Nirmala

  • November 2019
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  • Words: 69,472
  • Pages: 169
ूेमचंद

िनमला

िनमला



तो बाबू उदयभानुलाल के प रवार म बीस ह ूाणी थे, कोई ममेरा भाई था, कोई फुफेरा, कोई भांजा था, कोई भतीजा, ले कन यहां हम

उनसे कोई ूयोजन नह ं, वह अ छे वक ल थे, लआमी ूस न थीं और कुटु ब के द रि

ूा णय को आौय दे ना उनका क

य ह था। हमारा स ब ध तो

केवल उनक दोन क याओं से है , जनम बड़ का नाम िनमला और छोट का कृ ंणा था। अभी कल दोन साथ-साथ गु ड़या खेलती थीं। िनमला का प िहवां साल था, कृ ंणा का दसवां, फर भी उनके ःवभाव म कोई वशेष अ तर न था। दोन चंचल, खला ड़न और सैर-तमाशे पर जान दे ती थीं। दोन गु ड़या का धूमधाम से

याह करती थीं, सदा काम से जी चुराती थीं।

मां पुकारती रहती थी, पर दोन कोठे पर िछपी बैठ रहती थीं क न जाने

कस काम के िलए बुलाती ह। दोन अपने भाइय से लड़ती थीं, नौकर को

डांटती थीं और बाजे क आवाज सुनते ह

ार पर आकर खड़ हो जाती थीं

पर आज एकाएक एक ऐसी बात हो गई है , जसने बड़ को बड़ और छोट को छोट बना दया है । कृ ंणा यह है , पर िनमला बड़ ग भीर, एका त- ूय और ल जाशील हो गई है । इधर मह न से बाबू उदयभानुलाल िनमला के ववाह क बातचीत कर रहे थे। आज उनक मेहनत ठकाने लगी है । बाबू भालच ि िस हा के

ये

पुऽ भुवन मोहन िस हा से बात प क हो गई है ।

वर के पता ने कह दया है क आपक खुशी ह दहे ज द, या न द, मुझे इसक परवाह नह ं; हां, बारात म जो लोग जाय उनका आदर-स कार अ छ तरह होना च हए,

जसम मेर

और आपक

जग-हं साई न हो। बाबू

उदयभानुलाल थे तो वक ल, पर संचय करना न जानते थे। दहे ज उनके सामने क ठन समःया थी। इसिलए जब वर के पता ने ःवयं कह दया क मुझे दहे ज क परवाह नह ं, तो मान उ ह आंख िमल गई। डरते थे, न जाने कस- कस के सामने हाथ फैलाना पड़े , दो-तीन महाजन को ठ क कर रखा

था। उनका अनुमान था क हाथ रोकने पर भी बीस हजार से कम खच न ह गे। यह आ ासन पाकर वे खुशी के मारे फूले न समाये। इसक सूचना ने अ ान बिलका को मुंह ढांप कर एक कोने म बठा रखा है । उसके

दय म एक विचऽ शंका समा गई है , रो-रोम म एक अ ात

भय का संचार हो गया है , न जाने

या होगा। उसके मन म वे उमंग नह ं 2

ह, जो युवितय क आंख म ितरछ िचतवन बनकर, ओंठ पर मधुर हाःय बनकर और अंग म आलःय बनकर ूकट होती है । नह ं वहां अिभलाषाएं नह ं ह वहां केवल शंकाएं, िच ताएं और भी

क पनाएं ह। यौवन का अभी

तक पूण ूकाश नह ं हआ है । ु

कृ ंणा कुछ-कुछ जानती है , कुछ-कुछ नह ं जानती। जानती है , बहन को

अ छे -अ छे गहने िमलगे,

ार पर बाजे बजगे, मेहमान आयगे, नाच होगा-यह

जानकर ूस न है और यह भी जानती है

क बहन सबके गले िमलकर

रोयेगी, यहां से रो-धोकर वदा हो जायेगी, म अकेली रह जाऊंगी- यह जानकर

द:ु खी है , पर यह नह ं जानती पताजी

क यह इसिलए हो रहा है , माताजी और

य बहन को इस घर से िनकालने को इतने उ सुक हो रहे ह।

बहन ने तो कसी को कुछ नह ं कहा, कसी से लड़ाई नह ं क ,

या इसी

तरह एक दन मुझे भी ये लोग िनकाल दगे? म भी इसी तरह कोने म बैठकर रोऊंगी और कसी को मुझ पर दया न आयेगी? इसिलए वह भयभीत भी ह। सं या का समय था, िनमला छत पर जानकर अकेली बैठ आकाश क और तृ षत नेऽ से ताक रह थी। ऐसा मन होता था

पंख होते, तो वह उड़

ू जाती। इस समय बहधा जाती और इन सारे झंझट से छट दोन बहन कह ं ु सैर करने जाया करती थीं। ब घी खाली न होती, तो बगीचे म ह टहला

करतीं, इसिलए कृ ंणा उसे खोजती फरती थी, जब कह ं न पाया, तो छत पर आई और उसे दे खते ह हं सकर बोली-तुम यहां आकर िछपी बैठ हो और म तु ह ढंू ढती फरती हंू । चलो, ब घी तैयार करा आयी हंू ।

िनमला- ने उदासीन भाव से कहा-तू जा, म न जाऊंगी।

कृ ंणा-नह ं मेर अ छ द द , आज ज र चलो। दे खो, कैसी ठ ड -ठ ड हवा चल रह है । िनमला-मेरा मन नह ं चाहता, तू चली जा। कृ ंणा क आंख डबडबा आई। कांपती हई ु आवाज से बोली- आज तुम

य नह ं चलतीं मुझसे

य नह ं बोलतीं

य इधर-उधर िछपी-िछपी फरती

हो? मेरा जी अकेले बैठे-बैठे घबड़ाता है । तुम न चलोगी, तो म भी न जाऊगी। यह ं तु हारे साथ बैठ रहंू गी।

िनमला-और जब म चली जाऊंगी तब

खेलेगी और कसके साथ घूमने जायेगी, बता? 3

या करे गी? तब कसके साथ

कृ ंणा-म भी तु हारे साथ चलूंगी। अकेले मुझसे यहां न रहा जायेगा। िनमला मुःकराकर बोली-तुझे अ मा न जाने दगी। कृ ंणा-तो म भी तु ह न जाने दं ग ू ी। तुम अ मा से कह

य नह ं दे ती क

म न जाउं गी।

िनमला- कह तो रह हंू , कोई सुनता है !

कृ ंणा-तो

या यह तु हारा घर नह ं है ?

िनमला-नह ं, मेरा घर होता, तो कोई

य जबदःती िनकाल दे ता?

कृ ंणा-इसी तरह कसी दन म भी िनकाल द जाऊंगी? िनमला-और नह ं

या तू बैठ रहे गी! हम लड़ कयां ह, हमारा घर कह ं

नह ं होता। कृ ंणा-च दर भी िनकाल दया जायेगा? िनमला-च दर तो लड़का है , उसे कौन िनकालेगा? कृ ंणा-तो लड़ कयां बहत ु खराब होती ह गी?

िनमला-खराब न होतीं, तो घर से भगाई

य जाती?

कृ ंणा-च दर इतना बदमाश है , उसे कोई नह ं भगाता। हम-तुम तो कोई बदमाशी भी नह ं करतीं। एकाएक च दर धम-धम करता हआ छत पर आ पहंु चा और िनमला ु

को दे खकर बोला-अ छा आप यहां बैठ ह। ओहो! अब तो बाजे बजगे, द द द ु हन बनगी, पालक पर चढ़गी, ओहो! ओहो!

च दर का पूरा नाम च िभानु िस हा था। िनमला से तीन साल छोटा

और कृ ंणा से दो साल बड़ा।

िनमला-च दर, मुझे िचढ़ाओगे तो अभी जाकर अ मा से कह दं ग ू ी।

च ि-तो िचढ़ती द ु हन बनगी।



य हो तुम भी बाजे सुनना। ओ हो-हो! अब आप

कशनी, तू बाजे सुनेगी न वैसे बाजे तूने कभी न सुने

ह गे।

कृ ंणा- या बै ड से भी अ छे ह गे? च ि-हां-हां, बै ड से भी अ छे , हजार गुने अ छे , लाख गुने अ छे । तुम जानो

या एक बै ड सुन िलया, तो समझने लगीं क उससे अ छे बाजे नह ं

होते। बाजे बजानेवाले लाल-लाल व दयां और काली-काली टो पयां पहने ह गे। ऐसे खबूसूरत मालूम ह गे

क तुमसे 4

या कहंू आितशबा जयां भी ह गी,

हवाइयां आसमान म उड़ जायगी और वहां तार म लगगी तो लाल, पीले, हरे ,

ू -टटकर ू नीले तारे टट िगरगे। बड़ा बजा आयेगा। कृ ंणा-और

या- या होगा च दन, बता दे मेरे भैया?

च ि-मेरे साथ घूमने चल, तो राःते म सार बात बता दं ।ू ऐसे-ऐसे

तमाशे ह गे क दे खकर तेर आंख खुल जायगी। हवा म उड़ती हई ु प रयां ह गी, सचमुच क प रयां।

कृ ंणा-अ छा चलो, ले कन न बताओगे, तो मा ं गी।

च िभानू और कृ ंणा चले गए, पर िनमला अकेली बैठ

कृ ंणा के चले जाने से इस समय उसे बड़ा ूाण से भी अिधक

रह गई।

ोभ हआ। कृ ंणा, जसे वह ु

ु हो गई। अकेली यार करती थी, आज इतनी िनठर

छोड़कर चली गई। बात कोई न थी, ले कन द:ु खी

दय दखती हई ु ु आंख है ,

जसम हवा से भी पीड़ा होती है । िनमला बड़ दे र तक बैठ रोती रह । भाई-

बहन, माता- पता, सभी इसी भांित मुझे भूल जायगे, सबक

आंख

फर

जायगी, फर शायद इ ह दे खने को भी तरस जाऊं। बाग म फूल खले हए ु थे। मीठ -मीठ सुग ध आ रह थी। चैत क

शीतल म द समीर चल रह थी। आकाश म तारे िछटके हए ु थे। िनमला

इ ह ं शोकमय वचार म पड़ -पड़ सो गई और आंख लगते ह उसका मन

ःव न-दे श म, वचरने लगा।

या दे खती है क सामने एक नद लहर मार

रह है और वह नद के कनारे नाव क बाठ दे ख रह है । स है । अंधेरा

या का समय

कसी भयंकर ज तु क भांित बढ़ता चला आता है । वह घोर

िच ता म पड़ हई ु है क कैसे यह नद पार होगी, कैसे पहंु चूंगी! रो रह है

क कह ं रात न हो जाये, नह ं तो म अकेली यहां कैसे रहंू गी। एकाएक उसे

एक सु दर नौका घाट क ओर आती दखाई दे ती है । वह खुशी से उछल पड़ती है और है , ले कन

योह नाव घाट पर आती है , वह उस पर चढ़ने के िलए बढ़ती

य ह नाव के पटरे पर पैर रखना चाहती है , उसका म लाह बोल

उठता है -तेरे िलए यहां जगह नह ं है ! वह म लाह क खुशामद करती है , उसके पैर पड़ती है , रोती है , ले कन वह यह कहे जाता है , तेरे िलए यहां जगह नह ं है । एक

ण म नाव खुल जाती है । वह िच ला-िच लाकर रोने

लगती है । नद के िनजन तट पर रात भर कैसे रहे गी, यह सोच वह नद म कूद कर उस नाव को पकड़ना चाहती है क इतने म कह ं से आवाज आती है -ठहरो, ठहरो, नद गहर है , डब ू जाओगी। वह नाव तु हारे िलए नह ं है , म 5

आता हंू , मेर नाव म बैठ जाओ। म उस पार पहंु चा दं ग ू ा। वह भयभीत

होकर इधर-उधर दे खती है क यह आवाज कहां से आई? थोड़ दे र के बाद एक छोट -सी ड गी आती दखाई दे ती है । उसम न पाल है , न पतवार और न

ू हए मःतूल। पदा फटा हआ है , त ते टटे है और एक ु ु , नाव म पानी भरा हआ ु

ू हई आदमी उसम से पानी उलीच रहा है । वह उससे कहती है , यह तो टट ु है , यह कैसे पार लगेगी? म लाह कहता है - तु हारे िलए यह भेजी गई है , आकर बैठ जाओ! वह एक

ण सोचती है - इसम बैठू ं या न बैठू ं ? अ त म

वह िन य करती है - बैठ जाऊं। यहां अकेली पड़ रहने से नाव म बैठ जाना फर भी अ छा है । कसी भयंकर ज तु के पेट म जाने से तो यह अ छा है क नद म डब ू जाऊं। कौन जाने, नाव पार पहंु च ह जाये। यह सोचकर वह

ूाण क मु ठ म िलए हए ु नाव पर बैठ जाती है । कुछ दे र तक नाव

डगमगाती हई ु चलती है , ले कन ूित ण उसम पानी भरता जाता है । वह भी

म लाह के साथ दोन हाथ से पानी उलीचने लगती है । यहां तक क उनके हाथ रह जाते ह, पर पानी बढ़ता ह चला जाता है , आ खर नाव च कर खाने लगती है , मालूम होती है - अब डबी तब वह कसी अ ँय सहारे के ू , अब डबी। ू

िलए दोन हाथ फैलाती है , नाव नीचे जाती है और उसके पैर उखड़ जाते ह। वह जोर से िच लाई और िच लाते ह उसक आंख खुल गई। दे खा, तो माता सामने खड़ उसका क धा पकड़कर हला रह थी।

बा

दो बू उदयभानुलाल का मकान बाजार बना हआ है । बरामदे म सुनार के ु हथौड़े और कमरे म दज क सुईयां चल रह ह। सामने नीम के

नीचे बढ़ई चारपाइयां बना रहा है । खपरै ल म हलवाई के िलए भ ठा खोदा गया है । मेहमान के िलए अलग एक मकान ठ क कया गया है । यह ूब ध कया जा रहा है क हरे क मेहमान के िलए एक-एक चारपाई, एक-एक कुस और एक-एक मेज हो। हर तीन मेहमान के िलए एक-एक कहार रखने क तजवीज हो रह है । अभी बारात आने म एक मह ने क दे र है , ले कन तैया रयां अभी से हो रह ह। बाराितय का ऐसा स कार

कया जाये



कसी को जबान हलाने का मौका न िमले। वे लोग भी याद कर क कसी के यहां बारात म गये थे। पूरा मकान बतन से भरा हआ है । चाय के सेट ु 6

ह, नाँते क तँत रयां, थाल, लोटे , िगलास। जो लोग िन य खाट पर पड़े हु का पीते रहते थे, बड़ त परता से काम म लगे हए ु ह। अपनी उपयोिगता िस

करने का ऐसा अ छा अवसर उ ह फर बहत दन के बाद िमलेगा। ु

जहां एक आदमी को जाना होता है , पांच दौड़ते ह। काम कम होता है , हु लड़ अिधक। जरा-जरा सी बात पर घ ट

तक- वतक होता है और अ त म

वक ल साहब को आकर िनणय करना पड़ता है । एक कहता है , यह घी खराब है , दसरा कहता है , इससे अ छा बाजार म िमल जाये तो टांग क राह से ू

िनकल जाऊं। तीसरा कहता है , इसम तो ह क आती है । चौथा कहता है ,

तु हार नाक ह सड़ गई है , तुम

या जानो घी कसे कहते ह। जब से यहां

आये हो, घी िमलने लगा है , नह ं तो घी के दशन भी न होते थे! इस पर तकरार बढ़ जाती है और वक ल साहब को झगड़ा चुकाना पड़ता है । रात के नौ बजे थे। उदयभानुलाल अ दर बैठे हए ु खच का तखमीना

लगा रहे थे। वह ूाय: रोज ह तखमीना लगते थे पर रोज ह उसम कुछन-कुछ प रवतन और प रवधन करना पड़ता था। सामने क याणी भ हे िसकोड़े हए ु खड़ थी। बाबू साहब ने बड़ दे र के बाद िसर उठाया और बोलेदस हजार से कम नह ं होता, ब क शायद और बढ़ जाये।

क याणी-दस दन म पांच से दस हजार हए। एक मह ने म तो शायद ु

एक लाख नौबत आ जाये।

उदयभानु- या क ं , जग हं साई भी तो अ छ

नह ं लगती। कोई

िशकायत हई ु तो लोग कहगे, नाम बड़े दशन थोड़े । फर जब वह मुझसे दहे ज

एक पाई नह ं लेते तो मेरा भी कत य है क मेहमान के आदर-स कार म कोई बात उठा न रखू।ं

क याणी- जब से ॄ ा ने सृ

रची, तब से आज तक कभी बाराितय

को कोई ूस न नह ं रख सकता। उ ह दोष िनकालने और िन दा करने का कोई-न-कोई अवसर िमल ह जाता है ।

जसे अपने घर सूखी रो टयां भी

मयःसर नह ं वह भी बारात म जाकर तानाशाह बन बैठता है । तेल खुशबूदार नह ं, साबुन टके सेर का जाने कहां से बटोर लाये, कहार बात नह ं सुनते, लालटे न धुआं दे ती ह, कुिसय म खटमल है , चारपाइयां ढ ली ह, जनवासे क जगह हवादार नह ं। ऐसी-ऐसी हजार िशकायत होती रहती ह। उ ह आप कहां तक रो कयेगा? अगर यह मौका न िमला, तो और कोई ऐब िनकाल िलये जायगे। भई, यह तेल तो रं डय के लगाने लायक है , हम तो सादा तेल 7

चा हए। जनाब ने यह साबुन नह ं भेजा है , अपनी अमीर क शान दखाई है , मानो हमने साबुन दे खा ह नह ं। ये कहार नह ं यमदत ू ह, जब दे खये िसर

पर सवार! लालटे न ऐसी भेजी ह क आंख चमकने लगती ह, अगर दस-पांच दन इस रोशनी म बैठना पड़े तो आंख फूट जाएं। जनवासा

या है , अभागे

का भा य है , जस पर चार तरफ से झ के आते रहते ह। म तो फर यह कहंू गी क बारितय के नखर का वचार ह छोड़ दो। उदयभानु- तो आ खर तुम मुझे

या करने को कहती हो?

क याणी-कह तो रह हंू , प का इरादा कर लो क म पांच हजार से

अिधक न खच क ं गा। घर म तो टका है नह ं, कज ह का भरोसा ठहरा, तो इतना कज

य ल क ज दगी म अदा न हो। आ खर मेरे और ब चे भी

तो ह, उनके िलए भी तो कुछ चा हए। उदयभानु- तो आज म मरा जाता हंू ?

क याणी- जीने-मरने का हाल कोई नह ं जानता। क याणी- इसम बगड़ने क तो कोई बात नह ं। मरना एक दन सभी को है । कोई यहां अमर होकर थोड़े ह आया है । आंख ब द कर लेने से तो होने-वाली बात न टलेगी। रोज आंख दे खती हंू , बाप का दे हा त हो जाता है , उसके ब चे गली-गली ठोकर खाते

फरते ह। आदमी ऐसा काम ह



करे ? उदयभानु न जलकर कहा- जो अब समझ लूं क मेरे मरने के दन िनकट आ गये, यह तु हार भ वंयवाणी है ! सुहाग से

य का जी ऊबते

नह ं सुना था, आज यह नई बात मालूम हई। रं डापे म भी कोई सुख होगा ु ह!

क याणी-तुमसे दिनया क ु

कोई भी बात कह

जाती है , तो जहर

उगलने लगते हो। इसिलए न क जानते हो, इसे कह ं टकना नह ं है , मेर ह रो टय पर पड़ हई ु है या और कुछ! जहां कोई बात कह , बस िसर हो गये,

मान म घर क ल ड हंू , मेरा केवल रोट और कपड़े का नाता है । जतना ह

म दबती हंू , तुम और भी दबाते हो। मु तखोर माल उड़ाय, कोई मुंह न खोले,

शराब-कबाब म

पये लुट, कोई जबान न हलाये। वे सारे कांटे मेरे ब च ह

के िलए तो बोये जा रहे है । उदयभानु लाल- तो म क याणी- तो

या तु हारा गुलाम हंू ?

या म तु हार ल ड हंू ? 8

उदयभानु लाल- ऐसे मद और ह गे, जो औरत के इशार पर नाचते ह। क याणी- तो ऐसी

य भी ह गी, जो मद क जूितयां सहा करती ह।

उदयभानु लाल- म कमाकर लाता हंू , जैसे चाहंू खच कर सकता हंू ।

कसी को बोलने का अिधकार नह ं।

क याणी- तो आप अपना घर संभिलये! ऐसे घर को मेरा दरू ह से

सलाम है , जहां मेर कोई पूछ नह ं घर म तु हारा जतना अिधकार है , उतना

ह मेरा भी। इससे जौ भर भी कम नह ं। अगर तुम अपने मन के राजा हो, तो म भी अपने मन को रानी हंू । तु हारा घर तु ह मुबारक रहे , मेरे िलए

पेट क रो टय क कमी नह ं है । तु हारे ब चे ह, मारो या

जलाओ। न

आंख से दे खग ूं ी, न पीड़ा होगी। आंख फूट ं, पीर गई! उदयभानु-

या तुम समझती हो क तुम न संभालेगी तो मेरा घर ह

न संभलेगा? म अकेले ऐसे-ऐसे दस घर संभाल सकता हंू ।

क याणी-कौन? अगर ‘आज के मह ने दन िम ट म न िमल जाये,

तो कहना कोई कहती थी! यह कहते-कहते क याणी का चेहरा तमतमा उठा, वह झमककर उठ और कमरे के

ार क ओर चली। वक ल साहब मुकदम म तो खूब मीन-मेख

िनकालते थे, ले कन

य के ःवभाव का उ ह कुछ य ह -सा

ान था। यह

एक ऐसी व ा है , जसम आदमी बूढ़ा होने पर भी कोरा रह जाता है । अगर वे अब भी नरम पड़ जाते और क याणी का हाथ पकड़कर बठा लेते, तो शायद वह

क जाती, ले कन आपसे यह तो हो न सका, उ टे चलते-चलते

एक और चरका दया।

बोल-मैके का घम ड होगा?

क याणी ने

ारा पर

क कर पित क ओर लाल-लाल नेऽ से दे खा

और बफरकर बोल- मैके वाले मेरे तकद र के साथी नह ं है और न म इतनी नीच हंू क उनक रो टय पर जा पडंू । उदयभानु-तब कहां जा रह हो?

क याणी-तुम यह पूछने वाले कौन होते हो? ई र क सृ

म असं य

ूा ूय के िलए जगह है , या मेरे ह िलए जगह नह ं है ? यह कहकर क याणी कमरे के बाहर िनकल गई। आंगन म आकर उसने एक बार आकाश क ओर दे खा, मानो तारागण को सा ी दे रह है क म इस घर म कतनी िनदयता से िनकाली जा रह हंू । रात के 9

यारह बज

गये थे। घर म स नाटा छा गया था, दोन बेट क चारपाई उसी के कमरे म रहती थी। वह अपने कमरे म आई, दे खा च िभानु सोया है , सबसे छोटा सूयभानु चारपाई पर उठ बैठा है । माता को दे खते ह वह बोला-तुम तहां दई तीं अ मां? क याणी दरू ह से खड़े -खड़े बोली- कह ं तो नह ं बेटा, तु हारे बाबूजी

के पास गई थी।

सूय-तुम तली दई, मुधे अतेले दर लदता था। तुम

बताओ?

य तली दई तीं,

यह कहकर ब चे ने गोद म चढ़ने के िलए दोन हाथ फैला

दये।

क याणी अब अपने को न रोक सक । मातृ-ःनेह के सुधा-ूवाह से उसका संत

दय प र ला वत हो गया।

मुरझा गये थे,

दय के कोमल पौधे, जो बोध के ताप से

फर हरे हो गये। आंख सजल हो गई। उसने ब चे को गोद

म उठा िलया और छाती से लगाकर बोली-तुमने पुकार

य न िलया, बेटा?

सूय-पुतालता तो ता, तुम थुनती न तीं, बताओ अब तो कबी न दाओगी। क याणी-नह ं भैया, अब नह ं जाऊंगी। यह कहकर क याणी सूयभानु को लेकर चारपाई पर लेट । मां के

दय

से िलपटते ह बालक िन:शंक होकर सो गया, क याणी के मन म संक पवक प होने लगे, पित क बात याद आतीं तो मन होता-घर को ितलांजिल दे कर चली जाऊं, ले कन ब च का मुंह दे खती, तो वास य से िच

गिगि हो

जाता। ब च को कस पर छोड़कर जाऊं? मेरे इन लाल को कौन पालेगा, ये

कसके होकर रहगे? कौन ूात:काल इ ह दध ू और हलवा खलायेगा, कौन

इनक नींद सोयेगा, इनक नींद जागेगा? बेचारे कौड़ के तीन हो जायगे। नह ं यारो, म तु ह छोड़कर नह ं जाऊंगी। तु हारे िलए सब कुछ सह लूंगी। िनरादर-अपमान, जली-कट , खोट -खर , घुड़क - झड़क

सब

तु हारे

िलए

सहंू गी।

क याणी तो ब चे को लेकर लेट , पर बाबू साहब को नींद न आई

उ ह चोट करनेवाली बात बड़ मु ँकल से भूलती थी। उफ, यह िमजाज! मान म ह इनक

ी हंू । बात मुंह से िनकालनी मु ँकल है । अब म इनका

गुलाम होकर रहंू । घर म अकेली यह रह और बाक

जतने अपने बेगाने ह,

सब िनकाल दये जाय। जला करती ह। मनाती ह क यह कसी तरह मर, 10

तो म अकेली आराम क ं । दल क बात मुंह से िनकल ह आती है , चाहे कोई कतना ह िछपाये। कई दन से दे ख रहा हंू ऐसी ह जली-कट सुनाया

करती ह। मैके का घम ड होगा, ले कन वहां कोई भी न पूछेगा, अभी सब

आवभगत करते ह। जब जाकर िसर पड़ जायगी तो आटे -दाल का भाव मालूम हो जायेगा। रोती हई ु जायगी। वाह रे घम ड! सोचती ह-म ह यह गृहःथी चलाती हंू । अभी चार

दन को कह ं चला जाऊं, तो मालूम हो

जायेगा, सार शेखी कर कर हो जायेगा। एक बार इनका घम ड तोड़ ह दं ।ू

जरा वैध य का मजा भी चखा दं ।ू न जाने इनक

ह मत कैसे पड़ती है क

मुझे य कोसने लगत ह। मालूम होता है , ूेम इ ह छू नह ं गया या समझती

ह, यह घर से इतना िचमटा हआ है ु

क इसे चाहे

जतना कोसूं, टलने का

नाम न लेगा। यह बात है , पर यहां संसार से िचमटनेवाले जीव नह ं ह! जह नुम म जाये यह घर, जहां ऐसे ूा णय से पाला पड़े । घर है या नरक?

आदमी बाहर से थका-मांदा आता है , तो उसे घर म आराम िमलता है । यहां आराम के बदले कोसने सुनने पड़ते ह। मेर मृ यु के िलए ोत रखे जाते ह। यह है पचीस वष के दा प य जीवन का अ त! बस, चल ह दं ।ू जब दे ख

लूंगा इनका सारा घम ड धूल म िमल गया और िमजाज ठ डा हो गया, तो लौट आऊंगा। चार-पांच दन काफ ह गे। लो, तुम भी याद करोगी कसी से पाला पड़ा था। यह सोचते हए ु बाबू साहब उठे , रे शमी चादर गले म डाली, कुछ

पये

िलये, अपना काड िनकालकर दसरे कुत क जेब म रखा, छड़ उठाई और ू

चुपके से बाहर िनकले। सब नौकर नींद म मःत थे। कु ा आहट पाकर च क

पड़ा और उनके साथ हो िलया।

पर यह कौन जानता था क यह सार लीला विध के हाथ रची जा रह है । जीवन-रं गशाला का वह िनदय सूऽधार कसी अगम गु

ःथान पर

बैठा हआ अपनी ज टल बूर ब ड़ा दखा रहा है । यह कौन जानता था क ु

नकल असल होने जा रह है , अिभनय स य का

प महण करने वाला है ।

िनशा ने इ द ू को पराःत करके अपना साॆा य ःथा पत कर िलया

था। उसक पैशािचक सेना ने ूकृ ित पर आतंक जमा रखा था। सिवृ यां

मुंह िछपाये पड़ थीं और कुवृ यां वजय-गव से इठलाती फरती थीं। वन म व यज तु िशकार क

खोज म

वचार रहे थे और नगर

गिलय म मंडराते फरते थे। 11

म नर- पशाच

बाबू उदयभानुलाल लपके हए ु गंगा क ओर चले जा रहे थे। उ ह ने

अपना कु ा घाट के कनारे रखकर पांच दन के िलए िमजापुर चले जाने का िन य कया था। उनके कपड़े दे खकर लोग को डब ू जाने का व ास हो

जायेगा, काड कुत क जेब म था। पता लगाने म कोई द कत न हो सकती थी। दम-के-दम म सारे शहर म खबर मशहर ू हो जायेगी। आठ बजते-बजते

तो मेरे

ार पर सारा शहर जमा हो जायेगा, तब दे खूं, दे वी जी

या करती ह?

यह सोचते हए ु बाबू साहब गिलय म चले जा रहे थे, सहसा उ ह

अपने पीछे

कसी दसरे आदमी के आने क आहट िमली, समझे कोई होगा। ू

आगे बढ़े , ले कन जस गली म वह मुड़ते उसी तरफ यह आदमी भी मुड़ता था। तब बाबू साहब को आशंका हई ु क यह आदमी मेरा पीछा कर रहा है ।

ऐसा आभास हआ ु

क इसक

नीयत साफ नह ं है । उ ह ने तुर त जेबी

लालटे न िनकाली और उसके ूकाश म उस आदमी को दे खा। एक ब रं मनुंय क धे पर लाठ रखे चला आता था। बाबू साहब उसे दे खते ह च क पड़े । यह शहर का छटा हआ बदमाश था। तीन साल पहले उस पर डाके का ु अिभयोग चला था। उदयभानु ने उस मुकदमे म सरकार क ओर से पैरवी

क थी और इस बदमाश को तीन साल क सजा दलाई थी। सभी से वह

ू इनके खून का यासा हो रहा था। कल ह वह छटकर आया था। आज दै वात ्

साहब अकेले रात को दखाई दये, तो उसने सोचा यह इनसे दाव चुकाने का अ छा मौका है । ऐसा मौका शायद ह

फर कभी िमले। तुर त पीछे हो िलया

और वार करने क घात ह म था क बाबू साहब ने जेबी लालटे न जलाई। बदमाश जरा ठठककर बोला- य बाबूजी पहचानते हो? म हंू मतई। बाबू साहब ने डपटकर कहा- तुम मेरे पछे - पछे

मतई-

य आरहे हो?

य , कसी को राःता चलने क मनाह है ? यह गली तु हारे

बाप क है ? बाबू साहब जवानी म कुँती लड़े थे, अब भी

-पु

आदमी थे। दल

के भी क चे न थे। छड़ संभालकर बोले-अभी शायद मन नह ं भरा। अबक सात साल को जाओगे। मतई-म सात साल को जाऊंगा या चौदह साल को, पर तु ह ज ा न छोडंू गा। हां, अगर तुम मेरे पैर पर िगरकर कसम खाओ क अब कसी को

सजा न कराऊंगा, तो छोड़ दं ।ू बोलो मंजरू है ? उदयभानु-तेर शामत तो नह ं आई? 12

मतई-शामत मेर नह ं आई, तु हार आई है । बोलो खाते हो कसमएक! उदयभानु-तुम हटते हो क म पुिलसमैन को बुलाऊं। मतई-दो! उदयभानु-(गरजकर) हट जा बादशाह, सामने से! मतई-तीन! मुंह से ‘तीन’ श द िनकालते ह बाबू साहब के िसर पर लाठ का ऐसा

तुला हाथ पड़ा

क वह अचेत होकर जमीन पर िगर पड़े । मुंह से केवल

इतना ह िनकला-हाय! मार डाला! मतई ने समीप आकर दे खा, तो िसर फट गया था और खून क घार िनकल रह थी। नाड़ का कह ं पता न था। समझ गया क काम तमाम हो गया। उसने कलाई से सोने क घड़ खोल ली, कुत से सोने के बटन िनकाल िलये, उं गली से अंगठ ू उतार और अपनी राह चला गया, मानो कुछ हआ ह ु नह ं। हां, इतनी दया क

बेचारे

क लाश राःते से घसीटकर कनारे डाल द । हाय,

या सोचकर चले थे,

दिनया म कोई वःतु है ? ु

या हो गया! जीवन, तुमसे

यादा असार भी

या वह उस द पक क भांित ह

णभंगरु नह ं है ,

जो हवा के एक झ के से बुझ जाता है ! पानी के एक बुलबुले को दे खते हो, ू ले कन उसे टटते भी कुछ दे र लगती है , जीवन म उतना सार भी नह ं। सांस

का भरोसा ह

या और इसी न रता पर हम अिभलाषाओं के कतने वशाल

भवन बनाते ह! नह ं जानते, नीचे जानेवाली सांस ऊपर आयेगी या नह ं, पर सोचते इतनी दरू क ह, मानो हम अमर ह। तीन



वाह का वलाप और अनाथ का रोना सुनाकर हम पाठक का दल न दखायगे । ु

जसके ऊपर पड़ती है , वह रोता है , वलाप करता है ,

पछाड़ खाता है । यह कोई नयी बात नह ं। हां, अगर आप चाह तो क याणी क उस घोर मानिसक यातना का अनुमान कर सकते ह, जो उसे इस वचार से हो रह थी क म ह अपने ूाणाधार क घाितका हंू । वे वा य जो बोध

के आवेश म उसके असंयत मुख से िनकले थे, अब उसके

दय को वाण क

भांित छे द रहे थे। अगर पित ने उसक गोद म कराह-कराहकर ूाण- याग 13

दए होते, तो उसे संतोष होता क मने उनके ूित अपने कत य का पालन कया। शोकाकुल

दय को इससे

यादा सा

वना और कसी बात से नह ं

होती। उसे इस वचार से कतना संतोष होता क मेरे ःवामी मुझसे ूस न गये, अ तम समय तक उनके

दय म मेरा ूेम बना रहा। क याणी को यह

स तोष न था। वह सोचती थी-हा! मेर पचीस बरस क तपःया िनंफल हो गई। म अ त समय अपने ूाणपित के ूेम के वंिचत हो गयी। अगर मने उ ह ऐसे कठोर श द न कहे होते, तो वह कदा प रात को घर से न जाते।न जाने उनके मन म

या- या वचार आये ह ? उनके मनोभाव क क पना

करके और अपने अपराध को बढ़ा-बढ़ाकर वह आठ पहर कुढ़ती रहती थी। जन ब च पर वह ूाण दे ती थी, अब उनक सूरत से िचढ़ती। इ ह ं के कारण मुझे अपने ःवामी से रार मोल लेनी पड़ । यह मेरे शऽु ह। जहां आठ पहर कचहर -सी लगी रहती थी, वहां अब खाक उड़ती है । वह मेला ह उठ गया। जब खलानेवाला ह न रहा, तो खानेवाले कैसे पड़े रहते। धीरे -धीरे एक मह ने के अ दर सभी भांजे-भतीजे बदा हो गये। जनका दावा था क हम पानी क जगह खून बहानेवाल म ह, वे ऐसा सरपट भागे

क पीछे

फरकर भी न दे खा। दिनया ह दसर हो गयी। जन ब च को दे खकर यार ु ू

करने को जी चाहता था उनके चेहरे पर अब म खयां िभनिभनाती थीं। न जाने वह कांित कहां चली गई? शोक का आवेग कम हआ ु , तो िनमला के ववाह क समःया उप ःथत

हई। कुछ लोग क सलाह हई क ववाह इस साल रोक दया जाये, ले कन ु ु

क याणी ने कहा- इतनी तैय रय के बाद ववाह को रोक दे ने से सब कयाधरा िम ट

म िमल जायेगा और दसरे साल ू

फर यह

तैया रयां करनी

पड़गी, जसक कोई आशा नह ं। ववाह कर ह दे ना अ छा है । कुछ लेनादे ना तो है ह नह ं। बाराितय के सेवा-स कार का काफ सामान हो चुका है , वल ब करने म हािन-ह -हािन है । अतएव महाशय भालच ि को शक-सूचना के साथ यह स दे श भी भेज दया गया। क याणी ने अपने पऽ म िलखाइस अनािथनी पर दया क जए और डबती हई ू ु नाव को पार लगाइये।

ःवामीजी के मन म बड़ -बड़ कामनाएं थीं, कंतु ई र को कुछ और ह मंजरू था। अब मेर लाज आपके हाथ है । क या आपक हो चुक । म लोग

के सेवा-स कार करने को अपना सौभा य समझती हंू , ले कन य द इसम 14

कुछ कमी हो, कुछ ऽु ट पड़े , तो मेर दशा का वचार करके

मा क जयेगा।

मुझे व ास है क आप इस अनािथनी क िन दा न होने दगे, आ द। क याणी ने यह पऽ डाक से न भेजा, ब क पुरो हत से कहा-आपको क

तो होगा, पर आप ःवयं जाकर यह पऽ द जए और मेर ओर से बहत ु

वनय के साथ क हयेगा क जतने कम आदमी आय, उतना ह अ छा। यहां कोई ूब ध करनेवाला नह ं है । पुरो हत मोटे राम यह स दे श लेकर तीसरे दन लखनऊ जा पहंु चे।

सं या का समय था। बाबू भालच ि द वानखाने के सामने आरामकुस

पर नंग-धड़ं ग लेटे हए ु हु का पी रहे थे। बहत ु ह ःथूल, ऊंचे कद के आदमी थे। ऐसा मालूम होता था

क काला दे व है या कोई ह शी अृ का से

पकड़कर आया है । िसर से पैर तक एक ह रं ग था-काला। चेहरा इतना ःयाह था क मालूम न होता था क माथे का अंत कहां है िसर का आर भ कहां। बस, कोयले क एक सजीव मूित थी। आपको गम बहत ु सताती थी। दो

आदमी खड़े पंखा झल रहे थे, उस पर भी पसीने का तार बंधा हआ था। आप ु

आबकार के वभाग म एक ऊंचे ओहदे पर थे। पांच सौ था। ठे केदार

से खूब

पये वेतन िमलता

र त लेते थे। ठे केदार शराब के नाम पानी बेच,

चौबीस घंटे दकान खुली रख, आपको केवल खुश रखना काफ था। सारा ु

कानून आपक खुशी थी। इतनी भयंकर मूित थी क चांदनी रात म लोग उ ह दे ख कर सहसा च क पड़ते थे-बालक और

यां ह नह ं, पु ष तक

सहम जाते थे। चांदनी रात इसिलए कहा गया क अंधेर रात म तो उ ह कोई दे ख ह न सकता था-ँयामलता अ धकार म

वलीन हो जाती थी।

केवल आंख का रं ग लाल था। जैसे प का मुसलमान पांच बार नमाज पढ़ता

है , वैसे ह आप भी पांच बार शराब पीते थे, मु त क शराब तो काजी को हलाल है , फर आप तो शराब के अफसर ह थे, जतनी चाह पय, कोई हाथ पकड़ने वाला न था। जब

यास लगती शराब पी लेते । जैसे कुछ रं ग म

परःपर सहानुभूित है , उसी तरह कुछ रं ग म परःपर वरोध है । लािलमा के संयोग से कािलमा और भी भयंकर हो जाती है । बाबू साहब ने पं डतजी को दे खते ह कुस से उठकर कहा-अ खाह! आप ह? आइए-आइए। ध य भाग! अरे कोई है । कहां चले गये सब-के-सब, झगडू , गुरद न, छकौड़ , भवानी, रामगुलाम कोई है ?

या सब-के-सब मर गये!

चलो रामगुलाम, भवानी, छकौड़ , गुरद न, झगड़। ू कोई नह ं बोलता, सब मर 15

गये! दजन-भर आदमी ह, पर मौके पर एक क भी सूरत नह ं नजर आती, न जाने सब कहां गायब हो जाते ह। आपके वाःते कुस लाओ। बाबू साहब ने ये पांच नाम कई बार दहराये , ले कन यह न हआ क ु ु

पंखा झलनेवाले दोन आदिमय म से कसी को कुस लाने को भेज दे ते। तीन-चार िमनट के बाद एक काना आदमी खांसता हआ आकर बोला-सरकार, ु

ईतना क नौकर हमार क न न होई ! कहां तक उधार-बाढ़ लै-लै खाई मांगत-मांगत थेथर होय गयेना।

भाल- बको मत, जाकर कुस लाओ। जब कोई काम करने क कहा

गया, तो रोने लगता है । क हए प डतजी, वहां सब कुशल है ? मोटे राम- या कुशल कहंू बाबूजी, अब कुशल कहां? सारा घर िम ट म

िमल गया।

ू इतने म कहार ने एक टटा हआ चीड़ का स दक ू लाकर रख दया ु

और बोला-कस -मेज हमारे उठाये नाह ं उठत है ।

ू न जाये और पं डतजी शमाते हए ु डरते-डरते उस पर बैठे क कह ं टट

क याणी का पऽ बाबू साहब के हाथ म रख दया।

भाल-अब और कैसे िम ट म िमलेगा? इससे बड़ और कौन वप पड़े गी? बाबू उदयभानु लाल से मेर पुरानी दोःती थी। आदमी नह ं, ह रा था! या दल था, या ह मत थी, (आंख प छकर) मेरा तो जैसे दा हना हाथ ह कट गया। व ास मािनए, जबसे यह खबर सुनी है , आंख म अंधेरा-सा छा गया है । खाने बैठता हंू , तो कौर मुंह म नह ं जाता। उनक सूरत आंख के

सामने खड़ रहती है । मुंह जूठा करके उठ जाता हंू । कसी काम म दल नह ं

लगता। भाई के मरने का रं ज भी इससे कम ह होता है । आदमी नह ं, ह रा था! मोटे - सरकार, नगर म अब ऐसा कोई रईस नह ं रहा। भाल- म खूब जानता हंू , पं डतजी, आप मुझसे

या कहते ह। ऐसा

आदमी लाख-दो-लाख म एक होता है । जतना म उनको जानता था, उतना दसरा नह ं जान सकता। दो-ह -तीन बार क मुलाकात म उनका भ ू

हो

गया और मरने दम तक रहंू गा। आप समिधन साहब से कह द जएगा, मुझे दली रं ज है ।

मोटे -आपसे ऐसी ह आशा थी! आज-जैसे स जन के दशन दलभ ह। ु

नह ं तो आज कौन बना दहे ज के पुऽ का ववाह करता है । 16

भाल-महाराज, दे हज क

बातचीत ऐसे स यवाद

जाती। उनसे स ब ध हो जाना ह लाख

पु ष

से नह ं क

पये के बराबर है । म इसी को

अपना अहोभा य समझता हंू । हा! कतनी उदार आम मा थी।

पये को तो

उ ह ने कुछ समझा ह नह ं, ितनके के बराबर भी परवाह नह ं क । बुरा रवाज है , बेहद बुरा! मेरा बस चले, तो दहे ज लेनेवाल और दहे ज दे नेवाल दोन ह को गोली मार दं ,ू हां साहब, साफ गोली मार दं ,ू फर चाहे फांसी ह

य न हो जाय! पूछो, आप लड़के का ववाह करते ह क उसे बेचते ह?

अगर आपको लड़के के शाद म दल खोलकर खच करने का अरमान है , तो शौक के खच क जए, ले कन जो कुछ क जए, अपने बल पर। यह

या क

क या के पता का गला रे ितए। नीचता है , घोर नीचता! मेरा बस चले, तो इन पा जय को गोली मार दं ।ू

मोटे - ध य हो सरकार! भगवान ् ने आपको बड़ बु

द है । यह धम

का ूताप है । माल कन क इ छा है क ववाह का मुहू त वह रहे और तो

उ ह ने सार बात पऽ म िलख द ह। बस, अब आप ह उबार तो हम उबर

सकते ह। इस तरह तो बारात म जतने स जन आयगे, उनक सेवा-स कार हम करगे ह , ले कन प र ःथित अब बहत ु बदल गयी है सरकार, कोई करनेधरनेवाला नह ं है । बस ऐसी बात क जए

क वक ल साहब के नाम पर

ब टा न लगे। भालच ि एक िमनट तक आंख ब द कये बैठे रहे , फर एक ल बी सांस खींच कर बोले-ई र को मंजरू ह न था क वह लआमी मेरे घर आती, नह ं तो

या यह वळ िगरता? सारे मनसूबे खाक म िमल गये। फूला न

समाता था क वह शुभ-अवसर िनकट आ रहा है , पर

या जानता था क

ई र के दरबार म कुछ और ष य ऽ रचा जा रहा है । मरनेवाले क याद ह लाने के िलए काफ है । उसे दे खकर तो ज म और भी हरा जो जायेगा। उस दशा म न जाने

या कर बैठू ं । इसे गुण सम झए, चाहे दोष क जससे

एक बार मेर घिन ता हो गयी, फर उसक याद िच तो खैर इतना ह है

से नह ं उतरती। अभी

क उनक सूरत आंख के सामने नाचती रहती है ,

ले कन य द वह क या घर म आ गयी, तब मेरा ज दा रहना क ठन हो जायेगा। सच मािनए, रोते-रोते मेर आंख फूट जायगी। जानता हंू , रोना-धोना यथ है । जो मर गया वह लौटकर नह ं आ सकता। सॄ करने के िसवाय 17

और कोई उपाय नह ं है , ले कन दल से मजबूर हंू । उस अनाथ बािलका को

दे खकर मेरा कलेजा फट जायेगा।

मोटे - ऐसा न क हए सरकार! वक ल साहब नह ं तो

या, आप तो ह।

अब आप ह उसके पता-तु य ह। वह अब वक ल साहब क क या नह ं, आपक क या है । आपके

दय के भाव तो कोई जानता नह ं, लोग समझगे,

वक ल साहब का दे हा त हो जाने के कारण आप अपने वचन से फर गये। इसम आपक

बदनामी है । िच

को समझाइए और हं स-खुशी क या का

पा णमहण करा ली जए। हाथी मरे तो नौ लाख का। लाख वप

पड़ है ,

ले कन माल कन आप लोग क सेवा-स कार करने म कोई बात न उठा रखगी। बाबू साहब समझ गये नह ं, वरन

क पं डत मोटे राम कोरे पोथी के ह पं डत

यवहार-नीित म भी चतुर ह। बोले-पं डतजी, हलफ से कहता हंू ,

मुझे उस लड़क से जतना ूेम है , उतना अपनी लड़क से भी नह ं है , ले कन जब ई र को मंजरू नह ं है , तो मेरा

या बस है ? वह मृ यु एक ूकार क

अमंगल सूचना है , जो वधाता क ओर से हम िमली है । यह कसी आनेवाली मुसीबत क

आकाशवाणी है

वधाता ःप

र ित से कह रहा है

क यह

ववाह मंगलमय न होगा। ऐसी दशा म आप ह सोिचये, यह संयोग कहां तक उिचत है । आप तो व ान आदमी ह। सोिचए, जस काम का आर भ ह अमंगल से हो, उसका अंत अमंगलमय हो सकता है ? नह ं, जानबूझकर म खी नह ं िनगली जाती। समिधन साहब को समझाकर कह द जएगा, म उनक आ ापालन करने को तैयार हंू , ले कन इसका प रणाम अ छा न होगा। ःवाथ

के वंश म होकर म अपने परम िमऽ क स तान के साथ यह अ याय नह ं कर सकता। इस तक ने प डतजी को िन

र कर दया। वाद ने यह तीर छोड़ा

था, जसक उनके पास कोई काट न थी। शऽु ने उ ह ं के हिथयार से उन पर वार कया था और वह उसका ूितकार न कर सकते थे। वह अभी कोई जवाब सोच ह रहे थे, क बाबू साहब ने फर नौकर को पुकारना शु

कया-

अरे , तुम सब फर गायब हो गये- झगडू , छकौड़ , भवानी, गु द न, रामगुलाम! एक भी नह ं बोलता, सब-के-सब मर गये। पं डतजी के वाःते पानी-वानी क

फब है ? ना जाने इन सब को कोई कहां तक समझये। अ ल छू तक नह ं

गयी। दे ख रहे ह क एक महाशय दरू से थके-मांदे चले आ रहे ह, पर कसी 18

को जरा भी परवाह नह ं। लाओं, पानी-वानी रखो। प डतजी, आपके िलए शबत बनवाऊं या फलाहार िमठाई मंगवा दं ।ू

मोटे रामजी िमठाइय के वषय म कसी तरह का ब धन न ःवीकार

करते थे। उनका िस ा त था क घृत से सभी वःतुएं प वऽ हो जाती ह। रसगु ले और बेसन के ल डू उ ह बहत ूय थे, पर शबत से उ ह ु थी। पानी से पेट भरना उनके िनयम के व

पीने क तो मुझे आदत नह ं, िमठाई खा लूंगा।

िच न

था। सकुचाते हए ु बोले-शबत

भाल- फलाहार न?

मोटे - इसका मुझे कोई वचार नह ं।

ू -छात सब ढकोसला है । म ःवयं नह ं भाल- है तो यह बात। छत मानता। अरे , अभी तक कोई नह ं आया? छकौड़ , भवानी, गु द न, रामगुलाम, कोई तो बोले! अबक भी वह बूढ़ा कहार खांसता हआ आकर खड़ा हो गया और ु

बोला-सरकार, मोर तलब दै द न जाय। ऐसी नौकर मोसे न होई। कहां लो दौर दौरत-दौरत गोड़ पराय लागत है ।

भाल-काम कुछ करो या न करो, पर तलब प हले च हए! दन भर पड़े पड़े खांसा करो, तलब तो तु हार चढ़ रह है । जाकर बाजार से एक आने क ताजी िमठाई ला। दौड़ता हआ जा। ु

कहार को यह हु म दे कर बाबू साहब घर म गये और

ी से बोले-वहां

से एक पं डतजी आये ह। यह खत लाये ह, जरा पढ़ो तो।

प ी जी का नाम रं गीलीबाई था। गोरे रं ग क ूस न-मुख म हला थीं।

प और यौवन उनसे वदा हो रहे थे, पर कसी ूेमी िमऽ क भांित मचलमचल कर तीस साल तक जसके गले से लगे रहे , उसे छोड़ते न बनता था। रं गीलीबाई बैठ पान लगा रह थीं। बोली-कह दया न क हम वहां याह करना मंजरू नह ं। भाल-हां, कह तो दया, पर मारे संकोच के मुंह से श द न िनकलता था। झूठ-मूठ का होला करना पड़ता। रं गीली-साफ बात करने म संकोच

या? हमार इ छा है , नह ं करते।

कसी का कुछ िलया तो नह ं है ? जब दसर जगह दस हजार नगद िमल रहे ू

ह; तो वहां

य न क ं ? उनक लड़क कोई सोने क थोड़े ह है । वक ल 19

साहब जीते होते तो शरमाते-शमाते प िह-बीस हजार दे मरते। अब वहां या रखा है ? भाल- एक दफा जबान दे कर मुकर जाना अ छ बात नह ं। कोई मुख से कुछ न कह, पर बदनामी हए बना नह ं रहती। मगर तु हार ु मजबूर हंू ।

रं गीलीबाई ने पान खाकर खत खोला और पढ़ने लगीं।

जद से ह द

का

अ यास बाबू साहब को तो ब कुल न था और य प रं गीलीबाई भी शायद

ह कभी कताब पढ़ती ह , पर खत-वत पढ़ लेती थीं। पहली ह पांित पढ़कर उनक आंख सजल हो गयीं और पऽ समा

कया। तो उनक आंख से आंसू

बह रहे थे-एक-एक श द क णा के रस म डबा हआ था। एक-एक अ र से ू ु

द नता टपक रह थी। रं गीलीबाई क कठोरता प थर क नह ं, लाख क थी,

जो एक ह आंच से पघल जाती है । क याणी के क णो पादक श द ने उनके ःवाथ-मं डत

दय को

पघला

दया।

ॄा ण बैठा है न?

ं धे हए ु कंठ से बोली-अभी

भालच ि प ी के आंसुओं को दे ख-दे खकर सूखे जाते थे। अपने ऊपर झ ला रहे थे क नाहक मने यह खत इसे दखाया। इसक ज रत

या थी?

इतनी बड़ भूल उनसे कभी न हई ु थी। सं द ध भाव से बोले-शायद बैठा हो,

मने तो जाने को कह दया था। रं गीली ने खड़क से झांककर दे खा। पं डत

मोटे राम जी बगुले क तरह थे। लालसा म

यान लगाये बाजार के राःते क ओर ताक रहे

यम होकर कभी यह पहलू बदलते, कभी वह पहलू। ‘एक

आने क िमठाई’ ने तो आशा क कमर ह

तोड़ द थी, उसम भी यह

वल ब, दा ण दशा थी। उ ह बैठे दे खकर रं गीलीबाई बोली-है -है अभी है ,

जाकर कह दो, हम ववाह करगे, ज र करगे। बेचार बड़ मुसीबत म है । भाल- तुम कभी-कभी ब च क -सी बात करने लगती हो, अभी उससे कह आया हंू

क मुझे ववाह करना मंजरू नह ं। एक ल बी-चौड़ भूिमका

बांधनी पड़ । अब जाकर यह संदेश कहंू गा, तो वह अपने दल म

या कहे गा,

जरा सोचो तो? यह शाद - ववाह का मामला है । लड़क का खेल नह ं क

अभी एक बात तय क , अभी पलट गये। भले आदमी क द लगी हई। ु

20

बात न हई ु ,

रं गीली- अ छा, तुम अपने मुंह से न कहो, उस ॄा ण को मेरे पास भेज दो। म इस तरह समझा दं ग ू ी क तु हार बात भी रह जाये और मेर भी। इसम तो तु ह कोई आप

नह ं है ।

भाल-तुम अपने िसवा सार दिनया को नादान समझती हो। तुम कहो ु

या म कहंू , बात एक ह है । जो बात तय हो गयी, वह हो गई, अब म उसे

फर नह ं उठाना चाहता। तु ह ं तो बार-बार कहती थीं क म वहां न क ं गी।

तु हारे ह कारण मुझे अपनी बात खोनी पड़ । अब तुम फर रं ग बदलती

हो। यह तो मेर छाती पर मूंग दलना है । आ खर तु ह कुछ तो मेरे मानअपमान का वचार करना चा हए। रं गीली- तो मुझे

या मालूम था क वधवा क दशा इतनी ह न हो

गया है ? तु ह ं ने तो कहा था क उसने पित क सार स प

िछपा रखी है

और अपनी गर बी का ढ ग रचकर काम िनकालना चाहती है । एक ह छं ट औरत है । तुमने जो कहा, वह मने मान िलया। भलाई करके बुराई करने म तो ल जा और संकोच है । बुराई करके भलाई करने मे कोई संकोच नह ं। अगर तुम ‘हां’ कर आये होते और म ‘नह ं’ करने को कहती, तो तु हारा संकोच उिचत था। ‘नह ं’ करने के बाद ‘हां’ करने म तो अपना बड़ पन है । भाल- तु ह बड़ पन मालूम होता हो, मुझे तो लु चापन ह मालूम होता है । फर तुमने यह कैसे मान िलया क मने वक लाइन म वषय म जो बात कह थी, वह झूठ थी!

या वह पऽ दे खकर? तुम जैसी खुद सरल हो,

वैसे ह दसरे को भी सरल समझती हो। ू

रं गीली- इस पऽ म बनावट नह ं मालूम होती। बनावट क बात दल

म चुभती नह ं। उसम बनावट क ग ध अवँय रहती है ।

भाल- बनावट क बात तो ऐसी चुभती है क स ची बात उसके सामने ब कुल फ क मालूम होती है । यह कःसे-कहािनयां िलखने वाले

जनक

कताब पढ़-पढ़कर तुम घ ट रोती हो, या स ची बात िलखते है ? सरासर झूठ का तूमार बांधते ह। यह भी एक कला है । रं गीली-

य जी, तुम मुझसे भी उड़ते हो! दाई से पेट िछपाते हो? म

तु हार बात मान जाती हंू , तो तुम समझते हो, इसे चकमा दया। मगर म तु हार एक-एक नस पहचानती हंू । तुम अपना ऐब मेरे िसर मढ़कर खुद

बेदाग बचना चहाते हो। बोलो, कुछ झूठ कहती हंू , जब वक ल साहब जीते थे, जो तुमने सोचा था क ठहराव क ज रत ह कया है , वे खुद 21



जतना

उिचत समेझगे दगे, ब क बना ठहराव के और भी

यादा िमलने क आशा

होगी। अब जो वक ल साहब का दे हा त हो गया, तो तरह-तरह के ह लेहवाले करने लगे। यह भलमनसी नह ं, छोटापन है , इसका इलजाम भी तु हारे िसर है । मै। अब शाद - याह के नगीच न जाऊंगी। तु हार जैसी इ छा हो, करो। ढ गी आदिमय से मुझे िचढ़ है । जो बात करो, सफाई से करो, बुरा हो या अ छा। ‘हाथी के दांत खाने के और दखाने के और’ वाली नीित पर चलना तु ह शोभा नह ं दे ता। बोला आब भी वहां शाद करते हो या नह ं?

