूाणी हG , जो इस तरह ूायिdत करने को तैयार हG ? उनसे बात करने के िलए, नॆ शCद से उनका ितरःकार करने के िलए, अपनी अनुप म छिव िदखाकर उ+ह और भी जलाने के िलए िनम ला का Vदय अधीर हो उठा। रात को दोन बिहन एक ही केमरे म सोई। मुहXले
म
िकन-िकन लड़िकय का िववाह हो गया, कौन-कौन लड़कोरी ह ु , िकस-िकस का िववाह धूम-धाम से हआ। िकस-िकस के पित कन इ'छानुकूल िमले, कौन ु िकतने और कैस गहने चढ़ावे म लाया, इ+हीं िवषय म दोन मे बड़ी दे र तक बात होती रहीं। कृ ंणा बार-बार चाहती थी िक बिहन के घर का कुछ हाल प छ ू ं , मगर िनम ला उसे प छ ू ने का अवसर न दे ती थी। जानती थी िक यह जो बात प छ ू े गी उसके बताने म मुझे संकोच होगा। आिखर एक बार कृ ंणा प छ ू ही बैठी-जीजाजी भी आयगे न? िनमला - आने को कहा तो है । कृ ंण- अब तो तुमसे ूस+न रहते हG न या अब भी वही हाल है ? मG तो सुना करती थी दहाजू पित nी को ूाण से भी िूया समझते हG , वहां ु िबलकुल उXटी बात दे खी। आिखर िकस बात पर िबगड़ते रहते हG ? िनम ला- अब मG िकसी के मन की बात Pया जानू? 105
कुंणा- मG तो समझती हंू , तु.हारी खाई से वह िचढ़ते हगे। तुम हो यहीं से जली हई ु गई थी। वहां भी उ+ह कुछ कहा होगा। िनम ला- यह बात नहीं है , कृ ंणा, मG सौग+ध खाकर
कहती हंू , जो मेरे
मन म उनकी ओर से जरा भी मैल हो। मुझसे जहां तक हो सकता है , उनकी सेवा करती हंू , अगर उनकी जगह कोई दे वता भी होता, तो भी मG इससे Mयादा और कुछ न कर सकती। उ+ह भी मुझसे ूेम है । बराबर मेरा मुख ं दे खते रहते हG , लेिकन जो बात उनक और मेरे काबू के बाहर है , उसके िलए वह Pया कर सकते हG और मG Pया कर सकती हंू ? न वह जवान हो सकते हG , न मG बुिढ़या हो सकती हंू । जवान बनने के िलए वह न जाने िकतने रस और भःम खाते रहते हG , मG बुिढ़या बनने के िलए दध ू -घी सब छोड़े बैठी हंू । सोचती हंू , मेरे दबले ु प न ही से अवःथा का भेद कुछ कम हो जाय, लेिकन न उ+ह पौिmक पदाथp से कुछ लाभ होता है , न मुझे उपवस से। जब से मंसाराम का दे हा+त हो गया है , तब से उनकी दशा और खराब हो गयी है । कृ ंणा- मंसाराम को तुम भी बहत ु bयार करती थीं? िनम ला- वह लड़का ही ऐसा था िक जो दे खता था, bयार करता था। ऐसी बड़ी-बड़ी डोरे दार आंख मGने िकसी की नहीं दे खीं। कमल की भांित मुख हरदम िखला रह था। ऐसा साहसी िक अगर अवसर आ पड़ता, तो आग म फांद जाता। कृ ंणा, मG तुमसे कहती हंू , जब वह मेरे पास आकर बैठ जाता, तो मG अपने को भूल जाती थी। जी चाहता था, वह हरदम सामने बैठा रहे और मG दे खा कं । मेरे मन म पाप का लेश भी न था। अगर एक aण के िलए भी मGने उसकी ओर िकसी और भाव से दे खा हो, तो मेरी आंख फूट जाय, पर न जाने Pय उसे अपने पास दे खकर मेरा Vदय फूला न समाता था। इसीिलए
मGने पढ़ने का ःवांग रचा नहीं तो वह घर म आता ही न था। यह
मै। जानती हंू िक अगर उसके मन म पाप होता, तो मG उसके िलए सब कुछ कर सकती थी। कृ ंणा-
अरे बिहन, चुप रहो, कैसी बात मुंह से िनकालती हो?
िनम ला- हां, यह बात सुनने म बुरी मालूम होती है और है भी बुरी, लेिकन मनुंय की ूकृ ित को तो कोई बदल नहीं सकता। तू ही बता- एक पचास वष के मद से तेरा िववाह हो जाये, तो तू Pया करे गी? कृ ंणा-बिहन, मG तो जहर खाकर सो रहंू । मुझसे तो उसका मुंह भी न दे खते बने। 106
िनम ला- तो बस यही समझ ले। उस लड़के ने कभी मेरी ओर आंख उठाकर नहीं दे खा, लेिकन बुढे तो शPकी होते ही हG , तु.हारे जीजा उस लड़के के दँमन हो गए और आिखर उसकी जान लेकर ही छोड़ी। िजसे िदन उसे ु मालूम हो गया िक िपताजी के मन म मेरी ओर से स+दे ह है , उसी िदन के उसे Mवर चढ़ा, जो जान लेकर ही उतरा। हाय! उस अि+तम समय का fँय आंख से नहीं उतरता। मG अःपताल गई थी, वह Mवी म बेहोश पड़ा था, उठने की शि} न थी, लेिकन Mय ही मेरी आवाज सुनी, चjककर उठ बैठा और ‘माता-माता’ कहकर मेरे प रै पर िगर पड़ा (रोकर) कृ ंणा, उस समय ऐसा जी चाहता था अपने ूाण िनकाल कर उसे दे दं ।ू मेरे
प रै ां पर ही वह
मूिछ त हो गया और िफर आंख न खोली। डॉPटर ने उसकी दे ह मे ताजा खून डालने का ूःताव िकया था, यही सुनकर मG दौड़ी गई थी लेिकन जब तक डॉPटर लोग वह ूिबया आर.भ कर , उसके ूाण, िनकल गए। कृ ंणा- ताजा र} पड़ जाने से उसकी जान बच जाती? िनम ला- कौन जानता है ? लेिकन मG तो अपने िधर की अि+तम बूंद तक दे ने का तैयार थी उस दशा म भी उसका मुखम^डल दीपक की भांित चमकता था। अगर वह मुझे दे खते ही दौड़कर मेरे प रै पर न िगर पड़ता, पहले कुछ र} दे ह म पहंु च जाता, तो शायद बच जाता। कृ ंणा- तो तुमने उ+ह उसी व}ा िलटा Pय न िदया? िनम ला- अरे पगली, तू अभी तक बात न समझी। वह मेरे प रै पर िगरकर और माता-प ऽ ु का स.ब+ध िदखाकर अपने बाप के िदल से वह स+दे ह िनकाल दे ना चाहता था। केवल इसीिलए वह उठा थ। मेरा Pलेश िमटाने के िलए उसने ूाण िदये और उसकी वह इ'छा प रू ी हो गई। तु.हारे जीजाजी उसी िदन से सीधे हो गये। अब तो उनकी दशा पर मुझे दया आती है । प ऽ ु -शाक उनक ूाण लेकर छोड़े गा। मुझ पर स+दे ह करके मेरे साथ जो अ+याय िकया है , अब उसका ूितशोध कर रहे हG । अबकी उनकी सूरत दे खकर तू डर जायेगी। बूढ़े बाबा हो गये हG , कमर भी कुछ झुक चली है । कृ ंणा- बुढे लोग इतनी शPकी Pय होते हG , बिहन? िनम ला- यह जाकर बुढ से प छ ू ो। कृ ंणा- मG समझती हंू , उनके िदल म हरदम एक चोर-सा बैठा रहता होगा िक इस युवती को ूस+न नहीं रख सकता। इसिलए जरा-जरा-सी बात पर उ+ह शक होने लगता है । 107
िनम ला- जानती तो है , िफर मुझसे Pय प छ ू ती है ? कुंणा- इसीिलए बेचारा nी से दबता भी होगा। दे खने वाले समझते हगे िक यह बहत ु ूेम करता है । िनम ला- तूने इतने ही िदन म इ तनी बात कहां सीख लीं? इन बात को जाने दे , बता, तुझे अपना वर पस+द है ? उसकी तःवीर ता दे खी होगी? कृ ंणा- हां, आई तो थी, लाऊं, दे खोगी? एक aण म कृ ंणा ने तःवीर लाकर िनम ला के हाथ म रख दी। िनम ला ने मुःकराकर कहा-तू बड़ी भा]यवान ्है । कृ ंणा- अ.माजी ने भी बहत ु पस+द िकया। िनम ला- तुझे पस+द है िक नहीं, सो कह, दसर की बात न चला। ू कृ ंणा- (लजाती हई ु ) शPल-सूरत तो बुरी नहीं है , ःवभाव का हाल ईSर जाने। शाnीजी तो कहते थे, ऐसे सुशील और चिरऽवान ् युवक कम हगे। िनम ला- यहां से तेरी तःवीर भी गई थी? कृ ंणा- गई तो थी, शाnीजी ही तो ले गए थे। िनम ला- उ+ह पस+द आई? कृ ंणा- अब िकसी के मन की बात मG Pया जानू?ं शाnी जी कहते थे, बहत ु खुश हए ु थे। िनम ला- अ'छा, बता, तुझे Pया उपहार दं ?ू अभी से बता दे , िजससे बनवा रखूं। कृ ंणा- जो तु.हारा जी चाहे , दे ना। उ+ह प ः ु तक से बहत ु ूेम है । अ'छी-अ'छी प ः ु तक मंगवा दे ना। िनम ला-उनके िलए नहीं प छ ू ती तेरे िलए प छ ू ती हंू । कृ ंणा- अपने ही िलये तो मG कह रही हंू । िनम ला- (तःवीर की तरफ दे खती हई ु ) कपड़े सब खyर के मालूम होते हG । कृ ंणा- हां, खyर के बड़े ूेमी हG । सुनती हंू िक पीठ पर खyर लाद कर दे हात म बेचने जाया करते हG । 4याcयान दे ने म भी चतुर हG । िनम ला- तब तो मुझे भी खy पहनना पड़े गा। तुझे तो मोटे कपड़ो से िचढ़ है । 108
कृ ंणा- जब उ+ह मोटे कपड़े अ'छे लगते हG , तो मुझे Pय िचढ़ होगी, मGने तो चखा चलाना सीख िलया है । िनम ला- सच! सूत िनकाल लेती है ? कृ ंणा- हां, बिहन, थोड़ा-थोड़ा िनकाल लेती हंू । जब वह खyर के इतने ूेमी हG , जो चखा भी जर चलाते हगे। मG न चला सकंू गी, तो मुझे िकतना लिMजत होना पड़े गा। इस तरह बात करते-करते दोन बिहन सो। कोई दो बजे रात को ब'ची रोई तो िनम ला की नींद खुली। दे खा तो कृ ंणा की चारपाई खाली पड़ी थी। िनम ला को आdय हआ िक इतना रात गये कृ ंणा कहां चली गई। ु शायद पानी-वानी पीने गई हो। मगरी पानी तो िसरहाने रखा हआ है , िफर ु कहां गई है ? उसे दो-तीन बार उसका नाम लेकर आवाज दी, पर कृ ंणा का पता न था। तब तो िनम ला घबरा उठी। उसके मन म भांित-भांित की शंकाएं होने लगी। सहसा उसे cयाल आया िक शायद अपने कमरे म न चली गई हो। ब'ची सो गई, तो वह उठकर कृ ंणा के के कमरे के Kार पर आई। उसका अनुमान ठीक था, कृ ंणा अपने कमरे म थी। सारा घर सो रहा था और वह बैठी चखा चला रही थी। इतनी त+मयता से शायद उसने िथऐटर भी न दे खा होगा। िनम ला दं ग रह गई। अ+दर जाकर बोली- यह Pया कर रही है रे ! यह चखा चलाने का समय है ? कृ ंणा चjककर उठ बैठी और संकोच से िसर झुकाकर बोली- तु.हारी नींद कैसे खुल गई? पानी-वानी तो मGने रख िदया था। िनम ला- मG कहती हंू , िदन को तुझे समय नहीं िमलता, जो िपछली रात को चखा लेकर बैठी है ? कृ ंणा- िदन को फुरसत ही नहीं िमलती? िनम ला- (सूत दे खकर) सूत तो बहत ु महीन है । कृ ंणा- कहां-बिहन, यह सूत तो मोटा है । मG बारीक सूतकात कर उनके िलए साफा बनाना चाहती हंू । यही मेरा उपहार होगा। िनम ला- बात तो तूने खूब सोची है । इससे अिधक मूXयवसान वःतु उनकी fिm म और Pया होगी? अ'छा, उठ इस व}, कल कातना! कहीं बीमार पड़ जायेगी, तो सब धरा रह जायेगा। कृ ंणा- नहीं मेरी बिहन, तुम चलकर सोओ, मG अभी आती हंू । 109
िनम ला ने अिधक आमह न िकया, लेटने चली गई। मगर िकसी तरह नींद न आई। कृ ंणा की उRसुकता और यह उमंग दे खकर उसका Vदय िकसी अलिaत आकांaा से आ+दोिलत हो उठां ओह! इस समय इसका Vदय िकतना ूफुिXलत हो रहा है । अनुराग ने इसे िकतना उ+म3 कर रखा है । तब उसे अपने िववाह की याद आई। िजस िदन ितलक गया था, उसी िदन से उसकी सारी चंचलता, सारी सजीवता िवदा हो गेई थी। अपनी कोठरी
म
बैठी वह अपनी िकःमत को रोती थी और ईSर से िवनय करती थी िक ूाण िनकल जाये। अपराधी जैसे दं ड की ूतीaा करता है , उसी भांित वह िववाह की ूतीaा करती थी, उस िववाह की, िजसम उसक जीवन की सारी अिभलाषाएं िवलीन हो जाएंगी, जब म^डप के नीचे बने हए ु हवन-कु^ड म उसकी आशाएं जलकर भःम हो जायगी। सोलह
म
हीना कटते दे र न लगी। िववाह का शुभ मुहू त आ पहंु चां मेहमान से घार भार गया। मंशी तोताराम एक िदन पहले आ गये और उसनके
साथ िनम ला की सहे ली भी आई। िनम ला ने बहत ु आमह न िकया था, वह खुद आने को उRसुक थी। िनम ला की सबसे बड़ी उRकंठा यही थी िक वर के बड़े भाई के दश न कं गी और हो सकता तो उसकी सुबिु K पर ध+यवाद दं ग ू ी। सुधा ने हं स कर कहा-तुम उनसे बोल सकोगी? िनम ला- Pय, बोलने म Pया हािन है ? अब तो दसरा ही स.ब+ध हो ू गया और मG न बोल सकंू गी, तो तुम तो हो ही। सुधा-न भाई, मुझसे यह न होगा। मG पराये मद से नहीं बोल सकती। न जाने कैसे आदमी ह। िनम ला-आदमी तो बुरे नहीं है , और िफर उनसे कुछ िववाह तो करना नहीं, जरा-सा बोलने म Pया हािन है ? डॉPटर साहब यहां होते, तो मG तु.ह आTा िदला दे ती। सुधा-जो लोग हदय के उदार होते हG , Pया चिरऽ के भी अ'छे होते है ? ु पराई nी की घूरने म तो िकसी मद को संकोच नहीं होता।
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िनम ला-अ'छा न बोलना, मG ही बात कर लूंगी, घूर लगे िजतना उनसे घूरते बनेगा, बस, अब तो राजी हई। ु इतने म कृ ंणा आकर बैठ गई। िनम ला ने मुःकराकर कहा-सच बता कृ ंणा, तेरा मन इस व} Pय उचाट हो रहा है ? कृ ंणा-जीजाजी बुला रहे हG , पहले जाकर सुना आआ, पीछे गbप लड़ाना बहत ु िबगड़ रहे हG । िनम ला- Pया है , तून कुछ प छ ू ा नहीं? कृ ंणा- कुछ बीमार से मालूम होते हG । बहत हो गए हG । ु ु दबले िनम ला- तो जरा बैठकर उनका मन बहला दे ती। यहां दौड़ी Pय चली आई? यह कहो, ईSर ने कृ पा की, नहीं तो ऐसा ही प ु षा तुझे भी िमलता। जरा बैठकर बात करो। बुढे बात बड़ी ल'छे दार करते हG । जवान इतने डींिगयल नहीं होते। कृ ंणा- नहीं बिहन, तुम जाओ, मुझसे तो वहां बैठा नहीं जाता। िनम ला चली गई, तो सुधा ने कृ ंणा से कहा- अब तो बारात आ गई होगी। Kार-प ज ू ा Pय नही होती? कृ ंणा- Pया जाने बिहन, शाnीजी सामान इकeठा कर रहे हG ? सुधा- सुना है , दXहा का भावज बड़े कड़े ःवाभाव की nी है । ू कृ ंणा- कैसे मालूम? सुधा- मGने सुना है , इसीिलए चेताये दे ती हंू । चार बात गम खाकर रहना होगा। कृ ंणा- मेरी झगड़ने की आदत नहीं। जब मेरी तरफ से कोई िशकायत ही न पायगी तो Pया अनायास ही िबगड़े गी! सुधा- हां, सुना तो ऐसा ही है । झूठ-मूठ लड़ा कारती है । कृ ंणा- मG तो सौबात की एक बात जानती हंू , नॆता पRथर को भी मोम कर दे ती है । सहसा शोर मचा- बारात आ रही है । दोन रमिणयां िखड़की के सामने आ बैठीं। एक aण म िनम ला भी आ पहंु ची। वर के बड़े भाई को दे खने की उसे बड़ी उRसुकता हो रही थी। सुधा ने कहा- कैसे पता चलेगा िक बड़े भाई कौन हG ? िनम ला- शाnीजी से प छ ू ू ं , तो मालूम हो। हाथी पर तो कृ ंणा के ससुर महाशय हG । अ'छा डॉPटर साहब यहां कैसे आ पहंु च!े वह घोड़े पर Pया 111
हG , दे खती नहीं हो? सुधा- हां, हG तो वही। िनम ला- उन लोग से िमऽता होगी। कोई स.ब+ध तो नहीं है । सुधा- अब भट हो तो प छ ू ू ं , मुझे तो कुछ नहीं मालूम। िनम ला- पालकी मे जो महाशय बैठे हए के भाई जैसे ू ु हG , वह तो दXहा नहीं दीखते। सुधा- िबलकुल नहीं। मालूम होता है , सारी दे हे मे पेछ-ही-पेट है । िनम ला- दसरे हाथी पर कौन बैठा है , समझ म नही आता। ू सुधा- कोई हो, दXहा का भाई नहीं हो सकता। उसकी उॆ नहीं दे खती ू हो, चालीस के ऊपर हगी। िनम ला- शाnजी तो इस व} Kार-प ज ू ा िक िफब म हG , नहीं तो◌ा उनसे प छ ू ती। संयोग से नाई आ गया। स+दक ू की कंु िलयां िनम ला के पास थीं। इस व} Kारचार के िलए कुछ पये की जरत थी, माता ने भेजा था, यह नाई भी पि^डत मोटे राम जी के साथ ितलक लेकर गया था। िनम ला ने कहा- Pया अभी पये चािहए? नाई- हां बिहनजी, चलकर दे दीिजए। िनम ला- अ'छा चलती हंू । पहले यह बता, तू दXहा क बड़े भाई को ू पहचानता है ? नाई- पहचानता काहे नहीं, वह Pया सामने हG । िनम ला- कहां, मG तो नहीं दे खती? नाई- अरे वह Pया घोड़े पर सवार हG । वही तो हG । िनम ला ने चिकत होकर कहा- Pया कहता है , घोड़े पर दXहा के भाई ू हG ! पहचानता है या अटकल से कह रहा है ? नाई- अरे बिहनजी, Pया इतना भूल जाऊंगा अभी तो जलपान का सामान िदये चला आता हंू । िनम ल- अरे , यह तो डॉPटर साहब हG । मेरे पड़ोस म रहते हG । नाई- हां-हां, वही तो डॉPटर साहब है । िनम ला ने सुधा की ओर दे खकर कहा- सुनती ही बिहन, इसकी बात? सुधा ने हं सी रोककर कहा-झूठ बोलता है । 112
नाई- अ'छा साहब, झूठ ही सही, अब बड़ के मुंह कौन लगे! अभी शाnीजी से प छ ू वा दं ग ू ा, तब तो मािनएगा? नाई के आने म दे र हई ु , मोटे राम खुद आंगन म आकर शोर मचाने लगे-इस घर की मया दा रखना ईSर ही के हाथ है । नाई घ^टे भर से आया हआ है , और अभी तक पये नहीं िमले। ु िनम ला- जरा यहां चले आइएगा शाnीजी, िकतने पये दरकरार हG , िनकाल दं ?ू शाnीजी भुनभुनाते और जोर-जारे से हांफते हए ु ऊपर आये और एक ल.बी सांस लेकर बोले-Pया है ? यह बात का समय नहीं है , जXदी से पये िनकाल दो। िनम ला- लीिजए, िनकाल तो रहीं हंू । अब Pया मुंह के बल िगर पडंू ? पहले यह बताइए िक दलहा के बड़े भाई कौन हG ? ू शाnीजी- रामे-राम, इतनी-सी बात के िलए मुझे आकाश पर लटका िदया। नाई Pया न पहचानता था? िनम ला- नाई तो कहता है िक वह जो घोड़े पर सवार है , वही हG । शाnीजी- तो िफर िकसे बता दे ? वही तो हG ही। नाई- घड़ी भर से कह रहा हंू , पर बिहनजी मानती ही नहीं। िनम ला ने सुधा की ओर ःनेह, ममता, िवनोद कृ िऽम ितरःकार की fिm से दे खकर कहा- अ'छा, तो तु.ही अब तक मेरे साथ यह िऽया-चिरऽ खेर रही थी! मG जानती, तो तु.ह यहां बुलाती ही नहीं। ओoफोह! बड़ा गहरा पेट है तु.हारा! तुम महीन से मेरे साथ शरारत करती चली आती हो, और कभी भूल से भी इस िवषय का एक शCद तु.हारे मुंह से नहीं िनकला। मG तो दोचार ही िदन म उबल पड़ती। सुधा- तु.ह मालूम हो जाता, तो तुम मेरे यहां आती ही Pय? िनम ला- गजब-रे -गजब, मG डॉPटर साहब से कई बार बात कर चुकी हंू । तु.हारो ऊपर यह सारा पाप पड़े गा। दे खा कृ ंणा, तूने अपनी जेठानी की शरारत! यह ऐसी मायािवनी है , इनसे डरती रहना। कृ ंणा- मG तो ऐसी दे वी के चरण धो-धोकर माथे चढाऊंगी। ध+य-भाग िक इनके दश न हए। ु िनम ला- अब समझ गई। पये भी तु.ह न िभजवाये हगे। अब िसर िहलाया तो सच कहती हंू , मार बैठूंगी। 113
