Jivan Jhanki

  • November 2019
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  • Words: 8,618
  • Pages: 24
पा तः समर णीय पूजय पाद सदग ुर देव संत शी आसाराम

जी महारा ज की

जीवन -झाँकी अल ख पुरष की आरसी , साध ू का ही द ेह। लखा जो चाह े अलख को , इनही ं मे त ू ल ख लेह।। िकसी भी दे श की संपिि संतजन ही होते है । ये िजस समय आिवभूत ू होते है , उस

समय के जन-समुदाय के िलए उनका जीवन ही सचचा पथ-पदशक ू होता है । एक पिसद संत तो यहाँ तक कहते है िक भगवान के दशन ू से भी अिधक लाभ भगवान के चिरत सुनने से िमलता है और भगवान के चिरत सुनने से भी जयादा लाभ सचचे संत के

जीवन-चिरत सुनने से िमलता है । वसतुतः िवश के कलयाण के िलए िजस समय िजस धमू की आवशयकता होती है , उसका आदशू उपिसथत करने के िलए सवयं भगवान ही

ततकालीन संतो के रप मे िनतय-अवतार लेकर आिवभूत ू होते है । विम ू ान युग मे यह दै वी कायू िजन संतो के दारा हो रहा है , उनमे एक लोक लाडले संत है अमदावाद के शोितय, बहिनष योगीराज पूजयपाद शी आसाराम जी महाराज।

महाराजशी इतनी ऊँचाई पर अविसथत है िक शबद उनहे बाँध नहीं सकते। जैसे

िवशरपदशन ू मानव-चकु से नहीं हो सकता, उसके िलए िदवय दिि ही चािहए और जैसे

िवराट को नापने के िलए वामन का नाप बौना पड जाता है वैसे ही पूजयशी के िवषय मे कुछ भी िलखना मधयाह के दे दीपयमान सूयू को दीया िदखाने जैसा ही होगा। ििर भी अंतर मे शदा, पेम व साहस जुटाकर गुह बहिवदा के इन मूितम ू ंत सवरप की जीवनझाँकी पसतुत करने का हम एक िवनम पयास कर रहे है । जन म पिरचय ः

संत शी आसाराम जी महाराज का जनम िसंध पानत के नवाब शाह िजले मे िसंधु

नदी के तट पर बसे बेराणी गाँव मे नगरसेठ शी थाऊमलजी िसरमलानी के घर िदनांक

17 अपैल 1941 तदनुसार िवकम संवत 1998 को चैतवद षषी के िदन हुआ था। आपशी की पूजनीया माताजी का नाम मँहगीबा है । उस समय नामकरण संसकार के नाम आपका नाम आसुमल रखा गया था।

भिवषय वेिाओ ं की घ ोषणाए ँ -

बालयावसथा से ही आपशी के चेहरे पर िवलकण कांित तथा नेतो मे एक अदभुत तेज था। आपकी िवलकण िकयाओं को दे खकर अनेक लोगो तथा भिवषयवेिाओं ने यह

भिवषयवाणी की थी िक ‘यह बालक पूवू का अवशय ही कोई िसद योगीपुरष है , जो अपना अधूरा कायू पूरा करने के िलए ही अवतिरत हुआ है । िनिित ही यह एक अतयिधक महान ् संत बनेगा.....’ और आज अकरशः वही भिवषयवाणी सतय हो रही है । बालयकालः

संतशी का बालयकाल संघषो की एक लंबी कहानी है । िवभाजन की िवभीिषका को सहन कर भारत के पित अतयिधक पेम होने के कारण आपका पिरवार अपनी अथाह

चल-अचल समपिि को छोडकर यहाँ के अमदावाद शहर मे 1947 मे आ पहुँचा। अपना

धन-वैभव सब कुछ छूट जाने के कारण वह पिरवार आिथक ू िवषमता के चकवयूह मे िँस गया लेिकन आजीिवका के िलए िकसी तरह से िपताशी थाऊमलजी दारा लकडी और

कोयले का वयवसाय आरमभ करने से आिथक ू पिरिसथित मे सुधार होने लगा। ततपिात शककर का वयवसाय भी आरमभ हो गया। िश काः

संतशी की पारिमभक िशका िसनधी भाषा से आरमभ हुई। तदननतर सात वष ू की

आयु मे पाथिमक िशका के िलए आपको जयिहनद हाई सकूल, मिणनगर (अमदावाद) मे

पवेश िदलवाया गया। अपनी िवलकण समरणशिि के पभाव से आप िशकको दारा सुनाई जाने वाली किवता, गीत या अनय अधयाय ततकण पूरी-की-पूरी हूबहू सुना दे ते थे। िवदालय मे जब भी मधयाह की िवशािनत होती, बालक आसुमल खेलने-कूदने या

गपपेबाजी मे समय न गँवाकर एकांत मे िकसी वक ृ के नीचे ईशर के धयान मे बैठ जाते थे।

िचि की एकागता, बुिद की तीवता, नमता, सहनशीलता आिद गुणो के कारण

बालक का वयिितव पूरे िवदालय मे मोहक बन गया था। आप अपने िपता के लाडले संतान थे। अतः पाठशाला जाते समय िपताशी आपकी जेब मे िपशता, बादाम, काजू,

अखरोट आिद भर दे ते थे िजसे आसुमल सवयं भी खाते एवं पािणमात मे इनका िमतभाव होने से ये पिरिचत-अपिरिचत सभी को भी िखलाते थे। पढने मे ये बडे मेधावी थे तथा

पितवषू पथम शण े ी मे ही उिीणू होते थे, ििर भी इस सामानय िवदा का आकषण ू आपको कभी नहीं रहा। लौिकक िवदा, योगिवदा और आतमिवदा ये तीन िवदाएँ है , लेिकन आपका

पूरा झुकाव योगिवदा व आतमिवदा पर ही रहा। आज तक सुने गये जगत के आियो को भी मात कर दे , ऐसा यह आियू है िक तीसरी कका तक पढे हुए महाराजशी के आज M.A. व P.hd. पढे हुए तथा लाखो पबुद मनीिषगण भी िशषय बने हुए है । पािरवािरक

िववरणः

माता िपता के अितिरि बालक आसुमल के पिरवार मे एक बडे भाई तथा दो बडी एवं एक छोटी बहन थी। बालक आसुमल को माता जी की ओर से धमू के संसकार

बचपन से ही िदये गये थे। माँ इनहे ठाकुरजी की मूितू के सामने िबठा दे ती और कहती"बेटा, भगवान की पूजा और धयान करो। इससे पसनन होकर वे तुमहे पसाद दे गे।" वे ऐसा ही करते और माँ अवसर पाकर उनके सममुख चुपचाप मकखन-िमशी रख जाती। बालक आसुमल जब आँखे खोलकर पसाद दे खते तो पभु पेम मे पुलिकत हो उठते थे।

घर मे रहते हुए भी बढती उम के साथ-साथ उनकी भिि भी बढती ही गई।

पितिदन बहमुहूतू मे उठकर ठाकुर जी की पूजा मे लग जाना उनका िनयम था।

भारत पाक िवभाजन की भीषण आँिधयो मे अपना सब कुछ लुटाकर यह पिरवार

अभी ठीक ढं ग से उठ भी नहीं पाया था िक दस वषू की कोमल वय मे बालक आसुमल को संसार की िवकट पिरिसथितयो से जूझने के िलए पिरवार सिहत छोडकर िपताशी थाऊमलजी दे हतयाग कर सवधाम चले गये।

िपता के दे हतयागोपरांत आसुमल को पढाई छोड दे नी पडी। समय वे चौथी कका

के िवदाथी थे। पढाई छोडकर छोटी सी उम मे ही कुटु मब को सहारा दे ने के िलए िसदपुर

मे एक पिरजन के यहाँ आप नौकरी करने लगे। मोल-तोल मे इनकी सचचाई, पिरशमी एवं पसनन सवभाव से पिरजन की उस दक ु ान पर अचछी कमाई होने लगी। आपने उनका

ऐसा िवशास अिजत ू कर िलया िक छोटी-सी उम मे ही उन सजजन ने आपको ही दक ु ान का सवस े वाू बना िदया। मािलक कभी आता, कभी दो-दो िदन नहीं भी। आपने दक ु ान का चार वषू तक कायभ ू ार समभाला।