भाला- जब म बेईमान, दगाबाज और झूठा ठहरा, तो मुझसे पूछना ह

या! मगर खूब पहचानती हो आदिमय को!

या कहना है , तु हार इस

सूझ-बूझ क , बलैया ले ल! रं गीली- हो बड़े हयादार, ब भी नह ं शरमाते। ईमान से कहा, मने बात ताड़ ली क नह ं? भाल-अजी जाओ, वह दसर औरत होती ह जो मद को पहचानती ह। ू

अब तक म यह समझता था क औरत क

बड़ सूआम होती है , पर

आज यह व ास उठ गया और महा माओं ने औरत के वषय म जो त व क बाते कह है , उनको मानना पड़ा। रं गीली- जरा आईने म अपनी सूरत तो दे ख आओं, तु ह मेर कमस है । जरा दे ख लो, कतना झपे हए ु हो।

भाल- सच कहना, कतना झपा हआ हंू ? ु

रं गीली- इतना ह , जतना कोई भलामानस चोर चोर खुल जाने पर

झपता है ।

भाल- खैर, म झपा ह सह , पर शाद वहां न होगी।

रं गीली- मेर बला से, जहां चाहो करो।

य , भुवन से एक बार



नह ं पूछ लेते? भाल- अ छ बात है , उसी पर फैसला रहा। रं गीली- जरा भी इशारा न करना! भाल- अजी, म उसक तरफ ताकूंगा भी नह ं। संयोग से ठ क इसी व बिल

भुवनमोहन भी आ पहंु चा। ऐसे सु दर, सुडौल,

युवक कालेज म बहत ु कम दे खने म आते ह। ब कुल मां को पड़ा

था, वह गोरा-िच टा रं ग, वह पतले-पतले गुलाब क प ी के-से ओंठ, वह

चौड़ा, माथा, वह बड़ -बड़ आंख, ड ल-डौल बाप का-सा था। ऊंचा कोट, ॄीचेज, 22

टाई, बूट, है ट उस पर खूब ल रहे थे। हाथ म एक हाक - ःटक थी। चाल म जवानी का ग र था, आंख म आम मगौरव। रं गीली ने कहा-आज बड़ दे र लगाई तुमने? यह दे खो, तु हार ससुराल से यह खत आया है । तु हार सास ने िलखा है । साफ-साफ बतला दो, अभी सबेरा है । तु ह वहां शाद करना मंजरू है या नह ं? भुवन- शाद करनी तो चा हए अ मां, पर म क ं गा नह ं। रं गीली-

य?

भुवन- कह ं ऐसी जगह शाद करवाइये क खूब सह एक लाख का तो डौल हो। वहां अब नह ं, बु ढ़या के पास अब

पये िमल। और न

या रखा है ? वक ल साहब रहे ह

या होगा?

रं गीली- तु ह ऐसी बात मुंह से िनकालते शम नह ं आती? भुवन- इसम शम क कौन-सी बात है ?

पये कसे काटते ह? लाख

पये तो लाख ज म म भी न जमा कर पाऊंगा। इस साल पास भी हो गया, तो कम-से-कम पांच साल तक सौ-दो-सौ

पये से सूरत नजर न आयेगी। फर

पये मह ने कमाने लगूग ं ा। पांच-छ: तक पहंु चते-पहंु चते उॆ के

तीन भाग बीत जायगे।

पये जमा करने क नौबत ह न आयेगी। दिनया ु

का कुछ मजा न उठा सकूंग। कसी धनी क लड़क से शाद हो जाती, तो चैन से कटती। म

यादा नह ं चाहता, बस एक लाख हो या फर कोई ऐसी

जायदादवाली बेवा िमले, जसके एक ह लड़क हो। रं गीली- चाहे औरत कैसे ह िमले। भूवन- धन सारे ऐब को िछपा दे गा। मुझे वह गािलयां भी सुनाये, तो

भी चूं न क ं । दधा ु

गाय क लात कसे बुर मालूम होती है ?

बाबू साहब ने ूशंसा-सूचक भाव से कहा-हम उन लोग

सहानुभित है और द:ु खी है क ई र ने उ ह वप

के साथ

म डाला, ले कन बु

से

काम लेकर ह कोई िन य करना च हए। हम कतने ह फटे -हाल जाय, फर भी अ छ -खासी बारात हो जायेगी। वहां भोजन का भी ठकाना नह ं। िसवा इसके क लोग हं स और कोई नतीजा न िनकलेगा। रं गीली- तुम बाप-पूत दोन एक ह थैली के च टे -ब टे हो। दोन उस

ु फेरना चाहते हो। गर ब लड़क के गले पर छर भुवन-जो गर ब है , उसे गर ब अपनी है िसयत से बढ़कर.....। 23



के यहां स ब ध करना च हए।

रं गीली- चुप भी रह, आया है वहां से है िसयत लेकर। तुम कहां के ध ना-सेठ हो? कोई आदमी

ारा पर आ जाये, तो एक लोटे पानी को तरस

जाये। बड़े है िसयतवाले बने हो! यह कहकर रं गीली वहां से उठकर रसोई का ूब ध करने चली गयी। भुवनमोहन मुःकराता हआ अपने कमरे म चला गया और बाबू साहब ु

मूछ पर ताव दे ते हए ु बाहर आये क मोटे राम को अ तम िन य सुना द।

पर उनका कह ं पता न था।

मोटे रामजी कुछ दे र तक तो कहार क राह दे खते रहे , जब उसके आने

म बहत ु दे र हई ु , तो उनसे बैठा न गया। सोचा यहां बैठे-बैठे काम न चलेगा, कुछ उ ोग करना चा हए। भा य के भरोसे यहां अड़

कये बैठे रह, तो भूख

मर जायगे। यहां तु हार दाल नह ं गलने क । चुपके से लकड़ उठायी और जधर वह कहार गया था, उसी तरफ चले। बाजार थोड़ ह दरू पर था, एक ण म जा पहंु चे। दे खा, तो बु ढा एक हलवाई क दकान पर बैठा िचलम पी ू

रहा था। उसे दे खते ह आपने बड़ बेतक लुफ से कहा-अभी कुछ तैयार नह ं है

या महरा? सरकार वहां बैठे बगड़ रहे ह क जाकर सो गया या ताड़

पीने लगा। मने कहा-‘सरकार यह बात नह ं, बु डा आदमी है , आते ह आते तो आयेगा।’ बड़े विचऽ जीव ह। न जाने इनके यहां कैसे नौकर टकते ह। कहार-मुझे छोड़कर आज तक दसरा कोई टका नह ं, और न टकेगा। ू

साल-भर से तलब नह ं िमली।

कसी को तलब नह ं दे ते। जहां

कसी ने

तलब मांगी और लगे डांटने। बेचारा नौकर छोड़कर भाग जाता है । वे दोन आदमी, जो पंखा झल रहे थे, सरकार नौकर ह। सरकार से दो अदली िमले ह

न! इसी से पड़े हए ु ह। म भी सोचता हंू , जैसा तेरा ताना-बाना वैसे मेर

भरनी! इस साल कट गये ह, साल दो साल और इसी तरह कट जायगे। मोटे राम- तो तु ह ं अकेले हो? नाम तो कई कहार का लेते है ।

कहार- वह सब इन दो-तीन मह न के अ दर आये और छोड़-छोड़ कर चले गये। यह अपना रोब जमाने को अभी तक उनका नाम जपा करते ह। कह ं नौकर

दलाइएगा, चलूं?

मोटे राम- अजी, बहत ु नौकर है । कहार तो आजकल ढंू ढे नह ं िमलते।

तुम तो पुराने आदमी हो, तु हारे िलए नौकर क

या कमी है । यहां कोई

ताजी चीज? मुझसे कहने लगे, खचड़ बनाइएगा या बाट लगाइएगा? मने कह दया-सरकार, बु डा आदमी है , रात को उसे मेरा भोजन बनाने म क 24

होगा, म कुछ बाजार ह से खा लूंगा। इसक आप िच ता न कर। बोले, अ छ बात है , कहार आपको दकान पर िमलेगा। बोलो साहजी, कुछ तर माल ु

तैयार है ? ल डू तो ताजे मालूम होते ह तौल दो एक सेर भर। आ जाऊं वह ं

ऊपर न?

यह कहकर मोटे रामजी हलवाई क दकान पर जा बैठे और तर माल ू

चखने लगे। खूब छककर खाया। ढाई-तीन सेर चट कर गये। खाते जाते थे

और हलवाई क तार फ करते जाते थे- शाहजी, तु हार दकान का जैसा नाम ू

सुना था, वैसा ह माल भी पाया। बनारसवाले ऐसे रसगु ले नह ं बना पाते, कलाक द अ छ बनाते ह, पर तु हार उनसे बुर नह ं, माल डालने से अ छ चीज नह ं बन जाती, व ा च हए। हलवाई-कुछ और ली जए महाराज! थोड़ -सी रबड़

मेर

तरफ से

ली जए। मोटे राम-इ छा तो नह ं है , ले कन दे दो पाव-भर। हलवाई-पाव-भर

या ली जएगा? चीज अ छ है , आध सेर तो ली जए।

खूब इ छापूण भोजन करके पं डतजी ने थोड़ दे र तक बाजार क सैर क और नौ बजते-बजते मकान पर आये। यहां स नाटा-सा छाया हआ था। ु

एक लालटे न जल रह थी। अपने चबूतरे पर बःतर जमाया और सो गये।

सबेरे अपने िनयमानुसार कोई आठ बजे उठे , तो दे खा क बाबूसाहब टहल रहे ह। इ ह जगा दे खकर वह पालागन कर बोले-महाराज, आज रात कहां चले गये? म बड़ रात तक आपक राह दे खता रहा। भोजन का सब सामान बड़ दे र तक रखा रहा। जब आज न आये, तो रखवा दया गया।

आपने कुछ भोजन कया था। या नह ं?

मोटे - हलवाई क दकान म कुछ खा आया था। ू

भाल- अजी पूर -िमठाई म वह आन द कहां, जो बाट और दाल म है । दस-बारह आने खच हो गये ह गे, फर भी पेट न भरा होगा, आप मेरे मेहमान ह, जतने पैसे लगे ह ले ली जएगा। मोटे - आप ह के हलवाई क दकान पर खाया था, वह जो नु कड़ पर ू

बैठता है ।

भाल- कतने पैसे दे ने पड़े ? मोटे - आपके हसाब म िलखा दये ह। 25

भाल-

जतनी िमठाइयां ली ह , मुझे बता द जए, नह ं तो पीछे से

बेईमानी करने लगेगा। एक ह ठग है । मोटे - कोई ढाई सेर िमठाई थी और आधा सेर रबड़ । बाबू साहब ने वःफ रत नेऽ से पं डतजी को दे खा, मानो कोई अच भे क बात सुनी हो। तीन सेर तो कभी यहां मह ने भर का टोटल भी न होता था और यह महाशय एक ह बार म कोई चार

पये का माल उड़ा गये।

अगर एक आध दन और रह गये, तो या बैठ जायेगी। पेट है या शैतान क कॄ? तीन सेर! कुछ ठकाना है ! उ

न दशा म दौड़े हए ु अ दर गये और

रं गीली से बोल-कुछ सुनती हो, यह महाशय कल तीन सेर िमठाई उड़ा गये। तीन सेर प क तौल! रं गीलीबाई ने व ःमत होकर कहा-अजी नह ं, तीन सेर भला

या खा

जायेगा! आदमी है या बैल? भाल- तीन सेर तो अपने मुंह से कह रहा है । चार सेर से कम न होगा, प क तौल! रं गीली- पेट म सनीचर है

या?

भाल- आज और रह गया तो छ: सेर पर हाथ फेरे गा। रं गीली- तो आज रहे ह

य , खत का जवाब जो दे ना दे कर

वदा

करो। अगर रहे तो साफ कह दे ना क हमारे यहां िमठाई मु त नह ं आती। खचड़

बनाना हो, बनावे, नह ं तो अपनी राह ले।

खलाने से मु

िमलती हो, वे खलाय हम ऐसी मु

ज ह ऐसे पेटु ओं को

न चा हये!

मगर पं डत वदा होने को तैयार बैठे थे, इसिलए बाबूसाहब को कौशल

से काम लेने क ज रत न पड़ । पूछा-

या तैयार कर द महाराज?

मोटे - हां सरकार, अब चलूंगा। नौ बजे क गाड़ िमलेगी न? भाल- भला आज तो और र हए। यह कहते-कहते बाबूजी को भय हआ क कह ं यह महाराज सचमुच न ु

रह जाय, इसिलये वा य को य

पूरा

कया- हां, वहां भी लोग आपका

इ तजार कर रहे ह गे। मोटे - एक-दो दन क तो कोई बात न थी और वचार भी यह था क

ऽवेणी का ःनान क ं गा, पर बुरा न मािनए तो कहंू , आप लोग म

ॄा॑ाण के ूित लेशमाऽ भी ौ ा नह ं है । हमारे जजमान ह, जो हमारा मुंह 26

जोहते रहते ह क पं डतजी कोई आ ा द, तो उसका पालन कर। हम उनके ारा पहंु च जाते ह, तो वे अपना ध य भा य समझते ह और सारा घर-छोटे

से बड़े तक हमार सेवा-स कार म म न हो जाते ह। जहां अपना आदर नह ं, वहां एक

ण भी ठहरना अस॑ाय है । जहां ॄ॑ाण का आदर नह ं, वहां

क याण नह ं हो सकता। भाल- महाराज, हमसे तो ऐसा अपराध नह ं हआ। ु

मोटे - अपराध नह ं हआ ु ! और अपराध कहते कसे ह? अभी आप ह ने

घर म जाकर कहा क यह महाशय तीन सेर िमठाई चट कर गये, प क

तौल। आपने अभी खानेवाले दे खे कहां? एक बार खलाइये तो आंख खुल जाय। ऐसे-ऐसे महान पु ष पड़े ह, जो पसेर भर िमठाई खा जाय और डकार तक न ल। एक-एक िमठाई खाने के िलए हमार िचरौर क जाती है , पये दये जाते ह। हम िभ क ु ॄा॑ाण नह ं ह, जो आपके

ार पर पड़े रह।

आपका नाम सुनकर आये थे, यह न जानते थे क यहां मेरे भोजन के भी लाले पड़गे। जाइये, भगवान ् आपका क याण कर!

बाबू साहब ऐसा झपे क मुंह से बात न िनकली। ज दगी भर म उन

पर कभी ऐसी फटकार न पड़ थी। बहत ु बात बनायीं-आपक चचा न थी,

एक दसरे ह महाशय क बात थी, ले कन पं डतजी का बोध शा त न हआ। ू ु

वह सब कुछ सह सकते थे, पर अपने पेट क िन दा न सह सकते थे। औरत को

प क िन दा जतनी ूय लगती है , उससे कह ं अिधक अ ूय

पु ष को अपने पेट क िन दा लगती है । बाबू साहब मनाते तो थे; पर धड़का भी समाया हआ था क यह टक न जाय। उनक कृ पणता का परदा ु

खुल गया था, अब इसम स दे ह न था। उस पद को ढांकना ज र था।

अपनी कृ पणता को िछपाने के िलए उ ह ने कोई बात उठा न रखी पर होनेवाली बात होकर रह । पछता रहे थे क कहां से घर म इसक बात कहने गया और कहा भी तो उ च ःवर म। यह द ु क तु अब पछताने से

दे खी थी यह वप

भी कान लगाये सुनता रहा,

या हो सकता था? न जाने कस मनहस ू क सूरत

गले पड़ । अगर इस व

यहां से

होकर चला गया;

तो वहां जाकर बदनाम करे गा और मेरा सारा कौशल खुल जायेगा। अब तो इसका मुंह ब द कर दे ना ह पड़े गा। दु

यह सोच- वचार करते हए ु वह घर म जाकर रं गीलीबाई से बोले-इस

ने हमार -तु हार बात सुन ली।

ठकर चला जा रहा है ।

27

रं गीली-जब तुम जानते थे क

ार पर खड़ा है , तो धीरे से

य न

बोले? भाल- वप वह

आती है ; तो अकेले नह ं आती। यह

या जानता था क

ार पर कान लगाये खड़ा है । रं गीली- न जाने कसका मुंह दे ख था? भाल-वह द ु

सामने लेटा हआ था। जानता तो उधर ताकता ह नह ं। ु

अब तो इसे कुछ दे - दलाकर राजी करना पड़े गा।

रं गीली- ऊंह, जाने भी दो। जब तु ह वहां ववाह ह नह ं करना है , तो

या परवाह है ? जो चाहे समझे, जो चाहे कहे । भाल-य जान न बचेगी। आओं दस फर इस मनहस ू क सूरत न दखाये।

रं गीली ने बहत ु अछताते-पछताते दस

पये वदाई के बहाने दे दं ।ू ई र पये िनकाले और बाबू साहब ने

उ ह ले जाकर पं डतजी के चरण पर रख दया। पं डतजी ने दल म कहाध ैरे म खीचूस क ! ऐसा रगड़ा क याद करोगे। तुम समझते होगे क दस पये दे कर इसे उ लू बना लूंगा। इस फेर म न रहना। यहां तु हार नस-नस पहचानते ह।

पये जेब म रख िलये और आशीवाद दे कर अपनी राह ली।

बाबू साहब बड़ दे कर तक खड़े सोच रहे थे-मालूम नह ं, अब भी मुझे कृ पण ह समझ रहा है या परदा ढं क गया। कह ं ये

पये भी तो पानी म

नह ं िगर पड़े ।



चार याणी के सामने अब एक

वषम समःया आ खड़ हई। पित के ु

दे हा त के बाद उसे अपनी दरवःथा का यह पहला और बहत ु ु ह

कड़वा अनुभव हआ। द रि वधवा के िलए इससे बड़ और ु

या वप

हो

सकती है क जवान बेट िसर पर सवार हो? लड़के नंगे पांव पढ़ने जा सकते ह, चौका-ब न भी अपने हाथ से

कया जा सकता है ,

खा-सूखा खाकर

िनवाह कया जा सकता है , झोपड़े म दन काटे जा सकते ह, ले कन युवती क या घर म नह ं बैठाई जा सकती। क याणी को भालच ि पर ऐसा बोध आता था क ःवयं जाकर उसके मुंह म कािलख लगाऊं, िसर के बाल नोच

28

लूं, कहंू क तू अपनी बात से फर गया, तू अपने बाप का बेटा नह ं। पं डत

मोटे राम ने उनक कपट-लीला का न न वृ ा त सुना दया था। वह इसी बोध म भर बैठ थी

क कृ ंणा खेलती हई ु आयी और

बोली-कै दन म बारात आयेगी अ मां? पं डत तो आ गये। क याणी- बारात का सपना दे ख रह है

या?

कृ ंणा-वह च दर तो कह रहा है क-दो-तीन दन म बारात आयेगी, या न जायेगी अ मां?

क याणी-एक बार तो कह दया, िसर

य खाती है ?

कृ ंणा-सबके घर तो बारात आ रह है , हमारे यहां

य नह ं आती?

क याणी-तेरे यहां जो बारात लाने वाला था, उसके घर म आग लग गई। कृ ंणा-सच, अ मां! तब तो सारा घर जल गया होगा। कहां रहते ह गे? बहन कहां जाकर रहे गी? क याणी-अरे पगली! तू तो बात ह नह ं समझती। आग नह ं लगी। वह हमारे यहां याह न करे गा। कृ ंणा-यह ह।

य अ मां? पहले तो वह ं ठ क हो गया था न?

क याणी-बहत ु से

पये मांगता है । मेरे पास उसे दे ने को

पये नह ं

कृ ंणा- या बड़े लालची ह, अ मां? क याणी-लालची नह ं तो और

या है । पूरा कसाई िनदयी, दगाबाज।

कृ ंणा-तब तो अ मां, बहत क उसके घर बहन का ु अ छा हआ ु

याह

नह ं हआ। बहन उसके साथ कैसे रहती? यह तो खुश होने क बात है ु अ मां, तुम रं ज

य करती हो?

क याणी ने पुऽी को ःनेहमयी

से दे खा। इनका कथन

कतना

स य है ? भोले श द म समःया का कतना मािमक िन पण है ? सचमुच यह ते ूस न होने क बात है क ऐसे कुपाऽ से स ब ध नह ं हआ ु , रं ज क

कोई बात नह ं। ऐसे कुमानुस के बीच म बेचार िनमला क न जाने

या

गित होती अपने नसीब को रोती। जरा सा घी दाल म अिधक पड़ जाता, तो सारे घर म शोर मच जाता, जरा खाना

यादा पक जाता, तो सास दिनया

िसर पर उठा लेती। लड़का भी ऐसा लोभी है । बड़ अ छ बात हई ु , नह ं, 29

बेचार को उॆ भर रोना पड़ता। क याणी यहां से उठ , तो उसका

दय ह का

हो गया था। ले कन ववाह तो करना ह था और हो सके तो इसी साल, नह ं तो दसरे साल ू

फर नये िसरे से तैया रयां करनी पडे गी। अब अ छे घर क

ज रत न थी। अ छे वर क ज रत न थी। अभािगनी को अ छा घर-वर कहां िमलता! अब तो कसी भांित िसर का बोझा उतारना था, कसी भांित

लड़क को पार लगाना था, उसे कुएं म झ कना था। यह

पवती है , गुणशीला

है , चतुर है , कुलीन है , तो हुआ कर, दहे ज नह ं तो उसके सारे गुण दोष ह,

दहे ज हो तो सारे दोष गुण ह। ूाणी का कोई मू य नह ं, केवल दे हज का मू य है । कतनी वषम भ यलीला है ! क याणी का दोष कुछ कम न था। अबला और वधवा होना ह उसे दोष से मु यादा

नह ं कर सकता। उसे अपने लड़के अपनी लड़ कय से कह ं

यारे थे। लड़के हल के बैल ह, भूसे खली पर पहला हक उनका है ,

उनके खाने से जो बचे वह गाय का! मकान था, कुछ नकद था, कई हजार के गहने थे, ले कन उसे अभी दो लड़क का पालन-पोषण करना था, उ ह पढ़ाना-िलखाना था। एक क या और भी चार-पांच साल म

ववाह करने

यो य हो जायेगी। इसिलए वह कोई बड़ रकम दहे ज म न दे सकती थी, आ खर लड़क को भी तो कुछ चा हए। वे

या समझगे क हमारा भी कोई

बाप था। पं डत मोटे राम को लखनऊ से लौटे प िह दन बीत चुके थे। लौटने के बाद दसरे ह ू

दन से वह वर क खोज म िनकले थे। उ ह ने ूण कया

था क म लखनऊ वाल को दखा दं ग ू ा क संसार म तु ह ं अकेले नह ं हो,

तु हारे ऐसे और भी कतने पड़े हए ु ह। क याणी रोज दन िगना करती थी। आज उसने उ ह पऽ िलखने का िन य कया और कलम-दवात लेकर बैठ ह थी क पं डत मोटे राम ने पदापण कया। क याणी-आइये पं ड़तजी, म तो आपको खत िलखने जा रह थी, कब लौटे ? मोटे राम-लौटा तो ूात:काल ह था, पर इसी समय एक सेठ के यहां से िनम ऽण आ गया। कई दन से तर माल न िमले थे। मने कहा क लगे

हाथ यह भी काम िनपटाता चलूं। अभी उधर ह से लौटा आ रहा हंू , कोई पांच सौ ॄ॑ाण को पंगत थी।

30

क याणी-कुछ काय भी िस मोटे राम- काय

य न िस

हआ या राःता ह नापना पड़ा। ु

होगा? भला, यह भी कोई बात है ? पांच

जगह बातचीत कर आया हंू । पांच क नकल लाया हंू । उनम से आप चाहे जसे पस द कर। यह दे खए इस लड़के का बाप डाक के सीगे म सौ

मह ने का नौकर है । लड़का अभी कालेज म पढ़

पये

रहा है । मगर नौकर का

भरोसा है , घर म कोई जायदाद नह ं। लड़का होनहार मालूम होता है । खानदान भी अ छा है दो हजार म बात तय हो जायेगी। मांगते तो यह तीन

हजार ह।

क याणी- लड़के के कोई भाई है ? मोटे -नह ं, मगर तीन बहन ह और तीन अ छा अब दसर नकल ू

दये। यह लड़का रे ल के सीगे म पचास

मह ना पाता है । मां-बाप नह ं ह। बहत ु ह -पु

वांर । माता जी वत है । पये

पवान ् सुशील और शर र से खूब

कसरती जवान है । मगर खानदान अ छा नह ं, कोई कहता है , मां

नाइन थी, कोई कहता है , ठकुराइन थी। बाप कसी रयासत म मु तार थे। घर पर थोड़ सी जमींदार है , मगर उस पर कई हजार का कज है । वहां कुछ लेना-दे ना न पडे गा। उॆ कोई बीस साल होगी। क याणी-खानदान म दाग न होता, तो मंजरू कर लेती। दे खकर तो म खी नह ं िनगली जाती। मोटे -तीसर नकल दे खए। एक जमींदार का लड़का है , कोई एक हजार सालाना नफा है । कुछ खेती-बार भी होती है । लड़का पढ़-िलखा तो थोड़ा ह है , कचहर -अदालत के काम म चतुर है । दहाजू है , पहली ु

ी को मरे दो साल

हए। उससे कोई संतान नह ,ं ले कन रहना-सहन, मोटा है । पीसना-कूटना घर ु ह म होता है ।

क याणी- कुछ दे हज मांगते ह? मोटे -इसक कुछ न पूिछए। चार हजार सुनाते ह। अ छा यह चौथी नकल दये। लड़का वक ल है , उॆ कोई पतीस साल होगी। तीन-चार सौ क आमदनी है । पहली

ी मर चुक है उससे तीन लड़के भी ह। अपना घर

बनवाया है । कुछ जायदाद भी खर द है । यहां भी लेन-दे न का झगड़ा नह ं है । क याणी- खानदान कैसा है ? 31

मोटे -बहत ु ह उ म, पुराने रईस ह। अ छा, यह पांचवीं नकल

दए।

बाप का छापाखाना है । लड़का पढ़ा तो बी. ए. तक है , पर उस छापेखाने म काम करता है । उॆ अठारह साल क होगी। घर म ूेस के िसवाय कोई जायदाद नह ं है , मगर

कसी का कज िसर पर नह ं। खानदान न बहत ु

अ छा है , न बुरा। लड़का बहत ु सु दर और स च रऽ है । मगर एक हजार से

कम म मामला तय न होगा, मांगते तो वह तीन हजार ह। अब बताइए, आप कौन-सा वर पस द करती ह?

क याणी-आपक सब म कौन पस द है ?

मोटे -मुझे तो दो वर पस द ह। एक वह जो रे लवई म है और दसरा ू

जो छापेखाने म काम करता है ।

क याणी-मगर पहले के तो खानदान म आप दोष बताते ह? मोटे -हां, यह दोष तो है । छापेखाने वाले को ह रहने द जये। क याणी-यहां एक हजार दे ने को कहां से आयेगा? एक हजार तो आपका अनुमान है , शायद वह और मुंह फैलाये। आप तो इस घर क दशा दे ख ह रहे ह, भोजन िमलता जाये, यह गनीमत है ।

पये कहां से आयगे?

जमींदार साहब चार हजार सुनाते ह, डाक बाबू भी दो हजार का सवाल करते ह। इनको जाने द जए। बस, वक ल साहब ह बच सकते ह। पतीस साल क उॆ भी कोई

यादा नह ं। इ ह ं को

य न र खए।

मोटे राम-आप खूब सोच- वचार ल। म य आपक मज का ताबेदार हंू ।

जहां क हएगा वहां जाकर ट का कर आऊंगा। मगर हजार का मुंह न दे खए, छापेखाने वाला लड़का र

जाएगा। जैसी यह

है । उसके साथ क या का जीवन सफल हो

प और गुण क पूर है , वैसा ह लड़का भी सु दर और

सुशील है । क याणी-पस द तो मुझे भी यह है महाराज, पर

पये कसके घर से

आय! कौन दे ने वाला है ! है कोई दानी? खानेवाले खा-पीकर चंपत हए। अब ु कसी क भी सूरत नह ं दखाई दे ती, ब क और मुझसे बुरा मानते ह क

हम िनकाल दया। जो बात अपने बस के बाहर है , उसके िलए हाथ ह फैलाऊं? स तान

कसको

यार



नह ं होती? कौन उसे सुखी नह ं दे खना

चाहता? पर जब अपना काबू भी हो। आप ई र का नाम लेकर वक ल साहब को ट का कर आइये। आयु कुछ अिधक है , ले कन मरना-जीना विध के हाथ है । पतीस साल का आदमी बु डा नह ं कहलाता। अगर लड़क के भा य म 32

सुख भोगना बदा है , तो जहां जायेगी सुखी रहे गी, द:ु ख भोगना है , तो जहां

जायेगी द:ु ख झेलेगी। हमार िनमला को ब च से ूेम है । उनके ब च को अपना समझेगी। आप शुभ मुहू त दे खकर ट का कर आय।

िन

पांच मला का ववाह हो गया। ससुराल आ गयी। वक ल साहब का नाम था मुंशी तोताराम। सांवले रं ग के मोटे -ताजे आदमी थे। उॆ तो

अभी चालीस से अिधक न थी, पर वकालत के क ठन प रौम ने िसर के बाल पका दये थे। यायाम करने का उ ह अवकाश न िमलता था। वहां तक क कभी कह ं घूमने भी न जाते, इसिलए त द िनकल आई थी। दे ह के ःथून होते हए ु भी आये

दन कोई-न-कोई िशकायत रहती थी। मंद न और

बवासीर से तो उनका िचरःथायी स ब ध था। अतएव बहत ु फूंक-फूंककर

कदम रखते थे। उनके तीन लड़के थे। बड़ा मंसाराम सोहल वष का था,

मंझला जयाराम बारह और िसयाराम सात वष का। तीन अंमेजी पढ़ते थे। घर म वक ल साहब क

वधवा ब हन के िसवा और कोई औरत न थी। वह

घर क माल कन थी। उनका नाम था

किमणी और अवःथा पचास के ऊपर

थी। ससुराल म कोई न था। ःथायी र ित से यह ं रहती थीं।

तोताराम द पित- व ान म कुशल थे। िनमला के ूस न रखने के

िलए उनम जो ःवाभा वक कमी थी, उसे वह उपहार से पूर करना चाहते थे। य प वह बहु ह

िमत ययी पु ष थे, पर िनमला के िलए कोई-न-कोई

तोहफा रोज लाया करते। मौके पर धन क परवाइ न करते थे। लड़के के िलए थोड़ा दध ू आता था, पर िनमला के िलए मेवे, मुर बे, िमठाइयां- कसी चीज क कमी न थी। अपनी ज दगी म कभी सैर-तमाशे दे खने न गये थे,

पर अब छु टय म िनमला को िसनेमा, सरकस, एटर, दखाने ले जाते थे। अपने बहमू ु य समय का थोडा-सा

हःसा उसके साथ बठकर मामोफोन

बजाने म यतीत कया करते थे।

ले कन िनमला को न जाने

य तोताराम के पास बैठने और हं सने-

बोलने म संकोच होता था। इसका कदािचत ् यह कारण था क अब तक ऐसा

ह एक आदमी उसका पता था, जसके सामने वह िसर-झुकाकर, दे ह चुराकर िनकलती थी, अब उनक अवःथा का एक आदमी उसका पित था। वह उसे 33

ूेम क वःतु नह ं स मान क वःतु समझती थी। उनसे भागती फरती, उनको दे खते ह उसक ूफु लता पलायन कर जाती थी। वक ल साहब को नके द प - व ान न िसखाया था क युवती के सामने खूब ूेम क बात करनी चा हये। दल िनकालकर रख दे ना च हये, यह उसके वशीकरण का मु य मंऽ है । इसिलए वक ल साहब अपने ूेमूदशन म कोई कसर न रखते थे, ले कन िनमला को इन बात से घृणा होती थी। वह बात, ज ह कसी युवक के मुख से सुनकर उनका उ म

हो जाता, वक ल साहब के मुंह से िनकलकर उसके

दय ूेम से

दय पर शर के

समान आघात करती थीं। उनम रस न था उ लास न था, उ माद न था, दय न था, केवल बनावट थी, घोखा था और शुंक, नीरस श दाड बर। उसे इऽ और तेल बुरा न लगता, सैर-तमाशे बुरे न लगते, बनाव-िसंगार भी बुरा न लगता था, बुरा लगता था, तो केवल तोताराम के पास बैठना। वह अपना प और यौवन उ ह न दखाना चाहती थी, य क वहां दे खने वाली आंख न थीं। वह उ ह इन रस का आःवादन लेने यो य न समझती थी। कली ूभात-समीर ह के सपश से खलती है । दोन म समान सारःय है । िनमला के िलए वह ूभात समीर कहां था? पहला मह ना गुजरते ह तोताराम ने िनमला को अपना खजांची बना िलया। कचहर से आकर दन-भर क कमाई उसे दे दे ते। उनका क िनमला इन

याल था

पय को दे खकर फूली न समाएगी। िनमला बड़े शौक से

इस पद का काम अंजाम दे ती। एक-एक पैसे का हसाब िलखती, अगर कभी पये कम िमलते, तो पूछती आज कम

य ह। गृहःथी के स ब ध म

उनसे खूब बात करती। इ ह ं बात के लायक वह उनको समझती थी।

यह

कोई वनोद क बात उनके मुंह से िनकल जाती, उसका मुख िलन हो जाता था। िनमला जब व ाभूंण से अलंकृत होकर आइने के सामने खड़ होती और उसम अपने स दय क सुषमापूण आभा दे खती, तो उसका

दय एक

सतृंण कामना से तड़प उठता था। उस व

वाला-सी

उसके

दय म एक

उठती। मन म आता इस घर म आग लगा दं ।ू अपनी माता पर बोध आता, पर सबसे अिधक बोध बेचारे िनरपराध तोताराम पर आता। वह सदै व इस

ताप से जला करती। बांका सवार लिद-ू ट टू पर सवार होना कब पस द करे गा, चाहे उसे पैदल ह

य न चलना पड़े ? िनमला क दशा उसी बांके 34

सवार क -सी थी। वह उस पर सवार होकर उड़ना चाहती थी, उस उ लासमयी व त ् गित का आन द उठाना चाहती थी, ट टू के हन हनाने और कनौितयां

खड़ करने से

या आशा होती? संभव था क ब च के साथ हं सने-खेलने से

वह अपनी दशा को थोड़ दे र के िलए भूल जाती, कुछ मन हरा हो जाता, ले कन

किमणी दे वी लड़क को उसके पास फटकने तक न दे तीं, मानो वह

कोई पशािचनी है , जो उ ह िनगल जायेगी।

किमणी दे वी का ःवभाव सारे

संसार से िनराला था, यह पता लगाना क ठन था क वह कस बात से खुश होती थीं और कस बात से नाराज। एक बार जस बात से खुश हो जाती

थीं, दसर बार उसी बात से जल जाती थी। अगर िनमला अपने कमरे म ू बैठ रहती, तो कहतीं क न जाने कहां क मनहिसन है ! अगर वह कोठे पर ू

चढ़ जाती या मह रय से बात करती, तो छाती पीटने लगतीं-न लाज है , न शरम, िनगोड़ ने हया भून खाई! अब

या कुछ दन म बाजार म नाचेगी!

जब से वक ल साहब ने िनमला के हाथ म

पये-पैसे दे ने शु

कये,

किमणी उसक आलोचना करने पर आ ढ़ हो गयी। उ ह मालूम होता था। क अब ूलय होने म बहत ु थोड़ कसर रह गयी है । लड़क को बार-बार

पैस क ज रत पड़ती। जब तक खुद ःवािमनी थीं, उ ह बहला दया करती थीं। अब सीधे िनमला के पास भेज दे तीं। िनमला को लड़क के चटोरापन अ छा न लगता था। कभी-कभी पैसे दे ने से इ कार कर दे ती।

किमणी को

अपने वा बाण सर करने का अवसर िमल जाता-अब तो माल कन हई ु है , लड़के काहे को जयगे। बना मां के ब चे को कौन पूछे?

पय क िमठाइयां

खा जाते थे, अब धेले-धेले को तरसते ह। िनमला अगर िचढ़कर कसी दन बना कुछ पूछे-ताछे पैसे दे दे ती, तो दे वीजी उसक

करतीं-इ ह समझाये

या, लड़के मरे या

जय, इनक

दसर ू



बला से, मां के

आलोचना

बना कौन

क बेटा, बहत िमठाइयां मत खाओ। आयी-गयी तो मेरे िसर ु

जायेगी, इ ह

या? यह ं तक होता, तो िनमला शायद ज त कर जाती, पर

दे वीजी तो खु फया पुिलस से िसपाह क भांित िनमला का पीछा करती रहती थीं। अगर वह कोठे पर खड़ है , तो अवँय ह

कसी पर िनगाह डाल

रह होगी, महर से बात करती है , तो अवँय ह उनक िन दा करती होगी। बाजार से कुछ मंगवाती है , तो अवँय कोई वलास वःतु होगी। यह बराबर उसके पऽ पढ़ने क

चे ा

कया करती। िछप-िछपकर बात सुना करती।

िनमला उनक दोधर तलवार से कांपती रहती थी। यहां तक क उसने एक 35

दन पित से कहा-आप जरा जीजी को समझा द जए,

य मेरे पीछे पड़

रहती ह? तोताराम ने तेज होकर कह- तु ह कुछ कहा है , या? ‘रोज ह कहती ह। बात मुंह से िनकालना मु ँकल है । अगर उ ह इस बात क जलन हो क यह माल कन पये-पैसे द जये, मुझे न चा हये, यह

य बनी हई ु है , तो आप उ ह ं को माल कन बनी रह। म तो केवल

इतना चाहती हंू क कोई मुझे ताने-मेहने न दया करे ।’

यह कहते-कहते िनमला क आंख से आंसू बहने लगे। तोताराम को

अपना ूेम दखाने का यह बहत ु ह अ छा मौका िमला। बोले-म आज ह

उनक खबर लूंगा। साफ कह दं ग ू ा, मुंह ब द करके रहना है , तो रहो, नह ं तो अपनी राह लो। इस घर क ःवािमनी वह नह ं है , तुम हो। वह केवल तु हार

सहायता के िलए ह। अगर सहायता करने के बदले तु ह दक करती ह, तो उनके यहां रहने क ज रत नह ं। मने सोचा था क वधवा ह, अनाथ ह, पाव भर आटा खायगी, पड़ रहगी। जब और नौकर-चाकर खा रहे ह, तो वह तो अपनी ब हन ह है । लड़क क दे खभाल के िलए एक औरत क ज रत भी थी, रख िलया, ले कन इसके यह माने नह ं क वह तु हारे ऊपर शासन कर। िनमला ने फर कहा-लड़क को िसखा दे ती ह क जाकर मां से पैसे मांगे, कभी कुछ-कभी कुछ। लड़के आकर मेर जान खाते ह। घड़ भर लेटना मु ँकल हो जाता है । डांटती हंू , तो वह आख लाल-पीली करके दौड़ती ह।

मुझे समझती ह क लड़क को दे खकर जलती है । ई र जानते ह गे क म ब च को कतना

यार करती हंू । आ खर मेरे ह ब चे तो ह। मुझे उनसे

य जलन होने लगी?

तोताराम बोध से कांप उठे । बोल-तु ह जो लड़का दक करे , उसे पीट दया करो। म भी दे खता हंू क ल डे शर र हो गये ह। मंसाराम को तो म

बो डग हाउस म भेज दं ग ू ा। बाक दोन को तो आज ह ठ क कये दे ता हंू । उस व

तोताराम कचहर जा रहे थे, डांट-डपट करने का मौका न था,

ले कन कचहर से लौटते ह उ ह ने घर म

मणी से कहा- य ब हन,

तु ह इस घर म रहना है या नह ं? अगर रहना है , शा त होकर रहो। यह या क दसर का रहना मु ँकल कर दो। ू

मणी समझ गयीं क बहू ने अपना वार कया, पर वह दबने वाली

औरत न थीं। एक तो उॆ म बड़ ितस पर इसी घर क सेवा म ज दगी 36

काट द थी। कसक मजाल थी क उ ह बेदखल कर दे ! उ ह भाई क इस ि ु ता पर आ य हआ। बोलीं-तो ु

या ल ड बनाकर रखेगे? ल ड बनकर

रहना है , तो इस घर क ल ड न बनूंगी। अगर तु हार यह इ छा हो क घर म कोई आग लगा दे और म खड़ दे खा क ं , कसी को बेराह चलते दे खूं; तो चुप साध लूं, जो जसके मन म आये करे , म िम ट क दे वी बनी रहंू , तो यह

मुझसे न होगा। यह हआ ु

या, जो तुम इतना आपे से बाहर हो रहे हो?

िनकल गयी सार बु मानी, कल क ल डया चोट पकड़कर नचाने लगी?

कुछ पूछना न ताछना, बस, उसने तार खींचा और तुम काठ के िसपाह क तरह तलवार िनकालकर खड़े हो गये।

तोता-सुनता हंू , क तुम हमेशा खुचर िनकालती रहती हो, बात-बात पर

ताने दे ती हो। अगर कुछ सीख दे नी हो, तो उसे यार से, मीठे श द म दे नी चा हये। तान से सीख िमलने के बदले उलटा और जी जलने लगता है ।

मणी-तो तु हार यह मज है क कसी बात म न बोलूं, यह सह , कन फर यह न कहना, क तुम घर म बैठ थीं, य नह ं सलाह द । जब मेर बात जहर लगती ह, तो मुझे

या कु े ने काटा है , जो बोलूं? मसल है -

‘नाट खेती, बहु रय घर।’ म भी दे ख,ूं बहु रया कैसे कर चलाती है !

इतने म िसयाराम और जयाराम ःकूल से आ गये। आते ह आते

दोन बुआजी के पास जाकर खाने को मांगने लगे। मणी ने कहा-जाकर अपनी नयी अ मां से

य नह ं मांगते, मुझे

बोलने का हु म नह ं है ।

तोता-अगर तुम लोग ने उस घर म कदम रखा, तो टांग तोड़ दं ग ू ा।

बदमाशी पर कमर बांधी है ।

जयाराम जरा शोख था। बोला-उनको तो आप कुछ नह ं कहते, हमीं को धमकाते ह। कभी पैसे नह ं दे तीं। िसयाराम ने इस कथन का अनुमोदन कया-कहती ह, मुझे दक करोगे तो कान काट लूंगी। कहती है क नह ं जया? िनमला अपने कमरे से बोली-मने कब कहा था क तु हारे कान काट लूंगी अभी से झूठ बोलने लगे? इतना सुनना था

क तोताराम ने िसयाराम के दोन कान पकड़कर

उठा िलया। लड़का जोर से चीख मारकार रोने लगा। 37

ु मणी ने दौड़कर ब चे को मुंशीजी के हाथ से छड़ा िलया और बोलीं- बस, रहने भी दो, या ब चे को मार डालोगे? हाय-हाय! कान लाल हो गया। सच कहा है , नयी बीवी पाकर आदमी अ धा हो जाता है । अभी से यह हाल है , तो इस घर के भगवान ह मािलक ह। िनमला अपनी वजय पर मन-ह -मन ूस न हो रह थी, ले कन जब मुंशी जी ने ब चे का कान पकड़कर उठा िलया, तो उससे न रहा गया।

ु छड़ाने को दौड़ , पर

मणी पहले ह पहंु च गयी थीं। बोलीं-पहले आग लगा

द , अब बुझाने दौड़ हो। जब अपने लड़के ह गे, तब आंख खुलगी। पराई पीर या जानो? िनमला- खड़े तो ह, पूछ लो न, मने

या आग लगा द ? मने इतना ह

कहा था क लड़के मुझे पैस के िलए बार-बार दक करते ह, इसके िसवाय जो मेरे मुंह से कुछ िनकला हो, तो मेरे आंख फूट जाय। तीन

तोता-म खुद इन ल ड क शरारत दे खा करता हंू , अ धा थोड़े ह हंू । ज

भेजता हंू ।

और शर र हो गये ह। बड़े िमयां को तो म आज ह होःटल म

मणी-अब तक तु ह इनक कोई शरारत न सूझी थी, आज आंख

य इतनी तेज हो गयीं? तोताराम- तु ह ं न इ ह इतना शोख कर रखा है । किमणी- तो म ह

वष क गांठ हंू । मेरे ह कारण तु हारा घर चौपट

हो रहा है । लो म जाती हंू , तु हारे लड़के ह, मारो चाहे काटो, न बोलूंगी।

यह कहकर वह वहां से चली गयीं। िनमला ब चे को रोते दे खकर

व ल हो उठ । उसने उसे छाती से लगा िलया और गोद म िलए हए ु अपने

कमरे म लाकर उसे चुमकारने लगी, ले कन बालक और भी िससक-िससक कर रोने लगा। उसका अबोध

दय इस यार म वह मातृ-ःनेह न पाता था,

जससे दै व ने उसे वंिचत कर दया था। यह वा स य न था, केवल दया थी। यह वह वःतु थी, जस पर उसका कोई अिधकार न था, जो केवल िभ ा के प म उसे द जा रह थी। पता ने पहले भी दो-एक बार मारा था, जब उसक मां जी वत थी, ले कन तब उसक मां उसे छाती से लगाकर रोती न थी। वह अूस न होकर उससे बोलना छोड़ दे ती, यहां तक क वह ःवयं थोड़ ह दे र के बाद कुछ भूलकर फर माता के पास दौड़ा जाता था। शरारत के िलए सजा पाना तो उसक

समझ म आता था, ले कन मार खाने पार 38

चुमकारा जाना उसक समझ म न आता था। मातृ-ूेम म कठोरता होती थी, ले कन मृदलता से िमली हई। इस ूेम म क णा थी, पर वह कठोरता न थी, ु ु

जो आ मीयता का गु

संदेश है । ःवःथ अंग क पारवाह कौन करता है ?

ले कन वह अंग जब कसी वेदना से टपकने लगता है , तो उसे ठे स और घ के से बचाने का य

कया जाता है । िनमला का क ण रोदन बालक को

उसके अनाथ होने क सूचना दे रहा था। वह बड़ दे र तक िनमला क गोद म बैठा रोता रहा और रोते-रोते सो गया। िनमला ने उसे चारपाई पर सुलाना

चाहा, तो बालक ने सुषु ावःथा म अपनी दोन कोमल बाह उसक गदन म डाल द ं और ऐसा िचपट गया, मानो नीचे कोई गढ़ा हो। शंका और भय से उसका मुख वकृ त हो गया। िनमला ने फर बालक को गोद म उठा िलया, चारपाई पर न सुला सक । इस समय बालक को गोद म िलये हए ु उसे वह

तु

हो रह

थी, जो अब तक कभी न हई ु थी, आज पहली बार उसे

आ मवेदना हई ु , जसके ना आंख नह ं खुलती, अपना क

य-माग नह ं

समझता। वह माग अब दखायी दे ने लगा।



छह स दन अपने ूगाढ़ ूणय का सबल ूमाण दे ने के बाद मुंशी तोताराम को आशा हई ु थी

क िनमला के मम-ःथल पर मेरा िस का जम

जायेगा, ले कन उनक यह आशा लेशमाऽ भी पूर न हई ु ब क पहले तो वह

कभी-कभी उनसे हं सकर बोला भी करती थी, अब ब च ह के लालन-पालन म

यःत रहने लगी। जब घर आते, ब च को उसके पास बैठे पाते। कभी

दे खते क उ ह ला रह है , कभी कपड़े पहना रह है , कभी कोई खेल, खेला रह है और कभी कोई कहानी कह रह है । िनमला का तृ षत

दय ूणय क

ओर से िनराश होकर इस अवल ब ह को गनीमत समझने लगा, ब च के साथ हं सने-बोलने म उसक मातृ-क पना तृ

होती थीं। पित के साथ हं सने-

बोलने म उसे जो संकोच, जो अ िच तथा जो अिन छा होती थी, यहां तक क वह उठकर भाग जाना चाहती, उसके बदले बालक के स चे, सरल ःनेह से िच

ूस न हो जाता था। पहले मंसाराम उसके पास आते हए झझकता ु

था, ले कन मानिसक

वकास म पांच साल छोटा। हॉक और फुटबाल ह

उसका संसार, उसक क पनाओं का मु - ेऽ तथा उसक कामनाओं का हरा39

भरा बाग था। इकहरे बदन का छरहरा, सु दर, हं समुख, ल जशील बालक था, जसका घर से केवल भोजन का नाता था, बाक सारे दन न जाने कहां घूमा करता। िनमला उसके मुंह से खेल क बात सुनकर थोड़ दे र के िलए अपनी िच ताओं को भूल जाती और चाहती थी एक बार फर वह जब वह गु ड़या खेलती और उसके

दन आ जाते,

याह रचाया करती थी और जसे अभी

थोड़े आह, बहत ु ह थोड़े दन गुजरे थे।

मुंशी तोताराम अ य एका त-सेवी मनुंय क भांित वषयी जीव थे।

कुछ दन तो वह िनमला को सैर-तमाशे दखाते रहे , ले कन जब दे खा क इसका कुछ फल नह ं होता, तो फर एका त-सेवन करने लगे। दन-भर के क ठन मािसक प रौम के बाद उनका िच

आमोद-ूमोद के िलए लालियत

हो जाता, ले कन जब अपनी वनोद-वा टका म ूवेश करते और उसके फूल को मुरझाया, पौध को सूखा और

या रय

से धूल उड़ती हई ु दे खते, तो

उनका जी चाहता- य न इस वा टका को उजाड़ दं ?ू िनमला उनसे वर



रहती है , इसका रहःय उनक समझ म न आता था। द पित शा

सारे म ऽ क पर

ा कर चुके, पर मनोरथ पूरा न हआ। अब ु

के

या करना

चा हये, यह उनक समझ म न आता था। एक

दन वह इसी िचंता म बैठे हए ु थे

क उनके सहपाठ

िमऽ

नयनसुखराम आकर बैठ गये और सलाम-वलाम के बाद मुःकराकर बोलेआजकल तो खूब गहर छनती होगी। नयी बीवी का आिलंगन करके जवानी का मजा आ जाता होगा? बड़े भा यवान हो! भई

ठ हई ु जवानी को मनाने

का इससे अ छा कोई उपाय नह ं क नया ववाह हो जाये। यहां तो ज दगी

बवाल हो रह है । प ी जी इस बुर तरह िचमट ह क कसी तरह प ड ह नह ं छोड़ती। म तो दसर शाद क ू

फब म हंू । कह ं डौल हो, तो ठ क-ठाक

कर दो। दःतूर म एक दन तु ह उसके हाथ के बने हए ु पान खला दगे।

तोताराम ने ग भीर भाव से कहा-कह ं ऐसी हमाकत न कर बैठना,

नह ं तो पछताओगे। ल डयां तो ल ड से ह खुश रहती ह। हम तुम अब उस काम के नह ं रहे । सच कहता हंू म तो शाद करके पछता रहा हंू , बुर बला

गले पड़ ! सोचा था, दो-चार साल और ज दगी का मजा उठा लूं, पर उलट आंत गले पड़ ं।

40

नयनसुख-तुम

या बात करते हो। लौ डय को पंज म लाना

मु ँकल बात है , जरा सैर-तमाशे दखा दो, उनके

या

प-रं ग क तार फ कर दो,

बस, रं ग जम गया। तोता-यह सब कुछ कर-धरके हार गया। नयन-अ छा, कुछ इऽ-तेल, फूल-प े, चाट-वाट का भी मजा चखाया? तोता-अजी, यह सब कर चुका। द प -शा

के सारे म ऽ

का

इ तहान ले चुका, सब कोर ग पे ह।

नयन-अ छा, तो अब मेर एक सलाह मानो, जरा अपनी सूरत बनवा

लो। आजकल यहां एक बजली के डॉ टर आये हए ु ह, जो बुढ़ापे के सारे

िनशान िमटा दे ते ह।

पका रह जाये। न जाने जाता है । तोता-फ स

या मजाल क चेहरे पर एक झुर या या िसर का बाल या जाद ू कर दे ते ह क आदमी का चोला ह बदल

या लेते ह?

नयन-फ स तो सुना है , शायद पांच सौ

पये!

तोता-अजी, कोई पाख ड होगा, बेवकूफ को लूट रहा होगा। कोई रोगन लगाकर दो-चार दन के िलए जरा चेहरा िचकना कर दे ता होगा। इँतहार डॉ टर पर तो अपना व ास ह नह ं। दस-पांच क बात होती, तो कहता, जरा द लगी ह सह । पांच सौ नयन-तु हारे िलए पांच सौ

पये बड़ रकम है । पये कौन बड़ बात है । एक मह ने क

आमदनी है । मेरे पास तो भाई पांच सौ

पये होते, तो सबसे पहला काम यह

करता। जवानी के एक घ टे क क मत पांच सौ

पये से कह ं

यादा है ।

तोता-अजी, कोई सःता नुःखा बताओ, कोई फक र जुड़ -बूट जो क

बना हर- फटकर के रं ग चीखा हो जाये। बजली और रे डयम बड़े आदिमय के िलए रहने दो। उ ह ं को मुबारक हो। नयन-तो फर रं गीलेपन का ःवांग रचो। यह ढ ला-ढाला कोट फक , तंजेब क चुःत अचकन हो, चु नटदार पाजामा, गले म सोने क जंजीर पड़ हई ु , िसर पर जयपुर साफा बांधा हआ ु , आंख म सुरमा और बाल म हना

का तेल पड़ा हआ। त द का पचकना भी ज र है । दोहरा कमरब द बांधे। ु

जरा तकलीफ तो होगी, पार अचकन सज उठे गी। खजाब म ला दं ग ू ा। सौपचास गजल याद कर लो और मौके-मौके से शेर पढ़ । बात म रस भरा

हो। ऐसा मालूम हो क तु ह द न और दिनया क कोई फब नह ं है , बस, ु 41

जो कुछ है , ूयतमा ह है । जवांमद और साहस के काम करने का मौका ढंू ढते रहो। रात को झूठ-मूठ शोर करो-चोर-चोर और तलवार लेकर अकेले

पल पड़ो। हां, जरा मौका दे ख लेना, ऐसा न हो क सचमुच कोई चोर आ जाये और तुम उसके पीछे दौड़ो, नह ं तो सार कलई खुल जायेगी और मु त के उ लू बनोगे। उस व

तो जवांमद इसी म है

क दम साधे खड़े रहो,

जससे वह समझे क तु ह खबर ह नह ं हई ु , ले कन

य ह चोर भाग खड़ा

हो, तुम भी उछलकर बाहर िनकलो और तलवार लेकर ‘कहां? कहां?’ कहते

दौड़ो।

यादा नह ं, एक मह ना मेर बात का इ तहान करके दे ख। अगर वह

तु हार दम न भरने लगे, तो जो जुमाना कहो, वह दं ।ू तोताराम ने उस व

तो यह बात हं सी म उड़ा द ं, जैसा

क एक

यवहार कुशल मनुंय को करना च हए था, ले कन इसम क कुछ बात उसके मन म बैठ गयी। उनका असर पड़ने म कोई संदेह न था। धीरे -धीरे रं ग बदलने लगे, जसम लोग खटक न जाय। पहले बाल से शु

कया, फर

सुरमे क बार आयी, यहां तक क एक-दो मह ने म उनका कलेवर ह बदल गया। गजल याद करने का ूःताव तो हाःयाःपद था, ले कन वीरता क ड ंग मारने म कोई हािन न थी। उस दन से वह रोज अपनी जवांमद का कोई-न-कोई ूसंग अवँय छे ड़ दे ते। िनमला को स दे ह होने लगा क कह ं इ ह उ माद का रोग तो नह ं हो रहा है । जो आदमी मूंग क दाल और मोटे आटे के दो फुलके खाकर भी नमक सुलेमानी का मुहताज हो, उसके छै लेपन पर उ माद का स दे ह हो, तो आ य ह

या? िनमला पर इस पागलपन का और

या रं ग जमता? ह

उसे उन पार दया आजे लगी। बोध और घृणा का भाव जाता रहा। बोध और घृणा उन पर होती है , जो अपने होश म हो, पागल आदमी तो दया ह

का पाऽ है । वह बात-बात म उनक चुट कयां लेती, उनका मजाक उड़ाती, जैसे लोग पागल के साथ कया करते ह। हां, इसका

यान रखती थी क वह

समझ न जाय। वह सोचती, बेचारा अपने पाप का ूाय सारा ःवांग केवल इसिलए तो है

त कर रहा है । यह

क म अपना द:ु ख भूल जाऊं।

अब भा य तो बदल सकता नह ं, इस बेचारे को

आ खर

य जलाऊं?