सुधा- अपने घर बुलाकर के मेहमान का अपमान नहीं िकया जाता। िनम ला- दे खो तो अभी कैसी-कैसी खबरे लेती हंू । मGने तु.हारा मान रखने को जरा-सा िलख िदया था और तुम सचमुच आ पहंु ची। भला वहां वाले Pया कहते हगे? सुधा- सबसे कहकर आई हंू । िनम ला- अब तु.हारे पास कभी न आऊंगी। इतना तो इशारा कर दे तीं िक डॉPटर साहब से पदा रखना। सुधा- उनके दे ख लेने ही से कौन बुराई हो गई? न दे खते तो अपनी िकःमत को रोते कैसे? जानते कैसे िक लोभ म पड़कर कैसी चीज खो दी? अब तो तु.ह दे खकर लालाजी हाथ मलकर रह जाते हG । मुंह से तो कुछ नहीं सकहते, पर मन म अपनी भूल पर पछताते हG । िनम ला- अब तु.हारे घर कभी न आऊंगी। सुधा- अब िप^ड नहीं छूट सकता। मGने कौन तु.हारे घर की राह नीं दे खी है । Kार-प ज ू ा समाr हो चुकी थी। मेहमान लोग बैठ जलपान कर रहे थे। मुंशीजी की बेगल म ही डॉPटर िस+हा बैठे हए ु थे। िनम ला ने कोठे पर िचक की आड़ से उ+ह दे खा और कलेजा थामकर रह गई। एक आरो]य, यौवन और ूितभा का दे वता था, पर दसरा ू ...इस िवषय म कुछ न कहना ही दिचत है । िनम ला ने डॉPटर साहब को सैकड़ ही बार दे खा था, पर आज उसके Vदय म जो िवचार उठे , वे कभी न उठे थे। बार-बार यह जी चाहता था िक बुलाकर खूब फटकां , ऐसे-ऐसे ताने मां िक वह भी याद कर , ला-लाकर छोडंू , मेगर रहम करके रह जाती थी। बारात जनवासे चली गई थी। भोजन की तैयारी हो रही थी। िनम ला भोजन के थाल चुनने म 4यःत थी। सहसा महरी ने आकर कहा- िबeटी, तु.ह सुधा रानी बुला रही है । तु.हारे कमरे म बैठी हG । िनम ला ने थाल छोड़ िदये और घबराई हई ु सुधा के पास आई, मगर अ+दर कदम रखते ही िठठक गई, डॉPटर िस+हा खड़े थे। सुधा ने मुःकराकर कहा- लो बिहन, बुला िदया। अब िजतना चाहो, फटकारो। मG दरवाजा रोके खड़ी हंू , भाग नहीं सकते। 114
डॉPटर साहब ने ग.भीर भाव से कहा- भागता कौन है ? यहां तो िसर झुकाए खड़ा हंू । िनम ला ने हाथ जोड़कर कहा- इसी तरह सदा कृ पा-fिm रिखएगा, भूल न जाइएगा। यह मेरी िवनय है । सऽह
कृ
ंणा के िववाह के बाद सुधा चली गई, लेिकन िनम ला मैके ही म रह गई। वकील साहब बार-बार िलखते थे, पर वह न जाती थी। वहां जाने
को उसका जी न चाहता था। वहां कोई ऐसी चीज न थी, जो उसे खींच ले जाये। यहां माता की सेवा और छोटे भाइय की दे खभाल म उसका समय बड़े आन+द के कट जाता था। वकील साहब खुद आते तो शायद वह जाने पर राजी हो जाती, लेिकन इस िववाह म, मुहXले की लड़िकय ने उनकी वह दग
ु त की थी िक बेचारे आने का नाम ही न लेते थे। सुधा ने भी कई बार पऽ िलखा, पर िनम ला ने उससे भी हीले-हाले िकया। आिखर एक िदन सुधा ने नौकर को साथ िलया और ःवयं आ धमकी। जब दोन गले िमल चुकीं, तो सुधा ने कहा-तु.ह तो वहां जाते मानो डर लगता है । िनम ला- हां बिहन, डर तो लगता है । Cयाह की गई तीन साल म आई, अब की तो वहां उॆ ही खतम हो जायेगी, िफर कौन बुलाता है और कौन आता है ? सुधा- आने को Pया हआ ु , जब जी चाहे चली आना। वहां वकील साहब बहत ै हो रहे हG । ु बेचन िनम ला- बहत ै , रात को शायद नींद न आती हो। ु बेचन सुधा- बिहन, तु.हारा कलेजा पRथर का है । उनकी दशा दे खकर तरस आता है । कहते थे, घर मे कोई प छ ू ने वाला नहीं, न कोई लड़का, न बाला, िकससे जी बहलाय? जब से दसरे मकान म उठ आए हG , बहत रहते हG । ू ु ु दखी िनम ला- लड़के तो ईSर के िदये दो-दो हG । सुधा- उन दोन की तो बड़ी िशकायत करते थे। िजयाराम तो अब बात ही नहीं सुनता-तुक-बतुक जवाब दे ता है । रहा छोटा, वह भी उसी के कहने म है । बेचारे बड़े लड़के की याद करके रोया करते हG । 115
िनम ला- िजयाराम तो शरीर न था, वह बदमाशी कब से सीख गया? मेरी तो कोई बात न टालता था, इशारे पर काम करता था। सुधा- Pया जाने बिहन, सुना, कहता है , आप ही ने भैया को जहर दे कर मार डाला, आप हRयारे हG । कई बार तुमसे िववाह करने के िलए ताने दे चुका है । ऐसी-ऐसी बात कहता है िक वकील साहब रो पड़ते हG । अरे , और तो Pया कहंू , एक िदन पRथर उठाकर मारने दौड़ा था। िनम ला ने ग.भीर िच+ता म पड़कर कहा- यह लड़का तो बड़ा शैतान िनकला। उसे यह िकसने कहा िक उसके भाई को उ+हने जहर दे िदया है ? सुधा- वह तु.हीं से ठीक होगा। िनम ला को यह नई िच+ता प द ै ा हई। अगर िजया की यही रं ग है , ु अपने बाप से लड़ने पर तैयार रहता है , तो मुझसे Pय दबने लगा? वह रात को बड़ी दे र तक इसी िफब मे डबी रही। मंसाराम की आज उसे बहत ू ु याद आई। उसके साथ िज+दगी आराम से कट जाती। इस लड़के का जब अपने िपता के सामने ही वह हाल है , तो उनके पीछे उसके साथ कैसे िनवा ह होगा! घर हाथ से िनकल ही गया। कुछ-न-कुछ कज अभी िसर पर होगा ही, आमदनी का यह हाल। ईSवर ही बेड़ा पार लगायगे। आज पहली बार िनम ला को ब'च की िफब प द ै ा हई। इस बेचारी का न जाने Pया हाल ु होगा? ईSर ने यह िवपि3 िसर डाल दी। मुझे तो इसकी जरत न थी। ज+म ही लेना था, तो िकसी भा]यवान के घर ज+म लेती। ब'ची उसकी छाती से िलपटी हई ु सो रही थी। माता ने उसको और भी िचपटा िलया, मानो कोई उसके हाथ से उसे छीने िलये जाता है । िनम ला के पास ही सुधा की चारपाई भी थी। िनमuला तो िच+RT सागर मे गोता था रही थी और सुधा मीठी नींद का आन+द उठा रही थी। Pया उसे अपने बालक की िफब सताती है ? मृRयु तो बूढ़े और जवान का भेद नहीं करती, िफनर सुधा को कोई िच+ता Pय नहीं सताती? उसे तो कभी भिवंय की िच+ता से उदास नहीं दे खा। सहसा सुधा की नींद खुल गई। उसने िनम ला को अभी तक जागते दे खा, तो बोली- अरे अभी तुम सोई नहीं? िनम ला- नींद ही नहीं आती।
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सुधा- आंख ब+द कर लो, आप ही नींद आ जायेगी। मG तो चारपाई पर आते ही मर-सी जाती हंू । वह जागते भी हG , तो खबर नहीं होती। न जाने मुझे Pय इतनी नींद आती है । शायद कोई रोग है । िनम ला- हां, बड़ा भारी रोग है । इसे राज-रोग कहते हG । डॉPटर साहब से कहो-दवा शु कर द । सुधा- तो आिखर जागकर Pया सोचू?ं कभी-कभी मैके की याद आ जाती है , तो उस िदन जरा दे र म आंख लगती है । िनम ला- डॉPटर साहब की यादा नहीं आती? सुधा- कभी नहीं, उनकी याद Pय आये? जानती हंू िक टे िनस खेलकर आये हगे, खाना खाया होगा और आराम से लेटे हगे। िनम ला- लो, सोहन भी जाग गया। जब तुम जाग ग तो भला यह Pय सोने लगा? सुधा- हां बिहन, इसकी अजीब आदत है । मेरे साथ सोता और मेरे ही साथ जागता है । उस ज+म का कोई तपःवी है । दे खो, इसके माथे पर ितलक का कैसा िनशान है । बांह पर भी ऐसे ही िनशान हG । जर कोई तपःवी है । िनम ला- तपःवी लोग तो च+दन-ितलक नहीं लगाते। उस ज+म का कोई धूत प ज ु ारी होगा। Pय रे , तू कहां का प ज ु ारी था? बता? सुधा- इसका Cयाह मG ब'ची से कं गी। िनम ला- चलो बिहन, गाली दे ती हो। बिहन से भी भाई का Cयाह होता है ? सुधा- मG तो कं गी, चाहे कोई कुछ कहे । ऐसी सु+दर बहू और कहां पाऊंगी? जरा दे खो तो बहन, इसकी दे ह कुछ गम है या मुझके ही मालूम होती है । िनम ला ने सोहन का माथा छूकर कहा-नहीं-नहीं, दे ह गम है । यह Mवर कब आ गया! दध ू तो पी रहा है न? सुधा- अभी सोया था, तब तो दे ह ठं डी थी। शायद सद लग गई, उढ़ाकर सुलाये दे ती हंू । सबेरे तक ठीक हो जायेगा। सबेरा हआ तो सोहन की दशा और भी खराब हो गई। उसकी नाक ु बहने लगी और बुखार और भी तेज हो गया। आंख चढ़ ग और िसर झुक गया। न वह हाथ-प रै िहलाता था, न हं सता-बोलता था, बस, चुप चाप पड़ा था। ऐसा मालूम होता था िक उसे इस व} िकसी का बोलना अ'छा नहीं लगता। 117
कुछ-कुछ खांसी भी आने लगी। अब तो सुधा घबराई। िनम ला की भी राय हई ु िक डॉPटर साहब को बुलाया जाये, लेिकन उसकी बूढ़ी माता ने कहाडॉPटर-हकीम साहब का यहां कुछ काम नहीं। साफ तो दे ख रही हंू । िक ब'चे को नजर लग गई है । भला डॉPटर आकर Pया कर ग?े सुधा- अ.मांजी, भला यहां नजर कौन लगा दे गा? अभी तक तो बाहर कहीं गया भी नहीं। माता- नजर कोई लगाता नहीं बेटी, िकसी-िकसी आदमी की दीठ बुरी होती है , आप-ही-आप लग जाती है । कभी-कभी मां-बाप तक की नजर लग जाती है । जब से आया है , एक बार भी नहीं रोया। चचले ब'च को यही गित होती है । मG इसे हमकते दे खकर डरी थी िक कुछ-न-कुछ अिनm होने ु वाला है । आंख नहीं दे खती हो, िकतनी चढ़ गई हG । यही नजर की सबसे बड़ी पहचान है । बुिढ़या महरी और पड़ोस की पंिडताइन ने इस कथन का अनुमोदन कर िदया। बस महं गू ने आकर ब'चे का मुंह दे खा और हं स कर बोलामालिकन, यह दीठ है और नहीं। जरा पतली-पतली तीिलयां मंगवा दीिजए। भगवान ने चाहा तो संझा तक ब'चा हं सने लगेगा। ु सरक^डे के पांच टकड़े लाये गये। महगूं ने उ+ह बराबर करके एक डोरे से बांध िदया और कुछ बुदबुदाकर उसी पोले हाथ से पांच बार सोहन का िसर सहलाया। अब जो दे खा, तो पांच तीिलयां छोटी-बड़ी हो गेई थी। सब nीय यह कौतुक दे खकर दं ग रह ग। अब नजर म िकसे स+दे ह हो सकता था। महगूं ने िफर ब'चे को तीिलय से सहलाना शु िकया। अब की तीिलयां बराबर हो ग। केवल थोड़ा-सा अ+तर रह गया। यह सब इस बात का ूमाण था िक नजर का असर अब थोड़ा-सा और रह गया है । महगू सबको िदलासा दे कर शाम को िफर आने का वायदा करके चला गया। बालक की दशा िदन को और खराब हो गई। खांसी का जोर हो गया। शाम के समय महगूं ने आकरा िफर तीिलय का तमाशा िकया। इस व} पांच तीिलय बराबर िनकलीं। nीयां िनिdत हो ग लेिकन सोहन को सारी रात खांसते गुजरी। यहां तक िक कई बार उसकी आंख उलट ग। सुधा और िनम ला दोन ने बैठकर सबेरा िकया। खैर, रात कुशल से कट गई। अब वृKा माताजी नया रं ग ला। महगूं नजर न उतार सका, इसिलए अब िकसी 118
मौलवी से फंू क डलवाना जरी हो गया। सुधा िफर भी अपने पित को सूचना न दे सकी। मेहरी सोहन को एक चादर से लपेट कर एक मिःजद म ले गई और फंू क डलवा लाई, शाम को भी फंू क छोड़ी, पर सोहन ने िसर न उठाया। रात आ गई, सुधा ने मन मे िनdय िकया िक रात कुशल से बीतेगी, तो ूात:काल पित को तार दं ग ू ी। लेिकन रात कुशल से न बीतने पाई। आधी रात जाते-जाते ब'चा हाथ से िनकल गया। सुधा की जीन- स.पि3 दे खते-दे खते उसके हाथ से िछन गई। वही िजसके िववाह का दो िदन पहले िवनोद हो रहा था, आज सारे घर को ला रहा है । िजसकी भोली-भाली सूरत दे खकर माता की छाती फूल उठती थी, उसी को दे खकर आज माता की छाती फटी जाती है । सारा घर सुधा को समझाता था, पर उसके आंसू न थमते थे, सॄ न होता था। सबसे बड़ा द:ु ख इस बात का था का पित को कौन मुंह िदखलाऊंगी! उ+ह खबर तक न दी। रात ही को तार दे िदया गया और दसरे िदन डॉPटर िस+हा नौ बजतेू बजते मोटर पर आ पहंु चे। सुधा ने उनके आने की खबर पाई, तो और
भी
फूट-फूटकर रोने लगी। बालक की जल-िबया हई ु , डॉPटर साहब कई बार अ+दर आये, िक+तु सुधा उनके पास न गई। उनके सामने कैसे जाये? कौन मुंह िदखाये? उसने अपनी नादानी से उनके जीवन का र छीनकर दिरया म ु -टकड़े ु डाल िदया। अब उनके पास जाते उसकी छाती के टकड़े हए ु जाते थे। बालक को उसकी गोद म दे खकर पित की आंखे चमक उठती थीं। बालक हमककर िपता की गोद म चला जाता था। माता िफर बुलाती, तो िपता की ु छाती से िचपट जाता था और लाख चुमराने-दलारने पर भी बाप को गोद न ु छोड़ता था। तब मां कहती थी- बैड़ा मतलबी है । आज वह िकसे गोद मे लेकर पित के पास जायेगी? उसकी सूनी गोद दे खकर कहीं वह िचXलाकर रो न पड़े । पित के स.मुख जाने की अपेaा उसे मर जाना कहीं आसान जान पड़ता था। वह एक aण के िलए भी िनम ला को न छोड़ती थी िक कहीं पित से सामना न हो जाये। िनम ला ने कहा- बिहन, जो होना था वह हो चुका, अब उनसे कब तक भागती िफरोगी। रात ही को चले जायगे। अ.मां कहती थीं। 119
सुधा से सजल नेऽ से ताकते हए ु कहा- कौन मुंह लेकर उनके पास जाऊं? मुझे डर लग रहा है िक उनके सामने जाते ही मेरा प रै ा न थरा ने लगे और मG िगर पडंू । िनम ला- चलो, मG तु.हारे साथ चलती हंू । तु.ह संभाले रहंू गी। सुधा- मुझे छोड़कर भाग तो न जाओगी? िनम ला- नहीं-नहीं, भागूंगी नहीं। सुधा- मेरा कलेजा तो अभी से उमड़ा आता है । मG इतना घोर ोजपाता होने पर भी बैठी हंू , मुझे यही आdय हो रहा है । सोहन को वह बहत ु bयार करते थे बिहन। न जाने उनके िच3 की Pया दशा होगी। मG उ+ह ढाढ़स Pया दं ग ू ी, आप हो रोती रहंू गी। Pया रात ही को चले जायग?े िनम ला- हां, अ.मांजी तो कहती थी छुeटी नहीं ली है । दोनो सहे िलयां मदा ने कमरे की ओर चलीं, लेिकन कमरे के Kार पर पहंु चकर सुधा ने िनम ला से िवदा कर िदया। अकेली कमरे मे दािखल हई। ु डॉPटर साहब घबरा रहे थे िक न जाने सुधा की Pया दशा हो रही है । भांित-भांित की शंकाएं मन मे आ रही थीं। जाने को तैयार बैठे थे, लेिकन जी न चाहता था। जीवन शू+य-सा मालूम होता था। मन-ही-मन कुढ़ रहे थे, अगर ईSर को इतनी जXदी यह पदाथ दे कर छीन लेना था, तो िदया ही Pय था? उ+हने तो कभी स+तान के िलए ईSर से ूाथ ना न की थी। वह आज+म िन:स+तान रह सकते थे, पर स+तान पाकर उससे वंिचत हो जाना उ+हं अस॑ा जान पड़ता था। Pया सचमुच मनुंय ईSर का िखलौना है ? यही मानव जीवन का महRव है ? यह केवल बालक का घरjदा है , िजसके बनने का न कोई हे तु है न िबगड़ने का? िफर बालक को भी तो अपने घरjदे से अपनी कागेज की नाव से, अपनी लकड़ी के घोड़ से ममता होती है । अ'छे िखलौने का वह जान के पीछे िछपाकर रखते हG । अगर ईSर बालक ही है तो वह िविचऽ बालक है । िक+तु बुिK तो ईdर का यह प ःवीकार नहीं करती। अन+त सृिm का क3ा उy^ड बालक नहीं हो सकता है । हम उसे उन सारे गुण से िवभूिषत करते हG , जो हमारी बुिK का पहंु च से बाहर है । िखलाड़ीपन तो साउन महान ्गुण मे नहीं! Pया हं सते-खेलते बालक का ूाण हर लेना खेल है ? Pया ईSर ऐसा प श ै ािचक खेल खेलता है ? 120
सहसा सुधा दबे-पांव कमरे म दािखल हई। डासॅPटर साहब उठ खड़े ु हए ु और उसके समीप आकर बोले-तुम कहां थी, सुधा? मG तु.हारी राह दे ख रहा था। सुधा की आंख से कमरा तैरता हआ जान पड़ा। पित की गद न मे ु हाथ डालकर उसने उनकी छाती पर िसर रख िदया और रोने लगी, लेिकन इस अौु-ूवाह म उसे असीम धैय और सांRवना का अनुभव हो रहा था। पित
के वa-ःथल से िलपटी हई ु वह अपने Vदय म एक िविचऽ ःफूित