रात और पभात जप और ध

यान म े।

और िदन म े आस ुमल िमलत े द ु कान मे।।

अब तो लोग उनसे आशीवाद ू , मागद ू शन ू लेने आते। आपकी आधयाितमक शिियो

से सभी पिरिचत होने लगे। जप-धयान से आपकी सुषुप शिियाँ िवकिसत होने लगी थीं। अंतः पेरणा से आपको सही मागद ू शन ू पाप होता और इससे लोगो के जीवन की गुितथयाँ सुलझा िदया करते थे। गृ हतयागः

आसुमल की िववेक समपनन बुिद ने संसार की असारता तथा परमातमा ही एकमात परमसार है , यह बात दढतापूवक ू जान ली थी। उनहोने धयान-भजन और बढा

िदया। गयारह वषू की उम मे तो अनजाने ही िरिदयाँ-िसिदयाँ उनकी सेवा मे हािजर हो चुकी थीं, लेिकन वे उसमे ही रकने वाले नहीं थे। वैरागय की अिगन उनके हदय मे पकट हो चुकी थी।

तरणाई के पवेश के साथ ही घरवालो ने इनकी शादी करने की तैयारी की। वैरागी आसुमल सांसािरक बंधनो मे नहीं िँसना चाहते थे इसिलए िववाह के आठ िदन पूवू ही वे चुपके से घर छोड कर िनकल पडे । कािी खोजबीन के बाद घरवालो ने उनहे भरच के एक आशम मे पा िलया। िववाह ः

"चँिू क पूवू मे सगाई िनिित हो चुकी है , अतः संबंध तोडना पिरवार की पितषा पर

आघात पहुँचाना होगा। अब हमारी इजजत तुमहारे हाथ मे है ।" सभी पिरवारजनो के बार-

बार इस आगह के वशीभूत होकर तथा तीवतम पारबध के कारण उनका िववाह हो गया,

िकनतु आसुमल उस सवणब ू ंधन मे रके नहीं। अपनी सुशील एवं पिवत धमप ू ती लकमीदे वी को समझाकर अपने परम लकय ‘आतम-साकातकार’ की पािप तक संयमी जीवन जीने का आदे श िदया। अपने पूजय सवामी के धािमक ू एवं वैरागयपूणू िवचारो से सहमत होकर

लकमीदे वी ने भी तपोिनष एवं साधनामय जीवन वयतीत करने का िनिय कर िलया। पुनः ग ृ हतय ाग एव ं ई शर की खोजः

िवकम संवत 2020 की िालगुन सुद 11 तदनुसार 23 िरवरी 1964 के पिवत िदवस

आप िकसी भी मोह-ममता एवं अनय िवघन-बाधाओं की परवाह न करते हुए अपने लकय

की िसिद के िलए घर छोडकर चल पडे । घूमते-घामते आप केदारनाथ पहुँचे, जहाँ अिभषेक करवाने पर आपको पंिडतो ने आशीवाद ू िदया िकः ‘लकािधपित भव।’ िजस माया को

ठु कराकर आप ईशर की खोज मे िनकले, वहाँ भी मायापािप का आशीवाद ू ....! आपको यह आशीवाद ू रास न आया। अतः आपने पुनः अिभषेक करवा कर ईशरपािप का आशीवाद ू

पाया एवं पाथन ू ा कीः ‘भले माँगने पर भी दो समय का भोजन न िमले लेिकन हे ईशर! तेरे सवरप का मुझे जान िमले’ तथा ‘इस जीवन का बिलदान दे कर भी अपने लकय की िसिद करके रहूँगा...!’ इस पकार का दढ िनिय करके वहाँ से आप भगवान शीकृ षण की

पिवत लीलासथली वनृदावन पहुँच गये। होली के िदन यहाँ के दिरदनारायण मे भंडारा कर कुछ िदन वहीं पर रके और ििर उिराखंड की ओर िनकल पडे । गुिाओं, कनदराओं,

वनाचछाित घािटयो, िहमाचछािदत पवत ू शख ं ृ लाओं एवं अनेक तीथो मे घूमे। कंटकाकीणू मागो पर चले, िशलाओं की शैया पर सोये। मौत का मुकाबला करना पडे , ऐसे दग ू ु म सथानो पर साधना करते हुए वे नैिनताल के जंगलो मे पहुँचे। सदग ु र की प ािपः

ईशरपािप की तडप से वे नैिनताल के जंगलो मे पहुँचे। चालीस िदवस के लमबे

इनतजार के बाद वहाँ इनका परमातमा से िमलाने वाले परम पुरष से िमलन हुआ, िजनका नाम था सवामी शी लीलाशाहजी महाराज।

वह बडी अमत ृ वेला कही जाती है , जब ईशर की खोज के िलए िनकले परम वीर पुरष को ईशरपाप िकसी सदगुर का सािननधय िमलता है । उस िदन को नवजीवन पाप होता है ।

गुर के दार पर भी कठोर कसौिटयाँ हुई थीं, लेिकन परमातमा के पयार मे तडपता

यह परम वीर पुरष सारी-की-सारी कसौिटयाँ पार करके सदगुरदे व का कृ पापसाद पाने का अिधकारी बन गया। सदगुरदे व ने साधना-पथ के रहसयो को समझाते हुए आसुमल को

अपना िलया। आधयाितमक मागू के इस िपपासु-िजजासु साधक की आधी साधना तो उसी िदन पूणू हो गई जब सदगुर ने अपना िलया। परम दयालु सदगुर साई शी लीलाशाह जी महाराज ने आसुमल को घर मे ही धयान भजन करने का आदे श दे कर 70 िदन तक

वापस अमदावाद भेज िदया। घर आये तो सही लेिकन िजस सचचे साधक का आिखरी लकय िसद न हुआ हो, उसे चैन कहाँ....? तीव साधना की ओरः

तेरह िदन तक घर रके रहने के बाद वे नमद ू ा िकनारे मोटी कोरल पहुँच कर पुनः

तपसया करने लगे। आपने यहाँ चालीस िदन का अनुषान आरं भ िकया। कई अनधेरी और चाँदनी राते आपने यहाँ नमद ू ा मैया की िवशाल खुली बालुका मे पभु-पेम की अलौिकक

मसती मे िबताई। पभु-पेम मे आप इतने खो जाते थे िक न तो शरीर की सुध-बुध रहती तथा न ही खाने पीने का खयाल........ घंटो समािध मे ही बीत जाते। साधनाकाल की पम

ुख घटनाए ँ ....

एक िदन वे नमद ू ा नदी के िकनारे धयानसथ बैठे थे। मधयराित के समय जोरो की आँधी-तूिान चली। आप उठकर चाणोद करनाली मे िकसी मकान के बरामदे मे जाकर

बैठ गये। राित मे कोई मछुआरा बाहर िनकला और संतशी को चोर-डाकू समझकर उसने पूरे मोहलले को जगाया। सभी लोग लाठी, भाला, चाकू, छुरी, धािरया आिद लेकर हमला

करने को उदत खडे हो गये, लेिकन िजस के पास आतमशािनत का हिथयार हो, उसका भला कौन सामना कर सकता है ? शोरगुल के कारण साधक का धयान टू टा और एक

पेमपूणू दिि डालते हुए धीर-गंभीर िनिल कदम उठाता हुआ आसुमल भीड चीरकर बाहर िनकल आये। बाद मे लोगो को सचचाई का पता चला तो सबने कमा माँगी।

आप अनुषान मे संलगन ही थे िक घर से माताजी एवं धमप ू ती आपको वापस घर

ले जाने के िलए आ पहुँची। आपको इस अवसथा मे दे खकर मातुशी एवं धमप ू ती

लकमीदे वी दोनो ही िूट-िूट कर रो पडीं। इस करण दशय को दे खकर अनेक लोगो का िदल पसीज उठा, लेिकन इस वीर साधक की दढता तिनक भी न डगमगाई।

अनुषान के बाद मोटी कोरल गाँव से संतशी की िवदाई का दशय भी अतयिधक

भावुक था। हजारो आँखे उनके िवयोग के समय बरस रही थीं। लाल जी महाराज जैसे

सथानीय पिवत संत भी आपको िवदा करने सटे शन तक आये। िमयांगाँव सटे शन से आपने अपनी मातुशी एवं धमप ू ती को अमदावाद की ओर जाने वाली गाडी मे िबठाया और सवयं चलती गाडी से कूदकर सामने के पलेटिामू पर खडी गाडी से मुंबई की तरि रवाना हो गये।

आतमसाकातकारः दस ृ ेशरी पहुँचे, जहाँ आपके सदगुरदे व परमपूजय शी ू रे िदन पातः मुंबई मे वज

