Maithili - Begarta

  • November 2019
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बेगरता  “हौ बरहम बाबा, हमरो करा द’ िवयाह” के गाना गबैत गबैत जखन पूरा थािक चुकल छल ह, तखने बरहम बाबा के सुिझ पड़लिन जे आब नेना के बेसी परे शान निह करबाक चाही। जखन बरहम बाबा के खुशी तब कोन बाधा। से हमर िवयाह तय भ’ गेल। पता निह कोन खुशी अंदरे -अंदर मोन के

फुि लत करय लागल। घुिर िफर दस बेर घर फोन क’ पापा से, माँ से,

छोट भाई से बात के लअए जे ई सपना त’ निह थीक। आह! ई त’ स े हमर िववाह ठीक भ’ गेल। जानी निह, मोन कोन तरं ग म तरं िगत होमय लागल। किहयो माँ से पिु छए जे केहन छै क क या दे खय म त’

किहयो हुनक बोली-वाणी के बारे म टे िबअए जे माँ िक कहै त अिछ। कनेक लाजो होय आ कनेक िज ासा सेहो होय। किहयो अपना के सँभारे के को शश किरअए जे एना पुछब त’

माँ िक कहत आ फेर कनेक काल म वैह ि थित जे होमय बाली क या के बारे म सभटा िज ासा मँुह पर

लाज मि त भ’ के आिब जाय। बहुत को शश कयला पर एतबे पता चलल जे क या सुशील आ सुभािषनी छिथ ह। 

   सुशील छै थ से त’ िववाहक बाद जीवन िनवाह म सहायक आ एकटा गुण, मुदा हुनक सुभािषनी भेनाय हमरा मोन के बेचैन करय लागल जे एक्के बेर किनयो जे हुनक बोली कान म प ड़ जेतय त’ हमहुँ सँतु भ’ जेत । क पना म एक-द ु िदन बीतल। हुनक का पिनक बोली मोन के अंदरे -अंदर गुदगुदा के च ल जाय। एिह य त जीवन म जे ाणी के ेम के पिरभाषा निह बुझल ओकरा िव ापित के चौमासा आ बारहमासा सब म अि तीय रस बुझा पड़ल। ेम के ठे कान निह, िवयोग सताबय लागल। िक भ’ गेल हमरा से बझ ु ल निह। किहयो एहन लाग’ लागय जे हुनक फोन आयल छै क आ ओ पिु छ रहल छिथ जे राजीव के छिथ ह, हुनका से बात करबा के अिछ। मोन आ ािदत भ’ जायत छल। कथा ठीक भेला के चािर िदनक बाद हमर

छोट भाई फोन केलक जे “अहाँ हुनका से बात िकएक निह क’ रहल छी, से ओ लड़की भ’ के अहाँ के कोना फोन करती। ओ कहै त रहिथन जे अहाँ के भैया के हमरा से बात करय के मोन निह छै ह की?” आह! किट के द ु फाँक होमय लागल हमर दय, जे हमर ि या हमरा लेल बेचैन छै थ आ हमरा िनठाह नीरस मनुक्ख जेकरा एकर पिरवाह निह। दरु जो, हमहुँ ई बुिझ निह सकल जे वो हमर भावी प ी थीक आ हुनके संगे जीवनक िनवाह केनाय अिछ हमरा। ज बात करय के िह मत निह प ड़ रहल अिछ त’

िजनगी कोना काटब। िह मत कएल जे आय फोन करबय अपन होमय वाली अधािगंनी के। फेर डर भेल

जे माँ आ पापा की कहिथन। सभ टा िह मत ठामिह घुसिर गेल आ पिहने पापा से हरी झंडी के जुगार म लािग गेल ।

खख स के त’

निहए बािज सकैत छ लअए जे हमरा अपन होमय बाली प ी से बात करय के इ छा अिछ,

तखन घुमा के

पुछ लएन जे “पापा अहाँ बात केने छ लएक की क या से?”। ओ सोझे कहलिखन जे हाँ, ब ड बेस, सब सँ बातचीत करय म, मान दे बय म, कोनो िदक्कत हुनका निह बझ ु ा पड़लिन। आब हम बात आगाँ कोना बढ़ाबी? 

   हम – “हमरा हुनक मोबाइल न बर चाही छल।”  पापा – “की बात से?”  हम – “........”  पापा – “िकछु पूछबा के छलौ की?” 