और बल का संचार होते हए दीपक ु पाती थी, मानो पवन से थरथराता हआ ु अंचल की आड़ म आ गया हो। डॉPटर साहब ने रमणी के अौु-िसंिचत कपोल को दोनो हाथो म लेकर कहा-सुधा, तुम इतना छोटा िदल Pय करती हो? सोहन अपने जीवन म जो कुछ करने आया था, वह कर चुका था, िफर वह Pय बैठा रहता? जैसे कोई वृa जल और ूकाश से बढ़ता है , लेिकन पवन के ूबल झोक ही से सुfढ़ होता है , उसी भांित ूणय भी द:ु ख के आघात ही से िवकास पाता है । खुशी के साथ हं सनेवाले बहते ु रे िमल जाते हG , रं ज म जो साथ रोये, वहर हमारा स'चा िमऽ है । िजन ूेिमय को साथ रोना नहीं नसीब हआ ु , वे मुहCबत के मजे Pया जान? सोहन की मृRयु ने आज हमारे Kै त को िबलकुल िमटा िदया। आज ही हमने एक दसरे का स'चा ःवप दे खा।;?! ू सुधा ने िससकते हए ु कहा- मG नजर के धोखे म थी। हाय! तुम उसका मुंह भी न दे खने पाये। न जाने इन सिदन उसे इतनी समझ कहां से आ गई थी। जब मुझे रोते दे खता, तो अपने केm भूलकर मुःकरा दे ता। तीसरे ही िदन मरे लाडले की आंख ब+द हो गई। कुछ दवा-दप न
भी न करने पा। यह कहते-कहते सुधा के आंसू िफर उमड़ आये। डॉPटर िस+हा ने उसे सीने से लगाकर कणा से कांप ती हई ु आवाज म कहा-िूये, आज तक कोई ऐसा बालक या वृK न मरा होगा, िजससे घरवाल की दवा-दप न
की लालसा प रू ी हो गई। सुधा- िनम ला ने मेरी बड़ी मदद की। मG तो एकाध झपकी ले भी लेती थी, पर उसकी आंख नहीं झपकी। रात-रात िलये बैठी या टहलती रहती थी। उसके अहसान कभी न भूलंगी। Pया तुम आज ही जा रहे हो? डॉPटर- हां, छुeटी लेने का मौका न था। िसिवल सज न िशकार खेलने गया हआ था। ु 121
सुधा- यह सब हमेशा िशकार ही खेला करते हG ? डॉPटर- राजाओं को और काम ही Pया है ? सुधा- मG तो आज न जाने दं ग ू ी। डॉPटर- जी तो मेरा भी नहीं चाहता। सुधा- तो मत जाओ, तार दे दो। मG भी तु.हारे साथ चलूंगी। िनम ला को भी लेती चलूग ं ी। सुधा वहां से लौटी, तो उसके Vदय का बोझ हलका हो गया था। पित की ूेमप ण ू ा कोमल वाणी ने उसके सारे शोक और संताप का हरण कर िलया था। ूेम म असीम िवSास है , असीम धैय है और असीम बल है । अठारह
ज
ब हमारे ऊपर कोई बड़ी िवपि3 आ पड़ती है , तो उससे हम केवल द:ु ख ही नहीं होता, हम दसर के ताने भी सहने पड़ते हG । जनता को ू
हमारे ऊपर िटbपिणय करने का वह सुअवसर िमल जाता है , िजसके िलए वह हमेशा बेचन ै रहती है । मंसाराम Pया मरा, मान समाज को उन पर आवाज कसने का बहान िमल गया। भीतर की बात कौन जाने, ूRयa बात यह थी िक यह सब सौतेली मां की करतूत है चार तरफ यही चचा थी, ईSर ने करे लड़क को सौतेली मां से पाला पड़े । िजसे अपना बना-बनाया घर उजाड़ना हो, अपने bयारे ब'च की गद न पर छुरी फेरनी हो, वह ब'च के रहते हए Cयाह करे । ऐसा कभी नहीं दे खा िक सौत के आने पर ू ु अपना दसरा घर तबाह न हो गया हो, वही बाप जो ब'च पर जान दे ता था सौत के आते ही उ+हीं ब'च का दँमन हो जाता है , उसकी मित ही बदल जाती है । ऐसी ु दे वी ने जै+म ही नहीं िलया, िजसने सौत के ब'च का अपना समझा हो। मुिँकल यह थी िक लोग िटbपिणय पर स+तुm न होते थे। कुछ ऐसे सMजन भी थे, िज+ह अब िजयाराम और िसयाराम से िवशेष ःनेह हो गया था। वे दान बालक से बड़ी सहानुभिू त ूकट करते, यहां तक िक दो-सएक मिहलाएं तो उसकी माता के शील और ःवभाव को याद करे आंसू बहाने लगती थीं। हाय-हाय! बेचारी Pया जानती थी िक उसके मरते ही लाड़ल की यह दद ु शा होगी! अब दध ू -मPखन काहे को िमलता होगा! िजयाराम कहता- िमलता Pय नहीं? 122
मिहला कहती- िमलता है ! अरे बेटा, िमलना भी कई तरह का होता है । पानीवाल दध ू ता ू टके सेर का मंगाकर रख िदया, िपय चाहे न िपयो, कौन प छ है ? नहीं तो बेचारी नौकर से दध कर मंगवाती थी। वह तो चेहरा ही ू दहवा ु कहे दे ता है । दध ू की सूरत िछपी नहीं रहती, वह सूरत ही नहीं रहीं िजया को अपनी मां के समय के दध ू का ःवाद तो याद था सनहीं, जो इस आaेप का उ3र दे ता और न उस समय की अपनी सूरत ही याद थी, चुप रह जाता। इन शुभाकांaाओं का असर भी पड़ना ःवाभािवक था। िजयाराम को अपने घरवाल से िचढ़ होती जाती थी। मुंशीजी मकान नीलामी हो जोने के बाद दसरे घर म उठ आये, तो िकराये की िफब हई। िनम ला ने ू ु मPखन ब+द कर िदया। वह आमदनी हा नहीं रही, तो खच कैसे रहता। दोन कहार अलगे कर िदये गये। िजयाराम को यह कतर-Cयत बुरी लगती थी। जब िनम ला मैके चली गयी, तो मुंशीजी ने दध ू भी ब+द कर िदया। नवजात क+या की िचनता अभी से उनके िसर पर सवार हा गयी थी। िसयाराम ने िबगड़कर कहा- दध ू ब+द रहने से तो आपका महल बन रहा होगा, भोजन भी बंद कर दीिजए! मुंशीजी- दध ू पीने का शौक है , तो जाकर दहा ु Pय नही लाते? पानी के पस ै े तो मुझसे न िदये जायगे। िजयाराम- मG दध जाऊं, कोई ःकूल का लड़का दे ख ले तब? ू दहाने ु मुंशीजी- तब कुछ नहीं। कह दे ना अपने िलए दध ू िलए जाता हंू । दध ू लाना कोई चोरी नहीं है । िजयाराम- चोरी नहीं है ! आप ही को कोई दध ू लाते दे ख ले, तो आपको शम न आयेगी। मुंशीजी- िबXकुल नहीं। मGने तो इ+हीं हाथ से पानी खींचा है , अनाज की गठिरयां लाया हंू । मेरे बाप लखपित नहीं थे। िजयाराम-मेरे बाप तो गरीब नहीं, मG Pय दध जाऊं? आिखर ू दहाने ु आपने कहार को Pय जवाब दे िदया? मंशीजी- Pया तु.ह इतना भी नहीं सूझता िक मेरी आमदनी अब पहली सी नहीं रही इतने नादान तो नहीं हो? िजयाराम- आिखर आपकी आमदनी Pय कम हो गयी? मुंशीजी- जब तु.ह अकल ही नहीं है , तो Pया समझाऊं। यहां िज+दगी से तंगे आ गया हंू , मुकदम कौन ले और ले भी तो तैयार कौन करे ? वह 123
िदल ही नहीं रहा। अब तो िजंदगी के िदन प रू े कर रहा हंू । सारे अरमान लXलू के साथ चले गये। िजयाराम- अपने ही हाथ न। मुंशीजी ने चीखकर कहा- अरे अहमक! यह ईSर की मजh थी। अपने हाथ कोई अपना गला काटता है । िजयाराम- ईSर तो आपका िववाह करने न आया था। मंशीजी अब जCत न कर सके, लाल-लाल आंख िनकालक बोले-Pया तुम आज लड़ने के िलए कमर बांधकर आये हो? आिखर िकस िबरते पर? मेरी रोिटयां तो नहीं चलाते? जब इस कािबल हो जाना, मुझे उपदे श दे ना। तब मG सुन लूंगा। अभी तुमको मुझे उपदे श दे ने का अिधकार नहीं है । कुछ िदन अदब और तमीज़ सीखो। तुम मेरे सलाहकार नहीं हो िक मG जो काम कं , उसम तुमसे सलाह लूं। मेरी प द ै ा की हई ु दौलत है , उसे जैसे चाहंू खच
कर सकता हंू । तुमको जबान खोलने का भी हक नहीं है । अगर िफर तुमने मुझसे बेअदबी की, तो नतीजा बुरा होगा। जब मंसाराम ऐसा र खोकर मरे ूाण न िनकले, तो तु.हारे बगैर मG मर न जाऊंगा, समझ गये? यह कड़ी फटकार पाकर भी िजयाराम वहां से न टला। िन:शंक भाव से बोला-तो आप Pया चाहते हG िक हम चाहे िकतनी ही तकलीफ हो मुंह न खोले? मुझसे तो यह न होगा। भाई साहब को अदब और तमीज का जो इनाम िमला, उसकी मुझे भूख नहीं। मुझम जहर खाकर ूाण दे ने की िह.मत नहीं। ऐसे अदब को दरू से दं ड वत करता हंू । मुंशीजी- तु.ह ऐसी बात करते हए ु शम नहीं आती? िजयाराम- लड़के अपने बुजग ु p ही की नकल करते हG । मुंशीजी का बोध शा+त हो गया। िजयाराम पर उसका कुछ भी असर न होगा, इसका उ+ह यकीन हो गया। उठकर टहलने चले गये। आज उ+ह सूचना िमल गयी के इस घर का शीय ही सव नाश होने वाला हG । उस िदन से िपता और प ऽ ु मे िकसी न िकसी बात पर रोज ही एक झपट हो जाती है । मुंशीजी Mय-Rय तरह दे ते थे, िजयाराम और भी शेर होता जाता था। एक िदन िजयाराम ने िPमणी से यहां तक कह डाला- बाप हG , यह समझकर छोड़ दे ता हंू , नहीं तो मेरे ऐसे-ऐसे साथी हG िक चाहंू तो भरे बाजार मे िपटवा दं ।ू िPमणी ने मुंशीजी से कह िदया। मुंशीजी ने ूकट प से तो बेप रवाही ही िदखायी, पर उनके मन म शंका समा गया। शाम को सैर 124
करना छोड़ िदया। यह नयी िच+ता सवार हो गयी। इसी भय से िनम ला को भी न लाते थे िक शैतान उसके साथ भी यही बता व करे गा। िजयाराम एक बार दबी जबान म कह भी चुका था- दे ख,ंू अबकी कैसे इस घर म आती है ? मुंशीजी भी खूब समझ गये थे िक मG इसका कुछ भी नहीं कर सकता। कोई बाहर का आदमी होता, तो उसे प िु लस
और कानून के िशंजे म कसते। अपने
लड़के को Pया कर ? सच कहा है - आदमी हारता है , तो अपने लड़क ही से। एक िदन डॉPटर िस+हा ने िजयाराम को बुलाकर समझाना शु िकया। िजयाराम उनका अदब करता था। चुप चाप बैठा सुनता रहा। जब डॉPटर साहब ने अ+त म प छ ू ा, आिखर तुम चाहते Pया हो? तो वह बोला- साफसाफ कह दं ?ू बूरा तो न मािनएगा? िस+हा- नहीं, जो कुछ तु.हारे िदल म हो साफ-साफ कह दो। िजयाराम- तो सुिनए, जब से भैया मरे हG , मुझे िपताजी की सूरत दे खकर बोध आता है । मुझे ऐसा मालूम होता है िक इ+हीं ने भैया की हRया की है और एक िदन मौका पाकर हम दोन भाइय को भी हRया कर गे। अगर उनकी यह इ'छा न होती तो Cयाह ही Pय करते? डॉPटर साहब ने बड़ी मुिँकल से हं सी रोककर कहा- तु.हारी हRया करने के िलए उ+ह Cयाह करने की Pया जरत थी, यह बात मेरी समझ म नहीं आयी। िबना िववाह िकये भी तो वह हRया कर सकते थे। िजयाराम- कभी नहीं, उस व} तो उनका िदल ही कुछ और था, हम लोग पर जान दे ते थे अब मुंह तके नहीं दे खना चाहते। उनकी यही इ'छा है िक उन दोन ूािणय के िसवा घर म और कोई न रहे । अब जसे लड़के हगे उनक राःते से हम लोग का हटा दे ना चाहते है । यही उन दोन आदिमय की िदली मंशा है । हम तरह-तरह की तकलीफ दे कर भगा दे ना चाहते हG । इसीिलए आजकल मुकदमे नहीं लेते। हम दोन भाई आज मर जाय, तो िफर दे िखए कैसी बहार होती है । डॉPटर- अगर तु.ह भागना ही होता, तो कोई इXजाम लगाकर घर से िनकल न दे ते? िजयाराम- इसके िलए पहले ही से तैयार बैठा हंू । डॉPटर- सुनं,ू Pया तैयारी कही है ? िजयाराम- जब मौका आयेगा, दे ख लीिजएगा। 125
यह कहकर िजयराम चलता हआ। डॉPटर िस+हा ने बहत ु ारा, पर ु ु पक उसने िफर कर दे खा भी नहीं। कई िदन के बाद डॉPटर साहब की िजयाराम से िफर मुलाकात हो गयी। डॉPटर साहब िसनेमा के ूेमी थे और िजयाराम की तो जान ही िसनेमा म बसती थी। डॉPटर साहब ने िसनेमा पर आलोचना करके िजयाराम को बात म लगा िलया और अपने घर लाये। भोजन का समय आ गया था,, दोन आदमी साथ ही भोजन करने बैठे। िजयाराम को वहां भोजन बहत खाने का ु ःवािदm लगा, बोल- मेरे यहां तो जब से महाराज अलग हआ ु मजा ही जाता रहा। बुआजी पPका वैंणवी भोजन बनाती हG । जबरदःती खा लेता हंू , पर खाने की तरफ ताकने को जी नहीं चाहता। डॉPटर- मेरे यहां तो जब घर म खाना पकता है , तो इसे कहीं ःवािदm होता है । तु.हारी बुआजी bयाज-लहसुन न छूती हगी? िजयाराम- हां साहब, उबालकर रख दे ती हG । लालाली को इसकी परवाह ही नहीं िक कोई खाता है या नहीं। इसीिलए तो महाराज को अलग िकया है । अगर पये नहीं है , तो गहने कहां से बनते हG ? डॉPटर- यह बात नहीं है िजयाराम, उनकी आमदनी सचमुच बहत ु कम हो गयी है । तुम उ+ह बहत ु िदक करते हो। िजयाराम- (हं सकर) मG उ+ह िदक करता हंू ? मुझससे कसम ले लीिजए, जो कभी उनसे बोलता भी हंू । मुझे बदनाम करने का उ+हने बीड़ा उठा िलया है । बेसबब, बेवजह पीछे पड़े रहते हG । यहां तक िक मेरे दोःत से भी उ+ह िचढ़ है । आप ही सोिचए, दोःत के बगैर कोई िज+दा रह सकता है ? मG कोई लु'चा नहीं हू िक लु'च की सोहबत रखू,ं मगर आप दोःत ही के पीछे मुझे रोज सताया करते हG । कल तो मGने साफ कह िदया- मेरे दोःत घर आयगे, िकसी को अ'छा लगे या बुरा। जनाब, कोई हो, हर व} की धjस हीं सह सकता। डॉPटर- मुझे तो भाई, उन पर बड़ी दया आती है । यह जमाना उनके आराम करने का था। एक तो बुढ़ापा, उस पर जवान बेटे का शोक, ःवाःय भी अ'छा नहीं। ऐसा आदमी Pया कर सकता है ? वह जो कुछ थोड़ा-बहत ु करते हG , वही बहत ु है । तुम अभी और कुछ नहीं कर सकते, तो कम-से-कम अपने आचरण से तो उ+ह ूस+न रख सकते हो। बुढ़ को ूस+न करना बहत ु किठन काम नहीं। यकीन मानो, तु.हारा हं सकर बोलना ही उ+ह खुश 126
करने को काफी है । इतना प छ ू ने म तु.हारा Pया खच होता है । बाबूजी, आपकी तबीयत कैसी है ? वह तु.हारी यह उy^डता दे खकर मन-ही-मन कुढ़ते रहते हG । मG तुमसे सच कहता हंू , कई बार रो चुके हG । उ+होन मान लो शादी करने म गलती की। इसे वह भी ःवीकार करते हG , लेिकन तुम अपने क3 4य से Pय मुंह मोड़ते हो? वह तु.हारे िपता है , तु.ह उनकी सेवा करनी चािहए। एक बात भी ऐसी मुंह से न िनकालनी चािहए, िजससे उनका िदल दखे ु । उ+ह यह खयाल करने का मौका ही Pय दे िक सब मेरी कमाई खाने वाले हG , बात प छ ू ने वाला कोई नहीं। मेरी उॆ तुमसे कहीं Mयादा है , िजयाराम, पर आज तक मGने अपने िपताजी की िकसी बात का जवाब नहीं िदया। वह आज भी मुझे डांटते है , िसर झुकाकर सुन लेता हंू । जानता हंू , वह जो कुछ कहते हG , मेरे भले ही को कहते हG । माता-िपता से बढ़कर हमारा िहतैषी और कौन हो सकता है ? उसके ऋण से कौन मु} हो सकता है ? िजयाराम बैठा रोता रहा। अभी उसके साव का स.प ण ू त
: लोप न हआ था, अपनी दज
ु नता उसे साफ नजर आ रही थी। इतनी ]लािन उसे बहत ु ु िदन से न आयी थी। रोकर डॉPटर साहब से कहा- मG बहत ु लिMजत हंू । दसर के बहकाने म आ गया। अब आप मेरी जरा भी िशकयत न सुनगे । ू आप िपताजी से मेरे अपराध aमा कर दीिजए। मG सचमुच बड़ा अभागा हंू । उ+ह मGने बहत ु सताया। उनसे किहए- मेरे अपराध aमा कर द , नहीं मG मुंह म कािलख लगाकर कहीं िनकल जाऊंगा, डब ू मं गा। डॉPटर साहब अपनी उपदे श-कुशलता पर फूले न समाये। िजयाराम को गले लगाकर िवदा िकया। िजयाराम घर पहंु चा, तो ]यारह बज गये थे। मुंशीजी भोजन करे अभी बाहर आये थे। उसे दे खते ही बोले- जानते हो कै बजे है ? बारह का व} है । िजयाराम ने बड़ी नॆता से कहा- डॉPटर िस+हा िमल गये। उनके साथ उनके घर तक चला गया। उ+हने खाने के िलए िजद िक, मजबूरन खाना पड़ा। इसी से दे र हो गयी। मुंशीज- डॉPटर िस+हा से दखड़े रोने गये हगे या और कोई काम था। ु िजयाराम की नॆता का चौथा भाग उड़ गय, बोला- दखड़े रोने की मेरी ु आदत नहीं है । मुंशीजी- जरा भी नहीं, तु.हारे मुंह मे तो जबान ही नहीं। मुझसे जो लोग तु.हारी बात करते हG , वह गढ़ा करते हगे? 127
िजयाराम- और िदन की मG नहीं कहता, लेिकन आज डॉPटर िस+हा के यहां मGने कोई बात ऐसी नहीं की, जो इस व} आपके सामने न कर सकंू । मुंशीजी- बड़ी खुशी की बात है । बेहद खुशी हई। आज से गुदीaा ले ु ली है Pया? िजयाराम की नॆता का एक चतुथाश और गायब हो गया। िसर उठाकर बोला- आदमी िबना गुदीaा िलए हए ु भी अपनी बुराइय पर लिMजत हो सकता है । अपाना सुधार करने के िलए गुप+ऽ कोई जरी चीज नहीं। मुंशीजी- अब तो लु'चे न जमा हगे? िजयाराम- आप िकसी को लु'चा Pय कहते हG , जब तक ऐसा कहने के िलए आपके पास कोई ूमाण नहीं? मुंशीजी- तु.हारे दोःत सब लु'चे-लफंगे हG । एक भी भला आदमी नही। मG तुमसे कई बार कह चुका िक उ+ह यहां मत जमा िकया करोख ्पर तुमने सुना नहीं। आज म आिखर बार कहे दे ता हंू िक अगर तुमने उन शोहद को जमा िकया, तो मुझो प िु लस की सहायता लेनी पड़े गी। िजयाराम की नॆता का एक चतुथाश और गायब हो गया। फड़ककार बोला- अ'छी बात है , प िु लस की सहायता लीिजए। दे ख Pया करती है ? मेरे दोःत म आधे से Mयादा प िु लस के अफसर ही के बेटे हG । जब आप ही मेरा सुधार करने पर तुले हए ु है , तो मG 4यथ Pय कm उठाऊं? यह कहता हआ िजयाराम अपने कमरे मे चला गया और एक aण के ु बाद हारमोिनया के मीठे ःवर की आवाज बाहर आने लगी। सVदयता का जलया हआ दीपक िनद य 4यं]य के एक झके से बुझ ु गया। अड़ा हआ घोड़ा चुमकाराने से जोर मारने लगा था, पर ह^टर पड़ते ही ु िफर अड़ गया और गाड़ी की पीछे ढकेलने लगा। उ+नीस
अ
बकी सुधा के साथ िनम ला को भी आना पड़ा। वह तो मैके म कुछ िदन और रहना चाहती थी, लेिकन शोकातुर सुधा अकेले कैसे रही!