लीलाशाह जी महाराज एकांतवास हे तु पधारे थे। साधना की इतनी तीव लगनवाले अपने पयारे िशषय को दे खकर सदगुरदे व का करणापूणू हदय छलक उठा। गुरदे व ने वातसलय बरसाते हुए कहाः "हे वतस! ईशरपािप के िलए तुमहारी इतनी तीव लगन दे खकर मै पसनन हूँ।"

गुरदे व के हदय से बरसते हुए कृ पा-अमत ृ ने साधक की तमाम साधनाएँ पूणू कर

दीं। पूणू गुर ने िशषय को पूणू गुरतव मे सुपितिषत कर िदया। साधक मे से िसद पकट

हो गया। आिशन मास, शुकल पक िदतीय संवत 2021 तदनुसार 7 अिूबर 1964 बुधवार को मधयाह ढाई बजे आपको आतमदे व-परमातमा का साकातकार हो गया। आसुमल मे से संत शी आसाराम जी का आिवभाव ू हो गया।

आतम-साकातकार पद को पाप करने के बाद उससे ऊँचा कोई पद पाप करना शेष

नहीं रहता है । उससे बडा न तो कोई लाभ है , न पुणय...। इसे पाप करना मनुषय जीवन

का परम किवूय माना गया है । िजसकी मिहमा वेद और उपिनषद आिद काल से गाते आ रहे है .. जहाँ सुख और दःुख की तिनक भी पहुँच नहीं है ... जहाँ सवत ू आनंद ही आनंद

रहता है .... दे वताओं के िलए भी सुलभ इस परम आननदमय पद मे िसथित पाप कर आप संत शी आसाराम जी महाराज बन गये। एका ं त साधनाः

सात वषू तक डीसा आशम मे माउनट आबू की नलगुिा मे योग की गहराइयो तथा जान के िशखरो की याता की। धयानयोग, लययोग, नादानुंधानयोग, कुंडिलनी योग ,

अहं गह उपासना आिद िभनन-िभनन मागो से अनुभूितयाँ करने वाले इस पिरपकव साधक को िसद अवसथा मे पाकर पसननातमा, पािणमात के परम िहतैषी पूजयपाद लीलाशाह जी बापू ने आप मे औरो को उननत करने का सामथयू पूणू रप से िवकिसत दे खकर आदे श िदयाः

"मैने तुमहे जो बीज िदया था, उसको तुमने ठीक वक ृ के रप मे िवकिसत कर

िलया है । अब इसके मीठे िल समाज मे बाँटो। पाप, ताप, शौक, तनाव, वैमनसय, िवदोह, अहं कार और अशांित से तप संसार के तुमहारी जररत है ।"

गुलाब का िूल िदखाते हुए गुरदे व ने कहाः "इस िूल को मूग ँ , मटर, गुड, चीनी पर

रखो और ििर सूघ ँ ो तो सुगनध गुलाब की ही आयेगी। ऐसे ही तुम िकसी के अवगुण

अपने मे मत आने दे ना। गुलाब की तरह सबको आितमक सुगध ं , आधयाितमक सुगनध दे ना।"

आशीवाद ू बरसाते हुए पुनः उन परम िहतैषी पुरष ने कहाः "आसाराम! तू गुलाब

होकर महक तुझे जमाना जाने। अब तुम गहृसथ मे रहकर संसारताप से तप लोगो मे यह पाप, ताप, तनाव, रोग, शोक, दःुख-ददू से छुडानेवाला आधयाितमक बाँटो और उनहे भी अपने आतम सवरप मे जगाओ।"

बनास नदी के तट पर िसथत डीसा मे आप बहाननद की मसती लूटते हुए एकानत

मे रहे । यहाँ आपने एक मरी हुई गाय को जीवनदान िदया, तबसे लोग आपकी महानता

को जानने लगे। ििर तो अनेक लोग आपके आतमानुभव से पसिुिटत सतसंग-सिरता मे अवगाहन कर शांित पाप करने तथा अपना दःुख-ददू सुनाने आपके चरणो मे आने लगे।

पितिदन सायंकाल को घूमना आपका सवभाव है । एक बार डीसा मे ही आप शाम

को बनास नदी की रे त पर आतमाननद की मसती मे घूम रहे थे िक पीछे से दो शराबी आये और आपकी गदू न पर तलवार रखते हुए बोलेः "काट दँ ू कया?" आपने बडी ही

िनभीकता से जवाब िदया िकः "तेरी मजी पूणू हो।" वे दोनो शराबी तुरनत ही आपके

चरणो मे नतमसतक हो गये और कमा याचना करने लगे। एकानत मे रहते हुए भी आप लोकोतथान की पविृियो मे संलगन रहकर लोगो के वयसन, मांस व मदपान छुडाते रहे । उसी दौरान एक िदन आप डीसा से नारे शर की ओर चल िदए तथा नमद ू ा के

तटवती एक ऐसे घने जंगल मे पहुँच गये िक वहाँ कोई आता-जाता न था। वहीं एक वक ृ के नीचे बैठकर आप आतमा-परमातमा के धयान मे ऐसे तनमय हुए की पूरी रात बीत

गई। सवेरा हुआ तो धयान छोडकर िनतयकमू मे लग गये। ततपिात भूख पयास सताने लगी। लेिकन आपने सोचाः मै कहीं भी िभका माँगने नहीं जाऊँगा, यहीं बैठकर अब खाऊँगा। यिद सिृिकताू को गरज होगी तो वे खुद मेरे िलए भोजन लाएँगे।

और सचमुच हुआ भी ऐसा ही। दो िकसान दध ू और िल लेकर वहाँ आ पहुँचे।

संतशी के बहुत इनकार करने पर भी उनहोने आगह करते हुए कहाः "हम लोग ईशरीय

पेरणा से ही आपकी सेवा मे हािजर हुए है । िकसी अदभुत शिि ने राित मे हमे सवपन मे मागू िदखाकर आपशी के शीचरणो की सेवा मे यह सब अपण ू करने को भेजा है ।" अतः संतशी आसाराम जी ने थोडा-सा दध ू व िल गहण कर यह सथान भी छोड िदया और आबू की एकांत गुिाओं, िहमालय के एकांत जंगलो तथा कनदराओं मे जीवनमुिि का

िवलकण आनंद लूटते रहे । साथ ही साथ संसार के ताप से तप हुए लोगो के दःुख िनविृि और आतमशांित के िभनन-िभनन उपाय खोजते रहे तथा पयोग करते रहे ।

लगभग सात वषू के लंबे अंतराल के पिात परम पूजय सदगुरदे व सवामी शी लीलाशाहजी महाराज के अतयनत आगह के वशीभूत हो एवं अपनी मातुशी को िदये हुए

वचनो के पालनाथू पूजयशी ने संवत ् 2028 मे गुरपूिणम ू ा अथात ू 8 जुलाई, 1971 गुरवार के िदन अमदावाद की धरती पर पैर रखा। आश म सथापनाः

साबरमती नदी के िकनारे की उबड-खाबड टे किरयो (िमटटी के टीलो) पर भिो दारा

आशम के रप मे िदनांक 29 जनवरी 1972 को एक कचची कुिटया तैयार की गई। इस

सथान के चारो ओर कंटीली झािडयाँ व बीहड जंगल था, जहाँ िदन मे भी आने पर लोगो को चोर-डाकुओं का भय बराबर बना रहता था। लेिकन आशम की सथापना के बाद यहाँ का भयावह एवं दिूषत वातावरण एकदम बदल गया। आज इस आशमरपी िवशाल वक ृ

की शाखाएँ भारत ही नहीं, िवश के अनेक दे शो तक पहुँच चुकी है । साबरमती के बीहडो मे सथािपत यह कुिटया आज ‘संतशी आसारामजी आशम’ के नाम से एक महान पावन

तीथध ू ाम बन चुकी है । इस जान की पयाऊ मे आज लाखो की संखया मे आकर हर जाित, धमू व दे श के लोग धयान और सतसंग का अमत ृ पीते है तथा अपने जीवन की दःुखद गुितथयो को सुलझाकर धनय हो जाते है ।

आशम दारा

संचािलत सतपव ृ ििया ँ

आिद वासी िवकास की

िदशा म े कद म

संतशी आसाराम जी आशम एवं इसकी सहयोगी संसथा शी योग वेदानत सेवा

सिमित दारा वषू भर गुजरात, महाराष, राजसथान, मधयपदे श, उडीसा आिद पानतो के

आिदवासी केतो मे पहुँचकर संतशी के सािननधय मे िनधन ू तथा िवकास की धारा से

वंिचत रहकर जीवन गुजारने वाले वनवािसयो को अनाज, वस, कमबल, पसाद, दिकणा आिद िवतिरत िकया जाता है तथा वयसनो एवं कुपथाओं से सदै व बचे रहने के िलए िविभनन आधयाितमक एवं यौिगक पयोग उनहे िसखालाये जाते है । वयसनम ुिि की िद शा म े कद मः