हम – “ह म...हाँ......निह, पुछबा के त’ िकछु निह छल। बस न बर लेबाक छल।“ 

पापा – “हमरा लग त’ हुनक माँ के मोबाइल न बर अिछ, ज चाही त’ एकरे लखा दै त िछयौक। ओना िक पुछय के छलौह तोरा?”  हम (घबराबैत) - “निह, हमरा की पछ ु य के रहत, बस...ओनाही न बर रहय के चाही।” 

   तखने पापा के की फुरे लिन से निह बुझी, लेिकन वो माँ के हाँक दै त कहलिखन जे “दे िखयौ त’ राजीव की किह रहल अिछ”

आ ओ म मी के फोन धरा क’

ओतबे पैरवी के ज रत छलय। 

च ल गेलिखन। हमरा बुझायल जे हमर धरायल ग ा छुटल आ उसाँस भेल। आब म मी से

  म मी – “िक भेलओ तोरा, िक पुछय छलही किनया के िवषय म पापा से?” 

हम – “कहाँ िकछ, खाली फोन न बर माँगने छ लएन हुनका से...”  म मी – “िकनकर फोन न बर?”  हम – “हुनकर घरक फोन न बर तोरा बुझल छौ?”  म मी – “फोन न बर त’ छिहए, लेिकन तोरा कोनो बात आ िक शंका...िक बात करय के छौ?”  हम (लजायत) - “बात की रहतय, ओ छोटका (भाई) कहय छलइ जे हुनका हमरा से ग पक सेहनता, त पुछ लयौ...जे िक करी हम। बात करी की निह करी?”  म मी – “अरौ छौड़ा, अखन स ाँतो निह भेलए य’ आ त बात करय लेल धरफड़ायल छी”  हम – “निह, ओ त’ ओनाही कह लयौ...जे हुनकर मोन छै ह त’...”  म मी – “आ तोहर मोन िक कहै त छौ?” 

   एतबा बािज म मी के हँ सी लािग गेलय आ हमर खुशामद शु

भ’ गेल, जे हमरा बात करय दे हुनका सँ।  

   म मी – “तोरे किनया छथु ह, पुिछ के दे खही, जे हुनका ग प करय म आपि छलही” 

निह त’ बात कर, एिह म पापा से िक पुछय

   बुझायल जेना िपंजड़ा के कोनो तार टूिट गेल होय आ िदन भिर िपंजड़ा म भागय के सपना दे खैत ए हर से ओ हर चक्कर काटय बला सु गा के खुजल आकाश म उड़य के र ता भेट गेल होय। उ साह आ उ ेजना म साँस तेज भ’

गेल छल।

दप ु हिरया से साँझ इंतजार म आ इ दिु वधा म कटल जे कोन समय बात केनाय उिचत रहतय। कखनो होय जे अखने बात क’

ली,

फेर होय जे निह राित म वो असगर रहती तखन बात करब। राित के इंतजार िवकट बुझायल आ सांझ के राित

बिु झ फोन के लएन। इ हुनक माँ के मोबाइल न बर छलै ह से आशा छल जे हुनक माँ उठे ती हमर कॉल के। मोन म दस तरह के गणना करै त जे िक कहबय आ िक निह आ कॉल केल । िरंगक आवाज सँगे िदलक धड़कन सेहो बिढ़ गेल। ओ हर माँ जी के बदले ओ अपने फोन उठे लेथ। ए हर हमर करे जा धकधकाएत जे कोना की किहअए,

आ ओ हर हमर नाम ओ

मोबाइल म पिहने से जोिग लेने छलिखन। से “िचड़ै के जान जाय, नेना के िखलौना” बला पिर भ’ गेल। हमर सभटा गणना फेल भ’ गेल आ मँह ु म बकार निह। ओ हर हुनको िकछु बाजय म निह बनलैन जे िक बाजी। बुझु जे कनेक दे र ल’ नेटवक गायब भ’ गेल होय, मोबाइल के त’ निह पर हमरा सभक। एिह तं ा के तोड़ैत हम बाज लएन-  ”हम बंगलौर से राजीव रं जन लाल बािज रहल छी, हमरा अहाँक माँ से बात करबा के छल।”  “माँ स’”, ओ आ

य होयत कहली। 

”हाँ, माँ जी स’” – हमर सभटा गणना त’ माँ से बातक शु आत करय के छलैक, से अपने मोने ई बात मँह ु पर आिब गेलय।

”म मी, ये तुमसे बात करना चाहत ह” – ओ िह दी म बाजली माँ स’। 

”हम क्या बात करगे, फोन तम ु से बात करने के लए िकए ह” – हमरा पाछाँ से माँ के आवाज



सन ु ायी पड़ल। 

”लो ना, तुम बात कर के दे खो, शायद कुछ पूछना हो तुमसे...तुम फोन लो” – ई कहै त ओ फोन माँ के द’ दे ने छलिखन। 