एक दन रात को नौ बजे तोताराम बांके बने हए ु सैर करके लौटे और

िनमला से बोले-आज तीन चोर से सामना हो गया। जरा िशवपुर क तरफ चला गया था। अंधेरा था ह ।

य ह रे ल क सड़क के पास पहंु चा, तो तीन 42

आदमी तलवार िलए हए ु न जाने कधर से िनकल पड़े । यक न मानो, तीन काले दे व थे। म ब कुल अकेला, पास म िसफ यह छड़ थी। उधर तीन

तलवार बांधे हए ु , होश उड़ गये। समझ गया क ज दगी का यह ं तक साथ था, मगर मने भी सोचा, मरता ह हंू , तो वीर क मौत

य न म ं । इतने म

एक आदमी ने ललकार कर कहा-रख दे तेरे पास जो कुछ हो और चुपके से चला जा। म छड़ संभालकर खड़ा हो गया और बोला-मेरे पास तो िसफ यह छड़

है और इसका मू य एक आदमी का िसर है ।

मेरे मुंह से इतना िनकलना था क तीन तलवार खींचकर मुझ पर झपट पड़े और म उनके वार

को छड़

पर रोकने लगा। तीन

झ ला-

झ लाकर वार करते थे, खटाके क आवाज होती थी और म बजली क तरह झपटकर उनके तार को काट दे ता था। कोई दस िमनट तक तीन ने खूब तलवार के जौहर दखाये, पर मुझ पर रे फ तक न आयी। मजबूर यह थी क मेरे हाथ म तलवार न थी। य द कह ं तलवार होती, तो एक को जीता न छोड़ता। खैर, कहां तक बयान क ं । उस व

मेरे हाथ क सफाई दे खने

का बल थी। मुझे खुद आ य हो रहा था क यह चपलता मुझम कहां से आ गयी। जब तीन ने दे खा क यहां दाल नह ं गलने क , तो तलवार

यान म

रख ली और पीठ ठोककर बोले-जवान, तुम-सा वीर आज तक नह ं दे खा। हम तीन तीन सौ पर भार गांव-के-गांव ढोल बजाकर लूटते ह, पर आज तुमने हम नीचा दखा दया। हम तु हारा लोहा मान गए। यह कहकर तीन

फर

नजर से गायब हो गए।

िनमला ने ग भीर भाव से मुःकराकर कहा-इस छड़ पर तो तलवार

के बहत ु से िनशान बने हए ु ह गे?

मुंशीजी इस शंका के िलए तैयार न थे, पर कोई जवाब दे ना आवँयक

था, बोले-म वार को बराबर खाली कर दे ता। दो-चार चोट छड़ पर पड़ ं भी, तो उचटती हई ु , जनसे कोई िनशान नह ं पड़ सकता था।

अभी उनके मुंह से पूर बात भी न िनकली थी क सहसा

मणी

दे वी बदहवास दौड़ती हई ु आयीं और हांफते हए ु बोलीं-तोता है क नह ं? मेरे कमरे म सांप िनकल आया है । मेर चारपाई के नीचे बैठा हआ है । म उठकर ु

भागी। मुआ कोई दो गज का होगा। फन िनकाले फुफकार रहा है , जरा चलो तो। डं डा लेते चलना। 43

ु तोताराम के चेहरे का रं ग उड़ गया, मुंह पर हवाइयां छटने लगीं, मगर मन के भाव को िछपाकर बोले-सांप यहां कहां? तु ह धोखा हआ होगा। कोई ु रःसी होगी।

मणी-अरे , मने अपनी आंख दे खा है । जरा चलकर दे ख लो न। ह, ह। मद होकर डरते हो? मुंशीजी घर से तो िनकले, ले कन बरामदे म फर ठठक गये। उनके पांव ह न उठते थे कलेजा धड़-धड़ कर रहा था। सांप बड़ा बोधी जानवर है ।

कह ं काट ले तो मु त म ूाण से हाथ धोना पड़े । बोले-डरता नह ं हंू । सांप

ह तो है , शेर तो नह ं, मगर सांप पर लाठ नह ं असर करती, जाकर कसी को भेजूं, कसी के घर से भाला लाये।

यह कहकर मुंशीजी लपके हए ु बाहर चले गये। मंसाराम बैठा खाना खा

रहा था। मुंशीजी तो बाहर चले गये, इधर वह खाना छोड़, अपनी हॉक का डं डा हाथ म ले, कमरे म घुस ह तो पड़ा और तुरंत चारपाई खींच ली। सांप मःत था, भागने के बदले फन िनकालकर खड़ा हो गया। मंसाराम ने चटपट चारपाई क चादर उठाकर सांप के ऊपर फक द और ताबड़तोड़ तीन-चार डं डे कसकर जमाये। सांप चादर के अंदर तड़प कर रह गया। तब उसे डं डे पर उठाये हए ु बाहर चला। मुंशीजी कई आदिमय को साथ िलये चले आ रहे थे।

मंसाराम को सांप लटकाये आते दे खा, तो सहसा उनके मुंह से चीख िनकल पड़ , मगर फर संभल गये और बोले-म तो आ ह रहा था, तुमने

य ज द

क ? दे दो, कोई फक आए। यह कहकर बहादरु के साथ

मणी के कमरे के

ार पर जाकर खड़े

हो गये और कमरे को खूब दे खभाल कर मूंछ पर ताव दे ते हए ु िनमला के

पास जाकर बोले-म जब तक आऊं-जाऊं, मंसाराम ने मार डाला। बेसमझ ्

लड़का डं डा लेकर दौड़ पड़ा। सांप हमेशा भाले से मारना चा हए। यह तो लड़क म ऐब है । मने ऐसे-ऐसे कतने सांप मारे ह। सांप को खला- खलाकर मारता हंू । कतन ह को मु ठ से पकड़कर मसल दया है । मणी ने कहा-जाओ भी, दे ख ली तु हार मदानगी।

मुंशीजी झपकर बोले-अ छा जाओ, म डरपोक ह

सह , तुमसे कुछ

इनाम तो नह ं मांग रहा हंू । जाकर महाराज से कहा, खाना िनकाले। मुंशीजी तो भोजन करने गये और िनमला

सोच रह थी-भगवान।्

ार क चौखट पर खड़

या इ ह सचमुच कोई भीषण रोग हो रहा है ? 44

या

मेर दशा को और भी दा ण बनाना चाहते हो? म इनक सेवा कर सकती हंू ,

स मान कर सक हंू , अपना जीवन इनके चरण पर अपण कर सकती हंू , ले कन वह नह ं कर सकती, जो मेरे कये नह ं हो सकता। अवःथा का भेद िमटाना मेरे वश क बात नह ं । आ खर यह मुझसे

या चाहते ह-समझ ्

गयी। आह यह बात पहले ह नह ं समझी थी, नह ं तो इनको तपःया करनी पड़ती



य इतनी

य इतने ःवांग भरने पड़ते। सात

स दन से िनमला का रं ग-ढं ग बदलने लगा। उसने अपने को क पर िमटा दे ने का िन य कर

उसने क

य पर

दया। अब तक नैराँय के संताप म

यान ह न दया था उसके

दहकती रहती थी, जसक अस



दय म व लव क

वाला-सी

वेदना ने उसे सं ाह न-सा कर रखा था।

अब उस वेदना का वेग शांत होने लगा। उसे का कोई आंनद नह ं। उसका ःव न दे खकर

ात हआ क मेरे िलए जीवन ु

य इस जीवन को न

क ं।

संसार म सब-के-सब ूाणी सुख-सेज ह पर तो नह ं सोते। म भी उ ह ं अभाग म से हंू । मुझे भी वधाता ने दख ु क गठर ढोने के िलए चुना है ।

वह बोझ िसर से उतर नह ं सकता। उसे फकना भी चाहंू , तो नह ं फक

ू सकती। उस क ठन भार से चाहे आंख म अंधेरा छा जाये, चाहे गदन टटने

लगे, चाहे पैर उठाना दःतर हो जाये, ले कन वह गठर ढोनी ह पड़े गी ? उॆ ु भर का कैद कहां तक रोयेगा? रोये भी तो कौन दे खता है ?

कसे उस पर

दया आती है ? रोने से काम म हज होने के कारण उसे और यातनाएं ह तो सहनी पड़ती ह। दसरे दन वक ल साहब कचहर से आये तो दे खा-िनमला क सहाःय ू

मूित अपने कमरे के तृ

ार पर खड़ है । वह अिन

छ व दे खकर उनक आंख

हा गयीं। आज बहत दन के बाद उ ह यह कमल खला हआ दखलाई ु ु

दया। कमरे म एक बड़ा-सा आईना द वार म लटका हआ था। उस पर एक ु

परदा पड़ा रहता था। आज उसका परदा उठा हआ था। वक ल साहब ने कमरे ु

म कदम रखा, तो शीशे पर िनगाह पड़ । अपनी सूरत साफ-साफ दखाई द । उनके

दय म चोट-सी लग गयी। दन भर के प रौम से मुख क कांित

मिलन हो गयी थी, भांित-भांित के पौ क पदाथ खाने पर भी गाल क 45

झु रयां साफ दखाई दे रह थीं। त द कसी होने पर भी कसी मुंहजोर घोड़े क भांित बाहर िनकली हई ु थी। आईने के ह सामने

क तू दसर ओर ू

ताकती हई ु िनमला भी खड़ हई ु थी। दोन सूरत म कतना अंतर था। एक र

ू -फूटा खंडहर। वह उस आईने क ओर न ज टत वशाल भवन, दसरा टटा ू

दे ख सके। अपनी यह ह नावःथा उनके िलए अस

थी। वह आईने के सामने

से हट गये, उ ह अपनी ह सूरत से घृणा होने लगी। फर इस

पवती

कािमनी का उनसे घृणा करना कोई आ य क बात न थी। िनमला क ओर

ताकने का भी उ ह साहस न हआ। उसक यह अनुपम छ व उनके ु

दय का

शूल बन गयी।

िनमला ने कहा-आज इतनी दे र कहां लगायी? दन भर राह दे खतेदे खते आंखे फूट जाती ह। तोताराम ने खड़क क ओर ताकते हए ु जवाब दया-मुकदम के मारे

दम मारने क छु ट नह ं िमलती। अभी एक मुकदमा और था, ले कन म िसरदद का बहाना करके भाग खड़ा हआ। ु िनमला-तो

य इतने मुकदमे लेते हो? काम उतना ह करना चा हए

जतना आराम से हो सके। ूाण दे कर थोड़े ह काम कया जाता है । मत िलया करो, बहत ु मुकदमे। मुझे

तो

पय का लालच नह ं। तुम आराम से रहोगे,

पये बहत ु िमलगे।

ु तोताराम-भई, आती हई जाती। ु लआमी भी तो नह ं ठकराई

िनमला-लआमी अगर र

और मांस क भट लेकर आती है , तो उसका

न आना ह अ छा। म धन क भूखी नह ं हंू । इस व

मंसाराम भी ःकूल से लौटा। धूप म चलने के कारण मुख

पर पसीने क बूंदे आयी हई ु थीं, गोरे मुखड़े पर खून क लाली दौड़ रह थी, आंख से

योित-सी िनकलती मालूम होती थी।

ार पर खड़ा होकर बोला-

अ मां जी, लाइए, कुछ खाने का िनकािलए, जरा खेलने जाना है । िनमला जाकर िगलास म पानी लाई और एक तँतर म कुछ मेवे रखकर मंसाराम को दए। मंसाराम जब खाकर चलने लगा, तो िनमला ने पूछा-कब तक आओगे? मंसाराम-कह नह ं सकता, गोर के साथ हॉक का मैच है । बारक यहां से बहत ु दरू है । 46

िनमला-भई, ज द आना। खाना ठ डा हो जायेगा, तो कहोगे मुझे भूख नह ं है । मंसाराम ने िनमला क ओर सरल ःनेह भाव से दे खकर कहा-मुझे दे र हो जाये तो समझ ली जएगा, वह ं खा रहा हंू । मेरे िलए बैठने क ज रत नह ं।

वह चला गया, तो िनमला बोली-पहले तो घर म आते ह न थे, मुझसे बोलते शमाते थे। कसी चीज क ज रत होती, तो बाहर से ह मंगवा भेजते।

जब से मन बुलाकर कहा, तब से आने लगे ह।

तोताराम ने कुछ िचढ़कर कहा-यह तु हारे पास खाने-पीने क चीज मांगने

य आता है ? द द से

य नह कहता?

िनमला ने यह बात ूशंसा पाने के लोभ से कह थी। वह यह दखाना चाहती थी क म तु हारे लड़क को कतना चाहती हंू । यह कोई बनावट ूेम

न था। उसे लड़क से सचमुच ःनेह था। उसके च रऽ म अभी तक बाल-भाव ह ूधान था, उसम वह उ सुकता, वह चंचलता, वह

वनोद ूयता व मान

थी और बालक के साथ उसक ये बालवृ यां ूःफु टत होती थीं। प ीसुलभ ईंया अभी तक उसके मन म उदय नह ं हई ु थी, ले कन पित के ूस न होने के बदले नाक-भ िसकोड़ने का आशय न सम कर बोली-म

जानूं, उनसे

या

य नह ं मांगते? मेरे पास आते ह, तो द ु कार नह ं दे ती। अगर

ऐसा क ं , तो यह होगा क यह लड़क को दे खकर जलती है । मुंशीजी

ने

इसका

कुछ

जवाब



दया, ले कन

आज

उ ह ने

मुव कल से बात नह ं क ं, सीधे मंसाराम के पास गये और उसका इ तहान

लेने लगे। यह जीवन म पहला ह अवसर था क इ ह ने मंसाराम या कसी लड़के क िश ो नित के वषय म इतनी दलचःपी दखायी हो। उ ह अपने काम से िसर उठाने क फुरसत ह न िमलती थी। उ ह इन वषय को पढ़े हए ु चालीस वष के लगभग हो गये थे। तब से उनक ओर आंख तक न

उठायी थी। वह कानूनी पुःतक और पऽ के िसवा और कुछ पड़ते ह न थे।

इसका समय ह न िमलता, पर आज उ ह ं वषय म मंसाराम क पर



लेने लगे। मंसाराम जह न था और इसके साथ ह मेहनती भी था। खेल म भी ट म का कै टन होने पर भी वह

लास म ूथम रहता था। जस पाठ

को एक बार दे ख लेता, प थर क लक र हो जाती थी। मुंशीजी को उतावली म ऐसे मािमक ू

तो सूझे नह ं, जनके उ र दे ने म चतुर लड़के को भी 47

कुछ सोचना पड़ता और ऊपर ू

को मंसाराम से चुट कय म उड़ा दया।

कोई िसपाह अपने शऽु पर वार खाली जाते दे खकर जैसे झ ला-झ लाकर और भी तेजी से वार करता है , उसी भांित मंसाराम के जवाब को सुनसुनकर वक ल साहब भी झ लाते थे। वह कोई ऐसा ू

करना चाहते थे,

जसका जवाब मंसाराम से न बन पड़े । दे खना चाहते थे क इसका कमजोर पहलू कहां है । यह दे खकर अब उ ह संतोष न हो सकता था क वह करता है । वह यह दे खना चाहते थे अ यःत पर

क यह

या

या नह ं कर सकता। कोई

क मंसाराम क कमजो रय को आसानी से

दखा दे ता, पर

वक ल साहब अपनी आधी शता द क भूली हई ु िश ा के आधार पर इतने

सफल कैसे होते? अंत म उ ह अपना गुःसा उतारने के िलए कोई बहाना न िमला तो बोले-म दे खता हंू , तुम सारे दन इधर-उधर मटरगँती कया करते

हो, म तु हारे च रऽ को तु हार बु

से बढ़कर समझता हंू और तु हारा य

आवारा घूमना मुझे कभी गवारा नह ं हो सकता।

मंसाराम ने िनभ कता से कहा-म शाम को एक घ टा खेलने के िलए जाने के िसवा दन भर कह ं नह ं जाता। आप अ मां या बुआजी से पूछ ल। मुझे खुद इस तरह घूमना पसंद नह ं। हां, खेलने के िलए हे ड माःटर साहब से आमह करके बुलाते ह, तो मजबूरन जाना पड़ता है । अगर आपको मेरा खेलने जाना पसंद नह ं है , तो कल से न जाऊंगा। मुंशीजी ने दे खा क बात दसर ह ू

बोले-मुझे इस बात का इतमीनान

ख पर जा रह ह, तो तीो ःवर म

य कर हो क खेलने के िसवा कह ं नह ं

घूमने जाते? म बराबर िशकायत सुनता हंू ।

मंसाराम ने उ े जत होकर कहा- कन महाशय ने आपसे यह िशकायत

क है , जरा म भी तो सुनूं? वक ल-कोई हो, इससे तुमसे कोई मतलब नह ं। तु ह इतना व ास होना चा हए क म झूठा आ ेप नह ं करता। मंसाराम-अगर मेरे सामने कोई आकर कह दे क मने इ ह कह ं घूमते दे खा है , तो मुंह न दखाऊं। वक ल- कसी को ऐसी

या गरज पड़ है क तु हार मुंह पर तु हार

िशकायत करे और तुमसे बैर मोल ले? तुम अपने दो-चार सािथय को लेकर उसके घर क खपरै ल फोड़ते

फरो। मुझसे इस

कःम क िशकायत एक

आदमी ने नह ं, कई आदिमय ने क है और कोई वजह नह ं है क म अपने 48

दोःत क बात पर व ास न क ं । म चाहता हंू क तुम ःकूल ह म रहा करो।

मंसाराम ने मुंह िगराकर कहा-मुझे वहां रहने म कोई आप

नह ं है ,

जब से क हये, चला जाऊं। वक ल- तुमने मुंह

य लटका िलया?

या वहां रहना अ छा नह ं

लगता? ऐसा मालूम होता है , मान वहां जाने के भय से तु हार नानी मर जा रह है । आ खर बात

या है , वहां तु ह

या तकलीफ होगी?

मंसाराम छाऽालय म रहने के िलए उ सुक नह ं था, ले कन जब

मुंशीजी ने यह बात कह द और इसका कारण पूछा, सो वह अपनी झप िमटाने के िलए ूस निच

होकर बोला-मुंह

य लटकाऊं? मेरे िलए जैसे

बो डग हाउस। तकलीफ भी कोई नह ं, और हो भी तो उसे सह सकता हंू । म कल से चला जाऊंगा। हां अगर जगह न खाली हई ु तो मजबूर है ।

मुंशीजी वक ल थे। समझ गये क यह ल डा कोई ऐसा बहाना ढंू ढ रहा

है , जसम मुझे वहां जाना भी न पड़े और कोई इ जाम भी िसर पर न आये। बोले-सब लड़क के िलए जगह है , तु हारे ह िलये जगह न होगी? मंसाराम- कतने ह लड़क को जगह नह ं िमली और वे बाहर कराये के मकान म पड़े हए ु ह। अभी बो डग हाउस म एक लड़के का नाम कट गया था, तो पचास अ जयां उस जगह के िलए आयी थीं। वक ल साहब ने

यादा तक- वतक करना उिचत नह ं समझा।

मंसाराम को कल तैयार रहने क आ ा दे कर अपनी ब घी तैयार करायी और सैर करने चल गये। इधर कुछ दन से वह शाम को ूाय: सैर करने चले

जाया करते थे। कसी अनुभवी ूाणी ने बतलाया था क द घ जीवन के िलए

इससे बढ़कर कोई मंऽ नह ं है । उनके जाने के बाद मंसाराम आकर

मणी

से बोला बुआजी, बाबूजी ने मुझे कल से ःकूल म रहने को कहा है । मणी ने व ःमत होकर पूछा- य ? मंसाराम-म

या जानू? कहने लगे

क तुम यहां आवार

इधर-उधर फरा करते हो। मणी-तूने कहा नह ं क म कह ं नह ं जाता। मंसाराम-कहा

य नह ं, मगर वह जब मान भी।

मणी-तु हार नयी अ मा जी क कृ पा होगी और 49

या?



तरह

मंसाराम-नह ं, बुआजी, मुझे उन पर संदेह नह ं है , वह बेचार भूल से कभी कुछ नह ं कहतीं। कोई चीज़ मांगने जाता हंू , तो तुर त उठाकर दे दे ती ह।

मणी-तू यह ऽया-च रऽ है । दे ख, म जाकर पूछती हंू ।

या जाने, यह उ ह ं क लगाई हई ु आग

मणी झ लाई हई ु िनमला के पास जा पहंु ची। उसे आड़े हाथ लेने

का, कांट म घसीटने का, तान से छे दने का, लाने का सुअवसर वह हाथ से न जाने दे ती थी। िनमला उनका आदर करती थी, उनसे दबती थी, उनक

बात का जवाब तक न दे ती थी। वह चाहती थी क यह िसखावन क बात कह, जहां म भूलूं वहां सुधार, सब काम क दे ख-रे ख करती रह, पर

मणी

उससे तनी ह रहती थी। िनमला चारपाई से उठकर बोली-आइए द द , बै ठए। मणी ने खड़े -खड़े कहा-म पूछती हंू

या तुम सबको घर से

िनकालकर अकेले ह रहना चाहती हो?

िनमला ने कातर भाव से कहा- या हआ द द जी? मने तो कसी से ु

कुछ नह ं कहा।

मणी-मंसाराम को घर से िनकाले दे ती हो, ितस पर कहती हो, मने तो कसी से कुछ नह ं कहा।

या तुमसे इतना भी दे खा नह ं जाता?

ू िनमला-द द जी, तु हारे चरण को छकर कहती हंू , मुझे कुछ नह ं

मालूम। मेर आंखे फूट जाय, अगर उसके वषय म मुंह तक खोला हो। मणी- य

यथ कसम खाती हो। अब तक तोताराम कभी लड़के

से नह ं बोलते थे। एक ह ते के िलए मंसाराम निनहाल चला गया था, तो इतने घबराए

क खुद जाकर िलवा लाए। अब इसी मंसाराम को घर से

िनकालकर ःकूल म रखे दे ते ह। अगर लड़के का बाल भी बांका हआ ु , तो तुम जानोगी। वह कभी बाहर नह ं रहा, उसे न खाने क सुध रहती है , न पहनने

क -जहां बैठता, वह ं सो जाता है । कहने को तो जवान हो गया, पर ःवभाव बालक -सा है । ःकूल म उसक मरन हो जायेगी। वहां कसे

फब है



इसने खोया या नह ं, कहां कपड़े उतारे , कहां सो रहा है । जब घर म कोई पूछने वाला नह ं, तो बाहर कौन पूछेगा मने तु ह चेता दया, आगे तुम जानो, तु हारा काम जाने। यह कहकर

मणी वहां से चली गयी। 50

वक ल साहब सैर करके लौटे , तो िनमला न तुरंत यह

वषय छे ड़

दया-मंसाराम से वह आजकल थोड़ अंमेजी पढ़ती थी। उसके चले जाने पर फर उसके पढ़ने का हरज न होगा? दसरा कौन पढ़ायेगा? वक ल साहब को ू

अब तक यह बात न मालूम थी। िनमला ने सोचा था क जब कुछ अ यास

हो जायेगा, तो वक ल साहब को एक दन अंमेजी म बात करके च कत कर दं ग ू ी। कुछ थोड़ा-सा िनयिमत

ान तो उसे अपने भाइय से ह हो गया था। अब वह

प से पढ़ रह थी। वक ल साहब क छाती पर सांप-सा लोट गया,

यो रयां बदलकर बोले-वे कब से पढ़ा रहा है , तु ह। मुझसे तुमने कभी नह

कहा। िनमला ने उनका यह

प केवल एक बार दे खा था, जब उ होने

िसयाराम को मारते-मारते बेदम कर दया था। वह

प और भी वकराल

बनकर आज उसे फर दखाई दया। सहमती हई ु बोली-उनके पढ़ने म तो इससे कोई हरज नह ं होता, म उसी व

उनसे पढ़ती हंू जब उ ह फुरसत

रहती है । पूछ लेती हंू क तु हारा हरज होता हो, तो जाओ। बहधा जब वह ु खेलने जाने लगते ह, तो दस िमनट के िलए रोक लेती हंू । म खुद चाहती हंू क उनका नुकसान न हो।

बात कुछ न थी, मगर वक ल साहब हताश से होकर चारपाई पर िगर पड़े और माथे पर हाथ रखकर िचंता म म न हो गये। उ ह नं

जतना

समझा था, बात उससे कह ं अिधक बढ़ गयी थी। उ ह अपने ऊपर बोध आया क मने पहले ह

य न इस ल डे को बाहर रखने का ूबंध कया।

आजकल जो यह महारानी इतनी खुश

दखाई दे ती ह, इसका रहःय अब

समझ म आया। पहले कभी कमरा इतना सजा-सजाया न रहता था, बनाव-

चुनाव भी न करती थीं, पर अब दे खता हंू कायापलट-सी हो गयी है । जी म तो आया क इसी व

चलकर मंसाराम को िनकाल द, ले कन ूौढ़ बु

ने

समझाया क इस अवसर पर बोध क ज रत नह ं। कह ं इसने भांप िलया, तो गजब ह हो जायेगा। हां, जरा इसके मनोभाव को टटोलना चा हए। बोलेयह तो म जानता हंू

क तु ह दो-चार िमनट पढ़ाने से उसका हरज नह ं

होता, ले कन आवारा लड़का है , अपना काम न करने का उसे एक बहाना तो

िमल जाता है । कल अगर फेल हो गया, तो साफ कह दे गा-म तो दन भर पढ़ाता रहता था। म तु हारे िलए कोई िमस नौकर रख दं ग ू ा। कुछ खच न होगा। तुमने मुझसे पहले कहा ह नह ं। यह तु ह भला 51

यादा

या पढ़ाता

होगा, दो-चार श द बताकर भाग जाता होगा। इस तरह तो तु ह कुछ भी न आयेगा। िनमला ने तुर त इस आ ेप का ख डन कया-नह ं, यह बात तो नह ं। वह मुझे दल लगा कर पढ़ाते ह और उनक शैली भी कुछ ऐसी है क पढ़ने म मन लगता है । आप एक समझती हंू क िमस इतने

दन जरा उनका समझाना दे खए। म तो

यान से न पढ़ायेगी।

मुंशीजी अपनी ू -कुशलता पर मूंछ पर ताव दे ते हए ु बोले- दन म

एक ह बार पढ़ाता है या कई बार? िनमला अब भी इन ू

का आशय न समझी। बोली-पहले तो शाम

ह को पढ़ा दे ते थे, अब कई दन से एक बार आकर िलखना भी दे ख लेते ह। वह तो कहते ह क म अपने

लास म सबसे अ छा हंू । अभी पर

ा म

इ ह ं को ूथम ःथान िमला था, फर आप कैसे समझते ह क उनका पढ़ने म जी नह ं लगता? म इसिलए और भी कहती हंू क द द समझगी, इसी ने

यह आग लगाई है । मु त म मुझे ताने सुनने पड़गे। अभी जरा ह दे र हई ु ,

धमकाकर गयी ह।

मुंशीजी ने दल म कहा-खूब समझता हंू । तुम कल क छोकर होकर

मुझे चराने चलीं। द द का सहारा लेकर अपना मतलब पूरा करना चाहती ह। बोले-म नह ं समझता, बो डग का नाम सुनकर

य ल डे क नानी मरती है ।

और लड़के खुश होते ह क अब अपने दोःत म रहगे, यह उलटे रो रहा है । अभी कुछ दन पहले तक यह दल लगाकर पढ़ता था, यह उसी मेहनत का नतीजा है क अपने

लास म सबसे अ छा है , ले कन इधर कुछ दन से

इसे सैर-सपाटे का चःका पड़ चला है । अगर अभी से रोकथाम न क गयी, तो पीछे करते-धरते न बन पड़े गा। तु हारे िलए म एक िमस रख दं ग ू ा। दसरे ू

दन मुंशीजी ूात:काल कपड़े -ल े

पहनकर बाहर िनकले।

द वानखाने म कई मुव कल बैठे हए ु थे। इनम एक राजा साहब भी थे, जनसे मुंशीजी को कई हजार सालाना मेहनताना िमलता था, मगर मुंशीजी

उ ह वह ं बैठे छोड़ दस िमनट म आने का वादा करके ब घी पर बैठकर ःकूल के हे डमाःटर के यहां जा पहंु चे। हे डमाःटर साहब बड़े स जन पु ष थे।

वक ल साहब का बहत ु आदर-स कार कया, पर उनके यहा एक लड़के क भी

जगह खाली न थी। सभी कमरे भरे हए ु थे। इं ःपे टर साहब क कड़ ताक द

थी क मुफ ःसल के लड़क को जगह दे कर तब शहर के लड़क को दया 52

जाये। इसीिलए य द कोई जगह खाली भी हई ु , तो भी मंसाराम को जगह न

िमल सकेगी,

य क

कतने ह बाहर लड़क के ूाथना-पऽ रखे हए ु थे।

मुंशीजी वक ल थे, रात दन ऐसे ूा णय से सा बका रहता था, जो लोभवश

असंभव का भी संभव, असा य को भी सा य बना सकते ह। समझे शायद कुछ दे - दलाकर काम िनकल जाये, द तर

लक से ढं ग क कुछ बातचीत

करनी चा हए, पर उसने हं सकर कहा- मुंशीजी यह कचहर नह ं, ःकूल है , है डमाःटर साहब के कान म इसक भनक भी पड़ गयी, तो जामे से बाहर हो

जायगे और मंसाराम को खड़े -खड़े िनकाल दगे। संभव है , अफसर

से

िशकायत कर द। बेचारे मुंशीजी अपना-सा मुंह लेकर रह गये। दस बजतेबजते झुंझलाये हए ु घर लौटे । मंसाराम उसी व

घर से ःकूल जाने को

िनकला मुंशीजी ने कठोर नेऽ से उसे दे खा, मानो वह उनका शऽु हो और घर

म चले गये। इसके बाद दस-बारह दन तक वक ल साहब का यह िनयम रहा क कभी सुबह कभी शाम, कसी-न- कसी ःकूल के हे डमाःटर से िमलते और मंसाराम को बो डग हाउस म दा खल करने कल चे ा करते, पर कसी ःकूल म जगह न थी। सभी जगह से कोरा जवाब िमल गया। अब दो ह उपाय थे-या तो मंसाराम को अलग कराये के मकान म रख दया जाये या कसी दसरे ःकूल म भत करा दया जाये। ये दोन बात आसान थीं। मुफ ःसल ू के ःकूल म जगह अ सर खाली रहे ती थी, ले कन अब मुंशीजी का शं कत

दय कुछ शांत हो गया था। उस दन से उ ह ने मंसाराम को कभी घर म जाते न दे खा। यहां तक क अब वह खेलने भी न जाता था। ःकूल जाने के

पहले और आने के बाद, बराबर अपने कमरे म बैठा रहता। गम के दन थे, खुले हए ु मैदान म भी दे ह से पसीने क धार िनकलती थीं, ले कन मंसाराम

अपने कमरे से बाहर न िनकलता। उसका आ मािभमान आवारापन के आ ेप से मु

होने के िलए वकल हो रहा था। वह अपने आचरण से इस

कलंक को िमटा दे ना चाहता था। एक दन मुंशीजी बैठे भोजन कर रहे थे, क मंसाराम भी नहाकर खाने आया, मुंशीजी ने इधर उसे मह न से नंगे बदन न दे खा था। आज उस पर िनगाह पड़ , तो होश उड़ गये। ह डय का ढांचा सामने खड़ा था। मुख पर अब भी ॄ॑ाचय का तेज था, पर दे ह घुलकर कांटा हो गयी थी। पूछाआजकल तु हार तबीयत अ छ नह ं है , या? इतने दबल ु 53

य हो?

मंसाराम ने धोती ओढ़कर कहा-तबीयत तो ब कुल अ छ है । मुंशीजी- फर इतने दबल ु

य हो?

मंसाराम- दबल तो नह ं हंू । म इससे ु

यादा मोटा कब था?

मुंशीजी-वाह, आधी दे ह भी नह ं रह और कहते हो, म दबल नह ं हंू ? ु

य द द , यह ऐसा ह था?

मणी आंगन म खड़ तुलसी को जल चढ़ा रह थी, बोली-दबला ु

य होगा, अब तो बहत ु अ छ तरह लालन-पालन हो रहा है । म गंवा रन

थी, लडक

को

खलाना- पलाना नह ं जानती थी। खोमचा

खला- खलाकर

इनक आदत बगाड़ दे ते थी। अब तो एक पढ़ -िलखी, गृहःथी के काम म चतुर औरत पान क तरह फेर रह है न। दबला हो उसका दँमन। ु ु मुंशीजी-द द , तुम बड़ा अ याय करती हो। तुमसे

कसने कहा



लड़क को बगाड़ रह हो। जो काम दसर के कये न हो सके, वह तु ह खुद ू

करने चा हए। यह नह ं क घर से कोई नाता न रखो। जो अभी खुद लड़क है , वह लड़क क दे ख-रे ख

या करे गी? यह तु हारा काम है ।

मणी-जब तक अपना समझती थी, करती थी। जब तुमने गैर समझ िलया, तो मुझे

या पड़ है

क म तु हारे गले से िचपटंू ? पूछो, कै

दन से दध ू नह ं पया? जाके कमरे म दे ख आओ, नाँते के िलए जो िमठाई

भेजी गयी थी, वह पड़ सड़ रह है । माल कन समझती ह, मने तो खाने का सामान रख दया, कोई न खाये तो

या म मुंह म डाल दं ?ू तो भैया, इस

तरह वे लड़के पलते ह गे, ज ह ने कभी लाड़- यार का सुख नह ं दे खा। तु हारे लड़के बराबर पान क तरह फेरे जाते रहे ह, अब अनाथ क तरह

रहकर सुखी नह ं रह सकते। म तो बात साफ कहती हंू । बुरा मानकर ह कोई

या कर लेगा? उस पर सुनती हंू

क लड़के को ःकूल म रखने का

ूबंध कर रहे हो। बेचारे को घर म आने तक क मनाह है । मेरे पास आते भी डरता है , और फर मेरे पास रखा ह

या रहता है , जो जाकर खलाऊंगी।

इतने म मंसाराम दो फुलके खाकर उठ खड़ा हआ। मुंशीजी ने पूछाु

या दो ह फुलके तो िलये थे। अभी बैठे एक िमनट से तुमने खाया

या, दो ह फुलके तो िलये थे।

यादा नह ं हआ। ु

मंसाराम ने सकुचाते हए ु कहा-दाल और तरकार भी तो थी।

खा जाता हंू , तो गला जलने लगता है , ख ट डकार आने लगतीं ह। 54

यादा

मुंशीजी भोजन करके उठे तो बहत ु ु िचंितत थे। अगर य ह दबला

होता गया, तो उसे कोई भंयकर रोग पकड़ लेगा। उ ह

मणी पर इस

समय बहत ु बोध आ रहा था। उ ह यह जलन है क म घर क माल कन

नह ं हंू । यह नह ं समझतीं अिधकार है ? जसे

क मुझे घर क

माल कन बनने का

या

पया का हसाब तक नह ं अता, वह घर क ःवािमनी

कैसे हो सकती है ? बनीं तो थीं साल भर तक माल कन, एक पाई क बचत न होती थी। इस आमदनी म

पकला दो-ढाई सौ

पये बचा लेती थी। इनके

राज म वह आमदनी खच को भी पूर न पड़ती थी। कोई बात नह ं, लाड़यार ने इन लड़क को चौपट कर दया। इतने बड़े -बड़े लड़क को इसक या ज रत

क जब कोई

खलाये तो खाय। इ ह तो खुद अपनी

फब

करनी चा हए। मुंशी जी दनभर उसी उधेड़-बुन म पड़े रहे । दो-चार िमऽ से भी जब कया। लोग ने कहा-उसके खेल-कूद म बाधा न डािलए, अभी से उसे कैद न क जए, खुली हवा म च रऽ के ॅ

होने क उससे कम संभावना

है , जतना ब द कमरे म। कुसंगत से ज र बचाइए, मगर यह नह ं क उसे घर से िनकलने ह न द जए। युवावःथा म एका तवास च रऽ के िलए बहत ु

ह हािनकारक है । मुंशीजी को अब अपनी गलती मालूम हई। घर लौटकर ु मंसाराम के पास गये। वह अभी ःकूल से आया था और बना कपड़े उतारे ,

एक कताब सामने खोलकर, सामने खड़क क ओर ताक रहा था। उसक एक िभखा रन पर लगी हई ु थी, जो अपने बालक को गोद म िलए िभ ा

मांग रह थी। बालक माता क गोद म बैठा ऐसा ूस न था, मानो वह कसी

राजिसंहासन पर बैठा हो। मंसाराम उस बालक को दे खकर रो पड़ा। यह बालक

या मुझसे अिधक सुखी नह ं है ? इस अ नत व

म ऐसी कौन-सी

वःतु है , जसे वह इस गोद के बदले पाकर ूस न हो? ई र भी ऐसी वःतु क सृ

नह ं कर सकते। ई र ऐसे बालक को ज म ह

य दे ते हो, जनके

भा य म मातृ- वयोग का दख ु भोगना बडा? आज मुझ-सा अभागा संसार म और कौन है ? कसे मेरे खाने-पीने क , मरने-जीने क सुध है । अगर म आज मर भी जाऊं, तो कसके दल को चोट लगेगी। पता को अब मुझे

लाने म

मजा आता है , वह मेर सूरत भी नह ं दे खना चाहते, मुझे घर से िनकाल दे ने क तैया रयां हो रह ह। आह माता। तु हारा लाड़ला बेटा आज आवारा कहां जा रहा है । वह

पताजी, जनके हाथ म तुमने हम तीन भाइय के हाथ

पकड़ाये थे, आज मुझे आवारा और बदमाश कह रहे ह। म इस यो य भी 55

नह ं क इस घर म रह सकूं। यह सोचते-सोचते मंसाराम अपार वेदना से फूट-फूटकर रोने लगा। उसी समय तोताराम कमरे म आकर खड़े हो गये। मंसाराम ने चटपट आंसू प छ डाले और िसर झुकाकर खड़ा हो गया। मुंशीजी ने शायद यह पहली बार उसके कमरे म कदम रखा था। मंसाराम का दल धड़धड़ करने लगा क दे ख आज

या आफत आती है । मुंशीजी ने उसे रोते दे खा, तो एक

ण के िलए उनका वा स य घेर िनिा से च क पड़ा घबराकर बोले- य , रोते

य हो बेटा। कसी ने कुछ कहा है ?

मंसाराम ने बड़ मु ँकल से उमड़ते हए ु आंसुओं को रोककर कहा- जी

नह ं, रोता तो नह ं हंू ।

मुंशीजी-तु हार अ मां ने तो कुछ नह ं कहा? मंसाराम-जी नह ं, वह तो मुझसे बोलती ह नह ं।

मुंशीजी- या क ं बेटा, शाद तो इसिलए क थी क ब च को मां िमल जायेगी, ले कन वह आशा पूर नह ं हई ु , तो

या ब कुल नह ं बोलतीं?

मंसाराम-जी नह ं, इधर मह न से नह ं बोलीं।

मुंशीजी- विचऽ ःवभाव क औरत है , मालूम ह नह ं होता



या

चाहती है ? म जानता क उसका ऐसा िमजाज होगा, तो कभी शाद न करता रोज एक-न-एक बात लेकर उठ खड़ होती है । उसी ने मुझसे कहा था क यह दन भर न जाने कहां गायब रहता है । म उसके दल क बात

या

जानता था? समझा, तुम कुसंगत म पड़कर शायद दनभर घूमा करते हो। कौन ऐसा पता है , जसे अपने

यारे पुऽ को आवारा फरते दे खकर रं ज न

हो? इसीिलए मने तु ह बो डग हाउस म रखने का िन य कया था। बस, और कोई बात नह ं थी, बेटा। म तु हारा खेलन-कूदना बंद नह ं करना चाहता

ु था। तु हार यह दशा दे खकर मेरे दल के टकड़े हए ु जाते ह। कल मुझे

मालूम हआ म ॅम म था। तुम शौक से खेलो, सुबह-शाम मैदान म िनकल ु जाया करो। ताजी हवा से तु ह लाभ होगा। जस चीज क ज रत हो मुझसे

कहो, उनसे कहने क ज रत नह ं। समझ लो क वह घर म है ह नह ं। तु हार माता छोड़कर चली गयी तो म तो हंू । बालक का सरल िनंकपट

दय पतृ-ूेम से पुल कत हो उठा। मालूम

हआ क सा ात ् भगवान ् खड़े ह। नैराँय और ु मन म अपने पता का िन ु र और न जाने 56

ोभ से वकल होकर उसने या- या समझ रखा। वमाता

से उसे कोई िगला न था। अब उसे

ात हआ क मने अपने दे वतु य पता ु

के साथ कतना अ याय कया है । पतृ-भ

क एक तरं ग-सी

दय म उठ ,

और वह पता के चरण पर िसर रखकर रोने लगा। मुंशीजी क णा से व ल हो गये। जस पुऽ को

ण भर आंख से दरू दे खकर उनका

उठता था, जसके शील, बु थे, उसी के ूित उनका

दय

यम हो

और च रऽ का अपने-पराये सभी बखान करते

दय इतना कठोर

य हो गया? वह अपने ह

ूय

पुऽ को शऽु समझने लगे, उसको िनवासन दे ने को तैयार हो गये। िनमला

पुऽ और पता के बी म द वार बनकर खड़ थी। िनमला को अपनी ओर

खींचने के िलए पीछे हटना पड़ता था, और पता तथा पुऽ म अंतर बढ़ता जाता था। फलत: आज यह दशा हो गयी है

क अपने अिभ न पुऽ उ ह

इतना छल करना पड़ रहा है । आज बहत ु सोचने के बाद उ ह एक एक ऐसी यु

सूझी है , जससे आशा हो रह है क वह िनमला को बीच से िनकालकर

अपने दसरे बाजू को अपनी तरफ खींच लगे। उ ह ने उस यु ू

भी कर दया है , ले कन इसम अभी

िस

का आरं भ

होगा या नह ं, इसे कौन जानता

है । जस दन से तोतोराम ने िनमला के बहत ु िम नत-समाजत करने पर

भी मंसाराम को बो डग हाउस म भेजने का िन य कया था, उसी दन से

उसने मंसाराम से पढ़ना छोड़ दया। यहां तक क बोलती भी न थी। उसे ःवामी क इस अ व ासपूण त परता का कुछ-कुछ आभास हो गया था। ओ फोह। इतना श क िमजाज। ई र ह इस घर क लाज रख। इनके मन म ऐसी-ऐसी दभावनाएं भर हई ु ु ह। मुझे यह इतनी गयी-गुजर समझते ह।

ये बात सोच-सोचकर वह कई दन रोती रह । तब उसने सोचना शू इ ह

कया,

या ऐसा संदेह हो रहा है ? मुझ म ऐसी कौन-सी बात है , जो इनक

आंख म खटकती है । बहत ु सोचने पर भी उसे अपने म कोई ऐसी बात नजर न आयी। तो

या उसका मंसाराम से पढ़ना, उससे हं सना-बोलना ह

इनके संदेह का कारण है , तो फर म पढ़ना छोड़ दं ग ू ी, भूलकर भी मंसाराम

से न बोलूंगी, उसक सूरत न दखूग ं ी।

ले कन यह तपःया उसे असा य जान पड़ती थी। मंसाराम से हं सनेबोलने म उसक

वलािसनी क पना उ े जत भी होती थी और तृ

भी। उसे

बात करते हुए उसे अपार सुख का अनुभव होता था, जसे वह श द म ूकट

न कर सकती थी। कुवासना क उसके मन म छाया भी न थी। वह ःव न 57

म भी मंसाराम से कलु षत ूेम करने क बात न सोच सकती थी। ू येक ूाणी को अपने हमजोिलय के साथ, हं सने-बोलने क जो एक नैसिगक तृंणा होती है , उसी क तृि िनमला के

का यह एक अ ात साधन था। अब वह अतृ

तृंणा

दय म द पक क भांित जलने लगी। रह-रहकर उसका मन

कसी अ ात वेदना से वकल हो जाता। खोयी हई कसी अ ात वःतु क ु

खोज म इधर-उधर घूमती- फरती, जहां बैठती, वहां बैठ ह रह जाती, कसी काम म जी न लगता। हां, जब मुंशीजी आ जाते, वह अपनी सार तृंणाओं को नैराँय म डबाकर , उनसे मुःकराकर इधर-उधर क बात करने लगती। ु कल जब मुंशीजी भोजन करके कचहर

चले गये, तो

मणी ने

िनमला को खुब तान से छे दा-जानती तो थी क यहां ब च का पालनपोषण करना पड़े गा, तो

य घरवाल से नह ं कह दया क वहां मेरा ववाह

न करो? वहां जाती जहां पु ष के िसवा और कोई न होता। वह यह बनावचुनाव और छ व दे खकर खुश होता, अपने भा य को सराहता। यहां बु ढा या ल टू होगा? इसने इ ह ं बालक

आदमी तु हारे रं ग- प, हाव-भाव पर

क सेवा करने के िलए तुमसे ववाह कया है , भोग- वलास के िलए नह ं वह बड़ दे र तक घाव पर नमक िछड़कती रह , पर िनमला ने चूं तक न क । वह अपनी सफाई तो पेश करना चाहती थी, पर न कर सकती थी। अगर कहे क म वह कर रह हंू , जो मेरे ःवामी क इ छा है तो घर का भ डा फूटता है ।

अगर वह अपनी भूल ःवीकार करके उसका सुधार करती है , तो भय है क उसका न जाने

या प रणाम हो? वह य बड़ ःप वा दनी थी, स य कहने म

उसे संकोच या भय न होता था, ले कन इस नाजुक मौके पर उसे चु पी

साधनी पड़ । इसके िसवा दसरा उपाय न था। वह दे खती थी मंसाराम बहत ू ु वर

और उदास रहता है , यह भी दे खती थी क वह दन- दन दबल होता ु

जाता है , ले कन उसक वाणी और कम दोन ह पर मोहर लगी हई ु थी। चोर के घर चोर हो जाने से उसक जो दशा होती है , वह दशा इस समय

िनमला क हो रह थी।



आठ ब कोई बात हमार

आशा के



होती है , तभी दख होता है । ु

मंसाराम को िनमला से कभी इस बात क आशा न थी क वे उसक 58

िशकायत करगी। इसिलए उसे घोर वेदना हो रह िशकायत करती है ?

थी। वह

मेर

या चाहती है ? यह न क वह मेरे पित क कमाई

खाता है , इसके पढ़ान-िलखाने म

पये खच होते ह, कपड़ा पहनता है । उनक

यह इ छा होगी क यह घर म न रहे । मेरे न रहने से उनके जायगे। वह मुझसे बहत ु ूस निच श द नह ं सुने।



पये बच

रहती ह। कभी मने उनके मुंह से कटु

या यह सब कौशल है ? हो सकता है ? िच ड़या को जाल म

फंसाने के पहले िशकार दाने बखेरता है । आह। म नह ं जानता था क दाने के नीचे जाल है , यह मातृ-ःनेह केवल मेरे िनवासन क भूिमका है । अ छा, मेरा यहां रहना वह मेरा पता नह ं है ? कम घिन

य बुरा लगता है ? जो उनका पित है , या

या पता-पुऽ का संबंध

ी-पु ष के संबंध से कुछ

है ? अगर मुझे उनके संपूण आिधप य से ईंया नह ं होती, वह

जो चाहे कर, म मुंह नह ं खोल सकता, तो वह मुझे एक अगुल ं भर भूिम भी दे ना नह ं चाहतीं। आप प के महल म रहकर

य मुझे वृ

क छाया म

बैठा नह ं दे ख सकतीं। हां, वह समझती ह गी क वह बड़ा होकर मेरे पित क स प

का

ःवामी हो जायेगा, इसिलए अभी से िनकाल दे ना अ छा है । उनको कैसे व ास दलाऊं क मेर ओर से यह शंका न कर। उ ह

य कर बताऊं क

मंसाराम वष खाकर ूाण दे दे गा, इसके पहले क उनका अ हत कर। उसे चाहे कतनी ह क ठनाइयां सहनी पड वह उनके

दय का शूल न बनेगा। य

तो पताजी ने मुझे ज म दया है और अब भी मुझ पर उनका ःनेह कम नह ं है , ले कन

या म इतना भी नह ं जानता क जस दन पताजी ने

उनसे ववाह कया, उसी दन उ ह ने हम अपने

दय से बाहर िनकाल दया?

अब हम अनाथ क भांित यहां पड़े रह सकते ह, इस घर पर हमारा कोई अिधकार नह ं है । कदािचत ् पूव संःकार के कारण यहां अ य अनाथ से

हमार दशा कुछ अ छ है , पर ह अनाथ ह । हम उसी दन अनाथ हए ु , जस

दन अ मां जी परलोक िसधार ं। जो कुछ कसर रह गयी थी, वह इस ववाह

ने पूर कर द । म तो खुद पहले इनसे वशेष संबंध न रखता था। अगर, उ ह ं दन

पताजी से मेर िशकायत क होती, तो शायद मुझे इतना दख ु न

होता। म तो उसे आघात के िलए तैयार बैठा था। संसार म भी नह ं कर सकता? ले कन बुरे व

या म मजदरू

म इ ह ने चोट क । हं सक पशु भी

आदमी को गा फल पाकर ह चोट करते ह। इसीिलए मेर आवभगत होती 59

थी, खाना खाने के िलए उठने म जरा भी दे र हो जाती थी, तो बुलावे पर बुलावे आते थे, जलपान के िलए ूात: हलुआ बनाया जाता था, बार-बार पूछा जाता था- पय क ज रत तो नह ं है ? इसीिलए वह सौ

पय क घड़

मंगवाई थी। मगर

या इ ह

आ खर उ ह ने मेर

या दसर िशकायत न सूझी, जो मुझे आवारा कहा? ू

या आवारगी दे खी? यह कह सकती थीं क इसका मन

पढ़ने-िलखने म नह ं लगता, एक-न-एक चीज के िलए िन य

रहता है । यह एक बात उ ह

पये मांगता

य सूझी? शायद इसीिलए क यह सबसे

कठोर आघात है , जो वह मुझ पर कर सकती ह। पहली ह बार इ ह ने मुझे पर अ न–बाण चला

दया, जससे कह ं शरण नह ं। इसीिलए न

क वह

पता क नजर से िगर जाये? मुझे बो डग-हाउस म रखने का तो एक बहाना था। उ े ँय यह था क इसे दध ू क म खी क तरह िनकाल दया जाये। दो-

चार मह ने के बाद खच-वच दे ना बंद कर

दया जाये, फर चाहे मरे या

जये। अगर म जानता क यह ूेरणा इनक ओर से हई ु है , तो कह ं जगह न

रहने पर भी जगह िनकाल लेता। नौकर क कोठ रय म तो जगह िमल जाती, बरामदे म पड़े रहने के िलए बहत ु जगह िमल जाती। खैर, अब सबेरा

है । जब ःनेह नह ं रहा, तो केवल पेट भरने के िलए यहां पड़े रहना बेहयाई है , यह अब मेरा घर नह ं। इसी घर म पैदा हआ हंू , यह खेला हंू , पर यह अब ु

मेरा नह ं। पताजी भी मेरे पता नह ं ह। म उनका पुऽ हंू , पर वह मेरे पता

नह ं ह। संसार के सारे नाते ःनेह के नाते ह। जहां ःनेह नह ं, वहां कुछ

नह ं। हाय, अ मांजी, तुम कहां हो?

यह सोचकर मंसाराम रोने लगा।

य - य मातृ ःनेह क पूव-ःमृितयां

जागृत होती थीं, उसके आंसू उमड़ते आते थे। वह कई बार अ मां-अ मां पुकार उठा, मानो वह खड़ सुन रह ह। मातृ-ह नता के द:ु ख का आज उसे

पहली बार अनुभव हआ। वह आ मािभमानी था, साहसी था, पर अब तक ु

सुख क गोद म लालन-पालन होने के कारण वह इस समय अपने आप को

िनराधार समझ रहा था। रात के दस बज गये थे। मुंशीजी आज कह ं दावत खाने गये हए ु थे।

दो बार महर

मंसाराम को भोजन करने के िलए बुलाने आ चुक

थी।

मंसाराम ने पछली बार उससे झुंझलाकर कह दया था-मुझे भूख नह ं है , 60

कुछ न खाऊंगा। बार-बार आकर िसर पर सवार हो जाती है । इसीिलए जब िनमला ने उसे फर उसी काम के िलए भेजना चाहा, तो वह न गयी। बोली-बहजी ू , वह मेरे बुलाने से न आवगे।

िनमला-आयगे चार कौर खा ल।

य नह ं? जाकर कह दे खाना ठ डा हआ जाता है । दो ु

महर -म यह सब कह के हार गयी, नह ं आते। िनमला-तूने यह कहा था क वह बैठ हई ु ह।

महर -नह ं बहजी ू , यह तो मने नह ं कहा, झूठ

य बोलूं।

िनमला-अ छा, तो जाकर यह कह दे ना, वह बैठ तु हार राह दे ख रह

ह। तुम न खाओगे तो वह रसोई उठाकर सो रहगी। मेर भूंगी, सुन, अबक और चली जा। (हं सकर) न आव, तो गोद म उठा लाना। भूंगी नाक-भ िसकोड़ते गयी, पर एक ह बहजी ू , वह तो रो रहे ह। कसी ने कुछ कहा है

ण म आकर बोली-अरे

या?

िनमला इस तरह चौककर उठ और दो-तीन पग आगे चली, मानो

कसी माता ने अपने बेटे के कुएं म िगर पड़ने क खबर पायी हो, फर वह ठठक गयी और भूंगी से बोली-रो रहे ह? तूने पूछा नह ं भूंगी- नह ं बहजी ू , यह तो मने नह ं पूछा। झूठ

य रो रहे ह?

य बोलूं?

वह रो रहे ह। इस िनःतबध रा ऽ म अकेले बैठै हए ु वह रो रहे ह।

माता क याद आयी होगी? कैसे जाकर उ ह समझाऊं? हाय, कैसे समझाऊं? यहां तो छ ंकते नाक कटती है । ई र, तुम सा ी हो अगर मने उ ह भूल से भी कुछ कहा हो, तो वह मेरे गे आये। म

या क ं ? वह दल म समझते

ह गे क इसी ने पताजी से मेर िशकायत क होगी। कैसे व ास दलाऊं क मने कभी तु हारे व

एक श द भी मुंह से नह ं िनकाला? अगर म

ऐसे दे वकुमार के-से च रऽ रखने वाले युवक का बुरा चेतूं, तो मुझसे बढ़कर रा सी संसार म न होगी। िनमला दे खती थी क मंसाराम का ःवाः य दन- दन बगड़ता जाता है , वह दन- दन दबल होता जाता है , उसके मुख क िनमल कांित दन- दन ु

मिलन होती जाती है , उसका सहास बदन संकुिचत होता जाता है । इसका कारण भी उससे िछपा न था, पर वह इस वषय म अपने ःवामी से कुछ न कह सकती थी। यह सब दे ख-दे खकर उसका उसक

दय वद ण होता रहता था, पर

जबान न खुल सकती थी। वह कभी-कभी मन म झुंझलाती 61



मंसाराम

य जरा-सी बात पर इतना

ोभ करता है ?

या इनके आवारा

कहने से वह आवारा हो गया? मेर और बात है , एक जरा-सा शक मेरा सवनाश कर सकता है , पर उसे ऐसी बात क इतनी



या परवाह?

सके जी म ूबल इ छा हई क चलकर उ ह चुप कराऊं और लाकर ु खाना खला दं ।ू बेचारे रात-भर भूखे पड़े रहगे। हाय। म इस उपिव क

जड़ हंू । मेरे आने के पहले इस घर म शांित का रा य था। पता बालक पर

जान दे ता था, बालक पता को यार करते थे। मेरे आते ह सार बाधाएं आ खड़ हु । इनका अंत

या होगा? भगवान ् ह जाने। भगवान ् मुझे मौत भी

नह ं दे ते। बेचारा अकेले भूख पड़ा है । उस व

था। और उसका आहार ह

भी मुंह जुठा करके उठ गया

या है , जतना वह खाता है , उतना तो साल-दो-

साल के ब चे खा जाते ह। िनमला चली। पित क इ छा के व

होता था, उसी को मनाने जाते उसका

चली। जो नाते म उसका पुऽ

दय कांप रहा था। उसने पहले

मणी के कमरे क ओर दे खा, वह भोजन करके बेखबर सो रह थीं, फर बाहर कमरे क ओर गयी। वहां स नाटा था। मुंशी अभी न आये थे। यह सब दे ख-भालकर वह मंसाराम के कमरे के सामने जा पहंु ची। कमरा खुला

हआ था, मंसाराम एक पुःतक सामने रखे मेज पर िसर झुकाये बैठा हआ ु ु था, मानो शोक और िच ता क सजीव मूित हो। िनमला ने पुकारना चाहा पर

उसके कंठ से आवाज़ न िनकली। सहसा मंसाराम ने िसर उठाकर

ार क

ओर दे खा। िनमला को

दे खकर अंधेरे म पहचान न सका। च ककर बोला-कौन? िनमला ने कांपते हए ु ःवर म कहा-म तो हंू । भोजन करने

य नह ं

चल रहे हो? कतनी रात गयी।

मंसाराम ने मुंह फेरकर कहा-मुझे भूख नह ं है । िनमला-यह तो म तीन बार भूंगी से सुन चुक हंू । मंसाराम-तो चौथी बार मेरे मुंह से सुन ली जए।

िनमला-शाम को भी तो कुछ नह ं खाया था, भूख मंसाराम ने कहां से?