साधारणतया लोग सुख पाने के िलए वयसनो के चंगुल मे िँसते है । पूजयशी उनहे केवल िनषेधातमक उपदे शो के दारा ही नहीं अिपतु शििपात-वषाू के दारा आंतिरक

िनिवष ू य सुख की अनुभूित करने मे समथू बना दे ते है , तब उनके वयसन सवतः ही छूट जाते है ।

सतसंग कथा मे भरी सभा मे िवषैले वयसनो के दग ूु ो का वणन ू कर तथा उनसे ु ण

होने वाले नुकसानो पर पकाश डाल कर पूजयशी लोगो को सावधान करते है । समाज मे

‘नशे से सावधान’ नामक पुिसतका के िवतरण तथा उनके अवसरो पर िचत-पदशिूनयो के

माधयम से जनमानस मे वयसनो से शरीर पर होने वाले दषुपभावो का पसार कर िवशाल रप से वयसनमुिि अिभयान संचािलत िकया जा रहा है । युवाओँ मे वयसनो के बढते पचलन को रोकने की िदशा मे संत शी आसाराम जी महाराज, सवयं उनके पुत भी

नारायण सवामी तथा बापूजी के हजारो िशषय सतत पयतशील होकर िविभनन उपचारो एवं उपायो से अब तक असंखय लोगो को लाभािनवत कर चुके है । संसकृ ित के प चार की िदशा म े कद मः

भारतीय संसकृ ित को िवशवयापी बनाने के िलए संतशी केवल भारत के ही गाँवगाँव और शहर-शहर ही नहीं घूमते है अिपतु िवदे शो मे भी पहुँचक भारत के सनातनी

जान से, वेदानती अमत ृ से, भिि और जान की संगिठत अपनी अनुभव-समपनन योगवाणी से वहाँ के िनवािसयो मे एक नई शांित, आनंद व पसननता का संचार करते है । इतना ही नहीं, िविभनन कैसेटो के माधयम से सतसंग व संसकृ ित का पचार-पसार करते रहते है । कुपथा -उनमू लन काय ू कम ः

िवशेषकर समाज के िपछडे वगो मे वयाप कुपथाओं तथा अजानता के कारण धमू के नाम पर तथा भूत-पेत, बाधा आिद का भय िदखाकर उनकी समपिि का शोषण व

चिरत का हनन अिधकाँश सथानो पर हो रहा है । संतशी के आशम के साधको दारा तथा शी योग वेदांत सेवा सिमित के सिकय सदसयो दारा समय-समय पर सामूिहक रप से ऐसे शोषण कारी षडयंतो से बचे रहने का तथा कुपथाओं के तयाग का आहान िकया जाता है ।

असहाय िन धू न रोगी सहायता अिभयानः िविभनन पानतो मे िनरािशत, िनधन ू तथा बेसहारा िकसम के रोिगयो को आशम

तथा सिमितयो दारा िचिकतसालयो मे िनशुलक दवाई, भोजन, िल आिद िवतिरत िकये जाते है ।

पाकृित क पकोप म े सहायताः भूकमप हो, पलेग हो अथवा अनय िकसी पकार की महामारी, आशम के साधकगण

पभािवत केतो मे पहुँच कर पीिडतो को तन मन धन से आवशयक सहायता-सामगी

िवतिरत करते है । ऐसे केतो मे आशम दारा अनाज, वस, औषिध एवं िल-िवतरण हे तु

िशिवर भी आयोिजत िकया जाता है । पभािवत केतो मे वातावरण की शुदता के िलए धूप भी िकया जाता है ।

बेसहाराओ ँ के आशय सथ ल की नी ंवः समाज दारा ठु कराये गये बेसहारा लोगो की आशय-सथली के रप मे अित शीघ ही

भेटासी (गुजरात) आशम मे एक िवशाल भवन का िनमाण ू िकया जा रहा है , िजसकी नींव संतशी सवयं अपने करकमलो से रख चुके है ।

सतसा िहतय ए वं मािस क पित का प काशनः संतशी आसारामजी आशम दारा भारत की िविभनन भाषाओँ एवं अंगेजी मे

िमलाकर अब तक 140 पुसतको का पकाशन कायू पूणू हो चुका है । यही नहीं, िहनदी एवं गुजराती भाषा मे आशम से िनयिमत मािसक पितका ‘ऋिष पसाद’ का भी पकाशन होता है , िजसके लाखो-लाखो पाठक है । दे श-िवदे श का वैचािरक पदष ू ण िमटाने मे आशम का यह ससता सािहतय अतयिधक सहायक िसद हुआ है । इसकी सहायता से अब तक आधयाितमक केत मे लाखो लोग पगित के पथ पर आरढ हो चुके है । िवदाथी वयिितव िव

कास िश िवर ः

आनेवाले कल के भारत की िदशाहीन बनी इस पीढी को संतशी भारतीय संसकृ ित की गिरमा समझाकर जीवन के वासतिवक उदे शय की गितमान करते है । िवदाथी िशिवरो

मे िवदािथय ू ो को ओजसवी-तेजसवी बनाने तथा उनके सवाग ा ीण िवकास के िलए धयान की िविवध पदितयाँ िसखाई जाती है । योगासन, पाणायाम तथा सतसंग-कीतन ू के दारा

िवदािथय ू ो की सुषुप शिियो को जागत ृ कर समाज मे वयाप वयसनो एवं बुराइयो से छूटने के सरल पयोग भी िवदाथी िशिवरो मे कराये जाते है । इसके अितिरि िवदािथय ू ो मे समरणशिि तथा एकागता के िवकास हे तु िवशेष पयोग करवाये जाते है । धयान योग िश िवर ः

वषू भर मे िविवध आशमो मे िविवध पवो पर वेदानत शििपात साधना एवं धयान योग िशिवरो का आयोजन िकया जाता है , िजसमे भारत के चारो ओर से ही नहीं, िवदे शो से भी अनेक वैजािनक, डॉकटर, इनजीिनयर आिद भाग लेने उमड पडते है । आशम के

सुरमय पाकृ ितक वातावरण मे पूजयपाद संतशी आसारामजी बापू का सािननधय पाकर

हजारो साधक भाई-बहन अपने वयावहािरक जगत को भूलकर ईशरीय आननद मे तललीन हो जाते है । बडे -बडे तपिसवयो के िलए भी जो दल ू एवं किसाधय है , ऐसे िदवय अनुभव ु भ पूजय बापू जी के शििपात दारा पाप होने लगते है । िनश ुल क छाछ िवतरण ः

भारत भर की िविभनन सिमितयाँ िनशुलक छाछ िवतरण केनदो का भी िनयिमत संचालन करती है तथा गीषम ऋतु मे अनेक सथानो पर शीतल जल की पयाऊ भी संचािलत की जाती है ।

गौशाला स ं चालनः

िविभनन आशमो मे ईशरीय मागू मे कदम रखने वाले साधको की सेवा मे दध ू ,

दही, छाछ, मकखन, घी आिद दे कर गौमाताएँ भी आशम की गौशाला मे रहकर अपने

भवबंधन काटती हुई उतकािनत की परमपरा मे शीघ गित से उननत होकर अपना जीवन

धनय बना रही है । आशम के साधक इन गौमाताओं की मातव ृ त ् दे खभाल एवं सेवा-चाकरी करते है ।

आयुव ैिदक औ षधालय व औष ध िनमा ू णः संतशी के आशमो मे चलने वाले आयुविै दक औषधालयो से अब तक लाखो लोग

लाभािनवत हो चुके है । संतशी के मागद ू शन ू मे आयुवद े के िनषणात वैदो दारा रोिगयो का कुशल उपचार िकया जाता है । अनेक बार तो अमदावाद व मुंबई के पखयात

िचिकतसालयो मे गहन िचिकतसा पणाली से गुजरने के बाद भी असवसथता यथावत ् बनी

रहने के कारण रोगी को घर के रवाना कर िदया जाता है । वे ही रोगी मरणासनन िसथित मे भी आशम के उपचार एवं संतशी के आशीवाद ू से सवसथ व तंदरसत होकर घर लोटते है । साधको दारा जडी-बूिटयो की खोज कर सूरत आशम मे िविवध आयुवैिदक औषिधयो का िनमाण ू िकया जाता है । मौन म िनद रः