”गोर लागय िछये ह माँ जी” – हमरा मुँह से बहरायल। माँ जी से बात करय म कनेक बेसी सहज छलहुँ आ अपन तेज होयत धड़कन के कनेक था ह दे लअए। 

”आयु मान होउ, िचरँजीवी होउ, दीघायु होउ, सदा सुखी रहु बेटा...की हाल-चाल...कहु ना की कहबा के छल?” – एक्के ठाम ओ एते बात किह दे लैथ।  आब हमर लाज कने कने िवला गेल छल आ कनेक से ग प क’ सकैत छी”।  पिहने एकटा खामोशी, कोनो आपि

निह बेटा,

फेर ओ पुछली –

ढ़ता आिब गेल छलय य’ बात करय म, से हम पुछ लएन “हम हुनका

“अहाँ अपन पापा से पुछ लएन एिह िवषय म...ओ केना की सोचैत छिथ। हमरा

लेिकन अपन सभक समाज त’

से अपन पापा-म मी से सलाह क’

अहाँके बुझले अिछ...नव कथा आ कांच मािटक बरतन एक्के जकाँ,

लयौक। बाद-बाँकी त’ बेटा एिह िदन ल’ हम कते कबल ु ा गछने छी जे अपन धी जमाय

के खुशी खुशी संग रहै त दे खी। हमर त’ सभ मनोकामना पूण होमय जा रहल अिछ।” 

माँ जी के िचंता

वाभािवक छल आ हमरो हुनक बात से नीक अनुमान भेल अपन सं कृित आ सं कार के। पापा फेर से िनि ते छल मद बीच म आिब गेल छलैथ। पापा से अनम ु ा हमरा अपन मँह ु से अनम ु ित माँगनाय असंभव ु ित भेटनाय त’ काज बुझायल। से हम चटे माँ जी के कह लएन - 

”हम पपे से न बर लेने रिहएक, मुदा म मी से एिह िवषय म बात भेल, जे हमरा हुनका से ग प करय के अिछ। म मी ई बात पापा के किह दे ने हे तैक अखन धिर।“  हुनक माँ िनि त ं होयत बाजली – “हम अहाँ सभ के बहुत समय लेल , अहाँ सभ बात क ।” ई कहै त ओ ओतय से च ल गेली आ फोन हुनक हाथ म छलै ह आब।  हम – “एकटा अनजान िर ता से शु क’ रहल छी से हमर पिहल नम कार वीकार क , ई नम कार शायद आिखरी हे तक ै अपना दन ु ु के बीच।” 

हुनका िकछु निह फुरे लिन जे की जवाब दे ती, हुनक व नो म निह छलै ह जे ग पक शु आत एना हे तैक। हुनका धारणा छलै ह जे हम बंगलौर म रहय बला हाय-हे लो से शु आत करबय, से नम कार के जवाब म ओ गु म छलैथ।   हम –

“हमरा बझ ु ल निह जे हम अहाँ से कोना बात करी वा एकरा कोना आगाँ बढ़ाबी,

अहाँ से हम मैिथली म बात करी की िह दी म।” 

लेिकन हमरा ई पछ ु बा के छल जे

हुनका ई भनक छलै ह जे हमरा मैिथली नीक लागैत छै क से वो कहली  “आय धिर मैिथली बेसी बाजय के मौका त’ निह भेटल, से मैिथली ओते नीक निह, तखन हम को शश करय लेल चाहै त छी...ज गलत बाजी त’ अहाँ के सही करय पड़त।”  ई पिहल लेखे...



वाक्य छल जे हमर कान म गेल आ हम मु ध भ’

ा, िव ास, समपण,

वाक्य ख म होयत कह लएन- 

गेल । एिह वाक्य म कतेको भाव िछपल छल हमरा

यास, सं कार, ल जा....सभ िकछु त’ रहबे करय। ओतबे नीक मैिथली के टहँ कार जे हम

”अहाँ के मैिथली मिथला म रचल बसल सं कार के पिरचायक अिछ, छै क जे पिढ़ के सीखल गेल अिछ। हमर मैिथली म भाव निह, श द मा

वाभािवक अिछ...हमर मैिथली त’ टँ गटू ा मैिथली

अिछ। अहाँ केर मैिथली सुिन के हमरा मोन िनचैन

भ’ गेल िक हम ज अहाँ से मैिथली म बाजी त’ हम ध य होयब आ एिह से अहाँ से हमर आ ह रहत जे हम सब मैिथली म बाजी।” आगाँ ओही म जोड़ लअए   “घर सँ बाहर त’ मैिथली के साफे चलन निह से ज हम अहाँ से मैिथली म निह बािज सकल त’ हमर मैिथलीक सेहनता हमरा अंदरे मिर जायत,