य नह ं लगी?

यं य क हं सी हं सकर कहा-बहत ु भूख लगेगी, तो आयेग

62

यह कहते-कहते मंसाराम ने कमरे का

ार बंद करना चाहा, ले कन

िनमला कवाड़ को हटाकर कमरे म चली आयी और मंसाराम का हाथ पकड़ सजल नेऽ से वनय-मधुर ःवर म बोली-मेरे कहने से चलकर थोड़ा-सा खा लो। तुम न खाओगे, तो म भी जाकर सो रहंू गी। दो ह कौर खा लेना।

या

मुझे रात-भर भूख मारना चाहते हो?

मंसाराम सोच म पड़ गया। अभी भोजन नह ं कया, मेरे ह इं तजार म बैठ रह ं। यह ःनेह, वा स य और वनय क दे वी ह या ईंया और अमंगल क माया वनी मूित? उसे अपनी माता का ःमरण हो आया। जब वह



जाता था, तो वे भी इसी तरह मनाने आ करती थीं और जब तक वह न जाता था, वहां से न उठती थीं। वह इस वनय को अःवीकार न कर सका। बोला-मेरे िलए आपको इतना क

हआ ु , इसका मुझे खेद है । म जानता क

आप मेरे इं तजार म भूखी बैठ ह, तो तभी खा आया होता।

िनमला ने ितरःकार-भाव से कहा-यह तुम कैसे समझ सकते थे क तुम भूखे रहोगे और म खाकर सो रहंू गी?

या वमाता का नाता होने से ह

म ऐसी ःवािथनी हो जाऊंगी?

सहसा मदाने कमरे म मुंशीजी के खांसने क आवाज आयी। ऐसा मालूम हआ क वह मंसाराम के कमरे क ओर आ रहे ह। िनमला के चेहरे ु

का रं ग उड़ गया। वह तुरंत कमरे से िनकल गयी और भीतर जाने का मौका न पाकर कठोर ःवर म बोली-म ल ड नह ं हंू क इतनी रात तक कसी के

िलए रसोई के करे ।

ार पर बैठ रहंू । जसे न खाना हो, वह पहले ह कह दया

मुंशीजी ने िनमला को वहां खड़े दे खा। यह अनथ। यह यहां

आ गयी? बोले-यहां

या करने

या कर रह हो?

िनमला ने ककश ःवर म कहा-कर

या रह हंू , अपने भा य को रो

रह हंू । बस, सार बुराइय क जड़ म ह हंू । कोई इधर

ठा है , कोई उधर

मुंह फुलाये खड़ा है । कस- कस को मनाऊं और कहां तक मनाऊं। मुंशीजी कुछ च कत होकर बोले-बात

या है ?

िनमला-भोजन करने नह ं जाते और

या बात है ? दस दफे महर को

भे, आ खर आप दौड़ आयी। इ ह तो इतना कह दे ना आसान है , मुझे भूख नह ं है , यहां तो घर भर क ल ड हंू , सार दिनया मुंह म कािलख पोतने को ु 63

तैयार। कसी को भूख न हो, पर कहने वाल को यह कहने से कौन रोकेगा क पशािचनी कसी को खाना नह ं दे ती। मुंशीजी ने मंसाराम से कहा-खाना या व

य नह ं खा लेते जी? जानते हो

है ?

मंसाराम ः

भत-सा खड़ा था। उसके सामने एक ऐसा रहःय हो रहा

था, जसका मम वह कुछ भी न समझ सकताथा। जन नेऽ म एक पहले वनय के आंसू भरे हए ु थे, उनम अकःमात ् ईंया आ गयी? जन अधर से एक ूवाह

ण पहले सुधा-वृ





वाला कहां से

हो रह थी, उनम से वष

य होने लगा? उसी अध चेतना क दशा म बोला-मुझे भूख नह ं है । मुंशीजी ने घुड़ककर कहा- य भूख नह ं है ? भूख नह ं थी, तो शाम को

य न कहला दया? तु हार भूख के इं तजार म कौन सार रात बैठा रहे ? तुमम पहले तो यह आदत न थी।

ठना कब से सीख िलया? जाकर खा लो।

मंसाराम-जी नह ं, मुझे जरा भी भूख नह ं है । तोताराम-ने दांत पीसकर कहा-अ छ बात है , जब भूख लगे तब खाना। यह कहते हए ु एवह अंदर चले गये। िनमला भी उनके पीछे ह चली गयी। मुंशीजी तो लेटने चले गये, उसने जाकर रसोई उठा द और कु लाकर, पान खा मुःकराती हई ु आ पहंु ची। मुंशीजी ने पूछा-खाना खा िलया न? िनमला- या करती, कसी के िलए अ न-जल छोड़ दं ग ू ी?

मुंशीजी-इसे न जाने

या हो गया है , कुछ समझ म नह ं आता? दन-

दन घुलता चला जाता है , दन भर उसी कमरे म पड़ा रहता है । िनमला कुछ न बोली। वह िचंता के अपार सागर म डब ु कयां खा रह

थी। मंसाराम ने मेरे भाव-प रवतन को दे खकर

दल म

होगा?

या उसके मन म यह ू



इसक

यो रयं

उठा होगा

य बदल गयीं? इसका कारण भी

या- या समझा

पताजी को दे खते ह या उसक समझ म आ

गया होगा? बेचारा खाने आ रहा था, तब तक यह महाशय न जाने कहां से फट पड़े ? इस रहःय को उसे कैसे समझाऊं समझाना संभव भी है ? म कस वप

म फंस गयी? सवेरे वह उठकर घर के काम-धंधे म लगी। सहसा नौ बजे भूंगी ने

आकर कहा-मंसा बाबू तो अपने कागज-प र सब इ के पर लाद रहे ह। भूंगी-मने पूछा तो बोले, अब ःकूल म ह रहंू गा। 64

मंसाराम ूात:काल उठकर अपने ःकूल के हे डमाःटर साहब के पास गया था और अपने रहने का ूबंध कर आया था। हे डमाःटर साहब ने पहले तो कहा-यहां जगह नह ं है , तुमसे पहले के कतने ह लड़क के ूाथना-पऽ पडे हए ु ह, ले कन जब मंसाराम ने कहा-मुझे जगह न िमलेगी, तो कदािचत ् मेरा पढ़ना न हो सके और म इ तहान म शर क न हो सकूं, तो हे डमाःटर

साहब को हार माननी पड़ । मंसाराम के ूथम ौेणी म पास होने क आशा थी। अ यापक को व ास था क वह उस शाला क क ित को उ जवल

करे गा। हे डमाःटर साहब ऐसे लड़क को कैसे छोड़ सकते थे? उ होने अपने

द तर का कमरा खाली करा दया। इसीिलए मंसाराम वहां से आते ह अपना सामान इ के पर लादने लगा। मुंशीजी ने कहा-अभी ऐसी

या ज द है ? दो-चार दन म चले जाना।

म चाहता हंू , तु हारे िलए कोई अ छा सा रसोइया ठ क कर दं ।ू

मंसाराम-वहां का रसोइया बहत ु अ छा भोजन पकाता है । मुंशीजी-अपने ःवाः य का

यान रखना। ऐसा न हो क पढ़ने के पीछे

ःवाः य खो बैठो। मंसाराम-वहां नौ बजे के बाद कोई पढ़ने नह ं पाता और सबको िनयम के साथ खेलना पड़ता है । मुंशी जी- बःतर

य छोड़ दे ते हो? सोओगे कस पर?

मंसाराम-कंबल िलए जाता हंू । बःतर ज रत नह ं।

मुंशी जी-कहार जब तक तु हारा सामान रख रहा है , जाकर कुछ खा लो। रात भी तो कुछ नह ं खाया था।

मंसाराम-वह ं खा लूंगा। रसोइये से भोजन बनाने को कह आया हंू यहां

खाने लगूंगा तो दे र होगी।

घर म जयाराम और िसयाराम भी भाई के साथ जाने के जद कर रहे थे िनमला उन दोन के बहला रह थी-बेटा, वहां छोटे नह ं रहते, सब काम अपने ह हाथ से करना पड़ता है । एकाएक

मणी ने आकर कहा-तु हारा वळ का

लड़के ने रात भी कुछ नह ं खाया, इस व

दय है , महारान।

भी बना खाय-पीये चला जा रहा

है और तुम लड़को के िलए बात कर रह हो? उसको तुम जानती नह ं हो। यह समझ लो क वह ःकूल नह ं जा रहा है , बनवास ले रहा है , लौटकर फर 65

न आयेगा। यह उन लड़क म नह ं है , जो खेल म मार भूल जाते ह। बात उसके दल पर प थर क लक र हो जाती है । िनमला ने कातर ःवर म कहा- या क ं , द द जी? वह कसी क सुनते ह नह ं। आप जरा जाकर बुला ल। आपके बुलाने से आ जायगे। मणी- आ खर हआ ु

या, जस पर भागा जाता है ? घर से उसका

जी कभ उचाट न होता था। उसे तो अपने घर के िसवा और कह ं अ छा ह न लगता था। तु ह ं ने उसे कुछ कहा होगा, या उसक कुछ िशकायत क होगी।

य अपने िलए कांटे बो रह हो? रानी, घर को िम ट म िमलाकर

चैन से न बैठने पाओगी। िनमला ने रोकर कहा-मने उ ह कुछ कहा हो, तो मेर जबान कट जाये। हां, सौतेली मां होने के कारण बदनाम तो हंू ह । आपके हाथ जोड़ती हंू

जरा जाकर उ ह बुला लाइये।

मणी ने तीो ःवर म कहा- तुम हो जाओगी? अपना होता, तो

य नह ं बुला लातीं?

या छोट

या इसी तरह बैठ रहती?

िनमला क दशा उस पंखह न प ी क तरह हो रह थी, जो सप को अपनी ओर आते दे ख कर उड़ना चाहता है , पर उड़ नह ं सकता, उछलता है और िगर पड़ता है , पंख फड़फड़ाकर रह जाता है । उसका

दय अंदर ह अंदर

तड़प रहा था, पर बाहर न जा सकती थी। इतने म दोन लड़के आकर बोले-भैयाजी चले गये। िनमला मूितवत ् खड़ रह , मानो सं ाह न हो गयी हो। चले गये? घर

म आये तक नह ं, मुझसे िमले तक नह ं चले गये। मुझसे इतनी घृणा। म

उनक कोई न सह , उनक बुआ तो थीं। उनसे तो िमलने आना चा हए था? म यहां थी न। अंदर कैसे कदम रखते? म दे ख लेती न। इसीिलए चले गये। नौ

मं

साराम के जाने से घर सूना हो गया। दोन छोटे लड़के उसी ःकूल म

पढ़ते थे। िनमला रोज उनसे मंसाराम का हाल पूछती। आशा थी क

छु ट के दन वह आयेगा, ले कन जब छु ट के दन गुजर गये और वह न आया, तो िनमला क तबीयत घबराने लगी। उसने उसके िलए मूंग के ल डू

66

बना रखे थे। सोमवार को ूात: भूंगी का ल डू दे कर मदरसे भेजा। नौ बजे भूंगी लौट आयी। मंसाराम ने ल डू

य -के- य लौटा दये थे।

िनमला ने पूछा-पहले से कुछ हरे हए ु ह, रे ? भूंगी-हरे -वरे तो नह ं हए ु , और सूख गये ह।

िनमला-

या जी अ छा नह ं है ?

भूंगी-यह तो मने नह ं पूछा बहजी ू , झूठ

य बोलूं? हां, वहां का कहार

मेरा दे वर लगता है । वह कहता था क तु हारे बाबूजी क खुराक कुछ नह ं है । दो फुल कयां खाकर उठ जाते ह, फर दन भर कुछ नह ं खाते। हरदम पढ़ते रहते ह। िनमला-तूने पूछा नह ं, ल डू

भूंगी- बहजी ू , झूठ

य लौटाये दे ते हो?

य बोलूं? यह पूछने क तो मुझे सुध ह न रह ।

हां, यह कहते थे क अब तू यहां कभी न आना, न मेरे िलए कोई चीज लाना और अपनी बहजी से कह दे ना ू

क मेरे पास कोई िच ठ -प र न भेज।

लड़क से भी मेरे पास कोई संदेशा न भेज और एक ऐसी बात कह मुंह से िनकल नह ं सकती,

क मेरे

फर रोने लगे।

िनमला-कौन बात थी कह तो? लगे।

भूंगी- या कहंू कहते थे मेरे जीने को धी कार है ? यह कहकर रोने िनमला के मुंह से एक ठं ड सांस िनकल गयी। ऐसा मालूम हआ ु , मानो

कलेजा बैठा जाता है । उसका रोम-रोम आतनाद करने लगा। वह वहां बैठ न रह सक । जाकर

बःतर पर मुंह ढांपकर लेट रह और फूट-फूटकर रोने

लगी। ‘वह भी जान गये’। उसके अ त:करण म बार-बार यह आवाज़ गूज ं ने लगी-‘वह भी जान गये’। भगवान ् अब

या होगा? जस संदेह क आग म

िचंता न थी। जीवन म अब सुख क

या आशा थी, जसक उसे लालसा

वह भःम हो रह थी, अब शतगुण वेग से धधकने लगी। उसे अपनी कोई

होती? उसने अपने मन को इस वचार से समझाया था क यह मेरे पूव कम का ूाय

त है । कौन ूाणी ऐसा िनल ज होगा, जो इस दशा म बहत ु

दन जी सके? क

य क वेद पर उसने अपना जीवन और उसक सार

कामनाएं होम कर द थीं।

दय रोता रहता था, पर मुख पर हं सी का रं ग

भरना पड़ता था। जसका मुंह दे खने को जी न चाहता था, उसके सामने हं सहं सकर बात करनी पड़ती थीं।

जस दे ह का ःपश उसे सप के शीतल ःपश 67

के समान लगता था, उससे आिलंिगत होकर उसे

जतनी घृणा, जतनी

ममवेदना होती थी, उसे कौन जान सकता है ? उस समय उसक यह इ छा थी क धरती फट जाये और म उसम समा जाऊं। ले कन सार

वड बना

अब तक अपने ह तक थी। अपनी िचंता उसन छोड़ द थी, ले कन वह समःया अब अ यंत भयंकर हो गयी थी। वह अपनी आंख से मंसाराम क आ मपीड़ा नह ं दे ख सकती थी। मंसाराम जैसे मनःवी, साहसी युवक पर इस आ ेप का जो असर पड़ सकता था, उसक क पना ह से उसके ूाण कांप उठते थे। अब चाहे उस पर कतने ह संदेह ह

य न ह , चाहे उसे आ मह या

य न करनी पड़े , पर वह चुप नह ं बैठ सकती। मंसाराम क र ा करने

के िलए वह वकल हो गयी। उसने संकोच और ल जा क चादर उतारकर फक दे ने का िन य कर िलया। वक ल साहब भोजन करके कचहर

जाने के पहले एक बार उससे

अवँय िमल िलया करते थे। उनके आने का समय हो गया था। आ ह रहे ह गे, यह सोचकर िनमला लगी ले कन यह

ार पर खड़ हो गयी और उनका इं तजार करने

या? वह तो बाहर चले जा रहे है । गाड़ जुतकर आ गयी,

यह हु म वह यह ं से दया करते थे। तो

या आज वह न आयगे, बाहर-ह -

बाहर चले जायगे। नह ं, ऐसा नह ं होने पायेगा। उसने भूंगी से कहा-जाकर बाबूजी को बुला ला। कहना, एक ज र काम है , सुन ली जए। मुंशीजी जाने को तैयार ह थे। यह संदेशा पाकर अंदर आये, पर कमरे म न आकर दरू से ह पूछा- या बात है भाई? ज द कह दो, मुझे एक ज र

काम से जाना है । अभी थोड़ दे र हई ु , हे डमाःटर साहब का एक पऽ आया है क मंसाराम को

वर आ गया है , बेहतर हो क आप घर ह पर उसका

इलाज कर। इसिलए उधर ह से हाता हआ कचहर जाऊंगा। तु ह कोई खास ु

बात तो नह ं कहनी है ।

िनमला पर मानो वळ िगर पड़ा। आंसुओं के आवेग और कंठ-ःवर म घोर संमाम होने लगा। दोन पहले िनकलने पर तुले हए ु थे। दो म से कोई

एक कदम भी पीछे हटना नह ं चाहता था। कंठ-ःवर क

दबलता और ु

आंसुओं क सबलता दे खकर यह िन य करना क ठन नह ं था क एक



यह संमाम होता रहा तो मैदान कसके हाथ रहे गा। अखीर दोन साथ-साथ िनकले, ले कन बाहर आते ह बलवान ने िनबल को दबा िलया। केवल इतना मुंह से िनकला-कोई खास बात नह ं थी। आप तो उधर जा ह रहे ह। 68

मुंशीजी- मने लड़क पूछा था, तो वे कहते थे, कल बैठे पढ़ रहे थे, आज न जाने

या हो गया।

िनमला ने आवेश से कांपते हए ु कहा-यह सब आप कर रहे ह

मुंशीजी ने

यो रयां बदलकर कहा-म कर रहा हंू ? म

िनमला-अपने दल से पूिछए। मुंशीजी-मने तो यह

सोचा था

या कर रहा हंू ?

क यहां उसका पढ़ने म जी नह ं

लगता, वहां और लड़क के साथ खामा वह पढ़े गा ह । यह तो बुर बात न

थी और मने

या कया?

िनमला-खूब सोिचए, इसीिलए आपने उ ह वहां भेजा था? आपके मन म और कोई बात न थी। मुंशीजी जरा

हच कचाए और अपनी दबलता को िछपाने के िलए ु

मुःकराने क चे ा करके बोले-और

या बात हो सकती थी? भला तु ह ं

सोचो। िनमला-खैर, यह

सह । अब आप कृ पा करके उ ह आज ह

लेते

आइयेगा, वहां रहने से उनक बीमार बढ़ जाने का भय है । यहां द द जी जतनी तीमारदार कर सकती ह, दसरा नह ं कर सकता। ू एक

ण के बाद उसने िसर नीचा करके कहा-मेरे कारण न लाना

चाहते ह , तो मुझे घर भेज द जए। म वहां आराम से रहंू गी।

मुंशीजी ने इसका कुछ जवाब न दया। बाहर चले गये, और एक



म गाड़ ःकूल क ओर चली। मन। तेर गित कतनी विचऽ है , कतनी रहःय से भर हई ु , कतनी

दभ ु । तू

कतनी ज द रं ग बदलता है ? इस कला म तू िनपुण है ।

आितशबाजी क चख को भी रं ग बदलते कुछ दे र लगती है , पर तुझे रं ग

बदलने म उसका ल ांश समय भी नह ं लगता। जहां अभी वा स य था, वहां फर संदेह ने आसन जमा िलया। वह सोचते थे-कह ं उसने बहाना तो नह ं कया है ?

मं

दस साराम दो दन तक गहर िचंता म डबा ू रहा। बार-बार अपनी माता क

याद आती, न खाना अ छा लगता, न पढ़ने ह म जी लगता। उसक 69

कायापलट-सी हो गई। दो दन गुजर गये और छाऽालय म रहते हए ु भी

उसने वह काम न कया, जो ःकूल के माःटर ने घर से कर लाने को दया था। प रणाम ःव प उसे बच पर खड़ा रहना पड़ा। जो बात कभी न हई ु थी, वह आज हो गई। यह अस

अपमान भी उसे सहना पड़ा।

तीसरे दन वह इ ह ं िचंताओं म म न हआ अपने मन को समझा रहा ु

था-कहा संसार म अकेले मेर ह माता मर है ?

वमाताएं तो सभी इसी

ूकार क होती ह। मेरे साथ कोई नई बात नह ं हो रह है । अब मुझे पु ष

क भांित

गुण प रौम से अपना म करना चा हए, जैसे माता- पता राजी

रह, वैसे उ ह राजी रखना चा हए। इस साल अगर छाऽवृित िमल गई, तो मुझे घर से कुछ लेने क ज रत ह न रहे गी। कतने ह लड़के अपने ह बल पर बड़ -बड़ उपािधयां ूा

कर लेते ह। भागय के नाम को रोने-कोसने से

या होगा। इतने म

जयाराम आकर खड़ा हो गया।

मंसाराम ने पूछा-घर का ूस न ह गी?

या हाल है जया? नई अ मांजी तो बहत ु

जयाराम-उनके मन का हाल तो म नह ं जानता, ले कन जब से तुम आये हो, उ होने एक जून भी खाना नह ं खाया। जब दे खो, तब रोया करती ह। जब बाबूजी आते ह, तब अलब ा हं सने लगती ह। तुम चले आये तो मने भी शाम को अपनी

कताब संभाली। यह ं तु हारे साथ रहना चाहता था।

भूंगी चुड़ैल ने जाकर अ मांजी से कह दया। बाबूजी बैठे थे, उनके सामने ह अ मांजी ने आकर मेर

कताब छ न लीं और रोकर बोलीं, तुम भी चले

जाओगे, तो इस घर म कौन रहे गा? अगर मेरे कारण तुम लोग घर छोड़छोड़कर भागे जा रहे तो लो, म ह कह ं चली जाती हंू । म तो झ लाया हआ ु था ह , वहां अब बाबूजी भी न थे,

बगड़कर बोला, आप

य कह ं चली

जायगी? आपका तो घर है , आप आराम से र हए। गैर तो हमीं लोग ह, हम न रहगे, तब तो आपको आराम-आराम ह होग। मंसाराम-तुमने खूब कहा, बहत ह ु

अ छा कहा। इस पर और भी

झ लाई ह गी और जाकर बाबूजी से िशकायत क होगी। जयाराम-नह ं, यह कुछ नह ं हआ। बेचार ु

जमीन पर बैठकर रोने

लगीं। मुझे भी क णा आ गयी। म भी रो पड़ा। उ होने आंचल से मेरे आंसू प छे और बोलीं, जया। म ई र को सा ी दे कर कहती हंू क मने तु हारे 70

भैया केइ वषय म तु हारे बाबूजी से एक श द भी नह ं कहा। मेरे भाग म कलंक िलखा हआ है , वह भाग रह हंू । फर और न जाने ु

या- या कहा, जा

मेर समझ म नह ं आया। कुछ बाबुजी क बात थी। मंसाराम ने उ

नता से पूछा-बाबूजी के वषय म

या कहा? कुछ

याद है ? जयाराम-बात तो भई, मुझे याद नह ं आती। मेर ‘मेमोर ’ कौन बड़ ते है , ले कन उनक बात का मतलब कुछ ऐसा मालूम होता था क उ ह

बाबूजी को ूस न रखने के िलए यह ःवांग भरना पड़ रहा है । न जाने धम-

अधम क कैसी बात करती थीं जो म ब कुल न समझ सका। मुझे तो अब इसका व ास आ गया है क उनक इ छा तु ह यहां भेजन क न थी। मंसाराम- तुम इन चाल का मतलब नह ं समझ सकते। ये बड़ गहर चाल ह। जयाराम- तु हार समझ म ह गी, मेर समझ म नह ं ह। मंसाराम- जब तुम

योमेश नह ं समझ सकते, तो इन बात को

या

समझ सकोगे? उस रात को जब मुझे खाना खाने के िलए बुलाने आयी थीं औरउनके आमह पर म जाने को तैयार भी हो गया था, उस व दे खते ह उ होने जो कडा बदला, वह

बाबूजी को

या म कभी भी भूल सकता हंू ?

जयाराम-यह बात मेर समझ म नह ं आती। अभी

कल ह म यहां

से गया, तो लगीं तु हारा हाल पूछने। मने कहा, वह तो कहते थे क अब कभी इस घर म कदम न रखूंगा। मने कुछ झूठ तो कहा नह ं, तुमने मुझसे कहा ह था। इतना सुनना था क फूट-फूटकर रोने लगीं म दल म बहत ु

पछताया क कहां-से-कहां मने यह बात कह द । बार-बार यह कहती थीं, या वह मेरे कारण घर छोड़ दगे? मुझसे इतने नाराज है ।? चले गये और मझसे िमले तक नह ं। खाना तैयार था, खाने तक नह ं आये। हाय। म बताऊं, कस

वप

या

म हंू । इतने म बाबूजी आ गये। बस तुर त आंख

प छकर मुःकुराती हई ु उनके पास चली गई। यह बात मेर समझ म नह ं

आती। आज मुझे बड़ िम नत क

क उनको साथ लेते आना। आज म

तु ह खींच ले चलूंगा। दो दन म वह कतनी दबली हो गयी ह, तु ह यह ु

दे खकर उन पर दया आयी। तो चलोगे न?

मंसाराम ने कुछ जवाब न दया। उसके पैर कांप रहे थे। जयाराम तो हा जर क घंट सुनकर भागा, पर वह बच पर लेट गया और इतनी ल बी 71

सांस ली, मानो बहत ु ु दे र से उसने सांस ह नह ं ली है । उसके मुख से दःसह वेदना म डबे ू हए ु श द िनकले-हाय ई र। इस नाम के िसवा उसे अपना

जीवन िनराधार मालूम होता था। इस एक उ छवास म कतना नैराँय था,

कतनी संवेदना, कतनी क णा, कतनी द न-ूाथना भर हई ु थी, इसका कौन

अनुमान कर सकता है । अब सारा रहःय उसक समझ म आ रहा था और बार-बार उसका पी ड़त कलंक।

दय आतनाद कर रहा था-हाय ई र। इतना घोर

या जीवन म इससे बड़

वप

क क पना क जा सकती है ?

या

संसार म इससे घोरतम नीचता क क पना हो सकती है ? आज तक कसी पता ने अपने पुऽ पर इतना िनदय कलंक न लगाया होगा। जसके च रऽ क सभी ूशंसा करते थे, जो अ य युवक के िलए आदश समझा जाता था, जसने कभी अप वऽ वचार को अपने पास नह ं फटकने दया, उसी पर यह घोरतम कलंक। मंसाराम को ऐसा मालूम हआ ु , मान उसका दल फटा जाता है ।

दसर घंट भी बज गई। लड़के अपने-अपने कमरे म गए, पर मंसाराम ू

हथेली पर गाल रखे अिनमेष नेऽ से भूिम क ओर दे ख रहा था, मानो

उसका सवःव जलम न हो गया हो, मानो वह कसी को मुंह न दखा सकता हो। ःकूल म गैरहा जर हो जायेगी, जुमाना हो जायेगा, इसक उसे िचंता नह ं, जब उसका सवःव लुट गया, तो अब इन छोट -छोट बात का

या

भय? इतना बड़ा कलंक लगने पर भी अगर जीता रहंू , तो मेरे जीने को िध कार है ।

उसी शोकाितरे क दशा म वह िच ला पड़ा-माताजी। तुम कहां हो?

तु हारा बेटा, जस पर तुम ूाण दे ती थीं, जसे तुम अपने जीवन का आधार

ु फेर समझती थीं, आज घोर संकट म है । उसी का पता उसक गदन पर छर

रहा है । हाय, तुम हो? मंसाराम फर शांतिच है ? इसका

से सोचने लगा-मुझ पर यह संदेह

य हो रहा

या कारण है ? मुझम ऐसी कौन-सी बात उ ह ने दे खी, जससे

उ ह यह संदेह हआ ु ? वह हमारे पता ह, मेरे शऽु नह ं है , जो अनायास ह

मझ पर यह अपराध लगाने बैठ जाय। ज र उ होन कोई-कोई बात दे खी या

सुनी है । उनका मुझ पर कतना ःनेह था। मेरे बगैर भोजन न करते थे, वह मेरे शऽु हो जाय, यह बात अकारण नह ं हो सकती। 72

अ छा, इस संदेह का बीजारोपण कस दन हआ ु ?

मुझे बो डग हाउस

म ठहराने क बात तो पीछे क है । उस दन रात को वह मेरे कमरे म आकर मेर पर

ा लेने लगे थे, उसी दन उनक

यो रयां बदली हु

थीं। उस

दन ऐसी कौन-सी बात हई ु , जो अ ूय लगी हो। म नई अ मां से कुछ खाने

को मांगने गया था। बाबूजी उस समय वहां बैठे थे। हां, अब याद आती है , उसी व

उनका चेहरा तमतमा गया था। उसी दन से नई अ मां ने मुझसे

पढ़ना छोड़ दया। अगर म जानता क मेरा घर म आना-जाना, अ मांजी से

कुछ कहना-सुनना और उ ह पढ़ाना-िलखाना पताजी को बुरा लगता है , तो आज

य यह नौबत आती? और नई अ मां। उन पर मंसाराम ने अब तक िनमला क ओर

का

या बीत रह होगी?

यान नह ं दया था। िनमला

यान आते ह उसके र ये खड़े हो गये। हाय उनका सरल ःनेहशील

दय

यह आघात कैसे सह सकेगा? आह। म कतने ॅम म था। म उनके ःनेह को कौशल समझता था। मुझे

या मालूम था क उ ह पताजी का ॅम

शांत करने के िलए मेरे ूित इतना कटु यवहार करना पड़ता है । आह। मने उन पर कतना अ याय कया है । उनक दशा तो मुझसे भी खराब हो रह होगी। म तो यहां चला आय, मगर वह कहां जायगी?

जया कहता था,

उ ह ने दो दन से भोजन नह ं कया। हरदम रोया करती ह। कैसे जाकर समझाऊं। वह इस अभागे के पीछे वह बार-बार मेरा हाल पूछती ह?

य अपने िसर यह वप

ले रह ह?

य बार-बार मुझे बुलाती ह? कैसे कह दं ू

क माता मुझे तुमसे जरा भी िशकायत नह ं, मेरा दल तु हार तरफ से साफ है ।

वह अब भी बैठ रो रह ह गी। कतना बड़ा अनथ है । बाबूजी को

या हो रहा है ?

या इसीिलए

ववाह

यह

कया था? एक बािलका क ह या

करने के िलए ह उसे लाये थे? इस कोमल पुंप को मसल डालने के िलए ह तोड़ा था। उनका उ ार कैसे होगा। उस िनरपरािधनी का मुख कैस उ जवल होगा? उ ह केवल मेरे साथ ःनेह का

यवहार करने के िलए यह दं ड दया

जा रहा है । उनक स जनता का उ ह यह उपहार िमल रहा है । म उ ह इस ूकार िनदय आघात सहते दे खकर बैठा रहंू गा? अपनी मान-र ा के िलए न

सह , उनक आ म-र ा के िलए इन ूाण का बिलदान करना पड़े गा। इसके िसवाय उ ार का काई उपाय नह ं। आह। दल म कैसे-कैसे अरमान थे। वे 73

सब खाक म िमला दे ने ह गे। एक सती पर संदेह कया जा रहा है और मेरे कारण। मुझे अपनी ूाण से उनक र ा करनी होगी, यह मेरा क इसी म स ची वीरता है । माता, म अपने र इसी म मेरा और तु हारा दोन का क याण है ।

य है ।

से इस कािलमा को धो दं ग ू ा।

वह दन भर इ ह ं वचार मे डबा रहा। शाम को उसके दोन भाई ू

आकर घर चलने के िलए आमह करने लगे। िसयाराम-चलते

यां नह ? मेरे भैयाजी, चले चलो न।

मंसाराम-मुझे फुरसत नह ं है क तु हारे कहने से चला चलूं। जयाराम-आ खर कल तो इतवार है ह ।

मंसाराम-इतवार को भी काम है । जयाराम-अ छा, कल आआगे न? मंसाराम-नह ं, कल मुझे एक मैच म जाना है । िसयाराम-अ मांजी मूंग के ल डू बना रह ह। न चलोगे तो एक भी

पाआगे। हम तुम िमल के खा जायगे, जया इ ह न दगे।

जयाराम-भैया, अगर तुम कल न गये तो शायद अ मांजी यह ं चली आय। मंसाराम-सच। नह ं ऐसा



करगी। यहां आयीं, तो बड़

परे शानी

होगी। तुम कह दे ना, वह कह ं मैच दे खने गये ह। जयाराम-म झूठ

य बोलने लगा। म कह दं ग ू ा, वह मुंह फुलाये बैठे

थे। दे ख ले उ ह साथ लाता हंू क नह ं।

िसयाराम-हम कह दगे क आज पढ़ने नह ं गये। पड़े -पड़े सोते रहे ।

ु मंसाराम ने इन दत जब ू से कल आने का वादा करके गला छड़ाया।

दोन चले गये, तो फर िचंता म डबा। रात-भर उसे करवट बदलते गुजर । ू

छु ट का दन भी बैठे-बैठे कट गया, उसे दन भर शंका होती रहती क कह ं अ मांजी सचमुच न चली आय।

कसी गाड़



खड़खड़ाहट सुनता, तो

उसका कलेजा धकधक करने लगता। कह ं आ तो नह ं गयीं? छाऽालय म एक छोटा-सा औषधालय था। एक डां टर साहब सं या समय एक घ टे के िलए आ जाया करते थे। अगर कोई लड़का बीमार होता तो उसे दवा दे ते। आज वह आये तो मंसाराम कुछ सोचता हआ उनके पास ु

जाकर खड़ा हो गया। वह मंसाराम को अ छ तरह जानते थे। उसे दे खकर आ य से बोले-यह तु हार

या हालत है जी? तुम तो मानो गले जा रहे 74

हो। कह ं बाजार का का चःका तो नह ं पड़ गया? आ खर तु ह हआ ु

या?

जरा यहां तो आओ।

मंसाराम ने मुःकराकर कहा-मुझे

ज दगी का रोग है । आपके पास

इसक भी तो कोई दवा है ? डा टर-म तु हार पर गयी है , पहचाने भी नह ं जाते।

ा करना चाहता हंू । तु हार सूरत ह बदल

यह कहकर, उ होने मंसाराम का हाथ पकड़ िलया और छाती, पीठ,

आंख, जीभ सब बार -बार से दे खीं। तब िचंितत होकर बोले-वक ल साहब से म आज ह िमलूंगा। तु ह थाइिसस हो रहा है । सारे ल ण उसी के ह।

मंसाराम ने बड़ उ सुकता से पूछा- कतने दन म काम तमाम हो जायेगा, ड टर साहब? डा टर-कैसी बात करते हो जी। म वक ल साहब से िमलकर तु ह कसी पहाड़ जगह भेजने क सलाद दं ग ू ा। ई र ने चाहा, तो बहत ु ज द

अ छे हो जाओगे। बीमार अभी पहले ःटे ज म है ।

मंसाराम-तब तो अभी साल दो साल क दे र मालूम होती है । म तो इतना इं तजार नह ं कर सकता। सुिनए, मुझे थायिसस-वायिसस कुछ नह ं है , न कोई दसर ू

िशकायत ह

डािलएगा। इस व

है , आप बाबूजी को नाहक तरिदद ु म न

मेरे िसर म दद है , कोई दवा द जए। कोई ऐसी दवा हो,

जससे नींद भी आ जाये। मुझे दो रात से नींद नह ं आती। डॉ टर ने जहर ली दवाइय क आलमार खोली और शीशी से थोड़ सी दवा िनकालकर मंसाराम को द । मंसाराम ने पूछा-यह तो कोई जहर है भला

इस कोई पी ले तो मर जाये?

डॉ टर-नह ं, मर तो नह ं जाये, पर िसर म च कर ज र आ जाये। मंसाराम-कोई ऐसी दवा भी इसम है , जसे पीते ह ूाण िनकल जाय? डॉ टर-ऐसी एक-दो नह ं कतनी ह दवाएं ह। यह जो शीशी दे ख रहे हो, इसक एक बूंद भी पेट म चली जाये, तो जान न बचे। आनन-फानन म मौत हो जाये। मंसाराम- य

डॉ टर साहब, जो लोग जहर खा लेते ह, उ ह बड़

तकलीफ होती होगी?

75

डॉ टर-सभी जहर म तकलीफ नह ं होती। बाज तो ऐसे ह क पीते ह आदमी ठं डा हो जाता है । यह शीशी इसी कःम क है , इस पीते ह आदमी बेहोश हो जाता है , फर उसे होश नह ं आता। मंसाराम ने सोचा-तब तो ूाण दे ना बहत ु आसान है , फर

य लोग

इतना डरते ह? यह शीशी कैसे िमलेगी? अगर दवा का नाम पूछकर शहर के कसी दवा-फरोश से लेना चाहंू , तो वह कभी न दे गा। ऊंह, इसे िमलने म

कोई द कत नह ं। यह तो मालूम हो गया क ूाण का अ त बड़ आसानी

से कया जा सकता है । मंसाराम इतना ूस न हआ ु , मानो कोई इनाम पा गया हो। उसके दल पर से बोझ-सा हट गया। िचंता क मेघ-रािश जो िसर

पर मंडरा रह थी, िछ न-िभ न ् हो गयी। मह न बाद आज उसे मन म एक

ःफूित का अनुभव हआ। लड़के िथयेटर दे खने जा रहे थे, िनर ु

क से आ ा

ले ली थी। मंसाराम भी उनके साथ िथयेटर दे खने चला गया। ऐसा खुश था, मानो उससे

यादा सुखी जीव संसार म कोई नह ं है । िथयेटर म नकल

दे खकर तो वह हं सते-हं सते लोट गया। बार-बार तािलयां बजाने और ‘व स मोर’ क हांक लगाने म पहला न बर उसी का था। गाना सुनकर वह मःत हो जाता था, और ‘ओहो हो। करके िच ला उठता था। दशक क िनगाह बार-बार उसक तरफ उठ जाती थीं। िथयेटर के पाऽ भी उसी क ओर ताकते थे और यह जानने को उ सुक थे क कौन महाशय इतने रिसक और भावुक ह। उसके िमऽ को उसक उ छंृ खलता पर आ य हो रहा था। वह बहत ु ह

शांतिच , ग भीर ःवभाव का युवक था। आज वह

य इतना हाःयशील हो

गया है , य उसके वनोद का पारावार नह ं है ।

दो बजे रात को िथयेटर से लौटने पर भी उसका हाःयो माद कम नह ं

हआ। उसने एक लड़के क चारपाई उलट द , कई लड़क के कमरे के ु

ार

बाहर से बंद कर दये और उ ह भीतर से खट-खट करते सुनकर हं सता रहा। यहां तक क छाऽालय के अ य

महोदय कर नींद म भी शोरगुल सुनकर

खुल गयी और उ ह ने मंसाराम क

शरारत पर खेद ूकट

कया। कौन

जानता है क उसके अ त:ःथल म कतनी भीषण बांित हो रह है ? संदेह के िनदय आघात ने उसक ल जा और आ मस मान को कुचल डाला है । उसे अपमान और ितरःकार का लेशमाऽ भी भय नह ं है । यह वनोद नह ं, उसक आ मा का क ण वलाप है । जब और सब लड़के सो गये, तो वह भी चारपाई पर लेटा, ले कन उसे नींद नह ं आयी। एक 76

ण के बाद वह बैठा और अपनी

सार पुःतक बांधकर संदक ू म रख द ं। जब मरना ह है , तो पढ़कर

या

होगा? जस जीवन म ऐसी-एसी बाधाएं ह, ऐसी-ऐसी यातनाएं ह, उससे मृ यु कह ं अ छ । यह सोचते-सोचते तड़का हो गया। तीन रात से वह एक सोया था। इस व

ण भी न

वह उठा तो उसके पैर थर-थर कांप रहे थे और िसर म

च कर सा आ रहा था। आंख जल रह थीं और शर र के सारे अंग िशिथल हो रहे थे। दन चढ़ता जाता था और उसम इतनी श था और उसम इतनी श उसने भूंगी को

दन चढ़ता जाता

भी न थी क उठकर मुंह हाथ धो डाले। एकाएक

माल म कुछ िलए हए ु एक कहार के साथ आते दे खा।

उसका कलेजा स न रह गया। हाय। ई र वे आ गयीं। अब

या होगा? भूंगी

अकेले नह ं आयी होगी? ब घी ज र बाहर खड़ होगी? कहां तो उससे उठा ू

जाता था, कहां भूंगी को दे खते ह दौड़ा और घबराई हई ु आवाज म

बोला-अ मांजी भी आयी ह, आयी, तब उसका िच

या रे ? जब मालूम हआ ु

क अ मांजी नह ं

शांत हआ। ु

भूंगी ने कहा-भैया। तुम कल गये नह , बहजी तु हार राह दे खती रह ू

गयीं। उनसे



ठे हो भैया? कहती ह, मने उनक कुछ भी िशकायत नह ं

क है । मुझसे आज रोकर कहने लगीं-उनके पास यह िमठाई लेती जा और कहना, मेरे कारण मंसाराम ने

य घर छोड़ दया है ? कहां रख दं ू यह थाली?

खाई से कहा-यह थाली अपने िसर पर पटक दे चुड़ैल।

वहां से चली है िमठाई लेकर। खबरदार, जो फर कभी इधर आयी। सौगात लेकर चली है । जाकर कह दे ना, मुझे उनक िमठाई नह ं चा हए। जाकर कह

दे ना, तु हारा घर है तुम रहो, वहां वे बड़े आराम से ह। खूब खाते और मौज करते ह। सुनती है , बाबूजी क मुंह पर कहना, समझ गयी? मुझे कसी का डर नह ं है , और जो करना चाह, कर डाल, जससे दल म कोई अरमान न रह जाये। कह तो इलाहाबाद, लखनऊ, कलक ा चला जाऊं। मेरे िलए जैसे बनारस वैसे दसरा शहर। यहां ू

या रखा है ?

भूंगी-भैया, िमठाई रख लो, नह ं रो-रोकर मर जायगी। सच मानो रो-

रोकर मर जायगी। मंसाराम ने आंसुओं के उठते हए ु वेग को दबाकर कहा-मर जायगी,

मेर बला से। कौन मुझे बड़ा सुख दे दया है , जसके िलए पछताऊं। मेरा तो 77

उ ह ने सवनाश कर

दया। कह दे ना, मेरे पास कोई संदेशा न भेज, कुछ

ज रत नह ं। भूंगी- भैया, तुम तो कहते हो यहां खूब खाता हंू और मौज करता हंू ,

मगर दे ह तो आधी भी न रह । जैसे आये थे, उससे आधे भी न रहे ।

मंसाराम-यह तेर आंख का फेर है । दे खना, दो-चार दन म मुटाकर को हू हो जाता हंू क नह ं। उनसे यह भी कह दे ना क रोना-धोना बंद कर।

जो मने सुना क रोती ह और खाना नह ं खातीं, मुझसे बुरा कोई नह ं। मुझे

घर से िनकाला है , तो आप न से रह। चली ह, ूेम दखाने। म ऐसे ऽयाच रऽ बहत ु पढ़े बैठा हंू ।

भूंगी चली गयी। मंसाराम को उससे बात करते ह कुछ ठ ड मालूम

होने लगी थी। यह अिभनय करने के िलए उसे अपने मनोभाव को जतना दबाना पड़ा था, वह उसके िलए असा य था। उसका आ म-स मान उसे इस कु टल

यवहार का ज द-से-ज द अंत कर दे ने के िलए बा य कर रहा था,

पर इसका प रणाम

या होगा? िनमला

तक वह मृ यु क क पना करते समय करता था, पर आज एकाएक

या यह आघात सह सकेगी? अब कसी अ य ूाणी का

वचार न

ान हआ क मेरे जीवन के साथ एक और ु

ूाणी का जीवन-सूऽ भी बंधा हआ है । िनमला यह समझेगी क मेर िन ु रता ु

ह ने इनक जान ली। यह समझकर उसका कोमल उसका जीवन तो अब भी संकट अबला

दय फट न जायेगा?

म है । संदेह के कठोर पंजे म फंसी हुई

या अपने का ह या रणी समझकर बहत दन जी वत रह सकती है ? ु

मंसाराम ने चारपाई पर लेटकर िलहाफ ओढ़ िलया, फर भी सद से

कलेजा कांप रहा था। थोड़ ह दे र म उसे जोर से

वर चढ़ आया, वह बेहोश

हो गया। इस अचेत दशा म उसे भांित-भांित के ःव न दखाई दे ने लगे। थोड़ -थोड़ दे र के बाद च क पड़ता, आंख खुल जाती, फर बेहोश हो जाता। सहसा वक ल साहब क आवाज सुनकर वह च क पड़ा। हां, वक ल साहब क आवाज थी। उसने िलहाफ फक दया और चारपाई से उतरकर नीचे खड़ा हो गया। उसके मन म एक आवेग हआ ु

क इस व

इनके

सामने ूाण दे दं ।ू उसे ऐसा मालूम हआ क म मर जाऊं, तो इ ह स ची ु

खुशी होगी। शायद इसीिलए वह दे खने आये ह क मेरे मरने म कतनी दे र है । वक ल साहब ने उसका हाथ पकड़ िलया, जससे वह िगर न पड़े और 78

पूछा-कैसी तबीयत है ल लू। लेटे

य न रहे ? लेट न जाओ, तुम खड़े



हो गये? मंसाराम-मेर तबीयत तो बहत ु अ छ है । आपको

यथ ह क

हआ। ु

मुंशी जी ने कुछ जवाब न दया। लड़के क दशा दे खकर उनक आंख से आंसू िनकल आये। वह

-पु

बालक, जसे दे खकर िच

ूस न हो

जाता था, अब सूखकर कांटा हो गया था। पांच-छ: दन म ह वह इतना दबला हो गया था क उसे पहचानना क ठन था। मुंशीजी ने उसे आ हःता ु

से चारपाई पर िलटा दया और िलहाफ अ छ तरह उसे उढ़ाकर सोचने लगे क अब

या करना चा हए। कह ं लड़का हाथ से तो नह ं जाएगा। यह

याल

ू पर बैठकर फूट-फूटकर रोने लगे। करके वह शोक व वल हो गये और ःटल मंसाराम भी िलहाफ म मुंह लपेटे रो रहा था। अभी थोड़े ह दे खकर पता का

दन पहले उसे

दय गव से फूल उठता था, ले कन आज उसे इस दा ण

दशा म दे खकर भी वह सोच रहे ह क इसे घर ले चलूं या नह ं।

या यहां

दवा नह ं हो सकती? म यहां चौबीस घ टे बैठा रहंू गा। डॉ टर साहब यहां ह ह । कोई द कत न होगी। घर ले चलने से म उ ह बाधाएं-ह -बाधाएं दखाई दे ती थीं, सबसे बड़ा भय यह था क वहां िनमला इसके पास हरदम बैठ रहे गी और म मना न कर सकूंगा, यह उनके िलए अस इतने म अ य

था।

ने आकर कहा-म तो समझता हंू क आप इ ह अपने

साथ ले जाय। गाड़ है ह , कोई तकलीफ न होगी। यहां अ छ तरह दे खभाल न हो सकेगी। मुंशीजी-हां, आया तो म इसी खयाल से था, ले कन इनक हालत बहत ु

ह नाजुक मालूम होती है । जरा-सी असावधानी होने से सरसाम हो जाने का भय है । अ य -यहां से इ ह ले जाने म थोड़ -सी द कत ज र है , ले कन यह तो आप खुद सोच सकते ह क घर पर जो आराम िमल सकता है , वह यहां कसी तरह नह ं िमल सकता। इसके अित र रखना िनयम- व

कसी बीमार लड़के को यहां

भी है ।

मुंशीजी- क हए तो म हे डमाःटर से आ ा ले लूं। मुझे इनका यहां से इस हालत म ले जाना कसी तरह मुनािसब नह ं मालूम होता।

79

अ य

ने हे डमाःटर का नाम सुना, तो समझे क यह महाशय धमक

दे रहे ह। जरा ितनककर बोले-हे डमाःटर िनयम- व सकते। म इतनी बड़ अब

या हो?

कोई बात नह ं कर

ज मेदार कैसे ले सकता हंू ?

या घर ले जाना ह पड़े गा? यहां रखने का तो यह

बहाना था क ले जाने बीमार बढ़ जाने क शंका है । यहां से ले जाकर हःपताल म ठहराने का कोई बहाना नह ं है । जो सुनेगा, वह यह कहे गा क डा टर क फ स बचाने के िलए लड़के को अःपताल फक आये, पर अब ले जाने के िसवा

और कोई उपाय न था। अगर अ य

महोदय इस व

र त लेने पर तैयार हो जाते, तो शायद दो-चार साल का वेतन ले लेते, ले कन कायदे के पाबंद लोग म इतनी बु , इतनी चतुराई कहां। अगर इस व

मुंशीजी को कोई आदमी ऐसा उळ सुझा दे ता, जसम उनह मंसाराम को

घर न ले जाना पड़े , तो वह आजीवन असका एहसान मानते। सोचने का समय भी न था। अ य

महोदय शैतान क

तरह िसर पर सवार था।

ववश होकर मुंशीजी ने दोन साईस को बुलाया और मंसाराम को उठाने लगे। मंसाराम अधचेतना क दशा म था, चौककर बोला,

या है ? कोन है ?

मुंशीजी-कोई नह ं है बेटा, म तु ह घर ले चलना चाहता हंू , आओ, गोद

म उठा लूं।

मंसाराम- मुझे

य घर ले चलते ह? म वहां नह ं जाऊंगा।

मुंशीजी- यहां तो रह नह ं सकत, िनयम ह ऐसा है । मंसाराम- कुछ भी हो, वहां न जाऊंगा। मुझे और कह ं ले चिलए, कसी पेड़ के नीचे, कसी झ पड़े म, जहां चाहे र खए, पर घर पर न ले चिलए। अ य

ने मुंशीजी से कहा-आप इन बात का

याल न कर, यह तो

होश म नह ं है । मंसाराम- कौन होश म नह ं है ? म होश म नह ं हंू ? कसी को गािलयां

दे ता हू? दांत काटता हंू ?

य होश म नह ं हंू ? मुझे यह ं पड़ा रहने द जए,

जो कुछ होना होगा, अगरन ऐसा है , तो मुझे अःपताल ले चिलए, म वहां पड़ा

रहंू गा। जीना होगा, जीऊगा, मरना होगा म ं गा, ले कन घर कसी तरह भी न

जाऊंगा।

यह जोर पाकर मुंशीजी फरा अ य

क िम नत करने लगे, ले कन

ू वह कायदे का पाबंद आदमी कुछ सुनता ह न था। अगर छत क बीमार 80

ू कसी दसरे लड़के को छत लग गयी, तो कौन उसका जवाबदे ह ू

हई ु और

होगा। इस तक के सामने मुंशीजी क कानूनी दलील भी मात हो गयीं।

आ खर मुंशीजी ने मंसाराम से कहा-बेटा, तु ह घर चलने से



इं कार हो रहा है ? वहां तो सभी तरह का आराम रहे गा। मुंशीजी ने कहने को तो यह बात कह द , ले कन डर रहे थे क कह ं सचमुच मंसाराम च लने पर राजी न हो जाये। मंसाराम को अःपताल म रखने का कोई बहाना खोज रहे थे और उसक

अ य

ज मेदार

मंसाराम ह

के िसर डालना चाहते थे। यह

के सामने क बात थी, वह इस बात क सा ी दे सकते थे



मंसाराम अपनी जद से अःपताल जा रहा है । मुंशीजी का इसमे लेशमाऽ भी दोष नह ं है । मंसाराम ने झ लाकर हा-नह ं, नह ं सौ बार नह ं, म घ नह ं जाऊंगा। मुझे अःपताल ले चिलए और घर के सब क

आदिमय को मना कर द जए

मुझे दे खने न आये। मुझे कुछ नह ं हआ है , ब कुल बीमार नह ं ह।ू ु

आप मुझे छोड़ द जए, म अपने पांव से चल सकता हंू । वह उठ खड़ा हआ और उ म ु

क भांित

ार क ओर चला, ले कन पैर

लड़खडा गये। य द मुंशीजी ने संभाल न िलया होता, तो उसे बड़ चोट आती। दोन नौकर क मदद से मुंशीजी उसे ब घी के पास लाये और अंदर बैठा दया। गाड़ अःपताल क ओर चली। वह हआ जो मुंशीजी चाहते थे। इस ु

शोक म भी उनका िच था

संतु

था। लड़का अपनी इ छा से अःपताल जा रहा

या यह इस बात का ूमाण नह ं था क घर म इसे कोई ःनेह नह ं है ?

या इससे यह िस

नह ं होता क मंसाराम िनद ष है ? वह

उसक

पर

अकारण ह ॅम कर रहे थे। ले कन जरा ह दे र म इस तु

क जगह उनके मन म

लािन का

भाव जामत हआ। वह अपने ूाण- ूय पुऽ को घर न ले जाकर अःपताल ु

िलये जा रहे थे। उनके वशाल भवन म उनके पुऽ के िलए जगह न थी, इस दशा म भी जब क उसक जीवल संकट म पड़ा हआ था। कतनी वड बना ु

है !

एक

ण के बाद एकाएक मुंशीजी के मन म ू

उठा-कह ं मंसाराम

उनके भाव को ताड़ तो नह ं गया? इसीिलए तो उसे घर से घृणा नह ं हो गेयी है ? अगर ऐसा है , तो गजब हो जायेगा। 81

उस अनथ क क पना ह से मुंशीजी के र ए खड़े हो गये और कलेजा ध धक करने लगा।

दय म एक ध का-सा लगा। अगर इस

वर का यह

कारण है , तो ई र ह मािलक है । इस समय उनक दशा अ य त दयनीय

ु हए थी। वह आग जो उ ह ने अपने ठठरे ु हाथ को सकने के िलए जलाई

थी, अब उनके घर म लगी जा रह थी। इस क णा, शोक, प ा ाप और शंका

से उनका िच

घबरा उठा। उनके गु

रोदन क

विन बाहर िनकल सकती,

तो सुनने वाले रो पड़ते। उनके आंसू बाहर िनकल सकते, तो उनका तार बंध

जाता। उ ह ने पुऽ के वण-ह न मुख क ओर एक वा स यूपण नेऽ से दे खा,

वेदना से वकल होकर उसे छाती से लगा िलया और इतना रोये क हचक बंच गयी। सामने अःपताल का फाटक दखाई दे रहा था। यारह

मुं

शी तोताराम सं या समय कचहर से घर पहंु चे, तो िनमला ने पूछा-

उ ह दे खा,

या हाल है ? मुंशीजी ने दे खा

क िनमला के मुख पर

नाममाऽ को भी शोक यािचनता का िच ह नह ं है । उसका बनाव-िसंगार और दन से भी कुछ गाढ़ा हआ है । मसलन वह गले का हार न पहनती थी, पर ु

आजा वह भी गले मे शोभ दे रहा था। झूमर से भी उसे बहत ु ूेम था, वह

आज वह भी मह न रे शमी साड़ के नीचे, काले-काले केश के ऊपर, फानुस के द पक क भांित चमक रहा था। मुंशीजी ने मुंह फेरकर कहा- बीमार है और

या हाल बताऊं?

िनमला- तुम तो उ ह यहां लाने गये थे? मुंशीजी ने झुंझलाकर कहा- वह नह ं आता, तो

या म जबरदःती उठा

लाता? कतना समझाया क बेटा घर चलो, वहां तु ह कोई तकलीफ न होने पावेगी, ले कन घर का नाम सुनकर उसे जैसे दना ू

वर हो जाता था। कहने

लगा- म यहां मर जाऊंगा, ले कन घर न जाऊंगा। आ खर मजबूर होकर

अःपताल पहंु चा आया और

या करता?

मणी भी आकर बरामदे म खड़ हो गई थी। बोलीं- वह ज म का

हठ है , यहां कसी तरह न आयेगा और यह भी दे ख लेना, वहां अ छा भी न होगा? 82

मुंशीजी ने कातर ःवर म कहा- तुम दो-चार दन के िलए वहां चली जाओ, तो बड़ा अ छा हो बहन, तु हारे रहने से उसे तःक न होती रहे गी। मेर बहन, मेर यह वनय मान लो। अकेले वह रो-रोकर ूाण दे दे गा। बस हाय अ मां! हाय अ मां! क रट लगाकर रोया करता है । म वह ं जा रहा हंू ,

मेरे साथ ह चलो। उसक दशा अ छ नह ं। बहन, वह सूरत ह नह ं रह ।

दे ख ई र

या करते ह?

यह कहते-कहते मुंशीजी क आंख से आंसू बहने लगे, ले कन

मणी

अ वचिलत भाव से बोली- म जाने को तैयार हंू । मेरे वहां रहने से अगर मेरे लाल के ूाण बच जाय, तो म िसर के बल दौड़ जाऊं, ले कन मेरा कहना

िगरह म बांध लो भैया, वहां वह अ छा न होगा। म उसे खूब पहचानती हंू ।

उसे कोई बीमार नह ं है , केवल घर से िनकाले जाने का शोक है । यह द:ु ख वर के

को ह

प म ूकट हआ है । तुम एक नह ं, लाख दवा करो, िस वल सजन ु

य न दखाओ, उसे कोई दवा असार न करे गी।

मुंशीजी- बहन, उसे घर से िनकाला कसने है ? मने तो केवल उसक पढ़ाई के खयाल से उसे वहां भेजा था। मणी- तुमने चाहे जस खयाल से भेजा हो, ले कन यह बात उसे लग गयी। म तो अब कसी िगनती म नह ं हंू , मुझे कसी बात म बोलने का

कोई अिधकार नह ं। मािलक तुम, माल कन तु हार

ी। म तो केवल

तु हार रो टय पर पड़ हई ु अभिगनी वधवा हंू । मेर कौन सुनेगा और कौन

परवाह करे गा? ले कन बना बोले रह नह ं जाता। मंसा तभी अ छा होगा: जब घर आयेगा, जब तु हारा यह कहकर

दय वह हो जायेगा, जो पहले था।

मणी वहां से चली गयीं, उनक

योितह न, पर

अनुभवपूण आंख के सामने जो च रऽ हो रहे थे, उनका रहःय वह खूब समझती थीं और उनका सारा बोध िनरपरािधनी िनमला ह पर उतरता था। इस समय भी वह कहते-कहते

ग गयीं, क जब तक यह लआमी इस घर म

रहगी, इस घर क दशा बगड़ती हो जायेगी। उसको ूगट

प से न कहने

पर भी उसका आशय मुंशीजी से िछपा नह ं रहा। उनके चले जाने पर मुंशीजी ने िसर झुका िलया और सोचने लगे। उ ह अपने ऊपर इस समय इतना बोध आ रहा था क द वार से िसर पटककर ूाण का अ त कर द। उ ह ने



ववाह कया था? ववाह करे न क

या ज रत थी? ई र ने

उ ह एक नह ं, तीन-तीन पुऽ दये थे? उनक अवःथा भी पचास के लगभग 83

पहंु च गेयी थी फर उ ह ने



ववाह कया?