तीव साधना की उतकंठा वाले साधक को साधना के िदवय मागू मे गित करने मे आशम के मौन मिनदर अतयिधक सहायक िसद हो रहे है । साधना के िदवय परमाणुओं से घनीभूत इन मौन मिनदरो मे अनेक पकार के आधयाितमक अनुभव होने लगते है , िजजासु को षटसमपिि की पापी होती है तथा उसकी मुमुका पबल होती है । साधक को मौन

मिनदर मे एक सपाह के िलए बाहर से ताला लगाकर रखा जाता है । एक सपाह तक वह िकसी को नहीं दे ख सकता तथा उसको भी कोई दे ख नहीं सकता। भोजन आिद उसे

भीतर ही पाप होता है । समसत िवकेपो के िबना वह परमातमामय बना रहता है । भीतर उसे अनेक पाचीन संतो, इिदे व व गुरदे व के दशन ू एवं संकेत िमलते है । साधना सदनः

आशम के साधना सदनो मे दे श-िवदे शो से अनेक लोग अपनी इचछानुसार सपाह,

दो सपाह, मास, दो मास अथवा चातुमास ू की साधना के िलए आते है तथा आशम के पाकृ ितक ऐकांितक वातावरण का लाभ लेकर ईशरीय मसती व एकागता से परमातमसवरप का धयान भजन करते है । सतस ं ग समारोहः

आज के अशांत युग मे ईशर का नाम, उनका सुिमरन, भजन, कीतन ू व सतसंग ही तो एकमात ऐसा साधन है जो मानवता जो िजनदा रखे बैठा है और यिद आतमा-परमातमा को छूकर आती हुई वाणी मे सतसंग िमले तो सोने मे सुहागा ही मानना चािहए। शी योग वेदानत सेवा सिमित की शाखाएँ अपने-अपने केतो मे संतशी के सुवचनो का आयोजन कर लाखो की संखया मे आने वाले शोताओं को आतमरस का पान करवाती है ।

शी योग वेदानत सेवा-सिमितयो के दारा आयोिजत संतशी आसारामजी बापू के िदवय सतसंग समारोह मे अकसर यह िवशेषता दे खने को िमलती है िक इतनी िवशाल

जनसभा मे ढाई-ढाई लाख शोता भी शांत व धीर-गंभीर होकर आपशी के वचनामत ृ ो का रसपान करते है तथा मंडप िकतना भी िवशाल कयो नहीं बनाया गया हो, वह भिो की भीड के आगे छोटा पड ही जाता है । ना री उतथान काय ू कमः

‘राष को उननित के परमोचच िशखर तक पहुँचाने के िलए सवप ू थम नारी-शिि का

जागत ृ होना आवशयक है ...’ यह सोचकर इन दीघद ू षटा मनीषी ने साबरमती के तट पर ही अपने आशम से करीब आधा िकलोमीटर की दरूी पर ‘नारी उतथान केनद’ के रप मे मिहला आशम की सथापना की।

मिहला आशम मे भारत के िविभनन पानतो से एवं िवदे शो से आई हुई अनेक

सननािरयाँ सौहादू पूवक ू जीवनयापन करती हुई आधयाितमक पथ पर अगसर हो रही है ।

साधनाकाल के दौरान िववाह के तुरनत बाद संतशी आसाराम जी महाराज अपने

अंितम लकय आतम-साकातकार की िसिद के िलए गह ृ सथी का मोहक जामा उतारकर

अपने सदगुरदे व के सािननधय मे चले गये थे। आपशी की दी हुई आजा एवं मागद ू शन ू के अनुरप सवग ू ुणसमपनन परम पितवता शी शी माँ लकमीदे वी ने अपने सवामी की

अनुपिसथित मे तपोिनष साधनामय जीवन िबताया। सांसािरक सुखो की आकांका छोडकर अपने पितदे व के आदशो पर चलते हुए आपने आधयाितमक साधना के रहसयमय गहन

मागू मे पदापण ू िकया तथा साधनाकाल के दौरान जीवन को सेवा के दारा िघसकर चंदन की भाँित सुवािसत बनाया।

सौमय, शांत, गंभीर वदनवाली पूजय माताजी मिहला आशम मे रहकर साधना मागू

मे सािधकाओं का उिचत मागद ू शन ू करती हुई अपने पितदे व के दै वी कायो मे सहभागी बन रही है ।

जहाँ एक ओर संसार की अनय नािरयाँ िैशनपरसती एवं पििम की तजू पर

िवषय-िवकारो मे अपना जीवन वयथू गँवा रही है , वहीं दस ू री ओर इस आशम की युवितयाँ संसार के समसत आकषण ू ो को तयागकर पूजय माताजी की सनेहमयी छतछाया मे उनसे अनुषान एवं साधना की पेरणा पाकर संयमी व सदाचारी जीवनपथ पर अगसर हो रही है ..... िदवय एवं आनंिदत जीवनयापन कर रही है ।

नारी के समपूणू शारीिरक, मानिसक, बौिदक एवं आधयाितमक िवकास के िलए

मिहला आशम मे आसन, पाणायाम, जप, धयान, कीतन ू , सवाधयाय के साथ-साथ िविभनन

पवो, उतसवो पर सांसकृ ितक कायक ू मो का भी आयोजन होता है , िजसका संचालन संतशी की सुपुती सुशी भारतीदे वी करती है ।

गीषमावकाश मे दे श भर से सैकडो मिहलाएँ एवं युवितयाँ मिहला आशम मे आती है , जहाँ उनहे पूजनीया माताजी एवं वंदनीया भारतीदे वी दारा भावी जीवन को सँवारने,

पढाई मे सिलता पाप करने तथा जीवन मे पेम, शांित, सदभाव, परोपकािरता के गुणो की विृद के संबंध मे मागद ू शन ू पदान िकया जाता है ।

गह ृ सथी मे रहने वाली मिहलाएं भी अपनी पीडाओं एवं गहृसथ की जिटल

समसयाओं के संबंध मे पूजनीया माताजी से मागद ू शन ू पाप कर सवयं के तथा पिरवार के जीवन को संवारती है । वे अनेक बार यहाँ आती तो है रोती हुई, दःुखी और उदास, लेिकन जब यहाँ से लौटती है तो उनके मुखमंडल पर असीम शांित और अपार हषू की लहर छायी रहती है ।

मिहला आशम मे िनवास करने वाली साधवी बहने िविभनन शहरो एवं गामो मे

जाकर संत शी आसाराम जी बापू दारा पदि जान एवं भारतीय संसकृ ित के उचचादशो का पचार-पसार करते हुए बचचो के उिचत पोषण करने, गह ृ सथी के सिल संचालन करने तथा नारीधमू िनबाहने की युिियाँ भी एवं भारतीय संसकृ ित के पालन संदेशो को बताती है । नारी उतथान केनद की अनुभवी साधवी बहनो दारा िवदालयो मे घूम-घूम कर

समरणशिि के िवकास एवं एकागता के िलए पाणायाम, योगासन, धयान आिद की िशका दी जाती है । इन बहनो दारा िवदाथी जीवन मे संयम के महतव लाभ के िवषय पर भी पकाश डाला जाता है ।

तथा वयसनमुिि से

संतशी के मागद ू शन ू मे मिहला आशम दारा धनवनतिर आरोगय केनद के नाम से

एक आयुवैिदक औषधालय भी संचािलत िकया जाता है , िजसमे साधवी वैदो दारा रोिगयो का िनशुःलक उपचार िकया जाता है । अनेक दीघाक ू ािलक एवं असाधय रोग यहाँ के कुछ िदनो के साधारण उपचारमात से ही ठीक हो जाते है । िजन रोिगयो को एलोपैथी मे

एकमात ऑपरे शन ही उपचार के रप मे बतलाया गया था, ऐसे रोगी भी आशम की बहनो दारा िकये गये आयुविै दक उपचार से ही िबना ऑपरे शन के ही सवसथ हो गये।

इसके अितिरि मिहला आशम मे संतकृ पा चूण,ू आँवला चूणू एवं रोगाणुनाशक धूप

का िनमाण ू भी बहने अपने हाथो से करती है । सतसािहतय पकाशन के िलए संतशी की

अमत ृ वाणी का िलिपबद संकलन, पयाव ू रण संतुलन के िलए वक ृ ारोपण एवं कृ िषकायू तथा गौशाला का संचालन आशम की साधवी बहनो दारा ही िकया जाता है ।

