Meena Kumari _gazals

  • June 2020
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  • Words: 1,054
  • Pages: 10
आगाज़ तो होता है अंजाम नहं होता / मीना कुमार आगाज़ तॊ होता है अंजाम नहं होता जब मेर कहानी म वॊ नाम नहं होता जब ज़ुफ़ क कालख़ म घल ु जाए कोई राह बदनाम सह ले#कन गम ु नाम नहं हॊता हँस- हँस के जवां %दल के हम &य( न चुन टुकडे हर श./ क #क0मत म ईनाम नहं होता बहते हुए आँसू ने आँखॊं से कहा थम कर जो मय से 4पघल जाए वॊ जाम नहं होता %दन डूबे ह6 या डूबे बारात लये क7ती सा%हल पे मगर कोई कोहराम नहं होता



आबलापा कोई इस द7त म आया होगा / मीना कुमार आबलापा कोई इस द7त म आया होगा| वना: आँधी म %दया #कस ने जलाया होगा| ज़र< ज़र< पे जड़े ह(गे कँु वारे स>दे , एक एक बत ु को ख़ुदा उस ने बनाया होगा| @यास जलते हुये काँट( क बझ ु ाई होगी, Bरसते पानी को हाथेल पे सजाया होगा| मल गया होगा अगर कोई सन ु हर पCथर, अपना टूटा हुआ %दल याद तो आया होगा| ख़ून के छEंटे कहं पोछ न ल रे F( से, #कस ने वीराने को गल ु ज़ार बनाया होगा|

चांद तGहा है आसमां तGहा / मीना कुमार चाँद तGहा है आसमां तGहा, %दल मला है कहाँ-कहाँ तGहा बुझ गई आस, छुप गया तारा, थरथराता रहा धआ ु ँ तGहा िजंदगी &या इसी को कहते ह6, िज0म तGहा है और जाँ तGहा हमसफ़र कोई गर मले भी कभी, दोन( चलते रह कहाँ तGहा जलती-बुझती-सी रोशनी के परे , समटा-समटा-सा एक मकां तGहा राह दे खा करे गा स%दयॊं तक छोड़ जायगे यह जहाँ तGहा.

टुकड़े-टुकड़े %दन बीता, बीता ध>जी-ध>जी ध>जी ध>जी रात मल / मीना कुमार टुकड़े-टुकड़े %दन बीता, ध>जी-ध>जी रात मल िजसका िजतना आँचल था, उतनी ह सौगात मल BरमLझम-BरमLझम बँद ू ( म , ज़हर भी है और अमत ृ भी आँख हँ स दं %दल रोया, यह अNछE बरसात मल जब चाहा %दल को समझ, हँ सने क आवाज़ सुनी जैसे कोई कहता हो, ले #फर तुझको मात मल मात कैसी घात &या, चलते रहना आठ पहर %दल-सा साथी जब पाया, बेचन ै ी भी साथ मल ह(ठ( तक आते आते, जाने #कतने Qप भरे जलती-बुझती आँख( म , सादा-सी जो बात मल

%दन गुज़रता नहं आता / मीना कुमार %दन गुज़रता नहं आता रात काटे से भी नहं कटती रात और %दन के इस तसलसुल म उR बांटे से भी नह बंटती अकेलेपन के अGधेर म दरू दरू तलक यह एक ख़ौफ़ जी पे धआ ुँ बनके छाया है #फसल के आँख से यह छन 4पघल न जाए कहं पलक पलक ने िजसे राह से उठाया है शाम का उदास सGनाटा धध ुं लका, दे ख, बड़ जाता है नहं मालूम यह धआ ुं &य( है %दल तो ख़श ु है #क जलता जाता है तेर आवाज़ म तारे से &य( चमकने लगे #कसक आँख( क तरGनुम को चरु ा लाई है #कसक आग़ोश क ठं डक पे है डाका डाला #कसक बांह( से तू शबनम उठा लाई है