या इसी बहाने ई र को

उनका सवनाश करना मंजरू था? उ ह ने िसर उठाकर एक बार िनमला को

सहास, पर िन ल मूित दे खी और अःपताल चले गये। िनमला क सहास, छ व ने उनका िच

शा त कर

दया था। आज कई

शा त मयसर हई ु थी। ूेम-पी ड़त

दय इस दशा म

अ वचिलत रह सकता है ? नह ं, कभी नह ं।

िछपाई जा सकती। अपने िच

दन के बाद उ ह या इतना शा त और

दय क चोट भाव-कौशल से नह ं

क दबनजा पर इस समय उ ह अ य त ु

ोभ हआ। उ ह ने अकारण ह स दे ह को ु

दय म ःथान दे कर इतना अनथ

कया। मंसाराम क ओर से भी उनका मन िन:शंक हो गया। हां उसक जगह अब एक नयी शंका उ प न हो गयी। गया?

या मंसाराम भांप तो नह ं

या भांपकर ह तो घर आने से इ कार नह ं कर रहा है ? अगर वह

भांप गया है , तो महान ् अनथ हो जायेगा। उसक क पना ह से उनका मन

दहल उठा। उनक दे ह क सार ह डयां मान इस हाहाकार पर पानी डालने

के िलए याकुल हो उठ ं। उ ह ने कोचवान से घोड़े को तेज चलाने को कहा। आज कई दन के बाद उनके

दय मंडल पर छाया हआ सघन फट गया था ु

और ूकाश क लहर अ दर से िनकलने के िलए

यम हो रह थीं। उ ह ने

बाहर िसर िनकाल कर दे खा, कोचवान सो तो नह ं रहा ह। घोड़े क चाल उ ह इतनी म द कभी न मालूम हई ु थी।

अःपताल पहंु चकर वह लपके हए ु मंसाराम के पास गये। दे खा तो

डॉ टर साहब उसके सामने िच ता म म न खड़े थे। मुंशीजी के हाथ-पांव फूल गये। मुंह से श द न िनकल सका। भरभराई हई ु आवाज म बड़

मु ँकल से बोले-

या हाल है , डॉ टर साहब? यह कहते-कहते वह रो पड़े

और जब डॉ टर साहब को उनके ू

का उ र दे ने म एक

ण का वल बा

हआ ु , तब तो उनके ूाण नह म समा गये। उ ह ने पलंग पर बैठकर अचेत

बालक को गोद म उठा िलया और बालक क भांित िससक-िससककर रोने

लगे। मंसाराम क दे ह तवे क तरह जल रह थी। मंसाराम ने एक बार आंख खोलीं। आह, कतनी भयंकर और उसके साथ ह

कतनी द

थी। मुंशीजी

ने बालक को क ठ से लगाकर डॉ टर से पूछा- या हाल है , साहब! आप चुप य ह? डॉ टर ने सं द ध ःवर से कहा- हाल जो कुछ है , वह आपे दे ख ह रहे ह। 106 डमी का

वर है और म

या बताऊं? अभी 84

वर का ूकोप बढ़ता

ह जाता है । मेरे कये जो कुद हो सकता है , कर रहा हंू । ई र मािलक है । जबसे आप गये ह, म एक िमनट के िलए भी यहां से नह ं हला। भोजन तक नह ं कर सका। हालत इतनी नाजुक है

क एक िमनट म

या हो

जायेगा, नह ं कहा जा सकता? यह महा वर है , बलकुल होश नह ं है । रहरहकर ‘ डली रयम’ का दौरा-सा हो जाता है ।

या घर म इ ह कसी ने कुछ

कहा है ! बार-बार, अ मांजी, तुम कहां हो! यह आवाज मुंह से िनकली है । डॉ टर साहब यह कह ह रहे थे क सहसा मंसाराम उठकर बैठ गया

और ध के से मुंशीज को चारपाई के नीचे ढकेलकर उ म

ःवर से बोला-

य धमकाते ह, आप! मार डािलए, मार डािल, अभी मार डािलए। तलवार नह ं िमलती! रःसी का फ दा है या वह भी नह ं। म अपने गले म लगा लूंगा। हाय अ मांजी, तुम कहां हो! यह कहते-कहते वह फर अचेते होकर िगर पड़ा। मुंशीजी एक

ण तक मंसाराम क िशिथल मुिा क ओर यिथत नेऽ

से ताकते रहे , फर सहस उ ह ने डॉ टर साहब का हाथ पकड़ िलया और अ य त द नतापूण आमह से बोले-डॉ टर साहब, इस लड़के को बचा ली जए, ई र के िलए बचा ली जए, नह ं मेरा सवनाश हो जायेगा। म अमीर नह ं हंू

ले कन आप जो कुछ कहगे, वह हा जर क ं गा, इसे बचा ली जए। आप बड़े से-बड़े

डॉ टर को बुलाइए और उनक राय ली जएक , म सब खच दं ग ू ा।

इसीक अब नह ं दे खी जाती। हाय, मेरा होनहार बेटा!

डॉ टर साहब ने क ण ःवर म कहा- बाबू साहब, म आपसे स य कह रहा हंू क म इनके िलए अपनी तरफ से कोई बात उठा नह ं रख रहा हंू ।

अब आप दसरे डॉ टर से सलाह लेने को कहते ह। अभी डॉ टर ला हर , ू

डॉ टर भा टया और डॉ टर माथुर को बुलाता हंू । वनायक शा ी को भी

बुलाये लेता हंू , ले कन म आपको यथ का आ ासन नह ं दे ना चाहता, हालत नाजुक है ।

मंशीजी ने रोते हए ु कहा- नह ं, डॉ टर साहब, यह श द मुंह से न

िनकािलए। हाल इसके दँमन क नाजुक हो। ई र मुझ पर इतना कोप न ु

करगे। आप कलक ा और ब बई के डॉ टर को तारा द जए, म ज दगी

भर आपक गुलामी क ं गा। यह मेरे कुल का द पक है । यह मेरे जीवन का आधार है । मेरा

दय फटा जा रहा है । कोई ऐसी दवा द जए, जससे इसे 85

होश आ जाये। म जरा अपने कान से उसक बाते सुनूं जानूं क उसे क

या

हो रहा है ? हाय, मेरा ब चा! डॉ टर- आप जरा दल को तःक न द जए। आप बुजग ु आदमी ह, य

हाय-हाय करने और डॉ टर



फौज जमा करने से कोई नतीजा न

िनकलेगा। शा त होकर बै ठए, म शहर के लोग को बुला रहा हंू , दे खए

या

कहते ह? आप तो खुद ह बदहवास हए ु जाते ह।

मुंशीजी- अ छा, डॉ टर साहब! म अब न बोलूंग, जबान तब तक न

खोलूंगा, आप जो चाहे कर, ब चा अब हाथ म है । आप ह उसक र ा कर सकते ह। म इतना ह चाहता हंू क जरा इसे होश आ जाये, मुझे पहचान ले,

मेर बात समझने लगे।

या कोई ऐसी संजीवनी बूट नह ं? म इससे दो-चार

बात कर लेता। यह कहते-कहते मुंशीजी आवेश म आकर मंसाराम से बोले- बेटा, जरा आंख खोलो, कैसा जी है ? म तु हारे पास बैठा रो रहा हंू , मुझे तुमसे कोई िशकायत नह ं है , मेरा दल तु हार ओर से साफ है ।

डॉ टर- फर आपने अनगला बात करनी शु

क ं। अरे साहब, आप

ब चे नह ं ह, बुजुग है , जरा धैय से काम ली जए। मुंशीजी- अ छा, डॉ टर साहब, अब न बोलूंगा, खता हई। आप जो चाह ु

क जए। मने सब कुछ आप पर छोड़ दया। कोई ऐसा उपाय नह ं, जससे म इसे इतना समझा सकूं क मेरा दल साफ है ? आप ह कह द जए डॉ टर साहब, कह द जए, तु हारा अभागा पता बैठा रो रहा है । उसका दल तु हार तरफ से बलकुल साफ है । उसे कुछ ॅम हआ था। वब अब दरू हो गया। ु

बस, इतना ह कर द जए। म और कुछ नह ं चाहता। म चुपचाप बैठा हंू । जबान को नह ं खोलता, ले कन आप इतना ज र कह द जए।

डॉ टर- ई र के िलए बाबू साहब, जरा सॄ क जए, वरना मुझे मजबूर होकर आपसे कहना पड़े गा क घर जाइए। म जरा द तर म जाकर डॉ टर को खत िलख रहा हंू । आप चुपचाप बैठे र हएगा।

िनदयी डॉ टर! जवान बेटे क यहा दशा दे खकर कौन पता है , जो धैय

से कामे लेगा? मुंशीजी बहत ु ग भीर ःवभाव के मनुंय थे। यह भी जानते थे क इस व

हाय-हाय मचाने से कोई नतीजा नह ं, ले कन फर भी इस

समय शा त बैठना उनके िलए अस भव था। अगर दै व-गित से यह बीमार होती, तो वह शा त हो सकते थे, दसर को समझा सकते थे, खुद डॉ टर का ू 86

बुला सकते थे, ले कन

यायह जानकर भी धैय रख सकते थे क यह सब

आग मेर ह लगाई हई ु है ? कोई पता इतना वळ- दय हो सकता है ? उनका

रोम-रोम इस समय उ ह िध कार रहा था। उ ह ने सोचा, मुझे यह दभावना ु उ प न ह

य हई ु ? मने

यां बना कसी ू य

क पना कर डाली? अ दा मुझे उसक दशा म कुछ उ ह ने कया उसके िसवा वह और

ूमाण के ऐसी भीषण

या करना चा हए था। जो

या करते, इसका वह िन य न कर

सके। वाःतव म ववाह के ब धन म पड़ना ह अपने पैर म कु हाड़ माराना

था। हां, यह सारे उपिव क जड़ है ।

मगर मने यह कोई अनोखी बात नह ं क । सभी

ी-पु ष का ववाह

करते ह। उनका जीवन आन द से कटता है । आन द क अ दा से ह तो हम ववाह करते ह। मुह ले म सैकड़ आदिमय ने दसर ू , तीसर , चौथी यहां तक क सातवीं श दयां क ह और मुझसे भी कह ं अिधक अवःथा म। वह जब

तक जये आराम ह से जये। यह भी नह ं हआ क सभी गये ह । दहाज -ितहाज होने पर भी कतने ह ु

ी से पहले मर

फर रं डु ए हो गये। अगर मेर -

जैसी दशा सबक होती, तो ववाह का नाम ह कौन लेता? मेरे पताजी ने

पचपनव वष म ववाह कया था और मेरे ज म के समय उनक अवःथा साठ से कम न थी। हां, इतनी बात ज र है क तब और अब म कुछ अंतर हो गया है । पहले

ीयां पढ़ -िलखी न होती थीं। पित चाहे कैसा ह हो, उसे

पू य समझती थी, यह बात हो क पु ष सब कुछ दे खकर भी बेहयाई से काम लेता हो, अवँय यह बात है । जब युवक वृ ा के साथ ूस न नह ं रह सकता, तो युवती



कसी वृ

के साथ ूस न रहने लगी? ले कन म तो

कुछ ऐसा बु ढ़ा न था। मुझे दे खकर कोई चालीस से अिधक नह ं बता सकता। कुछ भी हो, जवानी ढल जाने पर जवान औरत से

ववाह करके

कुछ-न-कुछ बेहयाई ज र करनी पड़ती है , इसम स दे ह नह ं।

ी ःवभाव से

ल जाशील होती है । कुलटाओं क बात तो दसर है , पर साधारणत: ू से कह ं

ी पु ष

यादा संयमशील होती है । जोड़ का पित पाकर वह चाहे पर-पु ष से

हं सी- द लगी कर ले, पर उसका मन शु

रहता है । बेजोड़े ववाह हो जाने से

वह चाहे कसी क ओर आंखे उठाकर न दे खे, पर उसका िच

दखी रहता है । ु

वह प क द वार है , उसम सबर का असर नह ं होता, यह क ची द वार है और उसी व

तक खड़ रहती है , जब तक इस पर सबर न चलाई जाये। 87

इ ह ं वचारां म पड़े -पड़े मुंशीजी का एक झपक आ गयी। मने के भाव ने त काल ःव न का पहली

प धारण कर िलया।

या दे खते ह क उनक

ी मंसाराम के सामने खड़ कह रह है - ‘ःवामी, यह तुमने

कया? जस बालक को मने अपना र

या

पला- पलाकर पाला, उसको तुमने

इतनी िनदयता से मार डाला। ऐसे आदश च रऽ बालक पर तुमने इतना घोर कलंक लगा दया? अब बैठे

या बसूरते हो। तुमने उससे हाथ धो िलया। म

तु हारे िनदया हाथ से छ नकर उसे अपने साथ िलए जाती हंू । तुम तो इतनो श क कभी न थे। इस कोमल

या ववाह करते ह शक को भी गले बांध लाये?

दय पर इतना कठारे आघात! इतना भीषण कलंक! इतन बड़ा

अपमान सहकर जीनेवाले कोई बेहया ह गे। मेरा बेटा नह ं सह सकता!’ यह कहते-कहते उसने बालक को गोद म उठा िलया और चली। मुंशीजी ने रोते हए ु उसक गोद से मंसाराम को छ नने के िलए हाथ बढ़ाया, तो आंखे खुल

गयीं और डॉ टर ला हर , डॉ टर ला हर , डॉ टर भा टया आ द आधे दजन डॉ टर उनको सामने खड़े दखायी दये।

ती

बारह न

दन गुजर गये और मुंशीजी घर न आये।

मणी दोन व

अःपताल जातीं और मंसाराम को दे ख आती थीं। दोन लड़के भी

जाते थे, पर िनमला कैसे जाती? उनके पैर म तो बे ड़यां पड़ हई ु थीं। वह मंसाराम क

बीमार

का हाल-चाल जानने क िलए

यम रहती थी, य द

मणी से कुछ पूछती थीं, तो ताने िमलते थे और लड़को से पूछती तो बेिसर-पैर क बात करने लगते थे। एक बार खुद जाकर दे खने के िलए उसका िच

याकुल हो रहा था। उसे यह भय होता था क स दे ह ने कह ं

मुंशीजी के पुऽ-ूेम को िशिथल न कर दया हो, कह ं उनक कृ पणता ह तो मंसाराम क अ छे होने म बाधक नह ं हो रह है ? डॉ टर कसी के सगे नह ं होते, उ ह तो अपने पैस से काम है , मुदा दोजख म जाये या ब हँत म। उसक मन मे ूबल इ छा होती थी क जाकर अःपताल क डॉ टर का एक हजार क थैली दे कर कहे - इ ह बचा ली जए, यह थैली आपक भट ह, पर उसके पास न तो इतने

पये ह थे, न इतने साहस ह था। अब भी य द

वहां पहंु च सकती, तो मंसाराम अ छा हो जाता। उसक जैसी सेवा-शुौष ू ा 88

होनी चा हए, वैसी नह ं हो रह है । नह ं तो उतरता? यह दै हक

वर नह ं, मानिसक

या तीन दन तक

वर है और िच

वर ह न

के शा त होने ह

से इसका ूकोप उतर सकता है । अगर वह वहां रात भर बैठ रह सकती और मुंशीजी जरा भी मन मैला न करते, तो कदािचत ् मंसाराम को व ास हो जाता



पताजी का

दल साफ है और

फर अ छे होने म दे र न

लगती, ले कन ऐसा होगा? मुंशीजी उसे वहां दे खकर ूस निच

रह सकगे?

या अब भी उनका दल साफ नह ं हआ ु ? यहां से जाते समय तो ऐसा

ात

हआ था क वह अपने ूमाद पर पछता रहे ह। ऐसा तो न होगा क उसके ु

वहां जाते ह मुंशीजी का स दे ह फर भड़क उठे और वह बेटे क जान लेकर ह छोड़? इस द ु वधा म पड़े -पड़े तीन

दन गुजर गये और न घर म चू हा

जला, न कसी ने कुछ खाया। लड़को के िलए बाजार से पू रयां ली जाती थीं, मणी और िनमला भूखी ह सो जाती थीं। उ ह भोजन क इ छा ह न होती। चौथे

दन

जयाराम ःकूल से लौटा, तो अःपताल होता हआ घर ु

आया। िनमला ने पूछा- य भैया, अःपताल भी गये थे? आज

या हाल है ?

तु हारे भैया उठे या नह ं? जयाराम

आंसा होकर बोला- अ मांजी, आज तो वह कुछ बोलते-

चालते ह न थे। चुपचाप चारपाई पर पड़े जोर-जोर से हाथ-पांव पटक रहे थे। न थे?

िनमला के चेहरे का रं ग उड़ गया। घबराकर पूछा- तु हारे बाबूजी वहां जयाराम- थे

थे?

य नह ं? आज वह बहत ु रोते थे।

िनमला का कलेजा धक् -धक् करने लगा। पूछा- डॉ टर लोग वहां न जयाराम- डॉ टर भी खड़े थे और आपस म कुछ सलाह कर रहे थे।

सबसे बड़ा िस वल सजन अंगरे जी म कह रहा था क मर ज क दे ह म कुछ ताजा खून डालना चा हए। इस पर बाबूजीय ने कहा- मेर दे ह से जतना खून चाह ले ली जए। िस वल सजन ने हं सकर कहा- आपके

लड से काम

नह ं चलेगा, कसी जवान आदमी का लड चा हए। आ खर उसने पचकार से 89

कोई दवा भैया के बाजू म डाल द । चार अंगुल से कम के सुई न रह होगी, पर भैया िमनके तक नह ं। मने तो मारे डरके आंख ब द कर लीं। बड़े -बड़े महान संक प आवेश म ह ज म लेते ह। कहां तो िनमला भय से सूखी जाती थी, कहां उसके मुंह पर

ढ़ संक प क आभा झलक

पड़ । उसने अपनी दे ह का ताजा खून दे ने का िन य कया। आगर उसके र

से मंसाराम के ूाण बच जाय, तो वह बड़ खुशी से उसक अ तम बूंद

तक दे डालेगी। अब जसका जो जी चाहे समझे, वह कुछ परवाह न करे गी।

उसने जयाराम से काह- तुम लपककर एक ए का बुला लो, म अःपताला जाऊंगी। जयाराम- वहां तो इस व द जए।

बहत ु से आदमी ह गे। जरा रात हो जाने

िनमला- नह ं, तुम अभी ए का बुला लो। जयाराम- कह ं बाबूजी बगड़ न? िनमला- बगड़ने दो। तुमे अभी जाकर सवार लाओ। जयाराम- म कह दं ग ू ा, अ मांजी ह ने मुझसे सवार मंगाई थी।

िनमला- कह दे ना।

जयाराम तो उधर तांगा लाने गया, इतनी दे र म िनमला ने िसर म कंघी क , जूड़ा बांधा, कपड़े बदले, आभूषण पहने, पान खाया और

ार पर

आकर तांगे क राह दे खने लगी। मणी अपने कमरे म बैठ हई ु थीं उसे इस तैयार से आते दे खकर

बोलीं- कहां जाती हो, बहू?

िनमला- जरा अःपताल तक जाती हंू । मणी- वहां जाकर

या करोगी?

िनमला- कुछ नह ं, क ं गी

या? करने वाले तो भगवान ह। दे खने को

जी चाहता है । मणी- म कहतीं हंू , मत जाओ।

िनमला- ने

वनीत भाव से कहा- अभी चली आऊंगी, द द जी।

जयाराम कह रहे ह क इस व

उनक हालत अ छ नह ं है । जी नह ं

मानता, आप भी चिलए न?

90

मणी- म दे ख आई हंू । इतना ह समझ लो क, अब बाहर खून

पहंु चाने पर ह जीवन क आशा है । कौन अपना ताजा खून दे गा और



दे गा? उसम भी तो ूाण का भय है ।

िनमला- इसीिलए तो म जाती हंू । मेरे खून से मणी- चलेगा



नह ं, जवान ह

या काम न चलेगा?

का तो खून चा हए, ले कन

तु हारे खून से मंसाराम क जान बचे, इससे यह कह ं अ छा है

क उसे

पानी म बहा दया जाये।

तांगा आ गया। िनमला और जयाराम दोन जा बैठे। तांगा चला। मणी

ार पर खड़

दे त तक रोती रह । आज पहली बार उसे

िनमला पर दया आई, उसका बस होता तो वह िनमला को बांध रखती। क णा और सहानुभूित का आवेश उसे कहां िलये जाता है , वह अूकट

प से

दे ख रह थी। आह! यह दभा ु य क ूेरणा है । यह सवनाश का माग है ।

िनमला अःपताल पहंु ची, तो द पक जल चुके थे। डॉ टर लोग अपनी

राय दे कर

वदा हो चुके थे। मंसाराम का

टकटक लगाए हद ु

वर कुछ कम हो गयाथा वह

ार क ओर दे ख रहा था। उसक

उ मु

आकाश

क ओर लगी हई ु थी, माने कसी दे वता क ूती ा कर रहा हो! वह कहां

है , जस दशा म है , इसका उसे कुछ

ान न था।

ू सहसा िनमला को दे खते ह वह च ककर उठ बैठा। उसका समािध टट

गई। उसक का

वलु

चेतना ूद

हो गई। उसे अपने ःथित का, अपनी दशा

ान हो गया, मानो कोई भूली हई ु बात याद हो गई हो। उसने आंख

फाड़कर िनमला को दे खा और मुंह फेर िलया।

एकाएक मुंशीजी तीो ःवर से बोले- तुम, यहां

से ू

िनमला अवाक् रह गई। वह बतलाये क

का भी वह कोई जवाब दे सक ? वह

ज टल ू

या करने आ ?

या करने आई? इतने सीधे या करने आई थी? इतना

कसने सामने आया होगा? घर का आदमी बीमार है , उसे दे खने

आई है , यह बात

या बना पूछे मालूम न हो सकती थी? फर ू

य?

वह हतबु -सी खड़ रह , मानो सं ाह न हो गई हो उसने दोन लड़को से मुंशीजी के शोक और संताप क बात सुनकर यह अनुमान कया था क अब उसनका दल साफ हो गया है । अब उसे

ात हआ क वह ॅम था। ु

हां, वह महाॅम था। मगर वह जानती थी आंसुओं क 91

ने भी संदेह क

अ न शांत नह ं क , तो वह कदा प न आती। वह कुढ़-कुढ़ाकर मर जाती, घर से पांव न िनकालती। मुंशजी ने फर वह ू

कया- तुम यहां

य आ ?

िनमला ने िन:शंक भाव से उ र दया- आप यहां

या करने आये ह?

मुंशीजी के नथुने फड़कने लगा। वह झ लाकर चारपाई से उठे और िनमला का हाथ पकड़कर बोले- तु हारे यहां आने क कोई ज रत नह ं। जब म बुलाऊं तब आना। समझ ग ? अरे ! यह

या अनथ हआ ु ! मंसाराम जो चारपाई से हल भी न सकता

था, उठकर खड़ा हो गया औम िनमला के पैर पर िगरकर रोते हए ु बोलाअ मांजी, इस अभागे के िलए आपको यथ इतना क

हआ। म आपका ःनेह ु

कभी भी न भूलंगा। ई र से मेर यह ूाथना है क मेरा पुनजनम आपके गभ से हो, जससे म आपके ऋण से अऋण हो सकूं। ई र जानता है , मने आपको वमाता नह ं समझा। म आपको अपनी माता समझता रहा । आपक उॆ मुझसे बहत ु

या न हो, ले कन आप, मेर माता के ःथान पर थी और

मने आपको सदै व इसी

से दे खा...अब नह ं बोला जाता अ मांजी,

मा

क जए! यह अंितम भट है । िनमला ने अौु-ूवाह को रोकते हए ु कहा- तुम ऐसी बात

य करते

हो? दो-चार दन म अ छे हो जाओगे। मंसाराम ने बोलने क श

ीण ःवर म कहा- अब जीने क इ छा नह ं और न

ह है ।

यह कहते-कहते मंसाराम अश

होकर वह ं जमीन पर लेट गया।

िनमला ने पित क ओर िनभय नेऽ से दे खते हए ु कहा- डॉ टर ने

या

सलाह द ?

मुंशीजी- सब-के-सब भंग खा गए ह, कहते ह, ताजा खून चा हए। िनमला- ताजा खून िमल जाये, तो ूाण-र ा हो सकती है ? मुंशीजी ने िनमला क ओर तीो नेऽ से दे खकर कहा- म ई र नह ं हंू

और न डॉ टर ह को ई र समझता हंू ।

िनमला- ताजा खून तो ऐसी अल य वःतु नह ं! मुंशीजी- आकाश के तारे भी तो अल य नह ! मुंह के सामने खदं क

या चीज है ? िनमला- म आपना खून दे ने को तैयार हंू । डॉ टर को बुलाइए। 92

मुंशीजी ने व ःमत होकर कहा- तुम! िनमला- हां, या मेरे खून से काम न चलेगा? मुंशीजी- तुम अपना खून दोगी? नह ं, तु हारे खून क ज रत नह ं। इसम ूाणो का भय है । िनमला- मेरे ूाण और कस दन काम आयगे? मुंशीजी ने सजल-नेऽ होकर कहा- नह ं िनमला, उसका मू य अब मेर िनगाह म बहत ु बढ़ गया है । आज तक वह मेरे भोग क वःतु थी, आज से वह मेर भ

क वःतु है । मने तु हारे साथ बड़ा अ याय कया है ,

मा

करो।

जो

तेरह कुछ होना था हो गया, कसी को कुछ न चली। डॉ टर साहब िनमला क

मंसाराम अपने उ

दे ह से र

िनकालने क

चे ा कर ह

रहे थे



वल च रऽ क अ तम झलक दखाकर इस ॅम-लोक से

वदा हो गया। कदािचत ् इतनी दे र तक उसके ूाण िनमला ह क राह दे ख

रहे थे। उसे िनंकलंक िस

कये

बना वे दे ह को कैसे

याग दे ते? अब

उनका उ े ँय पूरा हो गया। मुंशीजी को िनमला के िनद ष होने का व ास

हो गया, पर कब? जब हाथ से तीर िनकल चुका था, जब मुस फर ने रकाब म पांव डाल िलया था। पुऽ-शोक म मुंशीजी का जीवन भार-ःव प हो गया। उस दन से फर

उनके ओठ पर हं सी न आई। यह जीवन अब उ ह यथ-सा जान पड़ता था। कचहर जाते, मगर मुकदम क पैरवी करने के िलए नह ं, केवल दल बहलाने के िलए घंटे-दो-घंटे म वहां से उकताकर चले आते। खाने बैठते तो कौर मुंह म न जाता। िनमला अ छ से अ छ चीज पकाती पर मुंशीजी दो-चार कौर से अिधक न खा सकते। ऐसा जान पड़ता क कौर मुंह से िनकला आता है ! मंसाराम के कमरे क ओर जाते ह उनका

ू -टक ू हो जाता था। जहां दय टक

उनक आशाओं का द पक जलता रहता था, वहां अब अंधकार छाया हआ था। ु

उनके दो पुऽ अब भी थे, ले कन दध ू दे ती हई ु गायमर गई, तो बिछया का या भरोसा? जब फूलने-फलनेवाला वृ

िगर पड़ा, न हे -न हे पौध से

या

आशा? य ता जवान-बूढ़े सभी मरत ह, ले कन द:ु ख इस बात का था क 93

उ ह ने ःवयं लड़के क जान ली। जस दम बात याद आ जाती, तो ऐसा मालूम होता था

क उनक

छाती फट जायेगी-मानो

दय बाहर िनकल

पड़े गा। िनमला को पित से स ची सहानुभूित थी। जहां तक हो सकता था, वह उनको ूस न रखने का फब रखती थी और भूलकर भी पछली बात जबान पर न लाती थी। मुंशीजी उससे मंसाराम क कोई चचा करते शरमाते थे। उनक कभी-कभी ऐसी इ छा होती क एक बार िनमला से अपने मन के

सारे भाव खोलकर कह दं ,ू ले कन ल जा रोक लेती थी। इस भांित उ ह सा

वना भी न िमलती थी, जो अपनी

गम म शर क कर लेने से, ूा

यथा कह डालने से, दसरो को अपने ू

होती है । मवाद बाहर न िनकलकर अ दर-

ह -अ दर अपना वष फैलाता जाता था, दन- दन दे ह घुलती जाती थी। इधर कुछ

दन

से मुंशीजी और उन डॉ टर साहब म

ज ह ने

मंसाराम क दवा क थी, याराना हो गया था, बेचारे कभी-कभी आकर मुंशीजी को समझाया करते, कभी-कभी अपने साथ हवा खलाने के िलए खींच ले जाते। उनक

ी भी दो-चार बार िनमला से िमलने आई थीं। िनमला भी

कई बार उनके घर गई थी, मगर वहां से जब लौटती, तो कई उदास रहती। उस द प

दन तक

का सुखमय जीवन दे खकर उसे अपनी दशा पर

द:ु ख हए बना न रहता था। डॉ टर साहब को कुल दो सौ ु

पये िमलते थे,

पर इतने म ह दोन आन द से जीवन यतीत करते थे। घर मं केवल एक महर थी, गृहःथी का बहत ु -सा काम

ी को अपने ह हाथ करना पड़ता थ।

गहने भी उसक दे ह पर बहत ु कम थे, पर उन दोन म वह ूेम था, जो धन क तृण के बराबर परवाह नह ं करता। पु ष को दे खकर

उठता था।

ी को चेहरा खल

ी को दे खकर पु ष िनहाल हो जाता था। िनमला के घर म धन

इससे कह ं अिधक था, अभूषण से उनक दे ह फट पड़ती थी, घर का कोई काम उसे अपने हाथ से न करना पड़ता था। पर िनमला स प न होने पर भी अिधक दखी थी, और सुधा वपनन होने पर भी ु

सुखी। सुधा के पास

कोई ऐसी वःतु थी, जो िनमला के पास न थी, जसके सामने उसे अपना वैभव तु छ जान पड़ता था। यहां तक क वह सुधा के घर गहने पहनकर जाते शरमाती थी।

94

एक

दन िनमला डॉ टर साहब से घर आई, तो उसे बहत ु उदास

दे खकर सुधा ने पूछा-ब हन, आज बहत ु उदास हो, वक ल साहब क तबीयत तो अ छ है , न? िनमला-

या कहंू , सुधा? उनक दशा दन- दन खराब होती जाती है ,

कुछ कहते नह ं बनता। न जाने ई र को

या मंजरू है ?

सुधा- हमारे बाबूजी तो कहते ह क उ ह कह ं जलवायु बदलने के िलए जाना ज र है , नह ं तो, कोई भंयकर रोग खड़ा हो जायेगा। कई बार वक ल साहब से कह भी चुके ह पर वह यह कह दया करते ह क म तो बहत ु अ छ तरह हंू , मुझे कोई िशकायत नह ं। आज तुम कहना। िनमला- जब डॉ टर साहब क नह ं सुना, तो मेर सुनगे?

यह कहते-कहते िनमला क आंख डबडबा गई और जो शंका, इधर मह न से उसके

दय को वकल करती रहती थी, मुंह से िनकल पड़ । अब

तक उसने उस शंका को िछपाया था, पर अब न िछपा सक । बोली-ब हन मुझे ल ण कुद अ छे नह ं मालूम होते। दे ख, भगवान ् या करते ह?

साधु-तुम आज उनसे खूब जोर दे कर कहना क कह ं जलवायु बदलने

चा हए। दो चार मह ने बाहर रहने से बहत ु सी बात भूल जायगी। म तो

समझती हंू ,शायद मकान बदलने से भी उनका शोक कुछ कम हो जायेगा।

तुम कह ं बाहर जा भी न सकोगी। यह कौन-सा मह ना है ?

िनमला- आठवां मह ना बीत रहा है । यह िच ता तो मुझे और भी मारे डालती है । मने तो इसके िलए ई र से कभी ूाथन न क थी। यह बला मेरे िसर न जाने

य मढ़ द ? म बड़ अभािगनी हंू , ब हन, ववाह के एक मह ने

पहले पताजी का दे हा ता हो गया। उनके मरते ह मेरे िसर शनीचर सवार हए। जहां पहले ववाह क बातचीत प क हई ु ु थी, उन लोग ने आंख फेर

लीं। बेचार अ मां को हारकर मेरा ववाह यहां करना पड़ा। अब छोट ब हन का ववाह होने वाला है । दे ख, उसक नाव कस घाट जाती है ! सुधा- जहां पहले ववाह क बातचीत हई ु थी, उन लोग ने इ कार



कर दया?

िनमला- यह तो वे ह जान। पताजी न रहे , तो सोने क गठर कौन दे ता? सुधा- यह ता नीचता है । कहां के रहने वाले थे? 95

िनमला- लखनऊ के। नाम तो याद नह ं, आबकार के कोई बड़े अफसर थे। सुधा ने ग भीरा भाव से पूछा- और उनका लड़का

या करता था?

िनमला- कुछ नह ं, कह ं पढ़ता था, पर बड़ा होनहार था। सुधा ने िसर नीचा करके कहा- उसने अपने पता से कुछ न कहा था? वह तो जवान था, अपने बाप को दबा न सकता था? िनमला- अब यह म

या जानूं ब हन? सोने क गठर

कसे

यार

नह ं होती? जो प डत मेरे यहां से स दे श लेकर गया था, उसने तो कहा था क लड़का ह इ कार कर रहा है । लड़के क मां अलब ा दे वी थी। उसने पुऽ और पित दोन ह को समझाया, पर उसक कुछ न चली। सुधा- म तो उस लड़के को पाती, तो खूब आड़े हाथ लेती। िनमला- मरे भा य म जो िलखा था, वह हो चुका। बेचार कृ ंणा पर न जाने

या बीतेगी? सं या समय िनमला ने जाने के बाद जब डॉ टर साहब बाहर से आये,

तो सुधा ने कहा- य जी, तुम उस आदमी का

या कहोगे, जो एक जगह

ववाह ठ क कर लेने बाद फर लोभवश कसी दसर जगह? ू डॉ टर िस हा ने

करना चा हए, और सुधा- यह

ी क ओर कुतूहल से दे खकर कहा- ऐसा नह ं

या? य

नह ं कहते

क ये घोर नीचता है , पहले िसरे का

कमीनापन है ! िस हा- हां, यह कहने म भी मुझे इ कार नह ं।

सुधा- कसका अपराध बड़ा है ? वर का या वर के पता का? िस हा क समझ म अभी तक नह ं आया क सुधा के इन ू आशय

का

या है ? वःमय से बोले- जैसी ःथित हो अगर वह पता क अधीन

हो, तो पता का ह अपराध समझो। सुधा- अधीन होने पर भी

या जवान आदमी का अपना कोई क



नह ं है ? अगर उसे अपने िलए नये कोट क ज रत हो, तो वह पता के वराध करने पर भी उसे रो-धोकर बनवा लेता है ।

या ऐसे मह व के वषय

म वह अपनी आवाज पता के कान तक नह ं पहंु चा सकता? यह कहो क वह और उसका

पता दोन

अपराधी ह, पर तु वर अिधक। बूढ़ा आदमी

सोचता है - मुझे तो सारा खच संभालना पड़े गा, क या प 96

से जतना ऐंठ

सकूं, उतना ह अ छा। मगेर वर का धम है

क य द वह ःवाथ के हाथ

बलकुल बक नह ं गया है , तो अपने आ मबल का प रचय दे । अगर वह ऐसा नह ं करता, तो म कहंू गी क वह लोभी है और कायर भी। दभा ु यवश

ऐसा ह एक ूाणी मेरा पित है और मेर समझ म नह ं आता क कन श द म उसका ितरःकार क ं ! िस हा ने हच कचाते हए बात थी। लेनू ु कहा- वह...वह...वह...दसर

दे न का कारण नह ं था, बलकुल दसर बाता थी। क या के पता का दे हा त ू हो गया था। ऐसी दशा म हम लोग

यो करते? यह भी सुनने म आया था

क क या म कोई ऐब है । वह बलकुल दसर बाता थी, मगर तुमसे यह ू

कथा कसने कह ।

सुधा- कह दो क वह क या कानी थी, या कुबड़ थी या नाइन के पेट क थी या ॅ ा थी। इतनी कसर

य छोड़ द ? भला सुनूं तो, उस क या म

या ऐब था? िस हा- मने दे खा तो था नह ं, सुनने म आया था क उसम कोई ऐब है । सुधा- सबसे बड़ा ऐब यह था क उसके पता का ःवगवास हो गया था और वह कोई लंबी-चौड़ रकम न दे सकती थी। इतना ःवीकार करते य झपते हो?

म कुछ तु हारे कान तो काट न लूंगी! अगर दो-चार फकरे

कहंू , तो इस कान से सुनकर उसक कान से उड़ा दे ना।

यादा-चीं-चपड़ क ं ,

तो छड़ से काम ले सकते हो। औरत जात ड डे ह से ठ क रहती है । अगर उस क या म कोई ऐब था, तो म कहंू गी, लआमी भी बे-ऐब नह ं। तु हार

खोट थी, बस! और

िस हा- तुमसे

या? तु ह तो मेरे पाले पड़ना था। कसने कहा

क वह ऐसी थी वैसी थी? जैसे तुमने

कसी से सुनकर मान िलया। सुधा- मने सुनकर नह ं मान िलया। अपनी आंख दे खा। या क ं , मने ऐसी सु द िस हा ने कहां दे खा!

यादा बखान

ी कभी नह ं दे खी थी।

यम होकर पूछा- या वह यह ं कह ं है ? सच बताओ, उसे

या तुमळारे घर आई थी?

सुधा-हां, मेरे घर म आई

थी और एक बार नह ं, कई बार आ चुक है ।

म भी उसके यहां कई बार जा चुक हंू , वक ल साहब के बीवी वह क या है , जसे आपने ऐब के कारण

याग दया। 97

िस हा-सच! सुधा- बलकुल सच। आज अगर उसे मालूम हो जाये

क आप वह

महापु ष ह, तो शायद फर इस घर मे कदम न रखे। ऐसी सुशीला, घर के काम म ऐसी िनपुण और ऐसी परम सु दार

ी इस शहर मे दो ह चार

ह गी। तुम मेरा बखान करते हो। मै। उसक ल ड बनने के यो य भी नह ं हंू । घर म ई र का दया हआ सब कुछ है , मगर जब ूाणी ह मेल के◌ा ु

नह ं, तो और सब रहकर

या करे गा? ध य है उसके धैय को क उस बु ढे

खूसट वक ल के साथ जीवन के दन काट रह है । मने तो कब का जहर खा

िलया होता। मगर मन क

यथा कहने से ह थोड़े ूकट होती है । हं सती है ,

बोलती है , गहने-कपड़े पहनती है , पर रोयां-रोयां राया करता है । िस हा-वक ल साहब क खूब िशकायत करती होगी? सुधा-िशकायत

य करे गी?

या वह उसके पित नह ं ह? संसार मे

अब उसके िलए जो कुछ ह, वक ल साहब। वह बु ढे ह या रोगी, पर ह तो उसके ःवामी ह । कुलवंती

ीयां पित क िन दा नह ं करतीं,यह कुलटाओं

का काम है । वह उनक दशा दे खकर कुढ़ती ह, पर मुंह से कुछा नह ं कहती। िस हा- इन वक ल साहब को

या सूझी थी, जो इस उॆ म

याह

करने चले? सुधा- ऐसे आदमी न ह , तो गर ब

वा रय क नाव कौन पार लगाये?

तुम और तु हारे साथी बना भार गठर िलए बात नह ं करते, तो फर ये बेचारर कसके घर जायं? तुमने यह बड़ा भार अ याय कया है , और तु ह इसका ूा ँयचत करना पड़े गा। ई र उसका सुहाग अमर करे , ले कन वक ल

साहब को कह ं कुछ हो गया, तो बेचार का आज तो वह बहत ु रोती थी।

जीवन ह न

हो जाये◌ेगा।

तुम लोग सचमुच बड़े िनदयी हो। मै। तो

अपने सोहन का ववाह कसी गर ब लड़क से क ं गी। डॉ टर साहब ने यह पछला वा या नह ं सुना। वह घोर िच ता मं पड़ गये। उनके मन म यह ू

उठ-उठकर उ ह वकल करने लगा-कह ं वक ल

साहब को कुछ हो गया तो? आज उ ह अपने ःवाथ का भंयकर ःव प दखायी दया। वाःतव म यह उ ह ं का अपराध था। अगर उ ह ने पता से जोर दे कर कहा होता क मै। और कह ं ववाह न क ं गा, तो इ छा के व

उनका ववाह कर दे ते? 98

या वह उनक

सहसा सुधा ने कहा-कहो तो कल िनमला से तु हार मुलाकात करा दं ?ू वह भी जरा तु हार

कदािचत ् एक

सूरत दे ख ले। वह कुछ बोलगी तो नह ं, पर

से वह तु हारा इतना ितरःकार कर दे गी, जसे तुम कभी

न भूल सकोगे। बोल , कल िमला दँ ?ू तु हारा बहत ु सं दं ग ू ीं

प रचय भी करा

िस हा ने कहा-नह ं सुधा, तु हारे हाथ जोड़ता हंू , कह ं ऐसा गजब न

करना! नह ं तो सच कहता हंू , घर छोड़कर भाग जाऊंगा। सुधा-जो कांटा बोया है , उसका फल खाते

य इतना डरते हो? जसक

गदन पर कटार चलाई है , जरा उसे तड़पते भी तो दे खो। मेरे दादा जी ने पांच हजार

दये न! अभी छोटे भाई के

ववाह मं पांच-छ: हजार और िमल

जायगे। फर तो तु हारे बराबर धनी संसार म काई दसरा न होगा। ू हजार बहत ु होते ह। बाप-रे -बाप!

यारह

यारह हजार! उठा-उठाकर रखने लगे, तो

मह न लग जाय अगर लड़के उड़ाने लग, तो पी ढ़य तक चले। कह ं से बात हो रह है या नह ं? इस प रहास से डॉ टर साहब इतना झपे क िसर तक न उठा सके। उनका सारा वाक् -चातुय गायब हो गया। न हा-सा मुंह िनकल आया, मानो मार पड़ गई हो। इसी व जान लेकर भागे।

कसी डॉ टर साहब को बाहर से पुकारां बेचारे

ी कतनी प रहास कुशल होती है , इसका आज प रचय

िमल गया। रात को डॉ टर साहब शयन करते हए ु सुधा से बोले-िनॆला क तो

कोई ब हन है न?

सुधा- हां, आज उसक चचा तो करती थी। इसक िच ता अभी से

सवार हो रह है । अपने ऊपर तो जो कुछ बीतना था, बीत चुका, ब हन क कफब म पड़ हई ु थी।मां के पास तो अब ओर भी कुछ नह ं रहा, मजबूरन

कसी ऐसे ह बूढ़े बाबा क गले वह भी मढ़ द जरयेगी।

िस हा- िनमला तो अपनी मां क मदद कर सकती है । सुधा ने तीआण ःवर म कहा-तुम भी कभी-कभी बलकुल बेिसर’ पैर क बात करने लगते हो। िनमला बहत ु करे गी, तो दा-चार सौ

और

पये दे दे गी,

या कर सकती है ? वक ल साहब का यह हाल हो रहा है , उसे अभी

पहाड़-सी उॆ काटनी है । फर कौन जाने उनके घर का छ:मह ने से बेचारे घर बैठे ह।

यश हाल है ? इधर

पये आकाश से थोड़े ह बरसते है । दस-बीस 99

हजार ह गे भी तो बक म ह गे, कुछ िनमला के पास तो रखे न ह गे। हमारा दो सौ

पया मह ने का खच है , तो

या इनका चार सौ

पये मह ने का भी

न होगा? सुधा को तो नींद आ गई,पर डॉ टर साहब बहत ु दे र तक करवट

बदलते रहे , फर कुछ सोचकर उठे और मेज पर बैठकर एक पऽ िलखने लगे।

दो

चौदह न बाते एक ह साथ हु -िनमला के क या को ज म दया, कृ ंणा का ववाह िन

त हआ और मुंशी तोताराम का मकान नीलाम हो गया। ु

क या का ज म तो साधारण बात थी, य प िनमला क

म यह उसके

जीवन क सबसे महान घटना थी, ले कन शेष दोन घटनाएं अयाधारण थीं। कृ ंणा का ववाह-ऐसे स प न घराने म

य कर ठ क हआ ु ? उसक माता के

पास तो दहे ज के नाम को कौड़ भी न थी और इधर बूढ़े िस हा साहब जो

अब पशन लेकर घर आ गये थे, बरादर महालोभी मशहर ू थे। वह अपने पुऽ का ववाह ऐसे द रि घराने म करने पर कैसे राजी हए। कसी को सहसा ु

व ास न आता था। इससे भी बड़ आ य क बात मुंशीजी के मकान का

नीलाम होना था। लोग मुंशीजी को अगर लखपती नह ं, तो बड़ा आदमी अवँय समझते थे। उनका मकान कैसे नीलाम हआ ु ? बात यह थी

मुंशीजी ने एक महाजन से कुछ



पये कज लेकर एक गांव रहे न रखाथा।

उ ह आशा थी क साल-आध-साल म यह

पये पाट दगे, फर दस-पांच साल

म उस गांव पर क जा कर लगे। वह जमींदारअसल और सूद के कुल

पये

अदा करने म असमथ हो जायेगा। इसी भरोसे पर मुंशीजी ने यह मामला कया था। गांव बेहु त बड़ा था, चार-पांच सौ

क सोची मन ह म रह गई। मुंशीज

पये नफा होता था, ले कन मन

दल को बहत ु

समझाने पर भी

कचहर न जा सके। पुऽशोक ने उनमं कोई काम करने क श छोड़ । कौन ऐसा िच

ह नह ं

दय –शू य पता है , जो पुऽ क गदन पर तलवार चलाकर

को शा त कर ले? महाजन के पास जब साल भर तक सूद न पहंु चा और न उसके बार-

बार बुलाने पर मुंशीजी उसके पास गये। यहां तक क पछली बार उ ह ने 100

साफ-साफ कह

दया क हम कसी के गुलाम नह ं ह, साहजी जो चाहे कर ू

तब साहजी को गुःसा आ गया। उसने नािलश कर द । मुंशजी पैरवी करने ू भी न गये। एकाएक डमी हो गई। यहां घर म

पये कहां रखे थे? इतने ह

दन म मुश ं ीजी क साख भी उठ गई थी। वह

पये का कोई ूब ध न कर

सके। आ खर मकान नीलाम पर चढ़ गया। िनॆला सौर म थी। यह खबर सुनी, तो कलेजा स न-सा हो गया। जीवन म कोई सुख न होने पर भी धनाभाव क िच ताओं से मु

थी। धन मानव जीवन म अगर सवूधान

वःतु नह ं, तो वह उसके बहत ु िनकट क वःतु अवँय है । अब और अभाव

के साथ यह िच ता भी उसके िसर सवार हई। उसे दाई ु

ारा कहला भेजा,

मेरे सब गहने बेचकर घर को बचा ली जए, ले कन मुंशीजी ने यह ूःताव कसी तरह ःवीकार न कया। उस दन से मुंशीजी और भी िच तामःत रहने लगे। जस धन का सुख भोगने के िलए उ ह ने ववाह कया था, वह अब अतीत क ःमृित माऽ था। वह मारे

लािन क अब िनमला को अपना मुंह तक न दखा सकते।

उ ह अब उसक अ याय का अनुमान हो रहा था, जो उ ह ने िनमला के साथ कया था और क या के ज म

ने तो रह -सह कसर भी पूर कर द ,

सवनाश ह कर डाला! बारहव दन सौर से िनकलकर िनमला नवजात िशशु को गोद िलये पित के पास गई। वह इस अभाव म भी इतनी ूस न थी, मानो उसे कोई िच ता नह ं है । बािलका को

दय से लगार वह अपनी सार िच ताएसं भूल

गई थी। िशशु के वकिसत और हष ूद

नेऽ को दे खकर उसका

ूफु लत हो रहा था। मातृ व के इस उ ार म उसके सारे

दय

लेश वलीन हो

गये थे। वह िशशु को पित क गोद मे दे कर िनहाल हो जाना चाहती थी, ले कन मुंशीजी क या को दे खकर सहम उठे । गोद लेने के िलए उनका

दय

हलसा नह ं, पर उ ह ने एक बार उसे क ण नेऽ से दे खा और फर िसर ु

झुका िलया, िशशु क सूरत मंसाराम से बलकुल िमलती थी।

िनमला ने उसके मन का भाव और ह समझा। उसने शतगुण ःनेह से लड़क को

दय से लगा िलया मानो उसनसे कह रह है -अगर तुम इसके

बोझ से दबे जाते हो, तो आज से म इस पर तु हार साया भी नह ं पड़ने दं ग ू ी।

जस रतन को मने इतनी तपःया के बाद पाया है , उसका िनरादर

करते हए ु तु हार

दय फट नह ं जाता? वह उसी 101

ण िशशु को गोद से

िचपकाते हए ु अपने कमरे म चली आई और दे र तक रोती रह । उसने पित

क इस उदासीनता को समझने क जर भी चे ा न क , नह ं तो शायद वह उ ह इतना कठोर न समझती। उसके िसर पर

उ रदािय व का इतना बड़ा

भार कहां था,जो उसके पित पर आ पड़ा था? वह सोचने क चे ा करती, तो या इतना भी उसक समझ म न आता? मुंशीजी को एक ह दय ूेम म इतना अनुर

ण म अपनी भूल मालूम हो गई। माता का रहता है क भ वंय क िच

और बाधाएं उसे

जरा भी भयभीत नह ं करतीं। उसे अपने अंत:करण म एक अलौ कक श

का अनुभव होता है , जो बाधाओं को उनके सामने पराःत कर दे ती है । मुंशीजी दौड़े हए ु घर मे आये और िशशु को गोद म लेकर बोले मुझे याद

आती है , मंसा भी ऐसा ह था- बलकुल ऐसा ह ! िनमला-द द जी भी तो यह कहती है ।

मुंशीजी- बलकुल वह ं बड़ -बड़ आंखे और लाल-लाल ओंठ ह। ई र ने मुझे मेरा मंसाराम इस

प म दे दया। वह माथा है , वह मुंह, वह हाथ-

पांव! ई र तु हार लीला अपार है । सहसा मंसाराम है

मणी भी आ गई। मुंशीजी को दे खते ह बोली-दे ख बाबू, क नह ं? वह आया है । कोई लाख कहे , म न मानूंगी। साफ

मंसाराम है । साल भर के लगभग ह भी तो गया। मुंशीजी-ब हन, एक-एक अंग तो िमलता है । बस, भगवान ् ने मुझे मेरा

मंसाराम दे दया। (िशशु से)

य र , तू मंसाराम ह है ? छौड़कर जाने का

नाम न लेना, नह ं फर खींच लाऊंगा। कैसे िन ु र होकर भागे थे। आ खर

पकड़ लाया क नह ं? बस, कह दया, अब मुझे छोड़कर जाने का नाम न

लेना।

ु ु र-टक ु ु र ताक रह है ? दे खो ब हन, कैसी टक

उसी

ण मुंशीजी ने फर से अिभलाषाओं का भवन बनाना शु

दया। मोह ने उ ह

कर

फर संसार क ओर खींचां मानव जीवन! तू इतना

णभंगुर है , पर तेर क पनाएं कतनी द घालु! वह तोताराम जो संसार से वर

हो रह थे, जो रात- दन मु यु का आवाहन कया करते थे, ितनके का

सहारा पाकर तट पर पहंु चने के िलए पूर श

से हाथ-पांव मार रहे ह।

मगर ितनके का सहारा पाकर कोई तट पर पहंु चा है ?

102

प िह

िन

मला को य प अपने घर के झंझट से अवकाश न था, पर कृ ंणा के

ववाह का संदेश पाकर वह

कसी तरह न

क सक । उसक

माता ने बेहु त आमह करके बुलाया था। सबसे बड़ा आकषण यह था



कृ ंणा का ववाह उसी घर म हो रहा था, जहां िनमला का ववाह पहले तय

हआ था। आ य यह था क इस बार ये लोग बना कुछ दहे ज िलए कैसे ु

ववाह करने पर तैयार हो गए! िनमला को कृ ंणा के वषय म बड़ िच ता

हो रह थी। समझती थी- मेर ह तरह वह भी

कसी के गले मढ़ द

जायेगी। बहत ु चाहती थी क माता क कुछ सहायता क ं , जससे कृ ंणा के िलए कोई यो य वह िमले, ले कन इधर वक ल साहब के घर बैठ जाने और

महाजन के नािलश कर दे ने से उसका हाथ भी तंग था। ऐसी दशा म यह खबर पाकर उसे बड़ श त िमली। चलने क तैयार कर ली। वक ल साहब

ःटे शन तक पहंु चाने आये। न ह ं ब ची से उ ह बहत ु ूेम था। छो◌ैड़ते ह न थे, यहां तक क िनमला के साथ चलने को तैयार हो गये, ले कन ववाह से

एक मह ने पहले उनका ससुराल जा बैठना िनमला को उिचत न मालूम हआ। िनमला ने अपनी माता से अब तक अपनी वप ु जो बात हो गई, उसका रोना रोकर माता को क

कथा न कह थी।

दे ने और

लाने से

या

फायदा? इसिलए उसक माता समझती थी, िनमला बड़े आन द से है । अब जो िनमला क सूरत दे खी, तो मानो उसके

दय पर ध का-सा लग गया।

लड़ कयां सुसुराल से घुलकर नह ं आतीं, फर िनमला जैसी लड़क , जसको सुख क

सभी सामिमयां ूा

थीं। उसने

कतनी लड़ कय

को दज क ू

च िमा क भांित ससुराल जाते और पूण च ि बनकर आते दे खा था। मन म क पना कर रह थी, िनमला का रं ग िनखर गया होगा, दे ह भरकर सुडौल हो गई होगी,

अंग-ू यंग क शोभा कुछ और ह हो गई होगी। अब जो

दे खा, तो वह आधी भी न रह थीं न यौवन क चंचलता थी सन वह वहिसत

छ व लो

दय को मोह लेती है । वह कमनीयता, सुकुमारता, जो वलासमय

जीवन से आ जाती है , यहां नाम को न थी। मुख पीला, चे ा िगर हु , तो माता ने पूछा- य र , तुझे वहां खाने को न िमलता था? इससे कह ं अ छ

तो तू यह ं थी। वहां तुझे

या तकलीफ थी?

103

कृ ंणा ने हं सकर कहा-वहां माल कन थीं क नह ं। माल कन दिनया ु

भर क िच ताएं रहती ह, भोजन कब कर?

िनमला-नह ं अ मां, वहां का पानी मुझे रास नह आया। तबीयत भार रहती है । माता-वक ल साहब

योते म आयगे न? तब पूछू ं गी क आपने फूल-सी

लड़क ले जाकर उसक यह गत बना डाली। अ छा, अब यह बता क तूने यहां

पये

य भेजे थे? मने तो तुमसे कभी न मांगे थे। लाख गई-गुलर हंू ,

ले कन बेट का धन खाने क नीयत नह ं।

िनमला ने च कत होकर पूछा- कसने

पये भेजे थे। अ मां, मने तो

नह ं भेजे। माता-झूठ ने बोल! तूने पांच सौ कृ ंणा-भेजे नह ं थे, तो

पये के नोट नह ं भेजे थे?

या आसमान से आ गये? तु हारा नाम साफ

िलखा था। मोहर भी वह ं क थी।

ू िनमला-तु हारे चरण छकर कहती हंू , मने

पये नह ं भेजे। यह कब क

बात है ? से?

