िजनदगी का घर एक कारीगर था। उसने अपने मािलक के िलए बहुत सारे घर बनाए। पर अब वह बूढ़ा हो चला था। एक िदन उसे लगा िक उसे िरटायर हो जाना चािहए। वह अपने मािलक के पास गया और बोला,"मैने जीवन भर आपके िलए काम िकया, पर मै सोचता हूँ िक अब मै बूढ़ा हो चुका हूँ। अब मै बाकी की िजनदगी अपने पिरवार के साथ िबताना चाहता हूँ।" उसका मािलक मान तो गया पर उसने कारीगर से एक आिखरी घर बनाने को कहा। कारीगर ये काम लेना तो नही चाहता था, पर िफर भी उसने इसे आिखरी काम समझकर सवीकार कर िलया। कारीगर ने बुझे हुए मन से घर बनाना शुर िकया। फलसवरप घर मे अनेक खािमया आने लगी। शायद यह उसके जीवन का सबसे बुरा काम था। जब घर बनकर तैयार हो गया तो वह अपने मािलक के पास गया। मािलक ने उसे उसके बनाये हुए घर की चाभी थमाते हुए कहा,"मैने देखा िक तुमहारे पास अपना कोई घर नही था। मैने ये आिखरी घर तुमहे बनाने को कहा था, तािक मै तुमहे ये घर ईनाम के तौर पर दे सकूँ।" अब कारीगर को अफसोस हो रहा था। अगर उसने वह घर धैयर और लगन से बनाया होता तो उसके पिरवार को अचछा घर िमलता। हमारी िजनदगी भी ऐसी ही है, ये वैसी ही बनती है, जैसा हम इसे बनाना चाहते है।