पूछते हो तो सन ु ो कैसे बसर होती है / मीना कुमार पछ ू ते हो तो सन ु ो, कैसे बसर होती है रात ख़ैरात क, सदक़े क सहर होती है साँस भरने को तो जीना नहं कहते या रब %दल ह दख ु ता है , न अब आ0तीं तर होती है जैसे जागी हुई आँख( म , चुभ काँच के Uवाब रात इस तरह, दवान( क बसर होती है ग़म ह द7ु मन है मेरा, ग़म ह को %दल ढूँढता है एक लWहे क जुदाई भी अगर होती है एक मक:ज़ क तलाश, एक भटकती ख़ुशबू कभी मंिज़ल, कभी तWहदे -सफ़र होती है %दल से अनमोल नगीने को छुपाय तो कहाँ बाBरशे-संग यहाँ आठ पहर होती है काम आते ह6 न आ सकते ह6 बे-जाँ अफ़ाज़ तज:मा दद: क ख़ामोश नज़र होती है .

मह ु Xबत बहार क फूल( क तरह / मीना कुमार मुहXबत बहार क फूल( क तरह मुझे अपने िज0म के रोएं रोएं से फूटती मालूम हो रह है मुझे अपने आप पर एक ऐसे बजरे का गुमान हो रहा है िजसके रे शमी बादबान तने हुए ह( और िजसे पुरअसरार हवाओं के झ(के आ%ह0ता आ%ह0ता दरू दरू पुर सुकून झील( रौशन पहाड़( और फूल( से ढके हुए गुमनाम ज़ंजीर( क तरफ लये जा रहे ह( वह और म6 जब ख़ामोश हो जाते ह6 तो हम अपने अनकहे , अनसुने अफ़ाज़ म जुगनुओं क मा[नंद रह रहकर चमकते %दखाई दे ते ह6 हमार गु\तगू क ज़बान वह है जो दरUत(, फूल(, सतार( और आबशार( क है यह घने जंगल और तारक रात क ग\ ु तगू है जो %दन [नकलने पर अपने पीछे रौशनी और शबनम के आँसु छोड़ जाती है , महबब ू आह मुहXबत!

मेरा माज़ी / मीना कुमार मेरा माज़ी मेर तGहाई का ये अंधा शगाफ़ ये के सांस( क तरह मेरे साथ चलता रहा जो मेर नXज़ क मा[नGद मेरे साथ िजया िजसको आते हुए जाते हुए बेशम ु ार लWहे अपनी संगलाख़ उं गलय( से गहरा करते रहे , करते गये #कसी क ओक पा लेने को लहू बहता रहा #कसी को हम-नफ़स कहने क जु0तज ु ू म रहा कोई तो हो जो बेसाUता इसको पहचाने तड़प के पलटे , अचानक इसे पक ु ार उठे मेरे हम-शाख़ मेरे हम-शाख़ मेर उदासय( के %ह0सेदार मेरे अधरू े पन के दो0त तमाम ज़.म जो तेरे ह6 मेरे दद: तमाम तेर कराह का Bर7ता है मेर आह( से तू एक मि0जद-ए-वीरां है , म6 तेर अज़ान अज़ान जो अपनी ह वीरानगी से टकरा कर थक छुपी हुई बेवा ज़मीं के दामन पर पढ़े नमाज़ ख़ुदा जाने #कसको सजदा करे

म6 जो रा0ते पे चल पड़ी / मीना कुमार म6 जो रा0ते पे चल पड़ी मझ ु े मं%दर( ने द [नदा मझ ु े मि0जद( ने द सज़ा म6 जो रा0ते पे चल पड़ी मेर साँस भी ^कती नहं मेरे पाँव भी थमते नहं मेर आह भी _गरती नहं मेरे हात जो बड़ते नहं #क म6 रा0ते पे चल पड़ी यह जो ज़Uम #क भरते नहं यह ग़म ह6 जो मरते नहं इनसे मल मुझको क़ज़ा मुझे सा%हल( ने द सज़ा #क म6 रा0ते पे चल पड़ी सभी क आँख सख़ ु : ह6 सभी के चेहरे ज़द: ह6 &य( न&शे पा आएं नज़र यह तो रा0ते क ग़द: ह6 मेरा दद: कुछ ऐसे बहा मेरा दम ह कुछ ऐसे ^का म6 #क रा0ते पे चल पड़ी

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