माता-अरे , दो-ढाई मह ने हए ु ह गे। अगर तूने नह ं भेजे, तो आये कहां िनमला-यह म

या जानू? मगर मने

पये नह ं भेजे। हमारे यहां तो

जब से जवान बेटा मरा है , कचहर ह नह ं जाते। मेरा हाथ तो आप ह तंग था, पये कहां से आते? माता- यह तो बड़े आ य क

बात है । वहां और कोई तेरा सगा

स ब धी तो नह ं है ? वक ल साहब ने तुमसे िछपाकर तो नह ं भेजे? िनमला- नह ं अ मां, मुझे तो व ास नह ं। माता- इसका पता लगाना चा हए। मने सारे

पये कृ ंणा के गहने-

कपड़े म खच कर डाले। यह बड़ मु ँकल हई। ु दोन लड़को म कसी

वषय पर ववाद उठ खड़ा हआ और कृ ंणा ु

उधर फैसला करने चली गई, तो िनमला ने माता से कहा- इस ववाह क बात सुनकर मुझे बड़ा आ य हआ। यह कैसे हआ अ मां? ु ु

माता-यहां जो सुनता है , दांत उं गली दबाता ह। जन लोग ने प क

क कराई बात फेर द और केवल थोड़े से

पये के लोभ से, वे अब बना

कुछ िलए कैसे ववाह करने पर तैयार हो गये, समझ म नह ं आता। उ ह ने 104

खुद ह पऽ भेजा। मने साफ िलख दया क मेरे पास दे ने-लेने को कुछ नह ं है , कुश-क या ह से आपक सेवा कर सकती हंू । िनमला-इसका कुछ जवाब नह ं दया?

माता-शा ीजी पऽ लेकर गये थे। वह तो यह

कहते थे

क अब

ु मुंशीजी कुछ लेने के इ छक नह ं है । अपनी पहली वादा- खलाफ पर कुछ ल जत भी ह। मुंशीजी से तो इतनी उदारता क आशा न थी, मगर सुनती हंू , उनके बड़े पुऽ बहत ु स जन आदमी है । उ ह ने कह सुनकर बाप को राजी कया है ।

िनमला- पहले तो वह महाशय भी थैली चाहते थे न? माता- हां, मगर अब तो शा ीजी कहते थो

क दहे ज के नाम से

िचढ़ते ह। सुना है यहां ववाह न करने पर पछताते भी थे। बात छोड़ थी और

पये खूब पाये,

पये के िलए

ी पसं द नह ं।

िनमला के मन म उस पु ष को दे खने क ूबल उ कंठा हई ु , जो

उसक अवहे लना करके अब उसक ब हन का उ ार करना चाहता ह ूाय सह , ले कन कतने ऐसे ूाणी ह, जो इस तरह ूाय



त करने को तैयार ह?

उनसे बात करने के िलए, नॆ श द से उनका ितरःकार करने के िलए, अपनी अनुपम छ व दखाकर उ ह और भी जलाने के िलए िनमला का

दय

अधीर हो उठा। रात को दोन ब हन एक ह केमरे म सोई। मुह ले



कन- कन लड़ कय का ववाह हो गया, कौन-कौन लड़कोर हु , कस- कस

का ववाह धूम-धाम से हआ। कस- कस के पित कन इ छानुकूल िमले, कौन ु

कतने और कैस गहने चढ़ावे म लाया, इ ह ं वषय म दोन मे बड़ दे र

तक बात होती रह ं। कृ ंणा बार-बार चाहती थी क ब हन के घर का कुछ हाल पूछं, मगर िनमला उसे पूछने का अवसर न दे ती थी। जानती थी क

यह जो बात पूछेगी उसके बताने म मुझे संकोच होगा। आ खर एक बार कृ ंणा पूछ ह बैठ -जीजाजी भी आयगे न? िनमला- आने को कहा तो है । कृ ंण- अब तो तुमसे ूस न रहते ह न या अब भी वह हाल है ? म तो सुना करती थी दहाजू पित ु

ी को ूाण से भी ूया समझते ह, वहां

बलकुल उ ट बात दे खी। आ खर कस बात पर बगड़ते रहते ह? िनमला- अब म कसी के मन क बात 105

या जानू?

कुंणा- म तो समझती हंू , तु हार

खाई से वह िचढ़ते ह गे। तुम हो

यह ं से जली हई ु गई थी। वहां भी उ ह कुछ कहा होगा।

िनमला- यह बात नह ं है , कृ ंणा, म सौग ध खाकर

कहती हंू , जो मेरे

मन म उनक ओर से जरा भी मैल हो। मुझसे जहां तक हो सकता है , उनक

सेवा करती हंू , अगर उनक जगह कोई दे वता भी होता, तो भी म इससे

यादा और कुछ न कर सकती। उ ह भी मुझसे ूेम है । बराबर मेरा मुंख

दे खते रहते ह, ले कन जो बात उनक और मेरे काबू के बाहर है , उसके िलए वह

या कर सकते ह और म

या कर सकती हंू ? न वह जवान हो सकते

ह, न म बु ढ़या हो सकती हंू । जवान बनने के िलए वह न जाने कतने रस

और भःम खाते रहते ह, म बु ढ़या बनने के िलए दध ू -घी सब छोड़े बैठ हंू ।

सोचती हंू , मेरे दबले ु पन ह से अवःथा का भेद कुछ कम हो जाय, ले कन न उ ह पौ क पदाथ

से कुछ लाभ होता है , न मुझे उपवस

से। जब से

मंसाराम का दे हा त हो गया है , तब से उनक दशा और खराब हो गयी है । कृ ंणा- मंसाराम को तुम भी बहत यार करती थीं? ु

िनमला- वह लड़का ह ऐसा था क जो दे खता था, यार करता था। ऐसी बड़ -बड़ डोरे दार आंख मने कसी क नह ं दे खीं। कमल क भांित मुख हरदम खला रह था। ऐसा साहसी क अगर अवसर आ पड़ता, तो आग म फांद जाता। कृ ंणा, म तुमसे कहती हंू , जब वह मेरे पास आकर बैठ जाता, तो

म अपने को भूल जाती थी। जी चाहता था, वह हरदम सामने बैठा रहे और म दे खा क ं । मेरे मन म पाप का लेश भी न था। अगर एक

ण के िलए

भी मने उसक ओर कसी और भाव से दे खा हो, तो मेर आंख फूट जाय, पर

न जाने इसीिलए



उसे अपने पास दे खकर मेरा

दय फूला न समाता था।

मने पढ़ने का ःवांग रचा नह ं तो वह घर म आता ह न था। यह

मै। जानती हंू क अगर उसके मन म पाप होता, तो म उसके िलए सब कुछ कर सकती थी। कृ ंणा-

अरे ब हन, चुप रहो, कैसी बात मुंह से िनकालती हो?

िनमला- हां, यह बात सुनने म बुर मालूम होती है और है भी बुर , ले कन मनुंय क ूकृ ित को तो कोई बदल नह ं सकता। तू ह बता- एक पचास वष के मद से तेरा ववाह हो जाये, तो तू

या करे गी?

कृ ंणा-ब हन, म तो जहर खाकर सो रहंू । मुझसे तो उसका मुंह भी न

दे खते बने।

106

िनमला- तो बस यह समझ ले। उस लड़के ने कभी मेर ओर आंख उठाकर नह ं दे खा, ले कन बु ढे तो श क होते ह ह, तु हारे जीजा उस लड़के के दँमन हो गए और आ खर उसक जान लेकर ह छोड़ । जसे दन उसे ु

मालूम हो गया क पताजी के मन म मेर ओर से स दे ह है , उसी दन के

उसे

वर चढ़ा, जो जान लेकर ह उतरा। हाय! उस अ तम समय का

आंख से नह ं उतरता। म अःपताल गई थी, वह क श

न थी, ले कन

ँय

वी म बेहोश पड़ा था, उठने

य ह मेर आवाज सुनी, च ककर उठ बैठा और

‘माता-माता’ कहकर मेरे पैर पर िगर पड़ा (रोकर) कृ ंणा, उस समय ऐसा जी चाहता था अपने ूाण िनकाल कर उसे दे दं ।ू मेरे

पैरां पर ह वह

मूिछत हो गया और फर आंख न खोली। डॉ टर ने उसक दे ह मे ताजा खून डालने का ूःताव कया था, यह सुनकर म दौड़ गई थी ले कन जब

तक डॉ टर लोग वह ू बया आर भ कर, उसके ूाण, िनकल गए। कृ ंणा- ताजा र

पड़ जाने से उसक जान बच जाती?

िनमला- कौन जानता है ? ले कन म तो अपने

िधर क अ तम बूंद

तक दे ने का तैयार थी उस दशा म भी उसका मुखम डल द पक क भांित चमकता था। अगर वह मुझे दे खते ह दौड़कर मेरे पैर पर न िगर पड़ता, पहले कुछ र

दे ह म पहंु च जाता, तो शायद बच जाता।

कृ ंणा- तो तुमने उ ह उसी व ा िलटा

य न दया?

िनमला- अरे पगली, तू अभी तक बात न समझी। वह मेरे पैर पर िगरकर और माता-पुऽ का स ब ध

दखाकर अपने बाप के

दल से वह

स दे ह िनकाल दे ना चाहता था। केवल इसीिलए वह उठा थ। मेरा

लेश

िमटाने के िलए उसने ूाण दये और उसक वह इ छा पूर हो गई। तु हारे

जीजाजी उसी दन से सीधे हो गये। अब तो उनक दशा पर मुझे दया आती है । पुऽ-शाक उनक ूाण लेकर छोड़े गा। मुझ पर स दे ह करके मेरे साथ जो अ याय

कया है , अब उसका ूितशोध कर रहे ह। अबक

उनक

सूरत

दे खकर तू डर जायेगी। बूढ़े बाबा हो गये ह, कमर भी कुछ झुक चली है । कृ ंणा- बु ढे लोग इतनी श क

य होते ह, ब हन?

िनमला- यह जाकर बु ढ से पूछो। कृ ंणा- म समझती हंू , उनके दल म हरदम एक चोर-सा बैठा रहता

होगा क इस युवती को ूस न नह ं रख सकता। इसिलए जरा-जरा-सी बात पर उ ह शक होने लगता है । 107

िनमला- जानती तो है , फर मुझसे कुंणा- इसीिलए बेचारा

य पूछती है ?

ी से दबता भी होगा। दे खने वाले समझते

ह गे क यह बहत ु ूेम करता है । िनमला- तूने इतने ह

दन म इ तनी बात कहां सीख लीं? इन बात

को जाने दे , बता, तुझे अपना वर पस द है ? उसक तःवीर ता दे खी होगी? कृ ंणा- हां, आई तो थी, लाऊं, दे खोगी? एक

ण म कृ ंणा ने तःवीर लाकर िनमला के हाथ म रख द ।

िनमला ने मुःकराकर कहा-तू बड़ भा यवान ् है ।

कृ ंणा- अ माजी ने भी बहत ु पस द कया।

िनमला- तुझे पस द है क नह ं, सो कह, दसर क बात न चला। ू

कृ ंणा- (लजाती हई ु ) श ल-सूरत तो बुर नह ं है , ःवभाव का हाल

ई र जाने। शा ीजी तो कहते थे, ऐसे सुशील और च रऽवान ् युवक कम ह गे।

िनमला- यहां से तेर तःवीर भी गई थी? कृ ंणा- गई तो थी, शा ीजी ह तो ले गए थे। िनमला- उ ह पस द आई? कृ ंणा- अब कसी के मन क बात म बहत ु खुश हए ु थे।

िनमला- अ छा, बता, तुझे

बनवा रखू।ं

या जानूं? शा ी जी कहते थे,

या उपहार दं ?ू अभी से बता दे , जससे

कृ ंणा- जो तु हारा जी चाहे , दे ना। उ ह पुःतक से बहत ु ूेम है ।

अ छ -अ छ पुःतक मंगवा दे ना।

िनमला-उनके िलए नह ं पूछती तेरे िलए पूछती हंू । कृ ंणा- अपने ह िलये तो म कह रह हंू ।

ह।

िनमला- (तःवीर क तरफ दे खती हई ु ) कपड़े सब ख र के मालूम होते

कृ ंणा- हां, ख र के बड़े ूेमी ह। सुनती हंू क पीठ पर ख र लाद कर

दे हात म बेचने जाया करते ह। या यान दे ने म भी चतुर ह। िनमला- तब तो मुझे भी ख

पहनना पड़े गा। तुझे तो मोटे कपड़ो से

िचढ़ है । 108

कृ ंणा- जब उ ह मोटे कपड़े अ छे लगते ह, तो मुझे

य िचढ़ होगी,

मने तो चखा चलाना सीख िलया है । िनमला- सच! सूत िनकाल लेती है ? कृ ंणा- हां, ब हन, थोड़ा-थोड़ा िनकाल लेती हंू । जब वह ख र के इतने

ूेमी ह, जो चखा भी ज र चलाते ह गे। म न चला सकूंगी, तो मुझे कतना ल जत होना पड़े गा। इस तरह बात करते-करते दोन ब हन सो । कोई दो बजे रात को

ब ची रोई तो िनमला क नींद खुली। दे खा तो कृ ंणा क चारपाई खाली पड़ थी। िनमला को आ य हआ ु

क इतना रात गये कृ ंणा कहां चली गई।

शायद पानी-वानी पीने गई हो। मगर पानी तो िसरहाने रखा हआ है , फर ु

कहां गई है ? उसे दो-तीन बार उसका नाम लेकर आवाज द , पर कृ ंणा का पता न था। तब तो िनमला घबरा उठ । उसके मन म भांित-भांित क शंकाएं होने लगी। सहसा उसे

याल आया क शायद अपने कमरे म न चली

गई हो। ब ची सो गई, तो वह उठकर कृ ंणा के के कमरे के

ार पर आई।

उसका अनुमान ठ क था, कृ ंणा अपने कमरे म थी। सारा घर सो रहा था और वह बैठ चखा चला रह थी। इतनी त मयता से शायद उसने िथऐटर भी न दे खा होगा। िनमला दं ग रह गई। अ दर जाकर बोली- यह

या कर

रह है रे ! यह चखा चलाने का समय है ? कृ ंणा च ककर उठ बैठ और संकोच से िसर झुकाकर बोली- तु हार नींद कैसे खुल गई? पानी-वानी तो मने रख दया था। िनमला- म कहती हंू , दन को तुझे समय नह ं िमलता, जो पछली रात

को चखा लेकर बैठ है ?

कृ ंणा- दन को फुरसत ह नह ं िमलती? िनमला- (सूत दे खकर) सूत तो बहत ु मह न है ।

कृ ंणा- कहां-ब हन, यह सूत तो मोटा है । म बार क सूतकात कर उनके

िलए साफा बनाना चाहती हंू । यह मेरा उपहार होगा।

िनमला- बात तो तूने खूब सोची है । इससे अिधक मू यवसान वःतु

उनक

म और

या होगी? अ छा, उठ इस व , कल कातना! कह ं

बीमार पड़ जायेगी, तो सब धरा रह जायेगा। कृ ंणा- नह ं मेर ब हन, तुम चलकर सोओ, म अभी आती हंू । 109

िनमला ने अिधक आमह न कया, लेटने चली गई। मगर कसी तरह नींद न आई। कृ ंणा क उ सुकता और यह उमंग दे खकर उसका अल

दय कसी

त आकां ा से आ दोिलत हो उठां ओह! इस समय इसका

कतना ूफु लत हो रहा है । अनुराग ने इसे कतना उ म

दय

कर रखा है ।

तब उसे अपने ववाह क याद आई। जस दन ितलक गया था, उसी दन से उसक सार चंचलता, सार सजीवता वदा हो गेई थी। अपनी कोठर



बैठ वह अपनी कःमत को रोती थी और ई र से वनय करती थी क

ूाण िनकल जाये। अपराधी जैसे दं ड क ूती ा करता है , उसी भांित वह ववाह क ूती ा करती थी, उस ववाह क , जसम उसक जीवन क सार

अिभलाषाएं वलीन हो जाएंगी, जब म डप के नीचे बने हए ु हवन-कु ड म उसक आशाएं जलकर भःम हो जायगी।



सोलह ह ना कटते दे र न लगी। ववाह का शुभ मुहू त आ पहंु चां मेहमान से

घार भार गया। मंशी तोताराम एक दन पहले आ गये और उसनके

साथ िनमला क सहे ली भी आई। िनमला ने बहत ु आमह न कया था, वह

खुद आने को उ सुक थी। िनमला क सबसे बड़ उ कंठा यह थी क वर के बड़े भाई के दशन क ं गी और हो सकता तो उसक सुबु दं ग ू ी।

पर ध यवाद

सुधा ने हं स कर कहा-तुम उनसे बोल सकोगी? िनमला-

य , बोलने म

या हािन है ? अब तो दसरा ह स ब ध हो ू

गया और म न बोल सकूंगी, तो तुम तो हो ह ।

सुधा-न भाई, मुझसे यह न होगा। म पराये मद से नह ं बोल सकती। न जाने कैसे आदमी ह । िनमला-आदमी तो बुरे नह ं है , और फर उनसे कुछ ववाह तो करना नह ं, जरा-सा बोलने म

या हािन है ? डॉ टर साहब यहां होते, तो म तु ह

आ ा दला दे ती। पराई

सुधा-जो लोग हदय के उदार होते ह, या च रऽ के भी अ छे होते है ? ु ी क घूरने म तो कसी मद को संकोच नह ं होता।

110

िनमला-अ छा न बोलना, म ह बात कर लूंगी, घूर लगे जतना उनसे घूरते बनेगा, बस, अब तो राजी हई। ु

इतने म कृ ंणा आकर बैठ गई। िनमला ने मुःकराकर कहा-सच बता

कृ ंणा, तेरा मन इस व

य उचाट हो रहा है ?

कृ ंणा-जीजाजी बुला रहे ह, पहले जाकर सुना आआ, पीछे ग प लड़ाना बहत बगड़ रहे ह। ु िनमला-

या है , तून कुछ पूछा नह ं?

कृ ंणा- कुछ बीमार से मालूम होते ह। बहत हो गए ह। ु ु दबले िनमला- तो जरा बैठकर उनका मन बहला दे ती। यहां दौड़

य चली

आई? यह कहो, ई र ने कृ पा क , नह ं तो ऐसा ह पु षा तुझे भी िमलता। जरा बैठकर बात करो। बु ढे बात बड़

ल छे दार करते ह। जवान इतने

ड ंिगयल नह ं होते। कृ ंणा- नह ं ब हन, तुम जाओ, मुझसे तो वहां बैठा नह ं जाता। िनमला चली गई, तो सुधा ने कृ ंणा से कहा- अब तो बारात आ गई होगी।

ार-पूजा कृ ंणा-

य नह होती? या जाने ब हन, शा ीजी सामान इक ठा कर रहे ह?

सुधा- सुना है , द ू हा का भावज बड़े कड़े ःवाभाव क

ी है ।

कृ ंणा- कैसे मालूम?

सुधा- मने सुना है , इसीिलए चेताये दे ती हंू । चार बात गम खाकर

रहना होगा।

कृ ंणा- मेर झगड़ने क आदत नह ं। जब मेर तरफ से कोई िशकायत

ह न पायगी तो

या अनायास ह

बगड़े गी!

सुधा- हां, सुना तो ऐसा ह है । झूठ-मूठ लड़ा कारती है । कृ ंणा- म तो सौबात क एक बात जानती हंू , नॆता प थर को भी

मोम कर दे ती है ।

सहसा शोर मचा- बारात आ रह है । दोन रम णयां खड़क के सामने आ बैठ ं। एक

ण म िनमला भी आ पहंु ची।

वर के बड़े भाई को दे खने क उसे बड़ उ सुकता हो रह थी। सुधा ने कहा- कैसे पता चलेगा क बड़े भाई कौन ह? िनमला- शा ीजी से पूछंू, तो मालूम हो। हाथी पर तो कृ ंणा के ससुर महाशय ह। अ छा डॉ टर साहब यहां कैसे आ पहंु चे! वह घोड़े पर 111

या

ह, दे खती नह ं हो? सुधा- हां, ह तो वह । िनमला- उन लोग से िमऽता होगी। कोई स ब ध तो नह ं है । सुधा- अब भट हो तो पूछंू, मुझे तो कुछ नह ं मालूम। िनमला- पालक मे जो महाशय बैठे हए ु ह, वह तो द ू हा के भाई जैसे

नह ं द खते।

सुधा- बलकुल नह ं। मालूम होता है , सार दे हे मे पेछ-ह -पेट है ।

िनमला- दसरे हाथी पर कौन बैठा है , समझ म नह आता। ू

सुधा- कोई हो, द ू हा का भाई नह ं हो सकता। उसक उॆ नह ं दे खती

हो, चालीस के ऊपर ह गी।

िनमला- शा जी तो इस व

ार-पूजा



फब म ह, नह ं तो◌ा

उनसे पूछती। व

संयोग से नाई आ गया। स दक क कुंिलयां िनमला के पास थीं। इस ू ारचार के िलए कुछ

पये क ज रत थी, माता ने भेजा था, यह नाई

भी प डत मोटे राम जी के साथ ितलक लेकर गया था। िनमला ने कहा-

या अभी

पये चा हए?

नाई- हां ब हनजी, चलकर दे द जए। िनमला- अ छा चलती हंू । पहले यह बता, तू द ू हा क बड़े भाई को

पहचानता है ?

नाई- पहचानता काहे नह ं, वह

या सामने ह।

िनमला- कहां, म तो नह ं दे खती? नाई- अरे वह

या घोड़े पर सवार ह। वह तो ह।

िनमला ने च कत होकर कहा-

या कहता है , घोड़े पर द ू हा के भाई

ह! पहचानता है या अटकल से कह रहा है ? नाई- अरे ब हनजी,

या इतना भूल जाऊंगा अभी तो जलपान का

सामान दये चला आता हंू ।

िनमल- अरे , यह तो डॉ टर साहब ह। मेरे पड़ोस म रहते ह।

नाई- हां-हां, वह तो डॉ टर साहब है । िनमला ने सुधा क ओर दे खकर कहा- सुनती ह ब हन, इसक बात? सुधा ने हं सी रोककर कहा-झूठ बोलता है । 112

नाई- अ छा साहब, झूठ ह सह , अब बड़ के मुह ं कौन लगे! अभी शा ीजी से पूछवा दं ग ू ा, तब तो मािनएगा?

नाई के आने म दे र हई ु , मोटे राम खुद आंगन म आकर शोर मचाने

लगे-इस घर क मयादा रखना ई र ह के हाथ है । नाई घ टे भर से आया हआ है , और अभी तक ु

पये नह ं िमले।

िनमला- जरा यहां चले आइएगा शा ीजी, कतने

पये दरकरार ह,

िनकाल दं ?ू

शा ीजी भुनभुनाते और जोर-जारे से हांफते हए ु ऊपर आये और एक

ल बी सांस लेकर बोले- या है ? यह बात का समय नह ं है , ज द से

पये

िनकाल दो। िनमला- ली जए, िनकाल तो रह ं हंू । अब

पहले यह बताइए क दलहा के बड़े भाई कौन ह? ू

या मुंह के बल िगर पडंू ?

शा ीजी- रामे-राम, इतनी-सी बात के िलए मुझे आकाश पर लटका

दया। नाई

या न पहचानता था?

िनमला- नाई तो कहता है क वह जो घोड़े पर सवार है , वह ह। शा ीजी- तो फर कसे बता दे ? वह तो ह ह । नाई- घड़ भर से कह रहा हंू , पर ब हनजी मानती ह नह ं।

िनमला ने सुधा क ओर ःनेह, ममता, वनोद कृ ऽम ितरःकार क से दे खकर कहा- अ छा, तो तु ह अब तक मेरे साथ यह ऽया-च रऽ खेर रह थी! म जानती, तो तु ह यहां बुलाती ह नह ं। ओ फोह! बड़ा गहरा पेट है तु हारा! तुम मह न से मेरे साथ शरारत करती चली आती हो, और कभी

भूल से भी इस वषय का एक श द तु हारे मुंह से नह ं िनकला। म तो दोचार ह

दन म उबल पड़ती। सुधा- तु ह मालूम हो जाता, तो तुम मेरे यहां आती ह

य?

िनमला- गजब-रे -गजब, म डॉ टर साहब से कई बार बात कर चुक हंू । तु हारो ऊपर यह सारा पाप पड़े गा। दे खा कृ ंणा, तूने अपनी जेठानी क शरारत! यह ऐसी माया वनी है , इनसे डरती रहना।

कृ ंणा- म तो ऐसी दे वी के चरण धो-धोकर माथे चढाऊंगी। ध य-भाग क इनके दशन हए। ु

िनमला- अब समझ गई।

पये भी तु ह न िभजवाये ह गे। अब िसर

हलाया तो सच कहती हंू , मार बैठू ं गी।

113

सुधा- अपने घर बुलाकर के मेहमान का अपमान नह ं कया जाता। िनमला- दे खो तो अभी कैसी-कैसी खबरे लेती हंू । मने तु हारा मान

रखने को जरा-सा िलख दया था और तुम सचमुच आ पहंु ची। भला वहां

वाले

या कहते ह गे?

सुधा- सबसे कहकर आई हंू ।

िनमला- अब तु हारे पास कभी न आऊंगी। इतना तो इशारा कर दे तीं क डॉ टर साहब से पदा रखना।

सुधा- उनके दे ख लेने ह से कौन बुराई हो गई? न दे खते तो अपनी

कःमत को रोते कैसे? जानते कैसे क लोभ म पड़कर कैसी चीज खो द ? अब तो तु ह दे खकर लालाजी हाथ मलकर रह जाते ह। मुंह से तो कुछ नह ं सकहते, पर मन म अपनी भूल पर पछताते ह। िनमला- अब तु हारे घर कभी न आऊंगी।

ू सकता। मने कौन तु हारे घर क राह नीं सुधा- अब प ड नह ं छट दे खी है । ार-पूजा समा

हो चुक थी। मेहमान लोग बैठ जलपान कर रहे थे।

मुंशीजी क बेगल म ह डॉ टर िस हा बैठे हए ु थे। िनमला ने कोठे पर िचक

क आड़ से उ ह दे खा और कलेजा थामकर रह गई। एक आरो य, यौवन और ूितभा का दे वता था, पर दसरा ू ...इस वषय म कुछ न कहना ह दिचत है ।

िनमला ने डॉ टर साहब को सैकड़ ह बार दे खा था, पर आज उसके दय म जो वचार उठे , वे कभी न उठे थे। बार-बार यह जी चाहता था क

बुलाकर खूब फटका ं , ऐसे-ऐसे ताने मा ं

क वह भी याद कर,

ला- लाकर

छोडंू , मेगर रहम करके रह जाती थी। बारात जनवासे चली गई थी। भोजन क तैयार हो रह थी। िनमला भोजन के थाल चुनने म

यःत थी। सहसा

महर ने आकर कहा- ब ट , तु ह सुधा रानी बुला रह है । तु हारे कमरे म बैठ ह। िनमला ने थाल छोड़ दये और घबराई हई ु सुधा के पास आई, मगर

अ दर कदम रखते ह

ठठक गई, डॉ टर िस हा खड़े थे।

सुधा ने मुःकराकर कहा- लो ब हन, बुला दया। अब जतना चाहो, फटकारो। म दरवाजा रोके खड़ हंू , भाग नह ं सकते। 114

डॉ टर साहब ने ग भीर भाव से कहा- भागता कौन है ? यहां तो िसर झुकाए खड़ा हंू ।

िनमला ने हाथ जोड़कर कहा- इसी तरह सदा कृ पा-

न जाइएगा। यह मेर

र खएगा, भूल

वनय है । सऽह

कृ

ंणा के ववाह के बाद सुधा चली गई, ले कन िनमला मैके ह म रह गई। वक ल साहब बार-बार िलखते थे, पर वह न जाती थी। वहां जाने

को उसका जी न चाहता था। वहां कोई ऐसी चीज न थी, जो उसे खींच ले जाये। यहां माता क सेवा और छोटे भाइय क दे खभाल म उसका समय बड़े

आन द के कट जाता था। वक ल साहब खुद आते तो शायद वह जाने पर राजी हो जाती, ले कन इस

ववाह म, मुह ले क लड़ कय ने उनक वह

दगत क थी क बेचारे आने का नाम ह न लेते थे। सुधा ने भी कई बार ु पऽ िलखा, पर िनमला ने उससे भी ह ले-ह ाले कया। आ खर एक दन सुधा

ने नौकर को साथ िलया और ःवयं आ धमक । जब दोन गले िमल चुक ं, तो सुधा ने कहा-तु ह तो वहां जाते मानो डर लगता है ।

िनमला- हां ब हन, डर तो लगता है । याह क गई तीन साल म आई,

अब क तो वहां उॆ ह खतम हो जायेगी, फर कौन बुलाता है और कौन आता है ? सुधा- आने को बहत ु बेचैन हो रहे ह।

या हआ ु , जब जी चाहे चली आना। वहां वक ल साहब

िनमला- बहत ु बेचैन, रात को शायद नींद न आती हो।

सुधा- ब हन, तु हारा कलेजा प थर का है । उनक दशा दे खकर तरस

आता है । कहते थे, घर मे कोई पूछने वाला नह ं, न कोई लड़का, न बाला, कससे जी बहलाय? जब से दसरे मकान म उठ आए ह, बहत रहते ह। ू ु ु दखी िनमला- लड़के तो ई र के दये दो-दो ह।

सुधा- उन दोन क तो बड़ िशकायत करते थे।

जयाराम तो अब

बात ह नह ं सुनता-तुक -बतुक जवाब दे ता है । रहा छोटा, वह भी उसी के कहने म है । बेचारे बड़े लड़के क याद करके रोया करते ह। 115

िनमला- जयाराम तो शर र न था, वह बदमाशी कब से सीख गया? मेर तो कोई बात न टालता था, इशारे पर काम करता था। सुधा-

या जाने ब हन, सुना, कहता है , आप ह ने भैया को जहर दे कर

मार डाला, आप ह यारे ह। कई बार तुमसे ववाह करने के िलए ताने दे चुका है । ऐसी-ऐसी बात कहता है क वक ल साहब रो पड़ते ह। अरे , और तो

या

कहंू , एक दन प थर उठाकर मारने दौड़ा था।

िनमला ने ग भीर िच ता म पड़कर कहा- यह लड़का तो बड़ा शैतान

िनकला। उसे यह कसने कहा क उसके भाई को उ ह ने जहर दे दया है ? सुधा- वह तु ह ं से ठ क होगा।

िनमला को यह नई िच ता पैदा हई। अगर जया क यह रं ग है , ु

अपने बाप से लड़ने पर तैयार रहता है , तो मुझसे

य दबने लगा? वह रात

को बड़ दे र तक इसी फब मे डबी रह । मंसाराम क आज उसे बहत ू ु याद

आई। उसके साथ ज दगी आराम से कट जाती। इस लड़के का जब अपने

पता के सामने ह वह हाल है , तो उनके पीछे उसके साथ कैसे िनवाह होगा! घर हाथ से िनकल ह गया। कुछ-न-कुछ कज अभी िसर पर होगा ह , आमदनी का यह हाल। ई वर ह िनमला को ब च क

बेड़ा पार लगायगे। आज पहली बार

फब पैदा हई। इस बेचार का न जाने ु

होगा? ई र ने यह वप

या हाल

िसर डाल द । मुझे तो इसक ज रत न थी।

ज म ह लेना था, तो कसी भा यवान के घर ज म लेती। ब ची उसक छाती से िलपट हई ु सो रह थी। माता ने उसको और भी िचपटा िलया, मानो

कोई उसके हाथ से उसे छ ने िलये जाता है ।

िनमला के पास ह सुधा क चारपाई भी थी। िनमला तो िच

सागर मे गोता था रह थी और सुधा मीठ नींद का आन द उठा रह थी। या उसे अपने बालक क

फब सताती है ? मृ यु तो बूढ़े और जवान का

भेद नह ं करती, फनर सुधा को कोई िच ता

य नह ं सताती? उसे तो कभी

भ वंय क िच ता से उदास नह ं दे खा। सहसा सुधा क नींद खुल गई। उसने िनमला को अभी तक जागते दे खा, तो बोली- अरे अभी तुम सोई नह ं? िनमला- नींद ह नह ं आती।

116

सुधा- आंख ब द कर लो, आप ह नींद आ जायेगी। म तो चारपाई पर आते ह मर-सी जाती हंू । वह जागते भी ह, तो खबर नह ं होती। न जाने मुझे

य इतनी नींद आती है । शायद कोई रोग है ।

िनमला- हां, बड़ा भार रोग है । इसे राज-रोग कहते ह। डॉ टर साहब से कहो-दवा शु

कर द।

सुधा- तो आ खर जागकर

या सोचूं? कभी-कभी मैके क याद आ

जाती है , तो उस दन जरा दे र म आंख लगती है ।

िनमला- डॉ टर साहब क यादा नह ं आती?

सुधा- कभी नह ं, उनक याद

य आये? जानती हंू क टे िनस खेलकर

आये ह गे, खाना खाया होगा और आराम से लेटे ह गे।

िनमला- लो, सोहन भी जाग गया। जब तुम जाग ग तो भला यह

य सोने लगा?

सुधा- हां ब हन, इसक अजीब आदत है । मेरे साथ सोता और मेरे ह साथ जागता है । उस ज म का कोई तपःवी है । दे खो, इसके माथे पर ितलक का कैसा िनशान है । बांह पर भी ऐसे ह िनशान ह। ज र कोई तपःवी है । िनमला- तपःवी लोग तो च दन-ितलक नह ं लगाते। उस ज म का कोई धूत पुजार होगा।

य रे , तू कहां का पुजार था? बता?

सुधा- इसका याह म ब ची से क ं गी। िनमला- चलो ब हन, गाली दे ती हो। ब हन से भी भाई का याह होता है ? सुधा- म तो क ं गी, चाहे कोई कुछ कहे । ऐसी सु दर बहू और कहां

पाऊंगी? जरा दे खो तो बहन, इसक दे ह कुछ गम है या मुझके ह मालूम होती है ।

ू िनमला ने सोहन का माथा छकर कहा-नह ं-नह ं, दे ह गम है । यह

वर

कब आ गया! दध ू तो पी रहा है न?

सुधा- अभी सोया था, तब तो दे ह ठं ड थी। शायद सद लग गई,

उढ़ाकर सुलाये दे ती हंू । सबेरे तक ठ क हो जायेगा।

सबेरा हआ तो सोहन क दशा और भी खराब हो गई। उसक नाक ु

बहने लगी और बुखार और भी तेज हो गया। आंख चढ़ ग

और िसर झुक

गया। न वह हाथ-पैर हलाता था, न हं सता-बोलता था, बस, चुपचाप पड़ा था। ऐसा मालूम होता था क उसे इस व

कसी का बोलना अ छा नह ं लगता। 117

कुछ-कुछ खांसी भी आने लगी। अब तो सुधा घबराई। िनमला क भी राय हई क डॉ टर साहब को बुलाया जाये, ले कन उसक बूढ़ माता ने कहाु

डॉ टर-हक म साहब का यहां कुछ काम नह ं। साफ तो दे ख रह हंू ।



ब चे को नजर लग गई है । भला डॉ टर

आकर

या करगे? सुधा- अ मांजी, भला यहां नजर कौन लगा दे गा? अभी तक तो बाहर

कह ं गया भी नह ं।

माता- नजर कोई लगाता नह ं बेट , कसी- कसी आदमी क द ठ बुर

होती है , आप-ह -आप लग जाती है । कभी-कभी मां-बाप तक क नजर लग जाती है । जब से आया है , एक बार भी नह ं रोया। च चले ब च को यह गित होती है । म इसे हमकते दे खकर डर थी क कुछ-न-कुछ अिन ु

होने

वाला है । आंख नह ं दे खती हो, कतनी चढ़ गई ह। यह नजर क सबसे बड़ पहचान है । बु ढ़या महर और पड़ोस क पं डताइन ने इस कथन का अनुमोदन कर

दया। बस महं गू ने आकर ब चे का मुंह दे खा और हं स कर बोला-

माल कन, यह द ठ है और नह ं। जरा पतली-पतली तीिलयां मंगवा द जए। भगवान ने चाहा तो संझा तक ब चा हं सने लगेगा।

ु सरक डे के पांच टकड़े लाये गये। महगूं ने उ ह बराबर करके एक डोरे

से बांध दया और कुछ बुदबुदाकर उसी पोले हाथ से पांच बार सोहन का िसर सहलाया। अब जो दे खा, तो पांच तीिलयां छोट -बड़ हो गेई थी। सब ीय यह कौतुक दे खकर दं ग रह ग । अब नजर म कसे स दे ह हो सकता

था। महगूं ने

फर ब चे को तीिलय

से सहलाना शु

कया। अब क

तीिलयां बराबर हो ग । केवल थोड़ा-सा अ तर रह गया। यह सब इस बात का ूमाण था क नजर का असर अब थोड़ा-सा और रह गया है । महगू सबको दलासा दे कर शाम को फर आने का वायदा करके चला गया। बालक क दशा दन को और खराब हो गई। खांसी का जोर हो गया। शाम के समय महगूं ने आकरा तीिलय बराबर िनकलीं।

फर तीिलय ीयां िन

का तमाशा

त हो ग

कया। इस व

पांच

ले कन सोहन को सार रात

खांसते गुजर । यहां तक क कई बार उसक आंख उलट ग । सुधा और िनमला दोन ने बैठकर सबेरा कया। खैर, रात कुशल से कट गई। अब वृ ा माताजी नया रं ग ला । महगूं नजर न उतार सका, इसिलए अब 118

कसी

मौलवी से फूंक डलवाना ज र हो गया। सुधा फर भी अपने पित को सूचना न दे सक । मेहर सोहन को एक चादर से लपेट कर एक म ःजद म ले गई और फूंक डलवा लाई, शाम को भी फूंक छोड़ , पर सोहन ने िसर न उठाया। रात आ गई, सुधा ने मन मे िन य कया क रात कुशल से बीतेगी, तो ूात:काल पित को तार दं ग ू ी।

ले कन रात कुशल से न बीतने पाई। आधी रात जाते-जाते ब चा हाथ

से िनकल गया। सुधा क जीन- स प गई।

वह को

दे खते-दे खते उसके हाथ से िछन

जसके ववाह का दो दन पहले वनोद हो रहा था, आज सारे घर

ला रहा है ।

जसक भोली-भाली सूरत दे खकर माता क छाती फूल

उठती थी, उसी को दे खकर आज माता क छाती फट जाती है । सारा घर सुधा को समझाता था, पर उसके आंसू न थमते थे, सॄ न होता था। सबसे बड़ा द:ु ख इस बात का था का पित को कौन मुंह दखलाऊंगी! उ ह खबर

तक न द ।

रात ह को तार दे दया गया और दसरे दन डॉ टर िस हा नौ बजतेू

बजते मोटर पर आ पहंु चे। सुधा ने उनके आने क खबर पाई, तो और

भी

फूट-फूटकर रोने लगी। बालक क जल- बया हई ु , डॉ टर साहब कई बार अ दर आये, क तु सुधा उनके पास न गई। उनके सामने कैसे जाये? कौन मुंह दखाये? उसने अपनी नादानी से उनके जीवन का र

छ नकर द रया म

ु -टकड़े ु डाल दया। अब उनके पास जाते उसक छाती के टकड़े हए ु जाते थे। बालक को उसक गोद म दे खकर पित क आंखे चमक उठती थीं। बालक हमककर पता क गोद म चला जाता था। माता फर बुलाती, तो पता क ु

छाती से िचपट जाता था और लाख चुमराने-दलारने पर भी बाप को गोद न ु

छोड़ता था। तब मां कहती थी- बैड़ा मतलबी है । आज वह कसे गोद मे

लेकर पित के पास जायेगी? उसक सूनी गोद दे खकर कह ं वह िच लाकर रो न पड़े । पित के स मुख जाने क अपे ा उसे मर जाना कह ं आसान जान पड़ता था। वह एक

ण के िलए भी िनमला को न छोड़ती थी क कह ं पित

से सामना न हो जाये। िनमला ने कहा- ब हन, जो होना था वह हो चुका, अब उनसे कब तक भागती फरोगी। रात ह को चले जायगे। अ मां कहती थीं। 119

सुधा से सजल नेऽ से ताकते हए ु कहा- कौन मुंह लेकर उनके पास

जाऊं? मुझे डर लग रहा है क उनके सामने जाते ह मेरा पैरा न थराने लगे और म िगर पडंू ।

िनमला- चलो, म तु हारे साथ चलती हंू । तु ह संभाले रहंू गी।

सुधा- मुझे छोड़कर भाग तो न जाओगी? िनमला- नह ं-नह ं, भागूग ं ी नह ं।

सुधा- मेरा कलेजा तो अभी से उमड़ा आता है । म इतना घोर ोजपाता

होने पर भी बैठ हंू , मुझे यह आ य हो रहा है । सोहन को वह बहत यार ु

करते थे ब हन। न जाने उनके िच दं ग ू ी, आप हो रोती रहंू गी।



या दशा होगी। म उ ह ढाढ़स

या

या रात ह को चले जायगे?

िनमला- हां, अ मांजी तो कहती थी छु ट नह ं ली है ।

दोनो सहे िलयां मदाने कमरे क ओर चलीं, ले कन कमरे के

ार पर

पहंु चकर सुधा ने िनमला से वदा कर दया। अकेली कमरे मे दा खल हई। ु डॉ टर साहब घबरा रहे थे क न जाने सुधा क

या दशा हो रह है ।

भांित-भांित क शंकाएं मन मे आ रह थीं। जाने को तैयार बैठे थे, ले कन जी न चाहता था। जीवन शू य-सा मालूम होता था। मन-ह -मन कुढ़ रहे थे, अगर ई र को इतनी ज द यह पदाथ दे कर छ न लेना था, तो दया ह था? उ ह ने तो कभी स तान के िलए ई र से ूाथना न क



थी। वह

आज म िन:स तान रह सकते थे, पर स तान पाकर उससे वंिचत हो जाना उ हं अस॑ा जान पड़ता था।

या सचमुच मनुंय ई र का खलौना है ? यह

मानव जीवन का मह व है ? यह केवल बालक का घर दा है , जसके बनने का न कोई हे तु है न बगड़ने का? फर बालक को भी तो अपने घर दे से अपनी कागेज क नाव से, अपनी लकड़ के घोड़ से ममता होती है । अ छे खलौने का वह जान के पीछे िछपाकर रखते ह। अगर ई र बालक ह है तो वह विचऽ बालक है । क तु बु का क ा उ

तो ई र का यह

प ःवीकार नह ं करती। अन त सृ

ड बालक नह ं हो सकता है । हम उसे उन सारे गुण

वभू षत करते ह, जो हमार बु महान ् गुण मे नह ं!

से

का पहंु च से बाहर है । खलाड़ पन तो साउन

या हं सते-खेलते बालक का ूाण हर लेना खेल है ?

या ई र ऐसा पैशािचक खेल खेलता है ? 120

सहसा सुधा दबे-पांव कमरे म दा खल हई। डासॅ टर साहब उठ खड़े ु

हए ु और उसके समीप आकर बोले-तुम कहां थी, सुधा? म तु हार राह दे ख रहा था।

सुधा क आंख से कमरा तैरता हआ जान पड़ा। पित क गदन मे ु

हाथ डालकर उसने उनक छाती पर िसर रख दया और रोने लगी, ले कन

इस अौु-ूवाह म उसे असीम धैय और सां वना का अनुभव हो रहा था। पित

के व -ःथल से िलपट हई ु वह अपने

दय म एक विचऽ ःफूित

और बल का संचार होते हए द पक ु पाती थी, मानो पवन से थरथराता हआ ु

अंचल क आड़ म आ गया हो।

डॉ टर साहब ने रमणी के अौु-िसंिचत कपोल लेकर कहा-सुधा, तुम इतना छोटा दल

य करती हो? सोहन अपने जीवन

म जो कुछ करने आया था, वह कर चुका था, फर वह कोई वृ

को दोनो हाथो म य बैठा रहता? जैसे

जल और ूकाश से बढ़ता है , ले कन पवन के ूबल झोक ह से

सु ढ़ होता है , उसी भांित ूणय भी द:ु ख के आघात ह से वकास पाता है । खुशी के साथ हं सनेवाले बहते ु रे िमल जाते ह, रं ज म जो साथ रोये, वहर हमारा स चा िमऽ है ।

मुह बत के मजे

जन ूेिमय

को साथ रोना नह ं नसीब हआ ु , वे

या जान? सोहन क मृ यु ने आज हमारे

ै त को बलकुल

िमटा दया। आज ह हमने एक दसरे का स चा ःव प दे खा।;?! ू

सुधा ने िससकते हए ु कहा- म नजर के धोखे म थी। हाय! तुम उसका

मुंह भी न दे खने पाये। न जाने इन स दन उसे इतनी समझ कहां से आ गई थी। जब मुझे रोते दे खता, तो अपने के

भूलकर मुःकरा दे ता। तीसरे ह

दन मरे लाडले क आंख ब द हो गई। कुछ दवा-दपन भी न करने पा ।

यह कहते-कहते सुधा के आंसू फर उमड़ आये। डॉ टर िस हा ने उसे सीने से लगाकर क णा से कांपती हई ु आवाज म कहा- ूये, आज तक कोई

ऐसा बालक या वृ

न मरा होगा, जससे घरवाल क दवा-दपन क लालसा

पूर हो गई। सुधा- िनमला ने मेर बड़ मदद क । म तो एकाध झपक ले भी लेती थी, पर उसक आंख नह ं झपक । रात-रात िलये बैठ या टहलती रहती थी। उसके अहसान कभी न भूलंगी।

या तुम आज ह जा रहे हो?

डॉ टर- हां, छु ट लेने का मौका न था। िस वल सजन िशकार खेलने

गया हआ था। ु 121

सुधा- यह सब हमेशा िशकार ह खेला करते ह? डॉ टर- राजाओं को और काम ह

या है ?

सुधा- म तो आज न जाने दं ग ू ी।

डॉ टर- जी तो मेरा भी नह ं चाहता। सुधा- तो मत जाओ, तार दे दो। म भी तु हारे साथ चलूंगी। िनमला को भी लेती चलूंगी। सुधा वहां से लौट , तो उसके

दय का बोझ हलका हो गया था। पित

क ूेमपूणा कोमल वाणी ने उसके सारे शोक और संताप का हरण कर िलया था। ूेम म असीम व ास है , असीम धैय है और असीम बल है ।



अठारह ब हमारे ऊपर कोई बड़

वप

आ पड़ती है , तो उससे हम केवल

द:ु ख ह नह ं होता, हम दसर के ताने भी सहने पड़ते ह। जनता को ू

हमारे ऊपर ट प णय करने का वह सुअवसर िमल जाता है , जसके िलए वह हमेशा बेचैन रहती है । मंसाराम

या मरा, मान समाज को उन पर

आवाज कसने का बहान िमल गया। भीतर क बात कौन जाने, ू य

बात

यह थी क यह सब सौतेली मां क करतूत है चार तरफ यह चचा थी, ई र

ने करे लड़क को सौतेली मां से पाला पड़े । जसे अपना बना-बनाया घर

उजाड़ना हो, अपने

ु यारे ब च क गदन पर छर फेरनी हो, वह ब च के

रहते हए याह करे । ऐसा कभी नह ं दे खा क सौत के आने पर ू ु अपना दसरा

घर तबाह न हो गया हो, वह बाप जो ब च पर जान दे ता था सौत के आते

ह उ ह ं ब च का दँमन हो जाता है , उसक मित ह बदल जाती है । ऐसी ु दे वी ने जै म ह नह ं िलया, जसने सौत के ब च का अपना समझा हो। मु ँकल यह थी क लोग ट प णय पर स तु

न होते थे। कुछ ऐसे

स जन भी थे, ज ह अब जयाराम और िसयाराम से वशेष ःनेह हो गया था। वे दान बालक से बड़ सहानुभूित ूकट करते, यहां तक क दो-सएक म हलाएं तो उसक माता के शील और ःवभाव को याद करे आंसू बहाने लगती थीं। हाय-हाय! बेचार

या जानती थी क उसके मरते ह लाड़ल क

यह ददशा होगी! अब दध ु ू -म खन काहे को िमलता होगा! जयाराम कहता- िमलता

य नह ं? 122

म हला कहती- िमलता है ! अरे बेटा, िमलना भी कई तरह का होता है । पानीवाल दध ू टके सेर का मंगाकर रख दया, पय चाहे न पयो, कौन पूछता

है ? नह ं तो बेचार नौकर से दध कर मंगवाती थी। वह तो चेहरा ह ू दहवा ु कहे दे ता है । दध ू क सूरत िछपी नह ं रहती, वह सूरत ह नह ं रह ं

जया को अपनी मां के समय के दध ू का ःवाद तो याद था सनह ं, जो

इस आ ेप का उ र दे ता और न उस समय क अपनी सूरत ह याद थी, चुप रह जाता। इन शुभाकां ाओं का असर भी पड़ना ःवाभा वक था। जयाराम को अपने घरवाल से िचढ़ होती जाती थी। मुंशीजी मकान नीलामी

हो जोने के बाद दसरे घर म उठ आये, तो कराये क ू

फब हई। िनमला ने ु

म खन ब द कर दया। वह आमदनी हा नह ं रह , तो खच कैसे रहता। दोन

कहार अलगे कर दये गये। जयाराम को यह कतर- य त बुर लगती थी। जब िनमला मैके चली गयी, तो मुंशीजी ने दध ू भी ब द कर दया। नवजात क या क िचनता अभी से उनके िसर पर सवार हा गयी थी।

िसयाराम ने बगड़कर कहा- दध ू ब द रहने से तो आपका महल बन

रहा होगा, भोजन भी बंद कर द जए!

मुंशीजी- दध ू पीने का शौक है , तो जाकर दहा ु

य नह लाते? पानी के

पैसे तो मुझसे न दये जायगे।

जयाराम- म दध जाऊं, कोई ःकूल का लड़का दे ख ले तब? ू दहाने ु

मुंशीजी- तब कुछ नह ं। कह दे ना अपने िलए दध ू िलए जाता हंू । दध ू

लाना कोई चोर नह ं है ।

जयाराम- चोर नह ं है ! आप ह को कोई दध ू लाते दे ख ले, तो आपको

शम न आयेगी।

मुंशीजी- ब कुल नह ं। मने तो इ ह ं हाथ से पानी खींचा है , अनाज क गठ रयां लाया हंू । मेरे बाप लखपित नह ं थे। जयाराम-मेरे बाप तो गर ब नह ं, म

आपने कहार को मंशीजी-

य दध जाऊं? आ खर ू दहाने ु

य जवाब दे दया?

या तु ह इतना भी नह ं सूझता

क मेर

आमदनी अब

पहली सी नह ं रह इतने नादान तो नह ं हो? जयाराम- आ खर आपक आमदनी

य कम हो गयी?

मुंशीजी- जब तु ह अकल ह नह ं है , तो

या समझाऊं। यहां ज दगी

से तंगे आ गया हंू , मुकदम कौन ले और ले भी तो तैयार कौन करे ? वह 123

दल ह नह ं रहा। अब तो जंदगी के दन पूरे कर रहा हंू । सारे अरमान

ल लू के साथ चले गये।

जयाराम- अपने ह हाथ न। मुंशीजी ने चीखकर कहा- अरे अहमक! यह ई र क मज थी। अपने हाथ कोई अपना गला काटता है । जयाराम- ई र तो आपका ववाह करने न आया था। मंशीजी अब ज त न कर सके, लाल-लाल आंख िनकालक बोले- या

तुम आज लड़ने के िलए कमर बांधकर आये हो? आ खर कस बरते पर? मेर रो टयां तो नह ं चलाते? जब इस का बल हो जाना, मुझे उपदे श दे ना। तब म सुन लूंगा। अभी तुमको मुझे उपदे श दे ने का अिधकार नह ं है । कुछ दन अदब और तमीज़ सीखो। तुम मेरे सलाहकार नह ं हो क म जो काम क ं , उसम तुमसे सलाह लूं। मेर पैदा क हई ु दौलत है , उसे जैसे चाहंू खच कर सकता हंू । तुमको जबान खोलने का भी हक नह ं है । अगर फर तुमने मुझसे बेअदबी क , तो नतीजा बुरा होगा। जब मंसाराम ऐसा र

खोकर मरे

ूाण न िनकले, तो तु हारे बगैर म मर न जाऊंगा, समझ गये? यह कड़ फटकार पाकर भी जयाराम वहां से न टला। िन:शंक भाव से बोला-तो आप

या चाहते ह क हम चाहे

कतनी ह तकलीफ हो मुंह न

खोले? मुझसे तो यह न होगा। भाई साहब को अदब और तमीज का जो इनाम िमला, उसक मुझे भूख नह ं। मुझम जहर खाकर ूाण दे ने क

ह मत

नह ं। ऐसे अदब को दरू से दं डवत करता हंू ।

मुंशीजी- तु ह ऐसी बात करते हए ु शम नह ं आती?

जयाराम- लड़के अपने बुजग ु ह क नकल करते ह।

मुंशीजी का बोध शा त हो गया। जयाराम पर उसका कुछ भी असर न होगा, इसका उ ह यक न हो गया। उठकर टहलने चले गये। आज उ ह सूचना िमल गयी के इस घर का शीय ह सवनाश होने वाला ह। उस दन से पता और पुऽ मे कसी न कसी बात पर रोज ह एक झपट हो जाती है । मुंशीजी

य - य तरह दे ते थे, जयाराम और भी शेर

होता जाता था। एक दन जयाराम ने

मणी से यहां तक कह डाला- बाप

ह, यह समझकर छोड़ दे ता हंू , नह ं तो मेरे ऐसे-ऐसे साथी ह क चाहंू तो भरे बाजार मे पटवा दं ।ू

से तो बेपरवाह ह

मणी ने मुंशीजी से कह दया। मुंशीजी ने ूकट



दखायी, पर उनके मन म शंका समा गया। शाम को सैर 124

करना छोड़ दया। यह नयी िच ता सवार हो गयी। इसी भय से िनमला को भी न लाते थे क शैतान उसके साथ भी यह बताव करे गा। जयाराम एक बार दबी जबान म कह भी चुका था- दे खूं, अबक कैसे इस घर म आती है ? मुंशीजी भी खूब समझ गये थे क म इसका कुछ भी नह ं कर सकता। कोई बाहर का आदमी होता, तो उसे पुिलस लड़के को

और कानून के िशंजे म कसते। अपने

या कर? सच कहा है - आदमी हारता है , तो अपने लड़क ह से।

एक दन डॉ टर िस हा ने जयाराम को बुलाकर समझाना शु

कया।

जयाराम उनका अदब करता था। चुपचाप बैठा सुनता रहा। जब डॉ टर साहब ने अ त म पूछा, आ खर तुम चाहते

या हो? तो वह बोला- साफ-

साफ कह दं ?ू बूरा तो न मािनएगा?

िस हा- नह ं, जो कुछ तु हारे दल म हो साफ-साफ कह दो। जयाराम- तो सुिनए, जब से भैया मरे ह, मुझे

पताजी क

सूरत

दे खकर बोध आता है । मुझे ऐसा मालूम होता है क इ ह ं ने भैया क ह या क है और एक दन मौका पाकर हम दोन भाइय को भी ह या करगे। अगर उनक यह इ छा न होती तो याह ह

य करते?

डॉ टर साहब ने बड़ मु ँकल से हं सी रोककर कहा- तु हार ह या करने के िलए उ ह याह करने क

या ज रत थी, यह बात मेर समझ म

नह ं आयी। बना ववाह कये भी तो वह ह या कर सकते थे। जयाराम- कभी नह ं, उस व

तो उनका दल ह कुछ और था, हम

लोग पर जान दे ते थे अब मुंह तके नह ं दे खना चाहते। उनक यह इ छा है क उन दोन ूा णय के िसवा घर म और कोई न रहे । अब जसे लड़के ह गे

उनक राःते से हम लोग का हटा दे ना चाहते है । यह उन दोन आदिमय क

दली मंशा है । हम तरह-तरह क तकलीफ दे कर भगा दे ना चाहते ह।

इसीिलए आजकल मुकदमे नह ं लेते। हम दोन भाई आज मर जाय, तो फर दे खए कैसी बहार होती है । डॉ टर- अगर तु ह भागना ह होता, तो कोई इ जाम लगाकर घर से िनकल न दे ते? जयाराम- इसके िलए पहले ह से तैयार बैठा हंू ।

डॉ टर- सुनूं, या तैयार कह है ?

जयाराम- जब मौका आयेगा, दे ख ली जएगा। 125

यह कहकर जयराम चलता हआ। डॉ टर िस हा ने बहत ु ु पुकारा, पर

उसने फर कर दे खा भी नह ं।

कई दन के बाद डॉ टर साहब क

जयाराम से

गयी। डॉ टर साहब िसनेमा के ूेमी थे और

फर मुलाकात हो

जयाराम क

तो जान ह

िसनेमा म बसती थी। डॉ टर साहब ने िसनेमा पर आलोचना करके जयाराम को बात म लगा िलया और अपने घर लाये। भोजन का समय आ गया था,, दोन आदमी साथ ह भोजन करने बैठे। जयाराम को वहां भोजन

बहत ु ःवा द

लगा, बोल- मेरे यहां तो जब से महाराज अलग हआ खाने का ु

मजा ह जाता रहा। बुआजी प का वैंणवी भोजन बनाती ह। जबरदःती खा

लेता हंू , पर खाने क तरफ ताकने को जी नह ं चाहता।

डॉ टर- मेरे यहां तो जब घर म खाना पकता है , तो इसे कह ं ःवा द

ू होता है । तु हार बुआजी याज-लहसुन न छती ह गी?