ऊहो ई जािन के जे हमर प ी के हमरा से बेसी नीक मैिथली आबैत छि ह। तखनो अहाँक िवचार,

कोनो िनणय सोिच के लेब आ जािह म खुशी होय से कहब। हमर शौक हमर िज

निह थीक।” 

“ज र बाजब, निहयो आयत त’ हम सीख लेब। अहाँ के खश ु ी की हमर खश ु ी निह?” ओ मही आवाज म बजली। “मैिथली के हमरो सेहनता, मुदा हमरा ई हमेशा डर रहल जे हम मैिथली बािज सकब की निह। आब हमरो बाजय लेल भेटत।” 

पता निह हमरा कोन धन भेट गेल। िबहा ड़ जकाँ मोन उिधयाबय लागल। खुशी के ठे काना निह छल। अखनो मिथला जानकी आ भारती के जननी छै क? ई के खुशी के दबाबैत हम बाजल - 

क उ र हमरा अपन किनया

प म भेटत से हमरा कोनो अनुमान निह छल। अंदर

“कोन तरह के बात करी से हमरा निह बझ ु ल, किहयो लड़की सभ से ग प करय के मौका निह लागल से अहीं िकछु कहु।”  ओ कहली – “हमरो ई पिहले बेर अिछ से जेना अहाँ तेना हम। हम की कही?”  हमरा िकछु निह फुरायल, सोचल जे कोनो गंभीर बात निह कयल जाय आ सनेमा म हुनक िच पुछ लएन। फेर बात आगाँ िनकललय आ हमरा बेसी िकछु फुरायल निह से अनाड़ी जकाँ कह लअए जे “हम सब बाद म ग प करब। आब राखय छी।”  जवाब म ओ चु प रिह गेलिखन आ हम फोन काटल। फोन त’ रािख दे लऔं, मुदा मोन ओही भवसागर म भ सयाएत छल।

तरु ं त म मी के फोन के लअए ई सिू चत करय के लेल जेना हमरा कोनो परु कार भेिट गेल होउ। आब बहाना के तलाश छल जे आगाँ कोना बात करी। हुनका से एक बेर ग प करय के बेगरता त’ समा बात सुनय के लेल। दोसर िदन अपन छोट बिहन-भाई सभ के फोन क’ जबरद ती ओकरा सभ के उकसे लए जे बात क’ ले अपन भाभी से। एकटा

भ’ गेल छल मुदा कान तर स रहल छल हुनक कह लअए जे भाभी से ग प भेलौ तोहर सभक।

योजन त’ ई सािबत करय के छल जे हमरा जे

सोन हाथ लागल से अनमोल छिथ आ दोसर जे ओही बहाने हमरा हुनका से फेर बात करय के मौका लागत जे कोना िक बात भेल। ओ हर ओ िदन भिर इंतजार म छलीह जे हम कखन हुनका फोन करबय। हमरा ऑिफस से अयला पर मौका

लागल आ हुनका फोन के लएन। ओ पुछली “ना ता भेल?”  फोन करय के ताक म ना ता के सध निह छल मुदा हुनक िज ासा मोन के संतुि दान कएल जे हमरो लेल िकयो ु त’ िथकीह िजनका ई िचंता जे हम कोना जी रहल छी। िजनका हमरा से मतलब। िजनका लेल हम धान। हमर जवाब सेहो छल – “अहाँ के िकछु ना ता भेल?” 

“ऊँहुँ” – हुनक जवाब छलै ह। “अहाँ ऑिफस से आयल छी, िकछु ज र से खा लय’, भख ू लािग गेल हएत।”  बातक क्रम जे शु भेल त’ खतम लेबाक नामे निह। हम हुनका “सोना” किह पुकािरए आ ओ हमरा सोना कहै थ। सोना के पयाय जे हम अहाँक गहना आ अहाँ हमर गहना। द-ु तीन िदनक बाद स ाँत भेल। स ाँतक उपरांत ओ फोन कयलीह जे हमर नाम हुनक नाम सँ जु ड़ गेल छै क आ आब हुनका हमर इंतजार जे हम किहया हुनका स’ जीवनसँिगनी बना रहल छी। अजीब स नता मोन के भेटल। मोन भेल जे िच ला क’ आकाश स’

िववाह क’