उसको आिखर आना ही पड़ा। िPमणी ने भूंगी से कहा- दे खती है , बहू मैके से कैसा िनखरकर आयी है ! 128
भूंगी ने कहा- दीदी, मां के हाथ की रोिटयां लड़िकय को बहत ु अ'छी लगती है । िPमणी- ठीक कहती है भूग ं ी, िखलाना तो बस मां ही जानती है । िनम ला को ऐसा मालूम हआ िक घर का कोई आदमी उसके आने से ु खुश नहीं। मुंशीजी ने खुशी तो बहत ु िदखाई, पर Vदयगत िचनता को न िछपा सके। ब'ची का नाम सुधा ने आशा रख िदया था। वह आशा की मूित -सी थी भी। दे खकर सारी िच+ता भाग जाती थी। मुंशीजी ने उसे गोद म लेना चाहा, तो रोने लगी, दौड़कर मां से िलपट गयी, मानो िपता को पहचानती ही नहीं। मुंशीजी ने िमठाइय से उसे परचाना चाहा। घर म कोई नौकर तो था नहीं, जाकर िसयाराम से दो आने की िमठाइयां लाने को कहा। िजयराम भी बैठा हआ था। बोल उठा- हम लोग के िलए तो कभी ु िमठाइयां नहीं आतीं। मंशीजी ने झुंझलाकर कहा- तुम लोग ब'चे नहीं हो। िजयाराम- और Pया बूढ़े हG ? िमठाइयां मंगवाकर रख दीिजए, तो मालूम हो िक ब'चे हG या बूढ़े। िनकािलए चार आना और आशा के बदौलत हमारे नसीब भी जाग। मुंशीजी- मेरे पास इस व} प स ै े नहीं है । जाओ
िसया, जXद जाना।
िजयाराम- िसया नहीं जायेगा। िकसी का गुलाम नहीं है । आशा अपने बाप की बेटी है , तो वह भी अपने बाप का बेटा है । मुंशीजी- Pया फजूज की बात करते हो। न+हीं-सी ब'ची की बराबरी करते तु.ह शम नही आती? जाओ िसयाराम, ये प स ै े लो। िजयाराम- मत जाना िसया! तुम िकसी के नौकर नहीं हो। िसया बड़ी दिवधा म पड़ गया। िकसका कहना माने? अ+त म उसने ु िजयाराम का कहना मानने का िनdय िकया। बाप Mयादा-से-Mयादा घुड़क द गे, िजया तो मारे गा, िफर वह िकसके पास फिरयाद लेकर जायेगा। बोला- मG न जाऊंगा। मुंशीजी ने धमकाकर कहा- अ'छा, तो मेरे पास िफर कोई चीज मांगने मत आना। मुंशीजी खुद बाजार चले गये और एक पये की िमठाई लेकर लौटे । दो आने की िमठाई मांगते हए ु उ+ह शम आयी। हलवाई उ+ह पहचानता था। िदल म Pया कहे गा? 129
िमठाई िलए हए ं ीजी अ+दर चले गये। िसयाराम ने िमठाई का ु मुश बड़ा-सा दोना दे खा, तो बाप का कहना न मानने का उसे दख अब वह ु हआ। ु िकस मुंह से िमठाई लेने अ+द जायेगा। बड़ी भूल हई। वह मन-ही-मन ु िजयाराम को चोट की चोट और िमठाई की िमठास म तुलना करने लगा। सहसा भूंगी ने दो तँतिरयां दोनो के सामने लाकर रख दीं। िजयाराम ने
िबगड़कर कहा- इसे उठा ले जा! भूंगी- काहे को िबगड़ता हो बाबू Pया िमठाई अ'छी नहीं लगती? िजयाराम- िमठाई आशा के िलए आयी है , हमारे िलए नहीं आयी? ले
जा, नहीं तो सड़क पर फक दं ग ै -प े स ै े के िलए रटते रहते ह। ू ा। हम तो प स औ यहां पये की िमठाई आती है । भूंगी- तुम ले लो िसया बाबू, यह न लगे न सहीं। िसयाराम ने डरते-डरते हाथ बढ़ाया था िक िजयाराम ने डांटकर कहामत छूना िमठाई, नहीं तो हाथ तोड़कर रख दं ग ू ा। लालची कहीं का! िसयाराम यह धुड़की सुनकर सहम उठा, िमठाई खाने की िह.मत न पड़ी। िनम ला ने यह कथा सुनी, तो दोन लड़क को मनाने चली। मुंशजी ने कड़ी कसम रख दी। िनम ला- आप समझते नहीं है । यह सारा गुःसा मुझ पर है । मुंशीजी- गुःताख हो गया है । इस खयाल से कोई सcती नहीं करता िक लोग कह गे, िबना मां के ब'च को सताते हG , नहीं तो सारी शरारत घड़ी भर म िनकाल दं ।ू िनम ला- इसी बदनामी का तो मुझे डर है । मुंशीजी- अब न डं गा, िजसके जी म जो आये कहे । िनम ला- पहले तो ये ऐसे न थे। मुंशीजी- अजी, कहता है िक आपके लड़के मौजूद थे, आपने शादी Pय की! यह कहते भी इसे संकोच नहीं हाता िक आप लोग ने मंसाराम को िवष दे िदया। लड़का नहीं है , शऽु है । िजयाराम Kार पर िछपकर खड़ा था। nी-प ु ष मे िमठाई के िवषय मे Pया बात होती हG , यही सुनने वह आया था। मुंशीजी का अि+तम वाPय सुनकर उससे न रहा गया। बोल उठा- शऽु न होता, तो आप उसके पीछे Pय पड़ते? आप जो इस व} कर हरे हG , वह मG बहत ु पहले समझे बैठा हंू । भैया न समझ थे, धोखा ख गये। हमारे साथ आपकी दाला न गलेगी। सारा 130
जमाना कह रहा है िक भाई साहब को जहर िदया गया है । मG कहता हंू तो आपको Pय गुःसा आता है ? िनम ला तो स+नाटे म आ गयी। मालूम हआ ु , िकसी
ने उसकी दे ह पर
अंगारे डाल िदये। मंशजी ने डांटकर िजयाराम को चुप कराना चाहा, िजयाराम िन:शं खड़ा ट का जवाब पRथर से दे ता रहा। यहां तक िक िनम ला को भी उस पर बोध आ गया। यह कल का छोकरा, िकसी काम का न काज का, यो खड़ा टरा रहा है , जैसे घर भर का पालन-पोषण यही करता हो। Rयिरयां चढ़ाकर बोली- बस, अब बहत िजयाराम, मालूम हो ु हआ ु
गया, तुम बड़े
लायक हो, बाहर जाकर बैठो। मुंशीजी अब तक तो कुछ दब-दबकर बोलते रहे , िनम ला की शह पाई तो िदल बढ़ गया। दांत पीसकर लपके और इसके पहले िक िनम ला उनके हाथ पकड़ सक, एक थbपड़ चला ही िदया। थbपड़ िनम ला के मुंह पर पड़ा, वही सामने पडी। माथा चकरा गया। मुंशीजी ने सूखे हाथ म इतनी शि} है , इसका वह अनुमान न कर सकती थी। िसर पकड़कर बैठ गयी। मुंशीजी का बोध और भी भड़क उठा, िफर घूंसा चलाया पर अबकी िजयाराम ने उनका हाथ पकड़ िलया और पीछे ढकेलकर बोला- दरू से बात कीिजए, Pयां◌े नाहक अपनी बेइMजती करवाते हG ? अ.मांजी का िलहाज कर रहा हंू , नहीं तो िदखा दे ता। यह कहता हआ वह बाहर चला गया। मुंशीजी संTा-शू+य से खड़े रहे । ु इस व} अगर िजयाराम पर दै वी वळ िगर पड़ता, तो शायद उ+ह हािद क आन+द होता। िजस प ऽ ु का कभी गोद म लेकर िनहाल हो जाते थे, उसी के ूित आज भांित-भांित की दंकXपनाएं मन म आ रही थीं। ु िPमणी अब तक तो अपनी कोठरी म थी। अब आकर बोली-बेटा आपने बराबर का हो जाये तो उस पर हाथ न छोड़ना चािहए। मुंशीजी ने ओंठ चबाकर कहा- मG इसे घर से िनकालकर छोडंू गा। भीख मांगे या चोरी करे , मुझसे कोई मतलब नहीं। िPमणी- नाक िकसकी कटे गी? मुंशीजी- इसकी िच+ता नहीं। िनम ला- मG जानती िक मेरे आने से यह तुफान खड़ा हो जायेगा, तो भूलकर भी न आती। अब भी भला है , मुझे भेज दीिजए। इस घर म मुझसे न रहा जायेगा। 131
िPमणी- तु.हारा बहत ु िलहाज करता है बहू , नहीं तो आज अनथ ही हो जाता। िनम ला- अब और Pया अनथ होगा दीदीजी? मG तो फंू क-फंू ककर पांव रखती हंू , िफर भी अपयश लग ही जाता है । अभी घर म पांव रखते दे र नहीं हई ु और यह हाल हो गेया। ईSर ही कुशल करे । रात को भोजन करने कोई न उठा, अकेले मुंशीजी ने खाया।
िनम ला
को आज नयी िच+ता हो गयी- जीवन कैसे पार लगेगा? अपना ही पेट होता तो िवशेष िच+ता न थी। अब तो एक नयी िवपि3 गले पड़ गयी थी। वह सोच रही थी- मेरी ब'ची के भा]य म Pया िलखा है राम? बीस
िच
+ता म नींद कब आती है ? िनम ला चारपाई पर करवट बदल रही थी। िकतना चाहती थी िक नींद आ जाये, पर नींद ने न आने की
कसम सी खा ली थी। िचराग बुझा िदया था, िखड़की के दरवाजे खोल िदये थे, िटक-िटक करने वाली घड़ी भी दसरे कमरे म रख आयीय थी, पर नींद का ू
नाम था। िजतनी बात सोचनी थीं, सब सोच चुकी, िच+ताओं का भी अ+त हो गया, पर पलक न झपकीं। तब उसने िफर लै.प जलाया और एक प ः ु तक पढ़ने लगी। दो-चार ही प N ृ पढ़े हगे िक झपकी आ गयी। िकताब खुली रह गयी। सहसा िजयाराम ने कमरे म कदम रखा। उसके पांव थर-थर कांप रहे थे। उसने कमरे मे ऊपर-नीचे दे खा। िनम ला सोई हई ु थी, उसके िसरहाने ताक पर, एक छोटा-सा पीतल का स+दकचा रPखा हआ था। िजयाराम दबे पांव ू ु गया, धीरे से स+दकचा उतारा और बड़ी तेजी से कमरे के बाहर िनकला। उसी ू व} िनम ला की आंख खुल गयीं। चjककर उठ खड़ी हई। Kार पर आकर ु दे खा। कलेजा धक् से हो गया। Pया यह िजयाराम है ? मेरे केमरे मे Pया करने आया था। कहीं मुझे धोखा तो नहीं हआ ु ? शायद दीदीजी के कमरे से आया हो। यहां उसका काम ही Pया था? शायद मुझसे कुछ कहने आया हो, लेिकन इस व} Pया कहने आया होगा? इसकी नीयत Pया है ? उसका िदल कांप उठा।
132
मुंशीजी ऊपर छत पर सो रहे थे। मुंडे र न होने के कारण िनम ला ऊपर न सो सकती थी। उसने सोचा चलकर उ+ह जगाऊं, पर जाने की िह.मत न पड़ी। शPकी आदमी है , न जाने Pया समझ बैठ और Pया करने पर तैयार हो जाय? आकर िफर प ः ु तक पढ़ने लगी। सबेरे प छ ू ने पर आप ही मालूम हो जायेगा। कौन जाने मुझे धोखा ही हआ हो। नींद मे कभी-कभी धोखा हो ु जाता है , लेिकन सबेरे प छ ू ने का िनdय कर भी उसे िफर नींद नहीं आयी। सबेरे वह जलपान लेकर ःवयं िजयाराम के पास गयी, तो वह उसे दे खकर चjक पड़ा। रोज तो भूंगी आती थी आज यह Pय आ रही है ? िनम ला की ओर ताकने की उसकी िह.मत न पड़ी। िनम ला ने उसकी ओर िवSासप ण ू नेऽ से दे खकर प छ ू ा- रात को तुम मेरे कमरे मे गये थे? िजयाराम ने िवःमय िदखाकर कहा- मG? भला मG रात को Pया करने जाता? Pया कोई गया था? िनम ला ने इस भाव से कहा, मानो उसे उसकी बात का प रू ी िवSास हो गया- हां, मुझे ऐसा मालूम हआ िक कोई मेरे कमरे से िनकला। मGने उसका ु मुंह तो न दे खा, पर उसकी पीठ दे खकर अनुमान िकया िक शयद तुम िकसी काम से आये हो। इसका पता कैसे चले कौन था? कोई था जर इसम कोई स+दे ह नहीं। िजयाराम अपने को िनरपराध िसK करने की चेmा कर कहने लगा- मै। तो रात को िथयेटर दे खने चला गया था। वहां से लौटा तो एक िमऽ के घर लेट रहा। थोड़ी दे र हई ु लौटा हंू । मेरे साथ और भी कई िमऽ थे। िजससे जी चाहे , प छ ू ल। हां, भाई मG बहत ु डरता हंू । ऐसा न हो, कोई चीज गायब हो गयी,
तो मेरा नामे लगे। चोर को तो कोई पकड़ नहीं सकता, मेरे मRथे
जायेगी। बाबूजी को आप जानती हG । मुझो मारने दौड गे। िनम ला- तु.हारा नाम Pय लगेगा? अगर तु.हीं होते तो भी तु.ह कोई चोरी नहीं लगा सकता। चोरी दसरे की चीज की जाती है , अपनी चीज की ू चोरी कोई नहीं करता। अभी तक िनम ला की िनगाह अपने स+दकचे पर न पड़ी थी। भोजन ू बनाने लगी। जब वकील साहब कचहरी चले गये, तो वह सुधा से िमलने चली। इधर कई िदन से मुलाकात न हई ु थी, िफर रातवाली घटना पर िवचार पिरवत न भी करना था। भूंगी से कहा- कमरे मे से गहन का बPस उठा ला। 133
भूंगी ने लौटकर कहा- वहां तो कहीं स+दक ू नहीं हG । ककहां रखा था? िनम ला ने िचढ़कर कहा- एक बार म तो तेरा काम ही कभी नहीं होता। वहां छोड़कर और जायेगा कहां। आलमारी म दे खा था? भूंगी- नहीं बहजी ू , आलमारी म तो नहीं दे खा, झूठ Pय बोलू?ं िनम ला मुःकरा पड़ी। बोली- जा दे ख, जXदी आ। एक aण म भूंगी िफर खाली हाथ लौट आयी- आलमारी म भी तो नहीं है । अब जहां बताओ वहां दे खंू। िनम ला झुंझलाकर यह कहती हई ु उठ खड़ी हई ु - तुझे ईSर ने आंख ही न जाने िकसिलए दी! दे ख, उसी कमरे म से लाती हंू िक नहीं। भूंगी भी पीछे -पीछे कमरे म गयी। िनम ला ने ताक पर िनगाह डाली, अलमारी खोलकर दे खी। चारपाई के नीचे झांककार दे खा, िफर कपड़ का बडा संदक ू खोलकर दे खा। बPस का कहीं पता नहीं। आdय हआ ु , आिखर बPसा गया कहां? सहसा रातवाली घटना िबजली की भांित उसकी आंख के सामने चमक गयी। कलेजा उछल पड़ा। अब तक िनिd+त होकर खोज रही थी। अब ताप-सा चढ़ आया। बड़ी उतावली से चार ओर खोजने लगी। कहीं पता नहीं। जहां खोजना चािहए था, वहां भी खोजा और जहां नहीं खोजना चािहए था, वहां भी खोजा। इतना बड़ा स+दकचा िबछावन के नीचे कैसे िछप जाता? पर ू िबछावन भी झाड़कर दे खा। aण-aण मुख की काि+त मिलन होती जाती थी। ूाण नहीं मे समाते जाते थे। अनत म िनराशा होकर उसने छाती पर एक घूंसा मारा और रोने लगी। गहने ही nी की स.पि3 होते हG । पित की और िकसी स.पि3 पर उसका अिधकार नहीं होता। इ+हीं का उसे बल और गौरव होता है । िनम ला के पास पांच-छ: हजार के गहने थे। जब उ+ह पहनकर वह िनकलती थी, तो उतनी दे र के िलए उXलास से उसका Vदय िखला रहता था। एक-एक गहना मानो िवपि3 और बाधा से बचाने के िलए एक-एक रaाn था। अभी रात ही उसने सोचा था, िजयाराम की लjडी बनकर वह न रहे गी। ईSर न करे िक वह िकसी के सामने हाथ फैलाये। इसी खेवे से वह अपनी नाव को भी पार लगा दे गी और अपनी ब'ची को भी िकसी-न-िकसी घाट पहंु चा दे गी। उसे िकस बात की िच+त है ! उ+ह तो कोई उससे न छीन लेगा। आज ये मेरे िसंगार हG , कल को मेरे आधार हो जायगे। इस िवचार से उसके Vदय को 134
िकतनी सा+तवना िमली थी! वह स.पि3 आज उसके हाथ से िनकल गयी। अब वह िनराधार थी। संसार उसे कोई अवल.ब कोई सहारा न था। उसकी आशाओं का आधार जड़ से कट गया, वह फूट-फूटकर रोने लगी। ईdर! तुमसे इतना भी न दे खा गया? मुझ दिखया को तुमने य ही अपंग बना ु िदया थ, अब आंखे भी फोड़ दीं। अब वह िकसके
सामने हाथ फैलायेगी,
िकसके Kार पर भीख मांगेगी। पसीने से उसकी दे ह भीग गयी, रोते-रोते आंखे सूज गयीं। िनम ला िसर नीचा िकये रा रही थी। िPमणी उसे धीरज िदला रही थीं, लेिकन उसके आंसू न कते थे, शोके की Mवाल केम ने होती थी। तीन बजे िजयाराम ःकूल से लौटा। िनम ला उसने आने की खबर पाकर िविar की भांित उठी और उसके कमरे के Kार पर आकर बोली-भैया, िदXलगी की हो तो दे दो।
दिखया को सताकर Pया पाओगे? ु
िजयाराम एक aण के िलए कातर हो उठा। चोर-कला म उसका यह पहला ही ूयास था। यह कठारे ता, िजससे िहं सा म मनोरं जन होता है अभी तक उसे ूाr न हई होता और िफर इतना ू ु थी। यिद उसके पास स+दकचा मौका िमलता िक उसे ताक पर रख आवे, तो कदािचत ्वह उसे मौके को न छोड़ता, लेिकन स+दक ू उसके हाथ से िनकल चुका था। यार ने उसे सराफ म पहंु चा िदया था और औने-पौने बेच भी डाला थ। चोर की झूठ के िसवा और कौन रaा कर सकता है । बोला-भला अ.मांजी, मG आपसे ऐसी िदXलगी कं गा? आप अभी तक मुझ पर शक करती जा रही हG । मG कह चुका िक मG रात को घर पर न था, लेिकन आपको यकीन ही नहीं आता। बड़े द:ु ख की बात है िक मुझे आप इतना नीच समझती हG । िनम ला ने आंसू पछते हए ु कहा- मG तु.हारे पर शक नहीं करती भैया, तु.ह चोरी नहीं लगाती। मGने समझा, शायद िदXलगी की हो। िजयाराम पर वह चोरी का संदेह कैसे कर सकती थी? दिनया यही तो ु कहे गी िक लड़के की मां मर गई है , तो उस पर चोरी का इलजाम लगाया जा रहा है । मेरे मुंह मे ही तो कािलख लगेगी! िजयाराम ने आSासन दे ते हए ु कहा- चिलए, मG दे खं,ू आिखर ले कौन गया? चोर आया िकस राःते से? भूंगी- भैया, तुम चोर के आने को कहते हो। चूहे के िबल से तो िनकल ही आते हG , यहां तो चारो ओर ही िखड़िकयां हG । िजयाराम- खूब अ'छी तरह तलाश कर िलया है ? 135
िनम ला- सारा घर तो छान मारा, अब कहां खोजने को कहते हो? िजयाराम- आप लोग सो भी तो जाती हG मुदp से बाजी लगाकर। चार बजे मुंशीजी घर आये, तो िनम ला की दशा दे खकर प छ ू ा- कैसी तबीयत है ? कहीं दद तो नहीं है ? कह कहकर उ+हने आशा को गोद म उठा िलया। िनम ला कोई जवाब न दे सकी, िफर रोने लगी। भूंगी ने कहा- ऐसा कभी नहीं हआ था। मेरी सारी उम इसी घर मं ु कट गयी। आज तक एक प स ै े की चोरी नहीं हई। दिनया यही कहे गी िक ु ु भूंगी का कोम है , अब तो भगेवान ही पत-पानी रख। मुंशीजी अचकन के बटन खोल रहे थे, िफर बटन ब+द करते हए ु बोलेPया हआ ु ? कोई चीज चोरी हो गयी? भूंगी- बहजी के सारे गहने उठ गये। ू मुंशीजी- रखे कहां थे? िनम ला ने िससिकयां लेते हए ु रात की सारी घटना बयाना कर दी, पर िजयाराम की सूरत के आदमी के अपने कमरे से िनकलने की बात न कही। मुंशीजी ने ठं डी सांस भरकर कहा- ईSर भी बड़ा अ+यायी है । जो मरे उ+हीं को मारता है । मालूम होता है , अिदन आ गये हG । मगर चोर आया तो िकधर से? कहीं सध नहीं पड़ी और िकसी तरफ से आने का राःता नहीं। मGने तो कोई ऐसा पाप नहीं िकया, िजसकी मुझे यह सजा िमल रही है । बार-बार कहता रहा, गहने का स+दकचा ताक पर मत रखो, मगेर कौन सुनता है । ू ू पड़े गा! िनम ला- मG Pया जानती थी िक यह गजब टट मुंशीजी- इतना तो जानती थी िक सब िदन बराबर नहीं जाते। आज बनवाने जाऊं, तो इस हजार से कम न लगगे। आजकल अपनी जो दशा है , वह तुमसे िछपी नहीं, खच भर का मुिँकल से िमलता है , गहने कहां से बनगे। जाता हंू , प िु लस म इि3ला कर आता हंू , पर िमलने की उ.मीद न समझो। िनम ला ने आपि3 के भाव से कहा- जब जानते हG िक प िु लस म इि3ला करने से कुद न होगा, तो Pय जा रहे हG ? मुंशीजी- िदल नहीं मानता और Pया? इतना बड़ा नुकसान उठाकर चुप चाप तो नहीं बैठ जाता। िनम ला- िमलनेवाले होते, तो जाते ही Pय? तकदीर म न थे, तो कैसे रहते? 136