जयाराम- हां साहब, उबालकर रख दे ती ह। लालाली को इसक परवाह ह नह ं क कोई खाता है या नह ं। इसीिलए तो महाराज को अलग कया है । अगर

पये नह ं है , तो गहने कहां से बनते ह? डॉ टर- यह बात नह ं है जयाराम, उनक आमदनी सचमुच बहत ु कम

हो गयी है । तुम उ ह बहत दक करते हो। ु जयाराम- (हं सकर) म उ ह

दक करता हंू ? मुझससे कसम ले

ली जए, जो कभी उनसे बोलता भी हंू । मुझे बदनाम करने का उ ह ने बीड़ा

उठा िलया है । बेसबब, बेवजह पीछे पड़े रहते ह। यहां तक क मेरे दोःत से

भी उ ह िचढ़ है । आप ह सोिचए, दोःत के बगैर कोई ज दा रह सकता है ?

म कोई लु चा नह ं हू क लु च क सोहबत रखू,ं मगर आप दोःत ह के पीछे मुझे रोज सताया करते ह। कल तो मने साफ कह दया- मेरे दोःत घर

आयगे, कसी को अ छा लगे या बुरा। जनाब, कोई हो, हर व

क धस हं

सह सकता। डॉ टर- मुझे तो भाई, उन पर बड़ दया आती है । यह जमाना उनके आराम करने का था। एक तो बुढ़ापा, उस पर जवान बेटे का शोक, ःवाः य भी अ छा नह ं। ऐसा आदमी

या कर सकता है ? वह जो कुछ थोड़ा-बहत ु

करते ह, वह बहत ु है । तुम अभी और कुछ नह ं कर सकते, तो कम-से-कम अपने आचरण से तो उ ह ूस न रख सकते हो। बु ढ़ को ूस न करना

बहत ु क ठन काम नह ं। यक न मानो, तु हारा हं सकर बोलना ह उ ह खुश 126

करने को काफ है । इतना पूछने म तु हारा आपक तबीयत कैसी है ? वह तु हार यह उ

या खच होता है । बाबूजी,

डता दे खकर मन-ह -मन कुढ़ते

रहते ह। म तुमसे सच कहता हंू , कई बार रो चुके ह। उ होन मान लो शाद करने म गलती क । इसे वह भी ःवीकार करते ह, ले कन तुम अपने क से



य मुंह मोड़ते हो? वह तु हारे पता है , तु ह उनक सेवा करनी चा हए।

एक बात भी ऐसी मुंह से न िनकालनी चा हए, जससे उनका दल दखे ु ।

उ ह यह खयाल करने का मौका ह

य दे क सब मेर कमाई खाने वाले

ह, बात पूछने वाला कोई नह ं। मेर उॆ तुमसे कह ं आज तक मने अपने पताजी क

यादा है , जयाराम, पर

कसी बात का जवाब नह ं दया। वह आज

भी मुझे डांटते है , िसर झुकाकर सुन लेता हंू । जानता हंू , वह जो कुछ कहते

ह, मेरे भले ह को कहते ह। माता- पता से बढ़कर हमारा हतैषी और कौन हो सकता है ? उसके ऋण से कौन मु

हो सकता है ?

जयाराम बैठा रोता रहा। अभी उसके स ाव का स पूणत: लोप न हआ था, अपनी दजनता उसे साफ नजर आ रह थी। इतनी लािन उसे बहत ु ु ु दन से न आयी थी। रोकर डॉ टर साहब से कहा- म बहत ु ल जत हंू ।

दसर के बहकाने म आ गया। अब आप मेर जरा भी िशकयत न सुनगे। ू

आप पताजी से मेरे अपराध

मा कर द जए। म सचमुच बड़ा अभागा हंू ।

उ ह मने बहत ु सताया। उनसे क हए- मेरे अपराध

मा कर द, नह ं म मुंह

म कािलख लगाकर कह ं िनकल जाऊंगा, डब ू म ं गा।

डॉ टर साहब अपनी उपदे श-कुशलता पर फूले न समाये। जयाराम को

गले लगाकर वदा कया।

जयाराम घर पहंु चा, तो यारह बज गये थे। मुंशीजी भोजन करे अभी

बाहर आये थे। उसे दे खते ह बोले- जानते हो कै बजे है ? बारह का व

है ।

जयाराम ने बड़ नॆता से कहा- डॉ टर िस हा िमल गये। उनके साथ उनके घर तक चला गया। उ ह ने खाने के िलए जद क, मजबूरन खाना पड़ा। इसी से दे र हो गयी। मुंशीज- डॉ टर िस हा से दखड़े रोने गये ह गे या और कोई काम था। ु

जयाराम क नॆता का चौथा भाग उड़ गय, बोला- दखड़े रोने क मेर ु

आदत नह ं है ।

मुंशीजी- जरा भी नह ं, तु हारे मुंह मे तो जबान ह नह ं। मुझसे जो लोग तु हार बात करते ह, वह गढ़ा करते ह गे? 127

जयाराम- और दन क म नह ं कहता, ले कन आज डॉ टर िस हा के यहां मने कोई बात ऐसी नह ं क , जो इस व ली है

आपके सामने न कर सकूं।

मुंशीजी- बड़ खुशी क बात है । बेहद खुशी हई। आज से गु द ु

ा ले

या?

जयाराम क

नॆता का एक चतुथाश और गायब हो गया। िसर

उठाकर बोला- आदमी

बना गु द

ा िलए हए ु भी अपनी बुराइय

पर

ल जत हो सकता है । अपाना सुधार करने के िलए गु प ऽ कोई ज र चीज

नह ं।

मुंशीजी- अब तो लु चे न जमा ह गे? जयाराम- आप कसी को लु चा

य कहते ह, जब तक ऐसा कहने के

िलए आपके पास कोई ूमाण नह ं? मुंशीजी- तु हारे दोःत सब लु चे-लफंगे ह। एक भी भला आदमी नह । म तुमसे कई बार कह चुका क उ ह यहां मत जमा कया करोख ् पर तुमने

सुना नह ं। आज म आ खर बार कहे दे ता हंू क अगर तुमने उन शोहद को जमा कया, तो मुझो पुिलस क सहायता लेनी पड़े गी।

जयाराम क नॆता का एक चतुथाश और गायब हो गया। फड़ककार बोला- अ छ बात है , पुिलस क सहायता ली जए। दे ख दोःत म आधे से

या करती है ? मेरे

यादा पुिलस के अफसर ह के बेटे ह। जब आप ह मेरा

सुधार करने पर तुले हए ु है , तो म यथ

य क

उठाऊं?

यह कहता हआ जयाराम अपने कमरे मे चला गया और एक ु

ण के

बाद हारमोिनया के मीठे ःवर क आवाज बाहर आने लगी। स दयता का जलया हआ द पक िनदय ु

यं य के एक झ के से बुझ

गया। अड़ा हआ घोड़ा चुमकाराने से जोर मारने लगा था, पर ह टर पड़ते ह ु फर अड़ गया और गाड़ क पीछे ढकेलने लगा।



उ नीस बक सुधा के साथ िनमला को भी आना पड़ा। वह तो मैके म कुछ दन और रहना चाहती थी, ले कन शोकातुर सुधा अकेले कैसे रह !

उसको आ खर आना ह पड़ा।

से कैसा िनखरकर आयी है !

मणी ने भूंगी से कहा- दे खती है , बहू मैके

128

भूंगी ने कहा- द द , मां के हाथ क रो टयां लड़ कय को बहत ु अ छ

लगती है ।

मणी- ठ क कहती है भूंगी, खलाना तो बस मां ह जानती है । िनमला को ऐसा मालूम हआ क घर का कोई आदमी उसके आने से ु

खुश नह ं। मुंशीजी ने खुशी तो बहत ु

दखाई, पर

िछपा सके। ब ची का नाम सुधा ने आशा रख

दयगत िचनता को न

दया था। वह आशा क

मूित-सी थी भी। दे खकर सार िच ता भाग जाती थी। मुंशीजी ने उसे गोद

म लेना चाहा, तो रोने लगी, दौड़कर मां से िलपट गयी, मानो

पता को

पहचानती ह नह ं। मुंशीजी ने िमठाइय से उसे परचाना चाहा। घर म कोई नौकर तो था नह ं, जाकर िसयाराम से दो आने क िमठाइयां लाने को कहा। जयराम भी बैठा हआ था। बोल उठा- हम लोग के िलए तो कभी ु

िमठाइयां नह ं आतीं।

मंशीजी ने झुंझलाकर कहा- तुम लोग ब चे नह ं हो। जयाराम- और

या बूढ़े ह? िमठाइयां मंगवाकर रख द जए, तो

मालूम हो क ब चे ह या बूढ़े। िनकािलए चार आना और आशा के बदौलत हमारे नसीब भी जाग। मुंशीजी- मेरे पास इस व

पैसे नह ं है । जाओ

िसया, ज द जाना।

जयाराम- िसया नह ं जायेगा। कसी का गुलाम नह ं है । आशा अपने बाप क बेट है , तो वह भी अपने बाप का बेटा है । मुंशीजी-

या फजूज क बात करते हो। न ह ं-सी ब ची क बराबर

करते तु ह शम नह आती? जाओ िसयाराम, ये पैसे लो।

जयाराम- मत जाना िसया! तुम कसी के नौकर नह ं हो।

िसया बड़ द ु वधा म पड़ गया। कसका कहना माने? अ त म उसने

जयाराम का कहना मानने का िन य कया। बाप

यादा-से- यादा घुड़क

दगे, जया तो मारे गा, फर वह कसके पास फ रयाद लेकर जायेगा। बोला- म न जाऊंगा। मुंशीजी ने धमकाकर कहा- अ छा, तो मेरे पास फर कोई चीज मांगने मत आना। मुंशीजी खुद बाजार चले गये और एक

पये क िमठाई लेकर लौटे ।

दो आने क िमठाई मांगते हए ु उ ह शम आयी। हलवाई उ ह पहचानता था। दल म

या कहे गा?

129

िमठाई िलए हए ु मुंशीजी अ दर चले गये। िसयाराम ने िमठाई का

बड़ा-सा दोना दे खा, तो बाप का कहना न मानने का उसे दख अब वह ु हआ। ु कस मुंह से िमठाई लेने अ द जायेगा। बड़

भूल हई। वह मन-ह -मन ु

जयाराम को चोट क चोट और िमठाई क िमठास म तुलना करने लगा।

सहसा भूंगी ने दो तँत रयां दोनो के सामने लाकर रख द ं। जयाराम ने

बगड़कर कहा- इसे उठा ले जा! भूंगी- काहे को बगड़ता हो बाबू

या िमठाई अ छ नह ं लगती?

जयाराम- िमठाई आशा के िलए आयी है , हमारे िलए नह ं आयी? ले

जा, नह ं तो सड़क पर फक दं ग ू ा। हम तो पैसे-पैसे के िलए रटते रहते ह। औ यहां

पये क िमठाई आती है ।

भूंगी- तुम ले लो िसया बाबू, यह न लगे न सह ं। िसयाराम ने डरते-डरते हाथ बढ़ाया था क जयाराम ने डांटकर कहा-

ू मत छना िमठाई, नह ं तो हाथ तोड़कर रख दं ग ू ा। लालची कह ं का! िसयाराम यह धुड़क सुनकर सहम उठा, िमठाई खाने क

ह मत न

पड़ । िनमला ने यह कथा सुनी, तो दोन लड़क को मनाने चली। मुंशजी ने कड़ कसम रख द । िनमला- आप समझते नह ं है । यह सारा गुःसा मुझ पर है । मुंशीजी- गुःताख हो गया है । इस खयाल से कोई स ती नह ं करता क लोग कहगे, बना मां के ब च को सताते ह, नह ं तो सार शरारत घड़ भर म िनकाल दं ।ू

िनमला- इसी बदनामी का तो मुझे डर है ।

मुंशीजी- अब न ड ं गा, जसके जी म जो आये कहे । िनमला- पहले तो ये ऐसे न थे। मुंशीजी- अजी, कहता है क आपके लड़के मौजूद थे, आपने शाद



क ! यह कहते भी इसे संकोच नह ं हाता क आप लोग ने मंसाराम को वष दे दया। लड़का नह ं है , शऽु है । जयाराम

ार पर िछपकर खड़ा था।

ी-पु ष मे िमठाई के वषय मे

या बात होती ह, यह सुनने वह आया था। मुंशीजी का अ तम वा य सुनकर उससे न रहा गया। बोल उठा- शऽु न होता, तो आप उसके पीछे पड़ते? आप जो इस व



कर हरे ह, वह म बहत ु पहले समझे बैठा हंू । भैया

न समझ थे, धोखा ख गये। हमारे साथ आपक 130

दाला न गलेगी। सारा

जमाना कह रहा है क भाई साहब को जहर दया गया है । म कहता हंू तो

आपको

य गुःसा आता है ?

िनमला तो स नाटे म आ गयी। मालूम हआ ु , कसी

ने उसक दे ह पर

अंगारे डाल दये। मंशजी ने डांटकर जयाराम को चुप कराना चाहा, जयाराम िन:शं खड़ा

ट का जवाब प थर से दे ता रहा। यहां तक क िनमला को भी

उस पर बोध आ गया। यह कल का छोकरा, कसी काम का न काज का, यो खड़ा टरा रहा है , जैसे घर भर का पालन-पोषण यह करता हो। चढ़ाकर बोली- बस, अब बहत ु हआ ु

जयाराम, मालूम हो

य रयां

गया, तुम बड़े

लायक हो, बाहर जाकर बैठो।

मुंशीजी अब तक तो कुछ दब-दबकर बोलते रहे , िनमला क शह पाई तो दल बढ़ गया। दांत पीसकर लपके और इसके पहले क िनमला उनके हाथ पकड़ सक, एक थ पड़ चला ह

दया। थ पड़ िनमला के मुंह पर पड़ा,

वह सामने पड । माथा चकरा गया। मुंशीजी ने सूखे हाथ म इतनी श

है ,

इसका वह अनुमान न कर सकती थी। िसर पकड़कर बैठ गयी। मुंशीजी का बोध और भी भड़क उठा, फर घूंसा चलाया पर अबक

जयाराम ने उनका

हाथ पकड़ िलया और पीछे ढकेलकर बोला- दरू से बात क जए, यां◌े नाहक

अपनी बेइ जती करवाते ह? अ मांजी का िलहाज कर रहा हंू , नह ं तो दखा दे ता।

इस व

यह कहता हआ वह बाहर चला गया। मुंशीजी सं ा-शू य से खड़े रहे । ु

अगर जयाराम पर दै वी वळ िगर पड़ता, तो शायद उ ह हा दक

आन द होता। जस पुऽ का कभी गोद म लेकर िनहाल हो जाते थे, उसी के

ूित आज भांित-भांित क दंक पनाएं मन म आ रह थीं। ु

मणी अब तक तो अपनी कोठर म थी। अब आकर बोली-बेटा

आपने बराबर का हो जाये तो उस पर हाथ न छोड़ना चा हए। मुंशीजी ने ओंठ चबाकर कहा- म इसे घर से िनकालकर छोडंू गा। भीख

मांगे या चोर करे , मुझसे कोई मतलब नह ं। मणी- नाक कसक कटे गी? मुंशीजी- इसक िच ता नह ं।

िनमला- म जानती क मेरे आने से यह तुफान खड़ा हो जायेगा, तो भूलकर भी न आती। अब भी भला है , मुझे भेज द जए। इस घर म मुझसे न रहा जायेगा। 131

मणी- तु हारा बहत ु िलहाज करता है बहू , नह ं तो आज अनथ ह

हो जाता।

िनमला- अब और

या अनथ होगा द द जी? म तो फूंक-फूंककर पांव

रखती हंू , फर भी अपयश लग ह जाता है । अभी घर म पांव रखते दे र नह ं हई ु और यह हाल हो गेया। ई र ह कुशल करे ।

रात को भोजन करने कोई न उठा, अकेले मुंशीजी ने खाया।

िनमला

को आज नयी िच ता हो गयी- जीवन कैसे पार लगेगा? अपना ह पेट होता तो वशेष िच ता न थी। अब तो एक नयी वप

सोच रह थी- मेर ब ची के भा य म

गले पड़ गयी थी। वह

या िलखा है राम?

बीस

िच

ता म नींद कब आती है ? िनमला चारपाई पर करवट बदल रह थी। कतना चाहती थी क नींद आ जाये, पर नींद ने न आने क

कसम सी खा ली थी। िचराग बुझा दया था, खड़क के दरवाजे खोल दये थे, टक- टक करने वाली घड़ भी दसरे कमरे म रख आयीय थी, पर नींद का ू नाम था। जतनी बात सोचनी थीं, सब सोच चुक , िच ताओं का भी अ त हो गया, पर पलक न झपक ं। तब उसने फर लै प जलाया और एक पुःतक

पढ़ने लगी। दो-चार ह पृ

पढ़े ह गे क झपक आ गयी। कताब खुली रह

गयी। सहसा जयाराम ने कमरे म कदम रखा। उसके पांव थर-थर कांप रहे थे। उसने कमरे मे ऊपर-नीचे दे खा। िनमला सोई हई ु थी, उसके िसरहाने ताक

पर, एक छोटा-सा पीतल का स दकचा र खा हआ था। जयाराम दबे पांव ू ु

गया, धीरे से स दकचा उतारा और बड़ तेजी से कमरे के बाहर िनकला। उसी ू



िनमला क आंख खुल गयीं। च ककर उठ खड़ हई। ु

दे खा। कलेजा धक् से हो गया।

ार पर आकर

या यह जयाराम है ? मेरे केमरे मे

या

करने आया था। कह ं मुझे धोखा तो नह ं हआ ु ? शायद द द जी के कमरे से

आया हो। यहां उसका काम ह ले कन इस व

या था? शायद मुझसे कुछ कहने आया हो,

या कहने आया होगा? इसक नीयत

कांप उठा।

132

या है ? उसका दल

मुंशीजी ऊपर छत पर सो रहे थे। मुंडेर न होने के कारण िनमला ऊपर न सो सकती थी। उसने सोचा चलकर उ ह जगाऊं, पर जाने क पड़ । श क आदमी है , न जाने

या समझ बैठ और

ह मत न

या करने पर तैयार हो

जाय? आकर फर पुःतक पढ़ने लगी। सबेरे पूछने पर आप ह मालूम हो जायेगा। कौन जाने मुझे धोखा ह हआ हो। नींद मे कभी-कभी धोखा हो ु

जाता है , ले कन सबेरे पूछने का िन य कर भी उसे फर नींद नह ं आयी। सबेरे वह जलपान लेकर ःवयं

जयाराम के पास गयी, तो वह उसे

दे खकर च क पड़ा। रोज तो भूंगी आती थी आज यह िनमला

क ओर ताकने क उसक



आ रह

है ?

ह मत न पड़ ।

िनमला ने उसक ओर व ासपूण नेऽ से दे खकर पूछा- रात को तुम मेरे कमरे मे गये थे? जयाराम ने वःमय दखाकर कहा- म? भला म रात को जाता?

या करने

या कोई गया था? िनमला ने इस भाव से कहा, मानो उसे उसक बात का पूर

व ास हो

गया- हां, मुझे ऐसा मालूम हआ क कोई मेरे कमरे से िनकला। मने उसका ु

मुंह तो न दे खा, पर उसक पीठ दे खकर अनुमान कया क शयद तुम कसी

काम से आये हो। इसका पता कैसे चले कौन था? कोई था ज र इसम कोई स दे ह नह ं। जयाराम अपने को िनरपराध िस

करने क चे ा कर कहने लगा- मै।

तो रात को िथयेटर दे खने चला गया था। वहां से लौटा तो एक िमऽ के घर लेट रहा। थोड़ दे र हई ु लौटा हंू । मेरे साथ और भी कई िमऽ थे। जससे जी

चाहे , पूछ ल। हां, भाई म बहत ु डरता हंू । ऐसा न हो, कोई चीज गायब हो

गयी,

तो मेरा नामे लगे। चोर को तो कोई पकड़ नह ं सकता, मेरे म थे

जायेगी। बाबूजी को आप जानती ह। मुझो मारने दौडगे। िनमला- तु हारा नाम

य लगेगा? अगर तु ह ं होते तो भी तु ह कोई

चोर नह ं लगा सकता। चोर दसरे क चीज क जाती है , अपनी चीज क ू चोर कोई नह ं करता।

अभी तक िनमला क िनगाह अपने स दकचे पर न पड़ थी। भोजन ू

बनाने लगी। जब वक ल साहब कचहर चले गये, तो वह सुधा से िमलने

चली। इधर कई दन से मुलाकात न हई ु थी, फर रातवाली घटना पर वचार

प रवतन भी करना था। भूंगी से कहा- कमरे मे से गहन का ब स उठा ला। 133

भूंगी ने लौटकर कहा- वहां तो कह ं स दक ू नह ं ह। ककहां रखा था?

िनमला ने िचढ़कर कहा- एक बार म तो तेरा काम ह कभी नह ं होता। वहां छोड़कर और जायेगा कहां। आलमार म दे खा था? भूंगी- नह ं बहजी ू , आलमार म तो नह ं दे खा, झूठ

य बोलूं?

िनमला मुःकरा पड़ । बोली- जा दे ख, ज द आ। एक

ण म भूंगी

फर खाली हाथ लौट आयी- आलमार म भी तो नह ं है । अब जहां बताओ वहां दे ख।ूं

िनमला झुंझलाकर यह कहती हई ु उठ खड़ हई ु - तुझे ई र ने आंख ह

न जाने कसिलए द ! दे ख, उसी कमरे म से लाती हंू क नह ं।

भूंगी भी पीछे -पीछे कमरे म गयी। िनमला ने ताक पर िनगाह डाली,

अलमार खोलकर दे खी। चारपाई के नीचे झांककार दे खा, फर कपड़ का बडा संदक ू खोलकर दे खा। ब स का कह ं पता नह ं। आ य हआ ु , आ खर ब सा गया कहां?

सहसा रातवाली घटना

बजली क

भांित उसक

चमक गयी। कलेजा उछल पड़ा। अब तक िन

आंख

के सामने

त होकर खोज रह थी। अब

ताप-सा चढ़ आया। बड़ उतावली से चार ओर खोजने लगी। कह ं पता नह ं। जहां खोजना चा हए था, वहां भी खोजा और जहां नह ं खोजना चा हए था, वहां भी खोजा। इतना बड़ा स दकचा बछावन के नीचे कैसे िछप जाता? पर ू बछावन भी झाड़कर दे खा।

ण- ण मुख क का त मिलन होती जाती

थी। ूाण नह ं मे समाते जाते थे। अनत म िनराशा होकर उसने छाती पर एक घूंसा मारा और रोने लगी। गहने ह

ी क स प

होते ह। पित क और कसी स प

पर

उसका अिधकार नह ं होता। इ ह ं का उसे बल और गौरव होता है । िनमला के पास पांच-छ: हजार के गहने थे। जब उ ह पहनकर वह िनकलती थी, तो उतनी दे र के िलए उ लास से उसका मानो वप

दय खला रहता था। एक-एक गहना

और बाधा से बचाने के िलए एक-एक र ा

था। अभी रात ह

उसने सोचा था, जयाराम क ल ड बनकर वह न रहे गी। ई र न करे क वह कसी के सामने हाथ फैलाये। इसी खेवे से वह अपनी नाव को भी पार लगा दे गी और अपनी ब ची को भी कसी-न- कसी घाट पहंु चा दे गी। उसे

कस बात क िच त है ! उ ह तो कोई उससे न छ न लेगा। आज ये मेरे

िसंगार ह, कल को मेरे आधार हो जायगे। इस वचार से उसके 134

दय को

कतनी सा तवना िमली थी! वह स प

आज उसके हाथ से िनकल गयी।

अब वह िनराधार थी। संसार उसे कोई अवल ब कोई सहारा न था। उसक आशाओं का आधार जड़ से कट गया, वह फूट-फूटकर रोने लगी। ई र! तुमसे इतना भी न दे खा गया? मुझ द ु खया को तुमने य ह अपंग बना दया थ, अब आंखे भी फोड़ द ं। अब वह कसके

कसके

सामने हाथ फैलायेगी,

ार पर भीख मांगेगी। पसीने से उसक दे ह भीग गयी, रोते-रोते आंखे

सूज गयीं। िनमला िसर नीचा कये रा रह थी।

रह थीं, ले कन उसके आंसू न तीन बजे पाकर व

कते थे, शोके क

मणी उसे धीरज दला

वाल केम ने होती थी।

जयाराम ःकूल से लौटा। िनमला उसने आने क

क भांित उठ और उसके कमरे के

द लगी क हो तो दे दो। जयाराम एक

द ु खया को सताकर

खबर

ार पर आकर बोली-भैया, या पाओगे?

ण के िलए कातर हो उठा। चोर-कला म उसका यह

पहला ह ूयास था। यह कठारे ता, जससे हं सा म मनोरं जन होता है अभी तक उसे ूा

न हई होता और फर इतना ू ु थी। य द उसके पास स दकचा

मौका िमलता क उसे ताक पर रख आवे, तो कदािचत ् वह उसे मौके को न

छोड़ता, ले कन स दक ू उसके हाथ से िनकल चुका था। यार ने उसे सराफ म पहंु चा दया था और औने-पौने बेच भी डाला थ। चोर क झूठ के िसवा और

कौन र ा कर सकता है । बोला-भला अ मांजी, म आपसे ऐसी

द लगी

क ं गा? आप अभी तक मुझ पर शक करती जा रह ह। म कह चुका क म रात को घर पर न था, ले कन आपको यक न ह नह ं आता। बड़े द:ु ख क बात है क मुझे आप इतना नीच समझती ह।

िनमला ने आंसू प छते हए ु कहा- म तु हारे पर शक नह ं करती भैया,

तु ह चोर नह ं लगाती। मने समझा, शायद द लगी क हो।

जयाराम पर वह चोर का संदेह कैसे कर सकती थी? दिनया यह तो ु

कहे गी क लड़के क मां मर गई है , तो उस पर चोर का इलजाम लगाया जा रहा है । मेरे मुंह मे ह तो कािलख लगेगी!

जयाराम ने आ ासन दे ते हए ु कहा- चिलए, म दे खूं, आ खर ले कौन

गया? चोर आया कस राःते से?

भूंगी- भैया, तुम चोर के आने को कहते हो। चूहे के िनकल ह आते ह, यहां तो चारो ओर ह

खड़ कयां ह।

जयाराम- खूब अ छ तरह तलाश कर िलया है ? 135

बल से तो

िनमला- सारा घर तो छान मारा, अब कहां खोजने को कहते हो? जयाराम- आप लोग सो भी तो जाती ह मुद से बाजी लगाकर। चार बजे मुंशीजी घर आये, तो िनमला क दशा दे खकर पूछा- कैसी तबीयत है ? कह ं दद तो नह ं है ? कह कहकर उ ह ने आशा को गोद म उठा िलया। िनमला कोई जवाब न दे सक , फर रोने लगी। भूंगी ने कहा- ऐसा कभी नह ं हआ था। मेर सार उम इसी घर मं ु

कट गयी। आज तक एक पैसे क चोर नह ं हई। दिनया यह कहे गी क ु ु भूंगी का कोम है , अब तो भगेवान ह पत-पानी रख।

मुंशीजी अचकन के बटन खोल रहे थे, फर बटन ब द करते हए ु बोले-

या हआ ु ? कोई चीज चोर हो गयी?

भूंगी- बहजी के सारे गहने उठ गये। ू

मुंशीजी- रखे कहां थे?

िनमला ने िसस कयां लेते हए ु रात क सार घटना बयाना कर द , पर

जयाराम क सूरत के आदमी के अपने कमरे से िनकलने क बात न कह ।

मुंशीजी ने ठं ड सांस भरकर कहा- ई र भी बड़ा अ यायी है । जो मरे उ ह ं को मारता है । मालूम होता है , अ दन आ गये ह। मगर चोर आया तो कधर से? कह ं सध नह ं पड़ और कसी तरफ से आने का राःता नह ं। मने तो कोई ऐसा पाप नह ं कया, जसक मुझे यह सजा िमल रह है । बार-बार कहता रहा, गहने का स दकचा ताक पर मत रखो, मगेर कौन सुनता है । ू िनमला- म

ू पड़े गा! या जानती थी क यह गजब टट

मुंशीजी- इतना तो जानती थी क सब दन बराबर नह ं जाते। आज

बनवाने जाऊं, तो इस हजार से कम न लगगे। आजकल अपनी जो दशा है , वह तुमसे िछपी नह ं, खच भर का मु ँकल से िमलता है , गहने कहां से बनगे। जाता हंू , पुिलस म इ ला कर आता हंू , पर िमलने क उ मीद न

समझो।

िनमला ने आप

के भाव से कहा- जब जानते ह

इ ला करने से कुद न होगा, तो मुंशीजी-

क पुिलस म

य जा रहे ह?

दल नह ं मानता और

या? इतना बड़ा नुकसान उठाकर

चुपचाप तो नह ं बैठ जाता। िनमला- िमलनेवाले होते, तो जाते ह रहते? 136

य ? तकद र म न थे, तो कैसे

मुंशीजी- तकद र मे ह गे, तो िमल जायगे, नह ं तो गये तो ह ह । मुंशीजी कमरे से िनकले। िनमला ने उनका हाथ पकड़कर कहा- म कहती हंू , मत जाओ, कह ं ऐसा न हो, लेने के दे ने पड़ जाय।

ु मुंशीजी ने हाथ छड़ाकर कहा- तुम भी ब च क -सी ज

कर रह हो।

दस हजार का नुकसान ऐसा नह ं है , जसे म य ह उठा लूं। म रो नह ं रहा हंू , पर मेरे

दय पर जो बीत रह है , वह म ह जानता हंू । यह चोट मेरे

कलेजे पर लगी है । मुंशीजी और कुछ न कह सके। गला फंस गया। वह

तेजी से कमरे से िनकल आये और थाने पर जा पहंु चे। थानेदार उनका बहत ु

िलहाज करता था। उसे एक बार र त के मुकदमे से बर करा चुके थे। उनके साथ ह त तीश करने आ पहंु चा। नाम था अलायार खां।

शाम हो गयी थी। थानेदार ने मकान के अगवाड़े - पछवाड़े घूम-घूमकर

दे खा। अ दर जाकर िनमला के कमरे को गौर से दे खा। ऊपर क मुंडेर क जांच क । मुह ले के दो-चार आदिमय से चुपके-चुपके कुछ बात क और तब मुंशीजी से बोले- जनाब, खुदा क कसम, यह कसी बाहर के आदमी का काम नह ं। खुदा क कसम, अगर कोई बाहर क आमद िनकले, तो आज से थानेदार करना छोड़ दं ।ू आपके घर म कोई मुला जम ऐसा तो नह ं है , जस पर आपको शुबहा हो।

मुंशीजी- घर मे तो आजकल िसफ एक महर है । थानेदार-अजी, वह पगली है । यह कसी बड़े शाितर का काम है , खुदा क कसम। मुंशीजी- तो घर म और कौन है ? मेरे दोने लड़के ह,

है । इनम से कस पर शक क ं ?

ी है और बहन

थानेदार- खुदा क कसम, घर ह के कसी आदमी का काम है , चाहे , वह कोई हो, इ शाअ लाह, दो-चार दन म म आपको इसक खबर दं ग ू ा। यह तो

नह ं कह सकता क माल भी सब िमल जायेगा, पर खुदा क कसम, चोर ज र पकड़ दखाऊंगा।

थानेदार चला गया, तो मुंशीजी ने आकर िनमला से उसक बात कह ं। िनमला सहम उठ - आप थानेदार से कह द जए, तफतीश न कर, पैर पड़ती हंू ।

मुंशीजी- आ खर

य? 137

आपके

िनमला- अब

य बताऊं? वह कह रहा है

क घर ह के कसी का

काम है । मुंशीजी- उसे बकने दो। जयाराम अपने कमरे म बैठा हआ भगवान ् को याद कर रहा था। ु

उसक मुंह पर हवाइयां उड़ रह थीं। सुन चुका था क पुिलसवाले चेहरे से भांप जाते ह। बाहर िनकलने क

ह मत न पड़ती थी। दोन आदिमय म

बात हो रह ह, यह जानने के िलए छटपटा रहा था।

या

य ह थानेदार चला

गया और भूंगी कसी काम से बाहर िनकली, जयाराम ने पूछा-थानेदार

या

कर रहा था भूंगी? भूंगी ने पास आकर कहा- दाढ़ जार कहता था, घर ह से कसी आदमी का काम है , बाहर को कोई नह ं है । जयाराम- बाबूजी ने कुछ नह ं कहा? भूंगी- कुछ तो नह ं कहा, खड़े ‘हंू -हंू ’ करते रहे । घर मे एक भूंगी ह

गैर है न! और तो सब अपने ह ह।

जयाराम- म भी तो गैर हंू , तू ह

य?

भूंगी- तुम गैर काहे हो भैया?

जयाराम- बाबूजी ने थानेदार से कहा नह ं, घर म कसी पर उनका शुबहा नह ं है । भूंगी- कुछ तो कहते नह ं सुना। बेचारे थानेदार ने भले ह कहा- भूंगी तो पगली है , वह

या चोर करे गी। बाबूजी तो मुझे फंसाये ह दे ते थे।

जयाराम- तब तो तू भी िनकल गयी। अकेला म ह रह गया। तू ह

बता, तूने मुझे उस दन घर म दे खा था? भूंगी-

नह ं भैया, तुम तो ठे ठर दे खने गये थे।

जयाराम- गवाह दे गी न? भूंगी- यह

या कहते हो भैया? बहजी त तीश ब द कर दगी। ू

जयराम- सच?

भूंगी- हां भैया, बार-बार कहती है क त तीश न कराओ। गहने गये, जाने दो, पर बाबूजी मानते ह नह ं। पांच-छ: दन तक जयाराम ने पेट भर भोजन नह ं कया। कभी दोचार कौर खा लेता, कभी कह दे ता, भूख नह ं है । उसके चेहरे का रं ग उड़ा रहता था। रात जागत कटतीं, ूित ण थानेदार क शंका बनी रहती थी। य द 138

वह जानता क मामला इतना तूल खींचगा, तो कभी ऐसा काम न करता। उसने तो समझा था-

कसी चोर पर शुबहा होगा। मेर तरफ

कसी का

यान भी न जायेगा, पर अब भ डा फूटता हआ मालूम होता था। अभागा ु

थानेदार जस ढं गे से छान-बीन कर रहा था, उससे जयाराम को बड़ शंका हो रह थी। सातव दन सं या समय घर लौटा तो बहत ु िच तत था। आज तक

उसे बचने क कुछ-न-कुछ आशा थी। माल अभी तक कह ं बरामद न हआ ु था, पर आज उसे माल के बरामद होने क खबर िमल गयी थी। इसी दम

थानेदार कांःटे बल के िलए आता होगा। बचने को कोई उपाय नह ं। थानेदार को र त दे ने से स भव है मुकदमे को दबा दे , पये हाथ म थे, पर बात िछपी रहे गी? अभी माल बरामद नह

हआ ु ,

या

फर भी सारे शहर म

अफवाह थी क बेटे ने ह माल उड़ाया है । माल िमल जाने पर तो गली-गली बात फैल जायेगी। फर वह कसी को मुंह न दखा सकेगा। मुंशीजी कचहर

से लौटे तो बहत घबराये हए थे। िसर थामकर ु ु

चारपाई पर बैठ गये।

िनमला ने कहा- कपड़े

य नह ं उतारते? आज तो और दन से दे र

हो गयी है । मुंशीजी-

या कपडे ऊता ं ? तुमने कुछ सुना?

िनमला-

य बात है ? मने तो कुछ नह ं सुना?

मुंशीजी- माल बरामद हो गया। अब जया का बचना मु ँकल है । िनमला को आ य नह ं हआ। उसके चेहरे से ऐसा जान पड़ा, मानो ु

उसे यह बात मालूम थी। बोली- म तो पहले ह कर रह थी क थाने म इ ला मत क जए। मुंशीजी- तु ह जया पर शका था? िनमला- शक

य नह ं था, मने उ ह अपने कमरे से िनकलते दे खा

था। मुंशीजी- फर तुमने मुझसे

य न कह दया?

िनमला- यह बात मेरे कहने क न थी। आपके दल म ज र खयाल आता

क यह ईंयावश आ ेप लगा रह है । क हए, यह खयाल होता या

नह ं? झूठ न बोिलएगा। 139

मुंशीजी- स भव है , म इ कार नह ं कर सकता। फर भी उसक दशा म तु ह मुझसे कह दे ना चा हए था। रपोट क नौबत न आती। तुमने अपनी नेकनामी क तो- फब क , पर यह न सोचा क प रणाम

या होगा? म

अभी थाने म चला आता हंू । अलायार खां आता ह होगा! िनमला ने हताश होकर पूछा- फर अब?

मुंशीजी ने आकाश क ओर ताकते हए ु कहा- फर जैसी भगवान ् क

इ छा। हजार-दो हजार

पये र त दे ने के िलए होते तो शायद मामेला दब

जाता, पर मेर हालत तो तुम जानती हो। तकद र खोट है और कुछ नह ं। पाप तो मने कया है , द ड कौन भोगेगा? एक लड़का था, उसक वह दशा हई क यह दशा हो रह है । नालायक था, गुःताख था, गुःताख था, ू ु , दसरे

कामचोर था, पर था ता अपना ह लड़का, कभी-न-कभी चेत ह जाता। यह चोट अब न सह जायेगी। िनमला- अगर कुछ दे - दलाकर जान बच सके, तो म कर दं ।ू

मुंशीजी- कर सकती हो? कतने

पये का ूब ध

पये दे सकती हो?

िनमला- कतना दरकार होगा? मुंशीजी- एक हजार से कम तो शायद बातचीत न हो सके। मने एक मुकदमे म उससे एक हजार िलए थे। वह कसर आज िनकालेगा। िनमला- हो जायेगा। अभी थाने जाइए। मुंशीजी को थाने म बड़ दे र लगी। एका त म बातचीत करने का बहत ु

दे र मे मौका िमला। अलायार खां पुराना घाघ थ। बड़ मु ँकल से अ ट पर चढ़ा। पांच सौ

वये लेकर भी अहसान का बोझा िसर पर लाद ह

दया।

काम हो गया। लौटकर िनमला से बोला- लो भाई, बाजी मार ली, पये तुमने दये, पर काम मेर जबान ह ने कया। बड़ -बड़ मु ँकल से राजी हो गया। यह भी याद रहे गी। जयाराम भोजन कर चुका है ? िनमला- कहां, वह तो अभी घूमकर लौटे ह नह ं। मुंशीजी- बारह तो बज रहे ह ग। िनमला- कई दफे जा-जाकर दे ख आयी। कमरे म अंधेरा पड़ा हआ है । ु

मुंशीजी- और िसयाराम?

िनमला- वह तो खा-पीकर सोये ह। मुंशीजी- उससे पूछा नह ं, जया कहां गया? 140

िनमला- वह तो कहते ह, मुझसे कुछ कहकर नह ं गये। मुंशीजी को कुछ शंका हई। िसयाराम को जगाकर पूछा- तुमसे ु

जयाराम ने कुछ कहा नह ं, कब तक लौटे गा? गया कहां है ?

िसयाराम ने िसर खुजलाते और आंख मलते हए ु कहा- मुझसे कुछ

नह ं कहा।

मुंशीजी- कपड़े सब पहनकर गया है ? िसयाराम- जी नह ं, कुता और धोती। मुंशीजी- जाते व

खुश था?

िसयाराम- खुश तो नह ं मालूम होते थे। कई बार अ दर आने का इरादा कया, पर दे हर से ह लौट गये। कई िमनट तक सायबान म खड़े रहे । चलने लगे, तो आंख प छ रहे थे। इधर कई दन से अ सा रोया करते थे। मुंशीजी ने ऐसी ठं ड सांस ली, मानो जीवन म अब कुछ नह ं रहा और िनमला से बोले- तुमने कया तो अपनी समझ म भले ह के िलए, पर कोई शऽु भी मुझ पर इससे कठारे आघात न कर सकता था। जयाराम क माता होती, तो

या वह यह संकोच करती? कदा प नह ं।

िनमला बोली- जरा डॉ टर साहब के यहां

य नह ं चले जाते? शायद

वहां बैठे ह । कई लड़के रोज आते है , उनसे पूिछए, शायद कुछ पता लग जाये। फूंक-फूंककर चलने पर भी अपयश लग ह गया। मुंशीजी ने मानो खुली हई खड़क से कहा- हां, जाता हंू और ु

या

मुंशीज बाहर आये तो दे खा, डॉ टर िस हा खड़े ह। च ककर पूछा-

या

क ं गा।

आप दे र से खड़े ह?

डॉ टर- जी नह ं, अभी आया हंू । आप इस व

कहां जा रहे ह? साढ़े

बारह हो गये ह।

मुंशीजी- आप ह क तरफ आ रहा था। जयाराम अभी तक घूमकर नह ं आया। आपक तरफ तो नह ं गया था? डॉ टर िस हा ने मुंशीजी के दोन हाथ पकड़ िलए और इतना कह पाये थे, ‘भाई साहब, अब धैय से काम..’ क मुंशीजी गोली खाये हए ु मनुंय क भांित जमीन पर िगर पड़े ।

141

इ कस क णी ने िनमला से

या रयां बदलकर कहा-

या नंगे पांव ह मदरसे

जायेगा? िनमला ने ब ची के बाल गूथ ं ते हए ु कहा- म

या क ं ? मेरे पास

पये नह ं ह।

मणी- गहने बनवाने को

पये जुड़ते ह, लड़के के जूत के िलए

पय म आग लग जाती है । दो तो चले ह गये, या तीसरे को भी

ला-

लाकर मार डालने का इरादा है ? िनमला ने एक सांस खींचकर कहा- जसको जीना है , जयेगा, जसको मरना है , मरे गा। म कसी को मारने- जलाने नह ं जाती। आजकल एक-न-एक बात पर िनमला और

मणी म रोज ह झड़प

हो जाती थी। जब से गहने चोर गये ह, िनमला का ःवभाव बलकुल बदल गया है । वह एक-एक कौड़ दांत से पकड़ने लगी है । िसयाराम रोते-रोते चहे

जान दे दे , मगर उसे िमठाई के िलए पैसे नह ं िमलते और यह बताव कुछ िसयाराम ह के साथ नह ं है , िनमला ःवयं अपनी ज रत को टालती रहती है । धोती जब तक फटकनर तार-तार न हो जाये, नयी धोती नह ं आती। मह न िसर का तेल नह ं मंगाया जाता। पान खाने का उसे शौक था, कईकई दन तक पानदान खाली पड़ा रहता है , यहां तक क ब ची के िलए दध ू

भी नह ं आता। न हे से िशशु का भ वंय

वरा

प धारण करके उसके

वचार- ेऽ पर मंडराता रहता । मुंशीजी ने अपने को स पूणतया िनमला के हाथ मे स प दया है । उसके कसी काम म दखल नह ं दे ते। न जाने

य उससे कुछ दबे रहते ह।

वह अब बना नागा कचहर जाते ह। इतनी मेहनत उ ह ने जवानी म भी न क थी। आंख खराब हो गयी ह, डॉ टर िस हा ने रात को िलखने-पढ़ने क मुमुिनयत कर द है , पाचनश

पहले ह दबल थी, अब और भी खराब हो ु

गयी है , दम क िशकायत भी पैदा ह चली है , पर बेचारे सबेरे से आधी-आधी रात तक काम करते ह। काम करने को जी चाहे या न चाहे , तबीयत अ छ हो या न हो, काम करना ह पड़ता है । िनमला को उन पर जरा भी दया आती। वह भ वंय क भीषण िच ता उसके आ त रक स ाव को सवनाश

142

कर रह है ।

कसी िभ क ु क आवाज सुनकर झ ला पड़ती है । वह एक

कोड़ भी खच करना नह ं चाहती । एक दन िनमला ने िसयाराम को घी लाने के िलए बाजार भेजा। भूंगी पर उनका व ास न था, उससे अब कोई सौदा न मांगती थी। िसयाराम म काट-कपट क आदत न थी। औने-पौने करना न जानता था। ूाय: बाजार का सारा काम उसी को करना पड़ता। िनमला एक-एक चीज को तोलती, जरा भी कोई चीज तोल म कम पड़ती, तो उसे लौटा दे ती। िसयाराम का बहत ु -सा समय इसी लौट-फेर म बीत जाता था। बाजार वाले उसे ज द कोई सौदा न

दे ते। आज भी वह नौबत आयी। िसयाराम अपने वचार से बहत ु अ छा घी,

कई दकारन से दे खकर लाया, ले कन िनमला ने उसे सूंघते ह कहा- घी ू खराब है , लौटा आओ।

िसयाराम ने झुंझलाकर कहा- इससे अ छा घी बाजार म नह ं है , म सार दकाने दे खकर लाया हंू ? ू

िनमला- तो म झूठ कहती हंू ?

िसयाराम- यह म नह ं कहता, ले कन बिनया अब घी वा पस न लेगा। उसने मुझसे कहा था, जस तरह दे खना चाहो, यह ं दे खो, माल तु हारे सामने है । बो हनी-ब टे के व

म सौदा वापस न लूंगा। मने सूंघकर, चखकर िलया।

अब कस मुंह से लौटने जाऊ? िनमला ने दांत पीसकर कहा- घी म साफ चरबी िमली हई ु है और

तुम कहते हो, घी अ छा है । म इसे रसोई म न ले जाऊंगी, तु हारा जी चाहे लौटा दो, चाहे खा जाओ।

घी क हांड़ वह ं छोड़कर िनमला घर म चली गयी। िसयाराम बोध

और

ोभ से कातर हो उठा। वह कौन मुह ं लेकर लौटाने जाये? बिनया साफ

कह दे गा- म नह ं लौटाता। तब वह

या करे गा? आस-पास के दस-पांच

बिनये और सड़क पर चलने वाले आदमी खाड़े हो जायगे। उन सब के सामने उसे ल जत होना पड़े गा। बाजार म य ह कोई बिनया उसे ज द सौदा नह ं दे ता, वह कसी दकान पर खड़ा होने नह ं पाता। चार ओर से उसी ू

पर लताड़ पड़े गी। उसने मन-ह -मन झुंझलाकर कहा- पड़ा रहे घी, म लौटाने न जाऊंगा।

मातृ-ह न बालक के समान दखी नह ं होता ु , द न-ूाणी संसार म दसरा ू

और सारे द:ु ख भूल जाते ह। बालक को माता याद आयी, अ मां होती, तो 143

या आज मुझे यह सब सहना पड़ता? भैया चले गये, म ह अकेला यह वप

सहने के िलए

य बचा रहा? िसयाराम क आंख म आंसू क झड़

लग गयी। उसके शोक कातर क ठ से एक गहरे िन: ास के साथ िमले हए ु ये श द िनकल आये- अ मां! तुम मुझे भूल सहसा िनमला

फर कमरे क

य गयीं, य नह ं बुला लेतीं?

तरफ आयी। उसने

समझा था,

िसयाराम चला गया होगा। उसे बैठा दे खा, तो गुःसे से बोली- तुम अभी तक बैठे ह हो? आ खर खाना कब बनेगा?

िसयाराम ने आंख प ड डालीं। बोला- मुझे ःकूल जाने म दे र हो

जायेगी। िनमला- एक दन दे र हो जायेगी तो कौन हरज है ? यह भी तो घर ह का काम है ? िसयाराम- रोज तो यह ध धा लगा रहता है । कभी व नह ं पहंु चता। घर पर भी पढ़ने का व

पर ःकूल

नह ं िमलता। कोई सौदा दो-चार बार

लौटाये बना नह ं जाता। डांट तो मुझ पर पड़ती है , शिमदा तो मुझे होना पड़ता है , आपको

या?

िनमला- हां, मुझे

या? म तो तु हार दँमन ठहर ! अपना होता, तब ु

तो उसे द:ु ख होता। म तो ई र से मानाया करती हंू क तुम पढ़-िलख न सको। मुझम सार बुराइयां-ह -बुराइयां ह, तु हारा कोई कसूर नह ं। वमाता

का नाम ह बुरा होता है । अपनी मां वष भी खलाये, तो अमृत ह; म अमृत भी पलाऊं, तो वष हो जायेगा। तुम लोग के कारण म िम ट म िमल गयी, रोते-रोत उॆ काट जाती है , मालूम ह न हआ क भगवान ने कसिलए ु

ज म दया था और तु हार समझ म म वहार कर रह हंू । तु ह सताने म मुझे बड़ा मजा आता है । भगवान ् भी नह ं पूछते क सार

वप

का अ त

हो जाता।

यह कहते-कहते िनमला क

आंख भर आयी। अ दर चली गयी।

िसयाराम उसको रोते दे खकर सहम उठा।

लािनक तो नह ं आयी; पर शंका

हई ु क ने जाने कौन-सा द ड िमले। चुपके से हांड़ उठा ली और घी लौटाने

चला, इस तरह जैसे कोई कु ा कसी नये गांव म जाता है । उसे दे खकर

साधारण बु

का मनुंय भी आनुमान कर सकता था क वह अनाथ है ।

िसयाराम

य - य आगे बढ़ता था, आनेवाले संमाम के भय से उसक

दय-गित बढ़ती जाती थी। उसने िन य कया-बिनये ने घी न लौटाया, तो 144

वह घी वह ं छोड़कर चला आयेगा। झख मारकर बिनया आप ह बुलायेगा। बिनये को डांटने के िलए भी उसने श द सोच िलए। वह कहे गा-



साहजी ू , आंख म धूल झ कते हो? दखाते हो चोखा माल और और दे ते ह र

माल? पर यह िन य करने पर भी उसके पैर आगे बहत ु धीरे -धीरे उठते

थे। वह यह न चाहता था, बिनया उसे आता हआ दे खे, वह अकःमात ् ह ु

उसके सामने पहंु च जाना चाहता था। इसिलए वह च कार काटकर दसर ू

गली से बिनये क दकान पर गया। ू

बिनये ने उसे दे खते ह कहा- हमने कह दया था क हमे सौदा वापस

न लगे। बोल , कहा था क नह ं। िसयाराम ने बगड़कर कहा- तुमने वह घी कहां दया, जो दखाया था? दखाया एक माल, दया दसरा माल, लौटाओगे कैसे नह ं? ू

या कुछ राहजनी

है ?

साह- इससे चोखा घी बाजार म िनकल आये तो जर बाना दं ।ू उठा लो हांड़

और दो-चार दकार दे ख आओ। ू

िसयाराम- हम इतनी फुसत नह ं है । अपना घी लौटा लो। साह- घी न लौटे गा। बिनये क दकान पर एक जटाधार साधू बैठा हआ यह तमाश दे ख ु ु

रहा था। उठकर िसयाराम के पास आया और हांड़ का घी सूंघकर बोलाब चा, घी तो बहत ु अ छा मालूम होता है ।

साह सने शह पाकर कहा- बाबाजी हम लोग तो आप ह इनको घ टया

माल नह ं दे ते। खराब माल

या जाने-सुने माहक को दया जाता है ?

साधु- घी ले जाव ब चा, बहत ु अ छा है ।

िसयाराम रो पड़ा। घी को बुरा िस ा करने के िलए उसके पास अब

या ूमाण था? बोला- वह तो कहती ह, घी अ छा नह ं है , लौटा आओ। म तो कहता था क घी अ छा है । साधु- कौन कहता है ? साह- इसक अ मां कहती ह गी। कोई सौदा उनके मन ह नह ं भाता। बेचारे लड़के को बार-बार दौड़ाया करती है । सौतेली मां है न! अपनी मां हो तो कुछ

याल भी करे ।

145

साधु ने िसयराम को सदय नेऽ से दे खा, मानो उसे ऽाण दे ने के िलए उनका

दय वकल हो रहा है । तब क ण ःवर से बोले- तु हार माता का

ःवगवास हए ु कतने दन हए ु ब च? िसयाराम- छठा साल है । साधु- ता तुम उस व कतनी

बहत ु ह छोटे रहे ह गे। भगेवान ् तु हार लीला

विचऽ है । इस दधमु ु ंहे बालक को तुमने मात ्-ूेम से वंिचत कर

दया। बड़ा अनथ करते हो भगवान ्! छ: साल का बालक और रा सी

वमाता के पानले पड़े ! ध य हो दयािनिध! साहजी, बालक पर दया करो, घी लौटा लो, नह ं तो इसक मात इसे घर म रहने न दे गी। भगवान क इ छा से तु हारा घी ज द बक जायेगा। मेरा आशीवाद तु हारे साथ रहे गां साहजी ने ह

पये वापस न कये। आ खर लड़के को फर घी लेने आना

पड़े गा। न जाने

दन म

कतनी बार च कर लगाना पड़े और

कस

जािलये से पाला पड़े । उसक दकान म जो घी सबसे अ छा था, वह िसयाराम ु दल से सोच रहा था, बाबाजी

होती, तो साहजी

कतने दयालु ह? इ ह ने िसफा रश न क

य अ छा घी दे ते?

िसयाराम घी लेकर चला, तो बाबाजी भी उसके साथ ह िलये। राःते म मीठ -मीठ बात करने लगे। ‘ब चा, मेर माता भी मुझे तीन साल का छोड़कर परलोक िसधार थीं। तभी से मातृ- वह न बालक को दे खता हंू तो मेरा था?

दय फटने लगता ह।’

िसयाराम ने पूछा- आपके पताजी ने भी तो दसरा ववाह कर िलया ू साधु- हां, ब चा, नह ं तो आज साधु

ववाह न करते थे। मुझे बहत ु

गया, ववाह कर िलया। पर मेर

य होता? पहले तो

यार करते थे, फर न जाने

पताजी

य मन बदल

साधु हंू , कटु वचन मुंह से नह ं िनकालना चा हए,

वमात जतनी ह सु दर थीं, उतनी ह कठोर थीं। मुझे दन- दन-

भर खाने को न दे तीं, रोता तो मारतीं। पताजी क आंख भी फर गयीं। उ ह मेर सूरत से घृणा होने लगी। मेरा रोना सुनकर मुझे पीटने लगते। अ त को म एक दन घर से िनकल खड़ा हआ। ु

िसयाराम के मन म भी घर से िनकल भागने का वचार कई बार हआ ु

था। इस समय भी उसके मन म यह

बोला-घर से िनकलकर आप कहां गये? 146

वचार उठ रहा था। बड़ उ सुकता से

बाबाजी ने हं सकर कहा- उसी दन मेरे सारे क

का अ त हो गया

ू जस दन घर के मोह-ब धन से छटा और भय मन से िनकला, उसी दन मानो मेरा उ ार हो गया। दन भर म एक पुल के नीचे बैठा रहा। सं या समय मुझे एक महा मा िमल गये। उनका ःवामी परमान दजी था। वे बालॄ॑चार थे। मुझ पर उ ह ने दया क और अपने साथ रख िलया। उनके साथ रख िलया। उनके साथ म दे श-दे शा तर म घूमने लगा। वह बड़े अ छे योगी थे। मुझे भी उ ह ने योग- व ा िसखाई। अब तो मेरे को इतना

अ यास हो येगया है क जब इ छा होती है , माताजी के दशन कर लेता हंू ,

उनसे बात कर लेता हंू ।

िसयाराम ने वःफा रत नेऽ से दे खकर पूछा- आपक माता का तो

दे हा त हो चुका था? साधु- तो

या हआ ब च, योग- व ा म वह श ु

है क जस मृत-

आ म को चाहे , बुला ले।

िसयाराम- म योग- व ा सीख ् लू,ं तो मुझे भी माताजी के दशन ह गे?

साधु- अवँय, अ यास से सब कुछ हो सकता है । हां, यो य गु

चा हए। योग से बड़ -बड़ िस यां ूा

हो सकती ह। जतना धन चाहो, पल-

माऽ म मंगा सकते हो। कैसी ह बीमार हो, उसक औषिध अता सकते हो। िसयाराम- आपका ःथान कहां है ? साधु- ब चा, मेरे को ःथान कह ं नह ं है । दे श-दे शा तर

से रमता

फरता हंू । अ छा, ब चा अब तुम जाओ, मै। जरा ःनान- ययान करने

जाऊंगा। भरा।

िसयराम- चिलए म भी उसी तरफ चलता हंू । आपके दशन से जी नह ं

साधु- नह ं ब चा, तु ह पाठशाला जाने क दे र हो रह है । िसयराम- फर आपके दशन कब ह गे? साधु- कभी आ जाऊंगा ब चा, तु हारा घर कहां है ? िसयाराम ूस न होकर बोला- चिलएगा मेरे घर? बहत ु नजद क है ।

आपक बड़ कृ पा होगी।

िसयाराम कदम बढ़ाकर आगे-आगे चलने लगा। इतना ूस न था, मानो सोने क गठर िलए जाता हो। घर के सामने पहंु चकर बोला- आइए, बै ठए कुछ दे र।

147

साधु- नह ं ब चा, बैठू ं गा नह ं।

फर कल-परस

कसी समय आ

जाऊंगा। यह तु हारा घर है ? िसयाराम- कल कस व

आइयेगा?