अपन

कही जे हम आय बहुत खश ु । हमरा छोट छोट बात म हुनक यान आबय लागल आ हम एकदम से हुनक पाश म जक ड़ गेल । भोर उिठते हुनका फोन केनाय, ऑिफस से लंच टाइम म कॉल केनाय। सांझ म हुनकर िज ासा के फोन एनाय जे ना ता भेल की निह। आब त’ ई जीवनक्रम से जुड़ल बात भ’ गेल छै क। एक बेर हुनक मुँह से बहरे लिन “हमर सोना, हमरा से जँ एतय ग प करब त’

अहाँ के अपन काज

भािवत है त आ अहाँ बाद म हमरा दोष दे ब जे हम अहाँ के बरबाद क’ दे ल ।” 

“अहाँक सोना त’ आब बरबाद भ’ गेल अिछ। आबो एिह म कोनो शक की?” – हमर जवाब छल।  ”हमरा से बात निह क

जाऊ, हम अपन सोना के बरबाद निह करय चाहय छी।” – ओ हँसैत जवाब दे लीह। 

”अहाँ के रहल भ’ जायत अपन सोना से बात कयने िबना? हमरा त’ अपन सोना से िवरह अस

भ’ जेतैक।” – हम कनमुँह

जकाँ करै त जवाब दे लएक। फेर कह लएक – “जाऊ, ज अहाँ के इएह मोन त’ हम निह करब बात अहाँ स’”।  “ठीके हमर सोना हमरा से बात निह करत...?” – ओ ब चा जकाँ कहलीह।   “हाँ, अब िवयाहे िदन बात करब” – हम कनेक नखरा करै त कहल ।  - “ज हमर सोना के

ण टूिट गेल त’?” 

‐  “तखन अहाँ जे सजा िदअय हमरा मंजूर” 

- “सोिच लयअ सोना, हम जे कहब से अहाँ के करय पड़त”  - “हम कहाँ भािग रहल छी”  हुनकर हँसी अचानके बंद भ’ गेलिन आ ओ कनेक गंभीर होयत कहलिखन – “सोना, हमरा एकटा वचन िदयअ जे अहाँक ेम हमरा ित सिदखन एिहना बनले रहत आ हिरमोहन झा लिखत पाँच-प जकाँ एकर ास निह होयत। हमर सोना हमरा वचन िदयअ।”  “हम वचन दे ल ” – हमहुँ गंभीर भ’ गेल रहऔं। ओही गंभीरता के भंग करै त फेर हम कह लएक “जे अहाँ के निह रहल गेल आ अहाँ फोन केल त’?” 

“कहु की चाही, सोना स से अहीं के अिछ, अहाँ के िकछु कहय पड़त। अहाँ आदे श िदयअ सोना हमर।” – हुनक वर म कतेक रस एक साथ मि त छल से हम फिरछा निह सकल । हमर मँह ु कनेक काल धिर चु प भ’ गेल। एहन बहुतो बेर भेल छल जे हुनक जवाब हमरा आ य म डा ल दे ने छल। तं ा तोड़ैत हम कह लएन –   “सोना, ज पिहने अहाँ हमरा फोन कयल , त’ अहाँ के रोजे हमरा याद िदलाब’ पड़त जे सोना हमरा से बात क ।”  “ठीक” – ओ तुरंत उ र दे लिख ह। 

केहुना हम मोन के मारल आ द ु घंटा धिर बरदा त कयल। फेर हमरा निह रहल गेल आ बाजी हारै त हम हुनका फोन के लएन। एक बेर, द ु बेर...तेसर बेर माँ जी फोन उठे लैथ। कहलिथन जे अहाँक सोना पता निह कखन से कािन रहल छिथ ह आ ओिह दआ ु रे फोन निह उठा रहल छलीह। फोन हाथ म लैत ओ बाजलीह –

“सोना,

हमरा से अपराध भेल से माफ

क ....हम कोन मुँहे अपन सोना के अपना से बात निह करय लेल कहल से निह जानी। सोना हमरा माफ क ।”  कतय हम ई सोचैत रही जे बाजी हािर गेल छी आ ओ ई दे खैत पुलिकत भ’

जेती। मगर ई की,

ेमक पिरभाषा पिहल बेर

बुझा पड़ल। सभटा पहे ली सन, सभटा अ त ु ... 

आब बेगरता अिछ जे कते ज दी िवयाह होय आ हमर सोना हमरा लग सीता बिन के आबैथ आ हमर घर अयो या बिन जाय। 

      -राजीव रं जन लाल (23 िदस बर 2007) 

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