नारी िकस पकार से अपनी आनतिरक शिियो को जगाकर नारायणी बन सकती है

तथा अपनी संतानो एवं पिरवार मे सुसंसकारो का िसंचन कर भारत का भिवषय उजजवल कर सकती है , इसकी ऋिष-महिषू पणीत पाचीन पणाली को अमदावाद मिहला आशम की

साधवी बहनो दारा ‘बहुजनिहताय-बहुजनसुखाय’ समाज मे पचािरत पसािरत िकया जा रहा है ।

मिहलाओं को एकांत साधना के िलए नारी उतथान आशम मे मौनमिनदर व साधना सदन आिद भी उपलबध कराये जाते है । इनमे अब तक दे श-िवदे श की हजारो

बहने साधना कर ईशरीय आननद और आनतिरक शिि जागरण की िदवयानुभूित पाप कर चुकी है ।

िवदा िथ ू यो के िलए स सती न ोटब ुक (उिरप ु िसतका ) संतशी आसाराम जी आशम, साबरमती, अहमदाबाद से पितवषू सकूलो एवं कालेजो

के िवदािथय ू ो के िलए पेरणादायी उिरपुिसतकाओं (Note Book) का िनमाण ू िकया जाता है । इन उिरपुिसतकाओं की सबसे बडी िवशेषता यह होती है िक इसके पतयेक पेज पर

संतो, महापुरषो की तथा गाँधी व लाल बहादरु जैसे ईमानदार नेताओं की पुरषाथू की ओर पेिरत करने वाली जीवनोदारक वाणी अंितम पंिि मे अंिकत रहती है । इनकी दस ू री

िवशेषता यह है िक ये बाजार के भाव से बहुत ससती होती ही है , साथ ही गुणविा की

दिि से भी बाजार उिरपुिसतकाओं की तुलना मे उतकृ ि, सुसजज एवं िचिाकषक ू होती है । िवदाथी जीवन

मे िदवयता पकटाने मे समथू संत शी आसाराम जी बापू के

तेजसवी संदेशो से सुसजज मुखय पष ृ ोवाली ये उिरपुिसतकाएँ िनधन ू बचचो मे यथािसथित

के दे खकर िनःशुलक अथवा आधे मूलय पर अथवा िरयायती दरो पर िवतिरत की जाती है , तािक िनधन ू ता के कारण भारत का भिवषयरपी कोई बालक अिशिकत न रह जाये। ये उिरपुिसतकाएँ बाजार भाव से 15 से 20 रपये पित दजन ू ससती होती है ।

इसीिलए भारत के चारो कोनो मे सथािपत शी योग वेदानत सेवा सिमितयो दारा पितवषू समाज मे हजारो नहीं, अिपतु लाखो की संखया मे इन नोटबुको का पचार-पसार िकया जाता है ।

भाषाजा नः यदिप संतशी आसाराम जी महाराज की लौिकक िशका केवल तीसरी कका तक ही

हुई है , लेिकन आतमिवदा, योगिवदा व बहिवदा के धनी आपशी को भारत की अनेक

भाषाओं, यथा-िहनदी, गुजराती, पंजाबी, िसंधी, मराठी, भोजपुरी, अवधी, राजसथानी आिद का जान है । इसके अितिरि अनय अनेक भारतीय भाषाओं का जान भी आपशी के पास संिचत है ।

सादगीः संतशी के जीवन मे सादगी एवं सवचछता कूट-कूट कर भरी हुई है । आप सादा

जीवन जीना अतयिधक उतकृ ि समझते है । वयथू के िदखावे मे आप कतई िवशास नहीं करते। आपका सूत है ः ‘जीवन मे तीन बाते अतयिधक जररी है - 1. सवसथ जीवन 2. सुखी जीवन 3. सममािनत जीवन।’ सवसथ जीवन ही सुखी जीवन बनता है तथा सतकमो का अवलंबन लेने से जीवन सममािनत बनता है ।

सव ू धम ू सम भावः आप सभी धमो का समान आदर करते है । आपकी मानयता है िक सारे धमो का

उदगम भारतीय संसकृ ित के पावन िसदानतो से ही हुआ है । आप कहते है -

"सारे धमू उस एक परमातमा की सिा उतपनन हुए है और सारे -के-सारे उसी एक

परमातमा मे समा जाएँगे। लेिकन जो सिृि के आरं भ मे भी था, अभी भी है और जो सिृि के अंत मे भी रहे गा, ही तुमहारा आतमा ही सचचा धमू है । उसे ही जान लो, बस। तुमहारी सारी साधना, पूजा, इबादत और पेयर (पाथन ू ा) पूरी हो जाएगी।" परम शो ितय बहिनष ः

आपशी को वेद, वेदानत, गीता, रामायण, भागवत, योगविशषमहारामायण, योगशास, महाभारत, समिृतयाँ, पुराण, आयुवद े आिद अनयानय धमग ू नथो का मात अधययन ही नहीं, आप इनके जाता होकर अनुभविनष आतमवेिा संत भी है । वष ू भर िकया शीलः

आपके िदल मे मानवमात के िलए करणा, दया व पेम भरा है । जब भी कोई दीनहीन आपशी को अपने दःुख-ददू की करणा गाथा सुनाता है , आप ततकण ही उसका

समाधान बता दे ते है । भारतीय संसकृ ित के उचचादशो का सथाियतव समाज मे सदै व बना ही रहे , इस हे तु आप सतत ् िकयाशील बने रहते है । भारत के पांत-पांत और गाँव-गाँव मे भारतीय संसकृ ित का अनमोल खजाना बाँटने के िलए आप सदै व घूमा ही करते है ।

समाज के िदशाहीन युवाओं को, पथभि िवदािथय ू ो को एवं लकयिवहीन मानव समुदाय को सनमागू पर पेिरत करने के िलए अनेक किो व िवघनो का सामना करते हुए भी आप

सतत पयतशील है । आप चाहते है िक कैसे भी करके, मेरे दे श का नौजवान सतयमागू का अनुसरण कर अपनी सुषुप शिियो को जागत ृ कर महानता के सवोतकृ ि िशखर पर आसीन हो जाए।

िवद े शग मनः सवप ू थम आप सन ् 1984 मे भारतीय योग और वेदानत के पचाराथू 28 मई से

िशकागो, सेटलुईस, लासएंजिलस, कोिलनसिवले, सैनफािनससको, कनाडा, टोरे नटो आिद शहरो मे पदापण ू िकये।

सन ् 1986 मे पुनः 26 अपैल से 8 मई तक आपने पूवी अफीका मे केनया के नैरोबी,

मोमबासा आिद शहरो मे भारतीय संसकृ ित तथा सनातन धमू के उपदे शामत ृ ो का शंखनाद िकया। इसके बाद 10 मई को लंदन आये तथा 12 मई तक यहाँ जनमानस को सतसंग

पवचन का लाभ पदान िकया। वहाँ से आपशी ने अमेिरका की ओर पसथान िकया। यहाँ पहुँचकर आपने 17 मई 1986 से नयजसी व नययाकू मे तथा 13 जून को U.S.A. के

िशकागो, इं गलवुड व जोिलयट मे, 14 एवं 15 जून को कनाडा के ओटावा मे, 18 से 22 जून

तक पुनः नयूयाकू व नयजसी मे तथा 29 जून से 5 जुलाई तक पुनः लंदन व िलसटर मे भारत के अधयातम का पचार िकया। ततपिात आप सवदे श लौटे ।

सन ् 1987 मे िसतमबर-अिूबर माह के दरमयान आपशी भारतीय भिि-जान की

सिरता पवािहत करने इं गलैड, पििमी जमन ू ी, िसवटजरलैड, अमेिरका व कनाडा के पवास पर पधारे । 19 अिूबर, 1987 को िशकागो मे आपने एक िवशाल धमस ू भा को समबोिधत िकया।

सन ् 1989 मे 8 से 10 अिूबर तक आपशी ने मुिसलम राष दब ु ई मे, 28 से 31

अिूबर तक हाँगकाँग मे तथा 1 से 3 नवमबर तक िसंगापुर मे भिि-जान की गंगा पवािहत की।

आपशी सन ् 1993 मे 19 जुलाई से 4 अगसत तक हांगकांग, ताईवान, बैकाक,

िसंगापुर, इं डोनेिशया (मुिसलम राष) मे सतसंग पवचन िकये। ततपिात आप सवदे श लौटे । लेिकन मानवमात के िहतैषी इन महापुरष को चैन कहाँ? अतः वेदानत शििपात साधना