साधु- िन य नह ं कह सकता। कसी समय आ जाऊंगा। साधु आगे बढ़े , तो थोड़ उसका नाम था ह रहरान द।

ह दरू पर उ ह एक दसरा साधु िमला। ू

परमान द से पूछा- कहां-कहां क सैर क ? कोई िशकार फंसा?

ह रहरान द- इधरा चार तरफ घूम आया, कोई िशकार न िमलां एकाध िमला भी, तो मेर हं सी उड़ाने लगा। जानूं।

परमान द- मुझे तो एक िमलता हआ जान पड़ता है ! फंस जाये तो ु ह रहरान द- तुम य ह कहा करते हो। जो आता

है , दो-एक दन के

बाद िनकल भागता है । परमान द- अबक न भागेगा, दे ख लेना। इसक मां मर गयी है । बाप ने दसरा ववाह कर िलया है । मां भी सताया करती है । घर से ऊबा हआ है । ू ु

ह रहरान द- खूब अ छ तरह। यह तरक ब सबसे अ छ है । पहले

इसका पता लगा लेना चा हए क मुह ले म कन- कन घर म वमाताएं ह? उ ह ं घर म फ दा डालना चा हए। बाईस

िन

मला ने बगड़कर कहा- इतनी दे र कहां लगायी? िसयाराम ने ढठाई से कहा- राःते म एक जगह सो गया था।

िनमला- यह तो म नह ं कहती, पर जानते हो कै बज गये ह? दस

कभी के बज गये। बाजार कुद दरू भी तो नह ं है ।

िसयाराम- कुछ दरू नह ं। दरवाजे ह पर तो है ।

िनमला- सीधे से

य नह ं बोलते? ऐसा बगड़ रहे हो, जैसे मेरा ह

कोई कामे करने गये हो? िसयाराम- तो आप लौटाना

यथ क

बकवास



करती ह? िलया सौदा

या आसान काम है ? बिनये से घंट हु जत करनी पड़ यह तो

148

कहो, एक बाबाजी ने कह-सुनकर फेरवा दया, नह ं तो कसी तरह न फेरता। राःते म कह ं एक िमनट भी न

का, सीधा चला आता हंू ।

िनमला- घी के िलए गये-गये, तो तुम

यारह बजे लौटे हो, लकड़ के

िलए जाओगे, तो सांझ ह कर दोगे। तु हारे बाबूजी बना खाये ह चले गये। तु ह इतनी दे र लगानी था, तो पहले ह

य न कह दया? जाते ह लकड़

के िलए। िसयाराम अब अपने को संभाल न सका। झ लाकर बोला- लकड़

कसी और से मंगाइए। मुझे ःकूल जाने को दे र हो रह है । िनमला- खाना न खाओगे? िसयाराम- न खाऊंगा।

िनमला- म खाना बनाने को तैयार हंू । हां, लकड़

लाने नह ं जा

सकती।

िसयाराम- भूंगी को

य नह ं भेजती?

िनमला- भूंगी का लाया सौदा तुमने कभी दे खा नह ं ह? िसयाराम- तो म इस व

न जाऊंगा।

िनमला- मुझे दोष न दे ना। िसयाराम कई दन से ःकूल नह ं गया था। बाजार-हाट के मारे उसे कताब दे खने का समय ह न िमलता था। ःकूल जाकर झड़ कयां खान, से बच पर खड़े होने या ऊंची टोपी दे ने के िसवा और

या िमलता? वह घर से

कताब लेकर चलता, पर शहर के बाहर जाकर कसी वृ

क छांह म बैठा

रहता या प टन क कवायद दे खता। तीन बजे घर से लौट आता। आज भी

वह घर से चला, ले कन बैठने म उसका जी न लगा, उस पर आंत अल ग

जल रह थीं। हा! अब उसे रो टय के भी लाले पड़ गये। दस बजे न बन सकता था? माना क बाबूजी चले गये थे।

या खाना

या मेरे िलए घर म दो-

चार पैसे भी न थे? अ मां होतीं, तो इस तरह बना कुछ खाये- पये आने दे तीं? मेरा अब कोई नह ं रहा। िसयाराम का मन बाबाजी के दशन के िलए सोचा- इस व

याकुल हो उठा। उसने

वह कहां िमलगे? कहां चलकर दे खूं? उनक मनोहर वाणी,

उनक उ साहूद सा कहा- म उनके साथ ह

वना, उसके मन को खींचने लगी। उसने आतुर होकर य न चला गया? घर पर मेरे िलए 149

या रखा था?

वह आज यहां से चला तो घर न जाकर सीधा घी वाले साहजी क दकान पर गया। शायद बाबाजी से वहां मुलाकात हो जाये, पर वहां बाबाजी ु न थे। बड़ दे र तक खड़ा-खड़ा लौट आया।

घर आकर बैठा ह था कस िनमला ने आकर कहा- आज दे र कहां लगाई? सवेरे खाना नह ं बना, या इस व

भी उपवास होगा? जाकर बाजार

से कोई तरकार लाओ। िसयाराम ने झ लाकर कहा-

दनभर का भूखा चला आता हंू ; कुछ

पीनी पीने तक को लाई नह ं, ऊपर से बाजार जाने का हु म दे

दया। म

नह ं जाता बाजार, कसी का नौकर नह ं हंू । आ खर रो टयां ह तो खलाती

हो या और कुछ? ऐसी रो टयां जहां मेहनत क ं गा, वह ं िमल जायगी। जब मजूर



करनी है , तो आपक

न क ं गा, जाइए मेरे िलए खाना मत

बनाइएगा। िनमला अवाक् रह गयी। लड़के को आज

चुपके से जाकर काम कर लाता था, आज



या हो गया? और दन तो यो रयां बदल रहा है ? अब

भी उसको यह न सूझी क िसयाराम को दो-चार पैसे कुछ खाने के दे दे । उसका ःवभाव इतना कृ पण हो गया था, बोली- घर का काम करना तो मजूर नह ं कहलाती। इसी तरह म भी कह दं ू क म खाना नह ं पकाती, तु हारे बाबूजी कह द क कचहर नह ं जाता, तो

या हो बताओ? नह ं जाना

चाहते, तो मत जाओ, भूंगी से मंगा लूंगी। म

या जानती थी

क तु ह

बाजार जाना बुरा लगता है , नह ं तो बला से धेले क चीज पैसे म आती, तु ह न भेजती। लो, आज से कान पकड़ती हंू ।

िसयाराम दल म कुछ ल जत तो हआ ु , पर बाजार न गया। उसका

यान बाबाजी क ओर लगा हआ था। अपने सारे दख का अ त और जीवन ु ु

क सार आशाएं उसे अब बाबाजी क आशीवाद म मालूम होती थीं। उ ह ं क

शरण जाकर उसका यह आधारह न जीवन साथक होगा। सूयाःत के समय वह अधीर हो गया। सारा बाजार छान मारा, ले कन बाबाजी का कह ं पता न िमला। दनभर का भूख- यासा, वह अबोध बालक दखते हए दल को हाथ ु ु

से दबाये, आशा और भय क मूित बना, दकान , गािलय और म दर म उस ु

आौमे को खोजता फरता था, जसके बना उसे अपना जीवन दःसह हो रहा ु था। एक बार म दर के सामने उसे कोई साधु खड़ा दखाई दया। उसने 150

समझा वह ह। हष लास से वह फूल उठा। दौड़ा और साधु के पास खड़ा हो गया। पर यह कोई और ह महा मा थे। िनराश हो कर आगे बढ़ गया। धारे -धीरे सड़क पर स नाटा दा गया, घर के

ारा ब द होने लगे।

सड़क क पट रय पर और गिलय म बंसखटे या बोरे बछा- बछाकर भारत क ूजा सुख-िनिा म म न होने लगी, ले कन िसयाराम घर न लौटा। उस घर से उसक दल फट गया था, जहां कसी को उससे ूेम न था, जहां वह कसी परािौत क भांित पड़ा हआ था, केवल इसीिलए क उसे और कह ं ु

शरण न थी। इस व

भी उसके घर न जाने को कसे िच ता होगी? बाबूजी

भोजन करके लेटे ह गे, अ मांजी भी आराम करने जा रह ह गी। कसी ने मेरे कमरे क ओर झांककर दे खा भी न होगा। हां, बुआजी घबरा रह ह गी, वह अभी तक मेर राह दे खती ह गी। जब तक म न जाऊंगा, भोजन न करगी। मणी क याद आते ह िसयाराम घर क ओर चल

दया। वह

अगर और कुछ न कर सकती थी, तो कम-से-कम उसे गोद म िचमटाकर रोती थी? उसके बाहर से आने पर हाथ-मुंह धोने के िलए पानी तो रख दे ती थीं। संसार म सभी बालक दध ू क कु लय नह ं करते, सभी सोने के कौर

नह ं खाते। कतन के पेट भर भोजन भी नह ं िमलता; पर घर से वर वह होते ह, जो मातृ-ःनेह से वंिचत ह। िसयाराम घर क ओर चला ह

क सहसा बाबा परमान द एक गली

से आते दखायी दये। िसयाराम ने जाकर उनका हाथ पकड़ िलया। परमान द ने च ककर

पूछा- ब चा, तुम यहां कहां?

िसयाराम ने बात बनाकर कहा- एक दोःत से िमलने आया था। आपका ःथान यहां से कतनी दरू है ?

परमान द- हम लोग तो आज यहां से जा रहे ह, ब चा, ह र ार क

याऽा है । िसयाराम ने हतो साह होकर कहा-

या आज ह चले जाइएगा?

परमान द- हां ब चा, अब लौटकर आऊंगा, तो दशन दं ग ू ा?

िसयाराम ने कात कंठ से कहा- म भी आपके साथ चलूंगा। परमान द- मेरे साथ! तु हारे घर के लोग जाने दगे? 151

िसयाराम- घर के लोग को मेर

या परवाह है ? इसके आगे िसयाराम

और कुछ सन कह सका। उसके अौु-पू रत नेऽ

ने उसक

क णा

-गाथा उससे कह ं वःतार के साथ सुना द , जतनी उसक वाणी कर सकती थी। परमान द ने बालक को कंठ से लगाकर कहा- अ छा ब च, तेर इ छा हो तो चल। साधु-स त क संगित का आन द उठा। भगवान ् क इ छा होगी, तो तेर इ छा पूर होगी।

दाने पर म डराता हआ प ी अ त म दाने पर िगर पड़ा। उसके जीवन ु

ु के तले- यह कौन जानता है ? का अ त पंजरे म होगा या याध क छर तेईस

मुं

शीजी पांच बजे कचहर से लौटे और अ दर आकर चारपाई पर िगर

पड़े । बुढ़ापे क दे ह, उस पर आज सारे दन भोजन न िमला। मुंह सूख

गया। िनमला समझ गयी, आज दन खाली गयां िनमला ने पूछा- आज कुछ न िमला। मुंशीजी- सारा दन दौड़ते गुजरा, पर हाथ कुछ न लगा। िनमला- फौजदार वाले मामले म

या हआ ु ?

मुंशीजी- मेरे मुव कल को सजा हो गयी।

िनमला- पं डत वाले मुकदमे म? मुंशीजी- पं डत पर डमी हो गयी। िनमला- आप तो कहते थे, दावा ख रज हो जायेगा। मुंशीजी- कहता तो था, और जब भी कहता हंू

क दावा खा रज हो

जाना चा हए था, मगर उतना िसर मगजन कौन करे ? िनमला- और सीरवाले दावे म? मुंशीजी- उसम भी हार हो गयी।

िनमला- तो आज आप कसी अभागे का मुंह दे खकर उठे थे। मुंशीजी से अब काम बलकुल न हो सकता थां एक तो उसके पास मुकदमे आते ह न थे और जो आते भी थे, वह बगड़ जाते थे। मगर अपनी असफलताओं को वह िनमला से िछपाते रहते थे। जस दन कुछ हाथ न

152

लगता, उस दन कसी से दो-चार

पये उधार लाकर िनमला को दे ते, ूाय:

सभी िमऽ से कुछ-न-कुछ ले चुके थे। आज वह डौल भी न लगा। िनमला ने िच तापूण ःवर म कहा- आमदनी का यह हाल है , तो ईँ र ह मािलक है , उसक पर बेटे का यह हाल है क बाजार जाना मु ँकल है । भूंगी ह से सब काम कराने को जी चाहता है । घी लेकर

यारह बजे

लौटा। कतना कहकर हार गयी क लकड़ लेते आओ, पर सुना ह नह ं। मुंशीजी- तो खाना नह ं पकाया?

िनमला- ऐसी ह बात से तो आप मुकदमे हारते ह।

धन के बना

कसी ने खाना बनाया है क म ह बना लेती? मुंशीजी- तो बना कुछ खाये ह चला गया। िनमला- घर म और मुंशीजी

या रखा था जो खला दे ती?

ने डरते-डरते कहका- कुछ पैसे-वैसे न दे दये?

िनमला ने भ हे िसकोड़कर कहा- घर म पैसे फलते ह न? मुंशीजी ने कुछ जवाब न

दया। जरा दे र तक तो ूती ा करते रहे



शायद जलपान के िलए कुछ िमलेगा, ले कन जब िनमला ने पानी तक न मंगवाय, तो बेचारे िनराश होकर चले गये। िसयाराम के क करके उनका िच जाती, तो ऐसा

का अनुमान

चचंल हो उठा। एक बार भूंगी ह से लकड़ मंगा ली

या नुकसान हो जाता? ऐसी कफायत भी कस काम क



घर के आदमी भूखे रह जाय। अपना संदकचा खोलकर टटोलने लगे ू



शायद दो-चार आने पैसे िमल जाय। उसके अ दर के सारे कागज िनकाल डाले, एक-एक, खाना दे खा, नीचे हाथ डालकर दे खा पर कुछ न िमला। अगर

िनमला के स दक म शायद इसके फूल ू म पैसे न फलते थे, तो इस स दकचे ू

भी न लगते ह , ले कन संयोग ह क हए क कागज को झाडक़ते हए ु एक चव नी िगर पड़ । मारे हष के मुंशीजी उछल पड़े । बड़ -बड़ रकम इसके

पहले कमा चुके थे, पर यह चव नी पाकर इस समय उ ह जतना आ ाद हआ था। चव नी हाथ म िलए हए ु , उनका पहले कभी न हआ ु ु िसयाराम के कमरे के सामने आकर पुकारा। कोई जवाब न िमला। तब कमरे म जाकर

दे खा। िसयाराम का कह ं पता नह ंयह ू

या अभी ःकूल से नह ं लौटा? मन म

उठते ह मुंशीजी ने अ दर जाकर भूंगी से पूछा। मालूम हआ ःकूल ु

से लौट आये।

मुंशीजी ने पूछा- कुछ पानी पया है ? 153

भूंगी ने कुछ जवाब न दया। नाक िसकोड़कर मुंह फेरे हए ु चली गयी।

मुंशीजी अ हःता-आ हःता आकर अपने कमरे म बैठ गये। आज पहली बार उ ह िनमला पर बोध आया, ले कन एक ह

ण बोध का आघात अपने

ऊपर होने लगा। उस अंधेरे कमेरे म फश पर लेटे हए ु वह अपने पुऽ क ओर से इतना उदासीन हो जाने पर िध कारने लगे। दन भर के थके थे। थोड़ ह दे र म उ ह नींद आ गयी। भूंगी ने आकर पुकारा- बाबूजी, रसोई तैयार है ।

मुंशीजी च ककर उठ बैठे। कमरे म लै प जल रहा था पूछा- कै बज गये भूंगी? मुझे तो नींद आ गयी थी। भूंगी ने कहा- कोतवाली के घ टे म नौ बज गये ह और हम नाह ं जािनत। मुंशीजी- िसया बाबू आये? भूंगी- आये ह गे, तो घर ह म न ह गे। जाने

मुंशीजी ने झ लाकर पूछा- म पूछता हंू , आये क नह ं? और तू न या- या जवाब दे ती है ? आये क नह ं?

भूंगी- मने तो नह ं दे खा, झूठ कैसे कह दं ।ू

मुंशीजी फर लेट गये और बोले- उनको आ जाने दे , तब चलता हंू ।

आध घंटे

ार क ओर आंख लगाए मुंशीजी लेटे रहे , तब वह उठकर

बाहर आये और दा हने हाथ कोई दो फलाग तक चले। तब लौटकर

ार पर

आये और पूछा- िसया बाबू आ गये? अ दर से आवाज आयी- अभी नह ं।

मुंशीजी फर बायीं ओर चले और गली के नु कड़ तक गये। िसयाराम कह ं दखाई न दया। वहां से फर घर आये और

ारा पर खड़े होकर पूछा-

िसया बाबू आ गये? अ दर से जवाब िमला- नह ं। कोतवाली के घंटे म दस बजने लगे। मुंशीजी बड़े वेग से क पनी बाग क तरफ चले। सोचन लगे, शायद वहां घूमने गया हो और घास पर लेटे-लेट नींद आ गयी हो। बाग म पहंु चकर उ ह ने हरे क बच को दे खा, चार तरफ घूमे, बहते ु से आदमी घास

पर पड़े हए ु थे, पर िसयाराम का िनशान न था। उ ह ने िसयाराम का नाम लेकर जोर से पुकारा, पर कह ं से आवाज न आयी। 154

याल आया शायद ःकूल म तमाशा हो रहा हो। ःकूल एक मील से कुछ

यादा ह था। ःकूल क तरफ चले, पर आधे राःते से ह लौट पड़े ।

बाजार ब द हो गया था। ःकूल म इतनी रात तक तमाशा नह ं हो सकता। अब भी उ ह आशा हो रह थी

क िसयाराम लौट आया होगा।

ार पर

आकर उ ह ने पुकारा- िसया बाबू आये? कवाड़ ब द थे। कोई आवाज न आयी।

फर जोर से पुकारा। भूंगी

कवाड़ खोलकर बोली- अभी तो नह ं

आये। मुंशीजी ने धीरे से भूंगी को अपने पास बुलाया और क ण ःवर म

बोले- तू ता घर क सब बात जानती है , बता आज

या हआ था? ु

ु भूंगी- बाबूजी, झूठ न बोलूंगी, माल कन छड़ा दे गी और

या? दसरे का ू

लड़का इस तरह नह ं रखा जाता। जहां कोई काम हआ ु , बस बाजार भेज दया। दन भर बाजार दौड़ते बीतता था। आज लकड़ लाने न गये, तो चू हा

ह नह ं जला। कहो तो मुंह फुलाव। जब आप ह नह ं दे खते, तो दसरा कौन ू

दे खेगा? चिलए, भोजन कर ली जए, बहजी कब से बैठ है । ू मुंशीजी- कह दे , इस व

नह ं खायगे।

मुंशीजी फर अपने कमेरे म चले गये और एक ल बी सांस ली। वेदना से भरे हए ु ये श द उनके मुंह से िनकल पड़े - ई र, या अभी द ड पूरा नह ं हआ ु ?

रह

या इस अंधे क लकड़ को हाथ से छ न लोगे?

िनमला ने आकर कहा- आज

िसयाराम अभी तक नह ं आये। कहती

क खाना बनाये दे ती हंू , खा लो मगर सन जाने कब उठकर चल दये!

न जाने कहां घूम रहे ह। बात तो सुनते ह नह ं। कब तक उनक राह दे खा क ! आप चलकर खा ली जए, उनके िलए खाना उठाकर रख दं ग ू ी।

मुंशीजी ने िनमला क ओर कठारे नेऽ से दे खकर कहा- अभी कै बजे

ह गे? िनमल-

या जाने, दस बजे ह गे।

मुंशीजी- जी नह ं, बारह बजे ह। िनमला- बारह बज गये? इतनी दे र तो कभी न करते थे। तो कब तक उनक राह दे खोगे! दोपहर को भी कुछ नह ं खाया था। ऐसा सैलानी लड़का मने नह ं दे खा। मुंशीजी- जी तु ह दक करता है , य ? िनमला- दे खये न, इतना रात गयी और घर क सुध ह नह ं। मुंशीजी- शायद यह आ खर शरारत हो। 155

िनमला- कैसी बात मुंह से िनकालते ह? जायगे कहां? कसी यार-दोःत के यहां पड़ रहे ह गे। मुंशीजी- शायद ऐसी ह हो। ई र करे ऐसा ह हो। िनमला- सबेरे आव, तो जरा त बीह क जएगा। मुंशीजी- खूब अ छ तरह क ं गा। िनमला- चिलए, खा ली जए, दरू बहत ु हई। ु

मुंशीजी- सबेरे उसक त बीह करके खाऊंगा, कह ं न आया, तो तु ह

ऐसा ईमानदान नौकर कहां िमलेगा? िनमला ने ऐंठकर कहा- तो

या मने भागा दया?

मुंशीजी- नह ं, यह कौन कहता है ? तुम उसे

य भगाने लगीं। तु हारा

तो काम करता था, शामत आ गयी होगी। िनमला ने और कुछ नह ं कहा। बात बढ़ जाने का भय था। भीतर चली आयीय। सोने को भी न कहा। जरा दे र म भूंगी ने अ दर से कवाड़ भी ब द कर दये। या मुंशीजी को नींद आ सकती थी? तीन लड़क म केवल एक बच रहा था। वह भी हाथ से िनकल गया, तो फर जीवन म अंधकार के िसवाय और है ? कोई नाम लेनेवाल भी नह ं रहे गा। हा! कैसे-कैसे र

हाथ से िनकल

गये? मुंशीजी क आंख से अौुधारा बह रह थी, तो कोई आ य है ? उस यापक प ाताप, उस सघन उ ह संभाले हए ु थी। जस है , उन पर

लािन-ितिमर म आशा क एक ह क -सी रे खा ण वह रे खा लु

हो जायेगी, कौन कह सकता

या बीतेगी? उनक उस वेदना क क पना कौन कर सकता है ?

कई बार मुंशीजी क आंख झपक ं, ले कन हर बार िसयाराम क आहट

के धोखे म च क पड़े । सबेरा होते ह मुंशीजी

फर िसयाराम को खोजने िनकले।

कसी से

पूछते शम आती थी। कस मुंह से पूछ? उ ह कसी से सहानुभूित क आशा न थी। ूकट न कहकर मन म सब यह कहगे, जैसा कया, वैसा भोगो! सारे दिन वह ःकूल के मैदान , बाजार और बगीच का च कर लगाते रहे , दो दन िनराहार रहने पर भी उ ह इतनी श

कैसे हई ु , यह वह जान।

रात के बारह बजे मुंशीजी घर लौटे , दरवाजे पर लालटे न जल रह थी, िनमला

ार पर खड़ थी। दे खते ह बोली- कहा भी नह ं, न जाने कब चल

दये। कुछ पता चला? 156

मुंशीजी ने आ नेय नेऽ से ताकते हए ु कहा- हट जाओ सामने से, नह ं

तो बुरा होगा। म आपे म नह ं हंू । यह तु हार करनी है । तु हारे ह कारण आज मेर यह दशा हो रह है । आज से छ: साल पहले

या इस घर क यह

दशा थी? तुमने मेरा बना-बनाया घर बगाड़ दया, तुमने मेरे लहलहाते बाग

को उजाड़ डाला। केवल एक ठंू ठ रह गया है । उसका िनशान िमटाकर तभी तु ह स तोष

होगा। म अपना सवनाश करने के िलए तु ह घर नह ं जाया

था। सुखी जीवन को और भी सुखमय बनाना चाहता था। यह उसी का

ूाय

त है । जो लड़के पान क तरह फेरे जाते थे, उ ह मेरे जीते-जी तुमने

चाकर समझ िलया और म आंख से सब कुछ दे खते हए ु भी अंधा बना बैठा रहा। जाओ, मेरे िलए थोड़ा-सा सं खया भेज दो। बस, यह कसर रह गयी है ,

वह भी पूर हो जाये। िनमला ने रोते हए ु कहा- म तो अभािगन हंू ह , आप कहगे तब

जानूंगी? ने जाने ई र ने मुझे ज म



दया था? मगर यह आपने कैसे

समझ िलया क िसयाराम आवगे ह नह ं? मुंशीजी ने अपने कमरे क ओर जाते हए ु कहा- जलाओ मत जाकर

खुिशयां मनाओ। तु हार मनोकामना पूर हो गयी।

िनमला सार रात रोती रह । इतना कलंक! उसने जयाराम को गहने ले जाते दे खने पर भी मुंह खोलने का साहस नह ं कया।

य ? इसीिलए तो

क लोग समझगे क यह िम या दोषारोपण करके लड़के से वैर साध रह ह। आज उसके मौन रहने पर उसे अपरािधनी ठहराया जा रहा है । य द वह जयाराम को उसी

तो

ण रोक दे ती और जयाराम ल जावश कह ं भाग जाता,

या उसके िसर अपराध न मढ़ा जाता?

िसयाराम ह के साथ उसने कौन-सा द ु यवहार कया था। वह कुछ

बचत करने के िलए ह

वचार से तो िसयाराम से सौदा मंगवाया करती थी।

या वह बचत करके अपने िलए गहने गढ़वाना चाहती थी? जब आमदनी क यह हाल हो रहा था तो पैसे-पैसे पर िनगाह रखने के िसवाय कुछ जमा करने का उसके पास और साधान ह कोई भरोसा ह ं नह ं, बूढ़ क

या था? जवान क

ज दगी का

ज दगी का तो

या ठकाना? ब ची के ववाह के

िलए वह कसके सामने हाथ फैलती? ब ची का भार कुद उसी पर तो नह ं था। वह केवल पित क सु वधा ह के िलए कुछ बटोरने का ूय थी। पित ह क

कर रह

य ? िसयाराम ह तो पता के बाद घर का ःवामी होता। 157

ब हन के ववाह करने का भार कतर-

या उसके िसर पर न पड़ता? िनमला सार

य त पित और पुऽ का संकट-मोचन करने ह के िलए कर रह थी।

ब ची का ववाह इस प र ःथित म सकंट के िसवा और

या था? पर इसके

िलए भी उसके भा य म अपयश ह बदा था। दोपहर हो गयी, पर आज भी चू हा नह ं जला। खाना भी जीवन का काम है , इसक

कसी को सुध ह नथी। मुंशीजी बाहर बेजान-से पड़े थे और

िनमला भीतर थी। ब ची कभी भीतर जाती, कभी बाहर। कोई उससे बोलने वाला न था। बार-बार िसयाराम के कमरे के

ार पर जाकर खड़ होती और

‘बैया-बैया’ पुकारती, पर ‘बैया’ कोई जवाब न दे ता था। सं या समय मुंशीजी आकर िनमला से बोले- तु हारे पास कुछ

पये

ह? िनमला ने च ककर पूछा-

या क जएगा।

मुंशीजी- म जो पूछता हंू , उसका जवाब दो।

िनमला-

या आपको नह ं मालूम है ? दे नेवाले तो आप ह ह।

मुंशीजी- तु हारे पास कुछ

पये ह या नह ं अगेर ह , तो मुझे दे दो, न

ह तो साफ जवाब दो। िनमला ने अब भी साफ जवाब न दया। बोली- ह गे तो घर ह म न ह गे। मने कह ं और नह ं भेज दये। मुंशीजी बाहर चले गये। वह जानते थे क िनमला के पास

पये ह,

वाःतव म थे भी। िनमला ने यह भी नह ं कहा क नह ह या म न दं ग ू ी, उर

उसक बात से ूकट हो यगया क वह दे ना नह ं चाहती। नौ बजे रात तो मुंशीजी ने आकर

मणी से काह- बहन, म जरा

बाहर जा रहा हंू । मेरा बःतर भूंगी से बंधवा दे ना और शं क म कुछ कपड़े रखवाकर ब द कर दे ना ।

मणी भोजन बना रह थीं। बोलीं- बहू तो कमेरे म है , कह



मुंशीजी- म तुमसे कहता हंू , बहू से कहना होता, तो तुमसे



नह दे ते? कहां जाने का इरादा है ? कहाता? आज तुमे

य खाना पका रह हो?

मणी- कौन पकावे? बहू के िसर म दद हो रहा है । आ खरइस व

कहां जा रहे हो? सबेरे न चले जाना।

158

मुंशीजी- इसी तरह टालते-टालते तो आज तीन दन हो गये। इधरइधर घूम-घामकर दे खूं, शायद कह ं िसयाराम का पता िमल जाये। कुछ लोग कहते ह क एक साधु के साथ बात कर रहा था। शायद वह कह ं बहका ले गया हो। मणी- तो लौटोगे कब तक? मुंशीजी- कह नह ं सकता। ह ता भर लग जाये मह ना भर लग जाये। या ठकाना है ?

मणी- आज कौन दन है ? कसी पं डत से पूछ िलया है क नह ं?

मुंशीजी भोजन करने बैठे। िनमला को इस व

उन पर बड़ दया

आयी। उसका सारा बोध शा त हो गया। खुद तो न बोली, ब ची को जगाकर चुमकारती हई ु बोली- दे ख, तेरे बाबूजी कहां जो रहे ह? पूछ तो? ब ची ने

ार से झांककर पूछा- बाबू द , तहां दाते हो?

मुंशीजी- बड़ दरू जाता हंू बेट , तु हारे भैया को खोजने जाता हंू । ब ची ने वह ं से खड़े -खड़े कहा- अम बी तलगे।

मुंशीजी- बड़ दरू जाते ह ब ची, तु हारे वाःते चीज लायगे। यहां



नह ं आती?

ब ची मुःकराकर िछप गयी और एक

ण म फर कवाड़ से िसर

िनकालकर बोली- अम बी तलगे। मुंशीजी ने उसी ःवर म कहा- तुमको नह ले तलगे। ब ची- हमको

य नई ले तलोगे?

मुंशीजी- तुम तो हमारे पास आती नह ं हो।

ु लड़क ठमकती हई ु आकर पता क गोद म बैठ गयी। थोड़ दे र के

िलए मुंशीजी उसक बाल-ब ड़ा म अपनी अ तवदना भूल गये।

भोजन करके मुंशीजी बाहर चले गये। िनमला खडे क़ ताकती रह । कहना चाहती थी- यथ जो रहे हो, पर कह न सकती थी। कुछ

पये िनकाल

कर दे ने का वचार करती थी, पर दे न सकती थी। अंत को न रहा गया,

मणी से बोली- द द जी जरा समझा द जए,

कहां जा रहे ह! मेर जबान पकड़ जायेगी, पर बना बोले रहा नह ं जाता। बना ठकाने कहां खोजगे? यथ क है रानी होगी। मणी ने क णा-सूचक नेऽ से दे खा और अपने कमरे म चली ग । 159

िनमला ब ची को गोद म िलए सोच रह थी क शायद जाने के पहले ब ची को दे खने या मुझसे िमलने के िलए आव, पर उसक आशा वफल हो गई? मुंशीजी ने बःतर उठाया और तांगे पर जा बैठे। उसी व

िनमला का कलेजा मसोसने लगा। उसे ऐसा जान पड़ा क

इनसे भट न होगी। वह अधीर होकर

ार पर आई क मुंशीजी को रोक ले,

पर तांगा चल चुका था।



प चीस न न गुजरने लगे। एक मह ना पूरा िनकल गया, ले कन मुंशीजी न लौटे । कोई खत भी न भेजा। िनमला को अब िन य यह िच ता बनी

रहती क वह लौटकर न आये तो क उन पर

या होगा? उसे इसक िच ता न होती थी

या बीत रह होगी, वह कहां मारे -मारे

फरते ह गे, ःवाः य

कैसा होगा? उसे केवल अपनी औ ंर उससे भी बढ़कर ब ची क िच ता थी। गृहःथी का िनवाह कैसे होगा? ई र कैसे बेड़ा पार लगायगे? ब ची का हाल होगा? उसने कतर- य त करके जो

या

पये जमा कर रखे थे, उसम कुछ-

न-कुछ रोज ह कमी होती जाती थी। िनमला को उसम से एक-एक पैसा िनकालते इतनी अखर होती थी, मानो कोई उसक दे ह से र

हो। झुंझलाकर मुंशीजी को कोसती। लड़क

िनकाल रहा

कसी चीज के िलए रोती, तो उसे

अभािगन, कलमुंह कहकर झ लाती। यह नह ं,

मणी का घर म रहना उसे

ऐसा जान पड़ता था, मानो वह गदन पर सवार है । जब

दय जलता है , तो

वाणी भी अ नमय हो जाती है । िनमला बड़ मधुर-भा षणी

ी थी, पर अब

उसक गणना ककशाओ म क जा सकती थी। दन भर उसके मुख से जलीकट बात िनकला करती थीं। उसके श द क कोमलता न जाने

या हो

गई! भाव म माधुय का कह ं नाम नह ं। भूंगी बहत दन से इस घर मे ु नौकर थी। ःवभाव क सहनशील थी, पर यह आठ पहहर क बकबक उससे

भी न सक गई। एक दन उसने भी घर क राह ली। यहां तक क जस ब ची को ूाण से भी अिधक

यार करती थी, उसक सूरत से भी घृणा हो

गई। बात-बात पर घुड़क पड़ती, कभी-कभी मार बैठती।

मणी रोई हई ु

बािलका को गोद म बैठा लेती और चुमकार-दलार कर चुप करातीं। उस ु

अनाथ के िलए अब यह एक आौय रह गया था। 160

िनमला को अब अगर कुछ अ छा लगता था, तो वह सुधा से बात करना था। वह वहां जाने का अवसर खोजती रहती थी। ब ची को अब वह अपने साथ न ले जाना चाहती थी। पहले जब ब ची को अपने घर सभी चीज खाने को िमलती थीं, तो वह वहां जाकर हं सती-खेलती थी। अब वह ं जाकर उसे भूख लगती थी। िनमला उसे घूर-घूरकर दे खती, मु टठयां-बांधकर धमकाती, पर लड़क भूख क रट लगाना न छोड़ती थी। इसिलए िनमला उसे साथ न ले जाती थी। सुधा के पास बैठकर उसे मालूम होता था आदमी हंू । उतनी दे र के िलए वह िचंताआं से मु

क म

हो जाती थी। जैसे शराबी

शराब के नशे म सार िच ताएं भूल जाता है , उसी तरह िनमला सुधा के घर जाकर सार बात भूल जाती थी। जसने उसे उसके घर पर दे खा हो, वह उसे यहां दे खकर च कत रह जाता। वह ं ककशा, कटु -भा षणी हाःय वनोद

और

माधुय



पुतली

बन

जाती

थी।

ी यहां आकर यौवन-काल

ःवाभा वक वृ यां अपने घर पर राःता ब द पाकर यहां लगती थीं। यहां आते व यथासा य अपनी वप



कलोल करने

वह मांग-चोट , कपड़े -ल े से लैस होकर आती और कथा को मन ह म रखती थी। वह यहां रोने के

िलए नह ं, हं सने के िलए आती थी। पर कदािचत ् उसके भा य म यह सुख भी नह ं बदा था। िनमला

मामली तौर से दोपहर को या तीसरे पहर से सुधा के घर जाया करती थी। एक दन उसका जी इतना ऊबा क सबेरे ह जा पहंु ची। सुधा नद ःनान

करने गई थी, डॉ टर साहब अःपताल जाने के िलए कपड़े पहन रहे थे। महर अपने काम-धंधे म लगी हई ु थी। िनमला अपनी सहे ली के कमरे म

जाकर िन

त बैठ गई। उसने समझा-सुधा कोई काम कर रह होगी, अभी

आती होगी। जब बैठे दो- दन िमनट गुजर गये, तो उसने अलमार

से

तःवीर क एक कताब उतार ली और केश खोल पलंग पर लेटकर िचऽ दे खने लगी। इसी बीच म डॉ टर साहब को

कसी ज रत से िनमला के

कमरे म आना पड़ा। अपनी ऐनक ढंू ढते फरते थे। बेधड़क अ दर चले आये।

िनमला

ार क ओर केश खोले लेट हई ु थी। डॉ टर साहब को दे खते ह

च ककार उठ बैठ और िसर ढांकती हई ु चारपाई से उतकर खड़ हो गई।

डॉ टर साहब ने लौटते हए ु िचक के पास खड़े होकर कहा-

मा करना

िनमला, मुझे मालूम न था क यहां हो! मेर ऐनक मेरे कमरे म नह ं िमल रह है , न जाने कहां उतार कर रख द थी। मने समझा शायद यहां हो। 161

िनमला सने चारपाई के िसरहाने आले पर िनगाह डाली तो ऐनक क ड बया दखाई द । उसने आगे बढ़कर ड बया उतार ली, और िसर झुकाये, दे ह समेटे, संकोच से डॉ टर साहब क ओर हाथ बढ़ाया। डॉ टर साबह ने िनमला को दो-एक बार पहले भी दे खा था, पर इस समय के-से भाव कभी उसके मन म न आये थे। जस

वाजा को वह बरस से

दय म दवाये हए ु

थे, वह आज पवन का झ का पाकर दहक उठ । उ ह ने ऐनक लेने के िलए

हाथ बढ़ाया, तो हाथ कांप रहा था। ऐनक लेकर भी वह बाहर न गये, वह ं

खोए हए ु से खड़े रहे । िनमला ने इस एका त से भयभीत होकर पूछा- सुधा

कह ं गई है

या?

डॉ टर साहब ने िसर झुकाये हए ु जवाब दया- हां, जरा ःनान करने

चली गई ह।

फर भी डॉ टर साहब बाहन न गये। वह ं खड़े रहे । िनमला ने फौ पूछा- कब तक आयेगी? डॉ टर साहब ने िसर झुकाये हुए केहा- आती ह गीं।

फर भी वह बाहर नह ं आये। उनके मन म घारे

मचा हआ था। ु

औिच य का बंधन नह ं, भी ता का क चा तागा उनक जबान को रोके हए ु था। िनमला ने फर कहा- कह ं घूमने-घामने लगी ह गी। म भी इस व

जाती हंू ।

ू गया। नद के कगार पर पहंु च कर भी ता का क चा तागा भी टट

भागती हई ु श ु सेना म अ त

आ जाती है । डॉ टर साहब ने िसर उठाकर

िनमला को दे खा और अनुराग म डबे ू हए ु ःवर म बोले- नह ं, िनमला, अब आती हो ह गी। अभी न जाओ। रोज सुधा क खाितर से बैठती हो, आज मेर

खाितर से बैठो। बताओ, कम तक इस आग म जला क ? स य कहता हंू िनमला...।

िनमला ने कुछ और नह ं सुना। उसे ऐसा जान पड़ा मानो सार पृ वी च कर खा रह है । मानो उसके ूाण पर सहॐ वळ का आघात हो रहा है । उसने ज द से अलगनी पर लटक हई ु चादर उतार ली और बना मुंह से

एक श द िनकाले कमरे से िनकल गई। डॉ टर साहब खिसयाये हए ु -से रोना

मुंह बनाये खड़े रहे ! उसको रोकने क या कुछ कहने क िनमला

यह

ह मत न पड़ ।

ार पर पहंु ची उसने सुधा को तांगे से उतरते दे खा।

सुधा उसे िनमला ने उसे अवसर न दया, तीर क तरह झपटकर चली। सुधा 162

एक

ण तक वःमेय क दशा म खड़ रह ं। बात

कुछ न आ सका। वह क

या है , उसक समझ म

यम हो उठ । ज द से अ दर गई महर से पूछने

या बात हई ु है । वह अपराधी का पता लगायेगी और अगर उसे मालूम

हआ क महर या और कसी नौकर से उसे कोई अपमान-सूचक बात कह ु

द है , तो वह खड़े -खड़े िनकाल दे गी। लपक हई ु वह अपने कमरे म गई।

अ दर कदम रखते ह डॉ टर को मुंह लटकाये चारपाई पर बैठे दे ख। पूछािनमला यहां आई थी?

डॉ टर साहब ने िसर खुजलाते हए ु कहा- हां, आई तो थीं।

सुधा- कसी महर -अहर ने उ ह कुछ कहा तो नह ं? मुझसे बोली तक नह ं, झपटकर िनकल ग । डॉ ट साहब क मुख-का त म जन हो गई, कहा- यहां तो उ ह कसी ने भी कुछ नह ं कहा। सुधा- कसी ने कुछ कहा है । दे खो, म पूछती हंू न, ई र जानता है ,

पता पा जाऊंगी, तो खड़े -खड़े िनकाल दं ग ू ी।

डॉ टर साहब िसट पटाते हए ु बोले- मने तो कसी को कुछ कहते नह ं

सुना। तु ह उ ह ने दे खा न होगा।

सुधा-वाह, दे खा ह न होगा! उसनके सामने तो म तांगे से उतर हंू ।

उ ह ने मेर ओर ताका भी, पर बोलीं कुद नह ं। इस कमरे म आई थी? डॉ टर साहब के ूाण सूखे जा रहे थे। हच कचाते हए ु बोले- आई

य नह ं

थी।

सुधा- तु ह यहां बैठे दे खकर चली गई ह गी। बस, कसी महर ने कुछ

कह दया होगा। नीच जात ह न, कसी को बात करने क तमीज तो है नह ं। अरे , ओ सु द रया, जरा यहां तो आ! डॉ टर- उसे

य बुलाती हो, वह यहां से सीधे दरवाजे क तरफ ग ।

मह रय से बात तक नह ं हई। ु

सुधा- तो फर तु ह ं ने कुछ कह दया होगा।

डॉ टर साहब का कलेजा धक् -धक् करने लगा। बोले- म भला

कह दे ता

या

या ऐसा गंवाह हंू ?

सुधा- तुमने उ ह आते दे खा, तब भी बैठे रह गये?

डॉ टर- म यहां था ह नह ं। बाहर बैठक म अपनी ऐनक ढंू ढ़ता रहा,

जब वहां न िमली, तो मने सोचा, शायद अ दर हो। यहां आया तो उ ह बैठे 163

दे खा। म बाहर जाना चाहता था

क उ ह ने खुद पूछा-

कसी चीज क

ज रत है ? मने कहा- जरा दे खना, यहां मेर ऐनक तो नह ं है । ऐनक इसी िसरहाने वाले ताक पर थी। उ ह ने उठाकर दे द । बस इतनी ह बात हई। ु सुधा- बस, तु ह ऐनक दे ते ह वह झ लाई बाहर चली गई?

य?

डॉ टर- झ लाई हई ु तो नह ं चली गई। जाने लगीं, तो मने कहा-

बै ठए वह आती ह गी। न बैठ ं तो म

या करता?

सुधा ने कुछ सोचकर कहा- बात कुछ समझ म नह ं आती, म जरा

उसके पास जाती हंू । दे ख,ूं या बात है ।

डॉ टर-तो चली जाना ऐसी ज द

या है । सारा दन तो पड़ा हआ है । ु

सुधा ने चादर ओढते हऐ ु कहा- मेरे पेट म खलबली माची हई ु है , कहते

हो ज द है ?

सुधा तेजी से कदम बढ़ती हई ु िनमला के घर क ओर चली और पांच

िमनट म जा पहंु ची? दे खा तो िनमला अपने कमरे म चारपाई पर पड़ रो

रह थी और ब ची उसके पास खड़ रह थी- अ मां, य लोती हो?

सुधा ने लड़क को गोद मे उठा िलया और िनमला से बोली-ब हन, सच बताओ, या बात है ? मेरे यहां कसी ने तु ह कुछ कहा है ? म सबसे पूछ चुक , कोई नह ं बतलाता। िनमला आंसू प छती हई ु बोली- कसी ने कुछ कहा नह ं ब हन, भला

वहां मुझे कौन कुछ कहता?

सुधा- तो फर मुझसे बोली

य नह ं ओर आते-ह -आते रोने लगीं?

िनमला- अपने नसीब को रो रह हंू , और

या।

सुधा- तुम य न बतलाओगी, तो म कसम दं ग ू ी।

िनमला- कसम-कसम न रखाना भाई, मुझे कसी ने कुछ नह ं कहा, झूठ कसे लगा दं ?ू

सुधा- खाओ मेर कसम।

िनमला- तुम तो नाहक ह

जद करती हो।

सुधा- अगर तुमने न बताया िनमला, तो म समझूंगी, तु ह जरा भी ूेम नह ं है । बस, सब जबानी जमा- खच है । म तुमसे कसी बात का पदा नह ं रखती और तुम मुझे गैर समझती हो। तु हारे ऊपर मुझे बड़ा भरोसा थ। अब जान गई क कोई कसी का नह ं होता। 164

सुधा क ं आंख सजल हो गई। उसने ब ची को गोद से उतार िलया और

ार क ओर चली। िनमला ने उठाकर उसका हाथ पकड़ िलया और

रोती हई ु होगा ु बोली- सुधा, म तु हारे पैर पड़ती हंू , मत पूछो। सुनकर दख और शायद म फर तु ह अपना मुंह न दखा सकूं। म अभिगनी ने होती, तो

यह दन ह

य दे खती? अब तो ई र से यह ूाथना है क संसार से मुझे

उठा ले। अभी यह दगित हो रह है , तो आगे न जाने ु

या होगा?

इन श द म जो संकेत था, वह बु मती सुधा से िछपा न रह सका।

वह समझ गई क डॉ टर साहब ने कुछ छे ड़-छाड़ क है । उनका हचकहचककर बात करना और उसके ू

को टालना, उनक वह

लािनमये,

कांितह न मुिा उसे याद आ गई। वह िसर से पांव तक कांप उठ और बना कुछ कहे -सुने िसंहनी क भांित बोध से भर हई ु

ार क ओर चली। िनमला

ने उसे रोकना चाहा, पर न पा सक । दे खते-दे खते वह सड़क पर आ गई और घर क ओर चली। तब िनमला वह ं भूिम पर बैठ गई और फूट-फूटकर रोने लगी। छ बीस िनमला दन भर चारपाई पर पड़ रह । मालूम होता है , उसक दे ह म ूाण

नह ं है । न ःनान कया, न भोजन करने उठ । सं या समय उसे आया। रात भर दे ह तवे क भांित तपती रह । दसरे दन ू

वर हो

वर न उतरा। हां,

कुछ-कुछ कमे हो गया था। वह चारपाई पर लेट हई ु िन ल नेऽ से

ार क

ओर ताक रह थी। चार ओर शू य था, अ दर भी शू य बाहर भी शू य कोई िच ता न थी, न कोई ःमृित, न कोई द:ु ख, म ःतंक म ःप दन क श



न रह थी।

सहसा िनमला ने पूछा-

मणी ब ची को गोद म िलये हए ु आकर खड़ हो गई। या यह बहत ु रोती थी?

मणी- नह ं, यह तो िससक तक नह ं। रात भर चुपचाप पड़ रह , सुधा ने थोड़ा-सा दध ू भेज दया था।

िनमला- अह रन दध ू न दे गई थी?

है ?

मणी- कहती थी, पछले पैसे दे दो, तो दं ।ू तु हारा जी अब कैसा

165

िनमला- मुझे कुछ नह ं हआ है ? कल दे ह गरम हो गई थीं। ु मणी- डॉ टर साहब का बुरा हाल है ?

िनमला ने घबराकर पूछा-

या हआ ु , या? कुशल से है न?

मणी- कुशल से ह क लाश उठाने क तैयार हो रह है ! कोई कहता है , जहर खा िलया था, कोई कहता है , दल का चलना ब द हो गया था। भगवान ् जाने

या हआ था। ु

भगवान ्! सुधा क

या गित होगी! कैसे जयेगी?

िनमला ने एक ठ ड सांस ली और

ं धे हए ु कंठ से बोली- हाया

यह कहते-कहते वह रो पड़ और बड़ दे र तक िससकती रह । तब बड़

मु ँकल से उठकर सुधा के पास जाने को तैयार हई ु पांव थर-थर कांप रहे

थे, द वार थामे खड़ थी, पर जी न मानता था। न जाने सुधा ने यहां से

जाकर पित से बात का वह

या कहा? मने तो उससे कुछ कहा भी नह ं, न जाने मेर या मतलब समझी? हाय! ऐसे

पवान ् दयालु, ऐसे सुशील

ूाणी का यह अ त! अगर िनमला को मालूम होत क उसके बोध का यह

भीषण प रणाम होगा, तो वह जहर का घूंट पीकर भी उस बात को हं सी म उड़ा दे ती। यह सोचकर क मेर ह िन ु रता के कारण डॉ टर साहब का यह हाल हआ ु , िनमला के

ु दय के टकड़े होने लगे। ऐसी वेदना होने लगी, मानो

दय

म शूल उठ रहा हो। वह डॉ टर साहब के घर चली। लाश उठ चुक थी। बाहर स नाटा छाया हआ था। घर म ु

ीयां जमा

थीं। सुधा जमीन पर बैठ रो रह थी। िनमला को दे खते ह वह जोर से

िच लाकर रो पड़ और आकर उसक छाती से िलपट गई। दोन दे र तके रोती रह ं। यह

जब औरत क भीड़ कम हई ु और एका त हो गया, िनमला ने पूछा-

या हो गया ब हन, तुमने

या कह दया?

सुधा अपने मन को इसी ू उसक मन

का उ र कतनी ह बार दे चुक थी।

जस उ र से शांत हो गया था, वह उ र उसने िनमला को

दया। बोली- चुप भी तो न रह सकती थी ब हन, बोध क बात पर बोध आती ह है । िनमला- मने तो तुमसे कोई ऐसी बात भी न कह थी। 166

सुधा- तुम कैसे कहती, कह ह नह ं सकती थीं, ले कन उ ह ने जो बात हई ु थी, वह कह द थी। उस पर मने जो कुद मुंह म आया, कहा। जब एक

बात दल म आ गई,तो उसे हआ ह समझना चा हये। अवसर और घात ु

िमले, तो वह अवँय ह पूर हो। यह कहकर कोई नह ं िनकल सकता क मने तो हं सी क थी। एका त म एसा श द जबान पर लाना ह कह दे ता है

क नीयत बुर थी। मने तुमसे कभी कहा नह ं ब हन, ले कन मने उ ह कई बात तु हार ओर झांकते दे खा। उस व

मुझे धोखा हो रहा हो। अब मालूम हआ ु

मतलब था! अगर मने दिनया ु

मने भी यह समझा क शायद क उसक ताक-झांक का

या

यादा दे खी होती, तो तु ह अपने घर न आने

दे ती। कम-से-कम तुम पर उनक िनगाह कभी ने पड़ने दे ती, ले कन यह

या

जानती थी क पु ष के मुंह म कुछ और मन म कुछ और होता है । ई र को जो मंजरू था, वह हआ। ऐसे सौभा य से म वैध य को बुर नह ं समझती। ु

द रि ूाणी उस धनी से कह ं सुखी है , जसे उसका धन सांप बनकर काटने दौड़े । उपवास कर लेना आसान है , वषैला भोजन करन उससे कह ं मुं ँकल । इसी व

डॉ टर िस हा के छोटे भाई और कृ ंणा ने घर म ूवेश

कया। घर म कोहराम मच गया।



स ाईस क मह ना और गुजर गया। सुधा अपने दे वर के साथ तीसरे ह

दन

चली गई। अब िनमला अकेली थी। पहले हं स-बोलकर जी बहला िलया

करती थी। अब रोना ह एक काम रह गया। उसका ःवाःथय

दन- दन

बगडे क़ता गया। पुराने मकान का कराया अिधक था। दसरा मकान थोड़े ू

कराये का िलया, यह तंग गली म था। अ दर एक कमरा था और छोटा-सा

आंगन। न ूकाशा जाता, न वायु। दग ु ध उड़ा करती थी। भोजन का यह

हाल क पैसे रहते हये ु भी कभी-कभी उपवास करना पड़ता था। बाजार से

जाये कौन? फर अपना कोई मद नह ं, कोई लड़का नह ं, तो रोज भोजन बनाने का क ह

कौन उठाये? औरत के िलये रोज भोजन करे न क आवँयका

या? अगर एक व

खा िलया, तो दो दन के िलये छु ट हो गई। ब ची

के िलए ताजा हलुआ या रो टयां बन जाती थी! ऐसी दशा म ःवाः य



न बगड़ता? िच त, शोक, दरवःथा , एक हो तो कोई कहे । यहां तो ऽयताप का ु 167

धावा था। उस पर िनमला ने दवा खाने क कसम खा ली थी। करती ह या? उन थोड़े -से

पय म दवा क गुज ं ाइश कहां थी? जहां भोजन का

ठकाना न था, वहां दवा का जब ह

या? दन- दन सूखती चली जाती

थी। एक दन

मणी ने कहा- बहु, इस तरक कब तक घुला करोगी, जी

ह से तो जहान है । चलो, कसी वै िनमला ने वर

मर जाना ह अ छा।

को दखा लाऊं।

भाव से कहा- जसे रोने के िलए जीना हो, उसका

मणी- बुलाने से तो मौत नह ं आती? िनमला- मौत तो

बन बुलाए आती है , बुलाने म

य न आयेगी?

उसके आने म बहत दन लगगे ब हन, जै दन चलती हंू , उतने साल समझ ु

ली जए।

दे खा है ?

मणी- दल ऐसा छोटा मत करो बहू, अभी संसार का सुख ह

या

िनमला- अगर संसार क यह सुख है , जो इतने दन से दे ख रह हंू ,

तो उससे जी भर गया। सच कहती हंू ब हन, इस ब ची का मोह मुझे बांधे हए ु है , नह ं तो अब तक कभी क चली गई होती। न जाने इस बेचार के

भा य म

या िलखा है ?

दोन म हलाएं रोने लगीं। इधर जब से िनमला ने चारपाई पकड़ ली है , मणी के

दय म दया का सोता-सा खुल गया है ।

े ष का लेश भी नह ं

रहा। कोई काम करती ह , िनमला क आवाज सुनते ह दौड़ती ह। घ ट

उसके पास कथा-पुराण सुनाया करती ह। कोई ऐसी चीज पकाना चाहती ह, जसे िनमला

िच से खाये। िनमला को कभी हं सते दे ख लेती ह, तो िनहाल

हो जाती है और ब ची को तो अपने गले का हार बनाये रहती ह। उसी क नींद सोती ह, उसी क नींद जागती ह। वह बािलका अब उसके जीवन का आधार है । मणी ने जरा दे र बाद कहा- बहू, तुम इतनी िनराश

य होती हो?

भगवान ् चाहगे, तो तुम दो-चार दन म अ छ हो जाओगी। मेरे साथ आज वै जी के पास चला। बड़े स जन ह।

िनमला- द द जी, अब मुझे कसी वै , हक म क दवा फायदा न करे गी। आप मेर िच ता न कर। ब ची को आपक गोद म छोड़े जाती हंू । अगर 168

जीती-जागती रहे , तो कसी अ छे कुल म ववाह कर द जयेगा। म तो इसके िलये अपने जीवन म कुछ न कर सक , केवल ज म दे ने भर क अपरािधनी हंू । चाहे

वांर र खयेगा, चाहे वष दे कर मार डािलएग, पर कुपाऽ के गले न

म ढ़एगा, इतनी ह आपसे मेर

वनय है । मन आपक कुछ सेवा न क ,

इसका बड़ा द:ु ख हो रहा है । मुझ अभािगनी से कसी को सुख नह ं िमला।

जस पर मेर छाया भी पड़ गई, उसका सवनाश हो गया अगर ःवामीजी

कभी घर आव, तो उनसे क हएगा क इस करम-जली के अपराध

मा कर

द।

मणी रोती हई ु बोली- बहू, तु हारा कोई अपराध नह ं ई र से

कहती हंू , तु हार ओर से मेरे मन म जरा भी मैल नह ं है । हां, मने सदै व

तु हारे साथ कपट कया, इसका मुझे मरते दम तक द:ु ख रहे गा।

िनमला ने कातर नेऽ से दे खते हये ु केहा- द द जी, कहने क बात नह ं,

पर बना कहे रहा नह ं जात। ःवामीजी ने हमेशा मुझे अ व ास क

से

दे खा, ले कन मने कभी मन मे भी उनक उपे ा नह ं क । जो होना था, वह तो हो ह चुका था। अधम करके अपना परलोक



बगाड़ती?

म न जाने कौन-सा पाप कया था, जसका वह ूाय

पूव ज म

त करना पड़ा। इस

ज म म कांटे बोती, तोत कौन गित होती? िनमला क सांस बड़े वेग से चलने लगी, फर ब ची क ओर एक ऐसी वम कथा क वृह

खाट पर लेट गई और

से दे खा, जो उसके च रऽ जीवन क संपूण

आलोचना थी, वाणी म इतनी साम य कहा?

तीन दन तक िनमला क आंख से आंसुओं क धारा बहती रह । वह

न कसी से बोलती थी, न कसी क ओर दे खती थी और न कसी का कुछ सुनती थी। बस, रोये चली जाती थी। उस वेदना का कौन अनुमान कर सकता है ? चौथे दन सं या समय वह वप

कथा समा

हो गई। उसी समय

जब पशु-प ी अपने-अपने बसेरे को लौट रहे थे, िनमला का ूाण-प ी भी दन भर िशका रय के िनशान , िशकार िच ड़य के पंज और वायु के ूचंड झ क से आहत और यिथत अपने बसेरे क ओर उड़ गया। मुह ले के लोग जमा हो गये। लाश बाहर िनकाली गई। कौन दाह करे गा, यह ू

उठा। लोग इसी िच ता म थे क सहसा एक बूढ़ा पिथक एक

बकुचा लटकाये आकर खड़ा हो गया। यह मुंशी तोताराम थे। 169

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