मुंशीजी- तकदीर मे हगे, तो िमल जायगे, नहीं तो गये तो हG ही। मुंशीजी कमरे से िनकले। िनम ला ने उनका हाथ पकड़कर कहा- मG कहती हंू , मत जाओ, कहीं ऐसा न हो, लेने के दे ने पड़ जाय। मुंशीजी ने हाथ छुड़ाकर कहा- तुम भी ब'च की-सी िजy कर रही हो। दस हजार का नुकसान ऐसा नहीं है , िजसे मG य ही उठा लू।ं मG रो नहीं रहा हंू , पर मेरे Vदय पर जो बीत रही है , वह मG ही जानता हंू । यह चोट मेरे कलेजे पर लगी है । मुंशीजी और कुछ न कह सके। गला फंस गया। वह तेजी से कमरे से िनकल आये और थाने पर जा पहंु चे। थानेदार उनका बहत ु िलहाज करता था। उसे एक बार िरSत के मुकदमे से बरी करा चुके थे। उनके साथ ही तoतीश करने आ पहंु चा। नाम था अलायार खां। शाम हो गयी थी। थानेदार ने मकान के अगवाड़े -िपछवाड़े घूम-घूमकर दे खा। अ+दर जाकर िनम ला के कमरे को गौर से दे खा। ऊपर की मुंडे र की जांच की। मुहXले के दो-चार आदिमय से चुप के-चुप के कुछ बात की और तब मुंशीजी से बोले- जनाब, खुदा की कसम, यह िकसी बाहर के आदमी का काम नहीं। खुदा की कसम, अगर कोई बाहर की आमदी िनकले, तो आज से थानेदारी करना छोड़ दं ।ू आपके घर म कोई मुलािजम ऐसा तो नहीं है , िजस पर आपको शुबहा हो। मुंशीजी- घर मे तो आजकल िसफ एक महरी है । थानेदार-अजी, वह पगली है । यह िकसी बड़े शाितर का काम है , खुदा की कसम। मुंशीजी- तो घर म और कौन है ? मेरे दोने लड़के हG , nी है और बहन है । इनम से िकस पर शक कं ? थानेदार- खुदा की कसम, घर ही के िकसी आदमी का काम है , चाहे , वह कोई हो, इ+शाअXलाह, दो-चार िदन म मG आपको इसकी खबर दं ग ू ा। यह तो नहीं कह सकता िक माल भी सब िमल जायेगा, पर खुदा की कसम, चोर जर पकड़ िदखाऊंगा। थानेदार चला गया, तो मुंशीजी ने आकर िनम ला से उसकी बात कहीं। िनम ला सहम उठी- आप थानेदार से कह दीिजए, तफतीश न कर , प रै पड़ती हंू । मुंशीजी- आिखर Pय? 137
आपके
िनम ला- अब Pय बताऊं? वह कह रहा है िक घर ही के िकसी का काम है । मुंशीजी- उसे बकने दो। िजयाराम अपने कमरे म बैठा हआ भगवान ्को याद कर रहा था। ु उसक मुंह पर हवाइयां उड़ रही थीं। सुन चुका थािक प िु लसवाले चेहरे से भांप जाते हG । बाहर िनकलने की िह.मत न पड़ती थी। दोन आदिमय म Pया बात हो रही हG , यह जानने के िलए छटपटा रहा था। Mयही थानेदार चला गया और भूंगी िकसी काम से बाहर िनकली, िजयाराम ने प छ ू ा-थानेदार Pया कर रहा था भूग ं ी? भूंगी ने पास आकर कहा- दाढ़ीजार कहता था, घर ही से िकसी आदमी का काम है , बाहर को कोई नहीं है । िजयाराम- बाबूजी ने कुछ नहीं कहा? भूंगी- कुछ तो नहीं कहा, खड़े ‘हंू -हंू ’ करते रहे । घर मे एक भूंगी ही गैर है न! और तो सब अपने ही हG । िजयाराम- मG भी तो गैर हंू , तू ही Pय? भूंगी- तुम गैर काहे हो भैया? िजयाराम- बाबूजी ने थानेदार से कहा नहीं, घर म िकसी पर उनका शुबहा नहीं है । भूंगी- कुछ तो कहते नहीं सुना। बेचारे थानेदार ने भले ही कहा- भूंगी तो पगली है , वह Pया चोरी करे गी। बाबूजी तो मुझे फंसाये ही दे ते थे। िजयाराम- तब तो तू भी िनकल गयी। अकेला मG ही रह गया। तू ही बता, तूने मुझे उस िदन घर म दे खा था? भूंगी-
नहीं भैया, तुम तो ठे ठर दे खने गये थे।
िजयाराम- गवाही दे गी न? भूंगी- यह Pया कहते हो भैया? बहजी तoतीश ब+द कर द गी। ू िजयराम- सच? भूंगी- हां भैया, बार-बार कहती है िक तoतीश न कराओ। गहने गये, जाने दो, पर बाबूजी मानते ही नहीं। पांच-छ: िदन तक िजयाराम ने पेट भर भोजन नहीं िकया। कभी दोचार कौर खा लेता, कभी कह दे ता, भूख नहीं है । उसके चेहरे का रं ग उड़ा रहता था। रात जागत कटतीं, ूितaण थानेदार की शंका बनी रहती थी। यिद 138
वह जानता िक मामला इतना तूल खींचगा, तो कभी ऐसा काम न करता। उसने तो समझा था- िकसी चोर पर शुबहा होगा। मेरी तरफ िकसी का \यान भी न जायेगा, पर अब भ^डा फूटता हआ मालूम होता था। अभागा ु थानेदार िजस ढं गे से छान-बीन कर रहा था, उससे िजयाराम को बड़ी शंका हो रही थी। सातव िदन सं\या समय घर लौटा तो बहत ु िचि+तत था। आज तक उसे बचने की कुछ-न-कुछ आशा थी। माल अभी तक कहीं बरामद न हआ ु था, पर आज उसे माल के बरामद होने की खबर िमल गयी थी। इसी दम थानेदार कांःटे िबल के िलए आता होगा। बचने को कोई उपाय नहीं। थानेदार को िरSत दे ने से स.भव है मुकदमे को दबा दे , पये हाथ म थे, पर Pया बात िछपी रहे गी? अभी माल बरामद नही हआ ु , िफर भी सारे शहर म अफवाह थी िक बेटे ने ही माल उड़ाया है । माल िमल जाने पर तो गली-गली बात फैल जायेगी। िफर वह िकसी को मुंह न िदखा सकेगा। मुंशीजी कचहरी से लौटे तो बहत घबराये हए ु ु थे। िसर थामकर चारपाई पर बैठ गये। िनम ला ने कहा- कपड़े Pय नहीं उतारते? आज तो और िदन से दे र हो गयी है । मुंशीजी- Pया कपडे ऊतां ? तुमने कुछ सुना? िनम ला- Pय बात है ? मGने तो कुछ नहीं सुना? मुंशीजी- माल बरामद हो गया। अब िजया का बचना मुिँकल है । िनम ला को आdय नहीं हआ। उसके चेहरे से ऐसा जान पड़ा, मानो ु उसे यह बात मालूम थी। बोली- मG तो पहले ही कर रही थी िक थाने म इ3ला मत कीिजए। मुंशीजी- तु.ह िजया पर शका था? िनम ला- शक Pय नहीं था, मGने उ+ह अपने कमरे से िनकलते दे खा था। मुंशीजी- िफर तुमने मुझसे Pय न कह िदया? िनम ला- यह बात मेरे कहने की न थी। आपके िदल म जर खयाल आता िक यह ईंया वश आaेप लगा रही है । किहए, यह खयाल होता या नहीं? झूठ न बोिलएगा। 139
मुंशीजी- स.भव है , मG इ+कार नहीं कर सकता। िफर भी उसक दशा म तु.ह मुझसे कह दे ना चािहए था। िरपोट की नौबत न आती। तुमने अपनी नेकनामी की तो- िफब की, पर यह न सोचा िक पिरणाम Pया होगा? मG अभी थाने म चला आता हंू । अलायार खां आता ही होगा! िनम ला ने हताश होकर प छ ू ा- िफर अब? मुंशीजी ने आकाश की ओर ताकते हए ु कहा- िफर जैसी भगवान ्की इ'छा। हजार-दो हजार पये िरSत दे ने के िलए होते तो शायद मामेला दब जाता, पर मेरी हालत तो तुम जानती हो। तकदीर खोटी है और कुछ नहीं। पाप तो मGने िकया है , द^ड कौन भोगेगा? एक लड़का था, उसकी वह दशा हई की यह दशा हो रही है । नालायक था, गुःताख था, गुःताख था, ू ु , दसरे कामचोर था, पर था ता अपना ही लड़का, कभी-न-कभी चेत ही जाता। यह चोट अब न सही जायेगी। िनम ला- अगर कुछ दे -िदलाकर जान बच सके, तो मG पये का ूब+ध कर दं ।ू मुंशीजी- कर सकती हो? िकतने पये दे सकती हो? िनम ला- िकतना दरकार होगा? मुंशीजी- एक हजार से कम तो शायद बातचीत न हो सके। मGने एक मुकदमे म उससे एक हजार िलए थे। वह कसर आज िनकालेगा। िनम ला- हो जायेगा। अभी थाने जाइए। मुंशीजी को थाने म बड़ी दे र लगी। एका+त म बातचीत करने का बहत ु दे र मे मौका िमला। अलायार खां प रु ाना घाघ थ। बड़ी मुिँकल से अ^टी पर चढ़ा। पांच सौ वये लेकर भी अहसान का बोझा िसर पर लाद ही िदया। काम हो गया। लौटकर िनम ला से बोला- लो भाई, बाजी मार ली, पये तुमने िदये, पर काम मेरी जबान ही ने िकया। बड़ी-बड़ी मुिँकल से राजी हो गया। यह भी याद रहे गी। िजयाराम भोजन कर चुका है ? िनम ला- कहां, वह तो अभी घूमकर लौटे ही नहीं। मुंशीजी- बारह तो बज रहे हग। िनम ला- कई दफे जा-जाकर दे ख आयी। कमरे म अंधेरा पड़ा हआ है । ु मुंशीजी- और िसयाराम? िनम ला- वह तो खा-पीकर सोये हG । मुंशीजी- उससे प छ ू ा नहीं, िजया कहां गया? 140
िनम ला- वह तो कहते हG , मुझसे कुछ कहकर नहीं गये। मुंशीजी को कुछ शंका हई। िसयाराम को जगाकर प छ ू ा- तुमसे ु िजयाराम ने कुछ कहा नहीं, कब तक लौटे गा? गया कहां है ? िसयाराम ने िसर खुजलाते और आंख मलते हए ु कहा- मुझसे कुछ नहीं कहा। मुंशीजी- कपड़े सब पहनकर गया है ? िसयाराम- जी नहीं, कुता और धोती। मुंशीजी- जाते व} खुश था? िसयाराम- खुश तो नहीं मालूम होते थे। कई बार अ+दर आने का इरादा िकया, पर दे हरी से ही लौट गये। कई िमनट तक सायबान म खड़े रहे । चलने लगे, तो आंख पछ रहे थे। इधर कई िदन से अPसा रोया करते थे। मुंशीजी ने ऐसी ठं डी सांस ली, मानो जीवन म अब कुछ नहीं रहा और िनम ला से बोले- तुमने िकया तो अपनी समझ म भले ही के िलए, पर कोई शऽु भी मुझ पर इससे कठारे आघात न कर सकता था। िजयाराम की माता होती, तो Pया वह यह संकोच करती? कदािप नहीं। िनम ला बोली- जरा डॉPटर साहब के यहां Pय नहीं चले जाते? शायद वहां बैठे ह। कई लड़के रोज आते है , उनसे प िू छए, शायद कुछ पता लग जाये। फंू क-फंू ककर चलने पर भी अपयश लग ही गया। मुंशीजी ने मानो खुली हई ु िखड़की से कहा- हां, जाता हंू और Pया कं गा। मुंशीज बाहर आये तो दे खा, डॉPटर िस+हा खड़े हG । चjककर प छ ू ा- Pया आप दे र से खड़े हG ? डॉPटर- जी नहीं, अभी आया हंू । आप इस व} कहां जा रहे हG ? साढ़े बारह हो गये हG । मुंशीजी- आप ही की तरफ आ रहा था। िजयाराम अभी तक घूमकर नहीं आया। आपकी तरफ तो नहीं गया था? डॉPटर िस+हा ने मुश ं ीजी के दोन हाथ पकड़ िलए और इतना कह पाये थे, ‘भाई साहब, अब धैय से काम..’ िक मुंशीजी गोली खाये हए ु मनुंय की भांित जमीन पर िगर पड़े ।
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इPकीस
िक.णी ने िनम ला से Rयािरयां बदलकर कहा- Pया नंगे पांव ही मदरसे जायेगा? िनम ला ने ब'ची के बाल गूंथते हए ु कहा- मG Pया कं ? मेरे पास
पये नहीं हG । िPमणी- गहने बनवाने को पये जुड़ते हG , लड़के के जूत के िलए पय म आग लग जाती है । दो तो चले ही गये, Pया तीसरे को भी लालाकर मार डालने का इरादा है ? िनम ला ने एक सांस खींचकर कहा- िजसको जीना है , िजयेगा, िजसको मरना है , मरे गा। मG िकसी को मारने-िजलाने नहीं जाती। आजकल एक-न-एक बात पर िनम ला और िPमणी म रोज ही झड़प हो जाती थी। जब से गहने चोरी गये हG , िनम ला का ःवभाव िबलकुल बदल गया है । वह एक-एक कौड़ी दांत से पकड़ने लगी है । िसयाराम रोते-रोते चहे जान दे दे , मगर उसे िमठाई के िलए प स ै े नहीं िमलते और यह बता व कुछ िसयाराम ही के साथ नहीं है , िनम ला ःवयं अपनी जरत को टालती रहती है । धोती जब तक फटकनर तार-तार न हो जाये, नयी धोती नहीं आती। महीन िसर का तेल नहीं मंगाया जाता। पान खाने का उसे शौक था, कईकई िदन तक पानदान खाली पड़ा रहता है , यहां तक िक ब'ची के िलए दध ू भी नहीं आता। न+हे से िशशु का भिवंय िवरा प धारण करके उसके िवचार-aेऽ पर मंड राता रहता । मुंशीजी ने अपने को स.प ण ू त
या िनम ला के हाथ मे सjप िदया है । उसके िकसी काम म दखल नहीं दे ते। न जाने Pय उससे कुछ दबे रहते हG । वह अब िबना नागा कचहरी जाते हG । इतनी मेहनत उ+हने जवानी म भी न की थी। आंख खराब हो गयी हG , डॉPटर िस+हा ने रात को िलखने-पढ़ने की मुमिु नयत कर दी है , पाचनशि} पहले ही दब
ु ल थी, अब और भी खराब हो गयी है , दम की िशकायत भी प द ै ा ही चली है , पर बेचारे सबेरे से आधी-आधी रात तक काम करते हG । काम करने को जी चाहे या न चाहे , तबीयत अ'छी हो या न हो, काम करना ही पड़ता है । िनम ला को उन पर जरा भी दया आती। वही भिवंय की भीषण िच+ता उसके आ+तिरक साव को सव नाश
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कर रही है । िकसी िभaुक की आवाज सुनकर झXला पड़ती है । वह एक कोड़ी भी खच करना नहीं चाहती । एक िदन िनम ला ने िसयाराम को घी लाने के िलए बाजार भेजा। भूग ं ी पर उनका िवSास न था, उससे अब कोई सौदा न मांगती थी। िसयाराम म काट-कपट की आदत न थी। औने-पौने करना न जानता था। ूाय: बाजार का सारा काम उसी को करना पड़ता। िनम ला एक-एक चीज को तोलती, जरा भी कोई चीज तोल म कम पड़ती, तो उसे लौटा दे ती। िसयाराम का बहत ु -सा समय इसी लौट-फेरी म बीत जाता था। बाजार वाले उसे जXदी कोई सौदा न दे ते। आज भी वही नौबत आयी। िसयाराम अपने िवचार से बहत ु अ'छा घी, कई दकारन से दे खकर लाया, लेिकन िनम ला ने उसे सूंघते ही कहा- घी ू खराब है , लौटा आओ। िसयाराम ने झुंझलाकर कहा- इससे अ'छा घी बाजार म नहीं है , मG सारी दकाने दे खकर लाया हंू ? ू िनम ला- तो मG झूठ कहती हंू ? िसयाराम- यह मG नहीं कहता, लेिकन बिनया अब घी वािपस न लेगा। उसने मुझसे कहा था, िजस तरह दे खना चाहो, यहीं दे खो, माल तु.हारे सामने है । बोिहनी-बeटे के व} म सौदा वापस न लूंगा। मGने सूंघकर, चखकर िलया। अब िकस मुंह से लौटने जाऊ? िनम ला ने दांत पीसकर कहा- घी म साफ चरबी िमली हई ु है और तुम कहते हो, घी अ'छा है । मG इसे रसोई म न ले जाऊंगी, तु.हारा जी चाहे लौटा दो, चाहे खा जाओ। घी की हांड़ी वहीं छोड़कर िनम ला घर म चली गयी। िसयाराम बोध और aोभ से कातर हो उठा। वह कौन मुह ं लेकर लौटाने जाये? बिनया साफ कह दे गा- मG नहीं लौटाता। तब वह Pया करे गा? आस-पास के दस-पांच बिनये और सड़क पर चलने वाले आदमी खाड़े हो जायगे। उन सब के सामने उसे लिMजत होना पड़े गा। बाजार म य ही कोई बिनया उसे जXदी सौदा नहीं दे ता, वह िकसी दकान पर खड़ा होने नहीं पाता। चार ओर से उसी ू पर लताड़ पड़े गी। उसने मन-ही-मन झुंझलाकर कहा- पड़ा रहे घी, मG लौटाने न जाऊंगा। मातृ-हीन बालक के समान दखी नहीं होता ु , दीन-ूाणी संसार म दसरा ू और सारे द:ु ख भूल जाते हG । बालक को माता याद आयी, अ.मां होती, तो 143
Pया आज मुझे यह सब सहना पड़ता? भैया चले गये, मG ही अकेला यह िवपि3 सहने के िलए Pय बचा रहा? िसयाराम की आंख म आंसू की झड़ी लग गयी। उसके शोक कातर क^ठ से एक गहरे िन:Sास के साथ िमले हए ु ये शCद िनकल आये- अ.मां! तुम मुझे भूल Pय गयीं, Pय नहीं बुला लेतीं? सहसा िनम ला िफर कमरे की तरफ आयी। उसने
समझा था,
िसयाराम चला गया होगा। उसे बैठा दे खा, तो गुःसे से बोली- तुम अभी तक बैठे ही हो? आिखर खाना कब बनेगा? िसयाराम ने आंख पड डालीं। बोला- मुझे ःकूल जाने म दे र हो जायेगी। िनम ला- एक िदन दे र हो जायेगी तो कौन हरज है ? यह भी तो घर ही का काम है ? िसयाराम- रोज तो यही ध+धा लगा रहता है । कभी व} पर ःकूल नहीं पहंु चता। घर पर भी पढ़ने का व} नहीं िमलता। कोई सौदा दो-चार बार लौटाये िबना नहीं जाता। डांट तो मुझ पर पड़ती है , शिमदा तो मुझे होना पड़ता है , आपको Pया? िनम ला- हां, मुझे Pया? मG तो तु.हारी दँमन ठहरी! अपना होता, तब ु तो उसे द:ु ख होता। मG तो ईSर से मानाया करती हंू िक तुम पढ़-िलख न सको। मुझम सारी बुराइयां-ही-बुराइयां हG , तु.हारा कोई कसूर नहीं। िवमाता का नाम ही बुरा होता है । अपनी मां िवष भी िखलाये, तो अमृत हG ; मG अमृत भी िपलाऊं, तो िवष हो जायेगा। तुम लोग के कारण म िमeटी म िमल गयी, रोते-रोत उॆ काटी जाती है , मालूम ही न हआ िक भगवान ने िकसिलए ु ज+म िदया था और तु.हारी समझ म मG िवहार कर रही हंू । तु.ह सताने म मुझे बड़ा मजा आता है । भगवान ्भी नहीं प छ ू ते िक सारी िवपि3 का अ+त हो जाता। यह कहते-कहते िनम ला की आंख भर आयी। अ+दर चली गयी। िसयाराम उसको रोते दे खकर सहम उठा। ]लािनक तो नहीं आयी; पर शंका हई ु िक ने जाने कौन-सा द^ड िमले। चुप के से हांड़ी उठा ली और घी लौटाने चला, इस तरह जैसे कोई कु3ा िकसी नये गांव म जाता है । उसे दे खकर साधारण बुिK का मनुंय भी आनुमान कर सकता था िक वह अनाथ है । िसयाराम Mय-Mय आगे बढ़ता था, आनेवाले संमाम के भय से उसकी Vदय-गित बढ़ती जाती थी। उसने िनdय िकया-बिनये ने घी न लौटाया, तो 144