िशिवर के माधयम से मानव मन मे सोई हुई आधयाितमक शिियो को जागत ृ करने आप 12 अगसत 1993 को पुनः नयजसी, नयूयाकू, बोसटन, आलबनी, िकलपटन, जोिलयट,

िलटलिोकस आिद सथानो के िलए रवाना हुए। इसी दौरान आपशी ने िशकागो मे

आयोिजत ‘िव श धम ू संसद’ मे भाग लेकर भारत दे श को गौरवािनवत िकया। ततपिात कनाडा के टोरे नटो व िमसीसोगा तथा िबटे न के लंदन एवं िलसटर मे अधयातम िवदा की पताका लहराते हुए आप भारत लौटे ।

सन ् 1995 मे पुनः 21 से 23 जुलाई तक अमेिरका के नयूजसी मे, 28 से 31 जुलाई

तक कनाडा के टोरे नटो मे, 5 से 8 अगसत तक िशकागो मे तथा 12 से 14 अगसत तक िबटे न के लंदन मे आपशी के िदवय सतसंग समारोह आयोिजत हुए। िश षय ो की स ंखयाः

भारत सिहत िवश के अनय दे शो मे आपशी के िशषयो की संखया 15 लाख से भी अिधक है । िविभनन धमो, समपदाय, मजहबो के लोग जाित-धमू का भेदभाव भूलकर

आपशी के मागद ू शन ू मे ही जीवनयापन करते है । आपके शोताओँ की संखया तो करोडो मे है । वे आज भी अतयिधक एकागता के साथ आपशी के सुपवचनो का ऑ़़िडयो-िविडयो कैसेटो के माधयम से रसपान करते है ।

यह अतयिधक आियू का िवषय है । अनेक िशषय तो पी.एच.डी., डॉकटर, इं जीिनयर,

वकील, पाधयापक, राजनेता एवं उदोगपित है ।

अधयातम मे भी आप सभी मागो भिियोग, जानयोग, िनषकाम कमय ू ोग एवं

कुंडिलनी योग का समनवय करके अपने िविभनन सतर के िजजासु साधक -िशषयो के िलए सवाग ा ीण िवकास का मागू पशसत करते है । आशम मे सतसंग-पवचन के बाद आपशी के

घंटो तक वयासपीठ पर ही िवराजमान रहकर समाज के िविभनन वगो के दीन-दिुखयो एवं रोिगयो की पीडा सुनकर उनहे िविभनन समसयाओं से मुि होने की युिियाँ बताते है ।

आशम मे िशिवर के दौरान तीन कालखंडो मे दो-दो घंटे के सतसंग पवचन होते है , लेिकन उसके बाद दीन-दिुखयो की सुबह-शाम तीन-तीन घंटे तक कतारे चलती है , िजसमे आपशी उनहे िविभनन समसयाओं का समाधान बतलाते है ।

िसंहसथ (कुम भ ) उजज ैन व अध ू कुमभ इ लाहाबादः

सन ् 1992 मे उजजैन मे आयोिजत िसंहसथ (कुमभ) मे आपशी का सतसंग सतत

एक माह तक चला। िदनांक 17 अपैल से 16 मई, 1992 तक चले इस िवशाल कुमभ मेले मे संत आसाराम जी नगर की िवशालता, भवयता, साज-सजजा एवं कुशल संचालन तथा

समुिचत सुनदर वयवसथा ने दे श-िवदे श से आये करोडो लोगो को पभािवत एवं आकिषत ू िकया।

आपकी अनुभव समपनन वाणी िजसके भी कानो से टकराई, बस उसे यही अनुभव

हुआ िक जीवन को वासतिवक िदशा पदान करने मे आपके सुपवचनो मे भरपूर सामथयू

है । यही कारण है िक सतत एक माह तक पितिदन दो-ढाई लाख से भी अिधक बुिदजीवी शोताओं से आपकी धमस ू भा भरी रहती थी और सबसे महान आियू तो यह होता िक

इतनी िवशाल धमस ू भा मे कहीँ भी िकसी शोता की आवाज या शोरगुल नहीं सुनाई पडता

था। सबके-सब शोता आतमानुशासन मे बैठे रहते थे। यह िवशेषता आपके सतसंग मे आज भी मौजूद है ।

आपशी के सतसंग राषीय िवचारधारा के होते है , िजनमे सामपदाियक िवदे ष की

तिनक भी बू नहीं आती। आपशी की वाणी िकसी धमिूवशेष के शोता के िलए नहीं अिपतु

मानवमात के िलए कलयाण कारी होती है । यही कारण है िक इलाहाबाद के अधक ू ु मभ मेले के अंितम िदनो मे आपके सतसंग-पवचन कायक ू म आयोिजत होने पर भी कािी समय

पूवू से आई भारत की शदालु जनता आपशी के आगमन की पतीका करती रही। िदनांक 1 से 4 िरवरी, 1995 तक आपका पयाग (इलाहाबाद) के अधक ू ु मभ मे िसंहसथ उजजैन के समान ही िवराट सतसंग समारोह हुआ।

राषी य व अन तरा ू ष ीय मीिडया पसारणः

ऐसे तो भारत के कई शहरो एवं कसबो मे आपशी के यूमिै टक, िबटाकेम व यू.एच.एस. कैसेटो के माधयम से िनजी चैनलो पर लोग घर बैठे-बैठे ही सतसंग का लाभ लेते है लेिकन िविभनन पवो, उतसवो आिद के अवसर पर भी आपशी के कलयाणकारी

सुपवचन आकाशवाणी एवं दरूदशन ू के िविभनन सटे शनो तथा राषीय पसारण केनदो से भी पसािरत िकये जाते है ।

िवदे श पवास के दौरान वहाँ के लोगो को भी आपशी के सुपवचनो का लाभ पदान करने की दिि से आपके वहाँ पहुँचते ही िवदे शी मीिडया सिकय हो जाता है तथा आपके कायक ू मो को िरकाडू कर िवदे शी जनता को उसका लाभ िदया जाता है । कनाडा के एक रे िडयो सटे शन ‘जानधार’ पर तो आज भी भजनावली कायक ू म मे आपशी के सतसंग िवशेष रप से पसािरत िकये जाते है ।

िवशधमू संसद मे भी आपशी की िवदता से पभािवत होकर िशकागो दरूदशन ू ने

आपके इनटरवयू को पसािरत िकया था, िजसे िवदे शो मे लाखो दशक ू ो ने सराहा था एवं पुनपस ू ारण की माँग भी की थी।

आपशी के सुपवचनो की अनतराष ू ीय लोकिपयता को दे खते हुए जी.टी.वी. ने भी

माह अिूबर, 1994 से अपने रिववारीय सापािहक सीिरयल ‘जागरण’ के माधयम से अनको सपाह के िलए आपके सतसंग-पवचनो का अनतराष ू ीय पसारण आरमभ िकया। इसके

िनयिमत पसारण की माँग को लेकर जी.टी.वी. कायक ू म मे भारत सिहत िवदे शो से हजारोहजारो पत आये थे। दशक ू ो की माँग पर जी.टी.वी. ने इस कायक ू म का दै िनक पसारण ही आरमभ कर िदया। ए.टी.एन., सोनी, यस आिद चैनल भी पूजयशी के सुपवचनो का अनतराष ू ीय पसारण करते रहते है ।

भारतीय दरूदशन ू के राषीय पसारण केनद एवं केतीय सटे शनो से आपके सुपवचनो

का तो अनेकानेक बार पसारण हो चुका है । आपके जीवन तथा आशम दारा संचािलत सतपविृियो पर िदलली दरूदशन ू दारा िनिमत ू िकये गये वि ृ िचत ‘कलपवक ृ ’ का राषीय

पसारण िदनांक 9 माचू, 1995 को पातः 8.40 से 9.12 बजे तक िकया गया, िजसके पुनः पसारण की माँग को लेकर दरूदशन ू के पास हजारो पत आये। िलसवरप, िदनांक 25 िसतमबर, 1995 को दरूदशन ू ने पुनः इसका राषीय पसारण िकया।

इसके अितिरि संतशी आसारामजी महाराज के सतसंग-पवचन िजस केत मे

आयोिजत होते है , वहाँ के सभी अखबार आपके सतसंग-पवचनो के सुवाकयो से भरे होते है ।

िव श धम ू संसद िशकागो म े पव चनः माह िसतमबर, 1993 के पथम सपाह मे िशकागो मे िवश धमस ू ंसद का आयोजन