वह घी वहीं छोड़कर चला आयेगा। झख मारकर बिनया आप ही बुलायेगा। बिनये को डांटने के िलए भी उसने शCद सोच िलए। वह कहे गा- Pय साहजी ू , आंख म धूल झकते हो? िदखाते हो चोखा माल और और दे ते ही रyी माल? पर यह िनdय करने पर भी उसके प रै आगे बहत ु धीरे -धीरे उठते दे ख,े वह अकःमात ्ही थे। वह यह न चाहता था, बिनया उसे आता हआ ु उसके सामने पहंु च जाना चाहता था। इसिलए वह चPकार काटकर दसरी ू गली से बिनये की दकान पर गया। ू बिनये ने उसे दे खते ही कहा- हमने कह िदया था िक हमे सौदा वापस न लगे। बोल, कहा था िक नहीं। िसयाराम ने िबगड़कर कहा- तुमने वह घी कहां िदया, जो िदखाया था? िदखाया एक माल, िदया दसरा माल, लौटाओगे कैसे नहीं? Pया कुछ राहजनी ू है ? साह- इससे चोखा घी बाजार म िनकल आये तो जरीबाना दं ।ू उठा लो हांड़ी और दो-चार दकार दे ख आओ। ू िसयाराम- हम इतनी फुस त नहीं है । अपना घी लौटा लो। साह- घी न लौटे गा। बिनये की दकान पर एक जटाधारी साधू बैठा हआ यह तमाश दे ख ु ु रहा था। उठकर िसयाराम के पास आया और हांड़ी का घी सूंघकर बोलाब'चा, घी तो बहत ु अ'छा मालूम होता है । साह सने शह पाकर कहा- बाबाजी हम लोग तो आप ही इनको घिटया माल नहीं दे ते। खराब माल Pया जाने-सुने माहक को िदया जाता है ? साधु- घी ले जाव ब'चा, बहत ु अ'छा है । िसयाराम रो पड़ा। घी को बुरा िसKा करने के िलए उसके पास अब Pया ूमाण था? बोला- वही तो कहती हG , घी अ'छा नहीं है , लौटा आओ। मG तो कहता था िक घी अ'छा है । साधु- कौन कहता है ? साह- इसकी अ.मां कहती हगी। कोई सौदा उनके मन ही नहीं भाता। बेचारे लड़के को बार-बार दौड़ाया करती है । सौतेली मां है न! अपनी मां हो तो कुछ cयाल भी करे ।
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साधु ने िसयराम को सदय नेऽ से दे खा, मानो उसे ऽाण दे ने के िलए उनका Vदय िवकल हो रहा है । तब कण ःवर से बोले- तु.हारी माता का ःवग वास हए ु िकतने िदन हए ु ब'च? िसयाराम- छठा साल है । साधु- ता तुम उस व} बहत ु ही छोटे रहे हगे। भगेवान ्तु.हारी लीला िकतनी िविचऽ है । इस दधमु ् म से वंिचत कर ु ंहे बालक को तुमने मात-ूे िदया। बड़ा अनथ करते हो भगवान!् छ: साल का बालक और राaसी िवमाता के पानले पड़े ! ध+य हो दयािनिध! साहजी, बालक पर दया करो, घी लौटा लो, नहीं तो इसकी मात इसे घर म रहने न दे गी। भगवान की इ'छा से तु.हारा घी जXद िबक जायेगा। मेरा आशीवा द तु.हारे साथ रहे गां साहजी ने पये वापस न िकये। आिखर लड़के को िफर घी लेने आना ही पड़े गा। न जाने िदन म िकतनी बार चPकर लगाना पड़े और िकस जािलये से पाला पड़े । उसकी दकान म जो घी सबसे अ'छा था, वह िसयाराम ु िदल से सोच रहा था, बाबाजी िकतने दयालु हG ? इ+हने िसफािरश न की होती, तो साहजी Pय अ'छा घी दे त?े िसयाराम घी लेकर चला, तो बाबाजी भी उसके साथ ही िलये। राःते म मीठी-मीठी बात करने लगे। ‘ब'चा, मेरी माता भी मुझे तीन साल का छोड़कर परलोक िसधारी थीं। तभी से मातृ-िवहीन बालक को दे खता हंू तो मेरा Vदय फटने लगता हG ।’ िसयाराम ने प छ ू ा- आपके िपताजी ने भी तो दसरा िववाह कर िलया ू था? साधु- हां, ब'चा, नहीं तो आज साधु Pय होता? पहले तो िपताजी िववाह न करते थे। मुझे बहत ु bयार करते थे, िफर न जाने Pय मन बदल गया, िववाह कर िलया।
साधु हंू , कटु वचन मुंह से नहीं िनकालना चािहए,
पर मेरी िवमात िजतनी ही सु+दर थीं, उतनी ही कठोर थीं। मुझे िदन-िदनभर खाने को न दे तीं, रोता तो मारतीं। िपताजी की आंख भी िफर गयीं। उ+ह मेरी सूरत से घृणा होने लगी। मेरा रोना सुनकर मुझे पीटने लगते। अ+त को मG एक िदन घर से िनकल खड़ा हआ। ु िसयाराम के मन म भी घर से िनकल भागने का िवचार कई बार हआ ु था। इस समय भी उसके मन म यही िवचार उठ रहा था। बड़ी उRसुकता से बोला-घर से िनकलकर आप कहां गये? 146
बाबाजी ने हं सकर कहा- उसी िदन मेरे सारे कm का अ+त हो गया िजस िदन घर के मोह-ब+धन से छूटा और भय मन से िनकला, उसी िदन मानो मेरा उKार हो गया। िदन भर मG एक प ल ु के नीचे बैठा रहा। सं\या समय मुझे एक महाRमा िमल गये। उनका ःवामी परमान+दजी था। वे बालॄ॑चारी थे। मुझ पर उ+हने दया की और अपने साथ रख िलया। उनके साथ रख िलया। उनके साथ मG दे श-दे शा+तर म घूमने लगा। वह बड़े अ'छे योगी थे। मुझे भी उ+हने योग-िवqा िसखाई। अब तो मेरे को इतना अयास हो येगया है िक जब इ'छा होती है , माताजी के दश न कर लेता हंू , उनसे बात कर लेता हंू । िसयाराम ने िवःफािरत नेऽ से दे खकर प छ ू ा- आपकी माता का तो दे हा+त हो चुका था? साधु- तो Pया हआ ब'च, योग-िवqा म वह शि} है िक िजस मृतु आRम को चाहे , बुला ले। िसयाराम- मG योग-िवqा सीख ्लू,ं तो मुझे भी माताजी के दश न हगे? साधु- अवँय, अयास से सब कुछ हो सकता है । हां, यो]य गु चािहए। योग से बड़ी-बड़ी िसिKयां ूाr हो सकती हG । िजतना धन चाहो, पलमाऽ म मंगा सकते हो। कैसी ही बीमारी हो, उसकी औषिध अता सकते हो। िसयाराम- आपका ःथान कहां है ? साधु- ब'चा, मेरे को ःथान कहीं नहीं है । दे श-दे शा+तर से रमता िफरता हंू । अ'छा, ब'चा अब तुम जाओ, मै। जरा ःनान-\ययान करने जाऊंगा। िसयराम- चिलए मG भी उसी तरफ चलता हंू । आपके दश न से जी नहीं भरा। साधु- नहीं ब'चा, तु.ह पाठशाला जाने की दे री हो रही है । िसयराम- िफर आपके दश न कब हगे? साधु- कभी आ जाऊंगा ब'चा, तु.हारा घर कहां है ? िसयाराम ूस+न होकर बोला- चिलएगा मेरे घर? बहत ु नजदीक है । आपकी बड़ी कृ पा होगी। िसयाराम कदम बढ़ाकर आगे-आगे चलने लगा। इतना ूस+न था, मानो सोने की गठरी िलए जाता हो। घर के सामने पहंु चकर बोला- आइए, बैिठए कुछ दे र। 147
साधु- नहीं ब'चा, बैठूंगा नहीं। िफर कल-परस िकसी समय आ जाऊंगा। यही तु.हारा घर है ? िसयाराम- कल िकस व} आइयेगा? साधु- िनdय नहीं कह सकता। िकसी समय आ जाऊंगा। साधु आगे बढ़े , तो थोड़ी ही दरू पर उ+ह एक दसरा साधु िमला। ू उसका नाम था हिरहरान+द। परमान+द से प छ ू ा- कहां-कहां की सैर की? कोई िशकार फंसा? हिरहरान+द- इधरा चार तरफ घूम आया, कोई िशकार न िमलां एकाध िमला भी, तो मेरी हं सी उड़ाने लगा। परमान+द- मुझे तो एक िमलता हआ जान पड़ता है ! फंस जाये तो ु जानू।ं हिरहरान+द- तुम य ही कहा करते हो। जो आता
है , दो-एक िदन के
बाद िनकल भागता है । परमान+द- अबकी न भागेगा, दे ख लेना। इसकी मां मर गयी है । बाप ने दसरा िववाह कर िलया है । मां भी सताया करती है । घर से ऊबा हआ है । ू ु हिरहरान+द- खूब अ'छी तरह। यही तरकीब सबसे अ'छी है । पहले इसका पता लगा लेना चािहए िक मुहXले म िकन-िकन घर म िवमाताएं हG ? उ+हीं घर म फ+दा डालना चािहए। बाईस
िन
म ला ने िबगड़कर कहा- इतनी दे र कहां लगायी? िसयाराम ने िढठाई से कहा- राःते म एक जगह सो गया था।
िनम ला- यह तो मG नहीं कहती, पर जानते हो कै बज गये हG ? दस
कभी के बज गये। बाजार कुद दरू भी तो नहीं है । िसयाराम- कुछ दरू नहीं। दरवाजे ही पर तो है । िनम ला- सीधे से Pय नहीं बोलते? ऐसा िबगड़ रहे हो, जैसे मेरा ही कोई कामे करने गये हो? िसयाराम- तो आप 4यथ की बकवास Pय करती हG ? िलया सौदा लौटाना Pया आसान काम है ? बिनये से घंट हMजत करनी पड़ी यह तो ु
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कहो, एक बाबाजी ने कह-सुनकर फेरवा िदया, नहीं तो िकसी तरह न फेरता। राःते म कहीं एक िमनट भी न का, सीधा चला आता हंू । िनम ला- घी के िलए गये-गये, तो तुम ]यारह बजे लौटे हो, लकड़ी के िलए जाओगे, तो सांझ ही कर दोगे। तु.हारे बाबूजी िबना खाये ही चले गये। तु.ह इतनी दे र लगानी था, तो पहले ही Pय न कह िदया? जाते ही लकड़ी के िलए। िसयाराम अब अपने को संभाल न सका। झXलाकर बोला- लकड़ी िकसी और से मंगाइए। मुझे ःकूल जाने को दे र हो रही है । िनम ला- खाना न खाओगे? िसयाराम- न खाऊंगा। िनम ला- मG खाना बनाने को तैयार हंू । हां, लकड़ी लाने नहीं जा सकती। िसयाराम- भूंगी को Pय नहीं भेजती? िनम ला- भूंगी का लाया सौदा तुमने कभी दे खा नहीं हG ? िसयाराम- तो मG इस व} न जाऊंगा। िनम ला- मुझे दोष न दे ना। िसयाराम कई िदन से ःकूल नहीं गया था। बाजार-हाट के मारे उसे िकताब दे खने का समय ही न िमलता था। ःकूल जाकर िझड़िकयां खान, से बच पर खड़े होने या ऊंची टोपी दे ने के िसवा और Pया िमलता? वह घर से िकताब लेकर चलता, पर शहर के बाहर जाकर िकसी वृa की छांह म बैठा रहता या पXटन की कवायद दे खता। तीन बजे घर से लौट आता। आज भी वह घर से चला, लेिकन बैठने म उसका जी न लगा, उस पर आंत अल ग जल रही थीं। हा! अब उसे रोिटय के भी लाले पड़ गये। दस बजे Pया खाना न बन सकता था? माना िक बाबूजी चले गये थे। Pया मेरे िलए घर म दोचार प स ै े भी न थे? अ.मां होतीं, तो इस तरह िबना कुछ खाये-िपये आने दे तीं? मेरा अब कोई नहीं रहा। िसयाराम का मन बाबाजी के दश न के िलए 4याकुल हो उठा। उसने सोचा- इस व} वह कहां िमलगे? कहां चलकर दे खं?ू उनकी मनोहर वाणी, उनकी उRसाहूद सा+Rवना, उसके मन को खींचने लगी। उसने आतुर होकर कहा- मG उनके साथ ही Pय न चला गया? घर पर मेरे िलए Pया रखा था? 149
वह आज यहां से चला तो घर न जाकर सीधा घी वाले साहजी की दकान पर गया। शायद बाबाजी से वहां मुलाकात हो जाये, पर वहां बाबाजी ु न थे। बड़ी दे र तक खड़ा-खड़ा लौट आया। घर आकर बैठा ही था िकस िनम ला ने आकर कहा- आज दे र कहां लगाई? सवेरे खाना नहीं बना, Pया इस व} भी उपवास होगा? जाकर बाजार से कोई तरकारी लाओ। िसयाराम ने झXलाकर कहा- िदनभर का भूखा चला आता हंू ; कुछ पीनी पीने तक को लाई नहीं, ऊपर से बाजार जाने का हPम दे िदया। मG ु नहीं जाता बाजार, िकसी का नौकर नहीं हंू । आिखर रोिटयां ही तो िखलाती हो या और कुछ? ऐसी रोिटयां जहां मेहनत कं गा, वहीं िमल जायगी। जब मजूरी ही करनी है , तो आपकी न कं गा, जाइए मेरे िलए खाना मत बनाइएगा। िनम ला अवाक् रह गयी। लड़के को आज Pया हो गया? और िदन तो चुप के से जाकर काम कर लाता था, आज Pय Rयोिरयां बदल रहा है ? अब भी उसको यह न सूझी िक िसयाराम को दो-चार प स ै े कुछ खाने के दे दे । उसका ःवभाव इतना कृ पण हो गया था, बोली- घर का काम करना तो मजूरी नहीं कहलाती। इसी तरह मG भी कह दं ू िक मG खाना नहीं पकाती, तु.हारे बाबूजी कह द िक कचहरी नहीं जाता, तो Pया हो बताओ? नहीं जाना चाहते, तो मत जाओ, भूंगी से मंगा लूग ं ी। मG Pया जानती थी िक तु.ह बाजार जाना बुरा लगता है , नहीं तो बला से धेले की चीज प स ै े म आती, तु.ह न भेजती। लो, आज से कान पकड़ती हंू । िसयाराम िदल म कुछ लिMजत तो हआ ु , पर बाजार न गया। उसका \यान बाबाजी की ओर लगा हआ था। अपने सारे दख का अ+त और जीवन ु ु की सारी आशाएं उसे अब बाबाजी क आशीवा द म मालूम होती थीं। उ+हीं की शरण जाकर उसका यह आधारहीन जीवन साथ क होगा। सूया ःत के समय वह अधीर हो गया। सारा बाजार छान मारा, लेिकन बाबाजी का कहीं पता न िमला। िदनभर का भूख-bयासा, वह अबोध बालक दखते हए ु ु िदल को हाथ से दबाये, आशा और भय की मूित बना, दकान , गािलय और मि+दर म उस ु आौमे को खोजता िफरता था, िजसके िबना उसे अपना जीवन दःसह हो रहा ु था। एक बार मि+दर के सामने उसे कोई साधु खड़ा िदखाई िदया। उसने 150
समझा वही हG । हषXलास से वह फूल उठा। दौड़ा और साधु के पास खड़ा हो गया। पर यह कोई और ही महाRमा थे। िनराश हो कर आगे बढ़ गया। धारे -धीरे सड़क पर स+नाटा दा गया, घर के Kारा ब+द होने लगे। सड़क की पटिरय पर और गिलय म बंसखटे या बोरे िबछा-िबछाकर भारत की ूजा सुख-िनिा म म]न होने लगी, लेिकन िसयाराम घर न लौटा। उस घर से उसक िदल फट गया था, जहां िकसी को उससे ूेम न था, जहां वह िकसी परािौत की भांित पड़ा हआ था, केवल इसीिलए िक उसे और कहीं ु शरण न थी। इस व} भी उसके घर न जाने को िकसे िच+ता होगी? बाबूजी भोजन करके लेटे हगे, अ.मांजी भी आराम करने जा रही हगी। िकसी ने मेरे कमरे की ओर झांककर दे खा भी न होगा। हां, बुआजी घबरा रही हगी, वह अभी तक मेरी राह दे खती हगी। जब तक मG न जाऊंगा, भोजन न कर गी। िPमणी की याद आते ही िसयाराम घर की ओर चल िदया। वह अगर और कुछ न कर सकती थी, तो कम-से-कम उसे गोद म िचमटाकर रोती थी? उसके बाहर से आने पर हाथ-मुंह धोने के िलए पानी तो रख दे ती थीं। संसार म सभी बालक दध ू की कुिXलय नहीं करते, सभी सोने के कौर नहीं खाते। िकतन के पेट भर भोजन भी नहीं िमलता; पर घर से िवर} वही होते हG , जो मातृ-ःनेह से वंिचत हG । िसयाराम घर की ओर चला ही िक सहसा बाबा परमान+द एक गली से आते िदखायी िदये। िसयाराम ने जाकर उनका हाथ पकड़ िलया। परमान+द ने चjककर पछ ू ा- ब'चा, तुम यहां कहां? िसयाराम ने बात बनाकर कहा- एक दोःत से िमलने आया था। आपका ःथान यहां से िकतनी दरू है ? परमान+द- हम लोग तो आज यहां से जा रहे हG , ब'चा, हिरKार की याऽा है । िसयाराम ने हतोRसाह होकर कहा- Pया आज ही चले जाइएगा? परमान+द- हां ब'चा, अब लौटकर आऊंगा, तो दश न दं ग ू ा? िसयाराम ने कात कंठ से कहा- मG भी आपके साथ चलूग ं ा। परमान+द- मेरे साथ! तु.हारे घर के लोग जाने द गे? 151
िसयाराम- घर के लोग को मेरी Pया परवाह है ? इसके आगे िसयाराम और कुछ सन कह सका। उसके अौु-प िू रत नेऽ ने उसकी कणा -गाथा उससे कहीं िवःतार के साथ सुना दी, िजतनी उसकी वाणी कर सकती थी। परमान+द ने बालक को कंठ से लगाकर कहा- अ'छा ब'च, तेरी इ'छा हो तो चल। साधु-स+त की संगित का आन+द उठा। भगवान ्की इ'छा होगी, तो तेरी इ'छा प रू ी होगी। दाने पर म^डराता हआ पaी अ+त म दाने पर िगर पड़ा। उसके जीवन ु का अ+त िपंजरे म होगा या 4याध की छुरी के तले- यह कौन जानता है ? तेईस
मुं
शीजी पांच बजे कचहरी से लौटे और अ+दर आकर चारपाई पर िगर पड़े । बुढ़ापे की दे ह, उस पर आज सारे िदन भोजन न िमला। मुंह सूख
गया। िनम ला समझ गयी, आज िदन खाली गयां िनम ला ने प छ ू ा- आज कुछ न िमला। मुंशीजी- सारा िदन दौड़ते गुजरा, पर हाथ कुछ न लगा। िनम ला- फौजदारी वाले मामले म Pया हआ ु ? मुंशीजी- मेरे मुविPकल को सजा हो गयी। िनम ला- पंिडत वाले मुकदमे म? मुंशीजी- पंिडत पर िडमी हो गयी। िनम ला- आप तो कहते थे, दावा खिरज हो जायेगा। मुंशीजी- कहता तो था, और जब भी कहता हंू िक दावा खािरज हो जाना चािहए था, मगर उतना िसर मगजन कौन करे ? िनम ला- और सीरवाले दावे म? मुंशीजी- उसम भी हार हो गयी। िनम ला- तो आज आप िकसी अभागे का मुंह दे खकर उठे थे। मुंशीजी से अब काम िबलकुल न हो सकता थां एक तो उसके पास मुकदमे आते ही न थे और जो आते भी थे, वह िबगड़ जाते थे। मगर अपनी असफलताओं को वह िनम ला से िछपाते रहते थे। िजस िदन कुछ हाथ न
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लगता, उस िदन िकसी से दो-चार पये उधार लाकर िनम ला को दे ते, ूाय: सभी िमऽ से कुछ-न-कुछ ले चुके थे। आज वह डौल भी न लगा। िनम ला ने िच+ताप ण ू ःवर म कहा- आमदनी का यह हाल है , तो ईँSर ही मािलक है , उसक पर बेटे का यह हाल है िक बाजार जाना मुिँकल है । भूग ं ी ही से सब काम कराने को जी चाहता है । घी लेकर ]यारह बजे लौटा। िकतना कहकर हार गयी िक लकड़ी लेते आओ, पर सुना ही नहीं। मुंशीजी- तो खाना नहीं पकाया? िनम ला- ऐसी ही बात से तो आप मुकदमे हारते हG । धन के िबना िकसी ने खाना बनाया है िक मG ही बना लेती? मुंशीजी- तो िबना कुछ खाये ही चला गया। िनम ला- घर म और Pया रखा था जो िखला दे ती? मुंशीजी
ने डरते-डरते कहका- कुछ प स ै -े वैसे न दे िदये?