िकया गया था िजसमे समपूणू िवश से 300 से अिधक विा आमंितत थे। भारत से आपशी को भी वहाँ मुखय विा के रप मे आमंितत िकया गया था। आपके सुपवचन वहाँ िदनांक 1 से 4 िसतमबर, 1993 के दौरान हुए। यह आियू का िवषय है िक पहले िदन आपको

बोलने के िलए केवल 35 िमनट का समय िमला, लेिक 55 िमनट तक आपशी को सभी

मंतमुगध होकर शवण करते रहे । अंितम िदन आपको सवा घंटे का समय िमला, लेिकन सतत एक घंटा 55 िमनट तक आपशी के सुपवचन चलते रहे । िवशधमू संसद मे आप ही

एकमात ऐसे भारतीय विा थे, िजनहे तीन बार जनता को समबोिधत करने का सुअवसर पाप हुआ।

संपूणू िवश से आये हुए िवशाल एवं पबुद शोताओं की सभा को समबोिधत करते

हुए आपशी ने कहाः

"हम िकसी दे श मे, िकसी भी जाित मे रहते हो, कुछ भी कमू करते हो, लेिकन

सवप ू थम मानवािधकारो की रका होनी चािहए। पहले मानवािधकार होते है , बाद मे मजहबी अिधकार। लेिकन आज हम मजहबी अिधकारो मे, संकीणत ू ा मे एक-दस ू रे से िभडकर अपना वासतिवक अिधकार भूलते जा रहे है ।

जो वयिि, जाित, समाज और दे श ईशरीय िनयमो के अनुसार चलता है , उसकी

उननित होती है तथा जो संकीणत ू ा से चलता है , उसका पतन होता है । यह ईशरीय सिृि का िनयम है ।

आज का आदमी एक-दस ू रे का गला दबाकर सुखी रहना चाहता है । एक गाँव दस ू रे

गाँव को और एक राष दस ू रे राष को दबाकर खुद सुखी होना चाहता है , लेिकन यह सुख का साधन नहीं है । सुख का सचचा साधन है , एक दस ू रे की मदद व भलाई करना। सुख चाहते हो तो पहले सुख दे ना सीखो। हम जो कुछ करते है , घूम ििरकर वह हमारे पास

आता है । इसीिलए िवजान के साथ-साथ मानवजान की भी जररत है । आज का िवजान

संसार को सुनदर बनाने की बजाय भयानक बना रहा है कयोिक िवजान के साथ वेदानत का जान लुप हुआ जा रहा है ।

आपशी ने आहान िकयाः हम चाहे U.S.A. के हो, U.K. के हो, भारत के हो,

पािकसतान के हो या अनय िकसी भी दे श के, आज िवश को सबसे बडी आवशयकता है िक वह पथभि और िवनि होती हुई युवा पीढी को यौिगक पयोग के माधयम से बचा ले

कयोिक नई पीढी का पतन होना पतयेक राष के िलए सबसे बडा खतरा है । आज सभी जाितयो, मजहबो एवं दे शो को आपसी तनावो तथा संकीणू मानिसकताओं को छोडकर

तरणो की भलाई मे ही सोचना चािहए। िवश को आज आवशयकता है िक वह योग और वेदानत की शरण मे जाये।

आपशी ने आहान िकयाः "इस युग के समसत विाओं से, चाहे वे राजनीित के केत

के हो या धमू के केत के, मेरी िवनम पाथन ू ा है िक वे समाज मे िवदोह पैदा करने वाला भाषण न करे अिपतु पेम बढाने वाला भाषण दे ने का पयास करे । मानवता

को िवदोह

की जररत नही ं ह ै अ िपत ु परसपर प ेम व िनकट ता की ज ररत है। िकसी

भारतवासी के िकसी कृ तय पर भारत के धमू की िननदा करके मानव जाित को सतय से दरू करने की कोिशश न करे – यह मेरी पाथन ू ा है ।"

बार-बार तािलयो की गडगडाहट के साथ आपशी के सुपवचनो का जोरदार सवागत होता था। िवशधमू संसद मे ही भाग लेने आये एक अफीकी धमग ू ुर तो आपशी की

यौिगक शिियो से इतने पभािवत हुए िक वे बार-बार नतमसतक होकर आपके चरण चूमने लगे तथा दीकापािप की माँग करने लगे। पवचनो की स ंखयाः

अब तक दे श-िवदे श मे आपशी के हजारो पवचन आयोिजत हो चुके है , िजनमे

8400 घंटो के आपशी के सुपवचन आशम मे ऑिडयो कैसेट मे िरकाडू िकये हुए रे काडू रम मे रखे हुए पडे है । आपशी के पावन सािननधय मे आधयाितमक शिियो के जागरण के

िलए आयोिजत होने वाले िशिवरो मे सवप ू थम िशिवर मे मात 163 िशिवरािथय ू ो ने भाग िलया था, जबिक होली पवू 1995 के सूरत आशम के िशिवर मे दस हजार से अिधक िशिवराथी थे। यह शििपात-वषाू के लाभ का चमतकार है । आिद वासी उ तथान काय ू क मः

संतशी आसाराम जी बापू केवल पवचनो अथवा वेदानत शििपात साधना िशिवरो तक ही सीिमत नहीं रहते है अिपतु समाज के सबसे िपछडे वगू मे आने वाले, समाज से

कोसो दरू वनो और पवत ू ो मे बसे आिदवािसयो के नैितक, आधयाितमक, बौिदक, सामािजक एवं शारीिरक िवकास के िलए भी सदै व पयतशील रहते है । पवत ू ीय, वनय अथवा

आिदवासी बाहुलय केतो मे जाकर संतशी सवयं उनके बीच कपडा, अनाज, कमबल, छाछ,

भोजन व दिकणा का िवतरण करते-कराते है । अब तक आप भारत के िविभनन केतो मे

आिदवािसयो के उतथान हे तु अनेक कायक ू म व गितिविधयाँ संचािलत कर चुके है । जैसे, गुजरात मे धरमपुर, कोटडा, नानारांधा, भैरवी आिद; राजसथान मे सागवाडा, पतापगढ, कुशलगढ, नाणा, भीमाणा, सेमिलया आिद; मधयपदे श मे रायपुिरया, गढखंगई, सैलाना,

सरवन, अमझेरा आिद; महाराष मे नावली, खापर, जावदा, पकाशा आिद व उडीसा मे भदक आिद।

उपरोि विणत ू सथानो पर अनेक बार संतशी के पावन सािननधय मे आिदवािसयो

के उतथान के िलए भंडारा एवं सतसंग-पवचन समारोह आयोिजत हो चुके है । एकता व अख ंडता क े पब ल सम थू क ः

आप भारत की राषीय एकता एवं अखंडता के पबल समथक ू है । यही कारण है िक एक िहनद ू संत होने के बावजूद भी हजारो मुिसलम, ईसाई, पारसी, िसख, जैन व अनयानय

धमो के अनुयायी आपशी के िशषय कहलाने मे गवू महसूस करते है । आपशी की वाणी मे सामपदाियक संकीणत ू ा का िवदे ष लेशमात भी नहीं है । आपकी मानयता है ः

"संसार के िजतने भी मजहब, मत-पंथ, जात-नात आिद है , वे उसी एक चैतनय

परमातमा की सिा से सिुिरत हुए है और सारे -के-सारे एक िदन उसी मे समा जाएँगे।

ििर अजािनयो की तरह भारत को धमू, जाित, भाषा व समपदाय के नाम पर कयो िवखंिडत िकया जा रहा है ? िनदोष लोगो के लहू से भारत की पिवत धरा को रं िजत करने

वाले लोगो को तथा अपने तुचछ सवाथो की खाितर दे श की जनता मे िवदोह िैलाने वालो को ऐसा सबक िसखाना चािहए िक भिवषय मे कोई भी वयिि या जाित भारत के साथ गदारी करने की बात सोच भी न सके।"

आप ही की तरह आपका िवशाल िशषय-समुदाय भी भारत की राषीय एकता,

अखंडता व शांित का समथक ू होकर अपने राष के पित पूणरूपेण समिपत ू है ।

आपशी के सुपवचनो से सुसजज पुसतक ‘महक मुसाििर’ को भोपाल का एक

मौलवी (मुसलमान धमग ू ुर) पढकर इतना पभािवत हुआ िक उसने सवयं इस पुसतक का उदू ू मे अनुवाद िकया तथा मुिसलम समाज के िलए पकािशत करवाया। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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