िनम ला ने भjहे िसकोड़कर कहा- घर म प स ै े फलते हG न? मुंशीजी ने कुछ जवाब न िदया। जरा दे र तक तो ूतीaा करते रहे िक शायद जलपान के िलए कुछ िमलेगा, लेिकन जब िनम ला ने पानी तक न मंगवाय, तो बेचारे िनराश होकर चले गये। िसयाराम के कm का अनुमान करके उनका िच3 चचंल हो उठा। एक बार भूग ं ी ही से लकड़ी मंगा ली जाती, तो ऐसा Pया नुकसान हो जाता? ऐसी िकफायत भी िकस काम की िक घर के आदमी भूखे रह जाय। अपना संदकचा खोलकर टटोलने लगे िक ू शायद दो-चार आने प स ै े िमल जाय। उसके अ+दर के सारे कागज िनकाल डाले, एक-एक, खाना दे खा, नीचे हाथ डालकर दे खा पर कुछ न िमला। अगर िनम ला के स+दक ै े न फलते थे, तो इस स+दकचे म शायद इसके फूल ू म प स ू भी न लगते ह, लेिकन संयोग ही किहए िक कागज को झाडक़ते हए ु एक चव+नी िगर पड़ी। मारे हष के मुंशीजी उछल पड़े । बड़ी-बड़ी रकम इसके पहले कमा चुके थे, पर यह चव+नी पाकर इस समय उ+ह िजतना आ¢ाद था। चव+नी हाथ म िलए हए हआ ु ु िसयाराम के ु , उनका पहले कभी न हआ कमरे के सामने आकर प क ु ारा। कोई जवाब न िमला। तब कमरे म जाकर दे खा। िसयाराम का कहीं पता नहीं- Pया अभी ःकूल से नहीं लौटा? मन म यह ू उठते ही मुंशीजी ने अ+दर जाकर भूग ं ी से प छ ू ा। मालूम हआ ःकूल ु से लौट आये। मुंशीजी ने प छ ू ा- कुछ पानी िपया है ? 153
भूंगी ने कुछ जवाब न िदया। नाक िसकोड़कर मुंह फेरे हए ु चली गयी। मुंशीजी अिहःता-आिहःता आकर अपने कमरे म बैठ गये। आज पहली बार उ+ह िनमuला पर बोध आया, लेिकन एक ही aण बोध का आघात अपने ऊपर होने लगा। उस अंधेरे कमेरे म फश पर लेटे हए ु की ओर ु वह अपने प ऽ से इतना उदासीन हो जाने पर िधPकारने लगे। िदन भर के थके थे। थोड़ी ही दे र म उ+ह नींद आ गयी। भूंगी ने आकर प क ु ारा- बाबूजी, रसोई तैयार है । मुंशीजी चjककर उठ बैठे। कमरे म लै.प जल रहा था प छ ू ा- कै बज गये भूग ं ी? मुझे तो नींद आ गयी थी। भूंगी ने कहा- कोतवाली के घ^टे म नौ बज गये हG और हम नाहीं जािनत। मुंशीजी- िसया बाबू आये? भूंगी- आये हगे, तो घर ही म न हगे। मुंशीजी ने झXलाकर प छ ू ा- मG प छ ू ता हंू , आये िक नहीं? और तू न जाने Pया-Pया जवाब दे ती है ? आये िक नहीं? भूंगी- मGने तो नहीं दे खा, झूठ कैसे कह दं ।ू मुंशीजी िफर लेट गये और बोले- उनको आ जाने दे , तब चलता हंू । आध घंटे Kार की ओर आंख लगाए मुश ं ीजी लेटे रहे , तब वह उठकर बाहर आये और दािहने हाथ कोई दो फलाग तक चले। तब लौटकर Kार पर आये और प छ ू ा- िसया बाबू आ गये? अ+दर से आवाज आयी- अभी नहीं। मुंशीजी िफर बायीं ओर चले और गली के नुPकड़ तक गये। िसयाराम कहीं िदखाई न िदया। वहां से िफर घर आये और Kारा पर खड़े होकर प छ ू ािसया बाबू आ गये? अ+दर से जवाब िमला- नहीं। कोतवाली के घंटे म दस बजने लगे। मुंशीजी बड़े वेग से क.पनी बाग की तरफ चले। सोचन लगे, शायद वहां घूमने गया हो और घास पर लेटे-लेट नींद आ गयी हो। बाग म पहंु चकर उ+हने हरे क बच को दे खा, चार तरफ घूम,े बहते ु से आदमी घास पर पड़े हए ु थे, पर िसयाराम का िनशान न था। उ+हने िसयाराम का नाम लेकर जोर से प क ु ारा, पर कहीं से आवाज न आयी। 154
cयाल आया शायद ःकूल म तमाशा हो रहा हो। ःकूल एक मील से कुछ Mयादा ही था। ःकूल की तरफ चले, पर आधे राःते से ही लौट पड़े । बाजार ब+द हो गया था। ःकूल म इतनी रात तक तमाशा नहीं हो सकता। अब भी उ+ह आशा हो रही थी िक िसयाराम लौट आया होगा। Kार पर आकर उ+हने प क ु ारा- िसया बाबू आये? िकवाड़ ब+द थे। कोई आवाज न आयी। िफर जोर से प क ु ारा। भूंगी िकवाड़ खोलकर बोली- अभी तो नहीं आये। मुंशीजी ने धीरे से भूंगी को अपने पास बुलाया और कण ःवर म बोले- तू ता घर की सब बात जानती है , बता आज Pया हआ था? ु भूंगी- बाबूजी, झूठ न बोलूंगी, मालिकन छुड़ा दे गी और Pया? दसरे का ू लड़का इस तरह नहीं रखा जाता। जहां कोई काम हआ ु , बस बाजार भेज िदया। िदन भर बाजार दौड़ते बीतता था। आज लकड़ी लाने न गये, तो चूXहा कौन ही नहीं जला। कहो तो मुंह फुलाव। जब आप ही नहीं दे खते, तो दसरा ू दे खेगा? चिलए, भोजन कर लीिजए, बहजी कब से बैठी है । ू मुंशीजी- कह दे , इस व} नहीं खायगे। मुंशीजी िफर अपने कमेरे म चले गये और एक ल.बी सांस ली। वेदना से भरे हए ु ये शCद उनके मुंह से िनकल पड़े - ईSर, Pया अभी द^ड प रू ा नहीं हआ ु ? Pया इस अंधे की लकड़ी को हाथ से छीन लोगे? िनम ला ने आकर कहा- आज
िसयाराम अभी तक नहीं आये। कहती
रही िक खाना बनाये दे ती हंू , खा लो मगर सन जाने कब उठकर चल िदये! न जाने कहां घूम रहे हG । बात तो सुनते ही नहीं। कब तक उनकी राह दे खा क! आप चलकर खा लीिजए, उनके िलए खाना उठाकर रख दं ग ू ी। मुंशीजी ने िनम ला की ओर कठारे नेऽ से दे खकर कहा- अभी कै बजे हगे? िनम ल- Pया जाने, दस बजे हगे। मुंशीजी- जी नहीं, बारह बजे हG । िनम ला- बारह बज गये? इतनी दे र तो कभी न करते थे। तो कब तक उनकी राह दे खोगे! दोपहर को भी कुछ नहीं खाया था। ऐसा सैलानी लड़का मGने नहीं दे खा। मुंशीजी- जी तु.ह िदक करता है , Pय? िनम ला- दे िखये न, इतना रात गयी और घर की सुध ही नहीं। मुंशीजी- शायद यह आिखरी शरारत हो। 155
िनम ला- कैसी बात मुंह से िनकालते हG ? जायगे कहां? िकसी यार-दोःत के यहां पड़ रहे हगे। मुंशीजी- शायद ऐसी ही हो। ईSर करे ऐसा ही हो। िनम ला- सबेरे आव, तो जरा त.बीह कीिजएगा। मुंशीजी- खूब अ'छी तरह कं गा। िनम ला- चिलए, खा लीिजए, दरू बहत ु हई। ु मुंशीजी- सबेरे उसकी त.बीह करके खाऊंगा, कहीं न आया, तो तु.ह ऐसा ईमानदान नौकर कहां िमलेगा? िनम ला ने ऐंठकर कहा- तो Pया मGने भागा िदया? मुंशीजी- नहीं, यह कौन कहता है ? तुम उसे Pय भगाने लगीं। तु.हारा तो काम करता था, शामत आ गयी होगी। िनम ला ने और कुछ नहीं कहा। बात बढ़ जाने का भय था। भीतर चली आयीय। सोने को भी न कहा। जरा दे र म भूंगी ने अ+दर से िकवाड़ भी ब+द कर िदये। Pया मुंशीजी को नींद आ सकती थी? तीन लड़क म केवल एक बच रहा था। वह भी हाथ से िनकल गया, तो िफर जीवन म अंधकार के िसवाय और है ? कोई नाम लेनेवाल भी नहीं रहे गा। हा! कैसे-कैसे र हाथ से िनकल गये? मुंशीजी की आंख से अौुधारा बह रही थी, तो कोई आdय है ? उस 4यापक पdाताप, उस सघन ]लािन-ितिमर म आशा की एक हXकी-सी रे खा उ+ह संभाले हए ु थी। िजस aण वह रे खा लुr हो जायेगी, कौन कह सकता है , उन पर Pया बीतेगी? उनकी उस वेदना की कXपना कौन कर सकता है ? कई बार मुंशीजी की आंख झपकीं, लेिकन हर बार िसयाराम की आहट के धोखे म चjक पड़े । सबेरा होते ही मुंशीजी िफर िसयाराम को खोजने िनकले। िकसी से पछ ू ते शम आती थी। िकस मुंह से प छ ू ? उ+ह िकसी से सहानुभिू त की आशा न थी। ूकट न कहकर मन म सब यही कह गे, जैसा िकया, वैसा भोगो! सारे दिन वह ःकूल के मैदान, बाजार और बगीच का चPकर लगाते रहे , दो िदन िनराहार रहने पर भी उ+ह इतनी शि} कैसे हई ु , यह वही जान। रात के बारह बजे मुश ं ीजी घर लौटे , दरवाजे पर लालटे न जल रही थी, िनम ला Kार पर खड़ी थी। दे खते ही बोली- कहा भी नहीं, न जाने कब चल िदये। कुछ पता चला? 156
मुंशीजी ने आ]नेय नेऽ से ताकते हए ु कहा- हट जाओ सामने से, नहीं तो बुरा होगा। मG आपे म नहीं हंू । यह तु.हारी करनी है । तु.हारे ही कारण आज मेरी यह दशा हो रही है । आज से छ: साल पहले Pया इस घर की यह दशा थी? तुमने मेरा बना-बनाया घर िबगाड़ िदया, तुमने मेरे लहलहाते बाग को उजाड़ डाला। केवल एक ठू ं ठ रह गया है । उसका िनशान िमटाकर तभी तु.ह स+तोष
होगा। मG अपना सव नाश करने के िलए तु.ह घर नहीं जाया
था। सुखी जीवन को और भी सुखमय बनाना चाहता था। यह उसी का ूायिdत है । जो लड़के पान की तरह फेरे जाते थे, उ+ह मेरे जीते-जी तुमने चाकर समझ िलया और मG आंख से सब कुछ दे खते हए ु भी अंधा बना बैठा रहा। जाओ, मेरे िलए थोड़ा-सा संिखया भेज दो। बस, यही कसर रह गयी है , वह भी प रू ी हो जाये। िनम ला ने रोते हए ु कहा- मG तो अभािगन हंू ही, आप कह गे तब जानूग ं ी? ने जाने ईSर ने मुझे ज+म Pय िदया था? मगर यह आपने कैसे समझ िलया िक िसयाराम आवगे ही नहीं? मुंशीजी ने अपने कमरे की ओर जाते हए ु कहा- जलाओ मत जाकर खुिशयां मनाओ। तु.हारी मनोकामना प रू ी हो गयी। िनम ला सारी रात रोती रही। इतना कलंक! उसने िजयाराम को गहने ले जाते दे खने पर भी मुंह खोलने का साहस नहीं िकया। Pय? इसीिलए तो िक लोग समझगे िक यह िमया दोषारोपण करके लड़के से वैर साध रही हG । आज उसके मौन रहने पर उसे अपरािधनी ठहराया जा रहा है । यिद वह िजयाराम को उसी aण रोक दे ती और िजयाराम लMजावश कहीं भाग जाता, तो Pया उसके िसर अपराध न मढ़ा जाता? िसयाराम ही के साथ उसने कौन-सा द4य
ु वहार िकया था। वह कुछ बचत करने के िलए ही िवचार से तो िसयाराम से सौदा मंगवाया करती थी। Pया वह बचत करके अपने िलए गहने गढ़वाना चाहती थी? जब आमदनी की यह हाल हो रहा था तो प स ै -े प स ै े पर िनगाह रखने के िसवाय कुछ जमा करने का उसके पास और साधान ही Pया था? जवान की िज+दगी का तो कोई भरोसा हीं नहीं, बूढ़ की िज+दगी का Pया िठकाना? ब'ची के िववाह के िलए वह िकसके सामने हाथ फैलती? ब'ची का भार कुद उसी पर तो नहीं था। वह केवल पित की सुिवधा ही के िलए कुछ बटोरने का ूय कर रही थी। पित ही की Pय? िसयाराम ही तो िपता के बाद घर का ःवामी होता। 157
बिहन के िववाह करने का भार Pया उसके िसर पर न पड़ता? िनम ला सारी कतर- 4यत पित और प ऽ ु का संकट-मोचन करने ही के िलए कर रही थी। ब'ची का िववाह इस पिरिःथित म सकंट के िसवा और Pया था? पर इसके िलए भी उसके भा]य म अपयश ही बदा था। दोपहर हो गयी, पर आज भी चूXहा नहीं जला। खाना भी जीवन का काम है , इसकी िकसी को सुध ही नथी। मुंशीजी बाहर बेजान-से पड़े थे और िनम ला भीतर थी। ब'ची कभी भीतर जाती, कभी बाहर। कोई उससे बोलने वाला न था। बार-बार िसयाराम के कमरे के Kार पर जाकर खड़ी होती और ‘बैया-बैया’ प क ु ारती, पर ‘बैया’ कोई जवाब न दे ता था। सं\या समय मुंशीजी आकर िनम ला से बोले- तु.हारे पास कुछ पये हG ? िनम ला ने चjककर प छ ू ा- Pया कीिजएगा। मुंशीजी- मG जो प छ ू ता हंू , उसका जवाब दो। िनम ला- Pया आपको नहीं मालूम है ? दे नेवाले तो आप ही हG । मुंशीजी- तु.हारे पास कुछ पये हG या नहीं अगेर ह, तो मुझे दे दो, न ह तो साफ जवाब दो। िनम ला ने अब भी साफ जवाब न िदया। बोली- हगे तो घर ही म न हगे। मGने कहीं और नहीं भेज िदये। मुंशीजी बाहर चले गये। वह जानते थे िक िनम ला के पास पये हG , वाःतव म थे भी। िनम ला ने यह भी नहीं कहा िक नही हG या मG न दं ग ू ी, उर उसकी बात से ूकट हो यगया िक वह दे ना नहीं चाहती। नौ बजे रात तो मुंशीजी ने आकर िPमणी से काह- बहन, मG जरा बाहर जा रहा हंू । मेरा िबःतर भूंगी से बंधवा दे ना और शं क म कुछ कपड़े रखवाकर ब+द कर दे ना । िPमणी भोजन बना रही थीं। बोलीं- बहू तो कमेरे म है , कह Pय नही दे ते? कहां जाने का इरादा है ? मुंशीजी- मG तुमसे कहता हंू , बहू से कहना होता, तो तुमसे Pय कहाता? आज तुमे Pय खाना पका रही हो? िPमणी- कौन पकावे? बहू के िसर म दद हो रहा है । आिखरइस व} कहां जा रहे हो? सबेरे न चले जाना। 158
मुंशीजी- इसी तरह टालते-टालते तो आज तीन िदन हो गये। इधरइधर घूम-घामकर दे खं,ू शायद कहीं िसयाराम का पता िमल जाये। कुछ लोग कहते हG िक एक साधु के साथ बात कर रहा था। शायद वह कहीं बहका ले गया हो। िPमणी- तो लौटोगे कब तक? मुंशीजी- कह नहीं सकता। हoता भर लग जाये महीना भर लग जाये। Pया िठकाना है ? िPमणी- आज कौन िदन है ? िकसी पंिडत से प छ ू िलया है िक नहीं? मुंशीजी भोजन करने बैठे। िनम ला को इस व} उन पर बड़ी दया आयी। उसका सारा बोध शा+त हो गया। खुद तो न बोली, ब'ची को जगाकर चुमकारती हई ू तो? ु बोली- दे ख, तेरे बाबूजी कहां जो रहे हG ? प छ ब'ची ने Kार से झांककर प छ ू ा- बाबू दी, तहां दाते हो? मुंशीजी- बड़ी दरू जाता हंू बेटी, तु.हारे भैया को खोजने जाता हंू । ब'ची ने वहीं से खड़े -खड़े कहा- अम बी तलगे। मुंशीजी- बड़ी दरू जाते हG ब'ची, तु.हारे वाःते चीज लायगे। यहां Pय नहीं आती? ब'ची मुःकराकर िछप गयी और एक aण म िफर िकवाड़ से िसर िनकालकर बोली- अम बी तलगे। मुंशीजी ने उसी ःवर म कहा- तुमको नह ले तलगे। ब'ची- हमको Pय नई ले तलोगे? मुंशीजी- तुम तो हमारे पास आती नहीं हो। लड़की ठु मकती हई ु आकर िप ता की गोद म बैठ गयी। थोड़ी दे र के िलए मुंशीजी उसकी बाल-बीड़ा म अपनी अ+तवuदना भूल गये। भोजन करके मुंशीजी बाहर चले गये। िनम ला खडे क़ी ताकती रही। कहना चाहती थी- 4यथ जो रहे हो, पर कह न सकती थी। कुछ पये िनकाल कर दे ने का िवचार करती थी, पर दे न सकती थी। अंत को न रहा गया, िPमणी से बोली- दीदीजी जरा समझा दीिजए, कहां जा रहे हG ! मेरी जबान पकड़ी जायेगी, पर िबना बोले रहा नहीं जाता। िबना िठकाने कहां खोजग?े 4यथ की है रानी होगी। िPमणी ने कणा-सूचक नेऽ से दे खा और अपने कमरे म चली ग। 159
िनम ला ब'ची को गोद म िलए सोच रही थी िक शायद जाने के पहले ब'ची को दे खने या मुझसे िमलने के िलए आव, पर उसकी आशा िवफल हो गई? मुंशीजी ने िबःतर उठाया और तांगे पर जा बैठे। उसी व} िनम ला का कलेजा मसोसने लगा। उसे ऐसा जान पड़ा िक इनसे भट न होगी। वह अधीर होकर Kार पर आई िक मुंशीजी को रोक ले, पर तांगा चल चुका था। प'चीस
िद
न न गुजरने लगे। एक महीना प रू ा िनकल गया, लेिकन मुश ं ीजी न लौटे । कोई खत भी न भेजा। िनम ला को अब िनRय यही िच+ता बनी
रहती िक वह लौटकर न आये तो Pया होगा? उसे इसकी िच+ता न होती थी िक उन पर Pया बीत रही होगी, वह कहां मारे -मारे िफरते हगे, ःवाःय
कैसा होगा? उसे केवल अपनी औंर उससे भी बढ़कर ब'ची की िच+ता थी। गृहःथी का िनवा ह कैसे होगा? ईSर कैसे बेड़ा पार लगायग?े ब'ची का Pया हाल होगा? उसने कतर-4यत करके जो पये जमा कर रखे थे, उसम कुछन-कुछ रोज ही कमी होती जाती थी। िनम ला को उसम से एक-एक प स ै ा िनकालते इतनी अखर होती थी, मानो कोई उसकी दे ह से र} िनकाल रहा हो। झुंझलाकर मुंशीजी को कोसती। लड़की िकसी चीज के िलए रोती, तो उसे अभािगन, कलमुंही कहकर झXलाती। यही नहीं, िPमणी का घर म रहना उसे ऐसा जान पड़ता था, मानो वह गद न पर सवार है । जब Vदय जलता है , तो वाणी भी अि]नमय हो जाती है । िनम ला बड़ी मधुर-भािषणी nी थी, पर अब उसकी गणना कक शाओ म की जा सकती थी। िदन भर उसके मुख से जलीकटी बात िनकला करती थीं। उसके शCद की कोमलता न जाने Pया हो गई! भाव म माधुय का कहीं नाम नहीं। भूंगी बहत ु िदन से इस घर मे नौकर थी। ःवभाव की सहनशील थी, पर यह आठ पहहर की बकबक उससे भी न सकी गई। एक िदन उसने भी घर की राह ली। यहां तक िक िजस ब'ची को ूाण से भी अिधक bयार करती थी, उसकी सूरत से भी घृणा हो गई। बात-बात पर घुड़क पड़ती, कभी-कभी मार बैठती। िPमणी रोई हई ु बािलका को गोद म बैठा लेती और चुमकार-दलार कर चुप करातीं। उस ु अनाथ के िलए अब यही एक आौय रह गया था। 160
िनमuला को अब अगर कुछ अ'छा लगता था, तो वह सुधा से बात करना था। वह वहां जाने का अवसर खोजती रहती थी। ब'ची को अब वह अपने साथ न ले जाना चाहती थी। पहले जब ब'ची को अपने घर सभी चीज खाने को िमलती थीं, तो वह वहां जाकर हं सती-खेलती थी। अब वहीं जाकर उसे भूख लगती थी। िनम ला उसे घूर-घूरकर दे खती, मुिटठयां-बांधकर धमकाती, पर लड़की भूख की रट लगाना न छोड़ती थी। इसिलए िनम ला उसे साथ न ले जाती थी। सुधा के पास बैठकर उसे मालूम होता था िक मG आदमी हंू । उतनी दे र के िलए वह िचंताआं से मु} हो जाती थी। जैसे शराबी शराब के नशे म सारी िच+ताएं भूल जाता है , उसी तरह िनम ला सुधा के घर जाकर सारी बात भूल जाती थी। िजसने उसे उसके घर पर दे खा हो, वह उसे यहां दे खकर चिकत रह जाता। वहीं कक शा, कटु -भािषणी nी यहां आकर हाःयिवनोद
और
माधुय की
पत ु ली
बन
जाती
थी।
यौवन-काल की
ःवाभािवक वृि3यां अपने घर पर राःता ब+द पाकर यहां िकलोल करने लगती थीं। यहां आते व} वह मांग-चोटी, कपड़े -ल3े से लैस होकर आती और यथासा\य अपनी िवपि3 कथा को मन ही म रखती थी। वह यहां रोने के िलए नहीं, हं सने के िलए आती थी। पर कदािचत ् उसके भा]य म यह सुख भी नहीं बदा था। िनम ला मामली तौर से दोपहर को या तीसरे पहर से सुधा के घर जाया करती थी। एक िदन उसका जी इतना ऊबा िक सबेरे ही जा पहंु ची। सुधा नदी ःनान करने गई थी, डॉPटर साहब अःपताल जाने के िलए कपड़े पहन रहे थे। महरी अपने काम-धंधे म लगी हई ु थी। िनम ला अपनी सहे ली के कमरे म जाकर िनिd+त बैठ गई। उसने समझा-सुधा कोई काम कर रही होगी, अभी आती होगी। जब बैठे दो-िदन िमनट गुजर गये, तो उसने अलमारी से तःवीर की एक िकताब उतार ली और केश खोल पलंग पर लेटकर िचऽ दे खने लगी। इसी बीच म डॉPटर साहब को िकसी जरत से िनम ला के कमरे म आना पड़ा। अपनी ऐनक ढंू ढते िफरते थे। बेधड़क अ+दर चले आये। िनम ला Kार की ओर केश खोले लेटी हई ु थी। डॉPटर साहब को दे खते ही चjककार उठ बैठी और िसर ढांकती हई ु चारपाई से उतकर खड़ी हो गई। डॉPटर साहब ने लौटते हए ु िचक के पास खड़े होकर कहा- aमा करना िनम ला, मुझे मालूम न था िक यहां हो! मेरी ऐनक मेरे कमरे म नहीं िमल रही है , न जाने कहां उतार कर रख दी थी। मGने समझा शायद यहां हो। 161
िनम ला सने चारपाई के िसरहाने आले पर िनगाह डाली तो ऐनक की िडिबया िदखाई दी। उसने आगे बढ़कर िडिबया उतार ली, और िसर झुकाये, दे ह समेटे, संकोच से डॉPटर साहब की ओर हाथ बढ़ाया। डॉPटर साबह ने िनम ला को दो-एक बार पहले भी दे खा था, पर इस समय के-से भाव कभी उसके मन म न आये थे। िजस Mवाजा को वह बरस से Vदय म दवाये हए ु थे, वह आज पवन का झका पाकर दहक उठी। उ+हने ऐनक लेने के िलए हाथ बढ़ाया, तो हाथ कांप रहा था। ऐनक लेकर भी वह बाहर न गये, वहीं खोए हए ू ा- सुधा ु से खड़े रहे । िनम ला ने इस एका+त से भयभीत होकर प छ कहीं गई है Pया? डॉPटर साहब ने िसर झुकाये हए ु जवाब िदया- हां, जरा ःनान करने चली गई हG । िफर भी डॉPटर साहब बाहन न गये। वहीं खड़े रहे । िनम ला ने िफौ पछ ू ा- कब तक आयेगी? डॉPटर साहब ने िसर झुकाये हुए केहा- आती हगीं। िफर भी वह बाहर नहीं आये। उनके मन म घारे K+K मचा हआ था। ु औिचRय का बंधन नहीं, भीता का क'चा तागा उनकी जबान को रोके हए ु था। िनम ला ने िफर कहा- कहीं घूमने-घामने लगी हगी। मG भी इस व} जाती हंू । ू गया। नदी के कगार पर पहंु च कर भीता का क'चा तागा भी टट भागती हई ु शि} आ जाती है । डॉPटर साहब ने िसर उठाकर ु सेना म अत िनम ला को दे खा और अनुराग म डबे ू हए ु ःवर म बोले- नहीं, िनम ला, अब आती हो हगी। अभी न जाओ। रोज सुधा की खाितर से बैठती हो, आज मेरी खाितर से बैठो। बताओ, कम तक इस आग म जला क? सRय कहता हंू िनम ला...। िनम ला ने कुछ और नहीं सुना। उसे ऐसा जान पड़ा मानो सारी प ृ वी चPकर खा रही है । मानो उसके ूाण पर सहॐ वळ का आघात हो रहा है । उसने जXदी से अलगनी पर लटकी हई ु चादर उतार ली और िबना मुंह से एक शCद िनकाले कमरे से िनकल गई। डॉPटर साहब िखिसयाये हए ु -से रोना मुंह बनाये खड़े रहे ! उसको रोकने की या कुछ कहने की िह.मत न पड़ी। िनम ला Mयही Kार पर पहंु ची उसने सुधा को तांगे से उतरते दे खा। सुधा उसे िनम ला ने उसे अवसर न िदया, तीर की तरह झपटकर चली। सुधा 162
एक aण तक िवःमेय की दशा म खड़ी रहीं। बात Pया है , उसकी समझ म कुछ न आ सका। वह 4यम हो उठी। जXदी से अ+दर गई महरी से प छ ू ने िक Pया बात हई ु है । वह अपराधी का पता लगायेगी और अगर उसे मालूम हआ िक महरी या और िकसी नौकर से उसे कोई अपमान-सूचक बात कह ु दी है , तो वह खड़े -खड़े िनकाल दे गी। लपकी हई ु वह अपने कमरे म गई। अ+दर कदम रखते ही डॉPटर को मुंह लटकाये चारपाई पर बैठे दे ख। प छ ू ािनम ला यहां आई थी? डॉPटर साहब ने िसर खुजलाते हए ु कहा- हां, आई तो थीं। सुधा- िकसी महरी-अहरी ने उ+ह कुछ कहा तो नहीं? मुझसे बोली तक नहीं, झपटकर िनकल ग। डॉPटी साहब की मुख-काि+त मिजन हो गई, कहा- यहां तो उ+ह िकसी ने भी कुछ नहीं कहा। सुधा- िकसी ने कुछ कहा है । दे खो, मG प छ ू ती हंू न, ईSर जानता है , पता पा जाऊंगी, तो खड़े -खड़े िनकाल दं ग ू ी। डॉPटर साहब िसटिपटाते हए ु बोले- मGने तो िकसी को कुछ कहते नहीं सुना। तु.ह उ+हने दे खा न होगा। सुधा-वाह, दे खा ही न होगा! उसनके सामने तो मG तांगे से उतरी हंू । उ+हने मेरी ओर ताका भी, पर बोलीं कुद नहीं। इस कमरे म आई थी? डॉPटर साहब के ूाण सूखे जा रहे थे। िहचिकचाते हए ु बोले- आई Pय नहीं थी। सुधा- तु.ह यहां बैठे दे खकर चली गई हगी। बस, िकसी महरी ने कुछ कह िदया होगा। नीच जात हG न, िकसी को बात करने की तमीज तो है नहीं। अरे , ओ सु+दिरया, जरा यहां तो आ! डॉPटर- उसे Pय बुलाती हो, वह यहां से सीधे दरवाजे की तरफ ग। महिरय से बात तक नहीं हई। ु सुधा- तो िफर तु.हीं ने कुछ कह िदया होगा। डॉPटर साहब का कलेजा धक्-धक् करने लगा। बोले- मG भला Pया कह दे ता Pया ऐसा गंवाह हंू ? सुधा- तुमने उ+ह आते दे खा, तब भी बैठे रह गये? डॉPटर- मG यहां था ही नहीं। बाहर बैठक म अपनी ऐनक ढंू ढ़ता रहा, जब वहां न िमली, तो मGने सोचा, शायद अ+दर हो। यहां आया तो उ+ह बैठे 163
दे खा। मG बाहर जाना चाहता था िक उ+हने खुद प छ ू ा- िकसी चीज की जरत है ? मGने कहा- जरा दे खना, यहां मेरी ऐनक तो नहीं है । ऐनक इसी िसरहाने वाले ताक पर थी। उ+हने उठाकर दे दी। बस इतनी ही बात हई। ु सुधा- बस, तु.ह ऐनक दे ते ही वह झXलाई बाहर चली गई? Pय? डॉPटर- झXलाई हई ु तो नहीं चली गई। जाने लगीं, तो मGने कहाबैिठए वह आती हगी। न बैठीं तो मG Pया करता? सुधा ने कुछ सोचकर कहा- बात कुछ समझ म नहीं आती, मG जरा उसके पास जाती हंू । दे खं,ू Pया बात है । डॉPटर-तो चली जाना ऐसी जXदी Pया है । सारा िदन तो पड़ा हआ है । ु सुधा ने चादर ओढते हऐ ु कहा- मेरे पेट म खलबली माची हई ु है , कहते हो जXदी है ? सुधा तेजी से कदम बढ़ती हई ु िनम ला के घर की ओर चली और पांच िमनट म जा पहंु ची? दे खा तो िनम ला अपने कमरे म चारपाई पर पड़ी रो रही थी और ब'ची उसके पास खड़ी रही थी- अ.मां, Pय लोती हो? सुधा ने लड़की को गोद मे उठा िलया और िनम ला से बोली-बिहन, सच बताओ, Pया बात है ? मेरे यहां िकसी ने तु.ह कुछ कहा है ? मG सबसे प छ ू चुकी, कोई नहीं बतलाता। िनम ला आंसू पछती हई ु बोली- िकसी ने कुछ कहा नहीं बिहन, भला वहां मुझे कौन कुछ कहता? सुधा- तो िफर मुझसे बोली Pय नहीं ओर आते-ही-आते रोने लगीं? िनम ला- अपने नसीब को रो रही हंू , और Pया। सुधा- तुम य न बतलाओगी, तो मG कसम दं ग ू ी। िनम ला- कसम-कसम न रखाना भाई, मुझे िकसी ने कुछ नहीं कहा, झूठ िकसे लगा दं ?ू सुधा- खाओ मेरी कसम। िनम ला- तुम तो नाहक ही िजद करती हो। सुधा- अगर तुमने न बताया िनम ला, तो मG समझूंगी, तु.ह जरा भी ूेम नहीं है । बस, सब जबानी जमा- खच है । मG तुमसे िकसी बात का पदा
नहीं रखती और तुम मुझे गैर समझती हो। तु.हारे ऊपर मुझे बड़ा भरोसा थ। अब जान गई िक कोई िकसी का नहीं होता। 164
सुधा कीं आंख सजल हो गई। उसने ब'ची को गोद से उतार िलया और Kार की ओर चली। िनम ला ने उठाकर उसका हाथ पकड़ िलया और रोती हई ू ो। सुनकर दख ु होगा ु बोली- सुधा, मG तु.हारे प रै पड़ती हंू , मत प छ और शायद मG िफर तु.ह अपना मुंह न िदखा सकंू । मG अभिगनी ने होती, तो यह िदन िह Pय दे खती? अब तो ईSर से यही ूाथ ना है िक संसार से मुझे उठा ले। अभी यह दग
ु ित हो रही है , तो आगे न जाने Pया होगा? इन शCद म जो संकेत था, वह बुिKमती सुधा से िछपा न रह सका। वह समझ गई िक डॉPटर साहब ने कुछ छे ड़-छाड़ की है । उनका िहचकिहचककर बात करना और उसके ू को टालना, उनकी वह ]लािनमये, कांितहीन मुिा उसे याद आ गई। वह िसर से पांव तक कांप उठी और िबना कुछ कहे -सुने िसंहनी की भांित बोध से भरी हई ु Kार की ओर चली। िनम ला ने उसे रोकना चाहा, पर न पा सकी। दे खते-दे खते वह सड़क पर आ गई और घर की ओर चली। तब िनम ला वहीं भूिम पर बैठ गई और फूट-फूटकर रोने लगी। छCबीस िनम ला िदन भर चारपाई पर पड़ी रही। मालूम होता है , उसकी दे ह म ूाण नहीं है । न ःनान िकया, न भोजन करने उठी। सं\या समय उसे Mवर हो आया। रात भर दे ह तवे की भांित तपती रही। दसरे िदन Mवर न उतरा। हां, ू कुछ-कुछ कमे हो गया था। वह चारपाई पर लेटी हई ु िनdल नेऽ से Kार की ओर ताक रही थी। चार ओर शू+य था, अ+दर भी शू+य बाहर भी शू+य कोई िच+ता न थी, न कोई ःमृित, न कोई द:ु ख, मिःतंक म ःप+दन की शि} ही न रही थी। सहसा िPमणी ब'ची को गोद म िलये हए ु आकर खड़ी हो गई। िनम ला ने प छ ू ा- Pया यह बहत ु रोती थी? िPमणी- नहीं, यह तो िससकी तक नहीं। रात भर चुप चाप पड़ी रही, सुधा ने थोड़ा-सा दध ू भेज िदया था। िनम ला- अहीिरन दध ू न दे गई थी? िPमणी- कहती थी, िपछले प स ै े दे दो, तो दं ।ू तु.हारा जी अब कैसा है ? 165
िनम ला- मुझे कुछ नहीं हआ है ? कल दे ह गरम हो गई थीं। ु िPमणी- डॉPटर साहब का बुरा हाल है ? िनम ला ने घबराकर प छ ू ा- Pया हआ ु , Pया? कुशल से है न? िPमणी- कुशल से हG िक लाश उठाने की तैयारी हो रही है ! कोई कहता है , जहर खा िलया था, कोई कहता है , िदल का चलना ब+द हो गया था। भगवान ्जाने Pया हआ था। ु िनम ला ने एक ठ^डी सांस ली और ं धे हए ु कंठ से बोली- हाया भगवान!् सुधा की Pया गित होगी! कैसे िजयेगी? यह कहते-कहते वह रो पड़ी और बड़ी दे र तक िससकती रही। तब बड़ी मुिँकल से उठकर सुधा के पास जाने को तैयार हई ु पांव थर-थर कांप रहे थे, दीवार थामे खड़ी थी, पर जी न मानता था। न जाने सुधा ने यहां से जाकर पित से Pया कहा? मGने तो उससे कुछ कहा भी नहीं, न जाने मेरी बात का वह Pया मतलब समझी? हाय! ऐसे पवान ् दयालु, ऐसे सुशील ूाणी का यह अ+त! अगर िनम ला को मालूम होत िक उसके बोध का यह भीषण पिरणाम होगा, तो वह जहर का घूंट पीकर भी उस बात को हं सी म उड़ा दे ती। यह सोचकर िक मेरी ही िनNु रता के कारण डॉPटर साहब का यह हाल ु हआ होने लगे। ऐसी वेदना होने लगी, मानो Vदय ु , िनम ला के Vदय के टकड़े म शूल उठ रहा हो। वह डॉPटर साहब के घर चली। लाश उठ चुकी थी। बाहर स+नाटा छाया हआ था। घर म nीयां जमा ु थीं। सुधा जमीन पर बैठी रो रही थी। िनम ला को दे खते ही वह जोर से िचXलाकर रो पड़ी और आकर उसकी छाती से िलपट गई। दोन दे र तके रोती रहीं। जब औरत की भीड़ कम हई ू ाु और एका+त हो गया, िनम ला ने प छ यह Pया हो गया बिहन, तुमने Pया कह िदया? सुधा अपने मन को इसी ू का उ3र िकतनी ही बार दे चुकी थी। उसकी मन िजस उ3र से शांत हो गया था, वही उ3र उसने िनम ला को िदया। बोली- चुप भी तो न रह सकती थी बिहन, बोध की बात पर बोध आती ही है । िनम ला- मGने तो तुमसे कोई ऐसी बात भी न कही थी। 166
सुधा- तुम कैसे कहती, कह ही नहीं सकती थीं, लेिकन उ+हने जो बात हई ु थी, वह कह दी थी। उस पर मGने जो कुद मुंह म आया, कहा। जब एक बात िदल म आ गई,तो उसे हआ ही समझना चािहये। अवसर और घात ु िमले, तो वह अवँय ही प रू ी हो। यह कहकर कोई नहीं िनकल सकता िक मGने तो हं सी की थी। एका+त म एसा शCद जबान पर लाना ही कह दे ता है िक नीयत बुरी थी। मGने तुमसे कभी कहा नहीं बिहन, लेिकन मGने उ+ह कई बात तु.हारी ओर झांकते दे खा। उस व} मGने भी यही समझा िक शायद मुझे धोखा हो रहा हो। अब मालूम हआ िक उसक ताक-झांक का Pया ु मतलब था! अगर मGने दिनया Mयादा दे खी होती, तो तु.ह अपने घर न आने ु दे ती। कम-से-कम तुम पर उनकी िनगाह कभी ने पड़ने दे ती, लेिकन यह Pया जानती थी िक प ु ष के मुंह म कुछ और मन म कुछ और होता है । ईSर को जो मंजूर था, वह हआ। ऐसे सौभा]य से मG वैध4य को बुर नहीं समझती। ु दिरि ूाणी उस धनी से कहीं सुखी है , िजसे उसका धन सांप बनकर काटने दौड़े । उपवास कर लेना आसान है , िवषैला भोजन करन उससे कहीं मुिं ँकल । इसी व} डॉPटर िस+हा के छोटे भाई और कृ ंणा ने घर म ूवेश िकया। घर म कोहराम मच गया। स3ाईस
ए
क महीना और गुजर गया। सुधा अपने दे वर के साथ तीसरे ही िदन चली गई। अब िनम ला अकेली थी। पहले हं स-बोलकर जी बहला िलया
करती थी। अब रोना ही एक काम रह गया। उसका ःवाःथय िदन-िदन िबगडे क़ता गया। प रु ाने मकान का िकराया अिधक था। दसरा मकान थोड़े ू िकराये का िलया, यह तंग गली म था। अ+दर एक कमरा था और छोटा-सा आंगन। न ूकाशा जाता, न वायु। दग
ु +ध उड़ा करती थी। भोजन का यह हाल िक प स ै े रहते हये ु भी कभी-कभी उपवास करना पड़ता था। बाजार से जाये कौन? िफर अपना कोई मद नहीं, कोई लड़का नहीं, तो रोज भोजन बनाने का कm कौन उठाये? औरत के िलये रोज भोजन करे न की आवँयका ही Pया? अगर एक व} खा िलया, तो दो िदन के िलये छुeटी हो गई। ब'ची के िलए ताजा हलुआ या रोिटयां बन जाती थी! ऐसी दशा म ःवाःय Pय न िबगड़ता? िच+त, शोक, दरवःथा , एक हो तो कोई कहे । यहां तो ऽयताप का ु 167
धावा था। उस पर िनम ला ने दवा खाने की कसम खा ली थी। करती ही Pया? उन थोड़े -से पय म दवा की गुंजाइश कहां थी? जहां भोजन का िठकाना न था, वहां दवा का िजब ही Pया? िदन-िदन सूखती चली जाती थी। एक िदन िPमणी ने कहा- बहु, इस तरक कब तक घुला करोगी, जी ही से तो जहान है । चलो, िकसी वैq को िदखा लाऊं। िनम ला ने िवर} भाव से कहा- िजसे रोने के िलए जीना हो, उसका मर जाना ही अ'छा। िPमणी- बुलाने से तो मौत नहीं आती? िनम ला- मौत तो िबन बुलाए आती है , बुलाने म Pय न आयेगी? उसके आने म बहत ु िदन लगगे बिहन, जै िदन चलती हंू , उतने साल समझ लीिजए। िPमणी- िदल ऐसा छोटा मत करो बहू, अभी संसार का सुख ही Pया दे खा है ? िनम ला- अगर संसार की यही सुख है , जो इतने िदन से दे ख रही हंू , तो उससे जी भर गया। सच कहती हंू बिहन, इस ब'ची का मोह मुझे बांधे हए ु है , नहीं तो अब तक कभी की चली गई होती। न जाने इस बेचारी के भा]य म Pया िलखा है ? दोन मिहलाएं रोने लगीं। इधर जब से िनम ला ने चारपाई पकड़ ली है , िPमणी के Vदय म दया का सोता-सा खुल गया है । Kे ष का लेश भी नहीं रहा। कोई काम करती ह, िनम ला की आवाज सुनते ही दौड़ती हG । घ^ट उसके पास कथा-प रु ाण सुनाया करती हG । कोई ऐसी चीज पकाना चाहती हG , िजसे िनम ला िच से खाये। िनम ला को कभी हं सते दे ख लेती हG , तो िनहाल हो जाती है और ब'ची को तो अपने गले का हार बनाये रहती हG । उसी की नींद सोती हG , उसी की नींद जागती हG । वही बािलका अब उसके जीवन का आधार है । िPमणी ने जरा दे र बाद कहा- बहू, तुम इतनी िनराश Pय होती हो? भगवान ्चाह गे, तो तुम दो-चार िदन म अ'छी हो जाओगी। मेरे साथ आज वैqजी के पास चला। बड़े सMजन हG । िनम ला- दीदीजी, अब मुझे िकसी वैq, हकीम की दवा फायदा न करे गी। आप मेरी िच+ता न कर । ब'ची को आपकी गोद म छोड़े जाती हंू । अगर 168
जीती-जागती रहे , तो िकसी अ'छे कुल म िववाह कर दीिजयेगा। मG तो इसके िलये अपने जीवन म कुछ न कर सकी, केवल ज+म दे ने भर की अपरािधनी हंू । चाहे Pवांरी रिखयेगा, चाहे िवष दे कर मार डािलएग, पर कुपाऽ के गले न मिढ़एगा, इतनी ही आपसे मेरी िवनय है । मGन आपकी कुछ सेवा न की, इसका बड़ा द:ु ख हो रहा है । मुझ अभािगनी से िकसी को सुख नहीं िमला। िजस पर मेरी छाया भी पड़ गई, उसका सव नाश हो गया अगर ःवामीजी कभी घर आव, तो उनसे किहएगा िक इस करम-जली के अपराध aमा कर द । िPमणी रोती हई ु बोली- बहू, तु.हारा कोई अपराध नहीं ईSर से कहती हंू , तु.हारी ओर से मेरे मन म जरा भी मैल नहीं है । हां, मGने सदै व तु.हारे साथ कपट िकया, इसका मुझे मरते दम तक द:ु ख रहे गा। िनम ला ने कातर नेऽ से दे खते हये ु केहा- दीदीजी, कहने की बात नहीं, पर िबना कहे रहा नहीं जात। ःवामीजी ने हमेशा मुझे अिवSास की fिm से दे खा, लेिकन मGने कभी मन मे भी उनकी उपेaा नहीं की। जो होना था, वह तो हो ही चुका था। अधम करके अपना परलोक Pय िबगाड़ती?
पव ू ज+म
म न जाने कौन-सा पाप िकया था, िजसका वह ूायिdत करना पड़ा। इस ज+म म कांटे बोती, तोत कौन गित होती? िनम ला की सांस बड़े वेग से चलने लगी, िफर
खाट पर लेट गई और
ब'ची की ओर एक ऐसी fिm से दे खा, जो उसके चिरऽ जीवन की संप ण ू
िवमRकथा की वृह¤ आलोचना थी, वाणी म इतनी सामय कहा? तीन िदन तक िनम ला की आंख से आंसओ ु ं की धारा बहती रही। वह न िकसी से बोलती थी, न िकसी की ओर दे खती थी और न िकसी का कुछ सुनती थी। बस, रोये चली जाती थी। उस वेदना का कौन अनुमान कर सकता है ? चौथे िदन सं\या समय वह िवपि3 कथा समाr हो गई। उसी समय जब पशु-पaी अपने-अपने बसेरे को लौट रहे थे, िनम ला का ूाण-पaी भी िदन भर िशकािरय के िनशान, िशकारी िचिड़य के पंज और वायु के ूचंड झक से आहत और 4यिथत अपने बसेरे की ओर उड़ गया। मुहXले के लोग जमा हो गये। लाश बाहर िनकाली गई। कौन दाह करे गा, यह ू उठा। लोग इसी िच+ता म थे िक सहसा एक बूढ़ा पिथक एक बकुचा लटकाये आकर खड़ा हो गया। यह मुंशी तोताराम थे। 169